राजपथ - जनपथ
ऑनलाइन में वेटिंग, ट्रेन में कन्फर्म
रेलवे की ज्यादातर सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी है। अब मोबाइल ऐप पर लोग देखते हैं कि स्टेशन पर उनकी ट्रेन कब पहुंचने वाली है, फिर घर से निकलते हैं। पर यह कई बार धोखा हो जाता है। ऑनलाइन चेक करने पर दिखता है कि ट्रेन 10 मिनट बाद पहुंचने वाली है, लेकिन स्टेशन पहुंचने के एक घंटे बाद भी पहुंच सकती है।
यहां तक तो ठीक है, पर चार्ट प्रिपेयर्ड होने के बाद भी सही जानकारी नहीं मिले तो? कोरबा से 11 छात्र-छात्राओं का एक दल डोंगरगढ़ घूमने गया। वापसी टिकट ऑनलाइन बुक कराई। रिजर्वेशन चार्ट तैयार हो जाने के बाद भी उनका नाम प्रतीक्षा सूची में ही दिख रहा था। फिर भी लौटना तो था ही। यह सोचकर वे स्टेशन पहुंच गए कि चलो जनरल में बैठ लेंगे। कुछ फाइन कटेगा तो देखा जाएगा। फाइन इसलिए कि वेटिंग की ऑनलाइन टिकट में यदि बर्थ नहीं मिली तो आपको बिना टिकट यात्री माना जाता है। वे गोंडवाना एक्सप्रेस के आने पर जनरल डिब्बे की ओर बढ़े, फिर ख्याल आया कि चलो एक बार टीटीई से कोई जुगाड़ देखते हैं। स्लीपर में जगह मिल जाए तो थोड़ा आराम रहेगा। टीटीई ईमानदार निकला-उसने बताया, आपकी टिकट तो कंफर्म हो चुकी है। ये-ये आपका बर्थ नंबर है, बैठ जाइये। छात्र-छात्रा खुशी से उछले फिर अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। बैठकर फिर उन्होंने अपनी टिकट का स्टेटस चेक किया। आईआरसीटीसी का ऐप अब भी वेटिंग ही बता रहा था। कोरबा में उतरते तक उनके टिकट का स्टेटस यही रहा। गनीमत थी कि ये बर्थ खुद टीटीई ने एलॉट किए थे। पर ऐसे अनेक, खासकर परिवार के साथ जाने वाले यात्री होंगे जो ऑनलाइन इंफर्मेशन को सही मानकर अपनी यात्रा रद्द कर देते होंगे।
फैसला क्या हसदेव के लिए उम्मीद है?
सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा में यूनिवर्सिटी के लिए आवंटित 6000 एकड़ जमीन को रद्द कर दिया है। पहले हाईकोर्ट ने आवंटन रद्द किया था, उसके बाद वेदांता सुप्रीम कोर्ट गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वेदांता ने फ्राड प्रक्रिया अपनाई थी। जिस जमीन के पार करते ही अभयारण्य शुरू हो जाता हो और दो-दो नदियां गुजरती हों, उसे किसी उपक्रम को कैसे दिया जा सकता है। अब यह भूमि असली आदिवासी ग्रामीणों को वापस की जाएगी। फैसले के विस्तृत अध्ययन से तथ्य और स्पष्ट होंगे, लेकिन यह साफ है कि नदियों और अभयारण्य के साथ छेड़छाड़ को तथा आवंटन प्रक्रिया में धोखाधड़ी को सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना है। हसदेव में कोयला खदानों के विरोध के भी इसी तरह के बिंदु हैं। आंदोलन कर रहे आदिवासियों को अपनी बेदखली के अलावा उन्हें और पर्यावरण पर काम करने वालों की चिंता है कि यहां कोयला खदानों का विस्तार होने से प्रकृति, आजीविका और वन्यजीवों को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई किसी तरह नहीं की जा सकेगी। हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक के आवंटन को लेकर अलग-अलग याचिकाएं शीर्ष अदालतों और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दायर हैं। अभी इन पर सुनवाई पूरी नहीं हुई हैं। वेदांता पर आए अदालती आदेश में हसदेव के लिए लड़ रहे लोगों को भरोसे की एक उम्मीद दिखाई दे रही है।
कलेक्टरों के फेरबदल पर नजर
छत्तीसगढ़ में बड़े प्रशासनिक फेरबदल की खूब चर्चा है। कहा जा रहा है कि आजकल में आईएएस अफसरों के ट्रांसफर की बड़ी सूची निकलने वाली है। कई जिलों के कलेक्टर भी बदले जाएंगे। राज्य में इस साल विधानसभा चुनाव हैं और 6-7 माह का समय बचा है। इसके बाद कलेक्टरों की बदली की संभावना कम ही बचेगी। ऐसे में चुनाव कराने के हिसाब से तबादले होंगे। प्रमोटी आईएएस अफसरों को ज्यादा मौका मिलने की संभावना जताई जा रही है। वैसे भी राज्य प्रमोटी अधिकारियों को कलेक्टरी करने का खूब मौका मिल रहा है। चर्चा है कि कुछ कलेक्टरों की अदला-बदली की जाएगी, तो कुछ को परफार्मेंस के आधार पर मंत्रालय में बिठाया जा सकता है। इस फेरबदल में बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग ज्यादा प्रभावित होगा। रायपुर और दुर्ग संभाग के वो जिले जहां मुख्यमंत्री का भेंट मुलाकात होना, वहां के कलेक्टर बच सकते हैं। तबादलों की चर्चाओं के बीच कलेक्टरी मिलने का इंतजार कर रहे अफसरों की बेचैनी बढ़ गई है।
आईपीएस भी कतार में
आईएएस के साथ आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर के चर्चा है। बेमेतरा में हिंसा के बाद कानून व्यवस्था को लेकर भी विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल गया है। चुनावी साल में विपक्ष को मुद्दा देना नुकसानदायक हो सकता है, लिहाजा बड़ी संख्या में आईपीएस अफसर इधर-उधर हो सकते हैं। खासतौर पर पुलिस अधीक्षक के ट्रांसफर किए जाएंगे। इनमें उन एसपी को हटाया जा सकता है, जो लंबे समय से कप्तानी कर रहे हैं,क्योंकि इन पर चुनाव आयोग की भी नजर रहती है। राजधानी के एसएसपी का भी जाना तय माना जा रहा है, उनकी जगह दुर्ग एसपी को रायपुर की कमान दी जा सकती है। कांकेर एसपी को दुर्ग की कप्तानी मिलने की चर्चा है। बेमेतरा सहित अन्य जिलों के पुलिस अधीक्षकों को बदलने की भी चर्चा हो रही है। रतन लाल डांगी की एक बार फिर फ़ील्ड में वापसी संभव है, उन्हें बस्तर आईजी बनाया जा सकता है। वे रोज़ अपनी असंभव योग-मुद्राएँ ट्विटर पर पोस्ट करके सीएम को याद दिला रहे हैं कि उनके पास सिफऱ् योग-मुद्रा का काम है।
बंगलों के किस्से
संवैधानिक और अन्य जगहों पर बैठे लोग जाने अनजाने में ऐसी तुच्छ हरकत कर बैठते हैं, जो कि हंसी मजाक का विषय बन जाता है। ऐसे ही प्रदेश के सरकारी विवि के एक कुलपति ने तो अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद सरकारी बंगला खाली करने के पहले वहां के आम, गंगा इमली, अन्य फलों के अलावा फूलों तक को तुड़वाकर ले गए। बताते हैं कि बोरी में भरते वक्त कुछ आम जमीन पर गिर गए थे इस पर कुलपति पत्नी ने कर्मचारियों को जमकर उलाहना दी। अब हाल यह है कि नए कुलपति को बंगले का आम या गंगा इमली चखना होगा, तो उन्हें अगले मौसम का इंतजार करना होगा।
कुछ लोग याद करते हैं कि कई साल पहले राजभवन में नए वर्ष और तीज त्योहारों के मौके पर अफसर, और कारोबारी लोग मिठाई भेंट करते थे। बाद में प्रथम महिला के निर्देश पर राजभवन के कर्मचारी मिठाई बेचने में लग जाते थे, और पूरी राशि प्रथम महिला को दी जाती थी। यही नहीं, बंगला खाली करने के बाद एक ट्रक गिफ्ट व अन्य सामान अपने निजी बंगले में भेज दिए। इस तरह के बड़े लोगों के किस्से आज भी लोगों की जुबान पर है।
दीवारों को कब्जाने की होड़
देश में हुए पहले आम चुनावों से लेकर अब तक वाल पेंटिंग एक असरदार कैंपेन टूल रहा है। जो प्रत्याशी ज्यादा खर्च नहीं कर पाते वे भी ब्रश और रंग के साथ अपने समर्थकों को दीवार रंगने के लिए भेज देते थे। रेडियो, दूरदर्शन, न्यूज चैनल, विशालकाय कटआउट, फ्लैक्स, पोस्टर, होर्डिंग, बैनर-पोस्टर और अत्यंत विस्तृत सोशल मीडिया के दौर में भी इसका जलवा कम नहीं हुआ है। अब चुनावों में होने वाले भारी-भरकम खर्चों के बीच वाल पेंटिंग पर बहुत कम व्यय होता है। 90 के दशक में लोकसभा चुनाव कैंपेन के लिए इसका अधिक इस्तेमाल हुआ। सरकारी दीवारों को रंगा जाने लगा, निजी इमारतों को बिना अनुमति बदरंग किया जाने लगा। तब, चुनाव आयोग ने नियम बनाया कि सरकारी इमारतों, संपत्तियों में वाल पेंटिंग नहीं की जा सकेगी। यहां तक कि सरकारी योजनाओं का प्रचार किया गया हो तब भी उसे मिटाया जाएगा। निजी संपत्ति, दीवारों में यदि पेंटिंग की जाती है तो संपत्ति के स्वामी की लिखित मंजूरी जरूरी होगी। होड़ ऐसी बढ़ी कि लोग टिकट की दावेदारी करने के लिए भी चुनाव के साल भर पहले से ही दीवारों पर कब्जा करने लगे हैं। अभी चुनाव आचार संहिता का मसला भी नहीं है। चुनावी रणनीति में माहिर भारतीय जनता पार्टी ने अब इसे ऑर्गेनाइज कैंपेन का रूप दे दिया है। पार्टी के स्थापना दिवस पर दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा ने इस अभियान की शुरूआत कर की। वहां 14 हजार दीवारों को चिन्हित किया गया, जहां पार्टी अभी से नारे लिख डालेगी। कहा गया है कि यह काम सन् 2024 के चुनाव तक जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इसी अभियान में दो दिन के जगदलपुर प्रवास पर गए हैं। यह भी तय किया गया है कि जिन केंद्रीय योजनाओं को राज्य सरकार ने ठीक से लागू नहीं किया उस पर भी दीवारों में लिखा जाएगा। जैसे- मोर आवास, मोर अधिकार। वैसे कांग्रेस के नेता अपने स्तर पर यह अभियान अभी से शुरू कर चुके हैं। पर यह 2024 के लिए नहीं 2023 के लिए है। टिकट की उम्मीद रखने वाले इनमें ज्यादा हैं। कुछ टिकट दोबारा मिलने की उम्मीद से भी। जनवरी माह में डॉ. विनय जायसवाल की ओर से मनेंद्रगढ़ में राजमार्गों पर बने पुलिया में वाल पेंटिंग कराई। भाजपा कार्यकर्ता इसके विरोध में उतर गए। प्रशासन को काम रुकवाना पड़ेगा। देखना होगा कि चुनाव आते-आते कोई दीवार खाली बचेगी या नहीं।
अगला डीजी कौन ?
डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट को दो महीने बाकी हैं। ऐसे में उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा चल रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ 88 बैच के आईपीएस रवि सिन्हा को बुला सकती है। रवि सिन्हा खुफिया एजेंसी रॉ में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर हैं। ब्यूरोक्रेसी पर नजर रखने वाली दिल्ली की एक प्रतिष्ठित वेबसाइट ने रवि सिन्हा के छत्तीसगढ़ लौटने की संभावना भी जताई है। मगर सरकार के कई प्रमुख लोग उनकी वापसी को लेकर सशंकित हैं।
बताते हैं कि रॉ के डायरेक्टर नरेश गोयल का एक्सटेंशन संभवत: जुलाई में खत्म हो रहा है। गोयल करीब साढ़े 3 साल से रॉ के चीफ हैं, और रिटायरमेंट के बाद वो लगातार एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। ऐसे में रवि सिन्हा को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है। यदि ऐसा होता है, तो वो बतौर रॉ चीफ दो साल रह सकेंगे। जबकि उनका अगले साल जनवरी में रिटायरमेंट हैं।
चर्चा है कि इन्हीं सबके चलते रवि सिन्हा छत्तीसगढ़ वापसी के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं है। डीजी संजय पिल्ले भी अगले तीन-चार महीने में रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में उन्हें भी डीजीपी की दौड़ से बाहर माना जा रहा है। इसके बाद नंबर राजेश मिश्रा का है, जो स्पेशल डीजी हैं, लेकिन बीएसएफ से लौटने के बाद उन्हें ज्यादा कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई है।
फिर भी वरिष्ठता के आधार पर उनका दावा मजबूत माना जा रहा है। हालांकि उनसे जूनियर अरुण देव गौतम और पवन देव के नाम का भी हल्ला है, लेकिन पवन देव पर महिला आरक्षक के उत्पीडऩ केस को लेकर काफी कोर्ट-कचहरी हो चुकी है। ऐसे में वो स्वाभाविक तौर पर दौड़ से बाहर माने जा रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
एसपी-कलेक्टर में तनातनी
बेमेतरा में पिछले कुछ दिनों से हिंसा भडक़ी हुई है। राज्य सरकार इस मुद्दे पर चूक के कारण ढूंढ़ रही है। अलग-अलग तरह की जानकारी मिल रही है, लेकिन यहां के एसपी-कलेक्टर के बीच तालमेल की कमी को हिंसा का बड़ा कारण माना जा रहा है। दोनों अधिकारियों के ईगो क्लैश होने की जानकारी सामने आ रही है। हालांकि पुलिस के बड़े अधिकारी छोटे अफसरों को दोषी मान रहे हैं। अब देखना यह है कि राज्य सरकार मामला शांत होने के बाद किस पर एक्शन लेती है।
ईडी और अहाते
प्रदेश में आज किसी जायज काम को करने से भी सरकारी अफसर कतरा रहे हैं कि ईडी गिद्धों की तरह घूम रही है। अब इस बात में कितनी हकीकत है, कितनी नहीं, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन ऐसे तर्कों से परे राज्य के आबकारी विभाग की मनमानी आज भी चल रही है। खबर यह है कि आबकारी के दर्जनों अफसरों को बुलाकर ईडी ने कतार लगवा रखी है, लेकिन जगह-जगह इस विभाग का काम भ्रष्टाचार से घिरा हुआ है। अभी दुकानों के साथ चल रहे अहातों को हुक्म दिया गया है कि वे वहां से शराब बेचें, और तीस रूपये ज्यादा दाम पर बेचें, और यह ऊपर का पैसा दुकानों को दें। प्रदेश में यह चर्चा तो आम है कि ईडी अब पूरी ताकत शराब कारोबार पर लगा चुकी है। ऐसे माहौल में भी अगर शराब दुकानों से अधिक दाम पर बिक्री न करके, बगल के अहातों पर दबाव डालकर अधिक दाम पर बेचने, और शराब की गैरकानूनी बिक्री करने का हुक्म अगर दिया जा रहा है, तो कई अहाते चलाने वालों ने इस काम से इंकार कर दिया, क्योंकि यह बिक्री अपने आपमें गैरकानूनी रहेगी, और अधिक दाम पर बेचना एक अलग तरह का जुर्म भी रहेगा। फिलहाल सुनाई यह भी पड़ रहा है कि ईडी ने एक शराब-कारखानेदार से बड़ा महत्वपूर्ण बयान हासिल कर लिया है। आगे-आगे देखें होता है क्या...
खफा अफसरों की तैनाती
केन्द्र सरकार भी खूब है। उसने प्रदेश के तीन आकांक्षी जिलों के लिए केन्द्र की तरफ से तीन अफसरों की तैनाती की, तो वह ऐसे अफसरों की की जो कि छत्तीसगढ़ से किसी न किसी वजह से नाराजगी के साथ केन्द्र में गए हुए थे। इनमें से दो, मुकेश बंसल और रजत कुमार, पिछले भाजपाई मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ थे, और नई कांग्रेस सरकार आते ही इन्हें किनारे किया गया था। इनके अलावा डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी भी कुछ समय इस सरकार में रहने के बाद कुछ तनातनी के बीच ही अपने पति गौरव द्विवेदी के साथ भारत सरकार गई थीं। अब केन्द्र ने छत्तीसगढ़ के तीन आकांक्षी जिलों, बस्तर, कोरबा, और राजनांदगांव के लिए इन्हें प्रभारी अधिकारी बनाया है। अब इन जिलों के कलेक्टरों के लिए दुविधा की बात रहेगी कि इन अफसरों को कितना महत्व दिया जाए, और कितना उनसे बचा जाए। कायदे से तो केन्द्र सरकार को इसी छत्तीसगढ़ काडर के आईएएस अफसरों को इसी राज्य में किसी भी काम का प्रभारी बनाकर नहीं भेजना था। लेकिन अब केन्द्र सरकार कुछ भी कर सकती है।
इतना क्यों खिंचा रेल आंदोलन?
हावड़ा रूट पर पांच अप्रैल से पांच दिनों तक रेल यातायात ठप रहा। हजारों यात्री परेशान हुए। रेलवे का कहना है कि उसने करीब 1700 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया है। आंदोलन कुड़मी या कुर्मी समाज ने किया था। कुड़मी अनुसूचित जनजाति की सूची में खुद को शामिल करने और अपनी कुर्माली बोली को संविधान की 8वीं अनुसूची में रखने की मांग कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के कई राज्यों में कुर्मी समाज के लोग फैले हैं। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में इनकी आबादी 2 करोड़ के आसपास है। प्राय: देश के शेष राज्यों में यह जाति अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग यानि ओबीसी में शामिल है, पर इन तीनों राज्यों में ही वे अपने को अजजा में शामिल करने की मांग क्यों कर रहे हैं? खेती सबने शुरू की तो जंगल काटकर ही की। बहुत से लोगों ने मैदानी इलाके में उपजाऊ जमीन की तलाश कर ली। लेकिन इन तीनों राज्यों में अब भी बड़ी संख्या में कुर्मी जाति के लोग जंगल में हैं, या फिर वे खदानों, उद्योगों के कारण बेदखल हो गए हैं। टाटानगर में स्टील प्लांट के लिए 18 हजार हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई थी। इसमें सबसे ज्यादा जमीन कुड़मी समुदाय की ही गई। केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत उक्त जमीन अधिग्रहित की गई तब वे जनजाति में आते थे। सन् 1950 में इन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से हटा दिया गया। अभी इनकी ज्यादा बसाहट छोटा नागपुर पठार में है। झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कुर्मी समाज को लग रहा है कि पिछड़े वर्ग में शामिल होने के कारण उन्हें रोजगार और नौकरी में अधिक मौका नहीं मिल रहा है। वो पिछड़ी जातियां ज्यादा लाभ ले रही हैं जो वर्षों से कस्बों और शहरों में आ बसे हैं। वे ज्यादा पढ़ लिख चुके हैं। कुड़मी तो आदिवासियों के बीच ही रह गए। आदिवासियों को तो आरक्षण का अच्छा लाभ मिल रहा है, पर उन्हीं के बीच, साथ-साथ रहने के बावजूद कुड़मी अनुसूचित जनजाति में नहीं गिने जाते हैं और उनके बराबर आरक्षण का लाभ नहीं ले पाते।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक केंद्र को पत्र लिखकर, दस्तावेजी विवरण और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश करते हुए केंद्र को कई चि_ियां लिख चुके हैं। केंद्र ने अब तक इन पर कोई फैसला नहीं लिया है।
इन्होंने एकाएक रेल रोको आंदोलन नहीं किया। पिछले दिसंबर में तीनों राज्यों के सैकड़ों कुड़मी संसद भवन का घेराव करने दिल्ली पहुंचे थे। एक दिन के लिए रेल भी रोकी थी। राज्य स्तर पर कई प्रदर्शन हो चुके हैं। जमशेदपुर के भाजपा सांसद विद्युतशरण महतो सहित सभी दलों के कुड़मी प्रतिनिधि इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। इसीलिए जब रेल रोको आंदोलन शुरू हुआ तो न तो राज्य सरकार ने न ही केंद्रीय बलों ने इन पर कोई सख्ती बरती। पांच दिन बाद भी कुड़मी संगठन ने खुद ही पटरियां छोड़ी। आखिर दो करोड़ की आबादी को नाराज करने का जोखिम कौन उठाता?
