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दिल्ली/अमरावती, 13 सितम्बर | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने न्यायाधीशों और न्यायपालिका के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपमानजनक पोस्ट करने से संबंधित एक मामले में गुंटूर, आंध्र प्रदेश स्थित न्यायालय के समक्ष चार आरोपियों के खिलाफ अलग-अलग आरोप पत्र दायर किए हैं। केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
पिछले साल 11 सितंबर को सीबीआई ने 16 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और 2020 की रिट याचिका संख्या 9166 में आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसरण में सीआईडी, आंध्र प्रदेश राज्य से 12 प्राथमिकी की जांच अपने हाथ में ली थी। सीबीआई द्वारा सोमवार को जारी एक बयान के अनुसार, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल की शिकायतों पर मूल प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
यह आरोप लगाया गया है कि आंध्र प्रदेश राज्य में प्रमुख पदों पर बैठे प्रमुख कर्मियों ने जानबूझकर न्यायपालिका को निशाना बनाकर, आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा दिए गए कुछ न्यायालय के फैसलों के बाद न्यायाधीशों और न्यायपालिका के खिलाफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपमानजनक पोस्ट किए थे। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, पब्लिक डोमेन से आपत्तिजनक पोस्ट हटाने के लिए यह मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई द्वारा कार्रवाई भी शुरू की गई थी और ऐसे कई पोस्ट/अकाउंट को इंटरनेट से हटा दिया गया था।
जांच के दौरान आरोपियों को इसी साल 27 जुलाई और 7 अगस्त को विजयवाड़ा और हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया था। वे फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं।
इस मामले के एक अन्य आरोपी के खिलाफ इससे पहले इस साल 2 सितंबर को चार्जशीट दाखिल की गई थी।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 13 सितम्बर | पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पोते इंद्रजीत सिंह सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में केंद्रीय मंत्री और पंजाब के चुनाव प्रभारी हरदीप सिंह पुरी की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा में शामिल होने के बाद सिंह ने कहा कि उनके दादा की इच्छा पूरी हुई। इस अवसर पर राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम एवं राष्ट्र मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी एवं प्रवक्ता सरदार आरपी सिंह भी उपस्थित थे।
पार्टी में सिंह का स्वागत करते हुए गौतम ने कहा कि वह पंजाब और देश भर में सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार के काम पर प्रकाश डालते हुए गौतम ने कहा, "मोदी सरकार ने 1984 के दंगा पीड़ितों और करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण के लिए न्याय सुनिश्चित किया है।"
पुरी ने पंजाब और देश के बाकी हिस्सों में सिंह द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों की सराहना की और कहा कि वह पार्टी को मजबूत करेंगे और भाजपा उनके सामाजिक कार्यों को मजबूत करेगी।
पुरी ने उल्लेख किया कि पंजाब में कांग्रेस सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी की कई योजनाओं को लागू नहीं किया है। पुरी ने कहा, "पंजाब सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना या आयुष्मान योजना लागू नहीं की है।"
सिंह ने पूर्व राष्ट्रपति का इलाज नहीं करने के लिए कांग्रेस पर भी निशाना साधा। सिंह ने कहा, "मेरे दादाजी के तकलीफ में होने के बावजूद जिस तरह से कांग्रेस पार्टी ने उनके साथ व्यवहार किया, उससे मुझे दुख हुआ।"
उन्होंने कहा, "जब मैंने राजनीति में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की, तो मेरे दादाजी ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी से आशीर्वाद लेने के लिए कहा। जब भाजपा के वरिष्ठ नेता मदन लाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री थे, मैंने पार्टी में शामिल हुए बिना भाजपा के लिए प्रचार किया था। आज मेरे दादा मुझे खुशी होगी कि मैंने भाजपा में शामिल होने का सही फैसला लिया।"
पार्टी नेताओं का मानना है कि सिंह के भगवा खेमे में शामिल होने से अगले साल होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रचार को बढ़ावा मिलेगा।(आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 13 सितम्बर | ओडिशा के कई हिस्सों में पिछले 24 घंटों से भारी बारिश जारी है, जिसने राजधानी भुवनेश्वर और तीर्थ शहर पुरी में पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। आईएमडी ने सोमवार को यह जानकारी दी। सरकार ने 12 जिलों के स्कूलों को दो दिन के लिए बंद कर दिया है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा कि बंगाल की खाड़ी और उससे सटे ओडिशा तट पर दबाव अब एक गहरे दबाव में तब्दील हो गया है और सोमवार सुबह भद्रक जिले के चांदबली के पास तट को पार कर गया।
इसके अगले 48 घंटों के दौरान उत्तर ओडिशा, उत्तरी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पश्चिम-उत्तर-पश्चिम वाडरें की ओर बढ़ने और बाद के 24 घंटों के दौरान एक डिप्रेशन में कमजोर होने की संभावना है।
इसके प्रभाव में रविवार सुबह से राज्य के तटीय, उत्तरी और आंतरिक इलाकों में भारी बारिश हुई। पुरी जिले के अस्टारंगा में सबसे अधिक 530 मिमी बारिश दर्ज की गई, इसके बाद काकटपुर (525 मिमी), जगतसिंहपुर जिले में बालिकदा (440 मिमी), कटक जिले में कांटापारा (381 मिमी) और नियाली (370मिमी) में बारिश हुई।
भुवनेश्वर मौसम केंद्र के मौसम वैज्ञानिक उमाशंकर दास ने कहा कि 24 घंटों में (सोमवार की सुबह 8.30 बजे तक) 341 मिमी बारिश के साथ, पुरी ने 87 साल में एक दिन में सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की।
इसी तरह, राजधानी शहर भुवनेश्वर ने भी इस महीने में 63 साल पुराना बारिश का रिकॉर्ड तोड़ दिया, क्योंकि शहर में 195 मिमी बारिश हुई थी। उन्होंने कहा कि 9 सितंबर, 1958 को शहर में 163 मिमी बारिश हुई थी।
भुवनेश्वर और कटक शहरों के विभिन्न हिस्सों की अधिकांश सड़कों पर भारी बारिश के कारण जलभराव हो गया। रेलवे स्टेशन और भुवनेश्वर के केदारगौरी मंदिर सहित कई निचले इलाकों में बाढ़ का पानी घुस गया है। बारिश का पानी कटक के आचार्य हरिहर कैंसर अस्पताल में भी घुस गया, जिससे मरीजों को परेशानी हुई।
कटक नगर निगम (सीएमसी) की आयुक्त अनन्या दास ने कहा कि कैंसर अस्पताल में पानी की निकासी का काम चल रहा है, जबकि जलभराव वाले क्षेत्रों में लोगों के लिए सूखे भोजन की व्यवस्था की गई है। सूत्रों ने बताया कि जगतसिंहपुर जिला प्रशासन ने निचले इलाकों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है।
इस बीच, स्कूल और जन शिक्षा मंत्री समीर दास ने कहा कि भारी बारिश की चेतावनी के मद्देनजर 12 जिलों में दो दिनों (आज और कल) के लिए स्कूल बंद कर दिए गए हैं।(आईएएनएस)
गुजरात भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र पटेल को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाया गया है. घाटलोडिया सीट से विधायक पटेल को सोमवार मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी.
डॉयचे वेले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
रविवार को भूपेंद्र पटेल को विधायक दल का नेता चुना गया. वैसे पटेल पूर्व मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करीबी रहीं आनंदीबेन पटेल का बेहद करीबी माना जाता है. इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि पटेल दरअसल नरेंद्र मोदी की पसंद हैं.
पटेल को जब विधायक दल का नेता चुना गया तब गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी भी मौजूद रहे, जिन्होंने हाल ही में पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने पटेल को पद सौंपे जाने का स्वागत किया और कहा कि उनके नेतृत्व में पार्टी सफलतापूर्वक चुनाव लड़ेगी. गुजरात में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
कहां से आया भूपेंद्र पटेल का नाम?
भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया जाना बहुत से लोगों को हैरान करने वाला फैसला था. विधायक दल की बैठक में दो केंद्रीय मंत्रियों मनसुख मांडविया और पुरुषोत्तम रूपाला के अलावा लक्षद्वीप के विवादित प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल और राज्य के कृषि मंत्री आरसी फालदू का भी नाम चर्चा में रहा.
स्वराज्य अखबार के सलाहकार संपादक आनंद रघुनाथन कहते हैं कि पत्रकारों की तो छोड़िए, खुद भूपेंद्र पटेल को आखिरी मिनट तक नहीं पता था कि वह सीएम बनने जा रहे हैं.
गुजरात की अंदरूनी राजनीति से परिचित एक पत्रकार ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि भूपेंद्र पटेल को यह पद मिलना आनंदीबेन का बदला है. वह बताती हैं, "भूपेंद्र पटेल आनंदीबेन के बेहद करीबी हैं. जिस तरह आनंदीबेन पटेल को पद से हटाया गया था, उसका बदला अब उन्होंने भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनवाकर ले लिया है.”
भूपेंद्र पटेल अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन और अहमदाबाद अर्बन डिवेलपमेंट अथॉरिटी में रहे हैं. बहुत से लोग मानते हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने से राज्य में बीजेपी मजबूत होगी. बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने ट्वीट कर इस फैसले का स्वागत किया.
उन्होंने लिखा, "बहुत अच्छी बात है कि भूपेंद्र पटेल को गुजरात का नया मुख्यमंत्री चुना गया है. अब बीजेपी का गुजरात की सत्ता में लौटना सुनिश्चित है.”
विजय रुपाणी के साथ क्या हुआ?
विजय रुपाणी को गृह मंत्री अमित शाह का बेहद करीबी माना जाता है. गुजरात की राजनीति पर निगाह रखने वाले लोग मानते हैं कि अमित शाह के कारण ही रुपाणी को मुख्यमंत्री पद मिला था लेकिन पार्टी और जनता दोनों में उनकी छवि वैसी नहीं बन पाई, जिसके जरिए बीजेपी चुनाव जीत सके.
‘ऑफ द रिकॉर्ड' तो इस तरह की बातें भी चर्चा में हैं कि अमित शाह ने कुछ दिन पहले विजय रुपाणी को बता दिया था कि अब उन्हें नहीं बचाया जा सकता. एक पत्रकार बताती हैं, "विजय रुपाणी को हटाने के पीछे एक बड़ी वजह भ्रष्टाचार भी है. उनकी छवि खराब हो रही थी.”
विजय रुपाणी ने 2016 में पद संभाला था और शनिवार को उन्होंने इस्तीफा दे दिया. हालांकि इस बड़े बदलाव की चर्चा गलियारों में तभी से गर्म थी जब अमित शाह गुजरात दौरे पर गए थे. भले ही रुपाणी ने मीडिया के सामने कहा भी था कि कोई बदलाव नहीं हो रहा है. लेकिन शनिवार को अचानक उन्हें पद छोड़ना ही पड़ा.
‘जन की बात' अखबार के संपादक प्रदीप भंडारी लिखते हैं कि पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "दो दिन तक मीडिया की अटकलों के बाद, पहली बार विधायक बने पाटीदार समाज के भूपेंद्र पटेल को विजय रुपाणी की जगह सीएम बनाया गया है. मुझे इससे समझ आया कि पीएम मोदी ने बता दिया, बॉस कौन है.”
