राजपथ - जनपथ
एयरपोर्ट पर तस्वीर और राजनीति
माना एयरपोर्ट के वीआईपी लाउंज के एक कमरे की मरम्मत, और साज सज्जा के बाद दोबारा खोला गया, तो काफी कुछ बदल गया। हुआ यूं कि दो महीना पहले मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान यहां आए थे। और वापसी में एयरपोर्ट के इसी कमरे में पार्टी के लोगों के साथ बैठे थे। उनकी नजर दीवार पर लगी तस्वीरों की तरफ गई। एक तरफ राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके की तस्वीर थी, तो दूसरी तरफ सीएम भूपेश बघेल की तस्वीर लगी थी।
शिवराज सिंह यह कह गए कि वो देश के अन्य एयरपोर्ट में गए हैं, लेकिन वहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर जरूर होती है। मगर यहां नहीं लगी है। शिवराज सिंह की बात एयरपोर्ट के अफसरों तक पहुंची। एक-दो दिन बाद मरम्मत, और साज सज्जा के नाम पर कमरे को बंद कर दिया गया। कुछ दिन पहले ही फिर से वीआईपी अतिथियों के बैठने के लिए कमरा खोला गया, तो कुछ बदलाव नजर आया।
कमरे में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तस्वीर लग गई है। इन दोनों के अलावा सीएम भूपेश बघेल की भी तस्वीर लगी है, लेकिन राज्यपाल की तस्वीर गायब है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि एयरपोर्ट अफसरों और कांग्रेसियों के बीच अंदर प्रवेश को लेकर तनातनी चलती रहती है। ऐसे में एयरपोर्ट अफसर, सीएम के तस्वीर को हटाकर कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहते थे। लिहाजा, सीएम की तस्वीर को यथावत रहने दिया गया।
इस प्रदेश में बस जनता ही बेईमान है
पिछली सरकार ने जिन दो अफसरों एसएसडी बडगैय्या, और राजेश चंदेले को जबरिया रिटायरमेंट देने का फैसला किया था, वे अब प्रमोट होने वाले हैं। हुआ यूं कि केन्द्र सरकार ने दोनों को रिटायरमेंट देने के प्रस्ताव के कुछ बिन्दुओं पर आपत्ति की थी। बाद में जिन प्रकरणों की वजह से दोनों को रिटायरमेंट देने की अनुशंसा की गई थी वो निराकृत हो चुके हैं।
बडगैय्या के खिलाफ चारा घोटाले, और आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण था। चारा घोटाले में क्लीन चिट पहले ही मिल चुकी है, और अब आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण को ईओडब्ल्यू ने खात्मा के लिए भेज दिया है। दूसरी तरफ, राजेश चंदेले के खिलाफ डीएफओ पद पर रहते सरकारी बंगले में सरकारी खर्च पर स्वीमिंग पूल बनवाने का प्रकरण था।
विभाग की जांच समिति ने यह पाया कि डीएफओ बंगले में स्वीमिंग पूल जरूर बना है, लेकिन इसके लिए विभागीय राशि खर्च नहीं की गई। स्वीमिंग पूल के लिए डीएमएफ से राशि खर्च की गई थी। डीएमएफ की राशि स्वीकृति कलेक्टर देते हैं। इसमें चंदेले के खिलाफ कोई प्रकरण नहीं बनता है। सीएस की कमेटी ने अनुशंसा कर दी है कि जिन प्रकरणों की वजह से दोनों के रिटायरमेंट की अनुशंसा की गई थी वह खत्म हो चुका है। ऐसे में उन्हें पदोन्नति दी जा सकती है। अगले कुछ दिनों में बडगैय्या एपीसीसीएफ, और चंदेले सीसीएफ के पद पर प्रमोट हो सकते हैं।
मीराबाई चानू की संवेदनशीलता...
ओलम्पिक 2021 में भारत के लिये पहला मेडल जीतने वाली असम की मीराबाई चानू अपने गांव जब लौटीं तो सबसे पहले वह ट्रक ड्राइवरों का आभार जताने पहुंची। दरअसल, ये रेत परिवहन करने वाले ट्रक ड्राइवर मीराबाई को लिफ्ट देते थे। उससे कोई किराया नहीं लिया जाता था, ताकि वह 25 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग लेने की जगह पर पहुंच सके।
मीराबाई को हजारों लोगों ने सोशल मीडिया पर बधाई दी। ट्रक ड्राइवर्स के योगदान की भी सराहना की। बहुत लोगों की पोस्ट पर मीराबाई ने जवाब भी दिया है। इनमें एक है असम से ही आने वाले आईएएस सोनमणि बोरा। मीराबाई ने जवाब में उन्हें कहा है कि इस मुकाम तक पहुंचने में जिन लोगों ने किसी भी स्तर पर मेरा सहयोग किया है, उन सबको मैं सपोर्ट करती रहूंगी।
लेमरू में देरी के लिये कौन जिम्मेदार
हाल के दिनों में हाथियों ने सरगुजा संभाग में काफी उत्पात मचाया है और यह अब भी जारी है। मैनपाट में दो लोगों को हाथियों के झुंड ने पटककर मार डाला था। बीते पांच महीने के भीतर 9 लोगों की जान हाथियों ने ली है। भाजपा ने सरगुजा के नेताओं की एक टीम बनाकर प्रभावित ग्रामीणों से मिलकर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा शासनकाल में लेमरू प्रोजेक्ट का काम गति पकड़ रहा था लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उसकी गति सियासी दांवपेंच के चलते थम गई है। इसमें लेमरू पोजेक्ट को जल्दी शुरू करने की मांग की गई है। वैसे तथ्य यह भी है कि मैनपाट के इलाके के बादलखोल हाथी रिजर्व का नोटिफिकेशन भी करीब 16 साल पहले हो चुका है। सीआईआई की चि_ी के बाद दूसरे हाथी रिजर्व लेमरू के लिये तो नोटिफिकेशन ही जारी नहीं हुआ। लेमरू के प्रस्तावित इलाके में पहले से ही कई कोयला खदानों को मंजूरी दी जा चुकी है। और खदानों के लिये आवेदन आये हुए हैं। मौजूदा सरकार इन्हें भी मंजूरी दे दी थी लेकिन उनकी पार्टी के विधायकों का ही विरोध सामने आ चुका है। एक दूसरे पर आरोप लगाये जाने से लोग उलझन में पड़ जाते हैं। यह समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर किसकी नीयत साफ है, किसकी नहीं।
आपकी अपेक्षा क्या है?
फर्जी चिटफंड कम्पनियों की धोखाधड़ी में अपना सब-कुछ गंवा चुके लोगों की उम्मीद अभी टूटी नहीं है, बल्कि जो अनुमान लगाया गया था उससे कहीं ज्यादा लोग उम्मीद लगाये हुए हैं। शासन ने आवेदन लेने की तारीख 1 से 6 अगस्त तक ही पहले तय की, लेकिन जब आवेदनों का अम्बार लगा और काउन्टर छोटे पडऩे लगे तो अंतिम तिथि अब 20 अगस्त कर दी गई है। कलेक्ट्रेट में सैकड़ों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल हो गया तो अब तहसील, उप-तहसीलों में आवेदन लेने की व्यवस्था की गई है। लूट भी आखिर बहुत बड़ी है। एक अनुमान के मुताबिक प्रदेशभर में 188 चिटफंड कम्पनियां गांव-गांव में करीब 1.5 लाख एजेंटों के जरिये 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक लूट चुकी हैं। पीडि़तों की संख्या 30 लाख से अधिक है। चिटफंड कम्पनियां करीब पांच साल से फरार हैं। अपने चुनावी वादे के मुताबिक कांग्रेस सरकार ने सरकार बनने के बाद एक बार पहले भी आवेदन लिया था। जिन लोगों ने पहले आवेदन दिया उन्हें दुबारा देने की जरूरत नहीं है, यह कहा गया है फिर भी कहीं पुराने आवेदन बाबुओँ से खो न गये हों, इसलिये लोग दुबारा आवेदन देने के लिये कतार में हैं। यहां तक तो ठीक है कि आवेदन के साथ पॉलिसी की फोटो कॉपी, कम्पनी और एजेंट का विवरण और अपनी पूरी जानकारी भरकर देना है पर इस आवेदन पत्र का आखिरी प्रश्न कठिन है, जिसमें पूछा गया है कि आपकी अपेक्षा क्या है? लूट, चोरी, डकैती के शिकार आदमी की अपेक्षा आखिर क्या हो सकती है? निवेश की राशि वापस मिलेगी ऐसा आश्वासन देकर तो आवेदन मांगे ही गये हैं, वही मिल जाये बड़ी बात है। ब्याज न सही मूलधन ही मिले। अब, यदि कोई इस कॉलम में लिखकर देता है कि हमें बर्बाद करने वालों को फांसी दो, चौराहे पर लटकाओ तो इस तरह की अपेक्षा को जानकर सरकार क्या कर लेगी?
क्या आप भी बैंक कर्मचारियों से ऐसे ही त्रस्त नहीं ?
किसी भी बैंक में ग्राहक के साथ बैंक के अधिकारी, कर्मचारियों को उचित व्यवहार करने की हिदायत दी जाती है। इसके लिए सभी बैंकों को स्पष्ट दिशा निर्देश होते हैं। पर जब बैंक कर्मचारी ठीक व्यवहार न करे तो? एक ग्राहक ने अपनी व्यथा इस प्रकार बताई है- वे पत्थलगांव में अम्बिकापुर रोड में बैंक ऑफ बड़ौदा पहुंचे। कर्मचारी समय पर नहीं पहुंचे। ग्राहक ने कहा कि समय पर आकर काम शुरू करें। कर्मचारी ने वजह बताई कि लिंक फेल है। ग्राहक प्रतीक्षा करते रह गये। बाद में कर्मचारी से उन्होंने फिर पूछा, क्या लिंक आ गया? कर्मचारी ने कोई जवाब नहीं दिया। कई बार पूछने पर जवाब नहीं मिला तो ग्राहक ने फिर पूछा- क्या बैंक में कोई जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी है जो बताये कि लिंक आया या नहीं? तब जाकर कर्मचारी ने बताया कि लिंक आ गया है, आपका काम करते हैं, थोड़ी देर बैठें। बैठने कहा गया तो उन्होंने हॉल में नजर दौड़ाई। बैंक में कुल जमा चार सीटर एक टूटी चेयर है, जिसमें पहले से महिलायें बैठी हुई थीं। महिलाओं के बगल में एक लाचार बुजुर्ग को तो जमीन पर ही बैठ जाना पड़ा। किसी कर्मचारी, अधिकारी ने उसे कुर्सी लाकर नहीं दी, न बैठने कहा। बैंक मैनेजर का चेम्बर हमेशा की तरह खाली मिला। कर्मचारियों से नंबर पूछा गया तो ना-नुकुर के बाद जो मोबाइल नंबर दिया गया वह बंद मिला। जब दूसरा नंबर मांगा गया तो कर्मचारी ने नहीं दिया, बल्कि कहा कि ब्रांच मैनेजर आयें तो बात कर लीजियेगा, आप तो अभी बैठिये। पर ग्राहक बैठे कहां, जमीन पर? या फिर खड़े-खड़े अपनी बारी की घंटों प्रतीक्षा करे। कोरोना संक्रमण का समय चल रहा है पर बैंक में सामाजिक दूरी का जरा भी पालन नहीं हो रहा है। उस पर ग्राहकों के साथ अधिकारी, कर्मचारी लापरवाही से पेश आ रहे हैं। आये दिन निजीकरण के विरोध में आवाज उठाने वाले, हड़ताल करने वाले बैंक कर्मचारियों के प्रति इस तरह से परेशान होने वाले ग्राहकों की कोई सहानुभूति रहेगी क्या? ऐसा रवैया लोगों को खुद ही निजी बैंकों की ओर जाने के लिये मजबूर करता है।
अमेजन, फ्लिप कार्ट पर वर्मी कम्पोस्ट
गौठानों में तैयार गोबर और केंचुए से बने खाद की बिक्री ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिये भी की जा रही है। इसका लाभ यह हुआ है कि यहां से मुम्बई, बेंगलुरु, रांची, कोलकाता, मध्यप्रदेश के कई शहरों सहित अन्य महानगरों में खाद की डिलिवरी की जा रही है। यह प्रयोग अभी राजनांदगांव जिले में हो रहा है। इसे सुनकर आश्चर्य हो सकता है कि यहां की स्व-सहायता समूहों ने अब तक 1.50 करोड़ रुपये की वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री कर ली है। अमेजन पर ही वे आर्गेनिक राखी भी बेच रही हैं जो विदेशी राखियों को टक्कर दे रही हैं। छत्तीसगढ़ में इस समय कई जगह रासायनिक खाद की कमी को लेकर आंदोलन हो रहे हैं। कांग्रेस केन्द्र सरकार पर तो भाजपास राज्य पर इसे लेकर आरोप जड़ रही है। आंदोलन के दौरान इस बात का विरोध भी किया जा रहा है कि सोसायटियों से रासायनिक खाद उठाने के दौरान उन पर वर्मी खाद खरीदने के लिये दबाव डाला जा रहा है। किसानों के विरोध की वजह यह है कि वर्मी खाद बीज बोने के वक्त खेतों में डालना होता है, अभी तो यूरिया या उसके विकल्प वाले खाद ही चाहिये। किसानों को दूसरे राज्यों से आ रही वर्मी कम्पोस्ट की मांग को सामने रखकर प्रेरित भी किया जा सकता है। गौठानों के अधिकारी इसे तब उपलब्ध करायें जब सीजन की शुरुआत में उन्हें इसकी जरूरत पड़ती है। दबावपूर्वक बेचने से किसानों को लग सकता है कि ये खाद किसी काम के नहीं।
मनचाहा लीजिये आरटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट
कुछ दिन से फिर कोरोना के मामले देश में बढ़े हैं। इसे देखते हुए हवाई यात्रा के लिये 72 घंटे पहले की कोविड निगेटिव टेस्ट रिपोर्ट छत्तीसगढ़ में अनिवार्य कर दी गई है। प्रदेश के बाहर से आने वाले विशेषकर केरल व दक्षिण के राज्यों से आने वाले रेल यात्रियों को भी निगेटिव रिपोर्ट जरूरी की गई है। अन्य राज्यों में भी पहुंचने पर कुछ इसी तरह के नियम बना दिये गये हैं। लगभग सभी ने आरटीपीसीआर टेस्ट की अनिवार्यता रखी है, जिसकी रिपोर्ट आने में वक्त लगता है। सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी लैब भी यह टेस्ट रिपोर्ट जारी कर रहे हैं। इससे टेस्ट हासिल करना तो आसान हो ही गया है, कुछ लैब संचालकों की मेहरबानी से मनचाही रिपोर्ट लेना भी मुश्किल काम नहीं रह गया है। बस यह है कि टेस्ट के लिये निर्धारित की गई राशि से दो गुनी या उससे कुछ अधिक खर्च करने के लिये लोग तैयार हो जायें। अनेक यात्री बताते हैं कि उन्होंने टेस्ट कराते समय कहा कि रिपोर्ट निगेटिव ही मिलनी चाहिये। बस कुछ ऊपर का खर्च लिया गया, रिपोर्ट निगेटिव ही मिली। पर ये सहूलियत उनको ही है जिनमें लक्षण कम दिखाई दे रहे हैं। सर्दी बुखार से पीडि़त यात्रियों को तो हवाईअड्डे और स्टेशन के गेट से लौटना पड़ सकता है।
आपदा में अवसर का सटीक नमूना
कोविड संक्रमण की आक्रामकता के दौरान जब राज्य के लोग एक-एक सांस बचाने की जद्दोजहद में जूझ रहे थे तब जशपुर जिले में स्वास्थ्य विभाग के कई अधिकारी-कर्मचारी सामूहिक रूप से सरकारी धन को फूंक कर अपना घर भरने में लगे हुए थे। बिना टेंडर, बिना मांग के उन्होंने करीब 12 करोड़ रुपये की खरीदी का घोटाला कर दिया। सर्जिकल सामान, उपकरण, किट, दवाइयां, सब ऐसी फर्मों से खरीद ली गईं, जिनका पंजीयन ही विभाग या शासन ने नहीं किया। सिविल सर्जन को दवा और उपकरण के लिये एक लाख रुपये और अन्य जरूरी सामग्री के लिये 50 हजार रुपये तक की खरीदी का ही अधिकार है। इससे अधिक के लिये उच्चाधिकारियों से मंजूरी की जरूरत है, जो नहीं ली गई। करोड़ों की खरीदी दो साल से होती रही पर किसी ने पकड़ा नहीं। साल में एक बार ऑडिट तो होती ही है, उन्होंने इस गड़बड़ी को कैसे नजरअंदाज कर दिया। जशपुर जिला छोटा है, जहां प्रशासनिक नियंत्रण ठीक हो तो इस तरह के फर्जीवाड़े पर प्रशासन लगातार निगरानी रख सकता है, पर वह भी नहीं हो सका। राज्य स्तर पर लगातार कोविड संकट के कारण स्वास्थ्य विभाग में हो रहे खर्चों पर निगरानी रखी जा रही थी, बजट दिये जा रहे थे, पर जिला स्तर पर इसकी मॉनिटरिंग नहीं हो रही थी। स्वास्थ्य महकमे में खरीदी में घोटाले का हल्ला मचा तब कहीं जाकर इसकी जांच शुरू हुई। जांच रिपोर्ट के आधार पर आधा दर्जन कर्मचारी निलम्बित किये हैं। सिविल सर्जन पहले ही सस्पेंड की जा चुकी हैं। पर ऐसा नहीं लगता कि ऊपर से शह मिले बगैर इतनी बड़ी गड़बड़ी हुई हो। स्वास्थ्य सेवा बेहतर कर लोगों की जान बचाई जा सके इसके लिये राज्य सरकार, सीएसआर और डीएमएफ जैसे फंड तो लुटाये ही गये, समाजसेवी और सक्षम लोगों ने भी लाखों रुपये की व्यक्तिगत मदद की है। घोटाले का यह कृत्य उनका भरोसा तोडऩे के जैसा है।
उद्यान विभाग का अनुदान घोटाला...
लोग स्वास्थ्य, शिक्षा, रेवेन्यू, माइनिंग, पीडब्ल्यूडी जैसे सामने दिखाई देने वाले विभागों में होने वाली गड़बड़ी को तो पकड़ लेते हैं, पर शासन के दर्जनों विभाग हैं जहां फंड के दुरुपयोग व भ्रष्टाचार लोगों को नजर नहीं आ आता। ऐसा ही उद्यान विभाग है। कृषि, उद्यानिकी को बढ़ावा देने के लिये केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से कई प्रयोगों के लिये अनुदान दिये जाते हैं। कई योजनाओं में ये 75 प्रतिशत तक भी होते हैं। ऑफ सीजन फसलों, फूलों, फलों का उत्पादन लेना हो तो उसके लिये ग्रीन हाउस और उससे भी एडवांस पॉली हाउस का निर्माण खेतों में करना होता है। सरकार ग्रीन हाउस के निर्माण पर एक किसान को अधिकतम ढाई लाख का अनुदान देती है लेकिन पॉली हाउस के लिये यह 14 लाख रुपये तक मिल जाता है। महासमुंद में शिकायत आई है कि उद्यान विभाग के अधिकारियों और सप्लायरों की मिलीभगत से खेतों में निर्माण तो ग्रीन हाउस का किया गया लेकिन बिल पॉली हाउस के निकाल लिये गये। सरकार से अनुदान हासिल करने की पात्रता दो ढाई लाख की थी लेकिन लिये गये 14 लाख रुपये। इसकी शिकायत हुई, पर जांच चार माह से दबी हुई है। उद्यान विभाग के डायरेक्टर भी मान रहे हैं कि गड़बड़ी हुई है पर जांच क्या हुई, कार्रवाई किन लोगों पर हुई, इसका पता नहीं है। पता चला है कि फर्जी बिल लगाकर अनुदान हासिल करने को लेकर किसी अधिकारी कर्मचारी को अब तक नोटिस भी जारी नहीं की गई है। एक तो यह विभाग ऐसा है जहां क्या गड़बड़ हो रही है वह पता नहीं चलता। दूसरा गड़बड़ी पर कार्रवाई क्या हुई यह पता करने में अधिकारियों को भी दिलचस्पी नहीं है। उद्यानिकी विभाग की हरियाली ऐसी ही बनी रहेगी?
बाबा का इस्तीफा और खंडन...
न्यूज चैनल रिपब्लिक टीवी में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के इस्तीफे की पेशकश की खबर जैसे ही चली, छत्तीसगढ़ में राजनैतिक माहौल गरमा गया था। खबर में बताया गया कि वे दिल्ली में बीते चार दिन से हैं और राहुल गांधी या सोनिया गांधी से मिलना चाहते हैं पर उन्हें वक्त नहीं दिया जा रहा है। दिल्ली में राहुल गांधी के प्रदर्शन के दौरान सिंहदेव के पक्ष में नारे लगे। यहां से गये उनके समर्थकों ने लगाये थे। पिछले दिनों विधायक बृहस्पत सिंह के आरोपों के बाद राजधानी और विधानसभा में जो मची, उसके बाद इस्तीफे की खबर पर एकबारगी लोगों ने भरोसा ही कर लिया। ढाई साल के फार्मूले पर चल रही चर्चाओं पर विराम भी भी अब तक नहीं लग सका है। अब सिंहदेव के दफ्तर की ओर से बयान आ गया है कि इस्तीफे की खबर झूठी है, मेरे खिलाफ अफवाह फैलाई जा रही है।
पर, सवाल यह है कि यह बात निकली कैसे? यह बाबा के समर्थकों की ओर से बार-बार बाहर निकलती है कि सचमुच उनके विरोधियों की चाल है?
यात्रियों को रेलवे से नई चुनौती..
