राजपथ - जनपथ
तीनों बार चुनाव में हारे हैं....
भाजपा में कई ऐसे नेता हैं जिन्हें सत्ता, और संगठन में लगातार महत्व मिला है। चुनावी राजनीति में सफल न होने के बाद भी ऐसे नेताओं को पद देने की शिकायत भी हुई है। सुनते हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश भी इससे हैरान हैं। शिवप्रकाश बीते सोमवार को जशपुर पहुंचे, और उन्होंने संभाग की बैठक लेकर स्थानीय नेताओं का परिचय लिया।
प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंहदेव ने अपना परिचय कुछ अलग अंदाज में दिया कि वो अंबिकापुर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े हैं। शिवप्रकाश ने पूछा कि क्या वो विधायक हैं? अनुराग ने कहा-नहीं। विधानसभा का चुनाव हार गए थे। फिर शिवप्रकाश ने पूछा कि कितनी बार चुनाव लड़े हैं? अनुराग ने कहा कि वो तीन बार चुनाव लड़े थे। इस पर शिवप्रकाश ने लगभग झल्लाते हुए कहा कि आप पूरा परिचय दें कि तीन बार चुनाव लड़े थे, और तीनों बार चुनाव में हारे हैं।
चुनाव में हार के बाद अनुराग भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके बाद प्रदेश मंत्री बने, और अभी प्रदेश प्रवक्ता हैं। कुछ इसी तरह कृष्णा राय सत्ता, और संगठन में हमेशा महत्वपूर्ण बने रहे हैं। रमन सरकार के तीनों कार्यकाल में निगम-मंडल के चेयरमैन रहे। प्रदेश के महामंत्री रहे, और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हैं। शिवप्रकाश को आश्चर्य हुआ कि चुनाव लड़े बिना कई नेताओं को लगातार सत्ता, और संगठन में महत्व मिलते रहा है।
प्रिंटर को इस साल निराशा
पिछले दो दशक से विशेषकर भाजपा नेताओं का दीवाली-नववर्ष का बधाई संदेश छापने वाले एक प्रिंटर को इस साल निराशा हाथ लगी है। वजह यह है कि ज्यादातर नेताओं ने दीवाली की बधाई का संदेश कार्ड छपवाने से मना कर दिया है। नेताओं ने उन्हें यह कहकर लौटा दिया है कि इस बार कार्ड भेजने के बजाए वाट्सएप मैसेज से बधाई देंगे। प्रिंटर को सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल का ऑर्डर मिला है। भाजपा के भीतर बृजमोहन को उदार नेता माना जाता है। वो तीज-त्योहार के मौके पर अपने शुभचिंतकों, और कार्यकर्ताओं का पूरा ख्याल रखते हैं। उन्हें कम से कम शुभकामना संदेश जरूर भेजते हैं।
आदिवासियों की कष्टदायक पदयात्रा
हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला उत्खनन से बचाने के लिए 11 दिन की 330 किलोमीटर लंबी यात्रा कर सरगुजा और कोरबा जिले के आदिवासी राजधानी पहुंचे थे। जितने धक्के धूल खाए, पसीने बहाए, राजधानी पहुंचने पर वैसा उनका स्वागत नहीं हुआ। जिनके पास अपनी बात रखने में आए थे उनसे मिलने में भी काफी मुश्किलें आई और नतीजा भी नहीं निकला। जैसे ही यात्रा खत्म हुई, कोल ब्लॉक के नए आवंटन की अधिसूचना जारी कर दी गई। दूसरी ओर अंतागढ़ से यात्रा निकली थी कि उन्हें नगर पंचायत नहीं चाहिए, ग्राम पंचायत की व्यवस्था में ही रहने दिया जाए। उनकी भी बात सुनी तो गई, पर आश्वासन ठोस नहीं मिला। अब 4 दिन पहले एक और यात्रा कांकेर जिले से निकली है, जो 13 ग्राम पंचायतों को नारायणपुर जिले में शामिल कराना चाहते हैं। इन्होंने जिला स्तर पर प्रदर्शन किए, ज्ञापन दिए। बात नहीं बनी तो पैदल राजभवन के लिए निकल चुके हैं। इसमें करीब डेढ़ हजार महिलाएं और पुरुष शामिल हैं। संख्या के लिहाज से ज्यादा बड़ी यात्रा। जब धमतरी से ये गुजर रहे थे, तब वहां के कलेक्टर की संवेदनशीलता दिखी। उन्होंने आग्रह किया कि राजधानी दूर है, पैदल चलने की जरूरत नहीं है। उनकी बात में सरकार तक पहुंचाएंगे। पर यात्रियों ने इससे मना कर दिया। उन्हें फिर ठगे जाने का डर लग रहा होगा। यह अच्छा रहा कि प्रशासन ने उनके ठहरने और भोजन की व्यवस्था की। इसके पहले की यात्राओं में तो पूरे रास्ते उनकी कोई सुध नहीं ली गई यहां तक की राजधानी पहुंचने के बाद भी।
एक महीने से भी कम समय में यह आदिवासियों की तीसरी लंबी कष्टदायक पदयात्रा है। देखें इन्हें अपनी मांगों को मनवाने का मौका मिलता है या नहीं। संयोग है कि इसी दौरान अंतरराष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की राजधानी में देखने को मिलेगा, लेकिन पैरों में छाले होने के कारण शायद यह उनका साथ नहीं दे पाएंगे।
स्कूल का राशन ढोकर लाते शिक्षक
कुपोषण से मुक्ति के लिए सरकार बलरामपुर जैसे सर्वाधिक प्रभावित जिले में कुछ कर रही होगी तो इसकी खबर तो कम मिलती है। मगर एक दृश्य जरूर ध्यान खींच सकती है। यह प्रशासनिक तंत्र की विफलता का भी नमूना है। इस तस्वीर में बलरामपुर जिले के 2 शिक्षक कंधे पर राशन ढोकर 8 किलोमीटर दूर स्कूल जा रहे हैं। यह शिक्षक खडिय़ा डामर ग्राम पंचायत में पढ़ाते हैं। जब-जब राशन की जरूरत पड़ती है, वे इसी तरह से बोरियों को कंधे पर लादकर ले जाते हैं क्योंकि सडक़ इतनी खराब है कि वहां कोई भी गाड़ी नहीं चल सकती। इन शिक्षकों के इस प्रयास को सैल्यूट तो करना ही चाहिए। जितना जरूरी बच्चों का दाखिला है उतना ही जरूरी पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें स्कूल में भोजन देना भी जरूरी है।
मंत्री ऐसे कैसे ले लें कलेक्टरों की बैठक?
मुख्यमंत्री इन दिनों लगातार अनेक विभागों की समीक्षा बैठक ले रहे हैं। कलेक्टर से लेकर मंत्रालय तक के अधिकारियों के साथ समीक्षा हो रही है। कोई बंदिश नहीं, वे सभी विभागों की समीक्षा कर सकते हैं। हाल के दिनों में उन्होंने पंचायत, स्वास्थ्य, शिक्षा, गृह आदि विभागों की समीक्षा की है।
राजस्व मंत्री को भी लगा होगा कि अपने विभाग की बड़ी शिकायतें हैं। पेंडिंग मामले बढ़ रहे हैं। जमीन की अफरा-तफरी की बड़ी शिकायतें आ रही हैं, सो इसका हल अफसरों ने बताया होगा कि वे भी कलेक्टर्स कांफ्रेंस बुला लें। एक साथ सभी कलेक्टर्स को वीडियो कांफ्रेंस से जोड़ें और चुस्त करने के लिये कुछ डांट फटकार दें। तारीख तय हो गई, सभी कलेक्टरों को सूचना भेज दी गई। पर इधर आईएएस अधिकारियों में हलचल मच गई। उन्होंने कहा कि कलेक्टर तो सीधे मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। मामला तूल पकड़ता इसके पहले ही मामला संभाल लिया गया और एक पत्र फिर जारी कर बताया गया कि मंत्री जी के साथ कलेक्टर्स की होने वाली 28 और 30 अक्टूबर की बैठक निरस्त की जाती है।
सौ करोड़ की उपलब्धि में ये कैसी गड़बड़ी
देशभर में मोदी सरकार या कहिये मोदी के मजबूत नेतृत्व की सराहना की जा रही है कि कोविड के 100 करोड़ वैक्सीन लोगों को लगाये जा चुके हैं। दुनिया के किसी और देश में ऐसा नहीं हो पाया ऐसा भी दावा किया जा रहा है। पर चीन ने शायद इससे ज्यादा टीके लगाये हैं। यह भी आंकड़ा सामने आया है कि अपने देश में सिर्फ 22 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लग पाये हैं। पर कुछ मेसैज इस तरह से भी मोबाइल फोन पर आ रहे हैं जो कुछ सवाल पैदा करते हैं। गोपाल दास चावला के पास 26 जून को कोविन एप से बधाई संदेश आया जिसमें बताया गया कि आपने सेकंड डोज सफलता पूर्वक 26 जून 2021 को लगवा लिया और दिये गये लिंक से अपना वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट डाउनलोड कर सकते हैं। गोपाल दास निश्चिंत हो गये। पर इसके बाद एक संदेश कुछ महीने के बाद फिर आ गया। इसमें कहा गया कि बधाई हो, आपने दूसरा डोज सफलतापूर्वक 19 अक्टूबर को लगवा लिया है। आप लिंक से अपना सर्टिफिकेट डाउनलोड कर लें। चावला जी हैरान हैं कि उन्होंने तो जून में दोनो डोज लगवा लिये थे पर ये तीसरे डोज की सूचना कैसे मिल रही है। एक अन्य मोबाइल धारक ने बताया कि उन्होंने इन नंबर का कोविड टीका लगवाने क लिये रजिस्टर्ड कराया ही नहीं है लेकिन उनको मैसेज आ गया, बधाई हो सोनू जी आपने दूसरा डोज सफलता से लगवा लिया है। मोबाइल धारक का नाम सोनू भी नहीं है, वह किसी और नाम से रजिस्टर्ड है। ये 100 करोड़ का आंकड़ा कहीं इसी तरह से तो नहीं हासिल किया गया?
शानाओ मा गुजरातीनो अभ्यास करियो
एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना के तहत स्कूलों में श्रेष्ठ भारत क्लब बनाया जायेगा। इसके तहत छत्तीसगढ़ के बच्चों को साझा राज्य गुजरात की वर्णमाला, गीत, कहावत ही नहीं उनकी कला और संस्कृति से संबंधित निबंध भी सीखना होगा। गुजरात की संस्कृति, इतिहास, परंपरा जाननी होगी, नाटकों का मंचन भी करना होगा। आदेश तो आ गया है, संस्कृतियों को साझा करने से किसी को ऐतराज नहीं हो सकता है पर छत्तीसगढ़ को लेकर अलग ही बात है। छत्तीसगढ़ी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने, प्राथमिक शिक्षा में पूरी तरह इसे शामिल करने और आठवीं अनुसूची में जगह दिलाने के लिये दो दशक से भी ज्यादा काम करने वाले अनेक आंदोलनकारियों को यह फरमान हास्यास्पद लग रहा है। जिस राज्य में अपने ही बच्चों, युवाओं, अफसरों को अपनी ही छत्तीसगढ़ी भाषा की आदत नहीं डाली जा सकी, क्या वे गुजराती के लिये आये दिशा-निर्दशों को लागू कर पायेंगे? स्कूलों में भी पहले तो शिक्षकों को ही गुजराती भाषा, कला, कला-संस्कृति सीखनी होगी जिनके लिये अब भी छत्तीसगढ़ी में अध्ययन कराना आसान नहीं हो पाया है। वैसे यह पता नहीं चला है कि क्या गुजरात में भी इस आदान-प्रदान योजना के तहत प्राथमिक स्कूलों में छत्तीसगढ़ी पर यही काम होने वाला है?
कहीं पे तीर कहीं पे निशाना
राजनांदगांव के पूर्व कलेक्टर गणेशशंकर मिश्रा भाजपा में शामिल होने के बाद से सिलसिलेवार नांदगांव के दौरे पर बने हुए हैं। भाजपा में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत बनाने के सियासी इरादे के पीछे जीएस का पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से नजदीकियां बढ़ाना है। वह यह मानकर चल रहे हैं कि दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में रमन की टिकट वितरण में सीधी दखल होगी। वैसे भाजपा में जीएस जिस तामझाम से शामिल हुए थे, उसकी तुलना में पार्टी के भीतर उनकी खास पकड़ नहीं बन पाई है। राजनांदगांव में कल शिवनाथ नदी की गंगा आरती आयोजन के पीछे जीएस ने ही जिम्मा सम्हाला था। नदी की आरती के कार्यक्रम में रमन शामिल हुए। धरसींवा से विधानसभा टिकट की उम्मीद लगाए जीएस मिश्रा आईएएस होने के मापदंड पर अपनी उम्मीदवारी को लेकर आशावान है। यहां यह भी बता दें कि डायरेक्ट आईएएस रहते ओपी चौधरी ने भाजपा की सदस्यता ली, पर खरसिया से पिछले चुनाव में मिली हार के बाद से उनकी सियासी स्थिति काफी कमजोर हुई। जीएस मिश्रा प्रमोटी आईएएस रहते रिटायर हुए हैं। राजनांदगांव के कार्यक्रम के सूत्रधार जीएस मिश्रा कहीं पे तीर कहीं पर निशाना लगाते हुए अपनी टिकट के लिए सियासी उठापटक कर रहे हैं।
मल्टीनेशनल कंपनी के बीज का हश्र
नये कृषि कानून लागू होने के बाद खेती में रुचि लेने वाली मल्टीनेशनल कंपनियों से किसानों को किस तरह से झटका लग सकता है इसका नमूना दुर्ग, पाटन और धमधा में देखने को मिल सकता है। यहां 269 किसानों ने हैदराबाद की एक मल्टीनेशनल कंपनी की सलाह और निगरानी में नर-नारी बीज बोये। मालामाल हो जाने का भरोसा दिया गया था। पर, धान का उत्पादन केवल 10 फीसदी हो पाया। किसानों को करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये का नुकसान हो गया। यह सब कृषि विभाग की सलाह और आश्वासन पर हुआ इसलिये जब फसल बर्बाद हो गई तो किसानों ने अधिकारियों पर दबाव बनाया। ये जागरूक किसान थे, ज्यादातर ने वैकल्पिक प्रचलित बोनी भी की थी, इसलिये लड़ रहे हैं। अब जाकर उनको आश्वासन मिला है कि मुआवजा मिलेगा और उनके खाते में आयेगा। सब सही हो जाये तो ठीक- पर अगर मुआवजा देने से कंपनी ने इंकार कर दिया तो? क्या फैसला अदालत से होगा, या फिर नये कानून के अनुसार एसडीएम सर्वेसर्वा होंगे?
सिंहदेव पर सरगुजा के तेवर
यह पहला मौका नहीं, जब कांग्रेस संगठन और सरकार को सरगुजा जिले में कार्यकर्ताओं की नाराजगी का शिकार होना पड़ा है। खासकर सिंहदेव समर्थकों की।
पिछले महीने जब पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दौरा लगभग तय था, मंत्रियों को कार्यकर्ताओं का ख्याल आया था। तब उन्होंने साफ कहा था कि अधिकारी उनको प्रताडि़त कर रहे हैं, मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। इससे पूर्व भाजपा की सरकार में वे इतने परेशान नहीं हुए थे। तब किसी तरह मंत्री शिव डहरिया और प्रेम साय ने स्थिति संभाल कर उनको मनाया था। पर तालमेल अब तक नहीं बैठ पाया।
राजीव भवन में प्रभारी सचिव सप्तगिरी उल्का के सामने कल उनका आक्रोश फिर फूट गया। इस बार कार्यकर्ताओं ने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री वाले प्रश्न भी किए। कहा, वरिष्ठता के लिहाज से सिंहदेव के दूसरे नंबर की मंत्रिमंडल में होने सदस्य के बाद भी उनकी उपेक्षा हो रही है।
ज्यादा रोष यूथ कांग्रेस और छात्र संगठन में दिखा। वे कह रहे थे स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं से उनके पोस्टर से सिंहदेव की तस्वीर गायब हैं। कुछ जोशीले लोगों तो ये भी चेतावनी दे दी है कि अगले चुनाव में अच्छे नतीजों की उम्मीद न रखें।
यानि सरगुजा से लेकर दिल्ली तक जो बवाल हो रहा है उसने बीजेपी की आंखों में चमक तो ला ही दी है।
मनेंद्रगढ़ के साथ नाम का विवाद
वैसे तो 15 अगस्त को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिन 4 जिलों की घोषणा की थी, मुख्यालय और कार्यालय के मामले में स्थानीय उपेक्षा को लेकर लगभग चारों जगहों से विरोध प्रदर्शन किया गया था। पर लगता है मनेंद्रगढ़ चिरमिरी जिले का विवाद सुलझाने में सरकार और प्रशासन को कुछ ज्यादा ही कठिनाई हो रही है।
मानपुर मोहला, सक्ती और सारंगढ़ जिले मुख्यमंत्री द्वारा 15 अगस्त को की गई घोषणा के लगभग साढ़े पांच माह बाद अस्तित्व में आ जाएंगे, किंतु मनेंद्रगढ़, चिरमिरी का मामला लटक गया है। अफसरों का कहना है कि इस जिले का नाम क्या हो, कौन-कौन सी तहसील शामिल की जाए और मुख्यालय किसे बनाया जाए। इस पर विवाद सुलझाने में फिलहाल दिक्कत हो रही है। सवाल कोरिया जिले से कुछ तहसीलों को काटने का भी खड़ा हुआ है। देखना है इस इलाके के लोगों को समझौते की राह कब मिलेगी।
जिले का सबसे बड़ा नेता कलेक्टर...
