अंतरराष्ट्रीय
चीन ने इंटरनेट कंपनियों के लिए एल्गोरिदम बनाने से संबंधित दिशा निर्देश जारी किए हैं. कंपनियों को कहा गया है कि वो ऐसे एल्गोरिदम ना बनाएं जिनसे लोग ऐसी चीजों पर खर्च करने के लिए आकर्षित हों जिनसे जन व्यवस्था पर असर पड़े.
ये दिशा निर्देश विशेष रूप से उन एल्गोरिदम के लिए हैं जो यूजर को क्लिक करने के लिए सुझाव देते हैं. चीन के इंटरनेट नियामक ने कहा है कि ये कदम यूजरों की निजता और डाटा की सुरक्षा के लिए उठाए गए हैं. नियामक ने कहा कि इंटरनेट कंपनियों को व्यापार में नैतिक आचरण और निष्पक्षता के सिद्धांत मानने चाहिए.
नियामक के अनुसार कंपनियों को ऐसे एल्गोरिदम मॉडल नहीं बनाने चाहिएं जो यूजरों को बहुत सारा पैसा खर्च करने का प्रलोभन दें. इसके अलावा ऐसे एल्गोरिदम का इस्तेमाल नकली अकाउंट बनाने के लिए भी नहीं होना चाहिए. यूजरों को यह विकल्प भी दिया जाना चाहिए कि वो एल्गोरिदम सुझाने के फीचर को आसानी से बंद कर सकें.
इंटरनेट कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई
नियामक ने कहा कि दिशा निर्देशों के इस मसौदे पर 26 सितंबर तक फीडबैक दिया जा सकता है. यह कदम ऐसे समय पर आया है जब चीन अपने देश की इंटरनेट कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई कर रहा है. सरकार ने एकाधिकार संबंधी गतिविधियों से लेकर उपभोक्ताओं की निजता जैसे मुद्दों पर कंपनियों को निशाना बना कर उन्हें सजा दी है.
कुछ महीनों पहले चीनी उपभोक्ता एसोसिएशन ने लोगों की व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग करने और लोगों को जबरन खरीदारी करने पर मजबूर करने के लिए इंटरनेट कंपनियों की आलोचना की थी. तब से सरकारी मीडिया ने इस तरह के एल्गोरिदम के नियंत्रण की कई बार मांग की है.
पूरी दुनिया में इंटरनेट कंपनियां यूजरों की पसंद पहचानने और उन्हें सुझाव देने के लिए एल्गोरिदम का इस्तेमाल करती हैं. चीन में इस तरह की कंपनियों में बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा, टैक्सी एग्रीगेटर दीदी और टिकटॉक की मालिकाना कंपनी बाइटडांस शामिल हैं.
चीन में टेक नियामन
इस कदम से चीन की सबसे बड़ी इंटरनेट कंपनियों पर सीधा असर पड़ेगा. हांग कांग में अलीबाबा समूह के शेयरों में 5.2 प्रतिशत तक की गिरावट आई. कंपनी ने तुरंत इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. बीजिंग स्थित कंसल्टेंसी कंपनी ट्रिवियम चाइना में टेक पॉलिसी रिसर्च के मुखिया केंड्रा शैफर कहते हैं, "जहां तक मेरा सोचना है, यह नीति यह दिखाती है कि चीन में टेक नियामन उस स्तर पर नहीं है जिस पर यूरोपीय संघ के डाटा नियम हैं, बल्कि उनसे आगे निकल गया है."
चीन ने हाल ही में एक डाटा सुरक्षा कानून भी पास किया था जो एक सितंबर से लागू होगा. सरकार के मुताबिक इसका उद्देश्य साइबरस्पेस में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के अधिकारों की सुरक्षा करना और तेजी से बढ़ते देश के इंटरनेट उद्योग पर लगाम लगाना है.
सीके/एए (एपी, रॉयटर्स)
दशकों से हमने ग्रहों और चंद्रमाओं की टोह लेने के लिए सैटेलाइट और अंतरिक्ष यान रवाना किए हैं. कुछ तो इतना दूर निकल जाते हैं कि उनसे सौरमंडल ही छूट चुका होता है. लेकिन ये मिशन आखिर किसलिए?
डॉयचे वेले पर जुल्फिकार अबानी की रिपोर्ट
फ्लाईबाई -यानी अंतरिक्ष में किसी ग्रह का चक्कर लगाना. वैसे तो ये कोई नयी बात नहीं है. लेकिन एक दिन के अंतराल में एक ही ग्रह की दो फ्लाईबाई? ये तो खास है. अंतरिक्ष में पहली बार, अगस्त में दो यान शुक्र ग्रह के पास से गुजरे- बेपीकोलम्बो ने बुध का रुख किया और सोलर ऑरबिटर, सूरज के सफर पर है.
फ्लाईबाई न करें तो अपने लक्ष्य तक पहुंचना उनके लिए मुमकिन नहीं, ग्रैविटी भी मददगार होती है. लेकिन अफसोस, दोनों एक-दूसरे की फोटो नहीं उतार पाए. वे थे भी तो पांच लाख 75 हजार किलोमीटर दूर!
अंतरिक्ष यान की मदद करता है गुरुत्व
बेपीकोलम्बो अंतरिक्षयान शुक्र के पास से इसलिए गुजरा कि अपनी रफ्तार को धीमी करने में उससे मदद मिल सके. उसे अपनी "कक्षीय ऊर्जा” का बुध की कक्षीय ऊर्जा से मिलान कराना होता है. तभी वो बुध की कक्षा में दाखिल हो पाएगा.
बेपी चला था, धरती की कक्षीय ऊर्जा लेकर, जो काफी ज्यादा होती है. लेकिन अब उसे इतनी तेजी नहीं चाहिए. सीधी सी बात ये कि अपनी ऊर्जा वो शुक्र को दे रहा है और ग्रैविटी यानी गुरुत्व से उसे मदद मिल रही है- गुलेल जैसा खिंचाव और बदला हुआ रास्ता.
शुक्र पर शीत युद्ध
शीत युद्ध का दौर था जब अंतरिक्ष यात्रा की होड़ शुरू हुई थी. सबसे पहले सोवियत संघ ने 1961 में शुक्र ग्रह के पास अंतरिक्ष यान उड़ाने की कोशिश की थी लेकिन नाकाम रहा. उसे चुभा तो होगा लेकिन एक साल बाद ही अमेरिका अपना अंतरिक्ष यान, मैरीनर 2 भेजने में सफल रहा.
सोवियत संघ को अपनी पहली कामयाबी 1978 में मिली. तब तक अमेरिकियों ने बुध, मंगल और बृहस्पति की परिक्रमा कर डाली थी. लेकिन चांद पर सबसे पहले पहुंचने वाले थे- सोवियत अंतरिक्ष यात्री. यहां पर सोवियतों ने लंबा हाथ मारा.
छोर को भी छोड़ते वोयेजर
1977 में लॉन्च किए गए वोयेजर 1 और वोयेजर 2 अंतरिक्षयानों को बाहरी सौरमंडल को खंगालने के लिए भेजा गया था. दोनों धरती की समस्त ध्वनियों के गोल्डन रिकॉर्ड से लैस थेः एलियन्स को सुनाने के लिए हमारी दास्तान. दोनों यानों ने बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून का चक्कर लगाया.
वी 1 ने तो बृहस्पति पर सैकड़ों वर्षो से जमा तूफान- ग्रेट रेड स्पॉट की फोटो भी खींची थी. वी 1 और वी 2 अब हमारे सौरमंडल से बाहर तारों के बीच किसी स्पेस में मंडरा रहे होंगे. उन्हें ही कहा जाता है "सबसे दूर स्थित मानव-निर्मित वस्तुएं.”
बृहस्पति के उन्यासी चंद्रमा
लोग अक्सर इस अकेले, बोदे चंद्रमा को मोहब्बत और ताज्जुब से देखते हैं. और देखें भी क्यों ना, वो मज़ा कहां आता अगर हमारे पास बृहस्पति जैसे ढेर सारे, 79 चंद्रमा होते. वोयेजर 2 ने उनमें से एक खोज निकाला था (नेपच्युन के पांच चंद्रमा भी उसी ने खोजे थे).
और ये पता लगाने वाला वही था कि बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा में धरती से इतर जीवन का कोई रूप मौजूद हो सकता है. हमें इसके खारे महासागरों के बारे में जानने की इच्छा होती है. अपने अंतरिक्षयान यूरोपा क्लिपर के जरिए नासा इसके बारे में और जानना चाहता है.
टूट जाना और जल उठना...गर्व से
अगर आप सोचते हैं कि 79 चंद्रमा तो बहुत हैं तो जरा 82 का सोचिए. शनि महाराज के पास इतने ही हैं. शनि और उसके चंद्रमाओं की खोज में निकला कैसिनी अंतरिक्ष यान अमेरिका और यूरोप का साझा मिशन था. उसने शनि के चंद्रमाओं के 162 चक्कर लगाए.
इनमें टाइटन और एनसिलाडस चंद्रमा भी शामिल थे जहां उसे महासागर मिले. सौरमंडल को 13 साल तक खंगालते हुए एक रोज कैसिनी ने अपनी आखिरी डुबकी शनि पर लगाई. आखिरी समय तक वो अपनी रिपोर्ट जुटाता रहा.
प्लूटो जैसे अदना ग्रह का दौरा भी
वोयेजर 1 और 2 को हमारे सौरमंडल के छोर पर साथ मिल गया, नासा के न्यू होराइजन का. ग्रैविटी का धक्का लेने के लिए बृहस्पति के पास से गुज़रते हुए, छह महीने वो अदना से ग्रह प्लूटो के आसपास मंडराता रहा था.
उसके बाद उसने कुइपर बेल्ट का रास्ता लिया जहां उसने वोयेजर 1 को कैमरे में कैद किया. अंतरिक्ष यान पायनियर 10 और पायनियर 11 ही अब तक उतना दूर जा पाए थे. ये अभियान अंतरिक्ष के भूगर्भ और जीवन से जुड़े सवालों का जवाब देने में हमारी मदद करते हैं.
कभी नहीं खत्म होता अंतरिक्ष
और भी बहुत से नामचीन फ्लाईबाई मिशन सक्रिय हैं- अंतरिक्ष यान रोजेटा ने धरती और मंगल के चक्कर लगाए थे और फिर चुरी धूमकेतु का रुख किया था. हेली धूमकेतु को बारीकी से टटोलने वाला गियोटो भी था.
नासा का डीप स्पेस 1 मिशन, और उसी का डीप इम्पैक्ट मिशन, किसी धूमकेतु से सैंपल के साथ वापसी का पहला मिशन, स्टारडस्ट... और भविष्य में और भी बहुत कुछः धरती से पहली बार सुदूर अंतरिक्ष में दुर्लभ एस्टेरॉयड जोड़े- डिडीमोस से मिलने निकलेगा यूरोप का अंतरिक्ष यान, हेरा. क्यों? बात सारी ये जानने की है कि हम इस ब्रह्मांड में हैं कौन, और कहां पर हैं यानी हमारी हैसियत क्या है. (dw.com)
इसराइली प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट के साथ मुलाक़ात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि अगर कूटनीति से ईरान के परमाणु संकट का समाधान नहीं होता है तो अमेरिका 'अन्य विकल्प अपनाने के लिए तैयार हैं.'
वॉशिंगटन में नए अमेरिकी राष्ट्रपति और नए इसराइली प्रधानमंत्री के बीच शुक्रवार को ये पहली मुलाक़ात हुई.
बेनेट ने राष्ट्रपति बाइडन के बयान की प्रशंसा की और कहा कि इसराइल कभी भी ईरान को परमाणु हथियार नहीं हासिल करने देगा.
काबुल एयरपोर्ट पर अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाकर किए गए घातक हमले की वजह से बेनेट और बाइडन की मुलाक़ात 24 घंटों के लिए टल गई थी.
बेनेट इस साल जून में ही इसराइल के प्रधानमंत्री बने हैं. उन्होंने कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम उनके एजेंडे के शीर्ष पर रहेगा.
ईरान कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है लेकिन पश्चिमी देश मानते हैं कि ईरान परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा है.
बेनेट के साथ क़रीब पचास मिनट चली बैठक के बाद बाइडन ने पत्रकारों से कहा कि हम सबसे पहले कूटनीति से ईरान के परमाणु मुद्दे को हल करने की कोशिश कर रहे हैं.
परमाणु समझौते पर अंतिम फ़ैसला बाक़ी
बाइडन ने कहा कि यदि कूटनीति नाकाम हो जाती है तो हम फिर दूसरे विकल्प भी अपनाएंगे. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि ये विकल्प क्या होंगे.
ईरान ने 2015 में पश्चिमी देशों के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर समझौता किया था लेकिन साल 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया था.