रेलवे ने यात्रियों को अब ट्रेनों को जल्दी पकडऩे की विधा में पारंगत होने की चुनौती दी है। अब ट्रेनों का ठहराव स्टेशनों पर घटाया जा रहा है। रायपुर जैसे स्टेशन पर जहां एक्सप्रेस ट्रेनों को 10-12 से 20 मिनट तक स्टापेज मिलता था, अब यह सिर्फ 5 मिनट मिलेगा। छोटे- मंझोले स्टेशनों में यदि पांच मिनट का समय पहले तय था तो उसे दो मिनट कर दिया जायेगा। इसके पीछे तर्क यह है कि इससे यात्रियों को गंतव्य तक कम समय में पहुंचाया जा सके। रेलवे ने स्पेशल ट्रेन नाम पर किराया वैसे भी बढ़ा दिया है। छोटे स्टेशनों से जो महिलायें ट्रेनों पर बच्चे लेकर सामान के साथ चढऩा चाहती हैं उनके लिये भी अब दो मिनट का टास्क दिया गया है। बुजुर्गों की भी रियायती टिकट कोविड के नाम पर बंद कर दी गई है, उनको अब दौड़ लगाने के लिये भी कहा जा रहा है। रात के समय अक्सर अपनी बोगी ढूंढने के लिये यात्री परेशान होते हैं। छोटे-मध्यम स्तर के स्टेशनों में तो लाइट भी ठीक तरह से नहीं जलती, लोग भीतर से दरवाजा बंद भी रखते हैं। ऐसे में दो मिनट की बंदिश बड़ी परेशानी का कारण बनेगा।
विरोधियों की मदद
वैसे तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, और कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकमल सिंघानिया एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। कसडोल में दोनों एक-दूसरे को एक-एक बार पराजित भी कर चुके हैं। पिछले चुनाव में राजकमल सिंघानिया को टिकट नहीं मिली। उनकी जगह कांग्रेस ने शकुंतला साहू को टिकट दी, जिसने गौरीशंकर को रिकॉर्ड वोटों से हराया।
हार के बाद भी गौरीशंकर भाजपा संगठन में प्रभावशाली हैं। जबकि राजकमल की सक्रियता डॉ. चरणदास महंत के बंगले तक ही सीमित रह गई है। राजनीतिक रूप से विरोधी होने के बावजूद गौरीशंकर, और राजकमल में निजी संबंध बहुत अच्छे हैं। पिछले दिनों राजकमल कोरोना से जुझ रहे थे, तो उनकी मदद के लिए गौरीशंकर आगे आए।
गौरीशंकर ने ही राजकमल के बेटे को फोन कर हैदराबाद ले जाने की सलाह दी, और वहां अस्पताल में चिकित्सकीय व्यवस्था का इंतजाम भी गौरीशंकर ने किया। आखिरकार महीनेभर अस्पताल में रहने के बाद राजकमल कोरोना से उबर गए। राजकमल की तरह कई नेता कोरोना की चपेट में आ गए थे, तब कुछ की मदद तो उनके राजनीतिक विरोधियों ने की।
आईएएस आनंदिता की वह बेमिसाल कामयाबी...
सन् 2004-05 में बिलासपुर नगर-निगम के कमिश्नर के रूप में एक आईएएस करूणा राजू की पोस्टिंग हुई। तब वे प्रशिक्षु ही थे। शहर की प्रतिष्ठित स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शिखा मित्रा की पुत्री आनंदिता से उनका परिचय हुआ। उनके मिलने-जुलने की शहर में चर्चा होने लगी। और एक दिन दोनों ने एक सूत्र में बंधने का निर्णय ले लिया। बिलासपुर में ही विवाह सूत्र में बंधने के बाद उनकी एक संतान भी हुई। तब तक प्रशासनिक सेवाओं में उन्होंने प्रशासनिक सेवा में जाने का मन बना लिया था। निश्चित रूप से पति डॉ. राजू ने उनका हौसला बढ़ाया। अपनी नन्हीं सी बिटिया की देखभाल करते हुए उन्होंने तैयारी शुरू की। जब नतीजा आया तो सब हैरान रह गये। आनंदिता का परिश्रम चमत्कृत करने वाला था। उन्होंने पहली ही बार में न केवल यूपीएससी में सफलता हासिल कर ली बल्कि पूरे देश में आठवें रैंक पर आई। महिलाओं की सूची में उनका सबसे ऊपर नाम था। बीते दो दिनों से आनंदिता मीडिया की सुर्खियों में हैं क्योंकि उन्हें देश के सबसे खूबसूरत शहर चंडीगढ़ में नगर-निगम का कमिश्नर बनाया गया है।
दागी पुलिस कर्मियों पर शामत..
विधानसभा में सवाल किया गया ऐसे पुलिस अधिकारी, कर्मचारी जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज है, की जानकारी मांगी गई। इसके बाद से जिलों में कप्तान सक्रिय हो गये हैं। किसी जिले में एक दर्जन तो किसी में दो दर्जन सिपाही से लेकर निरीक्षक हैं जिनके खिलाफ कोई न कोई जांच लम्बित हैं या फिर उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज है। थानों में यातायात और स्पेशल टास्क की टीम में उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली हुई थी। पर कई जिलों से ऐसे पुलिस अधिकारी, कर्मचारी एक के बाद एक वापस लाइन अटैच कर दिये गये हैं। ऐसा नहीं है कि सभी जवान उच्चाधिकारियों के कृपा पात्र रहे हों इसलिये महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे थे। उनकी काबिलियत की वजह से उनके खिलाफ हुई शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। लाइन अटैच किये गये जवानों को मालूम है कि चूंकि विधानसभा में सवाल उठा है, उन्हें हटा दिया गया, कुछ दिन बाद वे फिर लौट जायेंगे। पुलिस विभाग में जितनी जल्दी लाइन पर भेजा जाता है उतनी ही जल्दी फील्ड में वापस बुला लिया जाता है। शिकायत ज्यादा गंभीर नहीं हो तो निलम्बन के बाद जल्दी ही बहाली भी हो जाती है। स्टाफ की कमी का हवाला देकर। और फिर कुछ एक मामले तो बताते हैं कि राजधानी में बड़े पदों पर कोई बैठा हो तो शिकायतों को ठंडे बस्ते में भी डाल दिया जाता है।
चिटफंड में डूबे कितने रुपये वापस मिलेंगे?
फर्जी चिटफंड कंपनियों में करोड़ों रुपए डूबा चुके निवेशकों को एक बार फिर लग रहा है कि उनके पैसे वापस मिल जाएंगे। एजेंटों की भी गर्दन इसमें फंसी हुई है। मौजूदा कांग्रेस सरकार के प्रमुख चुनावी वादों में एक यह भी था कि कंपनियों की प्रॉपर्टी बेचकर और बैंकों में जमा रकम सीज करके निवेशकों को पैसे लौटाए जाएंगे।
सभी जिलों में इन दिनों निवेशकों से आवेदन लिए जा रहे हैं। उन्हें पूरा विवरण भरकर दस्तावेजों के साथ कलेक्टोरेट में फॉर्म जमा करना है। दूसरी ओर तथ्य यह है कि अब तक केवल 322 निवेशकों के पैसे लौटाये जा सके हैं। वह भी जमा की गई रकम का सिर्फ 30 प्रतिशत। यानि मूल धन भी पूरा नहीं मिल पाया है। पिछले महीने गृह विभाग की समीक्षा में यह बात सामने आई कि राज्य में 187 अनियमित चिटफंड कंपनियों के खिलाफ 427 प्रकरण पंजीबद्ध हैं। इनमें से 265 प्रकरण अदालतों में विचाराधीन हैं। अब तक संपत्ति कुर्क करके इनसे 9 करोड़ 32 लाख रुपए वसूल किए जा सके हैं। एजेंटों की मानें तो पूरे प्रदेश में पैसे लगाने वालों की संख्या एक लाख 6 हजार के करीब है। कहां 322 और कहां एक लाख! ढाई साल में बस इतनी ही कामयाबी मिली। कोई चमत्कार ही होगा यदि सरकार अपना वादा सौ फीसदी पूरा कर पाये। दरअसल, कई व्यावहारिक कठिनाईयों का हवाला अधिकारी दे रहे हैं। ज्यादातर कम्पनियों के संचालक फरार हैं। उनकी प्रापर्टी दूसरे प्रदेशों में हैं। कई कम्पनियों के मालिकों का तो पता ही नहीं चल रहा है।
मतलब यह है कि लूटे गये हर धन को स्विस बैंक भेजना जरूरी नहीं है और न ही विदेश भागना। अपने देश के भीतर रहकर भी लूट और ठगी के पैसों से ऐश की जा सकती है।
क्या फिर रद्द होंगे फर्जी राशन कार्ड?
राशन कार्ड का ज्यादा होना किसी भी प्रदेश की गरीबी का इंडिकेटर है। यह हमेशा वोट बटोरने का जरिया भी रहा है। अपने छत्तीसगढ़ में ही ऐसा हो चुका है कि चुनाव से पहले बड़ी उदारता से लाखों की संख्या में राशन कार्ड बनाए गए और चुनाव खत्म होने के बाद जांच के नाम पर आधे निरस्त कर दिये गये। कांग्रेस सरकार बनने के बाद राशन कार्ड नए सिरे से तैयार किए गए। उसे ऑनलाइन एंट्री और आधार कार्ड से जोडक़र ज्यादा फुलप्रूफ बनाने की कोशिश की गई। पर चकमा देने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं। वोटों की ही मजबूरी रहती है राशन कार्ड बनवाने में निकायों के प्रत्याशी और निर्वाचित प्रतिनिधि भी मदद करते हैं। इसके चलते खंगाला जाये तो सैकड़ों सरकारी कर्मचारी, आयकर दाता, पक्की मकानों और चारपहिया मालिक भी बीपीएल कार्डधारक मिल जायेंगे। हाल ही में फर्जी राशन कार्ड को पकडऩे के लिए राजधानी में जो तरीका अपनाया गया है उससे 50,000 राशन कार्ड निरस्त हो सकते हैं। राशन देने के लिए दुकानों में बायोमेट्रिक मशीन से अंगूठे का निशान लिया जा रहा है और इसे आधार कार्ड से जोड़ा भी गया है। यानी आधार कार्ड में जो दर्ज है वह राशन कार्ड लेते समय देने वाले निशान से मैच करना चाहिए। बीते महीने जुलाई का आंकड़ा बताता है कि जिले के 2.38 लाख राशन कार्ड धारियों में से 57 हजार लोग राशन लेने के लिए नहीं पहुंचे। ऐसा नहीं कह सकते कि सब के सब फर्जी होने की वजह नहीं आये। फिर भी राशन दुकान नहीं पहुंचने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि 24 फीसदी स्टाक दुकानों में बच गया है। फूड अफसरों का कहना है कि यदि दो-तीन माह तक यह लोग लगातार राशन लेने नहीं आए तो उनके कार्ड की जांच की जाएगी और निरस्त कर दिये जाएंगे। अभी चुनाव का कोई मौसम नहीं है। इसलिये फर्जी राशन कार्डों को बचाने की सिफारिश कोई पार्षद या नेता शायद ही करे।
बिना मेहनत के मिला भोजन हाथियों को पसंद नहीं?
गांव में हाथियों के हमले रोकने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग ने मार्कफेड से धान खरीदना शुरू कर दिया है। प्रयोग के तौर पर उनके विचरण वाले रास्तों में रखा भी गया। सूरजपुर वन मंडल के पांच अलग-अलग बीट में 20 क्विंटल धान रखे गये। इनमें से 3 गांवों में हाथियों ने 14 क्विंटल धान खा लिया। मगर धर्मजयगढ़, बालोद आदि स्थानों पर धान पड़ा रह गया, उसे हाथियों ने खाना पसंद नहीं किया।
लगता है कि ज्यादातर इलाकों में हाथियों को धान की कटी हुई पकी-पकाई फसल यानि सहज-सुलभ भोजन पसंद नहीं है और वे सीधे खेतों और घरों में दस्तक देना चाहते हैं। धान खराब होने से बचाने के लिए एक विभाग ने दूसरे विभाग की मदद के लिये हाथ तो बढ़ाया पर यह प्रयोग कितना सफल होता है, कहना मुश्किल है।
हकीकत और हसरतें
आईपीएस के 96 बैच के अफसर विवेकानंद के एडीजी पद पर प्रमोट होने के बाद पीएचक्यू में कुछ बदलाव की तैयारी है। बताते हैं कि एडीजी स्तर के एक अफसर ने अहम पद के लिए अपनी ताकत झोंक दी है। अफसर की पिछले दिनों सरकार के ताकतवर मंत्री के साथ लंबी बैठक भी हुई है। जिसमें उन्होंने ईओडब्ल्यू-एसीबी, अथवा इंटेलिजेंस में काम करने की इच्छा जताई है।
जाहिर है कि दोनों ही शाखा सीधे सीएम के अधीन होती हैं, ऐसे में इन पदों के लिए सीएम का विश्वास जरूरी है, और वहां पदस्थ अफसरों को सीएम का भरोसा हासिल है। अफसर ने मंत्रीजी को ईओडब्ल्यू-एसीबी में जीपी सिंह, मुकेश गुप्ता, और अन्य प्रभावशाली लोगों के खिलाफ चल रहे प्रकरणों को किस तरह हैंडल किया जाना चाहिए, इस पर सुझाव भी दिए हैं। ताकि इसका बेहतर नतीजा आ सके। मंत्रीजी ने अफसर की भावनाएं ऊपर तक पहुंचाने का भरोसा दिलाया है।
सिंहदेव समर्थकों को अब राहत?
रामानुजगंज के विधायक बृहस्पत सिंह ने तोप की दिशा घुमा दी है। विधानसभा में ‘खेद’ जताने के बाद भी कांग्रेस की भीतरी राजनीति, खासकर सरगुजा में सुलग ही रही थी। सिंहदेव समर्थकों के तेवर उनके खिलाफ गरम थे। ऐसे में बीच में एंट्री मार दी राज्यसभा सांसद राम विचार नेताम ने। उनके पुराने घाव हरे हो गये। छह माह पहले बृहस्पत सिंह ने उन पर अपनी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था। नेताम ने कहा कि जैसे सिंहदेव से माफी मांगी, मुझसे भी मांगें, वरना मानहानि का केस करेंगे। पर इसकी प्रतिक्रिया में बृहस्पत सिंह बैकफुट पर नहीं आये बल्कि नेताम के खिलाफ एक नहीं करीब आधा दर्जन नये पुराने गंभीर आरोप लगा दिये। नेताम को उनके मंत्रित्व काल की याद दिलाते हुए। यहां तक सुझाव दे दिया है कि दिल्ली से लौटें तो एम्स में मानसिक इलाज कराकर आयें। बृहस्पत सिंह के ताजा बयान पर अभी नेताम की प्रतिक्रिया आनी बाकी है। वे आरोपों का खंडन करते हुए आक्रामक होंगे, या शांत रह जायेंगे यह देखना होगा। पर, नेताम पर हमला बोलकर बृहस्पत सिंह ने बता दिया है कि अभी उनके एजेंडे में सिंहदेव नहीं है।
मंत्री-विधायक विवाद पर गाना
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुखिया रमन सिंह पेशे से डॉक्टर हैं, तो स्वाभाविक है कि वे दर्द और दवा के बारे में बेहतर समझते होंगे। पिछले दिनों जब छत्तीसगढ़ में मंत्री और सत्तापक्ष के विधायक के बीच विवाद का पटाक्षेप हुआ तो रमन सिंह ने डॉक्टरी अंदाज में जवाब दिया था और कहा था कि तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही दवा देना। लेकिन इस गीत की पहली लाइन कुछ ऐसी है- गरीब जानकर हमको ना मिटा देना... तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम ही दवा देना। ऐसे में सियासी हलको में इस पूरे गाने को इस घटनाक्रम से जोडक़र देखा जा रहा है और इसके मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ लोगों का यहां तक दावा है कि भले ही यह गाना दो प्रेमियों की बात हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के इस सियासी घटनाक्रम पर पूरी तरह से फिट है।
मतदाताओं को आईना दिखाता आंदोलन
खराब सडक़-नालियों को लेकर अक्सर निष्क्रिय, भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों पर ही लोगों का गुस्सा फूटता है, पर उन वोटरों पर नहीं जो उन्हें जिताते हैं। मतदाता कई कारणों से किसी प्रत्याशी को वोट देता है, जैसे- विचारधारा मिलने की वजह से, पिछले प्रतिनिधि से त्रस्त होने की वजह से, आश्वासनों पर भरोसा कर लेने की वजह से। पर, उन मतदाताओं को कोई नहीं कोसता, जिनका वोट बिक जाता है और जीत हार में उनके बोट का निर्णायक रोल होता है। विपक्ष भी मतदाताओं को कोस कर नाराजगी नहीं मोल लेना चाहता क्योंकि मौका सबका आने वाला होता है। पर, कोरबा में आम आदमी पार्टी ने खराब सडक़ों के लिये जिस तरह दारू, बकरे और मुर्गे में बिक जाने वालों की खबर ली है, वह इन दिनों चर्चा में है। वे गाजे-बाजे के साथ सडक़ों के गड्ढे पर नाच रहे हैं। वे तख्तियां लिये गाना गा रहे हैं- दस (लोगों) का मुर्गा खाओगे, तो मुर्गा ही बन जाओगे। दारु में बिक जाओगे तो, ऐसी ही रोड पाओगे। ...मुस्कुराइये, आपने कोरबा को बर्बाद कर दिया है। 'आप' के नेताओं का कहना है कि मतदाताओं को सचेत करने के लिये प्रदर्शन का यह तरीका अपनाया गया है। नागरिक अपने वोटों की कीमत समझें किसी प्रलोभन में नहीं बिकें, बिक गये तो फिर काम करने के लिये नेता पर दबाव कैसे डालेंगे?
मिलावटी मिठाई की जब्ती में पुलिस
आटा, चायपत्ती, हल्दी, मसाले सभी खाद्य पदार्थों में मिलावट होती है पर त्यौहारी सीजन आते ही मिलावटी मिठाईयों की बाढ़ आ जाती है। भिंड-मुरैना से आयात किये हुए कच्चे माल की तो प्रदेश में हर साल बड़ी खपत होती है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों के लिये भी यह त्यौहार ही होता है क्योंकि वे दूध, खोवा-मावा से बनी मिठाईयों का सैम्पल लेने का विशेष अभियान चलाते हैं।
सैम्पल लेने का खौफ ही काफी है। वरना सैम्पल लेने के बाद रायपुर की लैब से रिपोर्ट देने में इतनी देर होती है कि लोग भूल भी जाते हैं कि किस दुकान में छापा मारकर क्या जब्त किया गया था। बहुत दिन बाद जब रिपोर्ट आती है तो दो-चार पर जुर्माना लगता है पर अधिकांश सैम्पल पास हो जाते हैं। इसलिये दुकानदारों की पहले तो कोशिश यही होती है कि सैम्पल ही लेने से रोक लें, क्योंकि इसकी चर्चा होने पर ग्राहकी पर असर पड़ेगा। इसी के चलते वाद-विवाद की स्थिति बनती है, अधिकारियों की भाषा में- शासकीय कार्य में बाधा डालते हैं। लैब से रिपोर्ट मिलने में देर के कारण कुछ मोबाइल लैब भी विभाग ने खरीदे थे, जिसकी रिपोर्ट थोड़ी ही देर में मिल जाती है पर अधिकांश दफ्तरों में ये चलित लैब खड़े हुए हैं। पुलिस को साथ में लगाने से अब तीन विभाग छापेमारी में साथ होंगे, राजस्व, खाद्य और पुलिस। नाहक खर्च बढ़ेगा, दुकानदारों का।
अफसर की मौलिक पहल का नतीजा
गांवों में सरकारी योजनाओं के लिए कई बार जमीन की समस्या आड़े आ जाती है। मगर पिछले वर्षों में सरकारी जमीन को सुरक्षित रखने के लिए कुछ जगहों पर बेहतर काम भी हुआ था, जिसकी वजह से वृक्षारोपण, और गौठानों के लिए सरकारी जमीन ढूंढने ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। सीएम के विशेष सचिव एस भारतीदासन ने तो जांजगीर-चांपा कलेक्टर रहते लाल झंडा अभियान चलाया था, और करीब 10 हजार एकड़ सरकारी जमीन को चिन्हित कर कब्जा मुक्त कराने में सफल रहे।
लो-प्रोफाइल में रहने वाले भारतीदासन ने गांव वालों के सहयोग से पामगढ़ के दरदरी गांव में करीब 120 हेक्टेयर सरकारी जमीन दबंगों से छुड़ाया, और जमीन वृक्षारोपण के लिए वन विभाग के सुपुर्द कर दिया। उस समय सतोविशा समजदार डीएफओ थीं। सतोविशा की गिनती भी मेहनती अफसरों में होती है। उन्होंने जिला प्रशासन के सहयोग से वहां सघन वृक्षारोपण कराया। और आज हाल यह है कि दरदरी गांव का यह इलाका जंगल के रूप में तब्दील हो गया है। जिस जमीन पर कब्जे को लेकर गांव में हमेशा तनाव का माहौल रहता था, वहां हरे भरे वृक्ष लहलहा रहे हैं। गांव वाले जिला प्रशासन के प्रयासों की सराहना करते नहीं थकते हैं।
पत्रकार सुरक्षा कानून...
