अंतरराष्ट्रीय
नई दिल्ली, 1 मार्च| राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने यूक्रेन के यूरोपीय संघ सदस्यता आवेदन पर हस्ताक्षर किए हैं।
उक्रेन्स्का प्रावदा के अनुसार, राष्ट्रपति कार्यालय के उप प्रमुख, एंड्री सिबिगा ने कहा कि जेलेंस्की ने अभी-अभी एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने यूक्रेन का यूरोपीय संघ सदस्यता आवेदन पर हस्ताक्षर किए।
उन्होंने यूक्रेन के वेरखोव्ना राडा (संसद) के प्रमुख और प्रधानमंत्री दिमित्रो श्यामगल के साथ एक संयुक्त अनुरोध पर भी हस्ताक्षर किए।
जेलेंस्की ने कहा, "मैंने यूक्रेन के यूरोपीय संघ सदस्यता आवेदन पर हस्ताक्षर किए हैं। मुझे यकीन है कि हम इसे हासिल कर सकते हैं।"
यूरोपीय संघ की प्रक्रिया के अनुसार, सदस्यता आवेदन यूरोपीय संघ की परिषद की अध्यक्षता में जमा किया जाना है। परिषद का नेतृत्व वर्तमान में फ्रांस कर रहा है।
यूक्रेन का आवेदन जेलेंस्की के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, यह देखते हुए कि इस मुद्दे का रूस के साथ वार्ता में संभावित रूप से उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि यूरोपीय संघ शांति के आसपास बनाई गई एक परियोजना है और संघर्ष को हल करने के लिए संवाद का उपयोग कर रहा है।
सोमवार की सुबह जेलेंस्की ने एक विशेष प्रक्रिया के तहत यूक्रेन के परिग्रहण के संबंध में यूरोपीय संघ को संबोधित किया। जेलेंस्की के अनुसार, यूक्रेनी यूरोपीय संघ की सदस्यता के पात्र हैं।
रूस के आक्रमण के बाद यूरोपीय संघ के कई देशों ने यूरोपीय संघ से यूक्रेन को सदस्यता के लिए एक मार्ग देने का आह्वान किया और स्लोवाकिया ने यूरोपीय संघ में यूक्रेन के प्रवेश के लिए एक विशेष प्रक्रिया का प्रस्ताव रखा। (आईएएनएस)
सुसिता फर्नाडो
कोलंबो, 1 मार्च| श्रीलंका के होटल व्यवसायियों ने मानक यूक्रेनी पर्यटकों की देखभाल करने का फैसला किया है, जबकि सरकार की योजना उनके वीजा को बढ़ाने की है।
दक्षिणी तटीय इलाकों से लेकर केंद्रीय पहाड़ियों तक कई होटल मालिकों ने, जहां यूक्रेनी पर्यटक अक्सर आते हैं, ने घोषणा की है कि वे यूक्रेन के नागरिकों को मुफ्त भोजन और आवास प्रदान करेंगे, जो रूसी आक्रमण के कारण घर वापस आ गए हैं।
गाले में एक होटल के मालिक रूपसेना कोस्वट्टा ने कहा, "ये पर्यटक यहां एक महीने से अधिक समय से हैं और कई के पास पैसे खत्म हो गए हैं, और उनके पास पैसे पाने का कोई रास्ता नहीं है। इसलिए उन्होंने हमसे पूछा कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि उन्हें पैसे की चिंता करने की जरूरत नहीं है और वे यहां रह सकते हैं और जब तक वे यहां हैं, हम उनकी देखभाल करेंगे।"
कैंडी के एक प्रमुख होटल के महाप्रबंधक रंजन पीरिस ने कहा, "हम अपने होटलों में यूक्रेन के पर्यटकों की देखभाल करके बहुत खुश हैं, जो यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण फंसे हुए हैं।"
यूक्रेन के लिए उड़ानें रद्द होने से करीब 4,000 यूक्रेनियाई पर्यटक श्रीलंका में फंसे हुए हैं।
इस बीच, श्रीलंकाई विदेश मंत्रालय ने घोषणा की है कि सरकार देश में यूक्रेनी पर्यटकों को वीजा विस्तार सहित हर संभव सहायता प्रदान करेगी।
पर्यटन मंत्री प्रसन्ना रणतुंगा ने सोमवार को घोषणा की कि देश में फंसे यूक्रेन के पर्यटकों के लिए वीजा 30 दिनों के लिए बढ़ाकर 60 दिन कर दिया जाएगा। अंतिम फैसला इसी हफ्ते होने वाली कैबिनेट बैठक में लिया जाना है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 1 मार्च| अमेरिकी विदेश विभाग ने सोमवार को रूस में मौजूद अमेरिकी नागरिकों को यूक्रेन में मॉस्को की चल रही सैन्य कार्रवाइयों का हवाला देते हुए देश छोड़ने पर विचार करने की सलाह दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, विदेश विभाग ने एक ताजा यात्रा सलाह में कहा कि रूस स्थित अमेरिकी नागरिकों की सहायता करने की अमेरिकी सरकार की क्षमता अब सीमित है, इसलिए अमेरिकियों को अभी भी उपलब्ध वाणिज्यिक विकल्पों के माध्यम से देश छोड़ने पर विचार करना चाहिए।
अमेरिकी संघीय उड्डयन प्रशासन द्वारा यूक्रेन और बेलारूस के पूरे क्षेत्रों के साथ-साथ रूस के पश्चिमी भाग को कवर करने के लिए 'नो-फ्लाई जोन' का विस्तार करने के तीन दिन बाद यूरोपीय संघ ने रविवार को रूसी विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया। एयरलाइनों की बढ़ती संख्या रूस में और बाहर उड़ानें रद्द कर रही है।
इस तरह और चल रहे सशस्त्र संघर्ष को देखते हुए विदेश विभाग ने अपनी सलाह में अमेरिकी नागरिकों को रूस से यूक्रेन की यात्रा करने के खिलाफ सलाह दी, और रूस-यूक्रेन सीमा के पास और वहां यात्रा करने की योजना बनाने वालों से जागरूक होने का आग्रह किया, क्योंकि सीमा पर स्थिति खतरनाक है।
यूक्रेनी और रूसी प्रतिनिधिमंडलों ने सोमवार को यूक्रेनी-बेलारूसी सीमा पर शांति वार्ता संपन्न की, रूसी प्रतिनिधिमंडल के अनुसार, बेलारूसी-पोलिश सीमा पर आने वाले दिनों के लिए अगले दौर की वार्ता निर्धारित है। (आईएएनएस)
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने रविवार को कहा कि उनके देश को लंबे समय से जारी एक वर्जना को तोड़ देना चाहिए और परमाणु हथियारों पर सक्रिय बहस शुरू करनी चाहिए.
आबे ने नेटो की तरह संभावित 'न्यूक्लियर-शेयरिंग' प्रोग्राम की बात कही है. यूक्रेन पर रूसी हमले के बीच आबे की यह टिप्पणी काफ़ी अहम मानी जा रही है.
आबे ने टीवी प्रोग्राम में कहा, ''जापान ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किया है और तीन ग़ैर-परमाणु सिद्धांत हैं, लेकिन इस पर बात करने के लिए कोई मनाही नहीं है कि दुनिया सुरक्षित कैसे रह सकती है.''
आबे ने 2020 में प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया था, लेकिन सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में वे अब भी काफ़ी प्रभावी हैं. जापान टाइम्स के अनुसार, आबे ने कहा है कि यूक्रेन ने सोवियत यूनियन से अलग होते वक़्त सुरक्षा गारंटी के लिए कुछ परमाणु हथियार रखा होता तो शायद उसे, रूसी हमले का सामना नहीं करना पड़ता.
आबे ने कहा कि सरकार लगातार कहती है कि एशिया के सुरक्षा का वातावरण लगातार ख़राब हो रहा है. इनमें चीन की बढ़ती आक्रामकता और उत्तर कोरिया के परमाणु प्रोग्राम भी शामिल हैं. आबे ने कहा कि नेटो की न्यूक्लियर-शेयरिंग व्यवस्था एक मिसाल है कि जापान उन ख़तरों को कैसे कम कर सकता है.
नेटो वाली व्यवस्था
आबे ने फ़ूजी टेलीविज़न पर प्रसारित कार्यक्रम में कहा, ''जापान को भी कई विकल्पों पर विचार करना चाहिए. इनमें न्यूक्लियर शेयरिंग प्रोग्राम भी शामिल है.'' नेटो के तहत अमेरिका यूरोप में परमाणु हथियार रखता है. जापान दूसरे विश्व युद्ध के दौरान परमाणु हमले की त्रासदी झेल चुका है.
जापान के तीन ग़ैर-परमाणु सिद्धांत हैं. पहली बार इसे 1967 में निर्धारित किया गया. इसके तहत देश के भीतर परमाणु हथियार के उत्पादन और उसे रखने पर पाबंदी है. जापान के लोग भी परमाणु हथियारों के ख़िलाफ़ रहे हैं. लेकिन आबे ने नेटो की तर्ज़ पर शेयरिंग के विकल्प की बात की है. आबे ने कहा कि जापान के भीतर ज़्यादातर लोग इस व्यवस्था से अनजान हैं.
आबे ने कहा, ''परमाणु हथियारों को नष्ट करने का लक्ष्य अहम है, लेकिन जब जापान के लोगों की जान और मुल्क को बचाने की बात आएगी तो मैं सोचता हूँ कि हमें कई विकल्पों पर बात करनी चाहिए.''
वॉशिंगटन में सेंटर फ़ॉर अमेरिकन प्रोग्राम के सीनियर फ़ेलो और शिंज़ो आबे की जीवनी लिखने वाले तोबिअस हैरिस ने कहा है, ''पूर्व प्रधानमंत्री के इस बयान से जापान के वर्तमान प्रधानमंत्री फ़ुमिओ किशिदा पर दबाव बढ़ गया है. पार्टी का दक्षिणपंथी खेमा उन पर जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और रक्षा से जुड़े अन्य मामलों की समीक्षा के लिए कहेगा.''
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, ''यह बहस अभी हो या नहीं, लेकिन पिछले 5-10 सालों में जापान में परमाणु हथियार के विकल्प पर बातचीत की वर्जना मद्धम पड़ी है.''
ताइवान पर अमेरिका क्या करेगा?
पड़ोसी ताइवान पर हमले की स्थिति में अमेरिका का क्या रुख़ होगा? क्या अमेरिका उसका बचाव करेगा? इस पर आबे ने कहा, ''यह दिखाना कि अमेरिका हस्तक्षेप कर सकता है, इससे चीन नियंत्रण में रहता है, लेकिन हस्तक्षेप करने की संभावनाओं को छोड़ देने से ताइवान की सेना के लिए मुश्किल स्थिति हो जाएगी. अब समय आ गया है कि इसे लेकर आशंका वाली नीति छोड़ देनी चाहिए. ताइवान के लोग हमारे साझा मूल्यों का हिस्सा हैं. ऐसे में मैं सोचता हूँ कि अमेरिका को इस मामले में स्पष्ट होना होगा.''
आबे ने कहा है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो जापान के लिए भी संकट आएगा. आबे ने कहा कि ताइवान से महज़ 110 किलोमीटर की दूरी पर योनागुनी का ओकिनावन द्वीप है. अगर चीन हमला करता है तो वह पहले समंदर और हवाई क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में लेगा और इसकी ज़द में जापानी जल के साथ हवाई क्षेत्र भी आएंगे.
चीन ताइवान को अहम मुद्दा बताता है और कहता है कि ज़रूरत पड़ने पर वह इसे बल प्रयोग करके भी मिला लेगा. हाल के वर्षों में ताइवान को लेकर चीन की सैन्य गतिविधि भी बढ़ी है. अमेरिका 1979 से ही वन चाइना पॉलिसी मानता आ रहा है. अमेरिका आधिकारिक रूप से ताइपेई के बदले बीजिंग को मान्यता देता है.
जापान का ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है और पारंपरिक रूप से जापान इस मुद्दे पर चुप रहता है ताकि चीन नाराज़ ना हो जाए. जापान के लिए चीन सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच आबे के बयान को काफ़ी अहम माना जा रहा है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच ताइवान पर चीन का डर भी बढ़ गया है. कहा जा रहा है कि रूस का हमला सफल रहा तो चीन को ताइवान के मामले में बल मिलेगा.
आबे के इस बयान पर चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र माने जाने वाले अंग्रेज़ी दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने आज यानी 28 फ़रवरी को संपादकीय लिखा है. अपने संपादकीय में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने रविवार को कहा कि जापान को परमाणु हथियार साझा करने के लिए अमेरिका से समझौता करना चाहिए. उन्होंने इसे लेकर नेटो देशों के बीच परमाणु हथियार साझा करने की व्यवस्था का भी उदाहरण दिया है.''
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि आबे के बयान से साफ़ है कि वह परमाणु हथियार की तरफ़ बढ़ना चाहते हैं. ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, ''बात केवल आबे के बयान की नहीं है. लंबे समय से जापान के दक्षिणपंथी नेता इस तरह की बातें कर रहे हैं. ख़ुद आबे पहले भी ऐसी बातें कर चुके हैं.जापान के विपक्षी नेता इचिरो ओज़ावा ने भी कहा था कि जापान रातोंरात चीन को रोकने के लिए बड़ी संख्या में परमाणु हथियार बना सकता है.''
