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राहुल गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार उसकी नाकामियों को लेकर हमला बोला है। उन्होंने ट्वटी कहा, कोरोना काल में भाजपा सरकार ने एक से एक ख़याली पुलाव पकाए: 21 दिन में कोरोना को हरायेंगे, आरोग्य सेतु ऐप सुरक्षा करेगा, 20 लाख करोड़ का पैकेज, आत्मनिर्भर बनो, सीमा में कोई नहीं घुसा, स्थिति संभली हुई है, लेकिन एक सच भी था, आपदा में ‘अवसर’ #PMCares”
कोरोना काल में भाजपा सरकार ने एक से एक ख़याली पुलाव पकाए:
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 16, 2020
▪️21 दिन में कोरोना को हरायेंगे
▪️आरोग्य सेतु ऐप सुरक्षा करेगा
▪️20 लाख करोड़ का पैकेज
▪️आत्मनिर्भर बनो
▪️सीमा में कोई नहीं घुसा
▪️स्थिति संभली हुई है
लेकिन एक सच भी था:
आपदा में ‘अवसर’ #PMCares
बेंगलुरु पुलिस के केंद्रीय अपराध ब्यूरो ने चन्दन ड्रग मामले में मंगलवार को बॉलीवुड अभिनेता विवेक ओबेरॉय के साले और दिवंगत पूर्व मंत्री जीवराज अल्वा के बेटे आदित्य अल्वा के स्वामित्व वाली संपत्तियों पर छापेमारी की। पुलिस ने आदित्य के स्वामित्व वाले रिसॉर्ट्स पर भी छापेमारी की। कथित तौर पर वह यहां पार्टियां आयोजित करता था, जिनमें कन्नड़ फिल्म उद्योग के कई फिल्मी सितारे हिस्सा लेते थे।
बता दें कि आदित्य अल्वा तब से फरार है, जब से पुलिस ने चन्दन स्टार रागिनी द्विवेदी के घर पर छापे मारे थे। वहीं इस मामले में गिरफ्तार रागिनी द्विवेदी को सोमवार को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था। वह शहर के बाहरी इलाके में स्थित परप्पना अग्रहारा जेल में है।
वहीं, केंद्रीय अपराध ब्यूरो के मुताबिक, आदित्य अल्वा इस मामले में पांचवां आरोपी बना है। वह एक प्रभावशाली पारिवारिक पृष्ठभूमि से है। उसके दिवंगत पिता जीवराज अल्वा अपने समय के सबसे शक्तिशाली मंत्रियों और नेताओं में से एक थे। उन्हें दिवंगत मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े का दाहिना हाथ माना जाता था। दिवंगत जीवराज अल्वा फंडिंग इकट्ठा करने के स्किल के लिए जाने जाते थे।
वहीं आदित्य की मां नंदिनी अल्वा की गिनती भी राज्य के प्रतिष्ठित लोगों में होती है। वह एक प्रसिद्ध नृत्यांगना और इवेंट ऑर्गनाइजर हैं। वह बेंगलुरु हब्बा (बेंगलुरु फेस्ट) के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। इस फेस्ट को 1999-2004 के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री एस एम कृष्णा के कार्यकाल के दौरान लॉन्च किया गया था। इससे बेंगलुरु को अपनी सांस्कृतिक प्रतिभा का प्रदर्शन करने में मदद मिली।(navjivan)
नई दिल्ली, जेएनएन। कंगना रनोट ने एक बार फिर बॉलीवुड पर निशाना साधा है और इस बार बेहद तीखे शब्दों में इंडस्ट्री पर वार किया है। कंगना ने कहा कि दुनियाभर में इस इंडस्ट्री का मज़ाक उड़ाया जाता है। कंटेंट के नाम पर यहां अधिकतर वाहियात फ़िल्में बनती हैं।
उन्होंने दाऊद की मिसाल देते हुए कहा कि पैसा तो अंडरवर्ल्ड डॉन ने भी कमाया, लेकिन इज़्ज़त कमाने के लिए कोशिश करनी पड़ती है। इस हमले में कंगना करण जौहर को भी नहीं भूलीं। उन्होंने कहा कि इंडस्ट्री सिर्फ़ करण या उके पापा ने खड़ी नहीं की है। कंगना ने यह सब ट्वीट फ़िल्म एक्टर से निर्माता बने निखिल द्विवेदी से नोकझोंक में किये।
कंगना ने एक ट्वीट के जवाब में लिखा- ''इंडस्ट्री सिर्फ़ करण जौहर/उसके पापा ने नहीं बनाई। बाबा साहेब फाल्के (दादा साहेब फाल्के) से लेकर हर कलाकार और मजदूर ने बनाई है। उस फौजी ने, जिसने सीमाओं को बचाया। उस नेता ने, जिसने संविधान की रक्षा की। उस नागरिक ने, जिसने टिकट ख़रीदा और दर्शक का किरदार निभाया। इंडस्ट्री करोड़ों भारतवासियों ने बनाई है।''
कंगना के इस ट्वीट के जवाब में निखिल द्विवेदी ने लिखा- ''इस तर्क से फ़िल्म जगत के भी एक-एक व्यक्ति ने सारे भारतवर्ष का निर्माण किया है। हर चीज में हमारा भी उसी तरह योगदान है। आपको बनाने में भी। आपकी फिल्मों कि टिकट भी हमने खरीदे हैं। मगर कल को आप कुछ गलत करें या सही तो हम सम्पूर्ण फिल्मजगत को ना तो दोषी ठहरा सकते हैं। ना दाद दे सकते हैं।''
निखिल के इस जवाब पर कंगना ने बॉलीवुड को आड़े हाथों लेते हुए लिखा- ''क्या निर्माण किया? आइटम नम्बर्ज़ का? अधिकतर वाहियात फ़िल्मों का? ड्रग्स कल्चर का? देशद्रोह और टेररिज़्म का? बॉलीवुड पर दुनिया हंसती है, देश का हर जगह मखौल बनाया जाता है, पैसे और नाम तो दाऊद ने भी कमाया है, मगर इज़्ज़त चाहिए तो उसे कमाने की कोशिश करो काली करतूतें छुपाने की नहीं।''
निखिल ने फिर सवाल उठाया- ''अगर यह इतनी ही वाहियात जगह थी तो आपको यहां किस चीज ने आकर्षित किया कि आप इतना सब छोड़ कर इतनी मुसीबतें सहने के बाद भी यहां डटी रहीं? कुछ तो सही देखा होगा ना आपने भी? वही सही हमें भी दिखता है। काली करतूतों को ज़रूर उजागर कीजिये जैसे कि हर उद्योग की होनी चाहिए। हम आपका समर्थन करेंगे।''
इसका जवाब कंगना ने यूं दिया- ''जी मैं आकर्षित हुई, क्योंकि जो माफिया यहां लोगों पर अत्याचार और जुल्म कर रही है, उसकी पोल एक दिन खुलनी थी और खुल गयी।''
इस पर निखिल ने लिखा- ''आप भी जानती हैं, यह सत्य नहीं है। आप यहां उन्हीं अच्छी चीज़ों से आकर्षित हुईं, जिनसे हम सब होते हैं। मैं भी आप ही की तरह बाहर से आया था, मगर आप जितनी सफलता नहीं मिली। आप में टैलेंट और मेहनत का जज़्बा मुझसे ज्यादा था/है। मगर ना मुझे सफल होने से किसी ने रोका था, ना आपको। तभी आप इतनी हुईं।
इस पर कंगना ने निखिल की बात से सहमित जताते हुए उन्हें दोहराया- ''आप सच कह रहे हैं, हम सब अपने लिए ही जीते हैं। जो भी करते हैं, अपने लिए ही करते हैं, मगर कभी-कभी हम में से कुछ एक को ज़िंदगी इतना सताती है कि वो हर ख़ौफ़ से आज़ाद हो जाते हैं, ज़िंदगी के मायने बदल जाते हैं। मक़सद बदल जाते हैं, ऐसा भी होता है, यह भी एक सच है।''
जया के वीडियो पर भड़कीं कंगना रनोट
दरअसल, मंगलवार को राज्यसभा में वेटरन एक्ट्रेस जया बच्चन ने अपनी स्पीच में फ़िल्म इंडस्ट्री की ड्रग्स को लेकर मज़म्मत करने के लिए सांसद रवि किशन को आड़े हाथों लिया था। जया का यह वीडियो इंटरनेट पर ख़ूब वायरल हुआ।
इस वीडियो को रीट्वीट करते हुए कंगना ने ट्वीट किया था कि अगर कंगना की जगह जया की बेटी श्वेता बच्चन को कम उम्र में पीटा और मॉलेस्ट किया गया होता तो भी क्या वही बात कहतीं। अगर अभिषेक ने हैरासमेंट की शिकायत की होती और एक दिन फंदे पर झूलते हुए पाये जाते तो भी क्या वही बात कहतीं। हमारे लिए भी कुछ दया दिखाइए।
कंगना के इस ट्वीट पर समाजवादी पार्टी से जुड़े एक शख़्स ने लिखा था- ''कंगना जी, आप संघर्षों को गाली देकर, तुच्छ बताकर, सबके ऊपर निशाना साधकर आगे बढ़ना चाहती हैं? करण जौहर हों या अन्य फ़िल्म निर्माता, सभी लोगों की सामूहिक मेहनत से यह भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री खड़ी हुई है। कोई भी इंडस्ट्री आपकी तरह सबको गाली देकर 1-2 दिन में खड़ी नहीं हो जाती।''(jagran)
पटना, 16 सितम्बर (आईएएनएस)| एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में सबसे ज्यादा दागी विधायक हैं। इसके बाद दूसरा नंबर कांग्रेस का है और सबसे कम दागी विधायक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हैं। इस रिपोर्ट से पता चला है कि 41 प्रतिशत राजद नेताओं पर आपराधिक आरोप हैं, वहीं कांग्रेस के 40 फीसदी नेताओं पर ऐसे आरोप हैं। इसके बाद जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के 37 फीसदी और भाजपा के सबसे कम 35 प्रतिशत नेताओं पर आपराधिक आरोप हैं।
रिपोर्ट के ये नतीजे उन हलफनामों के आधार पर निकाले गए हैं, जो 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान उम्मीदवारों ने दाखिल किए थे।
हत्या जैसे गंभीर आरोप को लेकर बात करें तो 11 विधायकों पर हत्या और 30 विधायकों के खिलाफ हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं। 5 विधायक महिलाओं के साथ क्रूरता बरतने और 1 विधायक दुष्कर्म का आरोपी है।
धन-संपत्ति को लेकर भी इस रिपोर्ट में खुलासे किए गए हैं। इसके अनुसार 240 विधायकों में से 67 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं। खगरिया सीट से जेडीयू की विधायक पूनम देवी बिहार विधानसभा की सबसे अमीर विधायक हैं, उनके पास 41 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति है। वहीं भागलपुर निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा के पास 40 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वहीं रानीगंज से जेडीयू के विधायक अचिमित रिशिदेव के पास केवल 9.6 लाख रुपये की संपत्ति है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 240 विधायकों में से 134 ने ग्रेजुएशन से ऊपर भी पढ़ाई की है, जबकि 96 विधायक ग्रेजुएट हैं और 9 विधायक सिर्फ साक्षर हैं।
वाशिंगटन, 16 सितंबर (आईएएनएस)| अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और चिल्ड्रन हॉस्पिटल एसोसिएशन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से करीब 550,000 बच्चे इससे संक्रमित हुए हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की मंगलवार की रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 27 अगस्त से 10 सितंबर तक कुल 72,993 बच्चों के नए मामले सामने आए हैं, जो दो सप्ताह में बच्चों के मामलों में 15 फीसदी की वृद्धि है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, अब तक संयुक्त राज्य में बच्चों के कोविड-19 संक्रमण के कुल 549,432 मामले सामने आए हैं और कुल मामलों में बच्चों के मामले 10 प्रतिशत भागीदार हैं।