ईरान के साथ हुए समझौते को फिर से जीवित करने के लिए वियना में वार्ता चल रही है, लेकिन कुछ महीनों से इसमें भी कोई प्रगति नहीं हुई है.
ट्रंप ने अमेरिका को समझौते से अलग करते हुए ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए थे, जिनके जवाब में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज़ कर दिया है.
हालांकि ईरान ये कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है लेकिन अब ईरान हथियार बनाने के स्तर तक यूरेनियम संवर्धन कर रहा है.
राष्ट्रपति बाइडन ने कहा है कि वो ईरान पर लगे प्रतिबंध हटा लेंगे और फिर से समझौते में शामिल हो जाएंगे बशर्ते ईरान समझौते की शर्तों का सख़्ती से पालन करे.
लगी रहीं इसराइली मीडिया की नज़रें
इसराइल के मीडिया की नज़रें बाइडन और बेनेट की इस पहली मुलाक़ात पर टिकी रहीं. प्रधानमंत्री बेनेट को व्हाइट हाउस में दाखिल होते हुए और फिर बाहर निकलते हुए दिखाया गया.
इसराइली अख़बार हॉरेत्ज़ में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि बाइडन और बेनेट के बयान दर्शाते हैं कि भले ही खिलाड़ी बदल गए हैं लेकिन खेल चलता रहेगा.
इसराइली मीडिया में ये भी ज़ोर देकर बताया गया है कि बेनेट और बाइडन की मुलाक़ात तय समय से अधिक चली है जिससे पता चलता है कि ये बैठक कितनी अहम थी.
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप और पूर्व प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के बीच गहरे और क़रीबी रिश्ते थे. ट्रंप के कार्यकाल में यरूशलम को इसराइली राजधानी के रूप में मान्यता मिली थी. इसे इसराइल की एक बड़ी कूटनीतिक जीत और अमेरिका से मिली बड़ी राहत के तौर पर देखा गया था.
अब बाइडन ने भी बेनेट को दोस्त कहा है, जिससे ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते और भाईचारा मज़बूत बना रहेगा.
बाइडन ने ये भी कहा है कि अमेरिका इसराइल के आईरन डोम मिसाइल सिस्टम का समर्थन करता रहेगा. बाइडन ने कहा कि अमेरिका इसराइल की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है.
हालांकि, दोनों के बीच मतभेद तब नज़र आए जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, "हम इसराइलियों और फ़लस्तीनियों के बीच शांति, सुरक्षा और सद्भावना बढ़ाने को लेकर भी चर्चा करने जा रहे हैं."
बेनेट ने अपने बयान की शुरुआत से पहले काबुल में मारे गए अमेरिकी जवानों को श्रद्धांजली देते हुए कहा कि "मैं यरूशलम से सद्भावना का एक नया साहस लेकर आया हूं."
हॉरेत्ज़ के लेख के मुताबिक़ जब बाइडन ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का भी मध्य-पूर्व में अमेरिका की नीति निर्धारित करने के लिए शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए तो बेनेट उस समय गहरी सांस ले रहे थे.
मीडिया को दिए अपने बयान में बेनेट ने पूर्व प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के सख़्त लहजे को ही दोहराया.
उन्होंने कहा कि अमेरिका हमारा सबसे क़रीबी दोस्त है, यरूशलम हमारी ऐतिहासिक राजधानी है और हम ईरान को परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देंगे.
इसराइल ये कहता रहा है कि वह दुश्मन देशों से घिरा एक छोटा सा देश है और इसलिए इसराइल की सैन्य शक्ति को बनाए रखना ज़रूरी है.
इसराइल को फिर मिल रहा है अमेरिकी समर्थन?
अमेरिका में इस समय डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में है. हाल के सालों में इसराइल के प्रति डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन कम हुआ है.
बिन्यामिन नेतन्याहू ने जब राष्ट्रपति पद के लिए डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन किया था तो डेमोक्रेटिक पार्टी और इसराइल के बीच दूरियां और बढ़ गई थीं.
शुक्रवार को हुई मुलाक़ात में बेनेट और बाइडन ने ये दिखाने की कोशिश भी कि वो द्विपक्षीय समर्थन को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं.
ईरान के लिए क्या है संदेश?
बाइडन ने ईरान के परमाणु मुद्दे पर कहा कि यदि कूटनीति फेल होती है तो अमेरिका अन्य विकल्पों पर भी विचार करेगा.
राष्ट्रपति बाइडन के इस बयान ने ही सबसे ज़्यादा ध्यान खींचा है और माना जा रहा है कि उन्होंने ईरान को संदेश देने की कोशिश की है.
बेनेट ने राष्ट्रपति के स्पष्ट स्टैंड पर उनका शुक्रिया भी किया और तारीफ़ भी की.
हालांकि राष्ट्रपति ने ये स्पष्ट नहीं किया कि ये विकल्प क्या-क्या हो सकते हैं लेकिन इसे ईरान के लिए एक स्पष्ट संदेश के तौर पर देखा जा रहा है.
हाल के महीनों में ईरान और इसराइल के बीच तनाव बढ़ा है और दोनों ने एक दूसरे के जहाज़ों पर हमले करने के आरोप लगाए हैं.
इसराइल ने ये दर्शाने की कोशिश भी की है कि वो अपनी सुरक्षा के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहेगा और ख़ुद एक्शन लेने के लिए तैयार रहेगा.
अब बाइडन और बेनेट की मुलाक़ात से ये संदेश भी दिया गया है कि अमेरिका इसराइल के साथ मज़बूती से खड़ा है. (bbc.com)
अमेरिकी सेना ने कहा है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट (आईएस) समूह के सदस्यों पर हवाई हमला किया है.
अमेरिकी अधिकारियों ने बताया है कि इस्लामी समूह के योजनाकर्ता को निशाना बनाया गया, जिसने गुरुवार को काबुल एयरपोर्ट पर बड़े हमले को अंजाम दिया था. इन हमलों में 170 लोगों की मौत की बात कही जा रही है, जिनमें कम से कम 13 अमेरिकी सैनिक भी शामिल हैं.
इन हमलों की ज़िम्मेदारी अफ़ग़ानिस्तान में आईएस के धड़े इस्लामिक स्टेट-ख़ुरासान (IS-K) ने ली थी.
अमेरिका ने कहा है कि उसने नांगाहार प्रांत में ड्रोन से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया है और इसमें आईएस के जिस लक्ष्य को निशाना बनाया गया था, उसके मारे जाने की संभावना है.
बाइडन ने बदला लेने का किया था वादा
गुरुवार को धमाकों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके कहा था कि इस घटना के लिए ज़िम्मेदार लोगों को ढूंढ निकाला जाएगा.
अमेरिकी अधिकारियों ने संभावित हमलों को देखते हुए काबुल में अपने नागरिकों को नई चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि वे एयरपोर्ट के मुख्य रास्तों से दूर रहें.
वहीं, वरिष्ठ तालिबान अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने काबुल एयरपोर्ट के अंदर पोज़िशन ले ली है और अमेरिकियों के जाते ही वो नियंत्रण संभालने को तैयार हैं.
दूसरी ओर अमेरिका का कहना है कि वो आख़िरी लम्हों तक अफ़ग़ान लोगों को निकालेगा और उसकी सेना के पास अब भी जगह का नियंत्रण है. (bbc.com)
अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने बताया है कि अमेरिका ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट समूह के ख़िलाफ़ एक ड्रोन हमला किया है जिसमें समूह का एक सदस्य मारा गया है.
इस अभियान में नांगाहार प्रांत में इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान समूह के 'साज़िशकर्ता' को निशाना बनाया गया था.
ISIS-K का कहना है कि गुरुवार को उसने काबुल में हमले किए थे. इन हमलों में कम से कम 170 लोगों की मौत हुई है, वहीं मरने वालों में 13 अमेरिकी सैनिक भी शामिल हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में भरा पड़ा है सोना और तांबा, तालिबान के राज में किसे मिलेगा ये ख़ज़ाना
अफ़ग़ानिस्तान के वीगर मुसलमान, जिन्हें तालिबान ही नहीं चीन का भी डर
अमेरिका का कहना है कि 'शुरुआती संकेत' बताते हैं कि इस हमले में आईएस के जिस सदस्य को निशाना बनाया गया था वो मारा गया है और किसी आम नागरिक की मौत नहीं हुई है.
इस महीने राजधानी काबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से निकाला जाना जारी है.
बीते दो हफ़्तों में 1,00,000 से अधिक लोगों को निकाला जा चुका है. मंगलवार को अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के सुरक्षाबलों के चले जाने की डेडलाइन पूरी हो रही है.
IS-K या इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान प्रांत ने हमले की ज़िम्मेदारी ली थी जो कि इस्लामिक स्टेट समूह की एक ब्रांच है. अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद जिहादी उग्रवादी समूहों में ये सबसे हिंसक माना जाता है.
काबुल एयरपोर्ट के बाहर पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ के बीच यह धमाका हुआ था.
अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने की उम्मीद में इकट्ठा दर्जनों लोग इसमें मारे गए. अमेरिकी सैनिकों के अलावा ब्रिटेन के दो नागरिक और एक ब्रितानी नागरिक का बच्चा भी इस हमले में मारा गया.
बाइडन ने शुक्रवार को इस हमले के साज़िशकर्ताओं को चेतावनी देते हुए कहा था, "हम माफ़ नहीं करेंगे, हम नहीं भूलेंगे. हम ढूंढ निकालेंगे और नतीजा भुगतना होगा."
5,000 अमेरिकी सुरक्षाबल तैनात
काबुल एयरपोर्ट पर तक़रीबन 5,000 अमेरिकी सुरक्षाबल तैनात हैं जो कि देश छोड़ रहे अफ़ग़ान लोगों की मदद में लगे हुए हैं.
एक सैन्य अधिकारी ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी से कहा, "अगले 48 घंटों में अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने के लिए हम हर विदेशी नागरिक को एक रास्ता मुहैया करा रहे हैं."
तालिबान अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने एयरपोर्ट के हिस्सों का नियंत्रण ले लिया है लेकिन अमेरिका ने कहा है कि उसके सुरक्षाबलों ने अब भी नियंत्रण ले रखा है.
काबुल में मौजूद बीबीसी की मुख्य अंतरराष्ट्रीय संवादददाता लिज़ डूसे सूत्रों के हवाले से बताती हैं कि अमेरिका और ब्रिटिश सैनिक एयरपोर्ट पर अपना अभियान 'समेट रहे हैं' और तालिबान 'कुछ घंटों के बाद' नियंत्रण ले लेगा.
अधिकतर नेटो देशों ने अपनी आपातकालीन उड़ानों को समाप्त कर दिया है. फ्रांस ने शुक्रवार को ही अपना निकासी अभियान समाप्त कर दिया था. उनका आरोप था कि एयरपोर्ट पर सुरक्षा की स्थिति बिगड़ती जा रही है.
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, फ़्रांस के अधिकारियों ने आरोप लगाया था कि सुरक्षा में कमी 'अमेरिकी बलों के तेज़ी से पीछे हटने के कारण हुई है.'
गुरुवार को हुए धमाके के बाद अफ़ग़ानिस्तान में यह अमेरिका का पहला ड्रोन हमला है.
सेंट्रल कमांड के कैप्टन बिल अर्बन ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान के नांगाहार प्रांत में एक मानव रहित हवाई हमला किया गया. शुरुआती संकेत बता रहे हैं कि हमने अपने लक्ष्य को मार दिया है. हमें पता चला है कि आम नागरिकों को कोई नुक़सान नहीं हुआ है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स से एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी ने कहा कि ये हमला आईएस के एक सदस्य को निशाना बनाकर किया गया था.
उन्होंने बताया कि इस हमले को मध्य पूर्व से रीपर ड्रोन से अंजाम दिया गया है. उन्होंने कहा कि एक अन्य आईएस सदस्य के साथ वो सदस्य एक कार में था जब उसे निशाना बनाया गया और इस हमले मे दोनों लोग मारे गए हैं.
ऐसा माना जाता है कि IS-K के हज़ारों लड़ाके नांगाहार प्रांत में छिपे हुए हैं. यह प्रांत काबुल के पूर्व में है.
अमेरिकी अधिकारियों ने अमेरिकी नागरिकों को नई चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि संभावित हमलों के मद्देनज़र वे एयरपोर्ट के दरवाज़ों से दूर रहें.
'हमारे जवान अब भी ख़तरे में हैं'
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी जेन साकी ने शुक्रवार की दोपहर कहा था कि अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि 'काबुल में एक और आतंकी हमला हो सकता है. ख़तरा जारी है और हमारे जवान अभी भी ख़तरे में हैं.'
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा है कि अमेरिका का मानना है कि एयरपोर्ट के ऊपर अब भी 'विश्वसनीय' ख़तरा बना हुआ है.
