अंतरराष्ट्रीय
अमेरिकी सरकार की शीर्ष मानवीय सहायता संस्था यूएसएड ने तुर्की और सीरिया में आए भूकंप से निपटने के लिए दोनों देशों को 8.5 करोड़ डॉलर की मदद देने का एलान किया है.
यूएस एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) की इस मदद का इस्तेमाल, रहने और कड़ाके की सर्दी से बचने के इंतजाम करने के अलावा भोजन, पानी और स्वास्थ्य मद में किया जाएगा.
अमेरिका का यह फ़ैसला इन दोनों देशों में दुनियाभर से मिल रही मदद के बीच आया है. इन दोनों देशों में अभी तक भूकंप से 22 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
राहत और बचाव कर्मियों का कहना है कि इस आपदा से निपटने के लिए राहत सामग्री की तत्काल ज़रूरत है, अन्यथा ठंड से ज़्यादा लोगों की मौत होगी.
यूएसएआईडी ने अपने बयान में कहा है कि उसकी मदद का इस्तेमाल लोगों को सुरक्षित और स्वस्थ रखने में किया जा सकेगा.
यूएसएड की निदेशक सामंता पावर ने बताया कि अमेरिका ने पहले ही वहां डिज़ास्टर असिस्टेंस रिस्पॉन्स टीम (डार्ट) भेजी है, जो वर्तमान में तुर्की के आदियमन, अदाना और अंकारा में मदद कर रहा है.
इस टीम में लगभग 200 लोग शामिल हैं, जिनमें विशेषज्ञों के अलावा 159 बचाव कर्मी और 12 कुत्ते शामिल हैं. (bbc.com/hindi)
(एम. जुल्करनैन)
लाहौर, 11 फरवरी। पाकिस्तान की एक अदालत ने निर्वाचन आयोग को पंजाब प्रांत के विधानसभा चुनाव की तारीख तत्काल घोषित करने का आदेश दिया है।
अदालत के इस आदेश को पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल(एन)) नीत सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए झटके के तौर पर और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान की जीत के तौर पर देखा जा रहा है।
न्यायमूर्ति जवाद हसन की अध्यक्षता वाली लाहौर उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने शुक्रवार देर रात सुनाए फैसले में कहा कि निर्वाचन आयोग विधानसभा भंग होने के 90 दिन के अंदर चुनाव कराने के लिए बाध्य है। अदालत ने आयोग से कहा कि वह चुनाव कार्यक्रम जारी करे।
उच्च न्यायालय ने पीटीआई की याचिका पर यह फैसला सुनाया है। अदालत ने शुक्रवार दोपहर बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों की सरकारों ने 20 दिन से अधिक समय पहले विधानसभाएं भंग कर दी थीं। इसका मकसद संघीय सरकार पर नए सिरे से चुनाव कराने के लिए दबाव बनाना था।
पीएमएल (एन) और उसके सहयोगी दलों ने नेशनल असेंबली भंग करने और नए सिरे से चुनाव कराने की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की मांग मानने के बजाय कहा था कि अगस्त में संघीय सरकार का कार्यकाल पूरा होने के बाद ही दोनों प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव भी होने चाहिए।
इसके बाद, दोनों प्रांतों के राज्यपालों ने पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में चुनाव कराने की तारीख तय करने से इनकार कर दिया था। संविधान के अनुसार विधानसभा भंग होने के 90 दिन के अंदर चुनाव हो जाना चाहिए। (भाषा)
मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले क्वोल्स का जीवन बड़ा कठिन है. शोधकर्ताओं का कहना है कि सेक्स की वजह से वो सो नहीं पाते और शायद यह उनकी मौत का कारण बन रहा है.
डॉयचे वैले पर क्लेयर रॉथ की रिपोर्ट-
कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसे व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखती हैं जो आपको गर्भवती करने के बाद, रात में बाहर निकलता है, पेड़ पर चढ़ता है, कूदता है, सरपट दौड़ता है और किसी अन्य सेक्स पार्टनर की तलाश में सड़कों पर घूमता है. वह हर दिन 35 किलोमीटर तक का सफर तय करता है.
फिर जब आप उससे कुछ सप्ताह बाद मिलते हैं, तो आप पाते हैं कि उसकी स्थिति ठीक नहीं है. उसके कुछ बाल झड़ गए हैं और जब आप उससे पहली बार मिले थे तब से काफी दुबला हो गया है. वह आपको बताता है कि वह रात में सिर्फ एक घंटा सो रहा है.
आप चिंतित हैं, लेकिन वह वैसा है. आपका घर छोड़ने के बाद, वह नए सेक्स पार्टनर की तलाश में शहर भर में 35 किमी की सैर पर निकल जाता है. यह क्रम एक दिन तक जारी रहता है. और करीब एक महीने बाद आपको पता चलता है कि वह मर चुका है.
सेक्स नर क्वोल्स को मौत की ओर ले जाता है
यह कहानी बताती है कि लुप्तप्राय हो चुके नर क्वोल्स कैसे प्रजनन करते हैं. ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी क्वोल्स तेज दांत वाले, चूहे जैसे मार्सूपियल हैं. एक संभोग चक्र के भीतर ही मर जाने वाले ये सबसे बड़े स्तनधारी हैं और इनकी क्रिया को सेमेलपैरिटी कहा जाता है.
पैसिफिक सैल्मन, तितलियों की कुछ प्रजाति और ऑक्टोपस को भी सेमेलपेरस कहा जाता. लेकिन इन जानवरों की मादा पार्टनर इतनी जल्दी नहीं मरती हैं. औसतन, एक मादा क्वॉल चार संभोग चक्र तक जीवित रहती है.
शोधकर्ताओं ने जीवन काल में इस अंतर को समझने के लिए नर और मादा की दैनिक गतिविधियों को ट्रैक किया ताकि यह पता चल सके कि क्या नर साथी मादा साथी की तुलना में कहीं ज्यादा जोखिम भरे काम में लगे थे.
उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई द्वीप ग्रोट आईलैंड पर 13 उत्तरी क्वॉल्स को छोटे बैकपैक्स के साथ फिट किया जिसमें स्पीडोमीटर जैसा एक डिवाइस था जो जानवरों की हरकतों को ट्रैक करता था. क्वोल को फंसाने के लिए, शोधकर्ताओं ने इन बैगपैक्स को कुत्ते के भोजन से भर दिया. उनके परिणाम रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए थे.
शोधकर्ताओं ने पाया कि एक दिन के दौरान, कुछ नर क्वोल बहुत लंबी यात्रा कर रहे थे और महिलाओं की तुलना में बहुत कम आराम कर रहे थे. लेखक क्रिस्टोफर क्लीमेंट ने डीडब्ल्यू को बताया कि कुछ नर क्वॉल एक दिन में 10 किमी की यात्रा करते हैं जो कि मनुष्यों के हिसाब से करीब 35 किमी होता है.
और उन्होंने दिन में औसतन सिर्फ सात फीसद ही आराम किया, यानी करीब एक घंटा. क्लीमेंट कहते हैं कि दूसरी ओर, मादा साथी ने दिन के लगभग 24 फीसद हिस्सा यानी पांच घंटे आराम किया, जो कि सामान्य है.
शोधकर्ताओं ने लिखा कि नींद की यह कमी क्वॉल को शिकारियों के हमलों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है या फिर थकावट के कारण उनकी मौत का कारण बन सकती है.
जल्दी क्या है?
क्वोल्स में प्रजनन ऋतु शुरू होती है, तो सभी मादा एक ही समय में गर्भधारण योग्य हो जाती हैं और बहुत ही कम अवधि के लिए. करीब तीन सप्ताह. क्लेमेंट कहते हैं कि इस अवधि में नर क्वोल अपना सारा समय प्रजनन में लगाते हैं, ताकि उनके प्रजनन उत्पाद में वृद्धि हो सके.
यह अध्ययन पशु व्यवहार और उनके आवागमन के तरीके के संबंध में एक बड़ी जांच का है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वो यह समझ सकेंगे कि कैसे आवागमन और आवास जानवरों की शिकारियों से बचने की क्षमता से जुड़ा हुआ है.
क्लेमेंट कहते हैं, "क्वॉल्स महत्वपूर्ण हैं और संरक्षित करने लायक हैं. इसलिए यदि हम उनके आवागमन को समझ लेते हैं तो हम इस प्रजाति को बेहतर ढंग से संरक्षित करने में सक्षम हो सकते हैं.” (dw.com)
दुनिया भर में हर साल लाखों लोग कैंसर से प्रभावित होते हैं. यह कई लोगों के लिए डरावनी खबर होती है. जर्मनी के दो मरीजों ने बताया कि किस तरह साइको-ऑन्कोलॉजी ने उन्हें इस बीमारी से लड़ने में मदद की.
डॉयचे वैले पर गुडरुन हाइजे की रिपोर्ट-
जर्मनी में रहने वाले कुर्त श्रोएडर (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "मेरे लिए चिंता की बात इलाज नहीं थी, बल्कि यह थी कि मुझे हाल ही में पता चला कि डॉक्टरों को अभी भी मेरे शरीर में कैंसर कोशिकाएं मिली हैं.” उन्होंने आगे कहा, "अग्न्याशय में कैंसर का पता चलना बहुत बुरी खबर होती है. डॉक्टरों ने सर्जरी करके कैंसर से प्रभावित हिस्से को बाहर निकाल दिया है. अब सिर्फ अवशिष्ट कोशिकाएं बची हैं. मुझे उम्मीद है कि अब मेरे शरीर में कैंसर से प्रभावित कोई भी हिस्सा नहीं बचा होगा, लेकिन मैं एक आशावादी इंसान हूं.”
श्रोएडर की उम्र 61 वर्ष है. वह हमेशा स्वस्थ रहे हैं. अपने शौक, पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के वैज्ञानिक अध्ययन के साथ-साथ फोटोग्राफी को लेकर उत्साहित रहते हैं. अगस्त 2022 में पता चला कि उन्हें कैंसर है. अक्टूबर में उनकी पहली सर्जरी हुई. अग्न्याशय और ग्रहणी (छोटी आंत का पहला भाग) के तथाकथित ‘सिर' को हटा दिया गया. इसके बाद कीमोथेरेपी की गई.
इसके कई साइड इफेक्ट भी होते हैं, जैसे कि मतली, उल्टी और स्वाद में बदलाव. श्रोएडर ने कहा, "ब्रेड का स्वाद सैंडपेपर की तरह लगता था. केले बहुत मीठे लग रहे थे. मैं उन्हें बिल्कुल नहीं खा सकता था.”
कैंसर काउंसलिंग सेंटर में मिली मदद
कैंसर का पता चलने के बाद वे जर्मन शहर मुंस्टर स्थित कैंसर काउंसलिंग सेंटर की प्रमुख गुडरून ब्रून्स के पास पहुंचे. ब्रून्स के पास साइको-ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में दशकों का अनुभव है. यह कैंसर से निपटने का वैज्ञानिक तरीका है जो 1970 के दशक में विकसित हुआ. ब्रून्स ने कहा, "साइको-ऑन्कोलॉजी कैंसर से होने वाले मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभावों से निपटने में मदद करता है.” अध्ययनों से पता चलता है कि कैंसर के इलाज के दौरान 25 से 30 फीसदी मरीजों में मनोवैज्ञानिक विकार या समस्याएं पैदा होती हैं.
साइको-ऑन्कोलॉजी काउंसलर मरीजों की दिनचर्या को बेहतर बनाने और समस्याओं से निपटने में मदद करते हैं. वे इलाज से जुड़े अगले संभावित चरणों के बारे में जानकारी देते हैं. मरीजों को यह भी बताते हैं कि उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और उससे किस तरह से निपटना चाहिए.
श्रोएडर कहते हैं, "मिसेज ब्रून्स कई सारे ऐसे लोगों और संस्थानों को जानती हैं जो कैंसर के इलाज से जुड़े हैं. यह एक मनोवैज्ञानिक मदद है. इससे आपको पता रहता है कि आप जरूरत के वक्त अलग-अलग जगहों पर जा सकते हैं.”
साइको-ऑन्कोलॉजी को पूरी दुनिया में मिलना चाहिए महत्व
इंटरनेशनल साइको-ऑन्कोलॉजी सोसाइटी (आईपीओएस) का मुख्य लक्ष्य है कैंसर के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर ज्यादा ध्यान देना, मरीजों को इलाज की बेहतर सुविधा उपलब्ध कराना, उन्हें कैंसर के इलाज से जुड़ी जगहों की जानकारी देना और कैंसर के इलाज से जुड़ी स्थितियों को बेहतर बनाना.
आईपीओएस की स्थापना 1984 में हुई थी. यह संगठन कनाडा के टोरंटो और अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित है, जो दुनिया भर में साइको-ऑन्कोलॉजी को कैंसर के इलाज का अभिन्न अंग बनाने के लिए काम करता है. अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए यह संगठन कई अंतरराष्ट्रीय समूहों के साथ मिलकर काम करता है. साथ ही, यह कैंसर से जुड़े तमाम पहलुओं पर गहन शोध को बढ़ाने का काम कर रहा है.