कलेक्टर कॉन्फ्रेंस में सरकारी योजनाओं पर चर्चा के बीच सीएम भूपेश बघेल कह गए कि कलेक्टर जिले का सबसे बड़ा नेता होता है। सीएम की टिप्पणी पर कलेक्टर मुस्कुराए बिना नहीं रह सके। सीएम ने आगे कहा कि कलेक्टर को हर चीज की जानकारी होनी चाहिए। कवर्धा जैसी घटनाओं का जिक्र कर सीएम ने कलेक्टरों को एसपी के साथ तालमेल बिठाकर नसीहत दी, और कहा कि आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए। बताते हैं कि कुछ जिलों में कलेक्टर और एसपी के बीच खींचतान चल रही है, और इसका असर जिले की कानून व्यवस्था पर पड़ता दिख रहा है। सीएम ने कॉन्फ्रेंस में इस पर अपनी चिंता जताई है।
योजनाओं के क्रियान्वयन में मुंगेली फिसड्डी
कॉन्फ्रेंस में जिलों में चल रही योजनाओं के क्रियान्वयन की भी समीक्षा की गई। समीक्षा में यह पाया गया कि मुंगेली जिला तकरीबन सभी योजनाओं के क्रियान्वयन में फिसड्डी साबित हुआ है। इसी तरह बेमेतरा, और कवर्धा का परफॉर्मेंस भी अच्छा नहीं रहा। सीएम ने इस पर नाराजगी जताई है, और तेज रफ्तार से काम करने के निर्देश दिए। मुंगेली जिले में तो कई योजनाओं की धीमी रफ्तार की शिकायत को लेकर स्थानीय लोग पिछले दिनों प्रभारी मंत्री रूद्र कुमार गुरू से मिलने राजीव भवन पहुंचे थे। यहां के कलेक्टर अजीत बसंत का पहला जिला रहा, और इससे पहले वो जीपीएम में एडिशनल कलेक्टर थे। बसंत ने जीपीएम में बेहतर काम किया था, और अमित जोगी और रिचा जोगी के जाति प्रमाण पत्र की जांच की थी। ऐसे मेें कामकाज अपेक्षाकृत बेहतर न होने के बाद भी पुराने रिकॉर्ड के आधार पर उन्हें बदले जाने की संभावना कम है।
आंदोलन गृहणियों पर भारी पड़ा
प्रदेश कांग्रेस के फरमान का पालन करते हुए कांग्रेस ने हर जिले में टमाटर और दूसरी सब्जियां खरीदी। महंगाई के चलते को बिक्री घट रही थी सब्जी मंडी वाले मना रहे थे कि ऐसा आंदोलन रोज हो। पर गलियों में वेंडर गुमटी वालों ने इस दिन सब्जी के रेट बढ़ा दिए। 60 की टमाटर 80 में बिकी। बाकी तरकारियों का भी हाल यही रहा। पूछने पर बताया आज माल का शॉर्टेज है। सब कांग्रेस के आंदोलन में खप जा रहा है। गड़बड़ हुई जिन लोगो के बारे में सोचकर आंदोलन किया गया उन्हें ही यह भारी पड़ा।
नए एसपी के समक्ष चुनौतियां
खबर है कि नक्सलियों का मूवमेंट दीवाली के बाद बढ़ सकता है। इस बार सुकमा-बीजापुर, और दंतेवाड़ा के बजाए नए इलाकों में नक्सली वारदात को अंजाम दे सकते हैं। आशंका है कि नारायणपुर जिले में सक्रियता बढ़ा सकते हैं। बताते हैं कि अबूझमाड़ इलाके का बड़ा हिस्सा नारायणपुर जिले में आता है। इस इलाके से बड़े पैमाने पर नक्सलियों ने युवाओं की भर्ती की है।
नारायणपुर जिले के एसपी को कुछ दिन पहले ही बदला गया है। विवादित आईपीएस उदय किरण की जगह गिरजाशंकर जायसवाल को एसपी बनाया गया है। गिरजाशंकर नक्सल क्षेत्र में काम करने का कोई खास अनुभव नहीं है। वो जशपुर, और सूरजपुर एसपी रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि नक्सल सक्रियता के चलते आने वाले दिनों में उनके रणनीतिक कौशल की परीक्षा हो सकती है।
मंत्रीजी से मिलिए...
मंत्रीजी से मिलिए कार्यक्रम, क्या शुरू हुआ राजीव भवन में कार्यक्रम का प्रभार पाने के लिए पदाधिकारियों में होड़ मच गई। मरकाम की सहमति से सबसे पहले महामंत्री अमरजीत चावला को कार्यक्रम का समन्वयक बनाया गया। और डॉ. कमल नयन पटेल को सहसमन्वयक का दायित्व सौंपा गया।
फिर अगले दिन संशोधित आदेश निकला। इसमें कारोबारी नेता राजेश चौबे एक और सहसमन्वयक बनाया गया। चर्चा है कि राजेश को सहसमन्वयक बनवाने में सभापति प्रमोद दुबे की अहम भूमिका रही है। इसके बाद पीसीसी ने एक और आदेश निकालकर कार्यक्रम के मीडिया समन्वयक की जिम्मेदारी प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर को दी। स्वाभाविक है कि मंत्रीजी के कार्यक्रम को मीडिया तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी किसी प्रवक्ता को देनी थी।
प्रदेश में पार्टी की सरकार है। कुछ पदाधिकारियों को तो निगम मंडल में जगह पा गए। कईयों के पास पद है लेकिन संगठन का कोई काम नहीं है। ऐसे में मंत्रीजी से मिलवाने के बहाने कार्यकर्ताओं और आम लोगों से मुलाकात हो जा रही है, और इससे मंत्रीजी से संबंध भी बेहतर हो रहे हैं। जो कि ज्यादा जरूरी है।
कौन किस पर भारी पड़ेगा...
प्रदेश के एक छोटे जिले के एसपी के खिलाफ वहां के थानेदार लामबंद हो गए हैं। चर्चा है कि थानेदारों ने कुछ बिन्दुओं पर एसपी के खिलाफ अपनी बात एक ताकतवर मंत्री तक पहुंचाई है। बताते हैं कि एसपी को भी थानेदारों की मुहिम की जानकारी हो गई है। उन्होंने भी अपनी तरफ से कानून व्यवस्था को बेहतर करने के लिए थानेदारों को बदलने का सुझाव ‘ऊपर’ भेजा है। देखना है कि कौन, किस पर भारी पड़ता है।
जागरूक नागरिक चाहिए
हिंदुस्तान के बहुत से शहरों में ऐसा नजारा देखने मिलता है जहां फुटपाथ पर चलने वाले लोग एकदम से धरती में समा सकते हैं। ऐसी नौबत के लिए म्युनिसिपल या राज्य सरकार पर किसी मौत के पहले भी मुकदमा दायर किया जा सकता है। इसके लिए जागरूक नागरिकों की जरूरत होती है, कानून तो बहुत से हैं।
हिंदुस्तानियों का असर...
वैसे तो गूगल अमरीकी कंपनी है जिसके देश में औरतों से भेदभाव कम है, लेकिन उसके बनाये हिज्जे सुधारने वाले एप्लिकेशन में भी बच्चियों की जगह बच्चा सुझाया जा रहा है। गूगल के मुखिया सुंदर पिचाई के अलावा भी लगता है कि बहुत हिन्दुतानी वहां हो गए हैं, और स्पेल चेक उनसे प्रभावित हो गया है।
मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त
कवर्धा में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे के आरोप में जेल में बंद आरोपियों में से 18 को जमानत मिल गई। सीजेएम कोर्ट ने उन्हें जमानत पर रिहाई के आदेश दिए हैं। पहले शासन-प्रशासन का रुख आरोपियों के खिलाफ काफी सख्त था, और किसी भी दशा में जमानत न हो पाए इसके लिए कानूनी सलाह ली जा रही थी। मगर कोर्ट में शासन-पुलिस का रुख ठंडा रहा। फिर क्या था आरोपियों को संदेह का लाभ मिल गया, और जमानत मिल गर्ई।
शासन-प्रशासन के नरम रुख पर काफी चर्चा हो रही है। बताते हैं कि कवर्धा की घटना राजनीतिक रंग ले चुकी थी, और धीरे-धीरे आरोपियों की रिहाई के लिए आंदोलन की शक्ल में भाजपा इसका विस्तार करने की तैयारी में जुटी थी। इससे फिर तनाव बढऩे का खतरा पैदा हो गया था। अब मामला न बढ़े, इसलिए आरोपियों की रिहाई में कहीं कोई रोड़ा नहीं आने दिया गया।
मुख्य आरोपी की सुरक्षा...
कवर्धा घटना के बाद सुर्खियों में आए मुख्य आरोपी दुर्गेश देवांगन की गिरफ्तारी पर काफी चर्चा हो रही है। दुर्गेश को संघ परिवार ने हाथों हाथ लिया है। चर्चा है कि दुर्गेश की सुरक्षा की जिम्मेदारी तेलीबांधा इलाके के पूर्व पार्षद ने संभाली थी। आरोपी की गिरफ्तारी के लिए कवर्धा पुलिस दो दिन तक यहां डटी रही, और फिर माना के समीप एक मैरिज गार्डन के पास से उसे गिरफ्तार किया गया। जिस मैरिज गार्डन के पास आरोपी की गिरफ्तारी बताई गई है, वह मैरिज गार्डन भी पूर्व पार्षद का है। दुर्गेश को कवर्धा ले जाया गया, तो उसके साथ किसी तरह कड़ाई न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सांसद संतोष पाण्डेय थाने पहुंच गए थे।
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी...
धार्मिक उन्माद, और फिर झगड़े के बाद कवर्धा में धीरे-धीरे शांति लौट रही है। सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो गया है। पुलिस ने दो प्रमुख आरोपियों को रायपुर से गिरफ्तार कर लिया है। इन सबके बावजूद कुछ सूत्रों का दावा है कि कवर्धा फिर गरम हो सकता है।
बताते हैं कि भाजपा संगठन के एक प्रमुख नेता ने शहर से सटे गांव पालगुड़ी में गुपचुप बैठक की है। इस बैठक में जिला संगठन के कुछ प्रमुख नेता शामिल हुए। चर्चा है कि 24 तारीख के आसपास बड़ा विरोध प्रदर्शन हो सकता है। भाजपा नेता, गिरफ्तार लोगों की निशर्त रिहाई चाहते हैं। रिहाई होने तक कवर्धा में गरमा-गरमी रह सकती है।
दूसरी तरफ, एक प्रमुख आरोपी ने पुलिस को अपने शुभचिंतकों के बारे में काफी कुछ जानकारी दी है। ये सब देर सवेर कोर्ट, और फिर आम लोगों के सामने होगा। आशंका है कि शासन-प्रशासन ने थोड़ी भी ढिलाई बरती, तो स्थिति बिगडऩे में देर नहीं लगेगी।
माई की डोली को ईदी...
दंतेश्वरी माता के क्षत्र की आंसुओं के साथ विदाई दी गई। इसी के साथ बस्तर दशहरा का समापन हुआ। राजा कमलचंद भंजदेव ने माई की डोली को कांधा दिया। महिला सिपाहियों ने हर्ष फायर कर सलामी दी। यह बात ईद के दिन की है। मुस्लिम समाज के लोग भी डोली की विदाई के लिये निकले। फूल बरसाते रहे।
जगदलपुर की सडक़ पर मंगलवार को यह जो नजारा देखने को मिला, वही छत्तीसगढ़ की खासियत है। वहां से संदेश निकला कि हाल ही में हुई अप्रिय घटनाओं से राज्य की पहचान नहीं बनने वाली, न इसके भरोसे राजनीति की जा सकती। प्रेम और भाईचारे की डोर अपने प्रदेश में बहुत मजबूत है।
सिंहदेव फिर दिल्ली में
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव तो वैसे शनिवार को ही दिल्ली निकल चुके थे, पर नवजातों की मौत की वजह से उन्हें आनन-फानन सरगुजा लौटना पड़ा। अब फिर दिल्ली में हैं। बताया जा रहा है कि वे राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल, जो छत्तीसगढ़ के मामलों को देखते हैं, उनसे मुलाकात करने के लिये रुके हैं। सीएम के समर्थक भी टोह ले रहे हैं कि वहां हो क्या रहा है। लोगों में भी बड़ी उत्सुकता है कि हाईकमान क्या फैसला करने वाला है। कुछ स्पष्ट हो तो यहां संशय और अस्थिरता की स्थिति समाप्त हो।
बस पर गांवों का सफर कर रहे कलेक्टर
सूरजपुर जिले में इन दिनों ‘प्रशासन तुहंर दुआर’ अभियान चल रहा है। इसके लिये एक ‘जन संवाद वाहन’ तैयार किया गया है। हर शनिवार अधिकारी इस बस में सवार होकर ग्रामीणों से मिलने के लिये निकलते हैं और मौके पर ही उनकी समस्या सुलझाने की कोशिश करते हैं। खास बात है कि कलेक्टर गौरव कुमार सिंह अपनी एयरकूल्ड सरकारी गाड़ी में नहीं जाते, बस में वे भी साथ ही सवार रहते हैं।
आम तौर पर कलेक्टर्स ऐसे शिविरों में अपनी कार से तब पहुंचते हैं जब उसका समापन होता रहता है। भाषण दिया और लौट गये। पर ये कलेक्टर पूरे समय शिविर में मौजूद रहते हैं। जिस जगह जा रहे हैं वहां पंचायत भवन या सार्वजनिक जगह पर अधिकारियों का फोन नंबर भी लिखा जा रहा है, ताकि सीधे वे शिकायत कर सकें। 2013 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. सिंह ने आईएएस परीक्षा हिंदी में दी थी। वे हिंदी साहित्य पीजी में टॉपर भी रहे। उनके जुझारूपन और आम लोगों के साथ सहज बर्ताव ने इसके पहले वाले आईएएस से मिले दर्द को भुला दिया है, जिन्होंने एक बालक को सरे राह थप्पड़ मार उसका मोबाइल फोन तोड़ दिया था।
खाई और चौड़ी हो गई...
खबर है कि सरगुजा के दो भाजपाई दिग्गज रेणुका सिंह, और रामविचार नेताम के बीच जंग छिड़ गई है। बताते हैं कि सीतापुर ब्लॉक में एल्युमिनियम प्लांट लग रहा है। प्लांट के मालिक सुनील अग्रवाल, रामविचार के करीबी माने जाते हैं। प्लांट की स्थापना का अमरजीत भगत भी समर्थन कर रहे हैं। मगर स्थानीय लोग विरोध में उतरे, तो उन्हें रेणुका सिंह का साथ मिल गया।
और जब केन्द्रीय मंत्री विरोध पर आ जाए, तो स्वाभाविक है कि शासन-प्रशासन पर दबाव बन जाता है। चर्चा है कि रेणुका सिंह ने प्लांट विरोधियों से न सिर्फ मुलाकात की है बल्कि उन्हें अपना समर्थन दे दिया है। रेणुका के तेवर से रामविचार समर्थक हड़बड़ाए हुए हैं। वैसे तो रामविचार, और रेणुका के बीच पहले से ही खटपट चल रही है। लेकिन अब प्लांट स्थापना के विवाद में रेणुका के सीधे कूद जाने से खाई और चौड़ी हो गई है।
ऐसी सामाजिक समरसता !
राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ क्षेत्र में अभी जंगल में टैंट लगाकर जुआ खेलते हुए एक दर्जन लोग पकड़ाए। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार इन नामों में आधा दर्जन मुस्लिम थे, और आधा दर्जन हिंदू। हिंदुओं के नाम भी देखें तो उसमें कम से कम एक आदिवासी, एक अनुसूचित जाति, एक ओबीसी और एक ब्राह्मण नाम दिख रहा है। मतलब यह कि जुर्म के मामले में हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई तो हैं ही, हिंदुओं के भीतर भी सभी जातियों के लोग लोगों का प्रतिनिधित्व है। मुस्तफा, पांडे, खान, मंडावी, खान, निषाद, शेख, सेन, खान, शैलेन्द्र, हमीर, और यादव को जुआ खेलते गिरफ्तार किया है। ऐसी सामाजिक समरसता किसी नेक काम में कभी नहीं दिखेगी !