उन्होंने कहा, "हम निश्चित रूप से तैयार हैं और भविष्य में किसी भी तरह की कोशिश की उम्मीद रखते हैं."
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि तालिबान लड़ाके राइफ़लों के साथ एयरपोर्ट के बाहर हैं और वो एयरपोर्ट के दरवाज़े पर भीड़ को जाने से रोक रहे हैं, चेक पॉइंट्स पर ट्रक और बख़्तरबंद गाड़ियों के साथ भी वे तैनात हैं.
व्हाइट हाउस अधिकारियों ने कहा है कि बीते 24 घंटों में उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान से 12,500 लोगों को निकाला है.
एयरपोर्ट के बाहर बसों में और बाहर लोग अपने बैग के साथ खड़े हैं, इनकी संख्या सैकड़ों में है जबकि एक दिन पहले यहाँ हज़ारों की तादाद में लोग थे. अभी भी लाखों लोग देश छोड़ना चाहते हैं लेकिन शुक्रवार को एयरपोर्ट गेट पर कुछ ही लोग पहुंच पाए थे.
बाइडन की रेटिंग में आ रही गिरावट
शुक्रवार को अमेरिकी सेना के मेजर जनरल विलियम टेलर ने काबुल एयरपोर्ट के बाहर हुए धमाके पर कहा था कि 'हमें नहीं लगता है कि दूसरा धमाका हुआ था या बेरन होटल के पास कोई धमाका हुआ था. केवल एक आत्मघाती हमलावर था.'
बम धमाके के बाद शुक्रवार को स्वास्थ्य अधिकारियों ने मरने वालों का आँकड़ा बढ़ा दिया था. इसके बाद कुल मौतों का आंकड़ा 170 हो गया जबकि कम से कम 200 लोग घायल हुए हैं. अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि मारे गए कुछ लोगों में अफ़ग़ान-अमेरिकी लोग भी शामिल हैं.
अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से इस तरह से निकलने के बाद राष्ट्रपति बाइडन की अप्रूवल रेटिंग में ज़बरदस्त गिरावट दर्ज की गई है. गुरुवार को हुए धमाके के बाद उन्हें राजनीतिक आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा.
हालांकि, यह अभी तक साफ़ नहीं है कि भविष्य में इससे उनके राष्ट्रपति कार्यकाल को नुक़सान पहुंचेगा या नहीं. (bbc.com)
नई दिल्ली, 27 अगस्त | इस्लामिक स्टेट-खुरासान ने भले ही गुरुवार को काबुल में हुए आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी ली हो, जिसमें कम से कम 90 लोग मारे गए थे, लेकिन तालिबान गुट का काबुल में पिछले कई दिनों से आंशिक रूप से नियंत्रण है और इस लिहाज से हक्कानी नेटवर्क की भी जांच होनी चाहिए। जर्नल फॉरेन पॉलिसी में सज्जन एम. गोहेल ने हक्कानी नेटवर्क पर संदेह जताते हुए यह बात कही है।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अतिथि शिक्षक (गेस्ट टीचर) होने के अलावा, गोहेल लंदन स्थित एशिया-पैसिफिक फाउंडेशन के अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशक भी हैं।
उन्होंने लिखा है कि कुल मिलाकर हमले से हक्कानी नेटवर्क को रणनीतिक रूप से लाभ हुआ है, क्योंकि यह संभवत: विदेशी प्रस्थान को गति देगा और आगे निकासी की संभावना को रोक देगा।
उन्होंने आगे कहा, "इस्लामिक स्टेट-खुरासान के हक्कानी नेटवर्क के साथ-साथ पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों के साथ संबंधों की अस्पष्ट प्रकृति कई आतंकवादी संगठनों के बीच मौन सहयोग की एक जटिल व्यवस्था प्रस्तुत करती है।"
लेख में कहा गया है, "पाकिस्तानी सेना और खुफिया समुदाय के साथ इसके गहन संबंध हैं। इसका अफगान और वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर प्रभाव पड़ता है, खासकर जब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए तालिबान को मान्यता देने और वैध बनाने के लिए उत्सुक है।"
गोहेल ने कहा कि यह अक्सर कहा जाता है कि इस्लामिक स्टेट-खुरासान और तालिबान के बीच एक स्पष्ट विभाजन है, लेकिन अफगानिस्तान में आतंकवाद और राजनीति की कठोर वास्तविकता यह है कि स्थिति कभी भी श्वेत-श्याम (ब्लैक एंड व्हाइट) नहीं होती है।
साथ में शपथ ग्रहण करने वाले शत्रु एक दिन आपस में लड़ सकते हैं और दूसरे दिन आपसी लाभ के लिए सहयोग भी कर सकते हैं। ये समूह आपस में जुड़े हुए हैं और परस्पर जुड़े हुए हैं। उनके रहन-सहन और विवाह संबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि वैचारिक अलगाव स्थायी न बने।
हक्कानी नेटवर्क ने पाकिस्तान की शक्तिशाली लेकिन कुख्यात इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित किए हैं, जिसने उसे हथियार, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान की है।
आईएसआई ने क्वेटा शूरा गुट सहित, अब अफगानिस्तान में लौट आए अधिकांश तालिबान नेतृत्व को भी आश्रय प्रदान किया है। गोहेल ने कहा कि पिछले 20 वर्षों से हक्कानी के सक्षम होने का प्राथमिक कारण यह था कि उसे पाकिस्तान के भीतर सुरक्षित पनाहगाहों से लाभ हुआ है, जिससे उनके लड़ाकों को सीमा पार से हमले शुरू करने और आवश्यकता पड़ने पर वापस आने की क्षमता मिली है।
गोहेल ने कहा कि वास्तव में, इस्लामिक स्टेट-खुरासान और हक्कानी के बीच एक सामरिक और रणनीतिक अभिसरण रहा है।
हक्कानी नेटवर्क एक परिवार-कबीले के उद्यम की तरह है और इसमें विवाह के माध्यम से भाई-बहन, चचेरे भाई और अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
गोहेल ने कहा कि जो भी गुट निकासी सुरक्षा का प्रभारी था, उससे पूछा जाना चाहिए कि परिधि को ठीक से नियंत्रित क्यों नहीं किया गया था और तालिबान की चौकियों ने कई अफगानों को हवाई अड्डे तक पहुंचने से क्यों रोक दिया था, फिर भी हमलावरों को रोकने में विफल रहे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 अगस्त | काबुल एयरपोर्ट में हमला हुआ, लेकिन कौन है जिम्मेदार.. ? अल जजीरा के अनुसार, बम विस्फोटों में मारे गए लोगों में 28 तालिबान सदस्यों सहित 70 से अधिक अफगान शामिल थे।
एक विश्लेषक ने इंडिया नैरेटिव को बताया, "काबुल विस्फोटों के साथ, उनके (बाइडेन) हाथ में एक कठिन काम होगा (स्थिति को स्थिर करने में), खासकर जब उनके लोगों से उम्मीदें अधिक थीं (पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को हराने के बाद)। अफगानिस्तान की हार से पता चलता है कि ना तो उनके पास अपने घरेलू मोर्चे हैं और ना ही वैश्विक समुदाय को खुश रखने में कामयाब रहे।"
नई दिल्ली, जो अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रही थी, हाल की घटनाओं के मद्देनजर अपनी वाशिंगटन नीति को 'धीरे-धीरे फिर से शुरू' कर सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने भयानक हमलों के बाद एक प्रेस वार्ता में आतंकवादियों से बदला लेने का वादा किया। उन्होंने बम विस्फोटों के बाद व्हाइट हाउस में संवाददाताओं से कहा, "मैं अपने हितों और अपने लोगों की हर उपाय के साथ रक्षा करूंगा।"
विश्लेषक ने कहा, "हालांकि इस पर अमेरिकी शायद उनके शब्दों पर भरोसा करने को भी तैयार नहीं हैं।"
अफगानिस्तान से बाहर निकलने का फैसला करने वाले बाइडेन को अमेरिकियों का पूरा समर्थन प्राप्त था, लेकिन 'उस फैसले का असफल होना क्षमा ना करने योग्य है।
जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में राजनीति और पत्रकारिता पढ़ाने वाले स्टीवन रॉबर्ट्स ने ब्रूकिंग्स द्वारा प्रकाशित एक लेख में लिखा, "अब समय आ गया है कि बाइडेन ईमानदार हो जाएं। वह हमारे सैनिकों, हमारे सहयोगियों और अमेरिकी लोगों के लिए ऋणी हैं।"
इस बीच ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) ने कहा कि दुनिया भर में सुरक्षा के गारंटर के रूप में अमेरिका की विश्वसनीयता और विश्वसनीयता को लेकर चिंता है।
ओआरएफ पेपर में कहा गया है, "बाहरी प्रतिबद्धताओं पर अमेरिकी विश्वसनीयता को एक दिए गए रूप में लेना मूर्खता होगी। यूरोप और नाटो के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धताओं के बारे में कम संदेह है, लेकिन इंडो-पैसिफिक में ढीली व्यवस्था कई सवाल खड़े करती है।" (आईएएनएस)
काबुल एयरपोर्ट के नज़दीक़ गुरुवार को दो बम धमाकों के बाद बीती रात से डॉक्टर और नर्सें 150 घायल लोगों के इलाज में लगेहुए हैं.
तालिबान के नियंत्रण के बाद अस्पतालों में स्टाफ़ की कमी है और वहां पर मरीज़ों की भीड़ लगी हुई है.
अंतरराष्ट्रीय मेडिकल चैरिटी संस्था ‘इमर्जेंसी’, दकाबुल सर्जिकल सेंटर चलाती है. उसका कहना है कि उनके यहां दो घंटे के अंदर 60 घायल पहुंचे थे जिनमें से 16 की वहां आते ही मौत हो गई थी.
संस्था की अध्यक्ष रॉसेला मिचियो जो कि अफ़ग़ानिस्तान में नहीं हैं. उनका कहना है कि जो स्टाफ़ अपनी शिफ़्ट ख़त्म करके चले गए थे वो तुरंत मदद के लिए वहां पहुंचे.
बीबीसी के टुडे प्रोग्राम से उन्होंने कहा, “पूरी रात अस्पताल के तीन ऑपरेशन थिएटर में काम जारी रहा. अंतिम मरीज़ का ऑपरेशन सुबह 4 बजे किया गया था.”
उन्होंने बताया कि कुछ मरीज़ आईसीयू में हैं तो ‘स्थिति अभी भी कुछ गंभीर बनी हुई है.’
अस्पताल के मेडिकल कॉर्डिनेटर ने ट्विटर पर अपनी पोस्ट में लिखा है कि मरीज़ ‘डरे हुए हैं, उनकी आंखें एकदम सूनी हो चुकी हैं. हमने बहुत कम ही ऐसी स्थिति देखी है.’ (bbc.com)
25 अगस्त 1989 को सुबह क़रीब 7:30 बजे गिलगित से इस्लामाबाद जा रही पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की फ़्लाइट नंबर 404 में यात्रियों और चालक दल के सदस्यों सहित कुल 54 लोग सवार थे. इनमे पांच दुधमुंहे बच्चे भी शामिल थे.
इस फ़्लाइट को गिलगित से रवाना हुए 32 साल बीत चुके हैं, लेकिन यह अभी तक लापता है.
पाकिस्तान के अधिकारियों के अनुरोध पर, भारतीय वायु सेना ने भी अपने क्षेत्र में विमान के मलबे को खोजने के लिए एक अभियान चलाया था. (bbc.com)
ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस का कहना है कि लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकालने वाला ब्रितानी मिशन अगले चंद घंटों में पूरा हो जाएगा.
वॉलेस ने स्काई न्यूज़ से बात करते हुए कहा- "दुखी करने वाली बात ये है कि हर एक को हम बाहर नहीं निकाल पाएंगे."
ब्रिटेन की ओर से अब किसी को एयरपोर्ट पर बुलाया नहीं जाएगा.
उन्होंने बताया कि "ब्रिटेन ने काबुल एयरपोर्ट के पास स्थित बैरन होटल बंद कर दिया है.’’
ब्रिटेन जाने वाले लोगों को यहीं रोका जा रहा था. पश्चिमी देशों की सेना अब काबुल छोड़ने के करीब है और ऐसे में "एयरपोर्ट पर हमलों का ख़तरा और बढ़ गया है.’’
वह कहते हैं,“जैसे ही हम लोग देश छोड़ेंगे कुछ ग्रुप जैसे इस्लामिक स्टेट ये दावा करेंगे कि अमेरिका और ब्रिटेन को बाहर निकालने में उनकी भूमिका थी. आने वाले वक्त में ये नैरेटिव होगा.”
