राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति भवन
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सन् 1952 में सरगुजा के दौरे पर आये तो यहां के पंडो आदिवासियों के बीच जिस भवन पर रुके थे, उसे राष्ट्रपति भवन का नाम दिया गया है। प्रथम राष्ट्रपति ने पंडो आदिवासियों को अपना दत्तक पुत्र माना था। तब से इस भवन को यहां के निवासियों ने सजा-संवारकर रखा है। हाल ही में जब राज्यपाल अनुसुईया उइके यहां पहुंचीं तो उन्हें यह जानकर ताज्जुब हुआ कि इन 70 सालों के भीतर राष्ट्रपति भवन पहुंचने वाली वह पहली राज्यपाल हैं। उन्होंने अपने भाषण में बिना झिझके स्वीकार किया कि सरकारों ने पंडो और दूसरे आदिवासी समुदायों को ऊपर उठाने के लिये करोड़ों रुपये दिये पर आज भी उनका जीवन स्तर नहीं बदला, जरूरी स्वास्थ्य शिक्षा की सुविधा नहीं मिलीं।
डुप्लीकेट का कार्यक्रम स्थगित
पिछले कुछ समय से अलग-अलग फोरम में स्थानीय, और बाहरी के मुद्दे पर चर्चा होते रहती है। इस पर सोशल मीडिया में कई लोग आग भी उगलते रहते हैं। कुछ दिन पहले शहर के मुख्य मार्केट में छापा पड़ा। इसमें कुछ दुकानदारों के यहां ब्रांडेड कंपनी के नकली सामान भी जब्त हुए। फिर क्या था, छत्तीसगढिय़ा का झंडा थामे एक-दो लोगों ने अनर्गल प्रलाप शुरू कर दिया। सोशल मीडिया में यह लिखा गया कि बाहर से आए लोग छत्तीसगढ़ में नकली सामान बेचकर माल बना रहे हैं। इसके बाद व्यापारी संगठनों के लोगों के बीच आपस में काफी बहस भी हुई। इसका प्रतिफल यह हुआ कि कुछ दिनों बाद होने वाले कार्यक्रम में डुप्लीकेट अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, ऋ षि कपूर को बुलाना तय हुआ था, लेकिन विघ्न संतोषी लोगों को मौका न मिल जाए, इसलिए डुप्लीकेट अभिनेताओं का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया।
नतीजे पक्ष में नहीं आए तो...
खैरागढ़ उपचुनाव पर भाजपा हाईकमान की नजर है। प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी नितिन नबीन दो दिन पहले रायपुर पहुंचे, और उन्होंने कुछ नेताओं से खैरागढ़ में पार्टी का हाल जाना। नेताओं ने उन्हें बताया कि चूंकि कांग्रेस की सरकार है, इसलिए खूब मेहनत करनी पड़ेगी। नितिन नबीन ने नेताओं को साफ-साफ कहा कि चुनाव हर हाल में जीतना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो काफी गड़बड़ हो जाएगी। संकेत साफ है कि यदि नतीजे पक्ष में नहीं आए, तो हाईकमान बड़े पदों पर बैठे नेताओं को बदल सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
शादी पूरी तरह सरकारी
मंडप सरकार की, खर्चे सरकारी, परिधान, आर्नामेंट, उपहार, नगद प्रोत्साहन सब सरकारी मद से। और तो और जिस जोड़े की शादी हो गई वह भी सरकारी। मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना तो दरअसल निर्धन कन्याओं के विवाह में मदद करने के लिये है, पर सरकारी कर्मचारी मिल-जुलकर इसमें भी अपना हिस्सा बंटवारा कर लेते हैं। महिला बाल विकास ने दंतेवाड़ा में रविवार को 351 जोड़ों का सामूहिक विवाह किया। इनमें कृष्णा कुंजाम और संजना भी दिखे। उन्हें कुछ लोगों ने पहचान लिया, क्योंकि ये दोनों सरकारी कर्मचारी हैं। कृष्णा वन विभाग में तो संजना स्वास्थ्य विभाग में काम करती है। लोगों ने कहा कि ये तो पहले से ही विवाह कर चुके हैं। फिर यहां दोबारा कैसे रचा रहे हैं। दूसरी बात यह योजना तो निर्धन कन्याओं के लिये है। सरकारी कर्मचारियों के लिये तो है नहीं इस एक मामले में पोल तो खुल गई पर कोई दावा नहीं कि यही एक ऐसी शादी हुई हो। कई और जोड़े हो सकते हैं, जिनकी पहले शादियां हो चुकी होती हैं, पर महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी कर्मचारी सरकारी योजना का फायदा उठाने के लिये उन्हें मंडप पर बिठा देते हैं। बहरहाल, इस एक मामले के पकड़ में आने के बाद कलेक्टर ने जांच तो बिठा दी है।
एक टोली का बाहुबल हो तो फिर...
