राजपथ - जनपथ
बुरे फंसे नेताजी
छत्तीसगढ़ में धर्म संसद कांग्रेस नेताओं की गले की फांस बन गई है, क्योंकि इस धर्म संसद के आयोजन समिति में तमाम कांग्रेस नेताओं के नाम है। इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के कालीचरण गांधी के बारे में भड़ास निकालकर चले गए। कांग्रेसी आपस में कानाफूसी कर रहे हैं कि कांग्रेस नेताओं ने आखिर कालीचरण को बिना परखे बुलाय़ा ही क्यों ? कांग्रेस कौशल्या मंदिर, राम वन गमन पथ और गोधन जैसी योजनाओं के जरिए बीजेपी के हार्डकोर मुद्दों को छिनने की कोशिश में है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इन मुद्दों को छोडक़र कांग्रेस को धर्म संसद के आयोजन की आवश्यकता क्यों पड़ गई ? कुछ का कहना है कि कांग्रेसियों ने उत्साह में धर्म संसद का आयोजन कर बीजेपी से धार्मिक मुद्दे को भी हथियाने की योजना बनाई थी, लेकिन मामला पूरा उलटा पड़ गय़ा है। अब कांग्रेस के बड़े नेता आयोजन मंडल से भी सवाल-जवाब कर रहे हैं। विवादित बयान के बाद तमाम टीवी डिबेट में धर्म संसद में प्रमुख भूमिका निभाने वाले कांग्रेस नेता को ही बुला रहे हैं। वे ऐसे सवालों से घिर रहे, जिसका न तो जवाब देते बन रहा है और न ही सवाल करते। कांग्रेस के दूसरे प्रवक्ता इस मुद्दे से कन्नी काटते ही नजर आ रहे हैं। बेचारे नेताजी अच्छा करने के चक्कर में ऐसे फंसे जैसे सर मुंडवाते ही ओले गिर गए हों।
एक बाघ के कितने ठिकाने?
एक जैसा जंगल, एक जैसे बाघ और एक जैसे दूसरे जंगली प्राणी। आसानी से लोग भांप नहीं पाते। और जाने अनजाने में बड़े-बड़े मीडिया संस्थान भी बिना तहकीकात किए गलतियां कर जाते हैं। कई बार यह जानबूझकर होती है तो कई बार सच्चाई परखने के लिए कोशिश नहीं की जाती। दरअसल, वन्य जीवन, जीवों व बाघों का पढ़ा जाना, देखा जाना रोचक, रोमांचक होता है। दर्शक, पाठक भी ज्यादा छानबीन नहीं कर पाते हैं।
अभी खबर है कि सोमवार के दिन राजधानी के कई अखबारों में एक खबर छपी कि इंद्रावती टाइगर रिजर्व में एक बाघिन को तीन शावकों के साथ देखा गया है। दरअसल या कई महीने पुरानी तस्वीर है और सोशल मीडिया पर अलग-अलग जगह की बताकर छपती रही है। यहां तक कि देश के जाने-माने चैनल भी इसे अलग-अलग जगहों का बताकर टेलीकास्ट करते रहे।
इस साल 25 मार्च 1921 को चंपावत खबर, यूट्यूब चैनल ने बाघिन और उनके शावकों का यही वीडियो अपलोड किया और बताया कि यह टनकपुर, उत्तराखंड के ककराली गेट के पास का वीडियो है। इसी वीडियो को नवंबर महीने में भी पेंच नेशनल पार्क का बताकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया। एबीपी न्यूज़ ने 11 दिसंबर को इस को सोनभद्र कोयला खदान के पास का वीडियो बता कर प्रसारित किया। इसी दिन नवभारत टाइम्स ने इस वीडियो को अपने यूट्यूब चैनल पर भी साझा किया। 16 दिसंबर को ज़ी न्यूज़ ने भोपाल के केरवा डैम के पास बताकर यही वीडियो डाली। ताजा-ताजा 28 दिसंबर को पहाड़ न्यूज़ नाम के यू-ट्यूब चैनल ने इसे नैनीताल का बताकर साझा किया। संभवत: व्हाट्सएप पर यह वीडियो इधर उधर फैलती रही और बड़े-बड़े अखबारों, चैनलों ने इसे जस का तस ले लिया होगा। जरूरी नहीं यह सिलसिला यहीं रुक जाये, आगे भी किसी नई जगह को इन बाघ व शावकों का ठिकाना बताया जा सकता है।
हिंदू सेना में कांग्रेस एमएलए
देश में हिंदुत्ववादी और हिंदूवादी को लेकर राहुल गांधी द्वारा चलाई गई बहस और राजधानी रायपुर में हुए धर्म संसद से मचे बवाल से बेपरवाह मनेंद्रगढ़ से कांग्रेस के विधायक डॉ विनय जायसवाल की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई है। इसमें वे हिंदू सेना के एक कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति दिखाई जा रही है। इसे ताजा तस्वीर बताई जा रही है। दरअसल, दोनों ही वाकयों से यह ज्यादा जरूरी हो गया है कि देशवासियों, विरोधी दलों और आम लोगों से पहले राहुल गांधी अपनी पार्टी के लोगों को ही हिंदू और हिंदुत्व का मतलब समझा लें, यह जरूरी होगा।
छत्तीसगढ़ की वन औषधियों पर स्टडी
छत्तीसगढ़ की वन औषधि संपदा को एक नया मुकाम हासिल हुआ है। देश में पहली बार किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय ने इसके लिए अपने संस्थान में स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र शुरू किया गया है। डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर में स्थापित इस केंद्र में छत्तीसगढ़ की पारंपरिक औषधियों पर आधारित चिकित्सा पद्धति और वैद्यकीय ज्ञान का अध्ययन होगा। इस शिक्षा पद्धति की वैज्ञानिकता और दुर्लभ औषधियों के संरक्षण तथा संवर्धन का काम भी अध्ययन केंद्र करेगा। 2 साल पहले इसी विश्वविद्यालय में जनजाति पारंपरिक ज्ञान विज्ञान विषय पर एक राष्ट्रीय सेमिनार हुआ था जिसमें छत्तीसगढ़ के 36 वैद्यों ने भाग लिया था। तब विश्वविद्यालय परिसर में 1200 औषधीय पौधे रोपित भी किए गए थे और 125 जड़ी बूटियों का प्रदर्शन भी शामिल किया गया था। अपने राज्य में औषधि पादप बोर्ड का गठन भी किया गया है। कई दवाओं के पेटेंट का काम भी शुरू किया गया है। बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी वैद्यकीय ज्ञान पर शोध की योजना बनाई गई थी, लेकिन वह किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाई। अब राज्य के बाहर इसकी पूछ-परख हुई है।
शराबबंदी कानून पर सीजेआई..
भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमणा ने कहा है कि बिहार में लागू शराबबंदी कानून अदूरदर्शी है। उन्होंने लॉ मेकिंग पर एक व्याख्यान में इसका जिक्र करते हुए कहा कि इसके चलते हाईकोर्ट में जमानत आवेदनों की बाढ़ आ गई है। ऐसे कानूनों की वजह से कोर्ट पर अतिरिक्त भार पड़ता है और सुनवाई के अभाव में अन्य मामले लंबित होते चले जाते हैं। आरजेडी जो वहां की नीतिश सरकार की विपक्षी पार्टी है, के नेता कह रहे हैं कि शराबबंदी के चलते राज्य में एक समानान्तर इकॉनामी खड़ी हो गई है। माफिया तो खुले आम शराब की तस्करी कर रहे हैं पर गरीब लोगों को जेल जाना पड़ रहा है।
दरअसल, शराबबंदी पर ढीले कानून का मतलब है उसका विफल हो जाना, और कड़े कानून का मतलब है, पुलिस को मोटी रिश्वत का रास्ता मिलना। या फिर, आसानी से जमानत नहीं मिलना और हाईकोर्ट की शरण में जाना।
शराबबंदी छत्तीसगढ़ सरकार का एक बड़ा चुनावी मुद्दा था। भाजपा आये दिन इसे लागू नहीं करने पर उसे घेर रही है। ऐसे में सीजेआई के बयान को सामने रखकर छत्तीसगढ़ सरकार अपने बचाव में कुछ बयान चाहे तो दे सकती है।
बाबा की जयंती पर करियर मेला
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने पिछड़े और दलित समाज के लिये शिक्षा को सबसे जरूरी बताया था। इसलिये, यह कोई अचरज की बात नहीं है कि देश के अलग-अलग हिस्से में उच्च पदों पर बाबा के अनुयायी बैठे हैं। बाबा के संदेश को उन्होंने अच्छी तरह अपनाया और समाज में अपनी जगह अपने परिश्रम से बनाई। छत्तीसगढ़ में भी गुरु घासीदास की अनुयायी पीढ़ी में यह बदलाव दिख रहा है। आम तौर उत्सव, जुलूस, पूजा, रैलियां तो गुरु घासीदास जंयती पर रखी ही जाती हैं, पर कुछ हटकर भी काम किये गये। जैसे मस्तूरी ब्लॉक के लोहर्सी ग्राम में सतनामी समाज के युवाओं ने इस उत्सव के दौरान करियर मार्गदर्शन मेला लगाया। दो दिन तक विशेषज्ञों ने शिक्षा, रोजगार और व्यवसाय से जुड़े युवाओं की अनेक जिज्ञासाओं का समाधान किया। सैकड़ों लोगों ने इसका लाभ उठाया। यह पिछड़े समाज की नई पीढ़ी में बदलाव का एक अच्छा उदाहरण।
नक्सल ऑपरेशन में महिला आईपीएस
साल 2021 तीन महिला आईपीएस अधिकारियों की उपलब्धियों को अलग तरह से गिना जा रहा है। एक वेबसाइट के अनुसार इनमें एक तो रंजीता शर्मा हैं जिन्हें इस साल 6 अगस्त को सरदार वल्लभभाई पटेल नेशनल पुलिस अकैडमी के 72वें दीक्षांत समारोह में स्वार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया गया। पहली बार यह अवार्ड किसी महिला आईपीएस को मिला। दूसरी आईपीएस अधिकारी नीना सिंह हैं। राजस्थान में कोई महिला पहली बार महानिदेशक के पद पर पहुंची। तीसरी हैं अंकिता शर्मा। दुर्ग जिले की आईपीएस अंकिता शर्मा को होम कैडर छत्तीसगढ़ मिला है। जून माह के आखिर तक वे रायपुर में सिटी एसपी थीं। उसके बाद नक्सल प्रभावित बस्तर जिले का एएसपी बना दिया गया। उन्हें ऑपरेशन बस्तर की जिम्मेदारी सौंपी गई है। बस्तर के कई नक्सली मुठभेड़ में वह शामिल ही नहीं बल्कि आगे रहती हैं। कहां जा रहा है कि पहली बार किसी महिला आईपीएस को नक्सल ऑपरेशन की कमान सौंपी गई है। सन 2018 बैच की अंकिता शर्मा के पति भारतीय सेना में कैप्टन हैं। उन्होंने शादी के बाद ही आईपीएस एग्जाम क्लियर किया था।
इसी साल 26 जनवरी को रायपुर में पुलिस ग्राउंड में उन्होंने परेड का नेतृत्व भी किया था। रायपुर में रहते हुए उन्होंने अपने सीएसपी दफ्तर में ही रविवार को यूपीएससी दिलाने की इच्छुक युवाओं की काउंसलिंग भी शुरू की थी। एक बार उनकी चर्चा तब भी हुई थी जब उन्होंने विधायक शकुंतला साहू को उनकी औकात वाली बात पर पलट कर जवाब दे दिया था। महिला आईपीएस अधिकारियों की उपलब्धियों में अपने छत्तीसगढ़ से भी एक अधिकारी का नाम लिया जा रहा है, यह उल्लेखनीय है।
जल्दी घर लौटने के दिन
छत्तीसगढ़ में इन दिनों जिस तरह कड़ाके की ठंड पड़ रही है, बाइक और साइकिल पर चलने वाले लोग शाम के वक्त घर जल्दी पहुंचना चाहते हैं। अब इसकी एक बड़ी वजह और सामने आ रही है। वह है कई शहरों में स्ट्रीट लाइट का गुल हो जाना।
एक मोटे आंकड़े के मुताबिक विद्युत वितरण कंपनी को प्रदेश के विभिन्न नगरीय निकायों से 350 करोड़ रुपए बिजली बिल का बकाया वसूल करना है। अकेले बिलासपुर नगर निगम के खाते में 57 करोड़ रुपए की उधारी दर्ज है। यहां बार-बार स्ट्रीट लाइट बंद की जा रही है और कभी कलेक्टर, तो कभी नगर निगम के आयुक्त अनुनय विनय कर जन सुविधाओं का हवाला देते हुए बिजली आपूर्ति शुरू करा रहे हैं। सडक़ों पर अंधेरा होने के कारण लोगों को जल्दी घर लौटने में ही भलाई दिख रही है। हालांकि जिन्हें रात की ड्यूटी करनी है, यात्रा करनी है, उन्हें निकलना पड़ रहा है।
नगरीय निकायों का बकाया बिल केवल स्ट्रीट लाइट का नहीं है बल्कि जलापूर्ति और दफ्तरों की बिजली पर चलने वाले मीटर से भी बढ़ता जा रहा है। अभी बात वहां सप्लाई बंद करने तक नहीं पहुंची है क्योंकि वे निहायत जरूरी सेवाओं में शामिल हैं।
वैसे नगरीय निकायों की माली हालत तो कर वसूली में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के कारण बार-बार खराब होती रहती है पर दूसरे सरकारी विभागों का बिल भी लंबा चौड़ा बाकी है। इनमें पुलिस विभाग भी शामिल है। अभी बिजली विभाग के अफसरों ने इधर हाथ डालने के बारे में नहीं सोचा है। कोई वजह होगी।
पीएससी की तैयारी और गांजा
जांजगीर-चांपा इलाके के दो ऐसे युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है जो खास तौर पर पीएससी कोचिंग के लिए बिलासपुर में रहते हैं।
इन लोगों से गांजा बरामद किया गया है। पूछताछ में इन युवकों ने बताया कि जेब खर्च निकालने के लिए उनको ऐसा करना पड़ रहा है। प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने की मंशा रखने वाले युवकों का अपराध की दुनिया में लिप्त होना यह बताता है कि युवा पीढ़ी कठिन दौर से गुजर रही है।
जांजगीर-चांपा इलाके के दो ऐसे युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है जो खास तौर पर पीएससी कोचिंग के लिए बिलासपुर में रहते हैं।
इन लोगों से गांजा बरामद किया गया है। पूछताछ में इन युवकों ने बताया कि जेब खर्च निकालने के लिए उनको ऐसा करना पड़ रहा है। प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने की मंशा रखने वाले युवकों का अपराध की दुनिया में लिप्त होना यह बताता है कि युवा पीढ़ी कठिन दौर से गुजर रही है।
एक और पदयात्रा राजधानी की ओर
बीते 3 महीनों के भीतर यह तीसरी पदयात्रा है जो राजधानी पहुंचने वाली है। कड़ाके की ठंड के बीच लंबी पदयात्रा कर अपनी मांगों को सरकार के सामने रखने का संघर्ष आसान नहीं है। यह गांधीवादी रास्ता है। इस बार बस्तर से स्कूली सफाई कर्मचारियों का पैदल मार्च शुरू हुआ है। उनका सफर 8 दिन पूरा कर चुका हूं है और अब वे बालोद जिले से आगे बढ़ गए हैं। उनकी मांग सेवाओं को नियमित करने की है। मौजूदा सरकार के अनेक चुनावी वायदों में से एक यह भी रहा है। राजधानी पहुंचने के बाद क्या वे अपने उद्देश्य को पूरा करा पाएंगे?
चंदा के कारण गए काम से
स्व पवन दीवान अपनी बेबाकी और साफगोई के लिए खासे जाने जाते रहे हैं। कविताओं और कथाओं में उनके व्यंग्य न केवल लोगों को गुदगुदाते थे, बल्कि समाज की बुराइयों के खिलाफ सोचने के लिए विवश भी करते थे। एक थी लडक़ी मेरे गांव में चंदा उसका नाम था... कविता के जरिए उन्होंने छत्तीसगढ़ी महतारी का वर्णन किया, हालांकि लोगों ने कविता के मर्म को नहीं समझा और इसे अलग रूप दे दिया। चुनाव के दौरान इस कविता की पात्र चंदा को बड़ा मुद्दा बनाया गया, जिसकी वजह से वे चुनाव हार भी गए। पवन दीवान की बेबाकी का इसका बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि उन्होंने अपनी हार पर ही कविता लिख डाली और स्वीकार किया कि इस बार के चुनाव में हम गए काम से, बदनाम कर दिया चंदा के नाम से। खैर, ये तो बात हुई पवन दीवान की सरलता की, लेकिन आजकल के नेता क्या इतनी साफगोई से बातों को स्वीकार कर पाते हैं ? छत्तीसगढ़ में हाल ही में नगरीय निकाय के चुनाव हुए हैं, जिसमें खुलकर चंदा-चकारी हुई है। कुछ जगहों पर चंदे के कारण विवाद की भी नौबत आ गई थी, तो कई जगहों पर चुनावी मुद्दा भी बना। बीरगांव के चुनाव में तो कुछ प्रत्याशियों ने अपने करीबियों के बीच हार का ठीकरा चंदे पर फोड़ा है। ऐसे में उन्हें भी पवन दीवान की तरह चंदे की बदनामी का रहस्य सार्वजनिक जगहों पर खोलना चाहिए।
मलाईदार में मलाई नहीं
कलेक्टरी के बाद आईएएस अफसरों की पहली पसंद मलाईदार विभाग होती है। ऐसे अफसर कम ही होते हैं, जिन्हें आसानी से मनपसंद मलाईदार विभाग में पोस्टिंग मिले। सभी जानते हैं कि इसके लिए खूब पापड़ बेलने पड़ते हैं, लेकिन एक बार पोस्टिंग मिल गई तो मत पूछिए। चारो तरफ से मलाई ही मलाई मिलती है, पर मलाईदार विभाग में पोस्टिंग पाकर भी एक आईएएस को मलाई तो दूर रूखा-सूखा भी नसीब नहीं हो रहा है। दरअसल, साहब को पोस्टिंग पारिवारिक संबंधों के कारण मिली, लेकिन मलाई से दूर रखा गया। बात तो सही है कि मलाई के कारण पारिवारिक संबंधों में खटास आ सकती है। इसलिए मलाई निकालने का जिम्मा दूसरे अफसर को दिया गया, ताकि दूध का दूध और मलाई का मलाई हो सके।
नशे से निजात के लिये सांता
त्योहारों को सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ जोडऩे का असर अलग दिखाई देता है। कोरिया बैकुंठपुर जिले की पुलिस नशा मुक्ति के लिए अभियान जोर-शोर से चला रही है। पिछले हफ्ते एक शॉर्ट फिल्म भी रिलीज की गई थी। महिलाएं विशेषकर इसमें बढ़-चढक़र भाग ले रही हैं। उन्होंने जगह-जगह लोगों को वॉल पेंटिंग के जरिए जागरूक करने का काम हाथ में ले रखा है। क्रिसमस के मौके पर एक निजात रथ तैयार किया गया और उसमें सवार सांता क्लॉस सबको क्रिसमस की बधाई तो दे ही रहे थे बच्चों को कैंडी, मिठाइयां भी बांटे। उन्होंने इस रथ में ड्रग्स और नारकोटिक्स के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के बारे में लोगों को बताया और नशे से दूर रहने की नसीहत दी।
एसपी के कुक रहे ठेकेदार की शाही शादी
रमन सरकार में एसपीओ रहे और कभी बीजापुर एसपी के कुक का काम कर चुके सुरेश चंद्राकर की शाही शादी इन दिनों चर्चा में है।
उन्होंने अपनी दुल्हन रेणुका से किया वायदा निभाया और उसे जगदलपुर से लाने के लिए हेलीकॉप्टर भेजा। बताते हैं कि नाचने गाने के कार्यक्रम में यूक्रेन से 31 नृत्यांगनाएं बुलाई गई थी। मुंबई से भी डांस की टीम पहुंची।
सुरेश चंद्राकर की कामयाबी का दिलचस्प किस्सा है। बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के चलते इन्हें सरकारी नौकरी छोडऩी पड़ी। इसके बाद उन्होंने सडक़-भवन बनाने का ठेका लेना शुरू किया। पूर्व सीएम के एसपीओ और तत्कालीन एसपी के घर तक पहुंच होने की वजह से अधिकारी कर्मचारी इनका भरपूर सहयोग करने के लिए सामने आए। खास बात यह भी थी कि ऐसे इलाके में वह काम करते हैं जहां दूसरे ठेकेदार हिंसा के डर से आगे नहीं आते हैं। देखते देखते उसने बड़ी हैसियत हासिल कर ली। चर्चा है उसके अनुसार शादी में ही करीब 10 करोड़ रुपए खर्च किये गए।
कुत्ते के मालिकों से...