चैट जीपीटी से गपशप
एआई एंटेलिजेंट के चैट जीपीटी ऐप से भविष्य में लाखों लोगों की नौकरियां जाने का खतरा बताया जा रहा है। लोग बहुत से काम की जानकारी भी इससे जुटा रहे हैं। पर कई बार जो जानकारी मिलती है वह क्रास चेक करने पर पूरी तरह सही नहीं होती। कई बार तो सिरे से भ्रामक होती है। ऐसे ही असंतुष्ट, निराश यूजर ने चैट जीपीटी से अपने भड़ास निकाली। कहा- दुनिया को मिस गाइड मत करिये। प्रॉब्लम मत बढ़ाएं, अपने निर्माता से बात कराओ। चैट बॉक्स में जवाब आया- ग्रेट आइडिया, अपने दोस्तों को निमंत्रण दो, कुछ ज्यादा चैट करेंगे। कुल मिलाकर चैट जीपीटी के पास सूचनाओं का असीमित भंडार, पर है तो आर्टिफिशियल ही। जरूरी नहीं कि यह ऐप हर बार समस्या का समाधान करे, समस्या को कई बार वह दूसरी दिशा में भी मोड़ सकता है।
कलेक्टर का काऊंटर
छत्तीसगढ़ के एक नौजवान कलेक्टर ने जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर, सीएमओ, को भुगतान-काउंटर बना रखा है। वक्त खराब चल रहा है, अपने परिवार के किसी व्यक्ति को, या अपने पीए-स्टेनो को इस काम में लगाने के बजाय दूर अलग बैठे अफसर को इंचार्ज बना दिया गया है। लोगों को संदेश मिल जाता है कि जाकर उनसे मिल लें।
बैठक की जगह का राज
राजधानी रायपुर में एक बड़े कमाऊ विभाग में प्रदेश भर से अफसरों को बुलाया जाता है। और उनसे बातचीत के लिए एक ऐसे रेस्त्रां या कैफे को छांटा गया है जहां काम करने वाले वेटर मूक-बधिर हैं। ऐसे में कोई बात सुन ले, इसका खतरा भी कम रहता है। विभाग पर ईडी का खतरा भी मंडरा रहा है, इसलिए तरह-तरह की सावधानी जरूरी है।
प्रवचन से परहेज
एक प्रवचनकर्ता के बड़े पुराने एक भक्त इस बार उनके प्रवचन में नहीं गए। जानकारों ने पूछा कि क्या बात है आप नहीं आए, तो जवाब मिला कि प्रवचनकर्ता को सुनने जाने की तो बड़ी इच्छा थी, लेकिन आयोजनकर्ता का नाम देखकर घर बैठे रह गया।
खामियों की खबरों से परहेज
भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ की भूमिका से संगठन के बड़े नेता नाराज नहीं तो संतुष्ट भी नहीं है। हाल में एक पूजा-भंडारे के दौरान एक दिग्गज नेता कुछ मीडिया कर्मियों से रूबरू हुए। वो अनौपचारिक चर्चा में कह गए कि पार्टी के मीडिया प्रकोष्ठ में विपक्षी दल की तरह काम नहीं हो रहा।
पार्टी नेता पुराने मीडिया प्रकोष्ठ के मुखिया सुभाष राव, रसिक परमार को याद कर रहे थे कि वो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डायस पर बैठने के बजाए मीडिया कर्मियों के बीच में रहते थे। वो ये सुनिश्चित करने में लगे रहते थे कि कॉन्फ्रेंस शुरू होने से पहले सभी मीडियाकर्मी पहुंच जाएं । यही नहीं, ज्यादातर पत्रकारों को तो खुद होकर कॉन्फ्रेंस की सूचना देते थे।
प्रदेश में पहले विधानसभा चुनाव में सुभाष राव, और रसिक की मदद के लिए प्रभात झा को भेजा गया था। क्योंकि उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। उस समय प्रबंधन इतना बढिय़ा था कि विधायक खरीद-फरोख्त कांड के खुलासे के लिए तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली रायपुर आए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस तीन घंटे विलंब से शुरू हुआ, लेकिन विलंब होने के बावजूद पत्रकारों ने शिकायत नहीं की। कुल मिलाकर पहली बार सरकार बनाने में भाजपा के मीडिया प्रकोष्ठ की भूमिका को अब तक सराहा जाता है। बाद में सरकार बन गई, और व्यवस्था में सरकारी तंत्र का सहयोग मिलने लगा, लेकिन तब भी नलिनेश ठोकने की अगुवाई में मीडिया प्रकोष्ठ की व्यवस्था अच्छी ही रही।
हाल यह है कि चुनाव में 6 महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में पार्टी के एक बड़े खेमे को लगता है कि मीडिया प्रकोष्ठ, बाकी प्रकोष्ठों की तुलना में सबसे कमजोर है। मीडिया प्रकोष्ठ की कार्यशैली से नाराज कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि प्रकोष्ठ शीर्ष के तीन-चार नेताओं के लिए ही गठित किया गया, ऐसा लगता है। बाकी नेताओं ने तो स्वयं की व्यवस्था कर रखा है। और तो और यह थिंक टैंक की तरह लगता ही नहीं।
नाराज नेता बताते हैं कि मीडिया प्रकोष्ठ के कर्ताधर्ता रोजाना, राजधानी के कुछ उन अखबारों की उन्हीं कतरनों का पीडीएफ हाईकमान को भेजते हैं जिनमें उनका भेजा बयान प्रकाशित होता है। या सरकार विरोधी बयान, और खबरें। निंदक नियरे... की तरह संगठन की खामी उजागर करती खबरों से परहेज करते हैं।
दावेदारी बँट रही है
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के चलते जिला प्रभारी तो बना दिए हैं, लेकिन अब प्रभारियों की वजह से जिलों में गुटबाजी बढ़ गई है। इस तरह की शिकायतें रोज पार्टी संगठन के प्रमुख नेताओं तक पहुंच रही है। एक जिले में तो प्रभारी ने हर विधानसभा में 10-10 नए दावेदार तैयार कर दिए हैं। इनमें से कईयों ने तो वाल राइटिंग शुरू कर दी है।
बताते हैं कि प्रभारी दूसरे जिले के रहने वाले हैं। बैठक में आने जाने के लिए उनके लिए गाड़ी की व्यवस्था करनी पड़ती है। यही नहीं, पदाधिकारियों को प्रभारी के लिए होटल-ढाबे में लजीज खाने का भी इंतजाम करना होता है। एक दावेदार से तो प्रभारी ने महंगे मोबाइल गिफ्ट करा लिए। चूंकि चुनाव नजदीक है इसलिए कुछ दावेदार प्रभारी के डिमांड पूरी करते जा रहे हैं। मगर जिले के पदाधिकारी गुस्से में हैं। पिछले दिनों एक बैठक के दौरान पदाधिकारियों की प्रभारी से विवाद भी हुआ। पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि अगर सुविधा भोगी प्रभारियों को बदला नहीं गया, तो इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
प्रियंका की तैयारी से चुनावी अभ्यास शुरू
बस्तर में प्रियंका गांधी के कार्यक्रम में एक लाख लोगों की मौजूदगी की तैयारी की जा रही है। अगर ऐसा होता है तो यह बस्तर का एक सबसे बड़ा और सबसे कामयाब राजनीतिक कार्यक्रम होगा। नक्सल प्रभावित बस्तर में हिफाजत के खास इंतजाम किए जा रहे हैं, और इसके लिए कई आईपीएस की अलग-अलग तरह की ड्यूटी लगाई गई है। कुछ लोगों की ड्यूटी हाल ही में बस्तर आए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के लिए भी लगाई गई थी, और प्रियंका गांधी की आमसभा के साथ अब विधानसभा चुनाव की तैयारियों का अभ्यास भी शुरू हो जाएगा। आने वाले महीने पूरे प्रदेश में पुलिस के लिए दोहरी चुनौती के रहेंगे, क्योंकि एक तो प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव खड़ा हो चुका है, दूसरा यह कि नेताओं के दौरे और कार्यक्रम बढ़ते चलेंगे, और राजनीतिक आंदोलन भी। अभी बेमेतरा के एक गांव में साम्प्रदायिक हत्याओं के चलते करीब हजार पुलिसवालों को झोंक देने की खबरें हैं, दूसरे राज्यों की पुलिस भी लगा दी जाए, तो भी साम्प्रदायिक तनावों से निपटने के लिए जवान कम ही पड़ेंगे, इसलिए शांति बिना गुजारा नहीं है। फिलहाल पुलिस के कंधों पर बोझ बढ़ते चलना है। एक आईपीएस ने निजी बातचीत में कहा कि जीत-हार तो नेताओं की होती है, पुलिस की तो बस हार ही हार होती है, अगर सब कुछ चैन से निपट गया तो पुलिस को कोई वाहवाही नहीं मिलती, और अगर एक गाड़ी भी पलट गई, तो पुलिस पर दाग लग जाता है।
आम आदमी पार्टी को नई ताकत
देश में राजनीतिक दलों का जो हुआ है, उससे छत्तीसगढ़ भी प्रभावित होने जा रहा है। प्रधानमंत्री के खिलाफ लगातार सबसे तीखा और तेजाबी अभियान चलाने वाली आम आदमी पार्टी को चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा दे दिया है क्योंकि देश भर में उसे मिले वोट उसे इस दर्जे का हकदार बना रहे थे। दूसरी तरफ राष्ट्रीय कही जाने वाली दो पार्टियों का राष्ट्रीय दर्जा खत्म कर दिया गया है, जिसमें विपक्ष को तोडऩे की तोहमत झेल रहे शरद पवार की पार्टी एनसीपी है, और सीपीआई का भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म हो गया है क्योंकि उन्हें देश भर में मिले वोट इसके लिए निर्धारित जरूरत से कम थे। अब ऐसा करके चुनाव आयोग ने सरकार के एक विभाग सरीखे होने का दाग भी धो लिया है, क्योंकि प्रधानमंत्री की सीधी फजीहत करने वाली आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिया है, और अडानी और पीएम का साथ देते दिखने वाले पवार की पार्टी से यह दर्जा छीन लिया है। सीपीआई तो ऐसे विवादों से परे किनारे बैठी है, लेकिन हाल के महीनों में प्रधानमंत्री के प्रति रहमदिली दिखाने वाली ममता बैनर्जी की पार्टी का भी राष्ट्रीय दर्जा छीन लिया गया है। थोड़ा अटपटा है, लेकिन है तो ऐसा ही। अब आप एक नए उत्साह के साथ छत्तीसगढ़ के चुनाव में उतरेगी, और देखना है कि यह नया दर्जा लोगों की नजरों में भी उसे एक अधिक असरदार पार्टी बनाता है या नहीं।
हिचकते हुए सहमे अफसर
छत्तीसगढ़ में इन दिनों बड़े-बड़े अफसर फोन पर बात करने से बचते हैं, और मिलने पर कोई शिकायत करे तो उनका साफ जवाब रहता है, देख तो रहे हैं। अब क्या देख रहे हैं, इसका खुलासा कोई नहीं करते, लेकिन हवा में यही है कि ईडी हर किसी की बात सुन रही है, अब कुछ भी बोलना महफूज नहीं है। इसके अलावा बड़ी संख्या में बड़े अफसरों से पूछताछ, उनके घरों पर छापे, लगातार बयान दर्ज करने से राज्य में नौकरशाही के काम करने की रफ्तार भी घट गई है, और अगर कोई फैसला लेने की नौबत आती है, तो बहुत से अफसर हिचकने भी लगे हैं। अभी यह कहना तो ठीक नहीं होगा कि इनमें से कुछ अफसर इसी वजह से छुट्टियां ले रहे हैं, लेकिन लोग नाजुक कुर्सियों पर न बैठने की कोशिश जरूर कर रहे हैं।
वक्त से पहले पहुंच गए वीआईपी...
किसी समारोह में कोई नेता समय से इतना पहले पहुंच जाए कि सारी कुर्सियां खाली हों, ऐसा केवल चुनाव प्रचार के दौरान हो सकता है। बाकी जगह समय पर आ जाए तो वह नेता क्या और क्या वीआईपी? नागालैंड के शिक्षा और पर्यटन मंत्री तेमजेन इम्ना अलांग ने खाली कुर्सियों वाली यह तस्वीर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाली है और कहा है- देखो मैं समय से पहले पहुंच गया, क्या मैं कोई वीआईपी हूं?
विहिप के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी?
विश्व हिंदू परिषद् का कोई प्रचारक जिसके हजारों फॉलोअर हों, हिंदुत्व की प्रयोगशाला गुजरात में गिरफ्तार हो जाए, सुनने में अटपटा लग सकता है। पर, ऐसा हुआ है। ऊना जिले में रामनवमी के दिन भडक़ाऊ भाषण देने के आरोप में काजल ‘हिंदुस्तानी’ को गिरफ्तार किया गया। पुलिस का आरोप है कि उसके भाषण के चलते दो दिन तक ऊना में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई थी, कुछ जगहों पर झड़प भी हुई। पुलिस ने दंगा करने की नीयत से पथराव करने के आरोप में करीब 80 और लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक हैं। काजल हिंदुस्तानी को अक्सर विहिप के कार्यक्रमों में देखा जाता रहा है। वे अपने आपको रिसर्च एनालिस्ट, इंटरप्रेन्योर, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी बताती हैं। ट्विटर पर उनके 95 हजार फॉलोअर हैं जिनमें ओम बिड़ला जैसे बड़े नेता भी शामिल हैं। गुजरात की घटना यह जानने के लिए काफी है कि उसके कार्यकर्ताओं देश के किसी भी हिस्से में किसी भी तरह की परिस्थितियां पैदा करने की क्षमता रखते हैं। बेमेतरा में एक युवक की हत्या के बाद कल हुए छत्तीसगढ़ बंद में विश्व हिंदू परिषद् ने अपनी ताकत झोंक दी। भाजपा का साथ भी था। जब तक भाजपा की सरकार छत्तीसगढ़ में थी, उसे अपने इन सहयोगी संगठनों की कम से कम विधानसभा चुनावों में तो जरूरत नहीं पड़ी थी। सन् 2018 के चुनाव में एक भाजपा प्रत्याशी ने चार्टर प्लेन से पहुंचे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपने इलाके में सभा कराने से मना कर दिया था। प्रत्याशी का कहना था कि वर्षों से जो अल्पसंख्यक वोट उन्होंने संभाल रखे हैं, बिगड़ जाएंगे। बस्तर के बाद अब बेमेतरा में बीजेपी ने आक्रामकता दिखाई है। बेमेतरा की पिच पर विहिप की टोली आगे कर दी गई है। लोकसभा में यह जंतर काम करता रहा है, पर यदि इसका मकसद इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को ‘हर हाल में जीत’ दिलाने के लिए है तो यह उन नेताओं, दलों के लिए चिंता की बात होगी जो विकास, घोटाले, बेरोजगारी, महंगाई, खेती जैसे सवालों पर अब तक मैदान में उतर रहे थे।
टाइगर पर छत्तीसगढ़ की साख बचेगी?
टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में बाघों की संख्या में वृद्धि के आंकड़े जारी किए। छत्तीसगढ़ में लोगों को यह जानने की दिलचस्पी है कि उनकी संख्या यहां बढ़ी या घटी। टाइगर होने और उनकी वंशवृद्धि की संभावना को देखते हुए ही तो चार नए रिजर्व हाल के वर्षों में प्रदेश में घोषित किए गए हैं। और तीन साल में 184 करोड़ रुपये खर्च किए गए। पूर्व मंत्री महेश गागड़ा सहित भाजपा के नेताओं ने इस खर्च को अविश्वसनीय बताया, लोगों ने भी ऐसा ही महसूस किया। वैसे भाजपा के कार्यकाल के अंतिम 4 वर्षों में भी 229 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ में बाघ तेजी से घटे हैं। विधानसभा में हाल ही में वन मंत्री की ओर से मंत्री शिव डहरिया ने 2019 में जारी आंकड़ों के हवाले से बताया था कि यहां 19 बाघ रह गए हैं। सन् 2015 में जारी 2014 की गणना के मुताबिक इनकी संख्या 46 थी। जबकि उस वर्ष की गणना में राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की संख्या 2226 से बढक़र 2967 हो गई थी। विधानसभा में दी गई जानकारी के आधार पर ही कह सकते हैं कि पगमार्क के आधार पर गिनती कर बाघों की संख्या जान-बूझकर ज्यादा बताई जाती थी। इसमें फारेस्ट के अफसरों का अपना हित था। 2018 में ट्रैप कैमरे से गणना की अधिक सटीक पद्धति लाई गई तो छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या सीधे 59 प्रतिशत कम हो गई। विधानसभा में यह भी बताया गया कि 2020 से 2022 के बीच दो बाघों की मौत भी हुई। दोनों मौतें कोर एरिया के बाहर हुईं। दूसरी ओर एनटीसीए का आंकड़ा कुछ और बता रहा है। इसके अनुसार सन् 2020 में एक बाघ की मौत हुई। सन् 2021 में चार और 2022 में दो बाघों की मौत हुई। यानि 3 साल में सात बाघों की मौत हुई। दोनों आंकड़ों में जमीन आसमान का फर्क है। छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या कितनी बढ़ी हुई मिल सकती है इस पर अनुमान लगाने के दौरान एक तथ्य और ध्यान में रखना होगा। यह जरूर है कि ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 3167 बाघ हैं, पर इनकी संख्या बढऩे की रफ्तार घटी है। 2014 से 2018 के बीच बाघों की आबादी 33 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी जबकि 2018 से 2022 के बीच यह सिमटकर 6.74 प्रतिशत ही रह गई है। यानि इस बार साख बचाने की चुनौती और ज्यादा है।
अंगूर से महंगे चार..
आम के आम गुठलियों क दाम तो प्रचलित मुहावरा है। पर छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिलने वाले चार के बारे में भी यही बात कही जा सकती है। पूरे प्रदेश के वन क्षेत्रों में इसे बटोरकर वहां के रहवासी कस्बों और शहरों में ला रहे हैं और इसकी अच्छी कीमत पा रहे हैं। इस समय अंगूर सस्ते हो चुके हैं, यह 60 से 80 रुपये किलो में बिक रहा है। पर चार की कीमत 400 रुपये किलो तक पहुंच गई है। दरअसल इसके बीज या गुठली भी उपयोगी है। इससे चिरौंजी बनती है, जो महंगे ड्रायफ्रूट्स में शामिल है। प्राण चड्ढा ने यह तस्वीर ली है।
पेड़ बचाने की एक कोशिश
सुपेला भिलाई की रेलवे क्रासिंग से हर महीने करीब 40 लाख लोग आना-जाना करते हैं, जिसके चलते यहां अंडरब्रिज बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। यह काम अब शुरू हो चुका है। इसमें दोनों ओर करीब 200 पेड़ों को काटने की जरूरत है लेकिन कुछ ऐसे विशाल पेड़ हैं जिन्हें राहगीर वर्षों से देखते आ रहे हैं। उनकी छाया लेते रहे हैं। इनमें से पीपल, इमली, सीताफल, अशोक आम के कुछ पेड़ 90 साल तक पुराने हैं। इन्हीं में से 5 बड़े पेड़ों को काटने की जगह जड़ से उखाडक़र दूसरी जगह शिफ्ट किया जा रहा है। लगभग 50 साल पुराने पीपल पेड़ को कल इसी तरह शिफ्ट किया गया है। वानिकी में मास्टर डिग्री धारक नेहा बंसोड़ की टीम यह काम कर रही है, जो पहले भी भिलाई-3 में इसी तरह से करीब 40 पेड़ों को शिफ्ट कर चुकी हैं। अंडरब्रिज के लिए उखाड़े जा रहे एक पेड़ को वहां के हनुमान मंदिर के एक संस्थापक ने भी अपने परिसर में शिफ्ट करने की अनुमति दी है।
ऐसे समय में जब सडक़,पुल-पुलिया की योजना बनने पर सबसे पहले पेड़ों को काटने की ही सूची बन जाती हो, तब पर्यावरण की हिफाजत के लिए की जा रही ऐसी कोशिशें ध्यान खींचती हैं। छोटी लगने के बावजूद बहुत ये कोशिश असर डालती है।
पहले कोविड टेस्ट मशीनों की जांच
दिल्ली, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में लगातार कोविड संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी एक्टिव मरीजों की संख्या 500 के आंकड़े को छू रही है। बिलासपुर में दो और रायपुर में एक मौत भी हो चुकी। अभी दावा यही किया जा रहा है कि कम्युनिटी स्प्रैड की नौबत नहीं आई है लेकिन इसकी आशंका बनी हुई है। पिछली बार की दो लहरों में भी देखा गया कि एकाएक केस बड़ी तेजी से केस बढ़े। दूसरी लहर में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के अभाव में हजारों मौतें देशभर में हुईं। इसके बाद कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड जब वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाई गई। पर दूसरी लहर जैसी खौफनाक स्थिति नहीं आई। इसके चलते आम लोग कोविड की दहशत से तो बाहर आ ही गए, पर स्वास्थ्य विभाग भी अस्पतालों और मशीनों का रख-रखाव भूल चुका था।
जांजगीर, रायगढ़, राजनांदगांव, अंबिकापुर आदि शहरों से खबर है कि वहां आरटीपीसीआर मशीनें धूल खा रही हैं। कोविड टेस्ट की संख्या बढ़ाने का दबाव है पर रफ्तार नहीं आ रही है। स्वास्थ्य मंत्री का यह कहना एक हद तक सही हो सकता है कि ज्यादातर मरीज घरों में ही ठीक हो रहे हैं और जल्दी हो रहे हैं। देश में भी इस समय रिकव्हरी रेट 98 प्रतिशत से ऊपर है। पर, कोई दावा नहीं कर सकता कि आगे भी ठीक होने की रफ्तार तेज और मौतों की रफ्तार इसी तरह कम रहेगी। प्रदेश में कोविड वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने वालों की संख्या जरूर ठीक ठाक है। पहली डोज तो 90 प्रतिशत से ऊपर है। पर बूस्टर डोज केवल 30 प्रतिशत लोगों ने लगवाए। पिछला ट्रैंड बताता है कि महाराष्ट्र में केस बढऩे के कुछ दिनों बाद छत्तीसगढ़ में कोविड केस बढ़े थे। जो 5300 के करीब नए मामले एक दिन में पूरे देश में आए हैं, उनमें 644 महाराष्ट्र से हैं, पांच मौतें भी हुई हैं। तो, स्वास्थ्य महकमा ही नहीं, हम-आपको भी स्थिति पर नजर टिकाए रखना है।
किस टीम की जांच सही
जशपुर जिले के बगीचा इलाके में पहाड़ी कोरवा राजू राम और उसकी पत्नी ने अपने दो बच्चों को फांसी पर लटकाने के बाद खुद अपनी जान दे दी थी। इस ह्रदय विदारक घटना के पीछे की हकीकत आने में अभी शायद वक्त लगे पर भाजपा की दो जांच टीमों ने अलग-अलग बयान देकर पार्टी नेताओं की फजीहत जरूर कर दी है। राज्य स्तर पर एक टीम भाजपा ने बनाई थी। इसमें नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, पूर्व सांसद रामविचार नेताम सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल थे। इन्होंने जांच के बाद कहा कि परिवार के पास रोजगार नहीं था, आर्थिक तंगी थी। भुखमरी के कारण उन्होंने आत्मघाती कदम उठाया। इधर जशपुर के कद्दावर भाजपा नेता नंदकुमार साय, जो राज्य की जांच टीम में शामिल नहीं थे, उन्होंने अलग से एक टीम बनाकर घटना की जांच की। उन्होंने जशपुर लौटकर बयान दिया कि परिवार को कोई आर्थिक संकट नहीं था, यह उनकी वेशभूषा से ही साफ हो जाता है। नहीं लगता कि उसे कोई आर्थिक तंगी थी। मनरेगा का जॉब कार्ड भी उसके पास था। मजदूरी भी करता था और वनोपज की बिक्री का भी लाभ उसे मिल रहा था।
कोई वजह नहीं हो सकती कि साय जैसे अनुभवी नेता की टीम जानबूझकर कोई भ्रम फैलाए। पर इससे राज्य की टीम की जांच रिपोर्ट अपने-आप बेअसर हो गई। ज्यादा जानकार बता सकते हैं कि यह भाजपा की आपसी कलह है या नहीं।
सारस की एक और प्रेम कथा
सारस पक्षी को प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि एक सारस युगल हमेशा साथ रहते हैं। इनमें से कोई एक अगर बिछुड़ जाए तो दूसरा किसी नया दोस्त नहीं ढूंढता, जीवन भर अकेले ही रहता है। उत्तरप्रदेश के आरिफ के साथ एक सारस की दोस्ती बीते दिनों खूब चर्चित हुई। पर एक चर्चा छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के इस सारस जोड़े की भी होती है। दावा किया जाता है कि छत्तीसगढ़ का एकमात्र ऐसा सारस जोड़ा है जिसे वर्षों से एक साथ ही देखा जाता है, कभी अलग नहीं होते। ग्रामीणों का इन्हें संरक्षण मिला है। तस्वीर ली है प्रतीक ठाकुर ने।
अलग मिजाज के कलेक्टर
लोग इसे खुशामद कह सकते हैं, मजबूरी कह सकते हैं पर इसे जनप्रतिनिधि को मिलने वाले हक के रूप में देखा जा सकता है। मनेंद्रगढ़ में कल कलेक्टर इलवेन और जनप्रतिनिधियों बीच क्रिकेट प्रतियोगिता हुई। मैच के बाद पुरस्कार लेने की बारी आई तो कलेक्टर पीएस ध्रुव विधायक डॉ. विनय जायसवाल के ठीक पैरों के सामने बैठ गए और तस्वीरें खिंचवाई। लोग कहने लगे कलेक्टर तो जनता के सेवक होते हैं, पर इन्हें तो अपनी गरिमा का ख्याल नहीं है, विधायक की सेवा करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
पर इसे कलेक्टर के स्वभाव के रूप में भी देखा जा सकता है। फरवरी माह में एक कार्यक्रम में मंच से विधायक गुलाब कमरो की तारीफ में जब उन्होंने भाषण दिया तो लोगों को लगा कि यह उनकी पार्टी का कोई कार्यकर्ता माइक पाकर उसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। कलेक्टर ने कमरो को लेकर कहा-जन-जन के चहेता, गरीबों, दीन-दुखियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके सुख-दुख में भागीदारी बनने वाले, युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत, हमारे सम्मानीय कमरो जी। जोरदार ताली की गडग़ड़ाहट से स्वागत करिये।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जबान से तारीफ में दो चार मीठे वाक्य बोल देने में क्या जाता है। विधायक के पैरों के पास बैठ गए तो क्या हुआ, पैर तो नहीं छुए। वैसे डॉ. ध्रुव दो दिन पहले ही सामाजिक आर्थिक जनगणना का काम भीतर के गांवों में किस तरह से चल रहा है यह देखने के लिए बाइक पर निकल गए थे। धान के सीजन में फसल काटते किसानों को देखकर वे खेत में उतर गए थे और हंसिया लेकर खुद फसल काटने लगे थे। गांवों की रामायण मंडली के एक कार्यक्रम में उन्होंने मग्न होकर नाचे थे। कुल मिलाकर इस कलेक्टर का अंदाज अलग है।
हवाई सेवाओं पर उदासीन बीजेपी
जगदलपुर और बिलासपुर में आधी-अधूरी सफलता के बाद अब अंबिकापुर की मां महामाया एयरपोर्ट से उड़ान योजना के तहत हवाई सेवा शुरू करने की तैयारी है। एक दो दिन में इसका ट्रायल हो सकता है। डीजीसीए के परीक्षण के बाद यह तय हो सकता है कि कब और कहां-कहां के लिए उड़ानें यहां से होगी। सरगुजावासियों की लंबे समय से दरिमा हवाई अड्डे से हवाई सेवा शुरू करने की रही है। पहले हवाई अड्डे को 32 सीटर विमानों के लायक तैयार किया जा रहा था। फिर बाद में मालूम हुआ कि इतने छोटे विमानों की सेवा ही देश में लगभग बंद है या गिनी-चुनी है। इसके बाद करीब 50 करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च से इसे 72 सीटर विमान के लायक बनाया गया है। उड़ान सेवा के तहत आम आदमी को हवाई सेवा मुहैया कराने की प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना के तहत देशभर मे इस तरह के हवाई अड्डे विकसित किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में जगदलपुर और बिलासपुर के बाद यह तीसरा इस श्रेणी का एयरपोर्ट होगा। पर परिणाम उम्मीद के अनुसार नहीं है। बिलासपुर में तो हवाई सेवा हाईकोर्ट की बार-बार फटकार के बाद शुरू हो पाई। पर उड़ानें बढ़ाने की जगह घटा दी गई। किराया इतना अधिक कि लोगों की हैसियत से बाहर। यहां से दिल्ली का किराया इतना अधिक है कि रायपुर से दिल्ली दो बार आना-जाना किया जा सकता है। जगदलपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद हवाई सेवा का उद्घाटन किया लेकिन वह बंद हो गया था। राज्य सरकार ने इसे दोबारा तैयार किया है लेकिन विशाखापट्ट्नम के लिए उड़ान यहां से बंद है, जिसकी सर्वाधिक मांग है। केवल रायपुर और हैदराबाद के लिए है। अतिरिक्त नई उड़ानों की कोई घोषणा ही नहीं हुई। जब भी इन तीनों एयरपोर्ट से कोई उड़ान शुरू हुई सांसदों ने श्रेय लिया, केंद्रीय मंत्रियों ने उद्घाटन किया लेकिन जब सेवाएं घटी, किराया बढ़ा तो उन्होंने चुप्पी साध ली। बिलासपुर में ही बिलासा एयरपोर्ट और यहां के यात्रियों की हो रही उपेक्षा के खिलाफ नगर बंद को पिछले दिनों जबरदस्त सफलता मिली। यह नागरिकों का आंदोलन था लेकिन भाजपा का कोई भी कार्यकर्ता शामिल नहीं हुआ। उन्हें नेतृत्व की नाराजगी का शायद डर था। लोगों को यह भी लग रहा है कि एयरपोर्ट राज्य सरकार के अधीन हैं इसलिये केंद्र यहां से उड़ानों को बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। हवाई सेवा से लाभान्वित होने वाले यात्रियों की संख्या सडक़ या ट्रेन मार्ग के यात्रियों से बहुत कम होती है लेकिन यह उस शहर के विकास की पहचान होती है। इसलिए हर बार यह प्रमुख चुनावी मुद्दा भी बनता जा रहा है। लोगों ने उम्मीद लगा रखी है कि 2024 के चुनाव के चलते ही तीनो हवाईअड्डों से नई उड़ानें आने वाले दिनों में मंजूर हो जाएंगीं।
बक्से खुलने, न खुलने का राज
सोशल मीडिया पर विधानसभा आम चुनाव के ठीक पहले की तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें भाजपा नेता प्रत्याशी चयन के लिए सीलबंद बक्सा लेकर चार्टर प्लेन, और हेलीकॉप्टर से अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के लिए निकल रहे हैं। मकसद यही था कि कार्यकर्ताओं से जीतने लायक दावेदारों के नाम बक्से में लिए जाएंगे, और फिर सील बंद बक्से प्रदेश नेतृत्व को दिए जाएँगे । प्रदेश नेतृत्व नाम लेकर पैनल तैयार करेगा, और फिर इन्हीं में से प्रत्याशी तय किए जाएंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ।
कुछ लोग बताते हैं कि चार्टर प्लेन, और हेलीकॉप्टर के किराए पर ही करोड़ों फूंक दिए गए, लेकिन बक्से नहीं खोले गये। जिनके खिलाफ आक्रोश था वो सभी टिकट पा गए। हाल यह रहा कि आधा दर्जन प्रत्याशी 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से हार गए। पिछले चुनाव में भाजपा ने अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया, और 15 सीटों पर ही सिमट गई। बाद में उपचुनाव में एक और सीट कम हो गई।
अब प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव दावा कर रहे हैं कि सर्वे और आम कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर ही प्रत्याशी तय किए जाएंगे। लेकिन उनके दावे पर पार्टी के कई नेताओं को शक है। वजह यह है कि कईयों ने तो अभी से वॉल राइटिंग शुरू कर दी है। हारे हुए कई नेताओं ने पार्टी हाईकमान से अपने संपर्कों के आधार पर फिर से टिकट का दावा कर रहे हैं। ऐसे में कुछ लोगों का अंदाजा है कि बक्से इस बार भी शायद ही खुले। देखना है आगे क्या होता है।
जानबूझकर गलती?