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''जापान के पास परमाणु हथियार तैयार करने की क्षमता है. जापान दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों में से एक है. जापानी मीडिया में रिपोर्ट छपी थी कि जापान के पास देश के भीतर और बाहर 47 टन प्लूटोनियम है. इतने में जापान 6000 परमाणु बम बना सकता है. 2016 में जब जो बाइडन अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे तो उन्होंने भी कहा था कि जापान रातोंरात परमाणु हथियार हासिल करने की क्षमता रखता है.'' (bbc.com)
लंदन, 28 फरवरी (आईएएनएस)| दो बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुक्केबाज वासिली लोमाचेंको रूसी आक्रमण के बाद यूक्रेन की सेना में शामिल हो गए हैं। लोमाचेंको को दुनिया के शीर्ष मुक्केबाजों में से एक माना जाता है, उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक तस्वीर पोस्ट की जिसमें वह एक सैन्य वर्दी पहने हुए दिखाई दे रहे हैं और जाहिर तौर पर इस रविवार को युद्ध क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए तैयार हैं। ईएसपीएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2008 और 2012 के ओलंपिक खेलों में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले लोमाचेंको हाल ही में अपने परिवार के साथ रहने के लिए ओडेसा के पास अपने घर लौटे हैं।
टॉक स्पोर्ट डॉट कॉम के ऑनलाइन बॉक्सिंग संपादक माइकल बेन्सन ने यूक्रेनी सेना की जर्सी पहने हुए लोमाचेंको की एक तस्वीर भी पोस्ट की।
लोमाचेंको एकमात्र प्रसिद्ध यूक्रेनी मुक्केबाज है जो अपने देश के सशस्त्र बलों में शामिल हो गए है, क्योंकि भाइयों व्लादिमीर और विटाली क्लिट्स्को ने भी इस संघर्ष में लड़ने का फैसला किया है।
हॉल ऑफ फेमर बॉक्सर क्लिट्स्को, जो अब यूक्रेनी राजधानी कीव के मेयर हैं, ने हाल ही में घोषणा की कि वह अपने देश की रक्षा में सहायता करेंगे। उनके भाई, साथी हॉल ऑफ फेमर और पूर्व हैवीवेट चैंपियन व्लादिमीर भी इस महीने की शुरुआत में देश की रिजर्व सेना में शामिल हुए।
क्लिट्स्को ने गुड मॉनिर्ंग ब्रिटेन से कहा, "मेरे पास दूसरा विकल्प नहीं है, मुझे अपने देश को बचाने के लिए लड़ना होगा।"
डब्ल्यूबीसी यूक्रेन के अध्यक्ष निकोले कोवलचुक ने व्यक्त किया कि उन्हें उन मुक्केबाजों पर कितना गर्व है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने फैसले को चुना है।
कोवलचुक ने कोपिंगर के हवाले से कहा, "हमें अपने मुक्केबाजों, मुक्केबाजी में हमारे असली चैंपियन और इस युद्ध में चैंपियन पर बहुत गर्व है। हमें यूक्रेनियन होने पर गर्व है।"
लोमाचेंको अपना करियर शुरू करने से पहले दो बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता थे। उन्होंने बीजिंग 2008 और लंदन 2012 सीजन में पूर्व में फेदरवेट में और बाद में लाइटवेट में स्वर्ण पदक जीता। अपने पेशेवर करियर में, लोमाचेंको के नाम 16 जीत (नॉकआउट से 11) और 18 मुकाबलों में दो हार का रिकॉर्ड है।
लंदन, 28 फरवरी | इंग्लिश फुटबॉल एसोसिएशन (एफए) ने यूक्रेन के लोगों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए वादा किया है कि वे भविष्य में कोई भी अंतरराष्ट्रीय मैच रूस के साथ नहीं खेलेंगे। एफए द्वारा सोमवार सुबह जारी एक बयान में कहा गया है कि, "यूक्रेन के साथ एकजुटता और रूसी नेतृत्व द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की निंदा करने के लिए, एफए पुष्टि करता है कि हम रूस के खिलाफ भविष्य में किसी भी अंतरराष्ट्रीय मैच में नहीं खेलेंगे।"
एफए ने कहा कि न केवल सीनियर टीम, बल्कि यह नियम पैरा-फुटबॉल टीमों पर भी लागू होगा।
गोल डॉट कॉम ने बताया, अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ (फीफा) ने रविवार को पुष्टि की थी कि "उन मैचों में रूस के झंडे या गान का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा जहां रूस के फुटबॉल संघ की टीमें भाग लेंगी।"
बयान में यह भी बताया गया कि, "फीफा यूक्रेन पर आक्रमण में रूस द्वारा बल के प्रयोग की अपनी निंदा दोहराना चाहता है। हिंसा कभी समाधान नहीं होती है और फीफा यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है उससे प्रभावित सभी लोगों के प्रति अपनी गहरी एकजुटता व्यक्त करता है।"
फीफा ने कहा कि खेल के लिए शासी निकाय अन्य शासी निकायों के साथ अपनी चल रही बातचीत जारी रखेगा।
पोलिश और स्वीडिश राष्ट्रीय फुटबॉल टीमों ने कहा है कि वे यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का विरोध करने के लिए मार्च में महत्वपूर्ण 2022 फीफा विश्व कप क्वालीफिकेशन प्लेऑफ मैचों में रूस से नहीं खेलेंगे। (आईएएनएस)
रूस के हमले के कारण यूक्रेन के करीब 70 लाख लोगों पर विस्थापन का खतरा मंडराने लगा है. यूक्रेन पर हमले का सोमवार को पांचवां दिन है. हजारों लोग यूक्रेन की सीमा पार कर पोलैंड में दाखिल हो रहे हैं.
यूरोपीय संघ के संकट प्रबंधन आयुक्त ने रविवार को कहा कि यूक्रेन के खिलाफ रूस की सैन्य कार्रवाई 70 लाख से अधिक लोगों को विस्थापित कर सकती है. यूक्रेन से आते शरणार्थियों पर केंद्रित यूरोपीय संघ आंतरिक मंत्रियों की बैठक के बाद यानेज लेनार्सिच
ने पत्रकारों से कहा, "हम कई वर्षों में यूरोपीय महाद्वीप पर सबसे बड़ा मानवीय संकट देख रहे हैं."
उन्होंने कहा, "वर्तमान में विस्थापित यूक्रेनी नागरिकों की अपेक्षित संख्या 70 लाख से अधिक है." साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि वह संयुक्त राष्ट्र से हासिल केवल "मोटा अनुमान" दे रहे हैं क्योंकि लड़ाई ने सटीक गिनती को थाम दिया है.
यूरोपीय आयोग के एक अधिकारी ने बाद में स्पष्ट किया कि लेनार्सिक संयुक्त राष्ट्र की सूचना के आधार पर "हमला जारी रहने की स्थिति में अनुमान" दे रहे थे.
लेनार्सिक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक युद्ध जारी रहा तो "लगभग 1.8 करोड़ यूक्रेनियन होंगे जो मानवीय दृष्टि से प्रभावित होंगे, चाहे वे यूक्रेन में उचित तरह से हो या पड़ोसी देशों में."
लेनार्सिक ने कहा कि "आंकड़े बड़े हैं और हमें इस तरह के आपातकाल के लिए तैयार रहना होगा." शनिवार देर रात जारी संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (ओसीएचए) की ताजा स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक, "कथित तौर पर 1,60,000 से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं."
यूएनएचसीआर के अनुमानों के आधार पर ओसीएचए ने कहा, "1,16,000 से अधिक लोगों को मजबूरी में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार पड़ोसी यूरोपीय देशों में भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है."
स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेनी सरकार का अनुमान है कि "सबसे खराब स्थिति में 50 लाख शरणार्थी हो सकते हैं." यूक्रेन से निकले लोगों ने पोलैंड, रोमानिया, हंगरी और स्लोवाकिया में शरण ली है.
संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसियों का कहना है कि इस जंग की वजह से 50 लाख लोग देश के बाहर जाएंगे. इनमें से केवल पोलैंड में ही करीब 30 लाख लोगों के पहुंचने की आशंका है. एजेंसियों का कहना है कि यूक्रेन के कुछ हिस्सों में ईंधन, नगदी और दवाइयों की कमी हो रही है.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड प्रांत में हजारों लोगों को अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने को कहा गया है. देश के पूर्वी तट पर भारी बारिश ने दर्जनों शहरों में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए हैं.
रविवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख शहर और क्वींसलैंड प्रांत की राजधानी ब्रिसबेन समेत दर्जनों शहरों में भारी बाढ़ जैसे हालात थे. कई जगह तो पानी कई-कई फुट तक चढ़ गया था और लोगों को अपने घरों की छतों पर शरण लेनी पड़ी. मौसम विभाग ने बारिश के जारी रहने की चेतावनी जारी की है.
सोमवार को इस बारिश के कारण आठ लोगों की जान जा चुकी थी. आपातकालीन सेवाओं ने कहा कि रविवार को एक व्यक्ति पानी से भरी सड़क को पार करने की कोशिश में बह गया और उसकी मृत्यु हो गई.
15,000 घर खतरे में
ऑस्ट्रेलिया की तीसरी सबसे बड़ी ब्रिसबेन नदी उफान पर है और इसके सोमवार को चरम पर पहुंचने की आशंका ने 15 हजार से ज्यादा घरों को खतरा पैदा कर रखा है. इस वजह से राज्य के एक हजार से ज्यादा स्कूल बंद रखे गए हैं और बचावकर्मी लोगों को उनके घरों से बचाकर निकाल रहे हैं.
रविवार को देश के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने भारी बारिश को ‘मौसमी बम' करार देते कहा कि बाढ़ पीड़ित इलाकों में बचाव कार्यों के लिए सेना को तैनात किया जाएगा. यह मौसम बम अब दक्षिण की ओर यानी देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य न्यू साउथ वेल्स में प्रवेश कर गया है और वहां भी जनजीवन के प्रभावित होने की आशंका है.
क्वींसलैंड में सबसे ज्यादा नुकसान दक्षिण-पूर्वी हिस्से में हुआ है जहां एक हजार से ज्यादा स्कूल बंद करने पड़े और 50 हजार घर बिना बिजली-पानी के रह गए. कई जगहों पर बारिश ने पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए और एक ही दिन में महीनेभर की बारिश झेली.
‘ऐसी बाढ़ नहीं देखी'
राज्य की मुख्यमंत्री अनस्तासिया पालाशे ने मीडिया से बातचीत में कहा, "मेरे ख्याल से इस बात से सभी सहमत होंगे कि इतने कम समय में इतनी भारी बारिश किसी ने नहीं देखी होगी.” आमतौर पर ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर गर्मियों में ला नीना प्रभाव के चलते बारिश होती है. दक्षिणी गोलार्ध में पड़ने वाले ऑस्ट्रेलिया में इस वक्त गर्मी का मौसम है.
भारी बारिश की आशंका के चलते न्यू साउथ वेल्स ने भी अपने कई शहरों में चेतावनी जारी करते हुए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी है. सिडनी से लगभग 700 किलोमीटर दूर स्थित लिजमोर शहर के मेयर स्टीव क्रीग ने कहा, "मेरे पास बहुत सारे परेशान नागरिकों के फोन आ रहे हैं, जो अपने घरों की छतों पर बैठे हैं और मदद का इंतजार कर रहे हैं.”
समाचार चैनल एबीसी से बात करते हुए क्रीग ने बताया कि पानी इतनी तेज रफ्तार से आया कि लोग हैरान रह गए और उन्हें तैयारी करने या निकलने का वक्त ही नहीं मिला. लिजमोर के करीब 30 हजार लोगों से उन्होंने तुरंत घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने को कहा. उन्होंने कहा, "अब तक लिजमोर ने जितनी बाढ़ देखी हैं, यह उनमें से सबसे बड़ी है.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
यूक्रेन संकट के बीच में ही जर्मनी ने अपने लिए 100 अरब यूरो का एक विशेष रक्षा कोष बनाने का एलान किया है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पहली बार जर्मनी और यूरोपीय देश अपनी रक्षा नीति में बड़ा बदलाव कर रहे हैं.
जर्मनी ने एक विशेष सशस्त्र सेना कोष पर 100 अरब यूरो खर्च करने का एलान किया है. यूक्रेन संकट के दौर में इस खास घोषणा में जर्मनी ने अपने रक्षा खर्च को जीडीपी के दो फीसदी से ऊपर रखने की भी बात कही है. अमेरिका लंबे समय से इसकी मांग करता रहा है. यूरोपीय सुरक्षा नीति में बीते कई दशकों में हुआ यह सबसे बड़ा बदलाव है. माना जा रहा है कि इसकी वजह यूक्रेन पर रूस का हमला है.
यूक्रेन संकट से यूरोप में हलचल
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की यह घोषणा यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई देने के फैसले के कुछ ही घंटे बाद हुई है. इससे पता चलता है कि यूक्रेन पर रूसी हमले ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप की सुरक्षा नीति को किस तरह प्रभावित किया है.
घोषणा ऐसे वक्त में हुई है जब इस्राएल ने युद्ध रोकने पर बातचीत के लिए खुद को मध्यस्थ के रूप में पेश किया है. उसका कहना है कि रूस और यूक्रेन दोनों के साथ उसके अच्छे संबंध हैं. उधर यूरोप की राजधानियों में युद्ध खत्म करने के लिए प्रदर्शनों का शोर बढ़ता जा रहा है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप की जमीन पर पहली बार इतनी बड़ी जंग छिड़ी है.
