अंतरराष्ट्रीय
इंडोनेशिया, 14 मार्च । इंडोनेशिया के बाली में विदेशी पर्यटकों को किराए पर बाइक देना बंद हो सकता है. इसके लिए योजना तैयार की जा रही है.
ऐसा बीते कुछ समय में ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघन के कई मामले सामने आने के बाद किया जा रहा है.
गवर्नर आई वेयन कोस्टर ने कहा, "शर्ट या कपड़े उतारकर, बिना हेलमेट और लाइसेंस के इस द्वीप पर बाइक लेकर नहीं घूमना चाहिए."
पर्यटकों को अब ट्रैवल एजेंटों की ओर से दी जाने वाले वाहनों का इस्तेमाल करना होगा.
बंटी हुई है राय
इस योजना पर अलग-अलग मत हैं क्योंकि देश का टूरिज़्म सेक्टर अभी भी कोरोना महामारी से हुए नुक़सान से उबर रहा है.
स्थानीय पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार फ़रवरी के आख़िरी सप्ताह से लेकर मार्च के कुछ शुरुआती दिनों के बीच करीब 171 विदेशी पर्यटकों ने ट्रैफ़िक नियमों का उल्लंघन किया है. कुछ पर्यटकों ने फर्ज़ी लाइसेंस प्लेट का भी इस्तेमाल किया.
गवर्नर ने कहा, "अगर आप पर्यटक हैं तो पर्यटक की तरह ही बर्ताव करें."
बाली जाने वाले विदेशी टूरिस्ट अक्सर घूमने-फिरने के लिए बाइक किराए पर लेते हैं. माना जा रहा है कि प्रस्तावित कानून इसी साल से लागू होगा लेकिन इसकी प्रक्रिया क्या होगी, इस पर अभी स्पष्टता नहीं है. (bbc.com/hindi)
चीन, 14 मार्च । चीन में बुधवार से विदेशी नागरिकों को वीज़ा जारी करने की शुरुआत होगी.
कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद से चीन में लगाई गई पाबंदियों को हटाने के क्रम में इसे बड़ा फ़ैसला बताया जा रहा है.
चीन के विदेश मंत्रालय ने बताया है कि मार्च 2020 के पहले जारी किए गए ऐसे वीज़ा जो अब तक वैध हैं, उनके जरिए भी विदेशी नागरिकों को चीन आने की अनुमति दी जाएगी.
महामारी शुरू होने से पहले के साल चीन में 60 करोड़ विदेशी नागरिकों ने दौरा किया था.
पूरी दुनिया में यात्रा से जुड़ी पाबंदियां हटाए जाने के बाद भी चीन ने प्रतिबंध बनाए रखे थे. चीन में बीते साल तक कड़े प्रतिबंध लागू थे. लॉकडाउन और दूसरी पाबंदियों को लेकर लोगों ने सड़कों पर उतरकर नाराज़गी जाहिर की थी. (bbc.com/hindi)
ब्रासीलिया, 14 मार्च | उत्तरी ब्राजील में अमेजन राज्य की राजधानी मनौस के पूर्वी हिस्से में भूस्खलन से आठ लोगों की मौत हो गई। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय मीडिया ने सोमवार को बताया कि पीड़ितों के शवों को आपदा स्थल से हटा दिया गया है, जिसमें चार बच्चे भी शामिल हैं।
स्थानीय अग्निशमन विभाग ने बताया कि भूस्खलन के दौरान भूस्खलन से नौ घरों पर मिट्टी का हमला हुआ। दमकलकर्मी और आसपास के लोग अभी भी जीवित बचे लोगों की तलाश कर रहे हैं। (आईएएनएस)|
काठमांडू, 14 मार्च | नेपाल के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने अपना पांच साल का कार्यकाल शुरू करने के लिए शपथ ली। राष्ट्रपति कार्यालय में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश हरि कृष्ण कार्की ने पौडेल को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। उन्होंने बिद्या देवी भंडारी का स्थान लिया।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, 78 वर्षीय पौडेल ने 9 मार्च को आठ सत्ताधारी दलों के उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता, वे नेपाल के तीसरे राष्ट्रपति बने, जो 2008 में गणतंत्र बना।
राष्ट्रपति के वोट में प्रतिनिधि सभा, नेशनल असेंबली और सात प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्य शामिल थे। (आईएएनएस)
सियोल, 14 मार्च। उत्तर कोरिया ने मंगलवार को अपने पूर्वी जलक्षेत्र की ओर एक बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया। दक्षिण कोरिया की सेना ने यह जानकारी दी।
एक सप्ताह के भीतर उत्तर कोरिया ने दूसरी बार किसी मिसाइल का परीक्षण किया है।
दक्षिण कोरिया और अमेरिका की सेनाओं ने सोमवार से अपना सबसे बड़ा संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू किया है। उत्तर कोरिया की ओर से यह मिसाइल परीक्षण इस सैन्य अभ्यास के मद्देनजर किया गया है।
दक्षिण कोरिया की सेना के प्रमुखों ने कहा है कि ताजा मिसाइल परीक्षण मंगलवार सुबह किया गया था, लेकिन इस संबंध में अधिक जानकारी नहीं दी गयी है।
उत्तर कोरिया ने सोमवार को कहा था कि उसने इस संयुक्त सैन्य अभ्यास के विरोध में पनडुब्बी से प्रक्षेपित क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया है।
उत्तर कोरिया की ओर से रविवार को किए गए इस मिसाइल परीक्षण से संकेत मिलता है कि वह 11 दिवसीय अमेरिकी-दक्षिण कोरियाई सैन्य अभ्यास के दौरान लगातार अपने हथियारों के परीक्षण संबंधी गतिविधियाों को जारी रखेगा।
पिछले हफ्ते, उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने अपने सैनिकों को अपने प्रतिद्वंद्वियों की ‘‘युद्ध संबंधी तैयारियों और रणनीतियों’’ से निपटने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया था।
एपी रवि कांत सुरभि सुरभि 1403 1107 सियोल (एपी)
मेक्सिको सिटी, 14 मार्च। निकारागुआ में सप्ताहांत में मूल निवासियों के समूह पर संदिग्ध लोगों के हमले में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए। स्थानीय अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
डेल रो फाउंडेशन के निदेशक अमारु रुईज ने बताया कि कुछ लोगों के शव क्षत-विक्षत हालत में मिले।
रुईज ने बताया कि हमलावरों ने उत्तरी निकारागुआ के विलू में शनिवार को 16 मकानों में आग लगा दी। पीड़ित लोग मयांगना समूह से नाता रखते हैं।
इलाके में बाहर से आकर बसे लोगों और क्षेत्र में मूल निवासियों के बीच वर्षों से संघर्ष जारी है। बाहर से आकर यहां बसे लोग जमीन पर अपना दावा करते हैं। निकारागुआ में इस तरह की हत्याओं के मामलों में अकसर सजा नहीं होती, जहां कई पूर्व सैनिक आकर बसे गए हैं। (एपी)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि बैंकों को डूबने से बचाने के लिए "जो भी ज़रूरी हो" अमेरिका करेगा.
बाइडेन का ये बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका ने सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक को बचाने के लिए अमेरिका ने ज़रूरी डिपॉज़िट देने की गारंटी दी.
अमेरिका उन लोगों को बैंकों से पैसे निकालने से रोकना चाहता है जो सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने की ख़बर के बाद लोगों अपने पैसे निकालने चाहते हैं.
बाइडन ने कहा, "निश्चिंत रहें कि हमारी बैेंकिंग व्यवस्था सुरक्षित है."
उन्होंने कहा कि वो लोग और कंपनियां जिनका पैसा सिलिकन वैली बैंक में जमा था, वो उनका इस्तेमाल सोमवार से कर सकते हैं.
बाइडन ने मदद का एलान करते हुए कहा, "मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि हम यहीं नहीं रुकेंगे. जो भी ज़रूरी होगा, हम वो करेंगे."
सिलिकॉन वैली बैंक, जो कि टेक्नॉलॉजी कंपनियां को कर्ज़ देने के लिए मशहूर है, उसे नियामकों ने शुक्रवार को बंद कर दिया था और संपत्ति ज़ब्त कर ली थी. साल 2008 के आर्थिक संकट के बाद अमेरिका में असफल होने वाला सबसे बड़ा बैंक है. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ पार्टी के प्रमुख और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान अपने हज़ारों समर्थकों के साथ लाहौर के दाता दरबार पर पहुंच गए हैं.
इमरान ख़ान और उनके समर्थक चाहते हैं कि पाकिस्तान में तुरंत चुनाव करवाए जाएं.
उधर इस्लामाबाद पुलिस इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ दो ग़ैर-जमानती वारंट लेकर लाहौर पहुँची है.
आपको बता दें कि लाहौर में सरकार ने रैली पर पाबंदी लगाई थी इसके बावजूद इमरान ख़ान की पार्टी के हज़ारों कार्यकर्ता इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं.
इमरान ख़ान के लाहौर के दाता दरबार पहुँचने पर आतिशबाज़ी की गई. रैली के साथ एक एंबुलेंस के अलावा भारी संख्या में पुलिस बल भी शामिल हैं.
बीबीसी संवाददाता सहर बलोच के मुताबिक दाता दरबार तक ये रैली काफ़ी गति से चलते हुए पहुँची है.
इमरान खान ने अपनी कार के अंदर से चुनावी रैली को संक्षिप्त भाषण दिया और कहा कि आने वाले रविवार को मीनारे पाकिस्तान में एक चुनावी रैली की जाएगी
पुलिस पहुँची गिरफ़्तार करने
इससे पहले ख़ान ज़मान पार्क स्थित घर से मार्च के लिए निकले और इस्लामाबाद से पुलिस हेलिकॉप्टर के ज़रिए लाहौर पहुँची.
पुलिस इमरान ख़ान को तोशाख़ाना केस में अदालत में पेश न होने पर जारी हुए ग़ैर ज़मानती वारंट पर अमल करने आई है. उनपर एक महिला जज को रैली के दौरान धमकी देने पर भी एक वारंट जारी हुआ है.
