राजपथ - जनपथ
भूपेश ने तोड़ा मिथक
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने आज 17 दिसंबर को तीन साल का कार्यकाल पूरा करके एक मिथक को तोड़ा है। इस कॉलम के जरिए हमने 19 अगस्त 2021 के अंक में मिथक का जिक्र करते हुए लिखा था कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद और उससे पहले अविभाजित राज्य में छत्तीसगढ़ से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले किसी भी कांग्रेसी नेता ने तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया। स्व. श्यामाचरण शुक्ल अविभाजित मध्यप्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे कभी भी तीन साल से ज्यादा समय तक सीएम नहीं रहे। इसी तरह छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाले मोतीलाल वोरा अविभाजित मध्यप्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री रहे। दोनों बार तीन साल से कम समय के लिए पद पर रहे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद अजीत जोगी का कार्यकाल भी मोटेतौर पर तीन साल का ही रहा। उसके बाद छत्तीसगढ़ में 15 साल बीजेपी की सरकार रही। वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और 17 दिसंबर 2018 को भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस तरह उन्होंने मिथक को तोड़ते हुए सफलतापूर्वक तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। हालांकि इस पूरे साल छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर हल्ला चलता रहता। तीन साल पूरा होने के बाद इस कयास पर भी विराम लग गया है।
घेरे में पत्रकारिता विवि के सहायक कुलसचिव
छत्तीसगढ़ का पत्रकारिता विश्वविद्यालय विवादों के कारण हमेशा सुर्खियों में बना रहता है। फिलहाल विवि सहायक कुलसचिव के कारण सुर्खियां बटोर रहा है। सहायक कुलसचिव के खिलाफ विवि के ही शिक्षक ने रिश्वत मांगने की शिकायत की है। बताया जा रहा है कि शिक्षक अपनी परवीक्षा अवधि संबंधी प्रक्रिया के लिए उनके पास गए थे, तब दोनों के बीच विवाद हुआ। शिक्षक ने विवि प्रशासन को लिखित शिकायत में आरोप लगाया है कि सहायक कुलसचिव ने परवीक्षा अवधि का समापन पत्र जारी करने के लिए आधे महीने के वेतन के बरारबर रिश्वत की मांग की। सहायक कुलसचिव की ओर से भी शिक्षक के खिलाफ लिखित में शिकायत हुई है। इस तरह दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लग गई है। इस मामले के बाद सहायक कुलसचिव के खिलाफ विवि के प्रताडि़त कर्मचारी-अधिकारी लामबंद हो गए हैं। दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नियमितीकरण और अनुकंपा नियुक्ति मामले की फाइल अटकाने को लेकर भी सहायक कुलसचिव घेरे में है। उनका पुराना ट्रैक रिकॉर्ड भी खंगाला जा रहा है। चर्चा है कि दुर्ग विवि में तो वहां की कुलपति ने इस सहायक कुलसचिव के आचरण को देखते हुए ज्वाइनिंग देने से मना कर दिया था और आनन-फानन में पोस्टिंग आर्डर में संशोधन किया गया। बस्तर विवि में भी ये विवाद के कारण चर्चा में रहे। पत्रकारिता विवि में पोस्टिंग से पहले सभी विवि से इनकी पदस्थापना के लिए अनापत्ति ली गई थी, जिसमें अधिकांश ने आपत्ति जताई थी। पत्रकारिता विवि से एनओसी मिलने पर उन्हें वहां भेजा गया। तो ये महाशय यहां भी अपना जौहर दिखा रहे हैं और विवादों में बने हुए हैं। पत्रकारिता विवि में उन्हें एक ऐसे शिक्षक का साथ मिल रहा है, जोकि खुद चार सौ बीसी के आरोपों के घेरे में है। कुल मिलाकर जैसी संगत वैसी रंगत दिख रही है।
प्लास्टिक दानों की डिमांड..
स्वच्छता की दिशा में नये प्रयोग करने के लिये अंबिकापुर को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिलती रही है। अब यहां एक और काम हो रहा है। शहर को सौ फीसदी प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने के लिये कुछ मशीनें लगाई गई हैं, जिनसे प्लास्टिक के दाने बनते हैं। इनकी रांची, दिल्ली, नोएडा, नागपुर जैसे शहरों में सप्लाई की जाती है। वहां की फैक्ट्रियां इनसे फर्नीचर तैयार करती हैं। आंकड़ा चौंकाता है पर नगर निगम का दावा है कि हर दिन यहां करीब 500 किलोग्राम प्लास्टिक की प्रोसेसिंग की जा रही है और अब तक ढाई करोड़ रुपये का प्लास्टिक दाना बेचा जा चुका है। प्रदेश के बाकी शहरों को भी प्लास्टिक मुक्त रखने की योजना बनाई जा चुकी है पर अंबिकापुर की तरह कामयाबी नहीं मिल रही।
एक पते पर इतने मतदाता!
बूथ लेबल पर तरह-तरह का प्रशिक्षण देकर जमीनी स्तर कार्यकर्ताओं को अलर्ट मोड पर रखने वाली भाजपा का बहुत देर बाद ध्यान गया कि बीरगांव नगर निगम में एक ही पते पर 240 मतदाताओं के नाम दर्ज हैं। पता लगा कि जिस घर में इतने लोगों के होने की बात कही जा रही है वहां तो 24 लोग भी नहीं रहते। अब ऐन वोटिंग के वक्त तो सूची में काट-छांट हो नहीं सकती, इसलिये अब उस घर के सामने पहरेदारी करना तय किया गया है। बीजेपी कार्यकर्ता गिनेंगे कि इस घर से वोट देने कितने लोग निकले। यहां तक तो ठीक है मगर, यदि सूची में शामिल वोटर किसी दूसरी गली से वोट देने पहुंच गया तो?
दुपहिया के साथ बारदाना फ्री..
जबसे धान की कीमत मिला-जुला कर 2500 रुपये मिलने लगी है दुपहिया गाडिय़ों की बिक्री बढ़ी है। एक तरफ किसान धान बेच रहे हैं दूसरी ओर ऑटोमोबाइल डीलर्स ऑफर देकर अपनी ओर खींच रहे हैं। पर यह ऑफर अनूठा है। रजिस्ट्रेशन, इंश्योरेंस या पेट्रोल फ्री नहीं, बल्कि 20 बारदाने दिये जायेंगे। सोशल मीडिया पर हो सकता है कि किसी ने यह स्टिकर चिपकाकर शरारत की हो, पर बारदाने के संकट की तरफ तो ध्यान खिंच ही रहा है।
कांग्रेस दफ्तर में अ ‘न्याय’ !
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार अपनी न्याय योजना का खूब प्रचार-प्रसार कर रही है। कहा जा रहा है कि सरकार ने सभी वर्गों के साथ न्याय किया है, लेकिन राजधानी रायपुर के कांग्रेस दफ्तर के कर्मचारी न्याय के लिए लामबंद हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि अपनी मामूली मांगों को लेकर यहां के कर्मचारियों ने हाल ही में काम बंद कर दिया था, हालांकि मान-मन्नौवल के बाद वे काम पर लौट गए थे, लेकिन अभी तक उनकी मांगें पूरी नहीं हुई है और नाराजगी बरकरार है। सरकार की तीसरी सालगिरह का जश्न पूरा होने के बाद वे कभी भी फिर से काम बंद कर सकते हैं। कुल मिलाकर, चिराग तले अंधेरा की कहावत कांग्रेस दफ्तर में चरितार्थ होती दिखाई पड़ रही है। सरकार के तीन साल पूरे होने पर कांग्रेसी सब्बो बर सब्बो डाहर न्याय का डंका पीट रहे हैं, लेकिन पार्टी दफ्तर के गिने-चुने कर्मचारियों को ही न्याय नहीं मिलेगा, तो सवाल तो उठेंगे ही। वैसे भी, यहां के कर्मचारियों की कोई भारी-भरकम मांग नहीं है। वे तो केवल बैंक के जरिए वेतन भुगतान तथा पीएफ सुविधा की मांग कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि पूरे प्रदेश में न्याय की रोशनी फैलाने का दावा करने वाली पार्टी का दफ्तर रौशन होता है अथवा नहीं।
राहुल की तारीफ में विकास के बोल
सियासत में अपने बड़े नेताओं को खुश करना हर किसी राजनीतिक व्यक्ति की प्राथमिकता होती है। खुश करने के तरीके कुछ भी हो सकते हैं। आमतौर पर बड़े नेताओं की तारीफ करना और उनके बारे में कसीदे पढऩा सामान्य व पापुलर तरीका माना जाता है। लिहाजा, छत्तीसगढ़ सरकार में संसदीय सचिव और असम के प्रभारी सचिव विकास उपाध्याय ने भी ऐसा ही किया। पिछले दिनों उन्होंने असम प्रवास के दौरान पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ में लंबा-चौड़ा भाषण दिया। उनका कहना था कि केवल राहुल गांधी ही एकमात्र नेता हैं, जो सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने राहुल गांधी की तुलना रोमन ग्लैडियेटर से कर डाली। ग्लैडियेटर को सशस्त्र योद्धा माना जाता है,अन्याय के खिलाफ लड़ाई लडऩे वाले योद्धा के रूप में ग्लैडियेटर का उदाहरण दिया जाता है। स्वाभाविक है कि विकास उपाध्याय ने भी राहुल गांधी को योद्धा के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की, लेकिन ग्लैडियेटर के बारे में विस्तार से जानने के लिए गूगल किया गया तो विकास उपाध्याय की यह बात तो सच निकली कि ग्लैडियेटर एक सशस्त्र योद्धा हुआ करता था, लेकिन उसके बाद यह यह भी कहा गया है कि ग्लैडियेटर रोमन गणराज्य और रोमन साम्राज्य में दर्शकों का मनोरंजन करता था। इस जानकारी के बाद विकास उपाध्याय का अपने नेता की तारीफ का अंदाज उलटा भी पड़ सकता है, क्योंकि बीजेपी के नेता राहुल गांधी की बात को मनोरंजन ही मानते हैं।
पवित्र रिश्ता बना अंकिता लोखंडे का...
‘पवित्र रिश्ता’ टीवी सीरियल से मशहूर हुई एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे की शादी बिलासपुर के विक्की जैन से हुई है। वे और उनके पिता विनोद जैन यहां के जाने-माने कारोबारी हैं। त्रिवेणी डेंटल कॉलेज सहित कुछ और व्यवसाय यहां उनका है। विक्की खुद मुंबई में बिजनेस संभालते हैं, जहां अंकिता लोखंडे से उनका परिचय हुआ और मुलाकातें रिश्ते में बदल गई। मुंबई में हुई इस शादी में बिलासपुर से विधायक शैलेष पांडेय जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी सहित उनके अनेक परिचित शामिल हुए।
तीरंदाज टीचर के तबादले का विरोध
ऐसा कम ही देखा गया है कि किसी अधिकारी-कर्मचारी का तबादला रुकवाने के लिये लोग आंदोलन करें। कोंडागांव में आईटीबीपी के बटालियन में हवलदार त्रिलोचन ने बीते 5 सालों में अनेक बच्चों को तीरंदाजी सिखाई। आधुनिक तीर-धनुष खरीदने के लिये जेब से पैसे लगाये। उनके जुनून का असर ही है कि 85 छात्र-छात्रा नेशनल और 200 से अधिक राज्य स्तर पर खेल चुके और कई मेडल जीते। अब उनका अचानक तबादला कर दिया। खिलाड़ी इससे मायूस हैं। उन्होंने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन किया और तबादला रोकने की मांग की। कलेक्टर का कहना है कि उनके हाथ में नहीं, पर वे सिफारिश जरूर करेंगे कि तबादला रुक जाये। देखें, बच्चों की बात सुनी जाएगी या नहीं।
स्पेस की दुनिया में स्पेस
खैरागढ़ के केंद्रीय विद्यालय के कक्षा नौवीं के छात्र हर्षित और उनके आठ दोस्तों ने आखिर रॉकेट बना ली। वे चौथी क्लास से रॉकेट बनाने की कोशिश कर रहे थे। पांच साल में 67 बार विफल हुए 68वीं बार सफलता मिली। यह रॉकेट 500 फीट ऊपर तक जा सकता है। अब ये छात्र अंतरिक्ष की दुनिया में ही रिसर्च करना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिये एक कंपनी भी रजिस्टर करा ली है। यह बड़ी बात है कि खैरागढ़ जैसे कस्बे से छात्रों का कोई दल अलग दिशा में करियर बनाने की सोच रहा हो।
कोदो कुटकी का इडली दोसा
कम पानी में पठारी भूमि पर कोदो-कुटकी की पैदावार ली जा सकती है। पहले इसे गरीब वर्ग खाने के लिये उगाता था, पर जब से रुपये दो रुपये में चावल मिलने लगा है इसके उत्पादन में लोगों की रुचि नहीं रह गई। दूसरी ओर स्वास्थ्य को लेकर सजग लोग इसे ढूंढते हैं। कई देशों में इसकी बड़ी मांग है क्योंकि यह मधुमेह से बचाता है और वजन को भी नियंत्रित करता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में कोदो कुटकी की खेती के लिये सरकार ने भी कुछ प्रोत्साहन की योजना बनाई है। पर सबसे बड़ा संकट उसे जरूरत के अनुसार बाजार भेजने का है। अब वहां इसे आकर्षक पैकेजिंग कर विदेशों में भेजा जा रहा है। कुछ फूड स्टाल खोले गये हैं जहां कोदो के ही इडली, अप्पे और दोसा बिकते हैं। यह प्रचलित दोसा से ज्यादा स्वादिष्ट होता है।
सीएम की दो टूक, सबके लिए एक कानून
रेत परिवहन को लेकर उपजे विवाद में खुज्जी विधायक छन्नी साहू अपने पति पर एक्ट्रोसिटी एक्ट के तहत कार्रवाई किए जाने के मसले पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने नांदगांव के पुलिस अफसरों और कांग्रेस नेताओं की खुलकर शिकायत की। सीएम ने शिकवा-शिकायत को सुनने के बाद विधायक को दो टूक जवाब में कहा कि कानून सबके लिए एक होना चाहिए। उनका इशारा छन्नी साहू की कार्यप्रणाली को लेकर था कि सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधि अपनी सुविधा के तहत कानून का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
बताते है कि सीएम ने विधायक को आम जनता के बीच सरकार की छवि पर पड़ रहे प्रतिकूल असर को लेकर भी सजग किया। वैसे विधायक यह मानकर चल रही थी कि सूबे के मुखिया उनकी परेशानियों को को सुनकर मामले में दखल देंगे। चर्चा है कि सीएम ने पुलिस की कार्रवाई को न्यायसंगत ठहराते एक तरह से राजनांदगांव पुलिस को क्लीन चिट दे दी। विधायक की रखी बातों से परे सीएम का यह कहना कि कानून समान है, इससे साफ हो गया कि विधायक को अब पति के विरूद्ध दर्ज जुर्म के लिए अब अदालत का रुख करना पड़ेगा। नांदगांव की सियासत में रेत परिवहन को लेकर भिड़े विधायक और कांग्रेस नेता तरूण सिन्हा की लड़ाई व्यक्तिगत द्वंद्व का रूप भी ले सकती है।
खेल मैदान या नशे का अड्डा !
यह तस्वीर सुबह-सुबह की है जब लोग ताजी आब्बो-हवा के लिए मैदान या गार्डन के आसपास सैर के लिए निकलते हैं। स्थान है- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर लाखेनगर के हिन्द स्पोर्टिंग मैदान के एक कोने की। एक कोना इसलिए कह रहे हैं कि चारों कोनों में लगभग यही स्थिति है, जहां पर शराब की खाली बोतलों का ढेर लगा रहता है। शायद खरीदी-बेची जाती है। यह मैदान कभी फुटबॉल के बड़े-बड़े टूर्नामेंट का गवाह हुआ करता था। अब नशाखोरी के अड्डे के साथ-साथ तमाम तरह के अवैध काम-धंधों का पोषक बन गया है। तस्वीर में दिख रहे बोरियों में भी शराब की खाली बोतलें भरी है। यह कोई एकाध दिन की बात नहीं है, बल्कि रोजाना इसी तरह शराब की खाली बोतलों का अंबार लगा रहता है। हालत यह है कि छोटे-छोटे बच्चे मैदान में खेलने नहीं बल्कि शराबियों द्वारा छोड़ी गई खाली बोतलों को इक_ा करने ही जाते हैं। उन्हें इससे पैसा मिल जाता है और वे इन पैसों से चॉकलेट-बिस्किट नहीं खरीदते, बल्कि वे भी खतरनाक नशे की दवाइयां या सिलोसन खरीदते हैं। जिससे वे पूरे दिन नशे में चूर रहते हैं। सुबह-सुबह खाली बोतलों के ढेर इस बात के प्रमाण है कि शाम होते ही यहां शराबियों की महफिल सजती है और देर रात तक दौर चलता है।
लोग बताते हैं कि मैदान के आसपास तंबूओं में नशे के सामान बिक्री और सट्टे का गोरख धंधा सातों दिन चौबीसो घंटे चलता है। साहस देखिए कि अवैध काम खुलेआम चलता है। बिल्कुल वैध जैसा। संभव है कि शासन-प्रशासन का संरक्षण होगा। असल सवाल यह है कि क्या चंद सिक्कों की खनक के एवज में खेल मैदान का ऐसा दुरुपयोग ? बच्चों-युवाओं को नशे के दलदल में धकेलने का काम कैसे जायज हो सकता है ? सवाल यह भी है कि समाज और शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों को यह कितना खेल कितना फलता, जिसकी वजह से वो इसका मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। वो भी तब जब सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने लाखों बहन-बेटियों और माताओं से वादा किया था कि प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू करेंगे। इस वादे के कारण बंपर बहुमत के साथ सत्ता में आई सरकार का कार्यकाल दो दिन बाद तीन साल पूरा हो रहा है, लेकिन वादा पूरा करना तो दूर नौनिहालों तक को नशेड़ी बनाने का काम चल रहा है। वोट के लिए माताओं-बहनों को देवी-महतारी का दर्जा देने वाले सत्ताधीशों को विचार करना चाहिए कि उनसे धोखा कितना भारी पड़ सकता है ?