अफ़ग़ानिस्तान में पश्चिमी देशों की भूमिका को इतिहास कैसे याद करेगा? इस सवाल के जवाब में वॉलेस कहते हैं-“जैसे अफ़ग़ानिस्तान की परेशानी दूर की गई वैसी कभी ना की जाए. पश्चिमी देश को लगता है कि वह कुछ चीज़ें करेगा और सबकुछ ठीक हो जाएगा.”
‘’अफ़ग़ानिस्तान में जिस तरह से परेशानी दूर करने की कोशिश की गई वैसी कोशिश नहीं होनी चाहिए- हज़ारों सालों से चली आ रही जनजातीयलड़ाई, युद्धजिसका आप प्रबंधन करते हैं.”
“आप राष्ट्र निर्माण में शामिल होनाचाहते हैं या किसी राष्ट्र का समर्थन करना चाहते हैं, तो एक अंतरराष्ट्रीय निकाय के रूप में आपने काफी अच्छा काम भी किया है. लेकिन आपको वहां लंबे वक़्त तक ठहरना होगा.’’ (bbc.com)
डेनमार्क में रहने वाली अफगानिस्तान की पूर्व फुटबॉलर अपनी टीम की लड़कियों को देश से निकालने की कोशिशों में जुटी हैं. वह किसी भी तरह ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को बचा लेना चाहती हैं.
खालिदा पोपल कई रातों से सोई नहीं हैं. डेनमार्क में रहने वालीं अफगानिस्तान की महिला फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान पोपल दिन रात बस एक ही काम कर रही हैं. अपनी टीम की खिलाड़ियों को अफगानिस्तान से निकालने की कोशिश.
34 साल की पोपल 10 साल पहले एक शरणार्थी के तौर पर डेनमार्क आई थीं. वह बताती हैं, "हमने 75 लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया है, जिसमें खिलाड़ियों के साथ-साथ उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं.” ये 75 लोग ऑस्ट्रेलिया गए हैं.
नाउम्मीद हैं खिलाड़ी
डेनमार्क की फर्स्ट डिविजन टीम एफसी नोर्डशाएलांड में कोऑर्डिनेटर की नौकरी कर रहीं पोपल कहती हैं कि कि अभी उनकी मुहिम खत्म नहीं हुई है और वह और खिलाड़ियों को देश से सुरक्षित निकालना चाहती हैं.
जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया है, पोपल का फोन लगातार घनघना रहा है. पेशेवर खिलाड़ियों की यूनियन एफआईएफपीआरओ व अन्य संगठनो के साथ मिलकर वह मदद पहुंचा भी रही हैं. उनके फोन पर दर्जनों वॉइसमेल हैं, जिनमें मदद की गुहार सुनी जा सकती है.
अफगानिस्तान की बिखर चुकी फुटबॉल टीम की मैनेजर के तौर पर वही हैं, जो सदमे और डर में जी रहीं खिलाड़ियों की पुकार सुन और समझ सकती हैं. कुछ को धमकियां मिली हैं तो कइयों को पीटा भी जा चुका है. पोपल कहती हैं, "अपनी टीम के साथ मिलकर मुझे इस काम के लिए आगे आना ही पड़ा. वे खिलाड़ी रो रही थीं. नाउम्मीदी में वे मदद मांग रही थीं.”
सुरक्षा कारणों से पोपल यह नहीं बतातीं कि कितनी खिलाड़ी अफगानिस्तान में कहां कहां हैं जिन्हें मदद की जरूरत है. फुटबॉल उनके लिए दीवानगी का सबब है लेकिन इसे वह अफगान महिलाओं को मजबूत करने का एक जरिया भी मानती हैं. बतौर फुटबॉल खिलाड़ी उन्होंने जो कुछ भी सीखा है, टीम भावना, जज्बा, हिम्मत ना हारना और आखरी पल तक कोशिश करना, ये सारे गुण पिछले कुछ दिन में उनके काम आए हैं.
देश गया, टीम गई
अफगानिस्तान में अपना बचपन याद करते हुए वह कहती हैं कि उन्हें एक बार तालिबान चुराकर ले गए थे. वह बताती हैं, "मैं स्कूल नहीं जा सकती थी. मैं किसी गतिविधि में हिस्सी नहीं ले सकती है. फुटबॉल के जरिए हम बदला लेना चाहते थे. हम कहते थे कि तालिबान हमारा दुश्मन है और फुटबॉल के जरिए हम बदला लेंगी.”
करीब 15 साल पहले अफगानिस्तान में पहली बार महिला फुटबॉल टीम बनाई गई थी. तब से टीम ने जोरदार तरक्की की है. लेकिन काबुल के तालिबान के कब्जे में चले जाने के बाद यह सब रातोरात गायब हो गया है.
पोपल कहती हैं, "हमारे पास तीन से चार हजार लड़िकया थीं जिन्होंने अलग-अलग स्तरों पर फुटबॉल फेडरेशन में रजिस्ट्रेशन कराया था. हमारे पास रेफरी, कोच और महिला कोच सब थे.”
पोपल बताती हैं कि काबुल के साथ सब चला गया है. भर्रायी हुई आवाज में वह कहती हैं कि खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार में है. वह कहती हैं, "हो सकता है वे फुटबॉल खेलें, लेकिन वे अब अफगानिस्तान के लिए फुटबॉल नहीं खेल पाएंगी. क्योंकि उनके पास कोई देश नहीं होगा, और राष्ट्रीय टीम भी नहीं होगी.”
पोपल को डर है कि अमेरिकी फौजों के देश से चले जाने के साथ ही अफगानिस्तान को भुला दिया जाएगा. वह कहती हैं कि तालिबान ने देश का वो झंडा बदल दिया है, जिसके तले टीम खेलती थी. वह कहती हैं, "हमसे हमारा गर्व छीन लिया गया है.”
वीके/सीके (एएफपी)
काबुल में गुरुवार को एयरपोर्ट पर हुए आत्मघाती बम हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत कम से कम 60 लोग मारे गए हैं.
आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने गुरुवार को काबुल एयरपोर्ट पर हमला किया, जहां से दसियों हजार लोग अफगानिस्तान छोड़ने की कोशिश में जमा थे. काबुल के स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक 60 आम नागरिकों की जान गई है.
अफगान पत्रकारों द्वारा साझा किए गए वीडियो में नहर किनारे दर्जनों शवों को देखा जा सकता है. एक चश्मदीद के मुताबिक कम से कम दो धमाके हुए. इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसके आत्मघाती हमलावरों ने ‘अमेरिकी सेना के साथ रहे अनुवादकों और साझीदारों' को निशाना बनाया.
पहले से आशंका थी
इस्लामिक स्टेट द्वारा काबुल में हमले की आशंका एक दिन पहले से जताई जा रही थी. इस कारण कई देशों ने चेतावनी भी जारी की थी और अपने नागरिकों से कहा था कि वे एयरपोर्ट के आसपास न जाएं.
बुधवार को अफगानिस्तान में अमेरिकी दूतावास ने चेतावनी जारी कर कहा था कि एयरपोर्ट के करीब न जाएं और अगर वहां हैं तो फौरन उस इलाके को छोड़ दें. न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक उच्च पदस्थ अधिकारी के हवाले से लिखा था कि अमेरिका के पास बहुत सटीक और विश्वसनीय जानकारी है कि आईएसआईएस-के काबुल एयरपोर्ट पर हमला कर सकता है.
हमले के बाद सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल फ्रैंक मैकिंजी ने कहा कि अमेरिकी सैनिक ऐसे और हमलों के लिए भी तैयार हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि रॉकेट या वाहन-बम आदि के जरिए एयरपोर्ट को निशाना बनाया जा सकता है. जनरल मैंकिजी ने कहा, "तैयारी के लिए जो संभव है, हम कर रहे हैं.”
अमेरिका का बड़ा नुकसान
हमले में अब तक 13 अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि हुई है. 2011 के बाद एक ही घटना में मारे गए अमेरिकी सैनिकों की यह सबसे अधिक संख्या है. इससे पहले अगस्त 2011 में तालिबान ने एक हेलिकॉप्टर को गिरा दिया था जिसमें 30 सैनिक मारे गए थे.
हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि हमलावरों को बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय को आईएसआईएस-के आतंकी संगठन पर हमले की योजना बनाने का आदेश दे दिया गया है.
व्हाइट हाउस से एक टीवी संबोधन में बाइडेन ने कहा, "हम माफ नहीं करेंगे. हम भूलेंगे नहीं. हम तुम्हें खोजकर मारेंगे. तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी."
अफगानिस्तान में 18 महीनों में पहली बार किसी अमेरिकी सैनिक की जान गई है.
तालिबान ने की निंदा
काबुल के धमाकों की अफगानिस्तान पर हाल ही में नियंत्रण करने वाले तालिबान ने भी निंदा की है. एक तालिबान प्रवक्ता ने इस हमले को "शैतानी लोगों" का किया-धरा बताया और कहा कि पश्चिमी सेनाओं के जाने के बाद ऐसी ताकतों को कुचल दिया जाएगा.
इस्लामिक स्टेट तालिबान के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है, जो अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का वादा करके सत्ता पर काबिज हुए हैं. पश्चिमी देशों को आशंका है कि ओसामा बिन लादेन के संगठन अल कायदा को पनाह देने वाला तालिबान एक बार फिर अफगानिस्तान को उग्रवादियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बना सकता है. तालिबान का कहना है कि ऐसा नहीं होने दिया जाएगा.
इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने वाले लड़ाके 2014 से ही पूर्वी अफगानिस्तान में नजर आने लगे थे और अपनी क्रूरता के लिए चर्चित हो चुके हैं. उन्होंने कई नागरिक और सरकारी ठिकानों पर आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी ली है.
लोगों को निकालने में मुश्किल
एयरपोर्ट पर हुए धमाके ने लोगों को निकालने के काम को प्रभावित किया है. जनरल फ्रैंक मैकिंजी ने कहा है कि वह लोगों को निकालने पर ध्यान देंगे. उनके मुताबिक अफगानिस्तान में अब भी एक हजार से ज्यादा अमेरिकी नागरिक मौजूद हैं.
कई देशों ने अब लोगों की निकासी का काम बंद कर दिया है. ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री पीटर डटन ने कहा कि अब लोगों को निकालने का काम बंद किया जा रहा है क्योंकि उनके सैनिकों के लिए वहां होना खतरनाक है और वह किसी ऑस्ट्रेलियाई नागरिक की जान खतरे में नहीं डालना चाहते.
अमेरिका के सहयोगी देशों द्वारा लोगों को निकालने का काम बंद करने का अर्थ है कि दसियों हजार ऐसे लोग अफगानिस्तान में ही छूट जाएंगे जो तालिबान के डर से देश छोड़ना चाहते थे. पिछले 12 दिन में अफगानिस्तान से लगभग एक लाख लोगों को निकाला गया है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
भूमि अधिकार से जुड़े खास फैसले से पहले हजारों आदिवासियों ने ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया की सड़कों पर प्रदर्शन किया. खदान मालिक और बड़े कृषि-व्यापारी चाहते हैं कि आदिवासियों का जमीन पर संवैधानिक संरक्षण खत्म किया जाए.
डॉयचे वेले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
भूमि अधिकार से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले से पहले कोर्ट पर दबाव बनाने के लिए कई हजार आदिवासी ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया की सड़कों पर उतर आए. ब्राजील के सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे मामले की सुनवाई चल रही है, जिसमें आदिवासियों के उनकी जमीनों पर अधिकार खत्म होने का डर है. करीब 170 अलग-अलग आदिवासी समूह इस सुनवाई के खिलाफ साथ आए हैं. उन्होंने राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के प्रशासन पर हर तरह से उत्पीड़न करने का आरोप भी लगाया.
विरोध प्रदर्शन में करीब 6 हजार लोग अपने धनुष और तीर के साथ शामिल हुए. उन्होंने पारंपरिक पोशाकें और मुकुट पहन रखे थे. इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने वाले इसे देश के इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन बता रहे हैं.
क्या है पूरा मामला
यह मामला आदिवासियों की जमीन के संवैधानिक संरक्षण का है. कृषि-व्यापारियों ने तर्क दिया है कि सिर्फ उन आदिवासियों को संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए, जो यह साबित कर सकें कि वे उस इलाके में 1988 में रह रहे थे. इसी साल ब्राजील के संविधान को स्वीकार किया गया था. यह एक कानूनी तर्क है, जिसे 'मार्को टेम्पोरल' कहते हैं.
इस तर्क का विरोध करने वाले आदिवासियों ने प्रदर्शन के दौरान जो बैनर थाम रखा था, उस पर लिख था, 'मार्को टेम्पोरल नो'. आदिवासी समूहों का तर्क है कि संविधान में ऐसी किसी तारीख को निर्धारित नहीं किया गया है और आदिवासियों को कई बार अपनी पुश्तैनी जमीनों से बेदखल भी किया गया है, जिससे यह तर्क सही नहीं ठहरता.