इससे पहले लाहौर प्रशासन इस शर्त पर सीमित मार्च की अनुमति दी थी कि कार्यकर्ता या लीडर न्यायापालिका के विरुद्ध बयानबाज़ियां नहीं करेंगे. (bbc.com/hindi)
लाहौर, 13 मार्च। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में सोमवार को उनके हजारों समर्थकों ने मार्च निकाला। वहीं, खान के खिलाफ दो गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें गिरफ्तार करने के लिए इस्लामाबाद पुलिस यहां पहुंची।
खान के समर्थकों ने उन्हें दाता दरबार ले जा रहे काफिले पर गुलाब की पंखुड़ियां फेंकी, जहां वह अपनी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के समर्थकों को संबोधित कर सकते हैं।
तोशाखाना मामले में अदालत में पेश होने में विफल रहने और पिछले साल यहां एक जनसभा को संबोधित करते हुए एक महिला न्यायाधीश को कथित तौर पर धमकी देने के मामले में खान के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं।
‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की खबर के मुताबिक, खान के खिलाफ दो गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद इस्लामाबाद पुलिस पीटीआई प्रमुख को गिरफ्तार करने के लिए एक विशेष हेलीकॉप्टर से लाहौर पहुंची, जिसके बाद खान अपने जमां पार्क निवास से मार्च की अगुवाई के लिए रवाना हुए।
इससे पहले, लाहौर जिला प्रशासन ने मार्च, उसके मार्ग और सुरक्षा व्यवस्था पर चर्चा करने के लिए पार्टी नेतृत्व से मुलाकात की।
हालांकि, जिला प्रशासन ने एक शर्त रखी कि पार्टी का कोई भी नेता न्यायपालिका या किसी अन्य संस्थान के खिलाफ बयानबाजी नहीं करेगा। (भाषा)
ब्लांटायर (मलावी), 13 मार्च। चक्रवात फ्रेडी के कारण मलावी और मोजाम्बिक में कम से कम 56 लोगों की मौत हो गई है। दोनों देशों के अधिकारियों ने इस बात की जानकारी दी। इस चक्रवात ने शनिवार रात को दूसरी बार महाद्वीप में दस्तक दी।
स्थानीय पुलिस ने बताया कि मलावी में 51 लोगों की मौत हुई है, जबकि कई अन्य लापता या घायल हैं। मोजाम्बिक में अधिकारियों ने बताया कि देश में शनिवार से अब तक पांच लोगों की मौत हो चुकी है।
एक पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, मलावी में हुई मौतों में एक ही परिवार के पांच सदस्य शामिल हैं, जिनकी चक्रवात की विनाशकारी हवाओं और भारी बारिश के कारण ब्लांटायर के नदिरांडे टाउनशिप में उनके घर के ढह जाने से मौत हो गई। (एपी)
बीबीसी के प्रेज़ेटर गैरी लिनेकर, जिन्हें उनके प्रोग्राम होस्ट करने से रोक दिया गया था, वो अब फिर से अपना कार्यक्रम 'मैच ऑफ़ द डे' होस्ट करेंगे.
बीबीसी के डायरेक्टर जनरल टिम डेवी ने एलान किया है कि बीबीसी की सोशल मीडिया गाइडलाइन का स्वतंत्र रिव्यू किया जाएगा.
लिनेकर ने कहा कि वो रिव्यू का समर्थन करते हैं और वापस ऑन एयर आने के लिए उत्साहित हैं, साथ ही उन्होंने अपना समर्थकों का शुक्रिया कहा.
'मैच ऑफ द डे' के होस्ट गैरी लिनेकर के समर्थन में कमेंटेटरों के वॉकआउट करने के बाद यह शो रोक दिया गया था.
इस कारण बीबीसी की फ़ुटबॉल कवरेज पर प्रभाव पड़ा.
डेवी ने एक बयान में कहा, "हम सभी समझ रहे हैं कि ये स्टाफ़, कंट्रीब्यूटर, प्रेज़ेटर और ख़ासतौर पर दर्शकों के लिए एक मुश्किल दौर है."
"मैं इसके लिए माफ़ी मांगता हूं." (bbc.com/hindi)
जर्मनी और भूटान के बीच कूटनीतिक रिश्ते स्थापित हुए सिर्फ दो साल ही हुए हैं. अब इन रिश्तों को आगे ले जाने की कोशिश में पहली बार भूटान की सरकार का कोई प्रतिनिधि आधिकारिक दौरे पर जर्मनी जा रहा है.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग का सैन्य सम्मान के साथ बर्लिन में स्वागत करेंगे. दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते 25 नवंबर 2020 को स्थापित हुए थे. हालांकि आज भी भूटान में जर्मनी का दूतावास नहीं है. भारत में जर्मनी के राजदूत ही भूटान में भी जर्मनी के राजदूत का काम देखते हैं.
जुलाई 2000 में दोनों देशों ने वाणिज्य दूतावासों की स्थापना की थी. जून 2022 में जर्मनी ने भूटान में अपने पहले आनरेरी कौंसलु को नियुक्त किया था. जहां तक भूटान का सवाल है वो मुख्य रूप से यूरोपीय संघ में अपने दूतावास के जरिए जर्मनी से कूटनीतिक रिश्तों का निर्वाह करता है.
अब नहीं रहा सबसे गरीब देश
दोनों देशों के बीच मुख्य रूप से स्वास्थ्य, विज्ञान, शोध, पर्यावरण और सामाजिक विषयों पर सहयोग होता है. इसके अलावा जर्मनी भूटान में चल रहे विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि जैसे कई बहुराष्ट्रीय संगठनों की कई परियोजनाओं को भी समर्थन देता है.
साल 2023 भूटान के इतिहास और भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण साल है. हिमालय की गोद में बसा यह देश इस साल दुनिया के सबसे गरीब देशों की सूची से बाहर निकल जाएगा. संयुक्त राष्ट्र ने 1971 में सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) नाम के इस समूह को 1971 में बनाया था.
13 दिसंबर, 2023 को भूटान इस सूची से निकलने वाला अभी तक का सिर्फ सातवां देश बन जाएगा. देश के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग ने हाल ही में कतर की राजधानी दोहा में हुए एलडीसी शिखर सम्मलेन में इस विषय पर कहा था, "हम इस समय बेहद सम्मान और गर्व महसूस कर रहे हैं, हम बिल्कुल भी नर्वस नहीं हैं."
भारत से 30 प्रतिशत ज्यादा प्रति व्यक्ति आय
उन्होंने आगे कहा था, "जिंदगी का दूसरा नाम अनुकूलन है. यह हारने और जीतने के बारे में हैं. आप कुछ हारते हैं, तो कुछ जीतते भी हैं. मुझे लगता है हमें अब कुछ अनुदान उपलब्ध नहीं रहेंगे लेकिन और ज्यादा व्यापार और निवेश के अवसर मिलेंगे. यह सिर्फ खेल का एक दांव है."
भूटान पन-बिजली का एक बड़ा उत्पादक है जिसे उसने अपने पड़ोसी देश भारत को बेचकर काफी कमाई की है. इस कमाई से मात्र लाख 8,00,000 लोगों की आबादी वाले इस देश की प्रति व्यक्ति आय 3800 डॉलर प्रति वर्ष हो गई, जो भारत की प्रति व्यक्ति आय से 30 प्रतिशत ज्यादा है.
लेकिन कोरोना वायरस महामारी और वैश्विक मुद्रास्फीति की वजह से सरकार का खर्च बढ़ गया है. पैसे को देश से बाहर निकलने से रोकने के लिए पिछले साल सरकार ने विदेशी गाड़ियों के आयात पर बैन लगा दिया था.
इस समूह में भूटान के अलावा 45 और देश हैं और वो सब भूटान के पदचिन्हों पर चलना चाह रहे हैं. 2026 के अंत तक बांग्लादेश, नेपाल, अंगोला, लाओस, द सोलोमन आइलैंड्स और साओ तोमे भी इस सूची से निकल जाएंगे.
एलडीसी से मध्य आय वाला देश बनने के लिए देशों को तीन में से दो इम्तिहान पास करने पड़ते हैं. उन्हें या तो अपनी राष्ट्रीय आय को 1,222 डॉलर से ऊपर ले जाना होता है या मानव कल्याण या आर्थिक विकास के तय अंक हासिल करने होते हैं. उसके बाद संयुक्त राष्ट्र की समितियां इन उपलब्धियों को सालों तक परखती हैं.
हालांकि कई एलडीसी देश समूह को छोड़ने के तीन साल के बाद व्यापार विशेषाधिकारों के गायब होने को लेकर चिंतित हैं. अंगोला और सोलोमन्स ने अपने निकास में विलंब की अपील की है. और देश भी ऐसा कर सकते हैं.
सीके/एए (डीपीए/एएफपी)
चीन, 13 मार्च । चीन के नए प्रधानमंत्री ली कियांग ने देश के निजी कारोबारियों को भरोसा दिलाने की कोशिश की है ताकि कमज़ोर पड़ रही अर्थव्यवस्था को संभाला जा सके.
ली कियांग ने अपने बयान में कहा है कि प्राइवेट कारोबारियों के साथ सरकारी कंपनियों जैसा ही व्यवहार किया जाएगा.
प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में ली कियांग ने सभी स्तर के अधिकारियों से अपील की है कि वो कारोबारियों को अपना 'दोस्त बनाएं.'
बीते सालों में चीन के नेता शी जिनपिंग सरकारी मिल्कियत वाली बड़ी कंपनियों की तरफ़दारी करते हुए देखे जाते रहे हैं.
ख़ासकर चीन की निजी प्राइवेट टेक्नोलॉजी कंपनियों पर सरकार का बहुत दबाव रहा है.
ली कियांग को अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की जिम्मेदारी दी गई है.
कड़े कोविड प्रोटोकॉल्स की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था को बहुत नुक़सान उठाना पड़ा था.
पिछले साल ही वहां कोविड से जुड़े सख़्त क़ायदे क़ानून ख़त्म किए गए थे. (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 13 मार्च । पाकिस्तान में चल रहे तोशाखाना मामले से जुड़े विवाद के बीच सरकार ने पहली बार ये जानकारी सार्वजनिक की है कि किन-किन अधिकारियों को विदेशों से तोहफ़े में क्या-क्या मिला है.
पाकिस्तान सरकार की वेबसाइट पर रविवार को तोशाखाने का ब्योरा सार्वजनिक किया गया है.
इसमें देश के पूर्व राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, कैबिनेट के मंत्रियों, राजनेताओं, नौकरशाहों, रिटायर्ड जनरलों, जजों और पत्रकारों को विदेशों से उपहार के रूप में क्या-क्या मिला है.
ज़रदारी और नवाज़ शरीफ़ को बुलेटप्रूफ़ गाड़ी मिली थी जो उन्होंने तोशाखाना में कुछ रकम जमाकर अपने पास रख ली.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के चेयरमैन इमरान ख़ान और उनकी पत्नी को पांच बेशक़ीमती घड़ियां, जेवरात और अन्य चीज़ें विदेशों से तोहफ़े में मिली थी.
परवेज़ मुशर्रफ़ और शौकत अज़ीज़ ने विदेशों से मिले तोहफ़े बिना कोई शुल्क चुकाए अपने पास रख लिए थे. (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 13 मार्च । अमेरिका में नियामक एजेंसियों ने रविवार को एक और बैंक को बंद कर दिया है. सिलिकॉन वैली बैंक की नाकामी के दो दिनों बाद अब सिग्नेचर बैंक को बंद किया गया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के बैंकिंग इतिहास की ये तीसरी सबसे बड़ी नाकामी है.
