अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने कहा है कि पाकिस्तान के लिए कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र में मुद्दा बनाना बड़ी चुनौती है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, पत्रकारों से बातचीत के दौरान ज़रदारी की ज़बान भारत का नाम आने पर लड़खड़ा गई. पहले उन्होंने भारत को अपना दोस्त कहा और फिर संभलते हुए पड़ोसी देश कहा.
शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र में एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए ज़रदारी ने कहा कि आपका ये मानना भी सही है कि संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को एजेंडे के केंद्र में लाना हमारे लिए एक मुश्किल काम है.
बिलावल भुट्टो से फ़लस्तीनी क्षेत्र और कश्मीर के हालात की तुलना करते हुए सवाल पूछा गया था.
उन्होंने कहा, "पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र की हर फोरम और प्लेटफॉर्म पर कश्मीर के मुद्दे को उठाने की कोशिश करता है लेकिन कई बार उसे समर्थन नहीं मिल पाता. दुनिया के कई देश कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच द्वपक्षीय मुद्दा मानते हैं."
34 वर्षीय पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने कहा, "जब भी कश्मीर का मुद्दा आता है, संयुक्त राष्ट्र में हमारे दोस्त, हमारे दोस्त और पड़ोसी देश इसका विरोध करते हैं, वो ऐसे तथ्यविरोधी विचार को बढ़ावा देते हैं कि ये अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मान्यता प्राप्त विवादित क्षेत्र नहीं है."
भारत सरकार ने साल 2019 में जम्मू और कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त करते हुए संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म कर दिया था.
भारत के इस क़दम के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था.
भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कहा है कि अनुच्छेद 370 समाप्त करना भारत का अंदरूनी मामला है. भारत ने पाकिस्तान से कहा था कि वो वास्तविकता को स्वीकार करे और भारत विरोधी एजेंडा बंद करे.
भारत ने पाकिस्तान से कहा है कि वो पाकिस्तान के साथ सामान्य रिश्ते चाहता है जो एक आतंक, हिंसा और शत्रुता से मुक्त माहौल में ही संभव हैं.
पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए बिलावल भुट्टो ने कहा कि आपकी फ़लस्तीन और कश्मीर की तुलना ठीक है. हमें जब भी मौका मिलेगा हम कश्मीर का मुद्दा उठाते रहेंगे.
उन्होंने कहा कि फ़लस्तीन और कश्मीर दोनों ही ऐसे मुद्दे हैं जिनका समाधान संयुक्त राष्ट्र नहीं कर सका है और हम ना सिर्फ़ फ़लस्तीन बल्कि कश्मीर की तरफ़ भी विशेष ध्यान दिलाना चाहते हैं. (bbc.com/hindi)
बीबीसी के पूर्व महानिदेशक ग्रेग डाइक ने कहा है कि टीवी प्रेज़ेंटर गैरी लिनेकर को सरकार की प्रवासी नीति की आलोचना करने के बाद शो से हटाना एक ग़लती है.
ग्रेग डाइक ने एक ऐसे समय में ये टिप्पणी की है जब बीबीसी का फ़ुटबॉल शो 'मैच ऑफ़ द डे' का प्रसारण संकट में पड़ गया है.
बीबीसी के कई कर्मचारियों ने गैरी लिनेकर के समर्थन में अपने आप को शो से हटा लिया है.
शनिवार को प्रसारित होने वाले कार्यक्रम से इस शो के सभी छह विशेषज्ञों और कमेंट्री टीम ने अपने आप को हटा लिया है.
डाइक ने कहा है कि "लिनेकर को निलंबित करके बीबीसी ने स्वयं अपनी विश्वसनीयता को धक्का पहुंचाया है."
डाइक ने कहा, "बीबीसी में ये लंबे समय से स्थापित परंपरा है कि अगर आप मनोरंजन या खेल के प्रेज़ेंजटर हैं तो आप एक जैसे नियमों से नहीं बंधे हैं."
ग्रेग डाइक साल 2000 से 2004 तक बीबीसी के महानिदेशक थे.
ग्रेग डाइक ने बीबीसी के टुडे प्रोग्राम से बात करते हुए ये भी कहा कि संस्थान के इस क़दम से ये संदेश भी जा सकता है कि बीबीसी सरकार के दबाव में झुक गया है.
गैरी लिनेकर ने ब्रिटेन सरकार की नई प्रवासी नीति की सोशल मीडिया पर आलोचना की थी. इस नीति के तहत ब्रिटेन अवैध तरीक़े से देश में आने वाले प्रवासियों को वापस भेजेगा.
बीबीसी में काम करने वाले पत्रकारों पर सोशल मीडिया पर अपनी राय रखने को लेकर नियम लागू हैं.
बीबीसी ने गैरी लिनेकर के मामले पर जांच पूरी होने तक उन्हें कार्यक्रम से हटा दिया है.
लिनेकर के समर्थन में कई और कर्मचारियों ने अपने आप को कार्यक्रमों से हटा लिया है जिसकी वजह से बीबीसी के स्पोर्ट्स कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं.
बीबीसी ने एक बयान जारी करके कहा है, "हमारे कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि वो शो में शामिल नहीं होना चाहते हैं, इसी बीच हम गैरी लिनेकर के साथ स्थिति का समाधान कर रहे हैं."
बीबीसी ने तय किया है कि अब कार्यक्रम को बिना विशेषज्ञों की टिप्पणी के ही प्रसारित किया जाएगा. (bbc.com/hindi)
टोरंटो का स्कूल बोर्ड शहर के स्कूलों में जाति आधारित भेदभाव की मौजूदगी को स्वीकार करने वाला कनाडा का पहला स्कूल बोर्ड बन गया है. बोर्ड ने स्थानीय मानवाधिकार संस्था से इस मुद्दे का सामना करने की रूपरेखा बनाने को कहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
टोरंटो के डिस्ट्रिक्ट स्कूल बोर्ड में इस विषय पर एक प्रस्ताव बोर्ड के ट्रस्टियों में से एक यालिनी राजकुलसिंघम ले कर आई थीं. छह ट्रस्टियों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और पांच ने उसके खिलाफ, जिसके बाद प्रस्ताव पारित हो गया.
राजकुलसिंघम का कहना है, "यह प्रस्ताव विभाजन के बारे में नहीं है, यह घाव भरने वाले और सशक्त करने वाले समुदाय बनाने के बारे में है और उन्हें सुरक्षित स्कूल देने के बारे में है जो छात्रों का अधिकार है." उन्होंने स्कूल बोर्ड और ओंटारियो के मानवाधिकार आयोग के बीच साझेदारी की मांग की.
अमेरिका के बाद कनाडा की बारी
यह कनाडा में रहने वाले दक्षिण एशियाई मूल के- विशेष रूप से भारतीय और हिंदू समुदाय के - लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. इससे पहले अमेरिका में भी इस सवाल को कानूनी तौर पर उठाया गया है.
कुछ ही दिनों पहले अमेरिकी शहर सिएटल के सिटी काउंसिल ने शहर में जाति आधारित भेदभाव को गैर कानूनी घोषित किया था. पारित हुए प्रस्ताव के तहत शहर में रोजगार, आवास, सार्वजनिक यातायात और दुकानों में भी जाति आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
सिएटल ऐसा करने वाला पहला अमेरिकी शहर बन गया था. वहां इससे जुड़े प्रस्ताव को काउंसिल की भारतीय-अमेरिकी मूल की सदस्य क्षमा सावंत ले कर आई थीं. सावंत का कहना था कि सिएटल और अमेरिका के कई दूसरे शहरों में दक्षिण एशियाई अमेरिकी लोगों और दूसरे आप्रवासी लोगों को इस भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
स्वागत और विरोध
उन्होंने कहा था, "वॉशिंगटन में 1,67,000 से भी ज्यादा दक्षिण एशियाई लोग रहते हैं. उनमें से भी ज्यादातर लोग ग्रेटर सिएटल इलाके में बसे हुए हैं. ऐसे में इस इलाके को जाति आधारित भेदभाव का सामना करना चाहिए और उसे अदृश्य और असंबोधित नहीं रहने देना चाहिए."
भारत और अमेरिका दोनों ही देशों में इस मुहिम को लेकर दलित ऐक्टिविस्ट उत्साहित महसूस कर रहे हैं और चाहते हैं कि यह अभियान और शहरों में भी फैलना चाहिए. हालांकि कई लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि भारत से बाहर जाति आधारित भेदभाव साबित करने के लिए और शोध की जरूरत है. (dw.com)
वेयरहाउस डेवलेपरों ने दक्षिणी कैलिफोर्निया में आर्थिक समृद्धि का वादा किया था लेकिन लोगों का कहना है कि ये वेयरहाउस सार्वजनिक स्वास्थ्य में संकट और घटिया दर्जे के रोजगार के अलावा कुछ नहीं दे पाए.
डॉयचे वैले पर टेडी ओस्ट्रो की रिपोर्ट-
कोविड19 महामारी के दौरान अमेरिका में ई-कॉमर्स में आए उछाल से लॉजिस्टिक्स के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जमकर निवेश हुआ था, खासतौर पर वेयरहाउसिंग यानी गोदाम बनाने और चलाने के काम में. इस साल लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री में गिरावट की आशंका के बावजूद, वेयरहाउस (गोदाम) सेक्टर में तेजी कायम है.
अमेजॉन जैसी विशाल कंपनियों ने दक्षिणी कैलिफोर्निया के बाहरी इलाकों में गोदाम खड़े कर दिए हैं, ये सस्ते ठिकाने दुनिया के दो व्यस्ततम बंदरगाहों से करीब हैं. एक अरब वर्ग फुट वाले इनलैंड एम्पायर क्षेत्र में, 2021 तक 4000 से ज्यादा गोदाम बन चुके थे.
लॉजिस्टिक्स के प्रोजेक्टो को डेवलेपर, रोजगार पैदा करने वाला बताते हैं. लेकिन पर्यावरण और समुदाय के पक्षधर कार्यकर्ता इन ठिकानों के विनाशकारी असर को लेकर आगाह कर रहे हैं.