सब कुछ ठीक ठाक रहा, तो छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विधेयक शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है। भूपेश बघेल ने सीएम पद की शपथ लेने के बाद पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी, और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आफताब आलम की अध्यक्षता में इसका प्रारूप तैयार करने के लिए कमेटी बना दी थी। जस्टिस आलम की साख बहुत अच्छी रही है।
जस्टिस आफताब आलम ने बस्तर से लेकर सरगुजा तक पत्रकार-संगठनों से चर्चा कर प्रारूप तैयार कर लिया है, और विधि विभाग से सहमति मिलने के बाद सीनियर सचिवों की कमेटी में विधेयक के प्रारूप पर मंथन होगा, और इस बात की पूरी संभावना है कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद पत्रकार सुरक्षा कानून विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश हो जाएगा।
पत्रकार सुरक्षा कानून जस्टिस आफताब आलम ने अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी। उन्होंने इसके लिए मानदेय लेने से भी मना कर दिया। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब भी रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता में कोई कमेटी या आयोग का गठन होता है, तो सरकार को उनके सुख सुविधाओं के लिए काफी कुछ वहन करना होता है। मगर जस्टिस आलम अपवाद रहे हैं, और उनकी मेहनत कानून के प्रारूप में झलकती भी है। अब इस बात की संभावना है कि अगले साल पत्रकारों को सुरक्षा देने वाला कानून अस्तित्व में आ जाएगा।
हाईकोर्ट में वूमेन पावर
छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के साथ-साथ हाई कोर्ट का भी गठन 2 दिन के अंतराल पर हो गया था। पर यहां महिला जज की पहली नियुक्ति मार्च 2018 में हो सकी। अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में तब की रायपुर फैमिली कोर्ट की जज विमला सिंह कपूर और रजिस्ट्रार विजिलेंस रजनी दुबे की एक साथ पदस्थापना हुई।
18 साल के बाद एक साथ दो महिला जज हाई कोर्ट को मिले। अब एक्टिंग चीफ जस्टिस ने उन्हें एक साथ जो नई जिम्मेदारी दी है, वह भी चर्चा में है। हाई कोर्ट में रोस्टर बदलने के बाद दो डबल बेंच बनाई गई हैं। दोनों में एक-एक प्रतिनिधित्व इन दोनों महिला न्यायाधीशों का है।
प्रसंगवश, समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है कि न्यायपालिका में महिला प्रतिनिधित्व कम है। हाईकोर्ट के 661 जजों में सिर्फ 70 महिलाएं हैं। इस कमी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लगाई जा चुकी है। एटर्नी जनरल के जी वेणुगोपाल ने पिछले दिनों कहा था कि महिलाओं का प्रतिशत बढऩे से न्यायपालिका का दृष्टिकोण अधिक संतुलित और सशक्त होगा।
काजू, बादाम वाले दुबई में टाऊ की मांग
ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि ड्राई फ्रूट्स सेहत के लिए जरूरी तो है लेकिन आम आदमी की पहुंच से बाहर है। इसके विकल्प हमारे आसपास मौजूद है। छत्तीसगढ़ की विविधतापूर्ण पैदावार में प्रोटीन, विटामिन और शरीर के लिए जरूरी वे मिनरल्स, आयरन आदि प्राप्त किये जा सकते हैं जो बाजार में काफी महंगे मिलते हैं। गनियारी के चिकित्सक डॉ. योगेश जैन ने तो छत्तीसगढ़ में उपलब्ध पोष्टिक, गुणकारी साग-भाजी और पत्तियों पर एक पूरी किताब भी लिखी है। अब ड्राई फ्रूट्स के लिए मशहूर अरब देशों के सबसे नामी शहर दुबई से मैनपाट के टाऊ आटे की मांग आई है। शुरुआत अच्छी हुई है, भले ही ऑर्डर अभी 120 किलो का ही है। यहां महिलाओं की एक स्व-रोजगार संस्था ने बकायदा प्रोडक्शन कंपनी बनाई है और मार्केटिंग के लिए एमओयू भी किया है। इसी के जरिए दुबई से उन्हें टाऊ के आटे की आपूर्ति का ऑर्डर मिला है। टाऊ में हार्ट, शुगर और कैंसर के रोगियों के लिए फायदेमंद जिंक, मैगजीन और कॉपर मिनरल्स मिलता है। शोध में मालूम हुआ है कि इसमें फेगोपायरीटोल नाम का एक खास कार्बोहाइड्रेट होता है जो कोलेस्ट्रोल कम कर आंत का कैंसर दूर रखता है। इसमें ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित रखने के गुण हैं। मैनपाट में काजू, मशरूम, हल्दी, चाय जैसे अनेक विविधता पूर्ण उत्पादों का रकबा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है। आलू तो मशहूर ही है। इन सबकी राज्य और राज्य के बाहर सप्लाई होती है।
छत्तीसगढ़ के ज्यादातर इलाकों में खेती साथ प्रयोग करने में झिझक दिखाई देती है। धान की बंपर पैदावार अब एक समस्या भी बनती जा रही है। जिस दिन शासन ने हाथ खड़े कर प्रोत्साहन राशि देना बंद कर दिया, धान का बाजार मिलना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में जशपुर की इस खबर पर गौर करना चाहिये।
स्कूल में मजदूर की समस्या दूर
2 अगस्त को पहले दिन जगह-जगह स्कूल खुलने पर उत्सव मनाया गया। चॉकलेट और मिठाइयां भी बांटी गई। पर यह सिर्फ तस्वीरों में और बड़े शहरों कस्बों की बात है। दूरस्थ गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के कंचनडीह ग्राम पंचायत के प्राथमिक शाला की एक अलग तस्वीर के सामने आई है। यहां स्कूल ड्रेस में बच्चे बर्तन मांगते हुए दिखे। तीसरी कक्षा के बच्चों को लगा होगा, पहले दिन हो सकता है इसी काम में लगाया जाता होगा। या फिर शिक्षक को लगा होगा कि डेढ़ साल से स्कूल से दूर बच्चे पढऩा लिखना तो भूल ही गए होंगे और उन्हें बर्तन मांजने के काम में लगा देना ही ठीक रहेगा। नौ 10 साल की बच्चों ने बताया क्यों नहीं प्रधान पाठक में बर्तन साफ करने के लिए कहा है। और हम उनकी आज्ञा का पालन कर रहे हैं। गांवों में मातायें छोटे बच्चों को डराती हैं, स्कूल नहीं जोओगे तो बर्तन मांजने के काम में लगा दूंगी। पर बच्चों को तो स्कूल में भी वही करना पड़ रहा है।
बसपन के प्यार में बिजी
सोशल मीडिया पल भर में सुर्खियां बटोरने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनता जा रहा है। स्थिति ये है कि कम पढ़े-लिखे या दूरस्थ इलाके के लोग भी इसके जरिए देश-दुनिया में पॉपुलर हो रहे हैं। समाज के आदर्श और सेलिब्रेटी भी ऐसे लोगों को खूब प्रमोट कर रहे हैं। कई बार जरूरतमंद और प्रतिभावान लोगों को सोशल मीडिया मुकाम तक पहुंचाने में मददगार साबित हो रहा है, लेकिन अधिकांश बार यह देखने में भी आता है कि हंसी-ठिठौली में ऐसे लोग भी प्रसिद्धि पा रहे हैं, जिससे उन पर अपेक्षाओं का बोझ बढ़ रहा है। अब छत्तीसगढ़ के दूरस्थ नक्सल इलाके के सहदेव को ही लीजिए, जिसका करीब दो साल पुराना वीडियो इस कदर वायरल हुआ कि तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उसी की चर्चा शुरू हो गई और राजनेताओं से लेकर फिल्मी सितारों के साथ उनका वीडियो आना शुरू हो गया। जैसा सोशल मीडिया का स्वभाव है कि जितनी जल्दी प्रसिद्धि मिलती है, उससे भी तेजी से आलोचना भी शुरू हो जाती है। इससे उस मासूम की कोई गलती नहीं है, फिर भी परिणाम उसको और पूरे समाज को भोगना पड़ेगा। बसपन का प्यार गाना गाकर पॉपुलर होने वाले सहदेव के बाल मस्तिष्क में यह बात तो जरूर आई होगी कि वह अब बड़ा स्टार बन गया है, जबकि पढऩे-लिखने और खेलने-कूदने के इस उम्र में सोशल मीडिया ने से उसे ऐसे काम के लिए हीरो बना दिया, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी। आज जब दूसरे देशों के 10-12 साल के बच्चे ओलंपिक में जाकर पदक जीत रहे हैं और हमारा पूरा देश बसपन के प्यार में बिजी है। इसकी लोकप्रियता को देखकर दूसरे बच्चे भी मोबाइल लेकर बसपन का प्यार गा रहे हैं। इतना ही नहीं, कई माता-पिता खुद बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं और वे सेलिब्रटीज से अपेक्षा कर रहे हैं कि उनके बच्चे के साथ भी सहदेव की तरह अपना वीडियो शेयर करें।
टाइगर तो क्या चीतल भी नहीं बचेंगे..
बारिश के दिनों में वनों में पर्यटन पर रोक लगा दी जाती है। इसकी वजह यह नहीं होती कि जंगल के भीतर रास्ते कीचड़-दलदल से बंद हो जाते हैं, बल्कि इसलिये क्योंकि यह वन्यजीवों का प्रजजन काल माना जाता है, खलल न हो। मुंगेली जिले के अचानकमार अभयारण्य को टाइगर रिजर्व का दर्जा तो दे दिया गया है पर वैकल्पिक मार्ग, आरएमकेके के बन जाने के बावजूद इस जंगल के बीच से गुजरने वाले पुराने मार्ग से आवाजाही पर राजनैतिक कारणों से अब तक रोक नहीं लगाई गई है। शिवतराई से लमनी तक की दूरी तय करने के लिये डेढ़ घंटे का पास मिलता है। गाड़ी बिगडऩे, रास्ता खराब होने जैसा बहाना बनाकर देर भी की जा सकती है।
इन दिनों हो रही आवाजाही से वन्यजीवों को किस तरह दहशत का सामना करना पड़ रहा है, यह फेसबुक पर वन्य लाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्राण चड्ढा के वाल पर आज अपलोड किये गये एक वीडियो को देखकर पता चलता है। 40-50 चीतलों का झुंड सडक़ पार करने वाला था कि एक कार आ गई। कार से उतरे लोगों ने शोर करते हुए भीतर तक उनको दौड़ाया। आये दिन होने वाले शिकार का एहसास रहा होगा, जान से हाथ धोने के डर से चीतल भागने लगे। हिरण, सडक़ तो खैर पार ही नहीं कर पाये। रिकॉर्डिंग करने वाले शख्स ने इन कार सवारों से पूछा भी कि इनको क्यों दौड़ा रहे हो? उनका लापरवाही भरा जवाब था कि दौड़ा नहीं रहे, बस नजदीक से देखना चाहते हैं। यह अचानकमार वही है जहां कुछ दिन पहले दूसरे जंगल से भटककर पहुंची एक घायल बाघिन के बारे में ग्रामीणों ने बताया, तब वन अफसरों को पता चला। वन विभाग टाइगर रिजर्व के नाम पर करोड़ों रुपये अचानकमार पर खर्च करता है, पर स्थिति यह है कि टाइगर तो क्या हिरण, चीतल की भी सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरती रही है। अचानकमार से छपरवा ग्राम तक आठ-दस किलोमीटर की सडक़ ही ज्यादा संवेदनशील है पर यहां कोई पेट्रोलिंग नहीं हो रही है।
नक्सल समस्या किसके सिर मढ़े?
अपने राज्य में तीन साल के भीतर 970 नक्सली हमले और इनमें 341 लोगों की मौत! केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में यह जानकारी दी है कि देश में सर्वाधिक नक्सल हिंसा प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ है। संगठन सम्बन्धी काम से राजस्थान जाते समय प्रदेश के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू पर इस मुद्दे को लेकर पत्रकारों ने सवाल दागा। इस चिंताजनक आंकड़े को लेकर मंत्री निश्चिन्त दिखे। उन्होंने जवाब दिया- आंकड़े केन्द्र ने जारी किये हैं तो इस समस्या का हल निकालने की जिम्मेदारी भी तो उनकी ही है। हम नक्सलियों पर अटैक करते हैं तो वे भागकर दूसरे राज्य चले जाते हैं, दूसरे राज्य में दबाव बढ़ता है तो हमारे यहां आ जाते हैं। केन्द्र को जितना हो सकता है, मदद करते हैं।
ठीक है, पूरे राज्य में कानून-व्यवस्था संभालने का इतना बोझ है। कहीं दुर्घटनायें हो रही हैं, कहीं ठगी तो कहीं हत्यायें। कम से कम नक्सल समस्या तो अपने सिर पर केन्द्र पूरी तरह ले ले। शायद मंत्री कहना चाहते हैं कि भले ही इनसे पीडि़त छत्तीसगढ़ के लोग हों, पर हैं तो देश के नागरिक। यानि, मसला केन्द्र का हुआ। उन्हें पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के इस बयान पर बिल्कुल गौर नहीं करना चाहिये जो सलाह दे रहे हैं कि-मंत्री पद छोडिय़े और राजस्थान घूमिये।
राजधानी के सप्लाई रैकेट..
सरकारी विभागों में सामग्री खरीदने के बजट जिलों को जारी होता है, तो प्रदेश के अफसरों की निगाह से नहीं बच पाता। ब्लॉक और गांवों में राशि जाती है तो जिले के अधिकारी उसे अपने पास मंगा लेते हैं। इसका नुकसान यह होता है कि छोटे सप्लायर, विक्रेता बाहर हो जाते हैं और राजधानी तथा जिले में बैठे लोगों के हाथ मलाई लग जाती है।
आज दो अगस्त से स्कूल चालू हुए हैं। इन स्कूलों में ड्रेस की सप्लाई मुफ्त की जानी है। पर धुर नक्सल क्षेत्र गंगालूर में सहकारी संघ की महिलाओं ने जो स्कूल ड्रेस जिले के शिक्षा अधिकारियों के आदेश पर तैयार किये थे वे डम्प पड़े हुए हैं। आमदनी तो बंद है, करीब 10 लाख रुपये इसमें उनके फंस गये हैं। अधिकारी बता रहे हैं कि स्कूल ड्रेस की सप्लाई इस बार राजधानी से हो रही है, इसलिये उनकी ड्रेस नहीं खरीदी जायेगी। इन महिलाओं से बीते 10 साल से स्कूल ड्रेस सिलवाये जाते थे। करीब 8 सौ महिलाओं की आजीविका इस पर टिकी हुई है। सरकार की नीति महिला समूहों को प्रोत्साहित करने की है, जगह-जगह छोटे-छोटे आजीविका केन्द्र भी इसके लिये बनाये गये हैं। फिर नक्सलियों से सर्वाधिक प्रभावित जिलों में से एक बीजापुर के किसी गांव में यदि महिलायें कुछ काम कर रही हैं तो उसे छीनने का फैसला क्यों लिया गया? सप्लाई रैकेट ने आखिर किसको भरोसे में लिया होगा?
त्योहारों में इस साल सुकून
अगस्त का यह पूरा महीना खास दिनों का है, उत्सव-पर्व-त्योहारों का। पहली तारीख ही फ्रेंडशिप डे से हो गई है। 9 अगस्त और कहीं-कहीं 10 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जायेगा। 11 अगस्त हरेली, 13 अगस्त को नागपंचमी फिर 15 अगस्त को 75वां स्वतंत्रता दिवस। 16 अगस्त पारसी नववर्ष है। 19 अगस्त इमाम हुसैन की शहादत का पर्व मोहर्रम है। 22 अगस्त को रक्षाबंधन है। छत्तीसगढ़ में अनेक उत्तर भारतीय कजरी तीज व्रत रखते हैं, जो 25 अगस्त को है। 28 अगस्त को हलषष्ठी है, जो छत्तीसगढ़ में बेहद पारम्परिक तरीके से मनाया जाता है। महिलायें संतानों के सुख के लिये निर्जला रहकर कुंड की पूजा करती हैं। कृष्ण जन्मोत्सव 30 अगस्त को है।
ये त्यौहार हर साल आते हैं। अमूमन जुलाई-अगस्त में ही। बस खास ये है कि पिछले साल इन पर्वों के मनाने में कोरोना संक्रमण की दहशत इस साल के मुकाबले कई गुना ज्यादा थी। कई शहरों में लॉकडाउन भी था। रक्षाबंधन के दौरान यात्राओं के लिये पास की जरूरत पड़ी थी। स्वतंत्रता दिवस भी सीमित उपस्थिति में मनाया गया था। देश के कई राज्यों में कोरोना के केस जरूर फिर से बढऩे लग गये हैं पर छत्तीसगढ़ में स्थिति फिलहाल तो ठीक है। यानी पाबंदियों के बगैर अगस्त गुजर जाने की संभावना दिखाई दे रही है। त्यौहार के दिनों में बाजार में खरीदारी बढ़ती है, परिवहन सेवाओं को भी लाभ मिलता है। इस बार इन पर पिछले साल की तरह मार नहीं पड़ेगी, ऐसा अनुमान है।
नशे की लोकप्रिय बातें !
अभी एक सर्वे किया गया कि हिंदुस्तान में दारू पीने के बाद लोग आम तौर पर क्या-क्या कहते हैं. नशे में सबसे लोकप्रिय बातें ये मिली हैं.
1. भाई है तू मेरा
2. गाड़ी मैं चलाऊंगा
3. आज चढ़ नहीं रही
4. मैं दिल से तेरी इज्जत करता हूँ
5. ये मत समझ कि मैं पी के बोल रहा हूँ
6. यार कम तो नहीं पड़ेगी?
7. एक छोटा सा और हो जाये
8. तू बोल भाई क्या चाहिए, तेरे लिए जान भी हाजिर है
9. अपने बाप को मत सिखा
10. काश वो मिल जाती तो ये हाथ में ना होती और द बेस्ट वन
11. सन्डे से दारू बंद.... और जिम चालू
रवि भगत का महत्व
जशपुर के रहने वाले, और वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े भाजयुमो के राष्ट्रीय मंत्री रवि भगत की काफी पूछ परख हो रही है। वे पिछले दिनों दिल्ली गए, तो भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने उन्हें काफी तवज्जो दी, और साथ लेकर सभी पदाधिकारियों से मिलवाया। भगत को आदिवासी इलाकों में युवाओं को पार्टी से जोडऩे की अहम जिम्मेदारी दी गई है। वे दिल्ली से लौटे तो एयरपोर्ट के बाहर हाथ जोडक़र धरती पर लेटकर प्रणाम किया, और कहा-वो अपनी मां के पास आ गए हैं। भाजयुमो कार्यकर्ताओं को रवि भगत की कार्यशैली कुछ हद तक नंदकुमार साय जैसी लगने लगी है। रवि को जूनियर नंदकुमार साय कहा जाने लगा है।
भरोसा कायम है
चर्चित युवा नेता सूर्यकांत तिवारी उर्फ सूर्या एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। सूर्यकांत को हाई बीपी, घबराहट की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें देखने के लिए सीएम भूपेश बघेल, और आधा दर्जन से अधिक विधायक पहुंचे थे।
सूर्यकांत, अभी सीएम विरोधियों के निशाने पर हैं, और चर्चा है कि जिस तरह टीएस सिंहदेव के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद डेढ़ दर्जन से अधिक विधायक खुलकर बृहस्पत सिंह के साथ दिखे थे, उसके पीछे भी सूर्यकांत की भूमिका रही है।
पार्टी के कई नेता अनौपचारिक चर्चा में यहां तक कह रहे हैं कि सूर्यकांत की वजह से ही बृहस्पत सिंह, और सिंहदेव के बीच विवाद बढ़ा है, और इसे निपटाने के लिए हाईकमान को दखल देना पड़ा।
वैसे तो सीएम अपने पैर के घाव के इलाज के लिए अस्पताल गए थे। इस दौरान वे वहां इलाज करा रहे पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के बड़े भाई आलोक चंद्राकर, और सूर्यकांत का भी कुशलक्षेम पूछने गए।
मगर जिस तरह सीएम की सूर्यकांत से चर्चा के दौरान बृहस्पत सिंह समेत आधा दर्जन विधायक मौजूद थे, उससे यह संदेश गया कि सीएम का भरोसा सूर्यकांत पर कम नहीं हुआ है।
दार्शनिक नसीहतों का वक्त
अभी छत्तीसगढ़ में लोगों को बड़ी दार्शनिक बातें करने के लिए बहुत सी मिसालें हासिल हैं। पिछली भाजपा सरकार के समय अतिताकतवर रहे कई अफसरों को लेकर लोग इन दिनों चर्चा करते हैं कि सारी बातों का हिसाब इसी जिंदगी में और इसी धरती पर चुकता करके जाना पड़ता है। कल तक जिनकी पेशाब से दिया जलता था, आज वे छत्तीसगढ़ में वापस पांव रखने की हालत में नहीं रह गए। उन दिनों ऐसे ताकतवर अफसरों की मेहरबानी से कई लोगों ने अपने कई काम करवा लिए थे, तो आज वह मुंह छुपाते घूम रहे हैं।
कुछ लोग भाजपा सरकार से पहले जोगी सरकार के दिनों को याद करते हैं कि उस सरकार के दौरान जिन लोगों ने भी जो बुरे काम किए थे, उन्होंने इन 20 वर्षों में ही क्या-क्या नहीं चुकाया है, कौन-कौन सी तकलीफ नहीं पाई है, और किस तरह उनका नाम भी अब मिट गया है। जग्गी हत्याकांड से जुड़े, पुलिस, और गैरपुलिस लोगों को देख लें कि आज वे क्या बच गए हैं. लोगों को अलग-अलग सरकारों के वक्त ज्यादती करने वाले लोगों का इसी जिंदगी में हिसाब चुकता करना समझ तो आ रहा है, लेकिन उस वक्त समझ आता है जब वे ऐसी ताकत का इस्तेमाल कर चुके रहते हैं, और अब केवल भुगतान का वक्त सामने रहता है।
छत्तीसगढ़ के जो लोग ऐसे ताकतवर नामों से अच्छी तरह वाकिफ हैं, वे नेताओं और अफसरों में से एक-एक को याद करके देख लें कि वह आज कहां पहुंचे हैं, किस हालत में हैं, और अपने कुकर्मों का कैसा-कैसा भुगतान उन्हें करना पड़ा है। लोग यह सब याद कर लेंगे तो ईश्वर, धर्म, और पाप-पुण्य जैसी सारी बातें किनारे रह जाएंगी, और कुदरत की यह नसीहत सामने आएगी कि आम लगाने वाले को आम हासिल होते हैं, और बबूल लगाने वाले को बबूल, फिर चाहे इसमें थोड़ा वक्त क्यों न लगता हो.
