अंतरराष्ट्रीय
बीजिंग. चीन पर एक बार फिर कोरोना का खतरा मंडराने लगा है. देश में डेल्टा वैरिएंट के खौफ की वजह से लाखों की संख्या में लोगों को घरों के भीतर रहने के निर्देश दिए गए हैं. दरअसल सोमवार को देश में डेल्टा वैरिएंट के 55 केस मिले हैं. ये केस देश के 20 शहरों में मिले हैं. डेल्टा वैरिएंट की संक्रामक क्षमता के देखते हुए चीनी सरकार ने सक्रियता बरतनी शुरू कर दी है. चीन में इतनी बड़ी संख्या में एक दिन में कोरोना के मामले लंबे समय बाद सामने आए हैं.
पूरे देश के विभिन्न शहरों में स्थानीय प्रशासन ने कोरोना टेस्टिंग की रफ्तार बढ़ा दी है. राजधानी बीजिंग में भी टेस्टिंग स्पीड बढ़ाई गई है. देश के हुनान प्रांत के झूझाउ शहर में करीब 12 लाख लोगों को तीन दिनों तक सख्त लॉकडाउन में रहने के आदेश दिए गए हैं. स्थानीय प्रशासन का कहना है कि कोरोना की स्थिति गंभीर हो सकती है.
कोरोना को काबू में करने के लिए चीन थपथपाता रहा है अपनी पीठ
बता दें 2019 में चीन में ही पहली बार कोरोना का आउटब्रेक हुआ था. इसके बाद कोरोना की स्थिति को काबू में करने के लिए चीनी सरकार ने अपनी पीठ कई बार थपथपाई है. लेकिन भारत के बाद यूरोपीय देशों में तबाही मचा रहा डेल्टा वैरिएंट अब चीन का भी रुख कर चुका है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान में कहा, ‘कई संक्रमण रोकथाम उपायों को सही तरीके से लागू नहीं किया गया, जिसकी वजह से नए मामले तेजी से फैले हैं.’
चीनी अधिकारी ने स्थिति के गंभीर होने की कही बात
चीन के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने बीते शनिवार को कहा था कि कोरोना वायरस का घातक डेल्टा स्वरूप का देश के और अधिक क्षेत्रों तक फैलना जारी रह सकता है क्योंकि यह व्यस्ततम हवाईअड्डों में से एक नानजिंग हवाईअड्डे पर पाया गया है जहां गर्मी में सैकड़ों पर्यटक पहुंचे. राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के वरिष्ठ अधिकारी एच किंघुआ ने संवाददाताओं से कहा कि पूर्वी चीन में जिआंग्सु प्रांत के नानजिंग शहर में डेल्टा स्वरूप की नयी लहर का अल्पकालिक अवधि में और अधिक क्षेत्रों तक फैलना जारी रह सकता है.
बीजिंग, 2 अगस्त | 2 अगस्त को दुनिया के 100 से अधिक देशों और क्षेत्रों की 300 से अधिक पार्टियों, सामाजिक संगठनों और थिंक-टैंक ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सचिवालय को संयुक्त बयान भेजा। इस संयुक्त बयान के अनुसार, उन्होंने मानव जीवन सुरक्षा और स्वास्थ्य के प्रति नये कोरोना वायरस के गंभीर खतरों से अवगत करवाने की अपील की। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को महामारी-रोधी सहयोग को मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने डब्ल्यूएचओ से वायरस की ट्रेसिबिलिटी का उद्देश्य और निष्पक्ष अनुसंधान करने की अपील की और वायरस की ट्रेसिबिलिटी का राजनीतिकरण किये जाने का विरोध भी प्रकट किया।
संयुक्त बयान के अनुसार मानव एक भाग्य समुदाय है। बड़े संकट के सामने कोई भी देश अकेला रह नहीं सकता है। महामारी से जीतने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सहयोग आगे बढ़ाना चाहिये। वायरस की ट्रेसिबिलिटी एक वैज्ञानिक प्रश्न है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों को सहयोग कर इस प्रश्न का अनुसंधान करना और तथ्यों व सबूतों के आधार पर वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालना चाहिये।
इस बयान में पता चला है कि वायरस की ट्रेसिबिलिटी सभी देशों का आम दायित्व है। यह डब्ल्यूएचओ की महासभा द्वारा प्रकाशित संकल्प की आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं है कि डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों से जरूरी बातचीत के बगैर डब्ल्यूएचओ के सचिवालय ने वायरस की ट्रेसिबिलिटी के दूसरे चरण की परियोजना एकतरफा रूप से प्रस्तावित की।
साथ ही, यह बात न केवल दुनिया भर वायरस की ट्रेसिबिलिटी के अनुसंधान के नवीनतम परिणामों को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करती है, बल्कि वायरस की ट्रेसिबिलिटी क्षेत्र में वैश्विक सहयोग को बढ़ाने के लिए हानिकारक है। डब्ल्यूएचओ के सचिवालय को सदस्य देशों के साथ सहयोग करना चाहिये।
बयान के अनुसार इन पार्टियों, सामाजिक संगठनों और थिंक टैंक ने वायरस की ट्रेसिबिलिटी के राजनीतिकरण का ²ढ विरोध प्रकट किया। इसके अलावा उन्होंने राजनीतिक कारकों व राजनीतिक जोड़-तोड़ के संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया और महामारी-रोधी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर हस्ताक्षर कर ²ढ़ विरोध जताया।
बयान के अनुसार चीन समेत कुछ देशों को प्रशंसा की गयी है कि उन देशों ने पूरी दुनिया विशेषकर विकासशील देशों को वैक्सीन की मदद दी। उन्होंने महामारी के खिलाफ वैश्विक सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बयान के मुताबिक वैक्सीन के अनुसंधान, विकास व उत्पादन से सक्षम देशों को संबंधित वैक्सीन के निर्यात प्रतिबंधित और ओवरस्टॉकिंग करने से बचना चाहिये।
उन्होंने अपील की कि सभी देशों की पार्टियों और संगठनों को संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सक्रिय बढ़ाना और मानव स्वच्छता व स्वास्थ्य समुदाय के निर्माण के लिये संयुक्त प्रयास करना चाहिये।(आईएएनएस)
ऑस्ट्रेलियाई फिनटेक कंपनी 'आफ्टरपे' सात साल पहले "अभी खरीदो, भुगतान बाद में करो" के सपने के साथ शुरू की गई थी. अब इसे अमेरिकी डिजिटल भुगतान कंपनी 'स्क्वायर' 29 अरब डॉलर में खरीद रही है.
'स्क्वायर' ट्विट्टर के संस्थापक और सीईओ जैक डॉर्सी की कंपनी है. कहा जा रहा है कि 'आफ्टरपे' को खरीदने का यह सौदा इतना बड़ा है जितना बड़ा ऑस्ट्रेलिया में आज तक नहीं देखा गया. आफ्टरपे का ऐप उपभोक्ताओं को छोटी छोटी खरीदारी भी नियमित किश्तों में करने की सुविधा देता है.
यह क्रेडिट कार्ड के जैसा लग सकता है, लेकिन इसमें किश्तों में भुगतान करने के लिए ना कोई ब्याज चुकाना पड़ता है और ना जुड़ने का शुल्क. इसके अलावा खर्च की सीमा को कम ही रखा जाता है. हालांकि जो निर्धारित भुगतान नहीं करते हैं उन्हें देरी करने का शुल्क जमा करना पड़ता है.
कैसे कमाती है कंपनी
ऑस्ट्रेलियाई उपभोक्ताओं के लिए यह शुल्क खरीदे गए सामान की कीमत का 25 प्रतिशत तक हो सकता है, लेकिन इसमें प्रति आर्डर 68 डॉलर की सीमा है. कंपनी की अधिकतर कमाई विक्रेताओं से लेन देन शुल्क लेकर होती है. आफ्टरपे का इतेमाल करने वाली दुकानों की लागत लेन देन के कुल मूल्य के करीब चार प्रतिशत के आस पास बैठती है, लेकिन बाकी नकद वो सीधा कमा लेती हैं.उन्हें भुगतान ना होने का जोखिम भी नहीं उठाना पड़ता है. 'आफ्टरपे' की स्थापना 2014 में ऑस्ट्रेलिया में ही रहने वाले ऐंथनी आइसेन और निक मोलनार ने की थी. मोलनार 31 साल के हैं और 'आफ्टरपे' शुरू करने से पहले इंटरनेट पर आभूषण बेचने का काम किया करते थे.
उनके पड़ोसी आइसेन कई सालों से फाइनेंस और निवेश के क्षेत्रों में काम कर चुके थे. दोनों ने जब हाथ मिलाया तो मोलनार के घर में ही 'आफ्टरपे' का जन्म हुआ. इसे बनाने के पीछे दोनों का उद्देश्य कैशलेस जीवनशैली अपना रहे मिलिनियलों को लुभाना था.
युवाओं में लोकप्रिय
'स्क्वायर' के साथ हुए इस सौदे के पहले ही दोनों अरबपति बन चुके थे, लेकिन माना जा रहा है कि अब दोनों की संपत्ति में काफी इजाफा हो जाएगा. 'आफ्टरपे' अब ऑस्ट्रेलिया के अलावा अमेरिका, कनाडा, यूके, फ्रांस और इटली में भी मौजूद है. दुनिया भर में ऐप के 1.6 करोड़ से भी ज्यादा उपभोक्ता हैं और लगभग 100,000 विक्रेता इसका इस्तेमाल करते हैं."अभी खरीदो, भुगतान बाद में करो" सुविधा देने वाली दूसरी सेवाओं के अलावा, इस ऐप को युवाओं के ऑनलाइन खर्च के तरीके को पूरी तरह से बदल देने का श्रेय भी दिया जाता है. कुछ आलोचकों ने चिंता व्यक्त की है कि इस तरह के ऐप लोगों को वो पैसा खर्च करने के लिए लुभा सकते हैं जो असल में उनके पास है नहीं.
इस तरह की सेवाएं अधिकांश देशों में अनियंत्रित हैं, जिसकी वजह से नियामकों से मांग भी की जा रही है कि वो उपभोक्ताओं की रक्षा करने के लिए हस्तक्षेप करें. इसी साल मार्च में 'आफ्टरपे' और सात दूसरी ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों ने एक स्वैच्छिक औद्योगिक आचार संहिता बनाई और उस पर हस्ताक्षर किए.
विनियमन की जरूरत
कैलिफोर्निया के नियामकों ने जब 'आफ्टरपे' पर बिना लाइसेंस के ऋण देने का व्यापार चलाने का आरोप लगाया, तो कंपनी ने लगभग 10 लाख अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना स्वीकार किया. 'स्क्वायर' के पास पहले से 'कैश ऐप' नाम की एक मोबाइल भुगतान सेवा है, जिसे हर साल करीब सात करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं.
कंपनी की योजना है कि 'आफ्टरपे' की सेवाओं को अपनी मौजूदा सेवाओं के साथ समाहित कर लिया जाए. इन सेवाओं में 'सेलर' भी शामिल है. कंपनी का कहना है कि ये सेवाएं क्रेडिट के पारंपरिक तरीकों से दूर जा रही युवा पीढ़ी को आकर्षित करती हैं. दोनों कंपनियों का कहना है कि इस सौदे से दोनों को और विस्तार करने में मदद मिलेगी और वो नए ग्राहकों और विक्रेताओं तक पहुंच पाएंगी. उम्मीद की जा रही है कि सौदा 2022 की शुरुआत में पूरा हो जाएगा. (dw.com)
सीके/ (एएफपी)
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अगले तीन महीनों में 23 देशों में गंभीर भूख संकट मंडरा रहा है. इथियोपिया, दक्षिणी मैडागास्कर, यमन, दक्षिण सूडान और उत्तरी नाइजीरिया में स्थितियां भयावह हो सकती हैं.
(dw.com)
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने अगस्त और नवंबर के बीच भूख संकट का सामना कर रहे संभावित देशों पर ताजा रिपोर्ट जारी की. उन्होंने कहा कि भोजन की कमी से स्थिति और खराब हो सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे देशों में इथियोपिया सबसे ऊपर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर तत्काल सहायता नहीं दी गई, तो इथियोपिया में भूखे और भूख से मरने वाले लोगों की संख्या चार लाख पार कर सकती है. यह सोमालिया में 2011 के अकाल से मरने वालों की संख्या से भी अधिक है.
एफएओ और डब्ल्यूएफपी की रिपोर्ट कहती है कि भूख संकट न केवल अपने आकार बल्कि इसकी गंभीरता के संदर्भ में भी गंभीर होता जा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है, "अगर जीवन और आजीविका बचाने के लिए तत्काल सहायता नहीं दी जाती है, तो दुनिया भर में कुल 4.1 करोड़ लोगों के सामने भुखमरी या अकाल जैसी स्थिति का खतरा है."