कुत्ते पालने के शौकीन लोग रोज सुबह-शाम कुत्तों को खाना खिलाने के बाद उन्हें पखाना करवाने बाहर ले जाते हैं और सडक़ पर या दूसरे लोगों के घरों के सामने उन्हें पखाना करवा कर वापिस ले आते हैं। नतीजा यह होता है कि जब लोग अपने घर के सामने गाड़ी रोकते हैं तो वहां गंदगी बिखरी हुई रहती है और अगर ध्यान ना रहा तो जूतों के साथ वह घर के भीतर भी चली जाती है। हिंदुस्तान के कुछ अधिक असभ्य शहरों में म्युनिसिपल ऐसे लोगों पर जुर्माना लगाती है लेकिन छत्तीसगढ़ इस किस्म की सामाजिक जागरूकता से मुक्त है। ऐसे में रायपुर के एक मेहनती वार्ड मेंबर अमर बंसल ने समता कॉलोनी, चौबे कॉलोनी जैसे अपने वार्ड के इलाकों में ऐसे कुत्ता मालिकों के लिए एक किस्म से एक चेतावनी जारी की है और इसमें लोगों से भागीदारी की उम्मीद भी की है कि लोग ऐसे कुत्ता मालिकों की फोटो भेजें ताकि उन्हें उजागर किया जा सके। और घंटे भर के भीतर ही ऐसे एक कुत्ता मालिक के नाम के साथ शिकायत आ भी गई है। ऐसी जागरूकता अगर काम करे तो कुत्ते घुमाने के शौकीन लोग उनका पखाना उठाने की आसान सी चीज लेकर चलेंगे और एक सामाजिक जिम्मेदारी आएगी।
आत्मानंद स्कूल का फरमान
होली, दीवाली, क्रिसमस, ईद जो लोग मिल-जुलकर मनाते हैं वे उस धर्म में शामिल नहीं हो जाते। वे इन त्यौहारों को साझी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं। साथ मनाते हैं क्योंकि इससे आपस में प्रेम और भाईचारा बढ़ता है। स्वामी आत्मानंद स्कूल बस्तर से एक वैकल्पिक सुझाव दिया गया है कि बच्चे सांता क्लास की वेशभूषा में आयें, जिनके पास नहीं वे स्कूल की ड्रेस पहनकर आयें। क्रिसमस की बधाई वाला यू-ट्यूब का एक लिंक भी पालकों को स्कूल की तरफ से भेजे गये संदेश में है। इसे विवाद का मुद्दा बना लिया गया है। यह आधार देते हुए अभाविप ने कलेक्टर से शिकायत की है कि बस्तर में धर्मांतरण जोरों पर है और ऐसे में धर्म विशेष को बढ़ावा देने वाला कार्यक्रम असंवैधानिक है।
अब बच्चों को यह तो नहीं सिखाया जा सकता कि दूसरे धर्मों के लोग किसी और टापू में रहते हैं, इस देश में नहीं। उनकी तरफ नजर भी नहीं उठाना। उनके किसी जश्न में शामिल नहीं होना।
व्यक्ति को व्यक्तित्व, स्वामी को स्वामित्व की तरह हिंदू को हिंदुत्व बताने वालों के लिये यह सटीक उदाहरण है कि हिंदूवादी होने और हिंदुत्ववादी होने में फर्क क्या है।
सरकारी बैंकिंग सेवा का हाल..
डियर कस्टमर, योर ट्रांजेक्शन इज फेल्ड। सरकारी बैंकों की नेट बैंकिंग के जरिये आप ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करने की कोशिश करें तो अक्सर यही जवाब स्क्रीन पर आता है। वह भी उबाऊ, लंबी औपचारिकतायें पूरी करने के बाद। पहले आईडी पासवर्ड, लॉगिन कैप्चा, फिर ओटीपी, फिर किस मद से पैसा भेजना है-एनईएफटी, आरटीजीएस जैसे कई ऑप्शन। दो बार एकाउंट नंबर टाइप करिये फिर एकाउंट होल्डर का नाम, फिर ट्रांजेक्शन पासवर्ड, फिर से ओटीपी और फिर.. लॉगिन फेल्ड। फिर से वही प्रक्रिया दोहराइये।
कहा जाता है कि इतनी लंबी प्रक्रिया की वजह आपके खाते की सुरक्षा को बताया जाता है। दूसरी तरफ मोबाइल पकडिय़े, यूपीआई एप खोलिये..। एक मिनट से भी कम समय में जिसे पैसे भेजना हो, ट्रांसफर कर दीजिये।
यूपीआई सेवायें देने के लिये सरकार ने भीम ऐप लांच की पर, प्राइवेट में पहले केवल पेटीएम था। अब दर्जनों प्लेयर हैं। यहां तक कि अमेजॉन और वाट्सअप से भी भेज सकते हैं। ज्यादातर लोग इन्हीं प्राइवेट कंपनियों का इस्तेमाल करते हैं। वे भीम की सेवा से भी संतुष्ट नहीं हैं।
सवाल यह है कि निजी कंपनियों के हाथ में जो तकनीक है वे सरकारी बैंकों में क्यों नहीं अपनाई जाती? सरकारी बैंकों के कर्मचारियों ने कुछ दिन पहले हड़ताल की। इन्होंने बताया कि ट्रांजेक्शन में निजी कंपनियां करोड़ों रुपये रोजाना कमाई कर रही हैं। बस, यह एक छोटा सा उदाहरण है कि सरकारी बैंकों को किस-किस तरह से डुबाने की साजिश हो रही है।
सरहदों पर कड़ाई से रुकी धान की तस्करी
बलरामपुर है तो जिला छोटा लेकिन इसकी सीमायें तीन राज्यों झारखंड, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश से जुड़ी हुई हैं। यहां अभी भी छुटपुट नक्सल वारदातें होती रहती हैं। इसके चलते वैसे भी सीमाओं पर निगरानी में कसावट रहती है। इसका फायदा दूसरे राज्यों से आने वाले धान को जब्त करने की कार्रवाई में भी यह दूसरे सीमावर्ती जिलों से आगे चल रहा है। मिले आंकड़ों के अनुसार अब तक 30 लाख 50 हजार से अधिक का धान जब्त किया जा चुका है और इन्हें ढोकर लाने वाली 20 गाडिय़ों को भी पकड़ा गया है। यह धान करीब 1550 क्विंटल है। इसका असर ये हुआ है कि दूसरे राज्यों का धान आना कम हो गया है।
ठेकेदार की शाही शादी
बस्तर के एक जिले के ठेकेदार की शाही शादी की खूब चर्चा हो रही है। ठेकेदार ने अपनी प्रेमिका से ब्याह रचाने के लिए चापर तक किराये पर ले लिया। कुछ लोग तो इसे बस्तर की सबसे महंगी शादी बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि ठेकेदार को कुछ दिन पहले ही सडक़ निर्माण के एवज में 17 करोड़ का चेक मिला था। और जब पैसा भरपूर हो तो शौकीन लोग खर्च करने में गुरेज नहीं करते हैं।
सुनते हैं कि ठेकेदार कुछ साल पहले तक एक पुलिस अफसर का खानसामा था। और फिर धीरे से नक्सलगढ़ में सडक़ निर्माण के काम में उतर आया और देखते ही देखते इतना कुछ हासिल कर लिया, जिसकी चर्चा बस्तर के बाहर भी होने लगी है। चाहे कुछ भी हो ठेकेदार की दिलेरी की दाद देनी पड़ेगी।
खैरागढ़ के नतीजे
खैरागढ़ में भाजपा के बराबर सीट मिलने से कांग्रेस के नेता खुश हैं। चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले तक तो खैरागढ़ में खाता खुलने की स्थिति नहीं थी। दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह के करीबी असमंजस में थे। ऐसे में पापुनि के चेयरमैन शैलेष नितिन त्रिवेदी को कांग्रेस ने चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी।
शैलेष के बाद गिरीश देवांगन भी वहां गए। आदिवासी वोटरों को कांग्रेस के पाले में करने के लिए विधायक इंदरसिंह मंडावी को भी प्रचार में झोंका गया। मंत्री रूद्रकुमार गुरु, विधायक कुंवर सिंह निषाद ने भी वहां प्रचार किया। और आखिरी में सीएम ने सभा लेकर खैरागढ़ को जिला बनाने का वादा किया। यह मास्टर स्टोक साबित हुआ, और फिर माहौल बदल गया। कांग्रेस को 10 वार्ड में सफलता मिली, जो कि भाजपा के बराबर है, और अब जिला बनाने की घोषणा से स्थानीय लोग खुश हैं। इससे प्रेरित होकर भाजपा के कुछ पार्षद अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस का साथ दे दें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
भाजपा की रणनीति फ्लॉप
निकाय चुनाव में भाजपा की रणनीति बुरी तरह पिट गई। चार बड़े नेता धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल और संतोष पांडेय को एक-एक निगम का प्रभारी बनाया गया था। चारों जगह भाजपा को बहुमत नहीं मिल पाया। अलबत्ता, बृजमोहन अग्रवाल की अगुवाई में भाजपा ने भिलाई-चरौदा में पिछले चुनाव से बेहतर प्रदर्शन किया है।
बृजमोहन भिलाई-चरौदा के चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी गई थी। पिछले चुनाव में सरकार रहते भाजपा को यहां 13 वार्डों में जीत मिली थी। इस बार परिस्थिति अनुकूल न होने के बावजूद पार्टी ने पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन किया है। अर्थात 15 वार्डों में भाजपा को जीत मिली है। बृजमोहन सीएम के इलाके में कांगे्रस को बहुमत मिलने से रोकने में सफल रहे हैं। अब बृजमोहन और भाजपा की कोशिश है कि निर्दलियों का साथ लेकर मेयर नहीं तो कम से कम सभापति बन जाए। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
गौरेया चहचहा रही आंगनों में
एकादशी और उसके बाद अगहन, फिर कार्तिक पूर्णिमा। छत्तीसगढ़ में जितने पर्व आते हैं धान की बालियों को आकर्षक स्वरूप देने की परंपरा साथ-साथ चलती है। ये तोरण घरों में, आंगन में महीनों लटके रहते हैं। चिडिय़ा उडक़र आती है। धान चोंच में दबाती और फुर्र हो जाती है। छत्तीसगढ़ में अन्य पक्षियों की तरह गौरेया की भी चहचहाहट कम सुनने को मिल रही है। पर इन दिनों वे घरों-आंगनों में धान की बालियों का रस लेने मंडराती दिख जाती हैं।
टाइगर हैं भी और नहीं भी..
वन अफसरों के लिये किसी अभयारण्य को टाइगर का मूवमेंट का बताया जाना उतना ही जरूरी है जितना कहीं-कहीं पुलिस के लिये अपने इलाके को नक्सल प्रभावित या अशांत बताया जाना। इस बार आजादी के अमृत महोत्सव के सिलसिले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग ने वन विभाग को टास्क दे रखा है। देश के सभी 51 टाइगर रिजर्व से वन कर्मचारियों का जत्था निकलेगा और ये उन 9 टाइगर रिजर्व इलाकों में पहुंचेंगे, जिसका निर्माण सन् 1973 में सबसे पहले हुआ था। इनमें उदंती सीतानदी अभयारण्य भी शामिल है। पत्रकारों को इस बात कार्यक्रम की जानकारी देते हुए सीसीएफ राजेश पांडेय ने यह भी स्वीकार कर लिया कि उदंती में एक भी टाइगर नहीं है, लेकिन तुरंत ही बात यह कहते हुए संभाली कि 4-5 टाइगर आसपास के दूसरे अभयारण्यों से आवाजाही करते हैं। इस तरह से टाइगर का नहीं होना मानते हुए भी मान लिया कि टाइगर हैं। दहशत बनी रहे, जंगल बचा रहे, बजट मिलता रहे, खर्च होता रहे।
दस दिन पहले कमिश्नर को हटाना
सरगुजा की संभागायुक्त जिनेविवा किंडो को रिटायरमेंट के दस दिन पहले हटा दिया गया। वैसे तो रिटायरमेंट दो साल बचा हो तब भी अधिकारियों-कर्मचारियों का तबादला या तो नहीं होता या फिर उनकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। किंडो का स्थानांतरण प्रशासनिक था। लोग अटकल लगा रहे हैं कि आखिर ऐसी कौन सी बात थी कि उनसे अचानक चार्ज लिया गया। मालूम हुआ है कि संभागायुक्त का ज्यादातर समय संभागीय मुख्यालय अंबिकापुर की जगह जशपुर में बीतता था। जशपुर वैसे भी धर्मांतरण को लेकर संवेदनशील जगह रही है। यहां जूदेव परिवार का घर वापसी अभियान हाल के दिनों में फिर शुरू हुआ है। सरकार नहीं चाहती थीं कि किंडो जशपुर में ज्यादा वक्त बितायें और लोग धर्मांतरण को लेकर उन्हें निशाने में लें।
मिशनरी के खिलाफ आंदोलन और निश्चिंत प्रशासन
नारायणपुर जिले के सुदूर अबूझमाड़ के आकाबेड़ा गांव में एक परिवार ने धर्मांतरण कर लिया। यहां के आदिवासी समाज के अध्यक्ष के अनुसार वह परिवार अब अन्य लोगों पर धर्म बदलने के लिये दबाव बना रहा है। इन लोगों ने एक युवक की पिटाई भी मना करने पर उठे विवाद के कारण कर दी। इसके बाद वहां के ग्रामीण कुरुसनार थाना पहुंचे और संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर लिखाई। कार्रवाई नहीं होने से नाराज होकर उन्होंने प्रदर्शन भी किया। इस प्रदर्शन में शामिल लोग किसी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं बताये जा रहे हैं। जबरन या प्रलोभन से धर्मांतरण की खबरें दुर्गम इलाकों से ही क्यों आती हैं? यह पहले की सरकारों में भी होता रहा और अब भी हो रहा है। प्रशासन शायद इस बात को लेकर सतर्क नहीं है कि ये राजनीतिक मुद्दा भी बन रहा है, जबकि सवाल है कानून के पालन का।
पौवा के साथ जागरूकता के पंफ्लेट..
नगरीय निकाय चुनाव में जगह-जगह शराब और रुपये बांटे गये। इतना करने के बाद समर्थक संतुष्ट हो जाता है। किस प्रत्याशी को वोट दिया जाये, किसे नहीं- प्राप्त करने वाले को यह बताने की जरूरत नहीं है। पर सुपेला में मतदान के ठीक पहले सुपेला में पुलिस ने एक बाइक सवार को पकड़ा तो उसके पास से भारी मात्रा में देशी शराब तो जब्त की ही गई, तीन बंडल मुद्रक-प्रकाशक के नाम बिना छापे गये पंफ्लेट भी मिले। इसमें कांग्रेस प्रत्याशी के आपराधिक रिकॉर्ड दर्शाये गये थे, अन्य प्रत्याशियों के नाम के साथ लिखा गया था कि इनके खिलाफ कोई प्रकरण नहीं है। शराब बांटने के साथ-साथ वे मतदाता को जागरूक भी करना चाहते थे कि किस प्रत्याशी को वोट नहीं देना है। बाकी सब तो साफ-सुथरे हैं। इस शख्स का नाम नजरूल खान बताया गया है, जिसने अपना परिचय छत्तीसगढ़ छात्र-पालक संघ के अध्यक्ष के तौर पर दिया है।
दक्षिण भारत के गुड़ का स्वाद
ताड़ के गुड़ को प्रचलित गन्ने के गुड़ से कहीं अधिक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक कहा जाता है। गन्ना उत्पादक राज्य होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में इसकी अच्छी मांग है। रायपुर में इन दिनों दक्षिण भारत से आये युवक ताड़ का गुड़ बेच रहे हैं। वैसे इसका उत्पादन पश्चिम बंगाल में भी होता है। गन्ने के गुड़ से कुछ महंगा है पर लोग खरीद रहे हैं। बिलासपुर में रेलवे स्टेशन के बाहर बुधवारी बाजार में कोलकाता से ताड़ का गुड़ मंगाया जाता है।
अफसरों से रेत माफिया की मिलीभगत?
ऐसी नौबत क्यों आ रही है कि अपनी ही सरकार में सत्तारूढ़ दल की विधायक सैकड़ों लोगों के साथ सडक़ पर उतर गईं। खुज्जी विधायक छन्नी साहू ने अपने पति चंदू साहू के खिलाफ दर्ज एफआईआर के विरोध में जन हुंकार रैली निकाली और जैसा बताया है, ‘इंसाफ’ के लिये आगे जेल भरो आंदोलन करने वाली हैं। पति के खिलाफ एक रेत ट्रक ड्राइवर से मारपीट करने का आरोप है। उनके खिलाफ एसटी-एससी एक्ट के तरह गंभीर धाराओं में जुर्म दर्ज है। क्या प्रशासन दबाव में नहीं आ रहा है और विधायक अपने प्रभाव का इस्तेमाल पति को बचाने में कर रही हैं? यह नहीं तो दूसरी बात सही होगी जो आरोप विधायक लगा रही हैं। वे कह रही हैं कि अवैध रेत परिवहन के खिलाफ उनका अभियान चल रहा है। पुलिस इन माफियाओं से मिली हुई है, इसलिये बिना देर किये झूठी रिपोर्ट लिखी। दूसरी ओर आदिवासी समाज ने भी विधायक पति पर कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
बिलासपुर में तो जब तक पुराने एसपी थे विधायक शैलेष पांडे का टकराव रहा। उन्होंने सार्वजनिक मंच से आरोप लगाये। उनके और उनके समर्थकों के खिलाफ एफआईआर हो चुकी है। कलेक्टर को तो वे देशद्रोही करार दे चुके हैं और हटाने के लिये सीएम को लिखी चि_ी सार्वजनिक कर चुके हैं। कुछ मामले प्रदेश के दूसरे स्थानों से भी हैं। ज्यादातर पुलिस से जुड़े हुए हैं।
उडऩदस्ते की फोन पे वसूली..
