अंतरराष्ट्रीय
(अदिति खन्ना)
लंदन, 20 अगस्त। कंजर्वेटिव पार्टी के एक वरिष्ठ सांसद एवं पूर्व मंत्री ने ‘टोरी’ नेता के तौर पर बोरिस जॉनसन का स्थान लेने के लिए ऋषि सुनक का शनिवार को समर्थन करते हुए कहा कि पूर्व वित्त मंत्री (सुनक) में इस शीर्ष पद के लिए आवश्यक सभी चीजें है।
जॉनसन द्वारा नाटकीय ढंग से मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिये गये माइकल गोव ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ में आगे चल रहीं विदेश मंत्री लिज ट्रस की करों में कटौती की योजना को सच्चाई से कोसों दूर बताया है।
उन्होंने कहा कि नेतृत्व की प्रतिस्पर्धा में सुनक ही एक व्यक्ति हैं जो सही तर्क दे रहे हैं और मतदाताओं से सच बोल रहे हैं।
गोव ने ‘द टाइम्स’ समाचार पत्र से कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि इस पद के लिए क्या जरूरी है। और ऋषि में वे चीजें हैं।’’
वरिष्ठ टोरी नेता ने कहा, ‘‘इससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि अगली सरकार अपनी केंद्रीय आर्थिक योजना में क्या अपनाएगी। और यहां मैं इसे लेकर बहुत चिंतित हूं कि कई लोगों द्वारा नेतृत्व पर बहस सच्चाई से कोसों दूर रही है। जीवन-यापन पर आने वाली लागत के प्रश्न को करों में कटौती के जरिए खारिज नहीं किया जा सकता। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि ऋषि ने सही तर्क दिए हैं। उन्होंने केंद्रीय आर्थिक प्रश्नों पर सच कहा है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, और खर्च को नियंत्रित करने तथा उधार लेना कम करने तक हम सामान्य कराधान में और कटौती नहीं कर सकते।’’
इस बीच, सुनक ने गोव के समर्थन का स्वागत करते हुए ट्वीट किया, ‘‘माइकल गोव के टीम में आने की खबर अच्छी है।’’ (भाषा)
मनीला, 20 अगस्त (आईएएनएस)| 30 जून को पदभार ग्रहण करने के बाद फिलीपीन के राष्ट्रपति फर्डिनेंड रोमुअलडेज मार्कोस सितंबर में इंडोनेशिया और सिंगापुर की अपनी पहली विदेश यात्रा पर जाने वाले हैं। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, एक वर्जुअल न्यूज कॉन्फ्रेंस में एंजेल्स ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रपति 4 से 6 सितंबर तक इंडोनेशिया में और 6 से 7 सितंबर तक सिंगापुर में रहेंगे।
फिलीपींस की तरह, इंडोनेशिया और सिंगापुर दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के सदस्य हैं, जिसमें ब्रुनेई, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम भी शामिल हैं।
इसके अलावा, अमेरिका में फिलीपीन के राजदूत जोस मैनुअल रोमुअलडेज द्वारा पहले की गई टिप्पणी के अनुसार, मार्कोस संभवत: सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेने के लिए न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय का दौरा करेंगे।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना पांच सिंतबर को पांच दिवसीय दौरे पर भारत आ रही हैं. कोरोना महामारी शुरू होने के बाद उनका ये पहला भारत दौरा है.
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय और सुरक्षा अधिकारियों की एक विशेष टीम दौरे से पहले की तैयारियों के जायज़े के लिए भारत आई हुई है.
सूत्रों के अनुसार शेख़ हसीना भारत में पांच से आठ सितंबर तक रहेंगी. वो पांच सिंतबर को पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं से बातचीत करेंगी. इसके बाद वो जयपुर और अजमेर शरीफ़ जाएंगी.
इस दौरे पर पीएम हसीना और पीएम मोदी मिलकर बांग्लादेश से भारत जाने वाली 'स्वाधीनता सड़क' का वर्चुअल मोड में उद्घाटन करेंगे.
इसके अलावा द्विपक्षीय वार्ता में व्यापार, कनेक्टिविटी और रक्षा संबंधों से जुड़े मसलों पर भी बात होगी. (bbc.com)
कैलिफोर्निया (अमेरिका), 20 अगस्त। उत्तरी कैलिफोर्निया में एक ग्रामीण इलाके में हवाईअड्डे पर उतरने की कोशिश के दौरान दो छोटे विमानों की टक्कर में तीन लोगों और एक कुत्ते की मौत हो गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
सांताक्रूज काउंटी शेरिफ कार्यालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि वाटसनविले नगर हवाई अड्डे पर बृहस्पतिवार को विमान दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद मारे गए लोगों के नाम उनके परिवारों को सूचित किए जाने के बाद जारी किए जाएंगे।
राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड के हवाई सुरक्षा जांचकर्ता फैबियन सालाजार ने कहा कि दुर्घटना के दौरान दो इंजन वाले सेसना 340 में दो लोग और एक कुत्ता सवार था तथा एक इंजन वाले सेसना 152 में केवल पायलट था। सालाजार ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि एक विमान निर्धारित मार्ग पर चल रहा है और एक विमान हवाईअड्डे पर उतरने वाला था।’’
एफएए रिकॉर्ड के अनुसार, सिंगल-इंजन सेसना 152 को मोंटेरे बे एविएशन इंक में पंजीकृत किया गया था। सेसना 340 को एएलएम होल्डिंग एलएलसी में पंजीकृत किया गया था, जो मध्य कैलिफोर्निया के एक शहर विंटन में स्थित एक कंपनी है।
सालाजार ने कहा कि जांचकर्ता अभी सबूत जुटा रहे हैं और चश्मदीदों से बात करेंगे। उन्होंने कहा कि इस घातक टक्कर की प्रारंभिक रिपोर्ट एनटीएसबी से दो सप्ताह में मिलने की उम्मीद है।
वाटसनविले, मोंटेरे बे के पास एक ग्रामीण इलाका है जो सैन फ्रांसिस्को से लगभग 160 किलोमीटर दक्षिण में है। (एपी)
बेरूत, 20 अगस्त। उत्तरी सीरिया में तुर्की समर्थित विद्रोही लड़ाकों के कब्जे वाले एक शहर में भीड़भाड़ वाले बाजार में रॉकेट हमले में 15 लोगों की मौत हो गयी और कई अन्य घायल हो गए।
युद्ध पर निगरानी करने वाले समूह ‘सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स’ और अर्द्धचिकित्सक समूह ने यह जानकारी दी।
यह हमला शुक्रवार को अल-बाब शहर में तब किया गया, जब तुर्किश लड़ाकों के हवाई हमले में कम से कम 11 सीरियाई सैनिक और अमेरिका समर्थित कुर्दिश लड़ाकों की मौत हो गयी थी।
युद्ध निगरानी समूह ने शुक्रवार को हुई बमबारी के लिए सीरियाई सरकार की सेनाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह तुर्की के हवाई हमले का बदला प्रतीत होता है। उसने बताया कि 15 मृतकों में तीन बच्चे भी शामिल हैं और 30 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
ऑब्जर्वेटरी के प्रमुख रामी अब्दुर्रहमान ने मार्च 2020 में हुए संघर्ष विराम का हवाला देते हुए कहा, ‘‘यह सरकारी सेना और विपक्ष के बीच लड़ाई रुकने के बाद से सरकारी सेना द्वारा किया गया सबसे खराब नरसंहार है।’’
अमेरिका समर्थित कुर्दिश लड़ाकों की अगुवाई वाली ‘सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज’ ने एक बयान में कहा कि उसके लड़ाकों ने अल-बाब पर हमला नहीं किया। सरकार ने अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
एक अन्य घटना में ऑब्जर्वेटरी और अमेरिकी सेना ने बताया कि उत्तरपूर्वी सीरिया में बृहस्पतिवार रात को एक ड्रोन हमले में चार महिलाओं की मौत हो गयी और कई अन्य घायल हो गए। उसने इस हमले के लिए तुर्की को जिम्मेदार ठहराया है। (एपी)
पार्टी में शराब पीकर नाचने-गाने वाला वीडियो वायरल होने के बाद फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन ने ड्रग्स लेने के आरोपों से इनकार किया है. हालांकि 'किसी शंका को दूर करने' के लिए उनका ड्रग्स टेस्ट किया गया है.
सना मारिन जब से देश की प्रधानमंत्री बनी हैं, तब से पार्टी करने के प्रति उनके लगाव के लिए अक्सर उनकी आलोचना होती रही है.
संगीत समारोहों में शामिल होने की उनकी तस्वीरें कई बार सामने आई हैं. ताज़ा वायरल हुए वीडियो में भी वे फ़िनलैंड की एक पॉपस्टार के साथ नाच रही थीं.
हालांकि कई लोग इसके लिए उनकी सराहना भी करते रहे हैं. जर्मन की समाचार संस्था बिल्ड ने उन्हें पूरे विश्व की 'सबसे कूल' प्रधानमंत्री बताया था.
सना मारिन के कार्यकाल के दौरान फ़िनलैंड को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. सबसे पहले तो कोरोना महामारी के चलते देश को काफी परेशानियां झेलनी पड़ीं, वहीं यूक्रेन पर रूस के हमले से भी फ़िनलैंड की चुनौतियां बढ़ी हैं.
अभी 36 साल की सना मारिन क़रीब ढाई साल पहले जब फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री बनी थीं, तब वे पूरी दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री थीं. देश के राजनीतिक इतिहास में तो वे पीएम बनने वाली अब तक की सबसे युवा शख़्स हैं.
देश की सत्ता को अपने हाथों में लेने के लिए मारिन ने सेंटर और लेफ्ट विचारधारा वाली पार्टियों के बीच महत्वपूर्ण गठबंधन किया था. इस गठबंधन में चार और महिला नेता शामिल हैं, जिसमें से केवल एक की ही उम्र 35 साल से ज़्यादा है.
कौन हैं सना मारिन?
सना मारिन आम परिवार से आती हैं. उनके माता पिता तब ही अलग हो गए थे जब मारिन बहुत छोटी थीं. अलग होने के बाद उनकी मां ने अकेले इनकी परवरिश की है. ऐसे में इन्हें बचपन में आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ा.
सना मारिन हाईस्कूल पास कर यूनिवर्सिटी जाने वाली अपने परिवार की पहली व्यक्ति रही हैं.
उन्होंने महज़ 20 साल की उम्र में राजनीति में क़दम रखा. उसके दो साल बाद ही काउंसलर के चुनाव में उन्होंने अपनी क़िस्मत आज़माई. हालांकि वे हार गई थीं. हालांकि इसके 5 साल बाद वे न केवल काउंसलर बनीं बल्कि सभी काउंसलरों का नेतृत्व भी किया.
एक ब्लॉग में उन्होंने बताया था कि वे जब 15 साल की थीं, तब एक बेकरी में उन्होंने नौकरी की. बाद में उन्होंने मैगज़ीन बांटने का काम भी किया था.
उन्होंने यह भी बताया था कि उनकी मां किसी महिला के साथ रिश्ते में थीं, इसलिए उन्हें तानों का सामना भी करना पड़ा. वे बताती हैं कि उनकी मां हमेशा यक़ीन दिलाती रहीं कि वे जो भी बनना चाहें बन सकती हैं. (bbc.com)
पूर्वी अफ्रीकी देश सोमालिया के चरमपंथी समूह अल-शबाब ने राजधानी मोगादिशु के एक होटल पर कब्ज़ा कर लिया है.