पित्जर कॉलेज में पर्यावरणीय विश्लेषण की प्रोफेसर, सुजन फिलिप्स ने डीडब्लू को बताया, "ये एक ऐसी स्थिति है जिसमें हम प्रदूषण फैलाने वाले ऐसे संगठित निर्माण में निवेश जारी रखते हैं जो कि खासतौर पर काले-सांवले गरीब लोगों को प्रभावित करता है. इनमें से अधिकांश लोग लातिनी हैं. उनके बच्चे बाहर से खेल कर आते हैं तो उनकी नाक में खून बह रहा होता है. दमे की वजह से उनका स्कूल कई कई दिन छूट जाता है."
एक्टिविस्टों ने राज्य सरकार से मांग की है कि समुदाय और पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण करने और उचित समाधान तलाशने तक, वेयरहाउसों यानी गोदामों का निर्माण स्थगित रखा जाए.
ठिकाना या 'कुर्बानी' का केंद्र'?
डीजल ट्रक, ट्रेनें और विमानों के जरिए देश के 40 फीसदी माल की ढुलाई इनलैंड एम्पायर इलाके में होती है. शोधकर्ताओं और सामुदायिक समूहों का मानना है कि इस परिवहन से निकल रहा प्रदूषण लोगों को बीमार कर रहा है. फिलिप्स कहती हैं, "लोग तभी इस इलाके को कुर्बानी का ठिकाना बोलने लगे हैं."
दक्षिणी कैलिफोर्निया में स्थायित्व (सस्टेनेबिलिटी) के लिए गठित पित्जर कॉलेज की रॉबर्ट रेडफोर्ड कंजर्वेन्सी ने "वेयरहाउस सिटी" नाम से एक प्रोजेक्ट चलाया है. प्रोफेसर सुजन फिलिप्स इसकी निदेशक हैं. इस प्रोजेक्ट के मुताबिक इलाके के गोदामों में रोज़ाना छह लाख ट्रकों की आवाजाही होती है.
इन गोदामों के ऑपरेशन से हर साल, तीन लाख पाउंड से ज्यादा डीजल पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), तीन करोड़ पाउंड नाइट्रिक ऑक्साइड और 15 अरब पाउंड सीओटू निकलती है.
सामुदायिक कार्रवाई और पर्यावरण न्याय केंद्र (सीसीएईजे), रॉबर्ट रेडफोर्ड कंजरवेन्सी और सियरा क्लब की एक रिपोर्ट ने इनलैंड एम्पायर के सैन बरनार्डिनो और रिवरसाइड काउंटियों में कैंसर, दमा और दूसरी बीमारियों की असाधारण रूप से ऊंची दरें पाई. पूरे देश में सबसे घटिया वायु गुणवत्ता भी इन्हीं काउंटियों में पाई गई है.
सीसीएईजे की कार्यकारी निदेशक आना गोन्सालेस पहली बार पर्यावरणीय सक्रियता में तब शामिल हुई थी जब 2015 में उनके बेटे को दमा हो गया. वो वेयरहाउस बूम के शुरुआती दिन थे. गोन्सालेस और उनका परिवार, एक सीमेंट प्लांट और कैलिफोर्निया के उत्तरी रियाल्टो के दूसरे गंदे उद्योगों के पास ही रहते थे.
आना गोन्सालेस ने डीडब्लू को बताया, "मैंने सोचा अपने बेटे की ठीक से देखभाल नहीं कर पा रही हूं, या मैं उसे ठीक से कुछ खाने को नहीं दे रही हूं." आखिरकार उन्होंने बच्चों के डॉक्टर से पूछा कि ब्रोंकाइटिस और निमोनिया के लिए उसे साल में पांच बार अस्पताल के चक्कर आखिर क्यों काटने पड़ रहे हैं. जैसा कि होना ही था, उसके टेस्ट आए तो पता चला की पीएम 2.5 की वजह से उसे दमे ने जकड़ लिया था."
एक शिक्षिका के रूप में गोन्सालेस ये पहले ही जान चुकी थीं कि उनके करीब आधे शिक्षार्थियों को इन्हेलर की जरूरत थी. वेयरहाउस सिटी के मुताबिक, इनलैंड एम्पायर के सैकड़ों गोदाम स्कूलों से महज 1500 फुट के दायरे में हैं.
झूठे वादे
वेयरहाउस डेवलेपर और उनके समर्थक नेताओं ने साधारण, गरीब और लातिनी मूल के शहरियों के बीच गोदामों को आर्थिक विकास के लिए जरूरी बताया.
द प्रेस एंटरप्राइज के लिए जनवरी में लिखे एक लेख में सैन बर्नार्डिनो काउंटी बोर्ड ऑफ सुवरवाइजर्स के सदस्य कुर्त हैगमैन ने दलील दी थी कि "वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स केंद्र, माल की ढुलाई का अनिवार्य हिस्सा हैं और रिवरसाइड और सैन बर्नार्डिनो काउंटियों में रोजगार मुहैया कराने वाला प्रमुख उद्योग है."
इनलैंड एम्पायर इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आईईईपी) के मुख्य अर्थशास्त्री मैनफ्रेड काइल ने डीडब्लू को बताया कि लॉजिस्टिक्स सेक्टर ने इनलैंड एम्पायर में फरवरी 2020 से 80 हजार और नौकरियां दी हैं यानी तमाम नये रोजगार में एक तिहाई हिस्सा उसका है.
लेकिन फिलिप्स, गोन्सालेज और दूसरे आलोचक कहते हैं कि पर्यावरणीय कीमत और घटिया स्तर के रोजगार को देखते हुए ये तमाम कथित लाभ किसी काम के नहीं.
फिलिप्स बताती हैं, "पैदाइश से ही बीमारियां और विकलांगता का दुष्चक्र घेरे रहता है." प्रदूषण की वजह से कमजोर फेफड़ों के साथ पैदा हुए या मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को गोदामों के पास बने स्कूलों में ठूंस दिया जाता है जहां उनकी सेहत और गिरती जाती है.
फिलिप्स ये भी कहती हैं कि बच्चों को फिर गोदामों में भर्ती कर लिया जाता है. जहां उनसे इतना सख्त काम कराया जाता है कि उनमें शारीरिक विकलांगता आ जाती है.
शोध बताते हैं कि इलाके में मुख्य रूप से सक्रिय अमेजन के गोदामों के मजदूरों में गंभीर चोटें लगने की दर दूसरी कंपनियों के मुकाबले दोगुनी है.
गोन्सालेस और फिलिप्स इस बात पर भी जोर देती हैं कि मजदूरों की पगार काफी नहीं हैं. फिलिप्स कहती हैं, "ये नौकरियां असल में समूची आबादी को गरीबी में फंसाए रख रही हैं, उन्हें महज़ 17 या 18 डॉलर प्रतिघंटा मिलता है."
गोन्सालेस बताती है कि लॉजिस्टिक्स कंपनियां, इनलैंड एम्पायर के कई समुदायों को लक्षित करती हैं क्योंकि आर्थिक विकास के लिए उनके पास और विकल्प थोड़े हैं.
गोदामों पर इलाके की अति निर्भरता भी एक चिंता है. वहां काम की लगातार मांग बनी रहती है. फिलिप्स कहती हैं, "इस इलाके ने गोदामों पर जैसा निवेश किया है वो आप अपने शेयरों में कभी नहीं करेंगे."
एक समन्वित समाधान
इलाके के सभी सामुदायिक समूह अपने अपने गली-मोहल्लों में गोदामों का निर्माण रोके रखने की कोइश करते आ रहे हैं. लेकिन ये महसूस किया जाने लगा है कि ये तरीका टिकाऊ नहीं है.
जनवरी में सीसीएईजे, रॉबर्ट रेडफोर्ड कंजर्वेन्सी और दर्जनों और पर्यावरणीय और सामुदायिक समूहों ने कैलिफोर्निया राज्य के गर्वनर गैविन न्युसम को एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें मांग की गई कि इनलैंड एम्पायर में सार्वजनिक स्वास्थ्य की इमरजेंसी की घोषणा की जाए और वेयरहाउस निर्माण को दो साल स्थगित रखा जाए.
चिट्ठी के मुताबिक, "प्रदूषण की वजह से हमारा जीने का अधिकार, दमा या दिल की बीमारी, मानसिक या प्रजनन समस्याओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए. जिस हवा में हम सांस लेते हैं उससे बीमार न पड़ने का हमारा अधिकार है." राज्य के कुछ व्यापार संगठन वेयरहाउस निर्माण को स्थगित रखने की मांग से अहसमत हैं.
आईईईपी के काइल ने डीडब्लू को भेजे ईमेल में लिखा, "उचित लागत लाभ विश्लेषण के बिना निर्माण स्थगित कर देने के गंभीर आर्थिक नतीजे होंगे. लॉजिस्टिक्स में रोजगार को प्रतिबंधित करने से उन सामाजिक-आर्थिक समूहों पर खासतौर पर चोट पहुंचेगी जिनकी ये रिपोर्ट मदद करने का दावा करती है."
गर्वनर न्युसम को भेजी गई चिट्ठी में और भी मांगे की गई हैं. जैसे कि प्रभावित समुदायों पर और रिसर्च, और निर्माण की मंजूरी के लिए ज्यादा बड़ी और सख्त शर्ते.
आना गोन्सालेस कहती हैं, "हमें उम्मीद है कि मोरेटोरियम यानी स्थगन का ऐलान हो जाएगा तभी हम इस सबके पीछे की साइंस को देख सकेंगे. शहरों और काउंटियों की योजनाओं पर नजर डाल सकेंगे और समाधानों का ऐसा रास्ता निकाल पाएंगे जिसमें गोदाम इंसानी जिंदगी की कीमत पर गोदाम न खड़े हों." (dw.com)
चीन, 11 मार्च । चीन की संसद ने शनिवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के क़रीबी ली कियांग को अगला प्रधानमंत्री बनाए जाने की पुष्टि की है.
