अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका ने भारतीय मूल के अमेरिकी कारोबारी और मास्टरकार्ड के पूर्व चीफ़ अजय बंगा को वर्ल्ड बैंक के चीफ़ के पद के लिए मनोनीत किया है. राष्ट्रपति जो बाइडन ने गुरुवार को इस पद के लिए उनके नॉमिनेशन का ऐलान किया है.
व्हाइट हाउस की तरफ से जारी एक बयान में बाइडन ने कहा है कि अजय बंगा के पास वैश्विक कंपनियां बनाने और उन्हें चलाने का तीन दशक से अधिक का अनुभव है.
बाइडन ने ये कदम ऐसे वक्त में उठाया है, जब अमेरिका वर्ल्ड बैंक पर जलवायु परिवर्तन की दिक्कतों को सुलझाने की दिशा में कदम उठाने का दबाव डाल रहा है.
अजय बंगा ने क्रेडिट कार्ड की जानीमानी कंपनी मास्टरकार्ड का एक दशक से भी अधिक वक्त तक नेतृत्व किया. अब वह अमेरिका में प्राइवेट इक्विटी कंपनी जनरल अटलांटिक के वाइस चेयरमैन के तौर पर काम कर रहे हैं.
कुछ जानकारों का कहना है कि बंगा के पास जो अनुभव है उससे बैंक को प्राइवेट सेक्टर के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों में काम करने में मदद मिल सकती है.
वर्ल्ड बैंक का बोर्ड मई की शुरुआत में अजय बंगा को औपचारिक तौर पर इस पर नियुक्त करने का ऐलान कर सकता है.
बुधवार को बैंक ने कहा कि उसने तीन लोगों को इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट किया है. उम्मीद है कि मई की शुरुआत में वर्ल्ड बैंक के नए चीफ़ के नाम का ऐलान कर दिया जाएगा.
हालांकि ये कहा गया है कि बैंक के प्रमुख पद के लिए महिला उम्मीदवार को तवज्जो दी जा सकती है.
अमेरिका वर्ल्ड बैंक का सबसे बड़ा शेयरहोल्डर है. पांरपरिक तौर वह वर्ल्ड बैंक का चीफ़ चुनता रहा है. इसलिए ये माना जा रहा है कि बंगा के वर्ल्ड बैंक के चीफ़ बनने की संभावना ज्यादा है.
अमेरिकी वित्ती मंत्री जेनट येलन ने कहा है कि वो ये चाहेंगी कि वर्ल्ड बैंक सही एजेंडा चुन कर अच्छे काम के लिए और ज़ोर डाले.
उन्होंने बंगा को ऐसा शख्स करार दिया जाए जिनमें जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए विशेष योग्यता है.
उन्होंने इस समस्या को सुलझाने की दिशा में सरकारों, कंपनियों और गैर लाभकारी संगठनों के बीच पार्टनरशिप कायम करने के मामले में बंगा के रिकार्ड की ओर ध्यान दिलाया है.
कौन हैं अजय बंगा?
अमेरिका की नागरिकता ले चुके अजय बंगा का जन्म भारत में हुआ था. यहीं से उन्होंने अपना करियर शुरू किया था. उनके पिता सेना में अफसर थे.
मास्टरकार्ड ज्वाइन करने से पहले वो नेस्ले और सिटीग्रुप में काम कर चुके थे. 2021 में मास्टर कार्ड से रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने प्राइवेट इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक ज्वाइन किया और अब वो इसके वाइस चेयरमैन हैं.
जनरल अटलांटिक में वो 3.5 अरब डॉलर के क्लाइमेट फंड के एडवाइज़री बोर्ड में भी हैं.
बंगा पार्टनरशिप फ़ॉर सेंट्रल अमेरिका के लिए सह अध्यक्ष के तौर पर व्हाइट हाउस के साथ मिल कर काम कर चुके हैं.
सेंट्रल अमेरिका में प्राइवेट सेक्टर के निवेश को बढ़ावा देना इस कार्यक्रम का मकसद है ताकि अमेरिका की ओर आ रही आप्रवासियों की भीड़ पर लगाम लगाई जा सके.
सेंटर फ़ॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की डिप्टी एक्ज़ीक्यूटिव प्रेसिडेंट अमांडा ग्लासमैन ने कहा कि बंगा के दशकों के अनुभव की वजह से वर्ल्ड बैंक के प्रति अमेरिकी संसद में खास कर रिपब्लिकन सदस्यों के बीच विश्वास बढ़ेगा. रिपब्लिकन सदस्य अक्सर अंतरराष्ट्रीय संगठनों की आलोचना करते रहे हैं.
बंगा के सामने चुनौतियां
लेकिन ये देखना अभी बाकी रहेगा कि वो कैसे उम्मीदवार साबित होते हैं क्योंकि सरकार और विकास कार्यों का उनका अनुभव कम है जबकि वर्ल्ड बैंक का मुख्य कार्य विकास परियोजना और उससे जुड़े कामों को बढ़ावा देना है.
उन्होंने कहा, "हम बंगा के विज़न के सामने आने का इंतजार कर रहे हैं. हम जानना चाहते हैं कि वो वर्ल्ड बैंक को किस रूप में देखना चाहते हैं."
हालांकि इतना तय है जो भी वर्ल्ड बैंक का अगला चीफ़ होगा उसके सामने कम आय वाले देशों की वित्तीय जरूरतों को संतुलित करने की चुनौती होगी. इनमें से कई देश कर्ज़ के जाल में फंसे हुए हैं.
साथ ही नए चीफ़ के सामने बगैर अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों के जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय संघर्ष और महामारी के जोखिमों से जूझने की चुनौती होगी.
अजय बंगा डेविड मलपास की जगह लेंगे. उन्हें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नामित किया था.
मलपास जून तक इस पद से इस्तीफ़ा दे देंगे. वो अपने निर्धारित कार्यकाल पांच साल से एक साल पहले इस्तीफ़ा देंगे.
पिछले साल व्हाइट हाउस ने उन्हें उस वक्त सार्वजनिक रूप से लताड़ लगाई थी जब उन्होंने कहा था कि उन्हें पता नहीं है कि जीवाश्व ईंधन से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिल रहा है. हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए माफी मांग ली थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति के अजय बंगा को इस पद के लिए मनोनीत करने को लेकर कई भारतीय नेताओं ने उन्हें बधाई दी है.
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने कहा है कि तीन दशक पहले बंगा कोलकाता में नेस्ले के ब्रांच मैनेजर हुआ करते थे. उनका सफर प्रेरणा देने वाला है.
मास्टरकार्ड ने अपने पूर्व चीफ़ के इस पद के लिए मनोनीत होने पर उन्हें बधाई दी है और कहा है अगर वो वर्ल्ड बैंक के बोर्ड में चुने जते हैं तो उनके साथ काम करने में कंपनी को खुशी होगा. (bbc.com/hindi)
24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. आज इस युद्ध को एक साल पूरे हो चुके हैं.
इस दौरान दुनिया के तमाम देश दो धड़ों में बंटे गए हैं. एक गुट पश्चिमी देशों का है जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देश शामिल हैं और ये गुट रूस के हमले के खिलाफ़ खड़ा है.
वहीं एक गुट वो है जो इस हमले में रूस के साथ खड़ा है जिसमें बेलारूस, सीरिया, दक्षिण कोरिया, माली जैसे देश हैं.
इस एक साल से जारी युद्ध में कुछ महत्वपूर्ण देश ऐसे हैं जो खुलकर रूस के हमले आलोचना तो नहीं करते लेकिन शांति और अंतराष्ट्रीय क़ानून और संप्रभुता की वकालत ज़रूर करते हैं. ऐसे देशों में भारत, चीन और तुर्की शामिल हैं.
इस युद्ध के एक साल पूरे होने पर हम आपको इससे जुड़ी मुख्य बातें बता रहे हैं.
- 24 फ़रवरी 2022 को व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान की घोषणा की. इस युद्ध को आज 365 दिन हो चुके हैं.
- रूस से यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से से शुरुआत की और लुहांस्क, दोनेत्स्क के कई इलाक़ों पर कब्ज़ा कर लिया. उसने इन्हें रूस का हिस्सा घोषित कर दिया.
- युद्ध के एक साल पूरे होने के एक दिन पहले फरवरी 23 को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाया गया. इसमें मांग की गई कि रूस जल्द से जल्द यूक्रेन से बाहर निकले.
- प्रस्ताव के पक्ष में 141 वोट पड़े, इसके विरोध में 7 वोट पड़ें. भारत और चीन समेत 32 देशों में इस प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं की.
- संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, युद्ध के कारण अब तक1.86 करोड़ लोग यूक्रेन छोड़ कर जा चुके हैं.
- अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा जैसे कई मुल्क साफ़ तौर पर यूक्रेन की मदद के लिए आगे आए. वहीं बेलारूस ने रूस का साथ देने की बात की.
- भारत रूस के मुद्दे पर तटस्थ रहा है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि ये युद्ध का दौर नहीं है और दोनों को बातचीत के ज़रिए मुद्दे को हल करना चाहिए.
- चीन भी बातचीत के ज़रिए इस मुद्दे का समाधान निकालने पर ज़ोर देता रहा है. लेकिन हाल ही में चीन के विदेश मंत्रालय के नेता वांग यी के साथ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कीन मुलाकात चर्चा में हैं. इस बैठक के बाद सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या सच में चीन इस युद्ध में न्यूट्रल है या रूस के साथ खड़ा है. (bbc.com/hindi)
उत्तर कोरिया ने कहा है कि उसने गुरुवार को अपने पूर्वी तट से चार सामरिक क्रूज़ मिसाइलें लॉन्च की हैं.
सोल में मौजूद बीबीसी संवाददाता ज़ीन मैकेंन्ज़ी के अनुसार, शुक्रवार को उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया के हवाले से बताया गया कि ‘अगर किसी तनावपूर्ण माहौल में परमाणु हमला होता है तो उसकी जवाबी कार्रवाई’ के लिए ये एक ड्रिल था.
अब तक दक्षिण कोरिया और जापान ने इस लॉन्च को लेकर कोई जानकारी नहीं दी है.
उत्तर कोरिया पर बैलेस्टिक मिसाइल लॉन्च करने पर संयुक्त राष्ट्र की ओर प्रतिबंध है लेकिन ये प्रतिबंध क्रूज़ मिसाइलों पर लागू नहीं होता. (bbc.com/hindi)
संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने गुरुवार को यूक्रेन में शांति बहाली को लेकर लेकर एक प्रस्ताव पारित किया. प्रस्ताव में कहा गया कि रूस से यूक्रेन में युद्ध समाप्त कर अपनी सेनाएं वापस बुलाएं.
