राजनीति
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) द्वारा लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को ऑफर की गई सीटों को लेकर बैचेनी के बीच पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान द्वारा शनिवार को पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई है, जिसमें यह तय होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी राजग के साथ मिलकर चुनाव लड़े या अकेले लड़े। पासवान द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के एक दिन बाद मामले में यह प्रगति देखने को मिली है।
लोजपा के एक नेता ने कहा कि बैठक शाम 5 बजे होगी जिसमें सीट बंटवारे के फार्मूले पर चर्चा होगी और यह भी तय होगा कि पार्टी को अपने दम पर लड़ना चाहिए या गठबंधन में चुनाव लड़ना चाहिए।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, लोजपा राज्य में 36 विधानसभा और दो एमएलसी सीटों की मांग कर रही है। हालांकि, जनता दल-यूनाइटेड लोजपा को 20 से अधिक सीटें देने की इच्छुक नहीं है।
पिछले महीने, संसदीय बोर्ड की बैठक के दौरान, एलजेपी ने अपने नेताओं को बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 143 के लिए उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करने के लिए कहा था।
लोजपा राज्य में कई मुद्दों को लेकर नीतीश कुमार सरकार की आलोचना करती रही है, जिसमें कोविड-19 महामारी, प्रवासी श्रमिकों और बाढ़ के मुद्दों से निपटने जैसे मुद्दे शामिल हैं।
लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने कई मौकों पर नीतीश कुमार को लिखा, लेकिन मुख्यमंत्री ने एक बार भी जवाब नहीं दिया।
बिहार विधानसभा चुनाव 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को होंगे। वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी।
2015 के विधानसभा चुनावों में एलजेपी ने केवल 2 सीटें जीती थीं।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में 3 नवंबर को होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव में ग्वालियर-चंबल इलाके के कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यही कारण है कि तमाम नेता अपनी प्रतिष्ठा को बचाने सारा जोर लगाए हुए हैं।
राज्य में होने वाले विधानसभा के 28 क्षेत्रों में से 16 क्षेत्र ग्वालियर चंबल इलाके से आते हैं। इस क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं में भाजपा के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रभात झा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और मंत्री नरोत्तम मिश्रा आते हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की सारी कमान पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ ने संभाल रखी है। इसके अलावा बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए फूल सिंह बरैया और सत्यप्रकाश संखवार भी चुनाव मैदान में है।
यह चुनाव कांग्रेस के लिए 'करो या मरो' की स्थिति में लड़ना पड़ रहा है और यही कारण है कि कमल नाथ ने चुनाव की कमान खुद संभाल रखी है और अपने करीबियों की इस इलाके में तैनाती भी की है। कांग्रेस की ओर से यह चुनाव सीधे तौर पर कमल नाथ की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। वहीं दूसरी ओर भाजपा के आधा दर्जन नेताओं की प्रतिष्ठा इन उप-चुनावों से जुड़ी हुई है। यही कारण है कि दोनों दलों के नेताओं ने अपने अपने स्तर पर जमावट तेज कर दी है। साथ ही सीधे तौर पर खुद हालात पर नजर रखे हुए हैं।
कंग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा भी मानते हैं कि, यह उप-चुनाव राज्य और नेताओं के लिहाज से अहम है। कांग्रेस पूरी तरह प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है, वहीं भाजपा को अपने ही नेताओं पर भरोसा नहीं रहा है। यही कारण है कि उन्हें उमा भारती आदि को भेजना पड़ रहा है। यह चुनाव ऐतिहासिक होगा और इस चुनाव से साबित हो जाएगा कि जनतंत्र जीतता है या धनतंत्र।
भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि, यह उप-चुनाव विकास के मुददे पर लड़ा जा रहा है, भाजपा के शासनकाल को जनता ने देखा है, वहीं कांग्रेस के पंद्रह माह के कुशासन को भी। जहां तक पार्टी के नेताओं की बात है तो भाजपा ऐसा राजनीतिक दल है जहां कार्यकर्ता से नेता बनने की प्रक्रिया चलती है, यह हमारे लिए गर्व की बात है कि कई बड़े नाम उस अंचल के हमारे पास हैं।
वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुनाव भाजपा के कई प्रमुख नेताओं की भविष्य की राजनीति को निर्धारित करने वाले होंगे। सिंधिया जहां भाजपा में अभी आए हैं और यह क्षेत्र उनके प्रभाव का माना जाता है, वहीं केंद्रीय मंत्री तोमर को भी अपने प्रभाव को साबित करना हेागा। कुल मिलाकर कांग्रेस की ओर से अकेले कमल नाथ हैं तो भाजपा की ओर से कई चेहरे इस क्षेत्र में दांव पर लगे हैं।
हाथरस (उत्तर प्रदेश), 2 अक्टूबर (आईएएनएस)। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ' ब्रायन और पार्टी के अन्य नेताओं को पुलिस ने शुक्रवार को हाथरस जाने से रोक दिया। वे सभी 19 वर्षीय पीड़िता के परिवार से मिलने के लिए हाथरस जा रहे थे। गौरतलब है कि सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हुई पीड़िता की मौत हो चुकी है। पार्टी ने अपने बयान में कहा, "दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर की यात्रा करने वाले तृणमूल सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल को उप्र पुलिस ने हाथरस में प्रवेश करने से रोक दिया है।" बयान में आगे कहा गया, "वे पीड़िता के परिवार के साथ एकजुटता व्यक्त करने और अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए अलग-अलग यात्रा कर रहे थे।"
हाथरस जाने से रोके गए नेताओं में तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन, डॉ. काकोली घोष दस्तीदार, प्रतिमा मंडल और पूर्व सांसद ममता ठाकुर शामिल थे।
बयान में कहा गया, "हम शांतिपूर्वक हाथरस में परिवार से मिलने और अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। हम व्यक्तिगत रूप से यात्रा कर रहे हैं और सभी प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं। हमारे पास कोई शस्त्र नहीं हैं। हमें क्यों रोका जा रहा है? यह किस तरह का जंगल राज है, जिसमें निर्वाचित सांसदों को एक पीड़ित परिवार से मिलने से रोका जा रहा है? इस समय हम हाथरस में पीड़िता के घर से सिर्फ 1.5 किलोमीटर दूर हैं।"
पटना, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन में भले ही टिकट बंटवारे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है, लेकिन उसके पहले ही दोनों दलों के नेता अब आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने जहां लालू प्रसाद के जेल में रहने पर अफसोस जताते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव की समझ पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया, तो राजद ने भी अब गोहिल को आईना दिखाते हुए उन्हें बिहार की वस्तुस्थिति से परिचित नहीं होने की बात तक कह डाली।
बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन को लेकर सीट बंटवारा का मुद्दा अब तक नहीं सुलझा है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के नेता 75 से 80 सीटों पर अड़े हुए हैं, जबकि राजद 58 सीट देने पर राजी है। ऐसे में दोनों के नेता अब आमने-सामने आ गए हैं।
गोहिल गुरुवार को दिल्ली में पार्टी की स्क्रीनिंग कमिटि की बैठक के बाद रात अचानक पटना पहुंच गए। पटना पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए राजद को सीट बंटवारे को लेकर आड़े हाथों लिया। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद होते तो इतनी देर नहीं होती। दुर्भाग्यवश वे जेल में हैें।