कोविड-19 और अन्य कारण
संयुक्त राष्ट्र की दोनों एजेंसियों ने इथियोपिया के टिग्रे, दक्षिणी मैडागास्कर और पांच सबसे गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों का हवाला देते हुए वैश्विक भूख संकट से सबसे अधिक प्रभावित 23 देशों में तत्काल सहायता का आह्वान किया है. यमन, दक्षिण सूडान और उत्तरी नाइजीरिया में अकाल और मौतों को रोकने के लिए तत्काल सहायता की जरूरत है.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों का कहना है कि "बिगड़ती स्थिति का मुख्य कारण इन क्षेत्रों में चल रहे संघर्ष के साथ-साथ कोविड-19 की महामारी के प्रभाव हैं."
खाद्य कीमतों में वृद्धि, परिवहन प्रतिबंधों के कारण बाजार तक सीमित पहुंच, मुद्रास्फीति के कारण क्रय शक्ति में गिरावट, साथ ही विभिन्न आपदाओं के कारण फसल को नुकसान भूख संकट के बढ़ने के अन्य कारण हैं.
अफगानिस्तान में भी भूख संकट
रिपोर्ट के मुताबिक 'गंभीर खाद्य असुरक्षा' से पीड़ित लोगों की सबसे अधिक संख्या वाले नौ देशों में अफगानिस्तान भी एक है. अन्य देश बुरकिना फासो, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, कोलंबिया, कांगो, हैती, होंडुरास, सूडान और सीरिया हैं.
एफएओ और डब्ल्यूएफपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जून और नवंबर के बीच अफगानिस्तान में 35 लाख लोगों को भोजन की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जो दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. इससे कुपोषण और मौत का खतरा बना रहता है.
रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि अगस्त तक अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी से हिंसा में वृद्धि हो सकती है, अधिक लोगों का विस्थापन हो सकता है और मानवीय सहायता वितरित करने में कठिनाई हो सकती है.
सबसे ज्यादा प्रभावित देश
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का कहना है कि दक्षिण सूडान, यमन और नाइजीरिया अलर्ट सूची में सबसे ऊपर हैं. इथियोपिया और दक्षिणी मैडागास्कर को भी पहली बार सूची में जोड़ा गया है.
उनका कहना है कि अक्टूबर और नवंबर 2020 से दक्षिण सूडान के पाबोर काउंटी के कुछ हिस्सों में अकाल पड़ रहा है और समय पर और निरंतर मानवीय सहायता की कमी के साथ-साथ दो अन्य क्षेत्रों में भी स्थिति जारी रहने की संभावना है.
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का कहना है, "यमन में स्थिति जहां अधिक लोग भूख से मर रहे हैं, वहां कुछ हद तक नियंत्रित किया गया है, लेकिन स्थिति बेहद अस्थिर है."
एए/वीके (एपी)
पिछले साल कोविड लॉकडाउन के दौरान लगी पाबंदियों के बीच महिलाओं का पीछा करने और नुकसान पहुंचाने की धमकियों जैसे मामलों में कमी आने की बजाय इजाफा हुआ है.
डॉयचे वैले पर स्वाति बक्शी की रिपोर्ट
ब्रिटेन के ऑफिस ऑफ नैशनल स्टैटिस्टिक्स (ओएनएस) यानी राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक इंग्लैंड और वेल्स में साल 2020 में स्टॉकिंग के 80 हजार मामले दर्ज किए गए. ये साल 2019 में दर्ज 27 हजार 156 मामलों पर भयंकर बढ़त है लेकिन पिछले साल आंकड़े जुटाने के तरीकों में बदलाव के चलते इन नंबरों को एक साथ रखकर देखा नहीं जा सकता.
ओएनएस के ही 2017 के आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन में हर पांच में से एक महिला अपने जीवन में इस अपराध की शिकार होती है. एक और अहम बात ये है कि जिस तेजी से स्टॉकिंग के मामले बढ़े हैं, गिरफ्तारियां उस गति से नहीं हुई. बीबीसी ने सूचना की स्वतंत्रता अधिकार का इस्तेमाल करते हुए इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड में पुलिस सेवाओं से गिरफ्तारियों पर जानकारी हासिल की जिसके आधार पर ये पता चला है कि अपराधियों को हिरासत में लेने की रफ्तार बेहद धीमी है.
साल 2019 में पीछा करने और मानसिक प्रताड़ना से जुड़े मामले में बाइस महीने की सजा पाने वाले भारतीय रोहित शर्मा का मामला सुर्खियों में रहा. स्टॉकिंग का ये सिलसिला 18 महीने तक चला जिसमें रोहित ने कई तरीकों का इस्तेमाल करते हुए एक लड़की का पीछा किया.
शादी के लिए मजबूर करने के इरादे से रोहित ने अलग अलग नंबरों से लड़की को दिनभर में 40 कॉल करने और उसके काम की जगहों पर नजर रखने जैसे तरीके अपनाए. लड़की ने खुद को मानसिक प्रताड़ना से बचाने के लिए काम की जगहें, फोन नंबर और घर तक बदल डाला लेकिन मामले का अंत पुलिस की कार्रवाई के बिना मुमकिन नहीं हुआ जिसमें एक साल से ऊपर का वक्त लग गया.
सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे
पीछा करने से जुड़े अपराधों में ज्यादातर पीड़ित महिलाएं कानून का सहारा लेने में हिचकिचाती हैं. खास बात ये भी है कि स्टॉकिंग हो रही है इसे स्वीकार करने में भी महिलाओं को वक्त लगता है. ये रवैया व्यापक तौर पर देखा जाता है और ब्रिटिश-भारतीय महिलाओं में आम है.
लंदन के हाउंसलो इलाके में रहने वाली, पेशे से डेंटिस्ट एक भारतीय महिला ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, ”ब्रिटिश-भारतीय समुदाय में शायद ही कोई ऐसी महिला होगी जो इस बारे में खुलकर बात करना चाहेगी. इसका मतलब ये नहीं है कि उनके साथ ये हुआ नहीं है. इसका मतलब ये है कि उन्हें अपने ही लोगों के बीच होने वाली बातों का डर है”.
युवा ब्रिटिश-भारतीय लड़कियों के ख्याल भी ऐसे हैं जो कानूनी मदद के प्रति ज्यादा भरोसा नहीं जगाते. 23 बरस की भारतीय छात्रा सुचित्रा (बदला हुआ नाम) ने बातचीत में बताया कि "शुरुआत में समझ ही नहीं आता कि ये क्या हो रहा है. कई बार लगता है कि सबके साथ होता होगा इसलिए वक्त के साथ बंद हो जाएगा. डर तो होता है लेकिन किसी तरह बच कर निकलना होता है. पुलिस तक जाने से हंगामा होगा."
महिलाओं में स्टॉकिंग के मामलों को रफा-दफा करने के पीछे समुदाय में बातचीत का मुद्दा बन जाने का डर बड़ी भूमिका निभाता है और विशेषज्ञ इसे स्वीकार करते हैं.
ब्रिटेन में स्टॉकिंग पर जानकारी और प्रशिक्षण के क्षेत्र में एक दशक से काम कर रहीं ऐलिसन बर्ड कहती हैं, "ऐसे अपराध झेलने वाली औरतों को ज्यादा चिंता इस बात की होती है कि लोग अपराधी के बारे में नहीं बल्कि उनके बारे में ही चर्चा करेंगे. ऐसे मामलों में महिला की सुरक्षा का इंतजाम करना भी कठिन हो जाता है क्योंकि समुदाय ही अपराधी के लिए सूचनाएं इकट्ठा करने का जरिया बन सकता है. ब्रिटेन में रहने वाले कुछ समुदायों में ये प्रवृत्ति वाकई बहुत ज्यादा चिंताजनक तरीके से काम करती है.” यानी महिलाओं की चुप्पी में अपराधी से ज्यादा सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने का डर समाया हुआ है.
कानून और पुलिस की भूमिका
पीछा करने से जुड़े अपराधों में पुलिस की मदद लेने वाली महिलाओं के अनुभव ये बताते हैं कि उन्हें मामले से निजात पाने में जैसी मदद मिलनी चाहिए थी, वो नहीं मिली. एक ब्रिटिश महिला रेचल (बदला हुआ नाम) ने ईमेल के जरिए अपनी आपबीती बांटते हुए बताया कि एक शख्स से ऑनलाइन मिलने के बाद डेटिंग शुरू हुई. जब रेचल ने इस सिलसिले को खत्म करने का फैसला किया तो पीछा करने और मानसिक प्रताड़ना का लंबा दौर शुरू हुआ.
रेचल कहती हैं "मैंने पुलिस की मदद ली लेकिन उसने मुझे बेहिसाब फोन करना, मेरे बेटे और मुझे नुकसान पहुंचाने की धमकियां देना और मेरा घर जला देने की बातें करना नहीं छोड़ा. एक बार पुलिस ने गिरफ्तार भी किया लेकिन छह महीने बाद वापस आकर उसने फिर वही सब शुरू कर दिया. पुलिस ने पहले मेरे मामले को गंभीरता से नहीं लिया और अब घर के बाहर चारों तरफ कैमरे लगे हैं. मेरी और मेरे बेटे की आजादी खत्म हो चुकी है. ऐसा लगता है कि जेल में कैद अपराधी हम हैं और वो आजाद घूम रहा है.”
ऐसे अनुभव साफ इशारा करते हैं कि पुलिस इस तरह के अपराधों से निपटने के लिए प्रशिक्षित नहीं है. ऐलिसन बर्ड मानती हैं कि पुलिस का अप्रशिक्षित होना इन मामलों में बहुत बड़ी दिक्कत है. वह कहती हैं "जब कोई महिला अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन पर शिकायत करती है तो जरूरी नहीं कि जो पुलिस कर्मचारी मदद के लिए आए उसे पता हो कि स्टॉकिंग की शिकायत में क्या कार्रवाई होनी चाहिए. अक्सर इन शिकायतों को गंभीरता से लिया भी नहीं जाता. इन मामलों में बहुत से बिंदुओं को जोड़ना होता है जिसके लिए पुलिस को ट्रेनिंग की जरूरत है”.
स्टॉकिंग को अपराध के तौर पर देखे जाने की मुहिम कई चैरिटी संस्थाएं और ट्रस्ट चला रहे हैं लेकिन इस अपराध की कोई सटीक कानूनी परिभाषा नहीं है. ज्यादातर मामलों में इसे हैरेसमेंट यानी प्रताड़ना कानून, 1997 के तहत बने नियम-कायदों से जांचा जाता रहा है.
साल 2012 में आए स्वतंत्रता की सुरक्षा कानून के तहत पहली बार स्टॉकिंग को कानूनी तौर पर अपराध के रूप में जगह मिली और साल 2020 में आए स्टॉकिंग सुरक्षा आदेश के जरिए अपराधी को रोकने की दिशा में कुछ उम्मीदें जगी हैं. हालांकि अपराध को पहचानने से लेकर अपराधी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की हिम्मत जुटाने और कार्रवाई होने तक का रास्ता औरतों के सब्र का कठिन इम्तेहान साबित होता रहा है. (dw.com)
गुरुवार को एक टैंकर पर हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराते हुए अमेरिका और उसके सहयोगी जवाबी हमले पर विचार कर रहे हैं. ईरान इन आरोपों को गलत बताता है.
अमेरिका और ब्रिटेन का मानना है कि गुरुवार को ओमान के तट पर एक इस्राएली तेल टैंकर पर हमला ईरान ने किया था. इस हमले में एक ब्रिटिश और एक रोमानियाई नागरिक मारे गए थे. हालांकि ईरान ने इस घटना में किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया है.
इस्राएल ने पहले ही ईरान पर इस घटना का इल्जाम डाला था, जिसे अब अमेरिका और ब्रिटेन का भी समर्थन मिल गया है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने रविवार को कहा, "उपलब्ध सूचना की समीक्षा के बाद हमें इस बात का यीकन है कि ईरान ने ही यह हमला कराया, जिसमें दो निर्दोष लोगों की जान गई.”
ब्लिंकेन के मुताबिक इस हमले में विस्फोटक ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने कहा कि इस हमले को किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता. ब्लिंकेन ने कहा, "अगला कदम क्या हो, इस बारे में हम अपने सहयोगियों से विचार कर रहे हैं और इलाके में मौजूद सरकारों से भी मश्विरा कर रहे हैं ताकि उचित जवाब दिया जा सके.”
इससे पहले ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक राब ने भी कहा था कि इस बात की बहुत अधिक संभावनाएं हैं कि ईरान ने इस "गैरकानूनी और निर्दयी” हमले के लिए एक या उससे ज्यादा ड्रोन इस्तेमाल किए.
राब ने कहा, "हम मानते हैं कि यह हमला जानबूझकर किया गया और ईरान द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून का स्पष्ट उल्लंघन था. एक माकूल जवाब के लिए युनाइटेड किंगडम अपने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ काम कर रहा है.”