पुलिस के अनुसार, होटल में घुसने और फायरिंग शुरू करने के पहले हमलावरों ने इमारत के बाहर दो बड़े धमाके किए हैं.
अल-शबाब ने अपने बयान में होटल परिसर को अपने कब्ज़े में लेने का दावा किया है. साथ ही कहा है कि वे 'हर किसी को गोली मार रहे' हैं.
मोगादिशु की एक एंबुलेंस सेवा के एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि इस हमले में 9 लोग घायल हो गए हैं जिन्हें होटल से बाहर ले जाया गया है.
सोशल मीडिया पर अप्रमाणित वीडियो और तस्वीरें तेज़ी से शेयर हो रही हैं, जिनमें होटल से धुआं निकलते और ज़ोरदार धमाकों की आवाज़ सुनाई पड़ रही है.
'द हयात' नाम का यह होटल मोगादिशु की लोकप्रिय जगह है, जहां संघीय सरकार के कर्मचारी अक्सर बैठक करते हैं. (bbc.com)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के प्रमुख इमरान ख़ान ने लेखक सलमान रुश्दी पर हमले की निंदा करते हुए इसे भयानक और दुखभरा बताया है.
इमरान ख़ान ने ब्रितानी अख़बार 'द गार्डियन' को दिए साक्षात्कार में कहा कि रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़' को लेकर इस्लामिक दुनिया का गुस्सा समझा जा सकता है, लेकिन इस हमले को सही नहीं ठहराया जा सकता.
रुश्दी पर चाकू से हुए हमले को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि ये भयानक है. रुश्दी एक मुसलमान परिवार से हैं. वो हमारे दिलों में बसने वाले पैगंबर के लिए प्यार, सम्मान और आस्था को जानते हैं. इसलिए गुस्से को समझा जा सकता है, लेकिन जो हुआ आप उसे सही नहीं ठहरा सकते.''
द 'सैटेनिक वर्सेज़' समेत कई किताबों के लेखक सलमान रुश्दी पर 12 अगस्त को एक कार्यक्रम के दौरान चाकू से हमला किया गया था. सलमान रुश्दी की 1988 में प्रकाशित हुई किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़' के कुछ हिस्सों पर ईशनिंदा का आरोप है. उनके ख़िलाफ़ फतवा भी जारी हो चुका है.
हालांकि, इमरान ख़ान भी सलमान रुश्दी की किताब 'द सैटेनिक वर्सेस' की आलोचना कर चुके हैं. उन्होंने क़रीब 10 साल पहले 2012 में कोलकाता पुस्तक मेले में कहा था, ''मसला ये नहीं है कि रुश्दी ने क्या लिखा है. असल मुद्दा ये है कि किसी को भी समाज को तकलीफ़ देने का अधिकार नहीं है.''
इमरान ख़ान के बयान पर सलमान रुश्दी ने ट्वीट किया, ''30 साल पहले 1982 में मेरे दिल्ली लेक्चर में इमरान ख़ान मेरे फ़ैन थे और 100 प्रतिशत धर्मनिरपेक्ष थे. अब मेरा काम उनकी आस्था का अपमान करता है. असली इमरान कौन है?''
भारत-पाकिस्तान ने साधी चुप्पी
लेकिन, सलमान रुश्दी पर हुए हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों से कोई बयान नहीं आया है. सलमान रुश्दी का भारत में ही जन्म हुआ, लेकिन हमले को लेकर यहां से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.
भारत सरकार या भारत में राजनीतिक दलों ने इस घटना पर चुप्पी साध रखी है. यहां तक कि भारत के मुस्लिम समाज के नेताओं और नामचीन लोगों ने भी रुश्दी पर हमले के मामले पर बोलने से परहेज़ ही किया है.
बेंगलुरू में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रुश्दी पर हमले के बारे में पूछे गए सवाल पर कहा था, ''मैंने भी इस बारे में पढ़ा है. मेरा मानना है कि यह एक ऐसी घटना है जिसका पूरी दुनिया ने नोटिस लिया है और ज़ाहिर है इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. ''
जिन कुछ नेताओं ने निजी तौर पर रुश्दी पर हमले की निंदा की है उनमें माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, कांग्रेस सांसद शशि थरूर, पार्टी के मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा और शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी शामिल हैं. लेकिन ना बीजेपी और ना मोदी सरकार और ना ही कांग्रेस ने इस पर कोई आधिकारिक बयान दिया है.
रुश्दी की किताब से जुड़ा विवाद
75 साल के सलमान रुश्दी को हमले के तुरंत बाद अस्पताल ले जाया गया. उनकी हालत बहुत नाज़ुक बताई जा रही थी. लेकिन, दो दिन तक वेंटिलेटर पर रखने के बाद वेंटिलेटर हटा लिया गया है और वो बात करने में सक्षम हैं.
उन पर हमले के अभियुक्त हादी मतर ने ख़ुद को निर्दोष बताते हुए आरोप को स्वीकार नहीं किया है.
सलमान रुश्दी भारत में पैदा हुए और फिर ब्रिटेन चले गए और अब अमेरिका के नागरिक हैं. 1988 में 'सैटेनिक वर्सेज़' के प्रकाशन के बाद जो विवाद हुआ उसका भी भारत से गहरा नाता है. उस वक्त भारत में राजीव गांधी की सरकार थी. उनकी सरकार ने 'सैटेनिक वर्सेज़' को प्रतिबंधित करने का फ़ैसला लिया था. इस तरह भारत इस किताब को बैन करने वाला पहला देश बन गया था.
उस वक्त ख़ुद रुश्दी ने राजीव गांधी को चिट्ठी लिख कर किताब को प्रतिबंधित करने पर अपनी नाख़ुशी ज़ाहिर की थी. 1990 में लिखे गए एक लेख में उन्होंने कहा,'' किताब बैन करने की मांग मुस्लिम वोटों की ताक़त का पावर प्ले है. कांग्रेस इस वोट बैंक पर निर्भर रही है और इसे खोने का जोख़िम नहीं ले सकती.''
80 के दशक के उत्तरार्ध में आई इस किताब को लेकर ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों में विरोध प्रदर्शन हुए थे.
किताब के प्रकाशन के एक साल बाद 1989 में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़ुमैनी ने उनकी हत्या का फ़तवा जारी कर दिया था. इसके बाद रुश्दी एक दशक तक अज्ञातवास में रहे. हालांकि, इस दौरान उन्हें सुरक्षा दी जा रही थी.
ईरान ने 1998 में कहा कि वह रुश्दी की हत्या का समर्थन नहीं करेगा, लेकिन फ़तवा अपनी जगह बना रहा.
पांच दशकों से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय रुश्दी अपने काम की वजह से धमकियां और जान से मारने की चेतावनियां झेलते रहे हैं.
सलमान रुश्दी की कई किताबें बेहद लोकप्रिय हुई हैं. इनमें उनकी दूसरी किताब 'मिडनाइट चिल्ड्रन' भी शामिल है जिसे साल 1981 का बुकर पुरस्कार मिला था. (bbc.com)
-आज़म ख़ान
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की लंदन से वापसी की ख़बर एक बार फिर चर्चा में है. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता और संघीय मंत्री जावेद लतीफ़ ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की है कि नवाज़ शरीफ़ अगले महीने यानी सितंबर में पाकिस्तान वापस लौट रहे हैं.
ध्यान रहे कि पूर्व प्रधानमंत्री साल 2019 में इलाज के लिए ब्रिटेन चले गए थे और पनामा रेफ़रेंसेज़ में अदालत कि तरफ़ से दी गई चार हफ़्ते की अवधि के भीतर वापस नहीं आए थे. उसके बाद उनके ख़िलाफ़ ग़ैर-ज़मानती गिरफ़्तारी वारंट जारी कर दिया गया था.
अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या नवाज़ शरीफ़ वापस आकर राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले सकेंगे या पहले उन्हें क़ानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ेगा.
पूर्व में उनके वकील रहे ख़्वाजा नवेद ने इसका बहुत ही आसान-सा जवाब दिया है कि ऐसे हालात में एक आम अभियुक्त को एयरपोर्ट से ही गिरफ़्तार कर लिया जाता है. ख़्वाजा नवेद परवेज़ मुशर्रफ़ द्वारा किए गए विमान हाईजैकिंग मुक़दमे में भी नवाज़ शरीफ़ के वकील रह चुके हैं.
ख़्वाजा नवेद के मुताबिक़, ''नवाज़ शरीफ़ फ़िलहाल एक सज़ायाफ़्ता राजनीतिक नेता हैं और उन्हें फ़रार भी घोषित किया जा चुका है. ऐसे में अब उन्हें पाकिस्तान वापस लौटने पर गिरफ़्तारी से बचने के लिए अग्रिम ज़मानत लेनी होगी.''
ख़्वाजा के मुताबिक़, अगर नवाज़ शरीफ़ अग्रिम ज़मानत नहीं लेते हैं तो एयरपोर्ट पर उतरने के बाद एफ़आईए उनके पासपोर्ट पर मुहर लगाने के बाद गिरफ़्तार कर लेगी. ख़्वाजा बताते हैं कि हाल ही में उन्होंने अग्रिम ज़मानत के ज़रिए अपने एक मुवक्किल हबीब जान की ब्रिटेन से पाकिस्तान वापसी संभव बनाई है.
लाहौर हाई कोर्ट बार की वकील सबाहत रिज़वी ने बीबीसी को बताया कि पाकिस्तान में राजनीतिक नेताओं के लिए पहले से ऐसा माहौल तैयार किया जाता है, ताकि न केवल उनकी वापसी संभव हो सके बल्कि वे राजनीतिक गतिविधियों में आसानी से हिस्सा ले सकें. उनके अनुसार, किसी भी आम अभियुक्त की तरह, क़ानून के तहत नवाज़ शरीफ़ को अदालत के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ेगा और फिर एक लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़नी होगी और हर बार पेशी पर आना होगा.
ख़्वाजा नवेद के मुताबिक़, नवाज़ शरीफ़ को जो सज़ा हुई थी वह निलंबित कर दी गई थी और फिर वह अदालत की इजाज़त लेकर पाकिस्तान से बाहर गए थे. हालांकि, उनके अनुसार अब वह लंबे समय तक बाहर रहने का कारण बताएंगे और अदालत को संतुष्ट करेंगे कि वह स्वास्थ्य समस्याओं के कारण दी गई अवधि के भीतर पाकिस्तान वापस क्यों नहीं आ सके.
रावलपिंडी बार की वकील फ़राह नाज़ का कहना है कि नवाज़ शरीफ़ एक क़ानूनी प्लान के साथ ही बाहर गए थे और अब वापस भी उन्हें एक क़ानूनी प्लान बनाकर ही आना होगा.
हालांकि, उनके अनुसार, इस समय पाकिस्तान में जिस तरह के हालात हैं शायद ऐसे में उनके लिए जल्द वापसी संभव न हो, क्योंकि जिन जजों ने उन्हें आजीवन अयोग्य घोषित किया था उनका निर्णय अभी भी प्रभावी है.
फ़राह नाज़ के मुताबिक़, नवाज़ शरीफ़ के लिए क़ानूनी तौर पर लंबे समय तक ब्रिटेन में रहने का कोई औचित्य नहीं है, यही वजह है कि अब उनके पाकिस्तान में वापस लौटने के प्लान पर चर्चा हो रही है.
ग़ौरतलब है कि तहरीक-ए-इंसाफ़ के कुछ नेताओं ने यह भी दावा किया है कि सितंबर में नवाज़ शरीफ़ के ब्रिटेन में रहने की क़ानूनी अवधि नहीं बढ़ाई जा रही है, इसलिए वे अब पाकिस्तान लौटने की योजना बना रहे हैं.