बहुत से विश्लेषक एक पटेल को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी के पाटीदार समाज का समर्थन वापस पाने के प्रयास के तौर पर भी देख रहे हैं. 2017 में बीजेपी को पाटीदार समाज के 55 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 2012 में यह आंकड़ा 80 प्रतिशत था. (dw.com)
भारत में वर्कफोर्स में बढ़ी ज्यादातर महिलाएं 'अनपेड फैमिली वर्कर' (अवैतनिक पारिवारिक कर्मचारी) के तौर पर काम कर रही हैं. यानी इन महिलाओं को काम के बदले वेतन नहीं मिलता.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
कानपुर के विशू भाटिया, होटल सेक्टर में काम करते थे. पिछले साल कोरोना लॉकडाउन में उनकी नौकरी गई तो घर चलाने के लिए उन्होंने दुकान खोली. लेकिन कुछ महीने में लॉकडाउन खुल गया और वे काम पर लौट आए, अब उनकी गिफ्ट और कॉस्मेटिक्स की दुकान चलाने का जिम्मा उनकी पत्नी पर आ गया. इसी तरह कई महिलाओं ने कोरोना के दौरान परिवार को आर्थिक सहारा देने के लिए काम करना शुरू किया. सरकारी आंकड़े भी स्पष्ट करते हैं कि साल 2019-20 में भारत के कुल वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या बढ़ी है.
केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने वर्कफोर्स में महिलाओं की बढ़ी भागीदारी को एक सकारात्मक संकेत बताया है लेकिन जानकार इसे लेकर सशंकित हैं. वे कहते हैं कि जुलाई 2019 से जून 2020 के हालिया पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) में वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी अच्छी मानी जा सकती थी अगर इसमें एक पेच न होता.
काम के लिए वेतन नहीं मिल रहा
यह पेच है कि वर्कफोर्स में बढ़ी ज्यादातर महिलाएं 'अनपेड फैमिली वर्कर' (अवैतनिक पारिवारिक कर्मचारी) के तौर पर काम कर रही हैं. यानी इन महिलाओं को काम के बदले वेतन नहीं मिलता. वे जिस दुकान, फैक्ट्री या खेत में काम कर रही होती हैं, उसका मुखिया भी उन्हीं के घर का कोई पुरुष सदस्य होता है. और परिवार का सदस्य होने के नाते उनके श्रम के बदले उन्हें सिर्फ घर में रहने और खाने की सुविधा मिल पाती है, कोई अतिरिक्त वेतन नहीं.
ब्रिटेन की बाथ यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर डेवलपमेंट में विजिटिंग प्रोफेसर संतोष मल्होत्रा कहते हैं, "एक बार जब महिलाएं वेतन न पाने वाला पारिवारिक श्रम करने लगती हैं तो वे घर से बाहर निकलकर नौकरियां नहीं कर पातीं. यह घरेलू काम-काज ज्यादातर खेतों, छोटे बिजनस और दुकानों में होता है. लेकिन इसमें कितनी ऐसी महिलाएं होंगी, इसे एक आंकड़े से समझिए कि भारत के 84 फीसदी छोटे और मझोले उद्योग ऐसे ही बिजनस हैं."
फिर भी कामकाजी महिलाएं बढ़ीं
साल 2019-20 के डेटा के मुताबिक भारत में काम करने योग्य जनसंख्या के मुकाबले वाकई काम करने वाले लोगों का प्रतिशत यानी लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेश्यो (LFPR) साल 2017-18 से 2019-20 के बीच बढ़ा है. लेकिन यह आंकड़ा कई लोगों के दिमाग में इसलिए खटक रहा है क्योंकि इस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था सुस्ती की ओर जा रही थी. सुस्त अर्थव्यवस्था में काम करने वाले कैसे बढ़े, यह रहस्यमयी बात थी.
अर्थशास्त्रियों ने इस रहस्य को खोला. उनके मुताबिक सुस्त होती अर्थव्यवस्था में वेतन नहीं बढ़ रहा था और नौकरियों का संकट भी गंभीर हो रहा था. वहीं कोरोना के दौरान जब नौकरियों और वेतन में कटौती शुरू हुई तो घरों पर दबाव बढ़ा. इस दौरान के आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि 2019-20 में नौकरियों में पुरुषों का हिस्सा लगभग उतना ही रहा लेकिन वो महिलाएं थीं, जो इस दौरान काम खोजने निकलीं जिससे वर्कफोर्स में उनका हिस्सा बढ़ा.
नौकरियां मिली नहीं, गईं
अर्थशास्त्री कहते हैं, लड़कियां अलग-अलग स्तरों पर तेजी से शिक्षित हो रही हैं. 2010-2015 के बीच सेंकेंड्री स्तर (कक्षा 9-10) में उनका इनरोलमेंट 58 फीसदी से बढ़कर 85 फीसदी हो गया है. कई राज्य लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्कॉलरशिप, लैपटॉप और साइकिल आदि देकर उन्हें पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित भी कर हैं. ऐसे में इन लड़कियों के पास शहरों में नौकरियां पाने के अवसर बढ़ रहे हैं.
इससे लगता है कि शिक्षा के चलते महिलाओं का हिस्सा वर्कफोर्स में सामान्य रूप से बढ़ रहा है. आखिर महिलाओं की शिक्षा का स्तर बढ़ने पर ऐसा होना सामान्य है. लेकिन अर्थव्यवस्था की सुस्ती के बीच यह ट्रेंड शक पैदा करता है. और सेवा क्षेत्र में सीमित नौकरियां आने से यह तर्क और कमजोर हो जाता है क्योंकि भारत में ज्यादातर पढ़ी-लिखी महिलाएं शहरी इलाकों में सेवा क्षेत्र में ही नौकरियां पाती रही हैं.
यह शक इसलिए और मजबूत हो जाता है क्योंकि सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के मुताबिक साल 2019-20 में कोरोना के चलते आर्थिक संकट आने पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की नौकरियां ज्यादा गईं.
नौकरियों की हिस्सेदारी का हालिया सर्वे भी दिखाता है कि आम नौकरियों में 2019-20 में कमी आई है. जिससे यह साफ हो जाता है कि रोज कमाई वाले रोजगार में बढ़ोतरी हुई है और लोगों ने स्वरोजगार और अनौपचारिक वेतन वाले कामों को चुना.
संकटकाल रहा इसकी वजह
महिलाओं को भी कोरोना से उपजे इस संकट के समय अवैतनिक कामों में लगना पड़ा. अर्थशास्त्री भी यह बात मानते हैं क्योंकि इस दौरान एक और क्षेत्र जिसमें वर्कफोर्स बढ़ा, वो खेती है. पिछले साल कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या बढ़ी है, जबकि पिछले दो दशकों से यह लगातार कम हो रही थी. जानकार इसके लिए शहरों से गांव लौटे प्रवासियों को जिम्मेदार बताते हैं.
इसे बुरा संकेत मानते हुए संतोष मल्होत्रा कहते हैं, "एक अर्थव्यवस्था जो मैन्युफैक्चरिंग के दम पर आत्मनिर्भरता की कोशिश में लगी है, उसके लिए यह पिछड़ने का संकेत माना जाएगा. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस दौरान उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) और निर्माण (कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र में रोजगार घटे हैं."
अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं, "लोगों के पास दूसरी तरह की नौकरियां नहीं हैं, इसलिए वे जीविका के लिए खेती पर निर्भर हो रहे हैं. यह बात महिलाओं के संदर्भ में भी कह सकते हैं. अगर उनके पास अच्छे अवसर उपलब्ध होते तो शायद वे घरेलू कामगाज में अपना श्रम न दे रही होतीं."
महिलाओं की प्रगति में आई बाधा
संतोष मेहरोत्रा कहते हैं, "कोरोना महामारी एक गंभीर संकट का दौर था लेकिन यह चलन साल 2018 से ही शुरू हो गया था. यही वजह रही कि साल 2018-19 से 2019-20 के बीच बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के रोजगार करने वालों का हिस्सा 49.6 फीसदी से बढ़कर 54.2 फीसदी हो गया. इस दौरान काम के घंटे भी कम हुए और परिवार की आय भी घटी."
उनके मुताबिक, "इसका असर यह हुआ है कि पुरुषों के प्रभुत्व वाले उद्योगों में महिलाएं दोयम दर्जे की कामगार बनाने को मजबूर हैं और समाज में उनकी प्रगति बाधित हो रही है. यह परिस्थिति तब और खराब हो जाती है, जब एक पढ़ी-लिखी महिला घरेलू कामकाज करने लगती है, फिर उसे घर से बाहर निकलकर काम करने की छूट मिलनी बहुत मुश्किल हो जाती है. योग्य होने पर भी उसे दोयम दर्जे के काम करने पड़ते हैं."
जानकार यह भी याद दिलाते हैं कि वर्कफोर्स से जुड़े आंकड़े दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं हैं क्योंकि चाहे साल 2017-18 रहा हो, 2018-19 या 2019-20, तीनों ही सालों में बेरोजगारी दर 9 फीसदी के आसपास बनी हुई है, जो पिछले 48 सालों (जबसे बेरोजगारी को नापा जा रहा है तबसे) के सबसे खराब स्तर पर है. ऐसे में क्या वर्कफोर्स में बढ़ी महिलाएं वाकई खुशी की बात हैं? (dw.com)
एक ताजा सर्वेक्षण में कहा गया है कि अगले साल भारत की कंपनियां 2018 के बाद से सबसे ज्यादा सैलरी बढ़ा सकती हैं. 2018 का औसत 9.5 फीसदी रहा था.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
2018 में सैलरी में औसत वृद्धि 9.5 प्रतिशत रहा था लेकिन 2020 में कोरोना वायरस के कारण आर्थिक मंदी का असर सैलरी की बढ़त पर बहुत ज्यादा पड़ा. ‘इंडिया सैलरी इनक्रीज सर्वे' की रिपोर्ट कहती है कि 2022 में कंपनियां वापस अच्छी सैलरी देने की ओर लौट सकती हैं.
डेटा कंपनी स्टैटिस्टा के मुताबिक सर्वे करने वाली कंपनी एओन ने 1350 कंपनियों के एक सर्वेक्षण के बाद कहा है कि 2022 में औसत वृद्धि 9.4 प्रतिशत रह सकता है, जो आर्थिक बहाली और प्रतिभाओं के लिए बढ़ती तगड़ी प्रतिद्वन्द्विता के कारण होगा.
लौटेगी बढ़त
2017 तक लगातार सात साल तक भारत में सैलरी की औसत ग्रोथ दो अंकों में रही थी. 2017 में यह 9.3 प्रतिशत आ गई, जिसके बाद इसमें लगातार कमी हुई. 2018 में 9.3 प्रतिशत, 2019 में 6.1 फीसदी और 2020 में औसत वृद्धि 8.8 प्रतिशत रही.
सर्वे कहता है कि महामारी ने विभिन्न कंपनियों को डिजिटल दिशा में आगे बढ़ने का मौका और रास्ता दिखाया जिसका असर डिजिटल जगत की प्रतिभाओं को अपने यहां लाने में मुकाबले के रूप में नजर आया. इस मुकाबले का असर सैलरी के लिए जारी बजट पर भी हुआ.
एओन का कहना है कि 2021 में कुछ विशेष कौशल के लिए मांग बहुत तेजी से बढ़ी है और सैलरी में बढ़त 8.8 प्रतिशत रही जबकि अनुमान 7.7 प्रतिशत था. जैसे जैसे अर्थव्यवस्था खुल रही है और कंपनियां दूसरी लहर के कारण आई आर्थिक मंदी से बाहर आ रही हैं, यह कहा जा रहा है कि अच्छा प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को वे 1.7 गुना तक सैलरी देने को भी तैयार हैं.