प्रमोशन की सूची गड़बड़ाई..
प्रमुख अभियंता के एक आदेश से लोक निर्माण विभाग में इन दिनों बवाल मचा हुआ है। उन्होंने दैनिक वेतनभोगी के रूप में सेवा में आने वालों को भी पहले ही दिन से वरिष्ठता देने का फरमान जारी किया है। इसके चलते करीब 25-27 साल से विभाग में नियमित काम कर चुके सब इंजीनियर्स की सीनियर्टी खतरे में पड़ गई है। अभी प्रदेशभर के पीडब्ल्यूडी सब-इंजीनियर्स को प्रमोशन मिलना है- ईएनसी के आदेश से सब गड्ड-मड्ड हो चुका है। कहा जा रहा है अब फैसला मंत्री ताम्रध्वज साहू करेंगे।
करम बर्दाश्त क्यों किये जा रहे?
जमकर पढ़ाई करो, आईएएस या आईपीएस बन जाओ। न देश दुनिया की समझ, न अपने आसपास के लोगों के साथ संवेदना के साथ बर्ताव। महासमुंद के विधायक रहे विमल चोपड़ा को चोटें इतनी मारक लगी कि वे सुप्रीम कोर्ट से उनके खिलाफ एफआईआर का आदेश ले आये। ऐसे अफसर भी देवदूत की तरह एक जिले के पुलिस प्रधान बनकर बैठे थे। रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर में इन्होंने किस तमीज के साथ वृद्धों, पत्रकारों, समाजसेवियों से बर्ताव किया है- यह एक सर्च करिये गूगल पर मिल जायेगा। अब नारायणपुर जिला, जहां वे कल तक एसपी थे वहां, जैसा कहा गया है उन्होंने अपने ड्राइवर को ही पीट दिया, गाड़ी की ठीक धुलाई नहीं की थी। अच्छा हुआ कि राज्य सरकार ने तुरंत एक्शन लिया और उनको हटाकर पुलिस मुख्यालय भेज दिया। अब इतनी ही अपेक्षा हो सकती है कि उदय किरण आगे सबक लें, ऐसी ख़बरें न आयें, कुछ अच्छे कामों के लिये जाने जायें।
किस बात की स्पेशल
रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि 22 मार्च 2020 से 1 मई 2020 तक करीब 40 दिन ट्रेनों का परिचालन बंद रहा। 1 मई को चालू की गई तो रेल मंत्रालय ने पैसा मांगा, चारों तरफ निंदा होने के बाद उन्होंने मजदूरों को मुफ्त घर पहुंचाने की घोषणा की। राज्यों का दावा है कि किराया रेलवे ने नहीं, हमने भरा। उसकी वसूली अब तक हो रही है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे से गुजरने वाली ट्रेनों की संख्या 109 हैं। कोरोना काल के बाद अब तक 101 ट्रेनों को चालू किया जा चुका है। यानि कुछ को छोडक़र लगभग सभी। पर सब स्पेशल के नाम पर चल रही है। स्पेशल नाम से ऐसा बिल्कुल नहीं है कि यात्रियों का खास ख्याल रखा जाता है। पूजा की अवधि निकल जाती है पर रेलवे की पूजा स्पेशल चलती रहती है। स्पेशल के नाम पर किस तरह यात्री ठगे जा रहे हैं इसका अंदाजा सिर्फ रायपुर से रायगढ़ का किराया जान लीजिये, पहले यह जनरल डिब्बे में 65 रुपये था अब 195 रुपये है। छत्तीसगढ़ के 11 में 9 सांसद भाजपा के हैं, सब चुप हैं। लोग भी आवाज नहीं उठा रहे हैं। शायद सबको खुशी है कि राम मंदिर बन रहा है, देश को मोदी नहीं बचायेंगे तो और कौन बचायेगा।
बस यही तो होना था...
रेत तस्करों का हौसला कुछ इस तरह बढ़ता जा रहा है, जैसा मध्यप्रदेश में दिखाई देता है। वहां एक पुलिस अधिकारी को हाईवा में रौंदा भी जा चुका है। कई बार अधिकारियों के सिर, हाथ-पैर फोड़े, तोड़े जा चुके हैं।
बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के सनावल इलाके में रेत की तस्करी रोकने पांगन नदी के तट पर गये नायब तहसीलदार विनीत सिंह पर हमला किया गया। जेसीबी से रेत खुदाई पर पर्यावरण विभाग ने रोक लगा रखी है, नायब तहसीलदार ने जब्त कर ली। इसी बीच 20-25 लोगों ने उनकी सरकारी गाड़ी में तोड़-फोड़ की।
इस कॉलम में पिछले महीने, 28 सितंबर को इसी बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में अवैध रेत उत्खनन के कारण हुए आंदोलन का जिक्र हुआ था। चक्काजाम की खबर मिलने पर कलेक्टर ने माइनिंग इंस्पेक्टर को भेजा पर हाईवा के कागजात देखकर उन्होंने सब कुछ ओके बता दिया और कोई कार्रवाई नहीं की। उस दिन रेत उत्खनन करने वालों ने भीड़ में पहुंचपर गोली चलाने की धमकी भी दी। ग्रामीणों के दबाव में पुलिस को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। यानि पानी अब सिर से ऊपर जा चुका है। हाल ही में यहां कलेक्टर को पंडो आदिवासियों की मौत की वजह से बदल दिया गया है, नये कलेक्टर से उम्मीद थी कि कोई सख्ती बरतते, पर लगता है तस्करी करने वाले लोग काफी ऊपर तक पकड़ रखते हैं।
साथ ही जिक्र हो जाये कि जुलाई माह की 10 तारीख को इस कॉलम में कसडोल पर लिखा गया था, जहां एसडीएम मिथिलेश डोंडे पर दबाव बनाने के लिये महानदी से रेत निकालने वालों ने अपनी गाडिय़ां उनके दफ्तर के सामने लाइन से लगा दी थी।
संविधान के लिये सजगता
कुरुद में आदिवासी समाज ने रविवार को एक कार्यक्रम रखा। इसे चेतना शिविर का नाम दिया गया। उद्देश्य था अपने लोगों को संविधान में लिखी गई बातों की जानकारी देना। वक्ताओं ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया, उसके प्रमुख बिंदु और उद्देश्यों पर रोशनी डाली। हाल ही में बस्तर से एक पैदल यात्रा निकली थी जिसमें राजधानी पहुंचकर संविधान का हवाला देते हुए ही अंतागढ़ को नगर पंचायत घोषित करने का विरोध किया गया। वे इसे ग्राम पंचायत ही बने रहने देना चाहते हैं। उन्होंने अपने हाथों में संविधान की पुस्तिका रखी थी। इसी दिन सरगुजा से भी पैदल यात्रा राजधानी पहुंची, जो हसदेव अरण्य इलाके में कोल ब्लॉक के आवंटन को असंवैधानिक बता रहे थे। बौद्ध समाज द्वारा संचालित अनेक स्कूलों में अनिवार्य रूप से संविधान की शपथ दिलाई जाती है और मौलिक अधिकारों का वाचन कराया जाता है। दूसरे स्कूलों में इस पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता। बहुत से जोड़े अब सात फेरे लेने के दौरान संविधान की शपथ लेते हैं, बजाय मंत्रोच्चार के। लगता है यह क्रिया की ही प्रतिक्रिया है। संविधान के दायरे में रहकर ही संविधान के खिलाफ लिये जाने वाले सरकार के फैसलों को लेकर लोगों की चिंता बढ़ रही है।
विधायक की दरियादिली
मनेंद्रगढ़ के विधायक डॉ. विनय जायसवाल ने सरकारी पैसे पत्रकारों को बांट दिये। अपने जेब से कुछ गया नहीं और वाहवाही भी हो गई। करीब 60 पत्रकारों को उन्होंने 5-5 हजार रुपये दिये हैं, जो स्वेच्छानुदान मद से है। विधायक ने सबको दशहरा मिलन में बुलाया और चेक सौंपे। जिन पत्रकारों ने ये पैसे लिये हैं, उनका कर्तव्य बनता है कि वे अपने पाठक नहीं, बल्कि विधायक के प्रति निष्ठावान बने रहें।
एक और आईएएस चला...
आईएएस के 2012 बैच के अफसर शिव अनंत तायल भी प्रतिनियुक्ति पर जाने की तैयारी कर रहे हैं। वे चंडीगढ़ के रहवासी हैं, और अपने गृह राज्य जाना चाहते हैं। राज्य सरकार ने उन्हें प्रतिनियुक्ति पर जाने की अनुमति दे दी है। तायल बेेमेतरा कलेक्टर रहे हैं, और वर्तमान में मंडी बोर्ड के एमडी हैं।
तायल पिछली सरकार में फेसबुक पर दीनदयाल उपाध्याय पर टिप्पणी के चलते विवादों में आए थे। फिलहाल तायल केंद्र के आदेश का इंतजार कर रहे हैं। तायल प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले प्रदेश के 12वें अफसर होंगे। अभी 11 अफसर केन्द्र, और अन्य जगहों पर प्रतिनियुक्ति पर हैं। तायल से परे विशेष सचिव स्तर के अफसर एलेक्स पॉल मेनन के भी गृह राज्य तमिलनाडु में प्रतिनियुक्ति पर जाने की चर्चा थी, लेकिन उनका जाना अभी रुक गया है।
कलेक्टर-एसपी रहेंगे या...
कवर्धा में सांप्रदायिक झगड़े, और जशपुर में गांजा तस्करों द्वारा एक व्यक्ति को कुचलने की घटना के बाद जिले के शीर्ष अफसरों को हटाने की चर्चा चल रही थी। कवर्धा में कलेक्टर-एसपी, और जशपुर में भी एसपी को हटाने की मांग भाजपा ने की है। प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा है कि कलेक्टर, और एसपी कॉन्फ्रेंस के बाद इन अफसरों को बदला जा सकता है। मगर अंदर की खबर यह है कि फिलहाल दोनों जिलों के शीर्ष प्रशासनिक, और पुलिस के अफसर बने रहेंगे। सरकार के प्रवक्ता रविन्द्र चौबे कह चुके हैं कि कवर्धा की घटना भाजपा प्रायोजित रही है। दूसरे जिलों से आए लोगों ने माहौल खराब किया है। जब सरकार कह रही है कि घटना के लिए भाजपाई जिम्मेदार हैं, तो कलेक्टर-एसपी को बलि का बकरा बनाने का कोई मतलब नहीं है।
प्रेम के फायदे बहुत हैं...
रावणभाटा दशहरा उत्सव के मौके पर दाऊजी, यानी भूपेश बघेल ने मंच से काफी दूर खड़े भाजयुमो नेता संजू नारायण सिंह ठाकुर को बुलाया, और गले लगाकर दशहरा की बधाई दी। दाऊजी ने संजू से उनके नेता (बृजमोहन अग्रवाल) के बारे में पूछा, उस समय तक बृजमोहन मंच पर नहीं आए थे। खैर, ये सामान्य शिष्टाचार की बात थी, लेकिन राजनीतिक लोग इसको अलग ही नजरिए से देख रहे हैं।
दरअसल, भाजपा की गुटीय राजनीति में बृजमोहन, और उनके समर्थक हाशिए पर है। बृजमोहन को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी जगह नहीं मिली। वो अपने समर्थकों को भी पार्टी संगठन में अहम पद दिलाने में अब तक नाकाम साबित हुए हैं। ऐसे में उनके समर्थक भी अब धीरे-धीरे बेचैन हो रहे हैं। ऐसे बेचैन बृजमोहन समर्थकों पर दाऊजी से जुड़े लोगों की निगाह है।
चुनाव के ठीक पहले जोगी पार्टी की युवा विंग के अध्यक्ष विनोद तिवारी, और भाजयुमो के कई नेताओं ने दाऊजी के प्रेम व्यवहार से खुश होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कुछ इसी तरह की चर्चा संजू नारायण को लेकर भी हो रही है। संजू युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष के साथ-साथ प्रदेश महामंत्री रह चुके हैं। उनकी कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ है। वे बृजमोहन के साथ-साथ कैलाश विजय वर्गीय के भी करीबी माने जाते हैं। हालांकि संजू और उनसे जुड़े लोग भाजपा छोडऩे की संभावना से साफ तौर से इंकार करते हैं। मगर राजनीति में प्रेम, और सद्भाव से फैसले बदल भी जाते हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
रावण की पूजा और दहन..
ये तस्वीर अपने छत्तीसगढ़ की है, जहां स्थायी रूप से दशानन विराजमान हैं। गरियाबंद जिले के बलदाकछार की।यहां पहले रावण पूजे जाते हैं, फिर एक पुतला जलाने के लिय लाया जाता है। जलाने से पहले पूजा और आरती की जाती है। यह विचार सब के मन से घुमड़ सकता है कि जब रावण इतने प्रिय हैं तो उनको नष्ट क्यों करना चाहिये।
मगर सच क्या है यह तो मरकाम....
प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पीएल पुनिया की मौजूदगी में दाऊजी को यह शिकायत करनी पड़ी कि उन्हें बैठक में बुलाया नहीं जाता है। उन्होंने भरी बैठक में मोहन मरकाम, और चंद्रशेखर शुक्ला को खरी खोटी सुना दी।
सीएम की नाराजगी स्वाभाविक थी। बैठक की तिथि सीएम से पूछकर तय होती रही है। ताकि प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच समय निकालकर पार्टी मीटिंग में शामिल हो सके। अजीत जोगी सीएम थे तब तक तो यही होता था। इसके बाद 15 साल सत्ता से बाहर रहे, तब व्यस्तता जैसी कोई बात नहीं रह गई थी। अब जब दाऊजी ने मीटिंग की सूचना नहीं देेने पर नाराजगी दिखाई है, तो भी पार्टी संगठन अपनी गलती मानने के लिए तैयार नहीं है।
सुनते हैं कि मरकाम ने पुनिया को अब तक की सारी मीटिंग का ब्योरा दे दिया। यह बताया गया कि मरकाम के अध्यक्ष बनने के बाद से 13 मीटिंग हुई है। इसमें से 10 में दाऊजी शामिल हुए थे। दो मीटिंग में सीएम असम, और दिल्ली में रहने की वजह से शामिल नहीं हो पाए। ऐसे में मीटिंग की सूचना नहीं देने की बात कहना गलत है।
सवाल उठ रहा है कि दाऊजी संगठन से खफा क्यों हैं? कुछ लोगों का अंदाजा है कि मरकाम की कुछ महीना पहले राहुल गांधी से अकेले में मुलाकात हुई थी। तब मरकाम ने राहुल से काफी कुछ कहा था। कुछ बातें छनकर बाहर निकली है, जो कि दाऊजी को नाराज करने के लिए काफी है। मगर सच क्या है यह तो मरकाम, और दाऊजी ही बता सकते हैं।
उन्हें जिलों की कमान...
कलेक्टर, और एसपी कॉन्फ्रेंस के बाद फेरबदल की छोटी सी सूची निकल सकती है। चर्चा है कि कम से कम तीन जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं। इसी तरह एक-दो कलेक्टरों को भी हटाया जा सकता है। नए चार जिलों में ओएसडी की पोस्टिंग होनी है। इन चार जिलों के कार्यालय एक जनवरी से अस्तित्व में आ जाएंगे। कुछ राज्य पुलिस सेवा के अफसर, जो कि आईपीएस अवॉर्ड के लिए प्रतीक्षारत हैं, उन्हें जिलों की कमान सौंपी जा सकती है।
ये नवरात्रि झांकी नहीं
महासमुंद जिले के सिरपुर की अनोखी बात यह है कि यहां जैन धर्म, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के प्राचीन अवशेष मिलते हैं, जो पांचवी शताब्दी के और उसके बाद के हैं। कोविड-19 की वजह से विदेशी पर्यटक अब यहां बहुत कम आ रहे हैं, मगर छत्तीसगढ़ के, और देश के लोगों को भी कम पता है व्हेन सॉन्ग यहां आकर रुके थे।
जो तस्वीर आपके सामने दिखाई जा रही है वह किसी दुर्गोत्सव की झांकी नहीं है। इसे सुरंग किला के नाम से जाना जाता है। यह सिरपुर ही नहीं पूरे छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मंदिर परिसर है। शिलालेख कि मुताबिक यह मंदिर शिव गुप्त के समय बना आठवीं शताब्दी का मंदिर है।
आजादी के अमृत महोत्सव पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास भी बजट आया है। इन लोगों ने लाइट और साउंड शो की घोषणा की है। पीआईबी से छोटी प्रेस रिलीज जारी हुई थी। साउंड शो के नाम पर सिरपुर का इतिहास नहीं था। यहां पर अंग्रेजी, शेरशाह और छत्तीसगढ़ी गाने बसते हुए मिले। यदि आप दुर्गोत्सव के किसी अच्छी झांकी को नहीं देख पाए हैं तो यहां पर आ जाएं। पर सिरपुर के इतिहास को जानना चाहें तो इस विभाग की गतिविधि पर भरोसा मत करें।
लखीमपुर वर्सेस जशपुर
जसपुर में गांजा तस्करों ने अपनी एस यू वी से दुर्गा विसर्जन करने वाले लोगों को रौंदकर बता दिया कि उन्हें सीएम की बैठक में पुलिस को दिए गए निर्देश से कोई फर्क नहीं पड़ता। हाल ही में मुख्यमंत्री में एक बैठक लेकर डीजीपी और गृह सचिव को निर्देश दिया था कि गांजा और शराब जैसी नशे की तस्करी, जो दूसरे राज्यों से हो रही है उस पर लगाम लगाम लगाएं। अब थानेदार की कमाई का यही तो एक जरिया है। लगाम कैसे लगती। थाना प्रभारी समेत तीन लोग सस्पेंड हो गए हैं। अफसरों की हमदर्दी उनके साथ होगी, क्योंकि बगैर उनकी जानकारी के यह गोरख धंधा तो चल नहीं रहा होगा। कुछ दिन बाद यह सारे सस्पेंड बहाल हो जाएंगे। मुख्यमंत्री और डीजीपी के आदेश धरे रह जाएंगे हो सकता है कि इसके बाद फिर से कोई नया आदेश हमको आपको धोखे में रखने के लिए जारी किया जाए।
महिलाओं का दर्द और कौन समझेगा...
महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री अनिला भेंडिया ने अपने इलाके की समस्या सुनने के लिये एक शिविर लगाया। महिलायें चेहरे पर पीड़ा लिये उनसे शिकायत कर रही हैं कि गांव में अवैध शराब की बिक्री बहुत बढ़ गई है। लोगों को सरकार ने खुद के लिये शराब बनाने की छूट दी है, पर लोग खुलेआम बेच रहे हैं। पीने वालों के कारण गांव का माहौल खराब हो रहा है। मंत्री भेडिय़ा ने शिकायत सुनकर ठहाके लगाते हुए पुरुषों सलाह दी, थोड़ी सी पीओ और घर जाकर सो जाया करो। आगे बात संभालते हुए कहा- महिलाओं को ही घर देखना पड़ता है, इसलिये शराबियों से उनको ही तकलीफ ज्यादा होती है। पत्रकारों से उन्होंने कहा कि शराब तो अभी बंद नहीं हो रही है। उन्होंने महिलाओं को समझाया है कि पहले अपने घर को ही देखो, फिर पड़ोसियों को पीने से रोकें। हालांकि उन्होंने एसडीएम को शराब की अवैध बिक्री पर कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया है।
बीते दिनों शराब किस तरह से समय पर बार पहुंचकर पीना चाहिये, मंत्री जयसिंह अग्रवाल बता चुके हैं। आदिवासी संस्कृति में शराब की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है यह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम और आबकारी मंत्री कवासी लखमा कई बार बता चुके हैं। दूसरी ओर नंदकुमार साय, ननकीराम कंवर शराब को बंद करने की मांग करते रहे हैं, अपनी सरकार के समय भी। दिवंगत प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी आदिवासियों की तरक्की में शराब को बहुत बड़ी बाधा मानते थे और इसे बंद करने के पक्षधर रहे। अब सत्ता में कोई दिखता नहीं जो शराब के खिलाफ खुलकर कहे। जबकि सरकार पर शराबबंदी का चुनावी वायदा पूरा करने का दबाव बना हुआ है।
कवर्धा मामले का विवादित वीडियो
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बेटे पूर्व सांसद अभिषेक सिंह भी उन लोगों में शामिल हैं, जिनके खिलाफ कवर्धा का माहौल खराब करने के लिये अपराध दर्ज किया गया है। सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर पर एक वीडियो पिछले पांच-छह दिनों से चल रहा है, जिसमें जुलूस में शामिल लोग एक वर्ग विशेष के खिलाफ उकसाने वाले नारे लगा रहे हैं। इस जुलूस में अभिषेक की उपस्थिति भी बताई जा रही है। इस ट्वीट पर कई लोगों ने कहा है कि वीडियो एडिटेड है तो कई कहते हैं, नहीं यह पूरी तरह सच है। यदि वाकई किसी ने फेब्रिकेटेड वीडियो अपलोड कर दी है तो उस पर भाजपा या डॉ. रमन या फिर अभिषेक की ओर से खंडन किया जाना चाहिये। इधर राजनांदगांव पहुंचे प्रभारी मंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा है कि डॉ. रमन सिंह को पीड़ा इसलिये हो रही है कि कवर्धा एफआईआर में उनके बेटे का नाम आ गया है।
निमंत्रण देकर तो नहीं बुलाया..
यह बात जरा जम नहीं रही है कि एक तरफ आदिवासी नृत्य महोत्सव के लिये हमारे विधायक विभिन्न राज्यों में जा-जाकर लोगों को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचने का निमंत्रण दे रहे हैं, पर जो आदिवासी हसदेव के वनों को बचाने के लिये अपनी मर्जी से 300 किलोमीटर पैदल चलकर सरगुजा से पहुंचे हैं, उनका स्वागत करने के लिये अधिकारिक रूप से सरकार की ओर से कोई नहीं पहुंचा। कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार सिर्फ उनकी ही बात सुनेगी, स्वागत करेगी जो उनके निमंत्रण पर ही पहुंचेंगे।
त्यौहार पर जेल में?
पुरानी बस्ती थाने में मारपीट के आरोपी भाजयुमो कार्यकर्ताओं की जमानत हो गई है। कुल 9 लोगों के खिलाफ पुलिस ने प्रकरण दर्ज किया था जिसमें से तीन जेल में बंद थे। भाजयुमो कार्यकर्ताओं पर कथित तौर पर धर्मांतरण में लिप्त पास्टर, और अन्य लोगों के साथ मारपीट करने का आरोप था। चूंकि आरोपियों ने कथित धर्मांतरण के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी इसलिए उनके पीछे पूरी पार्टी खड़ी हो गई।
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने तो आरोपियों को छुड़ाने के लिए वकीलों की फौज लगा दी थी। इसके बाद जेल में बंद युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं की हाईकोर्ट से जमानत हो गई। बाकी फरार आरोपियों को अग्रिम जमानत मिल गई। अब बारी कवर्धा की है। कवर्धा में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे के मामले में 59 लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज हुआ है। इन सबके खिलाफ गंभीर धाराएं लगी हैं। जिन प्रमुख लोगों को आरोपी बनाया गया है, उनमें सांसद संतोष पाण्डेय, और पूर्व सांसद अभिषेक सिंह भी है।
भाजपाई दिग्गजों को तो पुलिस ने पकड़ा नहीं है, लेकिन पार्टी से जुड़े जो लोग गिरफ्तार हुए हैं वो दूसरे जिलों से आए थे। गिरफ्तार लोगों की रिहाई की चिंता परिजनों को सताने लगी है। और वो भाजपा दफ्तर या फिर पूर्व सीएम रमन सिंह के आगे-पीछे हो रहे हैं। पार्टी की तरफ से यह कोशिश हुई कि सभी को निशर्त रिहा कर दिया जाए।
पार्टी का एक प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल से भी मिलने गया था। मगर सरकार ने सख्ती दिखाई है। और आरोपियों की रिहाई न हो पाए, इसके लिए जरूरी कानूनी प्रबंध भी कर रखे हैं। त्योहार नजदीक है इसलिए आरोपियों को छुड़वाने के लिए परिजनों का दबाव भी भाजपा नेताओं पर बढ़ता जा रहा है। ये परिजन बृजमोहन जैसी सक्रियता चाहते हैं। मगर वैसा नहीं होने पर परिजनों का गुस्सा भी भडक़ रहा है।
बृजमोहन के तो सरकार, और प्रशासन के लोगों के साथ बेहतर तालमेल हैं। अगर पुरानी बस्ती थाने में मारपीट का वीडियो वायरल नहीं होता, तो सभी थाने से ही छूट गए होते। पहले तो जमानती धाराएं लगाई गई थी। लेकिन बाद में मीडिया में मामला उछलने के बाद गैर जमानती धाराएं जोड़ी गई। मगर कवर्धा मामले के कर्ताधर्ता भाजपा नेताओं की सरकार के लोगों के साथ राजनीतिक अदावत जगजाहिर है। इसका फल अब जेल में बंद कार्यकर्ता भुगत रहे हैं।
शराबबंदी का लक्ष्य बहुत करीब...
छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कार्पोरेशन लिमिटेड ने प्लेसमेंट एजेंसी को 4 अक्टूबर लिखी चि_ी में कहा कि चीफ सेल्समैन को शराब बिक्री का टारगेट दें। जो लोग इसे पूरा न करें उसकी नौकरी छीन लें। इस मामूली से परिपत्र के बहाने शराबबंदी को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल उठाया जा रहा है। चुनाव से पहले वह शराब बंद करना चाहती है, पर इतना बेचना चाहती है कि रेवन्यू के अनुमानित घाटे की भरपाई हो जाये। फिर आबकारी विभाग का उडऩ दस्ता भी है। ज्यादा शराब बिक्री यानि ज्यादा कोचिये। ज्याद कोचिये मतलब ज्यादा छापे, ज्यादा छापे मतलब अफसरों की ज्यादा कमाई। वैसे भी नीलामी बंद करने के बाद से पता नहीं शराब निर्माता कंपनियां ऊपर कहां-कहां सेटिंग कर लेती हैं, उनके हाथ में चखना दुकान और कर्टन की बिक्री को छोडक़र कुछ आता नहीं है। वैसे, कार्पोरेशन यदि सचमुच अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहती है तो उसे डिस्काउंट ऑफर भी लाना चाहिये, जैसा सरकारी होने के पहले था। नशामुक्ति अभियान के लिये जिस तरह बजट एलॉट किया जाता है उसी तरह प्रेरित करने के लिए भी प्रावधान रखना चाहिये। खाली-पीली सेल्समेन पर दबाव डालने से बिक्री नहीं बढऩे वाली। बेचारों की नौकरी पर ही तलवार लटकी रहेगी।
अरवा के दिन फिरे पर उसना?
धान खरीदी पर केन्द्र की नीति से राज्य सरकार इस बार भी नाखुश है। इसके बावजूद कि केन्द्र ने 61 लाख टन चावल खरीदने का आश्वासन दिया है। दरअसल, पिछले साल भी करीब 24 लाख टन चावल ही लिया गया, जबकि भरोसा 60 लाख का दिलाया गया था। इस बार इसमें से केन्द्र कितना उठायेगी, उठाव हो जायेगा तब मालूम होगा। दूसरी मुसीबत जिसे लेकर सरकार ज्यादा चिंतित है वह है केन्द्र केवल अरवा चावल लेगी, उसना नहीं। वैसे प्रदेश में अरवा मिलों की ही संख्या ज्यादा है। 1800 राइस मिलों में करीब 1300। पिछले कुछ वर्षों से अरवा मिलों की दशा ठीक नहीं थी क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार और केन्द्र दोनों की मांग उसना चावल की ही अधिक थी। केन्द्र दोनों चावल की मिक्स खरीदी करती रही है। अब स्थिति उलट है। उसना राइस मिलों के बंद हो जाने की आशंका है।
सरकार ने अपने चुनावी वादे के कारण कार्यकाल के पहले वर्ष में 2500 रुपये क्विंटल सीधे-सीधे भुगतान का निर्णय लिया। केन्द्र की आपत्ति के बाद राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत अतिरिक्त राशि दी गई। इसके बाद केन्द्र थोड़ा नरम है।
पर, यह निर्भरता खत्म भी तो हो। धान को खुले बाजार में नुकसान उठाकर बेचने, हाथियों को मुफ्त खिलाने के बावजूद अतिरिक्त भंडार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। दूसरी तरफ हर वर्ष की तरह इस बार भी खरीदी का लक्ष्य बढ़ाकर 1 करोड़ टन कर दिया गया है। जाहिर है, मुश्किलें आने वाले सालों में बढ़ेगी ही। सरकारी खरीद दर के कारण इसके पैदावार में कमी आने के आसार फिलहाल नहीं दिखते। धान से बायोफ्यूल के उत्पादन में रोड़ा है। राज्य का कहना है केन्द्र की सहमति नहीं। पर कुक्कुट आहार, सालवेंट, पावर, शराब उद्योग में भी चावल का इस्तेमाल हो सकता है, निर्यात भी। केन्द्र पर कम से कम आश्रित रहकर राज्य कैसे धान का समायोजन कर सकती है इस पर विचार तो होना ही चाहिये। प्रदेश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा मुद्दा है।
उखाड़ी जा रही खराब बनी सडक़..
पता नहीं यह हाईकोर्ट में लगातार सडक़ों पर चल रही सुनवाई का असर है, या लोक निर्माण मंत्री तक पहुंची शिकायत का। मुख्यमंत्री ने गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के उद्घाटन और उसके बाद करीब 324 करोड़ रुपये के सडक़ों की स्वीकृति दी थी। इनका काम हो रहा है। जो सडक़ें बन चुकी हैं, उन्हें घटिया पाया गया है। ईएनसी ने बसंतपुर जाने वाली सडक़ का निरीक्षण करने के बाद एक तरफ से तीन किलोमीटर सडक़ को उखाडक़र दुबारा बनाने के लिये ठेकेदार से कहा है। दूसरे तरफ सडक़ की जांच भी शुरू कर दी गई है। इंजीनियरों को कारण बताओ नोटिस भी दिया गया है। आम तौर पर सडक़ों को उखाडक़र दुबारा बनाने का निर्देश दिया नहीं जाता है, पैबंद लगवाये जाते हैं। पर साहब ने ऐसी हिम्मत दिखाई है तो ऐसा निरीक्षण प्रदेश की दूसरी सडक़ों का भी कर लें, अधिकारियों-ठेकेदारों मिलीभगत से उनकी भी हालत बदतर ही हो रही है।
छाया वर्मा दूसरी समितियों में...
कल दी गई यह जानकारी अधूरी थी कि राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा को संसद की स्थायी समितियों से उनकी कम उपस्थिति की वजह से हटा दिया गया। दरअसल, उन्हें एक समिति से हटाकर दूसरी समितियों में रखा गया है। उन्हें सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण समिति तथा कृषि विभाग की स्थायी समिति में रखा गया है। छाया वर्मा को एक बार राज्यसभा की सर्वेश्रेष्ठ महिला सदस्य के रूप में सम्मानित भी किया गया था।
बाद में सबके तेवर बदल गए...