फ़राह नाज़ के मुताबिक़, नवाज़ शरीफ़ को क़ानून के साथ-साथ राजनीतिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. उनकी राय में अब नवाज़ शरीफ़ के पास पाकिस्तान की राजनीति में हिस्सा लेने की वह योग्यता और प्रतिष्ठा नहीं है, जो अब इमरान ख़ान हासिल कर चुके हैं.
उनके मुताबिक़, पंजाब में हुए उपचुनाव में अहम सफलता हासिल करने के बाद इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ ने पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत में सरकार बना ली है.
क्या फिर से राजनीति में हिस्सा ले पाएंगे नवाज़ शरीफ़
वकील कौसर डाहा और शाइस्ता तबस्सुम के मुताबिक़, जब कोर्ट से मेरिट के आधार पर राहत मिल जाती है तो फिर कोई भी राजनीतिक नेता पाकिस्तान की राजनीति में हिस्सा लेने के योग्य हो जाता है. उनके मुताबिक़ इसका ताज़ा उदाहरण ख़ुद पूर्व प्रधानमंत्री की बेटी मरियम नवाज़ हैं, जिनके ख़िलाफ़ न केवल कोर्ट के फ़ैसले आए हैं बल्कि जेल भी हुई है, लेकिन अब वह ज़मानत पर होने के बावजूद राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हैं.
सबाहत रिजवी बताती हैं कि पाकिस्तान में कई नई क़ानूनी परंपराएं भी देखने को मिलती हैं, ऐसे फ़ैसले भी आते हैं जिन्हें एक नया उदाहरण कहा जाता है. उनके मुताबिक़, जिस तरफ़ सियासी हवाओं का रुख़ होगा, क़ानून भी अपना रास्ता उसी दिशा में बना लेगा.
शाइस्ता तबस्सुम के मुताबिक़, नवाज़ शरीफ़ कोर्ट की इजाज़त से बाहर गए थे. अब वापसी पर उन्हें सबसे पहले गिरफ़्तारी वारंट रद्द कराने होंगे और फिर ज़मानत के बॉन्ड जमा कराने होंगे. उनके मुताबिक़, पूर्व प्रधानमंत्री की ज़मानत मेरिट के आधार पर पहले ही हो चुकी है.
कौसर डाहा के मुताबिक़, पाकिस्तान में इस समय नवाज़ शरीफ़ के प्रति सहानुभूति है और अगर वापस आने पर उन्हें जेल जाना पड़ा तो यह उनके लिए राजनीतिक रूप से फ़ायदेमंद होगा.
याद रहे कि नवाज़ शरीफ़ के बाहर जाने से पहले मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने हलफ़नामा दिया था कि उनके भाई और पूर्व प्रधानमंत्री चार हफ़्ते के अंदर पाकिस्तान वापस लौट आएंगे. हालांकि, जब नवाज़ शरीफ़ वापस नहीं लौटे तो तत्कालीन तहरीक-ए-इंसाफ़ सरकार ने ब्रिटेन से उनके प्रत्यर्पण की मांग की थी.
क़ानूनी जानकारों के मुताबिक़, चूंकि पाकिस्तान का ब्रिटेन के साथ ऐसा कोई समझौता नहीं है, इसलिए यही वजह है कि इमरान ख़ान की सरकार नवाज़ शरीफ़ को वापस लाने में कामयाब नहीं हो पाई.
मियां नवाज़ शरीफ़ को विदेश भेजे जाने पर उनकी वापसी के संबंध में शहबाज़ शरीफ़ ने लाहौर हाई कोर्ट में जो हलफ़नामा दिया था. उसमें कहा गया था कि उनके बड़े भाई मियां नवाज़ शरीफ़ चार हफ़्ते के लिए इलाज कराने विदेश जा रहे हैं और अगर इस दौरान नवाज़ शरीफ़ का स्वास्थ्य ठीक हो गया और डॉक्टरों ने उन्हें पाकिस्तान आने की इजाज़त दे दी, तो वह वापस लौट आएंगे.
इसके अलावा इस हलफ़नामे में यह भी कहा गया है कि इस अवधि के दौरान लंदन हाई कमीशन से सत्यापन करवाने के बाद मियां नवाज़ शरीफ़ की मेडिकल रिपोर्ट हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को भेजी जाएगी.
मियां शहबाज़ शरीफ़ की ओर से लाहौर हाई कोर्ट में दिए गए इस हलफ़नामे में यह भी कहा गया था कि 'अगर कभी संघीय सरकार के पास इस बात की सूचना हो कि मियां नवाज़ शरीफ़ स्वस्थ होने के बावजूद लंदन में रह रहे हैं, तो ब्रिटेन में स्थित पाकिस्तान हाई कमीशन का कोई अधिकारी मियां नवाज़ शरीफ़ के डॉक्टर से मिल कर उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ले सकता है.'
उस समय मियां शहबाज़ शरीफ़ के अलावा मियां नवाज़ शरीफ़ का भी हलफ़नामा अदालत में पेश किया गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि वह अपने भाई कि तरफ़ से दिए गए हलफ़नामे का पालन करने के लिए बाध्य हैं. (bbc.com)
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की बहन किम यो जोंग ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति को 'मुंह बंद' रखने के लिए कहा है.
दरअसल, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून-सुक योल ने ये प्रस्ताव रखा था कि अगर उत्तर कोरिया परमाणु निरस्त्रीकरण को राज़ी हो जाता है तो बदले में उसे आर्थिक सहायता दी जाएगी.
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने मई महीने में पद संभालते समय भी ये प्रस्ताव रखा था. इसके बाद राष्ट्रपति पद पर 100 दिन बीतने के बाद बुधवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान उन्होंने इस प्रस्ताव को दोहराया था.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार ये पहली बार है जब उत्तर कोरिया के किसी बड़े नेता ने दक्षिण कोरिया के प्रस्ताव पर सीधे टिप्पणी दी है.
उत्तर कोरिया की सरकारी समाचार एजेंसी केसीएनए की ओर से जारी बयान में किम यो जोंग ने कहा है, "अगर वो बेकार की बात करने की बजाय अपना मुंह बंद रखेंगे तो उनकी छवि के लिए ये बेहतर होगा."
किम यो जोंग ने दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति को सीधा और बचकाना बताते हुए कहा है कि उन्हें लगता है कि वो आर्थिक सहयोग का लालच देकर उत्तर कोरिया के सम्मान और परमाणु हथियारों का सौदा कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि कोई छोटी-मोटी चीज़ों के लिए 'अपनी क़िस्मत' का सौदा नहीं कर लेता.
हाल के वर्षों में किम यो जोंग दक्षिण कोरिया की मुख़र आलोचक बनकर सामने आई हैं. उनका ताज़ा बयान यून पर अब तक सबसे कड़ा निजी हमला माना जा रहा है.
दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्री ने किम के बयान को 'बेहद अपमानजनक और असभ्य' बताया है. (bbc.com)
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की बहन किम यो जोंग ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति को 'मुंह बंद' रखने के लिए कहा है.
दरअसल, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून-सुक योल ने ये प्रस्ताव रखा था कि अगर उत्तर कोरिया परमाणु निरस्त्रीकरण को राज़ी हो जाता है तो बदले में उसे आर्थिक सहायता दी जाएगी.
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने मई महीने में पद संभालते समय भी ये प्रस्ताव रखा था. इसके बाद राष्ट्रपति पद पर 100 दिन बीतने के बाद बुधवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान उन्होंने इस प्रस्ताव को दोहराया था.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार ये पहली बार है जब उत्तर कोरिया के किसी बड़े नेता ने दक्षिण कोरिया के प्रस्ताव पर सीधे टिप्पणी दी है.
उत्तर कोरिया की सरकारी समाचार एजेंसी केसीएनए की ओर से जारी बयान में किम यो जोंग ने कहा है, "अगर वो बेकार की बात करने की बजाय अपना मुंह बंद रखेंगे तो उनकी छवि के लिए ये बेहतर होगा."
किम यो जोंग ने दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति को सीधा और बचकाना बताते हुए कहा है कि उन्हें लगता है कि वो आर्थिक सहयोग का लालच देकर उत्तर कोरिया के सम्मान और परमाणु हथियारों का सौदा कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि कोई छोटी-मोटी चीज़ों के लिए 'अपनी क़िस्मत' का सौदा नहीं कर लेता.
हाल के वर्षों में किम यो जोंग दक्षिण कोरिया की मुख़र आलोचक बनकर सामने आई हैं. उनका ताज़ा बयान यून पर अब तक सबसे कड़ा निजी हमला माना जा रहा है.
दक्षिण कोरिया के एकीकरण मंत्री ने किम के बयान को 'बेहद अपमानजनक और असभ्य' बताया है. (bbc.com)
इसराइल की ख़ुफ़िया एजेंसी ‘मोसाद’ में डायरेक्टर और ईरान डेस्क के प्रमुख के रूप में पहली बार किसी महिला की नियुक्ति की गई है.
इसराइल के विदेश मंत्रालय की डिजिटल डिप्लोमेसी टीम के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर ये जानकारी दी गई.
इस ट्वीट में बताया गया, ‘‘आज मोसाद ने एलान किया है कि ‘ए’ ने इंटेलिजेंस अथाॅरिटी के डायरेक्टर का पद संभाल लिया है. मोसाद के इतिहास में इस पद पर बैठने वाली वे पहली महिला हैं.’’
इनका दर्जा इसराइली सेना की ख़ुफ़िया संस्था के प्रमुख के स्तर का होगा.
इसी ट्वीट में यह भी बताया गया है कि एक अन्य सीनियर महिला एजेंट ‘के’ ने ईरान डेस्क के प्रमुख की ज़िम्मेदारी संभाली है.