टेक्नोलॉजी सबसे आगे
सबसे ज्यादा सैलरी देने के मामले में टेक्नोलॉजी सेक्टर सबसे आगे रहा है. 2022 में इस क्षेत्र के कर्मचारियों की सैलरी 11.2 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. इसके बाद प्रोफेशनल सर्विस देने वाली कंपनियों और ई-कॉमर्स फर्म का नंबर है, जो 10.6 प्रतिशत औसत सैलरी बढ़ा सकती हैं. इसी तरह आईटी, लाइफ साइंसेज, फार्मा और कंज्यूमर गुड्स से जुड़ी कंपनियां औसत 9.2 से 9.6 प्रतिशत तक सैलरी बढ़ा सकती हैं.
2021 में सबसे पीछे रहने वाले क्षेत्र जैसे रीयल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर भी 8.8 प्रतिशत तक सैलरी बढ़ा सकते हैं. 2021 में इन क्षेत्रों ने औसतन सिर्फ 6.2 प्रतिशत सैलरी बढ़ाई थी.
हॉस्पिटैलिटी और रेस्तरां सेक्टर में औसत सैलरी ग्रोथ 7.9 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है. सबसे कम सैलरी बढ़ाने वाले क्षेत्रों में ऊर्जा और इंजीनियरिंग डिजाइन की सेवाएं देने वाली कंपनियों का नाम है. ऊर्जा क्षेत्र में तो ग्रोथ 2021 के औसत 8.2 प्रतिशत से घटकर 7.7 प्रतिशत पर जा सकता है.(dw.com)
नई दिल्ली, 11 सितम्बर: गुजरात के सीएम विजय रूपानी ने आज पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कहा कि, "मैंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. गुजरात का विकास पीएम के मार्गदर्शन में होना चाहिए." भाजपा के नेता विजय रूपाणी ने शनिवार को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपने अप्रत्याशित इस्तीफे के कुछ क्षणों के बाद कहा कि गुजरात के विकास को एक नेतृत्व में आगे बढ़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि "मेरा मानना है कि गुजरात के विकास की यात्रा नए नेतृत्व, नए उत्साह और नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़नी चाहिए. इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया है." उन्होंने मीडिया को दिए गए बयान में यह बात कही.
रूपाणी ने कहा कि, "मैं आभारी हूं कि मेरे जैसे पार्टी कार्यकर्ता को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने का महत्वपूर्ण मौका दिया गया."
उन्होंने कहा, "मेरे पूरे कार्यकाल में मुझे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मार्गदर्शन मिला. उनके मार्गदर्शन में गुजरात की प्रगति ने नई ऊंचाइयों को छुआ है. मैं राज्य के विकास में योगदान देने के अवसर के लिए माननीय प्रधानमंत्री का आभारी हूं."
रूपाणी के इस्तीफे के बाद उनका मंत्रिमंडल एक ऐसे मोड़ पर आ गया है जिसने सत्तारूढ़ बीजेपी को ऐसे तिराहे पर ला खड़ा किया है जहां तीन विकल्प हो सकते हैं - एक उत्तराधिकारी (और नया कैबिनेट) नियुक्त करें, राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाने दें या निर्धारित समय से बहुत पहले विधानसभा चुनाव कराए.
उडुपी, 11 सितम्बर| कर्नाटक के उडुपी जिले के तटीय शहर करकला में उस समय तनाव बढ़ गया, जब एक हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं ने धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए प्रार्थना के समय एक चर्च में घुस गये। घटना शुक्रवार को हुई। करकला पुलिस ने दक्षिणपंथी हिंदू जागरण वेदिके के सदस्यों और एक चर्च के पुजारी के खिलाफ मामला दर्ज किया है। करकला कस्बे और कुक्कंदूर गांव चर्च में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
पुलिस के अनुसार, हिंदू जागरण वेदिक के सदस्यों ने कुक्कंदूर गांव के एक चर्च में यह आरोप लगाया कि चर्च के अधिकारियों ने वहां 35 से अधिक हिंदुओं को धर्मांतरण के लिए इकट्ठा किया है। पुलिस ने चर्च के पादरी बेनेडिक्ट से कथित रूप से धर्म परिवर्तन करने के आरोप में पूछताछ की है।
पुलिस सूत्रों ने कहा कि बेनेडिक्ट को धार्मिक सभा करने की अनुमति नहीं थी। इससे पहले उनके खिलाफ 15 जुलाई को धर्मांतरण कराने की मंशा से धार्मिक सभा आयोजित करने की शिकायत दर्ज कराई गई थी।
पुलिस ने पादरी को चेतावनी दी थी कि बिना अनुमति के इस तरह की गतिविधियां ना करें। हालांकि शुक्रवार को बिना अनुमति के कार्यक्रम आयोजित किया गया।
पुलिस ने प्रार्थना सभा में भाग लेने वाले एक मजदूर सुनील का भी बयान दर्ज किया है, जिसमें कहा गया है कि बेनेडिक्ट ने उसे चर्च की प्रार्थना में शामिल होने के लिए मजबूर किया।
पुलिस ने हिंदू जागरण वेदिक सदस्यों के खिलाफ बेनेडिक्ट द्वारा दायर शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 143 (गैरकानूनी सभा), 147 (दंगा), 149 (गैरकानूनी सभा के दौरान किया गया अपराध), 504 (जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया है।
आरोप था कि चर्च के अंदर घुसकर कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के साथ बदसलूकी की, इसलिए पुलिस ने आईपीसी 354 (महिलाओं पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग) के तहत भी मामला दर्ज किया है।
पुलिस ने बेनेडिक्ट के खिलाफ धारा 295 (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से) और 298 (किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द आदि कहना) के तहत मामला दर्ज किया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली/अहमदाबाद, 11 सितम्बर | कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को इसलिए हटाया गया है, क्योंकि राज्य सरकार कोविड के दौरान सही प्रदर्शन करने और जनता को राहत देने में विफल रही। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता भरत सिंह सोलंकी ने कहा, रूपाणी कोविड के दौरान राहत देने में विफल रहे और हम मांग करते हैं कि नितिन पटेल को भी हटाया जाना चाहिए, क्योंकि वह भी लोगों के हित में काम करने में विफल रहे हैं।
सोलंकी ने कहा कि उनका निष्कासन इस बात का सबूत है कि वह सभी मोचरें पर विफल रहे।
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि यह लोगों का ध्यान हटाने और प्रधानमंत्री पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भाजपा द्वारा चेहरा बचाने की कवायद है, क्योंकि वह राज्य सरकार के प्रदर्शन के आधार पर चुनाव लड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती है।
सोलंकी ने कहा, अब कांग्रेस के पास जनता की नजर में एक व्यवहार्य विकल्प बनने की चुनौती और अवसर है।
हालांकि यह पूछे जाने पर कि क्या गुजरात कांग्रेस में सब कुछ ठीक है, सोलंकी ने कहा कि कांग्रेस इसी महीने प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करने जा रही है।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि भाजपा ने अन्य कारणों से नगर निगम का चुनाव जीता और विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाएगी चाहे वे कप्तान बदल दें या नहीं।
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने शनिवार को गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को गांधीनगर स्थित उनके आवास राजभवन में अपना इस्तीफा सौंपा।
विजय रूपाणी ने राजभवन में संवाददाताओं से कहा, मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं। मुझे पांच साल तक काम करने का मौका देने के लिए मैं पीएम मोदी और पार्टी को धन्यवाद देता हूं।
रूपाणी ने 7 अगस्त 2016 को राज्य के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया था। वह गुजरात विधानसभा में राजकोट पश्चिम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सूत्रों से पता चला है कि पार्टी रविवार तक रूपाणी की जगह नए सीएम के नाम की घोषणा करेगी। सबसे अधिक संभावना है कि उनकी जगह उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल जगह ले सकते हैं। (आईएएनएस)
भारत की लड़कियां दहलीज लांघ रही हैं. बेझिझक और बेलौस. अब वे खूब घूमने लगी हैं, वो भी अकेले. वे अकेली घूमती हैं, लिखती हैं और इनके हजारों फॉलोअर्स हैं जो इनसे प्रेरणा भी पाते हैं.
डॉयचे वेले पर फैसल फरीद की रिपोर्ट
फिरोजाबाद की रहने वाली कायनात काज़ी वैसे तो शिक्षिका हैं, लेकिन अब वह पूर्णकालिक यायावर हो गई हैं. लगभग छह साल पहले उन्होंने जोधपुर की अपनी पहली एकल यात्रा की थी. उससे पहले वह समूह में यात्रा कर चुकी थीं.
बीते चार साल में कायनात भारत में दो लख किलोमीटर की यात्रा कर चुकी हैं जिसके जरिए उन्होंने एक लाख तस्वीरों का संग्रह किया है. कायनात बताती हैं कि जब पहली बार एकल यात्रा करके लौटते हैं तो बोर्ड परीक्षा में पास होने जैसे प्रसन्नता होती है.
कायनात ने पूरा भारत लगभग देख, घूम और जी लिया है. आज वह फोटोग्राफर, ट्रैवल राइटर और ब्लॉगर हैं. हालांकि खुद को आज भी वह सोलो फीमेल ट्रैवलर कहती हैं. यायावरी के लिए उन्हें ढेरों पुरस्कार मिल चुके हैं. हाल ही में उन्हें पर्यटन रत्न सम्मान से नवाजा गया है.
घूमने का पुरस्कार
हिंदी साहित्य में पीएचडी कायनात राहगिरी नाम से हिंदी का पहला ट्रैवल फोटोग्राफी ब्लॉग भी चलाती हैं. इनकी कई फोटो प्रदर्शनियां लग चुकी हैं. वह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्यरत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के एक महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट " परमतपा" के तहत भारत की 12 महान महिलाओं की संघर्ष की दास्तान पर काम कर रही हैं जिसके चलते उन्होंने पूरे देश में लद्दाख से कन्याकुमारी और गुजरात से नगालैंड तक की यात्राएं कर ऐसी 12 महान महिलाओं का साक्षात्कार किया है जिन्होंने न सिर्फ अपना बल्कि पूरे समाज का जीवन बदला है.
इसके अलावा कायनात ने मध्य प्रदेश शासन के लिए सतपुड़ा के जंगलों के भीतर देवगढ़ स्थित 16वीं शताब्दी की बावड़ियों एवं गोंड आदिवासी समाज पर एक कॉफी टेबल बुक भी तैयार की है. फिलहाल वह देवगढ़ ग्राम को मध्य भारत का पहला मॉडल हेरिटेज विलेज बनाने के लिए पर्यटन से जोड़ने हेतु आदिवासी युवाओं के स्किल डेवलपमेंट के लिए कार्य कर रही हैं.