आदिवासी या खेतिहर?
सांता कैटरीना की सरकार ने इबिरामा-ला क्लानो के आदिवासी इलाकों को खाली कराने के लिए नोटिस जारी कर दिया है. इन इलाकों में झोकलेंग आदिवासियों के अलावा गुआरानी और काईनगांग आदिवासी समुदाय के लोग भी रहते हैं. इस मामले में निचली अदालत की ओर से आदिवासियों के अधिकारों के खिलाफ फैसला दिया जा चुका है. ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो भी यह कहते रहे हैं कि संख्या में बहुत कम आदिवासी, बहुत ज्यादा जमीन पर रह रहे हैं और खेती के प्रसार को रोक रहे हैं.
झोकलेंग समुदाय के लोगों को उनके शिकार के इलाकों से एक शताब्दी पहले यूरोपीय लोगों को बसाने के लिए निकाल दिया गया था. इनमें से ज्यादातर जर्मन थे, जो अपने देश में आर्थिक और राजनीतिक उठा-पटक के चलते निर्वासित होकर यहां पहुंचे थे. अगर इस मामले में झोकलेंग लोगों की जीत होती है तो 830 किसानों को उनके छोटे जोत से बेदखल होना पड़ेगा, जहां उनके परिवार दशकों से रहते आ रहे हैं.
बोल्सोनारो की धमकी
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जो मामला है, वह दक्षिणी राज्य सांता कैटरीना के एक आरक्षण मामले से जुड़ा है लेकिन इस मामले में कोर्ट जो फैसला करेगा, उसका असर ऐसे ही 230 अन्य लंबित मामलों पर भी पड़ेगा, जिनके चलते फिलहाल अमेजन वर्षावन कटने से बचे हुए हैं.
बोल्सोनारो ने इसी हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट साल 1988 को संरक्षण का आधार मानने के खिलाफ फैसला देता है तो 'अफरा-तफरी' मच जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसा होता है तो तुरंत ही हमारे सामने ऐसे सैकड़ों और नए इलाकों के मामले आ जाएंगे, जो इस तरह का सीमांकन चाहते होंगे.
कितनी खास है जमीन?
व्यापारिक समूह इन जमीनों का इस्तेमाल खदानों और औद्योगिक खेती के लिए करना चाहते हैं. राष्ट्रपति बोल्सोनारो लंबे समय से अमेजन इलाके के आर्थिक उपयोग की बात कहते आ रहे हैं. 2018 के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था कि उनके शासन के दौरान इस इलाके की एक इंच जमीन भी संरक्षित नहीं रहेगी.
पूर्वोत्तर राज्य बहिया के पटाक्सो आदिवासी समूह के 32 साल के प्रमुख स्यराटा पटाक्सो ने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया कि सरकार आदिवासी लोगों को निशाना बना रही है. उन्होंने कहा, "आज पूरी मानवता अमेजन वर्षावनों को संरक्षित करने की मांग कर रही है. लेकिन सरकार दुनिया के फेफड़े, हमारे वर्षावनों को सोयाबीन के खेतों और सोने की खदानों में बदल देना चाहती है."
नतीजा जो भी हो, ब्राजील के भविष्य का फैसला करने वाले मामले पर वहां के लोगों की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की नजरें लगी हुई हैं. एक ओर अमेजन वर्षा वनों के संरक्षण का सवाल है तो दूसरी ओर जंगलों में सदियों से रह रहे आदिवासियों के परंपरागत तरीके से जीने के अधिकारों का. (dw.com)
दमिश्क, 27 अगस्त | सीरिया के दक्षिणी प्रांत डारा से स्थानीय हथियारबंद लोगों के एक जत्थे को रूस की मध्यस्थता से हुए एक समझौते के तहत देश के उत्तरी हिस्से में विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों में पहुंचाया गया, ताकि महीनों से चल रहे तनाव को कम किया जा सके। इसकी रिपोर्ट स्थानीय मीडिया ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि कुल 45 हथियारबंद लोग और उनके परिवार के कुछ सदस्य गुरुवार को उत्तरी सीरिया के लिए बसों से रवाना हुए, जब उन्होंने डारा में सीरियाई अधिकारियों के साथ सुलह करने से इनकार कर दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निकासी डारा में सुरक्षा बहाल करने के सौदे का हिस्सा है।
इस बीच, सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने कहा कि गुरुवार को जिन सशस्त्र लोगों को निकाला गया, वे दूसरे जत्थे से थे।
इसमें कहा गया है कि सीरियाई अधिकारी चाहते हैं कि 100 हथियारबंद लोग उत्तरी सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों के लिए डारा छोड़ दें।
24 अगस्त को, डारा में हथियारबंद लोगों को निकालने की तैयारी के लिए 48 घंटे का संघर्ष विराम लागू हुआ।
रूसी सैन्य पुलिस ने निकासी की तैयारी के लिए डारा अल-बलाद इलाके में पड़ोस में प्रवेश किया।
इस वापसी के बाद, सीरियाई सरकार के संस्थान क्षेत्र से भागे हजारों लोगों की वापसी की सुविधा के प्रयासों के बीच डारा लौट आएंगे।
मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) ने हाल ही में डारा के अल-बलाद क्षेत्र और प्रांत के आसपास के क्षेत्रों में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या 38,600 रखी है, जिसमें लगभग 15,000 महिलाएं और 20,400 से अधिक बच्चे शामिल हैं।
सीरियाई सेना ने 2018 में डारा में प्रवेश किया था, जब विद्रोहियों को इदलिब के उत्तर-पश्चिमी प्रांत में विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों में विस्थापित कर दिया गया था।
हालांकि, डारा में तनाव जारी है और कभी-कभार हमले हो रहे हैं। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 27 अगस्त| पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में एक बारूदी सुरंग विस्फोट में तीन सुरक्षाकर्मी मारे गए और तीन अन्य घायल हो गए। एक सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता लियाकत शाहवानी ने मीडिया को बताया कि यह घटना गुरुवार को जियारत जिले के मांगी बांध इलाके में हुई जब अर्धसैनिक पाकिस्तान लेवीज बल का एक वाहन ने बारूदी सुरंग की चपेट में आ गया।
सुरक्षाबल नियमित गश्त पर थे।
विस्फोट के बाद, बचाव दल, पुलिस और सुरक्षा बल घटनास्थल पर पहुंचे और शवों और घायलों को पास के अस्पताल में पहुंचाया।
पुलिस और सुरक्षा बलों ने इलाके की घेराबंदी कर तलाशी अभियान शुरू कर दिया है।
अभी तक किसी भी समूह या व्यक्ति ने हमले का दावा नहीं किया है। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 27 अगस्त| अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि वह काबुल हवाई अड्डे पर हुए दोहरे बम विस्फोटों का बदला लेंगे, जिसमें 13 अमेरिकी सेवा सदस्य सहित कम से कम 103 लोग मारे गए हैं। यूएस सेंट्रल कमांड के पब्लिक अफेयर्स ऑफिसर बिल अर्बन के नवीनतम अपडेट के अनुसार, हमलों में मारे गए अमेरिकी सेवा सदस्यों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है, वर्तमान में 18 और घायल सैनिकों को देश से बाहर निकालने की प्रक्रिया चल रही है।
गुरुवार को हामिद करजई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर हुए बम विस्फोटों के बाद गुरुवार देर रात व्हाइट हाउस से टिप्पणी करते हुए बाइडेन ने कहा कि हम अपने समय में बल और सटीकता के साथ जवाब देंगे।
हवाई अड्डे पर विस्फोट के बाद बगल के बैरन होटल में एक और विस्फोट हुआ, जिसका विवरण अमेरिकी सेना द्वारा पता लगाया जा रहा है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक वरिष्ठ अफगान स्वास्थ्य अधिकारी का हवाला देते हुए बताया कि विस्फोटों में कम से कम 90 अफगान नागरिक मारे गए।
अफगान लोक स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहले पुष्टि की थी कि हमलों में 60 से अधिक मौतें और 140 लोग घायल हुए थे।
बाइडेन ने कहा कि उन्होंने अमेरिकी सैन्य कमांडरों को आईएसआईएस-के की संपत्ति, नेतृत्व और सुविधाओं पर हमला करने का आदेश दिया है।
उन्होंने कहा कि आईएस आतंकवादी नहीं जीतेंगे। हम अमेरिकियों को बचाएंगे। हम अपने अफगान सहयोगियों को बाहर निकालेंगे, और हमारा मिशन जारी रहेगा।
एक पत्रकार के सवाल का जवाब देते हुए कि क्या वह हमलों के मद्देनजर अफगानिस्तान में अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करेंगे, बिडेन ने कहा कि अगर सेना को अतिरिक्त बल की जरूरत है, तो मैं इसकी अनुमति दूंगा। (आईएएनएस)
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुवार की शाम दो धमाके हुए. पहला धमाका अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के एबी गेट के बाहर हुआ वहीं दूसरा धमाका एबी गेट से थोड़ी दूरी पर स्थित बैरन होटल पर या उसके पास किया गया.
धमाकों में कम से कम 60 लोगों के मरने की ख़बर है. कम से कम 140 लोग ज़ख़्मी हुए हैं.
पेंटागन ने पुष्टि की है कि मारे गए लोगों में अमेरिकी सेना के लोग शामिल थे. मरनेवालों में 11 यूएस मरीन्स और एक नौसेना के मेडिकल सेवा के कर्मचारी हैं.
कथित इस्लामिक स्टेट समूह ने हमले की ज़िम्मेदारी ली है. उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया के ज़रिए उन्होंने इस धमाके को अंजाम दिया है.
ये धमाके पश्चिमी सरकारों की उस चेतावनी के बाद हुए जिसमें उन्होंने अपने नागरिकों को एयरपोर्ट से दूर रहने की सलाह दी थी. चेतावनी में कहा गया था कि अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट समूह से जुड़े आईएस-के के चरमपंथियों से ख़तरा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को इस घटना की पूरी जानकारी दी गई है. अमेरिका स्थिति पर नज़र बनाए हुए है. वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन धमाकों के सिलसिले में आपातकालीन बैठक करेंगे.
अमेरिका में बीबीसी संवाददाता बारबरा पेलेट अशर ने बताया कि अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट कर रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के धमाके में कई अमेरिकी घायल हुए हैं.
विदेश मामलों और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति समितियों की सदस्य एलिसिया केर्न्स ने कहा कि "बैरन होटल के पास हमले में कई लोग घायल हुआ हैं, वहां ब्रिटेन उन लोगों के नाम को अंतिम रूप दे रहा था जिन्हें वहां से बाहर निकाला जाना है."
उनकी सहयोगी नुस घनी ने कहा कि जब धमाका हुआ तब वे काबुल हवाई अड्डे के बाहर खड़े किसी शख़्स से बात कर रही थीं.
बाद में उन्होंने बताया कि जिस शख़्स से वो बात कर रही थीं वो ठीक हैं और किसी सुरक्षित जगह पर चले गए हैं.
पहला धमाका
एबी गेट पर जहां पहला धमाका हुआ वहां ब्रितानी सैनिक जमा थे. एक अमेरिकी अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि ये एक आत्मघाती धमाका था. इस दौरान ज़मीन पर गोलियां चलने की ख़बरें भी आ रही थीं.
इसके कुछ समय बाद तालिबान से जुड़े एक अधिकारी ने बताया है कि गुरुवार शाम हुए धमाके में कम से कम 60 लोगों की मौत हुई है.
इस अधिकारी ने बताया है कि मरने वालों में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं. इसके साथ ही कई लोग घायल हुए हैं जिनमें तालिबानी लड़ाके भी शामिल हैं.
फ़्रांस के अफ़ग़ानिस्तान में राजदूत डेविड मार्टिनन ने और विस्फ़ोट के ख़तरों को देखते हुए हवाई अड्डे के प्रवेश द्वारों से लोगों को दूर जाने की अपील की है.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "हमारे सभी अफ़ग़ान मित्रों के लिए, यदि आप हवाई अड्डे के द्वार के पास हैं तो तत्काल दूर चले जाएं और कवर ले- दूसरा धमाका संभव है."
फ़्रांस के राजदूत ने इस धमाके में मारे गए लोगों के प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट की. साथ ही उन्होंने बताया कि फ़्रांस का कोई सैनिक, पुलिस अधिकारी या राजनयिक एबी गेट पर तैनात नहीं किया गया था.
फ़्रांस अब तक अफ़ग़ानिस्तान से 2,000 अफ़ग़ान और 115 फ्ऱांस के नागरिकों को निकाल चुका है. उसका आखिरी विमान शुक्रवार की शाम काबुल से उड़ान भरेगा.