गोहिल ने कहा, वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव और 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद देख चुकी है कि कांग्रेस से अलग लड़ने का नतीजा क्या हुआ है। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने अपनी सूझबूझ दिखाते हुए, तुरंत कांग्रेस से गठबंधन कर लिया था। उसका परिणाम सभी लोगों के सामने हैं। अगर वह होते, तो आज ऐसी स्थिति नहीं होती।
उन्होंने आगे कहा, तेजस्वी युवा चेहरा हैं। वहीं, जो कम अनुभवी लोग होते हैं, उन्हें लोग गुमराह भी करते हैं। सीटों के बंटवारे को लेकर देर बहुत हो गई है। अब गेंद राजद के पाले में है। हमारे साथी भी चाहते हैं कि सीटों पर जल्द निर्णय हो जाए।
गोहिल ने आगे कहा कि कांग्रेस राजद को छोडना नहीं चाहती है, लेकिन अगर राजद ऐसी नौबत लाती है, तो कांग्रेस भी एक राजनीतिक पार्टी है और कांग्रेस इसके लिए 'एक्सरसाईज' कर रही है।
इधर, कांग्रेस के तेजस्वी की समझ पर उठाए गए प्रश्नों को लेकर अब राजद भडक गई है। राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "कांग्रेस के प्रभारी गोहिल को बिहार की वस्तुस्थिति पता नहीं है। बिहार की 12 करोड़ जनता तेजस्वी के नाव पर सवार है, जो नाव में छेद करेगा उसे यहां की जनता डूबा देगी।"
उन्होंने कहा कि शक्ति सिंह यहां के विरोधी दल के नेता और मुख्यमंत्री के चेहरा तेजस्वी यादव पर सवाल उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजद को अगर कोई छेड़ेगा उसे हम उसे भी नहीं छोड़ेंगे।
पटना, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव मैदान में इस बार कई गठबंधन देखने को मिलेंगे। इधर, सभी गठबंधन अपने आकार को बड़ा करने में भी जुट गए हैं। राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन को छोड़कर निकली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा की है और अब उसकी नजर गठबंधन के आकार को बढ़ाने की है। सूत्रों का दावा है कि रालोसपा के नेताओं की राष्ट्रीय जन-जन पार्टी (राजजपा) के नेताओं के साथ गठबंधन में आने की बात अंतिम दौर में पहुंच गई है।
राजजपा का भूमिहार और ब्राह्मणों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। माना जाता है कि बिहार के मगध प्रमंडल सहित कई इलाके में राजजपा का अपना वोट बैंक है।
राजजपा के प्रमुख आशुतोष कुमार हालांकि किसी गठबंधन के साथ जाने को लेकर अभी कुछ स्पष्ट नहीं कहते हैं, लेकिन इतना जरूर कहा कि इस चुनाव में जात-पात को भूलकर बिहार के विकास की बात की जानी चाहिए।
इधर, रालोसपा के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी एक दिन पहले अचानक दिल्ली चले गए हैं। कहा जा रहा है कि वे कांग्रेस के कुछ नेताओं के साथ भी संपर्क में हैं और साथ मिलकर चुनाव लड़ने को लेकर बात हुई है। हालांकि इसकी पुष्टि कोई नहीं कर रहा है।
इधर, रालोसपा के प्रवक्ता भोला शर्मा कहते हैं कि गठबंधन के आकार को बड़ा करने को लेकर कई दलों के नेताओं से बात चल रही है। उन्होंने कहा कि सत्ता और मुख्य विपक्ष को लेकर यह गठबंधन लोगों को विकल्प देने की तैयारी में है।
उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर को रालोसपा ने महागठबंधन से अलग होकर बहुजन समाज पार्टी के साथ एक गठबंधन बनाने की घोषणा की। इस गठबंधन में जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) भी शामिल है।
भोपाल, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में 3 नवंबर को होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव में बयानबाजी की तल्खी बढ़ रही है, अब तो चुनाव प्रचार में जातिवाद ने भी दस्तक दे दी है। दतिया जिले के आरक्षित भांडेर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने फूल सिंह बरैया को उम्मीदवार बनाया है। बरैया ने बीते रोज एक जनसभा में सवर्णो का जिक्र किए बिना हमला किया और कहा, वे सिर्फ पंद्रह फीसदी हैं और हम 85 प्रतिशत। अगर मुकाबला हो गया तो एक पर छह पडें़गे हम। पंद्रह प्रतिशत वाले तभी तक राज कर रहे हैं जब तक यह (85) सो रहे हैं। यह जाग गए तो एक पर छह-छह पडेंगे, वे कैसे मुकाबला करेंगे। इसलिए बराबरी का कानून लागू किया जाए।
बरैया बसपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं और पिछले दिनों ही भाजपा से होते हुए कांग्रेस में आए हैं। उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा का भी उम्मीदवार बनाया था। अब उन्हें भांडेर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया है।
मनोज पाठक
पटना, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर गुरुवार से नामांकन का पर्चा दाखिल करने का काम शुरू हो गया, लेकिन अब तक राज्य के दोनों प्रमुख गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर लगी गांठ नहीं खुाल सकी है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में जहां लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के कारण सीट बंटवारे का पेंच फंसा हुआ है, वहीं महागठबंधन में राजद राष्ट्रीय दल, कांग्रेस की सीटों की मांग पूरी नहीं कर पा रही है।
इधर, देखा जाए तो पिछले तीन दशकों से बिहार की सत्ता तक राष्ट्रीय दल को पहुंचने के लिए क्षेत्रीय दलों का सहारा रहा है, ऐसे में माना जा रहा है कि राष्ट्रीय दल किसी भी परिस्थिति में छोटे और क्षेत्रीय दलों को नाखुश करना नहीं चाह रहे हैं।
माना जा रहा है कि यही कारण है कि क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय स्तर के दलों को आंखें भी दिखाते रहते हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियां वर्ष 1990 से अब तक किसी भी विधानसभा चुनाव में 100 के आंकड़े को पार नहीं कर सकी है।
पिछले चुनाव पर गौर करें तो पिछले चुनाव में जदयू और राजद के सहारे कांग्रेस सत्ता का स्वाद चख सकी थी, लेकिन जदयू के महागठबंधन से बाहर निकलने के बाद नीतीश कुमार की सरकार गिर गई थी और फि र नीतीश ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 27, जबकि भााजपा को 53 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।
इसके अलावा, 2010 के विधानसभा चुनाव पर गौर करें तो इस चुनाव में भी भाजपा को सत्ता तक पहुंचने के लिए जदयू का सहारा मिला था। इस चुनाव में भी जदयू को 115 सीटें मिली थी, जबकि भाजपा को 91 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।
यही स्थिति 2005 के चुनाव में भी देखने को मिली था जहां भाजपा सत्ता तक पहुंची जरूर, लेकिन उसे जदयू के सहारे चुनाव मैदान में उतरना पड़ा था।
वर्ष 2000 के चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में बिहार के 243 विधानसभा सीटों में से आधे से अधिक पर राजद ने अपना परचम लहरा कर सत्ता तक पहुंची थी। 1995 के चुनाव की बात करें तो उस चुनाव में भी राष्ट्रीय दल कांग्रेस को 29 सीटों पर संतोष करना पड़ा था जबकि भाजपा को 41 सीटें मिली थी। इससे पहले 1990 में भी दोनों राष्ट्रीय दलों को 100 से कम सीटों पर ही संतोष करना पडा था।
राजनीतिक समीक्षक संतोष सिंह कहते हैं कि वर्ष 1989 के भागलपुर दंगे के दौरान ही कांग्रेस के लिए अंतिम कील ठोंक दी गई थी जब अल्पसंख्यक इससे नाराज हो गए थे। उस समय बिहार में भाजपा का बिहार में उदय हो रहा था।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि कांग्रेस तो 'बैकफुट' पर चली गई लेकिन कलांतर में भाजपा केंद्र में सत्तारूढ़ हो गई, लेकिन बिहार में अब भी वह जदयू के पिछलग्गू बनी है।
सिंह कहते हैं, "पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में राजग ने 40 में से 39 सीटों पर विजयी हुई थी, जिसमें भाजपा के 17 उम्मीदवार उतारे थे और सभी विजयी हुए थे, उसके बावजूद भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं की। इस चुनाव में भी वह जदयू के साथ है।"
वैसे उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस चुनाव में राजग के घटक दल जदयू और भाजपा बराबर सीटों पर चुनाव लड़ती है, तब परिणाम देखने वाला होगा और यह भी देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर रूतबा कायम करने वाली भाजपा बिहार में अपना रूतबा बना सकी या नहीं ?