कांग्रेस में बड़े बदलाव की तरफ इशारा किया जा रहा है। इसका अंदाजा कुछ-कुछ घटनाक्रमों से लग भी रहा है। पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी शैलजा के प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले परिचयात्मक उद्बोधन में मोहन मरकाम की जुबान फिसल गई, और वो शैलेष नितिन त्रिवेदी को संचार विभाग का चेयरमैन बोल गए। शैलेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में थे ही नहीं, और उन्हें संचार विभाग के दायित्व से मुक्त हुए 2 साल अधिक हो चुके हैं। हालांकि मरकाम ने तुरंत गलती सुधारी, और फिर सुशील आनंद शुक्ला का नाम लिया। कुछ लोग मानते हैं कि मरकाम ने जानबूझकर गलती की है। वो सुशील के काम से नाखुश हैं। और वो शैलेष नितिन त्रिवेदी की वापसी चाहते हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो पता नहीं, लेकिन मरकाम जैसे सुलझे व्यक्ति की जुबान फिसलने की खूब चर्चा हो रही है।
सेलिब्रिटी नशे के खिलाफ मुहिम में
बिलासपुर पुलिस ने नशे के अवैध कारोबार के खिलाफ निजात अभियान छेड़ रखा है। पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार अपनी पदस्थापना के बाद से ही दूसरे जिलों की तरह इस जिले में भी मुहिम शुरू कर दी। अब बड़ी कोशिश करके बिलासपुर पुलिस ने बॉलीवुड कलाकारों से संपर्क किया। अब एक वीडियो बिलासपुर पुलिस ने जारी किया है जिसमें राजपाल यादव, अरबाज खान, सुनील ग्रोवर, कैलाश खेर, प्रभु देवा, पीयूष मिश्रा, कविता कृष्णमूर्ति, वीरेंद्र सक्सेना, रोहिताश गौड़, परितोष त्रिपाठी, शहवर अली, यश अजय सिंह और भगवान तिवारी जैसे कलाकार बिलासपुर के नागरिकों से अपील कर रहे हैं कि वे पुलिस के निजात अभियान को सफल बनाएं। नशे को ना कहें, जिंदगी को हां कहें।
बॉलीवुड के मशहूर कलाकारों को निजात अभियान से जोडऩा और उनसे अपील करवाना इसलिए खास बात है क्योंकि नशे में लिप्त युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड को नशे का ठिकाना बताने का अभियान चल निकला था। ये सेलिब्रिटी पर्दे पर किरदार निभाते हुए कई बार नशा करते हुए दिखाई देते हैं। इनकी अपील से यह तो लोगों को समझ में आया होगा कि असल जिंदगी में वे नशे के खिलाफ है।
सारा झगड़ा ही खत्म हो जाए
बिहार में चल रहे सामाजिक सर्वेक्षण में एक दिलचस्प मामला सामने आ गया है। इस सर्वेक्षण के दौरान जातियों की पहचान कोड के आधार पर की जाएगी। उदाहरण के लिए अगर ब्राह्मण एक सामाजिक इकाई है तो उसका जाति कोड 126 होगा। भूमिहार को 142, कायस्थ को जाति कोड 21 दिया गया है और इसी तरह से 215 कोड विभिन्न जातियों को आवंटित किए गए हैं। दिक्कत यहां आ रही है इसमें किन्नर (थर्ड जेंडर) को एक जाति मान लिया गया है। इसे जाति कोड 126 आवंटित किया गया है। तृतीय लिंग के लिए काम करने वाले एक संगठन दोस्ताना सफर की संस्थापक रेशमा प्रसाद ने इस पर कड़ी आपत्ति की है। उनका कहना है एक इंसान की शारीरिक संरचना उसकी जाति कैसे बन सकती है? फिर तो सभी को पुरुष जाति या स्त्री जाति के रूप में ही गिना जाना चाहिए। ब्राह्मण, कायस्थ, भूमिहार जाति के रूप में अलग-अलग गिना ही ना जाए।
बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग बहुत जोर पकड़ी हुई है। छत्तीसगढ़ जैसे कई और राज्यों में इसकी मांग उठने लगी है। पर यदि लिंग को ही जाति मान लें तो फिर राजनीति कैसे होगी? विरोधियों ने तो धर्म के नाम पर वोट मांग कर समीकरण बिगाड़ रखा है। मामला टेढ़ा है। देखते हैं बिहार सरकार इसके लिए क्या रास्ता निकलती है। और, जब वहां तृतीय लिंग को अधिकार मिल जाएंगे तो फिर दूसरे राज्यों में भी इसका असर देखने को मिलेगा।
बड़े नेताओं से छोटों की नाराजगी
चुनावी साल में कुनबा बढ़ाने की कोशिश में जुटे भाजपा संगठन के दो बड़े नेता अजय जामवाल, और पवन साय को पत्थलगांव में उस वक्त अपने ही दल के नेताओं का गुस्सा झेलना पड़ा, जब उन्होंने कांग्रेस में शामिल हो चुके आधा दर्जन पार्षदों की घर वापसी के लिए सहमति दे दी थी। पार्टी के लोगों के गुस्से को देखते हुए दोनों कार्यक्रम अधूरा छोडक़र निकल गए।
हुआ यूं कि जशपुर जिले के पत्थलगांव नगर पंचायत के आधा दर्जन से अधिक भाजपा पार्षदों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। भाजपा के बागियों की वजह से नगर पंचायत में कांग्रेस का कब्जा हो गया। इसके बाद कुछ दिन पहले पत्थलगांव विधानसभा कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई गई। विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा के लिए जामवाल, और पवन साय खुद बैठक में मौजूद थे। इससे पहले कुछ स्थानीय नेताओं ने निष्कासित पार्षदों को फिर से दल में शामिल करने के लिए दोनों नेताओं को मना लिया।
बताते हैं कि जिलाध्यक्ष, और कई प्रमुख नेता पार्षदों की ऑपरेशन घर वापसी से अनभिज्ञ थे। लेकिन जैसे ही मंच से इसकी घोषणा हुई, जामवाल, और पवन साय के सामने ही झगड़ा शुरू हो गया। विवाद मारपीट तक पहुंच गया, फिर क्या था माहौल खराब होता देख अजय जामवाल, और पवन साय को एक-दो स्थानीय नेताओं ने किसी तरह उन्हें कार में बिठाया, और रवाना किया। अनुशासित माने जाने वाले दल में संगठन के प्रमुख नेताओं के सामने हंगामे की खूब चर्चा हो रही है।
दिल्ली से भी कुछ दिलाने का दबाव
भाजपा विधायकों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 5 अप्रैल को होने वाली मुलाकात ठीक एक दिन पहले टल गई। अब अगली तारीख पीएमओ से जब मिलेगी तब विधायक रवाना होंगे। इस बीच सांसद सुनील सोनी, विधायक बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर ने केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की है। सांसद सोनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की और इसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली। लगभग यह तय हो चुका है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा सामने नहीं करेगी। इसका दूसरा मतलब यह भी है कि मोदी के ही नाम-काम से वोट मांगे जाएंगे। इसीलिए विधायकों की प्रस्तावित मुलाकात को खास अहमियत दी जा रही है। इधर एक तरफ 5 तारीख को होने वाली मुलाकात टल गई दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पत्र लिख दिया है। इसमें उन्होंने कहा है कि दलगत राजनीति से हटकर छत्तीसगढ़ के हितों से जुड़े मुद्दे उठाएं। इनमें जीएसटी क्षतिपूर्ति की बहाली, उद्योगों को कोल आयरन की सप्लाई, 4 हजार करोड़ की बकाया कोल रायल्टी का भुगतान, ओबीसी जनगणना, ट्रेनों के नियमित परिचालन और हवाई सुविधाओं का विस्तार आदि मांगें शामिल हैं।
विधानसभा के बजट सत्र में बेरोजगारी भत्ता, यूनिवर्सल हेल्थ, धान पर अधिक बोनस जैसे कई चुनावी वायदों को पूरा करने की कोशिश कर कांग्रेस चुनाव के लिए अपना आधार मजबूत कर रही है। छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए भी अब जरूरी हो गया है कि केंद्र के कुछ ऐसा दिलवाएं जिससे यह लगे कि दिल्ली की सरकार ने राज्य को सीधे कोई लाभ दिया है। केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात के दौरान कुछ मांगें सांसद और दिल्ली गए वरिष्ठ विधायकों ने भी रखी हैं, पर उस पर कोई ठोस जवाब नहीं आया है। हो सकता है कि मोदी से ही कोई घोषणा कराई जाए।
वादा पूरा नहीं करने का अफसोस
सूबे के पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी बीते महीने रिटायर होकर अब संविदा अफसर के तौर पर मुख्यधारा में जुड़ गए। डीजीपी रहते अवस्थी को हमेशा अपने मातहत एक राज्य पुलिस सेवा के अफसर को एक वादा पूरा नहीं करने का हमेशा अफसोस रहेगा। बताते हैं कि रायपुर आईजी रहते अवस्थी ने एक डीएसपी स्तर के अफसर को शराब ठेकेदारों के लठैतों पर कार्रवाई करने पर शाबासी देते वादा किया था कि भविष्य में डीजीपी बनने पर किसी जिले का पुलिस कप्तान नियुक्त करने में जरा भी देरी नहीं करेंगे। साल 2008 में शराब ठेकेदारों के गुर्गों के आतंक का जवाब नहीं देने पर अवस्थी ने तत्कालीन एसपी स्व. बीएस मरावी संग रायपुर के सीएसपी और थानेदारों की खूब खबर ली थी। उस वक्त में शराब ठेकेदारों के गुर्गो की दंबगई को लेकर आला अफसरों को रोज शिकायतें मिलती थी।
इस बैठक का असर ऐसा रहा कि नए नवेले सीएसपी ने अलग-अलग ग्रुप के ठेकेदारों के लठैतों पर जमकर लाठियां भांजी। अगले दिन राज्य पुलिस सेवा के अफसर की कार्रवाई को अखबारों ने पहले पन्ने में जगह दी। मीडिया में कार्रवाई की सुर्खियां पाकर अफसर की तारीफ में कसीदे गढ़ते बतौर आईजी अवस्थी ने डीजीपी की कमान संभालते ही एसपी बनाने का वादा किया।
सुनते है कि ऐसा नही था कि अवस्थी ने पुराने वादे को भुला दिया, बल्कि उस वचन को पूरा करने अफसर के लिए बालोद एसपी बनाने के लिए सरकार को एक फाईल भी भेजी। अवस्थी की यह फाईल शीर्ष जगह में पहुंचकर अलग रख दी गई। तीन साल के लंबे पुलिस मुखिया रहते अवस्थी को इस बात का आज तक मलाल है। बताते हैं कि सरकार की राज्य पुलिस सेवा के अफसर के प्रति नाराजगी को दूर करने में अवस्थी कामयाब नहीं हो पाए। अवस्थी अब रिटायर हो गए और वादा अधूरे स्वप्न की तरह रह गया।
रावघाट रेल की जीरो प्रगति
सन् 2018 में करीब चुनाव से पहले का माहौल था। जगदलपुर की एक आमसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 140 किलोमीटर लंबे रावघाट-जगदलपुर के बीच रेल लाइन का शिलान्यास किया था। तब के केंद्रीय रेल राज्य मंत्री राजेंद्र गोहेन भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। इसे ऐतिहासिक दिन बताया गया था।
इस परियोजना से बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर और कांकेर जिले को लाभ मिलना है। जगदलपुर सीधे रायपुर और दुर्ग से जुड़ जाएगा। आज स्थिति क्या है? बस्तरवासियों को डीआरएम रायपुर ने टका सा जवाब दे दिया है। वर्षों से संघर्ष कर रहे नागरिकों के प्रतिनिधिमंडल को उन्होंने कल जवाब दे दिया कि उनके पास इस रेल लाइन को बनाने के लिए न कोई आदेश आया है, न फंड। रेल चाहिए तो सीधे रेलवे बोर्ड से संपर्क करें।
बस्तर के लोगों को अब तक लग रहा था कि इसकी लागत तय हो गई, प्रस्ताव बन गया, बस फंड जारी होना बाकी है। दो साल पहले जब एसईसीआर को एक साथ 5500 करोड़ रुपये मिले थे, तब भी चर्चा निकली थी कि इसी में रावघाट-जगदलपुर रेल लाइन के लिए भी स्वीकृति मिली है। मगर अब तो यह पता चल रहा है कि पांच साल पहले रखे गए शिलान्यास के कागज भी नहीं दौड़े, जमीन पर काम दिखना तो दूर की बात है। अब बस्तर के लोगों को अपना संघर्ष फिर शून्य से शुरू करना पड़ेगा।
पंजीयन और सत्यापन का फासला
एक अप्रैल से 5 दिनों के भीतर बिलासपुर जिले में बेरोजगारी भत्ते के लिए 23 हजार 156 आवेदन ऑनलाइन जमा किए जा चुके हैं, जिनमें से सत्यापन हुए 363। यानि करीब 1.5 प्रतिशत। यह एक जिले के पहले पांच दिनों का विवरण है। पूरा महीना बचा है, पूरे छत्तीसगढ़ से आवेदन आएंगे। भत्ता मिलना शुरू होगा तब पता चलेगा कि आवेदन कुल आए कितने, कितने आवेदन सत्यापित हुए और कितनों को भत्ता मिल पाया।
छुट्टियों का मौसम
न्यू ईयर में छुट्टी मिलना कम क्या हुआ, अफसर गर्मी में छुट्टी लेकर सैर सपाटे पर निकल रहे हैं। कुछ अफसरों की जरूर कुछ अलग वजह है। हाल यह है कि मंत्रालय में दर्जनभर आईएएस छुट्टी पर हैं। इनमें सीएम के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी भी हैं, जो कि महीने भर की छुट्टी पर चले गए हैं। इसके अलावा हिमशिखर गुप्ता, और बासव राजू भी छुट्टी पर हैं।
यही नहीं, चर्चित आईएएस दंपत्ति रानू साहू, और जयप्रकाश मौर्य भी हफ्तेभर की छुट्टी पर हैं। सचिव स्तर की अफसर श्रुति सिंह, शेहला निगार, और आर संगीता पहले से ही छुट्टी पर चल रहीं हैं। आईएएस दंपत्ति अलबंगन पी, और उनकी पत्नी वित्त सचिव अलरमेल मंगाई डी भी छुट्टी पर थीं।
अलबंगन तो लौट आए हैं, लेकिन अलरमेल मंगाई ने जून तक छुट्टी बढ़ा दी है। मंगाई की जगह अंकित आनंद की जगह वित्त विभाग का प्रभार संभाल रहे हैं। वो भी तीन दिनों की छुट्टी पर थे, लेकिन अब लौट आए हैं। छुट्टी पर जाने की एक और वजह ईडी की सक्रियता भी है। कई अफसर ईडी की जांच के घेरे में आ गए हैं। ऐसे में तनाव मुक्ति के लिए छुट्टी पर जाने का हक बनता ही है।
अब हर किस्म का तापमान बढ़ेगा
कोल और शराब कारोबार में कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग की ईडी पड़ताल कर रही है। रोजाना अफसरों-कारोबारियों के बयान हो रहे हैं। जिन आधा दर्जन अफसर-कारोबारियों को ईडी ने गिरफ्तार किया था, उन्हें अब तक अदालती राहत नहीं मिल पाई है। ईडी जांच का दायरा बढ़ाते जा रही है। नई खबर यह है कि ईडी पखवाड़े भर के भीतर एक और सर्जिकल स्ट्राइक कर सकती है।
ईडी अब उद्योगपति, कारोबारियों के अलावा लाल बत्ती धारी नेताओं को निशाने पर ले सकती है। हालांकि ईडी की अब तक की कार्रवाई से भाजपा को कोई राजनीतिक फायदा मिलते नहीं दिख रहा है। उल्टे निजी चर्चा में पार्टी के नेता इससे नुकसान की आशंका भी जता रहे हैं। यही वजह है कि पार्टी के नेता तोलमोल कर बयान दे रहे हैं, लेकिन अब सह प्रभारी नितिन नबीन के निर्देश के बाद भाजपा ईडी की कार्रवाई के समर्थन में सीएम-कांग्रेस पर हमले तेज करेगी। कुल मिलाकर तापमान बढऩे के साथ-साथ राजनीतिक माहौल के भी गरमाने के आसार हैं।
हटाने की चर्चा और ठहाके
मोहन मरकाम के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटने का हल्ला है। करीब दर्जन भर मंत्री-विधायक दिल्ली में डटे हुए हैं। कुछ को तो मरकाम को हटाने की मुहिम से जोडक़र देखा जा रहा है। दावेदारों में अमरजीत भगत, शिशुपाल सोरी, दीपक बैज, और डॉ. प्रेमसाय सिंह का नाम लिया जा रहा है। इससे परे मोहन मरकाम कोंडागांव में हैं, और अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों की समस्याएं सुलझाने में व्यस्त हंै।
वो पद से हटाने की मुहिम से बेपरवाह हैं, और जब उनके करीबी लोग दिल्ली के घटनाक्रमों से अवगत कराते हैं, तो वो सीधे कोई प्रतिक्रिया देने के बजाए जोरदार ठहाका लगा देते हैं। मरकाम के अंदाज को समर्थक समझ नहीं पा रहे हैं। या तो वो पद पर बने रहने को लेकर आश्वस्त हैं, या फिर कांग्रेस की कार्यशैली का उन्हें अंदाजा है कि कोई भी फैसला जल्दी नहीं होता है। चाहे कुछ भी हो, मरकाम के ठहाके की चर्चा पार्टी के भीतर खूब हो रही है।
यह एक अलग मुकाबला चल रहा है
कांग्रेस पार्टी में, और अब तो उसकी देखादेखी तमाम पार्टियों में चापलूसी आसमान छूती है। कुछ लोग मोदी को ईश्वर का अवतार बताते हैं, तो कुछ लोग उनके लिए हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा भी गढ़ते हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी में अब राहुल गांधी की मुसीबत के वक्त उनके सबसे बड़े हिमायती बनकर सामने आने का एक मुकाबला चल रहा है। छत्तीसगढ़ के आज के कांग्रेस विधायक अपने को छत्तीसगढ़ का प्रथम पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री भी लिखते हैं। उन्होंने अभी यह बयान दिया है कि राहुल गांधीजी नए महात्मा गांधी के रूप में उभर रहे हैं। अभी दो ही दिन पहले उन्हीं की तरह के एक और भूतपूर्व मंत्री, और वर्तमान कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा ने राहुल गांधी को राष्ट्रपुत्र करार दिया था। ऐसा लगता है कि किसी बड़ी अदालत से राहुल के बरी होने तक उनके बारे में कांग्रेस के नेता इतने किस्म के विशेषण उछाल चुके होंगे जो उनके लिए, या किसी भी स्वाभिमानी नेता के लिए तरह-तरह की शर्मिंदगी बने रहेंगे। ऐसी हर चापलूसी नेता की बेइज्जती करवाने के अलावा और कुछ नहीं करती।
काबू पाने का लोकतांत्रिक तरीका
आए दिन मुख्यमंत्री निवास घेराव आंदोलन होता है। इस सरकार ने तय कर लिया है कि इनके साथ वैसी सख्ती नहीं बरती जाए, जो बाद में उसके लिए मुसीबत बन जाए। बेरोजगारी के मुद्दे पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ता कल सीएम हाउस घेरने निकले।
तस्वीर देखें- महिला पुलिस, स्पेशल पुलिस, सिटी पुलिस, ट्रैफिक पुलिस-सबने किस तरह बेहतर तालमेल बनाया है। एक दूसरे की पीठ को पूरे जोर-जोश से पुश कर रहे हैं और पहली कतार के जवानों की ताकत बढ़ा रहे हैं। वे बिना चोट पहुंचाए आंदोलनकारियों को आगे बढऩे से रोक रहे हैं। नियंत्रण ऐसा कि आईना भी न टूटे। पुलिस की इस कवायद को उनके बेहतर प्रशिक्षण के नमूने के रूप में लिया जा सकता है।
वर्दी वाला के पाठकों से नाइंसाफी
एनसीईआरटी के अलावा यूपी के विश्वविद्यालयों में भी पाठ्यक्रम बदलने की खबर कल से एक साथ चल रही है। सबसे दिलचस्प बदलाव लोगों को गोरखपुर विश्वविद्यालय का लग रहा है, जहां हिंदी के विद्यार्थी वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास 'वर्दी वाला गुंडा' और इब्ने सफी की कहानियों को पढ़ेंगें। दोनों जासूसी लेखक 70-80 के दशक में बेहद लोकप्रिय थे। 'वर्दी वाला गुंडा' को लेकर अमेजान का दावा है कि अब तक इसकी 8 करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। रेलवे के एएच व्हीलर और बस स्टैंड की किताब दुकानों में यह आराम से मिलती थीं। संस्कारी वर्ग के मां-बाप ऐसी किताबें पढ़ते देखकर कॉलेज जाते बच्चों की ठुकाई कर देते थे। फिर भी कोर्स वाली बुक के बीच छिपाकर युवा विद्यार्थी इसे और इसी तरह की दूसरी पुस्तकें पढ़ लिया करते थे। उस दौर के जिन लोगों ने इब्ने सफी, वेद प्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक, कर्नल रंजीत, जेम्स हेडली चेज के सारे उपन्यास रट-चाट डाले हैं, उनको गोरखपुर विश्वविद्यालय के फैसले को लेकर जलन हो रही है। कह रहे हैं-हमारे दौर में इसे कोर्स में क्यों नहीं रखा गया? ऐसा होता तो हमें कॉलेज में टॉप करने से कोई नहीं रोक सकता था। वैसे नई शिक्षा नीति में किसी भी उम्र के व्यक्ति को यूजी, पीजी करने की छूट मिल गई है। उस वक्त किसी वजह से लटक गए लोग अब अपना लोहा मनवा सकते हैं।
स्टेट गैरेज की राजनीति
दिग्गज नेताओं के बीच मतभेद को बढ़ाने में कई बार अफसर भी भूमिका निभा जाते हैं। ऐसा ही एक वाक्या स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से जुड़ा हुआ है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सीएम भूपेश बघेल, और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर दोनों एक-दूसरे के सम्मान में कहीं कोई कसर बाकी नहीं रखते। मगर कई अफसर इससे अनभिज्ञ हैं।
हुआ यूं कि सिंहदेव ने सरकारी गाड़ी की हालत ठीक नहीं होने की वजह से बदलने के लिए स्टेट गैरेज को पत्र भेज दिया। सिंहदेव की गाड़ी करीब डेढ़ लाख किमी से अधिक चल चुकी थी। और अतिविशिष्ट लोगों की गाड़ी एक लाख किमी चलने के बाद बदलने का प्रावधान भी है। मगर स्टेट गैरेज के अफसरों ने कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ दिन बाद गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। तब हड़बड़ी में नई गाड़ी के लिए फाइल चली।
सिंहदेव गाड़ी की मरम्मत कर काम चला रहे हैं। इसी बीच तीन और नई गाड़ी खरीदी गई, लेकिन एक गाड़ी प्रमुख सचिव, और अन्य लोगों को आबंटित कर दी गई। स्टेट गैरेज के लोगों ने बता दिया कि सिंहदेव के लिए नई गाड़ी खरीदने की फाइल सीएम ऑफिस में पेंडिंग है। और जब सिंहदेव के स्टाफ ने जब इसकी पतासाजी करने की कोशिश की, तो फिर उन्हें बताया गया कि जल्द ही उनके लिए नई गाड़ी आने वाली है। यानी सीएम ऑफिस का नाम लेकर विवाद खड़ा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
स्टेट गैरेज के पद के लिए काफी जोड़-तोड़ होती है। पिछली सरकार में तो एक शिक्षक ने स्टेट गैरेज के मुखिया का पद पा लिया था। उन्होंने सीएम और उनके करीबी अफसरों की इतनी सेवा की कि उन्हें संविलियन कर दिया गया। वो अब सरकार में ऊंचे ओहदे पर आ गए हैं। स्टेट गैरेज में पदस्थ लोग अब शिक्षक का ही अनुसरण करने लगे हैं।
डॉक्टर हर रूप में भगवान...
