अंतरराष्ट्रीय
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद मंगलवार की रात अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका के फ़ैसलों से देश और संसद को अवगत कराया.
उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत अपनी और अन्य देशों की विदेश नीति से की.
यूक्रेन पर रूस के हमले को सात दिन हो चुके हैं. आइये जानते हैं इस दौरान यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका ने क्या कुछ किया है:
35 करोड़ डॉलर के हथियार यूक्रेन को दिए
5.4 करोड़ डॉलर की मानवीय सहायता जारी की
चुनिंदा रूसी बैंकों को वैश्विक स्विफ़्ट मैसेजिंग सिस्टम से हटाया
रूसी केंद्रीय बैंक को रूबल को बचाने से रोका
ओलिगार्क (रूस के कुलीन तंत्र के सदस्य या समर्थक) की संपत्ति को ज़ब्त करने के लिए ट्रांस-अटलांटिक टास्क फ़ोर्स में शामिल
रूसी विमानों और रूस से संचालित विमानों के लिए अमेरिकी हवाई क्षेत्र को बंद किया
व्हाइट हाउस ने संसद से अगले कुछ महीनों के लिए आपातकालीन सहायता के लिए अतिरिक्त 6.4 अरब डॉलर की मांग की.
हालांकि बाइडन ने यह भी बताया कि यूक्रेन में रूस से लड़ाई के लिए अमेरिका अपनी सेना नहीं भेजेगा. (bbc.com)
यूरोपीय संघ के देशों समेत 22 देशों के शीर्ष राजनयिकों ने पाकिस्तान सरकार से अपील की है कि वो संयुक्त राष्ट्र महासभा में यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के हमले की निंदा प्रस्ताव का समर्थन करे.
बीते सप्ताह रूस की सेना जिस दिन यूक्रेन में दाख़िल हुई तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान मॉस्को में थे और उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात की थी.
पाकिस्तान ने इस हमले को लेकर चिंता जताई थी लेकिन उसने इसकी निंदा नहीं की थी.
22 देशों के राजनयिकों ने एक साझा बयान में कहा, “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान में मिशन के प्रमुख होने के नाते हम मांग करते हैं कि रूस की कार्रवाई की निंदा में पाकिस्तान में हमारे साथ आए.”
इस साझा बयान में यूरोपीय संघ के सदस्य देश फ़्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, इटली, पुर्तगाल, पोलैंड, स्पेन, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम समेत ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, नॉर्वे और ब्रिटेन भी शामिल हैं.
193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस सप्ताह मॉस्को की कार्रवाई के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पेश किया जाएगा.
इससे पहले शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में पेश किए गए प्रस्ताव के ख़िलाफ़ रूस ने वीटो का प्रयोग किया था. (bbc.com)
यूक्रेन की सेना ने पुष्टि की है कि रूसी पैराट्रूपर्स खारकीएव में उतरे हैं. इस शहर को पहले ही रूसी सेना ने घेर रखा है.
यूक्रेनी सेना के मुताबिक़, खारकीएव और इसके आसपास के इलाक़ों में एयर रेड सायरन्स के बाद हवाई हमले शुरू हुए हैं.
इस बयान में बताया गया है कि रूसी सैनिकों ने क्षेत्रीय सैन्य अस्पताल पर हमला किया है और लड़ाई जारी है.
इस शहर में अधिकतर रूसी भाषा बोली जाती है और हालिया दिनों में यूक्रेन में सबसे अधिक हिंसा खारकीएव में ही देखी गई है.
मंगलवार को एक सरकारी इमारत पर मिसाइल हमला हुआ था जिसमें कारों और आसपास की इमारतों को नुक़सान पहुंचा था.
मंगलवार को ही दूसरा हमला एक रिहाइशी इमारत पर हुआ था. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने इस हमले को युद्ध अपराध बताया था.
मंगलवार को खारकीएव में हुए हमलों में 17 लोगों की मौत हुई थी जिनमें एक भारतीय छात्र भी शामिल था.
कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि रूस ने रिहाइशी जगह पर इसलिए हमले किए हैं ताकि यूक्रेनियों को रूस के ख़िलाफ़ लड़ाई में कमज़ोर किया जा सके.
खारकीएव, सूमी और मारियुपोल शहर में रूसी हमले का जवाब यूक्रेनी जवान मुस्तैदी से दे रहे हैं.
खारकीएव में भारी लड़ाई हो रही है और यूक्रेनी जवान रूसी सेना से लड़ रहे हैं. (bbc.com)
तुर्की के मेहमत इलकर आयची ने टाटा समूह के एयर इंडिया के सीईओ का पद संभालने से इनकार कर दिया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक संगठन के उनका विरोध किया था.
कोलकाता से प्रकाशित होने वाला अंग्रेज़ी दैनिक टेलिग्राफ़ ने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है. आज की प्रेस रिव्यू की लीड में यही ख़बर पढ़िए.
दक्षिणपंथी संगठन ने इलकर आयची के पुराने राजनीतिक संबंधों को लेकर उनका विरोध किया था.
आयची ने एक बयान में कहा है कि भारतीय मीडिया के कुछ धड़ों में ''मेरी नियुक्ति को कुछ अलग रंग देने की कोशिश की गई है''.
उन्होंने कहा, ''मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इस तरह की बातों के बीच पद को स्वीकार करना संभव या सम्मानजनक फ़ैसला नहीं होगा.''
अख़बार लिखता है कि पद पर आने से पहले ही आयची का जाना दबाव समूहों की एक ख़तरनाक मिसाल कायम करता है जो निजी निवेशकों के पेशेवर निर्णयों को कमज़ोर करने के लिए वैचारिक मानदंडों और ''राष्ट्रीय सुरक्षा'' के बहाने का इस्तेमाल करते हैं.
इलकर आयची तुर्की के एक चर्चित कारोबारी है. वो टर्किश एयरलाइन के अध्यक्ष रह चुके हैं. साथ ही वो 1994 में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के सलाहकार भी रहे हैं. उस समय अर्दोआन इस्तांबुल के मेयर थे.
कुछ विदेशी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ आयची ने कथित तौर पर एक बार अल क़ायदा के फाइनेंसर को निवेश की सुविधा दी थी.
रेचेप तैय्यप अर्दोआन की हाल के सालों में पाकिस्तान के साथ नज़दीकियां बढ़ी हैं और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का भी उन्होंने पुरज़ोर विरोध किया था.
स्वदेशी जागरण मंच का विरोध
पिछले हफ़्ते स्वदेशी जागरण मंच ने कहा था कि सरकार को आयची की नियुक्ति को अनुमति नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे ''राष्ट्रीय सुरक्षा'' के लिए ख़तरा हो सकता है. स्वेदशी जागरण मंच आरएसएस की आर्थिक यूनिट है.
संगठन के सह-संयोजक ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ''मुझे लगता है कि सरकार इस मुद्दे को लेकर पहले ही संवेदनशील है और मामले को बेहद गंभीरता से लिया है. मुझे नहीं लगता कि सरकार इसकी अनुमति देगी.''
एक विदेशी नागरिक को भारत में किसी एयरलाइन का मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ नियुक्त करने से पहले सरकार की अनुमति की ज़रूरत होती है.
एक सरकारी सूत्र ने पिछले हफ़्ते समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया था कि भारत सरकार आयची और एयर इंडिया के मामले में सामान्य जांच से ज़्यादा सख्त जांच कर रही है क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों ने उनके तुर्की से संबंधों को लेकर चिंता ज़ाहिर की है.
14 फ़रवरी को टाटा समूह ने इलकर आयची को एयर इंडिया का सीईओ नियुक्त किया था. टाटा समूह ने एयर इंडिया को जनवरी में 18 हज़ार करोड़ में सरकार से ख़रीदा था.
आयची ने कहा कि टाटा समूह के अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन के साथ हुई हालिया बैठक के बाद उन्होंने ये पद लेने से इनकार कर दिया है. टाटा समूह के एक प्रवक्ता ने इस ख़बर की पुष्टि की है.
स्वदेशी जागरण मंच ने इलकर आयची के मामले को लेकर सरकार को कोई पत्र नहीं लिखा था और ना ही आयची की नियुक्ति को लकर कोई बयान जारी किया था.
स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अश्विनी महाजन ने अख़बार को बताया, ''हमने सरकार को कोई पत्र नहीं लिखा है. हालांकि, मंच ने सुरक्षा कारणों से उनकी नियुक्ति का विरोध किया था और हम चाहते थे कि सरकार इसे अनुमति ना दे.''
''हमें पूरा विश्वास था कि मौजूदा सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बहुत संवेदनशील है, वो मामले को बहुत गंभीरता से लेंगे और नियुक्ति को स्वीकृति नहीं देंगे.''
ये पहली बार नहीं है जब आरएसए से जुड़े संगठनों और प्रकाशनों ने अपनी ताक़त दिखाई है. सरकार चुप रहकर या हल्का-फुल्का विरोध करके इनका समर्थन करती है.
हाल ही में आरएसएस की पत्रिका पांचजन्य में इंफ़ोसिस पर भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने के लिए ''राष्ट्र-विरोधी'' तत्वों के साथ संबंध होने का आरोप लगाया गया था.
इसके बाद पत्रिका ने अपनी एक कवर स्टोरी में रीटेल कंपनी अमेज़न को ''ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0'' कहा था.
दोनों ही मामलों में सरकार चुप रही. बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसका हल्का विरोध किया था.
इस तरह के मामलों ने इस धारणा को बल दिया है कि आरएसएस सरकार में महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करता है. (bbc.com)
यूक्रेन में युद्ध के बीच एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत के बाद भारत ने रूस और यूक्रेन के राजदूतों से भारतीयों को सुरक्षित निकालने के लिए फिर से बात की है.
अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में ख़बर है कि पोलैंड के सीमा के पास भारतीय दूतावास का कार्यालय बनाया गया है ताकि भारतीय छात्रों को निकलने में मदद मिल सके.
रूस के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को सभी नगारिकों से राजधानी कीएव छोड़कर जाने के लिए कहा था. सरकार के मुताबिक सभी भारतीय छात्र कीएव से निकल चुके हैं.
एक अनुमान के मुताबिक करीब 4000 भारतीय छात्र पूर्वी यूक्रेन में फंसे हुए हैं. ये खासतौर पर खारकिएव और समी में हैं. (bbc.com)
रूस, यूक्रेन और पश्चिमी देशों के बीच का संकट बढ़ने के बाद ओलिगार्क की फिर से चर्चा हो रही है जो रूस के बेहद रईस और रसूख़दार लोग हैं.
पश्चिमी देशों की मीडिया में अक्सर ऐसे लोगों को पुतिन के 'क्रोनीज़' यानी जिगरी दोस्त, कहा जाता रहा है. यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों की लगाई पाबंदियों का एक निशाना ये ओलिगार्क भी हैं.
ओलिगार्क शब्द का इतिहास बहुत लंबा है. हालांकि आज के वक़्त में इसका एक ख़ास मतलब हो गया है.
पारंपरिक परिभाषा या मान्यता के अनुसार ओलिगार्क वो लोग हैं जो कुलीन तंत्र के सदस्य या समर्थक होते हैं. यानी एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा होते हैं
अब इस शब्द का ज़्यादातर इस्तेमाल रूस के बहुत बड़े धनी लोगों के एक समूह के लिए होता है. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वहां ओलिगार्क तेज़ी से उभरकर सामने आए.
ओलिगार्क शब्द ग्रीक शब्द ओलिगोई से निकला है, जिसका अर्थ 'कुछ' होता है. वहीं आर्क़िन शब्द का अर्थ 'शासन करना' होता है.
ओलिगार्की इस तरह राजशाही (किसी एक व्यक्ति का शासन यानी मोनोस) या लोकतंत्र (लोगों का शासन या डेमोस) से अलग होती है.
ऐसे में एक ओलिगार्क का धर्म, रिश्तेदार, सम्मान, आर्थिक दर्जा और भाषा जो भी हो, वो उसी धर्म, भाषा-भाषी समूह के बाक़ी लोगों से अलग होते हैं. और वो शासन करने वाले गुट का हिस्सा होते हैं.
ऐसे लोग अपने हितों को ध्यान में रखते हुए शासन करते हैं और इनके साधन अक्सर संदेह के दायरे में होते हैं.
बड़े ओलिगार्क
आजकल किसी ओलिगार्क का अर्थ अक्सर बहुत अमीर शख़्स के रूप में लिया जाता है. ऐसे इंसान ने शासन के सहयोग से कारोबार करके अकूत दौलत बनाई होती है.
दुनिया में रूस के सबसे मशहूर ओलिगार्क में से एक ब्रिटेन के रोमन अब्रामोविच हैं, जो चेल्सी फुटबॉल क्लब के मालिक है. अनुमान है कि उनके पास इस समय 14.3 अरब डॉलर की संपत्ति है.
उन्होंने सोवियत संघ के पतन के बाद रूस की जिन सरकारी संपत्तियों को खरीदा था, उसे बेच दौलत बनाई है.
वहीं ब्रिटेन के और ओलिगार्क एलेक्जेंडर लेबेदेव हैं, जो केजीबी के पूर्व अधिकारी और बैंकर हैं. उनके बेटे एवगेनी लेबेदेव लंदन से निकलने वाले बड़े अख़बार - इवनिंग स्टैंडर्ड -के मालिक हैं. एवगेनी ब्रिटेन के नागरिक हैं और उन्हें हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स का सदस्य भी बनाया गया है.
ऐसा नहीं है कि ये ओलिगार्क केवल रूस में ही हैं. दुनिया के दूसरे देशों में भी कुलीन वर्ग मौजूद हैं.