अपनी खबरों और इस कॉलम के जरिए हम पहले भी खेल मैदानों की दुर्दशा पर शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करते रहे हैं, लेकिन यहां जिस तरह नशाखोरी को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे हम सभी की जिम्मेदारी और चिंता कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। संभव है कि इस दलदल में हमारा कोई अपना भी फंस सकता है। कम से कम अपने चहेते को बचाने के कड़े कदम उठाने की जरूरत है। अगर हम भी नहीं जागे तो पैसे और शोहरत की अंधाधुंध दौड़ में बर्बाद होते देर नहीं लगेगी।
मेवे को पूरी छूट
छत्तीसगढ़ में इन दिनों नगरीय निकाय के चुनाव चल रहे हैं। चुनावी फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय की है। प्रत्याशियों को बकायदा खर्च का ब्यौरा भी देना पड़ता है। इसके लिए प्रचार सामग्री, वाहन किराया से लेकर खाने-पीने के सामानों की रेट तय किए जाते हैं, ताकि उसके आधार पर खर्च का ब्यौरा दिया जा सके। नगरीय निकाय के चुनावों में स्थानीय स्तर पर बाजार रेट के आधार पर रेट लिस्ट तय किए जाते हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग और कांकेर में स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए जारी रेट लिस्ट काफी रोचक है। कांकेर में तो अंग्रेजी और हिन्दी नाम के कारण ही भोजन की कीमत अलग-अलग हो गई है, जबकि खाना एक ही है। अगर कोई प्रत्याशी अंग्रेजी नाम वाली थाली कार्यकर्ताओं को खिला रहा हो, तो उसकी जेब कुछ ज्यादा ही ढीली हो सकती है। वहां सादी थाली की कीमत केवल 40 रुपए है, लेकिन नार्मल थाली की कीमत 140 रुपए है। नाम के आधार पर रेट सुनकर तो आप भी चौंक ही गए होंगे। हमको भी हैरानी हुई थी। इसी तरह दुर्ग में एक समोसे की कीमत 10 रुपए आंकी गई है, जबकि कांकेर में एक समोसे के लिए 20 रुपए का रेट फिक्स है। कांकेर में केसर लस्सी मात्र 5 रुपए की होगी तो दुर्ग में 30 रुपए प्रति गिलास के हिसाब से खर्च जोड़ा जाएगा। कांकेर में फुल चाय 7 रुपए का है तो दुर्ग में 20 रुपए का माना जाएगा। संभव है कि अलग-अलग इलाके में रेट कुछ कम ज्यादा हो सकता है, लेकिन इतना ज्यादा अंतर और अंग्रेजी-हिन्दी नाम के आधार पर रेट को देखकर तो यही लगता है कि दाम तय करने वाले अधिकारी घर के बाहर या तो कुछ खाते-पीते नहीं होंगे या भुगतान नहीं करते होंगे। इसके अलावा एक और बात गौर करने लायक है कि सूची से मेवा नदारद है। इसका यह अर्थ लगाया जा रहा है कि मेवा खाने-खिलाने पर खर्च के ब्यौरे में शामिल नहीं होगा। तभी तो बड़े नेताओं की मेज पर सिर्फ काजू-किशमिश सजी रहती है।
हमें तो अंडा खाना ही है..
छत्तीसगढ़ सरकार ने जब मध्यान्ह भोजन में स्कूली बच्चों को अंडा देने का निर्णय लिया तो पवित्रता का हवाला देते हुए अनेक लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा और अंडे की जगह सोयाबड़ी देने का निर्णय लिया गया। छत्तीसगढ़ में बच्चों की ओर से कोई विरोध नहीं हुआ था, नेताओं ने मोर्चा संभाला था। अब कर्नाटक में भी ऐसा ही हो रहा है। वहां के लिंगायत साधुओं ने अंडा देने का विरोध किया तो छात्राओं का एक वर्ग उनके खिलाफ सामने आ गया। उन्होंने कहा- हम आपके मठ में जाकर अंडे खायेंगे। हम क्या खायेंगे, पीयेंगे यह तय करने वाले आप कौन होते हैं। क्या हम नहा-धोकर मंदिरों, मठों में नहीं जाते? हमारा अंडा खाना इतना ही गलत लगता है तो आप वो सब पैसे हमें लौटा दीजिये जो हमने दान में दिये। हम उससे पौष्टिक अंडा खरीदेंगे। हम इतने लोग मठों में पहुंचेंगे कि वहां आप लोगों के खड़े होने की जगह ही नहीं बचेगी।
जरा छत्तीसगढ़ में भी फैसला बदलने से पहले बच्चों से पूछा जाना चाहिये कि वे अंडा खाने के खिलाफ हैं या नहीं।
यह है आवारा कुत्तों की दशा..
सडक़ों पर घूमने वाले कुत्तों को अपनी उदरपूर्ति के लिये क्या नहीं करना पड़ता? कुछ दयालु किस्म के लोग अपने आसपास दिखने वाले कुत्तों को बचा खाना खिला देते हैं, बाकी इधर-उधर भटकते रहते हैं। ऐसे ही एक कुत्ते को लगा होगा कि इस प्लास्टिक के डिब्बे में कुछ दाना बचा है। उसने सिर घुसाया और फंस गया। भूख मिटी या नहीं पता नहीं लेकिन सिर फंस जाने के कारण वह घंटों बदहवास था। यह तस्वीर भिलाई की है।
धान कीमत पर किसान सीए का गणित
छत्तीसगढ़ में धान और किसान बड़ा सियासी मुद्दा है। कांग्रेस हो चाहे बीजेपी इस मुद्दे को लपकने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार का दावा है कि पूरे देश में धान का भाव सबसे ज्यादा यानी 2540 रुपए प्रति क्विंटल वही दे रहे हैं, जबकि बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस सरकार किसानों को ठग रही है। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट और हाल ही बीजेपी भिलाई के किसान मोर्चा के अध्यक्ष बने निश्चय वाजपेयी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से धान की कीमत का अंक गणित समझाया है। उनके फार्मूले से छत्तीसगढ़ के किसानों को प्रति क्विंटल धान की कीमत 1925 रुपए ही मिल रहा है। मतलब एमएसपी से भी 35 रुपए कम। जबकि मुख्यमंत्री समर्थन मूल्य और इनपुट सब्सिडी को मिलाकर 2540 रुपए प्रति क्विंटल देने का दावा करते हैं और कहते हैं कि अगले चुनाव आते तक किसानों को 27-28 सौ प्रति क्विंटल के हिसाब से पैसा मिलेगा। वो जोडक़र राशि बताते हैं तो सीए वाजपेयी नुकसान को घटाकर 1925 रुपए पर आ गए हैं।
आइए देखते हैं उनका अंक गणित क्या है ? धान की खरीदी एक महीना देरी से शुरू होने के कारण सूखत से करीब 250 रुपए का नुकसान, खाद की कालाबाजारी से 200 रुपए का घाटा, बारदाना और ट्रांसपोर्ट खर्च के कारण प्रति क्विंटल 125 रुपए का नुकसान का आंकलन किया है। इस तरह 575 रुपए के कुल नुकसान का गणित बैठाया गया है। मतलब किसानों को एक क्विंटल धान बेचने पर 1385 रुपए प्राप्त हो रहा है। इसमें प्रति एकड़ इनपुट सब्सिडी की राशि 540 रुपए को जोड़ दिया तो भी कुल कीमत 1925 रुपए ही आ रही है। कुल मिलाकर किसान और धान को लेकर दोनों पार्टियां ऐसे जलेबी बना रहे हैं कि अच्छे-अच्छों का सिर चकरा जाए। दोनों पार्टियों की गणना पाठकों के सामने है, ताकि वे खुद निर्णय कर लें कि कौन सही और कौन गत ? सही-गलत का फैसला कर हो जाए तो वोट मांगने आने वाले नेताओं से हिसाब-किताब चुकता करना ही बुद्धिमानी होगी।
छत्तीसगढ़ में भी राजस्थान फार्मूला
छत्तीसगढ़ में कैबिनेट में फेरबदल की खबरों के बीच यहां भी राजस्थान फार्मूला लागू होने की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है। अब चूंकि पॉवर शेयरिंग की संभावना नहीं है, तो राजस्थान की तर्ज पर असंतुष्ट खेमे को कैबिनेट में शामिल कर संतुष्ट करने की कोशिश हो सकती है। चर्चाओं में बिलासपुर और सरगुजा संभाग से एक-एक मंत्री से इस्तीफा लिए जाने की चर्चा है। दुर्ग संभाग का सरकार में सर्वाधिक प्रतिनिधित्व है, वहां से आरक्षित वर्ग से आने वाले के एक मंत्री का पत्ता कटने की चर्चा है, हालांकि जानकारों का कहना है कि इस वर्ग को नाराज करने का जोखिम लेने की संभावना कम ही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि रायपुर के एक युवा विधायक को कैबिनेट में जगह मिल सकती है। उनकी दिल्ली में पकड़ मजबूत है और पिछले कुछ महीनों से संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारी के रुप में काम कर रहे हैं। प्रदेश संगठन के एक बड़े नेता भी मंत्री पद के लिए इच्छुक बताए जा रहे हैं। वे जोर-आजमाइश भी कर रहे हैं। ऐसे में सत्ता के साथ संगठन में भी बदलाव संभव है। चर्चा है कि एक ताकतवर मंत्री इस्तीफा देकर संगठन प्रमुख की भूमिका संभाल सकते हैं। अल्पसंख्यक वर्ग के मंत्री का भार हलका किए जाने की भी चर्चा है। सत्ता-संगठन से जुड़े नेताओं का मानना है कि कम से कम दो मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है और कई मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया जा सकता है।
कलेक्टर बंगले के सामने बजेगा डीजे?
इस कॉलम में कल ही राखी ग्राम में सुबह 4 बजे तक बज रहे डीजे को रोकने की कोशिश करने पर एक बुजुर्ग व्यक्ति से मारपीट की गई। यह भी लिखा कि चूंकि ये डीजे कलेक्टर, एसपी के घरों के सामने नहीं बजते इसलिये कानून का पालन कराने से पुलिस बचती है। उस दिन भी तीन बार 112 हेल्पलाइन में फोन किया गया था लेकिन कोई नहीं पहुंचा। पुलिस ने कह दिया कि उन्होंने अनुमति ली है। अब राखी ग्राम के लोगों ने सचमुच एक आवेदन रायपुर के पुलिस अधीक्षक को दिया है। उन्होंने 19 दिसंबर को कलेक्टर, एसपी के बंगले के बाहर डीजे बजाने की अनुमति मांगी है। उन्होंने लिखा है कि जिस नियम के तहत उनको डीजे बजाने की अनुमति दी गई थी, उसी नियम से हमें भी दी जाये। यदि नियम नहीं है तो राखी में डीजे बजाने वालों पर उस दिन की शिकायत के आधार पर कार्रवाई की जाये।
पत्रकारिता बस्तर की..
बस्तर जैसी जगहों पर पत्रकारिता एक कठिन पेशा है। आम तौर पर लोग इसमें अनिश्चितता और आमदनी को लेकर भी चिंतित रहते हैं। यदि कोई इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन से पास आउट है तो वह बड़े शहरों में जनसंपर्क अधिकारी के पद पर अच्छा वेतन हासिल कर सकता है। राष्ट्रीय अखबारों में भी अवसर मिल सकता है। इन सबके बीचे बस्तर का थामीर कश्यप बस्तर का संभवत: पहला युवा है जिसने आईआईएमसी से डिग्री लेने के बाद वहीं की पत्रकारिता चुनी है। हाल ही में उन्हें एक राष्ट्रीय अखबार के लिये फेलोशिप भी मिली है।
10 जनवरी को कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इस महीने की 17 तारीख को अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है। स्वाभाविक है कि जश्न तो होगा, लिहाजा जोर-शोर से तैयारी भी चल रही है, लेकिन जश्न के साथ-साथ विरोधियों को झटका देने की भी तैयारी चल रही है। दरअसल, जुलाई-अगस्त के महीने से छत्तीसगढ़ में पावर शेयरिंग फार्मूले को लागू करने का जबरदस्त हल्ला मचा रहा। दोनों तरफ से खूब दिल्ली दौड़ भी हुई। जोर-आजमाइश से लेकर शक्ति प्रदर्शन तक हुआ। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सब कुछ शांत दिखाई पड़ रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि अब पावर शेयरिंग की संभावना नहीं है। इससे दूसरे खेमे में चिंता तो जरूर होगी। इसके अलावा 10 जनवरी के आसपास मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाओं ने विधायकों-मंत्रियों में बेचैनी बढ़ा दी है।
कहा जा रहा है कि खराब प्रदर्शन वाले मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। इस आधार पर कैबिनेट में जगह पाने और कुर्सी बचाने के लिए विधायकों-मंत्रियों की चुपचाप दिल्ली दौड़ भी शुरू हो गई है। अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के विधायक पुत्र की पार्टी प्रमुख से मुलाकात और बिलासपुर संभाग के एक मंत्री की हाईकमान के समक्ष हाजिरी को लेकर काफी कानाफूसी हो रही है। संभव है कि इस जोड़-तोड़ में और भी विधायक-मंत्री शामिल होंगे। क्योंकि इस दौरान तो कैबिनेट में बदलाव की केवल अटकलें लगाई जा रही थी अब तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वयं कह दिया है कि मंत्रिमंडल में बदलाव का समय आ गया है। तब तो अटकलों पर भरोसा करना ही पड़ेगा।
इसके बाद किसका पत्ता कटेगा और किसका नंबर लगेगा, इसके लिए तो फिलहाल इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन सीएम के इस बयान के बाद विधायक-मंत्रियों की धुकधुकी तो जरूर बढ़ गई होगी। उधर, सत्ता के करीबी इस बात से खुश हैं कि इसी बहाने तीन साल के उत्सव के शक्ति प्रदर्शन में भागीदारी बढ़ेगी और नगरीय निकाय से लेकर यूपी के चुनाव में विधायक-मंत्रियों की सक्रियता भी बढ़ेगी। खैर, यह तो सियासत की मांग है जिसमें दांवपेंच तो चलते हैं और चलते रहेंगे।
महंत की सियासी प्लानिंग
छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की दो सीटों का कार्यकाल जून 2022 में समाप्त हो रहा है। चुनाव के करीब 6 महीने पहले से ही राज्यसभा जाने के इच्छुक नेताओं की दिल की बात जुबां पर आने लगी है। इसमें सबसे पहला नाम विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत का आता है। वे पिछले कुछ दिनों से लगातार मीडिया में अपनी इस इच्छा को जाहिर कर रहे हैं कि अब उनका लक्ष्य राज्यसभा जाना है। वे कहते हैं कि राजनीतिक जीवन में अब तक 10 चुनाव लड़ चुके हैं। पत्नी ज्योत्सना महंत के चुनाव को मिलाकर 11 चुनाव हो जाते हैं। अब वे राज्यसभा के जरिए देश की बात करना चाहते हैं। हालांकि तीन साल पहले साल 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के ठीक बाद महंत मुख्यमंत्री की रेस में भी थे। वे खुद कह चुके हैं कि सेमीफायनल खेल चुके हैं। किसी भी खेल में सेमीफायनल तक पहुंचना भी बड़ी बात होती है, भले ही वो सियासत का खेल क्यों ना हो ?
कुल मिलाकर महंत मान चुके हैं कि अब वे रेस में शामिल नहीं होंगे। कारण कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन खिलाड़ी की तरह सियासतदारों के रिटायरमेंट प्लानिंग की समीक्षा तो होती है। यहां भी समीक्षा शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि महंत अपने बेटे सूरज महंत को सियासी मैदान में उतारना चाह रहे हैं। पिछले कुछ समय से वे अपने पिता के साथ सक्रिय भी रहते हैं। माता-पिता के संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में वे शामिल होते हैं। बेटे की सक्रियता को देखकर लोग यही अनुमान लगा रहे हैं कि महंत की चुनावी विरासत को वे ही संभालेंगे। वैसे विधानसभा अध्यक्ष के पद की अपनी मर्यादाएं हैं, जिसमें राजनीतिक सक्रियता कम हो जाती है। लोगों से सीधा जुड़ाव नहीं होता। महंत भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में संभव है कि वे अपनी राजनीतिक सक्रियता को बरकरार रखने के लिए यह उपाय कर रहे होंगे।
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद चुनावी राजनीति में असफलता का भी मिथक है। प्रेमप्रकाश पांडे, धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। हो सकता है कि महंत ने इस तथ्य पर गौर किया होगा, क्योंकि वे ज्योतिष और मिथकों पर भरोसा करने वाले माने जाते हैं।
चेहरा चमकाने वाले साहब की टाइमिंग
सरकार का चेहरा चमकाने वाले विभाग के अफसरों का भी चमकदार होना कितना जरूरी है, यह उस वक्त पता चला जब विभाग में नए साहब की एंट्री हुई। आते ही मैराथन मीटिंग्स के साथ पेंडिंग निपटाने पर फोकस किया। उसके बाद पिच पर जमते ही मुखिया के लिए राज्य की राजधानी से लेकर देश की राजधानी में बड़े-बड़े आयोजन कर फटाफट अंदाज में बैटिंग की। विभाग के अचानक फॉर्म में आने से सभी अचरज के साथ खुश भी हैं। हर प्लेटफार्म पर सक्रियता खूब दिखाई दे रही है। साहब के साथ बैठकों में रहने वाले बताते हैं कि वे बेक्रफास्ट और लंच टाइम में कामकाज निपटाते हैं। कई बार तो लंच-बैठक साथ-साथ चलते हैं। जाहिर है कि उनके साथ हमेशा कुक भी तैनात रहते हैं। जैसे ब्रेकफास्ट या लंच का टाइम होता है कुक बेरोक-टोक प्लेट सजाकर हाजिर हो जाता है और सीधे टेबल पर परोस दी जाती है, ताकि खाने के साथ दूसरे काम भी बिना किसी रूकावट के चलते रहे। शुरूआत में तो मातहत अधिकारियों को लगा कि लंच का समय हो गया तो वाइंडअप करना चाहिए, लेकिन जब साहब लंच के साथ काम भी निपटाने लगे तो समझ आया कि कंटिन्यू करना है। अब ये सब नार्मल हो गया है। मातहत बताते हैं कि उनका खाना भी वैरायटी वाला होता है। खाने-पीने के साथ साहब सेहतमंद रहने के लिए वर्जिश भी करते हैं। कुल मिलाकर टाइमिंग से कोई समझौता नहीं। जैसे क्रिकेट में सही टाइमिंग में बल्ला घुमाने पर रन बनते हैं, उसी तरह साहब भी सही टाइमिंग का उपयोग करते हुए खुद के साथ सरकार का चेहरा चमकाने बखूबी शाट्स लगा रहे हैं। अब देखना यह है कि वे कितनी लंबी पारी खेलते हैं।
दुर्लभ सफेद कौवे का दर्शन
सफेद कौवा दिखना मुश्किल है, पर बस्तर में यह संभव है। यह बस्तर के धरमपुरा इलाके की तस्वीर है जहां करीब एक साल से इस सफेद कौवे को लोग देख रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञ इसे अल्बिनो भी कहते हैं। इनकी आयु काले कौवों से कम होती है। साथ ही इनमें उडऩे की क्षमता भी अधिक नहीं होती।
महिलायें इसीलिये राजनीति में नहीं...
चुनाव कोई जनसेवा के लिये नहीं लड़ता। लोग अनाप-शनाप खर्च इसलिये करते हैं क्योंकि जीतने के बाद पूरी भरपाई होने की उम्मीद होती है। खुद को मौका नहीं मिलता तो पत्नी को लड़ाते हैं। पर चुनाव हार गये तो?