ली कियांग, ली केचियांग की जगह लेंगे जो पिछले दस सालों से चीन के प्रधानमंत्री हैं.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने खुद ली कियांग के नाम का प्रस्ताव दिया था, जिसे नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी) ने मंज़ूर कर लिया है.
ली कियांग 63 साल के हैं, जिन्हें व्यवसायियों के हित में काम करने वाला राजनेता माना जाता है और जो शी जिनपिंग के करीबियों में शामिल हैं.
इससे पहले शुक्रवार शी जिनपिंग तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बने हैं.
ली कियांग शुरुआती दिनों में चीन की क्षेत्रीय राजनीति में जिनपिंग के साथ थे. इसके बाद वो उप राष्ट्रपति के तौर पर केंद्र की सत्ता में आए. कियांग शंघाई में पार्टी के प्रमुख भी रह चुके हैं.
कोरोना से निपटने के लिए उन्होंने करीब 2.6 करोड़ लोगों को एक महीने से अधिक समय के लिए लॉकडाउन लगाकर घरों में बंद कर दिया था. इस नीति की देश और विदेश हर जगह आलोचना हुई. ली कियांग को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे सबसे बड़ी वजह ये मानी जा रही है कि वो निजी सेक्टर में विदेशी निवेश बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं.
(bbc.com/hindi)
लॉस एंजेलिस, 11 मार्च | अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कैलिफोर्निया में आपातकाल को मंजूरी दे दी है, क्योंकि देश में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य एक और खतरनाक तूफान की चपेट में आ गया है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने व्हाइट हाउस की एक प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से बताया कि बाइडेन ने शुक्रवार को राज्य को संघीय सहायता का आदेश दिया।
यह कार्रवाई यूएस डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी एंड फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी को सभी आपदा राहत प्रयासों का समन्वय करने के लिए अधिकृत करेगी। इसका उद्देश्य स्थानीय आबादी पर आपातकाल के कारण होने वाली कठिनाई और पीड़ा को कम करना और आपातकालीन उपायों के लिए उचित सहायता प्रदान करना है।
नया तूफान शुक्रवार को कैलिफोर्निया के ज्यादातर हिस्सों में पहुंच रहा है, इससे बाढ़ की चेतावनी के बीच भारी बारिश हो रही है।
यूएस नेशनल वेदर सर्विस ने चेतावनी दी है कि सर्दियों के तूफान के कारण उत्तरी और मध्य कैलिफोर्निया के उच्च इलाकों में भारी मात्रा में बर्फबारी होगी। राज्य के अधिकांश हिस्सों के साथ-साथ सुदूर पश्चिमी नेवादा में वर्षा और बाढ़ का खतरा पैदा होगा।
कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूजॉम ने गुरुवार को राष्ट्रपति से आपातकालीन घोषणा का अनुरोध किया था।
न्यूजॉम ने गुरुवार को आपदा प्रतिक्रिया और राहत प्रयासों का समर्थन करने के लिए कैलिफोर्निया के 58 काउंटियों में से 21 में आपातकाल की स्थिति की घोषणा की।
गवर्नर ने कहा, इन खतरनाक और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में, यह महत्वपूर्ण है कि कैलिफोर्नियावासी सतर्क रहें और आपातकालीन कर्मियों के दिशानिर्देशो का पालन करें। (आईएएनएस)|
फ्रैंकफर्ट, 11 मार्च | जर्मन पुलिस ने चार घंटे से अधिक समय तक बंधक बनाए गए बंधकों को रिहा कराकर आरोपी दक्षिण-पश्चिमी शहर कार्लजूए में गिरफ्तार कर लिया है। स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए के हवाले से बताया कि संदिग्ध ने शुक्रवार शाम करीब 4:30 बजे एक फार्मेसी में कई लोगों को बंधक बना लिया था।
पुलिस ने रात लगभग 9:10 बजे फार्मेसी में एक ऑपरेशन चलाकर संदिग्ध को गिरफ्तार कर लिया। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 11 मार्च (आईएएनएस)| अमेरिका के श्रम विभाग ने बताया कि देश में फरवरी में 3 लाख 11 हजार नौकरियां सृजित हुईं। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने विभाग के हवाले से कहा कि बेरोजगारी दर पिछले महीने के 3.4 प्रतिशत से बढ़कर 3.6 प्रतिशत हो गई। इस हफ्ते की शुरुआत में, फेड चेयर जेरोम पॉवेल ने सांसदों से कहा कि अगर मुद्रास्फीति और एक मजबूत नौकरी बाजार जारी रहता है तो केंद्रीय बैंक दरों में वृद्धि करेगा।
पुलिस के मुताबिक जर्मनी के हैमबर्ग शहर के जेहावो विटनेस मीटिंग हॉल में हुए हमले में एक अजन्मे बच्चे समेत सात लोगों की मौत हो गई है.
पुलिस के मुताबिक़ गुरुवार को हुए इस हमले में एक ही हमलावर था. बाद में हमलावर ने ख़ुद को भी गोली मार ली. हमले का मक़सद अभी स्पष्ट नहीं है.
35 वर्षीय संदिग्ध हमलावर का नाम फिलीप एफ़ है. हमलावर भी इसी धार्मिक समुदाय का सदस्य था जिसके मन में 'दुर्भावना' थी.
इस हमले की नाटकीय वीडियो फुटेज भी सामने आई है जिसमें हमलावर हॉल की खिड़की से लोगों पर गोलियां चलाते दिख रहा है.
पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि इस हमले में चार पुरुषों और दो महिलाओं की मौत हुई है, सभी जर्मन नागरिक हैं.
वहीं आठ लोग घायल हुए हैं जिनमें चार की हालत गंभीर है. घायलों में एक यूक्रेन का नागरिक है, एक यूगांडा का.
हमले में सात महीने की एक गर्भवती एक महिला को भी गोली लगी है. अजन्मे बच्चे की मौत हो गई है जबकि महिला घायल है.
पुलिस के मुताबिक पहली इमरजेंसी कॉल रात 9.02 बजे मिली थी. कॉलर ने पुलिस को बताया था कि ब्रॉस्टल ज़िले की डीलबोग स्ट्रीट पर गोलियां चलीं हैं.
चार मिनट बाद पुलिस मौके पर पहुंच गई थी, इसके तुरंत बाद स्पेशल फोर्स के अधिकारी भी मौके पर थे.
पुलिस को भीतर दाख़िल होने के लिए खिड़कियां तोड़नी पड़ी थीं, यहां क़रीब पचास लोग जुटे थे.
संदिग्ध के पास बंदूक रखने का लाइसेंस था. उसे स्पोर्ट्स शूटर बताया गया है. पुलिस के मौके पर पहुंचने के बाद वो पहली मंज़िल की तरफ़ भाग गया था, जहां पुलिस को उसका शव मिला.
शूटर ने बंदूक की नौ मैग्ज़ीन खाली कर दी थीं, उसके बैकपैक से पुलिस को बीस और मैग्ज़ीन मिलीं.
जर्मनी के सीनेटर एंडी ग्रोटे कहते हैं, "पुलिस ने तेज़ और निर्णायक कार्रवाई की जिसकी वजह से कई लोगों की जान बचा ली गई."
पुलिस का कहना है कि पहले उसे किसी अज्ञात व्यक्ति ने संदिग्ध के बारे में जानकारी दी थी जिसके बाद उसकी मानसिक सेहत को लेकर चिंताएं पैदा हुईं थीं.
इसके बाद पुलिस अधिकारी उसके घर गए थे लेकिन पुलिस के पास उस समय उसकी बंदूक को ज़ब्त करने के पर्याप्त कारण नहीं थे.
पहली मंज़िल की खिड़की से घटना का वीडियो बनाने वाले ग्रेगर माइसबाक नाम के व्यक्ति ने जर्मन अख़बार बिल्ड को बताया है, "मुझे पता नहीं चला था कि क्या हो रहा है, फिर जब मैंने फ़ोन कैमरा से ज़ूम किया तो मुझे दिखा कि कोई गोलियां चला रहा है."
"मैंने गोलियों की आवाज़ें भी सुनी… मैंने देखा कि एक व्यक्ति खिड़की से गोलियां चला रहा है, फिर मैंने उसका वीडियो बनाया."
पास में ही रहने वाली 23 वर्षीय छात्रा लॉरा ब्राक ने डीपीए न्यूज़ एजेंसी को बताया, "चार बार तेज़ी से गोलियां चलने की आवाज़ें आईं. हर बार कई गोलियां चली थीं. इनके बीच में बीस सेकंड से लेकर एक मिनट तक का अंतराल था."
घटना के तुरंत बाद ही जर्मनी की चेतावनी देने वाली एप नीनावॉर्न पर स्थानीय लोगों को अलर्ट भेज दिया गया था. इसमें लोगों को बताया गया था एक या अधिक व्यक्ति चर्च पर गोलियां चला रहे हैं.
स्थानीय लोगों से पुलिस के अभियान के दौरान घरों से बाहर न निकलने के लिए भी कहा गया था.
वीडियो फुटेज में पुलिस लोगों को हॉल से बाहर निकालते और कुछ को एंबुलेंस में ले जाती दिख रही है.
घटना के चौबीस घंटे बाद भी इसके कारण स्पष्ट नहीं हो सके हैं.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ स्कॉल्ज़ ने इस घटना को बर्बर हिंसा बताया और पीड़ितों के प्रति संवेदना ज़ाहिर की है.
क्या है जेहोवाह विटनेस समुदाय?
एक बयान में जेहोवाह विटनेस समुदाय का कहना है कि वह इस हमले से बेहद दुखी है.
जेहोवाह विटनेस एक ईसाई समुदाय है जो 19वीं सदी में अमेरिका में शुरू हुए एक धार्मिक आंदोलन पर आधारित है.
2022 में अपनी ताज़ा रिपोर्ट में इस समुदाय ने बताया था कि दुनियाभर में उसके 87 लाख सदस्य हैं जबिक जर्मनी में 170,000 सदस्य हैं.
