राजपथ - जनपथ
महिलाओं पर नसबंदी का दारोमदार
छत्तीसगढ़ में पुरुष नसबंदी को बढ़ावा देने के लिये अभियान शुरू किया गया है, जो 4 दिसंबर तक चलेगा। पहले चरण में जागरूक किया जाएगा, दूसरे चरण में नसबंदी के लिये शिविर लगेंगे। पूरे देश में पुरुष नसबंदी का प्रतिशत है। कई राज्यों में यह एक प्रतिशत से भी कम है। राजधानी रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में कोरोना काल के डेढ़ साल में एक भी पुरुष की नसबंदी नहीं हुई। छत्तीसगढ़ में बीते 10 साल में करीब 3.5 लाख महिलाओं ने नसबंदी कराई जिनमें से केवल 15 हजार पुरुष थे। डॉक्टर कहते हैं पुरुषों की बजाय महिलाओं की नसबंदी ज्यादा जटिल होती है, उनकी नस पेट के भीतर होती है। पुरुषों की नसबंदी करना आसान होता है। पुरुषों की सोच यह है कि उनमें नसबंदी कराने से कमजोरी आयेगी। वे परिवार चलाने के लिये दौड़-धूप और कड़ी मेहनत करते हैं। डॉक्टरों का कहना है यह भ्रांति है कि नसबंदी से कमजोरी आती है। कोरोना काल के चलते पुरुष, महिला दोनों की नसबंदी ही पिछले दो साल से प्रभावित हुई है। यह घटकर 10 से 15 प्रतिशत रह गया है। इसके पहले सन् 2014 में, तखतपुर के नसबंदी शिविर में 13 महिलाओं की एक के बाद एक मौत हो गई थी। उसके बाद लंबे समय तक नसबंदी शिविर नहीं लगे। इस बार पुरुषों को स्वास्थ्य विभाग और वालेंटियर नसबंदी के लिये कितना जागरूक कर पाते हैं, यह पखवाड़ा खत्म होने पर मालूम होगा।
कोल ब्लॉक के लिये सर्वे पर रोक
हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक आवंटन के खिलाफ कोरबा, सरगुजा, सूरजपुर जिले के आदिवासियों ने अक्टूबर माह में पदयात्रा निकाली और पैदल राजधानी पहुंचे थे। वे वापस लौटे उसके बाद ही एक कोयला खनन की मंजूरी जारी कर दी गई। पर ऐसा नहीं कि उनके विरोध का कोई असर नहीं हुआ। छत्तीसगढ़ सरकार ने 1995 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में हाथी रिजर्व क्षेत्र अधिसूचित कर दिया। यहां के ग्रामीणों को समझ नहीं आ रहा है कि जहां खदान खुलेगी उसी से लगकर हाथी रिजर्व कैसे बनाया जायेगा। हाथी रिजर्व के लिये कोई तैयारी जमीन पर नहीं दिखी लेकिन कोल ब्लॉक के लिये सर्वे का काम शुरू हो गया। कोरबा जिले के परोगिया ब्लॉक में सर्वे के काम को ग्रामीणों ने बंद करा दिया। कहा- सर्वे के लिये ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली गई है। अभी तो सर्वे बंद हो गया है, पर क्या आवंटन के बाद सर्वे और खनन का काम आगे भी स्थानीय लोग रुकवा पायेंगे। प्रशासन और ग्रामीणों के बीच टकराव की नौबत आ सकती है।
सबसे हैंडसम अफसर कौन?
वैसे तो अफसर कैसे दिखते हैं यह मायने नहीं रखता, मायने यह रखता है कि वे काम कैसा करते हैं। लेकिन फिर भी अगर छत्तीसगढ़ के अखिल भारतीय सेवा के अफसरों को देखें और उनमें से आदमियों का चेहरा, कद-काठी, व्यक्तित्व याद करें कि उनमें सबसे अधिक हैंडसम कौन हैं, तो रायपुर के आईजी आनंद छाबड़ा बिना किसी विवाद के नंबर वन आते दिखते हैं। एक वक्त हिंदी फिल्मों में जिस तरह चॉकलेटी चेहरा लेकर ऋषि कपूर आए थे, उसी के सरीखा खूबसूरत चेहरा, आकर्षक व्यक्तित्व, और शानदार कपड़े पहनने के शौकीन डॉ. आनंद छाबड़ा किसी पेशेवर मॉडल, या टीवी सीरियल के कलाकार की तरह दिखते हैं। अब अखिल भारतीय सेवाओं में मॉडलिंग का कोई रिवाज नहीं है नहीं तो वह छत्तीसगढ़ के लिए एक मैडल जरूर लेकर आ सकते थे।
डीजीपी अवस्थी हटाए क्यों गए?
पुलिस विभाग अभी तक अपने पिछले डीजीपी डीएम अवस्थी के अचानक हटा दिए जाने के हडक़ंप से पूरी तरह उबरा नहीं है। बहुत से लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि डीजीपी को अचानक कैसे हटा दिया गया। फिर भी पुलिस अफसरों की कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री ने राज्य की पुलिस को लेकर जो तेवर दिखाए थे उससे ऐसा लग रहा था कि यह अवस्थी को हटाने की जमीन बन रही है। और हुआ भी वैसा ही। लेकिन इसके पीछे वजह क्या थी, यह अलग-अलग लोगों का अलग-अलग कहना है। कुछ लोगों का यह मानना है कि अवस्थी ने पुलिस मुख्यालय के महत्व को खत्म ही कर दिया था, वहां बैठना बंद कर दिया था, और शहर के बीच ट्रांजिट हॉस्टल में एक कमरा लेकर वहीं से अपना दफ्तर चलाते थे। केंद्र सरकार की कई ऐसी वीडियो कॉन्फ्रेंस रहती थी जिनमें डीजीपी की जगह उनके दूसरे-तीसरे नंबर के मातहत बैठते थे। हालत यह हो गई थी कि डीजीपी के सहायक ही दूसरे अफसरों को जाकर वीडियो कांफ्रेंस की खबर कर देते थे कि आप ही बैठ जाइएगा।
कुछ दूसरी वजह भी सुनाई पड़ रही हैं जिनमें से एक यह है कि अपने साथी अफसरों के टेलीफोन भी अवस्थी कई-कई हफ्ते नहीं उठाते थे, और न ही कॉल बैक करते थे। एक बड़े आईपीएस अफसर का कहना था कि उनके फोन से घंटी जाने के बाद भी 20-20 दिन तक अवस्थी बात नहीं करते थे, और ऐसी जानकारी मुख्यमंत्री तक पहुंचती थी। जो भी हो, अवस्थी का लंबा करियर बाकी है, और अगर मुख्यमंत्री उनसे संतुष्ट रहते, तो इस सरकार का पूरा कार्यकाल डीजीपी रहते हुए गुजार सकते थे। यह एक और बात है कि उपाध्याय या विश्वरंजन जैसे लंबे समय तक रहने वाले डीजीपी भी, डीजीपी रहते हुए रिटायर नहीं हुए, इस पद से हटाकर दूसरी जगह भेजे जाने के बाद ही रिटायर हुए। इसलिए पूरे कार्यकाल डीजी रहना भी आसान नहीं रहता है।
अब ये मामला सुलग रहा है
प्रदेश के एक ताकतवर नेता अपने दल में घिरते जा रहे हैं। नेताजी ने अपने दल की एक महिला नेत्री को फोन कर इधर-उधर की बातें कह दी थीं। इस चर्चा को ‘छत्तीसगढ़’ ने इसी कॉलम में प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसके बाद कुछ प्रमुख नेताओं ने महिला नेत्री का पता लगाकर वस्तुस्थिति की जानकारी जुटाई है।
सुनते हैं कि रायपुर के पड़ोस के विधानसभा क्षेत्र की रहवासी इस महिला नेत्री ने अपने दल के कुछ नेताओं को सब कुछ सच बता दिया है। इसके बाद नेताओं ने महिला नेत्री की शिकायत प्रदेश प्रभारी तक पहुंचा दी है। नेताजी पहले भी मीटू प्रकरण में फंस चुके हैं।
उन पर करीब ढाई साल पहले एक महिला ने नेताजी पर आपत्तिजनक व्यवहार का आरोप लगाया था। उस समय तो पार्टी के रणनीतिकार नेताजी के पक्ष में सामने आ गए थे इसलिए बात दब गई। मगर इस बार अब ये मामला दल के अंदरखाने में सुलग रहा है। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या?
खैरागढ़ की टिकट मामाजी के हाथ
खैरागढ़ उपचुनाव में अभी समय है, लेकिन राजनीतिक दलों के अंदरखाने में प्रत्याशियों के नामों पर चर्चा चल रही है। भाजपा में पूर्व सीएम रमन सिंह के भांजे विक्रांत सिंह का नाम सबसे मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। विक्रांत जिला पंचायत के उपाध्यक्ष हैं, और सबसे ज्यादा वोटों से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीते।
विक्रांत जनपद अध्यक्ष भी रह चुके हैं। नगर पंचायत के भी अध्यक्ष रहे हैं। यानी 2004 से लगातार किसी न किसी पद पर निर्वाचित रहे हैं। संगठन के स्थानीय नेता भी उन्हें टिकट देने की वकालत कर रहे हैं। खैरागढ़ की टिकट विक्रांत के मामाजी (रमन सिंह) के हाथ में हैं। यानी मामाजी जिसे चाहेंगे उन्हें टिकट मिलेगी।
वैसे भी उपचुनाव विरोधी दल के लिए मुश्किल होता है। खैरागढ़ में तो अब तक चार बार उपचुनाव हुए हैं जिसमें चारों बार सत्ताधारी दल को ही जीत मिली है। ऐसे में खैरागढ़ के चुनावी इतिहास को देखते हुए रमन सिंह अपने भांजे पर दांव लगाएंगे, इसमें पार्टी नेताओं को संदेह है।
चर्चा है कि इस बार भी रमन सिंह अपने करीबी पूर्व संसदीय सचिव कोमल जंघेल को आगे कर सकते हैं। कांग्रेस में सात दावेदार हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस जाति समीकरण को देखते हुए लोधी समाज के किसी नए चेहरे को आगे कर सकती है।
जशपुर में घर वापसी अभियान..
एक बार फिर जशपुर में जूदेव परिवार का अभियान- ऑपरेशन घर वापसी शुरू हुआ है। पत्थलगांव के बसना, सरायपाली के करीब 400 परिवारों को उनके मूल धर्म में वापस लाने के लिये प्रबल प्रताप सिंह जूदेव खूंटापानी के कार्यक्रम में पहुंचे थे। जाहिर है ये आदिवासी हैं और कुछ पीढ़ी पहले ईसाई धर्म अपना चुके थे। जशपुर जिला मिशनरी कामकाज का बड़ा केंद्र है और वहां बड़ी संख्या ऐसे आदिवासियों की है जिन्होंने धर्म बदला। घर वापसी जूदेव परिवार की यूएसपी है और इसका फायदा इस राजनीतिक परिवार को तो मिलता ही है, भाजपा को लाभ पहुंचाती रही है। इस समय जब भाजपा छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के मुद्दे को अगले चुनाव तक विस्तारित करने की दिशा में बढ़ रही है। ऐसे में जूदेव परिवार की उसे बड़ी जरूरत है। बीते चुनाव में जूदेव परिवार की पसंद के दावेदारों के नाम काट दिये गये थे। इसके बाद स्व. युद्धवीर सिंह जूदेव का नेतृत्व के प्रति असंतोष भी झलकता रहा। इस बार?
मासूमों को ऑनलाइन पढ़ाई से क्षति?
बाल दिवस के मौके पर 14 नवंबर से 20 नवंबर तक प्रदेश की कई स्कूलों में नेत्र सुरक्षा सप्ताह के तहत बच्चों की आंखों की जांच की गई। बेमेतरा जिले का आंकड़ा आया है कि 9238 बच्चों में 330 में दृष्टिदोष का पता लगा। ये बच्चे 15 साल से कम उम्र के हैं। इन बच्चों को ब्लैक बोर्ड पर लिखे अक्षर ठीक से दिखाई नहीं देते। इतनी बड़ी संख्या को लेकर चिकित्सक हैरान हैं और अभिभावक तथा शिक्षक चिंतित। डॉक्टरों का कहना है कि आंखों में दिक्कत की बड़ी वजह लगातार ऑनलाइन पढ़ाई और मोबाइल फोन पर दूसरे गैजेट्स का इस्तेमाल करना हो सकता है। बेमेतरा दूसरे जिलों से हटकर नहीं है। प्रदेश के अन्य जिलों में भी भी बड़ी संख्या मंददृष्टि पीडि़त बच्चे हो सकते हैं। सतर्क होना चाहिये।
अधर श्रृंगार..
रायपुर के लोधीपारा के एक पान दुकान की तस्वीर। रोजी-रोटी तो छत्तीसगढ़ में है लेकिन दिल में अपना गांव बसा हुआ है। हां, अभी दरवाजा बंद है। तिवारी जी किसी को प्लाट दिखाने के लिये गये होंगे।
अब आंदोलन नहीं तो क्या करें...
कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने नाली निर्माण में 13 लाख रुपये के गबन की शिकायत की तो पहले तो उन्हें जांच के लिये मशक्कत करनी पड़ी, फिर जांच में दोषी तो गुहार लगाई एफआईआर दर्ज कराने के लिये। मुंगेली के इस मामले में नगरपालिका के अध्यक्ष संतूलाल सोनकर को जेल भेज दिया गया है। 15 दिन बीत गये। भाजपा ने चलो, कोई कार्रवाई नहीं की। उनका अपनी पार्टी का मामला है। पर कांग्रेसी उम्मीद कर रहे थे कि जब उनकी सरकार आई है तो शासन की कार्रवाई भी प्रावधानों के अनुसार फुर्ती करे। पर अध्यक्ष जेल जाने के बावजूद अपने पद पर बने हुए हैं। कांग्रेस पार्षदों ने नगरपालिका अधिनियम 1961 की धारा 41 का हवाला देते हुए उन्होंने कलेक्टर से 22 नवंबर से पहले कार्रवाई करने की चेतावनी दी है। कहा है कि ऐसा न होने पर वे उग्र आंदोलन करेंगे। कभी कांग्रेस का गढ़ रहा मुंगेली विधानसभा सीट अब लगातार भाजपा के खाते में जा रही है। ऐसे में अपनी ही सरकार में आंदोलन करने की नौबत आ रही है, विवश हैं कांग्रेस कार्यकर्ता।
घोष वर्ग में भागवत की बातों का सार...
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मदकू द्वीप की सभा में धर्मांतरण पर नपी-तुली बात कही लेकिन समर्पित कार्यकर्ताओं के लिये यही काफी है। आरएसएस के साथ यह सुविधा हमेशा रहती है कि वह अपने आपको राजनीतिक संगठन हीं बताता है जिसके चलते कोई सवाल नहीं। मार्गदर्शन लेने के लिये मौजूद थे भाजपा के तमाम दिग्गज। पर उन्हें किसानी, बेरोजगारी, आदिवासियों के भू-अधिकार की हालिया छत्तीसगढ़ की समस्याओं पर कोई निर्देश नहीं मिला। 2023 के चुनाव की तैयारी में हुए तीन दिन की घोष वर्ग सम्मेलन में क्या प्रस्ताव थे, किन विषयों पर चिंतन-मनन हुआ होगा, भागवत के उद्बोधन से इसका सटीक अनुमान लगाया जा सकता है।
पढ़े-लिखे सलीकेदार...
आईएएस सोनल गोयल ने यह तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा करते हुए सवाल किया है कि क्या सहानुभूति और दया को आत्मसात करने के लिए पढ़ा-लिखा होना काफी है?
