अंतरराष्ट्रीय
नई दिल्ली, 16 अगस्त | काबुल में रूसी दूतावास ने कहा है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी चार कारों और नकदी से भरा एक हेलीकॉप्टर लेकर देश से भाग गए हैं और उन्हें कुछ पैसे वहीं पर छोड़ने पड़े, क्योंकि यह फिट नहीं हो रहे थे। आरआईए समाचार एजेंसी ने रूसी दूतावास के हवाले से यह जानकारी दी।
काबुल स्थित रूसी दूतावास में प्रवक्ता निकिता इशचेंको ने आरआईए के हवाले से कहा, चार कारें पैसे से भरी थीं। उन्होंने पैसे के दूसरे हिस्से को हेलीकॉप्टर में भरने की कोशिश की, लेकिन यह सब फिट नहीं हो सका। इसलिए उनमें से कुछ पैसा तो टरमैक पर पड़ा रह गया था।
अल जजीरा ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि निकिता इशचेंको ने अपनी जानकारी के स्रोत के रूप में गवाहों का हवाला देते हुए एक वैश्विक न्यूज वायर पर अपनी टिप्पणियों की पुष्टि की है।
अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी ने एक ट्वीट में, गनी और उनके सहयोगियों के लिए एक स्पष्ट संदर्भ में कहा कि उन्होंने हमारे हाथों को हमारी पीठ के पीछे बांध दिया और मातृभूमि को बेच दिया, अमीर आदमी और उसके गिरोह को., धिक्कार है।
अफगानिस्तान के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय सुलह के लिए उच्च परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक वीडियो क्लिप में कहा है कि गनी ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है।
उन्होंने कहा कि गनी ने अफगानिस्तान के लोगों को संकट और दुख में छोड़ दिया है और उन्हें राष्ट्र द्वारा आंका जाएगा।
वीओए ने बताया कि गनी, अपने उपाध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ, रविवार को देश से बाहर चले गए और इस प्रकार से उन्होंने तालिबान विद्रोहियों के लिए अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने के लिए मंच तैयार कर दिया है। 20 साल पहले अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य आक्रमण ने उन्हें हटा दिया, जिसके बाद उन्हें एक बार फिर से सत्ता में आने का मौका मिल गया है।
काबुल में गनी या उसके संकटग्रस्त प्रशासन की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई है। शनिवार को एक रिकॉर्ड किए गए संदेश में, गनी ने राष्ट्र को बताया था कि वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों दिग्गजों के साथ उस स्थिति पर परामर्श कर रहे हैं।
अफगान उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे गनी और अन्य लोगों के साथ ही देश छोड़कर निकल चुके हैं, ने एक ट्वीट में तालिबान के सामने नहीं झुकने की कसम खाई, लेकिन उन्होंने संदेश में उनके देश छोड़ने की खबरों का जवाब नहीं दिया।
(आईएएनएस)
पणजी, 16 अगस्त | विपक्षी गोवा कांग्रेस ने सोमवार को मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत से राज्य के एकमात्र हवाई अड्डे - डाबोलिम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक आरटी-पीसीआर परीक्षण केंद्र स्थापित करने का आग्रह किया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस तरह की सुविधा के अभाव में अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस को हवाईअड्डे से उड़ानें बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है। गोवा कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर ने सोमवार को मीडिया से कहा, "हम नहीं चाहते कि गोवा के लोग अपनी नौकरी या अपना पैसा खोएं और इसलिए हम गोवा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निदेशक और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण से आरटी-पीसीआर परीक्षण सुविधा को अधिमानत: उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को तुरंत पूरा करने की अपील करते हैं। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि मौजूदा गोवा सरकार के पास कीमतों को नियंत्रित करने और यात्रियों को उनकी सनक और शौक के लिए बंधक बनाने का विशेष एकाधिकार का उपयोग न हो। इस कदम से हजारों गोवावासियों और विदेश यात्रा करने वाले लोगों को राहत मिलेगी।"
चोडनकर ने कहा, "इस स्थिति के कारण यात्रियों को अपने पहले से बुक किए गए टिकटों को रद्द करने और मुंबई के माध्यम से नए सिरे से बुकिग करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जहां हवाई अड्डे पर आरटी-पीसीआर सुविधा उपलब्ध है। इससे वित्तीय नुकसान होता है क्योंकि एयरलाइंस द्वारा रिफंड नहीं किया जा रहा है। क्रेडिट देना और यहां तक कि अगर धनवापसी की जाती है, तो इस प्रक्रिया में एक बड़ी राशि खो जाती है। साथ ही उड़ान टिकट की खरीद - घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों उड़ानों के लिए, अंतिम समय में नागरिकों को भारी लागत आएगी क्योंकि कीमतें आसमान छू रही हैं।"(आईएएनएस)
बीजिंग, 16 अगस्त | 20 साल के अमेरिकी सैन्य कब्जे के बाद तालिबान बलों ने काबुल पर कब्जा कर लिया। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका किसी देश में उद्धारकर्ता के रूप में उतरा और गैर-जिम्मेदाराना रूप से चला गया। ऐसा तब भी हुआ जब 1975 में गृह युद्ध से देश को तबाह करने के बाद अमेरिका ने वियतनाम छोड़ दिया, और ऐसा तब भी हुआ जब 2003 में अमेरिका ने इराक पर आक्रमण किया और इसे एक अशासकीय स्थान में बदल दिया।
खैर, अफगानिस्तान से अमेरिका की जल्दबाजी और गैर-जिम्मेदाराना वापसी यह दर्शाती है कि अमेरिका अफगानिस्तान में शुरू हुए दो दशक लंबे युद्ध को हार चुका है। यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अफगानिस्तान में अमेरिका कई मायनों में विफल रहा है।
सबसे पहला, यह एक राजनीतिक विफलता है। इसकी शुरूआत गैर-जिम्मेदाराना निर्णय लेने से हुई। तालिबान द्वारा पनाह दिए गए अल-कायदा को बाहर निकालने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया, लेकिन अमेरिका ने देश के पुनर्निर्माण के अपने वादे को कभी पूरा नहीं किया। पहले तो इसकी कोई योजना नहीं थी, इसने रास्ते में ही अपनी योजनाएँ बदल दीं और जो रह गए उनके लिए बिना योजना के झुक गया।
दूसरा, यह मानवीय विफलता है। अफगानिस्तान युद्ध ने लाखों लोगों की जान ली और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने मानवीय जीवन को चकनाचूर कर दिया। युद्ध की लागत अभी भी स्पष्ट नहीं है।
ब्राउन यूनिवर्सिटी में कॉस्ट ऑफ वॉर प्रोजेक्ट के अनुसार, इस साल अप्रैल तक युद्ध ने अफगानिस्तान में लगभग 1,74,000 लोगों को मार डाला था (जिसमें 47,245 आम नागरिक,
66,000 से 69,000 अफगान सेना और पुलिस और 51,000 से अधिक तालिबान लड़ाके शामिल थे), यानी कि हर दिन 23 जिंदगियां इस धरती से मिट जाती थी।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 26 लाख अफगान शरणार्थी हैं, जिनमें से ज्यादातर पाकिस्तान और ईरान में हैं, और अन्य 40 लाख देश के भीतर आंतरिक रूप से विस्थापित हैं। इस युद्ध की हिंसा भी भय पैदा करती है। लाखों लोगों के व्यवसाय बंद हो गए और लोगों ने खरीदारी करना बंद कर दिया है और अब अफगान लोग नकदी निकालने के लिए बैंकों की ओर दौड़ रहे हैं। देश आर्थिक पतन के कगार पर खड़ा है।
तीसरा, यह एक रणनीतिक विफलता है। 1950 के बाद से युद्धों में सभी अमेरिकी विफलताएं रणनीतिक गलतियां हैं। दुखद और चौंकाने वाली बात यह है कि कोरियाई युद्ध, वियतनाम युद्ध से लेकर इराक पर आक्रमण और अफगान कब्जे तक, अमेरिका हर बार सीखने में विफल रहा है।
देखा जाए तो हथियारों का सहारा लेकर अमेरिका जितना हल करता है उससे कहीं ज्यादा समस्याएं पैदा करता है । दुनिया को इस बात की कोई कदर नहीं है कि अमेरिका अपना खून बहाकर उनकी समस्याओं को उलझा रहा है।
चौथा, यह एक नैतिक विफलता है। अमेरिका अपनी मदद करके किसी की मदद नहीं कर रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प की तुलना में जो बाइडेन अधिक अमेरिका प्रथम की विचारधारा बढ़ाने वाले राष्ट्रपति हैं, इस अर्थ में कि वे अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी के बारे में बहुत कुछ कहते हैं लेकिन एक ही समय में बहुत कम सहन करते हैं। जॉर्ज बुश ने युद्ध शुरू किया, बराक ओबामा ने शांति के बारे में सोचा, लेकिन वे अभी भी मानते थे कि अमेरिका अंत तक जिम्मेदार है।
डोनाल्ड ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अफगानिस्तान को कुचलने के बारे में जोर से बात की। लेकिन कम से कम ट्रम्प अमेरिका प्रथम की विचारधारा को ईमानदारी से बताते थे, लेकिन जो बाइडेन स्वार्थ और ईमानदार दोनों तरह से इसे प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने अफगान लोगों को दर्द से कराहने के लिए छोड़ दिया है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 16 अगस्त | 15 अगस्त को अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी अफगानिस्तान छोड़कर विदेश चले गए। उस दिन अफगान तालिबान ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा कि सशस्त्र बलों ने उन्हें राजधानी काबुल में प्रवेश करने की अनुमति दी। हाल में ताबिलान ने अफगान राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है।
अफगान की हालिया परिस्थिति के मद्देनजर विभिन्न पक्षों ने चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने तालिबान और अन्य विभिन्न पक्षों से संयम रखने का आह्ववान किया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 16 अगस्त की सुबह हालिया परिस्थिति पर आपात बैठक बुलाएगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेस बैठक में हिस्सा लेंगे और रिपोर्ट भी देंगे।
साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता ने बयान जारी कर तालिबान और अन्य पक्षों से पूरी तरह संयम रखकर लोगों के जीवन की रक्षा करने और मानवीय पहलु पर ध्यान देने की अपील की। वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अफगान समस्या के शांतिपूर्ण समाधान को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा।
वहीं नाटो के महासचिव ने कहा कि नाटो काबुल हवाई अड्डे को संचालित करने में मदद दे रहा है, ताकि वहां से विदेशी नागरिकों को हटाने के मिशन का समन्वय किया जा सके।
यूरोपीय संघ के नेता ने कहा कि अफगान त्रासदी न केवल अमेरिका की हार है, बल्कि इससे लोगों को अफगान समस्या पर और अधिक सबक लेना चाहिए।
उधर अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने सोशल मीडिया पर वीडियो भाषण देकर कहा कि वे तालिबान के साथ अफगान समस्या के शांतिपूर्ण समाधान करने को तैयार हैं। करजई ने कहा कि चूंकि गनी और अन्य अधिकारियों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है। देश को डांवाडोल स्थिति में जाने से बचाने और आम लोगों की मुसीबतों को दूर करने के लिए वे जातीय सुलह कमेटी के अध्यक्ष अब्दुल्लाह आदि के साथ एक समन्वय कमेटी का गठन करेंगे और सत्ता स्थानांतरण संबंधी कार्य की जिम्मेदारी उठाएंगे।
उधर, अफगानिस्तान के प्रथम उप राष्ट्रपति अमरुल्लाह सलाह ने सोशल मीडिया पर कहा कि किसी भी स्थिति में वे तालिबान के समक्ष समर्पण नहीं करेंगे।
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि रूसी विदेश मंत्रालय काबुल में अपने दूतावास के कर्मचारियों को नहीं हटाएगा। तालिबान रूसी दूतावास की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, साथ ही अन्य देशों के राजनयिक मिशनों की सुरक्षा की गारंटी भी देगा। रूसी राष्ट्रपति की अफगान समस्या के विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि रूस अफगान अंतरिम सरकार से सहयोग करने को तैयार है।
अमेरिकी प्रतिनिधि सदन के सांसद ने कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति पर अमेरिका सरकार को अनिवार्य कर्तव्य निभाना चाहिए। विश्व इससे प्रभावित होगा। वहीं ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने 15 अगस्त को मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाकर अफगान परिस्थिति पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों को मिलकर प्रयास करने चाहिए, ताकि अफगानिस्तान की नयी सरकार यह जान सके कि कोई नहीं चाहता कि अफगानिस्तान आतंकवादियों का अड्डा बने। वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा कि अफगान समस्या का राजनीतिक समाधान करने के लिए पाकिस्तान और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का रुख एक जैसा है।
मध्य एशिया के कई देशों, तुर्की, डेनमार्क, नॉर्वे आदि देशों ने भी अफगान सवाल को लेकर अपना रुख प्रकट किया है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 16 अगस्त | वर्ष 2001 में अमेरिका ने आतंकवादी संगठन को खत्म करने के उद्देश्य से अफगानिस्तान में प्रवेश किया। इसके बाद अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिति लंबे समय तक अस्थिर रही। जो बाइडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद इस मुसीबत को छोड़ने के लिये अमेरिकी सेना जल्द से अफगानिस्तान से हट गयी, जिसने अफगान जनता के लिये एक बड़ा सुरक्षा जोखिम पैदा किया। हाल ही में अफगानिस्तान की स्थिति निरंतर रूप से बिगड़ रही है।
हालांकि 18 जुलाई को अफगान सरकार ने तालिबान के साथ कतर की राजधानी दोहा में शांति वार्ता की और दोनों ने उच्च स्तरीय शांति वार्ता करने और वार्ता की प्रक्रिया को तेज करने पर सहमति प्राप्त की, लेकिन वार्ता अफगान स्थिति को शिथिल करने में असफल रही। अफगान सरकारी सेना और तालिबान के बीच पश्चिम व दक्षिण अफगानिस्तान के तीन बड़े शहरों में भीषण लड़ाई हुई। 15 अगस्त तक तालिबान ने पूरे देश के अधिकांश शहरों का कब्जा कर लिया है।
गौरतलब है कि अफगान युद्ध का समय अमेरिका के इतिहास में सबसे लंबा है। इस युद्ध में न सिर्फ अमेरिका ने बहुत ज्यादा खर्च किया, बल्कि अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिति भी निरंतर रूप से अस्थिर बनी। अमेरिका के हस्तक्षेप से अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति में स्पष्ट रूप से सुधार नहीं हुआ। हिंसक घटनाएं बार-बार सामने आयीं, जिसमें कई बेगुनाह अफगान नागरिक मारे गए।
अफगानिस्तान स्थित संयुक्त राष्ट्र सहायता दल द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में कुल 8,820 अफगान बेगुनाह हिंसक संघर्षों में मारे गये। केवल वर्ष 2021 की पहली छमाही में अफगान आम लोगों में मृतकों की संख्या बढ़कर 1,659 तक पहुंच गयी जबकि अन्य 3,254 लोग घायल हुए हैं। हताहतों की संख्या गत वर्ष की इसी अवधि से 47 प्रतिशत अधिक रही।
साथ ही संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने भी यह कहा था कि अफगानिस्तान में 30 लाख बच्चों समेत 60 लाख लोगों को मानवीय सहायता की जरूरत है।(आईएएनएस)
तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ ही देश में महिला अधिकारों को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है. पिछले 20 सालों में जो तरक्की महिलाओं ने हासिल की है वह हाथों से निकलती दिख रही
अफगानिस्तान में कई लोगों को डर है कि तालिबान महिलाओं को मिले अधिकारों को वापस ले लेगा और जातीय अल्पसंख्यक, पत्रकारों और एनजीओ को उनके काम से रोकेगा. अफगानों की एक पूरी पीढ़ी एक आधुनिक, लोकतांत्रिक देश के निर्माण की उम्मीदों पर पली-बढ़ी. युवाओं ने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे लेकिन तालिबान की वापसी जितनी तेजी हुई है वह सपने मुरझा रहे हैं.
रविवार को जब तालिबान काबुल में दाखिल हुआ तो सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से वायरल हुई जिसमें ब्यूटी पार्लर का मालिक महिलाओं के पोस्टर को रंग से छिपा रहा था. युवा जो जींस और शर्ट पहने हुए थे वे अपने घरों की ओर भाग पड़े ताकि वे पारंपरिक सलवार कमीज पोशाक पहन सके.
युवतियों को भविष्य की चिंता
जिन शहरों में तालिबान ने कब्जा कर लिया है वहां सरकारी कार्यालय, दुकानें, बाजार और स्कूल बंद हैं. शहर के लोग ज्यादातर घर के भीतर ही रहना सुरक्षित मान रहे हैं. वहीं काबुल में लोग डर की वजह से शहर से भाग रहे हैं या फिर विदेश जाने के लिए विमान में सवार होने की कोशिश में लगे हुए हैं.
पश्चिमी शहर हेरात में 25 वर्षीय विश्वविद्यालय की छात्रा जो कि एक स्थानीय एनजीओ के लिए काम करती हैं वह बताती हैं कि लड़ाई के कारण वह घर से बाहर नहीं निकल पाई है. पिछले हफ्ते हेरात तालिबान के कब्जे में चला गया था. वह बताती है कि महिलाएं अब सड़क पर कम निकल रही हैं और यहां तक की महिला डॉक्टर भी घर पर रहना चाह रही हैं. उन्होंने हेरात से फोन पर बताया, "मैं तालिबान के लड़ाकों का सामना नहीं करना चाहती." वह तालिबान के डर के कारण अपना नाम नहीं बताना चाहती. वह कहती है, "उनके बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है. महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ तालिबान के रुख को कोई नहीं बदल सकता है, वे अभी भी महिलाओं को घर पर रखना चाहते हैं."
उन्होंने इस साल हेरात विश्वविद्यालय में मास्टर डिग्री में दाखिला लेने की योजना बनाई थी, इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों में आधे से अधिक लड़कियां हैं. वह कहती हैं, "मुझे नहीं लगता है कि मैं बुर्का पहनने के लिए तैयार हो पाऊंगी."
तालिबान पर भरोसा बहुत कम
तालिबान ने अफगानों को आश्वस्त करने के उद्देश्य से बयान जारी कर कहा है सरकार या उसकी सुरक्षा सेवाओं के लिए काम करने वालों पर कोई बदला लेने वाला हमला नहीं होगा. साथ ही उसने कहा कि ''जीवन, संपत्ति और प्रतिष्ठा'' का सम्मान किया जाएगा. तालिबान ने अपने दौर में इस्लामी कानून की सख्त व्याख्या लागू की थी, जिसमें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारना और पत्थर मारना जैसी सजाएं देना भी शामिल था.
2001 में अमेरिका के हमले के बाद वहां महिलाओं पर अत्याचार बंद हो पाया था. अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना की वापसी के साथ ही तालिबान ने तेजी से क्षेत्रीय बढ़त हासिल की और अब पूरे देश पर तालिबान का कब्जा है. तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे. उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया और काम नहीं करने दिया जाता था. महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं.
20 साल की आयु वर्ग की युवतियां तालिबान के शासन के बिना बड़ी हुईं, अफगानिस्तान में इस दौरान महिलाओं ने कई अहम तरक्की हासिल की. लड़कियां स्कूल जाती हैं, महिलाएं सांसद बन चुकी हैं और वे कारोबार में भी हैं. वे यह भी जानती हैं कि इन लाभों का उलट जाना पुरुष-प्रधान और रूढ़िवादी समाज में आसान है.
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि तालिबान उन पत्रकारों और खासकर महिला पत्रकारों को धमकी देते हैं और हिरासत में लेते हैं जो उनकी आलोचना करते हैं. (dw.com)
एए/सीके (एपी)
अफगानिस्तान में अभी भी कई भारतीय नागरिक फंसे हुए हैं. काबुल पर भी तालिबान का कब्जा हो जाने के बाद अब यह साफ नहीं हो पा रहा है कि उनकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी और उन्हें वहां से कैसे निकाला जाएगा.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
15 अगस्त को ही एयर इंडिया के एक विमान से 129 भारतीयों को काबुल से नई दिल्ली लाया गया. आज भी एक और विमान का काबुल से आना निर्धारित था लेकिन अब काबुल का पूरा हवाई क्षेत्र ही बंद कर दिया गया है. ऐसे में भारत समेत कई देशों में उनके नागरिकों को अफगानिस्तान से निकाल लेने को लेकर चिंता बढ़ गई है.