भारत और चीन इस प्रस्ताव पर वोटिंग प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए.
हालांकि यूक्रेन पर लाया गया यह प्रस्ताव 141 वोटों से पारित हुआ. भारत के साथ साथ 32 देश इस प्रस्ताव पर वोटिंग प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए.
193 सदस्यीय आम सभा ने यूक्रेन और उसके समर्थकों की ओर को अपनाया गया. प्रस्ताव का शीर्षक था- ‘यूक्रेन में एक व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति’.
रूस ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण किया था. आज इस युद्ध को एक साल पूरे हो रहे हैं.
इस दौरान संयुक्त राष्ट्र की महासभा, सुरक्षा परिषद और मानवाधिकार परिषद में, हमले की की बार निंदा की गई और यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया.
भारत इससे पहले यूक्रेन रूस युद्ध पर लाए गए कई प्रस्तावों से दूरी बना चुका है. भारत बार -बार इस बार पर ज़ोर देता है कि यूएन चार्टर, अंतराष्ट्रीय क़ानून, राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए. (bbc.com/hindi)
जापान के एक समुद्रतट पर मिले बड़े मेटल बॉल को अब क्रेन की मदद से हटाया गया है.
स्थानीय मीडिया के अनुसार, जापान के तट पर मिले इस मेटल बॉल से स्थानीय लोग परेशान थे और इसे लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे.
जापान के शहर हमामात्सु में स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि इसे ‘एक निश्चित अवधि के लिए’ संग्रहीत किया जाएगा और फिर इसे ‘ख़त्म’ कर दिया जाएगा. कई लोगों ने सवाल उठाएं हैं कि आख़िर जापानी अधिकारियों ने इसे लेकर साफ़-साफ़ क्यों नहीं बताया कि ये आख़िर है क्या?
इस सप्ताह की शुरुआत में तट पर इस असामान्य वस्तु की जानकारी स्थानीय पुलिस को दी गई जिसके बाद इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे, मसलन- ये "गॉडज़िला का अंडा" है, "मूरिंग बॉय" है "बाहरी अंतरिक्ष से" आई हुई कोई चीज़ है.
पुलिस और यहां तक की एक बम स्क्वाड को भी इसकी जांच करनेके लिए भेजा गया था.
अधिकारियों ने चारों ओर से घेरकर इस मेटल बॉल का एक्स-रे किया था, जिससे बस यही पता चला कि इसमें कोई घातक चीज़ नहीं है लेकिन इसके अलावा इसके बारे में और कुछ पता नहीं चल सका.
अब इस मेटल बॉल को समुद्रतट से हटा दिया गया है.
एक स्थानीय अधिकारी ने जापानी मीडिया को बताया, "मुझे लगता है कि हमामात्सु शहर में हर कोई इस बारे में चिंतित और उत्सुक था कि यह क्या है, लेकिन हमें राहत मिली है कि काम ख़त्म हो गया है." (bbc.com/hindi)
यूरोपीय कमीशन में काम करने वाले कर्मचारियों से कहा गया है कि वे अपने फ़ोन और कारपोरेट उपकरणों से टिकटॉक ऐप को हटा दें.
कमीशन ने कहा है कि वो डेटा सुरक्षित करने और साइबर सिक्योरिटी बढ़ाने के लिए ये कदम उठा रहा है.
टिकटॉक, चीन की कंपनी बाइटडांस का है जिस पर आरोप लगते रहे हैं कि ये ऐप डेटा जमा कर चीन को देती है.
टिकटॉक ने कहा है कि वो अन्य सोशल मीडिया की तरह ही अपना काम करता है.
प्रतिबंध का मतलब है कि यूरोपीय कमीशन के कर्मचारी उन निजी उपकरणों पर टिकटॉक का इस्तेमाल नहीं कर सकते जिसमें आधिकारिक ऐप इंस्टाल हैं.
कमीशन ने कहा है कि उसके पास 32 हजार परमानेंट और कांट्रैक्ट कर्मचारी काम करते हैं. इन सभी कर्मचारियों को 15 मार्च से पहले टिकटॉक ऐप हटाने होंगे.(bbc.com/hindi)
ओमान ने इसराइली विमानों को अपने हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी है. इसकी घोषणा इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गुरुवार को की.
ये इसराइली उड्डयन उद्योग के लिए एक बड़ी ख़बर है क्योंकि इससे इसराइली विमानों की सीधी पहुंच एशिया और यूरोप तक हो जाएगी.
ओमान की मंज़ूरी मिलने के बाद नेतन्याहू ने एक बयान जारी कर कहा, “अब सुदूर पूर्व बहुत दूर नहीं रह गया है.”
उन्होंने कहा कि असल में एशिया और यूरोप के लिए इसराइल मुख्य ट्रांज़िट प्वाइंट बन गया है.
गौरतलब है कि ओमान और इसराइल के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं.
स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि अभी तक इसराइली एयरलाइंस को पूर्वी एशिया, भारत और थाईलैंड के लिए अपनी उड़ानों को दक्षिण में डाइवर्ट करना पड़ता था ताकि अरबी प्रायद्वीप के हवाई क्षेत्र से बचा जा सके. इसमें ढाई घंटे का सफ़र अधिक हो जाता था और ईंधन की ख़पत भी ज्यादा होती थी.
ओमान के फैसले से अब इसराइली उड़ानों को भारत और थाईलैंड पहुंचने में दो से चार घंटे लगेंगे. (bbc.com/hindi)
डिलीवरी की तारीख नजदीक आते ही छह रूसी महिलाएं फ्लाइट पकड़कर अर्जेंटीना पहुंच गईं. ब्यूनस आयरस के एयरपोर्ट पर अधिकारियों ने जब उनसे पूछताछ की तो रूसी बर्थ टूरिज्म का मामला सामने आ गया.
कई घंटे लंबी उड़ान भरने के बाद अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयरस पहुंचीं छह रूसी महिलाओं को एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन अधिकारियों ने रोक लिया. महिलाएं प्रसव से ठीक पहले अर्जेंटीना पहुंची थीं. उनके पास टूरिस्ट वीजा था लेकिन अर्जेंटीना में वे कहां जाएंगी, क्या करेंगी? अधिकारियों को इन सवालों के जवाब नहीं मिले. छहों रूसी महिलाओं के पास कोई रिटर्न टिकट भी नहीं था.
इस मामले से अर्जेंटीना के माइग्रेशन डिपार्टमेंट के कान खड़े हो गए. अचानक पूरा मामला समझ में आने लगा. असल में कई रूसी नागरिक अपने बच्चे को अर्जेंटीना में जन्म देना चाहते हैं. अर्जेंटीना में जन्म लेने वाला आसानी से वहां का नागरिक हो जाता है. यही वजह है कि बीते एक साल में ब्यूनस आयरस में नवजात बच्चों के साथ रूसी महिलाएं और रूसी जोड़े खूब दिख रहे हैं. कैफे, पार्कों, बसों और प्राइवेट क्लीनिकों में खूब रूसी नागरिकों का दिखना और रूसी भाषा सुनाई पड़ना सामान्य हो चुका है.
सैकड़ों नहीं, हजारों में है संख्या
ब्यूनस आयरस के सानातोरियो फिनशिएतो क्लीनिकल में प्रेंग्नेंट रूसी महिलाएं हमेशा नजर आ जाती हैं. क्लीनिक के अधिकारी गुइलेर्मो कापुया कहते हैं, हमने कल्पना नहीं की थी कि ये एक ट्रेंड सा बन जाएगा. आखिरी तिमाही में तो संख्या बहुत ही ज्यादा बढ़ गई. दिसंबर 2022 में क्लीनिक में 200 बच्चे पैदा हुए, इनमें से एक तिहाई रूसी मांओं के थे.
दक्षिण अमेरिकी देश पहुंचे ज्यादातर रूसी, स्पैनिश भाषा नहीं बोल पाते हैं. अधिकांश रूसी नागरिक तो पहली बार अर्जेंटीना पहुंचे हैं. माइग्रेशन एजेंसी की डायरेक्टर फ्लोरेंसिया कारिजनानो कहती हैं कि रूसी नागरिकों का आना अब "एक एवलांच" की तरह हो चुका है. बीते तीन महीने में ही गर्भवती महिलाओं के साथ 5,800 रूसी नागरिक अर्जेंटीना पहुंचे हैं.
ज्यादातर रूसी महिलाएं एम्सटर्डम, इस्तान्बुल और अदीस अबाबा से कनेक्टिंग फ्लाइट लेकर ब्यूनस आयरस पहुंचती हैं. माइग्रेशन डायरेक्टर के मुताबिक हर फ्लाइट में 14 से 15 गर्भवती महिलाएं होती हैं.
अर्जेंटीना ही क्यों?
2003 से अर्जेंटीना में रह रहीं रूसी मूल की अनुवादक एलेना श्कीतेनकोवा कहती हैं, "करीब 90 फीसदी महिलाएं यहां बेहतर भविष्य की तलाश में आई हैं. ऐसे कई मामले हैं जब किसी महिला का पता चला कि उसका बेटा होने वाला है और फिर उन्होंने अर्जेंटीना आने का फैसला किया." श्कीतेनकोवा प्रशासनिक काम में रूसी मांओं की मदद करती हैं.
यूक्रेन युद्ध के चलते रूस ने सैन्य सेवा को अनिवार्य कर दिया है. बीते एक साल में रूस ने देश भर के कई इलाकों से नौजवानों को सेना में भर्ती किया है. रूसी मांओं का जिक्र करते हुए श्कीतेनकोवा कहती हैं, "वे मुझसे कहती हैं कि मैं अपने बेटे को जिंदा देखना चाहती हूं, मैं अपने बेटे के लिए शांति और बेहतर भविष्य चाहती हूं."
अर्जेंटीना पहुंची 32 साल की एक रूसी महिला की तीन बेटियां हैं. तीसरी बेटी का जन्म मई 2022 में ब्यूनस आयरस में हुआ. अपनी पहचान छुपाते हुए वह कहती हैं, "अर्जेंटीना आने के मेरे फैसले की एक वजह यूक्रेन युद्ध भी है. हालांकि ये सिर्फ अकेला कारण नहीं है. लेकिन यह बात पक्की है कि अगर हम रूस में ही रहते तो शायद मेरे पति को जबरन सैन्य सेवा के लिए बुला लिया जाता."
