राजपथ - जनपथ
पुरानी पेंशन का पेंच
छत्तीसगढ़ पुरानी पेंशन योजना असमंजस बना हुआ है। राज्य सरकार ने योजना को बहाल तो कर दिया है, लेकिन पेंच एनपीएस की राशि को लेकर फंसा हुआ है। राज्य सरकार एनपीएस की राशि लौटाने के लिए लगातार केन्द्र सरकार पर दबाव बनाए हुए है और केन्द्र सरकार नियमों का हवाला देकर पैसा लौटाने से इंकार कर रही है। जाहिर, दोनों तरफ से जमकर सियासत हो रही है, लेकिन परेशान कर्मचारी हो रहे हैं। उन्हें अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कौन सी स्कीम लागू है और कौन सी नहीं। कर्मचारियों की स्थिति इसलिए भी खराब हो गई है, क्योंकि उनकी बरसो पुरानी मांग को राज्य सरकार ने पूरा कर दिया। इस साल मार्च में सरकार ने जब इसकी घोषणा की थी कर्मचारियों ने खूब जश्न भी मनाया था और सरकार के मुखिया का स्वागत सत्कार भी किया था, लेकिन साल बीतने को है और उनकी पेंशन योजना पर अंतिम फैसला नहीं हो पाया है। सरकार ने अप्रैल 2022 से एनपीएस में अंशदान जमा करना भी बंद कर दिया गया है। अब मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि कर्मचारी संगठनों से चर्चा कर इसका हल निकाला जाए। कर्मचारी भी जानते हैं कि नियमानुसार एनपीएस का पैसा राज्य सरकार को नहीं दिया जा सकता, लेकिन जिसकी उन्होंने मांग की थी और मांग पूरा होने पर उस पीछे हटना भी मुश्किल है। ऐसे में अब केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। अभी तक इस मामले में राज्य और केन्द्र सरकार के बीच तकरार की स्थिति थी, लेकिन अब राज्य कर्मचारी भी कूदने की तैयारी में है। कांग्रेस इस मसले को चुनावी रंग देने की तैयारी में है। हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस ने इसे घोषणा पत्र में रखा था। संभव है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पुरानी पेंशन योजना बड़ा मुद्दा बन जाए। ऐसे में कांग्रेस-भाजपा सियासी नफा-नुकसान के आधार पर कोई फैसला लेगी, लेकिन कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तो तय है कि कर्मचारी दो सरकारों के बीच फंसती नजर आ रही है।
आईएएस अफसरों की चिंता
छत्तीसगढ़ में पेंशन योजना के अलावा कर्मचारियों का केन्द्र के बराबर महंगाई भत्ते की मांग चुनावी साल में तेज होने की संभावना है। हालांकि राज्य सरकार ने दीवाली से पहले महंगाई भत्ते में 5 फीसदी बढ़ोतरी का फैसला लिया था, लेकिन फिर भी केन्द्र के कर्मचारियों की तुलना में राज्य कर्मचारियों को महंगाई भत्ता कम मिल रहा है और उनको एरियर्स का भुगतान भी मनमाफिक नहीं मिल रहा है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के आईएएस को बिन मांगे ही मिल रहा है। उनको समयमान वेतनमान से लेकर महंगाई भत्ते की राशि के लिए मांग तक नहीं करनी पड़ती। वैसे भी अधिकारियों को अपने किसी भी काम के लिए कर्मचारियों की तरह संघर्ष तो करना नहीं पड़ता। इसमें कोई आश्चर्य की बात होनी भी नहीं चाहिए। आखिर फाइल पर चिडिय़ा तो वे ही बिठाते हैं, लेकिन इस मसले की चर्चा उस समय हो रही थी, जब छत्तीसगढ़ में ईडी की छापेमारी और धरपकड़ जोरों पर है। आईएएस समेत बड़े अधिकारियों की संपत्ति और नगदी उजागर हो रही है। ऐसे में कुछ आईएएस अधिकारियों ने संघ के पदाधिकारियों को सुझाव दिया कि महंगाई भत्ता और एरियर्स की मांग को लेकर सरकार से पत्राचार तो कम से कम करना ही चाहिए। ऐसा नहीं करने से संदेश जा सकता है कि राज्य के आईएएस अफसरों की ऊपरी कमाई इतनी ज्यादा हो गई है कि उन्हें वेतन भत्तों की फिक्र ही नहीं है। अब उन्हें कौन समझाए कि जो संदेश जाना था, वो तो जा चुका है। फिर भी कोशिश करने में तो कोई बुराई नहीं है।
हिमाचली सेबों की लाली
हिमाचल चुनाव के नतीजों के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक अभूतपूर्व ताकत लेकर उभरे दिखते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पिछले कुछ महीनों से भूपेश के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा हिमाचल चुनाव अभियान में लगे हुए थे, और वहां प्रियंका गांधी के साथ उनकी टीम में काम कर रहे थे। बिना किसी औपचारिक ओहदे के विनोद वर्मा ने वहां सतह के नीचे और पर्दे के पीछे रहकर मेहनत की, और जो भी नतीजे आए उनमें उनका योगदान भी रहा। और जैसा कि पिछले चार बरस के देश के किसी भी चुनाव में होते आया है, छत्तीसगढ़ से इस चुनाव में भी खर्च का कुछ या काफी हिस्सा गया ही होगा। भूपेश बघेल वहां सबसे अधिक प्रचार करने वाले कांग्रेस नेताओं में से एक रहे, और हिन्दीभाषी प्रदेश होने की वजह से उनका असर भी रहा। ऐसा भी लगता है कि हिमाचल का कांग्रेसी घोषणापत्र बनाने में भूपेश और विनोद का खासा योगदान रहा क्योंकि यहां की कई बातें वहां भी लागू करने का वायदा किया गया है। एक तरफ राज्य के भीतर ईडी की कार्रवाई से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल परेशानी झेल रहे थे, लेकिन ऐसी विपरीत परिस्थिति में हिमाचल के नतीजों ने उन्हें कांग्रेस का एक सबसे लड़ाकू योद्धा बनाकर पेश किया है। ऐसा लगता है कि पार्टी के स्तर पर अब भूपेश बघेल के किसी विकल्प के बारे में तब तक कुछ सोचने की जरूरत नहीं रहेगी जब तक कि कोई बिजली ही न गिर जाए। भूपेश के चेहरे पर तनाव के बीच भी जितना आत्मविश्वास दिख रहा है, वह हिमाचली सेब की अच्छी फसल से आया हुआ दिखता है। कुछ लोगों का यह याद दिलाना भी जायज है कि हिमाचल तो हर पांच बरस में वैसे भी सत्तारूढ़ पार्टी बदलने का आदी रहा है, लेकिन अब तो मोदी और शाह ने चुनाव के सारे नियम बदल दिए हैं, और कुछ राज्यों में कई तरह चुनावी परंपराएं पलटकर रख दी हैं, ऐसे में हिमाचल में कांग्रेस का लौटना महज परंपरा मान लेना ठीक नहीं है।
मौत की वजह बताने की गलती
उच्चाधिकारियों के लिए जरूरी हो जाता है कि वे बोलते समय सावधानी बरतें ताकि उसका ऐसा मतलब न निकले जो सरकार के लिए परेशानी का कारण बने। उदयपुर के कोसाबाड़ी जंगल में एक वृद्धा की जीर्ण-शीर्ण अवस्था में लाश मिली। जांच से पता चला कि कई दिन पहले यह मौत हो चुकी है। अंबिकापुर एसपी भावना गुप्ता ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए मीडिया से कह दिया कि भूख से मौत होने की आशंका है। पर जैसे ही लगा कि इस पर शोर मच सकता है, उन्होंने दुबारा बयान दिया- सामान्य मौत है। मृतका की उम्र 65 साल की थी, भीख मांगकर गुजारा करती थी। एसपी यदि भूख से हुई मौत को लेकर टिकी रहतीं तो भाजपा इसे मुद्दा बना लेती और जिला प्रशासन को एसपी और डॉक्टरी रिपोर्ट को गलत साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता।
एनएच भी हो कैटल फ्री
छत्तीसगढ़ की शहरी सडक़ और राजमार्गों में आवारा पशुओं के जमे रहने के कारण दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। पर इनको हटाना आसान नहीं है। मवेशियों को पकडऩे के लिए कर्मचारी लगाना, वाहन में ढोकर लाना, कांजी हाउस में लाकर रखना, उनके चारे-पानी की व्यवस्था करना और तब तक रखना जब तक उसका असली मालिक लेकर न चला जाए, बड़ा खर्चीला काम है। ज्यादातर ऐसे पशुओं की नीलामी ही नहीं होती, क्योंकि ताजा हालात में दूसरे राज्यों में परिवहन करना, मतलब जान जोखिम में डालना है। सडक़ों पर घूमने वाले ज्यादातर पशु वे ही होते हैं जिन्हें मालिक जानबूझकर छोड़ देते हैं क्योंकि वे उनके काम के नहीं रह जाते हैं। दुधारू और उपयोगी पशुओं के लिए नगर-निगम क्षेत्रों में अलग नगर बसाया गया है तो गांवों में भी गौठान योजना चल रही है। पर, आवारा पशुओं की समस्या बनी हुई है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी सडक़ों पर आवारा घूम रहे पशुओं पर कई बार चिंता जताई है और निर्देश भी दिए हैं। रायपुर-बिलासपुर हाईवे और ठीक हाईकोर्ट के सामने की सडक़ पर भी समस्या है। शहरों की प्रमुख सडक़ों में से कुछ को पशुओं से मुक्त करने का काम देशभर की स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल किया जा रहा है। रायपुर शहर का गौरव पथ अब कैटल फ्री है। पर ज्यादातर शहरों में, स्टेट हाईवे, नेशनल हाईवे पर चलने वालों को इनसे छुटकारा दिलाने के लिए किसी ठोस योजना पर काम नहीं हो रहा है।
न्यू ट्रांसपोर्ट नगर का किसको लाभ?
कोरबा में कांग्रेस और भाजपा के बीच नया ट्रांसपोर्टनगर किस जगह पर हो, इसे लेकर बयानबाजी हो रही है। इसके लिए बरबसपुर की जमीन भाजपा के समय ही तय की जा चुकी थी और अब टेंडर की प्रक्रिया हो रही है। जिला प्रशासन ने इस जगह को फिर बदलने की योजना बनाई तब मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने अधिकारियों को फटकार लगाई। भाजपा नेताओं का बयान आ गया कि चूंकि बरबसपुर में कांग्रेस नेताओं ने जमीन खरीदी है, इसलिए मंत्री इसी जगह के लिए दबाव डाल रहे हैं। जवाब में कांग्रेस ने 11 भाजपा नेताओं की सूची जारी कर दी, जिन्होंने योजना घोषित होने के ठीक पहले वहां जमीन खरीदी। प्रस्तावित स्थल पर नया ट्रांसपोर्ट नगर बसेगा तो जाहिर है लाभ उन्हें मिलेगा। लोग अब यह सवाल कर रहे हैं कि जब भाजपा के नेताओं को भी बरबसपुर में ट्रांसपोर्टनगर बसाने का लाभ मिलना है तो उनकी ही पार्टी के कुछ नेता इसके विरोध में क्यों आ गए?
चुनावी साल और राज्यपाल
वैसे तो राज्यपाल किसी राजनीतिक पार्टी का हिस्सा नहीं रहते, लेकिन जब उन्हें मनोनीत करने वाली केन्द्र सरकार किसी एक विचारधारा की रहती है, और जिस राज्य में उन्हें भेजा गया है वहां की सरकार की विचारधारा अलग रहती है, तो राज्यपाल उन्हें नौकरी देने वाली सोच का साथ देते दिखते हैं या दिखती हैं। छत्तीसगढ़ में आज कुछ ऐसा ही माहौल बन रहा है। विधानसभा ने राज्य में आरक्षण बढ़ाने का विधेयक पास करके उसे मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजा है, लेकिन राजभवन से कई सवालों के साथ उसे वापिस भेजा गया है। राज्य सरकार चाहती थी कि अदालत से खारिज हुए आरक्षण के नए फॉर्मूले को राज्य का कानून बनाकर फिर से लागू किया जाए, लेकिन उसकी राजनीतिक हड़बड़ी और राज्यपाल की इस मुद्दे पर इत्मीनान से काम करने की सोच ने मामले को गड़बड़ा दिया है। अब राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और सरकार दोनों ने जनता के बीच राज्यपाल की लेटलतीफी का बखान शुरू किया है, और खासकर आदिवासी तबके को यह बताया जा रहा है कि आदिवासी होने के बावजूद राज्यपाल इस विधेयक को रोककर बैठी हैं। राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है, और बहुत से राज्यों में इससे कहीं बुरा टकराव देखा है। अब यह चुनाव का साल है, और केन्द्र सरकार के एजेंट की हैसियत से राज्यपाल का यहां काम कैसा रहता है, यह देखने की बात है।
चुनाव तक रोज के मुद्दे
छत्तीसगढ़ में अभी कोयला कारोबार पर से रंगदारी वसूलने की पूरी तस्वीर सामने आई नहीं है कि कुछ और मामलों के उठने के आसार दिख रहे हैं। इनमें कारखानों से वसूली, आयरन ओर खदानों से वसूली तो जुड़े हुए मामले लगते हैं, इनके अलावा केन्द्रीय जांच एजेंसियां महादेव ऐप को लेकर भी बड़ी उम्मीद से हैं कि उसमें भी कुछ ताकतवर लोग शामिल मिलेंगे। केन्द्र सरकार की एक जांच एजेंसी के हाथ ऐसे दस्तावेज भी लगे हैं जो बताते हैं कि बड़े किसानों से उनके किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से निकाली गई बड़ी-बड़ी रकमों को काला-सफेद करने के लिए किस तरह इस्तेमाल किया गया है। ऐसा लगता है कि चुनाव तक ये मुद्दे रोज सामने आते रहेंगे।
एक ट्रेनिंग ऐसी भी
ईडी के शिकंजे में फंसे अफसर और कारोबारियों की बॉडी लैंग्वेज पर चर्चा छिड़ी है. यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि इसके पीछे भी कुछ ना कुछ कहानी तो जरूर होगी ही। इस संबंध में हमको जो कहानी सुनने को मिली है, उसके अनुसार कहा जा रहा है कि तमाम लोग पहले से इस बात के लिए तैयार थे कि उन्हें एक ना एक दिन केन्द्रीय जांच एजेंसी के सामने पेश होना ही पड़ेगा। ऐसे में अधिकारी-कारोबारियों ने काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। कहा जा रहा है कि साल 2020 में जब आयकर विभाग की कार्रवाई हुई थी, उसी समय से केन्द्रीय जांच एजेंसियों के रिटायर्ड अधिकारियों, बड़े वकीलों और जानकारों की एक फौज तैयार कर ली गई थी। उस समय तो यहां तक हल्ला था कि कार्रवाई के दौरान बचाव पक्ष की यह टीम राजधानी रायपुर में ही डेरा डाले हुए थी और उसके निर्देश पर ही बचाव की रणनीति बनाई जा रही थी। आईटी के बाद जब ईडी की कार्रवाई से पहले और बाद में यह विशेष टीम जरूरी टिप्स दे रही थी, ताकि सभी लोगों को बेदाग निकाला जा सके। कुछ लोगों का तो यहां तक दावा है कि ईडी के सवालों के सामने अपनी बात पर अडिग रहने के लिए भी बकायदा घंटों-घटों रिहर्सल करवाया गया है। ईडी के मनोवैज्ञानिक दबाव के सामने भी स्ट्रेस फ्री रहने की ट्रेनिंग भी इसका हिस्सा था। इस टीम के लोगों ने यह भरोसा दिलाया कि डिजीटल प्रूफ, चैट्स और रिकार्डिंग को कोर्ट में आसानी से चुनौती दी जा सकती है। चर्चा है कि इस ट्रेनिंग के कारण ही ईडी के शिकंजे में फंसे अफसर-कारोबारी बेफिक्र नजर आ रहे हैं।
तंत्र-मंत्र से भागेगा ईडी का भूत
छत्तीसगढ़ में ईडी से निपटने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। चर्चा है कि बाबाओं और अघोरियों को भी इस काम में लगाया गया है, जो लगातार अनुष्ठान कर संकट को भगाने की कोशिश कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह काम भी एक बड़े नेता की देखरेख में चल रहा है। अनुष्ठान, हवन राज्य के अलावा दूसरे प्रदेशों की मान्यता प्राप्त स्थानों पर चल रहा है। समय-समय पर राज्य के प्रमुख लोग आहूति देने और इन स्थानों पर मत्था टेकने जाते भी हैं। खैर, तमाम बातें केवल चर्चाओं में हैं और ये उन लोगों की आस्थाओं का विषय है, लेकिन चर्चाओं में थोड़ी भी सच्चाई है, तो यह बात तो मनानी पड़ेगी कि दोनों तरफ से तलवारें खींची हुई है। अब देखना यह होगा कि कौन किस पर कितना भारी पड़ता है।
तो इनका स्टापेज क्यों नहीं?
हमसफर एक्सप्रेस, कामाख्या कर्मभूमि एक्सप्रेस, मुंबई हावड़ा वीकली सुपर फास्ट, सांतरागाछी सुपरफास्ट, हावड़ा सुपर फास्ट, मालदा टाउन एक्सप्रेस, दुरंतो एक्सप्रेस, दुरंतो एक्सप्रेस, दरभंगा एक्सप्रेस, रक्सौल साप्ताहिक, गोवा जसीडीह, पुरी सुपर फास्ट, कविगुरु एक्सप्रेस, गांधीधाम-पुरी वीकली, हटिया सुपरफास्ट, विशाखापट्टनम सुपर फास्ट, तिरूपति सुपरफास्ट, पुरी सुपर फास्ट,गांधीधाम पुरी वीकली और हापा बिलासपुर सुपर फास्ट। ये सूची उन ट्रेनों की है, जिनका स्टापेज राजनांदगांव में देने की मांग वर्षों से हो रही है। यहां के सांसद से मांग हो रही है कि जिस तरह से आपने वंदेभारत ट्रेन को रुकवाने की मांग ट्रेन शुरू होने के दो दिन पहले पूरी करा ली, उसी तरह से तत्परता दिखाएं और इन ट्रेनों का भी स्टापेज शुरू कराएं। वंदेभारत तो खास लोगों की ट्रेन है, पर बाकी जिन ट्रेनों को रोकने की मांग हो रही है, उसका बड़ी संख्या में आम यात्री, रोजाना सफर करने वालों को लाभ मिलेगा। जायज मांग है जब 130 किलोमीटर की रफ्तार में चलने वाली ट्रेन रुक सकती है तो 70-80 की औसत गति में चलने वाली ट्रेनों पर बात क्यों नहीं? राजनांदगांव कोई छोटा शहर तो है नहीं।
रेलवे का राजगीत पर रुख
वंदेभारत ट्रेन के स्वागत में रखे गए सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुत राजगीत के दौरान रेलवे अफसरों के बैठे रहने, नाश्ता करते रहने का विवाद रुक नहीं रहा है। रेलवे अधिकारियों ने राजगीत-अरपा पैरी के धार, गाये जाने के दौरान सम्मान में खड़ा नहीं होने पर अपना तर्क देते हैं। उसका कहना है कि यह सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था। राजगीत के रूप में इसे नहीं गाया गया। हालांकि एनएसयूआई ने मामले में एफआईआर की मांग की है। उनका कहना है कि रेलवे के अफसरों ने छत्तीसगढिय़ों की भावनाओ को ठेस पहुंचाई। रेलवे अधिकारियों को इस बात का संतोष है कि भाजपा नेता इस चूक को तूल नहीं दे रहे हैं, वरना केंद्र से जुड़े होने के कारण उन्हें अपना बचाव करना मुश्किल हो जाता।
इस तरह मिली पसंद की साइकिल
इस छात्रा को सरकारी योजना से एक लेडीज साइकिल पहले मिली थी, फिर वह जेंट्स साइकिल से स्कूल आने लगी। स्कूल में शिक्षक देख रहा था कि छात्रा को लडक़ों की बड़ी साइकिल चलाने में दिक्कत है, फिर भी वह आ रही है। फिर पाया कि बीच-बीच में वह स्कूल नहीं आ रही। शिक्षक ने आखिर पूछ लिया। तुम जेंट्स साइकिल में क्यों आती हो और बीच-बीच में गैप क्यों करती हो। छात्रा ने बताया मेरी साइकिल पिताजी ने एक रिश्तेदार को दे दी। उसे मजदूरी के लिए दूर जाना पड़ता है। पड़ोसी के पास साइकिल थी, उसने कहा इसमें तुम स्कूल चल दिया करो। फिर, बीच-बीच में क्यों गैप कर देती हो? छात्रा ने बताया- जब पड़ोसी को साइकिल की जरूरत पड़ जाती है तो मुझे आने का साधन नहीं मिलता।
शिक्षक को एक साथ कई ख्याल आए। पिता में इतनी हमदर्दी कि उसने अपने मजदूर रिश्तेदार को बेटी की साइकिल दे दी। पड़ोसी में सहयोग भावना कि वह अपनी साइकिल छात्रा को स्कूल जाने के लिए दे रहा है। तीसरी बात छात्रा का जुनून कि मांगी हुई बड़ी सी साइकिल से स्कूल आ रही है।
शिक्षक ने अपने सोशल मीडिया पर दोस्तों के ग्रुप में इस समस्या के बारे में बताया। कुछ ही घंटों में छात्रा के लिए नई लेडीज साइकिल खरीदने के लायक फंड जमा हो गया। छात्रा के पिता के साथ शहर जाकर शिक्षक साइकिल लेकर आए। अब छात्रा इसी से स्कूल आना-जाना कर रही है। यह घटना कोरबा जिले के गढक़टरा स्कूल की है। जहां शिक्षक, बच्चों और ग्राम वासियों के बीच अच्छा तालमेल है। रचनात्मक गतिविधियों के कारण इस स्कूल की कई बार चर्चा हुई है।
अदालत में ईडी से खुले कई राज
सूर्यकांत तिवारी गिरोह के खिलाफ ईडी ने अदालत में लंबी चार्जशीट पेश कर दी है। यह कुल आठ हजार से अधिक पेज की बताई जा रही है, लेकिन इसके ढाई सौ पेज का एक दस्तावेज ईडी की जुबान में कम्प्लेंट कहा जा रहा है, यह दस्तावेज बड़ा दिलचस्प है। कुछ लोगों के पास यह कल पहुंचा तो लोगों ने इसे एक क्राईम थ्रिलर की तरह देर रात जागकर भी पढ़ लिया। अब इसमें जो सॉफ्ट कॉपी लोगों के हाथ लगी है उसमें 199 से 221 तक के पेज गायब हैं। इस कम्प्लेंट के शुरू में बनाई गई सूची को देखें तो ऐसा लगता है कि इस मामले में अब तक फरार संदिग्ध लोगों की जानकारी वाले पन्ने गायब हैं, और कई लोगों को गवाह बनाने के पीछे ईडी की वजह भी गायब है। बीस-बाईस पेज को लेकर लोगों की उत्सुकता बनी हुई है कि अदालत में पेश कॉपी में भी ये पन्ने लगे हैं या नहीं? और इन पन्नों की ये जानकारियां बड़ी दिलचस्प भी होंगी इसलिए भी लोग एक-दूसरे से इन पन्नों को मांगते घूम रहे हैं।
ईडी की इस कम्प्लेंट से पता लगता है कि किस तरह आईएएस समीर बिश्नोई ने सूर्यकांत तिवारी से बातचीत को अपने फोन पर रिकॉर्ड करके रखा था, और बाद में यह फोन और रिकॉर्डिंग ईडी के हाथ लग गए, तो उसका काम कुछ आसान भी हो गया, और कुछ मजबूत सुबूत भी मिल गए।
न सिर्फ इस कोयला-उगाही के हिसाब-किताब से, बल्कि नेता, अफसर, ठेकेदार, इन सबकी जमीन खरीदी से भी पता लगता है कि नोटबंदी के एक दावे की पोल खुल चुकी है कि अब दो नंबर का कारोबार बंद हो गया है। लोग जमीनों की खरीद-फरोख्त में चेक से अधिक भुगतान दो नंबर की कैश से कर रहे हैं, और उस पर कोई भी रोक नहीं है, जमीन का हर सौदा दो नंबर के पैसों से हो रहा है, और नोटबंदी की तरफ देखकर ये नोट हॅंसते रहते हैं।
लेन-देन में नाम तो इनके भी!
कुछ लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि कोयले के इस कारोबार को लेकर प्रदेश में भाजपा को जितना आक्रामक होना था, वह उसके आसपास भी नहीं है। लेकिन कुछ अधिक जानकार लोग बताते हैं कि इंकम टैक्स और ईडी के छापों में दो नंबर के लेन-देन के जो कागज बरामद हुए थे, उन्हीं में यह हिसाब भी निकला है कि भाजपा के किन नेताओं को इस वसूली में से कितना भुगतान होता था। अब ये दोनों विभाग अपने को मिली हर जानकारी का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, सिर्फ कोयला कारोबार तक अपने को सीमित रखा है, इसलिए वे नाम अभी दबे हुए हैं, लेकिन दिल्ली की जानकारी में आ चुके हैं, और राज्य में कुछ फेरबदल के पीछे भी ऐसे ही नाम थे।
बहुत देर हो चुकी है
दिल्ली की खबर यह है कि छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के तथाकथित फॉर्मूले के आधार पर अब कोई भी फेरबदल नहीं होना है। पार्टी की ओर से यह साफ कर दिया गया है कि ‘उस आधार पर’ कुछ भी करने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है। वैसे भी हिमाचल में एक राजपूत के मुख्यमंत्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ के इस चर्चित फॉर्मूले पर पूर्णविराम लग गया है।
एक ट्रेन पर सौ कुर्बान...
