राजपथ - जनपथ
चुनावी साल में भगवत-भक्ति
जनवरी में नामचीन कथावाचकों का प्रदेश में जमावड़ा रहेगा। खास बात यह है कि इन धार्मिक कार्यक्रमों में राजनीतिक दल के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। दो जनवरी से बलौदाबाजार के बाहरी इलाके में पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव पुराण शुरू हो रहा है। रायपुर में तो उनके कार्यक्रम में लाखों की भीड़ जुटी थी। ऐसी ही भीड़ बलौदाबाजार में भी जुटने की संभावना जताई जा रही है।
बलौदाबाजार में विधायक प्रमोद शर्मा, और भाजपा-कांग्रेस के नेता खुद होकर व्यवस्था देख रहे हैं। कुछ इसी तरह का आयोजन कुरूद में भी हो रहा है। कुरूद में जया किशोरी का भागवत कथा हो रहा है। इस कार्यक्रम के कर्ताधर्ता पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर हैं। जया किशोरी के मुख से कथा सुनने के लिए वैसे ही हजारों की भीड़ जुट जाती है।
इसी तरह गुढिय़ारी के दहीहांडी मैदान में रामकथा का आयोजन हो रहा है। कथावाचन के लिए पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री आएंगे। उन्हें सुनने के लिए हजारों लोगों के आने की संभावना जताई जा रही है। इसी तरह बसना में भाजपा नेता संपत अग्रवाल भी भागवत कथा का आयोजन करवा रहे हैं। कथावाचक पं. हिमांशु कृष्ण भारद्वाज करेंगे। स्वाभाविक है कि उन्हें सुनने के लिए हजारों लोग आएंगे। अब चुनावी साल में धार्मिक आयोजनों के बहाने राजनीतिक दल के लोग अपनी सक्रियता दिखाने का मौका मिला है।
बदल चुका मुनादी का तरीका
कोटवार गांव के पहरेदार माने जाते हैं। वह गांव मे सरकार का पहला प्रतिनिधि होता है। पहले के दिनों में जब पुलिस तक पहुंच दूर थी, गांव में कोई भी जुर्म हो कोटवार को ही सबसे पहले खबर दी जाती थी। 2008 तक जन्म-मृत्यु पंजीयन भी कोटवार ही करते थे। आज सरकार इनसे हर तरह का काम लेती है। गांव में बेजा कब्जा हो गया हो तो तहसील को खबर करना भी इनका ही काम है। चुनाव के दिनों में मतदान केंद्रों में इन्हें विशेष पुलिस अधिकारी के तौर पर तैनात किया जाता है। पुलिस, राजस्व विभागों के लिए यह सहज यस मैन है, हर वक्त हाजिर। इनके परिवार को खेती की जमीन दी जाती है, पर उस भूमि के वे स्वामी नहीं होते और मानदेय केवल 3-4 हजार रुपये मिलते हैं।
गांव वालों तक सरकारी सूचनाओं को पहुंचाने का जिम्मा भी कोटवारों पर है। पहले वे गांव की मुख्य गलियों और चौराहों में खड़े होकर तेज आवाज में मुनादी करते थे। अब उनके हाथ माइक सेट आ गया है। वक्त के साथ पहनावा बदल गया है, साइकिल मिल गई है। यह तस्वीर जांजगीर जिले के अकलतरा ब्लॉक की है, जहां एक कोटवार लोगों को बता रहे हैं कि यहां सरपंच के खाली पद पर चुनाव होना है, जो फॉर्म भरना चाहते हैं भर लें। जिनको ज्यादा जानकारी चाहिए वे पंचायत भवन में चिपकाई गई नोटिस को देख लें।
कंकाल की जांच, कब्र की नहीं
रायपुर में घड़ी चौक से मेकहारा तक सड़क घेरकर खड़ी स्काई वाक की जांच अब जाकर चुनावी साल में शुरू की गई है। इसके बावजूद कि यह सन् 2018 में चुनावी मुद्दा बना था। अब तक जांच पूरी कर शहर की सूरत बिगाडऩे और करोड़ों रुपये फूंकने के लिए जो जिम्मेदार हैं, उनको कटघरे में खड़ा किया जा सकता था। इसमें सिर्फ 35 करोड़ रुपये अब तक बर्बाद हुए हैं। सिर्फ कहा जाना इसलिये ठीक है क्योंकि राज्य के दूसरे सबसे बड़े शहर बिलासपुर में इससे आठ-दस गुना रकम करीब 300 करोड़ रुपये अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना के नाम पर दफन कर दिए गए हैं और काम अब तक अधूरा है। सन् 2008 में यह योजना 180 करोड़ से शुरू की गई थी। 24 माह के भीतर काम पूरा होना था, 14 साल हो चुके। योजना ने पूरे शहर की सड़कों को 20-25 फीट तक खोदकर गहरा कर दिया गया। 10 साल से ज्यादा वक्त तक लोगों को सड़कों पर चलने की जगह ढूंढनी पड़ती रही। इस दौरान गड्ढों में गिरकर या मलबे में धंसकर 16 मौतें हो गईं। आज भी सड़कें भीतर से पोली हैं। जगह-जगह धंस रही हैं। इसे भी कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया था। भाजपा की बिलासपुर में 20 साल बाद हुई पराजय की यह एक बड़ी वजह थी। नगरीय प्रशासन मंत्री ने सरकार बनने के बाद अपनी पहली बैठक में कहा था कि सीवरेज के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की जांच एक माह में पूरी करेंगे और दोषी गिरफ्तार किए जाएंगे। पर आज तक किसी अधिकारी, कर्मचारी का बाल बांका नहीं हुआ। परियोजना चार साल पहले जिस स्थिति में थी, उसी हालत में अधूरी पड़ी हुई है, जबकि इस दौरान काम आगे बढ़ाने के लिए फिर राशि जारी की गई। दोनों ही जनता के पैसों से बनाए गए कब्र और कंकाल हैं। यह यकीन करना मुश्किल है कि स्काई वाक की इतनी देर से जांच का आदेश दिया जाना राजनीतिक फैसला नहीं है। बिलासपुर के सीवरेज के मामले में तो यह बहुत पहले ही साफ हो चुका है कि- सब मिले हुए हैं जी।
मधुर गुड़ में मिठास नहीं
बस्तर के जिलों में कुपोषण दूर करने के लिए राशन दुकानों से चावल के अतिरिक्त चना और गुड़ का भी वितरण किया जाता है। राशन दुकानों में बिकने वाला गुड़ मधुर ब्रांड का है। पर हाल ही में कांकेर जिले से यह जानकारी निकलकर आई कि आधे से ज्यादा उपभोक्ता इस गुड़ को ले जाने से मना कर देते हैं। दुकानदार उन्हें जबरन थमा रहे हैं। वे कहते हैं कि चावल न ले जाओ कोई बात नहीं, कहीं न कहीं खप जाएगा, पर ये तो बाजार में भी बिकने लायक नहीं है, फूड विभाग भी वापस नहीं लेता। हितग्राहियों का कहना है कि गुड़ की क्वालिटी खराब होती है। बस नाम ही मधुर है वरना रंग काला है और खाने में भी मिठास नहीं, कड़ुवाहट है। कई बार उन्हें जो चना मिलता है उसमें भी घुन लगा रहता है।
राशन दुकानों में जो गुड़, चना आ रहा है उसकी क्वालिटी पर नजर रखना फूड विभाग के क्वालिटी इंस्पेक्टरों का काम है, जाहिर है सप्लायरों ने उनसे जान-पहचान बढ़ा ली होगी।
पोस्टरों की गुंडागर्दी
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविशंकर विश्वविद्यालय के गेट पर लगे एक बोर्ड पर नये साल की पार्टी की टिकटें बेचने का यह पोस्टर दोनों तरफ चिपका दिया गया है। सरकारी या निजी बोर्ड लोगों को सूचना देने के लिए रहते हैं, और पोस्टर चिपकाने वाले लोग रात-रात भर घूमकर ऐसे बोर्ड बर्बाद करते हैं, कि मानो ये उन्हीं के लिए बने हैं।
कभी-कभी बरसों में एकाध बार म्युनिसिपल शासकीय सम्पत्ति विरूपण अधिनियम के तहत कोई कार्रवाई कर लेती है, लेकिन वह समंदर में से एक बूंद पानी को साफ करने जैसा रहता है। हालत यह है कि सड़क किनारे रफ्तार की सीमा के लिए, नो-पार्किंग के लिए, या किसी और तरह की जानकारी के लिए लगाए गए बोर्ड पर भी लोग अपने इश्तहार चिपकाकर चले जाते हैं। कौन सी सड़क किस तरफ जा रही है, इस पर भी पोस्टर चिपका दिए जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि म्युनिसिपल या जिला प्रशासन की तरफ से पुलिस की मौजूदगी में पोस्टर चिपकाने वाले पेशेवर लोगों को यह समझाइश दी जानी चाहिए कि वे रात-रात काम करके जितनी बर्बादी करते हैं, उस पर उन्हें सजा हो सकती है। लेकिन अफसरों की दिलचस्पी ऐसे किसी काम में नहीं दिखती, जिसमें कमाई न होती हो। इसलिए शहर के आम लोगों को यह सोचना होगा कि वे ऐसी गंदगी और बर्बादी, ऐसी बाजारू गुंडागर्दी को कैसे रोक सकते हैं। अलग-अलग इलाकों के लोग अपने इलाकों में ऐसे चिपकाने वाले लोगों का घुसना रोक सकते हैं। फिलहाल तो किसी कॉलोनी या इमारत के लोग इन लोगों को कानूनी नोटिस भेज सकते हैं जिनके पोस्टर सार्वजनिक सम्पत्ति पर चिपकाए गए हैं, या निजी बोर्ड को दबाते हुए। उसके बाद ऐसे पोस्टरों के मालिक जानें कि वे चिपकाने वालों पर क्या कार्रवाई करते हैं। कानून बना हुआ है, लेकिन वह बिना इस्तेमाल ताक पर धरा हुआ है। ([email protected])
सडक़ पर किताब बेचता लेखक
इस महीने की शुरुआत में इसी जगह पर एक लेखक सोनू कुमार बंजारे की तस्वीर लगाई गई थी। बिलासपुर के रहने वाले सोनू लॉकडाउन के दौरान मुंबई चले गए थे, मायानगरी में किस्मत आजमाने के लिए। इसका जिक्र अपने सोशल मीडिया पेज पर कलमकार असगर वजाहत ने किया था। सोनू ने एक कहानी लिखी है, जिस पर वे फिल्म बनाना चाहते हैं। वे सडक़ पर दिनभर खड़े होकर अपने लिए प्रोड्यूसर की तलाश कर रहे थे। पता नहीं, अब तक उन्हें प्रोड्यूसर मिला या नहीं, पर ऐसा ट्रेंड बढ़ रहा है। शर्मिंदगी क्यों? यदि आप अपने बुद्धिजीवी होने का लबादा उतारकर अपना लिखा हुआ पाठक तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। यह तस्वीर लेखक अरुण कुमार की है। इनकी किताब का नाम है- वीरा की शपथ। पटना की सडक़ों पर अपनी पत्नी के साथ दिनभर यूं ही खड़े रहकर वे अपनी किताब बेच रहे हैं।
इसकी तारीफ करते हुए अपने सोशल मीडिया पर फोटो लगाने वाले सुनील कुमार झा कहते हैं कि बुरे दिनों में ‘नागार्जुन’ ने भी अपनी किताब ‘विलाप’ और ‘बुढ़वर’ की कॉपी ट्रेनों में घूम-घूमकर बेची थी।
यानि ट्रेंड नया नहीं है। कम से कम इसी बहाने किताबों का दौर वापस लौटे।
रानू साहू की वापिसी, और मसूरी...
रायगढ़ की कलेक्टर रानू साहू करीब तीन हफ्ते की छुट्टी के बाद अब काम पर लौट गई हैं। कल सोमवार को उन्होंने काम सम्हाल लिया है। आसपास के लोगों का कहना है कि काम पर आने के पहले वे बस्तर के दंतेश्वरी मंदिर में पूजा-अर्चना करके लौटी हैं। कोयला-उगाही मामले में चल रही ईडी की जांच के सिलसिले में उनका नाम जुड़ा हुआ है, और उनके सरकारी बंगले पर ईडी का छापा भी पड़ा था, और पूरे परिवार की संपत्तियों की जांच भी चल रही है। आने वाला वक्त राज्य के कुछ अफसरों के लिए बड़ी चुनौती का रहने वाला है, और ऐसे में छत्तीसगढ़ के 18 आईएएस अफसर ट्रेनिंग के लिए मसूरी गए हुए हैं। जाहिर है कि इस राज्य के इतने आईएएस जब एक साथ हैं, तो आपस में यह चर्चा तो हो ही रही होगी कि सरकारी नौकरी में रहते हुए क्या-क्या नहीं करना चाहिए। इन 18 लोगों में अलग-अलग वरिष्ठता के लोग हैं, सीधे आईएएस बने लोग भी हैं, और राज्य सेवा से आईएएस में चुने गए लोग भी हैं, इसलिए एक-दूसरे से सीखने का मौका भी है। एक तरफ मसूरी अकादमी का प्रशिक्षण, दूसरी तरफ आपस के तजुर्बों का प्रशिक्षण।
शैलजा का कुछ अलग अन्दाज
प्रदेश कांग्रेस का प्रभार संभालने के बाद पहली दफा यहां आई शैलजा के मिजाज कुछ अलग ही नजर आए। हरियाणा की कद्दावर नेत्री शैलजा, पीएल पुनिया की तरह दलित समाज से आती हैं। पुनिया कई दलों से होकर कांग्रेस में आए थे, लेकिन शैलजा का पूरा बैकग्राउंड ही कांग्रेस का रहा है। वो नरसिम्हा राव, और फिर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रही हैं। वो सोनिया गांधी की काफी करीबी मानी जाती हैं। ऐसे में शैलजा की हैसियत पार्टी के भीतर पुनिया के मुकाबले काफी ऊंची है।
शैलजा की ताकत को भांपकर सत्ता, और संगठन ने उनके सत्कार में कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखी। शैलजा कौन सी गाड़ी में बैठेगी, कहां रुकेगी और कहां स्वागत होगा, यह सब कुछ पहले से तय था। सीएम भूपेश बघेल और प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने मिलकर रूपरेखा तैयार कर ली थी। शैलजा को सीएम की गाड़ी में बैठना था। आगे की सीट पर सीएम बैठते, और पीछे प्रदेश अध्यक्ष मरकाम, और प्रभारी सचिव सप्तगिरि उल्का के साथ शैलजा को बैठना था।
जैसे ही स्वागत सत्कार के बाद उन्हें बताया गया कि किस गाड़ी में बैठना है, तो शैलजा ने कहा कि वो आगे की सीट पर बैठेंगी। फिर क्या था सीएम और अन्य नेताओं को पीछे की सीट पर बैठना पड़ा। यही नहीं, शैलजा के लिए न्यू सर्किट हाउस में ठहरने की व्यवस्था की गई थी। वो न्यू सर्किट हाऊस में गईं भी, और कार्यकर्ताओं से मेल मुलाकात की। लेकिन रात्रि विश्राम उन्होंने होटल मैरिएट में किया। वो पहले से ही अपने लिए होटल बुक करा रायपुर पहुंची थीं।
चर्चा है कि पीसीसी और सरकारी तंत्र ने होटल के बिल का भुगतान करने की पेशकश की, लेकिन शैलजा ने ऐसा करने से मना कर दिया, और उन्होंने खुद ही इसका भुगतान किया। जबकि उनसे पहले के प्रभारी के लिए व्यवस्थापक होते थे, जो कि गाड़ी और अन्य सुविधाएं मुहैया कराते थे। ऐसे कुछ व्यवस्थापकों ने प्रभारियों की इतनी सेवा की थी कि उन्हें सत्ता और संगठन में पद भी मिल गया, लेकिन शैलजा की कार्यशैली बाकियों के तुलना में एकदम अलग दिखी।
ब्लॉक अध्यक्ष हनुमान
खबर है कि हरियाणा में राहुल गांधी की पदयात्रा के दौरान शैलजा की पीएल पुनिया से मीटिंग भी हुई थी। शैलजा ने रायपुर आने से पहले सत्ता और संगठन के कामकाज को लेकर पुनिया से फीडबैक भी लिया था।
बताते हैं कि ब्लॉक अध्यक्षों ने सरकार में काम न होने, और अपनी उपेक्षा को लेकर शिकवा शिकायतें की, तो उन्होंने रोका-टोका नहीं और उन्हें अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया। बाद में उन्होंने ब्लॉक अध्यक्षों को अपनी ताकत का अहसास कराया। उन्होंने कहा कि वो (ब्लॉक अध्यक्ष) हनुमान की तरह हैं, जिन्हें खुद की ताकत का अहसास नहीं है। शैलजा ने कहा दबाव बनाएँ, देखते हैं कि काम कैसे नहीं होता है। शैलजा ने सरकार की तारीफ की, तो नाराज नेताओं को भी अन्याय न होने का भरोसा जगाया। कुल मिलाकर शैलजा से निचले कार्यकर्ता भी संतुष्ट नजर आए।
चुनाव लडऩे की ख्वाहिश से गई कलेक्टरी
प्रदेश के एक कलेक्टर को चुनाव लडऩे की ख्वाहिश जाहिर करना महंगा पड़ गया। पिछले दिनों धमतरी और नारायणपुर जिले के जिलाधीशों के तबादले की असल वजह में कुछ रोचक बातें सुनाई दे रही हैं।
धमतरी कलेक्टर पीएस एल्मा की चुनाव लडऩे की जुबानी ख्वाहिश की खबर सिहावा विधायक डॉ. लक्ष्मी ध्रुव के कानों तक पहुंच गई। कलेक्टर ने अपने करीबियों से डॉ. ध्रुव के विधानसभा से टिकट के लिए जोर लगाने का इरादा साझा किया। यह बात उड़ते हुए सिहावा विधायक के कानों तक पहुंच गई। हालांकि एल्मा मूलत: नारायणपुर जिले के बाशिंदे हैं, लेकिन वह धमतरी में कलेक्टरी करते हुए अपने लिए सुरक्षित सीट में सिहावा पर नजरें जमाए हुए हैं।
बताते हैं कि एल्मा के चुनाव लडऩे की बात से डॉ. ध्रुव इस कदर नाराज हुई कि उन्होंने सरकार के रणनीतिकारों से फौरन उन्हें धमतरी से हटाने का दबाव बनाया। इस दबाव का असर नारायणपुर कलेक्टर रितुराज रघुवंशी पर पड़ा। सुनते हैं कि नारायणपुर से उन्हें दंतेवाड़ा में पदस्थ किए जाने की सरकार की इच्छा थी। धमतरी में बदले परिदृश्य की वजह से रितुराज को नारायणपुर से हटाया गया। 2014 बैच के रितुराज की पोस्टिंग नारायणपुर में कुछ महीने पहले हुई थी।
नारायणपुर में एसपी और कलेक्टरों की तैनाती अस्थिर रूप लिए हुए हैं। पिछले कुछ सालों से कलेक्टर-एसपी आते-जाते दिख रहे हैं। एल्मा की दिली इच्छा में चुनाव लडऩा शामिल है। सिहावा में वह अपने शुभचिंतकों के जरिये लोगों से संपर्क में भी हैं। एल्मा से चूक यह हो गई कि उन्होंने अपनी बातें खोलकर रख दीं, जिससे उन्हें कलेक्टरी से हाथ धोना पड़ा।
नेपाल में ढाई-ढाई साल
देखिए नेपाल को, वहां किसी दल को बहुमत नहीं मिला। देउबा के साथ पिछली बार प्रचंड की पार्टी सरकार में थी, इस बार प्रचंड ने समर्थन देने से मना कर दिया। बात तब बनी जब तय हुआ कि ढाई-ढाई साल दोनों प्रधानमंत्री बनेंगे। प्रचंड ने शर्त रखी कि पहले उनको कुर्सी संभालने का मौका मिले। देउबा थोड़ी ना-नुकुर के बाद इसके लिए भी तैयार हो गए। प्रचंड ने शपथ ले ली है। ढाई साल बाद कुर्सी छोड़ देंगे, मौका देउबा को मिलेगा। यदि ढाई साल बाद प्रचंड अपने वादे से मुकरेंगे तो देउबा हाथ खींच लेंगे, उनकी सरकार गिर जाएगी। यह डील उनके राष्ट्रपति या किसी सुप्रीमो के साथ बैठक में नहीं हुई, खुलेआम ऐलान किया गया। देउबा किसी हाईकमान से बंधे भी नहीं है। उनकी अपनी पार्टी, उनकी अपनी मर्जी। वादाखिलाफी हुई तो सरकार गिराने के लिए उन्हें किसी से पूछने की जरूरत नहीं।
अस्वीकरण- इस चर्चा का मकसद किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को उकसाना नहीं है।
न्यू ईयर पर अपना एमपी..
शराब के शौकीन यदि न्यू ईयर पर गोवा वगैरह नहीं जा पा रहे हों तो छत्तीसगढ़ से सटे मध्यप्रदेश में मौका है। आबकारी विभाग ने वहां शराब लाइसेंस को लेकर बड़ा बदलाव कर दिया है। किसी ठिकाने पर किसी एक दिन 10-12 लोगों की पार्टी करनी है तो शराब पीने-पिलाने का लाइसेंस 500 रुपये में मिल जाएगा। शादी-ब्याह या दूसरे उत्सवों को लेकर भी बड़ी उदारता बरती गई है। दो हजार से लेकर 10 हजार तक अलग-अलग कैटेगरी। इधर, एक अपना राज्य है जहां शराबबंदी को लेकर भाजपा सोते-जागते सरकार को घेर रही है। उनके आंदोलन से मदिरा प्रेमियों की सांस अटक जाती है। वैसे, सांसद सरोज पांडेय ने कह दिया है कि हम तो कांग्रेस को उसके घोषणा पत्र की याद दिला रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम शराबबंदी का वादा करते हैं। ([email protected])
नुकसानदेह छुट्टी
छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने कुछ महीने पहले जब शनिवार को भी प्रदेश सरकार के दफ्तर बंद रखना तय किया था तो उसे कर्मचारियों के हित का बड़ा फैसला बताया गया था। पहले भी महीने में दो शनिवार दफ्तर बंद रहते थे, और इस फैसले के बाद बाकी के दो शनिवार भी बंद रहने लगे। कर्मचारियों को 26 दिनों की छुट्टी हर साल और मिलने लगी। बदले में सरकारी दफ्तरों को हर दिन शायद घंटे भर अतिरिक्त चलाना शुरू किया गया था, लेकिन जगह-जगह इसकी जांच की गई और पाया गया कि कोई कर्मचारी नए समय पर दफ्तर पहुंच नहीं रहे थे। अब खबर आई है कि नया रायपुर विकास प्राधिकरण में शनिवार की यह नई छुट्टी इंजीनियरिंग शाखा में रद्द कर दी गई है, और वहां के इस शाखा के प्रभारी अधिकारी ने आदेश निकाला है कि सभी लोग शनिवार को भी काम पर आएं। अब एनआरडीए की इस शाखा की चाहे जो मजबूरियां रही हों, आम जनता का यही मानना है कि काम के दिन कम करके सरकार ने ठीक नहीं किया है, सरकारी दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारियों का वही पुराना ढर्रा चल रहा है, वे महीने में 24 दिन भी समय पर नहीं आते थे, और अब वे महीने में 22 दिन समय पर नहीं आ रहे हैं। इस छुट्टी से अगर किसी का फायदा हुआ है तो वह सिर्फ कर्मचारियों का हुआ है, और जनता का सरकारी दफ्तरों से बुरा तजुर्बा जारी है। सरकार को अपने अमले की उत्पादकता बरकरार रखने के लिए शनिवार की यह छुट्टी खत्म करनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ के सांसद का सवाल और जवाब!