आरटीओ की ओवरलोडिंग जांच कैसे चलती है इसका नमूना खरोरा में देखने को मिला। मेटाडोर में सब्जी ले जा रहे एक किसान को रोका और उसे ओवरलोड के एवज में 25 हजार रुपये जुर्माना भरने कहा। कुल जमा 25 हजार की ही तो सब्जियां थीं। किसान गिडग़ड़ाने लगा। दो घंटे मान मनुहार के बाद उतरते-उतरते आरटीओ उडऩ दस्ता के लोग 8 हजार रुपये तक आ गये। जाहिर है अगर जुर्माना खजाने में जमा करना होता तो इतना बड़ा अंतर नहीं आता। किसान के पास इतने रुपये भी नहीं थे। उसने पास के मंडी में जाकर 25 हजार की सब्जियां 8 हजार रुपये में बेच दी। पर, जिसने खरीदा उसने कैश नहीं दिया, फोन पे एकाउंट में भेजा। उडऩदस्ते के पास आकर किसान ने मजबूरी बताई। तो वे फोन पे से भी ट्रांसफर कराने के लिये तैयार हो गये। एक पर्सनल एकाउंट में किसान ने पैसे डाल दिये। अब किसान की बारी थी, उसने रसीद मांगी। पहले तो उडऩ दस्ते ने कहा कि जुर्माना तो 25 हजार का था, 8 हजार की रसीद क्यों दें, इसमें तो तुम्हें छोड़ा जा रहा है। मगर किसान अड़ गया। उसने जिद पकड़ ली तो पर्सनल एकाउंट में लिये गये पैसे की रसीद देनी ही पड़ी। अब किसान के साथ वहां के कुछ पत्रकार और अधिवक्ता आ गये हैं। मामला कोर्ट ले जाने की तैयारी है।
खरीदी केंद्रों में हाथी
महासमुंद वन मंडल में अक्सर हाथियों का विचरण होता रहता है। घरों और फसलों को तो वे पहले नुकसान पहुंचाया ही करते थे अब धान खरीदी केंद्रों में पहुंचने का खतरा बढ़ता जा रहा है। सिरपुर के एक धान खरीदी केंद्र में कल देर रात हाथियों के झुंड ने धावा बोल दिया। वहां अपने धान की रखवाली करते बैठे किसानों ने मशाल जलाकर उन्हें खदेड़ा। यह पहला मौका नहीं है। सिरपुर इलाके के ही मरौद में पिछले जुलाई महीने को हाथियों के दल ने पहुंचकर खरीदी केंद्र में रखे धान को काफी नुकसान पहुंचाया था। इसके पहले इस साल फरवरी में भी महासमुंद जिले के धान खरीदी केंद्र में अकेला हाथी मंडराता रहा। खरीदी केंद्र कटीले तारों से घिरा हुआ था, लोग शोर भई मचाने लगे थे जिसके कारण उसे वापस लौटना पड़ा।
हाथियों को धान खरीदी केंद्र तक क्यों आना पड़ रहा है? क्या वन विभाग ने उनके ठिकानों पर पहुंचाकर धान खिलाने की योजना बंद कर दी?
माननीय की गैरमौजूदगी
छत्तीसगढ़ सरकार के तीन साल पूरे होने पर पूरे प्रदेश में जश्न का माहौल था। सरकार के मुखिया से लेकर कैबिनेट सहयोगियों और कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे को बधाई देकर खुशियां मनाई। अखबारों, टीवी चैनल्स में विज्ञापनों के साथ बधाई के बैनर-पोस्टर पटे रहे। इन सब के बीच जश्न में एक चेहरा नदारद रहा। सरकार और संगठन के इस बड़े चेहरे की तलाश हर जगह की गई, लेकिन वे न तो विज्ञापनों में दिखे और न ही किसी बैनर-पोस्टर में। कारण जो भी हो, लेकिन उनकी गैरहाजिरी की चर्चा सब तरफ देखने-सुनने को मिली। जब पूरी सरकार जश्न में डूबी थी, तो वे परिदृश्य से एकदम बाहर थे। शाम-शाम होते-होते जरूर उनकी अधिकारियों के साथ बैठक और कामकाज की समीक्षा की खबर और तस्वीर जारी हुई। सोशल मीडिया और लोगों की कानाफूसी में उनके गायब रहने की अलग-अलग तरह से समीक्षा भी हुई और नफा-नुकसान का भी आंकलन हुआ। खैर, ये तो चर्चा परिचर्चा की बात हुई, लेकिन सियासी जानकारों का भी मानना है कि यह तूफान के पहले की शांति की तरह है, क्योंकि यह स्थिति तब है जब यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि सब कुछ ठीक चल रहा है। इस बात का संदेश देने के लिए विधानसभा सत्र के दौरान सरकार के तीन साल पूरे होने के एक दिन पहले बंद कमरे में चर्चा हुई है, लेकिन एकांत में मुलाकात के बाद दूसरे दिन सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूरी पहले जैसी ही दिखी और एकजुटता का संदेश हवा-हवाई निकला।
बीजेपी नेताओं का आक्रामक अंदाज
छत्तीसगढ़ में विपक्षी दल भाजपा के दिग्गज नेताओं के तेवर एकदम बदले हुए नजर आ रहे हैं और आक्रामक अंदाज में बैटिंग कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने एसपी-कलेक्टर पर निशाना साधते हुए चुनावी भाषण में उन्हें चेतावनी देते हुए यहां तक कह दिया कि तलवा चाटना बंद कर दें। भाजपा कार्यकर्ता ऐसे अधिकारियों की सूची बना रहा है। इसी तरह पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल सडक़ पर उतर गए और वीआईपी मूवमेंट के लिए रोड ब्लॉक करने वाले पुलिस अधिकारियों पर बिफर पड़े। बीच चौराहे में जोर-जोर से चिल्लाते हुए उन्होंने याद दिलाया कि वे भी गृहमंत्री रह चुके हैं। एक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर भी खूब चिल्ला-चोट कर रहे हैं। वे कभी अधिकारियों पर तो कभी कार्यकर्ताओं पर भडक़ते रहे हैं। बीजेपी के इन तमाम नेताओं के भाषण और हरकतें सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बने हुए हैं। बीजेपी छत्तीसगढ़ में 15 साल तक सत्ता में रही और रमन सिंह सहित ये सभी नेता भी पॉवरफुल थे। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि रमन सिंह ने अपने समय में तलवा चाटने वाले अधिकारियों की खोज-खबर ली थी या नहीं। वे खुद कह चुके हैं कि अधिकारी सूरजमुखी की तरह होते हैं और सत्ता की तरफ उनका स्वत: झुकाव होता है। ऐसे में उनके कार्यकाल में भी अधिकारियों का स्वाभाविक झुकाव तो रहा ही होगा। इसी तरह बृजमोहन अग्रवाल को याद होना चाहिए कि जब वे मंत्री थे, तो उनके काफिले के लिए हजारों बार आम लोगों को रोका गया होगा। अब जब खुद फंस गए तो उनको आम लोगों की चिंता हो रही है।
चुनावी आग
नगरीय निकाय चुनाव में मतदान के बाद जीत के अपने-अपने दावे हैं। मगर कुछ घटनाएं ऐसी जरूर हुई हैं, जिसकी खूब चर्चा होती रही। मसलन, बीरगांव में जिस तरह मतदान से पहले भाजपा के नेता आग उगल रहे थे, उससे कवर्धा की तरह साम्प्रदायिक विवाद पैदा होने का खतरा पैदा हो गया था।
पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने मुस्लिम बाहुल्य इलाके गाजीनगर में 2 सौ फीट भगवा झंडा फहराने की बात कह दी थी, तो अजय चंद्राकर शराब बांटते पकड़े जाने पर हाथ-पांव काटने की धमकी दे रहे थे। बावजूद इसके बीरगांव की बस्तियों में प्रत्याशियों ने शराब बंटवाई, लेकिन ज्यादा शोर-शराबा नहीं हुआ।
इससे परे अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल समेत कई नेता गाजीनगर पहुंचे, तो कांग्रेस प्रत्याशी इकराम अहमद ने आवभगत की, और उनके बैठने के लिए कुर्सियां लगवाईं। भाजपा नेताओं के लिए वो चाय-नाश्ते का बंदोबस्त करा रहे थे, तो अजय चंद्राकर यह कहकर उन्हें रोक दिया कि मतदान के बाद कबूल करेंगे। चुनाव नतीजे चाहे जो भी हों, लेकिन इकराम ने तो दिल जीत ही लिया।
टीम बृजमोहन ने दम दिखाया
भिलाई-चरौदा निगम का चुनाव हाई प्रोफाइल रहा। सीएम भूपेश बघेल भी यहां के रहवासी हैं। स्वाभाविक है कि यहां सीएम की प्रतिष्ठा दांव पर है। पहले तो चुनाव कांग्रेस के लिए एकदम आसान दिख रहा था। मगर भाजपा ने पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को चुनाव प्रभारी बनाकर मुकाबले को रोचक बना दिया।
बृजमोहन पिछली बार तो किसी तरह यहां मेयर बनवाने में कामयाब रहे, लेकिन इस बार उन्हें यहां नाकों चना चबाना पड़ा है। भाजपा के स्थानीय पदाधिकारी तो कांग्रेस नेताओं के प्रभाव में नजर आए, और चुनावी परिदृश्य से एक तरह से गायब रहे। ऐसे में बृजमोहन के लिए चुनाव संचालन मुश्किल हो गया था। तब उन्होंने रायपुर, और आसपास के इलाकों से प्रमुख नेताओं को बुलाकर वार्डवार चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी दी।
भाजपा विधायक दल के सचेतक शिवरतन शर्मा, दो पूर्व विधायक डॉ. विमल चोपड़ा, और संतोष उपाध्याय के अलावा रमन सरकार में निगम मंडल के पदाधिकारी रहे बड़ी संख्या में रायपुर के नेता मतदान खत्म होने तक वहां डटे रहे। कांग्रेस से सरकार के मंत्री रूद्र कुमार गुरू, सीएम के पुत्र चिन्मय बघेल, और उनके करीबी अटल श्रीवास्तव व अर्जुन तिवारी ने मोर्चा संभाल रखा था। भाजपा भले ही यहां मेयर बनाने में कामयाब न हो लेकिन टीम बृजमोहन ने दम दिखाया है।
चमत्कार से कम नहीं होगा
नवगठित रिसाली नगर निगम में पहली बार वार्ड चुनाव हुए। यहां कांग्रेस की कमान गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू संभाल रहे थे तो भाजपा ने नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को चुनाव प्रभारी बनाया था। यहां भाजपा का प्रचार तंत्र बिखरा नजर आया।
चुनाव के दौरान कौशिक दो-तीन दिन अपने पारिवारिक कार्यक्रमों में व्यस्त रहे। इससे प्रचार की रणनीति पर फर्क पड़ा है। भाजपा के प्रत्याशी छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर जूझते नजर आए। रिसाली गृहमंत्री के विधानसभा का हिस्सा है। यहां उनका पूरा कुनबा प्रचार में डटा था। भाजपा में स्थानीय नेता ही थोड़े बहुत सक्रिय दिख रहे थे। ऐसे में कहा जा रहा है कि यहां भाजपा को बहुमत मिलता है, तो चमत्कार से कम नहीं होगा।
ठंड से कम मतदान
भिलाई नगर निगम में इस बार भाजपा में काफी हद तक एकजुटता देखने को मिली है। पहली दफा प्रेमप्रकाश पाण्डेय, और सरोज पाण्डेय का खेमे के बीच टिकट को लेकर ज्यादा खींचतान नहीं हुई, और तकरीबन सभी में सहमति बन गई। यहां प्रचार की कमान एक तरह से पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय के हाथों में थी। जबकि कांग्रेस की कमान स्थानीय विधायक देवेन्द्र यादव, और खनिज निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन संभाल रहे थे।
भिलाई नगर में ठंड की वजह से कई वार्डों में कम मतदान हुआ है, और भाजपा के परंपरागत वोटरों के कम संख्या में निकलने का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। यही नहीं, कांग्रेस प्रत्याशियों के पास साधन-संसाधन की कोई कमी नहीं थी। कई जगहों पर वाद विवाद भी हुआ। इन सबके बाद भी भाजपा यहां मजबूती से चुनाव लड़ी है।
पिछले दो बार यहां कांग्रेस का कब्जा रहा है, और कुछ जगहों पर निगम की कार्यप्रणाली को लेकर नाराजगी रही है। इसका भी भाजपा को फायदा मिल सकता है। हालांकि कांग्रेस के लोग आश्वस्त हैं, और उन्हें उम्मीद है कि इस बार भी कांग्रेस का मेयर होगा। बहरहाल, कांग्रेस और भाजपा के बीच फासला कम रहने का अनुमान लगाया जा रहा है।
23 को ही तस्वीर साफ
नगर पालिका, और नगर पंचायत चुनाव की बात करें, तो खैरागढ़, जामुन, शिवपुर चरचा, और बैकुंठपुर के अलावा सारंगढ़ नगर पालिकाओं में चुनाव हुए हैं। आधा दर्जन नगर पंचायतों में भी वोट डाले गए। इनमें पांच तो बस्तर के ही थे। मतदान के बाद जो फीडबैक सामने आए हैं, उनमें से एक-दो को छोडक़र बाकी नगर पालिका, और नगर पंचायतों में कांग्रेस का ही दबदबा रहने का अनुमान है। अब 23 तारीख को ही सारी तस्वीर साफ होगी।
साइबर क्राइम का हेल्पलाइन नंबर
हाल के वर्षों में साइबर अपराध जिस तेजी से बढ़े हैं उनमें सिर्फ ठगी के मामले नहीं है बल्कि साइबर बुलिंग, टीजिंग, ब्लैकमेलिंग जैसे अपराध भी हैं, जिनका शिकार महिलाएं अधिक होती हैं। रायपुर पुलिस के ध्यान में यह बात आई है कि इस तरह के अपराधों की शिकार बहुत सी महिलाएं इसलिए शिकायत नहीं करती कि उन्हें थाने जाकर बयान देना पड़ेगा और उनकी पहचान भी उजागर हो जाएगी। इसी को ध्यान में रखते हुए अपने फेसबुक पेज पर रायपुर पुलिस एक वीडियो शेयर कर जानकारी दी है कि फोन नंबर 947 9190 167 अलग तरह से काम करता है। इसमें कॉल करने पर सिर्फ महिला पुलिस की ‘पिंक गश्ती’ टीम जवाब देगी और जांच भी महिला पुलिस टीम ही करेगी। सहूलियत यह भी है कि पीडि़ता सिर्फ व्हाट्सएप मैसेज भेजकर भी अपनी बात कह सकती है। लोग पुलिस की इस पहल की तारीफ कर रहे हैं पर कुछ प्रतिक्रियाएं बताती हैं संकोच महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी है। एक ने पूछा है कि पुरुषों के लिए भी कोई अलग हेल्पलाइन नंबर नहीं है क्या? कुछ महिलाएं तो पुरुषों को भी ब्लैकमेल करती हैं। पुलिस के पास जाने से ऐसे पीडि़त भी कम संकोच नहीं करते। रायपुर पुलिस का इस पर जवाब आना बाकी है।
लापता विदेशों से लौटे लोग..
विदेश यात्रा करने वाले लोगों के बारे में एक आम राय है कि वे पढ़े लिखे हैं और अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। कोविड-19 की समस्या ओमिक्रोन के तौर पर जब ज्यादा दहशत फैला रही है तो विदेश से पहुंचने वालों पर निगरानी पर रखने का निर्देश स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन ने जारी कर रखा है, और यह जरूरी भी है। इतनी समझदारी की उम्मीद तो बाहर से आने वाले लोगों से करनी चाहिए कि वे लापता होकर लोगों का संकट ना बढ़ाएं। खबर है कि रायपुर में अब तक विदेश से जो 800 लोग लौटे हैं, उनमें से करीब 140 पता नहीं है। बिलासपुर, रायगढ़, अंबिकापुर जैसे शहरों में भी कई केस ऐसे हैं। या तो उनका पता, या फिर मोबाइल नंबर गलत है। इनकी तलाशी के लिए पुलिस से भी मदद मांगी गई है।
सुकून की बात है कि देश के 11 राज्यों में ओमिक्रोन के केस मिल चुके हैं मगर अभी तक छत्तीसगढ़ इससे अछूता है। पर अभी हो रही लापरवाही के चलते इस आशंका को बल मिलता है कि कुछ दिन में केस मिलने लग जाएंगे। अब इसका इलाज शायद यही है कि जो फोन नंबर यात्री दर्ज करा रहे हैं मौके पर ही उस पर कॉल करके तस्दीक ली जाए कि नंबर सही दिया गया है।
आदिवासी वोटरों पर धर्मांतरण का असर?
बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का मुद्दा, लगता है काफी सोच-समझकर उठाया है। रतनपुर के रास्ते से गौरेला और अमरकंटक जाने वाले रास्ते में पडऩे वाले एक छोटे से गांव छतौना में यह बोर्ड लगा है, जिसमें धर्मांतरण रोकने की मांग की गई है। इस गांव के सहदेव का दावा है कि उसने अपने पैसे खर्च करके ये बोर्ड बनवाये। उसे बिलासपुर और कोटा की रैलियों में शामिल होने के बाद जानकारी मिली कि आदिवासियों को पैसों का लालच देकर, बीमारी ठीक होने का दावा कर धर्म बदलने के लिये बाध्य किया जाता है।
महिला शक्ति का सम्मान
नगरीय निकाय चुनाव में अनुशासनहीनता और बगावत करने वालों के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी कड़ी कार्रवाई कर रही है। प्रदेश के कई बगावती पार्षद प्रत्याशी निकाल बाहर कर दिए गए हैं। पार्टी ने बताया है कि प्रदेश भर में ऐसे 23 नेता अब तक छह साल के लिये निष्कासित किये गये हैं। भिलाई मैं दिलचस्प मामला हुआ था, जब प्रत्याशी बनाए जाने के बाद अजितेश सिंह ने नाम वापस ले लिया। पार्टी ने उनको भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। इधर वहीं टिकट नहीं मिलने पर महिला मोर्चा की नेत्री सुमन उन्नी ने चुनाव की तैयारियों पर बुलाई गई बैठक में कुर्सियां फेंक कर हंगामा किया और पूछा था कि आखिर टिकट उनको क्यों नहीं दी गई? यही नहीं चुनाव प्रभारी भूपेंद्र सन्नी को भी उन्होंने नहीं बख्शा था, जब वे बी फॉर्म जमा करने पहुंचे। बगावत की सबसे बड़ी चर्चा इसी महिला नेत्री पर थी, पर इन पर कार्रवाई बीजेपी ने टाल दी है। शायद वजह यह हो कि न तो उन्होंने बागी होकर चुनाव लड़ा, पार्टी से बाहर किसी को समर्थन दिया। जो भी हो, उनके साथ पार्टी ने सम्मानजनक बर्ताव किया ही है।
अब 2022 में धमकायेंगे..