अनुमान है कि वहां अभी भी कम से कम 1000 भारतीय नागरिक हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा है कि करीब 200 सिख अफगानिस्तान में एक गुरुद्वारे में फंसे हुए हैं.
सैकड़ों भारतीय फंसे
सिंह ने ट्वीट करके विदेश मंत्रालय से अनुरोध किया है कि उन सब के साथ साथ वहां फंसे सभी भारतीयों को भारत लाने का प्रबंध किया जाए. विदेश मंत्रालय ने इस विषय पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है.
काबुल का हवाई क्षेत्र बंद होने से पहले काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अराजक स्थिति हो चुकी थी. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें हवाई अड्डे पर खड़े एक विमान में चढ़ने के लिए लोगों में होड़ लगी हुई है.
हताशा भरी इस स्थिति के बीच काबुल हवाई अड्डे पर कम से कम पांच लोगों के मारे जाने की खबर भी आई. एक चश्मदीद गवाह ने बताया कि उसने सैन्यकर्मियों को पांच लाशों को एक गाड़ी के पास ले जाते हुए देखा.
सरकार की आलोचना
यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इन लोगों की मौत गोली चलने से हुई या भगदड़ से. इसके पहले अमेरिकी सैनिकों ने हवाई अड्डे को नियंत्रण में लेने के बाद वहां जमा भीड़ को हटाने के लिए हवा में गोली चलाई थी.
इस बीच भारत में विपक्षी पार्टियों ने इस परिस्थिति से निपटने के लिए कोई पुख्ता योजना ना बनाने के लिए भारत सरकार की आलोचना की. कांग्रेस पार्टी ने एक संदेश में कहा कि सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों, राजदूतों को वापस लाने के बारे में कोई योजना ना बनाना "सरकार की जिम्मेदारी में सख्त कोताही का ज्वलंत उदाहरण है."
पार्टी ने मांग की है कि सरकार यह बताए कि सभी को कैसे सुरक्षित वापस लाया जाएगा और "अफगानिस्तान के साथ हमारी भविष्य की रणनीति क्या होगी." (dw.com)
मलेशिया के प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद देश की मुद्रा गिर कर एक साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई. समीक्षकों ने कहा है कि अगर राजनीतिक अनिश्चितता लंबी चली तो देश के वित्तीय बाजार पर और दबाव बढ़ेगा.
प्रधानमंत्री मुहिउद्दीन यासीन ने संसद में विश्वास मत हारने के बाद इस्तीफा दे दिया. हालांकि देश के राजा ने कहा है कि अगला प्रधानमंत्री नियुक्त हो जाने तक यासीन ही कार्यकारी प्रधानमंत्री रहेंगे. अभी तक मुहिउद्दीन का कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी सामने नहीं आया है.
16 अगस्त को जब उनके मंत्रिमंडल ने भी इस्तीफा दे दिया तब निवेशकों को चिंता होने लगी कि अगर राजनीतिक गतिरोध लंबा चला तो देश की ऋण लेने की राष्ट्रीय सीमा को बढ़ाने के काम में देर हो जाएगी. इससे कोविड-19 महामारी के बीच सरकारी खर्च बढ़ाने की प्रक्रिया को भी धक्का लगेगा.
आर्थिक गतिहीनता
मलेशिया की मुद्रा रिंगिट करीब 0.1 प्रतिशत गिर कर 4.2430 प्रति डॉलर पर पहुंच गई, जो जुलाई 2020 के बाद सबसे निचला स्तर है. शेयर बाजार में भी 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई. हांग कांग में वरिष्ठ अर्थशास्त्री त्रिन्ह गुयेन ने कहा, "मुद्दा यह है कि उनकी जगह कौन लेगा यह साफ नहीं है.
इससे अनिश्चितता बढ़ जाती है और उसकी वजह से और आर्थिक गतिहीनता आती है." उन्होंने यह भी कहा, "मौजूदा राजनीतिक संकट की वजह से मलेशिया का किसी और विकास के प्रवाह की ओर मुड़ना बहुत मुश्किल हो गया है. इसका मतलब है कि यह वियतनाम जैसे इस इलाके के दूसरे देशों के मुकाबले और पीछे हो गया है."
मुहिउद्दीन ने 17 महीने पहले जब से एक संकरे बहुमत के साथ सत्ता संभाली तब से उनका नेतृत्व संदिग्ध अवस्था में ही रहा है. निवेशकों का नजरिया इसलिए मायने रखता है क्योंकि मलेशिया के राष्ट्रीय ऋण का 40 प्रतिशत हिस्सा विदेशियों के पास ही है.
लुढ़कता बाजार
महामारी और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से आर्थिक नियोजन में देर हो रही है, कर सुधार की कोशिशें अटकी पड़ी हैं और विदेशी निवेश देश से बाहर जा रहा है. शेयर बाजार से लगातार पिछले 25 महीनों से पैसा बाहर जा रहा है. वो आस पास के दूसरे बाजारों के मुकाबले पिछड़ गया है.
इस साल मलेशिया का शेयर बाजार आठ प्रतिशत गिरा है जबकि इंडोनेशिया, थाईलैंड और सिंगापुर के बाजारों ने लगभग एक प्रतिशत, पांच प्रतिशत और 11 प्रतिशत की बढ़त हासिल की है.
सिटी समूह के समीक्षकों ने बताया, "स्थानीय मुद्रा की सम्पत्तियों और रिंगिट पर छोटी अवधि में अनिश्चितता छाई रहेगी." निवेशकों की प्राथमिकता है कि एक स्थिर नेतृत्व उभर कर आए, लेकिन अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि राजनीतिक संकट का अंत होगा कैसे.
नीतियां को संभालना जरूरी
देश के राजा अल-सुल्तान अब्दुल्ला ने कहा है कि इस समय चुनाव सबसे अच्छा विकल्प नहीं हैं, लेकिन इस समय ऐसा कोई उम्मीदवार भी नहीं है जिसके पास सत्ता हासिल करने लायक संसदीय आंकड़े हों.
सिंगापुर स्थित बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज में आसियान अर्थशास्त्री मोहम्मद फैज नगुथा कहते हैं, "मैक्रो स्तर पर हमें काफी उम्मीद है...लेकिन इस उम्मीद को बनाए रखने के लिए राजनीतिक स्थिति का समाधान जरूरी है."
उन्होंने यह भी कहा, "मेरे लिए जरूरी यह है कि एक सरकार चुनी जाए...सबसे बुरा तो तब होगा अगर इस स्थिति की वजह से मध्यम अवधि की कुछ नीतियां किनारे कर दी जाएं." (dw.com)
सीके/एए (रॉयटर्स)
हैती में शनिवार को आए भूकंप ने फिर सैकड़ों जानें ले लीं. ऐसा क्या है कि हैती में आने वाले भूकंप इतनी तबाही मचाते हैं?
हैती में शनिवार को आए भूकंप में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए. 11 साल पहले भी ऐसा ही एक भूकंप आया था जिसमें दसियों हजार लोग मारे गए थे. 2010 के उस भूकंप में एक लाख इमारतें क्षतिग्रस्त हुई थीं.
हैती में ऐसा क्या है कि वहां आने वाले भूकंप इतनी तबाही मचाते हैं. पेश है, एक पड़ताल...
क्यों आते हैं हैती में इतने भूकंप?
पृथ्वी की अंदरूनी परत में एक टेक्टॉनिक प्लेट के ऊपर दूसरी रखी होती है. ये प्लेट हिलती डुलती या खिसकती रहती हैं और उसे ही भूकंप कहते हैं. हैती जहां है, वहां दो प्लेट एक दूसरे से मिलती हैं. नॉर्थ अमेरिकी प्लेट और कैरेबियाई प्लेट के सिरे के ठीक ऊपर हैती है.
हैती और डॉमिनिकन रिपब्किल के साझे द्वीप हिस्पैन्योला के ठीक नीचे कई दरारें हैं. हर दरार का व्यवहार अलग होता है. अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के शोधकर्ता रिच ब्रिग्स बताते हैं, "हिस्पैन्योला के ठीक नीचे दो प्लेट एक दूसरे से टकराती हुई गुजरती हैं. यह वैसा ही है जैसे शीशे के स्लाइडिंग डोर की ट्रैक में पत्थर फंस जाए. फिर उसका आना जाना ऊबड़ खाबड़ हो जाएगा.”
अब भूकंप क्यों आया?
शनिवार को जो भूकंप आया था, उसकी तीव्रता 7.2 आंकी गई थी. माना जा रहा है कि यह एनरिकीलो-प्लैन्टेन दरार के करीब हुई हलचल की वजह से आया. अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण संस्थान (USGS) के मुताबिक यह दरार हैरती के दक्षिण-पश्चिम में टिबरोन प्रायद्वीप के नीचे से गुजरती है.
इसी जगह 2010 का भयानक भूकंप आया था. और अनुमान है कि 1751 और 1860 के बीच कम से कम तीन भूकंप इसी दरार के कारण आए थे. उनमें से दो ऐसे थे जिन्होंने राजदानी पोर्ट ओ प्राँ को तहस नहस कर दिया था.
इतने विनाशकारी क्यों होते हैं हैती के भूकंप?
इसकी कई वजह हैं. सबसे पहली बात तो यह कि हैती के नीचे सक्रियता बहुत ज्यादा है. फिर वहां, आबादी का घनत्व भी काफी है. देश में एक करोड़ दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. वहां की इमारतों को चक्रवातीय तूफानों को झेलने लायक तो बनाया जाता है लेकिन वे भूकंप रोधी नहीं होतीं.
हैती की इमारतें कंक्रीट की बनाई जाती हैं जो तेज हवाओं को झेल सकती हैं लेकिन जब धरती हिलती है तो उनके गिरने का, उनके गिरने की वजह से विनाश का खतरा ज्यादा होता है.