कुछ बरस पहले की नोटबंदी की बुरी यादें लोगों के दिमाग में अभी ताजा हैं, और सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी के न्यायसंगत और तर्कसंगत होने की जांच कर ही रहा है, अभी कुछ अदालत में सुनवाई जारी है और सरकारी फाईलें, रिजर्व बैंक की फाईलें बुलवाई जा रही हैं। इस बीच छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में भेजे गए कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला के एक सवाल के जवाब में वित्तमंत्री की तरफ से दी गई जानकारी बड़ी ही दिलचस्प है। हिन्दुस्तान में 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे से नोटबंदी लागू की गई थी। उसके पहले की तारीख अगर देखें, तो मार्च 2016 में देश में 9 लाख (लाख) से कुछ अधिक संख्या में नोट प्रचलन में थे, जिनकी कुल कीमत 16 लाख करोड़ रूपये से अधिक थी। नोटबंदी के बाद अगले बरस में मार्च 2017 में नोट बढक़र संख्या में 10 लाख (लाख) पार कर गए। मार्च 2018 में ये सवा दस लाख तक पहुंच गए, मार्च 2019 में 10 लाख 87 हजार (लाख) नोट प्रचलन में थे, और ये लगातार बढ़ते हुए मार्च 2022 में 13 लाख (लाख) संख्या तक पहुंच गए, नोटबंदी के पहले इनके दाम 16 लाख (करोड़) रूपये थी जो कि आज बढक़र 31 लाख (करोड़) हो चुकी है। मतलब यह कि नोटबंदी के बाद से अब तक नोटों की संख्या सवा गुना से अधिक बढ़ गई है, और उनके कुल दाम करीब सवा दोगुना बढ़ गए हैं। अब इन आंकड़ों से भी सुप्रीम कोर्ट के जज नोटबंदी की कामयाबी को तौल सकते हैं क्योंकि सरकार ने नगदी चलन घटाने को भी नोटबंदी का एक मकसद बताया था।
नए जमाने की बैलगाड़ी
छत्तीसगढ़ की खेती में बीते दो दशकों के भीतर बैलगाड़ी की जगह ट्रैक्टरों ने ले ली है। पर, अब भी ऐसे गांव जहां ट्रैक्टर सुलभ नहीं हैं, भैंस या बैल की जोड़ी मुंशी प्रेमचंद की हीरा-मोती की तरह दिखाई दे जाती है। अपने यहां छत्तीसगढ़ी पर्वों की ओर लौटने के दौर में बैलों की दौड़ होती है। धरना, प्रदर्शन रैलियों में भी आजकल बैलगाडिय़ां दिखने लगी हैं, खासकर मुद्दा जब पेट्रोल डीजल की कीमत का हो तो। यानि बैलगाडिय़ों का महत्व घटा है पर बिल्कुल खत्म नहीं हुआ। महाराष्ट्र के इस्लामपुर स्थित राजाराम बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के मैकनिकल इंजीनियरिंग के दो छात्रों ने एक अनोखा अविष्कार किया है। बैलगाड़ी के खूंटे पर बीचो-बीच शॉकर्ब से युक्त एक रोलर पहिया लगा दिया है। यह बैलों के कंधे का बोझ कम करता है। बैलगाड़ी पर ज्यादा वजन भी ढो सकते हैं और बैलों पर भार भी कम पड़ता है। महाराष्ट्र में इसका व्यावसायिक निर्माण भी होने लगा है। मुमकिन है छत्तीसगढ़ के खेत-खलिहानों में भी आने वाले दिनों में यह दिखाई दे, और राजनीतिक प्रदर्शनों में भी।
चुनावी वर्ष का मुफ्त चावल
समाज के सभी वर्गों पर ईंधन और खाद्यान्न की महंगाई का असर पड़ा है। गरीबों पर कुछ ज्यादा पड़ा है। ऐसे में अगर उन्हें चावल या गेहूं ही मुफ्त मिल जाए तो यह बहुत बड़ी मदद है। इसका अपना चुनावी फायदा भी है। सरकारों के पास यह ज्यादा से ज्यादा गरीबों को लुभाने का रास्ता है। छत्तीसगढ़ में नई सरकार ने आते ही पीडीएस का चावल सभी के लिए उपलब्ध करा दिया। जो निम्न आय वर्ग में नहीं हैं, वे भी 10 रुपये किलो में सरकारी दुकानों से चावल ले सकते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपना चावल नहीं उठाते। ये बचा हुआ माल राइस मिलों में वापस खप जाता है। भाजपा नेता लगातार आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार का चावल छत्तीसगढ़ सरकार बांट नहीं रही, गबन हो रहा है। इधर, केंद्रीय मंत्रिमंडल की आखिरी बैठक में फैसला लिया है गया कि दिसंबर 2023 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों को मुफ्त चावल मिलता रहेगा। साल 2020 में कोविड के चलते केंद्र ने मुफ्त चावल की यह योजना लागू की थी, जो पांच किलो हर माह मिलता है। जहां गेहूं की उपलब्धता और मांग अधिक है, वहां चावल की जगह गेहूं दिया जाता है। केंद्र सरकार इस योजना पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है, जिसका लाभ 81 करोड़ से अधिक लोगों को मिलेगा। कोविड और उसके पहले लिए गए सरकार के अनेक फैसलों जैसे, नोटबंदी, जीएसटी, पेट्रोल-डीजल पर बढ़े टैक्स और बेरोजगारी ने बड़ा असर डाला है। पर, केंद्र सरकार ने फोकस सिर्फ पांच किलो चावल पर किया है। ऐसा कार्यक्रम अधिकांश राज्य अपने बजट से गरीबों को पहले से ही पहुंचा रहे हैं। केंद्र की मुफ्त चावल के लिए तय अवधि का बड़ा महत्व है। दिसंबर 2023 योजना चलेगी। यह वही समय है, जब राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव हो रहे होंगे। उम्मीद करना चाहिए कि योजना फिर आगे चलेगी क्योंकि उसके बाद 2024 में भी चुनाव होने हैं।
कांगेर की गुफाओं में दीमक
कांगेर नेशनल पार्क में कोटमसर, कैलाश, झुमरी, शीतगुफा, देवगिरी इतनी गहराई में हैं कि इन्हें पाताल लोक भी कहा जाता है। इन दिनों यहां स्टेलेग्माइट और स्टेलेक्टाइट की चट्टानों पर दीमक की परतें दिख रही हैं। हालांकि सख्त पत्थरों पर दीमक का असर नहीं पडऩे वाला लेकिन इनकी चमक फीकी होती जा रही है। सैलानियों को भ्रमण कराने के लिए भीतर ले जाने के दौरान मशाल और पेट्रोमैक्स का इस्तेमाल करने किया जाता है। पुरातत्व विज्ञानियों का कहना है कि इनके धुएं की वजह से ही ऐसा हो रहा है। यह दृश्य कुटमसर गुफा के द्वार का है, जहां दोपहर के समय कुछ देर के लिए रोशनी पहुंचती है तो काई जमा होने के कारण हरे रंग से चमकती दिखाई देती है। ([email protected])
देखते रहिए अदालत की ओर
छत्तीसगढ़ में आईटी और ईडी की कार्रवाई जितनी जमीन के ऊपर दिख रही है, उससे कहीं अधिक जमीन के नीचे भी चल रही है। कार्रवाई सामने तो तभी आती है जब किसी पर छापे पड़ते हैं, या किसी को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया जाता है। उसके पहले की कोई जानकारी इन दो एजेंसियों की तरफ से जारी नहीं की जाती है। इसलिए कई बड़ी-बड़ी कार्रवाई भी लोगों की नजरों में नहीं आतीं।
अब जैसे कोयले से जुड़े हुए ईडी के छापों और अदालती मुकदमे की खबरें तो बहुत आईं, लेकिन यह बात सामने नहीं आई कि एक आईएएस अफसर की बेशुमार दौलत को जांच एजेंसी ने अटैच कर दिया है। एकदम पुख्ता जानकारी यह है कि एक आईएएस की 50 से अधिक जमीनों को ईडी ने अटैच कर दिया है, और इनकी बिक्री या किसी भी तरह के नाम बदलने पर रोक लगा दी है। अभी तक एजेंसी ने सार्वजनिक रूप से यह जानकारी जारी नहीं की है, लेकिन हो सकता है कि अगली गिरफ्तारी के साथ यह पूरी लिस्ट अदालत में पेश हो जाए और लोगों को पता लगे कि एक आईएएस का परिवार उसकी अंधाधुंध कमाई के दौर में किस तरह डेढ़ बरस में पांच दर्जन जमीनें खरीद सकता है। क्रिसमस के ब्रेक के बाद धारावाहिक आगे जारी रहेगा, देखते रहिए अदालत की ओर।
पहले कौन, राहुल या रूचिर?
जिन लोगों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार, और भूतपूर्व पत्रकार रूचिर गर्ग को हाल के महीनों में देखा है, उन्हें लग सकता है कि वे ठीक राहुल गांधी के अंदाज में दाढ़ी बढ़ा रहे हैं। खैर, वे अखबारनवीसी छोडक़र कांग्रेस में शामिल हुए, इसलिए राहुल की तरह की फैशन करने में कुछ अटपटा नहीं है, वे मोदी की तरह की दाढ़ी नहीं बढ़ा रहे हैं। लेकिन जो लोग रूचिर को पहले से जानते हैं, उन्हें मालूम है कि वे इस तरह की दाढ़ी बढ़ाने का काम हमेशा से करते आए हैं, और हो सकता है कि रूचिर को देखकर राहुल को यह फैशन सूझा हो। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में पदयात्रा पूरी करने के बाद राहुल पहले दाढ़़ी मुंडाते हैं, या रूचिर गर्ग।
पर्यावरण सुधार में आगे राज्य
छत्तीसगढ़ जैसा राज्य जिसका 40 प्रतिशत से अधिक भाग वनों से आच्छादित हो, वहां पर्यावरण तो बेहतर होना ही चाहिए, पर इसी राज्य में खनिज और उस पर आधारित उद्योगों की भरमार है। यह प्रदूषण फैलाने के लिए काफी हैं। एनओ2 और एसओ2 पर्यावरण प्रदूषण को मापने का पैमाना होता है। सन् 2016 में एसओ2 घनत्व बढक़र 26.02 हो गया था जो अभी उपलब्ध 2020 के आंकड़ों के अनुसार घट कर 16.34 प्रतिशत हो गया। यह करीब 37 प्रतिशत की कमी है। एनओ2 घनत्व 24.11 से घटकर 19.88 हो गया है। ‘इंडिया टुडे’ की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इसमें यह भी बताया गया है कि वनों का प्रतिशत इस दौरान 41.12 से बढक़र 41.14 हो गया है। राज्य की सात प्रमुख नदियों के जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए 27 केंद्र भी स्थापित किए गए हैं।
दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंता बढ़ रही है। भारत ने सन् 2030 तक उद्योगों से कार्बन उत्सर्जन 50 प्रतिशत तक कम करने और सन् 2070 तक शून्य पर लाने का संकल्प लिया है। उस समय तक आज के लोग शायद न रहें पर वे आने वाली पीढ़ी को साफ हवा में सांस लेने की सौगात दे सकेंगे। छत्तीसगढ़ पर किया गया विश्लेषण यदि सही है तो अच्छी बात है, वरना कुछ साल पहले तो राजधानी रायपुर देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हो चुका है।
ऐसी जागरूकता हर जगह नहीं
अमूमन होटल-रेस्तरां में खाना खाने के बाद लोग बिल पर बहस नहीं करते। टोटल बिल देखते हैं और किस-किस तरह का चार्ज लगाया गया है, ध्यान नहीं देते। बिल के साथ वेटर को अलग से नजराना भी देते हैं। बैंकुठपुर के सलका स्टेट हाइवे पर एक खूब चलने वाला ढाबा है-बाबू की रसोई। परिवार के साथ खाना खाने गए एक ग्राहक के पास बिल आया। उसने देखा कि बिल में जीएसटी के अलावा सर्विस चार्ज भी जोड़ा गया है। जितने का बिल बना था, उस हिसाब से सर्विस चार्ज कुछ भी नहीं था। पर ग्राहक ने कहा, ये बिल में जोडऩा गलत है। मेरी इच्छा होगी तो वेटर को अलग से जो चाहूं दूं। ढाबे का मैनेजर भी अड़ गया, कहा-सर्विस चार्ज तो हम बिल में जोड़ते हैं, आपको भी देना होगा। ग्राहक ने फूड विभाग में फोन कर दिया। वहां से एक टीम भी तुरंत आ गई। सर्विस चार्ज जोडऩे को लेकर बिल के साथ एक रिपोर्ट बनाकर जीएसटी विभाग को कार्रवाई के लिए भेजा। पर वह भी किया, जो फूड विभाग के अधिकार में था। ढाबे में रखे पनीर और दूसरे कच्चे सामानों की गुणवत्ता पर शंका जताई, सैंपल ले लिया। उसे जांच के लिए रायपुर के लैब में भेज दिया।
दरअसल, जीएसटी लागू होने की शुरूआत में सर्विस चार्ज को लेकर कोई स्पष्ट आदेश नहीं था। बाद में शिकायतें आने पर केंद्र ने स्पष्ट किया कि सर्विस चार्ज नहीं लिया जा सकता। लोगों को पता तो है, पर शिकायत नहीं करते।
अलाव की जरूरत
आवारा कुत्तों की सबसे ज्यादा मौत गाडिय़ों से कुचलकर नहीं, बल्कि ठंड से होती है। बहुत से लोग खुले में पुराने टायर, कंबल, कपड़े रखकर इस बात की फिक्र करते हैं। यह तस्वीर जयपुर की है। ([email protected])
यह धारावाहिक कब तक?
छत्तीसगढ़ में आज एक आईएएस अफसर रानू साहू को लेकर सबसे अधिक रहस्य चल रहा है। उनके और उनके आईएएस पति जे.पी. मौर्य के घरों पर ईडी के छापे पड़े थे, और उसके बाद ऐसी चर्चा है कि ईडी ने कई बार रानू साहू का बयान लिया है। वे आखिरी जानकारी के मुताबिक रायगढ़ की कलेक्टर हैं, और जिले के जानकार लोगों का कहना है कि ईडी की तलाशी के बाद से अब तक वे इन महीनों में गिने-चुने दिन ही कलेक्टर का काम करते मिली हैं। एक बड़ा औद्योगिक जिला रायगढ़ पिछले दो-ढाई महीनों से तकरीबन बिना कलेक्टर ही चल रहा है। जिले के कोई अफसर यह भी बताने तैयार नहीं हैं कि वे कब तक छुट्टी पर हैं या दौरे पर हैं। ऐसे में अफवाहें जोर पकड़ती हैं, कोई यह कहता है कि वे ईडी की अघोषित कस्टडी में हैं, तो कोई कहते हैं कि वे तीर्थयात्रा पर हैं। रायगढ़ के एक जानकार व्यक्ति ने आज सुबह कहा कि कलेक्टर पन्द्रह दिनों की अपनी स्वीकृत छुट्टी से भी एक हफ्ता अधिक समय से बाहर हैं, और उनके घर-दफ्तर पर उनकी वापिसी की कोई खबर नहीं है। रायगढ़ के लोग हैरान हैं कि धान खरीदी के इस चुनौतीपूर्ण दौर में भी अगर पिछले ढाई महीने में सवा दो महीने कलेक्टर रायगढ़ जिले से बाहर हैं, और जिला चल रहा है, तो फिर भारत सरकार को जिलों में कलेक्टर रखने का नियम खत्म कर देना चाहिए। प्रदेश के सबसे चर्चित कोयला घोटाले को लेकर जब रायगढ़ कलेक्टर बंगले पर ईडी का छापा पड़ा, तो लोगों ने याद करके बताया कि हिन्दुस्तान में पहली बार किसी कलेक्टर बंगले पर ईडी का छापा पड़ा है। देखना है कि ये रहस्यमय धारावाहिक कब तक जारी रहता है, और इसका क्लाइमेक्स क्या होता है?
सीधे-सरल रविशंकर
जशपुर एसपी डी. रविशंकर का जीवन अध्यात्म के नजदीक रहा है। उनका यही स्वभाव उनके सरल और सहजता का प्रतीक है। जशपुर में बतौर एसपी पदस्थापना के बाद से वह राजधानी लौटने के लिए जोर लगा रहे हैं। सुनते हैं कि रविशंकर मैदानी पोस्टिंग के बजाय आफिस में काम करने के इच्छुक हैं। जशपुर में एसपी रहते हुए वह अपने आला अफसरों के जरिये सरकार से वापसी की गुजारिश कर चुके हैं। चर्चा है कि जशपुर जाने के लिए उन्होंने कोई सिफारिश भी नहीं की थी।
डी. रविशंकर का धर्म-कर्म के प्रति एक अलग ही भाव है। एसपी के बजाय राजधानी में रहकर ऑफिस में रहकर वह ज्यादा रूचि के साथ काम करने के लिए तैयार है। बताते हैं कि कोरोना के बुरे दौर में वह भी चपेट में आ गए थे। उन्होंने कोरोना से विपरीत परिस्थितियों में लडक़र जिंदगी की जंग फतह की। सेहत ठीक होने के बाद से उनके मन में धार्मिक भावनाएं अलग नजरिये से घर कर गई। वह मानते हैं कि जीवन में तमाम चीजें सिर्फ मिथ्या है, इसलिए वह एक शांत पोस्टिंग पाकर ईश्वर के नजदीक जाने की कोशिश में है। छत्तीसगढ़ में जिलों में कप्तानी करने के लिए एक तरफ आईपीएस बिरादरी में मारकाट की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में डी. रविशंकर का एसपी पद छोडक़र सीमित क्षेत्र में काम करने की इच्छा को महकमे में हैरानी के रूप में देखा जा रहा है। खबर है कि उनकी भावनाओं का कद्र करते हुए सरकार ने नए एसपी की तलाश भी शुरू कर दी है।
क्यों न इस बार पलट दें फॉर्मूला?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट की इच्छा रखने वाले पदाधिकारी इस्तीफा दें, ताकि चुनावी साल में संगठन का काम बिना किसी व्यवधान के चलता रहे। यह वही फॉर्मूला है जिसे सन् 2018 के चुनाव में भूपेश बघेल के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहने के दौरान अपनाया गया था। कई लोगों ने टिकट के लिए इस्तीफा दिया, टिकट भी कुछ को मिली, पर सब जीत नहीं पाए। उस वक्त भाजपा की सरकार थी, तब संगठन में जो लोग जी-जान से काम कर रहे थे। सभी में सरकार बदलने की तीव्र इच्छा थी। उन्होंने विपक्ष में रहते हुए खूब मेहनत की और टिकट की दावेदारी के लिए खुशी-खुशी पद छोड़ दिया। नतीजा आया, जबरदस्त जीत हुई, उप-चुनावों में सिलसिला बना रहा। मौजूदा विधायक ही इतने हैं कि पिछली बार की तरह टिकट के लिए दावा करने का अवसर पिछली बार की तरह नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष भी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि क्या वर्तमान विधायकों की टिकट कटेगी? वैसे, यह तो कांग्रेस में आखिरी क्षण तक पता नहीं चलता। तस्वीर जरा साफ हो तो कुछ पदाधिकारी पद छोडऩे के बारे में सोचें भी। वरना, पार्टी सत्ता में अभी है ही। संगठन में रहकर भी काफी कुछ हासिल किया जा सकता है। टिकट के दावेदार रह चुके एक नेता कह रहे हैं कि सन् 2018 का फॉर्मूला पलट दिया जाए। यानि, जिनको अब तक निगम, मंडल, प्राधिकरण कहीं भी जगह नहीं मिली, उनको आगे टिकट मिलने की तो कोई उम्मीद है नहीं। इसलिए एक साल के लिए सही, ऐसे लोगों को संगठन में जगह दे दें। काम पर भी लग जाएंगे, असंतोष भी कुछ कम हो जाएगा।
देरी, ऊपर से बासी खाना
बहुत सी ट्रेनों में पेंट्री कार बंद कर दी गई है। इसकी वजह सुरक्षा और सफाई बताई गई लेकिन वजह खर्च बचाना भी रहा है। अब उसकी जगह अनुमानित ऑर्डर के अनुसार प्रमुख स्टेशनों के किचन में तैयार कर पैकेट चढ़ा दिए जाते हैं। बीते दिनों दिल्ली से निकली हमसफर एक्सप्रेस घंटों देर से चल रही थी। बिलासपुर से रायपुर के लिए रवाना हुई तो एक यात्री को कुछ खाने की इच्छा हुई। उन्होंने केटरिंग के वेटर को ऑर्डर किया। पहला निवाला लेते ही उन्होंने खाना रख दिया। कहा- यह तो बासी है, इसे क्यों खिला रहे हो, बदल कर लाओ। वेटर ने मना कर दिया। बात ट्रेन में चल रहे मैनेजर तक पहुंची। मैनेजर ने बताया, आदरणीय- पैकेट बदलकर भी दूंगा तो कोई फायदा नहीं। पूरा खाना सुबह 6 बजे से पैक हो चुका है। पैक करने के दो-तीन घंटे पहले बना होगा। ट्रेन तय समय पर पहुंच जाती तो यही पैकेट आपको ताजा मिलता। मगर, ट्रेन देर से चल रही है, तो हम क्या करें। बासी खाना तो यात्री ने खाया नहीं, पैसे भी वापस नहीं हुए। मतलब, सफर में झुंझलाहट की वजह सिर्फ ट्रेन की देरी नहीं, खराब खाना भी हो सकती है।
इस चेहरे पर तो लग जाए दांव
संघ प्रचारक और भारतीय जनता पार्टी के संगठन पदाधिकारी जब पार्टी को खड़ा करने के दौर में थे, तब उनमें बेहद सादगी होती थी। वे साधारण कार्यकर्ताओं के घर रुकते थे, उनके घर का सादा भोजन करते थे। पर केंद्र और राज्यों में लगातार चुनावी जीत के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं। पार्टी कार्यालय भी अब फाइव स्टार होटल की तरह सुसज्जित हैं। छत्तीसगढ़, जहां चुनाव अब एक साल से कम बचा है, वहां वोटरों के दिल में फिर से जगह बनाना सभी दलों के लिए जरूरी है। बेलतरा विधानसभा में दो दिन तक डॉ. सिंह प्रवास पर रहे, जनसभाएं की-सुनने वालों की संख्या बड़ी थी। प्रेस कांफ्रेंस और सभा दोनों में भूपेश बघेल पर उन्होंने जमकर निशाना साधा। पर, पार्टी में उनका कद बढ़ाने वाली कुछ और बातें भी हुई, जो उनके कार्यकाल में देखने को शायद ही मिली हो। जो तस्वीरें खास तौर पर उन्होंने शेयर की है, उनमें हैं- एक कार्यकर्ता के घर में लालभाजी और भात खाते हुए। और, दूसरी तस्वीर एक शिशु को गोद में उठाकर चूमते हुए। डॉ. रमन सिंह पर तो यह जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, पार्टी की पिछली हार के वक्त वही चेहरा थे। इस बार पता नहीं। अनुमान लगाएं कि इस तस्वीर से किसका भाग्य बदलेगा, शिशु का या डॉ. साहब का।
विधानसभा चुनाव में सांसदों की बारी?
चर्चा है कि भाजपा ने कुछ सांसदों को विधानसभा चुनाव लडऩे की योजना बनाई है। इनमें प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, सुनील सोनी, और राजनांदगांव सांसद संतोष पांडेय हैं। कहा जा रहा है कि पार्टी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की जगह अभिषेक सिंह को राजनांदगांव अथवा कवर्धा सीट से चुनाव लड़ा प्रत्याशी बना सकती है। रमन सिंह पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे, और उन्हें चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया जा सकता है। पार्टी जल्द ही कुछ और बदलाव कर सकती है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
जन्मदिन से चुनाव प्रचार शुरू
विधानसभा चुनाव के चलते दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस के कई युवा नेताओं के चुनाव लडऩे की आकांक्षाएं हिलोरे मार रही है। ये नेता जन्मदिन, और अन्य उत्सवों में अपनी ताकत दिखाकर दावेदारी करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। इन्हीं में से एक रायपुर शहर जिला भाजपा के उपाध्यक्ष आशु चंद्रवंशी ने दो दिन पहले अपने जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन किया।
आशु दीनदयाल उपाध्याय नगर के रहवासी हैं, और उनकी पत्नी पार्षद है। उनके जन्मदिन के बधाई के पोस्टर पूरे रायपुर पश्चिम विधानसभा में लगे थे। जन्मदिन पर बधाई देने वालों में रायपुर पश्चिम के कार्यकर्ता ही ज्यादा थे। वैसे तो रायपुर पश्चिम से पूर्व मंत्री राजेश मूणत विधायक रहे हैं,लेकिन पिछला चुनाव बुरी तरह हार गए थे।
चुनाव हारने के बाद भी मूणत की सक्रियता कम नहीं हुई है। मगर पार्टी गुजरात और अन्य राज्यों की तरह नए चेहरे को आगे लाने की रणनीति अपनाती है, तो मूणत की टिकट खतरे में पड़ सकती है। यह सब भांपकर आशु जैसे कई नेता खुद को विकल्प के रूप में देख रहे हैं। मगर पार्टी क्या सोचती है यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
तीर्थाटन बनाम पर्यटन उद्योग
केदारनाथ, बद्रीधाम, वैष्णो देवी मंदिर से लेकर अमरकंटक तक देश के अनेक पौराणिक-धार्मिक स्थल जब अस्तित्व में आए तो अत्यन्त दुर्गम स्थल थे। इनका चयन ही दर्शाता है कि तपस्वी, साधु-संत अपनी परिभाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए निर्जन पर्वत श्रृंखलाओं को उपयुक्त समझते थे। कुछ दशक पहले तक इन स्थलों में बैलगाड़ी, खच्चर से या पैदल लोग पहुंचा करते थे। वृद्धावस्था में जीवन का लक्ष्य ही यही होता था कि एक बार तीर्थ कर लें। कई तो यात्राओं पर अपना पिंड दान करके निकलते थे, क्योंकि यात्रा की कठिनाई के चलते लौट पाने की अनिश्चितता होती थी। जैसे-जैसे विकास हुआ, सडक़ें बनी, रेल पहुंची, रोप-वे तैयार हुए, बिजली पहुंच गई। इन स्थानों पर भीड़ बढऩे लगी जिसमें आस्था की मात्रा कम और वायु-ध्वनि से प्रदूषित होते शहरी माहौल से भागने की लालसा अधिक होने लगी। इस भीड़ को और प्रोत्साहित करने के लिए कारोबारियों की सहूलियत के अनुसार विकास के कार्य होने लगे। इलाका प्रतिबंधित हो तो कुछ दूरी पर होटल, ढाबे, मांस-मदिरा सब मिलने लगे। नव-धनाड्यों के लिए ये मनोरंजन स्थल बन रहे हैं। अमरकंटक ही हवाओं में अब महक नहीं मिलती, जो 20-25 साल पहले होती थी। वैध-अवैध निर्माण की एक बड़ी श्रृंखला वहां जारी है। मदिरा यहां प्रतिबंधित है पर जैसे ही इसकी सीमा खत्म होती है, होटलों में सब मिलता है। सरकारी दुकानें भी खुल गई हैं।
कुछ समय पहले एक रिपोर्ट आई थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केदारनाथ की लगातार यात्रा के चलते वहां पर्यटकों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। 11 हजार फिट ऊंची इस पहाड़ी पर हेलिकॉप्टर से ही पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या इस साल 1.30 लाख पहुंच चुकी है। सडक़ मार्ग से जाने वाले पर्यटक 14 लाख से अधिक हैं। उत्तराखंड सरकार वहां की पहाडिय़ों को काटकर और चौड़ी सडक़ें बना रही है। बहुत से नए होटल प्रोजेक्ट वहां शुरू हो गए हैं। बावजूद इसके कि बादल फटने और भू-स्खलन की एक बड़ी विपदा सन् 2013 में आ चुकी है और आगे भी खतरा बना हुआ है। झारखंड में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित सम्मेद शिखर में हो रहे विकास का विरोध इसी तारतम्य में है। छत्तीसगढ़ में कई शहरों में जैन समुदाय प्रदर्शन कर रहा है। योजना झारखंड सरकार की है और केंद्र ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। जैन समाज का यह आंदोलन दूसरे तीर्थ स्थलों के संबंध में भी विचार करने का अवसर देता है।
जशपुर की खूबसूरती...