सरकारी सेवा से बर्खास्तगी किसी अधिकारी-कर्मचारी के लिए दु:स्वप्न से कम नहीं, लेकिन डॉक्टरों के मामले में ऐसा सोचना नहीं चाहिए। पिछले सप्ताह स्वास्थ्य विभाग ने 11 डॉक्टरों को बर्खास्त किया। कार्रवाई के पहले जिन 13 डॉक्टरों को नोटिस देकर अपनी दलील रखने के लिए मौका दिया गया, उनमें से ये 11 ऐसे थे, जो लगातार 3 साल से ड्यूटी से गायब थे। नोटिस का जवाब देने कोई भी नहीं पहुंचा। इसका मतलब तो यही है कि उन्हें नौकरी खोने की कोई चिंता नहीं थी। 13 में से जिन दो डॉक्टरों पर कार्रवाई नहीं हुई, उन्हें गायब हुए अभी तीन साल नहीं हुए हैं। इसके पहले फरवरी में भी 6 चिकित्सा अधिकारियों की सेवाएं समाप्त की गई और पांच की लंबी गैरहाजिरी बर्दाश्त की गई थी।
सवाल उठता है कि ये डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में ड्यूटी नहीं कर रहे थे तो फिर थे कहां ? इनमें से कुछ एक के साथ निजी समस्या हो सकती है लेकिन बाकी के बारे में यह धारणा गलत नहीं हो सकती कि वे सरकार से फायदा भी ले रहे थे और कहीं दूसरी जगह पर भी प्रैक्टिस कर रहे थे। अपनी खुद की क्लीनिक में या किसी निजी अस्पताल में।
यह तो 3 साल तक लगातार गायब रहने की वजह से की गई कार्रवाई है। साल, 6 महीने से गायब डॉक्टरों की सूची बने तो वह और लंबी हो जाए।
याद हो कि सन् 2013 में जारी स्वास्थ्य विभाग के संचालनालय के परिपत्र के अनुसार बर्खास्तगी जैसी सख्त कार्रवाई सिर्फ 3 साल बाद की जाती है। बाकी को नोटिस देकर मौका देना लगा करता है।
यह भी याद करना ठीक होगा कि पीजी करने के बाद सरकारी अस्पतालों में दो साल की सेवा अनिवार्य है। इसके बावजूद बांड की रकम चुका कर कई डॉक्टर? भागने लगे। बांड की रकम बढ़ाई गई, पर बेअसर। फिर सन् 2017 में मेडिकल एक्ट में एक संशोधन छत्तीसगढ़ सरकार ने किया और नियम बनाया कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से भागने वाले डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की सिफारिश भी की जाएगी, तब छोडऩा कुछ थमा। ध्यान रहे कि मेडिकल छात्रों से फीस तो ली जाती है, बावजूद इसके एक-एक की पढ़ाई पर सरकार के अतिरिक्त लाखों रुपये खर्च होते हैं, हमारे आपके टैक्स से।
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में अनेक विशेषज्ञ पद भरे नहीं जा सके हैं। कई की ड्यूटी लगी है गांव में, अटैच हैं शहरों में। जो अटैच नहीं करा पाते वे ड्यूटी पर जाते नहीं। इसका नतीजा क्या है, इसकी खबर आए दिन, खासकर बस्तर और सरगुजा जिलों से आती रहती है। दूर क्यों जाएं, 2 दिन पहले हुई सुपेला, भिलाई के सरकारी अस्पताल की घटना देख लें। क्रिटिकल सर्जिकल केस होने के बावजूद गायनोलॉजिस्ट के नहीं होने के कारण अकेली नर्स ने नॉर्मल डिलीवरी कराने की कोशिश की और जन्म लेने से पहले ही शिशु ने दम तोड़ दिया। यह बात भी सामने आई कि नर्स की ड्यूटी का वक्त पूरा हो चुका था लेकिन उसका कोई रिलीवर नहीं आया। इसलिए भी उसने हड़बड़ी की। इस अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ की मांग कई बार की गई, नहीं हुई नियुक्ति। यह ऐसे जिले की घटना है, जहां पर कैबिनेट मंत्रियों की भरमार है और राजधानी के नजदीक है।
डॉक्टरों की ऐसी कमी और सरकारी सेवा के प्रति अनेक डॉक्टरों के अनमनेपन के बीच इस साल से यूनिवर्सल हेल्थ सुविधा शुरू करने का अति उत्साही फैसला छत्तीसगढ़ सरकार ने लिया है। हालात ऐसे हों तो क्या गंभीर केस में जान जोखिम में डालकर लोग मुफ्त इलाज कराने सरकारी अस्पताल जाएंगे?
लगे हाथ कुछ दूसरे राज्यों का हाल भी देख लें। बिहार में नीतीश सरकार ने जनवरी माह में एक साथ 81 डॉक्टरों को बर्खास्त किया। छत्तीसगढ़ जैसी ही वजह थी। ड्यूटी पर लौटने की चेतावनी कहें या अपील, डॉक्टरों ने नहीं सुनी। इधर राजस्थान सरकार एक राइट टू हेल्थ बिल लेकर आई है, जो छत्तीसगढ़ की यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम से कहीं आगे की सोच है। निजी अस्पतालों को भी इमरजेंसी केस का मुफ्त इलाज करना होगा, बाद में सरकार इलाज का खर्च देगी। इसके खिलाफ निजी अस्पतालों के डॉक्टर, मालिक लामबंद हुए। पूरे प्रदेश में उन्होंने एक पखवाड़े से ज्यादा दिनों तक स्वास्थ्य सेवाओं को ठप कर दिया। स्थिति ऐसे गंभीर हो गई कि ब्लड टेस्ट कराने के लिए भी लोगों को भटकना पड़ा। सक्षम लोग पड़ोसी राज्यों में इलाज के लिए जाने लगे। गहलोत सरकार को हार माननी पड़ी। कल डॉक्टरों ने हड़ताल सशर्त स्थगित की है। सरकार तैयार हुई है कि केवल वही निजी अस्पताल इलाज करेंगे, जो बीमा योजनाओं और रियायती जमीन के तहत सरकार से लाभ लेते हैं। साथ ही इमरजेंसी केस क्या है इसकी स्पष्ट व्याख्या होगी। इलाज के बाद कितने दिन में भुगतान होगा, यह सुनिश्चित होगा, सरकारी रेट नहीं चलेगा। 50 से कम बिस्तर वाले अस्पताल इस कानून से बाहर किए जाएंगे, फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट हर साल नहीं, तीन या पांच साल में लेना होगा, आदि।
जो डॉक्टर मरीजों को सेवा दे रहे हैं उनको तो इस धरती का भगवान ही माना जाता है। पर जो नहीं दे रहे, अंतर्धान हैं या अपनी शर्तों पर काम कर रहे, वे भी भगवान से कम नहीं हैं।
ईडी का अंदाज
हाल के ईडी के शराब कारोबारी, अफसरों, और उद्योगपतियों पर रेड से जुड़े कई किस्से छनकर निकल रहे हैं। रेड से जुड़े कई लोग बताते हैं कि रायपुर, और आसपास के इलाकों से करीब 90 गाडिय़ां किराए पर ली गई थी।
गाड़ी में बैठने के बाद सभी अफसरों को सीलबंद लिफाफा दिया गया। फिर ड्राइवरों को बताया गया कि गाड़ी कहां जाएगी। इसके बाद सीआरपीएफ के अमले के साथ अलग-अलग जगहों के लिए गाडिय़ां रवाना हुई। गंतव्य स्थान पहुंचने से पहले गाड़ी में बैठने वाले शख्स ने लिफाफा खोला, और फिर ड्राइवर से नाम और एड्रेस गूगल मैप पर लोड कराया। गूगल मैप के सहारे उसी जगह पहुंचे, जहां रेड होना था।
ईडी अफसरों ने फिर कालबेल बजाया, और फिर दरवाजा खुलते ही सर्च वारंट दिखाकर जांच-पड़ताल की कार्रवाई शुरू की। मेयर एजाज ढेबर ने तो बिना सर्च वारंट दिखाए जांच में सहयोग नहीं देने पर अड़े रहे। उनके नाम का सर्च वारंट दिखाया, लेकिन चर्चा है कि बिना सर्च वारंट के उनके भाई अनवर के यहां रेड की गई। अब ईडी ने रेड का कोई ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया है। देखना है आगे क्या होता है।
अधिक चौकन्नेपन में
ईडी की रेड की जानकारी तमाम प्रमुख लोगों को थी। हमने इसी कॉलम में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे के बाद ईडी के संभावित रेड की खबर प्रकाशित की थी। जिनके यहां रेड डली, उनमें से ज्यादातर तो पहले से ही रेडी थे।
सीमावर्ती इलाकों में पुलिस भी चौकस थी। अनजान गाडिय़ों पर पैनी निगाह रखे हुए थी। बताते हैं कि नक्सल इलाकों में काम करने वाले एक ख़ुफिय़ा विभाग के एक मामूली कर्मचारी को ही पुलिस ने गलतफहमी में धर दिया था। बाद में टीआई, और अन्य अफसर पहुंचे, तो वो उन्हें पहचान गए, और फिर छोड़ दिया।
कुछ समय पहले इसी जिले में रेड हुई थी, तब पुलिस को कानोकान भनक नहीं लगी थी। जबकि ईडी का भारी भरकम अमला आसपास ही मौजूद था। इसको लेकर काफी किरकिरी भी हुई थी, लेकिन इसके बाद से विशेषकर सीमावर्ती जिलों के पुलिस अफसर-कर्मी काफी चौकस रहने लगे।
भाजपा में इतना सन्नाटा क्यों था?
प्रदेश में ताबड़तोड़ ईडी के रेड डले, लेकिन भाजपा के लोगों ने राजनीतिक लाभ लेने के बजाए चुप्पी साध ली थी। सीएम, और कांग्रेस के छोटे-बड़े नेता ईडी-मोदी सरकार पर जुबानी हमला करते रहे, लेकिन दो दिन तक भाजपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। चर्चा है कि भाजपा हाईकमान की नाराजगी के बाद पार्टी में हलचल हुई, और पहले अरुण साव, फिर ओपी चौधरी, और पूर्व सीएम रमन सिंह व बृजमोहन अग्रवाल ने कार्रवाई के समर्थन में बयान जारी किए।
भाजपा नेताओं की चुप्पी के पीछे एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि ईडी ने कांग्रेस नेताओं के साथ-साथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, और कोर कमेटी के सदस्य गौरीशंकर अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल के दफ्तर में भी दबिश दी थी, और उनसे बयान भी लिए। नितिन को कसडोल सीट से भाजपा के संभावित उम्मीदवार के रूप में भी देखा जाता है। ऐसे में उनके यहां छापेमारी से भाजपाइयों को सांप सूंघ गया था। प्रदेश में ईडी के तकरीबन 50 छापे पड़ चुके हैं, लेकिन पहली बार किसी भाजपाई के परिवार वाले के यहां छापा डला। अब आगे क्या होता है, यह देखना है।
प्लास्टिक फेंका तो जुर्माना
सार्वजनिक स्थानों पर विशेषकर पर्यटन स्थलों पर थूकने, प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं करने के स्लोगन लगाए जाते हैं पर लोगों पर असर नहीं होता। असर तब होता है जब उन पर जुर्माना लगाने का बंदोबस्त ठीक तरीके से हो। भारतीय रेलवे ने भी थूकने, प्लास्टिक बोतलें और खाने-पीने के खाली पैकेट इधर-उधर फेंकने पर जुर्माने का प्रावधान रखा है। पर बहुत कम कार्रवाई होती है। थूकने, गंदगी फैलाने पर चुस्त निगरानी के लिए उसने कोई सिस्टम नहीं बनाया है। वैसे अब तो रेलवे खुद गंदगी को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। आए दिन सोशल मीडिया पर बोगियों में फैली गंदगी की तस्वीरें यात्री डालते रहते हैं। कोरोना के बाद से रेलवे ने बड़ी संख्या में साफ-सफाई के अनुबंध खत्म कर दिए हैं। प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को उन्होंने वंदेभारत जैसी ट्रेनों को चलाने के नाम पर हाशिये पर रख दिया। वैसे दिल्ली और कुछ दूसरे मेट्रो स्टेशन साफ-सुथरे दिखते हैं। वहां थूकने या गंदगी फैलाने पर 500 रुपये तक जुर्माना है जो जगह-जगह दीवारों पर लिखकर बताया भी गया है। सीसी कैमरों से निगरानी भी होती है। इधर, भुवनेश्वर के जुलोजिकल पार्क प्रबंधन ने जो काम किया है वह एक बेहतर तरीका है। यहां भीतर जाते समय यदि आप प्लास्टिक की पानी बोतल या कोई दूसरा सामान लेकर जाते हैं तो आपको 50 रुपये की एक रसीद कटवानी पड़ेगी। इसे आपके बोतल में चिपका दिया जाएगा। जब आप वापस लौटेंगे तो बोतल वापस करके अपने 50 रुपये वापस ले सकते हैं। पानी पीकर बोतल गार्डन के भीतर फेंक दिया तो सीधे 50 रुपये का नुकसान। इसका परिणाम यह है कि जुलोजिकल पार्क साफ-सुथरा दिखाई देता है। वहां प्लास्टिक कचरा नहीं दिखता। वन और पर्यटन विभाग के अफसरों को अपने यहां भी सीख लेनी चाहिए।
सर्वे में भाजपा की उछाल..
2023 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में किसकी सरकार बनेगी इस पर मीडिया ने काम शुरू कर दिया है। एबीपी न्यूज ने मेट्राइज की ओर से सर्वे कराया है जिसमें दावा किया गया है कि कांग्रेस को 44 फीसदी और भाजपा को 43 फीसदी वोट मिलेंगे। 13 फीसदी वोट दूसरी पार्टियों में चले जाएंगे। अनुमान लगाया गया है कि कांग्रेस को 47 से 52 तो भाजपा को 34 से 39 सीटें मिलेंगीं। सीटों की संख्या एक से 5 तक कम ज्यादा हो सकती है। सर्वे में यह भी पूछा गया कि मोदी फैक्टर का विधानसभा चुनाव में असर होगा या नहीं? जवाब में 38 फीसदी ने कहा बहुत असर होगा, 39 फीसदी ने कहा खास असर नहीं होगा और 23 फीसदी ने कहा थोड़ा बहुत होगा।
यह सर्वे चुनाव की डुगडुगी बजने के 9 महीने पहले किया गया है। इस पर यकीन करें तो 2018 के मुकाबले भाजपा के वोटों में सीधे 10.2 प्रतिशत का उछाल आना है। उसे तब 32.8 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 43 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार कांग्रेस को 44 प्रतिशत वोट मिलेंगे। यानि मतदाताओं को कांग्रेस का समर्थन पिछली बार से अधिक रहेगा लेकिन भाजपा के वोटों में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के कारण कांग्रेस की सीटें पिछली बार से कम हो जाएगी।
कुछ और पीछे जाकर कांग्रेस भाजपा के बीच मुकाबला कैसा रहा है देखें। सन् 2003 के चुनाव में भाजपा 39.26 और कांग्रेस 36.71 प्रतिशत- अंतर 2.55 प्रतिशत का। सन् 2008 में भाजपा 40.33 प्रतिशत, कांग्रेस 38.63 प्रतिशत- अंतर रहा 1.7 प्र्तिशत का। सन् 2013 में भाजपा को 41.04 प्रतिशत और कांग्रेस को 38.63 प्रतिशत वोट-अंतर 2.41 प्रतिशत का। सन् 2018 में भाजपा को 32.8 प्रतिशत तथा कांग्रेस को 43 प्रतिशत से अधिक- अंतर रहा करीब 10.2 प्रतिशत।
सन् 2003 में भाजपा ने 50 तथा कांग्रेस ने 37 सीटों पर जीत हासिल की। सन् 2008 के चुनाव में भाजपा की 50 सीटें बनी रहीं पर कांग्रेस की एक सीट बढक़र 38 हो गई। सन् 2013 में भाजपा 49 सीटों पर जीती, कांग्रेस फिर 38 में रह गई। सन् 2018 में ऐतिहासिक अंतर से कांग्रेस की जीत हुई। कांग्रेस को 68 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा 15 में सिमट गई।
सर्वे में सबसे खास बात यह कही गई है कि 10.2 प्रतिशत का जो भारी अंतर कांग्रेस के पक्ष में था, इस बार वही बढ़त भाजपा को मिल रही है, पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत कम नहीं होगा। सर्वे यह भी बताता है कि प्राय: सभी मोदी सरकार के कामकाज से नाखुश कोई नहीं है। मोदी फैक्टर भी चुनाव में काम करेगा।
अटकलें तो छत्तीसगढ़ को लेकर चौक-चौराहों में भी चल निकली है कि किसे कितनी सीटें मिलेंगी। लोगों की जिज्ञासा को हवा देने के लिए इस तरह के सर्वे अब सामने आते रहेंगे। किस सर्वे पर कितना भरोसा करना है, आप स्वयं तय करें। पिछले चुनावों के कुछ आंकड़े भी आपके सामने यहां रख दिए गए हैं।
ऐसा तो पहले भी बोलते थे
राहुल गांधी को कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा ने राष्ट्रपुत्र कह दिया। भाजपा इसके बाद हमलावर हो गई। प्रवक्ता केदार कश्यप ने राबर्ट वाड्रा की याद दिला दी। कहा- उनको राष्ट्रीय दामाद क्यों नहीं कहते। भाजपा नेता ने ही यह बात पहली बार नहीं कही है। बाबा रामदेव ने सन् 2012 में जब लोकपाल के लिए आंदोलन चल रहा था और वाड्रा के खिलाफ जमीन के मामले कोर्ट पहुचे थे तो उन्होंने वाड्रा को न केवल राष्ट्रीय दामाद कहा था, बल्कि गांधी परिवार को गद्दार, राष्ट्रद्रोही और न जाने क्या क्या कह दिया था। न्यूज चैनलों में उनका यह बयान कई-कई बार लगातार चला। उस वक्त केंद्र और कई राज्यों में कांग्रेस गंठबंधन यूपीए की सरकार थी। फर्क यही है कि सत्ता हाथ में होते हुए भी रामदेव के खिलाफ कांग्रेस ने उनको मानहानि के लिए किसी अदालत में नहीं घसीटा।
वैसे केदार कश्यप के बयान पर सीएम भूपेश बघेल की संयत प्रतिक्रिया रही। दुर्ग में पत्रकारों से उन्होंने कहा- हम सभी राष्ट्र की पुत्र-पुत्रियां हैं। बीजेपी के पास तो गांधी परिवार पर हमला करने के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं है।
ईडी और सुप्रीम कोर्ट
ईडी, और सीबीआई के दुरुपयोग के खिलाफ दायर विपक्षी दलों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 5 तारीख को सुनवाई होगी। यह कहा गया कि पिछले 8 साल में 3010 छापे ईडी ने मारे हैं। इनमें से 95 फीसदी छापे विपक्ष, और उनसे जुड़े लोगों पर पड़े हैं। याचिका में आगे कहा गया कि एक भी भाजपा नेता के यहां छापेमारी नहीं की गई है, और केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है।
छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल में ईडी काफी सक्रिय रही है, और इस दौरान करीब 50 छापे डाले जा चुके हैं। छापेमारी में कांग्रेस के विधायक, और पदाधिकारी निशाने पर रहे हैं। याचिका में छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई का भी जिक्र है। कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट के रूख पर निगाहें लगी हैं।
अवस्थी की अहमियत बरकरार
आखिरकार रिटायर होने के बाद डीजी डीएम अवस्थी को एक साल की संविदा नियुक्ति मिल गई। उन्हें पीएचक्यू में ओएसडी बनाया गया है। नई खबर यह है कि अवस्थी को ईओडब्ल्यू-एसीबी का अतिरिक्त चार्ज दिया जाएगा। एक-दो दिनों में ऑर्डर निकलने की उम्मीद जताई जा रही है। कुल मिलाकर ईओडब्ल्यू-एसीबी में चल रहे हाईप्रोफाइल जांच के चलते अवस्थी महत्वपूर्ण बने रहेंगे।
झंडी के नीचे क्या है?
जब राजनीतिक दलों, और धार्मिक संगठनों को कुछ प्रचार करना होता है, तो वह बहुत हमलावर अंदाज में होता है। अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टैगोर नगर चौक को देखें तो वहां भगवा रंग की इन झंडियों के ढेर के नीचे कुछ है यह अंदाज भी नहीं लग सकता। लेकिन चूंकि वहां रविन्द्रनाथ टैगोर नाम की तख्ती लगी हुई है, इसलिए यह माना जा सकता है कि झंडियों के ढेरतले टैगोर होंगे। राजनीति और धर्म अपने को छोड़ बाकी सबके लिए इसी दर्जे की हिकारत पैदा कर देते हैं।
गागड़ा पर ब्लैकमेलिंग का आरोप
बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी ने अपने बयान से सनसनी फैला दी है। पूर्व वन मंत्री और भाजपा नेता महेश गागड़ा पर उन्होंने आरोप लगाया है कि एक ठेकेदार को उन्होंने और बीजेपी के एक पदाधिकारी ने तेंदूपत्ता ठेकेदार को ब्लैकमेल कर दूर के रिश्ते में चाचा लगने वाले एक व्यक्ति के खाते में 91 लाख रुपये कई किश्तों में डलवाए। मंडावी ने जो बैंक स्टेटमेंट दिखाया है, यदि वह सही है तो यह समझ में आता है कि एक खाते में एक के बाद एक लाखों रुपये किसी अमित सेल्स के एकाउंट से डाले गए।
कुछ दिन पहले गागड़ा के नेतृत्व में भाजपा ने एक आंदोलन किया था। वे तेंदूपत्ता हितग्राहियों और परिवहन ठेकेदारों को भुगतान नहीं होने को लेकर था। मंडावी का कहना है कि ब्लैकमेलिंग के लिए ही यह आंदोलन किया गया जबकि उन्होंने वन विभाग से पता किया तो मालूम हुआ कि परिवहन का कुछ भुगतान रुका है, बाकी सब हो चुका है।
इधर गागड़ा ने भी जवाब दिया है। उन्होंने मान लिया कि जिस खाते का जिक्र है वह उनके एक रिश्तेदार है, पर यह ब्लैकमेलिंग की रकम नहीं है। ठेकेदार रिश्तेदार के खाते का इस्तेमाल करता है। उसी से कैश निकालकर वह हितग्राहियों और ठेकेदारों को भुगतान करता है। गागड़ा ने यह भी कहा है कि मंडावी 10 दिन में सबूत पेश करें वरना वे मानहानि का मुकदमा करेंगे।
पूरे प्रकरण में कई सवाल खड़े होते तो हैं। जैसे, भुगतान के लिए ठेकेदार किसी दूसरे के खाते का इस्तेमाल क्यों करता था? वह भी भाजपा के पूर्व मंत्री के रिश्तेदार का? ठेकेदार क्या किसी एक नेता को 91 लाख रुपये जैसी बड़ी रकम रिश्वत के रूप में दे सकता है? वह भी सीधे खाते में? उसे तो वन विभाग के अफसरों को भी देखना पड़ता होगा, फिर अपना मुनाफा भी निकालना पड़ता होगा। भाजपा शासनकाल में गागड़ा एक बड़े काम के महकमे वन विभाग में मंत्री रहे, पर चुनाव 21,500 मतों के भारी अंतर से हारे थे। फिर भी अगला चुनाव क्यों नहीं लडऩा चाहेंगे। ब्लैकमेलिंग के आरोप से उनकी टिकट की दौड़ पर असर पड़ सकता है। यदि आरोप राजनीतिक नहीं है तो विधायक मंडावी भी प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाने के बजाय सही जगह शिकायत करें, जहां कानूनी कार्रवाई हो। ठेकेदार को भी सफाई देनी चाहिए कि माजरा क्या है?