रमन काका को देवव्रत देते थे सेहत-सलाह
खैरागढ़ विधायक देवव्रत सिंह का यूं इस तरह दुनिया से जाना हर किसी को खल रहा है। संसार में नहीं होने के बाद उनकी अच्छाई में से एक बात पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के जेहन में भी है। आपसी संवाद में देवव्रत रमन को काका पुकारते हुए कई बार सेहत के लिए फिक्रमंद होने पर जोर देते थे। राजघराने से वास्ता रखने के बाद भी देवव्रत ने निजी जिंदगी में नशे को अपने पर हावी नहीं होने दिया। राजनीतिक जीवन में कई तरह के तनाव और संघर्षों से घिरे होने के बावजूद देवव्रत ने नशे का रास्ता नहीं चुना। पूर्व सीएम रमन से मेल-मुलाकात में देवव्रत खानपान पर संयम रखने की चर्चा छेड़ देते थे। खैरागढ़ के राजा के बजाय देवव्रत ने आम जीवन में एक सादगीपसंद जीवन बिताया। अचानक दुनिया को छोडकऱ जाने के बाद राजनेताओं के किस्सों में देवव्रत की खूबियां हैरान करने के साथ उनकी सरलता को भी जाहिर कर रही है। रमन समेत कई गैर कांग्रेसी उनकी फिटनेस से बेहद प्रभावित रहे।
अकबर सीएम-देवव्रत को लाए नजदीक
पिछले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोडकऱ जोगी कांग्रेस में शामिल हुए देवव्रत ने बेहद ही रोचक मुकाबले में भाजपा के हाथ से जीत छीन ली थी। कांग्रेस छोडऩे की वजहों पर देव्रवत ने कभी भी खुलकर चर्चा नहीं की, पर उनके करीबियों की जुबां में कांग्रेस अध्यक्ष रहते सीएम बने भूपेश बघेल को लेकर तल्खियां थी। मुख्यमंत्री बघेल के साथ विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद भी रिश्ते सुधरते नहीं देखकर देवव्रत ने सीएम के सबसे विश्वस्त मंत्री मोहम्मद अकबर को साधा। अकबर के साथ प्रगाढ़ राजनीतिक रिश्ते को सीढ़ी बनाकर धीरे-धीरे देव्रवत सीएम के भरोसे को वापस पाने के कगार पर पहुंचने लगे थे। अकबर स्व. शिवेन्द्र बहादुर के भतीजे होने की वजह से पसंद करते थे। बताते है कि अकबर को अविभाजित राजनांदगांव की सियासत में शिवेन्द्र बहादुर ने ही जगह दिलाई। वीरेन्द्र नगर विधानसभा से अकबर ने चुनावी राजनीति का सफर शुरू किया। अकबर आज भी शिवेन्द्र बहादुर की इस पहल को उपकार के तौर पर मानते हैं, इसलिए उनका खैरागढ़ राजघराने के लिए गहरा लगाव है। देवव्रत को सीएम के नजदीक लाने में जुटे अकबर ने प्रभारी मंत्री की हैसियत से काम देने में खुलकर सहयोग किया। सुनते हैं कि देवव्रत को जरूरत से ज्यादा मदद करते देखकर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सीएम से उनकी शिकायत कर दी। अकबर ने भी सीएम को काम करने की वजहों से अवगत कराया। बताते हंै कि देवव्रत ने अकबर के जरिये सीएम को भरोसा दिया कि किसी भी सूरत में सरकार के खिलाफ नहीं जाएंगे। मरवाही उपचुनाव का समय था कि देवव्रत ने जनता कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाया, जिसे सियासी जगत में चुनाव जीतने में एक बड़ा मदद माना गया।
कलेक्टर की मुसीबत बना अधिकारी
जिलों में सभी विभागों के प्रमुख कलेक्टर के अधीन काम करते हैं, अपना बॉस मानकर चलते हैं। यह अलग बात है कि कलेक्टर के पास राजस्व जैसे एक दो विभागों को छोडक़र बाकी में सीधे दखल करने का अधिकार नहीं है। छोटे कर्मचारियों पर वे वेतन काटने, रोकने और निलंबन की कार्रवाई तो कर देते हैं पर यदि कोई राजपत्रित अधिकारी है तो उन्हें सचिवालय को अनुशंसा भेजना होता है। कुछ अधिकारी कलेक्टर की इस सीमा को समझते हैं और इसीलिये उनकी परवाह नहीं करते। समय सीमा की जिलों में हर सप्ताह बैठक होती है, कार्यों की प्रगति कितनी हुई इसकी समीक्षा होती है। वहां से अधिकारी फटकार सुनकर लौट जाते हैं। पर कलेक्टर के साथ समस्या होती है कि राज्य सरकार उनको ही उत्तरदायी मानकर चलती है। खासकर उन मामलों में जो सरकार, या कहें मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी (फ्लैगशिप) योजना हो।
रायगढ़ कलेक्टर ने धान के अलावा दूसरी खेती को प्रोत्साहित करने के लिये जो आंकड़े मांगे, उसमें बताया जाता है कृषि उप-संचालक ने गड़बड़ी की, जमीनी हकीकत और रिपोर्ट में भारी अंतर दिखा। अन्य कई विभागीय कार्य पूरे नहीं हुए। बीते एक साल से परेशान कलेक्टर ने उप-संचालक को हटाने की अनुशंसा ऊपर की। इसके बाद उनका तबादला हो गया। उप-संचालक कोर्ट से स्थगन आदेश लेकर आ गये। अब कलेक्टर को तो काम चाहिये था, सो उन्होंने सोचा होगा-कोर्ट का ऑर्डर है तो बैठे रहें। उनका प्रभार उन्होंने एक डिप्टी कलेक्टर को दे दिया। अब कृषि उप-संचालक खाली बैठे हैं।
मालूम हुआ है कि प्रभार छीनने की बात को अदालत की अवमानना बताते हुए उप-संचालक ने अपने विभाग में पत्राचार शुरू किया है।
क्या खास है मदकू द्वीप में?
रायपुर से करीब 75 किलोमीटर बाद मुंगेली जिले में, बिलासपुर मार्ग पर मनोरम दृश्य से भरपूर मदकू द्वीप के लिये दाहिनी ओर रास्ता है। शिवनाथ नदी यहां कुछ इस तरह घुमावदार है कि बचा हुआ मिट्टी का टीला द्वीप दिखाई देता है। सुरम्य वातावरण में हर साल फरवरी माह में मसीही समाज का मेला लगता है, जो करीब 110 सालों से चला आ रहा है। पांच-छह दिन तक न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों से क्रिश्चियन समुदाय के लोग यहां पहुंचते हैं। वे यहां तरह-तरह से मनोरंजन और आध्यात्मिक कार्यक्रम करते हैं। इसी दौरान बहुत से रिश्ते भी तय हो जाते हैं। सभी समुदायों के लोग मेला पहुंचते हैं। पहले द्वीप तक जाने के लिये नौकाओं का सहारा था लेकिन अब स्टाप डेम बन जाने के बाद पुल-पुलिया भी तैयार हो गई हैं। पर्यटन विभाग ने मदकू द्वीप में बोटिंग की सुविधा भी शुरू कर दी है।
मदकू द्वीप में जब कुछ आध्यात्मिक महत्व के अवशेषों का पता चला तो अब से करीब 25-30 साल पहले इसका सर्वेक्षण शुरू हुआ। सेवानिवृत्त पुरातत्वविद् अरुण शर्मा ने इस पर काफी काम किया। यहां के धूमकेश्वर महादेव, राधा कृष्ण, गणेश, हनुमान, ऋषि मांडूक व श्री राम मंदिर 11वीं शताब्दी के हैं। कई अवशेषों को संकलित कर पुननिर्माण यहां कराया गया है और अब यह हिंदुओं के धार्मिक स्थल के रूप में भी जाना जाता है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिये धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा है, जिसे उनको आगामी चुनावों तक न केवल जिंदा रखना है बल्कि उसे और बड़ा आकार देना है। समझा जा सकता है कि मदकू द्वीप को क्यों आरएसएस के सम्मेलन के लिये चुना गया है।
एक मुद्दा तो टला टकराव का..
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद अब छत्तीसगढ़ के बिल का क्या होगा? अक्टूबर 2020 में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर राज्य ने कृषि उपज मंडी (संशोधन विधेयक) पारित किया । मुख्य बात थी केंद्र के कानून से निजी मंडियों की स्थापना होने वाली थी, छत्तीसगढ़ सरकार ने विधेयक के जरिये उनको नियंत्रित करने का अधिकार ले लिया। जब्ती, तलाशी, निगरानी, निरीक्षण का अधिकार सरकार को मिलता। अब केंद्र के तीनों बिल वापस होने का रास्ता खुलने के बाद छत्तीसगढ़ के बिल के इस हिस्से का औचित्य नहीं रह गया है।
पर बिल में कुछ बातें हैं जिनकी प्रासंगिकता अभी भी है ,जैसे इसमें कृषि उत्पादों को व्यापक दायरे में परिभाषित किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म विकसित करने की बात की गई है। बहरहाल, पीएम के संबोधन के बाद कम से कम एक मुद्दा समाप्त हुआ जिसमें प्रदेश सरकार और गवर्नर के बीच टकराव नहीं होगा।
ऐसे स्मार्ट बनाएंगे किसी शहर को?
पिछले मई महीने में इसी कॉलम में राजधानी रायपुर के बूढ़ा तालाब परिसर, गांधी उद्यान और कुछ दूसरी जगहों पर तस्वीरों के साथ बताया गया था कि पेड़ों में पेंटिंग के कारण उनकी मौत हो रही है। और अब बिलासपुर में वही हो रहा है। नेहरू चौक से सिंधी कॉलोनी की तरफ पेड़ों में बिना सोचे समझे पेंटिंग की जा रही है। इससे पेड़ों की सेहत पर क्या असर पड़ेगा स्मार्ट सिटी के योजनाकारों को इसकी बिल्कुल चिंता नहीं है।
सोशल मीडिया पर पर्यावरण प्रेमी प्राण चड्डा ने जब ऐसी कुछ तस्वीरें साझा की तो रायपुर के नितिन सिंघवी ने नगरीय प्रशासन संचालनालय के 31 अक्टूबर 2021 के आदेश को शेयर किया और बताया कि सन् 2019 से ही आयुक्तों और नगर पालिका के अधिकारियों को साफ निर्देश है कि पेड़ों को मारने के लिए लाखों रुपए का खर्च कर प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करें। स्मार्ट सिटी के बजट को विवेक का इस्तेमाल किये बगैर अनाप-शनाप कामों में लुटाने का यह एक और नमूना है। साल डेढ़ साल पहले चंडीगढ़ में रेलवे स्टेशन के बाहर पेड़ों को रंगने के खिलाफ वहां के नागरिकों ने मोर्चा खोल दिया था, पर यहां खामोशी है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान आदेश दिया है कि स्मार्ट सिटी के लिये कोई भी नया काम मंजूर करने से पहले उससे अनुमति ली जाएगी, लेकिन लगता है पहले के चल रहे कामों पर भी रोक ना लग जाए इस डर से पैसे बहाये जा रहे हैं।
पुलिस का जनदर्शन
मुख्यमंत्री के निर्देश पर पुलिस के जनदर्शन में अलग-अलग नजारे दिखाई दे रहे हैं। कोरबा के जनदर्शन में 88 साल के एक बुजुर्ग अपनी कोई समस्या बताने के लिए पहुंचे थे। पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल अपनी कुर्सी छोडक़र उनके पास पहुंच गये। उनके लिए नाश्ता मंगवाया और कहा जब इसे पूरा खा लेंगे तब आपकी समस्या सुनेंगे। ऐसा ही किया। गद्गद् वृद्ध ने उन्हें अपना मुक्तक भी सुना दिया। एसपी ने ताली बजाई, तो मातहतों ने भी बजाई। उम्मीद करनी चाहिए कि अगर एसपी के दायरे में होगी तो बुजुर्ग की समस्या हल हो गई होगी। एसपी से रोज कोई कहां मिल पाता है? लोगों को तो टीआई से लेकर सिपाही तक ही काम रहता है। काश, उनका भी ऐसा ही बर्ताव थाना पहुंचने वालों के साथ हो जाये।
कांग्रेस नेता का जलवा बरकरार..
कांग्रेस हो या कोई और दल, पद पाने के लिए, खासकर जब सत्ता हो तो होड़ क्यों मची रहती है, उसे जांजगीर में हुई एक घटना से समझा जा सकता है। एक कांग्रेस नेता के खिलाफ ट्रांसपोर्टरों ने मोर्चा खोल दिया। शिकायत थी कि नेता ने अपने साथियों के साथ वसूली के लिये रात 2 बजे एक के बाद एक 40 ट्रकों को रोक लिया। एक ड्राइवर से मारपीट की, जातिगत टिप्पणी की। नेता ट्रांसपोर्टरों से कह रहे हैं जब तक पैसे नहीं बांधोगे, गाडिय़ां नहीं चलेंगीं। गुस्साये ट्रांसपोर्टर थाने में अपनी चाबी रखकर लौट रहे थे, नहीं करना है धंधा। टीआई के समझाने पर माने।
ट्रांसपोर्टरों की शिकायत के अनुसार ये नेता डॉ. चौलेश्वर चंद्राकर हैं। वही, जिन्हें डॉ. चरण दास महंत और जांजगीर-कोरबा के कार्यकर्ताओं के भारी विरोध के कारण प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने जिला अध्यक्ष बनाने के बाद पद से हटा दिया था। मगर, हटाये जाने के एक सप्ताह बाद ही उससे बड़ा ओहदा दे दिया गया- पिछड़ा वर्ग विभाग का प्रदेश अध्यक्ष।
परी का श्रृंगार
यादवों के शौर्य और पराक्रम का उत्सव राउत नाचा एकादशी के बाद से छत्तीसगढ़ में जगह-जगह शुरू हो चुके हैं। बहुरंगी वेशभूषा में हाथों में सुसज्जित लाठी और पैरों में घुंघरू बांधकर टोलियां नृत्य करते हुए दिखाई दे रही हैं। इन समूहों का अनिवार्य हिस्सा है टिमकी, मोहरी, दफड़ी, सिंगबाजा बजाते हुए वाद्यकार। और इनका अटूट हिस्सा होता है नचकहर या परी, जो स्त्री के वेश में श्रृंगार किया हुआ युवक होता है। ये सुंदरियों की तरह ही सुंदर लगते हैं। यह तस्वीर सारंगढ़ जिले के पिंटू का है जो एक यादवों की टोली में जाने के लिये तैयार हुआ है।
अब रह गया छत्तीसगढ़..
पेट्रोल-डीजल की कीमत जब आसमान छूने लगी तो केंद्र सरकार ने टैक्स में थोड़ी रियायत दी। इसलिये दाम में मामूली गिरावट हुई। केंद्र सरकार के फैसले के बाद भाजपा शासित राज्यों को भी ध्यान आया कि उन्हें भी कुछ राहत देनी चाहिये, उन्होंने भी वैट में कुछ कमी ला दी। पंजाब में कुछ महीनों के बाद चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस शासित होने के बावजूद जब वैट कम किया तो यही बात कही गई। पर अब दूसरे कांग्रेसी राज्य राजस्थान ने भी टैक्स घटा दिये। आज से वहां पेट्रोल और डीजल 4-5 रुपये कम हो गये। अब तीसरा कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ ही बचा है जहां वैट घटाने से सरकार ने मना कर दिया है। कहा गया कि केंद्र पहले टैक्स को यूपीए सरकार के स्तर पर लाये, फिर हम कम करेंगे। लोग कह रहे हैं कि अपनी सरकार केंद्र को घेर जरूर रही है पर नाइंसाफी तो जनता के साथ हो रही है। पहले भी पेट्रोल के दाम सौ से ऊपर थे, अब भी।
सीएम के समर्थन में बायकॉट
प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में जनजाति दिवस गौरव के दिन वर्चुअली 50 एकलव्य मॉडल रेसिडेंसियल स्कूल का शिलान्यास किया। इसमें छत्तीसगढ़ का एकमात्र स्कूल शामिल है- गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले का। क्षेत्रीय सांसद ज्योत्सना महंत ने इसे लाने के लिये बड़ा प्रयास किया था। कार्यक्रम में भूपेश बघेल सहित संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री भी वर्चुअली शामिल थे। पर जैसा कि पता है कि किसी को बोलने का मौका मिलने की उम्मीद कम थी। बघेल सहित किसी मुख्यमंत्री को बोलने का मौका नहीं मिला। इस पर जीपीएम के कांग्रेस पदाधिकारी, कार्यकर्ता नाराज हो गये और भूमिपूजन से पहले ही वर्चुअल सभा को छोडक़र बाहर निकल आये। वैसे कुछ कांग्रेसियों ने कलेक्टर से इस बात पर भी नाराजगी व्यक्त की कि प्रभारी मंत्री जयसिंह अग्रवाल का नाम शिलालेख में गायब कर दिया गया।
महिला नेत्री को फोन करना भारी पड़ा
खबर है कि पिछले दिनों आरंग में हुए एक राजनीतिक जलसे की चर्चा खूब हुई। मगर अगले दिन ऐसा कुछ हुआ कि पार्टी के कुछ प्रमुख लोगों के बीच काफी बातें हो रही है। सुनते हैं कि एक बड़े नेता ने अपनी पार्टी की महिला नेत्री को फोन कर कुछ इधर-उधर की बातें कह दीं। नेताजी की रंगीन मिजाजी किसी से छिपी नहीं है। मगर महिला नेत्री ने नेताजी को इतना बुरी तरह हड़काया कि वो सिहर उठे।
चर्चा है कि महिला नेत्री ने तो यह तक कह दिया कि आप लोगों की वजह से अच्छे लोग पार्टी में नहीं आते हैं। बताते हैं कि महिला नेत्री ने हाईकमान तक शिकायत करने की धमकी दे दी थी, लेकिन किसी तरह अपनी बातों पर सफाई देकर मामले को शांत करने की कोशिश की। मामला तो शांत होता दिख रहा है, लेकिन पार्टी के प्रमुख नेताजी के व्यवहार की खूब चर्चा हो रही है।
खरीदी शुरू हुई नहीं, धान तस्करी चालू
पड़ोसी राज्यों और छत्तीसगढ़ की धान खरीद नीति में बड़ा फर्क है। राजीव किसान न्याय योजना को मिला दें तो 2500 रुपए प्रति क्विंटल किसानों को मिल रहा है। पिछली बार तकरीबन 93 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया था इस बार 1 करोड़ 5 लाख मीट्रिक टन खरीदने का लक्ष्य है। पड़ोस के झारखंड में भी वैसे तो इस साल 80 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य है पर उन्हें इसकी कीमत अधिकतम 2070 रुपये मिलेगी। इसमें केंद्र सरकार का समर्थन मूल्य और राज्य का बोनस दोनों शामिल है। ओडिशा में सरकार सीधे नहीं मिलर्स के माध्यम से खरीदती है। मिलर्स उतना ही खरीदते हैं, जितनी उनकी आवश्यकता होती है। मध्यप्रदेश में नीति है कि राइस मिलर्स की जांच में फेल होने वाली किस्म की धान को समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जाएगा। जांच में पास होने वाले धान की कीमत ही समर्थन मूल्य पर ही मिलती है।
ऐसे तमाम कारण है कि सीमा से लगे छत्तीसगढ़ में धान की तस्करी होती है। किसान और कोचिये सीजन में मुस्तैद हो जाते हैं। गरियाबंद जैसे जिले ज्यादा संवेदनशील हैं।
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, जशपुर, महासमुंद, बलरामपुर, मुंगेली, कोरिया आदि जिले ओडिशा, झारखंड और मध्य प्रदेश सहित सात राज्यों से जो जुड़ते हैं। हर साल निगरानी के लिए चेक पोस्ट बनाने की बात होती है। यह पूर्ववर्ती सरकार के समय से चला रहा है।
हालत यह है कि खरीदी तो 1 दिसंबर से शुरू होनी है लेकिन अभी से तस्करी का धान दूसरे राज्यों से पहुंचना शुरू हो गया है। सूरजपुर जिले की ओडग़ी में 4 पिकअप वैन जब्त किये गये तो गरियाबंद में भी 12 लाख रुपए का धान सीज किया गया। दरअसल, समस्या यह है कि निगरानी के लिये जो चेक पोस्ट बनाये जाते हैं उनमें बैठने वाले कर्मचारियों पर निगरानी कौन रखे।
जनरल यात्री अब भी बेहाल
कुछ दिन पहले रेलवे ने जोर शोर से घोषणा की थी कि अब कोविड मामलों में कमी के कारण ट्रेनों का स्पेशल स्टेटस हटा दिया गया है और पहले की तरह सामान्य किराया लिया जाएगा। ट्रेनों को कोविड के पहले की स्थिति में लाया जायेगा। पर वास्तव में ऐसा नहीं हुआ है।
ज्यादातर मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों से महिला एवं दिव्यांग कोटे के लिए लगाए जाने वाले अलग डिब्बे वापस नहीं लगाये गए हैं। इतना ही नहीं जनरल डिब्बों को हटा दिया गया है। उनकी जगह सीटिंग सामान्य बोगी लगा दी गई है। जनरल डिब्बे जिसमें काउंटर से करंट टिकट कटा कर लोग सफर की सुविधा थी वह चालू नहीं हुई है। अब भी यात्रियों के लिये सीट नंबर जरूरी है। इन जनरल डिब्बों में रिजर्वेशन का किराया भी जुड़ गया है। लोगों को लंबी लाइन पर लगने के बाद टिकट मिल पा रही है, क्योंकि इस कतार में जनरल सीट पर सफर करने वाले भी हैं। रेलवे ने यह भी साफ नहीं है कि पहले की तरह जनरल डिब्बा कब लगाए जाएंगे, जनरल टिकट कब से दी जायेगी। महिलाओं, दिव्यांगों के लिए अलग बोगी कब शुरू की जाएगी, मासिक सीजन टिकट भी चुप्पी है।
दिवंगत अबीर के वीडियो...