जनसंख्या में प्रति 100,000 बच्चों पर कुल मामले 729 है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, अस्पतालों में रिपोर्ट किए गए बच्चे के मामले 0.6 से 3.6 प्रतिशत और कोविड-19 से हुई मौतों के 0 से 0.3 प्रतिशत हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, "इस समय, ऐसा प्रतीत होता है कि कोविड-19 के कारण बच्चों में गंभीर बीमारी दुर्लभ है। हालांकि, राज्यों को कोविड-19 मामलों, टेस्ट, अस्पताल, और मृत्यु और उम्र के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट प्रदान करते रहना चाहिए, ताकि बच्चों के स्वास्थ्य पर कोविड-19 के प्रभावों पर निगरानी रखी जा सके।
एक दशक के दौरान आई महामारी के मुकाबले कोविड-19 महामारी 6 गुणा अधिक घातक साबित हो रही है
- Richard Mahapatra
15 सितंबर 2020 की रात 10 बजे भारत में कोविड-19 के मामलों ने 50 लाख का आंकड़ा पार कर लिया। हालांकि यह आंकड़ा महामारी के लिए कोई मील का पत्थर नहीं है, लेकिन इस पड़ाव में यह जानना जरूरी है कि एक देश में कैसे इस आंकड़े तक पहुंचा और इस महामारी के लिए सरकार की रणनीति और तैयारियां कैसे ध्वस्त हो गई।
कोविड-19 इंडिया डॉट ओआरजी के रात 10 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में कोरोना संक्रमण के मामले 50 लाख 4 हजार हो चुके हैं। भारत अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा बड़ा देश है, जिसे कोविड-19 महामारी ने बुरी तरह प्रभावित किया है। दुनिया भर में कुल 2.90 करोड़ लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुके हैं और इनमें से लगभग 17 फीसदी भारत में हैं। कोरोना से दुनिया भर में 922,252 लोगों की मौत हो चुकी हैं, इनमें से 82 हजार से अधिक लोग भारत से हैं।
30 जुलाई 2020 के बाद कोई ऐसा दिन नहीं गुजरा, जब भारत में रोजाना 50 हजार से अधिक नए मामले न आए हों। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मामले कितने तेजी से बढ़ रहे थे, लेकिन 6 सितंबर 2020 के बाद भारत में रोजाना 80 हजार से अधिक मामले आने लगे और चार दिन से लगातार 90 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं।
जनवरी के अंत तक भारत में कोविड-19 के केवल पांच मामले थे, तब तक कोविड-19 को महामारी भी घोषित नहीं किया गया था और भारत ने केवल चीन से आने वाले हवाई यात्रियों के आगमन पर पाबंदी लगाने की बात की थी। लेकिन इसके 227 दिन भारत में कोविड-19 मरीजों की संख्या 50 लाख से अधिक पहुंच गई और अमेरिका की तरह भारत भी तेजी से संक्रमण फैलने वाले देश बन गया।
इसी तरह 8 जून से शुरू हुए सप्ताह के बाद भारत में हर सप्ताह 1 लाख से अधिक केस आने लगे और अगस्त के मध्य में देश में पांच लाख से अधिक मामले पहुंच गए।
इस तरह 21वीं सदी के लिए कोविड-19 सबसे घातक महामारी साबित होने वाली है। इससे पहले 2009 में दुनिया में स्वाइन फ्लू महामारी फैली थी। मौसमी फ्लू बनने से पहले स्वाइन फ्लू की वजह से 2,85,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इसका मतलब यह है कि इसके बाद बेशक दुनिया ने इस बीमारी के बारे में बात नहीं की, लेकिन इसकी वजह से मौतों का सिलसिला जारी है।
पिछली महामारी की वजह से भारत में 2009-10 में 36,240 लोग प्रभावित हुए थे, जबकि 1,833 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद भी स्वाइन फ्लू का संक्रमण और मौतों का सिलसिला जारी है। 2012 से लेकर 2019 के बीच स्वाइन फ्लू से 1,38,394 लोग प्रभावित हुए और 9,150 लोगों की मौत हुई। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के तहत चल रहे इंटिग्रेटेड डिजीज सर्वलांस प्रोग्राम के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 2020 के पहले दो माह के दौरान 1,100 लोग संक्रमित हुए और 18 लोग मौत हुई। हालांकि बीमारी के केंद्र अलग-अलग रहे। 2009 में दिल्ली, महाराष्ट्र और राजस्थान, जबकि 2017 में गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश और 2019 में फिर से दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में सबसे अधिक मामले सामने आए।
कुल मिलाकर, स्वाइन फ्लू महामारी का प्रकोप 2009 में शुरू हुआ और 10 साल के दौरान लगभग 11,600 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि कोविड-19 केवल 9 माह में पिछली महामारी से लगभग 600 फीसदी अधिक मौतों का कारण बन चुकी है।
यहां तक कि सामान्य बीमारियों या संक्रमण से तुलना की जाए तो कोविड-19 इस मामले में भी रिकॉर्ड तोड़ चुकी है। इतना ही नहीं, कोरोना संक्रमण के कुल मामलों की संख्या पिछले छह साल के मलेरिया मामलों से भी अधिक हो चुकी है।(downtoearth)
इम्यूनिटी किसी एक वस्तु को खाकर या न खाकर नहीं बढ़ायी जा सकती और न कोई एक अच्छा-बुरा आचार उसके लिए जिम्मेदार ही है
- Skand Shukla
इम्यूनिटी यानी प्रतिरक्षा शब्द जितना विज्ञान में इस्तेमाल होता है , उससे कहीं अधिक आम बोलचाल में। वैज्ञानिकों और डॉक्टरों से अलग आम सामान्य जन इन शब्दों को ढीले-ढाले ढंग से प्रयोग करते हैं। आपको बार-बार ज़ुकाम होता है ? लगता है आपकी प्रतिरोधक क्षमता कम है! आप को कमजोरी महसूस होती है? डॉक्टर से अपनी इम्यूनिटी की जाँच कराइए और पूछिए कि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए क्या खाएं, कैसे रहें , कैसा जीवन जिएं!
इम्यूनिटी को समझने के लिए शरीर के एक मूल व्यवहार को समझना जरूरी है। सभी जीवों के शरीर निज और पर का भेद समझते हैं। वे जानते हैं कि क्या उनका अपना है और क्या पराया। शरीरों के लिए अपने-पराये की यह पहचान रखनी बेहद जरूरी होती है। अपनों की रक्षा करनी है, परायों से सावधान रहना है। जो पराये आक्रमण करने आये हैं --- उनसे लड़ना है , उन्हें नष्ट करना है।
शरीर का प्रतिरक्षक तन्त्र यानी इम्यून सिस्टम इसे अपनत्व-परत्व के भेद को बहुत भली-भांति जानता है। उदाहरण के लिए, मनुष्य के शरीर की प्रतिरक्षक कोशिकाओं को पता चल जाता है कि अमुक कोशिका अपने रक्त की है और अमुक बाहर से आई जीवाणु-कोशिका है।
फिर वह अपने परिवार की रक्त-कोशिका से अलग बर्ताव करता है और बाहर से आयी जीवाणु-कोशिका से अलग। यह भिन्न-भिन्न बर्ताव प्रतिरक्षा-तन्त्र के लिए बेहद जरूरी है। जब तक पहचान न हो सकेगी , रक्षा भला कैसे होगी !
प्रतिरक्षा-तन्त्र को लोग जितना सरल समझ लेते हैं, उससे यह कहीं बहुत-ही ज्यादा जटिल है। इम्यूनिटी किसी एक वस्तु को खाकर या न खाकर नहीं बढ़ायी जा सकती और न कोई एक अच्छा-बुरा आचार उसके लिए जिम्मेदार ही है।
प्रतिरक्षा-तन्त्र में अनेक रसायन हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाएं हैं। इन सब का कार्य-कलाप भी अलग-अलग है। यह एक ऐसे हजार-हजार तारों वाले संगीत-यन्त्र की तरह जिसके एक तार को समझकर या बजाकर उत्तम संगीत न समझा जा सकता है और न बजाया ही।
जटिलता के अलावा प्रतिरक्षा-तन्त्र का दूसरा गुण सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होना है। प्रतिरक्षक कोशिकाएं हर जगह गश्त लगाती हैं या पायी जाती हैं: रक्त में, त्वचा के नीचे , फेफड़ों व आंतों में, मस्तिष्क व यकृत में भी। इस जटिल सर्वव्याप्त तन्त्र के दो मोटे हिस्से हैं: पहला अंतस्थ प्रतिरक्षा-तन्त्र और दूसरा अर्जित प्रतिरक्षा-तन्त्र। इम्यून सिस्टम के इन दोनों हिस्सों को समझकर ही हम इसके कार्यकलाप का कुछ आकलन कर सकते हैं।
अन्तःस्थ का अर्थ है जो पहले से हमारे भीतर मौजूद हो। अंग्रेजी में इसे इनेट कहते हैं। प्रतिरक्षा-तन्त्र के इस हिस्से में वह संरचनाएं, वह रसायन और वह कोशिकाएं आती हैं , जो प्राचीन समय से जीवों के पास रहती रही हैं। यानी वह केवल मनुष्यों में ही हों, ऐसा नहीं है; अन्य जीव-जन्तुओं में भी उन-जैसी संरचनाएं-रसायन-कोशिकाएं पाई जाती हैं, जो संक्रमणों से शरीर की रक्षा करती हैं।
उदाहरण के तौर पर हमारी त्वचा की दीवार और आमाशय में पाए जाने वाले हायड्रोक्लोरिक अम्ल को ले लीजिए। ये संरचना और रसायन अनेक जीवों में पाये जाते हैं और इनका काम उन जीवों को बाहरी कीटाणुओं से बचाना होता है। इसी तरह से हमारे शरीर के मौजूद अनेक न्यूट्रोफिल व मोनोसाइट जैसी प्रतिरक्षक कोशिकाएँ हैं। ये सभी अन्तस्थ तौर पर हम-सभी मनुष्यों के भीतर मौजूद हैं।
अन्तःस्थ प्रतिरक्षा-तन्त्र सबसे पहले किसी कीटाणु के शरीर में दाखिल होने पर उससे मुठभेड़ करता है। पर यह बहुत उन्नत और विशिष्ट नहीं होता। इस तन्त्र की कोशिकाओं की अलग-अलग शत्रुओं की पहचान करने की ट्रेनिंग नहीं होती।
शत्रु को मुठभेड़ में नष्ट कर देने के बाद ये कोशिकाएं इस युद्ध की कोई स्मृति यानी मेमोरी भी नहीं रखतीं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अब तनिक प्रतिरक्षा-तन्त्र के दूसरे हिस्से अर्जित प्रतिरक्षा-तन्त्र को समझिए।
अर्जित का अर्थ होता है अक्वायर्ड। वह जो हमारे पास है नहीं , हमें पाना है। वह जो विरासत में नहीं मिला , बनाना पड़ेगा। प्रतिरक्षा-तन्त्र का यह अधिक उन्नति भाग है। इसके रसायन और कोशिकाएँ विशिष्ट होते हैं , यानी ख़ास रसायन और कोशिकाएं खास शत्रु-कीटाणुओं से लड़ते हैं। प्रत्येक किस्म के कीटाणुओं के शरीर में प्रवेश करने पर खास किस्म की प्रतिरक्षक कोशिकाओं का विकास किया जाता है, जो कीटाणुओं से लड़कर उन्हें नष्ट करती हैं। लड़ाई में इन कीटाणुओं को हारने के बाद ये कोशिकाएं अपने भीतर इन हराये गये कीटाणुओं की स्मृति रखती हैं, ताकि भविष्य में दुबारा आक्रमण होने पर और अधिक आसानी से इन्हें हरा सकें। लिम्फोसाइट-कोशिकाएँ अर्जित प्रतिरक्षा-तन्त्र की प्रमुख कोशिकाओं का प्रकार हैं।