जांजगीर-चांपा जिले में एक शिक्षक ने अपनी पत्नी को जिला पंचायत का चुनाव इस उम्मीद से लड़वाया कि वह जीत जाएगी तो पॉवर और पैसा सब मिलेगा, लेकिन वह चुनाव हार गई। चुनाव के लिये शिक्षक ने कर्ज ले रखा था। हारने से दो बेटे व एक बेटी के भरे-पूरे घर की सुख-शांति छिन गई और पत्नी पर शामत आ गई। जैसी कि पुलिस रिपोर्ट है, पति होरीराम ने कर्ज नहीं चुका पाने के कारण पत्नी की इतनी पिटाई की कि उसे जगह-जगह चोट आई। पत्नी ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करा दी है और पुलिस ने मामले को जांच में लिया है।
ध्वनि प्रदूषण कानून का खोखलापन
कुछ कानून ऐसे हैं जिनका उल्लंघन होते हुए देखने पर भी पुलिस अपनी आंख-कान बंद रखती है। जब पब्लिक सामने आती है तो उसकी पिटाई हो जाती है। पलारी के वार्ड क्रमांक 12 में देर रात तेज आवाज में डीजे की आवाज से एक शख्स का परिवार परेशान हो गया। उसने बारात में शामिल लोगों के पास जाकर कहा-आवाज कुछ धीमा कर लें। बाराती उलझ गये और उसे पीटने लगे। पिटाई होते देख उसके पिता पहुंचे तो उनको भी पीट दिया। पलारी पुलिस ने मामूली धाराओं में अपराध दर्ज कर लिया है। गिरफ्तारी और जमानत देने की औपचारिकता पूरी कर ली जायेगी। दरअसल, एसडीएम, कलेक्टर के आवास के सामने से ये बारातें नहीं गुजरती। उनका घर सुरक्षित जोन में होता है।
फर्जीवाड़े की सरकारी आदत
पिछली सरकार में सबसे आगे निकलने की होड़ के चलते जिलों में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में जो फर्जीवाड़ा हुआ था, उस पर मौजूदा सरकार भी लगाम लगा नहीं पा रही है। मसलन, रायगढ़ जिले में सौ फीसदी वैक्सीनेशन का आंकड़ा देकर जिला प्रशासन ने अपनी पीठ थपथपा ली, और जब ओमिक्रॉन के खतरे के बाद दूसरे डोज के लिए लोग सेंटर में पहुंचे तो पता चला कि रिकॉर्ड में तो उनका वैक्सीनेशन हो चुका है। अब जाकर स्वास्थ्य विभाग ने इसकी जांच बिठाई है।
ऐसा ही फर्जीवाड़ा पिछली सरकार में बड़े पैमाने पर हुआ था। उस समय नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में तो डिजिटल पेमेंट की खबर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आई। यह दावा किया गया कि एक गांव में तो शतप्रतिशत लोग डिजिटल पेमेंट करते हैं। डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के नाम पर उस समय के जिला प्रशासन के मुखिया प्रधानमंत्री अवार्ड पा गए। मगर सरकार बदली तो यह बात सामने आई कि दंतेवाड़ा की 32 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। यही नहीं, दंतेवाड़ा में लोग सबसे ज्यादा कुपोषित हैं। इस पर सीएम ने अपना चेहरा चमकाने में लगे अफसरों को लेकर नसीहत दी थी। मगर अब फिर वही ढर्रा शुरू हो गया है।
उत्तरी अमेरिका में छत्तीसगढ़
हजारों किलोमीटर दूर रहने वाले नॉर्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसियेशन (नाचा) से जुड़े सदस्य छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जुड़े रहने के लिये नियमित रूप से एकत्रित होते हैं। उनके सोशल मीडिया पेज पर कुछ आकर्षक तस्वीरें शेयर की गई हैं। उन्होंने 10 दिसंबर को शहीद वीर नारायण सिंह को याद करते हुए जनजाति गौरव दिवस मनाया। इस बहाने नई पीढ़ी को उन्होंने शहीद वीर नारायण की शहादत के बारे में बताया। छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य गीतों की प्रस्तुति दी गई। शिकागो स्थित भारतीय दूतावास भी इस आयोजन में सहभागी रहा।
धर्मसंकट में सरकार
हसदेव अरण्य से आदिवासियों का पैदल जत्था रायपुर पहुंचा तो सरकार पर एक दबाव बना। आगे 10 दिसंबर को मदनपुर में एक बड़ा सम्मेलन भी हुआ और आर-पार की लड़ाई की घोषणा कर दी गई। केंद्र से मंजूरी के बाद भी तीन कोयला ब्लॉक, परसा ईस्ट व केते बासेन, परसा और केते एक्सटेंशन की अंतिम स्वीकृति को राज्य सरकार ने रोक रखा है। इसी आंदोलन के बीच अब राजस्थान सरकार के नुमाइंदे आकर राजधानी में डटे हैं। मंत्रालय, वन विभाग और पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से मुलाकात कर रहे हैं और राज्य सरकार से मंजूरी जल्दी देने की गुहार लगा रहे हैं। उनका कहना है कि पीकेईबी के पहली खदान में अब कुछ दिन का ही कोयला बचा है। अब छत्तीसगढ़ सरकार दुविधा में है। राजस्थान में भी अपनी ही पार्टी की सरकार है। इधर आदिवासियों को चुनाव के पहले दिये गये भरोसे को भी बनाये रखना है।
अवैध रेत के खिलाफ असरदार आंदोलन
प्रदेश में कई जगहों से अवैध रेत उत्खनन की खबरें आती रहती हैं। इसका विरोध भी होता है पर असर नहीं होता। बैकुंठपुर के भरतपुर में एक असरदार आंदोलन आम आदमी पार्टी ने शुरू कर दिया। कार्यकर्ताओं ने उस सडक़ को पंडाल लगाकर घेर दिया और अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गये हैं, जहां से नेउर नदी के लिये रेत की ट्रकें गुजरती हैं। पार्टी का आरोप है कि नियम के खिलाफ मशीनों से रेत निकाली जा रही है और हाईवा से लोड कर यूपी तक भेजा जा रहा है। इस आंदोलन के चलते रेत निकालने का काम बंद हो गया है। अब आंदोलन करने वालों को एसडीएम ने चेतावनी दी है कि नहीं हटे तो बलपूर्वक हटाया जाएगा, कानूनी कार्रवाई भी की जायेगी। खदान संचालक का भी हवाला दिया गया है कि उसने व्यवसाय नहीं करने देने की शिकायत दर्ज कराई है। पर रेत की अवैध खुदाई और परिवहन की उनकी शिकायत का क्या होगा? इसका भी जिक्र है- माइनिंग अधिकारी को कहा गया है वे इस मामले पर कार्रवाई करेंगे।
नेतीगिरी नहीं तो कलाकारी!
राज्य के दुर्ग जिले में नगर निगमों के चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार उफान पर है। बीजेपी-कांग्रेस ने जीत के लिए ताकत लगा दी है। सूबे की सियासत के लिहाज से दुर्ग काफी प्रतिष्ठापूर्ण जिला माना जाता है। प्रदेश के मुखिया के साथ कई मंत्रियों का इलाका है। बीजेपी के भी कई नेताओं का गढ़ है। ऐसे में खूब चुनावी रंग देखने को मिल रहा है। भिलाई से बीजेपी के एक पार्षद प्रत्याशी का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। जिसमें प्रत्याशी सडक़ पर पालथी मारकर बैठ के महिलाओं के सामने दंडवत है। महिलाओं के पैर पकड़-पकड़ कर वोट के लिए विनती कर रहा है। हिन्दूत्व और सनातन संस्कृति का हवाला देने वाले इस नेता का दावा है कि जीतने पर वह वार्ड को आदर्श बना देगा। अब यह तो वोटों की गिनती के बाद ही पता चलेगा कि नेताजी की पैर पकड़ राजनीति और सनातन धर्मी के नाम पर वोट मिलते या नहीं, लेकिन पहली नजर में वायरल वीडियो को देखने पर वह फिल्मी दृश्य की तरह लगता है। नाली के किनारे सडक़ पर बैठे नेताजी किसी मझे हुए कलाकार को टक्कर देते हुए नजऱ आ रहे हैं। चलिए तसल्ली इस बात की है कि नेतागिरी नहीं जमी तो कलाकारी काम आएगी।
नाना पाटेकर का अंदाज़ या फिर...
लगता है नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी नेताओं की अंदर की कलाकारी जाग गई है। प्रत्याशी वोटरों को लुभाने के लिए तरह तरह के उपक्रम कर रहे हैं, लेकिन चुनाव प्रभारी भी कुछ कम नहीं है। अब पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को ही ले लीजिए। वे बिरगांव नगर निगम में पार्टी के प्रभारी हैं। पिछले दिनों उनके बयान ने खूब सुर्खियां बटोरी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि अवैध शराब बिरगांव पहुंचा तो लाने वाला जीवित नहीं बचेगा। उनके इस बयान की खूब आलोचना हुई, क्योंकि मार-काट और हिंसा की बात को लोकतंत्र में उचित नहीं माना जाता। हम यहां उनके बयान की बात नहीं कर रहे हैं। उनके इस बयान का वीडियो देखने वाले कुछ पारखी लोगों ने इसमें नया एंगल ढूंढ लिया। उनका मानना था कि अजय चंद्राकर ने सिर में हाथ रखकर जिस तरीके से बयान दिया वो फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर के अंदाज से मेल खाता है। नाना पाटेकर का ये स्टाईल काफी चर्चित है। लोगों का कहना है कि अजय चंद्राकर आजकल नाना पाटेकर की फिल्में देख रहे होंगे। लेकिन कुछ और जानकारों का मानना है कि अजय चंद्राकर का हुलिया और तेवर बीजेपी के एक सांसद परेश रावल से मिलते-जुलते हैं, जो कि कुछ फिल्मों में खलनायक रहते हुए उन्होंने दिखाये थे।
हालांकि अजय चंद्राकर बीजेपी के बड़े नेता हैं और पार्टी में पूछ-परख भी ठीक-ठाक है। ऐसे में फील्ड बदलने की तो नहीं सोच रहे हैं। हां अगर शौकिया कर रहें होंगे तो नेतागिरी में एडिशनल क्वालिफिकेशन जरूर हो सकता है।
धर्म का तमाशा या पागलपन...
सरगुजा जिले के लखनपुर पंचायत के ग्राम पंचायत चांदो में संतोष धुरी नाम का ग्रामीण अपना मकान बना रहा है। कुछ लोग अपने-आपको बजरंग दल का बताते हुए वहां पहुंच गये। उन्होंने मकान तोडऩे की कोशिश की। उन्हें शिकायत थी कि यह चर्च जैसा दिख रहा है। घर नहीं लग रहा है। ग्रामीण ने उन्हें समझाया कि यह घर ही बन रहा है। पर बात नहीं बनी। इसके बाद एसडीएम ने इस आपत्ति को मानते हुए निर्माण पर स्थगन आदेश दे दिया है। यानि अगले आदेश तक यह मकान अधूरा ही रहेगा। स्थगन से सवाल यह खड़ा होता है कि किसी मकान की डिजाइन की वजह से उसके निर्माण पर कैसे रोक लगाई जा सकती है?
हाथी के दांत दिखाने के अलग...
आदिवासी समाज के सम्मेलनों में प्राय: सभी दलों से जुड़े समाज के प्रमुख लोग शामिल होते हैं इसलिये राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोपों से इसमें बचा जाता है। सीएम भूपेश बघेल शहीद वीर नारायण बलिदान दिवस के मौके पर आयोजित सम्मेलन में शामिल होने बालोद पहुंचे थे। भाजपा के पूर्व सांसद व इस समय सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष सोहन पोटाई ने कहा- इस समय हमारे समाज के 30 लोग विधायक हैं। ये ईमानदारी से सरकार के सामने विधानसभा में मांगों को रखते तो आदिवासियों को आज बार-बार आंदोलन नहीं करना पड़ता। सीएम की बारी आई तो उन्होंने पलटवार किया। कहा- यह तो 'हाथी के दांत दिखाने के अलग, खाने के अलग' जैसी बात हो गई। हर बात के लिये सरकार को दोषी मत ठहरायें। जो मांगें लंबित हैं वे 2012-13 से हैं। अपनी सरकार में रहते हुए आपने क्यों मांगें पूरी नहीं की? हम गंभीरता से हर मांग को ले रहे हैं। सरकार समाज के लिये काम कर रही है।
हसदेव के जंगल में बाघ
हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक की मंजूरी के खिलाफ लगातार आंदोलन हो रहे हैं। इसे हाथियों के रहवास क्षेत्र बताते हुए भी कोयला उत्खनन की मंजूरी पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। इस बीच सोशल मीडिया पर कुछ पदचिन्ह पोस्ट कर बताया गया है कि हसदेव इलाके में बाघ भी विचरण कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में बाघों की वैसे भी लगातार संख्या घट रही है। इस इलाके के आदिवासी कह रहे हैं कि इस घने जंगल से बाघों की बेदखली रोकने के लिये भी जरूरी है कि कोल ब्लॉक मंजूर न किये जायें।
मुख्यमंत्री की हंसी-ठिठोली
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ठेठ अंदाज अक्सर लोगों को खूब गुदगुदाता भी है। ऐसा ही वाकया इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राईविंग एण्ड ट्रैफिक रिसर्च के लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान हुआ। मुख्यमंत्री जब भाषण देने के लिए पहुंचे तो माइक के सामने बिना कुछ बोले काफी देर तक मुस्कुराते रहे। उनकी हंसी रूक नहीं रही थी। लोगों को माजरा समझ आता इससे पहले सीएम ने खुद ही अपनी हंसी का राज खोल ही दिया। दरअसल, इस कार्यक्रम में मारूति सुजुकी के एमडी केनिची आयुकावा भी अतिथि के रूप में मौजूद थे। विदेशी नाम का एकाएक उच्चारण करना थोड़ा मुश्किल होता है, लिहाजा अधिकारियों-मेहमानों ने केनिची आयुकावा के नाम की पर्चियां मुख्यमंत्री तक भिजवाई थी। माइक के सामने पहुंचते ही सीएम के पास ऐसी चार-पांच पर्चियां इक_ा हो गई। जिसे देखकर वे हंस रहे थे। उन्होंने इस बात को बोल दिया कि वे सही उच्चारण नहीं कर पाएंगे, इसलिए सभी ने लिखकर भेजा है। फिर मुख्यमंत्री ने बड़ी सावधानी से नाम पढक़र उनके नाम का उच्चारण किया। जिसके बाद मुख्यमंत्री और मौजूद लोगों की भी हंसी छूट गई। इतना होने के बाद सीएम को और मजाक सूझा तो उन्होंने मंच से एक प्रतियोगिता भी करा दी कि मारुति के अधिकारी के नाम का सही उच्चारण करने वाले को इनाम दिया जाएगा। फिर कई लोगों ने हाछ उठाकर नाम लेने की कोशिश की, लेकिन अधिकांश सही नाम नहीं ले पाए आखिर में किसी ने सही नाम लिया तो सीएम ने शाबासी दी। इस तरह वहां काफी देर तक हंसी-ठिठोली का माहौल चलता रहा। केनिची आयुकावा खुद भी लोटपोट हो रहे थे। हालांकि वे हिन्दी और छत्तीसगढ़ी समझ नहीं पा रहे थे, लेकिन उनके साथ मौजूद दुभाषिया उन्हें लगातार पूरा माजरा समझा रहा था, तो वे भी बराबरी से मजा ले रहे थे।
पत्नी से खटपट में भी कारगर योग
इसी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने योग का महत्व बताने के लिए भी ठेठ उदाहरण का उपयोग किया। दरअसल, नए सेंटर में ड्राइविंग की ट्रेनिंग के साथ योग और मनोरंजन के लिए भी इंतजाम हैं। जिसका जिक्र करते हुए सीएम ने बताया कि वाहन चलाते समय मानसिक संतुलन बेहद जरूरी है। उनका कहना था कि मान लीजिए ड्राइवर पत्नी से झगड़ा करके आ गया और मालिक भी नाराज हो जाए, तो एक्सीलेटर पर कंट्रोल करने के लिए मानसिक संतुलन का होना जरूरी है। संभव है कि दिमागी स्थिति बिगडऩे पर स्पीड तेज हो जाए और दुर्घटना का कारण बन जाए। इसलिए यहां योग भी सिखाया जा रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री खुद भी नियमित योग करते हैं और यह संभवत: उनका अनुभव होगा कि योग से मन को शांत रखा जा सकता है। लिहाजा वे रोजमर्रा की घटना से जोडक़र समझाने की कोशिश कर रहे थे कि पत्नी और बॉस के साथ खटपट की स्थिति में योग कारगर है।
जितनी मुंह, उतनी बातें
छत्तीसगढ़ सरकार कुलपतियों की आयु सीमा 65 से बढ़ाकर 70 वर्ष करने जा रही है। इस सिलसिले में विधानसभा में विधेयक लाने की तैयारी है। उत्तराखंड सहित कुछ राज्यों में पहले से ही कुलपतियों की आयु सीमा 70 साल है। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में एक महिला कुलपति को दोबारा मौका देने के लिए आयु सीमा बढ़ाई जा रही है। कुलपति के पति की भी शासन-प्रशासन में काफी धमक है। जितनी मुंह, उतनी बातें। लेकिन आयु सीमा बढ़ रही है, तो कुछ तो बात होगी।
जनरल रावत का छत्तीसगढ़ कनेक्शन
दिवंगत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा। वे यहां कई बार आ चुके हैं। बिलासपुर में बिलासपुर गैस एजेंसी के संचालक राज्यवर्धन सिंह उनके मौसा-मौसी लगते हैं। कुछ साल पहले वे बिलासपुर में उनके घर एक विवाह समारोह में आखिरी बार पहुंचे थे।
पौष्टिक आहार से पेट दर्द
दुर्ग जिले के कोल्हियापुरी स्कूल में चिक्की (गुड़-पापड़ी) खाने से दो दर्जन से ज्यादा बच्चों के बीमार पड़ जाने का मामला आखिर क्या है? परिजन कहते हैं कि चिक्की खराब गुणवत्ता की थी। स्कूल के टीचर्स कह रहे हैं कि बच्चों ने ज्यादा मात्रा में खा ली। दोनों ही स्थितियां अलग-अलग सवाल भी खड़े कर रही हैं। चिक्की की गुणवत्ता खराब थी तो इसे बनाने और सप्लाई करने वाला कौन था? महिला बाल विकास विभाग की देख-रेख में इसे बनाया गया या नहीं? इस समय सरकार ने एक फैसला लिया है, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है, कि अब महिला समूहों के बजाय सेंट्रलाइज तरीके से रेडी-टू-ईट आहार तैयार किया जायेगा। यदि गुणवत्ता ठीक थी, बच्चे ज्यादा मात्रा में खा लेने के कारण बीमार पड़े तो इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि आम तौर पर उन्हें ऐसी स्वादिष्ट चीजें, जिनमें स्कूल का मध्यान्ह भोजन भी शामिल है, नहीं मिलती। अभी तो परिजनों की मांग के अनुसार चिक्की की क्वालिटी की जांच का काम बीज विकास निगम को सौंपा गया है, जिनके हाथ फरवरी से इसका ठेका आने वाला है। स्कूल के प्रधान पाठक को निलंबित किया गया है, स्टाफ की वेतन वृद्धि रोकी गई है।
स्मार्ट शहरों की यातायात सेवा
प्रदेश के दो बड़े शहर रायपुर और बिलासपुर हवाई सेवा से तो जुड़े हैं पर दोनों ही जगहों पर सार्वजनिक परिवहन सेवा खराब है। कोरोना महामारी के बाद तो स्थिति और बिगड़ी हुई है। रायपुर में नया बस-स्टैंड चालू होने के बाद तो ऑटो रिक्शा, टैक्सी से स्टेशन पहुंचने का खर्च एक तरफ- बस का किराया एक तरफ। किसका बोझ ज्यादा पड़ेगा, सोचना पड़ता है। रायपुर में सिटी बस को फिर से सडक़ पर लाने के लिये किराये में 25 फीसदी वृद्धि की घोषणा की गई लेकिन ऑपरेटर संतुष्ट नहीं। डीजल के दाम के कारण वे अपनी 65 प्रतिशत मांग को लेकर अड़े हैं। बिलासपुर में ऐसी कोई मांग नहीं है क्योंकि नगर निगम के अधीन में चल रही सारी बसें कंडम हालत में हैं। या तो इनकी रिपेयरिंग में लाखों रुपये खर्च करने होंगे या फिर नई खरीदी करनी होगी।
ये दोनों ही शहर स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किये जा रहे हैं। अभी तक इस योजना से अनुपयोगी स्ट्रक्चर, जुंबा डांस और रंग-बिरंगे होर्डिंग ही मिल पाई हैं।
शुभचिंतक काफी कम रह गए
पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू का ग्राफ भाजपा में गिरता-बढ़ता रहा है। कई लोग इस स्थिति के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराते हैं। जब वे पॉवर में होते हैं, तो सबसे पहले अपने करीबियों को ही किनारे लगाने में पीछे नहीं रहते हैं। अपने बुरे दिनों में साथ देने वालों का नुक़सान करने में वे सत्ता में बैठकर ओवरटाईम मेहनत करने लगते हैं।
यही वजह है कि पार्टी के भीतर उनके शुभचिंतक काफी कम रह गए हैं। दो दिन पहले चंद्रशेखर साहू एयरपोर्ट में उस वक्त असहज हो गए, जब उन्हें सीआईएसएफ के जवानों ने गेट पर ही रोक दिया।
साहू, प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी नितिन नबीन के स्वागत के लिए गए थे। चंद्रशेखर साहू ने उन्हें टूटी-फूटी अंग्रेजी में अपना परिचय देकर धौंस जमाने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाकर्मियों पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि पार्टी की तरफ से जो लिस्ट भेजी गई थी। उनमें नाम नहीं है। आखिरकार चंद्रशेखर साहू को सह प्रभारी का स्वागत किए बिना लौटना पड़ा।
सरपंच, शिक्षक और टीका
कोविड टीकाकरण को लेकर शुरू में दहशत थी लेकिन कमोबेश सभी अब यह लगवाने के लिये तैयार हो जाते हैं। पर, जिन लोगों पर लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी हो, वही पीछे हटें तो क्या किया जाये। जनपद पंचायत बलौदा की ग्राम गतवा की महिला सरपंच लाख कोशिशों के बाद भी न तो अपना टीका लगवा रही हैं और न ही उनके परिवार में किसी ने लगाया। स्वास्थ्य कर्मियों से बात नहीं तो कई अधिकारी समझाने जा चुके, पर वे किसी की नहीं सुन रही हैं। एक और पंचायत खोहा के सरपंच ने भी टीका नहीं लगवाने की जिद कर रखी थी, पर तहसीलदार के समझाने पर वे मान गये।
हाईकोर्ट में रायगढ़ जिले के एक स्कूल के प्राचार्य ने एक दिलचस्प मामला दायर कर दिया है। उन्हें संकुल प्रभारी ने टीका लगवाये बिना स्कूल पहुंचने से मना कर दिया। उन्हें छुट्टी पर रहने कह दिया। अब प्राचार्य ने केस इस बात पर लगाया है कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं है, इच्छा पर निर्भर करता है। आदेश गलत है, मैं अपनी मर्जी से छुट्टी पर नहीं गया, अवकाश की अवधि की पूरी सैलरी दी जाये।
ऐसे वक्त में जब टीकाकरण के लिये जान जोखिम में डालकर नदी पार करने, पैदल लंबी दूरी तय करने की तस्वीरें स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की आ रही हो, शिक्षक, सरपंच भी टीकाकरण के लिये लोगों को प्रेरित कर रहे हों, तब ऐसी घटनायें चिंता पैदा करती हैं।
मंत्री के इलाके में घोटाला
सरगुजा के प्रतापपुर शक्कर कारखाने में 12 करोड़ रुपये का घोटाला होने की बात संयुक्त पंजीयक ने तब मान ली जब भाजपा नेता किसानों के साथ आंदोलन पर उतर गये। तौल के कांटे में गड़बड़ी, 2500 क्विंटल गन्ने की हेराफेरी, पुराने मजदूरों की जगह रिश्वत लेकर नये मजदूरों की भर्ती जैसे आरोप भाजपा ने लगाये हैं। संयुक्त पंजीयक ने भरोसा दिलाया कि घोटाला करने वालों के खिलाफ सहकारिता अधिनियम की धारा 58बी के तहत कार्रवाई की जायेगी। मगर भाजपा की मांग है कि धारा 53बी के तहत कार्रवाई हो। 58बी में रिकव्हरी का प्रावधान है जबकि 53बी में रिकव्हरी के साथ-साथ आपराधिक प्रकरण भी दर्ज कराने का। प्रदेश के सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह सरगुजा से ही प्रतिनिधित्व करते हैं। संयोग यह भी है कि वे इसी प्रतापपुर इलाके से विधायक हैं। अब तक उनके ध्यान में इतनी गंभीर गड़बड़ी कैसे नहीं आई?