इस तरह दुनिया की इस जानी मानी ख़ुफ़िया संस्था में नेतृत्व करने वाली भूमिकाओं में अब कुल चार महिलाएँ हो गई हैं. (bbc.com)
बीजिंग, 19 अगस्त | चीन के किंघई प्रांत में अचानक आई बाढ़ से मरने वालों की संख्या बढ़कर 17 हो गई है और इसके अलावा 17 अन्य लोग अभी भी लापता हैं, यह जानकारी अधिकारियों ने दी हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने एक शीर्ष प्रांतीय अधिकारी के हवाले से बताया कि, लापता हुए बीस लोगों को बचा लिया गया है।
इसके अलावा दूसरे लोगों को बचाने के लिए कुल 4,500 दमकलकर्मी, पुलिसकर्मी, सैनिक, आपातकालीन प्रतिक्रिया कर्मी और स्थानीय निवासी खोज और बचाव अभियान चला रहे हैं।
तेज बारिश के बाद भूस्खलन हुआ और नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया।
छह गांवों में कुल 6,245 निवासी प्रभावित हुए हैं क्योंकि कम से कम दो इमारतें ढ़ह गईं और 14 अन्य क्षतिग्रस्त हो गए।
काउंटी सरकार के प्रमुख मा मिंगक्सू ने कहा कि, 1,200 से अधिक लोगों को दो स्कूलों में अस्थायी आश्रय दिया गया है।
वित्त और आपातकालीन प्रबंधन मंत्रालयों ने संयुक्त रूप से प्राकृतिक आपदा राहत कोष के 50 मिलियन युआन के साथ-साथ प्रांतीय वित्त विभाग से 50 मिलियन युआन की राशि निर्धारित की है।
धन का उपयोग आपातकालीन बचाव और आपदा राहत प्रयासों के लिए किया जाएगा।
आपदा से प्रभावित लोगों को खोजने, बचाने और स्थानांतरित करने, माध्यमिक आपदा का पता लगाने, क्षतिग्रस्त घरों की मरम्मत और अन्य पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। (आईएएनएस)|
वाशिंगटन, 19 अगस्त (आईएएनएस)| अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में गुरुवार को दो विमान आपस में टकरा गए। यह घटना वाटसनविले शहर में उस समय हुई जब दो विमानों ने स्थानीय हवाईअड्डे पर उतरने का प्रयास किया था। इस हादसे में कई लोगों के मारे जाने की आशंका है।
हादसा दोपहर 2.56 बजे हुआ। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने शहर के अधिकारियों के हवाले से बताया कि गुरुवार को वाटसनविले नगर हवाई अड्डे पर कई एजेंसियां दोपहर 3.37 बजे घटनास्थल पर पहुंचीं।
फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) के अनुसार, ये दुर्घटना डुअल इंजन वाले सेसना 340 और एक इंजन वाले सेसना 152 में बीच हुई।
दुर्घटना के दौरान सेसना 340 में 2 लोग सवार थे और एक इंजन वाले सेसना 152 में केवल एक शख्स था।
एफएए और राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (एनटीएसबी) घटना की जांच करेंगे। (आईएएनएस)|
ढाका, 19 अगस्त। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा है कि देश में हिंदू समुदाय के पास भी उतने ही अधिकार हैं, जितने अधिकार खुद उनके पास हैं। उन्होंने कहा कि दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान ढाका में लगने वाले मंडपों की संख्या पश्चिम बंगाल में लगने वाले मंडपों की तुलना में कहीं अधिक होती है।
हसीना जन्माष्ट्मी के अवसर पर बृहस्पतिवार को हिंदू समुदाय के नेताओं से मुखातिब हुईं और अन्य धर्मों में विश्वास रखने वाले लोगों से अनुरोध किया कि वे अपने आपको अल्पसंख्यक न मानें। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में धर्मों से परे, सभी के पास समान अधिकार हैं।
समाचार पत्र 'ढाका ट्रिब्यून' की खबर के अनुसार हसीना ने कहा, 'हम चाहते हैं कि सभी धर्मों के लोग समान अधिकारों के साथ रहें। आप इस देश के लोग हैं, आपको यहां समान अधिकार प्राप्त हैं, आपके पास भी वही अधिकार हैं जो मेरे पास हैं।'
हसीना ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर और चट्टोग्राम में जेएम सेन सभागार में हुए कार्यक्रमों में डिजिटल माध्यम से शामिल हुईं।
उन्होंने कहा ‘‘हम भी आपको इसी तरह देखना चाहते हैं। कृपया स्वयं को दूसरों से कम न समझें। आप इस देश में पैदा हुए हैं। आप इस देश के नागरिक हैं।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि कहा कि दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान ढाका में लगने वाले मंडपों की संख्या पश्चिम बंगाल में लगने वाले मंडपों की तुलना में कहीं अधिक होती है।
हसीना ने इस बात पर दुख जाहिर किया कि जब भी कोई अवांछित घटना होती है तो उसे इस तरह बढ़चढ़ा कर पेश किया जाता है मानो बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के पास कोई अधिकार ही नहीं हैं।
‘‘प्रोथोम आलो’’ अखबार में हसीना को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है ‘‘घटना को ऐसा रंग दिया जाता है मानो बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के पास कोई अधिकार ही नहीं हैं। और घटना के बाद सरकार द्वारा की गई कार्रवाई को समुचित महत्व ही नहीं दिया जाता है।’’
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार और अवामी लीग किसी भी धर्म के लोगों को तवज्जो न देने में विश्वास नहीं करती । उन्होंने कहा ‘‘मैं साफ कह सकती हूं। हमारी सरकार इसे ले कर पूरी तरह सतर्क है। मैं इसका आपको आश्वासन दे सकती हूं।’’
साल 2022 की जनगणना के अनुसार बांग्लादेश में हिंदू समुदाय दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है। 16 करोड़ से अधिक आबादी वाले बांग्लादेश में हिंदू आबादी लगभग 7.95 प्रतिशत है। (भाषा)
कैलिफोर्निया (अमेरिका), 19 अगस्त। उत्तरी कैलिफोर्निया में स्थानीय हवाई अड्डे पर उतरने की कोशिश करते समय दो विमानों के बीच बृहस्पतिवार को टक्कर हो गई, जिससे विमान में सवार तीन लोगों में से कम से कम दो की मौत हो गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
वॉट्सनविले शहर ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर बताया कि ‘वॉट्सनविले म्यूनिसिपल एयरपोर्ट’ पर दोपहर तीन बजे से कुछ समय पहले यह हादसा हुआ।
संघीय विमानन प्रशासन (एफएए) के अनुसार, हादसे के दौरान दो इंजन वाले ‘सेसना 340’ में दो लोग सवार थे और एकल इंजन वाले ‘सेसना 152’ में केवल पायलट सवार था। हताहत हुए लोगों का आंकड़ा अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। विमानों के हवाई अड्डे पर उतरते समय यह हादसा हुआ। हवाई अड्डे पर हालांकि हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ।
एफएए और राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड मामले की जांच कर रहे हैं। (एपी)
फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारीन काफी आलोचनाओं का सामना कर रही हैं. दरअसल, उनका एक वीडियो लीक हुआ है जिसके बाद से लोग कई तरह की टिप्पणियां कर रहे हैं.
सना का ये वीडियो एक पार्टी का है. माना जा रहा है कि यह वीडियो फ़ुटेज सोशल मीडिया से लिया गया है. इस फ़ुटेज में वह अपने दोस्तों और फ़िनलैंड के कुछ सेलिब्रिटीज़ के साथ नाचते हुए दिखाई दे रही हैं.
विपक्षी पार्टियां इस वीडियो को लेकर उन पर हमलावर हो गई हैं. विपक्षी दल के एक नेता ने तो उनके ड्रग-टेस्ट तक की मांग कर दी है.
हालांकि 36 वर्षीय सना मारीन ने पार्टी में ड्रग लेने से जुड़ी किसी भी तरह की आशंका से इनक़ार किया है. उन्होंने बताया कि उन्होंने सिर्फ़ एल्कोहॉल ली थी और वह सिर्फ़ बेफ़िक्र तरीके से पार्टी कर रही थीं.
सना, दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री हैं. हालांकि उन्होंने पार्टी करने की बात कभी भी छिपाई नहीं और वह अक्सर पार्टी करती हुई या फिर किसी म्यूज़िक कॉन्सर्ट में शामिल होने की तस्वीरें पोस्ट करती रहती हैं.
पिछले सप्ताह ही जर्मनी के न्यूज़-आउटलेट ने उन्हें ‘दुनिया में सबसे कूल प्रधानमंत्री’ के तौर पर नामित किया था.
इस वीडियो पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने गुरुवार को कहा कि वह जान रही थीं कि उनका वीडियो बनाया जा रहा है. लेकिन वो दुखी इस बात से हैं कि उनका ये वीडियो सार्वजनिक हो गया.
उन्होंने कहा, “मैं नाच रही थी, गा रही थी और पार्टी कर रही थी- जोकि बिल्कुल क़ानूनी चीज़े हैं. मैं कभी भी ऐसी स्थिति में नहीं पड़ी जहां मैं लोगों को ड्रग्स लेते देखूं.”
सलमान रुश्दी पर हमला करने वाले युवक ने उनकी विवादित किताब द सैटेनिक वर्सेज़ के सिर्फ़ दो ही पन्ने पढ़े थे.
सलमान रुश्दी पर हमला करने वाले शख़्स का नाम हादी मतर है और उनकी उम्र 24 साल है. सलमान रुश्दी पर हमला होने के तुरंत बाद ही लोगों ने उन्हें घेर लिया था और पुलिस के हवाले कर दिया था.
फिलहाल वह जेल में बंद हैं. जेल से ही उन्होंने न्यू यॉर्क पोस्ट को एक इंटरव्यू दिया है. इंटरव्यू में उन्होंने कई बातें बताई हैं. हादी ने बताया कि सलमान एक ऐसे शख़्स हैं, जिन्होंने इस्लाम पर हमला किया था.
हालांकि उन्होंने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि उनका ये हमला साल 1980 में ईरान के जारी फ़तवे से प्रेरित था.
फ़िलहाल वह न्यू यॉर्क चाउताक्यूआ काउंटी जेल में बंद हैं.
सलमान रुश्दी की यह विवादित किताब (द सैटेनिक वर्सेज़) साल 1988 में प्रकाशित हुई थी. इस किताब के प्रति मुसलमान समुदाय ने ख़ासा नाराज़गी ज़ाहिर की थी. मुसलमान समुदाय ने इस किताब की बातों का ईशनिंदा बताया था.
मतर ने न्यूयॉर्क पोस्ट को बताया कि उन्होंने इस विवादित किताब के महज़ दो पन्ने ही पढ़े हैं.
उन्होंने बताया, “मैं अयातुल्लाह की इज़्ज़त करता हूं. मैं मानता हूँ कि वह एक महान शख़्स हैं. फ़िलहाल तो उनके बारे में मैं बस यही कह सकता हूँ.”
मतर ने अख़बार को यह भी बताया कि वह यह काफ़ी आश्चर्यचकित हो गए थे कि हमले के बाद भी सलमान रुश्दी ज़िंदा हैं.
उन्होंने कहा, “मुझे वो पसंद नहीं हैं. मुझे नहीं लगता है कि वो कोई बहुत अच्छे इंसान हैं. मैं उन्हें कोई ख़ास पसंद नहीं करता हूँ. वह एक ऐसे शख़्स हैं जिन्होंने इस्लाम पर हमला किया, उन्होंने उनके विश्वास पर हमला किया.”
इससे पहले उनकी माँ ने कहा था कि वह अपने बेटे को उसके इस व्यवहार के लिए उन्हें बेदख़ल कर चुकी हैं. (bbc.com)
डेविड ग्रिटन
सऊदी अरब में सुधार की वकालत और ऐक्टिविस्टों की रिहाई की मांग करने वाले ट्वीट की वजह से वहां की एक पीएचडी छात्रा को 34 साल की क़ैद की सज़ा सुनाई गई है.
34 साल की सलमा अल-शहाब दो बच्चों की मां हैं और वो सऊदी अरब की नागरिक हैं. उन्हें पिछले साल इस मामले में गिरफ़्तार किया गया था.
मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि इस मामले में सुनाई गई सज़ा, सऊदी सरकार के उस झूठ को उजागर करती है कि देश में महिलाओं को पहले से ज़्यादा अधिकार दिए जा रहे हैं. इन संस्थाओं का आरोप है कि देश में महिलाओं की स्थिति पहले से ख़राब होती जा रही है.
चरमपंथ के मुकदमों की सुनवाई करनेवाले ट्राइब्यूनल ने सलमा अल-शहाब को 'देश की व्यवस्था में गड़बड़ करने वालों' का साथ देने और 'अफ़वाह फैलाने' का दोषी करार दिया है.
सऊदी अरब में शांतिपूर्ण तरीके से आवाज़ उठाने वाले किसी कार्यकर्ता को दी गई अब तक की सबसे लंबी सज़ा को लेकर मानवाधिकार संस्थाओं ने चेतावनी दी है. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में पिछले पांच साल के दौरान ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाए गए हैं.