रविवार का दिन रेलवे के नाम पर था। बिलासपुर से नागपुर के बीच शुरू हुई वंदेभारत ट्रेन का जिस तरह स्वागत हुआ उससे यह भी साफ हुआ कि किसी एक उपलब्धि को कितना बड़ा इवेंट बनाया जा सकता है। वंदेभारत ट्रेन को पहले दिन उन स्थानों पर भी रोका गया, जहां उसका स्टापेज नहीं था। नागपुर से बिलासपुर तक जबरदस्त तैयारी की गई थी। इस बीच बाकी ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों का क्या हाल था, इस पर भी नजर डाल लेते हैं। पहली बार नागपुर से बिलासपुर के लिए तेज रफ्तार से वंदेभारत ट्रेन चल रही थी। इधर विपरीत दिशा से इंटरसिटी एक्सप्रेस छूटी। यह भी बिलासुपर से नागपुर (इतवारी) चलती है। दोपहर बाद 03.50 पर यह बिलासपुर से छूटती है। इसे 04.35 पर 46 किलोमीटर दूर भाटापारा पहुंचना चाहिए, पहुंची शाम 07.35 बजे। यह दूरी लगभग 40 मिनट में तय हो जाती है, पर लग गए 02.30 घंटे से भी ज्यादा। इसके बाद ट्रेन ठीक चली और एक घंटे बाद रायपुर पहुंच गई। शायद इसलिये क्योंकि वंदेभारत ट्रेन तब तक भाटापारा पार करके अपने आखिरी स्टेशन तक पहुंच चुकी थी। इसी बीच बिरौनी से गोंदिया से चलने वाली ट्रेन का उसलापुर (बिलासपुर) पहुंचने का था। वह ट्रेन पहले से देर से चल रही थी। पर दोपहर में जब पेंड्रारोड पहुंच गई तो उसलापुर तक पहुंचने में उसे तीन घंटे से ज्यादा वक्त लगा। वंदेभारत ट्रेन से आने वाले यात्रियों ने बताया कि कहीं पर भी 110 से 120 की स्पीड में चली इस ट्रेन को ओवरटेक करते नहीं देखा गया। रास्ते भर यात्री ट्रेनें और मालगाड़ी किनारे लगी दिखीं। रेलवे के अफसर बता रहे हैं कि नागपुर से बिलासपुर के बीच चलने वाली 125 से अधिक ट्रेनों को वंदेभारत के लिए नियंत्रित किया गया। इनमें मालगाड़ी के अलावा सुपरफास्ट यात्री गाडिय़ां भी थीं। अब सप्ताह में 6 दिन शेड्यूल के मुताबिक लगभग पूरे दिन अप-डाउन मिलाकर वंदेभारत ट्रेन बिलासपुर-नागपुर के ट्रैक पर चलेगी। पहले से ही इस रूट पर अधिकांश गाडिय़ां लगभग रोज ही लेट चल रही हैं। अब इसमें और इजाफा हो सकता है। जिस तरह एक्सप्रेस गाडिय़ों के बाद पैसेंजर का और सुपर फास्ट ट्रेनों के बाद एक्सप्रेस का क्रेज घटा, उसी तरह अब सेमी हाई स्पीड ट्रेन के बाद क्या सुपर फास्ट ट्रेनों की स्थिति नहीं हो जाएगी?
जांच रिपोर्ट में सब ओके?
अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में चार नवजात शिशुओं की मौत के मामले की जांच के लिए टीम बनाई गई, 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश था। जांच टीम ने इससे भी तेजी से काम किया। उसने जांच संभालते ही तीन-चार घंटे के भीतर ही रिपोर्ट तैयार कल ली। डीएमई को जांच रिपोर्ट भेज दी और डीएमई ने स्वास्थ्य मंत्री को फाइल भेज दी। मालूम हुआ है कि इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिजली बंद होने के कारण वेंटिलेटर बंद नहीं हुआ था और इसकी वजह से नवजातों की जान नहीं गई। पर दूसरा पहलू यह है कि जब इनकी तबीयत बिगडऩे लगी तब सीनियर डॉक्टर्स वहां मौजूद थे? परिजनों का तो आरोप है कि इस दौरान डॉक्टर पहुंचे ही नहीं। उन्हें तबीयत बिगडऩे के बारे में किसी स्टाफ ने रात में कुछ नहीं बताया, सीधे मौत की खबर दी गई। ये जिम्मेदारी किसकी थी? मौतों को लेकर अंबिकापुर में काफी गुस्सा था। स्वास्थ्य मंत्री और विभाग के सचिव हेलिकॉप्टर से वहां पहुंचे। भाजपा ने काला झंडा दिखाकर प्रदर्शन किया। भाजपा का कहना है कि उन्हें जांच टीम पर भरोसा नहीं । जांच करने वाले डॉक्टर यहां के डीन और अधीक्षक के नीचे काम कर चुके हैं। हालांकि भाजपा ने खुद भी एक टीम बनाकर अपनी जांच रिपोर्ट तैयार करने की बात कही है। भले ही उस रिपोर्ट को राजनीतिक नजरिये से देखा जाए और वैधानिकता न हो, पर कुछ और सच सामने आने की गुंजाइश बनी हुई है। फिलहाल स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट पर तक किसी पर कोई एक्शन होने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।
मिट्टी से महक लेते आईपीएस
भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी, महासमुंद के पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल ने वक्त निकाला और अपने गांव रायगढ़ जिले के तारापुर पहुंच गए। गांव में इस समय धान के फसल की कटाई, मिंसाई का काम चल रहा है। इसमें भी उन्होंने हाथ बंटाया। सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें शेयर करते हुए उन्होंने लिखा- छत्तीसगढ़ महतारी के माटी के सुंगध मोर रोम-रोम पुलकित कर देवत हे। बड़े प्रशासनिक पदों से जुड़े अधिकारी जब मिट्टी से जुड़ाव को नि:संकोच जाहिर करते हैं तो उनको तारीफ मिलती है। इस ट्वीट को भी मिल रही है। रायगढ़ से आने वाले अफसरों को लेकर लोग कुछ अलग बातें भी करते हैं। सन् 2023 से जोडक़र इसे नहीं देखा जाना चाहिए।
क्या इस बार दो-दो बातें होंगीं?
खबर है कि जयसिंह अग्रवाल की कलेक्टर के खिलाफ खुले तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी से सीएम नाखुश हैं। अग्रवाल पहले भी अपने गृह जिले कोरबा के कलेक्टरों पर काफी कुछ बोल चुके हैं। मौजूदा कलेक्टर संजीव झा से पहले रानू साहू, और किरण कौशल भी मंत्रीजी के गुस्से का शिकार हो चुकी हैं। मगर इस बार बिना किसी प्रमाण के कलेक्टर पर घूसखोरी का आरोप लगाने से आईएएस एसोसिएशन भी नाखुश है। सीएम भूपेश बघेल लौटने के बाद राजस्व मंत्री से बात कर सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
ये कलेक्टर भी शिफ्ट होंगे?
कोरबा में मंत्री जयसिंह अग्रवाल फिर कलेक्टर से नाराज हैं। पूछ लिया है कि कलेक्टरी करने आए हैं या घूसखोरी। दरअसल, ट्रैफिक बढऩे के कारण ट्रांसपोर्टनगर को शिफ्ट किया जाना है। पहले के प्लान के अनुसार इसे बरबसपुर लेकर जाना है। मंत्री ने सुना कि इस प्लान को बदला जा रहा है, नई जगह तलाश की जा रही है तो उन्होंने स्थल पर पहुंचकर कलेक्टर को बुलाया। कलेक्टर पहुंचे नहीं। अपर कलेक्टर और दूसरे अफसरों को भेज दिया। आधी नाराजगी तो इसी को लेकर थी। न कोई मीटिंग में हैं, न शहर से बाहर हैं, फिर भी नहीं आए। बाकी अफसरों से पूछा बरबसपुर की जगह कोई नई जगह क्यों तय की जा रही है। बताया गया कि यहां काफी संख्या में निजी जमीन है। लोगों को हटाना मुश्किल होगा। पर मंत्री को पता था कि यहां सब सरकारी जमीन थी। निजी लोगों के नाम पर तो बाद में चढ़ा दी गई। तहसीलदार, पटवारी के अलावा और कौन यह काम करेगा? मंत्री ने कहा- ट्रांसपोर्टनगर यहां के अलावा कहीं और शिफ्ट नहीं होगा, शिफ्ट होंगे तो कलेक्टर। देखें, मंत्री और कलेक्टर एक दूसरे को कब तक बर्दाश्त करेंगे।
सचमुच तरक्की हुई है..
छत्तीसगढ़ सचमुच ही बहुत तरक्की कर रहा राज्य है। राजधानी रायपुर की सडक़ों पर 18 से 23 लाख तक में आने वाली एक महंगी कार पर नायब तहसीलदार लिखा दिख रहा है और नायब तहसीलदार के ऊपर के अफसरों के लिए तो आटोमोबाइल बाजार में और बड़ी गाडिय़ां हैं ही।
मर्यादा लांघने से क्या होगा?
आरक्षण विधेयक को लेकर भाजपा कांग्रेस के बीच चल रही जुबानी जंग बस्तर में कुछ ज्यादा ही तल्ख हो गई है। पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने बीजेपी कार्यालय में कह दिया कि अगर कवासी लखमा असल मां-बाप के बेटे हैं तो आरक्षण लागू करके दिखाएं। लखमा भी पीछे नहीं हटे, जवाब आ गया। मैंने तो मां का दूध पिया है। केदार ने अपनी मां का दूध पिया है तो विधेयक की फाइल पर राज्यपाल की दस्तखत कराके दिखाएं।
आरक्षण का मुद्दा बेहद संवेदनशील है। यह कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों के लिए नाक का सवाल बन चुका है। पर इसके लिए एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने के लिए जिस तरह से अमर्यादित बोल निकल रहे हैं, वह जगहंसाई का कारण बन रहा है।
खटारा बसों में सफर
बस की हालत बता रही है कि इसे दुर्घटनाग्रस्त होने से कोई रोक नहीं सकता। परिवहन विभाग की जिम्मेदारी है कि बसों का फिटनेस नियमित रूप से चेक करे। पर ग्रामीण इलाकों में जिस हालत में सवारी बसें चल रही हैं, उससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि चेकिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। पिछले दिनों कुनकुरी से अंबिकापुर जा रही यह बस एक घाट में पलट गई थी। गनीमत है कि यात्री सिर्फ घायल हुए।
टमाटर ने कर्ज में डुबाया
रायगढ़ जिले में खासकर पत्थलगांव में बीते तीन-चार सालों से टमाटर की फसल लेने वाले किसानों को अच्छा फायदा हुआ। बीते साल इसकी खेती 12 हजार एकड़ तक पहुंच गई थी। इस बार और ज्यादा किसानों ने टमाटर की खेती की, करीब 17 हजार एकड़ में खेती की गई। नतीजा यह रहा कि अब खरीदार नहीं मिल रहे हैं। हालत यह है कि थोक व्यापारी 3 रुपये किलो की बोली लगा रहे हैं। इससे कई गुना तो किसानों को खेती में खर्च बैठ गया है। अधिकांश ने बेचकर चुकाने के भरोसे कर्ज भी ले रखा है। पर, हालत यह है कि वे फसल खेतों में ही सडऩे के लिए छोड़ रहे हैं। यह सरकारी एजेंसियों का काम था कि बाजार में मांग का आकलन कर किसानों को सचेत किया जाता और दूसरी फसल लेने के लिए कहा जाता। टमाटर के लिए रायगढ़ इलाके में फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की कई बार बात हुई है। बीते मार्च माह में क्षेत्रीय सांसद गोमती साय ने लोकसभा में यूनिट लगाने की मांग उठाई थी। उन्होंने बताया था कि टमाटर, आलू, मिर्च जैसी फसलों का बंपर उत्पादन होने के कारण तत्काल अच्छी कीमत नहीं मिल पाती। सांसद ने सवाल उठाने के बाद क्या प्रयास अपने स्तर पर किया, यह पता नहीं। पर इस बार तो टमाटर उगाने वाले हजारों किसान ठगा महसूस कर रहे हैं।
संक्षिप्त नामों से खतरा
दो नंबर के लेन-देन में नाम इशारों में लिखे जाते हैं, और ऐसे में कभी-कभी बड़ी गलतफहमी भी होती है। छत्तीसगढ़ में लोगों को याद है कि नान घोटाले की डायरी में सीएम मैडम को भुगतान का हिसाब लिखा हुआ मिला था, और उस वक्त एक पक्ष का यह कहना था कि सीएम का मतलब नाम के एक अधिकारी, चिंतामणि की मैडम से था, दूसरे पक्ष का कहना था कि यह सीएम, यानी चीफ मिनिस्टर की पत्नी के बारे में था। बाद में वह रकम इतनी छोटी थी कि उसके साथ मुख्यमंत्री की पत्नी का नाम जुड़ा होने का किसी को भरोसा नहीं हुआ था। नान नाम की उस संस्था में कमाई और भ्रष्टाचार की कितनी संभावना थी, वह कांग्रेस सरकार बनने के पहले ही ठीक से सामने आ गई थी। और इस सरकार में पार्टी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल इस निगम पर काबिज हुए। अब यहां खाता न बही, जो रामगोपाल कहे वह सही।
लेकिन नामों की दिक्कत आना जारी है। आईटी और ईडी के छापों में एक आरजी को करोड़ों रूपये देने का हिसाब वॉट्सऐप चैट में मिला। ऐसा ही हिसाब कोयला-माफिया खलनायक सूर्यकांत तिवारी की डायरियों में भी मिला। अब जैसा पिछली सरकार में सीएम मैडम नाम की गलतफहमी हुई थी, इस सरकार में भी आरजी के नाम से दर्ज करोड़ों की रकम का मतलब रामगोपाल है, या राहुल गांधी है, यह किसे पता। फिर भी कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल अब तक किसी जांच से बचे हुए हैं, क्योंकि भाजपा के एक पिछले कोषाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल उनके सगे समधी हैं, और कई बड़े कारोबार में दोनों परिवार भागीदार भी हैं। लेकिन कांग्रेस की राजनीति में संक्षिप्त नाम को आरजी लिखना बड़ा खतरनाक है।
रेल सुविधाओं की राजनीति
किसी शहर या कस्बे के कद को तौलने का एक तरीका यह भी होता है कि वहां कौन सी महत्वपूर्ण ट्रेनों का ठहराव है। 11 दिसंबर से शुरू होने वाली वंदेभारत ट्रेन का जहां-जहां ठहराव होगा, उस शहर के दर्जे को ऊंचा उठाएगा। राजनांदगांव से मांग उठी और सांसद संतोष पांडेय ने रेल मंत्री से मुलाकात कर लोगों की नाराजगी के बारे में बताया। ट्रेन के स्टापेज की संख्या शुरू होने से पहले ही बढ़ा दी गई। दुर्ग के बाद अब यह महज 31 किलोमीटर दूर राजनांदगांव में भी रुकेगी।
इधर सांसद गोमती साय ने भी रेल मंत्री से मुलाकात की है। उन्होंने वंदेभारत ट्रेन रायगढ़ से चलाने की मांग की है। मंत्री जी ने भी कहा कि आपके प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर निर्णय लिया जाएगा। कोई संदेह नहीं कि रायगढ़ से वंदेभारत ट्रेन शुरू होने और राजनांदगांव में स्टापेज मिलने से यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी, पर दोनों सांसद केवल उस विषय पर बात कर रहे हैं जो आज के दिन चर्चा में है। रायगढ़ जिले को, और अब सारंगढ़ को भी- ममता बेनर्जी के समय हुई घोषणा पर आज भी आगे काम होने का इंतजार है। यह है रायपुर-सारंगढ़-झारसुगुड़ा रेल परियोजना। यूपीए सरकार के समय ही संसद में इसके सर्वेक्षण के लिए मंजूरी दे रखी है। 310 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन पर उस समय अनुमान लगाया गया था कि करीब 2100 करोड़ रुपये खर्च होंगे। रास्ते में 33 स्टापेज भी तय किए गए थे। इनमें पलारी, बलौदाबाजार, लवन, कसडोल, बिलाईगढ़, सरसीवां, सारंगढ़ आदि शामिल हैं। इसी तरह एक पुरानी मांग है राजनांदगांव, खैरागढ़ से मुंगेली होते हुए कटघोरा तक रेल लाइन बिछाने की। करीब 100 साल पहले अंग्रेजों ने इस लाइन का सर्वे किया था। इसके लिए जमीन भी अधिग्रहित की गई थी। शहरों में इस जमीन पर कॉलोनियां बन चुकी हैं और गांवों में खेत-खलिहाल। एनडीए के पहले कार्यकाल में इस परियोजना में थोड़ा संशोधन किया गया। राजनांदगांव की जगह से डोंगरगढ़ से कवर्धा होते हुए मुंगेली और बिलासपुर के उसलापुर होते हुए कटघोरा को जोडऩे की योजना बनाई गई। सन् 2017 में इसकी करीब 277 किलोमीटर इस रेल लाइन की लागत 4820 करोड़ तय की गई।
दावा किया गया था कि इसके लिए जमीन अधिग्रहण का काम तीन साल के भीतर कर लिया जाएगा। यानि 2020 में काम शुरू हो जाना था। याद आता है कि बिलासपुर के सांसद अरुण साव ने एक बार लोकसभा में इस परियोजना के लिए शून्यकाल में आवाज उठाई थी। वे बिलासपुर से सांसद हैं और मुंगेली उनका गृह-जिला है। सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से भाजपा सांसदों ने वंदेभारत ट्रेन शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री को बधाई तो दी है, पर साव, गोमती साय, संतोष पांडेय और वे सभी सांसद जिनके इलाकों को इन वर्षों से रुकी हुई परियोजनाओं से लाभ होगा, के लिए भी आवाज उठाते नहीं देखा जा रहा है। वंदेभारत के लिए जश्न तो मनाना बनता है, पर छत्तीसगढ़ के लाखों निवासियों को फायदा पहुंचाने वाली वर्षों पुरानी मांगों को भूल जाना भी ठीक नहीं है।
नए जिलों को लेकर अभी ना..
जिन जगहों में नए जिलों की मांग है उनमें राजिम भी एक है। यहां भी एक सर्वदलीय मंच है जो इसे लेकर आंदोलित है। पिछले दिनों इसके प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी तो उन्हें साफ बता दिया गया कि अभी राजिम को जिला बनाने पर विचार नहीं हो रहा है। जिला बनाने की मांग करने वालों का कहना है कि अमितेश शुक्ल को रिकॉर्ड 58 हजार मतों से सन् 2018 में इसीलिए जीत मिली थी क्योंकि उन्होंने जिला बनाने की मांग को पूरा करने का भरोसा दिया था। कांग्रेसी इसके जवाब में कह रहे हैं कि एक यही मांग पूरी नहीं हुई, वरना सीएम ने तो राजिम इलाके के विकास के लिए जितनी भी परियोजनाओं की मांग की गई, सबको मंजूरी दी है। वैसे स्व. अजीत जोगी के कार्यकाल में राजिम को जिला बनाने को लेकर लगभग सहमति बन चुकी थी। कुछ तकनीकी कारणों से इसकी घोषणा नहीं हो पाई। कटघोरा, भानुप्रतापपुर सहित पांच-सात जगहों से नए जिलों की मांग उठ रही है। मौजूदा स्थिति यही कि नए जिलों की घोषणा को लेकर अब सरकार जल्दी में दिखाई नहीं देती।
दानी और दयालु चोर
बीते दिनों दुर्ग के पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव ने चोरी के मामले में पकड़ाए कुछ आरोपियों से संवाद किया। उनसे पूछा कि चोरी क्यों की? किसी ने कहा नशे की आदत के चलते, किसी ने घर चलाने, लत लग जाने की बात कही। पर एक ने बताया कि उसने 10 हजार रुपये चुराए, पर सब लुटा दिए। कुछ पैसे गरीबों को बांट दिए, जिन्हें भोजन की जरूरत थी। बाकी पैसों से गर्म कपड़े खरीदे। गली-मोहल्लों में घूम रहे लोग, लावारिस गाय, कुत्ते इस समय ठंड से ठिठुर रहे हैं, जो दिखा उनको पहनाता गया। एसपी भी चौंक गए। कहा- तब तो अल्लाह का तुमको आशीर्वाद मिला होगा? आरोपी ने कहा-उसी की दुआ है तब तो कर पा रहा हूं..।
यकीनन, इसने रॉबिन हुड या सुल्ताना डाकू के बारे में नहीं सुना होगा, वरना चोरी से भी बड़े जुर्म को अंजाम देने की सोच सकता है। बहरहाल, इकबाल के बावजूद कानून के तहत उसे जेल भेज दिया गया है।
महादेव का प्रसाद बंट रहा
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में महादेव ऐप की परतें जैसे-जैसे खुलती जा रही हैं, वैसे-वैसे इसमें ताकतवर लोगों की भागीदारी भी दिख रही है, और यह भी दिख रहा है कि किस तरह पुलिस के छोटे-बड़े कर्मचारी-अफसर महादेव का प्रसाद पाते आ रहे हैं। जिस सिपाही को दुर्ग पुलिस ने महादेव ऐप की सट्टेबाजी से जुड़ा हुआ पाकर सस्पेंड किया था, उसकी कल बहाली कर दी गई है, और यह दिलचस्प तर्क दिया है कि बहाल करने से वह पुलिस की नजर में रहेगा, सस्पेंड रहा तो वो कहीं भी भाग सकता है। जबकि दुनिया जानती है कि किसी के सस्पेंड रहने पर भी उसे सरकार के किसी न किसी दफ्तर में हाजिरी देकर वहां बैठना ही पड़ता है। ऐसा माना जा रहा है कि महादेव ऐप के तहत चारों तरफ इतना पैसा बंट रहा है कि उसके असर से परे कोई नहीं रह गए हैं। दुर्ग-भिलाई में जिस तरह ऐसे लोगों की भरमार है जिन्हें महादेव ऐप चलाने वाले दुर्ग-भिलाई के लोगों ने अपनी पार्टी में दुबई आने-जाने की टिकटें भेजी थीं, और लौटते में सबसे महंगे आईफोन का तोहफा दिया था। दुर्ग की इस ऑनलाईन सट्टेबाजी की कहानी बड़ी फिल्मी लगती है, और वहां से अखबारों के संवाददाता जब रिपोर्ट बनाकर भेजते हैं, तो लगता है कि वह किसी फिल्मी पटकथा लेखक की लिखी हुई है। दुर्ग के ऐसे ही एक पुलिस अफसर को अभी एक दूसरे मामले में ईडी ने नोटिस देकर बुलाया था, लेकिन अब आसार यह है कि महादेव ऐप के चक्कर में अब एक से अधिक केन्द्रीय जांच एजेंसियां इन अफसरों को फिर घेर सकती हैं। फिलहाल जिन छोटे-छोटे प्यादों को पकडक़र पेश किया जा रहा है, उसे महादेव ऐप और पुलिस की मिलीजुली कुश्ती बताया जा रहा है, देखें यह दिखावा कब तक असली जुर्म को छुपाकर रख सकता है।
गुजरात का आदिवासी रूझान
छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस को अगर भानुप्रतापपुर में सर्वआदिवासी समाज के उम्मीदवार को 23 हजार से अधिक वोट मिलने पर भी कोई फिक्र नहीं हो रही है तो उसे एक बार गुजरात की तरफ देख लेना चाहिए। गुजरात की 27 आदिवासी सीटों में से 24 भाजपा ने जीती हैं। वहां आदिवासियों के सामने कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी का विकल्प भी था, लेकिन ऐसा लगता है कि सारे ही आदिवासियों ने भाजपा के साथ जाना तय किया। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं 27 सीटों में से 15 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। अब वहां के बदले हुए नजारे से आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की नींद खुल जाना चाहिए। आदिवासी सीटों पर भाजपा उम्मीदवार किस दमदारी से जीते हैं, उस पर गुजरात कांग्रेस के अलावा देश के उन तमाम राज्यों में भी कांग्रेस को सोचना चाहिए जहां आदिवासी हैं।
कांग्रेस को विरोधियों की क्या जरूरत?