दोनों तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएं
इस्राएली प्रधानमंत्री नफताली बेनेट ने इस हमले में हिस्सेदारी के ईरान से इनकार करने को ‘कायराना' बताया और कहा कि वह अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है. रविवार को अपने कैबिनेट की साप्ताहिक बैठक में नफताली ने कहा, "मैं बिना किसी लाग-लपेट के कह रहा हूं कि ईरान ने ही उस जहाज पर हमला किया.”
नफताली ने कहा कि खुफिया सूचनाएं उनके दावे का समर्थन करती हैं. उन्होंने कहा, "ईरान को संदेश देने के हमारे पास अपने तरीके हैं.” इससे पहले इस्राएली विदेश मंत्री ने भी कहा था कि इस घटना के लिए कठोर जवाब दिया जाना चाहिए.
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबजादे ने साप्ताहिक संवाददाता सम्मेलन में ईरान की जहाज पर हमले में भागीदारी से साफ इनकार किया. रविवार को उन्होंने कहा जियोनिस्ट शासन (इस्राएल) ने असुरक्षा, आतंक और हिंसा का माहौल बना दिया है.
उन्होंने कहा, "ईरान की भागीदारी के इन आरोपों की तेहरान निंदा करता है. ये आरोप इस्राएल की तथ्यों से ध्यान भटकाने की कोशिश हैं और निराधार हैं.”
टैंकर पर क्या हुआ था?
यह घटना बीते गुरुवार की है जब मर्सर स्ट्रीट नाम के एक जहाज में विस्फोट हुआ और दो लोगों की मौत हो गई. मर्सर स्ट्रीट पर झंडा लाइबेरिया का था जबकि उसका मालिकाना हक जापान के पास था और प्रबंधन इस्राएली कंपनी जोडिएक मैरिटाइम के पास.
इस जहाज के साथ अमेरिकी नौसेना का विमानवाहक जहाज यूएसएस रॉनल्ड रीगन था जिसने शनिवार को कहा था कि प्रारंभिक संकेत एक ड्रोन हमले की ओर स्पष्ट इशारा करते हैं.
गुरुवार को टैंकर पर क्या हुआ, इसे लेकर अलग-अलग बातें कही जा रही हैं. जोडिएक मैरिटाइम ने इस घटना को ‘समुद्री लुटेरों का संदिग्ध हमला' बताया था. ओमान मैरिटाइम सिक्यॉरिटी सेंटर से जुड़े एक सूत्र का कहना कि यह घटना ओमानी जलसीमा के बाहर हुई.
ईरान और इस्राएल पहले भी एक दूसरे के जहाजों पर हमले के आरोप लगा चुके हैं. 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा परमाणु संधि से बाहर निकलने और ईरान पर प्रतिबंध लगाने के बाद से खाड़ी इलाके में तनाव में वृद्धि हुई है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
ढाका, 1 अगस्त| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रविवार को कहा कि राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की हत्या की साजिश रचने वालों का किसी दिन पदार्फाश हो जाएगा। बांग्लादेश कृषक लीग द्वारा अपने आधिकारिक निवास गोनो भवन से आयोजित एक कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित करते हुए, उन्होंने देशवासियों को एक बेहतर और सुंदर जीवन पेश करके एक भूख और गरीबी मुक्त 'सोनार बांग्ला' (स्वर्ण बंगाल) विकसित करने के अपने अधूरे सपने को साकार करने की अपनी प्रतिज्ञा भी दोहराई।
15 अगस्त, 1975 को हुए नरसंहार को याद करते हुए, जिसमें शेख मुजीब, उनके पिता और उनके पूरे परिवार का नरसंहार किया गया था, शेख हसीना, जो सत्तारूढ़ अवामी लीग की प्रमुख भी हैं, उन्होंने कहा, "राष्ट्रपिता बंगबंधु ने कहा, "वे (लोग) ) मेरे बच्चों की तरह हैं, वे मुझे क्यों मारेंगे? और वह विश्वास अंतिम आघात लग रहा था .. उन लोगों ने उसे बेरहमी से मार डाला।"
उन्होंने कहा, "बांग्लादेश के नागरिकों के रूप में, मैंने 15 अगस्त को अपना परिवार खो दिया है, लेकिन हमें न्याय मांगने का कोई अधिकार नहीं था। हत्यारों के मुकदमे का रास्ता जियाउर रहमान द्वारा क्षतिपूर्ति अध्यादेश द्वारा अवरुद्ध किया गया था। इसके अलावा हत्यारों को पुरस्कृत किया गया था। यह देखते हुए कि कैसे तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने राष्ट्रपिता के हत्यारों को विभिन्न दूतावासों में पोस्ट करने के लिए पुरस्कृत किया और उन्हें बड़ी रकम दी।"
उन्होंने उल्लेख किया कि कैसे जि़याउर रहमान की विधवा और बीएनपी प्रमुख, बेगम खालिदा जि़या ने "15 अगस्त की हत्या की न्यायिक प्रक्रिया को स्थगित कर दिया, विपक्ष के नेता की कुर्सी पर रशीद, स्व-दावा हत्यारे की स्थापना की और एक हत्यारे को पुरस्कार के रूप में संसद सदस्य के रूप में भी नामित किया।"
शेख हसीना ने कहा, "जब हम 1996 में सत्ता में आए, तो हमने क्षतिपूर्ति अध्यादेश को निरस्त कर दिया और हत्यारों को न्याय के कटघरे में लाया। मुकदमे का पहला दिन 8 नवंबर को था .. जिस दिन खालिदा जिया विपक्ष में थीं, उन्होंने फोन किया। हत्यारों के खिलाफ फैसले को रोकने के लिए हड़ताल ताकि न्यायाधीश अदालत में उपस्थित न हो सकें।"
उन्होंने कहा कि खालिदा जिया ने एक मृत व्यक्ति को भी बढ़ावा दिया और उसे सेवानिवृत्ति भत्ता दिया। "वे (बीएनपी) 2001 में सत्ता में आए और हत्यारों को फिर से संरक्षण दिया।"
उसने यह भी कहा, "मुझे आश्चर्य है कि बंगबंधु की हत्या में हमारी पार्टी का कोई सदस्य कैसे शामिल था?"
उन्होंने कहा, "हमने 15 अगस्त, 1975 के नरसंहार का टेस्ट किया है। लेकिन साजिश के पीछे अपराधियों का पदार्फाश होना बाकी है।"
रविवार को, उन्होंने अवामी लीग और उसके सहयोगी निकायों के बंगबंधु की 46वीं शहादत वर्षगांठ को चिह्न्ति करने के लिए महीने भर चलने वाले कार्यक्रम के हिस्से के रूप में ढाका के धनमंडी-32 में बंगबंधु मेमोरियल संग्रहालय के सामने एक स्वैच्छिक रक्त और प्लाज्मा दान कार्यक्रम का उद्घाटन किया।
उन्होंने कहा, "गंभीर रोगियों के जीवन को बचाने के लिए राष्ट्रपिता की याद में बीकेएल द्वारा स्वैच्छिक रक्त और प्लाज्मा दान कार्यक्रम की मेजबानी के माध्यम से शोक का महीना शुरू हुआ।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि वह "बांग्लादेश को एक विजयी राष्ट्र के रूप में देखना चाहती हैं, बांग्लादेश सिर ऊंचा करके आगे बढ़ रहा है।"
"अब, मैं एक विचारधारा के साथ काम कर रही हूं जो मेरी प्रेरणा शक्ति है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली/काबुल, 1 अगस्त| सोशल मीडिया उन 50 पाकिस्तानियों की खबरों से भरा पड़ा है, जो तालिबान की तरफ से लड़ने गए थे और मारे गए थे। सोहेल नूर खान ने एक ट्वीट में कहा, "उन लोगों की सूची जो पिछले कुछ महीनों में अफगान सेना से लड़ने गए थे और मारे गए थे। सभी पाकिस्तानी नागरिक हैं और कोई अफगान शरणार्थी नहीं है। हां श्रीमान इमरान खान पाकिस्तान एक अभयारण्य नहीं है, अफगानिस्तान के खिलाफ पाकिस्तान खुद यह जंग लड़ रहा है।"
खान ने कहा है कि पाकिस्तानी नागरिक अफगान सेना से लड़ रहे हैं और पाकिस्तान अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ रहा है।
खान ने एक अन्य ट्वीट में कहा कि पेशावर में एक मदरसा प्रमुख को उसकी सुरक्षा के लिए 10 कमांडो दिए गए हैं और यह शख्स युवाओं को अफगानिस्तान में आतंकवाद को अंजाम देने के लिए उकसा रहा है।
"सफेद कपड़े पहने हुए व्यक्ति कोई वैज्ञानिक या राजनेता नहीं है, बल्कि पेशावर के ताज बाजार में एक मदरसे का अधीक्षक है, जिसका नाम रहीमुल्ला हक्कानी है, जो तालिबान को अफगानिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है। पाकिस्तान ने उसे अपनी सुरक्षा के लिए 10 कमांडो दिए हैं।"
एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा कि तालिबान अपने नए लड़ाकों को डूरंड लाइन के पास जमा कर रहा है।
खान ने कहा, "वे बाड़ में गुप्त दरवाजे खोलने के लिए पाकिस्तानी सेना से प्राधिकरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ये नए लड़ाके तालिबान को अग्रिम पंक्ति में मजबूत करेंगे।" (आईएएनएस)
काहिरा, 1 अगस्त| मिस्र की सेना ने रविवार को कहा कि उन्होंने हाल ही में देश के उत्तरी सिनाई प्रांत में 89 बेहद खतरनाक चरमपंथियों को मार गिराया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, हाल ही में हुए छापेमारी में मिस्र की सेना ने सटीक अवधि की पहचान किए बिना एक बयान में कहा, सेना ने 404 तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों और चार विस्फोटक बेल्ट का पता लगाया और नष्ट कर दिया, 73 मशीनगनों को जब्त कर लिया और चरमपंथी आतंकवादियों द्वारा अपने आतंकवादी अभियानों को अंजाम देने में इस्तेमाल किए गए 52 वाहनों को नष्ट कर दिया।
बयान में यह भी कहा गया है कि "टकराव में आठ सैनिक मारे गए या घायल हो गए।"
इजराइल और फिलिस्तीनी गाजा पट्टी की सीमा पर, उत्तरी सिनाई वर्षों से इस्लामिक स्टेट क्षेत्रीय आतंकवादी समूह के प्रति आतंकवादियों का ठिकाना रहा है। (आईएएनएस)
मॉस्को, 1 अगस्त | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य इस बात से सहमत हैं कि कोविड -19 मूल ट्रेसिंग का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। स्पुतनिक ने शुक्रवार को डब्ल्यूएचओ हेल्थ इमर्जेंसी प्रोग्राम के कार्यकारी निदेशक माइक रयान का हवाला देते हुए यह बात कही। रयान ने कहा, एक अच्छी बात जो हम सभी ने देशों से सुनी है, वह है 'चलो विज्ञान का राजनीतिकरण न करें,' और असल बात यह है कि विज्ञान का राजनीतिकरण किया जाता है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने उन्हें यह कहा कि, तो हम सभी दलों के लिए यह कहाना चाहते हैं, और हर कोई इसके लिए सहमत है कि, हमारे सभी सदस्य राज्यों के बीच व्यापक सहमति है, इस प्रक्रिया का राजनीतिकरण न करें।
उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ चीन सहित बड़ी संख्या में सदस्य देशों के साथ सकारात्मक विचार-विमर्श कर रहा है कि जांच के अगले चरण को कैसे आगे बढ़ाया जाए।(आईएएनएस)
काबुल, 1 अगस्त| अफगानिस्तान के लड़ाकू विमानों ने जज्जान प्रांत के दश्त-ए-लिली इलाके में तालिबान आतंकवादियों के एक काफिले को निशाना बनाया, जिसमें कुल 37 आतंकवादी मारे गए। एक स्थानीय अधिकारी ने यह जानकारी दी। अधिकारी ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया, "एक गुप्त सूचना पर कार्रवाई करते हुए लड़ाकू विमानों ने शनिवार को दश्त-ए-लिली इलाके और मुर्गब गांव में तालिबान विद्रोहियों के काफिले पर हमला किया, जिसमें 37 विद्रोही मारे गए और 14 अन्य घायल हो गए।"
एक अधिकारी ने कहा कि कई हथियार और गोला-बारूद के साथ-साथ 13 मोटरबाइक और आतंकवादी समूह के कुछ वाहन भी नष्ट कर दिए गए।