रूस से ज्यादा सम्मान
अर्जेंटीना पहुंचे एक रूसी पुरुष ने अपनी पहचान छुपाने की शर्त में बताया कि ज्यादातर रूसी नागरिक दोहरी नागरिकता लेना चाहते हैं. वह बताते हैं कि अर्जेंटीना में बच्चा पैदा करने का पैकेज करीब 15,000 डॉलर का पड़ता है. अर्जेंटीना की पुलिस के मुताबिक कुछ नेटवर्क तो बर्थ टूरिज्म के लिए 35,000 डॉलर तक मांग रहे हैं.
रूसी पुरुष कहते हैं, "अगर आपके पास थोड़ा सा पैसा है और आप रूस के बाहर बच्चा पैदा करने की हालत में हैं तो आप जरूर ऐसा करेंगे. अर्जेंटीना की नागरिकता लेना आसान है और रूस के लाल पासपोर्ट के मुकाबले आपके साथ बेहतर सलूक किया जाता है."
रूसी पासपोर्ट से करीब 50 देशों में वीजा फ्री यात्रा की जा सकती है, वहीं अर्जेंटीना के पासपोर्ट से 175 देशों में बिना वीजा ट्रैवल किया जा सकता है.
ओएसजे/सीके (एएफपी)
खगोलविदों ने सितारों के कुछ समूह खोजे हैं जो विशालकाय आकाशगंगाएं प्रतीत होती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बिग बैंग के 60 करोड़ साल बाद ब्रह्मांड की रफ्तार को और तेजी मिली होगी, जिससे ये विराट आकाशगंगाएं बनीं.
वैज्ञानिकों ने विराट आकाशगंगाएं खोजी हैं जिनका निर्माण बिग बैंग के सिर्फ साठ करोड़ साल बाद हुआ होगा. ये बेहद विशाल आकाशगंगाएं हैं जिन्हें जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के जरिए खोजा गया है. हालांकि जेम्स वेब इनसे भी पुरानी आकासगंगाएं खोज चुका है जिनका निर्माण बिग बैंग के 30 करोड़ साल बाद हुआ हो सकता है. लेकिन नई खोजी गईं आकाशगंगाएं अपने आकार और परिपक्वता के कारण विशेष हैं.
22 फरवरी 2023 को प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि जेम्स वेब की इस खोज से वैज्ञानिक हैरान हैं. मुख्य शोधकर्ता ऑस्ट्रेलिया की स्वाइनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के आइवो लाबे और उनकी टीम ने यह खोज की है. हालांकि इस दल को उम्मीद थी कि ब्रह्मांड के निर्माण की शुरुआत में छोटी-छोटी आकाशगंगाएं बनी होंगी. उन्हें इतनी बड़ी आकाशगंगा मिलने की उम्मीद नहीं थी.
लाबे बताते हैं, "उस युग की ज्यादातर आकाशगंगाएं अब भी छोटी हैं और धीरे धीरे उनका आकार बढ़ रहा है. लेकिन कुछ विराटकाय समूह हैं जिन्होंने ब्रह्मांड को तेज गति दी. ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ होगा, इस बारे में कोई जानकारी फिलहाल नहीं है.”
नेचर पत्रिका में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि इस खोज में कुल छह तारा समूह मिले हैं जिनका वजन हमारे सूर्य से कई अरब गुना ज्यादा है. उनमें से एक तो इतनी बड़ी है कि उसमें मौजूद कुल सितारों का वजन हमारे सूर्य से 100 अरब गुना ज्यादा है. फिर भी, वैज्ञानिक मान रहे हैं कि ये आकाशगंगाएं बहुत सघन हैं. इनमें भी तारों की संख्या तो उतनी ही है जितनी हमारी आकाश गंगा मिल्की वे में है लेकिन वे बहुत पतली पट्टी में सिमटे हुए हैं.
हैरतअंगेज नतीजे
लाबे ने कहा कि उन्हें जब नतीजे मिले तो उन्हें और उनके साथियों को तो उन पर यकीन ही नहीं हुआ कि समय के इतने शुरुआती दौर में भी मिल्की वे जैसी परिपक्व आकाशगंगाएं हो सकती हैं. इसलिए उनकी दोबारा पुष्टि की गई. वे चीजें इतनी बड़ी और चमकदार थीं कि कुछ वैज्ञानिकों को तो नतीजे ही गलत लगने लगे.
लाबे ने कहा, "हमारा तो दिमाग हिल गया था. यह हास्यास्पद था.”
इस शोध में शामिल रहे पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के जोएल लेया कहते हैं कि ये आकाशगंगाएं ‘ब्रह्मांड के पथद्रष्टा' हैं. उन्होंने बताया, "यह रहस्योद्घाटन की ब्रह्मांड के इतिहास की इतनी शुरुआत में ही विशाल आकाशगंगाओं का निर्माण शुरू हो गया था, विज्ञान में मौजूद अवधारणओं को बदल देता है. जो हमने खोजा है, उससे विज्ञान के सामने बड़ी समस्याएं पैदा होती हैं. शुरुआती आकाशंगगाओं के निर्माण की प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े हो जाते हैं.”
जेम्स वेब का एक और कमाल
दस अरब डॉलर की लागत वाले जेम्स वेब टेलीस्कोप से जो शुरुआती डेटा मिला था, वह आकाशगंगाओं के बारे में ही था.एक साल पहले ही नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने अब तक के सबसे बड़े टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में भेजा था. इसे हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी माना जाता है, जिसे 33 साल पूरे हो रहे हैं.
हबल के उलट जेम्स वेब बहुत ज्यादा बड़ा और कहीं ज्यादा ताकतवर है. अपने इंफ्रारेड कैमरों के जरिए यह अंतरीक्षीय धुंध के पार भी देख सकता है. इस तरह जेम्स वेब ने वे आकाशगंगाएं खोजी हैं जिन्हें अब से पहले देखा ही नहीं गया था. वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि इस टेलीस्कोप के जरिए वे सबसे पहले बने तारे और सबसे पहली आकाशगंगाओं का निर्माण देख पाएंगे जो बिग बैंग के वक्त यानी 13.8 अरब साल पहले बने होंगे.
वैज्ञानिक आधिकारिक तौर पर इन तारा समूहों को आकाशगंगा कहने के लिए आधिकारिक पुष्टि का इंतजार कर रहे हैं. लेया कहते हैं कि संभव है कि कुछ तारा समूहों को आकाशगंगा ना कहा जाए बल्कि ये अति विशाल ब्लैक होल हों. वह कहते हैं कि इसका पता अगले साल तक ही चल पाएगा.
वीके/एए (रॉयटर्स)
वॉरसॉ (पालैंड), 23 फरवरी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो. बाइडन की यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच हुई यूरोप यात्रा बुधवार को समाप्त हो गई और इस दौरान उन्होंने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के अपने पूर्वी सहयोगियों के साथ साझेदारी मजबूत करने की कोशिश की।
इस बीच, यूक्रेन पर जारी रूस के हमलों के करीब एक साल पूरा होने के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की चीन से नजदीकियां बढ़ रही हैं।
बाइडन ने यूक्रेन और पोलैंड की अपनी चार दिवसीय यात्रा में अपने सहयोगी देशों को आश्वस्त किया कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बावजूद अमेरिका उनके पक्ष में खड़ा रहेगा। इस यात्रा के अंत में बाइडन ने वॉरसॉ में ‘बुखारेस्ट नाइन’ के नेताओं से मुलाकात की।
नाटो गठबंधन के पूर्वी क्षेत्र के नौ देशों को ‘बुखारेस्ट नाइन’ कहा जाता है। ये देश 2014 में उस वक्त एक साथ आए थे, जब पुतिन ने यूक्रेन से क्रीमिया को अलग करके उस पर कब्जा कर लिया था। इन नौ देशों में चेक गणराज्य, एस्टोनिया, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, रोमानिया और स्लोवाकिया शामिल हैं।
इस बीच, पुतिन ने बुधवार को मॉस्को में ‘चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी’ के वरिष्ठतम विदेश नीति अधिकारी वांग यी की मेजबानी की। अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने सचेत किया है कि चीन रूसी सेना को हथियार एवं गोला-बारूद की आपूर्ति करने पर विचार कर रहा है।
दोनों पक्षों की ओर से की गई कवायद इस बात का संकेत देती है कि यूक्रेन में संघर्ष अभी और बढ़ने की आशंका है।
बाइडन इस यात्रा के दौरान अचानक कीव पहुंचे और उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से मुलाकात की तथा इसके बाद उन्होंने मंगलवार को वॉरसॉ में पश्चिमी एकता को लेकर भाषण दिया। बाइडन के पोलैंड में भाषण देने के बीच पुतिन ने घोषणा की कि रूस ‘न्यू स्टार्ट’ संधि में अपनी भागीदारी निलंबित कर रहा है। यह संधि अमेरिका के साथ रूस का आखिरी बचा हुआ परमाणु हथियार नियंत्रण समझौता है।
बाइडन ने बुधवार को कहा कि पुतिन ने अमेरिका एवं रूस के बीच परमाणु हथियारों की नियंत्रण संधि के आखिरी बचे हिस्से से अपने देश की भागीदारी निलंबित करके ‘‘बड़ी भूल’’ की है।
उन्होंने बुधवार को ‘बुखारेस्ट नाइन’ के नेताओं से मुलाकात की। जैसे-जैसे यूक्रेन में युद्ध खिंचता जा रहा है, ‘बुखारेस्ट नाइन’ देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं। कई देशों को चिंता है कि यूक्रेन में सफल होने के बाद पुतिन उन देशों के खिलाफ भी सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं।
बाइडन ने इस डर को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा कि नाटो का आपसी रक्षा समझौता ‘‘पवित्र’’ है और ‘‘हम नाटो के हर इंच की रक्षा करेंगे।’’
बाइडन बुधवार देर रात वाशिंगटन लौटे। (एपी)
एपी सिम्मी नेत्रपाल नेत्रपाल 2302 1038 वॉरसॉ
-विनीत खरे
पिछले कुछ महीने पाकिस्तान के लिए अच्छे नहीं रहे हैं. देश में लगातार राजनीतिक और आर्थिक संकट का दौर बना हुआ है.
इस दौरान मुश्किलें भी कई रही हैं. बाढ़ से करीब एक-तिहाई देश का डूब जाना, पाकिस्तानी रुपए का लगतार कमज़ोर होना, बस कुछ दिनों के आयात के लिए बचा विदेशी मुद्रा भंडार, देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन, महंगाई पर बढ़ती नाराज़गी, टीटीपी के घातक चरमपंथी हमलों में दर्जनों की मौत, जैसे संकट का सामना पाकिस्तान इन दिनों कर रहा है.
पाकिस्तान के मित्र देश भी आईएमएफ़ के साथ उसके क़रार का इंतज़ार कर रहे हैं, ऐसे वक्त जब यूनिसेफ़ की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में करीब 40 लाख बच्चे अभी भी बाढ़ वाले दूषित पानी के नज़दीक रह रहे हैं, जिससे उनकी सेहत को ख़तरा है.
