राजपथ - जनपथ
बढ़ेगी पूछपरख
पड़ोसी राज्य झारखंड के 84 बैच के आईएएस राजीव कुमार अगले मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे। वर्तमान में वो चुनाव आयुक्त का दायित्व संभाल रहे हैं। यह भी तय है कि अगला लोकसभा चुनाव राजीव कुमार ही कराएंगे। आप सोच रहे होंगे कि राजीव कुमार का जिक्र यहां क्यों किया जा रहा है। दरअसल, राजीव कुमार का छत्तीसगढ़ से भी कनेक्शन हैं। उनके दामाद यहां एक जिले के कलेक्टर हैं। अब राजीव कुमार चुनाव कराएंगे, तो दामाद बाबू की पूछपरख तो बढ़ेगी ही।
सरकार को ही सामने आना होगा
रायगढ़ में राजस्व कर्मियों की रिपोर्ट पर चार वकीलों के खिलाफ अपराध दर्ज करने, और गिरफ्तारी के बाद से विवाद लगातार बढ़ रहा है। पहले राजस्व कर्मियों ने काम बंद कर दिया था, और अब वकीलों ने मोर्चा खोल दिया है। पूरे प्रदेशभर में वकील, राजस्व अमले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
कई लोग तो रायगढ़ विवाद के लिए जिला प्रशासन के शीर्ष अफसर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सुनते हैं कि तहसीलदार, और वकीलों के बीच मारपीट की घटना को पहले हल्के में लिया गया। शीर्ष अफसर जिले में ही नहीं थे। बाद में राजस्व कर्मी हड़ताल पर चले गए, तो उन्हें शांत करने वकीलों को गिरफ्तार कर लिया गया। कुल मिलाकर दोनों के बीच सुलह के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई। इसके बाद विवाद बढ़ गया।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि राजस्व विभाग में रिश्वतखोरी आम है। रायगढ़ जिला तो इसके लिए कुख्यात है। ऐसे में तो एक न एक दिन लड़ाई सड़क़ पर आनी ही थी। देखना है कि सरकार वकीलों को शांत करने के लिए क्या कुछ करती है।
हीरासिंह की प्रतिमा से सलूक..
कोरबा, तानाखार, बांगो इलाके में स्व. हीरासिंह मरकाम की अलग प्रतिष्ठा है। कभी वे चुनाव हारे, कभी जीते, पर आदिवासी समुदाय उन्हें अपना पथ-प्रदर्शक मानता है। बांगो इलाके के उनके प्रशंसकों ने गुरसिया बाजार में उनकी एक प्रतिमा लगाई, इसी महीने। यह बाजार भी स्व. हीरासिंह ने शुरू कराया था, ताकि उनके भाई-बंधु अपनी उपज लाकर यहां बेच लें। प्रतिमा लगाने के एक ही सप्ताह बाद किसी ने उसे खंडित कर दिया। लोग उद्वेलित हो गये। बाजार बंद करा दिया। पुलिस का दावा है कि यह जिनकी हरकत है, उनको गिरफ्तार किया जा चुका है। मरकाम के अनुयायियों का कहना है कि ऐसा नहीं है। जिस दुकानदार ने उकसाया उसे बचाया जा रहा है। भडक़े आदिवासियों ने कुछ दुकानों में तोडफ़ोड़ की है, वाहनों में आग लगाई है। समर्थकों ने 48 घंटे का वक्त पुलिस और प्रशासन को दिया है, निष्पक्ष कार्रवाई के लिये। बेहतर हो कि इस संवेदनशील मामले को केवल पुलिस और प्रशासन के भरोसे न छोड़ा जाये बल्कि जन-प्रतिनिधि भी अपनी भूमिका का निर्वाह करें।
महुये की महंगी कुकीज..
आम धारणा यही है कि महुये से शराब बनती है। इसके अलावा किसी काम का नहीं। पर सरगुजा में एक नया प्रयोग हो रहा है। सरगुजा जिले में नेशनल लाइवलीहुड मिशन के तहत महुये की कुकीज़ बनाने का काम शुरू किया है। अभी यह बेकरी की एक फैक्ट्री में बनाई जा रही है, बाद में गौठानों में इसका सेटअप तैयार करने की योजना है। थोड़ा सा मैदा, थोड़ा महुआ, कुल मिलाकर जो खर्च कुकीज़ बनाने में आता है वह 100 रुपये से भी कम है, पर यह 400 रुपये किलो में बिक रहा है। बस्तर में भी कुछ प्रयोग हुए हैं। महुआ से यहां मसाला गुड़, काजू मसाला, काढ़ा और इमली मिलाकर सॉस भी बनाने का काम हो रहा है। जिन्हें महुआ पसंद है वे इस फार्मेट में भी खा-पी सकते हैं। किसी को ऐतराज नहीं होगा।
बांस की सडक़
महाशिवरात्रि पर लोगों की आस्था के को ध्यान में रखते हुए की गई एक कोशिश। तीर्थयात्रियों के लिए ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर कांगेर घाटी नेशनल पार्क के पहले कोलाब नदी पर चट्टानों के ऊपर बनी बांस की चटाई से बनी एक वन सडक़। महाशिवरात्रि पर ओडिशा में लगने वाले मेले के लिये जाना अब आसान हो गया। सोशल मीडिया पर आईएफएस विजया रात्रे ने यह तस्वीर साझा की है।
भाजपा का पीछा करती कांग्रेस
कांग्रेस भाजपा की तरह कैडर बेस पार्टी नहीं है। जो मन से कांग्रेसी है जरूरी नहीं कि वह सदस्य बनने के लिए भी रूचि दिखाए। पर छत्तीसगढ़ में लक्ष्य पूरा करने को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया गया है। टारगेट 10 लाख सदस्य बनाने का है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम की मानें तो अब तक आठ लाख सदस्य बनाए जा चुके हैं और 31 मार्च तक इसे 10 लाख तक पहुंचाना है। मरकाम ने पहले बीजेपी के डिजिटल सदस्यता अभियान का मजाक उड़ाया। पर अब लक्ष्य पूरा करने के लिए कांग्रेस ने भी यह तरीका अपना लिया है। सुनने में आ रहा है बहुत से ऐसे पुराने कांग्रेसी छूट गए हैं और अभियान चला रहे नेता-कार्यकर्ता उन तक पहुंचे ही नहीं है। बीजेपी ने तंज कसा है पार्टी के लोग ही सदस्यता नहीं लेना चाह रहे हैं। जनता ने बहुमत तो दिया, पर अब निराश है। अच्छा होगा कि कांग्रेसी अपने ही पुराने उसूलों पर चले और बीजेपी की तरह सदस्य बनाने की होड़-दौड़ से बाहर रहे। आखिर सदस्यता के लिहाज से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा बीते विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर ही तो सिमट गई थी।
इतना कीमती टमाटर!
यूपी के जगदीशपुर में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के बारे में ऐसी जानकारी दी, जो यही के लोगों को पता नहीं है। उन्होंने बताया हर जिले में फूड प्रोसेसिंग पार्क खुल गए हैं और कंपनियां उनके उत्पाद हाथों-हाथ खरीद रही है। टमाटर उगाया नहीं कि यह फूड प्रोसेसिंग कंपनियों के लोग आकर खेतों से उठा लेते हैं। अब राहुल गांधी जी को कौन बताए कि टमाटर की कीमत तो बीच-बीच में इतनी खराब हो जाती है कि लोग उसे तोडऩे का भी खर्च नहीं उठा पाते हैं और कई बार सडक़ों में फेंक देते हैं।
यह तो अन्याय है
बिलासपुर में विकास कार्यों के लोकार्पण कार्यक्रम में पहले सीएम भूपेश बघेल के साथ मंच साझा करने, और फिर बाद में ट्वीटर पर इसकी आलोचना कर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ट्रोल हो गए। सोशल मीडिया में भाजपा के कार्यकर्ता ही कौशिक की खूब खिंचाई कर रहे हैं।
शनिवार को लोकार्पण कार्यक्रम में कौशिक, सीएम से गपियाते देखे जा रहे थे। सीएम के साथ उनकी हंसती मुस्कुराती तस्वीर सोशल मीडिया में छाई रही। कार्यक्रम निपटने के बाद कौशिक के तेवर बदल गए। उन्होंने ट्वीट किया कि भाजपा के कार्यकाल में शुरू हुए विकास कार्यों का भूपेश बघेल सिर्फ फीता काटना, और उद्घाटन का ही कार्य कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार की इन तीन वर्षों में विकास कार्यों की कोई उपलब्धि नहीं है। बिलासपुर को कोई सौगात नहीं है, और न ही विकास कार्यों की कोई घोषणा है। बिलासपुर के साथ अन्याय क्यों ?
इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने ट्वीटर पर ही उनकी खिंचाई कर दी। एक कार्यकर्ता देवेंद्र गुप्ता ने ट्वीट किया कि गजब करते हो कौशिक जी ! भूपेश बघेल जी के कथित विकास कार्यों के गवाह आप खुद उनके साथ कार्यक्रमों में मौजूद होकर बन रहे हैं। आपको लगता है वो अन्याय कर रहे हैं, तो आपको मंच साझा नहीं करना था, बल्कि वहीं धरने पर बैठ जाना चाहिए था। तब संदेश जाता कि आप वाकई दमदार नेता प्रतिपक्ष हैं। पर आपने ऐसा नहीं किया। क्योंकि आपका मामला सब सेट है। सरकार में आपकी भी हिस्सेदारी है।
जनाब, ये दिखावे का ट्वीट कर जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं के आंखों में धूल झोंकना बंद करें। सबको पता है कि आप नेता प्रतिपक्ष नहीं, बल्कि भूपेश सरकार में 14वें मंत्री जैसी भूमिका में है। इस सरकार के निर्बाध तीन साल में आपके निकम्मेपन की भूमिका भी अहम रही है। कई और भाजपा कार्यकर्ताओं ने कौशिक को खूब भला बूरा कहा है। बात यही खत्म नहीं हो रही है। कई नेताओं ने कार्यक्रम का वीडियो क्लीप पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को भेजा है, और यह कह दिया कि कौशिक के रहते प्रदेश में भाजपा की राह कठिन है।
सद्भावना, और मुसीबत
सरकार पूर्व सीएस की पत्नी को संविदा नियुक्ति देने, और फिर उसका संविलियन कर घिर सकती है। सुनते हैं कि भाजपा के कई नेताओं ने नियुक्ति संबंधी सारे दस्तावेज निकाल लिए हैं। चर्चा यह है कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने उदारता दिखाते हुए नियमों को ताक पर रखकर पूर्व सीएस की चिकित्सक पत्नी को नियुक्ति की अनुशंसा कर दी थी। अब उनके कामकाज को लेकर कई तरह की शिकायतें आ रही है, इसलिए मामला बढ़ गया है। रोजगार के मुद्दे पर भाजपा ने विधानसभा सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी कर रखी है। ऐसे में यह मुद्दा भी सदन में गरमा सकता है। टीएस सद्भावना दिखाकर मुश्किल में घिर सकते हैं।
विकास का एक उदास चेहरा...
प्रदेश में अनेक जिले बने, कई विकासखंड मुख्यालय बने पर असंतुलन बना हुआ है। सरगुजा संभाग का कंदनई ऐसा गांव है जो चारों ओर घाट-पहाड़ और नदियों से घिरा है। इसका विकासखंड मुख्यालय मैनपाट 70 किलोमीटर दूर है। वे नदी पार कर पैदल बतौली पहुंचते हैं फिर बस चढक़र मैनपाट जाते हैं। आने-जाने में ही 2 दिन लग जाते हैं।
गांव के युवकों ने 2 साल पहले बतौली पैदल चलने के लिए श्रमदान कर कठिन मेहनत के साथ सडक़ बनाई लेकिन गिट्टी-पत्थर के अभाव में बारिश आते ही खराब हो गई। यहां के लिए बहुत दिनों से नई सडक़ मांगी जा रही थी। मंत्री अमरजीत भगत ने इसकी मंजूरी दी लेकिन ठेकेदार सडक़ के लिए पहाड़ी और घाट को पार करने के लिए तैयार नहीं है। डिजाइन के विपरीत यह सडक़ दूसरी ओर मोड़ दी गई। पिछले एक सप्ताह से कंदनई के ग्रामीण धरना दे रहे हैं, पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। उन्हें किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं मिल रहा है। क्या जरूरी है जिले और ब्लॉक के लिए नेताओं के दबाव में ही ऐसे फैसले लिए जाने चाहिए?
इतनी साफगोई भी ठीक नहीं
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कह दिया कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में तीसरे और चौथे नंबर के लिए लड़ रही है। मुकाबला कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच है। हर कोई जानता, मानता है की सत्ता की दौड़ में कांग्रेस पीछे है, पर वह ताकत से लड़ रही है। इस बार प्रियंका गांधी की वजह से पार्टी में अलग तरह का जोश है।
तीसरे-चौथे पोजिशन की बात सही भी हो तो यह बात बोलने के लिए दूसरों पर छोड़ देना चाहिए। अपनी ही पार्टी के लिए सिंहदेव का यह आकलन छत्तीसगढ़ के उन कार्यकर्ताओं-नेताओं को मायूस कर सकता है जो दौड़-दौड़ कर उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार वहां सभाएं ले रहे हैं। सिंहदेव को उत्तराखंड की कमान सौंपी गई है। यह नहीं बताया कि वहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है या नहीं। इसके पहले वे असम के चुनाव में प्रभारी बनाए गए थे। असम में कांग्रेस को बुरी पराजय मिली। मगर मेहनत करना तो उन्होंने वहां छोड़ा नहीं था। जिन लोगों को लग रहा है कि यूपी चुनाव के बाद राज्य के नेतृत्व में कोई बदलाव होने वाला है, इस बयान ने उनको और पीछे कर दिया।
पत्थर पर उगाए फूल
जब हम दरभा घाटी का नाम लेते हैं तो 25 मई 2013 की नरसंहार के तरफ ही ध्यान जाता है। पर यहां महिलाओं ने अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया है। इन्होंने एक सहायता समूह बनाया और पपीते की हाईटेक खेती शुरू की। केवल 7 महीने में इन्होंने 10 एकड़ जमीन पर 30 लाख रुपए का पपीता उगाया। खास यह कि उन्होंने चट्टानी जमीन पर यह काम किया, जबकि पपीते के लिये भरपूर पानी चाहिये। इनके कौशल और परिश्रम की दिल्ली में हाल ही में रखे गए फ्रेश इंडिया शो में भी सराहा गया। कौन कहता है कि खेती लाभकारी व्यवसाय नहीं है, बस जोखिम भरे प्रयोग की जरूरत है।
राजधानी से कटा बस्तर
रायपुर जगदलपुर के बीच हर 15 मिनट में एक बस चलती है। दूसरी गाडिय़ों की संख्या भी सैकड़ों में है। पर इन सबके लिए केशकाल घाटी से गुजरना दुरूह कार्य हो गया है। कई सालों से यह मुसीबत बनी हुई है। ट्रक बस के चालकों को 8-8, 10-10 घंटे तक जाम में फंसना पड़ रहा है। वर्षों से चल रहा निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। काम में तेजी लाने के नाम पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 10 दिन से घाट को भारी वाहनों के लिए बंद कर रखा है। इसके चलते कोंडागांव से कांकेर का रास्ता करीब 70 किलोमीटर लंबा हो चुका है। पर यह सडक़ भी मुफीद नहीं है। नारायणपुर मोड़ पर सैकड़ों ट्रक कई दिनों से खड़े हैं।
केशकाल घाटी की सडक़ भारी वाहनों से ही खराब हुई है लेकिन इन वाहनों के लिए एक वैकल्पिक रास्ता पिछले 2 साल से बन रहा है। यह सडक़ अब तक पूरी नहीं हुई है।
समस्या का स्थायी समाधान हो इस पर नेताओं और जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं है।
बेजुबानों के ऊपर एसिड अटैक
घटना हैरान करने वाली है और इसके पीछे की वजह भी साफ नहीं। सक्ती में इन दिनों गायों पर एसिड अटैक हो रहा है। हाल के दिनों में कम से कम 5 गायों पर एसिड उड़ेला जा चुका है। इनमें से कुछ गर्भवती भी हैं। ऐसा करने वालों का मकसद क्या है और ऐसा करने वाले कौन हैं, इसका पता नहीं चला है।
करीब 3 साल पहले दुर्ग जिले के चिखली गांव में भी 2 गायों के ऊपर एसिड अटैक का मामला सामने आया था। पहले भी वहां इस तरह की घटनाएं हो चुकी थी।
घटना की एक वजह यह हो सकती है कि आवारा पशु बाड़ी खेतों में घुसकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। देश के दूसरे भागों में पकड़े गए आरोपियों ने यही बयान दिया है। छत्तीसगढ़ जहां पशुओं को गौठानों में रखने और खुले में नहीं घूमने देने के लिए तमाम व्यवस्था करने का दावा किया जाता है वहां ऐसी घटना क्यों हो रही है? ([email protected])
पंचायतों, निकायों में कांग्रेस का संकट
भाटापारा जनपद पंचायत के 25 सदस्यों में भाजपा के सिर्फ 6 हैं और शेष कांग्रेस से। इसके बावजूद कांग्रेस की जनपद अध्यक्ष संगीता साहू के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पार्टी में हडक़ंप मचा है। अविश्वास प्रस्ताव की मांग तो भाजपा के तीन सदस्यों की है, पर जैसे ही कलेक्टर ने इसके लिये सभा की तारीख तय की, कांग्रेस के 19 में से 16 सदस्य भूमिगत हो गए। जाहिर है भाजपा अपने 6 सदस्यों के भरोसे तो अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती थी। 16 पार्षदों का एक साथ गायब हो जाना बताता है कि वे बगावत करने जा रहे हैं। अब संगठन के स्थानीय पदाधिकारी उन कांग्रेस सदस्यों से अपील कर रहे हैं कि भाजपा के साथ न जायें। शिकायतों को मिल-बैठकर दूर कर लिया जायेगा।
हाल ही में खरौद नगर पंचायत में अध्यक्ष किसी तरह अपनी कुर्सी बचा ले गये। वहां भी कई कांग्रेस पार्षदों का अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन था, पर यह हटाने के लिये जरूरी दो तिहाई समर्थन न मिल पाये, इस पर जोर लगा लिया गया। कुछ पार्षद वापस लौट गये। पर 9 में से 6 विरोध में थे। यानि बहुमत तो नहीं रहा। इधर रायगढ़ में कांग्रेस के 27 पार्षदों में से 16 ने इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया था। घोषणा होते ही भाजपा अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में लग गई। वह तो बात बन गई कि ऐन मौके पर महिला कांग्रेस अध्यक्ष बरखा सिंह ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे पर 16 पार्षद इसीलिये अड़े थे क्योंकि उनकी शिकायत 40-50 दिन से पड़ी हुई थी। अध्यक्ष पर पार्टी की ही एक महिला पार्षद से गाली-गलौच और मारपीट का आरोप था, पर प्रदेश के नेता कोई कार्रवाई नहीं कर रहे थे।
भाटापारा, खरौद व रायगढ़ के मामलों को देखकर लगता है कि कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों में सत्ता में भागीदारी के लिये बेचैनी बढ़ी हुई है। प्रदेश के बड़े नेता उनकी बात सुन नहीं रहे हैं। मामला जब ज्यादा तूल पकड़ता है तब डैमेज रोकने के लिये कदम उठाये जा रहे हैं।
नेतागिरी काम नहीं आई...