फोटोग्राफी महसूस करने का, छूने का, प्यार करने का एक तरीका है। आपने कैमरे की मदद से जो पकड़ा है उसे हमेशा के लिए कैद कर सकते हैं। तस्वीरें छोटी-छोटी चीजों को याद रख सकती है। जो आप लंबे समय के बाद भूल जाते हैं। यह तस्वीर अनायास ही एक पर्यटक रोहित ने ली है। जशपुर के बगीचा इलाके के गायबुड़ा गांव से, जहां टाउ की फसल लहलहा रही है।
कोविड बची उम्मीद न कुचल दे
कांग्रेस सरकार की चार साल की अनेक उपलब्धियों के बावजूद कई घोषणाएं पूरी नहीं हुई है। बेरोजगारी भत्ता देना, सभी के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, शराबबंदी, राज्य स्तर पर लोकपाल जैसे कई वादे अधूरे हैं। पर जिन मांगों को लेकर बीते वर्षों में सबसे ज्यादा आंदोलन हुआ वह था अस्थायी संविदा कर्मियों को नियमित करना और भाजपा ने जिस मुद्दे पर घेर रखा है वह है शराबबंदी। कांग्रेस को चुनाव से पहले इन दोनों वायदों को या तो पूरा करना होगा या फिर नहीं कर पाने का कोई तर्कसंगत कारण बताना होगा।
छत्तीसगढ़ के चार साल पूरे होने पर गौरव दिवस का आना और कोविड के सक्रिय मामलों का शून्य हो जाना लगभग एक साथ हुआ। पर इसी बीच चीन में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए केंद्र सरकार अलर्ट हो गई है। राज्य सरकार दिशा-निर्देश की प्रतीक्षा में है। दूसरी ओर, अनियमित कर्मचारियों के दर्जनों संगठन, जिन्होंने राजधानी तक पहुंचकर लगातार आंदोलन किया है वे प्रार्थना कर रहे हैं कि कोविड फिर न लौटे। सरकार पहले भी वादे पूरे नहीं कर पाने का एक बड़ा कारण बीच के दो साल तक महामारी से आए गतिरोध को बता रही है। यदि फिर लॉकडाउन जैसी स्थिति पैदा हो गई तो चुनाव के पहले कुछ फैसला हो जाने की उनकी रही-सही उम्मीद पर भी पानी फिर जाएगा।
गेट की जगह बदलने का टोटका
जब वक्त खराब चलता है तो लोग भविष्यवक्ता, तांत्रिक, वास्तुशास्त्री जैसे कई पाखंडियों के चक्कर में पड़ जाते हैं। बड़े-बड़े लोगों के बारे में सुनाई पड़ता है कि वे तांत्रिक अनुष्ठान करवाने में लग गए हैं, तीर्थयात्रा कर रहे हैं, और जगह-जगह मनौतियां मांग रहे हैं। ऐसे में राजधानी रायपुर में आईएएस-आईपीएस अफसरों की देवेन्द्र नगर ऑफिसर्स कॉलोनी में एक बंगले का गेट तोडक़र उसे दूसरी जगह लगाया जा रहा है। पूरी कॉलोनी में सरकारी मकान एक सरीखे बने हैं, गेट एक सरीखे लगे हैं, नामों की तख्तियां तक एक सरीखी हैं, लेकिन अब इस एक मकान में गेट की जगह बदली जा रही है, दीवार तोडक़र नए पिल्लर खड़े हो रहे हैं। पूछने पर वहां काम कर रहे मजदूरों का कहना है कि रायगढ़ कलेक्टर रानू साहू के पति का घर है, कोई माइनिंग वाले साहब हैं, उनका नाम मौर्या बताते हैं। अब परेशानी के बाद वास्तुशास्त्रियों के कहे हुए या किसी और टोटके के तहत मकानों में फेरबदल होते रहेंगे, तो फिर इसका अंत पता नहीं कहां होगा क्योंकि परेशानी में तो और भी कई लोग आ सकते हैं, नामों की चर्चा कम नहीं हैं।
बिना भुगतान बस इतना ही
पूरे देश में, और खासकर छत्तीसगढ़ जैसे चुनावी राज्य में जहां साल भर के भीतर चुनाव है, वहां पर पार्टियां एक-दूसरे के कहे एक-एक शब्द को लेकर जवाबी हमले के लिए एक पैर पर खड़ी हैं। चुनाव का यह साल कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी और कानूनी हमलों का रहेगा, और असल मुद्दे उसके बीच धरे रह जाएंगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के एक बयान को लेकर भाजपा के नेता टूट पड़े हैं, लेकिन राज्य के दूसरे बहुत महत्वपूर्ण जलते-सुलगते मुद्दे भाजपा की नजरों से गायब हैं। सत्ता में लौटने की थोड़ी संभावना, और बड़ी उम्मीद रखने वाली भाजपा को भुगतान करके कुछ जानकार-समझदार सलाहकार रखने चाहिए जो कि उसे उसी के चारों तरफ बिखरे हुए मुद्दों को दिखा सके, उनका महत्व सुझा सके। बिना भुगतान हम भाजपा को इस जगह बस इतना ही सुझा सकते हैं।
फाइलें रेंगना शुरू...
पुलिस विभाग के छोटे अफसरों-कर्मचारियों के तबादलों को मंजूरी मिलने की चर्चा है। महीनों से सैकड़ों लोगों के नाम की लिस्ट पड़ी हुई थी, और अब लंबे समय बाद फाइलें आगे बढऩे की बात पुलिस विभाग में तैर रही है।
अब औकात वाली बात नहीं..
सन् 2018 में विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने चुनाव घोषणा पत्र तैयार किया। उसके चेयरमैन तब के नेता प्रतिपक्ष और अब स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव थे। जो घोषणाएं अधूरी रह गई हैं। सिंहदेव आए दिन घिर जाते हैं जब उनसे पूछा जाता है कि घोषणाएं पूरी क्यों नहीं हो रही हैं। आज इस स्थिति से निपटने के लिए सिंहदेव ने मीडिया से साफ-साफ कह ही डाला- घोषणा-पत्र बाबा का अकेले का थोड़े ही था। मैं तो बस एक माध्यम था। घोषणा पत्र में उस वक्त के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की सहमति थी। अब इस सरकार का अंतिम बजट आना है, पूरा होना चाहिए। किसानों से किए गए वायदों के चलते बजट का 18 प्रतिशत खर्च होने की बात भी उन्होंने कही। पिछली बार अगस्त में उन्होंने सरकार की औकात नहीं, वाली बात कर दी थी, जिस पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। इस बार उन्होंने संभलकर अपनी सरकार, बघेल और राहुल को घेरा है। फूंक-फूंक पर भविष्य के निर्णय की ओर चल रहे हैं।
कोल रायल्टी पर संसद में मिला जवाब
केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से मिले सुझाव का हवाला देते हुए कोयला खनन से वसूल की गई लेवी की राशि राज्यों को लौटाने से इंकार किया है। छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने यह बात कही। वैसे, राशि राज्यों की ही है। सुप्रीम कोर्ट ने जब कोल ब्लॉक के आवंटन रद्द किए थे तो फिर से खदानों की नीलामी संशोधित नई प्रकिया से की गई थी। फैसला आने से पहले इनमें से कुछ खदानों से उत्खनन शुरू हो चुका था। इनसे अतिरिक्त लेवी वसूल की गई। खनिज राज्य की संपत्ति है। इसकी रायल्टी पर भी राज्य का ही हक है। अभी राज्य को रायल्टी मिल ही रही है। पर निरस्त कोयला खदानों की रायल्टी केंद्र ने जमा कराई। इसी आधार पर उन्हें नीलामी की संशोधित नई प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति मिल पाई। मंत्री ने भी संसद में यह नहीं कहा कि यह राज्य का पैसा नहीं है, बस यही कहा कि नहीं देना है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने किस आधार पर सुझाव दिया और केंद्र ने उसे मान लिया, मंत्री ने जवाब में स्पष्ट नहीं किया।
जिस तरह से राज्यों में महाधिवक्ता सरकार का कानूनी मसलों पर बचाव करते हैं, केंद्र में सॉलिसिटर जनरल करते हैं। मंत्री के जवाब का मतलब यह भी हो सकता है कि वसूली के लिए कोर्ट से ऑर्डर ले आइए। हमारा वकील तैयार है। इस जवाब से केंद्र के खाते में राज्य सरकार के मुताबिक रुकी हुई राशि 4024 करोड़ और बढ़ गई। बहरहाल, सांसद राजीव शुक्ला ने इस सवाल के जरिये छत्तीसगढ़ को लेकर अपनी फिक्र जाहिर कर दी है। वे दिल्ली में रहें, मगर छत्तीसगढ़ के मुद्दों पर मुखर रहें तो किसे एतराज हो सकता है?
हेलमेट नहीं तो कचरा उठाओ
वैसे तो प्रदेश में हेलमेट के खिलाफ सख्ती का कोई अभियान नहीं चल रहा है पर दुर्ग-भिलाई में ट्रैफिक पुलिस का अभियान तेजी से चलाया जा रहा है। शायद हाल ही में सडक़ दुर्घटनाओं के बढ़ जाने के कारण। पुलिस जब बाइक सवारों का चालान काटने के लिए सडक़ पर उतरती है तो लोग हेलमेट पहनना शुरू करते हैं, फिर जैसे ही अभियान रुकता है लोग फिर हेलमेट घर में छूट जाता है। पुलिस पहले फूल देकर लोगों को कोविड नियमों या ट्रैफिक नियमों का पालन करने के लिए समझाती रही है। पर लगता है अब वे दिन लद गए हैं। दुर्ग-भिलाई में एसपी ने आदेश दिया है कि बिना हेलमेट चलने वालों से सडक़ का कचरा उठवाएं। ज्यादातर बिना हेलमेट कॉलेज के छात्र-छात्रा दिखाई देते हैं। पुलिस के रोकते ही वे रोने-गिड़गिड़ाने लगते हैं। जेब खर्च भी इतना नहीं मिलता कि अचानक चालान का बोझ उठा सकें। इसलिए कचरा उठाने में उन्हें भलाई दिख रही है। पर मुमकिन है आगे इस पर विवाद होने लगे। फिलहाल तो पुलिस के अभियान के चलते हेलमेट पहनकर बाइक चलाने वालों का प्रतिशत बढऩे लगा है।
सूचना आयोग में कौन-कौन?
छत्तीसगढ़ के सूचना आयोग में एक सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त के पद खाली हैं। इन दो पदों पर नियुक्ति के लिए करीब सौ लोगों ने आवेदन किया है और नियुक्ति की प्रक्रिया के मुताबिक सरकार को इन्हीं में से लोगों को नियुक्त करना है, या फिर दुबारा अर्जियां बुलानी हैं। पिछले दो महीने में वैसे तो बहुत सी नियुक्तियां हुईं लेकिन सूचना आयोग की बारी नहीं आ पाई। कुछ मुख्यमंत्री की व्यस्तता रही, और कुछ इस आयोग को लेकर सरकार की दिलचस्पी में कमी भी रही। जैसा कि नाम से जाहिर है सूचना आयोग प्रदेश भर से सरकारी दफ्तरों, और रजिस्टर्ड संगठनों से जानकारी न मिलने के खिलाफ लगाई गई शिकायतें सुनता है, और इससे आरटीआई एक्टिविस्ट लोगों को बढ़ावा मिलता है, जो कि सरकार के बहुत काम की बात नहीं है। सूचना का अधिकार सूचनाओं पर सरकार के एकाधिकार की परंपरा को तोड़ता है, इसलिए सूचना आयोग सरकार की अवांछित संतान रहती है। अभी भी उसमें जब तक चार सदस्य थे तब तक भी कर्मचारियों की कमी से वहां काम कम हो पाता था, और सरकार के खिलाफ लगी अर्जियां हजारों की कतार में खड़ी रहती थीं। अब यह कतार और लंबी हो गई होगी।
जिन लोगों ने सूचना आयोग के दो ओहदों के लिए अर्जियां भेजी हैं, उनमें राज्य के तीन रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं, और कई पत्रकार भी हैं। जैसे ही आवेदन देने का वक्त खत्म हुआ, लोगों ने तेजी से सूचना के अधिकार के तहत वह लिस्ट मांग ली कि किन लोगों ने आवेदन किया है, ताकि बाद में कोई आवेदन जोड़ न सके। इस लिस्ट में पहली नजर में जो नाम पहचान में आ रहे हैं, उनमें राजेश चौहान हैं, जो कि शायद क्रिकेट खिलाड़ी रहे हुए हैं। कुछ वकीलों ने भी आवेदन किया है। रिटायर्ड आईएएस में से उमेश कुमार अग्रवाल, नरेन्द्र कुमार शुक्ला, और टी.सी. महावर ने अर्जी भेजी है। पत्रकारों ने भी आवेदन किया है जिनमें बिलासपुर के रूद्र अवस्थी, स्टेट्समेन अखबार के संवाददाता अजयभान सिंह, टाईम्स ऑफ इंडिया की रश्मि अभिषेक मिश्रा, रूपेश गुप्ता के नाम पहली नजर में पहचान में आते हैं, हालांकि किसी एप्लीकेशन के साथ उनके अखबार का नाम आवेदकों की लिस्ट में नहीं लिखा हुआ है, और न ही उनका पेशा लिखा हुआ है। हम अपने सामान्य ज्ञान के हिसाब से कुछ नामों को पहचान कर लिख रहे हैं, लेकिन इससे परे के भी कुछ अफसर या पत्रकार लिस्ट में हो सकते हैं। अब देखना है कि 94 लोगों की यह लिस्ट नेता प्रतिपक्ष के साथ बैठकर मुख्यमंत्री कब सोचते-विचारते हैं, और उस पर फैसला करते हैं।
रिपोर्ट किस पर बनाएं?
दुर्ग जिले में पुलिस ने प्रदूषणमुक्त-हेलमेटयुक्त अभियान चलाया है। नारा बड़ा खूबसूरत है, और पता नहीं क्यों प्रदेश में हेलमेट की कामयाबी हर बार दुर्ग जिले में ही क्यों हो पाती है, राजधानी रायपुर ऐसी किसी कोशिश से बिल्कुल अछूता बना रहता है। जब एक अखबार के संपादक ने दुर्ग जिले के एक संवाददाता को संदेश भेजा कि हेलमेट-अभियान पर रिपोर्ट बनानी चाहिए, तो उसने तुरंत फोन करके पूछा- सर, ये पुलिस के हेलमेट अभियान पर बनानी है, या अजय चंद्राकर के हेलमेट अभियान पर? दरअसल भाजपा की सभा पर पथराव का आरोप लगाते हुए अजय चंद्राकर ने अभी दुर्ग में हेलमेट लगाकर भाषण दिया था, और उनका वह वीडियो तेजी से फैला था। अब ऐसे माहौल में संवाददाता का असमंजस स्वाभाविक था कि संपादक किस हेलमेट अभियान पर रिपोर्ट बनाने कह रहे हैं।
भाषण पर सियासत...
मुंगेली जिले के लालपुर में हर वर्ष गुरु घासीदास जयंती के मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री को मुख्य अतिथि बनाया जा रहा है। इसलिए इस कार्यक्रम की अलग ऊंचाई है। स्व. अर्जुन सिंह के समय से परंपरा चल रही है। कोई भी मुख्यमंत्री हो- तय तिथि 18 दिसंबर को यहां पहुंचते ही रहे हैं। सभी दलों के नेता इसमें शामिल होते है। मुख्यमंत्री अपने सरकार के कामकाज पर बोलते जरूर हैं, पर समारोह का स्वरूप प्राय: गैर-राजनीतिक ही होता है। इस बार यहां एक अप्रिय स्थिति पैदा हुई जब सतनामी समाज के कुछ युवाओं ने समारोह के दौरान काले रंग की तख्तियां लेकर नारेबाजी की। ये युवक जब नारा लगाते हुए मुख्यमंत्री के नजदीक आ रहे थे तो वहां तैनात पुलिस वालों ने उनको रोकने की कोशिश की। मुख्यमंत्री ने उन्हें अपने तक आने देने के लिए कहा, पर सुरक्षा में लगे जवानों ने ऐहतियात बरतते हुए ऐसा नहीं किया। दरअसल, यह स्थानीय पुलिस की एक बड़ी चूक कही जा सकती है। मुख्यमंत्री की सभा में कुछ लोग प्रदर्शन के लिए पहुंचे, पर इसका अंदाजा वह पहले से नहीं लगा सकी। ऐसे किसी विरोध की आशंका इसलिए भी थी क्योंकि अनुसूचित जाति आरक्षण का प्रतिशत कम होने का मुद्दा सुलगा हुआ है। ऐसी स्थिति में बिना व्यवधान के कार्यक्रम हो इसकी प्रशासन की ओर से तैयारी में कमी रह गई।
इस जिले में बिल्हा के कुछ हिस्से को छोड़ देने से दो विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह आते हैं, लोरमी और मुंगेली। दोनों में अभी कांग्रेस नहीं है। मुंगेली भाजपा के पुन्नूलाल मोहले के पास है, तो लोरमी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से जीते हुए धर्मजीत सिंह के। यह चर्चा है कि धर्मजीत सिंह अगले चुनाव में भाजपा की टिकट पर लड़ सकते हैं। जिस दल के मुख्यमंत्री 18 दिसंबर को लालपुर पहुंचते हैं, उस पार्टी को थोड़ा-बहुत फायदा तो पहुंचता ही है, भले ही कार्यक्रम गैर राजनीतिक हो। लालपुर में सभा के दौरान प्रदर्शन के बीच मुख्यमंत्री ने कथित रूप से कहा है कि- जो शाम होते ही भौंकते हैं, उनसे मैं नहीं डरता। भाजपा ने दो दिन बाद बयान की इस लाइन पर आपत्ति जताई है। वह इसे सतनामी समुदाय के युवाओं पर की गई टिप्पणी बता रही है। सीएम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की बात भी वह कह रही है। सतनामी संगठनों की प्रतिक्रिया अभी देखने में नहीं आई है। भाजपा ने अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि 16 प्रतिशत आरक्षण की युवाओं की मांग पर उसका क्या रुख है। पर भाषण को लेकर सीएम को घेरने का पर्याप्त सियासी फायदा है।
रुको, जाओ, जो मर्जी करो...
यह बिलासपुर के एक चौराहे की तस्वीर है जिसमें सामने दो ट्रैफिक सिग्नल के पोल दिखाई दे रहे हैं। एक में सिग्नल रेड है और उसके ठीक पीछे तीनों दिशाओं के लिए ग्रीन सिग्नल दिख रहा है। कोई ट्रैफिक नियमों का पालन करना भी चाहे तो कैसे करे? इसलिए सिग्नल की परवाह किए बिना बेरोकटोक लोग आ-जा रहे हैं। दरअसल, यहां एक नए ऑटोमैटिक ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम पर काम हो रहा है। नया अभी तैयार नहीं हुआ है, पुराना उखाड़ा नहीं गया है। पर, दोनों में सिग्नल चालू हैं।
छत्तीसगढ़ के लोग उर्दू अकादमी के अभी के अध्यक्ष इदरीस गांधी को जवान समझते थे। लेकिन कल मोतीलाल वोरा की जयंती पर उनकी ट्वीट से पता लगा कि इदरीस गांधी और मोतीलाल वोरा साथी थे। अब इस रहस्य के खुलने के बाद इदरीस गांधी के लिए एक बहुत बुजुर्गों वाला सम्मान भी लोगों के बीच पैदा होगा। ([email protected])
जुर्म की दुनिया में नंबर वन
ईडी की जांच से छत्तीसगढ़ के जिन तीन जिलों में सनसनी फैली हुई है, उनमें कोरबा, रायपुर, और दुर्ग हैं। कोरबा कोयला-जुर्म का अड्डा हमेशा से रहा है, यह एक अलग बात है कि वहां हजारों करोड़ रूपये साल के कोयलामाफिया पर कोई कार्रवाई कभी होती नहीं थी। इस बार हाल के दो-तीन बरसों में कोयला कारोबार से वसूली की ईडी जांच पहली बार कोयले के काले धंधे को अदालत तक ले जा रही है, जबकि कोरबा के बड़े कारोबारी जानते हैं कि वहां अलग-अलग किस्म से जुर्म चलते ही आए हैं। फिर जैसा कि किसी राज्य में हो सकता है, किसी भी किस्म के आर्थिक अपराधी राजधानी में बसते हैं, वह यहां भी हो रहा है। लेकिन दुर्ग में जितने किस्म की जांच चल रही है, वह कोयले से जुड़ी हुई भी है, और कोयले से परे भी है। जानकार लोगों का कहना है कि महादेव ऐप नाम के ऑनलाईन सट्टेबाजी के कारोबार में कोयले के धंधे से दसियों गुना अधिक कारोबार हुआ है, और सबका सब परले दर्जे का जुर्म भी है। दुर्ग जिले में आज छोटे-छोटे राह चलते लोग भी बड़ी-बड़ी गाडिय़ों के मालिक कैसे हो गए हैं, इसकी जांच ईडी कर रही है, क्योंकि महादेव का प्रसाद चारों तरफ बंटा है। फिल्मों में भगवे रंग को लेकर भडक़ने वाले हिन्दुत्ववादी भी महादेव के नाम पर इतना बड़ा जुर्म चलते हुए देखकर चुप हैं, उनकी धार्मिक भावनाओं को कोई ठेस नहीं पहुंच रही है। लेकिन ईडी ने इस मामले को दर्ज करते हुए शुरू से ही इसमें विदेशी मुद्रा के जुर्म वाला कानून, फेमा, जोड़ दिया है, जो कि कई लोगों पर भारी पड़ सकता है। जिन लोगों को महादेव ऐप के मामले में ईडी के बुलावे का इंतजार है, वे अपने वकीलों से सलाह-मशविरे में लगे हैं। लेकिन यह मामला इस राज्य के किसी भी दूसरे जुर्म को हजार मील पीछे छोड़ सकता है।
पीएम आवास बनेगा चुनाव का मुद्दा
प्रधानमंत्री आवास योजना में छत्तीसगढ़ के पिछडऩे का सवाल एक बार फिर सुर्खियों में है। सांसद अरुण साव ने इसे लोकसभा में शून्यकाल के दौरान मंगलवार को उठाया। उन्होंने कहा कि 11 लाख आवासों का राज्यांश नहीं देकर गरीबों के हित पर छत्तीसगढ़ सरकार चोट पहुंचा रही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से हर साल कई बार पत्र भेजकर राज्य को अपना हिस्सा देने और आवासों को शुरू करने के लिए कहा जाता है। छत्तीसगढ़ की तरह पश्चिम बंगाल भी प्रधानमंत्री आवास में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। देश में ये दोनों राज्य प्रधानमंत्री आवासों के मामले में सबसे पीछे हैं। राज्यांश करीब 40 प्रतिशत होता है। 60 प्रतिशत राशि केंद्र जारी करता है। वैसे राज्यों पर 40 प्रतिशत का भार कुछ ज्यादा ही है। उत्तर-पूर्व राज्यों, हिमालय की तराई में बसे प्रदेशों तथा केंद्र शासित राज्यों में यह अनुपात 90:10 ही है। केंद्र इन राज्यों में 90 प्रतिशत राशि देता है। छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि इंदिरा आवास योजना का नाम बदलकर यदि प्रधानमंत्री पर कर दिया गया है तो पूरी राशि केंद्र सरकार ही खर्च करे। राज्यों से 40 प्रतिशत देने के लिए क्यों कहा जा रहा है। राज्यांश की स्वीकृति नहीं होने के कारण 7.82 लाख स्वीकृत प्रधानमंत्री आवासों के अपने हिस्से का बजट केंद्र सरकार ने पिछले साल वापस ले लिया। छत्तीसगढ़ का यह भी कहना है कि सेंट्रल एक्साइज के 21-22 हजार केंद्र ने रोक दिया है, कोयले की रायल्टी का भी 4 हजार करोड़ रुका है। ऐसे में केंद्र को चाहिए कि वह आवासों के लिए राशि जारी करने का दबाव बनाने के बजाय राज्य को रुकी हुई राशि जारी करे।
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से किसी एक गांव के बहुत से लोग मजदूरी और निर्माण सामग्री के जरिये प्रधानमंत्री आवास का काम चलने से लाभान्वित होते हैं। नाम बदल देने, राज्य की रुकी राशि नहीं देने के सरकार के तर्क के बावजूद इस योजना को रोके जाने से ग्रामीण क्षेत्रों में नाराजगी है। भाजपा के लिए यह सरकार के खिलाफ एक और चुनावी मुद्दा बनकर सामने आ सकता है। कांग्रेस इसके जवाब में धान खरीदी, गोबर और गो-मूत्र पर किए जा रहे खर्च को ढाल बना सकती है।
तराई में बर्फ की चादर
अमरकंटक के नीचे बसे पेंड्रारोड और आसपास के गांवों में इन दिनों ठंड खूब पड़ रही है। रात का पारा 5.5 डिग्री तक जा रहा है। बहुत लोग इस ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहनकर घरों में दुबके रहते हैं पर कुछ जोशीले लोग इस मौसम का लुत्फ उठाने घर से बाहर भी निकलते हैं। ऐसे ही एक शख्स ने पेंड्रारोड में गिर रहे बर्फ की रात में तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर डाली है।
टमाटर बिना मोल के
दुर्ग से बेमेतरा की ओर जाएं तो रास्ते में कहीं आपको सडक़ के किनारे कहीं-कहीं टमाटर की ढेरी दिख सकती है। कई किसानों ने उदारता बरती है। वे अपने खेतों से टमाटर तोडक़र छोड़ रहे हैं। जिसे ले जाना है, ले जाए। ठंड के दिनों में पूरे छत्तीसगढ़ के बाजारों में धमधा, पत्थलगांव आदि इलाकों के ही टमाटर दिखते हैं। बाकी दिनों में जब दक्षिण के राज्यों से आता है तो यह 60 रुपये किलो तक मिलता है। अभी तो लगभग मुफ्त है। ([email protected])
टिकट और चेहरे पर चर्चा
गुजरात में 54 प्रतिशत वोट शेयर के साथ भाजपा की हुई प्रचंड जीत से छत्तीसगढ़ में भी पार्टी कार्यकर्ता उत्साह से भरे हुए हैं। मगर, टिकट वितरण किस तरह से होगा, इसे लेकर बहुत से लोग अभी से चिंतित दिखाई दे रहे हैं। गुजरात का फॉर्मूला टिकट बांटने में यहां पर भी लागू हुआ तो कई नेता रेस से बाहर हो सकते हैं। नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को बदलने का जोखिम भरा फैसला लेने के बाद अब भाजपा शीर्ष नेतृत्व टिकट बंटवारे में क्या करने वाली है, इस पर महारथियों और नए दावेदार दोनों की नजर है। पिछले साल गुजरात में पूरा मंत्रिमंडल बदल कर भाजपा नेतृत्व ने चौंकाया था। इस बार वहां कई दिग्गजों की टिकट कट गई। छत्तीसगढ़ में इस समय 14 विधायक हैं, जिनमें से पुन्नूलाल मोहले, विद्यारतन भसीन, ननकीराम कंवर और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की उम्र 70 से अधिक है। युवा चेहरों को मौका देने की रणनीति पर काम किया गया तो ये नाम सूची से बाहर भी हो सकते हैं। प्रदेश भाजपा की पूर्व प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी और अब नए प्रभारी ओम माथुर स्पष्ट कर चुके हैं कि छत्तीसगढ़ में किसी स्थानीय चेहरे को सामने रखकर चुनाव नहीं लड़ा जाएगा। इसका मतलब यही हो सकता है कि राज्य का चुनाव भी केंद्र सरकार की उपलब्धि और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को सामने रखा जाएगा। जब भाजपा ने सन् 2019 की लोकसभा के लिए सभी सांसदों की टिकट काट दी तब इस फैसले को अप्रत्याशित माना गया, पर दांव सटीक रहा क्योंकि 11 में से 9 सीट उसे मिल गई। उस चुनाव में मोदी ही सामने थे। पर, क्या विधानसभा चुनाव में भी गुजरात की तरह उनका चेहरा काम करेगा?