खुदकुशी का यह मामला साधारण नहीं
जशपुर जिले के बगीचा इलाके में विशेष संरक्षित व राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा के एक परिवार के चार लोगों ने एक साथ फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या का निर्णय पति-पत्नी ने लिया होगा। दो बच्चे जो एक साल और चार साल के थे, उन्हें फांसी पर लटकाने का निर्मम फैसला उन्होंने लिया फिर खुद फंदे पर लटक गए। एक साथ चार मौतों की खबर वह भी विलुप्त होती जनजाति की आने से प्रशासन में हडक़ंप मच गया। शाम तक उसकी जांच रिपोर्ट आ गई।
इस परिवार को उपज का पूरा भुगतान मिल रहा था, सरकारी योजनाओं का वे फायदा उठा रहे थे। प्रधानमंत्री आवास भी मिला हुआ है। गरीबी-भुखमरी के हालात नहीं थे। सरकारी महकमे ने तो अपने ऊपर लगने वाले किसी तोहमत से बचने के लिए यह सब जानकारी जुटा ली और दे दी। पर सवाल खत्म नहीं हुए हैं। यदि आर्थिक स्थिति ठीक थी तो कुछ पारिवारिक, सामाजिक कारण होंगे। आदिवासी समुदाय ऐसे हार नहीं मानता। वे कठोर परिश्रम कर जंगलों से वनोपज इक_ा करते हैं। घंटों पैदल चलकर हाट-बाजार जाते हैं। संघर्ष और जीजिविषा उनके व्यवहार में शामिल है। प्राय: वे सामूहिकता में विश्वास रखते हैं और रीति-रिवाज, पर्वों को मिल-जुलकर मनाते हैं। जबकि इस घटना की वजह पड़ोसियों और ग्रामीणों को समझ नहीं आ रही है। यह समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का अध्ययन करने वालों के लिए शोध का विषय हो सकता है।
कोरबा में फिर किंग कोबरा
कोरबा जिले के जंगल में एक बार फिर किंग कोबरा देखा गया है। दो साल पहले भी देखा गया था। कोरबा वन्यप्राणियों, जंतुओं से समृद्ध जंगल का इलाका है। यदि यहां दुर्लभ किंग कोबरा मिल रहे हैं तो इसका मतलब है इस जंगल को बचाकर रखना जरूरी है। पर कोयला खनन और दूसरे खनिज उत्पादों के लिए यहां बड़े पैमाने पर वनों की जमीन अधिग्रहित की गई है। हाल में कटघोरा के जंगलों में लिथियम का भंडार भी मिला है। ऐसे में भविष्य में ये जंतु दिखाई देंगे या नहीं, कह नहीं सकते।
अधिवेशन के खर्च पर पूछताछ
चर्चा है कि ईडी कांग्रेस अधिवेशन के खर्चों की पड़ताल कर रही है। ईडी का अंदाजा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में करीब 25 करोड़ खर्च हुए हैं। ये खर्चा शराब कारोबारियों, और उद्योगपतियों ने वहन किया है। छापों के बीच ईडी अफसरों ने कुछ लोगों से इसी का हिसाब किताब कुरेद-कुरेद कर पूछा। लेकिन इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला, तो ईडी के अफसर काफी खफा भी हुए।
कुछ लोग मानते हैं कि ईडी का दावा गलत है। क्योंकि होटल आदि के पेमेंट तो अभी तक नहीं हुए हैं। होटल वाले चक्कर काट रहे हैं। वैसे भी सबको अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी। ऐसे में किसी एक के पास हिसाब-किताब नहीं मिल सकता। हल्ला यह भी है कि ईडी अफसर अधिवेशन की व्यवस्था संभालने वाले कुछ और लालबत्तीधारी लोगों के यहां धमक सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है।
संगठन पर चर्चा जारी
कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव का खाका तैयार हो रहा है। सीएम भूपेश बघेल ने पिछले दिनों दिल्ली में प्रियंका गांधी वाड्रा से चर्चा की थी, और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से मंत्रणा हुई। चर्चा है कि खडग़े ने प्रभारी महामंत्री केसी वेणुगोपाल से भी बात की। इन चर्चाओं में विधानसभा चुनाव के चलते संगठन को बेहतर करने पर जोर दिया गया।
सुनते हैं कि सीएम ने अपनी तरफ से काफी कुछ सुझाव दिए हैं। इन सुझावों पर हाईकमान मंथन कर रहा है। इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम से सचिवों की सूची मांगी गई थी। संगठन मेें कुल 90 सचिव नियुक्त होना है। सीएम के सुझाव के बाद सचिवों की नियुक्ति फिलहाल टल गई है। अब कुछ और बदलाव के साथ ये नियुक्तियां होंगी। 6 अपै्रल को संसद सत्र खत्म होने के बाद फेरबदल होगा। देखना है कि आगे क्या बदलाव होता है।
सामाजिक सर्वेक्षण पर वायरल अपील
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा के अनुसार एक अप्रैल से सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण शुरू हो गया है। सर्वेक्षण टीम गांव-गांव जाकर मकानों की नंबरिंग कर रहे हैं। परिवार की मुखिया की जानकारी ले रहे हैं। शैक्षणिक योग्यता, प्रधानमंत्री आवास का लाभ, धान विक्रय, आधार नंबर, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, परिवार के पास भूमि और उसकी सालाना आमदनी, सिंचाई का साधन, वाहन और अन्य चल संपत्ति, कच्चे-पक्के मकान, कौशल प्रशिक्षण, मोबाइल नंबर, उज्जवला गैस कनेक्शन आदि की जानकारी भी सर्वेक्षण टीम जुटा रही है। इधर सोशल मीडिया विशेषकर व्हाट्सएप में एक सूचना वायरल हो रही है जिसमें दूसरे राज्यों में कमाने खाने के लिए गए लोगों को सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए लौटने की अपील की जा रही है। ऐसा भी है कि नहीं लौटेंगे तो उनका विवरण दर्ज नहीं होगा। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रशासन की ओर से इस तरह का कोई निर्देश नहीं जारी किया गया है। केवल सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए लोग गांव लौटें और फिर वापस काम पर जाएं, यह भी व्यवहारिक नहीं है। ऐसे अधिकांश प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों में काम पर जाते हैं। सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण जिस तरह से तैयार किया जा रहा है, उसमें यह भी दर्ज होगा कि गांव से कितने परिवारों ने स्थायी पलायन किया, या प्रवास पर रहकर लौट जाते हैं। बल्कि प्रवास पर रहने वाले श्रमिकों की आर्थिक स्थिति, उनकी व उनके बच्चों की शिक्षा पर पडऩे वाले प्रभाव, आदि का सटीक आंकड़ा भी दर्ज किया जा सकेगा। यह भी स्पष्ट हो सकेगा कि प्रवास पर रहने वाले और गांव में मजदूरी, कामकाज रहने वाले ग्रामीणों की दशा में क्या फर्क है। यदि प्रवास पर रहने वाले मजदूरों को लौटना जरूरी होता तो इस बारे में शासन-प्रशासन की ओर से कोई ना कोई सर्कुलर अब तक जारी हो चुका होता।
मौसम सुहाना पर फसल खराब
छत्तीसगढ़ में एक बार फिर मौसम बदला है। अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रदेश का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में इस मौके पर अलग ही नजारा देखने को मिला। वहां पॉली हाउस में बर्फ की मोटी परत जम गई। बर्फ के गोले उठाकर बच्चे, युवा खेलते रहे। दूसरी ओर फसलों को मौसम में इस परिवर्तन से नुकसान पहुंचा। क्षति इतनी पहुंची कि कलेक्टर कुंदन कुमार नुकसान का जायजा लेने मैनपाट के नर्मदापुर ब्लॉक पहुंचे और गेहूं के खेतों में उतरकर किसानों को हुए नुकसान का लिया। उन्होंने राजस्व अधिकारियों को मुआवजे का प्रकरण बनाने भी जायजा कहा है। मैनपाट पर्यटन का इतना व्यापक साधन नहीं बन सका है कि बर्फबारी हो तो दूर दराज से सैलानी पहुंच जाएं। स्थानीय लोगों की आजीविका तो खेती पर ही निर्भर है।
आम का फल अर्पित करने का पर्व
बस्तर में आदिवासियों के रीति-रिवाज और उनकी संस्कृति अनोखी और विविधता से भरी हुई है। प्रकृति पर ही उनका जीवन निर्भर है और वे जल-जंगल, जमीन का आभार जताने का मौका नहीं छोड़ते। ऐसा ही है चैतराई उत्सव। आम की जब नए फल खाने लायक हो जाते हैं तो वे प्रकृति और देवी देवताओं को याद करते हैं और सबसे पहले उनको खिलाते है। इसके लिए आदिवासी ग्रामीण ही नहीं, बूढ़ा देव और अन्य ‘देवी-देवता’ भी डांग, डोली के साथ जुलूस में शामिल होते हैं। प्रकृति को अक्षुण्ण बनाए रखने और पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी सब लेते हैं। कांकेर में इसी मौके पर कल निकाली गई एक चैतराई यात्रा। ([email protected])
सडक़ों पर पीएम का ट्वीट
केंद्र सरकार लोगों के रहन-सहन में सुधार लाने के लिए क्या कर रही है, इसका प्रचार ठीक से तब नहीं हो पाता, जब राज्य में विरोधी दल की सत्ता हो। चुनावी साल में इसे बताना और जरूरी हो जाता है। प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर भाजपा ने इसीलिए हल्ला बोला है। अन्य भी केंद्रीय योजनाओं से फायदा लोगों को मिला है। ऐसे ग्रामीणों के साथ भाजपा नेता तस्वीरें खींच रहे हैं। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने समय में प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना शुरू की थी। इसी से जुड़े प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव के एक ट्वीट को हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिट्वीट किया है। इसमें एक वीडियो है जिसमें ग्रामीण बता रहा है कि उसके खेत तक सडक़ पहुंच गई। यह तो हुई तारीफ लेकिन सोशल मीडिया तो खुला मंच है। साव के ही इलाके के लोरमी, मुंगेली, पेंड्रारोड से ही लोगों ने जवाब में लिखा है कि हमारे यहां सडक़ की मंजूरी नहीं मिली और मिली तो काम शुरू नहीं हुआ। जीपीएम जिले का कुछ हिस्सा बिलासपुर संसदीय सीट में आता है। यहां से अखबारों की कतरन चिपकाकर बताया गया है कि किस तरह लोगों ने सरकार की अनदेखी के चलते श्रमदान करके सडक़ को चलने लायक बनाया है। बस्तर की केशकाल घाटी में सालों से अधूरी पड़ी सडक़ पर भी सवाल किया गया है। पर, ये सभी केंद्र की योजनाओं में शामिल नहीं हैं। कई जर्जर सडक़ों का प्रधानमंत्री योजना से संबंध नहीं है, राज्य की है या फिर एनएचएआई की। सांसद के ट्वीट और पीएम के रिट्वीट के चलते कम से कम लोगों को अपना दर्द बयान करने का मौका मिल गया, समस्या दूर हो चाहे न हो।
हो गया तुरंत तबादला...
खनिज और राजस्व अधिकारियों पर अक्सर आरोप लगता है कि वे रेत के अवैध परिवहन को संरक्षण देते हैं। कहीं-कहीं जनप्रतिनिधि कार्रवाई के लिए भिड़ जाते हैं तो कार्रवाई होने पर नाराज भी हो जाते हैं। पिछले साल खुज्जी विधायक छन्नी साहू ने रेत माफियाओं के खिलाफ आर-पार की लड़ाई शुरू कर दी थी। कुछ अवैध खनन, परिवहन करने वालों पर उनके दबाव में एफआईआर दर्ज हुई लेकिन इस धंधे से जुड़े लोग भी वहां कम ताकतवर नहीं थे। विधायक के पति पर एफआईआर दर्ज हो गई। वह भी एट्रोसिटी एक्ट में, रेत ढो रही एक गाड़ी के ड्राइवर की शिकायत पर। कुछ दिनों के लिए जेल भी उनको जाना पड़ा। अब इधर का मामला बिल्कुल उल्टा है। बलौदाबाजार जिले के पलारी के तहसीलदार नीलमणि दुबे का अचानक तबादला हो गया। कुछ घंटे पहले ही बिना रायल्टी पर्ची के रेत की ढुलाई कर रही एक गाड़ी पर उन्होंने चालान किया था। तहसीलदार की मानें तो विधायक शकुंतला साहू इस कार्रवाई से भडक़ गईं। उन्होंने एक घंटे के भीतर तबादला कराने की चेतावनी दी। चेतावनी फिजूल नहीं थी। तीन घंटे बाद तबादले का आदेश आ भी गया। दुबे को राज्य निर्वाचन कार्यालय रायपुर भेज दिया गया। हालांकि विधायक का कहना है कि क्या मैंने उसे हटवाया? वह तहसीलदार बदतमीज था।
कोयल एक अलग रंग में
यह कोयल की एक प्रजाति है। आम काली कोयल से अलग। ग्रे कलर के पंख हैं, लेटिन नाम हेपेटिक मार्फ। घूमने फिरने का शौक रखने वाले अनुराग शुक्ला ने डोंगरगढ़ के पास यह तस्वीर इस नवरात्रि के दौरान ली। ([email protected])
ईडी के रडार पर आगे
पिछले तीन दिनों से एक के बाद एक उद्योगपतियों, कारोबारियों, और अफसरों के यहां दबिश देने के बाद ईडी की कार्रवाई थमी नहीं है। चर्चा है कि आने वाले दिनों में कई और के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। खनिज, उद्योग, और आबकारी से जुड़े लोगों के यहां छापेमारी के बाद ईडी का अगला ठिकाना जल जीवन मिशन दफ्तर हो सकता है।
सुनते हैं कि पीडब्ल्यूडी की कुछ परियोजनाएं को भी घेरे में ले सकती है। जल जीवन मिशन में तो शुरुआत में काफी अनियमितता हुई थी। सत्ता हो या विपक्ष, दोनों ही मिशन के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं। हालांकि सीएम की दखल के बाद मिशन की परियोजनाएं पटरी पर लौट आई। फिर भी ईडी की इस पर पैनी नजर है। इसी तरह पीडब्ल्यूडी की एनएच की परियोजनाओं में कथित गड़बडिय़ों के लिए ईडी आगे आ सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
जाते-जाते फैसले, कार्रवाई
कुछ समय से अलग-अलग जगहों पर शीर्ष पदों पर बैठे लोग अपने उत्तराधिकारी को प्रभार देने से पहले महत्वपूर्ण फैसले लेने से परहेज नहीं लगे हैं। राज्यपाल अनुसुईया उइके ने नई जिम्मेदारी संभालने से पहले जाते-जाते रविवि कुलपति नियुक्ति कर दी थी। और अब उन्हीं का अनुसरण रविवि के कुलपति डॉ. केसरीलाल वर्मा भी कर रहे हैं।
डॉ. वर्मा ने नए कुलपति को प्रभार देने से पहले दो बार कार्यपरिषद की बैठक बुलाकर कई फैसले ले चुके हैं। अब कार्यकाल खत्म होने के आखिरी क्षणों में कुछ और फैसले लेना चाह रहे थे। मगर रविवि के प्रशासनिक अफसरों ने हाथ खड़े कर दिए। इनमें कार्यपरिषद के एक सदस्य का मनोनयन, मंदिर ट्रस्ट से जुड़े कुछ फैसलों की फाइल भी थी। कार्यपरिषद की बैठक में वित्तीय फैसले लेने से पहले ही अफसर नाखुश थे। इसके बाद उन्होंने कुछ और फैसले करने की इच्छा जताई, तो उन्हें साफ तौर पर मना कर दिया।
सीखने के लिए बस्तर से स्वीडन
जिस विधा को आपने अपनाया है, उसमें पारंगत होने की ललक होनी चाहिए और सीखने का कोई मौका नहीं छोडऩा चाहिए। बस्तर के थमीर कश्यप स्वीडन के गोथनबर्ग में 19 से 23 सितंबर 2023 तक होने वाले जीआईजे कांफ्रेंस (ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कॉफ्रेंस) में शामिल होने जाएंगे। इसमें दुनियाभर से 2000 प्रतिनिधि शामिल होंगे, साथ ही 150 विशेषज्ञ भी होंगे। अतिथियों में पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त पत्रकारों के अलावा अन्य खोजी पत्रकार, संपादक, अखबार मालिक आदि भी होंगे। सन् 2001 से यह सम्मेलन हर साल होता है और अब तक 10 हजार से अधिक पत्रकार यहां से प्रशिक्षण ले चुके हैं। इस दौर में सबसे जरूरी है कि नई पीढ़ी के मीडिया कर्मी प्रशिक्षण लें। थमीर को पत्रकारिता करते हुए सिर्फ 2 साल हुए हैं पर निश्चित ही इस कांफ्रेंस से लौटने के बाद अनुभवी पत्रकारों को टक्कर देंगे।
टारगेट किलिंग की ओर नक्सली
बस्तर में हाल ही में एक जवान की नक्सली हमले में मौत हुई। तीन जवान पिछले महीने मारे गए थे, जब वे सडक़ निर्माण कार्य की निगरानी के लिए निकले थे। पर इससे अलग यह हो रहा है कि वे अब टारगेट किलिंग अधिक कर रहे हैं। अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं की हत्या को लेकर भाजपा बिफरी भी थी और प्रदर्शन किया था। अभी नारायणपुर में पूर्व उप-सरपंच की गला घोंटकर हत्या कर दी गई। सुकमा में एक और युवक को मार डाला गया। परचे डालकर नक्सलियों ने हमेशा की तरह बताया कि पुलिस की मुखबिरी करने की वजह से हत्या की जा रही है। नक्सली वैसे भी गोरिल्ला वार करते आए हैं, छिपकर हमला करते हैं। पर फरवरी और मार्च महीने के भीतर ही 7 टारगेट करके की गई हत्याएं बता रही है कि वे अपनी इसी रणनीति पर अधिक ध्यान रहे हैं। सुरक्षा बलों के काफिले पर हमला होता है तो मीडिया में जगह ज्यादा मिल जाती है पर एक दो हत्याओं की खबर छोटी सी जगह में समेट लिया जाता है। पर, ऐसी एक ही हत्या आसपास के दर्जनों गांवों में दहशत फैलाने के लिए काफी है। बस्तर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सन् 2024 के चुनाव से पहले नक्सल हिंसा के खात्मे का संकल्प दोहराकर गए हैं। पर उनके जाने के बाद ऐसा दिखाई नहीं देता कि नक्सलियों में उनके दौरे का कोई खौफ है।
पीएम के प्रति ऐसा लगाव...
केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने एक वीडियो ट्वीट किया है, जिसमें थैला लिया यह व्यक्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर पर हाथ फेर रहा है और उसे चूम रहा है। गोयल ने लिखा है- प्रधानमंत्री और अन्नदाता के बीच का अटूट बंधन। पीछे किसी महिला की आवाज आ रही है, वह क्या कह रही है पता नहीं पर व्यक्ति उसकी बात से नाखुश लग रहा है। देश में जब 80 करोड़ ऐसे गरीब हों, जिनको मुफ्त चावल देने की नौबत हो तो ऐसी श्रद्धा मुमकिन है।
अतिक्रमण और विकास आमने-सामने
महिला सरपंच, दो महिला पंच और तीन पुरुष सरपंचों को धमतरी जिले के परेवाडीह के ग्रामीणों ने 13 घंटे तक पंचायत भवन में बंधक बना रखा। जो जानकारी आई है उसके मुताबिक उन्हें पानी तक पीने के लिए नहीं दिया गया। पानी की मांग की तो बदले में सरपंच से इस्तीफा मांगा गया, देना पड़ा। इसके पहले सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया था, जो ध्वस्त हो गया था। दरअसल इस गांव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा के अनुरूप 47 करोड़ रुपये से उद्यानिकी कॉलेज खोलने के लिए जमीन सरपंच ने दे दी है। गांव वालों का कहना है कि इसके बाद गौठान और निस्तारी के लिए गांव में जगह नहीं बचेगी। अब यहां कॉलेज नहीं खुलेगा। इस कॉलेज से आसपास के युवाओं और किसानों को जो लाभ मिलता, उससे वे वंचित हो गए। परेवाडीह ग्राम में कॉलेज की प्रस्तावित जमीन पर बहुत से लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है।
प्रदेश का कोई कस्बा या पंचायत अतिक्रमण से अछूता नहीं है। यह काम सरपंच के संरक्षण और पटवारियों की हेराफेरी के चलते हो रहा है। दैहान, नदी, तालाब, नहर, श्मशान घाट कुछ भी अछूता नहीं है। कई गांवों में सरकार की महत्वाकांक्षी गौठान योजना के लिए भी जमीन नहीं मिल रही है। तीन साल पहले हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुंगेली जिले के सभी अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ याचिका लगाई गई। अपील भी कोर्ट ने खारिज कर दी। पर शुरूआती सक्रियता के बाद जिला प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए। बेजा-कब्जे की सूची इतनी लंबी हो गई कि सारा अमला लगाकर भी उसे हटाया नहीं जा सका।
विधानसभा में भी कई बार यह मुद्दा उठा है। जुलाई 2022 में बृजमोहन अग्रवाल के सवाल पर राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने बताया था कि प्रदेश में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के 18 हजार से अधिक मामले दर्ज हैं। वास्तविक संख्या तो इससे अधिक होगी। पर इतने में कार्रवाई क्या हुई, यह पता नहीं। मंत्री ने एक तरह से बेजा-कब्जा करने वालों को यह कहकर राहत दे दी कि यूपी की तरह यहां बुलडोजर नहीं चलाया जाएगा। रायपुर के भाठागांव में कॉलेज की जमीन पर अतिक्रमण का आरोप विपक्ष ने लगाया। तब के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने बताया कि किस तरह से दस्तावेज में गड़बड़ी कर एक तहसीलदार ने करोड़ों की जमीन निजी व्यक्ति के नाम चढ़ा दी। जाहिर है कि रसूखदारों के लिए यह खेल करना कठिन नहीं है। ये लोग राजनीतिक पकड़ भी रखते हैं। राजस्व मंत्री और जिलों के कलेक्टर नासूर होती जा रही समस्या पर मौन दिखाई दे रहे हैं।
बंगलों का मुकाबला
सांसदी छिनने के बाद राहुल गांधी को दिल्ली का सरकारी बंगला खाली करने के नोटिस के बाद से प्रतिक्रियाओं का दौर चल रहा है। छत्तीसगढ़ के कई कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश प्रभारी शैलजा से मिलकर कुछ भाजपा विधायकों को मिल रही अतिरिक्त सुविधाओं को वापस लेने की मांग कर दी। शैलजा ने भी सुर में सुर मिलाया, लेकिन यह सब कुछ आसान नहीं है।
सरकार जाने के बाद भी बृजमोहन अग्रवाल से बंगला खाली नहीं कराया गया। यह बंगला पहले पीएचई मंत्री रूद्र कुमार गुरु को आवंटित किया गया था। बृजमोहन के पारिवारिक वजहों को देखते हुए सीएम ने उदारता दिखाई, और उनके लिए नियमों को शिथिल कर सीनियर विधायक के रूप में उन्हें बंगला पुन: आवंटित कर दिया। अब बृजमोहन का परिवार मौलश्री विहार के पास कॉलोनी में शिफ्ट हो गया है। यह बंगला अब उनके ऑफिस उपयोग में आ रहा है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय, और गौरीशंकर अग्रवाल को भी बंगला मिला। ये दोनों वर्तमान में विधानसभा के सदस्य नहीं हैं, लेकिन पिछली सरकार ने पूर्व विधानसभा अध्यक्षों को मंत्रियों की तरह सुविधाएं देने का नियम बनाया था। यही वजह है कि दोनों को बंगले के अलावा सरकारी गाड़ी, और फॉलो पायलेटिंग की सुविधाएं प्राप्त है। और नियम बदले बिना उन्हें बंगला खाली नहीं कराया जा सकता।
धान से बीजेपी की नींद हराम
खबर है कि धान खरीद की सीमा प्रति एकड़ 20 क्विंटल करने की घोषणा के बाद से भाजपा के नेता चिंतित हैं। कुछ भाजपा नेताओं ने पिछले दिनों पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के डोंगरगढ़ प्रवास के दौरान मेल मुलाकात कर चिंता जताई, और कहा कि भूपेश सरकार के इस तरह के फैसले से भाजपा के सत्ता में आने की संभावना कठिन हो चली है। चर्चा है कि रमन सिंह ने उन्हें आश्वस्त किया कि पार्टी इस दिशा में गंभीरता से काम कर रही है, और किसानों के लिए बेहतर प्लान लेकर आने वाली है। जिससे चुनाव में पार्टी को फायदा मिलेगा।
दूसरी तरफ, पूर्व सीएम ने अपने करीबियों को संकेत दिए हैं कि वो खुद विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। पहले उनकी जगह अभिषेक सिंह के चुनाव लडऩे की अटकलें लगाई जा रही थी। पूर्व सीएम ने यह भी संकेत दिए हैं कि उनके परिवार से और कोई चुनाव नहीं लड़ेगा। जबकि पूर्व सीएम के भांजे विक्रांत सिंह खैरागढ़, और भांजी भावना बोहरा पंडरिया से टिकट चाह रहे हैं। दोनों ही जिला पंचायत के सदस्य हैं। दोनों चुनाव की तैयारी भी कर रहे हैं। ऐसे में पूर्व सीएम के लिए घरवालों को समझाना आसान नहीं होगा।
दुल्हन दूल्हे की गोद में
यह बिटिया आजीवन सुखी रहेगी। मंडप पर ही पति ने प्यार बरसा दिया। मुख्यमंत्री कन्या विवाह की योजना के तहत कोरबा में समारोह रखा गया था। कोरबा वैसे भी छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक तापमान वाले शहरों में से एक है। गर्मी के चलते वह गश खाकर गिर गई। परंपरा के तहत क्या पता, दुल्हन ने कुछ खाया भी था या नहीं। मंडप में दुल्हन के बेहोश होने पर दूल्हे ने उसको गोद में उठा लिया और उसके साथ सात फेरे लगाए।
लोचा है पर सतर्क रहें
भारतीय रिजर्व बैंक ने एक अप्रैल से 2000 रुपए से अधिक वॉलेट ट्रांजैक्शन पर 1.1 प्रतिशत सरचार्ज लगाने का ऐलान किया है। पहले तो सबको पेपरलेस ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के लिए प्रेरित किया गया आप जब लोग इसके आदी हो गए हैं तब सर चार्ज की बात आ गई है। मगर ठहर जाएं। यह सर चार्ज सिर्फ वॉलेट पेमेंट पर लगने वाला है। समझ लीजिए कि आपने रेलवे टिकट बुक कराने के लिए रेल वॉलेट पर रकम डाल रखी है या फिर टोल टैक्स पटाने के लिए एयरटेल या किसी दूसरे बैंक के वॉलेट पर पैसे डाल कर रखे हैं तो यह सर चार्ज आपको चुकाना पड़ेगा। वह भी तब जब यह रकम 2000 रुपए से अधिक। मगर अपने खाते से पेटीएम फोन पर भीम यूपीआई आदि से सीधे किसी को पैसे दे रहे हैं तो उसमें सर चार्ज नहीं लगने वाला है। राहत अभी तो है। वॉलेट में पैसा डाल कर मत रखें। रखे भी तो दो हजार से कम भुगतान करें। मगर ऐसा लगता है कि एक टोह ली गई है। आने वाले दिनों में दायरा बढ़ भी सकता है।
दोस्ती हम नहीं करेंगे
देशभर में आरिफ और सारस की दोस्ती चर्चा में आ गई है। ताजा खबर यह है कि वह सारस घायल हो चुका है और किसी दूसरे ठिकाने से वन विभाग के अधिकारियों ने पकड़ लिया है। अब मोर का किस्सा। कानपुर के इस शख्स ने घायल मोर का इलाज किया है। मगर वह मोर को अपने साथ वह नहीं रखना चाहता। उसे लगता है कि आरिफ की तरह उसे भी इस पक्षी से मोह हो जाएगा। उसने इसे कानपुर के चिडिय़ाघर में ले जाकर सौंप दिया है।
कारोबार के दिग्गज पर छापे से सनसनी
ईडी की कार्रवाई से कारोबारी जगत में हडक़ंप मच गया है। ईडी ने उन कारोबारियों के यहां भी दबिश दी, जिनकी साख न सिर्फ अच्छी रही है बल्कि बड़े राजनेताओं से मित्रवत संबंध रहे हैं। इनमें प्रमुख नाम उद्योग जगत की बड़ी हस्ती कमल सारडा, और उनके पुत्र पंकज सारडा हैं।
सारडा ग्रुप को लेकर छत्तीसगढ़ से उरला-सिलतरा इलाके में यह कहा जाता है कि वहां विपरीत परिस्थितियों में भी कर्मचारियों की छंटनी नहीं की गई। कमल सारडा के बारे में यह कहा जाता है कि वो छोटे-छोटे कर्मचारियों का पूरा ध्यान रखते हैं।
राजनेताओं से उनके संबंधों की प्रगाढ़ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका चाहे दिवंगत अजीत जोगी हो, या फिर रमन सिंह, या फिर मौजूदा सरकार के प्रमुख नेता, हर किसी से उनकी दोस्ती रही है।
राम मंदिर हो या फिर भाजपा का कोई अन्य कार्यक्रम, कमल सारडा मुक्त हस्त से सहयोग करने में पीछे नहीं रहे। आरएसएस और भाजपा के कई कार्यक्रमों के आयोजक प्रायोजक रहे हैं। कुछ लोग बताते हैं कि अभिषेक सिंह सक्रिय राजनीति में आने से पहले कुछ समय तक सारडा ग्रुप के मुंबई ऑफिस में मैनेजमेंट के गुर सीखे थे। ऐसे में उनके यहां ईडी की कार्रवाई से न सिर्फ कारोबारी जगत बल्कि कांग्रेस और भाजपा के नेता भी सकते में आ गए हैं।
ईडी-2
ईडी की कार्रवाई जिन ताकतवर लोगों के यहां हो रही है, उनमें प्रमुख नाम शराब कारोबारी पप्पू भाटिया का भी है। छापेमारी से पहले तक पप्पू भाटिया को संकट मोचक के रूप में देखा जाता था। इसकी वजह भी है कि उनकी केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह से क्रिकेट एसोसिएशन के चलते निकटता है।
भाटिया के यहां कुछ महीने पहले पारिवारिक विवाह समारोह में जय शाह और कांग्रेस के ताकतवर नेता राजीव शुक्ला दो दिन तक रहे। बताते हैं कि जय शाह सालभर पहले रायपुर होते हुए कान्हा किसली अभ्यारण्य गए, तो उन्होंने इसकी जानकारी सिर्फ भाटिया के बेटे को ही दी थी।
भाजपा के किसी नेता को इसकी भनक नहीं लगी। चूंकि राजनीतिक हल्कों में यह माना जाता है कि ईडी हो या आईटी की कार्रवाई, अमित शाह की पैनी नजर रहती है। ऐसे में पप्पू भाटिया के लपेटे में आना जानकार लोगों को चौंका रहा है।
पड़ोसी के चक्कर में हल्ला
महासमुंद के विधायक विनोद चंद्राकर के यहां ईडी की कार्रवाई का हल्ला उड़ा। दरअसल, कार्रवाई शंकर नगर स्थित उनके सरकारी बंगले के बगल में रहने वाले उद्योग विभाग के एडिशनल डायरेक्टर प्रवीण शुक्ला के यहां हुई, लेकिन चंद्राकर और उनके करीबी लोग अपने यहां कार्रवाई का खंडन करने का हौसला नहीं जुटा पा रहे थे। इसकी प्रमुख वजह यह थी कि दो विधायकों के यहां पहले ही दबिश दे चुकी है।
महासमुंद में तो उनके परिवार के लोग यह कह रहे थे कि शंकर नगर में कुछ चल रहा होगा, तो उनकी जानकारी में नहीं है। उनके समर्थक मानकर चल रहे थे कि ईडी की टीम देर सबेर आ सकती है। देर शाम को साफ हुआ कि उनके यहां छापे नहीं पड़े। बल्कि पड़ोस में पड़े। तब कहीं जाकर चंद्राकर के समर्थकों ने राहत की सांस ली।
बस्तर में ध्रुवीकरण की कोशिश
कहा जाता है कि जो यूपी जीतेगा उसी की केंद्र में सरकार बनेगी। छत्तीसगढ़ में कहते हैं कि बस्तर की सीटें जिसके पास, राज्य की सत्ता भी उसी के पास। संभवत: इसीलिए बड़ी तेजी से बस्तर में वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश चल रही है। सुकमा का ताजा विवाद इसी का संकेत दे रहा है। यहां हिंदू राष्ट्र की मांग वाले पोस्टर बैनर लगाने पर विवाद हुआ। विवाद इस बात पर भी था कि किसी मोहल्ले का नाम बदलकर दूसरे नाम के बैनर लगाए गए।
सुदूर सुकमा की तरह देश के हर कोने की तरह ऐसी जगह में भी भिन्न भिन्न समुदायों के लोग रहा करते हैं। पूरे देश में यही हालत है। अलग-अलग मान्यताओं, धर्म, पंथ को मानने वाले लोग हैं। इसी विविधता को भारत की श्रेष्ठता, विशिष्टता कही जाती है। हिंदू राष्ट्र की मांग के लिए में कोई विधेयक नहीं लाया जा रहा है। पर, समर्थक समूह और चमत्कारी बाबा सडक़ पर माहौल बना रहे हैं। मकसद, पुलिस लाठी चलाए, लोगों को उकसाया जाए, शहर की दुकानें बंद कराई जाएं, शांति भंग हो और उसका फायदा आने वाले चुनावों में हो। कवर्धा में 2021 में इसी तरह से तनाव का माहौल बना था, कफ्र्यू लगानी पड़ी। छत्तीसगढ़ के लोग और यहां की पुलिस ऐसे मामलों से निपटने के लिए अभ्यस्त नहीं है।
महानदी पर फैसला आने वाला है...