अधिक विवरण दिए बिना, अधिकारी ने कहा कि लड़ाकू विमान देश में विद्रोहियों को निशाना बनाना जारी रखेंगे। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 31 जुलाई | एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप टेलीग्राम ने अपने ग्रुप वीडियो कॉलिंग फीचर का विस्तार किया है। जिससे अब एक ग्रुप वीडियो कॉल में 1,000 लोग शामिल हो सकते हैं। कंपनी ने कहा कि उसका समूह वीडियो कॉल 30 उपयोगकतार्ओं को अपने कैमरे और स्क्रीन दोनों से वीडियो प्रसारित करने की अनुमति देता है - और अब 1,000 लोग ऑनलाइन व्याख्यान से लेकर लाइव रैप लड़ाई तक कुछ भी देख सकते हैं।
कंपनी ने एक ब्लॉगपोस्ट में कहा, समूह वीडियो कॉल में अब 1,000 दर्शक हैं, वीडियो संदेश उच्च गुणवत्ता में रिकॉर्ड करते हैं और इसे बढ़ाया जा सकता है, नियमित वीडियो 0.5 या 2एक्स गति से देखे जा सकते हैं।
इसमें कहा गया है, हमने सभी वीडियो कॉल्स में ध्वनि के साथ स्क्रीन शेयरिंग को भी जोड़ा है, जिसमें 1-ऑन-1 कॉल्स भी शामिल हैं - और भी बहुत कुछ।
कंपनी ने कहा कि वह इस सीमा को तब तक बढ़ाती रहेगी जब तक कि पृथ्वी पर सभी इंसान एक समूह कॉल में शामिल नहीं हो जाते और हमें उत्सव में (जल्द ही आ रहा है) देख सकते हैं।
कंपनी ने कहा, ग्रुप वीडियो कॉल शुरू करने के लिए, किसी भी ग्रुप के इंफो पेज से वॉयस चैट बनाएं, जहां आप एडमिन हैं, फिर अपना वीडियो ऑन करें।
ब्लॉगपोस्ट के अनुसार, एक विस्तारित वीडियो संदेश पर टैप करने से यह रुक जाता है और यदि आप एक शब्द चूक गए हैं तो आप संदेश को तेजी से आगे या पीछे कर सकते हैं।
कंपनी ने कहा, किसी भी कॉल के दौरान वीडियो चालू करते समय, आप कैमरा चुनने के लिए स्वाइप कर सकते हैं या इसके बजाय अपनी स्क्रीन साझा कर सकते हैं - और यह सुनिश्चित करने के लिए वीडियो पूर्वावलोकन का उपयोग करें कि लाइव होने से पहले सब कुछ सही है।(आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 31 जुलाई | एलोन मस्क ने टेस्ला के बारे में एक आगामी किताब पर आधारित एक कहानी का खंडन किया है जिसमें उन्होंने टिम कुक को एप्पल के सीईओ के रूप में बदलने की कोशिश की थी। द वॉल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर टिम हिगिंस की 'पावर प्ले, टेस्ला, एलोन मस्क और द बेट ऑफ द सेंचुरी' शीर्षक वाली किताब में दावा किया गया है कि मस्क कथित तौर पर कुक के साथ 2016 में एक फोन कॉल में एप्पल के सीईओ बनना चाहते थे। जिन्होंने सुझाव दिया था कि आईफोन निमार्ता इलेक्ट्रिक कार निमार्ता का अधिग्रहण करना है।
मस्क ने शुक्रवार को एक ट्वीट में इस तरह की किसी भी बातचीत से इनकार किया।
मस्क ने पोस्ट किया, कुक और मैंने कभी भी एक-दूसरे से बात या पत्र नहीं लिखा है। एक बिंदु था जहां मैंने कुक से मिलने का अनुरोध किया था ताकि ऐप्पल द्वारा टेस्ला को खरीदने के बारे में बात की जा सके। अधिग्रहण की कोई भी शर्त प्रस्तावित नहीं थी।
टेस्ला के सीईओ ने कहा, उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया। टेस्ला की कीमत आज के मूल्य का लगभग 6प्रतिशत थी।
कुक ने कहा था कि, मैंने एलोन से कभी बात नहीं की, हालांकि मेरे मन में उनके द्वारा बनाई गई कंपनी के लिए बहुत प्रशंसा और सम्मान है।
कुक ने जवाब दिया कि मस्क ने पिछले साल दिसंबर में ट्वीट किया था कि उन्होंने कुक को 2017 में संघर्ष की अवधि के दौरान अपनी इलेक्ट्रिक कार कंपनी को उसके मूल्य के दसवें हिस्से पर बेचने की पेशकश की थी, लेकिन ऐप्पल के सीईओ ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया।
मस्क ने कहा था कि टेस्ला मॉडल 3 के सबसे बुरे दिनों के दौरान, वह कंपनी को बेचना चाहते थे।
मस्क ने एक ट्वीट में कहा था, मॉडल 3 कार्यक्रम के सबसे बुरे दिनों के दौरान, मैं टिम कुक के पास टेस्ला के अधिग्रहण की संभावना पर चर्चा करने के लिए टिम कुक के पास पहुंचा। उन्होंने बैठक लेने से इनकार कर दिया था। (आईएएनएस)
12वीं शताब्दी में एक मामूली शुरुआत के बावजूद बेंटो बॉक्स आज दोपहर के भोजन के लिए एक स्वस्थ विकल्प माना जाता है. इसे बनाना सस्ता है और यह तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.
डॉयचे वैले पर जूलियान रियाल की रिपोर्ट
जापान में लंच या 'बेंटो बॉक्स' बनाने की परंपरा बारहवीं सदी से चली आ रही है. धीरे-धीरे सकारात्मक परिवर्तन होने लगे और सामान्य भोजन की जगह पर स्वस्थ और आसानी से पचने वाला भोजन डिब्बे में रखा जाने लगा. स्कूली छात्रों और काम पर जाने वालों के बीच यह लोकप्रिय हुआ क्योंकि इसे खाने में आसानी होता है.
जापान में लंच बॉक्स की परंपरा
यात्रा पर भोजन करने के साथ जापान का आकर्षण कामाकुरा काल में शुरू हुआ, जब पके और सूखे चावल के गोले को पहले बांस के पत्तों में लपेटा जाता था और श्रमिकों द्वारा खेतों में ले जाया जाता था. अगली कुछ शताब्दियों में भोजन लपेटने का यह तरीका बदल गया और सुंदर बक्से दिखाई देने लगे. जापानी रईस वर्ग को विशेष रूप से ऐसे बक्से पसंद थे और यह उनके साम्राज्य का यह एक तरह का प्रमाण था.
लंच बॉक्स की जापानी शैली
जाहिर तौर पर हर इंसान के लिए दोपहर के भोजन के लिए कुछ न कुछ लेकर बाहर जाना एक आम बात है. यह एक ऐतिहासिक मानवीय व्यवहार है और यह आज भी किसी न किसी रूप में जारी है. इस संदर्भ में लंच बॉक्स को जापान में एक नया व्यवहार नहीं माना जाता है. अब बेंटो खाने की परंपरा एक जापानी श्रृंखला है जो बहुत लोकप्रिय है. इसमें 75 प्रतिशत भोजन स्वस्थ है और इसकी कीमत इतनी अधिक नहीं है कि कोई इसे खरीद न सके. यह निश्चित है कि जापानियों ने लंच बॉक्स बनाने की परंपरा में सुधार किया है.
बेंटो बॉक्स
एनएचके कुकिंग शो बेंटो के मेजबान मार्क मात्सुमोतो कहते हैं, "कई देशों में लोग काम पर जाते समय दिन का भोजन पैक कर ले जाते हैं, इसका पुराना इतिहास रहा है. इसलिए यह जापान के लिए अद्वितीय नहीं है." वे अल्टीमेट बेंटो पुस्तक के सह लेखक हैं, जिसमें स्वस्थ और किफायती बेंटो भोजन के लिए 85 व्यंजन हैं.
धारणा यह है कि बेंटो लंच बॉक्स भोजन से अधिक एक प्रेमपूर्ण परंपरा बन गया है और आम जनता इसके साथ जुड़ना पसंद करती है. वहां भी एक जापानी सामाजिक दृष्टिकोण है कि स्कूल के लिए जा रहा बच्चों को प्यार से चूमा नहीं करते हैं, लेकिन इन बच्चों की माताओं के प्यार के खाना पकाने के द्वारा दिखाया गया है. मात्सुमोतो का कहना है कि उनकी मां जापानी थीं और शुरुआत में उनका पालन-पोषण अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में हुआ था. लेकिन उनके सभी प्यार का इजहार लंच बॉक्स के माध्यम से किया गया था.
बेंटो बॉक्स का फायदा
मात्सुमोतो का कहना है कि बेंटो बॉक्स की उपयोगिता के बारे में एक बात स्पष्ट है कि इसमें सीमित मात्रा में खाद्य पदार्थ होते हैं और जब यह आदत बन जाती है, तो भोजन की कमी के कारण एक छोटे से बॉक्स से भी छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है. मात्सुमोतो के अनुसार बेंटो बॉक्स में कैलोरी की कुल मात्रा 600 से 700 के बीच होती है. उनका यह भी कहना है कि बेंटो बॉक्स सुंदर इसलिए दिखता है क्योंकि इसमें सब्जियां और फल बाकी खाने को आकर्षक बनाते हैं. (dw.com)
तालिबान ने पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की पहचान की पुष्टि के बाद उनकी "क्रूरता से हत्या" की थी. यह दावा अमेरिकी पत्रिका की एक रिपोर्ट में किया गया है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी अफगान सुरक्षाबलों के साथ पाकिस्तान से सटी अहम सीमा चौकी के पास तालिबान लड़ाकों के साथ संघर्ष को कवर रहे थे. 16 जुलाई 2021 को उनकी हत्या तालिबान ने "क्रूरता से हत्या" की थी, यह दावा अमेरिकी पत्रिका वॉशिंगटन एग्जामिनर ने अपनी रिपोर्ट में किया है.
गुरुवार को अमेरिकी पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक सिद्दीकी अफगानिस्तान में गोलीबारी में फंसकर नहीं मारे गए और ना ही वह इन घटनाओं के दौरान हताहत हुए, बल्कि तालिबान ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी थी.
वॉशिंगटन एग्जामिनर की रिपोर्ट के अनुसार सिद्दीकी ने अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सेना की टीम के साथ स्पिन बोलदाक क्षेत्र की यात्रा की, ताकि पाकिस्तान के साथ लगी अहम चौकी पर संघर्ष को कवर किया जा सके.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान तालिबान ने अफगान सेना पर हमला कर दिया. सेना के सदस्य दो टीमों में बंट गए. सिद्दीकी और तीन अफगान सैनिक अन्य सैनिकों से अलग हो गए. हमले के दौरान सिद्दीकी को छर्रे लगे और इसलिए वह तथा उनकी टीम एक स्थानीय मस्जिद में गए, जहां उन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया. हालांकि, जैसे ही यह खबर फैली कि एक पत्रकार मस्जिद में है तालिबान ने हमला कर दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय जांच सुझाव देती है कि तालिबान ने सिर्फ सिद्दीकी की मौजूदगी के कारण मस्जिद पर हमला किया.
तालिबान की क्रूरता
तालिबान ने जब सिद्दीकी को पकड़ा तब वह जिंदा थे, तालिबान ने सिद्दीकी की पहचान की पुष्टि की और फिर उन्हें और उनके साथ के लोगों को भी मार डाला. सिद्दीकी को बचाने की कोशिश में अफगान कमांडर और उनकी टीम के बाकी सदस्यों की मौत हो गई.
अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो माइकल रूबीन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "व्यापक रूप से प्रसारित एक तस्वीर में सिद्दीकी के चेहरे को पहचानने लायक दिखाया गया है, हालांकि मैंने भारत सरकार के एक सूत्र द्वारा मुझे दी गई गई अन्य तस्वीरों और सिद्दीकी के शव के वीडियो की समीक्षा की, जिसमें दिखा कि तालिबान ने सिद्दीकी के सिर पर हमला किया और फिर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया."
तालिबान जो कहे वही सच!
रूबीन अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, "सिद्दीकी को मारने और फिर उनके शव को क्षत-विक्षत करने का निर्णय दर्शाता है कि तालिबान युद्ध के नियमों या वैश्विक संधियों का सम्मान नहीं करते हैं."
रूबीन कहते हैं कि तालिबान हमेशा से ही क्रूर रहे हैं लेकिन हो सकता है कि सिद्दीकी के भारतीय होने के कारण वे अपनी क्रूरता को एक नए स्तर पर ले गए. वे यह भी संकेत देना चाहते हैं कि पश्चिमी पत्रकारों का उनके नियंत्रण वाले अफगानिस्तान में आना सही नहीं है और वे उम्मीद करते हैं कि तालिबान के प्रचार को सच्चाई के रूप में स्वीकार किया जाएगा. (dw.com)
बांग्लादेश में भारी बारिश ने रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों पर कहर बरपाया है, बाढ़ के कारण हजारों विस्थापित हुए हैं. बारिश और बाढ़ के कारण कई लोगों की मौत हुई है.