जशपुर में हाल ही में हुए फुटबाल टूर्नामेंट के दौरान शासन से मिले फंड का दुरुपयोग होने का आरोप लगा है। यह आयोजन कुनकुरी के माध्यम एंपावरमेंट ऑफ ट्राइवल एंड रुलर ऑर्गेनाइजेशन की ओर कराया गया, जिसे स्थानीय कांग्रेस विधायक यूडी मिंज का संरक्षण है। फंड के दुरुपयोग का आरोप भाजपा या किसी अन्य विरोधी दल ने नहीं बल्कि युवक कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रूही खान की ओर से लगाया गया है। उन्होंने कलेक्टर को पत्र लिखा है जिसमें मांग की गई है कि जबसे कांग्रेस की सरकार बनी है तब से शासन ने इस संस्था को कितनी फंडिंग की है और उसमें क्या काम किए गए, जानकारी दी जाए। शिकायत मंत्री टीएस सिंहदेव और उमेश पटेल से भी की गई है। बताया जाता है कि विवाद इसलिए खुलेआम सामने आया क्योंकि फुटबाल टूर्नामेंट में खान ने एक लाख रुपये अनुदान देने की सहमति जताई थी। इसके एवज में खेल मैदान में उनके पिता के नाम का एक बैनर लगाया जाना था। पर, जैसा आरोप है विधायक ने मैदान से बैनर उतरवा दिया। रूही खान समापन के दिन ही शिकायत लेकर कलेक्टर के पास पहुंच गए।
इस घटना ने बस्तर में हुए कुछ माह पहले की घटना की याद दिला दी। युवा आयोग के सदस्य अजय सिंह ने बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, विधायक विक्रम मंडावी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सार्वजनिक रूप से लगाए थे। आरोप कितने पुख्ता थे, क्या जांच हुई यह तो बाहर नहीं आया, लेकिन अपनी ही पार्टी के विधायक के खिलाफ मोर्चा खोलने के कारण उनको कांग्रेस से ही बाहर कर दिया गया। जशपुर मामले में शिकायत सीधे विधायक के खिलाफ नहीं बल्कि उनकी संस्था की हुई है। विधायक का नाम लेने से भी बचा गया है। बस्तर की तरह जशपुर में शिकायत करने वाला कांग्रेसी युवा वर्ग से है। जशपुर जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष खान, निर्वाचित अध्यक्ष हैं। देखना है कि कोई जांच होती है या शिकायत करने का ही कोई नुकसान उनको उठाना पड़ेगा। बहरहाल, भाजपा सांसद ने इस मुद्दे को कांग्रेस की कलह बताते हुए कहा है कि विपक्ष की जरूरत ही नहीं पड़ी। कांग्रेस के ही नेता ने आरोप लगाए हैं, जांच होनी तो जरूर चाहिए।
स्टंट के बीच स्टंट रोकने की अपील
शहरों में जादूगर अपना शो शुरू करने के पहले बाइक से शहर में घूमते हैं। कभी आंख में पट्टी बांधकर तो कभी अचरज भरे दूसरे कारनामे करते हुए। जीपीएम जिले में जादूगर आकाश का शो ऐसा ही था। लोगों ने तब दांतों तले ऊंगली दबा ली जब एक बाइक पर जादूगर इस तरह से चला जा रहा था मानो उसके शरीर में सिर्फ धड़ है और सिर गायब। पुलिस, खासकर जो यातायात संभालती है, अक्सर यातायात नियमों का पालन करने और स्टंट नहीं करने की अपील करती है। इसके लिए शिविर भी लगाती है। ऐसे में एक जादूगर को शहर में स्टंट करते हुए गुजरना था। कोई विपरीत संदेश न चला जाए। एसपी यू उदय किरण ने इसकी तरकीब निकाली। जादूगर के आगे-पीछे पुलिस जवान बाइक में तो चल ही रहे थे, साथ ही वे एसपी का संदेश भी पहुंचा रहे थे कि बाइक पर स्टंट न करें। यह कानूनन गलत तो है ही, दुर्घटना भी हो जाती है। जादूगर जो दिखा रहे हैं उसकी नकल तो बिल्कुल नहीं करें। जादूगर ऐसा कर रहे हैं तो इसके पीछे उनका वर्षों का अभ्यास है।
भाजपा के वोटों पर अधिक सेंध
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी ने तीसरे स्थान पर रहकर यह बता दिया कि वह भी मुकाबले में थी। बहुत से लोगों का आकलन था कि इसका लाभ भाजपा को मिलेगा, क्योंकि कांग्रेस के खिलाफ आरक्षण का मुद्दा काम कर रहा है। भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की घोषणा भी नहीं की गई है। पर हुआ यह कि सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार से भाजपा को अधिक नुकसान उठाना पड़ा। दरअसल भानुप्रतापपुर का चारामा ऐसा इलाका है जहां भाजपा को हमेशा लीड मिलती रही है। जीत कांग्रेस को मिले तब भी 5-6 हजार वोटों की लीड यहां से भाजपा ले जाती रही है। पर इस बार भाजपा यहां से भी पिछड़ गई। दूसरे राउंड से पांचवे राउंड की गिनती चारामा के वोटों की थी, जिसमें सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम दूसरे स्थान पर चल रहे थे। अब लोगों की निगाह इस बात पर टिकी रहेगी कि आम चुनाव को लेकर सर्व आदिवासी समाज क्या फैसला लेगा।
मैरेज वैन्यू में तय हुआ क्रिकेट मैच...
गुजरात, और हिमाचल के चुनाव के नतीजे से पहले जयपुर में दो दिन पहले रायपुर के एक कारोबारी की बेटी की शादी थी। शादी समारोह में राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह साथ-साथ नजर आए। कारोबारी छत्तीसगढ़ क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े हैं, और राजीव शुक्ला व जय शाह से इसी वजह से संबंध हैं।
राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य बने हैं। उनके प्रयासों से ही रायपुर में भारत, और न्यूजीलैंड के बीच अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच तय हो पाया है। नवा रायपुर के शहीद वीर नारायण सिंह स्टेडियम में 21 जनवरी को यह मैच खेला जाएगा। सुनते हंै कि शादी समारोह के बीच ही क्रिकेट मैच के आयोजन की रूप रेखा तैयार हुई। बीसीसीआई के कर्ताधर्ता राजीव शुक्ला, और जय शाह साथ-साथ थे, तो सब कुछ आम सहमति से तय हो गया।
हिमाचल से भी खो...
हिमाचल प्रदेश में जीत से राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और सीएम भूपेश बघेल का कद बढ़ा है। क्योंकि राजीव चुनाव प्रभारी थे, और भूपेश सह प्रभारी थे। दोनों ही चुनाव के प्रमुख रणनीतिकार रहे। अब चुनाव नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए हैं, तो दोनों को श्रेय मिलेगा ही। इससे परे भाजपा के चुनाव संचालक की कमान सौदान सिंह संभाल रहे थे।
सौदान सिंह लंबे समय तक छत्तीसगढ़ भाजपा की संगठन की धुरी माने जाते रहे हैं। यही नहीं, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर थी। पूर्व मंत्री राजेश मूणत सहित कई नेता प्रचार के लिए हिमाचल प्रदेश भी गए थे, लेकिन पार्टी को यहां झटका लगा है। ऐसे में यहां के नतीजे छत्तीसगढ़ के नेताओं के लिए भी अहम रहा है।
छत्तीसगढ़ में अब ‘आप’ की भूमिका
वैसे तो गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर पूरे देश का ध्यान लगा था, पर छत्तीसगढ़ में लोगों को आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को लेकर जिज्ञासा थी। पार्टी नेता घोषणा कर चुके थे कि गुजरात के बाद उनका लक्ष्य छत्तीसगढ़ में सक्रिय होना है। बीते एक डेढ़ साल से इसकी तैयारी बड़े स्तर पर हो रही है। छत्तीसगढ़ में जन्म लेने वाले संदीप पाठक को पंजाब से राज्यसभा में इसलिए भी भेजा गया कि 2023 में लाभ लिया जा सके। वे गुजरात चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे थे। पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के कई दौरे हो चुके हैं। खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में प्रत्याशियों का खड़ा नहीं करने की रणनीति इसीलिए बनाई गई कि गुजरात के नतीजों का उदाहरण रखकर सीधे आम चुनाव में ताल ठोंकी जाए। पर आप को गुजरात ने निराश कर दिया। इस कमजोर प्रदर्शन ने छत्तीसगढ़ में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाने की उम्मीद रखकर चलने वाले नेताओं को मायूसी हाथ लगी है। पंजाब और फिर दिल्ली नगर-निगम में मिली जीत का जोश गुजरात के नतीजे के आगे कमजोर पड़ गया है। इन परिस्थितियों में आप अपने आपको विकल्प की भूमिका में तैयार कर पाएगी या नहीं, यह सवाल खड़ा हो गया है। लेकिन साथ ही यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि पंजाब के 2017 के विधानसभा चुनाव में आप को कुल 20 सीटें मिली थीं, जो 2022 में बढक़र 117 हो गई थीं, और पार्टी की सरकार बन गई थी।
कडक़ड़ाती ठंड में सडक़ पर खिलाड़ी
छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक खेलों को लेकर युवाओं में जितना जोश दिखाई दे रहा है, प्रशासन की उतनी ही लापरवाही जगह-जगह सामने आ रही है। समय पर चिकित्सा नहीं मिल पाने के कारण तीन खिलाडिय़ों की अब तक मौत हो चुकी है। जशपुर में जंगल में लड़कियों को रोककर आयोजन से जुड़े लोग दारू पीते मिले थे। अब जगदलपुर से भी जो खबर आई है वह भी कम शर्मनाक नहीं। भूख से बेहाल होकर खिलाडिय़ों को कडक़ड़ाती ठंड में रात को सडक़ पर निकलना पड़ा। ये वे खिलाड़ी हैं, जो स्थानीय स्तर पर जीत दर्ज करने के बाद संभागीय मुख्यालय में प्रदर्शन के लिए आए हैं। चक्का जाम होने पर अधिकारियों की नींद खुली और तब आनन-फानन में खाना तैयार किया गया। जो परोसा गया वह भी स्तरहीन था। पानी वाली दाल और कच्चा चावल। ऐसे युवा जिन्हें खेल मैदान मे दम-खम दिखाना है, उनके लिए तो भोजन पर्याप्त और पौष्टिक होना चाहिए। मगर, अफसर शायद यह समझ रहे हैं कि गांव से आए हुए इन युवाओं को जो खिला दो या न भी खिलाओ, क्या फर्क पड़ता है। जनप्रतिनिधियों को भी शायद इन खेल समारोहों में मंच और माइक की चिंता रहती है, खिलाडिय़ों की नहीं।
वंदे भारत के लिए मालगाड़ी भी रुकेगी
बीते कई महीनों से जोन से गुजरने वाली ज्यादातर ट्रेनें देर से चल रही हैं। सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेनों में ज्यादा किराया देकर बैठने वाले यात्री ठगा महसूस करते हैं जब उन्हें गंतव्य तक लोकल ट्रेन की स्पीड में पहुंचाया जाता है। इस देरी के बदले में अतिरिक्त लिया गया किराया लौटाने का प्रावधान भी नहीं है। पर वंदे भारत ट्रेन के लिए खास व्यवस्था की जा रही है। यात्री ट्रेन विलंब से इसलिए चलती हैं क्योंकि मालगाडिय़ों को आगे रवाना करना होता है। वंदे भारत अकेली ऐसी ट्रेन होगी, जिसे किसी मालगाड़ी को आगे करने के लिए किसी भी स्टेशन पर रोका नहीं जाएगा। रेलवे के अधिकारी बता रहे हैं कि ट्रेन को आगे करने के लिए जरूरत पडऩे पर मालगाड़ी को भी रोका जाएगा। अधिकारिक घोषणा नहीं की गई है लेकिन करीब 6 ट्रेनों की समय-सारिणी में भी आंशिक बदलाव इसकी वजह से किया जाएगा। इनमें सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेन भी शामिल हैं। इस लिहाज से वंदे भारत सचमुच स्पेशल ट्रेन होगी।
साइकिल लेकर निकलें, पर रखें कहां?
रायपुर के मेयर रह चुके और अभी भी म्युनिसिपल के सभापति प्रमोद दुबे बरसों से साइकिल को बढ़ावा देने की कोशिश करते आए हैं। लेकिन किसी-किसी इतवार को सडक़ों पर साइकिल का जलसा मनाने के लिए वे बड़े अफसरों के साथ साइकिल पर निकल तो जाते थे, शहर को साइकिलों के लिए दोस्ताना बनाने का कोई काम उन्होंने नहीं किया। आज से 40 बरस पहले शहर के सबसे बड़े बगीचे मोतीबाग में साइकिलों को चेन से बांधकर रखने के लिए लोहे की सलाखों के स्टैंड लगे हुए थे, बाद में शहरों के कॉलेजों में भी तरह-तरह के स्टैंड बनते थे, लेकिन अब किसी सार्वजनिक जगह पर साइकिल को बढ़ावा देने के लिए ऐसा कोई इंतजाम नहीं है। चूंकि पार्किंग और स्टैंड का सारा इंतजाम कारों और स्कूटर-मोटरसाइकिलों के लिए ही रहता है, इसलिए साइकिलों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। रेलवे स्टेशन पर भी देखें तो प्लेटफॉर्म के सबसे करीब कारें खड़ी रहती हैं, उसके बाद स्कूटरों की बारी आती है, और साइकिलों की बारी आधा किलोमीटर दूर आती है, जबकि होना ठीक इसका उल्टा होना चाहिए।
प्रमोद दुबे के निजी प्रचार और प्रयास से परे साइकिलों के लिए कोई दोस्ताना इंतजाम इस शहर में नहीं हो पाया, और ऐसे में साइकिल लेकर निकलने का कोई उत्साह लोगों में नहीं रहता।
स्मार्टसिटी का डीएमएफ
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्मार्टसिटी के नाम पर म्युनिसिपल के हाथ में ठीक उसी तरह अंधाधुंध फंड आ जाता है जिस तरह खनिज संपन्न जिलों में डीएमएफ का पैसा कलेक्टरों के पॉकेटमनी की तरह रहता है, उसी तरह स्मार्टसिटी का पैसा म्युनिसिपल कमिश्नरों की मनमानी पर खर्च होता है। यह एक अलग बात है कि प्रदेश सरकार या निर्वाचित मेयर का दबदबा अधिक रहने पर स्मार्टसिटी का खर्च उनके कहे मुताबिक होता है।
स्मार्ट सिटी में अंधाधुंध खर्चों का आलम यह है कि पुराने रायपुर शहर में दो साल में वृक्षारोपण के नाम पर करीब 7 करोड़ रूपए फूंक दिए गए। जबकि वृक्षारोपण कहां हुआ, इसका कोई अता-पता नहीं है। यही नहीं, बूढ़ातालाब के गेट बनाने में ही 60 लाख रूपए खर्च कर दिए गए।
इसी तरह कुछ दिन पहले स्मार्ट सिटी के टेंडरों में अनियमितता, और भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू में भी की गई है। इसके अलावा सांसदों की स्टीयरिंग कमेटी तक शिकायतों का पुलिंदा भेजा गया है। और तो और स्मार्ट सिटी के मद से महाराजबंद तालाब के किनारे ऐसे सडक़ को स्मार्ट बनाया जा रहा है जहां ट्रैफिक सबसे कम होता है। सुनते हैं कि सडक़ का काम चालू होने से पहले ताकतवर लोगों ने आसपास की जमीन कौडिय़ों के भाव में खरीद ली थी। अब उनकी जमीन के दाम आसमान को छू रहे हैं। इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले संविदा अफसर भी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं रहे हैं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अगले कुछ महीनों में बंद होने की भी चर्चा है। इसके बाद यहां की गड़बडिय़ों का खुलासा होने की उम्मीद जताई जा रही है।
प्रदेश अध्यक्ष का बदलाव टला?
फरवरी में होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के चलते क्या प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को बदला जाएगा? पीएल पुनिया इस महत्व के इस बड़े आयोजन का हिस्सा बनने से रह गए। हालांकि 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार को दोबारा लाने में उनकी भी विशेष भूमिका रही।
इधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने की चर्चा भी चार-पांच महीने से चल रही थी। इस दौरान झारखंड, पंजाब, हरियाणा और बिहार में अध्यक्ष बदले भी गए हैं। पर संभवत: छत्तीसगढ़ पर फैसला एक के बाद एक दो उप-चुनाव खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर, में होने के कारण टाल दिया गया। इसी बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की सरगर्मी भी चल रही थी। अब जब राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारी शुरू करनी है, हो सकता है फैसला फिर टल जाए। यदि ऐसा होगा तो मरकाम छत्तीसगढ़ के ऐसे पहले अध्यक्ष के रूप में अपने-आपको याद कर सकेंगे जिनकी अगुवाई में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।
दहेज में पौधे
कोरबा में हुई निशा महतो की शादी की इन दिनों बड़ी चर्चा है। दरअसल बेटी की विदाई महंगे उपहारों से नहीं, 101 पौधों से की गई। जो मेहमान पहुंचे उन्हें भी औषधीय पौधे उपहार में दिए गए। यह प्रचार के लिए किया गया काम नहीं था। निशा के भाई प्रशांत चैरिमति फाउंडेशन से जुड़े हैं। अब तक तीन हजार पौधे अलग-अलग जगहों पर लगा चुके हैं। हसदेव नदी के किनारे एक लाख पौधे लगाने का उनका लक्ष्य है। एक और बहन की शादी में भी वे पौधे ही उपहार के रूप मे दे चुके हैं। खुद अपनी शादी के निमंत्रण कार्ड में उन्होंने लिखा था कि वे गिफ्ट के रूप में केवल पुरानी किताबें, जो आप पढ़ चुके हों, उनको स्वीकार करेंगे। ये किताबें उन्होंने जरूरतमदों में बांट दी।
निजी क्लीनिक किस-किस का?
अंबिकापुर के मेडिकल कॉलेज में पांच घंटे के भीतर पांच नवजात शिशुओं की मौत के मामले में जांच के बिंदु तय किए गए हैं। इसमें बिजली बाधा के समय कोई डॉक्टर उपस्थित था, वेंटिलेटर को पॉवर बैकअप मिला नहीं मिला, जैसे कुछ बिंदु शामिल हैं। पर, यह जांच भी जरूरी है किरोजाना सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर कितनी देर अपनी ड्यूटी करते हैं। बहुत से डॉक्टर खुलेआम निजी क्लीनिक चलाते हैं और सरकारी ड्यूटी को बेगार समझते हैं।
कई डॉक्टर निजी नर्सिंग होम में नियमित विजिट करते हैं, सर्जरी करते हैं। अंबिकापुर के मामले में यह जानकारी हैरान करती है कि विभिन्न विभागों के एचओडी और दूसरे चिकित्सक निजी क्लीनिक चला रहे हैं। खुद एसएनसीयू वार्ड के एचओडी पर यही आरोप लग रहा है। जाहिर है कि सरकारी सेवाओं में कमी आएगी ही। एक शिशु के पिता ने कलेक्टर को जन-चौपाल में यह भी कहा कि हमसे नर्सों ने गरम कपड़े लेकर आने के लिए कहा था। मौत के बाद पता चला कि इसका इस्तेमाल तब करना था जब वार्मर बंद हो जाए। माताएं बच्चों को गर्म कपड़ों के साथ अपनी गोद में ले लेती तो शायद उनकी जान बच जाती, पर जब शिशुओं की सांस उखडऩे लगी तब यह बताने वाला अस्पताल में कोई नहीं था। सुबह 9 बजे सीधे मौत की खबर दी गई। बहरहाल, 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी गई है। जितनी तेजी से जांच हो रही है, उतनी तेजी से जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होगी या नहीं, देखना होगा। यह भी देखना होगा कि किसी के ऊपर जिम्मेदारी डाली जाएगी भी या नहीं? ([email protected])
भाई नहीं तो बहन
बाबा भले ही सीएम बनने से रह गए, लेकिन उनकी सगी बहन आशा कुमारी सिंह हिमाचल प्रदेश की सीएम पद की दौड़ में हैं। एक-दो सर्वे रिपोर्ट में तो हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनने की प्रबल संभावना बताई जा रही है। ऐसे में आशा कुमारी को सीएम पद की मजबूत दावेदारों में गिना जा रहा है। वो डलहौजी विधानसभा सीट से लगातार 6 बार विधायक रही हैं, और इस बार फिर चुनाव मैदान में हैं। उनके अच्छे मार्जिंन से जीतने की संभावना जताई जा रही है।
आशा कुमारी के पक्ष में एक बात यह है कि वो एआईसीसी की सचिव रह चुकी हैं साथ ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी भी रही हैं। आशा कुमारी प्रभारी थीं तब प्रदेश में अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार को हराकर कांग्रेस ने पंजाब में अपनी सरकार बनाई थी, और जब हटी तो सत्ता-संगठन में टकराव शुरू हो गया। बाद में सीएम कैप्टन अमरिन्दर सिंह को पार्टी छोडऩा पड़ा। कुल मिलाकर आशा कुमारी की छवि सबको साथ लेकर चलने वाली है।
वैसे तो आशा कुमारी के अलावा कई दिग्गज नेता सीएम पद की दौड़ में हैं। ऐसे में भाई की जगह हाईकमान बहन को कमान सौंप दें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। फिलहाल तो 8 तारीख को चुनाव नतीजे का बेसब्री से इंतजार हो रहा है।
कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
ईडी ने धमतरी के एक सीए को पूछताछ के लिए बुलाया, तो इसको लेकर काफी हलचल रही। सीए को एक आईएएस पति-पत्नी का काफी करीबी माना जाता है। सुनते हैं कि हफ्ते में कम से कम एक बार सीए और आईएएस दंपत्ति लंच या डिनर साथ लेते थे। अफसरों के पदस्थापना के दौरान अन्य पेशे से जुड़े लोगों के साथ कई बार व्यक्तिगत रिश्ते बन जाते हैं। पहली नजर में यह गलत भी नहीं है, लेकिन चर्चा है कि सीए के पास आईएएस दंपत्ति के आय-व्यय की फाइल भी है।
बात यहीं खत्म नहीं होती है। सीए महोदय सरकार के एक निगम के बड़े पदाधिकारी के वित्तीय सलाहकार भी हैं। चर्चा है कि ईडी ने सीए से आईएएस दंपत्ति, और निगम पदाधिकारी के बारे में कुरेद-कुरेदकर पूछा है। इसमें ईडी के काम के लायक कुछ मिला है या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन इसको लेकर कई तरह के किस्से सुनने को मिल रहे हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
बिजूका की फसल
छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई कोयले और दूसरे किस्म के कारोबार से जुड़े हुए जुर्म पर तो चल ही रही है, जानकार लोगों का यह भी मानना है कि अगले चुनाव में राज्य के जो लोग आज की सत्तारूढ़ पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, उन्हें भी घेरा जा सकता है। और घेरने की वजह कोई नाजायज बहाना हो, यह भी जरूरी नहीं है, कुछ अफसरों को राजनीति करने की वजह से घेरा जा रहा है, और कुछ नेताओं को सरकारी कामकाज में दखल देकर कमाई करने के एवज में। अभी ताजा चर्चा यह है कि कुछ अफसर अगले चुनाव की रणनीति बनाने में लगे हुए थे, उनकी जानकारी राज्य के भाजपा नेताओं को थी, और अब आईटी-ईडी की जांच के दायरे में उन्हें भी लाने की कोशिश हो रही है। राज्य में चल रही ईडी की कार्रवाई बड़े रहस्य से घिरी हुई है, चूंकि कभी-कभार जारी होने वाला प्रेसनोट, और अदालत में पेश किया गया कागज ही ईडी से निकली औपचारिक जानकारी रहती है, इसलिए उसका नाम लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलती रहती हैं।
आज कुछ हजार रूपये से कोई समाचार पोर्टल बनाया जा सकता है, मनचाही बातें लिखी जा सकती है, अपनी हसरतों को हकीकत की तरह पेश किया जा सकता है, इसलिए वह काम धड़ल्ले से चल रहा है। और फिर लोग पढ़े-लिखे होने के बावजूद इस हद तक नासमझ हैं कि उन्हें सबसे विश्वसनीय समाचार माध्यम, और सबसे गैरजिम्मेदार न्यूज पोर्टल के बीच भी कोई फर्क नहीं दिखता है, और लोग बातचीत में एक ही अंदाज में कहते हैं कि न्यूज में ऐसा आया है। यह सिलसिला अफवाहों को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी ही उपजाऊ जमीन है, और छत्तीसगढ़ में इन दिनों खेतों में मानो किसान के गढ़े हुए पुतले, बिजूका की फसल लहलहा रही है।
हिफाजत का तरीका
वॉट्सऐप पर लोगों को मिलने वाले संदेश, फोटो, वीडियो कई बार गायब हो जाते हैं क्योंकि उन्हें भेजने वाले लोगों ने उनकी जिंदगी तय कर रखी है। कुछ लोग तो ऐसी तस्वीर भेजते हैं जिसे खोलकर बस एक बार देखा जा सकता है, और स्क्रीन से हटते ही वह हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। कुछ चतुर लोग ऐसी तस्वीर का स्क्रीनशॉट लेकर उसे कॉपी करके रख लेते हैं, लेकिन ऐसी चर्चा है कि वॉट्सऐप स्क्रीनशॉट लेने पर रोक लगाने जा रहा है। फिर भी आज तो लोगों ने जितने समय बाद संदेश मिट जाने की सेटिंग कर रखी है, उतने वक्त बाद आए हुए संदेश गायब हो जाते हैं। इससे बचने के लिए लोग अपने ही दूसरे नंबर पर मैसेज फॉरवर्ड करके उसे बचाकर रखना सीख रहे हैं। ऐसे बढ़ाए हुए संदेशों की कोई अदालती कीमत नहीं होती, वे सुबूत नहीं हो सकते, लेकिन आम जिंदगी में ऐसे सुबूतों की जरूरत भी नहीं रहती है। इन दिनों कई लोगों के पास एक से अधिक फोन या एक से अधिक वॉट्सऐप अकाउंट रहते हैं, और ऐसे में वे खुद के इंटरनल ग्रुप बनाकर उसमें संदेशों को भेजकर हिफाजत से रख सकते हैं।
48 हजार की किताब में अपने बीच का लेखक
एल्सेवियर, शोध पर आधारित किताबें छापने वाली 1880 से स्थापित दुनिया की एक मशहूर कंपनी है, जिसका मुख्यालय तो एम्स्टर्डम में हैं पर दुनियाभर में इसका बाजार फैला है। किसी शोधकर्ता को यहां की किताबों में जगह मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। इस प्रकाशन की एक किताब 26 नवंबर को आई है- फंक्शनल मटेरियल फ्रॉम कार्बन इन ऑर्गेनिक एंड ऑर्गेनिक सोर्सेस। कार्बन, कार्बनिक और अकार्बनिक स्रोतों से कार्यात्मक सामग्री पर किए गए शोध इसमें शामिल है। इस किताब का सबसे सस्ता संस्करण 217 डॉलर में उपलब्ध है, यानि करीब 18 हजार भारतीय रुपये में। यह राशि डिस्काउंट पर है। सबसे महंगे संस्करण की कीमत 580 डॉलर यानी लगभग 48 हजार रुपये है। वैश्विक स्तर पर ख्यातिलब्ध प्रकाशन संस्थान की किसी किताब की कीमत इतना होना खास बात नहीं है। खास यह है कि इसके चार लेखकों में एक छत्तीसगढ़ से हैं। जांजगीर-चांपा जिले के पामगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. आशीष तिवारी। इनके अलावा तीन और लेखक हैं- संजय ढोबले नागपुर विश्वविद्यालय से, अमोल नंदे बल्लारपुर के गुरुनानक कॉलेज से और अब्दुल करीम कुआलालंपुर के मलाया विश्वविद्यालय से। करीम रिटायर्ड प्रोफेसर और मलेशिया से हैं। बाकी तीन भारत के प्राध्यापक। डॉ. तिवारी ने केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर से पी.एचडी की है। अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में उनके कई शोध प्रकाशित हो चुके हैं और कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। डॉ. तिवारी की इस अकादमिक उपलब्धि को सराहना तो मिलनी चाहिए।
फेरबदल से खुशी और मायूसी
सन् 2018 के चुनाव में कई ऐसे कांग्रेस उम्मीदवार थे, जिनके नाम को प्रभारी महासचिव रहते हुए पीएल पुनिया ने फाइनल किया। प्रदेश के शीर्ष नेताओं की सिफारिश दूसरे नामों के लिए थी, इसके बावजूद। टिकट वितरण के बाद इसके चलते बगावत भी हुई, खुलेआम विरोध प्रदर्शन हुआ और केंद्रीय नेताओं के खिलाफ नारेबाजी भी। पुनिया को खुद गुस्से का शिकार होना पड़ा। पर चुनाव परिणाम आने के बाद सब शांत हो गया। पुनिया के सीधे हस्तक्षेप से जो टिकटें दी गई, उनमें से भी कई लोग जीतकर आ गए। चार साल तो आराम से कट गए लेकिन अचानक प्रभारी को बदल देने से उनका समीकरण गड़बड़ा गया। सन् 2023 में टिकट बचाये रखने को लेकर की चिंता घर कर रही है। दूसरी तरफ वे नेता मन ही मन खुश हैं जिनकी दावेदारी पर पुनिया की वजह से मुहर नहीं लग पाई। उन्हें यह लग रहा है कि कई मौजूदा विधायकों की टिकट कट जाएगी और उनको मौका मिल जाएगा। फिलहाल वे नई महासचिव कुमारी शैलजा के छत्तीसगढ़ दौरे का इंतजार कर रहे हैं।
शायद अब बच गए नेताम..।
भानुप्रतापपुर के भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम को झारखंड के टेल्को थाने में दर्ज रेप के मामले गिरफ्तार करने के लिए 800 किलोमीटर की दूरी तय करके वहां से पुलिस पहुंच तो गई लेकिन यहां पर उनके खुलेआम प्रचार करने के बाद भी गिरफ्तार करने से बचती रही। शायद उसे लगा कि छत्तीसगढ़ सरकार ही नहीं, चुनाव आयोग और अदालत को भी उन्हें जवाब देना न पड़ जाए। एक तरफ नेताम प्रचार करते रहे इधर झारखंड पुलिस खाली बैठी रही, मतदान खत्म होने की प्रतीक्षा करते हुए। मतदान के बाद जब वह सक्रिय हुई तो कुछ ही देर में उनके पास रांची हाईकोर्ट से मिली राहत का आदेश मिल गया। यानि भाजपा नेता यहां चुनाव प्रचार में अपने प्रत्याशी पर हो रहे विरोधी हमले का बचाव तो कर ही रहे थे, रांची में उनकी अलग टीम अदालत से राहत पाने के लिए लगी हुई थी। मतदान और चुनाव परिणाम के बाद अब नेताम कानूनी प्रक्रिया का तो सामना करेंगे पर यह अब राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया। लोगों में भी दिलचस्पी घट गई कि झारखंड पुलिस उनको पूछताछ के लिए भी बुलाएगी या नहीं।
सीखने का खास दौर
छत्तीसगढ़ में आज जिस तरह ईडी की जांच और कार्रवाई चल रही है, उस बीच अफवाहों का बाजार गर्म है। मीडिया के बीच रात-दिन कुछ गैरजिम्मेदार लोग आदतन, और कुछ जिम्मेदार लोग लापरवाही से ऐसी बातें लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, जिनकी असलियत कुछ घंटों में ही उजागर हो जाती है। आज मीडिया में जिस तरह सबसे पहले पेश करने का गलाकाट मुकाबला चल रहा है, उसने विश्वसनीयता को बहुत दूर तक नुकसान पहुंचाया है। अब यह वक्त लोगों को पत्रकारिता सिखाने का तो नहीं है, लेकिन यह याद दिलाने का जरूर है कि हर दिन उन्हें कुछ पल यह भी सोचना चाहिए कि उन्हें पिछले दिन मिली जानकारियों में से कौन-कौन सी गलत साबित हो चुकी हैं। लोग आमतौर पर लिख चुकी बातों के गलत साबित होने पर भी उसे अनदेखा करके आगे बढऩे में लग जाते हैं। ऐसा करने वाले दुबारा गलतियां, या गलत काम करने का खतरा रखते हैं। इसलिए अफवाह, चर्चा, सूचना, खबर, तथ्य, और सुबूत जैसे अलग-अलग दर्जों के बारे में लोगों को सोचना चाहिए कि उन्हें मिली जानकारी इनमें से किस दर्जे में फिट बैठती है। फिलहाल अफवाहों के अंधड़ में किसी को नसीहत देना ठीक नहीं है, लेकिन जिन लोगों को इस पेशे में रहते हुए साख पाना है, उनके लिए यह सीखने का एक बड़ा खास दौर है। इस दौर में बहुत से रिपोर्टर कम से कम यह तो सीख ही सकते हैं कि केन्द्र और राज्य की सीमाएं क्या हैं, उनके अधिकार क्या हैं, कौन सी एजेंसी क्या कर सकती है, और क्या नहीं। ये बुनियादी बातें सीखना एक वक्त अच्छे अखबारों में ट्रेनिंग का एक हिस्सा होता था। इन दिनों मीडिया में अखबार एक छोटा हिस्सा हो गए हैं, और कई किस्म के मीडिया अपने लोगों की ट्रेनिंग कैसी करते हैं, यह पता नहीं।
अगली गिरफ्तारी कब और किसकी?