पटना, 29 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले विपक्षी दलों को मंगलवार को एक और झटका लगा, जब राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने महागठबंधन से अलग होकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ एक गठबंधन बनाने की घोषणा की। इस गठबंधन में जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) भी शामिल है। रालोसपा के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधा।
उन्होंने महागठबंधन को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि महगठंबधन की आज जो स्थिति में है, उसमें ऐसा लगा कि 15 सालों से जो नीतीश कुमार बिहार को रसातल में ले जा रहे हैं, उससे यह महागठबंधन बिहार को मुक्ति नहीं दिला पाएगा। यही कारण है कि उन्होंने यह फैसला लिया।
इस संवाददाता सम्मेलन में बसपा के बिहार प्रभारी रामजी सिंह गौतम और जनवादी पार्टी (सोशलिसट) के संजय सिंह चौहान भी उपस्थित थे।
कुशवाहा ने भ्रष्टाचार को लेकर भी नीतीश कुमार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के पहले 15 साल की सरकार ने सरकारी संपत्ति को दोनों हाथों से लूटा। अब इस सरकार में केवल तरीका बदल गया, लूट जारी रही।
कुश्वाहा ने कहा कि राजग को भी पता है कि सरकार की साख लगातार गिरी है। इनका एक ही सहारा है, 15 साल बनाम 15 साल का नारा। बिहार की जनता बदलाव चाहती है, लेकिन पिछली सरकार की स्थिति में लौटना नहीं चाहती।
कुशवाहा ने कहा, "हमने बसपा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में जाने का फैसला किया है। अन्य कई दल संपर्क में है। समान उद्देश्य के लिए जो भी साथ आएंगे उनका स्वागत है।"
मनोज पाठक
पटना, 29 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दो दिन बाद नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी, लेकिन राज्य के दो प्रमुख गठबंधनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन में अभी भी सीटों को लेकर रार ठनी हुई है। इस बीच हालांकि छोटे दलों के छोटे गठबंधन आकार ले रहे हैं।
राजग के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। सूत्रों के मुताबिक जदयू और लोजपा के बीच चल रही तनातनी के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोजपा को 27 सीटों का ऑफर दिया है, लेकिन इस पर बात बनी नहीं है। लोजपा के अंदरखाने से अभी भी 143 सीटों पर लड़ने की बात कही जा रही है।
लोजपा और भाजपा के नेता इस मामले को लेकर खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन अब तक जो स्थिति बनी है उसके मुताबिक इस चुनाव को लेकर लोजपा की स्थिति साफ नहीं ह,ै जबकि इस गठबंधन में भाजपा के साथ जदयू और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा मजबूती के साथ खड़ी है।
इधर, विपक्षी दलों के महागठबंधन की बात करें तो यहां भी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। रालोसपा में अब तक अधिकारिक रूप से महागठबंधन से अलग होने की घोषणा नहीं की है, लेकिन उसकी नाराजगी अब जगजाहिर हो गई है। रही सही कसर सोमवार को राजद ने रालोसपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद भूदेव चौधरी को अपनी पार्टी में मिलाकर पूरी कर दी।
वैसे, रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को दिल्ली से तीन दिनों के प्रवास से लौटने के बाद कहा कि उनकी अभी किसी दल से बात नहीं हो रही है, जो भी कयास लगाए जा रहे हैं, वह सही नहीं है। उल्लेखनीय है कि कुशवाहा के राजग में जाने के कयास लगाए जा रहे थे।
इस बीच, सूत्रों का कहना है कि मंगलवार को कुशवाहा कुछ अंतिम निर्णय ले सकते हैं। सूत्र कहते हैं कि कुशवाहा अलग मोर्चा भी बना सकते हैं।
इधर, राजद और कांग्रेस में भी सीटों को लेकर गुत्थी नहीं सुलझी है। सूत्रों के मुताबिक, राजद कांग्रेस को 58 विधानसभा सीट और वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट देने को तैयार है, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने अब तक इस फॉमूर्ले को लेकर हरी झंडी नहीं दी है। कांग्रेस के स्क्रीनिंग कमिटि के प्रमुख अविनाश पांडेय सभी 243 सीटों पर तैयार रहने की बात कहकर अपने तेवर दिखा चुके हैं।
इस बीच छोटे दलों का गठबंधन आकार ले रहा है। जन अधिकार पार्टी (जाप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने सोमवार को यहां प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (पीडीए) बनाने की घोषणा की। इस गठबंधन में चंद्रशेखर आजाद की अध्यक्षता वाली आजाद समाज पार्टी, एम के फैजी के नेतृत्व वाली सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसटीपीआई) और बी.पी. एल. मातंग की बहुजन मुक्ति पार्टी (बीएमपी) शामिल हुई है। पप्पू यादव कहते है कि यह गठबंधन राज्य में 30 सालों के महापाप को अंत करने के लिए बना है।
इधर, जनता दल (राष्ट्रवादी) और भारतीय सबलोग पार्टी यूनियन डेमोक्रेटिक अलायंस (यूडीए) बनाकर चुनाव मैदान में है।
जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक रहमान कहते हैं कि आज गठबंधन की राजनीति के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है। क्षेत्र की समस्याओं को दिल्ली में बैठे लोग नहीं जान सकते, यही कारण है कि गठबंधन बन रहा है और सफल हो रहा है। उन्होंने कहा कि यूडीए आज लोगों के सत्ता और विपक्षी दलों के विकल्प के रूप में उभरा है।
पटना, 28 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद से ही विधायक बनने की चाहत संवारे नेताओं की भीड़ पार्टी के प्रदेश कार्यालयों में लगने लगी है। जिन्हें पार्टी के आलाकमान से टिकट देने का आश्वासन मिल जा रहा है, उनकी तो खुशी परवान पर दिख रही है और जिन्हें आशा नहीं दिखती वे पार्टी लाइन से हट कर अपने तरीके से टिकट की मांग कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश कार्यालय के समीप रविवार को लखीसराय के पार्टी कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाजी की तो सोमवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) कार्यालय के बाहर एक महिला राजद कार्यकर्ता टिकट की मांग को लेकर धरने पर बैठ गई।
बेगूसराय जिला के तेघड़ा विधानसभा की नेत्री सुधा सिंह सोमवार को अनिश्चितकालीन धरना पर बैठ गई।
उन्होंने पत्रकारों से बताया, "तेजस्वी यादव और पार्टी के शीर्ष नेता से कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन मुलाकात नहीं हुई। वर्ष 2015 में ही लालू प्रसाद ने हमें टिकट देने का आश्वाशन दिया था, पर टिकट नहीं मिला था।"
उन्होंने कहा कि जब तक टिकट नहीं दिया जाता, वे यहीं बैठी रहेंगी।
इससे पहले रविवार को भाजपा कार्यालय में लखीसराय में उम्मीदवार बदलने को लेकर जमकर हंगामा हुआ। भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की गाड़ी को कार्यालय में घुसने से कुछ देर तक रोक दिया। उपमुख्यमंत्री की गाड़ी को कार्यालय आने देने से रोक रहे कार्यकर्ताओं और कार्यालय में मौजूद पार्टी जनों के बीच हल्की झड़प भी हुई।
लखीसराय ये आए पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का आरोप था कि लखीसराय के मौजूदा विधायक और श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा मतदाताओं की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।
मनोज पाठक
पटना, 28 सितम्बर (आईएएनएस)| बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के जरिए राज्य की सत्ता तक पहुंचने के लिए कोई भी राजनीतिक दल कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। सभी दल मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के वादे कर रहे हैं।
इसी क्रम में चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी वादों की झोली लेकर लोगों के सामने पहुंच गए, वहीं मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव भीे वादों को पूरी पोटली खोल दी। दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है।
उल्लेखनीय है कि दोनों दल 15-15 साल बिहार की सत्ता पर काबिज रह चुके हैं।