बांग्लादेश में पिछले कई दिनों से हो रही भारी बारिश ने रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों पर कहर बरपा रखा है और साथ ही और बारिश की संभावना जताई गई है. हजारों लोग अस्थायी टेंटों में शरण लेने के लिए मजबूर हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचसीआर) ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारी बारिश ने दक्षिणी बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों और अस्थायी घरों को नष्ट कर दिया है. शिविरों में बाढ़ आ गई है, जिससे हजारों लोगों को अन्य जगहों पर या अस्थायी शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा कि भारी बारिश ने अब तक 12,000 से अधिक शरणार्थियों को प्रभावित किया है. उनकी करीब ढाई हजार झोपड़ियां नष्ट हो चुकी हैं. पांच हजार से अधिक शरणार्थियों को अस्थायी टेंटों में स्थानांतरित किया गया है.
बारिश और कोरोना
लगभग दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों के घर कॉक्स बाजार जिले में बुधवार दोपहर तक 24 घंटे की अवधि में 30 सेंटीमीटर से अधिक बारिश हुई. यह एक दिन की बारिश पूरे जुलाई महीने की औसत वर्षा के आधे के करीब है. मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में और भारी बारिश की संभावना जताई है. बांग्लादेश में मानसून अगले तीन महीने तक रहेगा.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा, "कोरोना वायरस महामारी से स्थिति विकट है. देश में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस समय राष्ट्रीय स्तर पर सख्त लॉकडाउन लागू है." एजेंसी का कहना है कि इस सप्ताह की शुरुआत में शरणार्थी शिविरों में छह लोगों की मौत हुई है. उनमें से पांच की भूस्खलन से मौत हुई जबकि एक बच्चा पानी के तेज बहाव में बह गया.
भुखमरी की नौबत
यूएनएचसीआर की प्रवक्ता हाना मैकडॉनल्ड ने कहा कि प्रभावित परिवारों की मदद के लिए आपातकालीन टीमों को तैनात किया जा रहा है. रोहिंग्या शरणार्थियों का कहना है कि उन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा है और न ही पीने के लिए पानी.
एक शरणार्थी महिला खदीजा बेगम ने कहा, "पिछले चार दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण आज मेरे घर में पानी भर गया है. हमें अभी तक खाना नहीं मिला है. मुझे डर है कि कहीं मेरे बच्चे नींद में ही पानी में डूब न जाएं."
यूएनएचसीआर का कहना है कि खराब मौसम, भूस्खलन और बाढ़ ने बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की दुर्दशा को बढ़ा दिया है, जिन्हें सहायता की तत्काल जरूरत है.
साल भर मुसीबत
शरणार्थी शिविरों में रहने वाले रोहिंग्याओं को साल भर विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि तूफान, भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाएं. अगस्त 2017 में बौद्ध-बहुल देश म्यांमार में मुस्लिम जातीय समूहों पर सैन्य कार्रवाई के बाद से लाखों रोहिंग्या बांग्लादेश भाग गए. मौजूदा वक्त में दस लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में विभिन्न शिविरों में रह रहे हैं.
इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) का कहना है कि कॉक्स बाजार बांग्लादेश की प्राकृतिक आपदाओं में सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है, जहां दस लाख के करीब रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं.
कैंप मे कठिन जीवन
बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में सबसे अधिक संख्या में रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. यूएन की रिफ्यूजी एजेंसी, बांग्लादेश सरकार और आप्रवासियों के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन के मुताबिक दस लाख के करीब रोहिंग्या मुसलमान पांच कैंपों में रहते हैं. आधे से अधिक शरणार्थी बच्चे हैं और पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अधिक हैं.
कैंपों में रहने वाले शरणार्थियों को यूनए की एजेंसियां, राष्ट्रीय सहायता समूहों और बांग्लादेश की सरकार खाना, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य मूलभूत सुविधाएं देती हैं, जैसे कि सामुदायिक शौचालय और पीने का पानी.
एए/वीके (एपी, रॉयटर्स)
अमेरिका ने बुधवार को कहा कि वह अफगानिस्तान में नागरिकों पर बढ़ते हमलों की खबरों से बहुत परेशान है. वॉशिंगटन अपने शेष सैनिकों को देश से वापस बुला रहा है. इस बीच तालिबान का एक दल चीन दौरे पर है.
भारत के दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि अफगानिस्तान में शांति का एकमात्र रास्ता बातचीत के जरिए निकल सकता है, जिसे सभी दलों को गंभीरता से लेना चाहिए.
तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान में बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है और उसने हाल ही में महत्वपूर्ण सीमा नियंत्रण पोस्ट पर भी अपना कब्जा जमा लिया है. यह सब अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ तेजी से बढ़ा है.
पेंटागन का अब अनुमान है कि तालिबान अब देश के आधे से अधिक जिला केंद्रों का नियंत्रण कर रहे हैं. इस उछाल ने इस संभावना को बढ़ा दिया है कि आतंकवादी सत्ता में वापस आ सकते हैं. 1996-2001 के बीच तालिबान के शासन के दौरान लाखों लोग देश से भाग गए थे.
तालिबान का खौफ सताने लगा
तालिबान ने अपने दुश्मनों को खुलेआम फांसी पर लटकाया, इस्लामी कानून को नहीं मानने वालों को कोड़े मारे और महिलाओं और लड़कियों को पढ़ाई और काम से रोका. तालिबान ने ही ओसामा बिन लादेन के अल कायदा नेटवर्क की मेजबानी की. हालांकि अब तालिबान का कहना है कि अगर वह सत्ता में वापसी करेगा तो वह नागरिकों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा और देश को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं होने देगा.
नागरिकों पर हमलों की रिपोर्ट को "गंभीर परेशानी" वाला बताते हुए ब्लिकेंन ने कहा, "अफगानिस्तान जो अपने ही लोगों के खिलाफ अत्याचार करता है वह एक अछूत देश बन जाएगा." उन्होंने कहा, "संघर्ष को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए एक ही रास्ता है और वह है बातचीत की मेज."
संयुक्त राष्ट्र ने इस सप्ताह बताया कि नागरिकों के हताहत होने की संख्या हाल के सप्ताहों में बढ़ी है. जुलाई के महीने में अफगान सुरक्षाबलों और तालिबान के बीच लड़ाई तेज हुई है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वादा किया है कि सितंबर से पहले सारी अमेरिकी फौजों को स्वदेश बुला लिया जाएगा. विदेशी फौजों की वापसी के साथ तालिबान के हौसले बढे़ हैं और वे और वे तेजी से विभिन्न इलाकों पर कब्जा करते जा रहे हैं.
11 सितंबर 2001 के हमले के लिए अमेरिका ने अल कायदा को जिम्मेदार माना था और उसे खत्म करने के लिए अफगानिस्तान पर हमला किया. तब तालिबान को सरकार से बाहर कर दिया गया. तब से तालिबान देश पर कब्जा पाने के लिए लड़ रहे हैं.
चीन और अफगानिस्तान की नजदीकी
तालिबान के प्रतिनिधिमंडल हाल के दिनों में पड़ोसी देशों का दौरा कर रहे हैं. तालिबान पिछले दो दशकों में आतंकवादी संगठन वाली पहचान से आगे बढ़ना चाहता है और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए नई जमीन तैयार करने में जुटा है. एक समय में तालिबान के साथ बहिष्कृत रूप में व्यवहार किया जाता था और अधिकांश देशों ने उसे आतंकवादी संगठन के रूप में प्रतिबंधित किया था.
इस बीच तालिबान नेता मुल्ला बरादर अखुंद ने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ चीन के विदेश मंत्री वांग यी से 27 जुलाई को मुलाकात की. बरादर के साथ नौ तालिबानी चीन के उत्तरी शहर तियाजिन के दो दिवसीय दौरे पर गए. चीन के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में वांग ने कहा, "तालिबान से अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण सुलह की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण की उम्मीद की जा रही है."
हाल के सप्ताहों में तालिबान का प्रतिनिधिमंडल ईरान और रूस का भी दौरा कर चुका है. तालिबान का एक कार्यालय कतर में है.
तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने चीन यात्रा के बारे में ट्वीट किया, "राजनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा से संबंधित दोनों देशों के मुद्दे और अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर बैठक में चर्चा हुई."
नईम ने कहा, "प्रतिनिधिमंडल ने चीन को आश्वासन दिया कि वह इसकी अनुमति नहीं देगा कि कोई भी चीन के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करे."
नईम ने कहा कि चीन ने भी अफगानों की मदद को जारी रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. बकौल नईम चीन ने कहा, "वह अफगानिस्तान के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा लेकिन अफगानिस्तान की समस्याओं को सुलझाने में और देश में शांति बहाली में मदद करेगा." (dw.com)
एए/वीके (रॉयटर्स, एपी)
-वायी यिप
क्रिस वू ने सभी आरोपों को ग़लत बताते हुए, उनका खंडन किया है
चीन के सबसे बड़े सितारों में से एक, क्रिस वू पिछले कुछ हफ़्तों से लगातार सुर्खियों में हैं. बात उन पर बलात्कार का आरोप लगने से शुरू हुई, लेकिन उनके मामले ने चीन में 'सेक्शुअल कन्सेंट' यानी यौन सहमति के मुद्दे पर भी नए सिरे से बहस छेड़ दी है.
चीनी-कनाडाई अभिनेता और गायक क्रिस वू के मामले ने बहुत तेज़ी से तूल पकड़ी, क्योंकि पिछले महीने एक कथित पीड़िता ने उन पर रेप का आरोप लगाया. उसके बाद से अब तक, कम से कम 24 महिलाओं ने वू पर अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया है.
'मेरा पति फ़रिश्ता था, फिर उसने मेरा बलात्कार किया'
‘सेक्स पर भारतीय बात नहीं करते- इसलिए मैं उनकी मदद करती हूँ’
एक दर्जन से ज़्यादा कंपनियाँ, जिनमें अंतरराष्ट्रीय ब्रांड लुई विताँ और पोर्श मोटर भी शामिल हैं, वो क्रिस वू से संबंध तोड़ चुके हैं.
क्रिस वू पर दबाव बनाया गया है कि वो मनोरंजन उद्योग के साथ-साथ चीन को भी अलविदा कह दें.
हालांकि, 30 वर्षीय क्रिस वू ने इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए, इन्हें ख़ारिज कर दिया है.
लेकिन उनके मामले ने सोशल मीडिया को हिलाकर रख दिया है. इस मामले के हरेक पहलू पर अब चर्चा हो रही है और ज़्यादातर जानकार कह रहे हैं कि यह मामला अब मसालेदार ख़बरें प्रकाशित करने वाले अख़बारों की सुर्खियों से आगे निकल चुका है.
जिन महिलाओं ने क्रिस वू पर आरोप लगाए हैं, उन्हें बहुत ज़बरदस्त ऑनलाइन समर्थन मिल रहा है - ख़ासतौर पर 19 वर्षीय कॉलेज स्टूडेंट डु मेइज़ू को, जो इस मामले में मुख्य शिकायतकर्ता हैं.
चीन में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये एक अच्छा संकेत है कि समाज में थोड़ी जागरूकता बढ़ी है और यौन सहमति पर बात हो रही है, वो भी एक ऐसे देश में, जहाँ अक्सर इस तरह के मामले सामने आने पर महिलाओं को ही दोषी ठहरा दिया जाता है.
'उसने ख़ुद को चमकाने के लिए ऐसा किया'
8 जुलाई से लेकर अब तक, डु मेइज़ू सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'वीबो' पर लगातार क्रिस वू के ख़िलाफ़ लिखती रही हैं. उन्होंने कई मीडिया संस्थानों को इंटरव्यू भी दिए हैं.
वे कहती हैं कि उनकी मुलाक़ात क्रिस वू से तब हुई, जब वो 17 साल की थीं.
उनका कहना है कि उन्हें उनकी अन्य दोस्तों के साथ क्रिस वू ने घर पर बुलाया था, जहाँ उन पर शराब पीने के लिए दबाव बनाया गया.
डु का आरोप है कि क्रिस वू ने नशे की हालत में उनके साथ ज़बरन सेक्स किया.
लेकिन वू इस आरोप को ग़लत बताते हैं. उन्होंने शराब वाली बात को भी ग़लत ठहराया और कहा कि "फ़ायदा पहुँचाने के बदले लड़कियों से सेक्स करने, नशे में लड़कियों का रेप करने और नाबालिग लड़कियों के साथ सेक्स करने के सभी आरोप बेबुनियाद हैं."
चीनी क़ानून के तहत, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को नाबालिग माना जाता है, जबकि चीन में यौन सहमति की उम्र 14 वर्ष है.
इस मामले में शुरुआती जाँच के बाद, बीजिंग पुलिस ने पिछले हफ़्ते एक बयान जारी किया था जिसमें पुलिस ने डु मेइज़ू की कही गई कुछ बातों की पुष्टि की है. लेकिन पुलिस ने दोनों के बीच शारीरिक संबंधों के बारे में फ़िलहाल यही लिखा है कि क्रिस वू और डु मेइज़ू ने 'शराब पीने के बाद सेक्स' किया था.