प्रदूषण के बीच क्षमता विस्तार
रायगढ़ जिले के लाखा में सुनील इस्पात एंड पॉवर लिमिटेड से आसपास के 6 गावों के किसान त्रस्त हैं। बार-बार उन्होंने इसे लेकर प्रबंधन से बात की, पर्यावरण विभाग से शिकायत की। कल उन्होंने अपने खेत की बर्बाद हुई सब्जियों के साथ धरना दिया। फैक्ट्री वालों से कहा इसे आप लोग ही खा लीजिये। ग्रामीणों का आरोप है कि संयंत्र का ईएसपी प्राय: बंद कर दिया जाता है। अब 15 दिसंबर को इसकी क्षमता विस्तार के लिये एक जन-सुनवाई होने जा रही है। ग्रामीणों को पता है कि जन-सुनवाई हर बार फैक्ट्री के पक्ष में ही होती है। उन्हें चिंता है कि जब अभी इतना प्रदूषण फैल रहा है तो जब क्षमता बढ़ेती तब उनकी फसलों का क्या होगा?
पुलिस की ढि़लाई की चर्चा
दो समुदायों के युवकों से उपजे दंगे के बाद से कवर्धा प्रशासनिक और सियासी हल्के में अब भी तनावग्रस्त शहर बना हुआ है। दंगे के बाद से एक वर्ग सभाओं के जरिये अपनी ताकत जुटाने के लिए जोर मार रहा है। हाल ही में राज्य सरकार ने दंगे से निपटने में नाकामी का आरोप झेल रहे एसपी मोहित गर्ग को बटालियन के लिए रूखसत भले ही कर दिया, लेकिन पुलिस की बैठकों में विशेषकर शहर की शांति समिति में अब भी पुलिस की ढि़लाई पर अफसरों को तीखे शब्दबाण सुनने पड़ रहे हैं। सुनते हैं कि दूसरी मर्तबा के एसपी उम्मेद सिंह को भी लोगों की जुबानी पुलिस की आलोचना सुननी पड़ी। वैसे राहत की बात रही कि शांति समिति के तमाम सदस्यों ने एक स्वर में एसपी को शहर की सुकून लौटाने में पूरा साथ देने का वादा किया। सरकार की मंशा भी यही है कि उम्मेद के कवर्धा पोस्टिंग से पिछले हादसों को जमींदोज किया जाए। चर्चा है कि मोहित गर्ग के तबादले के बाद थाना प्रभारियों के जुबान से उनकी खामियों को अब खुलकर गिनाया जा रहा है।
प्रधानमंत्री के भाई का प्रवास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छोटे भाई प्रहलाद मोदी 3 दिन के लिए छत्तीसगढ़ प्रवास पर थे। वे देशभर का दौरा करते रहते हैं। छत्तीसगढ़ भी साल में एकाध बार तो आ ही जाते हैं। इस बार भी वे दुर्ग, भिलाई और बिलासपुर गये। उनका एक बड़ा संगठन है अखिल भारतीय उचित मूल्य दुकान डीलर्स महासंघ। इसके वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। उन्हें भी समर्थकों की भीड़ पसंद है। साहू समाज छत्तीसगढ़ अपनी बिरादरी का होने की वजह से उनके स्वागत में सामने रहता है। इसी साल फरवरी में उन्होंने लखनऊ एयरपोर्ट पर धरना दे दिया था। सुरक्षा अधिकारियों के लिए उन्हें मनाना कठिन हो गया था। दरअसल, उनकी शिकायत थी कि अलग-अलग जिलों से आ रहे उनके समर्थकों को एयरपोर्ट तक आने से रोक दिया गया। अधिकारियों ने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से ही ऐसा आदेश आया है। तब उनका बयान था कि गुंडागर्दी कहीं की नहीं चलेगी, चाहे वह पीएम हाउस की ही क्यों ना हो। मतलब यह है प्रह्लाद जी के साथ प्रधानमंत्री मोदी का नाम जुड़ा जरूर है लेकिन उनका रास्ता पूरी तरह से अलग है। इसलिए अगर वे छत्तीसगढ़ आते हैं और उनके स्वागत में मोदी को चाहने वालों की भीड़ नहीं पहुंचती तो इसकी वजह समझने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये।
भाजपा में अनुशासन का संकट
जनपद पंचायत बलरामपुर में भाजपा का भारी बहुमत है। वहां 18 सदस्यों में से 15 भाजपा से हैं। ऐसे में जो निर्वाचित अध्यक्ष और उपाध्यक्ष हैं, उनकी कुर्सी बेहद सुरक्षित होनी चाहिये थी। पर ऐसा हुआ नहीं। भाजपा के ही जनपद सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर इन दोनों को संकट में डाल दिया है। शायद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष को अपने नेताओं तक इस अनुशासनहीनता की खबर पहुंचाने का कोई अनुशासित तरीका भी नहीं सूझा। अध्यक्ष-उपाध्यक्ष ने अपने समर्थकों के साथ रैली निकाली और जिला भाजपा कार्यालय जाकर अध्यक्ष के नाम पर ज्ञापन सौंपा। मतलब पूरे शहर ने देखा कि उनकी पार्टी के भीतर क्या चल रहा है।
आत्मानंद स्कूलों का नामकरण
प्रदेश में कई दानदाताओं के नाम पर ऐसे स्कूल चल रहे हैं, जिन्हें आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उतकृष्ट अंग्रेजी स्कूल के रूप में उन्नत किया गया है। कई जगहों पर यह विवाद खड़ा हो रहा है कि स्कूल का नया नाम क्या हो, जैसा रायगढ़ में हुआ। यहां के नटवर स्कूल को स्वामी आत्मानंद योजना के अंतर्गत लिया गया है। अधिकारियों ने पुराना बोर्ड हटाकर भवन के ऊपर स्वामी आत्मानंद सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल की नई तख्ती लगा दी। लोगों ने इस बात पर बेहद आपत्ति की। जिला शिक्षा अधिकारी ने बात सुनी नहीं। एसडीएम के पास शिकायत करने गये तो उन्होंने तो अंदर करने की ही धमकी दे दी। नाराज सर्वदलीय मंच के लोग कलेक्टर से मिलने पहुंचे। कलेक्टर ने रास्ता सुझाया और बात बन गई।
दरअसल, जब आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों की घोषणा हुई थी तभी ऐसी स्थिति में क्या करना है, परिपत्र जारी करके बताया जा चुका है। इसमें था कि जिन स्कूलों का नामकरण नहीं हुआ है उन्हें स्वामी आत्मानंद के नाम से किया जाये। जिन स्कूलों का नाम पहले से किसी विशिष्ट व्यक्ति पर रखा जा चुका है उनमें सिर्फ यह जोडऩा है कि यह स्कूल स्वामी आत्मानंद योजना के अंतर्गत संचालित है। अधिकारियों ने यह आदेश देखने की तकलीफ नहीं उठाई और अप्रिय स्थिति बनी।
सडक़ के लिए आरती सत्याग्रह
सरगुजा जिला खासकर अंबिकापुर की सडक़ों का जो हाल भाजपा के शासनकाल में था, कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उसमें विशेष सुधार नहीं हुआ है। नगर निगम के अलावा दूसरे जिलों तक पहुंचाने वाली सडक़ों का भी जर्जर हाल लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है। सडक़ों की मरम्मत के लिए जब जनप्रतिनिधियों के सामने नागरिकों की सारी गुहार विफल हो गई तब उन्होंने एक आरती तैयार की। यह किसी अच्छे रचनाकार की कलम से है। इस आरती में बिना भेदभाव के कांग्रेस, भाजपा के सभी प्रमुख नेताओं का उल्लेख है। आरती शाम के समय कैंडल जलाकर चौक चौराहों पर गाई गई है। आरती में युवा वर्ग के लोग और महिलाएं भी शामिल हो रही हैं। करीब 10 दिन हो गए पर जिले के 3 दिन कद्दावर मंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद और विधायक उन्हें अब तक आश्वस्त नहीं कर पाए हैं कि सडक़ें सुधरेंगी।
ताकतवर शिक्षा अधिकारी
सरगुजा के दिव्यांग केंद्र में छात्राओं के साथ बीते सितंबर माह में हुई छेड़छाड़ और रेप की वारदात के बाद राजीव शिक्षा मिशन के परियोजना समन्वयक विनोद पैकरा को कलेक्टर के आदेश पर निलंबित किया गया था। और पैकरा की पहुंच इतनी कि उन्होंने न केवल राज्य शासन से अपना निलंबन खत्म करवाया बल्कि उसी जगह दोबारा पोस्टिंग ले ली। जशपुर जिले के प्रभारी मंत्री बनने के बाद उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल जब हाल ही में जिले के दौरे पर पहली बार पहुंचे तो स्थानीय नेताओं ने शासन की इस कार्रवाई पर रोष जताया। पटेल को भी हैरानी हुई कि ऐसा कैसे हो गया। कलेक्टर से पूछा तो उन्होंने भी बताया क्या करें, शासन का आदेश है। प्रभारी मंत्री इस ताकतवर शिक्षा अधिकारी को हटा पाते हैं या नहीं, ये देखना होगा।
कोंडागांव के अलावा रैंकिंग
नीति आयोग नियमित रूप से देश के 112 अति पिछड़े जिलों की रैंकिंग जारी करता है। कोंडागांव, नारायणपुर, महासमुंद, बस्तर, सुकमा, कोरबा, राजनांदगांव, बीजापुर, कांकेर और दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े जिलों में शामिल हैं। ताजा रेटिंग में कोंडागांव जिले को स्वास्थ्य और पोषण के काम में पूरे देश में दूसरे नंबर पर रखा गया है। मगर अन्य जिलों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। जैसे ऊर्जा नगरी वाले कोरबा में इंफ्रास्ट्रक्चर की रैंकिंग 79 तक नीचे पहुंची हुई है। वह कृषि में 61 में और फाइनेंसियल इंक्लूजन में 73वें स्थान पर है। बीजापुर का इंफ्रास्ट्रक्चर में 112 में 109वां स्थान है। नारायणपुर का 98 में तथा सुकमा का 102 में स्थान है। कृषि और जल संसाधन के मामले में भी अधिकांश जिले 40 या उससे नीचे की स्थिति में है। सुकमा का स्थान तो 111 पर है। कोंडागांव की उपलब्धि कतई कम नहीं है मगर बाकी मापदंडों पर, बाकी जिलों में भी रैंकिंग क्या है, इससे निगाह नहीं हटनी चाहिए।
अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया
पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग में एक छोटी सी सर्जरी हुई, जिसमें कुछ अस्पताल अधीक्षकों को इधर से उधर किया गया। प्रभावितों में प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल के अधीक्षक भी थे। सुनते हैं कि डॉक्टर साब को अस्पताल अधीक्षक बनवाने में सजातीय बड़े ठेकेदार की भूमिका थी, जिसका अस्पताल में काफी कुछ काम चल रहा है।
तब सरकार भी नई-नई बनी थी उस समय ज्यादा किसी ने ध्यान नहीं दिया, और फिर तत्कालीन डीएमई की मदद से डॉक्टर साब को अधीक्षक की पोस्टिंग मिल गई थी। अधीक्षक बनने के बाद डॉक्टर साब की कार्यप्रणाली से कर्मचारी नाखुश थे।
कई बार लिखित में शिकायतें हुई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। विभाग प्रमुख कोरोना काल में अधीक्षक बदलने का जोखिम नहीं ले पा रहे थे। शिकायतों को लेकर पूछे जाने पर डॉक्टर साब सीनियर अफसरों को कह देते थे कि उन्हें अधीक्षक पद से हटा दिया जाए।
दरअसल, डॉक्टर साब को भरोसा हो चला था कि महामारी के बीच में उन्हें बदलना आसान नहीं है। मगर एक दिन सचमुच उन्हें फोन कर बताया गया कि आपकी इच्छानुसार अधीक्षक पद से मुक्त कर दिया गया है। डॉक्टर साब सन्न रह गए। डॉक्टर साब को अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया। पद से हटने के बाद भी यदा-कदा डॉक्टर साब अधीक्षक के रूम में बैठे नजर आते हैं। पद का मोह छोडऩा आसान नहीं है।
खुद भी मास्क नहीं लगाते थे
आईएएस अमृत विकास टोपनो ने सीएस को अपना इस्तीफा भेजा तो प्रशासनिक हल्कों में हडक़ंप मच गया। इस्तीफे के लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है, इसलिए स्वीकृत नहीं किया गया है। इस्तीफा क्यों दिया इसको लेकर सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। उनकी अजीबो गरीब कार्यप्रणाली चर्चा में रही है।
एक विभाग में अपनी पदस्थापना के दौरान मातहत कर्मचारियों को कोरोना से न डरने की सलाह देते थे। टोपनो का मानना था कि यह विदेशी बीमारी है, और इसको लेकर जानबूझकर दहशत पैदा किया जा रहा है। वो खुद भी मास्क नहीं लगाते थे। इसका हश्र यह हुआ कि न सिर्फ वो खुद बल्कि आधा दर्जन मातहत कर्मचारी कोरोना की चपेट में आ गए थे। एक-दो कर्मचारियों की हालत काफी गंभीर हो गई थी। अब जब उनके इस्तीफे की खबर बाहर आई है, तो उनको लेकर कई तरह की बातें सुनने को मिल रही है।
तो फिर नये वेरियेंट ने दस्तक कैसे दी?
कोरोना के नये वेरियंट ओमिक्रोन के देश में दो दर्जन से ज्यादा मामले सामने आ चुके। लोगों में दूसरी लहर के दौरान हुई मौतों की दहशत अभी तक कम नहीं हुई है। इसलिये एक भी केस किसी भी राज्य के कोने से निकलता है तो वह अलर्ट कर देता है। सोशल मीडिया पर इसे लेकर एक अजीब सा सवाल पूछा जा रहा है। वह ये कि जब एक देश से दूसरे देश की यात्रा की मंजूरी उन्हें ही मिल रही है जिन्होंने दोनों डोज लगवा लिये हैं, फिर नया वेरियेंट फैल कैसे रहा है। क्या वैक्सीन लगवाना निरर्थक है?
कोरोना की पहली और दूसरी लहर में भी सोशल मीडिया पर खासकर वाट्सएप पर ऐसी पोस्ट रोजाना देखने को मिल रही थी।
दरअसल, दोनों टीके लगवाने का मतलब कोविड-19 से अजेय होने की गारंटी तो है नहीं। इतना ही कहा गया है कि यदि कोरोना ने जकड़ लिया तो आपके भीतर इम्युनिटी सिस्टम इतना मजबूत हो जायेगा कि आप उससे लड़ सकें और जान बचा सकें। महामारी को लेकर अफवाहें फैेलाना अपराध भी घोषित किया जा चुका है पर इतनी निगरानी रखने की फुर्सत किसके पास है?
अमल साय को मदद...