ओडिशा सरकार की शिकायत रही है कि महानदी पर छत्तीसगढ़ में इतने बराज बना दिए गए हैं कि किसानों को पानी नहीं मिलता। हालांकि हीराकुंड बांध में स्थापित जल विद्युत परियोजनाओं और उद्योगों को पानी के कारण भी उसे किल्लत होती है। इसके विपरीत बारिश के मौसम में छत्तीसगढ़ के बांधों से ज्यादा पानी छोडऩे पर भी ओडिशा सरकार ऐतराज करती है, वहां गांवों के डूब जाने का खतरा पैदा हो जाता है। यह विवाद तब से चल रहा है जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी और ओडिशा में भी भाजपा सरकार का हिस्सा थी। छत्तीसगढ़ के पक्ष को तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने मजबूती से रखा था और ओडिशा के दावे को नकारा था। एक टीम भी ओडिशा से आई थी जिसने महानदी के उद्गम स्थल सिहावा से लेकर सहायक नदियों के क्षेत्र का दौरा किया था। इन दोनों राज्यों की मांग पर एक ट्रिब्यूनल का गठन जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता में किया गया था। एक बार इस ट्रिब्यूनल का कार्यकाल भी बढ़ाया गया था, मार्च 2023 तक। मगर ट्रिब्यूनल ने अगले माह यह रिपोर्ट देने की बात कही है। इस ट्रिब्यूनल का दौरा आने वाले 15 दिनों में छत्तीसगढ़ में भी हो सकता है। महानदी पर छत्तीसगढ़ में गंगरेल तो ओडिशा में हीराकुंड प्रमुख बांध हैं। छोटे बांधों और बराज की संख्या, सहायक नदियों को जोड़ दें तो दोनों राज्यों में बहुत से हैं। देखना होगा कि अगले महीने छत्तीसगढ़ के भ्रमण पर आने वाले ट्रिब्यूनल के सामने छत्तीसगढ़ सरकार अपना पक्ष किस तरह से रखेगी।
महुआ की इकोनॉमी
वसंत उतार पर आते ही जंगल महुआ की सोंधी महक से महक,लुभाते है। वनवासी अल सुबह महुआ बीन खासी राशि जुटा लेते है। महुआ स्वास्थ्यवर्धक फल है। रस सुस्वादु होता है। प्रोसेसिंग के बाद तो और भी मस्त। रायगढ़ जिले की तस्वीर।
अलग धर्म कोड की मांग
शहीद स्मारक रायपुर में अनुसूचित जनजाति सम्मेलन में दो बातें हुईं। एक तो मंत्री अमरजीत भगत के भाषण के दौरान नारेबाजी हुई। लोगों ने कहा कि हमारे 29 विधायक हैं, पर आरक्षण नहीं दिला पाए। जाहिर है भगत ने आरक्षण रोकने के लिए भाजपा पर आरोप लगाया। कहा कि वे आरक्षण के खिलाफ पहले सडक़ पर निकलते थे, पर अब विधानसभा में पारित विधेयक पर हस्ताक्षर के लिए राज्यपाल से मिलने भी नहीं जा रहे हैं। भगत का सम्मेलन में विरोध स्पष्ट करता है कि यहां सिर्फ कांग्रेसी नहीं, बल्कि सभी दलों से जुड़े लोग थे। ज्यादा महत्वपूर्ण बयान मंत्री कवासी लखमा का है, जिसमें उन्होंने कहा कि आदिवासियों के प्रतिनिधि अप्रैल महीने में दिल्ली जाएंगे और राष्ट्रपति से मिलकर अपने लिए हिंदू से अलग, एक धर्म कोड की मांग करेंगे।
आदिवासी हिंदू हैं या नहीं इस पर हमेशा बहस होती रही है। अनेक आदिवासी संगठन मानते हैं कि वे प्रकृति के पूजक हैं, उनकी पूजा पद्धति और देवी-देवता अलग हैं। भाजपा इनको हिंदू समाज का हिस्सा मानती है। धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चलाती है, घर वापसी कराती है।
सवाल यह है कि क्या वही विषय चुनाव के समय जरूरी हो जाता है जो धार्मिक पहचान से जुड़ी है। क्या इस मुद्दे को किनारे रख आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन, रोजगार और संस्कृति से जुड़ी उनकी चिंताओं को हल करने की बात करना ज्यादा जरूरी नहीं है। बस्तर में भाजपा का पिछले चुनाव में सफाया हो गया था। एक साल से आदिवासियों के धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर वह आंदोलन कर रही है। बस्तर के ईसाईकरण का आरोप कांग्रेस पर लगा रही है। शव दफनाने को लेकर बीते दिनों एक के बाद एक कई विवाद हुए, सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं हुईं। चुनावी साल में लखमा की ओर से उठाया गया धर्म कोड का मुद्दा भाजपा से मुकाबले की एक रणनीति लग रही है। वैसे लखमा का दावा है कि जनजाति सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित हुआ है।
धार्मिक पहचान का ध्रुवीकरण
कोई भी आदिवासी ग्रामीण, ईसाई और हिंदुओं के खेत या घरों में काम करता पाया जाएगा, तो ग्रामसभा उस पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाएगी। बाहर के त्यौहारों को मनाने के लिए ग्रामसभा से अनुमति लेना जरूरी है। ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ ग्रामसभा कार्रवाई कर सकती है, जो आदिवासियों के बीच किसी अन्य धर्म का प्रचार करता है। गांव में बच्चों का नामकरण, विवाह, पूजा, प्रार्थना जैसी सभी महत्वपूर्ण गतिविधियां आदिवासी मान्यताओं के अनुसार की जाएगी। ईसाई गांव में मृतक को नहीं दफना सकते। नियम तोडऩे वालों को गांव से बाहर कर दिया जाएगा। यहां किसी भी तरह की विकास योजना ग्रामसभा से स्वीकृति मिलने के बाद ही शुरू की जा सकेगी।
बस्तर जिले के तोकापाल तहसील के रनसरगीपाल की ग्राम सभा ने यह प्रस्ताव पेसा कानून में मिले अधिकारों का हवाला देते हुए पारित किया है। वे इसकी जानकारी देने पिछले दिनों जगदलपुर कलेक्टोरेट पहुंचे थे। वहां एडिशनल एसपी ने उन्हें बताया कि पेसा कानून में ग्राम सभा सर्वोपरि तो है लेकिन ऐसा कुछ भी पारित नहीं किया जा सकता जिससे किसी को संविधान में मिले मौलिक अधिकारों का हनन हो। सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ तो अलग से कानून हैं ही।
बस्तर की इस ग्रामसभा की यह घटना सन् 2018 के चुनाव के पहले जोर पकडऩे वाले उत्तर छत्तीसगढ़ और झारखंड के पत्थलगढ़ी आंदोलन की याद दिला रही है। तब संविधान का हवाला देते हुए ही गांव के बाहर पत्थर गाड़ कर बाहरी लोगों के घुसने पर पाबंदी लगाई गई थी और कहा गया था कि हमारे यहां अपना कानून चलेगा। अधिकारी, कर्मचारियों को गांव में घुसने पर बंधक भी बना लिया जाता था। यह संयोग नहीं है कि एकाएक बस्तर में धर्मांतरण के मामले ने तूल पकड़ लिया है। शव दफनाने के नाम पर झड़प हो रही है, धार्मिक प्रतिष्ठानों, प्रतीकों पर हमले हो रहे हैं। दूसरी ओर अलग धर्म कोड बनाने की मांग उठ रही हो और अब सामाजिक बहिष्कार का ऐलान किया जा रहा हो। स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसे मुद्दे इनके आगे फीके हैं।
धर्मजीत सिंह लौटेंगे कांग्रेस में?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने 6 माह पहले एक चौंकाने वाला फैसला लेकर पार्टी के संस्थापक सदस्य और स्व. अजीत जोगी के बेहद करीबी लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था। वजह भाजपा से नजदीकी बताई गई थी। धर्मजीत सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अगस्त 2022 में मुलाकात की थी उसके बाद सितंबर 2022 में उन्हें यह कहते हुए निकाला गया कि वे आदिवासी, ओबीसी हितों की अनदेखी कर पार्टी के संस्थापक के सिद्धांतों की अवहेलना कर रहे हैं। निष्कासन के बाद धर्मजीत सिंह ठाकुर ने आरोप लगाया था कि अमित जोगी ने उनकी पत्नी को देर रात फोन कर बदतमीजी की। अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिये यह कार्रवाई की गई। बहरहाल, स्व. जोगी के के बाद भी डॉ. रेणु व अमित जोगी को कदम-कदम पर साथ देने वाले धर्मजीत सिंह के दोबारा इस आभा खोती पार्टी की तरफ लौटने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है। इधर, पिछले कुछ दिनों से यह अटकल तेज हो गई है कि वे कांग्रेस में दोबारा आ सकते हैं। बिल्हा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भरोसा सम्मेलन हुआ था। वे क्षेत्र के विधायक नहीं होते हुए भी इसमें शामिल हुए थे। बाद में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरण दास महंत के साथ उन्होंने मुंगेली का दौरा और रतनपुर में महामाया दर्शन किया। धर्मजीत सिंह की मौजूदगी में पत्रकारों के सवाल पर डॉ. महंत ने कहा कि धर्मजीत अपने क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं, वे किसी भी दल में जा सकते हैं। वे कहीं भी रहें, हमारे दिल में रहते हैं। मेरी ओर से खुला ऑफर है, कांग्रेस में स्वागत है। धर्मजीत सिंह की ओर से कोई जवाब नहीं आया। लोग इसे मौन सहमति न भी मानें तो यह निश्चित है कि वे दुविधा में हैं। जेसीसी छोडऩे से पहले से ही उनके चुनाव-2023 से पहले भाजपा में चले जाने की चर्चा चल निकली थी, जो महंत के बयान से पहले तक हो रही थी। उन्हें तखतपुर से भाजपा की टिकट मिलने की बात हो रही थी। भाजपा से उनकी दूरी क्यों दिख रही है, इसके कुछ धुंधले से कारण तो दिखाई दे रहे हैं, पर यह स्पष्ट तब होगा जब धर्मजीत सिंह अपनी स्थिति कुछ साफ कर दें।
धुंए का गुबार छोड़ती गाड़ी
रायपुर शहर को देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में एक बनाए रखने में अपना योगदान देती यह दूध ढोने वाली गाड़ी। तेलीबांधा थाने के सामने से गुजरती हुई।
मिजाज के मुताबिक दूरी
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह दो दिन बस्तर में थे। मगर प्रदेश भाजपा के दिग्गज रमन सिंह, नारायण चंदेल, अरुण साव, और बृजमोहन अग्रवाल स्वागत के लिए जगदलपुर नहीं पहुंचे, तो कानाफूसी शुरू हो गई। जबकि शाह के आगमन के मौके पर सारे नेता राज्य में ही थे। शाह का स्वागत बस्तर के स्थानीय नेताओं ने किया। ये बात अलग है कि अरुण साव दो दिन पहले दिल्ली में अमित शाह से मिलकर आए थे।
सुनते हैं कि मुलाकात के वक्त अमित शाह ने साव को साफ तौर पर बता दिया था कि वो सिर्फ सीआरपीएफ के कार्यक्रम के लिए आ रहे हैं, और पार्टी की कोई बैठक न रखी जाए। संकेत साफ थे कि स्थानीय नेताओं के अलावा कोई और स्वागत के लिए न आए। फिर भी दिग्गज नेता स्वागत के लिए जगदलपुर जाने के लिए तैयार बैठे थे।
आम तौर पर पार्टी के बड़े नेताओं, और केंद्रीय मंत्रियों का प्रवास होता है, तो प्रमुख नेताओं को कार्यक्रम का ब्यौरा भेजा जाता है। साथ ही प्रदेश कार्यालय से दिग्गजों को फोन कर सूचित किया जाता है। मगर शाह का दौरा कार्यक्रम प्रदेश कार्यालय तक तो पहुंचा, लेकिन किसी भी नेता को इसकी सूचना तक नहीं दी गई।
ऐसे में शाह के मिजाज को भांपते हुए दिग्गज नेताओं स्वागत-सत्कार से दूर रहना ही उचित समझा। शाह के जगदलपुर पहुंचने पर केदार कश्यप, और दक्षिण बस्तर के प्रमुख नेताओं ने स्वागत किया, और वापसी में पूर्व मंत्री लता उसेंडी समेत उत्तर बस्तर के नेता विदाई के लिए मौजूद थे। कुल मिलाकर सब कुछ शाह की इच्छा के मुताबिक हुआ।
नवरात्रि का आशीर्वाद आने को है
नवरात्र के बाद प्रशासन, और पुलिस में बड़े फेरबदल हो सकते हैं। इन सबके बीच रेरा चेयरमैन, और सदस्य की नियुक्ति के लिए चयन समिति की बैठक भी तय हो रही है। बैठक की तिथि तय करने के लिए विभाग ने विधि विभाग के प्रमुख सचिव को फाइल भेज दी है। जस्टिस संजय के अग्रवाल चयन समिति के चेयरमैन हैं, और उन्होंने अभी बैठक के लिए समय नियत नहीं किया है। सूचना आयोग में भी दो नियुक्तियों का इंतज़ार है, इसकी क़तार में भी अफ़सर-पत्रकार लगे हुए हैं।
चेयरमैन, और सदस्य के लिए करीब दो दर्जन आवेदन आए हैं। इनमें रिटायर्ड जजों के अलावा आईएएस, और पूर्व आईपीएस व आईएफएस अफसर शामिल हैं। आईएफएस अफसरों में रिटायरमेंट के करीब आ चुके अफसरों ने भी आवेदन दिए हैं। दूसरी तरफ, प्रशासन मे दो-तीन कलेक्टरों के अलावा राजभवन में अमृत खलको की जगह नए सचिव की पदस्थापना की जा सकती है। सचिव स्तर के कुछ अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं। इसी तरह पुलिस में भी तीन-चार एसपी स्तर के अफसरों को बदला जा सकता है। ईओडब्ल्यू-एसीबी प्रमुख डीएम अवस्थी भी 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। चर्चा है कि उन्हें संविदा नियुक्ति मिल सकती है। फिर भी ये फेरबदल अंतिम नहीं होगा, इसके बाद भी चुनाव को देखते हुए काफी कुछ होना बाकी है।
मीडिया के सवालों ने किया बेचैन
मिशन 2023 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद सन् 2024 में केंद्र में दोबारा मोदी सरकार को लाने के लिए भाजपा दसों दिशाओं से मेहनत कर रही है। कोशिश होती है कि पार्टी के एजेंडा पर लोगों का माइंड सेट किया जा सके। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा भी हाल में छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों का भ्रमण करके लौटी हैं। इस दौरान उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में लव जेहाद हो रहे है। सरकार के संरक्षण में तथाकथित धर्म के लडक़े हिंदू बनकर हिंदू लडक़ी से शादी कर ली।
आरोप बड़ा था। पत्रकारों के पास ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं थी। उन्होंने पूछ लिया कि यह छत्तीसगढ़ के किस जगह की घटना है और कब की है? आयोग अध्यक्ष ने अपने अगल-बगल देखा तो कोई जवाब नहीं मिला। रेखा शर्मा बोलीं-जगह के बारे में तो मालूम नहीं, पर घटना हुई है। पत्रकारों ने कहा कि घटना के तथ्य ही आपको पता नहीं है तो आरोप कैसे लगा रही हैं, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
महिला के प्रति अपराध के मामले में उन्होंने गुजरात मॉडल की तारीफ शुरू की। कुछ पत्रकार इस पर भी तैयारी से आए लग रहे थे। उन्होंने कहा कि एनसीआरबी का रिकॉर्ड तो कहता है ऐसे सर्वाधिक अपराध वाले राज्यों में तो दिल्ली, हरियाणा, बिहार, गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं। यानि छत्तीसगढ़ तो शीर्ष राज्यों में है ही नहीं, गुजरात जरूर है।
अब जवाब न देकर भाजपा नेत्री ने पत्रकार की तरफ इशारा करते हुए कहा कि मुझे मालूम है आप किसके कहने पर सवाल कर रही हैं। पर पत्रकारों का सवाल रुका नहीं। उनके हर वक्तव्य पर काउंटर सवाल होने लगे। वे असहज होने लगीं और आखिरकार अचानक प्रेस कॉफं्रेस छोडक़र उठ गईं। बाद में भाजपा के नेता मीडिया के कुछ लोगों से कहते नजर आए, प्लीज, खबर जरा नरमी से बना लेंगे।
मांडणा भित्ति चित्रकला...
भित्ति चित्रकला देश के अलग-अलग भागों में भिन्न-भिन्न रूपों में देखने को मिल जाती है। मिट्टी की दीवार पर की जा रही इस इस चित्रकारी का नाम मांडणा है। राजस्थान और मध्यप्रदेश में बसे मीणा समुदाय के लोग इस कला में पारंगत हैं। देवी देवताओं के स्वागत के लिए और मांगलिक कार्यों के दौरान दीवारों को ऐसी चित्रकारी से सजाया जाता है। राजस्थान से सटे मध्यप्रदेश के जिलों में ऐसी तस्वीरें इन दिनों दिख रही है, जिसे एक सैलानी ने अपने सोशल मीडिया पेज पर शेयर किया है।
चौधरी साहब पीछे देखो !