रविवार को बर्लिन के ब्रांडेनबुर्ग गेट पर जमा दसियों हजार लोग हाथों में नारे लिखी तख्तियों के जरिए कह रहे थे, " हैंड्स ऑफ यूक्रेन," "पुतिन अपना इलाज कराओ और यूक्रेन और दुनिया को शांति में छोड़ दो." वैटिकन में जब पोप फ्रांसिस अपना साप्ताहिक दर्शन दे रहे थे तब सेंट पीटर्स चौराहे पर यूक्रेन के झंडे लहरा रहे थे.
जर्मनी का नया रक्षा कोष
नए रक्षा कोष की शॉल्त्स की घोषणा जर्मनी के लिए अहम है. अमेरिका और दूसरे नाटो के सहयोगी रक्षा कोष में पर्याप्त खर्च नहीं करने के लिए जर्मनी की लगातार आलोचना करते रहे हैं. नाटो सदस्यों ने अपनी जीडीपी का 2 फीसदी रक्षा पर खर्च करने का वादा किया था लेकिन जर्मनी लगातार इससे बहुत कम खर्च करता रहा है. शॉल्त्स ने बर्लिन में संसद के एक विशेष सत्र में कहा, "यह साफ है कि हमें हमारे देश की आजादी और लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए देश की सुरक्षा में और बहुत ज्यादा निवेश करना होगा."
जर्मनी बीते दशकों में अपने कम रक्षा खर्च के लिए आलोचना झेलता रहा है. जर्मन सेना के आधुनिकीकरण का काम बाकी देशों के मुकाबले बीते सालों में बहुत धीमा रहा है. जर्मनी अपनी सुरक्षा के लिए बहुत हद तक अमेरिकी सेना पर भी निर्भर है. हालांकि विश्वयुद्धों के बाद यूरोप में शांति के लिए प्रतिबद्ध इन देशों ने युद्ध को जितना हो सके अपने एजेंडे से बाहर रखने की कोशिश की है और जर्मनी ने तो खासतौर से. यूक्रेन पर रूस के हमले ने इन देशों को अपनी रक्षा नीति बदलने पर विवश कर दिया है.
जर्मन चांसलर ने कहा है कि 100 अरब यूरो का कोष फिलहाल 2022 के लिए एक बार का होगा. अभी यह साफ नहीं है कि आने वाले सालों के लिए भी इसी तरह से धन दिए जाएंगे. शॉल्त्स ने यह जरूर साफ कर दिया है कि जर्मनी अपनी जीडीपी के 2 फीसदी से ज्यादा धन रक्षा पर खर्च करेगा. जाहिर है कि भविष्य में जर्मनी का रक्षा खर्च बढ़ जाएगा.
बदल रही है यूरोप की रक्षा नीति
जर्मनी की इस घोषणा से पहले इटली, ऑस्ट्रिया और बेल्जियम ने दूसरे यूरोपीय देशों की तरह रूसी विमानों के लिए अपनी वायुसीमा को बंद करने की घोषणा की. उधर इस्राएल ने कहा कि वह 100 टन मानवीय सहायता यूक्रेन भेज रहा है. इसमें मेडिकल उपकरण, दवाइयां, टेंट, स्लीपिंग बैग, और कंबल हैं. यह सामान आम लोगों की मदद के लिए भेजा जा रहा है. इस्राएल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात भी की है.
इधर यूरोपीय संघ के गृह मंत्रियों और विदेश मंत्रियों की रविवार को आपातकालीन बैठक हो रही है जिसमें संकट पर चर्चा होगी. गृह मंत्री इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि शरणार्थियों की भारी संख्या से कैसे निपटा जाए साथ ही यूरोपीय संघ की सीमाओं की सुरक्षा पर बातचीत की जा रही है.
यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने कहा है कि वह मंत्रियों से आग्रह करेंगे कि वो "यूक्रेनी सेना की मदद के लिए आपातकालीन पैकेज पर सहमति बनाएं जिससे कि इस युद्ध में उन्हें सहायता दी जा सके."
सेना की ट्रेनिंग और दुनिया भर में शांति अभियानों को समर्थन देने के लिए यूरोपीय संघ ने एक यूरोपीयन पीस फैसिलिटी बनाने की घोषणा की है. यह एक कोष होगा जिसमें करीब 5.7 अरब यूरो की रकम होगी. इसमें से कुछ पैसा सहयोगी देशों को प्रशिक्षण और उन्हें घातक हथियार देने के लिए भी होगी.
जर्मनी ने एक दिन पहले अपनी नीति में बड़ा बदलाव करते हुए यूक्रेन को हथियार और दूसरी चीजों की सीधी सप्लाई देने का फैसला किया है. इनमें 500 स्टिंगर मिसाइल भी हैं जिनका इस्तेमाल हेलीकॉप्टर, लड़ाकू विमान को मार गिराने के लिए हो सकता है इसके साथ ही यूक्रेन को 1000 टैंक रोधी हथियार भी दिए जाएंगे. यूरोपीय संघ के पैसे से यूक्रेन को हथियार देना एक ऐतिहासिक फैसला है.
एनआर/एडी(एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
कोस्टा रिका के एक हाइड्रोपावर प्लांट को ग्रीन क्रिप्टो-माइनिंग ऑपरेशन में बदल दिया गया है, लेकिन सवाल यह है कि बहुत ज्यादा ऊर्जा की जरूरत वाली बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी कभी भी जलवायु लक्ष्यों के अनुकूल हो सकती है?
डॉयचे वैले पर सेबास्टियन रोड्रिग्वेज की रिपोर्ट-
2020 के अंत में, 30 वर्षों के संचालन के बाद एडुआर्डो कोपर को कोस्टा रिका के सेंट्रल वैली में अपने हाइड्रोपावर प्लांट पोअस आई के टरबाइनों को बंद करना पडा. देश की सरकारी बिजली कंपनी ‘कोस्टा रिका इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिसिटी' ने कोपर के हाइड्रोपावर प्लांट से पैदा होने वाली बिजली को बेचने से मना कर दिया, क्योंकि देश में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन पहले से काफी ज्यादा हो गया है.
कोपर ने कहा, "इस मामले में हम कुछ नहीं कर सके. यह एक चिंताजनक स्थिति थी. हम कम से कम अपने कर्मचारियों को काम पर बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे.” तभी उन्हें बिटकॉइन के बारे में पता चला. बिटकॉइन एनर्जी कंजम्पशन इंडेक्स के अनुसार, क्रिप्टोकरेंसी ऊर्जा की बहुत बड़ी उपभोक्ता है.
बिटकॉइन माइनिंग के लिए अपने संयंत्र का इस्तेमाल करके, कोपर ने अपनी ग्रीन-एनर्जी को सीधे मुद्रा में बदलने की कोशिश की. तीन महीने तक संयंत्र बंद रहने के बाद, अप्रैल 2021 में पोअस आई का टरबाइन फिर से घूमने लगा. इसका इस्तेमाल क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के लिए किया जाने लगा.
कोपर ऐसे अकेले उदाहरण नहीं हैं. पूरे अमेरिका में, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग करने वाले ‘ग्रीन बिटकॉइन' का लाभ ले रहे हैं. बड़ी अमेरिकी क्रिप्टो माइनिंग कंपनियां, जैसे कि बिटफार्म्स और नेप्च्यून डिजिटल एसेट्स अब अपनी करेंसी को ‘ग्रीन' बताकर मार्केटिंग कर रही हैं. इस बीच, ब्राजील के सांसद अक्षय ऊर्जा से होने वाली क्रिप्टो माइनिंग पर टैक्स में छूट देने के लिए बहस कर रहे हैं.
कीमती ऊर्जा की बर्बादी?
बिटकॉइन ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करती है, जिसमें काफी ज्यादा ऊर्जा की खपत होती है. बिटकॉइन माइनिंग का मतलब पजल को सॉल्व करके नई बिटकॉइन बनाना है. इसे ‘प्रूफ ऑफ वर्क' भी कहा जाता है. इसमें काफी ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है.
ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर, 200 से अधिक कंपनियों और लोगों ने पिछले साल क्रिप्टो क्लाइमेट अकॉर्ड लॉन्च किया था. इसका मुख्य लक्ष्य यह था कि बिटकॉइन की माइनिंग के लिए, 2030 तक पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए.
हालांकि, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के लिए ग्रीन-एनर्जी के इस्तेमाल को हर कोई फायदेमंद समाधान के रूप में नहीं देखता है. अर्थशास्त्री और बिटकॉइन विशेषज्ञ एलेक्स डी व्रीस ने कहा कि ग्रीन एनर्जी का इस्तेमाल ‘रैंडम कंप्यूटेशन' की जगह उन क्षेत्रों में करना चाहिए जिनसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था बेहतर हो सके. साथ ही, रोजगार और दूसरे आर्थिक लाभ मिल सके.
दरअसल, हाल के समय में क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग में अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा है, क्योंकि यह ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत है. क्रिप्टोकरेंसी विश्लेषण फर्म कॉइनशेयर के एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि 2019 में पूरी दुनिया में बिटकॉइन की माइनिंग के लिए जितनी ऊर्जा की खपत की गई है उनमें से कम से कम 74 फीसदी ऊर्जा अक्षय स्रोत से आई है. इनमें इस्तेमाल की गई ज्यादातर ऊर्जा चीन के हाइड्रोपावर प्लांट की थी.
हालांकि, 2021 में चीनी सरकार ने काफी ज्यादा ऊर्जा खर्च होने की वजह से क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया. इस बीच, स्वीडन ने यूरोपीय संघ से क्रिप्टो की माइनिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. स्वीडन ने तर्क दिया है कि इसमें उस अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल होता है जिसकी मदद से कई क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज किया जा सकता है. ऐसे में क्रिप्टो के लिए अक्षय ऊर्जा के ज्यादा इस्तेमाल से जलवायु लक्ष्य खतरे में पड़ सकते हैं.
अपवाद है कोस्टा रिका
अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में ऊर्जा के क्षेत्र में शोध करने वाले जोस डैनियल लारा कोस्टा रिका के रहने वाले हैं. वह मानते हैं कि देश में ऊर्जा का उत्पादन खपत से ज्यादा है. इस वजह से ग्रीन क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के पक्ष में तर्क दिए जा सकते हैं. आदर्श स्थिति यह है कि कोस्टा रिका को अपनी बची हुई ऊर्जा निर्यात करनी चाहिए, लेकिन फिलहाल यह संभव नहीं है. उदाहरण के लिए, पड़ोसी देश निकारागुआ में ऊर्जा की किल्लत है. यहां कोस्टा रिका अपनी ऊर्जा का निर्यात कर सकता है, लेकिन निकारागुआ के पास इसे आयात करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है.
बिटकॉइन माइनिंग की वजह से कोपर ने एक मेगावाट की क्षमता वाले अपने दो हाइड्रोपावर प्लांट को फिर से चालू कर दिया है. साथ ही, बिजली को किसी ऐसी चीज में बदलने की अनुमति दी है जिसे फिजिकल पावर ग्रिड की जरूरत के बिना निर्यात किया जा सकता है. उन्होंने कहा, "यहां हमें ऊर्जा को डिजिटल टोकन में बदलने का मौका मिला.”
उन्होंने सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के लिए कंटेनर जैसा स्टोरेज रूम स्थापित किया है. इसे इस तरह बनाया गया कि यहां ना तो नमी का असर होता है और ना ही गर्मी का. अब विदेशों में माइनिंग करने वाली कंपनियों को सीपीयू रखने के लिए इसे किराए पर दिया जा रहा है. साथ ही, वह खुद भी बिटकॉइन की माइनिंग कर रहे हैं. इसका फायदा यह हुआ कि उन्हें अपने 25 कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकालना पड़ा. अब वे आने वाले महीनों में तीसरे प्लांट को भी फिर से चालू करने की योजना बना रहे हैं.
पोअस आई क्रिप्टो माइनिंग सेंटर कोस्टा रिका में अपनी तरह का पहला माइनिंग सेंटर है, लेकिन कोपर चाहते हैं कि देश में ऊर्जा के क्षेत्र से जुड़े दूसरे कारोबारी भी इस कारोबार में शामिल हों. कई अन्य कंपनियों का भी दावा है कि क्रिप्टो माइनिंग से अक्षय ऊर्जा के उत्पादन से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने में मदद मिल सकती है.
ग्रिड का संतुलन बनाए रखने के लिए क्रिप्टो माइनिंग
टेक्सास में, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की कंपनी लैंसियम अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल से चलने वाली बिटकॉइन माइनिंग सेंटर का निर्माण कर रही है. हालांकि, इसे पारंपरिक रूप से तैयार होने वाली बिजली की बचत बताने की जगह दूसरे तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि यहां बिटकॉइन की माइनिंग के जरिए ग्रिड का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी.
अक्षय ऊर्जा की वजह से कई तरह की समस्याएं भी होती हैं. उदाहरण के लिए, टेक्सस में मौसम में उतार-चढ़ाव की वजह से विंड फॉर्म से कभी ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन होता है, तो कभी कम. ऐसे में ऊर्जा की ज्यादा आपूर्ति से ग्रिड पर असर पड़ता है, यहां तक कि कभी-कभी ब्लैकआउट भी हो सकता है. यही वजह है कि नवीकरणीय ऊर्जा के दबाव को संतुलित करने के लिए जीवाश्म ईंधन वाले बिजली स्टेशन का इस्तेमाल किया जाता है.
लैंसियम का कहना है कि हमारा मॉडल बिटकॉइन माइनिंग की जगह ग्रिड के संतुलन को बनाए रखने पर जोर देता है. वहीं, लारा कहते हैं कि लैंसियम जैसी परियोजनाएं वाकई में अक्षय ऊर्जा का विस्तार कर सकती हैं और जीवाश्म ईंधन की जरूरत को कम कर सकती हैं.