बेटी हैं तो जहान, पेड़ हैं तो जान
बस्तर के साथ जुड़ी हिंसा और संघर्ष की पहचान को राजनीतिक और सरकारी प्रयासों से कितना बदला जा सकेगा पर पता नहीं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर तो बहुत काम हो रहे हैं। इनमें से ही एक है वीरेन्द्र सिंह का काम। वे पर्यावरण के प्रति अपने समर्पण के कारण नेशनल मीडिया और वेब पोर्टल में छाये हुए हैं। कांकेर में बंजर जमीन पर वे बीते 23 सालों में करीब 30 हजार पौधे लगा चुके और 35 से अधिक तालाबों की सफाई कर चुके हैं। वे मूल रूप से बालोद के हैं पर भिलाई, दुर्ग, भानुप्रतापपुर जहां-जहां काम पर रहे, पौधे लगाने का अभियान शुरू कर दिया। एक निजी कम्पनी में कार्यरत वीरेन्द्र सिंह अपने वेतन का एक हिस्सा हर माह पर्यावरण के संरक्षण पर खर्च कर देते हैं। इस बार बारिश के मौसम में उन्होंने चार हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है जिनमें से तीन हजार से ज्यादा लगा चुके हैं। वे हर रोज पौधे लेकर निकलते हैं और जहां सही जगह मिलती है रोप देते हैं। पौधों की निगरानी के लिये वे खुद सतर्क रहते हैं और अब बहुत से युवा उनके साथ जुड़ चुके हैं। पर्यावरण का संदेश देने के लिये वे सन् 2008 में युवाओं की टीम लेकर साइकिल से वाघा बॉर्डर तक जा चुके हैं। पांच माह की इस यात्रा को उन्होंने रास्ते के नदी-नालों को साफ करते हुए पूरा किया। पर्यावरण के साथ-साथ बेटी बचाओ का संदेश भी वे साथ-साथ देते हैं। कई पेड़ों को बालिकाओं के परिधान में भी उन्होंने सजाया है।
वीरेन्द्र सिंह की उपलब्धि इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल की गई है। अनेक संस्थाओं ने पुरस्कृत किया है। पर इन सबको वे ज्यादा महत्व नहीं देते हैं और अपने काम में ही लगे रहते हैं।
हर साल सरकारी विभाग लाखों पौधे लगाने का अभियान जून-जुलाई में चलाते हैं। करोड़ों रुपये इस पर खर्च किये जाते हैं। अगले साल तक उन पौधों का कहीं पता नहीं चलता। ऐसे में अपने वेतन के पैसे से खर्च कर कोई शख्स एक ही धुन में बीते तीन दशकों से लगा हो तो देश में उनकी चर्चा तो होगी ही।
बृहस्पति सिंह की नई मुश्किल
रामानुजगंज के विधायक बृहस्पति सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव पर हत्या की साजिश रचने के अपने आरोप के लिये खेद व्यक्त कर दिया। विधानसभा की कार्रवाई ही इस मुद्दे पर बाधित हो गई थी। पर अब खेद जताना भी भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। पूर्व मंत्री और इस समय राज्यसभा के सदस्य रामविचार नेताम को इस ‘सॉरी’ ने कुरेद दिया है। उन्हें बीते जनवरी में अपने ऊपर लगाया गया ऐसा ही आरोप फिर से याद आ गया है। नेताम ने कहा कि जब उन्होंने सिंहदेव से खेद जता दिया तो उनसे क्यों नहीं। हमारे कार्यकर्ता भी तो नाराज हुए थे और वे अब तक माफी मांगने की मांग कायम है। इतना ही नहीं, नेताम ने खेद नहीं जताने पर मानहानि का मुकदमा करने की चेतावनी दे दी है। राजधानी में प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की बीच तो यह मुद्दा ठंडा पड़ चुका है पर सरगुजा में कांग्रेसियों के बीच अब भी सुलग रहा है। नेताम ने स्व-प्रेरणा से बृहस्पति सिंह को चेतावनी दी है या सरगुजा में कांग्रेस के बृहस्पति विरोधियों ने उन्हें यह सलाह दी, कुछ कह नहीं सकते। पर जो भी हो, नेताम खामोश नहीं हुए तो विधायक बृहस्पति सिंह को जल्द सुलह का रास्ता निकालना पड़ेगा। शायद उनका एक और खेद-नामा जल्दी आये।
बृजमोहन सबपे भारी
बृहस्पति सिंह-सिंहदेव प्रकरण का भले ही सुखद अंत हो गया, लेकिन विपक्ष के भाजपा सदस्यों को बृहस्पति, और सिंहदेव पर हमला बोलने का एक बड़ा मौका मिला था, और विशेषकर बृजमोहन अग्रवाल ने इस मौके को खूब भुनाया।
सिंहदेव, पिछली सरकार में जलकी प्रकरण को लेकर बृजमोहन के खिलाफ काफी मुखर थे। और अब जब बृजमोहन की बारी आई, तो सिंहदेव पर ऐसा हमला बोला कि पूरे सत्तापक्ष पर अकेले भारी पड़ गए। काफी समय बाद सदन में ऐसा मौका आया, जब एक दिन प्रश्नकाल तक नहीं चल सका।
बृजमोहन ने सिंहदेव के सदन छोडऩे को विशेषाधिकार भंग का मामला बता दिया। उन्होंने चुन-चुनकर ऐसे तीर छोड़े कि सत्तापक्ष के लोग बगलें झांकने मजबूर हो गए। सबसे पहले उन्होंने सिंहदेव के भाषण की वीडियो क्लिप वायरल होने पर जांच की मांग कर दी। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने भी इसे गंभीर माना, और उन्हें इसके लिए चेतावनी जारी करनी पड़ी।
बृजमोहन, सिंहदेव के खिलाफ इतने आक्रामक थे कि एक बार उन्होंने यह तक कह दिया कि एक बाबा(टीएस सिंहदेव) को बचाने के लिए सरकार बाबा (डॉ. अंबेडकर) का अपमान कर रही है। यानी सरकार संविधान की धज्जियां उड़ा रही है। अलबत्ता, धर्मजीत सिंह जैसे कुछ सदस्य थे जो कि सिंहदेव के पक्ष में सहानुभूति रखते थे। रमन सिंह से भी इस प्रकरण पर कुछ बोलने की उम्मीद थी, लेकिन चर्चा के वक्त सदन से गैरहाजिर थे। उन्होंने बाद में मीडिया के माध्यम से कुछ बातें रखकर एक तरह प्रकरण से दूर ही रहे।
राजनीतिक असर काम न आया
खबर है कि सरगुजा में भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी ने टीएस सिंहदेव के करीबियों को अपनी कॉलोनी में पार्टनर बनाकर मुसीबत मोल ले ली है। शहर के बाहरी इलाके में बन रही इस कॉलोनी की जमीन में बड़ा झोल है। भाजपा नेता को उम्मीद थी कि सिंहदेव की छत्रछाया में सब कुछ निपट जाएगा। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ।
सुनते हैं कि मंत्री बंगले से भाजपा नेता को मदद के लिए कलेक्टर को कई बार फोन भी जा चुका है। भाजपा नेता, अपने भाई के साथ कलेक्टर से मिल भी आए थे। लेकिन प्रकरण का निराकरण नहीं हो पा रहा है। चर्चा यह है कि भाजपा नेताओं ने एक रिटायर्ड ईएनसी की जमीन को भी हड़पने की कोशिश की थी। बात यही बिगड़ गई।
रिटायर्ड ईएनसी ने ऐसा चक्कर चलाया कि मंत्री बंगले का भी कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद थक हारकर भाजपा नेता ने एक पूर्व सांसद को साथ लेकर संवैधानिक पद पर आसीन महिला नेत्री से भी मिले, लेकिन वहां से राहत मिलना तो दूर उलटे फटकार मिल गई। अब भाजपा नेता ने अपनी ही पार्टी के कुछ बड़े लोगों को साथ लेकर सिविल लाइन बंगले में संपर्क की कोशिश कर रहे हैं। देखना है कि नेताजी को राहत मिल पाती है अथवा नहीं।
सफेद गिद्ध की एक विरल तस्वीर..
वैसे, है तो थोड़ी बदसूरत चिडिय़ा। अच्छे उदाहरण भी इसे लेकर नहीं। मौके की ताक में नजर गड़ाये रखने को गिद्ध दृष्टि कहते हैं। शास्त्रों में तो यह भी कहा गया कि जिस घर में गिद्ध बैठ जाये वहां नहीं रहना चाहिये। शेर, तेंदुआ, चीते, गीदड़ या जंगली कुत्ते नहीं, बल्कि जंगली जानवरों के शवों को खाने में सबसे आगे गिद्ध होते हैं। बाकी मांसाहारी जानवर तो शव के 35-40 प्रतिशत हिस्से को ही खा पाते हैं पर सड़े हुए मांस के जीवाणु, विषाणु और कीड़े गिद्धों का आहार होता है। शहरों में कुत्ते और अन्य मवेशी बड़ी संख्या में मारे जाते हैं और खुले में फेंक दिये जाते हैं। अपनी आहार की प्रवृत्ति के कारण बीमारियों की रोकथाम में गिद्धों की जंगल में भी जरूरत है और जंगल के बाहर भी। वस्तुत: ये प्रकृति के सफाई कर्मी हैं। पर, कुछ रिपोर्ट्स से यह जानकारी मिलती है कि इतने उपयोगी पक्षी का अस्तित्व अब संकट में है और कई देशों में इनकी संख्या 95 प्रतिशत तक घट चुकी है। भारत, नेपाल और पाकिस्तान में ये पहले बहुतायत में पाये जाते थे। अब अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने इसे संकटग्रस्त प्रजाति घोषित कर रखा है। इसके अस्तित्व को बचाये रखने के लिये वैज्ञानिक और वन्य जीव प्रेमी प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि इनकी मौजूदगी प्रकृति का ईको सिस्टम ठीक रखने के लिये जरूरी है।
सभी गिद्ध बदसूरत भी नहीं होते। कुछ रंग-बिरंगे और सफेद होते हैं। कम से कम तस्वीरों में तो इनकी खूबसूरती देखते ही बनती है। ऐसी ही कुछ दुर्लभ तस्वीरें वरिष्ठ पत्रकार व वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर प्राण चड्ढा ने कोटा क्षेत्र के मोहनभाठा से कुछ दिन पहले खींची है। ये तस्वीरें इजिप्शन वल्चर (मिस्र का गिद्ध) की हैं।
ये ग्लैमर की दुनिया है जनाब...
स्वीडिश डायरेक्टर अरने सक्सडोर्फ ने एक फिल्म बनाई थी- ‘द फ्लूट एंड द एरो’, भारत में वह ‘द जंगल सागा’ नाम से रिलीज हुई। टेम्बू नाम के बाघ का दोस्त बस्तर का चेंदरू मंडावी स्वीडन गया, रातों-रात हॉलीवुड स्टार बन गया। कुछ बरस तक चेंदरू की चर्चा होती रही और उस पर केन्द्रित कर बनाई गई फिल्म सक्सफोर्ड की उपलब्धि में जुड़ गई। चेंदरू वापस अपने गांव लौट गया। कभी उसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू से भी हाथ मिलाने का मौका मिला था, पर गांव आने के बाद सब छूट गया। उसका बाघ टेम्बू भी चल बसा। सन् 2013 में बेहद गुमनामी में उसकी मौत हुई। छत्तीसगढ़ सरकार को भी जीते-जी उसकी उपेक्षा पर बड़ा अफसोस हुआ, तब मृत्यु के बाद जंगल सफारी में उसकी एक प्रतिमा लगाई गई।
अब हमारे बस्तर के सहदेव पॉप सिंगर बादशाह से मिलकर चंडीगढ़ से लौट आये हैं। सोशल मीडिया पर बादशाह को सराहा जा रहा है कि उन्होंने एक सुदूर आदिवासी अंचल के गरीब परिवार की प्रतिभा पर गौर किया और उसे मौका देने के लिये आगे आये। उनके गाने ‘बचपन का प्यार’ के दर्जनों रिमिक्स तैयार हो गये हैं। सोशल मीडिया पर बेशुमार तारीफें मिल रही हैं। पर कई लोगों को पिछली बातें भी याद आती है। संगीतकार हिमेश रेशमिया ने मुम्बई के एक रेलवे प्लेटफॉर्म पर गाना गाकर गुजारा करने वाली रानू मंडल को पहचाना, अपने एलबम में मौका दिया। रानू मंडल को रातों-रात शोहरत मिल गई। रानू के बहाने हिमेश मीडिया पर छा गये। लोगों ने एक कलाकार में छिपे भावुक इंसान को देखा। अब बादशाह के साथ भी यही हो रहा है। उनकी भी ब्रांड वेल्यू सहदेव की वजह से बढ़ रही है। रानू मंडल आज कहीं नहीं है पर हिमेश वहीं हैं। सहदेव आज है तो क्या बिना गायन और संगीत कला में पारंगत हुए वह अपनी लोकप्रियता को बचाये रख सकेगा? क्या मीडिया की चर्चा में आये बिना बादशाह उसे आगे भी मुकाम हासिल करने में मदद करते रहेंगे? सबको अच्छा लगेगा सहदेव खूब नाम कमाये, बस्तर और छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करे।
पुनिया के यहाँ रहते हुए
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भीतर पिछले तीन-चार दिन जो बवाल चला उसमें कांग्रेस पार्टी की तरफ से इस राज्य के वर्षों से प्रभारी चले आ रहे पीएल पुनिया को लेकर लोग हैरान हैं। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेता भी इस पूरे मामले की जानकारी मिलने पर यह सोच रहे हैं कि पुनिया को इस बार कांग्रेस के एक विवाद को निपटाने के लिए छत्तीसगढ़ भेजा गया था। उस विवाद को निपटाना तो दूर रहा पुनिया ने अपने मौजूद रहते हुए इतना बड़ा दूसरा बवाल हो जाने दिया, और उसे सुलझाने के लिए कुछ भी नहीं किया। जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के घर में आग लगी हुई थी, पुनिया वापिस दिल्ली रवाना हो चुके थे। एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद दिल्ली से उन्हें 10 जनपथ के एक करीबी और बड़े जिम्मेदार नेता का फोन आया जिन्होंने लौटना रद्द करके बृहस्पति सिंह और टी एस सिंह देव के बीच में चल रहे विवाद को खत्म करवाने के लिए कहा। लेकिन इसके बाद भी रायपुर में हुए घटनाक्रम में जो लोग शामिल थे, उन लोगों का मानना है कि पुनिया ने झगड़े को निपटाने की कोई कोशिश नहीं की। बातचीत जितनी सुलझी है वह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव की रूबरू बातचीत से हुई है, पुनिया की किसी कोशिश से नहीं। किसी भी नेता की असली पहचान किसी मुसीबत को निपटाने के वक्त ही होती है, और ढाई बरस में पुनिया के सामने छत्तीसगढ़ कांग्रेस की यह पहली मुसीबत आई थी, जिसमें कुछ न करके वे चुपचाप दिल्ली लौट गए।
कोरोना के आंकड़े छिपाने का दबाव
प्रदेशभर में कोरोना संक्रमण कम होने के बाद उन अस्थायी स्वास्थ्य कर्मियों को नौकरी से निकाल दिया गया है जो कोविड टेस्ट सैम्पल लेने और रिपोर्ट बनाने का काम करते थे। तीन माह तक जोखिम के बीच काम करने वाले ये कर्मचारी अब काम पर रखे जाने के लिये आंदोलन कर रहे हैं। जांजगीर के निकाले गये कर्मचारियों के आरोप ने सनसनी पैदा कर दी है। हड़ताल पर बैठे इन कर्मचारियों का कहना है कि उन पर दबाव डाला जाता था कि सैम्पल चाहे जैसा हो, निगेटिव रिपोर्ट ज्यादा से ज्यादा तैयार करो। आंकड़ा कम दिखेगा तो हालत सुधरने का दावा किया जा सकेगा। ये कर्मचारी यह भी चुनौती देते हैं कि आरटीआई से निकलवाकर देख लें कि कितने आरटीपीआर टेस्ट हुए और कितने एंटिजन। इनमें कितने टेस्ट इनवैलिड हुए यह भी पता चल जायेगा। फर्जी डेटा भी दर्ज करने कहा जाता रहा। किसी का नाम गलत तो किसी का मोबाइल नंबर भी गलत मिलेगा। इसे भी रेंडम चेक किया जाये।
कोविड के काबू में रखने का जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के ऊपर दबाव तो था। इसलिये इसे सिरे से यह कहकर खारिज नहीं किया जा सकता कि नौकरी से निकाले जाने के कारण भूतपूर्व कर्मचारी झूठे आरोप लगा रहे हैं। सच्चाई पता करने का तरीका उन्होंने बताया ही है। यदि किसी को ठीक लगता है तो उसे आरटीआई जरूर लगाना चाहिये। दूसरी बात है कि यदि कर्मचारी निगेटिव को पॉजिटिव बताते या कम से कम गलत रिपोर्ट बनाने के दबाव में नहीं आते तो क्या होता? शायद नौकरी कुछ दिन और खिंच जाती।
गरीब भी बढ़े, अमीर भी...
आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में एपीएल और बीपीएल राशन कार्ड बनवाने वालों की संख्या बढ़ी। खाद्य विभाग के अधिकारी इसकी वजह यह बताते हैं कि इस दौरान बहुत से लोगों की आमदनी घट गई। एपीएल-बीपीएल राशन कार्ड रखने की पात्रता होते हुए भी बहुत लोगों ने इसलिये नहीं बनवाया था क्योंकि वे कंट्रोल का चावल खाना और खरीदकर लाना पसंद नहीं करते थे। आमदनी घटने के कारण सरकारी राशन दुकानों का रुख करने के लिये उन्हें मजबूर होना पड़ा। दूसरी तरफ एक खबर है कि बीते चार सालों में छत्तीसगढ़ में करीब 70 फीसदी आयकर दाता बढ़ गये। इनमें से आधे कोरोना काल के दो वर्षों के भीतर बढ़े। अब इनकी संख्या प्रदेश में 11 लाख से अधिक हो गई है। पैन कार्ड बनवा लेना तो एक सामान्य प्रक्रिया है पर टैक्स देने वालों की संख्या बढऩे का मतलब है कि लोगों की आमदनी बढ़ी। कुछ की गरीबी बढ़ी क्योंकि उन्होंने राशन दुकानों का रुख किया, कुछ की आमदनी ज्यादा होने लगी, इनकम टैक्स देने लगे।
बिना टिकट यात्रा का आंदोलन
कोरोना के बहाने से रेलवे ने टिकटों पर हर तरह की रियायती सेवा बंद कर दी है। उल्टे पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेनों को भी स्पेशल के नाम से चलाकर अतिरिक्त राशि वसूल रही है। रेलवे के तर्क से लोग असहमत हैं कि कोरोना काल में यात्रियों की भीड़ कम रहे इसलिये ऐसा किया गया है।
रायगढ़ से लेकर गोंदिया तक हजारों यात्री हैं जो रोजाना अपनी आजीविका के लिये ट्रेनों में सफर करते हैं। मासिक सीजन टिकट पर रोक इनकी जेब पर भारी पड़ रहा है। लोगों में गुस्सा है पर व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। सोचिये, मुम्बई में क्या हाल होगा। लोकल ट्रेनों को तो वहां लाइफ लाइन कहते हैं। लाखों की संख्या में लोग सफर करते हैं। इसके बिना वे शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जा नहीं सकते। वहां भी काम-धंधे, नौकरी पर निकलने वालों पर मासिक टिकट बंद होने का असर पड़ा है। इस पर रेलवे का ध्यान खींचने आंदोलन शुरू कर दिया गया है। बिना टिकट सफर करने का आंदोलन। मासिक टिकट पर फैसला नहीं होगा तो बिना टिकट यात्रा करेंगे, इन यात्रियों ने तय किया है। इससे जुड़ी खास बात यह है कि वहां वकीलों ने तय किया है कि वे बिना टिकट पकड़े जाने वाले यात्रियों का मुकदमा मुफ्त लड़ेंगे, कोई फीस नहीं लेंगे। अपने यहां वकीलों ने इतना ही किया है कि इससे जुड़े मुद्दों को हाईकोर्ट ले गये हैं। यात्री सुविधाओं को लेकर लोकल ट्रेन चलाने का आदेश हुआ। पर, मासिक सीजन टिकट पर बात नहीं बनी है। ([email protected])
नये जिले की नई पहचान
वैसे तो हर नये जिले की पहचान तब बन जाती है जब वहां कलेक्टर और एसपी की नियुक्ति हो जाती है, पर जिले के बाहर लोगों को इसका तब पता चलता है जब यहां की गाडिय़ां अपनी अलग पहचान के साथ दौड़ें । गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले का गठन 10 फरवरी 2020 को हुआ था। जिला बनने के 17 महीने बाद अब उसके अस्तित्व के बारे में दूसरे जिलों, प्रदेश और देश में यहां से निकली गाडिय़ों से पता चल सकेगा। राजपत्र में यहां की गाडिय़ों के लिये एक अलग रजिस्ट्रेशन नंबर सीजी-31 जारी कर दिया गया है। पहला नंबर ए 0103 एक महिला की कार आकांक्षा जैन के लिये एलॉट किया गया।
पार्षदों, सरपंचों पर बड़ी जिम्मेदारी...
दो अगस्त से शुरू होने वाले स्कूल को लेकर बच्चों और अभिभावकों में बड़ी हलचल है। बच्चों में जोश है तो अभिभावकों में चिंता मिश्रित उत्साह। 10वीं, 12वीं की कक्षायें शुरू करने के लिये शिक्षा विभाग ने अपने मापदंड तय कर दिये हैं पर प्राथमिक और मिडिल स्कूल के लिये एक नये तरह का फरमान है। गांवों में सरपंचों की अनुमति से और शहरों में पार्षदों की लिखित सहमति मिलने पर ही स्कूलों को खोला जा सकेगा। कई लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि पार्षदों और सरपंचों में किस तरह की विशेषज्ञता है जो वे बतायेंगे कि स्कूल खोले जायें या नहीं। महामारी का प्रकोप फैल सकता है या नहीं, यह तो स्कूल के बाहर-भीतर पालन किये जाने वाले प्रोटोकॉल और उस क्षेत्र में मिलने वाले पॉजिटिव मरीजों की संख्या से तय होगा। पार्षद और सरपंच मंजूरी देने या नहीं देने के लिये कौन सा मापदंड अपनायेंगे? शिक्षा विभाग द्वारा 16 बिन्दुओं का एक दिशा-निर्देश जारी किया गया है जिसमें इस बारे में कुछ नहीं बताया गया है। उसमें एक बात तो स्पष्ट रूप से लिखी गई है कि उस क्षेत्र की पॉजिविटी रेट एक प्रतिशत से कम होनी चाहिये। और यह डेटा स्वास्थ्य विभाग के पास होता है। कहीं ऐसा तो नहीं सरपंचों और पार्षदों को सामने करके शिक्षा विभाग अपने सिर पर आने वाली किसी मुसीबत से बचना चाहता है?
इस बार भी ढील नहीं बप्पा...
गणेशोत्सव पर बीते साल की तरह इस बार भी रायपुर जिला प्रशासन ने कड़ी पाबंदियां लगाई है। गणेश पंडाल की लम्बाई चौड़ाई 15 फ़ीट से अधिक नहीं, प्रतिमा चार फीट से ऊंची नहीं होगी। पांच हजार वर्गफीट खाली जगह दर्शन करने वालों के लिये होनी चाहिये पर कुर्सियां नहीं लगाई जायेंगीं। दर्शन के लिये पहुंचने वालों का नाम व फोन नंबर एक रजिस्टर में दर्ज करना होगा। एक समय पर 20 से ज्यादा लोग इक_े नहीं होंगे। विसर्जन यात्रा, डीजे आदि प्रतिबंधित रहेंगे। इलाका यदि कंटेनमेन्ट जोन घोषित कर दिया गया तो सार्वजनिक पूजा नहीं होगी। गाइडलाइन बीते साल की तरह ही है। पर तब कोरोना संक्रमण का फैलाव बढ़ रहा था। इस समय घट रहा है। हालांकि तीसरी लहर आने की भविष्यवाणी वैज्ञानिक कर चुके हैं और सितम्बर में इसके पीक पर होने का अनुमान लगाया गया है। गणेश चतुर्थी पर्व 10 सितम्बर से ही शुरू होगा। शायद प्रशासन ने इसीलिये ढील नहीं दी है। ([email protected])
सबको पास तो कर दिया, अब आगे?