मणिपुर उग्रवादी हमले में शहीद हुए कर्नल विप्लव त्रिपाठी के बेटे अबीर के वीडियो उनके गुजर जाने के बाद यू ट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रहे हैं। इन्हें देखकर कोई भी कह सकता है कि अबीर को मौका मिला होता तो वे भी युवा होने पर फौज में ही जाना पसंद करते। ऐसे एक वीडियो में सेना को दी जाने वाली ट्रेनिंग करते दिखाई दे रहे हैं। एक वीडियो में उन्होंने शहीद भगत सिंह स्टाइल का हैट और मूंछें लगाई हैं। इसमें वे कह रहे हैं- 'जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो जनाजे उठते हैं।Ó
रनौत के समर्थन में यह भी...
इस समय कंगना रनौत के बयान का डंका बजा हुआ है। ज्यादातर लोग इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने आजादी को भीख में मिली बताकर लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान किया और 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन को आजादी बताकर तो हद ही कर दी। छत्तीसगढ़ में कई स्थानों पर कांग्रेस ने उनके खिलाफ थाने में शिकायतें की हैं। एफआईआर दर्ज होने की बात भी देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही है। वाट्सएप पर भी एक अलग तरह का युद्ध चल रहा है। छत्तीसगढ़ में वाट्सएप से उठाकर उसी पर वेब पोर्टल के समाचार डालकर हिट्स लाने का चलन है। ऐसे कुछ पोर्टल आपत्तिजनक सामग्री उठाकर भी समाचार बना डाल रहे हैं। इनमें गांधी, नेहरू की अभद्र भाषा में आलोचना करते हुए पूछा जा रहा है कि कंगना रनौत ने गलत क्या कहा? जो तर्क समर्थन में दिये गये हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध हैं। हाल ही में जिलों में सोशल मीडिया की सामग्री पर नजर रखने के लिये बनाई समितियों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है, न ही एफ़आईआर के लिये पीछे पड़े कांग्रेस नेताओं का। और तो और अपने प्रदेश में ऐसे पोर्टल विज्ञापनों से पोषित भी किये जा रहे हैं।
बिरसा किसके आदर्श, किसके भगवान?
आदिवासी समुदाय का एक बड़ा वर्ग अपने आपको हिंदू नहीं मानता, न ही उसकी वर्ण व्यवस्था से सहमत है। वे खुद को प्रकृति पूजक मानते हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हमेशा आदिवासियों को हिंदू धर्म का हिस्सा माना। अभी कल ही राष्ट्रीय जनजाति गौरव दिवस का एक कार्यक्रम बिलासपुर में हुआ। बिरसा मुंडा को यहां पहुंचीं राज्यपाल ने आदिवासियों का भगवान बताया और कहा कि आदिवासी समाज सनातन धर्म की रीढ़ है। गौरव दिवस का यह आयोजन देश के दूसरे हिस्सों में भी हो रहे हैं। भोपाल में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कार्यक्रम है। जहां भाजपा की सरकारें हैं आयोजन सरकार करा रही है लेकिन सरकार न हो फर्क नहीं पड़ता। अनेक संगठन हैं। राज्यपाल की मौजूदगी हो तो कार्यक्रम की शोभा तो बढ़ ही जाती है, बात लोगों तक पहुंच भी जाती है। वैसे देश जानता है कि गांधी, बोस, आजाद, भगत सिंह और कई महान सेनानियों की तरह बिरसा मुंडा ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया। बाकी नेताओं से कहीं पहले। वे नेता तो देश के हुए न कि किसी वर्ग के।
बुरी नजर वाले को कोरोना टीका
यह संदिग्ध तरह का स्लोगन एक ट्रक में दिखा। अपने आप में यह कोरोना
टीकाकरण के खिलाफ प्रचार-दुष्प्रचार भी कहा जा सकता है। कोरोना टीका तो
अच्छे बुरे सबकी जरूरत है। दुष्प्रचार पर तो जुर्म भी दर्ज हो जाता है।
कुल्लू का पेड़ भी केंचुल बदलता है!
छत्तीसगढ़ के पथरीले पहाड़ी और नाले में कुल्लू का पेड़ न केवल आयुर्वेदिक गुणों की खान है अलबत्ता साल में दो तीन बार तने और शाखों का रंग बदलता है। यह पेड़ छतीसगढ़ के अलावा और भी जगह मिलता है, इसे घोस्ट ट्री कहा जाता है।
इस बारे में छत्तीसगढ़ के वन और प्रकृतिप्रेमी प्राण चड्ढा ने लिखा है- इसकी गोंद ठंडी तासीर की होती है और आयुर्वेदिक दवाओं में बड़ी मांग होने के कारण गोद के लोभ में कई पेड़ कुल्हाड़ी की चोट दर चोट से मारे जाते हैं। मुंगेली जिले में अंग्रजों के बनाये खुडिय़ा रेस्ट हाउस के सामने इसके कुछ बुजुर्ग पेड़ चांदनी रात में सफेद चमकते है।
कुल्लू का वानस्पतिक नाम ईस्टर कुलिया यूरेन है। चमकीले आकर्षक रंग के चलते ये पेड़ रात में अलग से पहचान में आते हैं। होली पर जब पत्ते गिर जाते हैं, तब पीले रंग के फूल खिलते हैं। कुल्लू का गोंद शक्तिवर्धक और औषधीय गुणों के लिए सभी पहचानते हैं इस वजह प्रतिबंधित होने के बावजूद ये पेड़ कुल्हाड़ी का शिकार बन रहा है। वन विभाग को इस शानदार पेड़ को बचाने प्रोजेक्ट बना कर काम हाथ में लेना होगा।
चित्र- अक्टूबर 2021में कान्हा नेशनल पार्क में लिया था जिसमें पेड़ अपने पुराने छाल का रंग बदलते हुए। ऐसा लगता है जैसे पेड़ भी केंचुल बदल रहा है।
रनौत के समर्थन में यह भी...
इस समय कंगना रनौत के बयान का डंका बजा हुआ है। ज्यादातर लोग इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने आजादी को भीख में मिली बताकर लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान किया और 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन को आजादी बताकर तो हद ही कर दी। छत्तीसगढ़ में कई स्थानों पर कांग्रेस ने उनके खिलाफ थाने में शिकायतें की हैं। एफआईआर दर्ज होने की बात भी देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही है। वाट्सएप पर भी एक अलग तरह का युद्ध चल रहा है। छत्तीसगढ़ में वाट्सएप से उठाकर उसी पर वेब पोर्टल के समाचार डालकर हिट्स लाने का चलन है। ऐसे कुछ पोर्टल आपत्तिजनक सामग्री उठाकर भी समाचार बना डाल रहे हैं। इनमें गांधी, नेहरू की अभद्र भाषा में आलोचना करते हुए पूछा जा रहा है कि कंगना रनौत ने गलत क्या कहा? जो तर्क समर्थन में दिये गये हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध हैं। हाल ही में जिलों में सोशल मीडिया की सामग्री पर नजर रखने के लिये बनाई समितियों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है, न ही एफ़आईआर के लिये पीछे पड़े कांग्रेस नेताओं का। और तो और अपने प्रदेश में ऐसे पोर्टल विज्ञापनों से पोषित भी किये जा रहे हैं।
बिरसा किसके आदर्श, किसके भगवान?
आदिवासी समुदाय का एक बड़ा वर्ग अपने आपको हिंदू नहीं मानता, न ही उसकी वर्ण व्यवस्था से सहमत है। वे खुद को प्रकृति पूजक मानते हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हमेशा आदिवासियों को हिंदू धर्म का हिस्सा माना। अभी कल ही राष्ट्रीय जनजाति गौरव दिवस का एक कार्यक्रम बिलासपुर में हुआ। बिरसा मुंडा को यहां पहुंचीं राज्यपाल ने आदिवासियों का भगवान बताया और कहा कि आदिवासी समाज सनातन धर्म की रीढ़ है। गौरव दिवस का यह आयोजन देश के दूसरे हिस्सों में भी हो रहे हैं। भोपाल में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कार्यक्रम है। जहां भाजपा की सरकारें हैं आयोजन सरकार करा रही है लेकिन सरकार न हो फर्क नहीं पड़ता। अनेक संगठन हैं। राज्यपाल की मौजूदगी हो तो कार्यक्रम की शोभा तो बढ़ ही जाती है, बात लोगों तक पहुंच भी जाती है। वैसे देश जानता है कि गांधी, बोस, आजाद, भगत सिंह और कई महान सेनानियों की तरह बिरसा मुंडा ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया। बाकी नेताओं से कहीं पहले। वे नेता तो देश के हुए न कि किसी वर्ग के।
बुरी नजर वाले को कोरोना टीका
यह संदिग्ध तरह का स्लोगन एक ट्रक में दिखा। अपने आप में यह कोरोना
टीकाकरण के खिलाफ प्रचार-दुष्प्रचार भी कहा जा सकता है। कोरोना टीका तो
अच्छे बुरे सबकी जरूरत है। दुष्प्रचार पर तो जुर्म भी दर्ज हो जाता है।
कुल्लू का पेड़ भी केंचुल बदलता है!
छत्तीसगढ़ के पथरीले पहाड़ी और नाले में कुल्लू का पेड़ न केवल आयुर्वेदिक गुणों की खान है अलबत्ता साल में दो तीन बार तने और शाखों का रंग बदलता है। यह पेड़ छतीसगढ़ के अलावा और भी जगह मिलता है, इसे घोस्ट ट्री कहा जाता है।
इस बारे में छत्तीसगढ़ के वन और प्रकृतिप्रेमी प्राण चड्ढा ने लिखा है- इसकी गोंद ठंडी तासीर की होती है और आयुर्वेदिक दवाओं में बड़ी मांग होने के कारण गोद के लोभ में कई पेड़ कुल्हाड़ी की चोट दर चोट से मारे जाते हैं। मुंगेली जिले में अंग्रजों के बनाये खुडिय़ा रेस्ट हाउस के सामने इसके कुछ बुजुर्ग पेड़ चांदनी रात में सफेद चमकते है।
कुल्लू का वानस्पतिक नाम ईस्टर कुलिया यूरेन है। चमकीले आकर्षक रंग के चलते ये पेड़ रात में अलग से पहचान में आते हैं। होली पर जब पत्ते गिर जाते हैं, तब पीले रंग के फूल खिलते हैं। कुल्लू का गोंद शक्तिवर्धक और औषधीय गुणों के लिए सभी पहचानते हैं इस वजह प्रतिबंधित होने के बावजूद ये पेड़ कुल्हाड़ी का शिकार बन रहा है। वन विभाग को इस शानदार पेड़ को बचाने प्रोजेक्ट बना कर काम हाथ में लेना होगा।
चित्र- अक्टूबर 2021में कान्हा नेशनल पार्क में लिया था जिसमें पेड़ अपने पुराने छाल का रंग बदलते हुए। ऐसा लगता है जैसे पेड़ भी केंचुल बदल रहा है।
अवस्थी के जाने से हैरानी नहीं
डीजीपी बदले गए तो जानकार लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ। सुनते हैं कि डीएम अवस्थी के तौर-तरीकों से गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू तो नाखुश थे ही। सीएम ने भी कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस से पहले अहम बैठकों में उन्हें बुलाना बंद कर दिया था। शिकायतें तो कई थीं, लेकिन एक शिकायत यह भी थी कि वो पीएचक्यू के बजाए पुलिस लाइन के सामने ट्रैंजि़ट हॉस्टल में ज्यादा समय गुजारते हैं। एक तरह से पुलिसिंग चौपट-सी हो गई थी।
चर्चा है कि अवस्थी के रेगुलर डीजी के ऑर्डर होने से पहले उन्हें उनकी खामियों को लेकर साफ-साफ बता दिया गया था। यह भी कहा गया था कि इन सबको नजरअंदाज कर रेगुलर डीजीपी बनाया जा रहा है। हल्ला तो यह भी है कि अवस्थी ने सब-कुछ ठीक करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन कुछ नहीं हुआ। अहम मसलों पर वो जांच को किसी किनारे पर नहीं पहुंचा रहे थे। कामकाज में नुक्ताचीनी के बाद भी वो करीब-करीब तीन साल डीजीपी रहे। यानी एएन उपाध्याय के बाद सबसे ज्यादा समय तक।
तमाम खामियों के बावजूद पुलिस वेलफेयर आदि को लेकर विभाग के छोटे अधिकारी-कर्मचारी उनसे खुश रहते थे। वैसे डीजीपी पद से हटने का ऑर्डर होने के बाद बिना देरी किए अवस्थी ने नया दायित्व संभाल भी लिया है। यदि सब कुछ ठीक रहता है, तो उन्हें और दायित्व मिल सकता है। क्योंकि रिटायरमेंट में अभी डेढ़ साल से अधिक समय बाकी है।
भाजपा में शह और मात
भाजपा के भले ही 14 विधायक रह गए हैं, लेकिन उनमें भी शह-मात का खेल चलते रहता है। इसका नमूना कवर्धा विवाद पर देखने को मिला। सुनते हैं कि भाजपा विधायकों ने गुपचुप रणनीति बनाई थी कि सभी विधायक बिना पूर्व सूचना के कवर्धा विवाद की न्यायिक जांच की मांग को लेकर सीएम हाउस के सामने धरने पर बैठेंगे।
बाद में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक मीडिया से मुखातिब हुए, और ऐलान कर गए कि यदि कवर्धा मामले की न्यायिक जांच नहीं हुई, तो विधायक धरने पर बैठेंगे। अब जब रणनीति का खुलासा हो गया है, तो सरकार, और पुलिस भाजपा विधायकों को सीएम हाउस के आसपास फटकने देगी, यह तो सोचना भी नहीं चाहिए।
बसों की टाइमिंग का बवाल
अल्टीमेटम के बाद भी राजधानी रायपुर के पंडरी बस स्टैंड से एक भी बस ऑपरेटर का दफ्तर हटाकर भाठागांव नये बस स्टैंड आईएसबीटी में नहीं ले जाया गया है। नई जगह पर यातायात थाना खोल दिया गया है। टर्मिनल का पूरा काम पहले ही हो चुका है। सोमवार से पंडरी में तोड़-फोड़ शुरू करने की बात भी हो रही है। बस ऑपरेटरों ने एक आम समस्या की तरफ ध्यान दिलाया है। नई जगह से बस छूटने और पहुंचने का समय दूरी के कारण बदल जायेगा। इसके चलते पहले से ही सवारियों के लिये स्पर्धा करने वाले संचालकों में आये दिन विवाद होने की आशंका है। सारे विभागों ने अपना काम तो कर लिया पर परिवहन विभाग ने टाइम टेबल सुधारने का काम नहीं किया। यह थोड़ा पेचीदा भी हो सकता है कि क्योंकि रायपुर ही नहीं दूसरे जिलों में मसलन बलौदाबाजार, दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव, जहां ये बसें पहुंचती और वहां से छूटती हैं, वहां भी टाइम टेबल में सुधार करना होगा।
मन हो न हो सुनें जरूर..