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) के मुताबिक, 2020 में दुनिया भर में 1.9 करोड़ से अधिक लोगों में कैंसर का पता चला. आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ेगी. आईएआरसी का अनुमान है कि 2020 में दुनिया भर में कैंसर से मरने वालों की संख्या 99 लाख 60 हजार थी, जो 2040 तक लगभग दोगुनी होकर एक करोड़ 63 लाख हो जाएगी.
ऐसे में साइको-ऑन्कोलॉजी काउंसलिंग और थेरेपी पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. कैंसर से जूझ रहे सभी मरीजों को एक ही तरह की चिंता और आशंकाओं का सामना करना पड़ता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस तरह के कैंसर से प्रभावित हैं या वे अफ्रीका, यूरोप या एशिया कहां रह और इलाज करा रहे हैं.
मरीजों के परिजनों को भी मदद की दरकार
कैंसर का पता चलने पर न सिर्फ किसी व्यक्ति की जिंदगी बदल जाती है, बल्कि उसके परिवार के सदस्यों का जीवन भी बदल जाता है. अध्ययनों से पता चलता है कि परिजन भी मनोवैज्ञानिक तनाव से जूझ रहे होते हैं.
ब्रून्स कहती हैं, "रिश्तेदार अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि वे मरीज की ज्यादा से ज्यादा सहायता कर पाएं. इससे उनकी भी जिंदगी में उथल-पुथल मच जाती है. वे अपनी जरूरतों और इच्छाओं को भी पूरा करना छोड़ देते हैं, जैसे कि सिनेमा देखने जाना या कहीं घूमने जाना. अगर वे अपनी इच्छाओं या जरूरतों को पूरा करते हैं, तो नैतिक तौर पर उन्हें लगता है कि वे गलत कर रहे हैं.”
हालांकि, इस तरह के व्यवहार से किसी को फायदा नहीं मिलता. ब्रून्स आगे कहती हैं, "यह जरूरी है कि रिश्तेदार खुद को मजबूत और तरोताजा बनाए रखने के तरीके खोजें.”
श्रोएडर ने खुद अनुभव किया है कि कैंसर मरीजों के प्रति अत्यधिक नि:स्वार्थ होकर उनकी सेवा करने से परिजन किस तरह प्रभावित हो सकते हैं. उनके साथी सिमोन बर्मन (बदला हुआ नाम) का 2010 में गर्दन के कैंसर का इलाज हुआ था.
वह कहते हैं, "जब मैं अपने साथी के साथ वापस आया, तो मैंने अनुभव किया कि मैं कितना ज्यादा थक गया था. फिर जब मुझे अपने कैंसर का पता चला, तो मैंने उसे सलाह दी कि वह हर दिन अस्पताल न आए. वह अक्सर मुझसे मिलने आया करती थी. कुछ समय बाद, वह भावनात्मक रूप से काफी ज्यादा टूट गई.”
बर्मन ने भी कैंसर से लड़ाई लड़ी है. उन्होंने कहा, "वह तेजी से बढ़ने वाला ट्यूमर था. मेरे तीन ऑपरेशन हुए. गर्भाशय और योनी के कुछ हिस्सों को हटा दिया गया.”
तब से 55 वर्षीय बर्मन कैंसर से मुक्त हैं. उन्होंने अनुभव किया कि जो वक्त उन्होंने अस्पताल में गुजारे थे वह उनके साथी से बहुत अलग था. वह कहती हैं, "मेरे लिए यह जरूरी था कि वह बार-बार मेरे पास आए. उससे मुझे मदद मिलती थी. इससे मुझे लगता था कि वहां मेरे लिए कोई है.”
डरावना है कैंसर का इलाज
कैंसर के इलाज के तुरंत बाद ज्यादातर लोगों में बड़े स्तर पर भावनात्मक बदलाव दिखते हैं. ब्रून्स कहती हैं, "यह सिर्फ चिंता, गुस्सा और चिड़चिड़ापन नहीं है. लोगों को अपना स्वास्थ्य खोने का भी दुख होता है.”
वह आगे कहती हैं, "बीमारी का पता चलने से पहले ज्यादातर लोग अपने स्वास्थ्य को हल्के में लेते हैं. आज कैंसर का इलाज काफी हद तक मुमकिन है. कई तरह के कैंसर इलाज से ठीक हो जाते हैं. हालांकि, शरीर कमजोर हो जाता है. कई मरीजों को यह डर रहता है कि उनकी बीमारी ठीक नहीं हो सकती है. यह फिर से हो सकती है और इससे उनकी मौत हो जाएगी.”
ब्रून्स कहती हैं, "इसलिए यह जरूरी है कि कैंसर मरीजों को लगातार प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. यह साइको-ऑन्कोलॉजी के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है. इस दौरान मरीजों को कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए और उनकी बातें सुननी चाहिए.”
श्रोएडर कहते हैं, "इसके लिए कोई निर्धारित दिनचर्या नहीं है. हर दिन बातचीत होती है. जैसे कि मिसेज ब्रून्स पूछती हैं कि आज आप कैसे हैं? क्या चल रहा है? और फिर आप भी बात करना शुरू कर देते हैं.” (dw.com)
कनाडा के राज्य ब्रिटिश कोलंबिया में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. इसका मकसद है कि ओवरडोज से होने वाली मौतों की संख्या कम की जाए और इसे लेने वालों की सामाजिक प्रतिष्ठा का नुकसान न हो.
डॉयचे वैले पर इनेस आइजेले की रिपोर्ट-
नशीली दवाओं से जुड़ी नीति विशेषज्ञों और राजनेताओं के बीच गंभीर बहस का विषय बनी हुई है. दोनों पक्षों के बीच इस बात पर बहस हो रही है कि सॉफ्ट और हार्ड ड्रग्स को लेकर देश की नीति कैसी होनी चाहिए और इससे जुड़े लक्ष्य किस तरह हासिल किए जा सकते हैं? कई देशों में नशीली दवाओं के इस्तेमाल पर रोक है और नियम तोड़ने वालों को सजा देने का प्रावधान है. वहीं कुछ देशों ने उदार दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर दिया है.
कनाडा ने 2018 में भांग की बिक्री और इस्तेमाल को वैध बना दिया. इसका उद्देश्य ब्लैक मार्केट पर निर्भरता और नशीली दवाओं से जुड़े अपराध को कम करना था. अब देश के पश्चिमी राज्य ब्रिटिश कोलंबिया ने महत्वाकांक्षी पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है जो कम से कम अगले तीन वर्षों तक जारी रहेगा. इसके तहत, 31 जनवरी से 2.5 ग्राम तक हार्ड ड्रग्स रखने वाले लोगों को अपराधी नहीं माना जाएगा. 2.5 ग्राम से कम कोकीन, मेथामफेटामाइन, एमडीएमए, हेरोइन, मॉर्फिन, फेंटेनाइल रखने वाले वयस्कों को न तो गिरफ्तार किया जाएगा और न ही उन पर मुकदमा चलाया जाएगा. साथ ही, उनके ड्रग्स को जब्त भी नहीं किया जाएगा.
कनाडा के मानसिक स्वास्थ्य और व्यसन मामलों की मंत्री कैरोलिन बेनेट ने कहा कि उन्होंने इस अनुरोध से जुड़े सभी तरह के प्रभावों की समीक्षा की. सार्वजनिक स्वास्थ्य और सार्वजनिक सुरक्षा, दोनों स्तर पर इस अनुरोध के असर पर सावधानी से विचार किया.
उन्होंने कहा, "व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए कम मात्रा में अवैध नशीली दवाओं को ले जाने वाले लोगों के लिए आपराधिक दंड खत्म करने से उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा का नुकसान नहीं होगा. साथ ही, ब्रिटिश कोलंबिया में ओवरडोज से होने वाली मौतों को कम करने में मदद मिलेगी.”
सरकार को उम्मीद है कि इस कदम से नशीली दवाओं से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आएगी. साथ ही, नशीली दवाओं के इस्तेमाल के कारण लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा का जो नुकसान होता था और समाज में उन्हें कलंक के तौर पर देखा जाता था उससे छुटकारा मिलेगा. जरूरत के वक्त नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोग मदद भी मांग सकेंगे.
ओपिओइड के इस्तेमाल से होने वाली मौतें बड़ी समस्या
संयुक्त राज्य अमेरिका में नशीले पदार्थों की लत और इससे होने वाली मौतें भी एक बड़ी समस्या हैं. पिट्सबर्ग में कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और नशीली दवा की नीति के विशेषज्ञ योनाथन कौलकिंस ने कहा कि इसके दो मूल कारण हैं. उन्होंने कहा, "पहला बहुत ही उदार है, इलाज के तौर पर ओपिओइड के इस्तेमाल की सलाह देना. इससे बड़ी संख्या में लोगों को ओपिओइड के इस्तेमाल की लत लगी. अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या करीब 50 लाख है. वहीं, कनाडा में भी यह संख्या लगभग इतनी ही है.”
कानूनी तौर पर वैध ओपिओइड के इस्तेमाल से पड़ने वाले प्रभाव को दवा कंपनियों ने वर्षों तक छिपाया. इसका नतीजा यह हुआ कि इसे इस्तेमाल करने वाले मरीजों को आखिरकार हेरोइन या यहां तक कि फेंटेनाइल जैसी नशीली दवाओं की लत लग गई. अनुमान है कि इसके बाद से कनाडा में ओवरडोज से मरने वाले लोगों की संख्या काफी बढ़ गई है.
आखिर इस महामारी से निपटने का तरीका क्या है?
कौलकिंस ने कहा कि यह बात चौंकाने वाली है कि दोनों देशों में एक तरह की समस्या और विनाशकारी परिणाम के बावजूद कनाडा और अमेरिका ने अलग-अलग नीतियां लागू की हैं. भयानक सच्चाई यह है कि भले ही हम सब कुछ सही कर दें, यह समस्या खत्म नहीं होने वाली है.”
यही कारण है कि कनाडा की सरकार वर्षों से यह कहती रही है कि वह "नशीली दवाओं के ओवरडोज से होने वाली मौतों को कम करने के लिए व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि नुकसान को कम किया जा सके, लोगों की जिंदगी बचायी जा सके और जरूरत के वक्त उनकी मदद की जा सके.” इसमें नशीली दवाओं के परीक्षण तक पहुंच और नशीली दवाओं के लत से जूझ रहे लोगों को चिकित्सकों की निगरानी में इसके इस्तेमाल की छूट देना शामिल है.
पुर्तगाल सहित कई अन्य देशों में भी कम मात्रा में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का प्रयोग किया गया है. वहीं, अमेरिका में अब तक सिर्फ ओरेगन राज्य में यह प्रयोग किया गया है. हालांकि, कौलकिंस का मानना है कि ऐसे उपायों से काफी ज्यादा अच्छे नतीजे नहीं मिले हैं.
कनाडा ने इस प्रयोग के साथ-साथ अन्य कदम भी उठाएं हैं. देश की ‘सुरक्षित आपूर्ति' नीति के तहत, सरकार नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों को खुद दवा की आपूर्ति करती है, ताकि वे ब्लैक मार्केट पर निर्भर न रहें. यह कदम लोगों को ओवरडोज लेने या खतरनाक दवाएं लेने से रोकता है.
कामयाब नहीं हुआ ‘वॉर ऑन ड्रग्स'
सच्चाई यह है कि ‘वॉर ऑन ड्रग्स' पूरी तरह असफल रहा है. वॉर ऑन ड्रग का मतलब है कि कठोर प्रतिबंधों और सजा का प्रावधान करके लोगों को नशीली दवाओं का सेवन करने से रोकना.
द ग्लोबल कमीशन ऑन ड्रग पॉलिसी एक स्वतंत्र आयोग है जिसमें राजनेता, व्यवसायी और मानवाधिकार विशेषज्ञ शामिल हैं. आयोग ने 2011 में इस मामले पर एक रिपोर्ट जारी की थी.
रिपोर्ट में कहा गया है, "नीति निर्माताओं का मानना था कि नशीली दवाओं के उत्पादन, वितरण और उपयोग में शामिल लोगों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई से नशीली दवाओं, जैसे कि हेरोइन, कोकीन और भांग के बाजार हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे. दुनिया नशीली दवाओं से मुक्त हो जाएगी. जबकि, हकीकत यह है कि पूरी दुनिया में नशीली दवाओं के अवैध बाजार बढ़े हैं. यह बड़े पैमाने पर संगठित अपराध बन चुका है.”
नशीली दवाओं के इस्तेमाल को पूरी तरह वैध बनाने को लेकर भी कई लोगों को आपत्ति है. वजह यह है कि नशीले पदार्थों तक आसान पहुंच से ओपिओइड संकट काफी हद तक शुरू हो गया था.
कई देशों में शराब और निकोटीन वाले पदार्थ कानूनी तौर पर वैध हैं. इसकी वजह से लोगों को इनकी लत लग रही है, क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध हैं. इससे यह बात कुछ हद तक साबित होती है कि आसानी से उपलब्ध होने की वजह से भी कई लोगों को नशीले पदार्थों की लत लग जाती है.
आखिर उपाय क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि पूरी तरह से वैध बनाने और पूरी तरह पाबंदी लगाने के बीच का रास्ता अपनाया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, सुरक्षित आपूर्ति की रणनीति के तहत कुछ नशीली दवाओं की सीमित मात्रा के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने पर नुकसान को कम किया जा सकता है.