कौन किस मकसद से फोटो खिंचवा रहा है, किसकी क्या पृष्ठभूमि है अमूमन अधिकारी-नेता जानने की कोशिश नहीं करते। स्वागत के सिलसिले में पड़ताल करने का वक्त होता भी नहीं है। हाल में जब बिलासपुर में नई एसएसपी पारुल माथुर ने पद संभाला तो बहुत से लोगों ने उन्हें बुके भेंटकर बधाई दी और तस्वीरें भी खिंचा ली। इनमें एक नाम था मस्तूरी से कांग्रेस नेता अंकित साहू का। साहू ने तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल की और बताया कि जिले की कानून-व्यवस्था पर उसकी एसएसपी महोदया से चर्चा हुई। इसके अगले हफ्ते पुलिस ने अंकित साहू को धर दबोचा। दरअसल, वह पिस्टल और 6 जिंदा कारतूस के साथ घूमते हुए पकड़ा गया। उसने इन हथियारों की तस्वीर मोबाइल पर खींच रखी थी और उन्हें बेचने के लिये ग्राहक की तलाश कर रहा था। सिविल लाइन पुलिस को खबर मिली और उसे रायपुर रोड में पकड़ लिया गया। पुलिस ने तो एसएसपी के साथ फोटो दिखाने के बावजूद उस पर कोई नरमी नहीं बरती और आर्म्स एक्ट के तहत बुक कर दिया, पर कांग्रेस ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है कि वह कांग्रेस में किसी पद पर है या नहीं, यदि है तो हटाया गया या नहीं।
रेलवे कोच में दफ्तर
कोविड -19 की भयानक लहर आई तो रेलवे जोन के रायपुर और बिलासपुर स्टेशनों में 100 से ज्यादा कोच आइसोलेशन वार्ड में बदल दिये गये थे। देशभर के कई स्टेशनों में ऐसी व्यवस्था की गई। हाल ही में जबलपुर रेलवे स्टेशन की तस्वीर सामने आई थी, जहां कोच के भीतर एक आकर्षक रेस्टोरेंट बनाया गया है। अब एक तस्वीर बिलासपुर रेलवे स्टेशन की और आई है, जिसमें यहां के खाली कोच में रेलवे ने अपना एक ऑफिस खोल लिया है। किनारे के प्लेटफॉर्म पर खड़ी इस ट्रेन को देखने से बिल्कुल अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि भीतर कोई दफ्तर चल रहा है। हालांकि यह व्यवस्था अस्थायी बताई जा रही है, क्योंकि पुराने बिल्डिंग में सुधार के काम चल रहे हैं। पर यह एक नया प्रयोग तो है ही, जिसे आगे रुपये बचाने के लिये अमल में लाया जा सकता है।
आवास और आवासीय आयुक्त
दिल्ली में आवासीय आयुक्त डॉ. एम गीता की केन्द्र सरकार में पोस्टिंग हो गई है। उन्हें जल्द रिलीव भी किया जा सकता है। नए आवासीय आयुक्त को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। जन प्रतिनिधियों, और विभाग प्रमुखों की मांग रही है कि दिल्ली में आवासीय आयुक्त के पद पर सीनियर आईएएस अफसर की पोस्टिंग होनी चाहिए। यह भी सुझाव दिया गया है कि आयुक्त के पास कोई अतिरिक्त प्रभार न हो। केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों से तालमेल के लिए दिल्ली में सीनियर अफसर का होना जरूरी है।
सुनते हैं कि गीता स्वास्थ्यगत कारणों से दिल्ली में रहना चाहती थीं। यही वजह है कि उन्हें कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं दी गई। उनके पास कोई और प्रभार न होने के कारण आवासीय आयुक्त का काम बेहतर ढंग से कर रही थीं, लेकिन अब उनकी नई पोस्टिंग के बाद से फिर समस्या पैदा हो गई है। ताजा समस्या यूक्रेन संकट को लेकर है।
यूक्रेन में दो दर्जन से अधिक छत्तीसगढ़ी विद्यार्थी, और अन्य लोग फंसे हुए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने केन्द्र सरकार, और विदेशी दूतावास व फंसे लोगों से संपर्क के लिए जिस लाइजन अफसर को जिम्मेदारी दी है वो कभी बिजली बोर्ड का गेस्टहाउस संभालते थे। अब रिटायर हो चुके हैं, और सरकार ने उन्हें संविदा पर रखा है। ऐसे कठिन मौके पर वो कितना कुछ कर पाएंगे, इसका अंदाजा लगाना कठिन है।
दूसरी तरफ, रमन सरकार में ताकतवर अफसरों ने दिल्ली में बंगला आदि रखने के लिए भी आवासीय आयुक्त के पद को अपने पास रखा था। रमन सरकार में ऐसे मौके भी आए हैं जब सीएस, और एसीएस रैंक के अफसरों ने दिल्ली में एक और पद निर्मित कराकर आवासीय आयुक्त के पद को सिर्फ इसलिए ही अपने पास रखा था ताकि वहां बंगला और अन्य सुख सुविधाएं मिलती रहे। तब अफसरों की कमी नहीं थी, इसलिए काम चल गया। इससे परे दूसरे राज्यों में सीनियर, और काबिल अफसरों को आवासीय आयुक्त के रूप में पदस्थ किया जाता है। उत्तरप्रदेश के आवासीय आयुक्त रहे अजीत कुमार सेठ बाद में कैबिनेट सचिव बने। इसी तरह गुजरात के आवासीय आयुक्त रहे भरतलाल वर्तमान में केन्द्र सरकार में सचिव के पद पर हैं।
छत्तीसगढ़ के कुछ आवासीय आयुक्तों ने बेहतर काम किया है। आईएफएस अफसर बी वी उमा देवी के आवासीय आयुक्त के रूप में काम को सराहा गया था। उन्होंने उत्तराखंड आपदा के दौरान छत्तीसगढ़ के फंसे लोगों को निकलवाने में अहम भूमिका निभाई थी। मगर मौजूदा समय में अफसरों की कमी के चलते आवासीय आयुक्त पद पर बिना अतिरिक्त प्रभार के सीनियर अफसरों की पोस्टिंग हो पाएगी, यह फिलहाल मुश्किल दिख रहा है।
ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने की पहल
राज्य में परिवहन विभाग ने जून 2020 में एक आदेश निकाला था कि वाहन का इस्तेमाल कर किसी ने महिला संबंधी अपराध किया और उसे कोर्ट ने दोषी पाया तो उसका ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त कर दिया जायेगा। बलौदाबाजार में कोर्ट ने एक व्यक्ति को नाबालिग से छेड़छाड़ और अपहरण का दोषी पाया। एसएसपी ने उसका ड्राइविंग लाइसेंस 5 साल के लिये निरस्त करने परिवहन विभाग को पत्र लिखा। ज्यादातर अपराधों में बाइक, कार आदि इस्तेमाल तो किये ही जाते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त होने से कम से कम बाकी लोगों को सबक मिलेगा। कहा जा रहा है कि राज्य में इस प्रावधान के तहत यह पहली कार्रवाई है।
अच्छी बात है, पर दूसरी तरफ इसकी पड़ताल होती ही कितनी है कि कोई वाहन चालक लाइसेंसधारक है या नहीं। इस तरह की जांच तो कभी-कभी अभियान चलाकर ही की जाती है। लोग क्लीनर के हाथ में ट्रक तक थमा देते हैं, जो बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं को अंजाम देते हैं। उपरोक्त मामले में 5 साल के लिये लाइसेंस को निरस्त किया जा रहा है, लगभग इतनी या इससे ज्यादा अवधि तक आरोपी तो जेल ही काटेगा। यानि बाहर निकलने के बाद वह फिर नया लाइसेंस बनवाने का पात्र हो जायेगा? नियम कुछ व्यवहारिक हो तो खौफ हो। पांच साल तक लाइसेंस निरस्त रखने की अवधि सजा काटने के बाद की रखी जा सकती है। लाइसेंस निरस्त किया गया है इसकी सूचना भी सार्वजनिक हो, ट्रैफिक पुलिस के पास भी सूची हो। चेकिंग हो तो वास्तविक हो, नजराना लेकर छोड़ देने का खेल न हो।
सैकड़ों छात्रों को फेल करने का फरमान
सरगुजा के बतौली में 10वीं, 12वीं बोर्ड की प्रायोगिक परीक्षा से गायब रहने के कारण करीब 370 छात्र-छात्राओं को फेल कर दिया गया है। अब इनके लिये मुख्य परीक्षा का कोई मतलब नहीं रह गया है। प्रायोगिक में पास हुए बिना उनकी मार्कशीट में उत्तीर्ण नहीं लिखा जायेगा। दरअसल, यहां के छात्र-छात्रा बीते कई दिनों से पुराने हिंदी स्कूल में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल खोलने का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने नेशनल हाइवे पर चक्काजाम कर दिया। स्थानीय नागरिकों और भाजपा नेताओं का भी उन्हें साथ मिला। भीड़ एक हजार से ऊपर पहुंच गई। जोश में 10वीं, 12वीं के वे छात्र भी आंदोलन में साथ हो गये, जिनकी प्रायोगिक परीक्षा हो रही थी। किसी ने उन्हें बहका दिया होगा कि सब के सब गायब रहेंगे तो परीक्षा स्थगित कर दी जायेगी, लेकिन स्कूल के प्राचार्य ने इसे कठोर अनुशासनहीनता के रूप में लिया। परीक्षा आगे नहीं खिसकाई और सबको गैरहाजिर बता दिया। यानि उन्हें शून्य नंबर मिले।
रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा अधिकारी दुबारा परीक्षा लेने के लिये तैयार नहीं हैं, वे कह रहे हैं कि अब इन्हें मौका अगले साल ही मिलेगा।
कोरोना संक्रमण काल के बाद पहली बार ऑफलाइन परीक्षायें हो रही हैं। प्रायोगिक परीक्षाओं की तिथियां स्थानीय स्तर पर ही तय की जाती हैं। यदि किसी नासमझी के कारण बच्चों ने एक राय होकर परीक्षा का बहिष्कार किया तो इसमें लचीला रवैया रखा जा सकता था। आखिर उनका आंदोलन भी अपने स्कूल के मूल स्वरूप को बचाये रखने के लिये ही हो रहा था। यानि उनको अपनी पढ़ाई की चिंता तो है। बहरहाल, इस कड़े रुख पर जिला पंचायत सरगुजा की बैठक में भी ऐतराज जताया गया है, साथ ही उन लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है जिन्होंने परीक्षा को छोडक़र बच्चों को सडक़ पर उतरने के लिये उकसाया।
मतदान में एक योगदान..
पड़ोसी राज्य ओडिशा में इन दिनों पंचायत चुनाव हो रहे हैं। कल चौथे चरण का मतदान पूरा हुआ। इस दौरान सोशल मीडिया पर आई इस तस्वीर ने लोगों का ध्यान खींचा। पोलिंग बूथ में तैनात एक महिला कांस्टेबल ने वोट देने आई 90 साल की वृद्धा को अपनी गोदी में उठाकर भीतर पहुंचाया।
पहली महिला डीएफओ का महत्व
वन महकमे में हुए पहली प्रशासनिक सर्जरी में राजनांदगांव के लिए डीएफओ के तौर पर सलमा फारूखी की नियुक्ति कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहली दफा डीएफओ के पद पर राजनांदगांव में महिला अफसर को पदस्थ किया गया है। 2008 बैच की राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएफएस बनी सलमा को राजनांदगांव में काम करने का पुराना प्रशासनिक अनुभव भी है। 2012-13 के दौरान वह एसडीओ भी रही है। सलमा कटघोरा वन मंडलाधिकारी शमा फारूखी की बहन हैं । पिछले दिनों शमा कोरबा कलेक्टर रानू साहू के साथ प्रशासनिक मतभेद के चलते सुर्खियों में रहीं। उनकी वन मुख्यालय में वापसी करने के साथ सरकार ने सलमा को राजनांदगांव जैसे बड़े जिले में डीएफओ की जिम्मेदारी सौंपी है। वैसे पिछले कुछ सालों से राजनांदगांव में डीएफओ औसतन सालभर ही पदस्थ रहे हैं। पंकज राजपूत, प्रणय मिश्रा जैसे अफसरों को जल्द ही अरण्य भवन बुला लिया गया। 2011 बैच के गुरूनाथन एन. भी राजनंादगांव में बमुश्किल सालभर ही टिक पाए। महिला डीएफओ की तैनाती से वन महकमे के आला अफसर उनके कार्यशैली की जानकारी ले रहे हैं। सलमा फारूखी की पोस्टिंग के पीछे राजनीतिक कारण भी गिनाए जा रहे हैं। यहां यह भी गौर करने लायक बात यह है कि दुर्ग सीसीएफ के पद पर एक महिला अफसर जिम्मा सम्हाल रही है।
एक उलट भूमिका वाली तस्वीर
बात अपने छत्तीसगढ़ की हो या देश के किसी दूसरे राज्य की। यदि किसी महिला प्रत्याशी को मजबूरी में चुनाव लड़ाना है तो साथ में उसके पति, पिता या किसी संबंधी की तस्वीर भी प्रचार सामग्री में मिलती है। पंचायत चुनाव में आम है, लोकसभा, विधानसभा चुनावों में भी कई बार यह दिखाई देता है। मतदाता सूची में नाम के साथ बीच में पति का नाम भी डाला जाता है। जीत जाने के बाद पति या पिता का ही दबदबा बना रहता है। उन्हें भ्रम होता है कि महिला अपने दम पर नेतागिरी नहीं कर सकती। चुनाव जीतना और फिर जीते हुए पद को संभालना, भोगना पति या पिता का ही काम है।
पर पंजाब विधानसभा चुनाव के फिरोजपुर (ग्रामीण) का यह पोस्टर सबसे हटकर है। यहां सीपीआई (लिबरेशन) के प्रत्याशी सुरेश कुमार हैं। पोस्टर में उन्होंने बराबर आकार में अपनी पत्नी परमजीत कौर को जगह दे रखी है। दोनों ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता हैं। सुरेश कुमार ईमानदारी से मानते हैं कि इलाके में उनकी पत्नी ज्यादा लोकप्रिय हैं। वे दस साल से भी ज्यादा समय से दलितों, पिछड़ों के लिये काम कर रही हैं। मैं तो निजी बस में कंडक्टर था। दो साल ही हुए हैं, राजनीति में आए।
उम्मीद करनी चाहिये कि इस शुरुआत की बयार दूसरे शहरों और राज्यों में भी पहुंचेगी। अपने यहां छत्तीसगढ़ में भी, जहां पर कि निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि के सरकारी दफ़्तर में उनके पति बैठकर जुआ खेलते पकड़ाते हैं।
पुरंदेश्वरी के तीखे तेवर...
संगठनात्मक ढांचे में कांग्रेस से कई कदम आगे रहने वाली भाजपा की गतिविधियां मंद पड़ी है। भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी बस्तर के दौरे पर थीं। उन्होंने रायपुर शहर जिला इकाई की वहीं से वर्चुअल बैठक ली। पता चला कि बूथ कमेटियां सिर्फ 50 फीसदी ही बन सकी हैं। राजधानी में ही यह हाल है। बाकी जिलों का आंकड़ा अभी सामने आना बाकी है। वैसे तीन दिन के बस्तर दौरे के दौरान भी उन्होंने पाया कि यहां भी जिलों में बूथ कमेटियां बनाने की रफ्तार धीमी ही है। पुरंदेश्वरी के तेवर तीखे रहे। उन्होंने जिला अध्यक्ष और पदाधिकारियों की क्लास ली। कमेटियां जल्द बनाने कहा। याद होगा, इसके पहले भाजपा की युवा मोर्चा, महिला कांग्रेस और दूसरी इकाईयों का गठन भी तय समय के काफी बाद तक नहीं हो पाया था। बार-बार प्रदेश प्रभारी ने नाराजगी जताई तब जाकर यह पूरा हो सका। कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरंदेश्वरी के तेवर से प्रदेश के बड़े भाजपा नेता असहज महसूस कर रहे हैं और उन्हें सहयोग नहीं करना चाहते? या फिर लगता है कि जो तरीका उनका है वह छत्तीसगढ़ भाजपा में फिट नहीं बैठता?