माध्यमिक शिक्षा मंडल की 12वीं बोर्ड की परीक्षा इस बार घर बैठे ली गई। नतीजतन, 2.5 लाख विद्यार्थियों में से 97.43 प्रतिशत पास हो गये। इनमें से भी 95.44 प्रतिशत विद्यार्थियों ने प्रथम श्रेणी में सफलता हासिल की है। नतीजा अभिभावकों और छात्रों को सुकून देने वाला रहा। उन शिक्षकों को तो और भी अच्छा लगा होगा, जो अपने विद्यार्थियों के खराब परफार्मेंस पर अपने ऊपर ऊंगली उठने की चिंता कर रहे थे। अब इस बेहतरीन नतीजे के बाद शुरू है कॉलेजों में एडमिशन की आपाधापी। कॉलेजों में सब मिलाकर सीटों की संख्या पास होने वाले विद्यार्थियों से एक तिहाई भी नहीं है। नीट और जेईई के जरिये होने वाली प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं को छोड़ भी दें तो विज्ञान, वाणिज्य, कला जैसे सामान्य विषयों में भी प्रवेश के लिये इस बार मारामारी मचने वाली है। इन विषयों के लिये केन्द्रीय विश्वविद्यालय को छोडक़र बाकी जगह प्रवेश परीक्षा नहीं होती। अब प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। उच्च शिक्षा विभाग ने आवेदन से संबंधित विषय में मिले गुणात्मक अंकों के आधार पर एडमिशन देने का निर्देश कॉलेजों को दिया है। इसके बावजूद नामचीन कॉलेजों में प्रवेश के लिये बड़ी संख्या में आवेदन आने की संभावना है। विद्यार्थी 12वीं बोर्ड में कहने के लिये तो प्रथम श्रेणी में पास हो गये लेकिन जरूरी नहीं कि उन्हें मनपसंद कॉलेजों में प्रवेश मिल जाये। कट ऑफ लिस्ट ऐसे कॉलेजों में बहुत अधिक रहने के आसार हैं। ऐसी स्थिति में दो साल से तालाबंदी झेल रहे निजी कॉलेजों के दिन फिरने वाले हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में जहां पिछले साल करीब 70 प्रतिशत सीटें खाली रह गई थीं, रौनक बढ़ सकती है।
एक डेढ़ फीट का कुआं..
नक्सल प्रभावित बस्तर में तबादले को वे अफसर काला पानी नहीं मानते जिनको यहां काम करने का तौर तरीका समझ में आ गया है। कई ऐसे अफसर हैं जिनके घर-परिवार तो रायपुर, बिलासपुर, भिलाई जैसे ज्यादा सुविधाजनक शहरों में हैं पर खुद कभी बस्तर छोडक़र नहीं आना चाहते। इसकी वजह क्या हो सकती है? दरअसल नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण यहां विकास कार्यों के लिये बजट अतिरिक्त दिया जाता है। पर राशि खर्च किस तरह की जा रही है, प्राय: इस पर निगरानी नहीं रखी जाती। बहुत से काम कागजों में हो जाते हैं। कोंडागांव जिले में आम आदमी पार्टी ने धरातल पर सरकारी योजनाओं की स्थिति जांचने का इस समय अभियान चला रखा है। पार्टी ने पाया कि मनरेगा के तहत कई गांवों में दर्जनों ऐसे कुएं हैं जिनकी गहराई एक या दो फीट ही है। पानी भले न निकले, बिल और तस्वीरें निकालने के लिये इतनी गहराई काफी है। आप पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक प्रेस वार्ता ली और आरोप के साथ कुछ सबूत भी सामने रखे। उनका यह भी कहना है कि अफसरों को इस पर कार्रवाई का आग्रह करते हुए ज्ञापन दिया गया है पर वे अपनी जगह से हिलने के लिये तैयार नहीं हैं। कई जगहों पर तो इस अधूरे काम का भी मजदूरों को उनकी मेहनत का भुगतान नहीं किया गया है।
किसके दामाद ने क्या किया था?
आम तौर पर केन्द्रीय मंत्री राज्य सरकारों के फैसले पर सीधे कुछ बोलते नहीं, चाहे वह विपक्ष की सरकार क्यों न हो। लेकिन जिस तरह से चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज को खरीदने के छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले पर पीयूष गोयल और माधवराव सिंधिया की प्रतिक्रिया आई है, वह प्रत्याशित नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि प्रदेश के भाजपा नेताओं का विरोध में जारी वक्तव्यों का असर नहीं पडऩे वाला इसलिये राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को सामने लाया गया। इन प्रतिक्रियाओं का बघेल ने जवाब भी सोशल मीडिया के जरिये दिया और कहा कि हम तो कम से कम खरीदने का काम कर रहे हैं, बेचने का नहीं, जो केन्द्र सरकार कर रही है। उन्होंने कहा, मेडिकल कॉलेज के साथ-साथ नगरनार संयंत्र को भी खरीदने जा रहे हैं।
भाजपा के आरोप के मुख्य तत्व ‘कर्ज में डूबे दामाद के मेडिकल कॉलेज को उबारने के लिये सौदा’ का भी लोगों ने पता किया। मालूम हुआ कि कॉलेज के एक डॉयरेक्टर डॉ. एमपी चंद्राकर के भाई विजय चंद्राकर के बेटे से मुख्यमंत्री की पुत्री का विवाह हुआ है। पर इसे दामाद का कॉलेज इसलिये नहीं कहा जा सकता क्योंकि एमपी चंद्राकर और विजय चंद्राकर के बीच कोई व्यावसायिक संबंध नहीं हैं। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का बयान आने पर सोशल मीडिया पर लोगों ने पूछा है- वे किसके दामाद थे, जिन्होंने दाऊ कल्याण सिंह अस्पताल को 50 करोड़ रुपये में गिरवी रख दिया था?
इस कॉलेज के विवाद में जिन डॉ. एम पी चंद्राकर से भूपेश बघेल के दामाद का संबंध है, वे कॉलेज के 14 डायरेक्टरों में से एक हैं, और कॉलेज में उनके शेयर कुल 4 फ़ीसदी हैं। कॉलेज के रिकॉर्ड के मुताबिक यहां 59 शेयर होल्डर हैं। इस तरह डॉ. एम पी चंद्राकर एक बहुत ही छोटे शेयर होल्डर हैं, और कॉलेज के संस्थापकों में से एक हैं। पहले वे कॉलेज की गवर्निंग बॉडी के एमडी थे, अब नहीं है, अब वे सिर्फ 14 डायरेक्टरों में से एक हैं। ([email protected])
बृहस्पति सिंह को एसपीजी मिले...?
सरगुजा पुलिस ने रामानुजगंज विधायक के काफिले पर हुए हमले को रोड रेज का मामला बताया है। उसकी जांच में हत्या की साजिश जैसी बात नहीं आई है। गृह मंत्री ने भी विधानसभा में कहा कि विधायक पर हमला नहीं हुआ। काफिले की एक कार विधायक से काफी दूरी पर चल रही थी, जिस पत्थर फेंके गये। दूसरी ओर, सीधे स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाकर विधायक बृहस्पति सिंह ने प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया। अब कहा जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया की मध्यस्थता से मामला सुलझ चुका है, पर आपस में पैदा हुआ मनभेद तुरंत खत्म होगा या नहीं देखना होगा। सरगुजा की लगभग तीनों जिला कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों ने विधायक के आरोप को अनर्गल बताते हुए उनके पार्टी से निष्कासन की मांग भी उठा दी है।
बहरहाल, पार्टी इस मामले को किस तरह हल करेगी अलग मसला है। बात यह है कि ऐसा आरोप जिससे सनसनी फैले बृहस्पति सिंह ने पहली बार नहीं लगाये। सितम्बर 2015 में बलरामपुर के तत्कालीन कलेक्टर अलेक्स पॉल मेनन पर भी उन्होंने हत्या की साजिश का आरोप लगाया था। उस समय अख़बारों में विधायक का बयान छपा कि मेनन नक्सलियों के खास हैं। झीरम में कांग्रेस नेताओं की हत्या नक्सलियों ने लैपटॉप पर फोटो देखकर की, ये फोटो मेनन ने ही उपलब्ध कराये होंगे। मेनन पर जोकापाठ गांव के एक वैज्ञानिक की षडय़ंत्रपूर्वक हत्या करा देने का आरोप भी बृहस्पति सिंह ने लगाया।
अभी पिछले जनवरी माह में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें विधायक बृहस्पति सिंह आरोप लगा रहे हैं कि राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम ने उनकी हत्या की साजिश रची है और इसके लिये सात बकरों की बलि भी दी है। नेताम के ऊपर भी उन्होंने मिलता-जुलता आरोप लगाया था कि वे मेरी हत्या कर उनकी सीट से चुनाव जीतना चाहते हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।
सोशल मीडिया पर बृहस्पति सिंह का मुद्दा ट्रेंड कर रहा है। कई लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि वे बार-बार अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगाते हैं, तो उन्हें एसपीजी सुरक्षा क्यों नहीं दे देनी चाहिये?
भाजपा की गुटबाजी सडक़ पर...
नेताओं के साथ दिक्कत यह है कि बीच-बीच में वे भूल जाते हैं कि अब हर जेब में मोबाइल कैमरा है। उनकी हर एक गतिविधि मोबाइल फोन पर पलक झपकते दर्ज हो सकती है। पूर्व मंत्री दयालदास बघेल और पार्टी के जिला महामंत्री विकासधर दीवान के बीच, किसान मोर्चा के आंदोलन के दौरान बेमेतरा में सडक़ पर झड़प हो गई। सामिष गालियों की बौछार हुई, आपस में एक दोनों को देखने की धमकी दी गई। दोनों नेताओं के बीच पहले भी विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान विवाद होता रहा है, पर इस तरह सडक़ पर इतना तू-तड़ाक पहली बार रिकॉर्ड हुआ। कांग्रेस में ऐसी घटनायें सहजता से रफा-दफा कर दिये जाते हैं, पर भाजपा पार्टी विथ डिफरेंस है। सरगुजा में कांग्रेस नेताओं के बीच हुई खींचतान को उसने विधानसभा और बाहर भी उठा रखा है, खुद अपनी पार्टी की इस घटना को वह कितनी संजीदगी से लेती है, कोई कार्रवाई होगी तब पता चलेगा।
शिक्षकों की भर्ती की उम्मीद...
प्रदेश में 2 अगस्त से स्कूलों को खोलने की तैयारी की जा रही है। इस पहल से एक बार फिर उन अभ्यर्थियों को उम्मीद जाग रही है जिनको शिक्षकों के पद पर नियुक्त किया जाना है। छत्तीसगढ़ सरकार में 14580 शिक्षकों की भर्ती की तमाम प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। बस उन्हें नियुक्ति पत्र जारी करना है। अभ्यर्थी इसके लिये आंदोलन कर चुके हैं। अधिकारियों की ओर से आश्वासन मिला था कि अभी कोरोना के कारण सब बंद हैं, जब भी शालायें खुलेंगी उनको नियुक्ति पत्र दे दिया जायेगा। अब जब शालाओं को खोलने का निर्णय हुआ है ये प्रतीक्षारत बेरोजगार सरकार से उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी रुका हुआ नियुक्त पत्र जारी हो जायेगा।
खेतों में उतर जाना एसडीएम का
पथरिया विकासखंड के ग्राम सुल्फा में रोपाई कर रहे किसान उस समय उत्साहित हो गये जब संयुक्त कलेक्टर और एसडीएम प्रिया गोयल उनका हाथ बंटाने के लिये खेत में उतर गई। उन्होंने खुद थरहा लेकर रोपा लगाना शुरू कर दिया। वे जैविक खेती मिशन योजना का काम देखने के लिये ब्लॉक के गावों का दौरा कर रही थीं, इसी दौरान किसानों से बात करने के दौरान धान की रोपाई चल रही खेत में उतर गईं। इसके बाद उन्होंने एकत्र हुए किसानों को जैविक खेती का महत्व और इस सम्बन्ध में सरकार की योजना की जानकारी दी।
चार दिन पहले बिहारपुर में मनेन्द्रगढ़ की एसडीएम ने एक कार्यक्रम में अपनी अप्रिय बोली से शिक्षकों को नाराज कर दिया था। शिक्षक उनके खिलाफ आंदोलन पर भी उतर गये हैं। शिक्षकों ने तो जाति प्रमाण पत्र की दिक्कत दूर करने के लिये यहां शिविर लगाया था, जिसकी सराहना होनी थी। शिक्षक कहते हैं, वे हतोत्साहित हुए। इधर एक एसडीएम यह भी हैं जिन्होंने अपनी ड्यूटी करते हुए किसानों का उत्साह बढ़ाया। हर तरह के लोग, हर जगह होते हैं, सरकारी सेवाओं में भी।
कोई रोहिंग्या नहीं मिला पहाड़ में...
बीते कुछ समय से रोहिंग्या समुदाय के लोगों को अम्बिकापुर में पनाह दिये जाने का मामला उछला है। रोहिंग्या जिनमें ज्यादातर मुसलमान हैं, उन्हें म्यांमार (बर्मा), 1982 में पास किये गये एक कानून के मुताबिक अपना नागरिक नहीं मानता। इसके बाद उन्हें सभी सरकारी सेवाओं और नागरिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। हालांकि इनके पूर्वज किसी जमाने में बौद्ध राजा के नौकर हुआ करते थे। पर वहां अल्पसंख्यक हैं। थाइलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित कई देशों में इन्होंने प्रताडऩा से तंग आकर शरण ली है। भारत भी इन देशों में शामिल हैं। भारत में करीब 40 हजार से अधिक रोहिंग्या होने का अनुमान है। ज्यादातर लोग जम्मू में हैं। सरकार की नीति इन्हें शरण देने की नहीं है। उनके म्यांमार और बांग्लादेश वापसी के लिये सरकार प्रयासरत है। ऐसे में अगर छत्तीसगढ़ में किसी जगह पर रोहिंग्या होने का मामला सामने आता है तो यह सनसनी पैदा करता है और राजनीतिक, चुनावी मुद्दा भी बनता है। अम्बिकापुर में कुछ भाजपा नेताओं ने हाल ही में आरोप लगाया था कि कांग्रेस सरकार महामाया पहाड़ में अवैध रूप से पहुंचे रोहिंग्या लोगों को बसा रही है। प्रशासन कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है।
कांग्रेस की छात्र इकाई ने इन आरोपों के बाद रोहिंग्या मुसलमानों की तलाशी का अभियान चलाया है, जो निश्चित ही आरोपों का जवाब देने के लिये है। उन्होंने महामाया पहाड़, जहां उनके बसे होने की बात की जाती है, के झगरपुर, भगवानदास गली, मदबगीचा, रसानगर आदि इलाकों का तीन दिन तक पैदल भ्रमण किया और वहां रहने वालों के दस्तावेजों की जांच की। एसएसयूआई ने निष्कर्ष निकाला है कि यहां पर कोई भी रोहिंग्या शरणार्थी नहीं रहता।
ऐसा करके कांग्रेस की छात्र इकाई ने प्रशासन की एक तरह से मदद ही की है। वैसे यह तलाशी प्रशासन को ही करनी चाहिये। भाजपा के पास जो सबूत या जानकारी हैं उन्हें भी सामने लाया जाना चाहिये ताकि पता चल सके कि उनके आरोपों में कितनी सच्चाई है।
रोका-छेका अभियान की नई व्याख्या
सरकारी भर्ती विज्ञापन नहीं निकलने से युवाओं में निराशा है। जिन नौकरियों के लिये आवेदन लिये, परीक्षा ली गई-उनमें नियुक्ति का आदेश भी जारी नहीं होने की समस्या का सामना वे कर रहे हैं। ऐसे बेरोजगार युवाओं ने सोशल मीडिया पर रोका-छेका अभियान की व्याख्या अपने तरीके से की है। इसमें व्यंग्य भी है, दर्द भी।
पेगासस की दहशत
पेगासस नाम के जासूसी सॉफ्टवेयर की खबरें अब पूरे हिंदुस्तान को इस बात का भरोसा दिला रही है कि सिर्फ उन्हीं लोगों के टेलीफोन जासूसी से परे हैं, जो महत्वहीन हैं, और जिनसे सरकारों को कोई खतरा नहीं लगता है। इसके अलावा बाकी तमाम लोगों के फोन में सरकार की निगरानी में हैं, और फोन के रास्ते उनकी निजी जिंदगी भी खुली हुई है।
अभी छत्तीसगढ़ के व्हाट्सएप नंबरों को लेकर नक्सलियों की तरफ से एक ग्रुप बनाया गया जिसमें छत्तीसगढ़ के सैकड़ों पत्रकारों को जोड़ा गया। ग्रुप का नाम ही लाल सलाम था और शुरू होते ही उसमें नक्सलियों के प्रेस नोट और उनका प्रोपेगेंडा मटेरियल पोस्ट होने लगा. एक-एक करके सारे लोग ग्रुप छोडऩे लगे। इसके बाद एक व्यक्ति ने ग्रुप बनाने वाले लोगों के नाम यह अपील पोस्ट की कि सरकार की निगरानी सब लोगों पर है, इसलिए इस ग्रुप से अलग कर दें।
हालांकि आज के माहौल की दहशत ऐसी है कि नामी-गिरामी पत्रकारों ने भी आनन-फानन यह ग्रुप छोड़ दिया, जो कि नक्सलियों ने अपने प्रेस नोट या प्रचार सामग्री को फैलाने के लिए बनाया है। मीडिया के लोगों पर ऐसे प्रेस नोट पाने को लेकर कोई जुर्म कायम नहीं हो सकता क्योंकि नक्सली तो कोई न कोई नंबर हासिल करके उस पर अपने प्रेस नोट भेजते ही हैं, लेकिन दहशत कुछ ऐसी है कि कौन सरकार से पंगा ले, यह सोचकर लोग तुरंत यह ग्रुप छोड़ दे रहे हैं। ([email protected])
एयरपोर्ट का नल कट जाएगा?
पीएल पुनिया के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पहुंचे कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। इससे नाराज कांग्रेसियों ने एयरपोर्ट के अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाई। राजेंद्र तिवारी चिल्ला रहे थे कि वो कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हैं, फिर भी अंदर जाने नहीं दिया जा रहा है।
दरअसल, कोरोना की वजह से एयरपोर्ट में प्रवेश केे नियमों को सख्त कर दिया गया है। टिकट काउंटर भी बंद है। राजनीतिक दलों के लोगों को यह सुविधा दी गई है कि वीआईपी को लाने-छोडऩे वालों की सूची एक दिन पहले देने पर चार-पांच लोगों को अंदर प्रवेश की अनुमति दी जाती है। पीसीसी ने भी सूची एयरपोर्ट अफसरों को भेजी थी, लेकिन सूची इतनी लंबी थी कि उनमें से चार-पांच लोगों को ही अनुमति जारी की गई। ऐसे में बाकियों का भडक़ना स्वाभाविक था।
प्रभारी महामंत्री चंद्रशेखर शुक्ला ने तो अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं मिलने पर अपनी बेज्जती मान लिया। चंद्रशेखर गुस्से से मेयर एजाज ढेबर को यह कहते सुने गए कि एयरपोर्ट का नल कनेक्शन तत्काल काट दिया जाए। तब अफसरों को समझ में आएगा। ढेबर ने धीरे से उन्हें समझाया कि एयरपोर्ट रायपुर नगर-निगम की सीमा से बाहर है, और यह माना नगर पंचायत में आता है। माना नगर पंचायत में भाजपा काबिज है। थोड़ी देर हल्ला-गुल्ला मचाने के बाद कांग्रेसजन पुनिया को लेकर निकल गए।
अकबर की जुबानी पते की बात
राजनांदगांव में वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने सहकारी बैंक अध्यक्ष नवाज खान के शपथ समारोह में इशारों में कई कांग्रेसी नेता को पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में समझौता वाली विचाराधारा के जरिए रमन सरकार से नजदीकी रखने पर खिंचाई की। अपने भाषण में स्वयं को मिसाल के रूप में पेश करते कहा कि रमन के गृह जिले कवर्धा में विधायक होने के बाद भी किसी भी सरकारी कार्यक्रम में जाने का इरादा नहीं किया। राजनीति को एक विचारधारा मानते हुए अकबर ने कतिपय फूल छाप कांग्रेसियों को आगाह करते व्यक्तिगत संबंधो की आड़ में निजी हितो को साधना पार्टी के लिए घातक बताया।
अपनी बात में उन्होनें खुलकर कहा कि 15 साल के शासन में नांदगांव के कांग्रेसी रमन सिंह के नजदीकी रहे। रमन की चुनाव दर चुनाव बढ़ी लीड़ के पीछे कांग्रेसियों का भाजपा से अप्रत्यक्ष जुड़ाव एक जरूरी वजह रही। समझौता की राजनीति करते नांदगांव के कांग्रेसियों को जब अकबर समझाईश दे रहे थे उस वक्त कई कांग्रेसी बगले झांक रहे थे। बताते है कि अकबर के पास नांदगांव के कई कांग्रेसियों से रमन के साथ उठने-बैठने से लेकर चुनाव में पार्टी लाईन से परे जाकर भाजपा को अपरोक्ष रूप से मदद करने का पुलिंदा है। प्रभारी मंत्री रहते अकबर ने ऐसे कांग्रेसियों को अपने पास फटकने नही दिया। डेढ़ दशक के भाजपा राज में कई कांग्रेसियों ने अपने रिश्तेदारों और स्वयं के लिए चिकित्सकीय एवं अन्य कारणों से आर्थिक मदद लेने की जानकारी भी पार्टी आलाकमान के पास मौजूद है। अकबर के कही बातों को निष्ठावान कांग्रेसियों से खूब वाहवाही मिली वही पिछले दरवाजें से भाजपा सरकार से उपकृत रहे कांग्रेसी नेताओं के चेहरों की हवाईयां उड़ती दिखी।
सुकमा के सहदेव को बादशाह की शाबाशी...