अधिकांश समीक्षक इस बात पर सहमत हैं कि दुनिया में हमेशा से नशीली दवाओं का इस्तेमाल होता रहा है और इस बात की भी पूरी संभावना है कि यह आगे भी जारी रहेगा. कनाडा की कोशिशों से अवैध नशीली दवाओं के उत्पादन और व्यापार पर काफी ज्यादा असर होने की संभावना नहीं है.
नशीली दवाओं तक पहुंच को आसान बनाने की कोशिशों को देखते हुए, कौलकिंस को संदेह है कि इनके इस्तेमाल में कमी आएगी. हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि इस तरह के प्रगतिशील उपायों से नशीली दवाओं से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी. साथ ही, समाज और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बेहतर प्रभाव पड़ेगा. (dw.com)
मेलबर्न, 10 फरवरी आस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग ने अपने देश के चयनकर्ताओं को संकेत दिया है कि डेविड वॉर्नर अगर लगातार नाकाम रहते हैं तो अंतिम एकादश में उनकी जगह पर पुनर्विचार किया जा सकता है ।
वॉर्नर भारत के खिलाफ नागपुर में पहले टेस्ट में सस्ते में आउट हो गए । भारत में उनका टेस्ट रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है और वह 22 . 88 की औसत से ही रन बना सके हैं ।
पोंटिंग ने आईसीसी रिव्यू में कहा ,‘‘ मुझे लगता है कि भारत में उसका औसत आठ टेस्ट मैचों में 24 है । एक बार फिर वह नाकाम रहा । वह उन खिलाड़ियों में से है जो कह रहे हैं कि भारत में जीतना एशेज श्रृंखला से भी बड़ा है ।’’
उन्होंने कहा कि आस्ट्रेलिया को टेस्ट श्रृंखला जीतनी है तो अपनी सर्वश्रेष्ठ एकादश उतारनी होगी ।
उन्होंने कहा ,‘‘ अगर चयनकर्ता, कोच और कप्तान को भारत में यह श्रृंखला जीतनी ही है तो उन्हें सर्वश्रेष्ठ अंतिम एकादश उतारनी होगी । अगर कुछ बल्लेबाज नहीं चल रहे हैं तो उनकी जगह पर पुनर्विचार करना होगा ।’’
पोंटिंग ने कहा कि अगर एशेज 2021 . 22 के ‘प्लेयर आफ द सीरिज’ ट्रेविस हेड को बाहर रखा जा सकता है तो वॉर्नर को क्यो नहीं ।
उन्होंने कहा ,‘‘ हेड को उपमहाद्वीप में उसके रिकॉर्ड के कारण बाहर रखा गया । इसके अलावा आस्ट्रेलियाई टीम में बायें हाथ के बल्लेबाजों का बाहुल्य भी उनके बाहर होने का कारण था । यही बात डेविड वॉर्नर पर भी लागू होती है ।’’ (भाषा)
प्योंगयांग, 10 फरवरी । बुधवार की रात उत्तरी कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में मिसाइलों की ही नुमाइश नहीं हुई. ये किम जोंग-उन के लिए इससे भी बड़ा अवसर था.
इस परेड के ज़रिए वो अपनी बेटी को भी दुनिया के सामने ले आए.
जैसे ही उत्तरी कोरिया के तानाशह ने परेड की सलामी के लिए अपनी जगह ली उनके साथ काली ड्रेस में एक बच्ची भी थी. माना जाता है कि वो किम जोंग की दूसरी औलाद है और उनका नाम है किम जू-एई. उनकी उम्र 10 साल बताई जाती है.
बीते तीन महीनों में वे पांचवी बार सार्वजनिक रूप से दिखी हैं. इस छोटे से वक्त में किम जू-एई में कई बदलाव आए हैं. ये बदलाव इस बाती की ओर संकेत देते हैं कि शायद उन्हें किम जोंग उन के उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया जा रहा है.
ये बच्ची पहली बार बीते साल नंवबर में एक इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल के लांच के समय दिखी थीं. तभी फुसफुसाहट शुरू हो गई थी क्या एक दिन यही बच्ची उत्तर कोरिया की लीडर होगी?
लेकिन उस समय ये बात दूर की कौड़ी लग रही थी. सफ़ेद जैकेट और लाल रिबन बांधे उसने अपने पिता का हाथ पकड़ा था और वो नन्हीं सी लग रही थी.
शायद किम जोंग उन ख़ुद को अच्छे पिता के रूप में पेश करना चाहते थे. या शायद वो ये साफ़ करना चाहते थे कि वे अपने जंगी हथियारों और परिवार के साथ सुरक्षित हैं और कोरिया पर उनका नियंत्रण मजबूत है.
लेकिन हर बार किम जू-एई, पहले से ही अधिक प्रभावी नज़र आई हैं.
'सम्मानित बेटी' होने का मतलब
परेड से पहले मंगलवार की रात वो उत्तरी कोरिया को शीर्ष मिलिट्री अधिकारियों के साथ एक भोज में भी शामिल हुईं. उन्होंने सफ़ेद शर्ट और काली स्कर्ट पहली थी. उत्तर कोरिया के मामले में दिलचस्पी रखने वाले जानकारों के लिए ये सब हैरान करने वाला था.
अपनी मां और पिता के बीच बैठी हर तस्वीर में ये बच्ची आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी. दूसरी दिलचस्प बात इसी बच्ची के वर्णन में प्रयोग की गई भाषा है.
उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया ने पहले उन्हें किम जोंग-उन की प्रिय बेटी कह कर संबोधित किया. लेकिन मंगलवार पर सैन्य भोज के दिन उन्हें 'सम्मानित बेटी' कहा गया.
उत्तर कोरिया में 'सम्मानित' एक ऐसा विश्लेषण है जो सिर्फ़ बेहद इज़्ज़तदार लोगों के नाम के आगे लगाया जाता है.
किम जोंग-उन के नाम के आगे भी सम्मानित तभी लगा था जब उनका नाम नेता के रूप में पक्का हो गया था.
अपनी स्थापना के बाद से ही उत्तर कोरिया पर, किम परिवार की तीन पीढ़ियों का शासन रहा है. वहां के लोगों को बताया जाता है कि किम परिवार एक पवित्र ख़ानदान है और वही उन पर राज करने का हक़दार है.
किम जोंग-उन पूरी कोशिश करेंगे कि वे अपने परिवार की चौथी पीढ़ी को देश की बागडोर दें.
इतनी जल्दबाज़ी क्यों?
लेकिन मिस जू-एई को इतनी छोटी उम्र में ही उत्तराधिकारी बनाने की जल्जबाज़ी क्यों? देश के नेता किम जोंग-उन की उम्र अभी 39 साल है. और उनकी बेटी अभी बहुत छोटी है.
बताया जाता है कि किम जोंग-उन आठ साल के थे तभी तय हो गया था कि वे अपने पिता किंग जोंग द्वितीय के उत्तराधिकारी बनेंगे.
ये बात भी सेना के शीर्ष नेताओं को निजी तौर पर बताई गई थी. लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था. पिता की मौत के एक साल पहले ही ये बात सार्वजनिक की गई. शायद वो अपनी बेटी की राह को आसान करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि जब वो सत्ता संभालने लायक हों तो उनकी स्थिति पहले से मजबूत हो.
और शायद इसलिए भी कि उनकी सेहत बहुत अच्छी नहीं है और उनके पास उतना समय नहीं है जितना हम समझते हैं. हालांकि इन दोनों बातों की पुष्टि असंभव है. लेकिन एक और कारण हो सकता है.
उत्तर कोरिया की शीर्ष नेता कभी महिला नहीं रही, हालांकि कुछ उच्च पदों पर महिलाएं रही हैं, जैसे किम की बहन किम यो-जोंग बहुत ताज़ा उदाहरण हैं. हो सकता है कि तानाशाह अपने देश को एक महिला शासक के लिए तैयार करना चाहते हों.
उत्तर कोरिया की निगरानी करने वाले एनके न्यूज़ के विश्लेषक जेम्स फ्रेटवेल का कहना है, "हालांकि उत्तर कोरिया पुरुष प्रधान समाज है, लेकिन उससे अहम ये है कि ये किम के दबदबे वाला समाज भी है."
उन्होंने बीबीसी से कहा, "सबसे ज़रूरी है ख़ून का रिश्ता. वही किसी को शीर्ष नेतृत्व का उम्मीदवार बनाएगा. ये हैरानी की बात होगी अगर उत्तराधिकारी किम परिवार के बाहर से कोई हो."
एक महिला को शीर्ष पद पर तभी बिठाया जा सकेगा जब उसे लोग, सेना और देश का संभ्रांत तबका स्वीकार करे.
उत्तरी कोरिया के अगले नेता के रूप में किम जू-एई की नियुक्ति की कोई गारंटी नहीं है लेकिन वो जब-जब सार्वजनिक समारोहों में दिखेंगी, उसकी संभावना बढ़ती जाएगी. (bbc.com/hindi)
पहले से ही तुर्की और आसपास के क्षेत्र में बड़े भूकंप का अंदेशा था. 2021 में भी एक फाल्ट लाइन में असामान्यता देखे जाने की चेतावनी दी गई थी. अंदेशा जताया गया कि यह लाइन टूट सकती है और भूकंप आ सकता है.
डॉयचे वैले पर स्वाति मिश्रा की रिपोर्ट-
तुर्की और सीरिया में आए भूकंप में मारे गए लोगों की संख्या 16 हजार से ज्यादा हो गई है. तुर्की की आपदा प्रबंधन एजेंसी ने बताया कि 28,000 से ज्यादा लोगों को भूकंप प्रभावित इलाकों से बाहर निकाला जा चुका है. 6 फरवरी को आए दो मुख्य भूकंपों के बाद से अबतक 1,000 से ज्यादा आफ्टरशॉक आ चुके हैं. राहत और बचाव कार्य की धीमी रफ्तार के बीच एक बड़ी चिंता भूकंप में अनाथ हुए बच्चों से जुड़ी है. स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक, दर्जनों ऐसे अनाथ हो चुके बच्चे अस्पतालों में भर्ती हैं. तुर्की की परिवार और सामाजिक सेवा मंत्रालय ने ऐसे बच्चों की मदद के लिए हॉटलाइन सेवा शुरू की है और लोगों से मदद मांगी जा रही है.
टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल
बड़ी इमारतों के कमजोर ढांचे और भूकंपरोधी निर्माण की कमी के अलावा हादसे की गंभीरता की एक बड़ी वजह जमीन के भीतर प्लेट्स में हो रही गतिविधियां हैं. तुर्की चार भूगर्भीय टेक्टोनिक प्लेट्स के इंटरसेक्शन पर बसा है. ये चारों प्लेट हैं, अनातोलियन, अरेबियन, यूरेशियन और अफ्रीकन प्लेट्स. इसके कारण तुर्की भूकंप संभावित बेहद सक्रिय जोन का हिस्सा है. जानकारों के मुताबिक, अरेबियन प्लेट उत्तर की ओर बढ़ रही है और अनातोलियन प्लेट से टकरा रही है. अरेबियन प्लेट 20 मिलीमीटर सालाना की अनुमानित रफ्तार से अनातोलियन प्लेट की ओर बढ़ रही है. अनातोलियन प्लेट में उत्तर और पूरब की ओर दो प्रमुख फॉल्ट जोन हैं.
भूविज्ञान में दो बड़ी चट्टानों के बीच एक किस्म की दरार या दरार के क्षेत्र को फॉल्ट जोन कहा जाता है. इन फॉल्ट्स के कारण दोनों ब्लॉक एक-दूसरे के सापेक्ष गति करते हैं. इस गतिविधि की रफ्तार तेज भी हो सकती है, जिसके चलते भूकंप आता है.
उत्तरी अनातोलियन फॉल्ट को जानकार सबसे ज्यादा विनाशकारी मानते रहे हैं क्योंकि यह अनातोलियन और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स के मिलन बिंदु पर पड़ता है. पिछली एक सदी में यहां आए ज्यादातर बड़े भूकंप उत्तरी अनातोलियन फॉल्ट के ही पास आए हैं. भूकंप का केंद्र इसी फॉल्ट के पास नुरदागी शहर से करीब 26 किलोमीटर पूर्व में जमीन में लगभग 18 किलोमीटर की गहराई पर था.
भूकंप के इलाके मे बढ़ता दबाव
दूसरी ओर पूर्वी फॉल्ट के पास दबाव बढ़ तो रहा था, लेकिन पिछले करीब 100 साल से यहां असामान्य रूप से काफी शांति थी. अब 6 फरवरी को तड़के तुर्की-सीरिया में आया 7.8 तीव्रता वाला भूकंप और इसके नौ घंटे बाद आया 7.5 तीव्रता का भूकंप के बाद का झटका, दोनों पूर्वी अनातोलियन फॉल्ट जोन में केंद्रित थे. उत्तर की ओर खिसक रहे अरेबियन प्लेट के अनातोलियन प्लेट में घर्षण को इसका कारण बताया जा रहा है.