'यूक्रेन की बदहाली के ज़िम्मेदार हैं ये ओलिगार्क'
कीएव की एक स्वतंत्र संस्था 'यूक्रेनियन इंस्टीट्यूट फ़ॉर द फ़्यूचर' (यूआईएफ़) का मानना है कि वहां की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, समाज, उद्योग और राजनीति के ज़िम्मेदार ओलिगार्क ही हैं.
अपनी एक रिपोर्ट में यूआईएफ ने कहा कि सोवियत संघ के पतन के बाद लियोनिद कुचमा के राष्ट्रपति रहने के दौरान देश के 'पुराने ओलिगार्क' काफ़ी फले-फूले.
उसका कहना है, "यूक्रेन के ओलिगार्क ने अपनी अधिकांश संपत्ति अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके और ग़ैर-पारदर्शी निजीकरण के ज़रिए कमाई. और तभी से अपने कारोबार को बचाने के लिए राजनीति पर नियंत्रण रखना, उनके लिए काफ़ी अहम बना हुआ है.''
ओलिगार्क ने कैसे बनाई अपनी दौलत?
इस बारे में यूक्रेन की संस्था यूआईएफ़ के कार्यकारी निदेशक विक्टर एंड्रुसिव ने वॉशिंगटन में एक कार्यक्रम के दौरान 2019 में कहा कि ओलिगार्क 'ख़ास वर्ग' के लोग हैं, जो 'ख़ास तरीक़े से कारोबार' करते हैं. उनके पास 'जीने और लोगों को प्रभावित करने का ख़ास तरीक़ा' भी होता है.
एंड्रूसिव ने कहा, "वास्तव में वे कारोबारी नहीं हैं. वे अमीर बने हैं, पर जिस तरह से वे अमीर बने, वो किसी पूंजीवादी देश की तरह का मामला नहीं होता. उन्होंने कारोबार नहीं खड़ा किया, बल्कि देश के सहारे कारोबार पर क़ब्ज़ा कर लिया."
सोवियत संघ के ख़त्म होते वक़्त दिसंबर 1991 में मिख़ाइल गोर्बाचेव (बाएं) ने इस्तीफ़ा दे दिया. उसके बाद बोरिस येल्तसिन (दाएं) देश के नए राष्ट्रपति बने.
आज लोग रूस के ओलिगार्क के बारे में इसलिए बात कर रहे हैं, क्योंकि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद जो कुछ हुआ, वो इनके लिए अहम था.
1991 में क्रिसमस के दिन राष्ट्रपति मिख़ाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति से इस्तीफ़ा देकर बोरिस येल्तसिन को सत्ता सौंप दी.
हालांकि जब वहां कम्युनिस्ट शासन था, तब कोई निजी संपत्ति नहीं होती थी. लेकिन उसके बाद रूस की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दौरान देश में बड़े पैमाने पर निजीकरण हुआ. ख़ासकर औद्योगिक, ऊर्जा और वित्तीय क्षेत्रों में.
इसका नतीज़ा ये हुआ कि 90 के दशक के शुरू में हुए निजीकरण के दौरान बहुत से लोग यूं ही अमीर बन गए.
यदि उनके अच्छे संपर्क होते थे, तो अपने संपर्कों के दम पर वे रूसी उद्योग के बड़े हिस्से का अधिग्रहण कर सकते थे. ऐसे लोग अक्सर कच्चे मालों की आपूर्ति वाले, खनिज या गैस और तेल उद्योग में सक्रिय थे, क्योंकि इन चीज़ों की दुनिया भर में मांग थी.
उसके बाद इस काम में मदद करने वाले अधिकारियों को उन्होंने पुरस्कृत किया और उन्हें डायरेक्टर जैसे पद से नवाज़ा.
ओलिगार्क के पास मीडिया, तेल कुएं, इस्पात के कारखाने, इंजीनियरी कंपनियां आदि हो गईं. अक्सर वे अपने कारोबार के लिए बहुत कम कर का ही भुगतान करते थे.
ऐसे ही लोगों ने बोरिस येल्तसिन को अपना समर्थन दिया और 1996 के उनके राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उन्हें पैसे से मदद दी.
पुतिन के दौर में ओलिगार्क
व्लादिमीर पुतिन जब बोरिस येल्तसिन के उत्तराधिकारी बने, तो उन्होंने ओलिगार्कों पर लगाम लगाना शुरू कर दिया. हालांकि, जो ओलिगार्क उनके साथ जुड़े रहे वे और कामयाब होते गए.
बैंकर बोरिस बेरेज़ोव्स्की जैसे पहले के कुछ कुलीन लोगों ने उनके साथ आने से इनकार कर दिया, तो उन्हें देश छोड़कर भागने को मजबूर होना पड़ा.
कभी रूस के सबसे अमीर शख़्स माने जाने वाले मिख़ाइल ख़ोदोरकोव्स्की भी अब लंदन में रहते हैं.
इस बारे में पूछे जाने पर व्लादिमीर पुतिन ने 2019 में फ़ाइनेंशियल टाइम्स से कहा था, "अब हमारे यहां कोई ओलिगार्क नहीं है."
हालांकि जिन लोगों के पुतिन के साथ क़रीबी संबंध थे, वे उनके शासन में अपना व्यापारिक साम्राज्य बनाने में कामयाब रहे.
ऐसे लोगों में, बोरिस रोटेनबर्ग हैं. वे दोनों बचपन में एक ही जूडो क्लब में खेलते थे. ब्रिटेन की सरकार ने रोटेनबर्ग को पुतिन के साथ नजदीकी और निजी रिश्ते रखने वाला एक अहम कारोबारी क़रार दिया है. फ़ोर्ब्स मैगज़ीन के अनुसार, रोटेनबर्ग की संपत्ति क़रीब 1.2 अरब डॉलर है.
इसलिए जब पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के डोनेत्सक और लुहान्स्क के दो अलगाववादी क्षेत्रों को 'पीपल्स रिपब्लिक' का दर्जा दिया तो, बोरिस और उनके भाई अर्काडी दोनों को ब्रिटेन के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है.
ब्रिटेन के साथ यूक्रेन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी रूस के ओलिगार्क यानी कुलीन वर्गों पर प्रतिबंध लगाए हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद तो ये प्रतिबंध और कड़े ही होंगे. (bbc.com)
-अभिनव गोयल
''शाम का वक्त था. यूक्रेन के टेरनोपिल शहर से पोलैंड बॉर्डर पहुंचने के लिए बहुत मुश्किल से मुझे दो हजार रुपये में बस की टिकट मिली. बस ने बीच रास्ते में ही मुझे छोड़ दिया. तापमान माइनस में था, सर्दी बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं करीब 45 किलोमीटर पैदल चलकर यूक्रेन-पौलेंड सीमा के चेक पोस्ट पर पहुंची. वहां कहा गया, 'इंडियन आर नोट अलाउड टू गो'.''
ये आपबीती उत्तर प्रदेश के झांसी की रहने वाली बिंदु की है.
बिंदु यूक्रेन की टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं.
भारत से बीबीसी ने बिंदु के नंबर पर संपर्क किया. बिंदु ने फोन पर पूरी कहानी सुनाई, '' रात में तापमान माइनस चार डिग्री तक चला गया था. हमारे पास ना खाने के लिए कुछ था और ना रुकने के लिए कोई शेल्टर था. हम लोग आग जला रहे थे लेकिन यूक्रेन के सैनिक बार बार आग बुझा देते थे''
''घंटों लाइन में लगते थे लेकिन नंबर नहीं आता था. लाइन में थोड़ा सा टच होने पर धक्का देने लगते थे. भारतीय छात्रों के साथ मारपीट भी की जा रही थी. यूक्रेन में ऐसा भेदभाव हमने पहले कभी नहीं देखा. 27 फरवरी की रात दो बजे पौलेंड का वीजा मिला. सिर्फ लड़कियों को जाने दिया. पौलेंड में दाखिल होने के बाद अब कोई दिक्कत नहीं है''
बॉर्डर पर भारतीयों छात्रों के साथ हो रही परेशानी को लेकर पोलैंड के राजदूत और शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी के बीच ट्विटर पर बहस हुई. प्रियंका चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि बहुत से भारतीय स्टूडेंट्स को पोलैंड में घुसने से रोक दिया गया है. इसके जवाब में पोलैंड के राजदूत एडम बुराकोव्स्की ने लिखा,''मैडम, ये बिल्कुल भी सच नहीं है. पोलैंड की सरकार ने यूक्रेन से लगती सीमा से घुसने से किसी को भी मना नहीं किया है.''
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों से हो रहे भेदभाव की ख़बरें भारत सरकार तक भी पहुँची हैं. भारत सरकार ने छात्रों को सकुशल स्वदेश वापस लाने के लिए यूक्रेन के चार पड़ोसी देशों में विशेष दूत भी तैनात करने का फैसला लिया है. ये दूत समन्वय स्थापित करते हुए लोगों को बाहर निकालने की प्रक्रिया को देखेंगे.
लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ये मुश्किल सिर्फ एक भारतीय छात्रा बिंदु की नहीं है बल्कि यूक्रेन के अलग अलग शहरों में फंसे हजारों भारतीय छात्रों की है. इनमें से एक की गोलीबारी में मौत भी हो गई है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि मंत्रालय परिजनों के संपर्क में है और उन्होंने परिजनों के प्रति सहानुभूति प्रकट की है.
यूक्रेन के खारकीएव में फंसे भारतीय छात्र
यूक्रेन के पूर्व में स्थित खारकीएव शहर रूस से करीब 50 किलोमीटर दूर है. वहीं इस शहर की दूरी राजधानी कीएव से करीब 600 किलोमीटर है. खारकीएव से पौलेंड, रोमानिया या हंगरी बॉर्डर पहुंचना भी आसान नहीं है. खारकीएव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पांच सौ से ज्यादा भारतीय छात्र फंसे हुए हैं. इतनी ही छात्र खारकीएव के पास सुमी शहर में भी हैं. ऐसे में यूक्रेन के पूर्व में फंसे छात्रों की वतन वापसी कैसे होगी ?
खारकीएव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी हॉस्टल के बंकर में फंसे भारतीय छात्रों से बीबीसी ने वीडियो कॉल पर बात की. उपासना पांडे यूपी के गोरखपुर की रहने वाली हैं जो पिछले पांच दिनों से बंकर में रह रही हैं. उपासना बताती हैं, ''खारकीएव से पोलैंड और हंगरी बॉर्डर पहुंचने के लिए ट्रेन से एक दिन लगता है. लोग बोल रहे हैं कि आप बॉर्डर पर क्यों नहीं जा रहे? यहां डबल मार्शल लॉ लगा हुआ है, शूट एट साइट का ऑर्डर है, ऐसे में हम कैसे बॉर्डर तक जा सकते हैं.''
जम्मू-कश्मीर की रहने वाली विशाखा बताती हैं, ''पूर्वी यूक्रेन के शहरों में फंसे बच्चों के लिए कुछ नहीं किया जा रहा, यहां तक की हमारे लिए एडवाइजरी तक नहीं आती है. पांच दिन से बंकर में फंसे हैं. कैसे बाहर निकाला जाएगा. क्या हमें रूस बॉर्डर से एंट्री मिलेगी ? इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही''
वीडियो इंटरव्यू के बीच में ही विशाखा की मां भी बीबीसी से बातचीत के लिए जुड़ीं. अपनी बेटी को मोबाइल स्क्रीन पर देख मां भरभरा कर रोने लगती हैं. मां बेटी से कहती हैं, ''आपका फोन बंद होता है ना, हमारी जान निकल जाती है''. मां को ढांढस बंधाते हुए बेटी कहती है, ''मम्मी हम आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों आ जाएंगे. रूस की सेना के टारगेट से बचने के लिए हमें फोन बंद करना पड़ता है''.
रोते रोते मां कहती हैं ''भारत सरकार चाहे तो सब कुछ कर सकती है. सरकार से बस एक गुजारिश है कि मेरी बेटी को मुझ तक पहुंचा दो''.
इस बीच भारत सरकार ने एक बार फिर भारतीय नागरिकों को सुरक्षित यूक्रेन से निकालने की अपनी माँग को मंगलवार को भी दोहराया है.
रोमानिया बॉर्डर पर फंसे भारतीय छात्र
सिक्किम के रहने वाली बीरी के मन में बस एक ही सवाल है कि उनकी बेटी भारत कब लौटेगी ? बीरी की बेटी ग्रासिआ लपेचा पांच साल पहले यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए गई थीं. ग्रासिआ यूक्रेन की विनितसिया नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं. यूक्रेन के विनितसिया शहर से रोमानिया बॉर्डर की दूरी करीब 300 किलोमीटर है.
ग्रासिआ लेपचा ने बीबीसी को बताया, ''26 फरवरी को यूनिवर्सिटी से रोमानिया बॉर्डर के लिए बस ली. यूक्रेन- रोमानिया बॉर्डर पर हजारों छात्र फंसे हुए हैं. बॉर्डर पर पहुंचने के बाद भी मुझे रोमानिया में एंट्री नहीं मिली''.
ग्रासिआ के मुताबिक लंबे इंतजार के बाद उसे 28 फरवरी की सुबह रोमानिया में एंट्री मिली. ग्रासिआ लेपचा के साथ मणिपुर की रुकसाना, निमशिम और एक लड़का भी है. फिलहाल ग्रासिआ और उसके दोस्तों को रोमानिया के वॉलंटरी टाउन में रखा गया है.