जहां आम नागरिक अपने अधिकारों को लेकर लापरवाह रहते हैं वहां पर सार्वजनिक जगहों पर कोई भी कब्जा कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ऐतिहासिक सप्रे स्कूल मैदान को म्युनिसिपल ने काट-काटकर उसका बेजा इस्तेमाल किया, और इस शहर के लोग खामोश रहे। नतीजा यह है कि जहां खेल होता था, वहां आज आसपास के करोड़पतियों की कारें खड़े रहने की पार्किंग बन गई है।
शहर के अनुपम उद्यान में सुबह जाएं तो वहां लोगों का एक समूह बड़े-बड़े स्पीकर लगाकर माईक हाथ में लिए हुए फटी आवाज में तरह-तरह के गाने गाते दिखता है, और जब गाने वाले ही थक जाएं तो मोबाइल फोन से उसे जोडक़र मनचाहा गाना बजाया जाता है। चूंकि बगीचे में घूमने वाले लोग किसी भी समूह से उलझने से बचते हैं, इसलिए ये लोग वहां लाउडस्पीकर लगाकर मनचाही बातें बोल सकते हैं। म्युनिसिपल के लोगों को कंस्ट्रक्शन पर खर्च करने से अधिक किसी बात पर दिलचस्पी नहीं रहती, इसलिए उसके बगीचों का लोग मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस जगह कुछ लोग शांति से बैठकर योग-ध्यान करते दिखते हैं, वहां यह एक समूह लाउडस्पीकर लगाकर कर्कश आवाज में गाता बजाता रहता है। कोई पार्षद, महापौर, या अफसर जाकर कुछ देर इन्हें बर्दाश्त करके देखे।
अब हाथी हमारे और आसपास मिलेंगे
पर्यावरण, जैव विविधता, आदिवासियों के विस्थापन जैसी अनेक चिंताओं के बावजूद आखिरकार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हसदेव अरण्य में नई कोयला खदानों की अनुमति छत्तीसगढ़ सरकार से हासिल करने में सफल रहे। उन्होंने पिछले कई महीनों से केंद्र के अलावा कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के जरिये दबाव बना रखा था। राज्य सरकार के अनुमति पत्र में जिला कलेक्टर और वन मंडलाधिकारी को नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिये जरूर कहा गया है, पर माना जाये कि यह पत्र की औपचारिक भाषा ही है।
सरकार के इस फैसले का प्रभावित आदिवासी गांवों की ओर से प्रतिक्रिया आना बाकी है, पर लेमरू एलिफेंट रिजर्व की बातें होने के बावजूद इसके नहीं बनने पर हाथियों की प्रतिक्रियाएं तो लगातार दिखाई दे रही हैं। सरगुजा, धरमजयगढ़, कोरबा, कटघोरा, मरवाही, पसान से लेकर अब तो ये हाथी अब अचानकमार टाइगर रिजर्व तक आकर भटक रहे हैं। अब पैदा हुई नई परिस्थिति में लेमरू एलिफेंट रिजर्व की संभावना बेहद धूमिल हो चुकी है। देखना होगा कि हाथियों के लिये कोई नई जगह तलाशी जायेगी या फिर लेमरू में ही हाथी रिजर्व एरिया तैयार करने कोई अध्ययन होगा। वैसे भी लेमरू एलिफेंट रिजर्व की बातें 12-15 साल से हो रही हैं, लेकिन आकार नहीं ले पाया। कोई नई प्लानिंग यदि बनाई गई तो वह कितने दिनों, वर्षों में धरातल पर दिखेगा..., आज कोई कहने की स्थिति में नहीं है। आने वाले दिनों में हाथियों के भटकने का क्षेत्र और उनकी संख्या दोनों ही बढ़ी हुई दिखे तो कोई ताज्जुब नहीं।
कमीशन के लिये ही फंड निकाला?