माना जाता है कि हैमबर्ग शहर में इस समुदाय से जुड़े क़रीब चार हज़ार लोग हैं.
इस समुदाय से जुड़े लोग घर-घर जाकर ईसाई धर्म का प्रचार करते हैं और लोगों को बाइबिल देते हैं.
हालांकि ये एक ईसाई धर्म आधारित समुदाय है लेकिन इसके सदस्य मानते हैं कि चर्च बाइबिल के सच्चे संदेश से भटक गए हैं और ईश्वर के साथ मधुर संबंध बनाकर काम नहीं करते हैं.
जर्मनी में यूरोप के सबसे सख़्त बंदूक क़ानून हैं. जर्मनी में बंदूक हासिल करने के लिए 25 वर्ष से कम उम्र के हर व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक परीक्षण से गुज़रना पड़ता है.
साल 2021 के आंकड़े के मुताबिक जर्मनी में क़रीब दस लाख लोगों के पास निजी बंदूक रखने का लाइसेंस है. जर्मनी में क़रीब 57 लाख निजी बंदूकें हैं जिनमें से अधिकतर शिकारियों के पास हैं.
पिछले साल जर्मनी में सरकार को ताक़त के दम पर बदल देने की योजना का पता चला था. उसके बाद बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियां हुईं थीं. सरकार बंदूक क़ानून को और सख़्त करने पर विचार कर रही है. (bbc.com/hindi)
सऊदी अरब और ईरान के बीच कूटनीतिक संबंध बहाल करने के फ़ैसले का पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र ने स्वागत किया है.
चीन में हुई वार्ता के बाद सऊदी अरब और ईरान सात साल बाद कूटनीतिक संबंधों की बहाली पर सहमत होने की घोषणा की है.
पाकिस्तान विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ये कूटनीतिक पहल क्षेत्रिय शांति और स्थिरता को बढ़ाने में सहयोग करेगी.
पाकिस्तान ने बयान में चीन की तारीफ़ करते हुए लिखा है, "इस ऐतिहासिक समझौते में चीन के दूरदर्शी नेतृत्व की ओर से निभाई गई भूमिका की सराहना करते हैं जो सकारात्मक जुड़ाव और सार्थक संवाद की शक्ति को दिखाता है. हम इस बहुत ही सकारात्मक गतिविधि के लिए सऊदी अरब साम्राज्य और ईरान के इस्लामी गणराज्य के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना करते हैं."
पाकिस्तान ने कहा है कि वो मध्यपूर्व क्षेत्र में सकारात्मक भूमिका निभाना जारी रखेगा और ये पहल बाक़ी क्षेत्रों में सहयोग और समृद्धि का उदाहरण बनेगी.
वहीं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भी ईरान और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक रिश्ते बहाल किए जाने के निर्णय का स्वागत किया है.
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता ने कहा है कि खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए पड़ोसी मुल्क़ों के बीच अच्छे संबंध ज़रूरी हैं.
ईरान और सऊदी अरब के रिश्तों में साल 2016 में उस वक्त खटास आई थी जब एक शिया को सऊदी में फांसी की सज़ा दी गई. इसके बाद ईरान में सऊदी के दूतावास में हमला हुआ था और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध टूट गए थे.
इसराइल के पूर्व पीएम क्या बोले
इस फ़ैसले को लेकर इसराइल के पूर्व प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने नेतन्याहू सरकार को निशाने पर लिया है. साथ ही उन्होंने इस फ़ैसले को इसराइल के लिए ख़तरनाक बताया है.
इस फ़ैसले को लेकर इसराइल के पूर्व प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने नेतन्याहू सरकार को निशाने पर लिया है. साथ ही उन्होंने इस फ़ैसले को इसराइल के लिए ख़तरनाक बताया है.
उन्होंने इस बदलाव को प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू की सरकार की नाकामी करार दिया है. (bbc.com/hindi)
कैलिफ़ोर्निया के बैंकिंग नियोमकों ने वित्तीय संकट में घिरे सिलिकॉन वैली बैंक को बंद कर दिया है. इसके बाद अमेरिका में एक बार फिर से बड़ा बैंकिंग संकट खड़ा होता दिख रहा है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2008 में आई आर्थिक मंदी के बाद बंद होने वाला सबसे बड़ा बैंक सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) है.
नियामक ने फ़ेडरल डिपॉज़िट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (एफ़डीआईसी) रिसीवर नियुक्त किया है, जो आगे का काम देखेगा. इससे पहले प्री-मार्केट ट्रेडिंग में 66 फ़ीसदी गिरावट के बाद बैंक के शेयरों को कारोबार के लिए रोक दिया गया था.
टेक कंपनियों को कर्ज़ देने वाले एसवीबी के बंद होने की घोषणा के साथ ही वैश्विक बाज़ारों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला और कई बैंकों के शेयर लुढ़क गए.
हालाँकि, अमेरिका के कुछ बड़े बैंकों के शेयरों का हाल शुक्रवार सुबह थोड़ा बेहतर रहा.
एसवीबी इस साल बंद होने वाला पहला एफ़डीआईसी इंश्योर्ड संस्थान है. ढाई साल पहले 23 अक्टूबर 2020 को अल्मेना स्टेट बैंक को बंद किया गया था. (bbc.com/hindi)
छोटी-छोटी नावों से इंग्लिश चैनल (ब्रिटेन और उत्तरी फ़्रांस को अलग करने वाला अटलांटिक महासागर का हिस्सा) पार करने वाले अवैध प्रवासियों को रोकने में मदद के लिए ब्रिटेन तीन सालों में फ़्रांस को करीब 50 करोड़ पाउंड यानी 4935 करोड़ रुपये देगा.
यूके के पीएम ऋषि सुनक और फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मुलाक़ात के दौरान इसकी घोषणा की गई.
ये राशि 500 अतिरिक्त अधिकारियों की नियुक्ति और फ़्रांस में डिटेंशन सेंटर बनाने के लिए दी जाएगी. हालांकि, ये सेंटर साल 2026 के आख़िर तक पूरी तरह से चालू नहीं होंगे.
अवैध प्रवासियों की समस्या से निपटने के लिए ब्रिटेन ने इस साल फ़्रांस को करीब 6.3 करोड़ पाउंड की राशि देने की योजना बनाई है.
फ़्रांस ने भी इसमें योगदान बढ़ाने का एलान किया है, हालांकि ये राशि कितनी होगी इसकी जानकारी नहीं दी है.
ब्रिटेन की नई घोषणा पिछली राशि से लगभग दोगुनी है. इससे पहले ब्रिटेन ने प्रवासियों की समस्या से निपटने के लिए 1.2 करोड़ पाउंड देने का एलान किया था.
हालांकि, ऋषि सुनक के नए एलान का विरोध भी हो रहा है. लेबर पार्टी के शैडो अटॉर्नी जनरल एमिली थॉर्नबेरी ने नई घोषणा को एक संकट से दूसरे संकट में भटकने जैसा बताया है.
हालांकि, ऋषि सुनक के नए एलान का विरोध भी हो रहा है. लेबर पार्टी के शैडो अटॉर्नी जनरल एमिली थॉर्नबेरी ने नई घोषणा को एक संकट से दूसरे संकट में भटकने जैसा बताया है.
वहीं, पीएम सुनक ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान बताया कि बीते साल करीब 30 हज़ार छोटी नावों को चैनल पार करने से रोका गया और क़रीब 500 गिरफ़्तारियां हुईं. (bbc.com/hindi)
दक्षिण कोरिया, 10 मार्च । दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल 16 और 17 मार्च को जापान दौरे पर रहेंगे.
बीते 12 सालों में ये पहली बार है, जब दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति जापान दौरे पर जा रहे हैं.
ये फ़ैसला उस क़दम के बाद हुआ है, जिसमें युद्ध के दौरान जापानी फैक्ट्रियों में जबरन श्रम लिए ले जाने के मामलों में मुआवज़ा दिए जाने को लेकर समझौता हुआ है. कोरिया के लोगों को जबरन इन फैक्ट्रियों में काम पर लगाया गया था.
ऐसे श्रमिकों की संख्या लगभग डेढ़ लाख बताई जाती है.
दक्षिण कोरिया ने हाल ही में कहा था कि 1910-1945 तक जापान के शासन के दौरान जबरन श्रम लिए जाने के मामले पर कंपनियां मुआवज़ा देंगी.
दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर विवाद रहा था, जो अब समाधान की दिशा में बढ़ा है.
जापान दौरे पर यून सुक-योल जापानी पीएम फुमियो किशिदा से भी मिलेंगे.
यून सुक-योल के दफ़्तर ने बयान जारी कर कहा है, ''दक्षिण कोरिया और जापान के संबंधों में सुधार के मद्देनज़र ये फ़ैसला मील का पत्थर साबित होगा.''
जापान के चीफ़ कैबेनिट सेक्रेटरी हीरोकाज़ू ने कहा, ''दक्षिण कोरिया हमारा अहम पड़ोसी देश है. कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिए जापान को सहयोग करना चाहिए.''
हीरोकाज़ू ने कहा, ''मैं उम्मीद करता हूं कि इस दौरे से जापान-कोरिया संबंधों में सहयोग, दोस्ती और रिश्तों में बेहतरी आएगी.''
दोनों देशों के प्रमुखों के बीच बैठक का एजेंडा क्या होगा? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि फ़िलहाल कुछ तय नहीं हुआ है.
ख़बरों की मानें तो जापान की सरकार यून सुक-योल को मई में होने वाले जी-7 समिट में बुलाने पर विचार कर रही है. एक बात यह भी कही जा रही है कि अमेरिका जापान और दक्षिण कोरिया के बीच मतभेदों को ख़त्म करवाना चाहता था ताकि दोनों देश चीन और उत्तर कोरिया का सामना मिलकर करें.
विवाद क्या था?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया दो अलग देश बने.