सन 2020 के दिसंबर महीने में कवर्धा में संभाग स्तरीय किसान महापंचायत बीजेपी ने रखी थी। वह वक्त था उन तीन कृषि कानूनों की खासियत बताकर लोगों को जागरूक करना, जो अब वापस लिए जा चुके हैं। ऐन मौके पर जिला प्रशासन ने सभा स्थल को बदलने का आदेश जारी कर दिया था। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने तब अफसरों को चेतावनी दी और याद दिलाया कि 2 साल हो चुके हैं, 3 साल बाद हम सरकार में आएंगे तो हिसाब किताब लेंगे। सरकार के नुमाइंदों का फोन आने पर ज्यादा स्वामी भक्ति दिखाने की और तलवे चाटने की जरूरत नहीं है।
एक साल बाद लगभग उसी तारीख को यानी कल खुर्सीपार में नगर निकाय चुनाव का प्रचार कर रहे डॉ रमन सिंह ने सभा में लगभग वही बात दोहराई, जो उन्होंने एक साल पहले कवर्धा में कही थी। बस याद दिलाया कि 3 साल हो चुके हैं 2 साल बाद हम आएंगे, तो हिसाब किताब लेंगे। इस बार उन्होंने यह भी बताया कि तलवे चाटने वाले अफसरों की भाजपा कार्यकर्ता लिस्ट बना रहे हैं। अफसरों को एक साल का चक्र पूरा होने पर ही डॉ. रमन सिंह याद दिलाते आ रहे हैं कि उनकी सरकार दुबारा आने वाली है। अब दिसंबर 2022 में उम्मीद करनी चाहिये, जब किसी मंच से पूर्व मुख्यमंत्री फिर अफसरों को याद दिलायेंगे कि अब तो एक ही साल बचा।
नक्सल गढ़ में नीलम, रूबी
नीलम एक कीमती रत्न है जिसे कॉरेन्डम की एक किस्म कहा जाता है। इसमें लोहा, टाइटेनियम, क्रोमियम, मैग्नीशियम और एल्यूमीनियम ऑक्साइड का मिश्रण होता है। ज्योतिष शास्त्र और ग्रह नक्षत्रों पर भरोसा करने वाले नीलम का रत्न पहना करते हैं। इसी तरह से एक धातु है रूबी, जिसे कुरुविंद के नाम से भी जाना जाता है। यह भी अल्युमिनियम ऑक्साइड का एक विशेष प्रकार है। क्रोमियम की उपस्थिति के कारण यह लाल या गुलाबी रंग में मिलता है। यह भी बेशकीमती धातु है। रत्नों के अलावा आभूषण तैयार करने में इसका इस्तेमाल होता है।
सुदूर बस्तर के सुकमा जिले में यह एक पहाड़ है जिसे नीलामडग़ू के नाम से जाना जाता है। हाल में ली गई इस तस्वीर में इस पहाड़ी की खूबसूरती निखर आई है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस पहाड़ी के गर्भ में नीलम और रूबी दोनों मौजूद हैं। अब तक अछूता है। पहाड़ी के बचे रहने के अनेक कारणों में से एक यह भी है कि यह नक्सलियों का गढ़ है।
बढ़त मिलेगी या जलवा बरकरार ?
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा ने जोर लगाया है। सोमवार को मतदान होगा, और 23 तारीख को देर शाम तक नतीजे घोषित होने की उम्मीद है। जिन 15 निकायों में चुनाव हो रहे हैं उनमें चार नगर निगम भी हैं। इससे पहले 10 नगर निगमों में चुनाव हुए थे, उनमें से एक में भी भाजपा अपना मेयर नहीं बनवा पाई। मगर इस बार भाजपा ने चारों निगमों में अपना मेयर बनवाने के लिए पूरी ताकत झोंकी है।
चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद जीत के अपने-अपने दावे हैं। कुछ विश्लेषकों का अंदाज है कि रिसाली, भिलाई-चरौदा, और बीरगांव में कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है। जबकि भाजपा की स्थिति भिलाई नगर निगम में बेहतर दिख रही है। नगर पालिकाओं में से सिर्फ शिवपुर-चरचा में ही भाजपा को उम्मीदें हैं।
पहले खैरागढ़ में भी भाजपा मजबूत स्थिति में दिख रही थी, लेकिन प्रचार खत्म होने से पहले दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह के बच्चों के कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में जुटने से माहौल बदलता दिख रहा है। इससे परे बस्तर के पांच निकायों में तो वैसे भी भाजपा स्थानीय नेताओं के बूते चुनाव लड़ रही है।
कुल मिलाकर हाल यह है कि 15 निकायों में से दो-तीन में ही भाजपा को बढ़त के आसार दिख रहे हैं। बाकी जगहों में कांग्रेस की अच्छी संभावना है। हालांकि भाजपा के रणनीतिकारों को ज्यादातर निकायों में बढ़त की उम्मीद है। देखना है कि वाकई निकायों में भाजपा को बढ़त मिलेगी, अथवा दाऊ का जलवा बरकरार रहेगा।
पुलिस में कौन कहां?
पीएचक्यू में जल्द ही फेरबदल होने जा रहा है। एडीजी राजेश मिश्रा प्रतिनियुक्ति से लौट आए हैं, और स्पेशल डीजी आर के विज 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। स्वाभाविक है कि कम से कम एडीजी स्तर के अफसरों के प्रभार बदलेंगे। यह भी संयोग है कि डीजीपी अशोक जुनेजा जब रायगढ़ एसपी थे तब राजेश मिश्रा ने ही उनकी जगह ली थी। जुनेजा जब दुर्ग एसपी थे तब भी राजेश मिश्रा ने उनसे ही चार्ज लिया था।
चर्चा थी कि राजेश मिश्रा को नक्सल ऑपरेशन का प्रभार सौंपा जा सकता है। मगर इसकी संभावना कम है। वजह यह है कि विवेकानंद बस्तर में काम कर चुके हैं, और उन्हें नक्सल मोर्चे पर ठीक-ठाक अफसर माना जाता है। ऐसे में मिश्रा को पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन अथवा डायरेक्टर लोक अभियोजन का प्रभार सौंपा जा सकता है। हाउसिंग कॉर्पोरेशन में पवन देव हैं। पिछले दिनों सीएम ने नक्सल इलाकों में आवास निर्माण कार्यों में देरी पर नाराजगी जताई थी। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि पवन देव की जगह राजेश मिश्रा अथवा किसी अन्य की पोस्टिंग हो सकती है। कुछ हफ़्ते पहले उड़ती-उड़ती यह चर्चा भी थी कि राजेश मिश्रा जल्द ही डीजीपी होंगे।
एक और आंदोलन की आहट
तीन वर्ष के दौरान कांग्रेस सरकार ने घोषणा पत्र के कई वादे पूरे करने का दावा किया है, लेकिन शासकीय सेवा के नियमित, अनियमित, तदर्थ और दैनिक वेतनभोगियों के लिये की गई अनेक घोषणायें पूरी नहीं हुई हैं। सहायक शिक्षक वेतन विसंगति दूर करने की मांग पर आंदोलन कर ही रहे हैं। अब मितानिनों का असंतोष सामने आ रहा है। ब्लॉक स्तर पर कई जगह उनकी बैठकें हो चुकी हैं। उनका कहना है कि चुनाव के समय उन्हें पांच-पांच हजार रुपये देने का वादा किया गया था, लेकिन सरकार ने अब तक उसे पूरा नहीं किया। वे प्रदेश स्तर पर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं।
दरअसल, तीन साल पूरा होने के बाद लोगों को लगता है कि चुनाव में किये गये वायदों को पूरा करने के लिये अब सरकार के पास ज्यादा समय बचा नहीं है। सरकार के लिये भी यह चुनौती होगी कि जो वायदे वह अब तक पूरे नहीं कर पाई है, उन पर जल्दी घोषणायें कर लोगों का असंतोष दूर करे।
इलेक्शन अर्जेंट तो यहां भी लागू होगा
भिलाई नगर निगम में होने वाले चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू है, सरकारी कर्मचारी अधिकारियों की छुट्टियों पर पाबंदी है। उसी तरह जैसे लोकसभा और विधानसभा चुनावों में होती है। भिलाई इस्पात संयंत्र के अधिकारियों के ध्यान में यह बात नहीं आई कि बिजली भी चुनाव के दौरान जरूरी सेवाओं में शामिल है। इलेक्ट्रिकल विभाग ने एक आदेश जारी कर मेंटनेंस के नाम पर 19 से 25 दिसंबर तक सुबह 10 बजे से 1.30 बजे दोपहर तक भिलाई में बिजली कटौती का आदेश जारी कर दिया। राज्य निर्वाचन आयोग के ध्यान में यह बात लाई गई। आयोग ने इसे गंभीरता से लिया। उसने बीएसपी प्रबंधन को नोटिस जारी कर दिया और कटौती को स्थगित करने का आदेश दिया। बीएसपी प्रबंधन को नोटिस मिलने के बाद बात समझ में आ गई और उसने तुरंत बिजली कटौती का आदेश वापस ले लिया।
बाघ नहीं मिले, पर ट्रैप कैमरे गायब
अचानकमार अभयारण्य के बाहर बेलगहना रेंज में एक बाघ शावक का शव मिलने के बाद वहां बाघ की दहाड़ भी सुनाई दी और तेंदुआ भी दिखा। इसके बाद वन अफसरों को लगा कि अभयारण्य के बाहर भी जंगल में ये वन्य प्राणी हो सकते हैं। यह जरूरी इसलिये भी लगा होगा क्योंकि अब तक मालूम नहीं हो पाया है कि शावक का शिकार कैसे हुआ? अधिकारियों ने कुछ जगह चिन्हांकित कर वहां ट्रैप कैमरे लगा दिये। कुछ दिन बाद, तीन दिन पहले मूवमेंट का पता करने ट्रैप कैमरों को निकालने के लिये अधिकारी गये तो पता चला कि चार कैमरे चुरा लिये गये हैं। जो कैमरे बचे उनमें किसी बाघ या तेंदुए की मूवमेंट नहीं मिली।
जिस जंगल में जगह-जगह बैरियर लगे हों, फारेस्ट गार्ड और बीट गार्ड की ड्यूटी हो, वहां वन कर्मचारियों की जानकारी के बगैर कौन घुसा? नाराज वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि सारे अधिकारी शहरों में रहते हैं, उनसे जंगल की रखवाली की उम्मीद नहीं कर सकते। चाहे शिकार का मामला हो या पेड़ों की कटाई का। एक अजीब सुझाव भी आया है कि वन अधिकारी कर्मचारी खुद निगरानी तो नहीं कर पा रहे हैं, ट्रैप कैमरों की निगरानी के लिये सीसीटीवी कैमरे भी लगा दिये जायें। सुझाव देने वाले को शायद भरोसा है कि सीसीटीवी कैमरों की चोरी ट्रैप कैमरों की तरह नहीं होगी।
खेल मैदान को बचाने की कवायद...
कोरोना काल में जब सारे निर्माण कार्यों पर रोक लगी हुई थी, नगर पंचायत ने बिलाईगढ़ में मिनी स्टेडियम की जमीन पर 40 दुकानें खड़ी कर दी। ये खेल मैदान प्रेम भुवन प्रताप सिंह शासकीय स्कूल के लिये आरक्षित है। स्कूल खुलने के बाद कक्षा 6वीं से 12वीं तक के छात्र यह निर्माण देखकर मायूस हो गये। फिर उन्होंने तय किया कि किसी भी सूरत में खेल मैदान को व्यावसायिक परिसर में नहीं बदलने देंगे। उन्होंने पहले तहसीलदार के नाम पर ज्ञापन सौंपा। ठोस आश्वासन नहीं मिला तो सडक़ जाम कर दिया। यह जाम पूरे 10 घंटे चला। अंत में अधिकारियों ने आकर आश्वस्त किया कि दुकानें हटाई जायेंगीं। छात्रों ने एक सप्ताह का समय दिया है। यदि ऐसा नहीं होगा तो वे फिर ज्यादा तेज आंदोलन करने की बात कह रहे हैं।
और निलंबन रद्द हो गया
रामानुजगंज के शासकीय लरंग साय कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य के निलंबित होने पर उनके बचाव में विधायक बृहस्पत सिंह खुलकर सामने आये थे। अब उनका निलंबन आदेश शून्य कर दिया गया है। छात्राओं ने प्रभारी प्राचार्य डॉ. आरबी सोनवानी पर अभद्रता का आरोप लगाया था। वे गेट पर धरना देकर बैठ गये थे, इसके बाद सोनवानी का निलंबन किया गया।
पर छात्र-छात्राओं का एक दूसरा गुट भी सामने आ गया जो प्राचार्य के समर्थन में है। प्रभारी प्राचार्य के निलंबन के खिलाफ बृहस्पत सिंह ने सीएम और उच्च शिक्षा मंत्री से चर्चा करने की बात कही थी। की होगी, इसी का असर हो सकता है कि प्राचार्य अपनी कुर्सी पर दुबारा विराजमान हो गये। दूसरी ओर अभाविप ने निलंबन रद्द करने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सीएम और शिक्षा मंत्री का पुतला फूंका। पुलिस ने रोकने की कोशिश की लेकिन वे चकमा दे गये। अब उन छात्राओं का क्या होगा, जिन लोगों ने हिम्मत करके प्राचार्य के खिलाफ आवाज उठाई थी? क्या उन्हें बरगलाया गया था?
काशी विश्वनाथ का दर्शन...
देश के अनेक मंदिरों में टिकट कटाने पर जल्दी दर्शन हो जाते हैं। अब इन मंदिरों में काशी विश्वनाथ भी शामिल हो गया है।
भूपेश ने तोड़ा मिथक
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने आज 17 दिसंबर को तीन साल का कार्यकाल पूरा करके एक मिथक को तोड़ा है। इस कॉलम के जरिए हमने 19 अगस्त 2021 के अंक में मिथक का जिक्र करते हुए लिखा था कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद और उससे पहले अविभाजित राज्य में छत्तीसगढ़ से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले किसी भी कांग्रेसी नेता ने तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया। स्व. श्यामाचरण शुक्ल अविभाजित मध्यप्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे कभी भी तीन साल से ज्यादा समय तक सीएम नहीं रहे। इसी तरह छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाले मोतीलाल वोरा अविभाजित मध्यप्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री रहे। दोनों बार तीन साल से कम समय के लिए पद पर रहे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद अजीत जोगी का कार्यकाल भी मोटेतौर पर तीन साल का ही रहा। उसके बाद छत्तीसगढ़ में 15 साल बीजेपी की सरकार रही। वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और 17 दिसंबर 2018 को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस तरह उन्होंने मिथक को तोड़ते हुए सफलतापूर्वक तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। हालांकि इस पूरे साल छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर हल्ला चलता रहता। तीन साल पूरा होने के बाद इस कयास पर भी विराम लग गया है।
घेरे में पत्रकारिता विवि के सहायक कुलसचिव
छत्तीसगढ़ का पत्रकारिता विश्वविद्यालय विवादों के कारण हमेशा सुर्खियों में बना रहता है। फिलहाल विवि सहायक कुलसचिव के कारण सुर्खियां बटोर रहा है। सहायक कुलसचिव के खिलाफ विवि के ही शिक्षक ने रिश्वत मांगने की शिकायत की है। बताया जा रहा है कि शिक्षक अपनी परवीक्षा अवधि संबंधी प्रक्रिया के लिए उनके पास गए थे, तब दोनों के बीच विवाद हुआ। शिक्षक ने विवि प्रशासन को लिखित शिकायत में आरोप लगाया है कि सहायक कुलसचिव ने परवीक्षा अवधि का समापन पत्र जारी करने के लिए आधे महीने के वेतन के बरारबर रिश्वत की मांग की। सहायक कुलसचिव की ओर से भी शिक्षक के खिलाफ लिखित में शिकायत हुई है। इस तरह दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लग गई है। इस मामले के बाद सहायक कुलसचिव के खिलाफ विवि के प्रताडि़त कर्मचारी-अधिकारी लामबंद हो गए हैं। दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण और अनुकंपा नियुक्ति मामले की फाइल अटकाने को लेकर भी सहायक कुलसचिव घेरे में है। उनका पुराना ट्रैक रिकॉर्ड भी खंगाला जा रहा है। चर्चा है कि दुर्ग विवि में तो वहां की कुलपति ने इस सहायक कुलसचिव के आचरण को देखते हुए ज्वाइनिंग देने से मना कर दिया था और आनन-फानन में पोस्टिंग आर्डर में संशोधन किया गया। बस्तर विवि में भी ये विवाद के कारण चर्चा में रहे। पत्रकारिता विवि में पोस्टिंग से पहले सभी विवि से इनकी पदस्थापना के लिए अनापत्ति ली गई थी, जिसमें अधिकांश ने आपत्ति जताई थी। पत्रकारिता विवि से एनओसी मिलने पर उन्हें वहां भेजा गया। तो ये महाशय यहां भी अपना जौहर दिखा रहे हैं और विवादों में बने हुए हैं। पत्रकारिता विवि में उन्हें एक ऐसे शिक्षक का साथ मिल रहा है, जोकि खुद चार सौ बीसी के आरोपों के घेरे में है। कुल मिलाकर जैसी संगत वैसी रंगत दिख रही है।
प्लास्टिक दानों की डिमांड..
स्वच्छता की दिशा में नये प्रयोग करने के लिये अंबिकापुर को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिलती रही है। अब यहां एक और काम हो रहा है। शहर को सौ फीसदी प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने के लिये कुछ मशीनें लगाई गई हैं, जिनसे प्लास्टिक के दाने बनते हैं। इनकी रांची, दिल्ली, नोएडा, नागपुर जैसे शहरों में सप्लाई की जाती है। वहां की फैक्ट्रियां इनसे फर्नीचर तैयार करती हैं। आंकड़ा चौंकाता है पर नगर निगम का दावा है कि हर दिन यहां करीब 500 किलोग्राम प्लास्टिक की प्रोसेसिंग की जा रही है और अब तक ढाई करोड़ रुपये का प्लास्टिक दाना बेचा जा चुका है। प्रदेश के बाकी शहरों को भी प्लास्टिक मुक्त रखने की योजना बनाई जा चुकी है पर अंबिकापुर की तरह कामयाबी नहीं मिल रही।
एक पते पर इतने मतदाता!
बूथ लेबल पर तरह-तरह का प्रशिक्षण देकर जमीनी स्तर कार्यकर्ताओं को अलर्ट मोड पर रखने वाली भाजपा का बहुत देर बाद ध्यान गया कि बीरगांव नगर निगम में एक ही पते पर 240 मतदाताओं के नाम दर्ज हैं। पता लगा कि जिस घर में इतने लोगों के होने की बात कही जा रही है वहां तो 24 लोग भी नहीं रहते। अब ऐन वोटिंग के वक्त तो सूची में काट-छांट हो नहीं सकती, इसलिये अब उस घर के सामने पहरेदारी करना तय किया गया है। बीजेपी कार्यकर्ता गिनेंगे कि इस घर से वोट देने कितने लोग निकले। यहां तक तो ठीक है मगर, यदि सूची में शामिल वोटर किसी दूसरी गली से वोट देने पहुंच गया तो?
दुपहिया के साथ बारदाना फ्री..