प्रदेश भाजपा ने एक प्रस्ताव पारित कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रेडियो वार्ता ‘मन की बात’ को सुनना अपने कार्यकर्ताओं के लिये अनिवार्य कर दिया है। इसके लिये प्रदेश में जगह-जगह बूथ भी बनाये जायेंगे। अनिवार्य करने का क्या मतलब निकाला जाना चाहिये? एक बार देखा गया था कि सोशल मीडिया पर जितने लोगों ने मन की बात सुनी उनमें लाइक से दुगनी संख्या डिसलाइक करने वालों की थी। क्या धीरे-धीरे इसके श्रोता घट रहे हैं? पार्टी कार्यकर्ता सुनें न सुनें, वे तो मोदी के प्रशंसक रहेंगे ही। पार्टी कोशिश कर सकती है कि आम लोगों में इसे सुनने की रुचि बढ़े। पर, मन की बात में बात उनके काम की भी होनी चाहिये।
सलमान खुर्शीद का नहीं आना
हाल ही में कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी ने अपना रायपुर दौरा स्थगित कर दिया। कुछ संगठनों ने उनके कार्यक्रम को रुकवा देने की धमकी दी थी। अब फिर एक खबर है कि सलमान खुर्शीद का दौरा भी रद्द हो गया। राजधानी में आज शुरू हुए राष्ट्रीय शिक्षा समागम में खुर्शीद को तब विशिष्ट अतिथि तय कर लिया गया था जब उनकी किताब सनराइज ओवर इंडिया की बातें सामने नहीं आई थीं। शिक्षा विभाग ने निमंत्रण पत्र में उनका नाम भी छाप दिया था। पर दो दिन पहले तय किया गया कि खुर्शीद नहीं आयेंगे। उनका आना क्यों टल गया, इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। मंत्री ने यह जरूर बताया है कि अब उनकी जगह विशिष्ट अतिथि अजय माकन होंगे। सलमान खुर्शीद एक सीनियर वकील होने के नाते बहुत बार छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में भी पैरवी करने के लिये भी आते रहे हैं।
अपना फोन टैप होने की मुनादी !
दुनिया में बहुत से जानकार लोगों का यह मानना है कि आज एक घुसपैठिया सॉफ्टवेयर पेगासस के पीछे तमाम लोग लग गए हैं, और लोगों को यह ध्यान भी नहीं रह गया है कि ऐसे दूसरे भी सॉफ्टवेयर हो सकते हैं। मिलिट्री दर्जे की हैकिंग करने के लिए पेगासस की कोई मोनोपोली तो है नहीं, बहुत से देशों में ऐसे हैकर बसे हुए हैं जो रेनसमवेयर बनाते हैं और लोगों के कंप्यूटर हैक करके उसकी जानकारी छोडऩे के लिए रकम वसूलते हैं। अभी यह खबर भी सामने आई थी कि अमेरिका ने ऐसे हैकरों को पकडऩे के लिए एक बहुत बड़ा इनाम रखा है। यह बात जाहिर है कि दुनिया के बहुत से देशों में कानूनी और गैरकानूनी दोनों तरह की हैकिंग होती है।
आज हिंदुस्तान में भी सरकार और राजनीति से जुड़े हुए बहुत से लोग इतनी सावधानी बरतते हैं कि मोबाइल के सिम कार्ड पर बात नहीं करते, और या तो व्हाट्सएप कॉल पर बात करते हैं, या आईफोन के फेसटाइम को और अधिक सुरक्षित मानते हैं। हिंदुस्तान में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की 10 एजेंसियों के पास टैपिंग के अधिकार हैं। ऐसे में जब छत्तीसगढ़ के एक सीनियर आईएएस ऑफिसर डॉ. आलोक शुक्ला अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर यह लिखते हैं कि उनका फोन टैप किया जा रहा है, और मैसेज भेजने वाले उन पर खतरे के लिए खुद ही जिम्मेदार रहेंगे, तो यह बात लोगों को हक्का-बक्का करने वाली है। शायद ही किसी इतने सीनियर अफसर ने इसके पहले कभी इस तरह खुलकर यह बात कही हो कि उसके फोन टैप किए जा रहे हैं। खैर उन्होंने किसी सरकार या किसी एजेंसी का नाम नहीं लिखा है, इसलिए लोग अपने अपने हिसाब से अंदाज लगा सकते हैं कि उनके फोन को कौन टैप कर रहा है।
रेलवे की आधी-अधूरी राहत
रेलवे ने सभी तरह की ट्रेनों में स्पेशल का टैग हटाकर रेगुलर करने का निर्णय लिया है। केन्द्र सरकार जब कोरोना के खिलाफ जंग को प्रभावी तरीके से लड़ऩे की बात कह रही हो और नये केस कम हो रहे हों तो रेलवे के लिये महामारी के नाम पर लंबे समय तक स्पेशल और इसके नाम पर बढ़ा हुआ किराया लेकर ट्रेन चलाने का कोई मतलब समझ नहीं आ रहा था। रेलवे की घोषणा से कई बातें साफ नहीं हुई है। मसलन, बुजुर्गों और अन्य कई श्रेणियों में रियायती टिकट शुरू होगी या नहीं? रोजाना सफर करने वालों को एमएसटी की सुविधा कब से दी जायेगी?
आदेश में यह साफ तो कर दिया गया है कि अब भी एसी क्लास में बिस्तर, कंबर, तकिया नहीं दिया जायेगा। रिजर्वेशन कंफर्म होने पर ही आरक्षित सीटों पर सफर किया जा सकेगा।
रेलवे के एक अधिकारी ने इसे पेट्रोल डीजल के दामों से टैक्स कम करने की अगली कड़ी बताया। लोग सचमुच बढ़ती हुई महंगाई से काफी बेचैनी महसूस कर रहे थे। इस बात की तरफ केन्द्र का ध्यान हाल ही में आये उप-चुनाव के नतीजों के बाद गया है। फिर आने वाले दिनों में यूपी सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। निर्णय लेते समय इसका ध्यान भी रखा गया।
भाजपा का काउंटर अभियान
एक तरफ कांग्रेस ने प्रदेश में नये सदस्य जोडऩे के लिये 10 लाख लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है तो भाजपा ने अभियान का पीछा करना शुरू कर दिया है। दावा है कि आरंग के दीपावली मिलन कार्यक्रम में प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी की मौजूदगी में 6000 लोगों ने पार्टी की सदस्यता ली। मंत्री डॉ. शिव डहरिया का कहना है कि कई लोगों को सदस्यता लेने के लिये डराया-धमकाया गया। पुरंदेश्वरी ने इस आरोप को आधारहीन बताया है। कांग्रेस ने पदयात्रा का कार्यक्रम भी बना लिया है। कांग्रेस के खेमे से बैठकों में लगातार खबर आ रही है कि कार्यकर्ता अधिकारियों से काम नहीं करा पाने के कारण नाराज चल रहे हैं। वहीं भाजपा कार्यकर्ता पिछले चुनाव में हुई भारी पराजय से अब तक उबर नहीं पाये हैं। शायद यही वजह है कि अभी से कार्यकर्ताओं को दोनों ही दल रिचार्ज करने में लग गये हैं।
कॉमेडियन के शो का स्थगित होना
कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी का कार्यक्रम 14 नवंबर को राजधानी में तय था। इस बीच कुछ संगठनों ने पुलिस अधिकारियों को ज्ञापन देकर शो को कैंसिल करने की मांग की। साथ ही चेतावनी दी कि यदि पुलिस ऐसा नहीं करेगी तो हम रद्द करा देंगे। फारूकी के खिलाफ इंदौर में एक एफआईआर इस आरोप के साथ दर्ज की गई थी हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ उन्होंने आपत्तिजनक टिप्पणी कर लोगों की धार्मिक भावना को भड़काया, जबकि ऐसी कोई रिकॉर्डिंग पेश नहीं हो पाई थी। कॉमेडियन को गिरफ्तार भी किया गया था। कॉमेडियन ने खुद ही शो रद्द करने की जानकारी देकर पुलिस प्रशासन को तो उलझन से बचा लिया लेकिन उससे भी बड़ा काम ये हो गया कि इस मामले में किसी को प्रदर्शन, विरोध करने का मौका नहीं मिला। ([email protected])
कहानी सवन्नी की...
प्रदेश में भले ही भाजपा सरकार नहीं है लेकिन सवन्नी बंधुओं का जलवा बरकरार है। बात भूपेन्द्र सिंह सवन्नी और उनके छोटे भाई महेन्द्र सिंह सवन्नी की हो रही है। भूपेन्द्र प्रदेश भाजपा के महामंत्री हैं, तो महेन्द्र सरकारी नौकर हैं। वो मंडी बोर्ड के एडिशनल एमडी हैं। दोनों ही मिलनसार हैं, और गुस्से से परहेज करते हैं। इन्हीं विशिष्ट गुणों की वजह से दोनों अपनी-अपनी संस्था में बेहद पॉवरफुल हैं।
दोनों भाइयों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले आए। जांच एजेंसियों तक शिकायत पहुंची लेकिन जांच किसी किनारे नहीं लग पाई। भाजपा मेें सौदान सिंह के छत्तीसगढ़ के प्रभार से मुक्त होने के बाद पवन साय सर्वेसर्वा हुए, तो सवन्नी उनके विश्वासपात्र हो गए। यह चर्चा आम है कि पार्टी संगठन के बड़े फैसलों में सवन्नी का सीधा दखल रहता है।
दूसरी तरफ, सरकार बदलने के बाद भी छोटे भाई महेन्द्र सिंह सवन्नी की सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ा है। महेन्द्र सिंह की अब भी मंडी बोर्ड में तूती बोलती है। दोनों भाइयों की हैसियत को देखकर लोग अब चुटकी लेने लगे हैं कि खाता न बही, सवन्नी जो कहे वह सही।
और सन्नी की...
राजीव भवन में मोहन मरकाम की मौजूदगी में महामंत्री अमरजीत चावला के साथ गाली-गलौज करना अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के चेयरमैन सन्नी अग्रवाल को भारी पड़ रहा है। वो पार्टी से निलंबित हैं। उन्हें भरोसा था कि पीएल पुनिया रायपुर आते ही उनका निलंबन खत्म करा देंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ।
होटल में सन्नी, पुनिया के आगे-पीछे होते रहे। वो दीवाली की बधाई देने के लिए एक कारोबारी को साथ लेकर पहुंचे थे। पुनिया ने कारोबारी की बधाई तो स्वीकारी, लेकिन सन्नी को उलटे पांव लौटा दिया। उन्हें पद से हटाने के लिए दबाव बन रहा है। चर्चा है कि सन्नी, अमरजीत से माफी मांगकर और संगठन में लिखित माफीनामा देकर बहाली की कोशिश में हैं। उनसे जुड़े लोग अमरजीत को गुस्सा थूकने के लिए कह रहे हैं, लेकिन अमरजीत अभी पसीजते नहीं दिख रहे हैं। देखना है कि पार्टी से निलंबन के बाद सन्नी को पद से हटाया जाता है, अथवा नहीं।
डीजीपी का बदला जाना..
डीजीपी की छुट्टी का संदेश क्या है? अपने छत्तीसगढ़ में यूपी और बिहार की तरह क्राइम नहीं है, पर तस्करी का धंधा जोरों से चल रहा है। गांजा और शराब दूसरे राज्यों से ट्रकों में भर के लाई जा रही है। चौराहों पर आए दिन चाकूबाजी और तलवार बाजी हो रही है। बहुत से लोग घायल हो रहे हैं तो कुछ की मौत भी हो रही है। यह बात लगातार दिखाई दे रही है कि जनता से पुलिस का संपर्क टूट चुका है। सीएम ने गृह विभाग को ठीक तो कर दिया, अब स्वास्थ्य विभाग बाकी है।
खुल गया, खुल गया... बंद है, बंद है
सस्ती दवाइयां मुहैया कराने के लिए बीते अक्टूबर महीने में छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के अधिकांश जिलों में धनवंतरी योजना के अंतर्गत दुकानों का उद्घाटन किया। लोग बड़े खुश हुए कि ब्रांडेड और जेनेरिक दवाइयां सस्ते में मिल सकती है। आदिवासी इलाकों के लिए तो यह योजना वरदान थी मगर बीजापुर से जो खबर आई है वह हैरान करती है। यहां की दवा दुकान है खुली पर दो-चार दिन बाद ही बंद हो गई। अब सरकार को चाहिए कि जितना जोर शोर से उसने खबर फैलाई की सस्ती दुकान खुल गई इसी तरह से शोर करके बताएं की दुकानें तो बंद हो गई हैं।
नीलामी से व्यापारियों को दुकानें खोलने की निविदा स्वीकृत की गई थी। उन्होंने प्रतियोगिता के बाद दुकानें तो हासिल कर ली लेकिन दवा भेजने में शायद दिक्कत हो रही हो। दवा लिखने वाले भी तो सहयोग करें। सरकार में तय किया गया था सरकारी डॉक्टर ब्रांडेड दवाइयां नहीं सिर्फ जेनेरिक लिखेंगे मगर ताबड़तोड़ आज ब्रांडेड ही लिखी जा रही हैं।
हुक्का बंद, शराबखोरी होने दो..
सीएम की हर बैठक के बाद पुलिस अधिकारी अपना रिकॉर्ड दुरुस्त करने में लग जाते हैं। उन्होंने प्रदेश में हुक्का बार चलने पर फटकार क्या लगाई अगले दिन रायपुर, बिलासपुर और दूसरे जिलों में ताबड़तोड़ कार्रवाई चालू हो गई। पहले हुक्का बार में ही छापामारी की जाती थी पर इस बार हुक्का का सामान, चिमनी और फ्लेवर बेचने वाले भी पकड़े गये। यदि यह नशे के खिलाफ जंग है तो सेल्यूट। बस काम कुछ आगे तक होना चाहिये था। शराबखोरी बढ़ रही है। देर रात होने वाले हंगामे, मारपीट, यहां तक की मर्डर में, कितने हुक्का बार से लौटने वाले हैं और कितने शराब दुकानों से- इसका भी ब्यौरा जुटाना चाहिये। कितने घर हुक्का के चलते तबाह हो रहे हैं और कितने शराब की वजह से इसका भी डेटा हो। यह वही सरकार है जिसे शराबबंदी के अपने चुनावी वादे को पूरा करना है।
काश यहां भी चुनाव होता..
कोरोना महामारी के चलते अदालतें लम्बे वक्त तक बंद रही। इसके चलते प्रोफेशनल्स आर्थिक संकट में जूझ रहे थे। वकील जो सबको न्याय दिलाने के लिये पैरवी करते हैं उनकी भी हालत बुरी हो गई। उन वकीलों की ज़्यादा जिन्होंने चार-पांच साल की वकालत में ज्यादा जमा नहीं कर रखा था। इन्हें आर्थिक सहायता देने के लिये सीएम, विधि मंत्री, बार कौंसिल आदि में आवेदन लगाये गये। हाईकोर्ट में भी केस लगाया गया। जरूरतमंदों की तादात ज्यादा थी, मदद कुछ को ही मिल पाई। यह संख्या कुल इस पेशे से जुड़े में से एक या दो फीसदी ही रही। अब जरा यूपी पर निगाह डालिये। वहां सीएम ने घोषणा की है कि इस पेशे से जुड़े लोगों को पांच लाख रुपये तक की एकमुश्त मदद की जायेगी। जो पात्रता रखते हैं उन्हें आवेदन जमा करने कहा गया है।
अपने राधेश्याम बारले
कर्नाटक में लोक वाद्य और पर्यावरण पर विशिष्ट योगदान करने वाले हजब्बा और तिम्मक्का पर खूब चर्चा हुई कि वे नंगे पांव राष्ट्रपति से पद्म पुरस्कार लेने के लिये पहुंचे। पर पंथी नृत्य को नई ऊंचाई देने वाले अपने छत्तीसगढ़ के राधेश्याम बारले ने भी तो नंगे पांव ही राष्ट्रपति से सम्मान ग्रहण किया। इसकी बात मीडिया पर कम हुई इसलिये तस्वीर साझा की जा रही है।
कुछ सवाल आपके मन में उठ सकते हैं मसलन, नंगे पांव क्यों गये राधेश्याम? वेशभूषा तो सलीके ही है। कोविंद जी के पास नंगे पांव दिखाकर छत्तीसगढ़ की हालत बतानी है क्या? कुल मिलाकर क्या नंगे पांव दिखाने के पीछे कोई राजनीति है?