चुनावी की तारीखों की घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों से वादों की बौछार कर दी। मुख्यमंत्री ने जहां सत्ता में लौटने के बाद सात निश्चय पार्ट-2 के तहत काम करने का वादा किया, वहीं 'युवा शक्ति बिहार की प्रगति' के तहत युवाओं को नौकरी मिल सके इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित करने का वादा किया।
उन्होंने कौशल विकास योजना पर ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने और प्रत्येक जिले में मेगा स्किल सेंटर बनाने के साथ ही स्किल एवं उद्यमिता के लिए एक नया विभाग भी बनाने का वादा किया। मुख्यमंत्री ने युवाओं को रिझाने के लिए उद्यमिता के लिए इस बार हर किसी को मदद देने का आश्वासन दिया।
इधर, नीतीश के वादों की लंबी फेहरिस्त के बाद राजद के नेता भी पीछे नहीं रहे। तेजस्वी भी रविवार को पत्रकारों के सामने आए और सत्ता में आने के बाद दो महीने के अंदर ही 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा कर इस चुनाव में बड़ा दांव चल दिया।
तेजस्वी ने सरकारी विभागों में आंकड़ों के जरिए रिक्त पदों का हवाला देते हुए कहा कि हमारी सरकार बनी तो कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का फैसला किया जाएगा।
उन्होंने कहा, "अगर उनकी पार्टी को यहां के लोग मौका देते हैं तो इन सभी रिक्त पदों पर नियुक्ति की जाएगी।"
उन्होंने कहा कि यह वादा नहीं मजबूत इरादा है।
दीगर बात है कि दोनों पार्टियों के नेता के वादों को लेकर विरोधी प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। एक-दूसरे पर सत्ता में रहने पर काम क्यों नहीं करने को लेकर प्रश्न पूछ रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार कहते हैं कि राजनीतिक दलों का चुनाव से पहले घोषणाएं और वादा करना कोई नई बात नहीं है। यह प्रारंभ से होता आया है।
उन्होंने कहा, "कोरोना काल में कई प्रवासी मजदूर वापस लौट आए हैं, विपक्ष पिछले कुछ महीने से बेरोजगारी को मुद्दा बनाने में जुटा है। ऐसे में सत्ता पक्ष के पास भी रोजगार का वादा करना मजबूरी है।"
उन्होंने कहा कि दोनों दल 15-15 साल सत्ता में रह चुके हैं, अगर इस मामले को लेकर ईमानदारी से प्रयास किया जाता तो स्थिति बदली रहती। उन्होंने हालांकि सवालिया लहजे में कहा कि चुनावी घोषणाएं और वादे कितने पूरे होते हैं, ये सभी जानते हैं।
पटना, 27 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद टिकट की आस लगाए बैठी एक उम्मीदवार के समर्थकों और पार्टी के कुछ पदाधिकारियों के बीच हाथापाई हो गई। यह स्थिति तब बनी जब टिकट पाने की इच्छुक उम्मीदवार के 50 से अधिक समर्थकों ने उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के वाहन को बीजेपी के पटना कार्यालय में जाने से रोकते हुए लखीसराय निर्वाचन क्षेत्र के लिए मौजूदा विधायक विजय सिन्हा की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग की। समर्थक इस सीट से कुसुम देवी को टिकट दिए जाने की मांग कर रहे थे।
प्रदर्शनकारियों ने उप मुख्यमंत्री के वाहन को लगभग 10 मिनट तक रोके रखा तब पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश की। इसके बाद बहस हुई और फिर बात हाथापाई तक पहुंच गई।
प्रदर्शनकारियों में से एक मनीष कुमार ने आरोप लगाया, "विधायक पिछले 15 वर्षों से लखीसराय से चुने जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने लोक कल्याण का कोई काम नहीं किया। मेरी नेता कुसुम देवी पिछले 25 वर्षों से भाजपा से जुड़ी हैं और उनसे बेहतर उम्मीदवार हैं। वह समाज के सभी वर्गों में बेहद लोकप्रिय भी हैं।"
बाद में प्रदर्शनकारियों को समझा-बुझाकर वहां से हटाया गया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा, "उम्मीदवारों के समर्थक चुनाव में उनके समर्थन में आवाज बुलंद करते हैं। लेकिन हमने उम्मीदवारों के चयन के लिए प्रक्रिया निर्धारित की है। यदि वह पात्र हैं तो चयन समिति निश्चित रूप से उन पर विचार करेगी।"
बता दें कि कुछ समय पहले ही भाजपा समर्थकों का नाम कथित तौर पर जन अधिकार पार्टी के कार्यकतार्ओं के साथ मारपीट करने में सामने आया था, इस घटना में तीन लोग घायल हो गए थे।
पटना, 26 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी के प्रमुख अविनाश पांडेय ने यहां शनिवार को कहा कि कांग्रेस बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि गठबंधन में सम्मानजनक सीटें मिलती हैं, तो साथ में चुनाव लड़ेंगे।
पटना में पत्रकारों से बात करते हुए पांडेय ने कहा है कि अगर हमारी राष्ट्रीय जनता दल के साथ एक 'सम्मानजनक' साझेदारी होती है, तो हम उनके साथ चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि बिहार में चुनाव को लेकर भाजपा के खिलाफ सभी विरोधी दल कांग्रेस के साथ हैं।
इससे पहले बिहार चुनाव के लिए गठित कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडेय तथा दोनों सदस्य काजी निजामुद्दीन एवं देवेंद्र यादव पटना पहुंचे।
स्क्रीनिंग कमेटी की दो दिवसीय बिहार यात्रा में पहली बैठक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा सहित कार्यकारी अध्यक्ष समीर कुमार सिंह, श्याम सुंदर सिंह धीरज, विधायक डॉ. अशोक कुमार, कौकब कादरी, कांग्रेस विधानमंडल के नेता सदानन्द सिंह, चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष राज्यसभा सांसद डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ गोपनीय मंत्रणा हुई।
इसके बाद दूसरी बैठक कांग्रेस प्रदेश कार्यसमिति सदस्यों और सभी प्रकोष्ठों, विभागों के अध्यक्षों के साथ लम्बी बैठक हुई।
बैठक के बाद स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडेय ने कहा कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी तैयारी में जुटने को कहा है। ससम्मान सीटों के बंटवारे के बाद महागठबंधन मजबूती से चुनाव में उतरेगा। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय बिहार यात्रा में पार्टी सभी संभावित सीटों पर अपने उम्मीदवारों की स्क्रूटनी करेगी। साथ ही पार्टी के अधिक जनाधार वाली सीटों पर संभावनायें टटोलेगी।
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा ने कहा कि बिहार क्रांति महासम्मेलन की वर्चुअल रैली में पार्टी ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी मजबूत उपस्थिति दिखाई।
हरियाणा से पार्टी के विधायक और बिहार स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य देवेंद्र यादव ने कहा कि बिहार के चुनावों की तिथि घोषित हो चुकी है और बिहार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का जोश ये बताने को काफी है कि हमारे दल की स्थिति काफी मजबूत है।
बिहार चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि पार्टी के स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन और सदस्यों की यह पहली बैठक है। पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी तैयारियों की समीक्षा भी की।
मनोज पाठक
पटना, 26 सितंबर (आईएएनएस)| चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद यह तय है कि चुनावी दंगल में मुख्य मुकाबला सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और विपक्षी दलों के राजद नेतृत्व वाले गठबंधन में होना है। हालांकि, अब तक इन दोनों गठबंधनों का आकार पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। इस चुनाव में कई ऐसे दल भी ताल ठोंकते नजर आएंगे जिनका खाता अभी विधानसभा में खुलना शेष है। समें वामदल जैसी पार्टी भी शामिल है, जिन्हें पिछले कुछ चुनावों में बहुत कम सीटों पर संतोष करना पड़ा है। इसके अलावा, कई ऐसी पार्टियां भी इस चुनाव में मतदाताओं के सामने होंगी, जिनके निजाम दूसरे दलों में थे और अब खुद की पार्टी बना ली है।
जन अधिकार पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी, जनता दल (राष्ट्रवादी), जनतांत्रिक विकास पार्टी (जविपा) सहित कई ऐसी पार्टियां हैं जिनकी प्राथमिकता बिहार विधानसभा में खाता खोलने की है।