जबसे धान की कीमत मिला-जुला कर 2500 रुपये मिलने लगी है दुपहिया गाडिय़ों की बिक्री बढ़ी है। एक तरफ किसान धान बेच रहे हैं दूसरी ओर ऑटोमोबाइल डीलर्स ऑफर देकर अपनी ओर खींच रहे हैं। पर यह ऑफर अनूठा है। रजिस्ट्रेशन, इंश्योरेंस या पेट्रोल फ्री नहीं, बल्कि 20 बारदाने दिये जायेंगे। सोशल मीडिया पर हो सकता है कि किसी ने यह स्टिकर चिपकाकर शरारत की हो, पर बारदाने के संकट की तरफ तो ध्यान खिंच ही रहा है।
कांग्रेस दफ्तर में अ ‘न्याय’ !
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार अपनी न्याय योजना का खूब प्रचार-प्रसार कर रही है। कहा जा रहा है कि सरकार ने सभी वर्गों के साथ न्याय किया है, लेकिन राजधानी रायपुर के कांग्रेस दफ्तर के कर्मचारी न्याय के लिए लामबंद हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि अपनी मामूली मांगों को लेकर यहां के कर्मचारियों ने हाल ही में काम बंद कर दिया था, हालांकि मान-मन्नौवल के बाद वे काम पर लौट गए थे, लेकिन अभी तक उनकी मांगें पूरी नहीं हुई है और नाराजगी बरकरार है। सरकार की तीसरी सालगिरह का जश्न पूरा होने के बाद वे कभी भी फिर से काम बंद कर सकते हैं। कुल मिलाकर, चिराग तले अंधेरा की कहावत कांग्रेस दफ्तर में चरितार्थ होती दिखाई पड़ रही है। सरकार के तीन साल पूरे होने पर कांग्रेसी सब्बो बर सब्बो डाहर न्याय का डंका पीट रहे हैं, लेकिन पार्टी दफ्तर के गिने-चुने कर्मचारियों को ही न्याय नहीं मिलेगा, तो सवाल तो उठेंगे ही। वैसे भी, यहां के कर्मचारियों की कोई भारी-भरकम मांग नहीं है। वे तो केवल बैंक के जरिए वेतन भुगतान तथा पीएफ सुविधा की मांग कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि पूरे प्रदेश में न्याय की रोशनी फैलाने का दावा करने वाली पार्टी का दफ्तर रौशन होता है अथवा नहीं।
राहुल की तारीफ में विकास के बोल
सियासत में अपने बड़े नेताओं को खुश करना हर किसी राजनीतिक व्यक्ति की प्राथमिकता होती है। खुश करने के तरीके कुछ भी हो सकते हैं। आमतौर पर बड़े नेताओं की तारीफ करना और उनके बारे में कसीदे पढऩा सामान्य व पापुलर तरीका माना जाता है। लिहाजा, छत्तीसगढ़ सरकार में संसदीय सचिव और असम के प्रभारी सचिव विकास उपाध्याय ने भी ऐसा ही किया। पिछले दिनों उन्होंने असम प्रवास के दौरान पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ में लंबा-चौड़ा भाषण दिया। उनका कहना था कि केवल राहुल गांधी ही एकमात्र नेता हैं, जो सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने राहुल गांधी की तुलना रोमन ग्लैडियेटर से कर डाली। ग्लैडियेटर को सशस्त्र योद्धा माना जाता है,अन्याय के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाले योद्धा के रूप में ग्लैडियेटर का उदाहरण दिया जाता है। स्वाभाविक है कि विकास उपाध्याय ने भी राहुल गांधी को योद्धा के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की, लेकिन ग्लैडियेटर के बारे में विस्तार से जानने के लिए गूगल किया गया तो विकास उपाध्याय की यह बात तो सच निकली कि ग्लैडियेटर एक सशस्त्र योद्धा हुआ करता था, लेकिन उसके बाद यह यह भी कहा गया है कि ग्लैडियेटर रोमन गणराज्य और रोमन साम्राज्य में दर्शकों का मनोरंजन करता था। इस जानकारी के बाद विकास उपाध्याय का अपने नेता की तारीफ का अंदाज उलटा भी पड़ सकता है, क्योंकि बीजेपी के नेता राहुल गांधी की बात को मनोरंजन ही मानते हैं।
पवित्र रिश्ता बना अंकिता लोखंडे का...
‘पवित्र रिश्ता’ टीवी सीरियल से मशहूर हुई एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे की शादी बिलासपुर के विक्की जैन से हुई है। वे और उनके पिता विनोद जैन यहां के जाने-माने कारोबारी हैं। त्रिवेणी डेंटल कॉलेज सहित कुछ और व्यवसाय यहां उनका है। विक्की खुद मुंबई में बिजनेस संभालते हैं, जहां अंकिता लोखंडे से उनका परिचय हुआ और मुलाकातें रिश्ते में बदल गई। मुंबई में हुई इस शादी में बिलासपुर से विधायक शैलेष पांडेय जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी सहित उनके अनेक परिचित शामिल हुए।
तीरंदाज टीचर के तबादले का विरोध
ऐसा कम ही देखा गया है कि किसी अधिकारी-कर्मचारी का तबादला रुकवाने के लिये लोग आंदोलन करें। कोंडागांव में आईटीबीपी के बटालियन में हवलदार त्रिलोचन ने बीते 5 सालों में अनेक बच्चों को तीरंदाजी सिखाई। आधुनिक तीर-धनुष खरीदने के लिये जेब से पैसे लगाये। उनके जुनून का असर ही है कि 85 छात्र-छात्रा नेशनल और 200 से अधिक राज्य स्तर पर खेल चुके और कई मेडल जीते। अब उनका अचानक तबादला कर दिया। खिलाड़ी इससे मायूस हैं। उन्होंने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन किया और तबादला रोकने की मांग की। कलेक्टर का कहना है कि उनके हाथ में नहीं, पर वे सिफारिश जरूर करेंगे कि तबादला रुक जाये। देखें, बच्चों की बात सुनी जाएगी या नहीं।
स्पेस की दुनिया में स्पेस
खैरागढ़ के केंद्रीय विद्यालय के कक्षा नौवीं के छात्र हर्षित और उनके आठ दोस्तों ने आखिर रॉकेट बना ली। वे चौथी क्लास से रॉकेट बनाने की कोशिश कर रहे थे। पांच साल में 67 बार विफल हुए 68वीं बार सफलता मिली। यह रॉकेट 500 फीट ऊपर तक जा सकता है। अब ये छात्र अंतरिक्ष की दुनिया में ही रिसर्च करना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिये एक कंपनी भी रजिस्टर करा ली है। यह बड़ी बात है कि खैरागढ़ जैसे कस्बे से छात्रों का कोई दल अलग दिशा में करियर बनाने की सोच रहा हो।
कोदो कुटकी का इडली दोसा
कम पानी में पठारी भूमि पर कोदो-कुटकी की पैदावार ली जा सकती है। पहले इसे गरीब वर्ग खाने के लिये उगाता था, पर जब से रुपये दो रुपये में चावल मिलने लगा है इसके उत्पादन में लोगों की रुचि नहीं रह गई। दूसरी ओर स्वास्थ्य को लेकर सजग लोग इसे ढूंढते हैं। कई देशों में इसकी बड़ी मांग है क्योंकि यह मधुमेह से बचाता है और वजन को भी नियंत्रित करता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में कोदो कुटकी की खेती के लिये सरकार ने भी कुछ प्रोत्साहन की योजना बनाई है। पर सबसे बड़ा संकट उसे जरूरत के अनुसार बाजार भेजने का है। अब वहां इसे आकर्षक पैकेजिंग कर विदेशों में भेजा जा रहा है। कुछ फूड स्टाल खोले गये हैं जहां कोदो के ही इडली, अप्पे और दोसा बिकते हैं। यह प्रचलित दोसा से ज्यादा स्वादिष्ट होता है।
सीएम की दो टूक, सबके लिए एक कानून
रेत परिवहन को लेकर उपजे विवाद में खुज्जी विधायक छन्नी साहू अपने पति पर एक्ट्रोसिटी एक्ट के तहत कार्रवाई किए जाने के मसले पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने नांदगांव के पुलिस अफसरों और कांग्रेस नेताओं की खुलकर शिकायत की। सीएम ने शिकवा-शिकायत को सुनने के बाद विधायक को दो टूक जवाब में कहा कि कानून सबके लिए एक होना चाहिए। उनका इशारा छन्नी साहू की कार्यप्रणाली को लेकर था कि सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधि अपनी सुविधा के तहत कानून का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
बताते है कि सीएम ने विधायक को आम जनता के बीच सरकार की छवि पर पड़ रहे प्रतिकूल असर को लेकर भी सजग किया। वैसे विधायक यह मानकर चल रही थी कि सूबे के मुखिया उनकी परेशानियों को को सुनकर मामले में दखल देंगे। चर्चा है कि सीएम ने पुलिस की कार्रवाई को न्यायसंगत ठहराते एक तरह से राजनांदगांव पुलिस को क्लीन चिट दे दी। विधायक की रखी बातों से परे सीएम का यह कहना कि कानून समान है, इससे साफ हो गया कि विधायक को अब पति के विरूद्ध दर्ज जुर्म के लिए अब अदालत का रुख करना पड़ेगा। नांदगांव की सियासत में रेत परिवहन को लेकर भिड़े विधायक और कांग्रेस नेता तरूण सिन्हा की लड़ाई व्यक्तिगत द्वंद्व का रूप भी ले सकती है।
खेल मैदान या नशे का अड्डा !
यह तस्वीर सुबह-सुबह की है जब लोग ताजी आब्बो-हवा के लिए मैदान या गार्डन के आसपास सैर के लिए निकलते हैं। स्थान है- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर लाखेनगर के हिन्द स्पोर्टिंग मैदान के एक कोने की। एक कोना इसलिए कह रहे हैं कि चारों कोनों में लगभग यही स्थिति है, जहां पर शराब की खाली बोतलों का ढेर लगा रहता है। शायद खरीदी-बेची जाती है। यह मैदान कभी फुटबॉल के बड़े-बड़े टूर्नामेंट का गवाह हुआ करता था। अब नशाखोरी के अड्डे के साथ-साथ तमाम तरह के अवैध काम-धंधों का पोषक बन गया है। तस्वीर में दिख रहे बोरियों में भी शराब की खाली बोतलें भरी है। यह कोई एकाध दिन की बात नहीं है, बल्कि रोजाना इसी तरह शराब की खाली बोतलों का अंबार लगा रहता है। हालत यह है कि छोटे-छोटे बच्चे मैदान में खेलने नहीं बल्कि शराबियों द्वारा छोड़ी गई खाली बोतलों को इक_ा करने ही जाते हैं। उन्हें इससे पैसा मिल जाता है और वे इन पैसों से चॉकलेट-बिस्किट नहीं खरीदते, बल्कि वे भी खतरनाक नशे की दवाइयां या सिलोसन खरीदते हैं। जिससे वे पूरे दिन नशे में चूर रहते हैं। सुबह-सुबह खाली बोतलों के ढेर इस बात के प्रमाण है कि शाम होते ही यहां शराबियों की महफिल सजती है और देर रात तक दौर चलता है।
लोग बताते हैं कि मैदान के आसपास तंबूओं में नशे के सामान बिक्री और सट्टे का गोरख धंधा सातों दिन चौबीसो घंटे चलता है। साहस देखिए कि अवैध काम खुलेआम चलता है। बिल्कुल वैध जैसा। संभव है कि शासन-प्रशासन का संरक्षण होगा। असल सवाल यह है कि क्या चंद सिक्कों की खनक के एवज में खेल मैदान का ऐसा दुरुपयोग ? बच्चों-युवाओं को नशे के दलदल में धकेलने का काम कैसे जायज हो सकता है ? सवाल यह भी है कि समाज और शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों को यह कितना खेल कितना फलता, जिसकी वजह से वो इसका मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। वो भी तब जब सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने लाखों बहन-बेटियों और माताओं से वादा किया था कि प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू करेंगे। इस वादे के कारण बंपर बहुमत के साथ सत्ता में आई सरकार का कार्यकाल दो दिन बाद तीन साल पूरा हो रहा है, लेकिन वादा पूरा करना तो दूर नौनिहालों तक को नशेड़ी बनाने का काम चल रहा है। वोट के लिए माताओं-बहनों को देवी-महतारी का दर्जा देने वाले सत्ताधीशों को विचार करना चाहिए कि उनसे धोखा कितना भारी पड़ सकता है ?
अपनी खबरों और इस कॉलम के जरिए हम पहले भी खेल मैदानों की दुर्दशा पर शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करते रहे हैं, लेकिन यहां जिस तरह नशाखोरी को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे हम सभी की जिम्मेदारी और चिंता कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। संभव है कि इस दलदल में हमारा कोई अपना भी फंस सकता है। कम से कम अपने चहेते को बचाने के कड़े कदम उठाने की जरूरत है। अगर हम भी नहीं जागे तो पैसे और शोहरत की अंधाधुंध दौड़ में बर्बाद होते देर नहीं लगेगी।
मेवे को पूरी छूट
छत्तीसगढ़ में इन दिनों नगरीय निकाय के चुनाव चल रहे हैं। चुनावी फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय की है। प्रत्याशियों को बकायदा खर्च का ब्यौरा भी देना पड़ता है। इसके लिए प्रचार सामग्री, वाहन किराया से लेकर खाने-पीने के सामानों की रेट तय किए जाते हैं, ताकि उसके आधार पर खर्च का ब्यौरा दिया जा सके। नगरीय निकाय के चुनावों में स्थानीय स्तर पर बाजार रेट के आधार पर रेट लिस्ट तय किए जाते हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग और कांकेर में स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए जारी रेट लिस्ट काफी रोचक है। कांकेर में तो अंग्रेजी और हिन्दी नाम के कारण ही भोजन की कीमत अलग-अलग हो गई है, जबकि खाना एक ही है। अगर कोई प्रत्याशी अंग्रेजी नाम वाली थाली कार्यकर्ताओं को खिला रहा हो, तो उसकी जेब कुछ ज्यादा ही ढीली हो सकती है। वहां सादी थाली की कीमत केवल 40 रुपए है, लेकिन नार्मल थाली की कीमत 140 रुपए है। नाम के आधार पर रेट सुनकर तो आप भी चौंक ही गए होंगे। हमको भी हैरानी हुई थी। इसी तरह दुर्ग में एक समोसे की कीमत 10 रुपए आंकी गई है, जबकि कांकेर में एक समोसे के लिए 20 रुपए का रेट फिक्स है। कांकेर में केसर लस्सी मात्र 5 रुपए की होगी तो दुर्ग में 30 रुपए प्रति गिलास के हिसाब से खर्च जोड़ा जाएगा। कांकेर में फुल चाय 7 रुपए का है तो दुर्ग में 20 रुपए का माना जाएगा। संभव है कि अलग-अलग इलाके में रेट कुछ कम ज्यादा हो सकता है, लेकिन इतना ज्यादा अंतर और अंग्रेजी-हिन्दी नाम के आधार पर रेट को देखकर तो यही लगता है कि दाम तय करने वाले अधिकारी घर के बाहर या तो कुछ खाते-पीते नहीं होंगे या भुगतान नहीं करते होंगे। इसके अलावा एक और बात गौर करने लायक है कि सूची से मेवा नदारद है। इसका यह अर्थ लगाया जा रहा है कि मेवा खाने-खिलाने पर खर्च के ब्यौरे में शामिल नहीं होगा। तभी तो बड़े नेताओं की मेज पर सिर्फ काजू-किशमिश सजी रहती है।
हमें तो अंडा खाना ही है..
छत्तीसगढ़ सरकार ने जब मध्यान्ह भोजन में स्कूली बच्चों को अंडा देने का निर्णय लिया तो पवित्रता का हवाला देते हुए अनेक लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा और अंडे की जगह सोयाबड़ी देने का निर्णय लिया गया। छत्तीसगढ़ में बच्चों की ओर से कोई विरोध नहीं हुआ था, नेताओं ने मोर्चा संभाला था। अब कर्नाटक में भी ऐसा ही हो रहा है। वहां के लिंगायत साधुओं ने अंडा देने का विरोध किया तो छात्राओं का एक वर्ग उनके खिलाफ सामने आ गया। उन्होंने कहा- हम आपके मठ में जाकर अंडे खायेंगे। हम क्या खायेंगे, पीयेंगे यह तय करने वाले आप कौन होते हैं। क्या हम नहा-धोकर मंदिरों, मठों में नहीं जाते? हमारा अंडा खाना इतना ही गलत लगता है तो आप वो सब पैसे हमें लौटा दीजिये जो हमने दान में दिये। हम उससे पौष्टिक अंडा खरीदेंगे। हम इतने लोग मठों में पहुंचेंगे कि वहां आप लोगों के खड़े होने की जगह ही नहीं बचेगी।
जरा छत्तीसगढ़ में भी फैसला बदलने से पहले बच्चों से पूछा जाना चाहिये कि वे अंडा खाने के खिलाफ हैं या नहीं।
यह है आवारा कुत्तों की दशा..
सडक़ों पर घूमने वाले कुत्तों को अपनी उदरपूर्ति के लिये क्या नहीं करना पड़ता? कुछ दयालु किस्म के लोग अपने आसपास दिखने वाले कुत्तों को बचा खाना खिला देते हैं, बाकी इधर-उधर भटकते रहते हैं। ऐसे ही एक कुत्ते को लगा होगा कि इस प्लास्टिक के डिब्बे में कुछ दाना बचा है। उसने सिर घुसाया और फंस गया। भूख मिटी या नहीं पता नहीं लेकिन सिर फंस जाने के कारण वह घंटों बदहवास था। यह तस्वीर भिलाई की है।
धान कीमत पर किसान सीए का गणित
छत्तीसगढ़ में धान और किसान बड़ा सियासी मुद्दा है। कांग्रेस हो चाहे बीजेपी इस मुद्दे को लपकने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार का दावा है कि पूरे देश में धान का भाव सबसे ज्यादा यानी 2540 रुपए प्रति क्विंटल वही दे रहे हैं, जबकि बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस सरकार किसानों को ठग रही है। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट और हाल ही बीजेपी भिलाई के किसान मोर्चा के अध्यक्ष बने निश्चय वाजपेयी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से धान की कीमत का अंक गणित समझाया है। उनके फार्मूले से छत्तीसगढ़ के किसानों को प्रति क्विंटल धान की कीमत 1925 रुपए ही मिल रहा है। मतलब एमएसपी से भी 35 रुपए कम। जबकि मुख्यमंत्री समर्थन मूल्य और इनपुट सब्सिडी को मिलाकर 2540 रुपए प्रति क्विंटल देने का दावा करते हैं और कहते हैं कि अगले चुनाव आते तक किसानों को 27-28 सौ प्रति क्विंटल के हिसाब से पैसा मिलेगा। वो जोडक़र राशि बताते हैं तो सीए वाजपेयी नुकसान को घटाकर 1925 रुपए पर आ गए हैं।
आइए देखते हैं उनका अंक गणित क्या है ? धान की खरीदी एक महीना देरी से शुरू होने के कारण सूखत से करीब 250 रुपए का नुकसान, खाद की कालाबाजारी से 200 रुपए का घाटा, बारदाना और ट्रांसपोर्ट खर्च के कारण प्रति क्विंटल 125 रुपए का नुकसान का आंकलन किया है। इस तरह 575 रुपए के कुल नुकसान का गणित बैठाया गया है। मतलब किसानों को एक क्विंटल धान बेचने पर 1385 रुपए प्राप्त हो रहा है। इसमें प्रति एकड़ इनपुट सब्सिडी की राशि 540 रुपए को जोड़ दिया तो भी कुल कीमत 1925 रुपए ही आ रही है। कुल मिलाकर किसान और धान को लेकर दोनों पार्टियां ऐसे जलेबी बना रहे हैं कि अच्छे-अच्छों का सिर चकरा जाए। दोनों पार्टियों की गणना पाठकों के सामने है, ताकि वे खुद निर्णय कर लें कि कौन सही और कौन गत ? सही-गलत का फैसला कर हो जाए तो वोट मांगने आने वाले नेताओं से हिसाब-किताब चुकता करना ही बुद्धिमानी होगी।
छत्तीसगढ़ में भी राजस्थान फार्मूला
छत्तीसगढ़ में कैबिनेट में फेरबदल की खबरों के बीच यहां भी राजस्थान फार्मूला लागू होने की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है। अब चूंकि पॉवर शेयरिंग की संभावना नहीं है, तो राजस्थान की तर्ज पर असंतुष्ट खेमे को कैबिनेट में शामिल कर संतुष्ट करने की कोशिश हो सकती है। चर्चाओं में बिलासपुर और सरगुजा संभाग से एक-एक मंत्री से इस्तीफा लिए जाने की चर्चा है। दुर्ग संभाग का सरकार में सर्वाधिक प्रतिनिधित्व है, वहां से आरक्षित वर्ग से आने वाले के एक मंत्री का पत्ता कटने की चर्चा है, हालांकि जानकारों का कहना है कि इस वर्ग को नाराज करने का जोखिम लेने की संभावना कम ही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि रायपुर के एक युवा विधायक को कैबिनेट में जगह मिल सकती है। उनकी दिल्ली में पकड़ मजबूत है और पिछले कुछ महीनों से संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारी के रुप में काम कर रहे हैं। प्रदेश संगठन के एक बड़े नेता भी मंत्री पद के लिए इच्छुक बताए जा रहे हैं। वे जोर-आजमाइश भी कर रहे हैं। ऐसे में सत्ता के साथ संगठन में भी बदलाव संभव है। चर्चा है कि एक ताकतवर मंत्री इस्तीफा देकर संगठन प्रमुख की भूमिका संभाल सकते हैं। अल्पसंख्यक वर्ग के मंत्री का भार हलका किए जाने की भी चर्चा है। सत्ता-संगठन से जुड़े नेताओं का मानना है कि कम से कम दो मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है और कई मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया जा सकता है।
कलेक्टर बंगले के सामने बजेगा डीजे?