ओपी चौधरी की गिनती काबिल आईएएस अफसरों में होती रही है। मगर राजनीति में आने के बाद उन निर्देशों को भूल गए, जिसका पालन वो कलेक्टर रहते करते थे। अब उन्हीं निर्देशों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
बात जीएडी के उस आदेश की हो रही है, जिसमें रमजान के मौके पर मुस्लिम कर्मचारियों को एक घंटा पहले घर आने की छूट होती है। उनके लिए मंत्रालय से अलग से बस संचालन होता है। भाजपा नेता चौधरी ने जीएडी के इस आदेश पर कड़ी आपत्ति करते हुए कहा कि सरकार की ऐसी तुष्टिकरण की नीतियों की वजह से सांप्रदायिक विद्वेष फैल सकता है। उन्होंने सरकार के रवैये को भेदभाव वाला निरूपित करते हुए कह गए कि भूपेश सरकार का झुकाव धर्म विशेष के प्रति रहा है।
अब चौधरी जी को कौन समझाए, रमजान के मौके पर मुस्लिम कर्मचारियों को एक घंटा घर आने की छूट का आदेश 2003 से जारी हो रहा है। पहले मंत्रालय डीकेएस भवन में होता था तब उनके लिए अलग से बस संचालन नहीं होता था। मगर नवा रायपुर में शिफ्टिंग के बाद रमजान के मौके पर मुस्लिम कर्मचारियों को घर छोडऩे के लिए अलग से बस का संचालन होने लगा। यह सब रमन सिंह सरकार में भी होता रहा है। तब किसी ने चूं-चपड़ नहीं की। चुनावी साल है, तो अब सरकार के हर फैसले को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है।
राहुल मामले में ओबीसी दांव
राहुल गांधी पर गुजरात की न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत से हुई सजा और उसके बाद लोकसभा की सदस्यता को रद्द होने पर भाजपा ने खासकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग, ओबीसी के सम्मान के साथ जोड़ दिया। इसकी प्रतिक्रिया में दिए गए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के इस बयान को मीडिया में जगह नहीं मिली कि मोदी समुदाय में बहुत से लोग सामान्य वर्ग से भी आते हैं। स्वराज अभियान के संस्थापक और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने भी कहा सूरत की अदालत में केस दायर करने वाले भाजपा विधायक पूर्णेन्दु मोदी सामान्य वर्ग से हैं। यह भी, कि जिस नीरव मोदी और ललित मोदी पर सवाल किया गया वे भी सामान्य वर्ग से ही हैं। इन तथ्यों के उलट भाजपा ओबीसी सहानुभूति हासिल करने की कोशिश में है।
अनेक जानकार अप्रैल महीने में होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव और इस साल के आखिर में हो रहे छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों के चुनाव से इसे जोडक़र देख रहे हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट में आरक्षण की सीमा बढ़ाने और ओबीसी की कैटेगरी पर आपत्ति लगाते हुए याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए वहां आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करने पर स्थगन लगा दिया था। पर अभी 2 दिन पहले राज्य सरकार की अपील पर वह स्थगन हटा लिया गया है, लेकिन मामले की सुनवाई चल रही है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि सरकार का नया आरक्षण विधेयक हाईकोर्ट के अंतिम फैसले से बाधित रहेगा। यह कुछ उसी तरह की स्थिति है जब 2012 में छत्तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाई थी और वह हाईकोर्ट के अंतिम फैसले तक लागू था। 2012 के प्रावधानों को रद्द करने के फैसले के बाद दिसंबर महीने में बीते साल छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया विधेयक विशेष सत्र बुलाकर पारित किया। तब और अब के राज्यपाल इस पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं। वजह यह बताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट में मामले से जुड़ी लंबित याचिकाओं पर सुनवाई होनी है।
इधर कर्नाटक में राज्यपाल की मंजूरी में कोई बाधा नहीं आई। नजर यह आ रहा है कि भाजपा बड़ी बारीकी से यह तौल रही है कि आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर रुकने से उसकी छत्तीसगढ़ में चुनावी संभावनाओं पर क्या असर पड़ेगा। छत्तीसगढ़ सरकार के नए विधेयक से सबसे अधिक लाभ आदिवासी वर्ग और पिछड़ा वर्ग को ही मिलना है। आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण के मुद्दे को उसने उठा ही रखा है। अब यह देखना होगा कि क्या वह राहुल गांधी पर आए फैसले के बहाने ओबीसी अस्मिता का सवाल खड़ा कर इस वर्ग के वोटों को अपनी तरफ मोडऩे में सफल होती है।
दूसरे राज्यों में ऐसी ट्रेन क्यों नहीं चलती?
कटनी रूट हो या मुम्बई हावड़ा रूट, छोटे स्टेशनों पर मेल-एक्सप्रेस के अलावा अनेक पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव रेलवे ने बंद कर रखा है। कई पैसेंजर ट्रेनों का परिचालन भी अब तक बंद रखा गया है। तर्क यह है कि इनसे होने वाली टिकटों की बिक्री कम है।
पैसेंजर हाल्ट छोटे-छोटे स्टेशनों में ही होते हैं, यहां एक दिन में हजारों रुपयों की रेल टिकट कैसे बिक सकती है और सैकड़ों यात्री सफर कैसे कर सकते हैं? पहले तो कभी इन स्टेशनों को मुनाफे का जरिया माना ही नहीं जाता था। रेलवे की कमाई तो प्राय: लदान और परिवहन से है।
छत्तीसगढ़ के मामले में तो यह और भी अनुचित है। उदाहरण के लिए गेवरा स्टेशन है। यहां से चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों को बंद करके रखा गया है। सांसद, सलाहकार और रेल यात्री मांग करते हैं तो आमदनी का ही तर्क दिया जाता है। यह वही गेवरा है, जहां एसईसीएल ने 50 लाख मिलियन टन कोयला उत्पादन का रिकॉर्ड अभी कुछ दिन पहले ही बनाया है। एसईसीएल ने इसे अपनी कामयाबी के रूप में दर्ज किया और लोगों को बताया, पर रेलवे यह नहीं बता रहा है कि गेवरा से कोयले के परिवहन से उसे अरबों रुपयों का मुनाफा हुआ है, हो रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही रायगढ़ और राजनांदगांव की दिशा से हजारों यात्री रोजाना राजधानी रायपुर पहुंचते हैं। उसी समय से राजधानी के दोनों दिशाओं को जोडऩे वाली प्रतिदिन निरंतर चलने वाली पैसेंजर ट्रेनों की मांग की जा रही है। ऐसा हो तो रायपुर, कोरबा, दुर्ग, रायगढ़ से राजनांदगांव तक के लोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से सफर कर सकेंगे, जो लोगों की आमदनी बढ़ाने और जीवन स्तर उठाने में भी मदद करेगा। राजधानी तक पहुंच भी आसान करेगा।
एक रेल यात्री ने 24 मार्च को ली गई मुंबई के बांद्रा से बोरोवली की एक टिकट सोशल मीडिया पर शेयर की है, जिसमें दो लोगों का कुल किराया 20 रुपये दर्ज है। यानि 10 रुपये में एक यात्री 20 किलोमीटर सफर कर रहा है। इस यात्री का सुझाव है कि उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे दूसरे राज्यों में भी मुंबई की तरह ऐसी ही सस्ती और सुलभ सुविधा रेलवे दे। इससे बेरोजगारी दूर करने, व्यवसाय को बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी। पर यहां तो रेलवे के भरोसे रहने वाले छोटे स्टेशनों के सैकड़ों लोगों के रोजगार और आजीविका का साधन ही खत्म कर दिया गया है।
जीवनदीप समितियों का क्या होगा?
सरकारी अस्पतालों में पहले से ही आयुष्मान भारत व डॉ. खूबचंद बघेल योजना के तहत आने वाले लगभग तीन चौथाई मरीजों का उपचार मुफ्त होता है। पर अब जून माह से सौ फीसदी मरीजों का कैशलेस इलाज शुरू हो जाएगा। यूनिवर्सल स्वास्थ्य कांग्रेस के सन् 2018 के घोषणा पत्र में शामिल था। इस वर्ष इसे पूरा किया जा रहा है। दूसरी ओर प्रदेशभर के अस्पतालों में जीवनदीप समितियां बनी हुई हैं, जिला स्तर पर कलेक्टर तो अनुभाग स्तर पर एसडीएम इसके अध्यक्ष होते हैं। जीवनदीप समितियां इन अस्पतालों में आने वाले मरीजों से पंजीयन शुल्क लेती थी, जांच और इलाज पर भी थोड़ा खर्च जुटा लिया जाता था। ये समितियां स्थानीय स्तर पर अस्पताल की व्यवस्था ठीक रखने का काम करती हैं। बिगड़े मशीनों की मरम्मत, तत्काल जरूरी दवाओं की खरीदी, अस्पताल की साफ-सफाई, मरीजों के लिए भोजन, पंखे, कूलर, चादर आदि की व्यवस्था इन समितियों के फंड से हो जाती थी। कैशलेस इलाज शुरू होने के बाद अब किसी तरह का कलेक्शन ये समितियां नहीं कर पाएंगीं। महत्वपूर्ण यह भी है कि इसी फंड के भरोसे जीवन दीप समितियों ने कई कर्मचारियों की अस्थायी भर्ती भी कर रखी है। किसी-किसी अस्पताल में तो इनकी संख्या 30-40 तक भी है। प्रदेशभर में अब इनकी नौकरी छिनने का खतरा भी मंडरा रहा है। स्वास्थ्य विभाग ने अब तक नहीं बताया है कि नई व्यवस्था के बाद क्या जीवनदीप समितियों को भंग कर दिया जाएगा या वे अस्तित्व में रहेंगीं तो उसके लिए फंड कहां से आएगा।
अहिंसक प्रतिरोध
महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी ने जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा की एक प्रति भेजी है। तुषार ने कहा है कि इसमें सब लिखा है कि गांधीजी ने कहा लॉ की डिग्री ली, बैरिस्टर की उपाधि पाई और डिप्लोमा कोर्सेस किए। तुषार गांधी ने एक वीडियो जारी कर दी गई अपनी प्रतिक्रिया में यह भी कहा है कि हालांकि गांधीजी के पढ़ा-लिखा नहीं होने का बयान उन्होंने जानबूझकर, वफादारी निभाने के लिए दिया होगा, फिर भी वे किताब अपनी तरफ से भेज रहे हों, ताकि गलती से नहीं पढ़ पाए हों तो पढ़ लें।
कांग्रेस में घर की आग...
राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के बाद युवक कांगे्रस अध्यक्ष आकाश शर्मा की अगुवाई में शुक्रवार को भाजपा दफ्तर में कालिख फेंके जाने की घटना पर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति गरमा गई है। चर्चा है कि इस घटना से प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष मोहन मरकाम खफा हैं। मरकाम के करीबी सूत्रों का मानना है कि पूरे देश में शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा था। रायपुर में भी मोहन मरकाम की अगुवाई में धरना-प्रदर्शन हुआ। इसमें सीएम भूपेश बघेल ने भी शिरकत की। ऐसे में धरना-प्रदर्शन बिना किसी की अनुमति के आकाश शर्मा का एकात्म परिसर में जाकर उत्पात मचाना अनुशासनहीनता है।
सुनते हैं कि कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने प्रदेश प्रभारी शैलजा को भी घटना की जानकारी है। कहा जा रहा है कि आकाश शर्मा को नोटिस भी थमाई जा सकती है। यही नहीं, मरकाम के समर्थक, आकाश शर्मा के तेवर को सुनियोजित मान रहे हैं। दरअसल, कुछ दिन पहले विधानसभा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कोंडागांव जिले में डीएमएफ में गड़बड़ी के मसले पर सरकार को घेरा था, और उन्होंने इस मसले पर सीधे-सीधे आकाश शर्मा के पिता अरूण शर्मा को निशाने पर लिया था। अरूण शर्मा कोंडागांव जिले में आरईएस में ईई हैं। मरकाम के आरोपों की जांच के लिए सरकार ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बिठाई है। इससे आकाश शर्मा नाराज बताए जा रहे हैं, और इन सबके बीच एकात्म परिसर में हंगामा करने की घटना को, मरकाम समर्थक प्रदेश कांग्रेस के धरना प्रदर्शन को महत्वहीन करने की कोशिशों के रूप में देख रहे हैं। ये बातें पूरी तरह सच भले न हों, लेकिन इस घटना में कांग्रेस के भीतर खदबदाहट पैदा कर दी है। देखना है आगे क्या होता है।
अब आवा-जाही का मौसम
विधानसभा के आखिरी बजट सत्र के अवसान के बीच कई विधायकों ने अपने भावी राजनीतिक कदम की तरफ भी इशारा किया है। मसलन, जोगी पार्टी के निलंबित विधायक धर्मजीत सिंह, और प्रमोद शर्मा ने सदन के भीतर भाजपा विधायकों के साथ कदमताल कर संकेत दिए हैं कि वो भविष्य में भाजपा में जा सकते हैं। वैसे भी एक बार धर्मजीत सिंह की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात भी तय हुई थी, लेकिन व्यस्तता की वजह से अमित शाह नहीं मिल पाए।
जोगी पार्टी के एक और विधायक प्रमोद शर्मा भी पूरी तरह धर्मजीत सिंह के साथ हैं। ये अलग बात है कि वो दिवंगत देवव्रत सिंह के रहते कांग्रेस में जाने की सोच रहे थे। अब संकेत है कि वो चुनाव के पहले भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इन सबके बीच जैजेपुर के बसपा विधायक केशव चंद्रा की कांग्रेस से नजदीकियां भी चर्चा का विषय है। चंद्रा ने विधानसभा खत्म होने के बाद कुछ कांग्रेस विधायकों के साथ सीएम भूपेश बघेल से मिले, और उन्हें प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदी की घोषणा करने पर बधाई दी। चर्चा है कि दो बार के विधायक चंद्रा भविष्य में कांग्रेस संग आ सकते हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
शिक्षा में उपचार
छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूल के बच्चों की शिक्षा में सुधार लाने के लिए उपचारात्मक शिक्षा योजना शुरू की गई। जिसके तहत स्कूल के बाद बच्चों के एक्सट्रा क्लास लगाकर उनकी कमजोरियों को दूर करने की योजना बनाई गई। इसके लिए स्कूल के शिक्षकों के साथ बेरोजगार युवाओं और गृहणियों को जोडऩे का फैसला लिया गया, ताकि पढ़ाई कर रहे युवाओं और गृहणियों को कुछ आमदनी हो जाए। पहली नजर में योजना पवित्र लगती है। ऐसे में सवाल उठ सकता है कि अगर योजना पवित्र है, तो इस कॉलम में लिखने का क्या औचित्य है? दरअसल हर योजना पवित्र होती है, लेकिन जब उसके नतीजों पर गौर किया जाता है, तो पता चलता है कि वह कितनी दूषित हो गई। इस योजना के साथ भी यही हुआ और बच्चों का उपचार तो नहीं हो पाया, लेकिन योजना को लागू करने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों का ऐसा उपचार हुआ कि सब के सब लाल हो गए हैं। इस योजना में बच्चों की शिक्षा का उपचार करने वाले शिक्षकों, युवाओं या गृहणियों को प्रति बच्चा 50 रुपए मानदेय दिया जाना तय हुआ था। पूरी योजना में ट्विस्ट तब आया जब एकस्ट्रा क्लास में बच्चे नहीं आए, फिर भी स्कूल की दर्ज संख्या के आधार शिक्षकों के खातों में पैसे ट्रांसफर किए जा रहे हैं। पैसे डालने से पहले सभी स्कूलों के प्राचार्यों को बुलाकर निर्देश दिए गए हैं कि रकम पहुंचते ही उसे निकाल लिया जाए, ताकि उसका हिस्सा बंटवारा हो सके। अधिकारियों-कर्मचारियों की साफगोई देखिए, बकायदा बताया जा रहा है कि इन पैसों का तीन-तीन हिस्सों में बंटवारा किया जाएगा और किसकी जेब में कितना जाएगा, इसका भी पूरा हिसाब-किताब समझाया गया। कहा जा सकता है कि शिक्षा विभाग में उपचार का यह नया फार्मूला तैयार है। बच्चों का उपचार नहीं हुआ तो क्या हुआ अधिकारी-कर्मचारी और नेताओं का तो पूरा इलाज हो रहा है।
बेरोजगारी दर और राज्य की आबादी
छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी पर खूब चर्चा होती है और होनी भी चाहिए। राज्य की सरकार इस साल से बेरोजगारी भत्ता जो देने जा रही है, लेकिन आश्चर्य है कि सरकार के पास बेरोजगारों की संख्या के बारे में ठोस आंकड़े नहीं है। सरकारी भाषा में बेरोजगार कोई शब्द नहीं है। विधानसभा में जब इसके बारे में सवाल पूछा गया तो सरकार ने बेरोजगारों की संख्या नहीं बताई, बल्कि रोजगार की इच्छा रखने वालों की जानकारी दी। अब सामान्य बोलचाल में उन्हें ही बेरोजगार माना जाता है, जो रोजगार की इच्छा रखते हैं। लेकिन सरकारी भाषा में इसके अलग मायने हैं,अब इसका तो कुछ किया नहीं जा सकता, लेकिन देखना यह होगा कि सरकार रोजगार चाहने वालों को भत्ता देती है या फिर कोई नई परिभाषा तैयार होती है। इसमें एक पेंच सीएमआईई का भी है, जो हर महीने बेरोजगारी दर के आंकड़े जारी करती है। इस निजी संस्था की बात मानें तो छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर 1 प्रतिशत से भी कम है। किसी-किसी महीने तो राज्य की बेरोजगारी दर 0.1 प्रतिशत भी रही। सरकार इस आंकड़े को तथ्यात्मक मानती है और खूब प्रचार-प्रसार करती है।
धानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि संस्था के आंकड़ों के प्रचार-प्रसार में करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन भत्ता पाने वालों को इन आंकड़ेबाजी से क्या लेना-देना? उनका तो केवल भत्ते से मतलब है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि कौन सी बात को सच माना जाए। इस बीच बीजेपी के नेता और पेशे से सीए निश्चय वाजपेयी ने ट्वीट कर एक नया सवाल उठा दिया। उन्होंने लिखा कि प्रदेश में बेरोजगारी दर 0.8 प्रतिशत और रोजगार चाहने वालों की संख्या 18 लाख 79 हजार 126 है, तो कुल कामगारों की संख्या 23 करोड़ 48 लाख 90 हजार 750 हो गई। उनका तर्क है कि इसमें 40 प्रतिशत अकामकाजी महिलाएं, बच्चे और बूढ़े हैं तो राज्य की कुल आबादी 39 करोड़ 15 लाख हो गई। अब तो आपका भी माथा घूम गया होगा कि क्योंकि अभी तक तो हम सब को यही पता कि छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 3 करोड़ के करीब है। अगर आपका माथा नहीं घूमा होगा, तो हमें भी बताइगा कि राज्य की आबादी के कौन से आंकड़े को सही माना जाए। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे परीक्षार्थियों के लिए भी यह विषय हो सकता है।
देवी का दरबार सूना
रेलवे ने जिन छोटे स्टेशनों पर ट्रेनों का स्टॉपेज बंद कर दिया है उनमें एक भनवारटंक भी है, जो बिलासपुर की ओर से जाने पर मिलने वाला पेंड्रारोड से पहले कटनी रूट का एक छोटा स्टेशन है। सडक़ मार्ग से यहां पहुंचना मुश्किल है। जंगल के रास्ते ठीक नहीं हैं। दूरी भी अधिक। सबसे आसान तरीका ट्रेन से पहुंचना है। लोकल में बैठकर पटरी के ठीक बगल में स्थापित मंदिर में पहुंचिए। दो चार घंटे बाद दूसरी लोकल से लौट जाइए। पर अब यहां बमुश्किल 2 ही ट्रेन रुक रहीं हैं। नतीजतन दर्शन करने वालों की संख्या इस एकदम से घट गई है। इस नवरात्रि दर्शनार्थियों के भरोसे ही दुकानें लगाकर बैठे 50 से अधिक परिवारों के रोजगार पर सीधा असर पड़ा है। जाहिर है, मंदिर में भी चढ़ावा कम आ रहा है।
किसान वोटों पर फिर अगला चुनाव
छत्तीसगढ़ की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने साफ कर दिया है कि अगला चुनाव भी वह किसानों को खुश करके ही जीतना चाहती है। थोड़े ही दिन हुए हैं जब यह घोषणा की गई थी अगले सत्र में प्रति क्विंटल धान 2640 रुपए की दर से खरीदा जाएगा। इस समय न्यूनतम समर्थन मूल्य के बाद न्याय योजना के तहत जो राशि दी जाती है उसे मिलाकर 2500 रुपये किसानों को मिल रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में यदि केंद्र सरकार वृद्धि करती है तो हो सकता है कि 2640 से भी ऊपर रकम देने की घोषणा हो जाए। अब सरकार ने एक निर्णय और ले लिया कि प्रति एकड़ पीछे 15 क्विंटल की जगह अब 20 क्विंटल धान खरीदी की जाएगी। इस प्रोत्साहन का नतीजा ही है कि 2.30 लाख नए किसानों ने पिछले साल पंजीयन कराया। इस साल धान बेचने वाले किसानों की संख्या 24.96 लाख हो चुकी थी। यह मुमकिन है कि अगले साल और बढ़ जाए। धान खरीदी लगभग उसी समय होने वाली है, जब छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव होंगे। 25 लाख किसानों और उनके परिवार के वोटों पर यह फैसला सीधे असर डालेगा। ये एक ऐसा मुद्दा है, जिसके खिलाफ कुछ बोलना किसी विरोधी दल के लिए मुमकिन नहीं है।
इतनी रफ्तार से कार्यपरिषद !