छत्तीसगढ़ के दूरस्थ सुकमा जिले के छिंदगढ़ ब्लॉक का सहदेव इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर छाया हुआ है। दो साल पहले जब इसने स्कूल के कमरे में टीचर के कहने पर एक गाना गाया- सोनू मेरी डार्लिंग, बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना रहे। पटनाएचडी नाम के हैंडल से किसी ने इस गीत को इंस्टाग्राम पर डाल दिया। लोगों ने इस खनकती, मासूस और आत्मविश्वास से सराबोर आवाज को खूब सराहा, हजारों लाइक्स मिल गये। बात इतनी दूर तक फैली कि 1.24 मिनट के वीडियो को देखकर गायक टोनी कक्कड़ को कहना पड़ा कि इसने तो मुझसे भी बढिय़ा गाया। स्कूल ड्रेस में यूं ही बिना किसी वाद्य यंत्र और तैयारी के गाये गये गीत का यह हाल है कि रोज उसकी आवाज के साथ नये नये बैकग्राउन्ड म्यूजिक के साथ, रि मिक्स यू ट्यूब पर अपलोड हो रही है, जिसे लाखों लोग देख रहे हैं। एक करोड़ के आसपास तो सहदेव का ओरिजनल वीडियो ही देखा जा चुका है। जिन लोगों ने रिमिक्स डाला है उनमें प्रख्यात बॉलीवुड व पॉप सिंगर बादशाह के अलावा सूफिया, रियाज आदि सिंगर भी शामिल हैं। बादशाह ने तो सहदेव से सम्पर्क भी किया है और चंडीगढ़ बुलाया है। वे अपनी क्रियेटिव टीम के साथ सहदेव को थोड़ा प्रशिक्षण देंगे और उनके साथ गाना रिकॉर्ड करेंगे।
यह सोशल मीडिया का ही कमाल है जिसने सैकड़ों किलोमीटर रिमोट इलाके के छिंदगढ़ ब्लॉक में छिपे हुए कलाकार को महानगरों में स्थापित लोगों ने पहचान लिया है।
विधायक पर हमले में किसका हाथ?
रामानुजगंज के विधायक बृहस्पति सिंह के काफिले पर अम्बिकापुर में बीती रात हमला हो गया। उनकी फॉलोगाड़ी पर पत्थर फेंके गये जिससे शीशा टूट गया। पुलिस ने दो लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की । खास बात यह है कि इनमें से एक को स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का रिश्तेदार बताया जा रहा है। रात में ही सिंहदेव ने इस हमले की कड़ी निंदा की और कहा कि जो भी दोषी हो उन पर कार्रवाई की जाये। इधर विधायक ने यह कहकर सनसनी पैदा कर दी है कि हमला राजनीतिक विद्वेष के चलते हुआ है, क्योंकि उन्होंने हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व की प्रशंसा की थी।
मालूम हो, कि कुछ दिन पहले बृहस्पति सिंह अम्बिकापुर में थे तब पत्रकारों ने उनसे मुख्यमंत्री पद के लिये चल रहे ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर सवाल किया था। विधायक ने खुलकर मुख्यमंत्री बघेल के कामकाज और उनके नेतृत्व की तारीफ की। मुख्यमंत्री बदले जाने की किसी भी संभावना को सिरे से उन्होंने खारिज कर दिया। जाहिर है सिंहदेव समर्थकों को जिनकी सरगुजा में अच्छी-खासी संख्या है, जो उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखने की उम्मीद लगाये हैं, यह बात अच्छी नहीं लगी होगी। पर, प्रतिक्रिया के रूप में हमला? सब कुछ साफ होने में थोड़ा वक्त लग सकता है।
कावडिय़ों के लिये सख्ती के इंतजाम...
गुरु पूर्णिमा के अगले दिन, आज से सावन माह यानि कांवड़ यात्रा का मौसम शुरू हो गया है। पर कोरोना वायरस की तीसरी लहर की आशंका है। कोर्ट की फटकार के बाद यूपी सरकार ने इसके लिये दी गई अनुमति रद्द कर दी। इसके बाद झारखंड सरकार भी सतर्क हो गई। बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिलों के पुलिस अधिकारियों ने संयुक्त बैठक कर यात्रा रोकने की रणनीति बना ली है। छत्तीसगढ़ में कई बोल बम यात्रा समितियां हैं। इनमें से कुछ ने उन राज्यों के पुलिस अधिकारियों से फोन से चर्चा कर जानने की कोशिश की क्या हमें देवघर यात्रा की परमिशन मिल जायेगी? कांवडिय़ों ने यह भी भरोसा दिलाने की कोशिश की कि वे कोविड नियमों का पालन करेंगे। सोशल डिस्टेंस बनाकर चलेंगे। पर जवाब यही मिला कि कोई संभावना नहीं है। सीमाओं पर पुलिस तैनात है, बीच रास्ते से लौटा दिये जायेंगे। यह भी बता दिया गया कि ज्यादा भीड़ रही और संभालने में कोई मुश्किल हुई, तो बल प्रयोग। ([email protected])
दौलत के बादशाह जी पी सिंह, ईमानदारी की पॉलिसी नहीं ली
छत्तीसगढ़ के एडीजी जीपी सिंह की लगाई गई दोनों याचिकाएं कल हाई कोर्ट में खारिज हो गईं. अदालत के फैसले को देखें तो उसमें राज्य शासन के एसीबी की तरफ से जीपी सिंह की संपत्ति का जो ब्यौरा पेश किया गया है, वह आंखें चकाचौंध कर देता है। यह लिस्ट अभी अधूरी है और जांच अभी जारी है।
सरकारी एजेंसी का कहना है कि अब तक 6 करोड़ 40 लाख से अधिक की संपत्ति मिल चुकी है जबकि पूरी नौकरी में जीपी सिंह को तनख्वाह पौने दो करोड़ ही मिली है। अब अनुपातहीन संपत्ति का पहली नजर में यह एक बड़ा पुख्ता मामला दिखता है, जिसमें जीपी सिंह की संपत्ति में 68 लाख से अधिक निवेश म्यूचुअल फंड में किया गया, मकान और जमीन में 55 लाख रुपए से अधिक लगाए गए, जीवन बीमा में 39 लाख रुपए से अधिक लगाए गए, उनके पिता के नाम पर 48 लाख से अधिक, मां के नाम पर 1करोड़ 10 लाख से अधिक, बेटे के नाम पर 34 लाख से अधिक, पत्नी के नाम पर एक करोड़ से अधिक, का हिसाब मिल चुका है. इन सबका टोटल 6 करोड़ 41 लाख से अधिक है। लेकिन दिलचस्प बात यह है जीपी सिंह और परिवार के लोगों के नाम पर इतना बड़ा-बड़ा बीमा लिया गया है जिसकी हद नहीं, और बड़ी संख्या में बीमा पॉलिसी ली गई हैं, हर बरस एक एक व्यक्ति के लिए कई-कई बीमा पॉलिसी हैं जिनमें दसियों लाख रुपए का भुगतान हो रहा है। लेकिन एक सरकारी अधिकारी को अपने तौर-तरीके ठीक रखने से मुफ्त में जो बीमा हासिल होता है, जी पी सिंह ने उसकी कोई फिक्र नहीं की।
जब भी सरकार में जी पी सिंह की चर्चा होती है तो लोगों को पिछले मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के एक मंत्रिमंडल की याद आती है जिसमें बृजमोहन अग्रवाल ने रायपुर के आईजी जी पी सिंह की महीने की कमाई का आंकड़ा तमाम लोगों के सामने ही गिनाया था, यह सबको मालूम था कि जी पी सिंह की कमाई कैसी है, लेकिन उसके बाद भी तरह-तरह की बहादुरी के मेडल और राष्ट्रपति के मेडल जी पी सिंह को मिलते रहे, और जाहिर है कि ऐसे में ईमानदार कर्मचारियों का हौसला तो पस्त होता ही है।
अब मंत्री बन गये हैं, अब तो मजाक उड़ाना छोड़ दें..
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ विधायकों में से एक आबकारी मंत्री कवासी लखमा अपने विनोदी स्वभाव के लिये जाने जाते हैं। लोग भी उनको हल्के फुल्के अंदाज में लेकर ठहाके लगाते और भूल जाते हैं। पर इस बार बात बिगड़ गई है। भाजपा की प्रदेश प्रभारी महासचिव का नाम उन्होंने हंसी-हंसी में फूलन देवी बताया फिर जाकर असली नाम लिया। बस्तर के भाजपा नेता पूर्व विधायक डॉ. सुभाऊराम कश्यप ने इसे गंभीरता से लिया है। उनका कहना है कि प्रेस के सामने भाजपा नेत्री पर लखमा की ऐसी टिप्पणी करना अपमानजनक है। अब वे केबिनेट मंत्री हैं, इस तरह मसखरी करना उन्हें शोभा नहीं देता। कश्यप कहते हैं कि कांग्रेस में भी महिला नेत्रियां हैं, मंत्री जी यह मत भूलें। कोई उन्हें कुछ कह दे तो? कश्यप ने तो सलाह दे डाली है कि जिस तरह मुख्यमंत्री का संदेश पढऩे के लिये लखमा जी के लिये वाचक की व्यवस्था की जाती है, उसी तरह कब कहां क्या बोलना है, यह बताने के लिये भी एक स्थायी व्यवस्था उनके लिये कर दी जाये।
मजदूरी करते करते बना प्रोफेसर
लोरमी के नवागांव जैत, गांव के मुकेश रजक को घर के खर्चों में मदद करने के लिये स्कूल के दिनों में ही मजदूरी करनी पड़ गई। अच्छे नंबरों से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी उसे पढ़ाई बंद करने की नौबत आ गई, क्योंकि वह गांव से बाहर जाकर पढऩे का खर्च नहीं उठा सकता था। इसी दौरान किस्मत से पास के ग्राम कोतरी में महाविद्यालय खुल गया। पहले ही बैच में उसे प्रवेश मिल गया। इसी दौरान वहां के प्राध्यापकों ने उसका हौसला देख प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये तैयारी करने की सलाह दी। आगे की पढ़ाई के लिये मुकेश बिलासपुर आ गये, पर यहां भी आर्थिक संकट था। यहां उनके चाचा रहते थे। वे उनकी छोटी सी होटल में हाथ बंटाने लगे। चाचा ने उसके लक्ष्य को समझा, काम कम लेते थे, मजदूरी थोड़ी अधिक देते थे। पीजी की डिग्री लेते तक उसने थोड़े पैसे जमा कर लिये। सीधे यूपीएससी की तैयारी के लिये दिल्ली चले गये। यूपीएससी में लिखित परीक्षा उसने पास कर ली, पर साक्षात्कार में रुक गये। मुकेश ने हौसला टूटने नहीं दिया। सीजी पीएससी में सहायक प्राध्यापक के लिये परीक्षा दी और विभिन्न चरणों को पार करने के बाद उसका चयन हो गया। एक छोटे से गांव से, स्कूल के दिनों में मजदूरी करने, कॉलेज के दिनों में जूठे-कप प्लेट धोकर खर्च चलाने वाले इस नौजवान को गांव, शिक्षक और दोस्तों की ओर से भरपूर शाबाशी मिल रही है।
रेत ढोने वालों के निशाने पर एसडीएम
छत्तीसगढ़ में अनेक नदियों की छाती अवैध रेत उत्खनन से छलनी हो रही है। जाहिर है यह अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के संरक्षण के बिना नहीं हो रहा है। पिछले वर्षों से पर्यावरण सम्बन्धी नियम कुछ कड़े किये गये हैं। विधिवत घाटों की नीलामी करने, तय स्थानों से ही खनन करने और मशीनों का इस्तेमाल नहीं करने का निर्देश है, जिसका उल्लंघन हो रहा है। यही हाल कसडोल इलाके में महानदी का है। यहां रेत खनन करने वालों ने एसडीएम की कार्रवाई पर सवाल खड़ा कर दिया है। बड़ी संख्या में ट्रेक्टर, ट्रक के साथ उन्होंने एसडीएम का दफ्तर घेर लिया। उनके आने की खबर मिली तो दफ्तर से एसडीएम गायब हो गये। ट्रक, ट्रेक्टर मालिकों का कहना है कि एक-एक गाड़ी को पकडक़र 15-20 हजार की वसूली कर रहे हैं। इतना तो पहले कभी नहीं हुआ। जनपद सदस्यों का कहना है कि पंचायतों के सरकारी निर्माण के लिये निकाली गई रेत की गाड़ी भी रोककर वसूली की जा रही है। सभी रेत निकासी अवैध नहीं है। पर, रेत परिवहन करने वालों को डर बना रहता है कि उनकी गाड़ी का चालान कर महीने दो महीने के लिये थाने में न खड़ी कर दी जाये।
एसडीएम मिथिलेश डोंडे कहते हैं कि उन्होंने कई रेत परिवहन करने वालों से जीवनदीप समिति के लिये रसीद देकर राशि ली है पर बिना रसीद एक रुपया नहीं लिया। एसडीएम के खिलाफ दूसरी बार कलेक्टर बलौदाबाजार को ज्ञापन दिया गया है। अब देखना है क्या होता है, वसूली रुकेगी या रेत का परिवहन। ([email protected])
महिला का साहस व गार्ड की नासमझी
डकैती की कोशिश को नाकाम कर बदमाशों को दबोचने वाली राजधानी के खमतराई की गृहिणी के साहस की हर कोई प्रशंसा कर रहा है। महिला ने आत्मरक्षा के लिये किसी तरह का प्रशिक्षण लिया था या नहीं पर उनकी तत्परता और व्यावहारिक ज्ञान बहुत काम आया। घटना का दूसरा हिस्सा गार्ड का है। अपरिचित और संदिग्ध व्यक्तियों को रोकने के लिये इनकी ड्यूटी लगाई जाती है। गार्ड के रोकने पर बदमाशों ने एक नंबर डायल कर फोन थमाते हुए कहा- हम इलेक्ट्रिशियन हैं, हम विकास के फ्लैट में जा रहे हैं- लो बात कर लो। बदमाश के लगाये हुए फोन नंबर पर बात करके सेक्यूरिटी गार्ड संतुष्ट हो गया और उन्हें भीतर जाने दिया। पर दरअसल बात फ्लैट के मालिक से नहीं कराई गई थी, बदमाश ने अपने ही एक साथी से बात करा दी थी। गार्ड ने बिना क्रास चेक किये उन्हें भीतर जाने दिया। हमारे आसपास दर्जनों सेक्यूरिटी सर्विस एजेंसियां फैली हुई हैं। इस घटना से पता चलता है कि इन्हें विपरीत परिस्थितियों पर चतुराई से कैसे काम लेना है, इसकी ट्रेनिंग नहीं दी जाती। फ्लैट मालिक से गार्ड ने अपने फोन से बात की होती तो बदमाशों की पोल गेट पर ही खुल जाती और वे वहीं से भाग खड़े होते।
सिंधिया और छत्तीसगढ़ की हवाई सेवा
एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ओर से जारी रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के लिये उत्साहजनक है। बिलासा बाई एयरपोर्ट चकरभाठा से इस एक माह में 2334 यात्रियों ने उड़ान भरी। जगदलपुर के मां दंतेश्वरी एयरपोर्ट से 2614 यात्रियों ने सफर किया। संख्या इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि कोविड संक्रमण के बावजूद यात्रियों की संख्या में वह गिरावट नहीं आई, जिसकी आशंका थी। दरअसल, इन दोनों ही हवाईअड्डों से नियमित सेवाओं की बहुत दिनों से जरूरत रही है पर केन्द्र ने मांग बहुत देर में सुनी। बिलासपुर में तो लम्बा आंदोलन भी करना पड़ा। बिलासपुर, जगदलपुर दोनों ही जगह से हवाई सेवा में विस्तार की मांग की जा रही है। बिलासपुर में सेना को दी गई जमीन में से 200 एकड़ की वापस मांग की जा रही है ताकि इस अड्डे को 4सी कैटेगरी के रूप में बढ़ाया जा सके। इसके बाद यहां से बड़े विमान उतर सकेंगे, नाइट लैंडिंग हो सकेगी। महानगरों के लिये सीधी सेवायें शुरू हो सकेंगी। जगदलपुर से भी बिलासपुर तक की फ्लाइट, चेन्नई और बेंगलुरु के लिये फ्लाइट की मांग की जा रही है। यहां भी नाइट लैंडिंग और हवाईअड्डे के विस्तार की मांग है।
यात्रियों की यह संख्या तब है जब मौसम के कारण आये दिन कोई न कोई फ्लाइट नहीं उतरती। प्रयागराज और जबलपुर से वह सीधे दिल्ली चली जाती है। एक चि_ी हवाई सेवा के लिये आंदोलन चलाने वालों ने नये केन्द्रीय नागरिक उड्ड्यन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लिखी है। उन्हें याद दिलाया गया है कि स्व. माधव राव सिंधिया ने सदैव छत्तीसगढ़ से लगाव रखा। जब वे रेल मंत्री थे तो महानदी एक्सप्रेस और अमरकंटक एक्सप्रेस उन्होंने शुरू कराया था। रायपुर, बिलासपुर स्टेशनों के आधुनिकीकरण के लिये बजट मंजूर किया था। आप भी छत्तीसगढ़ के साथ उदारता बरतें।
दंतेवाड़ा के दरियादिल कांग्रेसी
हाई कोर्ट से पद की लड़ाई जीतने के बावजूद राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष डॉ. सियाराम साहू को अपनी कुर्सी दोबारा हासिल करने में जो दिक्कत जा रही है उसे सब देख रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के कार्यकाल के अंतिम दिनों में उन्हें आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। सरकार बदलते ही कांग्रेस ने उन्हें हटा दिया। इसके खिलाफ वे हाईकोर्ट गये, जिसका फैसला कुछ दिन पहले आया। दोबारा प्रभार लेने ऑफिस पहुंचे तो वहां हंगामा हुआ, उन्हें जमीन पर भी बैठ जाना पड़ा। अब सिंगल बेंच के आदेश को दूसरे पक्ष ने डबल बेंच में चुनौती दे दी है। देखते ही देखते पूरा कार्यकाल ऐसे ही निकल जाएगा, क्योंकि अगस्त में उनका 3 साल पूरा होने जा रहा है।
ऐसे विपरीत माहौल में दंतेवाड़ा में डॉ साहू का कांग्रेसियों ने गर्मजोशी से स्वागत कर डाला। प्रोटोकॉल से डॉ साहू का दौरा कार्यक्रम जारी हुआ। हाल ही में आयोग, मंडल के अध्यक्ष सदस्य आदि बनाए गए हैं। दंतेवाड़ा के कांग्रेसियों ने उन्हें भी अपनी ही पार्टी का समझ लिया। सर्किट हाउस में उनकी अगवानी की, फूल मालाओं से लादा। फिर, दंतेश्वरी माई का दर्शन कराने भी ले गए। डॉ साहू कांग्रेसियों की इस दरियादिली से बड़े खुश दिखाई दे रहे थे। बहुत बाद में कांग्रेसियों को पता चला कि यह तो हमारी पार्टी के नहीं भाजपा के हैं। तब तो फिर वहां से चुपचाप खिसकने के अलावा उन्हें कोई रास्ता ही नहीं सूझा। दिलचस्प बात यह भी थी कि भाजपा के नेता डॉ साहू के स्वागत के लिए सर्किट हाउस पहुंच भी नहीं पाए थे। शायद उन्हें लगा होगा ये कांग्रेस नेता होंगे। ([email protected])
इतनी रफ्तार से निपटी फाइल !
सीएस अमिताभ जैन तेज रफ्तार से फाइल निपटाने के लिए जाने जाते हैं। पिछले दिनों पीसीसीएफ के रिक्त पद पर प्रमोशन के लिए डीपीसी हुई, और यह बैठक डेढ़ मिनट में निपट गई। इसमें 87 बैच के आईएफएस के मुरूगन पीसीसीएफ के पद पर प्रमोट हो गए, और केन्द्र सरकार में एडिशनल सेक्रेटरी वीएस उमा देवी को प्रोफार्मा प्रमोशन मिल गया।
बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई। इसमें पीएस फॉरेस्ट मनोज पिंगुआ, मंत्रालय और हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी अरण्य भवन से जुड़े थे। सीएस ने सिर्फ इतना ही पूछा कि पैनल में कितने अफसर हैं? इस पर पिंगुआ ने बताया कि कुल पांच अफसरों को रखा गया है। इसके बाद सीएस ने सीनियरिटी क्रम में ऊपर मुरूगन, और उमा देवी को प्रमोट करने के प्रस्ताव पर सहमति दे दी। सीएस ने पिंगुआ से कहा कि वो अभी बैठे हुए हैं, और अभी उनसे फाइल पर दस्तखत ले लें। इस तरह बैठक निपट गई।
जीपी की बारीक पड़ताल
निलंबित एडीजी जीपी सिंह की प्रापर्टी की बारीक पड़ताल हो रही है। जीपी सिंह के परिवार के लोग ओडिशा के बड़बिल में भी रहते हैं, और यह इलाका माइनिंग के लिए काफी मशहूर है। जीपी सिंह के बुजुर्ग पिता को कंपनियों से हर महीने कंसलटेंट के रूप में 8 लाख रुपए मिलने की बात भी सामने आई है। अब एसीबी, कंपनियों का रिकॉर्ड खंगाल रही है, और एक-एक कर पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है।
चर्चा है कि कुछ शैल कंपनियां भी हैं। इसके जरिए ब्लैक मनी को परिजनों के खाते में ट्रांसफर किया गया है। हालांकि ये सब खुलासे अनुमान से काफी कम हैं। वजह यह है कि जीपी सिंह को अपने खिलाफ कार्रवाई का अंदाजा पहले से हो गया था, और वे इसको रुकवाने की कोशिश में भी थे। फिर भी, जितना कुछ मिला है वह भी जीपी सिंह के कैरियर चौपट करने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है। देखना है आगे होता है क्या?
केन्द्र को मिला ऑक्सीजन?
केन्द्र सरकार का यह कहना कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई मौत नहीं हुई, किसी के गले नहीं उतर रहा है। लोगों ने अपनी आंखों के सामने अपनों को, टीवी और अखबारों में लोगों को ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होने के चलते, तड़पते-मरते देखा है। मगर, क्या छत्तीसगढ़ में वैसा ही हुआ, जैसा केन्द्र सरकार कह रही है?