छत्तीसगढ़ के सभी सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या के हिसाब से 10 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक की राशि शाला विकास के नाम पर जारी की गई हैं। सरगुजा और जशपुर जिले के स्कूलों में भी आठ दस दिन के भीतर रकम पहुंची है। अकेले सरगुजा जिले के लगभग 2 हजार स्कूलों के लिये तीन करोड़ रुपये से अधिक राशि जारी की गई है।
इस राशि का इंतजार स्कूल के प्राचार्यों को सत्र के आरंभ से रहता है, ताकि वे स्कूल, स्कूल फर्नीचर की मरम्मत करा सकें, दीवारों पर रंग रोगन करा सकें, खेल सामग्री खरीद लें। लेकिन यह रकम पहुंची है अब, जब वित्तीय वर्ष के साथ-साथ पढ़ाई का सत्र भी खत्म हो चुका है और परीक्षायें शुरू हो चुकी हैं। यह राशि अगले सत्र के लिये बचाकर भी नहीं रखी जा सकती, क्योंकि 31 मार्च तक जो राशि बची रहेगी, वह लैप्स हो जायेगी।
कुछ स्कूलों में तो नियम से खर्च कर किसी तरह से थोड़े काम हो भी जा रहे हैं, पर अधिकांश में कमीशन दो बिल जमा कर लो, यही हो रहा है।
इसी महीने वित्त विभाग ने 5 मार्च के आसपास सभी विभागों को निर्देश दिया था कि बची हुई राशि को बेकार खर्च नहीं करना है, वापस लौटा दें। जिला कोषालयों को इस बारे में निर्देश दिये गये थे। पर स्कूलों में हफ्ते दस दिन के भीतर खर्च करने के लिये करोड़ों रुपये जारी करने का मकसद क्या हो सकता है, यह समग्र शिक्षा का काम देख रहे राजधानी के अफसर बता सकते हैं। पहली नजर में तो यह भ्रष्टाचार और कमीशन के लिए अनुकूल रास्ता देना ही नजर आ रहा है।
नन्हा किंतु जहरीला सांप
आमतौर पर सांपों के बारे में जानकारी नहीं होने के कारण लोग उसे भगाने की जगह मारने की कोशिश करते हैं खासकर बड़े आकार के सांपों को। इनमें किंग कोबरा, इंडियन क्रेट, इंडियन कोबरा, रसैल वाईपर आदि भारत में मिलने वाले जहरीले सांप है। पर विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकांश सांप जहरीले नहीं होते। वे यह भी कहते हैं कि सांप को मारे नहीं, न ही खुद पकडऩे की कोशिश करें, रेस्क्यू के लिये वन विभाग या एनजीओ को सूचना दें, कोई न हो तो पुलिस को ही बता दें। कटघोरा के छुरी नगर पंचायत के एक पार्षद के घर में सांप निकला। आकार में बेहद छोटा होने के कारण उन्हें नहीं लगा कि यह जहरीला हो सकता है। फिर भी उन्होंने रेस्क्यू के लिये कॉल किया। वन विभाग ने पिछले 20 सालों से सांपों का रेस्क्यू कर रहे अविनाश यादव की मदद ली और उसे सुरक्षित जंगल में छोड़ दिया।
दावा यह किया जा रहा है कि यह अफई या फुरसा सांप है, जो छत्तीसगढ़ में कभी देखा नहीं गया। यादव का कहना है कि सालों से इस फील्ड में काम करते हुए कभी उन्होंने इसे नहीं देखा। जैव विविधता के लिये यह अच्छा है कि किसी नई प्रजाति का सांप कोरबा इलाके में पाया गया। इस सांप की अधिकतम लंबाई करीब 0.55 मीटर होती है। पर, बेहद जहरीला है। कुछ घंटों में ही मौत की नींद सुला सकती है।
मध्य एशिया के कई भागों में या मिलता है ।भारत के महाराष्ट्र के कोकण और रत्नागिरी इलाके में तथा इराक में भी पाया जाता है। राजस्थान के रेगिस्तान में रात के समय इसे चलते देखा गया है।
विविध प्रजातियों के सांप के लिये जशपुर जिले का फरसाबहार बहुत सालों से चर्चा में है। कुछ साल पहले कोरबा के पसान इलाके में तो 12 फीट का उडऩे वाला सांप देखने का दावा कुछ लोगों ने किया, पर इसकी पुष्टि कभी नहीं हुई।
भोले बाबा सब देख रहे हैं...