न्यूयॉर्क के वित्तीय सेवा विभाग ने बताया है कि फ़ेडरल डिपॉज़िट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (एफ़डीआईसी) ने सिग्नेचर बैंक का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया है.
सिग्नेचर बैंक की बैलेंस शीट में पिछले साल के आख़िर में 110 अरब डॉलर की परिसंपत्तियां और 88.59 अरब डॉलर के डिपॉजिट्स हैं.
अमेरिका ट्रेजरी विभाग और अन्य नियामक एजेंसियों ने एक साझा बयान में ये साफ़ किया है कि सिग्नेचर बैंक और सिलिकॉन वैली बैंक के सभी डिपॉजिटर्स के हितों की रक्षा की जाएगी और इसका टैक्स पेयर को कोई नुक़सान नहीं होने दिया जाएगा.
बीते सप्ताह बंद हुए सिलिकॉन वैली बैंक में अभी कई निवेशकों के अरबों डॉलर की रकम फंसी हुई है. इस बीच सिलिकॉन वैली बैंक के ब्रितानी कारोबार की बिक्री के लिए एचएसबीसी बैंक से समझौता हो गया है (bbc.com/hindi)
ईरान का कहना है कि साल 2018 में अमेरिकी प्रतिबंध फिर से लगने के बाद से उसका तेल निर्यात सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है.
ईरान के तेल मंत्री जावेद ओजी के मुताबिक पिछले साल ईरान के तेल निर्यात में पिछले 12 महीनों के मुक़ाबले 8 करोड़ बैरल की बढ़ोतरी हुई. वहीं बीते दो साल के मुक़ाबले ईरान का तेल निर्यात 19 करोड़ बैरल बढ़ गया है.
विश्लेषकों का मानना है कि ईरान के तेल निर्यात में बढ़ोतरी की इस वजह के पीछे चीन और वेनेज़ुएला में बढ़ी मांग है.
साल 2018 में अमेरिका ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर हो गया था और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए थे.
इन प्रतिबंधों की वजह से ईरान का तेल निर्यात कम हुआ था और तेल से उसकी आय में भारी गिरावट आई थी. (bbc.com/hindi)
काठमांडू, 12 मार्च। नेपाल के सिंधुली जिले में रविवार को एक बस के पहाड़ी से टकरा जाने से उसमें सवार दो महिलाओं सहित कम से कम छह लोगों की मौत हो गई और 29 अन्य घायल हो गए। पुलिस ने यह जानकारी दी।
पुलिस ने बताया कि ओखलढुंगा से काठमांडू जा रही बस मिड-हिल राजमार्ग के निकट फिक्कल ग्रामीण नगर पालिका-4 में दुर्घटनाग्रस्त हो गई। बस में 34 यात्री सवार थे।
पुलिस ने बताया कि हादसे में तीन पुरुषों, दो महिलाओं और एक बच्चे की मौके पर ही मौत हो गई।
पुलिस उपाधीक्षक चिरंजीवी दाहाल ने बताया कि प्रारंभिक जांच के अनुसार, चालक द्वारा वाहन से नियंत्रण खो देने के बाद बस पहाड़ी से टकरा गई।
उन्होंने बताया कि घायल यात्रियों को खुरकोट अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
पुलिस अधीक्षक राज कुमार सिलवाल ने बताया कि गंभीर रूप से घायल यात्रियों में से पांच को इलाज के लिए हवाई मार्ग से काठमांडू लाया जाएगा।
पुलिस ने बताया कि बस चालक फरार है। (भाषा)
जॉर्ज राइट
इसराइल में हज़ारों लोग सड़कों पर उतर कर सरकार विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं. इसे देश के इतिहास में हुए अब तक का सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन कहा जा रहा है.
इसराइली सरकार ने देश की न्याय व्यवस्था में बड़े बदलावों की योजना का प्रस्ताव दिया है जिसके बाद बीते दस सप्ताह से देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
हाइफ़ा जैसे शहरों में रिकॉर्ड स्तर पर प्रदर्शनकारी सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे हैं जबकि राजधानी तेल अवीव में क़रीब दो लाख लोग इन प्रदर्शनों में शामिल हुए हैं.
आलोचकों का कहना है कि सरकार के प्रस्तावित बदलावों से देश में लोकतंत्र कमज़ोर होगा.
लेकिन बिन्यामिन नेतन्याहू के नेतृत्व वाली सरकार का कहना है कि मतदाताओं के लिहाज़ से ये बेहतर होगा.
आयोजकों ने कहा है कि शनिवार को देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए थे जिनमें पांच लाख लोगों ने हिस्सा लिया था. इसराइली अख़बार हारत्ज़ ने इन प्रदर्शनों को "देश के इतिहास के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन" कहा है.
देश के दक्षिण में आयोजित बीएर शेवा में आयोजित एक प्रदर्शन के दौरान विपक्षी नेता याएर लैपिड ने कहा कि देश "अपने इतिहास के सबसे गंभीर संकट से जूझ रहा है."
उन्होंने कहा, "देश आतकंवाद की लहर से जूझ रहा है, हमारी अर्थव्यवस्था संकट में है, पैसा देश से बाहर जा रहा है. ईरान ने सऊदी अरब के साथ एक समझौता किया है और दोनों कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने वाले हैं. लेकिन सरकार को अगर चिंता है तो केवल इस बात की कि वो कैसे इसराइली लोकतंत्र को तबाह करे."
तेल अवीव में विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले तामिर गायेत्साबरी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "ये केवल न्याय व्यवस्था में बदलावों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन नहीं है, ये ऐसी क्रांति है जिसके ज़रिये हम देश के शासन को पूरी तरह तानाशाहों के हाथों में जाने से बचा सकते हैं. मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चों के भविष्य के लिए ये देश लोकतंत्र बना रहे."
वहीं मिरी लहात नाम की एक महिला ने कहा, "मैं न्याय व्यवस्था में सुधारों के प्रस्ताव का विरोध करने आई हूं. ये प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ भी विरोध हैं. वो तानाशाह बनते जा रहे हैं, हमें तानाशाही नहीं चाहिए. हमारे मुल्क को गणतंत्र बने रहना चाहिए."
क्या हैं न्याय व्यवस्था से जुड़े प्रस्तावित बदलाव?
न्यायिक बदलावों से जुड़े बिल की पहली रीडिंग को इसराइली संसद कनेसेट ने पारित कर दिया है.
21 फरवरी की आधी रात के बाद हुई वोटिंग में सुधारों के पक्ष में 63 वोट पड़े और विरोध में 47.
सरकार के मुताबिक़ इन सुधारों का ज़रिये वो ये पक्का करना चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी ताकत का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल न करे.
आलोचकों का कहना है कि पीएम नेतन्याहू के इन बदलावों से देश में लोकतांत्र ख़त्म हो जाएगा.
प्रस्तावों का यह कह कर विरोध हो रहा है इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा और इसराइल कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग पड़ जाएगा.
विरोधियों का कहना है कि अदालतों पर नियंत्रण के ज़रिये नेतन्याहू अपने ख़िलाफ़ लगे भ्रष्टाचार के मामलों से बचना चाहते हैं.
नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं लेकिन उन्होंने इन आरोपों से इनकार किया है.
न्याय मंत्री यारिव लेविन ने कहा कि सरकार 2 अप्रैल को संसद में अवकाश से पहले सुधारों के अहम प्रस्ताव पारित करा लेगी.
इन सुधारों के क़ानून बन जाने के बाद जजों की चयन कमेटी में सरकार का दखल बढ़ जाएगा.
इससे किसी क़ानून को खारिज करने का न्यायपालिका का अधिकार खत्म हो जाएगा.
क्यों भड़के लोग?
न्यायिक बदलावों के ख़िलाफ़ हज़ारों लोग सड़कों पर उतर पड़े. इन बदलावों से निवार्चित सरकारें जजों की नियुक्ति पर निर्णायक असर डाल सकती हैं.
इससे कार्यपालिका के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के फैसले देने की क्षमता भी प्रभावित होगी. इस बदलाव से किसी कानून को रद्द करने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की ताकत सीमित हो जाएगी.
इस मुद्दे ने इसराइली समाज को काफी हद तक दो फाड़ कर दिया है. इसराइली सेना की रीढ़ माने जाने वाले रिजर्वविस्ट (सेना को सेवा देने वाले आम नागरिक) ने कहा है कि वे सेना को अपनी सेवा देने से इनकार कर सकते हैं.
सोमवार को एक अभूतपूर्व कदम के तहत इलिट इसराइली वायु सेना स्क्वाड्रन के कई रिजर्व फाइटर पायलटों ने कहा कि वे ट्रेनिंग के लिए रिपोर्ट नहीं करेंगे. हालांकि बाद में उन्होंने अपना फैसला बदला और अपने कमांडरों से बातचीत के लिए तैयार हो गए.
गुरुवार को विरोधियों ने सड़कें जाम कर दीं और देश से बाहर जा रहे बिन्यामिन नेतन्याहू को बाहर जाने से रोकने की कोशिश की. हालांकि वो बाद में रोम के लिए रवाना हो गए.
दूसरी ओर, सरकार विरोध के बावजूद अपने रुख पर डटी है. सरकार का कहना है कि प्रदर्शनकारियों को विपक्षी दल भड़का रहे हैं.
लेकिन आलोचकों का कहना है कि संसद में लाए जा रहे इन प्रस्तावित बदलावों से न्यायपालिका का राजनीतिकरण हो जाएगा. इससे देश में तानाशाह सरकार का रास्ता साफ हो जाएगा.
नेतन्याहू का कहना है कि प्रस्तावित सुधारों का मकसद अदालतों को अपनी ताकत का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से रोकना है. पिछले चुनाव में लोगों ने इन सुधारों के पक्ष में वोट दिया था. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन, 12 मार्च । एक साल पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था. इस लड़ाई में बीते बारह महीनों में रूस के लगभग दो लाख सैनिक मारे जा चुके हैं.
पिछली सर्दियों की शुरुआत में जिन शहरों पर रूसी सेना ने कब्ज़ा किया था उसमें से कई जगहों पर जवाबी हमला करते हुए यूक्रेन की सेना ने उन पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया है.
एक तरफ पिछली फ़रवरी में राजधानी कीएव पर कब्ज़ा करने के लिए रूसी हमला असफल हो गया था, तो दूसरी तरफ यूक्रेन को अपने नियंत्रण में लेने में रूस को अभी तक कोई ख़ास सफलता नहीं मिली है.
लेकिन ख़ुफ़िया जानकारियों के अनुसार रूस गर्मियों से पहले यूक्रेन पर बड़ा ज़मीनी हमला करने की तैयारी कर रहा है.
ख़बरें हैं कि रूसी सेना में हज़ारों नए सैनिकों की भर्ती के बाद रूस की सेना को नया बल मिला है और उसने लड़ाकू विमानों और तोपों को बड़ी संख्या में यूक्रेन की सीमा के नज़दीक तैनात करना शुरु कर दिया है.