इस कॉलम में कल ही राखी ग्राम में सुबह 4 बजे तक बज रहे डीजे को रोकने की कोशिश करने पर एक बुजुर्ग व्यक्ति से मारपीट की गई। यह भी लिखा कि चूंकि ये डीजे कलेक्टर, एसपी के घरों के सामने नहीं बजते इसलिये कानून का पालन कराने से पुलिस बचती है। उस दिन भी तीन बार 112 हेल्पलाइन में फोन किया गया था लेकिन कोई नहीं पहुंचा। पुलिस ने कह दिया कि उन्होंने अनुमति ली है। अब राखी ग्राम के लोगों ने सचमुच एक आवेदन रायपुर के पुलिस अधीक्षक को दिया है। उन्होंने 19 दिसंबर को कलेक्टर, एसपी के बंगले के बाहर डीजे बजाने की अनुमति मांगी है। उन्होंने लिखा है कि जिस नियम के तहत उनको डीजे बजाने की अनुमति दी गई थी, उसी नियम से हमें भी दी जाये। यदि नियम नहीं है तो राखी में डीजे बजाने वालों पर उस दिन की शिकायत के आधार पर कार्रवाई की जाये।
पत्रकारिता बस्तर की..
बस्तर जैसी जगहों पर पत्रकारिता एक कठिन पेशा है। आम तौर पर लोग इसमें अनिश्चितता और आमदनी को लेकर भी चिंतित रहते हैं। यदि कोई इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन से पास आउट है तो वह बड़े शहरों में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर अच्छा वेतन हासिल कर सकता है। राष्ट्रीय अखबारों में भी अवसर मिल सकता है। इन सबके बीचे बस्तर का थामीर कश्यप बस्तर का संभवत: पहला युवा है जिसने आईआईएमसी से डिग्री लेने के बाद वहीं की पत्रकारिता चुनी है। हाल ही में उन्हें एक राष्ट्रीय अखबार के लिये फेलोशिप भी मिली है।
10 जनवरी को कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इस महीने की 17 तारीख को अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है। स्वाभाविक है कि जश्न तो होगा, लिहाजा जोर-शोर से तैयारी भी चल रही है, लेकिन जश्न के साथ-साथ विरोधियों को झटका देने की भी तैयारी चल रही है। दरअसल, जुलाई-अगस्त के महीने से छत्तीसगढ़ में पावर शेयरिंग फार्मूले को लागू करने का जबरदस्त हल्ला मचा रहा। दोनों तरफ से खूब दिल्ली दौड़ भी हुई। जोर-आजमाइश से लेकर शक्ति प्रदर्शन तक हुआ। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सब कुछ शांत दिखाई पड़ रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि अब पावर शेयरिंग की संभावना नहीं है। इससे दूसरे खेमे में चिंता तो जरूर होगी। इसके अलावा 10 जनवरी के आसपास मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाओं ने विधायकों-मंत्रियों में बेचैनी बढ़ा दी है।
कहा जा रहा है कि खराब प्रदर्शन वाले मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। इस आधार पर कैबिनेट में जगह पाने और कुर्सी बचाने के लिए विधायकों-मंत्रियों की चुपचाप दिल्ली दौड़ भी शुरू हो गई है। अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के विधायक पुत्र की पार्टी प्रमुख से मुलाकात और बिलासपुर संभाग के एक मंत्री की हाईकमान के समक्ष हाजिरी को लेकर काफी कानाफूसी हो रही है। संभव है कि इस जोड़-तोड़ में और भी विधायक-मंत्री शामिल होंगे। क्योंकि इस दौरान तो कैबिनेट में बदलाव की केवल अटकलें लगाई जा रही थी अब तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वयं कह दिया है कि मंत्रिमंडल में बदलाव का समय आ गया है। तब तो अटकलों पर भरोसा करना ही पड़ेगा।
इसके बाद किसका पत्ता कटेगा और किसका नंबर लगेगा, इसके लिए तो फिलहाल इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन सीएम के इस बयान के बाद विधायक-मंत्रियों की धुकधुकी तो जरूर बढ़ गई होगी। उधर, सत्ता के करीबी इस बात से खुश हैं कि इसी बहाने तीन साल के उत्सव के शक्ति प्रदर्शन में भागीदारी बढ़ेगी और नगरीय निकाय से लेकर यूपी के चुनाव में विधायक-मंत्रियों की सक्रियता भी बढ़ेगी। खैर, यह तो सियासत की मांग है जिसमें दांवपेंच तो चलते हैं और चलते रहेंगे।
महंत की सियासी प्लानिंग
छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की दो सीटों का कार्यकाल जून 2022 में समाप्त हो रहा है। चुनाव के करीब 6 महीने पहले से ही राज्यसभा जाने के इच्छुक नेताओं की दिल की बात जुबां पर आने लगी है। इसमें सबसे पहला नाम विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत का आता है। वे पिछले कुछ दिनों से लगातार मीडिया में अपनी इस इच्छा को जाहिर कर रहे हैं कि अब उनका लक्ष्य राज्यसभा जाना है। वे कहते हैं कि राजनीतिक जीवन में अब तक 10 चुनाव लड़ चुके हैं। पत्नी ज्योत्सना महंत के चुनाव को मिलाकर 11 चुनाव हो जाते हैं। अब वे राज्यसभा के जरिए देश की बात करना चाहते हैं। हालांकि तीन साल पहले साल 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के ठीक बाद महंत मुख्यमंत्री की रेस में भी थे। वे खुद कह चुके हैं कि सेमीफायनल खेल चुके हैं। किसी भी खेल में सेमीफायनल तक पहुंचना भी बड़ी बात होती है, भले ही वो सियासत का खेल क्यों ना हो ?
कुल मिलाकर महंत मान चुके हैं कि अब वे रेस में शामिल नहीं होंगे। कारण कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन खिलाड़ी की तरह सियासतदारों के रिटायरमेंट प्लानिंग की समीक्षा तो होती है। यहां भी समीक्षा शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि महंत अपने बेटे सूरज महंत को सियासी मैदान में उतारना चाह रहे हैं। पिछले कुछ समय से वे अपने पिता के साथ सक्रिय भी रहते हैं। माता-पिता के संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में वे शामिल होते हैं। बेटे की सक्रियता को देखकर लोग यही अनुमान लगा रहे हैं कि महंत की चुनावी विरासत को वे ही संभालेंगे। वैसे विधानसभा अध्यक्ष के पद की अपनी मर्यादाएं हैं, जिसमें राजनीतिक सक्रियता कम हो जाती है। लोगों से सीधा जुड़ाव नहीं होता। महंत भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में संभव है कि वे अपनी राजनीतिक सक्रियता को बरकरार रखने के लिए यह उपाय कर रहे होंगे।
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद चुनावी राजनीति में असफलता का भी मिथक है। प्रेमप्रकाश पांडे, धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। हो सकता है कि महंत ने इस तथ्य पर गौर किया होगा, क्योंकि वे ज्योतिष और मिथकों पर भरोसा करने वाले माने जाते हैं।
चेहरा चमकाने वाले साहब की टाइमिंग
सरकार का चेहरा चमकाने वाले विभाग के अफसरों का भी चमकदार होना कितना जरूरी है, यह उस वक्त पता चला जब विभाग में नए साहब की एंट्री हुई। आते ही मैराथन मीटिंग्स के साथ पेंडिंग निपटाने पर फोकस किया। उसके बाद पिच पर जमते ही मुखिया के लिए राज्य की राजधानी से लेकर देश की राजधानी में बड़े-बड़े आयोजन कर फटाफट अंदाज में बैटिंग की। विभाग के अचानक फॉर्म में आने से सभी अचरज के साथ खुश भी हैं। हर प्लेटफार्म पर सक्रियता खूब दिखाई दे रही है। साहब के साथ बैठकों में रहने वाले बताते हैं कि वे बेक्रफास्ट और लंच टाइम में कामकाज निपटाते हैं। कई बार तो लंच-बैठक साथ-साथ चलते हैं। जाहिर है कि उनके साथ हमेशा कुक भी तैनात रहते हैं। जैसे ब्रेकफास्ट या लंच का टाइम होता है कुक बेरोक-टोक प्लेट सजाकर हाजिर हो जाता है और सीधे टेबल पर परोस दी जाती है, ताकि खाने के साथ दूसरे काम भी बिना किसी रूकावट के चलते रहे। शुरूआत में तो मातहत अधिकारियों को लगा कि लंच का समय हो गया तो वाइंडअप करना चाहिए, लेकिन जब साहब लंच के साथ काम भी निपटाने लगे तो समझ आया कि कंटिन्यू करना है। अब ये सब नार्मल हो गया है। मातहत बताते हैं कि उनका खाना भी वैरायटी वाला होता है। खाने-पीने के साथ साहब सेहतमंद रहने के लिए वर्जिश भी करते हैं। कुल मिलाकर टाइमिंग से कोई समझौता नहीं। जैसे क्रिकेट में सही टाइमिंग में बल्ला घुमाने पर रन बनते हैं, उसी तरह साहब भी सही टाइमिंग का उपयोग करते हुए खुद के साथ सरकार का चेहरा चमकाने बखूबी शाट्स लगा रहे हैं। अब देखना यह है कि वे कितनी लंबी पारी खेलते हैं।
दुर्लभ सफेद कौवे का दर्शन
सफेद कौवा दिखना मुश्किल है, पर बस्तर में यह संभव है। यह बस्तर के धरमपुरा इलाके की तस्वीर है जहां करीब एक साल से इस सफेद कौवे को लोग देख रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञ इसे अल्बिनो भी कहते हैं। इनकी आयु काले कौवों से कम होती है। साथ ही इनमें उडऩे की क्षमता भी अधिक नहीं होती।
महिलायें इसीलिये राजनीति में नहीं...
चुनाव कोई जनसेवा के लिये नहीं लड़ता। लोग अनाप-शनाप खर्च इसलिये करते हैं क्योंकि जीतने के बाद पूरी भरपाई होने की उम्मीद होती है। खुद को मौका नहीं मिलता तो पत्नी को लड़ाते हैं। पर चुनाव हार गये तो?
जांजगीर-चांपा जिले में एक शिक्षक ने अपनी पत्नी को जिला पंचायत का चुनाव इस उम्मीद से लड़वाया कि वह जीत जाएगी तो पॉवर और पैसा सब मिलेगा, लेकिन वह चुनाव हार गई। चुनाव के लिये शिक्षक ने कर्ज ले रखा था। हारने से दो बेटे व एक बेटी के भरे-पूरे घर की सुख-शांति छिन गई और पत्नी पर शामत आ गई। जैसी कि पुलिस रिपोर्ट है, पति होरीराम ने कर्ज नहीं चुका पाने के कारण पत्नी की इतनी पिटाई की कि उसे जगह-जगह चोट आई। पत्नी ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करा दी है और पुलिस ने मामले को जांच में लिया है।
ध्वनि प्रदूषण कानून का खोखलापन
कुछ कानून ऐसे हैं जिनका उल्लंघन होते हुए देखने पर भी पुलिस अपनी आंख-कान बंद रखती है। जब पब्लिक सामने आती है तो उसकी पिटाई हो जाती है। पलारी के वार्ड क्रमांक 12 में देर रात तेज आवाज में डीजे की आवाज से एक शख्स का परिवार परेशान हो गया। उसने बारात में शामिल लोगों के पास जाकर कहा-आवाज कुछ धीमा कर लें। बाराती उलझ गये और उसे पीटने लगे। पिटाई होते देख उसके पिता पहुंचे तो उनको भी पीट दिया। पलारी पुलिस ने मामूली धाराओं में अपराध दर्ज कर लिया है। गिरफ्तारी और जमानत देने की औपचारिकता पूरी कर ली जायेगी। दरअसल, एसडीएम, कलेक्टर के आवास के सामने से ये बारातें नहीं गुजरती। उनका घर सुरक्षित जोन में होता है।
फर्जीवाड़े की सरकारी आदत
पिछली सरकार में सबसे आगे निकलने की होड़ के चलते जिलों में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में जो फर्जीवाड़ा हुआ था, उस पर मौजूदा सरकार भी लगाम लगा नहीं पा रही है। मसलन, रायगढ़ जिले में सौ फीसदी वैक्सीनेशन का आंकड़ा देकर जिला प्रशासन ने अपनी पीठ थपथपा ली, और जब ओमिक्रॉन के खतरे के बाद दूसरे डोज के लिए लोग सेंटर में पहुंचे तो पता चला कि रिकॉर्ड में तो उनका वैक्सीनेशन हो चुका है। अब जाकर स्वास्थ्य विभाग ने इसकी जांच बिठाई है।
ऐसा ही फर्जीवाड़ा पिछली सरकार में बड़े पैमाने पर हुआ था। उस समय नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में तो डिजिटल पेमेंट की खबर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आई। यह दावा किया गया कि एक गांव में तो शतप्रतिशत लोग डिजिटल पेमेंट करते हैं। डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के नाम पर उस समय के जिला प्रशासन के मुखिया प्रधानमंत्री अवार्ड पा गए। मगर सरकार बदली तो यह बात सामने आई कि दंतेवाड़ा की 32 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। यही नहीं, दंतेवाड़ा में लोग सबसे ज्यादा कुपोषित हैं। इस पर सीएम ने अपना चेहरा चमकाने में लगे अफसरों को लेकर नसीहत दी थी। मगर अब फिर वही ढर्रा शुरू हो गया है।
उत्तरी अमेरिका में छत्तीसगढ़
हजारों किलोमीटर दूर रहने वाले नॉर्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसियेशन (नाचा) से जुड़े सदस्य छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जुड़े रहने के लिये नियमित रूप से एकत्रित होते हैं। उनके सोशल मीडिया पेज पर कुछ आकर्षक तस्वीरें शेयर की गई हैं। उन्होंने 10 दिसंबर को शहीद वीर नारायण सिंह को याद करते हुए जनजाति गौरव दिवस मनाया। इस बहाने नई पीढ़ी को उन्होंने शहीद वीर नारायण की शहादत के बारे में बताया। छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य गीतों की प्रस्तुति दी गई। शिकागो स्थित भारतीय दूतावास भी इस आयोजन में सहभागी रहा।
धर्मसंकट में सरकार
हसदेव अरण्य से आदिवासियों का पैदल जत्था रायपुर पहुंचा तो सरकार पर एक दबाव बना। आगे 10 दिसंबर को मदनपुर में एक बड़ा सम्मेलन भी हुआ और आर-पार की लड़ाई की घोषणा कर दी गई। केंद्र से मंजूरी के बाद भी तीन कोयला ब्लॉक, परसा ईस्ट व केते बासेन, परसा और केते एक्सटेंशन की अंतिम स्वीकृति को राज्य सरकार ने रोक रखा है। इसी आंदोलन के बीच अब राजस्थान सरकार के नुमाइंदे आकर राजधानी में डटे हैं। मंत्रालय, वन विभाग और पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से मुलाकात कर रहे हैं और राज्य सरकार से मंजूरी जल्दी देने की गुहार लगा रहे हैं। उनका कहना है कि पीकेईबी के पहली खदान में अब कुछ दिन का ही कोयला बचा है। अब छत्तीसगढ़ सरकार दुविधा में है। राजस्थान में भी अपनी ही पार्टी की सरकार है। इधर आदिवासियों को चुनाव के पहले दिये गये भरोसे को भी बनाये रखना है।
अवैध रेत के खिलाफ असरदार आंदोलन
प्रदेश में कई जगहों से अवैध रेत उत्खनन की खबरें आती रहती हैं। इसका विरोध भी होता है पर असर नहीं होता। बैकुंठपुर के भरतपुर में एक असरदार आंदोलन आम आदमी पार्टी ने शुरू कर दिया। कार्यकर्ताओं ने उस सडक़ को पंडाल लगाकर घेर दिया और अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गये हैं, जहां से नेउर नदी के लिये रेत की ट्रकें गुजरती हैं। पार्टी का आरोप है कि नियम के खिलाफ मशीनों से रेत निकाली जा रही है और हाईवा से लोड कर यूपी तक भेजा जा रहा है। इस आंदोलन के चलते रेत निकालने का काम बंद हो गया है। अब आंदोलन करने वालों को एसडीएम ने चेतावनी दी है कि नहीं हटे तो बलपूर्वक हटाया जाएगा, कानूनी कार्रवाई भी की जायेगी। खदान संचालक का भी हवाला दिया गया है कि उसने व्यवसाय नहीं करने देने की शिकायत दर्ज कराई है। पर रेत की अवैध खुदाई और परिवहन की उनकी शिकायत का क्या होगा? इसका भी जिक्र है- माइनिंग अधिकारी को कहा गया है वे इस मामले पर कार्रवाई करेंगे।
नेतीगिरी नहीं तो कलाकारी!