राज्यपाल ने रिपोर्ट पढ़ ली तो?
झीरम घाटी आयोग की रिपोर्ट को लेकर राज्य सरकार पेशोपेश में है। न्यायिक जांच आयोग और राज्यपाल दोनों ही राजनीतिक व्यक्ति या संगठन नहीं इसलिये संभलकर बोलना पड़ रहा है। आयोग से नहीं पूछा जा सकता कि आपने हमें न देकर रिपोर्ट राज्यपाल को क्यों दी? राज्यपाल से भी नहीं कह सकते कि दी तो आपने क्यों रख ली?
मीडिया से आयोग और राज्यपाल को प्रतिक्रिया मिल रही होगी पर वे अपनी संस्थागत मर्यादाओं के चलते जवाब नहीं देंगे। अभी तो रिपोर्ट राज्यपाल को सिर्फ दी गई है। रिपोर्ट पढ़ी और उस पर उनकी कोई टीप आती है तो फिर उस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया होगी? राज्यपाल ने रिपोर्ट को देखने की बात तो कह ही दी है। मंडी बिल और यूनिवर्सिटीज़ का नाम बदलने के विधेयकों के रुकने के बावजूद दूसरे कुछ राज्यों की तरह, सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति प्रदेश में अब तक नहीं बनी। पर, झीरम सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिये बड़ा संवेदनशील मुद्दा है। जांच आयोग की रिपोर्ट से कहीं यह नौबत तो नहीं आने वाली है?
जिम्बाबवे तकनीक से शिफ्टिंग
कानन पेंडारी जू में चीतलों की संख्या फिर बढ़ी है। यहां चीतलों की उछल-कूद के लिये मैदान काफी बड़ा है पर प्रजनन भी उतनी ही तेजी से होता है। इनकी अच्छी देखभाल की जाती है और जब संख्या बढ़ जाती है तो किसी अभयारण्य में छोड़ दिया जाता है। इस बार भी अधिक चीतलों को अचानकमार, तैमोर पिंगला और गुरुघासीदास उद्यान में छोडऩे की तैयारी चल रही है। पहले देखा गया है कि चंचल प्रकृति के चीतलों को वाहनों में भरने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। पर इस बार इन्हें पकडऩे के लिये बोमा तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक फिसलन वाली रैंप तैयार की जा रही है, जिसकी प्रवेश करते समय तो चौड़ाई 40 मीटर है पर आगे चलकर संकरा होते हुए यह 1.5 मीटर ही रह जाता है। पूरे रैंप में चीतल के लिये आहार फैला दिये जाते हैं। जैसे ही डेढ़ मीटर का फासला खत्म होता है, उन्हें गाड़ी में भर लिया जाता है। इसे बोमा तकनीक कहते हैं जो जिम्बाबवे में अपनाई जाती है। छत्तीसगढ़ में पहली बार इसका प्रयोग किया जा रहा है।
वही घोड़ा, वही मैदान
कांग्रेस का सदस्यता अभियान चल रहा है। जिला पदाधिकारियों पर जिम्मेदारी है कि प्रदेश में तय किये गये लक्ष्य के अनुरूप 10 लाख सदस्य बनाने के लिये अपना जोर लगायें। इसके चलते कार्यकर्ताओं की एक बार फिर पूछ-परख बढ़ी है, बैठकें ले जा रही है। मरवाही उप-चुनाव में कांग्रेस को रिकॉर्ड तोड़ जीत के मुकाम तक पहुंचाने वाले कार्यकर्ता दुखी और नाराज हैं। यह नाराजगी वही है जो हर जगह कांग्रेस की बैठकों से निकलकर आ रही है। कार्यकर्ताओं से जब कहा गया कि ज्यादा से ज्यादा सदस्य बनाने के लिये जुट जायें तो साफ पूछा गया कि किस मुंह से जायें? अधिकारी निरंकुश हो गये हैं। कार्यकर्ताओं का काम करना तो दूर वे बात करना भी पसंद नहीं करते। अपना काम तो छोडिय़े किसी फरियादी, जरूरतमंद का भी काम नहीं करा पाते। चुनाव आने पर ही हमें पूछा जाता है और घोड़े की तरह मैदान में दौड़ा दिया जाता है। अब सदस्यता के लिये दौडऩे कहा जा रहा है। कृषि, बिजली, राजस्व, शिक्षा विभाग में समस्याओं, शिकायतों की अर्जियां धूल खा रही हैं। काम होंगे नहीं तो कैसे किसी से कहें कि सदस्य बनो। ([email protected])
108 फीट भगवा ध्वज लगाने की अर्जी
कवर्धा के लोहारा चौक पर क्या 108 फीट भगवा ध्वज आने वाले दिनों में लहराने लगेगा? एक संगठन श्री शंकराचार्य जनकल्याण न्यास ने इस चौक के पास 10 वर्गफीट जमीन की मांग प्रशासन ने की है। कलेक्टर का जैसा बयान आया है कि इसके लिये प्रक्रिया शुरू हो गई है। दावा आपत्ति ली जायेगी फिर शासन को रिपोर्ट भेज दी जायेगी। निर्णय शासन ही लेगा। दूसरी तरफ न्यास की ओर से एक चेतावनी भी है। यदि प्रशासन स्थान उपलब्ध नहीं कराता है तो भी 10 दिसंबर को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की अगुवाई में यहां ध्वजारोहण होगा। कवर्धा जिला प्रशासन को कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर अभी-अभी थोड़ी राहत मिली है। उम्मीद ही कर सकते हैं कि आगे भी माहौल अच्छा बना रहेगा।
नगर निगमों के चुनाव की आहट
काफी संभावना है कि प्रदेश के चार नगर-निगम बिरगांव, रिसाली, चरोदा और भिलाई के चुनाव दिसंबर-जनवरी में हों। कोविड के कारण ये चुनाव टल रहे थे पर अब सभी संबंधित जिलों में इसकी तैयारी हो रही है। कहा जा रहा है कि इन नगर निगमों के परिणामों से एक आकलन लगाया जा सकेगा कि सरकार के कामकाज को लेकर लोगों में क्या राय है। विधानसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले उप-चुनावों में भाजपा की स्थिति लगातार कमजोर होती गई। पिछले कुछ समय से विपक्ष के तौर पर उसकी सक्रियता बढ़ी दिखाई दे रही है। इन चुनावों में उसे अपना प्रदर्शन सुधारने का अवसर मिल सकता है। बिरगांव ऐसी सीट है जहां जनता कांग्रेस का भी ठीक-ठाक प्रभाव है।
अब प्रदेश में महापौर पार्षदों के जरिये चुने जा रहे हैं। इस पद्धति को अपनाने के चलते पिछले चुनाव में कांग्रेस को फायदा भी हुआ था। इन चारों नगर-निगमों क्या स्थिति बनती है, देखना रोचक होगा।
बस्तर के बांस की साइकिल
वैसे तो धातु की बनी साइकिल भी अपने आप में ईको फ्रैंडली है, पर बस्तर के युवा मो. आसिफ खान ने एक अनूठा प्रयोग करते हुए बांस की साइकिल तैयार की है। इस साइकिल में चेचिस, सीट, सीट कवर, हैंडल व मडगार्ड बांस से बने हैं। अनूठी बात यह है कि इसमें बस्तर की शिल्प कला भी उकेरी गई है। अब इसका व्यावसायिक रुप से उत्पादन भी शुरू किया गया है। देशभर में बिक्री के लिये फ्लिपकार्ट के साथ करार किया जा चुका है। अमेजॉन से भी बात चल रही है। यानि इस साइकिल के लिये ऑनलाइन ऑर्डर भी लिये जायेंगे। बेंगलूरु, मुंबई आदि शहरों से पहले भी बांस की साइकिल बनाने और इस्तेमाल करने की खबरें आई हैं। मुंबई के कैप्टन शशि पाठक ने तो आसिफ का मार्गदर्शन भी किया है। विदेशों में भी बांस की साइकिलों का चलन है पर बस्तर की साइकिल की डिजाइन ज्यादा आकर्षक है और फिर शिल्पकला तो शायद पहली बार साइकिल पर उकेरी गई है।
सोशल मीडिया पोस्ट के खतरे
छत्तीसगढ़ सरकार ने अब हर जिले में सोशल मीडिया निगरानी टीम बनाने के लिये कलेक्टर्स को निर्देश दिया है। कई जिलों में यह टीम बन चुकी है।लगता है सभी जिलों में कुछ समय के बाद बन जायेगी। यह टीम देखेगी कि कोई पोस्ट भडक़ाऊ तो नहीं, समाज में अशांति फैलने का उससे खतरा तो नहीं है? छत्तीसगढ़ में कुछ लोग पहले गिरफ्तार किये जा चुके हैं जो अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए कुछ नेताओं को को टारगेट करते हुए पोस्ट डाले। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग कमेटी संभवत: कवर्धा की घटना का दोहराव न हो, इसलिये बनाई गई है। पर, यदि सोशल मीडिया पोस्ट पर त्रिपुरा जैसी कार्रवाई हो जाये तो? वहां सीधे-सीधे यूएपीए के तहत 102 लोगों पर अपराध दर्ज किया गया है, जिसमें 7 साल की सजा है और आसानी से जमानत भी नहीं। इनमें त्रिपुरा इज बर्निंग नाम से ट्विटर पर पोस्ट डालने वाले श्याम मीरा सिंह, कई एक्टिविस्ट और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के मेम्बर्स हैं। केस 68 ट्विटर पोस्ट, 32 फेसबुक पोस्ट तथा दो यू ट्यूब पोस्ट के चलते दर्ज किये गये हैं। त्रिपुरा में पहले भी दो पत्रकारों पर ये धारायें लगाई जा चुकी है। यूपी में कोरोना काल के दौरान ऑक्सीजन की कमी पर पोस्ट डालने वालों पर ये एक्ट लग गया। संयोग यह है कि यूपीएपी कानून यूपीए सरकार के समय लाया गया था और ज्यादा इस्तेमाल भाजपा की सरकारें कर रही हैं। सोशल मीडिया मॉनिटरिंग कमेटी भी छत्तीसगढ़ में मौजूदा कांग्रेस सरकार लेकर आई है। मॉनिटरिंग कमेटी कब कौन सी पोस्ट, कब यूएपीए लगाने के लायक समझ लेगी कह नहीं सकते। इसलिये, क्योंकि कमेटी एक बार बन गई है, आगे भी कायम रहेगी, सरकारें तो बदलती रहेंगीं।
धर्मान्तरण मुद्दा बनकर रहेगा?
अंबिकापुर में कल एक पादरी और उनके एक सहयोगी पर प्रलोभन और झांसा देकर धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करने के आरोप में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एफआईआर दर्ज कराई। दुर्ग के रेलवे इलाके में पुलिस ने रविवार को ही ईसाई समुदाय की शिकायत पर 20-25 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। इनका आरोप है कि प्रार्थना कक्ष में घुसकर कुछ लोगों ने मारपीट की, दान पेटी लूट ली। रायपुर में थाने के भीतर पादरी की पिटाई की घटना तो हो ही चुकी है। कवर्धा का मामला भी सबके सामने है। मान लेना चाहिये कि छत्तीसगढ़ में एक नया चुनावी मुद्दा आकार ले रहा है, जो आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में काम आ सकता है।
राजनीतिक नुकसान की चिंता
खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने सरगुजा के चिरंगा गांव में दी गई एलुमिना प्लांट की अनुमति रद्द करने की मांग करते हुए सीएम को पत्र लिखा है। शायद इसलिये कि मतदाता जान लें। अपनी जिम्मेदारी उन्होंने पूरी कर दी है, बाकी फैसला ऊपर लिया जायेगा। इस पत्र से खास बात यह निकली है कि उन्हें अपने और कांग्रेस के वोटों तथा राजनीतिक नुकसान की चिंता है। दरअसल, ग्रामीणों ने पहले ही यह स्थिति पैदा कर दी है कि प्लांट का काम आगे बढ़ नहीं पा रहा है। फैक्ट्री के लिये कोई गाड़ी गांव में घुस नहीं पा रही है। लोग घेर लेते हैं, रतजगा कर रहे है। चिरंगा में चाहे जितने वोटर हों लेकिन उनके विरोध की खबर आसपास के गांवों में भी फैल रही है। पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने आंदोलन शुरू करने की चेतावनी भी दे डाली है। मंत्रीजी का समर्थन को लेकर चिंतित होना जायज है। उनको श्रेय जाता है कि वे सत्ता में रहकर भी सरकार को उसके किसी फैसले पर आगाह कर रहे हैं। वरना, हसदेव अरण्य मामले में तो कुछ बयानों को छोड़ दें तो आम तौर पर चुप्पी ही है। किसी को अपना वोट बिगडऩे की चिंता नहीं, चाहे वह जनप्रतिनिधि पक्ष का हो या विपक्ष का।
जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा
कौन से जनप्रतिनिधि किस सरकारी कार्यक्रम में बुलाये जायेंगे, कौन नहीं, इसका फैसला अधिकारी करते हैं। ऐसे आयोजनों में सम्मानजनक तरीके से बुलावे के लिये अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों से जाकर मिलना चाहिये। पर, स्थापित परंपरा और दिशानिर्देशों की परवाह नहीं की जा रही है। कोरबा में हुई राज्य स्तरीय शालेय क्रिकेट प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह के निमंत्रण पत्र से वहां की सांसद ज्योत्सना महंत का नाम गायब था। पता चला कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया। जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. प्रेमसाय टेकाम को भी बुलाना जरूरी नहीं समझा गया। विशिष्ट अतिथि के तौर पर विधायक पुरुषोत्तम कंवर और मोहित राम केरकेट्टा का नाम तो कार्ड में लिखा गया लेकिन वे नहीं पहुंचे। कार्ड में नाम डालकर बुलाना भूल गये होंगे। जिले के शीर्ष अधिकारी भी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। आम तौर पर ऐसे मामलों से प्रभावित, उपेक्षित जनप्रतिनिधि जब सत्ता में होते हैं तो चुप रहना ही ठीक समझते हैं। उन्हें लगता है कि अपनी ही सरकार को परेशानी में क्यों डालना। पर बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडे ने कुछ दिन पहले सीएम को चि_ी लिखकर कलेक्टर पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने और हटाने की मांग कर चुके हैं। राज्योत्सव के आमंत्रण पत्र से शहर का विधायक होने के बावजूद उनका नाम गायब तो था ही, बुलाया भी नहीं गया। ऐसे मामलों में यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि अफसरशाही पहले के सरकार में ज्यादा हावी थी या अब है।
तोहफों का सैलाब धीमा
दीवाली के मौके पर गिफ्ट का चलन कोई नया नहीं है। मंत्रालय में तो अफसर-कर्मियों को गिफ्ट देने के लिए कंपनियों के प्रतिनिधि, ठेकेदार, और अन्य प्रभावशाली लोगों की भीड़ देखने को मिलती रही है। पिछले साल तो कोरोना की वजह से एक तरह से सूना रहा, लेकिन इस बार थोड़ी रौनक देखने को मिली।
त्योहार को लेकर किसी तरह की रोक-टोक न होने के बावजूद गिफ्ट देने वालों की अपेक्षाकृत भीड़ कम देखने को मिली। वजह यह है कि सीएस अमिताभ जैन ने तो हिदायत दे रखी थी कि दीवाली की बधाई देने न आएं। लिहाजा भीड़ छँट गई।
सचिव स्तर के एक अफसर ने बाहर से आए कंपनियों के प्रतिनिधियों से गिफ्ट लेने से तो परहेज नहीं किया, लेकिन उन्होंने सारे गिफ्ट अपने स्टाफ के लोगों के बीच बांट दिया। स्टाफ के लोगों के पास इतने गिफ्ट आ गए कि वो प्राइवेट गाड़ी में घर गए।
अमिताभ जैन की तरह पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार के तेवर रहे हैं। सुनिल कुमार का खौफ इतना था कि लोग उनसे दीवाली या नववर्ष के मौके पर मिलने गिफ्ट लेकर जाना, तो दूर गुलदस्ता लेकर जाने में भी कतराते थे।