प्रदेश की एक सबसे असरदार अफसर, सौम्या चौरसिया की गिरफ्तारी के बाद अब अगली बारी किसकी है, यह पहेली लोगों के बीच घूम रही है। जिन लोगों को जिनसे हिसाब चुकता करना है, उसके नाम की संभावना बताते हुए बात को आगे बढ़ाना जारी है। कुछ लोग एक-दो आईपीएस का नाम ले रहे हैं, कुछ लोग एक-दो आईएएस का नाम ले रहे हैं, कुछ लोग राज्य के अफसरों की बारी भी गिना रहे हैं। ऐसे अफसर जो राज्य में महत्वहीन कुर्सियों पर हैं, उन्हें रातोंरात अपनी कुर्सी आरामदेह लगने लगी है क्योंकि उसके साथ कोई खतरा जुड़ा हुआ नहीं है। इस पूरी कार्रवाई से लगातार जुड़े रहने वाले एक अखबारनवीस का कहना है कि गिरफ्तारियां बहुत जल्दी-जल्दी नहीं होंगी क्योंकि हंडी को महीनों तक गरम रखना है, चुनाव अभी दूर हैं।
रेलवे का खजाना भर रहा स्टेशन वीरान
एसईसीएल का गेवरा खदान भारत ही नहीं एशिया का सबसे बड़ा कोयला खदान है। छत्तीसगढ़ सहित देश के 6 राज्यों के लिए यहां से कोयला भेजा जाता है। कोल इंडिया को उत्पादन का रिकॉर्ड बताना हो या फिर रेलवे बोर्ड को सर्वाधिक लदान का, इसी खदान का उदाहरण दिया जाता है। नवंबर की 8 तारीख को रिकॉर्ड 1.71 लाख टन कोयले का लदान हुआ। इसे अपनी उपलब्धि के रुप में रेलवे ने दर्ज किया। अफसरों ने केक काटकर जश्न भी मनाया।
रेलवे जोन बिलासपुर की आमदनी का आंकड़ा देश के दूसरे किसी भी जोन से अधिक है तो इसमें गेवरा का योगदान सबसे बड़ा है। अब, सुधार और विकास कार्यों के नाम पर बीच-बीच में परिचालन जरूर रोक दिया जाता है पर जोन की अधिकांश एक्सप्रेस ट्रेनों को शुरू कर दिया गया है। पर, अनेक छोटे स्टेशनों से ट्रेन नहीं चल रही है, या फिर उनमें स्टापेज नहीं दिया गया है। रेलवे को भरपूर राजस्व देने वाले गेवरा के साथ भी यही हो रहा है। सन् 1963 में प्रारंभ गेवरा रोड स्टेशन से किसी समय 12 ट्रेनों का परिचालन होता था। पर बीते 8 महीनों से एक भी ट्रेन नहीं चलाई जा रही है। गेवरा रोड स्टेशन सूनसान पड़ा है। यात्री कह रहे हैं कि कम से कम गेवरा के योगदान को देखते हुए तो रेलवे को यहां की सुविधा नहीं छीननी चाहिए। रेलवे के फैसले से स्टेशन पर आश्रित व्यवसायी, श्रमिक महीनों से खाली बैठे हैं। सच यही है कि गेवरा से होने वाले मुनाफे के मुकाबले यात्री ट्रेन को चलाने का खर्च बेहद मामूली है।
हो ही गई ठगी केबीसी के नाम पर
पापुलर टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति में होस्ट अमिताभ बच्चन कार्यक्रम के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के लिए विज्ञापन भी करते हैं। इसमें वे लोगों को आगाह करते हैं कि ऑनलाइन फ्रॉड से बचें। कभी कोई पैसा भेजने के नाम पर ओटीपी मांगे तो न दें, इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। पर लोगों तक उनकी बात नहीं पहुंच पा रही है। अंबिकापुर में केबीसी के ही नाम पर ठगी हो गई है। जब से यह शो शुरू हुआ है, लोगों के व्हाट्सएप नंबर पर एक ऑडियो मेसैज आ रहा है, जिसके साथ नरेंद्र मोदी, मुकेश अंबानी और अमिताभ बच्चन की तस्वीर भी होती है। इसमें 25 लाख या इसी तरह की बड़ी रकम लॉटरी में निकलने का झांसा दिया जाता है। दरिमा, अंबिकापुर का एक रोजगार सहायक इस जाल में फंस गया और उसने 4 लाख रुपये गंवा दिए। अफसोस की बात यह है कि उसके पिता को गंभीर बीमारी है। इस रकम की व्यवस्था उनके इलाज के लिए उसने की थी। मौजूदा दौर में छप्पर फाडक़र रुपयों की बारिश कर देगा, इसकी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। पर लोग हैं कि लालच में अपनी गाढ़ी कमाई डुबा रहे हैं।
विज्ञापन पर विवाद..
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव के लिए मतदान के बाद अब नतीजों का इंतजार रहेगा। आखिरी दिन आरोप प्रत्यारोपों की झड़ी लग गई। भाजपा नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर कांग्रेस पर शराब की नदियां बहाने का आरोप लगाया। कलेक्टर, एसपी और कई दूसरे अधिकारियों पर कांग्रेस के लिए प्रचार करने का भी आरोप लगा। एक ऐतराज ‘बस्तर के समस्त आदिवासी जनप्रतिनिधि’ की ओर से प्रकाशित विज्ञापन पर भी है। विज्ञापन की जिस पंक्ति पर आपत्ति है वह है- कुछ आदिवासी नेताओं ने चंद रुपयों के लिए समाज को दांव पर लगा दिया है। आदिवासी समाज को समझना है कि झूठी कसमें खिलाकर आपके वोट से उनको फायदा पहुंचाने की कोशिश हो रही है जिन्होंने विकास के नाम पर आदिवासियों का शोषण किया और उनके हिस्से में हिंसा के सिवाय कुछ नहीं आया। इन पंक्तियों को समझा जाए तो आक्षेप सर्व आदिवासी समाज और भाजपा दोनों पर है।
आदिवासी समाज के भाजपा नेताओं ने निर्वाचन आयोग से इस पर संज्ञान लेने की मांग की है। कहा है कि आदिवासी समाज को कांग्रेस ने बिकाऊ करार देकर उनके स्वाभिमान पर खंजर घोंप दिया।
आयोग की कार्रवाई यदि हुई तो जब तक होगी तब तक कम से कम मतदान की प्रक्रिया तो पूरी हो चुकी रहेगी। भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया आ चुकी है, सर्व आदिवासी समाज की ओर से अभी नहीं दिखी है। मतदाताओं की प्रतिक्रिया तो दो दिन बाद आने वाले नतीजों में दिख ही जाएगी। ([email protected])
विलुप्त हो रहा राजकीय पशु
एक ओर प्रदेश में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो दूसरी ओर राजकीय पशु वन भैंसा लुप्त होते जा रहे हैं। भैरमगढ़, पामेड़, कुटरू बस्तर के ऐसे इलाके रहे हैं जहां राज्य बनने के समय वन भैंसों का झुंड दिखाई देता था। हाल ही में यहां का भ्रमण करके आए एक सैलानी ने बताया कि उन्हें वन भैंसों का समूह कहीं देखने को नहीं मिला। जो वन भैंसे अनायास ही विचरण करते हुए दिखाई दे जाते थे, उनकी मौजूदगी का पता लगाने के लिए अब ट्रैप कैमरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस राजकीय पशु के संरक्षण के लिए सन् 2006 में 90 लाख रुपये की योजना बनाई गई थी। अब तक 20 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। रुपये तो फूंक दिए गए पर उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। खुद वन विभाग के अधिकारी मान रहे हैं कि इनकी संख्या 12 से 15 के बीच रह गई है। यह वक्त सचेत होने जाने का है।
सब्जी उत्पादकों की चिंता
बाजार में इन दिनों सब्जियां खूब सस्ती मिल रही हैं। दो माह पहले तक जो गोभी 80 रुपये किलो बिक रही थी आज बाजार में 10-12 रुपये में मिल रही है। ऐसा ही हाल दूसरी सब्जियों का भी है। ज्यादातर लोग खुश होते हैं कि चलिये राशन की दूसरी चीजें महंगी है तो कम से कम एक चीज तो है जिससे राहत मिल रही है। पर किसानों की हालत दूसरी है। थोक बाजार में उनको दो तीन रुपये किलो में ही बेचना पड़ रहा है। ठंड के दिनों में होने वाला अधिक उत्पादन उन्हें अधिक लाभ दे रहा हो ऐसा हो नहीं रहा है। इस बीच खाद, डीजल के दाम भी बढ़े हैं। वे अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। राजिम से खबर है कि वहां के किसान डेढ़ दो रुपये में ही आढ़तियों को बैंगन बेच रहे हैं। बाजार में यह 10 रुपये किलो बिके तब भी मुनाफा पांच गुना हो रहा है। ग्राहक भी सस्ते में पाकर खुश है लेकिन जो किसान सब्जियां पैदा कर रहे हैं, उनके हाथ में कुछ नहीं आ रहा है। ठंड के दिनों में हर बार ऐसी स्थिति बनती है पर कोई ऐसा संगठन नहीं है जो किसानों की इस फसल की न्यूनतम दाम तय करे। केंद्र और राज्य सरकारों ने कई बार फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाने, कोल्ड स्टोरेज बनाने तथा ऑनलाइन सर्च कर मार्केट तलाशने की घोषणाएं की हैं। खेती की तकनीक में सुधार के बाद उत्पादन तो बढ़ा लेकिन बाजार वही पुराना है।
फिर राहुल तक हसदेव
कांग्रेस नेता राहुल गांधी हसदेव अरण्य में कोयला उत्खनन के खिलाफ रहे हैं। यदि नई खदानों पर फिलहाल जो रोक लगी हुई है, उसके पीछे उनकी असहमति को भी माना जाता है। राज्य सरकार ने पर्यावरण के नुकसान और जन विरोध का हवाला देते हुए केंद्र सरकार को नई खदानों की मंजूरी को निरस्त करने के लिए पत्र लिखा है। पर केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा नहीं किया जाएगा। हसदेव के आंदोलनकारी कह रहे हैं कि जंगल को काटने की अनुमति देना राज्य सरकार के हाथ में है। इस समय भारत जोड़ो यात्रा चल रही है। हसदेव को बचाने के लिए संघर्ष कर रही टीम के एक सदस्य आलोक शुक्ला ने इस दौरान उनसे मुलाकात की और हसदेव के मुद्दे को फिर एक बार उठाया।
हर बार वे अधिक ताकतवर
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की क्षमता को देखकर लोग दंग हैं। कल जब वे विधानसभा में भारी राजनीतिक, सामाजिक, और चुनावी महत्व का आरक्षण विधेयक लाकर उसे भानुप्रतापपुर चुनाव के पहले राज्यपाल से मंजूर करवा लेने में लगे थे, ऐन उसी वक्त उनकी उपसचिव सौम्या चौरसिया को ईडी द्वारा गिरफ्तार कर लेने की खबर भी आ रही थी। इस गिरफ्तारी की आशंका कई दिनों से थी, लेकिन कल दोपहर से जिस तरह के तनाव की खबरें आ रही थीं, उनके बीच मुख्यमंत्री का विधानसभा में पूरी ताकत से लगे रहना लोगों को हैरान कर रहा था। इस गिरफ्तारी के अदालत तक पहुंच जाने के बाद भूपेश बघेल ने ट्विटर पर इसे एक राजनीतिक कार्रवाई बताकर इसका विरोध भी किया। विधानसभा के काम का तनाव, और ईडी की बेकाबू कार्रवाई से उपजा तनाव, इनके बीच भी वे कल रात शहर के एक प्रमुख चिकित्सक और अंधविश्वास के खिलाफ दशकों से लड़ते चले आ रहे डॉ. दिनेश मिश्रा के परिवार की शादी में भी गए, और भी दो-तीन शादियों में गए, वहां लोगों के साथ जमकर मिले, और अनगिनत तस्वीरें भी खिंचवाईं। विपरीत परिस्थितियों में किस तरह अपने आप पर काबू रखा जा सकता है, यह कोई कामयाब नेताओं से सीख सकते हैं, जिनकी जिंदगी में ऐसे कई दौर आते हैं, और वे उनसे उबरकर, अधिक तपकर निकलते हैं, भूपेश बघेल इसके पहले भी परेशानियों से घिरे हैं, और हर बार वे अधिक ताकतवर होकर उबरे हैं।
सडक़ पर कहानी बेचता लेखक
यह नौजवान मुंबई की सडक़ पर भरी दोपहरी में खड़ा होकर अपनी कहानी के लिए फिल्म प्रोड्यूसर की तलाश कर रहा है। सोनू बंजारे नाम देखकर लगा कि वे छत्तीसगढ़ से होंगे। अंदाजा सही निकला। सीपत बिलासपुर के सोनू फिल्म लाइन में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ओटीटी पर कुछ-कुछ काम भी मिल रहा है। पर फिलहाल अधिक व्यस्त नहीं हैं। देश के अलग-अलग राज्यों से आए पांच स्ट्रगलर एक साथ रहते हैं। सोनू का खर्च इस समय वे ही चला रहे हैं। कोविड में दूसरी बार लॉकडाउन लगा तो सब तरफ बंद चल रहा था। लोग महानगरों से घर की ओर लौट रहे थे, पर उसी वक्त सोनू सीपत छोडक़र मुंबई पहुंच गए। कोई ऑफर, कोई बुलावा नहीं था। फिर भी जुनून उन्हें ले गया। उन्हें उम्मीद है कि एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी। साहित्यकार असगर वजाहत ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कुछ इस तरह से सोनू का जिक्र किया है कि लेखक पर पाठक तक पहुंचने की जिम्मेदारी भी आती है। सन् 1942 में मुंबई से जंग नाम का उर्दू अखबार निकला करता था। यह उस ज़माने का बहुत चर्चित समाचार पत्र था जिसके सहादत हसन मंटो नियमित लेखक थे। उनकी प्रसिद्ध कहानियां काली सलवार, धुंध और बू किसी अखबार में पहली बार छपी थीं। इस अखबार को मुंबई की सडक़ों पर सज्जाद ज़हीर, कैफी आज़मी, मनीष सक्सेना, सिब्ते हसन, एस. एम.महंदी जैसे बहुत प्रतिष्ठित लेखक बेचा करते थे। मैंने मन ही मन सोचा, संघर्ष करने वाला कभी अकेला नहीं होता। उसके साथ कुछ लोग आकर ज़रूर जुड़ जाते हैं।
केबीसी होस्ट को पैरा आर्ट
कोरबा के चंद्रशेखर चौरसिया को पापुलर टीवी गेम शो कौन बनेगा करोड़पति में हॉट सीट पर बैठने का मौका मिला। उन्होंने अमिताभ बच्चन को छत्तीसगढ़ में पैरा (पुआल) से बनाई जाने वाली कलाकृतियों के बारे में बताया और पैरा से बना हल चलाते हुए किसान का एक चित्र भी भेंट किया। खास बात यह भी है कि यह कृति उन्होंने खुद ही बनाई है।
बीपीएल का बिजली बिल संकट
प्रत्येक घरेलू उपभोक्ता के लिए बिजली विभाग खपत की सीमा निर्धारित करता है और उसी के हिसाब से सुरक्षा निधि भी लेता है। साल में एक बार इसकी समीक्षा होती है और औसत से अधिक खपत होने पर सुरक्षा निधि बढ़ा दी जाती है, जिसे बिजली बिल में ही जोड़ दिया जाता है। जिन लोगों ने ज्यादा बिजली इस्तेमाल की है उन्हें इस बार बढ़ा हुआ बिल दिखाई दे रहा है। इसे लेकर उपभोक्ताओं में नाराजगी है। कई जगह आंदोलन हो रहे हैं। सूरजपुर में तो भाजयुमो ने बिजली दफ्तर में पिछले दिनों ताला ही जड़ दिया था। इधर एक दूसरी समस्या बीपीएल परिवारों के सामने आ गई है। उन्हें 30 यूनिट बिजली फ्री दी जा रही है, पर यह छूट तभी मिलती है जब वे सालभर में 1200 यूनिट की खपत करें। पहले के वर्षों में इस दायरे के बाहर बिजली जलाने पर भी 30 यूनिट फ्री होती थी। प्रदेश के करीब 3.5 लाख बीपीएल श्रेणी के उपभोक्ताओं ने ज्यादा बिजली खपाई और उन्हें छूट से हटाकर पूरा बिल दे दिया गया है। पहले इन उपभोक्ताओं से सुरक्षा निधि भी नहीं ली जाती थी। इसे राज्य सरकार वहन करती थी, पर 1200 यूनिट से बढ़ते ही चूंकि वे छूट के दायरे से बाहर आ गए हैं इसलिए उनसे सुरक्षा निधि भी वसूल की जाएगी। हालांकि इस बार के बिल में सुरक्षा निधि जोडक़र नहीं भेजा गया है लेकिन आगे आने वाले बिल में संभव है।
कई राज्यों में फ्री बिजली का मुद्दा छाया हुआ है। पंजाब सरकार ने हाल ही में पूरे पेज के विज्ञापन में बताया कि लाखों उपभोक्ताओं का बिजली बिल जीरो आया है। गुजरात में भी आम आदमी पार्टी ने वादा किया है। छत्तीसगढ़ में 400 यूनिट तक की बिजली का बिल आधा करने का वादा कर पिछले चुनाव में कांग्रेस ने बढ़त बनाई थी। भाजपा भले ही फ्री बिजली की हिमायती नहीं हो, पर इसे वह इस मुद्दे को उठा रही है। चुनाव नजदीक आता जा रहा है। हो सकता है आगे बीपीएल श्रेणी को छूट मिले, पर फिलहाल तो बिजली विभाग ने रियायत का कोई संकेत नहीं दिया है।
प्रेमीजोड़ों पर नया तनाव
अपनी प्रेमिका को रायपुर से बगल के ओडिशा के बलांगीर ले जाकर उसकी हत्या कर देने वाले कारोबारी सचिन अग्रवाल की खबर ने लोगों को हक्का-बक्का कर दिया है। अभी तक सोशल मीडिया पर एक तबका ऐसी हत्या को मुस्लिम नौजवानों से जोडक़र दिखाने की कोशिश में लगा हुआ था, और वैसे में एक अग्रवाल कारोबारी के हत्यारे होने की बात उनकी कोशिशों में ठीक से फिट नहीं बैठ रही है। इस हत्यारे ने हत्या के बाद लडक़ी की लाश को भी जंगल में जलाने की कोशिश की थी, और रायपुर पुलिस ने कल उसे गिरफ्तार भी कर लिया है। इस मामले से जवान लडक़े-लड़कियों के सामने गैरजिम्मेदारी से चुने गए रिश्तों के खतरे तो सामने आएंगे ही, धर्म के नाम पर भडक़ाना भी कुछ समय के लिए तो थमेगा। आज जब मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, और सीसीटीवी टेक्नालॉजी की मेहरबानी से तकरीबन तमाम बड़े जुर्म आनन-फानन पकड़ में आ जाते हैं, उसके बाद भी लोगों को ऐसे कत्ल की सूझती है, यह बात जरूर हैरान करती है। साथ घूमने वाले लडक़े-लड़कियों को इस ताजा घटना से कुछ वक्त जरूर आसपास के लोगों का विरोध झेलना पड़ेगा क्योंकि इस कत्ल को एक मिसाल की तरह पेश किया जाएगा, और प्रेमीजोड़ों को अधिक शक की निगाह से देखा जाएगा।
दोनों प्रदेशों में युद्धविराम
राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो पदयात्रा के दौरान चुनाव प्रचार या पार्टी के लड़ाई-झगड़ों से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। गुजरात के चुनाव में उन्होंने बहुत मामूली सा हिस्सा लिया, और उसके बाद वे आम लोगों के बीच सडक़ पर लौट आए। फिर भी उनका महत्व पार्टी में बड़ा बना हुआ है, और जब वे अपने साथ एक तरफ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लेकर चलते हैं, और दूसरी तरफ टी.एस. सिंहदेव दिखते हैं, तो लगता है कि वे छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं के बीच चल रही तनातनी को संतुलित करने की कोशिश भी कर रहे हैं। इसी के साथ ही छत्तीसगढ़ के विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत को साथ लिए चलते हुए राहुल गांधी का भी एक वीडियो सामने आया, और कई तस्वीरें भी। इसके साथ-साथ एक पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने राजस्थान के गहलोत-पायलट टकराव को भी ठंडा करने सरीखी कोई बात कही। ऐसा लगता है कि इन दोनों ही प्रदेशों में राहुल के किए हुए या कांग्रेस संगठन के दूसरे नेताओं के किए हुए महत्वाकांक्षी नेताओं के बीच युद्धविराम हो गया है जो कि विधानसभा चुनाव तक जारी रहने का एक संकेत है। राजस्थान में तो फिर भी एक बार सचिन पायलट कांग्रेस विधायक दल में बगावत की कोशिश कर चुके हैं, और दूसरे प्रदेश में जाकर डेरा डाल चुके हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसी नौबत के भी कोई आसार नहीं हैं।
हर थाने में होता है एक रूपलाल
पुलिस अफसर जनता के बीच दोस्ताना छवि बनाने के लिए कितनी ही कोशिशें करते हैं। गांव-गांव दस्तक देते हैं, बच्चों को थाने में बुलाकर टॉफियां बांटते हैं, सुरक्षा समिति और पुलिस मित्र बनाते हैं। पर बिल्हा जैसी घटना इन तमाम कोशिशों पर एक झटके में पानी फेर देती है। रिश्वत की मांग और पिता की पिटाई से क्षुब्ध युवक हरीश की आत्महत्या का मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की निगाह में आ गया है। आयोग की कानूनी ताकत चाहे जितनी हो पर पुलिस की फजीहत के लिए नोटिस ही काफी है। जिस सिपाही ने मृतक युवक को रिश्वत नहीं दे पाने पर मर जाने की चुनौती दी, उसे पहले सिर्फ लाइन हाजिर किया गया। जब ज्यादा दबाव बढ़ा तो निलंबित कर दिया। पुलिस अफसर अब भी उसके खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध दर्ज करने से बच रहे हैं। जबकि मृतक के माता-पिता के बयान से साफ हो चुका है कि हरीश को पुलिस ने ही मरने के लिए विवश किया। यह किसी के गले नहीं उतर रहा कि आरोपी सिपाही रूप लाल चंद्रा बिना अपने अफसरों के इशारे से बड़ी रकम 20 हजार रुपयों की मांग कर रहा हो। इसका कुछ माह पहले तबादला हुआ था, पर थाना-प्रभारी से कहकर उसने रुकवा लिया। दरअसल रूपलाल की तरह एक दो सिपाही हर थाने में होते हैं जो वसूली के ही काम में लगाए जाते हैं। ऐसा लग रहा है कि बुरे वक्त में इस सिपाही को अफसरों का साथ मिल रहा है। मगर, इस समय रेट बहुत बढ़ गया है। सोचिये, जब कोई साइकिल टूट जाने पर 20 हजार रुपये में छूटेगा तो दारू, सट्टा, बलवा केस में बचाने का क्या रेट चल रहा होगा? बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडेय ने इसीलिए गृह मंत्री के सामने मंच से मांग उठाई थी कि थानों में रेट लिस्ट टांग दी जाए।