अन्तःस्थ और अर्जित , प्रतिरक्षा-तन्त्र के दोनों हिस्से मिलकर के शत्रु-कीटाणुओं से लड़ते हैं। किसी संक्रमण में अन्तःस्थ प्रतिरक्षा अधिक काम आती है , किसी में अर्जित प्रतिरक्षा , तो किसी में दोनों। इतना ही नहीं कैंसर-जैसे रोगों में भी प्रतिरक्षा तन्त्र की कोशिकाएं लड़कर उससे शरीर को बचाने का प्रयास करती हैं। कैंसर-कोशिकाएं यद्यपि शरीर के भीतर ही पैदा होती हैं , किन्तु उनके सामने पड़ने पर प्रतिरक्षा-तन्त्र यह जान जाता है कि ये कोशिकाएं वास्तव में अपनी नहीं हैं , बल्कि परायी व हानिकारक हैं। ऐसे में प्रतिरक्षा-तन्त्र कैंसर-कोशिकाओं को तरह-तरह से नष्ट करने का प्रयास करता है।
वहीं, अर्जित प्रतिरक्षा-तन्त्र का विकास संक्रमण से हो सकता है और वैक्सीन लगा कर भी। संक्रमण से होने वाला विकास प्राकृतिक है और टीके ( वैक्सीन ) द्वारा होने वाला विकास मानव-निर्मित होता है।
वर्तमान कोविड-19 पैंडेमिक ( वैश्विक महामारी ) एक विषाणु सार्स-सीओवी 2 के कारण हो रही है। इस विषाणु के शरीर में प्रवेश करने के बाद प्रतिरक्षा-तन्त्र के दोनों हिस्से अन्तःस्थ व अर्जित प्रतिरक्षा-तन्त्र सक्रिय हो जाते हैं। वे विषाणुओं से भरी कोशिकाओं को तरह-तरह से नष्ट करने की कोशिश करते हैं। चूंकि यह विषाणु नया है , इसलिए ज़ाहिर है कि अन्तःस्थ प्रतिरक्षा-तन्त्र इससे सुरक्षा में बहुत योगदान नहीं दे पाता। ऐसे में अर्जित प्रतिरक्षा तन्त्र पर ही यह ज़िम्मा आ पड़ता है कि वह उचित कोशिकाओं व रसायनों का विकास करके इस विषाणु से शरीर की रक्षा करे।
मनुष्य के प्रतिरक्षा-तन्त्र के लिए यह संक्रमण नया है , वह उसे समझने और फिर लड़ने में लगा हुआ है। ऐसे में उचित टीके ( वैक्सीन ) के निर्माण से हम प्रतिरक्षा-तन्त्र की उचित ट्रेनिंग कराकर अर्जित प्रतिरक्षा को मजबूत कर सकते हैं। उचित प्रशिक्षण पायी योद्धा-कोशिकाओं के पहले से मौजूद होने पर शरीर के भीतर जब सार्स-सीओवी 2 दाखिल होगा , तब ये कोशिकाएँ उसे आसानी से नष्ट कर सकेंगी। किन्तु सफल वैक्सीन के निर्माण व प्रयोग में अभी साल-डेढ़ साल से अधिक का समय लग सकता है , ऐसा विशेषज्ञों का मानना है।
अपने व पराये रसायनों व कीटाणुओं में भेद , जटिलता और शरीर-भर में उपस्थिति और अन्तःस्थ व अर्जित के रूप में दो प्रकार होना प्रतिरक्षा-तन्त्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ हैं। इस प्रतिरक्षा तन्त्र को न आसानी से समझा जा सकता है और न केवल प्रयासों से हमेशा स्वस्थ रखा जा सकता है। प्रतिरक्षा-तन्त्र काफ़ी हद तक हमारी आनुवंशिकी यानी जेनेटिक्स पर भी निर्भर रहता है। कोशिकाओं के भीतर स्वस्थ जीन ही आएँ , इसके लिए हम बहुत-कुछ कर नहीं सकते। नीचे बताये गये चार विषयों पर किन्तु हम ज़रूर ध्यान दे सकते हैं ; साथ ही आसपास के पर्यावरण से प्रदूषण को घटाकर प्रतिरक्षा-तन्त्र को स्वस्थ रखने का साझा प्रयास भी कर सकते हैं।
1 ) सही और सन्तुलित भोजन का सेवन।
2 ) निरन्तर शारीरिक व मानसिक व्यायाम।
3 ) उचित निद्रा व तनाव से मुक्ति।
4 ) नशे से दूरी।
यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस तरह से कोई केवल पढ़ने से पास नहीं हो सकता , उसी तरह केवल कोशिश करने से इम्यून सिस्टम को मज़बूत नहीं किया जा सकता है। क्योंकि पढ़ना पास होने की कोशिश है , पास होने की गारंटी नहीं। उसी तरह प्रतिरक्षा-तन्त्र को सही खा कर , ठीक से सो कर , नशा न करके, तनाव से दूर रहकर व व्यायाम द्वारा स्वस्थ रहने की केवल कोशिश की जा सकती है।
व्यक्तिगत और सार्वजनिक पर्यावरण को यथासम्भव स्वस्थ रखना ही प्रतिरक्षा-तन्त्र के सुचारु कामकाज के लिए हमारा योगदान हो सकता है। आनुवंशिकी तो फिर जैसी है , वैसी है ही।
(लेखक डॉ.स्कन्द शुक्ल चिकित्सा विज्ञान और प्रतिरक्षा विषय के विशेषज्ञ हैं।)(downtoearth)
भारत अपनी जीडीपी का 1.28 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है, जबकि चीन 3 प्रतिशत। ऐसे में अब हमें अपना एजेंडा बदलने की जरूरत है
- Sunita Narain
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जोर देकर कहा है कि अमेरिका में कोविड-19 के कारण होनेवाली मौतों की संख्या इतनी अधिक नहीं हैं। ऐसा उन्होंने उस दिन कहा जिस दिन इस वायरस के कारण अमेरिका में हुई मौतों की संख्या 1,60,000 को पार कर गई। हालांकि ट्रम्प कितने भी गलत क्यों न प्रतीत हों, उनकी बात में सच्चाई अवश्य है। यदि उनकी ही तरह आप भी अमेरिका में हो रही मौतों को कुल मामलों की तुलना में देखें, यानि केवल मृत्यु दर पर ध्यान दें, तो यह सच है कि अमरीका की हालत कई अन्य देशों से बेहतर है। अमेरिका में, मृत्यु दर 3.3 प्रतिशत के आसपास है, यह यूके और इटली में 14 प्रतिशत और जर्मनी में लगभग 4 प्रतिशत है। अतः वह सही भी है और पूरी तरह से गलत भी। अमेरिका में संक्रमण नियंत्रण से बाहर है। दुनिया की 4 प्रतिशत आबादी वाला देश 22 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार है। लेकिन अंततः बात इस पर आकर टिकती है कि आप किन बिंदुओं को चुनते हैं और किन आंकड़ों को प्रमुखता देते हैं।
यही कारण है कि भारत सरकार कहती आ रही है कि हमारी हालत भी अधिक बुरी नहीं है। भारत में मृत्यु दर कम (2.1 प्रतिशत) तो है ही, साथ ही यह अमेिरका की मृत्यु दर से भी कम है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे यहां संक्रमण की दर भले ही अधिक है लेकिन लोगों की उस हिसाब से मृत्यु नहीं हो रही है । लेकिन फिर सरकार यह भी कहती है कि भारत एक बड़ा देश है और इसलिए हमारे यहां होने वाले संक्रमण एवं मौतों की संख्या तुलनात्मक रूप से अधिक होगी। यही कारण है कि भारत में रोजाना औसतन 60,000 नए मामले (6 अगस्त तक, 2020 के पहले हफ्ते तक) आने के बावजूद, दस लाख आबादी पर कुल 140 मामले ही हैं और हम यह कह सकते हैं कि दुनिया के अन्य देशों के बनिस्पत हमारे यहां हालात नियंत्रण में हैं। अमेरिका में दस लाख पर 14,500 मामले हैं, ब्रिटेन में 4,500 और सिंगापुर में भी दस लाख पर 9,200 मामले हैं।
लेकिन हमारे यहां मामलों की संख्या इसलिए भी कम हो सकती है क्योंकि भारत में टेस्टिंग की दर बढ़ी अवश्य है लेकिन यह अब भी हमारी कुल आबादी की तुलना में नगण्य है। 6 अगस्त तक भारत ने प्रति हजार लोगों पर 16 परीक्षण किए जबकि अमेरिका ने 178 किए। यह स्पष्ट है कि हमारे देश के आकार और हमारी आर्थिक क्षमताओं को देखते हुए, अमेरिकी परीक्षण दर की बराबरी करना असंभव होगा। लेकिन फिर अपनी स्थिति को बेहतर दिखाने के लिए अमेिरका के साथ तुलना करने की क्या आवश्यकता है।
ऐसे में सवाल यह है कि हमसे क्या गलतियां हुई हैं और आगे क्या करना चाहिए। मेरा मानना है कि यही वह क्षेत्र है जिसमें भारत ने अमेरिका से बेहतर काम किया है। हमारी सरकार ने शुरू से ही मास्क पहनने की आवश्यकता पर जोर दिया और कभी इस वायरस को कमतर करके नहीं आंका है। हमने दुनिया के अन्य हिस्सों में सफल रहे सुरक्षा नुस्खों का पालन करने की पुरजोर कोशिश की है।
भारत ने मार्च के अंतिम सप्ताह में एक सख्त लॉकडाउन लगाया जिसकी हमें बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ी है। इस लॉकडाउन की वजह से हमारे देश के सबसे गरीब तबके को जान माल की भारी हानि उठानी पड़ी है। जो भी संभव था हमने किया। लेकिन साथ ही यह भी सच है कि वायरस हमसे जीत चुका है या कम से कम फिलहाल तो जीत रहा है। हमें हालात को समझने की आवश्यकता है और इस बार विषय बदलने और लीपापोती से काम नहीं चलेगा।
इसका मतलब है कि हमें अपनी रणनीति का विश्लेषण करके अर्थव्यवस्था को फिर से चालू करने और करोड़ों गरीब जनता तक नगद मदद पहुंचाने की आवश्यकता है। देश में व्यापक संकट है, भूख है, बेरोजगारी है, चारों ओर अभाव का आलम है। इसकी भी लीपापोती नहीं की जा सकती।
हमारे समक्ष शीर्ष पर जो एजेंडा है वह है सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और उससे भी महत्वपूर्ण, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के मुद्दे का समाधान। हमारे सबसे सर्वोत्तम शहरों में भी गरीब लोग रहते हैं। ऐसा न होता तो हमारे गृह मंत्री सहित हमारे सभी उच्च अधिकारी जरूरत पड़ने पर निजी स्वास्थ्य सेवाओं की मदद क्यों लेते। संदेश स्पष्ट है, भले ही हम इन प्रणालियों को चलाते हों, लेकिन जब अपने खुद के स्वास्थ्य की बात आती है तो हम उन सरकारी प्रणालियों पर भरोसा नहीं करते। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि उन राज्यों, जिलों और गांवों में, जहां संक्रमण में इजाफा हो रहा है, वहां स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा न के बराबर है।
यह भी एक तथ्य है कि सरकारी प्रणालियां अपनी क्षमता से कहीं अधिक बोझ उठाते-उठाते थक चुकी हैं। वायरस के जीतने के पीछे की असली वजह यही है। डॉक्टर, नर्स, क्लीनर, नगरपालिका के अधिकारी, प्रयोगशाला तकनीशियन, पुलिस आदि सभी दिन-रात काम कर रहे हैं और ऐसा कई महीनों से चला आ रहा है। सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में शीघ्र निवेश किए जाने की आवश्यकता है। लेकिन इसका मतलब यह भी है कि अब समय आ चुका है जब सरकार को इन एजेंसियों और संस्थानों के महत्व को स्वीकार करना चाहिए। हम सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी भी करें और समय आने पर वे निजी सेवाओं से बेहतर प्रदर्शन करें, यह संभव नहीं है।
अतः हमारी आगे की रणनीति ऐसी ही होनी चाहिए। हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों और नगरपालिका शासन में भारी निवेश करने की आवश्यकता है। हमें इस मामले में न केवल आवाज उठानी है बल्कि इसे पूरा भी करना है। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च करने की हमारी वर्तमान दर न के बराबर है। जीडीपी का लगभग 1.28 प्रतिशत।