इस हफ़्ते दुनिया जहान में हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि यूक्रेन को लेकर पुतिन की नई योजना क्या है?
रूस का हमला
बीते साल सर्दियों में लड़ाई ज़्यादातर डोनबास क्षेत्र में चलती रही. साल 2014 में क्राइमिया पर हमले के दौरान रूस ने यूक्रेन के डोनबास इलाक़े में भी हमला किया था.
पिछली फ़रवरी में पुतिन ने डोनबास और उससे सटे हुए झपरीचा और लुहांस्क प्रांत पर कब्ज़ा करके उस क्षेत्र को रूस में मिला लिया था लेकिन अभी तक रूस पूरी तरह से इन इलाक़ों पर नियंत्रण नहीं कर पाया है.
पिछले कुछ महीनों में रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीएव सहित कई ठिकानों पर भारी बमबारी की है. अब रूसी सेनाओं ने बड़े पैमाने पर यूक्रेन के दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में मोर्चाबंदी कर ली है. पश्चिमी ख़ुफ़िया एंजेसियों से मिली जानकारी के मुताबिक़ रूस ने नए हमले की तैयारी में तोपों और लड़ाकू जेट तैनात किए हैं.
लेकिन सवाल उठाए जा रहे हैं कि इस हमले का स्वरूप क्या हो सकता है?
यह अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि यह हमला कीएव पर कब्ज़ा करने के लिए रूस के सहयोगी देश बेलारूस से भी किया जा सकता है.
यूरोपीय परिषद में विदेशी सबंध मामलों के विशेषज्ञ क्रिस्टोफ़ क्लावेन बेलारूस की ज़मीन से हमले की शुरुआत की संभावना कम ही बताते हैं.
वो कहते हैं, "अगर बेलारूस से हमले की योजना होती तो हमें वहां बड़े पैमाने पर फ़ौज की तैनाती दिखाई देती. बसंत की शुरूआत में हमले की योजना होगी तो रूस डोनबास क्षेत्र और यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों को निशाना बनाएगा और संभवत: बसंत के ख़त्म होते-होते हमला धीमा पड़ जाएगा."
इसका मतलब यह है कि रूस यूक्रेनी सेना के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों के मोर्चे को तोड़ कर भीतर घुसने की कोशिश करेगा.
मगर रूस के सामने समस्या यह है कि उसने हाल में जिन नए सैनिकों की भर्ती की है उनके पास अनुभव और प्रशिक्षण की कमी है.
क्रिस्टोफ़ क्लावेन कहते हैं, "अगर यूक्रेनी सेना से ग़लतियां होती है तो रूसी कमांडर उसका कुछ फ़ायदा उठा सकते हैं लेकिन नए रूसी सैनिकों के पास अनुभव की कमी है. अगर वो कामयाब होते हैं तो यूक्रेनी सेना को बीस से तीस किलोमीटर पीछे हटना पड़ सकता है."
कमज़ोर मनोबल
पिछले एक साल में रूसी सेना के लगभग बीस सैनिक जनरलों को उनकी विफलता की वजह से पद से हटाया जा चुका है और सेना का मनोबल कमज़ोर हुआ है. लेकिन उसने डोनबास क्षेत्र पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है.
वहीं रूस ने इस दौरान अपने सहयोगी देश बेलारूस, ईरान और उत्तरी कोरिया से नए हथियार प्राप्त कर लिए हैं. जिसका अर्थ है कि रूसी कारवाई भले ही ज़्यादा कारगर ना रही हो मगर उसे जारी रखना संभव है.
रूस की नई रणनीति के बारे में क्रिस्टोफ़ क्लावेन कहते हैं, "यूक्रेनी सेना को रूस ज़्यादा से ज़्यादा नुक़सान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. उसके अधिक से अधिक सैनिकों का हताहत करने की कोशिश कर रहा है ताकि यूक्रेनी सेना को कमज़ोर कर के थकाया जा सके."
"लड़ाई में अगर रूस को अपेक्षित सफलता ना भी मिले तब भी इतना काफ़ी हो सकता है. और यूक्रेन को जितने हथियार पश्चिमी देशों से मिल रहे हैं उससे ज़्यादा हथियार रूस अपनी सेना को सप्लाई कर सकता है."
"लड़ाई जितना लंबा ख़िचेगी यूक्रेनी सेना उतना कमज़ोर होती जाएगी. इसलिए रूस की रणनीति यूक्रेनी सेना के ठिकानों पर बमबारी कर के छोटे हमलों के ज़रिए उसे नुक़सान पहुंचाने की है."
पुतिन चाहते हैं कि अगर यूक्रेनी सेना को हराया ना भी जा सके तो कम से कम उसके मनोबल को तोड़ दिया जाए.
क्रिस्टोफ़ क्लावेन कहते हैं, "पुतिन के लिए यह इच्छाशक्ति की लड़ाई है. लगातार यूक्रेनी सेना पर हमले कर के वो पश्चिमी देशों को यह दिखाना चाहते हैं कि रूस एक बड़ी ताकत हैं और अपनी सेना को बेहिसाब हथियार दे सकता है. हालांकि यह पूरी तरह सच नहीं है. मगर पुतिन पश्चिमी देशों के सामने यह छवि ज़रूर पेश करना चाहते हैं ताकि वो यूक्रेन को मिल रही सहायता को बंद कर दें."
मगर रूस की सैनिक महत्वकांक्षा वैग्नर ग्रुप पर निर्भर है जो रूस की एक निजी कंपनी के लड़ाके है.
पिछले एक साल में रूसी सेना के लगभग बीस सैनिक जनरलों को उनकी विफलता की वजह से पद से हटाया जा चुका है और सेना का मनोबल कमज़ोर हुआ है. लेकिन उसने डोनबास क्षेत्र पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है.
वहीं रूस ने इस दौरान अपने सहयोगी देश बेलारूस, ईरान और उत्तरी कोरिया से नए हथियार प्राप्त कर लिए हैं. जिसका अर्थ है कि रूसी कारवाई भले ही ज़्यादा कारगर ना रही हो मगर उसे जारी रखना संभव है.
रूस की नई रणनीति के बारे में क्रिस्टोफ़ क्लावेन कहते हैं, "यूक्रेनी सेना को रूस ज़्यादा से ज़्यादा नुक़सान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. उसके अधिक से अधिक सैनिकों का हताहत करने की कोशिश कर रहा है ताकि यूक्रेनी सेना को कमज़ोर कर के थकाया जा सके."
"लड़ाई में अगर रूस को अपेक्षित सफलता ना भी मिले तब भी इतना काफ़ी हो सकता है. और यूक्रेन को जितने हथियार पश्चिमी देशों से मिल रहे हैं उससे ज़्यादा हथियार रूस अपनी सेना को सप्लाई कर सकता है."
"लड़ाई जितना लंबा ख़िचेगी यूक्रेनी सेना उतना कमज़ोर होती जाएगी. इसलिए रूस की रणनीति यूक्रेनी सेना के ठिकानों पर बमबारी कर के छोटे हमलों के ज़रिए उसे नुक़सान पहुंचाने की है."
पुतिन चाहते हैं कि अगर यूक्रेनी सेना को हराया ना भी जा सके तो कम से कम उसके मनोबल को तोड़ दिया जाए.
क्रिस्टोफ़ क्लावेन कहते हैं, "पुतिन के लिए यह इच्छाशक्ति की लड़ाई है. लगातार यूक्रेनी सेना पर हमले कर के वो पश्चिमी देशों को यह दिखाना चाहते हैं कि रूस एक बड़ी ताकत हैं और अपनी सेना को बेहिसाब हथियार दे सकता है. हालांकि यह पूरी तरह सच नहीं है. मगर पुतिन पश्चिमी देशों के सामने यह छवि ज़रूर पेश करना चाहते हैं ताकि वो यूक्रेन को मिल रही सहायता को बंद कर दें."
मगर रूस की सैनिक महत्वकांक्षा वैग्नर ग्रुप पर निर्भर है जो रूस की एक निजी कंपनी के लड़ाके है.
वैग्नर ग्रुप
वैग्नर ग्रुप पहली बार 2014 में चर्चा में आया था जब उसने रूस समर्थक अलगाववादियों के साथ मिलकर डोनबास में यूक्रेनी सेना के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी.
आज के युद्ध में वैग्नर ग्रुप रूस के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसे समझने के लिए बीबीसी ने लंदन के किंग्स कॉलेज में रक्षा मामलों की प्रोफ़ेसर ट्रेसी जर्मन से बात की.
वो कहतीं हैं, "यह ग्रुप खुद को एक निजी कंपनी बताता है लेकिन रूसी सरकार के साथ इसके क़रीबी संबंध हैं. यह ग्रुप अफ़्रीकी देशों में भी सक्रीय है जहां पूर्व साम्राज्यवादी ताकतें सीधे कार्रवाई नहीं करना चाहतीं. वहां वैग्नर ग्रूप काम करता है."
"हालांकि रूस सीधे तौर पर इसे अपने सुरक्षाबल का हिस्सा नहीं मानता मगर यह ग्रुप उन जगहों पर रूस के प्रभाव को बढाता है. अभी तक यूक्रेन की लड़ाई में उसने रूस को उसके सैनिक लक्ष्य प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पिछली गर्मियों के बाद से वो खुलकर लड़ाई में हिस्सा ले रहा है."
येवगेनी प्रिगोज़िन वैग्नर ग्रुप के प्रमुख हैं. उन्हें कुछ लोग 'पुतिन का बावर्ची' भी कहते हैं क्योंकि पहले वो रूसी सरकार के लिए केटरिंग का काम करते थे. उसी दौरान उनके राष्ट्रपति पुतिन के साथ उनके क़रीबी संबंध बने थे.
पिछले कुछ महीनों में वैग्नर के लड़ाकों की संख्या दस गुना बढ़कर पचास हज़ार तक पहुंच गई है. इसमें भर्ती हुए ज़्यादातर लड़ाके रूसी जेलों से रिहा किए गए अपराधी हैं.
रूस द्वारा वैग्नर ग्रुप के इस्तेमाल के बारे में ट्रेसी जर्मन कहती हैं, "रूस को सैनिकों की जो कमी महसूस हो रही थी वो वैगनर ग्रूप ने पूरी की है. पुतिन को इसका दूसरा फ़ायदा यह है कि यह अधिकारिक रूसी सेना का हिस्सा नहीं है इसलिए इसके लड़ाकों के हताहत होने से रूसी सरकार पर वो सामाजिक दबाव नहीं आता जो रूसी सैनिकों के यूक्रेन में मारे जाने से पड़ता है."
"दूसरा फ़ायदा यह है कि यह पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन की सहायता का एक जवाब भी है. मगर यह लड़ाके सज़ाआफ़्ता अपराधी हैं जिन्हें युद्ध का अनुभव या महारत नहीं है."