पुलिस और जनसंपर्क विभाग में एक समानता रही है, वह यह कि दोनों विभागों में अनुशासन रहता है, और धरना-प्रदर्शन और आंदोलन से दूर ही रहते हैं। सरकार के कामकाज को मीडिया के जरिए जन-जन तक पहुंचाने का जिम्मा जनसंपर्क विभाग का है। राज्य बनने के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब अकेले जनसंपर्क विभाग के अधिकारी-कर्मचारी मंगलवार को सामूहिक अवकाश पर रहे।
जनसंपर्क अफसरों की आपत्ति इस बात को लेकर ज्यादा है कि राप्रसे के जूनियर अफसर को विभाग का संचालक बना दिया गया। जबकि इस पद पर आईएएस ही रहते आए हैं। तर्क यह है कि अपर संचालक स्तर के अफसर का वेतनमान मौजूदा संचालक से ज्यादा है। चूंकि यह विभाग सीएम के अधीन है इसलिए हड़ताल की चर्चा थोड़ी ज्यादा हो रही है। ऐसा नहीं है कि जनसंपर्क के लोग पहली बार मुखर दिख रहे हैं।
रमन सरकार के पहले कार्यकाल में रेल्वे सेवा से आए जयंत देवांगन के जनसंपर्क विभाग के सहायक संचालक के पद पर संविलियन को लेकर भी कुछ इसी तरह का विरोध हुआ था। तब हड़ताल की नौबत नहीं आई, और सरकार ने भी उनकी आपत्तियों को अनदेखा कर जयंत का संविलियन कर दिया था। हड़ताल की नोटिस के बाद नए नवेले आयुक्त दीपांशु काबरा ने दो दौर की बैठक कर विभाग के अफसरों को अपनी तरफ से समझाइश देने की कोशिश भी की।
बताते हैं कि ज्यादातर अफसर दीपांशु के तर्कों से सहमत भी थे, और सोमवार को अपने-अपने काम पर चले भी गए थे। बाद में सबके तेवर बदल गए। देखना है कि सरकार आगे क्या फैसला लेती है।
रजिंदर के पुत्र कर रहे खुज्जी में दौरा
पूर्व मंत्री रजिंदरपाल सिंह भाटिया के निधन के बाद खुज्जी विधानसभा में उनके पुत्र जगजीत सिंह (लक्की) की सक्रियता के पार्टी हल्के में सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। सुनते हैं कि जगजीत सिंह अपने पिता की सियासत को आगे बढ़ाने की मंशा लेकर शारदीय नवरात्रि पर्व में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में बढ़-चढक़र शामिल हो रहे हैं। राजधानी रायपुर के एक सर्वसुविधायुक्त अस्पताल के डायरेक्टर जगजीत सिंह पूर्व में प्रदेश भाजयुमो में मंत्री भी रहे हैं। पिता के गुजर जाने के बाद जगजीत सिंह यह मान रहे हैं कि भाजपा की टिकट के लिए उनका स्वाभाविक हक बनता है। बताते हैं कि पिता के कट्टर समर्थकों और कुछ युवाओं को लेकर जगजीत यह कहने से हिचक नहीं रहे हैं कि खुज्जी में भाजपा की मजबूत नींव उनके पिता यानी स्व. भाटिया ने ही रखी थी। यह बात सियासी स्तर पर नजर भी आती है कि 2008 के बाद से टिकट से वंचित हुए भाटिया ने अपनी जमीनी पकड़ के बूते भाजपा को जीत से महरूम रखा। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा जीत के लिए तरसती रही।
2013 के चुनाव में भाटिया ने निर्दलीय उम्मीदवार बनकर भाजपा को तीसरे नंबर में धकेल दिया। जगजीत के दौरे से पार्टी में विरोध के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं। यह जगजाहिर है कि अपने प्रभावी राजनीतिक व्यक्तित्व के कारण स्व. भाटिया के पार्टी में विरोधियों की फेहरिस्त लंबी थी। जगजीत सिंह के कदम को दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की प्रारंभिक तैयारी से जोडक़र देखा जा रहा है। कह सकते हैं कि पिता की जमीनी पकड़ का जितना फायदा उन्हें मिलेगा। वहीं अपनी ही पार्टी के सियासी प्रतिद्वंदियों से भी निपटना एक बड़ी चुनौती होगी।
रावण के बहाने मैदान मारने की कोशिश
पॉलिटिक्स में केवल सडक़, नाली, विकास, ठेका, सप्लाई, ट्रांसफर आदि जन कल्याण के काम काफी नहीं होते हैं। इसके लिए जरूरी होता है उस हर गतिविधि में हस्तक्षेप हो, जिसमें भीड़ आती है। यदि आयोजन धार्मिक हो तो दखलंदाजी का फल अधिक मिलता है।
राजधानी रायपुर के बीटीआई मैदान में रावण दहन कौन करे, इस पर खड़ा हुआ विवाद कुछ इसी तरह का है। बीजेपी के नेता कहते हैं कि वहां सालों से वे रावण दहन करते आ रहे हैं, कांग्रेस अब यहां जबरन हस्तक्षेप कर रही है। कल भाजपा नेताओं ने इस मुद्दे को लेकर चक्का जाम भी कर दिया, पर विवाद सुलझा नहीं। कांग्रेसी भी कह रहे हैं कि सालों से वे लोग यहां रावण दहन कर रहे थे। पार्षद और दूसरे भाजपा नेताओं ने कांग्रेस के पंडाल पर आपत्ति जताते हुए कल बीच सडक़ पर धरना दे दिया। मामला फिर भी सुलझ नहीं पाया। उल्टे सडक़ पर बैठने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है।
अब स्थिति यह है कि यहां पर दो दो पंडाल लग गए हैं। प्रशासन के सामने दिक्कत यह है कि किसे वहां से हटाए और किसे रहने दे। भाजपा को बीटीआई मैदान तब भा गया था जब वह सत्ता में थी। अब कांग्रेस सत्ता में है तो उसे भी यहां जुटने वाली भीड़ का महत्व समझ में आ रहा है। हो सकता है की इस बार दोनों की लड़ाई में यहां रावण के दो पुतले अलग-अलग खड़े कर दिया जाए। दर्शकों को दोगुना मजा आएगा।
समिति से सांसद का बाहर किया जाना
संसद मैं वैसे तो विधेयक बहुमत के आधार पर सत्ता पक्ष की मंशा के अनुरूप ही पारित होते हैं पर विपक्ष के लिए संसद की स्थायी समितियां महत्वपूर्ण होती हैं। अनिवार्य रूप से जिनमें उनको जगह दी जाती है और उनके सुझावों को गंभीरता से लिया जाता है। किसी प्रस्तावित विधेयक में खामियां हो तो मुखर रूप से उसे समितयों में रहते हुए ही उठाया जा सकता है। बीते दिनों संसदीय स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया गया तो उसमें छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा को बाहर कर दिया गया। खबर यह है कि जिन लोगों की छुट्टी की गई है उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनकी समिति की बैठकों में उपस्थिति बेहद कम रही। सांसद ही बता सकती हैं ऐसी क्या व्यस्तता थी कि वे इन बैठकों के लिए समय नहीं निकाल पाईं। वैसे भी ज्यादातर पता चलता नहीं है कि राज्यसभा के सदस्य काम क्या करते रहते हैं। अब खबर भी आई है तो काम नहीं करने की।
शिक्षक को डेंगू, रसोइया करा रहा पढ़ाई
शिक्षा मंत्री के खिलाफ कांग्रेस के ही विधायकों का मोर्चा खुलने के बाद जशपुर के जिला शिक्षा अधिकारी निलंबित कर दिए गए लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी हैं जो अधिकारियों के आने-जाने से नहीं बदलती और जनप्रतिनिधि भी इसे लेकर बेपरवाह रहते हैं।
ओडिशा सीमा से लगे फरसाबहार ब्लॉक के सागजोर गांव की प्राथमिक शाला में 53 बच्चे पढ़ते हैं। दूरदराज का स्कूल होने के बावजूद इतने बच्चों का दाखिला अच्छी बात है। मगर यहां बच्चे स्कूल जाते हैं, शिक्षक नहीं पहुंचते। बीते दिनों पता चला कि जो रसोईया बच्चों के लिए खाना बनाता है वही इन्हें पढ़ा भी रहा है। शिक्षक दोनों गायब हैं। सोशल मीडिया के जरिए जब यह जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी को मिली तो पूछताछ हुई। शिक्षक ने तुरंत एक व्हाट्सएप मैसेज डाल दिया जिसमें लिखा कि उसको डेंगू हो गया है और डॉक्टरों ने उसे उन्हें आराम करने की सलाह दी है। डीईओ का माथा ठनक गया। जशपुर जिले में अभी डेंगू ने दस्तक तो दी ही नहीं है फिर शिक्षक शिकार कैसे हो गया। तहकीकात से पता चला कि शिक्षक के ध्यान में अचानक आया कि डेंगू छुट्टी लेने का ठीक बहाना रहेगा। बार-बार एक ही बीमारी, एक ही घिसा-पिटा कारण बताना ठीक नहीं रहेगा। अब इस शिक्षक को जो प्रधान पाठक भी है, नोटिस दी जा रही है कि डेंगू की जांच रिपोर्ट और अस्पताल में चल रहे इलाज की रिपोर्ट जमा करे।
महिला होने के कारण तबादला
हेमलता मानिकपुरी के खिलाफ भी कोई शिकायत नहीं थी। वह बालोद जिले के भेडी में पंचायत सचिव हैं, जिसे जनपद पंचायत के सीईओ ने वहां से हटाकर एक दूसरी पंचायत झिटिया भेजने का आदेश दे दिया। भेड़ी के सरपंच ने सीईओ से मांग की थी कि उन्हें पुरुष पंचायत सचिव चाहिये क्योंकि यहां काम की अधिकता है। महिला होने के कारण पंचायत सचिव काम नहीं कर पा रही है। रामानुजगंज के डीईओ तो अडिय़ल थे, पर यहां जनपद के सीईओ उदार। सरपंच की बात बिना किसी सिफारिश के ही सुन ली और महिला सचिव का महिला होने के कारण हटा दिया। शायद महिलाओं की क्षमता को लेकर सरपंच और सीईओ की राय एक जैसी हो। पंचायतों में तो 50 फीसदी महिलायें चुनी जाती हैं, उनकी क्षमता पर सीईओ की क्या राय है, पता नहीं। पर इस आदेश को विभाग के मंत्री टीएस सिंहदेव ने गंभीरता से लिया है। उन्होंने तबादले के आधार को खारिज किया, आदेश को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और रद्द भी करा दिया। साथ ही उन्होंने इस मामले की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की बात भी कह दी है।
त्यौहारों में बीमार कौन पड़े
10 अक्टूबर को रायपुर में कोविड वैक्सीन लगवाने वालों की संख्या कुल 6990 थी। इनमें भी 5012 ऐसे थे जिन्होंने दूसरी डोज ली, पहली डोज लेने वालों की संख्या सिर्फ 1978 थी। जबकि इस महीने की पहली तारीख को 16 हजार 693 लोगों ने पहला और दूसरा डोज लिया था। नवरात्रि शुरू होने के दो दिन पहले 4 अक्टूबर को ठीक ठाक संख्या में लोगों ने वैक्सीन ली। इस दिन इनकी संख्या कुल 15 हजार 358 थी। पर उसके बाद गिरावट ही दर्ज की जा रही है। बिलासपुर में 4 अक्टूबर को 13 हजार 93 लोगों ने वैक्सीन लगवाई पर उसके बाद आंकड़ा 6, 7, 8 हजार तक गया। सिर्फ शनिवार को छोडक़र जब 12 हजार 55 लोगों ने टीके लगवाये। कल 10 अक्टूबर को 8 हजार 353 लोगों ने टीके लगवाये।
छत्तीसगढ़ में पिछले महीने डेढ़ करोड़ डोज लोगों को दिये जा चुके थे। इस माह यह 2 करोड़ तक पहुंच गया है। कोविड के नियंत्रित होने की ओर ध्यान जाता है तो इस आंकड़े का भी महत्व समझ में आता है। पर इन दिनों वैक्सीनेशन सेंटर में भीड़ कम दिखने की वजह यह बताई जा रही है कि लोग त्योहार में बीमार पडऩा नहीं चाहते। बुखार सिर्फ 24 घंटे का हो सकता है वह भी केवल पहली डोज लेने वालों को। पर, लोग एहतियात बरत रहे हैं। आने वाले दिनों में लगातार पर्व-त्यौहार हैं। वैक्सीनेशन की रफ्तार पर इसका असर आगे भी दिखाई दे सकता है।
डीईओ को झुकाकर ही माना...
रामानुजगंज विधायक बृहस्पत सिंह की बात सुन ली गई है। बात उनके कथित ऑडियो की नहीं हो रही है, बल्कि उनके नोटशीट की है। जिला शिक्षा अधिकारी ने एबीईओ को हटाने से इंकार कर दिया था। वे कह रहे थे कि शिकायत नहीं है। विधायक का डीईओ से तू-तड़ाक वाला ऑडियो वायरल होने के बाद ऐसा लगा था कि कोई सफाई सामने आयेगी, मगर ऐसा नहीं हुआ। संगठन ने जरूरत नहीं समझी, सरकार तो अपनी है ही। बल्कि यह हुआ कि एबीईओ को उनकी मंशा के अनुरूप जिला शिक्षा अधिकारी ने हटा दिया है। जानकारी यह भी मिली है कि हटाने का आदेश सीएम हाउस से ही आया था। अच्छा हुआ सीएम हाउस ने पत्र पर गौर कर लिया। डीईओ विधायक के कहने पर काम नहीं करने पर अड़े थे, विधायक ने सीएम हाउस से ऑर्डर कराने की बात कही थी। दोनों की बात रह गई। पर उस एबीईओ का क्या, जिसे बिना शिकायत के ही हटना पड़ा?
ईमानदारी का खुला चैलेंज..
तहसील ऑफिस में दलालों और रिश्वत के बगैर काम नहीं होता। यह कोई खबर नहीं है। खबर तब बन जाती है जब इसे झुठलाया जाये। तखतपुर अनुविभाग की सकरी तहसील में हाल ही में पदस्थ प्रभारी अश्विनी कंवर ने आम सूचना निकाली है। दफ्तर और सकरी में जगह-जगह यह रंगीन फ्लैक्स पर चस्पा की गई है। इसमें लिखा गया है कि कोई भी व्यक्ति या ब्रोकर काम कराने के बदले उनके नाम से रिश्वत मांगता है तो तुरंत सूचित करें। तहसीलदार ने अपना मोबाइल नंबर भी सार्वजनिक कर दिया है। दो चार अधिकारी ऐसी हिम्मत जुटायें तो अच्छा लगेगा। दफ्तरों और अफसरों को लेकर बनी आम धारणा बदलेगी। बशर्तें, काम न रुके। वरना, जहां पैसे नहीं लिये जाते वहां ढेर सारे नियम कायदे रुकावट बन जाते हैं। लोगों को खुराक-पानी देना ज्यादा ठीक लगने लगता है।
सिलगेर नहीं तो एड़समेटा की बात कर लें...
सन् 2013 में हुए एड़समेटा मुठभेड़ पर पिछले महीने जस्टिस वीके अग्रवाल की न्यायिक जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद से ही बस्तर का एक सिरा सुलग रहा है। एड़समेटा के ग्रामीण गंगालूर बीजापुर तक आकर प्रदर्शन कर रहे हैं। ये ग्रामीण यूपी के लखीमपुर खीरी में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बांटे गये मुआवजे के बाद ज्यादा मुखर हो गये हैं। वे कह रहे हैं कि यूपी मामले पर कोई जांच रिपोर्ट तो अभी आई नहीं, फिर भी सरकार ने दूसरे प्रदेश में तत्परता से मुआवजा दे दिया। एड़समेटा की तो रिपोर्ट भी आ गई। दूसरे प्रदेश से ज्यादा अपने प्रदेश का ख्याल रखा जाये। इसलिये यहां मारे गये सभी आठ लोगों के परिजनों को लखीमपुर से दोगुना यानि मृतकों को एक करोड़ रुपये मुआवजा दिया जाये। इसके अलावा घायलों को भी 50 लाख रुपये दिये जायें।
छत्तीसगढ़ में भाजपा ने मांग की थी कि सिलगेर के पीडि़तों को भी मुआवजा दें। सीएम ने कहा- उनके प्रतिनिधि उनसे मिलकर जा चुके हैं, उन्होंने मुआवजा लेने से मना कर दिया है।
पर बस्तर में आंदोलन तो एडसमेटा के मुठभेड़ को लेकर चल रहा है, जिसकी राजधानी में नेताओं को खबर ही नहीं। इस पर न भाजपा ने कोई प्रतिक्रिया दी है न कांग्रेस ने।
मूंगफली बेचते भावी शिक्षक...
बस्तर और सरगुजा में शिक्षक भर्ती के लिये मेरिट में स्थान बनाने वाले अभ्यर्थी दो साल से भटक रहे हैं। उनके पास ज्वाइनिंग लेटर भी है, पर नियुक्ति दी नहीं जा रही है। विभाग का कहना है हाईकोर्ट से स्टे है। अभ्यर्थी इसे भ्रामक उत्तर बताते हैं। बहरहाल, वे बस्तर, सरगुजा से लेकर राजधानी तक आंदोलन व प्रदर्शन कर रहे हैं। जगदलपुर में एक चयनित शिक्षक लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये मूंगफली बेच रहे हैं। साथ ही गले पर तख्ती लगाकर अपनी मांग बता रहे हैं।
हटाने का फैसला टाल दिया
पिछले दिनों कांग्रेस संगठन में बड़ा फेरबदल हुआ। एक व्यक्ति, एक पद की नीति के चलते शैलेष नितिन त्रिवेदी, गिरीश देवांगन, अटल श्रीवास्तव, भानुप्रताप सिंह, और पदमा मनहर जैसे दिग्गजों को संगठन का पद छोडऩा पड़ा। उनकी जगह नई नियुक्तियां की गई।
शैलेष, गिरीश, और रामगोपाल अग्रवाल को संगठन की धुरी माना जाता रहा है, और चर्चा थी कि शायद ही इन्हें बदला जाएगा। मगर पार्टी हाईकमान ने नए लोगों को मौका दिया। रामगोपाल को नहीं बदला गया। जबकि वो नागरिक आपूर्ति चेयरमैन भी हैं।
चर्चा है कि पहले रामगोपाल की जगह अरुण सिंघानिया को पार्टी का कोषाध्यक्ष बनाने पर विचार चल रहा था। मगर आखिरी समय में यूपी चुनाव को देखकर रामगोपाल को हटाने का फैसला टाल दिया गया। यूपी चुनाव की कमान छत्तीसगढ़ के नेता ही संभाल रहे हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों को अंदेशा था कि पार्टी का कोष नए लोगों को सौंपने से दिक्कत आ सकती है। रामगोपाल को राजनांदगांव के दिवंगत नेता इंदरचंद जैन जितना ही कुशल समझा जाता है जो कि विपरीत परिस्थितियों में भी कोष का इंतजाम कर लेते हैं।
शिकवा शिकायत का मौका कहां
केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे शुक्रवार की रात रायपुर पहुंचे, तो स्वागत के लिए बृजमोहन अग्रवाल, और सुनील सोनी मौजूद थे। टीएस सिंहदेव तो चौबे के साथ ही रायपुर आए। एयरपोर्ट में छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने पर अनौपचारिक चर्चा हो रही थी। भाजपा नेताओं के साथ चर्चा में चौबे ने कोरोना से निपटने के छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों की तारीफ कर दी। उन्होंने कह दिया कि छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हुआ है। अब जब केन्द्रीय मंत्री ने ही तारीफ के पुल बांध दिए हैं, तो शिकवा शिकायत का मौका कहां रह जाता है।
मंत्री जी की व्यावहारिक बात
बिलासपुर के भूगोल बार में देर रात भीतर जाने की कोशिश ने न केवल संबंधित अफसरों की बल्कि प्रशासन और पुलिस की साख पर भी चोट पहुंचाई।
दो तरह के लोग बार में देर से पहुंचा करते हैं। एक तो वे जिनकी बार मालिक या काउंटर में पहचान होती है, या फिर वे जिनको बार की टाइमिंग का ठीक पता नहीं होता। शायद ये अधिकारी दूसरी श्रेणी के थे।
इसलिए अपने अनुभव के आधार पर बिलासपुर जिले के प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने बिना लाग-लपेट काम की नसीहत दी है। अग्रसेन जयंती समारोह में बिलासपुर पहुंचे मंत्री से भूगोल बार मसले पर पत्रकारों ने पूछा तो उन्होंने कहा कि अगर किसी को लाइसेंसी बार में जाना हो, पार्टी करनी हो तो इसकी छूट है। इस पर कोई पाबंदी तो है नहीं। पर अधिकारियों को ध्यान रखना चाहिये कि बार खुलने-बंद होने का समय देखकर जायें।
जिन अधिकारियों का नाम भूगोल बार मामले में सामने आया है, उन्हें प्रभारी मंत्री के बयान से राहत मिली होगी। महसूस हुआ होगा कि बार में कदम रखने से प्रशासन और पुलिस के बड़े ओहदेदारों की छवि नहीं बिगड़ती। यह तब खराब होती है कि जब बाउंसर से गेट में घुसने के लिये उलझना पड़े। तो अफसर, मंत्री की सुनें। समय पर जायें, बाउंसर को क्या पड़ी है किसी को रोके?