दूसरा धमाका
इसके कुछ ही देर बाद दूसरे धमाके की ख़बर भी आई.
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने इसकी पुष्टि करते हुए ट्वीट किया कि, "हम इस बात की भी पुष्टि कर सकते हैं कि एबी गेट से थोड़ी दूरी पर स्थित बैरन होटल पर या उसके पास एक अन्य धमाके को अंजाम दिया गया है. हम आगे जानकारी देते रहेंगे." (bbc.com)
काबुल, 26 अगस्त| काबुल हवाईअड्डे पर गुरुवार को एक विस्फोट हुआ, जिसके बाद तालिबान के कब्जे के बाद देश से भागने की कोशिश कर रहे हताश अफगानों की भीड़ तितर-बितर हो गई। विस्फोट में अमेरिकी सैनिकों सहित बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने की खबर है। पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने एक बयान में कहा, "हम पुष्टि कर सकते हैं कि काबुल हवाईअड्डे पर आज के जटिल हमले में कई अमेरिकी सेवा सदस्य मारे गए। कई अन्य लोगों के घावों का इलाज किया जा रहा है। हम यह भी जानते हैं कि कई अफगान इस जघन्य हमले के शिकार हुए।"
उन्होंने कहा, "हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं मारे गए और घायल सभी लोगों के प्रियजनों और टीम के साथियों के साथ हैं।"
अमेरिकी मीडिया ने कहा कि कम से कम चार नौसैनिक मारे गए।
इससे पहले, एक ट्वीट में किर्बी ने कहा कि वे पुष्टि कर सकते हैं कि एबी गेट पर विस्फोट एक जटिल हमले का परिणाम था जिसके परिणामस्वरूप कई अमेरिकी और नागरिक हताहत हुए। हम कम से कम एक अन्य विस्फोट की पुष्टि भी कर सकते हैं। बैरन होटल, अभय गेट से थोड़ी दूरी पर।"
बीबीसी ने बताया कि तालिबान के एक नेता ने कहा कि विस्फोट में महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 11 लोग मारे गए और कई तालिबान गार्ड घायल हो गए।
मौके से बाहर की तस्वीरों में शवों का ढेर दिखा और कुछ रिपोटरें में मृतकों की संख्या 40 बताई गई, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।
कहा जाता है कि हवाईअड्डा विस्फोट हवाईअड्डे के एक द्वार के बाहर हुआ था जहां निकासी प्रक्रिया की निगरानी के लिए ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। आशंका जताई जा रही है कि यह आत्मघाती हमला है।
हालांकि ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने किसी के हताहत होने से इनकार किया है।
इसने एक ट्वीट में कहा, "काबुल में हुई घटनाओं के बाद ब्रिटेन की सेना या ब्रिटेन सरकार के हताहत होने की कोई खबर नहीं है। यूके की सेना सुरक्षा और चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए हमारे सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रही है।"
तालिबान ने एक क्षेत्र में दोहरे विस्फोटों की निंदा की, जिसे उन्होंने नोट किया, अमेरिकी सेना के नियंत्रण में था।
प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने एक ट्वीट में कहा, "इस्लामिक अमीरात काबुल हवाईअड्डे पर नागरिकों को निशाना बनाकर किए गए बम विस्फोट की कड़ी निंदा करता है।"
एक अन्य प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि तालिबान अपने लोगों की सुरक्षा और सुरक्षा पर पूरा ध्यान दे रहा है।
निकाले गए अफगान पत्रकार बिलाल सरवरी ने एक ट्वीट में कहा कि विस्फोट एक सीवेज नहर में हुआ जहां अफगानों की जांच की गई थी।
उन्होंने कहा, "एक आत्मघाती हमलावर ने बड़ी भीड़ के बीच में खुद को उड़ा लिया। कम से कम एक और हमलावर ने गोली चलानी शुरू कर दी, इलाके में कई चश्मदीद गवाह और एक दोस्त ने मुझे बताया।"
विदेशी मामलों और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति समितियों की सदस्य, ब्रिटिश कंजर्वेटिव सांसद एलिसिया किर्न्स ने कहा कि बैरन होटल के पास एक हमले में कई लोग आहत हुए, जहां ब्रिटेन निकासी के लिए योग्य ब्रिटेन और अफगानों को संसाधित कर रहा है।
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, "बैरन के होटल के उत्तरी गेट पर एक बम या गोलियों से हमला। चिंतित यह निकासी को तबाह कर देगा - इतने सारे घायल। मेरा दिल उन सभी घायलों और मारे गए लोगों के साथ है।"
पश्चिमी देशों द्वारा हवाईअड्डे पर आतंकवादी हमले की चेतावनी के बीच हमले हुए, क्योंकि विदेशी नागरिकों की निकासी जारी है।
हालांकि, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने जोर देकर कहा कि घातक विस्फोटों के बावजूद ब्रिटिश नागरिकों और पात्र अफगानों को निकालने का अभियान जारी रहेगा। (आईएएनएस)
काबुल/नई दिल्ली, 27 अगस्त| काबुल हवाईअड्डे पर गुरुवार को हुए आत्मघाती हमलों का मुख्य संदिग्ध अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट (आईएस) से संबद्ध आतंकी संगठन है, जिसे इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रांत (आइसिस-के या आईएसकेपी) के नाम से जाना जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने रविवार को कहा था कि अफगानिस्तान की राजधानी आइसिस-के से निरंतर निकासी के लिए एक तीव्र और 'लगातार' खतरा है, जिसका नाम खोरासान है जो ईरान से पश्चिमी हिमालय तक फैली भूमि के लिए मुस्लिम शाही शासकों की एक श्रृंखला द्वारा इस्तेमाल किया गया है।
चेतावनी, जिसने एक ऐसे समूह पर ध्यान केंद्रित किया, जिसका अब तक बहुत कम अंतर्राष्ट्रीय प्रोफाइल था, इस सप्ताह ब्रिटिश और पश्चिमी यूरोपीय अधिकारियों द्वारा प्रतिध्वनित किया गया था।
हाल के महीनों में आइसिस-के से जुड़े हमलों की तीव्रता से कई लोग चिंतित हैं।
द गार्जियन के मुताबिक, आइसिस-के की स्थापना छह साल पहले हुई थी, जब आइसिस के दो प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में अप्रभावित तालिबान कमांडरों और अन्य चरमपंथियों के एक छोटे समूह के साथ बैठक के लिए अपना रास्ता बनाया था, जो इस क्षेत्र में लड़ रहे थे, लेकिन वहां जिहादी आंदोलन के भीतर हाशिए पर महसूस किया।
मुख्य आईएसआईएस मूल संगठन तब अपने चरम पर पहुंच रहा था - एक बिजली अभियान के बाद सीरिया और इराक पर कब्जा कर लिया। समूह ने जीत से पहले ही अपने वैश्विक विस्तार की साजिश रचनी शुरू कर दी थी, जिसने इसे अंतर्राष्ट्रीय ध्यान में लाया और पूरे इस्लामी दुनिया में सहयोगी स्थापित करने के बारे में बताया।
द गार्जियन की रिपोर्ट में कहा गया है कि आइसिस और आईएसआईएस-के का मानना है कि तालिबान ने अमेरिका के साथ बातचीत करने की इच्छा, उनकी स्पष्ट व्यावहारिकता और पर्याप्त कठोरता के साथ इस्लामी कानून को लागू करने में उनकी विफलता के कारण इस्लामी विश्वास को त्याग दिया है।
एक विस्फोट ने काबुल हवाईअड्डे को हिला दिया, जो गुरुवार को तालिबान के अधिग्रहण के बाद देश से भागने की कोशिश कर रहे हताश अफगानों की भीड़ से भरा हुआ था, जिसमें अमेरिकी कर्मियों सहित कई लोग मारे गए थे। पास के एक होटल में भी धमाका हुआ, जिसमें और लोग हताहत हुए।
सूत्रों के अनुसार, विस्फोट के बाद शव सड़कों पर बिखर गए। खामा न्यूज ने बताया कि कुछ देर के लिए छिटपुट गोलियों की आवाज भी सुनी गई।
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने घटना की पुष्टि की है।
कथित तौर पर काबुल हवाईअड्डे के बाहर हमले के बाद की तस्वीरों में घायल लोगों को खून से सने कपड़ों के साथ पहिया ठेले में ले जाते हुए दिखाया गया है।
अफगानिस्तान की टोलो समाचार एजेंसी द्वारा ट्विटर पर पोस्ट की गई कुछ तस्वीरों में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को दिखाया गया है - कुछ के सिर पर अस्थायी पट्टियां हैं।
बीबीसी ने बताया कि तालिबान के एक अधिकारी ने कहा है कि काबुल हवाईअड्डे पर हुए हमले में कम से कम 11 लोग मारे गए हैं।
अधिकारी ने कहा कि संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं, जबकि कई तालिबान गार्ड भी घायल हुए हैं।
दोनों विस्फोट हवाईअड्डे के एबी गेट प्रवेश द्वार के पास हुए जहां पिछले कई दिनों से बड़ी संख्या में अफगान शरणार्थी जमा हुए थे।
न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, काबुल में अमेरिकी दूतावास ने गुरुवार तड़के एक अलर्ट भेजा था, जिसमें अमेरिकी नागरिकों से कहा गया था कि वे हवाईअड्डे की यात्रा न करें, क्योंकि वहां खतरा है।
वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों ने समाचार एजेंसी तार को बताया कि चेतावनी संभावित वाहन बमों से जुड़े विशिष्ट खतरों से संबंधित थी।
बयान में कहा गया है, "काबुल हवाईअड्डे के द्वार के बाहर सुरक्षा खतरों के कारण, हम अमेरिकी नागरिकों को हवाईअड्डे की यात्रा से बचने और इस समय हवाईअड्डे के फाटकों से बचने की सलाह दे रहे हैं, जब तक कि आपको ऐसा करने के लिए अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधि से व्यक्तिगत निर्देश नहीं मिलते।"
इसमें कहा गया है, "अमेरिकी नागरिक जो एबी गेट, ईस्ट गेट या नॉर्थ गेट पर हैं, उन्हें अब तुरंत निकल जाना चाहिए।" (आईएएनएस)
काबुल/नई दिल्ली, 27 अगस्त | काबुल हवाईअड्डे पर हुए विस्फोट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ब्रिटेन के कंजरवेटिव सांसद और विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष टॉम तुगेंदहट ने गुरुवार को कहा कि जब भी इस्लामी चरमपंथी सत्ता संभालते हैं, आतंक पीछा करता है। उन्होंने कहा, "काबुल हवाईअड्डे पर निर्दोष लोगों पर हमला तालिबान शासन की भयावहता से बचने की कोशिश कर रहा है, वास्तव में दिखाता है कि समूह अपने साथ कौन लाया है। पैटर्न अच्छी तरह से स्थापित है - नाइजीरिया और माली से सीरिया और इराक तक - जब भी इस्लामी चरमपंथी सत्ता लेते हैं, आतंक अनुसरण करता है। तालिबान शासन ने इसे आतंक से बचने की कोशिश कर रहे निर्दोष लोगों के लिए लाया है।"
द गार्जियन ने बताया कि काबुल हवाईअड्डे पर आत्मघाती बम विस्फोट के लिए मुख्य संदिग्ध अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट से संबद्ध है, जिसे इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रांत (आइसिस-के या आईएसकेपी) के रूप में जाना जाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने रविवार को कहा था कि अफगानिस्तान की राजधानी आइसिस-के से निरंतर निकासी के लिए एक तीव्र और लगातार खतरा है, जिसका नाम खुरासान है जो ईरान से पश्चिमी हिमालय तक फैली भूमि के लिए मुस्लिम शाही शासकों की एक श्रृंखला द्वारा इस्तेमाल किया गया है।
चेतावनी, जिसने एक ऐसे समूह पर ध्यान केंद्रित किया, जिसका अब तक बहुत कम अंतर्राष्ट्रीय प्रोफाइल था, इस सप्ताह ब्रिटिश और पश्चिमी यूरोपीय अधिकारियों द्वारा प्रतिध्वनित किया गया था।(आईएएनएस)
हैती में भूकंप की वजह से अपने घर गंवा चुकीं महिलाओं को अब अस्थायी शिविरों में बलात्कार का डर सता रहा है. 2010 के भूकंप के बाद भी इसी तरह शिविरों में रह रही महिलाओं के बलात्कार के सैकड़ों मामले सामने आए थे.
हैती की वेस्ता ग्वेरियर हाल ही में आए भूकंप में खुद को बचाने में तो सफल रहीं लेकिन उनका घर ढह गया. तब से वो एक अस्थायी कैंप में रहती हैं जहां उन्हें यह डर हमेशा सताता है कि उनके साथ कभी भी बलात्कार हो सकता है. 48 वर्षीय ग्वेरियर कहती हैं, "हमलोग सुरक्षित नहीं हैं...हमें कुछ भी हो सकता है. खासकर रात में, कोई भी कैंप में घुस आ सकता है."