कोंडागांव जिले के उमरगांव की दो बेटियों हेमवती और लखमी ने हल संभाली और बैलों की जगह खुद खेत जोतने लगीं। उन्होंने ऐसा अपने पिता को खेत बेचने से रोकने के लिये किया। यह सुखद है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक यह बात खबरों के जरिये पहुंची और उन्होंने पिता अमल साय को 4 लाख रुपये की सहायता पहुंचाई है। अब उन्होंने खेत बेचने का इरादा त्याग दिया है।
वैक्सीनेशन के लिये नदी पार
स्वास्थ्य विभाग की यह टीम बस्तर की है जो नदी पार कर चपका गांव जा रही है। वहां कुछ लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लग चुका है और अब दूसरी खुराक भी देनी है। कुछ लोगों को पहली डोज भी दी जायेगी। छत्तीसगढ़ में कल ही दोनों डोज लेने वालों की संख्या 1 करोड़ पहुंच गई। ऐसी कोशिश हो तो लक्ष्य के और करीब पहुंचा जा सकेगा।
दर्द ‘ऊपर’ तक महसूस
बिलाईगढ़ के सरकारी कार्यक्रम में मंच पर कुर्सी नहीं मिलने से बलौदाबाजार-भाटापारा की जिला पंचायत की सभापति कविता लहरे इतनी दुखी हो गई कि वो मंच पर ही फूट फूटकर रो पड़ी। मंच पर स्थानीय विधायक, और कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ के लिए कुर्सी लगाई गई थी। लेकिन कार्यक्रम में आमंत्रण के बाद भी सभापति के लिए कुर्सी नहीं लगाई गई।
कविता लहरे ने किसी पर दोषारोपण नहीं किया, लेकिन सरकारी कार्यक्रम में अपमानित करने का आरोप लगा दिया। आपसी चर्चा में कई लोग सभापति के साथ अपमानजनक व्यवहार के लिए संसदीय सचिव, और विधायक चंद्रदेव राय को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। दरअसल, चंद्रदेव राय को जिले के बाकी विधायकों की तुलना में पॉवरफुल माना जाता है। प्रशासन में उनकी धमक है।
चंद्रदेव राय सीएम के पक्ष में तीन महीना पहले कांग्रेस विधायकों के दिल्ली परेड के अगुवा थे। इससे परे सभापति कविता लहरे बिलाईगढ़ इलाके से जिला पंचायत सदस्य चुनकर आई हैं। उन्हें बिलाईगढ़ से कांग्रेस टिकट का दावेदार माना जाता है। ऐसे में सभापति को कुर्सी नहीं मिली, तो चंद्रदेव राय निशाने पर आ गए। मगर इसके पीछे उनकी भूमिका है अथवा नहीं, यह तो साफ नहीं है। लेकिन सभापति का दर्द ‘ऊपर’ तक महसूस किया गया। देखना है आगे क्या होता है।
एडीजी स्तर पर बदलाव
पीएचक्यू में इस माह के आखिरी में एक बड़े बदलाव की चर्चा है। डीजी स्तर के अफसर आरके विज 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। विज लोक अभियोजन संचालक के पद पर हैं। इसके अलावा बीएसएफ में प्रतिनियुक्ति पर गए 90 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा की भी जल्द वापसी हो रही है। इन सब वजहों से एडीजी स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं।
कवर्धा में शौर्य दिवस..
देश के इतिहास में 6 दिसंबर हिन्दूवादी संगठनों के लिये इस मायने में खास दिन है, क्योंकि इस दिन अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराया गया था। अब राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है और मंदिर का निर्माण द्रुत गति से चल रहा है। इस दिन को ये संगठन शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं। इस बार बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और मिलते-जुलते दूसरे संगठनों ने एक बड़ा कार्यक्रम कवर्धा में रखा है। प्रत्यक्ष रूप से इस आयोजन में भारतीय जनता पार्टी के सामने नहीं होने के बावजूद ऐसे आयोजनों का उसको चुनावी फायदा मिलता रहा है। इस महासभा में पूरे प्रदेश के लोग तो शामिल हो ही रहे हैं, देशभर से साधु संत भी पहुंचेंगे। एक बाइक रैली भी कल 4 दिसंबर को निकाली गई। प्रशासन के लिए चुनौती भरा होगा कि पूरा आयोजन बिना किसी व्यवधान के निपट जाये।
खटाई में पीएम आवास...
प्रधानमंत्री आवास योजना केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवादों में फंस गई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये दी गई मंजूरी तो केंद्र ने वापस ले ही ली है। अब, प्रदेश में हजारों मकान ऐसे अधूरे पड़े हैं, क्योंकि एक बार काम शुरू होने के बाद दूसरी, तीसरी किश्त मिली ही नहीं। यह तस्वीर जगदलपुर की है।
तृणमूल कांग्रेस छत्तीसगढ़ की ओर
पश्चिम बंगाल से बाहर पैर पसारने के अभियान में जुटी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बेनर्जी ने अब छत्तीसगढ़ का रुख किया है। प्राय: सभी बीते चुनावों में कांग्रेस-भाजपा के बीच प्रदेश में सीधी टक्कर रही है हालांकि कुछ सीटों पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का असर बीते विधानसभा चुनाव में देखा जा चुका है। जाहिर है तृणमूल कांग्रेस का लक्ष्य कांग्रेस के असंतुष्टों को अपने साथ जोडऩा है, जैसा कि दूसरे राज्यों में वह कर रही है। अभी हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने खंडन किया है कि वे तृणमूल कांग्रेस के संपर्क में है। कांग्रेस नेतृत्व के लिए यह राहत भरी बात हो सकती है। मौजूदा परिस्थिति में किसी बड़े नेता ने तृणमूल की ओर जाने की बात नहीं की है। हां, कांग्रेस में चुनाव के समय टिकट नहीं मिलने पर असंतोष खूब उभरता है। तृणमूल ऐसे लोगों के लिये एक विकल्प हो सकता है।
बिलासपुर संभाग में पैर नहीं जमे
सूबे में बिलासपुर संभाग की प्रशासनिक लिहाज से पोस्टिंग की ब्यूरोक्रेटस में काफी अहमियत है। बिलासपुर में एसपी रहते हाल ही मेें डीआईजी पदोन्नत हुए 2007 बैच के आईपीएस दीपक झा की सर्विस में यह दूसरा मौका आया, जब वह बिलासपुर संभाग में अपने कार्यकाल को लंबा खींचने में कामयाब नहीं हो पाए। उनकी किस्मत इस संभाग की औद्योगिक नगरी रायगढ़ में खराब रही, जब मौजूदा सरकार ने चार माह के भीतर पीएचक्यू बुला लिया था। अब बिलासपुर से भी उन्हें इतने ही कम समय में हटाकर बलौदाबाजार भेज दिया। दीपक के सेवाकाल में महासमुंद और बस्तर ही दो वर्ष के लिए यादगार रहा। सुनते हंै कि दीपक को पीएचक्यू लाने के लिए कुछ अफसरों ने सरकार को सुझाव दिया था, लेकिन उन्हें बिलासपुर से कमतर छोटे जिले में भेजकर फील्ड में बनाए रखने का विचार किया गया। सुनते हंै कि डीआईजी प्रमोशन के बाद एकाएक स्थानांतरण से न सिर्फ दीपक, बल्कि आईपीएस बिरादरी हैरानी में पड़ गयी है।
उम्मेद की कवर्धा वापसी ने चौंकाया
राज्य सरकार ने डॉ. लाल उम्मेद सिंह की दोबारा कवर्धा में पोस्टिंग करके सबको चौंका दिया है। सुनते हैं कि कवर्धा दंगे के बाद उपजे हालत से निपटने के लिए उम्मेद पर सरकार युवा आईपीएस की तुलना में ज्यादा भरोसा दिखा है। वे पुलिस महकमे में अपनी सहजता और ईमानदारी की वजह से विशिष्ट पहचान रखते हैं। कवर्धा वापसी इस लिहाज से मायने रखती है कि पूर्व में दो साल एसपी रहते अनुभव और संपर्क से विषम हालत से निपटने का वह माद्दा रखते हैं। चर्चा है कि उम्मेद को नए जिले में काम करने का भरोसा था, लेकिन वह कवर्धा भेजने के फैसले से अचरज में पड़ गए हैं। पशु चिकित्सक उम्मेद पर कवर्धा में शांति बहाली की बड़ी जवाबदारी होने के साथ ही महकमे के बिगड़े तंत्र को दुरूस्त करने का जिम्मा भी होगा। कवर्धा दंगे के दौरान उन्होंने काफी दिनों तक कैंप भी किया था। वैसे प्रदेश के इतिहास में यह तीसरा मौका भी जब पूर्व पदस्थ जिले में दुबारा तैनाती का आदेश निकला। इससे पहले आर एल डांगी कोरबा, और हेतराम मनहर बेमेतरा में दो-दो बार एसपी रहे।
डहरिया सफल रहे
टीएस सिंहदेव ने शिवपुर चरचा, और बैकुंठपुर के चुनाव का प्रभार लेने से मना कर दिया है। कहा जा रहा है कि सिंहदेव ने ओमीक्रॉन के खतरे को देखकर चुनाव प्रचार की कमान लेने से मना कर दिया है। वो पूरा समय स्वास्थ्य अमले को चुस्त दुरूस्त करने में लगा रहे हैं। ताकि पिछली बार जैसी गलतियां न हो।
वैसे भी कोरिया जिले के विभाजन के बाद से शिवपुर चरचा, बैकुंठपुर नगर पालिका में काफी विवाद हो रहा है। सिंहदेव समर्थकों का कहना है कि विवाद निपटारे के लिए चुनाव तक सिंहदेव को वहां रहना पड़ता। इससे विभागीय कामकाज पर असर पड़ सकता था।
सिंहदेव ने सीएम, और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को अपनी मंशा बता दी। इसके बाद नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया को सिंहदेव की जगह दोनों नगर पालिकाओं की कमान सौंपी गई। डहरिया ने वहां जाते ही चुनाव बहिष्कार के लिए अड़े नेताओं को मनाया, और समय रहते प्रत्याशियों की घोषणा, और नामांकन दाखिल कराने में सफल रहे।
ताकत का एहसास करा दिया
भाजपा में टिकट वितरण को लेकर काफी किचकिच हुई। बीरगांव में तो किसी तरह का विवाद नहीं हुआ। यहां टिकट वितरण में प्रभारी अजय चंद्राकर ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने रायपुर जिले के सभी बड़े नेताओं को विश्वास में लेकर बीरगांव के प्रमुख नेताओं को प्रत्याशी बनवा दिया। मगर इससे दिक्कत भी पैदा हो रही है। संगठन के प्रमुख नेता खुद के प्रचार में लगे हैं, तो बाकियों का संचालन कौन करेगा यह समस्या आ गई है।
दूसरी तरफ, भिलाई, भिलाई-चरौदा, और रिसाली में प्रत्याशी चयन को लेकर काफी रस्साकशी हुई। चयन समिति की सदस्य सरोज पाण्डेय खुद तो नहीं आई, लेकिन उनके भाई राकेश पाण्डेय ने अपनी ताकत का एहसास करा दिया। संभागीय चयन समिति में विवाद बरकरार रहने के बाद पैनल प्रदेश की समिति को भेजा गया।
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में नाम फाइनल करने के लिए एक दिसंबर को दोपहर में बैठक बुलाई गई थी। प्रभारी संतोष पाण्डेय, सांसद विजय बघेल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय तो बैठक में पहुंच गए, लेकिन राकेश पाण्डेय नहीं पहुंचे। उनके लिए दो घंटे इंतजार करना पड़ा। राकेश पहुंचे तब कहीं जाकर प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा शुरू हो पाई। और फिर देर रात प्रत्याशी घोषित किए गए।
हिरण का जवानों से लगाव..
सुकमा के किस्टाराम के जंगलों में सर्चिंग के लिए निकले जवानों को एक हिरण भटकता हुआ मिल गया। जवान उसे जंगल में भीतर तक छोडक़र लौटने लगे। मगर हिरण वापस जवानों के साथ ही चलने लगा। बड़ी कोशिश के बाद भी हिरण ने उनका साथ नहीं छोड़ा और अब वे उसे अपने कैंप में ले आए हैं। शायद हिरण को खूंखार जानवरों का डर है और लगता है कि जवानों की बंदूक उसे बचा सकती है।
एसपी का कांस्टेबल को धमकाना
बलौदा बाजार में पुलिस अधीक्षक आई के एलएसेला ने कथित रूप से कांस्टेबल ब्रह्मानंद देवांगन को इस बात के लिए धमकाया है कि वह नया आवास आवंटित होने के बावजूद अपनी पुरानी जगह को छोडऩे के लिए तैयार नहीं है। ऑडियो वायरल हो गया है। एसपी ने इस ऑडियो में कांस्टेबल की तो लानत-मलामत की ही है, आईजी, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री तक को लपेट दिया। कहा कि मैं एसपी हूं जहां शिकायत करनी है करो मेरा कुछ नहीं बिगडऩे वाला है। दोनों ने स्वीकार कर लिया है कि ऑडियो में उनकी आवाज है। मगर एसपी का कहना है कि टेंपरिंग की गई है। यही समझ में आता है कि एक कांस्टेबल से सीधे एसपी को उलझने से बचना चाहिए। उसके मातहत तो कई अधिकारी होते हैं, जो कांस्टेबल को समझा बुझा सकते थे। फजीहत कांस्टेबल की तो हुई नहीं।
साइकिल यात्री पार्षद..
जगदलपुर के पार्षद धन सिंह नायक की जिले में सुनवाई नहीं हुई। वे साइकिल यात्रा कर रायपुर पहुंचे। 3 दिन तक धरने पर बैठे रहे। चौथे दिन फिर वह धरना देने जा रहे थे कि पचपेड़ी नाका के पास पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया। लेकिन उसे राज्यपाल से मिलवाया गया और मुख्यमंत्री से भी भेंट कराई गई। दोनों से मिलकर धनसिंह ने अपनी मांगें रखी और वापस लौटे। धन सिंह का कहना है कि वह पुलिस की लंबी पूछताछ से परेशान जरूर हुए लेकिन जिस मकसद से यहां पहुंचे थे वह पूरा हुआ। अब मांगों के पूरा होने का इंतजार है।
बारदाने की अंतर्कथा..
पूरे प्रदेश में 1 दिसंबर से बड़े उल्लास के साथ समर्थन मूल्य पर धान खरीदी शुरू हो गई है। राज्य सरकार और प्रशासन की सबसे बड़ी चिंता बारदाने की व्यवस्था करने की है। पहले ही दिन से सरकार ने किसानों से कहा है कि वे अपने बारदाने में धान लेकर आएं। इधर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और दूसरे भाजपा नेताओं का बयान है कि हमने तो कभी बोरियों की कमी का रोना नहीं रोया। दरअसल, उस वक्त अधिकतम खरीदी बमुश्किल 75 लाख मीट्रिक टन की हुई। भाजपा के दौर में भी धान खरीदने के लिए बोरियों की कमी होती थी पर वह मामूली थी। पर, अब ज्यादातर राज्य समर्थन मूल्य पर धान खरीदने लगे हैं। अब सबको बोरियों की जरूरत है। अपने यहां 2500 रुपये क्विंटल प्रोत्साहन भुगतान के चलते हर तरफ धान ही धान है। बीते साल सरकार ने करीब 93 लाख मैट्रिक टन धान खरीदा था। इस बार एक करोड़ 5 लाख मीट्रिक टन खरीदने का लक्ष्य है।
हर साल लक्ष्य बढऩे के कारण बोरियां कम पड़ रही हैं। बोरियां पटसन से बनती हैं और इसका 95 प्रतिशत उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। किस राज्य को कितनी बोरियां देनी हैं, यह तय करने के लिए एक जूट आयुक्त कोलकाता में बैठे हुए हैं। पर इस आयुक्त के हाथ बंधे रहते हैं। वे केंद्र सरकार की सलाह या निर्देश पर राज्यों को बोरियां आवंटित करते हैं। ऐसे में यदि राज्य सरकार केंद्र पर बोरियां नहीं देने का आरोप लगा रही है, तो वह गलत नहीं है। पिछले साल उसी पश्चिम बंगाल में, जहां पर 95 प्रतिशत बोरियों का उत्पादन होता है, ममता बनर्जी सरकार को लाख मिन्नतों के बावजूद गेहूं की खरीद के लिए जरूरत के मुताबिक बोरियां नहीं मिलीं। इसके चलते गेहूं की खरीद लक्ष्य से 20 प्रतिशत कम हो पाई। अब छत्तीसगढ़ में भी यही हाल है। क्या लक्ष्य तक धान खरीदा जा सकेगा?
पंच परमेश्वरों की करतूत...
हाल ही में मुंगेली नगर पालिका के अध्यक्ष संतू लाल सोनकर को बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने 13 लाख रुपये के ऐसी नाली निर्माण के बिल पर हस्ताक्षर किए जो बनी ही नहीं। अब जांजगीर से खबर है कि वहां पर एक करोड़ रुपए में सडक़ों का निर्माण हुआ, मरम्मत की गई, मगर जमीन पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। ऑफिस से इसके बिल वाउचर भी गायब हैं। जिला पंचायत बिलासपुर में इस समय बवाल मचा हुआ है। अध्यक्ष ने अपने फॉर्म हाउस तक 11 लाख रुपए की सडक़ बनवा ली। ग्राम पंचायत को इसकी भनक भी नहीं लगी। सीधे जिला पंचायत से पैसे निकले। ऐसे मामले खंगाले जाएं तो हर शहर, कस्बे, गांव में मिलेंगे। दर्जनों जनप्रतिनिधियों से वसूली और उनकी गिरफ्तारी बची. रुकी है। और ऐसी स्थिति में बड़ी उदारता के साथ जिला पंचायत सदस्यों से लेकर के सरपंच तक का मानदेय सरकार ने बढ़ा दिया है। आगे बढक़र, उन्हें 50 लाख रुपए तक के काम कराने की छूट भी दे दी है।
हिंदी की टंगी हुई टांग
सोशल मीडिया पर वायरल यह तस्वीर डरा रही है। ऐसे निमंत्रण देंगे तो कौन सफर करेगा?
बृजमोहन के लिए चुनौती
बृजमोहन अग्रवाल मुश्किल में हैं। चर्चा है कि पार्टी ने उनकी इच्छा के खिलाफ जाकर भिलाई-चरौदा नगर निगम का चुनाव संचालक बना दिया है। बृजमोहन चाहते थे कि भिलाई-दुर्ग के तीनों बड़े नेता सरोज पाण्डेय, विजय बघेल, और प्रेमप्रकाश पाण्डेय को एक-एक निगम का प्रभार दे दिया जाए। उनका मानना था कि स्थानीय बड़े नेता चुनाव संचालन बेहतर ढंग से कर सकते हैं। मगर पार्टी ने उनकी नहीं सुनी।
सुनते हैं कि बृजमोहन को चुनाव संचालन से परहेज नहीं है। बल्कि इस बार समस्या कुछ और है। दरअसल, पिछली बार भी भिलाई-चरौदा निगम के चुनाव का संचालन बृजमोहन ने किया था। तब उस समय पार्टी की सरकार थी। बृजमोहन ने चुनाव के दौरान स्थानीय कुछ प्रभावशाली असंतुष्ट नेताओं को एल्डरमैन, और अन्य पद दिलाने का वादा कर प्रचार के लिए मनाया था। चुनाव में भाजपा तो जीत गई, लेकिन बड़े नेताओं के विरोध के चलते बृजमोहन अपना वादा पूरा नहीं कर पाए। अब इन असंतुष्ट नेताओं को काम में लगाना बृजमोहन के लिए चुनौती बन गई है।
सिंहदेव की परीक्षा
नगरीय निकाय चुनाव के लिए सभी मंत्रियों की जिम्मेदारी तय कर दी गई है। रविन्द्र चौबे को बीरगांव, और दुर्ग जिले के तीन नगर निगमों का प्रभार परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर को दिया गया है। दोनों ही क्रमश: रायपुर और दुर्ग के प्रभारी मंत्री हैं। मगर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को कोरिया जिले का प्रभार दिया गया है। यहां के बैकुंठपुर, और शिवपुर चरचा नगर पालिका में चुनाव है। दोनों ही नगर पालिका में जिला विभाजन के विरोध में प्रदर्शन चल रहा है, और स्थानीय संगठनों ने चुनाव के बहिष्कार का ऐलान भी कर दिया है। ऐसे में सिंहदेव की चुनावी कौशल की परीक्षा है। देखना है कि वो इसमें खरा उतर पाते हैं अथवा नहीं।
नामांकन के लिये खातिरदारी...