भूविज्ञानियों के मुताबिक, टेक्टोनिक प्लेट्स में हो रही हलचल और शिफ्टिंग के कारण तुर्की का भूभाग दब रहा है. अरबी इलाका धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ते हुए तुर्की से टकरा रहा है और तुर्की पश्चिम की ओर खिसक रहा है. टेक्टोनिक प्लेट्स में तब्दीली और प्लेट्स के घर्षण के कारण पहले भी कई बड़े भूकंप आ चुके हैं. ऐसे ही एक भूकंप ने 1138 में सीरिया के प्राचीन शहर अलेप्पो को समतल कर दिया था. इस भूकंप में दो लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे.
लंबे समय से थी बड़ा भूकंप आने की आशंका
भूकंपविज्ञानी लंबे समय से इस क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने का अंदेशा जता रहे थे. विशेषज्ञों ने बताया था कि इस्तांबुल के तीन जिलों के समुद्रतट से होकर गुजरने वाली एक फाल्ट लाइन में काफी असामान्यता देखी जा रही है. अंदेशा जताया गया कि यह लाइन टूट सकती है और भूकंप आ सकता है.
बोआजिचे यूनिवर्सिटी स्थित कंदिल्ली ऑब्जर्वेटरी और भूकंप शोध संस्थान के निदेशक प्रोफेसर हाइलुक ओजनर और ऑब्जर्वेटरी के क्षेत्रीय भूकंप-सुनामी ट्रैकिंग सेंटर के निदेशक दोगान कलाफात ने 2021 में बताया था कि उनके द्वारा जमा किए गए आंकड़े बताते हैं कि एक बड़े इलाके के बीच का हिस्सा, जहां से फॉल्ट लाइन आड़ी-तिरछी होकर गुजरती है, वह किसी आगामी भूकंप का केंद्र हो सकता है. इन विशेषज्ञों ने मिलियत अखबार से बातचीत में कहा था कि भविष्य में कम-से-कम रिक्टर स्केल पर 7 तीव्रता का भूकंप आएगा और इसके मद्देनजर बस इतना किया जा सकता है कि नुकसान को कम-से-कम करने के प्रयास किए जाएं.
भारत को भी देना होगा ध्यान
भारत में भी खास हिमालयी क्षेत्र में बड़े भूकंप का अंदेशा है. ऐसे में जानकार लंबे समय से निर्माणकार्य को भूकंपरोधी बनाने पर ध्यान देने की सलाह दे रहे हैं. निर्माण सामग्री तो दूर, ऊंचे पहाड़ी शहरों में भी कई जगहों पर इमारतों की ऊंचाई से जुड़े नियमों पर ध्यान नहीं दिया जाता. यहां तक कि राजधानी दिल्ली में भी ज्यादातर इमारतें भूकंप सुरक्षा के मुताबिक नहीं हैं. भूकंप की संवेदनशीलता के लिहाज से चार जोन हैं, जिनमें पांचवां जोन सबसे ज्यादा सक्रियता वाला क्षेत्र माना जाता है.
विज्ञान और तकनीक मंत्रालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने 2022 में लोकसभा में जानकारी दी थी कि भारत का करीब 11 फीसदी हिस्सा 5वें जोन में आता है. इस अति-संवेदनशील क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, बिहार, उत्तरपूर्वी राज्य और अंडमान-निकोबार के हिस्से शामिल हैं. दिल्ली समेत लगभग 18 प्रतिशत भूभाग चौथे जोन में, 30 फीसदी क्षेत्र तीसरे जोन और बाकी दूसरे यानी सबसे कम जोखिम वाले हिस्से में आते हैं. 2019 में इंडिया टुडे ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि दिल्ली नगरपालिका और भूकंप विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप का तगड़ा झटका आने की स्थिति में राजधानी की लगभग 90 फीसदी इमारतों पर जोखिम होगा.
तुर्की और सीरिया में आए भूकंप से हजारों इमारतें ढह गई हैं. अकेले तुर्की में ही करीब साढ़े छह हजार इमारतें तबाह हो गई हैं. इमारतों के मलबे में दबकर और फंसकर कई लोग मारे गए हैं. भूकंप विज्ञानियों का कहना है कि जान माल का नुकसान कम करने के लिए लोगों में जागरूकता और भूकंपरोधी निर्माण को तरजीह देना जरूरी है. (dw.com)
चीन, 10 फरवरी । चीनी विदेश मंत्रालय ने चीन में बने कैमरे हटाने के ऑस्ट्रेलिया के एक फ़ैसले की कड़ी आलोचना की है और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील देकर चीनी कंपनियों को रोकने की कोशिश ग़लत है.
गुरुवार को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने एक संवाददाता सम्मेलन
में कहा कि चीनी सरकार की कोशिश रहती है कि वो बाज़ार के नियमों के अनुरूप और अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय क़ानूनों के दायरे में रहकर चीनी कंपनियों को काम करने के लिए प्रेरित करती है.
उन्होंने कहा, "चीनी कंपनियों का काम रोकने और उनके साथ भेदभाव करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को बढ़ाचढ़ा कर पेश करने और ताक़त के इस्तेमाल की हम कड़ी आलोचना करते हैं."
"हमें उम्मीद है कि चीनी कंपनियों के काम करने के लिए ऑस्ट्रेलिया पक्ष एक निष्पक्ष, न्यायसंगत और भेदभाव से हटकर माहौल देगा और दोनों मुल्कों में आपसी भरोसा और सहयोग बढ़ाने के लिए और कदम उठाएगा."
हाल में ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्लेस ने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार संवेदनशील इलाक़ों में लगे मेड इन चाइना सिक्योरिटी कैमरे हटाएगी.
उन्होंने कहा था, "ये एक महत्वपूर्ण तथ्य है जो सामने आया है और हम इस पर काम करेंगे. हम सर्विलांस तकनीक की समीक्षा करेंगे और ये सुनिश्चित करेंगे कि हमारी जगहें पूरी तरह से सुरक्षित हों."
संवाददाता सम्मेलन में समाचार एजेंसी एएफ़पी ने चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग से ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया मांगी थी और कहा था कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस कदम से सिक्योरिटी कैमरे बनाने वाली हिकविज़न और दाहुआ जैसी चीनी कंपनियां प्रभावित होंगी.
हाल में एकऑडिट रिपोर्ट सामने आई थी जिसके अनुसार 250 से अधिक सरकारी इमारतों में कम से कम 913 मेड इन चाइना सिक्योरिटी कैमरे लगे हैं. इस इमारतों में रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और अटॉर्नी जनरल के दफ्तर शामिल हैं.
समाचार एजेंसी निक्केई एशिया के अनुसार बीते साल नवंबर में ब्रितानी सरकार ने सभी सरकारी विभागों से कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वो संवेदनशन जगहों में चीन से जुड़े सर्विलांस कैमरे न लगाएं.
इससे पहले अमेरिका ने भी सुरक्षा की दलली देते हुए कुछ चीनी कंपनियों के उपकरणों के इस्तेमाल पर रोक लगाई है. (bbc.com/hindi)
संयुक्त राष्ट्र, 10 फरवरी। संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद-रोधी मामलों के प्रमुख ने बृहस्पतिवार को कहा कि इस्लामिक स्टेट चरमपंथियों का खतरा अब भी कायम है और संघर्ष वाले क्षेत्रों के आसपास यह और बढ़ गया है। साथ ही अफ्रीका के मध्य, दक्षिण और सहेल क्षेत्रों में इसका विस्तार ‘‘विशेष रूप से चिंताजनक’’ है।
अवर महासचिव व्लादिमीर वोरोन्कोव ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि ‘दाएश’ नाम से पहचाना जाने वाला यह समूह इंटरनेट, सोशल मीडिया, वीडियो गेम और गेमिंग मंच का इस्तेमाल ‘‘लोगों को कट्टरपंथी बनाने और भर्ती करने के लिए कर रहा है।’’
उन्होंने निगरानी और टोही के लिए डिजिटल मंच के साथ-साथ पैसे जुटाने के लिए ड्रोन के निरंतर इस्तेमाल का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘दाएश का नई और उभरती प्रौद्योगिकियां का इस्तेमाल करना चिंता का एक प्रमुख कारण बना हुआ है।’’
वोरोन्कोव ने कहा कि इस्लामिक स्टेट और उसके सहयोगियों से उच्च जोखिम का खतरा कायम है, जिसमें अफ्रीका के कुछ हिस्सों में उसका निरंतर विस्तार शामिल है। यह इससे निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जो न केवल सुरक्षा पर, बल्कि संघर्षों को रोकने के उपायों पर भी केंद्रित हो।
इस्लामिक स्टेट ने सीरिया और इराक में एक बड़े क्षेत्र में विद्रोह छेड़ दिया था, जहां उसने 2014 में कब्जा कर लिया था। तीन साल के खूनी संघर्ष के बाद 2017 में चरमपंथी समूह को औपचारिक रूप से इराक में पराजित किया गया। इस संघर्ष में कई हजार लोग मारे गए थे और कई शहर बर्बाद हो गए थे, लेकिन इसके ‘स्लीपर सेल’ दोनों देशों में बने हुए हैं।
‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ की दिसंबर में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, करीब 65,600 संदिग्ध इस्लामिक स्टेट के सदस्य और उनके परिवार अब भी अमेरिकी सहयोगी कुर्द समूहों के द्वारा संचालित पूर्वोत्तर सीरिया के शिविरों और जेलों में बंद हैं। (एपी)
एपी निहारिका सुरेश सुरेश 1002 1143 संयुक्तराष्ट्र
पाकिस्तान सरकार और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के बीच हो रही बातचीत के बेनतीजा ख़त्म होने के बाद पाकिस्तान की उम्मीद को झटका लगा है.
पाकिस्तान को देश के ख़राब आर्थिक हालात के बीच आईएमएफ़ से मदद की उम्मीद है.
पाक वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी हामिद शेख़ ने कहा है कि दोनों पक्षों में और कदम उठाने को लेकर सहमति बन गई है लेकिन मुद्रा कोष ने बातचीत के लिए अभी और वक़्त मांगा है.
हामिद शेख़ ने कहा, "पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के बीच जल्द ही स्टाफ़ स्तरीय सहमति बन जाएगी. आईएमएफ़ के मिशन ने स्टाफ़ स्तरीय बातचीत के लिए और वक़्त मांगा है."
दोनों के बीच पाकिस्तान के लिए 1.1 अरब डॉलर की मदद के लिए बातचीत हो रही थी.
आर्थिक संकट से जूझ रही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए राहत पैकेज पर बातचीत के लिए बीते सप्ताह मुद्रा कोष का एक दल पाकिस्तान पहुंचा था.
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बेहद निचले स्तर तक आ गया है और 3 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है और ये एक महीने के आयात का पैसा देने के लिए भी काफ़ी नहीं है.
इसका नतीजा ये है कि पाकिस्तान में महंगाई तेज़ी से बढ़ रही है और अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए सरकार को जल्द से जल्द आर्थिक मदद की ज़रूरत है. (bbc.com/hindi)
(अदिति खन्ना)
लंदन, 10 फरवरी। आतंकवाद को रोकने संबंधी ब्रिटेन सरकार की एक योजना की समीक्षा में देश के लिए ‘‘प्राथमिक खतरे’’ के रूप में इस्लामी अतिवाद से निपटने में सुधार की सिफारिशें की गई हैं और कश्मीर को लेकर ब्रिटेन के मुसलमानों के कट्टर रवैये और खालिस्तान समर्थक अतिवाद समेत बढ़ती चिंताओं के अन्य क्षेत्रों को भी चिह्नित किया गया है।
सरकार की आतंकवाद-रोधी शुरुआती हस्तक्षेप रोकथाम रणनीति की इस सप्ताह प्रकाशित समीक्षा में चेतावनी दी गई कि ‘‘विशेष रूप से कश्मीर के विषय में भारत विरोधी भावना को भड़काने’’ के संदर्भ में पाकिस्तान की बयानबाजी ब्रिटेन के मुस्लिम समुदायों को प्रभावित कर रही है।
इसमें ब्रिटेन में ‘‘एक छोटी संख्या में’’ सक्रिय खालिस्तान समर्थक समूहों द्वारा फैलाए जा रहे झूठे आख्यान के खिलाफ भी चेतावनी दी गई है।
समीक्षा में कहा गया, ‘‘मैंने ब्रिटेन के चरमपंथी समूहों से जुड़े साक्ष्य देखे हैं। साथ ही मैंने कश्मीर में हिंसा का आह्वान करने वाले एक पाकिस्तानी मौलवी के ब्रिटेन में समर्थक देखे हैं। मैंने ऐसे साक्ष्य भी देखे हैं, जो दिखाते हैं कि कश्मीर से संबंधित उकसावे में ब्रितानी इस्लामियों की बहुत रुचि होती है।’’
समीक्षा में कहा गया कि इस बात पर विश्वास करने की कोई वजह मौजूद नहीं है कि यह मुद्दा ऐसे ही समाप्त हो जाएगा, क्योंकि इस्लामवादी आने वाले वर्षों में इसका फायदा उठाना चाहेंगे।
इसमें कहा गया, ‘‘इसकी रोकथाम संभवत: प्रासंगिक है, क्योंकि ब्रिटेन में आतंकवाद के अपराधों के कई ऐसे दोषी पाए गए हैं जिन्होंने पहले कश्मीर में लड़ाई लड़ी थी। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो बाद में अल-कायदा में शामिल हो गए।’’
रिपोर्ट में खालिस्तान समर्थक अतिवाद के मुद्दे पर कहा गया, ‘‘ब्रिटेन के सिख समुदायों में उत्पन्न हो रहे खालिस्तान समर्थक चरमपंथ के प्रति भी सावधान रहना चाहिए। ब्रिटेन में सक्रिय खालिस्तान समर्थक समूहों की एक छोटी संख्या द्वारा यह झूठा आख्यान फैलाया जा रहा है कि सरकार सिखों को परेशान करने के लिए भारत में अपने समकक्ष के साथ मिलीभगत कर रही है।’’
इसमें कहा गया, ‘‘ऐसे समूहों के आख्यान भारत में खालिस्तान समर्थक आंदोलन के दौरान की गई हिंसा का महिमामंडन करते हैं। वर्तमान में अभी खतरा कम है, लेकिन विदेशों में हुई हिंसा की प्रशंसा करना और साथ ही घरेलू स्तर पर सरकार की अगुवाई में दमन के अभियान में विश्वास करना भविष्य के लिए संभवत: खतरनाक हो सकता है।’’
समीक्षा में पाया गया कि इस्लामी चरमपंथ ब्रिटेन के लिए ‘‘आतंकवादी खतरे का प्राथमिक’’ कारण हैं।
ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने बुधवार को ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में कहा कि वह ‘रोकथाम रणनीति’ में समीक्षा की सभी सिफारिशों को ‘‘तेजी से लागू’’ करने का इरादा रखती हैं।
भारतीय मूल की मंत्री ने सांसदों से कहा, ‘‘ सच यह है कि इस्लामवाद से निपटने का अर्थ मुस्लिम विरोधी होना नहीं है और यदि हमें इसे प्रभावी तरीके से करना है, तो हमें मुस्लिम समुदायों के साथ मिलकर काम करना जारी रखना चाहिए।’’ (भाषा)
चीनी विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में अमेरिका में दिखे उसके ग़ुब्बारे और रूस यूक्रेन युद्ध में अपने स्टैंड को लेकर बात की है.
