अंतरराष्ट्रीय
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान आज गुरुवार को अपनी नई सरकार का एलान कर सकता है.
तालिबान के वरिष्ठ नेता अहमदुल्लाह मुत्तक़ी ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी है कि काबुल के राष्ट्रपति भवन में एक समारोह की तैयारी हो रही है.
तालिबान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पिछले दिनों समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा था कि तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा के नेतृत्व में एक शासकीय परिषद का गठन हो सकता है जिसके प्रमुख राष्ट्रपति होंगे.
मुल्ला हिब्तुल्लाह के तीन उप-प्रमुख हैं. वो हैं तालिबान संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मौलवी याक़ूब, शक्तिशाली हक़्क़ानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक़्क़ानी और तालिबान के संस्थापक सदस्यों में से एक अब्दुल ग़नी बरादर.
तालिबान ने पिछली बार 1996 से 2001 तक के अपने शासनकाल में ऐसी ही एक परिषद के सहारे शासन किया था जो निर्वाचित नहीं हुई थी.
तब तालिबान सरकार ने बर्बरता से अफ़ग़ानिस्तान में शरीयत क़ानूनों को लागू करवाया था.
2001 में अमेरिकी अगुआई में गठबंधन सेना के अफ़ग़ानिस्तान पर हमले के बाद तालिबान सत्ता से बाहर हो गए थे और उसके अधिकतर नेताओं को निर्वासित होना पड़ा था.
20 साल बाद तालिबान ने फिर से अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है और उसके अधिकतर नेता देश लौट चुके हैं. (bbc.com)
इटली के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि रोबोट की आंखों में देखने से इंसान के दिमाग पर असर होता है. ऐसा करने से इंसानों की निर्णय क्षमता प्रभावित होती है.
इस बारे में वैज्ञानिक काफी पहले से जानते हैं कि रोबोट की आंखों में झांकना परेशान करने वाला अनुभव हो सकता है. इस अहसास को अंग्रेजी में ‘अनकैनी वैली' के नाम से जाना जाता है. लेकिन इटली के कुछ शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि यह सिर्फ एक अहसास नहीं है बल्कि इसका असर गहरा होता है.
जिनोआ में स्थित इटैलियानो डि टेक्नोलोगिया (IIT) इंस्टिट्यूट की एक टीम ने रिसर्च में दिखाया है कि कैसे रोबोट की आंखों में झांकने से हमारे फैसले प्रभावित हो सकते हैं.
साइंस रोबॉट्स नामक पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च की मुख्य लेखिका प्रोफेसर एग्निस्चिका वाइकोवस्का कहती हैं, "आंखों में झांकना एक बहुत महत्वपूर्ण सामाजिक संकेत है जिसे हम रोजमर्रा की जिंदगी में लोगों से संवाद करते हुए प्रयोग करते हैं. सवाल यह है कि रोबोट की आंखों में झांकने से भी क्या मानव मस्तिष्क में वैसी ही प्रतिक्रिया होती है, जैसी एक इंसान की आंखों में झांकने से होगी.”
कैसे हुआ शोध
अपनी रिसर्च के लिए इटली की इस टीम ने 40 लोगों को ‘चिकन' नाम की वीडियो गेम खेलने को कहा. हर खिलाड़ी को यह फैसला करना था कि कार को सामने वाली कार से भिड़ जाने दे या टक्कर टालने के लिए रास्ता बदल ले. सामने वाली कार में ड्राइवर के रूप में एक रोबोट बैठा था.
खेलते वक्त खिलाड़ियों को रोबोट की ओर देखना था, जो कई बार उनकी आंखों में झांकता था तो कई बार दूसरी तरफ देखता. हर बार के लिए शोधकर्ताओं ने आंकड़े जमा किए और इलेक्ट्रोएंसफालोग्रैफी (EEG) के जरिए मस्तिष्क में हो रही प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड किया.
ले रहे थे.
इन नतीजों का असर भविष्य में रोबॉट्स के इस्तेमाल पर भी हो सकता है. प्रोफेसर वाइकोवस्की कहती हैं, "जब हम यह समझ जाते हैं कि रोबोट सामाजिक अनुकूलन को प्रभावित करते हैं तो हम ये फैसले कर सकते हैं कि किस संदर्भ में उनका होना इंसान के लिए लाभदायक हो सकता है और किस संदर्भ में नहीं.”
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स के मुताबिक 2018 से 2019 के बीच प्रोफेशनल सर्विस देने वाले रोबोट की बिक्री में 32 प्रतिशत की बढ़त हुई थी और यह 11 अरब डॉलर को पार कर गई थी.
रिपोर्टः वीके/सीके (रॉयटर्स)
चीन ने मनोरंजन उद्योग पर नकेल को और ज्यादा कस दिया है. प्रसारकों से "गलत राजनीतिक रुख" वाले कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने को कहा गया है और "देशभक्ति का माहौल" बनाए जाने की जरूरत बताई है.
चीन के नेशनल रेडियो ऐंड टेलीविजन एडमिनिस्ट्रेशन (NRTA) ने एक ऑनलाइन नोटिस में कहा है कि सांस्कृति कार्यक्रमों के बारे में नियमों को और कड़ा किया जाएगा. कथित अस्वस्थ सामग्री पर नकेल कसते हुए नियामक ने सितारों को मिलने वाले भुगतान और कर चोरी पर भी निगाहें कड़ी की हैं.
हाल के दिनों में चीन के नियामकों ने अलग-अलग उद्योगों पर पाबंदियां बढ़ाई हैं. तकनीक से लेकर शिक्षा तक के क्षेत्र पर कड़े नियम लागू किए गए हैं. 30 अगस्त को ही बच्चों के लिए वीडियो गेम खेलने का समय तीन घंटे तय करने वाला नियम आया था.
ताजा निशाना मनोरंजन उद्योग
इन पाबंदियों का ताजा निशाना मनोरंजन उद्योग है. हाल ही में कई बड़ी हस्तियों के कर चोरी और यौन शोषण में शामिल होने की खबरें आई थीं. पिछले हफ्ते चीन के इंटरनेट नियामक ने कहा था कि अव्यवस्थित हो चुके ‘सेलिब्रटी फैन कल्चर' के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
NRTA ने कहा है कि एक्टर और मेहमानों को होने वाले भुगतान पर लगाई गई सीमा को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए और उन्हें जन कल्याण के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने और सामाजिक जिम्मेदारियां संभालने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. नोटिस में कहा गया है कि कर चोरी पर कड़ी सजा होगी.
नोटिस के मुताबिक अदाकारों और मेहमानों के चुनाव को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाना चाहिए और राजनीतिक साक्षरता और नैतिक व्यवहार भी चुनाव की कसौटियों में शामिल होने चाहिए.
‘महिलाओं जैसे व्यवहार' पर पाबंदी
एनआरटीए ने कार्यक्रमों में ‘महिलाओं से व्यवहार' जैसे ‘विकृत' अंदाज दिखाने से बचने को भी कहा है. इंटरनेट से मशहूर हुई "अश्लील” हस्तियों, स्कैंडल और अपने धन के दिखावे जैसी चीजों को भी खारिज करने को कहा गया है.
नियामक चाहता है कि वोटिंग वाले कार्यक्रमों को सख्ती से नियंत्रित किया जाए. और प्रशंसकों को वोटिंग के लिए पैसा खर्चने को बढ़ावा देने पर सख्त रोक होनी चाहिए.
चीन ने वीडियो गेम से लेकर फिल्मों और संगीत तक हर तरह की सामग्री पर पाबंदियां लगाई हैं और ऐसी हर तरह की सामग्री को सेंसर किया जा रहा है, जिसे ‘समाजवादी मूल्यों' का उल्लंघन माना जाता है.
पिछले कुछ समय से अधिकारी और सरकारी मीडिया में इस तरह की चर्चा चल रही है कि देश के लड़कों को किस तरह ज्यादा मर्दाना बनाया जाए. इस वजह से भारी मेकअप करने वाले और महिलाओं जैसी छवि पेश करने वाले पुरुष सितारों को आलोचना झेलनी पड़ी है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
अलगाववादी कश्मीरी नेता सैयद अली शाह गिलानी की मौत पर पाकिस्तान से काफ़ी प्रतिक्रिया आ रही है.
बुधवार की रात जब उनकी मौत हुई तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. इमरान ख़ान ने अपने ट्वीट में गिलानी को स्वतंत्रता सेनानी लिखा है और मौत पर दुख जताया है.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने लिखा है, ''कश्मीर के स्वतंत्रता सेनानी सैयद अली शाह गिलानी की मौत काफ़ी दुखद है. उन्होंने पूरा जीवन अपने लोगों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार के संघर्ष में न्योछावर कर दिया.''
''उन्हें क़ैद में भारत ने प्रताड़ित किया, लेकिन फिर भी कभी झुके नहीं. हम पाकिस्तानी उनके साहस को सलाम करते हैं. हमें उनके वो शब्द याद हैं- हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हमारा है. उनकी मौत के शोक में पाकिस्तान का राष्ट्रध्वज आधा झुका रहेगा और एक दिन का आधिकारिक शोक रहेगा.''
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी गिलानी को याद करते हुए बयान जारी किया है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने ट्वीट कर कहा है, ''सैयद अली शाह गिलानी ने कश्मीर की तीन पीढ़ियों को प्रेरित किया. वे कश्मीर की सच्ची आवाज़ थे और उन्होंने कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया. उन्होंने अपनी विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया.''
पाकिस्तान के सीनियर और चर्चित पत्रकार हामिद मीर ने गिलानी का वो वीडियो क्लिप पोस्ट किया है जिसमें उन्होंने ''हम पाकिस्तानी हैं, पाकिस्तान हमारा है'' का नारा दिया था.
इस वीडियो के साथ हामिद मीर ने लिखा है, ''यह साहसी व्यक्ति हमेशा ये नारा लगाता रहा- हम पाकिस्तानी हैं, पाकिस्तान हमारा है. पाकिस्तानियों के दिलों में गिलानी हमेशा ज़िंदा रहेंगे.'' इस वीडियो में गिलानी कहते दिख रहे हैं, ''इस्लाम के ताल्लुक से, इस्लाम की मोहब्बत से, हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हमारा है.''
भारत में पाकिस्तान के राजदूत रहे अब्दुल बासित ने गिलानी के साथ अपनी एक तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा है, ''वे हमारे हीरो थे. आख़िरी सांस तक आज़ादी की लड़ाई लड़ते रहे. कश्मीर पर कभी समझौता नहीं किया. अल्लाह उनकी आत्मा को शांति दे और हमें इतनी ताक़त दे कि कश्मीर को आज़ाद करने के उनके मिशन को पूरा कर सकें.''
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान बनने के बाद से ही भारत और पाकिस्तान में विवाद है. जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के पास है और कुछ भारत के पास. दोनों देश पूरे जम्मू-कश्मीर पर दावा करते हैं और इसके लिए जंग भी हो चुकी है. पाकिस्तान भारत के कश्मीर को ग़ुलाम कहता है और भारत पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को पाकिस्तान का अवैध कब्ज़ा बताता है.
पाक एनएसए की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ ने भी गिलानी की मौत पर कहा है कि वे पाकिस्तानियों और कश्मीरियों के हीरो थे.
मोईद ने ट्वीट कर कहा है, ''सैयद अली शाह गिलानी की मौत बेहद दुखद है. उनका पूरा जीवन कश्मीर के लोगों के लिए समर्पित रहा. हमने सुना है कि भारत की सेना गिलानी साहब के परिवार पर रात में ही शव दफ़नाने के लिए दबाव डाल रही थी.''
''हमने ये भी सुना है कि कश्मीर में पाबंदी लगा दी गई है. मैं मांग करता हूँ कि भारत गिलानी साहब को दफ़नाने का काम इस्लामिक रिवाज से होने दे. मैं भारत को चेतावनी देता हूँ कि वो आग से ना खेले. कश्मीरी ऐसी कायरतापूर्ण हरकतों का मुक़ाबला करेंगे.''
मोईद ने अपने ट्वीट में कहा है, ''ऐसी कायरतापूर्ण हरकतों से पता चलता है कि भारत कश्मीरियों की आवाज़ से डरा हुआ है.''
हालाँकि अली शाह गिलानी के शव को कड़ी सुरक्षा में श्रीनगर में उनके आवास के पास गुरुवार तड़के 4.30 दफ़ना दिया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गिलानी की आख़िरी विदाई में उनके क़रीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ही शामिल होने की अनुमति थी.
अनुच्छेद 370 के बाद
पिछले तीन दशकों से गिलानी कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन का मुख्य चेहरा थे. गिलानी क़रीब दो दशक तक जेल में रहे. 2010 के बाद से ख़राब सेहत के कारण वो घर में बंद रहे. 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया तब से वे अपने घर में ही बंद थे.