वोट के लिए मतदाताओं को ढोकर लाने की खबरें तो हर चुनाव में खूब सुनी गई हैं, मगर बैकुंठपुर में प्रत्याशियों को लाया जा रहा है। कोरिया में भाजपा और दूसरे दलों ने नगरी निकाय चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। कांग्रेस ने भी चुनाव की तारीख आगे बढ़ाने की मांग की है। विरोध कोरिया जिले के विभाजन को लेकर उठे असंतोष के कारण है। सब दलों के एक हो जाने के कारण ऐसा दिखाई दे रहा था कि दोनों नगरीय निकाय शिवपुर-चरचा और बैकुंठपुर में कोई नामांकन ही दाखिल नहीं हो पायेगा और शासन की फजीहत हो जाएगी।
जैसा कि मालूम हुआ है कि कल दिन भर प्रत्याशी ढोये गये। उनसे निर्दलीय नामांकन दाखिल कराया गया। ऐसे उम्मीदवारों को तुरंत एनओसी देने के लिए अधिकारी बैठे रहे। सफलता मिली। शाम तक 16 निर्दलीय नामांकन दाखिल हो गये। भाजपा का आरोप है कि यह प्रशासन का नहीं कांग्रेस का खेल है।
पर इस पैंतरे ने कांग्रेस और भाजपा सहित सभी दलों के कान खड़े कर दिए हैं। नामांकन दाखिल करने की तारीख 3 सितंबर है, वह भी बीती जा रही है। बहिष्कार करना है या नहीं, वे जल्दी तय करेंगे वरना दोनों निकायों में निर्दलीय काबिज दिखेंगे।
कोई नई गाइडलाइन आई तो?
देश के लगभग सभी राज्यों में कोरोना के नये वेरिएंट ओमीक्रोन की आहट से धीरे-धीरे चिंता पसर रही है। दूसरी लहर के कमजोर होने के बाद छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक समारोहों, शादी ब्याह की छूट मिल गई है। अब पूरी क्षमता से मेरिज हाल, गार्डन खुल गये हैं। बैंड, टेंट, केटरिंग का धंधा भी दुबारा रफ्तार पकड़ चुका है। छूट तो तीन-चार महीने पहले से ही दी जा चुकी थी, पर देव शयन पर थे। देवउठनी एकादशी के बाद मुहूर्त बने। दिसंबर में खूब शादियां हैं। जिन लोगों की विवाह की योजना दिसंबर में नहीं बन पाई, उन्होंने कार्यक्रम जनवरी के लिये खिसका दिया है। 22 जनवरी के बाद कई मुहूर्त हैं।
अब चिंता यह है कि दिसंबर के समारोह तो जैसे तैसे निपट सकते हैं लेकिन यदि आगे कोविड केस बढ़े तो क्या होगा?
शराबबंदी लागू करना खेल है?
बिहार विधानसभा परिसर में सत्र के दौरान ही शराब की बोतलें मिलीं, जबकि वहां पूर्ण शराबबंदी है। पूरा प्रशासन हिल गया है। सीएम नीतिश कुमार भी बेचैन हो गये हैं। इसीलिये तो, अपने यहां अभी तक टर्म्स एंड कंडिशन्स देखे जा रहे हैं।
एक अफसर कई खूबियां
छत्तीसगढ़ वन महकमे में 2008 बैच के आईएफएस अफसर दिलराज प्रभाकर अपनी काबिलियत के बूते महज दो जिलों में ही डीएफओ के रूप में 8 साल की सेवा करते अब भी मैदानी पोस्टिंग में हैं। वन अफसरों में ऐसा याद नहीं पड़ता कि किसी अफसर ने दो जिलों में इतना लंबा समय बिताया हो। दिलराज की खासियत में एक बात यह भी है कि सत्ता के भरोसे को जीतने का हुनर भी जानते हैं। जिसका फायदा हुआ कि उन्होंने राजनांदगांव और कवर्धा में 8 साल का दौर पूरा किया। अगले साल जनवरी में दिलराज का प्रमोशन भी ड्यू है। यानी वह डीएफओ से एसीसीएफ के रूप में पदोन्नत होंगे। बताते हंै कि मैदानी पोस्टिंग में रहते दिलराज ने सत्ता की सोच को समझकर उस मुताबिक़ काम तो किया, लेकिन नियमों के तहत भी किया। अब उनकी यह खूबी महकमे में चर्चा का विषय बन गई कि दो जिलों में ही उन्होंने अगले प्रमोशन तक खुद को बनाए रखा। दिलराज छत्तीसगढ़ में 2008 के बैच में इकलौते आईएफएस अफसर भी हैं। दिलराज की एक बड़ी सामाजिक सोच में आर्थिक रूप से पिछड़े प्रतिभावान विद्यार्थियों को सही मार्गदर्शन देकर नौकरी पेशे के लिए काबिल बनाना भी है। कई गैर वन अफसरों के साथ मिलकर वह ऐसे विद्यार्थियों को आगे बढ़ाने की मुहिम भी चला रहे हैं। वे खुद नवोदय स्कूल से निकले हुए हैं, और देश भर में नवोदय के भूतपूर्व छात्रों के एक नेटवर्क से वे जुड़े हुए हैं, और जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को कॉलेज दाखिले और नौकरी के मुकाबलों के लिए तैयार करते हैं।
बोतल नई, शराब वही ?
राज्य भाजपा की कोर कमेटी, और चुनाव कमेटी के सदस्यों की सूची जारी होने के बाद असंतुष्ट नेताओं को सांप सूंघ गया है। कमेटी में उन नेताओं को भी जगह मिल गई, जिनके खिलाफ पार्टी हाईकमान को शिकायतों का पुलिंदा सौंपा गया था। सौदान सिंह के हटने के बाद प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी, और राष्ट्रीय संगठन मंत्री शिवप्रकाश तो असंतुष्ट नेताओं को काफी तवज्जो देते दिख रहे थे। ऐसे में असंतुष्ट नेताओं ने संगठन में बड़े बदलाव की उम्मीद पाल रखी थी। लेकिन महत्वपूर्ण कमेटियों के सदस्यों की सूची जारी हुई, तो वो हक्का-बक्का रह गए।
दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय तो समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें नजरअंदाज क्यों किया गया। राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य, और विधानसभा में सबसे मुखर रहने वाले अजय चंद्राकर को भी किसी कमेटी में जगह नहीं दी गई। सबसे सीनियर विधायक ननकीराम कंवर, चंद्रशेखर साहू जैसे पुराने नेताओं को भी किसी कमेटी के लायक नहीं समझा गया। सुनते हैं कि पूर्व सीएम रमन सिंह, विष्णुदेव साय, पवन साय, और धरमलाल कौशिक ने आपस में चर्चा कर कोर कमेटी और चुनाव समिति के नामों को फाइनल किया था।
इसके बाद पवन साय सूची लेकर हाईकमान से मंजूरी के लिए दिल्ली गए थे। चर्चा है कि बृजमोहन अग्रवाल का नाम पहले कोर कमेटी में नहीं था। उन्हें सिर्फ चुनाव समिति में रखा गया था, लेकिन हाईकमान की दखल के बाद उन्हें कोर कमेटी में भी रखा गया। बाकी नामों को यथावत रहने दिया गया। सूची से पार्टी का एक बड़ा खेमा नाराज है। कुछ लोग सूची को बोतल नई, शराब वही की संज्ञा दे रहे हैं। और इससे नगरीय निकाय, और खैरागढ़ चुनाव में पार्टी को नुकसान की आशंका जता रहे हैं। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
प्रवासी पक्षियों पर शिकारियों की नजर..
ठंड आते ही प्रदेश के सरोवर, जलाशयों में प्रवासी पक्षी हजारों किलोमीटर दूर साइबेरिया, अर्कांटिका आदि देशों से आकर जम गये हैं और आने का सिलसिला जारी है। जांजगीर के मंडावा राखड़ डेम, बिलासपुर के कोपरा, खूंटाघाट, बेमेतरा के गिधवा जलाशय आदि इनके पहचाने हुए ठिकाने हैं, जहां पक्षियों और प्रकृति के प्रेमी उनका कलरव सुनने के लिये तथा हजारों की तादात में उड़ान भरते हुए देखने के लिये पहुंचते हैं।
प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला बीते कुछ सालों में कम होता जा रहा है। कोलाहल, प्रदूषित जल, वाहनों की आवाजाही से ध्वनि प्रदूषण, वनों, पेड़ों और घास की लगातार कमी होता जाना इसके कुछ कारण हैं। पर इन्हें सबसे बड़ा खतरा शिकारियों से है। जांजगीर के प्रवासी पक्षियों के ठिकाने पर चार शिकारी, गन के साथ इसी सप्ताह देखे गये। सोशल मीडिया पर प्रकृति प्रेमी प्राण चड्ढा ने लिखा है कि वन विभाग छत्तीसगढ़ में हर साल पक्षी उत्सव तो मनाता है, पर इनकी सुरक्षा के लिये मैदान में कभी मुस्तैद नहीं दिखा।
चिंता जायज है पर हकीकत यही है कि जब बाघ और हाथी जैसे विशालकाय वन्यजीवों को बचाने में वन विभाग फेल हो रहा हो तो इन नन्हें पक्षियों की सुरक्षा वह कर पायेगी, इसका तो भरोसा क्यों हो?
टोकन की भगदड़ का कौन जिम्मेदार..
बालोद जिले के पीपरछेड़ी गांव में किसानों को धान खरीदी के लिये टोकन वितरण के दौरान भगदड़ मची। तुरत-फुरत वहां के समिति प्रबंधक को निलंबित किया गया। दरअसल, आदेश के मुताबिक मुनादी करानी थी, उसने करा दी। पिछले सालों में धान बिक्री के लिये किसानों को कई-कई दिन इंतजार करना पड़ा। खरीदी शुरू होने की वे काफी दिनों से प्रतीक्षा कर रहे थे। बहुत से जरूरतमंद किसानों ने कम कीमत पर बाजार में धान बेचा भी है। अफसरों को इस स्थिति का अंदाजा होना चाहिये था कि जगह-जगह टोकन के लिये लंबी कतार लगेगी और इस दौरान व्यवस्था बिगड़ सकती है। बालोद में किसानों को टोकन के लिये जो परेशानी हुई है वह अकेले नहीं है। प्रदेश में जगह-जगह से खबरें आ रही हैं। लोग सुबह से, घंटों कतार में लगने के बाद भी टोकन नहीं ले पा रहे हैं। अधिकारियों ने समिति के छोटे कर्मचारी को तो निलंबित कर दिया पर अपनी गलती अब इस घटना के बाद सुधारी है। नया आदेश निकाला है कि टोकन 15 दिन पहले दे दिया जायेगा।
नि:शक्तों के लिये संबोधन
शारीरिक-मानसिक रूप से किसी कमी को झेल रहे लोगों को समाज उपेक्षित और दीन-हीन न समझें, इसलिये उनके प्रति सम्मानजनक बर्ताव के लिये मापदंड तय किये गये हैं। इन्हें विशेष प्रतिभा के बच्चे, नि:शक्त पहले से कहा जाता रहा है। अब भी इसे कोई गलत नहीं बताता। बाद में केंद्र सरकार ने इन्हें दिव्यांग नाम दिया। सभी सरकारी विभागों में इसे लागू भी करने कहा गया है। सार्वजनिक मंचों में भी अब दिव्यांग ही कहा जाता है।
इनकी बेहतरी के लिये बनाई गई योजनाओं को संचालित करने की जिम्मेदारी समाज कल्याण विभाग की है। उम्मीद तो करनी चाहिये कि वह उन्हें प्रतिकूल टिप्पणियों, व्यवहार से बचाये। पर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में खुद इसी विभाग के अधिकारियों ने इन्हें ‘विकलांग’ बता दिया। यहां तीनों ब्लॉक के नि:शक्तों की क्रिकेट प्रतियोगिता कराई जा रही है। उन्हें जो टी-शर्ट खेल के दौरान पहनने के लिये दिये गये, उनमें लिखा गया- ‘विकलांग।’ जब ये खिलाड़ी मैदान में उतर गये तब लोगों का इस ओर ध्यान गया। विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने अब अपनी गलती पर माफी तो मांगी है और टी-शर्ट बदल दिया है पर वे ऐसे ही नहीं छूटने वाले हैं। उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई होने जा रही है।
टमाटर के अच्छे दिन...
वैसे तो डीजल के भाव के कारण ठंड में भारी आवक होने के बावजूद सब्जियों के दाम घटे नहीं हैं पर टमाटर कुछ ज्यादा ही ऊपर चढ़ा हुआ है। ठीक क्वालिटी का टमाटर 60 रुपये से कम नहीं जो अमूमन दूसरे वर्षों में 10-12 रुपये में मिल जाता था। दुर्ग और सरगुजा संभाग में टमाटर की बंपर पैदावार होती है। इस बार भी हुई है। बीते साल की घटना याद होगी जब धमधा इलाके में टमाटर इसी सीजन में 1 रुपये किलो मिल रहा था, यानि लागत भी नहीं निकल रही थी। जशपुर के फरसाबहार, पत्थलगांव और लुड़ेग इलाके में खेतों और सडक़ों पर फेंके गये टमाटर की तस्वीर तो देश और देश के बाहर भी सुर्खियों में रही है। पर इस बार टमाटर उत्पादकों के अच्छे दिन हैं। यूपी, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि में छत्तीसगढ़ से टमाटर बड़ी मात्रा में निर्यात हो रहे हैं। व्यापारी किसानों के पास आकर 25 से 30 रुपये में ले जा रहे हैं। सरगुजा से हर दिन लगभग 70 लाख रुपये का टमाटर यूपी जा रहा है। छत्तीसगढ़ के भी थोक विक्रेताओं को किसान 25-30 रुपये में ही बेच रहे हैं लेकिन उपभोक्ता के हाथ में आते-आते यह 60 रुपये हो जा रहा है। यानि किसान ही नहीं, थोक व्यापारी और चिल्हर विक्रेताओं को इस समय टमाटर अच्छा मुनाफा दे रहा है।
शराब के समर्थक कांग्रेसी..
रामानुजगंज विधायक बृहस्पति सिंह का कोई नया ऑडियो-वीडियो वायरल होता है तो अब कोई सनसनी महसूस नहीं होती। करीब आधे मिनट के नये वायरल वीडियो में वे शराब के समर्थन में बोल रहे हैं। वे सभा में कथित रूप से कह रहे हैं कि मैं नहीं कहता शराब मत पियो, इसमें कोई बुराई नहीं है। संपत्ति है तो पियो, मगर घर में। शाम को पियो और सुबह फिर अपने काम में लग जाओ।
अब, इसमें उन्होंने कौन सी नई बात कह दी। अक्टूबर महीने में तो महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेंडिया के वायरल वीडियो में भी इसी तरह की बात थी। वे भी कह रही थीं, घर में पियो।
जिस तरह से बीच-बीच में कांग्रेस के नेता, मंत्री शराब की तरफदारी करते हुए बयान देते हैं, उससे तो शराब पीने वालों को निश्चिंत रहना चाहिये कि कभी यहां शराबबंदी भी हो पायेगी। हां, घर में पीने की सलाह जरूर चिंताजनक है। इसलिये कि घरों में पीने का अभियान चलाकर कहीं जगह-जगह चल रहे चखना सेंटर्स को बंद न करा दिये जायें। इससे चलाने वाले दुकानदारों की ही नहीं, रोजाना वसूली करने वाले आबकारी वालों की कमाई भी मारी जायेगी।
कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक
प्रोफेशनल कांग्रेस, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष शशि थरूर हैं- में ऐसे लोगों को सदस्य बनाया जाता है जो विभिन्न क्षेत्रों में आईकॉन हो। पिछले महिने पूर्वी जोन प्रभारी ज़ारिता लेत्फलांग जब छत्तीसगढ़ आई थीं तो क्रिकेटर राजेश चौहान को उन्होंने अपनी टीम में लिया था। अब प्रख्यात पंडवानी गायिका पद्मविभूषण तीजन बाई ने सदस्यता ली है। छत्तीसगढ़ में पंडवानी को गांव-गांव में सुना जाता है। हर गांव में तीजन बाई को जाना भी जाता है और उनकी बड़ी प्रतिष्ठा है।आने वाले दिनों में यह कांग्रेस के लिये फायदेमंद साबित हो सकता है। सरकार की भी छत्तीसगढिय़ा छवि को संगठन के रास्ते से मजबूती मिल सकती है।
भाजपा का परिवारवाद
वैसे तो भाजपा परिवारवाद के खिलाफ खूब बोलती है। मगर कई मौके पर तो इसके पक्ष में खड़ी दिखती है। बात निकाय चुनाव की हो रही है। भाजपा ने संभागीय चुनाव समिति घोषित की है। इसमें दुर्ग की समिति में राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय के साथ-साथ उनके सगे भाई राकेश पाण्डेय को भी रखा है। यही नहीं, राकेश, और उनकी पत्नी यानी सरोज की भाभी पार्षद चुनाव लडऩा चाहती हैं। ऐसे में अब सूची पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कुछ नेताओं ने इसकी शिकायत पार्टी हाईकमान से भी की है। प्रत्याशी की घोषणा से पहले ही पार्टी में घमासान शुरू हो गया है।
नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया
बीते 14 नवंबर को स्टैडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी का छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में होने वाला शो रद्द कर दिया गया था। अब बेंगलूरु से खबर है कि वहां पुलिस ने सांप्रदायिक सद्भाव के उल्लंघन की आशंका बताकर आयोजकों को रविवार के दिन तय शो करने की इजाजत नहीं दी। फारूकी ने खुद इस बारे में ट्वीट किया और लिखा - नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया। गुड बाय. नाइंसाफी।
फारूकी ने जिक्र किया है कि दो माह के भीतर आयोजन स्थल और दर्शकों के खतरे की आशंका के चलते उसके 12 शो रद्द हो चुके हैं। जो मजाक मैंने आज तक नहीं किया, उसके लिये मुझे जेल भेजा गया। उस शो को रद्द किया गया जिसमें सेंसर सर्टिफिकेट भी था।
यह हाल है कि कोई भी धमकी देकर किसी भी कलाकार का वजूद खत्म करने पर तुल जाये और कानून-व्वयस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी लेने वाला तंत्र अपने हाथ खड़े कर दें। फारूकी शायद अब कोई नया काम करेंगे, क्योंकि उन्होंने यह भी लिखा है कि- ‘आई थिंक, दिस इज द इंड।’
ट्रैक्टर में रजिस्ट्रेशन नंबर
एक दिसंबर से शुरू हो रही धान खरीदी को लेकर सरहदी जिलों के प्रशासन में अलग तरह की टेंशन है। फरमान है कि हर हालत में दूसरे राज्यों से आने वाला धान रोका जाये। इसके लिये तरह-तरह के उपाय सोचे जा रहे हैं। जैसे मध्यप्रदेश से लगे गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में ऐसी हर ट्रैक्टर रोकी जा रही है जिनमें रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं लिखा है या मिट गया है। इन ट्रैक्टरों में रजिस्ट्रेशन नंबर पुलिस खुद अपने सामने खड़े होकर लिखा रही है। ट्रैक्टरों की सूची डीलरों और आरटीओ से ले ली गई है। मालिक, संचालकों को फोन करके यह चेतावनी दी जा रही है कि बिना नंबर प्लेट वाली ट्रैक्टर को धान खरीदी केंद्र में घुसने नहीं दिया जायेगा। पुलिस सोच रही है कि अब दूसरे राज्यों से ट्रैक्टर ने प्रवेश किया, तो इसका पता तुरंत चल जायेगा।
रेडी टू ईट से महिलाओं का बाहर होना
प्रदेश में रेडी टू ईट का काम अब स्व-सहायता महिला समूहों के हाथ छिन रहा है। यह काम राज्य बीच एवं कृषि विकास निगम को सौंपा गया है। निगम की इकाईयों में ही इसका निर्माण और वितरण का काम होगा। पर, दूसरी तरफ दावा किया जा रहा है कि इससे 15 हजार स्व सहायता समूह, जिनसे 4 लाख महिलायें जुड़ी है, उनके सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जायेगा। समूहों ने फूड बनाने के लिये 2 से 4 लाख की मशीनें भी खरीदी हैं जो बेकार हो जायेंगी।
खबर यह है कि निगम का नाम सिर्फ दिखावे के लिये है। निर्माण और वितरण का काम ठेके पर दिया जा रहा है जिसका लाभ किसी एक फर्म को ही मिलेगा। सवाल यही है कि जब महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने, उन्हें सशक्त बनाने की बात हो रही है तब किसी ऐसे काम को एक संस्था या फर्म को क्यों सौंपा जा रहा है? ज्ञात हो कि रेडी टू ईट तैयार भोजन है जो बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं को सुपोषण के लिये दिया जाता है।
विजय बघेल की पूछ-परख
वैसे तो सीएम भूपेश बघेल, और दुर्ग सांसद विजय बघेल के आपस में चाचा-भतीजे के रिश्ते हैं। रिश्तेदारी के बाद भी दोनों के बीच राजनीतिक अदावत जग जाहिर है। दोनों के करीबी लोग एक-दूसरे का सम्मान भी करते देखे जा सकते हैं। पिछले दिनों भाजपा के विधायक-सांसदों ने सीएम हाउस को घेरने का फैसला लिया, तो विजय बघेल थोड़े विलंब से पहुंचे, और वो सीधे सीएम हाउस पहुंच गए। उन्हें किसी ने रोका नहीं। वहां सीएम के परिवार के लोग और अन्य भी थे। जिन्होंने विजय बघेल का पूरा सम्मान किया, लेकिन विजय तो अपनी पार्टी के सांसद और विधायकों को ढूंढ रहे थे। उन्हें बताया गया कि विधायक-सांसदों को सर्किट हाउस के पास ही रोक दिया गया है। फिर विजय बघेल वहां से निकले, और अपने दल के नेताओं के साथ हुए। दूसरी तरफ, रमन सिंह, बार-बार विजय बघेल को पूछ रहे थे। उनसे जुड़े लोगों का सोचना था कि विजय बघेल की वजह से शायद कुछ अप्रिय न हो। चाहे कुछ भी हो, धरना-प्रदर्शन के दौरान विजय बघेल की काफी पूछ-परख होती रही।
सरोज समर्थकों का दबदबा
दुर्ग जिले के तीन नगर निगमों भिलाई, भिलाई-चरौदा, और रिसाली के अलावा नगर पालिका जामुल व नगर पंचायत मारो में चुनाव हो रहे हैं। मगर यहां भाजपा की बड़ी नेता सरोज पांडेय चुनावी परिदृश्य से गायब है। उन्हें पार्टी ने यूपी में प्रचार का जिम्मा दिया गया है। वो पीएम के निर्वाचन क्षेत्र बनारस में बकायदा मकान लेकर पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटी हैं। निकाय चुनाव से दूर रहने के बावजूद सरोज यहां प्रत्याशी चयन में रूचि ले रही हैं। चर्चा है कि तीनों नगर निगम और पालिका में अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने की कोशिश कर रही हैं। उनके करीबी लोगों ने तो बकायदा सूची बनानी शुरू कर दी है। इससे परे सरोज विरोधी, जो कि उनकी गैर मौजूदगी से खुश थे, वो भी अब पर्यवेक्षक और प्रभारियों की सूची जारी होने के बाद से मायूस हैं। संकेत साफ है कि प्रचार से दूर रहने के बाद भी टिकट वितरण में सरोज समर्थकों का दबदबा कायम रहेगा।
ऐसा कौन सा काम है?