वर्चुअल मीटिंग में रिश्ता तय करना..
सुकमा के किसी लडक़ी के लिये जशपुर के लडक़े का विवाह प्रस्ताव आया। शादी-ब्याह का मामला था, सो एक दो लोग जाकर देख आयें यह ठीक नहीं था। घर कैसा है, परिवार के लोग कैसे हैं। यह सब देखने समझने के लिये पांच-छह लोगों को तो जाना चाहिए। गये और रिश्ता नहीं जमा तो क्या होगा? डीजल-पेट्रोल और टैक्सी भाड़ा में 15-20 हजार फूंक देना व्यर्थ। तब, दोनों पक्षों ने एक तरीका आजमाया। इंटरनेट के जरिये वर्चुअल मुलाकात रखी गई। दोनों पक्षों से 10-12 लोग शामिल हो गए। सबने एक दूसरे से बात कर ली। व्यवहार समझ लिया। कैमरे से ही पूरा घर, एक दूसरे का रहन-सहन देख लिया। लडक़ी को कई बार असहज लगता है कि भावी दूल्हे के साथ उसे अलग बिठाया जाये। शर्माते हुए चाय-नाश्ता लेकर आये। फिर बात नहीं जमी तो और भी बुरा। इस मामले में वर्चुअल मीटिंग के बाद वार्तालाप का सेशन लडक़ी, लडक़े के बीच अलग से रख लिया गया। कोरोना काल ने वर्चुअल बैठक, सभा, सेमिनार की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ाया। पर लगता है धीरे-धीरे यह चलन में आ जायेगा।
लगे हाथ, इस माह की शुरुआत में एक खबर आई थी कि अभिजीत और संस्कृति नाम के एक भारतीय जोड़े ने थ्री डी वर्चुअल शादी की, जिसमें 500 मेहमान भी शामिल हुई। यह भारत में ऐसी पहली शादी थी। जोड़े ने ही नहीं मेहमानों ने भी डिजिटल अवतार लिया। यह तरीका मेटावर्स कहा जाता है। फेसबुक आगे चलकर यही होने वाला है। हालांकि इस विवाह का फिजिकल इवेंट भोपाल में बाद में हुआ। मतलब, तकनीक की एक सीमा ही है, फीलिंग तो आमने-सामने मिलने से ही आती है।
दिल है छोटा सा...छोटी सी आशा
पीलीभीत की चुनावी सभा में अमित शाह ने पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के कंधे पर हाथ रखा, तो यहां उनके समर्थकों की बांछें खिल गईं। अमित शाह ने बृजमोहन से पीलीभीत जिले में पार्टी प्रत्याशियों का हाल जाना। पार्टी ने बृजमोहन को पीलीभीत के दो विधानसभा के चुनाव प्रचार की कमान सौंपी है।
पीलीभीत पूर्व केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी का क्षेत्र है। वो इन दिनों पार्टी से खफा चल रही हैं। ऐसे में पीलीभीत में कमल खिलाना पार्टी के लिए चुनौती बन गई है। चूंकि बृजमोहन को चुनाव प्रबंधन में महारत हासिल है, पार्टी ने उन्हें कठिन माने जाने वाले क्षेत्र में लगाया है। सोमवार को चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले बृजमोहन ने डोर टू डोर संपर्क किया, और फिर वोटिंग से पहले की सारी तैयारियों की समीक्षा कर दिल्ली निकल गए।
चुनावी सभा में बृजमोहन को अमित शाह ने जिस तरह महत्व दिया है, उससे प्रदेश भाजपा में नए समीकरण बनने की अटकलें लगाई जा रही है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि युवा मोर्चा के दिनों के साथी रहे राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, बृजमोहन के बजाए रमन सिंह के बेहद करीबी हो गए हैं। हाल यह है कि प्रदेश भाजपा संगठन में अब तक सारे फैसले रमन सिंह के मनमाफिक होते रहे हैं।
दूसरी तरफ, पार्टी संगठन की कार्यप्रणाली से प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी, और सह प्रभारी नितिन नबीन नाराजगी जता चुके हैं। ऐसे में प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव की उम्मीद जताई जा रही है। इसमें बृजमोहन, और उनके खेमे को कितना महत्व मिलता है, यह देखना है। फिलहाल तो अमित शाह ने बृजमोहन के कंधे पर हाथ रखकर समर्थकों को खुश कर दिया है।
शह और मात
कोरबा कलेक्टर रानू साहू, और कटघोरा डीएफओ शमा फारूकी के बीच जंग का नतीजा निकल गया। शमा फारूकी को हटाकर अरण्य भवन में पदस्थ कर दिया गया। शमा को पुरानी शिकायतों के आधार पर हटाया गया है। कांग्रेस विधायक मोहित केरकेट्टा ने कुछ महीने पहले उनके खिलाफ लंबी चौड़ी शिकायतें वन मंत्री को भेजी थी।
जहां तक कलेक्टर से जिस बिन्दु को लेकर बहस हुई थी उसमें शमा का पक्ष मजबूत था। चूंकि माहौल शमा के खिलाफ था इसलिए उन्हें हटना ही था। इन सबके बावजूद वो हार गई हैं, ऐसा कहना भी गलत है। तबादला सूची में शमा के साथ उनकी सगी बहन सलमा फारूकी का भी नाम है, जो डीएफओ के पद पर प्रमोट होने के बाद पहली बार फील्ड में जा रही हैं, और उन्हें राजनांदगांव वन मंडल की प्राइम पोस्टिंग मिली है। खास बात यह भी है कि शमा, और सलमा एक साथ राजनांदगांव वन मंडल में एसडीओ के पद पर काम कर चुकी हैं।
नशे के खिलाफ एक गांव..
यह माना जाता है कि शराब जैसी बुराई रोकने के लिये कानून से ज्यादा सामाजिक दबाव काम आता है। गरियाबंद जिले के छुरा विकासखंड के ग्राम सरकड़ा में भी यह कोशिश की गई है, पर नियम-कायदे कुछ मायनों में सख्त तो कुछ लुभावने भी हैं। मसलन, शराब पर ही पाबंदी नहीं है बल्कि गांजा-भांग पर भी रोक लगाई गई है। गांव में पीने, बेचने, खरीदने पर बंदिश तो है ही बाहर से भी नशा करके घुस नहीं सकते। निगरानी के लिये महिलाओं की कमांडो टीम भी बनाई गई है। पालियों में दिन-रात निगरानी की जा रही है। आकर्षक यह है कि नियम तोडऩे पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है, जिसमें से 50 फीसदी रकम मुखबिर को बतौर इनाम मिलेगी। अब तक एक को गांजा बेचते और चार को नशे में हुड़दंग करते पकड़ा जा चुका है। हुआ यह है कि अब थानों में भी मामले नहीं जा रहे हैं क्योंकि अधिकांश लड़ाई-झगड़ों की जड़ नशा ही है। जुर्माना लगाने का अधिकार गांव के पंचों को है या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, पर इस व्यवस्था से गांव में जो शांति कायम हुई है, उसे गांव के लोग राम-राज कह रहे हैं।
ऑफलाइन परीक्षा के दबाव..
पता नहीं कैसे प्रश्न आयेंगे, जो प्रश्न याद किये हैं वे नहीं आये तो क्या होगा। कहीं अकेले ही न फेल हो जाऊं...। ऑनलाइन पढ़ाई के बाद हो रही ऑफलाइन परीक्षा को लेकर कुछ ऐसे सवाल बच्चों के दिमाग में तैर रहे हैं। कहीं पांच दिन की क्लास लगी है, कहीं एक सप्ताह की। दो मार्च से छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षायें शुरू हो रही हैं। पिछली बार 12वीं बोर्ड में 97 प्रतिशत रिजल्ट था और 10वीं बोर्ड का तो लगभग 100 प्रतिशत। उत्तर पुस्तिका घर पर बैठकर जो तैयार की गई थीं। इस बार करीब दो साल के अंतराल ऑफलाइन परीक्षा होगी। कोर्स तो ऑफलाइन मोड में पूरा किया नहीं जा सका, सो उन्हें टिप्स दिये जा रहे हैं। राजधानी रायपुर से सीजी बोर्ड परीक्षाओं में शामिल हो रहे सरकारी और निजी स्कूलों के करीब 30 हजार बच्चों को टिप्स दिये गये कि प्रश्न कैसे हल करने हैं। कोर्स की बातें तो हो गईं, पर इसमें बच्चों का आत्मविश्वास बनाये रखने, बढ़ाने के लिये भी टिप्स देने का सत्र रखा जाना चाहिये था, जो नहीं हुआ। दरअसल, काउंसलिंग तो सिर्फ बच्चों को नहीं, बल्कि पालकों को भी देने की जरूरत है कि कम से कम इस बार अव्वल आने, ज्यादा से ज्यादा अंक लाने के लिये दबाव न डालें। सवाल, यह भी है कि क्या क्या बोर्ड उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में इस बार उदारता बरतेगा?
मितानिन अब और स्मार्ट..
छत्तीसगढ़ देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां मितानिन (आशा वर्कर) की प्रोत्साहन राशि का भुगतान ऑनलाइन किया जा रहा है। एक पायलट प्रोजेक्ट रायपुर जिले के अभनपुर में नवंबर 2020 में शुरू किया गया था, जिसे अब पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया है। प्रदेश में 69 हजार मितानिन हैं जो ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के मुख्य आधार हैं। अब उन्हें अपनी सेवाओं के एवज में राशि प्राप्त करने के लिये किसी बैरियर से नहीं गुजरना पड़ेगा। उनके अकाउंट में सीधे राशि आ रही है।
हिंदी की जगह पर अंग्रेजी स्कूलों का विरोध
स्वामी आत्मानंद स्कूलों के नामकरण और इनमें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई के फैसले को लेकर कई जगह विवाद खड़ा हो रहा है। बीते दिसंबर महीने में रायगढ़ के सबसे पुराने व बड़े कूल सेठ किरोड़ीमल नटवर हायर सेकेंडरी स्कूल के बाहर स्वामी आत्मानंद स्कूल का बोर्ड देखकर नागरिकों में रोष फैल गया। एक सर्वदलीय समिति बन गई। प्रशासन ने आखिरकार नागरिकों के दबाव में तय किया कि स्कूल का नाम वही पुराना रहेगा। बदला गया बोर्ड हटाया गया और स्कूल के पुराने नाम के नीचे लिखा गया, स्वामी आत्मानंद योजना के तहत संचालित स्कूल। इधर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में भी इसी बात को लेकर विरोध शुरू हुआ है। पेंड्रा में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दुबे के नाम पर हायर सेकेंडरी स्कूल है। इस स्कूल के सैकड़ों बच्चे 5 किलोमीटर पैदल मार्च कर छुट्टी के दिन प्रदर्शन करने कलेक्टोरेट पहुंच गये। इन्हें एक तो स्कूल का नाम बदलने पर ऐतराज था, फिर आशंका थी कि स्कूल में हो रही साज-सज्जा, लैब, फर्नीचर के बाद उनकी फीस बढ़ जायेगी जो गरीब पालक भर नहीं पायेंगे। इस मामले में भी कलेक्टर और डीईओ को सफाई देनी पड़ी कि न तो नाम बदलेगा, न ही फीस बढ़ेगी, बल्कि गणवेश, किताबें मुफ्त ही मिलेगी।
प्रदेश के कई शहरों में अंग्रेजी स्कूलों को खोलने के लिये पहले से संचालित हिंदी माध्यम स्कूल बंद किये जा रहे हैं, जिसको लेकर प्रदर्शन भी हो रहे हैं। सरगुजा के बतौली, मैनपाट इलाके में स्वामी आत्मानंद योजना के लिये चयनित स्कूलों के विरोध में तो हाईकोर्ट में ही याचिका लगा दी गई है। इसमें कहा गया है कि उत्कृष्ट विद्यालय बनने से इस आदिवासी अंचल के हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को पढऩे के लिये स्कूल नहीं मिलेगा। ज्यादातर लोग विशेष सरंक्षित पडों, पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग हैं। याचिका में कहा गया है कि पहली, छठवीं और नवमीं में प्रवेश लेने से उन्हें रोका जा रहा है। घरघोड़ा, सरायपाली, जशपुर से भी हिंदी माध्यम स्कूलों को बचाने के लिये अलग-अलग याचिकायें हाईकोर्ट में लगी हुई हैं।
ज्यादातर विरोध कई शंकाओं का समाधान नहीं होने की वजह से हो रहा है। रायगढ़ और जीपीएम जिले में जो परिस्थितियां पैदा हुईं, उससे निपटने के लिये अधिकारी तब सामने आये जब नागरिक और छात्र सडक़ पर उतरे। कोर्ट में जो मामले गये हैं, शायद उनमें भी कोई कोशिश नहीं हुई। योजना नई है, इसलिये लोगों की चिंता जायज है।
सवाल विलोपित अधिनियम का..
रविवार को व्वायवसायिक परीक्षा मंडल ने फूड इंस्पेक्टर पदों के लिये परीक्षा ली थी। 200 अंकों का एक ही प्रश्न-पत्र था। कुछ ऐसे अभ्यर्थी थे जिन्होंने इसके एक सप्ताह पहले सीजीपीएससी परीक्षा भी दी थी। उसके मुकाबले यह प्रश्न-पत्र कुछ सरल था। पर, शिकायत इसमें भी थी। संयुक्त मध्यप्रदेश के समय खाद्य अधिनियम में सन् 1992 में संशोधन किया जा चुका है। खाद्य विभाग इन्हीं अधिनियमों के तहत कार्रवाई करता है लेकिन प्रश्न विलोपित किये जा चुके 1986 के खाद्य अधिनियम से संबंधित पूछे गये, जिसकी तैयारी छात्रों ने की ही नहीं थी। उन्हें लगा पुराने अधिनियमों की जानकारी रखकर वे क्या करेंगे, जो लागू है उसी को रटें। अब इस पर परीक्षार्थी अपनी आपत्ति मंडल के सामने दर्ज कराने वाले हैं।
बलांगीर के कद्दू
वैसे तो छत्तीसगढ़ में भी कद्दू की भरपूर पैदावार होती है, पर इसकी खपत भी खूब है। इस समय बलांगीर ओडिशा से खेप के खेप कद्दू राजधानी रायपुर पहुंच रहे हैं। ये जो कद्दू आये हैं उसका उत्पादन और विपणन का काम महिलाओं का समूह- महाशक्ति कर रहा है, जिसे नाबार्ड से भी मदद मिली है।
कोरबा के विस्थापितों को नौकरी नहीं..