हमारी तुलना में, चीन अपनी कहीं विशाल जीडीपी का लगभग 3 प्रतिशत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है और पिछले कई वर्षों से ऐसा करता आया है। हम इस एजेंडे को अब और नजरअंदाज नहीं कर सकते। कोविड-19 का मतलब है स्वास्थ्य को पहले नंबर पर रखना। इसका मतलब यह भी है कि हमें अपना पैसा वहां लगाना चाहिए जहां इसकी सर्वाधिक आवश्यकता हो। यह स्पष्ट है कि हमें बीमारियों को रोकने के लिए बहुत कुछ करना होगा। दूषित हवा, खराब भोजन एवं पानी और स्वच्छता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों पर लगाम लगाना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। अब बात हमारे देश, हमारे स्वास्थ्य की है।(downtoearth)
वैक्सीन पर लोग कितना भरोसा करते हैं, इस बारे में लांसेट ने 149 देशों के 284,381 व्यक्तियों लोगों के बीच एक सर्वेक्षण किया
- DTE Staff
2015 और 2019 के बीच कई देशों में वैक्सीन के प्रति झिझक की प्रवृत्ति बढ़ी है। 10 सितंबर 2020 को द लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है। अध्ययन के शोधकर्ताओं ने यह समझने की कोशिश की है कि दुनिया भर के लोग टीकों के प्रभाव, सुरक्षा और महत्व के बारे में कैसा महसूस करते हैं।
यह सर्वेक्षण 149 देशों के 284,381 व्यक्तियों के बीच किया गया। सर्वेक्षण के मुताबिक, दूसरे देशों के मुकाबले भारत में सबसे अधिक लोगों ने माना कि वैक्सीन के टीके प्रभावी रहते हैं। 2019 में भारत में 84.26 प्रतिशत माना कि टीका प्रभावी रहते हैं। अल्बानिया इस संबंध में सबसे निचले स्थान पर है, जिसमें 14.2 प्रतिशत लोग मानते हैं कि टीके प्रभावी रहते हैं।
युगांडा के सबसे अधिक लोगों (87.24 प्रतिशत ) ने माना कि वैक्सीन के टीके सुरक्षित रहते हैं, जबकि जापान में सबसे कम 17.13 प्रतिशत लोगों ने टीका की सुरक्षा पर विश्वास जताया।
जापानियों में वेक्सीन के प्रति असुरक्षा की भावना के बारे में लेखकों ने कहा कि ऐसा हयूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) वैक्सीन की वजह से हो सकता है। यह वैक्सीन 2013 में शुरू हुआ था, जो सर्वाइकल कैंसर को रोकने के लिए था, लेकिन तब जापान के स्वास्थ्य, श्रम और कल्याण मंत्रालय ने एचपीवी वैक्सीन की सिफारिशों को निलंबित कर दिया था।
लंदन के इम्पीरियल कॉलेज की क्लैरिसा सिमास और लंदन स्कूल ऑफ हेल्थ एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के अलेक्जेंड्रे डी फिगुएरेडो इस पेपर के प्रथम संयुक्त लेखक हैं।
2019 में इराक में सबसे अधिक (95.17 प्रतिशत) लोगों ने माना कि वैक्सीन बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन अल्बानिया में सबसे कम 26.06 प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन की महत्ता को माना।
अध्ययन के लेखकों ने कहा कि कुल मिलाकर कई देशों में टीकों पर विश्वास की प्रवृत्ति घट रही है। नवंबर 2015 से दिसंबर 2019 के बीच अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और दक्षिण कोरिया में तीनों मापदंडों पर भरोसा सबसे ज्यादा गिर गया।
फिलीपींस एक बड़ा उदाहरण है, जहां टीके के प्रति विश्वास में सबसे ज्यादा कमी देखी गई है। यह देश 2015 के अंत में इस श्रेणी में 10वें स्थान पर था, लेकिन 2019 में वह 70वें स्थान से पार पहुंच गया।
इस अध्ययन के अनुसार, सनोफी एसए द्वारा निर्मित डेंगू वैक्सीन (डेंगवाक्सिया) के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यह वहां (फिलीपींस) 2017 में पेश किया गया था, लेकिन यह वैक्सीन सेहत के लिए नुकसान पहुंचाने से लगभग 850,000 बच्चों को दिया जा चुका था।
अध्ययन के लेखकों के अनुसार, इंडोनेशिया में 2015 और 2019 के बीच टीके प्रति विश्वास में एक बड़ी गिरावट देखी, जो आंशिक रूप से खसरा, कण्ठमाला, और रूबेला (एमएमआर) वैक्सीन की सुरक्षा पर सवाल उठा रहे थे। उन्होंने कहा कि धार्मिक नेताओं ने एक फतवा जारी किया, जिसमें कहा गया कि वैक्सीन में सूअरों का मांस पाया गया, इसलिए लोगों ने वैक्सीन को नकारना शुरू कर दिया।
हालांकि, केवल धर्म को ही वैक्सीन के प्रति अविश्वास का कारण नहीं माना गया, बल्कि गलत प्रचार और वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध न करा पाने के कारण भी लोगों ने वैक्सीन पर विश्वास नहीं किया।
दक्षिण कोरिया और मलेशिया में, वैक्सीन के खिलाफ ऑनलाइन अभियान चलाए गए। दक्षिण कोरिया में, एक ऑनलाइन एंटी-वैक्सीनेशन ग्रुप जिसका नाम ANAKI है ने बचपन के टीकाकरण के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया।
हालांकि, फ्रांस, भारत, मैक्सिको, पोलैंड, रोमानिया और थाईलैंड ने वैक्सीन के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया है। इन देशों में टीकों के प्रति विश्वास के साथ-साथ कई निर्धारक भी पाए गए। जैसे
- वैक्सीन पर उच्च विश्वास (66 देश)
- परिवार, दोस्तों या अन्य गैर-चिकित्सा स्रोतों से अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर भरोसा करना (43 देशों)
- विज्ञान शिक्षा का उच्च स्तर (35 देश)
- लिंग, महिलाओं के साथ पुरुषों की तुलना में किसी भी बच्चे की रिपोर्ट करने की अधिक संभावना
- आयु (युवा आयु वर्ग में आगे बढ़ने की संभावना बेहतर थी
नोवल कोरोनावायरस रोग (कोविड-19) महामारी ने दुनिया की सबसे तेज वैक्सीन बनाने की प्रक्रियाओं की शुरुआत की है, जिसके चलते लोगों में भी वैक्सीन के प्रति उम्मीद बंधी है। (downtoearth)
नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)| कोरोना काल में निर्यात के मुकाबले देश के आयात में ज्यादा गिरावट आई है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से मंगलवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में भारत का निर्यात 12.66 फीसदी घटा है जबकि आयात में 26.04 फीसदी की गिरावट रही। भारत ने बीते महीने अगस्त में 22.70 अरब डॉलर मूल्य के व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात किया जबकि एक साल पहले इसी महीने में देश से 25.99 अबर डॉलर मूल्य के व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात हुआ था। इस प्रकार, व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात में पिछले साल के मुकाबले 12.66 फीसदी की गिरावट आई।
वहीं, भारत ने इस साल अगस्त में 29.47 अरब डॉलर मूल्य का आयात किया जबकि पिछले साल इसी महीने में देश का आयात 39.85 अरब डॉलर था। इस प्रकार आयात में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले बीते महीने 26.04 फीसदी की गिरावट आई।
तेल आयात का मूल्य अगस्त महीने में 6.42 अरब डॉलर था जोकि पिछले साल के इसी महीने के 11 अरब डॉलर के मुकाबले 41.62 फीसदी कम है। भारत ने अप्रैल से अगस्त के दौरान 26.03 अरब डॉलर मूल्य का तेल आयात किया जोकि पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 53.61 फीसदी कम है।
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बीते महीने अगस्त में पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले मशीनरी, इलेक्ट्रिकल और गैर-इलेक्ट्रिकल उत्पादों के आयात में 41.58 फीसदी जबकि कोयला, कोक और ब्रिकेट आदि के आयात में 37.83 फीसदी, कार्बनिक व अकार्बनिक रसायनों के आयात में 18.36 फीसदी और इलेक्ट्रॉनिक गुड्स के आयात में 11.67 फीसदी की गिरावट आई।
व्यापार संतुलन की बात करें तो चालू वित्तवर्ष 2020-21 में अप्रैल से अगस्त के दौरान व्यापारिक वस्तुओं और सेवाओं को मिलाकर कुल व्यापार आधिक्य का आकलन 12.20 अरब डॉलर किया गया है जबकि पिछले साल 2019-20 की इसी अवधि के दौरान भारत का व्यापार घाटा 45.11 अरब डॉलर था।
मुंबई, 16 सितंबर (आईएएनएस) अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने अपने शानदार प्रदर्शनों से प्रशंसकों का खूब मनोरंजन किया है। उनके द्वारा निभाए गए किरदारों में कुछ नकारात्मक भूमिकाएं भी हैं, जैसे कि वेब सीरीज में खूंखार गैंगस्टर कालिन भैया, गैंग्स ऑफ वासेपुर में कसाई सुल्तान और सेक्रेड गेम्स में गुरुजी। उनका कहना है कि वह नकारात्मक किरदारों को बुद्धिमानी से चुनते हैं।
पंकज ने कहा, "हमारे युवा दिनों में खलनायकों को लेकर विचार सीमित था। हालांकि खलनायकों के किरदार भी कहानियों पर निर्भर करता है। पहले 'मिजार्पुर' और 'गुड़गांव' के साथ और फिर 'सेक्रेड गेम्स' में मैं मनुष्यों के काले पक्ष को उजागर करने में सक्षम रहा हूं।"
उन्होंने आगे कहा, "मैं नकारात्मक किरदारों को बुद्धिमानी से चुनता हूं।"
हालांकि अभिनेता ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि उनकी कोई भी भूमिका एक जैसी न हो।
उन्होंने कहा, "कालीन को अपनी शक्ति का नशा है, इसलिए वह अपने आत्म-मूल्य की रक्षा करने का काम करता है। मुझे खुशी है कि लेखक अद्वितीय नकारात्मक चरित्र लिख रहे हैं, जो मात्र खुंखार हंसी से ज्यादा है। मजबूत कहानियां और चरित्र ही बता पाते हैं कि वह नकारात्मक व्यक्ति ऐसा क्यों है।"
वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग के एक कार्यालय ज्ञापन के हवाले से सोशल मीडिया पर यह दावा किया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने नई नौकरियों की भर्ती पर रोक लगा दी है.
व्यय विभाग ने 4 सितंबर को इस ज्ञापन को जारी किया था. बीबीसी हिंदी के फ़ैक्ट चेक व्हाट्सऐप नंबर पर भी कई पाठकों ने इस ज्ञापन की कटिंग भेजकर इसकी सत्यता जाननी चाही है.