2010 में भूकंप का केंद्र पोर्ट ओ प्राँ के नजदीक था और उसने भयानक तबाही मचाई थी. हैती की सरकार ने मरने वालों की संख्या तीन लाख बताई थी जबकि अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट में 46 हजार से 85 हजार के बीच लोगों के मरने की बात कही गई थी.
इनकॉरपोरेटेडे रीसर्च इंस्टिट्यूशंस फॉर सीस्मोलॉजी में जियोलॉजिस्ट वेंडी बोहोन कहती हैं, "एक बात हमें समझनी चाहिए कि कुदरती आपदा कुछ नहीं होती. यह एक कुदरती घटना है जिसे आपकी व्यवस्था संभाल नहीं पाती.”
क्या भविष्य में भी ऐसा होगा?
भूगर्भ विज्ञानी कहते हैं कि भूकंप का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. यूएसजीएस के गैविन हेज कहते हैं, "हम इतना जानते हैं कि ऐसा भूकंप अगली दरार में भी ऐसी ही हलचल पैदा कर सकता है. और ऐसी हलचल कम तैयार जगहों पर भारी तबाही मचा सकती है.”
हैती में भूकंप-रोधी इमारतों का निर्माण एक चुनौती है. पश्चिमी गोलार्ध के इस सबसे गरीब देश के पास इतने संसाधन भी नहीं हैं. अभी तो देश पिछले भूकंप की तबाही से भी नहीं उबरा है. 2016 के चक्रवात मैथ्यू ने भी हैती को काफी नुकसान पहुंचाया था. फिर पिछले महीने देश के राष्ट्रपति की हत्या हो गई, जिससे वहां राजनीतिक कोलाहल भी मचा है.
नॉर्दन इलिनोई यूनिवर्सिटी में मानवविज्ञानी प्रोफेसर मार्क शूलर कहते हैं, "हैती में तकनीकी ज्ञान है. प्रशिक्षित आर्किटेक्ट हैं. नगरयोजना बनाने वाले हैं. वहां समस्या नहीं है. समस्या है धन की और राजनीतिक इच्छाशक्ति की.” (dw.com)
वीके/सीके (एपी)
लुसाका, 16 अगस्त | जाम्बिया की पुलिस ने 12 अगस्त को हुए आम चुनाव के बाद देश के कुछ हिस्सों में भड़की हिंसा के बाद शांति की अपील की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस प्रवक्ता एस्तेर मवाता-काटोंगो ने कहा कि पुलिस ने एक उभरती हुई प्रवृत्ति देखी है, जहां दूसरों के द्वारा भावनाओं को नियंत्रित करने में विफल रहने और अपने उम्मीदवारों की जीत का जश्न मनाने वालों पर हमला करने के परिणामस्वरूप हिंसा भड़की है।
उन्होंने बयान में कहा, जैसा कि जनता के सदस्य विभिन्न स्तरों पर परिणाम प्राप्त करना या इंतजार करना जारी रखते हैं, हम उनसे शांत रखने और शांति भंग किए बिना जिम्मेदार और शांतिपूर्ण तरीके से अपने पसंदीदा उम्मीदवारों की जीत का जश्न मनाने की अपील करते हैं।
पुलिस प्रवक्ता ने कहा कि सत्तारूढ़ और सत्ताधारी दल के समर्थकों ने शनिवार को देश के उत्तरी हिस्सों में गोलीबारी की, जिसमें एक व्यक्ति को गोली लगी।
इस बीच इसी तरह की एक घटना देश की राजधानी लुसाका में हुई, जहां मुख्य विपक्षी यूनाइटेड पार्टी फॉर नेशनल डेवलपमेंट के समर्थकों पर सत्तारूढ़ दल के समर्थकों द्वारा हमला किया गया क्योंकि उन्होंने अपने संसदीय उम्मीदवार की जीत का जश्न मनाया।
पुलिस प्रवक्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग जिनके पास कानूनी रूप से आग्नेयास्त्र थे, वे राजनीतिक विवाद होने पर ऐसे आग्नेयास्त्रों का दुरुपयोग करना शुरू कर देते हैं
उसने तब से हिंसा को अंजाम देने वाले लोगों को चेतावनी दी है कि ऐसा न करने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
हम चुनावी प्रक्रिया के दौरान या बाद में सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसी हिंसा करने के इरादे से उन लोगों को चेतावनी देते हैं कि उन्हें गिरफ्तार करने और मुकदमा चलाने का जोखिम उठान होगा।
जाम्बिया में 12 अगस्त को आम चुनाव हुए, जिसमें भारी मतदान हुआ।
हालांकि, राष्ट्रपति परिणामों की घोषणा में देरी हुई है, जिससे चुनावी निकाय ने इसके लिए मतदाताओं के भारी मतदान और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की बड़ी संख्या को जिम्मेदार ठहराया है। (आईएएनएस)
लागोस, 16 अगस्त | नाइजीरियाई पुलिस ने पुष्टि की है कि सप्ताहांत में पठारी राज्य में 22 यात्रियों की हत्या के मामले में 20 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने पुलिस मुख्यालय के प्रवक्ता फैं्र क एमबीए के हवाले से रविवार को समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने कहा कि पुलिस ने मौके पर मूल्यांकन करने और समुदाय की रक्षा के लिए प्रतिक्रिया बढ़ाने और यात्रियों पर शनिवार के हमले के बाद हमलावरों के पीछे भागने के लिए एक हस्तक्षेप दल को पठार राज्य में तैनात किया है।
एमबीए ने कहा, "इस बीच, हमले के सिलसिले में 20 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि 33 पीड़ितों को बचा लिया गया है।"
शनिवार सुबह मुस्लिम यात्रियों को ले जा रही पांच बसों के काफिले पर हथियारबंद लोगों ने हमला किया, जिसमें कम से कम 22 लोगों की मौत हो गई और 14 घायल हो गए।
एमबीए ने कहा कि हमलावरों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने के लिए पुलिस सेना, अन्य सुरक्षा बलों और राज्य सरकार के साथ काम कर रही है।
उन्होंने स्थानीय निवासियों से उपयोगी जानकारी प्रदान करके सुरक्षा बलों का समर्थन करने का अनुरोध किया जिससे अन्य हमलावरों की गिरफ्तारी हो सके और आगे के हमलों को रोका जा सके।
नाइजीरिया ने आतंकवाद, दस्यु और आदिवासी संघर्षों सहित सुरक्षा चुनौतियों का सामना किया है, जिसके कारण हर साल कई मौतें और अपहरण हुए हैं।
पठार राज्य नाइजीरिया के मध्य बेल्ट में स्थित है जहां मुस्लिम बहुल उत्तर और ईसाई बहुल दक्षिण मिलते हैं। (आईएएनएस)
क्वालालंपुर, 16 अगस्त | एक मंत्री ने सोमवार को कहा कि प्रधान मंत्री मुहिद्दीन यासीन के नेतृत्व में मलेशियाई कैबिनेट ने देश के राजा सुल्तान अब्दुल्ला सुल्तान अहमद शाह को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार मंत्री खैरी जमालुद्दीन ने सोशल मीडिया पर एक संदेश में पहांग के राजा अब्दुल्ला का जिक्र करते हुए कहा कि कैबिनेट ने अगोंग को अपना इस्तीफा सौंप दिया है।
विदेश मंत्री हिशामुद्दीन हुसैन ने भी सोशल मीडिया पर कहा, "हमारे प्यारे देश और उसके लोगों की सेवा करना एक सम्मान और सौभाग्य की बात है।"
मुहीद्दीन पिछले साल मार्च में प्रधान मंत्री बनने के बाद से कम बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हैं।
सत्तारूढ़ मुहिद्दीन गठबंधन के एक घटक, यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गनाइजेशन (यूएमएनओ) के अध्यक्ष अहमद जाहिद हमीदी ने कई यूएमएनओ सांसदों के साथ प्रधान मंत्री के लिए यूएमएनओ के समर्थन को वापस लेने की घोषणा के बाद उन्हें विश्वास के संभावित वोट में हार का सामना करना पड़ रहा था।
मुहिद्दीन ने 13 अगस्त को कई सुधार वादों और पहलों के साथ अपनी सरकार का समर्थन करने के लिए पार्टी लाइनों के पार संसद सदस्यों (सांसदों) से अपील की, लेकिन उनके प्रस्ताव को यूएमएनओ और विपक्षी दलों ने खारिज कर दिया। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 16 अगस्त | नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के निदेशक फ्रांसिस कोलिन्स ने कहा कि आने वाले दिनों में यूएस कोविड मामले एक दिन में दो लाख से अधिक हो सकते हैं क्योंकि डेल्टा वेरिएंट द्वारा संचालित वायरस का नवीनतम उछाल बहुत तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने रविवार को फॉक्स न्यूज पर कोलिन्स के हवाले से कहा, "मुझे आश्चर्य होगा अगर हम अगले कुछ हफ्तों में एक दिन में 200,000 मामलों को पार नहीं करते हैं, और यह दिल दहला देने वाला है क्योंकि हमने कभी नहीं सोचा था कि हम फिर से उस स्थान पर वापस आएंगे। वह जनवरी-फरवरी था, अब अगस्त में ये नहीं होना चाहिए था।"
लेकिन यहाँ हम डेल्टा वेरिएंट के साथ हैं, जो बहुत संक्रामक है, और यह दिल दहला देने वाली स्थिति है।
कोलिन्स ने कहा, "हम संकट में हैं और इसे बदलने के लिए हम जो कुछ भी कर सकते हैं, उसे करने की कोशिश करना एक महत्वपूर्ण मोड़ है।"
उन्होंने कहा कि देश में बाल चिकित्सा मामलों की संख्या में तेज वृद्धि बहुत चिंताजनक है, उन्होंने कहा, कम से कम 400 बच्चों की मौत वायरस से हुई है।
कोलिन्स ने कहा, "अभी हमारे पास अस्पताल में लगभग 2,000 बच्चे हैं। उनमें से कई आईसीयू में हैं, उनमें से कुछ चार साल से कम उम्र के हैं।"
विशेष रूप से डेल्टा के इतने संक्रामक होने के कारण बच्चे बहुत गंभीर रूप से जोखिम में हैं और यह हम सभी पर निर्भर है कि हम उनकी रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करें और साथ ही हम हर किसी की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं।