पाकिस्तान के भीतर कमेंट्री सुनें तो वहां श्रीलंका जैसे हालात पैदा होने की बात हो रही है. परमाणु हथियारों से लैस पाकिस्तान के ऐसे हालात पर भारत को कितना चिंतित होना चाहिए?
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने समाचार एजेंसी एएनआई में स्मिता प्रकाश के साथ पॉडकॉस्ट में पाकिस्तान के मौजूदा संकट पर कहा, "पाकिस्तान का भविष्य ज़्यादातर पाकिस्तान के ऐक्शन और पाकिस्तान के विकल्पों के चुनाव पर निर्भर है. कोई भी ऐसी मुश्किल स्थिति में अचानक और बिना कारण नहीं पहुँचता. ये उन पर निर्भर है कि आगे का क्या रास्ता निकलता है. आज हमारे रिश्ते ऐसे नहीं कि हम इस प्रक्रिया में सीधे तौर पर प्रासंगिक हों."
एस जयशंकर ने यह भी कहा, "अगर हम श्रीलंका से तुलना करें तो मैं कहूँगा कि ये एक बिल्कुल अलग रिश्ता है. श्रीलंका को लेकर हमारे यहाँ बहुत मित्रभाव है."
भारत के लिए चिंता का सबब?
वहीं टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक पॉडकॉस्ट में जब पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीक़ा से ये पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'सालों से अफ़ग़ानिस्तान दुनिया के लिए हेल-होल (जहन्नुम जैसा) रहा है, इसमें पाकिस्तान का बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन आप नहीं चाहेंगे कि पाकिस्तान भी उसी लीग में शामिल हो जाए.'
उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि दिल्ली में पाकिस्तान से बातचीत को लेकर बहुत कम समर्थन है. सोच शायद ये है कि इस पुराने दुश्मन को सड़ने दो, इसे जहन्नुम की आग में जलने दो, लेकिन भारत को समझने की ज़रूरत है कि उसे ऐसे समझदार लोगों की ज़रूरत है जो पाकिस्तान के बारे में सोचें."
"मैं भारत से दया की भीख नहीं मांग रही. मैं कह रही हूं कि भारत अपनी आंखें न बंद करे ताकि ये पुराना दुश्मन, पड़ोसी खुद को बर्बाद न कर ले."
आयशा ने कहा कि पाकिस्तान में जब तक सकारात्मक सोच उभरे, भारत को भी चाहिए कि वो जहां तक हो सके पाकिस्तान को सहानुभूति की निगाह से देखे. उन्होंने कहा कि वो पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने की बात नहीं कर रही हैं.
आयशा के मुताबिक़, उन्हें पता है कि दिल्ली और वॉशिंगटन में एक मान्यता है कि पाकिस्तान ने अपनी पीड़ित स्थिति या विक्टिमहुड का फ़ायदा उठाया है, लेकिन आज की स्थिति गंभीर है.
अर्थशास्त्री अजीत रानाडे ने एक लेख में लिखा कि परमाणु हथियार से लैस पाकिस्तान का ढहना भारत के लिए अच्छी ख़बर नहीं है.
वो लिखते हैं, "अस्थिर पाकिस्तान का मतलब है उग्रवादी इस्लाम और भारत-विरोधी ज़हर और ज़्यादा पैदा होना. इसका मतलब है कि भारत को अपनी पश्चिमी सीमा की रक्षा करने के लिए ज़्यादा संसाधन लगाने पड़ेंगे, जिससे आपको चीन की सीमा से संसाधन हटाने होंगे."
रिश्तों में सुधार के संकेत नहीं
पाकिस्तान में जहां कर्ज़ों पर डिफ़ॉल्ट का डर जताया जा रहा है. रक्षा मंत्री आसिफ़ ख़्वाजा ने ये भी कह दिया कि पाकिस्तान ने डिफॉल्ट कर दिया है.
हालांकि बीबीसी से बातचीत में पाकिस्तानी अर्थशास्त्री और पूर्व केयरटेकर वित्त मंत्री सलमान शाह ने भरोसा दिलाया कि पाकिस्तान स्थिति को नियंत्रित करने में सफल होगा.
सलमान शाह ने कहा, "हमें अपने आर्थिक सिस्टम्स को ठीक करना है. यहां बहुत कुशासन है जिसे ठीक करने की ज़रूरत है. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा. अगर हम लंबे वक्त की बात करें तो दक्षिण एशिया के लिए हमें सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ अच्छे आर्थिक रिश्तों की ज़रूरत है."
लेकिन आज की स्थिति ये है कि पाकिस्तान के हालात बेहद ख़राब हैं और बढ़ती राजनीतिक कटुता चीज़ों को बेहतर होने में बाधा डाल रही है. भारत-पाकिस्तान रिश्ते लंबे वक्त से ठंडे बस्ते में है, और विवादों और शिकायतों की फ़ेहरिस्त लंबी है.
भारत का कहना है कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकती और साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण पर नवाज़ शरीफ़ को निमंत्रण और साल 2015 में उनका लाहौर जाना इस बात का उदाहरण था कि भारत ने रिश्तों को सुधारने के लिए कोशिशें कीं लेकिन उरी और पुलवामा जैसे चरमपंथी हमले दिखाते हैं कि पाकिस्तान के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.
पाकिस्तान जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने से ख़फ़ा है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने आरएसएस की तुलना हिटलर की नाज़ी पार्टी से की.
जम्मू और कश्मीर पर भारतीय क़दम के बाद पाकिस्तान ने भारत से व्यापार रोक दिया, हालांकि आधिकारिक और अनाधिकारिक तौर पर ये व्यापार जारी है.
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनॉमिक रिलेशंस (इक्रियार) की डॉक्टर निशा तनेजा कहती हैं कि भारत ने अपनी नीति के अंतर्गत पाकिस्तान से आयात पर 200 प्रतिशत शुल्क लगाया है लेकिन निर्यात पर कोई रोक नहीं है.
उनके मुताबिक, पाकिस्तान की आधिकारिक नीति है कि व्यापार को रोक दिया जाए, लेकिन अगर व्यापार हो रहा है तो उसे होने दो.
निशा तनेजा को उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां पाकिस्तान की मदद करेंगी और उन्हें नहीं लगता कि भारत पाकिस्तान की आर्थिक मदद करेगा.
वो कहती हैं, "अगर पाकिस्तान व्यापार से रोक हटाता है तो कम से कम वो सस्ता सामान आयात कर सकता है."
अतीत में मदद
दोनो देशों में आम चुनाव नज़दीक हैं, इसलिए दोनो देशों की बीच किसी राजनीतिक गतिविधि के आसार नहीं के बराबर लगते हैं.
पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के 2002 गुजरात दंगों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर तीखी टिप्पणी करने से भी संभावित बातचीत या बेहतर रिश्तों की उम्मीदें धूमिल ही हुई है.
और ख़राब रिश्तों का असर मानवीय स्थिति पर भी पड़ रहा है.
साल 2010 में जब पाकिस्तान में बाढ़ से तबाही हुई तब भारत ने आर्थिक मदद की घोषणा की थी.
साल 2005 में पाकिस्तान में भूकंप से आई तबाही पर भी भारत ने आर्थिक मदद का वायदा किया था.
साल 2001 में गुजरात में आए भूकंप में पाकिस्तान ने मदद की पेशकश की थी.
लेकिन पिछले साल जब बाढ़ से करीब एक तिहाई पाकिस्तान प्रभावित हुआ तब कोई भारतीय मदद की घोषणा नहीं हुई.
बाढ़ पर प्रधानमंत्री मोदी ने दुख जताया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीब ने उनका शुक्रिया अदा किया.
जब एक साक्षात्कार में पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो से पूछा गया क्या उन्होंने बाढ़ से हुई तबाही पर भारत से मदद मांगी है, या फिर उन्हें मदद की पेशकश की गई, तो उन्होंने दोनों सवालों का जवाब "नहीं" में दिया.
भारतीय मीडिया में विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से कहा गया कि अगर पाकिस्तान से मदद की गुहार आती है तो भारत मदद करेगा.
याद रहे कि तुर्की में भूकंप पर भारतीय मदद ऐसे वक्त की जा रही है जब भारतीय विरोध के बावजूद तुर्की वैश्विक मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है और पाकिस्तान से उसके रिश्ते मज़बूत हुए हैं.
क्या कर सकता है भारत?
बीबीसी से बातचीत में अर्थशास्त्री अजीत रानाडे कहते है, "अगर हम श्रीलंका, सीरिया और तुर्की को मानवीय आधार पर सहायता दे सकते हैं तो हमें पाकिस्तान के बारे में भी ऐसा सोचना चाहिए. 50 मिलियन डॉलर भी अच्छी शुरुआत हो सकती है. इसका क्या नुकसान हो सकता है? हम जी-20 के अध्यक्ष हैं. हम वैश्विक शक्ति बनना चाहते हैं और ऐसी मदद देना उसकी सोच के अनुरूप है."
रानाडे के मुताबिक भारत हर साल 60 से 70 अरब डॉलर रिफ़ाइंड पेट्रोल और डीज़ल दुनिया को निर्यात करता है, और पाकिस्तान इसका फ़ायदा उठा सकता है, जिससे दोनो देशों के बीच व्यापार बढ़ सकता है.
अर्थशास्त्री अजीत रानाडे के मुताबिक भारत मानवीय आधार पर पाकिस्तान की मदद की सोच सकता है, क्योंकि पाकिस्तान के मानवीय हालात खराब होने से लोगों की भीड़ का भारत आने का खतरा है.
वो कहते हैं, "आपको याद होगा कि बांग्लादेश युद्ध में क्या हुआ?" लेकिन क्या भारत-श्रीलंका और भारत-पाकिस्तान रिश्तों को एक स्तर पर रखना ठीक है?
इक्रियार की डॉक्टर निशा तनेजा के मुताबिक, "श्रीलंका के साथ भारतीय मदद, निवेश का इतिहास रहा है और दोनों देशों के बीच ऐसे चैनल्स हैं जिनका इस्तेमाल होता रहा है."
उधर पाकिस्तानी अर्थशास्त्री सलमान शाह के मुताबिक़, आज के हालात में कोई भी पाकिस्तानी सरकार भारत से मदद नहीं लेगी.
वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि किसी भी सरकार के लिए राजनीतिक समझदारी होगी कि वो कि वो भारत से कोई मदद या समर्थन ले. अभी ये मुमकिन नहीं क्योंकि पाकिस्तान के लिहाज़ से भारत में सरकार पाकिस्तान की दोस्त नहीं है." (bbc.com/hindi)
लिटिल रॉक (अमेरिका), 23 फरवरी। अमेरिका में अरकंसास के लिटिल रॉक औद्योगिक इलाके के बाहरी क्षेत्र में एक छोटे विमान के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से उसमें सवार एक पर्यावरण परामर्श कंपनी के पांच कर्मचारियों की मौत हो गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
विमान उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
पुलस्की काउंटी शेरिफ के कार्यालय के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कोडी बर्क ने बताया कि विमान बुधवार को ‘बिल एंड हिलेरी क्लिंटन नेशनल एयरपोर्ट’ के कई मील दक्षिण में दुर्घटनाग्रस्त हुआ। संघीय विमानन प्रशासन (एफएए) ने बताया कि विमान में पांच लोग सवार थे।
एफएए ने बताया कि दो इंजन वाले विमान बीच बीई20 ने लिटिल रॉक हवाई अड्डे से उड़ान भरी थी और यह ओहायो के कोलंबस में ‘जॉन ग्लेन कोलंबस इंटरनेशनल एयरपोर्ट’ जाने वाला था।
बर्क ने विमान में सवार यात्रियों के बारे में तत्काल कोई जानकारी नहीं दी है। एफएए ने कहा कि वह और राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड मामले की जांच करेगा। (एपी)
एपी सुरभि सिम्मी सिम्मी 2302 0841 लिटिलरॉक
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई ने बुधवार को लाहौर से जेल भरो आंदोलन शुरू कर दिया.
इमरान की पार्टी ने कहा है कि देश में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. संविधान की अवमानना की जा रही और देश दिवालिया होने की ओर बढ़ रहा है. लिहाजा ये जनता के उठ खड़े होने का वक्त है.
इमरान ख़ान ने कहा,'' ऐसा लग रहा है कि देश में कोई शासन नहीं है. अदालत ने पंजाब में 90 दिनों के अंदर चुनाव कराने को कहा है लेकिन सरकारी संस्थाएं ऐसा करने को तैयार नहीं दिखतीं. ''
उन्होंने कहा, ''अगर देश के दो प्रांतों में 90 दिनों के अंदर चुनाव नहीं हुए तो संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा. इससे देश में जंगलराज हो जाएगा. ''
इमरान की पार्टी पीटीआई ने एक महीने पहले पंजाब और खैबर पख़्तूनख्वा प्रांत में अपनी सरकारें भंग कर दी थी.
जेल भरो आंदोलन शुरू करने के लिए पीटीआई कार्यकर्ता जेल रोड पर इकट्ठा हुए.
कुछ कार्यकर्ताओं ने खुद को जंजीरों से बांध रखा था. इमरान ख़ान ने कहा कि गोलियों से लगे घाव ठीक होने पर वो भी गिरफ़्तारी देंगे.
पिछले साल नवंबर में पंजाब के वज़ीराबाद में सरकार विरोधी एक रैली के दौरान एक शख़्स ने इमरान पर गोलियां चलाई थी. इस फायरिंग में उनके पैर में तीन गोलियां लगी थीं.
पार्टी ने आंदोलन में शरीक हुए पूर्व मंत्री शाह महमूद कुरैशी, असद उमर, आज़म स्वाती और पंजाब के पूर्व गवर्नर उमर सरफराज़ चीमा जैसे सीनियर नेताओं की फुटेज शेयर की है.
ये लोग एक वैन में बैठे हुए दिख रहे हैं. ये लोग प्रदर्शन स्थल पर खड़ी पुलिस को गिरफ़्तार करने की चुनौती दे रहे हैं.
कुरैशी ने जेल भरो आंदोलन के बारे कहा, ''आज पीटीआई के 200 कार्यकर्ता और पार्टी के लाहौर नेतृत्व समेत हम सभी गिरफ़्तारी देने के लिए पेश हुए'' .
इमरान के बाद पार्टी में सबसे बड़े नेता कुरैशी ने कहा,''हमारा ये आंदोलन तब तक चलता रहेगा जब तक ये आयातित सरकार देश में अराजकता की स्थिति खत्म न कर दे. अवाम की अदालत में जब तक इसे जिम्मेदार न ठहराया जाए तब तक इसे छोड़ा नहीं जाएगा.''
संविधान के तहत सरकार को दोनों जगह 90 दिनों के अंदर चुनाव कराने होंगे. लेकिन पीएमएल-एन के नेतृत्व वाली नौ पार्टियों की गठबंधन सरकार ने कहा है कि प्रांतीय और राष्ट्रीय चुनाव अलग-अलग कराना मुमकिन नहीं क्योंकि देश आर्थिक बदहाली के दौर से जूझ रहा है. (bbc.com/hindi)
फ़लीस्तीनी क्षेत्र के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि इसराइल के सुरक्षा बलों के वेस्ट बैंक पर किए एक हमले में कम से कम 11 फ़लीस्तीनी मारे गए हैं, जबकि लगभग 80 लोग घायल हो गए हैं.
इसराइली सुरक्षा बल बुधवार की सुबह जैसे ही वहां के पुराने शहर नब्लुस में दाखिल हुए, वैसे ही वहां से धमाकों और गोलियां चलने की आवाज़ सुनाई पड़ने लगी.
इसराइल की सेना ने बताया है कि उसने एक घर में सेंधमारी करके वहां छिपे तीन वांछित चरमपंथियों को मार गिराया है.
वहीं बाहर मारे गए लोगों में से कई आम लोग हैं, जिनमें कम से कम दो बुजुर्ग हैं.
फ़लीस्तीनी क्षेत्र के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 72 साल के अदनान साबे बारा उनमें से एक हैं. तेज़ी से फैल रहे एक वीडियो में ब्रेड के पैकेटों के पास उनका शव दिख रहा है.
मंत्रालय ने 61 साल के अब्दुल हादी अशक़र और 16 साल के मोहम्मद शाबान के भी मारे जाने की सूचना दी है.
बुधवार की सुबह आंसू गैस से दम घुटने के चलते एक और बुजुर्ग अमन शौकत अनब की अस्पताल में मौत हो गई.
चरमपंथी संगठन लायन्स डेन ने एक टेलीग्राम पोस्ट में बताया है कि उसके और अन्य संगठनों के छह सदस्य मारे गए हैं.
इस हमले में मरने वालों के अलावा घायलों की संख्या बहुत ज़्यादा है. फ़लीस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि घायलों का पांच अस्पतालों में इलाज चल रहा है.
इसराइली सेना ने पिछले महीने जेनिन में ऐसे ही हमले किए थे जिसमें 10 लोग मारे गए थे. 2005 के बाद वेस्ट बैंक पर हुए इसराइली हमले में मरने वालों की यह संख्या सबसे ज़्यादा थी. (bbc.com/hindi)
आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान को चीन 70 करोड़ डॉलर का कर्ज़ देगा. ये जानकारी पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशहाक डार ने दी है.
मंगलवार को बोर्ड ऑफ चाइना डेवलपमेंट बैंक के बोर्ड की बैठक में पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज़ को मंजूर किया गया. डार ने बुधवार को चीन की इस आर्थिक मदद की जानकारी दी.
इससे पहले पाकिस्तान की संसद ने आईएमएफ बेलआउट पैकेज की शर्त के मुताबिक़ टैक्स में बढ़ोतरी के लिए मनी बिल पारित किया था.
आईएमएफ पाकिस्तान को 1.1 बिलियन डॉलर का पैकेज देना चाहता है लेकिन उसे इसके लिए अर्थव्यवस्था में कुछ स्ट्रक्चरल सुधार करने होंगे. पाकिस्तान इस वक्त भुगतान संतुलन के गंभीर संकट से जूझ रहा है.
उसके पास इस समय सिर्फ 3.2 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है. इतनी मुद्रा से सिर्फ तीन सप्ताह का आयात हो सकता है. फरवरी में महंगाई दर बढ़ कर 38.4 फीसदी पर पहुंच गई है. (bbc.com/hindi)
राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर ब्रिटेन की नागरिकता गंवाने वाली शमीमा बेगम की अपील खारिज कर दी गई है. शमीमा बेगम को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा करार दिए जाने के बाद उनसे ब्रिटेन की नागरिकता छीन ली गई थी.
जस्टिस जे ने शमीमा बेगम के मुक़दमे की सुनवाई कर रहे सेमी-सिक्रेट कोर्ट को बताया कि उनकी अपील को पूरी तरह से ठुकरा दिया गया है.
इस फ़ैसले का मतलब ये हुआ कि उत्तरी सीरिया के एक कैंप में रह रहीं 23 साल की शमीमा बेगम के ब्रिटेन लौटने पर रोक लगी रहेगी.
शमीमा उस वक़्त 15 साल की थीं जब वे खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन में शामिल होने के लिए सीरिया पहुंच गई थीं. ये साल 2015 की बात है.
उन्होंने इस्लामिक स्टेट के एक चरमपंथी से शादी की और उनके तीन बच्चे हुए. इन सभी बच्चों की मौत हो चुकी है.
साल 2019 में तत्कालीन ब्रितानी गृह मंत्री साजिद जावेद ने उनकी ब्रिटिश नागरिकता ख़त्म करने का फ़ैसला किया. जिसके बाद उनके ब्रिटेन लौटने का रास्ता बंद हो गया.
वे सीरिया के एक कैंप में इस्लामिक स्टेट के समर्थक होने के आरोप में बंद हैं. (bbc.com/hindi)
भारत में इसराइल के राजदूत नाओर जिलोन ने अपने देश के दो अहम बंदरगाहों में से एक हाइफ़ा पोर्ट को अदानी समूह को सौंपे जाने को दोनों देशों के गहरे संबंधों का प्रतीक बताया है.
मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में जिलोन ने कहा है कि इस सौदे का अर्थ यही है कि इसराइल का भारत पर बहुत भरोसा है और इससे दोनों देशों के बीच का कारोबार तेज़ी से बढ़ेगा.
जिलोन के अनुसार, हाइफा एक रणनीतिक बंदरगाह है, इसलिए हमारा यह कदम काफी अहम है. उन्होंने कहा कि अदानी समूह में वो क्षमता है कि इस पोर्ट को वैसा बनाए जैसा कि इसे होना चाहिए.
उन्होंने कहा है कि हाइफा पोर्ट के सौदे के बाद इसराइल में निवेश और भारत के साथ कारोबार, तेजी से बढ़ने की उम्मीद है.
नाओर जिलोन ने कहा कि बंदरगाहों का विकास, अदानी समूह का कोर बिज़नेस है. हाइफ़ा पोर्ट का काम अच्छे से चल रहा है. अदानी समूह इसराइल में और प्रोजेक्ट लेन की कोशिश कर रहा है और हम चाहते हैं कि वे सफल हों.