हाल ही में एक मामला हाईकोर्ट में आया था, जिसमें प्रस्तावित प्रोजेक्ट से मिट्टी निकालने का 250 करोड़ रुपये का ठेका तो एसईसीएल ने निकाल दिया लेकिन मौके पर पूरा गांव बसा हुआ था। फैसला ठेकेदार के पक्ष में हुआ, उनको ब्लैक लिस्ट से हटाना पड़ा। कोरबा जिले के कुंसमुंडा, दीपका और गेवरा में नई परियोजनाओं को शुरू करने में एसईसीएल को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। नये प्रोजेक्ट के लिये जमीन आबंटित होने के बावजूद लोग उसे खाली नहीं कर रहे हैं। जिन लोगों ने पुरानी परियोजनाओं में जमीन दी, वे भी आये दिन आंदोलन कर रहे हैं। हालत यह है कि सन् 1990 में जमीन देने वालों को भी नौकरी नहीं मिली। इनमें से कई लोगों की मौत हो चुकी। अब उनके वारिस लड़ाई लड़ रहे हैं। एसईसीएल का कहना है कि ऐसा प्रावधान नहीं है। प्राय: जिन मुद्दों पर कोई रास्ता नहीं निकालते बनता कंपनी उसे कोल इंडिया का नीतिगत मामला कहकर टालती है। अब एसईसीएल प्रबंधन ने प्रशासन के दबाव में कोल इंडिया को इस नीति में बदलाव का प्रस्ताव भेजने के लिये सहमत हुआ है। पर, यह नहीं लगता कि कोल इंडिया से बहुत जल्दी कोई जवाब आयेगा। इसी के चलते आंदोलन चल रहा है। नई परियोजना शुरू नहीं कर पाने के कारण एसईसीएल के उत्पादन कमी आई है, जिसके चलते छोटे उद्योगों को आपूर्ति घटाई गई है। हाल ही में इसके विरोध में एसईसीएल मुख्यालय के सामने प्रदर्शन भी हुआ था।
छत्तीसगढ़ के एक जिले की दो प्रभावशाली महिला अफसरों के बीच विवाद ने पिछले दिनों खूब सुर्खियां बटोरीं। हालांकि महिला आईएएस अफसर के लिए यह कोई नई बात नहीं है। कर्मचारी-अधिकारी उनके बर्ताव के कारण प्रताडि़त महसूस कर रहे हैं। आईएफएस वन अफसर से तू-तू, मैं-मैं के अलावा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ दुव्र्यवहार के कारण काफी कोहराम मचा था। वकीलों ने मैडम के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। खेद प्रकट के बाद वकील शांत हुए। पटवारियों की नाराजगी जाहिर है। एक पटवारी के खिलाफ एक पक्षीय कार्रवाई से पूरे जिले के पटवारी भडक़े हुए हैं।
दरअसल मैडम पूरे जिले में तानाशाही अंदाज में राज चलाना चाहती हैं। ऐसे में किसी ने नियम-कानून की बात की तो समझिए उसकी खैर नहीं। इस जिले की कुर्सी पहले से काफी रौबदार वाली मानी जाती है। खनिज संपदा और उद्योग से भरा-पूरा जिला है। कोयले की खदानें हैं, जिस पर चौतरफा नजरें है। कुल मिलाकर रौबदार के साथ-साथ काजल की कोठरी का ताज भी है। जहां के कुछ दाग ऐसे भी होते हैं, जो आसानी से छूटते नहीं। ऐसे ही पावर प्लांट के विस्तार के दाग पर राजधानी में बैठे प्रमुख लोगों की नजर पड़ गई है। चर्चा है कि इस बारे में मैडम से जानकारी भी ली गई। फिलहाल इस खेल में अम्पायर के निर्णय का इंतजार किया जा रहा है।
बकाया किस्सों में राष्ट्रीय दिवस पर फेसबुक पर पोस्ट की गईं शराबखोरी की तस्वीरें भी हैं। और पिछले जिले में रेत से तेल निकालने की कहानियां भी।
घटना लिंगानुपात का
छत्तीसगढ़ में लिंगानुपात बीते 10 सालों में गिरा है। पहले यह 1000 पुरुषों में 960 था पर अब यह घटकर 938 पर आ गया है। इसकी एक बड़ी वजह भ्रूण हत्या भी हो सकती है। प्रदेश में करीब 800 अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं, जो इस नाम पर स्थापित की जाती हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु और गर्भवती की सेहत की जांच की जा सके, लेकिन इसी जांच के साथ यह भी पता लगाया जा सकता है कि भ्रूण मेल है या फीमेल।
नियम कहता है कि हर तीन माह में इन जांच केंद्रों की जांच स्वास्थ्य विभाग को करनी चाहिये, लेकिन आम तौर पर साल में एकाध बार ही जांच हो पाती है। कई सेंटर तो जांच से छूट भी जाते हैं। ज्यादातर केंद्र जांच के रिकॉर्ड तो रखते हैं, जो नियम के अनुसार दो साल तक संभालना जरूरी होता है, पर इस जांच में लडक़ा या लडक़ी होने का कुछ भी सबूत नहीं होता। इन दिनों स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेशभर में जांच के लिये अभियान चला रखा है, पर अब तक जांच का आंकड़ा 500 भी पार नहीं कर पाया है। संतान की चाह रखने वालों के लिये भी बाजार फल-फूल रहा है। प्रदेश में इन विट्रो फर्जिलाइजेशन ट्रीटमेंट (आईवीएफ) के 32 केंद्र हैं। इनकी भी जांच स्वास्थ्य विभाग को नियमित रूप से करनी है, पर नहीं हो रही। पीसीपीएनडीटी के अधिकारी कहते हैं कि हर जांच केंद्र में कोई न कोई गड़बड़ी तो मिल ही जाती है। हालांकि कार्रवाई सिर्फ 4 पर हुई है। लिंगानुपात का अंतर बढऩा एक खतरे का संकेत है, जिसकी ओर सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है।
बस्तर की बालायें..
सिलगेर में अपनी मांगों को लेकर आदिवासी समुदाय पिछले कई महीनों से आंदोलन कर रहा है। यहीं उन्होंने पहले आदिवासी विद्रोह की पहचान भूमकाल दिवस भी मनाया। इस मौके पर दूर-दूर से आदिवासी पहुंचे। उन्होंने आंदोलन स्थल पर पारंपरिक नृत्य गीत भी गाये। इसी मौके पर किसी गांव से पहुंचीं इन दो बालिकाओं ने भी प्रस्तुति दी।
ऑनलाइन मर्डर के सामान
छत्तीसगढ़ पुलिस करे भी तो क्या, फ्लिपकार्ट, अमेजान वालों को चि_ी लिखकर कहा कि चाकू क्यों भेजते हो। बंद करो। मगर इन लोगों ने कहा कि हम तो चाकू बकरा, मुर्गी काटने के लिये भेजते हैं। कोई रूल रेगुलेशन केंद्र सरकार तय करेगी तो बंद कर देंगे। जो भी सामान हम भेज रहे हैं वे सब सर्टिफाइड है। चाकुओं का इस्तेमाल अगर कोई लोगों को नुकसान पहुंचाने के लिये करते हैं तो उस पर हमारी जवाबदारी नहीं। राजनांदगांव में पुलिस ने अभियान चलाकर कल 72 घातक चाकुओं को जब्त किया। सामान मंगाने वालों की लिस्ट देखकर सबको पकड़ लिया। इस लिस्ट में कई नाम लड़कियों के हैं। हो सकता है कोई एक दो क्राइम से जुड़ी हों, पर हो सकता है कि ज्यादातर ने आत्मरक्षा के लिये मंगाया हो। महिला सुरक्षा के लिये दिये गये तमाम हेल्पलाइन नंबरों, महिला पुलिस की रक्षा टीम क्या कर रही है? क्यों लड़कियों को इसकी जरूरत पड़ रही है?
बांस के कितने फायदे..
कंधे पर उठाये हुए इस सामान को क्या कहते हैं? भाषा विज्ञों से पूछें तो चट्टा कहेंगे। यह तस्वीर बस्तर के एक गांव की है। गौर से देखें तो इसमें परंपरा और परिवर्तन की बहुत की कई खूबियां दिख सकती हैं। एक- हाथ में जो नॉयलोन का थैला है वह कोलकाता से बनकर आता है। जिस रास्ते पर ग्रामीण चल रहा है वह न सीएम न पीएम सडक़ योजना में शामिल है, मगर पैदल सडक़ नाप कर भी चलने वाला खुश है। पास के किसी हाट से उसने जो चट्टा खरीदा उसके कई काम हैं। इसे बिछा दें तो सोते हुए गर्माहट महसूस कर सकते हैं। शादी-ब्याह में मड़वा का घेरा बना सकते हैं। वेग के साथ बारिश हो तो मिट्टी की दीवार के आगे सटाकर घर बचा सकते हैं। छत्तीसगढ़ के जंगलों में घूमने पर पता चल सकता है कि वहां बांस की कीमत और अहमियत क्या है।
और एडवोकेट प्रोटेक्शन?
पिछले पांच दिनों से हड़ताल कर रहे नायब तहसीलदार व तहसीलदारों को सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है। कलेक्टरों को इस बारे में राज्य सरकार ने निर्देश दिया है। रायगढ़ मारपीट मामले में चार अधिवक्ताओं की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। सरकार की कोशिश है कि राजस्व अधिकारी अपनी हड़ताल जल्दी खत्म कर दें। न्यायालयों में अधिकारी बैठना शुरू करेंगे, तो धीरे-धीरे वकील भी कोर्ट आना शुरू कर देंगे। आखिर उन पर भी मुवक्किलों का दबाव है। दूसरी तरफ वकील लंबे समय से एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लाने की मांग कर रहे हैं। रायगढ़ घटना के बाद इस मामले को वे फिर उठा रहे हैं। संतुलित फैसला तब होता जब सरकार तहसीलदारों को सुरक्षा देने के साथ ही अधिवक्ताओं को भी आश्वस्त करती।
पेंडेंसी का पहाड़
संभागीय मुख्यालय और कलेक्ट्रेट में नियमित रूप से बैठक होती है, जिनमें लंबित राजस्व मामलों को निपटाने के लिये नई-नई समयसीमा तय की जाती है। पर मुकदमे हैं कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहे। तहसील और उसके नीचे की अदालतों में पक्षकारों और वकीलों को साहब की खाली कुर्सी निराश करती है। कभी पता चलता है कि वे बड़े साहब की मीटिंग में गये हैं, कभी कहीं बेजा-कब्जा तोड़वाने गये हैं, तो कई बार पता नहीं चलता कि कहां गये। कोरोना महामारी के कारण राजस्व न्यायालयों के कामकाज पर भी असर पड़ा, पर इसमें हुए समय के नुकसान की भरपाई करने की कोई कोशिश नहीं हुई। अब हालत यह है कि पूरे प्रदेश में 1 लाख 67 हजार राजस्व मामले पेंडिंग हैं। अकेले राजधानी रायपुर में 17 हजार से ज्यादा रुके मामले हैं। अधिकारियों का कोर्ट में नहीं बैठना तो एक कारण हैं, आंदोलनकारी वकीलों की मानें तो राजस्व विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार इसकी बड़ी वजह है। इस समय चल रहे टकराव को एक मौके के रूप में लिया जा सकता है कि राजस्व मामलों के पारदर्शिता के साथ निपटारे के लिये युद्धस्तर पर अभियान चले।
सधा हुआ बयान..
अनुभवी नेताओं का बयान राजनीति सीखने वालों के लिये काम आ सकता है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के ही ताजा बयान को लीजिये, राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत को उन्होंने सलाह दी कि वे सोनिया गांधी से बार-बार मिलकर वक्त जाया न करें, बल्कि कोल ब्लॉक चाहिये तो कोयला मंत्री या मंत्रालय के स्तर पर प्रयास करें। पर कौशिक ने यह साफ नहीं किया कि वे हसदेव में कोल ब्लॉक आवंटित करने के पक्ष में हैं या नहीं। यदि पक्ष में हैं तो केंद्र में सरकार उनकी है, गहलोत की मदद कर सकते हैं।
रागी से बने व्यंजन...
कोदो-कुटकी, रागी कुछ ऐसे उत्पाद हैं जिनमें पानी और देखभाल की जरूरत कम पड़ती है। पर बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण उगाने में किसान दिलचस्पी कम लेते हैं। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने मिलेट्स मिशन शुरू किया है। इस बार 1 लाख 17 हजार हेक्टेयर पैदावार का लक्ष्य रखा गया है। यह तस्वीर रायगढ़ की है, जहां स्व-सहायता समूह ने तरह-तरह के फूड रागी से तैयार किये हैं। रायगढ़ कलेक्ट्रेट की कैंटीन में इसका स्वाद लिया जा सकता है।
फर्जी डॉक्टर की 10 साल से तैनाती
सृष्टि हॉस्पिटल कोरबा में फर्जी डॉक्टर बीते 11 साल से सैकड़ों मरीजों की जान से खेलता रहा लेकिन स्वास्थ्य विभाग के स्थानीय अधिकारी आंख मूंद कर बैठे थे। पीडि़त संतोष गुप्ता के धैर्य को भी समझना होगा कि पथरी के ऑपरेशन के नाम पर किडनी निकालने वाले डॉक्टर की शिकायत वह बीते 10 साल से अधिकारियों से कर रहा था। प्रशासन की जब नींद खुली तो आरोपी फर्जी डॉक्टर एसएन यादव फरार हो चुका है। आये दिन स्वास्थ्य अधिकारी झोला छाप डॉक्टर, नॉन रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनरों, अवैध पैथोलैब पर कार्रवाई के नाम पर वाहवाही बटोरता है, पर, गांव, कस्बों की ऐसी दुकानों में तो गरीब मरीज यह समझकर ही जाते हैं कि वे डिग्री नहीं रखते। एक नर्सिंग होम, जहां लोग निश्चिंत होकर महंगा होने के बाद भी इलाज के लिये पहुंचते हैं, वहां धोखाधड़ी स्वास्थ्य महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार और लालफीताशाही को उजागर करता है। जब भी किसी निजी अस्पताल में एमबीबीएस डॉक्टरों की नियुक्ति होती है, उसके डिग्री की पुष्टि के लिये एक कॉपी सीएमएचओ को भेजी जाती है। तब कोई जांच नहीं गई जब 2012 में उसकी नियुक्ति की गई। बिहार मेडिकल काउंसिल में उसका रजिस्ट्रेशन तो है, पर एमसीआई और चेन्नई मेडिकल कॉलेज में उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, जहां से यादव सर्जन की डिग्री लेने का दावा कर रहा था। यादव के अलावा स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी, कर्मचारी जिन्होंने यादव को शह दी उन पर कार्रवाई के लिये न तो जिला प्रशासन ने कोई कदम अब तक उठाया है, न ही स्वास्थ्य विभाग ने।
सृष्टि हॉस्पिटल को भाजपा विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने जन-सहयोग से शुरू कराया था, पर इसकी देख-रेख उनके तब के करीबी देवेंद्र पांडे करते थे। एक जिम्मेदारी इनकी भी तो बनती है।
मिस्र के सफेद गिद्धों का संरक्षण
गिद्धों को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त प्राणी के रूप में चिह्नांकित किया है। देसी गिद्धों की संख्या अपने देश में बहुत घट रही है। गिद्धों को पर्यावरण संतुलन व जैव विविधता के संरक्षण के लिये बहुत उपयोगी माना जाता है। पर देसी गिद्धों की प्रजाति अपने यहां लगातार घट रही है। ऐसे में दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक में इनकी लगातार आमद हो रही है। मिस्र के इन गिद्धों का रंग सफेद होता है, इसलिये आम बोलचाल में लोग इसे सफेद गिद्ध ही कहते हैं। दुर्ग कलेक्टर और डीएफओ की ओर से कोशिश हो रही है कि यह इलाका सफेद गिद्धों का स्थायी इलाका बन जाये। गिद्ध मृत जानवरों का मांस खाते हैं। यहां उनके लिये समुचित आहार मिले, इसकी कोशिश भी की जायेगी। ऐसे ऊंचे पौधे लगाने की योजना है, जिनमें घोंसला बनाकर ठहरना आम तौर पर गिद्ध पसंद करते हैं। पंजाब में यह प्रयोग बीते कुछ सालों से चल रहा है। वहां इंसानों के बीच रहकर मिस्र के सफेद गिद्धों का अच्छा प्रजनन देखने को मिला है। धमधा से कुछ आगे बेमेतरा के गिधवा जलाशय में अलग पक्षी विहार बनाने का काम भी चल रहा है।
मोमोज का छत्तीसगढ़ी संस्करण !
एक प्रदेश की खास खाद्य सामग्री का दूसरे प्रदेश में रूपांतरण हो जाना भी लोगों को सांस्कृतिक रूप से बड़ा परेशान करता है। जब दक्षिण भारत का डोसा दिल्ली और पंजाब जाकर पनीर डोसा में तब्दील हो जाता है, तो लोग थोड़ा सा हैरान होते हैं। इसी तरह चीन के बहुत से व्यंजन जब हिंदुस्तान में तरह-तरह से अपने अंदाज में ढाल लिए जाते हैं, तो भी लोग परेशान होते हैं। जब चीन से निकलकर कोरोना वायरस के फैलने की तोहमत लगाई गई, तो सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने मजेदार पोस्टर बनाकर डाले कि हिंदुस्तान में जिस तरह चाउमीन और दूसरे चीनी व्यंजन बदल दिए गए हैं, उसी से गुस्सा होकर चीन ने कोरोना वायरस भेजा है।
अब छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में धार्मिक मेला लगा है तो वहां पहुंचे ‘छत्तीसगढ़’ अखबार के फोटोग्राफर को छत्तीसगढिय़ा मोमोज की दुकान देखने मिली। अब भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर सिक्किम और नेपाल तक का यह व्यंजन छत्तीसगढ़ के अंदाज में ढालकर कैसा बनाया गया है, इसे तो वहां खाने वाले लोग ही बता सकते हैं लेकिन धार्मिक मेले के बीच भी पोस्टर में तो चिकन मोमोज लिखा हुआ दिख रहा है, मौके पर यह है कि नहीं, यह नहीं मालूम। फिलहाल राजधानी रायपुर में कॉलेजों और विश्वविद्यालय के पूरे इलाके को देखें तो मोमोज के दर्जनभर स्टॉल लगे दिखते हैं, यानी यह नेपाली व्यंजन यहां भी लोकप्रिय तो हो ही गया है। जो लोग इसे पहली बार देखते हैं उन्हें यह उबले हुए बिना तले हुए समोसे, या उबली हुई गुझिया जैसा दिखता है।
पत्रकारों को एसपी का साथ...