पूर्व सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी इस चुनाव में 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। इसमें कोई शक नहीं कि पूर्व में राजद के नेता रहे पप्पू यादव की बिहार के कई क्षेत्रों में अपनी पहचान है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पिछले पांच सालों में किए गए परिश्रम का लाभ भी उन्हें कुछ क्षेत्रों में मिलेगा, लेकिन कुछ लोगों के भरोसे को वे सीटों में कैसे तब्दील करेंगे यह देखने वाली बात है।
इधर, पप्पू यादव कहते भी हैं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष से बिहार की जनता परेशान है और वह विकल्प के रूप में सामने हैं।
इधर, जविपा प्रमुख अनिल कुमार भी इस चुनाव में 150 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने की घोषणा की है। जविपा का बक्सर, भोजपुर और रोहतास जिले में जनाधर माना जाता है।
जविपा के अध्यक्ष अनिल कुमार कहते हैं कि बिहार में जो विकास का दावा किया जाता रहा है, उसकी पोल इस कोरोना काल में खुल गई है और इसी कथित विकास का जनता जवाब मांगने को तैयार है।
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के साथ रहे पूर्व सांसद रंजन यादव इस चुनाव में जनता दल (राष्ट्रवादी) पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में है। शुक्रवार को कृषि विधेयकों के विरोध में सड़कों पर उतरकर पार्टी के कार्यकर्ता अपनी ताकत दिखा चुके हैं।
पार्टी के संयोजक अश्फाक रहमान बताते हैं कि उनकी पार्टी यूनियन डेमोक्रेटिक अलायंस के घटक दल के रूप में चुनाव मैदान में उतर रही है, जो लोगों को एक विकल्प के रूप में जनता के बीच जा रही है।
वामपंथी पार्टियों की हालत भी बिहार में बेहतर नहीं मानी जाती है। पिछले चुनाव में वामपंथी दलों को मात्र तीन सीटों पर संतोष करना पडा था। इस चुनाव में वामपंथी दल विपक्षी दलों के महागठबंधन के साथ चुनव मैदान में आने की तैयारी में है। हालांकि अब तक तस्वीर साफ नहीं हुई है। वैसे वामपंथी दल इस चुनाव में अपनी सीट को बढ़ाने को लेकर आतुर नजर आ रही है।
मनोज पाठक
पटना, 25 सितम्बर (आईएएनएस)| चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। 28 अक्टूबर से 7 नवंबर तक तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे। लेकिन अब तक मुख्य रूप से दो प्रतिद्वंदी गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर स्थिति साफ नहीं हुई है। विपक्षी दलों के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेतृत्व वाले महागठबंधन में प्रमुख घटक दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने तो तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिए हैं, तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग ) में भी जदयू और लोजपा कई मुद्दों को लेकर आमने-सामने हैं।
पिछले चुनाव से इस चुनाव में परिस्थितियां बदली हुई हैं। कई दलों के गठबंधन बदलने से उसके 'निजाम' बदल गए हैं। महागठबंधन में शामिल रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने राजद के नेतृत्वकर्ता और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के उतराधिकारी तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया है।
रालोसपा ने गुरुवार को पार्टी की बैठक बुलाई थी जिसमें स्पष्टता से कहा गया है कि महागठबंधन में राजद के एकतरफा फैसले लेने के कारण महागठबंधन में शामिल दलों में नेतृत्व को लेकर भी मतभिन्नता बरकरार है। बैठक में सीट बंटवारे को लेकर भी अभी तक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री कुशवाहा ने बैठक में तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे नेतृत्व में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को रोक पाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि अभी जो चेहरा है वह नीतीश कुमार के सामने कहीं नहीं टिकता।
इधर, महागठबंधन में सीट बंटवारा नहीं होने के कारण विकासशील इंसान पार्टी नाराज बताई जा रही है। वैसे, महागठबंधन में वामपंथी दलों के शामिल होने के प्रयास चल रहे हैं।
इधर, उपेंद्र कुशवाहा द्वारा तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाए जाने पर राजद का कोई नेता कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहा। हालांकि राजद के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि किसी को कहीं जाना होगा, तो उसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन कुल मिलाकर यह विवाद सीटों की हिस्सेदारी को लेकर है।
इधर, राजग में भी अभी बंटवारे को लेकर मामला अधर में लटका है। राजग के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) और जदयू के बीच काफी दिनों से मनमुटाव चल रहा है। लोजपा के प्रमुख चिराग पासवान लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कायरे पर सार्वजनिक रूप से प्रश्न उठा रहे हैं, जिससे जदयू के नेता भी गाहे-बगाहे लोजपा पर निशाना साधती रही है।
इस बीच लोजपा ने 143 सीटों पर तैयारी करने की बात कहकर राजग से दूरी बना ली। राजग सूत्रों का कहना है कि गुरुवार को भाजपा ने लोजपा को 25 सीट देने के संदेश दिए हैं। उल्लेखनीय है कि लोजपा पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि उनका गठबंधन भाजपा से है।
इधर, जदयू के नेता और बिहार के मंत्री जय कुमार सिंह कहते हैं कि गठबंधन को लेकर कोई भ्रम नहीं है। गठबंधन अटूट है। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि दो से तीन दिनों के अंदर सीट बंटवारा हो जाएगा।
इधर, भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि भाजपा कार्यकर्ता वाली पार्टी है। भाजपा चुनाव आयोग के सभी आदेशों का पालन करेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा के कार्यकर्ता भाजपा के उम्म्ीदवार को जीताने का काम करेंगे ही, जहां भाजपा के प्रत्याशी नहीं होंगे वहां घटक दल के प्रत्याशी को जीताने का कार्य करेंगे।
उल्लेखनीय है कि 2015 में जो विधानसभा चुनाव हुए थे उसमें राजग में भाजपा, लोजपा, रालोसपा और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल थे, वहीं महागठबंधन में जदयू, राजद और कांग्रेस शामिल थी।
पिछले चुनाव में भाजपा को 53, लोजपा को 2, रालोसपा को 2 और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को 1 सीटें मिली थी। महागठबंधन में जदयू के 71 प्रत्याशी विजयी हुए थे जबकि राजद 80 और कांग्रेस 27 सीटें जीती थी।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 25 सितम्बर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव सियासी तौर पर अहम हैं, मगर बुंदेलखंड के सागर जिले की सुरखी विधानसभा सीट ऐसी है जिसके नतीजे इस इलाके की सियासत पर बड़ा असर डालने वाले होंगे।
सागर जिले का सुरखी विधानसभा क्षेत्र इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि शिवराज सिंह चौहान सरकार के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत का भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरना तय है। राजपूत की गिनती पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की करीबियों में होती है। राजपूत उन नेताओं में है जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा है।
राजपूत के भाजपा में जाने से कई नेता कांग्रेस की तरफ रुख कर रहे हैं। उन्हीं में से एक पूर्व विधायक पारुल साहू ने भी कांग्रेस की सदस्यता ली है। पारुल साहू ने वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में वर्तमान के भाजपा के संभावित उम्मीदवार गोविंद सिंह राजपूत को शिकस्त दी थी। अब संभावना इस बात की है कि राजपूत के खिलाफ कांग्रेस पारुल साहू को मैदान में उतार सकती है। एक तरफ जहां पारुल साहू ने कांग्रेस की सदस्यता ली है तो कुछ और नेता भाजपा से कांग्रेस की तरफ रुख कर रहे हैं।
कांग्रेस छोड़कर आए राजपूत के लिए व्यक्तिगत तौर पर यह चुनाव अहमियत वाला है तो वहीं इस चुनाव के नतीजों का बुंदेलखंड की राजनीति पर असर होना तय है। इसकी वजह भी है क्योंकि सागर जिले से शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में गोपाल भार्गव भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत मंत्री है। भाजपा भी सुरखी विधानसभा क्षेत्र को लेकर गंभीर है। यही कारण है कि पार्टी जहां घर-घर तक पहुंचने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर राजपूत ने मतदाताओं का दिल जीतने के लिए रामशिला पूजन यात्रा निकाली और भाजपा कार्यकर्ताओं से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं।