ग्रासिआ की मां बीरी का कहना है, ''कल शाम से मेरी बेटी रोमानिया में है. मेरी बेटी रोमानिया में भारतीय दूतावास से कोई संपर्क नहीं कर पा रही है ना ही वहां का दूतावास कोई संपर्क कर रहा है. वो भारत कब आएगी कुछ पता नहीं लग रहा है''.
मणिपुर कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के पूर्व सदस्य केसाम प्रदीप के मुताबिक, ''अभी तक की जानकारी के मुताबिक मणिपुर के कुल 14 बच्चे फंसे हुए हैं. सात बच्चे यूक्रेन से निकलकर रोमानिया पहुंच गए हैं वहीं सात बच्चे यूक्रेन के अलग अलग इलाकों में हैं. एक बच्चे का पासपोर्ट गुम होने की जानकारी भी मिली है जिसे लेकर हम सरकार से बातचीत कर रहे हैं. मणिपुर के मुख्यमंत्री भी लगातार बात हो रही है''
रूस-यूक्रेन संकट पर भारतीय रुख से नाराजगी
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के यूक्रेन के ख़िलाफ़ हमले के प्रस्ताव पर भारत ने न तो इसके पक्ष में वोट किया था और ना ही इसका विरोध किया था. यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के मुताबिक भारत के इस रुख की वजह से यूक्रेन के लोगों में आक्रोश है.
अमृतसर के रहने वाले पृथ्वी, मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गए थे. बीबीसी से वीडियो कॉल पर हुई बातचीत में पृथ्वी बताते हैं, ''यहां लोग गुस्से में हैं. जो भारतीय छात्र मेट्रो में यूक्रेन के लोगों के साथ रह रहे हैं वहां स्थानीय लोगों के साथ काफी लड़ाई होती है. कई लोगों को बहुत गुस्सा आता है. यूक्रेन के लोग बोल रहे हैं कि भारत ने हमारी कोई मदद नहीं की है. हम भी तुम्हें बॉर्डर पार नहीं करवा सकते. हमें सुनने को मिलता है यूक्रेन के सैनिक भारतीयों को देखकर आक्रोश भरा कदम उठाते हैं. बॉर्डर पर भी यूक्रेन आर्मी ने बच्चों के साथ मारपीट की है''
महाराष्ट्र के रहने वाले नीतीश भी कुछ ऐसी ही बात बताते हैं, ''भारत ने न्यूट्रल टेक लिया है UNSC में. मेरा दोस्त लविव मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. वे करीब चालीस लोग ग्रुप में एक साथ बॉर्डर पहुंचे थे यूक्रेन के सैनिकों ने उन्हें भगा दिया गया. मजबूरन उन्हें हॉस्टल वापस आना पड़ा''
यूक्रेन बॉर्डर पार कर पौलेंड पहुंचने वाली बिंदु भी कहती हैं ''ऐसा व्यवहार हमने यूक्रेन में इससे पहले भारतीयों के लिए नहीं देखा. हालांकि कुछ यूक्रेन के लोग खाने पीने में मदद भी कर रहे हैं''
बंकर में रहना कितना मुश्किल
खारकीएव मेडिकल यूनिवर्सिटी और सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी में 500 से ज्यादा भारतीय मेडिकल छात्र पिछले पांच दिनों से बंकर में रह रहे हैं. जम्मू-कश्मीर की रहने वाली ख्वाहिश दिसंबर 2020 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गई थीं. बीबीसी से बातचीत में ख्वाहिश बताती हैं, ''मेरी 25 फरवरी को भारत जाने की फ्लाइट बुक थी लेकिन मैं जा नहीं पाई. 24 फरवरी को बमबारी हो रही थी. सुरक्षित स्थान के लिए मैं अपने फ्लैट से हॉस्टल आ गई. तब से हम हॉस्टल के नीचे बंकर में रह रहे हैं''
''बंकर में लड़कियों का रहना काफी मुश्किल है. दिन में सिर्फ पंद्रह मिनट का ब्रेक मिलता है. इसी समय हम अपने कमरों में जाकर फ्रेश हो पाते हैं. हमें दिन में दो बार ही खाना मिलता है एक दोपहर में 1 बजे और दूसरी बार रात में करीब 9 बजे. खाने की मात्रा कम होती है हम बस सर्वाइव कर रहे हैं.''
गोरखपुर की रहने वाली उपासना पांडे बताती हैं, ''बंकर में हिटिंग की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां तापमान माइनस में भी चला जाता है. रात गुजारनी काफी मुश्किल होती है. हम किसी तरह एक दूसरे को सब कुछ ठीक होने का भरोसा दिला रहे हैं ताकि उम्मीदें टूटने ना पाएं. बंकर में रहकर वीडियो कॉल पर मां-पिता से बात करना कितना मुश्किल है मैं आपको नहीं बता सकती''
महाराष्ट्र के रहने वाले नीतीश बताते हैं, ''बंकर में हर जगह धूल है. कुछ बच्चों को अस्थमा की बीमारी है. उनको दवाइयों की जरूरत है लेकिन बाहर नहीं जा सकते. मेडिकल की दुकानें बंद हैं. एंबेसी को फोन करते हैं तो वे काट देते हैं या फिर लाइन बिजी आती है''
पंजाब के रहने वाले पृथ्वी बताते हैं, ''हमारी उम्मीद खत्म हो रही है. धीरे धीरे खाने पीने का सामान कम हो रहा है. यहां पर एक हफ्ते से भी कम का स्टॉक बचा है. कल दाल चावल खाने को मिले थे. सबको खाना नहीं मिल पाता. जो बच्चे बच जाते हैं उन्हें अगले दिन ही खाना मिल पाता है''
उत्तराखंड के ऋषिकेश की रहने वाली जिया बलूनी यूक्रेन के सुमी शहर में फंसी हुई हैं. जिया सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी से मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं. बीबीसी से बातचीत में जिया बताती हैं, ''जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला किया उस दिन बाजार में लंबी लंबी लाइन लगी हुई थी. हमने मुश्किल से खाने पीने का सामान जुटाया. हमें सायरन बजते ही बंकर में पहुंचना होता है''
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची का कहना है कि यूक्रेन में फंसे भारतीय लोगों को बाहर निकालने के लिए सरकार व्यवस्था कर रही है. घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पर्याप्त उड़ाने मौजूद हैं. (bbc.com)
-सुशीला सिंह
''मेरी यही इच्छा है कि मैं, मेरे पति और बच्चा हम सब भारत एक साथ जाएँ, क्योंकि अभी मॉर्शल लॉ लागू है तो मेरे पति नहीं जा सकते इसलिए मैं अपने पति को छोड़कर भारत नहीं लौटना चाहूंगी.''
ये शब्द हैं भारतीय मूल की सफ़ीना अकिमोवा के जो अभी यूक्रेन में हैं. सफ़ीना के पति यूक्रेन से हैं और उनका 11 महीने का बेटा है.
वे बीबीसी से वीडियो बातचीत में कहती हैं कि अभी हम जहां मौजूद हैं वहां से निकालना काफ़ी मुश्किल है क्योंकि यहां के प्रवेश और निकलने की जगहों पर रूसी सैनिक मौजूद हैं. अभी हमला हमारे इलाके में नहीं हुआ है लेकिन हम घिरे हुए हैं. हमें नहीं पता हम कब तक सुरक्षित रहेंगे.
यूक्रेन पर रूस के हमले को पांच दिन हो चुके हैं और इस बारे में देश के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने टेलीविज़न पर दिए अपने संबोधन में रूस की तरफ से किए गए हमले में 56 रॉकेट और 113 क्रूज़ मिसाइलें दागे जाने की जानकारी दी है.
भारत के बेंगलुरु की रहने वाली सफ़ीना कहती हैं,''हम काफ़ी दहशत में है और कुछ सकारात्मक नहीं सोच पा रहे हैं.''
'पुतिन पर भरोसा नहीं'
उनके अनुसार, ''हम लोग रूस या पुतिन पर यकीन नहीं करते. वो पहले कह रहे थे कि हम सैन्य अभयास कर रहे हैं लेकिन फिर उन्होंने हम पर बिना किसी उकसावे के हमला कर दिया था. हमें नहीं पता आगे क्या होगा कि क्योंकि इसका नुकसान हमें और रूस दोनों को हो रहा है.''
सफ़ीना इस साल के जनवरी महीने से भारत आने की कोशिश कर रही थीं. लेकिन टीआरपी यानी अस्थायी निवास परमिट समाप्त होने और बेटे का पासपोर्ट ना होने की वजह से उन्हें पूरे दस्तावेज़ों का इंतज़ार था. 14 फरवरी को दस्तावेज़ हाथ में थे लेकिन फिर बेटा और वो कोविड की चपेट में आ गए.
कोविड से ठीक होने के बाद 26 फरवरी की टिकट भारत के लिए बुक हुई लेकिन उससे पहले 24 फरवरी को ये हमला शुरू हो गया और हवाई क्षेत्र बंद कर दिए गए.
वो हंसती हुए कहती हैं, ''मेरी मां और परिवार के लोग बहुत मायूस हो गए क्योंकि मेरे बेटे की पैदाइश से अब तक वो उससे मिल नहीं पाए हैं. मेरी मां सुबह-शाम वीडियो कॉल के ज़रिए बात करती रहती है. वो काफी उदास हैं कि मैं भारत नहीं आ पा रहीं हूं. मेरे बेटे का जन्मदिन 23 मार्च है और हम दोनों का जन्मदिन 19 मार्च है. हम तकलीफ़ है लेकिन जैसे-तैसे रह रहे हैं.''
मॉर्शल लॉ
सफ़ीना की हँसी में दुख साफ़ दिखाई देता है. वो कहती हैं, ''मैं भारत गई तो मैं अपने पति को लेकर परेशानी रहूंगी. अभी हम लोग साथ में हैं तो ठीक हैं. क्या पता इंटरनेट कनेक्शन यहां काम करेगा कि नहीं. मुझे कैसे पता चलेगा कि वो जिंदा हैं या नहीं हैं और इससे ज्यादा तनाव होगा. मैं अभी यहां हूं मेरे पति और उसका परिवार है.''
वो बताती हैं कि उन्होंने गनशॉट सुने हैं, इससे पहले उन्होंने साइरन की आवाजें सुनी थी और सेना का काफ़िला जाता भी देखा थाम. ये काफ़ी डरावना है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान के आदेश के बाद देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया है.
इधर यूक्रेन सीमा रक्षक सेवा या डीपीएसए ने वहां 18 से 60 साल के यूक्रेन के सभी पुरुषों के देश छोड़ कर जाने पर पाबंदी लगा दी है. डीपीएसए का कहना है कि 'यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी और ज़रूरत पड़ने पर लोगों को संगठित करने के लिए' ये क़दम उठाया गया है.
ये अस्थायी रोक मॉर्शल लॉ लागू रहने तक रहेगी.
सफ़ीना कहती हैं कि यहां यूक्रेन के हर नागरिक को आर्मी का सर्टिफिकेट दिया जाता है चाहे उन्होंने आर्मी के लिए सेवा दी हो या नहीं. साथ ही उन्हें कॉलेज के बाद ट्रेनिंग भी दी जाती है. इसके बाद जो आर्मी में सेवा देते हैं उनके आगे सैनिक लिखा जाता है.
वे बताती हैं, ''अगर मेरे पति को बुलाते हैं तो जाना आसान नहीं होगा लेकिन सरकार की तरफ से बुलाया जाएगा तो वो शायद जा सकते हैं.''
वे बताती हैं कि अभी शहरों के मध्य भाग में रहना काफ़ी ख़तरनाक है इसलिए अब हम अपने अपार्टमेंट में नहीं रह रहे हैं. जैसे ही हमें हमले के बारे में पता चला हम शिफ्ट हो गए क्योंकि यहां पर बंकर हैं. हमारा सामान पूरा पैक ही था क्योंकि हमें भारत आना था. हमें सरकार से कोई चेतावनी मिलती है तो हम यहां से बंकर में चले जाते हैं.
बाइक चलाने का शौक रखने वाली सफ़ीना को बाइक के लिए प्यार उन्हें अपने पति के नज़दीक ले आया.
दरअसल उनके पति भी बाइक चलाने के शौकीन हैं और बाइकर समूह के सदस्य भी हैं और सोशल मीडिया साइट इंस्टाग्राम के ज़रिए उनकी अपने पति से मुलाकात हुई.
मुस्कराते हुए वो बताती हैं, ''मैं भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से बाइकर ग्रूप से जुड़ना चाह रही थी ताकि दूसरों देशों में भी राइड करने जा सकूं. ऐसे में जो ग्रुप मैं फॉलो कर रही थी उसमें मेरे पति का ग्रुप भी शामिल था. हमने एक दूसरे से नंबर अदला-बदली किए और चैट होने लगी. मेरे पति के ग्रुप की तरफ से मुझे यूक्रेन आने का न्यौता मिला.''
उनके अनुसार,'' मेरे पति अंग्रेज़ी बिल्कुल नहीं जानते थे. हम दोनों गूगल के ज़रिए बात करते थे.''
साल 2019 के जून महीने में सफ़ीना पहली बार यूक्रेन आईं थीं. दस दिन मोटरबाइक पर पश्चिमी यूक्रेन का दौरा किया. इस दौरान दोनों में करीबी इतनी बढ़ी कि शादी तक बात पहुंच गई.
वो बताती हैं, ''हम दोनों का जन्मदिन एक ही दिन था, हमें ट्रेवल का शौक था और ऐसे ही बातचीत में बहुत सी रुचियां मेल खाने लगीं और ऐसा महसूस हुआ कि हम सोलमेट हैं.''