यही चिंता दूसरी महिलाओं को भी है जो उस यौन हिंसा के बारे में अच्छी तरह से जानती हैं जो देश में इसके पहले आई प्राकृतिक विपदाओं के बाद हुई है. ग्वेरियर, उनके पति और तीन बच्चों का घर लकड़ी की छड़ियों और प्लास्टिक की चादरों से बनाया कच्चा घर था. उन्होंने उसे राजधानी पोर्ट-ओ-प्रिंस के दक्षिण पश्चिम में स्थित प्रायद्वीप के शहर 'ले कायेस' के स्पोर्ट्स सेंटर में बनाया था. इस शहर पर भूकंप का काफी भारी असर हुआ है.
डर बेवजह नहीं
14 अगस्त को 7.2 तीव्रता का जो भूकंप आया था उसमें 2,200 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. हजारों घर या तो नष्ट हो गए या बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे. अभी भी 2010 के विनाशकारी भूकंप से उबर रहे देश के लिए यह बड़े संकट का समय है.
11 साल पहले आए उस भूकंप में तो 2,00,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. उसके बाद कुछ लोगों को अस्थायी शिविरों में कई साल बिताने पड़े थे जहां हथियारबंद पुरुषों के समूहों ने उनका शोषण किया था. ठसाठस भरे हुए इन शिविरों में ज्यादा रोशनी नहीं होती थी और यह लोग शाम ढलने के बाद इनमें घूमा करते थे.
2011 में एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक आपदा के बाद के लगभग पांच ही महीनों में बलात्कार के 250 से भी ज्यादा मामले दर्ज किए गए. एमनेस्टी ने यह भी कहा कि कई गैर सरकारी समूहों का मानना था कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा थी.
ग्वेरियर जिस कैंप में हैं वहां करीब 200 लोग रह रहे हैं और ऐसे हालात में प्राइवेसी लगभग असंभव है. हमले की आशंका से ग्वेरियर इतनी डरी रहती हैं कि वो अंधेरा होने की बाद ही नहाती हैं और तब भी नहाते वक्त सारे कपड़े नहीं उतारतीं. जब कभी कैंप के अंधेरे में उन पर रोशनी पड़ती है तो वो इस सोच में डूब जाती हैं कि रोशनी डालने वाला उनका कोई पड़ोसी है या कोई ऐसा "जो वो करना चाहता है."
युवा लड़कियों की रक्षा
कैंप में चालू टॉयलेट नहीं हैं जिसकी वजह से ग्वेरियर डरी और लज्जित महसूस करती हैं क्योंकि "लोग आपको हर दिशा से देख सकते हैं." वो कहती हैं, "मैं जो आपको बता रही हूं वो सिर्फ लड़कियां समझ सकती हैं. हम महिलाएं और यहां के छोटे बच्चे, हम बहुत कष्ट भोग रहे हैं."
कैंप में मौजूद दूसरे लोगों ने भी अपने डरों के बारे में बताया. तीन महीनों से गर्भवती फ्रांसिस डोरिमोंड कहती हैं, "हम बहुत डरे हुए हैं. हम अपने बच्चों के लिए सही में डरे हुए हैं. हमें टेंट चाहिए ताकि हम फिर से अपने परिवारों के साथ रहना शुरू कर सकें."
इस कैंप पर हमलों के खतरे की वजह से थोड़ी ही दूर एक और अस्थायी कैंप तैयार हो गया है. पास्टर मिलफोर्ट रूजवेल्ट ने बताया कि वहां "सबसे ज्यादा असुरक्षित" लोगों को रखा गया है. 31 साल के पास्टर ने समझाया, "हम युवा लड़कियों की रक्षा करते हैं. हमने एक सिक्योरिटी टीम बनाई है जो रात को गश्त लगाती है और सुनिश्चित करती है कि कोई भी इन महिलाओं के खिलाफ हिंसा ना कर पाए."
"सही मायनों में जी ही नहीं रहे"
2016 में आए तूफान मैथ्यू ने जिस नाइटक्लब को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था, उसके अवशेषों में दर्जनों लोगों ने पनाह ले रखी है. वो दीवारों के बीच लगाए हुए चादरों और तिरपाल के नीचे रह रहे हैं. यहीं पर जैस्मीन नोएल ने अपने 22 महीने के बच्चे के लिए एक बिस्तर बनाने की कोशिश की.
उन्होंने बताया, "जिस रात भूकंप आया था, मैं बगल के मैदान में सोने जा रही थी लेकिन उन लोगों ने मुझसे कहा कि यह ठीक नहीं है, तो उन लोगों ने मुझे यहां जगह दे दी." उन्होंने यह भी कहा, "कुछ लोग हमेशा इस तरह के हालात का फायदा उठा कर कुछ गलत करने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें अपने कष्टों की वजह से लगता है कि अब वो "सही मायनों में जी नहीं रही हैं."
नोएल उम्मीद कर रही हैं की गलियों में सामान बेचने वाली उनकी मां की उस दिन इतनी कमाई हो गई हो कि वो उनके लिए खाना ला सकें. वो कहती हैं, "हमारे शरीर तो यहीं हैं, लेकिन हमारी आत्माएं नहीं."(dw.com)
सीके/एए (एएफपी)
अफगानिस्तान में तालिबान ने एक बार फिर सत्ता हासिल कर ली है लेकिन वो अभी तक पंजशीर नहीं पहुंच पाया है. जिसकी सबसे बड़ी वजह अहमद मसूद हैं, जिनके पिता अहमद शाह मसूद को ‘पंजशीर का शेर’ कहा जाता है. उनके नेतृत्व में नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके तालिबान को कड़ी टक्कर दे रहे हैं और हर मोर्चे पर आतंकी संगठन पर भारी भी पड़ते दिख रहे हैं. इस बीच ऐसी खबरें आईं कि मसूद सरेंडर कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने साफ शब्दों में ऐसा करने से इनकार कर दिया है.
अहमद मसूद का कहना है कि वह तालिबान के सामने सरेंडर नहीं करेंगे लेकिन उससे बात करने को तैयार हैं. उनका एक इंटरव्यू बुधवार को फ्रेंच मैग्जीन में प्रकाशित हुआ है. पूर्व उपराष्ट्रपति (वर्तमान कार्यवाहक राष्ट्रपति) अमरुल्ला सालेह भी काबुल के उत्तर में स्थित इस पंजशीर घाटी में अहमद मसूद के साथ हैं . तालिबान के कब्जे के बाद अपने पहले इंटरव्यू में मसूद ने कहा, ‘मैं सरेंडर करने से अच्छा मरना पसंद करूंगा. मैं अहमद शाह मसूद का बेटा हूं. मेरी डिक्शनरी में सरेंडर जैसा शब्द ही नहीं है.’
कोई नहीं कर पाया पंजशीर पर कब्जा
मसूद ने दावा किया कि पंजशीर घाटी में ‘हजारों’ पुरुष उनके नॉर्दर्न अलायंस से जुड़ गए हैं, जिसपर कभी कोई कब्जा नहीं कर सका. उनके पिता ने 1979 में सोवियत आक्रमण के समय भी इस जगह को किले की तरह रखा, जिसे कोई भेद ना सका. ना तो सोवियत संघ यहां पहुंच पाया और ना ही 1996-2001 के दौरान तालिबान यहां आया. हालांकि इस इंटरव्यू के दौरान मसूद ने फ्रेंस राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों सहित दूसरे विदेशी नेताओं से एक बार फिर समर्थन देने की अपील की. साथ ही सही वक्त पर हथियार ना मिलने पर नाराजगी जाहिर की.
‘तालिबान के हाथ में हैं अमेरिकी हथियार’
अहमद मसूद ने कहा, ‘मैं उन लोगों की ऐतिहासिक गलती को नहीं भूल सकता, जिनसे मैं आठ दिन पहले काबुल में हथियार मांग रहा था. उन्होंने मना कर दिया. और इन हथियारों में- तोपखाने, हेलीकॉप्टर, अमेरिका में निर्मित टैंक शामिल हैं, जो आज तालिबान के हाथों में हैं.’ मसूद ने कहा कि वह तालिबान से बात करने के लिए तैयार हैं और उन्होंने संभावित समझौते की रूपरेखा भी तैयार कर ली है. वह कहते हैं, ‘हम बात कर सकते हैं. सभी युद्धों में बातचीत होती है. और मेरे पिता ने भी हमेशा इन दुश्मनों से बात की है.’
अल-कायदा ने की थी अहमद शाह मसूद की हत्या
उन्होंने कहा, ‘कल्पना कीजिए कि तालिबान महिलाओं, अल्पसंख्यों के अधिकारों, लोकतंत्र और एक खुले समाज के सिद्धांत के लिए मान जाए. तो क्यों ना ये समझाने की कोशिश की जाए, कि इन सिद्धातों से उन्हें और बाकी अफगानिस्तान के लोगों को क्या लाभ होगा?’ मसूद के पिता के पेरिस और अन्य पश्चिमी देशों के साथ करीबी संबंध थे. उन्होंने 1980 के दशक में अफगानिस्तान पर सोवियत कब्जे और 1990 के दशक में तालिबान शासन के खिलाफ लड़ने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके चलते उन्हें ‘पंजशीर का शेर’ नाम दिया गया. साल 2001 में 11 सितंबर को अमेरिका पर हुए हमले से ठीक दो दिन पहले अल-कायदा ने उनकी हत्या कर दी थी. (tv9hindi.com)
लॉकडाउन के चलते लोग ऑनलाइन ज्यादा समय बिता रहे हैं, तो गैजेट्स से छुटकारा चाहने वालों की संख्या भी बढ़ रही है. पर इसका कोई फायदा होता है क्या?
काम से लेकर एक्सर्साइज तक, हर चीज के लिए स्क्रीन को तकते रहने से तंग आ चुकीं आना रेडमन और उनके प्रेमी लंदन के बाहर एक जंगल में एक केबिन में चले गए थे. इन तीन दिनों के लिए उन्होंने अपने फोन एक सीलबंद लिफाफे में डालकर रख दिए थे.
पब्लिक रिलेशंस में काम करने वालीं 29 साल की रेडमन कहती हैं, "कुछ दिन के लिए पहुंच से बाहर हो जाने का ख्याल लुभावना लगा था.” कोविड के कारण हुए लॉकडाउ के दौरान काम से लेकर आराम तक उनकी पूरी जिंदगी ऑनलाइन हो गई थी. नतीजतन उन्हें ‘डिजिटल डिटॉक्स' करने की बहुत ज्यादा इच्छा होने लगी थी.
रेडमन और उनके बॉयफ्रेंड जैसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो महामारी के दौरान तकनीकी चीजों के साथ समय बिताकर आजिज आ चुके हैं और इनसे कुछ समय के लिए छुटकारा चाहते हैं.
ऐसे लोगों की इच्छाओं के अनुरूप बहुत से उत्पाद भी बाजार उपलब्ध हो गए हैं. मसलन ऐसे ऐप्स उपलब्ध हैं जो गैजेट को एक निश्चित समय के लिए लॉक कर देते हैं. या फिर ऐसे रीट्रीट यानी आरामघर उपलब्ध हैं जहां वाई फाई की सुविधा सीमित होती है. ऐसे रेस्तरां हैं जहां ग्राहकों को खाने की मेज पर फोन अपने साथ रखने की इजाजत नहीं होती.
बढ़ रही है मांग
विशेषज्ञ कहते हैं कि गैजेट से छुटकारा दिलाने वाली चीजों की मांग और बाजार पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रहे हैं. 2018 में ब्रिटेन और अमेरिका में 4,000 से ज्यादा लोगों पर हुए एक सर्वे में रिसर्च करने वाली संस्था जीडब्ल्यूआई ने पाया कि लगभग 20 फीसदी लोगों ने डिजिटल डिटॉक्स किया था और 70 फीसदी अपने ऑनलाइन समय को कम करने की कोशिश में थे.
ब्रिटेन का एक स्टार्टअप अनप्लग्ड लंदन के नजदीक ऐसे केबिन उपलब्ध कराता है, जहां गैजेट्स की पहुंच नहीं है. इन्हीं में से एक में रेडमन और उनका प्रेमी रहे थे. अनप्लग्ड ने शुरुआत 2020 में की थी. इसके सह-संस्थापक हेक्टर ह्यूज कहते हैं कि उनके केबिन पूरा साल भरे रहे और इस साल वह पांच और जगहों पर शुरुआत कर चुके हैं.