जीवाश्म ईंधन वाली अर्थव्यवस्थाओं की ओर पलायन
हालांकि, डी व्रीस का कहना है कि ग्रीन क्रिप्टोकरेंसी का ज्यादा असर कार्बन फुटप्रिंट पर नहीं पड़ रहा है. चीन में क्रिप्टो से जुड़ी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगने के बाद, माइनिंग करने वाले ज्यादातर लोग और कंपनियां जीवाश्म ईंधन से समृद्ध देश कजाखस्तान और अमेरिका जैसे देशों में चले गए.
अगस्त 2020 में, दुनिया भर में कुल बिटकॉइन के 5 फीसदी हिस्से की माइनिंग अमेरिका में हुई. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के आंकड़ों के अनुसार, एक साल बाद यह आंकड़ा बढ़कर 35 फीसदी तक पहुंच गया. टेक्सास खुद को क्रिप्टो कैपिटल के तौर पर विकसित कर रहा है. हालांकि, लैंसियम जैसी परियोजनाओं के बावजूद, राज्य की अधिकांश बिजली की आपूर्ति अभी भी कोयले और गैस से होती है.
ऊर्जा की कम लागत वाला क्रिप्टो मॉडल
कोपर जोर देकर कहते हैं कि पूरी दुनिया नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है. इसी के साथ ग्रीन-माइनिंग से बिटकॉइन के कार्बन फुटप्रिंट को खत्म करने में मदद मिल सकती है. उन्होंने कहा, "हम डर्टी बिटकॉइन को क्लीन बिटकॉइन से अलग करने का प्रयास कर रहे हैं. उपभोक्ताओं को इसे पहचानने में कुछ समय लग सकता है, लेकिन यह समय की जरूरत है.”
वहीं, डी व्रीस का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी को अधिक ऊर्जा-कुशल बनाना एक बेहतर समाधान होगा. कार्डानो और बीनेंस जैसे ब्लॉकचेन प्लैटफॉर्म पहले से ही अलग मॉडल का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसे ‘प्रूफ ऑफ स्टेक' कहा जाता है. इसकी मदद से, माइनिंग करने वाले नए पजल को हल करने की जगह लेनदेन के लिए अपने पुराने कॉइन का ही इस्तेमाल करते हैं. इससे नए बिटकॉइन के निर्माण में खपत होने वाली ऊर्जा की बचत होती है.
डी व्रीस कहते हैं, "अगर आप प्रूफ ऑफ स्टेक का इस्तेमाल करते हैं, तो आपको ज्यादा हार्डवेयर की जरूरत नहीं होती है. आपके पास सिर्फ इंटरनेट से कनेक्ट किया हुआ डिवाइस होना चाहिए.”
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी इथेरियम भी इस साल से प्रूफ ऑफ स्टेक पर स्विच करने की योजना बना रही है. डी व्रीस का कहना है कि यह एक नई तकनीक है, लेकिन अगर यह काम इथेरियम करती है, तो दूसरे क्रिप्टोकरेंसी भी इस रास्ते पर आगे बढ़ सकती है. (dw.com)
यूक्रेन पर रूसी सेना के हमले लगातार जारी हैं लेकिन अपुष्ट खबरों में हमलावर सेना को भी भारी नुकसान होने की बात कही जा रही है. रूसी राष्ट्रपति ने परमाणु हथियारों को हमले के लिए तैयार रहने का भी हुक्म दिया है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूसी परमाणु हथियारों को लॉन्च के लिए तैयार रहने को कहा है. पुतिन ने इसके लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों को जिम्मेदार बताया है. उनका कहना है कि नाटो शक्तियों ने रूस के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के साथ ही रूसी बैंकों को स्विफ्ट भुगतान तंत्र से बाहर कर दिया और "आक्रामक बयान" दे रहे हैं. पुतिन ने रक्षा मंत्री और सेना प्रमुख को परमाणु प्रतिरक्षा हथियारों को "युद्धक अभियान की विशेष स्थिति" में रखने का हुक्म दिया. अमेरिका ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए रूस पर युद्ध को फैलाने का आरोप लगाया है.
रूस और यूक्रेन एक प्रतिनिधिमंडल के जरिए आपस में बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं. यह बातचीत बेलारूस और यूक्रेन की सीमा पर होगी.
इस बीच रूसी सेना यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर में भी घुस गई है. रूसी सेना ने यूक्रेन के तेल और गैस ठिकानों को निशाना बनाया है. रविवार सुबह भी कई जगहों पर भारी धमाकों की आवाज के साथ आग की लपटें और धुएं का बादल उठता नजर आया. यूक्रेन की सेना ने रूसी सैनिकों को राजधानी कीव में आगे बढ़ने से रोक रखा है. इस बीच रूसी सेना यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में घुस गई है.
पूरी रात चलता रहा हमला
रूसी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने रविवार को कहा कि बीती रात बहुत भयानक थी. रूसी गोलाबारी का निशाना नागरिक ठिकानों को बनाया गया. इनमें एक एंबुलेंस भी शामिल है. अब तक इस लड़ाई में कितने लोगों की जान गई है, इसका ठीक ठीक आंकड़ा नहीं मिल सका है. संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी ने 64 लोगों की जान जाने की बात कही, जबकि यूक्रेन का दावा है कि 3,500 रूसी सैनिक हताहत हुए हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार ने कहा है कि करीब 3500 रूसी सैनिक या तो घायल हुए हैं या मारे गए हैं. पश्चिमी देशों के अधिकारी खुफिया जानकारी के आधार पर बता रहे हैं कि रूसी सेना को उम्मीद से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है.
रूस ने आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है. स्वतंत्र रूप से भी मौत के आंकड़ों की पुष्टि नहीं हो सकी है.
रूस के मिसाइलों का हमला पूरी रात चलता रहा है. इसमें एक हमला वासिलकिव में एक तेल ठिकाने पर हुआ जो कीव के दक्षिणपश्चिम में है. यहां धमाके के बाद आग की भारी लपटें निकलने लगीं पूरा आसमान काले धुएं से भर गया. वासिलकीव की मेयर नतालिया बालासिनोविच का कहना है, "दुश्मन हर चीज को खत्म कर देना चाहता है."
यूुक्रेन के अधिकारियों ने लोगों को उनके घरों में और सुरक्षित ठिकानों पर रहने के लिए कहा है. कीव में सोमवार तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है.
उत्तर पूर्वी इलाके में मौजूद खारकीव में भारी लड़ाई चल रही है. यहां रूसी सैनिकों ने प्राकृतिक गैस की एक पाइपलाइन को उड़ा दिया है. धमाके ने आकाश को गहरे धुएं से ढंक दिया. हालांकि यूक्रेन के गैस पाइपलाइन ऑपरेटर का कहना है कि यूक्रेन से हो कर यूरोप जाने वाली रूसी गैस की सप्लाई सामान्य रूप से चालू है.
यूक्रेन के गृह मंत्रालय ने टेलिग्राम पर तस्वीरें डाली है जिनमें बहुत से सैन्य गाड़ियों को खारकीव की सड़कों पर देखा जा सकता है. एक जलते हुए टैंक की तस्वीर भी अलग से डाली गई है.
कीव में रह रह कर गोलियों और धमाकों की आवाज पूरी रात गूंजती रही. सुबह 9 बजे के करीब हवाई हमले का सायरन बजने के बाद तीन बड़े धमाकों की आवाज भी सुनाई दी है.
दृढ़ता से डटे हैं जेलेंस्की
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की काफी दृढ़ता के साथ डटे हुए हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश डाला है जो कीव की सड़कों पर रिकॉर्ड किया गया है. संदेश में जेलेंस्की ने कहा है "हम दुश्मन के हमले के सामने डटे हुए हैं और उन्हें रोकने में सफल हुए हैं." एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी का कहना है कि यूक्रेन के सैनिक रूस को हवा, जमीन और सागर में कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
रूस ने बातचीत करने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल बेलारूस भेजा है जिसमें सेना के अफसर और राजनयिक हैं. इससे पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने बेलारूस में बात करने से मना कर दिया था. इसके पहले रूस ने कहा कि एक रूसी प्रतिनिधिमंडल बेलारूस चला गया है और बातचीत की प्रतीक्षा कर रहा है. बातचीत के समय और जगह की जानकारी फिलहाल नहीं दी गई है. जेलेंस्की ने वारसॉ, ब्रातिस्लावा, बाकू, बुडापेस्ट या फिर इस्तांबुल में बातचीत करने का प्रस्ताव दिया था. इस बीच इस्राएल के प्रधानमंत्री ने रूसी राष्ट्रपति से फोन पर बातचीत में दोनों देशों के बीच मध्यस्थ बनने की पेशकश की है.
यूक्रेन को मदद
यूक्रेन को रूस के हमले का जवाब देने में दुनिया के कई देशों की मदद मिल रही है. हंगरी, पुर्तगाल, फ्रांस, ब्रिटेन समेत कई देश उसकी मदद के लिए आगे आए हैं. अब तक हथियार देने से इनकार करता रहा जर्मनी भी अब इसमें शामिल हो गया है. जर्मनी ने यूक्रेन शनिवार की शाम यूक्रेन को हथियार देने पर लगी रोक हटाने का फैसला किया है. हालांकि यूक्रेन का कहना है कि यह फैसला देर से लिया गया है. इस वक्त समस्या यह है कि ये हथियार वहां पहुंचे कैसे? जर्मनी ने कहा है कि वह जल्दी ही टैंकरोधी हथियार और मिसाइलें यूक्रेन भेजेगा.
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने कहा है कि उसने यूक्रेन को और अधिक हथियार देने की मंजूरी दे रहे हैं ताकि वह रूस के हमले से अपना बचाव कर सके. अमेरिका ने यूक्रेन को 35 करोड़ डॉलर की सैन्य सहायता देने का फैसला किया है. इनमें टैंक रोधी हथियार, कवच और छोटे हथियार शामिल हैं. इटली ने यूक्रेन को 11 करोड़ यूरो की तत्काल मदद देने का एलान किया है.
रूस पर प्रतिबंधों का आना जारी
शनिवार को इन देशों ने कुछ रूसी बैंकों के स्विफ्ट भुगतान तंत्र का इस्तेमाल करने पर रोक लगाने का फैसला किया. ऐसे में रूस और उसकी कंपनियों के लिए व्यापार मुश्किल हो जाएगा. इन देशों का कहना है कि वे रूसी सेंट्रल बैंक पर भी इस तरह की पाबंदियां लगाएंगे कि रूसी मुद्रा रूबल की मदद करना मुश्किल हो जाएगा.
इन देशों ने उन बैंकों का नाम नहीं लिया जिन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा लेकिन यूरोपीय संघ के एक अधिकारी का कहना है कि 70 फीसदी रूसी बैंकिंग बाजार पर इसका असर होगा. पश्चिमी देश पहले स्विफ्ट का इस्तेमाल करने से बच रहे थे क्योंकि इसका असर उनकी अपनी अर्थव्यवस्था पर भी होगा. रूस के सेंट्रल बैंक पर पाबंदी से पुतिन के लिए विदेशी मुद्रा के भंडार का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाएगा. रूस के पास करीब 640 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है और प्रतिबंधों का सामना करने में पुतिन के लिए इसे बड़ी मदद समझा जा रहा है.
इस बीच गूगल ने रूस के सरकारी टीवी चैनल आरटी और दूसरे चैनलों को उनके वेबसाइट से होने वाली कमाई रोक दी है. इसमें वेबसाइट, ऐप और यूट्यूब के वीडियो शामिल हैं. इसी तरह के कदम फेसबुक ने भी उठाए हैं.
रूसी विमानों के लिए रास्ता बंद
जर्मनी ने अपनी वायुसीमा से रूसी विमानों के गुजरने पर रोक लगा दी है. जर्मनी के अलावा अमेरिका, बेल्जियम, नीदरलैंड, इटली ने भी रूसी विमानों के लिए अपना एयरस्पेस बंद करने का फैसला किया है. इनके अलावा नॉर्डिक देशों में फिनलैंड, स्वीडन और डेनमार्क ने भी कहा है को अपनी वायुसीमा को रूसी विमानों के लिए बंद करने की तैयारी कर रहे हैं. पुर्तगाल, स्पेन, इटली, फ्रांस कनाडा और उत्तरी मैसेडोनिया ने भी रूसी विमानों के लिए वायुसीमा बंद करने का एलान कर दिया है.
इन देशों की कतार में ब्रिटेन, बुल्गारिया, पोलैंड, चेक, रोमानिया भी शामिल हो रहे हैं. बाल्टिक देशों में लिथुआनिया, लातविया और एस्तोनिया भी रूसी विमानों के लिए अपनी वायुसीमा बंद कर रहे हैं. आइसलैंड भी इन देशों में शामिल हो गया है. रूस ने भी इनमें से ज्यादातर देशों के लिए अपनी वायुसीमा बंद कर दी है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आज एक और बैठक हो रही है जिसमें यूक्रेन के खिलाफ युद्ध रोकने के लिए प्रस्ताव को आम सभा में भेजने के बारे में चर्चा की जाएगी. इससे पहले इस प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद में रूस ने वीटो कर दिया था.
यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका के नेताओं ने शनिवार को एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है, "हम रूस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराएंगे और सामूहिक रूप से यह सुनिश्चित करेंगे कि यह जंग पुतिन के लिए एक रणनीतिक हार बने."
