अंतरराष्ट्रीय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 सितंबर को तीन दिवसीय दौरे पर अमेरिका पहुंच रहे हैं.
इस दौरान क्वाड देशों के नेताओं की बैठक के इतर वो पहली बार नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी करेंगे.
इसके अलावा वो अमेरिका की उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस से भी मुलाक़ात करेंगे.
व्हाइट हाउस ने सोमवार को बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति 24 सितंबर को क्वाड देशों के नेताओं के साथ बैठक से इतर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी बैठक करेंगे.
इसके अलावा बाइडन जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा से भी द्विपक्षीय बातचीत करेंगे.
भारत और जापान के प्रधानमंत्रियों से अलग-अलग मुलाक़ात करने को लेकर यह भी समझा जा रहा है कि ऑकस को लेकर अमेरिका दोनों क्वाड संगठन के देशों की चिंताओं को समाप्त करना चाह रहा है.
दरअसल क्वाड में अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया भागीदार हैं और यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा के लिए एक चतुर्भुज रणनीति बनाने का समझौता है.
क्वाड देशों के नेताओं की बैठक में कोविड-19 से निपटने के तरीक़ों, वैक्सीन सप्लाई, भारत-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त आवाजाही, अफ़ग़ानिस्तान मुद्दा, पर्यावरण संकट और उभरती तकनीक साझा करने के विषय शामिल रहेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान एप्पल कंपनी के सीईओ टिम कुक समेत कई बड़ी कंपनियों के अधिकारियों से भी मिलने की उम्मीद है.
वहीं, 25 सितंबर को वो संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे. (bbc.com/hindi)
ट्विटर ने सोमवार को बताया कि एक 'क्लास ऐक्शन सूट' को निपटाने के लिए वो 809.5 मिलियन डॉलर का भुगतान करने जा रहा है.
क़ानून में 'क्लास ऐक्शन सूट' का मतलब उस मुक़दमे से होता है जब कई एक ही मुद्दे पर दायर की गई कई याचिकाओं पर एकसाथ कार्यवाही होती है.
इस मामले में ट्विटर पर अपने यूजर बेस को लेकर निवेशकों को गुमराह करने का आरोप लगाया गया था. कंपनी ने कहा है कि प्रस्तावित समझौते पर जज के दस्तखत के बाद सभी दावों को सुलझा लिया जाएगा और ये बात भी मानी जाएगी कि ट्विटर ने कोई ग़लती नहीं की थी.
साल 2016 में दायर किए गए इस मुक़दमे में ट्विटर के निवेशक डोरिस शेनविक ने दावा किया था कि कंपनी ने जानबूझकर अपने यूजर बेस को लेकर गलतबयानी की थी और वे आंतरिक जानकारी सार्वजनिक करने में नाकाम रहे थे.
इसका नतीजा ये हुआ कि कंपनी के शेयरों के दाम चढ़ गए और जैसी ही यूजर बेस और इंगेजमेंट का असली डेटा सामने आया, शेयरों की कीमत गिर गई. कंपनी का कहना है कि उसके पास जो नकदी उपलब्ध है, उससे वो सेटलमेंट की रकम का भुगतान साल 2021 की चौथी तिमाही में करेगी.
मुक़दमे के अनुसार, साल 2014 में ट्विटर ने ये दावा किया कि हर महीने उसका यूजर बेस बढ़कर 550 मिलियन से ज़्यादा होने की संभावना है और लंबे समय में ये बढ़कर एक अरब से भी ज़्यादा हो सकता है. साल 2019 में ट्विटर ने अपने यूजर बेस और यूजर इंगेजमेंट की जानकारी हर महीने देनी बंद कर दी थी.
उस वक़्त जो आख़िरी जानकारी कंपनी की ओर से उपलब्ध कराई गई थी, वो 330 मिलियन की थी. अब ट्विटर अपने यूजर बेस का डेटा दैनिक आधार पर देता है. साल 2017 में ट्विटर ने कहा था कि उसने गलती से अपने मासिक डेटा को बढ़ाकर पेश किया था क्योंकि इसमें थर्ड पार्टी ऐप का भी डेटा शामिल कर लिया गया था जो नहीं किया जाना चाहिए था. (bbc.com/hindi)
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रू़डो की लिबरल पार्टी ने सोमवार को हुए संसदीय चुनाव जीत लिया है लेकिन संसद में बहुमत हासिल करने से वो चूक गए हैं. मध्यावधि चुनाव कराने का फ़ैसला जस्टिन ट्रूडो के लिए बहुत फ़ायदे का नहीं रहा.
इस बार के नतीजे भी दो साल पहले के परिणाम की तर्ज पर ही रहे. जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. साल 2015 में वे पहली बार चुनाव जीते थे और उसके बाद से वे सत्ता में बने हुए हैं.
लिबरल पार्टी 157 सीटों पर चुनाव जीत चुकी है या जीतने की स्थिति में है. साल 2019 में भी उनकी पार्टी को इतनी ही सीटें मिली थीं. कनाडा की संसद हाउस ऑफ़ कॉमन्स में बहुमत के लिए 170 सीटों की ज़रूरत पड़ती है.
कन्जरवेटिव्स 121 सीटों पर जीत चुके हैं या बढ़त बनाए हुए हैं. साल 2019 में भी उनकी यही स्थिति थी. वामपंथी न्यू डेमोक्रेट्स 29 सीटों पर आगे हैं. उन्हें पिछली बार की तुलना में पांच सीटों का फायदा हुआ है.
ब्लॉक क्यूबेकोइस की सीटें घटकर 28 हो गई हैं और ग्रीन पार्टी को कनाडा के संसदीय चुनावों में दो सीटों पर संतोष करना पड़ा है.
एक स्थिर अल्पमत वाली सरकार के नेता के तौर पर ट्रूडो ने मध्यावधि चुनाव कराने का फ़ैसला लिया था. हालांकि उनकी सरकार के गिराये जाने का कोई ख़तरा नहीं था.
विपक्ष ने उन पर आरोप लगाया कि इस मध्यावधि चुनावों की कोई ज़रूरत नहीं थी और ट्रूडो ने निजी महत्वाकांक्षा के लिए ये फ़ैसला लिया था. (bbc.com/hindi)
रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी ने संसदीय चुनाव में बहुमत हासिल कर लिया है. हालांकि, पिछले चुनाव के मुक़ाबले पार्टी के समर्थन में थोड़ी कमी आई है.
चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के भी आरोप लगे लेकिन रूस के चुनाव आयोग ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया.
संसदीय चुनाव में अधिकतर वोटों की गिनती हो चुकी है. पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी को करीब 50 फ़ीसदी वोट हासिल हुए हैं. पिछले चुनाव के मुक़ाबले पार्टी को मिले वोट थोड़े घटे हैं. 2016 में पुतिन की पार्टी को 54%वोट मिले थे.
राष्ट्रपति पुतिन के कटु आलोचकों को चुनाव में हिस्सा नहीं लेने दिया गया था. चुनाव के दौरान धांधली की रिपोर्टें भी सामने आईं थीं.
चुनाव आयोग के मुताबिक दूसरे नंबर पर रही कम्युनिस्ट पार्टी को करीब 19 फ़ीसदी वोट मिले हैं. कम्युनिस्ट पार्टी के वोट आठ प्रतिशत बढ़े हैं.
अधिकारियों का कहना है कि देश की 450 सीटों वाली संसद में पुतिन की पार्टी को दो तिहाई से ज़्यादा बहुमत हासिल होगा.
वैसे राष्ट्रपति पुतिन के सत्ता में आने के बाद रूस में चुनाव नाममात्र के ही रह गए हैं, क्योंकि देश के राजनीतिक समीकरणों पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार कम्युनिस्ट पार्टी के नेता गेन्नादी ज़्यूगानोव ने चुनाव में बड़े पैमाने पर अनियमितता का आरोप लगाया है .
समझा जाता है कि जेल में बंद पुतिन के आलोचक ऐलेक्सी नवेलनी के लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों और रूस के जीवन स्तर को लेकर जताई जाने वाली चिंताओं की वजह से पुतिन की पार्टी का समर्थन प्रभावित हुआ है.
मगर रूस के बहुत सारे लोगों में पुतिन अभी भी लोकप्रिय हैं जिन्हें लगता है कि वो पश्चिम की चुनौती के सामने डटे रहे हैं और उन्होंने देश का गौरव बढ़ाया है.
रूस के चुनाव में इस बार कई शहरों में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग हुई.
वहीं 1993 के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन के चुनाव पर्यवेक्षक रूसी अधिकारियों की पाबंदियों की वजह से रूस नहीं आए.
एक स्वतंत्र निगरानी संस्था गोलोस का कहना है कि रविवार रात तक मतदान के दौरान अनियमितताओं के 4,500 मामले दर्ज किए गए. रूस इस संस्थान को एक "विदेशी एजेंट" बताता है.
मतदान के दौरान कुछ पुलिस थानों के बाहर लंबी क़तारें दिखाई दीं जिनके वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए. समाचार एजेंसी इंटरफ़ैक्स ने भी ख़बर दी कि पुलिस थानों के बाहर ऐसा ख़ास तौर पर हुआ.
मगर रूस सरकार के एक प्रवक्ता ने इन दावों को ख़ारिज कर दिया कि ये इस बात का संकेत है कि लोगों ने दबाव में आकर वोट दिए.
मगर गोलोस का कहना है कि उनके पास ऐसे कई संदेश आए कि उनसे उनके मालिक जबरन वोट डलवा रहे हैं. (bbc.com)
आइसलैंड की राजधानी रेक्याविक के पास के पहाड़ों से पिछले छह महीनों से लावा निकल रहा है. अब यह पर्यटन का भी एक बड़ा आकर्षण बन चुका है और अभी तक इसे देखने तीन लाख लोग आ चुके हैं.
सबसे पहले 19 मार्च को रेक्याविक के दक्षिणपश्चिम की तरफ रेक्याविक प्रायद्वीप पर माउंट फगरादाल्सफियाल के पास एक दरार में से लावा निकलना शुरू हुआ था. अब इस प्रस्फुटन को छह महीने पूरे हो गए हैं. पिछले 50 सालों में यह सबसे लंबे समय तक चलने वाला प्रस्फुटन है.
कभी तो यहां से बस धीरे धीरे लावा निकलता रहता है और कभी गर्म पानी के किसी स्त्रोत की तरह नाटकीय रूप से पत्थर भी बाहर निकलने लगते हैं. अब तो यह पर्यटन का एक अहम् आकर्षण बन गया है. आइसलैंड टूरिस्ट बोर्ड के मुताबिक अभी तक इसे देखने तीन लाख लोग आ चुके हैं.
14.3 करोड़ टन लावा
यह आइसलैंड का 20 सालों में छठा प्रस्फुटन है. इसके पहले इस द्वीप के केंद्र-पूर्व में स्थित होलुराउन में इस तरह का प्रस्फुटन देखने को मिला था, जो अगस्त 2014 से फरवरी 2015 के अंत तक चला था. ज्वालामुखी विशेषज्ञ थोरवल्डुर थोरडार्सन ने बताया, "छह महीनों तक चलना एक काफी लंबा प्रस्फुटन है."
इस बार जो लावा क्षेत्र बना है उसे माउंट फगरादाल्सफियाल के नाम पर "फगरादालश्राउन" नाम दिया गया है, जसका मतलब है "लावा की एक सुंदर घाटी". अभी तक करीब 14.3 करोड़ टन लावा बाहर निकल चुका है. हालांकि तुलनात्मक रूप से यह काफी कम मात्रा है.
होलुराउन प्रस्फुटन के बाद जितना लावा निकला था यह उसके एक दहाई से भी कम है. उस प्रस्फुटन में इतना लावा निकला था जितना आइसलैंड में 230 सालों में नहीं निकला था.
इंस्टिट्यूट ऑफ अर्थ साइंस में भूवैज्ञानी हाल्दोर गैरसन ने बताया कि ताजा प्रस्फुटन "एक तरह से ख़ास हैं क्योंकि इसमें तुलनात्मक रूप से रसाव बरकरार रहा है और यह मजबूती से चलता ही जा रहा है."
उनका कहना है, "आइसलैंड के ज्वालामुखियों के बारे में हमें जो मालूम है उसके हिसाब से सामान्य रूप से उनके प्रस्फुटन की शुरुआत बड़ी तेजी से होती है, फिर धीरे धीरे वो कम होता जाता है और फिर रुक जाता है."