एक तरफ जहां कायनात अनुभवी यायावर हैं वहीँ दूसरी तरफ कुछ युवा लड़कियों ने भी यायावरी को एक जूनून बना लिया हैं. प्रज्ञा श्रीवास्तव कुछ ऐसी ही हैं. साल 2017 में उन्होंने अपनी पत्रकारिता की नौकरी छोड़ कर घूमना शुरू कर दिया और बीते चार साल में भारत के 34 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश घूम चुकी हैं. प्रज्ञा बताती है कि सिर्फ लद्दाख और लक्षद्वीप बचा है, वहां भी कोरोना के कारण जाना टल गया है. प्रज्ञा भारत के सुदूर क्षेत्रों में लगभग हर छोटी बड़ी जगह पर जा चुकी हैं. वह बताती हैं कि आमतौर पर लोग घूमने को बहुत महंगा मानते हैं लेकिन ये मिथ्या है.
प्रज्ञा कहती हैं, "आजकल हजार रुपये में ट्रेन में स्लीपर का टिकट मिलता है. रहने के लिए होम स्टे की व्यवस्था हो जाती है. बस आप थोड़ा सावधानी और संयम से काम लें.”
छोटी यात्राओं का बड़ा सुख
झारखण्ड की रहने वाली मोनिका मरांडी भी कुछ ऐसा ही कर रही हैं. मोनिका और प्रज्ञा दोनों बैचमेट हैं. मोनिका बताती हैं कि पढाई के दौरान ही दोनों ने फैसला किया था कि साथ में घूमने चलेंगे और एक दिन सफर शुरू हो गया.
मोनिका कहती हैं, "हम लोगों ने सोचा कि इंग्लिश में बहुत सामग्री है और हिंदी में बहुत कम है तो फिर हम ने हिंदी में लिखने के लिए वेबसाइट chalatmusafir.com बनाई. यहां हम लोगों ने एक मंच दिया कि जो लोग हिंदी में लिखना चाहते हैं वे यहां आएं. देखते-देखते हमारी वेबसाइट पर आज 350 लेखक हैं जो अपनी यायावरी के किस्से साझा करते हैं.”
लखनऊ की रहने वाली शालू अवस्थी फिलहाल मुंबई में नौकरी कर रही हैं लेकिन यात्रा करना और घूमना इनका जूनून हैं. शालू ऐसी जगहों को चुनती हैं जो सस्ती और आसपास हों. जैसे मुंबई के बीच में बनाया गया एक गांव या फिर भारत का सबसे छोटा हिल स्टेशन जहां पर किसी भी किस्म के वाहन का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है.
शालू बताती हैं कि यात्रा करने से काम के दबाव से राहत मिलती है. वह कहती हैं, "मेरा ध्येय सिर्फ बजट यात्राओं पर रहता है जिसे कम पैसे और कम समय में आप ज्यादा घूम सकें. ऐसी जगह जिसको आप छुपी हुई जगह कह सकते हैं.” शालू अपने यूट्यूब चैनल पर अपनी यात्राओं के बारे में बताती हैं.
सुरक्षित है यूं अकेले घूमना?
इस प्रश्न पर भले आपको तरह तरह के उत्तर मिलें लेकिन एकल यात्रा करने वाली ये लड़कियां इससे बखूबी परिचित हैं. प्रज्ञा के अनुसार, "बहादुरी और बेवकूफी में बहुत थोड़ा सा अंतर होता है. अगर आप अकेले हैं तो आपको सजग रहना होगा. मैं पुरुलिया में ऐसे सुदूर स्थान पर थी जहां पर सिर्फ पुरुष थे लेकिन मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. सबका व्यवहार बहुत ही अच्छा रहा. बस आप थोड़ा ध्यान से रहिये.”
अनुभवी कायनात काजी बताती हैं कि अकेले यात्रा करने में अगर आजादी है तो आपके ऊपर जिम्मेदारी भी है. वह कहती हैं, "आपको अपना ख्याल रखना है. उसके साथ साथ अपने उपकरणों का भी ख्याल रखना है. ये एक बहुत ही बड़ा उत्तरदायित्व है लेकिन लड़कियां उसको बखूबी निभा सकती हैं.” (dw.com)
भारत जुलाई, 2021 तक रूफटॉप सोलर से सिर्फ 5.1 गीगावॉट ऊर्जा का ही उत्पादन कर रहा था. जो साल 2022 तक रूफटॉप सोलर से 40 गीगावॉट बिजली उत्पादन के लक्ष्य का सिर्फ 13% ही है. ऐसे में अब यह लक्ष्य पूरा करना संभव नहीं लग रहा है.
डॉयचे वेले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
दुनिया 2022 की ओर तेजी से बढ़ रही है और इसी के साथ भारत का रूफटॉप सोलर यानी छतों पर लगे सोलर पैनल के जरिए 40 गीगावॉट बिजली उत्पादन का लक्ष्य असंभव नजर आने लगा है. भारत सरकार ने यह सपना 2015 में देखा था और यह 175 गीगावॉट के उस रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन कार्यक्रम का हिस्सा था, जिसे 2022 तक पूरा किया जाना था.
बाद में इस लक्ष्य को बदलकर साल 2030 तक 450 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी उत्पादन कर दिया गया. अब तक भारत 100 गीगावॉट से ज्यादा की ग्रीन एनर्जी उत्पादन क्षमता हासिल कर चुका है, जिसका ज्यादातर हिस्सा (करीब 78 फीसदी) बड़े पवन और सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट से आ रहा है. लेकिन जुलाई, 2021 तक भारत रूफटॉप सोलर के जरिए सिर्फ 5.1 गीगावॉट ऊर्जा ही उत्पादित कर रहा था.
यह निर्धारित लक्ष्य का मात्र 13 फीसदी है. यानी बड़े सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा भारत रूफटॉप सोलर के मामले में पिछड़ रहा है. वह भी ऐसा तब हो रहा है, जब बड़े सौर और पवन ऊर्जा के प्रोजेक्ट कई तरह के प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं. इस प्रतिरोध की कई वजहें हैं.
पानी और पर्यावास का संकट
बड़े सोलर फार्म में पैनल को सुरक्षित रखने के लिए बहुत ज्यादा पानी की जरूरत होती है. भारत के कई इलाकों में पानी की भारी कमी है. जानकार कहते हैं, ऐसे इलाकों में लगे सोलर प्लांट चिंता का सबब हो सकते हैं. इसके अलावा ऐसे प्रोजेक्ट के लिए स्थानीयों का विस्थापन या किसी विशेष भू-भाग पर आर्थिक निर्भरता वाले समूहों पर पड़ने वाला प्रभाव भी चिंता बढ़ाता है.
इतना ही नहीं जमीन पर सोलर पैनल लगाने के लिए वहां के पेड़-पौधों या घास को हटाया जाता है, जिससे उस जगह का पर्यावास बदल जाता है. स्थानीय छोटे-बड़े जानवरों और पक्षियों को इससे नुकसान पहुंचता है. इस तरह के खतरे का एक बड़ा उदाहरण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड नाम का पक्षी है, जिस पर राजस्थान में लगे रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स के चलते खतरा मंडरा रहा है.
वेस्टलैंड को खतरा
जानकार कहते हैं कि एक डर इन प्रोजेक्ट्स के लिए गलत भू-भाग के चयन का भी है, जैसे वेस्टलैंड. भारत में घास और झाड़ियों के कई पुराने मैदान इसके अंतर्गत हैं. जानकार बताते हैं कि भले ही ये बहुत सामान्य लगें लेकिन ये बहुत से जंगलों से भी पुराने हैं, और पर्यावरण के लिए बहुमूल्य हैं.
साल 2019 में आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि इन इलाकों से 8400 वर्ग किमी भूभाग को साल 2008-09 से 2015-16 के बीच नॉन-वेस्टलैंड क्लास में डाल दिया गया है. वह भी पर्यावरणविदों के इस दावे के बावजूद कि यहां घास के मैदानों के अलावा भारत के अर्द्ध-शुष्क प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का भी बहुत बड़ा हिस्सा बसता है.
वेस्टलैंड से अलग हुए इन भूभागों पर ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट लगाए जा रहे हैं. हाल ही इन मैदानों पर स्टडी करने वाले एमडी मधुसूदन और अबी वानक वेस्टलैंड से जुड़े अपने एक रिसर्च पेपर में लिखते हैं, "भारत के बड़े स्तर पर रिन्यूएबल एनर्जी तकनीकी के मामले में अंतरराष्ट्रीय नेता बनने की भूमिका ने हाल के सालों में खुले प्राकृतिक पर्यावास को विंडबनापूर्ण तरीके से एक बड़े खतरे में डाला है."
रूफटॉप सोलर सही विकल्प
ऐसे हालात में कई पर्यावरण कार्यकर्ता सुझाते हैं कि भारत को बड़े सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट के बजाए रूफटॉप सोलर पर जोर देना चाहिए. शुरुआत में रूफटॉप सोलर में तेज बढ़ोतरी देखी भी गई थी. साल 2019 में आई इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकॉनमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूफटॉप सोलर भारत में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा ग्रीन एनर्जी सोर्स था.
भारत में यह 2012 से 2019 के बीच सालाना 116 फीसदी की दर से बढ़ा. लेकिन फिर यह सुस्त पड़ गया. बड़े स्तर पर इसके लिए तकनीक उपलब्ध कराने वाली ज्यादातर कंपनियों का मत है कि भले ही रूफटॉप सोलर फिलहाल शुरुआती दौर में है, लेकिन इसमें बड़े बदलावों की संभावना है. तेजी से इनोवेशन के जरिए सोलर पैनल को और प्रभावी बनाया जा सकता है. जिससे लोग इसे तेजी से अपनाएं.
कई सारी रुकावटें
हालांकि जानकार इसमें कई रुकावटें भी देखते हैं. भारत में बिजली के बारे में कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है. राजनीतिक लाभ पाने के लिए राज्य सोलर जैसे किसी बदलाव को जबरदस्ती लागू कराने से हिचकते हैं. फिर कोविड के चलते भी रूफटॉप का प्रसार प्रभावित हुआ है. एक समस्या नियमों को लेकर अनिश्चितता की भी है. नेट मीटरिंग बनाम ग्रॉस मीटरिंग ने भी गड़बड़ी पैदा की है.
नेट मीटरिंग में सोलर एनर्जी के घरेलू और व्यावसायिक उत्पादकों को अपने अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन को वापस ग्रिड को बेचने की सुविधा मिलती है. और जितनी ऊर्जा वे ग्रिड को बेचते हैं, उसे उनके बिजली के बिल में कम कर दिया जाता है. जबकि ग्रॉस मीटरिंग में उनके जरिए उत्पादित कुल बिजली के लिए एक निश्चित टैरिफ चुकाया जाता है, इसके अलावा उन्हें खुद उपयोग की गई बिजली के लिए पैसा बिजली वितरण कंपनी को देना होता है.
आर्थिक मदद से बदलाव
जानकार कहते हैं, लोगों को महंगे रूफटॉप सोलर पर छूट मिलनी चाहिए. इसके अलावा डिस्कॉम की ओर से भुगतान में अनिश्चितता को दूर किए जाने की जरूरत भी है. सोलर पैनल लगाने में आने वाले भारी खर्च के लिए फंडिंग के विकल्पों की कमी भी चिंता की बात है क्योंकि रूफटॉप सोलर लगाने का खर्च अब भी बहुत ज्यादा है.
आईआईटी बॉम्बे में डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग के हेड रंगन बनर्जी मानते हैं, "दूरदर्शी होकर सोचें तो यह सामान्य बिजली से काफी सस्ता है." फिर भी शुरुआती बड़ा निवेश रूफटॉप के लिए एक रुकावट होता है.