विकसित देशों के संगठन जी7 के नेता रविवार शाम एक ऑनलाइन बैठक करेंगे जिसमें रूस के खिलाफ आगे की रणनीति पर चर्चा की जाएगी.
शरणार्थी संकट
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी ने रविवार को बताया कि रूस के हमले के बाद अब तक 368,000 लोग यूक्रेन से बाहर गए हैं. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. इनमें से सबसे ज्यादा यानी करीब 156,000 लोग पोलैंड गए हैं. पोलैंड के बॉर्डर गार्ड का कहना है कि केवल शनिवार को ही करीब 77,300 लोगों ने सीमा पार की है.
इसके अलावा रोमेनिया, हंगरी, मोल्दोवा, स्लोवाकिया में भी लोग बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं. लाखों की संख्या में लोग यूक्रेन के भीतर भी विस्थापित हुए हैं. कोई पैदल, कोई कार में तो कोई किसी और जरिए जैसे भी संभव है यूक्रेन से निकलने की कोशिश कर रहा है. देश के बाहर जाने वालों में ज्यादातर महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग और विदेशी हैं. इन्हें नहीं पता कि सीमा पार करने के बाद भी कहां जाएं. स्थानीय लोग और कुछ स्वयंसेवक इनके लिए खाना और दूसरी मदद का इंतजाम कर रहे हैं.
एनआर/एडी (एपी, रॉयटर्स, एएफपी,डीपीए)
काबुल, 28 फरवरी | अफगानिस्तान में घर घर तलाशी अभियान के नतीजे काफी सकारात्मक रहे हैं और इस दौरान भारी मात्रा में हथियार तथा गोला बारूद बरामद किया गया है। इसके अलावा इस अभियान में दाएश लड़ाकों, लुटेरों तथा अपहरणकर्ताओं को भी धर दबोचा गया है।
इस्लामिक अमीरात के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने रविवार को काबुल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हाल ही में घर घर तलाशी अभियान का उद्देश्य अपराधियों को पकड़ना था, जिनमें से कुछ को सरकार बदलने के दौरान जेल से रिहा कर दिया गया था।
टोलोन्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, मुजाहिद ने बताया कि इस्लामिक अमीरात के घरों की तलाशी लेने वाली सेना में महिलाएं थीं और केवल 'संदिग्ध क्षेत्रों' की तलाशी ली गई थी।
उन्होंने कहा कि इस दौरान 'नौ अपहरणकर्ता, दाएश से जुड़े छह लड़ाकों और 53 लुटेरों' को हिरासत में लिया गया है।
इस बीच काबुल के कुछ निवासियों ने कहा कि इस्लामिक अमीरात बलों ने उनके घरों पर छापा मारा था। काबुल निवासी अली यासर ने कहा, "उन्होंने कहा था कि परिवार को घर के अंदर रहना चाहिए और जिस कमरे में महिलाएं थीं उसे छोड़कर सभी कमरों की तलाशी ली गई थी। रविवार सुबह करीब 10:30 बजे तालिबानी सुरक्षा बल आए और उनमें एक महिला भी थी। उन्होंने घरों में तलाशी अभियान चलाया।"
राजधानी के निवासियों ने पहले भी इस्लामिक अमीरात द्वारा घर-घर तलाशी की शिकायत की थी।
मुजाहिद ने कहा कि अभियान के दौरान काबुल में एक घर में जंजीरों से बंधी दो लड़कियां मिलीं। उन्होंने कहा कि स्थिति के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए जांच की जा रही है।
प्रवक्ता ने वित्तीय गतिविधियों की अनुमति देने वाले नए अमेरिकी लाइसेंस का स्वागत करते हुए अन्य प्रतिबंधों को हटाने तथा राजनयिक प्रयासों के विस्तार का आग्रह किया है। मुजाहिद ने कहा कि इस्लामिक अमीरात उन लोगों के खिलाफ है जो अपने परिवारों के साथ देश छोड़ कर जा रहे हैं, क्योंकि विदेशों में अफगानी गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं।
उन्होंने कहा, "इस्लामिक मूल्यों के आधार पर महिलाओं को बिना पुरुष के यात्रा करने की अनुमति नहीं है और विदेशों में पढ़ रही छात्राओं के बारे में इस मामले में विचार किया जा रहा है।"
हिरासत में ली गई महिला प्रदर्शनकारियों के बारे में पूछे जाने पर मुजाहिद ने कहा कि इस बारे में कोई नई जानकारी नहीं है और अटॉर्नी जनरल का कार्यालय मामले की जांच कर रहा है।
सूचना और संस्कृति के उप मंत्री का पदभार संभाल रहे मुजाहिद ने डूरंड रेखा पार करने वाले लोगों के बारे में कहा कि यह स्थानीय विवाद है और इस्लामिक अमीरात पड़ोसियों के साथ विवादों को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 फरवरी | यूक्रेन की स्टेट इमरजेंसी सर्विस ने बताया कि रूस ने पूरी रात उत्तरी शहर चेर्निहाइव में गोलाबारी की। यूक्रेन के अधिकारियों ने बताया कि राजधानी कीव और दूसरे शहर खारकीव में तड़के से पहले धमाकों की आवाज सुनी गई।
चेर्निहाइव में पूरी रात गोले गिरे, हालांकि शहर में अब तक केवल एक के घायल होने की सूचना है। यूक्रेनी राज्य आपातकालीन सेवा के अनुसार, तोपखानों से हमला लगभग रात करीब 2.00 बजे शुरू हुआ।
एजेंसी के अनुसार, रॉकेटों ने एक किंडरगार्टन आवास वाली एक इमारत पर हमला किया, जिससे आग लग गई। केंद्रीय बाजार में एक दुकान के साथ-साथ पांच मंजिला आवासीय अपार्टमेंट की इमारत भी क्षतिग्रस्त हो गई। बीबीसी ने बताया कि एक महिला मामूली रूप से घायल हो गई।
यूक्रेन की राजधानी और देश भर के अन्य शहरों में रात में और विस्फोट होने की सूचना है।
यूक्रेन का दावा है कि उसके सैनिक राजधानी के बाहरी इलाके में रूसी सैनिकों द्वारा किए गए कई हमलों को विफल करने में कामयाब रहे। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, सशस्त्र बलों के कमांडर कर्नल जनरल अलेक्जेंडर सिस्र्की ने एक बयान में कहा, "हमने दिखाया कि हम बिन बुलाए मेहमानों से अपने घर की रक्षा कर सकते हैं।"
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि अगले 24 घंटे रूसी आक्रमण का पांचवां दिन है, जो यूक्रेन के लिए महत्वपूर्ण होगा।
रूसी रूबल गंभीर प्रतिबंधों के मद्देनजर डॉलर के मुकाबले एक नए निचले स्तर पर आ गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को हथियार भेजने का फैसला किया है। (आईएएनएस)
-जो टिडी
क्रिप्टो करेंसी विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन को युद्ध मदद के तौर पर अब तक अनाम बिटकॉइन दान के जरिए कम से कम 13.7 मिलियन डॉलर की रकम मिली है.
ब्लॉक चेन एनेलिसिस कंपनी एलिप्टिक के शोधकर्ताओं का कहना है कि यूक्रेन की सरकार, वहां काम कर रहे गैर सरकारी संगठन और स्वयंसेवक समूहों ने अपने बिटकॉइन वॉलेट के ऑनलाइन प्रचार के ज़रिए पैसा जुटाया है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक अब तक चार हज़ार से अधिक लोग यूक्रेन युद्ध में मदद के लिए दान कर चुके हैं. एक दानदाता ने अकेले ही एक एनजीओ को तीस लाख डॉलर क़ीमत का बिटकॉइन दिया है.
लोगों ने औसतन 95 डॉलर का दान किया है.
शनिवार दोपहर को यूक्रेन की सरकार के अधिकारिक अकाउंट से एक संदेश ट्वीट किया गया, "यूक्रेन के लोगों का साथ दीजिए, अब हम क्रिप्टो करेंसी में भी दान स्वीकार कर रहे हैं. बिटकॉइन, इथीरियम और अमेरिकी डॉलर में दान दीजिए."
सरकार की अपील पर दान
सरकार ने दो क्रिप्टो वॉलेट का पता पोस्ट किया जहां 54 लाख डॉलर का चंदा आ चुका है. आठ घंटों के भीतर ही बिटकॉइन, इथीरियम और दूसरी क्रिप्टो करेंसी में ये चंदा यूक्रेन को मिला.
यूक्रेन के डिजिटल मंत्रालय का कहना है कि ये दान यूक्रेन के युद्ध प्रयासों में मदद करने के लिए हैं. हालांकि मंत्रालय ने ये नहीं बताया है कि ये पैसा कैसे इस्तेमाल किया जाएगा.
एलिप्टिक के संस्थापक टॉम रोबिंसन के ने बीबीसी से कहा, "कुछ क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म और पेमेंट कंपनियों ने यूक्रेन का समर्थन करने वाल समूहों के लिए दान को रोक दिया है. ऐसे में बिटकॉइन और दूसरी क्रिप्टो करेंसी दान हासिल करने का सशक्त माध्यम बनी है."
शुक्रवार को पैसा जुटाने वाले प्लेटफॉर्म पेट्रियोन ने घोषणा की थी उसने कम बैक अलाइव अभियान के फंड को रोक दिया है. यूक्रेन का ये एनजीओ साल 2014 से यूक्रेन के सैन्यबलों के लिए फंड इकट्ठा कर रहा है.
पेट्रियोन ने अपने बयान में कहा है कि वो अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए फंड जुटाने के लिए नहीं होने देते हैं.
वीडियो कैप्शन,
रूस-यूक्रेन संकट: क्या ये तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत है?
बदल रहा है तरीका
दुनियाभर में चल रहे संघर्षों में क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिए फंड जुटाना एक लोकप्रिय तरीका बनता जा रहा है.
स्कैम करने वाले गिरोह भी यूक्रेन के मौजूदा संकट का फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. वो लोगों को चाल में फंसाकर अपने वॉलेट में फंड देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
एलिप्टिक का कहना है कि कम से कम एक सोशल मीडिया पोस्ट में एक एनजीओ की दान देने की अपील को कॉपी करते हुए बिटकॉइन वॉलेट का पता बदल दिया गया था. हो सकता है उन्होंने अपने वॉलेट का पता डाल दिया हो.
अब तक क्या हुआ?
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को यूक्रेन में 'विशेष सैन्य कार्रवाई' करने का एलान कर दिया. उनके इस एलान के बाद यूक्रेन की राजधानी कीएव सहित देश के अन्य हिस्सों में धमाके गूंजने लगे.
रूस की तरफ़ से हुई ये कार्रवाई पुतिन के 'मिंस्क शांति समझौते' को ख़त्म करने और यूक्रेन के दो अलगाववादी क्षेत्रों में सेना भेजने के सोमवार के एलान के बाद हुई. रूस की तरफ़ से इन क्षेत्रों में सेना भेजने की वजह 'शांति कायम करना' बताया गया.
इससे पहले, रूस ने पिछले कुछ महीनों से यूक्रेन की सीमा पर हज़ारों सैनिकों को तैनात कर दिया था. उसके बाद से ही यूक्रेन पर हमले की अटकलें लगाई जा रही थीं.
रूस लंबे समय से यूरोपीय संगठनों ख़ासकर नेटो के साथ यूक्रेन के जुड़ाव का विरोध करता रहा है.
इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की लगातार दुनिया के अलग-अलग देशों से समर्थन जुटाने में जुटे हैं. अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को हथियार भेजने की बात कही है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 27 फरवरी | रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रविवार को देश के परमाणु प्रतिरोधी बलों को 'विशेष' अलर्ट पर रखा है। इस कदम की घोषणा रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु और चीफ ऑफ स्टाफ वालेरी गेरासिमोव के साथ पुतिन की बैठक के दौरान की गई।
पुतिन ने कहा, "पश्चिमी देश न केवल आर्थिक क्षेत्र में हमारे देश के खिलाफ अमित्र कार्रवाई कर रहे हैं। मैं उन नाजायज प्रतिबंधों के बारे में बोल रहा हूं, जिनके बारे में सभी अच्छी तरह जानते हैं। हालांकि, प्रमुख नाटो देशों के शीर्ष अधिकारी भी हमारे देश के खिलाफ आक्रामक बयान देते हैं।"
आरटी के मुताबिक, उन्होंने कहा कि यह कदम नाटो के शीर्ष अधिकारियों द्वारा 'शत्रुतापूर्ण' बयानबाजी के जवाब में आया है।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, पुतिन ने इससे पहले रविवार को एक नए टेलीविजन संबोधन में 'अपने सैन्य कर्तव्यों को वीरतापूर्वक निभाने' के लिए अपने विशेष बलों की प्रशंसा की।
रिपोर्ट में कहा गया है, पुतिन ने 'डोनबास के लोगों के गणराज्यों को सहायता प्रदान करने के लिए विशेष अभियान' में शामिल सैनिकों के लिए अपना 'विशेष आभार' दिया - क्रेमलिन की प्रचार लाइन का एक संदर्भ कि इसने यूक्रेन में रूसी समर्थक अलगाववादियों की मदद करने के लिए हस्तक्षेप किया, जो खतरे में थे।
पुतिन ने स्पेशल ऑपरेशंस फोर्सेज (एसओएफ) के वार्षिक दिवस को चिह्न्ति करने के लिए बात की, क्योंकि उनके विशाल बल बढ़ते रूसी नुकसान के बीच यूक्रेनी प्रतिरोध को कुचलने के लिए अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दिए।
यूक्रेन के राष्ट्रपति ने आज कहा कि उनका देश शांति वार्ता के लिए तैयार है, रूसी सेना रविवार को यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खार्किव में प्रवेश कर गई, क्योंकि वह राजधानी कीव शहर पर नियंत्रण करने के अपने रातभर के प्रयासों में विफल रहा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 फरवरी| कीव गोलाबारी की एक और 'क्रूर' रात को झेलने से बच गया है, क्योंकि यूक्रेन की सेना ने चौथे दिन रूसी सैनिकों को शहर पर कब्जा करने से रोक दिया। यह जानकारी डेली मेल ने दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वयंसेवियों में शामिल पूर्व मिस यूक्रेन अनास्तासिया लेना ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सेना से लड़ने के लिए हथियार उठा लिए हैं। उनके साथ नागरिकों की 'लंबी कतारें' हैं, जो कीव में भर्ती केंद्रों पर हथियार जारी करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में मिस यूक्रेन प्रतियोगिता जीतने वाली लेना ने इंस्टाग्राम पर अपनी एक तस्वीर पोस्ट करते हुए घोषणा की कि वह रूसी सैनिकों के खिलाफ प्रतिरोध में शामिल हो गई हैं।
लेना, आमतौर पर तुर्की में जनसंपर्क प्रबंधक के रूप में काम करती हैं। उन्होंने दो हैशटैग के साथ एक तस्वीर पोस्ट की और लिखा - "यूक्रेन के साथ खड़े हो जाओ और यूक्रेन से हाथ हटाओ।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पहली बार नहीं है जब लेना को बंदूक के साथ चित्रित किया गया है। पिछली पोस्ट में उन्हें जंगली अखाड़ों और इनडोर प्रशिक्षण मैदानों में हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेते दिखाया गया है।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, वह सैकड़ों स्वयंसेवियों में शामिल हैं, जिनमें एक कृत्रिम पैर वाला एक व्यक्ति और एक युवा जोड़ा भी शामिल है, जो अगले दिन नागरिक सुरक्षा बल में शामिल होने से पहले शादी के बंधन में बंध गया।
मेयर विटाली क्लिट्स्को ने कहा कि सैन्य, कानून प्रवर्तन और क्षेत्रीय रक्षा बल तोड़फोड़ करने वालों का पता लगाने और हमले को बेअसर करने में जुटे हैं।
उन्होंने अपने टेलीग्राम चैनल पर कहा कि शहर में एक बच्चे सहित नौ लोग 'खो गए या मारे गए'। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 फरवरी | यूक्रेन सैन्य पृष्ठभूमि वाले कैदियों और आपराधिक संदिग्धों को रिहा कर रहा है, ताकि वे भी देश में रूस के 'विशेष अभियान' के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो सकें। यूक्रेन के अभियोजक जनरल के कार्यालय के एक अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी। मॉस्को ने गुरुवार को अपने पड़ोसी पर हमला किया, यह तर्क देते हुए कि वह डोनेट्स्क और लुगांस्क पीपुल्स रिपब्लिक का बचाव कर रहा था, जो कि कीव में 2014 के तख्तापलट के तुरंत बाद पूर्वी यूक्रेन से अलग हो गया था। यूक्रेन ने इस कदम की निंदा की और दावा किया कि यह अकारण आक्रामकता का कार्य था।
अभियोजक जनरल के कार्यालय के एक अभियोजक एंड्री सिन्यूक ने रविवार को एक टीवी चैनल को बताया कि सेवा रिकॉर्ड, युद्ध का अनुभव और पश्चाताप प्रत्येक व्यक्तिगत मामले में विचार किए जाने वाले कारकों में से हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, "यह एक जटिल मुद्दा है जिसे उच्चतम स्तर पर तय किया गया है।"
सिन्युक को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि सर्गेई टोरबिन, एक पूर्व लड़ाकू अनुभवी, रिहा किए गए कैदियों में से एक था। टॉर्बिन पहले डीपीआर और एलपीआर के साथ संघर्ष में लड़े थे। आरटी ने बताया कि नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और भ्रष्टाचार विरोधी प्रचारक कतेरीना हांडजिउक की हत्या में उनकी भूमिका के लिए उन्हें 2018 में छह साल और छह महीने की जेल हुई थी।
महिला को जुलाई 2018 में उसके घर के बाहर एक सड़क पर तेजाब से डुबो दिया गया था और उस वर्ष बाद में गंभीर रूप से जलने से अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।
सिन्युक ने कहा कि टोरबिन ने अपनी जल्दी रिहाई के बाद अपने दस्ते के लिए पूर्व कैदियों को चुना। उन्होंने कहा कि एक अन्य पूर्व सैनिक, दिमित्री बालाबुखा, को 2018 में एक तर्क के बाद बस स्टॉप पर एक व्यक्ति की चाकू मारकर हत्या करने के लिए नौ साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।
यूक्रेनी सरकार सक्रिय रूप से नागरिकों को हथियार दे रही है, क्योंकि रूसी सेनाएं इसकी राजधानी के करीब पहुंच रही हैं। मीडिया ने रविवार को कीव के बाहरी इलाके में नए सिरे से लड़ाई की सूचना दी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 फरवरी | बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने पश्चिमी देशों को मास्को पर कड़े प्रतिबंध लगाने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा है कि इस तरह के उपाय रूस को 'तीसरे विश्व युद्ध' में धकेल सकते हैं। लुकाशेंको का यह बयान आरटी की खबर में लिया गया है। लुकाशेंको ने रविवार को स्थानीय मीडिया के हवाले से कहा, "अब बैंकिंग क्षेत्र के खिलाफ बहुत सारी बातें हो रही हैं। गैस, तेल, स्विफ्ट। यह युद्ध से भी बदतर है। यह रूस को तीसरे विश्वयुद्ध में धकेल रहा है।" खबर में कहा गया है कि उन्होंने कहा कि परमाणु संघर्ष अंतिम परिणाम हो सकता है।
24 फरवरी को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा आदेशित यूक्रेन के खिलाफ रूसी सैन्य हमले की पश्चिमी देशों ने निंदा की और मास्को के खिलाफ सख्त प्रतिबंधों की एक नई लहर को प्रेरित किया।
मास्को के खिलाफ नवीनतम कदम में यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका ने कहा कि 'चयनित रूसी बैंक ' स्विफ्ट अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली से कट जाएंगे - एक उपाय जिसे रूस ने अतीत में चेतावनी दी थी, उसे युद्ध की घोषणा के रूप में माना जाएगा।
आरटी के मुताबिक, आगे के उपायों की धमकी के बावजूद लुकाशेंको ने जोर देकर कहा कि रूस और बेलारूस दोनों किसी भी प्रतिबंध में भी 'जीवित' रहेंगे।
उन्होंने कहा, "हमारे पास अनुभव है। हमने पुतिन के साथ इस विषय पर एक से अधिक बार चर्चा की। हम जीवित रहेंगे। हमें मौत के घाट उतारना असंभव है।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि मॉस्को और मिन्स्क द्वारा विकसित किए जा रहे जवाबी उपाय बहुत ठोस होंगे। लुकाशेंको ने कहा, 'बहुत सावधानी से' उन पर विचार करना महत्वपूर्ण है, आत्म-नुकसान के लिए नहीं।
बेलारूसी नेता ने यह भी कहा है कि अगर पश्चिम सीमावर्ती देशों में परमाणु हथियार डालने के लिए आगे बढ़ता है, तो वह पुतिन से बेलारूस को अपने परमाणु हथियार 'वापस' करने के लिए कहेंगे। (आईएएनएस)
उत्तर पूर्वी यूक्रेन के खारकीएव शहर के क्षेत्रीय प्रशासनिक प्रमुख ने बताया कि स्थानीय सेनाओं ने रूस के सैनिकों के ख़िलाफ सड़कों पर जंग लड़ने के बाद शहर पर फिर से पूरी तरह नियंत्रण कर लिया है.
सोशल मीडिया पर एक संदेश में खारकीएव के गवर्नर ओलेग सिनेगुबोव ने कहा कि यूक्रेनी सेना ने रूसी सेना को शहर के बाहर खदेड़ दिया है.
इससे पहले आज सुबह से ही रूसी सेना के खारकीएव में प्रवेश की ख़बरें आनी शुरू हो गई थीं. साथ ही अलग-अलग स्रोतों से ये भी पता चला था कि रूसी सेना को यूक्रेन की सेना और लोकल मिलिशिया ज़बरदस्त टक्कर दे रहे हैं.
खारकीएव रूस का दूसरा बड़ा शहर है और यहां यूक्रेन की सेना में मिली ये छोटी की कामयाबी, उनका हौसला बढ़ा सकती है.
लेकिन ये संभव है कि रूस सेना अधिक संख्या में आकर, खारकीएव पर एक बड़ा हमला कर सकती है.
रूसी सेना के शहर छोड़ने के बाद दावे के बाद बीबीसी ने खारकीएव में कुछ लोगों से बात की है.
एक तीस वर्षीय महिला ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि बीती रात करीब साढ़े बारह बजे वो भयानक धमाकों के बीच जागी थीं.
महिला ने बीबीसी को बताया, " ये सारा अनुभव स्टार वार्स फ़िल्मों जैसा था. लगातार 15 मिनट तक धमाके होते रहे. हम सभी ने एक दोस्त के यहां शरण ली थी. मैं उस जगह के बारे में नहीं बता सकती क्योंकि ये ख़तरनाक हो सकता है."
महिला ने आगे बताया, "हम यहां इसलिए आ गए क्योंकि हमारा फ़्लैट शहर के रिंग रोड पर था जहां से रूसी सेना काफ़ी करीब है. सो अब हम ख़तरे के इलाके से दूर आ गए हैं."
महिला ने कहा कि वो अब भी गोलीबारी की आवाज़ सुन पा रही है लेकिन अब ये शोर कल रात जैसा बिल्कुल नहीं है.
उधर यूक्रेन की राजधानी कीएव में एक रिहायशी इमारत पर बमबारी की गई. अपुष्ट मीडिया रिपोर्ट्स में दिखाया गया है कि रूसी सैनिक उत्तर पश्चिमी उपनगर से गुज़र रहे हैं और मशीनगन से गोलियों की बौछार कर रहे हैं.
इलाक़े में सख़्त कर्फ्यू लागू है. (bbc.com)
यूक्रेन की राजधानी कीएव में अब रूस के सैनिक और टैंक पहुंच गए है.
इस बीच राजधानी कीएव से एक दिल दहलाने वाला वीडियो सामने आया है, जिसमें एक रूसी टैंक एक कार को कुचलता दिख रहा है. आप भी देखें.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के मुताबिक यूक्रेन छोड़कर जाने वाले लोगों की कुल संख्या 368000 के पार पहुंच गई है.
इनमें से150,000 से अधिक लोगों ने संघर्ष शुरू होने के बाद पोलैंड में शरण ली है. जबकि 43000 से अधिक लोग बीते तीन दिनों में यूक्रेन से रोमानिया पहुंचे हैं.
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और मानवीय सहयोगियों ने ‘मौजूदा हालात को देखते हुए’ अपने ऑपरेशन स्थगित कर दिए हैं.
संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र और इसके सहयोगी यूक्रेन में बने रहेंगे और हालात बेहतर होने पर अपना काम फिर शुरू करेंगे.
जब मैं सोकर उठी तो घड़ी में लगभग सवेरे के तीन बजे होंगे. मैंने न्यूज़ देखा और मुझे अहसास हुआ कि अब मुझे अपने दस साल के बेटे के साथ यूक्रेन की राजधानी कीएव को छोड़कर जाना होगा.
उत्तर दिशा के साथ-साथ अन्य दिशाओं से भी कीएव की ओर रूसी टैंक बढ़े चले आ रहे थे. ये स्पष्ट था कि रूसी सेना इस शहर को घेरने की कोशिश कर रही है और जल्द ही वह शहर के अंदर होगी.
हवाई हमले की चेतावनी में हमें बताया गया था सुबह आठ बजे तक हमले होने का ख़तरा रहेगा. लेकिन न्यूज़ देखने के तीस मिनट बाद ही हमें कुछ दूरी पर हुए धमाकों की आवाज़ें सुनाई दीं.
इससे पहले गुरुवार को लोग कीएव से निकलकर पश्चिमी यूक्रेन के प्रमुख शहर लिवीव और पोलैंड से सटी यूक्रेन की सीमा की ओर बढ़ रहे थे.
जब शहर छोड़ने का फ़ैसला किया
इन सबके बीच मैंने अपने पति को फ़ोन किया. वह उस वक्त घर से बाहर थे. इसके बाद हमने उनके पैतृक गांव जाने का फैसला किया.
मेरे पति के माता-पिता का घर यूक्रेन के ग्रामीण इलाक़े में है जो शहरी इलाक़े से काफ़ी दूर है. हमने ये फ़ैसला अपने दस साल के बेटे को ध्यान में रखते हुए लिया जो गुरुवार को पूरे दिन डर से कांपता रहा.
मैंने सामान बांधना शुरू किया. लेकिन सोचिए कि आप क्या-क्या पैक करेंगे जब आपको ये ही नहीं पता होगा कि आप कब लौटेंगे, आप लौटेंगे भी या नहीं?
मैंने तैराकी के कपड़े भी पैक किए, ये सोचकर कि शायद हमें गर्मियों तक गांव में ही रहना पड़ेगा.