बहिष्कार व कसम का सहारा
प्रचार के अंतिम चरण में भानुप्रतापपुर में वोट हासिल करने के लिए कसम खिलाई जा रही है और समाज से बहिष्कृत करने की चेतावनी दी जा रही है। आदिवासी सुरक्षित सीट में सभी प्रत्याशी समाज के ही हैं फिर किसकी चेतावनी का कितना असर होगा, यह वोटों की गिनती होने से ही पता चलेगा। पर जिला निर्वाचन अधिकारी ने सर्व आदिवासी समाज के निर्दलीय उम्मीदवार अकबर कोर्राम को नोटिस थमा दी है। पता चला है कि उन्होंने इसका जवाब भी दे दिया है। इसके अलावा गोंडवाना समाज का प्रत्याशी भी मैदान में है।आरोप है कि उनकी तरफ से भी लिखित बयान दिया गया कि जो विरोध में काम करेगा, उसका सामाजिक बहिष्कार होगा। कोर्राम के समर्थकों का आरोप है कि उनको नोटिस तो दे दी गई पर गोंडवाना पार्टी को बख्श दिया गया।
बुजुर्गों को पेंशन की परेशानी
नवंबर महीने में वृद्ध हो रहे पेंशनधारकों को बैंकों में अपने जीवित होने का प्रमाण जमा करना होता है। पर बायोमेट्रिक मशीन और आधार केंद्रों में बुजुर्गों का फिंगर प्रिंट नहीं मिलने के कारण उन्हें पेंशन नहीं मिल रही है। ऐसी समस्या बस्तर, रायपुर, बिलासपुर सभी जगहों में आ रही है। 30 नवंबर को प्रमाण पत्र जमा करने का समय भी बीत गया। कुछ दिनों बाद आंकड़ा सामने आएगा कि प्रक्रिया पूरी करने से कितने लोग वंचित रह गए। यह संख्या हजारों में हो सकती है। कोविड महामारी के दौरान जीवित होने के प्रमाण देने की सुविधा पोस्टऑफिस में भी शुरू की गई थी। यह अब भी चालू है। ऐसा बैंकों में बुजुर्गों को लंबी लाइन से बचाने के लिए किया गया था लेकिन फिंग्रर प्रिंट का मिलान नहीं होने पर बैंकों में ही जाना पड़ रहा है। बिहार में बुजुर्गों की लाइफ सर्टिफिकेट के लिए घर पहुंचकर सेवा देने की व्यवस्था की गई है। यूपी में फेस रीडिंग के माध्यम से जीवित होने का प्रमाण पत्र तैयार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में 100 से अधिक सेवाओं की घर पहुंच सेवा देने के लिए मितान योजना हाल ही में शुरू की गई है। बैंक सखियां पहले से ही विभिन्न योजनाओं की राशि लोगों को घर जाकर दे रही हैं। जीवन प्रमाण पत्र देने के काम में शायद इन्हें लगाया जा सकता है।
दौलत के कागज हैरान करते हैं
सरकार के कुछ दफ्तर ऐसे होते हैं जहां पर उसके कर्मचारियों और अधिकारियों की दौलत की जानकारी पहुंचती ही पहुंचती है। हर विभाग में ऐसी फाईलें किसी एक अफसर तक तो आती ही हैं, और बोलचाल की सरकारी जुबान में कहें, तो उनके पास विभाग में हर किसी की कुंडली रहती है। जमीन-मकान के नाम-पते रहते हैं, उनका दाम रहता है, बैंकों में बचत की जानकारी रहती है, लिए हुए कर्ज का हिसाब रहता है, और किस-किस रिश्तेदार से कैसी-कैसी मोटी रकमें तोहफे में मिली हैं, यह जानकारी भी रहती है। सरकार के ऐसे टेबिलों पर काबिज अफसरों के चेहरों पर कुटिल मुस्कुराहट आदतन आने लगती है। किसी अफसर या उसके परिवार की संपन्नता की चर्चा होने पर वे कुछ कहे बिना भी होंठ तिरछे करके मुस्कुराकर सब कुछ कह देते हैं।
अभी ऐसे ही एक अफसर ने एक बड़े अफसर के बारे में बंद कमरे में बताया कि किस तरह उसने दो सौ एकड़ जमीन मिट्टी के मोल खरीदना दिखाया है, और अब उसे बाजार में मोटी कीमत पर बेचने का ग्राहक ढूंढा जा रहा है। ईमानदार समझे जाने वाले एक दूसरे अफसर ने कहा कि छत्तीसगढ़ के बड़े अफसरों के नौकरी में आने, और नौकरी खत्म होने के बीच का उनका आर्थिक विकास आईआईएम जैसे किसी बड़े संस्थान में रिसर्च का मुद्दा हो सकता है कि ऐसी बढ़ोत्तरी कैसे हो सकती है।
अभी छत्तीसगढ़ में ईडी और आईटी वैसे तो कुल दर्जन भर अफसरों के पीछे लगी हैं, लेकिन इस चक्कर में दर्जनों अफसरों के कागज हवा में तैरने लगे हैं। एक जमीन दलाल से बड़ी लंबी पूछताछ हुई है क्योंकि एक अफसर की बीवी की डायरी से उस दलाल की लिखावट में दस्तखत सहित लिखा जब्त हो गया कि उसने जमीन के सौदे के लिए कितने करोड़ नगद हासिल किए। अब ऐसे दलालों की जितनी कड़ी पूछताछ हुई है, वह देखने लायक है। लेकिन जमीन के खरीददारों में नामी या बेनामी अफसरों का एक बड़ा हिस्सा है, इसलिए यह तो हो नहीं सकता कि वे पूछताछ के डर से अफसरों के लिए सौदे न जुटाएं। फिर भी जांच के घेरे में जो नहीं हैं, उनकी दौलत के कागज भी हैरान करते हैं। आगे-आगे देखें होता है क्या।
नए जमाने का घोटुल
पाहुरनार बस्तर का एक ऐसा इलाका है, जहां इंद्रावती नदी को नौका से पार करके कम से कम तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। कोविड के दौरान इसकी चर्चा रही। स्वास्थ्य, शिक्षा और दूसरी मूलभूत सुविधाएं यहां पहुंचाना बेहद मुश्किल है। ऐसे अनेक दुर्गम स्थानों पर आदिवासियों की परम्परा और संस्कृति को सहेज कर रखा गया है। स्थानीय जंगल के पत्तों और लड़कियों से तैयार होने वाले घोटुल और देवगुड़ी बस्तर के गांवों की पहचान हैं, जिनका स्वरूप समय के साथ बदलता जा रहा है। यह दृश्य पाहुरनार के घोटुल का है, जिसे नए सिरे से संवारा गया है। ठीक भी है, समय के साथ युवाओं की रूचि के अनुरूप बदलाव दिखाई देना चाहिए।
नर्सिंग की खाली सीटों पर रार
प्रदेश के सरकारी और निजी नर्सिंग कॉलेजों की खाली 2700 सीटों पर एडमिशन रोक देने को लेकर सीएम को लिखी गई विधायक बृहस्पत सिंह की चि_ी बाहर आई है। विधायक को स्वास्थ्य मंत्री से कोई दिक्कत है या नहीं इससे हटकर मुद्दे पर सोचा जाए जो गंभीर है। प्रदेश में बहुत से बड़े नर्सिंग होम, हॉस्पिटल हैं, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर खूब बड़ा है। इनमें नर्सिंग कॉलेज खोल लेना आसान है। उनकी अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। सरकारी नर्सिंग कॉलेज केवल 8 हैं पर निजी 108 हैं। और कुल सीटें 6000 के आसपास। जाहिर हैं निजी कॉलेज चाहेंगे कि उनकी सारी खाली सीटें भर जाएं, फीस लें और डिग्री बांटें। विधायक ने पत्र में लिखा है कि स्वास्थ्य विभाग के अफसर प्रवेश से वंचित कर युवाओं के हाथ में कलम की जगह बंदूक पकड़ाना चाहते हैं। यदि कोई नर्सिंग में एडमिशन चाहे, खाली सीटों के बावजूद प्रवेश न मिले तब चिंता तो स्वाभाविक है लेकिन दूसरा पहलू वह भी है जिसकी तरफ मंत्री टीएस सिंहदेव इशारा कर रहे हैं। वह यह कि नर्सिंग की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों में कई ऐसे हैं जिन्हें इंजेक्शन भी ठीक तरह से लगाना नहीं आता। यह बात सही हो सकती है क्योंकि इन कॉलेजों से पास हो चुके सैकड़ों ऐसे नर्सिंग छात्र हैं, जिन्हें सरकारी तो क्या निजी नर्सिंग होम में भी सम्मानजनक वेतन के साथ नौकरी नहीं मिल रही है, पूरी तरह बेरोजगार भी हैं। हालत कुछ-कुछ इंजीनियरिंग कॉलेजों की तरह हो गई है। एक के बाद एक खुले, पर मांग घटने पर बाद में सीटें खाली रहने लगीं। इंजीनियरिंग पास युवा भी बेरोजगार घूम रहे हैं, या फिर छोटी-मोटी तनख्वाह पर काम कर रहे हैं। प्रवेश के लिए इंडियन नर्सिंग कौंसिल की गाइडलाइन के अनुसार 4 महीने पहले जब छत्तीसगढ़ में परीक्षा ली गई तो केवल 228 पास हो पाए। पिछले वर्षों में नियम शिथिल कर सीटों को भरा जाता रहा। इस बार भी वही मांग विधायक की ओर से उठाई गई है, पर अफसर तैयार नहीं हैं। वैसे तीन दिन पहले बॉम्बे हाईकोर्ट से नर्सिंग कॉलेज मैनेजमेंट के पक्ष में एक फैसला आया है जिसमें इंडियन नर्सिंग कौंसिल के प्रवेश के नियमों को चुनौती दी गई थी। यह फैसला छत्तीसगढ़ में खाली सीटों को भरे जाने के इच्छुक पक्ष नर्सिंग कॉलेज मैनेजमेंट, छात्रों और चिंतित जनप्रतिनिधियों के काम आ सकता है। ([email protected])
दोनों तरफ से जुर्म
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार ब्रम्हानंद नेताम को एक नाबालिग से बलात्कार और उसे देह के कारोबार में धकेलने के मामले में गिरफ्तार करने आई हुई झारखंड की पुलिस से कांग्रेस और भाजपा में पहले से खिंची हुई तलवारों में नई धार हो गई है। अब इन दोनों ही पार्टियों के लोग नए उत्साह से हमलों में जुट गए हैं। भाजपा जो कल तक अपने उम्मीदवार की गिरफ्तारी की आशंका जाहिर कर रही थी, अब वह कांग्रेस पार्टी को चुनौती दे रही है कि वह झारखंड पुलिस से भाजपा उम्मीदवार को गिरफ्तार ही करवा दे। चुनाव संचालक बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि उनका उम्मीदवार जेल में रहकर और अधिक वोटों से जीतेगा। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इसे फर्जी मामला करार दिया है। एक नाबालिग लडक़ी द्वारा बलात्कार की शिकायत को फर्जी करार देने का काम डॉ. रमन सिंह एक बार पहले भी कर चुके हैं। जब बापू कहा जाने वाला आसाराम एक नाबालिग छात्रा के साथ बलात्कार में गिरफ्तार हुआ था, तो अपने राष्ट्रीय संगठन के निर्देश पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तुरंत ही सार्वजनिक रूप से इस गिरफ्तारी को राजनीतिक साजिश करार दिया था। यह एक और बात थी कि मामला इतना पुख्ता साबित हुआ कि मोदी के प्रधानमंत्री रहते सात बरस हो गए, लेकिन इस मामले में आसाराम की जमानत तक नहीं हो पाई। लोगों को याद होगा कि ऐसे ही एक मामले में नाबालिग लडक़ी की बलात्कार की शिकायत को राजनीतिक साजिश कहने वाले यूपी के बड़े समाजवादी नेता आजम खां को सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी थी, वरना उनके जेल जाने का खतरा था। अब झारखंड के इस बलात्कार के मामले में कांग्रेस और भाजपा दोनों छत्तीसगढ़ में बढ़-चढक़र गलतियां कर रहे हैं। और जब कानून को जानने वाले बड़े-बड़े नेता गलतियां करें, तो वे गलतियां नहीं होतीं, वे गलत काम होते हैं। कांग्रेस भी इस मामले के सारे दस्तावेज प्रेस को जारी करके इस नाबालिग बच्ची की पहचान उजागर करने की मुजरिम हो चुकी है, और भाजपा के नेता इसे राजनीतिक साजिश कहकर एक दूसरे किस्म का जुर्म कर चुके हैं। अभी तो चुनाव की गर्मी है इसलिए कानून अपना काम तेजी से नहीं कर पा रहा है, लेकिन मतदान के बाद कानूनी शिकायतें जोर पकड़ेंगी।
कोलाहल को लेकर जज की चिंता
ध्वनि विस्तार यंत्रों के प्रयोग में नियमों का उल्लंघन हो तो रोकने का काम पुलिस-प्रशासन का है। पर कार्रवाई नागरिकों, समाजसेवियों की ओर से दबाव पड़े तभी की जाती है। राजधानी रायपुर में बीते मई माह में अनेक लोगों पर कार्रवाई सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव पर ही हो पाई थी। इधर बीते 22-23 नवंबर की रात रायपुर के बीचों-बीच सिविल लाइन और गोलबाजार इलाके में तेज आवाज में डीजे बजता रहा। कोई कार्रवाई नहीं हुई। कानून के छात्रों ने कहीं और नहीं सीधे डिस्ट्रिक्ट जज संतोष शर्मा से इसकी शिकायत कर दी। आम तौर पर अदालतें ऐसी शिकायतें लेती नहीं, न ही लोग उनसे शिकायत करने पहुंचते हैं, क्योंकि कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी तो कलेक्टर, एसपी पर है। जिला जज ने मामले की गंभीरता को समझते हुए शिकायत ली। उन्होंने कलेक्टर, एसपी और संबंधित लोगों को पत्र लिखा है। साथ ही जानकारी मंगाई है कि कोलाहल के मामलों में वह क्या कार्रवाई कर रही है। उन्होंने लोगों से कहा है कि आगे भी कोलाहल नियंत्रण अधिनियम का उल्लंघन हो तो वे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में शिकायत करें। मुमकिन है जिला जज के सीधे दखल के बाद कार्रवाई होते दिखाई देगी।
नामों पर एक सवाल तो बनता है
छत्तीसगढ़ में कुछ नए जिलों के नाम इतने लंबे हो गए हैं कि सरकारी कामकाज के अलावा आम लोग भी उनके संक्षिप्त नामों का ही इस्तेमाल करने लगे हैं। पहले ऐसा एक जिला था, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिसे जीपीएम कहा जाने लगा था. अब उस किस्म के कुछ और जिले भी हो गए हैं. ऐसा ही एक जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई है जिसे कि केसीजी कहा जा रहा है. एक जिला सरगुजा में मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर हो गया है जिसे एमसीबी कहा जा रहा है। राजनांदगांव से अलग करके बनाया गया मोहला-मानपुर-चौकी भी तीन नामों वाला एक जिला है, एमएमसी। ऐसे तीन-तीन जगहों के नाम वाले ये 4 जिले तो हो ही गए हैं, इनके अलावा सारंगढ़-बिलाईगढ़ भी एक जिला है, और जांजगीर-चांपा दूसरा जिला है जो कि दो-दो जगहों के नाम वाले हैं। अब अगले चुनाव तक हो सकता है कि दो-तीन नामों वाला कोई और जिला भी बन जाए. फिलहाल तो सामान्य ज्ञान की परीक्षा में छत्तीसगढ़ के तीन-तीन जगहों वाले जिलों के संक्षिप्त अक्षरों से उनके पूरे नाम पूछने का एक सवाल तो बनता ही है।
एटीआर और उदंती में बाघिन
वन्य जीव प्रेमियों के लिए दो खबरें एक साथ आईं। उदंती-सीतानदी अभयारण्य के ट्रैप कैमरे में एक बाघिन कैद हुई है। इसके पहले यहां 2019 में बाघिन देखी गई थी। इसका डील-डौल उससे अलग है। दूसरी ओर अचानकमार अभयारण्य में एक बाघिन के पगमार्क दिखे। पंजों के निशान से पहचाना गया कि वह मादा है। उदंती में 4 से 6 बाघ होने की जानकारी वन विभाग देता है। यह ओडिशा के सोनाबेड़ा अभयारण्य से जुड़ा हुआ है। बाघ दोनों ही जंगलों में विचरण करते रहते हैं। अचानकमार अभयारण्य में कितने बाघ हैं इस पर अलग-अलग दावे किए जाते हैं। वन विभाग कभी 17 तो कभी 12 बाघ बताता है। इन दावों पर पर्यटक विश्वास नहीं करते। किसी खुशकिस्मत सैलानी को कभी एकाध बाघ दिख जाए तो अलग बात है। संरक्षण को लेकर पड़ोसी मध्यप्रदेश की तरह यहां चिंता नहीं दिखाई देती। फिर भी एक ही समय छत्तीसगढ़ के दो अलग-अलग छोर में बाघिन या उसका पगमार्क दिखना वन्य जीवन में रुचि लेने वालों को खुश कर गया है। ([email protected])
आये भी वो, निकल भी गये...
गैर भाजपा शासित राज्यों में केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां काफी सक्रिय हैं। हालांकि कई बार कार्रवाई की पूर्व सूचना भी हो जाती है। दो दिन पहले आईटी की एक बड़ी टीम रायपुर में रूकी, तो कई कारोबारियों को भनक लग गई। उन्होंने तुरंत अपने शुभचिंतकों, और साथी कारोबारियों को इसकी जानकारी देने में देर नहीं लगाई। छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर विधानसभा का उपचुनाव चल रहा है। यहां भाजपा के लोग सत्ताधारी दल पर चुनाव जीतने के लिए करोड़ों खर्च करने का आरोप लगा रहे हैं।
कुछ लोगों का अंदाजा था कि टीम संभवत: इसी लिए आई है। मगर आईटी की टीम अगले दिन तडक़े ओडिशा निकल गई, और फिर वहां पदमपुर इलाके में जाकर तीन बड़े कारोबारियों के यहां छापेमारी भी की। ओडिशा में बीजेडी की सरकार है। यह भी संयोग है कि पदमपुर में विधानसभा के उपचुनाव चल रहे हैं। पदमपुर में छापेमारी की खबर पाकर भानुप्रतापपुर में सक्रिय रहने वालों ने राहत की सांस ली।
भोजराम की बेवक्त बिदाई
बीएसएफ से राज्य पुलिस में आए अफसर धर्मेंद्र सिंह छवाई महासमुंद एसपी बनाए गए। धर्मेंद्र के राज्य पुलिस सेवा में संविलियन को लेकर काफी विवाद हुआ था। बावजूद पिछली सरकार ने उनका संविलियन कर दिया, और आईपीएस अवार्ड होने के बाद उन्हें महासमुंद जैसे राजनीतिक व प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिले की कमान सौंपी गई है। धर्मेंद्र का एसपी के रूप में पहला जिला है। धर्मेंद्र से पहले भोजराम पटेल ने महासमुंंद में अच्छा काम किया था। उन्होंने जिले के सभी थाना परिसर में व्यक्तिगत रूचि लेकर कृष्णकुंज की तर्ज पर धार्मिक महत्व के पेड़ लगवाने के पहल की थी। इसकी खूब सराहना भी हुई। पटेल के कुछ महीने के भीतर हटने के पीछे भले ही कई तरह की चर्चा है, लेकिन उनकी काबिलियत पर सवाल नहीं उठे हैं।
संपन्न और साइकिल वाले देश
छत्तीसगढ़ से जर्मनी के एक अंतरराष्ट्रीय बॉडीबिल्डिंग मुकाबले में जज बनकर गए संजय शर्मा ने एक जर्मन शहर की एक सार्वजनिक जगह की यह फोटो भेजी है जो कि साइकिलों से पटी हुई है। हिन्दुस्तान में शहरों के अलावा अब तो कस्बों में भी लोग पेट्रोल, डीजल, और बैटरी से चलने वाली गाडिय़ां दौड़ाते दिखते हैं, वैसे में साइकिलों वाला देश कुछ अटपटा लगता है, खासकर जब जर्मनी की प्रति व्यक्ति आय हिन्दुस्तान से 25 गुना अधिक है। जितने विकसित और संपन्न देश हैं, वहां पर साइकिलों का इस्तेमाल उतना ही अधिक होता है, योरप के कई देशों में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति साइकिलों पर चलते दिखते हैं। हिन्दुस्तान में साइकिल गरीबों में भी सबसे ही गरीब मजदूरों की होकर रह गई है। जैसा कि इस तस्वीर से देखा जा सकता है साइकिलों को रखने के लिए जगह भी तय है, जहां उन्हें ताला लगाकर हिफाजत से रखा जा सकता है। हिन्दुस्तान में अधिकतर जगहों पर न तो ट्रैफिक साइकिलों के लायक रह गया है, और न ही उन्हें खड़े रखने की जगह बनाई जाती है। किसी सरकारी दफ्तर में भी साइकिल को ताला लगाकर रखने की कोई जगह नहीं रहती।
जिला नहीं बनाने की मांग
चुनाव के पहले खैरागढ़ उप-चुनाव की तरह भानुप्रतापपुर को जिला बनाने का वादा कांग्रेस नहीं कर रही है। इसकी वजह यह नहीं है कि भाजपा उम्मीदवार ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ एफआईआर को अचूक हथियार मान रही है, बल्कि कुछ दूसरे कारण भी हैं। अंतागढ़ के लोगों को इस बात की चिंता सता रही है कि भानुप्रतापपुर को चुनाव का फायदा न मिल जाए। वे भी वर्षों से जिला बनाने की मांग करते आ रहे हैं। अंतागढ़ की दावेदारी तब ठंडे बस्ते में चली जाएगी यदि भानुप्रतापपुर को जिला बना दिया जाएगा। इसलिये जब से चुनाव प्रचार अभियान शुरू हुआ है अंतागढ़ से अलग-अलग संगठन कांकेर कलेक्ट्रेट पहुंच रहे हैं। वे अफसरों को मुख्यमंत्री के नाम पर ज्ञापन सौंप रहे हैं। इनमें भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की किसी भी तैयारी को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी जा रही है। अंतागढ़वासियों का कहना है कि भानुप्रतापपुर का तहसील रहते हुए भी काफी विकास हो चुका है। अंतागढ़ इलाका उसके मुकाबले काफी पिछड़ा है। दावेदारी अंतागढ़ की ही उचित है। अब ऐसी स्थिति में जब अगले साल आम चुनाव होने वाला हो, भानुप्रतापुर के पक्ष में कोई निर्णय ले लिया गया तो अंतागढ़ की नाराजगी से कैसे निपटा जाएगा?