गिलानी की मौत के बाद पूरे कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. उत्तरी कश्मीर और ओल्ड श्रीनगर में ख़ास करके सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रखी गई है. कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने पूरे कश्मीर में देर रात पाबंदियों की घोषणा की थी. गिलानी के समर्थक उन्हें ओल्ड श्रीनगर में दफ़नाना चाहते थे.
गिलानी की मौत पर पाकिस्तानी सेना ने भी बयान जारी किया है. डीजीआईएसपीआर ने अपने ट्वीट में कहा है, ''जनरल क़मर जावेद बाजवा ने सैयद अली शाह गिलानी की मौत पर दुख व्यक्त किया है. गिलानी कश्मीर की आज़ादी के आंदोलन के आदर्श थे. गिलानी का सपना और मिशन तब तक ज़िंदा रहेगा, जब तक कश्मीरियों को आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं मिल जाता है.''
गिलानी की मौत पर भारतीय कश्मीर से जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट कर कहा है, ''गिलानी साहब की मौत का दुख है. कई मोर्चों पर उनसे असहमति थी, लेकिन मैं उनकी दृढ़ता का सम्मान करती हूँ. अल्लाह ताला उन्हें जन्नत दे. उनके परिवार को दुखद घड़ी में शक्ति मिले.''
शख़्सियत
पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''गिलानी कश्मीर में भारतीय शासन के ख़िलाफ़ कभी नहीं झुकने वाले कैंपेनर थे. वे पिछले 11 सालों से हाउस अरेस्ट थे. गिलानी ने 1960 के दशक से ही कश्मीर को पाकिस्तान में विलय का कैंपेन शुरू कर दिया था. 1962 के बाद वे क़रीब दस सालों तक जेल में रहे. गिलानी जब युवा थे तब से ही जमात-ए-इस्लामी के सदस्य थे. इसे 2019 में भारत ने बैन कर दिया था.''
गिलानी ने पिछले साल ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ़्रेंस के प्रमुख से इस्तीफ़ा दे दिया था. गिलानी 1993 में इसके गठन के बाद से ही सदस्य थे. यह धड़ा भारत विरोधी माना जाता था. 2003 में उन्हें इसका आजीवन प्रमुख चुना गया था. (bbc.com)
नई दिल्ली, 1 सितंबर| एक उल्लेखनीय फुटेज में अफगानों के बड़े पैमाने पर अपने देश से पश्चिम की ओर पलायन करने की वास्तविक तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें वे पैदल ही रेगिस्तान को पार करते देखे जा रहे हैं। यह जानकारी डेली मेल की एक रिपोर्ट में दी गई है। रेगिस्तान में बड़े पैमाने पर प्रवास के ये दृश्य लगभग वैसे ही दिखते हैं, जैसे बाइबिल में वर्णित हैं। ये दृश्य उसे जगह के हैं, जहां अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान की सीमाएं मिलती हैं। वहां पहाड़ों के बीच बहने वाली एक अंतहीन नदी भी दिखती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए उनका शुरुआती ठिकाना तुर्की हो सकता है, जो ईरान से 1,000 मील से अधिक दूर है, और वहां से उनमें से कई यूरोप और ब्रिटेन जाने की उम्मीद करेंगे।
एक प्रवासी, जिसने हाल ही में यात्रा की थी, उसने कहा कि चार घंटे की यात्रा के अंत में उबड़-खाबड़ इलाके से गुजरना होता है। अफगान शरणार्थी पाकिस्तान के एक हिस्से से गुजरने के बाद ईरानी तस्करों के साथ अपनी यात्रा जारी रखते हैं।
उन्होंने कहा, "ये सबसे गरीब लोग हैं, जिनकी पैदल चलना मजबूरी है, क्योंकि ऐसे तरीके, जिनमें कम चलना पड़ता है, उसकी लागत ज्यादा है।"
अफगानों की यात्रा अफगानिस्तान के सबसे कम आबादी वाले निर्जन निम्रूज प्रांत में शुरू हुई, जो बड़े पैमाने पर रेगिस्तान और पहाड़ों से ढका हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फुटेज में मानव कारवां काफी लंबा है, जहां तक आंखें देख सकती हैं। लोगों के कुछ अस्पष्ट शब्द और बकरियों के झुंड से मिमियाने की आवाज सुनी जा सकती है। (आईएएनएस)
काबुल/नई दिल्ली, 2 सितंबर | तालिबान ने कहा है कि मुल्ला हिबातुल्ला अखुंदजादा वह नेता होगा, जिसके नेतृत्व में कोई प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति देश को चलाएगा। यह बात टोलो न्यूज की एक रिपोर्ट में कही गई है। टोलो न्यूज के अनुसार, तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य अनामुल्ला समांगानी ने कहा कि अखुंदजादा नई सरकार के नेता भी होंगे।
समंगनी ने कहा, "नई सरकार के गठन पर विचार-विमर्श लगभग तय हो गया है और कैबिनेट के बारे में आवश्यक चर्चा भी हो चुकी है। हम जिस इस्लामी सरकार की घोषणा करेंगे, वह लोगों के लिए एक मॉडल होगी। वफादार के कमांडर की उपस्थिति के बारे में कोई संदेह नहीं है। वह (अखुंदजादा) सरकार के नेता होंगे और इस पर कोई सवाल नहीं होना चाहिए।"
इस बीच, अपुष्ट खबरों ने संकेत दिया कि अगली सरकार में एक प्रधानमंत्री का पद भी होगा।
एक राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद हसन हकयार ने कहा, "नई प्रणाली का नाम न तो गणतंत्र होना चाहिए और न ही अमीरात। यह एक इस्लामी सरकार की तरह होना चाहिए। अखुंदजादा सरकार के शीर्ष पर होना चाहिए, और वह राष्ट्रपति नहीं होगा। वह अफगानिस्तान का नेता होगा। नीचे उनके लिए, एक प्रधानमंत्री या एक राष्ट्रपति होगा जो उनकी निगरानी में काम करेगा।"
तालिबान पहले ही विभिन्न प्रांतों और जिलों के लिए गवर्नर, पुलिस प्रमुख और पुलिस कमांडर नियुक्त कर चुका है।
तालिबान के एक सदस्य अब्दुल हक्कानी ने कहा, "इस्लामिक अमीरात हर सूबे में सक्रिय है। हर सूबे में एक गवर्नर है, जिसने काम करना शुरू कर दिया है। हर जिले के लिए एक जिला गवर्नर और हर सूबे में एक पुलिस प्रमुख है जो लोगों के लिए काम कर रहा है।"
हालांकि तालिबान का कहना है कि नई सरकार बनाने पर विचार-विमर्श को अंतिम रूप दे दिया गया है, लेकिन सिस्टम के नाम, राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रगान पर सार्वजनिक चर्चा अभी नहीं हुई है।(आईएएनएस)
-अतीत शर्मा
नई दिल्ली, 1 सितंबर : अमेरिकी सेनाओं के ऐतिहासिक रूप से बाहर निकलने के बाद अफगानिस्तान में बनी शक्ति शून्यन्यता से अवगत ईरान ने युद्धग्रस्त देश को स्थिर करने के लिए काबुल में एक 'संतुलित' सरकार के गठन के साथ वैश्विक कूटनीति का नेतृत्व करने के प्रयास तेज कर दिए हैं।
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबजादेह ने ट्वीट किया, "20 साल के अमेरिकी कब्जे ने अफगानिस्तान को मौत और विनाश के अलावा कुछ नहीं दिया। अब काबुल से अमेरिका की वापसी के बाद अफगान नेताओं के लिए हिंसा को खत्म करके और एक समावेशी सरकार बनाकर अपने लोगों की दुर्दशा को खत्म करने का एक ऐतिहासिक मौका है।"
विश्लेषकों का कहना है कि ईरान एक समावेशी सरकार के गठन की सुविधा के लिए विशिष्ट स्थिति में है, क्योंकि अफगान गुटों के भीतर उसके मजबूत प्रभाव हैं।
2001 के बाद से, पूर्व अल कुद्स कमांडर कासिम सुलेमानी के मार्गदर्शन में तेहरान ने तालिबान के साथ जुड़ने का फैसला किया, यह देखते हुए कि विदेशी ताकतें अंतत: काबुल छोड़ देंगी और चरमपंथी समूह अफगानिस्तान के बहुसंख्यक पश्तून समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक भारी के रूप में उभर सकता है।
ऐतिहासिक रूप से ईरान का अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से ताजिक, हजारा और शिया समुदायों पर एक मजबूत प्रभाव रहा है। अपने क्षेत्रीय प्रभाव का लाभ उठाते हुए, ईरान पहले से ही कूटनीति में लगा हुआ है जो अफगानिस्तान के अधिकांश समुदायों को तेहरान में बातचीत की मेज पर लाता है।
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति को खत्म करने का अपना रणनीतिक उद्देश्य पूरा करने के बाद ईरान के नए राष्ट्रपति सैय्यद अब्राहिम रायसी ने कहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की हार और वापसी के बाद काबुल में जीवन, सुरक्षा और स्थायी शांति बहाल करने का एक अवसर होना चाहिए।
ईरान के नए राष्ट्रपति ने पूर्व विदेश मंत्री मोहम्मद जरीफ जवाद के साथ बात करते हुए कहा, "ईरान स्थिरता स्थापित करने के लिए काम करेगा, जो आज अफगानिस्तान की पहली जरूरत है एक पड़ोसी और भाई देश के रूप में। हम सभी समूहों को एक राष्ट्रीय समझौते पर पहुंचने का आह्वान करते हैं।"
पश्चिमी शक्तियों के साथ उलझने के बजाय, ईरान अफगान संकट को समाप्त करने के लिए 'क्षेत्रीय' समाधान खोजने का इच्छुक है।
ईरान के नवनियुक्त विदेश मंत्री होसैन ने कहा, "आज हमें जिस चीज की जरूरत है, वह क्षेत्र के देशों की भागीदारी के साथ स्थायी क्षेत्रीय सुरक्षा है, जिसकी प्राप्ति शांति और विकास के लिए गठबंधन को साकार करने के लिए आर्थिक संसाधनों के उपयोग पर निर्भर करती है।"
आमिर अब्दुल्लाहियन ने हाल ही में इराक में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान यह बात कही।
ईरान जोर देकर कहता है कि नई सरकार 'संतुलित, सक्रिय और स्मार्ट' विदेश नीति अपना रही है जो इस क्षेत्र में राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकती है और 'ईश्वर प्रदत्त' धन का उपयोग करके देशों के सर्वागीण विकास के लिए आधार की गारंटी दे सकती है।"
(यह सामग्री इंडिया नैरेटिव के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत है)
--इंडिया नैरेटिव
एसजीके/एएनएम
एक अमेरिकी शोध संस्थान ने कहा है कि भारत में वायु प्रदूषण की वजह से 40 फीसदी लोगों की उम्र में से नौ साल तक कम हो सकते हैं. रिपोर्ट ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए तुरंत जरूरी कदम उठाने की जरूरत को रेखांकित किया है.
शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय, पूर्वी और उत्तरी भारत में रहने वाले 48 करोड़ से ज्यादा लोग काफी बढ़े हुए स्तर के प्रदूषण में जी रहे हैं. इन इलाकों में देश की राजधानी दिल्ली भी शामिल है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "यह चिंताजनक है कि वायु प्रदूषण का इतना ऊंचा स्तर समय के साथ और इलाकों में फैला है." रिपोर्ट ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि अब इन राज्यों में भी वायु की गुणवत्ता काफी गंभीर रूप से गिर गई है.
राष्ट्रीय कार्यक्रम की तारीफ
हालांकि रिपोर्ट में 2019 में शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की तारीफ की गई है और कहा गया है कि अगर इसके तहत दिए गए लक्ष्यों को "हासिल कर उनका स्तर बनाए रखा गया" तो देश में जीवन प्रत्याशा या लाइफ एक्सपेक्टेंसी में 1.7 सालों की बढ़ोतरी हो जाएगी.
और तो और ऐसे में नई दिल्ली में जीवन प्रत्याशा 3.1 सालों से बढ़ जाएगी. एनसीएपी का लक्ष्य है 2024 तक वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित देश के 102 शहरों में प्रदूषण के स्तर को 20-30 प्रतिशत घटाना.
इसके लिए औद्योगिक उत्सर्जन और गाड़ियों के धुएं को काम करना, यातायात ईंधनों के इस्तेमाल और जैव ईंधन को जलाने के लिए कड़े नियम लागू करना और धूल से होने वाले प्रदूषण को कम करना. इसके लिए निगरानी के लिए बेहतर सिस्टम भी लगाने होंगे.
बड़ा संकट
भारत के पड़ोसी देशों में भी हालात का मूल्यांकन करते हुए ईपीआईसी ने कहा है कि बांग्लादेश अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताए हुए वायु गुणवत्ता के स्तर को हासिल कर लेता है तो वहां जीवन प्रत्याशा में 5.4 सालों की बढ़ोतरी हो सकती है.