शिक्षकों की क्षमता पर जंग
मंत्री, विधायकों व अधिकारियों की दिलचस्पी जब सिर्फ ट्रांसफर, पोस्टिंग में होगी तो समस्याओं पर गौर कौन करेगा। यह मामला और कहीं का नहीं, उसी सरगुजा संभाग का है जहां से स्कूल शिक्षा मंत्री आते हैं और जहां के विधायक उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं।
एक वीडियो वायरल हुआ बलरामपुर जिले के भैरोपुर ग्राम के टीचर दयानंद सारथी का, जो प्राथमिक शाला में पढ़ाते हुए जनवरी, फरवरी जैसे सामान्य शब्द अंग्रेजी ब्लैक बोर्ड पर गलत लिख रहे हैं। वीडियो फूटने पर उस शिक्षक को जिला शिक्षा अधिकारी ने सस्पेंड तो कर दिया पर क्या इस अकेले की ही काबिलियत संदिग्ध है? हायर सेकेन्डरी पास सर्टिफिकेट इन्हें कैसे मिला होगा? इंटरव्यू देकर कैसे निकल गये और शिक्षक बन गये? इनके पढ़ाये हुए बच्चों का क्या भविष्य होगा। नकल और कुंजी के दम पर पास तथा साक्षात्कार में मोटी रकम फेंककर भी बहुत लोग नौकरी पा जाते हैं। यही वजह है कि आये दिन हास्यास्पद स्थिति पैदा करने वाली घटनायें, वीडियो, तस्वीरें सामने आती हैं, जिनमें शिक्षकों की काबिलियत पर सवाल उठते हैं।
शिक्षा मंत्री से जब कुछ पत्रकारों ने पूछा कि ऐसी बदतर स्थिति है स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की। मंत्री कहते हैं कि कोरोना काल में बच्चों की तरह पढऩे-पढ़ाने के नाम पर इनको भी जंग लग गया होगा। यानि स्कूली शिक्षा के स्तर में जल्दी कोई सुधार होने की उम्मीद करना बेकार है।
पहले आप नियम तोड़ें, फिर हम तोड़ेंगे
कोरोना महामारी का दुबारा खतरनाक स्तर पर प्रसार न हो और लोगों को नवरात्रि, दशहरा, दीपावली जैसे बड़े त्यौहार को मनाने से वंचित भी नहीं होना पड़े, इसके लिये प्रशासन ने बीच का रास्ता निकाला है। कुछ बंदिशों के साथ त्यौहार मनाने की छूट दी गई है। देवी प्रतिमा की ऊंचाई, पांडाल का आकार, उपस्थिति की अधिकतम संख्या आदि तय किये गये हैं। जिन चीजों पर पाबंदी लगाई गई है उनमें देवी मंदिरों तक की जाने वाली पदयात्रा भी है। प्राय: हर जिले में प्रशासन ने पदयात्रा कर दर्शन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बस्तर संभाग में भी यही निर्देश जारी किया गया है। पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को इसकी फ्रिक्र नहीं है। उन्होंने प्रशासन की मनाही के बाद कल कोंडागांव से अपनी 167 किलोमीटर यात्रा की शुरूआत कर दी है। 12 अक्टूबर को उनका काफिला दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी माई का दर्शन करेगा। हालांकि मरकाम के समर्थक कह रहे हैं कि कोविड नियमों का पालन कर रहे हैं। पदयात्रा करना हमें गांधीजी ने सिखाया है। कुछ लोग धार्मिक सौहार्द्र बिगाडऩे का काम कर रहे हैं इसलिये वे निकले हैं।
जो भी है मरकाम ने गाइडलाइन तो तोड़ दी है। प्रशासन क्या अब दूसरे लोगों को रोक पायेगा? सब कहेंगे जब नेता को छूट दी है तो हमें क्यों नहीं।
बता रहा है या पूछ रहा है?
जगहों के नाम बड़े दिलचस्प होते हैं। अब दंतेवाड़ा से जगदलपुर
जाते हुए गौरव गिरिजा शुक्ला को यह बोर्ड दिखा जो पता नहीं जगह का नाम बता रहा है या लोगों से पूछ रहा है?
चर्चा तो यह भी है कि अब...
टीम नड्डा की घोषणा के बाद से प्रदेश भाजपा में खुसुर-फुसुर हो रही है। वैसे तो प्रदेश भाजपा के 7 नेताओं को जगह मिली है। पूर्व सीएम रमन सिंह दूसरी बार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने हैं। सरोज पाण्डेय, अजय चंद्राकर, और लता उसेंडी को कार्यसमिति का सदस्य बनाया गया। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पवन साय, और सांसद अरुण साव को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में रखा गया है।
पदाधिकारी, और कार्यसमिति सदस्य को प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता है। चूंकि सरोज राष्ट्रीय महामंत्री रह चुकी हैं, इसलिए उन्हें कार्यसमिति में लिया जाना अस्वाभाविक नहीं था। नेता प्रतिपक्ष, और महामंत्री (संगठन) को तो विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में जगह मिल ही जाती है। मगर अजय चंद्राकर का नाम कई लोगों को चौंका रहा है।
अजय तेजतर्रार नेता माने जाते हैं। और जब विधायक दल के नेता का नाम तय हो रहा था तब भी अजय प्रमुख दावेदार थे। तब रमन सिंह की पसंद पर कौशिक के नाम पर मुहर लग गई। इसके बाद वो प्रदेश अध्यक्ष की पद की दौड़ में भी थे। तब उनकी दावेदारी यह कहकर कमजोर कर दी कि नेता प्रतिपक्ष, और अध्यक्ष एक ही समाज से होने से अच्छा मैसेज नहीं जाएगा।
और जब टीम नड्डा की कार्यकारिणी बन रही थी तब चर्चा है कि उन्हें रोकने के लिए पार्टी के एक ताकतवर नेता ने ओपी चौधरी का नाम भी आगे बढ़ाया था। चूंकि नड्डा प्रदेश के प्रभारी रहे हैं, और अजय चंद्राकर की उपयोगिता जानते हैं। यही वजह है कि उन्हें कार्यसमिति में लेने में परहेज नहीं किया। इससे परे पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय का सूची में नाम नहीं होना उनके समर्थकों को अखर रहा है। रामविचार नेताम और रेणुका सिंह को भी कार्यसमिति में जगह नहीं मिलने से विशेषकर सरगुजा संभाग के पार्टी कार्यकर्ता हैरान हैं।
रामविचार आदिवासी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जबकि रेणुका प्रदेश से अकेली केन्द्रीय मंत्री हैं। यही नहीं, प्रदेश कोषाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल को लेकर चर्चा रही कि वो कार्यसमिति में जगह पाने के लिए काफी कोशिश कर रहे हैं। मगर पार्टी ने उन्हें चिंतन शिविर से भी दूर रख एक तरह से संकेत दे दिया था कि पार्टी के भीतर उनकी भूमिका सीमित हो गई है। चर्चा तो यह भी है कि अब गौरीशंकर के सहयोगी नंदन जैन को पूरे कोष का जिम्मा सौंपा जा सकता है। देखना है कि आगे क्या होता है।
रेस्ट हाउस में डॉग की खातिरदारी
सरकारी गेस्ट हाउस में आम लोगों को ठहरने की इजाजत नहीं मिलती। पर यदि प्रशासन या राजनीति से कोई वजन रखता है तो वह अपने कुत्तों को भी वहां ठहरा सकता है। जशपुर के विश्राम गृह में अंग्रेजी नस्ल के तीन कुत्ते ठहराये गये थे। उनके लिये बकायदा एक कमरा बुक किया गया था। उन्हें जो लोग लेकर आये, उनके लिये भी अलग कमरे बुक थे। रेस्ट हाउस ही नहीं। इसके बाद उन्हें सर्किट हाउस में भी एक दिन ठहराया गया। फिर, उन्हें आगे की सफर पर ले जाया गया। बताया जाता है कि ये कुत्ते एक प्रशासनिक अधिकारी के थे, जो इन्हें अपने घर भेज रहे थे लेकिन एक कुत्ते को स्वास्थ्य संबंधी कोई इश्यू था, इसलिये सभी को रोका गया। पूरा इंतजाम सरकारी था, इन कुत्तों से बड़ा कोई दूसरा वीआईपी इस दौरान रेस्ट हाउस, सर्किट हाउस में रुकने के लिये आया नहीं, इसलिये कोई हंगामा नहीं हुआ।
बात केवल ट्रांसफर पोस्टिंग की नहीं
स्कूल शिक्षा विभाग ही क्यों, तमाम सरकारी महकमों में ट्रांसफर, पोस्टिंग और विभागीय जांच रफा-दफा करने के नाम पर खूब लेन-देन की शिकायतें हमेशा रही हैं। सरकार कोई भी हो, कभी रेट कम चलता है, कभी ज्यादा। लगातार दो साल से ट्रांसफर खुला, इसलिये विशेष प्रकरण बताकर ही तबादले किये जा रहे हैं। तबादले जहां नहीं हो पा रहे वहां अटैचमेंट का सहारा लिया जा रहा है। न काम करने वालों को दिक्कत है, न कराने वालों को। परेशानी वहां होती है जब सत्ता पक्ष से जुड़े विधायक और जनप्रतिनिधियों की सिफारिश किनारे कर अधिकारी, लिफाफे को ज्यादा महत्व देने लगते हैं। स्कूल शिक्षा विभाग में ऐसा हो रहा होगा। सरकार का सबसे बड़ा विभाग है। गांव-गांव में स्कूल हैं। हजारों की संख्या में शिक्षक और दूसरे स्टाफ हैं। पर जरा सोचिये, क्या सिर्फ शिक्षा विभाग में ही ऐसा हो रहा है, बाकी विभागों में सब ठीक चल रहा है? मंत्री के बचाव में उतरे स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कह रहे हैं कि ट्रांसफर तो चीफ सेक्रेटरी कर रहे हैं। यह भी कहा कि घर हो पार्टी, नीलाम करेंगे तो विरोधी को फायदा तो होगा। मतलब यह है कि विधायकों का मोर्चा खोलना और इसका सार्वजनिक करना बताता है कि बात केवल ट्रांसफर पोस्टिंग की नहीं है। कई लोग तो पूछने लगे हैं कि यदि भ्रष्टाचार के चलते मंत्रिमंडल से प्रेमसाय का पत्ता आगे कभी कट गया तो उनकी जगह पर सरगुजा से क्या बृहस्पति सिंह लिये जायेंगे?
55 रुपये लीटर केरोसिन
उज्ज्वला योजना के तहत गरीबों को मुफ्त रसोई गैस दिये गये हैं। पर सिलेंडर रिफिलिंग की कीमत के चलते इसे वे नियमित नहीं भरा पाते हैं। ग्रामीण इलाकों में तो फिर भी कहीं से लकड़ी से ईंधन की जरूरत पूरी की जा सकती है पर शहरी इलाकों की गरीब बस्तियों में केरोसिन की मांग बनी हुई है। जब सारे पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़े हुए हैं तब शायद किसी को अंदाजा न हो कि केरोसिन आजकल किस दाम पर मिल रहा है। कोरिया जिले की सकारिया गांव की सरकारी राशन दुकान में यह 55 रुपये लीटर बिक रहा था। गैस सिलेंडर से खाना पकाना सस्ता पड़ता है मगर जो लोग एक हजार रुपये एकमुश्त खर्च नहीं कर पाते वे क्या करें। उन्हें केरोसिन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। फिलहाल, फूड विभाग को शिकायत मिली तो वह राशन दुकान निलंबित कर दी गई है, पर सवाल यह है कि क्या कोई एक ईंधन निर्धन परिवारों के लिये सहज उनकी पहुंच के भीतर के दाम में मिल पायेगा, या फिर उन्हें बिना पकाये हुए भोजन तैयार करने का कोई तरीका ढूंढना पड़ेगा?
जो बार नहीं गये, उनसे जवाब कौन लेगा?