कर्फ़्यू हटा और शुरू हुआ सफर
सुबह साढ़े सात बजे जब कर्फ़्यू हटा तब मैंने अपना सफर शुरू किया और हम पूर्वी दिशा की ओर बढ़ते हुए कीएव के दूसरी छोर पर पहुंच गए.
मैं जिस ओर बढ़ रही थी उस ओर सड़कें खाली पड़ी थीं. शहर के बाहर हमें यूक्रेन सेना के टैंक मिले जो कि हमारी विपरीत दिशा, यानी कीएव शहर की ओर बढ़ रहे थे.
मुझे नहीं पता था कि मेरा सामना रूसी सेना से हो सकता है या हो सकता है कि मैं वहां पहुंच जाऊं जहां से आगे जाना संभव न हो. लेकिन मेरा पूरा ध्यान इस बात पर था कि हमें किसी तरह गांव तक पहुंचना है.
खाली पड़े घर
अपने सफ़र के दौरान मैं बीच-बीच में ख़बरें पढ़ती रही जिससे मुझे पता चला कि कीएव के उत्तर में स्थित ओबोलोन शहर की सड़कों पर संघर्ष शुरू हो चुका है. हमारे कुछ सहकर्मी भी वहां से निकलने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन इन तमाम घटनाओं के बीच भी ये सुबह बेहद खूबसूरत थी. ग्रामीण इलाकों में वसंत ऋतु ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी. ये सब कुछ काफ़ी अजीब था, अवास्तविक-सा.
कुछ घंटों तक गाड़ी चलाने के बाद हम गांव पहुंच गये. मैं उस शहतूत के पेड़ से होकर गुज़री जहां पिछले साल शहतूत उठाते हुए हम काफ़ी ख़ुश थे.
मैं आज भी बहुत ख़ुश हूं लेकिन इस ख़ुशी की वजह अलग है. इस ख़ुशी की वजह कीएव से बाहर आ पाना, ज़िंदा रह पाना और अपने बेटे के साथ इस सुरक्षित जगह पहुंच पाना है.
यहां अपने घरवालों के बीच पहुंचकर मैं लगभग 24 घंटे बाद कुछ खाने-पीने की स्थिति में पहुंची हूं. यहां पर लोग बात कर रहे हैं कि कौन-कौन टेरिटोरियल आर्मी में शामिल हुआ है. लेकिन यहां काफ़ी शांति हैं और मैं उम्मीद करती हूं कि हालात ऐसे ही रहें.
मेरे पास एक इंटरनेट कनेक्शन है. मैं काम कर सकती हूं और अगर बिजली कट भी जाती है तो हमारे पास एक जेनरेटर है.
लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता मेरे साथ काम करने वाले बीबीसी कर्मचारियों की सुरक्षा है जो दोस्तों या परिवार के साथ कीएव से बाहर रहने की संभावनाएं तलाश रहे हैं.
मैंने कुछ लोगों को अपने गांव में बुलाया है. यहां कुछ खाली घर पड़े हुए हैं जिनके मालिक उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी इस्तेमाल करने देंगे.
हमारा गांव मुख्य सड़क से ज़रा हटकर बसा है. मैं उम्मीद कर रही हूं कि रूसी टैंकर यहां कभी नहीं आएंगे. मैं वापस अपने घर कब जाऊंगी या तब तक क्या मेरा घर सुरक्षित रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं.
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यूक्रेन में भारतीय छात्रः रात भर पैदल चलकर बॉर्डर तक पहुंचे, फिर क्या हुआ
दिलनवाज़ पाशा
'तीन दिन पहले धमाकों का जो सिलसिला शुरू हुआ है वो अभी थमा नहीं है. बाक़ी सभी लोगों के साथ हम सब भारतीय छात्र भी बंकर में हैं. जब कोई ज़ोर का धमाका होता है तो हमारी धड़कनें तेज़ हो जाती हैं. लगता है कि कहीं ये लड़ाई हम तक ना पहुंच जाएं. हम नहीं जानते की आगे क्या होगा.'
उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के रहने वाले आसिफ़ चौधरी मेडिकल की पढ़ाई करने यूक्रेन गए थे. वो ख़ारकीएव की नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्र हैं.
अनुमान है कि भारत के क़रीब दो हज़ार छात्र इस यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं. इनमें से कुछ को एयर इंडिया की विशेष फ्लाइट के ज़रिए निकाल लिया गया था. लेकिन एयरस्पेस बंद होने के बाद ये सभी वहीं फंसे हैं.
ख़ारकीएव पूर्वी यूक्रेन में रूस सीमा के बिलकुल पास है. यूक्रेन का ये दूसरा सबसे बड़ा शहर भीषण हमला झेल रहा है. शहर के चारों तरफ़ युद्ध छिड़ा है. स्थानीय लोग बड़ी तादाद में शहर छोड़ कर जा चुके हैं. लेकिन यहां फंसे भारतीय छात्रों के पास यहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं है.
शनिवार को जब कुछ देर के लिए बमबारी बंद हुई तो अनस खाने-पीने का सामान लेने के लिए बाहर निकले. प्रशासन ने कुछ देर के लिए ज़रूरी सामानों की दुकानों को खुलवाया था.
वीडियो कॉल पर बीबीसी से बात करते हुए अनस ने वहां के हालात दिखाए. वहां इक्का-दुक्का को छोड़कर सभी दुकानें बंद थी. सड़कों पर सन्नाटा पसरा था और कुछ ही भारतीय छात्र नज़र आ रहे थे जो सामान लेने निकले थे.
शहर के मेट्रो स्टेशन बम शेल्टर बन चुके हैं. अनस ने मेट्रो स्टेशन भी दिखाया जिसमें सैकड़ों स्थानीय लोग शरण लिए हुए थे. इनमें बच्चे-बूढ़े जवान सभी हैं.
ख़ारकीएव में पढ़ने वाले कई भारतीय छात्र युद्ध शुरू होने से पहले बीबीसी के संपर्क में थे. एक सप्ताह पहले वहां से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि वो यहां से निकलने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन निकल नहीं पा रहे हैं.
हैदराबाद के रहने वाले तारिक़ भी इनमें से एक हैं. तारिक़ ने तब बताया था, "फ्लाइट का टिकट चार गुना से अधिक महंगा हो चुका है. जो आासानी से 25-30 हज़ार में मिल जाता था वो लाख- डेढ़ लाख में भी नहीं मिल रहा है."
तारिक़ भारत लौटने की मशक्कत में लगे थे. लेकिन निकल नहीं पाए. वो नौ छात्रों के एक समूह के साथ किसी तरह राजधानी कीएव पहुंचे. लेकिन यहां से आगे नहीं बढ़ पाए.
शनिवार को कीएव से बात करते हुए तारिक़ ने बताया, "हमें एक फ्लैट में शरण मिल गई है. हम शहर के जिस इलाक़े में हैं वहां युद्ध नहीं चल रहा है. हम सब अभी सुरक्षित हैं लेकिन आगे क्या होगा पता नहीं."
तारिक़ और उनके दोस्त अपने आप को फ़्लैट में बंद किए हुए हैं. उन्होंने बत्तियां बुझा दी हैं और खिड़कियां बंद कर दी हैं. राजधानी कीएव में सोमवार तक के लिए क़र्फ्यू लगा दिया गया है. बीते सप्ताह उन्होंने बताया था कि यूनिवर्सिटी प्रशासन और उन्हें भारत से लाने वाले एजेंट ने उनपर मीडिया से बात न करने का दबाव बनाया है.
यूनिवर्सिटी की तरफ़ से कहा गया था कि पढ़ाई जारी रहेगी और जो छात्र जाना चाहते हैं वो अपनी अटेंडेंस के रिस्क पर भारत जाएं. फिर अचानक से यूक्रेन के हालात बदल गए और अब सभी छात्र अपने आप को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं.
इन दिनों ख़ारकीएव के एक बंकर में रह रहे अनस बताते हैं, "हमारे पास खाने-पीने का सामान ख़त्म हो रहा है. हमने पानी इकट्ठा किया है कि जब कुछ ना रहे तो हम पानी पीकर ही गुज़ारा कर सकें. अभी के हालात में ख़ारकीएव से बाहर निकल पाना संभव नहीं लग रहा है."
अनस कहते हैं, "हम चाहते हैं कि भारत सरकार यूक्रेन और रूस की सरकार से वार्ता करके ख़ारकीएव में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने का प्रयास करे. हम दूतावास फ़ोन करते हैं तो कोई ठोस जवाब नहीं मिल पा रहा है."
भारत सरकार का कहना है कि वो भारतीय छात्रों को निकालने के लिए हरसंभव कोशिशें कर रहे हैं और इसके लिए यूक्रेन के कई पड़ोसी देशों के संपर्क में हैं.
पिछले दो दिनों में रोमानिया के रास्ते कुछ भारतीय छात्रों को निकाला गया है. भारत सरकार हंगरी, रोमानिया, पोलैंड और स्लोवाकिया के रास्ते छात्रों को भारत लाने के प्रयास कर रही हैं.
लेकिन इन देशों की सीमा तक पहुंचना भारत के छात्रों के लिए बहुत आसान नहीं हैं. सैकड़ों छात्रों ने पोलैंड पहुंचने की कोशिश की है लेकिन सीमा बंद होने की वजह से वो बॉर्डर पर ही फंस गए हैं.
उत्तर प्रदेश के छात्रों का एक समूह भी इसमें शामिल हैं. मेरठ के रहने वाले रजत जोहाल अपने साथियों के साथ पोलैंड सीमा के पास फंसे हैं.
लवीव यूनिवर्सिटी में मेडिकल के छात्र रजत ने बीबीसी को बताया, "भारत सरकार के संदेश के बाद हमने पोलैंड बॉर्डर पहुंचने का फ़ैसला लिया. लेकिन पोलैंड बॉर्डर पर हालात बहुत ख़राब हैं. हम दोगुना किराया चुकाकर किसी तरह बॉर्डर की तरफ़ बढ़े लेकिन ड्राइवर ने हमें चालीस किलोमीटर पहले ही उतार दिया. क्योंकि यहां बहुत लंबा जाम लगा था."
रजत बताते हैं, "यहां तापमान शून्य से नीचे है. हम रात भर पैदल चलते रहे. किसी तरह तीस किलोमीटर का सफर तय किया. पूरा रास्ता जाम हैं."
रजत कहते हैं, "सर्दी की वजह से हमारा शरीर जकड़ रहा था. हमें लग रहा था कि कहीं हम ठंड से ही ना मर जाएं. लेकिन हम पोलैंड पहुंचने की उम्मीद में आगे बढ़ते रहे. बॉर्डर के पास पहुंचकर हमें बहुत निराशा हाथ लगी. क्योंकि भारतीय छात्रों के लिए बॉर्डर बंद था. पोलैंड हमें एंट्री नहीं दे रहा है."
रजत और उनके साथियों ने इस समय बॉर्डर के पास एक शेल्टर में शरण ली है. रजत कहते हैं, "हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि वो अपने अधिकारियों का एक दल पोलैंड बॉर्डर भेजे जो यहां फंसे सैकड़ों छात्रों की मदद कर सके."
पोलैंड बॉर्डर पर मौजूद हरिद्वार के रहने वाले एक और छात्र ने बीबीसी से कहा, "यहां सबसे मुश्किल हालात भारतीय छात्रों के लिए ही हैं. अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और नाईजीरिया जैसे देशों के अधिकारी यहां मौजूद हैं जो अपने छात्रों की मदद कर रहे हैं. लेकिन भारतीय छात्रों की मदद के लिए कोई अधिकारी नहीं हैं."
इस छात्र का दावा है, "हमारे प्रति यहां के अधिकारियों का रवैया भी अच्छा नहीं है. वो लाठियां चला रहे हैं. कई बार उन्होंने हमारे मुंह पर सिगरेट का धुआं छोड़ा है."
युद्ध शुरू होने से पहले भारत के क़रीब बीस हज़ार छात्र यूक्रेन में थे. युद्ध शुरू होने के बाद अब तक तीन उड़ानें वहां से भारतीय छात्रों को वापिस लेकर पहुंची हैं.
भारत सरकार लगातार दावा कर रही है कि प्रत्येक छात्र को निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन जो छात्र वहां फंसे हैं उनकी सांसें अटकी हैं. हालांकि सरकार ने अब तक आधिकारिक तौर पर यह नहीं बताया है कि अब तक कितने छात्रों को निकाला जा चुका है और कितने छात्र फंसे हैं.
यूक्रेन में युद्ध का रविवार को युद्ध के तीसरे दिन भीषण लड़ाई चल रही है. ख़ारकीएव में बड़े हमले हो रहे हैं. राजधानी कीएव को भी घेर लिया गया है और लड़ाई यहां गलियों तक पहुंच गई हैं.
ख़ारकीएव के एक बंकर में मौजूद अनस कहते हैं, "हमार लिए दुआ कीजिए. हमें आपकी दुआओं की बहुत ज़रूरत है." (bbc.com)
यूक्रेन में युद्ध रोकने की मांग वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर वोटिंग से भारत के बाहर रहने का मतलब रूस का समर्थन नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह रूस पर भारत की निर्भरता दिखाता है.
शुक्रवार को भारत ने यूक्रेन विवाद में कूटनीति का रास्ता बंद होने पर दुख जताया लेकिन साथ ही उसने अमेरिका के साथ जाकर उस प्रस्ताव पर वोट करने से इनकार कर दिया जो रूस के खिलाफ था. भारत का वोट मुमकिन है कि बीते सात दशकों से उसके दोस्त रहे रूस से संबंधों का ताना बाना बिगाड़ देता. रूस ने इस प्रस्ताव को वीटो किया जबकि चीन और संयुक्त अरब अमीरात भी भारत की तरह ही वोटिंग से बाहर रहे.