उम्र के इन आंकड़ों को निकालने के लिए ईपीआईसी ने लंबे समय से अलग अलग स्तर के वायु प्रदूषण का सामना कर रहे लोगों के स्वास्थ्य की तुलना की और फिर उन नतीजों के हिसाब से भारत और दूसरे देशों की स्थिति को देखा.
आईक्यूएयर नाम की स्विट्जरलैंड की एक संस्था के मुताबिक 2020 में नई दिल्ली ने दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित राष्ट्रीय राजधानी होने का दर्जा लगातार तीसरी बार हासिल किया. आईक्यूएयर हवा में पीएम2.5 नाम के कणों की मौजूदगी के आधार पर वायु गुणवत्ता नापता है. यह कण फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं.
सीके/एए (रॉयटर्स)(dw.com)
अमेरिका में अब अश्वेत ज्यादा संख्या में बंदूकें खरीद रहे हैं. अश्वेत महिलाएं भी बंदूक खरीद रही हैं. शूटिंग रेंज पर अब अश्वेत महिलाएं खूब नजर आने लगी हैं. क्यों?
वैलरी रुपर्ट ने बांह ऊपर उठाई तो वह हल्की हल्की कांप रही थी. कांपती बाजू में बंदूक थामकर निशाना लगाना मुश्किल होता है. 67 साल की रुपर्ट, जो अब दादी बन चुकी हैं, सामने निशाने पर बनाए गए डकैत को ध्यान से देख रही थीं. उन्होंने एकाग्र होकर ट्रिगर दबा दिया. उनकी गोली की आवाज गूंजी लेकिन बाकी वैसी ही आवाजों के साथ.
बाद में रुपर्ट बोलीं, "शुरू में मैं थोड़ी नर्वस थी लेकिन दो-एक बार गोली चला लेने के बाद मुझे मजा आने लगा.”
हिंसा का असर
रुपर्ट उन करीब एक हजार अश्वेत महिलाओं में हैं, जो डेट्रॉयट में मुफ्त में दी जा रही बंदूक चलाने की ट्रेनिंग का हिस्सा हैं. बंदूक के समर्थक और उद्योग जगत के जानकारों के मुताबिक अश्वेत महिलाओं में अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक उठाने की इच्छा तेजी से बढ़ रही है.
इस चलन के पीछे है अपराधों से डर, खासकर ऐसे हिंसक अपराधों में जिनमें बंदूकों का इस्तेमाल होता है. लेकिन एक नई चीज भी हुई है जो महिलाओं को उत्साहित कर रही है. एक पुलिसकर्मी द्वारा मिनेपोलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद पिछले 15 महीने में अश्वेतों पर होने वाली हिंसा के खिलाफ गुस्से का सार्वजनिक प्रदर्शन बढ़ा है.
इसके अलावा कोविड संबंधी पाबंदियों और 2020 के राष्ट्रपति चुनावों को लेकर गुस्सा भी ज्यादा सार्वजनिक तौर पर नजर आया है. इस गुस्से का असर अलग-अलग तरह से देखा भी गया. जैसे कि मिशिगन में गवर्नर का अपहरण और वॉशिंगटन में बंदूकधारियों का कैपिटोल बिल्डिंग पर चढ़ जाना.
डर की तस्वीर
श्वेत पुरुषों के खतरनाक हथियार लिए कैपिटोल पर घूमते दिखने का वह दृश्य रुपर्ट जैसी महिलाओं के जहन पर अंकित हो गया है. रुपर्ट बताती हैं, "उन बंदूकों के साथ वे लोग कैपिटोल तक पहुंच गए. आपको तैयार रहना होगा.”
नेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फाउंडेशन के मुताबिक अमेरिका में 2020 में लगभग 85 लाख लोगों ने पहली बार बंदूक खरीदी. हथियार उद्योग के इस संगठन के मुताबिक अश्वेत पुरुषों और महिलाओं द्वारा हथियार खरीदने की संख्या में बीते साल के पिछले छह महीनों में 58 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.
ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रोफेसर और जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर फॉर गन वायलेंस प्रिवेंशन ऐंड पॉलिसी के निदेशक डेनियल वेबस्टर कहते हैं कि लोग ज्यादा बंदूकें तब खरीदते हैं जब सरकार और पुलिस पर उनका भरोसा कम हो जाता है.
प्रोफेसर वेबस्टर कहते हैं, "हमने श्वेत राष्ट्रवादियों की हिंसा में ऐसी ही वृद्धि देखी है. पुलिस में भरोसे की कमी और नफरत फैलाने वाले संगठनों के कारण बहुत सारे अश्वेत लोग हथियार खरीद रहे हैं.”
अब भी कम हैं अश्वेत बंदूकधारी
वैसे, अमेरिका में हथियार रखने वाले लोगों में अश्वेतों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है. कनेक्टिकट स्थित नेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फाउंडेशन के मुताबिक देश में जितने लोगों के पास बंदूकें हैं, उनमें से 56 प्रतिशत श्वेत पुरुष हैं. अश्वेत पुरुषों की संख्या 9.3 प्रतिशत है जबकि अश्वेत महिलाओं की संख्या 5.4 प्रतिशत. बंदूक रखने वालों में 16 प्रतिशत श्वेत महिलाएं हैं. फाउंडेशन की पब्लिक अफेयर्स डाइरेक्टर मार्क ओलिविया के अनुसार 2020 में अश्वेतों द्वारा बंदूकें खरीदने के चलन में बड़ा बदलाव आया है.
और इसी का परिणाम है कि अब शूटिंग रेंज में अश्वेत महिलाएं दिखाई देने लगी हैं. लगभग दो दशक से निशानेबाजी कर रहीं श्वेत महिला बेथ अल्काजार कहती हैं कि शूटिंग रेज पर अश्वेत महिलाओं का होना एक दुर्लभ घटना है. अलाबामा में शूटिंग सिखाने वालीं अल्काजार कहती हैं, "सच कहूं तो, रेंज पर अश्वेत महिला की एक से ज्यादा तस्वीर मेरे जहन में नहीं उभरती. पिछले पांच साल में मेरी गतिविधि बढ़ी है और जब भी मैं रेंज पर जाती हूं, हर बार पहले से ज्यादा अश्वेत महिलाएं नजर आती हैं.”
डेट्रॉयट में शूटिंग इंस्ट्रक्टर लैवेट ऐडम्स कहती हैं कि अधिकतर अश्वेत महिलाओं के लिए बूंदक चलाना सीखना अपनी देखभाल करने से जुड़ा है. अश्वेत महिला ऐडम्स बताती हैं, "महिलाओं के खिलाफ अपराध कोई नई बात नहीं है. महिलाएं खुद की रक्षा कर रही हैं, यह नई बात है.”
रिपोर्टः वीके/सीके (एपी)
नई दिल्ली, 31 अगस्त | अमेरिकी सीआईए निदेशक विलियम बर्न्स की अफगान तालिबान नेता मुल्ला बरादर के साथ काबुल में मुलाकात अब जगजाहिर है, लेकिन इस साल फरवरी की शुरुआत में चीनी खुफिया प्रमुख की अफगानिस्तान यात्रा के बारे में कम ही लोग जानते हैं। यह अफगानिस्तान में जासूसी करते पकड़े गए 10 चीनी जासूसों की गिरफ्तारी का परिणाम था। महत्वपूर्ण रूप से, काबुल में एनडीएस के साथ अपनी बैठकों के दौरान चीनी राज्य सुरक्षा अधिकारी ने अपने अफगान समकक्षों को तालिबान के अधिग्रहण की संभावना के बारे में आगाह किया। यह जानकारी उन संपर्को पर आधारित थी जो चीन की खुफिया एजेंसी ने पिछले साल तालिबान के साथ स्थापित किए थे।
अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसी एनडीएस को चीनी नागरिकों के बारे में सुझाव मिले थे, जिन्होंने उइगर चरमपंथियों का पता लगाने के लिए हक्कानी नेटवर्क के साथ संबंध बनाए थे।
दिलचस्प बात यह है कि अतीत में चीन ने पाकिस्तानी आईएसआई के माध्यम से अफगानिस्तान में काम किया है। हाल ही में, वे सीधे अफगानों के साथ काम कर रहे हैं, पहले राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के साथ और अब तालिबान के साथ।
तालिबान के साथ चीनी संपर्क न तो नए हैं और न ही आश्चर्यजनक। चीन ने 1996 में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने तालिबान को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति इस गारंटी के बदले में की थी कि अफगान तालिबान ईटीआईएम या आईएमयू जैसे किसी अन्य अलगाववादी समूह को शरण और प्रशिक्षण प्रदान नहीं करेगा।
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच इसी तरह की समझ होने की उम्मीद है, जब पूर्व में पिछले महीने बीजिंग का दौरा किया गया था। जिस तरह चीनी तालिबान को उनके पिछले संबंधों के आधार पर देखते हैं और उन्हें किसी भी खतरे का मुकाबला करने की जरूरत है, तालिबान ने अपने तथाकथित नए अवतार में अफगानिस्तान के शासकों ने हाल के हफ्तों में दिखाया है कि वे उसी तरह से काम करेंगे, जैसा कि उन्होंने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन करने के दौरान किया था। तालिबान के आक्रोश का खामियाजा महिलाओं और मीडिया को भुगतना पड़ रहा है, जो कि 20 साल की सामाजिक प्रगति को प्रभावित कर रहा है।
तब से तालिबान द्वारा गजनी प्रांत के स्थानीय रेडियो स्टेशनों में संगीत और महिला कर्मचारियों के काम करने पर प्रतिबंध लगाने की खबरें सामने आई हैं। साथ ही, देउच वेले (डीडब्ल्यू) के लिए काम करने वाले एक अफगान पत्रकार के परिवार के सदस्य की हत्या, तालिबान की किसी भी तरह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति विरोध का संकेत देती है, खासकर मीडिया द्वारा।
तालिबान ने यह स्टैंड लिया है कि महिलाओं के लिए घर पर रहना सबसे अच्छा है, जब तक कि उनके सैनिक महिलाओं के साथ व्यवहार करने के बारे में जागरूक न हों।
उनके प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने हाल ही में कहा, "हमारे सुरक्षा बल प्रशिक्षित नहीं हैं (में) महिलाओं के साथ कैसे व्यवहार करें - उनमें से कुछ के लिए महिलाओं से कैसे बात करें। जब तक हमारे पास पूरी सुरक्षा नहीं है .. हम महिलाओं से कहते हैं कि घर पर रहें।"
यह तालिबान द्वारा शरीयत को अप्रत्यक्ष रूप से थोपना है।
तालिबान के गजनी प्रांत के सूचना मामलों के प्रभारी ने स्थानीय रेडियो स्टेशनों में संगीत और महिला कर्मचारियों के काम पर प्रतिबंध लगा दिया है।
मौलवी हबीबुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि सभी रेडियो को शरिया कानून के अनुरूप ही प्रसारण प्रसारित करना चाहिए।
पझवोक ने उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया है कि स्थानीय रेडियो में महिला कर्मचारियों और संगीत के काम पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान एक इस्लामिक देश है और यहां के लोग संगीत नहीं चाहते, इसलिए इसे प्रतिबंधित कर देना चाहिए। उनके अनुसार, रेडियो सार्वजनिक मुद्दों को उजागर कर सकता है और तालिबान की आलोचना कर सकता है, लेकिन वे इस्लामी कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते। इस समय गजनी में नौ स्थानीय रेडियो, दो शरिया रेडियो और एक निजी टेलीविजन चैनल हैं।
अपनी पहली प्रेस बातचीत (17 अगस्त को) के दौरान, तालिबान ने जोर देकर कहा था कि मीडिया काम कर सकता है, अगर वे उनके 'सुझावों' का पालन करते हैं। यानी, इस्लामी मूल्यों का पालन, निष्पक्षता और राष्ट्रीय हित को बनाए रखना।
गजनी न्यूज की रिपोर्टो से यह स्पष्ट होता है कि तालिबान अभिव्यक्ति की किसी भी स्वतंत्रता पर, विशेष रूप से अफगानिस्तान में मीडिया द्वारा बंद करने का इरादा रखता है। इसके बाद, यह बताया गया कि डीडब्ल्यू के लिए काम करने वाले एक अफगान पत्रकार के परिवार के सदस्य को तालिबान ने मार डाला था। तालिबान उस पत्रकार की तलाश में काबुल गया था, जो पहले ही जर्मनी भाग गया था। (आईएएनएस)
भारत के विदेश मंत्रालय ने तालिबान के प्रतिनिधि से मुलाक़ात की आधिकारिक जानकारी दी है. ये मुलाक़ात क़तर की राजधानी दोहा में 'तालिबान की गुज़ारिश पर हुई है.'
विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ इस मुलाक़ात में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में फँसे 'भारतीय नागरिकों की सुरक्षित और जल्दी वापसी के साथ आतंकवाद से जुड़ी चिंताओं को उठाया. तालिबान के प्रतिनिधि ने भरोसा दिया कि भारत की चिंताओं का समाधान किया जाएगा.'
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया कि क़तर में भारत राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान राजनीतिक ऑफ़िस के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकज़ई से मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के लिए तालिबान की ओर से गुज़ारिश की गई थी.
दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुई बातचीत का अहम हिस्सा रहे शेर मोहम्मद स्टानिकज़ई ने सार्वजनिक तौर पर भी भारत के साथ 'दोस्ताना संबंध' बनाए रखने की गुज़ारिश की थी. उनका ये सार्वजनिक बयान इसी हफ़्ते सामने आया था.
विदेश मंत्रालय ने क्या बताया?
भारतीय राजदूत दीपक मित्तल और उनकी मुलाक़ात इसी बयान के बाद हुई है. इसके पहले, बीते हफ़्ते अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक हुई थी. तब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तालिबान के साथ संबंध के सवाल पर कहा था, "वेट एंड वॉच. यानी इंतज़ार करें और देखें."
लेकिन, बीते गुरुवार को हुई उस बैठक के बाद से स्थितियाँ काफ़ी बदलती हुई दिख रही हैं. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका और दूसरे देशों की सेनाएँ लौट चुकी हैं और काबुल पर तालिबान का नियंत्रण हो चुका है. तालिबान सरकार बनाने की कोशिश में जुटे हैं और बता चुके हैं कि ये सरकार 'समावेशी' होगी. इसे लेकर अलग-अलग पक्षों से बातचीत जारी है.
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में बताया गया है, "आज क़तर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के दोहा स्थित राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकज़ई से मुलाक़ात की. ये मुलाक़ात तालिबान की गुज़ारिश पर भारतीय दूतावास में हुई. "
विदेश मंत्रालय के बयान में आगे बताया गया है, "बातचीत का फ़ोकस अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों की सुरक्षित और जल्दी वापसी पर था. अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों ख़ासकर अल्पसंख्यकों की भारत यात्रा को लेकर भी बातचीत हुई. "
भारत की चिंता
विदेश मंत्रालय ने बताया है कि भारतीय राजदूत मित्तल ने 'आतंकवाद' से जुड़ी चिंता को भी उठाया और कहा, "अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी भारत विरोधी गतिविधि या आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए."
बयान के मुताबिक, "तालिबान के प्रतिनिधि ने भरोसा दिया कि भारतीय राजदूत ने जो मुद्दे उठाए हैं उन पर सकारात्मक तरीक़े से अमल होगा. "
इसके पहले भारत और तालिबान के बीच बैकचैनल बातचीत की अटकलें लगाई जा रही थीं. हालाँकि भारत ने आधिकारिक तौर पर ऐसी किसी बातचीत की जानकारी नहीं दी थी.
तालिबान के काबुल पर क़ब्ज़े के पहले अफ़ग़ानिस्तान में जो सरकार थी, उसके भारत के साथ बेहतर रिश्ते थे.
तालिबान के प्रतिनिधि अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े की कोशिश के दौरान भारत के दूसरे पड़ोसी मसलन रूस, चीन और पाकिस्तान के साथ बैठकें कर रहे थे, लेकिन भारत के साथ ऐसी की बैठक की कोशिश नहीं दिखी थी.
काबुल पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित होने के चार दिन पहले 11 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर रूस, चीन, पाकिस्तान और अमेरिका के प्रतिनिधि क़तर की राजधानी दोहा में मिले.
भारत को इस वार्ता में जगह नहीं मिली और ये बात अफ़ग़ानिस्तान में राष्ट्रपति पुतिन के विशेष दूत ज़ामिर काबुलोव के बयान से स्पष्ट भी हुआ. 20 जुलाई को रूसी समाचार एजेंसी तास ने ज़ामिर काबुलोव के हवाले से कहा कि भारत इस वार्ता में इसलिए शामिल नहीं हो पाया क्योंकि तालिबान पर उसका कोई प्रभाव नहीं है.
भारत का योगदान
अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत ने बड़ी भूमिका निभाई है. 2020 के नवंबर में ही भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में 150 नई परियोजनाओं की घोषणा की है.
इससे पहले 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान की संसद की नई इमारत का उद्घाटन किया था. ये भवन भी भारत के सहयोग से बनाया गया है. अगले ही साल अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रांत में 42 मेगावाट वाली बिजली और सिंचाई की परियोजना का उद्घाटन मोदी और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने साझा रूप से किया था.
कई परियोजनाएँ ऐसी हैं, जिन्हें भारत ने शुरू किया और संचालित भी किया. भारत के रक्षा मंत्रालय के अधीन सीमा सड़क संगठन यानी बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने भी अफ़ग़ानिस्तान में कई महत्वपूर्ण सड़कों को बनाने का काम किया. अफ़ग़ानिस्तान की फ़ौज, पुलिस और लोकसेवा से जुड़े अधिकारियों को भारत में प्रशिक्षण भी मिलता रहा है.
-शहज़ाद मलिक और शहीद असलम
"मैं यह जानना चाहता हूँ कि इस होटल में कितने नेटो और अमेरिकी सैनिक और अधिकारी ठहरे हुए हैं? क्या तालिबान के काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद से आपके होटल में विदेशियों की आमद बढ़ी है?"
इन सवालों से इस्लामाबाद के एक बड़े होटल के सिक्योरिटी इंचार्ज के चेहरे पर नाराज़गी झलक रही थी.
उन्होंने बुरा सा मुँह बनाया और सवाल करने वाले पत्रकार से कहा, "आप जितनी भी जानकारी जानना चाहते हैं, उससे पहले मैं आपके सभी डेटा की जाँच करूँगा कि आप यह सब क्यों जानना चाहते हैं. हम नहीं जानते कि आप पत्रकार हैं या कोई और."
जब हम सोमवार को इस्लामाबाद के सेरेना होटल पहुँचे, तो होटल प्रबंधन ने इन शब्दों के साथ अभिवादन किया.
काबुल धमाकों के बाद, इस्लामाबाद के ज़िला प्रशासन ने सभी निजी होटलों को बुकिंग करने से रोक दिया था, ताकि अफ़ग़ानिस्तान से निकासी के दौरान लाए गए विदेशियों को वहाँ ठहराया जा सके.
विदेशी सैनिकों के होटल में रुकने की वजह से सुरक्षा पहले के मुक़़ाबले कड़ी कर दी गई है, और कुछ अनजान लोग भी लॉबी और कॉरिडोर में सोफ़े पर बैठे नज़र आ रहे हैं जो कुछ देर बाद बदलते रहते हैं.
'एक भी अमेरिकी सैनिक पाकिस्तान नहीं आया'
हालाँकि गृह मंत्री शेख़ रशीद अहमद ने कहा कि उनकी जानकारी के मुताबिक़ अफ़ग़ानिस्तान से एक भी अमेरिकी सैनिक पाकिस्तान नहीं आया.
लेकिन, उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि इस्लामाबाद में क़रीब साढ़े तीन हज़ार विदेशियों के ठहरने की व्यवस्था की गई है.
उनके मुताबिक, 100से ज़्यादा लोग नूर ख़ान एयरबेस पर उतरे हैं, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वे सिविलियन हैं या सैनिक.
याद रहे है कि पिछले कुछ दिनों से इस्लामाबाद एयरपोर्ट और होटल में विदेशी सैनिकों की मौजूदगी की तस्वीरें पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.
हालाँकि, कुछ अन्य यूज़र्स ने कहा है कि इन सैनिकों की वर्दी अमेरिकी सैनिकों की वर्दी से अलग है, इसलिए यह ज़रूरी नहीं है कि ये सैनिक अमेरिकी ही हों.
संघीय गृह मंत्री के अनुसार इस्लामाबाद एयरपोर्ट पर एफ़आईए के इमिग्रेशन रिकॉर्ड के अनुसार, अब तक 1627 लोग अफ़ग़ानिस्तान से पाकिस्तान आ चुके हैं, जबकि क़रीब 700 विदेशी इस समय इस्लामाबाद एयरपोर्ट के अंदर ही मौजूद हैं और उन्होंने अपना इमिग्रेशन नहीं कराया है.
उन्होंने कहा, "अगर अमेरिकी सैनिक पाकिस्तान आते, तो अमेरिकी दूतावास के अधिकारी विदेश मंत्रालय से ज़रूर संपर्क करते और विदेश मंत्रालय के अधिकारी सुरक्षा प्रक्रियाओं के बारे में गृह मंत्रालय को जानकारी देते."
'हर जगह विदेशी सैनिक थे'
इसके विपरीत, जब आप सेरेना होटल के मुख्य प्रवेश द्वार से अंदर दाख़िल होते हैं, तो लॉबी में भीड़-भाड़ महसूस होती है, और वर्दीधारी विदेशी सैन्यकर्मी (पुरुष और महिला) बातचीत करते हुए दिखाई देते हैं.
होटल सूत्रों के मुताबिक़, विभिन्न दूतावासों ने सैन्य कर्मियों के लिए कुल 150 के लगभग कमरे बुक कराए थे और विदेशी सैनिकों को एयरपोर्ट से होटल तक लाने, ले जाने के लिए कम से कम तीन बुलेट प्रूफ़ गाड़ियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इनकी व्यवस्था ख़ुद अलग-अलग देशों के दूतावासों ने की है.
होटल में मौजूद पत्रकार के मुताबिक़ रविवार रात को होटल प्रबंधन ने उन्हें बताया कि उनका कमरा बदला जा रहा है, क्योंकि सोमवार को एक विदेशी प्रतिनिधिमंडल आ रहा है, जिनके लिए होटल का पूरा फ़्लोर बुक किया गया है.
होटल सूत्रों के मुताबिक़, कुछ विदेशी सैन्यकर्मी ख़रीदारी के लिए होटल से बाहर भी जा रहे हैं और कुछ होटल में मसाज सेंटर और स्विमिंग पूल जैसी सुविधाओं का भी लुत्फ़ उठा रहे थे.
होटल में हर दिन रात के खाने के समय बैठने की जगह नहीं मिलती है, और पूरा हॉल विदेशी सैनिकों से भरा होता है, और लॉबी में दाख़िल होने से पहले ही, उनके चम्मच और प्लेटों की आवाज़ आना शुरू हो जाती है.
कोई बिरयानी के मज़े ले रहा होता है तो किसी को फ़िश फ़्राई पसंद है. उसी तरह सुबह और दोपहर के खाने के समय भी इन सैनिकों की एक भीड़ दिखाई देती है, जहाँ कोई मीठी लस्सी पी रहा है और कोई तरह-तरह के जूस पी रहा है. नाश्ते में कोई निहारी खा रहा है तो कोई सफेद चने, लेकिन आमलेट सभी को पसंद है.
होटल में विदेशी सैनिकों के ठहरने के दौरान बहुत कम स्थानीय लोग होटल में खाना खाते दिखे. इसी तरह, विदेशी सैनिकों को किसी आम नागरिक के साथ गपशप करते या सेल्फ़ी लेते नहीं देखा गया.
जब एक पत्रकार ने एक विदेशी सैनिक से सेल्फ़ी लेने के लिए कहा, तो शुरू में तो मान गए, लेकिन बाद में एक वरिष्ठ अधिकारी के कहने पर सैनिकों ने सेल्फ़ी लेने से मना कर दिया.
ये सैनिक कौन हैं?
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने दावा किया है कि नेटो सेना के ब्रितानी, जापानी, अरब और कई यूरोपीय देशों के सैनिक तीन दिन पहले ही इस्लामाबाद पहुँचे हैं. उनके अलावा होटलों में विश्व बैंक के प्रतिनिधि भी रुके हुए हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान में विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद इस्लामाबाद पहुँचे हैं.
उनके मुताबिक़ पाकिस्तान आने वाले इन लोगों की संख्या क़रीब 400 है और सूत्रों ने बताया कि इन अधिकारियों के बारे में ज़िला प्रशासन को जानकारी नहीं दी गई थी.
उन्होंने कहा कि नेटो सैनिकों को पाकिस्तानी वीज़े जारी किए गए थे, जबकि उनके होटल में ठहरने, खाना, यात्रा और वीज़ा समेत यात्रा के सभी ख़र्च यहाँ तक कि विमान खड़ा करने का किराया भी वो ख़ुद अदा कर रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक़ रावलपिंडी के एक बड़े होटल की 50 से ज़्यादा बसें और 100 से ज़्यादा कमरे रावलपिंडी प्रशासन के इशारे पर अब भी ख़ाली हैं.