12 साल से कम उम्र के बच्चों को कोविड -19 वैक्सीन प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है।
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के अनुसार, देश में पिछले सात दिनों में औसतन लगभग 129,000 दैनिक नए मामले सामने आए हैं, जो कि 5 जुलाई से हर दिन बढ़ रहे है।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने सोमवार को अपडेट की गई एक रिपोर्ट में कहा कि पिछले एक हफ्ते में बच्चों के लगभग 94,000 कोविड -19 मामले सामने आए।
महामारी की शुरूआत के बाद से 5 अगस्त तक देश में लगभग 43 लाख बच्चों ने कोविड -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण किया है।
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, सोमवार की सुबह तक, अमेरिका ने 36,669,696 पुष्ट मामले और 621,605 मौतें दर्ज की हैं। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 16 अगस्त | अमेरिकी दूरसंचार दिग्गज टी-मोबाइल एक संभावित डेटा उल्लंघन की जांच कर रही है, जिसने 100 मिलियन यूजर्स को प्रभावित किया है। हैकर्स ने डार्क वेब पर छह बिटकॉइन 270,000 डॉलर) के लिए डेटा बेचने का काम किया है। विक्रेताओं ने मदरबोर्ड को बताया कि उन्होंने 100 मिलियन से अधिक लोगों से संबंधित डेटा प्राप्त किया है जो टी-मोबाइल सर्वर से आए हैं। इसमें सामाजिक सुरक्षा नंबर, नाम, पते और ड्राइवर लाइसेंस की जानकारी शामिल है।
टी-मोबाइल ने एक बयान में कहा, हम एक भूमिगत मंच में किए गए दावों से अवगत हैं। सक्रिय रूप से उनकी वैधता की जांच कर रहे हैं। हमारे पास इस समय साझा करने के लिए कोई अतिरिक्त जानकारी नहीं है।
टी-मोबाइल पिछले कुछ वर्षों में कई डेटा उल्लंघनों में शामिल रहा है।
इस साल जनवरी में, टी-मोबाइल को कथित तौर पर एक सुरक्षा उल्लंघन का सामना करना पड़ा, जिससे उसके कुछ ग्राहकों के कॉल रिकॉर्ड और फोन नंबर है।
टी-मोबाइल के अनुसार, डेटा उल्लंघन ने खाताधारकों के नाम, भौतिक पते, ईमेल पते, वित्तीय डेटा, क्रेडिट कार्ड की जानकारी, सामाजिक सुरक्षा नंबर, कर आईडी, पासवर्ड या पिन को उजागर नहीं किया गया है।
टी-मोबाइल ने कहा कि उल्लंघन में ग्राहकों की नेटवर्क जानकारी (सीपीएनआई) को उजागर किया, जिसमें फोन नंबर और कॉल रिकॉर्ड शामिल हैं।
रिपोर्ट में बताया, इससे पहले टी-मोबाइल ने 2018 में ग्राहकों की जानकारी को उजागर किया, 2019 में प्रीपेड ग्राहकों की जानकारी और पिछले साल मार्च में ग्राहक और वित्तीय डेटा को शेयर किया।
टी-मोबाइल ने कहा कि लेटेस्ट उल्लंघन ने ग्राहकों की एक छोटी संख्या (0.2 प्रतिशत से कम) को प्रभावित किया है।
मार्च 2020 के उल्लंघन ने कुछ टी-मोबाइल ग्राहकों की वित्तीय जानकारी, सामाजिक सुरक्षा नंबर और अन्य खाते की जानकारी को उजागर कर किया था। (आईएएनएस)
काबुल, 16 अगस्त | काबुल में हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर अमेरिकी सैनिकों को चेतावनी देने के लिए हवा में गोली चलाने के मजबूर होना पड़ा। तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद हताश नागरिक जल्द से जल्द उड़ान भरना चाह रहे हैं। एक अधिकारी ने एक वैश्विक समाचार एजेंसी को यह जानकारी दी। अधिकारी के हवाले से कहा गया, "भीड़ नियंत्रण से बाहर हो गई है। फायरिंग केवल अराजकता को शांत करने के लिए की गई थी।"
सोशल मीडिया पर कई वीडियो में गोलियों की आवाज सुनी जा सकती है। तस्वीरों में देखा जा सकता है कि लोग विमान के चारो और से इसमें चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
अमेरिकी सैनिक हवाई अड्डे पर प्रभारी हैं, जहां वे कथित तौर पर सैन्य उड़ानों में अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों को निकालने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
अमेरिका ने पहले कहा था कि उसने अपने दूतावास के सभी कर्मचारियों को हवाई अड्डे पर भेज दिया है।
काबुल हवाई अड्डे पर अराजकता और भ्रम की स्थिति है क्योंकि हजारों अफगान देश छोड़कर जाना चाहते हैं।
एक चश्मदीद ने न्यूज वायर को बताया, "मुझे यहां बहुत डर लग रहा है। वे हवा में लगातार फायरिंग कर रहे हैं।"
लोगों के हवाई अड्डे के रनवे पर दौड़ने और उड़ानों में चढ़ने की कोशिश करने के कई वीडियो सामने आए हैं।
ऐसी खबरें हैं कि राजनयिक कर्मचारियों को देश से बाहर ले जाने वाली अमेरिकी उड़ानों को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे लोगों में आक्रोश है और अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है। (आईएएनएस)
एक युवा चीनी महिला का कहना है कि उसे आठ दिनों तक दुबई में चीन द्वारा संचालित गुप्त हिरासत केंद्र में कम से कम दो मके साथ रखा गया. यह पहला सबूत हो सकता है कि चीन अपनी सीमाओं से परे एक तथाकथित केंद्र चला रहा है.
26 साल की वु हुआन के मंगेतर को चीन से असहमति रखने वाला माना जाता है. हुआन चीन वापस प्रत्यर्पण से बचने के लिए भाग रही थीं. उन्होंने समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि उन्हें एक होटल से अगवा कर लिया गया और चीनी अधिकारियों ने एक विला में उन्हें रखा जो जिसे एक जेल में तब्दील किया गया था.
हुआन ने बताया कि उन्होंने सुना या देखा कि दो और कैदी वहां मौजूद थे, जो कि उइगुर थे.
दुबई में चीनी जेल
महिला ने बताया कि उनसे चीनी भाषा में पूछताछ की गई और धमकी दी गई. उनके मंगेतर को परेशान करने के लिए कानूनी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया. आखिरकार महिला 8 को जून को रिहा कर दिया गया और अब वह नीदरलैंड्स में शरण मांग रही है.
हालांकि "ब्लैक साइट्स'' चीन में आम है. हुआन ने जो बताया है वह विशेषज्ञों के लिए भी हैरानी का कारण है कि चीन ने इस तरह के केंद्र को देश से बाहर भी स्थापित कर लिया है.
इस तरह के केंद्र यह बताते हैं कि कैसे चीन विदेशों से अपने नागरिकों को हिरासत में लेने या वापस लाने के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का तेजी से इस्तेमाल कर रहा है. चाहे वे असंतुष्ट हों, भ्रष्टाचार के संदिग्ध हों या उइगर जैसे जातीय अल्पसंख्यक हों.
एपी हुआन के इस दावे स्वतंत्र रूप से पुष्टि या खंडन करने में असमर्थ है.
महिला के पास सबूत
हालांकि पत्रकारों ने उनके पासपोर्ट में लगे स्टैंप, एक चीनी अधिकारी द्वारा उनसे सवाल जवाब की रिकॉर्डिंग और महिला के द्वारा मदद के लिए भेजे गए मेसेज वाले साक्ष्य देखे और सुने हैं. चीन और दुबई ने टिप्पणी के लिए अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया है.
ताइवान के एकेडेमिया सिनिका में सहायक प्रोफेसर यू जिए चेन का कहना है कि उन्होंने दुबई में एक चीनी गुप्त जेल के बारे में नहीं सुना है, और किसी अन्य देश में ऐसी सुविधा असामान्य होगी.
हालांकि उन्होंने यह भी कहा किया कि चीन चुनिंदा नागरिकों को वापस लाने के लिए आधिकारिक माध्यमों जैसे कि प्रत्यर्पण संधियों पर हस्ताक्षर करने का रास्ता अपना सकता है. अनौपचारिक साधनों जैसे कि वीजा रद्द करने या परिवार पर दबाव भी डाल सकता है.
चेन ने कहा कि विशेष रूप से उइगुरों को प्रत्यर्पित किया जा रहा है या चीन वापस लाया जा रहा है. उनका कहना है कि उइगुर को आतंकवाद के संदेह या फिर सिर्फ प्रार्थना करने पर हिरासत में लिया जा रहा है.
अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि दुबई का इतिहास एक ऐसे स्थान के रूप में है जहां उइगुरों से पूछताछ की जाती है और वापस चीन भेज दिया जाता है.
दुबई में डिटेन्डेड एडवोकेसी ग्रुप की स्थापना करने वाली राधा स्टर्लिंग कहती हैं कि उन्होंने ऐसे दर्जन भर लोगों के साथ काम किया है जिन लोगों को कथित तौर पर विला में हिरासत में रखा गया था. हिरासत में रखे गए लोगों में कनाडा, भारत और जॉर्डन के लोग थे लेकिन चीन के नहीं.
स्टर्लिंग के मुताबिक, ''इसमें कोई शक नहीं है कि यूएई ने विदेशी सरकारों की तरफ से लोगों को हिरासत में लिया है, जिन सरकारों के साथ उसके संबंध हैं.''
हालांकि, कतर में एक पूर्व अमेरिकी राजदूत पैट्रिक थेरोस, जो अब गल्फ इंटरनेशनल फोरम के रणनीतिक सलाहकार हैं, इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं.
हुआन का कहना है कि 27 मई को चीनी अधिकारियों ने उनसे होटल में पूछताछ की थी और उसके बाद पुलिस उन्हें ले गई. उन्हें तीन दिनों तक पुलिस स्टेशन में रखा गया और तीसरे दिन एक चीनी अधिकारी ने उनसे पूछताछ की. हुआन का कहना है कि चीनी अधिकारी ने पूछा कि क्या उन्होंने चीन के खिलाफ आवाज उठाने के लिए विदेशी समूहों से पैसे लिए हैं.