वैसे दिलचस्प यह है कि कांकेर जिले के ही पखांजूर को जिला बनाने की मांग और उसके विरोध में यहां के लोग बंट गए हैं। पिछले साल एक बड़ा आंदोलन जिला बनाने की मांग को लेकर हुआ, लोग सडक़ पर धरने पर बैठ गए थे। तब इसका अनेक आदिवासी नेताओं ने विरोध किया। उनका कहना है कि जिला बनने के बाद यहां के खनिज साधनों का तेजी से दोहन होने लगेगा। यहां के परलकोट को पर्यटन स्थल बनाने का विरोध भी हो रहा है। कहना है कि ग्राम सभा के प्रस्ताव के बिना इस पर फैसला नहीं लिया जा सकता।
और, जश्न मना रहे रेलवे अफसर
रेल मंडल बिलासपुर के अधिकारियों ने बीते दिनों केक काटा और उसे मीडिया, सोशल मीडिया में वायरल भी किया। वजह थी इस वित्तीय वर्ष में 100 मिलियन टन माल ढुलाई कर लेना। लदान पिछले साल भी तेज रही, पिछले साल के मुकाबले 100 मिलियन टन तक पहुंचने में चार दिन कम लगे। रेलवे के अधिकारी खुद ही ढिंढोरा पीट रहे हैं कि सवारी गाडिय़ां देर से क्यों चल रही है। आए दिन दो चार ट्रेनों को रैक नहीं पहुंचने के कारण रद्द किया जा रहा है। ट्रेन इतनी देर से चलती है कि रैक वापस आ ही नहीं पाती और अगले दिन का शेड्यूल बिगड़ जाता है। लगातार विरोध और आंदोलन के दबाव में बंद ट्रेनों को रेलवे ने शुरू तो किया, पर बोगियां घिसट-घिसट कर चल रही है। यात्रियों का हाल-बेहाल है। यह स्थिति तब है जब कई छोटे स्टेशनों में स्टापेज खत्म कर दिया गया है। कोई दिन और कोई रूट नहीं जिसमें ट्रेन देर नहीं हो रही हैं। आज ही की सूची देख लें कोई तीन घंटे तो कोई पांच घंटे लेट चल रही है। हमसफर एक्सप्रेस तो 10.30 घंटे विलंब से है। केक काटने पर अचरज नहीं होना चाहिए। रिकॉर्ड लदान करने पर रेलवे टीम को अनेक रिवार्ड मिलते हैं। यदि लदान में आगे है तो फिर यात्री ट्रेनों को 10 मिनट लेट करें या 10 घंटे कोई जांच नहीं होनी है।
सिंहदेव का इशारा किसकी ओर?
बीजेपी पार्षदों की शिकायत पर अंबिकापुर में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और उनके परिजनों के खिलाफ जमीन मामले में जांच का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल गया है। फर्जी तरीके से 80 एकड़ सरकारी जमीन बेचने के आरोप की जांच के लिए तहसीलदार ने कलेक्टर के आदेश पर जांच टीम बनाई है। सिंहदेव ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कई बार जांच हो चुकी, भाजपा सरकार ने भी कराई थी। कहीं गड़बड़ी नहीं मिली। अब और क्या जांच हो रही है? सब जानते हैं कि जांच का कहां से आदेश आ रहा है, क्यों जांच हो रही है। जाहिर है सिंहदेव ने इसे कांग्रेस के भीतर चल रहे खींचतान से इसे जोड़ दिया है। शिकायत जरूर भाजपा नेता ने की है, अगर उनके पीछे सत्ता से जुड़ा कोई न कोई व्यक्ति खड़ा होगा। ([email protected])
सुन्दरराज बाहर जाएँगे ?
भानुप्रतापपुर चुनाव निपटने के बाद बस्तर आईजी पी सुंदरराज केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। चर्चा है कि उनकी पोस्टिंग हैदराबाद स्थित नेशनल पुलिस अकादमी में हो सकती है। सुंदरराज से पहले छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस राजीव माथुर अकादमी में रहे हैं, और वहां वो डायरेक्टर पद से रिटायर हुए।
आईपीएस के 2003 बैच के अफसर सुंदरराज लंबे समय से बस्तर में हैं। उन्हें काबिल अफसर माना जाता है, और उनके कार्यकाल में नक्सल हिंसा में भारी कमी आई है। कहा जा रहा है कि यदि सुंदरराज प्रतिनियुक्ति पर जाते हैं, तो रतनलाल डांगी उनकी जगह ले सकते हैं। डांगी फिलहाल चंदखुरी पुलिस अकादमी में पदस्थ हैं।
छत्तीसगढ़ कैडर के करीब आधा दर्जन से अधिक अफसर केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इनमें रवि सिन्हा रॉ में स्पेशल डायरेक्टर हैं। इसके अलावा अमित कुमार सीबीआई, जयदीप सिंह आईबी, अमरेश मिश्रा एनआईए, अभिषेक पाठक, ध्रुव गुप्ता, और नेहा चंपावत व नीथू कमल अलग-अलग संस्थानों में कार्यरत हैं।
एक जिम्मेदार के खिलाफ शिकायतें
प्रदेश संगठन में बदलाव के बाद से कई चीजें सुधर नहीं पा रही है। कामकाज पहले से ज्यादा अव्यवस्थित दिख रहा है। नई जिम्मेदारी संभालने वाले कुछ पदाधिकारियों के कामकाज पर उंगलियां उठ रही हैं। इन्हीं में से एक नरेश गुप्ता भी हैं, जिन्हें प्रदेश कार्यालय मंत्री का दायित्व सौंपा गया है। गुप्ता से पहले सुभाष राव कार्यालय संभालते थे। दो दशक तक कार्यालय मंत्री रहने के बाद भी कभी उनके काम को लेकर शिकवा शिकायतें नहीं हुई, लेकिन उनके बाद थोड़े दिनों में ही नरेश गुप्ता के खिलाफ अलग-अलग स्तरों पर शिकायतें हो चुकी है। इनमें कुछ शिकायतें तो काफी हल्की है, जो कि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
नरेश गुप्ता मुंगेली के रहने वाले हैं, और अरुण साव से पुराना परिचय रहा है। अरुण साव की पसंद पर नरेश गुप्ता को कार्यालय का प्रभारी बनाया गया है। कुशाभाऊ ठाकरे परिसर किसी फाइव स्टार होटल से बड़ा है। यहां रोजमर्रा का कामकाज आसान नहीं है। बताते हैं कि नरेश गुप्ता की अनुभवहीनता कहीं न कहीं कार्यालय के बेहतर संचालन में आड़े आ रही है। एक शिकायत यह हुई है कि केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के रायपुर प्रवास की जानकारी जिले के प्रमुख पदाधिकारियों तक को नहीं दी, और वो प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव के साथ तोमर के स्वागत के लिए पहुंच गए। सांसद सुनील सोनी रायपुर में ही थे, लेकिन उन्हें भी किसी ने सूचना नहीं दी। जबकि सूचना देने की जिम्मेदारी प्रदेश कार्यालय की होती है।
नरेश के खिलाफ एक और शिकायत की चर्चा खूब हो रही है। हुआ यूं कि प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के भोजन के समय खुद ही खाना परोसने में लगे रहे. जबकि वहां और कार्यकर्ता भी थे। पूरे समय माथुर के आगे-पीछे होते रहे। जबकि भानुप्रतापपुर चुनाव के चलते स्थानीय कार्यकर्ता कार्यालय से मार्गदर्शन का इंतजार करते रहे। इन सबके बावजूद नरेश गुप्ता को काफी जुझारू माना जाता है। हर चुनाव में वो आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों को लेकर काफी मुखर रहे हैं, और उनकी कई शिकायतों पर आयोग ने कार्रवाई भी की है। इन सबको देखते हुए नरेश के योगदान को देखते हुए शिकायतों पर ज्यादा गौर नहीं किया जा रहा है। फिर भी अब चुनाव नजदीक है। ऐसे में पार्टी नेताओं को छोटी-छोटी शिकायतों को दूर कर कामकाज को बेहतर करने की अपेक्षा भी है। देखना है नरेश गुप्ता कितना कुछ सुधार पाते हैं।
भूपेश की चेतावनी, एक नए टकराव का आसार
छत्तीसगढ़ केन्द्र और राज्य के बीच टकराव का एक बड़ा मैदान बन गया है। गैरभाजपा सरकारों वाले बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्य पिछले बरसों में लगातार ऐसा टकराव देख चुके हैं जब केन्द्रीय जांच एजेंसियां राज्य-सत्ता के इर्द-गिर्द के लोगों को घेरते दिखती हैं। ममता बैनर्जी से लेकर उद्धव ठाकरे तक अपने-अपने वक्त केन्द्र के खिलाफ बहुत खुलकर बोल चुके हैं, और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ रह चुकी शिवसेना के एक बड़े नेता संजय राउत को ईडी जिस तरह गिरफ्तार किया, और सौ से अधिक दिन जेल में रखा, उससे देश के सभी गैरभाजपाई राज्य हक्का-बक्का हैं। अदालत ने संजय राउत को जमानत देते हुए यह कहा कि ईडी ने जिस तरह से संजय राउत को गिरफ्तार किया, वह पहली नजर में गैरकानूनी कार्रवाई थी।
अब छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल पहली बार इतने साफ शब्दों में ईडी की चल रही कार्रवाई के खिलाफ कहा है। उन्होंने आधा दर्जन ट्वीट करके जिस तरह चेतावनी दी है, उससे यह साफ है कि राज्य सरकार के पास कुछ लोगों की ठोस शिकायतें पहुंची हैं, और ऐसा लगता है कि राज्य की पुलिस उन पर कोई कार्रवाई करे, इसके पहले मुख्यमंत्री केन्द्रीय एजेंसियों को चेतावनी देने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने जिस तरह ईडी की पूछताछ के दौरान रॉड से पीटना, किसी का पैर टूटना, किसी को सुनाई देना बंद होना लिखा है, उससे लगता है कि सरकार के पास पुख्ता शिकायत है, जिस पर किसी भी पल कार्रवाई हो सकती है। यह राज्य और केन्द्र के बीच, उनकी एजेंसियों के बीच एक नया टकराव हो सकता है।
बड़ा कारोबार, प्यादे गिरफ्तार
मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के जिले दुर्ग में जिस तरह महादेव ऐप नाम का ऑनलाईन सट्टेबाजी का कारोबार चल रहा था, वह चलते हुए भी हक्का-बक्का करता था, और अब जब पुलिस इस कारोबार के छोटे-छोटे प्यादो को पकड़ रही है, तो इतने छोटे लोगों की धरपकड़ भी हक्का-बक्का करती है कि क्या इनसे बड़े कोई मुजरिम पुलिस को हासिल नहीं हैं? यह कारोबार इतने बड़े-बड़े नामों की चर्चा वाला है कि इसमें महज प्यादों की गिरफ्तारी जांच और कार्रवाई के नाम पर दिखावा दिख रही है। खबरों में जो जानकारी आ रही है, वह बहुत फिल्मी है, और संगठित सट्टे के कारोबार फिल्मी अंदाज के रहते भी हैं। महादेव ऐप से पूरे देश और दुनिया से दांव लगाए जा रहे थे, और चर्चा यही है कि केन्द्र सरकार की कुछ एजेंसियां इस मामले की जांच में भी लगी हुई हैं।
झपकी लेते ही गाड़ी बंद
सडक़ दुर्घटनाओं की एक वजह ड्राइवर को गाड़ी चलाते हुए झपकी आ जाना भी है। बस्तर के सुदूर डोडरेपाल स्कूल के एक छात्र भुवनेश्वर बैद्य ने ऐसी दुर्घटनाओं का हल निकालने की कोशिश की है। यहां चल रही विज्ञान प्रदर्शनी में वह एक चश्मा दिखाया गया है। दावा है कि इस चश्मे को पहनने पर ड्राइवर को झपकी लगते ही गाड़ी रुक जाएगी और इंजन भी बंद हो जाएगा। यह चश्मा गाड़ी के इंजन और एक्सीलेटर से कनेक्ट रहेगा। आंख बंद होने पर दोनों को कमांड मिलेगा और गाड़ी रुक जाएगी। तीन जिलों के 288 मॉडलों में इसे प्रथम पुरस्कार मिल गया है। अब राज्य स्तर के मेले में इसे प्रदर्शित किया जाएग। पर यह देखा गया है कि स्कूलों के विज्ञान मेले में प्रदर्शित किए जाने वाले अविष्कार आम लोगों के बीच इस्तेमाल के लिए आ नहीं पाते। इसके लिए कई चरणों की परीक्षण प्रक्रिया और निवेश की जरूरत पड़ती है। फिर भी एक दूरस्थ इलाके के स्कूली छात्र की इस कोशिश की तारीफ बनती है।
शराबबंदी लागू कराना किसका काम?
शराबबंदी पर फैसला मंत्रिमंडल को लेना है और लागू करना है। विधायक सत्यनारायण शर्मा तो मंत्री ही नहीं हैं, पर शराबबंदी पर बनाई गई उस समिति के प्रमुख हैं जिसकी सिफारिश महीनों से नहीं आई है और कब आएगी इसका पता भी नहीं। सरकार समिति की सिफारिश मानेगी या नहीं, किसी को पक्का पता नहीं। पर शराबंदी समिति के प्रमुख होने के हिसाब से कोई बजाय छत्तीसगढ़ सरकार के सीधे सत्यनारायण शर्मा के खिलाफ बैनर लेकर उतरा हो तो हर्ज ही क्या है? खासकर तब जब प्रदर्शन उनके निर्वाचन क्षेत्र के बिरगांव में हो रहा हो। बस इतनी ही बात जमी नहीं कि बैनर में संगठन का नाम तो छत्तीसगढ़ महतारी अधिकार मंच लिखा है, पर तस्वीर में एक भी महतारी नहीं दिख रही है।
उलझन के बीच पीएससी परीक्षा
छत्तीसगढ़ में आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद मेडिकल, तकनीकी कॉलेजों में दाखिला, वन, पुलिस और अन्य कई विभागों में भर्ती की प्रक्रिया रुक गई है। सीजीपीएससी में नियुक्तियों की सूची निकलने के ठीक पहले रोक देनी पड़ी। विधानसभा सत्र में प्रस्ताव पारित होने के बाद भी आगे की संवैधानिक और कानूनी प्रकिया स्पष्ट नहीं है। ऐसे में संविधान दिवस पर पीएससी ने परीक्षा कार्यक्रम जारी करने की परंपरा को बनाए रखा। आयोग का यह तर्क है कि प्रारंभिक परीक्षा का आरक्षण से कोई संबंध नहीं है। पिछले साल प्रारंभिक परीक्षा में एक लाख से अधिक अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इस बार आयोग के इस फैसले से हजारों अभ्यर्थियों की तैयारी बेकार हो जाने से बच गई। पर एक और बड़ी संख्या रह जाएगी जो मुख्य परीक्षा के लिए उत्तीर्ण होंगे। पिछले साल 2548 अभ्यर्थी सफल हुए थे। इस बार भी इसी के आसपास संख्या हो सकती है। दोनों वर्षों के सफल उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र और ज्वाइनिंग कब मिलेगी, यह तब तक स्पष्ट नहीं होगा जब तक विधानसभा में आने वाले प्रस्ताव और उसके बाद स्थिति साफ नहीं हो जाती। वैसे जिस तरह से 26 नवंबर को विज्ञापन जारी करने की परंपरा है, उसी तरह से नतीजे और नियुक्तियों के लिए भी समय-सीमा तय कर दी जाती तो दाखिले और नियुक्तियों की फंसी हुई सूची छोटी दिखाई पड़ती। जैसे सब इंस्पेक्टर के चयन की प्रक्रिया तो चार से चल रही है। कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया में भी विलंब हुआ है।
भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार
भानुप्रतापपुर में भाजपा प्रत्याशी पर रेप केस के चलते पार्टी बुरी तरह फंस गई है। कांग्रेस ने अब पूर्व सीएम रमन सिंह को निशाने पर लिया है। कांग्रेस नेता, रमन सिंह के पूर्व पीए ओपी गुप्ता के खिलाफ रेप केस को भी सोशल मीडिया में उछालकर भाजपा पर हमला बोल रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेताओं का हाल यह है कि वो प्रचार की औपचारिकता निभा रहे हैं।
सुनते हैं कि पार्टी के फायर ब्रांड एक पूर्व मंत्री को सब कुछ छोडकऱ गुजरात से प्रचार के लिए यहां बुलाया गया। पूर्व मंत्री भानुप्रतापपुर गए भी लेकिन बाद में वो एक दवा सप्लायर के यहां पारिवारिक कार्यक्रम में शिरकत करने दुर्ग निकल गए। बाकी नेता भी बीच-बीच में शादी व अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने निकल जाते हैं। कुल मिलाकर प्रचार की कमान स्थानीय नेता ही संभाल रहे हैं। अभी तक की स्थिति में तो भाजपा से ज्यादा व्यवस्थित प्रचार सर्वआदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम का चल रहा है। अभी प्रचार में 6 दिन बाकी है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
बसपा के जनाधार में सेंध?
राहुल गांधी की पदयात्रा के बाद दूसरे दलों के नेता भी इसी रास्ते पर चल निकले हैं। स्व. अजीत जोगी ने कभी अविभाजित मध्यप्रदेश में लंबी पदयात्रा की थी। अब उनके पुत्र छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) के अध्यक्ष अमित जोगी ने 26 नवंबर से पदयात्रा शुरू की है। बहुत से राजनीतिक पंडित यह मानकर चल रहे हैं कि छजकां का अधिकतम प्रभाव सन् 2018 के चुनाव में दिख गया, अब वो बात नहीं रही। तब मुख्यमंत्री स्व अजीत जोगी की उपस्थिति भी थी। उसके बाद से छजकां टूटती ही गई है। संस्थापक रहे उनके बेहद करीबी भी अब पार्टी छोडक़र जा चुके हैं। दो सीटें उप-चुनाव में छिन गई, एक विधायक धर्मजीत सिंह को बाहर कर दिया गया। पर कल धार्मिक नगरी मल्हार से शुरू हुई पदयात्रा के लिए रखी गई जनसभा में जिस तरह भीड़ उमड़ी, उसने लोगों को जोगी के कार्यक्रमों की याद दिला दी। यह भी तय कर दिया कि जोगी के गुजर जाने के बाद भी उनके समर्थक पार्टी के साथ अभी भी हैं।
सन् 2018 के चुनाव में जिस बसपा ने छजकां से गठबंधन किया था, वह सन् 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग हो गई। गौर करने की बात यह है कि अमित जोगी तीन चरणों में जनवरी तक चलने वाली पदयात्रा में जिन 6 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेंगे वे सभी बसपा के जनाधार वाली हैं। प्रदेश में बसपा की दोनों सीटें इन्हीं में से है। एक जैजैपुर को छोडक़र बाकी पांच सीटों में बहुजन समाज पार्टी या तो जीती या फिर उसने जीतने वाले उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी। मस्तूरी में 2013 के विधायक दिलीप लहरिया को बसपा उम्मीदवार जयेंद्र सिंह पात्रे ने तीसरे स्थान पर खिसका दिया। यहां से भाजपा के डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी जीत गए। पात्रे को जोगी का ही प्रत्याशी बताया गया था। बिलाईगढ़ से कांग्रेस के चंद्रदेव राय को भी बसपा के श्याम कुमार टंडन ने टक्कर दी। अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी अकलतरा में भाजपा प्रत्याशी सौरभ सिंह केवल दो हजार वोट से हारीं। पामगढ़ में कांग्रेस को बसपा की इंदु बंजारे ने हराया। चंद्रपुर में भी कांग्रेस के रामकुमार यादव जीते पर सिर्फ 4400 मतों से। यहां बसपा प्रत्याशी गीतांजलि पटेल ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। जैजैपुर में तो बसपा का जबरदस्त असर देखा गया जहां केशव चंद्रा ने भाजपा के कैलाश साहू को 21 हजार वोटों से हराया। कांग्रेस यहां भी तीसरे स्थान पर खिसक गई थी।
अमित जोगी और ऋचा जोगी इस समय अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र रद्द हो जाने के संकट से जूझ रहे हैं। छानबीन समिति और राज्य सरकार के आदेशों को उन्होंने कोर्ट में चुनौती जरूर दी है, पर इनका फैसला कब आएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। अभी जिन 6 सीटों में अमित जोगी और उनकी पार्टी पहुंच रही है, उनमें से तीन सामान्य सीटें हैं, जहां लडऩे के लिए जाति संबंधी दस्तावेज नहीं चाहिए। पर इन सभी में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बड़ी संख्या है। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने अपनी चुनावी राजनीति यहीं के जांजगीर लोकसभा सीट से शुरू की थी। अनुसूचित जाति वर्ग में निर्विवाद रूप से स्व. अजीत जोगी की अच्छी पैठ रही है। इस इलाके में भी। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए समझा जा सकता है कि अमित जोगी ने अपनी यात्रा इन्हीं सीटों पर केंद्रित क्यों रखा है।
अब लड़ाई जीत के लिए ही...
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के अलावा सर्व आदिवासी समाज की साख भी दांव पर लग गई है। समाज के सदस्य किस दल से जुड़े हैं पहले यह गौण था, लेकिन अब वह राजनीतिक भूमिका में है। जब सभी पंचायतों से एक-एक उम्मीदवार मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया तब संगठन ने स्पष्ट किया था कि चुनाव जीतना उनका उद्देश्य नहीं है, वे सिर्फ यह देखना चाहते हैं कि मतदाता आदिवासी आरक्षण के सवाल पर दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की भूमिका के खिलाफ हैं या नहीं। अब उनका कुल एक ही उम्मीदवार लड़ रहा है। अब यह नहीं कहा जा सकता कि जीत के लिए नहीं लड़ रहे हैं। चुनाव प्रचार में लगभग एक सप्ताह का समय है। इस अवधि में यदि वह त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाने में भी कायमाब हो गए तो यह उनकी सफलता के रूप में देखा जाएगा। [email protected]
दो जन्मदिनों की कहानी
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष अरूण साव का जन्मदिन राजधानी रायपुर के एकात्म परिसर में जिस धूमधाम से मनाया गया, उसने लोगों को चौंका दिया। अरूण साव का रायपुर में कभी काम नहीं रहा, और वे बिलासपुर से ही लोकसभा सदस्य हैं। ऐसे में रायपुर में कार्यक्रम इतना बड़ा हो जाएगा, इसका अंदाज लोगों को नहीं था। नतीजा यह हुआ कि एकात्म परिसर के आसपास, दूर-दूर तक पार्किंग की कोई जगह नहीं बची, ट्रैफिक जाम रहा, और लोगों की आवाजाही अंतहीन रही। रात तक लाउडस्पीकर पर यह घोषणा भी होती रही कि जो लोग आए हैं उनके खाने का इंतजाम है, और लोग खाना खाकर ही जाएं। ऐसा अंदाज है कि जिन लोगों को इस बार विधानसभा टिकट पाने की हसरत है, उन लोगों ने बड़े उत्साह के साथ नए प्रदेश अध्यक्ष का यह जन्मदिन मनाया।
कुछ हफ्ते पहले ही पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का जन्मदिन भी पार्टी दफ्तर से परे मनाया गया था। एयरपोर्ट के सामने शहर के सबसे बड़े जलसाघर, जैनम में वह समारोह रमन सिंह के सबसे करीबी मंत्री रहे राजेश मूणत ने किया था, और वह भी बहुत बड़े पैमाने पर था, लेकिन वह पार्टी का कार्यक्रम नहीं था। पन्द्रह बरस रमन सिंह मुख्यमंत्री रहे, और उनका जन्मदिन सरकारी बंगले में ही मनाया जाता रहा, सत्ता से हटने के बाद इस बरस सबसे धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाया गया, और उसने भी लोगों को चौंका दिया था। मूणत तो अपने हिसाब से अगला चुनाव लडऩे वाले हैं ही, और उन्होंने रायपुर पश्चिम में घर बनाकर वहां रहना भी शुरू कर दिया है, और मौलश्री विहार का घर बेच भी दिया है। लेकिन उन्होंने रमन सिंह का कार्यक्रम जिस भवन में करवाया वह उनके पसंदीदा विधानसभा क्षेत्र से खासा दूर था। हो सकता है कि उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों को रमन सिंह के जन्मदिन पर अधिक बुलाया हो।
पैसों से लाल, सत्ता के दलाल
शहर की दो सबसे बड़ी और सबसे महंगी कॉलोनियों को लेकर सत्ता के साथ गठजोड़ की एक लड़ाई चल रही है। इन तक पहुंचने का रास्ता अभी खराब है, और इन दोनों की चाहत उस एक्सप्रेस हाईवे से अपना रास्ता पाने की है जिस पर से किसी को दाखिला न देना पिछली सरकार के समय से तय है ताकि कोई हादसे न हों, और तेज रफ्तार ट्रैफिक एक्सप्रेस हाईवे पर गुढिय़ारी से लेकर एयरपोर्ट और अभनपुर रोड तक पहुंच सके। अब पैसों में बहुत ताकत होती है, और पैसे वालों की कॉलोनी अपना समर्थन करने के लिए सत्ता के दलाल भी जुटा लेती है, इसलिए अब म्युनिसिपल और दूसरे सरकारी दफ्तरों के मझले दर्जे के अफसरों का धर्मसंकट का वक्त आ गया है कि वे पैसों से लाल, और सत्ता के दलाल लोगों के दबाव को कैसे झेलें। इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग इसके पूरा होने के पहले से लगे हुए हैं, सूचना के अधिकार में हर कागज निकाला हुआ है, और अदालत तक की तैयारी भी हो चुकी है। अब पैसों और सत्ता के मिलेजुले दबाव से दुर्घटनाओं का रास्ता खुलता है या नहीं, इसी पर सबकी निगाहें हैं।
छत्तीसगढ़ को चूसकर...