ह्यूज बताते हैं, "लोग सच में एक ब्रेक चाहते हैं और मुझे लगता है कि यह लॉकडाउन का सीधा असर है जिस दौरान वे सारा समय स्क्रीन के सामने बिता रहे थे. हमने केबिन शहरी जिंदगी से एक घंटा दूर बनाए हैं. लोग वहां जाते हैं अपने फोन एक डिब्बे में बंद कर देते हैं. हम उन्हें एक नक्शा और एक नोकिया देते हैं और तीन रात के लिए छोड़ देते हैं.”
सेहत पर असर?
गैजेट्स से छुटकारे को अक्सर सेहत पर एक सकारात्मक प्रभाव के तौर पर प्रचारित किया जाता है. माना जाता है कि इससे नींद बेहतर होती है, तनाव और अवसाद में मदद मिलती है. लेकिन इस बारे में हुए कुछ शोध अलग तस्वीर पेश करते हैं.
अमेरिका में तकनीक से दूर रखने वाले एक आराम घर पर रिसर्च कर रहीं डिजिटल एंथ्रोपोलोजिस्ट थियोड्रा सटन कहती हैं कि डिजिटल डिटॉक्स के प्रचारित फायदे सिर्फ तकनीक से दूर रहने के कारण नहीं होते बल्कि और भी बहुत सी चीजों पर निर्भर करते हैं.
वह बताती हैं, "लोग कहते हैं कि जंगल में एक हफ्ता बिताने के बाद वे बेहतर महसूस कर रहे हैं. लेकिन असल में वे छुट्टी मना रहे थे जिसका उन्होंने लुत्फ उठाया. अगर आप सिर्फ तकनीक को दूर कर दें और उसकी जगह कुछ न दें, तो उतने मात्र से ही आपको बेहतर नहीं महसूस होगा.”
ग्रीनविच यूनिवर्सिटी में पर्यटन पढ़ाने वाले वेनजिए काई ने डिजिटल डिटॉक्स पर काफी काम किया है और वह कहते है कि उनके अनुभव में जज्बात का खूब उतार-चढ़ाव हुआ. काई बताते हैं कि बिना तकनीक के छुट्टी पर जाने वाले लोगों ने दिन की शुरुआत में और अंत में भी एंग्जाइटी की शिकायत की.
फालतू की बात!
2019 में ब्रिटेन की लोगबरो यूनिवर्सिटी में एक हुए एक अध्ययन का नतीजा था कि 24 घंटे तक स्मार्टफोन से दूर रहने का मूड और एंग्जाइटी पर कोई असर नहीं पड़ा. ऐसा ही एक अध्ययन ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस साल किया. उन्होंने भी पाया कि एक दिन सोशल मीडिया छोड़ देने का लोगों के आत्मसम्मान या संतोष के स्तर पर कोई असर नहीं पड़ा.
इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता ऑक्सफर्ड इंटरनेट इंस्टिट्यूट में एक्सपेरिमेंटल साइकॉलजिस्ट एंड्रयू प्रिजबिल्स्की कहते हैं कि डिजिटल तकनीक के संभावित मानसिक प्रभावों को अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है.
वह कहते हैं, "संभवतया यह बकवास है कि अपने फोन ऑफ कर देने से आप खुश रहने लगेंगे. बतौर इंसान हम बहुत सारी अलग-अलग चीजों के साथ तालमेल बनाने की कोशिश करते हैं, जैसे कि बतौर पिता, बतौर पति, बतौर प्रोफेसर... तो आपको हमेशा एक संतुलन कायम करना होता है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने अफगानिस्तान की स्थिति पर दिए अपने भाषण में कुछ अहम बातें कहीं. उन्होंने कहा कि जर्मनी समयसीमा के बाद भी अफगानों की मदद करता रहेगा.
डॉयचे वेले पर आलेक्स बेरी की रिपोर्ट
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भरोसा दिलाया है कि देश की सेना के साथ काम करने वाले अफगानों को निकालने के लिए पूरी तत्परता से काम किया जा रहा है. बुधवार को जर्मन संसद में एक बयान में मैर्केल ने कहा कि 31 अगस्त की समयसीमा के बाद भी जर्मनी अफगान लोगों की मदद करता रहेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान छोड़ने की समयसीमा बढ़ाने की संभावना से इनकार कर दिया है जिसके बाद कई देश इस उलझन में हैं कि 31 अगस्त के बाद भी छूट गए लोगों का क्या होगा. जर्मन रक्षा मंत्रालय के मुताबिक उसने अब तक 4,600 से ज्यादा लोगों को अफगानिस्तान से निकाल लिया है. इनमें जर्मन नागिरकों के अलावा स्थानीय कर्मचारी रहे लोग भी शामिल हैं.
मैर्केल के भाषण की मुख्य बातें
बुधवार को मैर्केल ने संसद को बताया कि जर्मनी 31 अगस्त के बाद भी उन लोगों की मदद करता रहेगा जिन्होंने अभियान के दौरान जर्मन सेना के साथ काम किया था और अब देश से निकलना चाहते हैं. मैर्केल ने कहा, "कुछ दिन में हवाई संपर्क की समयसीमा खत्म हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि हमारी मदद करने वाले और तालिबान के नियंत्रण के बाद बड़ी समस्या में फंसे अफगान लोगों को लोगों की मदद की कोशिशें भी खत्म हो जाएंगी.”
चांसलर मैर्केल ने देश के अब तक के सबसे बड़े निकासी अभियान में जुटी जर्मन सेना को धन्यवाद कहा. उन्होंने अपने भाषण में कुछ बातों की ओर ध्यान दिलाया.
जर्मनी अफगानिस्तान में काम कर रहीं समाजसेवी संस्थाओं की मदद करता रहेगा.
जर्मनी अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों की मदद करेगा
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान के साथ बात करनी चाहिए
पश्चिमी देशों ने तालिबान की रफ्तार को कम करके आंका.
अब कड़वी सच्चाई है तालिबान
अंगेला मैर्केल ने कहा कि तालिबान सत्ता में लौट चुके हैं यह एक "एक कड़वी सच्चाई है जिसका हमें सामना करना है.” उन्होंने कहा, "इतिहास में बहुत सी चीजें लंबा वक्त लेती हैं. इसलिए हमें अफगानिस्तान को नहीं भूलना चाहिए, और हम नहीं भूलेंगे. क्योंकि, अभी इस कड़वे समय में दिखाई भले ना दे रहा हो, मुझे पूरा यकीन है कि कोई ताकत या विचारधारा शांति और न्याय की इच्छा को रोक नहीं सकती.”
मैर्केल ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि तालिबान के साथ बातचीत करे ताकि नाटो अभियान के दौरान जो प्रगति हासिल हुई है, उसे बचाया जा सके. उन्होंने कहा, "हमारा मकसद होना चाहिए कि जितना ज्यादा हो सके, 20 वर्ष में अफगानिस्तान में बदलाव के तौर पर हमने जो हासिल किया है उसका जितना हो सके बचा सकें. इसके बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान से बात करनी चाहिए.”
खूब बरसा विपक्ष
अफगानिस्तान जिस तेजी से तालिबान के हाथों में गया, उसने जर्मन सरकार को हैरान कर दिया था. अब उसकी आलोचना इस बात के लिए हो रही है कि उसने ऐसी स्थिति के लिए तैयारी क्यों नहीं की. मैर्केल ने बताया कि लोगों को निकालने का काम पहले से शुरू नहीं किया जा सकता था क्योंकि इससे अफगानिस्तान की तत्कालीन सरकार पर लोगों का भरोसा कम होता. बुधवार को हुआ जर्मन संसद का यह सत्र अद्वितीय था क्योंकि सरकार संसद से एक हफ्ता पहले शुरू हो चुके निकासी अभियान की पुष्टि चाहती थी. कैबिनेट ने संसद की मंजूरी से पहले ही अभियान को शुरू करने का फैसला काबुल पर तालिबान के अचानक हुए नियंत्रण के चलते लिया था.
सांसदों ने इस अभियान के पक्ष में मतदान तो किया लेकिन विपक्ष ने सरकार की आलोचना में भी कसर नहीं छोड़ी. बहस के दौरान सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी के मुखिया डिएटमार बार्ट्ष ने कहा बतौर चांसलर मैर्केल के 16 साल के कार्यकाल में ‘विफल अफगानिस्तान अभियान' सबसे "निम्नतम स्थिति” है.
ग्रीन पार्टी की ओर से आगामी चुनावों में चांसलर पद की उम्मीदवार आनालेना बेयरबॉक ने पूरी स्थिति को विदेश नीति की असफलता करार दिया. बाजारवाद की समर्थक मानी जाने वाली फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी ने भी सरकार पर गैरजिम्मेदारी और अकर्मण्यता का आरोप लगाया.
सोशल डेमोक्रैट्स पार्टी के संसद में प्रमुख रॉल्फ म्युत्सेनिष ने तो सरकार की पूरी स्थिति को संभालने के मामले की जांच की भी मांग की. संसद में विदेश मामलों की समिति की अध्यक्ष सेविम डागडेलेन ने सरकारी रेडियो डॉयचलांडफुंक से बातचीत में कहा कि जर्मन सेना द्वारा दसियों हजार लोगों को काबुल एयरपोर्ट के रास्ते बाहर निकालने का विचार ही ख्याली पुलाव है. उन्होंने कहा कि 80 प्रतिशत कर्मचारी तो एयरपोर्ट पहुंच ही नहीं पाए हैं. (dw.com)
इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने वाली और पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा पर काम करने वाली कंपनी टेस्ला के सीईओ ईलॉन मस्क ने स्वीकार किया है कि फुल सेल्फ-ड्राइविंग सिस्टम इतना अच्छा नहीं है.
मस्क ने कहा है कि कंपनी ड्राइविंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए हाईवे और शहर की सड़कों दोनों के लिए सिंगल टेक प्लेटफॉर्म की कोशिश कर रही है. मस्क ने एक ट्वीट में कहा, "फुल स्क्रीन डिस्प्ले बीटा 9.2 वास्तव में महान आईएमओ नहीं है, लेकिन ऑटोपायलट और एआई टीम जितनी जल्दी हो सके सुधार करने के लिए काम कर रही है."
उन्होंने आगे कहा, "हम हाईवे और शहर की सड़कों दोनों के लिए एक तकनीकी स्टैक रखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह बड़े पैमाने पर एनएन (तंत्रिका नेटवर्क) को फिर से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है."
द वर्ज की रिपोर्ट के मुताबिक नया एफएसडी फीचर ड्राइवरों को स्थानीय, गैर-हाईवे सड़कों पर ऑटोपायलट मोड के माध्यम से कई उन्नत ड्राइवर-सहायता सुविधाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है.
अतिरिक्त 10,000 डॉलर के लिए, लोग पूर्ण स्व-ड्राइविंग या फुल स्क्रीन डिस्प्ले खरीद सकते हैं, जो मस्क के वादे पूर्ण स्वायत्त ड्राइविंग क्षमता प्रदान करेंगे.
पूरी तरह सेल्फ-ड्राइविंग क्षमताओं में ऑटोपायलट, ऑटो लेन चेंज, समन (मोबाइल ऐप या चाभी का इस्तेमाल करके अपनी कार को एक तंग जगह से अंदर और बाहर ले जाना) पर नेविगेट करना शामिल है.
टेस्ला ने जुलाई में अपना फुल सेल्फ-ड्राइविंग (फुल स्क्रीन डिस्प्ले) सब्सक्रिप्शन पैकेज 199 डॉलर प्रति माह के लिए लॉन्च किया था. जिन लोगों ने पहले एन्हांस्ड ऑटोपायलट पैकेज खरीदा था, उनके लिए फुल स्क्रीन डिस्प्ले फीचर की कीमत 99 डॉलर प्रति माह होगी.
वेबसाइट के मुताबिक टेस्ला के मालिक किसी भी समय अपनी मासिक एफएसडी सदस्यता रद्द कर सकते हैं.
इलेक्ट्रेक का कहना है ईवी निर्माता का लक्ष्य एक वास्तविक स्तर 5 पूर्ण स्व-ड्राइविंग प्रणाली प्रदान करना है और पैकेज खरीदने वाले लोग टेस्ला पर उस लक्ष्य को प्राप्त करने पर दांव लगा रहे हैं.
नवीनतम बीटा संस्करण लंबे समय से विलंबित है और पहली बार 2018 में वादा किया गया था.
मस्क ने यह भी पुष्टि की कि टेस्ला अपने एफएसडी वी9 बीटा सॉफ्टवेयर अपडेट के साथ एक नया यूजर इंटरफेस जारी करेगी.
2019 में टेस्ला दुनिया में सबसे ज्यादा प्लग-इन और बैटरी इलेक्ट्रिक पैसेंजर गाड़ियां बनाने वाली कंपनी बन गई थी. प्लग-इन श्रेणी में टेस्ला का बाजार के 17 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा है और बैटरी इलेक्ट्रिक श्रेणी में 23 प्रतिशत पर.
एए/सीके (रॉयटर्स)