इस विभाजन के बाद से दोनों देशों ने अपनी अलग-अलग राह चुनी. कोरिया पर 1910 से जापान का तब तक शासन रहा जब तक 1945 के दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों ने हथियार नहीं डाल दिया. इसके बाद सोवियत की सेना ने कोरिया के उत्तरी भाग को अपने कब्ज़े में लिया और दक्षिणी हिस्से को अमेरिका ने. इसके बाद उत्तरी और दक्षिणी कोरिया में साम्यवाद और 'लोकतंत्र' के बीच लेकर संघर्ष शुरू हुआ.
20वीं सदी का यह विभाजन आज भी दुनिया के लिए बड़े विवाद के रूप में कायम है. जापान के शासन से मुक्ति के बाद 1947 में अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र के ज़रिए कोरिया को एक सिंगल राष्ट्र बनाने की पहल की.
इसके बाद यूएन के आयोग की निगरानी में चुनाव कराने का फ़ैसला लिया गया. मई 1948 में कोरिया प्रायद्वीप के दक्षिण हिस्से में चुनाव हुआ. इस चुनाव के साथ ही 15 अगस्त को रिपब्लिक ऑफ कोरिया (दक्षिणी कोरिया) बनाने की घोषणा की गई.
इस बीच, सोवियत संघ के नियंत्रण वाले उत्तर हिस्से में सुप्रीम पीपल्स असेंबली का चुनाव हुआ. इस चुनाव के साथ ही डेमोक्रेटिक पीप्लस रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डीपीआरके) की सितंबर 1948 में घोषणा की गई.
इसके बावजूद दोनों के बीच सैन्य और राजनीतिक विरोधभास बना रहा. यह संघर्ष पूजींवाद बनाम साम्यवाद के रूप में भी दिखा.
इसका नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच एक युद्ध हुआ. दोनों देशों के बीच जून, 1950 में संघर्ष शुरू हो गया. अमरीकी सेना के साथ 15 अन्य देश दक्षिण कोरिया का साथ आए और डीपीआरके का साथ रूसी और चीनी सेना ने दिया. 1953 में यह युद्ध ख़त्म हुआ और दो स्वतंत्र राष्ट्र बने.
तीन साल चले कोरियाई युद्ध में अमेरिका ने दक्षिण कोरिया की मदद की थी. युद्ध में क़रीब 25 लाख लोगों की मौत हुई थी.
उत्तर कोरिया से तनाव और फिर अमेरिकी मदद से शुरू हुआ सिलसिला आज भी जारी है.
इस युद्ध से सालों पहले जापान के कब्ज़े और ख़ासकर विश्व युद्धों के दौरान कोरिया में लोगों से जबरन काम लिया गया.
इसे लेकर 2018 में दक्षिण कोरिया के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जापानी कंपनियां जबरन काम लिए जाने के एवज में मुआवज़ा दें.
15 दक्षिण कोरियाई लोगों ने ये केस जीते पर किसी को मुआवज़ा नहीं दिया गया.
जापान का कहना था कि ये मामला 1965 में हुए एक समझौते में सुलझा लिया गया था और जापान कोई मुआवज़ा नहीं देगा.
अब जब दक्षिण कोरिया ने अपने नागरिकों को ख़ुद मुआवज़ा देने का फ़ैसला किया है तो इसे कुछ लोग सही नहीं बता रहे हैं.
मुआवज़ा देने के लिए दक्षिण कोरियाई कंपनियां क़रीब 30 लाख डॉलर का फंड जुटाएंगी. ये फंड पीड़ितों को बाँटा जाएगा. जिन कंपनियों को ये फंड देना है, उनमें वो कंपनियां शामिल हैं जिन्होंने 1965 युद्ध के बाद हुए एक समझौते से फ़ायदा पहुंचा था.
जिन पीड़ितों को मुआवज़ा देने का एलान हुआ, उनमें से तीन जीवित पीड़ितों ने इसे लेने से इनकार कर दिया है.
अमेरिका की भूमिका
दक्षिण कोरिया और जापान के बीच तनाव का लंबा इतिहास रहा है.
हाल के वर्षों में चीन के बढ़ते असर पर काबू पाने के लिए अमेरिका की कोशिश रही है कि वो अपने सहयोगियों को साथ ला सके.
दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के जापानी दौरे को भी अमेरिका की कोशिशों का नतीजा बताया गया.
दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में कहा, ''सुरक्षा सहयोग और अमेरिका के साथ त्रिपक्षीय रिश्तों को मज़बूत करने की दिशा में काम किए जाएंगे.''
यून ने भी इस महीने की शुरुआत में कहा था कि उत्तर कोरिया से बढ़ते परमाणु ख़तरे और दूसरे संकटों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका और जापान के साथ सहयोग की ज़रूरत बढ़ गई है.
सोल में इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर लीफ-इरिक इसले ने कहा,''इतिहास के सभी मुद्दे सुलझाए नहीं जा सकेंगे क्योंकि लोकतंत्र में मिलन एक प्रक्रिया है न कि समझौता. लेकिन दोनों देश व्यापार और सुरक्षा के मुद्दों पर साथ आ सकते हैं.''
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिका ने दोनों देशों पर विवाद सुलझाने का दबाव बनाया था. अमेरिका ने हालिया एलान को ऐतिहासिक बताया है. हालांकि कई पीड़ितों ने समझौते को ख़ारिज किया.
यून के दफ़्तर ने जानकारी दी कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन 26 अप्रैल को दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति से अमेरिका में मिलेंगे.
2011 के बाद से ये पहली बार होगा, जब कोई दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति अमेरिका का दौरा करेगा.
अमेरिका चाहता क्या है?
हाल ही में भारत में जब दिल्ली में जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी, तब जापान के विदेश मंत्री भारत दौरे पर नहीं आए थे.
दक्षिण कोरिया ने भी 24 फ़रवरी को ही घोषणा कर दी थी कि उसके उप-विदेश मंत्री इस बैठक में जाएंगे. यानी दक्षिण कोरिया और जापान दोनों ने अपने विदेश मंत्री के बजाय जूनियर मंत्री को भारत भेजा.
लेकिन जब क्वॉड देशों की तीन मार्च को बैठक हुई तब अमेरिका के बुलावे पर जापान के विदेश मंत्री भारत आ गए थे. क्वॉड को चीन विरोधी गुट कहा जाता है जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका हैं.
अमेरिका की इन कोशिशों को चीन के बढ़ते प्रभुत्व को रोकने के लिए रणनीति के दौर पर भी देखा जाता है.
इस बात से ख़फ़ा चीन दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति पर अमेरिका का प्यादा होने का आरोप लगाता है.
वॉशिंगटन पोस्ट में छपे एक लेख में कहा गया है कि अमेरिका भले ही जापान-दक्षिण कोरिया के बीच सुलह करवाने का श्रेय लेता दिखता हो मगर हक़ीक़त कुछ और है.
लेख में कहा गया है, ''दक्षिण कोरिया और जापान ने एक नए अध्याय की शुरुआत इसलिए की है क्योंकि ये दोनों देश समझते हैं कि दुनिया तेज़ी से बदल रही है और तेज़ी से विस्तार करते चीन से अकेले निपटना आसान नहीं है.'' (bbc.com/hindi)
सैन फ्रांसिस्को, 10 मार्च | छंटनी की प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए सॉफ्टवेयर प्रमुख एडोब ने कहा है कि वह छंटनी नहीं करेगा। अन्य सिलिकॉन वैली टेक दिग्गजों के विपरीत, एडोब के मुख्य जन अधिकारी ग्लोरिया चेन के अनुसार, इस साल कोई बड़े पैमाने पर छंटनी नहीं होगी।
ब्लूमबर्ग टेलीविजन के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि "हम कंपनी-व्यापी छंटनी नहीं करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
चेन ने कहा, "हम वास्तव में यहां विकास जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
दिसंबर में, एडोब ने खराब वैश्विक व्यापक आर्थिक परिस्थितियों के बीच अपनी सेल्स टीम से करीब 100 कर्मचारियों को निकाल दिया था।
एडोब ने कहा कि कंपनी ने 'कुछ कर्मचारियों को महत्वपूर्ण पहलों का समर्थन करने वाले पदों पर स्थानांतरित कर दिया' और अन्य नौकरियों की 'छोटी संख्या' को हटा दिया।
सॉफ्टवेयर प्रमुख ने एक बयान में कहा, "एडोब कंपनी-व्यापी छंटनी नहीं कर रहा है और हम अभी भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए भर्ती कर रहे हैं।"
एडोब 15 मार्च को अपनी पहली तिमाही आय परिणाम पोस्ट करेगा।
कंपनी ने वित्त वर्ष 2022 की चौथी तिमाही में 4.53 अरब डॉलर का राजस्व हासिल किया, जो साल-दर-साल 10 प्रतिशत की वृद्धि है।
एडोब ने वित्तीय वर्ष 2022 में 17.61 अरब डॉलर का राजस्व प्राप्त किया था, जो साल-दर-साल 12 प्रतिशत की वृद्धि है। (आईएएनएस)
बीजिंग, 10 मार्च | शी जिनपिंग ने शुक्रवार को 14वीं नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के चल रहे सत्र में सर्वसम्मति से शीर्ष पद के लिए चुने जाने के बाद चीनी राष्ट्रपति के रूप में तीसरा कार्यकाल शुरू किया। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) का अध्यक्ष भी चुना गया है। एनपीसी के लगभग 3,000 सदस्यों ने बीजिंग में ग्रेट हॉल ऑफ द पीपुल में सर्वसम्मति से शी के राष्ट्रपति बनने के लिए एक ऐसे चुनाव में मतदान किया, जहां कोई अन्य उम्मीदवार नहीं था।
माओत्से तुंग के बाद से, चीन में राष्ट्रपति के कार्यकाल को दो बार तक के लिए सीमित कर दिया गया था।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार शी ने 2018 में इसमें बदलाव कर दिया।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बीच आने वाले दिनों में एक नए प्रधानमंत्री और विभिन्न मंत्रियों का नामकरण अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
नए नियुक्त किए गए सभी लोगों के शी के वफादार होने की उम्मीद है, जिसमें ली कियांग भी शामिल हैं, जिन्हें राष्ट्रपति के नंबर दो के रूप में सेवा देने की सूचना दी गई है। (आईएएनएस)
इम्फाल, 10 मार्च | असम राइफल्स ने मणिपुर में करीब 55.86 करोड़ रुपये की 27.93 किलोग्राम ब्राउन शुगर जब्त की है और दो ड्रग तस्करों को गिरफ्तार किया है। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। असम राइफल्स के जनसंपर्क अधिकारी मेजर रितेश ने कहा कि म्यांमार से ड्रग्स के साथ-साथ ड्रग तस्करों की आवाजाही के संबंध में इनपुट के आधार पर, एच मुन्नोम में अर्ध-सैन्य बल द्वारा एक मोबाइल वाहन चेक पोस्ट की स्थापना की गई और भारत-म्यांमार सीमा के साथ मोरेह शहर जा रही एक चीनी केनबो बाइक को रोका गया।
उन्होंने कहा कि दो तस्करों को गिरफ्तार किया गया और उनके पास से लगभग 27.93 किलोग्राम वजन वाली ब्राउन शुगर युक्त 648 साबुन पेटियां बरामद की गईं।
बरामद नशीले पदार्थों के साथ पकड़े गए दो तस्करों को आगे की जांच और कानूनी कार्रवाई के लिए मोरेह पुलिस स्टेशन को सौंप दिया गया।
मोरेह इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (आईसीपी) का उपयोग कर मोरेह-तमू सीमा के माध्यम से भारत-म्यांमार ट्रेड और बिजनेस मार्च 2020 से कोविड-19 के प्रकोप के बाद बंद कर दिया गया।
400 किलोमीटर लंबी बिना बाड़ वाली भारत-म्यांमार सीमा के साथ टेंग्नौपाल जिले में मोरेह विभिन्न दवाओं, विदेशी जानवरों, सोने और अन्य वर्जित वस्तुओं की तस्करी का एक केंद्र है। (आईएएनएस)
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गर्भपात के अधिकार को रद्द कर देने के बाद कई पुरुषों ने अपनी नसबंदी करवानी शुरू कर दी है. नसबंदी को लेकर भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं लेकिन कई लोग टिक टॉक पर वीडियो डाल अफवाहों से लड़ रहे हैं.