एक तरफ जहां राजपूत भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में अपनी पैठ बढ़ाने में लगे हैं तो वहीं दूसरी ओर भाजपा के असंतुष्ट कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। पारुल साहू के कांग्रेस में आने से राजपूत के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि पारुल के पिता संतोष साहू भी कांग्रेस से सागर जिले से विधायक रह चुके हैं।
अब एक बार फि र राजपूत और पारुल के बीच सियासी मुकाबला हो सकता है, अगर ऐसा होता है तो चुनाव रोचक और कड़ा होने की संभावनाएं जताई जा रही है। दोनों ही जनाधार व आर्थिक तौर पर मजबूत है, इसलिए यहां का चुनाव चर्चाओं में रहेगा इसकी संभावनाएं बनी हुई है।
राजनीतिक विश्लेषक विनेाद आर्य का कहना है कि, "सुरखी विधानसभा क्षेत्र का उप-चुनाव सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र का चुनाव नहीं बल्कि पूरे अंचल को प्रभावित करने वाला होगा, ऐसा इसलिए क्योंकि राजपूत की गिनती सिंधिया के करीबियों में होती है, उनकी जीत से जहां नया सियासी ध्रुवीकरण हेागा तो उनकी हार से भाजपा के पुराने क्षत्रप मजबूत बने रहेंगे। वहीं पारुल साहू के जरिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उर्जा मिलेगी, इतना ही नहीं कांग्रेस की जीत से इस क्षेत्र में नया नेतृत्व उभर सकता है।
बुंदेलखंड का सागर वह जिला है जहां से शिवराज सिंह चौहान सरकार में गोविन्द सिंह राजपूत के अलावा भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव मंत्री है। यह तीनों सत्ता के केंद्र है, राजपूत के जीतने और हारने से सियासी गणित में बदलाव तय है, यही कारण है कि भाजपा में एक वर्ग राजपूत के जरिए अपनी संभावनाएं तलाश रहा है तो राजपूत के भाजपा में आने से अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे नेता नई राह की खोज में लगे है।
मनोज पाठक
पटना, 24 सितम्बर (आईएएनएस)| बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर ऐसे तो राजनीतिक दलों के बीच जुबानी जंग धीरे-धीरे परवान चढ़ रही है, लेकिन दूसरी ओर राजनीतिक दल सड़कों पर भी एक नई लड़ाई लड़ रहे है। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप लगाने या कटाक्ष करने के लिए पोस्टरों का सहारा ले रहे हैं।
ये पोस्टर पटना की सड़कों के किनारे लगाए जा रहे हैं, जो आने-जाने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र भी बने हुए हैं। पिछले एक सप्ताह से यहां की सड़कों पर पोस्टर वार जोरों पर है।
पटना की सड़कों पर गुरुवार को जदयू ने एक पोस्टर लगाया है, जिसके जरिए राजद पर जोरदार कटाक्ष किया गया है। पीले रंग की पृष्ठभूमि वाले इस पोस्टर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर है, जिसमें लिखा गया है, 'पूरा बिहार, हमारा परिवार'। इसी पोस्टर के एक कोने में 'न्याय के साथ तरक्की, नीतीश की बात पक्की' का नारा लिखा हुआ है।
कहा जा रहा है कि इस पोस्टर के जरिए जदयू ने लालू परिवार को निशाना बनाने की कोशिश की है।
इससे पहले शनिवार को पटना की सड़कों पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद के परिवार पर तीखा राजनीतिक प्रहार करते हुए एक पोस्टर लगाया गया था। 'एक ऐसा परिवार, जो बिहार पर भार' शीर्षक से लगे इन पोस्टरों के सबसे ऊपर राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद को बतौर कैदी दिखाया गया।
पोस्टर के निचले हिस्से में तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव की तस्वीर लगाई जिसे विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की तस्वीर पर उन्हें विधानपार्षद और मीसा भारती की तस्वीर पर राज्यसभा सांसद लिखा गया है।
इसके एक दिन बाद ही फिर से लालू प्रसाद और उनके परिवार के लोगों पर नए स्लोगन से पोस्टर से 'वार' किया गया है। लालू प्रसाद और तेजस्वी को 'लूट एक्सप्रेस' का संचालक बताया गया। पोस्टर में एक बस को लूट एक्सप्रेस के तौर पर दिखाया गया है, जिसके अंदर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, तेजप्रताप यादव और मीसा भारती को बैठे हुए दिखाया गया है जबकि लालू और तेजस्वी बस के ऊपर खड़े दिख रहे हैं।
इस पोस्टर के एक छोर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया 'एक परिवार बिहार पर भार'।
इसके बाद बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए पोस्टर पटना की सड़कों पर चस्पा कर दिए गए।
पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर है। पोस्टर में प्रधानमंत्री को यह कहते दिखाया गया है, "नीतीश कुमार के डीएनए में ही गड़बड है। मारते रहे पलटी, नीतीश की हर बात कच्ची।"
इसके अलावा एक और पोस्टर लगाया गया है। इस पोस्टर में भी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की तस्वीर है। जिसमें बिहार की जनता को यह बोलते दिखाया गया है कि भाजपा को तो बिहार की जनता विपक्ष में बैठाई थी, फिर आप सत्ता में कैसे पहुंच गए।
हालांकि पोस्टर जारी करने वाले पोस्टर पर अपने नाम का भी उल्लेख नहीं कर रहे हैं।
जदयू के प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि जदयू अपने प्रचार के लिए पोस्टर लगा रहा है। राजद या लालू प्रसाद के परिवार के विरोध में लगाए पोस्टर के विषय में उन्होंने कहा कि यह पोस्टर कौन लगाया है, उन्हें नहीं पता। उन्होंने कहा कि पोस्टर के जरिए चुनाव नहीं जीते जा सकते। पोस्टर लगाकर अगर चुनाव जीते जा सकते, तो कोई बात नहीं।
इधर, राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी पोस्टर से वार कर रही है जबकि लालू प्रसाद को बिहार की जनता दिल में बसाए हुए है। इस चुनाव में ऐसे पोस्टर लगाने वालों को पता चल जाएगा।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 23 सितम्बर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव से पहले किसान को लेकर सियासी दलों में संग्राम छिड़ गया है। दोनों ही दल भाजपा और कांग्रेस अपने को एक दूसरे से बेहतर किसान हितैषी बताने में लग गए हैं।
राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव होने वाले हैं, इनमें अधिकांश सीटें ग्रामीण इलाके से आती हैं और कृषि कार्य से जुड़े लोग ज्यादा मतदाता हैं। यही कारण है कि दोनों दलों ने अपने को किसान का बड़ा पैरोकार बताना शुरू कर दिया है।
राज्य में सत्ता में हुए बदलाव के बाद से कांग्रेस और भाजपा के बीच किसान कर्जमाफी केा लेकर तकरार चली आ रही है, मगर विधानसभा में कृषि मंत्री कमल पटेल द्वारा 27 लाख किसानों का कर्ज माफ किए जाने का ब्यौरा देकर इस तकरार को और तेज कर दिया है।
कृषि मंत्री पटेल द्वारा कर्जमाफी की बात स्वीकारे जाने के बाद से कांग्रेस ने शिवराज सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव का कहना है कि भाजपा और उसके नेता कितना झूठ बोलते हैं यह बात अब सामने आ गई है। कांग्रेस ने किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया था, उस पर अमल हुआ तभी तो 27 लाख किसानों का कर्ज माफ हुआ है। अब भाजपा और शिवराज सरकार इस सवाल का जवाब दे कि झूठ कौन बोलता है।
वहीं दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान सरकार किसानों के हित में कई फैसले ले रही है। एक तरफ जहां प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों के खातों में मुआवजा राशि डाली गई है, वहीं किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना की ही तरह राज्य के किसानों को चार हजार रूपये प्रतिवर्ष अतिरिक्त सम्मान निधि देने का ऐलान किया गया है। इस तरह राज्य के किसानों को कुल 10 हजार रूपये सम्मान निधि के तौर पर मिलेंगे।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रदेश के किसानों को सरकार पूरा सुरक्षा चक्र प्रदान कर रही है। प्रदेश सरकार एक के बाद एक किसानों के हित में फैसले ले रही है। पहले किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फ सल ऋण उपलब्ध कराने की योजना प्रारंभ की गई, फि र उनके खातों में गत वषरें की फ सल बीमा की राशि डाली गई। अब सम्मान निधि दी जाएगी।