बाउंसर ने पुलिस अधिकारियों को देर रात बार में घुसने से रोका, हाथापाई की हिमाकत की और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। न तो एक एफआईआर हुई न ही बार देर रात खुली रखे जाने पर कोई एक्शन। पुलिस अधिकारियों का सादी वर्दी में संडे के दिन बार में जाना शायद गुनाह नहीं होगा, पर देर रात घुसने के लिये जिद करना जरूर गलत था। शायद, नये-नवेले अधिकारियों ने समझा हो कि हमारे संरक्षण में ही खुली है। पर इनको शायद पता नहीं था कि बार और शराब के धंधे से जुड़े लोगों के हाथ उनके अनुमान से अधिक लंबे होते हैं। डीजीपी ने राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों की करतूत की रिपोर्ट तो मांगी पर इसमें यह नहीं पूछा गया कि देर रात तक बार खुली रहने की दर्जनों शिकायतें सामने आने के बावजूद वे अधिकारी जो इनके ऊपर बैठते हैं, उन्होंने कब-कब क्या कार्रवाई की। युवा अधिकारी तो बेचारे रिलीव हो गये पर जिनकी शह पर इन बार संचालकों के हौसले बुलंद हैं वे सीनियर अफसर साफ बच गये हैं।
वो करें तो स्टंट, हम करें तो धरना
लखनऊ एयरपोर्ट पर जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को रोका गया तो यूपी पुलिस ने उनको एयरपोर्ट पर ही रोक लिया। बघेल ने जब पूछा तो पता चला कि लखीमपुर खीरी, जहां वे नहीं जाने वाले थे वहां तो धारा 144 लागू है ही लखनऊ में भी लगी है। सीएम ने पूछा, ऐसा है तो फिर यहां प्रधानमंत्री का कार्यक्रम कैसे हो रहा है। पुलिस अधिकारियों को जैसा निर्देश मिला था, उन्होंने जवाब देने की जगह खामोशी ओढ़ ली। बघेल एयरपोर्ट पर ही धरने पर बैठ गये और वर्चुअल पीसी भी ले ली। इसकी देशव्यापी चर्चा हुई। विपक्ष ने कहा, पब्लिसिटी स्टंट, नौटंकी, हाईकमान के सामने नंबर बढ़ाने के लिये।
मगर, यही सब भाजपा ने कल कवर्धा में किया। नेता प्रतिपक्ष, कई विधायक और पूर्व मंत्री शहर में निकलना चाहते थे पर उन्हें रेस्ट हाउस में रोक लिया गया। उसी धारा 144 की वजह से। अगर, बघेल के धरने पर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी की निगाह गई हो तो भाजपा नेताओं का धरना भी डी. पुरंदेश्वरी के ध्यान में आ ही गया होगा।
छोटी सी पार्टी की जमकर चर्चा
छत्तीसगढ़ में राजनीतिक गहमा-गहमी के बीच पूर्व मंत्री विधान मिश्रा की डिनर पार्टी की राजनीतिक गलियारों में जमकर चर्चा है। हालांकि विधान ने पार्टी अपनी इकलौती पोती की जन्मदिन के उपलक्ष्य में दी थी। पार्टी में चुनिंदा लोगों को ही आमंत्रित किया था। इसमें दिग्गज नेताओं ने भरपूर समय दिया। पार्टी में टीएस सिंहदेव के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, धनेन्द्र साहू, देवेन्द्र बहादुर सिंह, जोगी पार्टी के नेता धर्मजीत सिंह के अलावा बिलासपुर के अशोक अग्रवाल, और अरूण सिंघानिया पूरे समय साथ रहे।
दिग्गज साथ में थे, तो आपस में राजनीतिक चर्चा होनी ही थी। पार्टी में कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे नहीं आए। जबकि चौबे, विधान के सगे समधी हैं। ऐसे में उनकी गैर मौजूदगी चर्चा में रही। हालांकि उनके परिवार के लोगों का कहना था कि चौबेजी की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए वो नहीं आ पा रहे हैं। चौबेजी की अनुपस्थिति पर महंत ने चुटकी भी ली।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में रविन्द्र चौबे, सीएम भूपेश बघेल के खुलकर साथ हैं। नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों के बीच अगस्त के आखिरी में 50 से अधिक कांग्रेस विधायक भूपेश के समर्थन में एक साथ दिल्ली पहुंचे, तो रायपुर से लेकर दिल्ली तक खलबली मच गई थी। कुछ लोग मानते हैं कि यह सब रविन्द्र चौबे की ही रणनीति थी। इस घटनाक्रम के बाद टीएस सिंहदेव, और रविन्द्र चौबे के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा है कि सिंहदेव से आमना-सामना होने से बचने के लिए चौबेजी, विधान की पार्टी में नहीं गए। भले ही यह सच न हो, लेकिन विधान की छोटी सी पार्टी की जमकर चर्चा है।
फेसबुक में अब भी लोचा
फेसबुक, वाट्सअप और इंस्टाग्राम कई घंटे बंद रहा तो लगा लोगों की सांसें ही अटक गई थीं। पर अब भी सब ठीक नहीं चल रहा है। कई लोग खास तौर से फेसबुक पर इसकी शिकायत कर रहे हैं। उन्होंने पोस्ट तो एक ही बार डाली, पर वह बार-बार रिपीट हो रही है। कुछ लोग कह रहे हैं कि उनका पोस्ट गायब हो रही है। लोग शुद्ध देसी हिसाब से फेसबुक को दुरुस्त करने के नुस्खे बता रहे हैं। कोई कह रहा है अफगानिस्तान की अफीम का असर है..। जुकरबर्ग बौरा गया है। ओझा को दिखाना पड़ेगा..साढ़े साती चल रह रही है किसी अच्छे ज्योतिषी से परामर्श लेना पड़ेगा। कई लोगों को लगता है कि उनका सारा सिस्टम हैक हो गया था, पर फेसबुक बता नहीं रहा है।
आखिर विधायकों को वापस मिली निधि
कोरोना संकट के दौरान विधायक निधि का आवंटन स्थगित कर दिया गया था। कोरोना महामारी पर काफी हद तक काबू पा लेने के बाद हिसाब लगाया गया कि विधायक निधि के 180 करोड़ रुपये रोके गये थे लेकिन उसमें से सिर्फ 40 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाये। 140 करोड़ रुपये बच गये हैं, जिसकी निकट भविष्य में आवश्यकता नहीं है। इसके बाद तय किया गया कि बाकी रकम लौटा दी जाये। विधायक निधि रोकने के फैसले की विपक्ष ने काफी आलोचना की थी। उनका तर्क था कि विधायकों को भी कोरोना संकट के कारण इस निधि की आवश्यकता है। वे क्षेत्रीय जरूरतों के हिसाब से खर्च करेंगे। तकलीफ तो कांग्रेस के विधायकों को भी थी मगर वे अनुशासन की वजह से विरोध नहीं कर पा रहे थे। विधायकों के लिये इस निधि की आवश्यकता क्षेत्र के विकास से कहीं अधिक कार्यकर्ताओं को उपकृत करने और अपना जनसमर्थन बनाये रखने के लिये होती है। बची राशि विधायक निधि में एक दो दिन के भीतर जमा हो जायेगी। अच्छा है त्योहार के दिनों में कार्यकर्ताओं का भला किया जा सकेगा।
रिले केन्द्र का इतिहास बन जाना...
1959 में शुरू हुए टेलीविजन इंडिया का सन् 1975 में नामकरण हुआ- दूरदर्शन। उस वक्त महानगरों में रिले केन्द्र स्थापित किये गये थे। पर सन् 1980 के आसपास पर दिन किसी न किसी शहर में एक नया रिले केन्द्र खोला जाता था। यह 1982 में होने वाले एशियाड की तैयारी थी। सीमित पहुंच वाले श्वेत-श्याम दूरदर्शन की पहुंच शहर से गांवों तक पहुंच गई। रंगीन प्रसारण भी शुरू हो गया। जिनके घरों में टीवी होते थे उनका अलग ही रुतबा था। रामायण, महाभारत, हम लोग, बुनियाद, तमस जैसे सीरियल्स जब शुरू होते थे तो सडक़ें सूनी हो जाती थी और लोग घर-बाहर का काम रोककर टीवी के सामने बैठ जाते थे। एक आदमी की ड्यूटी होती थी कि वह एंटिना का एंगल ठीक करता रहे। उस दौर की निशानी थे दूरदर्शन के रिले केंद्र। छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर, अंबिकापुर व जगदलपुर में बारी-बारी एचपीटी (हाई पावर ट्रांसमिशन) लगाये गये। फिर इनसे कनेक्टेड एलटीपी छोटे शहरों, कस्बों में लगाये गये। दो साल पहले से छत्तीसगढ़ ही नहीं देशभर के अधिकांश एलटीपी से प्रसारण बंद किये जा चुके हैं। रायगढ़, चांपा, सक्ती, खरौद, पेंड्रारोड, कोरबा आदि इनमें शामिल हैं।
अब दूरदर्शन ही नहीं सैकड़ों टीवी चैनल केबल और डीटीएच पर ही नहीं, बल्कि मोबाइल एप्लिकेशन पर मिल रहे हैं। ऐसे में एंटीना तानकर दूरदर्शन देखने वाला कोई शायद ही बच गया हो। इसीलिये रिले केन्द्रों का बंद करने का सिलसिला चल ही रहा है। रायपुर व बिलासपुर के एचटीपी रिले केन्द्र 31 अक्टूबर को बंद हो जायेंगे और प्रसारण सेवा का एक अध्याय इतिहास में दर्ज हो जायेगा।
पार्टियों की छूट, प्रसाद की नहीं
दुर्गा पूजा की उत्साह से तैयारी करने वालों को काफी इंतजार करने के बाद दिशा-निर्देश मिल गये हैं। शिकायत थी कि कम से कम पंडाल और मूर्तियों की साइज तो प्रशासन बता दे ताकि कारीगरों को काम दिया जा सके। कमोबेश पिछले साल की तरह की ही गाइडलाइन है, पर इसमें कई बातें लोगों को खटक रही है। जैसे भोग-भंडारे से मना क्यों किया गया है? जब प्रशासन ने खुद ही किसी भी हाल की क्षमता के मुकाबले 50 प्रतिशत लोगों की उपस्थिति में सभा समारोह, लंच, डिनर कराने की छूट दी है और होटल रेस्टारेंट भी खोल दिये हैं तो पूजा पंडाल में प्रसाद बांटने और भंडारा लगाने की इजाजत क्यों नहीं? वैसे भी पंडाल के भीतर 50 से ज्यादा लोगों की उपस्थिति एक समय में नहीं होनी चाहिये, यह गाइडलाइन तो दे दी गई है। दूसरे फंक्शन में 150 को इजाजत और पूजा में 50 लोगों को भी नहीं। यह फैसले का बंगाली समाज के पूजा उत्सव में खासा असर होने वाला है। उनके इलाके में काली बाड़ी होती है, पूरे नौ दिन परिवार का प्रत्येक सदस्य पूजा में शामिल होता है। घर में भोजन बनता ही नहीं और भंडारे का ही भोग लेने का चलन बना हुआ है। बंगाली समाज के एक पुजारी का कहना है कि बिना भोग-भंडारे के तो दुर्गोत्सव की पूजा अधूरी ही मानी जायेगी। जिन लोगों ने भी गाइडलाइन तैयार की उन्हें एक बार सोचना जरूर था कि जब शादी ब्याह और सामाजिक कार्यक्रमों में 150-200 लोगों को भोजन करने की छूट है तो पूजा में 50 लोगों को इजाजत देने में क्या गलत हो जाता।
दुर्गा विसर्जन की गाइडलाइन में कहा गया है कि बड़ी गाडिय़ों में प्रतिमा नहीं निकलेगी। कहीं रुकेगी भी नहीं, झांकी भी नहीं निकाली जायेगी। यहां तक तो ठीक है, पर कहा गया है कि विसर्जन में अधिकतम 10 लोगों को ही अनुमति दी जायेगी और उस छोटी गाड़ी में ही प्रतिमा के साथ सबको एक साथ बैठना होगा। छोटी गाड़ी में 10 लोगों को एक साथ बैठने की अनुमति देने से सोशल डिस्टेंस का पालन कैसे होगा? कोरोना से बचाव के लिये इनका दूर-दूर अलग गाडिय़ों में बैठना ठीक रहेगा, या एक साथ।
गाइडलाइन को बारीकी से पढ़ेंगे तो कई और इसी तरह के अजीब निर्देश मिलेंगे।
गोबर-बिजली में और राज्य पहले से...
दक्षिण के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ‘डेक्कन हेरॉल्ड’ के यू-ट्यूब चैनल में पिछली जुलाई में एक वीडियो अपलोड हुआ था, जिसमें तिरुवल्लूर जिले के वर्धराजापुरम् नाम के गांव की स्टोरी कवर की गई थी। इस गांव में 30-40 परिवारों का व्यवसाय पशुपालन है और उनके पास इतना गोबर इक_ा हो जाता था कि उसे गांव में एक गड्ढा बनाकर फेंक दिया जाता था। इससे गौशाला की सफाई तो होती थी पर गोबर का कोई उपयोग नहीं होता था। वहां के जिला पंचायत सीईओ, आईएएस मगेश्वरी रविकुमार ने जब इस गांव का दौरा किया तो उन्होंने इस गोबर को बायो एनर्जी में बदलने की योजना बनाई। अब इस गांव के लोगों ने कार्बनलूप नाम की एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना ली है। गोबर से बिजली पैदा होती है जो गांव को रोशन कर रही है। इसके अलावा इससे ऑर्गेनिक खाद बनाया जा रहा है, जिसका यहां के खेतों में इसका इस्तेमाल होता है। ‘द हिन्दू’ की एक पुरानी रिपोर्ट है कि लुधियाना की गुरु अंगद देव वेटनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी में सन् 2013 में इसकी लांचिंग हो चुकी थी। इसके चलते पंजाब के कई गांवों में गोबर से बिजली पैदा की जाती है। यूपी और बिहार में भी कुछ स्थानों पर यह प्रयोग किया गया है। छत्तीसगढ़ भी अब उन राज्यों में शामिल हो गया है, जहां गोबर से बिजली पैदा की जा रही है। पर मुख्यमंत्री से कहलवाया गया कि ऐसा करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है। अफसरों ने सीएम को गलत जानकारी दी, बढ़ा-चढ़ाकर दावा करने से किसका भला होगा?
सहदेव का ‘बसपन का प्यार’ क्रिकेट
बसपन का प्यार गीत गाने से देशभर में मशहूर हुए सहदेव दिरदो क्रिकेट भी अच्छा खेलते हैं। बिलासपुर में चल रहे राज्य शालेय क्रिकेट प्रतियोगिता में बस्तर की तरफ से खेलने के लिये वह पहुंचे हुए हैं। उद्घाटन मैच में ही उसने अपनी शानदार बॉलिंग ने लोगों को चौका दिया। उसकी टीम सरगुजा हार जरूर गई पर सहदेव ने तीन विकेट लिये। सहदेव बताते हैं, गाना बसपन का प्यार तो वह गाकर भूल चुका था। संतोष मंडावी सर ने गाना सिखाया और वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया। दो साल बाद अचानक इसकी धूम मच गई तो गाने की तरफ फिर मुड़ गया है, लेकिन क्रिकेट से तो उसे बचपन से प्यार है। अभी हरीश सर उसे क्रिकेट सिखाते हैं। उसे गाना और क्रिकेट खेलना दोनों पसंद है। भविष्य में वह एक अच्छा सिंगर और क्रिकेटर दोनों ही बनना चाहता है। गांव की कच्ची सडक़ पर वह बचपन से क्रिकेट खेलता था। अब भी वह स्कूल में नियमित अभ्यास करता है। राज्य खेल स्पर्धा में करीब 1 हजार खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। खिलाडिय़ों को पता चलता है कि सहदेव भी उनके साथ रुका है, वे सेल्फी लेने की मांग करते हैं। उनके मैनेजर बता रहे हैं कि सहदेव बार-बार लोगों की जिद से परेशान होकर रोने भी लगा था।
खादी भंडार में बरसों बाद भीड़
प्रदेश भाजपा ने महात्मा गांधी का जन्मदिन कूद-कूदकर मनाया। राजनीतिक हल्कों में भाजपा नेताओं का गांधी प्रेम चर्चा का विषय बना हुआ है। जनसंघ, और भाजपा की स्थापना के बाद पहली दफा गांधी जयंती के मौके पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। रमन सिंह, और पार्टी के छोटे-बड़े नेता स्वच्छता का संदेश देने झाडू लेकर सडक़ों पर निकले। और बाद में खादी कपड़ों की जमकर खरीददारी की गई।
आजाद चौक स्थित खादी भंडार में गांधी जयंती के मौके पर बरसों बाद भीड़ देखी गई। वहां खरीददारी करने रमन सिंह, विष्णुदेव साय, और बृजमोहन अग्रवाल कार्यकर्ताओं के साथ पहुंचे। बृजमोहन ने तो कार्यकर्ताओं को अपनी पसंद का कपड़ा लेने के लिए कह दिया। ज्यादातर कार्यकर्ताओं ने गमछा, और रूमाल ही लिया।
वैसे भी पार्टी के बाकी नेताओं की तुलना में बृजमोहन को खर्च करने के मामले में काफी उदार माना जाता है। उनको लेकर यह भी प्रचारित रहा है कि मंत्री पद पर रहते बृजमोहन के विभाग का एक हिस्सा अघोषित रूप से दान पुण्य में ही खर्च होता था। सब खरीददारी कर रहे थे, तो महिला मोर्चा की कार्यकर्ता भला पीछे कैसे रहती।
बृजमोहन ने उन्हें भी कपड़ा लेने की छूट दे दी। और महिला कार्यकर्ताओं ने महंगी-महंगी साडिय़ां पसंद की, तो बृजमोहन ने उन्हें नहीं रोका। कुल एक लाख का बिल बना। बृजमोहन ने 20 हजार तो तुरंत दे दिए, बाकी पैसे भिजवाने की बात कहकर सबको संतुष्ट कर दिया।
खरीददारी में रमन सिंह भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने बृजमोहन, विष्णुदेव साय, सुनील सोनी, और खुद के लिए कुर्ता पैजामा, और केसरिया जैकेट खरीदे। बरसों बाद रमन सिंह को खरीददारी करते, और फिर जेब से पैसे निकालकर भुगतान करते देखा गया। यह दृश्य देखकर कईयों को सुखद आश्चर्य भी हुआ। आम तौर पर कई बड़े नेता जेब में पैसे नहीं रखते हैं।
रमन सिंह की तरह दिवंगत विद्याचरण शुक्ल, और तरूण चटर्जी को लेकर यह बात कही जाती है कि वो अपने राजनीतिक जीवन में जेब में पैसे लेकर नहीं निकले। जब राह चलते किसी को मदद करने की बात आती थी, तो विद्याचरण शुक्ल के साथ इतने करोड़पति लोग साथ होते थे जो कि शुक्ल की मन की बात समझते थे, और तुरंत हाथ खोलकर खर्च करने में पीछे नहीं रहते थे। कुछ भी हो, गांधी जयंती पर दिग्गजों को अपने जेब से खर्च करते देखना चौंकाने वाला भी रहा।
किस्सा कुर्सी का...