एए/वीके (एपी)
हैती में शनिवार को आए भूकंप ने फिर सैकड़ों जानें ले लीं. ऐसा क्या है कि हैती में आने वाले भूकंप इतनी तबाही मचाते हैं?
हैती में शनिवार को आए भूकंप में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए. 11 साल पहले भी ऐसा ही एक भूकंप आया था जिसमें दसियों हजार लोग मारे गए थे. 2010 के उस भूकंप में एक लाख इमारतें क्षतिग्रस्त हुई थीं.
हैती में ऐसा क्या है कि वहां आने वाले भूकंप इतनी तबाही मचाते हैं. पेश है, एक पड़ताल...
क्यों आते हैं हैती में इतने भूकंप?
पृथ्वी की अंदरूनी परत में एक टेक्टॉनिक प्लेट के ऊपर दूसरी रखी होती है. ये प्लेट हिलती डुलती या खिसकती रहती हैं और उसे ही भूकंप कहते हैं. हैती जहां है, वहां दो प्लेट एक दूसरे से मिलती हैं. नॉर्थ अमेरिकी प्लेट और कैरेबियाई प्लेट के सिरे के ठीक ऊपर हैती है.
हैती और डॉमिनिकन रिपब्किल के साझे द्वीप हिस्पैन्योला के ठीक नीचे कई दरारें हैं. हर दरार का व्यवहार अलग होता है. अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के शोधकर्ता रिच ब्रिग्स बताते हैं, "हिस्पैन्योला के ठीक नीचे दो प्लेट एक दूसरे से टकराती हुई गुजरती हैं. यह वैसा ही है जैसे शीशे के स्लाइडिंग डोर की ट्रैक में पत्थर फंस जाए. फिर उसका आना जाना ऊबड़ खाबड़ हो जाएगा.”
अब भूकंप क्यों आया?
शनिवार को जो भूकंप आया था, उसकी तीव्रता 7.2 आंकी गई थी. माना जा रहा है कि यह एनरिकीलो-प्लैन्टेन दरार के करीब हुई हलचल की वजह से आया. अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण संस्थान (USGS) के मुताबिक यह दरार हैरती के दक्षिण-पश्चिम में टिबरोन प्रायद्वीप के नीचे से गुजरती है.
इसी जगह 2010 का भयानक भूकंप आया था. और अनुमान है कि 1751 और 1860 के बीच कम से कम तीन भूकंप इसी दरार के कारण आए थे. उनमें से दो ऐसे थे जिन्होंने राजदानी पोर्ट ओ प्राँ को तहस नहस कर दिया था.
इतने विनाशकारी क्यों होते हैं हैती के भूकंप?
इसकी कई वजह हैं. सबसे पहली बात तो यह कि हैती के नीचे सक्रियता बहुत ज्यादा है. फिर वहां, आबादी का घनत्व भी काफी है. देश में एक करोड़ दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. वहां की इमारतों को चक्रवातीय तूफानों को झेलने लायक तो बनाया जाता है लेकिन वे भूकंप रोधी नहीं होतीं.
हैती की इमारतें कंक्रीट की बनाई जाती हैं जो तेज हवाओं को झेल सकती हैं लेकिन जब धरती हिलती है तो उनके गिरने का, उनके गिरने की वजह से विनाश का खतरा ज्यादा होता है.
2010 में भूकंप का केंद्र पोर्ट ओ प्राँ के नजदीक था और उसने भयानक तबाही मचाई थी. हैती की सरकार ने मरने वालों की संख्या तीन लाख बताई थी जबकि अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट में 46 हजार से 85 हजार के बीच लोगों के मरने की बात कही गई थी.
इनकॉरपोरेटेडे रीसर्च इंस्टिट्यूशंस फॉर सीस्मोलॉजी में जियोलॉजिस्ट वेंडी बोहोन कहती हैं, "एक बात हमें समझनी चाहिए कि कुदरती आपदा कुछ नहीं होती. यह एक कुदरती घटना है जिसे आपकी व्यवस्था संभाल नहीं पाती.”
क्या भविष्य में भी ऐसा होगा?
भूगर्भ विज्ञानी कहते हैं कि भूकंप का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. यूएसजीएस के गैविन हेज कहते हैं, "हम इतना जानते हैं कि ऐसा भूकंप अगली दरार में भी ऐसी ही हलचल पैदा कर सकता है. और ऐसी हलचल कम तैयार जगहों पर भारी तबाही मचा सकती है.”
हैती में भूकंप-रोधी इमारतों का निर्माण एक चुनौती है. पश्चिमी गोलार्ध के इस सबसे गरीब देश के पास इतने संसाधन भी नहीं हैं. अभी तो देश पिछले भूकंप की तबाही से भी नहीं उबरा है. 2016 के चक्रवात मैथ्यू ने भी हैती को काफी नुकसान पहुंचाया था. फिर पिछले महीने देश के राष्ट्रपति की हत्या हो गई, जिससे वहां राजनीतिक कोलाहल भी मचा है.
नॉर्दन इलिनोई यूनिवर्सिटी में मानवविज्ञानी प्रोफेसर मार्क शूलर कहते हैं, "हैती में तकनीकी ज्ञान है. प्रशिक्षित आर्किटेक्ट हैं. नगरयोजना बनाने वाले हैं. वहां समस्या नहीं है. समस्या है धन की और राजनीतिक इच्छाशक्ति की.”
वीके/सीके (एपी)
तालिबान ने लगभग पूरे अफ़गानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया है. अफग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी और उप राष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह ने देश छोड़ दिया है.
ऐसे में अब अफ़गानिस्तान की सत्ता किन तालिबान नेताओं के हाथ में आएगी?
इस सवाल के जवाब में जिन दो नामों पर सबसे है ज़्यादा चर्चा है, वो हैं- मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर और हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा.
कौन हैं ये दोनों नेता और तालिबान के भीतर इनकी क्या भूमिका रही है?
तालिबान के साथ जंग का अवाम की आंखों में बढ़ता ख़ौफ़, एक भारतीय महिला पत्रकार की आंखों देखी
मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर उन चार लोगों में से एक हैं जिन्होंने 1994 में तालिबान का गठन किया था.
साल 2001 में जब अमेरिका के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान पर हुए आक्रमण में तालिबान को सत्ता से हटा दिया गया था तब वो नेटो सैन्य बलों के ख़िलाफ़ विद्रोह के प्रमुख बन गए थे.
बाद में फ़रवरी 2010 में अमेरिका और पाकिस्तान के एक संयुक्त अभियान में उन्हें पाकिस्तान के कराची शहर से गिरफ़्तार कर लिया गया था.
साल 2012 तक मुल्ला बरादर के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी.
उस समय अफ़ग़ानिस्तान सरकार शांति वार्ता को बढ़ावा देने के लिए जिन बंदियों को रिहा करने की मांग करती थी उनकी सूची में बरादर का नाम प्रमुख होता था.
सितंबर 2013 में पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया था, लेकिन ये स्पष्ट नहीं हो सका कि वो पाकिस्तान में ही रुके या कहीं और चले गए.
मुल्ला बरादर तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के सबसे भरोसेमंद सिपाही और डिप्टी थे.
जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया था तब वो तालिबान के दूसरे सबसे बड़े नेता थे.
अफ़ग़ानिस्तान प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को हमेशा ये लगता था कि बरादर के क़द का नेता तालिबान को शांति वार्ता के लिए मना सकता है.
साल 2018 में जब क़तर में अमेरिका से बातचीत करने के लिए तालिबान का दफ़्तर खुला तो उन्हें तालिबान के राजनीतिक दल का प्रमुख बनाया गया.
मुल्ला बरादर हमेशा से ही अमेरिका के साथ वार्ता का समर्थन करते रहे थे.
1994 में तालिबान के गठन के बाद उन्होंने एक कमांडर और रणनीतिकार की भूमिका ली थी.
मुल्ला उमर के ज़िंदा रहते हुए वे तालिबान के लिए फ़ंड जुटाने और रोज़मर्रा की गतिविधियों के प्रमुख थे.
वे अफ़ग़ानिस्तान के सभी युद्धों में तालिबान की तरफ़ से अहम भूमिका निभाते रहे और ख़ासकर हेरात और काबुल क्षेत्र में सक्रिय थे.
जब तालिबान को सत्ता से हटाया गया था तब वो तालिबान के डिप्टी रक्षा मंत्री थे.
उनकी गिरफ़्तारी के समय अफ़ग़ानिस्तान के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया था, 'उनकी पत्नी मुल्ला उमर की बहन हैं. तालिबान का सारे पैसे का हिसाब वही रखते हैं. वो अफ़ग़ान बलों के ख़िलाफ़ सबसे खूंख़ार हमलों का नेतृत्व करते थे.'
तालिबान के दूसरे नेताओं की तरह ही मुल्ला बरादर पर भी संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगाए थे. उनकी यात्रा और हथियार ख़रीदने पर प्रतिबंध था.
2010 में गिरफ़्तार होने से पहले उन्होंने चुनिंदा सार्वजनिक बयान दिए थे.
2009 में उन्होंने ईमेल के ज़रिए न्यूज़वीक पत्रिका को जवाब दिए थे.
अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की बढ़ती मौजूदगी पर उन्होंने कहा था कि तालिबान अमेरिका को भारी से भारी नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं.
उन्होंने कहा था कि जब तक हमारी ज़मीन से दुश्मनों का ख़ात्मा नहीं होगा, हमारा जिहाद चलता रहेगा.
इंटरपोल के मुताबिक मुल्ला बरादर का जन्म उरूज़गान प्रांत के देहरावुड ज़िले के वीटमाक गांव में 1968 में हुआ था.
माना जाता है कि उनका संबंध दुर्रानी क़बीले से है. पूर्व राष्ट्रपति हामिद क़रज़ई भी दुर्रानी ही हैं.
हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा
हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा अफ़ग़ान तालिबान के नेता हैं जो इस्लाम धर्म के विद्वान है और कंधार से आते हैं. माना जाता है कि उन्होंने ही तालिबान की दिशा बदली और उसे मौजूदा हालत में पहुंचाया.