ज़िला प्रशासन के अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि उन्हें संबंधित अधिकारियों से जो निर्देश मिले थे, उनमें कहा गया था कि इन होटलों में केवल ट्रांज़िट वीज़ा और इमिग्रेशन वाले लोगों को ही ठहरने की अनुमति होगी. (bbc.com)
संयुक्त राष्ट्र, 31 अगस्त | अफगानिस्तान में करीब एक करोड़ बच्चों को मानवीय सहायता की सख्त जरूरत है और यूनिसेफ उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए करीब 20 करोड़ डॉलर की अपील कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने यह घोषणा की। अफगानिस्तान में यूनिसेफ के प्रतिनिधि, हर्वे डी लिस ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा, "अपील में पानी और स्वच्छता, बाल संरक्षण, पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया गया है।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, डी लिस ने कहा कि इस संकट के लिए सबसे कम जिम्मेदार लोग सबसे अधिक कीमत चुका रहे हैं, जिसमें 26 अगस्त से काबुल में अत्याचारों की एक श्रृंखला में मारे गए और घायल हुए बच्चे भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि इस साल अकेले 550 से अधिक बच्चे मारे गए हैं और 1,400 से अधिक घायल हुए हैं।
उन्होंने कहा, "यह स्पष्ट रूप से एक ऐसे देश में बाल-संरक्षण संकट है जो पहले से ही एक बच्चों के लिए पृथ्वी पर सबसे खराब जगहों में से एक है।"
संघर्ष और असुरक्षा की पृष्ठभूमि में, बच्चे ऐसे समुदायों में रह रहे हैं, जो संकटग्रस्त हैं। उन्होंने कहा कि उनके पास पोलियो सहित जीवन रक्षक टीके नहीं हैं, यह एक ऐसी बीमारी है जो बच्चों को जीवन भर के लिए मुसीबत में डाल सकती है।
डी लिस ने कहा, "कई लोग इतने कुपोषित हैं कि वे अस्पताल के बिस्तरों में इतने कमजोर हैं कि एक फैली हुई उंगली को पकड़ नहीं सकते।"
"ये बच्चे स्वस्थ और संरक्षित बचपन के अपने अधिकार से वंचित हैं।"
यूनिसेफ उन रिपोर्टों को लेकर चिंतित है जिसमें कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय दानदाता न केवल एजेंसी के लिए बल्कि अन्य सहायता समूहों के लिए भी इस कठिन समय में देश की सहायता में कटौती कर रहे हैं या रोक रहे हैं।
उन्होंने कहा कि एजेंसी देश भर में कार्यक्रमों को वितरित करने के लिए आवश्यक सुरक्षा सुनिश्चित करने के बारे में भी चिंतित है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 31 अगस्त | चीन की सरकार ने अपने देश के युवाओं की ऑनलाइन गेमिंग की लत को गंभीरता से लिया है। सरकार ने घर पर युवाओं के समय बिताने के तरीके में अपनी भागीदारी बढ़ाने के साथ ही देश में कम उम्र के गेमर्स को अब एक दिन में केवल एक घंटे और सप्ताहांत पर ऑनलाइन खेलने की अनुमति दी है। इसकी घोषणा अधिकारियों ने की है। नेशनल प्रेस एंड पब्लिकेशन एडमिनिस्ट्रेशन (एनपीपीए) के अनुसार, चीन में अब 18 साल से कम उम्र के वीडियो गेम खिलाड़ी रात 8 बजे से रात 9 बजे तक ही गेम खेल सकेंगे। उन्हें केवल शुक्रवार, शनिवार और रविवार के साथ-साथ सार्वजनिक छुट्टियों वाले दिन सिर्फ एक घंटे ही वीडियो गेम खेलने की अनुमति होगी।
निक्केई एशिया के मुताबिक, गेमिंग ऑपरेटर्स को नियम जारी करने वाली एजेंसी यूजर्स के असली नाम से रजिस्ट्रेशन कराने पर भी जोर दे रही है।
एनपीपीए ने 2019 में कम उम्र के लोगों की गेमिंग को छुट्टियों पर तीन घंटे और अन्य दिनों में डेढ़ घंटे तक सीमित कर दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कठिन नियम तब आते हैं जब चीनी सरकार युवा शिक्षा पर अधिक नियंत्रण रखती है। सितंबर से शंघाई में प्राथमिक, माध्यमिक और हाई स्कूल के छात्रों को शी जिनपिंग थॉट ऑन सोशलिज्म विद चाइनीज कैरेक्टर्स को सीखना होगा।
बीजिंग शहर ने इस महीने कहा था कि वह उन विदेशी शैक्षिक कंटेंट पर प्रतिबंध लगाएगा जिन्हें अधिकारियों ने पूर्व-अनुमोदित नहीं किया है।
कई चीनी गेम ऑपरेटर पहले से ही समय की मात्रा को सीमित कर रहे थे और कम उम्र के खिलाड़ी सोमवार की घोषणा की प्रत्याशा में अपने प्लेटफॉर्म पर खर्च कर सकते हैं।
इस महीने की शुरूआत में, टेनसेंट होल्डिंग्स ने घोषणा की कि वह धीरे-धीरे कम उम्र के खिलाड़ियों को छुट्टियों पर दो घंटे और अन्य दिनों में एक घंटे तक सीमित कर देगा।
गेमिंग कंपनी ने वेबसाइट को बताया कि वह अधिकारियों द्वारा घोषित सख्त दिशानिर्देशों का पालन करेगी।
इस महीने घोषित अप्रैल-जून परिणामों के अनुसार, 16 वर्ष से कम आयु के युवा और चीन में टेनसेंट के खेल राजस्व का 2.6 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। (आईएएनएस)
चीन में ऑनलाइन गेम के लिए बनाए गए नए नियमों के अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चे सप्ताह में केवल तीन घंटे ही गेम खेल पाएंगे. चीनी अधिकारियों ने समाज पर गेमिंग के प्रभाव पर चिंता जाहिर की है.
चीन में अधिकारियों ने ऑनलाइन गेमिंग पर नियम कड़े करने का फैसला किया है. सोमवार को प्रकाशित हुए नए नियमों के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों को हफ्ते में तीन घंटे से ज्यादा ऑनलाइन वीडियो गेम खेलने की इजाजत नहीं होगी.
नेशनल प्रेस एंड पब्लिकेशन एडमिनिस्ट्रेशन (एनपीपीए) ने एक नई अधिसूचना में कहा कि बच्चे शुक्रवार शाम से लेकर शनिवार और रविवार की देर शाम 8 बजे से रात 9 बजे के बीच ऑनलाइन गेम खेल सकते हैं.
देश में वीडियो गेम की निगरानी करने वाले नियामक के नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक सार्वजनिक छुट्टी वाले दिन बच्चे तय समय पर एक घंटा गेम खेल सकते हैं. इससे पहले 18 साल तक के बच्चों को प्रतिदिन 90 मिनट वीडियो गेम खेलने की इजाजत थी.
वीडियो गेम पर इतनी सख्ती क्यों?
चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपने युवाओं पर गेमिंग के नकारात्मक प्रभाव से लेकर बुरी आदतों, और आंखों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित है.
प्रतिबंध वैश्विक गेमिंग बाजार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. चीन में लाखों युवा ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े हुए हैं और दुनिया भर के ऑनलाइन गेम डेवलपर्स चीन को अहम बाजार मानते हैं.
चीन के ऑडियो-वीडियो और डिजिटल पब्लिशिंग एसोसिएशन के मुताबिक, इस साल की पहली तिमाही में उद्योग ने लगभग 20 अरब डॉलर की कमाई की है. अधिकारियों ने ऑनलाइन वीडियो गेम को "आध्यात्मिक अफीम" बताया है. उसका मानना है कि बच्चे इसके आदी हो रहे हैं, जो उनके स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है.
कहा जा रहा है कि ऑनलाइन गेम पर नए नियम समाज पर बेहतर पकड़ बनाने के बीजिंग के प्रयासों का एक हिस्सा है.
चीन में ऑनलाइन गेम खेलने के लिए अपने पहचान पत्र से पंजीकरण कराना जरूरी है ताकि बच्चे अपनी उम्र के बारे में झूठ न बोल सकें. इस तरह के खेलों की पेशकश करने वाली कंपनियों को भी निर्धारित समय से अलग हटकर नाबालिगों को ऐसी सेवाएं देने की मनाही है.
अलीबाबा ग्रुप की टेक्नोलॉजी कंपनी और टेंसेंट जैसी कंपनियों पर चीनी सरकार पहले ही सख्त रुख अख्तियार कर चुकी है और नए नियमों की घोषणा के तुरंत बाद प्रमुख ऑनलाइन वीडियो गेम कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई है.
हालांकि, एनपीपीए के बयान में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि नियम तोड़ने वालों को कैसे दंडित किया जाएगा.(dw.com)
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 31 अगस्त | अमेरिका ने मंगलवार को अफगानिस्तान में आखिरी अमेरिकी वायु सेना विमान सी-17 ग्लोबमास्टर की उड़ान के साथ ही अपने सबसे लंबे युद्ध को एक भ्रमित वापसी के साथ समाप्त कर दिया।
साल 2001 में अमेरिका में अफगानिस्तान स्थित अल कायदा द्वारा किए गए 9/11 के आतंकी हमलों की बरसी से 11 दिन पहले अंतिम वापसी हुई।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेने ने कहा, "मैं अपने कमांडरों और उनके अधीन सेवा कर रहे पुरुषों और महिलाओं को अफगानिस्तान से खतरनाक वापसी की प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। जैसा कि वापसी के लिए 31 अगस्त की तिथि निर्धारित की गई थी, अमेरिकी जीवन का कोई और नुकसान नहीं हुआ है।"
सैन्य कमांडर जनरल केनेथ मैकेंजी ने कहा, "यह एक ऐसा मिशन था जिसने ओसामा बिन लादेन के साथ उनके सह साजिशकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया गया। यह एक सस्ता मिशन नहीं था। इसमें 2,461 अमेरिकी सेवा सदस्य और नागरिक मारे गए और 20,000 से अधिक घायल हुए।"
उन्होंने कहा कि इस युद्ध में साथ ही अनुमानित 2.3 ट्रिलियन डॉलर, भारत के बजट के आकार का लगभग पांच गुना, अमेरिका द्वारा युद्ध पर खर्च किया गया।
इसके अलावा, 1,000 से अधिक नाटो सैनिक, 66,000 अफगान सुरक्षाकर्मी, लगभग 50,000 नागरिक और 50,000 तालिबान और अन्य आतंकवादी युद्ध में मारे गए।
युद्ध के अंतिम क्षणों में आत्मघाती हमलावरों को ले जाने के संदेह में एक वाहन पर अमेरिकी हवाई हमला किया गया, जिसमें सात बच्चे मारे गए।
अमेरिका के लिए बड़ा लाभ बिन लादेन की मौत और अल कायदा का सफाया था, लेकिन इसका मतलब अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का अंत नहीं था क्योंकि इस्लामिक स्टेट-खोरासन (आईएस-के) ने अमेरिका और तालिबान दोनों के प्रति अपनी दुश्मनी जाहिर की है।
आईएस-के आत्मघाती हमलावर ने 27 अगस्त को काबुल हवाई अड्डे पर अमेरिकी उपस्थिति के कमजोर दिनों में हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों और कई अफगानों को मार डाला।
देश में जैसे-जैसे अमेरिकी सैन्य उपस्थिति कम होती गई, तालिबानी 300,000-मजबूत अमेरिकी-प्रशिक्षित अफगान रक्षा बलों से प्रांत दर प्रांत लेते चले गए और गनी संयुक्त अरब अमीरात भाग गए।
बाइडेन ने हवाई अड्डे को सुरक्षित करने के लिए लगभग 5,000 सैनिकों को भेजा ताकि उन्हें सुरक्षित स्थान पर लाया जा सके।
अंत में, काबुल से बाहर का एयरब्रिज 123,000 से अधिक नागरिकों को निकालने में कामयाब रहा।
लेकिन जब निकासी शुरू हुई तो हताश लोगों की भयावह तस्वीरों ने दुनिया को झकझोर दिया।
लेकिन हजारों, शायद दसियों हजार, पीछे छूट गए हैं, जिनमें 200 अमेरिकी नागरिक भी शामिल हैं। (आईएएनएस)
कुआलालंपुर, 31 अगस्त | मलेशिया के प्रधानमंत्री इस्माइल साबरी याकूब ने एक कोविड-19 रोगी के निकट संपर्क में आने के बाद से खुद को क्वारंटाइन कर लिया हैं। उनके कार्यालय ने एक बयान में इसकी सूचना दी गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बयान के हवाले से कहा कि इस्माइल साबरी सोमवार को नेशनल पैलेस में आयोजित अपने कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हो पाए।
इसमें कहा गया है कि वह मंगलवार को होने वाले राष्ट्रीय दिवस समारोह में शामिल होंगे।
मलेशिया ने पिछले 24 घंटों में 19,268 नए कोविड -19 संक्रमण की सूचना दी, जिससे देश में कुल मामले बढ़कर 1,725,357 हो गए।
अन्य 295 लोगों ने वायरस के कारण दम तोड़ दिया, जिससे मरने वालों की संख्या बढ़कर 16,382 हो गई है। (आईएएनएस)
अमेरिका के टेक्सस में गर्भधारण के छह हफ्ते बाद गर्भपात कराने पर बैन लगा दिया गया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को रोकने की अपील की है और कहा है कि इससे महिलाओं के संवैधानिक अधिकार का हनन होता है.