उन्होंने बताया कि टाटा, बीएचईएल जैसी भारतीय कंपनियों के साथ हमारे लगभग 80 संयुक्त उपक्रम हैं.
इसराइली राजदूत ने कहा है कि अक्षय उर्जा, स्मार्ट परिवहन, खेती, स्वास्थ्य, पानी और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की काफी संभावनाएं हैं.
हाइफा पोर्ट का अधिग्रहण
अदानी समूह ने पिछले महीने इसराइल के इस सबसे अहम बंदरगाह को 1.2 अरब डॉलर यानी लगभग 10 हज़ार करोड़ रुपये में 31 सालों के लिए अधिग्रहण कर लिया.
इस सौदे में 70 फ़ीसदी की हिस्सेदारी अदानी पोर्ट के पास है और 30 फ़ीसदी की मालिक इसराइली केमिकल और लॉजिस्टिक कंपनी गडौत के पास है.
कंटेनरों की ढुलाई के मामले में हाइफ़ा पोर्ट इसराइल का दूसरा सबसे बड़ा पोर्ट है. हालांकि टूरिस्ट क्रूज शिप की आवाजाही के लिहाज से यह सबसे बड़ा पोर्ट है. (bbc.com/hindi)
चीन, 22 फरवरी । चीन के शीर्ष राजयनिक वांग यी ने रूस की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सेक्रेट्री निकोलाई पत्रुशेव से मंगलवार को मॉस्को में मुलाकात की.
इस मुलाकात के बाद जारी आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इसका मकसद 'शांति और स्थिरता' को बढ़ावा देना है. हालांकि ये मुलाकात यूक्रेन पर रूस के हमले के ठीक एक साल बाद हुई है.
वांग यी ने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सेक्रेट्री से कहा कि दोनों देशों के रिश्ते चट्टान की तरह मजबूत हैं.
साझा बयान में कहा गया है कि वे 'शीत युद्द की शुरुआत करने की मानसिकता' का विरोध करते हैं. हालांकि चीन पर रूस को यूक् रेन युद्ध में मदद के लिए ड्यूल टेक्नोलॉजी देने के आरोप में लगते रहे हैं.
इस बीच,अमेरिका यूक्रेन के खिलाफ युद्द खत्म करने के लिए रूस पर नए प्रतिबंधों की तैयारी कर रहा है. लेकिन चीन और रूस ने कहा है किसी भी तरह का दबाव बर्दाश्त नहीं करेंगे.
दोनों देशों ने कहा है, "वे हर तरह की बुलिइंग का विरोध करते हैं."
यांगी यी रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात करेंगे. इसके बाद उनकी राष्ट्रपति पुतिन के साथ बैठक होगी.
चीन रूस की क्या मदद कर रहा है?
पश्चिमी देशों की ओर से रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद चीन उसका सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी बन गया है.
अमेरिका का कहना है कि चीन रूस को हथियार और गोलाबारूद भेजने की तैयारी कर रहा है.
हालांकि चीन ने अमेरिका के इस आरोप का पुरजोर विरोध किया है. (bbc.com/hindi)
बीबीसी के भारतीय दफ़्तरों पर आयकर विभाग की कार्रवाई को लेकर ब्रितानी संसद में सवाल उठे हैं.
संसद में ब्रितानी सरकार के एक मंत्री ने सवालों के जवाब में कहा है कि वो भारत की सरकार से संपर्क में हैं और इस मामले को उठाया गया है.
14 फ़रवरी को बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ़्तरों में आयकर विभाग ने सर्वे शुरू किया था, जो तीन दिनों चला था.
आयकर विभाग की कार्रवाई गुरुवार शाम तक चली थी.
मंगलवार को ब्रितानी सांसदों ने निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमन्स के नियमित कामकाज के दौरान 'अर्जेंट क्वेश्चन' के माध्यम से ब्रितानी सरकार से पूछा कि विदेश मंत्री इस कार्रवाई पर किसी तरह का बयान जारी क्यों नहीं करते?
ब्रिटेन की सरकार की ओर से अब तक इस मामले में किसी तरह का आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.
बीबीसी एक स्वतंत्र संस्था है, जो किसी भी रूप में ब्रितानी सरकार का अंग नहीं है.
ब्रितानी लेबर पार्टी के नेता फ़ैबियन हेमिल्टन ने भारत सरकार की इस कार्रवाई पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ''जहाँ सही मायनों में प्रेस अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हो, ऐसे लोकतांत्रिक देश में बिना वजह आलोचनात्मक आवाज़ों को नहीं दबाया जा सकता है. अभिव्यक्ति की आज़ादी की हर क़ीमत पर रक्षा होनी चाहिए.''
उन्होंने कहा, ''पिछले हफ़्ते बीबीसी के भारत स्थित दफ़्तरों पर छापा मारा जाना काफ़ी चिंताजनक है, चाहे इसकी आधिकारिक वजह कुछ भी बताई जाए. बीबीसी दुनिया भर में अपनी उच्च गुणवत्ता वाली भरोसेमंद रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता है और उसे बिना किसी भय के रिपोर्टिंग करने की आज़ादी होनी चाहिए.''
ब्रिटेन की डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी (डीयूपी) के सांसद जिम शैनन ने कहा, ''हमें इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि ये एक धमकाने वाली कार्रवाई थी, जिसे देश के नेता के प्रति आलोचनात्मक डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ होने के बाद अंजाम दिया गया है.''
शैनन ने डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ होने के बाद के हालातों को बयां करते हुए कहा, ''इस डॉक्यूमेंट्री की रिलीज़ के बाद से भारत में इसकी स्क्रीनिंग रोकने की पुरज़ोर कोशिशें की जा रही हैं. इसके साथ ही मीडिया और पत्रकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का दमन किया जा रहा है.
जब विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों ने अपने परिसरों में सामूहिक रूप से इस डॉक्यूमेंट्री को देखने का प्रयास किया, तो दर्जनों छात्रों को गिरफ़्तार किया गया. वहीं, अन्य छात्रों को इंटरनेट और बिजली के बिना रहना पड़ा.''
उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा, ''भारत सरकार की इस कार्रवाई का पत्रकारों, मानवाधिकार वकीलों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर काफ़ी गंभीर असर पड़ा है. क्या मंत्री मुझे और इस सदन को बता सकते हैं कि सरकार इस मामले में भारतीय उच्चायोग को समन करने वाली है या वो अपने समकक्ष के समक्ष ये मुद्दा उठाएँगे?"
भारतीय मूल के लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने भी इस मुद्दे पर ब्रितानी सरकार से सवाल पूछा.
उन्होंने कहा, "ब्रिटेन में हम प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर काफ़ी गर्व की अनुभूति करते हैं. हम बीबीसी ओर दूसरे सम्मानित मीडिया समूहों की ओर से ब्रितानी सरकार, इसके प्रधानमंत्री और विपक्षी दलों की जवाबदेही तय किए जाने के अभ्यस्त हैं.''
ढेसी ने इसके साथ ही कहा, 'इसी वजह से हममें से कई लोग चिंतित थे क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जिसके साथ हम लोकतांत्रिक और प्रेस स्वतंत्रता के मूल्य साझा करते हैं और वहाँ की सरकार ने प्रधानमंत्री के क़दमों की आलोचना करने वाली डॉक्यूमेंट्री की रिलीज़ के बाद बीबीसी के दफ़्तर पर छापा मारने का फ़ैसला किया.
ऐसे में मंत्री महोदय की अपने समकक्ष से क्या बात हुई ये बताया जाना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि पत्रकार बिना भय या किसी को फ़ायदा पहुँचाए अपना काम कर सकते हैं.''
विपक्षी दलों के सांसदों की ओर से सवाल उठाए जाने के बाद ब्रितानी सरकार में मंत्री डेविड रटले ने अपनी सरकार का पक्ष रखा.
उन्होंने पहली बार जानकारी दी कि ब्रितानी मंत्रियों ने इस बारे में अपने भारतीय समकक्षों से बात की है.
उन्होंने कहा, "इस मामले को उठाया गया है और हम लगातार इस मामले पर नज़र रखे हुए हैं.''
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बीबीसी को कॉन्सुलर मदद की पेशकश की गई थी.
डेविड रटले ने ये भी बताया, "भारत के साथ हमारे व्यापक और गहरे रिश्तों की वजह से वे (ब्रितानी मंत्री) रचनात्मक ढंग से भारत सरकार के साथ अलग-अलग मुद्दों पर बात करने में सक्षम थे और हम इस मुद्दे पर लगातार निगाह बनाए हुए हैं. बीबीसी ने अपने बयान में बताया है कि वो इस मामले में अपने कर्मचारियों की सभी तरह से मदद कर रहा है.''
''अगर उनकी ओर से कॉन्सुलर सपोर्ट मांगा गया, तो वह भी उपलब्ध है. हम प्रेस की स्वतंत्रता का पूरी तरह समर्थन करते हैं. इसी वजह से हम बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को फ़ंडिंग देने के लिए राज़ी हुए हैं. इसके साथ ही एफ़सीडीओ भारत में मुख्य भाषाओं के लिए अतिरिक्त फ़ंडिंग देने के लिए तैयार हुआ है."
सर्वे पर बीबीसी ने क्या कहा
बीबीसी ने आयकर विभाग का सर्वे पूरा होने के बाद इस मामले में एक विस्तृत बयान जारी करके कहा था कि वह इस मामले में टैक्स अधिकारियों का सहयोग करती रहेगी.
बीबीसी के प्रवक्ता ने कहा था, "हम आयकर विभाग के अधिकारियों के साथ सहयोग करते रहेंगे और आशा करते हैं कि यह मामला जितनी जल्दी संभव हो, सुलझ जाएगा."
बीबीसी प्रवक्ता ने बताया था, "हम उन लोगों का ख़ास ध्यान रख रहे हैं जिनसे बहुत लंबी पूछताछ की गई है, कुछ लोगों को तो पूरी रात दफ़्तर में रुकना पड़ा, ऐसे कर्मचारियों की देखरेख हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है."
पिछले हफ़्ते लगातार तीन दिनों तक चले आयकर विभाग के सर्वे के दौरान बीबीसी देश दुनिया से जुड़ी ख़बरें अपनी ऑडियंस तक पहुंचाती रही.
बीबीसी ने ये भी कहा था, "हम भरोसेमंद, निष्पक्ष, अंतरराष्ट्रीय और स्वतंत्र मीडिया हैं, हम अपने उन सहकर्मियों और पत्रकारों के साथ खड़े हैं जो लगातार आप तक बिना भय और पक्षपात के समाचार पहुँचाते रहेंगे."