कुछ अधिकारियों ने ये भी कहा कि "डु मेइज़ू ने अपनी ऑनलाइन पहुँच बढ़ाने के लिए ये कहानी सोशल मीडिया पर शेयर की है."
पुलिस ने कहा है कि वो अभी भी क्रिस वू के ख़िलाफ़ किए गए अन्य दावों की जाँच कर रही है.
लेकिन डु मेइज़ू ने पुलिस की प्रारंभिक जाँच पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि सेक्स बिना उनकी सहमति के किया गया था और ऐसी स्थिति में किया गया था, जब उन्हें शराब की वजह से होश नहीं था.
डु ने ये भी कहा कि क्रिस वू के मैनेजर उन्हें कमरे में लेकर गए थे.
इस मामले में उनके पक्ष को बेहतर ढंग से सुनने के लिए, बीबीसी ने भी डु मेइज़ू से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इंटरव्यू की गुज़ारिश का कोई जवाब नहीं दिया.
लेकिन वीबो पर हाल ही में उन्होंने एक और पोस्ट लिखी, जिसे बाद में उन्होंने डिलीट कर दिया, और वो थी, "मैंने वहाँ जाने की पहल नहीं की थी और ना ही मैं वहाँ जानबूझकर रुकी थी."
"मैं बस इतना चाहती हूँ कि ये सब ख़त्म हो जाए, मैं बहुत थक गई हूँ."
चीन के बहुत सारे टिप्पणीकार भी इस मामले में पुलिस के बयान से काफ़ी नाराज़ हुए हैं. उन्होंने अपनी नाराज़गी जताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा है कि पुलिस की भाषा बिल्कुल क्रिस वू के पक्ष में झुकी हुई है.
एक शख़्स, जिनके कमेंट को ऑनलाइन सबसे ज़्यादा पसंद किया गया, उन्होंने लिखा, "सौ बात की एक बात ये कि डु मेइज़ू ने जो भी कहा, वो बिल्कुल सच है."
एक अन्य शख़्स ने लिखा, "चलिए, उन लोगों की गिनती करते हैं जो क्रिस वू की बात पर भरोसा नहीं करते." इस टिप्पणी को वीबो पर 15 लाख लोगों ने पसंद किया है.
इस बीच महिला कार्यकर्ताओं ने भी पुलिस के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली, चीन की एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, "पुलिस का बयान चीन की पितृसत्तात्मक संस्कृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण कहा जा सकता है."
चीन की प्रमुख नारीवादी लू पिन ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "इस घटना के ज़रिए हम समझ सकते हैं कि सरकार का रवैया क्या है... वो महिलाओं की आवाज़ों की वैधता को कभी नहीं पहचानेगी. और जब-जब महिलाएँ बोलेंगी, तो कहा जाएगा कि वो प्रसिद्धि के लिए ऐसा कर रही हैं."
'मी टू कैंपेन'
जानकार कहते हैं कि ये घटना ऐसे समय में हुई है, जब चीन में लिंग-आधारित हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ी है.
साल 2018 में, 'मी टू मूवमेंट' के दौरान भी चीन के विभिन्न हिस्सों में कई प्रमुख हस्तियों पर आरोप लगे थे.
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तब एक इंटर्न लड़की ने अपने बॉस पर यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाए थे, जिसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी कवर किया था और उस घटना ने चीन के लोगों का ध्यान इस मुद्दे की ओर आकर्षित किया था.
हाल ही में, इस मुद्दे पर चीन में कई पॉप सॉन्ग बने हैं. कुछ टीवी शोज़ के ज़रिए भी इस मुद्दे को उठाया गया है और काफ़ी समय तक यह यौन सहमति का मुद्दा मुख्यधारा में रहा है.
जानकार बताते हैं कि चीन में 'मी टू कैंपेन' से जुड़े बहुत सारे कंटेंट को सामाजिक अशांति के डर से सेंसर करना पड़ा था.
इसी साल, चीन में एक नई नागरिक संहिता लागू की गई है जिसने पहली बार यौन उत्पीड़न को परिभाषित करने वाली कार्रवाइयों को परिभाषित किया है और इसकी रोकथाम के लिए व्यवसायों सहित कुछ संगठनों को ज़िम्मेदार ठहराया है.
लेकिन आलोचकों का तर्क है कि यह पीड़ितों की रक्षा के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह इसे लागू करने के लिए दिशा-निर्देश नहीं देता है.
फिर भी चीन में एक बड़ा तबका इसे 'बड़े पैमाने पर हुई प्रगति' के रूप में देख रहा है.
'बीजिंग वुमन्स राइट्स ग्रुप इक्वॉलिटी' नामक संस्था की संस्थापक फेंग युआन ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "चीनी समाज अब यौन उत्पीड़न का मुक़ाबला करने के लिए तैयार लगता है और ऐसी हरेक घटना इसे और आगे ले जाएगी."
लू पिन कहती हैं कि क्रिस वू मामले में, सिलेब्रिटी ने महीनों तक डु मेइज़ू के साथ 'अंतरंग संबंध' बनाए रखने के लिए अपने पद और ताक़त दुरुपयोग किया.
चीन के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि समाज में बढ़ी हुई जागरूकता ही एक कारण हो सकती है कि इतने सारे लोग डु मेइज़ू के पीछे खड़े हो गए हैं और इतनी सारी और लड़कियाँ खुलकर बोलने की हिम्मत जुटा पाई हैं.
वीबो की ओर से बनाए गए हैशटैग 'यौन सहमति क्या है' को हाल के दिनों में 38 करोड़ से ज़्यादा बार देखा गया है.
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चीन के बहुत सारे पुरुषों ने भी इस विषय पर खुलकर लिखा है. कुछ ने दलील दी है कि लड़के कई बार भ्रमित भी हो सकते हैं, क्योंकि चीन में लड़की के ना कहने को भी फ़्लर्ट करने के तौर पर देखा जाता है, यानी ना को ही उसकी हाँ समझा जाता है.
कुछ चीनी पुरुषों ने लिखा कि हमारी संस्कृति में पितृसत्ता का इतना असर है कि बहुत सारे लड़के ना को ले ही नहीं पाते, वो रिजेक्शन बर्दाश्त नहीं कर पाते.
लेकिन इन दलीलों को भी सोशल मीडिया पर भारी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. कुछ लोगों ने लिखा है कि "संस्कृति और भाषा का इस्तेमाल ऐसी हरकतों को सही साबित करने के लिए ना करें. अगर कोई आपको हाँ नहीं कह रहा, तो उसका सीधा मतलब है कि वो आपको स्वीकार नहीं कर रहा और इसे ऐसे ही समझा जाना चाहिए."
एक यूज़र ने लिखा, "हाँ का मतलब ही हाँ हो सकता है, ना को आप हाँ कैसे मान सकते हैं. इसमें समझने के लिए इतना मुश्किल क्या है?"
इस बीच, सोशल मीडिया पर कुछ समूहों ने डु मेइज़ू का समर्थन करने के लिए #GirlsHelpGirls का उपयोग करने की अपील की है.
कुछ ने लिखा है, "इस बात को दुनिया के सामने लाने के पीछे डु मेइज़ू का जो भी मक़सद रहा हो, वो तब भी एक पीड़िता हैं, अगर उनकी कहानी सच है. वो बहादुर हैं, जो इस बात को उठाने की उन्होंने हिम्मत दिखाई."
डु मेइज़ू कहती हैं कि उन्हें न्याय का इंतज़ार है.
उन्होंने एक पोस्ट में लिखा भी कि "मैं क्रिस वू को बेनकाब कर देना चाहती हूँ, ताकि किसी और लड़की के साथ ऐसा ना हो." (bbc.com)
वाशिंगटन, 29 जुलाई | कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 19.58 करोड़ हो गए हैं और इस महामारी से मरने वालों की संख्या बढ़कर 41.8 लाख हो गई है। वहीं पूरे विश्व में करीब 3.96 अरब लोगों का इस महामारी से बचाव के लिए टीकाकरण हो चुका है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह आंकड़े साझा किए हैं। गुरुवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने बताया कि वर्तमान वैश्विक मामले, मरने वालों की संख्या और टीकाकरण की संख्या क्रमश: 195,865,047, 4,185,754 और 3,960,681,747 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 34,668,545 और 611,779 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 31,484,605 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (19,797,086), फ्रांस (6,116,711), रूस (6,116,249), यूके (5,797,335), तुर्की (5,660,469), अर्जेंटीना (4,891,810), कोलंबिया (4,757,139), स्पेन (4,395,602) हैं। , इटली (4,330,739), ईरान (3,792,014), जर्मनी (3,769,552) और इंडोनेशिया (3,287,727) है।
मौतों के मामले में ब्राजील 553,179 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (422,022), मेक्सिको (239,079), पेरू (196,138), रूस (153,620), यूके (129,718), इटली (128,010), कोलंबिया (119,801), फ्रांस (111,923) और अर्जेंटीना (104,822) में 1 लाख से ज्यादा लोगों की इस महामारी से मौत हुई है।(आईएएनएस)
इक्वाडोर ने विकीलीक्स के संस्थापक जूलियान असांज की नागरिकता रद्द कर दी है. अधिकारियों का कहना है कि इंग्लैंड में इक्वाडोर दूतावास में छिप कर किए आवेदन में कई अनियमितताएं और त्रुटियां थीं.
इक्वाडोर की पिछली सरकार ने 2018 में विकीलीक्स के संस्थापक जूलियान असांज को नागरिकता देने की घोषणा की थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने उस फैसले को पलट दिया है. असांज वर्तमान में एक ब्रिटिश जेल में हैं और उन्हें इक्वाडोर के न्याय विभाग द्वारा उनके निर्णय के बारे में औपचारिक रूप से सूचित किया गया है.
इक्वाडोर के अधिकारियों का कहना है कि नागरिकता के लिए उनके मूल आवेदन में विरोधाभास, विभिन्न हस्ताक्षर और फीस का भुगतान न करना शामिल था. असांज के वकील कार्लोस पोवेदा ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि निर्णय बिना उचित प्रक्रिया के लिया गया था और असांज को अपना मामला पेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी.
पोवेदा ने दावा किया, "उनका कबूलनामा यातना के माध्यम से प्राप्त किया गया था. नागरिकता के महत्व से अधिक, यह अधिकारों का सम्मान करने और नागरिकता वापस लेने में उचित प्रक्रिया का पालन करने का मामला है."
सरकार के साथ संबंध का असर
सालों तक ऐसा लगता था कि जूलियान असांज का भाग्य इक्वाडोर के साथ उनकी नई दोस्ती पर निर्भर करता है, लेकिन नई सरकार बनने से पहले ही देश के साथ संबंध बिगड़ने लगे. उसी वर्ष लगभग दो दशक बाद इक्वाडोर ने एक दक्षिणपंथी राष्ट्रपति चुना.
असांज ने ब्रिटेन में स्वीडन प्रत्यर्पित किए जाने को रोकने की कानूनी कोशिशों के विफल होने के बाद 2012 में इक्वाडोर के दूतावास में शरण ली थी. स्वीडन में बलात्कार के आरोपों की जांच को 2017 में रोक दिया गया था.
लंदन में इक्वाडोर के दूतावास में वर्षों के आवास के बाद इक्वाडोर के राष्ट्रपति लेनिन मोरेनो की सरकार ने नागरिकता देने की घोषणा की थी. जूलियान असांज ने कथित बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामले में स्वीडन को प्रत्यर्पित होने से बचने के लिए 2012 में इक्वाडोर के दूतावास में शरण मांगी थी. लेकिन मोरेनो सरकार के साथ संबंध खराब होने के बाद 11 अप्रैल 2019 को मोरेनो ने लंदन स्थिति इक्वाडोर के दूतावास के गेट लंदन की पुलिस के लिए खुलवा दिए. पुलिस दूतावास में दाखिल हुई और जूलियान असांज को ले गई.
असांज के खुलासे से तहलका
50 साल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिक जूलियान असांज ने हैकिंग और अपनी वेबसाइट विकीलीक्स के जरिए 2010 में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में खलबली मचा दी थी. विकीलीक्स ने इराक युद्ध से जुड़े गोपनीय अमेरिकी दस्तावेज रिलीज किए.
दस्तावेजों से पता चला कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी आतंकवाद के शक में गिरफ्तार किए गए संदिग्धों के साथ कैसा दुर्व्यवहार करती है. बढ़ते दवाब के बीच तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ग्वातानामो बे की एक जेल बंद करने का एलान किया.
असांज के वकीलों का कहना है कि अमेरिकी अदालत दोषी पाए जाने पर उन्हें 175 साल जेल की सजा दे सकती है. दूसरी ओर अमेरिकी सरकार का मानना है कि अदालत द्वारा दी जाने वाली सजा केवल चार से छह साल की हो सकती है.