दोनों ही राजनीतिक दल विधानसभा चुनावों के मद्देनजर किसानों को केंद्र में रखकर चल रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस वर्ग के मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक है। साथ ही खुद को बड़ा हितैषी और दूसरे को किसान विरोधी बताना उनका लक्ष्य हो गया है। सभाओं से लेकर तमाम आयोजनों में किसान बड़ा मुददा होता है।
राजनीतिक विष्लेषक भारत शर्मा का कहना है कि, किसान हमेशा छला गया है, राजनीतिक दल तरह-तरह के वादे कर किसानों को लुभाते है, उनके लिए योजनाओं का ऐलान करते हैं, मगर हकीकत कुछ और होती है। वास्तव में इन राजनीतिक दलों के फैसले किसानों के हित में होते तो आज किसान इस हालत में नहीं होता। किसान इन राजनीतिक जुमलेबाजी को समझ नहीं पाता और उनके जाल में फंस जाता है। वर्तमान में भी ऐसा ही हो रहा है। जिस दिन किसान इन दलों के मंसूबों को पहचान जाएगा, उस दिन हालात बदलने के लिए सरकारों को मजबूर होना पड़ेगा।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 22 सितंबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव में कांग्रेस का सारा दारोमदार नई टीम पर रहने वाला है। इस नई टीम में पिछड़े और आरक्षित वर्ग के नेताओं की भरमार है। इस तरह कांग्रेस उप-चुनाव में मतदाताओं को लुभाने ते लिए जाति का सहारा ले रही है।
राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस इन उप-चुनाव के जरिए सत्ता में वापसी का सपना संजोए हुए है। यही कारण है कि कग्रेस कई रणनीतियों पर एक साथ काम कर रही है। राज्य के इन 28 विधानसभा क्षेत्रों में पिछड़ा वर्ग और आरक्षित वर्ग की जनसंख्या को ध्यान में रखकर कांग्रेस ने इस वर्ग से जुड़े नेताओं को पहली कतार में रखना शुरू कर दिया है।
राज्य में कांग्रेस की ओर से उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ही एकमात्र चेहरा रहने वाले हैं। इसके संकेत भी मिलने लगे हैं। पिछले दिनों उन्होंने ग्वालियर का दौरा किया, जिसमें यह बात नजर भी आई। वहीं दूसरी ओर पिछड़े और आरक्षित वर्ग के जनाधार वाले नेताओं में से पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एन.पी. प्रजापति, पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, सचिन यादव और लाखन सिंह यादव को आगे रखकर चुनावी रणनीति पर काम तेज कर दिया है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने पिछड़ा और आरक्षित वर्ग की आबादी को ध्यान में रखकर ही अपनी रणनीति बनाई है और उसी के मददेनजर इन नेताओं को आगे किया जा रहा है। इनका अपने-अपने क्षेत्र में जनाधार तो है ही साथ में समाज में गहरी पैठ भी है।
राजनीतिक विश्लेषक रविंद्र व्यास का कहना है कि चुनाव में राजनीतिक दल हर दांव-पेच आजमाते हैं जिसके जरिए उन्हें जीत मिल जाए। अब कांग्रेस अगर जातिगत आधार पर नेताओं को जिम्मेदारी सौंप रही है तो इसमें अचरज नहीं होना चाहिए। कांग्रेस ने भले ही कुछ भी रणनीति बना ली हो मगर वास्तव में क्या यह नेता मतदाताओं को अपने तरीके से लुभाने में कामयाब हो पाएंगे, यह तो बड़ा सवाल रहेगा ही। वहीं दूसरी ओर अभी तक भाजपा ने अपने पत्ते खोले नहीं हैं इसलिए कांग्रेस की इस रणनीति पर हाल-फि लहाल ज्यादा कयास लगाना ठीक नहीं हेागा। हां, इतना जरुर कहा जा सकता है कि उप-चुनाव राज्य की सियासत में एक पटकथा जरुर लिखेंगे।
लखनऊ , 22 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को समर्थन करेगी। सपा ने इसकी जानकारी अपने अफि शियिल ट्विटर हैंडल के जरिये दी है। सपा ने अपने ट्विटर के माध्यम से लिखा कि, "आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी किसी भी पार्टी से गठबंधन ना करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवारों का समर्थन करेगी।"
बिहार विधानसभा में चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द होने वाली है। इस समय वहां के सभी राजनीतिक दल अपने कील कांटे दुरूस्त करके मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। बिहार की मुख्य लड़ाई एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच में है। विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए सपा ने यह ऐलान किया है। तेजस्वी यादव के लिए बड़ी खुशखबरी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लेकर आए हैं।
महागठबंधन में शामिल राजद, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर लगातार बातचीत जारी है। ऐसे में समाजवादी पार्टी का आरजेडी को समर्थन मिलना महागठबंधन के लिए एक अच्छा संकेत माना जा रहा है। हालांकि बिहार की राजनीति में समाजवादी पार्टी का प्रभाव उतना नहीं है। फि र भी समाजवादी पार्टी कुछ न कुछ फोयदा जरूर पहुंचा सकती है।
महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर लगातार बातचीत जारी है। ऐसे में समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय जनता दल को समर्थन मिलना महागठबंधन के लिए भी एक अच्छा संकेत माना जा रहा है।
बिहार विधानसभा के लिए 243 सीटों पर चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि चुनाव की तिथियों का जल्द ऐलान हो जाएगा। लेकिन अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कोरोना वायरस के संक्रमण की स्थिति को देखते हुए चुनाव आयोग के सामने चुनाव कराना बड़ी चुनौती है।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 21 सितम्बर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव में कांग्रेस ने अपने से अलग हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को घेरने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए राहुल गांधी के करीबियों को चुनाव प्रचार के मैदान में उतारा जा सकता है।
राज्य में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव सियासी तौर पर कांग्रेस के पूर्व नेता और वर्तमान में भाजपा के सांसद ज्योतिरादित्यसिंधिया के लिए सबसे अहम माने जा रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा तो कमल नाथ की सरकार गिर गई और भाजपा को फिर से सत्ता संभालने का मौका मिला।
राज्य में जिन 28 विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव होने वाले हैं उनमें से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल इलाके से आती हैं और इन क्षेत्रों की हार-जीत सिंधिया के राजनीतिक भविष्य से जुड़ी हुई है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ग्वालियर-चंबल इलाके को सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इस इलाके में भारी बढ़त मिली थी।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने सिंधिया को घेरने के लिए युवाओं की टीम चुनाव प्रचार में उतारने का मन बनाया है। इस टीम में राहुल गांधी के करीबियों में शामिल सचिन पायलट, आर.पी.एन सिंह, जितेंद्र सिंह सहित कई युवा नेताओं को प्रचार में आगे किया जा सकता है। कांग्रेस युवा नेताओं की जरिए सिंधिया को घेरना चाहती है और उसके लिए कभी सिंधिया के करीबी रहे साथी सबसे ज्यादा उपयोग के लायक लग रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, बीते रोज प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के दिल्ली दौरे के दौरान भी चुनाव प्रचार की रणनीति पर चर्चा हुई है। राज्य में कई विधानसभा क्षेत्रों में गुर्जर मतदाता है और वे चुनावी नतीजों को भी प्रभावित करते है। लिहाजा कमल नाथ चाहते हैं कि पायलट को उप-चुनाव के प्रचार में उनका उपयोग किया जाए। कमल नाथ पायलट को प्रचार के लिए राज्य में लाकर दूसरे नेताओं के प्रभाव को भी पार्टी के भीतर कम करना चाह रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा का मानना है कि कांग्रेस में सचिन पायलट की पहचान उर्जावान और अपनी बात को बेवाक तरीके से कहने वाले नेता की तो है ही, साथ ही आमजन के बीच भी पायलट को पसंद किया जाता है। सिंधिया के जाने से कांग्रेस को नुकसान हुआ है, उप-चुनाव में सिंधिया के प्रभाव को रोकने में कांग्रेस का नए और चमकदार चेहरे का उपयोग कारगर हो सकता है। कांग्रेस अगर ऐसा करने में सफ ल होती है तो चुनाव और भी रोचक हो जाएंगे।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सियासत के नए समीकरण बन रहे हैं। प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ चाहते हैं कि राज्य के उन नेताओं को ही सक्रिय किया जाए जो उनके करीबी हैं, वही दूसरे राज्यों के उन नेताओं को राज्य में प्रचार के लिए भेजा जाए जिनकी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से नजदीकियां हैं।