मोबाइल फोन पर लोगों को लगातार ऐसे संदेश मिलते हैं कि उन्हें किसी काम के लिए छांटा गया है और घर बैठे उन्हें पार्ट टाइम या फुल टाइम काम करके हर दिन 6000 से 9000 रुपये रोज तक की कमाई का वायदा किया जा रहा है। अब अगर कोई कंपनी इस तरह की तनख्वाह या मेहनताना दे रही है तो इनकम टैक्स को भी उस पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि इतनी तनख्वाह, इतनी कमाई तो बड़ी-बड़ी कंपनियों के बड़े-बड़े लोगों को भी नहीं होती। इस तरह के ढेरों संदेश रोज मिलते हैं और लोगों को तो सावधान रहना ही चाहिए, केंद्र और राज्य सरकार की साइबर ठगी पर नजर रखने वाली एजेंसियों को भी ऐसे संदेशों से होकर इन्हें भेजने वालों तक पहुंचना चाहिए और देखना चाहिए कि दुनिया में ऐसा कौन सा काम है जो घर बैठे इतनी कमाई करवाता है। रोजाना ऐसे कई-कई मैसेज आते हैं एसएमएस पर भी आते हैं और व्हाट्सएप पर भी। इसके पहले कि लोग ठग लिए जाएं, सरकारी एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए।
इस साल इतने पीएम आवास बनने थे?
सन् 2021-22 के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना के जो लक्ष्य केंद्र ने दिये, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का हवाला देते हुए चली खबरों के मुताबिक उनकी संख्या 7 लाख 82 हजार हैं। यही सब तरफ नेशनल न्यूज चला।
गौरतलब है कि सन् 2018 में भाजपा सरकार के दौरान, योजना के नये नामकरण के बाद के तीन वर्षों के दौरान 3 लाख 52 हजार 106 मकान ही बन पाये थे, जबकि इसी तीन साल की अवधि का लक्ष्य 6 लाख 88 हजार 235 मकानों का था। इसी वर्ष सन् 2018 की मई माह में इस आंकड़े को जारी कर केंद्र ने बताया था कि छत्तीसगढ़ प्रधानमंत्री आवास निर्माण में पूरे देश में अव्वल है। यानि अपना राज्य तब अव्वल आया जब औसत 1 लाख 20 हजार से कम आवास हर साल बनाये गये। अब 2021-22 के लिये 7.81 लाख 999 मकान का लक्ष्य सुनकर हैरानी हो सकती है। वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष के लिये लक्ष्य केवल 1.57 लाख मकानों का रखा गया था, जिसे केंद्र ने रद्द किया है। उल्लेखनीय है कि मैदानी इलाकों में 1.20 लाख और पहाड़ी इलाकों में 1.30 लाख रुपये एक आवास पर खर्च किया जाता है जिसकी 40 प्रतिशत राशि राज्य को अपने फंड से करनी है। राज्य सरकार ने कई कारणों से इस अंशदान को देने में असमर्थता जताई है।
बीपीएल परिवारों के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना एक बड़ा सहारा है। लाखों की संख्या में लोग अपने पक्के मकान इसीलिये बना पाये। योजना इंदिराजी के नाम पर थी तो राशि कुछ कम थी। पीएम आवास योजना से लोगों ने कुछ खुद के जोड़े हुए पैसे इसमें और लगाकर टाइल्स वाले कमरे और शॉवर वाले बाथरूम तक बनाये। ग्रामीण क्षेत्रों में कारीगरों और छोटी-छोटी बिल्डिंग मटेरियल की दुकान चलाने वालों को भी फायदा मिलता रहा।
पर, अब राज्य में यह योजना ठप पड़ी है। पिछले दो साल से योजना की गति धीमी होने की चर्चा थी लेकिन अब इस पर विवाद इसलिये बढ़ा क्योंकि इस साल का आवंटन केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि नये-नये नियम लादकर योजना को जटिल बना दिया गया। आपत्ति सीएम की ओर से आई है कि जब योजना का नाम बदला गया है तो पूरी राशि केंद्र ही दे। सेंट्रल एक्साइज और कोयले की पेनाल्टी की राशि केंद्र ने रोक रखी है। कांग्रेस का कहना है कि गरीबों को उनकी पुरानी जगह से हटाना होगा, साथ ही रेरा का पंजीयन भी जरूरी किया गया है, जबकि मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में इन शर्तों के बिना भी राशि जारी हो रही है।
डॉ. रमन सिंह और दूसरे भाजपा नेताओं ने इसे राज्य सरकार की विफलता बताया है। योजना को चाहे जिस कारण से भी स्थगित करना पड़ा हो, आवासहीनों और कच्चे मकानों में रहने वालों को निराशा हो रही है। इसका असर चुनावों पर भी पड़ सकता है। राज्य में सरकार कांग्रेस की है, योजना केंद्र के नाम से चल रही है। किस पर असर होगा, टटोलना पड़ेगा।
धान खरीदी के लिये जन सुनवाई!
उद्योग स्थापित करने के लिये किस तरह से अधिकारी किस तरह साठगांठ कर ग्रामीणों को अंधेरे में रखकर पैतरेबाजी करते हैं, यह मुलमुला (जांजगीर) में डोलोमाइट खदान के लिये रखी गई पर्यावरणीय जन सुनवाई से सामने आया। जन सुनवाई जिस जगह पर रखी गई वहीं पर धान खऱीदी केंद्र है। मुनादी की शर्त पूरी करनी थी, सो वहां अफसरों ने कोटवारों से कहा कि धान खरीदी एक दिसंबर से शुरू हो रही है, किसी को आपत्ति है तो आकर बता दे। किसानों को भला धान खरीदी शुरू होने में क्या दिक्कत हो सकती है। वे तो इसका इंतजार ही कर रहे हैं। इसलिये लोग किसी तरह की आपत्ति करने पहुंचे नहीं। अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि खदान के नाम पर जनसुनवाई होने वाली है। भीड़ नहीं पहुंची। अधिकारियों ने जनसुनवाई के लिये निर्धारित समय तक वहां बैठने की औपचारिकता पूरी की और लौट गये। दो चार लोगों को बैनर लगा देखकर पता चला कि सुनवाई किस बात की हो रही है तो उन्होंने अपनी आपत्ति जरूर दर्ज कराई। अधिकारियों ने सफाई दी कि अखबारों में तो विज्ञापन छपवाया गया था, लोग नहीं आये तो क्या करें।
शत-प्रतिशत कोविड का दूसरा डोज
प्रदेश में कोरोना से बचाव के लिये हर दिन लगभग एक लाख टीके लगाये जा रहे हैं। रायगढ़, महासमुंद जैसे जिलों में पहला डोज शत-प्रतिशत लगाया जा चुका है, पर दूसरे डोज की धीमी गति को लेकर चिंता है। ऐसे में खबर है कि सरायपाली ब्लॉक में शत-प्रतिशत दूसरी डोज लगाई जा चुकी है। यह लक्ष्य 26 नवंबर को हासिल किया गया। ठीक एक माह पहले 26 अक्टूबर को सरायपाली कस्बे में दूसरे डोज का शत-प्रतिशत लक्ष्य पूरा किया गया। सरायपाली ओडिशा से नजदीक है। वहां कल ही एक साथ 25 स्कूली बच्चों को कोरोना से संक्रमित पाया गया। देश के कई राज्यों में एक बार फिर संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। तब दूसरी डोज में गति लाने की जरूरत सभी महसूस कर रहे हैं।
एक तीर से दो निशाना
नगरीय निकाय चुनाव में एक बार फिर सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल आमने-सामने हैं। सीएम के विधानसभा क्षेत्र पाटन के भिलाई-चरौदा निगम में भी चुनाव हो रहे हैं। और यहां भाजपा ने अपने प्रत्याशियों को जिताने का जिम्मा बृजमोहन अग्रवाल पर छोड़ दिया है। बृजमोहन को भिलाई-चरौदा का प्रभारी बनाया गया है।
रमन सरकार में भिलाई-चरौदा निगम अस्तित्व में आया था। तब पार्टी ने वहां चुनाव में सरोज पाण्डेय, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, विजय बघेल जैसे बड़े नेताओं के बजाए बृजमोहन अग्रवाल को चुनाव प्रभारी बनाया था। उस समय भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। बृजमोहन के बेहतर चुनाव प्रबंधन के चलते विपरीत माहौल में भाजपा ने भिलाई-चरौदा में फतह हासिल की। मगर इस बार हालात बदल गए हैं। भूपेश बघेल सीएम हैं, और भाजपा विपक्ष में हैं।
भाजपा के चुनाव प्रभारियों की नियुक्तियों को कुछ लोग पार्टी में अंदरूनी खींचतान से जोडक़र भी देख रहे हैं। पार्टी के बृजमोहन विरोधी खेमा मानता है कि बृजमोहन के सीएम भूपेश बघेल से बेहतर तालमेल है। ऐसे में संगठन के हावी खेमे ने बृजमोहन को बीरगांव के बजाए भिलाई-चरौदा में उलझाकर एक तीर से दो निशाना साधा है। चाहे कुछ भी हो, बृजमोहन के भिलाई-चरौदा की कमान संभालने से वहां का चुनाव दिलचस्प हो गया है।
बारदानों की जमाखोरी...
धान खरीदी के लिए इस बार फिर बारदानों का संकट सामने आ गया है। सरकार ने किसानों से उनका पुराना बारदाना पिछली बार से 3 रुपये अधिक में खरीदने का निर्णय लिया है। इस बार 15 रुपये की जगह 18 रुपये मिलेंगे। पर बाजार के हाल कुछ अलग है। जगह-जगह से खबर आ रही है की कुछ चतुर व्यापारियों ने पहले से बारदाने खरीद कर अपने पास जमा कर लिए हैं और इसे किसानों को 30-35 और 40 रुपये में बेच रहे हैं। सरकार ने ऐसी राशन दुकानों को निलंबित करने का निर्णय लिया है जिन्होंने अपने खाली बारदाने जमा नहीं किये, लेकिन उन व्यापारियों का क्या, जिन्होंने बोरों की जमाखोरी कर ली है। अभी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। किसानों को धान बेचना है इसलिए मजबूरी में उन्हें यह नुकसान भी झेलना ही है।
सीएम-पीएम मुलाकात की यादें
छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल पूरे मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करने की तैयारी में है। राज्य के मुख्य सचिव ने पीएमओ से समय के लिए पत्राचार भी किया है। मुख्यमंत्री बघेल उसना चावल और राइस मिलर्स की समस्याओं से प्रधानमंत्री को अवगत कराना चाहते हैं। हालांकि राज्य और केन्द्र सरकार के मुखिया के बीच कामकाज के सिलसिले में मेल-मुलाकात होती रहती है, लेकिन इस मुलाकात को लेकर सियासत गर्म है और इसे राज्य तथा केन्द्र सरकार के बीच टकराव से जोडक़र देखा जा रहा है। इसके पहले छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व अजीत जोगी और तब के प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी बाजपेयी के बीच मुलाकात को लेकर भी खूब सियासत हुई थी। स्व जोगी भी पूरे लाव-लश्कर के साथ दिल्ली गए थे। बाद में जोगी इस मुलाकात के किस्से भी सुनाय़ा करते थे। वे बताते थे कि दिल्ली पहुंचने पर स्व वाजपेयी ने समोसा-जलेबी खिलाकर सब का स्वागत किया था और काफी सौहार्दपूर्ण माहौल में मामले का पटाक्षेप हो गया था। यह मामला इसलिए भी य़ाद किया जा रहा है कि राज्य के मुखिया भी प्रधानमंत्री से मुलाकात करने जा रहे हैं। ऐसे में लोगों की दिलचस्पी यह है कि जोगी-वाजपेयी की तरह इस बार भी समोसा-जलेबी का स्वाद चखने मिलेगा या फिर कुछ और। क्योंकि राज्य और केन्द्र के मौजूदा मुखियाओं के तेवर बिल्कुल अलग हैं। सियासी बयानबाजियों में तो दोनों के बीच तल्खियां किसी से छिपी नहीं है।
किसान नेताओं का फार्मूला
छत्तीसगढ़ में किसान का मसला हमेशा सुर्खियों में रहता है। दिसंबर से धान खरीदी शुरू होने वाली है। स्वाभाविक है कि बारदाना, सोसायटियों में अव्यवस्था सहित तमाम मुद्दे छाए रहेंगे। पक्ष-विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप के लिए यह हॉट टॉपिक रहने वाला है। खास बात यह है कि आरोप-प्रत्यारोप लगाने वाले अधिकांश सियासतदार लाभार्थी भी होते हैं। हालांकि उनके लाभार्थी होने से कोई परहेज नहीं है। दिक्कत तब होती है, जब विपक्षी दल के नेता अव्यवस्था के खिलाफ कोई मुद्दा उठाते हैं, वैसे ही सत्ता पक्ष की ओर से धान खरीदी बिक्री का बही खाता बाहर आ जाता है। ऐसे में सियासी कारणों से ही सही मुद्दा उठाने वाले शांत हो जाते हैं। वैसे भी सिय़ासत के साथ खेती-किसानी करना भी मजबूरी है। आखिर आईटी रिटर्न में आय का स्त्रोत भी तो दिखाना पड़ता है। उधर, खेती-किसानी से आमदनी कमाने वाले विपक्ष के नेताओं ने सत्तापक्ष के बही-खाता उजागर करने के हथियार को भोथरा करने का तरीका निकाल लिया है। ऐसे नेता अब सामान्य धान के बजाए सुगंधित और महंगे धान की खेती कर रहे हैं, जिसे वे खुले बाजार में अच्छे दाम में बेच भी सकते हैं और सरकार को खेती की आमदनी की जानकारी भी नहीं मिलेगी। जिससे वे सरकार पर हमलावर भी हो सकते हैं।
प्लेटफॉर्म टिकट फिर दस रुपये..
प्लेटफॉर्म टिकट को 50 रुपये करने का, कोरोना काल में ट्रेन किराये में बढ़ोतरी का फायदा जनता को समझा नहीं सके। अब चुनावों के लिये उलटी गिनती चल रही है। इसलिये ट्रेन का किराया भी घटाकर पहले जैसा कर दिया गया, प्लेटफॉर्म टिकट का दाम भी। इस बीच जो अतिरिक्त वसूली की गई, रेलवे ने यात्री सुविधायें बढ़ाने के लिये कितना खर्च किया, कुछ पता नहीं चला। तपस्या अधूरी रह गई।
कोरिया बचाओ मंच का आंदोलन
जिला पुनर्गठन के बाद कोरिया जिले में विरोध का सिलसिला टूट नहीं रहा है। अब सभी प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस, भाजपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने जिले के दोनों नगरीय निकाय क्षेत्र में होने वाले स्थानीय चुनावों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। बहिष्कार के इस फैसले में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी साथ देने का मन बनाया है। नागरिकों ने कोरिया बचाओ मंच का गठन भी कर लिया है। यह विरोध कितना कारगर होगा, सरकार तक इनकी बात कैसे पहुंचेगी, यह आज से शुरू हो रहे नामांकन पत्रों की बिक्री से मालूम हो पाएगा। वैसे निर्दलीय शायद ही मानें। लेकिन शासन को चाहिए कि वह इस विरोध को नजरअंदाज ना करे।
कौन-कौन हैं पैराशूट नेता ?