जान गंवाने वाले कहां कितने?
जहरीली, नकली या मिलावटी शराब पीने वालों की सबसे ज्यादा मौतें 2021 में, उत्तर प्रदेश में हुई थी। यह संख्या 137 थी। इसके अलावा पंजाब में 127, मध्यप्रदेश में 108, कर्नाटक में 104, झारखंड में 60 और राजस्थान में 51 थी। यानि सबसे ज्यादा मौतों वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ शामिल नहीं था। सन् 2020 में जब कोविड के चलते देशभर में काफी दिनों तक शराबबंदी थी, मध्यप्रदेश में 214, झारखंड में 139, कर्नाटक में 99 और छत्तीसगढ में 67 लोगों ने दम तोड़ दिया। सन् 2019 में सबसे ज्यादा 268 कर्नाटक में मरे, 191 पंजाब में, 190 मध्यप्रदेश में, छत्तीसगढ़ और झारखंड में 115-115 मौतें हुई, असम में 98 और राजस्थान में 88 लोगों ने जान गंवाई। यानि 2019 और 2020 में शीर्ष राज्यों में छत्तीसगढ़ शामिल रहा। हाल ही में बिहार में जहरीली शराब पीने से हुई 100 से ज्यादा मौतों के बाद नितीश कुमार सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वे शराबबंदी खत्म करें। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पहले से मांग करते आए हैं, प्रशांत किशोर ने अल्टीमेटम भी दे दिया है। पर इन आंकड़ों में एक बड़ा दिलचस्प तथ्य छिपा हुआ है। बिहार के आंकड़े को अलग रख दें तो सबसे ज्यादा शराब की वजह से हो रही मौतों में टॉप पर एक भी राज्य ऐसा नहीं है जहां शराबबंदी हो। इस समय बिहार के अलावा गुजरात, मिजोरम, नगालैंड और लक्षद्वीप में शराबबंदी है, जहां मौतें काफी कम है। इसलिए इस तर्क को जायज ठहराना मुश्किल है कि शराबबंदी हो जाने से पीने के शौकीन मारे जाएंगे। दरअसल, जहां शराबबंदी है वहां भी दूसरे राज्यों से शराब आ ही जाती है। बिहार में ही झारखंड से शराब की तस्करी होती है। गुजरात घूमकर आने वाले बताते हैं कि वहां भी सुलभ है। मिजोरम, नगालैंड में अंगूर से बनी वाइन को छूट देनी पड़ी है। गुजरात में कुछ स्टोर्स हैं, जहां विदेशियों और दूसरे राज्यों से आने वालों को परमिट जारी कर शराब दी जाती है। शराबबंदी वाले राज्यों में सरकार को राजस्व नहीं मिलता, स्मगलरों की जेब भर जाती है। यदि छत्तीसगढ़ सरकार विरोधी दलों के दबाव के बावजूद अपना चुनावी वादा लागू करने से कतरा रही है तो वह बेवजह नहीं है।
ऑनलाइन भिक्षा
यह भिखारी बहुत तंग आ चुका होगा, उनसे जो चिल्हर नहीं होने का बहाना करके धंधा खराब करते हैं। अब तो हर मोबाइल फोन पर ट्रांजेक्शन के लिए कोई न कोई वालेट होता ही है। बदलते दौर की मांग को देखते हुए इसने भी फोन पे से भीख लेना स्वीकार कर लिया है। तस्वीर आधी रात को रायपुर रेलवे स्टेशन से ली गई है।
सबसे बड़ा सेवक ही मुखबिर
इन दिनों न सिर्फ छत्तीसगढ़ में, बल्कि हिन्दुस्तान में कहीं भी बलात्कार और हत्या के, किसी दूसरे बड़े जुर्म के तकरीबन तमाम मामले तेज रफ्तार से सुलझ जाते हैं। इसकी अकेली वजह मोबाइल फोन और सीसीटीवी कैमरे हैं। निजी और सार्वजनिक जगहों पर इन दोनों ही किस्म के कैमरे लगातार बढ़ते चल रहे हैं, हर नए कैमरे की क्वालिटी पहले से बेहतर है, रिकॉर्डिंग अधिक समय तक दर्ज रहती है, और पुलिस के काम आ जाती हैं। इसी तरह लोगों की जिंदगी में मोबाइल फोन खाने-पीने और नींद के बाद की अगली जरूरी चीज हो गए हैं, और लोग पखाने जाते हुए भी मोबाइल साथ जंगल या खेत ले जाते हैं। नतीजा यह होता है कि किसी भी जुर्म के बाद संदिग्ध लोगों के मोबाइल, वारदात के इलाके की टेलीफोन कॉल्स को ढूंढना आसान हो गया है, और पुलिस तेजी से मुजरिमों को पकड़ लेती है। अब पुलिस के कुत्ते भी उनकी जरूरत घटती चली जाने से उदास होकर बैठे रहते हैं क्योंकि मोबाइल कॉल डिटेल्स और लोकेशन के विश्लेषण में उनका कोई काम नहीं रह गया है। लोगों को याद होगा कि ओसामा-बिन-लादेन मारे जाने के बरसों पहले से अपने आपको किसी भी तरह के फोन से दूर रखते आया था। इन दिनों तो हर आम व्यक्ति के मोबाइल पर दस-दस एप्लीकेशनों पर लोकेशन ऑन रहती है, और पुलिस का काम आसान हो गया है। बिलासपुर, रायपुर, और दूसरे शहरों में बड़ी-बड़़ी हत्या, और बड़े-बड़े दूसरे जुर्म के अगले ही दिन पुलिस मुजरिमों तक पहुंच रही है। इंसानों का सबसे बड़ा सेवक मोबाइल उसका सबसे बड़ा मुखबिर भी बन गया है।
भाजपा में असमंजस जारी
भूपेश सरकार के चार साल पूरे होने पर राजधानी रायपुर में पिछले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सरकार पर जमकर हमला किया, और नौ पेज का एक प्रेसनोट भी प्रेस कांफ्रेंस में जारी किया। इसकी लंबाई देखकर एक जानकार पत्रकार ने कहा कि डॉक्टर साहब के किसी विरोधी ने ऐसा प्रेसनोट बनाया है जिसे पूरा पढऩा भी रिपोर्टरों को भारी पड़ेगा। इन दिनों को इतनी मेहनत नहीं करते कि प्रेसनोट को काटकर उसे एक चौथाई से भी कम करें। भाजपा की दूसरी चूक यह भी हुई कि जिस दिन उसके बड़े नेता अलग-अलग संभागीय मुख्यालयों पर भूपेश सरकार के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ले रहे थे, उसी दिन छोटे-छोटे कस्बों में भी भाजपा के स्थानीय नेता भूपेश बघेल के खिलाफ प्रेस से बातचीत कर रहे थे। राज्य सरकार के खिलाफ एक दिन में एक ही किस्म के कितने बयान खबरों में जगह पा सकते हैं? लेकिन भाजपा की हालत देखकर अभी यह समझ नहीं पड़ता है कि अगले चुनाव में उसका कौन सा काम राज्य के नेता करेंगे, और कौन सा काम नरेन्द्र मोदी के चेहरे के हवाले रहेगा। इसी दुविधा के चलते छत्तीसगढ़ भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं में असमंजस दिखते रहता है।
बोलती बंद हो जाएगी
गुरु घासीदास जो संदेश दे गए वे केवल उनके अनुयायियों के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए उपयोगी हैं। पर, बहुत मुश्किल है, खुद को जगाना, इन विचारों को अपने-आप पर लागू करना। अब उनकी नसीहतों में से एक यह भी है, मूर्तिपूजा न करना, इस पर बहुत से लोगों की बोलती बंद हो जाएगी।
अधिवेशन तक अभयदान
यह राजनीतिक कहावत है कि मौत और कांग्रेस की टिकट या पद का कोई भरोसा नहीं। बावजूद इसके यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ पीसीसी चीफ को अभयदान मिल गया है। कम से कम एआईसीसी के अधिवेशन तक। वैसे अपनी कुर्सी बचाने, चीफ काफी पदयात्रा कर रहे हैं। कन्याकुमारी से जयपुर तक एक कर रखा है। मौका मिलते ही राहुल जी के साथ कदमताल करने जाने से नहीं चूक रहे। खडग़ेजी ने जिस तेजी से बदलाव शुरू किया है, किसी भी दिन छत्तीसगढ़ की बारी आ सकती है। एक बड़ा भारी बदलाव तो वे कर ही चुके हैं।
राहुल जी ने कुछ दिन का ब्रेक लिया हुआ है। जिस दिन खडग़े जी के साथ बैठक होगी तो न कहीं छत्तीसगढ़ की बारी न आ जाए। वो तो भला हो, कका का कि अधिवेशन की मेजबानी मांग ली, तैयारी भी शुरू कर दी है। ऐसे में खडग़े जी रिस्क नहीं लेंगे। पीसीसी चीफ बदलेंगे तो पूरी पीसीसी, जिलाध्यक्ष, मोर्चा विभाग सभी बदलने होंगे। जो इतनी जल्दी संभव नहीं। इसलिए फिलहाल अभयदान है।
पत्रकार-मिलन
चार साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ से मीडिया के लोगों को दोपहर के भोजन पर बुलाया गया तो एक घंटे पत्रकार आपस में ही बात करने में मशगूल रहे क्योंकि मुख्यमंत्री कुछ टीवी चैनलों को इंटरव्यू देने में लगे हुए थे। लेकिन पत्रकारों के बीच आपसी बातचीत का यह मौका भी कम अहमियत का नहीं रहा क्योंकि चुनाव के साल भर पहले राज्य में जिस तरह की गहमागहमी चल रही है, उस पर लोगों का आपस में बतियाने का काफी कुछ सामान इक_ा था। जो नहीं छपा है उसकी बात करने का भी, और जो अब तक नहीं घटा है, उसकी बात करने का भी। बाकी बातों के साथ-साथ पत्रकारों से जुड़ी कुछ खबरों और कुछ अफवाहों पर भी बात चलती रही। कुछ लोगों को यह भी अफसोस रहा कि चार साल पूरी होने की दावत भी अगर दिन में ही होगी, तो फिर शाम की दावत आखिर कब होगी?
आरक्षण बिल और ओबीसी वोट
विधानसभा में पारित आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल अनुसुईया उइके की ओर से पूछे गए 10 सवालों का सरकार की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं भेजा गया है। इस बीच राज्यपाल दिल्ली रवाना हो गई हैं। बताया जा रहा है कि वे राष्ट्रपति दौप्रदी मुर्मू और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेंगीं। दरअसल, राज्यपाल का विधेयक रोका जाना अनुसूचित जनजाति के पक्ष में दिखाई तो दे रहा है, पर ओबीसी के खिलाफ। राज्यपाल को राजनीतिक गतिविधियों से परे, तटस्थ माना जाता है। इसके बावजूद हर किसी को पता है कि राज्यपाल का फैसला केंद्र सरकार की मंशा के अनुरूप ही होता है। भाजपा ने पिछड़ा वर्ग पर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल या कहें कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दोनों ही पद पिछड़ा वर्ग को दे दिया है। ऐसे में आरक्षण विधेयक पर दस्तखत नहीं होने से भाजपा के इन प्रयासों को धक्का पहुंच सकता है। देखना होगा राज्यपाल किस तरह का ‘मार्गदर्शन’ लेकर दिल्ली से लौटती हैं।
नाबालिग अपराध में अव्वल राज्य
रायपुर और उसके पहले बेमेतरा में नाबालिग लड़कियों के साथ रेप हुआ। रेप के बाद हत्या भी की गई। दोनों ही मामलों में आरोपी नाबालिग ही थे। इसके अलावा प्रदेशभर से आने वाली ख़बरें बताती हैं कि चाकूबाजी, चोरी और जालसाजी में भी नाबालिग बड़ी संख्या में हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा भयभीत करता है। पूरे देश में सबसे ज्यादा नाबालिग अपराधियों की संख्या छत्तीसगढ़ में है। कुल दर्ज होने वाले अपराधों में 20.6 प्रतिशत नाबालिग करते हैं। मध्यप्रदेश का इससे थोड़ा कम 19.8 प्रतिशत है। देश के बाकी राज्यों में यह संख्या 12 से 5 प्रतिशत है।
भगवा-केसरिया की तलाश
पिछले कुछ दिनों में मुस्लिमविरोधी भगवाप्रेमी भारतीय संस्कृति वाले लोगों की मेहरबानी से हिन्दुस्तान से गूगल पर सर्च करने वालों में भगवे और केसरिया कपड़े पहनीं अभिनेत्रियों का बोलबाला रहा। कुछ लोग भगवे रंग के कपड़ों के फिल्मी इस्तेमाल के ऐसे मामले ढूंढ रहे थे जिनसे कोई मुस्लिम बदन जुड़ा हो, और दूसरी तरफ इनका जवाब देने के लिए लोग ऐसे हिन्दूवादी बदनों को ढूंढ रहे थे जो कि भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक हैं, और दो-तीन छोटी-छोटी भगवा या केसरिया धज्जियों से जिन्होंने बदन ढांक रखा था। ऐसे बहुत से सर्च-रिजल्ट लोगों को कंगना रनौत तक ले गए जो कि हिन्दुत्ववादियों की पसंदीदा रानी लक्ष्मी है। इंटरनेट सर्च ने लोगों की जिंदगी आसान कर दी है। अब मोदी का इंटरव्यू लेने वाले मशहूर हिन्दुत्ववादी कनाडा निवासी अभिनेता अक्षय कुमार की ऐसी तस्वीरें ढूंढ निकाली गईं जिनमें वे न सिर्फ भगवा, बल्कि रामनामी कपड़ों को पहनी हुई अर्धनग्न सुंदरियों के बीच नाच रहे हैं। अब यह तो भगवा रंग से भी अधिक बड़ा अपमान हिन्दुत्व का हो गया क्योंकि रामनामी कपड़ों के ऊपर रूद्राक्ष की मालाएं भी पहनीं सुंदरियों ने नीचे मानो कुछ भी नहीं पहन रखा था। सोशल मीडिया ने लोगों की याददाश्त, कल्पनाशक्ति, और उनका व्यंग्यबोध, सब कुछ को खासा बढ़ा दिया है।
पदयात्रा और तबादला लिस्ट के सौ दिन
पुलिस मुख्यालय में इंस्पेक्टर और उनसे नीचे के कर्मचारियों-अधिकारियों के तबादलों के सैकड़ों नामों की लिस्ट तैयार हुए महीनों गुजर गए हैं, और उस पर सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। एक आईपीएस अफसर ने दो दिन पहले कहा कि राहुल गांधी की पदयात्रा को सौ दिन पूरे हुए हैं, और इस लिस्ट को गए भी उतने ही दिन हो गए हैं। फरवरी में ये दोनों काम लगता है कि एक साथ पूरे होंगे। अब सरकारों में तबादलों को बच्चों की पढ़ाई के महीनों से जोडक़र देखना बंद हो चुका है। सरकारें मानो यह मानकर चलती हैं कि सरकारी कर्मचारी-अधिकारी हैं, तो वे तो दो शहरों में घर-बार रखने का खर्च उठा ही लेंगे। बच्चों की पढ़ाई का साल पूरे होने तक परिवार एक जगह रहता है, और अफसर-कर्मचारी दूसरे शहर-गांव में। होना तो यह चाहिए कि स्कूल-कॉलेज शुरू होने के दो-तीन महीने पहले तबादले निपट जाएं ताकि लोगों का फिजूलखर्च न हो।
अजीब है यह आंदोलन
हसदेव कोल ब्लॉक में अडानी ग्रुप अधिग्रहित और राजस्थान सरकार समर्थित नई खदानों को मंजूरी देने के खिलाफ़ जल-जंगल और रहवास उजडऩे के ख़िलाफ चल रहे आंदोलन को उम्मीद की एक छोटी रौशनी दिखाई दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके तर्कों को सुनने के बाद उस याचिका को मंजूर कर लिया है जिसमें पेसा कानून, पर्यावरण मंत्रालय, संविधान उद्धत कंडिकाओं का उल्लेख करते हुए परसा क्षेत्र और अन्य इलाकों में नई खदानों को को मंजूरी पर रोक लगाने की मांग की गई है। केंद्र सरकार ने खदान को मंजूरी देने का फैसला वापस लेने से इंकार कर दिया है। दो माह पहले इस बारे में कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने स्पष्ट कर दिया था। यह एक अजीब मामला है कि जिस विषय पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, सरगुजा से प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्री टीएस सिंहदेव, स्पीकर डॉ. चरण दास महंत समय-समय पर विरोध व्यक्त कर चुके हैं। पर आंदोलनकारियों को इन सब का बयान केंद्र के आगे बौना लग रहा है। आदिवासियों के आरक्षण पर इन दिनों सरकार को घेर रही भाजपा ने अब तक इस मुद्दे पर चुप्पी ही बांधकर रखी हुई है। राहुल गांधी की मंशा के अनुरूप पेड़ों की कटाई का आदेश निरस्त हो जाने के बावजूद प्रभावितों का संकट कम नहीं हो रहा है। वे भयभीत हैं कि किसी भी दिन प्रशासन को साथ लेकर बुलडोजर घुसेगा, उनको तहस-नहस करने के लिए। संभवत: इसीलिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। साफ है, हसदेव में नई कोयला खदानों के ख़िलाफ चल रहा आंदोलन सिर्फ प्रभावितों का है। इसे किसी राजनीतिक दल का मजबूत समर्थन ही नहीं है।
मशहूर लाल चीटियों की चटनी
झारखंड से कोई आया, बस्तर घूमकर गया। वहां के प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक, पौराणिक स्थलों की तस्वीरें तो डाल दी, पर खास तौर पर इस लाल चीटीं का उल्लेख किया। लिखते हैं- बस्तर में खाए जाने वाले सबसे अजीब खाद्य पदार्थों में लाल चींटियां और उनके अंडों से बनी चटनी है। लोग चाव से इसे खाते हैं। यह भी कहते हैं कि देश-दुनिया के लोग बस्तर को क्या बूझ सकेंगे, जब छत्तीसगढ़ के और खुद बस्तर के ही लोग नहीं बूझ पाए।
बिगड़ैल बनाई जाती जनता
किसी शहर का साफ-सुथरा रहना अगर सिर्फ खर्च करके किया जा रहा है, तो वह बहुत महंगा सौदा है, और यह अपने लोगों को हमेशा के लिए बिगाड़ देने का काम भी है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ठीक यही हो रहा है। लोगों के घरों से कचरा लेने के लिए गाडिय़ां दिन में कई बार उनके दरवाजे पहुंचती हैं, लेकिन इस कचरे को अलग-अलग छांटकर रखना लोगों को नहीं सिखाया जाता। दुनिया के सभ्य और विकसित देशों में कचरे को तीन-चार अलग-अलग किस्म से छांटकर ही देना होता है, वरना घरवालों पर खासा जुर्माना लग जाता है। एक बार हर किस्म का कचरा अगर मिल गया, तो उसे अलग-अलग करने की संभावना बड़ी थोड़ी सी रह जाती है। आज लोगों से जरा भी मेहनत करवाए बिना उनके मिलाकर दिए हुए कचरे को म्युनिसिपल उठा रही है, सडक़ों को साफ करवा रही है, नालियों में फेंके गए कचरों पर कोई जुर्माना नहीं लगता है, और वोटरों को खुश रखने के लिए म्युनिसिपल उनकी बिगड़ैल आदतों को वैसे ही बढ़ावा दे रही है, जिस तरह किसी जनवासे में मेहमान बारातियों की मनमानी को बढ़ावा दिया जाता है। सफाई कर्मचारी पूरे वक्त लापरवाह जनता के मिलाए हुए, नालियों में डाले हुए, सडक़ों पर फेंके हुए कचरे को साफ करने में लगी रहती है, और बड़ी लागत से यह सफाई करवाने को म्युनिसिपल अपनी कामयाबी मानती है। एक के बाद दूसरी पीढ़ी लापरवाह बनाई जा रही है, और जनता का पैसा गैरजिम्मेदार लोगों के फैलाए कचरे पर बर्बाद किया जा रहा है।
नाबालिगों में ‘मर्दानगी’ का संकट
15 दिन के अंतराल में बेमेतरा और रायपुर में हुई दो घटनाओं के बीच कोई अंतर नहीं है। बेमेतरा में 10 साल की बच्ची जब फांसी पर लटकी मिली तो पहले लोग आत्महत्या का मामला समझ रहे थे। जांच में पता चला कि पड़ोस का एक नाबालिग छत के रास्ते से उसके घर घुसा, जब वह अकेली थी तो रेप किया। विरोध करने पर उसने मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। किसी से वह कह न दे, इसलिये फांसी पर लटकाकर भाग गया। रायपुर के सड्डू में 8 साल की बच्ची को नाबालिग झाडिय़ों पीछे ले गया। रेप के बाद उसने भी गला घोंट दिया। दोनों मामलों में आरोपी नाबालिग थे, बच्चियों के पास-पड़ोस में रहते थे। एक दूसरे को जानते थे, साथ खेलते भी थे। पर दोनों ही अपचारी बालक पोर्न फिल्म देखने के आदी थे। दोनों ने ही रेप का अपराध उजागर न हो इसलिये हत्या भी कर दी। रायपुर में जो आरोपी पकड़ा गया, उसके बारे में यह बात भी सामने आई है कि उसके पास खुद का मोबाइल फोन नहीं था, गंदी फिल्में देखने के लिए वह दूसरों से फोन मांगता था। दिल्ली की एक गैर सरकारी संगठन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आज व्यस्त अभिभावकों के पास यह जानने का समय नहीं कि बच्चे क्या कर रहे हैं। इंटरनेट में कामुकता तक पहुंच आसान है और यह मोबाइल पर आसानी से मिल जाता है। इसी के बदौलत बच्चे अपने शारीरिक बदलाव को जल्दी पहचान लेते हैं। फिर जो उसके पास है उसके साथ इसे व्यवहार में लाने के लिए प्रयत्न करते हैं। मीडिया यौन छवियों से भरा हुआ है और बच्चियों, महिलाओं के प्रति हमें अमानवीय बना रहा है। किशोर भी अब ‘मर्दानगी’ दिखाने के लिए उतावले होते जा रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि किशोरों के यौन अपराधों से जुड़े विषयों पर समाज की चुप्पी हमें भयावह खाई की ओर धकेल रही है।
कुम्हड़े का तानपुरा
कद्दू प्रजाति के फलों को बस्तर में कुम्हड़ा कहते हैं। सामान्य कद्दू पीले रंग का होता है, मीठा भी। रखिया कुम्हड़ा सफेद होता है जो पेठा बनाने के काम में आता है। उड़द दाल के साथ पीसकर इसकी बडिय़ां भी बनाई जाती हैं। हरा कुम्हड़ा भी होता है जिसकी स्वादिष्ट सब्जियां बनती हैं। इनमें से पीले कुम्हड़े का छिलका कुछ मोटा होता है। कड़े छिलके को सावधानी से अलग कर बोतल, बर्तन आदि बनाए जाते हैं, जिसमें पानी स्टोर करके रखा जा सकता है। इसके अलावा तानपुरा जैसा वाद्ययंत्र भी बनता है, जिसकी बस्तर आने वाले पर्यटकों के बीच अच्छी बिक्री भी होती है। यह तस्वीर जगदलपुर में बिकने के लिए आए कुम्हड़े से बने तानपुरे की है। इस तरह के हस्तशिल्प को तुंबा आर्ट भी कहते हैं।
खेल मैदानों के लिए काला टीका
लगता है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के खेल मैदानों और खेल परिसरों को बुरी नजर लग गई है। एक समय शहरों के चारों तरफ छोटे-बड़े दसियों खेल मैदान हुआ करते थे, जहां सुबह शाम बच्चे, युवा अलग-अलग खेल खेलते दिखाई पड़ते थे और जो बुजुर्गों की तफरीह करने की मुफीद जगह हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसी एक भी जगह नहीं बची है, जहां ऐसा नजारा देखने को मिले। अधिकांश खेल मैदानों में निर्माण दिखाई पड़ता या फिर आवारागर्दी और शराबखोरी के लिए छोड़ दी गई है। जहां असमाजिक तत्वों के चखना की पूरी व्यवस्था होती है। नाइट कल्चर की अंधी दौड़ में सुभाष स्टेडियम, सप्रे शाला मैदान, हिंद स्पोर्टिंग ग्राउंड जैसे मैदानों की दशा किसी से छिपी नहीं है। इंडोर स्टेडियम, साइंस कॉलेज हॉकी मैदान जैसी जगह खेल के अलावा हर तरह के कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध रहते हैं। कभी यहां सियासी कार्यक्रम होते हैं, तो कभी मेले-ठेले की रौनक रहती है। शहर के कर्ता-धर्ताओं को इतने में भी संतुष्टि नहीं मिल रही है कि वे निर्माण से बचे-खुचे हिस्सों को आवारगर्दी के खोलने की तैयारी कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी और नगर निगम साइंस कॉलेज के हॉकी मैदान वाली सडक़ में नाइट चौपटी शुरू करने की तैयारी कर ली है। तय है कि चखने की व्यवस्था होने के बाद मैदान अहाता में तब्दील हो जाएगी। इसके पहले भी बेटियों के स्कूल-कॉलेज वाले रास्ते में चौपाटी खोलने की योजना बनाई गई थी। ऐसी ही कोशिश साइंस कॉलेज मैदान में चल रही है। हमारी चिंता यह है कि चौपाटी या नाइट कल्चर के चक्कर में खेल मैदानों को बरबाद नहीं किया जाना चाहिए। हम पहले भी इस विषय पर लिखते रहे हैं और शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराते रहे हैं। उसके बाद भी कुछ असर होते दिखाई नहीं पड़ रहा है। हमारी कोशिश यह है कि खेल मैदानों के माथे पर काला टीका लगाकर ऐसी बुरी नजर वालों से बचाया जा सके। यह केवल सियासी बयानबाजी या धरना-प्रदर्शन का मुद्दा नहीं है, क्योंकि विपक्ष में रहने वाले सत्तापक्ष के फैसलों का तो विरोध करती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद वो भी यही करते हैं, इसलिए सिविल सोसायटी और समाज को भी बुरी नजर वालों के खिलाफ आवाज उठाना ही चाहिए।
रामविचार सीएम चेहरा !