इस ज्ञापन में लिखा है कि सार्वजनिक और ग़ैर-विकासात्मक ख़र्चों को कम करने के लिए वित्त मंत्रालय समय-समय पर ख़र्चों के प्रबंधन के लिए निर्देश जारी करता रहा है. जिसके मद्देनज़र आर्थिक निर्देशों को तुरंत लागू किया जा रहा है.
साथ ही यह भी कहा गया है कि वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए ज़रूरी ख़र्चों को बनाए रखने के लिए यह फ़ैसला लिया जा रहा है. इसमें सभी मंत्रालयों/विभागों और उनके अधीनस्थ कार्यालयों के लिए ये निर्देश जारी किए गए थे.
इसमें पोस्टर, डायरी छापने पर प्रतिबंध के अलावा स्थापाना दिवस मनाने जैसे कार्यक्रमों पर रोक और परामर्शदाताओं की छंटनी के निर्देश दिए गए थे. हालांकि, इन सबसे अलग सबसे अधिक चर्चा हुई दूसरे पन्ने पर मौजूद निर्देशों की.
इसमें कहा गया था कि नए पदों के सृजन पर रोक रहेगी लेकिन व्यय विभाग, मंत्रालय/विभाग, अधीनस्थ कार्यालय, वैधानिक निकाय आदि चाहें तो उनकी अनुमति के बाद पदों का सृजन हो सकता है.
इसके अलावा कहा गया कि अगर कोई पद 1 जुलाई 2020 के बाद बनाया गया है और उस पर किसी की बहाली नहीं हुई है तो उसको तुरंत समाप्त कर दिया जाए.
सोशल मीडिया पर क्या कहा जा रहा?
व्यय विभाग के इस कार्यालय ज्ञापन के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर यह मुद्दा छा गया. कई अख़बारों ने इसे अपने यहां जगह दी.
एक अख़बार की कटिंग को राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि कोविड-19 के बहाने सरकारी दफ़्तरों को स्थाई कर्मचारियों से मुक्त किया जा रहा है.
मोदी सरकार की सोच -
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 5, 2020
'Minimum Govt Maximum Privatisation'
कोविड तो बस बहाना है,
सरकारी दफ़्तरों को स्थायी ‘स्टाफ़-मुक्त’ बनाना है,
युवा का भविष्य चुराना है,
‘मित्रों’ को आगे बढ़ाना है।#SpeakUp pic.twitter.com/Lu8BKjJ7bg
इसके बाद वित्त मंत्रालय के एक विभाग के कार्यालय ज्ञापन को इस तरह से सोशल मीडिया पर फैलाया जाने लगा कि केंद्र की मोदी सरकार ने सभी नौकरियों पर रोक लगा दी है.
4 सितंबर का कार्यालय ज्ञापन सोशल मीडिया पर अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है.
क्या है सच?
सोशल मीडिया पर इस कार्यालय ज्ञापन के वायरल होने के बाद वित्त मंत्रालय ने अगले ही दिन इस पर सफ़ाई जारी कर दी थी.
ज्ञापन को ट्वीट करते हुए वित्त मंत्रालय ने कहा, "भारत सरकार में पदों को भरने के लिए कोई रोक या प्रतिबंध नहीं है. बिना किसी प्रतिबंध के स्टाफ़ सेलेक्शन कमिशन (SSC), UPSC, रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड आदि की भर्तियां जारी रहेंगी."
CLARIFICATION:
— Ministry of Finance (@FinMinIndia) September 5, 2020
There is no restriction or ban on filling up of posts in Govt of India . Normal recruitments through govt agencies like Staff Selection Commission, UPSC, Rlwy Recruitment Board, etc will continue as usual without any curbs. (1/2) pic.twitter.com/paQfrNzVo5
वित्त मंत्रालय ने इसके बाद अगला ट्वीट किया कि व्यय विभाग का 4 सितंबर 2020 का सर्कुलर केवल नए पद बनाने की आंतरिक प्रक्रिया के लिए था और यह नई भर्तियों पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं डालेगा और न ही उन्हें प्रतिबंधित करेगा.
बीबीसी हिंदी के फ़ैक्ट चेक में हमने पाया है कि केंद्र सरकार की नई नौकरियों पर कोई रोक नहीं है और वित्त मंत्रालय का कार्यालय ज्ञापन केवल आंतरिक प्रक्रिया के तहत बनाए जाने वाले नए पदों के लिए था.(bbc)
ऐसा पहली बार है कि भारत में कोई महत्वपूर्ण चुनाव न होने पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक लंबे समय से देश में ही हैं
- अभय शर्मा
दुनिया भर में कोरोना वायरस का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. भारत सहित पूरी दुनिया में सवा लाख से ज्यादा लोग इसके चलते अपनी जान गवां चुके हैं. इस महामारी के चलते आम लोग ही नहीं दुनिया भर के बड़े नेताओं का भी दूसरे देशों में आना-जाना बेहद कम या फिर बंद हो गया है. भारत की तरफ से देखें तो सबसे बड़े नेताओं में विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कोरोना काल में विदेश यात्राएं की हैं. ये दोनों हाल ही में रूस और फिर ईरान की यात्रा पर गए थे. राजनाथ सिंह ने बीते जून में भी रूस की यात्रा की थी.
लेकिन, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल के दौरान विदेश का रुख नहीं किया. अगर आंकड़ों को देखें तो आज विदेश से लौटे हुए उन्हें पूरे दस महीने हो गए हैं. बीते साल 15 नवंबर को वे दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील की दो दिवसीय यात्रा से लौटे थे. इसके बाद से वे किसी भी विदेश यात्रा पर नहीं जा पाए हैं.
आइए जानते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी ने हर साल नवंबर से लेकर सितंबर तक कितने देशों की यात्राएं कीं. यह भी कि वे इससे पहले कब-कब लंबे समय तक देश में ही रुके रहे और रुकने की वजह क्या थी?
नवंबर 2014 से सितंबर 2015
नरेंद्र मोदी मई 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने थे. इसके बाद अगले चार महीनों यानी सितंबर तक उन्होंने अमेरिका सहित पांच देशों की यात्रा कर ली थी. इसके बाद उन्होंने नवंबर 2014 से लेकर सितंबर 2015 तक यानी 11 महीनों में कुल 24 देशों की यात्राएं की. नवंबर में वे म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया, फिजी और नेपाल की यात्रा पर गए. इसके बाद मार्च 2015 में उन्होंने सेशेल्स, मॉरीशस, श्रीलंका और सिंगापुर की यात्रा की. इसी साल अप्रैल में पहली बार बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने यूरोप का रुख किया और फ्रांस एवं जर्मनी की यात्रा की.
2015 की फ्रांस की यात्रा बीते दिनों काफी चर्चा में रही थी और इसे लेकर भारत में काफी सियासी घमासान हुआ था. इसकी वजह थी कि इसी यात्रा में भारत और फ्रांस के बीच रफाल लड़ाकू विमान खरीदने पर सहमति बनी थी. 2018 में फ्रांसीसी खबरिया वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का एक बयान छापा था. इसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा के दौरान भारत सरकार ने रफाल सौदे में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को शामिल करने का प्रस्ताव रखा था. हालांकि, इन विवादों का इस डील पर कोई असर नहीं पड़ा और सरकार ने इन आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि 36 विमानों की डील फाइनल हो चुकी है. इस डील के तहत ही बीते जुलाई में फ़्रांस ने पांच रफाल लड़ाकू विमानों की पहली खेप भारत को सौंप दी.
बहरहाल, 2015 के अप्रैल महीने से लेकर सितंबर तक प्रधानमंत्री ने 14 देशों की यात्राएं की. इनमें कनाडा, चीन, मंगोलिया, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश, उज्बेकिस्तान, कजाख्स्तान, रूस, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, आयरलैंड और अमेरिका शामिल हैं. अगस्त 2015 में नरेंद्र मोदी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी गए थे. उनके रूप में कोई भारतीय प्रधानमंत्री 34 साल बाद यूएई पहुंचा था.
नवंबर 2015 से सितंबर 2016
नवंबर 2015 से लेकर सितंबर 2016 तक पीएम नरेंद्र मोदी ने कुल 26 मुल्कों की यात्रा की. 2015 नवंबर में वे पहली यात्रा पर ब्रिटेन गए. इसके बाद वे इसी महीने तुर्की, मलेशिया और सिंगापुर गए. दिसंबर में उन्होंने फ्रांस, रूस और अफगानिस्तान की आधिकारिक यात्राएं की. अफगानिस्तान की इसी यात्रा के बाद प्रधानमंत्री ने एक ऐसा निर्णय लिया जिसने भारत सहित पूरी दुनिया को चौंका दिया था. 25 दिसंबर को काबुल से निकलने के बाद अचानक नरेंद्र मोदी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से मिलने लाहौर पहुंच गए. लाहौर हवाई अड्डे पर शरीफ़ ने खुद मोदी की अगवानी की. इसके बाद वे हेलीकॉप्टर से नवाज़ शरीफ़ के घर रायविंद पैलेस पहुंचे और उनकी नातिन की शादी में शरीक हुए. इसके बाद मार्च 2016 में पीएम मोदी बेल्जियम और अप्रैल में सऊदी अरब के दौरे पर गए. मार्च 2016 में वे अमेरिका में हुए परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मलेन में भी हिस्सा लेने गए थे. यह यात्रा एक दिन की थी.
इसी साल मई से लेकर सितंबर तक प्रधानमंत्री ने 15 देशों की यात्राएं कीं, इनमें अफगानिस्तान और अमेरिका दो ऐसे देश हैं जिनकी यात्रा पर प्रधानमंत्री एक साल में दूसरी बार गए. इसके अलावा वे जिन देशों की यात्रा पर गए थे, उनमें ईरान, क़तर स्विट्जरलैंड, मैक्सिको, उज्बेकिस्तान, अफ्रीका के दक्षिण में स्थित छोटे देश मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, केन्या, वियतनाम और चीन शामिल हैं. सितंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में शामिल होने लाओस गए थे.
नवंबर 2016 से सितंबर 2017
नरेंद्र मोदी के अब तक के पूरे कार्यकाल में नवंबर 2016 से लेकर सितंबर 2017 तक की समयावधि ऐसी है जब उन्होंने सबसे कम (13) देशों यात्राएं कीं. इस दौरान उन्होंने शुरूआती छह महीनों में यानी नवंबर 2016 से अप्रैल 2017 की समयावधि में केवल तीन दिन ही विदेश में गुजारे. इस दौरान उन्होंने केवल थाईलैंड और जापान का दौरा ही किया. इन छह महीनों के दौरान नरेंद्र मोदी के कम यात्रायें करने की वजह उत्तर प्रदेश के चुनाव को माना जाता है. फरवरी और मार्च 2017 में हुए इस चुनाव के लिये प्रधानमंत्री ने जनवरी से ही प्रचार करना शुरू कर दिया था.
उत्तर प्रदेश के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बड़ी जीत दिलवाने के एक महीने बाद प्रधानमंत्री ने फिर विदेश का रुख किया और अगले पांच महीनों में 11 देशों की यात्रायें की. मई में वे सबसे पहले एक दिन के लिए श्रीलंका पहुंचे फिर इसी महीने के अंत में उन्होंने जर्मनी, स्पेन और रूस की यात्रा की. 2 जून को रूस से सीधे फ्रांस का रुख किया. जून 2017 में पीएम मोदी ने कजाखस्तान, पुर्तगाल, अमेरिका और नीदरलैंड का दौरा भी किया. इस साल जुलाई में वे इजरायल और सितंबर में चीन और म्यांमार के दौरे पर गए. जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने एक दिन के लिए जर्मनी भी गए थे.