चार साल तक चला प्रस्फुटन
देश का सबसे लंबा प्रस्फुटन 50 सालों से भी पहले हुआ था. यह दक्षिणी तट के करीब सुर्तसी द्वीप पर हुआ था और नवंबर 1963 से लेकर जून 1967 तक लगभग चार साल तक चला था.
मौजूदा प्रस्फुटन शुरूआती नौ दिनों के बाद कम हो गया था लेकिन सितंबर में लावा फिर सामने आया. ज्वालामुखी के मुंह में से अक्सर लाल रंग का गर्म लावा निकलता. बीच बीच में उसमें से धुएं का एक शक्तिशाली गुबार भी निकलता.
वो ठोस हो चुकी सतह के नीचे आग की सुरंगों में जमा भी हो गया. उसे ऐसे पॉकेट बने जो अंत में ढह गए और एक लहर की तरह बह गए. इस नजारे को देखने आने वालों की संख्या संभव है तीन लाख से भी ज्यादा हो, क्योंकि गिनती प्रस्फुटन शुरू होने के पांच दिनों बाद शुरू की गई थी.
पहले महीने में 10 दरारें खुलीं जिनसे सात छोटे छोटे मुंह बने. इनमें से अब सिर्फ 2 नजर आते हैं. ज्वालामुखी का एक ही मुंह अभी भी सक्रीय है. इंस्टिट्यूट ऑफ अर्थ साइंस के मुताबिक यह 1100 फुट चौड़ा है और इस इलाके के सबसे ऊंचे पहाड़ से सिर्फ कुछ दर्जन फुट छोटा.
हालांकि ज्वालामुखी अभी भी शांत होने का कोई संकेत नहीं दे रहा है. गैरसन ने बताया, "यह प्रस्फुटन जिस भी कुंड से हो रहा है लगता है उसमें अभी भी मैग्मा मौजूद है. हो सकता है यह लंबे समय तक चले. (dw.com)
सीके/एए (एएफपी)
कनाडा के चुनावों में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की एक बार फिर जीत संभव है, लेकिन उनका संसद में बहुमत हासिल कर पाना मुश्किल लग रहा है. क्या चुनावों को समय से पहले कराने का उनका दांव रंग लाएगा?
ट्रूडो अल्पमत की सरकार चला रहे हैं जिसकी वजह से वो दूसरी पार्टियों पर निर्भर हैं. इस निर्भरता की वजह से उन्हें अपनी नीतियों पर समझौता भी करना पड़ा है. पिछले महीने ओपिनियन पोल में वो दूसरी पार्टियों से काफी आगे चल रहे थे, जिसकी वजह से उन्होंने चुनावों को तय समय से दो साल पहले ही कराने का ऐलान कर दिया.
उनका कहना था कि उनकी लेफ्ट-ऑफ-सेंटर लिबरल सरकार का कोविड-19 महामारी से निपटने में कैसा प्रदर्शन रहा इस पर जनता की मुहर की जरूरत है. लेकिन चुनाव जल्दी कराने के फैसले से लोग खुश नहीं हुए और धीरे धीरे उन्होंने अपनी बढ़त को गंवा दिया.
मजबूत नेतृत्व का लक्ष्य
लिबरल रणनीतिकार भी मान रहे हैं कि हाउस ऑफ कॉमन्स की 338 सीटों में से अधिकतर को जीतना मुश्किल होगा. 49-वर्षीय ट्रूडो की सरकार ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ने में रिकॉर्ड दर्जे का ऋण ले लिया. हाल के दिनों में उन्होंने सबके टीकाकरण पर अपना ध्यान केंद्रित किया.
वो वैक्सीन को अनिवार्य बनाने में विश्वास रखते हैं जबकि कंजर्वेटिव पार्टी के 48-वर्षीय नेता एरिन ओ'टूल रैपिड टेस्टिंग को वरीयता देते हैं. 19 सितंबर को चुनावी अभियान का आखिरी दिन था और इस दिन ट्रूडो ने पूरे देश में 4,500 किलोमीटर लंबी यात्रा की.
उन्होंने ओंटारियो के नियाग्रा फॉल्स में अपने समर्थकों को बताया, "हमें एक स्पष्ट, मजबूत नेतृत्व की जरूरत है जो बिना किसी आना कानी के टीकाकरण को आगे बढ़ाता रहे और हम यही करेंगे. मिस्टर ओ'टूल ऐसा नहीं कर सकते और करेंगे भी नहीं."
ट्रुडो अगर वकई बहुमत हासिल नहीं कर पाते हैं तो इससे उनके भविष्य पर सवाल उठेंगे. वो एक करिश्माई और प्रगतिशील राजनेता हैं और लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे लिबरल नेता पिएरे ट्रूडो के बेटे हैं. वो 2015 में सत्ता में आए थे, लेकिन 2019 में चेहरे पर काला रंग पोते हुए उनकी पुरानी तस्वीरों के सामने आने के बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई.
नाराज हैं मतदाता
पोल में सामने आया है कि लिबरल और कंजर्वेटिव दोनों को बराबर लोकप्रियता हासिल है, जिसकी वजह से सैद्धांतिक रूप से ट्रूडो को बढ़त मिलनी चाहिए, क्योंकि शहरी केंद्रों में लिबरल पार्टी मजबूत है. अधिकतम सीटें शहरी केंद्रों में ही हैं.
एक लिबरल रणनीतिकार ने बताया, "यह निश्चित रूप से काफी करीबी लड़ाई है. क्या बहुमत संभव है? हां. क्या इसकी सबसे ज्यादा संभावना है? नहीं." लिबरल यह मान रहे हैं कि जल्दी चुनाव कराने की वजह से मतदाता खुश नहीं हैं. जब भी मतदान कम होता है तो उसका फायदा कंजर्वेटिव पार्टी को मिलता है.
दोनों पार्टियां मतों के विभाजन का भी सामना कर रही हैं जिसकी वजह से मामला और पेचीदा हो गया है. लिबरलों की वाम की तरफ झुकाव वाले न्यू डेमोक्रैट्स से भी टक्कर है और दूसरी तरफ टीकाकरण का विरोध करने वाली दक्षिणपंथी पीपल्स पार्टी ऑफ कनाडा (पीपीसी) कंजर्वेटिव पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है.
ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से सजग रुख अपनाया है और बहुमत के सवाल से बचते रहे हैं. उन्होंने मोंट्रियल में पत्रकारों को बताया, "मैं चाहता हूं कि पूरे देश में जितने संभव हों उतने लिबरल जीतें क्यों हमें एक मजबूत सरकार की जरूरत है."
लेकिन निजी तौर उनके साथी खुल कर बात कर रहे हैं. एक का कहना है, "आप महामारी में चुनाव फिर से एक अल्पमत की सरकार पाने के लिए तो नहीं कराते हैं."(dw.com)
सीके/एए (रॉयटर्स)
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 20 सितम्बर | पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में पुलिस ने इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान (आईईए) का झंडा फहराने के लिए एक बेहद संवेदनशील मदरसा के प्रभावशाली कट्टरपंथी मौलवी के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
जाने-माने कट्टरपंथी मौलवी और तालिबान के मुखर समर्थक मौलाना अब्दुल अजीज ने इस्लामाबाद में महिलाओं के लिए एक धार्मिक स्कूल जामिया हफ्सा मदरसा पर तालिबान का झंडा फहराया।
जानकारी के अनुसार, मदरसे से झंडा हटाने से इनकार करने पर पुलिस ने अजीज के खिलाफ देशद्रोह और आतंकवाद का मामला दर्ज किया है। अधिक जानकारी से पता चला कि अजीज और उसके समर्थकों ने पुलिस को इमारत में प्रवेश करने से रोक दिया था। हालांकि बाद में राजधानी के उपायुक्त ने ट्वीट कर इस बात की पुष्टि की कि झंडा हटा दिया गया है, इलाके को खाली करा लिया गया है और मौलवी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है।
तालिबान के लिए अजीज का खुला समर्थन एक खुले रहस्य की तरह ही है, क्योंकि 2007 में अल-कायदा के साथ घनिष्ठ संबंध रखने और जामिया हफ्सा और लाल मस्जिद में एक विद्रोही समूह का नेतृत्व करने के लिए उन्हें दो साल की जेल की सजा दी गई थी।
2007 में एक बड़ा ऑपरेशन किया गया था, जिसमें अजीज के छोटे भाई समेत दर्जनों लोग मारे गए थे।
अजीज तालिबान के खुले तौर पर समर्थक बने हुए हैं और उनकी ओर से देश में इस्लामिक शरिया प्रणाली लागू करने की मांग की जा रही है। तालिबान के साथ उनकी संबद्धता और आत्मीयता को इस तथ्य से अच्छी तरह से स्थापित किया जा सकता है कि लाल मस्जिद में एक पुस्तकालय का नाम मारे जा चुके अंतर्राष्ट्रीय आतंकी अलकायदा सुप्रीमो ओसामा बिन लादेन के नाम पर रखा गया है, जो उसे शहीद के रूप में सम्मान के तौर पर दिखाता है।
लाल मस्जिद 2007 के हमले के बाद से बंद है। हालांकि, अजीज अपनी मांगों और तालिबान के समर्थन के बारे में हमेशा से ही स्पष्ट रहे हैं।
अजीज को अभी भी लोगों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। हालांकि, 2007 के बाद से, उसे लाल मस्जिद में उपदेश देने की अनुमति नहीं दी गई है।
अजीज ने एक बयान में कहा, "हमने पहले भी पाकिस्तान में इस्लामी शासन प्रणाली की स्थापना के लिए काम किया है और हम अपने प्रयास जारी रखेंगे।"
ताजा घटना ने उस समर्थन पर गंभीर चिंता जताई है जो अजीज जैसे मौलवी तालिबान को प्रदान करते हैं, क्योंकि उनके पास बड़े पैमाने पर अनुयायी हैं और अधिकांश हजारों छात्रों के साथ विशाल मदरसा चला रहे हैं।
इस साल अगस्त में अफगानिस्तान के तालिबान के अधिग्रहण को पाकिस्तान में कई लोगों से जश्न की प्रतिक्रिया मिली है। स्थानीय लोगों, मौलवियों और यहां तक कि कुछ राजनेताओं ने पड़ोसी देश के घटनाक्रम पर खुशी व्यक्त की है, जिसे वे नाटो और संयुक्त राज्य अमेरिका का एक बड़ा नुकसान कहते हैं।
यह भावना और तालिबान के लिए एक अचिह्न्ति समर्थन, तालिबान समर्थक हंगामे या हमले की संभावनाओं का मुकाबला करने की चुनौती को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के लिए और भी कठिन बना देता है। (आईएएनएस)
मॉस्को, 20 सितम्बर | रूस की पर्म स्टेट यूनिवर्सिटी के सभी भारतीय छात्र सुरक्षित हैं, जहां सोमवार को एक बंदूकधारी के हमले में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई और 24 अन्य घायल हो गए। भारतीय दूतावास ने यह जानकारी दी। रूस में भारत के दूतावास ने एक बयान में कहा, "रूस के पर्म स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए भीषण हमले से स्तब्ध हैं। लोगों की जान जाने की घटना पर हम गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। दूतावास स्थानीय अधिकारियों, भारतीय छात्रों के प्रतिनिधियों के संपर्क में है। पर्म स्टेट मेडिकल में सभी भारतीय छात्र सुरक्षित हैं।"
पर्म स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी (2020-21) के लिए छात्रों का एक हालिया बैच 29 अगस्त को नई दिल्ली से रवाना हुआ था।
यह रूस में सबसे पुराने में से एक विश्वविद्यालय है, जो कि पर्म में स्थित है। पर्म मास्को से लगभग 1,300 किमी पूर्व में स्थित है।(आईएएनएस)
काबुल के अंतरिम मेयर ने कहा है कि शहर की कामकाजी महिलाएं घर पर ही रहें. उन्होंने कहा कि महिलाओं को सिर्फ उसी काम की अनुमति होगी जो पुरुष नहीं कर सकते.
कामकाजी महिलाओं को लेकर तालिबान ने 19 सितंबर को एक नया आदेश जारी किया है. तालिबान का कहना है कि महिलाओं को सिर्फ वही काम करने की इजाजत होगी जो पुरुष नहीं कर सकते हैं. यह फैसला अधिकतर महिला कर्मचारियों को काम पर लौटने से रोकेगा.