ब्लूमबर्ग के संवाददाता के सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रायल की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि यूक्रेन के मुद्दे पर चीन पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है.
माओ निंग से सवाल किया गया था कि सुनने में आ रहा है कि चीन रूस को सैन्य इस्तेमाल के लिए हथियार और तकनीक दे रहा है जिसे लेकर जी7 मुल्क चीन पर नए प्रतिबंध लगा सकते हैं.
सवाल के उत्तर में माओ निंग ने कहा, "चीन पहले भी इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहले भी शांति वार्ता को बढ़ावा देने और तनाव कम करने में सकारात्मक कोशिश की है."
उन्होंने कहा, "चीन एकतरफ़ा प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ है और ऐसे फ़ैसलों की आलोचना करता है जिनका अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत या फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा के तहत कोई आधार न हो. चीन अपने और चीनी कंपनियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. वह इसके लिए क़ानून के दायरे में रह कर कदम उठाएगा."
चीनी बैलून को लेकर सवाल पूछा गया था कि क्या विदेश मंत्रालय के पास बैलून को लेकर कोई नई जानकारी है? क्या आप बैलून पर मौजूद उपकरण और उसके स्वामित्व के बारे में बता सकते हैं?
इस पर माओ निंग ने कहा, ''चीन ने उस एयरशिप को लेकर लगातार जानकारी साझा की है. अमेरिकी आसमान में चीनी सिविलियन एयरशिप का प्रवेश करना एक अप्रत्याशित घटना थी. चीन ने बार-बार अमेरिका को ये साफ़ कर दिया है कि उसने बल प्रयोग करके ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया की है.''
''चीन इसका कड़ा विरोध और निंदा करता है. हमें 'बैलून के बेड़े' को लेकर कोई जानकारी नहीं है. ये अमेरिका का दुष्प्रचार है जो वो चीन के ख़िलाफ़ करता है. जासूसी और निगरानी में कौन-सा देश सबसे आगे है, ये दुनिया को पता है.'' (bbc.com/hindi)
मॉस्को, 9 फरवरी। दक्षिण-मध्य रूस के नोवोसिबिर्स्क शहर में बृहस्पतिवार सुबह एक आवासीय इमारत में हुए गैस विस्फोट के कारण लगी आग की चपेट में आकर दो साल के बच्चे सहित कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई। प्रांतीय गृह विभाग ने यह जानकारी दी।
गवर्नर एंड्रे ट्रावनिकोव ने कहा कि घटना में घायल नौ लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जिनमें से दो की हालत गंभीर है।
अधिकारियों ने कहा कि सुबह सात बजकर 43 मिनट पर हुए विस्फोट के समय इमारत में मौजूद रहे दो बच्चों सहित दस लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी है।
उन्होंने बताया कि विस्फोट के कारण पांच मंजिला इमारत के दो प्रवेश द्वार ढह गए, जिसके चलते लगी आग से 30 फ्लैट क्षतिग्रस्त हो गए।
इस संबंध में मामला दर्ज किया गया है और प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि गैस रिसाव के कारण यह घटना हुई। (एपी)
तुर्की, 9 फरवरी । 5 फ़रवरी 2023 को एक बच्ची इरमाक रात को घर के मुलायम बिस्तर पर सो रही थी. अगली सुबह भी वो बिस्तर पर मिली लेकिन सोकर उठी नहीं. इरमाक के ऊपर भारी-भरकम छत का बड़ा हिस्सा गिरा हुआ था. वही छत, जिसे देखते हुए इरमाक ने कितनी बचकानी और प्यारी बातें की होंगी.
इरमाक की सांसें दुनिया छोड़कर जा चुकी हैं मगर उसका एक हाथ अब भी छोड़ा नहीं गया है. ये हाथ इरमाक के अब्बा मेसूत हंसर ने पकड़ा हुआ है, जो कुछ वक़्त पहले ज़िंदगी से भरे अपने घर के मलबे के पास बैठे हैं और अपनी बिटिया का साथ नहीं छोड़ना चाहते.
आँखों और चेहरे पर बिना किसी भाव के तुर्की के कहरामनमारस शहर में मेसूत कुछ बोल नहीं रहे हैं. मगर उनकी तस्वीर देखने वाले ज़्यादातर इंसान इतने सारे भावों से भर जाएंगे कि शब्दों की ज़रूरतें ख़त्म हो जाएंगी.
कुछ सेकेंड्स हज़ारों लोगों की ज़िंदगी छीन सकते हैं और लाखों लोगों को ग़मगीन कर सकते हैं. तुर्की, सीरिया में आए भूकंप इस बात के ताज़ा और दुखद उदाहरण हैं.
दोनों देशों में आए भूकंप की वजह से 15 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और हज़ारों घायल हैं. भूकंप की वजह से अरबों रुपये की संपत्ति का नुक़सान हुआ.
मलबे से लगातार लोगों को निकाला जा रहा है. जब मलबे से किसी को निकाला जाता है तो सबसे पहले ये जानने की कोशिश होती है कि सांसें साथ छोड़ चुकी हैं या इंसान ज़िंदा है?
इस कहानी में हम ऐसे ही कुछ वाकयों का ज़िक्र करेंगे, जिसमें घंटों बाद मलबे के अंदर से मौत को हराकर ज़िंदगियां बाहर आईं.
ये बच्ची जब मिली, जब मां के गर्भनाल से जुड़ी हुई थी. मां मर चुकी है, बच्ची ज़िंदा है
मलबे के नीचे से निकल आई नन्ही ज़िंदगी
जगह- उत्तरी सीरिया का एक इलाक़ा एफरीन.
तबाही मचाने वाले भूकंप को आए कई घंटे बीत चुके हैं.
बचाव कार्य जारी है. क्रेन से मलबे को हटाया जा रहा है. तभी शोर होता है. मलबे से एक आदमी कुछ घंटों पहले पैदा हुई बच्ची को लेकर भाग रहा है.
ये नवजात बच्ची जब मिली तब वो अपनी मां की गर्भनाल से जुड़ी हुई थी. मां मर चुकी थी लेकिन बच्ची ज़िंदा थी.
बच्ची जहां मिली, वो उसका घर था. वही घर जहां कुछ घंटों पहले तक इस बच्ची के पैदा होने की तैयारियां चल रही थीं. अब इस घर के सभी सदस्य मर चुके हैं, जो ज़िंदा है उसे गोद में खिलाने के लिए परिवार का कोई नहीं बचा.
इस बच्ची के पिता के चचेरे भाई ख़लील अल-सुवादी ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को बताया, ''बच्ची के मां-बाप की लाशें एक-दूसरे के बगल में थीं. जब हम मलबा हटा रहे थे, हमें कुछ आवाज़ सुनाई दी. हमने और खुदाई की. हमने जब धूल और मलबा हटाया तो हमें बच्ची मां की गर्भनाल से जुड़ी मिली. हमने उसे अलग किया. हम बच्ची को बाहर निकालकर ले गए और अस्पताल में भर्ती करवाया.''
बच्ची का अस्पताल में इलाज चल रहा है.
जिन रंगों और चेहरों को पहचानने में इस बच्ची को सालों लगेंगे, वो उसके पैदा होते ही उसकी पहचान से किस कदर जुड़ गए हैं, इसकी झलक एक वीडियो में दिखती है.
एएफपी के वीडियो में एक शख्स कुछ लाशों को दिखाते हुए कहता है, ''बैंगनी कंबल में लिपटी लाश बच्ची की आंटी हैं. पीले कंबल में लिपटी लाश बच्ची की मां है. कत्थई कंबल में लिपटी लाश बच्ची के पिता की है.''
ये बच्चा 45 घंटों से फँसा हुआ था, बचावकर्मी बोतल के ढक्कन से पानी पिलाकर बच्चे को हौसला देते हुए
कुछ पानी की बूंदें ज़िंदगी की...
जगह- तुर्की का हाते.
एक बच्चा मलबे में दबा हुआ है. आंखें खुली हुई हैं. एक शख़्स उसे बोतल के ढक्कन से पानी पिला रहा है.
ये शख्स बचावकर्मी दल का सदस्य है.
बच्चा बीते 45 घंटों से इस मलबे में फँसा हुआ है. बच्चे का नाम मोहम्मद है.
बचावकर्मी कहते हैं, ''मोहम्मद. पानी पियो, पानी पियो. ये पानी पियो.'' बच्चा जब पानी पीता है तो बचावकर्मी कहते हैं- शाबाश, बहुत बढ़िया... शाबाश.
बच्चा मुंह खोलकर अपने दांत दिखाता है और कुछ हँसता सा महसूस होता है. ये नज़ारा देखकर बचावकर्मी चहक उठते हैं. वो कहते हैं, ''अब ज़्यादा देर नहीं लगेगी. हिम्मत नहीं हारनी है मोहम्मद. बहुत बढ़िया मोहम्मद, अपना मुंह खोलो.''
ये बच्चा सीरिया से है. स्काई न्यूज़ के मुताबिक़, बच्चे का नाम मोहम्मद अहमद है और वो भूकंप के बाद से ही मलबे में दबा हुआ था.
50 घंटे बाद तोता निकला
जगह- तुर्की का मलाट्या.
ज़िंदगी तो ज़िंदगी होती है, इंसान की हो या फिर किसी जानवर या परिंदे की.
मलबे से जब इंसानों के ज़िंदा निकलने की खुशियां मनाई जा रही हैं तो ये बात परिंदों के बचकर निकलने पर भी लागू हो रही हैं.
तुर्की में मलबे से एक पालतू तोते को ज़िंदा बाहर निकाला गया. ये तोता जैसे ही बाहर निकला, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा.
बचाने वालों ने इस तोते को निकालकर एक बॉक्स में रखा और फिर सही जगह पर पहुंचा दिया.
सात मंज़िला इमारत और 62 घंटे
जगह- तुर्की का अदियामन.
भूकंप 6 फरवरी को तड़के आया था, जब लोग सो रहे थे. भूकंप आने के बाद से ही बचावकार्य जारी था.
भूकंप आने के लगभग 62 घंटों बाद एक चमत्कार लोगों को और दिखा.
सात मंज़िला इमारत के मलबे के नीचे से 12 साल के एक बच्चे को ज़िंदा बाहर निकाला गया. फ़ोटो एजेंसी गेटी के मुताबिक़, बच्चे का नाम किहिन अमीर है.
ऐसे कुछ और वीडियो, तस्वीरें भी शेयर की जा रही हैं.
व्हाइट हेलमेट ने इस बच्चे का वीडियो शेयर किया, बच्चा जब घंटों बाद मलबे से बाहर निकला तो हँसने लगा. ये देखकर मुस्कान दूसरों के चेहरे पर भी आई
सीरिया के सिविल डिफेंस संगठन व्हाइट हेलमेट ने ऐसे कई वीडियो जारी किए हैं, जिसमें घंटों बाद किसी बच्चे या बड़े को मलबे से बाहर निकाला जा रहा है.
कोई 40 घंटे फँसा रहा था और कोई 50 घंटे बाद ज़िंदा निकाला गया.
व्हाइट हेलमेट के शेयर किए एक ट्वीट वीडियो में कहा गया, ''चमत्कार बार-बार होते हैं.''
इस वीडियो में सीरिया के इदलिब से करम नाम के एक बच्चे को मलबे से निकाला गया. ये बच्चा जब मलबे से निकला तो हँस रहा था. बचावकर्मी बच्चे को चूम रहे थे और खुश होते हुए अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगा रहा थे.