वो कहती हैं, "मेरी रिपोर्टों के अनुसार इसमें से अस्सी प्रतिशत लड़ाके युद्ध में मारे गए हैं. इन अपराधियों के पास लड़ने के अलावा कोई चारा नहीं होता. अगर वो आगे बढ़ने के आदेश को नहीं मानते तो उन्हें गोली मार दी जाती है."
वैग्नर ग्रुप के लड़ाके बड़ी संख्या में मारे तो गए हैं लेकिन उन पर आम यूक्रेनी लोगों को यातनाएं देने के आरोप भी लगे हैं. इसके साथ ही यह ग्रुप कुछ सफलताओं के श्रेय के लिए कई बार रूसी सेना के अधिकारियों से टकराता भी नज़र आया है.
ट्रेसी जर्मन यह भी कहती हैं, "हालांकि यह ग्रुप सामान्य रूसी सैनिकों के साथ मिलकर लड़ता है और यूक्रेन में रूसी सेना की तादाद बढ़ जाती है. लेकिन इसके लड़ाकों के मारे जाने की संख्या रूसी हताहतों की आधिकारिक संख्या में जोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती."
इस वजह से युद्धभूमि पर असफलताओं का दोष सीधे पुतिन पर नहीं आता और वो अपनी अव्यहवारिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने में लगे रह सकते हैं.
पुतिन और रूसी मातृभूमि
यूक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन के लक्ष्य क्या हाल के दिनों में बदले हैं?
इस बारे में बीबीसी ने अमेरिका के ब्रूकिंग्स संस्थान में वरिष्ठ शोधकर्ता और विदेश नीति मामलों के जानकार एंजेला स्टेंट से बात की.
वो कहती हैं, "पुतिन और क्रेमलिन में राजनीतिक नेतृत्व जानबूझकर इस विषय पर अस्पष्ट बना हुआ है. अगर आप मुझसे पूछें कि युद्ध में उनका क्या लक्ष्य है तो जवाब देना मुश्किल होगा क्योंकि वो इसे बदलते रहते हैं. उनका निजी लक्ष्य तो यूक्रेन पर कब्ज़ा करना होगा लेकिन क्या इसके लिए उनके पास कोई टाइमटेबल है?"
एंजेला का मानना है कि लड़ाई में कई नाकामयाबियों के बावजूद रूस में शायद ही कोई ऐसा हो जो पुतिन को इस युद्ध से पीछे हटने की सलाह देता हो.
वो कहती हैं, "उन्होंने वहां ऐसी व्यवस्था बना दी है कि ज़्यादातर लोग वहां इस मीडिया प्रचार पर यकीन करते हैं कि पश्चिमी देश रूस का दुश्मन है. लगभग दो लाख रूसी सैनिक मारे गए हैं या गंभीर रूप से घायल हुए हैं. जगह-जगह लोगों के अंतिम संस्कार होते दिख रहे हैं. फिर भी इतने साल से सरकारी प्रचार सुनते-सुनते लोग अब थक गए हैं."
"रूस के बाहर से ख़बरें उन तक पहुंचती ही नहीं हैं. कुछ लोग तो यहां तक मानते हैं कि यूक्रेन ने ही रूस पर हमला किया है. और जो लोग रूसी सरकार के यूक्रेन पर हमले का विरोध करते हैं या तो वो रूस से भाग चुके हैं या जेल में बंद कर दिए गए हैं. जो रूस में हैं भी वो चुप बैठे हैं."
रूस में कई लोग जो सरकार की आलोचना कर रहे हैं वो केवल यह आलोचना कर रहे हैं कि सरकार को यूक्रेन पर नियंत्रण करने के लिए और सख़्ती से काम लेना चाहिए था.
इस बारे में एंजेला स्टेंट कहती हैं, "जो लोग सरकार की युद्ध नीति का विरोध कर रहे हैं वो येवगेनी प्रिगोज़िन जैसे लोग हैं. उन्होंने सीधे पुतिन की आलोचना नहीं की लेकिन रक्षा मंत्रालय की आलोचना ज़रूर की है. इसके अलावा कई ब्लॉगर हैं और शाम को टीवी शो पर आने वाले लोग हैं जो कहते हैं कि रूसी सेना को और बेहतर तरीके से लड़ना चाहिए था और कड़ाई से पेश आना चाहिए था."
जहां तक रूसी प्रशासन में पुतिन की नज़दीकी सलाहकारों से चर्चा की बात है, एंजेला स्टेंट कहती हैं कि वहां प्रशासन में पारदर्शिता की इतनी कमी है कि कहना मुश्किल हैं भीतर क्या हो रहा है. केंद्रीय बैंक के गवर्नर या उद्योगपति जैसे कुछ व्यावहारिक सोच रखने वाले लोग भी इसमें शामिल हैं जो युद्ध से पहले पश्चिमी देशों के साथ बेहतर संबंध चाहते थे.
वो भी अब दबाव में आकर सरकारी राग आलाप रहे हैं या फिर शांत हैं. शायद यही वजह है कि पुतिन यूक्रेन पर कब्ज़े की अपनी महत्वाकांक्षा को लगाम लगाने के बजाए बाल्टिक क्षेत्र के दूसरे देशों पर भी नज़र गड़ा सकते हैं.
एंजेला स्टेंट कहती हैं, "कम से कम अभी पुतिन यही कह रहे हैं की यूक्रेन और दूसरे बाल्टिक देश परंपरागत रूप से रूसी मुख्यभूमि का हिस्सा रहे हैं जिन्हें रूस में वापस मिलाना है. उनकी घरेलू राजनीति के लिए यह महत्वपूर्ण है. अगर वो इसमें कामयाब होते हैं तो एक तानाशाह के नाते वो लंबे समय तक रूस की सत्ता में बने रह सकते हैं. ऐसे में बातचीत या समझौते के ज़रिए यह संघर्ष नज़दीकी भविष्य में ख़त्म होता नज़र नहीं आता."
एक फंसा हुआ संघर्ष
तो अगर बसंत की शुरुआत में पुतिन यूक्रेन पर नया हमला करते हैं तो उसका क्या परिणाम हो सकता है?
पुतिन रूसी सेना को यूक्रेन में और भीतर भेजने की कोशिश करते हैं तो रूसी सेना को मैदानी इलाक़ों में यूक्रेनी सेना के टैंक और तोपों को सामना करना पड़ेगा और लड़ाई फिर शहरों के भीतर लड़ी जाएगी.
इस बारे में बीबीसी ने रॉयल यूनाइटेड सर्विसेस इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ शोधकर्ता सैमुएल रमानी से बात की. वो बताते हैं कि बाख़मूत शहर में कई महीनों से लड़ाई चल रही है.
वो कहते हैं कि ये शहर सामरिक दृष्टि से रूस के लिए महत्वपूर्ण है और यहां से यूक्रेनी सेना को पीछे हटना पड़ सकता है.
वो हो सकता है कि वो पीछे हट कर फिर बाख़मूत पर कब्ज़े के लिए हमला करेंगे. वो कहते हैं, "नए भर्ती किए गए रूसी सैनिकों के मुकाबले यूक्रेनी सैनिक अधिक अनुभवी हैं और शहरी लड़ाई में माहिर हैं. इसलिए रूसी सैनिक अधिक संख्या के बावजूद प्रभावी नहीं होंगे, उन्हें तेज़ी से तैनात करने में दिक्कत आएगी."
यूक्रेनी सेना को पश्चिमी देशों से प्रशिक्षण और आधुनिक हथियार मिल रहे है. उसके मुक़ाबले रूस के हथियार पुराने हैं और कम प्रभावी हैं.
सैमुएल रमानी कहते हैं, "रूस के पास सटीक मार करने वाले हथियारों और मिसाइलों की कमी है. इन हथियारों के बनाने के लिए ज़रूरी माइक्रोचिप या सेमीकंडक्टर की सप्लाई पश्चिमी देशों ने रोक दी है. वहीं चीन भी इसमें रूस की मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा है. दूसरे, रूस की सेना के पास गोलाबारूद भी तेज़ी से ख़त्म हो रहा है और इसका उत्पादन भी रूस पर्याप्त मात्रा में नहीं कर पा रहा है."
इन समस्याओं के अलावा रूसी सेना के सामने जीते हुए इलाक़े पर कब्ज़ा बनाए रखने की चुनौती भी है.
इस विषय में सैमुएल रमानी कहते हैं, "अभी यह पता नहीं है कि रूस की मोर्चाबंदी कितनी मज़बूत है और वो यूक्रेन के अत्याधुनिक टैंक और मिसाइलों के सामने टिक पाएगी या नहीं. अगर वो कमज़ोर रही तो यूक्रेनी सेना जवाबी हमला करके उन ठिकानों पर वापस कब्ज़ा कर लेगी."
इन बातों को देखते हुए तो लगता है कि जिस जीत का वादा पुतिन ने रूसी जनता से किया है उसे पूरा करने से वो अभी काफ़ी दूर हैं.
सैमुएल रमानी का कहना है, "जानोमाल का नुक़सान और हथियारों की कमी की वजह से हो सकता है कि रूस युद्ध विराम के बारे में सोचे. यह अप्रत्याशित ढंग से हो सकता है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि यह ज़्यादा देर चले. पुतिन की कोशिश रहेगी कि जितना संभव हो उतनी ज़्यादा ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया जाए. इससे उनका लक्ष्य आंशिक तौर पर पूरा हो सकता है और हार-जीत के बिना युद्ध थम सकता है."
अब यूक्रेन को लेकर पुतिन की क्या योजना होगी?
साल भर चले युद्ध में भारी नुक़सान के बावजूद पुतिन यूक्रेन पर नियंत्रण करने के मक़सद में ख़ास कामयाब नहीं हो पाए हैं. इसके बावजूद रूस में उनका समर्थन ख़ास कम नहीं हुआ है.
अब उनकी कोशिश होगी की यूक्रेन के पूर्व और दक्षिण में बड़े इलाक़े पर कब्ज़ा कर उसे क्राइमिया से जोड़ दें जिस पर उन्होंने कुछ साल पहले कब्ज़ा कर लिया था. इसके बाद वो यूक्रेन सरकार पर समर्पण के लिए दबाव डाल सकते हैं.
लेकिन आने वाले कुछ महीनों में युद्ध ख़त्म होगा या नहीं और युद्ध में कोन जीते इस पर स्पष्ट रूप से अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. (bbc.com/hindi)
चीन, 12 मार्च । चीन ने उम्मीदों से पलट केंद्रीय बैंक के गवर्नर और देश के वित्त मंत्री को न बदलकर सबको हैरान कर दिया है.
चीन की सरकार में लगातार फेरबदल जारी है और राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अहम पद दिए जा रहे हैं. खुद शी जिनपिंग भी तीसरी बार राष्ट्रपति बने हैं.
माना जा रहा है कि देश और विदेश दोनों ही मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करने की वजह से चीन की सरकार में ये बदलाव किए जा रहे हैं.