छत्तीसगढ़ बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर गाहे-बगाहे सवाल उठते रहते हैं। 15 साल पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह बीजेपी का चेहरा हुआ करते थे, लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद यह चर्चा रहती है कि बीजेपी को नए चेहरे की तलाश है। इस बारे में बीजेपी के नेताओं और तत्कालीन प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से कई बार सवाल भी पूछा गया, पर कोई साफ-साफ जवाब नहीं आ पाया। हर बार सामूहिक नेतृत्व या फिर मोदी के चेहरे पर चुनाव लडऩे का जवाब ही सुनने को मिला, लेकिन लगता है अब बीजेपी की तलाश पूरी हो गई है। अरे, थोड़ा धैर्य रखिए, बीजेपी ने चेहरे का ऐलान नहीं किया है। हम तो पूर्व मंत्री और प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता अजय चंद्राकर के हवाले से ऐसा अनुमान लगा रहे हैं। अब आप ही बताइए कि पार्टी का मुख्य प्रवक्ता कुछ कह रहे हैं, तब तो बात में दम होगी और वो भी सार्वजनिक मंच से। पिछले दिनों दुर्ग में भाजपा की एक सभा में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि 11 माह बाद रामविचार नेताम मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। उनकी इस बात पर खूब ठहाके भी लगे और तालियां भी बजी। जाहिर है कि अजय चंद्राकर ने कुछ सोच-समझकर ही ऐसा ऐलान किया होगा, क्योंकि बीजेपी तो अनुशासित पार्टी मानी जाती है और यहां कोरी बयानबाजी शायद नहीं होती। खैर, यह तो समय ही बताइगा कि अजय चंद्राकर का इस ऐलान को पार्टी और दावेदार नेता किस तरह लेते हैं ? अगर बात में दम है तो कई दावेदारों की नींद हराम हो सकती है।
शायद उस शहर का अंदाज हो...
कहा जाता है कि किसी समस्या को सुलझाने से पहले समस्या को समझा जाए तो आसानी होती है। यह बात युवक खासकर छात्रों के लिए तो एकदम फिट बैठती है। छात्रों की समस्याएं, मांगे हैं तो शिक्षक, प्राचार्य, प्रोफेसर, कुलपतियों को पहले छात्रों को समझना होगा। हमारे प्रदेश के एक कुलपति महोदय इन दिनों यही कर रहे है। महोदय का यह अंदाज उत्तर भारत के एक शहर से आयातित है, या यूं कहें कि जन्मभूमि के तौर-तरीके मन-मस्तिष्क में रचे-बसे हैं। कुलपति के इस अंदाज की चर्चा कुलपति दफ्तर तक होने लगी है। कुलपतिजी, छात्रों के साथ न केवल धूम्रपान करते हैं बल्कि मदिरापान के लिए बैठकी भी होती है। प्रदेश के विश्वविद्यालय में गुरू-शिष्य की इस नयी परंपरा के संवाहक कुलपति जी, एक हिंदू विश्वविद्यालय से पास आऊट हैं। कुलपति कार्यालय चुटकी ले रहा है कि कुलपति चयन के लिए भविष्य में, शिक्षा विदों के इस गुण को भी क्राइटीरिया में रखना होगा।
राजनीति, पुलिस और अपराध
आपराधिक प्रवृत्ति का कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल से जुड़ा है या नहीं, इसकी चिंता उस दल के नेताओं से ज्यादा पुलिस को होती है। सत्ता से जुड़ा हो तो बचाने का आरोप, विरोधी दल से हो तो जानबूझकर सताने का। बिलासपुर में जमीन दलाल संजू त्रिपाठी की फायरिंग से हत्या होते ही लोगों का ध्यान उसकी कार पर गया, जिसमें नंबर प्लेट की जगह लिखा था- महामंत्री, जिला कांग्रेस कमेटी। वारदात के बाद ही यह खबर भी फैल गई कि कांग्रेस नेता की हत्या हो गई। वह हत्या, हत्या की कोशिश, लूट, अपहरण सहित दर्जनों मामलों में आरोपी है। जमीन कब्जा करना, डरा-धमकाकर रजिस्ट्री कराना, महंगे ब्याज पर पैसे देना, जैसे धंधों से जुड़ा है। सवाल यह भी उठने लगा कि आखिर संगीन मामलों का आरोपी खुले कैसे घूम रहा था। कई मामलों में तो एफआईआर हुई है पर गिरफ्तारी भी नहीं हुई। कांग्रेस से ज्यादा तत्परता पुलिस ने दिखाई यह बताने के लिए कि वह किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ा था। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता और जिला अध्यक्ष का बयान तो काफी देर बाद आया, सबसे पहले एसएसपी ने यह जानकारी साझा की। अर्थात्, लोग यह न समझें कि मृतक इसलिए खुलेआम घूम रहा था कि उसे सत्तारूढ़ दल का पदाधिकारी होने के कारण छूट दी गई। पुलिस ने अपनी निष्पक्षता और मुस्तैदी के सबूत के रूप में उसके अपराधों की सूची भी खुद जारी की, इस नोट के साथ कि उसके जिला बदर की सिफारिश के लिए फाइल बनाई जा रही थी। यानि उसे रियायत नहीं दे रखी थी। जहां तक कांग्रेस के इंकार का सवाल है, संजू त्रिपाठी आए दिन सत्तारूढ़ दल के नेताओं के आसपास दिखता था। उनके साथ तस्वीरें हैं। महामंत्री लिखे हुए कार में तो वह चल ही रहा था, सोशल मीडिया पर भी उसने अपना विवरण कांग्रेस पदाधिकारी के रूप में ही दर्शाया था। इन सबके बावजूद कांग्रेस नेता हैरान करने वाला यह कह रहे हैं कि पार्टी के नाम का वह दुरुपयोग कर रहा था, यह पता नहीं चला, वरना कार्रवाई करते।
नक्सली कितने बैकफुट पर?
बस्तर में नक्सलियों के बैकफुट पर जाने के दावों में कुछ यकीन तो किया जा सकता है। इस महीने पीएलजीए सप्ताह के दौरान आम तौर पर शांति रही। पर भीतरी गांवों में दहशत कम नहीं हुई है। दंतेवाड़ा जिले के रेवाली गांव की महिला सरपंच देवे अपना हिसाब-किताब सचिव के पास जमा कर पद छोडऩे जा रही है। वह गांव भी छोड़ देगी। पिछले महीने उसके पति भीमा की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। हत्या के बाद एक पर्ची उसके पास छोड़ गए थे। इस पर्ची को पुलिस अपने साथ ले गई। उसमें क्या था यह बताया नहीं गया। पर, उसका गांव और सरपंची दोनों ही छोड़ देने के फैसले से समझा जा सकता है कि उस पर्ची में क्या लिखा होगा। पीएलजीए सप्ताह के दौरान भीतर के गांवों के बिजली खंभे, दीवारों और पेड़ों पर नक्सली पोस्टर लगे हुए थे। इसका मतलब यह है कि सरपंच के पति की हत्या के बाद भी सुरक्षा बलों या पुलिस यहां उन पर दबाव नहीं बना पाई है।
राखड़ में चहकते प्रवासी पक्षी
सीपत स्थित एनटीपीसी के राखड़ डेम और राख के पहाड़ से आसपास के घरों, गलियों, खेतों में काफी प्रदूषण है। लोगों के घरों में डस्ट की परतें जम जाती है, फसल काली हो जाती है। तालाब, हैंडपंप से भी गंदा पानी निकलता है। हवा में धूल के कण तो होते ही हैं। आसपास का तापमान भी इसके कारण बढ़ा हुआ है। पर, दूसरी ओर हर साल ठंडे प्रदेशों की ओर रुख करने वाले हजारों किलोमीटर दूर के प्रवासी पक्षियों के लिए को आजकल यही प्रदूषित इलाका भा रहा है। राखड़ बांध और फ्लाई ऐश के आसपास जाने के बारे में लोग आम दिनों में नहीं सोचते लेकिन प्रवासी पक्षियों की वजह से पक्षी प्रेमी यहां पहुंच रहे हैं। जो डस्ट मनुष्यों के लिए हानिकारक है उसका असर इन प्रवासी पक्षियों पर नहीं पड़ रहा है।
पुरानी पेंशन का पेंच
छत्तीसगढ़ पुरानी पेंशन योजना असमंजस बना हुआ है। राज्य सरकार ने योजना को बहाल तो कर दिया है, लेकिन पेंच एनपीएस की राशि को लेकर फंसा हुआ है। राज्य सरकार एनपीएस की राशि लौटाने के लिए लगातार केन्द्र सरकार पर दबाव बनाए हुए है और केन्द्र सरकार नियमों का हवाला देकर पैसा लौटाने से इंकार कर रही है। जाहिर, दोनों तरफ से जमकर सियासत हो रही है, लेकिन परेशान कर्मचारी हो रहे हैं। उन्हें अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कौन सी स्कीम लागू है और कौन सी नहीं। कर्मचारियों की स्थिति इसलिए भी खराब हो गई है, क्योंकि उनकी बरसो पुरानी मांग को राज्य सरकार ने पूरा कर दिया। इस साल मार्च में सरकार ने जब इसकी घोषणा की थी कर्मचारियों ने खूब जश्न भी मनाया था और सरकार के मुखिया का स्वागत सत्कार भी किया था, लेकिन साल बीतने को है और उनकी पेंशन योजना पर अंतिम फैसला नहीं हो पाया है। सरकार ने अप्रैल 2022 से एनपीएस में अंशदान जमा करना भी बंद कर दिया गया है। अब मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि कर्मचारी संगठनों से चर्चा कर इसका हल निकाला जाए। कर्मचारी भी जानते हैं कि नियमानुसार एनपीएस का पैसा राज्य सरकार को नहीं दिया जा सकता, लेकिन जिसकी उन्होंने मांग की थी और मांग पूरा होने पर उस पीछे हटना भी मुश्किल है। ऐसे में अब केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। अभी तक इस मामले में राज्य और केन्द्र सरकार के बीच तकरार की स्थिति थी, लेकिन अब राज्य कर्मचारी भी कूदने की तैयारी में है। कांग्रेस इस मसले को चुनावी रंग देने की तैयारी में है। हिमाचल प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस ने इसे घोषणा पत्र में रखा था। संभव है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पुरानी पेंशन योजना बड़ा मुद्दा बन जाए। ऐसे में कांग्रेस-भाजपा सियासी नफा-नुकसान के आधार पर कोई फैसला लेगी, लेकिन कर्मचारियों को इसका लाभ मिलेगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तो तय है कि कर्मचारी दो सरकारों के बीच फंसती नजर आ रही है।
आईएएस अफसरों की चिंता
छत्तीसगढ़ में पेंशन योजना के अलावा कर्मचारियों का केन्द्र के बराबर महंगाई भत्ते की मांग चुनावी साल में तेज होने की संभावना है। हालांकि राज्य सरकार ने दीवाली से पहले महंगाई भत्ते में 5 फीसदी बढ़ोतरी का फैसला लिया था, लेकिन फिर भी केन्द्र के कर्मचारियों की तुलना में राज्य कर्मचारियों को महंगाई भत्ता कम मिल रहा है और उनको एरियर्स का भुगतान भी मनमाफिक नहीं मिल रहा है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के आईएएस को बिन मांगे ही मिल रहा है। उनको समयमान वेतनमान से लेकर महंगाई भत्ते की राशि के लिए मांग तक नहीं करनी पड़ती। वैसे भी अधिकारियों को अपने किसी भी काम के लिए कर्मचारियों की तरह संघर्ष तो करना नहीं पड़ता। इसमें कोई आश्चर्य की बात होनी भी नहीं चाहिए। आखिर फाइल पर चिडिय़ा तो वे ही बिठाते हैं, लेकिन इस मसले की चर्चा उस समय हो रही थी, जब छत्तीसगढ़ में ईडी की छापेमारी और धरपकड़ जोरों पर है। आईएएस समेत बड़े अधिकारियों की संपत्ति और नगदी उजागर हो रही है। ऐसे में कुछ आईएएस अधिकारियों ने संघ के पदाधिकारियों को सुझाव दिया कि महंगाई भत्ता और एरियर्स की मांग को लेकर सरकार से पत्राचार तो कम से कम करना ही चाहिए। ऐसा नहीं करने से संदेश जा सकता है कि राज्य के आईएएस अफसरों की ऊपरी कमाई इतनी ज्यादा हो गई है कि उन्हें वेतन भत्तों की फिक्र ही नहीं है। अब उन्हें कौन समझाए कि जो संदेश जाना था, वो तो जा चुका है। फिर भी कोशिश करने में तो कोई बुराई नहीं है।
हिमाचली सेबों की लाली
हिमाचल चुनाव के नतीजों के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक अभूतपूर्व ताकत लेकर उभरे दिखते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पिछले कुछ महीनों से भूपेश के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा हिमाचल चुनाव अभियान में लगे हुए थे, और वहां प्रियंका गांधी के साथ उनकी टीम में काम कर रहे थे। बिना किसी औपचारिक ओहदे के विनोद वर्मा ने वहां सतह के नीचे और पर्दे के पीछे रहकर मेहनत की, और जो भी नतीजे आए उनमें उनका योगदान भी रहा। और जैसा कि पिछले चार बरस के देश के किसी भी चुनाव में होते आया है, छत्तीसगढ़ से इस चुनाव में भी खर्च का कुछ या काफी हिस्सा गया ही होगा। भूपेश बघेल वहां सबसे अधिक प्रचार करने वाले कांग्रेस नेताओं में से एक रहे, और हिन्दीभाषी प्रदेश होने की वजह से उनका असर भी रहा। ऐसा भी लगता है कि हिमाचल का कांग्रेसी घोषणापत्र बनाने में भूपेश और विनोद का खासा योगदान रहा क्योंकि यहां की कई बातें वहां भी लागू करने का वायदा किया गया है। एक तरफ राज्य के भीतर ईडी की कार्रवाई से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल परेशानी झेल रहे थे, लेकिन ऐसी विपरीत परिस्थिति में हिमाचल के नतीजों ने उन्हें कांग्रेस का एक सबसे लड़ाकू योद्धा बनाकर पेश किया है। ऐसा लगता है कि पार्टी के स्तर पर अब भूपेश बघेल के किसी विकल्प के बारे में तब तक कुछ सोचने की जरूरत नहीं रहेगी जब तक कि कोई बिजली ही न गिर जाए। भूपेश के चेहरे पर तनाव के बीच भी जितना आत्मविश्वास दिख रहा है, वह हिमाचली सेब की अच्छी फसल से आया हुआ दिखता है। कुछ लोगों का यह याद दिलाना भी जायज है कि हिमाचल तो हर पांच बरस में वैसे भी सत्तारूढ़ पार्टी बदलने का आदी रहा है, लेकिन अब तो मोदी और शाह ने चुनाव के सारे नियम बदल दिए हैं, और कुछ राज्यों में कई तरह चुनावी परंपराएं पलटकर रख दी हैं, ऐसे में हिमाचल में कांग्रेस का लौटना महज परंपरा मान लेना ठीक नहीं है।
मौत की वजह बताने की गलती
उच्चाधिकारियों के लिए जरूरी हो जाता है कि वे बोलते समय सावधानी बरतें ताकि उसका ऐसा मतलब न निकले जो सरकार के लिए परेशानी का कारण बने। उदयपुर के कोसाबाड़ी जंगल में एक वृद्धा की जीर्ण-शीर्ण अवस्था में लाश मिली। जांच से पता चला कि कई दिन पहले यह मौत हो चुकी है। अंबिकापुर एसपी भावना गुप्ता ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए मीडिया से कह दिया कि भूख से मौत होने की आशंका है। पर जैसे ही लगा कि इस पर शोर मच सकता है, उन्होंने दुबारा बयान दिया- सामान्य मौत है। मृतका की उम्र 65 साल की थी, भीख मांगकर गुजारा करती थी। एसपी यदि भूख से हुई मौत को लेकर टिकी रहतीं तो भाजपा इसे मुद्दा बना लेती और जिला प्रशासन को एसपी और डॉक्टरी रिपोर्ट को गलत साबित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता।
एनएच भी हो कैटल फ्री
छत्तीसगढ़ की शहरी सडक़ और राजमार्गों में आवारा पशुओं के जमे रहने के कारण दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। पर इनको हटाना आसान नहीं है। मवेशियों को पकडऩे के लिए कर्मचारी लगाना, वाहन में ढोकर लाना, कांजी हाउस में लाकर रखना, उनके चारे-पानी की व्यवस्था करना और तब तक रखना जब तक उसका असली मालिक लेकर न चला जाए, बड़ा खर्चीला काम है। ज्यादातर ऐसे पशुओं की नीलामी ही नहीं होती, क्योंकि ताजा हालात में दूसरे राज्यों में परिवहन करना, मतलब जान जोखिम में डालना है। सडक़ों पर घूमने वाले ज्यादातर पशु वे ही होते हैं जिन्हें मालिक जानबूझकर छोड़ देते हैं क्योंकि वे उनके काम के नहीं रह जाते हैं। दुधारू और उपयोगी पशुओं के लिए नगर-निगम क्षेत्रों में अलग नगर बसाया गया है तो गांवों में भी गौठान योजना चल रही है। पर, आवारा पशुओं की समस्या बनी हुई है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी सडक़ों पर आवारा घूम रहे पशुओं पर कई बार चिंता जताई है और निर्देश भी दिए हैं। रायपुर-बिलासपुर हाईवे और ठीक हाईकोर्ट के सामने की सडक़ पर भी समस्या है। शहरों की प्रमुख सडक़ों में से कुछ को पशुओं से मुक्त करने का काम देशभर की स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल किया जा रहा है। रायपुर शहर का गौरव पथ अब कैटल फ्री है। पर ज्यादातर शहरों में, स्टेट हाईवे, नेशनल हाईवे पर चलने वालों को इनसे छुटकारा दिलाने के लिए किसी ठोस योजना पर काम नहीं हो रहा है।
न्यू ट्रांसपोर्ट नगर का किसको लाभ?
कोरबा में कांग्रेस और भाजपा के बीच नया ट्रांसपोर्टनगर किस जगह पर हो, इसे लेकर बयानबाजी हो रही है। इसके लिए बरबसपुर की जमीन भाजपा के समय ही तय की जा चुकी थी और अब टेंडर की प्रक्रिया हो रही है। जिला प्रशासन ने इस जगह को फिर बदलने की योजना बनाई तब मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने अधिकारियों को फटकार लगाई। भाजपा नेताओं का बयान आ गया कि चूंकि बरबसपुर में कांग्रेस नेताओं ने जमीन खरीदी है, इसलिए मंत्री इसी जगह के लिए दबाव डाल रहे हैं। जवाब में कांग्रेस ने 11 भाजपा नेताओं की सूची जारी कर दी, जिन्होंने योजना घोषित होने के ठीक पहले वहां जमीन खरीदी। प्रस्तावित स्थल पर नया ट्रांसपोर्ट नगर बसेगा तो जाहिर है लाभ उन्हें मिलेगा। लोग अब यह सवाल कर रहे हैं कि जब भाजपा के नेताओं को भी बरबसपुर में ट्रांसपोर्टनगर बसाने का लाभ मिलना है तो उनकी ही पार्टी के कुछ नेता इसके विरोध में क्यों आ गए?
चुनावी साल और राज्यपाल
वैसे तो राज्यपाल किसी राजनीतिक पार्टी का हिस्सा नहीं रहते, लेकिन जब उन्हें मनोनीत करने वाली केन्द्र सरकार किसी एक विचारधारा की रहती है, और जिस राज्य में उन्हें भेजा गया है वहां की सरकार की विचारधारा अलग रहती है, तो राज्यपाल उन्हें नौकरी देने वाली सोच का साथ देते दिखते हैं या दिखती हैं। छत्तीसगढ़ में आज कुछ ऐसा ही माहौल बन रहा है। विधानसभा ने राज्य में आरक्षण बढ़ाने का विधेयक पास करके उसे मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजा है, लेकिन राजभवन से कई सवालों के साथ उसे वापिस भेजा गया है। राज्य सरकार चाहती थी कि अदालत से खारिज हुए आरक्षण के नए फॉर्मूले को राज्य का कानून बनाकर फिर से लागू किया जाए, लेकिन उसकी राजनीतिक हड़बड़ी और राज्यपाल की इस मुद्दे पर इत्मीनान से काम करने की सोच ने मामले को गड़बड़ा दिया है। अब राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और सरकार दोनों ने जनता के बीच राज्यपाल की लेटलतीफी का बखान शुरू किया है, और खासकर आदिवासी तबके को यह बताया जा रहा है कि आदिवासी होने के बावजूद राज्यपाल इस विधेयक को रोककर बैठी हैं। राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है, और बहुत से राज्यों में इससे कहीं बुरा टकराव देखा है। अब यह चुनाव का साल है, और केन्द्र सरकार के एजेंट की हैसियत से राज्यपाल का यहां काम कैसा रहता है, यह देखने की बात है।
चुनाव तक रोज के मुद्दे
छत्तीसगढ़ में अभी कोयला कारोबार पर से रंगदारी वसूलने की पूरी तस्वीर सामने आई नहीं है कि कुछ और मामलों के उठने के आसार दिख रहे हैं। इनमें कारखानों से वसूली, आयरन ओर खदानों से वसूली तो जुड़े हुए मामले लगते हैं, इनके अलावा केन्द्रीय जांच एजेंसियां महादेव ऐप को लेकर भी बड़ी उम्मीद से हैं कि उसमें भी कुछ ताकतवर लोग शामिल मिलेंगे। केन्द्र सरकार की एक जांच एजेंसी के हाथ ऐसे दस्तावेज भी लगे हैं जो बताते हैं कि बड़े किसानों से उनके किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से निकाली गई बड़ी-बड़ी रकमों को काला-सफेद करने के लिए किस तरह इस्तेमाल किया गया है। ऐसा लगता है कि चुनाव तक ये मुद्दे रोज सामने आते रहेंगे।
एक ट्रेनिंग ऐसी भी
ईडी के शिकंजे में फंसे अफसर और कारोबारियों की बॉडी लैंग्वेज पर चर्चा छिड़ी है. यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि इसके पीछे भी कुछ ना कुछ कहानी तो जरूर होगी ही। इस संबंध में हमको जो कहानी सुनने को मिली है, उसके अनुसार कहा जा रहा है कि तमाम लोग पहले से इस बात के लिए तैयार थे कि उन्हें एक ना एक दिन केन्द्रीय जांच एजेंसी के सामने पेश होना ही पड़ेगा। ऐसे में अधिकारी-कारोबारियों ने काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। कहा जा रहा है कि साल 2020 में जब आयकर विभाग की कार्रवाई हुई थी, उसी समय से केन्द्रीय जांच एजेंसियों के रिटायर्ड अधिकारियों, बड़े वकीलों और जानकारों की एक फौज तैयार कर ली गई थी। उस समय तो यहां तक हल्ला था कि कार्रवाई के दौरान बचाव पक्ष की यह टीम राजधानी रायपुर में ही डेरा डाले हुए थी और उसके निर्देश पर ही बचाव की रणनीति बनाई जा रही थी। आईटी के बाद जब ईडी की कार्रवाई से पहले और बाद में यह विशेष टीम जरूरी टिप्स दे रही थी, ताकि सभी लोगों को बेदाग निकाला जा सके। कुछ लोगों का तो यहां तक दावा है कि ईडी के सवालों के सामने अपनी बात पर अडिग रहने के लिए भी बकायदा घंटों-घटों रिहर्सल करवाया गया है। ईडी के मनोवैज्ञानिक दबाव के सामने भी स्ट्रेस फ्री रहने की ट्रेनिंग भी इसका हिस्सा था। इस टीम के लोगों ने यह भरोसा दिलाया कि डिजीटल प्रूफ, चैट्स और रिकार्डिंग को कोर्ट में आसानी से चुनौती दी जा सकती है। चर्चा है कि इस ट्रेनिंग के कारण ही ईडी के शिकंजे में फंसे अफसर-कारोबारी बेफिक्र नजर आ रहे हैं।
तंत्र-मंत्र से भागेगा ईडी का भूत
छत्तीसगढ़ में ईडी से निपटने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। चर्चा है कि बाबाओं और अघोरियों को भी इस काम में लगाया गया है, जो लगातार अनुष्ठान कर संकट को भगाने की कोशिश कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह काम भी एक बड़े नेता की देखरेख में चल रहा है। अनुष्ठान, हवन राज्य के अलावा दूसरे प्रदेशों की मान्यता प्राप्त स्थानों पर चल रहा है। समय-समय पर राज्य के प्रमुख लोग आहूति देने और इन स्थानों पर मत्था टेकने जाते भी हैं। खैर, तमाम बातें केवल चर्चाओं में हैं और ये उन लोगों की आस्थाओं का विषय है, लेकिन चर्चाओं में थोड़ी भी सच्चाई है, तो यह बात तो मनानी पड़ेगी कि दोनों तरफ से तलवारें खींची हुई है। अब देखना यह होगा कि कौन किस पर कितना भारी पड़ता है।
तो इनका स्टापेज क्यों नहीं?