व्हाइट हेलमेट ने अपने साथ काम करने वाले एक बचावकर्मी के बारे में जानकारी दी, ''कुछ दिन पहले तक लोगों की जान बचाने वाला हमारा एक सहयोगी ख़ुद जान गँवा चुका है.''
इस वीडियो में लोग अपने सहयोगी की लाश निकालते हुए दिखते हैं.
पूरा परिवार ज़िंदा निकाला गया
जगह- सीरिया.
जिस छत के नीचे पूरा परिवार 5 फरवरी को सोया था, उस जगह से घंटों बाद पूरा परिवार बाहर निकला.
इस निकलने की चमत्कारिक और दुर्लभ बात ये थी कि पूरा परिवार ज़िंदा बाहर निकला था. वीडियो में दिखता है कि कैसे बचावकर्मी पहले बच्चों को बाहर निकालते हुए दिखते हैं, फिर घर के बड़ों को.
इन लोगों को सीधा एंबुलेंस में ले जाया जाता है, जिसके बाद इन्हें अस्पताल पहुंचाया जाता है.
सीरिया वो जगह है, जो बीते एक दशक से तबाही का सामना कर रही है. कभी ये तबाही तथाकथित इस्लामिक स्टेट के कारण फैलती है तो कभी तेज़ भूकंप के कारण.
सीरिया के कुछ शहर ऐसे भी थे, जहां भूकंप आने के घंटों बाद तक मदद करने के लिए कोई नहीं था. सिर्फ़ मदद को पुकारती चीखें और रोने की आवाज़ सुनाई दे रही थी.
सात साल की बहन अपने भाई के सिर पर हाथ रखे हुए, ये तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है.
भूकंप भाई-बहन के प्यार को हिला नहीं पाया
जगह- सीरिया का हारम गांव.
घर की छत, जिसे देखते हुए अकसर बच्चे कुछ-कुछ सोचते रहते हैं.
वही छत सीरिया और तुर्की में कितने ही बच्चों पर भूकंप के कारण गिरी.
ऐसी ही एक छत के नीचे दो भाई-बहन दब गए. लगभग 36 घंटों बाद जब बचाव दल के लोग यहां पहुंचे तो धूल दोनों के चेहरों पर भरी थी. मगर दोनों की आंखें खुली थीं और हरकत हो रही थी.
सीएनएन की ख़बर के मुताबिक़, ये दोनों बच्चे भाई-बहन हैं. बहन ने भाई को सिर के पास से पकड़ा हुआ है.
बचाव दल के लोग जब यहां पहुंचे तो मरियम नाम की बच्ची बोली, ''मुझे यहां से बाहर निकालो. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूंगी. ज़िंदगी भर तुम्हारी गुलामी करूंगी.
तस्वीरों और वीडियो से ये महसूस होता है कि ये दोनों बच्चे बिस्तर पर लेटे हुए हैं, शायद इसी बिस्तर पर ये लोग बीती रात सोए होंगे.
इस बच्ची के भाई का नाम इलाफ़ है. सीएनएन से बात करते हुए इन बच्ची के पिता मुस्तफ़ा ने बताया कि इलाफ़ इस्लामिक नाम है जिसका मतलब होता है- सुरक्षा.
मुस्तफ़ा ने कहा, ''मैं और मेरे तीन बच्चे सो रहे थे, तब ये भूकंप आया. धरती हिलने लगी. हम छत के नीचे दब गए. हमने जो महसूस किया वो कभी किसी को ना महसूस हो. लोगों ने हमारी आवाज़ सुनी और हमारी जान बचाई.''
ये कहानी सिर्फ़ इतने लोगों की नहीं है. इस कहानी को तुर्की और सीरिया में कितने ही लोग जी रहे हैं. कुछ की कहानी में लोग ज़िंदा बचकर निकल रहे हैं तो ये कहानियां चमत्कार कहला रही हैं और जहां लोग बच नहीं पा रहे हैं, वहां कितनी ही कहानियों, यादों, किस्सों का अंत हो चुका है. (bbc.com/hindi)
ऑस्ट्रेलिया, 9 फरवरी । ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने कहा है कि वो देश भर की सरकारी इमारतों से चीन में बने सिक्योरिटी कैमरा और सर्विलेंस उपकरण हटाएगी.
ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने कहा कि इन उपकरणों से सुरक्षा की समस्या पैदा होने की आशंका है और इन पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है.
रक्षा मंत्री का ये बयान एक ऑडिट रिपोर्ट के बाद आया है. ऑडिट में ये पाया गया था कि लगभग 250 सरकारी इमारतों में चीनी कंपनी हिकविज़न और दाहुआ के बनाए 900 से भी ज़्यादा उपकरण लगे हैं.
अमेरिका और ब्रिटेन ने पिछले साल ऐसा ही फ़ैसला लिया था.
इस फ़ैसले की तब ये वजह बताई गई थी कि इन उपकरणों के डेटा तक चीन की सरकार की पहुंच हो सकती है.
हाल के सालों में ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंधों में तनाव देखने को मिला है.
हालांकि प्रधानमंत्री एंटनी अल्बानीज़ ने कहा है कि ताज़ा घटनाक्रम का दोनों देशों के संबंधों पर नकारात्मक असर नहीं पड़ना चाहिए. (bbc.com/hindi)
अमेरिका का कहना है कि चीन का जो गुब्बारा उसने अपने यहां मार गिराया, उस जैसे कई और गुब्बारे दुनियाभर में छोड़े गए और अलग-अलग देशों को निशाना बनाया गया. इन देशों में जापान और भारत का नाम भी शामिल है.
अमेरिकी मीडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जो बाइडेन सरकार ने कई देशों को सूचित किया है कि चीन गुब्बारे के जरिए उनके यहां भी जासूसी कर रहा था. यह जानकारी शनिवार को कैलिफॉर्निया तट के पास एक गुब्बारे को मिसाइल से मार गिराने के बाद दी गई है. अमेरिका ने गुब्बारे के अवशेषों को भी खोज लिया है.
द वॉशिंगटन पोस्ट अखबार ने खबर छापी है कि सोमवार को अमेरिकी उप विदेश मंत्री वेंडी शर्मन ने 40 देशों के दूतावास अधिकारियों को इस गुब्बारे के बारे में सूचित किया.
चीनी वायुसेना करती है संचालित
द वॉशिंगटन पोस्ट की खबर कहती है, "निगरानी करने वाला गुब्बारा कई सालों से चीन के दक्षिणी तट पर हानियान प्रांत से काम कर रहा था. उस गुब्बारे ने चीन के लिए रणनीतिक अहमियत वाले देशों की सैन्य क्षमताओं के बारे में जानकारियां जमा कीं. इन देशों में भारत, जापान, वियतनाम, ताइवान और फिलीपींस शामिल हैं.”
वॉशिंगटन पोस्ट ने कई अधिकारियों और रक्षा व जासूसी विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. इन अधिकारियों ने बताया कि चीनी वायु सेना इन गुब्बारों को संचालित करती है. और इन्हें पांच महाद्वीपों के ऊपर देखा जा चुका है.
दर्जनों अभियानों की खबर
एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट कहती है, "ये गुब्बारे पीआरसी (पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) के उस गुब्बारों के बेड़े का हिस्सा हैं जिसे जासूसी अभियानों के लिए तैयार किया गया है और जिसने कई देशों की संप्रभुता का उल्लंघन किया है.”
अखबार के मुताबिक हाल के सालों में अब तक अमेरिका में ही कम से कम चार गुब्बारे देखे जा चुके हैं. इससे पहले हवाई, फ्लोरिडा, टेक्सस और ग्वाम में ये गुब्बारे देखे गए थे. पिछले हफ्ते पांचवीं बार ऐसा गुब्बारा अमेरिका के आसमान में नजर आया. पहले चार में तीन बार ये घटनाएं तब हुईं जब डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे. हालांकि चीन के जासूसी उपकरणों के रूप में इनकी पहचान हाल ही में हुई है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम उन देशों के साथ जितनी संभव हो सूचनाएं साझा करना चाहते हैं जो इस तरह के अभियानों के संदिग्ध शिकार हो सकते हैं.”
वैसे विश्लेषक अब तक यह नहीं बता पाए हैं कि चीन के गुब्बारों के बेड़े में कितने गुब्बारे हैं लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने यह कहा है कि 2018 के बाद से ऐसे दर्जनों अभियान भेजे गए हैं.
चीन बढ़ा रहा है गुब्बारेः विशेषज्ञ
हाल ही में चीनी सैन्य शोधकर्ताओं ने गुब्बारों और एयरशिप का इस्तेमाल बढ़ाने की वकालत की थी. ऐसे शोधपत्र सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं जिनमें कहा गया है कि चीन को गुब्बारों का प्रयोग बढ़ाना चाहिए और उन्हें विभिन्न जगहों पर तैनात करना चाहिए.
वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि इन सैन्य अभियानों में एक निजी कंपनी द्वारा विकसित की गई तकनीक का इस्तेमाल हुआ है. यह निजी कंपनी चीन के सैन्य तंत्र का हिस्सा है.
पिछले हफ्ते अमेरिका के आसमान में चीनी गुब्बारा नजर आने के बाद इसे लेकर कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर विवाद उठ खड़ा हुआ था. अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने तो अपनी चीन यात्रा तक रद्द कर दी थी जबकि दोनों देश इस यात्रा से संबंधों की बेहतरी की उम्मीद लगाए हुए थे.
चीन का कहना है कि यह एक वेदर-बलून था जो अपना रास्ता भटक गया और अमेरिकी वायु क्षेत्र में चला गया. अमेरिका दावा कर रहा है कि यह वेदर-बलून नहीं था बल्कि एक एयरशिप था जो जासूसी कर रहा था और इसे चीन की सेना नियंत्रित कर रही थी.
वीके/एडी (रॉयटर्स, एएफपी)
दक्षिण कोरिया की एक अदालत ने सरकार को वियतनाम युद्ध के एक पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश दिया है. अदालत ने दक्षिण कोरियाई मरीन्स को वियतनाम युद्ध के दौरान निहत्थे गांववालों की हत्या का दोषी पाया.
दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल के सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने सरकार को करीब 24 हजार डॉलर का मुआवजा देने को कहा है. यह निर्णय 62 साल की एक वियतनामी महिला नगून थी थान की याचिका पर सुनाया गया है. नगून ने 2020 में दक्षिण कोरिया की सरकार पर मुकदमा किया था.
यह मामला 1968 के एक घटनाक्रम से जुड़ा है. 12 फरवरी, 1968 को दक्षिण कोरिया के मरीन सैनिकों ने मध्य वियतनाम के फोंग नी और फोंग नूट नाम के गांवों पर हमला किया और 70 से ज्यादा ग्रामीणों की हत्या की. इस हत्याकांड में नगून थी के पांच रिश्तेदार मारे गए. वो और उनके भाई भी गंभीर रूप से जख्मी हुए. वियतनाम युद्ध में दक्षिण कोरिया के करीब तीन लाख सैनिकों ने अमेरिकी फौज के साथ मिलकर जंग में हिस्सा लिया था.
कोर्ट ने नहीं मानी सरकार की दलील
पिछले तीन साल में इस केस की सुनवाई के दौरान कई वियतनामी चश्मदीद कोर्ट में पेश हुए थे. साथ ही, 1968 में इस घटना की रिपोर्टिंग करने वाले कई पत्रकारों ने भी गवाही दी. दक्षिण कोरिया की सरकार की दलील थी कि कोरियाई सैनिकों का दोष साबित करना बहुत मुश्किल है. अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया. सरकार का यह भी कहना था कि 1965 में दक्षिण कोरिया और दक्षिण वियतनाम की सरकार के बीच हुआ समझौता सैनिकों को किसी भी तरह की कानूनी जवाबदेही से बचाता है.
मगर कोर्ट ने कहा कि यह समझौता वियतनामी पीड़ितों को मुआवजा पाने से नहीं रोक सकता. दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्रालय ने फिलहाल इस फैसले पर टिप्पणी नहीं की है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों देश भविष्य के कूटनीतिक संबंधों की दिशा में लंबित मुद्दों को सुलझाने के लिए बातचीत कर रहे हैं. दक्षिण कोरिया और वियतनाम के बीच 1992 में कूटनीतिक रिश्ते कायम हुए थे.
और पीड़ितों के लिए खुल सकती है राह
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "उस वक्त सैनिकों ने याचिकाकर्ता के परिवार को अपने घर से बाहर निकलने को मजबूर किया, उन्हें बंदूक दिखाकर डराया और फिर गोली मार दी. नतीजतन याचिकाकर्ता के परिवार की मौके पर ही मौत हो गई और पीड़ित समेत कई और लोग गंभीर रूप से चोटिल हुए."
अदालत का ताजा आदेश ऐतिहासिक है. यह पहली बार है, जब युद्ध के दौरान हुई ज्यादतियों में दक्षिण कोरिया की हिस्सेदारी को कानूनी तौर पर पहचान मिली है. यह फैसला युद्ध के और भी पीड़ितों के लिए मुआवजा पाने की राह खोल सकता है. याचिकाकर्ता नगून ने फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि यह निर्णय घटना में मारे गए लोगों की आत्माओं को कुछ सुकून देगा.