नया कानून एक सितंबर से लागू हो जाएगा. गर्भपात के अधिकार का समर्थन करने वाले समूहों ने अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में 30 अगस्त को इस कानून को रोकने की आपात अपील दायर की.
'प्लांड पेरेंटहुड', गर्भपात की सेवांए और महिलाओं के लिए अन्य सेवाएं देने वाले समूहों ने अदालत को बताया कि यह कानून "तुरंत और अनर्थकारी रूप से टेक्सस में महिलाओं को गर्भपात के अधिकार से दूर कर देगा."
अधिकार का उल्लंघन
समूहों ने यह भी कहा कि इस कानून की वजह से "टेक्सस में गर्भपात कराने वाले मरीजों में से 85 प्रतिशत को देखभाल नहीं मिल पाएगी" और कई गर्भपात क्लिनिक बंद भी हो जाएंगे.
इन समूहों ने जुलाई में ही टेक्सस की राजधानी ऑस्टिन की फेडरल अदालत में इस कानून को चुनौती दी थी. उन्होंने कहा था कि कानून महिलाओं के गर्भपात कराने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है.
19 मई को पारित किया गया कानून एक तरह से विचित्र भी है क्योंकि यह हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वो छह हफ्तों की समय सीमा के बाद गर्भपात कराने वाली महिला की मदद करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकें.
इस तरह के कानून को 'हार्टबीट' गर्भपात बैन कहा जाता है और इस तरह के कई कानून रिपब्लिकन सरकारों वाले राज्यों में लाए गए हैं. इन कानूनों का उद्देश्य है कि भ्रूण के कार्डिएक टिश्यू के धड़कने का पता चल जाने के बाद गर्भपात कराना संभव ना हो सके.
एक कानूनी लड़ाई
ऐसा अक्सर गर्भ के छह सप्ताह पूरा होने पर पता चलने लगता है. कभी कभी यह समय आने तक महिलाओं को गर्भ का पता भी नहीं चलता.
कई अदालतों ने इस तरह के प्रतिबंधों को रोक दिया है क्योंकि इनसे 1973 के 'रो बनाम वेड' मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का उल्लंघन होता है.
इसी फैसले के बाद के पूरे देश में गर्भपात को कानूनी मान्यता मिली थी. मिसिसिपी राज्य ने तो सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वो 'रो बनाम वेड' फैसले को ही पलट दे.
राज्य में 2018 में पास किए गए एक कानून के तहत गर्भ धारण के 15 सप्ताह के बाद गर्भपात पर बैन लगा दिया गया था. इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट के जज अक्टूबर में सुनवाई करेंगे और जून 2022 तक फैसला आने की उम्मीद है.
सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद
टेक्सस में जो मामला दायर किया गया है उसमें अपील की गई है कि जजों, काउंटी क्लर्कों और राज्य के दूसरे अधिकारियों को नागरिकों द्वारा दर्ज किये मामलों के जरिए नए कानून को लागू कराने से रोका जाए.
मामला दायर करने वालों ने एक गर्भपात-विरोधी समूह के निदेशक के खिलाफ भी मामला दर्ज कराया है. उनका कहना है कि इस समूह ने नए कानून के तहत खुद कदम उठाने की धमकी दी है.
इसके पहले एक फेडरल जज ने इस मामले को रद्द किए जाने की एक कोशिश को खारिज कर दिया था. इसके तुरंत बाद एक निचली अदालत में अपील दायर की गई और अदालत ने मामले में आगे की सुनवाई पर रोक लगा दी.
गर्भपात सेवाएं देने वाली संस्थाओं ने इसी अदालत में नए कानून को रोकने की भी अपील की थी लेकिन 29 अगस्त को अदालत ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. 30 अगस्त को याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वो या तो टेक्सस वाले कानून पर रोक लगाए या निचली अदालत में सुनवाई चलने दे.
सीके/वीके (रॉयटर्स)
दक्षिण अफ्रीका में वैज्ञानिक असामान्य रूप से तेजी से म्यूटेट होने वाले कोरोना वायरस के नए वेरिएंट की पड़ताल कर रहे हैं. हाल के महीनों में इस वेरिएंट के मामले बढ़े हैं.
दक्षिण अफ्रीका के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज (NICD) ने सोमवार को इस नए वेरिएंट के बारे में बताया है. इस वेरिएंट का नाम सी.1.2 (C.1.2) है और पिछले हफ्ते क्वाजुलु नैटल रिसर्च इनोवेशन ऐंड सीक्वेंसिंग प्लैटफॉर्म ने इसको लेकर पूर्व प्रकाशित स्टडी में चेताया था, जिसकी अभी समीक्षा की जानी बाकी है.
दक्षिण अफ्रीका के अधिकांश कोरोना वायरस मामले वर्तमान में डेल्टा संस्करण के कारण हो रहे हैं जिसका पहली बार भारत में पता चला था. C.1.2 वेरिएंट ने वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित इसलिए किया क्योंकि दुनिया भर में मिले वेरिएंट्स की तुलना में इसमें लगभग दोगुना तेजी से म्यूटेशेन हुआ है. यह दक्षिण अफ्रीका में पहली लहर के दौरान सामने आए वेरिएंट C.1 से निकलकर ही बना है.
नए वेरिएंट का पता पहली बार मई में चला था, शोध में पाया गया है कि दक्षिण अफ्रीका में C.1.2 के जीनोम हर महीने बढ़ रहे हैं. यह मई में 0.2 प्रतिशत से बढ़कर जून में 1.6 प्रतिशत हो गया और जुलाई में यह दो प्रतिशत हो गया.
एनआईसीडी के वैज्ञानिकों ने सोमवार को कहा कि C.1.2 केवल "बहुत निम्न स्तरों पर मौजूद" था और यह भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी कि यह कैसे विकसित हो सकता है.
नए वेरिएंट से बचाएगा टीका?
एनआईसीडी के शोधकर्ता पेनी मूर कहती हैं, "इस स्तर पर हमारे पास यह पुष्टि करने के लिए प्रयोगात्मक डेटा नहीं है कि यह एंटीबॉडी के प्रति संवेदनशीलता के संदर्भ में कैसे प्रतिक्रिया देता है." वे आगे कहती हैं, लेकिन "हमें पूरा विश्वास है कि दक्षिण अफ्रीका में जो टीके लगाए जा रहे हैं, वे हमें गंभीर बीमारी और मौत से बचाते रहेंगे."
अब तक C.1.2 दक्षिण अफ्रीका के सभी नौ प्रांतों के साथ-साथ चीन, मॉरीशस, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में पाया गया है.
तेजी से हो रहा बदलाव
हालांकि इस वेरिएंट की फ्रीक्वेंसी इतनी नहीं है कि यह "चिंता के स्वरूपों या रुचि के स्वरूपों" के लिए योग्यता हासिल कर पाए. जैसे कि अधिक संक्रामक डेल्टा और बीटा वेरिएंट्स में देखने को मिला. ये दोनों वेरिएंट्स अफ्रीका में पिछले साल के आखिर में पाए गए थे.
दक्षिण अफ्रीका अब तक 27 लाख मामलों के साथ महाद्वीप का सबसे ज्यादा प्रभावित देश है, कोरोना के कारण दक्षिण अफ्रीका में 81,830 लोग मारे जा चुके हैं. अब एक नए वेरिएंट ने वैज्ञानिकों के लिए नई चिंता पैदा कर दी है. C.1.2 में 44-59 के बीच बदलाव आए हैं जो कि वुहान में मिले वायरस से कहीं अधिक है.
एए/वीके (एएफपी, एपी)
अफगानिस्तान में काबुल के हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को तालिबान ने अपने नियंत्रण में ले लिया है. अमेरिका का आखरी विमान अफगानिस्तान से जा चुका है और 20 साल लंबा उसका अभियान खत्म हो गया है.
सोमवार रात को अमेरिका का आखिरी विमान अफगानिस्तान से रवाना हो गया. इसके साथ ही 20 साल लंबा उसका अभियान खत्म हुआ और काबुल हवाई अड्डे पर तालिबान ने नियंत्रण कर लिया, जिसने हाल ही में अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है.
अमेरिकी सेना ने ऐलान किया कि उसके सभी सैनिक अब अफगानिस्तान से जा चुके हैं. सेंट्रल कमांड के जनरल केनेथ मकैंजी ने कहा, "मैं यहां अफगानिस्तान से निकासी पूरी हो जाने की घोषणा के लिए आया हूं.”
15 अगस्त को तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया था और उसके साथ ही काबुल हवाई अड्डे पर लोगों का जमावड़ा शुरू हो गया था, जो देश छोड़कर जाना चाहते थे. पिछले दो हफ्तों में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने एक लाख 22 हजार लोगों को अफगानिस्तान से निकाला है.
तालिबान ने किया आजादी का ऐलान
ऐसी खबरें हैं कि आखिरी अमेरिकी विमान के जाने के बाद अफगानिस्तान में जश्न मनाया गया. राजधानी काबुल में खुशी में हवा में गोलियां दागी गईं.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने एक ट्वीट कर कहा, "आज रात अफगानिस्तान समयानुसार 12 बजे बाकी बचे अमेरिकी सैनिक भी काबुल से चले गए और हमारा देश पूरी तरह आजाद हो गया.”
एएफपी के संवाददाताओं ने बताया है कि उन्होंने कई चेकपोस्ट पर खुशी में गोलीबारी की आवाजें सुनीं. ऐसे कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किए जा रहे हैं जिनमें तालिबान को हवा में गोलीबारी करते देखा जा सकता है.
अमेरिका मदद जारी रहेगी
अभी भी बड़ी तादाद में ऐसे लोग अफगानिस्तान में हैं, जो देश से निकलना चाहते हैं. हालांकि, वे छह परिवार सुरक्षित अमेरिका लौट गए हैं हैं जो अमेरिका में शरणार्थी के रूप में बस चुके हैं. वे गर्मियों की छुट्टियों में अफगानिस्तान आए थे और फंस गए थे. सैन डिएगो में एक स्कूल के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि वे लोग सुरक्षित लौट आए हैं. हालांकि ऐसे कम से कम दो परिवार अब भी अफगानिस्तान में हैं. इनमें कजोन वैली यूनियन स्कूल डिस्ट्रिक्ट के छात्र शामिल हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा है कि अमेरीकियों, अफगानों और उन सभी की मदद लगातार जारी रहेगी जो देश छोड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि 200 से कम अमेरिकी ही अब अफगानिस्तान में बचे हैं. उन्होंने कहा कि काबुल में अमेरिकी दूतावास निकट भविष्य में बंद रहेगा और वहां से काम कर रहे दूतावास के अधिकारी अब कतर में दोहा से काम करेंगे.
अमेरिकी सेना के मुताबिक अफगानिस्तान से उड़े आखिरी चंद विमानों में कोई अमेरिकी नागरिक नहीं था. अमेरिका अब बाकी बचे लोगों को निकालने के लिए कूटनीतिक तरीके अपनाएगा.
अमेरिकी सैन्य उपकरण बंद
अमेरिकी सेना ने सोमवार को आखिरी विमान के जाने से पहले अपने अफगानिस्तान में छूटे सारे उपकरणों और हथियारों को आदि को स्थायी तौर पर बंद कर दिया है ताकि उन्हें इस्तेमाल ना किया जा सके.
जनरल मकैंजी ने बताया कि 73 विमानों को अयोग्य कर दिया गया. उन्होंने कहा, "वे विमान अब कभी उड़ाए नहीं जा सकेंगे. कोई उनका इस्तेमाल नहीं कर सकता. वैसे भी उनमें से ज्यादातर ऐसे थे जो किसी मिशन पर इस्तेमाल नहीं हो सकते. फिर भी, अब उन्हें कभी उड़ाया नहीं जा सकता.”
रिपोर्टः वीके/एए (रॉयटर्स, एएफी, डीपीए)
जर्मनी के आम चुनावों से चार हफ्ते पहले चांसलर पद के तीनों उम्मीदवारों ने एक टीवी बहस के दौरान एक-दूसरे का सामना किया. इनमें से किस उम्मीदवार ने अंगेला मैर्केल की जगह लेने के लिए सबसे मजबूत चुनौती पेश की?