वीडियो में एक शख्स कस कर अपनी आंखें बंद किए हुए नजर आ रहा है. खुद को ही फिल्माते हुए वो अचानक एक गाना गाने लगता है. अगर आपको स्पष्ट रूप से बताया ना जाए तो शायद आप जान नहीं पाएंगे कि यह व्यक्ति अपनी नसबंदी करवाते हुए अपना वीडियो बना रहा है.
अमेरिका में कई डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जब से सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के अधिकार को रद्द किया है तब से देश भर में कई पुरुषों ने अपनी नसबंदी करवाई है. और अब कई पुरुष नसबंदी करवाते समय अपना वीडियो बना कर टिक टॉक पर भी डाल रहे हैं ताकि इसे लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियों से लड़ा जा सके.
मिथकों को तोड़ते वीडियो
इन वीडियो में इन पुरुषों का कमर से ऊपर का हिस्सा ही नजर आता है. नसबंदी को लेकर लंबे समय से इंटरनेट पर कई तरह की भ्रांतियां उपलब्ध रही हैं. टेक्सास में रहने वाले इन्फ्लुएंसर कीथ लौ कहते हैं कि इनमें सबसे आम मिथक है कि नसबंदी अंडकोष निकाल देने जैसा ही है या यह कि नसबंदी से कामलिप्सा या हॉर्मोन के बनने पर असर पड़ता है.
लौ ने खुद भी अपनी नसबंदी के बारे में कई वीडियो बनाए हैं. जानकारों का कहना है कि इन मिथकों की वजह से नसबंदी को लेकर नकारात्मक रवैया बन जाता है.
लेकिन मसखरेपन और हंसी से भरे वायरल टिक टॉक वीडियो न सिर्फ इनमें से कुछ मिथकों को तोड़ रहे हैं, बल्कि नसबंदी को अपने प्रजनन संबंधी मूल अधिकार गंवा चुकी महिलाओं के प्रति एकजुटता दिखाने के उद्देश्य से पुरुषों के लिए एक विकल्प के रूप में बढ़ावा दे रहे हैं.
लास वेगास में रहने वाले कॉमेडियन जिमी मैकमर्रिन ने अपने एक ऐसे ही वीडियो का शीर्षक दिया था "आपको नपुंसक बनाया जा रहा है." इस वीडियो को पचास लाख से भी ज्यादा बार देखा गया.
बढ़ रही है नसबंदी दर
23 साल के मैकमर्रिन कहते हैं, "मैं यह जरूर मानता हूं कि ये टिक टॉक वीडियो नसबंदी से जुड़े मिथकों और गलत जानकारी के खिलाफ लड़ाई में मदद कर रहे हैं. मेरे पास अभी भी मेरा अंडकोष है. सब सामान्य है."
हालांकि यह चलन टिक टॉक को लेकर बनी लोकप्रिय धारणा के बिल्कुल विपरीत है. विशेषज्ञों का कहना है कि टिकटॉक पर ऐसे अयोग्य इन्फ्लुएंसरों की भरमार है जो स्वास्थ्य के बारे में काफी गलत जानकारी देते हैं. वो अक्सर ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उन्हें ज्यादा बार देखा जाए, वीडियो पर कमेंट किया जाए और उसे लाइक और शेयर किया जाए.
इलिनॉय विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर कैटरीन वॉलेस कहती हैं, "टिक टॉक पर हाल के कई नसबंदी वाले वीडियो रो बनाम वेड मामले (गर्भपात वाले) फैसले को नसबंदी करवाने का फैसला करने के कारण के रूप में रेखांकित करते हैं और यह भी कि गर्भ निरोध की जिम्मेदारीज्यादातर सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं पड़नी चाहिए."
सही जानकारी जरूरी
कॉर्नेल विश्वविद्यालय के वील कॉर्नेल मेडिकल कॉलेज के यूरोलॉजिस्ट मार्क गोल्डस्टीन का कहना है कि इस बात के प्रमाण हैं कि अदालत के फैसले के बाद से नसबंदी दर "काफी बढ़ गई है."
कई और यूरोलॉजिस्टों और फर्टिलिटी विशेषज्ञों ने भी इस बात की पुष्टि की. कइयों ने तो बताया कि नसबंदी के मामले कई गुना बढ़ गए हैं और उसके बारे में इंटरनेट पर जानकारी ढूंढने की गतिविधियों में भी उछाल आया है.
हालांकि कुछ जानकार इसमें भी सावधान रहने पर जोर दे रहे हैं. ड्यूक विश्वविद्यालय के जोनास स्वार्ट्ज कहते हैं, "मेरी चिंता यह है कि कभी कभी इन वीडियो में स्वास्थ्य संबंधी जानकारी की गुणवत्ता कम होती है. लोगों को सटीक, प्रमाण-आधारित जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए. ऐसी जानकारी को फिल्टर करने के लिए टिक टॉक को डिजाइन नहीं किया गया है."
जैसे कई वीडियो में सही जानकारी के साथ साथ यह गलत जानकारी भी थी कि नसबंदी को पूरी तरह से पलटा भी जा सकता है. वॉलएस और दूसरे विशेषज्ञों ने बताया कि नसबंदी को पलटने की कोशिश की तो जा सकती है लेकिन यह इस पर निर्भर करता है कि नसबंदी कराए कितना समय बीत गया और वो किस तरीके से की गई थी.
सीके/एए (एएफपी)
नेपाली कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रतिनिधि सभा के पूर्व स्पीकर रामचंद्र पौडेल नेपाल के अगले राष्ट्रपति होंगे. 9 मार्च को हुए मतदान में उन्होंने यूएमएल के प्रत्याशी सुभाष चंद्र नेमबांग को हराया.
राजशाही खत्म होने और लोकतंत्र बनने के बाद से रामचंद्र पौडेल देश के तीसरे राष्ट्रपति चुने गए हैं. वर्तमान राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी का कार्यकाल 12 मार्च को खत्म हो रहा है. पौडेल का जीतना लगभग तय माना जा रहा था. उनके पास सत्तारूढ़ सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) समेत नौ पार्टियों का समर्थन था.
इस चुनाव के कारण नेपाल में मुख्य राजनीतिक दलों के बीच मतभेद गहरा गए और पहले से ही अस्थिर माहौल में और अस्थिरता आ गई है. हालांकि राष्ट्रपति पद का सर्वोच्च होना सांकेतिक है, लेकिन समय-समय पर सत्तारूढ़ दल द्वारा राष्ट्रपति के सहारे राजनीतिक लाभ उठाने, विरोधियों को निशाना बनाने और खास पार्टी को तवज्जो दिए जाने के आरोपों के बीच इस पद के लिए होड़ बढ़ गई है. बिद्या देवी भंडारी पर भी अपने कार्यकाल में के पी शर्मा ओली की सरकार और पार्टी को बेजा फायदा पहुंचाने और विपक्षी दलों के साथ पक्षपात करने के गंभीर आरोप लगे.
सहयोगी बने विरोधी, विपक्षी बने साझेदार
मौजूदा राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार के सवाल पर सत्तारुढ़ गठबंधन में दरार पड़ गई. बमुश्किल तीन महीने पुरानी प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल "प्रचंड" की सरकार में फूट पड़ गई. दहल ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी नेपाली कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार रामचंद्र पौडेल के समर्थन का फैसला किया. जबकि गठबंधन में उनकी सहयोगी पार्टी "कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमल)" अपना प्रत्याशी खड़ा करना चाहती थी. यूएमल मौजूदा संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी और गठबंधन सरकार में सबसे बड़ी सहयोगी थी.