शहर की अधिकांश महिला श्रमिकों को वापस काम पर जाने से रोकने का फैसला एक और संकेत है कि तालिबान इस्लाम की कठोर व्याख्या को लागू कर रहा है, जबकि उसने सहिष्णु और समावेशी सरकार का वादा किया था. तालिबान नेताओं ने महिला अधिकारों को लेकर अब तक यही कहा है कि महिलाओं को शरिया कानून के दायरे में आजादी दी जाएगी.
अंतरिम मेयर हमदुल्लाह नामोनी ने अपनी नियुक्ति के बाद पहली बार पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए रविवार को कहा कि पिछले महीने तालिबान के सत्ता पर काबिज होने से पहले शहर में करीब तीन हजार महिला कर्मचारी थीं और वे सभी विभागों में काम करती थी. नामोनी ने कहा कि महिला कर्मियों पर अगला फैसला होने तक उन्हें घर पर ही रहना होगा.
महिला अधिकारों को सीमित करता तालिबान
पिछली बार जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर 1996-2001 के बीच राज किया, लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं थी और महिलाओं के काम करने पर कड़ी पाबंदियां लगी हुई थीं. धार्मिक पुलिस को बहुत ज्यादा ताकत हासिल थी और वे किसी को भी नियम तोड़ने के आरोप में कोड़े लगा सकते थे.
हाल के दिनों में नई तालिबान सरकार ने लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों को वापस लेते हुए कई फरमान जारी किए हैं. इसमें मिडिल और हाई स्कूल की छात्राओं से कहा कि वे फिलहाल स्कूल नहीं लौट सकतीं, जबकि उसी ग्रेड के लड़कों के लिए पिछले सप्ताह के अंत में स्कूल खोल दिए गए.
विश्वविद्यालय की महिला छात्रों से कहा गया कि वे लड़कों से अलग हटकर बैठेंगी. साथ ही उन्हें सख्त इस्लामी ड्रेस कोड का पालन करने को कहा गया है. अमेरिका के समर्थन वाली पिछली सरकार में अधिकतर स्थानों पर विश्वविद्यालयों में सह शिक्षा थी.
महिलाओं की मांग
तालिबान ने 17 सितंबर को ही महिला मामलों के मंत्रालय को बंद कर दिया और इसके बदले 'सदाचार प्रचार एवं अवगुण रोकथाम' मंत्रालय बनाया, जिसका काम इस्लामी कानून लागू करना है.
रविवार, 19 सितंबर को एक दर्जन से अधिक महिलाओं ने मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन किया और महिलाओं की भागीदारी की मांग की. एक तख्ती पर लिखा था, "जिस समाज में महिलाएं सक्रिय नहीं होती हैं, वह समाज बेजान होता है."
तालिबान को अफगानिस्तान पर काबिज हुए महीनाभर से ज्यादा हो गया है. इस दौरान बड़े शहरों में लगभग रोज विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. देशभर में कई जगहों पर छोटे-छोटे समूहों में इस तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं. आमतौर पर महिलाएं इन प्रदर्शनों की अगुआ होती हैं. ये छोटे-छोटे प्रदर्शन तालिबान के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के गठबंधन से नाराज फ्रांस ने एक के बाद एक कई ऐसे कड़े कदम उठाए हैं जो पश्चिमी देशों की एकता में दरार की तरह दिखाई दे रहे हैं.
डॉयचे वेले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को वापस बुलाने के बाद अब फ्रांस ने ब्रिटेन के साथ होने वाली विदेश मंत्री स्तरीय बैठक रद्द कर दी है. यह बैठक इसी हफ्ते होनी थी लेकिन समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि ऑस्ट्रेलिया के साथ ब्रिटेन और अमेरिका के समझौते से नाराज फ्रांस ने बैठक रद्द करने का फैसला किया.
बताया जाता है कि फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली ने अपने ब्रिटिश समकक्ष बेन वॉलेस से न मिलने का फैसला खुद किया. इस बारे में ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.
इस बीच फ्रांस सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा है कि अमेरिका और फ्रांस के नेताओं के बीच आने वाले दिनों में फोन पर बातचीत होगी.
क्यों नाराज है फ्रांस?
फ्रांस ऑस्ट्रेलिया के साथ करीब 90 अरब डॉलर का समझौता रद्द किए जाने से नाराज है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और युनाइटेड किंग्डम ने मिलकर एक नया रक्षा समूह बनाया है जो विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होगा. इस समूह के समझौते के तहत अमेरिका और ब्रिटेन अपनी परमाणु शक्तिसंपन्न पनडुब्बियों की तकनीक ऑस्ट्रेलिया के साथ साझा करेंगे.
इस कदम को क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता के बरअक्स देखा जा रहा है. नए समझौते के तहत अमेरिका परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी बनाने की तकनीक ऑस्ट्रेलिया को देगा जिसके आधार पर ऐडिलेड में नई पनडुब्बियों का निर्माण होगा. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के एक प्रवक्ता ने बताया कि नए समझौते के चलते फ्रांस की जहाज बनाने वाली कंपनी नेवल ग्रुप का ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ समझौता खत्म हो गया है.
नेवल ग्रुप ने 2016 में ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता किया था जिसके तहत 40 अरब डॉलर की कीमत की पनडुब्बियों का निर्माण होना था, जो ऑस्ट्रेलिया की दो दशक पुरानी कॉलिन्स पनडुब्बियों की जगह लेतीं.
फ्रांस ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पर पीठ में छुरा भोंकने का आरोप लगाते हुए कहा कि वह अपने पूर्ववर्ती डॉनल्ड ट्रंप की तरह व्यवहार कर रहे हैं. फ्रांस के विदेश मंत्री ला ड्रियां ने एक रेडियो स्टेशन से कहा, "यह क्रूर है, एकतरफा है और अप्रत्याशित है. यह फैसला मुझे उसी सब की याद दिलाता है जो ट्रंप किया करते थे."
ऑस्ट्रेलिया को पछतावा नहीं
फ्रांस का दावा है कि इस समझौते से पहले उससे सलाह-मश्विरा नहीं किया गया. फ्रांस के विदेश मंत्री ज्याँ-इवेस ला ड्रिआँ ने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया ने आकुस के ऐलान से जुड़ीं अपनी योजनाओं के बारे में उनके देश को सिर्फ एक घंटा पहले बताया.
टीवी चैनल फ्रांस 2 को ला ड्रिआँ ने कहा, "असली गठजोड़ में आप एक दूसरे से बात करते हैं, चीजें छिपाते नहीं हैं. आप दूसरे पक्ष का सम्मान करते हैं और यही वजह है कि यह एक असली संकट है."
हालांकि ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि उसने कई महीने पहले समझौते को लेकर फ्रांस से अपनी चिंताएं साझा की थीं. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने माना है कि उन्होंने आकुस के ऐलान से कुछ घंटे पहले फ्रांसीसी राष्ट्रपति से बात करने की कोशिश की थी.
उन्होंने कहा कि उन्होंने बुधवार रात करीब 8.30 बजे इमानुएल माक्रों को फोन किया था. हालांकि दोनों के बीच बातचीत हुई या नहीं, यह उजागर नहीं किया गया है.
समाचार चैनल एबीसी के मुताबिक ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा, "उनके पास यह जानने की हर संभव वजह थी कि हम हमलावर श्रेणी की पनडुब्बी की क्षमताओं को लेकर इसलिए चिंतित थे क्योंकि यह हमारे रणनीतिक हितों पर खरी नहीं उतर रही थी. मुझे ऑस्ट्रेलियाई हितों को प्राथमिकता देने के फैसले पर कोई पछतावा नहीं है." (dw.com)
ऑस्ट्रेलिया, यूके और अमेरिका ने मिलकर एक सामरिक मंच बना लिया है. इस मंच के ऐलान से कुछ देश खुलेआम तो कुछ अंदर ही अंदर नाराज हैं. क्या इस मंच से कुछ सकारात्मक हासिल कर पाएंगे ये तीन देश?
डॉयचे वेले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट
आखिरकार जिसका डर था वही हुआ. चीन की बढ़ती ताकत और उसके आक्रामक और यदा-कदा हिंसात्मक रवैये के नाम पर लामबंद हो रहे पश्चिमी देशों और उनके जापान और भारत समेत तमाम एशियाई सहयोगी देशों के लिए ऑस्ट्रेलिया-यूनाइटेड किंग्डम-अमेरिका (आकुस) का त्रिपक्षीय गठबंधन एक आश्चर्यजनक खबर बनकर उभरा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के बीच इसी हफ्ते हुई ऑनलाइन वार्ता के दौरान इस त्रिपक्षीय सहयोग मंच का ऐलान किया गया.
देखा जाए तो यह तीनों ही देश एक दूसरे के साथ कई तरह के सामरिक, सैन्य और कूटनीतिक सहयोग के विभिन्न मोर्चों पर पिछली आधी सदी से भी ज्यादा से काम कर रहे हैं. ऐसे में एक नए मोर्चे का उद्घाटन कहीं गैरजरूरी तो कहीं बेवजह की चौधराहट दिखाने का जरिया ही लगता है.
कई देश खफा
हालांकि इस नए त्रिपक्षीय मंच के काफी पहलुओं पर अभी रोशनी पड़नी बाकी है लेकिन फिलहाल इतना साफ है कि प्रतिद्वंद्वी चीन के अलावा इस सहयोग ने इन तीनों पश्चिमी देशों के बड़े यूरोपीय सहयोगी, संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों में से एक, और इंडो-पैसिफिक में अच्छा दखल रखने वाले देश फ्रांस को भी खफा कर दिया है. यूरोपीय संघ के बाकी देशों को भी यह बात नाराज न करे तो पसंद तो नहीं ही आएगी.
आकुस की शिखर वार्ता के तुरंत बाद आये फ्रांस के विदेश मंत्री ज्याँ-वे ले ड्रिआँ के वक्तव्य ने साफ कर दिया है कि फ्रांस अमेरिका और ब्रिटेन के इस कदम को पीठ में छुरा घोंपने जैसा मानता है. चीन ने भी इस पर काफी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
चीन का मानना है कि इस कदम से अमेरिका ने क्षेत्रीय राजनीति को एक जीरो-सम गेम या यूं कहें कि एक ऐसे राजनीतिक अखाड़े में बदल दिया है जिसमें एक पक्ष का हारना तय है.
चीन की चिंताओं के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि उससे प्रतिस्पर्धा और तनातनी के बीच अमेरिका एक के बाद एक नया सामरिक इंद्रजाल बिछाता जा रहा है. इस दौड़ में चीन कहीं न कहीं अब कमजोर भी होता जा रहा है. हालांकि चीन भी आसानी से हार मानने वाला नहीं है.
यूरोपीय राजनीति से भी जुड़े हैं तार
आकुस के इस अप्रत्याशित ऐलान का वक्त भी खासा दिलचस्प है. सबसे बड़ी बात तो यही है कि यूरोपीय संघ की इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटिजी के ऐलान से ठीक एक दिन पहले ब्रिटेन के इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में इस सामरिक कदम उठाने के तार सीधे तौर पर यूरोपीय राजनीति से जुड़े हैं
ब्रेक्जिट के बाद से ही अलग-थलग महसूस कर रहे ब्रिटेन ने ग्लोबल ब्रिटेन-आसियान में डायलॉग पार्टनर के ओहदे और तमाम छोटे बड़े व्यापार समझौते कर अपनी प्रासंगिकता साबित करने की कोशिश की है.
फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ के इंडो-पैसिफिक में तेजी से पैठ बनाने से ब्रिटेन की कूटनीतिक और सामरिक गतिविधियां बढ़ी हैं. लेकिन इस जल्दबाजी में लिए कदम में ब्रिटेन की अलग-थलग पड़ने की बेचैनी बहुत बड़ा कारक है.
शायद ब्रिटेन को इस बात का अंदाजा जल्दी ही हो भी जाएगा. दक्षिणपूर्व एशिया के कई देश अभी भी ब्रिटेन को अमेरिका से अलग एक मजबूत और भरोसेमंद पार्टनर के तौर पर देखते थे, पर अब वैसा होना मुश्किल होगा.