यह सवाल स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के 6 भागों में आये लम्बे ट्वीट से खड़ा किया जा सकता है। राहुल गांधी को टैग किये गये इस ट्वीट में उन्होंने जो लिखा उसका सार यह है कि छत्तीसगढ़ में सरप्लस ऑक्सीजन था। अधिकतम खपत अप्रैल माह में जिस दिन दर्ज की गई, उस दिन प्रदेश में ऑक्सीजन गैस का उत्पादन करीब दुगुना था। सिंहदेव ने कहा है कि प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत की कोई जानकारी किसी को हो तो इसे वे पारदर्शिता के साथ सामने लाना चाहेंगे। उन्होंने इस काम में मीडिया व सामाजिक तथा गैर-सरकारी संगठनों से मदद करने भी कहा है।
यह सही है कि प्रदेश में ऑक्सीजन का उत्पादन सरप्लस था। इसीलिये दिल्ली के लिये टैंकर रेल से भेजे गये। उद्योगपतियों ने उद्योगों में फिर से ऑक्सीजन की अनुमति देकर प्लांट शुरू करने की मांग की, जिसे मान ली गई।
अब केंद्र सरकार के पास अपने जवाब के बचाव में छत्तीसगढ़ का उदाहरण सामने है। स्वास्थ्य विभाग के पास भी कोई आंकड़ा ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का नहीं है।
पर यह पूरी सच्चाई नहीं है। यह सही है की ऑक्सीजन का उत्पादन छत्तीसगढ़ में भरपूर है। पर वह ऑक्सीजन फैक्ट्री से सीधे कोरोना मरीजों के फेफड़ों तक नहीं जा रहा था। ऑक्सीजन की अस्पतालों को समय पर सप्लाई नहीं हुई। ऑक्सीजन सिलेंडरों की भारी कमी पैदा हो गई। अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड नहीं थे, इसके चलते ऑक्सीजन होते हुए भी मरीजों को उपलब्ध नहीं कराये जा सके और दर्जनों मौतें हुई हैं। अगर ऐसा नहीं था तो प्रदेश भर में दूसरी लहर के बाद से द्रुत गति से ऑक्सीजन बेड बढ़ाने की नौबत क्यों आ रही है? अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाने की बात क्यों की जा रही है। जिला ही नहीं तहसील स्तर के अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड क्यों तैयार कराये गये?
मौत के दरवाजे पर खड़े मरीजों के लिये दो चार घंटे में ही ऑक्सीजन मिलने थे, पर नहीं मिले। उनके लिये फैक्ट्रियों के तैयार ऑक्सीजन का महत्व उतना ही था जितना वायुमंडल का है।
स्वीकार किया जाना चाहिए कि कोरोनावायरस से होने वाली मौतों में बहुत से ऐसी थी जो मरीजों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचने के कारण हुई। ऑक्सीजन भरपूर होने के बावजूद अधोसंरचना दुरुस्त नहीं होने का कारण कोरोना के मरीज तक ऑक्सीजन पहुंच नहीं पाया और वे मारे गए। और इस आंकड़े को जुटाने के लिए किसी गैर सरकारी संगठन की जरूरत शायद नहीं पड़ेगी। सरकारी, निजी अस्पतालों से ही मिल जायेंगे।
महंगाई भत्ते पर रुका फैसला
केंद्रीय कर्मचारियों का जब-जब वेतन-भत्ता बढ़ता है, राज्य सरकारों के भी खजाने पर बोझ बढऩा शुरू हो जाता है। प्रदेश भर के कर्मचारियों ने आंदोलन शुरू कर दिया है कि उनको भी केंद्र सरकार की तरह 28 फ़ीसदी महंगाई भत्ता दिया जाए। कोरोना संकट के बाद वैसे भी राज्य सरकार ने 2 साल पहले से तय हो चुके 16 फीसदी महंगाई भत्ते को अब तक नहीं दिया है। अब यह नई मुसीबत सरकार के सामने आ गई है। 20 जुलाई को हुई कैबिनेट की बैठक में महत्व के कई निर्णय लिये गये पर, कर्मचारियों के महंगाई भत्ता बढ़ाने के बारे में विचार नहीं किया गया। वैसे राज्य सरकार देर-सबेर केंद्र सरकार द्वारा घोषित भत्ते के ही अनुरूप अपने कर्मचारियों का भी भत्ता बढ़ा देती है पर फिलहाल तो लग रहा है, लम्बी प्रतीक्षा करनी होगी।
पूर्व विधायकों की पेंशन
पूर्व विधायकों की पेंशन 20 हजार से बढ़ाकर 35 हजार कर दी गई है। यात्रा व चिकित्सा सेवा के लिये उन्हें करीब 4 लाख रुपये की सुविधा और मिलती है। मृत्यु की स्थिति में 50 फीसदी के करीब पेंशन उनके साथी या आश्रित को भी मिलती है।
दरअसल, सभी पूर्व विधायकों की स्थिति एक जैसी है भी नहीं। बहुत के पास एक बार विधायक बन जाने के बाद कोई दूसरा काम नहीं रहता। एक बार विधायक बन जाने के बाद उनका कद इतना बढ़ चुका होता है कि टिकट मिलने के पहले के पेशे को वे दुबारा लौटकर अपना भी नहीं पाते। ऐसे में यह पेंशन ही है जो उनकी आर्थिक स्थिति को संभालकर रखता है।
कई बार सवाल उठा कि कोई पांच साल के लिये विधायक बना तो उसे जीवन भर के लिये पेंशन देने का क्या औचित्य है। सरकारी कर्मचारियों को तो 60 साल की उम्र पूरी करने के बाद यह सुविधा मिलती है। पर इन मांगों पर सदन में फैसला उन्हीं को करना है जिन्हें लाभ मिल रहा है। वे अपने पैरों में क्यों कुल्हाड़ी मारेंगे। आखिर उन्हें भी कभी भूतपूर्व हो जाने का डर तो सताता ही होगा। ([email protected])
वक्त के पहले, और हक से ज्यादा का विवाद
विधानसभा चुनाव में भले ही दो साल से अधिक वक्त बाकी है, लेकिन विशेषकर भाजपा में कुछ दिग्गज नेता चुनाव लडऩे के लिए पसंद की सीट छांट रहे हैं, और वहां सक्रिय हो गए हैं। इस वजह से इलाके में पहले से सक्रिय स्थानीय नेताओं के साथ मनमुटाव शुरू हो गया है। इन सब वजहों से पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के खिलाफ मोर्चा भी खुल गया है।
सुनते हैं कि रामसेवक पैकरा, सूरजपुर जिले की भटगांव सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। इससे पहले वे प्रतापपुर सीट से चुनाव लड़ते आए हैं। प्रतापपुर में पिछले चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा था। यही वजह है कि वे इस बार प्रतापपुर से लडऩे का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। लेकिन भटगांव में उनकी सक्रियता स्थानीय नेताओं को रास नहीं आ रही है, और उन्होंने इसका विरोध भी शुरू कर दिया है।
तीन दिन पहले सूरजपुर जिले की कार्यसमिति की बैठक में पैकरा ने कह भी दिया कि आप लोगों को कांग्रेस का विरोध करना चाहिए। अपनों का विरोध क्यों करते हैं। अभी से चुनावी सक्रियता दिखाएंगे, तो विरोध होना स्वाभाविक है।
समझदारी इसमें रहती है कि ऐसी सीट छाँटी जाए जहां से पार्टी उम्मीदवार हार चुका हो, और अपनी पार्टी के कोई वजनदार नेता वहाँ न हों।
पुटू जैसी महंगी कोई सब्जी नहीं...
छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक रूप से उग जाने वाला पुटू इन दिनों बाजार में सिर चढक़र बोल रहा है। इसकी कीमत हजार रुपये किलो से कम कहीं नहीं है। कुछ दिन पहले यह रायपुर में 1600 रुपये किलो में बिका। एक अनुमान है कि कोरबा, जगदलपुर, महासमुंद, जांजगीर, दंतेवाड़ा और बिलासपुर में कुल मिलाकर इस प्राकृतिक मशरूम का कुल संग्रह बारिश के दिनों में करीब एक हजार क्विंटल ही हो पाता है। हालांकि जंगलों में भटकेंगे तो इसके कहीं ज्यादा मिल जायेंगे। पुटू प्राकृतिक मशरूम है इसलिए इसके स्वाद में अलग ही आनंद होता है। जो सक्षम है, वह एक बार इसे बारिश के दिनों में जरूर खरीद लेता है। बाकी लोग अपना शौक प्लांट में उगाये गए मशरूम से पूरा करते हैं, जो इसके मुकाबले काफी सस्ता होता है और बारहों महीने मिल जाता है।
हालांकि बायोटेक साइंटिस्ट्स कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक रूप से कम से कम 200 प्रकार के जंगली मशरूम पाए जाते हैं, लेकिन इनमें से 27-28 प्रजातियां हैं, जो सब्जी के रूप में खाने लायक होती है। लाल, गुलाबी, नीले रंग के मशरूम को नहीं खाना चाहिए। इनमें एल्केलाइट रसायन की मात्रा ज्यादा होती है जिसे खाने से आप बीमार पड़ सकते हैं। सफेद, दूधिया और हल्के मटमैले पुटू का सेवन किया जा सकता है। बाजार में इन्हीं रंगों के पुटू मिलते हैं।
ऊपर की तस्वीर शरद कोकास की ली हुई है, जो उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर की है।
अब दाम क्यों नहीं घटाते?
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आग लगी हुई है। संसद में विपक्ष ने सरकार की इस बात पर खिंचाई की कि दाम बढ़ाकर केंद्रीय टैक्स के रूप में 3.35 लाख करोड़ रुपये वसूले लिये गये। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इधर दूसरी खबर की और लोगों का ध्यान चला गया है। इसमें बताया गया है कि संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के बीच विवाद खत्म होने कारण क्रूड उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है और इसके दाम में 8 दिनों के भीतर 10 प्रतिशत से भी ज्यादा की कमी आ चुकी है। इधर, इन्हीं पिछले दस दिनों में छत्तीसगढ़ के अधिकांश शहरों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपये से ऊपर चली गई। दाम बढ़ाने में जो तेजी पेट्रोलियम कम्पनियां दिखाती हैं, कम करने में नहीं। लगता है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के कारण पेट्रोल कम्पनियों ने भाव नहीं बढ़ाये उसकी भरपाई हो रही है और यूपी चुनाव के समय जो स्थिरता बनाकर रखनी है, उसकी व्यवस्था की जा रही है। ([email protected])
एक युवा डॉक्टर की मौत
कोरोना महामारी के दौर में ऐसे कई युवा डॉक्टरों को हमने खो दिया, जिन्होंने अपने जान की परवाह किए बगैर सैकड़ों लोगों को मौत के मुंह से बाहर निकाला। ऐसे ही एक चिकित्सक डॉक्टर शैलेंद्र साहू जो बलौदाबाजार के जिला कोविड अस्पताल के प्रभारी थे, उनकी मौत कोविड संक्रमण से हो गई। डॉक्टर ने बलौदा बाजार में ड्यूटी 8 जून 2020 को ज्वाइन की थी। तब से वे लगातार बिना रुके-थके कोविड मरीजों की देखभाल में लगे हुए थे। इस दौरान उन्होंने कोई छुट्टी नहीं ली। परिवार के साथ बर्थ डे या त्यौहार भी नहीं मनाया। उन्हें एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद मास्टर डिग्री लेनी थी, मगर महामारी को देखते हुए उन्होंने इसे कुछ समय के लिए टाल देने का निर्णय लिया। तबीयत खराब होने पर वे दो दिन पहले अपने घर रायपुर आ गए थे। यहीं उन्होंने दम तोड़ दिया। बलौदा बाजार से दर्जनों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। उनकी शव यात्रा में एक बड़ी सी तस्वीर उनके लगाई गई, मुक्ति वाहन फूलों से सजाया गया और उनके योगदान को याद किया गया।
ऐसे ही एक डॉ मनोज जायसवाल भी याद आते हैं जो बिलासपुर कोविड-19 अधीक्षक के पद पर कार्य कर रहे थे। वह भी बिना छुट्टियां लिए बिना घर गये लगातार ड्यूटी कर रहे थे। डॉक्टर जयसवाल की मौत पहली लहर में ही हो गई थी। तब वैक्सीन नहीं आई थी। पर डॉ साहू वैक्सीन के दोनों डोज ले चुके थे। यह विडंबना ही है कि लोगों की जान बचाने के काम में भी इतने तल्लीन रहे की सावधानी खुद भी नहीं रख पाए।
फिर हुई दबंगई की घटना
बलरामपुर जिले में कुछ दिन पहले एक सरपंच पति और उनके गुर्गों के द्वारा मछली चोरी के आरोप में पेड़ से बांधकर युवक की बेदम पिटाई करने का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा है कि इसी जिले से एक और ऐसी ही घटना सामने आई। हालांकि अपनी चतुराई से युवक किसी तरह उन लोगों के चंगुल से बचने में सफल रहा। भितयाही ग्राम के युवक नंदू यादव बीते 1 साल से पंचायत में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायत अधिकारियों को ऊपर कर रहे थे। नव पदस्थ कलेक्टर ने इस शिकायत को गंभीरता से लिया और जनपद पंचायत रामानुजगंज के अधिकारियों से जांच कराई। जांच में शिकायत सही मिलने पर ग्राम पंचायत के सचिव विप्र दास और 45 अन्य लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करा दी गई। पंचायत प्रतिनिधियों ने इसके लिए नंदू यादव को ही जिम्मेदार माना और ग्राम पंचायत भवन में ही उसको बंधक बना लिया गया। शिकायतकर्ता युवक ने इस दौरान किसी तरह से मोबाइल फोन हासिल कर लिया और सीधे एसपी को सूचना दे दी पुलिस अधीक्षक ने वहां टीम भेजकर उसे छुड़ा लिया। शायद कुछ घंटे और बीत जाते तो युवक के साथ कोई बड़ी अनहोनी भी घट सकती थी।
इस मामले से एक बार फिर साबित होता है की बड़े संस्थानों देश और राज्य के मसलों में शिकायत करना, आरटीआई निकलवाना, जांच करवाना कुछ आसान भी है लेकिन अपने ही गांव में अपने लोगों के द्वारा किए जाने वाले काम पर निगरानी रखना और गड़बड़ी दिखने पर शिकायत करना ज्यादा जोखिम भरा है। इस विसलब्लोअर युवक को खतरे का कितना अंदाजा था या अधिकारियों ने सुरक्षा देने के बारे में कुछ सोचा था क्या, विचारणीय प्रश्न है।
विधायक की ओर से मांग
निगम, मंडल, आयोगों में नियुक्तियों के बाद ऐसा नहीं है कि सामान्य कार्यकर्ता ही दुखी चल रहे हैं अनेक विधायकों भी मन बेचैन है। गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले से युवा आयोग में उत्तम वासुदेव को और अनुसूचित जनजाति आयोग में अर्चना पोर्ते को सदस्य के रूप में लिया गया है। अब यहां से मांग उठ रही है कि विधायक डॉ. के के ध्रुव को भी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। उनके समर्थकों का कहना है कि जोगी का गढ़ इतने सालों बाद कांग्रेस ने ढहाया। ऐसे में सिर्फ दो को आयोगों का सदस्य बना दिया जाना काफी नहीं है। इस परिवर्तन में बहुत पसीना बहा है। फिर डॉ. ध्रुव तो रिकॉर्ड मतों से जीते हैं। ऐसे लोकप्रिय विधायक को क्यों जगह नहीं मिलनी चाहिए? उनके समर्थकों ने प्रदेश संगठन के सामने यह बात रखी है। विधायक के लिए उन्होंने पद भी सोच रखा है, जिले के एकीकृत विकास परियोजना का अध्यक्ष।
मंत्रालय उजाड़, और लापरवाह भी
कोरोना लॉकडाउन के दो दौर ने मिलकर मंत्रालय के महत्व को पूरी तरह से खत्म कर दिया है. मुख्यमंत्री और मंत्रियों का मंत्रालय जाना बहुत कम हो गया है, सब अपने बंगलों से काम कर रहे हैं, और नतीजा यह हो गया है कि बड़े आईएएस अफसरों को भी मंत्रालय जाना जरूरी नहीं लगता।
कई ऐसे अफसर हैं जिनके पास शहर में अपने विभाग के कोई दफ्तर हैं, तो वे या तो उसी दफ्तर में बैठकर बाकी मंत्रालय की फाइलें वहां बुला लेते हैं, या वे घर से ही काम निपटा रहे हैं, और मंत्रियों की तो सारी बैठकें भी उनके घर से हो रही हैं, या ऑनलाइन हो रही हैं.
नतीजा यह हो रहा है कि पहले से उजाड़ और बियाबान चले आ रहा नया रायपुर अब और बदहाल हो गया है। लेकिन कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच भी मंत्रालय कम संख्या में पहुंचने वाले लोगों से भी गेट पर रजिस्टर में दस्तखत करवाए जा रहे हैं, उनकी पूरी जानकारी भरवाई जा रही है और इस तरह मंत्रालय में भीतर जाने वाले स्थाई रूप से पासधारी लोग भी वहां रजिस्टर के हर कॉलम को देर तक भरने की वजह से कोरोना के खतरे के शिकार हो रहे हैं.
आज जब चारों तरफ कागज का काम कम किया जा रहा है, जहां दफ्तरों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस के लिए भी अंगूठा लगाने से छूट दी जा रही है, वहां मंत्रालय में लोगों से पूरा रजिस्टर भरवाया जा रहा है. अब क्योंकि बड़े अफसरों का मंत्रालय जाना कम है और बाकी लोगों के आने-जाने के गेट से तो उनका जाना कभी होता नहीं है, इसलिए इस बात की तरफ किसी का ध्यान जाने का कोई सवाल भी नहीं होता।
एवज में नियमित आमदनी मिले तो?
बस्तर से लेकर सरगुजा जशपुर तक जहां भी नये प्लांट लगाने की बात आती है, इन इलाकों में बसे आदिवासी भयभीत हो जाते हैं। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि कोई प्लांट इन इलाकों में बिना विरोध के लगा हो। बस्तर के सुलगने की एक वजह यह भी है। सरगुजा में भी एलिफेंट रिजर्व क्षेत्र को घटाने की कोशिशों का विरोध हो रहा है। जशपुर में टांगर गांव में होने वाली जन सुनवाई का भी एक बड़ा वर्ग विरोध कर रहा है। जब ऐसे प्रसंग बार-बार सामने आ रहे हों तो पुनर्वास की नीति पर जरूरी हो जाता है जरूरी बदलाव हो। जंगल और पानी के दोहन के अलावा सबसे बड़ी चिंता इस इलाके में रहने वालों की आजीविका पर खतरा मंडराता है। जमीन अधिग्रहण अधिनियम में मुआवजा तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे रखा है। पर यहां की पुनर्वास नीति 2005 की ही है, जिसमें जमीन के बदले जमीन देने और साथ ही मुआवजा देने की बात तो है पर बेदखल होने वाले परिवारों को नौकरी मिलने की गारंटी नहीं है। ऐसे वक्त में राज्यपाल अनुसूईया उइके ने एक पत्र सीएम बघेल को लिखा है कि जिन परिवारों को बेदखल किया जाये उन्हें कम्पनियों का शेयर होल्डर बनाया जाये। उन्हें सरकार को मिलने वाली रॉयल्टी का भी एक हिस्सा दिया जाये। यही नहीं उनकी इस नियमित आमदनी को मूल्य सूचकांक से भी जोड़ा जाये ताकि उनकी आय भी महंगाई के साथ बढ़े। सैद्धांतिक रूप से इससे कोई असहमत कैसे हो सकता है। यह कोई नई मांग, नया विचार भी नहीं है।
प्राय: देखा गया है कि एकमुश्त मिलने वाले मुआवजे का लोग सही इस्तेमाल नहीं कर पाते। मैदानी इलाका हो या आदिवासी इलाका। वे खूब सारा पैसा एक साथ मिल जाने के बावजूद इसका ठीक तरह से प्रबंधन नहीं कर पाते, क्योंकि यह वे जानते ही नहीं। बल्कि दलालों, ठगों की नजर इस रकम पर रहती है। बहुत से लोगों की यह हालत हो चुकी है कि जमीन तो उन्होंने खो ही दी, एवज में मिली रकम भी नहीं बची। एकमुश्त मुआवजा देकर जवाबदेही से बचना कोई सही तरीका नहीं है। अब जब रोजगार और नौकरी के अवसर घट रहे हैं। ऐसा होने से शायद विरोध कुछ कम हो, सरकार के प्रति भरोसा बढ़े।
कंप्यूटर से किसानी तक
लॉकडाउन और कोरोना महामारी के कारण स्कूलों में पढ़ाई बंद हुई तो कई शिक्षकों ने तयशुदा पाठ्यक्रम से हटकर नए प्रयोग किए हैं। बेमेतरा जिले के खंडसरा गांव के सरकारी स्कूल में कृषि पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू किया गया है और बच्चों को इसका व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। शिक्षक इन्हें बता रहे हैं कि श्री विधि से खेती करने में बीज, पानी, खाद की जरूरत कम पड़ती है और कुल मिलाकर लागत कम आती है। अब यह बच्चे जो ज्यादातर किसान परिवारों से ही जुड़े हैं वह इसका प्रयोग अपने खेतों में भी करने के लिये अपने माता-पिता को कह सकते हैं। फिलहाल ये ग्राम चमारी के महामाया मंदिर परिसर की जमीन पर श्री पद्धति से रोपाई करना सीख रहे हैं।
अभी से पत्ते क्यों खोलें?
जिन लोगों ने सोच रखा था कि अगला विधानसभा चुनाव भी भूपेश वर्सेस डॉ. रमन होने जा रहा है उन्हें प्रदेश भाजपा की प्रभारी महासचिव के बयान से थोड़ी हैरानी हो सकती है। उन्होंने कहा कि पार्टी किसी को मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करेगी, संगठन के आधार पर चुनाव लड़ा जायेगा। वैसे भी, जब ढाई साल बाद चुनाव होने हैं तो अभी से घोषणा कर अपनी ही पार्टी के बाकी दावेदारों को नाराज क्यों किया जाये? वे तो घर बैठ जायेंगे। पिछले चुनाव में जो ऐतिहासिक हार भाजपा को मिली उसके चलते तो उसी नाम पर, ऐसा जोखिम बिल्कुल नहीं उठाया जा सकता। यह बात अलग है कि सन् 2018 का चुनाव डॉ. रमन सिंह के चेहरे के नाम पर ही लड़ा गया था और कांग्रेस की इस बात को लेकर हंसी उड़ाई जाती है कि उनके पास मुख्यमंत्री का कोई एक चेहरा नहीं है, 6-6 दावेदार हैं। अब सन् 2023 के चुनाव में स्थिति ठीक उलट होने के आसार दिखाई दे रहे हैं।
याद बाबूलाल गली की..