लगभग सभी जानकार इस बात पर सहमत हैं कि अगर इसके लिए आर्थिक मदद दी जा सके तो भारत में इसे अपनाने की रफ्तार तेज की जा सकती है. रंगन बनर्जी कहते हैं, "रूफटॉप को बढ़ावा देने के लिए सरकार को इसके अनुकूल नीतियां बनाने और ऐसी कंपनियों को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो इस दिशा में काम कर रही हैं."
ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बचेगा
जानकार कहते हैं कि बड़े सोलर प्रोजेक्ट के बजाए रूफटॉप सोलर लगाना आर्थिक तौर पर भी सही है. बड़े उद्योगों, गोदामों और सरकारी कार्यालयों की छतें बड़ी होती हैं, जिनका इस्तेमाल सोलर पैनल लगाने में किया जाना चाहिए. ये सभी जगहें उपभोक्ताओं के ज्यादा नजदीक होंगी.
फिर भी ऐसा करने के बजाए सैकड़ों मील दूर देश के दूर-दराज इलाकों में 100 से 500 मेगावॉट के सोलर फार्म बनाए जा रहे हैं. ऐसा एक बार में ज्यादा उत्पादन के लिए किया जाता है. लेकिन अगर सरकारी इमारतों और गोदामों को इस काम में लाएं तो बिजली के ट्रांसपोर्टेशन में आने वाला भारी खर्च भी बचाया जा सकेगा. इस तरह से बिजली खुद ही ग्राहकों के पास आ जाएगी और उसके ट्रांसमिशन और वितरण पर होने वाले भारी नुकसान की बचत होगी.
अच्छी बैटरी का बड़ा रोल
इसके साथ ही ग्राहक बैटरियों के जरिए इस बिजली को स्टोर भी कर सकते हैं, जिससे बिजली वितरण कंपनियों पर उनकी निर्भरता भी कम होगी. बिजली वितरण कंपनियों का मूलभूत ढांचे के निर्माण पर होने वाला भारी खर्च भी इससे बचेगा. रंगन बनर्जी भी इसे एक जरूरी बदलाव मानते हैं ताकि पूरे दिन बिजली की आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके.
हालांकि जानकार यह भी कहते हैं कि रूफटॉप सोलर के ज्यादा सुविधाजनक और तर्कसंगत होने का यह मतलब नहीं है कि बड़े सोलर प्रोजेक्ट पूरी तरह खत्म कर दिए जाने चाहिए. यह भी बहुत उपयोगी हैं, जब तक ये सही जगहों पर लगाए जाएं, जैसे छोड़ी जा चुकी खदानों पर. (dw.com)
भारत पाम ऑयल को लेकर दूसरे देशों पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है. लेकिन पर्यावरणविद चिंतित हैं कि देश में पाम ऑयल के नए लक्ष्यों से वन्यजीवों और जंगलों के साथ-साथ आदिवासी भूमि अधिकारों को भी खतरा हो सकता है.
डॉयचे वेले पर रोशनी मजुमदार की रिपोर्ट
भारत पाम ऑयल के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में से एक है. पाम ऑयल का इस्तेमाल साबुन से लेकर चिप्स बनाने तक लगभग हर चीज में किया जाता है. लेकिन भारत अभी भी अपने देश में इस्तेमाल होने वाले पाम ऑयल के अधिकांश हिस्से का आयात करता है. अब दूसरे देशों पर निर्भरता और आयात को कम करने के लिए, भारत सरकार पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ाना चाहती है. इसके लिए, सरकार ने अगस्त में एक नई योजना ‘पाम ऑयल मिशन' पेश की है.
भारत सरसों और सोयाबीन जैसे अन्य वनस्पति तेलों का भी उत्पादन करता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पाम ऑयल की मांग में काफी ज्यादा वृद्धि देखने को मिली है. ऐसे में सरकार ने पॉम ऑयल के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने का फैसला किया. इस साल पॉम ऑयल की आसमान छूती कीमतों ने भी सरकार को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है.
क्या है पाम ऑयल मिशन?
भारत सरकार ने नेशनल मिशन फॉर एडिबल ऑयल-ऑयल पाम (NMEO-OP) नाम की योजना शुरू की है. इसका उद्देश्य उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में पाम ऑयल के उत्पादन को बढ़ावा देना है. पाम ऑयल के उत्पादन के लिए पूरे साल बारिश की आवश्यकता होती है. साथ ही, इसकी सबसे अच्छी खेती उन इलाकों में हो सकती है जहां तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस या इससे कुछ ज्यादा रहता हो और नमी 80 फीसदी से भी ज्यादा हो.
भारत अपनी इस परियोजना के लिए देश के पूर्वोत्तर हिस्से और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के पूर्वी द्वीपसमूह का इस्तेमाल करना चाहता है. ये क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हैं और कई अलग-अलग प्रकार के वनस्पतियों और जीवों के घर हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनएमईओ-ओपी को "गेम-चेंजर" बताया है और कहा है कि इस परियोजना से इन क्षेत्रों को लाभ होगा. सरकार को यह भी उम्मीद है कि इस पहल से किसानों को अपनी आय बढ़ाने में मदद मिलेगी. यह एक ऐसी फसल है जो मूंगफली या सूरजमुखी जैसे पारंपरिक तिलहनों की तुलना में अधिक तेल का उत्पादन करती है.
भारत ने तय किया नया लक्ष्य
फिलहाल, भारत तीन लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर पॉम ऑयल का उत्पादन करता है. अब 2025-26 तक छह लाख 50 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर पॉम ऑयल के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्च के वैज्ञानिक एमवी प्रसाद के अनुसार, भारत में हर साल 2.5 करोड़ टन पाम ऑयल की खपत है. देश में करीब एक करोड़ टन का उत्पादन होता है. वहीं, 1.5 करोड़ टन दूसरे देशों से आयात किया जाता है.
एमवी प्रसाद ने डॉयचे वेले को बताया कि भारत में नए इलाकों में उत्पादन शुरू होने के बाद, करीब 11 लाख मीट्रिक टन पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी. सरकार पाम ऑयल की नई परियोजना को लागू करने के लिए एक करोड़ डॉलर से अधिक खर्च कर सकती है.
जैव विविधता कैसे प्रभावित होगी?
अधिकारियों ने बताया है कि सरकार चाहती है कि पाम ऑयल की फसलों की खेती उन जमीन पर हो जिनका इस्तेमाल किसान पहले से ही कर रहे हैं. हालांकि, पर्यावरणविद संशय में हैं और इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस परियोजना का भारत के वन्यजीवों पर किस तरह का प्रभाव पड़ सकता है.
नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर सुधीर कुमार सुथर कहते हैं कि एक प्रकार के जंगल को हटाकर दूसरे प्रकार का जंगल लगाने से कई जीवों के अस्तित्व को खतरा है. पाम ऑयल की खेती के मामले में भी ऐसा ही करने पर विचार किया जा रहा है. वे कहते हैं कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र 51 प्रकार के जंगलों का घर है. पाम ऑयल की खेती इस इलाके और इन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है.
मलेशिया के वैज्ञानिकों ने 2020 के एक अध्ययन में पाया कि वन क्षेत्रों को पाम ऑयल के बागानों में बदलने से कार्बन का उत्सर्जन भी अधिक हुआ. यह देखा गया कि 1990 से लेकर 2005 तक, पाम ऑयल के लगभग 50 से 60 प्रतिशत पेड़ पुराने जंगलों को साफ कर उन्हीं जगहों पर लगाए गए. वहीं, वर्षावनों को नष्ट करने से जलवायु परिवर्तन से निपटने के अंतरराष्ट्रीय प्रयास बाधित होंगे.
किसान और आदिवासी समूह किस तरह प्रभावित होंगे?
विनीता गौड़ा जीवविज्ञानी हैं. उन्होंने पूर्वोत्तर भारत का व्यापक अध्ययन किया है. वह चेतावनी भरे लहजे में कहती हैं कि भारत सरकार को इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे पाम ऑयल के उत्पादक दिग्गजों के साथ जो हो रहा है उससे सीखना चाहिए. दक्षिण एशिया के ये दो देश दुनिया में इस्तेमाल होने वाले 80 से 90 प्रतिशत पाम ऑयल का उत्पादन उन इलाकों में लगाए गए पेड़ से करते हैं जहां पहले कभी जंगल हुआ करते थे.
अब पर्यावरण के संरक्षण में जुटे लोग इंडोनेशिया की सरकार से पाम ऑयल की नई खेती पर लगी रोक के समय को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. इंडोनेशिया में 2018 में पाम ऑयल की नई खेती पर अगले तीन साल के लिए रोक लगाई गई थी. इस बीच, अमेरिका ने श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार के कथित दावों पर मलेशिया के दो बागानों से पाम ऑयल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है.