कहीं न कहीं ब्रिटेन को अभी भी लगता है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र खास तौर पर दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया में फ्रांस की बढ़ती मौजूदगी उसके लिए अच्छी नहीं होगी. भारत और फ्रांस के बीच रक्षा और सामरिक सहयोग भी ब्रिटेन को रास नहीं आया है और अमेरिका को भी यह बात खास अच्छी नहीं लगी है. उस पर ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के बीच 2019 में रक्षा करार हुआ. साथ ही हाल में भारत, फ्रांस, और ऑस्ट्रेलिया के बीच त्रिपक्षीय करार हुआ, तो शायद उसे भी एक अलग नजरिये से देखा गया होगा.
फ्रांस और अन्य पश्चिमी सहयोगी
बहरहाल आकुस के जरिये ऑस्ट्रेलिया को आठ परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियां अमेरिका मुहैया कराएगा. इस निर्णय के साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ हुए करार को रद्द कर दिया है और यही बात फ्रांस को नागवार गुजरी है.
फ्रांस की चिंता सिर्फ पनडुब्बी नहीं है. सवाल है कि अमेरिका ने उसे किनारे कर इस त्रिपक्षीय समझौते को मंजूरी दी. जाहिर है यह बात अब जब निकल पड़ी है तो बहुत दूर तलक जाएगी. मसलन एक सवाल तो लाजिमी है कि क्या ‘फाइव आईज' के बाकी दो साथी - कनाडा और न्यूजीलैंड - इस लायक नहीं थे कि उन्हें आकुस में शामिल किया जाता?
मान लीजिये अपनी परमाणु नीतियों की वजह से ये दोनों देश न भी शामिल होना चाहें तो भी क्या अब ‘फाइव आईज' की उतनी ही महत्ता रहेगी, जितनी पहली थी?
और भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के चार देशों वाले क्वॉड्रिलैटरल सिक्यॉरिटी डायलॉग का क्या, जिसकी शिखर बैठक अगले ही हफ्ते 24 जुलाई को होनी है? आकुस-क्वाड-फाइव आईज- और फ्रांस के साथ त्रिपक्षीय सहयोग के मंचों के बीच कोई सहयोग की गुंजाइश है, या बनाई जाएगी, यह कहना फिलहाल मुश्किल है. इस मुद्दे पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के कई देशों की राजधानियों में सरगर्मी से चिंतन-मनन हो रहा होगा.
आकुस का आना फिलहाल तो ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली कहावत की और इशारा करता सा दिखता है. खास तौर पर अगर हाल में लिए गए तमाम मिनीलैटरल सहयोग समझौतों को किसी तर्कसंगत क्रम में जोड़ा नहीं गया तो. और फ्रांस के गुस्से के नतीजे तो खैर समय आने पर ही जाहिर होंगे. (dw.com)
चीन के साथ ताइवान का व्यापारिक संबंध दशकों के अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है.
कुछ दिनों पहले चीन ने ताइवान से उसके दो किस्मों की सेबों (शरीफा) को आयात नहीं करने की धमकी दी.
अब ताइवान ने इस मामले को विश्व व्यापार संगठन में ले जाने की धमकी दी है.
दोनों देशों के बीच फलों के व्यापार को लेकर इस ताज़ा छिड़े विवाद में चीन ने ख़तरनाक कीटाणुओं का हवाला देते हुए सेब की इन (शुगर एप्पल और वैक्स एप्पल) दो किस्मों के आयात को रोकने की धमकी दी है.
चीन का कहना है कि उसके यहां की फसलों को इन कीटाणुओं से नुकसान पहुंचने की आशंका है.
चीन के कस्टम विभाग का कहना है कि उसे ताइवान के शुगर एप्पल में प्लानोकोकस माइनर नाम के कीट बार-बार मिले हैं.
इसने अपनी ग्वांगडोंग शाखा और जुड़े हुईं सभी शाखाओं को कस्टम पर इन फलों को रोकने के लिए कहा है.
ताइवान ने क्या कहा?
ताइवान के कृषि मंत्री चेन ची चुंग ने कहा कि यह चीन का बग़ैर किसी वैज्ञानिक कारण बताए एकतरफ़ा व्यवहार है. साथ ही उन्होंने चीन के इस फ़ैसले की आलोचना की.
चेन ने कहा, हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि, "ताइवान ने चीन से कहा है कि अगर वो 30 सितंबर से पहले मौजूदा समस्या का हल ढूंढने की ताइवान के अनुरोध का जवाब नहीं देता तो वह इस मसले को विश्व व्यापार संगठन के समक्ष ले जाएगा."
चेन ने यह भी कहा कि सरकार इससे प्रभावित किसानों की मदद के लिए 100 मिलियन ताइपे डॉलर (3.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर) खर्च करेगी.
इसी साल फ़रवरी के महीने में भी चीन ने ताइवान से अनानास ख़रीदने पर 'हानिकारक जीवों' का हवाला देते हुए प्रतिबंध लगाया था. ताइवान ने तब कहा था कि यह उनके देश पर चीन के दबाव बनाने की एक चाल है.
चीन और ताइवान के बीच विवाद
दशकों से चीन की कम्युनिस्ट सरकार का दावा है कि ताइवान एक देश नहीं बल्कि चीन का ही एक प्रांत है. वहीं ताइवान हमेशा इस दावे को ख़ारिज करता रहा है.
चीन में हुए गृहयुद्ध में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को 1949 में हराया था. इसके बाद कॉमिंगतांग ने ताइवान में जाकर अपनी सरकार बनाई.
दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने हार के बाद कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंपा था. लेकिन जब कॉमिंगतांग ने वहां अपनी सरकार बनाई तो विवाद यह उठा कि जापान ने ताइवान किसको दिया था.
तब चीन में कम्युनिस्ट सत्ता में थे और ताइवान में कॉमिंगतांग का शासन था.
माओत्से तुंग का मानना था कि चीन में जब जीत उनकी हुई है तो ताइवान पर अधिकार भी उनका ही है जबकि कॉमिंगतांग का कहना था कि बेशक चीन के कुछ हिस्सों में उनकी हार हुई है मगर आधिकारिक रूप से वे ही चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं.
इसके बाद से ही दोनों आधिकारिक चीन होने का दावा करने लगे.
लेकिन जब 1971 से चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य हो गया तो 1979 में ताइवान की यूएन में आधिकारिक मान्यता ख़त्म कर दी. इसके बाद ही, चीन के मुक़ाबले ताइवान कमज़ोर पड़ने लग गया.
व्यावहारिक तौर पर ताइवान ऐसा द्वीप है जो 1950 से ही स्वतंत्र रहा है. मगर चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानता है. जहां ताइवान ख़ुद को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है, वहीं चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए. (bbc.com)
कैनबरा, 19 सितम्बर | ऑस्ट्रेलिया के उद्योग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री क्रिश्चियन पोर्टर ने व्यक्तिगत कानूनी शुल्क के लिए एक गुमनाम दान स्वीकार करने के बाद रविवार को पद से इस्तीफा दे दिया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने रविवार दोपहर को घोषणा की है कि पोर्टर ने तत्काल प्रभाव से मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया है।
दान स्वीकार करने के पांच दिन बाद इस्तीफा दिया है, जब पोर्टर ने खुलासा किया कि उन्होंने एक पत्रकार के खिलाफ एक मानहानि मामले में अपनी कानूनी फीस के हिस्से को कवर करने के लिए 'कानूनी सेवा ट्रस्ट' के रूप में जाना जाने वाले एक नेत्रहीन ट्रस्ट से दान स्वीकार किया है।
मॉरिसन ने अपने विभाग से इस बारे में सलाह मांगी थी कि क्या गुमनाम दान ने मंत्री के मानकों का उल्लंघन किया है, लेकिन रविवार को कहा कि पोर्टर, जिन्होंने पहले अटॉर्नी-जनरल के रूप में कार्य किया था, उन्होंने खुद ही पद छोड़ने का निर्णय लिया है।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "उन्होंने आज दोपहर एक मंत्री के रूप में अपना इस्तीफा देकर उन मानकों को बनाए रखने के लिए उचित कदम उठाया है और मैंने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।"
मॉरिसन ने कहा, "सभी सदस्य, जब वे मंत्री बनते हैं, समझते हैं कि जब वे हस्ताक्षर करते हैं और कैबिनेट के सदस्य बन जाते हैं और सरकार की कार्यकारिणी में भूमिका निभाते हैं। मेरे सभी मंत्री हर समय मानकों को बनाए रखना चाहते हैं।"
इससे पहले रविवार को, वित्त मंत्री साइमन बमिर्ंघम ने पोर्टर को दिए गए दान को 'एक असामान्य' बताया है।
पोर्टर के इस्तीफे से सरकार के मंत्री के रूप में उनके छह साल के करियर का अंत हो गया।
तीन पन्नों के त्याग पत्र में उन्होंने कहा कि उन्होंने ट्रस्ट के पीछे दानदाताओं की गोपनीयता को तोड़ने की कोशिश करने के बजाय इस्तीफा देने का 'आखिरकार फैसला' किया।
ऊर्जा और उत्सर्जन में कमी मंत्री एंगस टेलर को अस्थायी रूप से पोर्टर के मंत्रिस्तरीय पोर्टफोलियो को संभालने के लिए नियुक्त किया गया है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 19 सितम्बर | चीन के गुइझोऊ प्रांत में एक यात्रियों की नाव के नदी में पलट जाने से आठ लोगों की मौत हो गई और सात अन्य लापता हो गए। स्थानीय अधिकारियों ने रविवार को इसकी घोषणा की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह हादसा शनिवार को लियुपांशुई शहर में जांगके नदी में शाम 4.50 बजे हुआ।
रविवार सुबह 8.10 बजे तक, 39 लोगों को नदी से बचाया गया, जिनमें से 31 गैर-जानलेवा परिस्थितियों में थे, और आठ लोगों को बचाए जाने के बाद उनकी मौत हो गई।
नाव को 40 लोगों तक ले जाने के लिए डिजाइन किया गया था।
अधिकारी अभी विमान में सवार यात्रियों की सही संख्या की जांच कर रहे हैं।
बचाव अभियान और दुर्घटना के कारणों की जांच की जा रही है। (आईएएनएस)
अख़बार दुनिया के अनुसार, तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में शरिया (इस्लामी क़ानून) के तहत देश के लिए एक संवैधानिक ढांचे की घोषणा की है.
अख़बार के अनुसार तालिबान की मौजूदा अंतरिम सरकार ने शनिवार को 40 बिंदुओं पर आधारित नए संवैधानिक ढांचे का एलान किया.
इसके मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान एक इस्लामी देश होगा लेकिन दूसरे धर्म के नागरिकों को इस्लामी क़ानून के तहत अपने धार्मिक विश्वास को मानने की आज़ादी होगी.
अफ़ग़ानिस्तान का झंडा सफ़ेद रंग का होगा और उस पर क़ुरान की आयतें लिखीं होंगी. इसके अलावा पश्तो और दारी देश की सरकारी भाषा होगी.
विदेश नीति इस्लामी क़ानून के तहत होगी और पड़ोसी देशों के साथ सारे मुद्दे शांतिपूर्ण तरीक़े से हल किए जाएंगे.
इस नए संवैधानिक ढांचे में यह भी कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान का कोई भी हिस्सा किसी विदेशी सरकार के अधीन नहीं होगा. इसके अलावा आम जनता के बुनियादी मानवाधिकार होंगे और सबको बराबर इंसाफ़ मिलेगा. (bbc.com)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के फ़ैसले के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की आलोचना करना मुनासिब नहीं है.
डॉन अख़बार के मुताबिक़, रूस के सरकारी न्यूज़ चैनल को दिए एक इंटरव्यू में इमरान ख़ान ने कहा, "मैं पूरे यक़ीन से नहीं कह सकता कि इस वक़्त अमेरिका की अफ़ग़ानिस्तान को लेकर कोई पुख़्ता नीति है या नहीं और वो क्या करने जा रहे हैं. इसकी वजह यह है कि अफ़ग़ानिस्तान से सेना की वापसी के लिए राष्ट्रपति बाइडन की हद से ज़्यादा आलोचना की गई जो कि मेरी समझ से बिल्कुल भी उचित नहीं है. राष्ट्रपति बाइडन ने जो किया वो बहुत ही समझदारी का फ़ैसला था."