ग्रामीण अंचलों में प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के साथ सीधे टकराने वाले पत्रकारों के खिलाफ अक्सर बेवजह एफआईआर दर्ज करा दी जाती है। थानेदार भी नेताओं और अधिकारियों के दबाव में देरी नहीं लगाते। कई बार उनकी पोल खोलने वाले पत्रकारों से रंजिश भी होती है इसलिये कार्रवाई में जरूरत से ज्यादा सक्रियता दिखाई जाती है। पर मुंगेली जिले में अब पत्रकार कुछ अधिक खुलकर काम कर सकेंगे। पुलिस अधीक्षक डीआर आचला ने सभी थानेदारों को पत्र लिखकर हिदायत दी है पत्रकारों के खिलाफ शिकायत प्राप्त होने पर सूक्ष्मता के साथ उसकी जांच करें और अपराध दर्ज करने के पहले मेरे संज्ञान में सारी बातें लायें। इसके बगैर एफआईआर बिल्कुल दर्ज नहीं की जाये। एसपी ने यह भी कहा है कि पत्रकारों के माध्यम से ही विभिन्न प्रकार की सूचनायें समय पर समाज को मिलती है। वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ हैं। कई बार वे अपनी व्यवहारिक समस्यायें बता चुके हैं, वरिष्ठ अधिकारियों से भी दिशा निर्देश मिलता रहा है।
उम्मीद करनी चाहिये कि बाकी जिलों में भी ग्रामीण पत्रकारों और अंशकालीन संवाददाताओं की हिफाजत के लिये पुलिस अधिकारी इस तरह की पहल करेंगे।
अपनों के मुकदमों की वापसी
प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के तीन साल बाद चक्काजाम, धरना, प्रदर्शन, पुतला दहन, नगर बंद करने के राजनीतिक मामलों को वापस लिया जा रहा है। बिलासपुर में सबसे ज्यादा 113 नेताओं को इससे राहत मिलने वाली है, हालांकि केस करीब 2200 लोगों के खिलाफ दर्ज हैं। इन्हीं आंदोलनों का असर यह हुआ कि बिलासपुर विधानसभा सीट 20 साल बाद वापस कांग्रेस के हाथ में आ सकी।
राजनांदगांव भी जो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का क्षेत्र है, 78 नेताओं को राहत मिलेगी, जिनके खिलाफ 13 अलग-अलग मामले दर्ज किये गये थे। हालांकि मामलों की वापसी की अनुशंसा करने वाली टीम पर सीधे कोई राजनीतिक दखल नहीं है। कलेक्टर, एसपी और जिला अभियोजन अधिकारी की समिति इस पर निर्णय ले रही है। जाहिर है कि कुछ तो सिफारिशों पर भी ध्यान उनको देना पड़ रहा होगा। इसीलिये कुछ पार्टी कार्यकर्ता, खासकर युवक कांग्रेस से जुड़े नेता आरोप लगा रहे हैं कि मामलों की वापसी में भी कांग्रेस की गुटबाजी दिखाई दे रही है। वरिष्ठ नेताओं के मामले तो वापस लिये जा रहे हैं, पर असल में सामने रहने वाले युवाओं को अधर में छोड़ा जा रहा है। उनका कहना है कि बिना भेदभाव ऐसे सभी मामले वापस होने चाहिये जो गंभीर प्रकृति के नहीं हैं।
वेलेंटाइन डे के नाम पर ठगी
ऑनलाइन ठगी करने वाले मनोविज्ञानी होते हैं। वे किस नाम पर कब लोगों के एकाउंट से रुपये पार किये जा सकते हैं, इसकी समझ रखते हैं। वेलेंटाइन डे के नाम पर कुछ लोगों के मोबाइल फोन और ई-मेल पर मेसैज आने लगे। तमाम लुभावने ऑफर, बहुत सस्ते में विदेश यात्रा का प्रलोभन। थाइलैंड, यूएई से लेकर पेरिस तक। कई लोग ठगे गये, कुछ की रिपोर्ट पुलिस में की गई है। जगदलपुर में कई शिकायतें दर्ज की है। यहां पुलिस ने लोगों को आगाह किया है कि ऐसी धोखाधड़ी से बचें।
वकील की विवादित पोस्ट
रायगढ़ की घटना के बाद राजस्व अधिकारियों और वकीलों के बीच बढ़ती कलह एक जिले से दूसरे जिले, कस्बों और तहसीलों तक पहुंच चुका है। कल कनिष्ठ राजस्व अधिकारियों ने सरकारी दफ्तरों में ताला लगाया और लिपिकों ने भी जगह-जगह धरना प्रदर्शन किया। वकील भी काली पट्टी लगाकर काम पर हैं। इधर स्टेट बार कौंसिल ने भी मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी एक जांच टीम बना दी है और दोषी पाए जाने पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाने की बात कही है। इधर नायब तहसीलदार और वकीलों के बीच विवाद में एक नया मोड़ ले लिया है। सारंगढ़ के किसी वकील की सोशल मीडिया पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर पुलिस में शिकायत कर दी गई है। कथित रूप से इसमें कहा गया है कि तहसीलदार भिखारी हैं और राजस्व अधिकारी दुष्ट। कहा गया कि वकीलों के पास बड़े-बड़े अपराधियों की कुंडली होती है। पुसौर तहसीलदार ने चक्रधर नगर थाने में लिखित आवेदन देकर आईटी एक्ट के तहत सोशल मीडिया पोस्ट करने वाले अधिवक्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की फरियाद की है।
जिस तरह से जंग लड़ी जा रही है उससे ऐसा लगता है कि वकील और राजस्व अधिकारी भले ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं मगर दोनों काफी वक्त से एक दूसरे से असहज हैं, अब मौका मिला है।
एक खास सरकारी स्कूल
सुदूर बस्तर के तिरिया गांव का हायर सेकेंडरी स्कूल कई मामलों में असाधारण है। यहां एक हॉल में सुरुचिपूर्ण, पर्यावरण अनुकूल बांस का फर्नीचर है। कमरे में पौधे भी दिखाई दे रहे हैं। दीवार पर राजपक्षी पहाड़ी मैना, बाइसन, आदिवासी नृत्य के दृश्य भी उकेरे गये हैं। दोपहर की लंच के बाद यहां छात्रों की ‘संसद’ बैठती है, जिसमें सभी मंत्री होते हैं। इन छात्रों की संख्या 18 होती है, जो अपने कक्षाओं से ही चुने गये हैं। प्रिंसिपल या कोई शिक्षक इस संसद की अध्यक्षता करते हैं। वे स्वास्थ्य, स्वच्छता, खेल, खेती और पढ़ाई पर अपने किये गये कार्यों की रिपोर्ट देते हैं और आगे की योजनायें बनाते हैं। यह सब सरकारी स्कूल में हो रहा है, जहां इस गतिविधि के लिये अलग से कोई फंड भी नहीं है।
वकील की विवादित पोस्ट
रायगढ़ की घटना के बाद राजस्व अधिकारियों और वकीलों के बीच बढ़ती कलह एक जिले से दूसरे जिले, कस्बों और तहसीलों तक पहुंच चुका है। कल कनिष्ठ राजस्व अधिकारियों ने सरकारी दफ्तरों में ताला लगाया और लिपिकों ने भी जगह-जगह धरना प्रदर्शन किया। वकील भी काली पट्टी लगाकर काम पर हैं। इधर स्टेट बार कौंसिल ने भी मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी एक जांच टीम बना दी है और दोषी पाए जाने पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाने की बात कही है। इधर नायब तहसीलदार और वकीलों के बीच विवाद में एक नया मोड़ ले लिया है। सारंगढ़ के किसी वकील की सोशल मीडिया पर राजस्व अधिकारियों के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर पुलिस में शिकायत कर दी गई है। कथित रूप से इसमें कहा गया है कि तहसीलदार भिखारी हैं और राजस्व अधिकारी दुष्ट। कहा गया कि वकीलों के पास बड़े-बड़े अपराधियों की कुंडली होती है। पुसौर तहसीलदार ने चक्रधर नगर थाने में लिखित आवेदन देकर आईटी एक्ट के तहत सोशल मीडिया पोस्ट करने वाले अधिवक्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की फरियाद की है।
जिस तरह से जंग लड़ी जा रही है उससे ऐसा लगता है कि वकील और राजस्व अधिकारी भले ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं मगर दोनों काफी वक्त से एक दूसरे से असहज हैं, अब मौका मिला है।
एक और धर्म-संसद...
छत्तीसगढ़ में एक और धर्म-संसद शांतिपूर्वक निपट गया। हरिद्वार और रायपुर में रखे गए सम्मेलनों में अल्पसंख्यकों और महात्मा गांधी के खिलाफ उगले गए भाषणों की वजह से काफी बवाल हुआ। आनाकानी के बाद उत्तराखंड पुलिस ने हरिद्वार में विवादित भाषण देने वाले कुछ संतों और वक्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली थी। रायपुर के धर्म संसद में गांधीजी के खिलाफ बातें और नाथूराम गोडसे का अभिनंदन करने वाले कालीचरण के खिलाफ देशद्रोह का अपराध दर्ज कर उनको गिरफ्तार किया गया। इस माहौल के बीच 13 फरवरी को बिलासपुर में गोवर्धन मठ पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद के पहुंचने पर हिंदू-राष्ट्र संगोष्ठी रखने की घोषणा की गई, तो लोगों के कान खड़े हो गए। कांग्रेस विधायक शैलेश पांडे का नाम देखकर इशारा किया गया कि देखिए इस आयोजन में भी रायपुर की तरह कांग्रेसी आगे आ गए हैं।
पर, यह हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी हरिद्वार और रायपुर से बिल्कुल अलग थी। यह खुला मंच नहीं था। निश्चलानंद जब भी छत्तीसगढ़ या देश के दूसरे भागों के दौरे पर होते हैं, वह इस तरह की संगोष्ठी, सभा, चर्चा करते ही हैं। अपने भाषणों में वे सनातन धर्म वेद पुराण के उद्देश्यों और मनु संहिता की वे पैरवी करते आए हैं। हिंदू राष्ट्र का उनका अभियान राजनैतिक आंदोलन है, ऐसा भी नहीं देखा गया। न केवल विधायक पांडे बल्कि कई मंत्री, पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री उनसे जुड़े हैं। बिलासपुर के कार्यक्रम में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने भी भाग लिया। कांग्रेस की एक अन्य विधायक रश्मि सिंह ठाकुर तथा अपेक्स बैंक अध्यक्ष बैजनाथ चंद्राकर भी शामिल थे। विधायक शैलेंद्र पांडे का नाम लेकर इस संगोष्ठी पर सवाल खड़ा किया गया, पर वे तो उत्तराखंड और यूपी में चुनाव प्रचार के कारण भाग ही नहीं ले पाये। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल भी इस कार्यक्रम में नहीं दिखे, जिन पर अपनी नाराजगी चुनाव से पहले निश्चलानंद दिखा चुके हैं। निश्चलानंद इस समय वे छत्तीसगढ़ के 15 दिन के प्रवास पर हैं। कांग्रेस-भाजपा दोनों दल के नेता उनके पास पहुंच रहे हैं।
सीजीपीएससी परीक्षा थी या यूपीएससी?
रविवार को छत्तीसगढ़ के 250 से अधिक परीक्षा केंद्रों में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा रखी गई । दो पालियों की परीक्षा देकर केंद्रों से निकले ज्यादातर अभ्यर्थी इस बात से मायूस नजर आए कि इस बार सवाल बड़े कठिन थे। परंपरा से हटकर छत्तीसगढ़ी में हाना और जनउला पूछा गया। छत्तीसगढ़ी साहित्य की कुछ पंक्तियों का उल्लेख कर लेखकों का नाम पूछा गया। चांग देवी का मंदिर कहां है, लाल बंगला किस जनजाति में प्रचलित है, भारत और पुर्तगाल के बीच समुद्री विरासत को लेकर क्या समझौता हुआ था, दुनिया की नदियों की लंबाई के आधार पर क्रम, देश के बड़े बांधों के निर्माण का क्रम। ये कुछ सवाल यूपीएससी स्तर का दिखाई दे रहे थे। बात यह है कि सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र के माध्यम से ही मेरिट तय होना है। दूसरे प्रश्न पत्र सी-सेट में 33 प्रतिशत अंक काफी है। यदि सी-सेट बहुत अच्छा भी बना है और प्रारंभिक परीक्षा में न्यूनतम अंक नहीं मिला तो परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा से बाहर कर दिया जाएगा।
अब तक सीजीपीएससी की जितनी भी परीक्षायें हुई हैं उन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी जाती रही है। सन् 2003 का मामला भी अभी तक कोर्ट में ही लटका हुआ है। शायद कठिन प्रश्न पत्र लाकर सीजीपीएससी कोई कोशिश कर रही हो, अपनी छवि ठीक करने की।
तगड़े झटके के लिये रहें तैयार..
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल डीजल के दामों में फिर आग लग गई है। वर्षों बाद इस समय कच्चे तेल का दाम 87 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया है। इसके पहले जनवरी 2014 में कच्चे तेल के दाम ने इस कीमत को पार किया था। इसके बावजूद ज्यादातर राज्यों में पेट्रोल डीजल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं। पिछले 75 दिनों से कीमत लगभग स्थिर है। जानकार कहते हैं कि यदि ढाई माह पहले के अनुपात में आज डीजल पेट्रोल के दाम तय करें तो यह 125 से 135 रुपये प्रति लीटर में बिकना चाहिये। पर, यूपी सहित 5 राज्यों में हो रहे चुनाव ने इस वृद्धि को रोक रखा है।
जब भी केंद्र सरकार से पेट्रोलियम के दामों पर सवाल उठाया जाता है तो वह कहती है कि पेट्रोलियम कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव के हिसाब से इसका दर घटाती-बढ़ाती है। सरकार के इस में कोई नियंत्रण नहीं है लेकिन जब-जब चुनाव आते हैं यह साफ हो जाता है कि यदि केंद्र सरकार इशारा दे तो पेट्रोलियम कंपनियां घाटे में रहने के बाद भी दाम नहीं बढ़ातीं। उसकी भरपाई चुनाव के बाद करती है। 10 मार्च को जब मतदान के सभी चरणों के मतदान पूरे हो जाएंगे तब एक बड़े झटके के लिए फिर हमें तैयार रहना पड़ेगा।
यह छोटी फिक्र की बात नहीं
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में कल दिन दहाड़े व्यस्त बाजार के बीच जिस तरह एक ट्रैफिक सिपाही को तीन मोटरसाइकिल सवारों ने पीटा और उस पर कूद-कूदकर हमला किया, उसे चाकू दिखाया, यह बात तो सदमा पहुंचाने वाली है ही, लेकिन इससे भी अधिक सदमा पहुंचाने वाली बात यह है कि इस हमले के दौरान आसपास से दूसरे लोग आते जाते रहे, इस हमले को देखते रहे, अपनी गाडिय़ां रोक कर नजारा देखते रहे, लेकिन किसी एक ने भी इस सिपाही की मदद करने की कोशिश नहीं की। गुंडे-मवाली जो ऐसा हमला करते हैं, वे तो पकड़ा गए, लेकिन समाज की लापरवाही और बेफिक्री, उसके पीछे की वजह पकड़ में आना अभी बाकी है। कौन सी वजह है कि ट्रैफिक सिपाही के साथ लोगों की हमदर्दी नहीं थी, या फिर गुंडों का मुकाबला करने की ताकत नहीं थी, या फिर इनका पीछा करके कुछ लोग यही पता लगा लेते कि मारपीट करके भागने वाले ये लोग कौन हैं?
समाज और पुलिस इन दोनों को यह सोचना चाहिए कि इनके बीच इतना बड़ा फासला कैसे है? क्या पुलिस के साथ लोगों की हमदर्दी खत्म हो चुकी है, या फिर लोगों को यह भरोसा ही नहीं है कि गुंडों को रोकने के बाद वे खुद जिंदा रह पाएंगे? यह एक बहुत फिक्र की बात इसलिए है कि न तो हर पुलिस जवान को हथियारबंद किया जा सकता है, और न ही हथियार इस किस्म की मारपीट में किसी को बचा सकते हैं। बचाव तो सिर्फ समाज की भागीदारी से हो सकता है वरना एक अकेला पुलिस जवान कितने लोगों से निपट सकता है, कितने लोगों की मनमानी, गुंडागर्दी को रोक सकता है? इसलिए जनता का भरोसा कैसे जीता जाए और जनता का अपने-आप पर भरोसा कैसे कायम हो सके यह सोचने की जरूरत है, और यह छोटी फिक्र की बात नहीं है।
प्रशासन और वकीलों में तनातनी
रायगढ़ के राजस्व न्यायालय में मारपीट की घटना से उपजी रस्साकशी बढ़ती ही जा रही है। राजस्व अधिकारी और वकील दोनों ही पक्ष अपनी बातों पर अड़े हैं। एडीएम का वकीलों से कहना है कि जिन अधिवक्ताओं ने मारपीट की-उनका सरेंडर करवा दीजिए, मामला खत्म हो जाएगा। पक्षकारों से वसूली वकील हमारे नाम से कर लेते हैं और पक्ष में फैसला नहीं होने पर हम पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा देते हैं। दूसरी ओर वकीलों का कहना है कि हमारी शिकायत भी पुलिस लिखे। वकीलों के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट की जो धारा लगाई गई है वह वापस ली जाए। लिपिक के खिलाफ पहले से ही शिकायत है। नायब तहसीलदार और लिपिक दोनों को हटायें तब आगे बात होगी।
थोड़े दिन पहले कोरबा कलेक्टर के साथ भी वहां के वकीलों की तनातनी हुई थी लेकिन मामले ने तूल नहीं पकड़ा। कलेक्टर ने वकीलों को बुलाकर खेद व्यक्त कर दिया और गलतफहमी हो जाने की बात कही। पर रायगढ़ के मामले में कनिष्ठ राजस्व अधिकारी इस मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं। यहां लिपिक के साथ भी मारपीट का आरोप है। प्रदेश भर के कनिष्ठ राजस्व अधिकारी और लिपिक कर्मचारी संगठन दोनों इस मामले में कूद पड़े हैं। प्रदेश के दूसरे अधिवक्ता संगठनों का अभी ऐसा दबाव नहीं बना है। रायगढ़ के वकीलों ने मांगें नहीं माने जाने तक कोर्ट का काम बंद रखने की घोषणा की है। लंबा खिंचा तो वकीलों के पेशे पर असर पड़ सकता है, पर अधिकारी-कर्मचारियों का क्या है, उनका तो वेतन निकलता ही रहेगा।
रेलवे कोच रेस्टॉरेंट
पश्चिम मध्य रेलवे के जबलपुर मंडल में 5 और भोपाल मंडल में 2 रेस्टॉरेंट कोच तैयार कर लिये गये हैं। भारतीय रेल ने अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिये यह नया प्रयोग किया है। जो कोच अनुपयोगी हो चुके हैं, उन्हें स्टेशन की किसी सुविधाजनक जगह पर खड़ा कर रेस्टॉरेंट की तरह तैयार किया जा रहा है। बिलासपुर रेलवे जोन के अधिकारियों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर और नागपुर मंडल में भी यह प्रयोग लागू होगा। यह तस्वीर जबलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 8 पर बनाये गये रेस्टारेंट की है।
एंग्लो इंडियन विधायक में पेंच
सरकार के अंदरखाने में एंग्लो इंडियन विधायक के मनोनयन पर मंथन चल रहा है। वैसे तो विधानसभा के इसी सत्र में विधायक के मनोनयन की कोशिश थी, लेकिन अब इसमें पेंच भी है। केंद्र सरकार ने दिसंबर-2020 में कानून बनाकर लोकसभा, और विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन विधायक के मनोनयन की व्यवस्था खत्म कर दी है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में विधायक का मनोनयन हो पाएगा, अथवा नहीं। विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा का मानना है कि छत्तीसगढ़ में एंग्लो इंडियन विधायक के मनोनयन में कोई दिक्कत नहीं है। यदि राज्यपाल को ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में एंग्लो इंडियन सदस्य का प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वह सरकार की सिफारिश पर एक विधायक मनोनीत कर सकती हैं। केंद्र का कानून भी मनोनयन में आड़े नहीं आएगा, क्योंकि कानून छत्तीसगढ़ की इस बार की विधानसभा के गठन के बाद बना है। वर्मा का कहना है कि विधायक का मनोनयन विधानसभा के इसी कार्यकाल के लिए है। बाकी विधायकों के साथ-साथ एंग्लो इंडियन विधायक का भी कार्यकाल खत्म हो जाएगा। दूसरी तरफ, एंग्लो इंडियन विधायक को मतदान का भी अधिकार होता है। चूंकि कांग्रेस के पास वैसे ही दो तिहाई बहुमत है। ऐसे में एंग्लो इंडियन विधायक की नियुक्ति पर कोई रूचि नहीं ली गई। अब विधायक के कुछ दावेदारों के बायोडाटा भी सीएम तक पहुंच चुके हैं। सरकार क्या फैसला लेती है, यह देखना है।
5 डे वीक से यह नुकसान भी...