सुन्नी मुसलमान बहुल इस देश में सज़ा पाने वाली छात्रा अल्पसंख्यक शिया तबके से हैं. अपने इंस्टाग्राम प्रोफ़ाइल में वे अपने आप को दांतों की डाक्टर और मेडिकल एजुकेटर बताती हैं. उनका कहना है कि वे ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं और फ़िलहाल वे रियाद की प्रिसेंज़ नूरा यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं.
उनके ट्विटर पर 2,700 फ़ॉलोअर हैं और उनका अकाउंट 12 जनवरी, 2021 से अपडेट नहीं हुआ है. उसके तीन दिन बाद ही उन्हें सऊदी अरब में कथित तौर पर हिरासत में ले लिया गया था.
उन्होंने देश में सुधार और प्रमुख ऐक्टिविस्टों, मौलानाओं और अन्य बुद्धिजीवियों की रिहाई की मांग करने वाले कई मैसेज ट्वीट या रीट्वीट किए थे.
अमेरिका की मानवाधिकार संस्था 'द फ़्रीडम हाउस' और ब्रिटेन की एएलक्यूएसटी के अनुसार, 2021 के आखि़र में शहाब को चरमपंथ और साइबर अपराध विरोधी क़ानूनों का उल्लंघन करने का अपराध साबित होने पर पहले छह साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी.
लेकिन कोर्ट के दस्तावेज़ों को पढ़ने के बाद इन संस्थाओं ने बताया है कि इस महीने की नौ तारीख़ को अपीलीय अदालत ने उनकी सज़ा बढ़ाते हुए 34 साल कर दी. साथ ही उन पर 34 साल के लिए यात्रा प्रतिबंध भी लगाए हैं. माना जा रहा है कि यात्रा करने पर लगाए गए प्रतिबंध उनकी रिहाई के बाद लागू होंगे.
फ़्रीडम इनशिएटिव की सऊदी केस मैनेजर बेथनी अल-हैदरी ने इस सज़ा को 'घिनौना' क़रार दिया है.
उन्होंने शनिवार को बीबीसी को बताया, ''सऊदी अरब दुनिया को बताता है कि महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने और क़ानूनी सुधार लाने के लिए वह काम कर रहा है. लेकिन इस फै़सले के बाद अब कोई शक़ नहीं रह जाता कि देश में इस मोर्चे पर हालात और ख़राब होते जा रहे हैं.''
एएलक्यूएसटी की कम्युनिकेशंस हेड और लौजैन अल-हथलौल की बहन लीना अल-हथलौल ने सोमवार को कहा, ''इस फै़सले से साफ़ हो गया है कि सऊदी अरब के अधिकारियों पर खुलकर अपने विचार रखने वाले लोगों को बहुत कठोर दंड देने का भूत सवार हो गया है.''
बुधवार को लीड्स यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया, ''सलमा मामले में हाल की घटनाओं को देखकर हमें गहरी चिंता हुई है. उन्हें किसी तरीके से कोई मदद दी जा सकती है, इसे लेकर जानकारों से हम सलाह ले रहे हैं.''
यूनिवर्सिटी ने इस फ़ैसले के बाद सलमा, उनके परिवार और दोस्तों के साथ होने का यक़ीन दिलाया है.
वहीं अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि वे शहाब के मामले का अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि महिलाओं के हक़ की वकालत करने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी के इस्तेमाल को अपराध नहीं बनाया जाना चाहिए.
हालांकि इस मामले पर अभी तक सऊदी सरकार की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
सऊदी अरब में बोलने पर पहले भी मिली हैं सज़ाएं
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मानवाधिकारों के हनन के मामले में सऊदी अरब दुनिया के सबसे ख़राब मुल्कों में एक है. यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी को बुरी तरह से दबाया जाता है और सरकार की आलोचना करने वाले को गिरफ़्तार कर लिया जाता है.
मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक़ 2019 में सऊदी में रिकॉर्ड 184 लोगों को फांसी की सज़ा हुई थी. वहीं कोड़े मारने की सज़ा भी वहां आम थी, लेकिन 2020 में सऊदी अरब के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके बदले या तो जेल की सज़ा दी जाएगी या फिर जुर्माना भरना होगा.
आख़िरी बार सऊदी अरब में कोड़े मारने की सज़ा तब सुर्ख़ियों में आई थी, जब 2015 में ब्लॉगर रैफ़ बदावी को सार्वजनिक तौर पर कोड़े मारे गए थे. उन पर साइबर क्राइम का आरोप था और साथ ही इस्लाम का अपमान करने का भी.
बदावी को जून 2012 में गिरफ़्तार किया गया था. उन्हें 10 साल क़ैद और 1000 कोड़े मारे जाने की सज़ा दी गई थी. बदावी पर अपनी वेबसाइट ''सऊदी लिबरल नेटवर्क'' पर इस्लाम का अपमान करने, साइबर अपराध और अपने पिता की अवहेलना करने के आरोप थे. यह वेब साइट अब बंद कर दी गई है.
इस सज़ा की अमेरिका और मानवाधिकार संस्थाओं ने निंदा की थी. (bbc.com)
-विनीत खरे
बीती 15 अगस्त को अफ़गानिस्तान में तालिबान को सत्ता में आए एक साल पूरा हो गया. ऐसे में राजधानी क़ाबुल सहित दूसरे इलाकों में किसी बड़े चरमपंथी धमाके या हमले को लेकर तनाव का माहौल बना हुआ है.
लड़ाई ख़त्म हो गई लेकिन ऐसा लगता है कि इस देश में शांति नहीं है.
इसी माहौल में हम लोग क़ाबुल के केंद्र में स्थित असामाई मंदिर पहुँचे.
लोहे की मोटी चादरों से बने दरवाज़े को जब हमने खटखटाया तो छोटी सी जालीदार खिड़की के पीछे से एक चेहरे ने संशय भरे अंदाज़ में हमारा परिचय पूछा.
ये प्राचीन असामाई मंदिर के पुजारी और अफ़गानिस्तान में गिने-चुने बचे हिंदुओं में से एक हरजीत सिंह चोपड़ा थे.
इस मंदिर में मातारानी की पूजा होती है, यहां अखंड ज्योत जलती है. यहां शिवालय है और भोलेनाथ की पूजा भी होती है. साथ ही यहां श्रीमदभागवत और रामायण भी है.
गार्ड के अलावा मंदिर की इस बड़े से अहाते में हरजीत सिंह अपनी पत्नी बिंदिया कौर के साथ रहते हैं.
तालिबान के अफ़गानिस्तान में सुरक्षा कारणों से दोनों के परिवार भारत चले गए हैं, लेकिन हरजीत और बिंदिया यहीं रह गए.
हमलों के डर से मंदिर में पूजा भी बहुत चुपचाप तरीक़े से होती है, इसे रिकॉर्ड करने की इजाज़त नहीं है, ताकि पूजा के बारे में पता चलने पर कोई चरमपंथी हमला ना हो जाए.
एक वक्त अफ़गानिस्तान के खोस्त इलाके में मसाले का काम करने वाले हरजीत कहते हैं, "बैठे हैं हम माता रानी के चरणों में. उनकी सेवा कर रहे हैं. ये नहीं कि हम डर जाएं. हम माता मंदिर नहीं छोड़ेंगे."
वो कहते हैं, "(अफ़ग़ानिस्तान में) 10-11 हिंदू बचे हैं. गिनती के सात-आठ घर. एक मेरा घर है. एक राजाराम हैं, गज़नी में. एक दो घर कार्ती परवान में हैं. एक दो घर शेर बाज़ार में हैं. वो ग़रीब लोग हैं. ऐसे लोग भी हैं जो पासपोर्ट क्या है जानते भी नहीं. लोग पढ़े लिखे नहीं हैं. शुरू से यहां बड़े हो गए हैं."
"पहले एक बम धमाका जलालाबाद में हुआ था. उससे तक़रीबन 600-700 बंदे इंडिया चले गए. जब शेर बाज़ार (काबुल में) में बम ब्लास्ट हो गया तो उसमें 30 घर तबाह हो गए थे. उससे 200 लोग फिर इंडिया चले गए."
"जब तालिबान आ गए तो डर से लोग इंडिया चले गए. जब कार्ती परवान में हादसा हो गया तो 50-60 इंडिया चले गए. हम तो सेवा के लिए रुके हैं यहां. मंदिर के लिए. किसी हिंदू या सिख का दिल यहां नहीं लग रहा है सभी इंडिया जाना चाहते हैं."
साल 2018 में जलालाबाद में एक आत्मघाती हमले में और साल 2020 में काबुल में गुरुद्वारे पर चरमपंथी हमले में कई सिख मारे गए थे. इस साल जून में काबुल के कार्ती परवान गुरुद्वारे में हमले में एक सिख की मौत हो गई.
बिंदिया कौर का सारा परिवार भारत में है. यहां उनका पूरा दिन घर का काम और मंदिर की सेवा करने में बीतता है.
वो कहती हैं, "पहले मंदिर में 20 परिवार यहां रहते थे. डर के मारे कुछ कुछ ऐसे जाने लगे. फिर पांच परिवार रह गए यहां. फिर वो भी डर गए वो भी चले गए. फिर सारे आहिस्ता आहिस्ता छोड़कर चले गए. पहले बहुत बिगड़ा था. धमाके हो रहे थे. पिछले साल तालिबान लोग आ गए, फिर ये लोग भी चले गए. और हम अकेले रह गए."
उनके घर के बगले के खाली कमरे और दरवाज़ों पर लटके ताले गुज़रे वक्त की कहानी बयान कर रहे थे.
ग़ायब होते हिंदू और सिख
मंदिर की जगह से थोड़ी दूर पर है कार्ती परवान इलाका. काबुल के हर इलाके की तरह यहां भी हर जगह चेक पोस्ट हैं और सड़कों पर बंदूक लिए तालिबान नज़र आते हैं.
एक वक्त था जब कार्ती परवना ने अफ़ग़ान हिंदुओं और सिखों की दुकानों और घरों से भरा था.
स्थानीय निवासी राम शरण भसीन कहते हैं, "एक वक्त ये पूरा इलाका हिंदुओं और सरदारों का था. हिंदुओं का करेंसी और कपड़े का बिज़नेस था. डॉक्टर थे, हिंदू थे. पंसारी का काम हिंदुओं का था. सरकारी पोस्टों में हिंदू डॉक्टर थे, इंजीनियर थे. वो फौज में थे."
वो कई सालों पहले के उन दिनों को याद करते हैं जब उनके मुताबिक काबुल पर रॉकेट की बरसात होती थी, और एक रॉकेट उनके घर पर गिरा लेकिन फटा नहीं.
वो कहते हैं, "मैं घर पर नहीं था. मेरी वाइफ़ घर पर थीं. भगवान ने बचा लिया. वो अच्छा है कि रॉकेट फटा नहीं. अगर फट जाता तो न मेरा घर होता, न बीवी होती."
लेकिन आज तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में डर के साये में या तो लोग घरों में बंद हैं, या फिर बहुत ज़रूरी काम पड़ने पर कुछ देर के लिए ही निकलते हैं.
एक आंकड़े के मुताबिक 1992 से पहले अफ़ग़ानिस्तान में दो लाख 20 हज़ार से ज़्यादा हिंदू और सिख थे.
लेकिन पिछले 30 सालों में हिंदू और सिखों पर हमलों, भारत या दूसरे देशों में पलायन के बाद आज उनकी संख्या 100 के आसपास रह गई है, और ये संख्या लगातार कम हो रही है.
अफ़ग़ानिस्तान की स्थानीय संस्था पोर्सेश रिसर्च एंड स्टडीज़ ऑर्गेनाइज़ेशन अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर काम करती है.