डॉयचे वेले पर क्रिस्टॉफ स्ट्राक की रिपोर्ट
इस निर्णायक मुकाबले का लोगों को उत्सुकता से इंतजार था. 26 सितंबर को जर्मनी के मतदाता एक ऐसी नई सरकार चुनने के लिए मतदान करेंगे, जिसकी मुखिया अंगेला मैर्केल नहीं होंगी. वे 16 सालों से चांसलर के पद पर रहने के बाद इस बार के चुनावों में हिस्सा नहीं ले रही हैं. इसी क्रम में उनका स्थान लेने के लिए दावेदारी करने वाले तीन उम्मीदवार प्राइम टाइम डिबेट में आमने-सामने आए.
हाल ही में हुए ओपिनियन पोल्स के नतीजों के मुताबिक मैर्केल की सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू/सीएसयू) और जूनियर गठबंधन पार्टनर, सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) के बीच 21 फीसदी और 24 फीसदी के साथ कांटे की टक्कर है, जबकि ग्रीन पार्टी भी ज्यादा पीछे नहीं है. ऐसे में यह भी हो सकता है कि अगली सरकार के गठन के लिए तीनों पार्टियां को साथ आना पड़े और तभी जरूरी बहुमत हासिल किया जा सके.
इस हालात में चांसलर पद के तीनों ही उम्मीदवारों को तेजी से अपनी स्थिति और मजबूत करने की जरूरत है. सीडीयू/सीएसयू के कैंडिडेट आर्मिन लाशेट जर्मनी के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के मुख्यमंत्री हैं और चुनावों में अपनी स्थिति बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ओलाफ शॉल्त्स (एसपीडी) इस समय देश के वित्त मंत्री और वाइस-चासंलर हैं. उनकी हालिया लोकप्रियता रेटिंग में बढ़त देखी गई है. और अनालेना बेयरबॉक, जो ग्रीन पार्टी की को-चेयर हैं, वे अपने प्रचार अभियान के शुरुआती दिनों के झटकों से उबरने की कोशिश कर रही हैं.
अफगानिस्तान
अभी टीवी बहस शुरु हुए सिर्फ पांच मिनट ही हुए थे कि तीनों राजनेता अफगानिस्तान के मुद्दे पर भिड़ गए. विवाद के केंद्र में थी, जर्मन सैन्य बलों यानी बुंडसवेयर की स्थिति. जिसके बारे में तीनों ही उम्मीदवारों का विचार यह था कि इसके पास फंड और पर्याप्त हथियारों की कमी है.
सबसे पहले लाशेट ने ओलाफ शॉल्त्स के खिलाफ मोर्चा खोला और उनकी एसपीडी पर जर्मन सेना के आधुनिकीकरण के मुख्य तरीके सैन्य ड्रोन को रोकने का आरोप लगाया. शॉल्त्स ने सीडीयू और फ्री मार्केट समर्थक फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (FDP) की 2013 तक सत्ता में रही पूर्व सरकार पर सैन्य बलों के बजट और हथियारों पर इंवेस्ट करने में नाकाम रहने के लिए पलटवार किया.
शॉल्त्स ने दावा किया कि उनके केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान उन्होंने बुंडसवेयर के बजट में सबसे बड़ी बढ़ोतरी की है और यह अब करीब 50 बिलियन यूरो या 43 खरब रुपये से ज्यादा हो चुका है.
वहीं ग्रीन पार्टी की अनालेना बेयरबॉक, जो कभी किसी सरकारी पद पर नहीं रही हैं, वे यह बताने को काफी उत्सुक दिखी कि वे अफगानिस्तान के मामले में मौजूदा गठबंधन को विफल क्यों पाती हैं. उन्होंने बताया, जून में उनकी पार्टी के बुंडसवेयर के और स्थानीय सहायकों को अफगानिस्तान से निकालने के प्रस्ताव को सत्ताधारी गठबंधन ने नहीं माना था. "यह एक आपदा थी, जिसे आते हुए देखा जा सकता था."
कोविड महामारी
कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के मुद्दे पर तीनों ही उम्मीदवारों ने वैक्सीनेशन के महत्व पर जोर दिया. हालांकि अनिवार्य वैक्सीनेशन को लागू करने के मुद्दे पर उनमें अंतर दिखा. सिर्फ बेयरबॉक ने इसका समर्थन किया.
तीनों कैंडिडेट से पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कोविड-19 से जुड़े प्रतिबंधों के बारे में सवाल किया गया- "जिनके पास कोविड-19 टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट है, या जो कोविड-19 से छह महीने के अंदर स्वस्थ हुए हैं, या जिन्हें दो हफ्ते या उससे पहले ही वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं, उन्हें ही ट्रेन में यात्रा की अनुमति दी जाए?" शॉल्त्स और बेयरबॉक इस नियम को लागू करने के पक्ष में थे. लाशेट ने खुद को इस सवाल से दूर कर लिया और तर्क दिया कि ऐसे किसी भी नियम को लागू कराना आसान नहीं होगा.
लाशेट ने उन आरोपों को खारिज किया, जिनमें उन पर अपने राज्य में लगातार कोरोना वायरस महामारी से गलत तरह से निपटने की बात कही गई है. जर्मनी भर में महामारी की चौथी लहर फैल रही है, वहीं उनके राज्य में मामले खासकर ज्यादा हैं. उन्होंने जोर दिया कि वे संक्रमण से जुड़ी अलग-अलग स्थितियों से उचित रूप से निपटे हैं.
जलवायु परिवर्तन से लड़ाई
तीनों ही उम्मीदवारों ने रिन्यूएबल एनर्जी और जलवायु संरक्षण कार्यक्रमों को और बढ़ावा देने की शपथ ली लेकिन इससे जुड़े उनके विचारों, तेजी और तरीकों में अंतर रहा. लाशेट और शॉल्त्स ने रोक और प्रतिबंध जैसे तरीकों का स्पष्ट तौर पर विरोध किया. शॉल्त्स ने जर्मनी को 2045 तक कार्बन मुक्त राज्य बनाने की बात कही. उन्होंने तर्क दिया, "कार्बन-मुक्त अर्थव्यवस्था की राह में समय लगता है. हमें यह समझना होगा कि ऐसा रातोंरात नहीं किया जा सकता."
लाशेट ने कहा, "हमें अब शुरु हो जाना चाहिए और गति पकड़ लेनी चाहिए, लालफीताशाही कम कर देनी चाहिए और प्रक्रिया को तेज कर देना चाहिए." उन्होंने कहा, ऐसा करते हुए, सरकार को बैन और प्रतिबंधों पर कम और नये प्रयोगों पर ज्यादा निर्भर रहना चाहिए. लाशेट ने ग्रीन पार्टी पर उद्योग विरोधी नजरिया रखने का आरोप लगाया और चेताया कि कड़े नियम उद्योगों को जर्मनी से बाहर कर देंगे. उन्होंने चेतावनी दी, "स्ट्रील इंडस्ट्री भारत या चीन चली जाएगी."
ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार ने अपने विरोधियों पर अक्षम और ईमानदार नहीं होने का आरोप लगाते हुए उनकी आलोचना की. बेयरबॉक ने कहा, "मुझे यह सुनने में बहुत डरावना लगता है. आप किसी चीज को सिर्फ इसलिए बैन नहीं करना चाहते क्योंकि चुनाव अभियान पर इसका बुरा असर होगा." बेयरबॉक ने तेजी से रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा देने का सुझाव दिया और 2030 तक इंटरनल कंबशन इंजन पर रोक लगाए जाने का प्रस्ताव रखा, और यह भी कहा कि सभी नई इमारतों की छत पर सोलर पैनल लगाने की बाध्यता होनी चाहिए.
इस मामले पर उन्होंने अंतत: कहा, "अगर हम अगली संघीय सरकार को क्लाइमेट न्यूट्रैलिटी के लिए प्रतिबद्ध नहीं कर सके तो हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या होगी."
टैक्स
बिजनेस समर्थक कंजरवेटिव उम्मीदवार लाशेट ने अपने सेंटर-लेफ्ट एसपीडी और ग्रीन उम्मीदवारों पर टैक्स बढ़ोतरी की योजना बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि यह ऐसे समय में हानिकारक होगा, जब देश कोरोना वायरस महामारी से उबरने की कोशिश कर रहा है.
हालांकि शॉल्त्स ने जोर दिया कि खासकर ज्यादा कमाई करने वालों पर 3 फीसदी की टैक्स की बढ़ोतरी की जा सकती है, जो उपयुक्त होगी. बेयरबॉक ने इस पर सहमति जताई और इस बात पर बल दिया कि इन सबसे बढ़कर कम आय वाले और सिंगल पेरेंट्स के लिए करों में कटौती की जानी चाहिए.
किसे मिले सबसे ज्यादा नंबर?
बेयरबॉक ने लाशेट पर पहले से तैयार तर्क दोहराने का आरोप लगाया, जबकि लाशेट ने बेयरबॉक पर लोकप्रिय जुमले बोलकर नंबर बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. हालांकि शॉल्त्स इससे अलग रहे और अपने आपको किसी गहमागहमी में नहीं फंसने दिया.
इसके बाद जनमत शोध कंपनी फोर्सा ने एक ओपिनियन पोल कराया, जिसमें 2500 लोग शामिल हुए. जिनमें से 36 फीसदी ने शॉल्त्स को सबसे आगे रखा. जबकि 30 फीसदी ने बेयरबॉक और केवल 25 फीसदी ने लाशेट को सबसे आगे बताया.
पिछले दो दशकों से जर्मनी में शीर्ष उम्मीदवारों के बीच लाइव टीवी बहस एक आम बात हो गई है. अक्सर इसमें सरकार के वर्तमान प्रमुख को उसके प्रतिद्वंदी के सामने खड़ा किया जाता है. लेकिन यह साल अलग है क्योंकि युद्ध बाद के जर्मन इतिहास में पहली बार कोई मौजूदा चांसलर फिर से चुने जाने के लिए प्रचार नहीं कर रही हैं. जबकि यह हाई-प्रोफाइल बहसें 'डुअल्स' यानी दो लोगों के बीच होने वाली मानी जाती थी, इस साल पहली बार इसमें तीन उम्मीदवार शामिल रहे, इसलिए इसे 'ट्रिएल' नाम दिया गया है (जो अभी तक शब्दकोश में भी नहीं है).
इस बहस के दो संस्करण अभी होने हैं: एक 12 सितंबर को और दूसरा 19 सितंबर को आयोजित किया जाएगा. ये तीनों राजनेता निर्णायक मुकाबले के दूसरे और तीसरे भाग में फिर से आमने-सामने होंगे. (dw.com)
पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान शाहिद अफ़रीदी सोशल मीडिया पर एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं.
शाहिद अफ़रीदी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है जिसमें वो तालिबान की तारीफ़ करते नज़र आ रहे हैं.
वीडियो में अफ़रीदी ये कहते दिख रहे हैं कि तालिबान इस बार सकारात्मक सोच के साथ लौटा है.
पाकिस्तानी पत्रकार नाइला इनायत ने एक वीडियो ट्वीट किया है जिसमें अफ़रीदी पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं, "बेशक तालिबान आए हैं और बड़े पॉज़िटिव फ़्रेम ऑफ़ माइंड के साथ आए हैं. ये चीज़ हमें पहले नज़र नहीं आई थीं. महिलाओं को काम करने की इजाज़त है, उन्हें राजनीति में आने की इजाज़त मिल रही है."
अफ़रीदी ने कहा, "तालिबान क्रिकेट को सपोर्ट कर रहे हैं, श्रीलंका के हालात की वजह से इस बार सिरीज़ नहीं हो सकी, लेकिन मैं समझता हूँ कि तालिबान क्रिकेट को बहुत ज़्यादा पसंद करते हैं."
पत्रकार नाइला इनायत ने वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा कि अफ़रीदी को तालिबान का अगला प्रधानमंत्री होना चाहिए.
अफ़रीदी के इस बयान पर लोगों ने काफ़ी चुटकी ली है.
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्विटर पर लिखा, "हां, तालिबान वही सकारात्मकता लेकर आया है, जैसे हर बार अफ़रीदी के बल्लेबाज़ी के लिए उतरने पर उनके कप्तान को होती थी. वह चमत्कार की उम्मीद करते थे, लेकिन 10 में से नौ बार ब्रेनफ़ेल हो जाता था."
क्रिकेटर अफ़रीदी
अफ़रीदी को उनकी आक्रामक बल्लेबाज़ी के लिए जाना जाता है. उन्होंने 398 वन मुक़ाबले खेले और सात हज़ार के क़रीब रन बनाए, लेकिन उनका बल्लेबाज़ी औसत 23 से कुछ अधिक ही रहा.