सरकारी दफ्तर बंद, यानी गांव से कस्बों से पहुंचने वाली जिला मुख्यालयों की भीड़ में कमी। सप्ताह में 5 दिन की वर्किंग से जिन लोगों को बड़ा नुकसान हुआ है उनमें ऑटो चालक भी शामिल हैं। बहुत से लोग स्टेशन और बस स्टैंड से अपने काम के लिए ऑटो रिक्शा से ही कलेक्ट्रेट और दूसरे सरकारी दफ्तर पहुंचते हैं। कई सरकारी कर्मचारी भी ऑटो रिक्शा का रोजाना अप-डाउन के लिये इस्तेमाल करते हैं। प्रदेश सरकार ने जब से 5 दिन की वर्किंग डे शुरू की है इनकी कमाई पर असर पड़ा है। कोरोना में किस्त नहीं चुका पाने पर दर्जनों ऑटो चालकों को अपनी वाहन बेचकर दूसरा काम-धंधा पकडऩा पड़ गया था। इसके बाद डीजल के दाम बढ़े तो उन्हें फिर नुकसान हुआ, क्योंकि किराया प्रतिस्पर्धा के चलते नहीं बढ़ा पाये। सुबह 10 बजे दफ्तर नहीं पहुंचने को लेकर के कई जिलों में ताबड़तोड़ कार्रवाई चल रही है। कारण बताओ नोटिस दी जा रही है और वेतन रोके जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में ऑटोचालक ही नहीं बल्कि सरकारी दफ्तरों के भरोसे कैंटीन और स्टेशनरी का काम करने वाले भी मना रहे हैं कि यह नया प्रयोग विफल हो जाये और दफ्तर पहले के जैसे खुलें।
ट्रैफिक कंट्रोल के लिये सडक़ पर डांस
करीब 7 साल पहले इंदौर के ट्रैफिक पुलिस जवान रंजीत सिंह का वीडियो सामने आया था। उनके वीडियो एक करोड़ से अधिक बार देखे गये हैं। देखने वालों ने उनके काम के प्रति जज्बे की बड़ी तारीफ की और उन्हें माइकल जैक्सन कहकर भी पुकारा। अब ऐसा ही कुछ जशपुर जिले के ट्रैफिक जवान पद्मन बरेठ के बारे में कहा जा रहा है। जिला पुलिस से ट्रैफिक में इनको आये 4-6 दिन ही हुए हैं लेकिन चौराहे पर यातायात संभालने की इनकी विशेष स्टाइल ने लोगों का ध्यान खींचा है। इनके भी कई वीडियो सोशल मीडिया पर चल निकले हैं। अमूमन ट्रैफिक जवान के संकेतों की परवाह किए बगैर लोग चौक-चौराहे से सरपट निकलने की कोशिश करते हैं या फिर जाम में फंस जाने पर किसी कोने में मोबाइल फोन पर बतियाते ट्रैफिक जवानों पर गुस्सा करते हैं। पर, पद्मन का डांस करते हुए ट्रैफिक कंट्रोल करना राहगीरों को पसंद आ रहा है। वैसे, जशपुर में कलेक्टोरेट वाली लाइन को छोड़ दें तो शहर के भीतर ट्रैफिक दबाव ज्यादा नहीं है। अफसरों के ध्यान में बात आई तो शायद इनकी सेवायें राजधानी जैसी जगह पर ली जाये, जहां लोगों में खासकर दुपहिया सवारों में ट्रैफिक रूल को तोडऩे की घटनायें ज्यादा दिखाई देती है। पद्मन बरेठ लोगों के लिये प्रेरणा बन सकते हैं कि जो काम मिला है उसे मन से करें। उसमें उत्साह और रूचि दिखायें तो थकान कम लगेगी।
ऑफलाइन एग्जाम की घबराहट
प्रदेश के कई स्थानों पर एनएसयूआई और दूसरे छात्र संगठन मांग उठा रहे हैं कि स्कूली परीक्षाओं को ऑफलाइन के बजाय ऑनलाइन ली जाये। जब से कोविड-19 ने पैर पसारे हैं, ज्यादातर पढ़ाई और परीक्षायें ऑनलाइन ही हुईं। इस बार पढ़ाई तो ऑनलाइन हुई है पर परीक्षा के वक्त छात्र ऑफलाइन हो चुके हैं। जब पढ़ाई ऑनलाइन हुई है तो परीक्षा भी ऑनलाइन ही होनी चाहिये। इन्होंने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजकर इस पर दखल देने की मांग भी की है। छात्रों की चिंता अपनी जगह पर जायज हो सकती है लेकिन यह भी सच्चाई है कि ऑनलाइन परीक्षाओं में भरपूर सहूलियत मिली। स्कूल-कॉलेज के ऐसे कई स्टूडेंट जो वर्षों बोर्ड, इंजीनियरिंग आदि की परीक्षायें पास नहीं कर पाये, वे ऑनलाइन परीक्षा में बरती गई रियायत के चलते सर्टिफिकेट, डिग्री पाने में कामयाब हो गये। शिक्षक, पालक, हर कोई मान रहा है कि ऑनलाइन पढ़ाई ऑफलाइन का विकल्प नहीं है, यह सिर्फ विशेष परिस्थितियों के कारण रखा गया विकल्प है। ऐसे में एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि ऑफलाइन परीक्षा को लेकर छात्रों में घबराहट तो पैदा नहीं हो रही है? ऑनलाइन परीक्षा की मांग इस वजह से तो नहीं? शिक्षा विभाग के अधिकारियों और मनोवैज्ञानिकों को इनके साथ काउंसलिंग भी करनी चाहिये।
दलहन की दाल नहीं गल रही..
दालों में प्रोटीन, फाइबर और कुछ महत्वपूर्ण खनिज तत्व पाये जाते हैं, जो अच्छी सेहत के लिये जरूरी है। चिंता की बात यह है कि इसकी खपत लगातार घट रही है। पहले जहां एक आदमी औसत 70 ग्राम दाल प्रतिदिन खाता था, वह अब घटकर 40 ग्राम रह गया है। इसके चलते दलहन फसलों का रकबा केवल छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश में घट रहा है। विश्व दलहन दिवस 10 फरवरी को मनाया गया । बिलासपुर में इस मौके पर हुई एक संगोष्ठी में कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि केवल उत्पादन ही नहीं, खपत बढ़ाना भी जरूरी है। छत्तीसगढ़ सरकार ने धान की बजाय दूसरी फसल लेने के लिये किसानों को प्रोत्साहित करने का निर्णय पिछले साल लिया था। पर दलहन फसलों को लाभकारी कैसे बनाया जाये, उत्पादन की लागत कैसे घटे इस पर किसानों को कोई सलाह नहीं मिल रही है। वैज्ञानिकों के ज्यादातर शोध-कार्य उनके कॉलेज के खेतों से बाहर नहीं निकल पाते। किसान कुछ अलग पैदावार ले भी ले, तो सही कीमत देने वाला बाजार मिलता नहीं है। इसलिये घूम-फिरकर वे धान की तरफ ही लौट जाते हैं।
हम तो चले वोट देने...
इन दिनों यदि आपके शहर में सडक़ों पर चाट, फल, मूंगफली बेचने वाले ठेले कम दिख रहे हों तो हैरान होने की जरूरत नहीं। छत्तीसगढ़ में बहुत से लोग यूपी से आकर ये छोटे-छोटे व्यवसाय कर रहे हैं। जिन लोगों का अच्छा बिजनेस और अच्छी नौकरी है, उनमें भी यूपी से आये कई परिवार हैं, पर उनकी अनुपस्थिति का आपको पता नहीं चलेगा। ये ऐसे लोग हैं, जिनका नाम यूपी की मतदाता सूची में जुड़ा हुआ है, जो मताधिकार का इस्तेमाल करने अपने गांव, शहर जा रहे हैं। एक अखबार की खबर है कि खाड़ी के देशों से आने वाली फ्लाइट्स इन दिनों फुल चल रही है। यानि जो दूसरे देशों में काम-धंधे के लिये गये हैं वे भी मतदान के लिये आ रहे हैं। अपने देश में 15 राज्यों में यूपी के लोग फैले हुए हैं, जिनका स्थायी निवास, आधार कार्ड और मतदाता सूची में नाम यूपी का है। वे भी लौट रहे हैं। ऐसी जागरूकता के बावजूद आंकड़ा बताता है कि पहले चरण में मतदान का प्रतिशत 61 प्रतिशत से कुछ ही ज्यादा रहा।
विपक्ष के बिना संघर्ष..
जगदलपुर के दो-तीन वार्डों में रेलवे की जमीन पर बसे करीब पौने तीन सौ अवैध कब्जाधारियों को बीते कई दिनों से भाजपा का भरपूर साथ मिला। वे कांग्रेस पार्षद कोमल सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग पर फ्रंट पर रहे। रेलवे ने इन्हें अतिक्रमण हटाने की नोटिस दी, तो सडक़ पर आकर गिरफ्तारी भी दी। पर इन पीडि़तों को शायद लगने लगा कि राजनीति घुस जाने के कारण उनकी समस्या को प्रशासन सुन नहीं रहा है, उल्टे नुकसान हो रहा है। इसीलिये पीडि़तों ने खासकर महिलाओं ने भाजपा को आंदोलन से अलग कर दिया। उन्होंने कल कलेक्टर रजत बंसल से मुलाकात की तो उनके साथ कोई भाजपा नेता नहीं था। उन्होंने अपनी व्यथा बताई। कहा- आवास योजना में घर मिलने की उम्मीद में उन्होंने रकम गंवा डाली और अब रेलवे उनको बेदखल करने की नोटिस दे रहा है। ऐसे में तो वे खुले आसमान के नीचे आ जायेंगे। पीडि़तों को उन्होंने आश्वस्त किया है कि उन्हें बेघरबार नहीं होने दिया जायेगा। शासन की योजनाओं में शामिल कर लाभ दिलाया जायेगा। रेलवे प्रशासन से भी बात करके जगह खाली करने के लिये मोहलत मांगी जायेगी। कलेक्टर ने जिस गंभीरता के साथ पीडि़तों की बात सुनी है, लगता है कि दो-चार दिन के भीतर पीडि़तों के हक में कोई रास्ता निकाला जायेगा। वैसे भी इस मामले में राज्यपाल अनुसूईया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दोनों ने कलेक्टर को फोन कर दिशा-निर्देश भी दिये हैं।
ऑनलाइन ट्रांसफर पोस्टिंग
स्कूल शिक्षा विभाग ने अब ट्रांसफर, पोस्टिंग के लिये ऑनलाइन आवेदन मंगाने का निर्णय लिया है। रिलीव और ज्वाइन करने के ऑर्डर भी ऑनलाइन ही जारी होंगे। शिक्षकों को शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। कुछ दिन पहले एक शिक्षा अधिकारी ने एक लंबी चौड़ी डायरी में ट्रांसफर, पोस्टिंग में करोड़ों रुपये के लेन-देन की डायरी लीक थी। इसमें सीधे सीधे मंत्री डॉ. प्रेम साय सिंह और मैडम का नाम भी लिखा गया था। पुलिस जांच में इसे फर्जी पाया गया। मगर यह सच है कि इसके पहले शिक्षकों के ट्रांसफर में जनप्रतिनिधियों की बात नहीं सुने जाने की शिकायत कुछ संसदीय सचिवों, विधायकों ने मुख्यमंत्री से फिर बाद में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से कर दी थी। हाल ही में एक नये-नये शिक्षक को ट्रांसफर के नाम पर रुपये मांगने का ऑडियो वायरल होने पर गिरफ्तार भी किया गया। ऑनलाइन आवेदन मंगाने, आदेश जारी करने का तरीका विभाग में भ्रष्टाचार को रोकने में मददगार होगा या इसका भी कोई तोड़ निकाल लिया जायेगा? वैसे शिक्षक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है।
सतनामी समाज के धर्म गुरू बालदास राजनीतिक ओहदे की उम्मीद लिए पिछले कुछ दिनों से सक्रिय हैं। बाबा गुरू घासीदास के कुनबे के बाबा बालदास गुजरे दिनों प्रदेश सरकार के एक ताकतवर मंत्री से सरकार में खाली पड़े कुछ पदों पर मनोनयन के लिए मदद की गुजारिश करने मिले। बताते हैं कि गुरु बालदास ने मंत्री से राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी से व्यक्तिगत मुलाकात के लिए मदद भी मांगी। प्रदेश सरकार के मंत्री ने समझदारी के साथ गुरु बालदास को मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी इच्छा से जाहिर करने की सलाह दी। गांधी से भेंट के लिए मुख्यमंत्री के जरिए समय लेने को मंत्री से सटीक जरिया बताया। वैसे मंत्री ने मुख्यमंत्री से कभी भी समय दिलाने में सहायता करने का भरोसा दिया। बाबा घासीदास के कर्मस्थली माने जाने वाले भंडारपुरी के रहने वाले गुरु बालदास का सतनामी समाज में धार्मिक खास प्रभाव है। सुनते हैं कि गुरु बालदास की लालबत्ती में सवारी करने की दिली ख्वाहिश भी है । मंत्री से उनकी पहले भी मेल-मुलाकात हो चुकी है। मुख्यमंत्री के दायरे से जुड़े मामले के कारण मंत्री ने बाबा को सीधे उनसे भेंट करने की नसीहत दी। बाबा की पद के लिए सक्रियता को राज्य में दो साल बाद होने वाले विस चुनाव से भी जोड़ा जा रहा है।
मुफ्त की चाह ने बहुत रूलाया है...
इंटरनेट पर और मोबाइल फोन पर लोगों से धोखाधड़ी इस बड़े पैमाने पर जारी है कि रोजाना इसकी खबरें सुनने के बाद भी लोग धोखा खाते ही हैं, मानो धोखा खाना उनका पसंदीदा शगल हो। अब लोगों के पास थोक में एसएमएस भेजने वाले पतों से संदेश आता है कि उनका दो लाख रूपए का लोन एप्लीकेशन मंजूर हो गया है, और उसे कन्फर्म करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। इसके साथ ही एक लिंक रहता है जहां पर जाते ही जालसाजी और धोखाधड़ी शुरू हो जाती है। भारत सरकार अगर चाहे तो बड़ी आसानी से निगरानी रख सकती है कि लोगों को कर्ज देने या नौकरी देने के झांसे वाले ऐसे संदेश कहां से निकलते हैं। क्योंकि ऐसे बल्क एसएमएस भेजने वाली एजेंसियां रहती हैं, जो कि थोक में यही संदेश अनगिनत लोगों को भेज रही है, तो वह सही तो हो नहीं सकता। पुलिस भी रात-दिन अपनी ओर से लोगों को बचाने की कोशिश करती है लेकिन लोग हैं कि उन्हें मुफ्त का पैसा धोखे की तरफ ही खींच ही लेता है।
योगी का वीडियो और छत्तीसगढ़
यूपी में पहले चरण के मतदान के पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भाजपा की कड़ी मेहनत के बावजूद सत्ता हासिल नहीं होने वाले पश्चिम बंगाल का जिक्र किया, केरल जहां सीटों के लाले पड़े हैं, उसका भी जिक्र आया और जम्मू कश्मीर का भी, जहां धारा 370 खत्म किये जाने के बाद अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र का ही शासन चल रहा है। उन्होंने करीब 6 मिनट के वीडियो संदेश में कहा कि मतदाताओं ने अगर यूपी में भाजपा को दुबारा नहीं चुना तो पांच साल में किये गये कामों पर पानी फिर जायेगा। केरल और पश्चिम बंगाल से इस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। इन तीन राज्यों में क्या कमी है, इसका जिक्र नहीं किया। केरल सीएम पी. विजयन ने ट्वीट किया अगर यूपी में योगी की सरकार बदल जाती है तो केरल की तरह अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के काम होंगे। धर्म और जाति के नाम पर हत्यायें नहीं होंगीं। बंगाल तृणमूल महासचिव कुणाल घोष ने कहा है कि महामारी प्रबंधन में विफल यूपी सरकार ने लाशों को गंगा में फेंक दिया जबकि पश्चिम बंगाल में दूसरे राज्यों से आने वालों का भी अंतिम संस्कार होता रहा। सोशल मीडिया पर कई आंकड़े देकर बताये गये हैं कि यूपी तरक्की के पैमाने पर सिर्फ बिहार, झारखंड, असम से आगे है। सकल विकास लक्ष्य में केरल शीर्ष है जबकि यूपी नीचे से चौथे स्थान पर है।
सन् 2018 में एक साथ भाजपा ने तीन राज्यों की सत्ता गवांई। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। मध्यप्रदेश में विधायकों के पाला बदलने के बाद भाजपा सरकार फिर बन गई। राजस्थान में कोशिश हुई लेकिन तपस्या में कमी रह गई। छत्तीसगढ़ में तो इतनी बड़ी हार हुई है कि दूर-दूर तक सरकार पलटने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है। छत्तीसगढ़ में भारी बहुमत से हुए सत्ता परिवर्तन के बावजूद यूपी सीएम ने इस राज्य का जिक्र शायद इसलिये नहीं किया कि यहां मतदाताओं ने किसानों, मजदूरों के लिये किये गये वायदों पर भरोसा करते हुए वोट दिया। जिन तीन राज्यों का योगी ने जिक्र किया है, वहां भाजपा की हिंदुत्व की अवधारणा को मतदाताओं ने नकारा है। मोदी और हिंदुत्व पर आकर्षण छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बना हुआ है। विधानसभा चुनाव के बाद हुए लोकसभा चुनाव में यह दिख भी गया।
मुफ्त सौगातों के लिये तैयार रहें..