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला था लेकिन बिलासपुर में स्थिति संतोषजनक नहीं थी। जिले की केवल दो सीटें तखतपुर और बिलासपुर हाथ आई। हाल में जन-जागरण अभियान में यहां पहुंचे प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने यह कहकर चौंका दिया कि पैराशूट उम्मीदवारों के चलते कांग्रेस को जिले में नुकसान उठाना पड़ा है। अब वह गलती नहीं दोहराई जायेगी। क्रीज वाले नेता नहीं, जमीन से जुड़े लोगों को टिकट दी जायेगी। उन्होंने इशारे में बिल्हा का नाम भी लिया जहां से नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक विधायक चुने गये हैं। यहां कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रहे राजेन्द्र शुक्ला को उन्होंने 25 हजार के बड़े अंतर से हराया था। बेलतरा के कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र साहू तो तीसरे स्थान पर रह गये थे। बिल्हा और बेलतरा में जोगी कांग्रेस, कांग्रेस की पराजय का एक बड़ा कारण रहा। अब दोनों ही जगह के प्रत्याशी सियाराम कौशिक और अनिल टाह, जोगी कांग्रेस छोडक़र, कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। बिल्हा और बेलतरा में कांग्रेस के दोनों चेहरे नये और युवा थे। मरकाम ने पैराशूट प्रत्याशी केवल बिलासपुर के उम्मीदवारों को कहा है या प्रदेश के दूसरी हारी हुई सीटों के लिये भी यह अभी साफ नहीं हुआ है।
टीकाकरण की रफ्तार और नये केस
गुरुवार को कोरोना से सुरक्षा के लिये 1.10 लाख वैक्सीन लगाई गई। पिछले 8-10 दिनों से रोजाना एक लाख के आसपास डोज लग रही है। पहला डोज लगवाने वालों की संख्या अब जल्द ही 90 फीसदी तक हो जायेगी। केंद्र ने नवंबर माह तक शत-प्रतिशत पहला डोज लगाने का लक्ष्य दिया है। इसके लिये घर- घर दस्तक भी दी जा रही है। अब जब माह खत्म होने में सिर्फ चार दिन शेष हैं 100 प्रतिशत पहला डोज हासिल होगा या नहीं देखना होगा। ऐसे लोग जिन्हें दोनों डोज लग चुके हैं उनकी संख्या अभी 47 प्रतिशत ही है। यह भी एक बड़ा लक्ष्य होगा। गुरुवार की रिपोर्ट देखें तो कोरोना के नये मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। रायगढ़ से 11 नये मरीजों का पता चला है।
मुंबई हमले के शहीदों के लिए
26 नवंबर 2008 को मुम्बई में हुए आतंकी हमले से जुड़ी अनेक तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैर रही हैं। इनमें से एक तस्वीर यह है जिसे यूपी के एक आईपीएस ने ट्विटर एकाउंट पर शेयर किया है।
कोरोना से छोडऩी पड़ी ट्रेनिंग
छत्तीसगढ़ के वन अफसरों की देश की राजधानी नई दिल्ली में विभागीय ट्रेनिंग से दीगर राज्य से आए एक अफसर के कोरोना संक्रमित होने पर ट्रेनिंग छोडकऱ वापस लौटना पड़ा। छत्तीसगढ़ से करीब 9 वन अधिकारी दिल्ली और लखनऊ में माहभर की ट्रेनिंग में शामिल होने गए थे। 8 नवंबर से शुरू हुई इस ट्रेनिंग में समूचे देश से 43 डीएफओ स्तर के अफसर हिस्सा बने थे। तकरीबन पखवाड़े भर ट्रेनिंग के बीच एक अफसर बीमार हो गए। जांच में उनकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई। साथी अफसर की सेहत खराब होने पर बाकी की जांच की गई। इस रिपोर्ट में तकरीबन 9 अफसर कोरोना संक्रमित हो गए। इसके बाद ट्रेनिंग को रोकना पड़ा और अब अफसर वापस अपने मुख्यालय लौटकर ऑनलाइन ट्रेनिंग में हिस्सा ले रहे हैं। विभागीय ट्रेनिंग में गए अफसरों के प्रभार अब भी दूसरे वन अधिकारी सम्हाल रहे हैं। बताते हैं कि यह ट्रेनिंग विभागीय प्रमोशन और क्रमोन्नति के लिए जरूरी है। छत्तीसगढ़ के अफसर इसका लाभ मिलने और नई वन सुरक्षा और संपदा की जानकारी हासिल करने के लिए ट्रेनिंग में पहुंचे थे। अब प्रत्यक्ष के बजाय ऑनलाइन ट्रेनिंग करने के लिए कोरोना ने मजबूर कर दिया।
सफर ही जारी रहता है
छत्तीसगढ़ में बरस दर बरस लोग नेताओं और अफसरों के खिलाफ अदालती मामले देख-देख कर थक गए हैं। पिछली रमन सिंह सरकार के समय से कई नेताओं, और अफसरों के खिलाफ मामले दायर किए गए, और मौजूदा भूपेश बघेल सरकार के समय भी पिछली सरकार के सबसे ताकतवर कुछ अफसरों के खिलाफ केस दर्ज हुए। लेकिन इन सबका हाल देखें तो हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इतने बड़े-बड़े वकील इतनी संख्या में खड़े रहते हैं की बस. और बिना किसी फैसले के अदालतों में सुनवाई ही आगे बढ़ती रहती है, उसे देखकर लोगों को लगता है कि क्या ताकतवर लोगों के मामलों में कभी इंसाफ की बारी भी आती है या फिर सुनवाई ही चलती रहती है। कुल मिलाकर सरकार की तरफ से दर्ज किए गए केस, या सरकार के खिलाफ दर्ज किए गए केस चलते ही रहते हैं, चलते ही रहते हैं, उन्हें शायद मंजिल कभी मिलती नहीं, सफर ही जारी रहता है।
फटकार कहाँ तक जाएगी?
पदयात्रा पर चर्चा के लिए शहर कांग्रेस की बुधवार को हुई बैठक में जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे ने एक महिला नेत्री को फटकार लगाई, तो हर कोई सन्न रह गया। महिला नेत्री फूट फूटकर रो पड़ी। प्रतिमा चंद्राकर, और अमरजीत चावला ने किसी तरह महिला नेत्री को शांत कराया, और शहर जिलाध्यक्ष गिरीश दुबे को बाहर जाने कहा।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि गिरीश दुबे, सभापति प्रमोद दुबे के करीबी हैं। और उन्हें जिलाध्यक्ष बनवाने में प्रमोद दुबे की भूमिका रही है। सुनते हैं कि महिला नेत्री भी पहले प्रमोद दुबे खेमे से जुड़ी हुई थीं। बाद में वो संसदीय सचिव विकास उपाध्याय के खेमे में आ गई।
उन्हें गिरीश के न चाहते हुए भी पदयात्रा के एक क्षेत्र का प्रभारी बना दिया गया। फिर क्या था महिला नेत्री पार्टी नेताओं के बीच आपसी खींचतान की शिकार हो गई, और बैठक में फटकार सुननी पड़ी। कुछ लोग मानते हैं कि ये मामला आने वाले दिनों में तूल पकड़ेगा। क्योंकि महिला नेत्री के साथ अपमानजनक व्यवहार के खिलाफ विकास उपाध्याय का खेमा गिरीश के खिलाफ मोर्चा खोल सकता है। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
ऐसे निपटा निकाय चुनाव विवाद
नगरीय निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है। विपक्षी दल भाजपा ने ऐसे अफसरों पर निगरानी रखना शुरू कर दिया है, जो कि कांग्रेस के नेताओं के करीबी माने जाते हैं। इन अफसरों के खिलाफ शिकायत की तैयारी चल रही है। चुनाव में तो अफसरों के खिलाफ शिकवा-शिकायतें होती रहती हैं। कई बार ऐसे मौके भी आते हैं, जब आयोग के अफसर पशोपेश में पड़ जाते हैं।
ऐसा ही एक मामला वर्ष-2009 में खरसिया नगर पालिका चुनाव में भी आया था। तब खरसिया के स्थानीय विधायक, और दबंग कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल ने साफ शब्दों में कह दिया था कि खरसिया के रिटर्निंग ऑफिसर तहसीलदार को हटाया जाए, अन्यथा कांग्रेस चुनाव का बहिष्कार कर देगी। वहां के तहसीलदार को रमन सरकार के मंत्री अमर अग्रवाल का करीबी माना जाता था। और उनकी वजह से चुनाव में धांधली की आशंका जताई जा रही थी। मगर अमर अग्रवाल ने तहसीलदार को हटाने के पक्ष में नहीं थे, और उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।
नंदकुमार पटेल कलेक्टर से मिलने के बाद तत्कालीन निर्वाचन आयुक्त शिवराज सिंह से मिले। और रिटर्निंग ऑफिसर को लेकर अपनी शिकायतें बताई। शिवराज सिंह ने पटेल की बातें ध्यान से सुनी, और उनकी कुछ आपत्तियों को जायज माना। मगर अमर अग्रवाल को भी नाराज नहीं करना चाहते थे। लिहाजा, उन्होंने बीच का रास्ता निकाला, और आदेश दिया कि 20 हजार से अधिक आबादी वाले नगर पालिकाओं में डिप्टी कलेक्टर रिटर्निंग ऑफिसर होंगे। इसके बाद न सिर्फ खरसिया बल्कि चार और नगर पालिकाओं के रिटर्निंग ऑफिसर बदल गए। और दोनों ही नेता संतुष्ट हो गए। चुनाव बिना किसी विवाद के निपट गया।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार नगरीय निकाय चुनाव हुए तो आयुक्त डॉ. सुशील त्रिवेदी, तत्कालीन सीएस एके विजयवर्गीय के साथ हेलीकॉप्टर से पूरे प्रदेश का दौरा करते थे। उनके तामझाम, और दिशा निर्देशों से कलेक्टर हलाकान रहते थे। डॉ. त्रिवेदी के बाद पूर्व सीएस शिवराज सिंह निर्वाचन आयुक्त बने। पूर्व सीएस शिवराज सिंह तो चुनाव से पहले सिर्फ एक बार कलेक्टर-एसपी की बैठक लेने कक्ष से बाहर निकले, और इसके बाद पूरा चुनाव कमरे में ही निपटा दिया। वो हमेशा अफसरों के मार्गदर्शन के लिए उपलब्ध रहते थे, और शिकायतकर्ताओं को भी पूरा मान देते थे। यही वजह है कि उनके कार्यकाल में प्रदेश में निकाय, और पंचायत चुनाव में कही भी विवाद की स्थिति नहीं बनी। शिवराज सिंह ने चुनाव निपटाने के तौर तरीकों से बाद के चुनाव आयुक्तों को भी सीख मिली।
बैठक में शामिल होना मजबूरी
सूरजपुर जिला भाजपा संगठन के नेताओं को शिकायत रही है कि जिले की बैठक में आने से केन्द्रीय राज्यमंत्री, और सांसद रेणुका सिंह परहेज करती हैं। रेणुका के बैठक में नहीं आने की एक प्रमुख वजह जिलाध्यक्ष बाबूलाल गोयल हैं, जो कि पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के करीबी माने जाते हैं। रेणुका के विरोध के बाद भी बाबूलाल गोयल जिलाध्यक्ष बनने में कामयाब रहे।
बाबूलाल के अध्यक्ष बनने के बाद से रेणुका ने एक तरह से जिला पदाधिकारियों की बैठक में जाना ही छोड़ दिया था। रेणुका सिंह केन्द्र में मंत्री हैं, तो पदाधिकारी चाहते हैं कि वो बैठक में जरूर आए। पार्टी की बैठक हमेशा अग्रसेन भवन में होती रही है। लेकिन इस बार रेणुका कोई बहाना न बना दे, इसलिए बैठक उनके प्रेम नगर स्थित बंगले में ही रख दी गई है। यह बैठक 27 तारीख को होगी। अब चूंकि घर में बैठक हो रही है इसलिए रेणुका शामिल होने से मना नहीं कर सकती हैं।
दोने का महुआ...
ननकी राम कंवर, नंदकुमार साय और स्व. अजीत जोगी जैसे नेता शराब को आदिवासियों की बर्बादी का बड़ा कारण मानते हैं। जोगी तो कहते थे कि उन्हें घर में जो पांच बोतल महुआ या चावल की शराब बनाने की छूट मिली है वह भी खत्म कर देनी चाहिये। इस पर कोशिश हुई पर जैसे ही कुछ समय के लिये इसे बंद किया गया, अंग्रेजी बेचने वाले कोचिये हावी हो गये। शराब रीति-रिवाज और व्यवहार में बना हुआ है। बस्तर, जशपुर के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में ही नहीं बल्कि शहरी समाज में भी। यदि सरकार शराबबंदी के अपने चुनावी वादे को लागू कर देगी तो होम मेड शराब की बिक्री बढ़ जायेगी। इस पर बैन लगाने का विचार वोटों के नजरिये से भी जोखिम भरा है। बिहार में नीतिश कुमार सरकार ने शराबबंदी लागू की है पर वह कामयाब नहीं हुई है। आज ही वहां के एक भाजपा सांसद का बयान आया है कि बैन हटना चाहिये। इससे शराब की अवैध खपत बढ़ी है। जिन्हे पीना है वे पुलिस की मदद ले रहे हैं। राबड़ी देवी ने कल एक वीडियो शेयर किया था जिसमें फ्लाइट से दिल्ली से पटना पहुंची बरात के कमरों को पुलिस छान रही है। शराब बिक्री बंद करना, नहीं करना, क्या करना है- सरकार समझे। बस, हम एक तस्वीर शेयर कर रहे हैं, बस्तर की। अतिथि को दोने में ऐसे भरकर महुआ पिलाई जाती है।
खारून नदी का झाग
खारून नदी को राजधानी रायपुर की जीवनरेखा कहते हैं। इस नदी में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट शुरू करने की नगर निगम की योजना ठंडे बस्ते में है। कुछ दिन पहले ही इस पर ख़बर चली थी। हर महीने नगर निगम के प्रभारी पर 10 लाख रुपये जुर्माना रोपित करने का आदेश एनजीटी ने पर्यावरण मंडल को दे रखा है। पिछले कुछ दिनों से खारून नदी का पानी झाग से भरा हुआ और मटमैला है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सीएम ने भी यहां स्नान किया। पर्यावरण विभाग के अधिकारी बचाव में यह कह रहे हैं कि ठंड के दिनों में ऐसा होता है। पर वे यह भी मानते हैं कि पानी प्रदूषित है। इसी बात पर तसल्ली कर ली जाये कि खारून में कम से कम पानी तो है, नदी सूखी नहीं है।
अनुशासित भाजपायी...
किरंदुल से विशाखापट्टनम के बीच चलने वाली ट्रेन में एचएलबी कोच की सुविधा शुरू कर दी गई है। रेलवे की की कोई सुविधा यानि केंद्र की भाजपा सरकार की उपलब्धि। लिहाजा बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने एलएचबी कोच से पहली बार सफर करने वाले यात्रियों का स्वागत किया। पूर्व सांसद दिनेश कश्यप, कई पूर्व विधायक और भाजपा के अनेक नेता इस मौके पर मौजूद थे। आगे की खबर यह है कि स्टेशन में घुसने वाले सभी लोगों ने प्लेटफॉर्म टिकट कटाई। प्रेस नोट के साथ टिकट का शॉट भी शेयर किया।
भाजपा नेताओं का तिरूपति दर्शन
भाजपा नेता प्रीतेश गांधी की संगठन के कर्ता-धर्ता पवन साय के साथ तिरूपति मंदिर के दर्शन करते तस्वीर वायरल हुई, तो धमतरी के भाजपा नेताओं में हलचल मच गई। सुनते हैं कि प्रीतेश धमतरी जिले की कोर कमेटी में आना चाहते हैं लेकिन क्राइटेरिया में फिट नहीं होने के कारण उन्हें नहीं रखा गया।
प्रीतेश, केन्द्र और प्रदेश संगठन के बड़े नेताओं से अपने रिश्तों का हवाला देकर दबाव बनाने की कोशिश भी की लेकिन धमतरी जिले के पदाधिकारी टस से मस नहीं हुए। चर्चा है कि प्रीतेश धमतरी सीट से विधानसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसके लिए वो पार्टी के भीतर जोड़-तोड़ में लगे हैं।
पीएम नरेन्द्र मोदी, जब छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी थे तब प्रीतेश ने मोदी से जान पहचान बना ली थी। इसका फायदा उन्हें मिला और जब भी मोदी छत्तीसगढ़ दौरे पर आए हैं प्रीतेश का नाम स्वागत करने वालों की सूची में जरूर रहता था। इस वजह से प्रदेश के बड़े नेता उन्हें काफी भाव देते हैं। अब पवन साय को लेकर दक्षिण भारत यात्रा में निकले हैं तो धमतरी के भाजपा नेताओं का दबाव में आना स्वाभाविक है।
हाईकोर्ट जाएगी सरकार?
फोन टैपिंग के प्रकरण में निलंबित आईपीएस रजनेश सिंह को कैट से राहत तो मिल गई है। कैट ने उनकी बहाली के आदेश दिए हैं लेकिन इस बात की संभावना कम है कि सरकार उन्हें बहाल कर दे। चर्चा है कि कैट के बहाली के आदेश के खिलाफ सरकार हाईकोर्ट का रूख कर सकती है। हालांकि इस फैसला होना बाकी है। ईओडब्ल्यू के तत्कालीन डीजी मुकेश गुप्ता के साथ ही रजनेश सिंह को भी निलंबित किया गया था। दोनों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज है।
रजनेश सिंह से परे पूर्व प्रमुख सचिव बाबूलाल अग्रवाल को भी कैट ने दोबारा सेवा में रखे जाने का आदेश दिया था। बाबूलाल अग्रवाल को जबरिया रिटायर कर दिया गया था। मगर बाबूलाल अग्रवाल के मामले में केेंद्र सरकार ही कैट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट चली गई। इसके बाद तो उनकी बहाली रूक गई। इसी तरह आईपीएस के.सी. अग्रवाल को भी जबरिया रिटायर किया गया था। उनके मामले में भी कैट ने बहाली के आदेश दिए थे मगर के.सी. अग्रवाल के मामले में राज्य सरकार उदार रही, और बहाल कर दिया। अब देखना है कि रजनेश के मामले में सरकार क्या निर्णय लेती है।
तब गंवाया, अब पाया
छत्तीसगढ़ में मौजूदा भूपेश सरकार ने जिस तरीके से चिटफंड कंपनियों की संपत्ति जप्त करके उसमें पूंजी लगाने वाले लोगों को उसका कुछ हिस्सा वापस देना शुरू किया है, उससे राज्य के लाखों ठगे गए लोगों के बीच एक बड़ा भरोसा पैदा हो रहा है। यह जरूरी नहीं है कि पूरी की पूरी रकम वापस मिल जाए, लेकिन मिलना शुरू हुआ है यह भरोसा भी छोटा नहीं रहता है। एक खूबी की बात यह है कि चिटफंड कंपनियों का पूरा कारोबार 15 बरस की रमन सरकार के दौरान फैला था और इस सरकार के दौरान वह रकम वापस वसूल करके लोगों को देने का काम चल रहा है। इन दोनों बातों के फर्क को देखें तो लगता है कि किसान कर्ज माफी और धान खरीदी जैसे बड़े फैसलों की तरह चिटफंड की ठगी की रकम का कुछ हिस्सा लोगों को मिलना भी एक बड़ा फैसला साबित हो सकता है। जिन लोगों को रकम अगले विधानसभा चुनाव तक नहीं मिल पाएगी उन्हें उम्मीद तो मिलेगी ही। ([email protected])