रायपुर शहर को जिन लोगों ने कोई 25 बरस पहले देखा होगा, तो उन्हें याद होगा कि मालवीय रोड पर बाबूलाल टॉकीज के बगल की गली बड़ी बदनाम मानी जाती थी और उसे बाबूलाल गली कहा जाता था जो कि रायपुर शहर का रेड लाइट इलाका भी था। फिर एक पुलिस अफसर ने तय किया किस शहर में रेड लाइट इलाका नहीं होना चाहिए तो उस इलाके को सीलबंद कर दिया गया जितने मकानों में देह का धंधा होता था वे सब सील हो गए, और किसी ने उफ नहीं किया।
लेकिन उन दिनों की बात चल रही थी तो अचानक याद आया कि बाबूलाल गली के रेड लाइट एरिया को चलाने वाली महिला जानकीबाई नाम की एक बुजुर्ग महिला थी, जो कि कांग्रेस पार्टी की राजनीति में भी सक्रिय हिस्सेदार रहती थी, और जब कांग्रेस का कोई जुलूस निकलता था, तो वह झंडा बैनर थामे हुए सामने चलने वाली महिलाओं में से एक रहती थी।
कांग्रेस के पुराने लोगों को याद है कि 1977 से लेकर 1980 के बीच जब कांग्रेस देश में पहली बार विपक्ष में आई थी, और उसे सडक़ों पर संघर्ष करने की जरूरत थी उस वक्त जानकीबाई एक आम कार्यकर्ता के रूप में जुलूस में सामने चला करती थी, और क्योंकि कांग्रेस के लोग भी कम रह गए थे इसलिए भी, और शायद लोगों का बर्दाश्त था इसलिए भी, रेड लाइट एरिया के साथ नाम जुड़ा रहने पर भी इस महिला को कभी कांग्रेस के आयोजनों से अलग नहीं किया गया।
दूसरी बात यह भी कि जनता पार्टी या उसके बाद बनने वाली भाजपा के लोगों ने भी इस बात को लेकर कभी कांग्रेस पर हमला नहीं किया। यह एक पुरानी याद है जिसकी कोई तस्वीर किसी के पास मिल नहीं रही है।
जीत टॉकीज की हार
एक समय न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अविभाजित मध्य प्रदेश के सबसे खूबसूरत और साफ-सुथरे छविगृहों में गिना जाने वाला बिलासपुर का जीत सिनेमाघर बदलते हालात में जमींदोज किया जा रहा है।
आज जो साज-सज्जा हम मल्टीप्लेक्स में देखते हैं उसकी कल्पना जीत टॉकीज के मालिक मुंशीराम उपवेजा ने तीन दशक पहले कर ली थी। बाहर टिकट के लिए लाइन में लगने वालों के लिए साफ-सुथरी कुर्सियां, आंगन, भीतर प्रवेश करते ही बरामदे से लेकर बिछी हुई कालीन, दीवारों पर आकर्षक कलाकृतियां। भीतर भी जगह-जगह तरह-तरह के फूलों के गमले। सिनेमाघरों के टॉयलेट का हाल हम सब जानते ही हैं मगर यहां पहुंचने पर लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे। यह एक ऐसी टॉकीज थी जहां फ्लॉप फिल्में भी हिट हो जाती थी। वितरक यहां अपनी फिल्में रिलीज करने के लिए इंतजार करते थे।
जिन लोगों ने जयपुर का राजघराना टॉकीज देखा होगा, उसकी तुलना में जीत टॉकीज कमतर नहीं थी। आसपास के कस्बों से बिलासपुर आने वालों का एक काम जीत टॉकीज में फिल्में देखना भी होता था।
पर, शहर में दो बड़े शॉपिंग मॉल खुलने और उनमें मल्टीप्लेक्स चालू हो जाने के बाद जीत टॉकीज में दर्शकों की संख्या घटने लगी। उसके बाद कोरोना संक्रमण से हालत और खराब हो गई। अब इस टॉकीज के मालिक ने कोई नया व्यवसाय करने के लिए इसे ढहा देने का निर्णय लिया है।
तीसरी लहर की आहट के बीच छूट
प्रदेश में लॉकडाउन को लेकर के बीते दो दिनों में और रियायत बरती गई है। राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के कई जिलों में रात्रिकालीन कर्फ्यू समाप्त कर दिया गया है और दुकानों, व्यावसायिक संस्थानों को रात्रि 10 बजे तक खोलने की अनुमति दे दी गई है। ऐसा नहीं भी किया जाता तब भी काम चल सकता था। लोग लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध को इस आदेश के पहले भी नहीं मान रहे थे। अब बस इतना रह गया है कि रात 8 बजे के बाद भी अगर दुकानें खुली मिलीं तो पुलिस महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं करेगी और रात में घूमने वालों को नहीं रोका जायेगा।
यह फैसला ऐसे मौके पर लिया गया है जब कोरोना संक्रमण धीमी गति से बढ़ता दिखाई दे रहा है। प्रशासन ने भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने और मास्क नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई करने में ढिलाई शुरू कर दी है। दुकानों-दफ्तरों में सैनिटाइजर भी नहीं दिखाई देते हैं। सरकारी बैठकों में अफसरों ने ही सलीके से मास्क पहनना छोड़ दिया है। शादी ब्याह, आंदोलन, सभायें हो रही हैं। अब जब तीसरी लहर जैसी कोई विपत्ति आई तो एक बार फिर लापरवाही का ठीकरा जनता के ही सिर पर टूटेगा। यह नहीं कहा जाएगा कि प्रशासन भी उदासीन हो गया था।
कानून का प्राइवेटाइजेशन
केंद्र सरकार जब कोई कानून लाती है तो उन लोगों की नींद उड़ जाती है जिनके हित में उसे बताया जाता है। कृषि कानून किसानों के हित में बताया गया पर किसानों का ही अनवरत आंदोलन इसके खिलाफ चल रहा है। श्रम कानूनों में सुधार की बात करते हुए नए कानून लागू किए गए जिसका भी श्रमिक ही विरोध कर रहे हैं। व्यापारियों के लिए जब जीएसटी लागू किया गया तो इसे उनके हित में बताया गया लेकिन व्यापारी इसकी जटिलता और आम जनता भारी भरकम टैक्स से जूझ रहे हैं। अब बात की जा रही है वन संरक्षण कानून में संशोधन का।
छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेताओं ने इस कानून के मसौदे को तैयार करने के लिए अपनाई जा रही है प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाया है। कोरबा के किसान सभा जिलाध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर कहते हैं कि मसौदा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार ने एक विज्ञापन जारी किया है और रुचि की अभिव्यक्ति मंगाई है। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। कानून में संशोधन का काम संवेदनशील विषय है, जिसे सरकार के अधिकारियों को ही बनाना चाहिए। रुचि की अभिव्यक्ति के लिए खुला टेंडर बुलाया जाना ही साबित करता है कि नए कानून से जंगल साफ करने खदानें आवंटित करने और आदिवासियों को बेदखल करने का रास्ता निकाला जाएगा। टेंडर में कारपोरेट कंपनियां रुचि ले सकती हैं और प्रतियोगिता में सबसे आगे रहकर टेंडर हासिल भी कर सकती हैं, ताकि सरकार को मनमाफिक सुझाव दे सकें।
आप सुरक्षित हैं..
राजस्थान और पंजाब के मामलों में कांग्रेस हाईकमान की सख्ती से छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के समर्थकों को भी राहत मिली है। पंजाब और राजस्थान दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री की कुर्सी हिलाने की कोशिश हो रही है। ये हाईकमान को बार बार भरोसे में लेने की कोशिश कर चुके पर लेकिन अब तक तो बात नहीं बनी है। सचिन पायलट भाजपा और नवजोत सिद्दू आम आदमी पार्टी का डर दिखाकर भी हाईकमान को संतुष्ट करने में विफल रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो सरकार ही गिर गई मगर कमलनाथ को हटाने की बात नहीं मानी गई। विधायकों की संख्या के लिहाज से देखें तो छत्तीसगढ़ मैं सरकार ज्यादा मजबूत है तोडफ़ोड़ का डर दिखाना भी नहीं हो पाएगा।
पाटन इतना खास क्यों है?
भारत माला परियोजना के तहत बनाई जा रही सडक़ से जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित हुई है उन्हें पाटन व अभनपुर में चार गुना ज्यादा मुआवजा दिया जा रहा है। राजनांदगांव और आरंग के किसान इससे नाराज हैं। पूर्व विधायक नवीन मार्कंडेय ने इस बारे में आरंग एसडीएम से मिलकर ज्ञापन भी सौंपा है। मारकंडे जो कि अधिवक्ता भी हैं, उनका कहना है कि राज्य सरकार का यह भेदभाव संविधान के खिलाफ है। मारकंडे का कहना तो ठीक है एक ही परियोजना से प्रभावित होने वाले अलग-अलग जगहों के किसानों को अलग-अलग मुआवजा क्यों? पाटन और अभनपुर में ऐसा क्या खास है?
बदनाम को स्थापित करने की हड़बड़ी
आखिरकार सीएम, और वन मंत्री की नाराजगी के बाद रिटायर्ड पीसीसीएफ जेएसीएस राव को वनौषधि बोर्ड में सलाहकार नियुक्त करने का आदेश निरस्त कर दिया गया। बताते हैं कि बोर्ड के चेयरमैन बालकृष्ण पाठक की अनुशंसा पर राव को बोर्ड के प्रभारी सीईओ आरसी दुग्गा ने सलाहकार नियुक्त कर दिया था। जेएसीएस राव की नियुक्ति के लिए सरकार से अनुमति नहीं ली गई थी। ‘छत्तीसगढ़’ ने इस आशय की खबर सबसे पहले प्रकाशित की थी।
नियम-प्रक्रियाओं को नजरअंदाज कर राव को सलाहकार नियुक्त करने से सीएम, और वन मंत्री खफा थे। उनकी नाराजगी के बाद आनन-फानन में राव की नियुक्ति आदेश निरस्त किया गया। वैसे तो राव को संविदा नियुक्ति देने की भी फाइल चल रही है, लेकिन जिस तरह सलाहकार पद पर नियुक्ति दे दी गई थी। उससे इस बात की संभावना कम है कि उन्हें संविदा नियुक्ति दी जाएगी। वैसे भी, राव के खिलाफ तीन डीई चल रही थीं, जिन्हें पिछली सरकार ने खत्म कर दिया था। हॉर्टिकल्चर मिशन में रहते उनके कारनामे किसी से छिपे नहीं है। बावजूद इसके उन्हें सलाहकार नियुक्त करने का आदेश हैरान करने वाला रहा है।
अपने इलाके को सीएम के तोहफे
सरकार के निगम-मंडलों में थोक में पदाधिकारियों की नियुक्ति हुई है। इन नियुक्तियों में क्षेत्रीय-सामाजिक संतुलन बनाने की भरपूर कोशिश की गई है। सबसे ज्यादा फायदे में सीएम के विधानसभा क्षेत्र पाटन के नेता रहे हैं। पाटन के आधा दर्जन नेताओं को पद मिला है।
पाटन के गांव के रहने वाले जवाहर वर्मा जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष, अश्वनी साहू अध्यक्ष कृषि उपज मंडी दुर्ग, कौशल चंद्राकर, और हेमंत देवांगन को खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का सदस्य, शंकर बघेल को बीज निगम सदस्य, और पवन पटेल को शाकम्बरी बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया।
वैसे भी सीएम चाहे कोई भी हो, अपने इलाके के लोगों का भरपूर ध्यान रखते हैं। मोतीलाल वोरा सीएम थे, तो सबसे ज्यादा लाल बत्ती दुर्ग जिले में ही बटी थीं। रमन सिंह ने भी अपने विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव के आधा दर्जन नेताओं को लाल बत्ती से नवाजा था। भूपेश बघेल भी अपने बुरे वक्त में साथ रहने वाले लोगों को उपकृत कर रहे हैं, तो यह गलत नहीं है।
नवोदय से निकले हुए लोग
नवोदय विद्यालय से निकलकर सरकारी सेवा में आने वाले लोगों का राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठन है, हालांकि इसमें सरकारी सेवा से बाहर काम करने वाले लोग भी शामिल हैं जो कि नवोदय में पढ़े हुए हैं। छत्तीसगढ़ के एक डीएफओ दिलराज प्रभाकर नवोदय के भूतपूर्व छात्रों के इस नेटवर्क में लगातार सक्रिय रहते हैं। अभी वे छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में डीएफओ हैं और राज्य के गिने-चुने उन सीनियर अफसरों में से एक हैं जो कि पिछली सरकार में भी जहां काम कर रहे थे, वहीं पर रखे गए हैं। दिलराज प्रभाकर ने कबीरधाम जिले में अभी पदस्थ ऐसे अधिकारियों के साथ एक तस्वीर पोस्ट की है जो कि नवोदय में पढ़े हुए हैं। इनमें मनोज रावटे तहसीलदार हैं, जो कि राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ नवोदय विद्यालय में ही पढ़ते थे। इनके अलावा संयुक्त कलेक्टर इंद्रजीत बर्मन हैं जो कि बिलासपुर के मल्हार नवोदय विद्यालय के छात्र रहे हैं। जिले में डिप्टी कलेक्टर विनय कश्यप हैं, यह भी मल्हार नवोदय विद्यालय से निकले हैं। आई एफ एस दिलराज प्रभाकर डीएफओ हैं और वह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के नवोदय विद्यालय से पढ़े हुए हैं। वन विभाग में ही एसडीओ जसवीर सिंह मरावी हैं जो कि नवोदय विद्यालय सराईपाली से पढ़े हुए हैं। एक-दूसरे एसडीओ फॉरेस्ट अनिल साहू हैं, वह भी महासमुंद जिले की सराईपाली के नवोदय विद्यालय से निकले हुए हैं. किसी एक जिले में, और छोटे जिले में नवोदय से निकले इतने लोग !
खेती की ये खास उपलब्धियां...
छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के कृषि विज्ञान केंद्र को देश के 722 केंद्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के 93 वें स्थापना दिवस के मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दिल्ली में इसे राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मानित से किया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने भी कोरिया के कृषि वैज्ञानिकों को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है। कोरिया के वैज्ञानिकों ने अपने परिश्रम से कुछ नए प्रयोग किए हैं, जिससे जिले के किसानों ने खेती को लाभकारी और उन्नत बना लिया।
इधर रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की भी एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है।
यहां के वैज्ञानिकों ने शोध करके चावल से प्रोटीन और शुगर सिरप तैयार करने की विधि विकसित की है। प्रोटीन और शुगर सिरप की बाजार में अच्छी डिमांड है। इसके लिए विश्वविद्यालय में ही प्लांट लगाने की तैयारी चल रही है। इसके उत्पादन में काफी मात्रा में चावल की खपत भी हो जाएगी। मोटे तौर पर जो प्रोडक्ट तैयार होंगे वह चावल की कीमत से ढाई गुना ज्यादा मुनाफा देने वाला है।
बीते महीने धान के ज्यादा उत्पादन से चिंतित राज्य सरकार ने दूसरी फसलों को प्रोत्साहित करने के लिए योजना लागू की है। इसमें दलहन, तिलहन कोदो के अलावा फलदार व इमारती लकडिय़ां खेतों में लगाने पर अलग से अनुदान मिलेगा।
धान की खेती से एकाएक रुख मोडऩा किसानों के लिए संभव नहीं है। अनियमित वर्षा, खाद की कमी, कीटों के हमले के बावजूद छत्तीसगढ़ में किसानों का सबसे भरोसेमंद उत्पाद यह बना हुआ है। ऐसे में कोरिया जिले में खेती को लाभकारी बनाने के लिए किए गए प्रयोगों का दूसरे जिलों में भी विस्तार होना चाहिए और देखा जाना चाहिए कि क्या कृषि विश्वविद्यालय में चावल की खपत को बढ़ाने के लिए लगाए जा रहे प्लांट अधिक संख्या में लगाए जा सकते हैं?
क्या अब पिघलेंगे मोदी जी?
पिछले दिनों पेट्रोल की कीमत घटाने की हाथ जोडक़र दुआ करते हुए एक महिला की तस्वीर सामने आई थी। देशभर में यह तस्वीर फैली होगी। पर इससे बात बनी नहीं। अब एक युवक की तस्वीर सामने आई है, जो जमीन पर लेटकर मोदी जी की फोटो को दंडवत प्रणाम कर रहे हैं। क्या पता सरकार अब पिघल जाए।
खेतान के बाद कौन?
इस महीने के आखिर में मुख्य सचिव के दर्जे के अफसर चित्तरंजन खेतान रिटायर हो रहे हैं। चूँकि उनसे जूनियर तो दो अफसरों को मुख्य सचिव बनाया गया था, इसलिए यह सरकार उन्हें रिटायर होने के बाद कुछ बनाए इसकी संभावना कम है, और इससे भी कम संभावना यह है कि वे कुछ बनना चाहें। लेकिन इसके साथ-साथ सरकार के पास यह एक मुद्दा रहेगा कि अब तक खेतान जहां रिवेन्यू बोर्ड के चेयरमैन थे वहां किसे भेजा जाएगा?
अब तक वहां एसीएस दर्जे के अफसर जाते रहे हैं, और अब सरकार के पास एसीएस के अलावा प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों को भी वहां भेजने का एक मौका हो सकता है। राज्य शासन की नौकरशाही में एक छोटा सा फेरबदल इस महीने के आखिर में हो सकता है।
राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट और छत्तीसगढ़
सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सवाल किया कि अंग्रेजों ने आजादी की मांग उठाने वालों को खामोश करने के लिये जो कानून बनाया था, उसकी आज क्या जरूरत है? बहुत से लोग मानते हैं कि यह टिप्पणी मौजूदा केन्द्र सरकार को कठघरे में खड़ा करती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने आरोप लगाया है कि केन्द्र की मोदी सरकार इस कानून का दुरुपयोग कर रही है और लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनने की कोशिश की जा रही है। पर यह पूरा सच नहीं है। सन् 2010 से 2020 के बीच दर्ज किये गये 816 मामलों में सर्वाधिक 65 प्रतिशत मुकदमे भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए के समय के तो हैं, पर बाकी 35 प्रतिशत यूपीए सरकार के ही हुए। कुछ समय पहले ही पत्रकार विनोद दुआ को सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के आरोप से मुक्त करते हुए पुलिस को फटकार लगाई थी। दुआ ने अपने एक कार्यक्रम में मोदी सरकार की आलोचना की थी जिसे पुलिस ने देश को अस्थिर करने की साजिश के रूप में लिया।
यह संयोग है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी जिस मामले की सुनवाई के दौरान आई है वह छत्तीसगढ़ के कांकेर के पत्रकार कमल शुक्ला ने दायर की है। उनके अलावा इस केस में याचिकाकर्ता मणिपुर के पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेमचा हैं। दोनों ने राजद्रोह कानून को रद्द करने की मांग की है।
यह भी एक संयोग है कि कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे मौके पर आई है जब छत्तीसगढ़ में एक आईपीएस अधिकारी गुरुजिन्दर पाल सिंह के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा राजधानी की कोतवाली पुलिस ने दर्ज किया है। उन्होंने इस कानून के तहत खुद पर जुर्म दर्ज जाने के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से रिट लगाई है। कोर्ट में सुनवाई अभी होने वाली है। तब तय होगा कि उनके खिलाफ यह मुकदमा गंभीर सबूतों के आधार पर दर्ज किया गया या सरकार की सहूलियत के लिये। पर, कानून के बहुत से जानकारों का कहना है कि अब राजद्रोह की धारा 124 ए की जरूरत नहीं है, क्योंकि वैसे भी अन लॉ फुल प्रेवेन्शन एक्ट (यूएपीए) देश में लागू हो चुका है। जो भी हो, छत्तीसगढ़ के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ध्यान खींचती है, जब फैसला आयेगा तब तो महत्व और बढ़ जायेगा।
मशहूर होने के कई रास्ते हैं..
राज्यपाल अनुसूईया उइके ने कल ऐसे युवा को सम्मानित किया जिनकी उपलब्धियां बाकी लोगों से हटकर है। बिलासपुर जिले के कोटा के रहने वाले अर्पित लाल का नाम दो बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। उनके करतब अनोखे हैं। उन्होंने सिक्कों का मीनार बनाने, पैरों के सहारे अंगूर खाने, कच्चा अंडा खा जाने में बाजी मारी है और पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त किये हैं।
राजभवन में राज्यपाल ने उन्हें सम्मानित किया। उनके वकील पिता हैरिस लाल व कन्या शाला की व्याख्याता अपर्णा लाल भी इस दौरान मौजूद थी। उनका कहना है कि जिस दिशा में मन करता है अर्पित जूझते हैं। उनका म्यूजिक एलबम एक आ चुका, एक आने वाला है। गिटार व की बोर्ड अच्छी तरह बजा लेते हैं। उन्होंने जेरूशलम यूनिवर्सिटी से 18 साल की उम्र में डॉक्टर ऑफ डिग्निटी की डिग्री हासिल कर ली। कनाडा के इंटरनेशनल टेलीविजन शो में वे भाग ले चुके हैं। उनकी उपलब्धियों पर वाशिंगटन पोस्ट में भी एक खबर लग चुकी है। अर्पित इन दिनों एक किताब भी लिख रहे हैं। उनका छोटा भाई आयुष भी इसमें मदद करता है।
राज्यपाल के हाथों सम्मानित नहीं किये जाते तो अर्पित की इन उपलब्धियों पर कोई गौर ही नहीं करता।
विधायक, जिला अध्यक्ष भी इनको नहीं जानते...
निगम, मंडल, आयोगों की नई सूची में जिन्हें अपना नाम नहीं मिला वे एक दूसरे काम में लग गये। किस नाम की सिफारिश किसने की होगी, और उनका पत्ता किसने काटा होगा? पर सूरजपुर जिले में अलग ही घटना हो गई है। जिले से कृषक कल्याण परिषद् में सदस्य के रूप में संजय गुप्ता को शामिल किया गया है। सूची में नाम देखकर लोग एक दूसरे से पूछने लगे कि ये कौन हैं? इस नाम का तो कोई व्यक्ति कांग्रेस में सक्रिय नहीं है। वे फेसबुक और वाट्सअप के जरिये भी जानकारी जुटा रहे हैं फिर भी पता नहीं लग सका। भटगांव विधायक पारसनाथ राजवाड़े और जिला कांग्रेस अध्यक्ष भगवती राजवाड़े भी कह रहे हैं कि उन्हें पता नहीं ये कौन हैं।
वैसे निगम, मंडल की इस दूसरी सूची ने प्रदेश के सैकड़ों उम्मीद लगाये बैठे कार्यकर्ताओं को झटका दिया है। महीनों तक दर्जनों दरबारों में माथा टेकना काम नहीं आया। बीते विधानसभा चुनाव में बहाये गये पसीने की कोई कीमत मिलेगी या नहीं, सोचकर मायूस हुए जा रहे हैं। बस, इन्हें एक ही उम्मीद है कि कोई तीसरी सूची भी जारी हो जाये, जिसकी संभावना वरिष्ठ नेता बता रहे हैं। पर जब इस सूची के इंतजार में ही कई महीने गुजारने पड़े तो पता नहीं अगली सूची कब जारी होगी। हवा तो अभी से बना दी गई है।