सुप्रीम कोर्ट की तल्खी के बावजूद मतदाताओं को लुभाने के लिये मुफ्त योजनाओं पर यूपी की प्राय: सभी प्रमुख दलों ने फोकस किया। छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना, बिजली बिल हाफ और कर्ज माफी का तो बुधवार को प्रियंका गांधी वाड्रा ने उन्नति विधान घोषणा पत्र जारी करते हुए दो-तीन बार उल्लेख किया और इन योजनाओं को वहां लागू करने की बात की। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने कॉलेज पास करने वाली लड़कियों ने स्कूटी फ्री देने की घोषणा की है। इस घोषणा से प्रदेश के राजस्व पर कितना बोझ पड़ेगा, यह चुनाव जीतने वालों ने सोचा नहीं होगा पर वोट तो जरूर मिल जायेंगे। तमिलनाडु में स्व. जयललिता ने मुफ्त रंगीन टीवी घरों में देने का अपने वक्त में वायदा किया था और उसे निभाया भी। अब छत्तीसगढ़ की जनता को इंतजार करना चाहिये। स्कूटी खरीदने की सोच रहे हों, तो दो साल इंतजार कर लें।
और हां, भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर जीत गये और उनको मंत्रिमंडल में जगह मिली तो बाइक में तीन सवारी पर चालान नहीं कटेगा। हर चुनाव में लोग तरह-तरह के जुर्म से माफी का वायदा मांग सकते हैं।
ऐसे निकला फ्लाइट से उडऩे का रास्ता
एक सज्जन को पूर्वोत्तर के राज्य से निमंत्रण मिला। घूमने-फिरने का, फ्लाइट टिकट भी भेज दी गई। पर उड़ान से पहले जरूरी था कि 72 घंटे पहले तक का आरटीपीसीआर टेस्ट निगेटिव हो। चेक कराया, रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। दिक्कत में पड़ गये। कोरोना तो उनको एक माह पहले हुआ था, अब तो भले-चंगे थे, फिर ये रिपोर्ट कैसे? लैब इंचार्ज से उलझ पड़े। उन्होंने बताया कि आपके नाम-पते की इंट्री के साथ ही लैब पहचान कर लेती है कि पहले कोरोना हुआ था या नहीं। डेड सेल्स भी हों तो रिपोर्ट पॉजिटिव आयेगी, भले ही आपको लक्षण महसूस न हों। सज्जन समझ गये कि यह उसी लैब में चेक कराने का नतीजा है। उन्होंने दूसरे प्राइवेट लैब में जाकर टेस्ट कराया, वहां उसी दिन रिपोर्ट निगेटिव आ गई। यानि हवाई उड़ान के लिये तैयार, टिकट कैंसिल नहीं करानी पड़ी। वैसे स्वास्थ्य विभाग ने इस तरह का फर्जीवाड़ा करने से मना कर रखा है।
यूपी चुनाव के बाद बड़ा बदलाव
यूपी चुनाव के बाद भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी अब अपना ज्यादा समय आंध्रप्रदेश में देना चाहती हैं। यही वजह है कि उनकी जगह किसी अन्य राष्ट्रीय पदाधिकारी को जिम्मेदारी दी जा सकती है। पार्टी के भीतर प्रदेश अध्यक्ष, और नेता प्रतिपक्ष को भी बदलने की दबी जुबान से मांग भी हो रही है। कुछ नेता गुपचुप तौर पर अभियान भी चला रहे हैं, लेकिन ऐसा होगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। पार्टी के लोग कह रहे हैं, कि यूपी चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ भाजपा में कुछ नया जरूर होगा। मगर वाकई ऐसा होगा, यह तो देखना होगा।
कारोबारी नीलामी
राज्य के एक पूर्व मंत्री के कारोबारी बेटे की प्रॉपर्टी को कर्ज नहीं चुका पाने के कारण बैंक नीलाम कर रही है। कुछ महीना पहले कारोबारी की वीआईपी रोड स्थित निर्माणाधीन होटल को नीलाम किया गया था। सुनते हैं कि बैंक ने होटल के लिए नीलामी राशि 43 करोड़ रखी थी, लेकिन 31 करोड़ में ही बिक पाई। निर्माणाधीन होटल को भोपाल के एक विज्ञापन एजेंसी के संचालकों ने खरीदा है। अब कारोबारी की लाभांडी स्थित एक बड़ी प्रॉपर्टी को बैंक नीलाम करने जा रही है। ऐसा नहीं है कि कारोबारी कोई गंभीर वित्तीय दिक्कत में है। चर्चा है कि बैंक से भारी-भरकम कर्ज लेकर कारोबारी ने दूसरी जगह निवेश कर रखा है, और जितना बैंकों से कर्ज लिया है, प्रॉपर्टी की कीमत उससे कम ही है।
जंगल में मंगल
आईएफएस के 88 बैच के अफसर एसएस बजाज, और सुधीर अग्रवाल प्रमोट होकर पीसीसीएफ बन गए हैं। दोनों अफसरों की साख बहुत अच्छी है। बजाज जून में रिटायर हो जाएंगे। उनके रिटायरमेंट के बाद जयसिंह मस्के पीसीसीएफ प्रमोट हो जाएंगे। इसके बाद इसी बैच के यूनुस अली, और आशीष भट्ट का नंबर आता है। यूनुस अली अप्रैल में रिटायर हो रहे हैं। जबकि आशीष भट्ट का अगले साल रिटायरमेंट है। दो साल पहले 85 बैच के पीसी मिश्रा के बैच के सभी अफसर पीसीसीएफ बन गए थे, लेकिन पद न होने के कारण मिश्रा पीसीसीएफ होने से रह गए। यूनुस के मामले में सरकार उदारता दिखाती है, अथवा नहीं देखना है।
दुगनी आय का वादा और खाद का संकट
सन् 2022 वह वर्ष है जब किसानों की आय दो गुनी हो जानी चाहिये थी। इसके लिये एक्शन प्लान की घोषणा केंद्र की मोदी सरकार ने चार साल पहले की थी। बिजली तो राज्य का विषय है, जो एक निश्चित सीमा तक सिंचाई के लिये किसानों को मुफ्त मिल रही है। पर डीजल और खाद की कीमत केंद्र सरकार तय करती है। इसमें स्टेट का टैक्स भी जुड़ता है। दोनों के दाम में बीते तीन सालों में बेतहाशा वृद्धि हो चुकी है।
इन दिनों छत्तीसगढ़ एक नये संकट का सामना कर रहा है। रासायनिक उर्वरक की आपूर्ति में केंद्र ने थोड़ा नहीं बल्कि सीधे 45 प्रतिशत कटौती कर दी है। अब जबकि रबी फसल के लिये तत्काल खाद की जरूरत है, आपूर्ति में भारी कमी दर्ज की गई है। पोटाश की आपूर्ति में 74 प्रतिशत तो डीएपी में 68 प्रतिशत की कमी इस समय है। किसानों की आमदनी तो बढ़ी नहीं बल्कि खेती की लागत बढ़ चुकी है। ऊपर से उन्हें फसल बचाने के लिये ब्लैक में अनाप-शनाप कीमत पर खाद की खरीदी करनी पड़ रही है।
चैंबर के समर्थन बिना बंद का आह्वान
यदि नगर बंद का कोई आह्वान सफल न हो तो मिला-जुला समर्थन रहा, कहना ठीक लगता है। नगर बंद की सफलता के लिये जरूरी है कि व्यापारियों का साथ मिले। शहर के मुख्य मार्गों की दुकानें तब बंद होती हैं, जब उनका संगठन साथ देता है। जगदलपुर में संजय गांधी वार्ड की पार्षद कोमल सेना पर प्रधानमंत्री आवास के नाम पर लोगों से पैसे मांगने का आरोप है। उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने की मांग पर मंगलवार को भाजपा ने नगर बंद का आह्वान किया गया था। जगदलपुर चैम्बर ऑफ कामर्स ने इस बंद का समर्थन नहीं किया। पदाधिकारियों का कहना है कि उन्होंने बंद का विरोध भी तो नहीं किया। चैम्बर में अनेक ऐसे सदस्य हैं जो भाजपा से भी जुड़े हैं। इसके बावजूद यह स्थिति बनी। वैसे जब कांग्रेस विपक्ष में थी, तब भी उसके नगर बंद के आह्वान का चैम्बर ने समर्थन नहीं किया था। तब कांग्रेस ने चैम्बर की सदस्यता छोडऩे का अभियान चलाया था। अब देखना होगा कि क्या भाजपा भी ऐसा करेगी?
एनआरडीए की नई कोशिश
नया रायपुर विकास प्राधिकरण ने अटल नगर नया रायपुर में बसाहट बढ़ाने के लिये एक और स्कीम लाने का निर्णय लिया गया है। घर या व्यावसायिक कॉम्पलेक्स बनाने के लिये मास्टर प्लान में संशोधन कर भू स्वामी को ज्यादा जगह छोडऩे की छूट मिलेगी। यदि किसी के पास 2000 वर्गफीट का प्लॉट है तो उसे 200 वर्गफीट तक निर्माण की अतिरिक्त छूट दी जायेगी। पिछले 20 सालों से नया रायपुर को राजधानी की तरह विकसित करने के लिये करोड़ों रुपये खर्च किये गये पर अब तक यह आबाद नहीं हो पाया है। हाउसिंग बोर्ड की अनेक कॉलोनियां, शॉपिंग मॉल और दैनिक जरूरत के कुछ बाजार हैं, पर सैकड़ों अब भी खाली हैं। जिन लोगों ने प्लॉट, फ्लैट या मकान में निवेश किया है वे इंतजार कर रहे हैं कि नया शहर कब बसेगा। एनआरडीए की नई स्कीम यहां की बसाहट बढ़ाने में कितना कारगर साबित होगी, यह आगे पता चलेगा।
जैसे को तैसा
कुछ बरस पहले तक शादी-ब्याह का निमंत्रण काफी महत्वपूर्ण माना जाता था। न केवल निमंत्रण पत्र दिया जाता था, बल्कि शगुन की हल्दी और सुपाड़ी भी उसके भीतर रखा होता था। निमंत्रण पत्र के महीने दो महीने पहले मनुहार पत्र भी भेजने का चलन रहा है। ताकि विवाह के दिन को आप उनके लिये सुरक्षित रखें। पर आज व्हाट्सएप का दौर है। व्यक्तिगत रूप से खुद या किसी संदेशवाहक के माध्यम से निमंत्रण पहुंचाने की भी फुर्सत नहीं है। व्हाट्सएप पर आने वाले न्यौते पर भी बहुत लोग दौड़े पहुंच जाते हैं। जाना, नहीं जाना निमंत्रण देने वाले के कद पर भी निर्भर रहता है। बहुत लोगों को निमंत्रण का यह तरीका ठीक नहीं लगता, बुरा मानते है नहीं जाते। यह वाट्सएप पर मिले निमंत्रण का ही जवाब है। व्हाट्सअप पर ही डिजिटल जवाब भेज दिया और करंसी की तस्वीर भी।
रायपुर का हक तो बनता था
केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट भाषण में बताया कि इलेक्ट्रॉनिक बाइक की बैटरी की अदला-बदली के लिये स्वैपिंग स्टेशन बनाये जायेंगे। शुरू में यह देशभर के 30 शहरों में शुरू किया जा रहा है। इस समय अलग-अलग ई-बाइक और ई-स्कूटर की बैटरी साइज भी अलग-अलग होती है। पहले इसका एक स्टैंडर्ड साइज तय किया जायेगा। फिर एक निश्चित राशि देकर अपनी बैटरी जमा की जा सकती है और चार्ज बैटरी ली जा सकती है। जापान में यह काफी पहले से हो चुका है। दुनिया के कई देशों में अब यह सुविधा उपलब्ध है। भारत में यह पहली बार होगा। भारत में जिन 30 शहरों को इसके लिये चुना गया है उनमें दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, पुणे आदि शामिल हैं। मध्यप्रदेश में इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और भोपाल को इसके लिये चुना गया है। पर इनमें छत्तीसगढ़ से किसी शहर को शामिल नहीं किया गया। कम से कम राजधानी रायपुर को तो इसमें लिया जा सकता था। रायपुर देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में आने लगा है। राजधानी तेजी से फैल भी रहा है। गाडिय़ों की संख्या भी बढ़ रही है। बैटरी स्वैपिंग स्टेशन प्रोजेक्ट में शामिल करने से लोगों का ई-बाइक के प्रति आकर्षण बढ़ता। इससे प्रदूषण कम करने में कुछ तो मदद मिलती।
रेलवे की जवाबी कार्रवाई..
जगदलपुर में कांग्रेस पार्षद कोमल सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग पर पिछले 15 दिनों से भाजपा के नेतृत्व में धरना दिया जा रहा है। पार्षद पर पैसे लेकर प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत नहीं कराने का आरोप है। पूर्व मंत्री केदार कश्यप सहित अनेक पार्टी नेता इसमें फ्रंट पर है। आरोप तो स्थानीय निकाय के जन-प्रतिनिधि पर है, जिसमें राज्य सरकार को कार्रवाई करनी है, पर रेलवे ने करीब 40 लोगों को अपनी जमीन से हटाने का अभियान शुरू कर दिया है। इनमें अधिकांश वे लोग हैं, जो पार्षद के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। रेलवे का कहना है कि वह तो हर चार-छह महीने में नोटिस जारी करती है। अतिक्रमण कर तीन वार्डों में 400 से अधिक लोगों ने वर्षों से कब्जा कर रखा है। इन्हें बारी-बारी हटाया जायेगा। स्थिति दिलचस्प है। रेलवे, सेंट्रल की एजेंसी है- जहां सरकार भाजपा की है और बेजा कब्जा करने वालों पर तब कार्रवाई हो रही है जब भाजपा ने कांग्रेस पार्षद के खिलाफ मोर्चा खोला है।
लडऩे का मौका ही नहीं मिला...
सरगुजा जिला पंचायत के रिक्त उपाध्यक्ष पद पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के भतीजे आदित्येश्वर शरण सिंहदेव निर्विरोध चुन लिये गये। 14 सदस्यों वाले जिला पंचायत में कांग्रेस के 11 सदस्य हैं। शेष 3 भाजपा के हैं। एक भाजपा सदस्य इलाज के लिये सरगुजा से बाहर हैं। प्रस्तावक, समर्थक और प्रत्याशी को मिलाकर तीन की जरूरत थी पर दो ही उपस्थित थे। इधर आदित्येश्वर शरण ने जब नामांकन दाखिल किया तो उनके साथ कांग्रेस के सभी सदस्य मौजूद थे। सरगुजा में समय-समय पर कांग्रेस के बीच शक्ति प्रदर्शन देखा गया है। पर जिला पंचायत चुनाव में जो एकजुटता दिखी। बिखराव होता तो भाजपा कुछ सोच भी सकती थी, पर ऐसा हुआ नहीं।
गुटबाजी, इधर भी, उधर भी...