सुथर के मुताबिक, पाम ऑयल की खेती से देश में भूमिगत जल स्तर नीचे जा सकता है. साथ ही, किसानों और आदिवासी लोगों द्वारा जमीन का इस्तेमाल करने के तरीके पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. सुथर ने भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश का हवाला दिया. यहां की अधिकांश भूमि पर आदिवासी समुदायों का मालिकाना हक है. उन्होंने चेतावनी दी कि पाम ऑयल की खेती से आदिवासियों के वन अधिकार प्रभावित होंगे. (dw.com)
नई दिल्ली, 8 सितम्बर | देश के 698 जिलों के 17,475 गांवों में गुरुवार को 'स्वच्छ भारत' मिशन के दूसरे चरण के तहत स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021 की शुरूआत की जाएगी। 'आजादी का अमृत महोत्सव' के हिस्से के रूप में, स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण का उद्देश्य देश में खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) हस्तक्षेपों और परिणामों में तेजी लाना है। जल शक्ति मंत्रालय की ओर से बुधवार को जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सर्वे 2021 के संचालन के लिए एक विशेषज्ञ एजेंसी को काम पर रखा गया है, जिसके तहत गांवों, जिलों और राज्यों को प्रमुख मापदंडों का उपयोग करके रैंक किया जाएगा।
स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण के हिस्से के रूप में, देश भर के 698 जिलों के 17,475 गांवों को कवर किया जाएगा। सर्वे के लिए इन गांवों में कुल 87,250 सार्वजनिक स्थानों जैसे स्कूल, आंगनवाड़ी, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र, हाट/बाजारों/धार्मिक स्थलों का दौरा किया जाएगा।
स्वच्छ भारत मिशन से संबंधित मुद्दों पर प्रतिक्रिया के लिए लगभग 1,74,750 परिवारों का साक्षात्कार लिया जाएगा। विज्ञप्ति में कहा गया है कि नागरिकों को इस उद्देश्य के लिए विकसित एक एप्लिकेशन का इस्तेमाल करके स्वच्छता से संबंधित मुद्दों पर ऑनलाइन प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यू) ने इससे पहले 2018 और 2019 में 'स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण (एसएसजी)' चलाया था। एसएसजी केवल एक रैंकिंग अभ्यास नहीं है, बल्कि 'जन आंदोलन' बनाने के लिए एक वाहन रहा है।(आईएएनएस)
करनाल (हरियाणा), 8 सितम्बर | जिला प्रशासन के साथ यहां बुधवार को दूसरे दिन हुई किसानों की बैठक भी अनिर्णायक रही। इससे पहले मंगलवार को भी जिला प्रशासन के साथ किसान नेताओं ने बैठक की थी, जिसमें कोई परिणाम नहीं निकल पाया था।
एसडीएम आयुष सिन्हा के खिलाफ कार्रवाई और मामले की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने यहां बुधवार को स्थानीय प्रशासन के साथ बैठक की, जिसमें प्रमुख किसान नेता शामिल रहे।
जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ बैठक में भाग लेने वाले 13 प्रतिनिधियों में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत, कार्यकर्ता योगेंद्र यादव शामिल रहे।
बैठक में जाने से पहले राकेश टिकैत ने कहा, "खट्टर सरकार किसान आंदोलन को करनाल तक सीमित करने की साजिश कर रही है, जो सफल नहीं होगा।"
उन्होंने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि वह करनाल में विरोध प्रदर्शन में अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करेंगे और इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करना चाहेंगे।
इससे पहले, किसान नेताओं ने आपस में एक बैठक की, जहां उन्होंने स्थानीय प्रशासन को आईएएस अधिकारी आयुष सिन्हा के खिलाफ कार्रवाई करने का एक और मौका देने का फैसला किया, जिन्होंने 28 अगस्त को पुलिस को विरोध करने वाले किसानों पर बलप्रयोग का निर्देश दिया था।
बैठक में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, करनाल स्थित बीकेयू नेता जगदीप सिंह चढूनी और कई अन्य कृषि यूनियनों के प्रतिनिधियों ने करनाल के जिला कलेक्टर सहित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों से मिलने का फैसला किया। (आईएएनएस)
लखनऊ, 8 सितम्बर | योगी आदित्यनाथ सरकार वाराणसी और गोरखपुर के बीच पहली सीप्लेन सेवा शुरू करने की योजना बना रही है। राज्य सरकार ने इस संबंध में नागरिक उड्डयन मंत्रालय को पत्र लिखा है।
यूपी सरकार ने केंद्र से व्यवहार्यता अध्ययन करने और मामले में आगे की कार्रवाई करने को कहा है।
यूपी के नागरिक उड्डयन मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने मंगलवार को नई दिल्ली में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की और वाराणसी-गोरखपुर हवाई मार्ग पर सीप्लेन सेवा शुरू करने को लेकर चर्चा की। उन्होंने विमानन से जुड़े अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूपी सरकार की ओर से केंद्र को भेजे गए सीप्लेन सेवा प्रस्ताव पर तत्काल कार्रवाई करने को कहा है।
सीप्लेन जमीन और पानी दोनों से काम कर सकते हैं। 300 मीटर लंबे जलाशय से उड़ान और लैंडिंग भी की जा सकती है। केंद्र सरकार ने देश में 100 सीप्लेन सेवाओं की योजना बनाई है, जिसमें करीब 111 नदियों को हवाई पट्टी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।(आईएएनएस)
गांधीनगर, 8 सितम्बर | आयकर विभाग की एक बड़ी कार्रवाई में बुधवार को अहमदाबाद विभाग के अधिकारियों ने रियल एस्टेट डीलरों, बिल्डरों और एक मीडिया हाउस सहित छह प्रमुख व्यापारिक घरानों पर छापेमारी की। माना जा रहा है कि 24 से ज्यादा जगहों पर छापेमारी कर आईटी अधिकारियों को इन कारोबारी घरानों से अघोषित आय का पता चला है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, आयकर अधिकारियों ने बुधवार तड़के करीब चार बजे दीपक ठक्कर, योगेश पुजारा और के. मेहता समूह समेत विभिन्न कारोबारी समूहों के परिसरों पर छापेमारी की। इसके साथ ही एक मीडिया हाउस के विभिन्न स्थानों पर भी छापेमारी की गई।
सूत्रों ने बताया कि छह समूहों और रियल एस्टेट कारोबारी घरानों के करीब 24 परिसरों पर छापेमारी की गई।
सूत्रों ने यह भी कहा कि छापे इन फर्मों द्वारा किए गए कुछ भूमि सौदों के संबंध में थे। योगेश पुजारा एक प्रतिष्ठित उद्योगपति के करीबी रिश्तेदार माने जाते हैं।
यह छापेमारी दीपक अजीत कुमार ठक्कर, योगेश कन्हैयालाल पुजारा, शीतल चुन्नीलाल झाला, प्रशांत हिम्मतभाई सरखेड़ी, जगदीश गोविंदभाई पावरा, वसंतीबेन जगदीश पावरा, अशोक कुमार रामदयालचंद भंडारी, बागमार नीला प्रोजेक्ट्स के दफ्तरों और एक मीडिया हाउस के दफ्तरों पर की गई।(आईएएनएस)
बैतूल, 8 सितंबर | मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में चरित्र पर शक के चलते हृदय विदारक घटना हुई, जिसमें एक महिला ने दूसरी महिला और उसे दो मासूम बच्चों को कुएं में धकेल दिया, दोनों मासूमों की तो मौत हो गई, जबकि महिला गंभीर हालत में है। वाक्या जिला मुख्यालय से करीब 43 किलोमीटर चिचोली थाने के अंतर्गत आने वाले ग्राम कान्हेगांव का है, जहां बीते रोज इस घटना को अंजाम दिया गया। अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस (एसडीओपी) महेंद्र सिंह मीणा ने बताया कि ग्राम कान्हेगांव निवासी संगीता उइके (35) पर पिंकी कुमरे (38) शक करती थी कि उसके पति गोलू कुमरे का संगीता से अवैध संबंध है। इसी शक के चलते पिंकी ने संगीता को रास्ते से हटाने का मन बना लिया था।
मीणा के अनुसार, मंगलवार को संगीता अपने दो बच्चों बेटा अंशु(चार) और डेढ़ वर्षीय बालिका अंशिका के साथ चिचोली साप्ताहिक बाजार करके शाम को लौट रही थी, तभी रास्ते में एक बिना मुंडेर के कुंए के पास पिंकी प्रतिघात लगाकर बैठी हुई थी। संगीता अपने दोनों बच्चों के साथ जैसे ही बिना मुंडेर के कुंए के पास पहुंची तभी झाड़ियों में से निकलकर पिंकी ने संगीता को उसकी गोद में लिए डेढ़ वर्षीय बालिका अंशिका के साथ कुंए में धक्का दे दिया, जिससे दोनों कुंए में जा गिरे। इसके बाद पिंकी कुमरे ने चार वर्षीय अंशू को भी कुंए में उठाकर फेंक दिया।
एसडीओपी मीणा ने बताया कि पिंकी कुमरे का गुस्सा यही शांत नहीं हुआ। कुंए में बच्ची के साथ गिरने के बाद संगीता ने कुंए में एक झाड़ी को पकड़ लिया और बच्ची को सीने से चिपका लिया तब तक बच्ची जिंदा थी। लेकिन पिंकी ने ऊपर से पत्थरों की बौछार करना प्रारंभ कर दिया, जिससे बच्ची जहां संगीता से छूटकर कुंए में गिर गई, वहीं संगीता भी गंभीर रूप से घायल हो गई। इस घटना में दो बच्चों की मौत हो गई।
एसडीओपी मीणा ने बताया कि घटना के बाद बुधवार को पुलिस अधीक्षक सिमाला प्रसाद ने घटना स्थल का निरीक्षण किया है, वहीं कुंए में पानी अधिक होने से मोटर पंप की सहायता से पानी खाली कराया गया और दोनों बच्चों के शव कुंए से निकाले गए। पिंकी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
पिंकी कुमरे ने बताया कि उसे शक था कि संगीता का उसके पति के साथ अवैध संबंध है, इसी के चलते उसने इस घटना को अंजाम दिया।(आईएएनएस)
सीरिया की सरकार ने विदेश में रह रहे शरणार्थियों से कहा है कि देश अब सुरक्षित है, इसलिए उन्हें स्वदेश लौट जाना चाहिए. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट में इस दावे का खंडन किया है.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि सीरियाई शरणार्थी सरकारी दमन का सामना कर रहे हैं. इस तरह के जबरदस्ती के उपायों में कारावास, पूछताछ के दौरान यातना, अपहरण और यौन उत्पीड़न शामिल हैं.
सीरियाई सरकार ने सीरिया के अधिकांश हिस्सों में शांति का हवाला देते हुए शरणार्थियों की वापसी का आदेश दिया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक शोधकर्ता मैरी फॉरेस्टियर ने कहा कि अब सीरिया लौटने वाले किसी भी शरणार्थी से नियमित रूप से पूछताछ की जाती है. लौटने वाले नागरिकों को संदेह के आधार पर हिरासत में लिया जाता है और प्रताड़ित किया जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अधिकारी लोगों को उनके घरों से जबरन ले जाते हैं. यह भी पता चला है कि कई सीरियाई लापता हो गए हैं और कुछ का यौन उत्पीड़न किया गया है.
"आप अपनी मौत के लिए जा रहे हैं"
एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा तैयार रिपोर्ट का शीर्षक है-"यू आर गोइंग टू योर डेथ." संस्था ने 66 लोगों का साक्षात्कार लिया और उनके परेशान करने वाले अनुभवों का विवरण इकट्ठा किया. इनमें 13 बच्चे भी शामिल थे.
सीरियाई इस साल की शुरुआत में 2017 में प्रवास के बाद स्वदेश लौटे थे. अब तक, उनमें से पांच की सरकारी हिरासत में यातना के कारण मौत हो चुकी है और कम से कम 17 लापता हैं.
एमनेस्टी की रिपोर्ट सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार की स्थिति से असंगत है, जिसने इस आधार पर शरणार्थियों की वापसी का आदेश दिया है कि सब कुछ बहुत बेहतर है और देश सुरक्षित है. इस घोषणा के बाद ही कुछ क्षेत्रों में सीरियाई शरणार्थियों की वापसी शुरू हुई.
सीरियाई शरणार्थियों की वापसी की प्रक्रिया
स्वीडन और डेनमार्क ने कई सीरियाई शरणार्थियों के निवास परमिट को इस आधार पर रद्द कर दिया है कि राजधानी दमिश्क और इसके आसपास के अधिकांश इलाके अब सुरक्षित हैं.
इसी तरह से लेबनान और तुर्की की सरकारें सीरियाई शरणार्थियों पर स्वदेश लौटने का दबाव बढ़ा रही हैं. ऐसी भी खबरें आई हैं कि तुर्की ने कई सीरियाई शरणार्थियों को जबरन वापस भेज दिया है.
एमनेस्टी की रिपोर्ट में लेबनान, फ्रांस, जर्मनी, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात से लौटे शरणार्थियों की जानकारी शामिल है.
मैरी फॉरेस्टियर ने यह साफ कर दिया है कि देश की सुरक्षा के लिए सीरियाई सरकार का दावा जमीनी हकीकत के विपरीत है, क्योंकि लौटने वालों को अब दमन का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने विभिन्न देशों से अपील की कि वे सीरियाई शरणार्थियों को लौटाने में जल्दबाजी न करें.
एए/सीके (एएफपी, एपी) (dw.com)
करनाल में किसानों ने 28 अगस्त को हुए लाठीचार्ज के विरोध में आंदोलन को बुधवार को भी जारी रखा. किसानों की मांग है कि लाठीचार्ज का आदेश देने वाले अधिकारी का निलंबन हो. करनाल में किसानों ने लघु सचिवालय के बाहर डेरा डाल लिया.
डॉयचे वेले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
28 अगस्त को करनाल में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज का आदेश देने वाले अधिकारी के निलंबन की मांग पर संयुक्त किसान मोर्चा अड़ा हुआ है. मंगलवार को किसानों ने करनाल की अनाजमंडी में महापंचायत की और किसान नेताओं की अधिकारियों के साथ बैठक भी हुई. लेकिन सहमति नहीं बन पाई.