राज्य के दुर्ग जिले में नगर निगमों के चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार उफान पर है। बीजेपी-कांग्रेस ने जीत के लिए ताकत लगा दी है। सूबे की सियासत के लिहाज से दुर्ग काफी प्रतिष्ठापूर्ण जिला माना जाता है। प्रदेश के मुखिया के साथ कई मंत्रियों का इलाका है। बीजेपी के भी कई नेताओं का गढ़ है। ऐसे में खूब चुनावी रंग देखने को मिल रहा है। भिलाई से बीजेपी के एक पार्षद प्रत्याशी का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें प्रत्याशी सडक़ पर पालथी मारकर बैठ के महिलाओं के सामने दंडवत है। महिलाओं के पैर पकड़-पकड़ कर वोट के लिए विनती कर रहा है। हिन्दूत्व और सनातन संस्कृति का हवाला देने वाले इस नेता का दावा है कि जीतने पर वह वार्ड को आदर्श बना देगा। अब यह तो वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा कि नेताजी की पैर पकड़ राजनीति और सनातन धर्मी के नाम पर वोट मिलते या नहीं, लेकिन पहली नजर में वायरल वीडियो को देखने पर वह फिल्मी दृश्य की तरह लगता है। नाली के किनारे सडक़ पर बैठे नेताजी किसी मझे हुए कलाकार को टक्कर देते हुए नजऱ आ रहे हैं। चलिए तसल्ली इस बात की है कि नेतागिरी नहीं जमी तो कलाकारी काम आएगी।
नाना पाटेकर का अंदाज़ या फिर...
लगता है नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी नेताओं की अंदर की कलाकारी जाग गई है। प्रत्याशी वोटरों को लुभाने के लिए तरह तरह के उपक्रम कर रहे हैं, लेकिन चुनाव प्रभारी भी कुछ कम नहीं है। अब पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को ही ले लीजिए। वे बिरगांव नगर निगम में पार्टी के प्रभारी हैं। पिछले दिनों उनके बयान ने खूब सुर्खियां बटोरी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि अवैध शराब बिरगांव पहुंचा तो लाने वाला जीवित नहीं बचेगा। उनके इस बयान की खूब आलोचना हुई, क्योंकि मार-काट और हिंसा की बात को लोकतंत्र में उचित नहीं माना जाता। हम यहां उनके बयान की बात नहीं कर रहे हैं। उनके इस बयान का वीडियो देखने वाले कुछ पारखी लोगों ने इसमें नया एंगल ढूंढ लिया। उनका मानना था कि अजय चंद्राकर ने सिर में हाथ रखकर जिस तरीके से बयान दिया वो फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर के अंदाज से मेल खाता है। नाना पाटेकर का ये स्टाईल काफी चर्चित है। लोगों का कहना है कि अजय चंद्राकर आजकल नाना पाटेकर की फिल्में देख रहे होंगे। लेकिन कुछ और जानकारों का मानना है कि अजय चंद्राकर का हुलिया और तेवर बीजेपी के एक सांसद परेश रावल से मिलते-जुलते हैं, जो कि कुछ फिल्मों में खलनायक रहते हुए उन्होंने दिखाये थे।
हालांकि अजय चंद्राकर बीजेपी के बड़े नेता हैं और पार्टी में पूछ-परख भी ठीक-ठाक है। ऐसे में फील्ड बदलने की तो नहीं सोच रहे हैं। हां अगर शौकिया कर रहें होंगे तो नेतागिरी में एडिशनल क्वालिफिकेशन जरूर हो सकता है।
धर्म का तमाशा या पागलपन...
सरगुजा जिले के लखनपुर पंचायत के ग्राम पंचायत चांदो में संतोष धुरी नाम का ग्रामीण अपना मकान बना रहा है। कुछ लोग अपने-आपको बजरंग दल का बताते हुए वहां पहुंच गये। उन्होंने मकान तोडऩे की कोशिश की। उन्हें शिकायत थी कि यह चर्च जैसा दिख रहा है। घर नहीं लग रहा है। ग्रामीण ने उन्हें समझाया कि यह घर ही बन रहा है। पर बात नहीं बनी। इसके बाद एसडीएम ने इस आपत्ति को मानते हुए निर्माण पर स्थगन आदेश दे दिया है। यानि अगले आदेश तक यह मकान अधूरा ही रहेगा। स्थगन से सवाल यह खड़ा होता है कि किसी मकान की डिजाइन की वजह से उसके निर्माण पर कैसे रोक लगाई जा सकती है?
हाथी के दांत दिखाने के अलग...
आदिवासी समाज के सम्मेलनों में प्राय: सभी दलों से जुड़े समाज के प्रमुख लोग शामिल होते हैं इसलिये राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोपों से इसमें बचा जाता है। सीएम भूपेश बघेल शहीद वीर नारायण बलिदान दिवस के मौके पर आयोजित सम्मेलन में शामिल होने बालोद पहुंचे थे। भाजपा के पूर्व सांसद व इस समय सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष सोहन पोटाई ने कहा- इस समय हमारे समाज के 30 लोग विधायक हैं। ये ईमानदारी से सरकार के सामने विधानसभा में मांगों को रखते तो आदिवासियों को आज बार-बार आंदोलन नहीं करना पड़ता। सीएम की बारी आई तो उन्होंने पलटवार किया। कहा- यह तो 'हाथी के दांत दिखाने के अलग, खाने के अलग' जैसी बात हो गई। हर बात के लिये सरकार को दोषी मत ठहरायें। जो मांगें लंबित हैं वे 2012-13 से हैं। अपनी सरकार में रहते हुए आपने क्यों मांगें पूरी नहीं की? हम गंभीरता से हर मांग को ले रहे हैं। सरकार समाज के लिये काम कर रही है।
हसदेव के जंगल में बाघ
हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक की मंजूरी के खिलाफ लगातार आंदोलन हो रहे हैं। इसे हाथियों के रहवास क्षेत्र बताते हुए भी कोयला उत्खनन की मंजूरी पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। इस बीच सोशल मीडिया पर कुछ पदचिन्ह पोस्ट कर बताया गया है कि हसदेव इलाके में बाघ भी विचरण कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में बाघों की वैसे भी लगातार संख्या घट रही है। इस इलाके के आदिवासी कह रहे हैं कि इस घने जंगल से बाघों की बेदखली रोकने के लिये भी जरूरी है कि कोल ब्लॉक मंजूर न किये जायें।
मुख्यमंत्री की हंसी-ठिठोली
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ठेठ अंदाज अक्सर लोगों को खूब गुदगुदाता भी है। ऐसा ही वाकया इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईविंग एण्ड ट्रैफिक रिसर्च के लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान हुआ। मुख्यमंत्री जब भाषण देने के लिए पहुंचे तो माइक के सामने बिना कुछ बोले काफी देर तक मुस्कुराते रहे। उनकी हंसी रूक नहीं रही थी। लोगों को माजरा समझ आता इससे पहले सीएम ने खुद ही अपनी हंसी का राज खोल ही दिया। दरअसल, इस कार्यक्रम में मारूति सुजुकी के एमडी केनिची आयुकावा भी अतिथि के रूप में मौजूद थे। विदेशी नाम का एकाएक उच्चारण करना थोड़ा मुश्किल होता है, लिहाजा अधिकारियों-मेहमानों ने केनिची आयुकावा के नाम की पर्चियां मुख्यमंत्री तक भिजवाई थी। माइक के सामने पहुंचते ही सीएम के पास ऐसी चार-पांच पर्चियां इक_ा हो गई। जिसे देखकर वे हंस रहे थे। उन्होंने इस बात को बोल दिया कि वे सही उच्चारण नहीं कर पाएंगे, इसलिए सभी ने लिखकर भेजा है। फिर मुख्यमंत्री ने बड़ी सावधानी से नाम पढक़र उनके नाम का उच्चारण किया। जिसके बाद मुख्यमंत्री और मौजूद लोगों की भी हंसी छूट गई। इतना होने के बाद सीएम को और मजाक सूझा तो उन्होंने मंच से एक प्रतियोगिता भी करा दी कि मारुति के अधिकारी के नाम का सही उच्चारण करने वाले को इनाम दिया जाएगा। फिर कई लोगों ने हाछ उठाकर नाम लेने की कोशिश की, लेकिन अधिकांश सही नाम नहीं ले पाए आखिर में किसी ने सही नाम लिया तो सीएम ने शाबासी दी। इस तरह वहां काफी देर तक हंसी-ठिठोली का माहौल चलता रहा। केनिची आयुकावा खुद भी लोटपोट हो रहे थे। हालांकि वे हिन्दी और छत्तीसगढ़ी समझ नहीं पा रहे थे, लेकिन उनके साथ मौजूद दुभाषिया उन्हें लगातार पूरा माजरा समझा रहा था, तो वे भी बराबरी से मजा ले रहे थे।
पत्नी से खटपट में भी कारगर योग
इसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने योग का महत्व बताने के लिए भी ठेठ उदाहरण का उपयोग किया। दरअसल, नए सेंटर में ड्राइविंग की ट्रेनिंग के साथ योग और मनोरंजन के लिए भी इंतजाम हैं। जिसका जिक्र करते हुए सीएम ने बताया कि वाहन चलाते समय मानसिक संतुलन बेहद जरूरी है। उनका कहना था कि मान लीजिए ड्राइवर पत्नी से झगड़ा करके आ गया और मालिक भी नाराज हो जाए, तो एक्सीलेटर पर कंट्रोल करने के लिए मानसिक संतुलन का होना जरूरी है। संभव है कि दिमागी स्थिति बिगडऩे पर स्पीड तेज हो जाए और दुर्घटना का कारण बन जाए। इसलिए यहां योग भी सिखाया जा रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री खुद भी नियमित योग करते हैं और यह संभवत: उनका अनुभव होगा कि योग से मन को शांत रखा जा सकता है। लिहाजा वे रोजमर्रा की घटना से जोडक़र समझाने की कोशिश कर रहे थे कि पत्नी और बॉस के साथ खटपट की स्थिति में योग कारगर है।
जितनी मुंह, उतनी बातें
छत्तीसगढ़ सरकार कुलपतियों की आयु सीमा 65 से बढ़ाकर 70 वर्ष करने जा रही है। इस सिलसिले में विधानसभा में विधेयक लाने की तैयारी है। उत्तराखंड सहित कुछ राज्यों में पहले से ही कुलपतियों की आयु सीमा 70 साल है। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में एक महिला कुलपति को दोबारा मौका देने के लिए आयु सीमा बढ़ाई जा रही है। कुलपति के पति की भी शासन-प्रशासन में काफी धमक है। जितनी मुंह, उतनी बातें। लेकिन आयु सीमा बढ़ रही है, तो कुछ तो बात होगी।
जनरल रावत का छत्तीसगढ़ कनेक्शन
दिवंगत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा। वे यहां कई बार आ चुके हैं। बिलासपुर में बिलासपुर गैस एजेंसी के संचालक राज्यवर्धन सिंह उनके मौसा-मौसी लगते हैं। कुछ साल पहले वे बिलासपुर में उनके घर एक विवाह समारोह में आखिरी बार पहुंचे थे।
पौष्टिक आहार से पेट दर्द
दुर्ग जिले के कोल्हियापुरी स्कूल में चिक्की (गुड़-पापड़ी) खाने से दो दर्जन से ज्यादा बच्चों के बीमार पड़ जाने का मामला आखिर क्या है? परिजन कहते हैं कि चिक्की खराब गुणवत्ता की थी। स्कूल के टीचर्स कह रहे हैं कि बच्चों ने ज्यादा मात्रा में खा ली। दोनों ही स्थितियां अलग-अलग सवाल भी खड़े कर रही हैं। चिक्की की गुणवत्ता खराब थी तो इसे बनाने और सप्लाई करने वाला कौन था? महिला बाल विकास विभाग की देख-रेख में इसे बनाया गया या नहीं? इस समय सरकार ने एक फैसला लिया है, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है, कि अब महिला समूहों के बजाय सेंट्रलाइज तरीके से रेडी-टू-ईट आहार तैयार किया जायेगा। यदि गुणवत्ता ठीक थी, बच्चे ज्यादा मात्रा में खा लेने के कारण बीमार पड़े तो इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि आम तौर पर उन्हें ऐसी स्वादिष्ट चीजें, जिनमें स्कूल का मध्यान्ह भोजन भी शामिल है, नहीं मिलती। अभी तो परिजनों की मांग के अनुसार चिक्की की क्वालिटी की जांच का काम बीज विकास निगम को सौंपा गया है, जिनके हाथ फरवरी से इसका ठेका आने वाला है। स्कूल के प्रधान पाठक को निलंबित किया गया है, स्टाफ की वेतन वृद्धि रोकी गई है।
स्मार्ट शहरों की यातायात सेवा
प्रदेश के दो बड़े शहर रायपुर और बिलासपुर हवाई सेवा से तो जुड़े हैं पर दोनों ही जगहों पर सार्वजनिक परिवहन सेवा खराब है। कोरोना महामारी के बाद तो स्थिति और बिगड़ी हुई है। रायपुर में नया बस-स्टैंड चालू होने के बाद तो ऑटो रिक्शा, टैक्सी से स्टेशन पहुंचने का खर्च एक तरफ- बस का किराया एक तरफ। किसका बोझ ज्यादा पड़ेगा, सोचना पड़ता है। रायपुर में सिटी बस को फिर से सडक़ पर लाने के लिये किराये में 25 फीसदी वृद्धि की घोषणा की गई लेकिन ऑपरेटर संतुष्ट नहीं। डीजल के दाम के कारण वे अपनी 65 प्रतिशत मांग को लेकर अड़े हैं। बिलासपुर में ऐसी कोई मांग नहीं है क्योंकि नगर निगम के अधीन में चल रही सारी बसें कंडम हालत में हैं। या तो इनकी रिपेयरिंग में लाखों रुपये खर्च करने होंगे या फिर नई खरीदी करनी होगी।
ये दोनों ही शहर स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किये जा रहे हैं। अभी तक इस योजना से अनुपयोगी स्ट्रक्चर, जुंबा डांस और रंग-बिरंगे होर्डिंग ही मिल पाई हैं।
शुभचिंतक काफी कम रह गए
पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू का ग्राफ भाजपा में गिरता-बढ़ता रहा है। कई लोग इस स्थिति के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराते हैं। जब वे पॉवर में होते हैं, तो सबसे पहले अपने करीबियों को ही किनारे लगाने में पीछे नहीं रहते हैं। अपने बुरे दिनों में साथ देने वालों का नुक़सान करने में वे सत्ता में बैठकर ओवरटाईम मेहनत करने लगते हैं।
यही वजह है कि पार्टी के भीतर उनके शुभचिंतक काफी कम रह गए हैं। दो दिन पहले चंद्रशेखर साहू एयरपोर्ट में उस वक्त असहज हो गए, जब उन्हें सीआईएसएफ के जवानों ने गेट पर ही रोक दिया।
साहू, प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी नितिन नबीन के स्वागत के लिए गए थे। चंद्रशेखर साहू ने उन्हें टूटी-फूटी अंग्रेजी में अपना परिचय देकर धौंस जमाने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाकर्मियों पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि पार्टी की तरफ से जो लिस्ट भेजी गई थी। उनमें नाम नहीं है। आखिरकार चंद्रशेखर साहू को सह प्रभारी का स्वागत किए बिना लौटना पड़ा।
सरपंच, शिक्षक और टीका
कोविड टीकाकरण को लेकर शुरू में दहशत थी लेकिन कमोबेश सभी अब यह लगवाने के लिये तैयार हो जाते हैं। पर, जिन लोगों पर लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी हो, वही पीछे हटें तो क्या किया जाये। जनपद पंचायत बलौदा की ग्राम गतवा की महिला सरपंच लाख कोशिशों के बाद भी न तो अपना टीका लगवा रही हैं और न ही उनके परिवार में किसी ने लगाया। स्वास्थ्य कर्मियों से बात नहीं तो कई अधिकारी समझाने जा चुके, पर वे किसी की नहीं सुन रही हैं। एक और पंचायत खोहा के सरपंच ने भी टीका नहीं लगवाने की जिद कर रखी थी, पर तहसीलदार के समझाने पर वे मान गये।
हाईकोर्ट में रायगढ़ जिले के एक स्कूल के प्राचार्य ने एक दिलचस्प मामला दायर कर दिया है। उन्हें संकुल प्रभारी ने टीका लगवाये बिना स्कूल पहुंचने से मना कर दिया। उन्हें छुट्टी पर रहने कह दिया। अब प्राचार्य ने केस इस बात पर लगाया है कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं है, इच्छा पर निर्भर करता है। आदेश गलत है, मैं अपनी मर्जी से छुट्टी पर नहीं गया, अवकाश की अवधि की पूरी सैलरी दी जाये।
ऐसे वक्त में जब टीकाकरण के लिये जान जोखिम में डालकर नदी पार करने, पैदल लंबी दूरी तय करने की तस्वीरें स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की आ रही हो, शिक्षक, सरपंच भी टीकाकरण के लिये लोगों को प्रेरित कर रहे हों, तब ऐसी घटनायें चिंता पैदा करती हैं।
मंत्री के इलाके में घोटाला
सरगुजा के प्रतापपुर शक्कर कारखाने में 12 करोड़ रुपये का घोटाला होने की बात संयुक्त पंजीयक ने तब मान ली जब भाजपा नेता किसानों के साथ आंदोलन पर उतर गये। तौल के कांटे में गड़बड़ी, 2500 क्विंटल गन्ने की हेराफेरी, पुराने मजदूरों की जगह रिश्वत लेकर नये मजदूरों की भर्ती जैसे आरोप भाजपा ने लगाये हैं। संयुक्त पंजीयक ने भरोसा दिलाया कि घोटाला करने वालों के खिलाफ सहकारिता अधिनियम की धारा 58बी के तहत कार्रवाई की जायेगी। मगर भाजपा की मांग है कि धारा 53बी के तहत कार्रवाई हो। 58बी में रिकव्हरी का प्रावधान है जबकि 53बी में रिकव्हरी के साथ-साथ आपराधिक प्रकरण भी दर्ज कराने का। प्रदेश के सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह सरगुजा से ही प्रतिनिधित्व करते हैं। संयोग यह भी है कि वे इसी प्रतापपुर इलाके से विधायक हैं। अब तक उनके ध्यान में इतनी गंभीर गड़बड़ी कैसे नहीं आई?
प्रदूषण के बीच क्षमता विस्तार
रायगढ़ जिले के लाखा में सुनील इस्पात एंड पॉवर लिमिटेड से आसपास के 6 गावों के किसान त्रस्त हैं। बार-बार उन्होंने इसे लेकर प्रबंधन से बात की, पर्यावरण विभाग से शिकायत की। कल उन्होंने अपने खेत की बर्बाद हुई सब्जियों के साथ धरना दिया। फैक्ट्री वालों से कहा इसे आप लोग ही खा लीजिये। ग्रामीणों का आरोप है कि संयंत्र का ईएसपी प्राय: बंद कर दिया जाता है। अब 15 दिसंबर को इसकी क्षमता विस्तार के लिये एक जन-सुनवाई होने जा रही है। ग्रामीणों को पता है कि जन-सुनवाई हर बार फैक्ट्री के पक्ष में ही होती है। उन्हें चिंता है कि जब अभी इतना प्रदूषण फैल रहा है तो जब क्षमता बढ़ेती तब उनकी फसलों का क्या होगा?