इसी कड़ी में चीन के प्रधानमंत्री के तौर पर अब ली कियांग को नियुक्त किया गया है. कियांग को जिनपिंग का बेहद करीबी माना जाता है.
लेकिन इन सबके बीच 65 वर्षीय यी गांग के सेंट्रल बैंक ऑफ़ चाइना (सीपीसी) के गवर्नर पद पर बने रहने को नेशनल पीपल्स कांग्रेस ने मंज़ूरी दे दी है और 66 वर्षीय लियु कुन भी वित्त मंत्री बने रहेंगे.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने पिनपॉइंट एसेट मैनेजमेंट के चीफ़ इकोनॉमिस्ट झांग झीवेई के हवाले से बताया, "सरकार ने अपने वरिष्ठ वित्तीय विशेषज्ञों को न बदलकर बाज़ार में एक साकारात्मक संदेश दिया है. ग्लोबल इकोनॉमिक आउटलुक अभी चुनौतियों से भरा है. ऐसे में वित्तीय और आर्थिक मामलों के नेतृत्व को न बदलने से बाज़ार में भरोसा बढ़ाने में मदद मिलती है."
अमेरिका में पढ़े चीन के सेंट्रल बैंक चीफ़ यी गांग साल 2018 से इस पद पर हैं. माना जा रहा था कि पाँच साल तक ये पदभार संभालने के बाद वो अब रिटायर हो जाएंगे. (bbc.com/hindi)
-पोला रोज़ास
"मैंने जनता के हित में बैंक लूटे, मगर आप उसे चोरी नहीं कह सकते क्योंकि किसी ग़रीब इंसान को लूटना चोरी कहलाता है. वो शख़्स जो किसी लुटेरे को लूटता है, उसे हमेशा की माफ़ी है और बैंक लूटना तो सम्मान की बात है."
लोसियो अर्तोबिया के लिए डकैती उस समय तक एक 'क्रांतिकारी काम' था जब तक कि यह 'सामूहिक भलाई' को मद्देनज़र रखते हुए किया जाए, न कि अपने फ़ायदे के लिए. लोसियो वह शख़्स थे जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े बैंक को नाच नचा दिया था.
एक अच्छे अनार्किस्ट (अराजकतावादी) के तौर पर लोसियो अर्तोबिया के लिए क़ानून और नैतिकता के बीच बहुत ओझल सा अंतर था.
दिन के उजाले में बतौर मज़दूर काम करने वाले लोसियो रात को बड़े 'जालसाज़' का रूप धारण कर लेते थे, वह निरक्षर थे और अपने जीवन के अंतिम समय तक 'बाग़ी' रहे.
एक डाकू, कथित अपहरणकर्ता और स्मगलर के तौर पर जाने जाने वाले लोसियो अर्तोबिया 1980 के दशक में दुनिया के लिए सबसे ज़्यादा 'वांटेड' लोगों में से एक थे.
उनकी देखरेख में दर्जनों लोगों का एक नेटवर्क काम करता था जिसकी अगुवाई वह करते थे और वह उस दौर के दुनिया के सबसे बड़े बैंक नेशनल सिटी बैंक (जो अब सिटी बैंक के नाम से जाना जाता है) से जालसाज़ी के ज़रिए बहुत सारे ट्रैवलर्स चेक बनाने में कामयाब हुए थे.
यह साफ़ नहीं कि इस वारदात में कितनी रक़म का घपला किया गया मगर ख़ुद लोसियो के मुताबिक़ यह रक़म कम से कम 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लगभग थी. लोसियो का दावा था कि यह रक़म लैटिन अमेरिका और यूरोप में सरकारों के ख़िलाफ़ गुरिल्ला लड़ाई लड़ने वाले समूहों की आर्थिक मदद के लिए इस्तेमाल की गई.
यह बात मशहूर है कि उनकी जालसाज़ियों के कारण प्रसिद्ध गुरिल्ला ग्रुप ब्लैक पैंथर्स के प्रमुख एल्ड्रिच क्लेवर को फ़रार होने में मदद मिली और उन पैसों की मदद से बोलिविया में नाज़ी क्लाउस बार्बी को अग़वा करने की कोशिश की गई.
और उनका अपना दावा था कि गुरिल्ला कार्रवाइयों के लिए रणनीतियों के बारे में उन्होंने चे-ग्वेरा के साथ विचार विमर्श किया था.
इन सब में सच्चाई कितनी है और डींग या कहानी कितनी, यह तो मालूम नहीं मगर इन सबके बीच लोसियो अर्तोबिया का जीवन किसी फ़िल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं.
एक फ़िल्मी जीवन
लोसियो अर्तोबिया सन 1931 में कासकेंट नाम के क़स्बे के एक परिवार में पैदा हुए. अपनी आत्मकथा में वह लिखते हैं कि अपने बचपन में "मैंने कभी ऐसी चीज़ का सम्मान नहीं किया जो प्रतिबंधित थी. अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती तो उसे पाने के लिए मैं हर वह काम कर गुज़रता जो मुझे सही मालूम होता था."
उदाहरण के लिए अपने बचपन में उन्होंने वह सिक्के चुराने से गुरेज़ नहीं किया जो उस दौर के अमीर लोग उनके क़स्बे के चर्च के सामने वाले तालाब में श्रद्धा से भेंट स्वरूप फेंकते थे.
लोगों के बाग़ों से वह फल चुरा लेते थे और हर वह काम कर गुज़रते थे जो ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी था.
छोटी मोटी चोरी चकारी के बाद वह सीमा पर होने वाली स्मगलिंग के काम में शामिल हुए. अपने भाई के साथ वह तंबाकू, दवाइयां और शराब सरहद पार तस्करी करते थे.
और जब वह जवान हुए तो उस दौर के क़ानून के तहत उन्हें ज़रूरी सैन्य सेवा अंजाम देने के लिए भर्ती किया गया. यह वह समय था जब उनके लिए फ़ौजी बैरकों के गोदामों तक पहुंचना आसान था और यहां उनके सामने एक नई दुनिया थी.
जल्द ही बैरकों से फ़ौजी जूते, शर्ट्स, घड़ियां और दूसरे क़ीमती सामान कूड़े के डिब्बों में बैरकों से बाहर स्मगल होने लगे. हालांकि फ़ौज को कुछ ही दिनों में इस लूटमार का पता चल गया लेकिन गिरफ़्तारी से पहले ही वह फ़रार होकर फ़्रांस पहुंच गए क्योंकि अगर वह फ़रार ना होते तो उन्हें जेल में चक्की पीसना नसीब होता या वह फ़ायरिंग स्क्वाड के सामने होते.
वह फ़्रांस तो पहुंच गए मगर मुश्किल यह थी कि उन्हें फ़्रांसीसी भाषा का एक शब्द भी नहीं आता था. अपनी आत्मकथा में वह लिखते हैं, "फ़्रांस पहुंचकर मुझे किसी चीज़ के बारे में कुछ मालूम नहीं था." लेकिन जल्द ही उन्होंने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करना शुरू कर दिया और मरते दम तक इस उद्योग से जुड़े रहे.
वह कहते थे, "इंसान वही हैं जिनकी पहचान अपने काम की वजह से है. यही वजह है कि मैंने मुक्ति हमेशा अपने काम में पाई, जिसके बिना कोई कुछ नहीं."
मगर सच्चाई यह है कि यही वह काम था जो उनके ख़ुफ़िया जीवन के लिए एक बहरूपिए का काम करता था क्योंकि कोई नहीं सोच सकता था कि एक अनपढ़ सा मज़दूर उस दौर की बड़ी जालसाज़ियों के पीछे हो सकता है.
यह वह दौर है जब फ़्रांस की राजधानी पेरिस हज़ारों स्पेनी कम्यूनिस्टों, अराजकतावादियों, समाजवादियों और विद्रोहियों की शरणस्थली थी.
लेकिन लोसियो की, जो बहुत मुश्किल से पढ़ पाते थे, राजनीति से जुड़ी कोई ट्रेनिंग नहीं थी. अपनी याददाश्तों में वह बताते हैं कि एक दिन उनके साथी ने उनसे पूछा, "तुम्हारी राजनैतिक सोच क्या है? तुम हो कौन?"
लोसियो ने उसे जवाब दिया कि वह कम्यूनिस्ट हैं क्योंकि उनके शब्दों में उनका विचार था कि फ़ासिज़्म के सभी विरोधी यही सोच रखते हैं.
उनका साथी इस जवाब पर हंसा और बोला, "क्या बात है! तुम कम्यूनिस्ट बनने जा रहे हो, तुम अनार्किस्ट हो."
राजनैतिक चेतना
उन्होंने यह शब्द अपने पिता से सुना था. ग़ुस्से में आकर एक दिन उनके पिता ने कहा था, "अगर मैं दोबारा पैदा हुआ तो एक अनार्किस्ट बनूंगा."
यह उनके दूसरे जीवन की शुरुआत थी. "इससे मेरे लिए सच की शुरुआत हुई, यह असली आज़ादी थी."
उन्होंने कुछ फ़्रांसीसी कोर्स करने के लिए ख़ुद का नाम लिबर्टेरियन यूथ में दर्ज कराया और पेरिस के इलाक़े सीन, मार्थ में नज़र आने लगे जहां नोबेल पुरस्कार विजेता दार्शनिक अल्बर्ट कैमोस और दूसरे महत्वपूर्ण लोग रहा करते थे.
उनके अनुसार फ़्रांसीसी भाषा के जिन स्कूलों ने उनके लिए शिक्षा के दरवाज़े बंद किए, वह थियेटर ग्रुप्स के हाथों उनके लिए खुल गए.
एक दिन सीएनटी सेक्रेटरी ने उनसे मदद मांगी, "हमें मालूम है कि आपके पास एक अपार्टमेंट है और हमारा एक दोस्त है जिसे मदद दरकार है. आप कुछ देर के लिए उनकी मदद करें, जब तक हम उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं कर लेते."
यह दोस्त कवाको साबाती थे जो कैटलोनिया में फ़्रांस विरोधी गुरिल्ला झड़पों में शामिल थे और स्पेन में सबसे अधिक 'वांटेड' लोगों में से थे. बर्नार्ड थॉमस के अनुसार लोसियो उनसे बहुत प्रभावित थे और उन्हें 'अनार्किज़्म का गुरु' कहते थे.
लोसियो ने कवाको को छिपाने में मदद की और जब वह छह माह क़ैद की सज़ा में जेल गए तो उन्हें थॉमसन मशीन गन और पिस्तौल जैसे 'औज़ार' मिल गए.
इन 'औज़ारों' और खुले लिबास की मदद से लोसियो के अनुसार उन्होंने पेरिस में पहली बार एक दोस्त के साथ बैंक लूटा था. वह उसे ज़ब्ती कहते थे, जैसे राज्य किसी की संपत्ति ज़ब्त करता है.