किसानों ने मंगलवार को लघु सचिवालय का घेराव किया और इस दौरान पुलिस ने किसानों पर पानी की बौछारें भी की. किसान अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. मंगलवार रात को ही किसानों ने लघु सचिवालय के बाहर स्थाई धरने का ऐलान कर दिया और टेंट लगा दिए.
अधिकारी पर कार्रवाई की मांग
किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक न्याय नहीं मिलता है प्रदर्शनकारी किसान लघु सचिवालय के बाहर डटे रहेंगे. इस बीच स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने एक निजी चैनल से बातचीत में कहा, "हमारी एक बहुत छोटी सी मांग है, ये कोई तीन कानून रद्द करने वाला मोर्चा नहीं है. हम तो सिर्फ यह कह रहे हैं कि जिस अफसर ने किसानों का सिर फोड़ने की बात पब्लिक में बोली, वीडियो में सामने आई, उस पर आप कार्रवाई करो. और, उसके बाद जिन किसानों के ऊपर लाठीचार्ज हुआ जिसमें किसान घायल हुए उनके बारे में मुआवजे का ऐलान होना चाहिए. इतनी छोटी बात के लिए महीनों धरना चलाने का कोई इरादा नहीं है."
यादव ने कहा कि सरकार को बात नहीं बढ़ानी चाहिए और इस पर कार्रवाई करनी चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ने कार्रवाई की जगह आरोपी अफसर के कंधे पर हाथ रखा है.
28 अगस्त को एसडीएम आयुष सिन्हा का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह लाठीचार्ज से पहले सिपाहियों को किसानों का सिर फोड़ देने के निर्देश देते नजर आए थे. हरियाणा सरकार ने एसडीएम के पद से हटाकर आयुष सिन्हा का ट्रांसफर राजधानी चंडीगढ़ में एक विभाग में कर दिया है. हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सिन्हा का बचाव किया था और कहा था कि सख्त कार्रवाई जरूरी थी.
मोबाइल इंटरनेट पर रोक
इस बीच हरियाणा सरकार ने करनाल में मोबाइल इंटरनेट और एसएमएस सेवा पर बुधवार रात तक रोक लगा दी है. बीते दिनों किसानों उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक बड़ी महापंचायत की थी और करीब पांच लाख लोग इस महापंचायत में शामिल हुए थे. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान पिछले साल से केंद्र के तीन नए कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं और उन्हें वापस लेने की मांग कर रहे हैं. केंद्र का कहना है कि नए कृषि कानून किसानों के हित में हैं और उससे उनकी आय बढ़ेगी.
संयुक्त किसान मोर्चा ने इसी महीने की 27 तारीख को भारत बंद का ऐलान किया है और देश के 10 बड़े केंद्रीय श्रमिक संगठनों ने इस बंद के समर्थन का ऐलान किया है. (dw.com)
भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा है कि अफगानिस्तान में जिस तरह से नाटो सेनाओं का अभियान खत्म हुआ, उसका अंदाजा किसी को भी नहीं लग पाया था.
डॉयचे वेले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कैनबरा स्थित ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में एक विशेष संबोधन में कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिल जुलकर काम करना होगा न कि एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में फैसले लिए जाएं.
डॉ. जयशंकर को ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के सालाना ‘जेजी क्रॉफर्ड ओरेशन 2021' संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया था. सोमवार शाम डॉ. जयशंकर ने दिल्ली स्थित अपने दफ्तर से ऑनलाइन ही अपना भाषण दिया.
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों से अफगानिस्तान की स्थिति के संकेत मिलने लगे थे. डॉ. जयशंकर ने कहा, "कुछ साल से हम सबको दिखाई दे रहा था कि अमेरिका और उसके सहयोगियों का अफगानिस्तान में अभियान अब सिमटने वाला है. ओबामा प्रशासन के समय से ही दबाव बढ़ने लगता था लेकिन सच यह है कि तमाम बहसों और विमर्शों के बावजूद, यह कहना सही होगा कि अभियान जिस तरह खत्म हुआ, उसको किसी ने आते नहीं देखा था. यह कोई ऐसा परिदृश्य नहीं था, जिसके लिए कोई तैयार था.
भारत की भूमिका
तालिबान के काबुल में सत्ता में आने के बाद भारतीय विदेश मंत्री ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर कोई बात कही है. अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास में लोग उस दिन तक भी मौजूद थे जब 15 अगस्त को तालिबान काबुल में घुस आए थे. उनके नियंत्रण के बाद ही भारत ने अपने लोगों को निकालना शुरू किया. अब तक वहां से लगभग 500 लोग भारत आए हैं जिनमें 200 अफगान भी हैं. हालांकि ये हिंदू और सिख समुदाय से हैं.
अपने भाषण में जयशंकर ने अफगानिस्तान में भारत की भूमिका की अहमियत का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, "मैं जोर देना चाहूंगा कि हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुछ अहम कदम भी उठाए हैं. इस महीने अध्यक्ष थे और एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें अफगानिस्तान की जमीन को आतंकवाद के लिए प्रयोग न करने देने की मांग की गई. इस प्रस्ताव में तालिबान से उम्मीद की जाती है कि वे समावेशी सरकार और महिलाओं, बच्चों व अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार के अपने वादों पर खरे उतरेंगे.”
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है और अगस्त में अध्यक्ष था. इस दौरान अफगानिस्तान की स्थिति पर परिषद की बैठक हुई थी जिसमें पारित प्रस्ताव को 13 सदस्यों का समर्थन मिला. चीन और रूस ने बैठक में हिस्सा नहीं लिया.
अपने भाषण में विदेश मंत्री ने विभिन्न सरकारों को एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ से बचने के प्रति भी चेताया. उन्होंने कहा, "इस वक्त अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साथ आकर सबके साझे हित के लिए काम करना चाहिए क्योंकि मुझे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव बहुत बहुत संतुलित है और अफगानिस्तान के लिए एक समझादरी भरा रास्ता दिखाता है.”
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद कई हलकों में सवाल उठे हैं कि अमेरिका की ताकत और छवि को इस पूरे घटनाक्रम से नुकसान पहुंचा है. डॉ. जयशंकर इससे इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने कहा कि अमेरिका ताकतवर और प्रासंगिक है. उन्होंने कहा कि अमेरिका अमेरिका है, उसकी ताकत गहरी है और उसके अंदर अपने आपको दोबारा खोजने और दोबारा ऊर्जा से भरने की असाधारण क्षमता है.
भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध
डॉ. जयशंकर के भाषण का बड़ा हिस्सा भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इन संबंधों की अहमियत पर केंद्रित था. उन्होंने कहा कि हाल के सालों में भारत और ऑस्ट्रेलिया बेहद करीब आए हैं और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंध मजबूत करने को लेकर बेहद उत्सुक हैं.
विदेश मंत्री ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वॉड के रूप में भारत की भूमिका बढ़ाने को भी जरूरी बताया. उन्होंने कहा, "सच्चाई तो ये है कि अब एकपक्षीयता का जमाना गुजर चुका है. द्विपक्षीयता की अपनी सीमाएं हैं और कोविड ने हमें याद दिलाया कि बहुपक्षीयता पूरी तरह काम नहीं कर रही है. और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सुधार को लेकर हो रहा विरोध हमें ज्यादा व्यवहारिक और फौरी हल खोजने को मजबूर करता है. और यही क्वॉड की अहमियत भी है.”
चार देशों के संगठन क्वॉड को 2007 में स्थापित किया गया था लेकिन बीते कुछ सालों में इसकी सक्रियता बढ़ी है. चीन के भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों के ही साथ संबंध खराब हुए हैं, जिसके बाद अमेरिका भी क्वॉड में इन दोनों देशों की भूमिका बढ़ाने को लेकर गंभीर दिख रहा है.
डॉ. जयशंकर ने कहा कि चीन का उभार सिर्फ एक अन्य क्षेत्रीय ताकत का उभार नहीं है. उन्होंने कहा, "इस बारे में स्पष्ट हो जाना चाहिए कि यह सिर्फ एक क्षेत्रीय ताकत का उभार नहीं है. हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों के एक नए युग में प्रवेश कर गए हैं और चीन के उभार का असर अन्य बड़ी शक्तियों के उभार से ज्यादा होगा.” (dw.com)
नई दिल्ली, 7 सितंबर | दूरसंचार क्षेत्र को एक बड़ी राहत देने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल बुधवार को खासकर गंभीर रूप से तनावग्रस्त वोडाफोन आइडिया के लिए एक राहत पैकेज पर विचार और चर्चा कर सकता है। सरकार इस क्षेत्र के लिए एक पैकेज के लिए बैंकों सहित कई हितधारकों के साथ बातचीत कर रही है, क्योंकि वोडाफोन आइडिया भारी नुकसान और उच्च कर्ज के साथ संकट में है और यदि यह बंद हो जाता है तो भारत के दूरसंचार क्षेत्र में संभावित एकाधिकार को लेकर चिंता व्यक्त की गई है। इसके अलावा, यह सरकार के एजीआर दावों के कारण सबसे अधिक प्रभावित टेल्को भी है।
जानकार लोगों ने कहा कि सरकार का विचार है कि इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बनी रहनी चाहिए और एकाधिकार की किसी भी संभावना को टाला जाना चाहिए।
पिछले हफ्ते वोडाफोन आइडिया के पूर्व चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने केंद्रीय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की थी।
जानकार लोगों के मुताबिक, 1 सितंबर को हुई बैठक के दौरान बिड़ला और वैष्णव ने सेक्टर की सेहत और सरकारी हस्तक्षेप की तत्काल जरूरत पर चर्चा की।
वोडाफोन आइडिया के बोर्ड ने 4 अगस्त को बोर्ड के गैर-कार्यकारी निदेशक और गैर-कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पद छोड़ने के बिड़ला के अनुरोध को स्वीकार कर लिया था।
अध्यक्ष के रूप में बिड़ला के इस्तीफे से कुछ दिन पहले, यह सार्वजनिक हो गया था कि उन्होंने सरकार को लिखा था कि वह कंपनी को चालू रखने के लिए कर्ज में डूबी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी सरकारी संस्थाओं को सौंपने के लिए तैयार हैं।
7 जून को कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखे एक पत्र में बिड़ला ने कहा कि वोडाफोन आइडिया से जुड़े 27 करोड़ भारतीयों के प्रति 'कर्तव्य की भावना' के साथ, वह अपनी हिस्सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई (पीएसयू), एक सरकार को सौंपने के इच्छुक हैं। इकाई या कोई घरेलू वित्तीय इकाई, या कोई अन्य संस्था जिसे सरकार कंपनी को चालू रखने के योग्य मान सकती है।
पत्र में बिड़ला ने समायोजित सकल राजस्व (एजीआर), स्पेक्ट्रम बकाया पर पर्याप्त स्थगन और फर्श मूल्य निर्धारण पर स्पष्टता की मांग की, यह कहते हुए कि तत्काल और सक्रिय सरकारी समर्थन के बिना वीआईएल का संचालन 'पतन के अपरिवर्तनीय बिंदु' पर होगा।