तालिबान के गढ़ रहे कंधार से उनके संबंध ने उन्हें तालिबान के बीच अपनी पकड़ बनाने में मदद की.
1980 के दशक में उन्होंने सोवियत संघ के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान के विद्रोह में कमांडर की भूमिका निभाई थी, लेकिन उनकी पहचान सैन्य कमांडर के मुकाबले एक धार्मिक विद्वान की अधिक है.
वो अफ़ग़ान तालिबान का प्रमुख बनने से पहले भी तालिबान के शीर्ष नेताओं में शुमार थे और धर्म से जुड़े तालिबान के आदेश वही देते थे.
उन्होंने दोषी पाए गए क़ातिलों और अवैध सेक्स संबंध रखने वालों की हत्या और चोरी करने वालों के हाथ काटने के आदेश दिए थे.
हिब्तुल्लाह तालिबान के पूर्व प्रमुख अख़्तर मोहम्मद मंसूर के डिप्टी भी थे. मंसूर की मई 2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत हो गई थी. मंसूर ने अपनी वसीयत में हिब्तुल्लाह को अपना वारिस घोषित किया था.
माना जाता है कि पाकिस्तान के क्वेटा में हिब्तुल्लाह की मुलाक़ात जिन तालिबानी शीर्ष नेताओं से हुई उन्होंने ही उन्हें तालिबान का प्रमुख बनवाया. समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक वसीयत का पत्र उनकी नियुक्ति को वैधता देने के लिए था.
हालांकि तालिबान ने उनके चयन को सर्वसम्मिति से हुआ फ़ैसला बताया था.
क़रीब साठ साल के मुल्ला हिब्तुल्लाह ने अपना अधिकतर जीवन अफ़ग़ानिस्तान में ही बिताया है. उनके क्वेटा में तालिबान की शूरा से भी नज़दीकी संबंध रहे हैं.
हिब्तुल्लाह के नाम के मायने हैं 'अल्लाह की तरफ़ से मिला तोहफ़ा'. वो नूरज़ाई क़बीले से ताल्लुक़ रखते हैं. (bbc.com)
पोर्ट-ओ-प्रिंस, 16 अगस्त| देश की नागरिक सुरक्षा एजेंसी ने घोषणा की है कि हैती में सप्ताहांत में आए 7.2 तीव्रता के भीषण भूकंप से मरने वालों की संख्या बढ़कर 1,297 हो गई है।
हैती के सिविल प्रोटेक्शन सर्विस ने रविवार को एक ट्वीट में कहा कि सूद में 1,054, निप्स में 122, ग्रैंड एन्से में 119 और नॉर्ड-ऑएस्ट में दो लोग मारे गए।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री एरियल हेनरी ने रविवार को कहा कि भूकंप के बाद 'बेहद गंभीर स्थिति' का सामना करने के लिए 'एक साथ काम करना' आवश्यक है।
उन्होंने कहा,"मैंने भूकंप पीड़ितों से मुलाकात की। डॉक्टर, बचाव दल और पैरामेडिक्स हवाई अड्डे से सहायता प्रदान करने के लिए पहुंच रहे हैं।"
प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर कहा, "यह एक कठोर और दुखद वास्तविकता है जिसका हमें साहस के साथ सामना करना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि विभिन्न टीमें 'पीड़ितों को सहायता देने' के लिए मैदान पर हैं और संकट से निपटने के लिए त्वरित कार्रवाई का आह्वान किया।
शनिवार को 7.2 तीव्रता का भूकंप हैती के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में आया, जिसका केंद्र पोर्ट-ओ-प्रिंस की राजधानी से लगभग 150 किमी दूर था। (आईएएनएस)
काबुल, 16 अगस्त | काबुल पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद तालिबान आतंकी समूह के एक प्रवक्ता ने जोर देकर कहा कि अफगान राजधानी में दूतावासों, राजनयिक मिशनों और विदेशी नागरिकों के लिए कोई खतरा नहीं है। साथ ही तालिबान ने कहा कि वह पूरे देश में सुरक्षा बनाए रखेगा।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रविवार शाम दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता मुहम्मद नईम के हवाले से कहा, "हम काबुल में सभी दूतावासों, राजनयिक मिशनों, संस्थानों और विदेशी नागरिकों के आवासों को आश्वस्त करते हैं कि उन्हें कोई खतरा नहीं है।"
उन्होंने जोर देकर कहा कि तालिबान आंदोलन की ताकतों को काबुल और देश के अन्य शहरों में सुरक्षा बनाए रखने का काम सौंपा गया है।
यह घोषणा तब हुई जब हामिद करजई अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा देश से बाहर जाने वाली उड़ानों का इंतजार कर रहे दसियों यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था लेकिन उन्हें कोई विमान नहीं मिला और वे अभी भी वहीं फंसे हुए हैं।
प्रांतीय राजधानी शहरों पर कब्जा करने के बाद, तालिबान ने रविवार की सुबह हर तरफ से काबुल में प्रवेश करना शुरू कर दिया।
हालांकि तालिबान ने पहले कहा था कि अफगान राजधानी में सैन्य रूप से प्रवेश करने की कोई योजना नहीं है।
अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी अपने करीबी सहयोगियों और प्रथम महिला के साथ ताजिकिस्तान के लिए काबुल से रवाना हुए, तालिबानी राष्ट्रपति भवन में भी प्रवेश करने में कामयाब रहे।
रविवार की रात खामा प्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गनी के भागने के बाद पैदा हुई शक्ति शून्य से बचने के लिए, राष्ट्रीय सुलह के लिए उच्च परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला, पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और हिज्ब-ए-इस्लामी के प्रमुख गुलबदीन हिकमतयार ने एक साथ आकर एक अस्थायी परिषद का गठन किया।
परिषद का उद्देश्य तालिबान को शांति से सत्ता हस्तांतरित करना है और अफगान सुरक्षा बलों और अफगानिस्तान इस्लामिक अमीरात के बलों को काबुल को सुरक्षित करने और किसी भी अराजकता की अनुमति नहीं देने के लिए कहा है।
तीनों ने अपने अलग-अलग वीडियो क्लिप में काबुल के लोगों को अलग-अलग संदेश दिए।
अब्दुल्ला ने अशरफ गनी पर देश से भागने और लोगों को परेशानी में डालने का आरोप लगाया।
समाचार रिपोर्ट में कहा गया है कि रविवार की रात काफी शांत थी, लेकिन छिटपुट जगहों पर आग लगने की घटना हुई थी। हेलिकॉप्टर अफगान राजधानी में गश्त कर रहे थे।(आईएएनएस)
काबुल, 15 अगस्त| उच्च परिषद राष्ट्रीय सुलह के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट कर पुष्टि की है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए हैं। उन्होंने लोगों से शांत रहने और अफगान सुरक्षा बलों से सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहयोग करने को कहा है।
अब्दुल्ला ने तालिबान से काबुल शहर में प्रवेश करने से पहले बातचीत के लिए कुछ समय देने के लिए कहा।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान बलों को शहर के भीतर देखा गया है, लेकिन अधिकांश विद्रोही शहर के बाहरी इलाके में रहते हैं।
अफगान गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गनी काबुल से ताजिकिस्तान के लिए रवाना हो गए हैं।
टिप्पणी के लिए पूछे जाने पर, राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि वह सुरक्षा कारणों से अशरफ गनी के जाने के बारे में कुछ नहीं कह सकता।
तालिबान के एक प्रतिनिधि, जो रविवार को पहले राजधानी काबुल में प्रवेश कर गया, ने कहा कि समूह गनी के ठिकाने की जांच कर रहा है।
रविवार को तालिबान के शहर में घुसने के बाद गनी देश छोड़कर जा चुके हैं।
अफगान मीडिया ने बताया कि सूत्रों के मुताबिक, उनके साथ उनके करीबी सहयोगी भी देश छोड़कर चले गए हैं।
इससे पहले दिन में, कार्यवाहक रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी ने कहा कि राष्ट्रपति ने देश में संकट को हल करने का अधिकार राजनीतिक नेताओं को सौंप दिया है।
मोहम्मदी ने कहा कि देश के हालात पर बातचीत के लिए एक प्रतिनिधिमंडल सोमवार को दोहा का दौरा करेगा।
प्रतिनिधिमंडल में यूनुस कानूननी, अहमद वली मसूद, मोहम्मद मोहकिक सहित प्रमुख राजनीतिक नेता शामिल हैं।
तालिबान के करीबी सूत्रों ने कहा कि इस बात पर सहमति बनी है कि गनी राजनीतिक समझौते के बाद इस्तीफा दे देंगे और सत्ता संक्रमणकालीन सरकार को सौंप देंगे।
अफगानों ने कहा है कि वे एक राजनीतिक समाधान चाहते हैं और देश में जारी हिंसा को समाप्त करना चाहते हैं।
अफगान मीडिया ने बताया कि इससे पहले, तालिबान को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए अफगान राष्ट्रपति भवन में बातचीत चल रही थी, जिसमें अब्दुल्ला ने इस प्रक्रिया में मध्यस्थता करने की बात कही थी।
सूत्रों ने यह भी कहा है कि अली अहमद जलाली को नई अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया जाएगा। (आईएएनएस)
काबुल, 15 अगस्त (आईएएनएस)| अशरफ गनी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मुहिब और राष्ट्रपति फजल महमूद फाजली के प्रशासनिक कार्यालय के प्रमुख के साथ अफगानिस्तान से ताजिकिस्तान के लिए रवाना हुए। कुछ विधायक इस्लामाबाद भी भाग गए हैं। इससे पहले, अफगान संसद के अध्यक्ष मीर रहमान रहमानी, यूनुस कनुनी, मुहम्मद मुहाक, करीम खलीली, अहमद वली मसूद और अहमद जिया मसूद इस्लामाबाद भाग गए, अफगान मीडिया ने बताया।
राष्ट्रीय सुलह के लिए उच्च परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक वीडियो क्लिप में कहा कि पूर्व अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अफगानिस्तान छोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान के लोगों को बदहाली और बदहाली में छोड़ दिया है और उसी के अनुसार उनका न्याय किया जाएगा।