नवंबर 2017 से सितंबर 2018
नवंबर 2017 से सितंबर 2018 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे देशों का दौरा किया जहां कई दशकों से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया था. नवंबर में फिलीपींस और जनवरी में स्विटजरलैंड जाने के बाद उन्होंने फरवरी में एक के बाद एक चार मुस्लिम देशों - जॉर्डन, यूएई, फिलस्तीन और ओमान का दौरा किया. नरेंद्र मोदी के रूप में कोई भारतीय प्रधानमंत्री 58 साल बाद फिलस्तीन, 30 साल बाद जॉर्डन और 10 साल बाद ओमान पहुंचा था. इसके बाद अप्रैल में प्रधानमंत्री ने स्वीडन, ब्रिटेन, जर्मनी और चीन की यात्रा की. इस साल अगले पांच महीनों के दौरान नरेंद्र मोदी ने 10 देशों की यात्राएं की, इनमें उन्होंने नेपाल का दो बार दौरा किया.
नवंबर 2018 से सितंबर 2019
नवंबर 2018 से सितंबर 2019 के बीच पीएम मोदी 15 देशों की यात्राओं पर गये. इस दौरान कुछ देशों की यात्राओं पर वे दो बार भी गए. नवंबर 2018 में उन्होंने सिंगापुर, मालदीव और अर्जेंटीना का दौरा किया. इसके बाद फरवरी 2019 में उन्होंने दक्षिण कोरिया की दो दिवसीय यात्रा की. इसके बाद लोकसभा चुनाव के चलते अगले तीन महीने वे देश में ही रहे. लोकसभा का चुनाव निपटने के बाद जून 2019 से प्रधानमंत्री ने फिर विदेश यात्रा शुरू की और 11 देशों की यात्रायें कीं. इस दौरान उनकी जो विदेश यात्रा सुर्ख़ियों में रही थी, वह बहरीन की थी. दरअसल, नरेंद्र मोदी के रूप में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने मध्यपूर्व के इस छोटे मुस्लिम देश की सरजमीं पर अपने कदम रखे थे.
नवंबर 2019 से सितंबर 2020
बीते सालों में अगर देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय तक विदेश यात्रा पर तब नहीं गए, जब देश में कोई महत्वपूर्ण चुनाव था. ऐसा पहली बार ही हुआ है कि देश में कोई बड़ा चुनाव नहीं है और प्रधानमंत्री इतने लंबे समय से देश में हैं. कोरोना वायरस संकट के चलते बीते मार्च में उनका बांग्लादेश का दौरा रद्द हो गया था. इसके बाद मार्च में ही इसी कारण से उन्हें अपना यूरोप का दौरा भी रद्द करना पड़ा.
हालांकि, मार्च से पहले प्रधानमंत्री के विदेश न जाने की वजह जानकार कोरोना वायरस के संकट को नहीं मानते. इनके मुताबिक 15 नवंबर 2019 से लेकर फरवरी 2020 तक प्रधानमंत्री नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के चलते विदेश नहीं गए. दुनिया भर में भारत सरकार के इस कदम का विरोध हो रहा था. यही नहीं, यूरोप से लेकर अमेरिका और मध्यपूर्व से लेकर चीन तक में सत्ताधारी नेता इस कानून को लेकर नरेंद्र मोदी की आलोचना कर रहे थे. विश्लेषकों की मानें तो ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी असहज स्थिति से बचने के लिए घर में बैठना ही बेहतर समझा.(satyagrah)
मास्को/नयी दिल्ली 16 सितंबर (वार्ता) राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रूस की अध्यक्षता में मास्को में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की शिखर बैठक में पाकिस्तान द्वारा भारतीय भूभाग को प्रदर्शित करने वाला मानचित्र दर्शाये जाने पर कड़ा विरोध व्यक्त करते हुए आज बैठक का बहिष्कार किया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने यहां संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा कि रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने बदनीयती से वह काल्पनिक मानचित्र पेश किया जो उसने कुछ दिन पहले आधिकारिक तौर पर जारी किया है। यह मेज़बान द्वारा जारी परामर्श का घोर असम्मान और बैठक के नियमों का उल्लंघन था। भारतीय पक्ष उसी समय मेजबान से परामर्श करके बैठक से उठकर निकल गया।
प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तानी पक्ष बैठक को गुमराह करने वाली बातें करता रहा। राजनयिक सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान की इस हरकत से रूस भी हतप्रभ रह गया। सूत्रों के अनुसार मानचित्र में भारतीय भूभाग को पाकिस्तान का क्षेत्र दिखाया जाना एससीओ घोषणापत्र का घोर उल्लंघन है और एससीओ सदस्य देशों की संप्रभुता एवं प्रादेशिक अखंडता की सुरक्षा के स्थापित मानदंडों के विरुद्ध है।
सूत्रों ने बताया कि भारतीय पक्ष द्वारा पाकिस्तानी पक्ष के अवैध मानचित्र दिखाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की गई। रूसी पक्ष ने भी पाकिस्तानी पक्ष को ऐसा करने से रोकने की बहुत कोशिश की। रूस ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह पाकिस्तान की इस हरकत का कतई समर्थन नहीं करता है और उम्मीद जतायी कि पाकिस्तान की इस हरकत से एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी प्रभावित नहीं होगी तथा श्री डोभाल एवं रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग के सचिव निकोलई पत्रुशेव के बीच गर्मजोशी भरी मित्रता पर कोई असर नहीं होगा। श्री पत्रुशेव ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बैठक में आने के लिए उनका व्यक्तिगत रूप से आभार व्यक्त किया। श्री पत्रुशेव ने आशा व्यक्त की कि श्री डोभाल आगे अन्य कार्यक्रमों में सम्मिलित होंगे।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मंगलवार को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ) की एक मीटिंग छोड़कर अचानक चले गए.
इस वर्चुअल मीटिंग में पाकिस्तानी प्रतिनिधि डॉक्टर मोईद युसुफ़ ने अपने देश का नया राजनीतिक नक़्शा पेश किया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर को 'विवादित क्षेत्र' के तौर पर दर्शाया गया है और गुजरात के जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा बताया गया है. इससे नाराज़ होकर अजीत डोभाल मीटिंग से बाहर निकल गए.
इसके बाद एक मीडिया ब्रीफ़िंग में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने अजीत डोभाल के ग़ुस्से की पूरी कहानी बताई.
उन्होंने कहा, "अजीत डोभाल एससीओ के सदस्य देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा ले रहे थे जिसकी मेजबानी रूस कर रहा था. इस मीटिंग में पाकिस्तान ने एनएसए मोईद युसुफ़ ने जानबूझकर अपना वो 'काल्पनिक नक़्शा' दिखाया जिसका पाकिस्तान ने हाल ही में प्रचार किया था."
अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि पाकिस्तानी एनएसए का यह राजनीतिक नक़्शा मीटिंग में दिखाना 'मेजबान (रूस) के दिशानिर्देशों का अपमान और बैठक के नियमों का उल्लंघन था. अजीत डोभाल ने रूसी एनएसए से सलाह-मशविरा करने के बाद ही विरोध के तौर पर मीटिंग छोड़ी थी."
वहीं, पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ का दावा है कि शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन ने उसके नए राजनीतिक नक़्शे पर सहमत था और उसने अजीत डोभाल के विरोध को ख़ारिज कर दिया था.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पांच अगस्त की शाम यानी अनुच्छेद-370 निरस्त किए जाने के एक साल पूरे होने पर पाकिस्तान का नया राजनीतिक नक़्शा जारी किया था.
इस नक़्शे में जम्मू और कश्मीर, लद्दाख और जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया है. इस नक़्शे में गिलगित बल्टिस्तान और सर क्रीक को भी साफ़ तौर पर पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया है.
भारत ने पाकिस्तान के इस नक़्शे को ख़ारिज करते हुए कहा था कि न तो इसकी क़ोई क़ानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी कोई विश्वसनीयता है.
नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)| माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले नेपाली मूल के पर्वतारोही तेनजिंग नॉर्गे शेरपा को भारतरत्न देने की मांग उठी है। भाजपा सांसद राजू बिष्ट ने मंगलवार को लोकसभा में यह मुद्दा उठाया। भाजपा सांसद ने कहा कि तेनजिंग नॉर्गे शेरपा को अभी तक वह सम्मान नहीं मिला है, जिसके वह हकदार थे। देश ने उन्हें पद्मभूषण दिया है, लेकिन वह भारतरत्न देने के काबिल हैं। पश्चिम बंगाल की दार्जिलिंग सीट से सांसद राजू बिष्ट ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि न्यूजीलैंड के एडमंड हिलरी के साथ 29 मई 1953 को तेनजिंग शेरपा ने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहला कदम रखा था। इसके बाद उन्हें स्पेशल ओलंपिक मेडल, इरान शाह मेडल, नेपाल तारा, फ्रेंच स्पोर्ट्स मेडल सहित दुनियाभर में कई तरह के सम्मान मिले। नासा ने भी उन्हें सम्मानित किया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण दिया। लेकिन जिस तरह का उन्होंने योगदान दिया है, उस लिहाज से उन्हें भारतरत्न मिलना चाहिए। भाजपा सांसद ने दार्जिलिंग हिल्स एरिया की तरफ से तेनजिंग नॉर्गे शेरपा को भारतरत्न देने की मांग की।
तेनजिंग नॉर्गे शेरपा का जन्म 29 मई, 1914 को उत्तरी नेपाल के एक शेरपा बौद्ध परिवार में हुआ था। सन् 1933 में नौकरी की तलाश में वह पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में आए थे। फिर एक ब्रिटिश मिशन में शामिल होने के बाद उन्होंने एवरेस्ट मिशन में हिस्सा लेना शुरू किया। आखिरकार सातवें प्रयास में 29 मई, 1953 को उन्होंने न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी के साथ एवरेस्ट फतह कर दुनिया को चौंका दिया था। सन् 1933 में तेनजिंग नॉर्गे शेरपा को भारत की नागरिकता मिल गई थी।
नई दिल्ली, 16 सितंबर आईएएनएस। जेईई मेन परीक्षा के नतीजे आ चुके हैं। दिल्ली को लेकर इन नतीजों में खास बात यह रही कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले 510 बच्चों ने जेईई मेन की परीक्षा पास की है। यह संख्या पिछले साल 473 थी और इसके पिछले साल 350 थी। कोरोना के कारण आइसोलेशन में रह रहे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने छात्रों की इस कामयाबी पर संतोष जाहिर किया है। सिसोदिया ने कहा, "मुझे खुशी है कि टीम एजुकेशन की मेहनत रंग ला रही है। इन बच्चों में कई के माता पिता सिक्योरिटी गार्ड, प्रेसवाले, रिक्शा वाले और घरों में काम करने वाले सहायक आदि हैं।"
उधर, दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने मनीष सिसोदिया को संदेश भेजते हुए उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना की है। उपराज्यपाल के संदेश के जवाब में मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल का धन्यवाद किया।
जेईई मेन परीक्षा में प्रथम स्थान गुजरात के निसर्ग चड्ढा को मिला है। वहीं दूसरे नंबर पर दिल्ली के गुरुकीरत सिंह रहे। तीसरे नंबर पर हरियाणा के दिव्यांशु अग्रवाल अपना स्थान सुरक्षित रखने में कामयाब हुए।
6 सितंबर को समाप्त हुई जेईई मेन परीक्षा के लिए 8.58 लाख छात्रों ने फॉर्म भरा था। इनमें से 82 प्रतिशत से अधिक छात्रों ने जेईई की परीक्षा दी है। जो छात्र जेईई मेन की परीक्षाओं में शामिल हुए हैं, उन्हें नतीजों के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। जेईई मेन परीक्षाओं का रिजल्ट 10 सितंबर को घोषित किया गया। रिजल्ट घोषित किए जाने के बाद अब जेईई एडवांस की परीक्षा ली जाएगी।
जेईई मेन परीक्षा का नतीजा घोषित किए जाने के बाद 17 सितंबर तक छात्र जेईई एडवांस के लिए रजिस्ट्रेशन करवा सकेंगे। जेईई एडवांस की परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड 20 सितंबर को जारी होगा। जेईई एडवांस में जेईई मेन के नतीजो के आधार पर 2.5 लाख छात्रों को परीक्षा देने का मौका मिलेगा। जेईई एडवांस की परीक्षा 27 सितंबर को होगी।
जेईई परीक्षा के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने 10 लाख मास्क और 6 हजार लीटर से अधिक सेनिटाइजर तैयार कराया है। परीक्षा केंद्रों पर छात्रों को सेनिटाइजर एवं मास्क निशुल्क उपलब्ध कराए गए हैं। कोरोना के दौरान आयोजित की यह पहली बड़ी राष्ट्रीय परीक्षाएं हैं।
नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)| देश में सिर्फ चार घंटे के नोटिस पर मार्च में हुए लॉकडाउन को लेकर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने मंगलवार को सवाल उठाया तो केंद्र सरकार ने लिखित में जवाब दिया। कहा कि दुनिया के कई देशों के अनुभवों को देखने के साथ विशेषज्ञों की सिफारिश पर यह कदम उठाया गया। लोगों की आवाजाही से देश भर में कोरोना फैलने का खतरा था।
सरकार ने यह भी बताया कि अगर लॉकडाउन न होता तो फिर 14 से 29 लाख ज्यादा संक्रमण के मामले आते, वहीं 37-78 हजार ज्यादा मौतें होतीं।
दरअसल, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने पूछा था, "वे कारण क्या हैं, जिनकी वजह से 23 मार्च को मात्र चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन लगाया गया। ऐसी क्या जल्दी थी कि देश में इतनी कम अवधि में लॉकडाउन लगाया गया। क्या लॉकडाउन कोविड 19 रोकने में सफल रहा है?"