मरकाम टीम से दो-दो हाथ
कांग्रेस से निलंबित निगम अध्यक्ष सन्नी अग्रवाल अब मोहन मरकाम, और उनकी टीम से दो-दो हाथ करते दिख रहे हैं। सदस्यता अभियान के शुरू होने के मौके पर पिछले दिनों सीएम भूपेश बघेल राजीव भवन पहुंचे, तो वहां सन्नी ने अपने साथियों के साथ भूपेश के समर्थन में जमकर नारेबाजी की।
शहरभर में पोस्टर लगवाए जिसमें मरकाम की तस्वीर गायब थी। पोस्टर में सिर्फ सीएम के अलावा गिरीश देवांगन, और रामगोपाल की तस्वीर थी। दीवाली के मौके पर अपने से जुड़े लोगों, और मीडिया कर्मियों को खूब गिफ्ट बांटे। मरकाम त्योहार मनाने कोंडागांव चले गए। उनकी टीम का हाल यह रहा कि वो दीवाली के बधाई संदेश तक कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुंचा पाए। ऐसे में सन्नी जैसे लोग भारी तो पड़ेंगे ही।
सेव फॉरेस्ट, स्टॉप अदानी
ग्लास्को में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कांफ्रेंस के बाहर करीब 1 लाख लोगों ने अपने-अपने तरीके से धरती को प्रदूषण से बचाने और पर्वावरण को सुरक्षित रखने के लिये शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। इसमें भारत के भी लोग थे और इन भारतीयों में कुछ ऐसे लोग जिनका संपर्क, संबंध छत्तीसगढ़ से है। इन लोगों ने हसदेव के जंगलों को बचाने के लिये पोस्टर और नारों के जरिये आवाज उठाई। एक वीडियो ट्विटर पर साझा हुआ है- फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया पेज पर। इसमें हसदेव अरण्य में अदानी को दी गई अनुमति रद्द करने की मांग की जा रही है। उनके हाथ में पोस्टर हैं जिन पर लिखा है, सेव फॉरेस्ट, स्टॉप अदानी। सरगुजा और कोरबा के जंगल से पैदल चलकर पहुंचे प्रभावित ग्रामीणों के बारे में राजधानी रायपुर के अधिकारियों को तो पता नहीं चला, पर यह यात्रा दुनिया के अलग-अलग कोनों में लोगों का ध्यान खींच रही है। याद होगा, इसी यात्रा के बाद स्वीडन की प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने भी हसदेव अरण्य को बचाने के लिये ट्वीट किया था।
रेल्वे और फिल्म शूटिंग
रेलवे ने छत्तीसगढ़ की खूबसूरती की फिल्म शूटिंग को पहले से ज्यादा आसान कर दिया है। रेलवे ट्रैक और स्टेशनों में शूटिंग के लिए रेलवे जोनल मुख्यालय में सिंगल विंडो सिस्टम शुरू कर दिया है। इसके पहले लोग बिना अनुमति के छोटी मोटी शूटिंग या यूट्यूब ब्लॉग बना लेते थे। अधिकारिक तौर पर फिल्म शूटिंग के लिए रेलवे बोर्ड से मंजूरी लेनी पड़ती थी। मुंबई हावड़ा रूट, कटनी रूट हो या विशाखापट्टनम और बस्तर की रेल लाइन, खूबसूरती छत्तीसगढ़ में सब तरफ बिखरी हुई है। छत्तीसगढ़ में फिल्में भी खूब बनती है। रेलवे के गलियारे में शूटिंग का मौका मिलने से उम्मीद कर सकते हैं कि छत्तीसगढ़ की विशेषताओं को ज्यादा अच्छी तरह से देश दुनिया में दिखाया जा सकेगा। बॉलिवुड और देश-दुनिया के फिल्म निर्माता भी छत्तीसगढ़ को शूट करने पहुंच सकते हैं।
सरकार योजना बना रही, लोग पैसे खाने में लगे
सरगुजा संभाग में संरक्षित पिछड़ी जनजातियों के साथ जो मजाक होता रहा है, उसका एक और उदाहरण सामने आया है। लुंड्रा ब्लॉक में पहाड़ी कोरवा युवाओं को ड्राइविंग ट्रेनिंग देने के लिए एक एनजीओ को एक लाख रुपये दिये गये। ट्रेनिंग के नाम पर उन्हें जीप की ड्राइविंग सीट पर बिठाया गया और फोटो खींच ली गई। चाय नाश्ता करा कर उन्हें वापस भेज दिया गया। हालत यह है कि जिन 30 युवकों को ड्राइविंग सिखाने का दावा किया गया है वे चार पहिया वाहनों में चाबी तक नहीं लगा पाते। मामले ने तूल पकड़ा जब पूर्व मंत्री गणेश राम भगत ने आदिवासी विकास विभाग के अधिकारियों से जवाब तलब किया। उन्होंने कहा कि आप तो स्वयं आदिवासी अधिकारी है इसके बावजूद युवकों को ठगा गया और आप अन्याय होते देख रहे थे। अधिकारी ने सफाई दी कि जिनको ट्रेनिंग दी गई है और युवाओं को सर्टिफिकेट भी बांटा गया है। भगत ने कहा कि ठीक है सर्टिफिकेट देने से कोई ट्रेंड हो जाता है तो मैं आपको पायलट का सर्टिफिकेट देता हूं, प्लेन उड़ा कर बताओ। बहरहाल, अब मामले की जांच शुरू हो गई है और जिस एनजीओ ग्रामीण साक्षरता सेवा संस्थान का नाम इस घोटाले में आ रहा है, मालूम हुआ है कि इसके संचालक अब उन युवाओं से संपर्क करके झूठा बयान देने के लिए 30-30 हजार रुपए का प्रलोभन दे रहे हैं। देखते हैं भगत का हडक़ाना काम आता है या एनजीओ का प्रलोभन।
फोन पर जमीन में निवेश का ऑफर
कोरोना की लहर कमजोर होने के बाद कारोबार के हर क्षेत्र में रफ्तार दिखाई दे रही है। इतनी हिम्मत आई है कि त्यौहारों के सीजन में लोग जमीन, मकान, फ्लैट आदि पर निवेश करने के लिये लोग आगे आ रहे हैं। जो रेरा से पंजीकृत हैं और तमाम शासकीय अनुमति ले चुके हैं वे तो अपने प्रोजेक्ट को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और हर तरह की मीडिया में बेझिझक कर रहे हैं लेकिन जिन लोगों के प्रोजेक्ट अधिकृत नहीं हैं वे ऐसा नहीं कर सकते। रेरा में शिकायत के बाद उन पर कार्रवाई हो सकती है। ऐसे लोगों ने मोबाइल फोन के जरिये ग्राहकों तक पहुंचने का रास्ता चुना है। वे वाट्सएप, मैसेज, फोन कॉल और यहां तक ई मेल के माध्यम से लोगों तक पहुंच रहे हैं। सस्ते और एक हद तक अविश्वसनीय दाम पर मिलने वाले फ्लैट, मकान, जमीन के ऑफर को लेकर लोगों में आकर्षण होता है पर वे धोखा खा सकते हैं।
इसे लेकर शिकायतें रेरा को भी मिल रही हैं। उसने अब एसएमएस पर भी निगरानी करनी शुरू की है। हाल के दिनों में सात ऐसे प्रोजेक्ट उनके ध्यान में आ चुके हैं जिनके पास वैध अनुज्ञा और रेरा से पंजीयन नहीं है। इन सबको नोटिस देकर खरीदी-बिक्री बंद करने की चेतावनी दी गई है और लोगों को भी आगाह किया गया है। अभी सिर्फ सात परियोजनाओं पर रेरा की निगाह पड़ी है, पर न केवल राजधानी बल्कि पूरे प्रदेश में प्राय: सभी विकसित हो रहे शहरों में ऐसी अवैध खरीदी बिक्री के ऑफर आ रहे हैं। ज्यादा समझदारी इसी में है कि एसएमएस और वाट्सएप पर दिये जाने वाले ऑफर पर भरोसा ही नहीं किया जाये वरना धोखा हो सकता है।
नाम में क्या रखा है?
हिंदुस्तान में जहां जात पात खत्म करने की बात होती है वहां भी देश के हर शहर-कस्बे में बहुत से इलाकों का नाम-जात पर रखा हुआ दिखता है। बहुत पहले राजधानी रायपुर में जेल रोड पर एक पंजाबी लाइन हुआ करती थी, बाद में शायद उसका नाम बदल गया। लेकिन सिंधियों की बहुत सी बस्तियों में सिंधी कॉलोनी या सिंधी बस्ती नाम चलन में आ जाता है, फिर चाहे वह औपचारिक रूप से रखा गया हो या नहीं। अभी रायपुर के एक बोर्ड की फोटो राजीव चक्रवर्ती ने फेसबुक पर पोस्ट की है जिसमें सिंधी चाल और बंगाली पारा, दो इलाकों के नाम दिख रहे हैं। इनसे परे बनियापारा, ब्राह्मणपारा, सतनामीपारा जैसे मोहल्ले छत्तीसगढ़ के बहुत से शहरों में हैं। एक वक्त था जब इस इलाके में मोहल्ले की किराना दुकान आमतौर पर सिंधी चलाते थे, और उन्हें किराना दुकान के बजाय सिंधी दुकान कहा जाता था। जब सरकार और म्युनिसिपल ही किसी इलाके के जाति के नाम को मान्यता देते हैं, तो फिर वह नाम जल्द टलने वाला भी नहीं रहता। खैर जो भी ही, रायपुर में मरने पर सबसे अधिक लोगों को मारवाड़ी श्मशान नसीब होता है।
सदस्यता अभियान के मायने
सदस्य संख्या से चुनाव में बहुत फायदा मिलता हो, ऐसा लगता नहीं। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव में 15 सीटों पर सिमट गई थी। तब दावा किया जा रहा था कि प्रदेश में पार्टी के 34 लाख सदस्य हैं। उस चुनाव में कांग्रेस सदस्यों की संख्या 6 लाख के आसपास थी। बीते साल भी 6 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य था। अब 1 नवंबर से कांग्रेस ने जो सदस्यता अभियान शुरू किया है वह मार्च तक चलेगा। इस दौरान 10 लाख नये सदस्य बनाने का लक्ष्य है। बूथ मैनेजमेंट, प्रचार और चुनाव प्रबंधन की दूसरी जरूरतों के लिये पार्टी को कार्यकर्ता तो चाहिये पर बिना रीति-नीति को जाने ही, सत्ता के प्रभाव में और दूसरे निहित उद्देश्यों के चलते सदस्यता लेने वाले यह काम शायद नहीं कर पायें। वैसे पिछले कई चुनावों में देखा गया है कि इस काम के लिये भी युवाओं को हायर किया जाता है। भाजपा सवाल कर रही है कि कांग्रेस में संगठन चुनाव होते ही नहीं तो सदस्यता अभियान चलाने की क्या मतलब रह जाता है। पर हो सकता है कांग्रेस अगले चुनाव से पहले भाजपा का रिकॉर्ड तोडऩा चाहती हो।
किसान घर का बेटा होना काम आया...
आईपीएस रतनलाल डांगी अपनी बॉडी फिटनेस और योग की वीडियो अक्सर सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। समय-समय पर वे प्रेरक विचार भी रखते हैं, जिसे खबर की तरह अख़बारों में इभी जगह मिलती है। इस बार उन्होंने एक ऐसी पोस्ट डाली है जो उनके किसान परिवार से होने को सार्थक करता है। उन्होंने अपने बंगले में एक गाय पाल रखी है। दीपावली की देर रात जब सारे सहायक अवकाश पर थे गाय को प्रसव पीड़ा हुई। लक्ष्मी जी की पूजा करके उठे डांगी खुद ही प्रसव कराने में जुट गये और उनकी गाय ने एक स्वस्थ बछिया को जन्म दिया। वीडियो में दिखाई दे रहा है कि गाय किस तरह पीड़ा में कराह रही है और जैसे ही बछिया को खींचकर उन्होंने बाहर निकाला गाय की आवाज से पता चला कि उसे राहत मिली। अगले दिन गोवर्धन पूजा थी। अपनी मान्यताओं के अनुरूप डांगी ने बछिया की पूजा की और कहा- परिवार में लक्ष्मी आई है।
एसपी को तो दूसरों को रोकना चाहिये...
हाथियों के साथ मनोरंजन का खेल गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही के एसपी त्रिलोक बंसल व उनकी पत्नी पर भारी पड़ गया। हाथियों की उन्मुक्त आवाजाही और मानव को उनसे बचाने के लिये जारी सामान्य निर्देशों का पालन कराना वन विभाग के अलावा प्रशासन और पुलिस का भी है। अमारू के जंगल में हाथियों का दल होने की खबर मिलने पर बंसल उनका दर्शन करने के लिये निकल पड़े। इतना ही नहीं, जैसी खबर है वे वीडियो भी बनाने लगे। उन्होंने कायदा तोड़ा, जिसका खामियाजा यह हुआ कि उनकी जान खतरे में पड़ गई थी। वीडियो, फोटो शूट के चक्कर में हाथियों के हमले के छत्तीसगढ़ में कई लोग पहले शिकार हो चुके हैं। ऐसे में हाथी प्रभावित जिले की कमान संभाल रहे कप्तान का सतर्क नहीं होना कतई समझदारी की बात नहीं। लोग वीडियो, फोटो शूट कर रोमांच तो अनुभव करते हैं लेकिन यह शांत स्वभाव के इस जानवर को सताये जाने और आक्रमण के लिये उकसाये जाने की प्रक्रिया है। यह तो अच्छा हुआ कि हाथियों ने सिर्फ दौड़ाया और एसपी को चोट हाथी के वार से नहीं, गिरने से लगी। अब वे स्वस्थ भी हो रहे हैं, हमारी कामना भी है कि वे जल्द चंगे होकर वापस ड्यूटी पर लौटें। पर इस घटना से उन सब लोगों को सबक मिल गया होगा जो करीब जाकर फोटो वीडियो खींचने का दुस्साहस करते हैं। हाथी न आम-आदमी को पहचानते, न एसपी को। उनको गुस्सा दिलाना ठीक नहीं।
राजनीति की एबीसीडी
ऐसे कई मौके आ चुके हैं जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का उनकी ही पार्टी में पूछ-परख नहीं किये जाने को लेकर चुटकियां ले चुके हैं। डॉ. सिंह के आरोपों पर पूछ चुके हैं कि वे आखिर हैं कौन? बघेल के इस रुख को लेकर सवाल किये जाने पर मुंगेली व बिलासपुर जिले के दौरे पर निकले डॉ. सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जब बघेल राजनीति की एबीसीडी सीख रहे थे तो वे केन्द्रीय मंत्री बन चुके थे। यानि आज उनको एक्स वाई जेड नहीं माना चाहिये। पूर्व मुख्यमंत्री यह भी कह सकते थे कि वे जिस स्कूल में पढ़े हैं, वहां के हम हेडमास्टर रहे हैं। मगर, यह ठीक नहीं होता क्योंकि दोनों की पाठशाला अलग-अलग है।
पुलिस भरोसा कैसे जीते?
सरगुजा जिले के चिरंगा, बतौली में एलुमिना फैक्ट्री लगाने का ग्रामीणों ने विरोध किया। ग्रामीणों का आरोप है कि जन सुनवाई में उन्होंने असहमति जताई थी पर इसे प्रशासन ने सहमत दर्शाकर मंजूरी दे दी। इससे लोग इतने नाराज हैं कि गांव के लोग पहरेदारी कर रहे हैं कि फैक्ट्री का काम शुरू न हो। कोई भी अनजान या सरकारी गाड़ी देखते ही उसे वे लौटा देते हैं। अब यहीं पर पास में एक गुड़ फैक्ट्री की मंजूरी भी दी गई है। इसी फैक्ट्री के लिये जमीन को समतल करने का काम शुरू हुआ तो ग्रामीणों ने यह समझकर कि यह एलुमिना फैक्ट्री के लिये किया जा रहा है, विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस और प्रशासन ने ग्रामीणों के साथ कोई संवाद नहीं किया। आरोप है कि पुलिस गांव में घुसी और जो लोग प्रदर्शन में शामिल नहीं थे, ऐसे तीन ग्रामीणों को दूसरी जगह से गिरफ्तार कर ले गई। उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जेल भेज दिये गये। विरोध और बढ़ गया और महिलाओं ने राष्ट्रीय राजमार्ग ही जाम कर दिया। कह रहे थे कि जो आंदोलन में थे ही नहीं उनको क्यों जेल भेजा, उन्हें हमारे पास वापस लेकर आओ तब रास्ता छोड़ेंगें। चार घंटे से ज्यादा चक्काजाम रहा। किसी तरह समझा-बुझाकर ग्रामीणों को हटाया जा सका।
यह एक उदाहरण है कि ग्रामीणों के साथ संवाद और सहमति की प्रक्रिया को न तो प्रशासन महत्व देता न पुलिस देती है। वे कानून में मिले अधिकार का इस्तेमाल करने पर विश्वास करते हैं, जिससे व्यवस्था बिगड़ती है।
विधायक चंद्राकर के खिलाफ प्रदर्शन..