इसी साल अमेरिका ने ब्रिटेन से मांग की थी कि असांज को अमेरिका के हवाले किया जाए, ताकि वहां उन पर मुकदमा चल सके. लेकिन ब्रिटिश जज ने इस मांग के खिलाफ फैसला देते हुए कहा है कि असांज की मानसिक स्थिति देखते हुए ऐसा करना उनका उत्पीड़न करना होगा.
एए/वीके (एपी, रॉयटर्स) (dw.com)
हजारों अफगान देश के मुख्य पासपोर्ट कार्यालय के बाहर इकट्ठा हो रहे हैं. वे पासपोर्ट बनवाकर युद्धग्रस्त देश से निकलना चाहते हैं.
अपने हजारों हमवतनों की तरह अब्देल खालिद नबियार उस कीमती यात्रा दस्तावेज के लिए आवेदन करने के लिए अफगानिस्तान के मुख्य पासपोर्ट कार्यालय के बाहर इंतजार कर रहे हैं, जो उन्हें युद्धग्रस्त देश छोड़ने की अनुमति देगा.
अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में तालिबान जिस तरह से पैर पसार रहा है, उसके चलते विदेशी सैन्य ताकतों की वापसी के साथ कई अफगान जिनके पास साधन हैं वे बाहर जाने का रास्ता तलाश रहे हैं. 52 वर्षीय नबियार कहते हैं, "अगर स्थिति बिगड़ती है, तो हमें देश छोड़ना पड़ सकता है," वह विशेष रूप से असुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि वह कभी नाटो सैन्य अड्डे पर एक दुकान चलाते थे.
हर कोई तत्काल बाहर नहीं निकल पाएगा, लेकिन अधिकांश सुरक्षा कवच चाहते हैं - यह जानते हुए कि वे कम समय में बाहर जा सकते हैं. नबियार कहते हैं, "लोग चाहते हैं कि चीजें गलत होने की स्थिति के पहले से वे तैयार रहें."
पासपोर्ट है तो बाहर जाने का रास्ता है
काबुल के पासपोर्ट कार्यालय के बाहर भोर से ही लोग कतार में लग जाते हैं. सुबह आठ बजे तक कतार सैकड़ों मीटर तक लंबी हो जाती है. आवेदक धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं. वे अपने दस्तावेजों वाले प्लास्टिक फोल्डर को पकड़ते हैं. कभी-कभी अपनी किस्मत आजमाने वालों को कतार में खड़ा करने के लिए पुलिस अधिकारी की भी जरूरत पड़ती है.
पत्रकारों के सवाल पर पासपोर्ट अधिकारी थोड़ी झिड़क जाती हैं. वह कहती हैं कि नागरिक के लिए पासपोर्ट लेना सामान्य बात है. हाल के सप्ताहों में पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वालों की संख्या असामान्य है. एक पुलिस अधिकारी ने बताया, "आम तौर पर 2,000 के मुकाबले एक दिन में लगभग 10,000 लोग आवेदन के लिए आ रहे हैं."
36 साल के इंजीनियर खलीलुल्लाह सुबह पांच बजे ही अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ पासपोर्ट कार्यालय आ गए. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "पहले से ही 300 लोग कतार में थे."
आवेदकों को अपनी तस्वीर देने की जरूरत होती है, आंखों को बायोमेट्रिक रूप से रिकॉर्ड किया जाता है और प्रक्रिया के हिस्से के रूप में उंगलियों के निशान लिए जाते हैं.
तालिबान ने महिला अधिकारों का हनन किया
जीनत बहार नजरी को इंतजार करते हुए कई घंटे हो गए हैं. एएफपी से बात करते हुए वह कहती हैं, "जब हम बच्चे थे, हमारे परिवार वालों ने कहा कि तालिबान ने लोगों को मार डाला और उन्हें गायब कर दिया."
कंप्यूटर साइंस की 23 साल की छात्रा जीनत कहती हैं, "वे महिलाओं के प्रति हिंसक थे. उन्हें शिक्षित नहीं होने दिया और उन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित कर दिया."
हालांकि जीनत तालिबान के पहले शासन को याद करने के लिए बहुत छोटी हैं. लेकिन 1996 से 2001 तक तालिबान ने क्या किया वह बखूबी जानती हैं. वह कहती हैं, "केवल एक चीज मुझे पता है कि तालिबान के पास आतंक का चेहरा है. वह बस लड़ाई, आत्मघाती बम विस्फोट और खूनखराबा करता है."
जीनत कहती हैं, "जब आप स्कूल या विश्वविद्यालय जाते हैं तो एक उज्ज्वल भविष्य की आशा करते हैं, लेकिन अगर तालिबान सत्ता संभालता है तो उज्ज्वल भविष्य की आशा गायब हो जाएगी."
कतार में लगे कई लोगों को पता नहीं है कि अगर उन्हें मौका दिया गया तो वे कहां जाएंगे या कोई अन्य देश भी उन्हें अपनाएगा. अधिकांश देश अफगानों को वीजा देने के लिए कई दस्तावेजों की मांग करते हैं. दस्तावेजों के साथ-साथ वित्तीय स्थिरता का भी प्रमाण देने की जरूरत होती है. जो कुछ के पास ही होती है. लेकिन फिर भी सभी लोग तैयार रहना चाहते हैं.
52 साल के सरदार कहते हैं, "हमारा जीवन खतरे में है, हमारे पास कोई विकल्प नहीं है." उन्होंने आगे पहचान जाहिर करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश नागरिक समाज समूह के लिए अनुवादक के रूप में काम किया है और वह अपने जीवन के लिए डरते हैं.
कई ऐसे भी लोग हैं जो पासपोर्ट तो चाहते हैं लेकिन वे दोबारा शरणार्थी नहीं बनना चाहते हैं.
एए/वीके (एएफपी)
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि के पूर्वानुमान में भारी कमी की है. कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों और टीकाकरण की धीमी रफ्तार का असर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार पर नजर आ रहा है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने मंगलवार को जारी पूर्वानुमान में भारत की विकास दर में तीन फीसदी की कमी कर दी. अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को भी कमी झेलनी पड़ी है.
अपने वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (WEO) अपडेट में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा है कि एशिया इस साल 7.5 प्रतिशत की दर से विकास करेगा. अप्रैल में जारी पूर्वानुमान से यह 1.1 प्रतिशत कम है. इसे एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है. दुनियाभर की उभरती अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में 0.4 प्रतिशत की ही कमी की गई है.
एक बयान में आईएमएफ ने कहा, "मार्च से मई के बीच आई कोविड-19 की लहर के कारण भारत की विकास दर के पूर्वानुमान में कमी की गई है क्योंकि अर्थव्यस्था के वापस पटरी पर लौटने के आत्मविश्वास को ठेस पहुंची है.”
आईएमएफ ने कहा है कि आसियान-5 समूह के बाकी देशों में भी ऐसे ही हालात हैं जहां कोरोनवायरस की ताजा लहरों ने बड़ा असर डाला है.
दक्षिण पूर्व एशिया का बुरा हाल
नए आंकड़ों के मुताबिक भारत की विकास दर 9.5 फीसदी रहने का अनुमान है, जो पिछले अनुमान से 3 प्रतिशत कम है. आसियान-5, जिसमें इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपीन्स, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं, अनुमानतः 4.3 फीसदी की दर से विकास करेंगे, जो पहले से 0.6 प्रतिशत कम हैं.
चीन की विकास दर में 0.3 कटौती करके उसे 8.1 प्रतिशत का पूर्वानुमान दिया गया है. इसकी मुख्य वजह सार्वजनिक निवेश में कमी बताई गई है.
2022 के लिए आईएमएफ ने बेहतर विकास दर का अनुमान लगाया है. उभरती एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो पहले से 0.4 प्रतिशत ज्यादा है.
दक्षिण पूर्व एशिया कोरोनवायरस के डेल्टा वेरिएंट का कहर झेल रहा है जिस कारण कई देशों को दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से यात्राएं रोकनी पड़ी हैं.
ऑक्सफर्ड इकनॉमिक्स का अनुमान है कि कोरोनवायरस की इस खतरनाक लहर का असर इन देशों की आर्थिक रिकवरी पर बहुत ज्यादा हो सकता है. एक बयान में ऑक्सफर्ड इकनॉमिक्स ने कहा, "चीन और सिंगापुर को छोड़कर बाकी देशों में टीकाकरण की धीमी रफ्तार ने भी इन अर्थव्यवस्थाओं को खतरे में डाल दिया है और आर्थिक नुकसान हमारे पूर्वानुमान से भी ज्यादा हो सकता है.”
अमीर देशों की बल्ले-बल्ले
आईएमएफ ने दुनिया की विकास दर के पूर्वानुमानों में कोई बदलाव नहीं किया है और यह 6 फीसदी ही रखी गई है. लेकिन अमेरिका और अन्य अमीर देशों की वृद्धि दर में बढ़त का अनुमान जाहिर किया गया है.
आईएमएफ प्रमुख गीता गोपीनाथ ने कहा, "विकसित देशों में 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को वैक्सीन लग चुकी है. विकासशील देशों में यह आंकड़ा सिर्फ 11 प्रतिशत है.” उन्होंने कहा कि अमीर देशों में टीकाकरण की अनुमान से ज्यादा रफ्तार और जन-जीवन सामान्य होने से विकास दर के पूर्वानुमान पर फर्क पड़ा है.
नए अनुमानों के तहत अमेरिका की विकास दर 2021 में 7 प्रतिशत और 2022 में 4.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है. अप्रैल तक अमेरिका की विकास दर इस साल 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान था. इस बढ़त के पीछे वह उम्मीद काम कर रही है कि अमेरिकी संसद बाइडेन सरकार के आधारभूत ढांचे में चार खरब डॉलर के निवेश के प्रस्ताव को मंजूर कर लेगी.
ब्रिटेन की विकास दर में 1.7 प्रतिशत की वृद्धि करते है पूर्वानुमान 7 प्रतिशत कर दिया गया है. यूरोजोन भी 0.2 फीसदी की मामूली वृद्धि की गई है जबकि जापान की विकास दर के पिछले पूर्वानुमान में आधा फीसदी की कमी कर दी गई है.
दक्षिण अमेरिका में सुधार
दक्षिण अमेरिकी देशों के लिए आईएमएफ के पूर्वानुमान पहले से बेहतर रहे हैं. मंगलवार को आईएमएफ ने कहा कि यह क्षेत्र इस साल 5.8 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है, जो अप्रैल से 1.2 प्रतिशत ज्यादा है. पिछले साल दक्षिण अमेरिकी अर्थव्यस्था 7.5 प्रतिशत सिकुड़ गई थी और यह दुनिया का सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला क्षेत्र रहा था.
आईएमएफ ने कहा, "पूर्वानुमान में यह बढ़त मुख्यतया ब्राजील और मेक्सिको के पहली तिमाही के अनुमान से बेहतर प्रदर्शन का नतीजा है.”
पूर्वानुमानों के तहत ब्राजील की विकास दर अप्रैल से 1.6 फीसदी बढ़ाकर 5.3 प्रतिशत कर दी गई है. मेक्सिको की विकास दर में 1.3 फीसदी की बढ़त का अनुमान है और अब यह 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ती नजर आ रही है.
वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)
अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर कई देश रणनीतियां बना रहे हैं. इनमें इसके साथ बड़ी सीमा साझा करने वाले पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान के अलावा भारत, चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश भी हैं.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
अफगानिस्तान से अमेरिका और पश्चिमी देशों की सेनाओं की वापसी का काम लगभग पूरा हो चुका है. इसके साथ ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जे की लड़ाई तेज कर दी है.
हालिया जानकारी के मुताबिक अफगानिस्तान के 400 जिलों में से लगभग आधे पर उसने कब्जा कर लिया है. लेकिन वह 34 प्रांतीय राजधानियों में से एक को भी हासिल नहीं कर सका है. हालांकि इनमें से आधी राजधानियों पर वह दबाव बनाए हुए है और काबुल समेत कई इलाकों में अफगान सुरक्षा बलों के साथ लड़ रहा है.
तालिबान दावा कर रहा है कि वह अफगानिस्तान के 85% हिस्से पर कब्जा कर चुका है और वहां की सत्ता पर इसका काबिज होना तय है. लेकिन अमेरिका और भारत सहित कई देश इस दावे पर विश्वास नहीं कर रहे. ये देश मानते हैं कि अफगान सुरक्षा बल अफगानिस्तान की रक्षा में समर्थ हैं.
हालांकि इस दौरान ये देश तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत के जरिए भविष्य का रास्ता निकालने पर भी जोर दे रहे हैं. अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर कई देश रणनीतियां बना रहे हैं. इनमें इसके साथ बड़ी सीमा साझा करने वाले पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान के अलावा भारत, चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश भी हैं.