हमसफर एक्सप्रेस, कामाख्या कर्मभूमि एक्सप्रेस, मुंबई हावड़ा वीकली सुपर फास्ट, सांतरागाछी सुपरफास्ट, हावड़ा सुपर फास्ट, मालदा टाउन एक्सप्रेस, दुरंतो एक्सप्रेस, दुरंतो एक्सप्रेस, दरभंगा एक्सप्रेस, रक्सौल साप्ताहिक, गोवा जसीडीह, पुरी सुपर फास्ट, कविगुरु एक्सप्रेस, गांधीधाम-पुरी वीकली, हटिया सुपरफास्ट, विशाखापट्टनम सुपर फास्ट, तिरूपति सुपरफास्ट, पुरी सुपर फास्ट,गांधीधाम पुरी वीकली और हापा बिलासपुर सुपर फास्ट। ये सूची उन ट्रेनों की है, जिनका स्टापेज राजनांदगांव में देने की मांग वर्षों से हो रही है। यहां के सांसद से मांग हो रही है कि जिस तरह से आपने वंदेभारत ट्रेन को रुकवाने की मांग ट्रेन शुरू होने के दो दिन पहले पूरी करा ली, उसी तरह से तत्परता दिखाएं और इन ट्रेनों का भी स्टापेज शुरू कराएं। वंदेभारत तो खास लोगों की ट्रेन है, पर बाकी जिन ट्रेनों को रोकने की मांग हो रही है, उसका बड़ी संख्या में आम यात्री, रोजाना सफर करने वालों को लाभ मिलेगा। जायज मांग है जब 130 किलोमीटर की रफ्तार में चलने वाली ट्रेन रुक सकती है तो 70-80 की औसत गति में चलने वाली ट्रेनों पर बात क्यों नहीं? राजनांदगांव कोई छोटा शहर तो है नहीं।
रेलवे का राजगीत पर रुख
वंदेभारत ट्रेन के स्वागत में रखे गए सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुत राजगीत के दौरान रेलवे अफसरों के बैठे रहने, नाश्ता करते रहने का विवाद रुक नहीं रहा है। रेलवे अधिकारियों ने राजगीत-अरपा पैरी के धार, गाये जाने के दौरान सम्मान में खड़ा नहीं होने पर अपना तर्क देते हैं। उसका कहना है कि यह सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा था। राजगीत के रूप में इसे नहीं गाया गया। हालांकि एनएसयूआई ने मामले में एफआईआर की मांग की है। उनका कहना है कि रेलवे के अफसरों ने छत्तीसगढिय़ों की भावनाओ को ठेस पहुंचाई। रेलवे अधिकारियों को इस बात का संतोष है कि भाजपा नेता इस चूक को तूल नहीं दे रहे हैं, वरना केंद्र से जुड़े होने के कारण उन्हें अपना बचाव करना मुश्किल हो जाता।
इस तरह मिली पसंद की साइकिल
इस छात्रा को सरकारी योजना से एक लेडीज साइकिल पहले मिली थी, फिर वह जेंट्स साइकिल से स्कूल आने लगी। स्कूल में शिक्षक देख रहा था कि छात्रा को लडक़ों की बड़ी साइकिल चलाने में दिक्कत है, फिर भी वह आ रही है। फिर पाया कि बीच-बीच में वह स्कूल नहीं आ रही। शिक्षक ने आखिर पूछ लिया। तुम जेंट्स साइकिल में क्यों आती हो और बीच-बीच में गैप क्यों करती हो। छात्रा ने बताया मेरी साइकिल पिताजी ने एक रिश्तेदार को दे दी। उसे मजदूरी के लिए दूर जाना पड़ता है। पड़ोसी के पास साइकिल थी, उसने कहा इसमें तुम स्कूल चल दिया करो। फिर, बीच-बीच में क्यों गैप कर देती हो? छात्रा ने बताया- जब पड़ोसी को साइकिल की जरूरत पड़ जाती है तो मुझे आने का साधन नहीं मिलता।
शिक्षक को एक साथ कई ख्याल आए। पिता में इतनी हमदर्दी कि उसने अपने मजदूर रिश्तेदार को बेटी की साइकिल दे दी। पड़ोसी में सहयोग भावना कि वह अपनी साइकिल छात्रा को स्कूल जाने के लिए दे रहा है। तीसरी बात छात्रा का जुनून कि मांगी हुई बड़ी सी साइकिल से स्कूल आ रही है।
शिक्षक ने अपने सोशल मीडिया पर दोस्तों के ग्रुप में इस समस्या के बारे में बताया। कुछ ही घंटों में छात्रा के लिए नई लेडीज साइकिल खरीदने के लायक फंड जमा हो गया। छात्रा के पिता के साथ शहर जाकर शिक्षक साइकिल लेकर आए। अब छात्रा इसी से स्कूल आना-जाना कर रही है। यह घटना कोरबा जिले के गढक़टरा स्कूल की है। जहां शिक्षक, बच्चों और ग्राम वासियों के बीच अच्छा तालमेल है। रचनात्मक गतिविधियों के कारण इस स्कूल की कई बार चर्चा हुई है।
अदालत में ईडी से खुले कई राज
सूर्यकांत तिवारी गिरोह के खिलाफ ईडी ने अदालत में लंबी चार्जशीट पेश कर दी है। यह कुल आठ हजार से अधिक पेज की बताई जा रही है, लेकिन इसके ढाई सौ पेज का एक दस्तावेज ईडी की जुबान में कम्प्लेंट कहा जा रहा है, यह दस्तावेज बड़ा दिलचस्प है। कुछ लोगों के पास यह कल पहुंचा तो लोगों ने इसे एक क्राईम थ्रिलर की तरह देर रात जागकर भी पढ़ लिया। अब इसमें जो सॉफ्ट कॉपी लोगों के हाथ लगी है उसमें 199 से 221 तक के पेज गायब हैं। इस कम्प्लेंट के शुरू में बनाई गई सूची को देखें तो ऐसा लगता है कि इस मामले में अब तक फरार संदिग्ध लोगों की जानकारी वाले पन्ने गायब हैं, और कई लोगों को गवाह बनाने के पीछे ईडी की वजह भी गायब है। बीस-बाईस पेज को लेकर लोगों की उत्सुकता बनी हुई है कि अदालत में पेश कॉपी में भी ये पन्ने लगे हैं या नहीं? और इन पन्नों की ये जानकारियां बड़ी दिलचस्प भी होंगी इसलिए भी लोग एक-दूसरे से इन पन्नों को मांगते घूम रहे हैं।
ईडी की इस कम्प्लेंट से पता लगता है कि किस तरह आईएएस समीर बिश्नोई ने सूर्यकांत तिवारी से बातचीत को अपने फोन पर रिकॉर्ड करके रखा था, और बाद में यह फोन और रिकॉर्डिंग ईडी के हाथ लग गए, तो उसका काम कुछ आसान भी हो गया, और कुछ मजबूत सुबूत भी मिल गए।
न सिर्फ इस कोयला-उगाही के हिसाब-किताब से, बल्कि नेता, अफसर, ठेकेदार, इन सबकी जमीन खरीदी से भी पता लगता है कि नोटबंदी के एक दावे की पोल खुल चुकी है कि अब दो नंबर का कारोबार बंद हो गया है। लोग जमीनों की खरीद-फरोख्त में चेक से अधिक भुगतान दो नंबर की कैश से कर रहे हैं, और उस पर कोई भी रोक नहीं है, जमीन का हर सौदा दो नंबर के पैसों से हो रहा है, और नोटबंदी की तरफ देखकर ये नोट हॅंसते रहते हैं।
लेन-देन में नाम तो इनके भी!
कुछ लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि कोयले के इस कारोबार को लेकर प्रदेश में भाजपा को जितना आक्रामक होना था, वह उसके आसपास भी नहीं है। लेकिन कुछ अधिक जानकार लोग बताते हैं कि इंकम टैक्स और ईडी के छापों में दो नंबर के लेन-देन के जो कागज बरामद हुए थे, उन्हीं में यह हिसाब भी निकला है कि भाजपा के किन नेताओं को इस वसूली में से कितना भुगतान होता था। अब ये दोनों विभाग अपने को मिली हर जानकारी का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, सिर्फ कोयला कारोबार तक अपने को सीमित रखा है, इसलिए वे नाम अभी दबे हुए हैं, लेकिन दिल्ली की जानकारी में आ चुके हैं, और राज्य में कुछ फेरबदल के पीछे भी ऐसे ही नाम थे।
बहुत देर हो चुकी है
दिल्ली की खबर यह है कि छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के तथाकथित फॉर्मूले के आधार पर अब कोई भी फेरबदल नहीं होना है। पार्टी की ओर से यह साफ कर दिया गया है कि ‘उस आधार पर’ कुछ भी करने के लिए अब बहुत देर हो चुकी है। वैसे भी हिमाचल में एक राजपूत के मुख्यमंत्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ के इस चर्चित फॉर्मूले पर पूर्णविराम लग गया है।
एक ट्रेन पर सौ कुर्बान...
रविवार का दिन रेलवे के नाम पर था। बिलासपुर से नागपुर के बीच शुरू हुई वंदेभारत ट्रेन का जिस तरह स्वागत हुआ उससे यह भी साफ हुआ कि किसी एक उपलब्धि को कितना बड़ा इवेंट बनाया जा सकता है। वंदेभारत ट्रेन को पहले दिन उन स्थानों पर भी रोका गया, जहां उसका स्टापेज नहीं था। नागपुर से बिलासपुर तक जबरदस्त तैयारी की गई थी। इस बीच बाकी ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों का क्या हाल था, इस पर भी नजर डाल लेते हैं। पहली बार नागपुर से बिलासपुर के लिए तेज रफ्तार से वंदेभारत ट्रेन चल रही थी। इधर विपरीत दिशा से इंटरसिटी एक्सप्रेस छूटी। यह भी बिलासुपर से नागपुर (इतवारी) चलती है। दोपहर बाद 03.50 पर यह बिलासपुर से छूटती है। इसे 04.35 पर 46 किलोमीटर दूर भाटापारा पहुंचना चाहिए, पहुंची शाम 07.35 बजे। यह दूरी लगभग 40 मिनट में तय हो जाती है, पर लग गए 02.30 घंटे से भी ज्यादा। इसके बाद ट्रेन ठीक चली और एक घंटे बाद रायपुर पहुंच गई। शायद इसलिये क्योंकि वंदेभारत ट्रेन तब तक भाटापारा पार करके अपने आखिरी स्टेशन तक पहुंच चुकी थी। इसी बीच बिरौनी से गोंदिया से चलने वाली ट्रेन का उसलापुर (बिलासपुर) पहुंचने का था। वह ट्रेन पहले से देर से चल रही थी। पर दोपहर में जब पेंड्रारोड पहुंच गई तो उसलापुर तक पहुंचने में उसे तीन घंटे से ज्यादा वक्त लगा। वंदेभारत ट्रेन से आने वाले यात्रियों ने बताया कि कहीं पर भी 110 से 120 की स्पीड में चली इस ट्रेन को ओवरटेक करते नहीं देखा गया। रास्ते भर यात्री ट्रेनें और मालगाड़ी किनारे लगी दिखीं। रेलवे के अफसर बता रहे हैं कि नागपुर से बिलासपुर के बीच चलने वाली 125 से अधिक ट्रेनों को वंदेभारत के लिए नियंत्रित किया गया। इनमें मालगाड़ी के अलावा सुपरफास्ट यात्री गाडिय़ां भी थीं। अब सप्ताह में 6 दिन शेड्यूल के मुताबिक लगभग पूरे दिन अप-डाउन मिलाकर वंदेभारत ट्रेन बिलासपुर-नागपुर के ट्रैक पर चलेगी। पहले से ही इस रूट पर अधिकांश गाडिय़ां लगभग रोज ही लेट चल रही हैं। अब इसमें और इजाफा हो सकता है। जिस तरह एक्सप्रेस गाडिय़ों के बाद पैसेंजर का और सुपर फास्ट ट्रेनों के बाद एक्सप्रेस का क्रेज घटा, उसी तरह अब सेमी हाई स्पीड ट्रेन के बाद क्या सुपर फास्ट ट्रेनों की स्थिति नहीं हो जाएगी?
जांच रिपोर्ट में सब ओके?
अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में चार नवजात शिशुओं की मौत के मामले की जांच के लिए टीम बनाई गई, 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश था। जांच टीम ने इससे भी तेजी से काम किया। उसने जांच संभालते ही तीन-चार घंटे के भीतर ही रिपोर्ट तैयार कल ली। डीएमई को जांच रिपोर्ट भेज दी और डीएमई ने स्वास्थ्य मंत्री को फाइल भेज दी। मालूम हुआ है कि इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिजली बंद होने के कारण वेंटिलेटर बंद नहीं हुआ था और इसकी वजह से नवजातों की जान नहीं गई। पर दूसरा पहलू यह है कि जब इनकी तबीयत बिगडऩे लगी तब सीनियर डॉक्टर्स वहां मौजूद थे? परिजनों का तो आरोप है कि इस दौरान डॉक्टर पहुंचे ही नहीं। उन्हें तबीयत बिगडऩे के बारे में किसी स्टाफ ने रात में कुछ नहीं बताया, सीधे मौत की खबर दी गई। ये जिम्मेदारी किसकी थी? मौतों को लेकर अंबिकापुर में काफी गुस्सा था। स्वास्थ्य मंत्री और विभाग के सचिव हेलिकॉप्टर से वहां पहुंचे। भाजपा ने काला झंडा दिखाकर प्रदर्शन किया। भाजपा का कहना है कि उन्हें जांच टीम पर भरोसा नहीं । जांच करने वाले डॉक्टर यहां के डीन और अधीक्षक के नीचे काम कर चुके हैं। हालांकि भाजपा ने खुद भी एक टीम बनाकर अपनी जांच रिपोर्ट तैयार करने की बात कही है। भले ही उस रिपोर्ट को राजनीतिक नजरिये से देखा जाए और वैधानिकता न हो, पर कुछ और सच सामने आने की गुंजाइश बनी हुई है। फिलहाल स्वास्थ्य विभाग की जांच रिपोर्ट पर तक किसी पर कोई एक्शन होने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।
मिट्टी से महक लेते आईपीएस
भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी, महासमुंद के पुलिस अधीक्षक भोजराम पटेल ने वक्त निकाला और अपने गांव रायगढ़ जिले के तारापुर पहुंच गए। गांव में इस समय धान के फसल की कटाई, मिंसाई का काम चल रहा है। इसमें भी उन्होंने हाथ बंटाया। सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें शेयर करते हुए उन्होंने लिखा- छत्तीसगढ़ महतारी के माटी के सुंगध मोर रोम-रोम पुलकित कर देवत हे। बड़े प्रशासनिक पदों से जुड़े अधिकारी जब मिट्टी से जुड़ाव को नि:संकोच जाहिर करते हैं तो उनको तारीफ मिलती है। इस ट्वीट को भी मिल रही है। रायगढ़ से आने वाले अफसरों को लेकर लोग कुछ अलग बातें भी करते हैं। सन् 2023 से जोडक़र इसे नहीं देखा जाना चाहिए।
क्या इस बार दो-दो बातें होंगीं?
खबर है कि जयसिंह अग्रवाल की कलेक्टर के खिलाफ खुले तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी से सीएम नाखुश हैं। अग्रवाल पहले भी अपने गृह जिले कोरबा के कलेक्टरों पर काफी कुछ बोल चुके हैं। मौजूदा कलेक्टर संजीव झा से पहले रानू साहू, और किरण कौशल भी मंत्रीजी के गुस्से का शिकार हो चुकी हैं। मगर इस बार बिना किसी प्रमाण के कलेक्टर पर घूसखोरी का आरोप लगाने से आईएएस एसोसिएशन भी नाखुश है। सीएम भूपेश बघेल लौटने के बाद राजस्व मंत्री से बात कर सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
ये कलेक्टर भी शिफ्ट होंगे?
कोरबा में मंत्री जयसिंह अग्रवाल फिर कलेक्टर से नाराज हैं। पूछ लिया है कि कलेक्टरी करने आए हैं या घूसखोरी। दरअसल, ट्रैफिक बढऩे के कारण ट्रांसपोर्टनगर को शिफ्ट किया जाना है। पहले के प्लान के अनुसार इसे बरबसपुर लेकर जाना है। मंत्री ने सुना कि इस प्लान को बदला जा रहा है, नई जगह तलाश की जा रही है तो उन्होंने स्थल पर पहुंचकर कलेक्टर को बुलाया। कलेक्टर पहुंचे नहीं। अपर कलेक्टर और दूसरे अफसरों को भेज दिया। आधी नाराजगी तो इसी को लेकर थी। न कोई मीटिंग में हैं, न शहर से बाहर हैं, फिर भी नहीं आए। बाकी अफसरों से पूछा बरबसपुर की जगह कोई नई जगह क्यों तय की जा रही है। बताया गया कि यहां काफी संख्या में निजी जमीन है। लोगों को हटाना मुश्किल होगा। पर मंत्री को पता था कि यहां सब सरकारी जमीन थी। निजी लोगों के नाम पर तो बाद में चढ़ा दी गई। तहसीलदार, पटवारी के अलावा और कौन यह काम करेगा? मंत्री ने कहा- ट्रांसपोर्टनगर यहां के अलावा कहीं और शिफ्ट नहीं होगा, शिफ्ट होंगे तो कलेक्टर। देखें, मंत्री और कलेक्टर एक दूसरे को कब तक बर्दाश्त करेंगे।
सचमुच तरक्की हुई है..
छत्तीसगढ़ सचमुच ही बहुत तरक्की कर रहा राज्य है। राजधानी रायपुर की सडक़ों पर 18 से 23 लाख तक में आने वाली एक महंगी कार पर नायब तहसीलदार लिखा दिख रहा है और नायब तहसीलदार के ऊपर के अफसरों के लिए तो आटोमोबाइल बाजार में और बड़ी गाडिय़ां हैं ही।
मर्यादा लांघने से क्या होगा?
आरक्षण विधेयक को लेकर भाजपा कांग्रेस के बीच चल रही जुबानी जंग बस्तर में कुछ ज्यादा ही तल्ख हो गई है। पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने बीजेपी कार्यालय में कह दिया कि अगर कवासी लखमा असल मां-बाप के बेटे हैं तो आरक्षण लागू करके दिखाएं। लखमा भी पीछे नहीं हटे, जवाब आ गया। मैंने तो मां का दूध पिया है। केदार ने अपनी मां का दूध पिया है तो विधेयक की फाइल पर राज्यपाल की दस्तखत कराके दिखाएं।
आरक्षण का मुद्दा बेहद संवेदनशील है। यह कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों के लिए नाक का सवाल बन चुका है। पर इसके लिए एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने के लिए जिस तरह से अमर्यादित बोल निकल रहे हैं, वह जगहंसाई का कारण बन रहा है।
खटारा बसों में सफर
बस की हालत बता रही है कि इसे दुर्घटनाग्रस्त होने से कोई रोक नहीं सकता। परिवहन विभाग की जिम्मेदारी है कि बसों का फिटनेस नियमित रूप से चेक करे। पर ग्रामीण इलाकों में जिस हालत में सवारी बसें चल रही हैं, उससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि चेकिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। पिछले दिनों कुनकुरी से अंबिकापुर जा रही यह बस एक घाट में पलट गई थी। गनीमत है कि यात्री सिर्फ घायल हुए।
टमाटर ने कर्ज में डुबाया
रायगढ़ जिले में खासकर पत्थलगांव में बीते तीन-चार सालों से टमाटर की फसल लेने वाले किसानों को अच्छा फायदा हुआ। बीते साल इसकी खेती 12 हजार एकड़ तक पहुंच गई थी। इस बार और ज्यादा किसानों ने टमाटर की खेती की, करीब 17 हजार एकड़ में खेती की गई। नतीजा यह रहा कि अब खरीदार नहीं मिल रहे हैं। हालत यह है कि थोक व्यापारी 3 रुपये किलो की बोली लगा रहे हैं। इससे कई गुना तो किसानों को खेती में खर्च बैठ गया है। अधिकांश ने बेचकर चुकाने के भरोसे कर्ज भी ले रखा है। पर, हालत यह है कि वे फसल खेतों में ही सडऩे के लिए छोड़ रहे हैं। यह सरकारी एजेंसियों का काम था कि बाजार में मांग का आकलन कर किसानों को सचेत किया जाता और दूसरी फसल लेने के लिए कहा जाता। टमाटर के लिए रायगढ़ इलाके में फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की कई बार बात हुई है। बीते मार्च माह में क्षेत्रीय सांसद गोमती साय ने लोकसभा में यूनिट लगाने की मांग उठाई थी। उन्होंने बताया था कि टमाटर, आलू, मिर्च जैसी फसलों का बंपर उत्पादन होने के कारण तत्काल अच्छी कीमत नहीं मिल पाती। सांसद ने सवाल उठाने के बाद क्या प्रयास अपने स्तर पर किया, यह पता नहीं। पर इस बार तो टमाटर उगाने वाले हजारों किसान ठगा महसूस कर रहे हैं।
संक्षिप्त नामों से खतरा
दो नंबर के लेन-देन में नाम इशारों में लिखे जाते हैं, और ऐसे में कभी-कभी बड़ी गलतफहमी भी होती है। छत्तीसगढ़ में लोगों को याद है कि नान घोटाले की डायरी में सीएम मैडम को भुगतान का हिसाब लिखा हुआ मिला था, और उस वक्त एक पक्ष का यह कहना था कि सीएम का मतलब नाम के एक अधिकारी, चिंतामणि की मैडम से था, दूसरे पक्ष का कहना था कि यह सीएम, यानी चीफ मिनिस्टर की पत्नी के बारे में था। बाद में वह रकम इतनी छोटी थी कि उसके साथ मुख्यमंत्री की पत्नी का नाम जुड़ा होने का किसी को भरोसा नहीं हुआ था। नान नाम की उस संस्था में कमाई और भ्रष्टाचार की कितनी संभावना थी, वह कांग्रेस सरकार बनने के पहले ही ठीक से सामने आ गई थी। और इस सरकार में पार्टी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल इस निगम पर काबिज हुए। अब यहां खाता न बही, जो रामगोपाल कहे वह सही।
लेकिन नामों की दिक्कत आना जारी है। आईटी और ईडी के छापों में एक आरजी को करोड़ों रूपये देने का हिसाब वॉट्सऐप चैट में मिला। ऐसा ही हिसाब कोयला-माफिया खलनायक सूर्यकांत तिवारी की डायरियों में भी मिला। अब जैसा पिछली सरकार में सीएम मैडम नाम की गलतफहमी हुई थी, इस सरकार में भी आरजी के नाम से दर्ज करोड़ों की रकम का मतलब रामगोपाल है, या राहुल गांधी है, यह किसे पता। फिर भी कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल अब तक किसी जांच से बचे हुए हैं, क्योंकि भाजपा के एक पिछले कोषाध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल उनके सगे समधी हैं, और कई बड़े कारोबार में दोनों परिवार भागीदार भी हैं। लेकिन कांग्रेस की राजनीति में संक्षिप्त नाम को आरजी लिखना बड़ा खतरनाक है।
रेल सुविधाओं की राजनीति
किसी शहर या कस्बे के कद को तौलने का एक तरीका यह भी होता है कि वहां कौन सी महत्वपूर्ण ट्रेनों का ठहराव है। 11 दिसंबर से शुरू होने वाली वंदेभारत ट्रेन का जहां-जहां ठहराव होगा, उस शहर के दर्जे को ऊंचा उठाएगा। राजनांदगांव से मांग उठी और सांसद संतोष पांडेय ने रेल मंत्री से मुलाकात कर लोगों की नाराजगी के बारे में बताया। ट्रेन के स्टापेज की संख्या शुरू होने से पहले ही बढ़ा दी गई। दुर्ग के बाद अब यह महज 31 किलोमीटर दूर राजनांदगांव में भी रुकेगी।
इधर सांसद गोमती साय ने भी रेल मंत्री से मुलाकात की है। उन्होंने वंदेभारत ट्रेन रायगढ़ से चलाने की मांग की है। मंत्री जी ने भी कहा कि आपके प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर निर्णय लिया जाएगा। कोई संदेह नहीं कि रायगढ़ से वंदेभारत ट्रेन शुरू होने और राजनांदगांव में स्टापेज मिलने से यात्री सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी, पर दोनों सांसद केवल उस विषय पर बात कर रहे हैं जो आज के दिन चर्चा में है। रायगढ़ जिले को, और अब सारंगढ़ को भी- ममता बेनर्जी के समय हुई घोषणा पर आज भी आगे काम होने का इंतजार है। यह है रायपुर-सारंगढ़-झारसुगुड़ा रेल परियोजना। यूपीए सरकार के समय ही संसद में इसके सर्वेक्षण के लिए मंजूरी दे रखी है। 310 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन पर उस समय अनुमान लगाया गया था कि करीब 2100 करोड़ रुपये खर्च होंगे। रास्ते में 33 स्टापेज भी तय किए गए थे। इनमें पलारी, बलौदाबाजार, लवन, कसडोल, बिलाईगढ़, सरसीवां, सारंगढ़ आदि शामिल हैं। इसी तरह एक पुरानी मांग है राजनांदगांव, खैरागढ़ से मुंगेली होते हुए कटघोरा तक रेल लाइन बिछाने की। करीब 100 साल पहले अंग्रेजों ने इस लाइन का सर्वे किया था। इसके लिए जमीन भी अधिग्रहित की गई थी। शहरों में इस जमीन पर कॉलोनियां बन चुकी हैं और गांवों में खेत-खलिहाल। एनडीए के पहले कार्यकाल में इस परियोजना में थोड़ा संशोधन किया गया। राजनांदगांव की जगह से डोंगरगढ़ से कवर्धा होते हुए मुंगेली और बिलासपुर के उसलापुर होते हुए कटघोरा को जोडऩे की योजना बनाई गई। सन् 2017 में इसकी करीब 277 किलोमीटर इस रेल लाइन की लागत 4820 करोड़ तय की गई।
दावा किया गया था कि इसके लिए जमीन अधिग्रहण का काम तीन साल के भीतर कर लिया जाएगा। यानि 2020 में काम शुरू हो जाना था। याद आता है कि बिलासपुर के सांसद अरुण साव ने एक बार लोकसभा में इस परियोजना के लिए शून्यकाल में आवाज उठाई थी। वे बिलासपुर से सांसद हैं और मुंगेली उनका गृह-जिला है। सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से भाजपा सांसदों ने वंदेभारत ट्रेन शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री को बधाई तो दी है, पर साव, गोमती साय, संतोष पांडेय और वे सभी सांसद जिनके इलाकों को इन वर्षों से रुकी हुई परियोजनाओं से लाभ होगा, के लिए भी आवाज उठाते नहीं देखा जा रहा है। वंदेभारत के लिए जश्न तो मनाना बनता है, पर छत्तीसगढ़ के लाखों निवासियों को फायदा पहुंचाने वाली वर्षों पुरानी मांगों को भूल जाना भी ठीक नहीं है।
नए जिलों को लेकर अभी ना..