बाइडन का बचाव करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "बाइडन की आलोचना हो रही है कि उन्होंने सैनिकों और लोगों की वापसी की सही से तैयारी नहीं की थी. लेकिन आप वापसी की तैयारी कैसे कर सकते हैं जब इस प्रक्रिया से दो हफ़्ते पहले देश का राष्ट्रपति भाग जाता है और अफ़ग़ानिस्तान की सेना हथियार डाल देती है."
तस्वीरों में: काबुल में तालिबान-पाकिस्तान के ख़िलाफ़ महिलाओं का मोर्चा
तालिबान के आने के बाद कैसे बदल गई इन महिलाओं की ज़िंदगी?
इसी इंटरव्यू में पाकिस्तान पर तालिबान की मदद के आरोपों का जवाब देते हुए इमरान ख़ान ने कहा कि अगर यह मान लिया जाए कि पाकिस्तान ने अमेरिका के ख़िलाफ़ तालिबान की मदद की तो इसका मतलब यही होगा कि पाकिस्तान अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों से ज़्यादा ताक़तवर है.
इमरान ने आगे कहा कि क्या पाकिस्तान इतना ताक़तवर है कि उसने मामूली हथियारों से लैस 60-65 हज़ार लड़ाकों को इस क़ाबिल बना दिया कि वो बेहतरीन आधुनिक हथियारों से लैस सेना को हराने में सफल हो गए.
तालिबान की मदद के आरोप को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक साज़िश क़रार देते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "यह हमारे ख़िलाफ़ एक प्रोपगैंडा है जो सबसे पहले अफ़ग़ान सरकार ने शुरू किया ताकि वो अपनी अयोग्यता और भ्रष्टाचार को छुपा सकें. अफ़ग़ान सरकार एक कठपुतली सरकार थी जिसका वहां की अवाम ज़रा भी सम्मान नहीं करती थी."
इमरान ख़ान ने भारत पर निशाना साधते हुए कहा, "भारत ने अशरफ़ ग़नी सरकार में बहुत निवेश किया लेकिन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ इस प्रोपगैंडा का कोई तार्किक आधार नहीं है. पाकिस्तान की 22 करोड़ जनता के लिए कुल बजट 50 अरब डॉलर है. यह कैसे संभव है कि हम चरमपंथियों की मदद कर सकते हैं, जो अमेरिका पर हावी हो गए. वो भी एक ऐसी जंग में जहां अमेरिका ने 20 सालों में दो खरब डॉलर झोंक दिए. इसलिए यह सिर्फ़ हमारे ख़िलाफ़ एक दुष्प्रचार है."
नई दिल्ली, 18 सितंबर (आईएएनएस)| अफगानिस्तान के ज्यादातर दूतावासों ने काबुल प्रशासन और मेजबान देशों से संपर्क तोड़ दिया है। पझवोक न्यूज ने बताया कि कुछ दूतावासों का नेतृत्व अभी भी पूर्व मंत्री हनीफ अतमार और तत्कालीन उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह कर रहे हैं।
सूत्र ने कहा, अधिक विवरण दिए बिना कहा कि कुछ तटस्थ रहे, जबकि अन्य नए प्रशासन के संपर्क में थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारी ने कहा कि दूतावासों के खर्च का 80 प्रतिशत पासपोर्ट और अन्य सुविधाओं को जारी करने जैसी सेवाओं से एकत्र किए गए अपने स्वयं के राजस्व से पूरा किया जाता है।
लेकिन अब इनमें से कुछ दूतावास राजस्व पर चुप हैं और स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
फ्रांस और जर्मनी में अफगानिस्तान के दूतावासों में कामगारों ने मेजबान देशों में शरण मांगी थी।
एक सूत्र ने कहा, "यूरोप में अफगानिस्तान दूतावासों का राजस्व बॉन और फिर काबुल को स्थानांतरित कर दिया गया है। कुछ दिनों पहले, अतमार ने बॉन वाणिज्य दूतावास से संपर्क किया और उसे अपने व्यक्तिगत बैंक खाते में एकत्र राजस्व जमा करने के लिए कहा, जिसे वह विदेश मामलों के मंत्रालय को हस्तांतरित कर देगा।"
रिपोर्ट में सूत्र के हवाले से कहा गया है, "लेकिन वाणिज्य दूतावास ने जवाब दिया कि वह ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि पैसा अफगानिस्तान और अफगान लोगों का था।"
एमओएफए के पूर्व अधिकारी ने दावा किया कि कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने कई बार विदेशों में अफगान दूतों के साथ एक ऑनलाइन बैठक आयोजित करने की कोशिश की थी।
मंत्री ने कथित तौर पर बुधवार को उनके साथ एक आभासी बैठक करने की योजना बनाई, लेकिन इसे रद्द कर दिया गया, क्योंकि अधिकांश राजदूत अनुपस्थित थे।
अफगानिस्तान के कुछ दूतावास स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं और उनके राजस्व की प्रकृति अज्ञात बनी हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय का कहना है कि एक दूतावास ने अभी तक अपना पैसा बैंक में जमा नहीं किया है और चार अन्य ने उनकी गतिविधियों के बारे में सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया है।
एमओएफए के एक पूर्व अधिकारी ने नाम जाहिर न किए जाने की शर्त पर पझवोक अफगान न्यूज को बताया कि तालिबान के कब्जे के बाद मंत्रालय के 80 प्रतिशत कर्मचारी अफगानिस्तान छोड़कर चले गए।
नई दिल्ली, 19 सितंबर | अफगानिस्तान में आईएसआईएस-के गढ़ में हुए बम विस्फोटों में दो लोगों की मौत हो गई है और पिछले महीने अमेरिकी सैनिकों के हटने के बाद पहले घातक हमले में 20 से अधिक घायल हो गए हैं। तालिबान के वाहनों को निशाना बनाकर किए गए हमलों में शनिवार को पूर्वी प्रांतीय राजधानी जलालाबाद में तीन विस्फोट हुए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिम्मेदारी का तत्काल कोई दावा नहीं किया गया है, लेकिन इलाके में इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों का मुख्यालय है, वे तालिबान के दुश्मन हैं।
इस्लामिक स्टेट ऑफशूट आईएसआईएस-के ने पिछले महीने काबुल हवाईअड्डे पर बम हमले के बाद का दावा किया था कि 13 अमेरिकी नौसैनिक सहित 170 से अधिक लोग मारे गए थे।
विस्फोट में तीन नागरिक और 16 तालिबान लड़ाके घायल हुए थे, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है।
साथ ही शनिवार को काबुल में भी एक चिपचिपा बम फट गया, जिसमें दो लोग घायल हो गए। बम का लक्ष्य तुरंत स्पष्ट नहीं हुआ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान प्रमुख आर्थिक और सुरक्षा समस्याओं का सामना कर रहे हैं, क्योंकि वे शासन करने का प्रयास कर रहे हैं, और आईएस विद्रोहियों द्वारा बढ़ती चुनौती उनके संसाधनों को और बढ़ाएगी।(आईएएनएस)
पाकिस्तान में इस समय हिजाब को लेकर विवाद चल रहा है. दरअसल, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वायरल वीडियो में एक पाकिस्तानी न्यूज़ एंकर हिजाब के बारे में बात कर रही है. इसके बाद वह खुद लाइव टीवी पर हिजाब पहनती है और हिजाब पहनने वाली महिलाओं की पैरवी करती है. एंकर कहती है कि हिजाब इस्लामिक कल्चर का एक हिस्सा है और इसे पहनने से सोच नहीं बदलती है. आइये जानें कि आखिर पाकिस्तान में हिजाब को लेकर माहौल क्यों गर्म है.
जानिए पूरा मामला
बता दें कि यह वायरल वीडियो पाकिस्तान के समा टीवी की न्यूज एंकर का है. इस वीडियो में पाकिस्तान की फेमस न्यूज़ एकंर किरन नाज़ हैं. वह लाइव डिबेट में प्रोफेसर परवेज हुदभॉय के उस बयान का जिक्र कर रही हैं, जिसमें प्रोफेसर ने हिजाब पहनने वाली महिलाओं को असामान्य (Abnormal) बताया था. वह हिजाब का बचाव करती हैं और फिर लाइव टीवी पर खुद हिजाब पहनती हैं.
हिजाब को लेकर क्या बोले थे प्रोफेसर परवेज हुदभॉय?
पाकिस्तान की कायदे आजम यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे परवेज हुदभोय ने कहा, "मैंने साल 1973 से पढ़ाना शुरू किया, तब एक भी लड़की बमुश्किल बुर्के में दिखाई देती थी. अब तो हिजाब और बुर्का आम हो गया है. अब तो नॉर्मल लड़की तो दिखाई ही नहीं देती है और जब वो क्लास में हिजाब में बैठती हैं तो तो उनकी एक्टिविटी क्लास में बहुत घट जाती है. यहां तक कि पता ही नहीं चलता कि वो क्लास में है या नहीं. वह हिजाब या बुर्के में लिपटी दिखाई देती हैं."
प्रोफेसर परवेज हुदभॉय के इस बयान का विरोध करते हुए न्यूज़ एंकर ने किरन नाज़ ने लाइव टीवी पर हिजाब पहना. और अपने लाइव प्रोग्राम में कहा, "प्रोफेसर परवेज हुदभॉय पाकिस्तान का बड़ा नाम हैं. और अमेरिका से पढ़कर आए हैं. अपनी पूरी जिंदगी यहां पढ़ाने के लिए वक्फ कर दी. पिछले 40 साल से कायदे आजम यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं. इतना सब करने के बावजूद वह हमेशा तनकीद करते दिखते हैं."
वह आगे कहती हैं, "मैं भले ही हिजाब नहीं पहनती, लेकिन हिजाब पहनने वाली औरतों को असामान्य नहीं मानती. इसीलिए आज के शो में मैं हिजाब पहनकर बैठूंगी. आज का पूरा शो हिजाब पहनकर ही करूंगी." इसके बाद वह लाइव टीवी पर हिजाब पहनती हैं.
सैन फ्रांसिस्को, 18 सितम्बर | सर्च इंजन की दिग्गज कंपनी गूगल टीवी को जल्द ही मुफ्त टीवी चैनलों के लिए समर्थन मिल सकता है। प्रोटोकॉल की एक रिपोर्ट के अनुसार, गूगल उन चैनलों को अपने स्मार्ट टीवी प्लेटफॉर्म से जोड़ने की संभावना के बारे में मुफ्त और विज्ञापन समर्थित स्ट्रीमिंग टेलीविजन प्रदाताओं के साथ बातचीत कर रहा है। यह कमर्शियल ब्रेक वाले पारंपरिक टीवी के समान अनुभव देगा।
गिज्मो चाइना की रिपोर्ट, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले हफ्तों या महीनों में मुफ्त स्ट्रीमिंग चैनल गूगल टीवी पर लॉन्च हो सकते हैं, लेकिन कंपनी अगले साल की शुरूआत में अपने स्मार्ट टीवी भागीदारों के साथ पहल की घोषणा करने की प्रतीक्षा कर सकते हैं।
उपयोग के लिए, यूजर्स को चैनलों के माध्यम से ब्राउज करने के लिए एक समर्पित लाइव टीवी मेनू मिलने की संभावना है।
स्मार्ट टीवी पर, स्ट्रीमिंग चैनलों को ओवर-द-एयर प्रोग्रामिंग के साथ प्रस्तुत किए जाने की उम्मीद है जिसे एंटीना के साथ एक्सेस किया जा सकता है।
गूगल ने पहली बार मुफ्त टीवी स्ट्रीमिंग श्रेणी में प्रवेश किया जब उसने 2014 में एंड्रॉइड टीवी प्लेटफॉर्म का अनावरण किया।
गूगल टीवी एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम पर आधारित है और क्रोमकास्ट जैसे उपकरणों को स्मार्ट टीवी के रूप में पावर दे रहा है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 18 सितम्बर | वाशिंगटन, डीसी में स्मिथसोनियन नेशनल जू में रहने वाले सभी शेर और बाघों कोरोनावायरस के लक्षण दिख रहे हैं। हालांकि अभी अंतिम रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुआ है। इसकी घोषणा एक बयान में की गई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को बयान में कहा गया कि अमेरिका के सबसे पुराने चिड़ियाघर में छह अफ्रीकी शेरों, एक सुमात्रा बाघ और दो अमूर बाघों सहित सभी बड़ी बिल्लियों के मल के नमूने एकत्र किए गए और उनका परीक्षण किया गया।
अगले कुछ दिनों में अंतिम परिणाम आने की उम्मीद है।
बयान में कहा गया है कि चिड़ियाघर में किसी अन्य जानवर में संक्रमण के कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं।
चिड़ियाघर के अनुसार, पशुपालकों ने पिछले सप्ताहांत में कई शेरों और बाघों में भूख की कमी, खांसी, छींक और सुस्ती देखी गई।
इसमें कहा गया है कि सभी शेरों और बाघों का इलाज बेचैनी और भूख कम करने के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी और मतली-रोधी दवा के साथ-साथ प्रकल्पित माध्यमिक जीवाणु निमोनिया के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जा रहा है।
चिड़ियाघर ने कहा कि वे कड़ी निगरानी में हैं।
इसने कहा, अब तक संक्रमण के स्रोत को इंगित करने के लिए कोई सबूत नहीं है। चिड़ियाघर ने उन सभी कर्मचारियों की गहन जांच की है जो शेरों और बाघों के करीब थे।
अमेरिकी कृषि विभाग ने जोएटिस द्वारा विशेष रूप से चिड़ियाघर के जानवरों के लिए बनाए गए सार्स-सीओवी-2 वैक्सीन के उपयोग को अधिकृत किया है।
चिड़ियाघर ने कहा कि टीकाकरण के पहले दौर में अतिसंवेदनशील प्रजातियों के रूप में पहचाने जाने वाले जानवरों को चिड़ियाघर और वर्जीनिया में संरक्षण जीवविज्ञान संस्थान दोनों में उपलब्ध कराया जाएगा, जब यह आने वाले महीनों में उपलब्ध होगा। (आईएएनएस)
इस्लामिक स्टेट की 'जिहादी दुल्हन' रह चुकीं शमीमा बेगम ने कहा है कि उन्हें इस आतंकी संगठन में शामिल होने का जीवन भर पछतावा रहेगा. हालांकि उनका अब कहना है कि वो आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में ब्रिटेन की मदद करना चाहती हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा है कि वो "समाज के लिए उपयोगी" साबित हो सकती है और उन्हें सीरिया के राहत शिविर में "सड़ने" देना बेकार है.