भारत के पास दो रास्ते
भारत के लिए अफगानिस्तान का भविष्य बहुत मायने रखता है. इसकी कई वजह हैं लेकिन तीन सबसे प्रमुख हैं. पहली, भारत की कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ने से रोकने की कोशिश, जिसे बढ़ावा देने में तालिबान की भूमिका रही है. दूसरी, पाकिस्तान की तालिबान से ऐतिहासिक नजदीकियां, जिनके चलते भारत के हितों को नुकसान होने की गुंजाइश है. और तीसरी, अफगानिस्तान में पिछले दशकों में भारत की ओर से किए विकास कार्यों को बचाना. भारत ने अफगानिस्तान में कई विकास कार्यों सहित वहां की नई संसद के निर्माण में भी मदद की है.
फिलहाल भारत न सिर्फ ईरान और रूस के साथ मिलकर अफगान समस्या का हल खोजने की कोशिश कर रहा है बल्कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वह तालिबान से भी सीधे बातचीत कर रहा है. हालांकि भारतीय सरकार ने सीधी बातचीत से इंकार किया है. लेकिन जानकारों का मानना है कि भारत को असली सफलता तभी मिल सकती है जब वह चीन के साथ मिलकर इस मामले का हल निकालने की कोशिश करे.
दूसरी तरफ, कई जानकार यह मानते हैं कि उसे दूसरा रास्ता अपनाते हुए चीन से बात न करके ईरान के प्रति अमेरिका का रुख नर्म होने का इंतजार करना चाहिए और ईरान की मदद से अफगानिस्तान नीति तैयार करनी चाहिए.
चीन को साथ लेना जरूरी
चीन के साथ अफगानिस्तान पर भारत की कोई भी चर्चा उत्तरी लद्दाख और कई बॉर्डर के इलाकों में कथित चीनी घुसपैठ और चीन की पाकिस्तान से नजदीकियों को ध्यान में रखे बिना नहीं हो सकती है. फिर भी जानकार अफगान समस्या का हल करने के लिए चीन और भारत के साथ आने की वकालत कर रहे हैं.
सेंटर फॉर पॉलिसी स्ट्डीज के निदेशक सी उदय भास्कर कहते हैं, "भारत को चीन के साथ जरूर बात करनी चाहिए. इसके लिए चीन के सामने प्रस्ताव रखने की जरूरत नहीं है. शांघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) जैसे मंच पर ऐसे मुद्दों को उठाया जा सकता है."
हालांकि सीधी अफगान नीति तैयार करने के मुद्दे पर वह कहते हैं, "भारत को थोड़ा इंतजार करना चाहिए और अफगानिस्तान और तालिबान के बीच सत्ता साझा किए जाने का रास्ता निकलने और वहां थोड़ी स्थिरता होने के बाद ही अफगान नीति पर कोई सीधा एक्शन लेना चाहिए. अभी अफगान सरकार की सीधी मदद का नुकसानदेह भी हो सकती है क्योंकि भारत तालिबान से भी बात कर रहा है."
वहीं लंदन के किंग्स कॉलेज में इंटरनेशन रिलेशंस के प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "भारत को सबसे बात करनी चाहिए, इसलिए चीन से भी बात करे. लेकिन क्या चीन भी बात करेगा? दोनों देश अफगानिस्तान को पहले ही अपनी बातचीत में प्राथमिकता में रख चुके हैं लेकिन यह आगे नहीं बढ़ी. चीन की पाकिस्तान से करीबी इसकी वजह है. इसलिए भारत परिस्थितियों पर नजर रखे और समय देखकर अपनी नीति के बारे में फैसला करे."
बातों का कोई जमीनी असर नहीं
जानकार मानते हैं यह इतना आसान नहीं होगा. 'साम्राज्यों का कब्रिस्तान' कहे जाने वाले अफगानिस्तान पर अब चीन की नजरें हैं. चीन की ओर से कहा गया है कि 'बॉर्डर ऐंड रोड एनीशिएटिव' के तहत अफगानिस्तान में भी निवेश किया जाएगा.
चीन लंबे समय से तालिबानी नेताओं के साथ चर्चा कर रहा है. उसे अपने उद्देश्य में पाकिस्तान से भी मदद मिल रही है. तालिबानी नेता बीजिंग दौरे पर भी गए हैं. इसका असर तालिबानी प्रतिक्रिया में देखने को मिला है. उसने चीन के खिलाफ अफगान जमीन का इस्तेमाल न करने का वादा किया है. उसकी ओर से चीनी निवेश को कोई नुकसान न पहुंचाने का वादा भी किया गया है.
जानकार मानते हैं कि चीन के लिए स्थितियां जितनी आसान लग रही हैं, उतनी हैं नहीं. सिर्फ आर्थिक निवेश से तालिबान को साधना नामुमकिन है. पहले भी अमेरिका जैसे देशों की यह कोशिश नाकाम रही है. फिलहाल अफगानिस्तान सालों तक अशांत रहने वाला है. वहां तालिबान का शासन आ जाए तो भी पूरी तरह स्थिरता आने में लंबा समय लगेगा.
हर्ष वी पंत ने डीडब्ल्यू से कहा, "फिलहाल तालिबान सिर्फ वैधता हासिल करने के लिए आर्थिक विकास, नागरिक और महिला अधिकारों आदि की बात कर रहा है लेकिन यह साफ है कि उसकी विचारधारा धार्मिक कट्टरपंथ की है और वह चीन के विचारों से मेल नहीं खाती. चीन भी यह बात बखूबी समझता है, इसलिए उसकी ओर से भी सिर्फ बातें की जा रही हैं. इसी वजह से इन बातों का कोई जमीनी नतीजा नहीं दिखा है."
जानकार कहते हैं कि चीन के पास अपेक्षाकृत स्थिर पाकिस्तान में चाइना-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर (CPEC) पर बढ़ रहे आतंकी हमलों का बुरा अनुभव भी है. हाल ही में पाकिस्तान के कोहेस्तान में हुए एक आतंकी हमले में चीन के 9 नागरिक मारे गए थे. यह बात उसे अफगानिस्तान में शांति होने तक इंतजार करने के लिए मजबूर करेगी.
इसके अलावा चीन को तालिबान के असर के चलते अपने पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में मुस्लिम कट्टरपंथ में बढ़ोतरी होने का भी डर जरूर होगा. यानी तमाम दावों के बावजूद यही संभावना है कि फिलहाल चीन अफगानिस्तान में कोई खास रुचि नहीं लेगा. (dw.com)
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि मई में गज़ा में हुए संघर्ष के दौरान इसराइली सेना और फ़लस्तीनी चरमपंथी समूहों ने जो हमले किए वो साफ़तौर पर युद्ध अपराधों के बराबर थे.
ह्यूमन राइट्स वॉच की जांच के मुताबिक इसराइल के जिन तीन हमलों में 62 लोग मारे गए थे, वो हमले सैन्य ठिकानों पर होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं.
इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष के दौरान इसराइल की सेना ने कहा था कि उन्होंने गज़ा में केवल सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक चरमपंथियों ने इसराइल पर 4300 रॉकेट दागकर नागरिकों पर अंधाधुंध हमले किए.
11 दिनों की इस लड़ाई के दौरान गज़ा में कम से कम 260 लोग और इसराइल में 13 लोग मारे गए.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि गज़ा में मारे गए कम से कम 129 लोग आम नागरिक थे. वहीं, इसराइली सेना ने कहा कि इनमें 200 चरमपंथी थे. चरमपंथी समूह हमास का कहना है कि इस दौरान 80 लड़ाकों की मौत हुई है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की जांच में उन तीन इसराइली हमलों को केंद्र में रखा गया है जिनमें सबसे ज़्यादा आम नागरिकों की मौत हुई थी.
ये हमले 10 मई को बेत हनून, 15 मई को शाती शरणार्थी शिविर और 16 मई को ग़ज़ा शहर में हुए थे.
बेत हनून में चार घरों से मिसाइल टकराई थीं जिसमें आठ नागरिक मारे गए थे. इसराइली सेना का कहना है कि ये विस्फोट फ़लस्तीन के रॉकेट से हुआ था.
शाती शरणार्थी शिविर में एक बम ने तीन मंज़िला इमारत को गिरा दिया था जिसमें 10 नागरिकों की जान चली गई. इसराइली सेना का कहना है कि उस समय हमास के वरिष्ठ अधिकारी इमारत में मौजूद थे. हालांकि, चश्मदीदों ने इसकी जानकारी ना होने की बात कही है.
गज़ा शहर में अल-वहादा स्ट्रीट पर हुए हवाई हमले में एक बहुमंज़िला इमारत गिर गई और 44 नागरिक मारे गए. इसराइली सेना का कहना है कि उसका निशाना चरमपंथियों द्वारा इस्तेमाल होने वाली सुरगें थीं.
इसराइली सेना ने मंगलवार को न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी से कहा कि ह्यूमन राइट्स वॉच हमास और अन्य चरमपंथी संगठनों द्वारा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन की निंदा करने के बजाय पहले से ख़ारिज हो चुके आरोपों को फिर से सामने ला रहा है.
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि फ़लस्तीनी चरमपंथियों ने इसराइल के शहरों और कस्बों की तरफ़ बिना निर्देशित रॉकेट दागकर नागरिकों पर जान-बूझकर या अंधाधुंध हमलों के ख़िलाफ़ लगे प्रतिबंध का उल्लंघन किया है. वह अगले महीने रॉकेट हमलों पर एक अलग रिपोर्ट जारी करेगा.
हमास ने यह कहते हुए जवाब दिया है कि इसराइल के किए नरसंहारों के बावजूद उसने नागरिकों को निशाना बनाने से बचने की कोशिश की है. (bbc.com)
-ऋषभ मणि त्रिपाठी
एडीजी प्रशांत कुमार ने बताया कि वीमेन ट्रैफिकिंग में शामिल इंटरनेशनल गिरोह का खुलासा किया गया है. म्यांमार और बांग्लादेश से महिलाओं, युवतियों और बच्चों को लाकर एनसीआर समेत कई इलाकों में इन्हें बेचा जाता था.
लखनऊ. यूपी एटीएस ने वीमेन ट्रैफिकिंग के इंटरनेशनल गिरोह का खुलासा किया है. एटीएस ने बांग्लादेशी नागरिक नूर मोहम्मद और दो रोहिंग्या मुस्लिम रहमतुल्लाह और शबीउल्लाह को गाज़ियाबाद स्टेशन से गिरफ्तार किया है.आरोपियों के कब्ज़े से दो नाबालिग रोहिंग्या लड़कियां और एक नाबालिग रोहिंग्या लड़के को भी छुड़ाया गया है. बताया जाता है कि इन्हें बेचने के लिए नई दिल्ली ले जाया जा रहा था. सूत्रों की मानें तो एक रोहिंग्या युवती की कीमत 25 हजार रुपये लगाई जाती थी.
एडीजी (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने बताया कि वीमेन ट्रैफिकिंग में शामिल ये एक इंटरनेशनल गिरोह है. म्यांमार और बांग्लादेश से महिलाओं, युवतियों और बच्चों को यह गिरोह लाता था और एनसीआर समेत कई इलाकों में इन्हें बेचा जाता था. सूत्रों के मुताबिक एक नाबालिग रोहिंग्या लड़की 25 हजार रुपये में बिकती है. अब यूपी एटीएस गिरोह से जुड़े उन लोगों को तलाश रही है जो इन लड़कियों को खरीदते हैं.
भारत के अलग-अलग हिस्सों में बेचा जाता था
एडीजी ने बताया कि गिरोह का सरगना नूर मोहम्मद रोहिंग्या को बांग्लादेश से अवैध रूप से त्रिपुरा लाता था, जहां से इन्हें भारत के अलग-अलग हिस्सों में बेचा जाता था. नूर मोहम्मद ही कुछ भारतीय लोगों के साथ मिलकर अवैध रोहिंग्या मुस्लिम लोगों की भारतीय आईडी भी बनवाता था. जिन रोहिंग्या युवतियों का पासपोर्ट बनवाने में यह गिरोह सफल हो जाता था, उन्हें मलेशिया और बैंकॉक भी भेजा जाता था.
बड़ी साजिश का हिस्सा
युवतियों और बच्चों की तस्करी करने वाले गिरोह का खुलासा होने से एजेंसियां सतर्क हो गई हैं. एडीजी ने बताया कि इन लड़कियों का हर तरह से शोषण किया जाता था. गाजियाबाद रेलवे स्टेशन से गिरफ्तारी के समय भी इन लड़कियों को शादी और बेहतर ज़िंदगी के नाम पर नई दिल्ली ले जाया जा रहा था, जहां से इनको बेचने की पूरी तैयारी कर ली गई थी. एडीजी प्रशांत कुमार इस पूरे गिरोह को बड़ी साज़िश का हिस्सा भी मानते हैं. लिहाज़ा यूपी एटीएस ने अवैध रोहिंग्या मुस्लिम के खिलाफ अभियान चला रखा है. बीते कुछ महीनों में यूपी एटीएस ने 18 अवैध रोहिंग्या मुस्लिमों को गिरफ्तार किया है.