तालिबान के आने के बाद संस्था अभी बंद है और संस्था में काम करने वाले कई लोगों ने देश छोड़ दिया है.
संस्था ने अफ़ग़ानिस्तान में हिंदुओं और सिखों की हालत पर हाल की अपनी एक रिपोर्ट में कहा, "अफ़ग़ानिस्तान से हिंदुओं और सिखों के पलायन का इतिहास 1980 के दशक के सोवियत कब्ज़े और अफ़ग़ानिस्तान में कठपुतली कम्युनिस्ट सरकारों के ख़िलाफ़ जिहाद विरोधी आंदोलन से जुड़ा है. तभी से हर दिन के प्रतिबंध, अत्याचार और अल्पसंख्यकों का देश से पलायन जारी है."
रिपोर्ट के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान के हिंदुओं और सिखों के लिए 1960 से 1980 का वक्त सबसे शांति का था जब उन्हें लाला या बड़ा भाई कहकर पुकारा जाता था और उनके आम लोगों से संबंध अच्छे थे.
लेकिन उनका बड़ी संख्या में पलायन 1988 से शुरू हुआ जब 13 अप्रैल बैसाखी के दिन जलालाबाद में हथियार लिए एक व्यक्ति ने 13 सिख श्रद्धालुओं और चार मुस्लिम सिक्योरिटी गार्ड्स की गोली मारकर हत्या कर दी.
अपहरण, धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक उत्पीड़न, उनकी ज़मीन और प्रॉपर्टी को हड़प लिए जाने आदि से हिंदुओं और सिखों की आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक हालत ख़राब हुई.
रिपोर्ट के लेखक अली दाद मोहम्मदी हिंदुओं और सिखों के साथ सालों से चले आ रहे कथित भेदभाव पर कहते हैं, "जब भी वो घरों से निकलते थे, उनके बच्चों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था. उन्हें ग़ैर-मुसलमान, हिंदू कचालू कहकर बुलाया जाता था. वो ऐसे माहौल में थे कि उनके पास कोई विकल्प नहीं था. या तो वो अफ़गानिस्तान छोड़ दें, या फिर अफ़गानिस्तान में घरों से बाहर न जाएं. बाद में उनकी प्रॉपर्टी, घरों को लड़ाकों के नेताओं ने हड़प लिया."
क़ाबुल में रह रहे मोहम्मदी के मुताबिक 10 प्रांतों में फ़ील्डवर्क के आधार पर उन्हें जानकारी मिली कि हिंदू मंदिरों और गुरुद्वारों को तबाह कर उन्हें कूड़ेदान की तरह या वहां अपने जानवर बांधने के लिए इस्तेमाल किया गया.
कार्ती परवान गुरुद्वार पर हमला और मरम्मत
इस साल जून की बात है जब कार्ती परवान इलाके के इस बेहद पुराने गुरुद्वारे पर चरमपंथी हमले में एक सिख की मौत हो गई, गुरुद्वारे को काफ़ी नुकसान पहुंचा.
हम पहुंचे कार्ती परवान गुरुद्वारे में जहां तालिबान की आर्थिक मदद से मरम्मत का काम चल रहा था. गुरुद्वारे में घूमते, सीढ़ियों से चढ़ते- उतरते दिखा कि जून में हुए हमले से गुरुद्वारे को कितना नुकसान पहुंचा.
उस दिन यहां रखी हुईं सिखों के इतिहास से जुड़ी किताबें, पोथियां, कुर्सी मेज़, सिक्योरिटी कैमरे, खिड़कियां, कालीन, अलमारियां और न जाने क्या क्या जल गया.
हमें बताया गया कि मरम्मत कर रहे लोग सभी स्थानीय अफ़गान थे. गुरुद्वारे में कोई पत्थर घिस रहा था तो कोई सफ़ाई कर रहा था.
जब हमला हुआ, तो गुरुद्वारे के केयरटेकर गुरनाम सिंह राजवंश उस दिन नज़दीक ही थे.
वो कहते हैं, "गुरुद्वारे के पीछे हमारा घर है, हम उधर रहते हैं. जब खबर आई कि गुरुद्वारे पर हमला हो गया तो हम यहां आ गए. देखा कि रोड बंद है. 18 बंदे गुरुद्वारे में थे. बहुत परेशानी थी. एक सविंदर सिंह जी थे, वो बाथरूम में शहीद हो गए."
इस इंटरव्यू के बाद दूसरे हिंदुओं और सिखों की तरह गुरनाम सिंह भी भारत चले गए, लेकिन अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे लोग हैं जिन्हें भारतीय वीज़ा का बेसब्री से इंतज़ार है, क्योंकि एक के बाद एक हो रहे हमलों के वजह से उनमें असुरक्षा बढ़ रही है.
क़ाबुल आने से पहले दिल्ली के तिलक नगर में गुरु अर्जुन देव जी गुरुद्ववारे में मेरी मुलाकात हरजीत कौर और उनके परिवार से हुई. वो कुछ समय पहले ही काबुल से दिल्ली पहुंची थीं.
काबुल
उनके तीन बच्चों में से एक बच्चे के दिल में छेद है. दिल्ली पहुंचकर वो बहुत चिंतामुक्त नज़र आ रही थीं.
हरजीत ने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के पहले भी हालात खराब थे और अब ज़्यादा खराब थे. बम धमाकों और गोलियों से वहां जान का खतरा बहुत ज़्यादा था, दिन भर घर में बंद रहना पड़ता और बच्चों की पढ़ाई बंद थी.
उधर गुरनाम सिंह बताते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे कुछ लोग भी है जो भारत गए लेकिन उन्हें पारिवारिक या बिज़नेस, या प्रॉपर्टी की मजबूरी की वजह से अफ़गानिस्तान आना पड़ा.
अल्पसंख्यकों पर हमले जारी
कार्ती परवान गुरुद्वारा सड़क की एक तरफ़ है. सड़क की दूसरी ओर सिखों की दुकानें हैं जिनमें से एक पर पिछले महीने जुलाई में ग्रेनेड से अज्ञात लोगों ने हमला किया.
हमले से यूनानी दवाओं की इस दुकान को चार लाख अफ़गानी (अफ़ग़ानिस्तान की मुद्रा) तक का नुकसान पहुंचा लेकिन किसी को चोट नहीं आई.
दोपहर में हुए इस हमले के वक्त दुकान के मालिक अरजीत सिंह नज़दीक ही खाना खाने पास की दुकान पर गए थे जब उन्हें ज़ोर का धमाका सुनाई दिया.
उन्होंने बताया, "हम बाहर निकले देखने कि क्या हो गया. देखता हूं कि मेरी दुकान से धुआं निकल रहा है. यहां बीच में काउंटर पड़ा था बड़ा सा. वो तो ऐसे चूर-चूर हो गया था कि पूछो मत. माल नीचे बिखरा था."
लेकिन अरजीत के जीवन पर चरमपंथ का असर पहले भी पड़ चुका है.
अरजीत के मुताबिक़, कार्ती परवान गुरुद्वारे हमले में मारे गए सविंदर सिंह उनके जीजा थे. इससे पहले 2018 हमले में भी उनके परिवार के लोग मारे गए थे.
उनकी दुकान के बगल में यूनानी दवाओं की एक अलग दुकान चलाने वाले सुखबीर सिंह खालसा के मुताबिक ग्रेनेड हमले से हिंदी और सिखों में बहुत ज़्यादा डर है.
वो कहते हैं, "कल वहां (हमला हुआ था). हो सकता है आज यहां हो. मेरी ड्यूटी सुबह आठ बजे से चार बजे तक है. मैं अभी आया हूं साढ़े तीन बजे दुकान पर. बीवी बच्चे नहीं छोड़ते. गुरुद्वारा भी बंद है. हम गुरु के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं. मुझ पर क्या गुज़रती है, ये मुझे पता है."
सुखबीर सिंह खालसा के घर में सभी का भारतीय वीज़ा गया है लेकिन उनकी पत्नी का वीज़ा नहीं हो पाया है, जिसका उन्हें इंतज़ार है. ऐसे और भी परिवार हैं जिनके परिवार के कुछ सदस्यों को वीज़ा मिला जबकि कुछ को भारतीय वीज़ा का इंतज़ार है.
अफ़ग़ानिस्तान से भाग रहे हिंदुओं और सिखों पर तालिबान का कहना है कि उनकी नीति सभी की रक्षा करना है.
काबुल पुलिस के प्रवक्ता खालिद ज़ादरान ने बातचीत में कहा, "हमारी नीति सभी की यानी अफ़गानिस्तान के हर नागरिक की रक्षा करना है और ये हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों पर लागू होता है. हम उन्हें सुरक्षा दे रहे हैं. अगर उन्हें लगता है कि उन्हें कोई खतरा है तो उन्हें इस जानकारी को हमारी फ़ोर्सेज़ के साथ शेयर करना चाहिए. वो उन्हें सुरक्षा देने के लिए हैं."
तालिबान सड़कों पर भारी-भारी गाड़ियों पर बंदूक लिए गश्त लगाते नज़र आते हैं.
अफ़गानिस्तान दशकों से युद्ध, बम धमाकों, टार्गेटेड किलिंग के साए में जी रहा है. अंतरराष्ट्रीय फंडिंग रुक जाने से, पिछले कुछ महीनों में सूखे और भूकंप की स्थिति से, अर्थव्यवस्था की बुरी हालत के कारण लोग भीख तक मांगने को मजबूर हैं और लोगों के लिए खाने, दवाइयों का इंतज़ाम करना मुश्किल हो रहा है.
जिसके लिए संभव है, वो ये देश छोड़कर जा रहा है.
डर जताया जा रहा है कि जैसे बामियान में बौद्ध नहीं रहे, या फिर हेरात या पश्चिमी अफ़गानिस्तान से ईसाई चले गए, वो दिन दूर नहीं जब एक दिन इतिहासकार कहें कि एक वक्त था जब अफ़गानिस्तान में हिंदू और सिख रहा करते थे. (bbc.com)
यूक्रेन पर हमले के बावजूद भारत के रूस से तेल ख़रीदने को लेकर अमेरिका ने कहा है कि वो किसी भी देश की विदेश नीति पर टिप्पणी नहीं कर सकता है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने नियमित प्रेस ब्रीफ़िंग में कहा कि कई देशों ने रूस के यूक्रेन पर हमले की आलोचना की है. साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी कई देशों ने रूस के ख़िलाफ़ मतदान भी किया है.
लेकिन उन्होंने माना कि जिन देशों के रूस के साथ दशकों पुराने रिश्ते हैं और इसे भी समझने की ज़रूरत है.
नेड प्राइस ने कहा कि भारत के मामले में भी ऐसा ही है. भारत और रूस के दशकों पुराने रिश्ते हैं. रूस से अलग अपनी विदेश नीति को नई दिशा देना एक दीर्घकालिक प्रस्ताव होगा. ये बिजली के स्विच का बटन दबाने जैसा नहीं है.
प्रेस ब्रीफ़िंग में नेड प्राइस से इस पर सवाल पूछा गया कि भारत तो रूस के साथ सैन्य अभ्यास भी कर रहा है. इस सवाल के जवाब में नेड प्राइस ने कहा कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी कई बार ये संदेश दिया है कि ऐसा नहीं है कि देशों को अमेरिका और अन्य देशों में किसी एक को चुनना है. दुनिया के हर देश अपने फ़ैसले लेंगे और वे फ़ैसले उनके हितों और मूल्यों के आधार पर होंगे.