रूस ने उम्मीद जताई थी कि सुरक्षा परिषद में भारत उसके साथ सहयोग करेगा. भारत के पूर्व राजनयिक जी पार्थसारथी कहते हैं, "हमने रूस का समर्थन नहीं किया है. हम इससे बाहर रहे हैं. इस तरह की स्थितियों में यह करना सही है."
प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ गुरुवार को टेलिफोन पर बातचीतमें "हिंसा को तुरंत रोकने" की अपील की. मोदी ने कूटनीति पर लौटने की कोशिश की मांग करते हुए कहा, "रूस और नाटो के साथ विवाद को सिर्फ ईमानदार और गंभीर बातचीत से सुलझाया जा सकता है."
रूस पर निर्भर भारत
भारत कश्मीर मामले में पाकिस्तान के साथ विवाद में रूस के सहयोग और सुरक्षा परिषद में वीटो के लिए निर्भर रहा है. यूक्रेन से विवाद के दौरान जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान मास्को पहुंचे तो भारत वहां हो रही गतिविधियों पर बड़ी चौकसी से नजर रख रहा था. युद्ध की स्थिति में भी इमरान खान से पुतिन की मुलाकात करीब 3 घंटे चली.
यूक्रेन की जंग ने भारत के लिए ना सिर्फ कश्मीर बल्कि चीन के साथ भी चल रहे विवाद में नई चुनौतियां पैदा की हैं. पाकिस्तान और चीन दोनों रूस की तरफ हैं. भारत मानता है कि रूस चीन को भारत के साथ सीमा विवाद में नरमी दिखाने के लिए माहौल बना सकता है. जून 2020 में भारत और चीन का सीमा विवाद अचानक हिंसक हो गया था और तब से बातचीत होने के बावजूद तनाव कायम है.
"वोटिंग से बाहर रहना बेहतर"
यूक्रेन में लड़ाई शुरू होने के बाद भारत की राजधानी में शनिवार को भी कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. ये संगठन रूसी हमले को बंद करने और भारत सरकार से वहां फंसे लोगों को बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं. यूक्रेन में फंसे भारतीय लोगों में ज्यादातर छात्र ही हैं. 20 साल के प्रताप सेन छात्र हैं और सुरक्षा परिषद की वोटिंग से भारत के बाहर रहने के बारे में कहते हैं कि यह भले ही आदर्श नहीं है लेकिन इन परिस्थितियों में बेहतर विकल्प था. प्रताप सेन का कहना है, "भारत को अमेरिका और पश्चिमी दुनिया के साथ ही कई दशकों से करीबी सहयोगी रहे रूस के बीच संतुलन बनाना है."
एशिया सोसायटी पॉलिसी के सीनियर फेलो सी राजामोहन की राय में भारत की समस्या यह है कि वह अब भी रूसी हथियारों पर बहुत निर्भर है. राजा मोहन ने कहा, "यह महज एक काल्पनिक सवाल नहीं है, बल्कि सच्चाई यह है कि भारत एक तरह से चीन के साथ युद्ध के बीच में है. विवादित सीमा को लेकर भारत और चीन आमने सामने है."
हथियार और कारोबार
भारत और रूस ने 2025 तक आपसी कारोबार को 30 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है. भारत रूस के तेल और गैस पर भी बहुत निर्भर है. भारत ने 2021 में रूस से 18 लाख टन कोयला आयात किया था. रूस से प्राकृतिक गैस के कुल निर्यात का 0.2 फीसदी भारत को जाता है. भारत की सरकारी कंपनी गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने रूस के गासप्रोम के साथ 20 साल तक हर साल 25 लाख टन प्राकृतिक गैस खरीदने का करार किया है. यह करार 2018 में शुरू हुआ.
मोदी और पुतिन ने पिछले साल रक्षा और कारोबारी रिश्तों पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की थी और सैन्य तकनीक में सहयोग को अगले दशक तक बढ़ाने के लिए करार पर दस्तखत किए थे.
भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम चाहता है और चीन का सामना करने के लिए इसे जरूरी मानता है. इस मिसाइल सिस्टम की वजह से भारत और अमेरिका के रिश्ते में भी समस्या आ सकती है.
भारत ने अमेरिका और उसके सहयोगियों से चीन का सामना करने में मदद मांगी है. यह भारत प्रशांत सुरक्षा गठबंधन की साझी जमीन है जिसे "क्वॉड" कहा जाता है और जिसमें ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं.
संतुलन की जरूरत
भारत अपने हथियारों की खरीदारी में अमेरिकी उपकरणों को भी शामिल कर रहा है. डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते अमेरिका और भारत ने करीब 3 अरब अमेरिकी डॉलर के हथियार सौदे को मंजूरी दी थी. भारत और अमेरिका के बीच सैन्य क्षेत्र में आपसी कारोबार जो 2008 में लगभग शून्य था वह 2019 में 15 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
यूक्रेन का संकट बढ़ने के साथ भारत की असली समस्या यह होगी कि वह रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में क्या करे. रूस के साथ मिसाइल सिस्टम के सौदे ने भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के खतरे में डाल दिया है. अमेरिका ने अपने सहयोगियों से कहा है कि वो रूस के साथ सैन्य उपकरणों की खरीदारी से दूर रहें. राजा मोहन कहते हैं, "भारत की समस्या तो अभी शुरू ही हुई है. सबसे जरूरी यह है कि रूस पर हथियारों की निर्भरता से बाहर निकला जाए."
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि पश्चिमी देश भारत को बिल्कुल दुश्मन ही मान लेंगे, आखिर भारत की जरूरत उन्हें भी है. राजनीति विज्ञानी नूर अहमद बाबा कहते हैं कि पश्चिमी देश भारत से नाखुश हो सकते हैं लेकिन शायद उसे पूरी तरह अलग थलग करना उनके लिए संभव नहीं होगा. बाबा का कहना है, "आखिरकार देशों को असल राजनीति और कूटनीति के बीच संतुलन रखना होता है. ऐसा नहीं है कि पश्चिमी देशों के साथ केवल भारत का ही फायदा है, बल्कि उन्हें भी भारत की जरूरत है."
एनआर/एमजे (एपी)
अरुल लुइस
संयुक्त राष्ट्र, 27 फरवरी| यूक्रेन संकट से निपटने के लिए महासभा की आपात बैठक बुलाने के प्रस्ताव पर मतदान के लिए रविवार को सुरक्षा परिषद की बैठक जल्दबाजी में बुलाई गई है।
ध्यान इस बात पर केंद्रित होगा कि परिषद में यूक्रेन से संबंधित दो पिछले वोटों से दूर रहने के बाद भारत कैसे प्रस्ताव पर वोट करता है।
महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता के कार्यालय ने कहा कि परिषद दोपहर 3 बजे (भारत में सोमवार दोपहर 1.30 बजे) यूक्रेन मुद्दे पर बैठक करेगी।
यूक्रेन पर मास्को के आक्रमण की निंदा करने वाले परिषद के प्रस्ताव के शुक्रवार को रूसी वीटो के बाद होने वाली बैठक में, अमेरिका और उसके सहयोगियों से इस मुद्दे को उठाने के लिए 193 सदस्यीय महासभा के लिए एक प्रस्ताव पेश करने की उम्मीद है।
प्रस्ताव को एक प्रक्रियात्मक मामला माना जाएगा, जिस पर स्थायी सदस्यों के पास वीटो नहीं होता है और जिसके आसानी से पारित होने की उम्मीद होती है।
यूक्रेन पर उसके आक्रमण की निंदा करने वाले प्रस्ताव के रूसी वीटो के बाद, अमेरिकी स्थायी प्रतिनिधि लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने शुक्रवार को कहा था कि एक समान प्रस्ताव असेंबली में पेश किया जाएगा।
इसके लिए केवल 97 मतों के साधारण बहुमत की आवश्यकता होगी और परिषद में मतदान पैटर्न को देखते हुए इसे कम से कम प्राप्त होने की उम्मीद है, जहां सभी अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने वहां प्रस्ताव के लिए मतदान किया था।
केवल तीन एशियाई देशों, भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात ने भाग नहीं लिया था।
हालांकि, कई एशियाई देश जो परिषद के सदस्य नहीं हैं, उन्होंने इसका समर्थन किया।
भारत ने यूक्रेन मुद्दे पर परिषद में जनवरी में भी वोट से परहेज किया था। (आईएएनएस)
मॉस्को, कीव 27 फरवरी| रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि कीव द्वारा वार्ता आयोजित करने से इनकार करने के बाद रूसी बलों को यूक्रेन में 'सभी दिशाओं से' अपनी प्रगति फिर से शुरू करने का निर्देश दिया गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इगोर कोनाशेनकोव ने शनिवार को एक ब्रीफिंग के दौरान कहा कि सभी इकाइयों को ऑपरेशन योजना के अनुसार एक आक्रामक हमला करने का आदेश दिया गया है।
स्थानीय मीडिया ने क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव के हवाले से जानकारी दी कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार को यूक्रेन के नेतृत्व के साथ अपेक्षित बातचीत के आलोक में सैन्य अभियानों को रोकने का आदेश दिया।
यूक्रेनी पक्ष ने कहा कि कीव ने रूस के साथ बातचीत करने से इनकार कर दिया क्योंकि प्रस्तावित शर्तें अस्वीकार्य थीं और देश को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने का प्रयास कर रही थीं।
मंत्रालय ने शनिवार को यह भी कहा कि स्थानीय मीडिया के अनुसार, रूसी एयरबोर्न फोर्स यूक्रेन के नेशनल गार्ड के साथ संयुक्त रूप से चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र की रक्षा कर रहे थे।
इस बीच, रूसी सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने शनिवार को कहा कि रूस के खिलाफ मौजूदा प्रतिबंध उन सभी राज्यों के साथ संबंधों की समीक्षा करने का एक कारण हो सकते हैं जिन्होंने उन्हें लगाया है।
मेदवेदेव ने कहा कि यह रणनीतिक स्थिरता पर पश्चिम के साथ सभी बातचीत को समाप्त करने का एक कारण है। उन्होंने कहा कि प्रतिबंधों से चल रहे सैन्य अभियान का संचालन करने और डोनबास की रक्षा करने के मास्को के फैसले में कोई बदलाव नहीं आएगा।
उन्होंने यह भी नोट किया कि रूस विदेशों में रूसी नागरिकों और कंपनियों के खिलाफ किए गए उपायों के लिए सममित रूप से प्रतिक्रिया दे सकता है, अर्थात रूस में विदेशियों और विदेशी कंपनियों के धन को जब्त करके।
इसके अतिरिक्त, रूसी विमानन अधिकारियों ने कहा कि रूसी विमानों के लिए उड़ानों पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों द्वारा वर्तमान में किए गए उपायों के लिए दर्पण प्रतिक्रिया होगी। मास्को ने जवाबी कार्रवाई में अपने हवाई क्षेत्र को बंद करने का संकल्प लिया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 फरवरी| रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच पिछले 24 घंटों में हंगरी के बुडापेस्ट से फंसे हुए भारतीय नागरिकों को लेकर कुल तीन उड़ानों भरी गई है।
'ऑपरेशन गंगा' नाम के निकासी अभियान को पोलैंड, रोमानिया, हंगरी और स्लोवाकिया से बड़े पैमाने पर सक्रिय किया जा रहा है। इन देशों में यूक्रेन के साथ सीमा पर शिविर लगाए गए हैं।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 'ऑपरेशन गंगा' के लिए पूर्ण समर्थन देने के लिए अपने हंगरी के समकक्ष को धन्यवाद दिया।
जयशंकर ने कहा कि 240 भारतीय नागरिकों के साथ ऑपरेशन गंगा की तीसरी उड़ान ने बुडापेस्ट से दिल्ली के लिए उड़ान भरी है।
बुडापेस्ट से दूसरी फ्लाइट शनिवार को 250 भारतीय नागरिकों को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुई।
219 भारतीय नागरिकों के साथ मुंबई के लिए पहली उड़ान ने भी रोमानिया से उड़ान भरी थी।
उड़ान के तुरंत बाद, जयशंकर ने कहा था कि यूक्रेन से भारतीय नागरिकों को निकालने के संबंध में, हम प्रगति कर रहे हैं। हमारी टीमें चौबीसों घंटे जमीन पर काम कर रही हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से निगरानी कर रही हूं।
इसके अलावा, यूक्रेन में भारतीय दूतावास युद्धग्रस्त देश के विभिन्न हिस्सों से फंसे भारतीय नागरिकों को बचा रहा है और उन्हें इन चार देशों के साथ सीमाओं पर भेज रहा है जहां भारतीय अधिकारी उनके सीमा पार करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
इसके अलावा, यूक्रेन में भारतीय दूतावास ने रूस द्वारा तीव्र बमबारी के बीच फंसे हुए भारतीय छात्रों के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा बनाए गए अस्थायी बम आश्रयों की एक सूची साझा की है।
दूतावास ने एक एडवाइजरी में कहा कि यूक्रेन मार्शल लॉ के तहत है, जिससे आवाजाही मुश्किल हो गई है।
सलाहकार ने कहा कि उन छात्रों के लिए जो कीव में ठहरने की जगह के बिना फंसे हुए हैं, हम उन्हें स्थापित करने के लिए प्रतिष्ठानों के संपर्क में है। (आईएएनएस)