वैसे तो कांग्रेस में हमेशा से गुटबाजी रही है, और इस वजह से चुनावों में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ता रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ में भाजपा अब गुटबाजी के रोग से बुरी तरह पीडि़त हो गई है। इसका नजारा हाल के दिनों में सार्वजनिक तौर पर देखने को मिला है।
सरगुजा जिला पंचायत उपाध्यक्ष के चुनाव में तो भाजपा प्रत्याशी भी नहीं उतार पाई। हुआ यूं कि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के भतीजे आदित्येश्वर शरण सिंहदेव उपाध्यक्ष प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। यहां जिला पंचायत में 14 में से 3 सदस्य भाजपा के हैं। वैसे तो संख्या बल के आधार पर टीएस के भतीजे का चुनाव जीतना तय था, लेकिन भाजपा के सदस्य चुनाव लडऩे के मूड में नहीं थे।
चुनाव के ठीक पहले एक भाजपा सदस्य तो इलाज के बहाने उत्तर प्रदेश चली गईं। लिहाजा, यहां प्रस्तावक-समर्थक के अभाव में भाजपा विरोध में प्रत्याशी भी नहीं उतार पाई। जबकि टीएस के विरोधी एक-दो जिला पंचायत गुपचुप तरीके से भाजपा को वोट देने के लिए तैयार भी थे। मगर भाजपा यहां कांग्रेस में गुटबाजी का फायदा नहीं उठा पाई।
रायपुर में तो पूर्व मंत्री राजेश मूणत के साथ पुलिसिया दुव्र्यवहार के मामले में भी भाजपा में गुटबाजी खुलकर सामने आ गई। चर्चा है कि पार्टी के कई नेता इस प्रकरण पर मूणत का साथ देने के लिए तैयार नहीं थे। और जब बृजमोहन थाने में कोई सम्मानजनक रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे थे, तो मूणत उन पर मिलीभगत का आरोप मढक़र निकल गए। हाल यह है कि यहां की गुटबाजी पर लगाम लगाने में प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी भी अब तक विफल रही हैं।
दूसरी तरफ, सरकार में आने के बाद भी कांग्रेस में गुटीय लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है। जिला पंचायत सदस्य से कांग्रेस विधायक बनी छन्नी साहू पिछले तीन माह से राजनीतिक कारणों से निजी जीवन में परेशानियां उठा रही है। कांग्रेस की गुटीय लड़ाई इस कदर बढ़ी कि छन्नी के पति चंदू साहू एक आदिवासी चालक से मारपीट के आरोप में पुलिस के जद में आए गए। कांग्रेस की गुटीय लड़ाई में छन्नी की टीएस सिंहदेव समर्थकों में होती है। छन्नी के समर्थकों का आरोप है कि पार्टी के ही नेता चंदू साहू को फंसा रहे हैं। चाहे कुछ भी हो, कांग्रेस के भीतर की अंदरूनी लड़ाई सामने आ ही गई।
स्टेट कैंसर हॉस्पिटल पर संकट
केंद्र सरकार की अनेक योजनाओं पर राज्य सरकार को भी अंशदान मिलाना होता है, यदि वह हिस्सा नहीं मिलता तो केंद्र भी अपनी मंजूर की गई राशि वापस ले लेता है। ऐसा अभी प्रधानमंत्री आवास योजना में हो चुका है। इसी तरह का संकट प्रदेश के पहले स्टेट कैंसर इस्टीट्यूट के निर्माण पर मंडरा रहा है। सिम्स चिकित्सालय बिलासपुर के अधीन इसका निर्माण किया जाना है, जिसके लिये कोनी में भूमि तय कर ली गई है। रायपुर के अंबेडकर हॉस्पिटल में स्थापित इंदिरा गांधी क्षेत्रीय संस्थान की ओपीडी में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या 35 हजार से अधिक पहुंच चुकी है। जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है वे कैंसर का महंगा इलाज नहीं करा सकते, और यहां जल्दी नंबर आता नहीं। देशभर में इस समय करीब 14 लाख कैंसर के मामले हैं, उस हिसाब से छत्तीसगढ़ की संख्या बहुत बड़ी है। ऐसे बहुत से लोगों को आयुष्मान योजना से भी कवरेज नहीं मिलता। इसे देखते हुए सन् 2014 में एक नया राज्य स्तरीय कैंसर अनुसंधान तैयार करने की योजना बनाई गई थी, जिसके लिये बिलासपुर का चयन किया गया। इसमें सुविधायें और संसाधनों को रायपुर से भी बड़ा रखने की योजना है। 6 साल की देरी से बीते सत्र के बजट में केंद्र ने 91 करोड़ रुपये इस काम के लिये मंजूर कर दिया। पर इसमें 25 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार को भी जोडऩा है। यानि करीब 23 करोड़ रुपये। यह राशि अब तक नहीं मिली है। अब मार्च आ रहा है। राज्य सरकार नया बजट लाने की तैयारी में है। आम तौर पर बजट पेश होने के कुछ पहले से ही नये आवंटन रोक दिये जाते हैं। ऐसे में राज्य सरकार का अंशदान मिलेगा या नहीं, अनिश्चिततता बनी हुई है। यदि मार्च से पहले यह राशि नहीं दी गई तो केंद्र अपना 91 करोड़ रुपया वापस ले लेगा। फिर राज्य को मिलने वाली स्वास्थ्य संबंधी एक बड़ी सुविधा से लोगों को वंचित होना पड़ेगा।
चिटफंड नहीं, पर उससे कम भी नहीं
फर्जी चिटफंड कंपनियों के खिलाफ राज्य सरकार ने कार्रवाई शुरू की है, पर इससे पीडि़त लोगों की संख्या इतनी अधिक है और कंपनी के संचालकों को पकडऩा, उनकी संपत्ति का पता लगाना, कुर्क करना और पैसे लौटाना, इतना जटिल है कि अपेक्षित सफलता अभी तक नहीं मिल पाई है। इसके लिये रेगुलर पुलिस को लगाने से शायद कुछ न हो, अलग से विंग बनाने की जरूरत पड़ सकती है।
एक समय सहारा इंडिया को निवेश का विश्वसनीय माध्यम समझा जाता था, पर छत्तीसगढ़ के लोगों के करोड़ों रुपये इसमें भी जाम हो गये हैं। ज्यादातर प्रभावित निम्न-मध्यम वर्ग के हैं। हर जिले में लोगों के 25-30 करोड़ या उससे अधिक रकम फंसी हुई हैं। एफडी परिपक्व हो चुकी है। ब्याज सहित रुपये लौटाना है, पर लोगों को मूलधन के ही लाले पड़े हैं। सहारा इंडिया के प्रतिनिधि भागे नहीं है, बल्कि वे भरोसा दिला रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल होते ही राशि लौटाई जायेगी। कंपनी के मैनेजर ऐसा कहकर दिग्भ्रमित कर रहे हैं। सेबी के पास सुप्रीम कोर्ट में जितनी राशि जमा करनी थी, सहारा ने किया ही नहीं है। सेबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बताया था कि 30 नवंबर तक सहारा ने करीब 15 हजार करोड़ रुपये जमा कराये हैं, जबकि कोर्ट के आदेश के अनुसार 25 हजार 781 करोड़ रुपये जमा करने हैं।
सहारा से पीडि़त निवेशकों की आवाज उठाने के लिये राजधानी रायपुर में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने प्रदर्शन भी किया था। लोगों का धैर्य टूट रहा है। वे कांग्रेस को उस वादे की याद दिला रहे हैं, जिसमें निवेशकों को रकम लौटाने का वादा किया गया। पर, सहारा का मामला पेचीदा है। राज्य सरकार शायद सीधे कार्रवाई न कर पाये। पेंच सहारा, सेबी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश में फंसा है।
राहुल का छत्तीसगढ़ दौरा
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का छत्तीसगढ़ दौरा सफलतापूर्वक निपट गया तो अफसरों को बड़ी राहत मिली। सियासी गलियारों में उनके जाने के बाद दौरे के मायने निकाले जा रहे हैं। मीडिया से लेकर कांग्रेसियों के बीच सबसे ज्यादा चर्चा टीएस बाबा को लेकर हुई। मंच पर राहुल और टीएस के बीच सामान्य चर्चा की भी लोग अपने-अपने तरह से समीक्षा करते रहे। यह बात सही है कि टीएस दो बार उठकर राहुल के पास गए और एक-दूसरे के कान में बात की। चर्चा इस अंदाज में हुई कि बगल में बैठा व्यक्ति भी शायद ही कुछ सुन समझ पाया होगा, फिर भी मतलब निकालने की कोशिश की गई। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद टीएस के निकलते समय कुछ लोगों ने इस बारे में जानने की कोशिश की, तो टीएस ने साफ किया कि वे एक किताब में राहुल से साइन लेने गए थे और इसी बारे में चर्चा भी हुई। उन्होंने बकायदा किताब खोलकर वो पन्ना भी दिखाया, जहां राहुल ने हस्ताक्षर किया था। टीएस ने साल 2018 चुनाव के बाद राहुल गांधी की मुख्यमंत्री पद के सभी दावेदारों के साथ खिंचवाई फोटो में अपनी तस्वीर के नीचे उनसे हस्ताक्षर लिया था।
सियासत चमकाने बीएनसी मिल
ब्रिटिशकाल से लेकर आजाद भारत के 90 के दशक में नांदगांव की आर्थिक संपन्नता का अहसास कराने वाली बंगाल-नागपुर कॉटन मिल्स का वैसे तो नामोनिशान खत्म हो गया है, पर राज्य की कांग्रेस सरकार के मिल को दोबारा शुरू करने के राजनीतिक वादे को आधार बनाकर भाजपा अपनी सियासत चमकाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। उम्रदराज लोगों के जेहन में मिल के अच्छे और खराब अनुभव आज भी किस्से के तौर पर दर्ज हैं। मिल की बखत ऐसी थी कि कलाई और घर में रखी घडिय़ों के बजाए लोगों को उसके सायरन से वक्त का पता चलता था।
अब गली-मोहल्ले में पिछले कुछ दिनों से भाजपा मिल चालू करने का राग छेडक़र कांग्रेस सरकार पर दोषारोपण कर रही है। कांग्रेस भी इस मुद्दे पर भाजपा को ही जवाबदार मानती है। कांग्रेस मानती है कि केंद्रीय मंत्री रहते पूर्व सीएम रमन ने भी मिल की बुरी दशा को सुधारने पहल नहीं की। मच्छरदानी और उच्चकोटि के सूती कपड़े के लिए प्रसिद्ध रही बीएनसी मिल अपने शानदार दौर में राजनीति का अखाड़ा रही। मजदूरों और मिल प्रबंधन के बीच 80 के दशक तक ऐसी खाई बढ़ी कि मिल के पतन का सिलसिला उसके खात्मे तक जारी रहा। अब मिल को दोबारा शुरू करने के कांग्रेस सरकार के तीन साल पहले के वादे को लेकर भाजपा मुखर हो गई है। भाजपा ने लगभग मान लिया है कि मिल के मुद्दे पर उनकी राजनीति को रफ्तार मिल जाएगी। कांग्रेस ने भाजपा को 15 साल से सत्ता से बाहर करने के लिए मिल को लेकर जरूर वादे किए थे लेकिन तकनीकी और व्यवहारिक रूप से यह संभव नहीं है। राष्ट्रीय कॉटन अथॉरिटी के अधीन देश के दूसरे प्रांतों की मिलें ले-देकर चल रही हैं। ऐसे में बंद मिल को चालू करना एक पत्थर से आसमान को छेद करने जैसा असंभव काम है।
जिला हुआ तो क्या हुआ?
छत्तीसगढ़ के दूरस्थ इलाकों में छोटे-छोटे नये जिले बनाये गये तो उसका उद्देश्य यह था कि सरकार की योजनाएं असरदार तरीके से लोगों तक पहुंचे। कम से कम मूलभूत सुविधायें तो लोगों को उपलब्ध कराई जा सके। लेकिन ऐसा नहीं है।
यह तस्वीर बलरामपुर जिले के सनमंदरा गांव की है। यहां के निवासी दूर के स्रोतों से प्राकृतिक नाले का पानी लाते हैं। गांव में हैंडपंप या कुआं नहीं है। वे दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। गांव में पक्की सडक़ भी नहीं है।
विधायक की नाराजगी
खुज्जी विधायक छन्नी साहू ने अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनकी नाराजगी पति पर एट्रोसिटी एक्ट के तहत हुई कार्रवाई को लेकर है। अपराध तो पहले ही दर्ज कर लिया गया था पर गिरफ्तारी के लिये पुलिस ने दबाव बनाकर रखा था। भाजपा और आदिवासी समाज के नेताओं ने भी उनकी गिरफ्तारी की मांग पर मोर्चा खोल रखा था। वे अपने पति को लेकर थाना पहुंचीं और वहीं सुरक्षा गार्ड, तीन पीएसओ और सरकारी वाहन को लौटा दिया और स्कूटर पर घर लौटीं। इधर कोर्ट ने चंदू साहू को जेल भेज दिया। एफआईआर दर्ज होने के बाद से ही विधायक कह रही हैं कि रेत वाली ट्रक के चालक से मारपीट और अनुसूचित जनजाति के मामले में फंसाया जाना एक साजिश है। पर भाजपा और कुछ विरोधियों के दबाव में उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। सच्चाई क्या है इसके लिये कोर्ट के फैसले तक तो अब इंतजार करना ही पड़ेगा। पर, जिस तरह से अपनी ही सत्ता के रहते सुरक्षा गार्ड, पीएसओ आदि को विधायक ने लौटाया है वह अपने आपमें एक बड़ी घटना है। संगठन को बीच में आना चाहिये।
पढ़ाई के अलग-अलग मौके
कोरोना संक्रमण की दर हर जिले में अलग-अलग है। बस्तर, बेमेतरा, दंतेवाड़ा, गरियाबंद,जशपुर, धमतरी, दुर्ग, कवर्धा,जांजगीर-चांपा, कोंडागांव, महासमुंद, नारायणपुर, रायगढ़, रायपुर, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा और कांकेर में दर 4 फीसदी से अधिक है। नारायणपुर में तो यह 11 प्रतिशत तो धमतरी में 13 प्रतिशत से अधिक है। जिन जिलों में संक्रमण दर 4 फीसदी से कम है, वहां सरकारी कर्मचारियों को कार्यालयों में 100 फीसदी उपस्थिति का निर्देश दिया गया है। इसके अलावा यहां स्कूल-कॉलेज भी खुल जायेंगे। सामान्य दिनों में फरवरी से स्कूल-कॉलेजों में प्रीप्रेशन लीव शुरू हो जाता है। पर कोरोना के चलते एक तिहाई कोर्स भी ज्यादातर जगहों पर पूरा नहीं हो पाया है। कुछ जिलों में ऑफलाइन पढ़ाई और कुछ में ऑनलाइन पढ़ाई होगी। इसलिये परीक्षा में नतीजे भी अलग-अलग आ सकते हैं। क्या यह ठीक नहीं होगा कि सबको एक जैसी पढ़ाई करने का मौका मिले। जिलों के आधार पर खोला जाना तय करने से उन छात्रों के साथ भेदभाव हो सकता है जो ज्यादा संक्रमण दर के कारण स्कूल-कॉलेज नहीं जा सकेंगे।
संस्कृति जिंदा है
आसमान में उड़ान भरते इन कागज के टुकड़ों से तो आप वाकिफ होंगे। राजधानी रायपुर में ये विरले नजर आते हैं। इंसान धरती के टुकड़ों को अपने आशियाने की खातिर पाने की जद्दोजहद में है तो ये ‘पतंग’ आसमान पर अपनी जगह बनाने की कोशिश करते दिखे।
चिटफंडिया क्रिप्टोकरंसी..
आमदनी पर 30 प्रतिशत टैक्स और पूरी रकम पर एक प्रतिशत टीडीएस लगाने की बजट घोषणा के बाद क्रिप्टोकरंसी बाजार में हडक़ंप मच गया है। पहले बिटक्वाइन के बारे में ही लोगों को पता था पर अब एथेरियम, एक्सआरपी, सोलाना, टेर्रा, कार्डानो, पोल्काडॉट और स्टेल्लर जैसे कई प्लेटफॉर्म आ गये हैं। हाथ में कोई कागज नहीं आता, इंटरनेट पर ही सारा डाक्यूमेंट देखा, पढ़ा जा सकता है। एक बार पासवर्ड भूल गये तो फिर अपने हिसाब को एक्सेस करना, पैसे पाना बड़ा कठिन है। बजट घोषणा के बाद अनेक क्रिप्टो करंसी के दाम 50 प्रतिशत तक घट गये। लोगों को बड़ा नुकसान हुआ। पर इसका आकर्षण खत्म नहीं हुआ है।
इधर, चिटफंड की तरह इसमें भी धोखाधड़ी की शिकायतें आ रही हैं। धमतरी की खबर है कि वहां लोगों से अब तक तीन करोड़ रुपये की उगाही क्रिप्टो करंसी में निवेश के नाम पर की जा चुकी है। लोगों को एक निश्चित रकम हर माह देने का वादा किया गया है, जबकि किसी क्रिप्टोकरंसी में ऐसी कोई स्कीम नहीं होती। रेट बढऩे-घटने का ब्यौरा तो अब टीवी चैनल भी दिखा रहे हैं।
अब तक पुलिस में कोई शिकायत नहीं हुई है, पर शिकायत चिटफंड से ठगे गये लोगों ने भी तो बहुत देर बाद की थी। जल्दी पैसा बनाने की हर स्कीम के पीछे झांसा हो सकता है। लोगों को लूटने का यह नया तरीका तो नहीं?
खरीदी केंद्र की फसल
सहकारी समितियां लाख दावा करें, खरीदे गये धान की हर साल बड़ी बर्बादी होती है। नेता प्रतिपक्ष ने कुछ समय पहले आरोप लगाया था कि धान की हिफाजत नहीं करने के कारण 1 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। सरकार ने शेड बनाने का काम मनरेगा के मद से शुरू किया था, पर केंद्र ने इस पर खर्च करने से मना कर दिया। पर तारपोलिन की व्यवस्था भी समितियां नहीं कर सकीं। इसका क्या नतीजा हुआ है यह कोटा ब्लॉक के चपोरा धान खरीदी केंद्र की इस तस्वीर में दिखाई दे रहा है। वहां बोरियों से धान अंकुरित होकर फूट गया है और फसल तैयार हो रही है।