जिन जगहों में नए जिलों की मांग है उनमें राजिम भी एक है। यहां भी एक सर्वदलीय मंच है जो इसे लेकर आंदोलित है। पिछले दिनों इसके प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी तो उन्हें साफ बता दिया गया कि अभी राजिम को जिला बनाने पर विचार नहीं हो रहा है। जिला बनाने की मांग करने वालों का कहना है कि अमितेश शुक्ल को रिकॉर्ड 58 हजार मतों से सन् 2018 में इसीलिए जीत मिली थी क्योंकि उन्होंने जिला बनाने की मांग को पूरा करने का भरोसा दिया था। कांग्रेसी इसके जवाब में कह रहे हैं कि एक यही मांग पूरी नहीं हुई, वरना सीएम ने तो राजिम इलाके के विकास के लिए जितनी भी परियोजनाओं की मांग की गई, सबको मंजूरी दी है। वैसे स्व. अजीत जोगी के कार्यकाल में राजिम को जिला बनाने को लेकर लगभग सहमति बन चुकी थी। कुछ तकनीकी कारणों से इसकी घोषणा नहीं हो पाई। कटघोरा, भानुप्रतापपुर सहित पांच-सात जगहों से नए जिलों की मांग उठ रही है। मौजूदा स्थिति यही कि नए जिलों की घोषणा को लेकर अब सरकार जल्दी में दिखाई नहीं देती।
दानी और दयालु चोर
बीते दिनों दुर्ग के पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव ने चोरी के मामले में पकड़ाए कुछ आरोपियों से संवाद किया। उनसे पूछा कि चोरी क्यों की? किसी ने कहा नशे की आदत के चलते, किसी ने घर चलाने, लत लग जाने की बात कही। पर एक ने बताया कि उसने 10 हजार रुपये चुराए, पर सब लुटा दिए। कुछ पैसे गरीबों को बांट दिए, जिन्हें भोजन की जरूरत थी। बाकी पैसों से गर्म कपड़े खरीदे। गली-मोहल्लों में घूम रहे लोग, लावारिस गाय, कुत्ते इस समय ठंड से ठिठुर रहे हैं, जो दिखा उनको पहनाता गया। एसपी भी चौंक गए। कहा- तब तो अल्लाह का तुमको आशीर्वाद मिला होगा? आरोपी ने कहा-उसी की दुआ है तब तो कर पा रहा हूं..।
यकीनन, इसने रॉबिन हुड या सुल्ताना डाकू के बारे में नहीं सुना होगा, वरना चोरी से भी बड़े जुर्म को अंजाम देने की सोच सकता है। बहरहाल, इकबाल के बावजूद कानून के तहत उसे जेल भेज दिया गया है।
महादेव का प्रसाद बंट रहा
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में महादेव ऐप की परतें जैसे-जैसे खुलती जा रही हैं, वैसे-वैसे इसमें ताकतवर लोगों की भागीदारी भी दिख रही है, और यह भी दिख रहा है कि किस तरह पुलिस के छोटे-बड़े कर्मचारी-अफसर महादेव का प्रसाद पाते आ रहे हैं। जिस सिपाही को दुर्ग पुलिस ने महादेव ऐप की सट्टेबाजी से जुड़ा हुआ पाकर सस्पेंड किया था, उसकी कल बहाली कर दी गई है, और यह दिलचस्प तर्क दिया है कि बहाल करने से वह पुलिस की नजर में रहेगा, सस्पेंड रहा तो वो कहीं भी भाग सकता है। जबकि दुनिया जानती है कि किसी के सस्पेंड रहने पर भी उसे सरकार के किसी न किसी दफ्तर में हाजिरी देकर वहां बैठना ही पड़ता है। ऐसा माना जा रहा है कि महादेव ऐप के तहत चारों तरफ इतना पैसा बंट रहा है कि उसके असर से परे कोई नहीं रह गए हैं। दुर्ग-भिलाई में जिस तरह ऐसे लोगों की भरमार है जिन्हें महादेव ऐप चलाने वाले दुर्ग-भिलाई के लोगों ने अपनी पार्टी में दुबई आने-जाने की टिकटें भेजी थीं, और लौटते में सबसे महंगे आईफोन का तोहफा दिया था। दुर्ग की इस ऑनलाईन सट्टेबाजी की कहानी बड़ी फिल्मी लगती है, और वहां से अखबारों के संवाददाता जब रिपोर्ट बनाकर भेजते हैं, तो लगता है कि वह किसी फिल्मी पटकथा लेखक की लिखी हुई है। दुर्ग के ऐसे ही एक पुलिस अफसर को अभी एक दूसरे मामले में ईडी ने नोटिस देकर बुलाया था, लेकिन अब आसार यह है कि महादेव ऐप के चक्कर में अब एक से अधिक केन्द्रीय जांच एजेंसियां इन अफसरों को फिर घेर सकती हैं। फिलहाल जिन छोटे-छोटे प्यादों को पकडक़र पेश किया जा रहा है, उसे महादेव ऐप और पुलिस की मिलीजुली कुश्ती बताया जा रहा है, देखें यह दिखावा कब तक असली जुर्म को छुपाकर रख सकता है।
गुजरात का आदिवासी रूझान
छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस को अगर भानुप्रतापपुर में सर्वआदिवासी समाज के उम्मीदवार को 23 हजार से अधिक वोट मिलने पर भी कोई फिक्र नहीं हो रही है तो उसे एक बार गुजरात की तरफ देख लेना चाहिए। गुजरात की 27 आदिवासी सीटों में से 24 भाजपा ने जीती हैं। वहां आदिवासियों के सामने कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी का विकल्प भी था, लेकिन ऐसा लगता है कि सारे ही आदिवासियों ने भाजपा के साथ जाना तय किया। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं 27 सीटों में से 15 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। अब वहां के बदले हुए नजारे से आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की नींद खुल जाना चाहिए। आदिवासी सीटों पर भाजपा उम्मीदवार किस दमदारी से जीते हैं, उस पर गुजरात कांग्रेस के अलावा देश के उन तमाम राज्यों में भी कांग्रेस को सोचना चाहिए जहां आदिवासी हैं।
कांग्रेस को विरोधियों की क्या जरूरत?
जशपुर में हाल ही में हुए फुटबाल टूर्नामेंट के दौरान शासन से मिले फंड का दुरुपयोग होने का आरोप लगा है। यह आयोजन कुनकुरी के माध्यम एंपावरमेंट ऑफ ट्राइवल एंड रुलर ऑर्गेनाइजेशन की ओर कराया गया, जिसे स्थानीय कांग्रेस विधायक यूडी मिंज का संरक्षण है। फंड के दुरुपयोग का आरोप भाजपा या किसी अन्य विरोधी दल ने नहीं बल्कि युवक कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रूही खान की ओर से लगाया गया है। उन्होंने कलेक्टर को पत्र लिखा है जिसमें मांग की गई है कि जबसे कांग्रेस की सरकार बनी है तब से शासन ने इस संस्था को कितनी फंडिंग की है और उसमें क्या काम किए गए, जानकारी दी जाए। शिकायत मंत्री टीएस सिंहदेव और उमेश पटेल से भी की गई है। बताया जाता है कि विवाद इसलिए खुलेआम सामने आया क्योंकि फुटबाल टूर्नामेंट में खान ने एक लाख रुपये अनुदान देने की सहमति जताई थी। इसके एवज में खेल मैदान में उनके पिता के नाम का एक बैनर लगाया जाना था। पर, जैसा आरोप है विधायक ने मैदान से बैनर उतरवा दिया। रूही खान समापन के दिन ही शिकायत लेकर कलेक्टर के पास पहुंच गए।
इस घटना ने बस्तर में हुए कुछ माह पहले की घटना की याद दिला दी। युवा आयोग के सदस्य अजय सिंह ने बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, विधायक विक्रम मंडावी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सार्वजनिक रूप से लगाए थे। आरोप कितने पुख्ता थे, क्या जांच हुई यह तो बाहर नहीं आया, लेकिन अपनी ही पार्टी के विधायक के खिलाफ मोर्चा खोलने के कारण उनको कांग्रेस से ही बाहर कर दिया गया। जशपुर मामले में शिकायत सीधे विधायक के खिलाफ नहीं बल्कि उनकी संस्था की हुई है। विधायक का नाम लेने से भी बचा गया है। बस्तर की तरह जशपुर में शिकायत करने वाला कांग्रेसी युवा वर्ग से है। जशपुर जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष खान, निर्वाचित अध्यक्ष हैं। देखना है कि कोई जांच होती है या शिकायत करने का ही कोई नुकसान उनको उठाना पड़ेगा। बहरहाल, भाजपा सांसद ने इस मुद्दे को कांग्रेस की कलह बताते हुए कहा है कि विपक्ष की जरूरत ही नहीं पड़ी। कांग्रेस के ही नेता ने आरोप लगाए हैं, जांच होनी तो जरूर चाहिए।
स्टंट के बीच स्टंट रोकने की अपील
शहरों में जादूगर अपना शो शुरू करने के पहले बाइक से शहर में घूमते हैं। कभी आंख में पट्टी बांधकर तो कभी अचरज भरे दूसरे कारनामे करते हुए। जीपीएम जिले में जादूगर आकाश का शो ऐसा ही था। लोगों ने तब दांतों तले ऊंगली दबा ली जब एक बाइक पर जादूगर इस तरह से चला जा रहा था मानो उसके शरीर में सिर्फ धड़ है और सिर गायब। पुलिस, खासकर जो यातायात संभालती है, अक्सर यातायात नियमों का पालन करने और स्टंट नहीं करने की अपील करती है। इसके लिए शिविर भी लगाती है। ऐसे में एक जादूगर को शहर में स्टंट करते हुए गुजरना था। कोई विपरीत संदेश न चला जाए। एसपी यू उदय किरण ने इसकी तरकीब निकाली। जादूगर के आगे-पीछे पुलिस जवान बाइक में तो चल ही रहे थे, साथ ही वे एसपी का संदेश भी पहुंचा रहे थे कि बाइक पर स्टंट न करें। यह कानूनन गलत तो है ही, दुर्घटना भी हो जाती है। जादूगर जो दिखा रहे हैं उसकी नकल तो बिल्कुल नहीं करें। जादूगर ऐसा कर रहे हैं तो इसके पीछे उनका वर्षों का अभ्यास है।
भाजपा के वोटों पर अधिक सेंध
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी ने तीसरे स्थान पर रहकर यह बता दिया कि वह भी मुकाबले में थी। बहुत से लोगों का आकलन था कि इसका लाभ भाजपा को मिलेगा, क्योंकि कांग्रेस के खिलाफ आरक्षण का मुद्दा काम कर रहा है। भानुप्रतापपुर को जिला बनाने की घोषणा भी नहीं की गई है। पर हुआ यह कि सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार से भाजपा को अधिक नुकसान उठाना पड़ा। दरअसल भानुप्रतापपुर का चारामा ऐसा इलाका है जहां भाजपा को हमेशा लीड मिलती रही है। जीत कांग्रेस को मिले तब भी 5-6 हजार वोटों की लीड यहां से भाजपा ले जाती रही है। पर इस बार भाजपा यहां से भी पिछड़ गई। दूसरे राउंड से पांचवे राउंड की गिनती चारामा के वोटों की थी, जिसमें सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर राम कोर्राम दूसरे स्थान पर चल रहे थे। अब लोगों की निगाह इस बात पर टिकी रहेगी कि आम चुनाव को लेकर सर्व आदिवासी समाज क्या फैसला लेगा।
मैरेज वैन्यू में तय हुआ क्रिकेट मैच...
गुजरात, और हिमाचल के चुनाव के नतीजे से पहले जयपुर में दो दिन पहले रायपुर के एक कारोबारी की बेटी की शादी थी। शादी समारोह में राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह साथ-साथ नजर आए। कारोबारी छत्तीसगढ़ क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े हैं, और राजीव शुक्ला व जय शाह से इसी वजह से संबंध हैं।
राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य बने हैं। उनके प्रयासों से ही रायपुर में भारत, और न्यूजीलैंड के बीच अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच तय हो पाया है। नवा रायपुर के शहीद वीर नारायण सिंह स्टेडियम में 21 जनवरी को यह मैच खेला जाएगा। सुनते हंै कि शादी समारोह के बीच ही क्रिकेट मैच के आयोजन की रूप रेखा तैयार हुई। बीसीसीआई के कर्ताधर्ता राजीव शुक्ला, और जय शाह साथ-साथ थे, तो सब कुछ आम सहमति से तय हो गया।
हिमाचल से भी खो...
हिमाचल प्रदेश में जीत से राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला, और सीएम भूपेश बघेल का कद बढ़ा है। क्योंकि राजीव चुनाव प्रभारी थे, और भूपेश सह प्रभारी थे। दोनों ही चुनाव के प्रमुख रणनीतिकार रहे। अब चुनाव नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए हैं, तो दोनों को श्रेय मिलेगा ही। इससे परे भाजपा के चुनाव संचालक की कमान सौदान सिंह संभाल रहे थे।
सौदान सिंह लंबे समय तक छत्तीसगढ़ भाजपा की संगठन की धुरी माने जाते रहे हैं। यही नहीं, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर थी। पूर्व मंत्री राजेश मूणत सहित कई नेता प्रचार के लिए हिमाचल प्रदेश भी गए थे, लेकिन पार्टी को यहां झटका लगा है। ऐसे में यहां के नतीजे छत्तीसगढ़ के नेताओं के लिए भी अहम रहा है।
छत्तीसगढ़ में अब ‘आप’ की भूमिका
वैसे तो गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों पर पूरे देश का ध्यान लगा था, पर छत्तीसगढ़ में लोगों को आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को लेकर जिज्ञासा थी। पार्टी नेता घोषणा कर चुके थे कि गुजरात के बाद उनका लक्ष्य छत्तीसगढ़ में सक्रिय होना है। बीते एक डेढ़ साल से इसकी तैयारी बड़े स्तर पर हो रही है। छत्तीसगढ़ में जन्म लेने वाले संदीप पाठक को पंजाब से राज्यसभा में इसलिए भी भेजा गया कि 2023 में लाभ लिया जा सके। वे गुजरात चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे थे। पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के कई दौरे हो चुके हैं। खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर उप-चुनाव में प्रत्याशियों का खड़ा नहीं करने की रणनीति इसीलिए बनाई गई कि गुजरात के नतीजों का उदाहरण रखकर सीधे आम चुनाव में ताल ठोंकी जाए। पर आप को गुजरात ने निराश कर दिया। इस कमजोर प्रदर्शन ने छत्तीसगढ़ में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाने की उम्मीद रखकर चलने वाले नेताओं को मायूसी हाथ लगी है। पंजाब और फिर दिल्ली नगर-निगम में मिली जीत का जोश गुजरात के नतीजे के आगे कमजोर पड़ गया है। इन परिस्थितियों में आप अपने आपको विकल्प की भूमिका में तैयार कर पाएगी या नहीं, यह सवाल खड़ा हो गया है। लेकिन साथ ही यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि पंजाब के 2017 के विधानसभा चुनाव में आप को कुल 20 सीटें मिली थीं, जो 2022 में बढक़र 117 हो गई थीं, और पार्टी की सरकार बन गई थी।
कडक़ड़ाती ठंड में सडक़ पर खिलाड़ी
छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक खेलों को लेकर युवाओं में जितना जोश दिखाई दे रहा है, प्रशासन की उतनी ही लापरवाही जगह-जगह सामने आ रही है। समय पर चिकित्सा नहीं मिल पाने के कारण तीन खिलाडिय़ों की अब तक मौत हो चुकी है। जशपुर में जंगल में लड़कियों को रोककर आयोजन से जुड़े लोग दारू पीते मिले थे। अब जगदलपुर से भी जो खबर आई है वह भी कम शर्मनाक नहीं। भूख से बेहाल होकर खिलाडिय़ों को कडक़ड़ाती ठंड में रात को सडक़ पर निकलना पड़ा। ये वे खिलाड़ी हैं, जो स्थानीय स्तर पर जीत दर्ज करने के बाद संभागीय मुख्यालय में प्रदर्शन के लिए आए हैं। चक्का जाम होने पर अधिकारियों की नींद खुली और तब आनन-फानन में खाना तैयार किया गया। जो परोसा गया वह भी स्तरहीन था। पानी वाली दाल और कच्चा चावल। ऐसे युवा जिन्हें खेल मैदान मे दम-खम दिखाना है, उनके लिए तो भोजन पर्याप्त और पौष्टिक होना चाहिए। मगर, अफसर शायद यह समझ रहे हैं कि गांव से आए हुए इन युवाओं को जो खिला दो या न भी खिलाओ, क्या फर्क पड़ता है। जनप्रतिनिधियों को भी शायद इन खेल समारोहों में मंच और माइक की चिंता रहती है, खिलाडिय़ों की नहीं।
वंदे भारत के लिए मालगाड़ी भी रुकेगी
बीते कई महीनों से जोन से गुजरने वाली ज्यादातर ट्रेनें देर से चल रही हैं। सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेनों में ज्यादा किराया देकर बैठने वाले यात्री ठगा महसूस करते हैं जब उन्हें गंतव्य तक लोकल ट्रेन की स्पीड में पहुंचाया जाता है। इस देरी के बदले में अतिरिक्त लिया गया किराया लौटाने का प्रावधान भी नहीं है। पर वंदे भारत ट्रेन के लिए खास व्यवस्था की जा रही है। यात्री ट्रेन विलंब से इसलिए चलती हैं क्योंकि मालगाडिय़ों को आगे रवाना करना होता है। वंदे भारत अकेली ऐसी ट्रेन होगी, जिसे किसी मालगाड़ी को आगे करने के लिए किसी भी स्टेशन पर रोका नहीं जाएगा। रेलवे के अधिकारी बता रहे हैं कि ट्रेन को आगे करने के लिए जरूरत पडऩे पर मालगाड़ी को भी रोका जाएगा। अधिकारिक घोषणा नहीं की गई है लेकिन करीब 6 ट्रेनों की समय-सारिणी में भी आंशिक बदलाव इसकी वजह से किया जाएगा। इनमें सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेन भी शामिल हैं। इस लिहाज से वंदे भारत सचमुच स्पेशल ट्रेन होगी।
साइकिल लेकर निकलें, पर रखें कहां?
रायपुर के मेयर रह चुके और अभी भी म्युनिसिपल के सभापति प्रमोद दुबे बरसों से साइकिल को बढ़ावा देने की कोशिश करते आए हैं। लेकिन किसी-किसी इतवार को सडक़ों पर साइकिल का जलसा मनाने के लिए वे बड़े अफसरों के साथ साइकिल पर निकल तो जाते थे, शहर को साइकिलों के लिए दोस्ताना बनाने का कोई काम उन्होंने नहीं किया। आज से 40 बरस पहले शहर के सबसे बड़े बगीचे मोतीबाग में साइकिलों को चेन से बांधकर रखने के लिए लोहे की सलाखों के स्टैंड लगे हुए थे, बाद में शहरों के कॉलेजों में भी तरह-तरह के स्टैंड बनते थे, लेकिन अब किसी सार्वजनिक जगह पर साइकिल को बढ़ावा देने के लिए ऐसा कोई इंतजाम नहीं है। चूंकि पार्किंग और स्टैंड का सारा इंतजाम कारों और स्कूटर-मोटरसाइकिलों के लिए ही रहता है, इसलिए साइकिलों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। रेलवे स्टेशन पर भी देखें तो प्लेटफॉर्म के सबसे करीब कारें खड़ी रहती हैं, उसके बाद स्कूटरों की बारी आती है, और साइकिलों की बारी आधा किलोमीटर दूर आती है, जबकि होना ठीक इसका उल्टा होना चाहिए।
प्रमोद दुबे के निजी प्रचार और प्रयास से परे साइकिलों के लिए कोई दोस्ताना इंतजाम इस शहर में नहीं हो पाया, और ऐसे में साइकिल लेकर निकलने का कोई उत्साह लोगों में नहीं रहता।
स्मार्टसिटी का डीएमएफ
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्मार्टसिटी के नाम पर म्युनिसिपल के हाथ में ठीक उसी तरह अंधाधुंध फंड आ जाता है जिस तरह खनिज संपन्न जिलों में डीएमएफ का पैसा कलेक्टरों के पॉकेटमनी की तरह रहता है, उसी तरह स्मार्टसिटी का पैसा म्युनिसिपल कमिश्नरों की मनमानी पर खर्च होता है। यह एक अलग बात है कि प्रदेश सरकार या निर्वाचित मेयर का दबदबा अधिक रहने पर स्मार्टसिटी का खर्च उनके कहे मुताबिक होता है।
स्मार्ट सिटी में अंधाधुंध खर्चों का आलम यह है कि पुराने रायपुर शहर में दो साल में वृक्षारोपण के नाम पर करीब 7 करोड़ रूपए फूंक दिए गए। जबकि वृक्षारोपण कहां हुआ, इसका कोई अता-पता नहीं है। यही नहीं, बूढ़ातालाब के गेट बनाने में ही 60 लाख रूपए खर्च कर दिए गए।
इसी तरह कुछ दिन पहले स्मार्ट सिटी के टेंडरों में अनियमितता, और भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू में भी की गई है। इसके अलावा सांसदों की स्टीयरिंग कमेटी तक शिकायतों का पुलिंदा भेजा गया है। और तो और स्मार्ट सिटी के मद से महाराजबंद तालाब के किनारे ऐसे सडक़ को स्मार्ट बनाया जा रहा है जहां ट्रैफिक सबसे कम होता है। सुनते हैं कि सडक़ का काम चालू होने से पहले ताकतवर लोगों ने आसपास की जमीन कौडिय़ों के भाव में खरीद ली थी। अब उनकी जमीन के दाम आसमान को छू रहे हैं। इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले संविदा अफसर भी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं रहे हैं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अगले कुछ महीनों में बंद होने की भी चर्चा है। इसके बाद यहां की गड़बडिय़ों का खुलासा होने की उम्मीद जताई जा रही है।
प्रदेश अध्यक्ष का बदलाव टला?
फरवरी में होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के चलते क्या प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को बदला जाएगा? पीएल पुनिया इस महत्व के इस बड़े आयोजन का हिस्सा बनने से रह गए। हालांकि 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार को दोबारा लाने में उनकी भी विशेष भूमिका रही।
इधर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने की चर्चा भी चार-पांच महीने से चल रही थी। इस दौरान झारखंड, पंजाब, हरियाणा और बिहार में अध्यक्ष बदले भी गए हैं। पर संभवत: छत्तीसगढ़ पर फैसला एक के बाद एक दो उप-चुनाव खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर, में होने के कारण टाल दिया गया। इसी बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की सरगर्मी भी चल रही थी। अब जब राष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारी शुरू करनी है, हो सकता है फैसला फिर टल जाए। यदि ऐसा होगा तो मरकाम छत्तीसगढ़ के ऐसे पहले अध्यक्ष के रूप में अपने-आपको याद कर सकेंगे जिनकी अगुवाई में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।
दहेज में पौधे
कोरबा में हुई निशा महतो की शादी की इन दिनों बड़ी चर्चा है। दरअसल बेटी की विदाई महंगे उपहारों से नहीं, 101 पौधों से की गई। जो मेहमान पहुंचे उन्हें भी औषधीय पौधे उपहार में दिए गए। यह प्रचार के लिए किया गया काम नहीं था। निशा के भाई प्रशांत चैरिमति फाउंडेशन से जुड़े हैं। अब तक तीन हजार पौधे अलग-अलग जगहों पर लगा चुके हैं। हसदेव नदी के किनारे एक लाख पौधे लगाने का उनका लक्ष्य है। एक और बहन की शादी में भी वे पौधे ही उपहार के रूप मे दे चुके हैं। खुद अपनी शादी के निमंत्रण कार्ड में उन्होंने लिखा था कि वे गिफ्ट के रूप में केवल पुरानी किताबें, जो आप पढ़ चुके हों, उनको स्वीकार करेंगे। ये किताबें उन्होंने जरूरतमदों में बांट दी।
निजी क्लीनिक किस-किस का?