यूएमएल के मुताबिक, दिसंबर 2022 में दहल के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनने के समय उनका माओइस्ट सेंटर से एक करार हुआ था. इसके मुताबिक, दहल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए समर्थन देने के बदले माओइस्ट सेंटर यूएमएल के प्रत्याशी को राष्ट्रपति और स्पीकर बनाने में सहयोग करने वाला था. हालांकि सरकार के गठन के कुछ वक्त बाद ही स्थितियां बदलती नजर आईं. एक ओर जहां यूएमएल और माओइस्ट सेंटर के बीच दूरियां बढ़ने लगीं, वहीं दहल और नेपाली कांग्रेस फिर से करीब आते दिखे.
अभी उपराष्ट्रपति चुनाव भी होना है
नेपाल में सामान्य हो चुकी राजनीतिक उठापटक के बीच यह घटनाक्रम हैरान करने वाला नहीं था. नवंबर 2022 में दहल, नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से बाहर हुए थे. तब बताया गया था कि दहल पीएम बनना चाहते हैं और देउबा इसके लिए राजी नहीं. दिसंबर में दहल के पीएम बन जाने के कुछ ही दिनों बाद 10 जनवरी को जब संसद में फ्लोर टेस्ट हुआ, तो नेपाली कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया.
इसके बाद दहल के भी स्वर बदलने लगे. उन्होंने कहा कि नया राष्ट्रपति सर्वसम्मति से चुना जाना चाहिए. राष्ट्रपति पद पर समर्थन ना मिलने से नाराज यूएमएल 27 फरवरी को गठबंधन से बाहर निकल गई.
काठमांडू में स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषक ध्रुबा अधिकारी बताते हैं, "नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का दौर खत्म नहीं हुआ जबकि आम चुनाव बहुत कामयाबी के साथ संपन्न हुए थे और नई गठबंधन सरकार बनी थी." दहल को इसी महीने बहुमत भी साबित करना है. राजनीतिक अस्थिरता नेपाल में स्थायी बनी हुई है. पिछले 10 साल में आठ सरकारें आ चुकी हैं. नवंबर 2022 में हुए पिछले आम चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. इसके कारण कमजोर गठबंधन सत्ता में आया.
अब 17 मार्च को उपराष्ट्रपति का भी चुनाव होना है. बयानों के मुताबिक उपराष्ट्रपति के चुनाव और दहल के फ्लोर टेस्ट के बाद माओइस्ट सेंटर, नेपाली कांग्रेस और गठबंधन पार्टियों के बीच सत्ता साझेदारी के लिए नया समझौता होगा. इसमें केंद्र सरकार में मंत्रालयों का बंटवारा और प्रादेशिक सरकारों के गठन के मुद्दे भी शामिल रहने की उम्मीद है. खासतौर पर कोशी, गंडकी और लुंबिनी प्रदेशों में, जहां फिलहाल यूएमएल के नेतृत्व वाली सरकार है. बाकी चार प्रांतों में समझौते वाली पार्टियों की सरकारें हैं. बागमती और करनाली में जहां माओइस्ट सेंटर के नेतृत्व की सरकार है, वहीं मधेश में जनता समाजवादी पार्टी और सुदूरपश्चिम में नेपाली कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं. नेपाली कांग्रेस के नेताओं ने संकेत दिया है कि पावर शेयरिंग डील में वो दो और प्रदेशों में नेतृत्व की मांग करेंगे.
एसएम/एनआर (एपी)
-धर्मेश अमीन
अफ़ग़ानिस्तान, 10 मार्च । अफ़ग़ानिस्तान की रज़िया मुरादी को दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी से लोक प्रशासन में गोल्ड मेडल मिला है.
अफ़ग़ानिस्तान से भारत आ कर पढ़ाई कर रहीं छात्रा रज़िया मुरादी ने बीबीसी से बातचीत में तालिबान को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कार्रवाई की मांग की है.
उन्होंने कहा कि तालिबान को यह समझने की ज़रूरत है कि शिक्षा और विकास आपस में जुड़े हुए हैं.
रज़िया मुरादी 2021 में दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी से लोक प्रशासन में एमए की पढ़ाई करने सूरत पहुंचीं.
उन्हें आईसीसीआर से स्कॉलरशिप मिली थी.
जब रज़िया भारत आई थीं तब अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का राज नहीं था और वहाँ लड़कियों के स्कूल जाने और उच्च शिक्षा हासिल करने की अनुमति थी.
लेकिन अगस्त 2021 में तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में आने के बाद से वहां धीरे-धीरे महिलाओं की पढ़ाई और उनके नौकरी करने पर पाबंदी लगा दी गई.
भारत आने के बाद से रज़िया अब तक अफ़ग़ानिस्तान वापस नहीं लौटी हैं.
तालिबान शासन में महिलाओं की स्थिति पर क्या बोलीं रज़िया?
रज़िया मुरादी सेंट्रल अफ़ग़ानिस्तान के बामियान सूबे से हैं.
रज़िया मुरादी ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन, वहाँ की समस्याओं और उसे लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदायों से अपनी मांग को लेकर बीबीसी से विस्तार में बात की.
रज़िया ने कहा, "अभी अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का शासन है और यह एक इस्लामी चरमपंथी संगठन है. तालिबान, ख़ास तौर पर नस्लीय समूहों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों की कदर नहीं करते हैं."
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की स्थिति को लेकर रज़िया कहती हैं, "तालिबान महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर रहा है. वो ख़ास तौर पर महिलाओं के शिक्षा और मतदान के अधिकारों का हनन कर रहा है. महिलाओं को पढ़ने से रोका जा रहा है. उन्हें वहां स्कूल, कॉलेज नहीं जाने दिया जा रहा है."
वह कहती हैं, "अफ़ग़ानिस्तान में फ़िलहाल राजनीतिक स्थिरता नहीं है. वहाँ की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. वहाँ के लोगों को खाद्य सामग्रियों की कमी हो रही है. देश में बेरोज़गारी बहुत अधिक है."
रज़िया की अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील
रज़िया मुरादी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफ़ग़ानिस्तान की वर्तमान स्थिति को लेकर कुछ करने की अपील की है.
उन्होंने कहा, "हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफ़ग़ानिस्तान को लेकर आवाज़ उठाने की उम्मीद करते हैं. यह सब की ज़िम्मेदारी है अफ़ग़ानिस्तान को लेकर आवाज़ उठाएं न कि केवल हम देशवासियों को इसे लेकर आगे आना चाहिए."
"हम इंसान हैं और हम सभी कि ये ज़िम्मेदारी बनती है कि ज़रूरतमंदों की आवाज़ बनें. हमें बोलने की आज़ादी नहीं है लिहाजा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समुदाय को अफ़ग़ानिस्तान में जो हो रहा है उसे लेकर आवाज़ उठानी चाहिए."
वह कहती हैं, "वहां की स्थिति से केवल अफ़ग़ानिस्तान ही प्रभावित नहीं है बल्कि आसपास के देश और पूरी दुनिया पर असर पड़ रहा है. ये सभी देशों के लिए ख़तरनाक है. इसलिए अगर वो केवल अफ़ग़ानिस्तान के बारे में न भी सोच रहे हों तो उन्हें ख़ुद को इससे बचाने के लिए कोई एक्शन प्लान बनाना चाहिए."
रज़िया ने अपने अब तक के सफ़र के बारे में बताया
रज़िया बताती हैं, "2021 में आईसीसीआर स्कॉलरशिप की मदद से मुझे भारत आने का मौक़ा मिला."
"यहां मैंने साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी से लोक प्रशासन (पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन) में एमएम किया और अभी मैं भारत में हूँ."
"भारत और अफ़ग़ानिस्तान में बहुत सांस्कृतिक समानता है. जब मैं भारत आई तो इसकी वजह से मुझे बहुत कम चुनौतियों का सामना करना पड़ा. यहां के लोग बहुत अच्छे हैं और उन्होंने कई तरह से मेरी सहायता की."
रज़िया कहती हैं, "अफ़ग़ानिस्तान के लोग वहां के वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहे हैं और मेरा परिवार भी इससे अछूता नहीं है."
वे कहती हैं, "हालांकि विषम परिस्थितियों के बावजूद वहां लोग जीवनयापन में लगे हैं और किसी तरह गुज़र बसर कर रहे हैं."
अब रज़िया मुरादी लोक प्रशासन में दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी से पीएचडी करना चाह रही हैं.
दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी में लोक प्रशासन विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर मधु धवानी रज़िया मुरादी के बारे में कहती हैं, "रज़िया मुरादी को गोल्ड मेडल उनकी मेहनत की बदौलत मिला है."
वे कहती हैं कि, "रजिया बहुत साहसी छात्रा हैं. अपनी पढ़ाई को लेकर बहुत ईमानदार हैं. वे यहां सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं. आगे उन्होंने पीएचडी के लिए भी नामांकन कराया है." (bbc.com/hindi)
शुक्रवार को शी जिनपिंग तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बने. कहा जा रहा है कि माओत्से तुंग के बाद उन्होंने देश के सबसे ताक़तवर नेता के रूप में ख़ुद को स्थापित किया है.
चीन की संसद, नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी) के लगभग 3,000 सदस्यों ने सर्वसम्मति से शी जिनपिंग को वोट दिया. 69 साल के शी जिनपिंग के सामने कोई और उम्मीदवार इस चुनाव में शामिल ही नहीं हुआ. चीन की इस संसद को राष्ट्रपति का रबर स्टांप कहा जाता है.
वोटिंग की प्रक्रिया एक घंटे तक चली और वोटों की गिनती 15 मिनट में पूरी कर ली गई.
शी जिनपिंग का ये चुनाव जीतना तब से ही तय था जब साल 2018 में चीन के संविधान में बदलाव करके राष्ट्रपति बनने की सीमा ख़त्म कर दी गई थी.
तभी ये मान लिया गया था कि शी के साल 2023 में तीसरी बार सत्ता में बने रहने के लिए ये बदलाव किया गया है.
सोमवार को शी जिनपिंग सालाना संसद सत्र में भाषण देंगे. चीन इन दिनों तीन साल तक चली कड़ी कोविड पॉलिसी के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहा है.