आबकारी विभाग के लिपिक के साथ मारपीट का मामला जल्दी सुलझता दिखाई नहीं दे रहा है। जब से यह घटना हुई है विधायक विनोद चंद्राकर की ओर से यही बयान आ रहा है कि वे मारपीट में शामिल नहीं थे बल्कि बीच-बचाव करने गये थे, जबकि पीडि़त लिपिक ने अपनी शिकायत में मारपीट करने वालों में सबसे पहला नाम विधायक का ही लिखा है। अब तक भाजपा ने इस मामले में बयान ही दिये थे लेकिन महासमुंद में बीती रात वह सडक़ पर उतर गई। राज्योत्सव के कार्यक्रम में विधायक को मुख्य अतिथि बनाया गया तो वे उनके सामने प्रदर्शन करने के लिये आगे बढऩे लगे। राज्योत्सव में खलल न पड़े, इसलिये पुलिस ने घेराबंदी की और किसी तरह से भाजपा कार्यकर्ताओं को आगे बढऩे से रोका। मामला जल्दी शांत होते दिखाई नहीं दे रहा है। जब तक यह मुद्दा गरम है चंद्राकर की सार्वजनिक कार्यक्रमों में उपस्थिति पर पुलिस को अधिक सावधानी बरतनी पड़ेगी।
रंगीनमिजाजी पर नरमी
बच्चियों और महिलाओं से जुड़े मामलों में गंभीरता बरतने और शीघ्रता से कार्रवाई करने का प्रशासन और समय-समय पर अदालतों का स्थायी निर्देश है। पर, रामानुजगंज के लरंगसाय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में ऐसा नहीं हो रहा है। वहां के और किसी नहीं, बल्कि प्राचार्य पर ही छात्राओं ने अश्लील कमेंट करने का आरोप लगाया है। जब इसकी पुनरावृत्ति बार-बार होने लगी तो छात्राओं के लिए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया। उच्च शिक्षा संस्थान के प्रमुख पर ही ऐसा गंभीर आरोप था इसलिये छात्राओं को इसकी शिकायत थाने में करनी पड़ी। इस पर भी कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने एसडीएम से शिकायत की, पर उनका रुख भी नरम है। उन्होंने प्रिंसिपल के उच्चाधिकारियों को विभागीय कार्रवाई के लिये लिखा है, जबकि पीडि़त छात्राओं का कहना है कि एफआईआर होनी चाहिये। कुछ समय पहले यही प्राचार्य एनएसएस के कैंप में डांस करते दिखे थे जिसका वीडियो भी सामने आया था। तब किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। इस बार शिकायत हो जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होने से नाराज छात्र-छात्राओं ने कॉलेज परिसर में ही धरना दिया, लरंग साय चौराहे पर प्रदर्शन किया, पुतला फूंका तब भी कोई एक्शन नहीं लिया गया है। अलबत्ता प्राचार्य के बचाव में एक पत्र जरूर थानेदार को दिया गया है जिसमें उनको बेकसूर बताया गया है। आवेदक के रूप में लिखा गया है समस्त छात्र-छात्रायें, पर उसमें हस्ताक्षर सिर्फ एक है, किसी संदीप का।
छत्तीसगढ़ के बारे में शंका-समाधान
आदिवासी नृत्य महोत्सव में आये हुए अतिथियों को क्या-क्या समझने का मौका मिला? एक तो यह कि यह छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा नहीं है। यह अलग प्रदेश है। दूसरा यह कि रायपुर शहर झारखंड में नहीं है। वहां की राजधानी तो रांची है। तीसरा छत्तीसगढ़ ऐसा इलाका नहीं है जो चारों तरफ जंगल और नक्सलियों से घिरा हुआ है। यहां स्टील और पावर के बड़े-बड़े प्लांट भी हैं। चौथा, राज्य का नाम छत्तीसगढ़ है, चतिसगढ़ या चंडीगढ़ नहीं।
सवाल जीते हुए विधायकों का...
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने सारे सांसदों के टिकट काट दिये थे। अभिषेक सिंह, रमेश बैस जैसे नेताओं की टिकट कटने पर तो काफी हैरानी भी लोगों को हुई, पर फॉर्मूला सफल रहा। अब अगले विधानसभा चुनाव के लिये नामों पर विचार शुरू हो चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा सिर्फ 15 पर सिमट गई थी। भीमा मंडावी के निधन के बाद खाली हुई दंतेवाड़ा सीट में वह उप चुनाव जीत नहीं पाई तो अब केवल 14 विधायक हैं। हारे हुए विधायकों को टिकट मिलेगी या नहीं, पिछली बार जिन नये चेहरों को विफलता हाथ लगी यह तो दूसरे नंबर का सवाल है, पहला सवाल यह है कि क्या कठिन चुनौती के बीच जिन 14 लोगों ने जीत हासिल की थी, उनकी टिकट भी काटी जा सकती है?
यह है एसी डिब्बों का हाल
दुर्ग से अजमेर रवाना हुई ट्रेन की एसी सेकण्ड और फर्स्ट क्लास की बोगियों में पूरे रास्ते सफाई के लिये आज कोई अटेण्टेंट ही नहीं पहुंचा। गंदगी पसरी हुई थी। जब भारी-भरकम किराये वाले डिब्बों का यह हाल है तो सेकंड स्लीपर क्लास और जनरल डिब्बों का क्या हाल होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। स्वच्छता के नाम पर सदैव सतर्क होने का दावा करने वाली रेलवे ने स्पेशल के नाम पर ट्रेनों का किराया तो मनमाना बढ़ा दिया, पर कोरोना के नाम पर अब तक यात्रियों की जरूरी सेवायें बंद रखी गई है। दुर्ग-अजमेर ट्रेन में सफर कर रहे एक यात्री ने आज डीआरएम कोटा को ट्वीट कर सफाई न होने के लिये जिम्मेदार स्टाफ पर कड़ी कार्रवाई की मांग की। डीआरएम ने जवाब दिया, व्यवस्था दुरुस्त की जा रही है। पता नहीं, हुई या नहीं।
पहले से विवादित का निलम्बन...
प्रदेश कांग्रेस के मुखिया के सामने ही महामंत्री अमरजीत चावला के साथ गाली-गलौच, और झूमाझटकी करने पर कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त सन्नी अग्रवाल को निलंबित कर दिया गया। सन्नी के व्यवहार से पार्टी के लोग पहले से ही तंग थे, और जब मरकाम की मौजूदगी में सब कुछ हुआ, तो उन्हें बिना देर किए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा गया।
सुनते हैं कि सन्नी करीब पांच साल पहले ही कांग्रेस में सक्रिय रूप से जुड़े थे। उन्हें गिरीश देवांगन ने पुनिया के सत्कार का जिम्मा दिया था। सन्नी ने इतना मन लगाकर काम किया कि सरकार बनने के बाद पुनिया उन्हें पद दिलाने के लिए अड़ गए। निगम मंडलों में नियुक्ति को लेकर चर्चा चल रही थी तब भी सीएम, और अन्य मंत्री सन्नी को चेयरमैन बनाने के पक्ष में नहीं थे। मगर पुनिया के दबाव के आगे झुकना पड़ा।
कुछ दिन पहले सोशल मीडिया में एक भाजपा नेता ने सन्नी अग्रवाल का जिक्र किए बिना एक महिला के संग फेसबुक पर वीडियो पोस्ट किया, तो सन्नी अपने खिलाफ चरित्र हनन की साजिश बताते हुए सिविल लाइन थाने पहुंच गए। अपनी बात को सही साबित करने के लिए वो अपनी बांह का टैटू दिखा रहे थे। जिसे वह वीडियो में दिख रहे शख्स के बांह के टैटू से छोटा बता रहे थे।
सन्नी सच बोल रहे हैं या नहीं, यह पता नहीं, लेकिन भाजपा नेता ने जवाबी कानूनी कार्रवाई की धमकी दी, तो सब कुछ शांत हो गया। पुलिस भी खामोश रह गई। ऐसे विवादित शख्स को मजदूरों के वेलफेयर के लिए बनाए गए बोर्ड का मुखिया बनाए जाने पर सवाल तो उठ रहे हैं। देखना है कि पार्टी उन्हें पद से इस्तीफा देने के लिए कहती है अथवा नहीं।
ये सफर तो सूट बूट वाले भी न कर पायें...
बिलासपुर से मार्च महीने में हवाई सेवा शुरू की गई तो उन लोगों को बड़ी खुशी हुई थी जो बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, रायगढ़, सरगुजा आदि से रायपुर हवाई अड्डे तक जाने-आने में काफी समय और रुपये खर्च करते थे। हाईकोर्ट के दबाव और नागरिकों के आंदोलन के बाद हवाई सेवा बस, शुरू कर दी गई है। पर यहां से सफर कितना खर्चीला है यह कल के दिल्ली के किराये को देखकर अनुमान लगा सकते हैं। दिल्ली से बिलासपुर की टिकट कल 13 हजार 523 रुपये में मिल रही थी। बिलासपुर से दिल्ली जाने का भी 9 हजार रुपये से अधिक था। इसके मुकाबले 120 किलोमीटर दूर रायपुर एयरपोर्ट से दिल्ली आने-जाने का किराया 4500-5000 रुपये के आसपास था। यानि बिलासपुर से यात्रा पर खर्च रायपुर के मुकाबले दो से तीन गुना है। दिल्ली-बिलासपुर के बीच सीधी फ्लाइट अब तक शुरू नहीं की गई है। इसे व्हाया प्रयागराज या जबलपुर ही ले जाया जाता है। उद्घाटन करते हुए केन्द्रीय मंत्री ने महानगरों के लिये सीधी उड़ान सेवा देने का आश्वासन दिया था, पर यहां नाइट लैंडिंग की सुविधा भी नहीं है। एक साथ एक से ज्यादा हवाई जहाज लैंड और टेक ऑफ कर सकें ऐसा एप्रॉन और रन-वे भी नहीं बन पाया है। कुल मिलाकर यहां की सेवा बड़े कार्पोरेट या सरकारी खर्च पर यात्रा करने वाले ही उठा सकते हैं। वरना हवाई चप्पल वाला आम आदमी तो क्या, सूट-बूट वालों को भी सफर करने से पहले सोचना पड़ेगा।
एक जिस्म, दो जान की मौत...
कसडोल इलाके के खेंदा गांव के शिवराम और शिवनाथ दूसरे जुड़वा भाईयों से इस मामले में अलग थे कि उनका शरीर भी एक ही था। दो सिर, दो हाथ दो पसलियों के अलावा सब एक ही। उनकी शारीरिक संरचना ऐसी थी कि ऑपरेशन कर उन्हें अलग भी नहीं किया जा सकता था, ऐसा करने से किसी एक की या फिर दोनों की जान जा सकती थी।
फरवरी 2020 में एक वीडियो वायरल हुआ था जब वे एक स्कूटी पर पेट्रोल पंप पहुंचे थे। उन्होंने स्कूटी को अपने हिसाब से मोडिफाई कर लिया था और दोनों उस पर बैठकर सैर करते थे। दोनों का एक दूसरे के साथ सामंजस्य बैठ गया था। उन्होंने साथ-साथ अपनी जिंदगी को 19 साल तक खींचा और इसे खुलकर जीने की कोशिश भी की। आज सुबह अचानक उनकी मौत की खबर ने लोगों को स्तब्ध कर दिया। मालूम किया जा रहा है कि असमय मौत कैसे हुई। पर, दोनों भाईयों की यह छोटी सी जीवन यात्रा यादगार बन गई। लोग बरसों तक उन्हें और उनके जीने की ललक को याद करेंगे।
बस्तर बाजार में कद्दू
वैसे तो छत्तीसगढ़ के बाजारों में इस समय कद्दू या कुम्हड़ा बिकते हुए मिल जायेंगे, पर बस्तर के कद्दू की बात ही अलग है। इनके आकार इतने बड़े होते हैं कि सिर्फ खाने के लिये ही नहीं बल्कि पानी भरने के बर्तन और वाद्य यंत्र बनाने के काम में भी लाया जाता है।
पापोचाकुकुचि... !
पापोचाकुकुचि का मतलब है, पातळ पोह्यांचा कुरकुरीत चिवडा, यानि पतले पोहे से बना कुरकुरा चिवड़ा !
शिकायत का असर देखने मिला
दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में बैठे नेता, छत्तीसगढ़ के पार्टी नेताओं से नाखुश बताए जाते हैं। वजह यह है कि विधानसभा में बुरी हार के बाद भी छत्तीसगढ़ के नेता एकजुट नहीं हो रहे हैं, और वो एक-दूसरे की शिकायत लेकर दिल्ली पहुंच जाते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने तो बस्तर के चिंतन शिविर में यहां तक कह दिया था कि यहां के नेता सिर्फ शिकायतें करते हैं। ये नहीं बताते कि 14 सीट पर सिमटकर कैसे रह गए।
मरकाम की राहुल से मुलाकात
पार्टी नेता राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश के पास भी शिकायतें लेकर जाते रहते हैं। शिवप्रकाश का पिछले दिनों जशपुर में थे। सुनते हैं कि शिवप्रकाश को रांची से जशपुर लाने की जिम्मेदारी जिस नेता को दी गई थी, उसने भी मौका पाकर शिवप्रकाश के कान में काफी कुछ फूंक दिया। सडक़ मार्ग से रांची से जशपुर तक आने में चार घंटे लगते हैं। इतने समय में संगठन की खामियों को गिनाने का भरपूर मौका मिल गया। फिर क्या था जशपुर में बैठक खत्म होने के बाद शिवप्रकाश, पवन साय को रांची साथ लेकर गए। यानी शिकायत का कुछ असर देखने को मिला।
दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में बैठे नेता, छत्तीसगढ़ के पार्टी नेताओं से नाखुश बताए जाते हैं। वजह यह है कि विधानसभा में बुरी हार के बाद भी छत्तीसगढ़ के नेता एकजुट नहीं हो रहे हैं, और वो एक-दूसरे की शिकायत लेकर दिल्ली पहुंच जाते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने तो बस्तर के चिंतन शिविर में यहां तक कह दिया था कि यहां के नेता सिर्फ शिकायतें करते हैं। ये नहीं बताते कि 14 सीट पर सिमटकर कैसे रह गए।
टीकाकरण की जमीनी हकीकत
देश में जब 100 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन लग गए तब मोदी सरकार ने इसका जश्न मनाया। अब नवंबर 2021 तक शत प्रतिशत आबादी को टीकाकरण कराने का लक्ष्य रखा गया है। छत्तीसगढ़ में करीब दो करोड़ लोगों को टीका (दोनों डोज) लगाने की जरूरत है। पर अब तक केवल 33 प्रतिशत लोगों को ही दूसरा डोज लग सका है। शत प्रतिशत टीकाकरण तभी माना जाएगा जब बाकी 67 प्रतिशत लोगों को भी दूसरा डोज लगाया जा सकेगा। इसके लिए करीब 60 दिन बचे हुए हैं। आने वाले दिनों में माहौल त्योहारों का रहेगा। गांव में भी धान की कटाई और मिंसाई को लेकर बड़ी व्यस्तता रहने वाली है। ऐसे में लक्ष्य कैसे हासिल किया जाए यह सोचना ज्यादा जरूरी है।
मेडिकल की 200 सीटें रह गईं खाली
एमसीआई ने सिर्फ कांकेर में प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज में दाखिले की अनुमति दी है। यह राज्य का 11 मेडिकल कॉलेज होगा। दूसरी तरफ कोरबा और महासमुंद मेडिकल कॉलेज को मंजूरी नहीं मिली। यानी इस वर्ष करोड़ों रुपयों के सेटअप से तैयार की गई 300 सीटों में से 200 सीटों पर दाखिला नहीं हो पाएगा। बताया जा रहा है कि कांकेर मेडिकल कॉलेज को भी इसलिए थोड़ी रियायत बरतते हुए मंजूरी दी गई क्योंकि यह आदिवासी बाहुल्य इलाके में खोला गया है। शर्त यह भी रखी गई है की एक सप्ताह के भीतर शेष कमियां दूर की जाएंगी और ऑनलाइन इंस्पेक्शन में इसका समाधान हो जाना चाहिये। महासमुंद मेडिकल कॉलेज को लेकर के तो यह बात सामने आ रही है कि यहां करीब ढाई करोड रुपए लैब और फर्नीचर के लिये मंजूर थे मगर खरीदी की प्रक्रिया उलझा दी गई। कोरबा में संविदा और आउटसोर्सिंग के जरिये भी स्टाफ के 50 फीसदी से ज्यादा खाली पद नहीं भरे जा सके। शायद, सब अफसरों के भरोसे छोडऩे की जगह जनप्रतिनिधि बाधाओं को दूर करने में प्रशासन और सरकार के स्तर पर समन्वय बनाते तो यह स्थिति पैदा नहीं होती।
हमारा नसीब बालाघाट से अच्छा..