"आयकर विभाग के अधिकारियों के मंगलवार को बीबीसी के दफ़्तर में आने के बाद से माहौल तनावपूर्ण और बाधा डालने वाला रहा, हमारे कई सहकर्मियों से बहुत लंबी पूछताछ की गई और उनमें से कुछ को अपनी रात ऑफ़िस में बितानी पड़ी."
''इस दौरान कई घंटे बीबीसी के पत्रकारों को काम नहीं करने दिया गया. कई पत्रकारों के साथ आयकर विभाग के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों ने दुर्व्यवहार भी किया.''
''पत्रकारों के कंप्यूटरों की छान-बीन की गयी, उनके फ़ोन रखवा दिए गए और उनसे उनके काम के तरीक़ों के बारे में जानकारी ली गयी. साथ ही दिल्ली दफ़्तर में कार्यरत पत्रकारों को इस सर्वे के बारे में कुछ भी लिखने से रोका गया.''
''सीनियर एडिटर्स के लगातार कहने के बाद जब काम शुरू करने दिया गया तब भी हिन्दी और अंग्रेज़ी के पत्रकारों को काम करने से और देर तक रोका गया. इन दोनों भाषाओं के पत्रकारों को तब काम करने दिया गया जब वे प्रसारण समय के नज़दीक पहुँच चुके थे.''
आयकर विभाग का बयान
ये सर्वे पूरा होने के बाद आयकर विभाग की ओर से भी एक बयान जारी किया गया.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ इंडिया टैक्स डिपार्टमेंट के प्रवक्ता ने कहा, "सर्वे के दौरान सिर्फ़ उन कर्मचारियों के बयान दर्ज किए गए जिनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी. मुख्य रूप से वित्त और कंटेंट डेवलपमेंट से जुड़े लोगों के बयान लिए गए हैं."
प्रवक्ता ने कहा, "सर्वे के दौरान डिजिटल उपकरण ज़ब्त नहीं किए गए. बीबीसी के संपादकीय स्टाफ़ में से जिन्हें कार्रवाई के लिए महत्वपूर्ण नहीं समझा गया, उन्हें नियमित काम करने की अनुमति दी गई."
"बीबीसी कर्मचारियों को उनके कहने पर रात में घर जाने की अनुमति तक दी जाती थी."
प्रवक्ता ने कहा, "सिर्फ़ महत्वपूर्ण माने जाने वाले उपकरणों की ही डेटा क्लोनिंग की गई है. क्लोनिंग के बाद सभी उपकरण वापस कर दिए गए."
डॉक्यूमेंट्री पर विवाद
बीबीसी ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया था, जिसके कुछ हफ़्ते बाद नई दिल्ली और मुंबई स्थित दफ़्तरों की तलाशी ली गई.
हालाँकि ये डॉक्यूमेंट्री भारत में प्रसारण के लिए नहीं थी.
यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर थी. उस समय भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
इस डॉक्यूमेंट्री में कई लोगों ने गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए थे.
केंद्र सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को प्रोपेगैंडा और औपनिवेशिक मानसिकता के साथ भारत-विरोधी बताते हुए भारत में इसे ऑनलाइन शेयर करने से ब्लॉक करने की कोशिश की.
बीबीसी ने कहा था कि भारत सरकार को इस डॉक्यूमेंट्री पर अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिया गया था, लेकिन सरकार की ओर से इस पेशकश पर कोई जवाब नहीं मिला.
बीबीसी का कहना है कि "इस डॉक्यूमेंट्री पर पूरी गंभीरता के साथ रिसर्च किया गया, कई आवाज़ों और गवाहों को शामिल किया गया और विशेषज्ञों की राय ली गई और हमने बीजेपी के लोगों समेत कई तरह के विचारों को भी शामिल किया."
बीते महीने, दिल्ली में पुलिस ने इस डॉक्यूमेंट्री को देखने के लिए इकट्ठा हुए कुछ छात्रों को हिरासत में भी लिया था.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय समेत देश की कई यूनिवर्सिटीज़ में इस डॉक्यूमेंट्री को प्रदर्शित किया गया था. हालाँकि कई जगह पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे रोकने की कोशिश की थी. (bbc.com/hindi)
वॉरसॉ, 22 फरवरी। यूक्रेन पर रूस के जारी हमलों के लगभग एक साल होने के मद्देनजर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि भले ही कुछ भी हो जाए, अमेरिका एवं उसके सहयोगी यूक्रेनवासियों की मदद करने से ‘‘पीछे नहीं हटेंगे।’’
यूक्रेन का अचानक दौरा करने के एक दिन बाद बाइडन ने पोलैंड में अपने संबोधन के दौरान पिछले एक साल में किए गए प्रयासों के लिए यूरोप में अपने सहयोगियों की प्रशंसा की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को कड़े शब्दों में स्पष्ट संदेश दिया, ‘‘नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) विभाजित नहीं होगा और हम थकेंगे नहीं।’’
बाइडन ने वॉरसॉ के ‘रॉयल कैसल’ के बाहर हजारों लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘एक साल पहले दुनिया को कीव के हार जाने की आशंका थी। मैं बता सकता हूं: कीव मजबूती से खड़ा है, कीव गर्व से खड़ा है और सबसे जरूरी बात कीव स्वतंत्र है।’’
बाइडन ने यूक्रेन एवं रूस के बीच जारी युद्ध को लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच वैश्विक संघर्ष बताया और कहा कि अमेरिका इससे पीछे नहीं हटेगा, हालांकि कुछ सर्वेक्षणों के मुताबिक, यूक्रेन के लिए जारी सैन्य सहायता के प्रति अमेरिकी सहयोग कमजोर हो रहा है।
अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘दुनिया के लोकतंत्र स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आज, कल और हमेशा खड़े रहेंगे।’’
बाइडन ने कहा, ‘‘जब (रूस के) राष्ट्रपति (व्लादिमीर) पुतिन ने यूक्रेन में अपने टैंकों को भेजने का आदेश दिया था, तो उन्हें लगा था कि वह उसे हरा देंगे। वह गलत थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया भर में लोकतंत्र मजबूत हुआ है’’, जबकि पुतिन समेत दुनिया के तानाशाह कमजोर हुए हैं।
बाइडन ने कहा, ‘‘तानाशाह केवल एक शब्द समझते हैं - नहीं, नहीं, नहीं।’’ उन्होंने कहा, ‘नहीं, आप मेरा देश नहीं ले जाएंगे। नहीं, आप मेरी आजादी नहीं ले जाएंगे। नहीं, आप मेरा भविष्य नहीं लें पाएंगे।’’ (एपी)
अमेरिका का सिएटल शहर बन गया है जहां जाति आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया गया है.
सिएटल सिटी काउंसिल ने मंगलवार को शहर के भेदभाव विरोधी क़ानून में जाति को भी शामिल कर लिया है.
6-1 से पारित किए गए अध्यादेश के समर्थकों ने कहा कि जाति आधारित भेदभाव राष्ट्रीय और धार्मिक सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं और ऐसे क़ानून के बिना उन लोगों को सुरक्षा नहीं दी जा सकेगी जो जातिगत भेदभाव का सामना करते हैं.
सिएटल की सिटी काउंसिल (नगर परिषद) में एक हिंदू प्रतिनिधि ने एक प्रस्ताव पेश किया था जिसे लेकर भारतीय मूल के लोगों के बीच बहस छिड़ गई.
ये प्रस्ताव जाति आधारित भेदभाव पर रोक लगाने को अध्यादेश लाने से जुड़ा था.
प्रस्ताव पेश करने वाली प्रतिनिधि क्षमा सावंत हैं. काउंसिल में मंगलवार को प्रस्ताव पर वोटिंग हुई जिसके बाद सिएटल अमेरिका का पहला ऐसा शहर बन गया है जहां जातिगत भेदभाव ग़ैरक़ानूनी हो गया है.
इसे लेकर दक्षिण एशियाई समुदाय के बीच विभाजन भी देखने को मिला है. इस समुदाय के लोग संख्या में कम हैं, लेकिन उन्हें प्रभावशाली समूह के तौर पर देखा जाता है.
अमेरिका की नगर परिषद में पेश हुआ ये अपनी तरह का पहला प्रस्ताव है. समर्थक इसे सामाजिक न्याय और समानता लाने की दिशा में अहम क़दम बताया जा रहा है.
दूसरी तरफ़ लगभग बराबर की संख्या में ऐसे लोग हैं, जो इसका विरोध कर रहे हैं. उनका आरोप है कि इस प्रस्ताव का मक़सद दक्षिण एशिया के लोगों ख़ास भारतीय अमेरिकियों को निशाना बनाना है.
क्षमा सावंत ख़ुद ऊंची जाति से आती हैं. उन्होंने कहा, " हमें ये समझने की ज़रूरत है कि भले ही अमेरिका में दलितों के ख़िलाफ़ भेदभाव उस तरह नहीं दिखता जैसा कि दक्षिण एशिया में हर जगह दिखता है, लेकिन यहां भी भेदभाव एक सचाई है."
भारतीय मूल के कई अमेरिकियों की राय है कि जाति को नीति का हिस्सा बना देने से अमेरिका में 'हिंदूफोबिया' की घटनाएं बढ़ सकती हैं.
अमेरिका में 42 लाख से ज़्यादा भारतीय मूल के लोग
बीते तीन साल के दौरान पूरे अमेरिका में दस हिंदू मंदिरों और पांच प्रतिमाओं का नुक़सान पहुंचाया गया है. इनमें महात्मा गांधी और मराठा राजा छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा शामिल हैं. इन घटनाओं को कुछ लोगों ने हिंदू समुदाय को डराने की कोशिश के तौर पर देखा.
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की आबादी अप्रवासियों में दूसरे नंबर पर है.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने अमेरिकन कम्यूनिटी सर्वे के 2018 के आंकड़े के हवाले से बताया है कि अमेरिका में भारतीय मूल के 42 लाख लोग रहते हैं.
सिएटल सिटी काउंसिल का अध्यादेश उसी तरह का है जैसे कि साल 2021 में सांटा क्लारा ह्यूमन राइट्स कमीशन में इक्वैलिटी लैब ने लाने की कोशिश की थी.
अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की आपत्तियों को सुनने के बाद ये प्रस्ताव ख़ारिज हो गया था.
सिएटल में पेश प्रस्ताव में इक्वैलिटी लैब्स के जाति आधारित सर्वे का इस्तेमाल किया गया है.
अध्यादेश में हिंदू शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया लेकिन जातिगत सर्वे की बात को लेकर विवाद छिड़ गया है.