सफ़ीना ने वापस आकर अपने माता-पिता से बात की और परिवार को इससे कोई एतराज़ नहीं था.
सफ़ीना दोबारा कीएव पहुंची वहां मस्जिद में पूरे रीति-रिवाज़ से शादी हुई इसके बाद पति के साथ भारत लौटी जहां उनका रिसेप्शन हुआ और फिर यूक्रेन की राजधानी कीएव में आकर शादी का रजिस्ट्रेशन कर लिया. अब ये परिवार देश के उत्तरपूर्वी भाग में रहता है.
सफ़ीना कहती हैं कि बहुत डर है और बस ये उम्मीद है कि ये सब ख़त्म हो तो वो भारत जाकर अपने माता-पिता से मिल सकें. (bbc.com)
"अगर मैं तुरंत रूस छोड़ पाऊं तो छोड़ दूंगा पर मैं अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकता." ये शब्द हैं आंद्रे के. आंद्रे अब अपने घर की किस्त नहीं दे पाएंगे क्योंकि रूस ने ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी की है.
आंद्रे की तरह लाखों रूसी अब पश्चिमी देशों के लगाए आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहे हैं. प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस को यूक्रेन पर हमला करने की सज़ा देना है.
31 के साल आंद्रे डिज़ानर हैं. वो कहते हैं, "मैं जितना जल्दी संभव हो रूस के बाहर अपने लिए ग्राहक खोज रहा हूँ. ग्राहक मिलते ही मैं घर की किस्त देने के लिए बचाए पैसों की मदद से रूस छोड़ दूंगा. "
"मुझे यहाँ डर लग रहा है. कई लोगों को पार्टी लाइन से हटकर बोलने पर गिरफ़्तार कर लिया गया है. मैं ख़ुद शर्मिंदा महसूस कर रहा हूँ हालांकि मैंने सत्तारूढ़ पार्टी को वोट नहीं दिया था."
सुरक्षा कारणों से इस आर्टिकल में हम लोगों के पूरे नाम या उनके चेहरे नहीं दिखा रहे हैं. कुछ नाम बदल भी दिए हैं.
रूस पर लगाए गए इन प्रतिबंधों को अब आर्थिक युद्ध कहा जा रहा है. एक ऐसा युद्ध जो रूस को अलग-थलग कर देगा और उसे एक भयानक आर्थिक मंदी में धकेल देगा. पश्चिमी देंशों के नेताओं को उम्मीद है कि उनके द्वारा उठाए गए अप्रत्याशित क़दमों की वजह से रूस अपनी सोच में बदलाव लाएगा.
लेकिन आम नागरिकों का पैसा देखते ही देखते ग़ायब होता जा रहा है. उनकी ज़िंदगियां बुरी तरह से प्रभावित हो रही हैं
"फ़ोन से पेमेंट नहीं कर पा रहा हूँ"
कुछ रूसी बैंकों के ख़िलाफ़ पाबंदियों का अर्थ ये है कि इनके जो ग्राहक वीज़ा और मास्टरकार्ड का प्रयोग करते थे, अब नहीं कर पा रहे हैं. इसी वजह से एपल पे और गूगल पे जैसी सेवाएं भी इन बैंकों के ग्राहकों को उपलब्ध नहीं हैं.
35 वर्षीय डारिया मॉस्को में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं. वो मेट्रो में सफर नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनका कार्ड रिचार्ज नहीं हो रहा है.
"मैं हमेशा अपने फ़ोन से पेमेंट करती थी लेकिन अब वो काम नहीं कर रहा है. मेरे जैसे और भी कई लोग हैं. दरअसल, मेट्रों में एंट्री को वीटीबी बैंक ऑपरेट करता है. अब इस बैंक पर प्रतिबंध लग गया है. इसलिए न तो गूगल पे काम कर रहा है और न ही एपल पे."
डारिया ने बीबीसी को आगे बताया, "मुझे मेट्रो कार्ड ख़रीदना पड़ा है. इसके अलावा अब मैं दुकानों में सामान ख़रीदने के लिए भी फ़ोन से पेमेंट नहीं कर पा रहा हूँ"
सोमवार को रूस ने रूस की ब्याज दरें लगभग दोगुनी करते हुए 20 प्रतिशत कर दी थीं. देश के शेयर बाज़ार भारी बिकवाली के डर से बंद कर दिए गए हैं.
रूस की सरकार कह रही है कि उनके पास प्रतिबंधों से निपटने के लिए पर्याप्त साधन हैं लेकिन ये एक बहस का विषय है.
बीते हफ़्ते रूस के केंद्रीय बैंक ने माहौल पर शांत बनाए रखने की अपील की थी क्योंकि इस बात का डर बरकरार है कि बहुत सारे लोग एक साथ अपना पैसा निकालने की कोशिश कर सकते हैं. इससे बैंको पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है.
मॉस्को में एक एटीएम के बाहर लाइन में खड़े एंटोन (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "डॉलर तो बिल्कुल नहीं है. रूबल हैं पर मुझे वो चाहिए ही नहीं. मुझे नहीं मालूम अब क्या करना है. मुझे लगता है कि हम ईरान या उत्तर कोरिया की तरह बनते जा रहे हैं."
रूस में विदेशी मुद्रा ख़रीदना अब पिछले हफ़्ते की तुलना में 50% महंगा हो गया है. साथ ही उसकी उपलब्धता भी बहुत कम हो गई है.
साल 2022 की शुरुआत में एक अमेरिका डॉलर के बदले 75 और एक यूरो के बदले 80 रूबल मिलते थे. लेकिन इस लड़ाई ने नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए हैं. सोमवार को एक वक़्त तो एक डॉलर की क़ीमत 113 रूबल तक पहुँच गई थी.
सोवियत संघ का विघटन होने के बाद 1990 के दशक में डॉलर ही वो मुद्रा थी जो रूस के लोग अपने बचत के तौर पर पास में रखते थे, लेकिन छुपा कर.
जब 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार अपना बकाया चुकाने में नाकाम रही तब जिन्होंने अपने पैसे डॉलर में रखे थे वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे.
हालांकि, आने वाले दशकों में कई बैंकिंग उपायों ने रूसियों को रूबल को लेकर आश्वस्त करने का काम किया.
और इस तरह लोगों की जमा राशि रूसी मुद्रा में बढ़ी और रूसी कंपनियों के शेयरों में भी निवेश किया गया.
लेकिन आज भी जब कभी कोई अनिश्चितता का माहौल बनता है तो लोग झटपट अपने पैसे डॉलर में निकालने के लिए पास के एटीएम में दौड़ पड़ते हैं.
ठीक उसी तरह वर्तमान पैदा हुई स्थिति के दौरान भी हो रहा है.
बीते हफ़्ते जैसे ही यूक्रेन पर हमला शुरू हुआ, रूसियों ने पिछली बार ऐसी ही किसी परिस्थिति से सबक लेते हुए अलग अलग कैश पॉइंट्स पर लाइनें लगा दीं.
30 से कुछ अधिक उम्र के इल्या (बदला हुआ नाम) ने अभी-अभी मॉस्को में अपना क़र्ज़ चुकता किया है. वे कहते हैं कि फ़िलहाल वो यहां से किसी नई जगह पर बसने के लिए जाने में सक्षम नहीं हैं.
"जब डोनबास में ऑपरेशन शुरू हुआ था तब मैं एटीएम अपनी बचत निकालने गया था, जो सेब्रबैंक में डॉलर में रखा था. अब उन्हें वाक़ई अपने तकिए के नीचे रखता हूँ."
"बाक़ी बचत अब भी बैंक में ही है, जिसमें से आधी डॉलर में और बाक़ी रूबल में है. अगर चीज़ें बदतर होती हैं तो मुझे बहुत सारी बचत निकालनी होंगी. मैं डरा हुआ भी हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि बड़ी संख्या में लूटपाट हो सकती है. लेकिन अब जो है वो है."
"यहाँ से ज़िंदगी और ख़राब हो जाएगी"
सोशल मीडिया पर जो तस्वीरें दिख रही हैं, उनमें एटीएम और मुद्रा विनिमय (मुद्रा को अदला बदली करने की जगह) केंद्रों पर लंबी क़तारें दिखाई पड़ती हैं. लोगों को ये भी चिंता है कि उनके बैंक कार्ड काम करना बंद कर सकते हैं या फिर लोग कितनी नक़द निकाल सकते हैं, उसकी सीमा भी तय की जा सकती है.
हमले के कुछ ही घंटों में डॉलर और यूरो ख़त्म होने लगे थे. तब से वो मुद्राएं बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं और आप कितना रूबल निकाल सकते हैं, उसकी भी एक सीमा है.
मॉस्को में एक लाइन में खड़े 45 वर्षीय इवगेनी (बदला हुआ नाम) कहते हैं वो अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए पैसे निकालना चाहते हैं.
"मुझे पता है कि हर कोई चिंतित है. सभी तनाव में हैं. इसमें कोई शक नहीं कि यहाँ से ज़िंदगी और ख़राब ही हो जाएगी. ये युद्ध डरावना है."
"मुझे लगता है कि सभी देश दोहरे मापदंड अपनाते हैं और अब बड़े देश एक दूसरे की ताक़त का माप रहे हैं कि कौन कितना कूल है. और आम लोगों को ये सब भुगतना पड़ रहा है.
35 वर्षीय मार्टर ने कहा, "आज वो पहला दिन है जब मैंने पैसे निकालने को सोचा और मुझे कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. वैसे मैंने रूबल निकाला है. मैं कोई अनुमान लगाने में बेहतर नहीं हूँ लेकिन इस बात का संदेह ज़रूर है कि हमारी ज़िंदगी यहाँ से ख़राब ही होगी. लेकिन ये सब समय ही बताएगा."
अब बैंक जाकर फॉर्म साइन करना पड़ रहा है
बीबीसी रूस ने बताया कि कैश की समस्या केवल मॉस्को तक ही सीमित नहीं है, लोग डॉलर या यूरो पाने के लिए पर्म, कोस्त्रोमा, बेलग्रॉद और अन्य प्रांतीय शहरों में भी दौड़ रहे हैं.
एक अनाम आईटी-एक्सपर्ट ने एक टेलीग्राम बॉट भी बनाया है जो निजी बैंक टिंकऑफ के एटीएम में यूरो या डॉलर है या नहीं इसकी जानकारी देता है. ये अपने सब्सक्राइब को उन एटीएम का लोकेशन बताता है.
कई लोगों ने अपने बैंकिंग ऐप के ज़रिए प्री-कैश-ऑर्डर करने की कोशिश कर रहे हैं. ये रूस की बैंकिंग में एक उन्नत सुविधा है.
रविवार की शाम को जब रूस के केंद्रीय बैंक पर प्रतिबंधों की घोषणा की गई थी तब भी आप वहां 140 रूबल तक के मूल्य के डॉलर और 150 रूबल तक के यूरो ऐप के ज़रिए ऑर्डर कर सकते थे.
लेकिन सोमवार को रूस के सबसे बड़े सरकार समर्थिक बैंक सेब्रबैंक ने बीबीसी रूस को कहा कि ऐप के ज़रिए कैश ऑर्डर नहीं कर सकते. इसके लिए अब बैंक की शाखा में जाकर वहां एक फॉर्म पर हस्ताक्षर करने होंगे.
असमंजस में लोग
हालांकि बैंक इस बात से इनकार करते हैं कि नक़दी की कमी है और जानकारों की नज़र में ये आगे एटीएम में कैश की कमी न हो और बैंक बिना किसी बाधा के चले ये उसका उपाय दिखता है.
क्रेमलिन ने कहा है कि रूस पहले से इन प्रतिबंधों के लिए तैयार था हालांकि उसने ये नहीं बताया कि क्या बिज़नेस को कुछ अतिरिक्त मदद दी जाएगी जैसा कि कोरोना महामारी के दौरान किया गया था.
लेकिन आम रूसी, जिनमें से कइयों को ख़बरें सरकारी नियंत्रण वाले टेलीविजन से मिलती हैं और वो सरकार की कही बातों को ही दोहराते हैं, उम्मीद है कि वो भी जल्द ही अपनी ज़िंदगी में बदलाव देखना शुरू करेंगे.
राजधानी मॉस्को के लोग खाद्य भंडारों के आगे लगी कतारों की ख़बरें दे रहे हैं. वहाँ लोग इस बात से चिंतित हो कर की आने वाले वक़्त में इनकी सप्लाई में कमी आएगी और प्रतिबंधों की वजह से कीमतें बढ़ेंगी, वो अधिक से अधिक सामान अपने पास स्टोर करना चाह रहे हैं.
प्रतिबंधों की वजह से रूस की कंपनियों के उत्पादन में कटौती देखने को मिल सकता है या ये ठप भी पड़ सकता है. साथ ही उनकी बचत का भी अवमूल्यन हो रहा है. पश्चिम के साथ आर्थिक गतिविधियां थमने से अर्थव्यवस्था में गिरावट आई तो कई रूसियों की नौकरियां जाने का भी ख़तरा है.
आज जो कुछ भी हो रहा है उससे रूसियों को छह साल पहले जब 2014 में क्राइमिया पर क़ब्ज़ा किया गया था तब की याद आ गई क्योंकि तब भी लोगों की क़तारें एटीएम के बाहर घंटों देखी जाती थी.