जिस पर गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने सरकार की तरफ से लिखित जवाब में कहा कि 7 जनवरी को कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद सरकार ने कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए कई उपाय किए थे, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं पर रोक, जनता को एडवाइजरी, क्वारंटीन सुविधाएं आदि शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ ने 11 मार्च 2020 को कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया था।
कुछ देशों में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई, वहीं कुछ देशों में कोरोना संक्रमण को रोका गया। दोनों तरह के देशों के बीच तुलना के बाद वैश्विक अनुभव हासिल हुए। इन सबको ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों ने सामाजिक दूरी जैसे उपायों की सिफारिश की। 16 से 23 मार्च के बीच, अधिकांश राज्य सरकारों ने स्थिति के आकलन के आधार पर आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन का सहारा लिया।
लोगों की किसी भी बड़ी आवाजाही ने देश के सभी हिस्सों के लोगों में बीमारी को बहुत तेजी से फैला दिया होता। लिहाजा वैश्विक अनुभव और देशभर में विभिन्न रोकथाम उपायों को देखते हुए दोश में कोरोना रोकने के लिए 24 मार्च को एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी।
क्या लॉकडाउन सफल रहा?
गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि देश व्यापी लॉकडाउन लगाकर, भारत ने कोविड के आक्रामक प्रसार को सफलतापूर्वक विफल कर दिया। लॉकडाउन ने आवश्यक अतिरिक्त स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को विकसित करने में देश की मदद की। मार्च 2020 की उपलब्धता की तुलना में आईसोलेशन बेडों में 22 गुना और आईसीयू बेडो में 14 गुना की बढ़ोतरी हुई। वहीं प्रयोगशालाओं की क्षमता भी दस गुना बढ़ाई गई।
अनुमान है कि लॉकडाउन के निर्णय ने महामारी के फैलने की गति को धीमा करके 14-29 लाख मामलों और 37-78 हजार मौतों को रोका है।
नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुदर्शन टीवी के संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में कथित तौर पर मुस्लिमों की घुसपैठ की साजिश पर केंद्रित कार्यक्रम पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को कलंकित करने का है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत विविधता भरी संस्कृतियों वाला देश है। मीडिया में स्व-नियंत्रण की व्यवस्था होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि टीवी पर बहस (डिबेट) के दौरान पत्रकारों को निष्पक्ष होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन टीवी के एक कार्यक्रम 'यूपीएससी जिहाद' के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सवाल उठाते हुए यह सख्त टिप्पणी की। इस टीवी कार्यक्रम के प्रोमो में दावा किया गया था कि सरकारी सेवा में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की घुसपैठ की साजिश का पदार्फाश किया जा रहा है।
शीर्ष अदालत ने कहा, "हम केबल टीवी एक्ट के तहत गठित प्रोग्राम कोड के पालन को सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं। एक स्थिर लोकतांत्रिक समाज की इमारत और अधिकारों और कर्तव्यों का सशर्त पालन समुदायों के सह-अस्तित्व पर आधारित है। किसी समुदाय को कलंकित करने के किसी भी प्रयास से निपटा जाना चाहिए।"
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा और के.एम. जोसेफ की एक पीठ ने याद दिलाया कि पत्रकार की स्वतंत्रता कोई परम सिद्धांत नहीं है। पीठ ने साथ ही यह भी कहा कि एक पत्रकार को किसी भी अन्य नागरिक की तरह ही स्वतंत्रता है और उन्हें अमेरिका की तरह कोई अलग से स्वतंत्रता नहीं है।
टीवी चैनल को फटकार लगाते हुए पीठ ने उसके वकील से कहा, "आपका मुवक्किल यह स्वीकार नहीं कर रहा है कि भारत विविध संस्कृतियों वाला देश है। आपके मुवक्किल को सावधानी के साथ अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करने की जरूरत है।"
सुदर्शन टीवी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि चैनल का कहना है कि यह कार्यक्रम राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक खोजी कहानी है।
पीठ ने कहा, "हमें उन पत्रकारों की जरूरत है, जो अपनी बहस में निष्पक्ष हैं।"
पीठ ने कहा, "कैसा उन्माद पैदा करने वाला यह कार्यक्रम है कि एक समुदाय प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश कर रहा है।" पीठ ने कहा कि इस तरह के शो लोगों को अपने टीवी से दूर कर देते हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर मीडिया को इस बात का अहसास नहीं हुआ, तो वे बिजनेस से बाहर हो जाएंगे। अदालत ने कहा, "अंत में आखिर गुणवत्ता ही मायने रखती है।"
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पत्रकारों की स्वतंत्रता सर्वोच्च है और किसी भी लोकतंत्र के लिए प्रेस को नियंत्रित करना विनाशकारी होगा।
मामले की सुनवाई जारी रहेगी।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने टीवी शो पर पूर्व-प्रसारण प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया था और केंद्र को नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि कार्यक्रम की सामग्री सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने वाली है।
नई दिल्ली, 16 सितंबर आईएएनएस। दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सद्भाव समिति को लगता है कि फेसबुक इंडिया जानबूझकर कानूनी प्रक्रिया से बचने की कोशिश कर रहा है। फेसबुक अपने ऊपर पर लगे गंभीर आरोपों की वास्तविकता का पता लगाने में सहयोग नहीं कर रहा है। समिति के मुताबिक फेसबुक भाग रहा है और उस पर लगे आरोप निराधार नहीं है।
राघव चड्ढा ने कहा, "भारत के संविधान से प्राप्त विशेष शक्तियों और विशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुए समिति ने फेसबुक इंडिया के अधिकारी को समिति के सामने पेश होने का एक और अवसर प्रदान करने का फैसला लिया है। इसके बाद भी वो उपस्थित नहीं होते हैं, तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।"
चेयरमैन राघव चड्ढा ने कहा, "कई सारे सबूत इस कमेटी के सामने पेश किए गए। यह कमेटी अपनी पिछली बैठक में इस नतीजे पर पहुंची थी कि फेसबुक के उपर कई सारे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसी साल फरवरी महीने में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे में फेसबुक की भूमिका को लेकर सवाल खड़े हुए। कुछ सबूत ऐसे रखे गए, जिसमें नजर आया कि फेसबुक ने दंगा शांत कराना तो दूर, दंगा भड़काने का काम किया। उसी के चलते कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि इतने दिनों की कार्रवाई के बाद यह बहुत जरूरी हो जाता है कि फेसबुक इंडिया के आला अधिकारियों को इस कमेटी के सामने आकर अपना बयान दर्ज कराने और उनपर लगे आरोपों का जवाब देने के लिए बुलाया जाए।"
शांति एवं सद्भाव समिति के चेयरमैन राघव चड्ढा ने कहा, "मोटे तौर पर उन्होंने इस कमिटी को यह हिदायत दी है कि हम इस नोटिस को वापस ले लें। यह विषय संसद की इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी समिति के सामने विचाराधीन है और फेसबुक के आला अधिकारी वहां पेश हुए, तो हमें इस मसले में नहीं घुसना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहने का प्रयास किया है कि क्योंकि यह कानून व्यवस्था से संबंधित मसला है। आईटी एक्ट संसद द्वारा पारित कानून है, उससे संबंधित मसला है, तो हमें इस विषय में नहीं पड़ना चाहिए।"
राघव चड्ढा ने कहा, "इस प्रकार से इस कमेटी के नोटिस का तौहीन करना और कमेटी के सामने पेश होने से इनकार कर देना, यह सीधे तौर पर दिल्ली विधानसभा की तौहीन है और दिल्ली विधानसभा को कौन चुनता है। इसमें कौन लोग बैठते हैं। यह दिल्ली का मतदाता तय करता है। इस कमेटी का अपमान करना, दिल्ली के दो करोड़ आबादी वाले राज्य के लोगों का विरोध है। मैं यह समझता हूं कि जो फेसबुक इंडिया के वकील हैं या जो उनके कानून के जानकार है, उन्होंने इन्हें बहुत गलत सलाह दी है।"
राघव चड्ढा ने कहा, "कोई भी विषय पार्लियामेंट्री कमेटी के अधीन हो, तो इसका यह मतलब नहीं कि दिल्ली विधानसभा उस विषय पर चर्चा नहीं कर सकती है। हमारा देश एक संघीय ढांचा है। जिसमें संसद अपने विषय पर चर्चा करता है और राज्य विधानसभा अलग विषयों पर चर्चा करती है। एक समय में एक ही मुद्दे पर भी चर्चा कर सकते हैं।"
नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)| लोकसभा ने मंगलवार को एक विधेयक पारित किया, जिसमें दो साल के लिए सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास (एमपीलैड) निधियों को निलंबित करने का प्रावधान है। इसके साथ ही सांसदों के वेतन में एक वर्ष के लिए 30 प्रतिशत कटौती करने को भी लोकसभा की मंजूरी मिल गई है। इस धनराशि का उपयोग कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति से मुकाबले के लिए किया जाएगा।
संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन (संशोधन) विधेयक, 2020 मानसून सत्र के दूसरे दिन पारित किया गया।
अप्रैल में केंद्रीय मंत्रिपरिषद की ओर से वर्ष 2020-21 और 2021-22 में संसद के सभी सदस्यों के वेतन में 30 प्रतिशत कटौती और एमपीलैड के निलंबन को मंजूरी दी गई थी। यह विधेयक इससे संबंधित संसद सदस्य वेतन, भत्ता एवं पेंशन अध्यादेश 2020 की जगह लाया गया है। इसके माध्यम से संसद सदस्यों के वेतन, भत्ता एवं पेंशन अधिनियम 1954 में संशोधन किया गया है।
प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद सहित सांसदों का वित्तवर्ष 2020-2021 में 30 प्रतिशत वेतन काटा जाएगा। कई सांसदों ने पहले ही कोरोनावायरस महामारी से निपटने के प्रयासों के तहत अपने एमपीलैड फंड पांच करोड़ रुपये का उपयोग करने का वादा किया था।
संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा कि एमपीलैड फंड का निलंबन अस्थायी है और दो साल के लिए है। जोशी ने कहा, "मुझे खुशी है कि चैरिटी लोकसभा और राज्यसभा से शुरू हुई। यह चैरिटी इसलिए है, क्योंकि अर्थव्यवस्था राष्ट्रव्यापी बंद और अन्य चीजों के कारण प्रभावित हुई है। जब ऐसी चीजें होती हैं तो हमें कुछ असाधारण फैसले लेने की जरूरत होती है।"
मंत्री ने कहा कि सरकार ने दूसरों के लिए रोल मॉडल बनने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, "हमने कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए बहुत सारे उपाय और अभूतपूर्व कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री मोदी जी ने मुझसे कहा कि सभी सांसदों को इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह केंद्र या राज्य से संबंधित नहीं है।"
जोशी ने उल्लेख किया कि किस तरह सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज और 1.76 लाख करोड़ रुपये की गरीब कल्याण योजना बनाई है, जिसके माध्यम से इस साल नवंबर तक सभी गरीब लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के लिए 40,000 करोड़ रुपये का बजट भी दिया।