हैंडल @HKZ_506 ने लिखा, "दो साल पहले उन्होंने एक किताब लॉन्च की थी और बरखा को इंटरव्यू दिया था. तब उन्होंने कहा था कि वो अपनी बेटियों को कोई खेल खेलने या संगीत की इजाज़त नहीं देंगे. वो तालिबान से अलग नहीं हैं."
मनीष मुंद्रा ने लिखा, "बिल्कुल. वो वहाँ भी 20-20 लीग शुरू कर सकते हैं. तालिबान प्रो लीग."
मेजर पूनिया ने ट्वीट किया है-"मिलिए तालिबान प्रेमी शाहिद अफ़रीदी से जो खुले तौर पर तालिबान का समर्थन करते हैं. एक ख़ूंख़ार आतंकी संगठन जो पूरी तरह से मानवता और महिलाओं की आज़ादी के ख़िलाफ़ है."
पाकिस्तानी मूल के और अब कनाडा में रह रहे पत्रकार और लेखक तारेक फ़तेह ने ट्वीट किया, "देखिए, पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफ़रीदी काबुल में तालिबान के आतंकी राज का बचाव कर रहे हैं. अफ़रीदी इसलिए उनकी तारीफ़ कर रहे हैं कि क्योंकि वो तालिबान के क्रिकेट प्रेम को इस बात का सबूत मान रहे हैं कि वो महिलाओं को काम करने की इजाज़त देंगे."
अफ़रीदी अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे हैं. हाल ही उन्होंने पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आयोजित हो रही क्रिकेट प्रीमियर लीग को भी अपना समर्थन दिया था. (bbc.com)
चीन में अब 18 साल से कम उम्र के बच्चे एक तय समय और दिन ही वीडियो गेम खेल सकेंगे.
चीन के वीडियो गेम नियामक ने कहा है कि ऑनलाइन गेमर्स जिनकी उम्र 18 साल से कम है उन्हें शुक्रवार, वीकेंड और छुट्टियों वाले दिन सिर्फ़ एक घंटे ही वीडियो गेम खेलने की अनुमति होगी.
नेशनल प्रेस एंड पब्लिकेशन एडमिनिस्ट्रेशन ने सरकारी समाचार एजेंसी शिंहुआ को बताया कि वीडियो गेम खेलने की अनुमति केवल रात 8 बजे से रात 9 बजे के बीच होगी.
गेमिंग कंपनियों को भी निर्देश दिया गया है कि इस समय सीमा से इतर बच्चों को वीडियो गेम खेलने से रोकें. इस महीने की शुरुआत में सरकारी मीडिया आउटलेट ने ऑनलाइन गेम को "आध्यात्मिक अफ़ीम" कहा था.
बच्चों के घंटे तय होने के साथ ही ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की निगरानी भी बढ़ायी जाएगी. नियामक ने अपने आदेश में कहा है कि इस बात की जांच की जाएगी कि जो नियम लागू किए गए हैं, उनका पालन हो रहा है या नहीं.
इससे पहले बच्चों के लिए प्रति दिन 90 मिनट ऑनलाइन गेमिंग की अनुमति थी. इसके साथ ही छुट्टी वाले दिन के लिए तीन घंटे का समय सीमित किया गया था.
चिंता क्यों हुई?
नियामक का यह क़दम युवाओं पर बढ़ते गेमिंग के प्रभाव के कारण उपजी चिंता को दर्शाता है.
सरकार नियंत्रित इकोनॉमिक इंफ़ॉर्मेशन डेली ने एक महीने पहले अपने एक लेख में दावा किया था कि बहुत से किशोर ऑनलाइन गेमिंग के आदी हो गए हैं और इसका उन पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है. इस लेख का चीन की कुछ सबसे बड़ी ऑनलाइन गेमिंग फ़र्मों के शेयरों मूल्यों पर साफ़ असर दिखाई दिया था.जुलाई महीने में चीन की सबसे बड़ी गेमिंग कंपनी Tencent ने घोषणा की थी कि वह रात दस बजे से सुबह आठ बजे के बीच गेम खेलने वाले बच्चों को रोकने के लिए फ़ेशियल रिकग्निशन (चेहरे की पहचान) शुरू कर रही है. यह क़दम इस आशंका के बाद उठाया गया था कि बच्चे नियमों को दरकिनार करने के लिए एडल्ट आईडी का इस्तेमाल कर रहे हैं.
चीन के करोड़ों युवाओं के लिए शायद यह अच्छी ख़बर नहीं होगी.
चीनी अधिकारी लंबे समय से युवाओं में गेमिंग की लत और दूसरी नुकसानदेह ऑनलाइन गतिविधियों के बारे में चिंता ज़ाहिर करते रहे हैं.
चीन पूंजी और प्रौद्योगिकी के विस्तार के साथ-साथ देश की युवा पीढ़ी पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव को लेकर शंका ज़ाहिर करता रहा है.
अलीबाबा, दीदी और टेनसेंट जैसे चीन के टेक दिग्गजों पर भी इस विषय को लेकर व्यापक कार्रवाई की गई है . साथ ही गेमर्स के लिए नए नियम लागू किये गए हैं.
अभिभावकों की प्रतिक्रिया
इन नए नियमों को लागू करके चीनी सरकार युवाओं के बीच "सकारात्मक ऊर्जा" का संचार करने और "सही मूल्यों" के बारे में शिक्षित करने की उम्मीद कर रही है.
एक ओर जहां कई चीनी माता-पिता गेमिंग प्रतिबंध की सराहना कर रहे हैं वहीं कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से इन नियमों को सरकार का हस्तक्षेप बताकर इसको "अनुचित" और "मनमाना" कहा है.
एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी में कहा गया है कि मैं कब शौचालय जाऊं, कब खाना खाऊं और कब बिस्तर पर जाऊं आप ये भी क्यों नहीं तय कर देते हैं. क्यों नहीं इसके लिए भी नियम बना देते हैं. (bbc.com)
अमेरिकी सेना का कहना है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ते समय काबुल एयरपोर्ट पर रह गए अपने विमानों और सैन्य गाड़ियों को बेकार कर दिया है ताकि तालिबान उनका इस्तेमाल ना कर सकें.
अमेरिकी सेंट्रल कमान के प्रमुख जनरल केनेथ मैकेंज़ी ने कहा कि उनके सैनिकों ने 73 एयरक्राफ़्ट, 70 बख़्तरबंद गाड़ियों और 27 हम्वी वाहनों को निष्क्रिय कर दिया.
उन्होंने कहा, ये एरक्राफ़्ट दोबारा कभी नहीं उड़ेेंगे, उन्हें कोई इस्तेमाल नहीं कर सकेगा.
अमेरिकी सैनिकों के काबुल छोड़ने के बाद अमेरिकी अख़बार लॉस एंजेल्स टाइम्स के एक रिपोर्टर ने एयरपोर्ट का एक वीडियो पोस्ट किया है.
इसमें दिखता है कि तालिबान के लोग एयरपोर्ट के हैंगर में जाकर अमेरिकी विमानों का मुआयना कर रहे हैं.
अमेरिका ने साथ ही अपने अत्याधुनिक रॉकेट डिफ़ेंस सिस्टम को भी निष्क्रिय कर दिया है जो वो काबुल एयरपोर्ट पर छोड़ आया है.
इसी सी-रैम सिस्टम से अमेरिकी सेना ने सोमवार इस्लामिक स्टेट के एक रॉकेट हमले को नाकाम किया था.
इससे पहले पिछले कुछ सप्ताह से ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि तालिबान लड़ाके बड़ी संख्या में अमेरिका में बने सैन्य हथियारों और वाहनों के साथ देखे जा रहे हैं.
इन्हें असल में अमेरिकी सेना ने अफ़ग़ानिस्तान की सेना को दिया था, मगर उन्होंने बड़ी आसानी से समर्पण कर दिया जिसके बाद ये हथियार और वाहन तालिबान के हाथों में चले गए. (bbc.com/hindi)
अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए लोगों के परिवार के एक सदस्य ने बीबीसी को बताया है कि हमले में छह बच्चों सहित उनके परिवार के 10 सदस्यों की मौत हो हुई है.
इन सभी लोगों की जान रविवार को उनके घर में खड़ी एक कार में हुए विस्फोट के कारण गई है.
अमेरिकी सेना ने कहा था कि उसने इस्लामिक स्टेट समूह की अफ़ग़ानिस्तान शाखा से जुड़े कम से कम एक व्यक्ति को ले जा रही एक कार को निशाना बनाया गया था. अमेरिका ने ये भी कहा था कि ड्रोन हमले की वजह आसपास के लोग प्रभावित हुए होंगे.
बीबीसी को पता चला है कि मारे गए लोगों में से कुछ ने पहले अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए काम किया था और उनके पास अमेरिकी वीज़ा भी था.
मारे जाने वाली सबसे छोटी बच्ची सुमाया की उम्र महज़ दो साल थी और सबसे बड़े बच्चे फ़रज़ाद की उम्र सिर्फ़ 12 साल थी.
मरने वालों के एक रिश्तेदार रामिन यूसुफी ने कहा, "यह ग़लत है, यह एक क्रूर हमला है और यह ग़लत जानकारी के आधार पर हुआ है."
एक अन्य रिश्तेदार एमाल अहमदी ने बीबीसी को बताया कि हमले में उनकी दो साल की बेटी की मौत हो हुई है.
अहमदी ने कहा कि उन्होंने और उनके परिवार के सदस्यों ने अमेरिका जाने के लिए अर्ज़ी दी थी और वो एयरपोर्ट जाने के लिए फ़ोन कॉल का इंतज़ार कर रहे थे.
जिन लोगों ने अमेरिका जाने की अर्ज़ी दी थी, उनमें नासिर भी शामिल थे. नासिर अमेरिकी सेना के साथ दुभाषिए के रूप में काम कर चुके थे. अहमदी कहते हैं कि अमेरिका ने "एक ग़लती की. ये एक बहुत बड़ी ग़लती थी."
आम लोग कैसे मारे गए, अभी नहीं मालूम
अमेरिकी सेना की सेंट्रल कमांड ने कहा है कि वे घटना की जांच कर रहे हैं. लेकिन फ़िलहाल वो ये साफ़ तौर नहीं बता पा रहे हैं कि इन लोगों की मौत कैसे हुई है.
सेंट्रल कमांड ने एक बयान में कहा है कि ड्रोन हमले के बाद कई "शक्तिशाली विस्फोट" हुए थे.
उनके मुताबिक, "अंदर बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री थी जिसके फटने की वजह और अधिक लोगों की जान गई होगी."
अमेरिकी सेना ने इससे पहले कहा था कि वो काबुल के हमीद करज़ई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को 'इस्लामिक स्टेट इन ख़ुरासान' नाम के संगठन से ख़तरे को ख़ात्मा करने में सफल रही है.
पिछले गुरुवार को काबुल हवाई अड्डे के बाहर एक आत्मघाती हमले में 100 से अधिक अफ़ग़ान नागरिकों और 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई थी. इस हमले की ज़िम्मेदारी 'इस्लामिक स्टेट इन ख़ुरासान' ने ही ली थी.
जान गँवाने वाले सभी लोग अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने वाली फ़्लाइट्स में से एक में सवार होने की उम्मीद कर रहे थे ताकि वो तालिबान के क़ब्ज़े वाले अफ़गानिस्तान से दूर निकल सकें.
31 अगस्त की डेडलाइन
जैसे-जैसे काबुल हवाई अड्डे को खाली करने की 31 अगस्त की डेडलाइन करीब आ रही थी, अमेरिका ने बार-बार एयरपोर्ट के आस-पास हमले की चेतावनी दी थी.
सोमवार को एक अधिकारी ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को बताया कि एक अमेरिकी मिसाइल रोधी प्रणाली ने काबुल के ऊपर से हवाईअड्डे की ओर दाग़े गए रॉकेटों को रोका है.
स्थानीय समाचार संस्थानों के वीडियो और तस्वीरों में काबुल की छतों पर धुंआ उठता दिख रहा हैऔर सड़क पर जलती हुई कार दिखाई दे रही है.
व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन को रॉकेट हमले के बारे में जानकारी दी गई।
प्रेस सचिव जेन साकी ने एक बयान में कहा, "राष्ट्रपति को सूचित किया गया था कि काबुल हवाई अड्डे पर ऑपरेशन बिना रुके जारी है. उनके उस आदेश पालन हो रहा है जिसमें कमांडो को अपनी फ़ोर्स की हिफ़ाज़त के लिए जो भी ज़रूरी कदम उठाने और उन्हें दोगुना करने को कहा था."
सोमवार की घटना से अब तक किसी भी अमेरिकी या अफ़ग़ान के मरने की सूचना नहीं मिली है.
अमेरिकी सेना ने हवाई अड्डे को किसी भी संभावित हमले से बचाने के लिए एंटी-रॉकेट और मोर्टार सिस्टम स्थापित किया है. (bbc.com)