तब एक डॉलर की क़ीमत आमतौर पर 30 से 35 रूबल हुआ करती थी जिसकी आज की तारीख़ में कल्पना करना भी बेमानी है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 1 मार्च| पाकिस्तान मंगलवार को 'पैरिया' व्लादिमीर पुतिन का समर्थन करने वाला पहला बड़ा देश बन गया, क्योंकि उसने यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस के साथ पहले नए व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले गुरुवार को कहा था कि उनका देश रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मिलने के बाद रूस से लगभग 20 लाख टन गेहूं और प्राकृतिक गैस आयात करेगा। उसी दिन बाद में रूस ने पड़ोसी यूक्रेन के खिलाफ सैन्य हमला किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस को अंतर्राष्ट्रीय अलगाव का सामना करने और उसकी अर्थव्यवस्था को पंगु बनाने के लिए प्रतिबंधों का सामना करने के बावजूद खान ने क्रेमलिन के खजाने में संभावित अरबों की वृद्धि का बचाव किया है, यह कहते हुए कि पाकिस्तान के आर्थिक हितों को इसकी जरूरत है।
उन्होंने दो दिवसीय यात्रा के बारे में कहा, "हम वहां गए, क्योंकि हमें रूस से 20 लाख टन गेहूं आयात करना है। दूसरे, हमने प्राकृतिक गैस आयात करने के लिए उनके साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, क्योंकि पाकिस्तान के अपने गैस भंडार कम हो रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "इंशाअल्लाह (भगवान की इच्छा), समय बताएगा कि हमने बहुत चर्चा की है।"
पुतिन ने मंगलवार को रूस से बाहर निकलने वाली विदेशी कंपनियों को ब्लॉक करने का निर्देश दिया। उधर, बीपी और शेल ने यूक्रेन के हमले के बाद 20 अरब डॉलर के संयुक्त उपक्रम बेचने का वादा किया।
रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्टिन ने घोषणा की कि राष्ट्रपति ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किए किए हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध बढ़ा दिया है, रूबल अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है और रूसी लोग बैंकों पर संकट के बीच एटीएम से नकदी निकालने के लिए रात-दिन कतार में खड़े दिखाई दे रहे हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 मार्च | कीव के 1,300 फीट के टीवी टॉवर के आसपास मंगलवार दोपहर (स्थानीय समयानुसार) विस्फोट हो गया, इसके कुछ ही घंटों बाद रूस ने नागरिकों को दूर चले जाने के लिए कहा, क्योंकि यह यूक्रनी राजधानी में 'रणनीतिक' लक्ष्यों पर बमबारी शुरू करने वाला था। डेली मेल यह जानकारी दी। मध्य कीव से करीब तीन मील की दूरी पर स्थानीय समयानुसार शाम करीब साढ़े पांच बजे टावर के निचले हिस्से के पास कम से कम दो बड़े विस्फोट देखे गए।
यह तुरंत स्पष्ट नहीं था कि क्या हमलों का लक्ष्य टावर था या वे आस-पास की इमारतों को निशाना बना रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि टावर खड़ा रहा, लेकिन कई राज्यों में टीवी प्रसारण बंद हो गया।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, इससे यह आशंका बढ़ गई कि खार्किव, मारियुपोल और खेरसॉन शहरों पर दिन में अंधाधुंध गोलाबारी होने के बाद कीव भारी बमबारी की चपेट में आने वाला था।
यूक्रेन की स्टेट इमरजेंसी सर्विस के अनुसार, दो अज्ञात मिसाइलों ने टीवी टॉवर के ठीक बगल में एक इमारत में टक्कर मारी और आग लग गई। स्थानीय मीडिया ने बताया कि आग पर काबू पा लिया गया है।
मिसाइल हमले के बाद यूक्रेन के टीवी चैनलों ने प्रसारण बंद कर दिया। यूक्रेन के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि कुछ चैनलों का बैकअप प्रसारण जल्द शुरू किया जाएगा।
यूक्रेन के राष्ट्रपति के कार्यालय ने भी कहा कि कीव में टीवी टावर को नुकसान पहुंचा है। राष्ट्रपति कार्यालय ने बताया कि प्रसारण उपकरण प्रभावित हुए हैं।
कार्यालय ने कहा कि टीवी चैनल अस्थायी रूप से अनुपलब्ध रहेंगे, लेकिन आरक्षित प्रसारण क्षमताओं को जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा। इसके अलावा, कई चैनलों को यूट्यूब और मेगोगो सर्विस के जरिए स्ट्रीम किया जा सकता है। (आईएएनएस)
लॉस एंजिल्स, 1 मार्च | कैलिफोर्निया की राजधानी सैक्रामेंटो में आर्डेन फेयर मॉल के पास एक चर्च में एक व्यक्ति ने गोलीबारी की, जिनमें 3 बच्चों समेत कम से कम 5 लोगों की मौत हो गई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने स्थानीय मीडिया के हवाले से बताया कि जिस व्यक्ति ने गोलीबारी की, उसने बाद में अपनी भी जान ले ली। वह तीन बच्चों का पिता था। ये खूनखराबा शाम करीब साढ़े पांच बजे हुआ। ये हादसा सोमवार को घरेलू हिंसा की वजह से हुआ है।
सार्जेट सैक्रामेंटो काउंटी शेरिफ कार्यालय के प्रवक्ता रॉडनी ग्रासमैन ने सैक्रामेंटो बी अखबार के हवाले से कहा कि मारे गए तीन बच्चों की उम्र 15 साल से कम थी।
इस घटनास्थल पर एक वयस्क शख्स की भी मौत हुई है। ग्रासमैन ने कहा कि पीड़ित का बंदूकधारी से अभी संबंध स्पष्ट नहीं है, लेकिन सभी एक दूसरे को जानते थे।
सैक्रामेंटो सिटी काउंसिलमैन एरिक गुएरा ने एक संदेश में इस घटना को एक चर्च में बड़े पैमाने पर हताहत शूटिंग के रूप में संदर्भित किया और लोगों से क्षेत्र में सतर्क रहने का आग्रह किया। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 1 मार्च | टेक दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन ने कहा कि सीईओ सत्या नडेला और उनकी पत्नी अनु नडेला के बेटे जैन नडेला का निधन हो गया है। ब्लूमबर्ग ने मंगलवार को इसकी सूचना दी। सॉफ्टवेयर निर्माता ने अपने कार्यकारी कर्मचारियों को एक ईमेल में बताया कि 26 वर्षीय जैन, जो 'सेरेब्रल पल्सी' के साथ पैदा हुआ था, उसका सोमवार सुबह निधन हो गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि संदेश ने अधिकारियों से परिवार को अपने विचारों और प्रार्थना करने के लिए कहा।
अक्टूबर 2017 में, सीईओ ने एक ब्लॉगपोस्ट में अपने बेटे के जन्म के बारे में बात की थी।
नडेला ने कहा था, "एक रात, अपनी गर्भावस्था के छत्तीसवें सप्ताह के दौरान, अनु ने देखा कि बच्चा उतना हिल नहीं रहा था जितना वह आदी था। इसलिए हम बेलेव्यू के एक स्थानीय अस्पताल के इमरजेंसी रूम में गए।"
उन्होंने कहा, "हमने सोचा कि यह सिर्फ एक नियमित जांच होगी। वास्तव में, मुझे इमरजेंसी रूम में अनुभव किए गए प्रतीक्षा समय से नाराज महसूस करना स्पष्ट रूप से याद है। लेकिन जांच करने पर, डॉक्टर इमरजेंसी सिजेरियन सेक्शन का आदेश देने के लिए पर्याप्त चिंतित थे।"
सीईओ ने बताया कि जैन का जन्म 13 अगस्त 1996 को रात 11:29 बजे हुआ था, मगर वह रोया नहीं था।
नडेला ने कहा, "जैन को लेक वॉशिंगटन के बेलेव्यू अस्पताल से सिएटल चिल्ड्रेन हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उसकी अत्याधुनिक नवजात गहन देखभाल इकाई थी। अनु ने मुश्किल जन्म से अपनी रिकवरी शुरू की। मैंने अस्पताल में और तुरंत उसके साथ रात बिताई। अगली सुबह जैन से मिलने गए। तब मुझे नहीं पता था कि हमारी जि़ंदगी कितनी गहराई से बदलेगी।"
उन्होंने कहा, "अगले कुछ वर्षों के दौरान, हमने यूटेरो एस्फीक्सिएशन में होने वाले नुकसान के बारे में और अधिक सीखा और कैसे जैन को व्हीलचेयर की आवश्यकता होगी और गंभीर सेरेब्रल पल्सी के कारण हम पर निर्भर रहना होगा। मैं तबाह हो गया था। लेकिन मैं अधिक दुखी था। मेरे और अनु के लिए चीजें काफी मुश्किल थीं। (आईएएनएस)
पिछले दो हफ्तों में दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान के एक छोटे से शहर में परिवार की इज्जत की रक्षा के बहाने कम से कम एक दर्जन लोगों की उनके ही रिश्तेदारों द्वारा हत्या कर दी गई है.
पाकिस्तान में ऑनर किलिंग की ताजा घटनाएं बलूचिस्तान के डेरा मुराद जमाली इलाके में हुई हैं. स्थानीय पुलिस अधिकारी सोनहारा खान ने कहा कि सोमवार 28 फरवरी को एक 18 वर्षीय महिला की हत्या कर दी गई. खान के मुताबिक पीड़िता की उसके ससुर ने कथित तौर पर अफेयर के आरोप में हत्या कर दी.
इस बीच पुलिस ने जांच के दौरान एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरोपी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और पुलिस को बताया कि उसने इज्जत के नाम पर एक महिला और एक पुरुष की हत्या की है. आरोपी ने कहा कि उसे शक था कि दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं.
पांच लाख की आबादी वाला डेरा मुराद जमाली बलूचिस्तान का एक ग्रामीण इलाका है, जहां कई सालों से ऑनर किलिंग होती आ रही है. हालांकि, हाल ही में हत्याओं में वृद्धि भी पुलिस के लिए चिंता का कारण है.
पाकिस्तान में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था वीमेंस फाउंडेशन के प्रतिनिधि अलादीन खिलजी के मुताबिक, पिछले साल पाकिस्तान में 49 में से 27 ऑनर किलिंग बलूचिस्तान में हुई थीं. खिलजी ने समाचार एजेंसी डीपीए के साथ बातचीत में बलूचिस्तान में तथाकथित ऑनर किलिंग के मुख्य कारणों के रूप में पिछड़ा समाज, घटती सजा और खराब न्याय प्रणाली का हवाला दिया
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के मुताबिक, पाकिस्तान में हर साल करीब एक हजार महिलाओं और लड़कियों की उनके रिश्तेदारों द्वारा हत्या कर दी जाती है.
कंदील बलोच के हत्यारे भाई को मां ने किया माफ, कोर्ट ने रिहा किया
पिछले दिनों 2016 में मॉडल कंदील बलोच की हत्या करने वाले उनके भाई मोहम्मद वसीम को एक स्थानीय अदालत ने रिहा कर दिया था. बलोच की 2016 में गला घोंट कर हत्या कर दी गई थी. हाल के दिनों में पाकिस्तान में ऑनर किलिंग यानी इज्जत के नाम पर हत्या का यह सबसे चर्चित मामला रहा है.
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
खराब अर्थव्यवस्था के कारण लेबनान में लोगों के लिए सेफ सेक्स मुश्किल हो गया है. विशेषज्ञ कहते हैं कि हालात घातक और जानलेवा हो सकते हैं.
लेबनान में रहने वालीं 27 साल की लीना ने सालभर पहले गर्भनिरोधक गोलियां लेना बंद कर दिया क्योंकि वे बहुत महंगी हो गई थीं. आज वह पांच महीने की गर्भवती हैं और एक ऐसे बच्चे को जन्म देने की तैयारी कर रही हैं, जिसके लिए उन्होंने कोई योजना नहीं बनाई थी. इसलिए भविष्य को लेकर उनकी चिंताएं भी बढ़ गई हैं.
शादीशुदा लीना अपना असली नाम नहीं बताना चाहतीं. वह कहती हैं, "मेरे पास कोई करियर नहीं है. जीवन में स्थिरता भी नहीं है. मेरे पास कोई घर नहीं है जहां बच्चा सुरक्षित रहेगा.”
लेबनान आर्थिक संकट से गुजर रहा है. महंगाई बढ़ रही है और जरूरत की चीजें भी लोगों की पहुंच से बाहर हो रही हैं. इसका असर गर्भनिरोधकों, कंडोम और गर्भ जांच की कीमतों पर भी पड़ा है. कई युवाओं के लिए तो ये चीजें इतनी महंगी हो गई हैं कि वे इस्तेमाल ही बंद कर रहे हैं. लेकिन विशेषज्ञों को डर है कि ऐसा करने से अनचाहे गर्भ, यौन रोग और असुरक्षित गर्भपात बढ़ सकते हैं.
वायरस के कारण झेलनी पड़ सकती है कंडोम की कमी
देश के आर्थिक हालात ऐसे हैं कि लेबनान की 82 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जा चुकी है. वहां की मुद्रा लीरा की कीमत बहुत ज्यादा घटी है और हर चीज महंगी हो गई है. 2019 की शुरुआत में लीरा धड़ाम से गिरी थी. आज भारतीय मुद्रा में एक लीरा की कीमत पांच पैसे है.
2019 से पहले साल भर के लिए गर्भनिरोधक गोलियां 21,000 लीरा यानी करीब एक हजार रुपये में आ जाती थीं. आज इसके लिए लगभग दो लाख 10 हजार लीरा चाहिए, जो भारत के दस हजार रुपयों के बराबर होंगे. छह कंडोम का एक पैकेट तीन लाख लीरा में आता है, जो देश की औसत आबादी की आधे महीने की तन्ख्वाह है.