खेती-किसानी में सुधार सरकार की पहली प्राथमिकता है। मगर ढाई साल में इस विभाग के पांच कृषि उत्पादन आयुक्त बदले जा चुके हैं। सरकार बदलते ही सबसे पहले सुनील कुजूर कृषि उत्पादन आयुक्त बने। इसके बाद केडीपी राव को कृषि उत्पादन आयुक्त बनाया गया।
केडीपी के रिटायर होने के बाद मनिंदर कौर द्विवेदी इस पद पर रहीं। कुछ विवाद के बाद उन्हें हटा दिया गया, और फिर डॉ. एम गीता को कृषि उत्पादन आयुक्त का दायित्व सौंपा गया। एम गीता की भी बदली हो गई, और अब डॉ. कमलप्रीत सिंह कृषि उत्पादन आयुक्त की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। सबसे कम प्रयोग आबकारी विभाग में हुए हैं जहां डॉ. कमलप्रीत के बाद निरंजन दास सचिव बने हुए हैं। जबकि हेल्थ, पंचायत, फूड में भी दो से अधिक बार सचिव बदले जा चुके हैं।
वादा करके नहीं भूले सिंहदेव, बस पूरा नहीं हुआ...
2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान घोषणा पत्र तैयार करने में तब के नेता प्रतिपक्ष और अब स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की प्रमुख भूमिका रही। हर उस वर्ग को जो आंदोलन कर रहा था, मांगें पूरी करने का आश्वासन दिया गया और घोषणा पत्र में उसे शामिल किया गया। ऐसा ही एक वायदा था स्कूलों में नियुक्त सफाई कर्मचारियों को कम से कम कलेक्टर दर पर वेतन देने और शासन की सेवा में शामिल करने का। सैकड़ों की संख्या में स्कूली सफाई कर्मचारी सिंहदेव के महल, कोठीघर के सामने धरने पर बैठ गये। इतनी बड़ी संख्या, कि पूरा रास्ता जाम हो गया। हालांकि कोठीघर की सुरक्षा के लिये पहले से ही पुलिस ने उसकी घेराबंदी कर दी थी।
धरने पर बैठे लोग सिंहदेव के मतदाता थे, आश्वासन उन्हें दिया गया था। उनका सामना भी आगे करना ही है। धरनास्थल पर ही लोगों ने उनसे वीडियो कॉल कर बात की। सिंहदेव उपलब्ध हो गये। सफाई कर्मचारियों ने याद दिलाया कि आपने तो हमें लिखकर दिया है कि सरकार बनने के 10 दिन के भीतर हमें कलेक्टर रेट पर मजदूरी देंगे और शिक्षा विभाग में शामिल करेंगे। सिंहदेव ने समझाने की कोशिश की। धीरे-धीरे सब वादा पूरा कर रहे हैं, देर हो गई है। पर आंदोलन करने वाले उनकी बात सुन नहीं रहे थे। कहा- तीन साल हो रहे हैं कब पूरा करेंगे। सिंहदेव ने आखिर में जिम्मेदारी मुख्यमंत्री के ऊपर डाल दी। कहा कि वे ही बता पायेंगे, कब तक आपसे किया गया वादा पूरा होगा। आंदोलन करने वालों ने कहा कि क्या आप उनसे बात करेंगे, सिंहदेव ने कहा-हां करेंगे। क्या आप हमसे मिलवा देंगे, सीएम से। कुछ साफ जवाब नहीं।
चुनाव घोषणा पत्र सबने मिलकर तैयार किया, जो आश्वासन दिये गये उस पर भी सहमति सबकी थी। आश्वासन पूरा नहीं होने पर अब गुस्सा निकलकर बाहर आने लगा है क्योंकि दो माह बाद सरकार को तीन साल पूरे हो जायेंगे। जो भी हो, सिंहदेव ने बचकर निकलने का नहीं सोचा, वीडियो कॉलिंग को टाला नहीं। वे अपने वायदे से मुकरे भी नहीं। सच्चाई स्वीकार कर ली कि हां, वादा किया था। यह बात अलग है कि जिम्मेदारी उन्होंने सीएम पर डाल दी है।
दिल्ली में सीजी सचिवालय!
भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर का एक ट्वीट फिर चर्चा में है। दिल्ली गये विधायकों और मंत्रियों को लेकर उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा है। कहा- छत्तीसगढ़ का एक सचिवालय दिल्ली में भी खोला जाना चाहिये, ताकि माननीय मंत्री और विधायक वहीं से अपने क्षेत्र की तथाकथित रूप से सेवा कर सकें, क्योंकि आजकल माननीय लोगों की दिल्ली में खूब परेड हो रही है।
पता नहीं लोगों को यकीन क्यों नहीं हो रहा। जब विधायक कह रहे हैं कि वे दिल्ली घूमने के लिये गये हैं तो मान लेना चाहिये। घूमना-फिरना अकेले तो होता नहीं इसलिये बहुत से लोग एक साथ गये हैं।
संयोगिता खुद को मजबूत कर रहीं...
जशपुर कुमार युद्धवीर सिंह जूदेव ने अपनी पत्नी संयोगिता सिंह को उनकी राजनीति में प्रवेश करने का फैसला लेने के बाद कुछ पंक्तियां लिखी थीं युद्धवीर सिंह ने एक किताब आरएसएस भेंट की थी, उसी के कवर के बाद वाले पन्ने पर यह पंक्तियां लिखी गईं। संयोगिता सिंह ने इसे सोशल मीडिया पर शेयर किया है। अपनी पत्नी को इसमें संबोधित करते हुए युद्धवीर सिंह लिखते हैं- यह पवित्र किताब देने का कारण यह है कि मेरी तरह आप भी अब सार्वजनिक जीवन में आ चुकी हैं। और जब आप इस नये जीवन में प्रवेश करते हैं तो आपको अपनी विचारधार का चयन करना होता है। चूंकि हमारा दल, हमारी सोच राष्ट्रवादी एवं हिन्दुत्व विचारधारा की है,तो हमें सबसे ज्यादा सीख अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से मिलती है। भगवा झंडे के प्रति हमारी आस्था को जोडऩे में यह किताब आपकी मदद करेगी।
यह पत्र बताता है कि संयोगिता सिंह युद्धवीर सिंह और जूदेव परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिये खुद को मानसिक रूप से तैयार कर रही हैं।
हसदेव अरण्य के दफ्तर में बापू का कैलेंडर..
महात्मा गांधी ने कहा था- ‘धरती के पास सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त है, किंतु किसी के लालच के लिए नहीं। मुझे प्रकृति के अतिरिक्त किसी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं है, उसने कभी भी मुझे विफल नहीं किया है। जब तक हम प्रकृति के विरुद्ध हिंसा को रोकने वाला पारिस्थितिकी आंदोलन खड़ा नहीं करेंगे, तब तक अहिंसा का सिद्धांत मानव संस्कृति की नीति का केंद्र नहीं बनेगा।’
बापू को समर्पित छत्तीसगढ़ सरकार का यह कैलेंडर हसदेव अरण्य के एक सरकारी भवन में लगा है। इस कैलेंडर में बापू के लिखे एक-एक शब्द गौरतलब हैं। यह संयोग है कि प्रकृति को बचाने हसदेव अरण्य के आदिवासी आज से अहिंसक आंदोलन कर रहे हैं। (सोशल मीडिया से)
बापू की कुटिया का उद्घाटन और संचालन
छत्तीसगढ़ के तीन शहर रायपुर, नया रायपुर और बिलासपुर स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल हैं। इस परियोजना पर अफसरों का पूरा नियंत्रण है, जनप्रतिनिधियों की यहां तक कि महापौर और विधायकों की भी कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में कोई जवाबदेही इन पर बनती नहीं है। दूसरे राज्यों की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की देखा-देखी छत्तीसगढ़ के तीनों शहरों में बापू की कुटिया प्रोजेक्ट भी शामिल है। रायपुर नगर निगम के सभी जोन में एक-एक बापू की कुटिया बनाने का फैसला चार साल पहले लिया गया था। इनमें से अधिकांश तो बन गये, कमरे खड़े हो गये। जोर-शोर से उद्घाटन कर दिया गया, पर अब इसके रख-रखाव पर किसी का ध्यान नहीं है। इसे ठेके पर देने की योजना बनाई गई थी, जिसमें संचालक को जुंबा डांस (जो स्मार्ट सिटी योजनाकारों का सबसे पसंदीदा खर्च है), किटी पार्टी की छूट भी दी जाने वाली थी। हालांकि योगा, आर्ट चिल्ड्रेन पार्टी की योजना भी थी। पर हाल यह है कि अधिकांश कुटिया बंद मिल रहे हैं। शुरू-शुरू में बुजुर्ग योगा, ध्यान, मेल-मुलाकात के लिये यहां इक_े होते थे पर अव्यवस्था के कारण अब लोग यहां नहीं पहुंचते। कुछ तो आवारा कुत्तों का सराय भी बन गये हैं।
पर इससे कोई सबक लिया गया हो, ऐसा नहीं लगता। रायपुर में विफलता के बावजूद बिलासपुर में भी बापू की कुटिया यहां के स्मृति वन में तैयार की गई हैं। आज इसके उद्घाटन का कार्यक्रम रखा गया है। बजट है सो खर्च कर दिया गया। भवन अभी तो अच्छे दिख रहे हैं, पर अगले 2 अक्टूबर को मालूम होगा कि कुटिया बुजुर्गों के किसी काम की रही या नहीं।
गांधीवादी रास्ते से हटी शराब दुकान...
एक बार शराब दुकान खुलने के बाद उसे हटाने की मांग उठती है तो यह जिला प्रशासन और आबकारी विभाग के लिये नाक का सवाल बन जाता है। वे जल्दी सुनने के लिये तैयार नहीं होते। पर धमतरी के नागरिकों ने एक माह का लंबा आंदोलन कर सफलता पाई। यहां के सोरिद वार्ड में 1 सितंबर से शराब दुकान के सामने उसे हटाने की मांग पर धरना शुरू किया गया। तरीका गांधीवादी था। कोई उत्पात नहीं। लोग आते रहे, धरने पर बैठते रहे। महिलायें गांधी की तस्वीर लेकर खड़ी हो गईं और शराब खरीदने वालों की तिलक लगाकर आरती उतारने लगीं। कुछ दिन पहले स्कूली बच्चों ने यूनिफॉर्म में ब्लैक बोर्ड लगाकर क्लास शुरू कर दी थी, जिसमें द से दारू, च से चखना..., पढ़ाकर विरोध जताया गया। मीडिया में इन घटनाओं को खूब कवरेज मिला था। शराब पीने, खरीदने वाले भी शर्मिंदा हो रहे थे।
आखिरकार गांधी जयंती के एक दिन पहले आबकारी विभाग ने इस दुकान पर ताला लगा दिया है। अधिकारियों ने धरना देने वालों से कहा कि अब तो पंडाल समेट लीजिये, हम शराब दुकान कहीं और ले जायेंगे। अधिकारियों की बात आंदोलनकारियों को जंच गई, पर अभी पूरा यकीन नहीं है। इसीलिये धरना जारी है। जब तक यह दुकान खाली नहीं कर दी जाती और बोर्ड हटा नहीं दिया जाता- बैठेंगे। आज गांधी जयंती के दिन भी उनका विरोध जारी रहा।
न्याय के कुछ सुगम रास्ते, जो मालूम नहीं हैं..
जरूरी सेवाओं के प्रति मशीनरी को जवाबदेह बनाने के लिये नालसा (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) ने देशभर के प्रमुख शहरों में जनोपयोगी अदालतों का गठन किया है। छत्तीसगढ़ के पांच संभागीय मुख्यालय बस्तर, सरगुजा, रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में ये अदालतें काम कर रही हैं। यह एक ऐसी कोर्ट है जिसमें कोई कोर्ट फीस नहीं देनी होती। एक प्रारूप में शिकायत जमा करनी होती है। यह प्रारूप अदालत में भी उपलब्ध है और ऑनलाइन भी डाउनलोड किया जा सकता है। यह ऐसी अदालत भी है जहां मुकदमों की संख्या बेहद कम है। पर यहां बैठने वाले जज की शक्तियां जिला जज के बराबर होती है।
इसी अदालत की शरण ली गई है अंबिकापुर में पार्क के लिये प्रस्तावित जमीन पर नगर निगम का नया प्रशासनिक भवन बनाने से रोकने के लिये। राज्य सरकार ने मौजूदा नगर निगम कार्यालय में जगह की कमी को देखते हुए नये भवन के लिये 5 करोड़ रुपये मंजूर किये हैं। नगर निगम की पुरानी बिल्डिंग के सामने बने धुंआधार पार्क पर इसे बनाने का निर्णय लिया गया। कुछ जागरूक नागरिकों ने इसका विरोध किया और कहा कि प्रस्ताव के अनुसार इस जगह पर पार्क का निर्माण किया जाना चाहिये। नई बिल्डिंग बनाकर पार्क की जमीन को नष्ट नहीं करना चाहिये। बात नहीं बनी तो अंबिकापुर के जनोपयोगी अदालत में परिवाद दायर कर दिया गया है। प्रशासन का तर्क है कि नगर-निगम की पुरानी और नई बिल्डिंग आसपास होनी चाहिये, कलेक्ट्रेट भी सामने है। इसलिये इस जगह का चुनाव किया गया। पर याचिका लगाने वालों का कहना है कि पार्क की जमीन से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। बिल्डिंग को तो कहीं भी खड़ी की जा सकती है। वहां जनोपयोगी अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली है और नगर निगम आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुनवाई 5 अक्टूबर को रखी गई है।
हम आप अपने-आसपास कितनी ही अव्यवस्था देखते हैं। सडक़ों के गड्ढे नहीं भरे जाते, ट्रैफिक की व्यवस्था नहीं सुधरती, बिजली बार-बार गुल हो जाती है, पानी की सप्लाई नहीं होती, सफाई शुल्क देते हैं पर सफाई नहीं होती, अस्पताल में इलाज और जांच की लापरवाही का शिकार होते हैं। केन्द्र सरकार की भी अनेक सेवायें, डाक, बीमा आदि कितनी ही समस्याओं से हम दो-चार होते हैं। इन अदालतों में आवेदन लगाया जा सकता है।
खास बात यह है कि इस अदालत में वे मामले लाये जा सकते हैं जो अपराध नहीं होने पर कर्तव्य में लापरवाही की होती है। इसलिये सजा देने के बजाय समझाइश और समझौते को तवज्जो दी जाती है। समझौता नहीं होने पर ही कोई आदेश पारित किया जाता है। हाल ही में जब राष्ट्रीय लोक अदालत प्रदेशभर में रखी गई थी तो इन जनोपयोगी अदालतों का खूब प्रचार भी शिविरों के दौरान किया गया था। संभवत: अंबिकापुर में भी परिवाद उसी से प्रेरित होकर ही लाया गया।
केबीसी में एक सवाल रेलवे जोन पर
‘कौन बनेगा करोड़पति’ में हर बार की तरह इस बार भी छत्तीसगढ़ को अच्छा अवसर मिल रहा है। 30 सितंबर के एपिसोड में एक सवाल पर हॉटसीट पर बैठे बस्तर में तैनात सीमा सुरक्षा बल के अश्वनी कुमार सिन्हा अटक गये। उन्होंने अपनी लाइफलाइन का इस्तेमाल करते हुए प्रश्न बदलने कहा। ऑप्शन लिया, माई सिटी, माई स्टेट। उनसे पूछा गया कि भारतीय रेलवे का कौन सा जोनल मुख्यालय बिलासपुर में स्थित है। सिन्हा जी ने थोड़ी देर विचार किया पर इस सवाल के जवाब में उन्हें फिर लाइफ लाइन की जरूरत पड़ गई। दो गलत ऑप्शन हटाये गये तब सही जवाब दे पाये- दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे। रेलवे के अधिकारी एपिसोड के इस हिस्से को खूब शेयर कर रहे हैं। सिन्हा जी को जवाब देने में कठिनाई जरूर हुई पर केबीसी में अमिताभ बच्चन की ओर से रेलवे जोन पर सवाल किया जाना उन्हें बहुत भाया। गौरतलब है कि इंडियन रेलवे में बिलासपुर का एसईसीआर सबसे ज्यादा कमाई देने वाला जोन भी है।
रोगी, भोगी अमित..., जोगी बनने की राह पर
पूर्व विधायक व जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नेता अमित जोगी बीते 10 दिनों तक विपश्यना शिविर में चले गये थे। वहां मौन धारण करना पड़ता है। मानसिक तनाव से मुक्ति और आत्मबल बढ़ाने के लिये काफी लोग यहां पहुंचते हैं। अमित लौटकर सोशल मीडिया पर बता रहे हैं कि अब वे अपने नाम (सरनेम) की तरह जोगी बनने की राह पर निकल पड़े हैं। विपश्यना सीखने से पहले वे रोगी और भोगी थे।
बहुत से जोगी, योगी राजनीति में हैं पर उनका रोग और भोग से नाता छूट नहीं पाता है। सचमुच का जोगी बनने के लिये राजनीति, पद, मोह, माया, रोग, भोग से दूर रहना पड़ेगा। पार्टी टूट रही है, जुड़ रही है, इन विषयों को निर्विकार भाव से ग्रहण करना होगा। क्या करने वाले हैं, उन्होंने साफ नहीं किया।