एसएम/एमजे (रॉयटर्स, एएफपी)
गाजियांतेप (तुर्किये), 9 फरवरी। तुर्किये और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में ढहे घरों के मलबे से और शव निकाले जाने बाद मरने वालों की संख्या बढ़कर 15,000 से अधिक हो गई है। तुर्किये की आपदा प्रबंधन एजेंसी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
एजेंसी ने कहा कि तुर्किये में सोमवार तड़के आए भूकंप और बाद के झटकों से देश में 12,391 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। इस भूकंप के कारण दक्षिण-पूर्वी तुर्की में हजारों इमारतें गिर गईं।
दूसरी तरफ, सीरिया में भी 2,902 लोगों के मारे जाने की सूचना मिली है।
बचावकर्मियों ने क्षतिग्रस्त घरों के मलबों में जीवित बचे लोगों की तलाश जारी रखी है, लेकिन हादसे के तीन दिन बीतने और भीषण ठंड के कारण हर बीतते घंटे के साथ और लोगों को बचा पाने की उम्मीदें भी फीकी पड़ती नजर आ रही हैं।
इंग्लैंड स्थित ‘नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी’ में प्राकृतिक खतरों के विशेषज्ञ स्टीवन गोडबाय ने कहा, ‘‘पहले 72 घंटों को महत्वपूर्ण माना जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘24 घंटों के भीतर जीवित रहने का औसतन अनुपात 74 प्रतिशत, 72 घंटों के बाद 22 प्रतिशत और पांचवें दिन यह छह प्रतिशत होता है।’’
एपी प्रशांत सिम्मी सिम्मी 0902 1112 गाजियांतेप (एपी)
(ललित के झा)
वाशिंगटन, 9 फरवरी। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन ने बुधवार को यहां दावा किया कि अमेरिकी वायु क्षेत्र में चीनी निगरानी गुब्बारों के उड़ने के चार मामले पहले भी सामने आ चुके हैं और अमेरिका में हाल में नष्ट किया गया चीनी गुब्बारा ‘‘कई साल’’ से जारी चीन के बड़े निगरानी कार्यक्रम का हिस्सा था।
पेंटागन का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब अमेरिकी सेना ने अमेरिका के संवेदनशील प्रतिष्ठानों के ऊपर मंडरा रहे एक चीनी निगरानी गुब्बारे को हाल में नष्ट कर दिया था। इस गुब्बारे को शनिवार को अटलांटिक महासागर के ऊपर साउथ कैरोलाइना के तट पर एक लड़ाकू विमान ने नष्ट कर दिया था।
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बुधवार को कहा कि चीन ने केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि पांच महाद्वीपों के कई देशों की संप्रभुता का उल्लंघन किया है।
इस बीच, रक्षा विभाग के प्रवक्ता जनरल पैट राइडर ने संवाददाताओं से कहा कि यूएस नदर्न कमांड नष्ट किए गए गुब्बारे के मलबे को हासिल करने की कोशिश में जुटा है।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि अमेरिका को इस बात की जानकारी है कि इससे पहले भी चार गुब्बारे अमेरिकी क्षेत्र के ऊपर उड़ाए गए हैं।
राइडर ने कहा, ‘‘हम बड़े चीनी निगरानी गुब्बारा कार्यक्रम के तहत इस घटना की जांच कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम कई साल से चलाया जा रहा है।
उन्होंने यह नहीं बताया कि चीन ने ये गुब्बारे कहां से भेजे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह अमेरिका को इस कार्यक्रम के बारे में काफी कुछ पता चला।
ब्लिंकन ने उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘पांच महाद्वीपों के कई देशों की संप्रभुता का उल्लंघन करने वाले इस बड़े निगरानी कार्यक्रम का केवल अमेरिका ही निशाना नहीं है।’’
अमेरिका में मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने भारत और जापान समेत कई देशों को निशाना बनाकर जासूसी गुब्बारों के एक बेड़े को संचालित किया है। अमेरिकी अधिकारियों ने भारत समेत अपने मित्रों एवं सहयोगियों को चीनी गुब्बारे संबंधी जानकारी से अवगत कराया है। (भाषा)
देवरिया (उप्र), 9 फरवरी। देवरिया जिले के रवींद्र किशोर शाही स्पोर्ट्स स्टेडियम में एक कोच के एक नाबालिग क्रिकेटर से मालिश कराने का वीडियो सामने आने के बाद जिला मजिस्ट्रेट ने इस घटना की जांच का आदेश दिया है।
जिला मजिस्ट्रेट जितेंद्र प्रताप ने बृहस्पतिवार को बताया कि तीन सदस्यीय एक दल को इस घटना की जांच का आदेश दिया गया है और उसे तीन कार्य दिवस में रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
सोशल मीडिया पर बुधवार को एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें क्रिकेट कोच अब्दुल अहद को एक छात्रावास में नाबालिग क्रिकेटर से मालिश कराते हुए देखा जा सकता है।
जिला मजिस्ट्रेट ने बताया कि सदर के एसडीएम (उपमंडलीय मजिस्ट्रेट), जिला विद्यालय उप निरीक्षक और जिला युवा कल्याण अधिकारी इस जांच टीम के सदस्य हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह गंभीर मामला है और इसकी जांच करना आवश्यक है। बच्चों और खिलाड़ियों से ऐसी चीजें कराना बहुत निंदनीय है। जांच रिपोर्ट आने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी।’’ (भाषा)
सैम ऑल्टमैन- दुनिया भर में चर्चित चैटजीपीटी के संस्थापक. कहानी 2015 से शुरू होती है, जब सैम ने अपनी कंपनी 'ओपेन-एआई' की स्थापना की और फिर बारी आई चैटजीपीटी जैसे तेज़ तर्रार वर्चुअल रोबोट की.
हमने सोचा क्यों न चैटजीपीटी से ही उसके संस्थापक सैम ऑल्टमैन के बारे में पूछा जाए. सवाल था- कौन हैं सैम ऑल्टमैन?
तो 30 नवंबर को लॉन्च किए गए इस एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) सर्च इंजन का जवाब आया, "सैम ऑल्टमैन एक अमेरिकी उद्यमी और टेक्नोलॉजिस्ट हैं. ये पहले 'लूप्ट' नाम की कंपनी के सीईओ थे और अब 'ओपेन-एआई' के प्रेसीडेंट के तौर पर मशहूर हैं."
इसके अलावा सर्च इंजन ने सैम के बारे में ये भी बताया कि वो तकनीकी समुदाय में खासे प्रभावशाली शख्सियत हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े मुद्दों पर लेक्चर देते हैं.
चैटजीपीटी की तरफ ऐसी सारी जानकारियां तथ्यों या इनके सरलीकरण पर आधारित होते हैं. सिस्टम अपने बारे में ये खुद लिखता है कि, "किसी किरदार या व्यक्ति लेकर कोई सब्जेक्टिव स्टेटमेंट नहीं दता."
चैटजीपीटी के ऐसे रिस्पॉन्स के बाद हमने दूसरे जरियों से सैम ऑल्टमैन पर जानकारी जुटाने की कोशिश की. क्योंकि उनसे, उनकी खोज और नई तकनीकी पहलों से हमारा वर्तमान तेजी से बदलने वाला है. चैटजीपीटी और इमेज जेनेरेटर DALL-E ऐसी ही कोशिश हैं.
सबसे पहले 'नॉन-आर्टिफ़िशियल' बातें
हमारे हाथ लगा 'न्यूयॉर्क टाइम्स' को दिया सैम ऑल्टमैन का एक इंटरव्यू. इसमें सैम ने कहा है कि, "जब वो आठ साल के थे, तो उन्होंने एप्पल के शुरुआती कंप्यूटर्स में से एक 'मैकिन्टोश' का पुर्जा-पुर्जा खोल दिया था. इस तरह इन्होंने कंप्यूटर प्रोग्रिमिंग में दिलचस्पी लेना शुरू किया."
इसी इंटरव्यू में सैम ने ये भी बताया था कि, "अपना कंप्यूटर होने की वजह से उनकी सेक्सुआलिटी भी प्रभावित हुई. इसकी वजह से किशोर उम्र में अलग-अलग ग्रुप्स में बातचीत करना आसान हो गया."
16 की उम्र में उन्होंने अपने पैरेंट्स को बता दिया कि वो एक 'गे' हैं. इसके बाद उन्होंने अपने स्कूल में भी गे होने की बात सार्वजनिक कर दी.
स्कूल के बाद सैम का दाखिला अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित मशहूर स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में हुआ. यहां उनका विषय था- वही कंप्यूटर साइंस. लेकिन यहां वो अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाए.
अपने दोस्तों के साथ मिलकर इन्होंने एक ऐसा ऐप बनाने का फ़ैसला किया, जिससे लोग अपनी लोकेशन दूसरों को साझा कर पाएं. 'लूप्ट' (LOOPT) ऐसा ही ऐप है. अपने दोस्तों के साथ सैम का पहला अनूठा आइडिया.
हम बात कर रहे हैं 2005 की. ये व्हॉट्सऐप आने से बरसों पहले की बात है. इसी दौरान फ़ेसबुक दुनिया भर में फैलना शुरू हुआ था.
तब 'लूप्ट' को ज्यादा अहमियत नहीं मिली, लेकिन इसने एक उद्यमी के तौर पर सैम का कैरियर शुरू करने और इसमें बड़े तकनीकी निवेश का दरवाज़ा खोल दिया.
'लूप्ट' सबसे पहले 'वाय कंबीनेटर' (वाईसी) ने सपोर्ट किया था. ये उस दौर में 'स्टार्ट अप्स' में निवेश करने वाली बड़ी कंपनियों में से एक थी, जिसने 'एयरबीएनबी' और 'ड्रॉपबॉक्स' जैसे ऐप्स में निवेश किया था.
सैम ऑल्टमैन ने अपना पहला प्रोजेक्ट 40 मिलियन डॉलर में बेच दिया. इस पैसे का इस्तेमाल सैम ने अपनी दिलचस्पी का दायरा बढ़ाने के साथ दूसरे आइडियाज़ में निवेश के लिए भी किया. ये निवेश ज़्यादातर वाईसी के आडियाज़ में किया, जिसके वो 2014 से 2019 तक चेयरमैन रहे.
इसी दौरान उन्होंने एलन मस्क के साथ मिलकर 'ओपेन-एआई' की स्थापना की. इसी कंपनी के साथ वो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में उतरे, जिसे लेकर उनमें उत्सुकता तो बहुत थी, लेकिन डर भी तमाम थे.
एआई का मानवीय पक्ष
'ओपेन-एआई' एक रिसर्च कंपनी है. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक इसका मिशन ये तय करना है कि आर्टिफ़शियल इंटेलिजेंस को पूरी मानवता के लिए फ़ायदेमंद बनाया जाए, ना कि इससे कोई क्षति हो.'
कंपनी के इस बयान में ही सैम ऑल्टमैन का वो पुराना डर दिखता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवता के खिलाफ एक 'घातक हथियार' भी साबित हो सकता है."
साल 2016 में 'द न्यूयॉर्कर' में छपी एक विस्तृत रिपोर्ट में सैम कहते भी हैं कि भविष्य के लिए दोनों तकनीकों का मिलन जरूरी है.
उन्होंने कहा था, "या तो हम आर्टिफ़शियल इंटेलिजेंस के वश में हो जाएंगे, या फिर ये हमें अपने वश में कर लेगा." सैम ऑल्टमैन से ये आइडिया एलन मस्क ने शेयर किया था. एलन मस्क भी 2018 तक 'ओपेन-एआई' से जुड़े थे.
लेकिन अपनी कंपनी टेस्ला के साथ हितों के टकराव का हवाला देते हुए अलग हो गए. हालांकि मस्क 'ओपेन-एआई' और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर नियंत्रण प्राप्त करने वाले दूसरे प्रोजेक्ट्स में निवश जारी रखे हुए हैं.
इनमें से एक है 'न्यूरललिंक', जो हमारे ब्रेन को कंप्यूटर से जोड़ने की कोशिश करता है. ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क मानते हैं कि इंसान इसी तरीके से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ तालमेल बनाए रख सकता है.
मस्क कहते हैं, "हमारे बोलने की आवाज कंप्यूटर्स तक बहुत धीमी पहुंचेगी, जैसे व्हेल की आवाज. इससे कंप्यूटर्स को सूचनाएं टेराबाइट्स में प्रोसेस करने में मुश्किल होगी."
भविष्य को लेकर इसी जोखिम भरे दृष्टिकोण ने मस्क और सैम ऑल्टमैन को आर्टिफ़शियिल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने को प्रेरित किया. चैटजीपीटी और DALL-E के लिए रणनीति तैयार करने के पीछे भी यही दृष्टिकोण काम कर रहा है.
भविष्य को लेकर इसी जोखिम भरे दृष्टिकोण ने मस्क और सैम ऑल्टमैन को आर्टिफ़शियिल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने को प्रेरित किया. चैटजीपीटी और DALL-E के लिए रणनीति तैयार करने के पीछे भी यही दृष्टिकोण काम कर रहा है.