22 साल की शमीमा पर कथित इस्लामिक चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) में सक्रिय भूमिका निभाने का आरोप है. हालांकि वो इससे इनकार करती हैं. ब्रिटेन के तब के गृहमंत्री साजिद जावेद ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर शमीमा बेगम से ब्रिटेन की उनकी नागरिकता छीन ली थी. जावेद अब भी अपने उस फ़ैसले पर क़ायम हैं.
इससे पहले, 15 साल की किशोर उम्र में शमीमा बेगम पूर्वी लंदन की दो अन्य स्कूली छात्राओं के साथ ब्रिटेन छोड़कर सीरिया चली गई थीं. वहां जाकर वो सब आईएस में शामिल हो गई थीं. वो बांग्लादेशी मूल की ब्रितानी नागरिक हैं.
वहां, उन्होंने एक डच आतंकी से शादी कर ली और तीन साल से ज़्यादा समय तक आईएस के शासन में रहीं. 2019 में, सीरिया के एक शरणार्थी शिविर में वो नौ महीने की गर्भवती के रूप में मिलीं. बाद में उनके बच्चे की निमोनिया से मौत हो गई. शमीमा ने बताया कि वो इससे पहले दो और बच्चे खो चुकी हैं.
शमीमा ने 2017 में आईएस द्वारा मैनचेस्टर एरेना पर किए गए हमले के बारे में पहले कहा था कि ये आईएस इलाकों पर किए गए हमलों की तरह का है. उन्होंने उस आतंकी हमले को आईएस का "प्रतिशोध" करार दिया था. उस हमले में 22 लोगों की मौत हुई थी.
'मुझे हमेशा ख़ुद से नफ़रत रहेगी'
बीबीसी संवाददाता जोश बेकर के यह पूछने पर कि दुनिया भर में नरसंहार और हत्या करने वाले समूह का हिस्सा बनकर उन्हें कैसा महसूस हुआ, शमीमा बेग़म ने कहा, "अब इस बारे में सोचकर मैं बहुत परेशान हो जाती हूं. अपने इस फ़ैसले के कारण मुझे ख़ुद से नफ़रत होने लगती है."
बीबीसी साउंड्स और बीबीसी 5 लाइव को दिए एक इंटरव्यू में शमीमा बेगम ने कहा कि अब वो केवल अपनी सच्ची भावनाओं के बारे में बात करने में ही सहज महसूस करती हैं.
बीबीसी संवाददाता ने उनसे पूछा कि आईएस पर उनकी राय क्या इसलिए बदल गई, क्योंकि वह ख़िलाफ़त क़ायम करने में नाकाम रहा. उन्होंने जवाब दिया, "आईएस के बारे में मेरी ये राय काफी पहले से है, पर मैं अब अपनी सच्ची राय व्यक्त करने में सहज महसूस करती हूं."
शमीमा ने कहा कि अगर उन्हें ब्रिटेन वापस जाने की अनुमति मिली, तो वो लोगों को सीरिया आने के लिए मनाने की आईएस की रणनीति पर सरकार को सलाह दे सकती हैं. उन्होंने ये भी कहा कि वो कट्टरपंथी बनने की इच्छा रखने वाले लोगों से बात करने के इस्लामिक स्टेट के तरीक़े के बारे में भी बता सकती हैं.
उन्होंने कहा कि वो ऐसा करना अपना "दायित्व" समझती हैं और नहीं चाहतीं कि कोई और लड़की अपना जीवन बर्बाद करे.
बीबीसी के कार्यक्रम में सीरिया से हुईं शामिल
बुधवार को शमीमा बेगम ने आईटीवी के 'गुड मॉर्निंग ब्रिटेन' के साथ बात की और उसी दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में देश की "संपत्ति" बनने का सीधा प्रस्ताव दिया.
सीरिया के एक शरणार्थी शिविर से इस कार्यक्रम में शामिल होने वाली शमीमा ने कहा कि इस बात के "कोई सबूत नहीं हैं" कि वो आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने में शामिल थीं और वो अदालत में अपनी बेगुनाह साबित करने को तैयार हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि चाहे मैं कुछ भी कहूं या करूं, कुछ लोग ये नहीं मानेंगे कि मैं अब बदल गई हूं. भरोसा कीजिए कि मैं लोगों की मदद करना चाहती हूं. जिनके दिल में थोड़ी सी भी दया, करुणा और सहानुभूति है, उनसे मैं अपने दिल की गहराइयों से कहना चाहती हूं कि मुझे सीरिया में कदम रखने के बाद लिए गए अपने हर फ़ैसले पर खेद है. और मुझे आजीवन इसका पछतावा रहेगा."
'मुझे बस एक मौक़ा और दें'
शमीमा बेगम के अनुसार, "मैंने जो किया, उसके लिए मैं किसी और से ज्यादा ख़ुद से ही नफ़रत करती हूं. मैं बस यही कह सकती हूं कि 'आई एम सॉरी' और मुझे बस एक और मौक़ा दें."
उन्होंने कहा कि वो "आईएस में वापस लौटने की बजाय मरना पसंद करेंगी" और कहा कि "मेरा बस एक ही अपराध है कि मैंने आईएस में शामिल होने के बारे में किसी को नहीं बताया".
शमीमा बेगम कहती हैं कि वो मुक़दमे का सामना करना चाहती हैं. इस बारे में उन्होंने कहा कि वो "अदालत जाने और आरोपों का सामना करने और उसके खंडन को तैयार हैं. मुझे पता है कि मैंने आईएस में एक माँ और पत्नी होने की बजाय कुछ और नहीं किया."
सरकार ने ब्रिटेन लौटने देने से इनकार किया
हालांकि वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री और पहले गृह मंत्री रह चुके साजिद जावेद का कहना है कि शमीमा बेगम को वापस लौटने देने और नागरिकता हासिल करने के लिए मुक़दमा लड़ने का मौक़ा देने की कोई संभावना नहीं है.
गुड मॉर्निंग ब्रिटेन को उन्होंने बताया कि उनकी ब्रिटेन की नागरिकता छीनने का निर्णय "नैतिक रूप से बिल्कुल सही था. यह क़ानूनी रूप से उचित और ब्रिटेन के लोगों की रक्षा के लिए भी वाज़िब" था.
साजिद जावेद ने कहा, "मैं इसके विस्तार में नहीं जाऊंगा, लेकिन ये जरूर कहूंगा कि आपने वो नहीं देखा, जो मैंने देखा है." उन्होंने ये भी कहा, "जो मैं जानता था, यदि वो आपको भी पता चले तो आप भी वही निर्णय लेते. इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है."
उधर गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इस बारे में कहा, "सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता देश और अपनी जनता की सुरक्षा बनाए रखना है."
मानवाधिकार संगठन 'लिबर्टी' ने पहले शमीमा बेगम की नागरिकता रद्द करने के फ़ैसले को "बहुत ख़तरनाक उदाहरण" करार दिया था और कहा था कि लोकतांत्रिक सरकारों को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार मनमाने तरीके से नहीं छीनना चाहिए.
शमीमा बेगम के साथ सीरिया जाने वाली एक अन्य लड़की कदीज़ा सुल्ताना कथित तौर पर बमबारी की एक घटना में मारी गईं. हालांकि तीसरी लड़की अमीरा अबासे का अब तक पता नहीं चल सका है.
शमीमा ने पहले बताया था कि उनके पति ने सीरिया के लड़ाकों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और उसके बाद उन्हें एक जेल में रखा गया, जहाँ उन्हें प्रताड़ित किया जाता था. (bbc.com)
-पूजा छाबरिया
जीवन के अपने शुरुआती सालों से ही मुवुंबी नेडज़ालामा एक ही शख़्स से विवाह की प्रथा पर सवाल उठाती रही थीं.
वह हमेशा अपने माता-पिता से पूछा करती थीं कि क्या आप लोग बाक़ी जिंदगी भी एक ही साथ रहोगे.
मुवुंबी ने बीबीसी से बताया, "मुझे लगता था कि हमारे जीवन में आए लोगों को मौसम की तरह बदलते रहना चाहिए. लेकिन मेरे आसपास की दुनिया में सब जगह एक शख़्स से रिश्ते की बात सिखाई गई थी, सिनेमा और चर्च में भी यही कहा जाता था, लेकिन मैं इसे पूरी तरह समझ नहीं सकी कभी."
अब मुवुंबी 33 साल की हो चुकी हैं. उनकी पहचान ऐसी महिला की है, जिनका एक से अधिक लोगों से रिलेशनशिप है और किसी रिलेशनशिप में वह कोई बंधन नहीं मानती हैं. इतना ही नहीं, वह दक्षिण अफ्रीका में ऐसे समुदाय के हितों की रक्षा के लिए वह आवाज़ उठाती रही हैं.
वह बताती हैं, "अभी मेरा एक मुख्य पार्टनर है, जिसके साथ वर्तमान में मैं इंगेज हूँ और हमारे बच्चे भी हैं. मेरे दूसरे पार्टनर हम सब के लिए काफ़ी ख़ुश हैं. मेरा मुख्य पार्टनर शादी करना नहीं चाहते, लेकिन भविष्य में मैं ऐसी शादी की कल्पना करती हूँ, जिसमें एक साथ मैं एक से ज़्यादा शख़्स के साथ शादी कर सकूं. मैं लोगों की तरफ़ आकर्षित होती हूँ, चाहे वह किसी जेंडर के हों."
एक महिला के एक से ज़्यादा पति?
दक्षिण अफ्रीका का संविधान दुनिया भर में सबसे उदारवादी माना जाता है. यहाँ समलैंगिक विवाह के अलावा पुरुषों को कई पत्नियां रखने की अनुमति है.
देश में अब विवाह संबंधी क़ानून को अपडेट करने की मांग की जा रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि महिलाओं को भी एक वक़्त में एक से ज़्यादा पति रखने की अनुमति मिल सकती है. इसकी मांग भी हो रही है.
हालांकि देश भर का कंजरवेटिव समाज इसकी मुखर आलोचना कर रहा है.