वन विभाग के मुखिया संजय शुक्ला ने कल मृत्यंजय शर्मा नाम के एक रेंजर को सस्पेंड किया है जिस पर साढ़े चार करोड़ के काम में सवा करोड़ से अधिक के भ्रष्टाचार के सुबूत मिले हैं। अब हर भ्रष्टाचार का सुबूत तो रहता नहीं है, वरना साढ़े चार करोड़ में काम ही कुल सवा करोड़ का हुआ हो तो बहुत है। जंगल विभाग प्रदेश का बड़ा ही अनोखा विभाग है जहां सुप्रीम कोर्ट के रास्ते मिलने वाले हजारों करोड़ के कैम्पा फंड में भ्रष्टाचार की कहानियां बच्चे-बच्चे की जुबान पर हैं, लेकिन वनविभाग हांकने वाले लोग ही इससे अनजान हैं। अब पता लगा है कि कैम्पा में संगठित और योजनाबद्ध भ्रष्टाचार चलाने वाले अफसर ने सरकार को अपनी ऐसी शानदार सेवाओं के कुछ दूसरे विभागों में विस्तार का एक प्रस्ताव दिया है, देखें कि भ्रष्टाचार को काबिलीयत मानने वाले इस विभाग के एक और अफसर का बाहर किस तरह का विस्तार होता है। जब एक-एक रेंजर का करोड़ों का भ्रष्टाचार है, तो इसमें हैरानी की क्या बात है कि तबादलों के सीजन में तबादलों का ठेका लेने वाले अफसर का बड़ा वजन माना जाता है। छत्तीसगढ़ को चूसकर पड़ोस के आन्ध्र में दौलत किस तरह इक_ी हो रही है, यह भी देखने लायक है। विभाग का मुखिया कोई भी अफसर रहे, यह सिलसिला जारी है।
सीएम संग खाने सिर फुटव्वल
भेंट-मुलाकात में राजनांदगांव विधानसभा में रात ठहरे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के संग खाने में शरीक होने के लिए कांग्रेस नेताओं में सिर-फुटव्वल की हालत की पार्टी में जमकर चर्चा है। नांदगांव में मुख्यमंत्री के साथ रात्रि भोजन के लिए प्रशासन की निगरानी में बनी सूची में कई नाम हैरान करने वाले थे। कांग्रेस के मेहनतकश नेताओं को उस वक्त फजीहत का सामना करना पड़ा, जब भोजन के मेज पर जाने से पहले ही सुरक्षादस्ते ने रोक लगा दी।
बताते हैं कि सीएम के साथ भोजन करने बैठे कुछ चेहरे ऐसे थे जिनका भाजपा सरकार में अंदरूनी प्रभाव रहा। कांग्रेसी नेताओं और पदाधिकारियों के साथ आपसी संवाद बढ़ाने के लिए सीएम की तरफ से दावत की व्यवस्था की गई थी। सुनते हैं कि खाने पर बैठने के लिए सीएम सचिवालय और प्रशासन की देखरेख में एक लिस्ट बनाई गई। कुछ नेताओं को इस बात की भनक नहीं लगी कि उनके विरोधी गुट ने लिस्ट से उनका नाम हटवा दिया है। चर्चा है कि प्रभावशाली नेताओं ने प्रशासनिक अधिकारियों पर दबाव ड़ालकर विरोधी नेताओं को मेज से दूर रखा। वैसे भी राजनांदगांव की सियासत में कांग्रेस की गुटीय लड़ाई से निचले कार्यकर्ता बेहाल हो गए हैं। मुख्यमंत्री की मौजूदगी में गुटीय वर्चस्व पूरी तरह से हावी रहा।
बताते हैं कि भाजपा से नजदीकी रिश्ता बनाए हुए कांग्रेसी नेताओं को तरजीह मिलने से निष्ठावान कांग्रेसी बुदबुदाते हुए लौट गए। वहीं चेहरा लाल देखकर कुछ कांग्रेसी नेताओं को सर्किट हाऊस में जाने का अफसोस भी रहा। नांदगांव के अलावा सभी विधानसभा में नाम जोडऩे-कांटने को खेल रहा। सीएम के खाने से अलग-थलग करने की कवायद में मौजूदा विधायकों ने कोई-कसर नहीं छोड़ी। उनके इस हल्केपन को लेकर विरोधी गुट ने माथा पकड़ लिया।
क्या हाथी उन्मूलन का अभियान है?
छत्तीसगढ़ में जिस तरह हाथियों की बेमौत मारे जाने की घटनाएं सामने आ रही है, वह संवेदनहीनता की सीमा पार करती जा रही है। कुछ दिन पहले धरमजयगढ़ वन मंडल के जामघाट की पहाड़ी में दो पेड़ों के बीच एक हाथी का जीर्ष-शीर्ष शव मिला। इसे एक माह पहले का बताया जाता है। किस तरह से इसकी मौत हुई, यह भी पता लगाना मुश्किल है। पिछले हफ्ते रायगढ़ वन मंडल के घरघोड़ा रेंज में एक हाथी का शव मिला। पता चला कि करंट से मौत हो हुई है। छाल रेंज में अक्टूबर माह में एक हाथी का चार-पांच दिन पुराना शव मिला। इस साल फरवरी में भी लैलूंगा परिक्षेत्र में हाथी मृत मिला। हाल के दिनों में ही रायगढ़, सरगुजा रेंज में 6-7 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इधर इसी महीने बलौदाबाजार के देवपुर परिक्षेत्र में हाथी को करंट लगाकर मार डाला गया। एक ग्रामीण की गिरफ्तारी की गई। पिछले महीने कटघोरा वन परिक्षेत्र में 12 ग्रामीणों को गिरफ्तार किया। इनमें एक पंचायत पदाधिकारी भी है। इन्होंने एक शावक हाथी को मारकर उसका शव जमीन पर गाड़ दिया था।
हाथी प्रभावित महासमुंद, पिथौरा, जशपुर, कोरबा, बलरामपुर आदि वन क्षेत्रों में लगातार हाथियों की मौत की खबरें आ रही हैं। भारतीय प्रजाति के एक हाथी की औसत आयु 48 वर्ष होती है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में जिन हाथियों का शव मिल रहा है उनमें कोई 15 बरस का है तो कोई 20 का। दो तीन साल के शावक भी मिल रहे हैं। सूरजपुर में हाथी-हथिनी के बीच हुए संघर्ष की एक घटना को छोड़ दें तो किसी में भी उनके बीच मुठभेड़ की बात सामने नहीं आई है। अनुकूल ठिकाने और भोजन, पानी की तलाश में भटक रहे हाथियों की असामयिक मौतें हो रही हैं। हाथियों को करंट लगाकर मारने की घटनाओं के पीछे केवल फसल, झोपड़ी बचाना ही एक कारण नहीं है, बल्कि इसके अंगों की तस्करी भी एक बड़ी वजह है। जब खदानों को क्लीयरेंस देना होता है तो हाथियों की मौजूदगी ही स्वीकार नहीं की जाती। कैंपा मद में करोड़ों रुपये वन्यजीवों के सुरक्षित रहवास के लिए आवंटित किए जाते हैं, खर्च क्या होता है, जांच का विषय है। एलिफेंट कॉरिडोर की बात जब-तब उठाई जाती है, पर वह भी धरातल पर नहीं है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी जंगलों से गुजरने वाले हाईटेंशन तारों में लेयर लगाने और उसे ऊंचा करने का काम वन और बिजली विभाग के बीच इस झगड़े में फंसा है कि खर्च कौन उठाए।
जिले की घोषणा अभी नहीं
भानुप्रतापपुर में चुनावी माहौल गरमा रहा है। इन सबके बीच कांग्रेस के स्थानीय बड़े नेता सरकार से कोई बड़ी घोषणा चाह रहे हैं ताकि जीत सुनिश्चित हो सके। प्रचार में जुटे कांग्रेस के कुछ नेताओं का अंदाजा है कि भाजपा प्रत्याशी पर रेप के आरोप के बाद भी मुकाबला आसान नहीं रह गया है।
सुनते हैं कि पिछले दिनों जिले के एक विधायक ने दाऊजी से भानुप्रतापपुर सीट को लेकर लंबी चर्चा की थी। विधायक ने सुझाव दिया था कि भानुप्रतापपुर को खैरागढ़ की तरह जिला बनाने की घोषणा कर देनी चाहिए, इससे चुनाव की राह आसान हो जाएगी। मगर दाऊजी इसके लिए सहमत नहीं हुए।
दाऊजी और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का मानना है कि जिले की घोषणा से एक नया विवाद खड़ा हो सकता है। क्योंकि भानुप्रतापपुर से सटे अंतागढ़ को भी जिला बनाने की मांग हो रही है। ऐसे में भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की घोषणा से तुरंत थोड़ा बहुत फायदा हो जाएगा, लेकिन बाद में अंतागढ़ के लोग खिलाफ हो सकते हैं। दाऊजी की नजर अगले साल आम चुनाव पर है। इन सबको देखते हुए ऐसी कोई घोषणा से बचना चाह रहे हैं, जिससे देर सवेर पार्टी का नुकसान हो।
चुनाव माथुर के लिए लड़ रहे
भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम पर रेप के आरोप के बाद भी पार्टी कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के निर्देश के बाद पार्टी के तमाम दिग्गज भानुप्रतापपुर में नजर आ रहे हैं। इन सबके बाद भी पार्टी संसाधनों के मामले में पिछड़ती दिख रही है।
सुनते हैं कि हफ्तेभर से प्रचार में लगे कार्यकर्ताओं के लिए जब पैसे की डिमांड आई, तो बड़े नेता आज-कल कहकर टरका रहे हैं। इससे कार्यकर्ताओं का गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। प्रचार में जुटे कुछ नेताओं ने संकेत दे दिए हैं कि यदि जल्द ही आर्थिक समस्या दूर नहीं हुई, तो कार्यकर्ता घर बैठ सकते हैं। फिलहाल तो मान मनौव्वल ही चल रहा है। देखना है आगे क्या होता है।
महिलाओं का एक नया दौर
महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर लिखना कुछ नाजुक काम होता है। दरअसल हिन्दुस्तान जैसे देश में महिलाओं के खिलाफ इतने किस्म के पूर्वाग्रह काम करते हैं कि महिलाओं के पक्ष में लिखी गई कौन सी बात लिखने वाले के खिलाफ चली जाए, इसका भी ठिकाना नहीं रहता। यह जानते हुए भी हम राजस्थान की इस ताजा वारदात पर लिख रहे हैं जिसमें एक शादीशुदा महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की, और ससुराल के लोगों को किसी शक से दूर रखने के लिए उसने छह महीने तक मंगलसूत्र पहना, सिंदूर लगाया, और करवाचौथ का व्रत भी रखा। बाद में ससुर ने जब उसे एक बार प्रेमी के साथ देख लिया, तब जाकर कोई शक उपजा, और पुलिस रिपोर्ट के बाद पूछताछ में इस महिला और प्रेमी ने जुर्म कुबूल किया।
इस वारदात पर लिखने का मतलब यह है कि जिसे अबला समझकर जिसकी बेबसी पर तमाम कविताएं लिखी जाती थीं, और आंसू बहाए जाते थे, वह महिला अब अंतरिक्ष में भी जा रही हैं, फाइटर प्लेन भी उड़ा रही हैं, और जीवनसाथी के साथ उन तमाम किस्म के जुर्म भी करने की ताकत रखती है जो कि अब तक मर्दों का ही एकाधिकार होता था। अब अबला के सबला होने की यह बहुत अच्छी मिसाल नहीं है, लेकिन यह बहुत अनोखी मिसाल भी नहीं रह गई है। महिलाओं से जुल्म करने वाले लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि अब बहुत सी महिलाएं जुल्म की जिंदगी तोडक़र बाहर निकलने की ताकत भी रखती हैं, और कई किस्म के जुर्म करने की भी। या तो उसकी ताकत मानकर उसे बराबरी का दर्जा दिया जाए, या फिर उसकी कई किस्म की और ताकत को झेलने के लिए तैयार भी रहा जाए। जुल्मी का किरदार निभाने का एकाधिकार अब अकेले मर्द का नहीं रह गया है।
सम्हलकर चल रहे हैं...
भानुप्रतापपुर चुनाव में प्रचार कर रहे कांग्रेस के लोगों से सोच-समझकर एक ऐसा गलत काम हो गया है जो उन्हें दूर तक कानूनी दिक्कतों का शिकार बना सकता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रेस कांफ्रेंस में झारखंड की बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लडक़ी की पहचान उजागर करने वाले कानूनी दस्तावेज बांटे। यह एक बड़ा जुर्म है, लेकिन भाजपा इसे बहुत बड़ा मुद्दा नहीं बना रही है। इस उपचुनाव में प्रचार में लगे हुए कांग्रेस और भाजपा के कई लोगों से बात करने से यह साफ हुआ कि आमने-सामने डटे रहने के बावजूद कई किस्म के समझौते हमेशा ही काम करते हैं। इस बात को जरूरत से ज्यादा उठाया जाएगा, तो फिर चुनाव में लगे हुए भाजपा के कुछ नेताओं के खिलाफ भी कुछ कागजात निकाले जाएंगे। अब पता नहीं ऐसी आशंका ही लोगों को शांत कर देती है, या किसी के मार्फत खबर भिजवानी होती है, जो भी हो, दोनों तरफ के लोग सम्हलकर चल रहे हैं।
समझबूझ से परे की बात
छत्तीसगढ़ के एक छोटे अफसर के बारे में यह खबर आई है कि उसने किसी के मार्फत देश के सबसे बड़े अफसर, कैबिनेट सेक्रेटरी से मिलने की कोशिश की है। अब जानकारों का कहना है कि सामान्य समझबूझ तो यही कहती है कि ऐसी कोई मुलाकात हो नहीं सकती, लेकिन दुनिया में कई बातें सामान्य समझबूझ से परे भी होती है, और देखना है कि ऐसी कोई मुलाकात हो पाती है या नहीं।
डीएमएफ पारदर्शी भी तो हो..
जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) पर राज्य की कैबिनेट ने एक बड़ा फैसला लिया है। अब 20 प्रतिशत सामान्य क्षेत्र में और 40 प्रतिशत अधिसूचित क्षेत्र में खर्च करने की बाध्यता हटा दी गई है। अब सामान्य क्षेत्रों में अधिक राशि खर्च की जा सकेगी। ज्यादातर जिलों में फंड का उपयोग अधिसूचित क्षेत्रों में ही करने की सीमा तय होने के कारण जिले के दूसरे हिस्सों में विकास के लिए राशि आवंटित करने में दिक्कत होती थी। देश के डीएमएफ फंड का 75 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड को मिलता है। डीएमएफ फंड में कोयले की रायल्टी का प्रतिशत सबसे ज्यादा 42 है। छत्तीसगढ़ में इस राशि से बहुत बदलाव दिखाई दे सकता है। इसका अच्छा इस्तेमाल भी हो सकता है। जैसे, राज्य सरकार ने तय किया कि स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों में डीएमएफ से राशि खर्च की जाए। पर, कई जिलों में कलेक्टर फंड की प्राथमिकता खुद ही तय कर लेते हैं, जिसका खनन प्रभावित लोगों का जीवन-स्तर ऊपर उठाने से कोई संबंध नहीं होता। जीपीएम जिले में साहित्य का सम्मेलन करा दिया गया। देश के अलग-अलग हिस्सों से आए अतिथियों का खर्च उठाया गया। बिलासपुर में कुछ साल पहले एयरपोर्ट की बाउंड्रीवाल इसी मद से बना दी गई। कोरबा में कोविड काल के दौरान स्कूलों के लिए लाखों रुपयों की खेल सामग्री खरीद ली गई, जबकि स्कूल बंद थे। यहां बड़े-बड़े पार्क और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर डीएमएफ से बनाए जा रहे हैं, जो इस निधि का दुरुपयोग है।
सरकार के नए फैसले ज्यादा बड़ी आबादी को लाभ मिल सकेगा, इसकी उम्मीद है। खर्च किसी भी ब्लॉक, तहसील में हो- ठीक से करें तो विकास ही होगा। पर, असल सवाल खर्च में पारदर्शिता का ही है। फंड का सही मद में उपयोग करना है, इसकी परवाह नहीं की जाती, जन प्रतिनिधियों को भरोसे में लेना, उनको जानकारी देना भी नहीं होता। कोरबा जिले में मंत्री और पूर्व कलेक्टर के बीच हुआ विवाद सभी को पता है। हालांकि छत्तीसगढ़ देश में अकेला ऐसा राज्य है जहां प्रभावित गांवों के पंचायत प्रतिनिधियों को भी ट्रस्ट का सदस्य बनाया गया है, पर बैठकों में वे बड़े अफसरों और मंत्री विधायकों के बीच इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि खर्च का विस्तार से ब्यौरा मांग लें। कोरबा में मंत्री को भी नहीं मिला था। इसी कोरबा में कुछ संगठनों ने सितंबर माह में एक बैठक की थी, जिसमें प्रदेशभर के डीएमएफ की ऑडिट नहीं होने को भ्रष्टाचार का कारण बताया गया था। इन संगठनों ने यह भी कहा कि वे फंड के दुरुपयोग के सारे साक्ष्य एकत्र कर महालेखाकार से शिकायत करेंगे। कल की केबिनेट की बैठक में लगे हाथ डीएमएफ के खर्च को ज्यादा पारदर्शी रखने पर भी फैसला लिया जा सकता था, जो ज्यादा जरूरी था।
सावधान! एक झटके में खाता हो जाएगा खाली
कोविड काल के बाद से साइगर ठगी तेजी से बढ़ रही है। ठग तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर आपके बैंक खातों से रुपये उड़ाने में लगे हैं। जब-जब केबीसी टीवी पर दिखाया जाता है, इसी के नाम पर ठगी शुरू हो जाती है। इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केबीसी के होस्ट अमिताभ बच्चन और उद्योगपति मुकेश अंबानी की फोटो के साथ कई ऑडियो वाट्सएप पर वायरल हो रहे हैं। इनमें कहा जा रहा है कि केबीसी की ओर से लकी ड्रा निकाला गया है जिसमें आपको 25 लाख रुपये इनाम में मिले हैं। इसमें एक कोड नंबर और वाट्सएप नंबर दिया गया है। पर यह सब फ्रॉड करने का हथकंडा है। इसके बताए गए नंबर पर आप कॉल करें तो आपको एक ऐप डाउनलोड करने कहा जाएगा। ऐप डाउनलोड होते ही आपके मोबाइल फोन की कमांड वह कोड पूछकर अपने हाथ में ले लेगा। फिर आपके बैंक एकाउंट तक जाकर पैसे साफ कर लेगा। वाट्सएप कॉल ही करने कहा गया है ताकि आप उसकी बातचीत रिकॉर्ड न कर सकें। हैरानी यह है कि इनका जाल पूरे देशभर में फैला है। दिल्ली, यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश से ढेरों लोग इस ठगी का शिकार हो चुके हैं। और यह नया भी नहीं है। दो साल से बीच-बीच में वायरल हो जाता है। नए-नए नंबर और लोकेशन से। फिर भी पुलिस या दूसरी जांच एजेंसियां इनको पकड़ नहीं पाई हैं।
ब्याज मिलेगा मनरेगा का?
मनरेगा मजदूरी का भुगतान सात महीने से नहीं होने को लेकर डोंगरगढ़ हाईवे में चक्काजाम कर दिया गया। इनकी दीपावली भी बिना मजदूरी के निकली। सडक़ से हटने की अपील करने आए तहसीलदार से आंदोलन करने वालों ने सवाल किया कि यदि 7 माह बिना वेतन काम लिया जाए तो आपको कैसा लगेगा, क्या आपको परिवार नहीं चलाना पड़ता, आंदोलन पर आप नहीं उतरेंगे?
बीते सालों में मनरेगा के भुगतान के लिए केंद्र से फंड आने में बड़ी दिक्कत रही है। कोविड के समय एक-एक साल का भुगतान नहीं हुआ। कई जगह तो वन, जल संसाधन आदि विभागों ने काम करा लिए और दो तीन साल बीतने के बाद भी भुगतान नहीं किया है। डोंगरगढ़ में न केवल मजदूरी का बल्कि उसका ब्याज भी देने की मांग हो रही है। मनरेगा एक्ट में भुगतान अधिकतम 15 दिन में करने का प्रावधान है। एक्ट में यह भी है कि इससे अधिक देर होने पर ब्याज दिया जाएगा।
राजनांदगांव जिले में चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 में अब तक कुल 67 करोड़ 66 लाख का भुगतान किया गया है। 8 दिन के भीतर 14 करोड़ 90 लाख रुपये तथा 15 दिन के भीतर 12.37 करोड़ का भुगतान किया गया। यानि 27 करोड़ 27 लाख रुपये के बाद जो भी भुगतान हुए हैं, उन पर मजदूरों को ब्याज मिलना चाहिए। हिसाब लगाएं तो बची हुई रकम 39 करोड़ से अधिक है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पोर्टल पर अब तक कितना भुगतान रुका हुआ है, इस बारे में कोई डेटा नहीं है। वेबसाइट से यह जरूर पता चलता है कि विलंब होने के कारण छत्तीसगढ़ में किसी को भी कोई ब्याज नहीं दिया गया है। इसके कॉलम में शून्य दर्ज है। डोंगरगढ़ जनपद की राशि केंद्र या राज्य के स्तर पर नहीं रुकी है बल्कि जनपद की गड़बड़ी से अमाउंट खाते में नहीं आए हैं। यहां जो 83 लाख रुपये की मजदूरी रुकी है उसी के साथ ब्याज की मांग की जा रही है। यह मजदूरों का अपने अधिकार को लेकर सचेत होने का सबूत है। अफसर वादे के मुताबिक तीन दिन में भुगतान करेंगे या ज्यादा वक्त लेंगे यह देखने की बात होगी। यदि मांग के अनुसार मजदूरी के साथ ब्याज भी दिया गया, फिर तो एक मिसाल भी होगी।
बच्चियों ने संभाली पुलिस अफसरों की कुर्सी
दोस्ताना बर्ताव के जरिये पुलिस आम लोगों से जुडऩे की समय-समय पर कोशिश करती है। बच्चों के साथ भी उनका फासला कम होना चाहिए ताकि वे अपने आसपास होने वाले अपराधों को लेकर सचेत रहें और पुलिस की मदद लें। ऐसा प्रयास अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस के मौके पर मुंगेली में किया गया। पुलिस अधीक्षक चंद्रमोहन सिंह ने आठवीं कक्षा की वंदना मरावी को एक दिन के लिए अपनी कुर्सी सौंपी। एक अन्य छात्रा कनिष्का सिंह को सिटी कोतवाली का थानेदार बनाया गया। वंदना वनांचल के सरगढ़ी स्कूल में आठवीं की छात्रा है। बच्चों से कुछ सवाल किए गए थे, जिसके बाद वंदना का चयन हुआ। वंदना ने एसपी की कुर्सी संभाली, मीडिया को साक्षात्कार दिया, ऑफिस का निरीक्षण किया, शहर में यातायात की व्यवस्था को देखा। कनिष्का शहर के आत्मानंद स्कूल में आठवीं पढ़ती है। दोनों बड़ी होकर पुलिस अफसर बनना चाहती हैं। इनमें से वंदना एक मजदूर की बेटी है। एसपी ने उनसे कहा कि सपना पूरा जरूर होगा, लेकिन इसके लिए खूब पढ़ाई करनी होगी।
13 जिलों का एक कमिश्नर..