उन्होंने कहा- हमें ये भी समझना होगा कि दुनिया के कई देशों के बीच दीर्घकालीन रिश्ते हैं, जिनमें सुरक्षा भी शामिल हैं. रूस के संबंध में अगर बात करें, तो जिन देशों के साथ रूस का सुरक्षा समझौता है या हथियार ख़रीद समझौता है, वो देश एकाएक रूस से अलग अपनी विदेश नीति नहीं बना सकते. ये कुछ हफ़्तों या महीनों में नहीं हो सकता. हमें इसे दीर्घकालिक चुनौती के रूप में देखते हैं.
नेड प्राइस ने कहा कि रूस ने जिस तरह यूक्रेन पर आक्रमण किया और यूक्रेन के अंदर भी जो कार्रवाई की या अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के सिद्धांतों का उल्लंघन किया, वो अन्य देशों के लिए एक सबक होगा. उन्होंने कहा कि इससे अमेरिका को दुनिया के देशों को ये समझाने में मदद मिली कि अमेरिका का क्या रुख़ है और रूस जैसे देशों का क्या रुख़ है.
रूस ने फ़रवरी में यूक्रेन पर हमला किया था. लेकिन भारत ने कभी भी खुलकर रूस की आलोचना नहीं की. भारत ने हर मंच पर यही कहा कि दोनों पक्षों को मिलकर इसका हल निकालना चाहिए. यूरोप और अमेरिका के अलावा कई देशों ने रूस पर पाबंदी लगाई. लेकिन भारत ने रूस से तेल लेना जारी रखा. अमेरिका ने भी भारत की आलोचना की थी. लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि वो अपने हित को देखते हुए ही फ़ैसला लेगा.
एक दिन पहले ही यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा ने अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू को दिए इंटरव्यू में कहा था कि रूस की ओर से भारत को मिल रहे कच्चे तेल के हर बैरल में यूक्रेनी ख़ून का एक अच्छा हिस्सा है. अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू से बातचीत में कुलेबा ने कहा कि उन्होंने यूक्रेन से भारतीय छात्रों को निकालने में मदद की थी. इंटरव्यू के दौरान कुलेबा ने कहा- हम कृषि उत्पादों ख़ासकर सनफ़्लावर ऑयल के प्रतिबद्ध सप्लायर्स और ट्रेडर हैं. हमें भारत से मज़बूत और व्यावहारिक सहयोग की उम्मीद थी.
जबकि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी ये बताया था कि यूक्रेन पर हमले के बाद लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल ख़रीदना क्यों जारी रखा है. थाइलैंड में भारतीय समुदाय से बातचीत के दौरान जयशंकर ने कहा था कि भारत में लोगों की आमदनी इतनी नहीं कि वे ऊँचे दामों में पेट्रोल-डीज़ल ख़रीद पाएँ. ऐसे में ये उनका नैतिक दायित्व है कि वे अपने लोगों को सबसे अच्छा सौदा दिलवाएँ. (bbc.com)
-ज़ुबैर अहमद
एक ज़माना था जब भारतीय मूल के लोगों को ब्रिटेन में कई तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता था. ये उनकी कल्पना से भी परे था कि एक दिन उनमें से कोई इस देश का प्रधानमंत्री बनने का ख़्वाव देखेगा.
ब्रिटेन में विपक्षी दल लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा अब 75 के हो चले हैं. वो 55 साल पहले पंजाब से लंदन आए थे.
अपने शुरुआती दिनों में भेदभाव का ज़िक्र करते हुए वीरेंद्र शर्मा ने बीबीसी हिंदी को बताया, "60 के दशक में यहाँ घरों के बाहर 'किराए के लिए उपलब्ध पर एशियन और कालों के लिए नहीं' लिखा होता था. क्लबों के बाहर लिखा होता था, 'कुत्ते, आयरिश, खानाबदोश और कालों को अंदर आने की इजाज़त नहीं'. अंग्रेज़ लोग इंडिया वालों को जब देखते थे तो कहते थे ये तो हमारे गुलाम थे अभी हमारे साथ बैठे हैं. वे इसका विरोध करते थे."
लेकिन अब ब्रिटेन में वीरेंद्र शर्मा की तरह कई भारतीय मूल के सांसद है. बोरिस जॉनसन की सरकार में कई कैबिनेट मंत्री भी भारतीय मूल के थे.
बोरिस जॉनसन के मंत्री रहे एक सांसद - ऋषि सुनक आज प्रधानमंत्री बनने की रेस में है. सुनक ब्रिटेन के वित्त मंत्री भी रह चुके हैं और कंज़र्वेटिव पार्टी के एक अहम नेता हैं. प्रधानमंत्री पद की रेस में 42 वर्षीय ऋषि सुनक का सामना लिज़ ट्रस है. ट्रस भी पार्टी की एक अनुभवी नेता हैं.
कंजर्वेटिव पार्टी के 160,000 सदस्य इन दोनों में से एक को वोट देकर, ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री चुनेंगे. इसे रेस में कौन जीतेगा इसका पता पाँच सितंबर को लगेगा.
तो क्या ये संभव है कि ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री भारतीय मूल का हो सकता है?
इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए बीबीसी हिंदी ने ब्रिटेन में समाज के हर समुदाय और कंज़र्वेटिव पार्टी के सदस्यों से बात की.
जानिए ऋषि सुनक को
ऋषि सुनक इंफ़ोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति के दामाद हैं.
उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति ब्रिटेन की सबसे अमीर महिलाओं की सूचि में शामिल हैं.
सुनक बोरिस जॉनसन कैबिनेट में वित्त मंत्री थे
2015 से सुनक यॉर्कशर के रिचमंड से कंज़र्वेटिव सांसद चुने गए थे.
उनके पिता एक डॉक्टर थे और माँ फ़ार्मासिस्ट.
भारतीय मूल के उनके परिजन पूर्वी अफ़्रीका से ब्रिटेन आए थे.
पढ़ाई ख़ास प्राइवेट स्कूल विंचेस्टर कॉलेज में हुई.
उच्च शिक्षा के लिए सुनक ऑक्सफ़र्ड गए.
बाद में स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में एमबीए भी किया
राजनीति में आने से पहले इन्वेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स में काम किया
लंदन से लगभग सौ किलोमीटर दूर चेल्टेनहैम शहर ब्रिटेन की सत्तारुढ़ कंज़र्वेटिव पार्टी का गढ़ है. लंदन, बर्मिंघम, मैनचेस्टर और लिवरपूल जैसे बड़े शहरों के बाहर इस तरह के छोटे शहरों और क़स्बों में विविधता कम दिखती है. ये मुख्य रूप से गोरे लोगों का शहर है.
शहर में एक युवती ने ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री पद की रेस में होने पर कहा, "अर्थव्यवस्था के लिए तो वे बेहतर रहेंगे. वह एक अर्थशास्त्री हैं. इसलिए मुझे लगता है कि इस मायने में उनका केस और मज़बूत है."
उनकी एक साथी ने कहा, "उनकी नीतियां उनके जैसे अमीर लोगों को छोड़कर किसी और की मदद नहीं करतीं. इसलिए मैं इनमें से किसी का भी समर्थन नहीं करतीं."
एक महिला से मैंने पूछा, क्या ब्रिटिश समाज एक ग़ैर-व्हाइट प्रधानमंत्री के लिए तैयार है?
महिला ने जवाब दिया, "मैं व्यक्तिगत रूप से इसके बारे में नहीं सोचती लेकिन मुझे लगता है मैं बिल्कुल तैयार रहूंगी. मेरा झुकाव ऋषि की तरफ़ है."
एक शख़्स से शहर के बाज़ार में मैंने पूछा, क्या आपको लगता है कि यहां का समाज एक काली नस्ल के प्रधानमंत्री के लिए तैयार है, तो उन्होंने ये कहा, "मैं ज़रूर तैयार हूँ. मैं किसी और के बारे में नहीं जानता लेकिन हाँ, मुझे लगता है कि यह अच्छा होगा."
'एक शानदार उम्मीदवार पर...'
बर्मिंघम ब्रिटेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. यहाँ की आबादी में विविधता नज़र आती है. शहर में हाल में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के संस्कृति समारोहों में विविधता को महसूस किया गया.
यहाँ पाकिस्तानी मूल के लोगों की संख्या काफ़ी है. क्या पाकिस्तानी मूल के लोग भारतीय मूल के ऋषि सुनक को अपने प्रधानमंत्री के रूप में देखना पसंद करेंगे?
जुमे की नमाज़ अदा करके मस्जिद से बाहर निकलने वाले एक शख़्स ने कहा, "अब मुझे उम्मीद है कि पूरा समाज इतना समझदार हो गया है कि वो क़ाबिलियत देखेगा. ये नहीं देखेगा कि इस आदमी की नस्ल या इसका रंग क्या है या ये कहाँ से आया है. मैं समझता हूँ कि ऋषि एक क़ाबिल आदमी है, तो इसलिए मुझे उन पर भरोसा है कि वो एक अच्छा प्रधानमंत्री भी बनेगें."
एक अन्य व्यक्ति ने कहा, "मुझे लगता है कि यूके के अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में एक अल्पसंख्यक होने के नाते, ऋषि शानदार उम्मीदवार हैं".
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के शहर मीरपुर से आकर इंग्लैंड में बसे एक अन्य व्यक्ति ने कहा, "मेरे ख़्याल में ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री बनना चाहिए क्योंकि पिछले कई सालों से हमने ये देखा है कि ज़्यादातर गोरे ही प्रधानमंत्री बनते हैं. तो एक इंडियन मूल का या एशियाई मूल का होना चाहिए प्रधानमंत्री जिसकी वजह से काफ़ी बदलाव आने की भी उम्मीद है."
ऋषि सुनक हिंदू हैं और धार्मिक तौर तरीक़े भी अपनाते हैं. 2015 में संसद का पहली बार चुनाव जीतने के बाद उन्होंने भगवत गीता पर हाथ रख कर शपथ ली थी. भारतीय मूल के लोग उनकी जीत के लिए प्रार्थना सभाएं कर रहे हैं. लेकिन क्या वे वाक़ई पीएम बनने के मज़बूत दावेदार हैं?
ऋषि सुनक 12 मई 1980 को साउथैंप्टन शहर में पैदा हुए और वहां उनकी परवरिश हुई. उनके माता-पिता अब भी इसी शहर में रहते हैं.
उनके पिता डॉक्टर हैं और माँ हाल तक केमिस्ट की एक दुकान चलाती थीं. ऋषि का परिवार ईस्ट अफ्रीका से आकर साउथैंप्टन में बसा है. उनका और उनके परिवार वैदिक सोसाइटी 'हिन्दू मंदिर' से गहरा नाता है.
सुनक के पिता डॉक्टर हैं और माँ हाल तक केमिस्ट की एक दुकान चलाती थीं. ऋषि का परिवार ईस्ट अफ्रीका से आकर साउथैंप्टन में बसा है. उनका और उनके परिवार वैदिक सोसाइटी 'हिन्दू मंदिर' से गहरा नाता है.
बीबीसी हिंदी जब इस मंदिर में पहुंची तो हमारी मुलाक़ात 75 वर्षीय नरेश सोनचाटला से से हुई. सोनचाटला ऋषि सुनक को बचपन से जानते हैं.
उन्होंने हमसे कहा, "मुझे तो लगता है वो प्रधानमंत्री बनेंगे. लेकिन अगर वो नहीं बन पाए तो इसकी वजह उनकी चमड़ी का रंग हो सकता है."