टेक्नोलॉजी वर्ल्ड और सिलिकॉन वैली की हलचलों पर नजर रखने वाले डेली न्यूज़ लेटर से बातचीत में सैम ऑल्टमैन ने कुछ हफ्ते पहले कहा भी था, "एक चीज़ जिसे लेकर पूरी तरह दृढ़ विश्वास है, वो ये, कि इस सिस्टम को लोगों से जोड़ने का सबसे जिम्मेदार तरीका है- इसे आहिस्ता-आहिस्ता सामने ले आना."
सैम आगे कहते हैं, "इस तरीके से हम लोगों, संस्थाओं और नीति नियंताओं से आसानी से परिचित करा सकते हैं. ताकि वो इस तकनीक को महसूस कर सकें, ये जान सकें, कि ये सिस्टम क्या कर सकता है और क्या नहीं. अचानक से किसी सुपर पावरफुल सिस्टम को ला देना कतई ठीक नहीं है."
यूट्यूब पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में सूचनाएं और इसका विश्लेषण दिखाने वाले चैनल 'डॉट सीएसवी' के मुताबिक़ इस सिस्टम को लेकर यही रणनीति निर्याणक साबित हुई है. पिछले 20 साल से बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों ने इसी रणनीति के तहत काम किया.
सैम ऑल्टमैन के बयानों का विश्लेषण करते हुए ये चैनल कहता है, "आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस को लीड करने वालों की ये प्रवृति सिलिकॉन वैली की तरह होती है. इनका मोटो होता है- तेजी से आगे बढ़ो और चीज़ें बदलो. ये फूर्ति से काम करने की वो फ़िलॉसफी है, जिसके तहत प्रोडक्ट ये सोचे समझे बिना लॉन्च कर दिए जाते हैं, कि इनसे जटिलताएं क्या पैदा होंगी."
सैम की कोशिशों की व्याख्या करते हुए चैनल ये जोर देकर कहता है, "सैम ऑल्टमैन के केस में ऐसा नहीं. यहां सवाल तेजी का नहीं है, बल्कि प्रोडक्ट्स को अधूरी हालत में सामने लाना है. इससे लोग धीरे-धीरे प्रोडक्ट के अनुकूल बनते जाते हैं."
चैटजीपीटी और DALL-E के मामले में यही हो रहा है. एकेडमिक्स और क्रिएटिव फ़ील्ड से जुड़े तमाम लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं.
दिसंबर में एक ट्विटर पोस्ट में सैम ऑल्टमैन ने भी माना था कि "चैटजीपीटी अविश्वसनीय रूप से सीमित है. लेकिन महानता की झूठी छवि बनाने के मामले में ये काफी अच्छा है. अभी किसी भी महत्वपूर्ण बात पर इसकी सूचनाओं पर भरोसा करना गलत होगा."
उस ट्विटर पोस्ट में ये सैम ऑल्टमैन ने ये कहते हुए अपनी बात खत्म की थी कि "ये अभी आगे होने वाली प्रगति की एक झलक भर है. इसकी दृढ़ता और सच्चाई स्थापित करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है."
चैटजीपीटी को लेकर ऐसी बातें सैम ऑल्टमैन ने उस ट्विटर पोस्ट पर आए सवालों के जवाब में भी लिखी थीं. पोस्ट पर तमाम सवाल चैट को लेकर पूर्वाग्रहों से जुड़े हुए थे.
सैम ने ये माना कि, "चैटजीपीटी में पूर्वाग्रहों के मामले में बहुत सारी कमियां हैं. हम इसे ठीक करने में लगे हुए हैं. हम इसकी डिफॉल्ट सेंटिंग ठीक करने और निष्पक्षता निर्धारित करने की दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि ये इसे इस्तेमाल करने वाले की प्राथमिकता के हिसाब से नतीजे दे पाए."
सैम ऑल्टमैन ने ये भी कहा कि ये काम जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं. इसे हासिल करने में अभी और समय लगेगा.
एआई के भविष्य में क्या होगा?
सैम ऑल्टमैन इस अप्रैल में 38 साल के हो जाएंगे. हाल ही में इन्हें अपना तीन साल पुराना मैसेज मिला, जिसमें उन्होंने 2025 तक कुछ अहम तकनीकी उपलब्धियां हासिल करने की भविष्यवाणी की थी.
इन उपबल्धियों में न्यूक्लियर फ्यूजन को प्रोटोटाइप स्केल पर कारगर बनाना, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को इंडस्ट्री में तमाम लोगों के लिए मुहैया कराना और इंसानों को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली कम से कम एक गंभीर बीमारी के इलाज के लिए नई जीन एडिटिंग की तकनीक विकसित करना.
उस ट्वीट में सैम ने न्यूक्लियर फ्यूजन को लेकर गंभीर चिंता जताई थी.
ऑल्टमैन ने बरसों तक 'हीलियन एनर्जी' नाम की कंपनी में निवेश किया, ताकि सस्ती बिजली बनाने के लिए शोध और संसाधनों को बढ़ाया जा सके. ये कंपनी पानी से ईंधन प्राप्त करके स्वच्छ और कम लागत पर बिजली बनाने की दिशा में काम कर रही है.
सैम की तीन भविष्यवाणियों में से एक के भी सच होने में अभी दो साल का वक्त बाकी है. लेकिन इनमें से एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अभी से ही ठोस आकार लेता दिख रहा है. ये मुमकिन हो रहा है सैम की कंपनी ओपेन-एआई की वजह से.
ये कंपनी सैम ऑल्टमैन ने उन चीजों को हासिल करने के लिए बनाई थी, जिन्हें लेकर उन्हें लगता है कि आने वाला समय इन्हीं का होगा. इसके लिए उन्होंने बरसों तक तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति के लिए बरसों तक निवेश जारी रखा.
वो जिस भविष्य की कल्पना करते हैं, उसके बारे में 'द न्यूयॉर्कर' के एक आर्टिकल में सैम ने लिखा भी कि, "इसमें भी हमारे मूल्य वही होंगे, जो आज हैं."
अमेरिका के संदर्भ में उन्होंने कहा भी था, "मैं इस देश को बेहद प्यार करता हूं. समय कोई भी हो, लोकतंत्र उसी अर्थव्यस्था में सुरक्षित रहेगा, जिसमें विकास हो."
इस बात को लेकर सैम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं. वो कहते हैं, "आर्थिक विकास से लाभ के बगैर लोकतंत्र में होने वाला हर प्रयोग नाकाम होगा."
क्या वो संभव कर पाएंगे?
अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही सैम ऑल्टमैन ने अपने प्रोजेक्ट्स में निवेश के लिए बड़े बड़े इन्वेस्टर्स को आकर्षित किया. खासतौर पर 'वाई कंबीनेटर' के दौर में, जिसमें खुद उन्होंने भी बड़ा निवेश किया.
हालांकि उनकी कुल संपत्ति के बारे में किसी को ठीक-ठीक पता नहीं. लेकिन हाल में ही हुई कुछ घोषणाओं से उनके अरबपतियों की लिस्ट की तरफ बढ़ने के संकेत साफ हैं.
'ओपेन-एआई' जो एक नॉन प्रॉफिट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया था, वो आज सीमित लाभ के साथ एक हाइब्रिड कंपनी बन चुकी है.
कुछ हफ्ते पहले 'द वॉल स्ट्रीट जनरल' ने एक आर्टिकल में इस बात का जिक्र किया था कि 'ओपेन-आई' बहुत कम लाभ अर्जित करने के बावजूद 2900 मिलियन डॉलर का स्टार्ट अप बनने के करीब पहुंच चुका है.
इसके बाद सैम की कंपनी ने माइक्रोसॉफ्ट के साथ बहुत बड़ा करार किया. अनिश्चित समय और अरबों डॉलर के इस समझौते के तहत पर्सनल कंप्यूटिंग, इंटरनेट, स्मार्ट डिवाइसेज और क्लाउड के क्षेत्र में बड़े काम आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे.
इसी सप्ताह अमेरिका में चैटजीपीडी का सब्सक्रिप्शन वर्जन लॉन्च हुआ है. इसे प्रयोग के तौर पर सिर्फ अमेरिका में शुरू किया गया है. इसकी एक महीने की सदस्यता के लिए यूजर को 20 डॉलर देने होते हैं.
इन बदलावों से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की विश्वसनीयता और इसे सुरक्षित बरकरार रखने की प्रतिबद्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
लेकिन सवाल है, कि क्या ये हो पाएगा. ये ऐसी चीज है जो आने वाले दिनों में हम चैटजीपीटी से ही पूछ सकते हैं. (bbc.com/hindi)
ब्रिटेन के दौरे पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने वहां की संसद को संबोधित करते हुए रूस के हारने की भविष्यवाणी की है और कहा है कि एक दिन आज़ादी जीतेगी.
वेस्टमिन्स्टर हॉल में मौजूद ब्रितानी सांसदों को संबोधित करते हुए उन्होंने इस युद्ध में ब्रिटेन के समर्थन के लिए शुक्रिया अदा किया है.
उन्होंने बताया कि यूक्रेन के सैनिक चैलेंजर टैंक को चलाने के लिए ब्रिटेन में प्रशिक्षित किए जा रहे हैं. ज़ेलेंस्की ने जानकारी दी है कि ब्रिटेन ने हाल में 14 युद्धक टैंक देने का वादा किया है.
इसके लिए ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक का धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा, ''मैं आपको धन्यवाद देता हूं ऋषि.''
उनके इस बयान पर पीएम ऋषि सुनक ने मुस्कराते हुए तालियां बजाई.
ज़ेलेंस्की ने कहा कि ब्रिटेन हमारी ज़िंदगी की सबसे अहम जीत में हमारे साथ चल रहा है और जब हम एक साथ जीतेंगे तो किसी हमलावर को पता चल जाएगा कि यदि वो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती देता है तो उसका अंज़ाम क्या होगा. (bbc.com/hindi)
भारत में अदानी समूह को लेकर चल रहे विवादों के बीच फ्रांस की टोटल एनर्जीज़ ने समूह के 50 अरब डॉलर के हाइड्रोजन प्रोजेक्ट में निवेश का इरादा फ़िलहाल टाल दिया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने कंपनी के सीईओ पैट्रिक पोयने के हवाले से बताया है कि अदानी समूह पर लगे आरोपों के बाद यह फ़ैसला लिया गया है.
पिछले साल जून में फ्रांस की इस दिग्गज तेल और ऊर्जा कंपनी को अदानी समूह के हाइड्रोजन प्रोजेक्ट में 25 फ़ीसदी हिस्सेदारी देने का एलान किया गया था.
हालांकि टोटल एनर्जीज़ ने अब तक इससे संबंधित किसी समझौते पर दस्तख़त नहीं किए थे.
सीईओ पोयने ने कहा है कि हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए आरोपों पर जब तक अदानी समूह से सफ़ाई नहीं मिल जाती, तब तक हाइड्रोजन प्रोजेक्ट को रोक दिया जाएगा.
गौतम अदानी के नेतृत्व वाले अदानी समूह के लिए फ्रांस की यह कंपनी सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में से एक है.
इसने अदानी समूह के अक्षय ऊर्जा उद्यम, अदानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड और शहरों में गैस पहुंचाने वाली कंपनी अदानी टोटल गैस लिमिटेड में पहले से निवेश कर रखा है.
अदानी समूह की योजना 10 सालों में हाइड्रोजन प्रोजेक्ट में 50 अरब डॉलर का निवेश करने की रही है.
उसका लक्ष्य है कि 2030 के पहले इसका शुरुआती उत्पादन 10 लाख टन हो जाए. (bbc.com/hindi)
लाहौर, 8 फरवरी। पाकिस्तान में लाहौर उच्च न्यायालय ने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के मामले में पांच साल से अधिक समय बाद अपीलों पर सुनवाई के लिए बुधवार की तारीख तय की।
मीडिया में आयी एक खबर के अनुसार, लाहौर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मुहम्मद अमीर भट्टी ने न्यायमूर्ति सदाकत अली खान और न्यायमूर्ति मिर्जा वकास की एक विशेष खंडपीठ गठित की।
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ अखबार की एक खबर के मुताबिक, पीठ नौ फरवरी को इस मामले के संबंध में आठ अपीलों पर सुनवाई करेगी।
इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ जरदारी, सभी पांच आरोपियों, पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ (अब दिवंगत) तथा दोषी पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किये गये हैं।
मामले में आरोपी मुशर्रफ के खिलाफ एक स्थायी गिरफ्तारी वारंट लंबित है। हालांकि, पांच फरवरी को उनके निधन के बाद उनके खिलाफ अपील खारिज की जा सकती है।
खबर के अनुसार, पांच आरोपियों में एतजाज, शेर जमां और हसनैन अदालत के समक्ष पेश होंगे, जबकि अब्दुल रशीद अदियाला जेल में बंद है। पांचवां आरोपी रफाकात लापता है।
मामले में दो पुलिस अधिकारी सौद अजीज और खुर्रम शहजाद जमानत पर बाहर हैं। दोनों को 17 साल की जेल की सजा सुनायी गयी थी।
गौरतलब है कि बेनजीर की 27 दिसंबर 2007 को रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के दौरान ग्रेनेड हमले में मौत हो गयी थी। उनकी कथित तौर पर 15 वर्षीय आत्मघाती हमलावर द्वारा हत्या की गयी थी। (भाषा)