चार पत्नी रखने वाले कारोबारी और टीवी शख़्सियत मुसा मस्लेकेऊ बताते हैं, "इससे हमारी अफ़्रीकी संस्कृति को काफ़ी नुकसान होगा. उन लोगों के बच्चों का क्या होगा, वे अपनी क्या पहचान बताएंगे. महिलाएं पुरुषों का जगह नहीं ले सकती हैं. इसके बारे में अब तक किसी ने नहीं सुना. क्या महिलाएं अब पुरुषों को लोबोला (दुल्हन को दी जाने वाली रकम) देंगी? क्या पुरुष अब पत्नी का सरनेम रखेंगे?"
वहीं विपक्षी पार्टी अफ्रीकी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एसीडीपी) के नेता रेवरेंड केनेथ मेशोए कहते हैं, इससे समाज नष्ट हो जाएगा.
मेशोए कहते हैं, "एक समय आएगा जब एक पुरुष कहेगा कि तुम ज़्यादा वक़्त दूसरे पुरुष के साथ बिताती हो. मेरे साथ नहीं रहती हो. इससे दो पुरुषों के बीच संघर्ष होगा."
लोगों की डगमगाती आस्था
मुवुंबी के मुताबिक़ बहुपत्नी संबंधों में महिलाओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षण है.
वह कहती हैं, "मौजूदा स्थिति तनावपूर्ण है. बहुत से लोगों की मान्यताओं को हिलाया जा रहा है. पुरुष अब तक पीढ़ियों से खुलेआम और ख़ुशी-ख़ुशी बहुविवाह करते रहे हैं, लेकिन महिलाओं को इसके लिए शर्मिंदा होना पड़ता है. और भी बहुत सारी चीज़ें ठीक करनी होंगी."
मुवुंबी खुले तौर पर बीते दस सालों से एक साथ कई रिलेशनशिप में रही हैं. ऐसे लोगों को सामुदायिक तौर पर पॉली बुलाया जाता है. पॉली होने का सीधा सा मतलब है कि आप एक से अधिक रिश्तों में हो सकते हैं और जिन भी लोगों से आपका रिश्ता हो, उन सबका पूर्ण समर्थन और विश्वास आपको हासिल हो.
मौजूदा समय में मुवुंबी के दो पार्टनर हैं - एक "एंकर पार्टनर" जिसके साथ वह जुड़ी हुई हैं, साथ रहती हैं और एक दूसरे के संसाधनों का इस्तेमाल करती हैं, जबकि उनका एक और पार्टनर है, जिनसे केवल रोमांटिक संबंध है, लेकिन कम बार मिलती हैं.
उन्होंने बताया, "हमलोग टेबल पॉलीमोरी शैली का अभ्यास कर रहे हैं, जिसमें लोग एक दूसरे के पार्टनर के बारे में भी जानते हैं. ज़रूरी नहीं है कि सब लोग एक-दूसरे से मिले हीं, लेकिन मेरे ख्याल से इतना खुलापन होना चाहिए. ट्राइब्स समाज में यह मिलता है."
मुवुंबी को शुरू में अपने परिवार को इस बारे बताने में संशय था. लेकिन पाँच साल पहले उनके एंकर साथी मज़ू म्यामेकेला न्हलाबत्सी के साथ जब उनका बंधन मज़बूत हुआ तो उन्होंने सबसे यह बताने का फ़ैसला लिया.
उन्होंने बताया, "मेरा एंकर पार्टनर भी पॉली है और मैं नहीं चाहती थी कि मेरा परिवार संभावित रूप से तब टकराए, जब वह किसी अन्य साथी के साथ सार्वजनिक स्थान पर हो और वे लोग इससे भ्रमित हों."
"यह वह समय भी था, जब हमारी बेटी पाँच साल की हो रही थी और मैं इस क्षेत्र में सक्रिय हो रही थी. मैं बहुविवाह के लिए प्रचार करते हुए स्थानीय टेलीविजन पर आई. मैं नहीं चाहती थी कि उन्हें किसी और स्रोत से पता लगे."
मुवुंबी को उनसे कुछ हद तक स्वीकृति मिली है, लेकिन आगे लंबा रास्ता बाक़ी था.
मुवुंबी हाल में हुई अपनी सगाई को याद करती हैं, जब उनके एंकर पार्टनर ने लोबोला की प्रथा निभाई. इस प्रथा के तहत एक पुरुष अपनी भावी पत्नी के परिवार को शादी के लिए भुगतान करता है.
मुवुंबी बताती हैं, "मेरे घरवालों ने पूछा था कि क्या दूसरा आदमी आकर लोबोला चुकाएगा तो क्या वे स्वीकार कर लें, तो मैंने उनसे कहा कि ऐसा हो सकता है. मेरे लिए अपने सच के साथ रहना ज़रूरी था. भले वह उन्हें अच्छा लगा हो या नहीं लगा हो."
पितृसत्ता पर सवाल
दक्षिण अफ्रीका के जेंडर एक्टिविस्ट समानता और महिलाएं अपनी पसंद का विकल्प चुन सकें, इसके लिए बहुपतित्व को वैध बनाने का अभियान चला रहे हैं, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में केवल पुरुषों को एक साथ एक से ज़्यादा पत्नी रखने की अनुमति है.
उनके इस प्रस्ताव को उस दस्तावेज़ में शामिल किया गया है, जिसे 1994 के बाद पहली बार विवाह संबंधी क़ानून में बदलाव के लिए सरकार ने जारी किया है ताकि लोग अपनी राय जाहिर कर सकें.
दस्तावेज़ में मुस्लिम, हिंदू, यहूदी और रस्ताफ़ेरियन विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने का भी प्रस्ताव है, जिन्हें वर्तमान में अमान्य माना जाता है.
मुवुंबी का कहना है कि प्रस्ताव "एक प्रार्थना के स्वीकार होने की तरह है." और बहुपतित्व के बारे में उठाई जा रही चिंताओं की जड़ें पितृसत्ता में निहित हैं.
बहुपतित्व के विषय पर नामचीन अकादमिक प्रोफेसर कोलिस माचोको, ऐसी राय ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, "ईसाई धर्म और उपनिवेशवाद के आने से महिला की भूमिका कम हो गई. वे एक समान नहीं थीं. विवाह भी समाज में पदानुक्रम स्थापित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों में से एक बन गया."
उनके मुताबिक़, कभी कीनिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो और नाइजीरिया में बहुपति का प्रचलन था और अभी भी गैबॉन में प्रचलित है, जहाँ क़ानून इसकी अनुमति देता है.
उन्होंने यह भी कहा, "बच्चों का सवाल आसान है. उन संबंधों में जो भी बच्चे पैदा होते हैं, वे परिवार के बच्चे होते हैं."
'यह एक अलग लड़ाई है'
मुवुंबी ने अपने पिछले कुछ रिश्तों में पितृसत्तात्मक विश्वासों को रेंगते हुए पाया और तब से उन पार्टनरों के साथ रहना आसान हो गया जो स्वयं पॉली हैं.
मुवुंबी याद करते हुए बताती हैं, "कई पुरुष दावा करेंगे कि वे मेरे पॉली होने तक ठीक थे, लेकिन बाद में ठीक नहीं रहे."
"जहां तक मेरा सवाल है, ऐसा नहीं है कि मैं अधिक से अधिक प्रेमी रखने की कोशिश कर रही हूँ. यह महसूस होने पर किसी के साथ कनेक्शन तलाशने जैसा है."
दक्षिण अफ्रीका में पॉली लोगों को एक साथ जोड़ने वाले ऑनलाइन कम्यूनिटी में मुवुंबी की मुलाक़ात अपने दोनों पार्टनर से हुई.
इन दिनों वह देश में चली रही बहस को लेकर अपने पार्टनर के साथ मिलक ओपन लव अफ्रीका नाम से आनलाइन प्लेटफॉर्म बना रही हैं. मुवुंबी के मुताबिक उनकी कोशिश एक ही समय में नैतिक रूप में एक से अधिक लोगों के साथ रिश्तों का प्रचार करने की है.
वह बताती हैं, "समुदाय काले लोगों का समर्थन ज़्यादा है लेकिन यह समावेशी है और आगे बढ़ने के साथ-साथ इसका विस्तार होगा. यह उन लोगों के लिए उपहार है जो एक से अधिक लोगों के साथ खुशी-खुशी रिलेशनशिप में है. उन्हें यहां अपने जैसे लोग मिलेंगे और तब उन्हें लगेगा कि झूठ बोलने की ज़रूरत नहीं है."
मुवंबी की तरह किसी भी अन्य लड़ाई की तरह है. हमेशा ऐसे लोग होंगे जो इसका विरोध करेंगे.
वह बताती हैं, "जब मैं अपनी माँ के गर्भ में थी, तब मेरी मां विरोध-प्रदर्शन में शामिल थीं, ताकि महिलाओं को पुरुष की सहमति के बिना गर्भनिरोधक मिल सके."
"यह तब एक अलग लड़ाई थी और अब यह मेरे लिए एक अलग लड़ाई है."
(इस रिपोर्ट में पुमज़ा फ़िहलानी का भी योगदान है)
कोलंबो, 17 सितम्बर | श्रीलंका ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों से ब्लैक फंगस और कोविड से जुड़े इनवेसिव पल्मोनरी एस्परगिलोसिस के प्रसार के बढ़ोत्तरी के बीच देश को बंद रखने का आग्रह करते हुए लॉकडाउन को बढ़ा दिया है। वर्तमान लॉकडाउन, जिसे 21 सितंबर को हटाया जाना था, उसको 1 अक्टूबर तक बढ़ा दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्री केहेलिया रामबुक्वेला ने शुक्रवार को घोषणा की।
श्रीलंका, जो अभी भी 'रेड जोन' पर है, ने ब्लैक फंगस और कोविड से जुड़े इनवेसिव पल्मोनरी एस्परगिलोसिस के प्रसार का पता लगाया है।
एक सलाहकार माइकोलॉजिस्ट प्रीमाली जयशेखर ने शुक्रवार को कहा कि ब्लैक फंगस से कम से कम 12 कोविड संक्रमित व्यक्तियों का पता चला है।
जयशेखर ने कहा, "अप्रैल से केवल ब्लैक फंगस ही नहीं, हम कोविड से जुड़े एस्परगिलोसिस फंगस के 700 से अधिक रोगियों में निमोनिया जैसी स्थिति के साथ आए हैं।"
चिकित्सा विशेषज्ञ समूहों की मांगों के बीच लॉकडाउन का विस्तार भी आता है, जिन्होंने सरकार से वर्तमान 'रेड जोन' से 'ग्रीन जोन' में जाने के साधन के रूप में अक्टूबर तक लॉकडाउन का विस्तार करने का आग्रह किया था।
एसोसिएशन ऑफ मेडिकल स्पेशलिस्ट्स (एएमएस) के अध्यक्ष लक्कुमार फर्नांडो ने गुरुवार को चेतावनी दी थी कि अगर प्रतिबंधों में ढील दी जाती है, तो वर्तमान में डेल्टा वैरिएंट तेजी से पैर पसार रहा है, जिससे कोविड के गंभीर प्रसार की संभावना है- 19 मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।
पिछले महीने, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञ समूह ने भविष्यवाणी की थी कि अगर लॉकडाउन को 2 अक्टूबर तक बढ़ा दिया जाता है, तो लगभग 10,000 मौतों को बचाया जा सकता है।
इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र ने भी श्रीलंका से लॉकडाउन जारी रखने का आग्रह किया था, जिसमें कहा गया था कि "अल्पकालिक आर्थिक चिंताओं पर महामारी की मानवीय लागत को गिनना महत्वपूर्ण है।"
संयुक्त राष्ट्र श्रीलंका के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर हाना सिंगर-हैमडी ने कहा था, "अर्थव्यवस्था ठीक हो सकती है लेकिन जो हम खो देते हैं वह कभी वापस नहीं आएगा। एक अल्पकालिक लॉकडाउन अब जीवन बचाएगा, हमारे अथक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को राहत प्रदान करेगा और व्यापक कोविड -19 प्रकोप के दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक अव्यवस्था को सीमित करेगा।"(आईएएनएस)
प्रशांत महासागर के तट पर रहने वाली अफ्रीकी मूल की कोलंबियाई महिलाओं ने हिंसा व संघर्ष के साथ-साथ खनन और अवैध कटाई से उत्पन्न हालातों का सामना किया है. अब ये महिलाएं अपने पर्यावरण को बचाने के लिए साथ मिलकर काम कर रही हैं.