युवा सबसे ज्यादा प्रभावित
इस महंगाई ने सबसे ज्यादा प्रभावित युवाओं को किया है और उनके लिए कंडोम व गर्भनिरोधक बहुत महंगे हो चुके हैं. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि इसके परिणाम घातक हो सकते हैं. बेरूत स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी में महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. फैजल अल काक कहते हैं, "अनचाहे गर्भ की संभावित वृद्धि के और ज्यादा आर्थिक नुकसान होंगे. मांओं के स्वास्थ्य में परेशानियां और यहां तक कि मृत्यु भी बढ़ेंगी. और बेशक, असुरक्षित गर्भपात भी बढ़ेंगे.”
लेबनान में गर्भपात पूरी तरह अवैध है. बलात्कार और किसी परिजन द्वारा अवैध यौन संबंधों के परिणामस्वरूप ठहरे गर्भ की स्थिति में भी अबॉर्शन की इजाजत नहीं है. यदि कोई गर्भपात करता या करवाता पकड़ा जाएगा तो उसे जेल और जुर्माना भुगतना होगा.
असुरक्षित गर्भपात बड़ा खतरा इसलिए भी है क्योंकि रूढ़िवादी समाज में शादी के बिना बच्चा पैदा करना अच्छा नहीं माना जाता. अल काक कहते हैं कि इसका नतीजा यह होता है कि महिलाओं को अनचाहे गर्भ गिराने के लिए अक्सर अवैध साधन अपनाने पड़ते हैं, जो असुरक्षित होते हैं. डॉ. अल काक के मुताबिक अनुमानतः 25 प्रतिशत गर्भपात महिला की मौत के रूप में खत्म होते हैं.
महंगी हुई जांच
संयुक्त राष्ट्र ने पिछले साल बताया था कि कोविड महामारी के कारण गर्भनिरोधक उपाय गरीब देशों की करीब सवा करोड़ महिलाओं की पहुंच से बाहर हो गए. इसका परिणाम 14 लाख अनचाहे गर्भ के रूप में सामने आया.
लेबनान में यह समस्या देश की आर्थिक हालत के कारण कई गुना ज्यादा गंभीर हो गई. डॉ. अल काक बताते हैं कि शरणार्थी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग तो खासतौर पर परेशानी झेल रहे हैं क्योंकि उनके लिए यौन स्वास्थ्य सेवाएं दूभर हो गई हैं.
कोरोना के कोहराम के बीच सेक्स
वह कहते हैं कि एचआईवी और अन्य गंभीर यौन रोगों के लिए जांच कराना चाहने वालों को भी मुश्किल हो रही है क्योंकि किसी निजी क्लिनिक में एसटीआई टेस्ट कराने पर दो लाख लीरा यानी लगभग दस हजार भारतीय रुपये तक का खर्च आ सकता है. यूं भी देश में एसटीआई जांच सेवाओं को लंबे समय से नजरअंदाज किया जाता रहा है.
फंडिंग की कमी
नेशनल एड्स प्रोग्राम के मुताबिक पिछले साल नवंबर तक देश में 2,885 एचआईवी मरीज थे जिनमें से 1,941 को ही इलाज उपलब्ध हो पाया था. रूढ़िवादिता, प्रताड़ना और समलैंगिक सेक्स पर लगे प्रतिबंध के कारण एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय की हालत तो और ज्यादा खराब है. डॉ. अल काक कहते हैं कि ऐसे लोग तो जांच कराने तक सामने नहीं आते.
ऐसे में स्थानीय स्तर पर सामाजिक संस्थाओं द्वारा उपलब्ध करवाए जा रहे एसटीआई टेस्ट ही कुछ लोगों की मदद कर पा रहे हैं. मुफ्त एसटीआई टेस्टिंग उपलब्ध कराने वाली एक गैर सरकारी संस्था एसआईडीसी द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक 2021 में जितने लोगों को यौन रोग हुआ, उनमें से 70 प्रतिशत ने असुरक्षित सेक्स किया था.
एसआईडीसी की अध्यक्ष नादिया बदरान कहती हैं कि मांग बढ़ने से परेशानी भी बढ़ रही है क्योंकि सामाजिक संस्थाओं के पास इतना धन नहीं है. बदरान कहती हैं, "फंडिंग के लिए वे लोग भूख से मरते लोगों को एसटीआई से मरने वाले लोगों के ऊपर तरजीह दे रहे हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों की कार्रवाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे जर्मनी के उद्योग भी प्रतिबंधों की आंच को महसूस करेंगे. जर्मन उद्योग, ऊर्जा और कच्चे माल के लिए फिलहाल रूस पर बहुत ज्यादा निर्भर है.
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन की रिपोर्ट-
बीते सालों में जर्मनी और रूस के उद्योग जगत के बीच काफी करीबी संबंध रहे हैं. दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ मिल कर उद्योग और कारोबार को बढ़ाया है. यूक्रेन पर हमले के बाद जब जर्मनी रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा है तो सवाल उठता है कि जर्मन उद्योग जगत पर इसका क्या असर होगा.
सबसे बड़ी समस्या तो ऊर्जा को लेकर है. जर्मनी अपनी ऊर्जा जरूरतों का 25 फीसदी हिस्सा प्राकृतिक गैस से पूरा करता है. नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन की तो बात ही छोड़िए फिलहाल यूक्रेन से हो कर जो पाइपलाइन गैस ला रही है, उससे जर्मनी की 55 फीसदी गैस की जरूरतें पूरी होती है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद फिलहाल इस पाइपलाइन से सप्लाई पर कोई असर नहीं पड़ा है लेकिन हालात कभी भी बदल सकते हैं. बाल्टिक सागर से हो कर आने वाली नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन बन कर तैयार है लेकिन अब इसके निकट भविष्य में चालू होने की संभावनाओं पर पूर्ण विराम लग चुका है.
जर्मनी और रूस का कारोबारी रिश्ता
जर्मन सांख्यिकी विभाग के आंकड़े बताते हैं कि रूस के साथ जर्मनी का व्यापार 2021 में 34 फीसदी बढ़ गया. इसमें भी ज्यादा इजाफा आयात में हुआ है जो पिछले साल के मुकाबले 54 फीसदी बढ़ा. ऊर्जा की बढ़ी कीमतों का भी इसमें बड़ा योगदान है क्योंकि रूस से जर्मनी जो खरीदता है उसमें 59 फीसदी हिस्सा केवल कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का है.
राजनीतिक तनाव बढ़ने के बावजूद रूस और जर्मनी के बीच कारोबार बढ़ता रहा और महामारी वाले साल 2020 में घटने के बाद 2021 में काफी तेजी से बढ़ा. दोनों देशों के बीच 2021 में कुल 59.8 अरब यूरो का कारोबार हुआ. इसमें से जर्मनी ने 33.1 अरब यूरो का सामान आयात किया.
जर्मनी और रूस के बीच जिन सामानों का व्यापार होता है उसमें मुख्य रूप से कच्चा माल, गाड़ियां और मशीनरी शामिल है. 2021 में जर्मनी ने 19.4 अरब यूरो का तेल और गैस रूस से खरीदा था. इसके साथ ही रूस ने 4.5 अरब यूरो के धातु, 2.8 अरब यूरो के कोक और रिफाइंड पेट्रोलियम प्रॉडक्ट और 2.2 अरब यूरो का कोयला जर्मनी को बेचा था.
जर्मन उद्योग पर असर
जर्मन खरीदारी की सूची बता रही है कि यूक्रेन युद्ध का असर जर्मन उद्योग जगत पर काफी ज्यादा पड़ेगा और राजनीतिक हालात जिस तरह से करवट ले रहे हैं उसमें इस संकट के खत्म होने की समय सीमा तय करना तो और मुश्किल है.
जर्मनी का उद्योग जगत पहले से ही कई चीजों की कमी झेल रहा है, खासतौर से ऑटोमोबाइल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के सेक्टर में. जर्मन चैंबर ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स एसोसिएशन के प्रमुख पीटर आड्रियान का कहना है कि पैलेडियम जैसे कच्चे माल की बड़ी कमी होगी जिसका इस्तेमाल कार के कैटेलिटिक कंवर्टर में होता है. दक्षिण अफ्रीका के बाद रूस पैलेडियम का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है. आड्रियान का कहना है, "अगर इसकी रूस से सप्लाई नहीं आती है तो अर्थव्यवस्था के अलग अलग क्षेत्रों में इसकी वजह से बड़ी बाधा पैदा होगी." इसकी वजह से कारों की डिलीवरी में देर होगी.
जर्मन कंपनियां पहले से ही मुश्किल में
जर्मन ऑटोमोटिव कंपनियों की दिक्कत कई महीनों से चली आ रही है. म्युनिख के इफो इंस्टीट्यूट ने फरवरी में कंपनियों का सर्वे किया था. इनमें से तीन चौथाई कंपनियों ने कच्चे माल और इंटरमीडिएट सामानों को हासिल करने में हो रही दिक्कतों की शिकायत की थी. पिछले महीने की तुलना में फरवरी में स्थिति और ज्यादा खराब हो गई. इससे पहले के महीने में 2300 कंपनियों के सर्वे में 67.3 फीसदी लोगों ने ऐसी शिकायत की थी. इफो में सर्वे के प्रमुख क्लाउस वोह्लराबे का कहना है, "स्थिति बदलने की उम्मीद नाकाम हो गई." वोह्लराबे का कहना है कि कच्चे माल की कमी सारे सेक्टरों में फिर से बढ़ गई है.
इफो के मुताबिक ऑटोमोटिव और मैकेनिकल इंजीनियरिंग उद्योग की 89 फीसदी कंपियों ने सप्लाई चेन की दिक्कतों की शिकायत की है. इसके बाद बारी आती है डाटा प्रोसेसिंग और इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रिक सामान बनाने वाली कंपनियों की. इनमें से हरेक सेक्टर में 88 फीसदी कंपनियों का यही हाल है.
जर्मनी को विकल्प ढूंढना होगा
कार कंपनी फॉक्सवागेन ने रूस के हमले को देखते हुए उत्पादन बंद करने या कुछ समय के लिए स्थगित करने की योजना बनाई है.
अमेरिका ने रूस के खिलाफ गुरुवार को निर्यात से जुड़े प्रतिबंदों का एलान किया. इसमें कमर्शियल इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर कंप्यूटर, सेमी कंडक्टर और विमान के पार्ट्स शामिल हैं. इसका असर कंपनियों के उत्पादन पर पड़ेगा और उन्हें सप्लाई का विकल्प ढूंढना पड़ेगा.
इस बीच जर्मन चैंबर ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ने इस बात पर जोर दिया है कि रूस को प्रतिबंधों के कारण जिन चीजों को यूरोप से खरीदने में दिक्कत होगी वह उसे चीन से खरीदने की कोशिश करेगा.
रूस, जर्मनी से गाड़ियां, ट्रेलर, सेमी ट्रेलर, रसायन और रासायनिक सामान खरीदता है. जर्मनी के कुल विदेश व्यापार में रूस की हिस्सेदारी 2.3 फीसदी की है और यह 2021 में 15 सबसे बड़े कारोबारी साझीदारों में एक था. यूरोपीय संघ के बाहर के देशों में जर्मनी का सबसे ज्यादा व्यापार चीन से है जिसके बाद अमेरिका की बारी आती है.
रूस और जर्मनी का कारोबारी रिश्ता आयात निर्यात से आगे भी है. 2021 में रूस के 472 एंटरप्राइज का नियंत्रण 2019 में जर्मन निवेशकों के पास था. इसमें कुल मिला कर 129,000 लोग काम करते हैं और इनका सालाना टर्नओवर 38.1 अरब यूरो का है. यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का दायरा इन सब को अपनी चपेट में लेगा.
मुश्किलें बड़ी हैं और युद्ध लंबा खिंचा तो और बड़ी होंगी. जब प्रतिबंध लगाने वाले देशों की समस्या ऐसी है तो जिस पर प्रतिबंध लग रहा है उसका हाल क्या होगा. (dw.com)
यूरोपीय संघ यूक्रेन छोड़ कर आने वाले लोगों को तीन साल तक रहने और काम करने का अधिकार दे सकता है. अभी तक कम से कम 3,00,000 यूक्रेनी शरणार्थी ईयू जा चुके हैं और आने वाले दिनों में लाखों और जा सकते हैं.
27 सदस्यीय यूरोपीय संघ के सदस्य देशों पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया और हंगरी की सीमाएं यूक्रेन से सटी हुई हैं. शरणार्थियों का स्वागत करने की जरूरत पर फ्रांस के गृह मंत्री जेराल्ड दरमानी ने कहा, "युद्ध से बच कर आ रहे लोगों को स्वीकार करना हमारा कर्त्तव्य है."
उन्होंने यह बताया कि संघ के गृह मंत्रियों ने रविवार को यूरोपीय आयोग से कहा कि वो इन शरणार्थियों को संरक्षण देने के लिए प्रस्ताव के मसौदों पर काम करे. सभी मंत्री प्रस्ताव के बारीकियों पर विमर्श के लिए मंगलवार को फिर मिलेंगे.
बाल्कन युद्ध की विरासत
ईयू के अस्थायी संरक्षण दिशानिर्देशों को 1990 के दशक के बाल्कन युद्ध के बाद बनाया गया था लेकिन आज तक उनका इस्तेमाल नहीं किया गया. इनके तहत सभी सदस्य देशों में एक से ले कर तीन साल तक संरक्षण का प्रावधान है. इन प्रावधानों के तहत रहने की अनुमति, रोजगार के मौके, सरकारी मदद और इलाज की सुविधा मिल सकती है.