आंबेडकर फुले नेटवर्क ऑफ़ अमेरिकन दलित्स एंड बहुजन्स ने एक बयान जारी किया है. इस बयान में कहा गया है, "जाति को विशेष रुप से संरक्षित कैटेगरी में शामिल करने से दक्षिण एशिया मूल के सभी लोग अनुचित तरीके से अलग थलग हो जाएंगे. इनमें दलित और बहुजन समाज भी शामिल है."
बयान में कहा गया है, " अगर पारित हुआ तो इस क़ानून के चलते सिएटल के नियोक्ता दक्षिण एशिया के लोगों को काम पर रखें, इसकी संभावना कम हो जाएगी. ये दलित और बहुजन समेत दक्षिण एशिया मूल के सभी लोगों के लिए रोजगार और अवसरों में कमी का ग़ैरइरादतन नतीजा होगा."
अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले अहम संगठन इक्वैलिटी लैब ने सोमवार को सिटी काउंसिल के सदस्यों से अनुरोध किया कि वो अपना वोट 'हां' के पक्ष में दें.
इक्वैलिटी लैब ने कहा, "हम लंबे समय से जानते हैं कि अमेरिका के स्कूलों और कामकाज की जगहों पर जातिगत भेदभाव होता है. बावजूद इसके ये एक दबा छुपा मामला है."
प्रस्ताव के विरोध में तर्क
कोएलिएशन ऑफ़ हिंदूज़ ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका की पुष्पिता प्रसाद कहती हैं, "ये देखना भयावह है कि हेट ग्रुप्स के ग़लत डेटा पर आधारित अप्रमाणित दावों के जरिए एक अल्पसंख्यक समुदाय को खुलेआम अलग थलग किया जा रहा है."
पुष्पिता प्रसाद का समूह पूरे अमेरिका में इस तरह के प्रस्तावों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहा है.
वो कहती हैं, " प्रस्तावित अध्यादेश अल्पसंख्यक समुदाय (दक्षिण एशियाई लोगों) के नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा क्योंकि पहली बात है कि ये उन्हें अलग-थलग करता है. दूसरी बात है कि ये मानता है कि दक्षिण एशिया के लोगों के बीच दूसरे मानवीय समुदायों के मुक़ाबला ज़्यादा भेदभाव है और तीसरी बात है कि ये अनुमान हेट ग्रुप्स के ग़लत डेटा के आधार पर लगाया गया है."
अध्यादेश के पक्ष और विरोध में सार्वजनिक तौर पर अभियान चलाए जा रहे हैं.
इसके प्रस्तावक अमेरिका के अख़बारों के कॉलम और आलेख लिख रहे हैं.
कोएलिएशन ऑफ़ हिंदूज़ ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका ने शहर के पार्षदों और दक्षिण एशिया के लोगों को हज़ारों ई मेल भेजे हैं. उन्होंने मीटिंग आयोजित की है ताकि विरोध किया जा सके और तमाम कारण गिनाते हुए इसे एक 'बुरा विचार' बताया जा सके.
करीब सौ संगठनों और कारोबारियों के समूह ने इस हफ़्ते सिएटल सिटी काउंसिल को पत्र भेजा और उनसे प्रस्ताव के खिलाफ़ यानी 'नहीं' का वोट देने की गुजारिश की.
कोएलिएशन ऑफ़ हिंदूज़ ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका के प्रमुख निकुंज त्रिवेदी ने कहा, " प्रस्तावित अध्यादेश अगर अमल में आया तो मान लिया जाएगा कि ये पूरा समुदाय, ख़ासकर अमेरिका में रहने वाले हिंदू जाति आधारित भेदभाव के दोषी हैं, बशर्ते वो ख़ुद को निर्दोष साबित न कर दें. ये अमेरिका की संस्कृति नहीं है और ग़लत है. "
उधर, प्रस्ताव पेश करने वाली प्रतिनिधि क्षमा सावंत भी वोटिंग के पहले अपने अभियान को गति देने में जुटी रहीं.
उन्होंने भारतीय मूल के दो अमेरिकी सांसदों रो खन्ना और प्रमिला जयापाल को पत्र लिखकर समर्थन मांगा.
भारत में जाति आधारित भेदभाव पर साल 1948 में रोक लगा दी गई थी और 1950 में संविधान में भी ये नीति शामिल की गई. (bbc.com/hindi)
मास्को, 21 फरवरी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को कहा कि रूस महत्वाकांक्षी उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा विकसित कर रहा है जिससे भारत, ईरान और पाकिस्तान के साथ-साथ पश्चिम एशियाई देशों के साथ व्यापार सहयोग के नए रास्ते खुलेंगे।
‘फेडरल एसेंबली’ में राष्ट्र के नाम एक घंटे 45 मिनट के संबोधन में पुतिन ने यह भी कहा कि रूस आशाजनक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का विस्तार करेगा, साथ ही नए आपूर्ति गलियारों का निर्माण करेगा, क्योंकि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने यूक्रेन युद्ध के लिए रूस के खिलाफ कठोर प्रतिबंध लगाए हैं।
पुतिन ने कहा, ‘‘हम काला सागर और अजोव सागर के बंदरगाहों को विकसित करेंगे। हम उत्तर-दक्षिण अंतरराष्ट्रीय गलियारे पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करेंगे।’’ राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि गलियारा भारत, ईरान, पाकिस्तान के साथ-साथ पश्चिम एशियाई देशों के साथ व्यापार सहयोग के नए मार्ग खोलेगा।
रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ‘तास’ ने पुतिन के हवाले से कहा, ‘‘हम इस गलियारे को विकसित करना जारी रखेंगे।’’
शुक्रवार को यूक्रेन युद्ध का एक साल पूरा होने के पूर्व, पुतिन ने कहा, ‘‘राष्ट्र, क्षेत्रों और स्थानीय व्यवसायों को किन क्षेत्रों में अपनी साझेदारी के काम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए? सबसे पहले, हम आशाजनक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का विस्तार करेंगे और नए आपूर्ति गलियारों का निर्माण करेंगे।’’
उन्होंने कहा कि मास्को-कजान राजमार्ग को येकातेरिनबर्ग, चेल्याबिंस्क और टूमेन तक और भविष्य में इरकुत्स्क और व्लादिवोस्तोक तक तथा संभवतः कजाकिस्तान, मंगोलिया और चीन तक विस्तारित करने का निर्णय लिया जा चुका है, जो विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया के बाजार के साथ रूस के आर्थिक संबंधों का विस्तार करेगा।
अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए 7,200 किलोमीटर लंबी परिवहन परियोजना है। आईएनएसटीसी रूस और यूरोप तक पहुंचने और मध्य एशियाई बाजारों में प्रवेश करने के लिए माल के आयात-निर्यात में लगने वाले समय को कम करने की भारत की दृष्टि और पहल है।
अक्टूबर 2021 में आर्मेनिया में येरेवन की यात्रा के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रस्ताव दिया कि ईरान में रणनीतिक चाबहार बंदरगाह को उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे में शामिल किया जाए, जिसमें संपर्क बाधाओं को पाटने की क्षमता है।
ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में चाबहार बंदरगाह भारत के पश्चिमी तट से आसानी से पहुंचा जा सकता है। चाबहार को लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के मुकाबले के रूप में देखा जा रहा है। (भाषा)
सीरिया में जहां सिर्फ़ इमारतों का मलबा था, वहां एक किलकारी सुनाई दी.
उस मलबे में दबकर इस बच्ची का पूरा परिवार ख़त्म हो गया था. मलबे के नीचे ये बच्ची अपनी मां की गर्भनाल से जुड़ी हुई मिली थी.
गर्भनाल काटकर बच्ची को अस्पताल में भर्ती करवाया गया.
राहतकर्मियों और अधिकारियों ने बच्ची को नाम दिया- अया. इसका अरबी में मतलब होता है- चमत्कार.
बच्ची की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल रही थीं और दुनियाभर से हज़ारों लोगों ने इस बच्ची को गोद लेने की पेशकश की थी.
अब इस बच्ची को नया परिवार मिल गया है.
ये परिवार बच्ची के रिश्तेदार हैं और डीएनए जांच के बाद इसकी पुष्टि हो गई है कि बच्ची का इन लोगों से ख़ून का रिश्ता है.
बच्ची की अस्पताल से छुट्टी हो गई है और डॉक्टरों ने बताया कि वो स्वस्थ है.
समाचार एजेंसी एपी को दिए इंटरव्यू में खलील अल-स्वादि ने कहा, ''अब ये मेरे बच्चों में से एक है. मैं अपने और इस बच्ची में कोई फ़र्क़ नहीं करूंगा.''
नए परिवार ने बच्ची को अफरा नाम दिया है. अफरा बच्ची की मां का नाम था. (bbc.com/hindi)
रूस, 21 फरवरी । यूक्रेन के ‘विशेष अभियान’ और पश्चिमी देशों की आलोचना के अलावा व्लादिमीर पुतिन ने समलैंगिक अधिकारों की एक बार फिर ज़ोरदार आलोचना की है.
उन्होंने कहा कि परिवार का मतलब ‘एक मर्द और औरत का मिलन’ होता है. इस दुनिया के तमाम पवित्र ग्रंथ ने भी ऐसा ही कहा है, लेकिन पश्चिमी देश इन पवित्र ग्रंथों पर संदेह जता रहे हैं.
समलैंगिकता के बारे में उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चों को इस गिरावट और बर्बादी से बचाना होगा और हम ऐसा करेंगे.
पुतिन समलैंगिकता की जब आलोचना कर रहे थे तो मॉस्को के गोस्टिनी डावर हॉल में मौजूद लोगों ने जमकर तालियां बजाई. (bbc.com/hindi)
रूस, 21 फरवरी । रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 30 मिनट से अधिक समय से बोल रहे हैं.
उन्होंने इस मुश्किल समय में अपने देश के लिए जान न्योछावर करने वाले सैनिकों को याद किया और उनके परिजनों के त्याग की भी सराहना की.
जान गंवाने वाले सैनिकों के परिजनों और भूतपूर्व सैनिकों को सामाजिक सुरक्षा योजना की पेशकश करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के साथ एक ‘सामाजिक सुरक्षा समन्वयक’ की नियुक्ति की जाएगी.
सामाजिक सुरक्षा समन्वयक का काम परिजनों और भूतपूर्व सैनिकों की समस्याओं का समाधान करना होगा.
पुतिन ने स्पेशल गवर्नमेंट फाउंडेशन बनाने का एलान करते हुए कहा कि यह सेना के ख़ास अभियान में सैनिकों और उनके परिजनों को लक्ष्य करके मदद पहुंचाएगा.
इसका काम सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी मदद के अलावा रोज़गार और कारोबार स्थापित करने में मदद देना होगा. (bbc.com/hindi)