अंबिकापुर के मेडिकल कॉलेज में पांच घंटे के भीतर पांच नवजात शिशुओं की मौत के मामले में जांच के बिंदु तय किए गए हैं। इसमें बिजली बाधा के समय कोई डॉक्टर उपस्थित था, वेंटिलेटर को पॉवर बैकअप मिला नहीं मिला, जैसे कुछ बिंदु शामिल हैं। पर, यह जांच भी जरूरी है किरोजाना सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर कितनी देर अपनी ड्यूटी करते हैं। बहुत से डॉक्टर खुलेआम निजी क्लीनिक चलाते हैं और सरकारी ड्यूटी को बेगार समझते हैं।
कई डॉक्टर निजी नर्सिंग होम में नियमित विजिट करते हैं, सर्जरी करते हैं। अंबिकापुर के मामले में यह जानकारी हैरान करती है कि विभिन्न विभागों के एचओडी और दूसरे चिकित्सक निजी क्लीनिक चला रहे हैं। खुद एसएनसीयू वार्ड के एचओडी पर यही आरोप लग रहा है। जाहिर है कि सरकारी सेवाओं में कमी आएगी ही। एक शिशु के पिता ने कलेक्टर को जन-चौपाल में यह भी कहा कि हमसे नर्सों ने गरम कपड़े लेकर आने के लिए कहा था। मौत के बाद पता चला कि इसका इस्तेमाल तब करना था जब वार्मर बंद हो जाए। माताएं बच्चों को गर्म कपड़ों के साथ अपनी गोद में ले लेती तो शायद उनकी जान बच जाती, पर जब शिशुओं की सांस उखडऩे लगी तब यह बताने वाला अस्पताल में कोई नहीं था। सुबह 9 बजे सीधे मौत की खबर दी गई। बहरहाल, 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी गई है। जितनी तेजी से जांच हो रही है, उतनी तेजी से जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होगी या नहीं, देखना होगा। यह भी देखना होगा कि किसी के ऊपर जिम्मेदारी डाली जाएगी भी या नहीं? ([email protected])
भाई नहीं तो बहन
बाबा भले ही सीएम बनने से रह गए, लेकिन उनकी सगी बहन आशा कुमारी सिंह हिमाचल प्रदेश की सीएम पद की दौड़ में हैं। एक-दो सर्वे रिपोर्ट में तो हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनने की प्रबल संभावना बताई जा रही है। ऐसे में आशा कुमारी को सीएम पद की मजबूत दावेदारों में गिना जा रहा है। वो डलहौजी विधानसभा सीट से लगातार 6 बार विधायक रही हैं, और इस बार फिर चुनाव मैदान में हैं। उनके अच्छे मार्जिंन से जीतने की संभावना जताई जा रही है।
आशा कुमारी के पक्ष में एक बात यह है कि वो एआईसीसी की सचिव रह चुकी हैं साथ ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी भी रही हैं। आशा कुमारी प्रभारी थीं तब प्रदेश में अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार को हराकर कांग्रेस ने पंजाब में अपनी सरकार बनाई थी, और जब हटी तो सत्ता-संगठन में टकराव शुरू हो गया। बाद में सीएम कैप्टन अमरिन्दर सिंह को पार्टी छोडऩा पड़ा। कुल मिलाकर आशा कुमारी की छवि सबको साथ लेकर चलने वाली है।
वैसे तो आशा कुमारी के अलावा कई दिग्गज नेता सीएम पद की दौड़ में हैं। ऐसे में भाई की जगह हाईकमान बहन को कमान सौंप दें, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। फिलहाल तो 8 तारीख को चुनाव नतीजे का बेसब्री से इंतजार हो रहा है।
कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
ईडी ने धमतरी के एक सीए को पूछताछ के लिए बुलाया, तो इसको लेकर काफी हलचल रही। सीए को एक आईएएस पति-पत्नी का काफी करीबी माना जाता है। सुनते हैं कि हफ्ते में कम से कम एक बार सीए और आईएएस दंपत्ति लंच या डिनर साथ लेते थे। अफसरों के पदस्थापना के दौरान अन्य पेशे से जुड़े लोगों के साथ कई बार व्यक्तिगत रिश्ते बन जाते हैं। पहली नजर में यह गलत भी नहीं है, लेकिन चर्चा है कि सीए के पास आईएएस दंपत्ति के आय-व्यय की फाइल भी है।
बात यहीं खत्म नहीं होती है। सीए महोदय सरकार के एक निगम के बड़े पदाधिकारी के वित्तीय सलाहकार भी हैं। चर्चा है कि ईडी ने सीए से आईएएस दंपत्ति, और निगम पदाधिकारी के बारे में कुरेद-कुरेदकर पूछा है। इसमें ईडी के काम के लायक कुछ मिला है या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन इसको लेकर कई तरह के किस्से सुनने को मिल रहे हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
बिजूका की फसल
छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई कोयले और दूसरे किस्म के कारोबार से जुड़े हुए जुर्म पर तो चल ही रही है, जानकार लोगों का यह भी मानना है कि अगले चुनाव में राज्य के जो लोग आज की सत्तारूढ़ पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, उन्हें भी घेरा जा सकता है। और घेरने की वजह कोई नाजायज बहाना हो, यह भी जरूरी नहीं है, कुछ अफसरों को राजनीति करने की वजह से घेरा जा रहा है, और कुछ नेताओं को सरकारी कामकाज में दखल देकर कमाई करने के एवज में। अभी ताजा चर्चा यह है कि कुछ अफसर अगले चुनाव की रणनीति बनाने में लगे हुए थे, उनकी जानकारी राज्य के भाजपा नेताओं को थी, और अब आईटी-ईडी की जांच के दायरे में उन्हें भी लाने की कोशिश हो रही है। राज्य में चल रही ईडी की कार्रवाई बड़े रहस्य से घिरी हुई है, चूंकि कभी-कभार जारी होने वाला प्रेसनोट, और अदालत में पेश किया गया कागज ही ईडी से निकली औपचारिक जानकारी रहती है, इसलिए उसका नाम लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलती रहती हैं।
आज कुछ हजार रूपये से कोई समाचार पोर्टल बनाया जा सकता है, मनचाही बातें लिखी जा सकती है, अपनी हसरतों को हकीकत की तरह पेश किया जा सकता है, इसलिए वह काम धड़ल्ले से चल रहा है। और फिर लोग पढ़े-लिखे होने के बावजूद इस हद तक नासमझ हैं कि उन्हें सबसे विश्वसनीय समाचार माध्यम, और सबसे गैरजिम्मेदार न्यूज पोर्टल के बीच भी कोई फर्क नहीं दिखता है, और लोग बातचीत में एक ही अंदाज में कहते हैं कि न्यूज में ऐसा आया है। यह सिलसिला अफवाहों को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी ही उपजाऊ जमीन है, और छत्तीसगढ़ में इन दिनों खेतों में मानो किसान के गढ़े हुए पुतले, बिजूका की फसल लहलहा रही है।
हिफाजत का तरीका
वॉट्सऐप पर लोगों को मिलने वाले संदेश, फोटो, वीडियो कई बार गायब हो जाते हैं क्योंकि उन्हें भेजने वाले लोगों ने उनकी जिंदगी तय कर रखी है। कुछ लोग तो ऐसी तस्वीर भेजते हैं जिसे खोलकर बस एक बार देखा जा सकता है, और स्क्रीन से हटते ही वह हमेशा के लिए खत्म हो जाती है। कुछ चतुर लोग ऐसी तस्वीर का स्क्रीनशॉट लेकर उसे कॉपी करके रख लेते हैं, लेकिन ऐसी चर्चा है कि वॉट्सऐप स्क्रीनशॉट लेने पर रोक लगाने जा रहा है। फिर भी आज तो लोगों ने जितने समय बाद संदेश मिट जाने की सेटिंग कर रखी है, उतने वक्त बाद आए हुए संदेश गायब हो जाते हैं। इससे बचने के लिए लोग अपने ही दूसरे नंबर पर मैसेज फॉरवर्ड करके उसे बचाकर रखना सीख रहे हैं। ऐसे बढ़ाए हुए संदेशों की कोई अदालती कीमत नहीं होती, वे सुबूत नहीं हो सकते, लेकिन आम जिंदगी में ऐसे सुबूतों की जरूरत भी नहीं रहती है। इन दिनों कई लोगों के पास एक से अधिक फोन या एक से अधिक वॉट्सऐप अकाउंट रहते हैं, और ऐसे में वे खुद के इंटरनल ग्रुप बनाकर उसमें संदेशों को भेजकर हिफाजत से रख सकते हैं।
48 हजार की किताब में अपने बीच का लेखक
एल्सेवियर, शोध पर आधारित किताबें छापने वाली 1880 से स्थापित दुनिया की एक मशहूर कंपनी है, जिसका मुख्यालय तो एम्स्टर्डम में हैं पर दुनियाभर में इसका बाजार फैला है। किसी शोधकर्ता को यहां की किताबों में जगह मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। इस प्रकाशन की एक किताब 26 नवंबर को आई है- फंक्शनल मटेरियल फ्रॉम कार्बन इन ऑर्गेनिक एंड ऑर्गेनिक सोर्सेस। कार्बन, कार्बनिक और अकार्बनिक स्रोतों से कार्यात्मक सामग्री पर किए गए शोध इसमें शामिल है। इस किताब का सबसे सस्ता संस्करण 217 डॉलर में उपलब्ध है, यानि करीब 18 हजार भारतीय रुपये में। यह राशि डिस्काउंट पर है। सबसे महंगे संस्करण की कीमत 580 डॉलर यानी लगभग 48 हजार रुपये है। वैश्विक स्तर पर ख्यातिलब्ध प्रकाशन संस्थान की किसी किताब की कीमत इतना होना खास बात नहीं है। खास यह है कि इसके चार लेखकों में एक छत्तीसगढ़ से हैं। जांजगीर-चांपा जिले के पामगढ़ के गवर्नमेंट कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. आशीष तिवारी। इनके अलावा तीन और लेखक हैं- संजय ढोबले नागपुर विश्वविद्यालय से, अमोल नंदे बल्लारपुर के गुरुनानक कॉलेज से और अब्दुल करीम कुआलालंपुर के मलाया विश्वविद्यालय से। करीम रिटायर्ड प्रोफेसर और मलेशिया से हैं। बाकी तीन भारत के प्राध्यापक। डॉ. तिवारी ने केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर से पी.एचडी की है। अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में उनके कई शोध प्रकाशित हो चुके हैं और कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। डॉ. तिवारी की इस अकादमिक उपलब्धि को सराहना तो मिलनी चाहिए।
फेरबदल से खुशी और मायूसी
सन् 2018 के चुनाव में कई ऐसे कांग्रेस उम्मीदवार थे, जिनके नाम को प्रभारी महासचिव रहते हुए पीएल पुनिया ने फाइनल किया। प्रदेश के शीर्ष नेताओं की सिफारिश दूसरे नामों के लिए थी, इसके बावजूद। टिकट वितरण के बाद इसके चलते बगावत भी हुई, खुलेआम विरोध प्रदर्शन हुआ और केंद्रीय नेताओं के खिलाफ नारेबाजी भी। पुनिया को खुद गुस्से का शिकार होना पड़ा। पर चुनाव परिणाम आने के बाद सब शांत हो गया। पुनिया के सीधे हस्तक्षेप से जो टिकटें दी गई, उनमें से भी कई लोग जीतकर आ गए। चार साल तो आराम से कट गए लेकिन अचानक प्रभारी को बदल देने से उनका समीकरण गड़बड़ा गया। सन् 2023 में टिकट बचाये रखने को लेकर की चिंता घर कर रही है। दूसरी तरफ वे नेता मन ही मन खुश हैं जिनकी दावेदारी पर पुनिया की वजह से मुहर नहीं लग पाई। उन्हें यह लग रहा है कि कई मौजूदा विधायकों की टिकट कट जाएगी और उनको मौका मिल जाएगा। फिलहाल वे नई महासचिव कुमारी शैलजा के छत्तीसगढ़ दौरे का इंतजार कर रहे हैं।
शायद अब बच गए नेताम..।
भानुप्रतापपुर के भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम को झारखंड के टेल्को थाने में दर्ज रेप के मामले गिरफ्तार करने के लिए 800 किलोमीटर की दूरी तय करके वहां से पुलिस पहुंच तो गई लेकिन यहां पर उनके खुलेआम प्रचार करने के बाद भी गिरफ्तार करने से बचती रही। शायद उसे लगा कि छत्तीसगढ़ सरकार ही नहीं, चुनाव आयोग और अदालत को भी उन्हें जवाब देना न पड़ जाए। एक तरफ नेताम प्रचार करते रहे इधर झारखंड पुलिस खाली बैठी रही, मतदान खत्म होने की प्रतीक्षा करते हुए। मतदान के बाद जब वह सक्रिय हुई तो कुछ ही देर में उनके पास रांची हाईकोर्ट से मिली राहत का आदेश मिल गया। यानि भाजपा नेता यहां चुनाव प्रचार में अपने प्रत्याशी पर हो रहे विरोधी हमले का बचाव तो कर ही रहे थे, रांची में उनकी अलग टीम अदालत से राहत पाने के लिए लगी हुई थी। मतदान और चुनाव परिणाम के बाद अब नेताम कानूनी प्रक्रिया का तो सामना करेंगे पर यह अब राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया। लोगों में भी दिलचस्पी घट गई कि झारखंड पुलिस उनको पूछताछ के लिए भी बुलाएगी या नहीं।
सीखने का खास दौर
छत्तीसगढ़ में आज जिस तरह ईडी की जांच और कार्रवाई चल रही है, उस बीच अफवाहों का बाजार गर्म है। मीडिया के बीच रात-दिन कुछ गैरजिम्मेदार लोग आदतन, और कुछ जिम्मेदार लोग लापरवाही से ऐसी बातें लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, जिनकी असलियत कुछ घंटों में ही उजागर हो जाती है। आज मीडिया में जिस तरह सबसे पहले पेश करने का गलाकाट मुकाबला चल रहा है, उसने विश्वसनीयता को बहुत दूर तक नुकसान पहुंचाया है। अब यह वक्त लोगों को पत्रकारिता सिखाने का तो नहीं है, लेकिन यह याद दिलाने का जरूर है कि हर दिन उन्हें कुछ पल यह भी सोचना चाहिए कि उन्हें पिछले दिन मिली जानकारियों में से कौन-कौन सी गलत साबित हो चुकी हैं। लोग आमतौर पर लिख चुकी बातों के गलत साबित होने पर भी उसे अनदेखा करके आगे बढऩे में लग जाते हैं। ऐसा करने वाले दुबारा गलतियां, या गलत काम करने का खतरा रखते हैं। इसलिए अफवाह, चर्चा, सूचना, खबर, तथ्य, और सुबूत जैसे अलग-अलग दर्जों के बारे में लोगों को सोचना चाहिए कि उन्हें मिली जानकारी इनमें से किस दर्जे में फिट बैठती है। फिलहाल अफवाहों के अंधड़ में किसी को नसीहत देना ठीक नहीं है, लेकिन जिन लोगों को इस पेशे में रहते हुए साख पाना है, उनके लिए यह सीखने का एक बड़ा खास दौर है। इस दौर में बहुत से रिपोर्टर कम से कम यह तो सीख ही सकते हैं कि केन्द्र और राज्य की सीमाएं क्या हैं, उनके अधिकार क्या हैं, कौन सी एजेंसी क्या कर सकती है, और क्या नहीं। ये बुनियादी बातें सीखना एक वक्त अच्छे अखबारों में ट्रेनिंग का एक हिस्सा होता था। इन दिनों मीडिया में अखबार एक छोटा हिस्सा हो गए हैं, और कई किस्म के मीडिया अपने लोगों की ट्रेनिंग कैसी करते हैं, यह पता नहीं।
अगली गिरफ्तारी कब और किसकी?
प्रदेश की एक सबसे असरदार अफसर, सौम्या चौरसिया की गिरफ्तारी के बाद अब अगली बारी किसकी है, यह पहेली लोगों के बीच घूम रही है। जिन लोगों को जिनसे हिसाब चुकता करना है, उसके नाम की संभावना बताते हुए बात को आगे बढ़ाना जारी है। कुछ लोग एक-दो आईपीएस का नाम ले रहे हैं, कुछ लोग एक-दो आईएएस का नाम ले रहे हैं, कुछ लोग राज्य के अफसरों की बारी भी गिना रहे हैं। ऐसे अफसर जो राज्य में महत्वहीन कुर्सियों पर हैं, उन्हें रातोंरात अपनी कुर्सी आरामदेह लगने लगी है क्योंकि उसके साथ कोई खतरा जुड़ा हुआ नहीं है। इस पूरी कार्रवाई से लगातार जुड़े रहने वाले एक अखबारनवीस का कहना है कि गिरफ्तारियां बहुत जल्दी-जल्दी नहीं होंगी क्योंकि हंडी को महीनों तक गरम रखना है, चुनाव अभी दूर हैं।
रेलवे का खजाना भर रहा स्टेशन वीरान
एसईसीएल का गेवरा खदान भारत ही नहीं एशिया का सबसे बड़ा कोयला खदान है। छत्तीसगढ़ सहित देश के 6 राज्यों के लिए यहां से कोयला भेजा जाता है। कोल इंडिया को उत्पादन का रिकॉर्ड बताना हो या फिर रेलवे बोर्ड को सर्वाधिक लदान का, इसी खदान का उदाहरण दिया जाता है। नवंबर की 8 तारीख को रिकॉर्ड 1.71 लाख टन कोयले का लदान हुआ। इसे अपनी उपलब्धि के रुप में रेलवे ने दर्ज किया। अफसरों ने केक काटकर जश्न भी मनाया।
रेलवे जोन बिलासपुर की आमदनी का आंकड़ा देश के दूसरे किसी भी जोन से अधिक है तो इसमें गेवरा का योगदान सबसे बड़ा है। अब, सुधार और विकास कार्यों के नाम पर बीच-बीच में परिचालन जरूर रोक दिया जाता है पर जोन की अधिकांश एक्सप्रेस ट्रेनों को शुरू कर दिया गया है। पर, अनेक छोटे स्टेशनों से ट्रेन नहीं चल रही है, या फिर उनमें स्टापेज नहीं दिया गया है। रेलवे को भरपूर राजस्व देने वाले गेवरा के साथ भी यही हो रहा है। सन् 1963 में प्रारंभ गेवरा रोड स्टेशन से किसी समय 12 ट्रेनों का परिचालन होता था। पर बीते 8 महीनों से एक भी ट्रेन नहीं चलाई जा रही है। गेवरा रोड स्टेशन सूनसान पड़ा है। यात्री कह रहे हैं कि कम से कम गेवरा के योगदान को देखते हुए तो रेलवे को यहां की सुविधा नहीं छीननी चाहिए। रेलवे के फैसले से स्टेशन पर आश्रित व्यवसायी, श्रमिक महीनों से खाली बैठे हैं। सच यही है कि गेवरा से होने वाले मुनाफे के मुकाबले यात्री ट्रेन को चलाने का खर्च बेहद मामूली है।
हो ही गई ठगी केबीसी के नाम पर
पापुलर टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति में होस्ट अमिताभ बच्चन कार्यक्रम के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के लिए विज्ञापन भी करते हैं। इसमें वे लोगों को आगाह करते हैं कि ऑनलाइन फ्रॉड से बचें। कभी कोई पैसा भेजने के नाम पर ओटीपी मांगे तो न दें, इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। पर लोगों तक उनकी बात नहीं पहुंच पा रही है। अंबिकापुर में केबीसी के ही नाम पर ठगी हो गई है। जब से यह शो शुरू हुआ है, लोगों के व्हाट्सएप नंबर पर एक ऑडियो मेसैज आ रहा है, जिसके साथ नरेंद्र मोदी, मुकेश अंबानी और अमिताभ बच्चन की तस्वीर भी होती है। इसमें 25 लाख या इसी तरह की बड़ी रकम लॉटरी में निकलने का झांसा दिया जाता है। दरिमा, अंबिकापुर का एक रोजगार सहायक इस जाल में फंस गया और उसने 4 लाख रुपये गंवा दिए। अफसोस की बात यह है कि उसके पिता को गंभीर बीमारी है। इस रकम की व्यवस्था उनके इलाज के लिए उसने की थी। मौजूदा दौर में छप्पर फाडक़र रुपयों की बारिश कर देगा, इसकी उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। पर लोग हैं कि लालच में अपनी गाढ़ी कमाई डुबा रहे हैं।
विज्ञापन पर विवाद..
भानुप्रतापपुर उप-चुनाव के लिए मतदान के बाद अब नतीजों का इंतजार रहेगा। आखिरी दिन आरोप प्रत्यारोपों की झड़ी लग गई। भाजपा नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर कांग्रेस पर शराब की नदियां बहाने का आरोप लगाया। कलेक्टर, एसपी और कई दूसरे अधिकारियों पर कांग्रेस के लिए प्रचार करने का भी आरोप लगा। एक ऐतराज ‘बस्तर के समस्त आदिवासी जनप्रतिनिधि’ की ओर से प्रकाशित विज्ञापन पर भी है। विज्ञापन की जिस पंक्ति पर आपत्ति है वह है- कुछ आदिवासी नेताओं ने चंद रुपयों के लिए समाज को दांव पर लगा दिया है। आदिवासी समाज को समझना है कि झूठी कसमें खिलाकर आपके वोट से उनको फायदा पहुंचाने की कोशिश हो रही है जिन्होंने विकास के नाम पर आदिवासियों का शोषण किया और उनके हिस्से में हिंसा के सिवाय कुछ नहीं आया। इन पंक्तियों को समझा जाए तो आक्षेप सर्व आदिवासी समाज और भाजपा दोनों पर है।
आदिवासी समाज के भाजपा नेताओं ने निर्वाचन आयोग से इस पर संज्ञान लेने की मांग की है। कहा है कि आदिवासी समाज को कांग्रेस ने बिकाऊ करार देकर उनके स्वाभिमान पर खंजर घोंप दिया।
आयोग की कार्रवाई यदि हुई तो जब तक होगी तब तक कम से कम मतदान की प्रक्रिया तो पूरी हो चुकी रहेगी। भाजपा की ओर से प्रतिक्रिया आ चुकी है, सर्व आदिवासी समाज की ओर से अभी नहीं दिखी है। मतदाताओं की प्रतिक्रिया तो दो दिन बाद आने वाले नतीजों में दिख ही जाएगी। ([email protected])
विलुप्त हो रहा राजकीय पशु
एक ओर प्रदेश में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो दूसरी ओर राजकीय पशु वन भैंसा लुप्त होते जा रहे हैं। भैरमगढ़, पामेड़, कुटरू बस्तर के ऐसे इलाके रहे हैं जहां राज्य बनने के समय वन भैंसों का झुंड दिखाई देता था। हाल ही में यहां का भ्रमण करके आए एक सैलानी ने बताया कि उन्हें वन भैंसों का समूह कहीं देखने को नहीं मिला। जो वन भैंसे अनायास ही विचरण करते हुए दिखाई दे जाते थे, उनकी मौजूदगी का पता लगाने के लिए अब ट्रैप कैमरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस राजकीय पशु के संरक्षण के लिए सन् 2006 में 90 लाख रुपये की योजना बनाई गई थी। अब तक 20 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। रुपये तो फूंक दिए गए पर उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। खुद वन विभाग के अधिकारी मान रहे हैं कि इनकी संख्या 12 से 15 के बीच रह गई है। यह वक्त सचेत होने जाने का है।
सब्जी उत्पादकों की चिंता
बाजार में इन दिनों सब्जियां खूब सस्ती मिल रही हैं। दो माह पहले तक जो गोभी 80 रुपये किलो बिक रही थी आज बाजार में 10-12 रुपये में मिल रही है। ऐसा ही हाल दूसरी सब्जियों का भी है। ज्यादातर लोग खुश होते हैं कि चलिये राशन की दूसरी चीजें महंगी है तो कम से कम एक चीज तो है जिससे राहत मिल रही है। पर किसानों की हालत दूसरी है। थोक बाजार में उनको दो तीन रुपये किलो में ही बेचना पड़ रहा है। ठंड के दिनों में होने वाला अधिक उत्पादन उन्हें अधिक लाभ दे रहा हो ऐसा हो नहीं रहा है। इस बीच खाद, डीजल के दाम भी बढ़े हैं। वे अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। राजिम से खबर है कि वहां के किसान डेढ़ दो रुपये में ही आढ़तियों को बैंगन बेच रहे हैं। बाजार में यह 10 रुपये किलो बिके तब भी मुनाफा पांच गुना हो रहा है। ग्राहक भी सस्ते में पाकर खुश है लेकिन जो किसान सब्जियां पैदा कर रहे हैं, उनके हाथ में कुछ नहीं आ रहा है। ठंड के दिनों में हर बार ऐसी स्थिति बनती है पर कोई ऐसा संगठन नहीं है जो किसानों की इस फसल की न्यूनतम दाम तय करे। केंद्र और राज्य सरकारों ने कई बार फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाने, कोल्ड स्टोरेज बनाने तथा ऑनलाइन सर्च कर मार्केट तलाशने की घोषणाएं की हैं। खेती की तकनीक में सुधार के बाद उत्पादन तो बढ़ा लेकिन बाजार वही पुराना है।
फिर राहुल तक हसदेव
कांग्रेस नेता राहुल गांधी हसदेव अरण्य में कोयला उत्खनन के खिलाफ रहे हैं। यदि नई खदानों पर फिलहाल जो रोक लगी हुई है, उसके पीछे उनकी असहमति को भी माना जाता है। राज्य सरकार ने पर्यावरण के नुकसान और जन विरोध का हवाला देते हुए केंद्र सरकार को नई खदानों की मंजूरी को निरस्त करने के लिए पत्र लिखा है। पर केंद्र ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसा नहीं किया जाएगा। हसदेव के आंदोलनकारी कह रहे हैं कि जंगल को काटने की अनुमति देना राज्य सरकार के हाथ में है। इस समय भारत जोड़ो यात्रा चल रही है। हसदेव को बचाने के लिए संघर्ष कर रही टीम के एक सदस्य आलोक शुक्ला ने इस दौरान उनसे मुलाकात की और हसदेव के मुद्दे को फिर एक बार उठाया।