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. केसरीलाल वर्मा अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में वो सब कर रहे हैं, जो विवि की स्थापना के बाद नहीं हुआ। मसलन, एक महीनों में तीन बार कार्य परिषद की बैठक हो चुकी है। चौथी बैठक 28 तारीख को प्रस्तावित है। इससे पहले तक दो-तीन महीने में एक बार कार्यपरिषद की बैठक होती रही है।
सुनते हैं कि कार्यपरिषद की बैठकों में ठेकेदारों के बकाया भुगतान को मंजूरी दी गई। अब तक 3 करोड़ से अधिक जारी भी हो चुके हैं। चर्चा है कि कुलपति महोदय अपने कार्यकाल का कोई बकाया नहीं रखना चाहते हैं। इसलिए एफडी तोडक़र भुगतान किए जा रहे हैं। अब भुगतान करने की हड़बड़ी है, तो जाहिर है लोगों का ध्यान जाएगा ही। चर्चा है कि कुछ लोगों ने विवि की गतिविधियों पर राजभवन का ध्यान आकृष्ट कराया है।
नए कुलपति की नियुक्ति हो चुकी है। बावजूद इसके एक के बाद एक कार्यपरिषद बुलाकर बकाया भुगतान पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार, और कमीशनखोरी का हल्ला भी है। देखना है कि आगे क्या होता है।
कर्मचारी ख़ुद बना रहे लिस्ट
अनियमित, और संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण पर चर्चा चल रही है। नियमितीकरण के लिए सभी विभागों से जानकारी एकत्र की जा रही है। पिछले कई सत्रों से यही जवाब दिया जा रहा है। इस बार आखिरी बजट सत्र में कर्मचारियों को उम्मीद थी, लेकिन सरकार का जवाब नया नहीं था।
सरकारी रवैय्ये से खफा कर्मचारी अनियमित-संविदा कर्मचारी नेताओं ने खुद होकर अलग-अलग विभागों से जानकारी एकत्र कर सूची सीएम को भेजनी शुरू कर दी है। कर्मचारी नेता भूपेन्द्र साहू ने सरकारी संस्थाओं में कार्यरत 2617 कर्मचारियों की जानकारी ट्वीटर के जरिए सीएम को भेजी है। ये सभी कर्मचारी अनियमित है। इसी तरह कुछ अन्य विभागों से आरटीआई से जानकारी निकलवाकर सरकार को सोशल मीडिया के जरिए सीएम तक भेज रहे हैं। अनियमित कर्मचारियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। उनका कहना है कि चुनाव पूर्व घोषणा पत्र में किए गए वादों पर अमल करेगी। देखना है आगे क्या होता है।
सारस और आरिफ की प्रेम कथा
वन्यजीवों या पक्षियों को पालना, उन्हें बंधक बनाना वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत अपराध है। मगर, यह ऐसा मामला है जिसमें पक्षी पंख होते हुए भी आजाद नहीं होना चाहता और अपनी जान बचाने तथा अब देखभाल करने वाले दोस्त के साथ रहना चाहता है। दूसरी ओर वन विभाग कानून का हवाला देते हुए दोनों को अलग करने पर आमादा है।
यूपी के अमेठी के एक गांव में रहने वाले मोहम्मद आरिफ को 7 माह पहले एक खेत में यह सारस घायल पड़ा मिला था। उसकी टांग टूट गई थी, खून बह रहा था। आरिफ से देखा नहीं गया। घर लाकर उसने सारस का देसी इलाज किया। जो खाना वह खुद खाता, वही सारस को भी परोस देता था। कुछ दिन बाद सारस चंगा हो गया। स्वस्थ होने के बावजूद वह कहीं उड़ कर नहीं जाता था। उसे आरिफ का साथ भाने लगा। वह जहां जाता 4 फीट लंबा यह पक्षी साथ होता था। बाइक के पीछे उड़ते उसके कुछ वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हो गए तब बीबीसी न्यूज ने भी एक खबर चलाई। वन विभाग का इस पर ध्यान गया। बीते 21 मार्च को विभाग के कर्मचारी पकड़ कर उसे अपने साथ ले आए। उसे रायबरेली के पक्षी विहार में लाकर छोड़ दिया गया। आरिफ का परिवार रो पड़ा। वन विभाग से मिन्नतें की। कहा कि हमें उससे लगाव हो गया है, हमने उसके पंख तो काटे नहीं, अच्छी देखभाल कर रहे हैं। वह भी अपनी मर्जी से यहीं रहना चाहता है। इधर पक्षी विहार में सारस नहीं टिका, उड़ गया। वन विभाग के अफसर परेशान। इधर, मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। सपा नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, उसे ढूंढिये, सीएम को तंज कसा। तो वन विभाग के अफसरों ने दावा किया कि उसे विहार से 12 किलोमीटर दूर सर्च कर लिया गया है। उसे फिर पक्षी विहार ले आने का दावा भी कुछ खबरों में किया गया है। दूसरी ओर अब भी आरिफ को उम्मीद है कि वन अधिकारी उसे पिंजरे में कैद करके नहीं रखेंगे तो सारस उसके पास वापस लौट कर आ जाएगा। पक्षी प्रेमियों का कहना है कि यह मनुष्यों का वन्य जीवों का एक दूसरे के प्रति प्रेम का अच्छा उदाहरण है। वन विभाग को इस मामले में संवेदनशील होना चाहिए। कुछ लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मोर के साथ खिंचवाई गई तस्वीर को भी याद कर रहे हैं।
बस्तर की जाबांज सारा
सीआरपीएफ का 84वां स्थापना दिवस इस बार जगदलपुर में मनाया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इसमें पहुंच रहे हैं। इस खास मौके पर सीआरपीएफ की 75 महिला बटालियन ‘डेयरडेविल्स’ दिल्ली से बाइक पर निकलीं। जाबांज महिलाएं धूप, बारिश, ठंड के बीच 1800 किलोमीटर की दूरी तय कर बस्तर पहुंच चुकी हैं। शुक्रवार शाम को इनका करनपुर स्थित बटालियन कैंप पहुंचने का कार्यक्रम है। इन 75 लोगों की टीम में एक सारा कश्यप भी हैं। वह बस्तर के एक छोटे से गांव राजूर की रहने वाली हैं। हालांकि इस टीम में शामिल ज्यादातर महिलाएं बस्तर में या तो पहले काम कर चुकी हैं, या प्रशिक्षण ले चुकी हैं, पर सारा कश्यप इनमें बस्तर स अकेली हैं।
फिर ईडी का हल्ला
खबर है कि ईडी की एक और टीम का यहां डेरा है। सीआरपीएफ का अमला भी सक्रिय है। कल शाम से इसको लेकर हलचल शुरू हो गई, और अंदाजा लगाया जाने लगा कि गुरुवार की सुबह ईडी की टीम किसी अफसर, या नेता के घर धमक सकती है। कॉलम लिखे जाने तक प्रदेश में कहीं भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। फिर भी इस बात की प्रबल संभावना है कि एक-दो दिनों के भीतर कुछ न कुछ हो सकता है। यह भी चर्चा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बस्तर से जाने के बाद कार्रवाई हो सकती है। अमित शाह 25 को बस्तर आ रहे हैं।
कुछ समय पहले तक ईडी या आईटी की टीम रायपुर आती थी। तब किसी को कानोकान खबर नहीं लगती थी। अब हर मूवमेंट की खबर होने लगी है। इसकी एक वजह सोशल मीडिया भी है। जिसकी वजह से पल भर में प्रदेश के कोने-कोने तक सारी जानकारी पहुंच जाती है। कुछ समय पहले बिल्डर और कुछ कारोबारियों के प्रतिष्ठानों में आईटी की टीम ने दबिश दी थी। आईटी का अमला भोपाल से आया था। और रायपुर के बाहरी इलाके के जिस होटल में ठहरे थे, वहां की जानकारी भी प्रमुख कारोबारियों को हो गई थी। फिर भी कुछ लापरवाह निकले। और आईटी की टीम अपना काम कर गई। इस बार ईडी टीम के आने के बाद कुछ प्रमुख लोगों के प्रदेश से बाहर जाने की भी चर्चा है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
प्रतिनियुक्ति से वापिसी
छत्तीसगढ़ कैडर की वर्ष-2006 बैच की आईएएस श्रुति सिंह को यूपी सरकार ने रिलीव कर दिया है। श्रुति सिंह अपने होम कैडर यूपी में प्रतिनियुक्ति पर थीं, और वो वहां चिकित्सा सचिव के पद पर कार्यरत थीं। श्रुति सिंह ने प्रतिनियुक्ति की अवधि बढ़ाने का आग्रह किया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने अमान्य कर दिया।
श्रुति सिंह छत्तीसगढ़ सरकार में कई अहम पदों पर रहीं हैं। वो बेमेतरा, और गरियाबंद कलेक्टर थीं। गरियाबंद कलेक्टर रहते उन्हें तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह ने उन्हें शिकायतों के आधार पर हटाया था। उनके हटने के पीछे उस वक्त अफसरों में चल रही खेमेबाजी को भी जोडक़र देखा जाने लगा था। श्रुति सिंह से पहले बासव राजू भी अपने होम कैडर में कर्नाटक प्रतिनियुक्ति पर थे। इसके अलावा एलेक्स पाल मेनन, शिव अनंत तायल भी अपने गृह राज्य में प्रतिनियुक्ति पर हैं। दोनों अफसर मौजूदा सरकार में ही प्रतिनियुक्ति पर गए हैं।
मजदूर की मौत की परवाह नहीं
सचमुच छत्तीसगढ़ एक शांत प्रदेश है। इतना शांत कि जरूरी मुद्दों पर भी शोर नहीं मचाया जाता। बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के हरीगवां, वाड्रफनगर का श्रमिक 30 साल का रामेश्वर खैरवार कमाने खाने के लिए गुजरात के खेड़ा गांव में पिछले एक साल से रहता था। उसकी ससुराल वही थी। पत्नी और 3 बच्चे भी साथ रहते थे। बीते रविवार की रात वह ठेकेदार से अपना बकाया 2500 रुपए लेकर लौट रहा था। वहां वनसोल गांव के लोगों ने उसे चोरी के शक में पकड़ लिया और लाठी-डंडों से इतना मारा कि बुरी तरह घायल हो गया और अस्पताल में मौत हो गई।
याद होगा इसी महीने के पहले सप्ताह में तमिलनाडु में दो बिहारी मजदूरों की मौत हुई थी। एक सामान्य मौत थी, दूसरे मामले में मजदूर ने फांसी लगाई थी। पर यह फेक न्यूज़ फैलाई गई कि प्रताडऩा के बाद दोनों मजदूरों की हत्या की गई है। दहशत इतनी फैली कि सैकड़ों प्रवासी मजदूर दक्षिण भारत से अपने घरों की ओर लौटने लगे। बिहार विधानसभा में मुद्दा उठा। अफवाहबाज एक यूट्यूबर को गिरफ्तार भी किया गया।
इधर गुजरात की खबर झूठी नहीं है। वहां पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ हत्या, दंगा और गैर कानूनी तरीके से एक जगह एकत्र होने जैसी धाराओं में अपराध दर्ज किया है, लेकिन किसी की गिरफ्तारी अब तक नहीं हुई है।
देश के अलग-अलग प्रांतों में छत्तीसगढिय़ा मजदूरों के प्रवास का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। यहां तक कि सरगुजा, बस्तर के आदिवासी इलाकों से लोग पहले अभावों के बाद भी गांव नहीं छोड़ा करते थे, वे भी बाहर निकलने लगे हैं। इन्हें अधिक मजदूरी देने का लालच दिखाकर ले जाना, शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रूप से प्रताडि़त करना, बंधक बना लेना आम बात हो गई है। श्रम विभाग के पास वास्तविक से काफी कम आंकड़े दर्ज होते हैं। प्रत्येक पंचायत में सचिवों को प्रवासी मजदूरों की सूची बनाने का निर्देश है पर इसका भी पालन नहीं होता। किसी तरीके से मुक्त हो जाने वाले बंधुआ मजदूरों को कानून के मुताबिक राहत भी नहीं मिलती। मुक्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाता, जिससे उनका पुनर्वास हो। कोविड-19 के दौर में देखा गया था कि तीन लाख के आसपास मजदूर छत्तीसगढ़ लौटे थे। अकेले बिलासपुर जिले में लौटने वालों की संख्या एक लाख थी। सरकारों ने यदि इसे नियति भी मान ली है तो कम से कम इन आर्थिक शारीरिक सुरक्षा और सम्मानजनक व्यवहार के लिए बने कानूनों का ठीक तरह से पालन तो कराए।
सामान, नोट, लोग सब नकली
छत्तीसगढ़ नकली सामानों और नोटों के कारोबार का अड्डा बनता जा रहा है। पिछले दिनों बिलासपुर पुलिस ने एक ऐसे शख्स को पकड़ा था जिसने नकली नोट खपाने की कोशिश की थी बाद में यह भी खुलासा हुआ कि उसने अपनी पत्नी की भी हत्या करके लाश को पानी की टंकी में छिपा दी थी। राजधानी में कल बसना महासमुंद के एक फल कारोबारी को हजारों रुपयों के नकली नोट के साथ गिरफ्तार किया गया। उसने 20 हजार रुपया देकर 50 हजार के नकली नोट बिहार से खरीदे थे। जनवरी महीने में भी ढाई लाख रुपए के नकली नोटों के साथ 2 लोगों को रायपुर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। मार्च महीने के पहले हफ्ते में रायपुर में नकली डीजल बनाने की एक पूरी फैक्ट्री पकड़ी गई। डीलर को गिरफ्तार किया गया। कल ही केंट कंपनी का नकली आरओ वाटर फिल्टर बेचने के आरोप में एक दुकानदार को गिरफ्तार किया गया। भिलाई की छावनी पुलिस ने 4 दिन पहले चार व्यापारियों को गिरफ्तार किया जो गोदरेज कंपनी का गुड नाइट मॉस्किटो लिक्विड बाजार में खपा रहे थे। पिछले फरवरी में तो गजब हो गया। नकली आयुर्वेदिक दवाई बनाने की एक पूरी फैक्ट्री ही पकड़ी गई, जहां 10 करोड़ रुपए का नकली माल पकड़ा गया था।
नोट और सामान ही नहीं लोग भी नकली पकड़े जा रहे हैं। जनवरी महीने में रायपुर के सिविल लाइन पुलिस ने बलौदा बाजार के एक व्यक्ति को पकड़ा जो खुद को उत्तर प्रदेश का आईएएस अफसर बताकर संस्कृति विभाग के अधिकारियों से घूस मांग रहा था। जीएसटी को कर वसूली का एक फुलप्रूफ जरिया बताया गया था लेकिन आए दिन नकली टैक्स क्लैम के मामले पकड़ में आ रहे हैं। नवंबर में रायपुर में फर्जी फर्म के सहारे 114 करोड़ रुपए का नकली आईटीसी बनाने पर दो कारोबारी गिरफ्तार किए गए थे।
नलाइन ठगी करने वाले तो रोजाना किसी ना किसी को शिकार बना रहे और कुछ धरे भी जा रहे हैं। 4 दिन पहले धरसीवा पुलिस ने फोन पर कस्टमर केयर का अधिकारी बताने वाले जामताड़ा गिरोह के चार लोगों को पकड़ा। देशभर में नकली सामानों के बाजार पर एक रिसर्च विंग क्रिसिल और ऑथेंटिकेशन सॉल्यूशन प्रोवाइडर्स एसोसिएशन की रिपोर्ट पिछले जनवरी माह में आई थी। इसमें बताया गया था कि नकली सामानों का देश में कारोबार ढाई लाख करोड़ से ऊपर है। सबसे ज्यादा 31 फ़ीसदी नकली उत्पाद कपड़ों का है। जिस तरह से बाजार में शॉर्टकट रुपये कमाने की होड़ हो रही है, लोगों का इससे बचना मुश्किल होता जा रहा है।
हेलमेट मैन ऑफ इंडिया
हाईवे पर बढ़ती सडक़ दुर्घटनाओं के बीच एक खबर यह है कि 50 प्रतिशत दुर्घटनाओं के शिकार बाइक सवार लोग होते हैं। ज्यादातर ऐसी दुर्घटनाएं हैं, जिनमें लोग हेलमेट नहीं पहनते और स्पीड पर नियंत्रण नहीं रखते। बिहार का एक शख्स कार पर लखनऊ एक्सप्रेस वे पर सफर कर रहा था। खुद 100 की स्पीड पर कार चला रहे थे लेकिन एक बाइक सवार उन्हें ओवरटेक कर गया। बाइक का पीछा किया और उसे रोका। कार से हेलमेट निकाली और उसे गिफ्ट किया। सोशल मीडिया पर इस व्यक्ति ने अपना नाम नहीं बताया है। उन्होंने अपनी प्रोफाइल नाम हेलमेट मैन ऑफ इंडिया रखा है। जब भी हाइवे पर चलते हैं, कार में कुछ हेलमेट रख लेते हैं। कोई बाइक सवार बिना हेलमेट तेजी से बाइक दौड़ाते गुजरते हैं तो उनको हेलमेट पहनाते हैं।
राहत के आसार नहीं
मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंसे कारोबारियों, और अफसरों को राहत नहीं मिल पा रही है। इस केस में जेल में बंद सुनील अग्रवाल की जमानत अर्जी भी मंगलवार को हाईकोर्ट से खारिज हो गई। सुनील अग्रवाल स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। उनकी पैरवी के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील आए थे। सुनील से परे जेल में बंद निलंबित आईएएस समीर विश्नोई, और सौम्या चौरसिया की जमानत अर्जी पर सुनवाई होना बाकी है। दूसरी तरफ, जिन कारोबारियों-अफसरों की प्रॉपर्टी अटैच हुई है। उनके केस पर दिल्ली ट्रिब्यूनल में सुनवाई हुई। अफसरों की तरफ से ट्रिब्यूनल में कई बड़े वकील पेश हुए। मगर फिलहाल कोई राहत की कोई खबर नहीं आई है।
मरकाम खुश...
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम इन दिनों खुश हैं। खुशी की एक बड़ी वजह यह भी है कि पिछले दिनों दिल्ली में राहुल गांधी के निवास पर पूछताछ के लिए दिल्ली पुलिस की टीम पहुंची थी, उस समय मरकाम आधा दर्जन सांसदों के साथ राहुल के आवास पर ही थे। बाद में वो संगठन से जुड़ी कई बातें हाईकमान तक पहुंचाने में सफल रहे। उन्हें हटाने की चर्चाओं के बीच अपनी बात रखने का मौका मिला, तो खुश होना लाजमी है।
सुनते हैं कि मरकाम, सीएम के साथ तालमेल बेहतर करना चाहते हैं। वो इसके लिए प्रयासरत भी हैं। हाईकमान ने उन्हें 90 सचिवों का नाम तय कर भेजने के लिए कहा है। मरकाम सीएम से नाम लेकर जल्द ही सूची हाईकमान को भेज सकते हैं। हल्ला यह भी है कि सीएम जिन नामों से असहमत हैं, उन्हें संगठन से हटाने के लिए भी तैयार हैं। चर्चा है कि विधानसभा सत्र निपटने के बाद नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। देखना है आगे क्या होता है।
रेडी टू ईट के सैंपल अब क्यों फेल?
आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों, शिशुओं, गर्भवती और प्रसूता माताओं के लिए अब बीज निगम की ओर से तय किए गए फर्म की तरफ से रेडी टू ईट की सप्लाई की जाती है। जब सरकार ने यह फैसला लिया तो प्रभावित महिला स्व सहायता समूहों ने सरकार के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि इससे 20 हजार महिलाओं का रोजगार छिन जाएगा। उन्होंने मशीनों के लिए ऋण भी ले रखा है। शासन के तर्क वजनदार थे। हाईकोर्ट में महिला स्व सहायता समूहों को हार हाथ लगी। शासन का यह तर्क मान लिया गया कि गुणवत्ता और एकरूपता के लिए बीज निगम को काम सौंपना सही है। इस पॉलिसी का भाजपा ने विरोध किया था। इसका राजनीतिक पक्ष यह था कि इन समूहों का भाजपा शासनकाल के दौरान गठन हुआ था। इससे जुड़ी महिलाएं भाजपा नेताओं की सभा के लिए भीड़ जुटाने का काम करती रही हैं। बहरहाल, अप्रैल 2022 से बीज निगम की ओर से तय की गई एजेंसी रेडी टू ईट का निर्माण और वितरण आंगनबाड़ी केंद्रों में कर रही है। अभी विधानसभा में रेडी टू ईट की गुणवत्ता पर सवाल उठाया गया। सरकार की ओर से जवाब आया है कि जनवरी 2023 तक लिए गए सैंपल में से 118 गुणवत्ताविहीन थे। मतलब यह है कि गुणवत्ता की जिस चिंता को लेकर व्यवस्था बदली गई, वह जस की तस है। यह एक ऐसा मसला है जिस पर ज्यादा ध्यान लोगों का नहीं जाता है। पर यह करोड़ों रुपए खर्च कर कुपोषण से राज्य को मुक्त कराने के अभियान पर सवाल खड़ा करता है। देश का आंकड़ा कहता है कि यहां पैदा होने वाले प्रत्येक एक हजार में 41 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। छत्तीसगढ़ का देश में कुपोषित बच्चों और माताओं के मामले में स्थान तीसरा है।
दादा को याद रखने का तरीका
लॉ स्टूडेंट खुशी के दादा हमेशा साइकिल पर चलते थे। दिसंबर 2022 में शाम के वक्त घने कोहरे के बीच एक कार ने उनको टक्कर मार दी। दादा बिछुड़ गए। अब उनकी स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए खुशी हर शाम सडक़ पर निकल जाती है और साइकिल पर आने-जाने वालों के फ्रंट और बैक साइड पर इंडिकेटर लगाती हैं। लखनऊ में वो खुद का एक लॉ फर्म चलाती हैं। इससे होने वाली आमदनी का एक हिस्सा साइकिल पर चलने वालों के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने और जागरूक करने का अभियान चलाती हैं। साइकिल पर चलने वालों की प्राय: उपेक्षा की जाती है। सडक़ निर्माण के समय इनके लिए कोई सुरक्षित रास्ता बनाने के बारे में कभी प्लानिंग नहीं की जाती। जबकि दूसरे कई देशों में साइकिल पर चलने वालों को पर्याप्त स्पेस दिया जाता है उनके लिए रास्ते प्राथमिकता से तय किए जाते हैं। खुशी ने एक संदेश दिया है कि साइकिल पर चलने वाले लोगों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए और खुद चलाने वाले भी अपनी हिफाजत का ध्यान रखें।
मूँछ मुड़ाना आज से शुरू...
कांग्रेस में चल रही खींचतान के बीच अंबिकापुर बार एसोसिएशन के चुनाव पर नजरें लगी थी। वकीलों के इस चुनाव में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के समर्थक हेमंत तिवारी अध्यक्ष पद पर काबिज हो गए। तिवारी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी प्रवीण गुप्ता को करीब पौने दो सौ से अधिक वोटों से हराया। कहा जा रहा है कि गुप्ता को सरगुजा जिले के ताकतवर मंत्री अमरजीत भगत का समर्थन था।
भगत के करीबी खाद्य आयोग के अध्यक्ष गुरप्रीत भांबरा, और अन्य नेताओं ने प्रवीण गुप्ता को जीताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। चुनाव में भाजपा समर्थित उदय राज तिवारी भी मैदान में थे, लेकिन वो सौ वोट भी नहीं जुटा पाए। वैसे तो प्रवीण गुप्ता को जिताने के लिए भाजपा के ही सिंहदेव विरोधी कुछ प्रभावशाली नेता आलोक दुबे सहित अन्य लोग जुटे हुए थे, लेकिन सिंहदेव समर्थक लामबंद थे, और आखिरकार देर रात घोषित नतीजों हेमंत तिवारी, और उनका पैनल बाजी मार गया।
दिलचस्प बात यह है कि मुकाबले में भाजपा समर्थित उम्मीदवार कही नहीं टिक पाए, फिर भी भाजपा के लोग सोशल मीडिया पर सिंहदेव समर्थक की जीत पर खुशी मनाते रहे, और एक उत्साही कार्यकर्ता ने अमरजीत भगत पर अप्रत्यक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए फेसबुक पर मैसेज पोस्ट किया कि मूँछ मुड़ाना आज से शुरू...। कुल मिलाकर मुकाबले से बाहर भाजपा समर्थक, कांग्रेस के असंतुष्ट माने जाने वाले सिंहदेव खेमे की जीत को ही अपनी जीत बता रहे हैं। उन्हें असंतुष्टों में ही अपनी संभावनाएं दिख रही हैं।
बजट सत्र के बीच छुट्टी पर !
विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है, और वित्त सचिव अलरमेल मंगाई डी, और उनके पति जल संसाधन सचिव पी. अलबंगन अवकाश पर चले गए हैं। प्रशासनिक हल्कों में दोनों अफसरों के अवकाश पर जाने की आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया हो रही है।
दो-तीन महीना पहले अलबंगन के निवास पर ईडी ने दबिश दी थी, और वो जांच के घेरे में हैं। ऐसे में सत्र के बीच में अवकाश में जाने को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। हल्ला यह भी उड़ा है कि अलबंगन से ईडी फिर पूछताछ करने वाली है।
कुछ लोग बता रहे हैं कि उन्हें पारिवारिक कारणों से अपने गृह प्रदेश तमिलनाडु जाना पड़ा है। हालांकि दोनों बजट पेश होने के मौके पर मौजूद थे, लेकिन अब जब विनियोग विधेयक पर चर्चा होनी है। ऐसे में वित्त सचिव, और जल संसाधन सचिव की गैरहाजिरी के मायने तलाशे जा रहे हैं।
किसानों को चिंता पानी बचाने की
एक मामूली सी दिखने वाली खबर अखबारों में कोने पर छपी है, लेकिन महत्वपूर्ण है। बालोद जिले के खपरी में करीब 10 गांवों के किसान इक_े हुए। उन्होंने तय किया कि वे गर्मी में धान की फसल नहीं लेंगे। इसकी जगह उन्होंने दलहन, तिलहन, गेंहूं, हल्दी, अदरक और सब्जियां बोई। लगातार घटते जल स्तर, खासकर गर्मी के दिनों में पानी का संकट देखते हुए ऐसा निर्णय उन्होंने लिया। इसके लिए कोई सरकारी पहल नहीं थी, यह फैसला उनका अपना है। कृषि विभाग हर बार किसानों से अपील करता है कि धान में बहुत पानी की जरूरत होती है, इसे गर्मी में नहीं लेना चाहिए। जल संसाधन विभाग ने नीति बना रखी है कि बांधों से गर्मी में धान के लिए पानी नहीं छोड़ा जाएगा। प्रदेश में पिछले साल करीब 2.22 लाख हेक्टेयर में धान बोया गया था। इस बार मुख्यमंत्री के निर्देश पर कृषि विभाग ने धान का रकबा शून्य रखा है और गेहूं का बढ़ा दिया है। बिजली विभाग भी धान की फसल लेने के लिए मोटरपंप का इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी देता है, पर जिन किसानों के पास सुविधा है वे नजर बचाकर लेते ही हैं। सरकारी अपील और प्रतिबंधों का उन पर असर नहीं होता। पर, बालोद के इन किसानों ने दूसरों के सामने मिसाल रखी है कि पानी बचाने के लिए वे भी सामने आएं।
कर्नाटक में राहुल का चुनावी वादा
छत्तीसगढ़ सरकार ने चुनावी साल में बेरोजगारी भत्ते का ऐलान किया। नियम शर्तें कुछ जटिल हैं। सन् 2018 से लेकर 2022 के बीच जो लोग 35 वर्ष की उम्र पार कर गए, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा जबकि भत्ते की उम्मीद में वोट तो उन्होंने भी दिया था। दूसरी तरफ उनको भी लाभ मिलेगा जो 12वीं पास कर चुके हैं और सन् 2018 में वोट डालने की उम्र नहीं थी। आवेदन 18 साल से अधिक उम्र का बेरोजगार कर सकता है।
बंदिश यह है कि रोजगार कार्यालय में पंजीयन कम से कम दो साल पुराना हो। ऐसे युवा बहुत होंगे। दो साल पुराने पंजीयन का नियम बनने के बावजूद प्रदेशभर के रोजगार कार्यालयों में इन दिनों भीड़ लगी हुई है, जबकि इन्हें तत्काल भत्ता नहीं मिलना है। बेरोजगारी भत्ता की यही पॉलिसी आगे दो साल तक जारी रहेगी, तब अवसर आएगा। भविष्य में भत्ता मिलने की उम्मीद से इन युवाओं का भी झुकाव कांग्रेस की ओर हो सकता है। भीड़ से यह भी पता चल रहा है कि ऑनलाइन पंजीयन की व्यवस्था तो की गई है, पर पोर्टल ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है। अभी प्रदेश में करीब 19 लाख पंजीयन हैं। नए पंजीयन से फिलहाल कोई लेना-देना नहीं है, जिसके लिए अभी भीड़ है। पंजीकृत 19 लाख में से दो साल पुराने नाम अलग करने हैं। इनमें से उन लोगों की छंटनी होगी, जिनकी आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं है। साथ ही, परिवार की कुल आमदनी 2.5 लाख रुपये सालाना से कम है। हर छह माह में परीक्षण होगा कि रोजगार मिल जाने के बाद भी कोई भत्ता तो नहीं ले रहा? यहां पर रोजगार का मतलब सरकारी नौकरी नहीं है, क्योंकि पहले ही कह दिया गया है कि आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं होने पर ही भत्ता मिलेगा।
इधर कर्नाटक में विधानसभा चुनाव करीब है। वहां सोमवार को बेलगावी में राहुल गांधी की सभा थी। उन्होंने जनसभा में बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है। यह साफ जरूर कर दिया कि भत्ता सिर्फ दो साल मिलेगा। पर सरकार बनने के पहले साल से मिलने लगेगा या छत्तीसगढ़ की तरह कार्यकाल खत्म होने के आसपास, यह साफ नहीं किया। कर्नाटक में राहुल ने यह भी घोषणा की है कि 10 लाख रोजगार सृजित किए जाएंगे, 2.5 लाख खाली सरकारी पद भरे जाएंगे। छत्तीसगढ़ में देखें तो ज्यादातर भर्तियों पर आरक्षण मसले और दूसरे कारणों से रोक लग गई है। अनियमित कर्मचारियों को नियमित करने का घोषणा पत्र में संकल्प था। पिछले बजट में इस पर कोई घोषणा नहीं होने के बाद यह वर्ग आंदोलन के रास्ते पर है।
पत्रकार की पोहा दुकान
ब्लैकमेलिंग करने, नफरत फैलाने से तो बेहतर है कि कोई दूसरा सम्मानजनक काम ढूंढ लिया जाए। इस चक्कर में न पड़े कि कोई क्या कह रहा है। सोशल मीडिया पर मिली इंदौर की इस तस्वीर में दिख रहा है कि पत्रकार ने पोहा दुकान खोल ली है। रिपोर्टर और एडिटर के लिए अलग-अलग स्पेशल पोहा भी सर्व किया जाता है। शादी, पार्टियों के लिए भी ऑर्डर लिए जाते हैं।