बीते सप्ताह शी जिनपिंग ने अमेरिका और पश्चिमी देशों को चीन के आर्थिक संकट का ज़िम्मेदार बताया था.
राष्ट्रपति चुनाव जीतना क़ाफी हद तक औपचारिकता है. शी जिनपिंग को केंद्रीय सैन्य आयोग की अध्यक्षता के लिए उनकी पार्टी ने पहले ही चुना है. वह चीनी सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ़ के रूप में अपना तीसरा का कार्यकाल पहले ही शुरू कर चुके हैं. (bbc.com/hindi)
सऊदी अरब के पर्यटन मंत्रालय ने कहा है कि खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के सभी नागरिक, चाहे वो किसी भी पेशे से जुड़े हों,अब सऊदी अरब के पर्यटक वीज़ा के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप से आवेदन कर सकते हैं.
जीसीसी खाड़ी देशों का समूह है जिसमें बहरीन, कुवैत, ओमान, क़तर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात शामिल है.
सऊदी की प्रेस एजेंसी ने बताया कि पर्यटक वीज़ा धारकों को सऊदी अरब के विभिन्न इलाक़ों का दौरा करने और उमराह करने की अनुमति मिलेगी.
किसी भी पेशे से जुड़े जीसीसी निवासियों को सऊदी अरब आने की इजाज़त उस पहल का हिस्सा है, जिसके तहत किंगडम चाहता है कि उसका इतिहास और विरासत ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचे.
सऊदी अरब के पर्यटन मंत्री अहमद अल-ख़तीब ने कहा, "जीसीसी के निवासियों के लिए वीज़ा आवेदन अब सरल और अधिक सुविधाजनक होगा. आवेदन करने वाले किसी भी पेशे से जुड़े हों, इसका कोई फ़र्क नहीं पड़ता."
मंत्रालय ने कहा है कि सभी जीसीसी निवासी "विजिट सऊदी" प्लेटफॉर्म के माध्यम से आवेदन करके इलेक्ट्रॉनिक पर्यटक वीज़ा पा सकते हैं और इस वीज़ा से सीधे सऊदी में एंट्री मिल जाएगी.
बशर्ते जाने वाले का रेसीडेंसी परमिट कम से कम तीन महीने और पासपोर्ट कम से कम छह महीने के लिए वैध हो.
हालांकि हज के सीज़न में इस वीज़ा से उमराह नहीं करने दिया जाएगा. (bbc.com/hindi)
अमेरिका ने कहा है कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच रचनात्मक और सार्थक बातचीत का समर्थन करता है लेकिन इस बातचीत का तरीक़ा क्या होगा ये भारत और पाकिस्तान तय करें.
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने एक सवाल के जवाब में भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के लिए अमेरिका की किसी भी भूमिका से इनकार किया.
प्राइस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "ये इन देशों का लिया जाने वाला निर्णय हैं. यदि वे अमेरिका के लिए विशेष भूमिका पर सहमत होते हैं, तो अमेरिका दोनों देशों के भागीदार के रूप में उस प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए तैयार है, ये हम ज़िम्मेदारी से कर सकते हैं."
इस पर पत्रकार ने सवाल किया कि “विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के पास दोनों भागीदारों के बीच मध्यस्थता करने की शक्ति और अधिकार है. पाकिस्तान और भारत आपके सहयोगी हैं, तो आप मध्यस्थता क्यों नहीं करते?”
इस सवाल के जवाब में नेड प्राइस ने कहा, “ये काम अमेरिका का नहीं है कि वह तय करे कि भारत और पाकिस्तान एक दूसरे से कैसे जुड़ना चाहते हैं. हम दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को हल करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच रचनात्मक बातचीत, सार्थक कूटनीति का समर्थन करते हैं.” (bbc.com/hindi)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 10 मार्च। रिपब्लिकन पार्टी की भारतीय मूल की राष्ट्रपति पद की दावेदार निक्की हैली ने राष्ट्रपति जो बाइडन के वार्षिक बजट संबंधी प्रस्तावों को लेकर बृहस्पतिवार को उन पर निशाना साधा।
हैली ने कहा कि ये बजट प्रस्ताव समाजवादी प्रवृत्ति का है, जो ‘‘अमेरिका के लिए विनाशकारी’’ है।
बाइडन के 69 खरब का बजट पेश करने के बाद हैली ने कहा, “हमें लोगों को कल्याण की राह से काम की राह पर ले जाना चाहिए, लेकिन जो बाइडन काम किए जाने की जरूरत के बिना ही लोगों का कल्याण करने पर जोर दे रहे हैं।”
बाइडन ने अपने वार्षिक बजट में समाज कल्याण के कई उपाय पेश किए हैं और अमीरों पर कर बढ़ाए हैं।
‘फॉक्स न्यूज’ को दिए एक साक्षात्कार में हैली ने कहा, “मुझे लगता है कि बाइडन बेहद समाजवादी राष्ट्रपति हैं। वह हर किसी व्यक्ति का पैसा खर्च करने में यकीन करते हैं। हर बात के लिए उनका जवाब कर में वृद्धि करना है।”
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “हमें यथार्थवादी होने की जरूरत है। हम पर 310 खरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज है। हम ब्याज के भुगतान के लिए पैसे उधार ले रहे हैं। यह टिकाऊ समाधान नहीं है। वाशिंगटन डीसी में खर्च की समस्या है, जिसे हमें समाप्त करने की जरूरत है।”
हैली ने कहा, “बाइडन को सबसे पहले यह कहना चाहिए था कि हम कोविड-19 (वैश्विक महामारी) से निपटने के लिए आवंटित 500 अरब अमेरिकी डॉलर की उस धनराशि को वापस लेने जा रहे हैं, जो खर्च नहीं हुई।”
उन्होंने कहा, “दूसरी बात जो उन्हें कहनी चाहिए थी, वह यह कि आईआरएस (आंतरिक राजस्व सेवा) एजेंट निर्दोष अमेरिकियों के पीछे पड़ने के बजाय 100 अरब डॉलर के कोविड घोटाले की तह में जाएं और दोषियों का पता लगाएं।” (भाषा)
बर्लिन, 10 मार्च। उत्तरी जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में बृहस्पतिवार शाम ‘यहोवा विटनेस किंगडम हॉल’ में हुई गोलीबारी में कई लोग हताहत हो गए। पुलिस ने यह जानकारी दी।
‘यहोवा विटनेस किंगडम हॉल’ एक तीन मंजिला इमारत में स्थित है।
पुलिस के प्रवक्ता होल्गर वेरेन ने जर्मनी के दूसरे सबसे बड़े शहर के ग्रॉस बोरस्टेल में गोलीबारी की घटना के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘हमें अभी तक केवल यह पता चला है कि कई लोगों की जान गई है और कई घायल हुए हैं, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया है।’’
उन्होंने कहा कि उन्हें घायलों की हालत के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है।
पुलिस प्रवक्ता ने जर्मन मीडिया की उन खबरों की पुष्टि नहीं की, जिनमें गोलीबारी में छह या सात लोगों के मारे जाने की बात कही गई है।
वेरेन ने बताया, “पुलिस को स्थानीय समयानुसार रात करीब सवा नौ बजे गोलीबारी की सूचना मिली और वह तुरंत मौके पर पहुंची। पुलिस ने मौके पर पहुंचने पर पाया कि भूतल पर कई लोग थे, जिन्हें गोलियां लगी थीं।”
वेरेन ने कहा, “पुलिस कर्मियों ने ऊपर की मंजिल से गोली की आवाज सुनी, जहां उन्हें एक व्यक्ति मृत मिला, जिसे गोली लगी थी। ऐसा माना जा रहा है कि वह हमलावर हो सकता है।”
उन्होंने बताया कि पुलिस ने अपनी ओर से कोई गोलीबारी नहीं की।
पुलिस अधिकारियों ने शुक्रवार तड़के बताया कि वे अब भी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि मामले में काई और भी तो शामिल नहीं था।
‘यहोवा विटनेस’ एक अंतरराष्ट्रीय गिरजाघर का हिस्सा है। अमेरिका में 19वीं शताब्दी में इसकी स्थापना की गई थी। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क के वार्विक में है। यह दुनियाभर में अपने 87 लाख अनुयायी होने का दावा करता है, जिनमें से करीब 1,70,000 जर्मनी में हैं। (एपी)
एपी निहारिका पारुल पारुल 1003 0837 बर्लिन
पाकिस्तान की जांच एजेंसियां आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) फै़ज़ हमीद के ख़िलाफ़ जांच कर रही हैं. पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने बुधवार को इसकी जानकारी दी.
हालांकि, गृह मंत्री ने ये नहीं बताया कि फै़ज़ हमीद पर क्या आरोप लगाए गए हैं.
हालांकि, उन पर खुफ़िया एजेंसी आईएसआई में रहते हुए राजनीतिक मामलों में पद का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए जाते हैं. ये आरोप भी लगाया जाता है कि वो नेताओं पर राजनीतिक निष्ठा बदलने के लिए दबाव डालते थे.
सनाउल्लाह 'औरत मार्च' और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की रैली को देखते हुए धारा 144 लगाने को लेकर प्रेस वार्ता कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने फै़ज़ हमीद के बारे में भी जानकारी दी.
'फ्राइडे टाइम्स' अख़बार के मुताबिक फै़ज़ हमीद को भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग और राजनीति में दख़ल देने के आरोप में गिरफ़्तार किया जा सकता है.
सनाउल्लाह ने बताया कि सिर्फ़ पाकिस्तान की सेना ही फै़ज़ हमीद का कोर्ट मार्शल कर सकती है.
इससे पहले पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की नेता मरियम नवाज़ ने एक साक्षात्कार में आईएसआई के प्रमुख का कोर्ट मार्शल करने की मांग की थी.
फै़ज़ हमीद सेना प्रमुख के पद के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए छह सबसे वरिष्ठ जनरलों में से एक थे. वो साल 2019 से 2021 तक आईएसआई प्रमुख रहे थे. (bbc.com/hindi)