संजय चंदाराणा इस मंदिर के अध्यक्ष हैं. उनके अनुसार ऋषि के साथ भेदभाव होने के उम्मीद नहीं हैं. वो कहते हैं, "इस देश में ये देखा जाता है कि किसकी पॉलिसी अच्छी है, किसका नज़रिया ठीक है, कौन इस देश को आगे ले जाएगा. रंग उतना मैटर नहीं करता."
समाज में भले ही ऋषि की लोकप्रियता लिज़ ट्रस से कहीं अधिक नज़र आती हो पर हार-जीत का फ़ैसला उनकी पार्टी के सदस्य करेंगे. कंज़र्वेटिव पार्टी की युवा पीढ़ी ऋषि के पक्ष में नज़र आती है लकिन वरिष्ठ सदस्यों में ऋषि के बारे में विचार अलग-अलग हैं.
पार्टी के भीतर का माहौल
पार्टी देश के विभिन्य शहरों में दोनों नेताओं के बीच डिबेट करवा रही है. इन इवेंट्स को 'हस्टिंग्स' कहा जाता है.
सर्वेक्षणों में लिज़ ट्रस ने साफ़ बढ़त बनाई हुई है लेकिन हस्टिंग्स वाले इवेंट्स में पार्टी के सदस्यों का झुकाव लिज़ ट्रस के मुक़ाबले में ऋषि सुनक की तरफ़ ज़्यादा है. पूरा माहौल ऋषि की तरफ़ बना हुआ होता नज़र आता है.
ऋषि की कैंपेन टीम, लिज़ की टीम से अधिक संगठित दिखती है. साथ ही ऋषि की टीम में युवा अधिक हैं, इसलिए इनके खेमे में जोश ज़्यादा है.
लिज़ की टीम में पार्टी के पुराने लोग अधिक नज़र आते हैं. लेकिन ऋषि के कैंप में हर जगह पॉज़िटिव रुख़ देखने को मिल रहा है.
रिचर्ड ग्रैहम, कंज़र्वेटिव पार्टी के ग्लॉस्टर चुनावी क्षेत्र से सांसद हैं और ऋषि सुनक के घोषित समर्थक भी.
ऋषि के लिए तैयार...
हमने उनसे पूछा कि क्या लोग ऋषि के लिए तैयार हैं?, "मैं तैयार हूँ और कई अन्य लोग भी. इनमें कंजरवेटिव पार्टी के अधिकांश सांसद भी शामिल हैं. और मुझे लगता है कि देश भर में हमारे सदस्यों की एक बड़ी संख्या तैयार है. लेकिन हमें सदस्यों की राय का इंतज़ार रहेगा. हम सभी ऋषि को सही विकल्प के रूप में देखते हैं. मुझे नहीं लगता कि इस मुक़ाबले में विजेता के रंग की कोई भूमिका होगी."
ऋषि सुनक की कैंपेन टीम के एक सदस्य ने भेदभाव के मुद्दे पर कहा, "ये सोचो भी मत कि ये बहस का कोई मुद्दा भी है. मुझे लगता है कि जिस बारे में हम बहस कर रहे हैं वह है उम्मीदवारों की नीतियां."
टीम के एक युवा सदस्य ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि ऋषि की पृष्ठभूमि चिंता का विषय होगी. लोगों को आमतौर पर उनके काम के आधार पर आंका जाता है न कि उनकी पृष्ठभूमि से. महामारी के दौरान ऋषि की 'फ़र्लो' जैसी एक नई योजना ने लाखों लोगों को अपनी नौकरी में बनाए रखा, लाखों छोटे व्यवसायों की वित्तीय मदद की और अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया."
लिज़ ट्रस के समर्थन में भी इस बहस में काफ़ी लोग मौजूद थे, एक ने कहा, "मुझे लगता है कि लिज़ वास्तविक रूढ़िवाद दिखा रही हैं और इस देश में हमें यही चाहिए. ऋषि हम में से अधिकांश से कटे हैं, है ना? मुझे इससे कोई दिक़्क़त नहीं है कि उनका बैकग्राउंड क्या है? 2010 के बाद से और पिछले पांच सालों से मैं वास्तव में काफ़ी बदल गया हूँ और मुझे लगता है कि मुझे इस समय काले रंग से कोई प्रॉब्लम नहीं है"
मार्सिया जैको नाम की एक रिटायर्ड महिला टीचर से हम ने पूछा कि क्या उन्हें ऋषि सुनक के पीएम बनने से कोई फ़र्क़ पड़ता है?
उन्होंने कहा, "थोड़ा बहुत फ़र्क़ तो पड़ता है लेकिन फिर यह सब कुछ तो नहीं है ना. मेरे पति का जन्म यहां यूके में नहीं हुआ था. तो ये मेरे लिए सब कुछ नहीं है. लेकिन ये फैक्टर भी मेरे वोट करने में आया.".
और फिर वे पीएम के पद के लिए अपनी पसंद साफ़ कर देती हैं, "मुझे ऋषि पसंद है. मुझे लगता है कि वह एक बहुत ही चतुर व्यक्ति है लेकिन मेरी अगली प्रधानमंत्री लिज़ हैं."
अब नहीं तो 2024...
इस साल जुलाई में बोरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था जिसके बाद नए प्रधानमंत्री के चुनाव के पहले राउंड में आठ उमीदवार सामने आये थे. आख़िरी राउंड से पहले सभी राउंड में पार्टी के सांसदों को वोट देना था, जिन्होंने ऋषि और लिज़ को चुना गया था.
अब आख़िरी राउंड में पार्टी के सभी एक लाख साठ हज़ार सदस्यों को वोट देना है.
मिडिलसेक्स यूनिवर्सिटी की डॉक्टर नीलम रैना का मानना है कि ग़ैर-गोरों के लिए इस देश का प्रधानमंत्री बनने का रास्ता खुल गया है.
वो कहती हैं, "आप ये देखें कि दरवाज़ा खुला है. अगर आपमें कुव्वत है तो नंबर वन की स्पॉट का दरवाज़ा खुला है. लेकिन ये दरवाज़ा फ़िलहाल एक अमीर इंडियन के लिए खुला है."
अगर ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बने तो ये एक ऐतिहासिक क्षण होगा. एक लिहाज़ से उसकी तुलना 2008 में अमेरिका में बराक ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति की जीत से की जा सकती है.
डॉक्टर रैना कहती हैं, "उस मायने में देखें तो ये ऐतिहासिक होगा क्योंकि ये साबित करेगा कि पिछले बीस वर्षों में जिस विविधता और समावेशन की चर्चा हो रही है वो वाक़ई काम कर रहा है. अगर जीत गए तो ये बहुत बड़ी बात होगी."
लेकिन पार्टी के सदस्यों की राय बंटी हुई लगती है. इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बार न सही पर 2024 के चुनाव में, भारतीय मूल के किसी व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. (bbc.com)
कीव, 18 अगस्त | यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के साथ बातचीत से पहले एक बार फिर मास्को से संकटग्रस्त जापोरिज्जया परमाणु ऊर्जा संयंत्र को पूर्ण यूक्रेनी नियंत्रण में वापस करने का आह्वान किया है। जेलेंस्की ने टेलीग्राम पर कहा, "रूसी सेना को परमाणु ऊर्जा संयंत्र और सभी पड़ोसी क्षेत्रों से पीछे हटना चाहिए और संयंत्र से अपने सैन्य उपकरण छीन लेना चाहिए। यह बिना किसी शर्त के और जल्द से जल्द होना चाहिए।"
समाचार एजेंसी डीपीए ने बताया, जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेनी राजनयिक, वैज्ञानिक और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) संकटग्रस्त बिजली संयंत्र में आईएईए मिशन भेजने पर काम कर रहे थे।
उन्होंने कहा, "केवल पूर्ण पारदर्शिता और नियंत्रित स्थिति (जापोरिज्जया परमाणु ऊर्जा संयंत्र) के आसपास और यूक्रेनी राज्य के लिए, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए और आईएईए के लिए सामान्य परमाणु सुरक्षा की क्रमिक वापसी की गारंटी दे सकती है।"
संयंत्र का आईएईए दौरा जेलेंस्की, गुटेरेस और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के बीच गुरुवार को पश्चिमी यूक्रेन के ल्वीव शहर में होने वाली बैठक के विषयों में से एक होगा। (आईएएनएस)|
कोच्छी, 18 अगस्त | विक्टोरियन सरकार के लिए दक्षिण एशिया के व्यापार आयुक्त मिशेल वेड शुक्रवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख नर्सिग प्रशिक्षण संस्थान - इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड नर्सिग ऑस्ट्रेलिया (आईएचएनए) के कोच्चि परिसर का दौरा करेंगी। ऑस्ट्रेलिया के बाहर किसी व्यापार आयुक्त द्वारा नर्सिग शिक्षा संस्थान का यह पहला दौरा होगा।
परिसर में मिशेल वेड ऑस्ट्रेलिया आने वाले सभी लोगों के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड नर्सिग ऑस्ट्रेलिया के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के पहले बैच के स्नातक समारोह में भाग लेंगी।
इसके साथ ही एर्नाकुलम के कांग्रेस सांसद हिबी ईडन आईएचएनए के सीईओ बिजो कुन्नुमपुरथु और उनकी टीम के साथ बैठक में हिस्सा लेंगे।
इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड नर्सिग ऑस्ट्रेलिया वर्षो से हजारों लोगों के लिए मददगार रहा है। लोगों ने इन प्रमुख संस्थानों से प्रशिक्षण प्राप्त कर नर्सो के रूप में काम करने का अपना रास्ता खोज लिया है और यही मुख्य कारण है कि मिशेल वेड ने अपने कोच्चि परिसर का दौरा करने का फैसला किया। (आईएएनएस)|
लंदन, 18 अगस्त (आईएएनएस)| रेल, मेट्रो और बस यात्रियों को गुरुवार से लंदन में यात्रा के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। यहां हजारों कर्मचारी वेतन, नौकरी और शर्तों को लेकर हड़ताल कर रहे हैं। डीपीए समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, नेटवर्क रेल, ट्रेन कंपनियां, लंदन अंडरग्राउंड मेट्रो और यूके की राजधानी में बसें अगले कुछ दिनों में हड़ताल की चपेट में आ जाएंगी, जिससे श्रमिकों, छुट्टियों और कार्यक्रमों में जाने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
हड़ताल में यहां के कई संगठन शामिल हो रहे हैं। यह हड़ताल सप्ताह भर सेवाओं को प्रभावित करेगी।
गुरुवार को, नेटवर्क रेल (एनआर) में आरएमटी सदस्य और 14 ट्रेन ऑपरेटर, सात कंपनियों के टीएसएसए सदस्य और एनआर में यूनाइट के सदस्य हड़ताल करेंगे।
इसका असर शुक्रवार सुबह रेल सेवाओं पर पड़ेगा। साथ ही शुक्रवार को लंदन अंडरग्राउंड पर आरएमटी और यूनाइट के सदस्य काम नहीं करेंगे।
आरएमटी के महासचिव मिक लिंच ने कहा कि, "उनकी यूनियन के सदस्य अपनी पेंशन की रक्षा, अच्छी वेतन वृद्धि, नौकरी की सुरक्षा और काम करने की अच्छी परिस्थितियों के लिए पहले से कहीं अधिक ²ढ़ हैं।"
"आरएमटी सरकार से बातचीत करना जारी रखेगा लेकिन हम अपने सदस्यों के लिए धोखा बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
उन्होंने कहा, "सरकार को इन विवादों में उनके हस्तक्षेप को रोकने की जरूरत है ताकि नियोक्ता हमारे साथ बातचीत के जरिए समझौता कर सकें।" (आईएएनएस)|