यह बालाघाट के एक पेट्रोल पंप की तस्वीर है। दर्शाया गया है कि पेट्रोल का दाम बढक़र अब 120 रुपये 6 पैसे हो गया है। अपने रायपुर में यह 106.67 रुपये है। डीजल के दाम भी बालाघाट से कम ही हैं। क्या संतुष्ट रहने, खुशी-खुशी त्यौहार मनाने के लिये यह काफी नहीं है?
कौन आए, कौन नहीं?
राजनीतिक हलचल के बीच साइंस कॉलेज मैदान में आदिवासी महोत्सव का रंगारंग आगाज हुआ, तो लोगों का ध्यान स्वाभाविक रूप से देश -विदेश से आए कलाकारों पर था। निगाहें मंच पर बैठे अतिथियों पर भी थी। और इसमें स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की गैर मौजूदगी पर भी कानाफूसी होती रही।
सिंहदेव पिछले कई दिनों से दिल्ली में डटे थे। उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ बैठक में हिस्सा लिया। यह बैठक बड़ी थी, और इसमें सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्री भी थे। बैठक निपटने के बाद वो रायपुर आने के बजाए भोपाल निकल गए।
महोत्सव में अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में केसी वेणुगोपाल, पीएल पुनिया, अधीररंजन चौधरी, रणदीप सिंह सूरजेवाला, भक्त चरणदास को भी आमंत्रित किया गया है, लेकिन सिर्फ बीके हरिप्रसाद ही पहुंचे। खैर, कांग्रेस नेताओं के नहीं आने से महोत्सव की रौनक कम नहीं हुई । देश-विदेश से आए आदिवासी कलाकारों के नृत्य देखकर लोग झूम उठे।
जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट
सेंट्रल जेल में कैदियों से मेल मुलाकात के लिए नियम तय हैं। विचाराधीन वीआईपी कैदियों से जेलर के कक्ष में विशेष अनुमति से मुलाकात हो जाती है। लेकिन इस दौरान फोटो खींचने, और मोबाइल ले जाने पर मनाही रहती है। मगर कवर्धा कांड के आरोपी विजय शर्मा, और दुर्गेश देवांगन के वीआईपी मुलाकातियों के लिए जेल मैनुअल को भी दरकिनार कर दिया गया।
दोनों से मिलने प्रदेश भाजपा के बड़े नेता रोजाना सेंट्रल जेल पहुंच रहे हैं। नंदकुमार साय सेंट्रल जेल पहुंचे, तो विजय शर्मा ने साय के साथ बकायदा फोटो खिंचवाई, और फिर उनके समर्थकों ने फेसबुक पर अपलोड कर दिया। विजय शर्मा से मिलने बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, पवन साय, शिवरतन शर्मा सहित कई नेता जा चुके हैं। अजय तो उनके लिए मीठा-खारा भी लेकर गए थे। कुल मिलाकर विजय को जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है।
दबाया सबने, चुकाया एक ने
वैसे तो सरकारी दफ्तरों में करोड़ों रुपयों के गबन पर कोई कार्रवाई नहीं होती, पर मुंगेली नगरपालिका में सिर्फ 13 लाख की नाली नहीं बनने पर वहां के अध्यक्ष, सीएमओ, इंजीनियर और ठेकेदार लपेटे में आ गये। अध्यक्ष संतूलाल सोनकर को सुप्रीम कोर्ट से भी अग्रिम जमानत नहीं मिल पाई। शीर्ष कोर्ट ने सात दिन के भीतर निचली अदालत में आवेदन लगाने की छूट दी है। इस बीच सोनकर मंत्रालय में अपना पक्ष रखकर आ गये, कहा कि इंजीनियर, अधिकारियों की जांच के बाद ही उनके पास फाइल आती है और उनके मत के अनुसार ही सबसे आखिर में वे हस्ताक्षर करते हैं। इसके बावजूद जमानत का पेंच तो फंसा हुआ है। अब हुआ यह है कि जिस ठेकेदार पर बिना नाली बनाये भुगतान लेने का आरोप है, उनके पिता ने नगरपालिका के खाते में पूरी राशि वापस जमा करा दी है। कहा जा रहा है कि अब अध्यक्ष महोदय को अग्रिम जमानत मिलने में आसानी होगी। बाकी आरोपी भी अभी फरार ही हैं।
सबने तो मिल-बांटकर राशि की गड़बड़ी की होगी पर अकेले ठेकेदार के सिर पर भुगतान की जिम्मेदारी क्यों आई? जवाब मिला, क्योंकि बाकी ने तो लिफाफे या टेबल के नीचे से लिये होंगे, बिल तो ठेकेदार के नाम पर ही जारी हुए थे। यह भी सवाल बना हुआ है कि राशि वापस जमा करा देने से अब अभियोजन का पक्ष तो मजबूत हो सकता है। साबित हो गया कि नाली बनाये बगैर भुगतान कर दिया गया था। वरना क्या पड़ी थी 13 लाख रुपये जमा करते? बहरहाल, अध्यक्ष सहित आधा दर्जन लोगों को जेल जाना पड़ेगा या बेल मिल जायेगी, यह सवाल बना हुआ है।
काबुल रिटर्न सैनिक स्कूल की प्राचार्य
सैनिक स्कूल अंबिकापुर में पहली बार महिला प्राचार्य नियुक्त की गई हैं। कर्नल जितेंद्र डोगरा के तबादले के बाद यह जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता को दी गई है। पर खास बात केवल प्राचार्य का महिला होना नहीं हैं। इंटरनेट सर्फ करेंगे तो उनकी उपलब्धियों से भरी कई जानकारी हाथ लगेगी। सेना मेडल, वीरता पुरस्कार पाने वाली मिताली थल सेना की पहली और एकमात्र महिला अधिकारी हैं। वह ज्यादा चर्चा में तब आई थीं जब 26 फरवरी 2010 को काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले के दौरान एक बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने आतंकवादी हमले के दौरान 7 भारतीय समेत 19 राजनयिकों की जान बचाई। भारत ही नहीं देश के बाहर भी उनके साहस की सराहना हुई। अंबिकापुर सैनिक स्कूल में पद संभालने के बाद उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में यहां के बच्चे प्रवेश पा सकें और छत्तीसगढ़ का नाम ऊंचा कर सकें, यह उनका लक्ष्य होगा।
सरेंडर पर भाजपा में बिखराव
कवर्धा में दो समुदाय से उपजे दंगे के शांत होने के बाद पुलिस भाजपा नेताओं की धरपकड़ से पार्टी के भीतर बिखराव की हालत बन गई है। खास तौर पर सरेंडर के मामले में सामूहिक समर्पण के निर्णय पर ही नेताओं में फूट पड़ गई है। बताते है कि भाजपा नेता विजय शर्मा की वजह से पार्टी की सरेंडर नीति धरी की धरी रह गई। बताते है कि विजय शर्मा ने सरेंडर पर राज्यसभा सांसद सरोज पांडे से व्यक्तिगत राय ली थी। पांडे ने बिना किसी हिचक के फौरन शर्मा को अदालत में समर्पण की सलाह दे दी। दरअसल शर्मा को सियासी फायदे में यह लगा कि अकेले सरेंडर करने से उनकी राजनीतिक छवि सशक्त होगी। उनकी इस महत्वाकांक्षा से साझा सरेंडर की तैयारी में लगे दीगर नेताओं को झटका लगा। शर्मा को दो मामलों में जमानत मिल गई लेकिन एक्ट्रोसिटी प्रकरण में राहत नहीं मिली है। सुनते है कि कवर्धा में अब भाजपा नेताओं के राजनीतिक मंसूबों पर भी सवाल उठ रहे है। दीवाली सिर पर है ऐसे में कुछ आरोपी जेल में बंद हैं। घर-परिवार के लोग त्यौहार से पहले अपनों को जेल से बाहर भी देखना चाहते हैं। चर्चा है कि भाजपा के आला नेताओं के बाहर घूमने पर कवर्धा में कानाफूसी भी हो रही है।
चिट्ठी और सुकमा का नाता
सुकमा एसपी सुनील शर्मा के लिए विभागीय खामी से बाहर निकली एक गोपनीय चिट्ठी परेशानी का सबब बन गई है। 2017 बैच के आईपीएस शर्मा पहली बार एसपी बने और उनकी पोस्टिंग के चार माह के भीतर धर्मांतरण से जुड़े गंभीर मामले के पत्र के सार्वजनिक होने के बाद से विपक्षी भाजपा के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। सुनते हैं कि पत्र में लिखे शब्दों को भाजपा प्रचारित कर रही है कि सरकारी कागजात में धर्मांतरण को स्वीकार किया गया है। वैसे सुकमा का चिट्ठी के जरिए विवादों से पुराना नाता रहा है। जितेन्द्र शुक्ला को भी सरकार ने मंत्री को प्रोटोकॉल से परे पत्र लिखने के मामले में सुकमा से हटा दिया था। धर्मांतरण के मसले पर भाजपा, सरकार पर हमलावर है. ऐसे में शासकीय पत्र के लीक होने से शीर्ष अफसर और सरकार नाराज हो गए हैं। खबर है कि दीपावली के बाद राज्य सरकार नए जिलों में ओएसडी पदस्थ करने के साथ ही कुछ जिलों के एसपी को इधर-उधर कर सकती है। चिट्ठी के चलते सुकमा एसपी को बदलने की चर्चाएं प्रशासनिक हल्के में जोर पकड़ रही हैं।
कांग्रेसी नशे का समर्थन करें या विरोध?
एक नवंबर से कांग्रेस का सदस्यता अभियान शुरू हो रहा है, जो मार्च तक चलेगा। सदस्यता फॉर्म के साथ एक शपथ पत्र भी होगा जिसमें बताना है कि मैं नियमित रूप से खादी धारण करता हूं, शराब और मादक पदार्थों से दूर रहता हूं। सामाजिक भेदभाव और असमानता को खत्म करने में विश्वास रखता हूं।
एक पुराने कांग्रेसी की टिप्पणी थी, शुक्र है ये सब शर्तें नई सदस्यता लेने वाले पर लागू होनी है। वरना हमें ये शपथ लेनी पड़ती तो शायद सदस्य बन ही नहीं पाते। अब देखिये कांग्रेस सदस्यता के लिये नशे से दूरी जरूरी है, दूसरी तरफ हमारे छत्तीसगढ़ से ही प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद केटीएस तुलसी साहब ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल ही दायर कर दी है कि ड्रग्स की छूट दी जानी चाहिये क्योंकि यह दर्द और तनाव कम करता है। हो सकता है तुलसी जी की बातें ठीक हों, पर अनेक लोग मानते हैं कि मानसिक तनाव कम करने के लिये नशे की जगह अध्यात्म, प्रेरक विचार, संकल्प, इच्छाशक्ति ज्यादा काम की चीज है। इस याचिका को आधार बनाकर कहीं सदस्यता के नियम को ही चुनौती न दे दी जाये।
अमरकंटक की तराई पर फिर विवाद
मध्यप्रदेश का बंटवारा हुआ तो अमरकंटक ही नहीं बल्कि पूरे शहडोल जिले के लोग छत्तीसगढ़ में शामिल होना चाहते थे। अमरकंटक का मुख्य मंदिर मध्यप्रदेश के हिस्से में है जबकि अन्य कई दर्शनीय स्थल माई की बगिया, राजमेरगढ़, जलेश्वर धाम आदि छत्तीसगढ़ में आते हैं। पर सीमा को लेकर आये दिन विवाद होता है। जलेश्वर मंदिर पर अमरकंटक की नगर पंचायत द्वारा मकान नंबर की सील टांक देने से यह विवाद फिर खड़ा हो गया है। हालांकि राजस्व रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के पक्ष में दुरुस्त है फिर भी जिस तरह से यह मुद्दा बार-बार उठ जाता है कोई स्थायी हल निकालना दोनों राज्यों के लिये जरूरी है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजमेरगढ़ की यात्रा की थी। मैकल पर्वत श्रृंखला की यह सबसे ऊंची जगह है, जहां पहुंचा जा सकता है। उन्होंने इसे इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के अनुरूप संवारने की घोषणा की थी। भाजपा शासनकाल में, तत्कालीन धर्मस्व व संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी इस जगह के विकास के लिये पहल की थी। पर उनके सब काम अधूरे रह गये, खंडहरनुमा अवशेष दिखाई देते हैं। अमरकंटक के ठीक नीचे छत्तीसगढ़ के अनेक दर्शनीय स्थल आज उपेक्षा के शिकार हैं जबकि गौरेला ही नहीं पूरे राज्य के लोगों का अमरकंटक से खासा लगाव है। जीपीएम और बिलासपुर जिले के लोग इस क्षेत्र को उसके वैभव के अनुरूप संवारने के लिये बार-बार गुहार लगाते रहे हैं, पर सरकार बदल गई, कुछ नहीं हो रहा है।
मैनपाट के बाद कारीपाट के टीचर की बात..
प्रदेश में वैसे को कोरोना काल के दौरान छोटे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बनाये रखने के लिये बहुत से कदम उठाये गये थे, जैसे मोहल्ला क्लास, बुल्टू, पढ़ाई तुहंर द्वार। ये काम निर्देश पर शिक्षकों ने किये। पर अपने स्तर पर रुचि लेकर बच्चों को स्कूल की ओर खींचने का काम कोई जुनूनी शिक्षक ही कर सकता है। पिछले महीने 30 सितंबर को इस कॉलम में मैनपाट के जामझरिया स्कूल के शिक्षक अरविंद गुप्ता का जिक्र हुआ था। कोरोना के बाद स्कूल आने की दुबारा आदत डालने के लिये उन्होंने अपने खर्च से दीवारों में रंग बिरंगी तस्वीरें उकेरीं, महीने में पूरे दिन स्कूल आने वाले बच्चों को जूते कपड़े आदि गिफ्ट देना शुरू किया। असर यह हुआ कि वहां उपस्थिति 100 फीसदी हो गई है।
कुछ इसी तरह का काम बलौदाबाजार जिले के बिलाईगढ़ ब्लॉक के कारीपाट स्कूल के शिक्षक विनोद डडसेना कर रहे हैं। उन्होंने स्कूल की दीवारों पर बच्चों को लुभाने वाली आकर्षक कलाकृतियां उकेरी हैं। पहाड़े और सूक्तियां लिख डाले हैं। यहां ऐसा करना ज्यादा जरूरी इसलिये भी था, क्योंकि कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों को बंद करने का फरमान निकालने में सरकार देरी नहीं करती। शिक्षक विनोद की कोशिश से यहां की दर्ज संख्या 3 से बढक़र 20 हो चुकी है। इनकी कोशिश को देखते हुए विभाग ने एक और शिक्षक की नियुक्ति यहां कर दी है। पहले वे अकेले ही पहली से पांचवी तक के बच्चों को पढ़ा रहे थे। निजी स्कूलों से प्रतिस्पर्धा के लिये इस समय प्रदेश में अनेक स्वामी आत्मानंद स्कूल खोले गये हैं, पर बिना किसी सरकारी मदद के भी निजी स्कूल, पब्लिक स्कूल के बच्चों को सरकारी स्कूलों की ओर आकर्षित किया जा सकता है, यह इसका उदाहरण है। शासन के स्तर पर ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
आगे-आगे होता है क्या
शहर के बाहरी इलाके में एक पुराने राजनीतिक परिवार द्वारा स्थापित कन्या आश्रम, और उससे लगे मंदिर की करोड़ों की जमीन की सौदेबाजी का हल्ला है। मंदिर के ज्यादातर ट्रस्टी परिवार के सदस्य ही हैं। सुनते हैं कि मंदिर के पास ही करीब 10 एकड़ से अधिक जमीन है। इसकी देखरेख मंदिर ट्रस्ट ही करता है। ट्रस्ट के ज्यादातर सदस्य प्रदेश से बाहर रहते हैं। और अब जमीन के सौदे की चर्चा शुरू हुई, तो ट्रस्टियों के बीच मनमुटाव की खबरें आने लगी हैं। देखना है कि आगे-आगे होता है क्या।
सावधानी नहीं तो तीसरी लहर
आदिवासी नृत्य महोत्सव कल से शुरू हो रहा है। कोरोना संक्रमण के बीच 8 देशों, और देश के 27 राज्यों के कलाकार महोत्सव में शिरकत कर रहे हैं। कोरोना की वजह से पिछले साल नृत्य महोत्सव नहीं हो सका। मगर इस बार भी खतरा कम नहीं है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि चीन, और दूसरे कई देश में लॉकडाउन की ओर जा रहे हैं। भारत में सौ करोड़ वैक्सीन लगने के बाद कुछ हद तक कोरोना नियंत्रण में है, लेकिन अभी भी खतरा टला नहीं है। इंदौर में तो नए वेरिएंट का पता चला है। छत्तीसगढ़ में भी रोजाना दो दर्जन से अधिक मामले आ रहे हैं। ऐसे में नृत्य महोत्सव जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में खतरा बरकरार है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि वैक्सीनेशन के बाद भी सावधानी नहीं बरती तो तीसरी लहर आ सकती है।