पहली बार बैंक लूटने का दिलचस्प किस्सा
लोसियो उस समय कड़ी मेहनत मज़दूरी करके एक हफ़्ते में 50 फ़्रांक्स कमाते थे मगर 16 मिनट में उन्होंने लाखों फ़्रांक्स कमा लिए थे. पहली डकैती के बाद उन्होंने कई और बैंक लूटे मगर लोसियो ने कभी कंस्ट्रक्शन की जगह वाली मज़दूरी नहीं छोड़ी. उनके अनुसार लूटी गई दौलत 'क्रांतिकारी' मक़सद के लिए इस्तेमाल की जानी थी.
उनके लिए बैंक लूटना आसान होता था क्योंकि उस दौर में कोई सिक्योरिटी कैमरे नहीं होते थे मगर वह उस काम को पसंद नहीं करते थे क्योंकि उन्हें डर था कि कोई घायल न हो जाए. बाद के इंटरव्यूज़ में उन्होंने बिना मुस्कुराए हुए कहा था, "जब मैं पहली बार बैंक को ज़ब्त करने (लूटने) जा रहा था तो मैंने अपनी पैंट में पेशाब कर दिया था."
हालांकि उन्होंने अपनी थॉमसन मशीन गन की जगह प्रिंटिंग प्रेस ख़रीद ली जो के अनार्किस्ट का बहुत बड़ा हथियार था.
प्रिंटिंग की दुनिया में अपने दोस्तों की मदद से उन्होंने नक़ली स्पेनी पहचान पत्र, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस बनाना शुरू कर दिया. इससे लोगों को दूसरे देश जाने में मदद मिलती और सरकार के विरोधी किसी देश में जा सकते थे.
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा, "इसकी मदद से गाड़ियां किराए पर लेना आसान हो गया था, बैंक के अकाउंट, सफ़र के दस्तावेज़ वग़ैराह सब हासिल हो सकता था और वह भी सरकारी अफ़सरों को पैसे दिए बिना. इससे वह दरवाज़े खुल गए जो हमारे लिए बंद थे."
दस्तावेज़ों के बाद उनका अगला निशाना करंसी नोट बन गया. लोसियो के हाथ अमेरिकी डॉलर की अच्छी नक़ल लग गई थी. वह बताते हैं, "दूसरे काम जो हमने किए थे उनके मुक़ाबले डॉलर की नक़ल तैयार करना कुछ आसान था."
करंसी के लिए सबसे मुश्किल काम काग़ज़ लाना है. जाली करंसी बनाने के लिए उन्होंने एक अमेरिका विरोधी देश की मदद लेने का फ़ैसला किया. लोसियो को एक बेवकूफ़ी भरा ख़्याल आया. उन्होंने पेरिस में क्यूबा के राजदूत से संपर्क किया ताकि उनकी मुलाक़ात चे ग्वेरा से हो सके जो पेरिस के एक हवाई अड्डे से गुज़र रहे थे. इस मुलाक़ात की पुष्टि करना मुश्किल है.
क्यूबा की क्रांति से कई अनार्किस्ट, कम्यूनिस्ट और पूंजीवादी व्यवस्था विरोधी प्रभावित हुए थे. इतिहासकार ऑस्कर फ़्रेन हर्नांडिज़ के अनुसार यह संभव है कि उस समय के सामाजिक कार्यकर्ता क्यूबा के दूतावास के संपर्क में होंगे लेकिन हमें यह मालूम नहीं कि "उन्हें चे ग्वेरा मिले थे या नहीं."
लोसियो उत्साही थे और उनके पास एक सरल योजना थी: क्यूबा लाखों डॉलर छापे और मार्केट में डॉलर फेंककर अमेरिकी करंसी को डुबा दे. उन्होंने जाली करंसी बनाने के लिए प्लेटें देने की हामी भरी.
उनका दावा है कि चे ग्वेरा उस समय क्यूबा के वित्त मंत्री थे और उन्होंने कथित तौर पर उन्हें इस मामले पर बहुत स्पष्ट नहीं पाया. लोसियो को इस पर अफ़सोस हुआ.
उनके अनुसार चे ग्वेरा यह नहीं चाहते थे कि उनकी अपनी करंसी की नक़लें तैयार की जाएं क्योंकि इस जुर्म की बड़ी सज़ा 20 साल क़ैद थी.
लोसियो अपनी किताब में लिखते हैं, "इसलिए हमने ट्रैवलर्स चेक को चुना जिनकी नक़ल तैयार करने की सज़ा केवल पांच साल थी."
वह ब्रसल्स जाने वाली एक ट्रेन पर सवार हुए ताकि वहां एक बैंक से ट्रैवलर्स चेक से तीस हज़ार फ़्रांक्स ख़रीद सकें. फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में से एक था.
यह आसान काम नहीं था लेकिन उन्होंने नक़ली चेक तैयार कर लिए. उन्होंने एक सौ डॉलर्स के 25 चेक्स की आठ हज़ार शीटें तैयार कर लीं. विभिन्न टीमों ने लगभग दो करोड़ डॉलर्स बैंकों से निकलवा लिए.
वह यूरोप के विभिन्न शहरों में अपनी टीमें भेजते और ख़ास वक़्त में चेक कैश करवाते. इस तरह दस्तावेज़ों के नंबर चोरी हो गए या संदिग्ध चेक्स में दर्ज ना हो पाते.
उन पैसों का क्या हुआ?
इतिहासकार ऑस्कर फ़्रेन हर्नांडिज़ कहते हैं कि यह सबसे बड़ा सवालों में से एक है कि उन पैसों का क्या हुआ. "उन्होंने कितने पैसे चुराए और उन्हें कहां और कैसे भेजा?" वह इस दावे को रद्द करते हैं कि इस पैसे से वह ख़ुद अमीर बन गए.
लोसियो अर्तोबिया और उनके साथियों के अनुसार उस पैसे से लैटिन अमेरिका और यूरोप में वामपंथी गुरिल्ला लड़ाकों और सशस्त्र समूहों की आर्थिक मदद की गई.
हर्नांडिज़ के अनुसार सुरक्षा कारणों, ख़ुफ़िया शोधों और पुलिस सूत्रों की अनुपलब्धता के कारण इसकी लिस्ट मौजूद नहीं. "उनके ख़िलाफ़ ग़ैर क़ानूनी कार्रवाइयों की वजह से किसी सबूत को दर्ज नहीं किया जा रहा था. पैसों के स्थान के बारे में लोसियो की कहानी में पुष्टि की गई कोई बात दर्ज नहीं है."
लोसियो को हिंसा से नफ़रत थी और इसीलिए उन्होंने ज़ब्ती यानी बैंक लूटने का काम छोड़ दिया था क्योंकि उन्हें डर था कि कोई ज़ख़्मी हो सकता है या मारा जा सकता है लेकिन उन पैसों से स्पेन में सशस्त्र समूह ईटीए की मदद की गई और इस पर किसी ने नैतिक आपत्ति नहीं की.
लोसियो ने 2015 में एक स्पेनी टीवी प्रोग्राम में इस बात का बचाव किया था और बताया था कि उन्होंने बचपन और जवानी में अपने गांव में अन्याय का सामना किया था. "मुझे स्पेन और नॉर्वे से नफ़रत थी क्योंकि मैंने अपनी ज़िंदगी ख़ौफ़ में गुज़ारी थी. इसलिए लड़ने वालों के साथ मेरी एकजुटता थी."
लेकिन इस प्रतिरोध को भी पतन का शिकार होना पड़ा.
हर जगह जाली ट्रैवलर्स चेक पकड़े जाने लगे. फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक ने उन्हें स्वीकार करना बंद कर दिया जिससे अफ़रा-तफ़री मच गई. जिन्होंने यह चेक ख़रीदे थे वह अब अपने पैसे वापस नहीं ले पा रहे थे.
लोसियो को अपने दोस्त की ओर से प्रस्ताव दिया गया: एक ख़रीदार उन से 30 प्रतिशत कम रक़म पर सभी चेक ख़रीदेगा.
लोसियो को जून 1980 में गिरफ़्तार किया गया और तुरंत जेल भेज दिया गया.
उनके वकीलों में से एक रोलैंड दोमास थे, जो बाद में फ़्रांस के वित्त मंत्री बने. लोसियो कहते हैं, "हम तुरंत समझ गए कि ये पैसे हमारे लिए नहीं बल्कि हमारी राजनीति के लिए थे. हम कहते थे कि नक़ली ट्रैवलर्स चेक बनाओ, उन्हें व्यवस्था में घुसाओ ताकि सरकार कमज़ोर हो सके."
दोमास का स्पेन से कूटनीतिक संबंध था और उन्होंने लोसियो से कहा कि वह ईटीए से संपर्क स्थापित करने में मदद करें. उन्होंने स्पेन के राजनेता हावियर रोपेरेज़ को अग़वा कर रखा था.
उन्हें 31 दिन बाद रिहा कर दिया गया. 1981 में जब हथियारबंद गिरोहों ने स्पेन में ऑस्ट्रिया, एल साल्वाडोर दूतावास कर्मियों को अग़वा किया तो दोबारा लोसियो की मदद ली गई.
फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक का क्या हुआ?
लोसियो ने लगभग छह माह जेल में बिताए और इस दौरान उनके ख़िलाफ़ केस की जांच की जा रही थी. मगर पुलिस को प्रिंटिंग प्लेट्स नहीं मिलीं और जब तक यह प्लेट्स जाली नोट बनाने वालों के पास थीं, तब तक समस्या बनी थी.
मजबूरी में बैंक ने बातचीत करने का फ़ैसला किया. एक वकील थिअरी फ़गार्ट ने, जो फ़्रांसीसी प्रधानमंत्री के सलाहकार भी थे, लोसियो से भेंट की और बैंक के वकीलों को वार्ता के लिए तैयार किया.
फ़गार्ट ने बताया, "फ़र्स्ट नेशनल सिटी बैंक के वकीलों ने कहा कि यह कारोबार के लिए हानिकारक था, इसलिए यह रुकना चाहिए और यह इस तरह जारी नहीं रह सकता. बहुत से लोग जेल जा चुके थे."
"मगर यह समस्या जारी थी तो इस तरह सिटी बैंक और लोसियो के वकीलों ने वार्ता से इस समस्या का हल निकालने के बारे में सोचा. सबको पता था के लोसियो ही इसके मास्टरमाइंड हैं."
फ़गार्ट के अनुसार उसी बैंक ने, जिससे उन्होंने और उनके गिरोह ने लाखों डॉलर चुराए, उन पर लगाए गए आरोपों को वापस ले लिया और बदले में उन्हें वह प्लेट्स मिल गईं जिन्हें पेरिस के एक लॉकर रूम में छिपाया गया था.
इससे संबंधित डॉक्यूमेंट्री में वकीलों ने बताया कि यह लेन-देन एक होटल के कमरे में हुआ जहां बैंक के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. "यह बेमिसाल था, जैसे पुलिस पर बनाई गई कोई फ़िल्म हो." बैंक ने इस बात की पुष्टि की और फ़गार्ट के अनुसार उन्होंने समझौते के तहत ब्रीफ़केस में बड़ी रक़म अदा की.