कुल मिलाकर राज्य में आगामी विधानसभा के उपचुनाव में नई कांग्रेस देखने को मिल सकती है। वैसे भी उपचुनाव के लिए पार्टी हाईकमान ने चार सचिवों की पहले ही तैनाती की है और वे कमल नाथ के साथ पार्टी हाईकमान के बीच रहकर चुनावी रणनीति को जमीनी स्तर पर उतारने में लगे हैं।
भोपाल, 21 सितंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का खुद को टेंपरेरी मुख्यमंत्री कहने वाला बयान सियासी गलियारों में चर्चा का विषय है। ये बयान सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है। इस बयान को लेकर कांग्रेस ने भी तंज कसा है। मुख्यमंत्री चौहान रविवार को मंदसौर जिले के सुवासरा विधानसभा क्षेत्र के सीतामऊ में थे। उन्होंने यहां विकास कार्यों का लोकार्पण किया, सुवासरा में आगामी समय में उप-चुनाव भी होने वाले हैं और भाजपा के संभावित उम्मीदवार हरदीप सिंह डंग होंगे जो अभी हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए है। डंग शिवराज सरकार में मंत्री भी हैं।
इस मौके पर चौहान ने जनसमुदाय को संबोधित करते हुए खुद को टेंपरेरी मुख्यमंत्री बताया। उन्होंने कहा कि "अभी टेंपरेरी मुख्यमंत्री हूं, उप-चुनाव में जीत नही मिली तो टेंपरेरी मुख्यमंत्री ही रह जाऊंगा, यहां की जीत के बाद परमानेंट मुख्यमंत्री हो जाऊंगा।"
चौहान का यह बयान सोशल मीडिया पर तो वायरल हो ही रहा है, कांग्रेस ने भी हमला बोला है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है, "शिवराज सिंह चौहान ने आखिर मान ही लिया कि अभी वो अस्थायी मुख्यमंत्री हैं इसलिये अभी उनकी ओर से की गयी सारी घोषणाएं भी उनकी तरह से अस्थायी होकर झूठी, चुनावी हवा-हवाई है। यह पूरी नहीं हो सकती क्योंकि वो खुद अस्थायी हैं। उपचुनाव के बाद तो कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की स्थायी सरकार बनेगी।"
पटना, 19 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शनिवार को अभिनेत्री और सांसद जया बच्चन के सदन में दिए गए बयान को लेकर तंज कसा है। बिहार भाजपा के प्रवक्ता डॉ़ निखिल आनंद ने कहा कि बॉलीवुड की थाली में छेद की चिंता करने वाले लोग देश की थाली में छेद करके बेशर्म बने घूमने वालों पर चुप्पी साध लेते हैं।
आनंद ने यहां शनिवार को कहा कि बॉलीवुड में बड़े नामवाले अपने नाम की बुनियाद पर आरोप लगने के बावजूद भी छूटना चाहते है, लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि कानून की नजर में सभी बराबर है।
उन्होंने कहा कि करण जौहर हों या कोई भी जिनपर सवाल उठेगा उन सबकी जांच होनी चाहिए। अभिनेता सुशांत सिंह राजूपत की संदेहास्पद मृत्यु के बाद सीबीआई जांच शुरू हुई, फिर एनसीबी और ईडी की जांच में भी बातें सामने आ रही है और चेहरे बेनकाब हो रहे है।
उन्होंने कहा, "अब पता चल रहा है कि ये जो ख्वाबों की दुनिया वाली बॉलीवुड है उसके जन्नत की हकीकत ही कुछ और है। बलीवुड में बाबा- बेबी, मूवी माफिया, ड्रग माफिया और अंडरवर्ल्ड सबके तार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इन सभी समाज विरोधी और देश विरोधी तत्वो और उनकी गतिविधियों की जांच होनी चाहिए।"
भाजपा नेता ने आरोप लगाते हुए कहा कि महाराष्ट्र सरकार नहीं चाहती की सुशांत और उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सालियान के मामले की हकीकत सामने आए, यही कारण है कि महाराष्ट्र सरकार मामले को दूसरा रंग देकर भटकाने में लगी हुई है।
संदीप पौराणिक
भोपाल 17 सितंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले दल-बदल की पटकथाएं लिखने का दौर जारी है। आने वाले कुछ दिनों में कई नेताओं के दल-बदल की संभावनाएं बढ़ चली हैं।
राज्य में दल-बदल की शुरुआत मार्च में हुई थी, तब 22 तत्कालीन कांग्रेस विधायकों के पाला बदलने के कारण ही कमल नाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिरी थी और भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। इसके बाद कांग्रेस के तीन और विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया।
राज्य में आगामी समय में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल एक दूसरे को बड़ा झटका देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। दोनों ही दलों के नेताओं की असंतुष्टों से बातचीत चल रही है, और आगामी दिनों में दल-बदल की संभावनाओं को भी नहीं नकारा जा सकता।
राज्य सरकार के मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं कि, "कांग्रेस के कई विधायक भाजपा में आना चाहते हैं, मगर अभी भाजपा ने उन्हें पार्टी में शामिल करने से रोक रखा है। विधायकों के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस की कहीं ऐसी स्थिति न हो जाए कि, गिनती के विधायक ही कमलनाथ के साथ रह जाएं।"
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि, "भाजपा का सारा जोर खरीद फरोख्त पर है, और जो लोग इसमें भरोसा रखते हैं, वे ही कांग्रेस छोड़कर गए हैं। आगामी चुनाव में जनता बिकाऊ लोगों को सबक सिखाने में पीछे नहीं रहेगी।"
राजनीति की जानकारों का मानना है कि आगामी विधानसभा के उप-चुनाव काफी अहम हैं, एक तरफ कमल नाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, तो दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान व ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना जनाधार साबित करना है। लिहाजा दोनों ही ओर से हर तरह के दाव पेंच आजमाए जा रहे हैं। यही कारण है कि दल-बदल पर दोनों दल जोर लगाने में पीछे नहीं है। इसकी भी वजह है, क्योंकि पार्टियों को लगता है कि दल-बदल से वह अपने वोटबैंक को बढ़ा सकती हैं।
नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)| कांग्रेस पार्टी के संगठन में हुए फेरबदल के बाद उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी महासचिव हरीश रावत को पंजाब का प्रभार दिया गया है। प्रभार लेने के बाद रावत ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से मुलाकात की। रावत ने आईएएनएस को बताया कि नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी के लिए एक संपत्ति (असेट) हैं। रावत ने बताया कि उन्होंने अमरिंदर सिंह को पार्टी के घोषणापत्र को लागू करने पर बात की। उनसे ये भी कहा कि जो वादे पूरे नहीं किए गए हैं, वो कैसे पूरे होंगे। रावत ने बताया कि उन्होंने पंजाब में कोविड स्थिति के बारे में भी बात की और इसके चलते पैदा हुई चुनौतियों पर भी चर्चा की।
पंजाब में पार्टी के विभिन्न गुटों के बारे में पूछे गए सवाल के बारे में रावत ने बताया कि अमरिंदर सिंह पंजाब में पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं। नवजोत सिंह पार्टी की एक संपत्ति (असेट) हैं जिनकी उपयोगिता पंजाब में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में है। अगर पार्टी के विभिन्न नेताओं में समन्वय बनाने की बात है तो सभी मिल कर इस बात पर चर्चा करेंगे। बता दें कि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू एक-दूसरे के विरोधी हैं।
उन्होंने कहा कि वो राज्य का दौरा करेंगे और पार्टी के विभिन्न नेताओं से बात कर जो भी समस्या है उसे सुलझाएंगे।
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को हटाने को लेकर पार्टी में उठ रही मांग पर रावत ने कहा कि ऐसी कोई मांग नहीं है। अगर कुछ नेताओं में मतभेद हैं तो उसे मिल-बैठकर दूर कर लिया जाएगा।
राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने को लेकर पूछे गए सवाल पर हरीश रावत ने कहा कि वो तो पहले से ही केंद्र सरकार को घेरने में सबसे आगे हैं। वो पार्टी अध्यक्ष तो नहीं हैं, लेकिन विपक्ष का मुख्य चेहरा हैं।