संघ के गृह मामलों की आयुक्त इलवा जोहान्सन ने कहा कि रविवार को अधिकांश मंत्रियों ने इस कदम को अपना समर्थन दिया था और सिर्फ कुछ ही मंत्रियों ने यह सवाल उठाया था कि इस कदम को उठाने का यही समय है या अभी थोड़ा और इंतजार करना ही सबसे सही कदम होगा.
लाखों शरणार्थी
उन्होंने एक समाचार वार्ता के दौरान बताया, "हम अभी से देख रहे हैं कि कई यूक्रेनी नागरिक अपना देश छोड़ कर सबसे पहले जिस ईयू सदस्य देश में घुसे थे वो वहां से दूसरे देशों में जा चुके हैं, विशेष रूप से ऐसे देशों में जहां पहले से बड़ी संख्या में यूक्रेन के लोग रहते हैं. इनमें पोलैंड, इटली, पुर्तगाल, स्पेन, जर्मनी और चेक गणराज्य शामिल हैं."
जर्मनी की गृह मंत्री नैंसी फेजर ने कहा, "सभी ईयू सदस्य देश यूक्रेन से शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं. यह पुतिन के आपराधिक युद्ध की वजह से जन्मे भयानक कष्ट के प्रति यूरोप की मजबूत प्रतिक्रिया है. हम यूक्रेन के लोगों के साथ एकजुटता में खड़े हैं."
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान का हवाला देते हुए यूरोप के लोकोपकारी मदद और संकट प्रबंधन आयुक्त यनेज लेनारसिच ने कहा कि यूक्रेन से चालीस लाख शरणार्थी आ सकते हैं.
सीके/एए (रॉयटर्स)
अमेरिका में यूक्रेन की राजदूत ने अमेरिकी सांसदों को बताया कि सोमवार को युद्ध के पांचवें दिन रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में एक प्रतिबंधित थर्मोबैरिक हथियार का इस्तेमाल किया.
यूक्रेन की राजदूत ने कहा, “रूस ने आज वैक्यूम बम का इस्तेमाल किया जो कि जेनेवा कंवेंशन के तहत प्रतिबंधित है.”
हालांकि बीबीसी इस दावे की पुष्टि नहीं करता है.
थर्मोबैरिक हथियारों में पारंपरिक गोला-बारूद का उपयोग नहीं होता है. ये एक उच्च-दाब वाले विस्फोटक से भरे होते हैं. ये शक्तिशाली विस्फोट करने के लिए आसपास के वातावरण से ऑक्सीजन सोखते हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, रूसी गणराज्य चेचन्या में पहले भी इसका इस्तेमाल देखा जा चुका है.
इससे पूर्व शनिवार को, सीएनएन ने रूस के शहर बेलगोरोड के पास थर्मोबैरिक रॉकेट लॉन्चर को देखने की सूचना दी थी.
इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने टेलीविजन पर अपने एक संबोधन में कहा कि यूक्रेन पर रूस के हमले को पांच दिन हो चुके हैं. इन पांच दिनों में रूस ने यूक्रेन पर 56 रॉकेट और 113 क्रूज़ मिसाइलें दागी हैं.
अपने संबोधन में ज़ेलेंस्की ने कहा कि रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन की लड़ाई में शामिल होने के इच्छुक विदेशियों के लिए एक मार्च से वीज़ा-मुफ़्त यात्रा की अनुमति होगी.
उन्होंने सोमवार को रूस पर ख़ारकीएव में युद्ध अपराध में शामिल होने का भी आरोप लगाया. सोमवार को दोपहर से पहले ली गयी सैटेलाइट तस्वीरों में देखा जा सकता है कि रूसी सेना का एक विशाल काफ़िला राजधानी कीएव की ओर आगे बढ़ रहा है. (bbc.com)
यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर सोमवार को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (यूएनजीए) को संबोधित करते हुए यूएन प्रमुख एंटोनिओ गुटेरस ने कहा कि अब बहुत हो गया है.
इस प्रस्ताव में रूस की निंदा की गई है और तत्काल युद्धविराम के साथ यूक्रेन के क्षेत्र से रूसी सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा गया है.
गुटेरस ने कहा कि यूक्रेन में लड़ाई बंद होनी चाहिए. यूएन प्रमुख ने कहा, ''हम यूक्रेन के लिए तो त्रासदी झेल ही रहे हैं, साथ में यह एक बड़ा क्षेत्रीय संकट है और इसका प्रभाव विनाशकारी है.''
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने परमाणु हथियारों को अलर्ट पर रखने का आदेश दिया है और बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको ने देश के ग़ैर-परमाणु हथियार वाले दर्जे को बदलने की घोषणा की है.
इस संदर्भ में गुटेरस ने कहा, ''परमाणु संघर्ष का विचार समझ से बाहर है. परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता है.''
गुटेरस के बोलने के बाद संयुक्त राष्ट्र में रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधि आपस में उलझ गए. यूएनजीए की अध्यक्षता मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्लाह शाहिद के पास है.
यूएन में यूक्रेन के राजदूत सेर्गेई किसलित्स्या ने कहा कि रूसी कार्रवाई और परमाणु हथियारों को लेकर घोषणा पागलपन है. उन्होंने कहा कि अगर यूक्रेन नहीं बचेगा तो संयुक्त राष्ट्र भी नहीं बचेगा.'
संयुक्त राष्ट्रमें रूसी राजदूत वैसिली नेबेन्ज़िया ने आरोप लगाया कि इस शत्रुता की शुरुआत रूस ने नहीं यूक्रेन ने की है. रूसी राजदूत ने दावा किया कि यूक्रेन की सरकार ने इस संकट की जड़ रोपी है और उसने 2015 के मिंस्क समझौते का पालन नहीं किया.
यूक्रेन पर प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 11वें सत्र में सुना जा रहा है. इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भेजा है. सुरक्षा परिषद में अमेरिका के नेतृत्व में रूस के ख़िलाफ़ यह प्रस्ताव लाया गया था, जिसे रूस ने वीटो कर दिया था. इस प्रस्ताव में भारत, चीन और यूएई वोटिंग से बाहर रहे थे.
कहा जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र आम सभा में इस प्रस्ताव पर वोटिंग में भारत के शामिल नहीं होने की उम्मीद है. कई लोगों का कहना है कि भारत प्रस्ताव के टेक्स्ट देखने के बाद आख़िरी फ़ैसला लेगा. उम्मीद है कि यूएनजीए में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर मंगलवार को किसी भी वक़्त वोटिंग हो सकती है. 100 से ज़्यादा सूचीबद्ध वक्ता बोलेंगे. भारत भी अपना बयान जारी करेगा.
बहस से पहले जो ड्राफ़्ट लोगों के बीच बाँटा गया है, उसमें रूस को हमलावर कहा गया है और उसे यूक्रेन से तत्काल सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा गया है. इसके साथ ही पूर्वी यूक्रेन के दो अलगाववादी क्षेत्र दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र क्षेत्र के तौर पर दी गई रूसी मान्यता वापस लेने के लिए भी कहा गया है. इसके साथ ही तत्काल वार्ता शुरू करने की बात कही गई है. (bbc.com)
यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर भारत के रुख़ की चर्चा पश्चिम के देशों में ख़ूब हो रही है. अमेरिका और यूरोप के देश चाहते है कि यूक्रेन पर हमले के मामले में रूस को अलग-थलग करने में भारत में संयुक्त राष्ट्र में साथ दे.
लेकिन भारत अब तक किसी पक्ष को लेकर दूरी बनाकर रखी है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर दो बार वोटिंग हुई और दोनों पर भारत वोटिंग से बाहर रहा है. भारत अलावा चीन और यूएई भी वोटिंग से बाहर रहे.
रूस के वीटो करने के बाद यह प्रस्ताव अब संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में लाया गया है. यहाँ बहुमत से प्रस्ताव पास हो सकता है. भारत यहाँ क्या करेगा, इसकी चर्चा गर्म है.
कहा जा रहा है कि भारत यहाँ भी वोटिंग में न तो अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रस्ताव के समर्थन में वोट करेगा और न ही विरोध में. लेकिन भारत को अपने खेमे में लाने की कोशिश पश्चिम के देश और रूस दोनों कर रहे हैं.
जर्मनी के विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को फ़ोन किया था और उनसे रूस को अलग-थलग करने की अपील की थी.
भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर लिंडर ने अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से कहा है कि उन्हें अब भी उम्मीद है कि भारत यूएन में वोटिंग को लेकर अपना रुख़ बदलेगा.
रूस का कहना है कि पिछले दो दशकों में नेटो के पूर्वी यूरोप में विस्तार के कारण समस्याएं पैदा हुई हैं. 1997 से नेटो पूरब की तरफ़ 14 देशों तक पहुँचा और इन देशों से रूस बिल्कुल क़रीब है. रूस नेटों को अपनी सुरक्षा को लेकर ख़तरे के तौर पर देखता है.
इस सवाल के जवाब में जर्मन राजदूत ने कहा है, ''इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है. केवल झूठी बातें और झूठे नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं. ज़ाहिर है कि जब आप शांतिपूर्ण पड़ोसी पर हमला करते हैं तो इस तरह के बहाने बनाने पड़ते हैं. इन तर्कों में कोई सच्चाई नहीं है. यह किसी देश का फ़ैसला होता है कि वह नेटो में शामिल होना चाहता है या नहीं. यूक्रेन के मामले में तो इस तरह का कोई प्रस्ताव भी नहीं था. यह यूरोप की शांति पर हमला है.''
जर्मनी के विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्री से बात की है. क्या यूक्रेन के मामले में भारत जर्मनी के रुख़ के साथ आने को तैयार है? इस सवाल के जवाब में जर्मन राजदूत ने कहा, ''मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब भारतीय डिप्लोमौट ज़्यादा ठीक से देंगे. उन्हें ही फ़ैसला करना है कि वे क्या चाहते हैं. लेकिन इतना तय है कि हम सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों की वकालत करते हैं और क्षेत्रीय अखंडता के साथ संप्रभुता के उल्लंघन का विरोध करते हैं. भारत भी इससे लेकर असहमत नहीं है. यूक्रेन भले भारत से दूर है लेकिन अन्याय की दस्तक एक जगह तक सीमित नहीं होती है.''
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के वोटिंग से बाहर रहने पर जर्मन राजदूत ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय शांति की रक्षा सबका कर्तव्य है. जर्मन राजदूत ने कहा कि जो अंतरराष्ट्रीय शांति को भंग करता है, उसकी आलोचना सबको करनी चाहिए.
क्या जर्मनी भारत के रुख़ से निराश है? इस पर जर्मन राजदूत ने कहा, ''अब भी वक़्त है. हम अब भी भारत से इसे लेकर संपर्क में हैं. अगर रूस को ऐसे जाने दिया गया, तो कल कोई और करेगा. मुझे उम्मीद है कि भारत का रुख़ बदलेगा.''