डॉयचे वैले पर लिया वालेरो की रिपोर्ट-
हर दिन जैसे ही कोलंबिया के पश्चिमी तटों पर सूरज निकलता है, उसी समय करीब एक दर्जन महिलाएं डोंगी (छोटी नाव) और मोटरबोट पर सवार होकर "पियांगुआ" पकड़ने निकल जाती हैं. इसके लिए, ये महिलाएं घने मैंग्रोव जंगलों के बीच करीब दो घंटे तक यात्रा करती हैं. पियांगुआ, घोंघे की तरह का एक समुद्री जीव है जो प्रशांत महासागर के इस तटीय इलाके में पाया जाता है.
यह काम काफी थका देने वाला होता है. लंबे समय से यह काम महिलाएं ही करती आ रही हैं. एस्नेडा मोंटानो पियांगुआ पकड़ने के लिए दिन का अधिकांश हिस्सा कीचड़ में बिताती हैं. इस कीचड़ में ही पियांगुआ छिपे रहते हैं. इस काम के दौरान सांप, टॉडफिश, मच्छरों के हमले का डर हमेशा बना रहता है.
मोंटानो की उम्र 50 की होने को है. वह आठ साल की उम्र से पियांगुआ पकड़ने का काम कर रही हैं. वह कहती हैं, "यह हमारी परंपरा और विरासत है जो हमें हमारे पूर्वजों से मिली है. मैंने यह काम अपनी दादी से सीखा है."
मोंटानो, दक्षिणी पश्चिमी कोलंबिया के एक छोटे से शहर क्विरोगा में रहती हैं. यहां रहने वाले ज्यादातर लोग अफ्रीकी मूल के हैं. वह 20 स्थानीय "पियांगुएरा" के एक समूह, "एसोसिएशन ऑफ विमिन बिल्डिंग ड्रीम्स" का नेतृत्व करती हैं. इस समूह में शामिल कई महिलाएं ‘सिंगल मदर' हैं. वहीं, कई ऐसी हैं जो युद्ध और संघर्ष वाले इलाकों से विस्थापित होकर यहां आई हैं.
ये महिलाएं 2013 में सशस्त्र समूहों से खुद को सुरक्षित रखने के लिए एक साथ जुड़ी थीं. ये लोग रोजगार के नाम पर केकड़े, पियांगुआ जैसे समुद्री जीवों को बेचकर अपना जीवन-यापन करती हैं.
मोंटानो विवाहित हैं. वह कहती हैं, "इससे हमें अपने पतियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है. साथ ही, हम अपने बेटे और बेटियों की मदद भी कर पाते हैं."
पारिस्थितिकी संकट का खामियाजा
महिलाओं को मिली यह आर्थिक स्वतंत्रता पूरी तरह मैंग्रोव जंगलों और आसपास के जलीय क्षेत्रों से जुड़ी हुई है. हालांकि, यह पारिस्थितिकी तंत्र कोका की खेती, खनन, खेती के लिए तैयार की जा रही जमीन की वजह से संकट में है. कोका के पौधे से ही कोकीन तैयार होता है और इस पौधे को लगाने के लिए जंगलों की कटाई की जाती है.
मोंटानो कहती हैं, "इससे पहले, हम सिर्फ घर बनाने के लिए मैंग्रोव के पेड़ों की टहनियों को काटते थे. अब बाहरी लोग आते हैं और पूरा पेड़ काट देते हैं. वे जिस ‘चेनसॉ' तेल को यहां छोड़ जाते हैं उससे पियांगुआ मर जाते हैं. अगर अभी हमारे पास जो है उसे सुरक्षित नहीं रखेंगे, तो हमारे सामने खाने का संकट पैदा हो जाएगा. आखिर ये मैंग्रोव ही हमारे जीवन-यापन के साधन हैं."
पियांगुएरा की हालत वैश्विक समस्या को दिखाती है. जब पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से आजीविका नष्ट होती है, तो सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है.
पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा गरीब
"द डबल एक्स इकॉनमी" की लेखक और अर्थशास्त्री लिंडा स्कॉट के अनुसार, दुनिया की गरीब आबादी में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं की है. पूरी दुनिया की 80 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि का मालिकाना हक पुरुषों के पास है. महिलाओं के पास संसाधनों की कमी होती है. उन्हें नौकरी के अवसर कम मिलते हैं. इसके अलावा, जब समाज पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ता है, तो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा बढ़ जाती है.
मुख्य तौर पर महिलाएं घर की देखभाल, घर निर्माण से जुड़े काम, काम चलाने लायक खेती, और पानी भरने का काम करती हैं. इन सब कामों से पर्यावरण पर काफी कम असर पड़ता है. लेकिन जब प्राकृतिक संसाधन कम होने लगते हैं, तो इन कामों को करना मुश्किल हो जाता है. ये संसाधन महिलाओं के लिए काफी मायने रखते हैं. ऐसे में महिलाएं भी इन प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं.
बोगोटा में एंडीज विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और भूगोलविद डायना ओजेडा कहती हैं, "महिलाओं को हाशिए पर धकेल दिया गया है. इसलिए, वे खुद को संगठित करने का काम कर रही हैं. अगर वे ऐसा नहीं करेंगी, तो उनके लिए जिंदगी जीना मुश्किल हो जाएगा."
मैंग्रोव बचाना मतलब जिंदगी बचाना
महिलाएं कई पीढ़ियों से पियांगुआ को पकड़ती रही हैं. ऐसे में उनका भविष्य पारिस्थितिकी तंत्र के भविष्य के साथ जुड़ा हुआ है. इसलिए, बिल्डिंग ड्रीम्स समूह से जुड़ी महिलाएं पारिस्थितिकी तंत्र और खुद को, दोनों को बचाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं.
2020 के बाद से, मोंटानो और अलग-अलग संगठनों की करीब 100 अन्य महिलाओं ने कटाई से प्रभावित 18 हेक्टेयर मैंग्रोव को फिर से हरा-भरा बना दिया है. वे हर हफ्ते मैंग्रोव को मापने और उनकी निगरानी करने के लिए डोंगी में निकलती हैं.
कोलंबिया में वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर के समुद्री कार्यक्रम की अधिकारी स्टेला गोमेज का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं पियांगुआ पकड़ने का काम करके आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन रही हैं.
गोमेज कहती हैं, "मैंग्रोव के दलदल की सुरक्षा का सीधा असर उनके परिवार के भोजन पर पड़ता है. ये न सिर्फ उनके जीवन-यापन का साधन हैं बल्कि कार्बन को सोखने और जैव विविधता के आकर्षण के केंद्र भी हैं. साथ ही, ये जंगल समुद्री तूफानों से तट पर रहने वाले लोगों की सुरक्षा भी करते हैं."
दूषित पानी
पियांगुएरा न सिर्फ पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, बल्कि और भी कई मुद्दों के लिए संघर्ष कर रही हैं. प्रशांत महासागर के तट पर बसे कोलंबिया के इस इलाके में कोई सड़क नहीं है. यहां आने-जाने का एकमात्र साधन नदियां हैं.
नदियों के किनारे पर लकड़ी के पारंपरिक घर बने हैं. कुछ घर मोटरबोट्स और डोंगी पर भी बने हुए हैं. ये डोंगी और मोटरबोट्स माल और लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचाते हैं. जब ये चलते हैं, तो पानी के ऊपर और नीचे दोनों जगह हलचल होती है.
यह दृश्य देखने में जितना अच्छा लगता है उतना ही समुदाय के लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है क्योंकि इस इलाके में खनन की वजह से लोगों को स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है.
पश्चिमी तट पर स्थित शहर टिम्बिकी में 18वीं शताब्दी के अंत से अब तक सोने का खनन होता आ रहा है. पिछले 20 सालों से यहां मशीन के जरिए अवैध तरीके से खनन हो रहा है. यह मशीन पेड़ों को काट देता है और तट के किनारे जमे गाद को भी हटा देता है.
वहीं, सोने के खनन में इस्तेमाल होने वाले रसायनों ने पानी और मिट्टी को दूषित कर दिया है. अवैध खनन करने वाले लोगों द्वारा नदियों और जलमार्गों में फेंके गए तेल, ईंधन, साइनाइड, और पारे की वजह से नदियों की वनस्पतियां, मछलियां, और क्रस्टेशियाई मर रहे हैं.
इस क्षेत्र की अधिकांश महिलाओं की तरह, लूज नेरी फ्लोरेज खाना बनाने को लेकर काफी प्रसिद्ध हैं. अपने परिवार को भोजन कराने की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही है. वह हर दिन सुबह-सुबह उठकर अपने किचन गार्डन में पारंपरिक क्यारियों पर उगाई गई केले और जड़ी-बूटियों की मदद से काफी स्वादिष्ट मछली पकाती हैं.
हालांकि, पानी के दूषित हो जाने के बाद ऐसी महिलाओं के लिए परिवार की देखभाल करना मुश्किल हो गया है. जो जलमार्ग कभी समुदाय के लिए जीवनदायिनी थे, अब जहर के समान हो गए हैं.
फ्लोरेज कहती हैं, "जब 2010 में अवैध खनन शुरू हुआ था, तब काफी ज्यादा महिलाएं बीमार पड़ी थीं. बच्चों में डायरिया और कई तरह के इंफेक्शन होने लगे. नदी पूरी तरह गंदी हो गई थीं."
महिलाओं का कहना है कि इन दिनों उन्हें पीने के साफ पानी की तलाश में दूर-दूर तक जाना पड़ता है. और यह सब कोका के बागानों से निकलने वाले रसायन से दूषित है. 2019 में, कोलम्बियाई ड्रग ऑब्जर्वेटरी ने बताया कि टिम्बिकी में लगभग 1,464 हेक्टेयर में कोका उगाया जा रहा था. इसमें ज्यादातर अवैध थे.
लगातार आय से आत्मनिर्भर होती हैं महिलाएं
पर्यावरण में होने वाले नुकसान का सीधा असर मछली पकड़ने और पारंपरिक तरीके से खेती करने जैसे कामों पर पड़ता है. लोग गरीबी से बचने के लिए कोका के उत्पादन की ओर आकर्षित होते हैं. इस वजह से प्राकृतिक संसाधन कम हो रहे हैं.
फ्लोरेज बताती हैं, "यही वजह है कि स्थानीय महिलाओं के नेतृत्व वाले समूह की आर्थिक रणनीतियां इतनी महत्वपूर्ण हैं." फ्लोरेज ‘एल सेबोलाल' संगठन की अध्यक्ष हैं. इस संगठन में 13 महिलाएं और चार पुरुष शामिल हैं. ये लोग संकीर्ण-मुंह वाली पारंपरिक टोकरियों का इस्तेमाल करके नदी से झींगा पकड़ते हैं. साथ ही, हाथ से अलग-अलग सामान बनाने के लिए कैलाश के पेड़ों सहित अलग-अलग पौधों की खेती करते हैं.
वह कहती हैं, "कोका उगाने के लिए पेड़ों को काटने के बजाय, हम अपने पौधे लगाकर और झींगा पकड़कर पैसे कमाने के तरीके को बढ़ावा देते हैं. इससे पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान भी नहीं होता है."
इस पहल से महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है. साथ ही, उन ताकतों का विरोध करने की हिम्मत भी मिलती है जो न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि महिलाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं और उनका शोषण करते हैं.
चियांगुआ फाउंडेशन भी महिलाओं के नेतृत्व वाला संगठन है. यह संगठन पिछले 26 सालों से इस इलाके में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहा है. संगठन पौधों के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र के मूल पौधे ‘पापा चाइना' से आटे का उत्पादन किया जा सके. साथ ही, जड़ी-बूटियों की खेती भी कर रहा है, ताकि इसका इस्तेमाल भोजन, सौदर्य प्रसाधन, और इलाज के लिए किया जा सके.
चियांगुआ फाउंडेशन की कोऑर्डिनेटर मर्लिन कैसेडो कहती हैं, "लिंग की वजह से होने वाली हिंसा की एक वजह आर्थिक निर्भरता है जो महिलाओं की पुरुषों पर होती है. इसलिए, उत्पादन से जुड़े परियोजनाओं को लागू करते समय, महिलाएं कह सकती हैं कि मैं भी पैसे कमा सकती हूं और मैं इस तरह की चीजें नहीं बर्दाश्त कर सकती." (dw.com)