लोसियो के अनुसार यह डील चार करोड़ फ़्रांक्स में हुई जिसके बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. वह इस बात पर क़ायम हैं कि उन्होंने कोई पैसा नहीं रखा.
क्रांतिकारी जीवन छोड़कर परिवार को देने लगे समय
बैंक ने बीबीसी की ओर से संपर्क किए जाने पर अपना पक्ष नहीं रखा.
लोसियो ने 50 साल की उम्र में अपना क्रांतिकारी जीवन छोड़कर परिवार को समय देने का फ़ैसला किया और पेरिस के पास मज़दूरी जारी रखी.
इतिहासकार हर्नांडिज़ कहते हैं, "कुछ बातें ऐसी हैं जो हम कभी नहीं जान सकेंगे और हमें इसे मान लेना होगा."
"मगर सबसे रोचक बात यह है कि एक दूसरे देश से आया व्यक्ति जिसके पास राजनीतिक समर्थन और चेतना नहीं थी, फ़्रांस आया और अनार्किस्ट दृष्टिकोण सीखा. वह कार्यकर्ता बना और ऐसे क़दम उठाए जिनसे वह मिथकीय हीरो बन गया."
लोसियो ने 2020 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्होंने कई इंटरव्यूज़ में कहा था कि उन्होंने कभी अपराध की दुनिया नहीं छोड़ी थी. उनका कहना था, "मुझे ख़ुद भी अपने अनुभवों पर विश्वास नहीं होता." (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 12 मार्च। पूर्व उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने अमेरिका के संसद भवन परिसर में छह जनवरी को हुए दंगे में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका की शनिवार को कड़ी आलोचना की और कहा कि ट्रंप ने उनके परिवार तथा संसद भवन में मौजूद हर व्यक्ति की जान खतरे में डाल दी थी।
पेंस के इस बयान से अगले साल के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उम्मीदवार के नामांकन की दौड़ में शामिल दोनों नेताओं के बीच विवाद और गहरा गया है।
वार्षिक ‘ग्रिडिरोन’ रात्रि भोज के दौरान पेंस ने कहा, ‘‘(पूर्व) राष्ट्रपति ट्रंप गलत थे।’’ इस रात्रि भोज में नेता और पत्रकार शामिल होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे चुनाव पलटने का कोई अधिकार नहीं था और उनके (ट्रंप के) बेतुके बयानों ने उस दिन (छह जनवरी को) मेरे परिवार और कैपिटोल (संसद भवन परिसर) को खतरे में डाल दिया था। मैं जानता हूं कि इतिहास डोनाल्ड ट्रंप को इसके लिए जिम्मेदार ठहराएगा।’’
कभी ट्रंप के वफादार रहे पेंस की यह टिप्पणी उनकी अब तक की सबसे तीखी आलोचना थी, जो अक्सर अपने पूर्व बॉस का सामना करने से कतराते रहे हैं। ट्रंप पहले ही अपनी उम्मीदवारी का एलान कर चुके हैं। लेकिन पेंस ने ऐसा नहीं किया है, हालांकि वह राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल होने के लिए अपने पांव जमा रहे हैं।
2021 के राष्ट्रपति चुनाव में पेंस परिणामों के औपचारिक प्रमाणीकरण की अध्यक्षता कर रहे थे और ट्रंप ने छह जनवरी के दिन तक राष्ट्रपति जो बाइडन की चुनावी जीत को पलटने के लिए पेंस पर दबाव डाला था। लेकिन पेंस ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था और जब दंगाइयों ने कैपिटोल पर धावा बोला था तब कुछ ने कहा था कि वे ‘‘माइक पेंस को फांसी पर लटकाना चाहते हैं।’’
हमले की जांच करने वाली प्रतिनिधि सभा की समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा कि ‘‘अमेरिका के राष्ट्रपति ने भीड़ को उकसाया था जिसने अपने ही उपराष्ट्रपति को निशाना बनाया था।’’
पेंस ने अपने ग्रिडिरोन रात्रि भोज में कहा, ‘‘इस बारे में कोई गलती न करें, उस दिन जो हुआ वह अपमानजनक था और अगर इसे किसी और तरीके से चित्रित किया गया तो यह सभ्यता और शालीनता का मजाक होगा।’’
इस बीच, ट्रंप ने दंगाइयों का समर्थन करते हुए कहा कि अगर उन्हें फिर से चुना गया तो वे उन्हें माफ करने पर विचार करेंगे।
एपी सुरभि गोला गोला 1203 1042 वाशिंगटन(एपी)
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने शनिवार को चेताया कि अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक बंद होने की वजह से तकनीकी जगत में 'गहरा संकट' पैदा हो गया है.
अमेरिकी इतिहास में दूसरी बार किसी बैंक पर इस तरह ताला लगा है. इस पर इसराइल के प्रधानमंत्री ने कहा है कि वो स्थिति पर क़रीबी नज़र रखे हैं.
नेतन्याहू ने ये भी कहा कि वो अमेरिकी बैंक के बंद होने के बाद इसराइल के टेक जगत से जुड़े शीर्ष लोगों के साथ संपर्क में हैं.
उन्होंने ये भी कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी तो सरकार उन इसराइली कंपनियों की मदद करेगी, जिनकी गतिविधि का केंद्र इसराइल है और इस उथल-पुथल की वजह से जिनके लिए कैश फ्लो का संकट पैदा हो गया है.
हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि इसराइल की अर्थव्यवस्था मज़बूत और स्थिर है.
नेतन्याहू फिलहाल औपचारिक दौरे पर रोम में हैं. उन्होंने कहा कि देश लौटने पर वो अपने वित्त मंत्री और आर्थिक मामलों के सलाहकारों, केंद्रीय बैंक के गवर्नर के साथ बैठकर इस संकट की गंभीरता पर चर्चा करेंगे.
सिलिकॉन वैली बैंक के बंद होने से दुनियाभर के तकनीकी जगत में एक डर का माहौल पैदा हो गया है. इस बैंक की ब्रिटेन, इसराइल सहित अन्य कई देशों में शाखाएं भी हैं.
अमेरिकी नियामकों ने वित्तीय संकट से जूझ रहे इस इनवेस्टमेंट बैंक को शुक्रवार को बंद करने का एलान किया था.
फिलहाल यूएस फ़ेडरल डिपॉज़िट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (एफ़डीआईसी) को इस बैंक का रिसीवर नियुक्त किया गया है, जो आगे का काम देखेगा. (bbc.com/hindi)
केप केनवरल (अमेरिका), 12 मार्च। नासा के स्पेसएक्स मिशन के साथ चार अंतरिक्ष यात्री शनिवार देर रात को धरती पर लौटे।
उनका कैप्सूल टेम्पा के समीप फ्लोरिडा तट पर मेक्सिको की खाड़ी में उतरा। अमेरिका, रूस और जापान के चालक दल के सदस्यों ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में करीब पांच महीने बिताए। यह मिशन गत अक्टूबर में रवाना हुआ था।
नासा की निकोल मैन की अगुवाई में अंतरिक्ष यात्री शनिवार सुबह अंतरिक्ष केंद्र से रवाना हुए। निकोल अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाली अमेरिका की पहली मूल निवासी महिला हैं।
निकोल ने कहा कि वह अपने चेहरे पर हवाओं को महसूस करने, ताजा घास की सुगन्ध और कुछ स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद चखने के लिए बेताब हैं।
जापानी अंतरिक्ष यात्री कोइची वकाता ने सुशी खाने की इच्छा जतायी जबकि रूसी अंतरिक्ष यात्री एना किकिना ‘‘असली कप न कि प्लास्टिक बैग से गर्म चाय’’ पीने के लिए तरस रही हैं।
नासा के वैज्ञानिक जोश कसाडा अपने परिवार के लिए एक कुत्ता लाना चाहते हैं।
अब अंतरिक्ष केंद्र में अमेरिका के तीन, रूस के तीन और संयुक्त अरब अमीरात का एक अंतरिक्ष यात्री है। (एपी)
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की चीफ़ ऑर्गेनाइज़र और वरिष्ठ अपाध्यक्ष मरियम नवाज़ ने फ़ैसलाबाद में शुक्रवार को हुई एक रैली में कहा है कि चुनाव ज़रूर होंगे लेकिन पहले हिसाब बराबर किया जाएगा.
मरियम नवाज़ ने कहा कि नवाज़ शरीफ़ के ख़िलाफ़ साज़िश करने वाले एक-एक करके बोल रहे हैं कि हमने साज़िश की थी.
मरियम ने दावा किया कि ये पनामा बेंच का फ़ैसला नहीं था, बल्कि उपर वालों का फ़ैसला था जो बेंच को मानना पड़ता है.
मरियम ने कहा कि सारे साज़िशकर्ता जो 2017-2018 की साज़िश में शामिल थे, वो ना सिर्फ़ ख़ुद बोल रहे हैं बल्कि एक दूसरे के पते भी बता रहे हैं.
मरियम नवाज़ के मुताबिक़ "नवाज़ शरीफ़ आ रहे हैं, नवाज़ शरीफ़ आएंगे, जिस दिन नवाज़ शरीफ़ आ जाएंगे उस दिन इस देश में ख़ुशहाली भी आ जाएगी."
मरियम नवाज़ ने कहा कि "चुनाव ज़रूर होंगे, लेकिन पहले हिसाब होगा. इलेक्शन होगा, पहले तराज़ू के दोनों पलड़े बराबर किए जाेंगे."
मरियम नवाज़ ने कहा कि ‘पहले तराज़ू के दोनों पलड़े बराबर करो, सुबह चुनाव करा लो, उससे हमें कोई दिक्कत नहीं है.’
मरियम नवाज़ ने कहा कि "चुनाव से पहले कुछ फ़ैसले होने बाक़ी हैं."
उनके मुताबिक़, "एक तरफ़ बेग़ुनाह नवाज़ शरीफ़ एक तरफ़ दो सौ पेशी कर चुके हैं जबकि दूसरी तरफ़ इमरान ख़ान की दो पेशियां ही हुई हैं."
मरियम ने लोगों से पूछा, "क्या ये क़बूल है? एक तरफ़ मुस्लिम लीग को दो-दो साल की जेल और दूसरी तरफ़ दोदो घंटे में ज़मानत. क्या ये क़बूल है?"
इमरान ख़ान पर निशाना साधते हुए मरियम ने कहा कि एक तरफ ख्याली सैलरी और दूसरी तरफ़ अपनी बेटी छुपाना, देश से झूठ बोलना, घड़ियां चोरी करना और छुप कर दुबाई जाकर बेच देना.
मरियम नवाज़ ने इमरान ख़ान पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने देश के खजाने को 55 अरब रुपये का नुक़सान पहुंचाया है. (bbc.com/hindi)