सरकार की ओर से राहत उपायों की संभावना से समर्थित, दूरसंचार शेयरों में मंगलवार को तेजी आई।
बीएसई पर वोडाफोन आइडिया के शेयरों में करीब 15 फीसदी की तेजी आई। दिन के कारोबार के अंत में इसके शेयर 8.28 रुपये प्रति शेयर पर बंद हुए, जो पिछले बंद से 14.68 प्रतिशत अधिक है।
दूसरी ओर, भारती एयरटेल का शेयर 2.48 फीसदी की तेजी के साथ 670.70 रुपये प्रति शेयर पर बंद हुआ।(आईएएनएस)
मुंबई, 7 सितम्बर | महाराष्ट्र में एक जांच आयोग ने मंगलवार को एक बड़े घटनाक्रम में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह के खिलाफ जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया, जो वर्तमान में राज्य होमगार्ड के कमांडेंट-जनरल हैं। वारंट सेवानिवृत्त न्यायाधीश के.यू. चांदीवाल, जो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को सिंह द्वारा लिखे गए 20 मार्च के पत्र की जांच कर रहे हैं, जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे, जिन्हें बाद में पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
सिंह को बार-बार सम्मन दिए जाने के बावजूद जांच आयोग के समक्ष पेश नहीं होने पर 50,000 रुपये का गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है। सिंह पर जून में 5,000 रुपये और अगस्त में दो बार 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था।
सिंह ने मुख्यमंत्री राहत कोष में राशि जमा कराई थी। आयोग ने अब मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को तय की है।
1988 बैच के आईपीएस अधिकारी सिंह, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और तत्कालीन गृह मंत्री देशमुख के खिलाफ रिश्वतखोरी और पद के दुरुपयोग के आरोपों की जांच के लिए मार्च में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त चांदीवाल जांच आयोग की जांच के दायरे में हैं।
अन्य बातों के अलावा, सिंह ने देशमुख पर कथित रूप से बर्खास्त सिपाही सचिन वाजे के लिए 100 करोड़ रुपये का मासिक संग्रह लक्ष्य तय करने का आरोप लगाया है।
आयोग की सुनवाई से दूर रहते हुए सिंह ने पैनल के गठन पर सवाल उठाया था क्योंकि इस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय पहले से ही जांच कर रहा है।
72 वर्षीय देशमुख वर्तमान में केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार पर हैं, जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में नागपुर और मुंबई में उनके कार्यालयों और घरों पर छापा मारा है।(आईएएनएस)
जयपुर, 7 सितम्बर | राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों में सिर्फ एक जिले में बहुमत हासिल करने के बावजूद भाजपा ने राजस्थान में तीन बोडरें का गठन किया है। इस बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा पर खरीद-फरोख्त में शामिल होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "भाजपा ने जयपुर जिला प्रमुख चुनाव जीतने के लिए खरीद-फरोख्त का सहारा लिया, जहां कांग्रेस की बागी रमा देवी ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। यह वही लोग हैं जिन्होंने पिछले साल राजस्थान सरकार को गिराने की कोशिश की थी।"
राजस्थान के छह जिलों में हुए ग्रामीण चुनावों ने आश्चर्यचकित कर दिया है, क्योंकि भाजपा ने केवल एक सिरोही जिले में बहुमत हासिल करने के बावजूद तीन जिलों में 3 बोर्ड बनाए हैं। पार्टी ने सिरोही के अलावा भरतपुर और जयपुर में भी अपने बोर्ड स्थापित करने में सफलता पाई है।
तीनों में से सबसे दिलचस्प कहानी जयपुर की है जहां कांग्रेस को बहुमत मिलने के बावजूद भगवा पार्टी जयपुर जिला परिषद में एक बोर्ड बनाने में कामयाब रही।
कांग्रेस उम्मीदवार रमा देवी, जिन्होंने कांग्रेस के चिन्ह पर चुनाव लड़ा था, ने सोमवार को सुबह 9 बजे पार्टी से इस्तीफा दे दिया और 11 बजे भाजपा में शामिल हो गईं। शाम तक, पार्टी ने उन्हें भाजपा उम्मीदवार घोषित कर दिया और बाद में उन्हें जिला प्रमुख घोषित कर दिया गया।
बीजेपी को 25 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 26 वोट मिले थे। जैसे ही रमा देवी और अन्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा को वोट दिया, पार्टी को 27 वोट मिले, जो एक बोर्ड बनाने के लिए पर्याप्त संख्या थी।
जयपुर, जोधपुर, सवाई माधोपुर, दौसा में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया है, जबकि सिरोही जिला परिषद में बीजेपी को बहुमत मिला है।
हालांकि बाद में बीजेपी ने सिरोही, भरतपुर और जयपुर में भी अपना बोर्ड बनाया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा, "यह 2023 के चुनावों का सिर्फ एक ट्रेलर है। भाजपा विधानसभा चुनावों में क्लीन स्वीप करेगी।" (आईएएनएस)
कोलकाता, 7 सितंबर | कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा एक आदेश पारित कर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को राहत दिए जाने के अगले दिन राज्य सरकार ने मंगलवार को इस आदेश को चुनौती देने के लिए खंडपीठ का रुख किया। आदेश में कहा गया है कि शुभेंदु के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती। साथ ही उनके खिलाफ पांच मामलों में से तीन पर रोक लगा दी गई है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ वकील ने कहा, "राज्य सरकार ने पिछले आदेश को चुनौती देते हुए खंडपीठ का रुख किया। राज्य सरकार ने पिछले आदेश को भी चुनौती दी है, जिसमें शुभेंदु के खिलाफ पांच में से तीन मामलों पर रोक लगाई गई थी।"
मामले की सुनवाई बुधवार को होने की संभावना है।
इससे पहले, सोमवार को न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की एकल पीठ ने शुभेंदु अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस और सीआईडी को निर्देश दिया था कि अदालत की अनुमति के बिना उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती। अदालत ने उनके अंगरक्षक शुभब्रत चक्रवर्ती की मौत की जांच कार्यवाही पर भी रोक लगा दी। चक्रवर्ती ने 2018 में कोंटाई पुलिस स्टेशन में कथित तौर पर खुद को गोली मार ली थी।
अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने रविवार को शुभेंदु अधिकारी को उनके निजी सुरक्षा गार्ड शुभब्रत चक्रवर्ती की अप्राकृतिक मौत की जांच से संबंधित एक मामले में पूछताछ के लिए तलब किया था। चक्रवर्ती ने 2018 में एक पुलिस बैरक में अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली थी। शुभेंदु हालांकि सीआईडी के सामने पेश नहीं हुए।
चक्रवर्ती की मौत ने उस समय एक महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया, जब इस साल जुलाई में शुभेंदु अधिकारी के खेमा बदलकर भाजपा में शामिल होने के बाद शुभब्रत चक्रवर्ती की पत्नी सुपर्णा चक्रवर्ती ने अपने पति की मौत की जांच की मांग करते हुए कोंटाई पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई।
न्यायमूर्ति मंथा ने मामले को फिर से खोलने के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, "मौत के तीन साल बाद उसने शिकायत क्यों दर्ज की? क्या वह सो रही थी? और अचानक इसने हत्या का दावा क्यों किया और अधिकारी का नाम लिया? अगर यह केवल परेशान करने के लिए गिरफ्तारी बन जाती है तो अदालत इसको लेकर चिंतित है।"
इस मामले के साथ-साथ एकल पीठ ने नंदीग्राम राजनीतिक संघर्ष और पूर्वी मिदनापुर में पंसकुरा में सोने की चेन स्नैचिंग मामले से संबंधित जांच पर भी रोक लगा दी।
हालांकि, अदालत ने पुलिस अधीक्षक को धमकी से संबंधित मामलों की अनुमति दी, जबकि आपदा प्रबंधन कार्रवाई चल रही थी और कोलकाता के मानिकतला पुलिस स्टेशन में नौकरी घोटाले का एक और मामला था। अदालत ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया कि शुभेंदु अधिकारी विपक्ष के नेता हैं, इसको ध्यान में रखते हुए उनसे उनकी सुविधानुसार और उस जगह पर जाकर पूछताछ करनी होगी, जहां उन्हें लगेगा कि वह सहज हैं।
एक वरिष्ठ सरकारी वकील ने कहा, "यह बहुत ही महत्वपूर्ण मामला है और शुभेंदु अधिकारी का बयान बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए हमने उन्हें तलब किया था। हम एकल पीठ के आदेश को चुनौती देंगे और प्रार्थना करेंगे कि हमें जांच जारी रखने दिया जाए।"
राज्य भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, "राज्य सरकार को कई बार अदालत द्वारा खींचा गया है और क्या उनके लिए यह महसूस करने का समय है कि इससे सरकार की विश्वसनीयता कम हो रही है।"
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, "गिरफ्तारी का सवाल कहां है? सीआईडी सीआरपीसी 41 या 41ए के तहत उनका बयान दर्ज करेगी। शुभेंदु अधिकारी जांच में सहयोग क्यों नहीं कर रहे हैं?"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 सितम्बर | व्हाट्सएप 1 नवंबर से कुछ आईफोन और एंड्रॉइड स्मार्टफोन के लिए काम करना बंद कर देगा। लोकप्रिय इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप ने बताया है कि व्हाट्सएप 1 नवंबर से कई पुराने मॉडल के स्मार्टफोन्स पर काम नहीं करेगा।
व्हाट्सएप एफएक्यू सेक्शन की जानकारी के अनुसार, 1 नवंबर से फेसबुक के स्वामित्व वाला टेक्स्टिंग प्लेटफॉर्म एंड्रॉएड 4.0.3 आइसक्रीम सैंडविच, आईओएस 9 और काईओएस 2.5.0 पर चलने वाले सिस्टम को सपोर्ट करना बंद कर देगा।
व्हाट्सएप द्वारा जारी एंड्रॉएड फोन की सूची में सैमसंग, एलजी, जेडटीई, हुआवे, सोनी, अल्काटेल और अन्य ब्रांड के स्मार्टफोन शामिल हैं। ये सभी फोन व्हाट्सएप से सपोर्ट प्राप्त नहीं कर पाएंगे और ऐप के साथ काम करने में अक्षम होंगे।
यह जांचने के लिए कि आईफोन किस ओएस पर चल रहा है, यूजर्स सेटिंग्स मेनू पर जा सकते हैं, फिर जनरल और इंफोर्मेशन विकल्प पर जा सकते हैं और फिर सॉफ्टवेयर पर जाया जा सकता है, जहां वे आईफोन के ओएस को जान सकेंगे।
वहीं एंड्रॉएड यूजर्स सेटिंग में जाकर अबाउट फोन के विकल्प को चुनते हुए यह देख सकते हैं कि उनका स्मार्टफोन किस एंड्रॉएड वर्जन पर चल रहा है।
एक नई सुविधा शुरू करने के बाद, जिसने यूजर्स को सात दिनों के बाद गायब (मैसेज नहीं दिखना) होने वाले संदेश भेजने की अनुमति दी है, फेसबुक के स्वामित्व वाला व्हाट्सएप अब एक समान अपडेट पर काम कर रहा है, जिसमें संदेश 90 दिनों के बाद गायब हो जाएंगे।
इससे पहले, लोकप्रिय मैसेजिंग एप्लिकेशन ने कहा था कि यह उन संदेशों को देखने पर काम कर रहा है जो केवल एक बार देखे जाने के बाद हमेशा के लिए गायब हो जाएंगे। (आईएएनएस)