पुलिस की ढि़लाई की चर्चा
दो समुदायों के युवकों से उपजे दंगे के बाद से कवर्धा प्रशासनिक और सियासी हल्के में अब भी तनावग्रस्त शहर बना हुआ है। दंगे के बाद से एक वर्ग सभाओं के जरिये अपनी ताकत जुटाने के लिए जोर मार रहा है। हाल ही में राज्य सरकार ने दंगे से निपटने में नाकामी का आरोप झेल रहे एसपी मोहित गर्ग को बटालियन के लिए रूखसत भले ही कर दिया, लेकिन पुलिस की बैठकों में विशेषकर शहर की शांति समिति में अब भी पुलिस की ढि़लाई पर अफसरों को तीखे शब्दबाण सुनने पड़ रहे हैं। सुनते हैं कि दूसरी मर्तबा के एसपी उम्मेद सिंह को भी लोगों की जुबानी पुलिस की आलोचना सुननी पड़ी। वैसे राहत की बात रही कि शांति समिति के तमाम सदस्यों ने एक स्वर में एसपी को शहर की सुकून लौटाने में पूरा साथ देने का वादा किया। सरकार की मंशा भी यही है कि उम्मेद के कवर्धा पोस्टिंग से पिछले हादसों को जमींदोज किया जाए। चर्चा है कि मोहित गर्ग के तबादले के बाद थाना प्रभारियों के जुबान से उनकी खामियों को अब खुलकर गिनाया जा रहा है।
प्रधानमंत्री के भाई का प्रवास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छोटे भाई प्रहलाद मोदी 3 दिन के लिए छत्तीसगढ़ प्रवास पर थे। वे देशभर का दौरा करते रहते हैं। छत्तीसगढ़ भी साल में एकाध बार तो आ ही जाते हैं। इस बार भी वे दुर्ग, भिलाई और बिलासपुर गये। उनका एक बड़ा संगठन है अखिल भारतीय उचित मूल्य दुकान डीलर्स महासंघ। इसके वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। उन्हें भी समर्थकों की भीड़ पसंद है। साहू समाज छत्तीसगढ़ अपनी बिरादरी का होने की वजह से उनके स्वागत में सामने रहता है। इसी साल फरवरी में उन्होंने लखनऊ एयरपोर्ट पर धरना दे दिया था। सुरक्षा अधिकारियों के लिए उन्हें मनाना कठिन हो गया था। दरअसल, उनकी शिकायत थी कि अलग-अलग जिलों से आ रहे उनके समर्थकों को एयरपोर्ट तक आने से रोक दिया गया। अधिकारियों ने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से ही ऐसा आदेश आया है। तब उनका बयान था कि गुंडागर्दी कहीं की नहीं चलेगी, चाहे वह पीएम हाउस की ही क्यों ना हो। मतलब यह है प्रह्लाद जी के साथ प्रधानमंत्री मोदी का नाम जुड़ा जरूर है लेकिन उनका रास्ता पूरी तरह से अलग है। इसलिए अगर वे छत्तीसगढ़ आते हैं और उनके स्वागत में मोदी को चाहने वालों की भीड़ नहीं पहुंचती तो इसकी वजह समझने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये।
भाजपा में अनुशासन का संकट
जनपद पंचायत बलरामपुर में भाजपा का भारी बहुमत है। वहां 18 सदस्यों में से 15 भाजपा से हैं। ऐसे में जो निर्वाचित अध्यक्ष और उपाध्यक्ष हैं, उनकी कुर्सी बेहद सुरक्षित होनी चाहिये थी। पर ऐसा हुआ नहीं। भाजपा के ही जनपद सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर इन दोनों को संकट में डाल दिया है। शायद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष को अपने नेताओं तक इस अनुशासनहीनता की खबर पहुंचाने का कोई अनुशासित तरीका भी नहीं सूझा। अध्यक्ष-उपाध्यक्ष ने अपने समर्थकों के साथ रैली निकाली और जिला भाजपा कार्यालय जाकर अध्यक्ष के नाम पर ज्ञापन सौंपा। मतलब पूरे शहर ने देखा कि उनकी पार्टी के भीतर क्या चल रहा है।
आत्मानंद स्कूलों का नामकरण
प्रदेश में कई दानदाताओं के नाम पर ऐसे स्कूल चल रहे हैं, जिन्हें आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उतकृष्ट अंग्रेजी स्कूल के रूप में उन्नत किया गया है। कई जगहों पर यह विवाद खड़ा हो रहा है कि स्कूल का नया नाम क्या हो, जैसा रायगढ़ में हुआ। यहां के नटवर स्कूल को स्वामी आत्मानंद योजना के अंतर्गत लिया गया है। अधिकारियों ने पुराना बोर्ड हटाकर भवन के ऊपर स्वामी आत्मानंद सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल की नई तख्ती लगा दी। लोगों ने इस बात पर बेहद आपत्ति की। जिला शिक्षा अधिकारी ने बात सुनी नहीं। एसडीएम के पास शिकायत करने गये तो उन्होंने तो अंदर करने की ही धमकी दे दी। नाराज सर्वदलीय मंच के लोग कलेक्टर से मिलने पहुंचे। कलेक्टर ने रास्ता सुझाया और बात बन गई।
दरअसल, जब आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों की घोषणा हुई थी तभी ऐसी स्थिति में क्या करना है, परिपत्र जारी करके बताया जा चुका है। इसमें था कि जिन स्कूलों का नामकरण नहीं हुआ है उन्हें स्वामी आत्मानंद के नाम से किया जाये। जिन स्कूलों का नाम पहले से किसी विशिष्ट व्यक्ति पर रखा जा चुका है उनमें सिर्फ यह जोडऩा है कि यह स्कूल स्वामी आत्मानंद योजना के अंतर्गत संचालित है। अधिकारियों ने यह आदेश देखने की तकलीफ नहीं उठाई और अप्रिय स्थिति बनी।
सडक़ के लिए आरती सत्याग्रह
सरगुजा जिला खासकर अंबिकापुर की सडक़ों का जो हाल भाजपा के शासनकाल में था, कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उसमें विशेष सुधार नहीं हुआ है। नगर निगम के अलावा दूसरे जिलों तक पहुंचाने वाली सडक़ों का भी जर्जर हाल लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है। सडक़ों की मरम्मत के लिए जब जनप्रतिनिधियों के सामने नागरिकों की सारी गुहार विफल हो गई तब उन्होंने एक आरती तैयार की। यह किसी अच्छे रचनाकार की कलम से है। इस आरती में बिना भेदभाव के कांग्रेस, भाजपा के सभी प्रमुख नेताओं का उल्लेख है। आरती शाम के समय कैंडल जलाकर चौक चौराहों पर गाई गई है। आरती में युवा वर्ग के लोग और महिलाएं भी शामिल हो रही हैं। करीब 10 दिन हो गए पर जिले के 3 दिन कद्दावर मंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद और विधायक उन्हें अब तक आश्वस्त नहीं कर पाए हैं कि सडक़ें सुधरेंगी।
ताकतवर शिक्षा अधिकारी
सरगुजा के दिव्यांग केंद्र में छात्राओं के साथ बीते सितंबर माह में हुई छेड़छाड़ और रेप की वारदात के बाद राजीव शिक्षा मिशन के परियोजना समन्वयक विनोद पैकरा को कलेक्टर के आदेश पर निलंबित किया गया था। और पैकरा की पहुंच इतनी कि उन्होंने न केवल राज्य शासन से अपना निलंबन खत्म करवाया बल्कि उसी जगह दोबारा पोस्टिंग ले ली। जशपुर जिले के प्रभारी मंत्री बनने के बाद उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल जब हाल ही में जिले के दौरे पर पहली बार पहुंचे तो स्थानीय नेताओं ने शासन की इस कार्रवाई पर रोष जताया। पटेल को भी हैरानी हुई कि ऐसा कैसे हो गया। कलेक्टर से पूछा तो उन्होंने भी बताया क्या करें, शासन का आदेश है। प्रभारी मंत्री इस ताकतवर शिक्षा अधिकारी को हटा पाते हैं या नहीं, ये देखना होगा।
कोंडागांव के अलावा रैंकिंग
नीति आयोग नियमित रूप से देश के 112 अति पिछड़े जिलों की रैंकिंग जारी करता है। कोंडागांव, नारायणपुर, महासमुंद, बस्तर, सुकमा, कोरबा, राजनांदगांव, बीजापुर, कांकेर और दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े जिलों में शामिल हैं। ताजा रेटिंग में कोंडागांव जिले को स्वास्थ्य और पोषण के काम में पूरे देश में दूसरे नंबर पर रखा गया है। मगर अन्य जिलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। जैसे ऊर्जा नगरी वाले कोरबा में इंफ्रास्ट्रक्चर की रैंकिंग 79 तक नीचे पहुंची हुई है। वह कृषि में 61 में और फाइनेंसियल इंक्लूजन में 73वें स्थान पर है। बीजापुर का इंफ्रास्ट्रक्चर में 112 में 109वां स्थान है। नारायणपुर का 98 में तथा सुकमा का 102 में स्थान है। कृषि और जल संसाधन के मामले में भी अधिकांश जिले 40 या उससे नीचे की स्थिति में है। सुकमा का स्थान तो 111 पर है। कोंडागांव की उपलब्धि कतई कम नहीं है मगर बाकी मापदंडों पर, बाकी जिलों में भी रैंकिंग क्या है, इससे निगाह नहीं हटनी चाहिए।
अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया
पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग में एक छोटी सी सर्जरी हुई, जिसमें कुछ अस्पताल अधीक्षकों को इधर से उधर किया गया। प्रभावितों में प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल के अधीक्षक भी थे। सुनते हैं कि डॉक्टर साब को अस्पताल अधीक्षक बनवाने में सजातीय बड़े ठेकेदार की भूमिका थी, जिसका अस्पताल में काफी कुछ काम चल रहा है।
तब सरकार भी नई-नई बनी थी उस समय ज्यादा किसी ने ध्यान नहीं दिया, और फिर तत्कालीन डीएमई की मदद से डॉक्टर साब को अधीक्षक की पोस्टिंग मिल गई थी। अधीक्षक बनने के बाद डॉक्टर साब की कार्यप्रणाली से कर्मचारी नाखुश थे।
कई बार लिखित में शिकायतें हुई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। विभाग प्रमुख कोरोना काल में अधीक्षक बदलने का जोखिम नहीं ले पा रहे थे। शिकायतों को लेकर पूछे जाने पर डॉक्टर साब सीनियर अफसरों को कह देते थे कि उन्हें अधीक्षक पद से हटा दिया जाए।
दरअसल, डॉक्टर साब को भरोसा हो चला था कि महामारी के बीच में उन्हें बदलना आसान नहीं है। मगर एक दिन सचमुच उन्हें फोन कर बताया गया कि आपकी इच्छानुसार अधीक्षक पद से मुक्त कर दिया गया है। डॉक्टर साब सन्न रह गए। डॉक्टर साब को अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया। पद से हटने के बाद भी यदा-कदा डॉक्टर साब अधीक्षक के रूम में बैठे नजर आते हैं। पद का मोह छोडऩा आसान नहीं है।
खुद भी मास्क नहीं लगाते थे
आईएएस अमृत विकास टोपनो ने सीएस को अपना इस्तीफा भेजा तो प्रशासनिक हल्कों में हडक़ंप मच गया। इस्तीफे के लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है, इसलिए स्वीकृत नहीं किया गया है। इस्तीफा क्यों दिया इसको लेकर सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। उनकी अजीबो गरीब कार्यप्रणाली चर्चा में रही है।
एक विभाग में अपनी पदस्थापना के दौरान मातहत कर्मचारियों को कोरोना से न डरने की सलाह देते थे। टोपनो का मानना था कि यह विदेशी बीमारी है, और इसको लेकर जानबूझकर दहशत पैदा किया जा रहा है। वो खुद भी मास्क नहीं लगाते थे। इसका हश्र यह हुआ कि न सिर्फ वो खुद बल्कि आधा दर्जन मातहत कर्मचारी कोरोना की चपेट में आ गए थे। एक-दो कर्मचारियों की हालत काफी गंभीर हो गई थी। अब जब उनके इस्तीफे की खबर बाहर आई है, तो उनको लेकर कई तरह की बातें सुनने को मिल रही है।
तो फिर नये वेरियेंट ने दस्तक कैसे दी?
कोरोना के नये वेरियंट ओमिक्रोन के देश में दो दर्जन से ज्यादा मामले सामने आ चुके। लोगों में दूसरी लहर के दौरान हुई मौतों की दहशत अभी तक कम नहीं हुई है। इसलिये एक भी केस किसी भी राज्य के कोने से निकलता है तो वह अलर्ट कर देता है। सोशल मीडिया पर इसे लेकर एक अजीब सा सवाल पूछा जा रहा है। वह ये कि जब एक देश से दूसरे देश की यात्रा की मंजूरी उन्हें ही मिल रही है जिन्होंने दोनों डोज लगवा लिये हैं, फिर नया वेरियेंट फैल कैसे रहा है। क्या वैक्सीन लगवाना निरर्थक है?
कोरोना की पहली और दूसरी लहर में भी सोशल मीडिया पर खासकर वाट्सएप पर ऐसी पोस्ट रोजाना देखने को मिल रही थी।
दरअसल, दोनों टीके लगवाने का मतलब कोविड-19 से अजेय होने की गारंटी तो है नहीं। इतना ही कहा गया है कि यदि कोरोना ने जकड़ लिया तो आपके भीतर इम्युनिटी सिस्टम इतना मजबूत हो जायेगा कि आप उससे लड़ सकें और जान बचा सकें। महामारी को लेकर अफवाहें फैेलाना अपराध भी घोषित किया जा चुका है पर इतनी निगरानी रखने की फुर्सत किसके पास है?
अमल साय को मदद...
कोंडागांव जिले के उमरगांव की दो बेटियों हेमवती और लखमी ने हल संभाली और बैलों की जगह खुद खेत जोतने लगीं। उन्होंने ऐसा अपने पिता को खेत बेचने से रोकने के लिये किया। यह सुखद है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक यह बात खबरों के जरिये पहुंची और उन्होंने पिता अमल साय को 4 लाख रुपये की सहायता पहुंचाई है। अब उन्होंने खेत बेचने का इरादा त्याग दिया है।
वैक्सीनेशन के लिये नदी पार
स्वास्थ्य विभाग की यह टीम बस्तर की है जो नदी पार कर चपका गांव जा रही है। वहां कुछ लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लग चुका है और अब दूसरी खुराक भी देनी है। कुछ लोगों को पहली डोज भी दी जायेगी। छत्तीसगढ़ में कल ही दोनों डोज लेने वालों की संख्या 1 करोड़ पहुंच गई। ऐसी कोशिश हो तो लक्ष्य के और करीब पहुंचा जा सकेगा।
दर्द ‘ऊपर’ तक महसूस
बिलाईगढ़ के सरकारी कार्यक्रम में मंच पर कुर्सी नहीं मिलने से बलौदाबाजार-भाटापारा की जिला पंचायत की सभापति कविता लहरे इतनी दुखी हो गई कि वो मंच पर ही फूट फूटकर रो पड़ी। मंच पर स्थानीय विधायक, और कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ के लिए कुर्सी लगाई गई थी। लेकिन कार्यक्रम में आमंत्रण के बाद भी सभापति के लिए कुर्सी नहीं लगाई गई।
कविता लहरे ने किसी पर दोषारोपण नहीं किया, लेकिन सरकारी कार्यक्रम में अपमानित करने का आरोप लगा दिया। आपसी चर्चा में कई लोग सभापति के साथ अपमानजनक व्यवहार के लिए संसदीय सचिव, और विधायक चंद्रदेव राय को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। दरअसल, चंद्रदेव राय को जिले के बाकी विधायकों की तुलना में पॉवरफुल माना जाता है। प्रशासन में उनकी धमक है।
चंद्रदेव राय सीएम के पक्ष में तीन महीना पहले कांग्रेस विधायकों के दिल्ली परेड के अगुवा थे। इससे परे सभापति कविता लहरे बिलाईगढ़ इलाके से जिला पंचायत सदस्य चुनकर आई हैं। उन्हें बिलाईगढ़ से कांग्रेस टिकट का दावेदार माना जाता है। ऐसे में सभापति को कुर्सी नहीं मिली, तो चंद्रदेव राय निशाने पर आ गए। मगर इसके पीछे उनकी भूमिका है अथवा नहीं, यह तो साफ नहीं है। लेकिन सभापति का दर्द ‘ऊपर’ तक महसूस किया गया। देखना है आगे क्या होता है।
एडीजी स्तर पर बदलाव
पीएचक्यू में इस माह के आखिरी में एक बड़े बदलाव की चर्चा है। डीजी स्तर के अफसर आरके विज 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। विज लोक अभियोजन संचालक के पद पर हैं। इसके अलावा बीएसएफ में प्रतिनियुक्ति पर गए 90 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा की भी जल्द वापसी हो रही है। इन सब वजहों से एडीजी स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं।
कवर्धा में शौर्य दिवस..
देश के इतिहास में 6 दिसंबर हिन्दूवादी संगठनों के लिये इस मायने में खास दिन है, क्योंकि इस दिन अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराया गया था। अब राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है और मंदिर का निर्माण द्रुत गति से चल रहा है। इस दिन को ये संगठन शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं। इस बार बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और मिलते-जुलते दूसरे संगठनों ने एक बड़ा कार्यक्रम कवर्धा में रखा है। प्रत्यक्ष रूप से इस आयोजन में भारतीय जनता पार्टी के सामने नहीं होने के बावजूद ऐसे आयोजनों का उसको चुनावी फायदा मिलता रहा है। इस महासभा में पूरे प्रदेश के लोग तो शामिल हो ही रहे हैं, देशभर से साधु संत भी पहुंचेंगे। एक बाइक रैली भी कल 4 दिसंबर को निकाली गई। प्रशासन के लिए चुनौती भरा होगा कि पूरा आयोजन बिना किसी व्यवधान के निपट जाये।
खटाई में पीएम आवास...
प्रधानमंत्री आवास योजना केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवादों में फंस गई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये दी गई मंजूरी तो केंद्र ने वापस ले ही ली है। अब, प्रदेश में हजारों मकान ऐसे अधूरे पड़े हैं, क्योंकि एक बार काम शुरू होने के बाद दूसरी, तीसरी किश्त मिली ही नहीं। यह तस्वीर जगदलपुर की है।
तृणमूल कांग्रेस छत्तीसगढ़ की ओर
पश्चिम बंगाल से बाहर पैर पसारने के अभियान में जुटी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बेनर्जी ने अब छत्तीसगढ़ का रुख किया है। प्राय: सभी बीते चुनावों में कांग्रेस-भाजपा के बीच प्रदेश में सीधी टक्कर रही है हालांकि कुछ सीटों पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का असर बीते विधानसभा चुनाव में देखा जा चुका है। जाहिर है तृणमूल कांग्रेस का लक्ष्य कांग्रेस के असंतुष्टों को अपने साथ जोडऩा है, जैसा कि दूसरे राज्यों में वह कर रही है। अभी हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने खंडन किया है कि वे तृणमूल कांग्रेस के संपर्क में है। कांग्रेस नेतृत्व के लिए यह राहत भरी बात हो सकती है। मौजूदा परिस्थिति में किसी बड़े नेता ने तृणमूल की ओर जाने की बात नहीं की है। हां, कांग्रेस में चुनाव के समय टिकट नहीं मिलने पर असंतोष खूब उभरता है। तृणमूल ऐसे लोगों के लिये एक विकल्प हो सकता है।