सरगुजा कमिश्नर पद से 4 अगस्त को गोविंदराम चुरेंद्र को हटाये जाने के बाद अब तक वहां प्रभार से काम चल रहा है। बिलासपुर के संभागायुक्त डॉ. संजय अलंग को इसका अतिरिक्त प्रभार मिला हुआ है। करीब 100 दिन बीत जाने के बाद भी विस्तृत भौगौलिक क्षेत्रफल वाले सरगुजा में पूर्णकालिक कमिश्नर की नियुक्ति नहीं हुई है। हाल के दिनों में इन दोनों संभागों में तीन नए जिले भी बना दिए गए। अब डॉ. अलंग के पास 13 जिलों का प्रभार है। जिलों के नियमित प्रशासनिक कामकाज में कमिश्नरों की भले ही बहुत ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती हो लेकिन स्थानीय स्तर की नियुक्तियों और राजस्व अदालतों में इस कुर्सी का बड़ा महत्व है। सरगुजा में तो अपर आयुक्त का पद भी अभी खाली है। स्थिति यह है कि कमिश्नर का कोर्ट महीने में सिर्फ दो दिन के लिए सरगुजा में लगता है। वे शेष समय बिलासपुर संभाग को देते हैं। एक अनुमान है कि यहां पर लंबित प्रकरणों की संख्या बढक़र 7 हजार से ज्यादा पहुंच चुकी है।
एक साथ कई टोपियां
इन दिनों एक-एक लोग एक साथ कई किस्म की टोपियां पहनकर घूमते हैं। गाडिय़ों के पीछे या सामने जो स्टिकर लगे रहते हैं, वे राजनीतिक दलों के भी हो सकते हैं, किसी साम्प्रदायिक संगठन के भी हो सकते हैं, और साथ-साथ प्रेस का स्टिकर भी दिख सकता है। अब प्रेस के साम्प्रदायिक होने पर कोई रोक तो है नहीं। कुछ गाडिय़ों पर तो इन सबके साथ-साथ पुलिस का भी स्टिकर लगे रहता है, और समझ नहीं आता कि वे पुलिस की प्रेस गाड़ी हैं, या प्रेस की पुलिस गाड़ी।
अभी धरनास्थल पर इस अखबार के फोटोग्राफर को एक मोटरसाइकिल ऐसी दिखी जिसके हर हिस्से पर मूल निवासी के स्टिकर लगे थे, और सामने प्रेस का भी स्टिकर लगा था, सुरक्षागार्ड मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष का भी स्टिकर लगा था, और ‘जाग मूल निवासी, भाग विदेशी’ का स्टिकर भी लगा था।
बटालियन भर्ती के अधूरे नतीजे..
सुरक्षा बलों के साथ काम करने के लिए राज्य पुलिस ने जब बस्तर फाइटर्स की भर्ती शुरू की गई तो नक्सल संगठनों ने इसका काफी विरोध किया। इस भर्ती के विरोध में उन्होंने सडक़ काटकर बैनर-पोस्टर लगाए थे। बेरोजगारी से जूझ रहे बस्तर के युवाओं ने धमकियों के बाद भी बड़ी संख्या में आवेदन लगाए। इनमें युवतियां भी शामिल हुईं। 2800 पदों पर भर्ती की प्रक्रिया चलने के दौरान ही सीआरपीएफ ने भी दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर से 400 युवाओं को बस्तर बटालियन में नौकरी देने की घोषणा की। पर इसकी पहली ही सूची विवादों में घिर गई। दंतेवाड़ा में 144 युवाओं की मेडिकल के लिए सूची निकाली गई, पर इसमें नाम नहीं केवल रोल नंबर है। आवेदन करने वाले युवाओं ने कल इसके खिलाफ प्रदर्शन किया। रोल नंबर से पता नहीं चल रहा है कि किनका चयन किया गया। स्थानीय युवाओं को मौका देने की बात कही गई थी, पर उन्हें आशंका है कि बाहरी लोग भर लिए गए। नाम इसीलिए छिपाये गए। सीआरपीएफ का कहना है कि नाम उजागर करना ठीक नहीं होगा। वे नक्सलियों के निगाह में आ जाएंगे। युवाओं का कहना है कि जब वे पुलिस में शामिल होने के लिए तैयार हो ही गए हैं तो कैसा डर? तरीका इतना गोपनीय भी नहीं रहा है। इसके लिए बकायदा विज्ञापन दिए गए हैं। सीआरपीएफ के कैंप में युवा आवेदन देने और शारीरिक परीक्षण के लिए भी पहुंचे हैं। चयन सूची सार्वजनिक भले ही न की जाए, लेकिन भर्ती में भाग लेने वालों को सूची तो दिखा देनी चाहिए, ताकि वे संतुष्ट हो सकें कि जिनको शार्ट-लिस्ट में रखा गया है वे सबसे काबिल हैं और स्थानीय हैं। किसका चयन हुआ, क्यों हुआ, क्यों नहीं हुआ- यह जानना तो उनका हक है। यह भर्ती अभियान फोर्स और स्थानीय युवाओं के बीच भरोसा बढ़ाने की अच्छी कोशिश है। पर भर्ती में पारदर्शिता को लेकर उठ रही शंका का समाधान अधिकारियों को दिक्कत क्यों होनी चाहिए?
विधायक रस्साकशी में उलझे..
प्रदेश के दूसरे जिलों की तरह बिलासपुर में भी कांग्रेस नेताओं के बीच रस्साकशी चल रही है। सार्वजनिक मंचों पर विधायक शैलेष पांडेय को उनको पार्टी के लोग किनारे करने की भरसक कोशिश करते आ रहै हैं। खासकर वे लोग जो सत्ता के करीब हैं। पर इसकी वजह से वे खाली नहीं बैठ जाते हैं। वे इन दिनों बाजार, दुकान, वार्ड और घरों में मतदाताओं से सीधा संपर्क कर रहे हैं। कुछ दिन पहले वे चाकू तेज करने वाली एक दुकान में चले गए। वहां चाकू की धार तेज करने के लिए बैठ गए। फिर, आलू बेच रहे ठेले वाले से तराजू लेकर खुद ही आलू बेचने लगे। एक जगह छत्तीसगढ़ी ओलंपिक मैच देखने गए तो वहां रस्साकशी का खेल चल रहा था। एक टीम की मदद के लिए विधायक पहुंच गए और खुद रस्सी खींचने में लग गए। विधायक ने कहा कि उन्होंने खिलाडिय़ों का हौसला बढ़ाने के लिए ऐसा किया। लोगों ने कहा- रस्साकशी के बीच काम कर रहे हैं, इस खेल में शामिल होना उनको अच्छा लगा होगा।
कानून अपने हाथ में..
एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसे नारायणपुर बस्तर का बताया गया है। कुछ लोग दो युवकों को लाठियों से मारकर भगा रहे हैं। वहां 20-25 लोगों की भीड़ भी है। कुछ लाठियों के साथ, तो कुछ दर्शक हैं। शायद वे पहले से मौजूद हैं। हिंदुत्ववादी संगठनों का कहना है कि जिन्हें पीटा जा रहा है वे पास्टर हैं। गांव के कुछ लोग इन्हें पीट रहे हैं। सवाल है कि यदि दबाव या लालच से धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है तो पुलिस के पास किसी ने शिकायत की या नहीं? जिन लोगों ने मार खाई क्या वे पिटने के बाद पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंचे? क्या पुलिस इस घटना से अनजान है, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो जाने के बाद भी! [email protected]
ब्रह्मानंद की वजह से भाजपा बैकफुट पर
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम पर रेप केस के चलते पार्टी फंस गई है। इस केस से निपटने पार्टी के रणनीतिकार विधिक सलाह ले रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी के अंदरखाने में प्रत्याशी चयन के तौर तरीकों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह सवाल उठाया जा रहा है कि नेताम पर गंभीर केस होने के बावजूद प्रत्याशी क्यों बनाया गया?
अंदर की खबर है कि नेताम के खिलाफ केस होने की जानकारी कुछ स्थानीय नेताओं को ही थी। ये नेता ब्रम्हानंद नेताम के बजाए गौतम उइके को प्रत्याशी बनाने के पक्ष में थे। गौतम उइके के लिए पार्टी के दो बड़े नेता रामविचार नेताम, और केदार कश्यप ने भी लॉबिंग की थी। चर्चा है कि स्थानीय नेताओं ने प्रदेश के बड़े नेताओं को आगाह भी किया था कि ब्रह्मानंद नेताम को प्रत्याशी बनाने से मुश्किलें पैदा हो सकती है। मगर ब्रह्मानंद की छवि सीधे-सरल नेता की है इसलिए किसी ने स्थानीय नेताओं की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया।
हल्ला तो यह भी है कि जिन स्थानीय बड़े नेताओं की सिफारिश पर ब्रम्हानंद नेताम को प्रत्याशी बनाया गया, उन्हीं में से कुछ ने नेताम के खिलाफ एफआईआर के कागज कांग्रेस तक भिजवाए, और फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने मीडिया के जरिए धमाका कर दिया। ब्रम्हानंद केस की वजह से कोर ग्रुप और चुनाव समिति भी घेरे में आ गई है। पार्टी हाईकमान इसको लेकर काफी सख्त है। कुछ लोगों का अंदाजा है कि चुनाव निपटने के बाद प्रत्याशी चयन को लेकर जिम्मेदारी भी तय की जाएगी, और ऐसे नेताओं को किनारे लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर ब्रह्मानंद केस की वजह से पूरी भाजपा बैकफुट पर आ गई है।
बैचमेट में गर्ग किस्मत के धनी
सूबे में आईजी स्तर के अफसरों के तबादले में 2007 बैच के आईपीएस रामगोपाल गर्ग पोस्टिंग के मामलेे में किस्मत के धनी रहे। सीबीआई से करीब 7 साल बाद प्रतिनियुक्ति से लौटे गर्ग को तकरीबन चार माह पूर्व राजनांदगांव रेंज में बतौर डीआईजी भेजा गया था। सरकार ने उनकी तकनीकी कार्यशैली और अच्छी साख के चलते उन्हें सीधे राजनीतिक उथल-पुथल वाले सरगुजा रेंज में आईजी का प्रभार सौंप दिया। गर्ग की तैनाती को लेकर खासियत यह है कि उनके बैच के दो अफसर दीपक झा और जितेन्द्र मीणा क्रमश: बलौदाबाजार व बस्तर में एसपी बने हुए हैं। जबकि गर्ग प्रभारी आईजी की हैसियत से रेंज के छह जिलों की जिम्मेदारी सम्हालेंगे।
गर्ग के बैचमेट में छत्तीसगढ़ कैडर में कुल चार अफसर हैं। जिसमें एक अफसर अभिषेक शांडिल्य अपने गृह राज्य बिहार में सीबीआई के हेड हैं। गर्ग एक सुलझे हुए अफसर हैं। राजनांदगांव रेंज में उन्होंने सभी चार जिलों में पुलिसिंग को लेकर कड़े कदम उठाए थे। सुनते हैं कि सरगुजा रेंज के कोरिया जिले में उनके काम करने के पुराने अनुभव को केंद्रित कर सरकार ने पदस्थ किया है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में कोरिया एसपी रहते गर्ग ने विधायक रहे भैयालाल रजवाड़े के जुआरियों को ढ़ील देने की पेशकश को सिरे से नकार दिया था। उससे नाराज रजवाड़े ने रमन सिंह से शिकायत कर हटाने के लिए ताकत झोंक दी। गर्ग ने जुआरियों और अवैध कारोबार को छूट देने सरकार के दबाव में आने से बेहतर एसपी बने रहने से इंकार कर दिया।
चर्चा हैै कि सरगुजा रेंज के राजनीतिक-सामाजिक माहौल से गर्ग अच्छी तरह वाकिफ हैं। सरकार ने उनकी यही समझ के चलते सरगुजा की जिम्मेदारी दी है। वैसे गर्ग के साथ एक अच्छा संयोग यह भी रहा है कि राजनांदगांव रेंज डीआईजी रहते ही आरएल डांगी को सरगुजा में प्रभारी आईजी बनाया गया था। यानी गर्ग को साथ भी यह संयोग भी बना रहा।
इस बार अधिक सीधा संघर्ष..
छत्तीसगढ़ के भाजपा प्रभारी ओम माथुर का राज्य का यह पहला दौरा है। उन्हें लगता है कि यहां कांग्रेस कोई चुनौती नहीं है। कहा कि गुजरात और यूपी को लेकर भी ऐसा ही कहा जाता था। अब, जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है सन् 2018 में भाजपा की बड़ी हार हुई। पर, ऐसी बात नहीं है कि उसके समर्थक और कैडर के लोग स्थायी रूप से कांग्रेस या दूसरे दलों की ओर शिफ्ट हो गए हों। हाल ही में रायपुर में आंदोलन हुआ और बिलासपुर में हुंकार रैली थी। दोनों को विफल कहा नहीं जा सकता। मगर, दूसरी तरफ भाजपा संगठन में बड़े पैमाने पर फेरबदल विपक्ष के रूप में अब तक की पार्टी की भूमिका का संतोषजनक नहीं होना पाया जाना ही था। सन् 2018 में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का चुनाव अभियान के दौरान जो माहौल दिखाई दे रहा था, उसने तो त्रिशंकु सरकार की अटकलों को जन्म दे दिया था। भाजपा नेता बार-बार यह दावा कर रहे थे कि कई सीटों पर छजकां त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना रही है। इसका मकसद यही था कि प्रतिद्वंद्वी वोटों का विभाजन हो और भाजपा को चौथी बार बहुमत मिल जाए। छजकां की ताकत 2018 के चुनाव के डेढ़-दो साल पहले से महसूस की जा रही थी। पर उसके बाद के उप-चुनावों में न केवल विफलता हाथ आई है बल्कि विधायक भी टूटे। संगठन के अनेक संस्थापक कांग्रेस में जा चुके या पार्टी छोड़ चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने हाल के दो उप-चुनावों में प्रत्याशी नहीं उतारे। वे अभी भी संगठनात्मक ढांचा मजबूत करने की बात कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सन् 2023 में कांग्रेस भाजपा के बीच 2018 के मुकाबले कहीं ज्यादा सीधा मुकाबला होने के आसार हैं। इसके बावजूद यदि दोनों में से कोई भी दल एक दूसरे को चुनौती मानने से मना करें, तो यह सिर्फ रणनीति है, जमीनी हकीकत नहीं।
और ये प्रधान पाठक ही शराबी
स्कूलों में शराब पीकर पहुंचने वाले शिक्षकों का क्या बिगड़ता है? कुछ दिन के लिए सस्पेंड, जांच- फिर बहाली, ज्यादा हुआ तो तबादला। किसी दूसरे स्कूल के बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने भेज दिया जाता है। हालांकि अब शिक्षकों से फॉर्म भी भरवाया जा रहा है कि वे दफ्तर या स्कूल शराब पीकर नहीं आएंगे। पर इसका असर कितना होगा? एक खबर गंडई-पंडरिया के दुल्लापुर शासकीय स्कूल से है। यहां के तो प्रधान पाठक लक्ष्मीनारायण साहू एक तो स्कूल आते नहीं, आठ दस दिन में जब आते हैं शराब पीकर। घूमते-टहलते हैं निकल जाते हैं। अधीनस्थ शिक्षक मना करते हैं, नहीं मानते। बेशर्मी की हद यह है कि पंचायत ने बैठक बुलाई। उन्हें शराब पीकर स्कूल नहीं की हिदायत दी लेकिन फर्क नहीं पड़ा। सरपंच इसकी शिकायत शिक्षा अधिकारियों से कर चुके हैं, पर कार्रवाई नहीं हुई। बिलासपुर जिले के मस्तूरी में स्कूल के बाहर शराब पीकर लुढक़े शिक्षक को लेकर कई शिकायत सरपंच और छात्र-छात्रा कर चुके थे, पर उन्हें ब्लॉक शिक्षा अधिकारी बचा रहे थे। कार्रवाई तब हुई जब वीडियो वायरल हुआ और मीडिया ने दबाव बनाया। दुल्लापुर के इस प्रधान-पाठक पर भी अधिकारी कार्रवाई करने बच रहे हैं। इनका काम स्कूलों का नियमित निरीक्षण करना भी है। पर शिकायत छात्रों और पंच-सरपंचों की शिकायत भी काम नहीं आ रही है। पूरे प्रदेश में जिस तरह शिक्षकों में शराबखोरी कर स्कूल आने की शिकायतें बढ़ रही है, उसके लिए इन अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराने की चेतावनी जारी क्यों नहीं की जानी चाहिए?
सांप का खेल नहीं शिकार...
कोरबा जिले के करतला ब्लॉक का वीडियो कल से खूब वायरल हो रहा है। एक खेत के पानी में अहिराज सांप छोटे आकार के दूसरे सांप को खाते हुए दिख रहा है। छोटा सांप खुद को छुड़ाने की कोशिश में है, जबकि बड़ा सांप उसे निगलने की। इस प्रयास में एक दूसरे से लिपटे दोनों सांप चकरी की तरह काफी देर तक घूमते रहे। दृश्य किसी खेल का लगा पर, छोटे सांप को अपनी जान गंवानी पड़ी और अहिराज को आहार मिल गया।
स्कूलों में बदहाली का हाल ऐसा
छत्तीसगढ़ में जगह-जगह स्कूल शिक्षक शराब पीकर स्कूल आ रहे हैं, और कुछ मामलों में तो स्कूल में बैठकर भी शराब पी रहे हैं। दोनों ही किस्म की तस्वीरें दिल दहला रही हैं कि बेरोजगारी वाले इस देश-प्रदेश में जिन्हें नौकरी मिली है वे इसके महत्व से किस हद तक बेपरवाह हैं। दूसरी तरफ फिक्र की बात यह भी है कि जिनका बच्चों से सीधा वास्ता पड़ता है, वे भी इस तरह दारू पीकर आ रहे हैं, या बच्चों के सामने स्कूल में दारू पी रहे हैं। ऐसे कई फोटो और वीडियो खबरों में आने के बाद भी राज्य सरकार का स्कूल शिक्षा विभाग नहीं जागा है। लेकिन एक जिले, आदिवासी इलाके जशपुर के जिला शिक्षा अधिकारी ने सभी कर्मचारियों-अधिकारियों को एक नोटिस जारी किया है कि वे सरकारी कर्मचारियों के आचरण नियम 1965 के तहत एक घोषणा पत्र पर दस्तखत करके जमा करें। इस नोटिस में लिखा गया है कि प्राय: यह देखा जा रहा है कि ड्यूटी के दौरान ही शासकीय सेवक दारू पीकर दफ्तर या स्कूल में आ रहे हैं जिससे वातावरण खराब हो रहा है, और छात्र-छात्राओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए यह घोषणा भरकर जमा करें कि वे ड्यूटी के दौरान या सार्वजनिक रूप से शराब नहीं पिएंगे।
तब तो बस एक मुद्दा काम करेगा...
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ सनसनीखेज दस्तावेज सामने लाकर कांग्रेस ने चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर ला दिया है। उन पर झारखंड में पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध दर्ज होने का दावा किया गया है। चूंकि आरोप प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की ओर से सीधे लगाया गया है इसलिए इसकी सत्यता की ठीक तरह से जांच जरूर की गई होगी। भाजपा प्रत्याशी ने आरोपों को बेबुनियाद बताया है। पार्टी अपने उम्मीदवार के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है। संभवत: भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से ही इसका जवाब आएगा। पर, आरोप लगाने का जो दिन कांग्रेस ने तय किया वह भी खास है। यह दिन है स्क्रूटनी हो जाने और नामांकन वापस लेने के पहले का। नामांकन पत्रों की जांच के दौरान आपत्ति नहीं की गई, हो सकता है तब तक दस्तावेज कांग्रेस के हाथ नहीं आ पाए हों। कांग्रेस ने जानकारी छिपाने की वजह से नेताम का नामांकन रद्द करने की मांग की है, पर जानकार बताते हैं कि चूंकि जांच की प्रक्रिया के दौरान आपत्ति नहीं की, इसलिए चुनाव आयोग शायद ही इस मांग को माने। भाजपा के पास अब प्रत्याशी बदलने का भी वक्त नहीं है। भाजपा यदि इस हमले का ठीक तरह से जवाब नहीं दे पाएगी तो बाकी मुद्दे गौण हो जाएंगे और पूरा प्रचार अभियान नेताम के खिलाफ लगे आरोपों और उसकी सफाई के इर्द-गिर्द तक ही सीमित रह जाएगा।
सांसदों के आदर्श गांव किस हाल में हैं?
केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना सांसद आदर्श ग्राम योजना भी है। सन् 2014 में जब मोदी सरकार का पहला कार्यकाल शुरू हुआ था तो सांसदों को एक-एक ग्राम गोद लेने के लिए कहा गया था। यह निर्देश अक्टूबर 2015 में जारी हुआ। उसके बाद सन् 2016 में फिर एक और उसके बाद 2017 में फिर एक ग्राम। इस तरह से उस कार्यकाल में तीन ग्रामों को गोद लिया जाना था। इसी तरह दूसरे कार्यकाल में सांसदों को एक-एक गांव को गोद लेना था। सरकारी वेबसाइट में जो नवीनतम रिपोर्ट दिखाई गई है, उसके अनुसार छत्तीसगढ़ के 23 गांवों की रैंकिंग में शामिल किया गया है। जुलाई माह की एक रिपोर्ट दिखाई दे रही है जिसमें अधिकांश सांसदों ने कहा है कि कोरोना के दौरान सांसद निधि के आवंटन में अवरोध आ जाने के कारण गोद गांवों के विकास नहीं हो सके। सांसदों ने यह भी बताया है कि किस तरह वहां उन्होंने पेयजल, सामुदायिक भवन, सडक़ आदि के लिए राशि आवंटित किए हैं। हर तीन माह में इन गांवों की समीक्षा होनी चाहिए पर ज्यादातर सांसद ऐसी बैठकें नहीं ले रहे हैं।
दूसरी तरफ इसके लक्ष्य सडक़, पेयजल, भवन तक सीमित नहीं है। यह तो दूसरे मदों से भी होता रहता है। सरकार ने आदर्श ग्राम के लक्ष्य इस तरह बताए हैं- समाज के सभी वर्ग की भागीदारी से ग्राम की समस्याओं का समाधान किया जाए। अंत्योदय का पालन हो- यानि सबसे गरीब या कमजोर का सबसे पहले विकास हो, महिलाओं के लिए सम्मान हो, लैंगिक समानता हो, श्रम की गरिमा हो, सफाई की संस्कृति हो, लोग प्रकृति के सहचर बनें, विरासत को सहेजें, सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता, जवाबदेही, ईमानदारी हो, शांति सद्भाव को बढ़ावा दिया जाए, संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकार और कर्तव्य का पालन हो..आदि, आदि। अब आप चाहें तो सांसद के किसी गोद लिए गांव को ढूंढें और पता करें कि वहां क्या स्थिति है। [email protected]
सुविधाओं के हक़ की लड़ाई
सरकार ने निगम-मंडलों में थोक में नियुक्तियां कर दी है। अब नवनियुक्त पदाधिकारी साधन-सुविधाओं के लिए मशक्कत कर रहे हैं। ऐसे ही एक संस्थान में चेयरमैन, और बाकी पदाधिकारियों के बीच तनातनी चल रही है।
सुनते हैं कि चेयरमैन नहीं चाहते कि बाकी पदाधिकारियों को गाड़ी, अन्य सुविधाएं मिले। उन्होंने नियमों का हवाला देकर पदाधिकारियों को टरकाने की कोशिश की, लेकिन पदाधिकारी अड़ गए। उन्होंने संस्थान में साधन-सुविधाओं के मद का सारा ब्यौरा चेयरमैन के पास रख दिया, लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
नवनियुक्त पदाधिकारियों ने इशारों-इशारों में संकेत दे दिए हैं कि यदि वाहन, और अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई, तो चेयरमैन का काला चिट्ठा खोल देंगे। 25 तारीख को संस्थान के बोर्ड की बैठक है। इसमें सुविधाओं पर बात होगी। अगर पदाधिकारियों की इच्छानुसार फैसला नहीं हुआ, तो चेयरमैन के खिलाफ मोर्चा खुल सकता है। ऐसे में संस्थान के दबे छिपे राज भी बाहर निकल सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चुनाव पर खराब सडक़ों का साया
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में कांटे की टक्कर के संकेत है। चर्चा है कि इलाके की खराब सडक़ें कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। भानुप्रतापपुर इलाके में आयरन ओर की माइंस के चलते रोजाना सैकड़ों ट्रकों की आवाजाही रहती है। इसकी वजह से इलाके के सडक़ों की हालत खराब है। ज्यादातर जगहों पर नई सडक़ों का निर्माण नहीं हुआ है। इससे ग्रामीण परेशान हैं। ऐसे में कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं को डर है कि खराब सडक़ों का गुस्सा मतदाता मतदान में न निकाल दे। फिलहाल इससे निपटने के तमाम उपायों पर चर्चा चल रही है।
मजदूर स्कूली बच्चे
स्कूलों में पानी भरवाने झाड़ू लगवाने और प्लेट धोने का काम बच्चों से लेने कि कई मामले पहले सामने आते रहे हैं पर ईंट ढोने जैसा भारी भरकम काम पर लगाने में भी अब शिक्षक नहीं झिझक रहे हैं। यह तस्वीर अंबागढ़ चौकी तहसील की छाछनपहरी हायर सेकेंडरी स्कूल की है। छात्रों को एक मालवाहक में लदे ईंटों को उतारकर रखने के काम में लगाया गया है। बच्चों का कहना है कि आए दिन उनको प्रधान पाठक इसी तरह का काम कराते हैं और नहीं करने पर फेल कर देने की धमकी देते हैं।
क्रिप्टो करंसी गिरने की दहशत
दुनिया भर में क्रिप्टो करेंसी के धराशायी होने का असर छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है। पिछले केंद्रीय बजट में इस वर्चुअल करेंसी को खरीदने वालों की पहचान उजागर करने की बाध्यता तय की गई थी। साथ ही इसके मुनाफे पर 30 प्रतिशत टैक्स लगाया गया। इसके बावजूद इसमें लोगों ने निवेश करना नहीं छोड़ा। अभी जो एफटीएक्स डिजिटल करेंसी कंपनी दिवालिया हुई है, उसमें पैसे लगाने वाले छत्तीसगढ से कम लोग हैं। यहां से ज्यादा रकम बिटकॉइन में गई है। पर एफटीएक्स के हश्र को देखकर इनमें घबराहट दिखाई दे रही है। अब भविष्य के मुनाफे की चिंता को छोड़ अपनी लगाई हुई रकम को लोग बाहर कर रहे हैं। कोरबा जिले के एक शख्स ने इसमें कुछ करोड़ रुपए डाले। दी तीन साल तक वे इस रकम को हाथ नहीं लगाना चाहते थे। पर इस समय सारी रकम निकालने में लगे हुए हैं। ([email protected])