विधेयक पर बहस की शुरुआत करते हुए, कांग्रेस सांसद डीन कुरियाकोस ने कहा कि यह बहुत दुखद है कि एमपीलैड पर बिना किसी परामर्श और पूर्व सूचना फैसला लिया गया। सांसद ने कहा कि वह इस कदम का समर्थन करते हैं, लेकिन सरकार द्वारा अपनाए गए तरीके का विरोध करते हैं।
द्रमुक के चेन्नई (उत्तर) सांसद वीरस्वामी कलानिधि ने कहा कि देश के लिए धन जुटाने के अन्य तरीके भी हैं। उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह वर्तमान स्थिति के अनुसार नहीं किया जाना चाहिए, हमें धन जुटाने के अन्य तरीकों की तलाश भी करनी होगी।"
उन्होंने कहा कि सरकार अगले तीन-पांच वर्षों में 20,000 करोड़ रुपये की नई संसद बनाने के प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ी है, जबकि देश एक बड़े संकट का सामना कर रहा है। कलानिधि ने कहा कि इस राशि का इस्तेमाल महामारी और आर्थिक संकट से निपटने के लिए किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री निवास से 5, खुर्सीपार, धमधा, पाटन, नेहरू नगर हॉटस्पॉट,
"छत्तीसगढ़' संवाददाता
भिलाई नगर 15 सितंबर। दुर्ग जिले में आज सर्वाधिक 401 मरीज कोरोना संक्रमित मिले हैं। 7 मौतों के साथ मौतों का आंकड़ा 240 पहुंच गया है।
मुख्यमंत्री निवास भिलाई 3 से 5 कर्मचारी संक्रमित पाए गए हैं। जिले के हर शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र से बड़ी संख्या में मरीज मिले हैं। सर्वाधिक खुर्सीपार, नेहरू नगर, पाटन, धमधा ब्लॉक से मरीज मिले हैं । इसके अलावा शहर के चार थानों में कोतवाली सेक्टर 6, थाना जामुल थाना नेवई एवं थाना पुलगांव से पुलिस कर्मचारी संक्रमित पाए गए हैं।
चंदूलाल चंद्राकर कोविड-19 केयर सेंटर आजाद कोविड-19 केयर सेंटर एवं बीएसएफ आइसोलेशन वार्ड के प्रभारी डॉ अनिल शुक्ला ने बताया कि आज जिले से रिकॉर्ड सर्वाधिक 401 संक्रमित मरीज मिले हैं। यह मरीज जिले के तीनों ही ब्लॉक से हैं ।शहरी क्षेत्र में खुर्सीपार क्षेत्र सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन गया है ।आज भी संक्रमित मरीज इस क्षेत्र से मिले हैं। धमधा ब्लॉक से करीब 24 संक्रमित मरीज मिले हैं। इसी प्रकार से ब्लाक पाटन के अलग-अलग गांव से 14 संक्रमित मरीज मिले हैं। पंचशील नगर दुर्ग से सात संक्रमित मरीज मिले हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री निवास भिलाई 3 से 5 कर्मचारी संक्रमित पाए गए हैं। दुर्ग के खंडेलवाल कॉलोनी से एक ही परिवार के 4 सदस्य संक्रमित मिले हैं। इसके अलावा शहरी थानों में जामुल, नेवई ,भिलाई कोतवाली एवं पुलगांव थाना से एक-एक कर्मचारी संक्रमित पाया गया है ।
बीएसएफ के दो जवान, प्रथम बटालियन के 2 जवान एवं सीआईएसफ के भी जवान संक्रमित मिले हैं। साथ ही दुर्ग शहरी क्षेत्र के लगभग सभी कालोनियों से संक्रमित मरीज आज मिले हैं। भिलाई क्षेत्र में नेहरू नगर कॉलोनी से भी काफी संख्या में संक्रमित मरीज मिले हैं। इसके अलावा जिले से आज 7 मरीजों की मौत भी हुई है। जिसके कारण मौत का आंकड़ा जिले से 240 तक पहुंच गया है। लगातार संक्रमण घर-घर तक फैल चुका है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 15 सितंबर। राज्य में आज रात 10.15 बजे तक 3450 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इनमें सबसे अधिक 1015 रायपुर जिले से हैं।
राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक दुर्ग 138, राजनांदगांव 223, बालोद 85, बेमेतरा 15, कबीरधाम 169, धमतरी 51, बलौदाबाजार 214, महासमुंद 77, गरियाबंद 48, बिलासपुर 232, रायगढ़ 121, कोरबा 158, जांजगीर-चांपा 120, मुंगेली 75, सरगुजा 123, कोरिया 51, सूरजपुर 39, बलरामपुर 19, जशपुर 41, बस्तर 136, कोंडागांव 37, दंतेवाड़ा 58, सुकमा 19, कांकेर 58, नारायणपुर 45, बीजापुर 81, अन्य राज्य 2 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं।
नई दिल्ली, 15 सितंबर | सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने सोमवार को एक वेबिनार में कहा कि देश में सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का उपयोग कर रही है। पूर्व न्यायाधीश लोकुर की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब रविवार रात जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली दंगों में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले शनिवार को सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, योगेंद्र यादव, अपूर्वानंद, जयति घोष, राहुल रॉय, उमर खालिद समेत ऐसे कई लोगों के नाम दिल्ली पुलिस द्वारा दंगों की चार्जशीट में डालने की खबर आई, जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध-प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और उसके बाद उसके आयोजकों की गिरफ्तारी के खिलाफ मुखर विरोध दर्ज करा रहे थे।
सेवानिवृत्त जस्टिस लोकुर ने यह बात ‘बोलने की आजादी और न्यायपालिका’ विषय पर आयोजित एक वेबिनार में अपने संबोधन के दौरान कही। अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “बोलने की आजादी को कुचलने के लिए सरकार लोगों पर फर्जी खबरें फैलाने के आरोप लगाने का हथकंडा भी अपना रही है। कोरोना संक्रमण के मामलों और वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले कई पत्रकारों पर फर्जी खबर के कानूनों के तहत आरोप लगाए गए और केस दर्ज किए जा रहे हैं।”
जस्टिस लोकुर ने कहा, “देश में अचानक ही ऐसे मामलों की संख्या बढ़ गई है, जिसमें लोगों पर राजद्रोह के मामले दर्ज किए गए हैं। इसी साल अब तक राजद्रोह के 70 मामले देखे जा चुके हैं। हालत ये है कि कुछ भी बोलने वाले एक आम नागरिक पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है।” उन्होंने डॉ कफील खान पर एनएसए लगाने के मामले का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत आरोप लगाते समय उनके भाषण और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उनके बयानों को गलत पढ़ा गया।” उन्होंने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ न्यायालय की अवमानना के मामले का भी जिक्र किया।
कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफार्म्स और स्वराज अभियान द्वारा आयोजित इस वेबिनार में वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने कहा, “प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना मामले में दी गई सजा बेतुकी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्षो का कोई ठोस आधार नहीं है।” उन्होंने कहा कि उनके मन में न्यायपालिका के लिए बहुत सम्मान है, क्योंकि यह न्यायपालिका ही है जिसने संविधान में प्रेस की आजादी को स्थापित किया। वेबिनार में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि प्रशांत भूषण की प्रसिद्धी काफी व्यापक होने के कारण इस मामले ने काफी लोगों को सशक्त किया है।(navjivan)
नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने बलवंत सिंह मुल्तानी के 1991 के अपहरण-हत्या मामले में सेवानिवृत्त पंजाब के पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी को मंगलवार को तीन सप्ताह के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी है। न्यायाधीश अशोक भूषण, आर. सुभाष रेड्डी और एम.आर. शाह की पीठ ने पंजाब सरकार से सैनी की अग्रिम जमानत याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा। वहीं इसके साथ ही अदालत ने सैनी को जांच में सहयोग करने को कहा है। पीठ ने सैनी की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिस पर तीन सप्ताह में जवाब आ सकता है।
अदालत में सैनी का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने किया। वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने सैनी की जमानत याचिका का विरोध किया। लूथरा ने दलील देते हुए कहा कि पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने उल्लेख किया था कि पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सैनी ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया था।
इस पर पीठ ने पूछा कि 1991 के एक मामले में लगभग 30 साल बाद सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी को गिरफ्तार करने की इतनी जल्दी क्या लगी हुई है।
लूथरा ने जोर देकर कहा कि अदालत ने नोट किया कि एक व्यक्ति (मुल्तानी) ने सैनी द्वारा अमानवीय व्यवहार के बाद चोटों के कारण दम तोड़ दिया था। इसके साथ ही लूथरा ने कहा कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी आरोपी अधिकारी के पास खुद के नियंत्रण में कुछ आधिकारिक फाइलें थीं।
वहीं मुल्तानी के भाई का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के.वी. विश्वनाथन ने दलील दी कि सैनी एक 'कुख्यात पुलिस अधिकारी' थे। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके मुवक्किल का भाई याचिकाकर्ता के हाथों मारा गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में पंजाब सरकार का जवाब सुने जाने से पहले कोई गिरफ्तारी नहीं हो सकती।
मालूम हो कि पंजाब के पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी ने सुप्रीम कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की है और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। हालांकि, पंजाब सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कैवियट याचिका दाखिल कर रखी है। पंजाब सरकार ने कोर्ट में अर्जी दखिल कर कहा है कि अदालत राज्य सरकार के पक्ष को सुने बिना कोई आदेश जारी न करे।
इससे पहले सात सितंबर को अग्रिम जमानत और जांच सीबीआई या किसी अन्य एजेंसी से करवाने की मांग को लेकर दाखिल दो अलग-अलग याचिकाओं को खारिज करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सैनी को बड़ा झटका दिया था। न्यायाधीश फतेहदीप सिंह ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा था और फिर अपना फैसला सुनाते हुए सैनी की दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
बता दें कि 1991 के बलवंत सिंह मुल्तानी अपहरण मामले में पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी आरोपी हैं। पहली याचिका में सैनी ने मामले की पंजाब से बाहर किसी अन्य जांच एजेंसी या सीबीआई से जांच की मांग की थी। सैनी ने याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि उनके खिलाफ मोहाली पुलिस ने मटौर थाने में छह मई को एफआईआर दर्ज की है। यह पूरी तरह से राजनीतिक रंजिश के तहत दायर की गई है। इस एफआईआर पर पंजाब पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती है, लिहाजा इस मामले की सीबीआई या राज्य के बाहर की किसी जांच एजेंसी से जांच करवाई जाए।
सैनी ने दूसरी याचिका मोहाली की ट्रायल कोर्ट द्वारा एक सितंबर को उनकी अंतरिम जमानत को खारिज किए जाने के खिलाफ दायर की थी। सैनी ने न्यायालय से अग्रिम जमानत की अपील की थी।