कहा जा रहा है कि पश्चिम के देशों के दोहरे मानदंड होते हैं क्योंकि अमेरिका ने 2003 में इराक़ पर हमला किया तो इस तरह की निंदा नहीं की गई. इस पर जर्मन राजदूत ने कहा, ''जर्मनी और फ़्रांस इराक़ पर हमले के पक्ष में नहीं थे. हम अमेरिका से सहमत नहीं थे.'' (bbc.com)
नई दिल्ली, 28 फरवरी| स्वीडन की ट्रक निर्माता कंपनी एबी वोल्वो ने यूक्रेन में मास्को के सैन्य अभियान पर प्रतिबंधों के कारण रूस में सभी उत्पादन और बिक्री बंद कर दी है। आरटी ने बताया कि कंपनी ने सोमवार को यह घोषणा की। प्रवक्ता क्लास एलियासन ने स्वीडिश राज्य प्रसारक एसवीटी को बताया कि लगाए गए प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए कंपनी के पास रूस में काम करने की शर्ते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह एक राष्ट्र के रूप में रूस का बहिष्कार नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस में उत्पादन बंद करने का निर्णय एबी वोल्वो के प्रमुख घटक उप-ठेकेदारों में से एक, नॉर्डिक द्वारा पिछले सप्ताह देश में डिलीवरी रोकने का फैसला लिए जाने के बाद आया है।
वोल्वो समूह रूस में अपनी बिक्री का लगभग 3 प्रतिशत उत्पादन करता है और देश में इसकी एक फैक्ट्री है।
सोमवार को जर्मन कार निर्माता वोक्सवैगन ने अस्थायी रूप से रूस में स्थानीय डीलरशिप के लिए कारों की डिलीवरी रोक दी, मीडिया ने कंपनी के बयान का हवाला देते हुए बताया। ऑटोमेकर को यूक्रेन से पुजरें की डिलीवरी में देरी के कारण इस सप्ताह अपने दो जर्मन कारखानों में उत्पादन को निलंबित करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा।
इस बीच, रूसी मीडिया की रिपोर्ट है कि यूक्रेन से संबंधित प्रतिबंधों के कारण रूसी रूबल की गिरावट के बाद कम से कम 20 कार निर्माताओं ने फरवरी में देश में कारों के लिए कीमतें बढ़ाई हैं।
आरटी के मुताबिक, एवोस्टैट विश्लेषणात्मक एजेंसी के प्रमुख, सर्गेई त्सेलिकोव ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि कई ब्रांड जल्द ही रूस से पूरी तरह से गायब हो जाएंगे, जबकि कार बाजार चीन और कोरिया की ओर फिर से उन्मुख होगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 1 मार्च| राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने यूक्रेन के यूरोपीय संघ सदस्यता आवेदन पर हस्ताक्षर किए हैं।
उक्रेन्स्का प्रावदा के अनुसार, राष्ट्रपति कार्यालय के उप प्रमुख, एंड्री सिबिगा ने कहा कि जेलेंस्की ने अभी-अभी एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने यूक्रेन का यूरोपीय संघ सदस्यता आवेदन पर हस्ताक्षर किए।
उन्होंने यूक्रेन के वेरखोव्ना राडा (संसद) के प्रमुख और प्रधानमंत्री दिमित्रो श्यामगल के साथ एक संयुक्त अनुरोध पर भी हस्ताक्षर किए।
जेलेंस्की ने कहा, "मैंने यूक्रेन के यूरोपीय संघ सदस्यता आवेदन पर हस्ताक्षर किए हैं। मुझे यकीन है कि हम इसे हासिल कर सकते हैं।"
यूरोपीय संघ की प्रक्रिया के अनुसार, सदस्यता आवेदन यूरोपीय संघ की परिषद की अध्यक्षता में जमा किया जाना है। परिषद का नेतृत्व वर्तमान में फ्रांस कर रहा है।
यूक्रेन का आवेदन जेलेंस्की के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, यह देखते हुए कि इस मुद्दे का रूस के साथ वार्ता में संभावित रूप से उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि यूरोपीय संघ शांति के आसपास बनाई गई एक परियोजना है और संघर्ष को हल करने के लिए संवाद का उपयोग कर रहा है।
सोमवार की सुबह जेलेंस्की ने एक विशेष प्रक्रिया के तहत यूक्रेन के परिग्रहण के संबंध में यूरोपीय संघ को संबोधित किया। जेलेंस्की के अनुसार, यूक्रेनी यूरोपीय संघ की सदस्यता के पात्र हैं।
रूस के आक्रमण के बाद यूरोपीय संघ के कई देशों ने यूरोपीय संघ से यूक्रेन को सदस्यता के लिए एक मार्ग देने का आह्वान किया और स्लोवाकिया ने यूरोपीय संघ में यूक्रेन के प्रवेश के लिए एक विशेष प्रक्रिया का प्रस्ताव रखा। (आईएएनएस)
सुसिता फर्नाडो
कोलंबो, 1 मार्च| श्रीलंका के होटल व्यवसायियों ने मानक यूक्रेनी पर्यटकों की देखभाल करने का फैसला किया है, जबकि सरकार की योजना उनके वीजा को बढ़ाने की है।
दक्षिणी तटीय इलाकों से लेकर केंद्रीय पहाड़ियों तक कई होटल मालिकों ने, जहां यूक्रेनी पर्यटक अक्सर आते हैं, ने घोषणा की है कि वे यूक्रेन के नागरिकों को मुफ्त भोजन और आवास प्रदान करेंगे, जो रूसी आक्रमण के कारण घर वापस आ गए हैं।
गाले में एक होटल के मालिक रूपसेना कोस्वट्टा ने कहा, "ये पर्यटक यहां एक महीने से अधिक समय से हैं और कई के पास पैसे खत्म हो गए हैं, और उनके पास पैसे पाने का कोई रास्ता नहीं है। इसलिए उन्होंने हमसे पूछा कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि उन्हें पैसे की चिंता करने की जरूरत नहीं है और वे यहां रह सकते हैं और जब तक वे यहां हैं, हम उनकी देखभाल करेंगे।"
कैंडी के एक प्रमुख होटल के महाप्रबंधक रंजन पीरिस ने कहा, "हम अपने होटलों में यूक्रेन के पर्यटकों की देखभाल करके बहुत खुश हैं, जो यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण फंसे हुए हैं।"
यूक्रेन के लिए उड़ानें रद्द होने से करीब 4,000 यूक्रेनियाई पर्यटक श्रीलंका में फंसे हुए हैं।
इस बीच, श्रीलंकाई विदेश मंत्रालय ने घोषणा की है कि सरकार देश में यूक्रेनी पर्यटकों को वीजा विस्तार सहित हर संभव सहायता प्रदान करेगी।
पर्यटन मंत्री प्रसन्ना रणतुंगा ने सोमवार को घोषणा की कि देश में फंसे यूक्रेन के पर्यटकों के लिए वीजा 30 दिनों के लिए बढ़ाकर 60 दिन कर दिया जाएगा। अंतिम फैसला इसी हफ्ते होने वाली कैबिनेट बैठक में लिया जाना है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 1 मार्च| अमेरिकी विदेश विभाग ने सोमवार को रूस में मौजूद अमेरिकी नागरिकों को यूक्रेन में मॉस्को की चल रही सैन्य कार्रवाइयों का हवाला देते हुए देश छोड़ने पर विचार करने की सलाह दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, विदेश विभाग ने एक ताजा यात्रा सलाह में कहा कि रूस स्थित अमेरिकी नागरिकों की सहायता करने की अमेरिकी सरकार की क्षमता अब सीमित है, इसलिए अमेरिकियों को अभी भी उपलब्ध वाणिज्यिक विकल्पों के माध्यम से देश छोड़ने पर विचार करना चाहिए।
अमेरिकी संघीय उड्डयन प्रशासन द्वारा यूक्रेन और बेलारूस के पूरे क्षेत्रों के साथ-साथ रूस के पश्चिमी भाग को कवर करने के लिए 'नो-फ्लाई जोन' का विस्तार करने के तीन दिन बाद यूरोपीय संघ ने रविवार को रूसी विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया। एयरलाइनों की बढ़ती संख्या रूस में और बाहर उड़ानें रद्द कर रही है।
इस तरह और चल रहे सशस्त्र संघर्ष को देखते हुए विदेश विभाग ने अपनी सलाह में अमेरिकी नागरिकों को रूस से यूक्रेन की यात्रा करने के खिलाफ सलाह दी, और रूस-यूक्रेन सीमा के पास और वहां यात्रा करने की योजना बनाने वालों से जागरूक होने का आग्रह किया, क्योंकि सीमा पर स्थिति खतरनाक है।
यूक्रेनी और रूसी प्रतिनिधिमंडलों ने सोमवार को यूक्रेनी-बेलारूसी सीमा पर शांति वार्ता संपन्न की, रूसी प्रतिनिधिमंडल के अनुसार, बेलारूसी-पोलिश सीमा पर आने वाले दिनों के लिए अगले दौर की वार्ता निर्धारित है। (आईएएनएस)
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने रविवार को कहा कि उनके देश को लंबे समय से जारी एक वर्जना को तोड़ देना चाहिए और परमाणु हथियारों पर सक्रिय बहस शुरू करनी चाहिए.
आबे ने नेटो की तरह संभावित 'न्यूक्लियर-शेयरिंग' प्रोग्राम की बात कही है. यूक्रेन पर रूसी हमले के बीच आबे की यह टिप्पणी काफ़ी अहम मानी जा रही है.
आबे ने टीवी प्रोग्राम में कहा, ''जापान ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किया है और तीन ग़ैर-परमाणु सिद्धांत हैं, लेकिन इस पर बात करने के लिए कोई मनाही नहीं है कि दुनिया सुरक्षित कैसे रह सकती है.''
आबे ने 2020 में प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया था, लेकिन सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में वे अब भी काफ़ी प्रभावी हैं. जापान टाइम्स के अनुसार, आबे ने कहा है कि यूक्रेन ने सोवियत यूनियन से अलग होते वक़्त सुरक्षा गारंटी के लिए कुछ परमाणु हथियार रखा होता तो शायद उसे, रूसी हमले का सामना नहीं करना पड़ता.
आबे ने कहा कि सरकार लगातार कहती है कि एशिया के सुरक्षा का वातावरण लगातार ख़राब हो रहा है. इनमें चीन की बढ़ती आक्रामकता और उत्तर कोरिया के परमाणु प्रोग्राम भी शामिल हैं. आबे ने कहा कि नेटो की न्यूक्लियर-शेयरिंग व्यवस्था एक मिसाल है कि जापान उन ख़तरों को कैसे कम कर सकता है.
नेटो वाली व्यवस्था
आबे ने फ़ूजी टेलीविज़न पर प्रसारित कार्यक्रम में कहा, ''जापान को भी कई विकल्पों पर विचार करना चाहिए. इनमें न्यूक्लियर शेयरिंग प्रोग्राम भी शामिल है.'' नेटो के तहत अमेरिका यूरोप में परमाणु हथियार रखता है. जापान दूसरे विश्व युद्ध के दौरान परमाणु हमले की त्रासदी झेल चुका है.
जापान के तीन ग़ैर-परमाणु सिद्धांत हैं. पहली बार इसे 1967 में निर्धारित किया गया. इसके तहत देश के भीतर परमाणु हथियार के उत्पादन और उसे रखने पर पाबंदी है. जापान के लोग भी परमाणु हथियारों के ख़िलाफ़ रहे हैं. लेकिन आबे ने नेटो की तर्ज़ पर शेयरिंग के विकल्प की बात की है. आबे ने कहा कि जापान के भीतर ज़्यादातर लोग इस व्यवस्था से अनजान हैं.
आबे ने कहा, ''परमाणु हथियारों को नष्ट करने का लक्ष्य अहम है, लेकिन जब जापान के लोगों की जान और मुल्क को बचाने की बात आएगी तो मैं सोचता हूँ कि हमें कई विकल्पों पर बात करनी चाहिए.''
वॉशिंगटन में सेंटर फ़ॉर अमेरिकन प्रोग्राम के सीनियर फ़ेलो और शिंज़ो आबे की जीवनी लिखने वाले तोबिअस हैरिस ने कहा है, ''पूर्व प्रधानमंत्री के इस बयान से जापान के वर्तमान प्रधानमंत्री फ़ुमिओ किशिदा पर दबाव बढ़ गया है. पार्टी का दक्षिणपंथी खेमा उन पर जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और रक्षा से जुड़े अन्य मामलों की समीक्षा के लिए कहेगा.''
उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, ''यह बहस अभी हो या नहीं, लेकिन पिछले 5-10 सालों में जापान में परमाणु हथियार के विकल्प पर बातचीत की वर्जना मद्धम पड़ी है.''
ताइवान पर अमेरिका क्या करेगा?
पड़ोसी ताइवान पर हमले की स्थिति में अमेरिका का क्या रुख़ होगा? क्या अमेरिका उसका बचाव करेगा? इस पर आबे ने कहा, ''यह दिखाना कि अमेरिका हस्तक्षेप कर सकता है, इससे चीन नियंत्रण में रहता है, लेकिन हस्तक्षेप करने की संभावनाओं को छोड़ देने से ताइवान की सेना के लिए मुश्किल स्थिति हो जाएगी. अब समय आ गया है कि इसे लेकर आशंका वाली नीति छोड़ देनी चाहिए. ताइवान के लोग हमारे साझा मूल्यों का हिस्सा हैं. ऐसे में मैं सोचता हूँ कि अमेरिका को इस मामले में स्पष्ट होना होगा.''
आबे ने कहा है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो जापान के लिए भी संकट आएगा. आबे ने कहा कि ताइवान से महज़ 110 किलोमीटर की दूरी पर योनागुनी का ओकिनावन द्वीप है. अगर चीन हमला करता है तो वह पहले समंदर और हवाई क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में लेगा और इसकी ज़द में जापानी जल के साथ हवाई क्षेत्र भी आएंगे.
चीन ताइवान को अहम मुद्दा बताता है और कहता है कि ज़रूरत पड़ने पर वह इसे बल प्रयोग करके भी मिला लेगा. हाल के वर्षों में ताइवान को लेकर चीन की सैन्य गतिविधि भी बढ़ी है. अमेरिका 1979 से ही वन चाइना पॉलिसी मानता आ रहा है. अमेरिका आधिकारिक रूप से ताइपेई के बदले बीजिंग को मान्यता देता है.
जापान का ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है और पारंपरिक रूप से जापान इस मुद्दे पर चुप रहता है ताकि चीन नाराज़ ना हो जाए. जापान के लिए चीन सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच आबे के बयान को काफ़ी अहम माना जा रहा है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच ताइवान पर चीन का डर भी बढ़ गया है. कहा जा रहा है कि रूस का हमला सफल रहा तो चीन को ताइवान के मामले में बल मिलेगा.
आबे के इस बयान पर चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र माने जाने वाले अंग्रेज़ी दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने आज यानी 28 फ़रवरी को संपादकीय लिखा है. अपने संपादकीय में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने रविवार को कहा कि जापान को परमाणु हथियार साझा करने के लिए अमेरिका से समझौता करना चाहिए. उन्होंने इसे लेकर नेटो देशों के बीच परमाणु हथियार साझा करने की व्यवस्था का भी उदाहरण दिया है.''
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि आबे के बयान से साफ़ है कि वह परमाणु हथियार की तरफ़ बढ़ना चाहते हैं. ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, ''बात केवल आबे के बयान की नहीं है. लंबे समय से जापान के दक्षिणपंथी नेता इस तरह की बातें कर रहे हैं. ख़ुद आबे पहले भी ऐसी बातें कर चुके हैं.जापान के विपक्षी नेता इचिरो ओज़ावा ने भी कहा था कि जापान रातोंरात चीन को रोकने के लिए बड़ी संख्या में परमाणु हथियार बना सकता है.''
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ''जापान के पास परमाणु हथियार तैयार करने की क्षमता है. जापान दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों में से एक है. जापानी मीडिया में रिपोर्ट छपी थी कि जापान के पास देश के भीतर और बाहर 47 टन प्लूटोनियम है. इतने में जापान 6000 परमाणु बम बना सकता है. 2016 में जब जो बाइडन अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे तो उन्होंने भी कहा था कि जापान रातोंरात परमाणु हथियार हासिल करने की क्षमता रखता है.'' (bbc.com)