तालिबान ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि लड़ाकों को काबुल शहर में प्रवेश करने का निर्देश दिया गया था, ताकि वे शहर में संभावित लूटपाट और अराजकता को रोक सकें।
बयान में कहा गया है कि चूंकि अफगान बलों ने काबुल शहर में चौकियों को छोड़ दिया है, इसलिए लूटपाट का खतरा है।
लड़ाकों द्वारा काबुल को ऐसे समय में लिया जाता है, जब सत्ता का हस्तांतरण अभी तक नहीं हुआ है और कहा जाता है कि एक प्रतिनिधिमंडल प्रक्रिया को पूरा करने के लिए दोहा के लिए रवाना हो रहा है।
नई दिल्ली, 15 अगस्त| काबुल से 129 यात्रियों को लेकर एयर इंडिया का एक विमान रविवार शाम दिल्ली पहुंच गया। एआई 244 ने शाम 6.06 बजे उड़ान भरी थी। रविवार को काबुल हवाईअड्डे से जब तालिबान अफगानिस्तान की राजधानी पहुंचे और वे अब सत्ता संभालने के करीब हैं।
एयर इंडिया के एक प्रवक्ता ने आईएएनएस को बताया, हम स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं और फिलहाल काबुल के लिए अपनी निर्धारित उड़ानें जारी रखे हुए हैं।
इसके अलावा, अधिकारी ने कहा कि काबुल के लिए अगली उड़ान सोमवार को सुबह 8.50 बजे उड़ान भरने वाली है।
अफगानिस्तान की स्थिति पर निराशा व्यक्त करते हुए विमान में सवार एक महिला ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि दुनिया ने अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया है। हमारे दोस्त मारे जा रहे हैं।
यात्रियों में काबुल में भारतीय दूतावास में तैनात राजनयिक और सुरक्षा अधिकारी भी शामिल हैं।
अफगानिस्तान में स्थिति रविवार को और भी खराब हो गई, क्योंकि काबुल पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। इसके अलावा, राष्ट्रपति अशरफ गनी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मुहिब और राष्ट्रपति फजल महमूद फाजली के प्रशासनिक कार्यालय के प्रमुख के साथ ताजिकिस्तान के लिए अफगानिस्तान से रवाना हुए।
अफगान मीडिया ने बताया कि कुछ सांसद भी इस्लामाबाद भाग गए हैं, जिनमें अफगान संसद के अध्यक्ष मीर रहमान रहमानी, यूनुस कानूनी, मुहम्मद मुहकक, करीम खलीली, अहमद वली मसूद और अहमद जि़या मसूद शामिल हैं।
राष्ट्रीय सुलह के लिए उच्च परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक वीडियो क्लिप में कहा कि गनी ने अफगानिस्तान छोड़ दिया।
जब से अमेरिकी सैनिकों ने युद्ध से तबाह देश से बाहर निकाला है, तालिबान पिछले कुछ हफ्तों में प्रांतों को अपने नियंत्रण में ले रहा है, जिससे विश्व स्तर पर चिंता बढ़ रही है।
जैसा कि अफगानिस्तान में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच भीषण लड़ाई के साथ, राजनयिकों सहित कई भारतीय नागरिकों को देश से निकाल लिया गया है। (आईएएनएस)
काबुल, 16 अगस्त | तालिबान ने काबुल में राष्ट्रपति भवन पर कब्जा करने का दावा किया है। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने रविवार को पहले देश छोड़ दिया, लेकिन महल की सही स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। स्थानीय पत्रकार बिलाल सरवरी के अनुसार, जिन्होंने सीधी बातचीत में शामिल दो अफगानों से बात की, समझौते का एक हिस्सा यह था कि गनी महल के अंदर सत्ता परिवर्तन समारोह में शामिल होंगे, लेकिन इसके बजाय उन्होंने और उनके वरिष्ठ सहयोगियों ने देश छोड़ दिया।
सहयोगियों ने कहा, महल के कर्मचारियों को कथित तौर पर छोड़ने के लिए कहा गया था और अब महल खाली हो गया है। तालिबान ने बाद में एक वैश्विक तार सेवा को बताया कि उन्होंने इसे अपने कब्जे में ले लिया है।
सरकारी अधिकारियों की ओर से कोई पुष्टि नहीं की गई है।
तालिबान के दो अधिकारियों ने तार को बताया कि अफगानिस्तान में उनके प्रकाश व्यवस्था के बाद कोई संक्रमणकालीन सरकार नहीं होगी। तालिबान जो अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओं द्वारा उखाड़ फेंके जाने के बाद दो दशक बाद राजधानी में वापस आ गया है।
गनी के बारे में आंतरिक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वह ताजिकिस्तान के लिए रवाना हुए थे, जबकि विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि उनका स्थान अज्ञात था और तालिबान ने कहा कि यह उनके ठिकाने की जांच कर रहा है।
कुछ स्थानीय सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने उन्हें अराजकता में छोड़ने के लिए उन्हें कायर करार दिया।
आंतरिक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने तार को बताया कि तालिबान लड़ाके हर तरफ से काबुल पहुंचे और शहर के चारों ओर छिटपुट गोलीबारी की कुछ खबरें आईं।
बीबीसी ने काबुल में एक अस्पताल चलाने वाले एक एनजीओ की रिपोर्ट में दावा किया है कि 40 से अधिक लोग उनके अस्पताल पहुंचे हैं। ज्यादातर काराबाग इलाके से आए हैं, जहां लड़ाई हो रही है।
ट्वीट, जिसे बीबीसी द्वारा स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं किया जा सकता, कहता है कि 22 लोगों का अस्पताल में इलाज किया गया है और अधिक मामूली चोटों वाले लोगों को अन्य सुविधाओं के लिए भेजा गया है।
अमेरिकी दूतावास द्वारा जारी सुरक्षा अलर्ट के अनुसार, काबुल के हवाईअड्डे पर गोलीबारी की खबरें हैं।
अधिकारियों ने क्षेत्र में अमेरिकी नागरिकों को शरण लेने का निर्देश दिया है, क्योंकि काबुल में सुरक्षा की स्थिति तेजी से बदल रही है।
तालिबान ने अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात बैनर के तहत एक बयान जारी कर कहा कि समूह को अब काबुल में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है।
बयान में दावा किया गया है कि अफगान पुलिस और अन्य संबंधित संस्थानों ने अपने कर्तव्यों को छोड़ दिया और चोरी, लूटपाट और अपराध को रोकने के लिए, समूह की सेना को राजधानी में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है।
बयान में कहा गया, तालिबान काबुल में अफगान बलों द्वारा छोड़े गए क्षेत्रों को सुरक्षित करेगा।
इसने नागरिकों को आश्वस्त करने की मांग की कि बल न तो उनके घरों में प्रवेश करेंगे और न ही उन्हें परेशान करेंगे। (आईएएनएस)
काबुल, 16 अगस्त| अफगानिस्तान के लिए अमेरिकी सहायता व्यय प्रहरी ने पिछले महीने चेतावनी दी थी कि अमेरिकी सेना के पास अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बलों (एएनडीएसएफ) की क्षमता को जानने का बहुत कम या कोई साधन नहीं है, जबकि मार्च 2021 तक अफगानिस्तान में सुरक्षा संबंधी पुनर्निर्माण पर 88.3 अरब डॉलर खर्च किया गया था। अफगान सरकार की सेवा करने वाले 300,699 फौजियों की तुलना में तालिबान के पास 80,000 सैनिक हैं, फिर भी पूरे देश को कुछ ही हफ्तों में प्रभावी ढंग से खत्म कर दिया गया है, क्योंकि सैन्य कमांडरों ने कुछ ही घंटों में बिना किसी लड़ाई के आत्मसमर्पण कर दिया।
द गार्जियन ने बताया कि यह दो सेनाओं की कहानी है, एक वैचारिक रूप से अत्यधिक प्रेरित और दूसरी नाममात्र की अच्छी तरह से सुसज्जित, लेकिन नाटो के समर्थन पर निर्भर, खराब नेतृत्व वाली और भ्रष्टाचार से ग्रस्त।
नाटो ने अमेरिकी सेना को अफगान सैन्य क्षमता के बारे में लगातार आशावादी पाया, भले ही उसके पास उस आकलन के लिए कोई विश्वसनीय सबूत नहीं था।
उसने कहा, प्रहरी ने बल के भीतर भ्रष्टाचार के संक्षरक प्रभावों के बारे में बार-बार चेतावनी दी थी। उन्नत उपकरणों पर अपनी निर्भरता के साथ, और अपने रैंकों में व्यापक निरक्षरता के साथ, बल मजबूती से अपनी ताकत और युद्ध की तैयारी को बनाए नहीं रख सका।
वॉचडॉग ने कहा, खर्च किए गए 88.3 अरब डॉलर। सवाल यह है कि क्या उस पैसे को अच्छी तरह से खर्च किया गया था? अगर खर्च किया गया तो जमीन पर लड़ाई के नतीजे क्यों नहीं सामने आए?
रिपोर्ट की स्पष्ट चेतावनियों की अमेरिकी कांग्रेस द्वारा समीक्षा किए जाने की संभावना है क्योंकि वह यह समझने की कोशिश करती है कि अफगान सेना को प्रशिक्षण देने पर इतने बड़े खर्च से तालिबान का पतन कुछ ही हफ्तों में क्यों हो गया, जिससे पश्चिमी राजनेता हैरान और चकित रह गए।
यह इस सवाल को भी उठाता है कि बाइडेन प्रशासन ने कभी क्यों सोचा था कि एएनडीएसएफ ग्राउंड वाहनों के लिए एयर कवर, लॉजिस्टिक्स, रखरखाव और प्रशिक्षण सहायता सहित प्रमुख कौशल के लिए अमेरिका पर निर्भरता के दशकों के बाद अफगान बलों को अपने दम पर छोड़ना सुरक्षित था।
अतिरिक्त समस्या यह थी कि केंद्र सरकार एक गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही थी, जो सीमा शुल्क राजस्व के नुकसान और सहायता प्रवाह में गिरावट के कारण उत्पन्न हुई थी। कई अधिकारियों ने शिकायत की कि उन्हें महीनों से भुगतान नहीं किया गया है। (आईएएनएस)