रायगढ़ तहसील ऑफिस से भगवान शिव को नोटिस जारी होने की चर्चा बीते कई दिनों से है। तहसील के अधिकारियों का कहना था कि चूंकि हाईकोर्ट के आदेश पर अवैध कब्जा हटाने के लिये सीमांकन कराया गया, तो 10 लोगों का नाम सामने आया। इनमें एक शिव मंदिर भी है। चूंकि मंदिर के रखवाले या पुजारी के नाम पर कोई सामने नहीं आया, इसलिये सीधे भगवान को नोटिस जारी कर दिया गया। पेशी में हाजिर नहीं होने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी। घबराये भक्तों ने शुक्रवार को शिवलिंग को ही उखाड़ लिया और उनको ठेले में बिठाकर तहसील दफ्तर पहुंच गये। राजस्व अधिकारी कठघरे में बुलाकर पूछें शिवलिंग से, क्या पूछना है।
मगर, बात यहां खत्म नहीं हुई। तहसीलदार साहब, चैंबर पर नहीं थे, बाहर नोटिस लगी थी कि दूसरे विभागीय काम में गये हैं, अगली पेशी अब 10 अप्रैल को। भक्त निराश हुए, प्रतिमा लेकर लौट गये।
कल ही प्रदेशभर के वकीलों ने राजधानी रायपुर में प्रदेशभर के वकीलों ने प्रदर्शन किया। खास तौर पर यह रायगढ़ के ही तहसीलदारों व राजस्व अधिकारियों के खिलाफ था, जिन पर वे भ्रष्टाचार और सुनवाई लटकाने का आरोप वे लगा रहे हैं। भोले बाबा सब देख रहे हैं। राजस्व के अफसरों को भी वकीलों को भी। न्याय सबको मिलेगा।
रेडी टू ईट पॉलिसी के खिलाफ
बस्तर में एक और आंदोलन शुरू हो गया है। पहले यह राज्य के अलग-अलग जिलों में हो चुका है। फिर हाईकोर्ट में याचिका भी लगाई गई है, जिस पर फैसला आना बाकी है। रेडी-टू-ईट बनाने का काम महिला स्व-सहायता समूहों से छीनकर राज्य बीज विकास निगम को दे दिया गया है। बीज निगम इसमें सिर्फ 25 फीसदी निवेश करेगा, बाकी 75 फीसदी एक प्राइवेट फर्म का होगा। फरवरी माह के बाद नई योजना लागू की जानी थी, तो अब धीरे-धीरे हो रही है। कांकेर जिले में करीब एक हजार महिलाएं 72 स्व-सहायता समूहों को चला रही हैं। इनके साथ सरकार का तीन साल का करार था। पर एक साल बाद ही काम से हटा दिया गया। आहार बनाने के लिये उन्होंने मशीन और कच्चे माल के लिये कर्ज भी ले रखा है। अब उन्हें डिफाल्टर हो जाने का डर है। हाईकोर्ट ने अब तक की सुनवाई में सरकार के कदम पर कोई रोक नहीं लगाई है। कांकेर में महिलाओं ने कल प्रदर्शन किया। फिलहाल तो उन्हें हाईकोर्ट के फैसले का ही इंतजार करना होगा। इन सबके बीच, यह गौर करने की बात है कि इन समूहों में से ज्यादातर का गठन भाजपा के शासनकाल में हुआ। कई समूह 2008-09 से काम कर रही हैं। तब सरकार की सभाओं में भीड़ पहुंचे, इसकी जिम्मेदारी भी उनको सौंप दी जाती थी। कांग्रेस शायद भीड़ के लिये उन पर निर्भर नहीं हो।
हाथी वापस, लौटी एटीआर की रौनक
अचानकमार टाइगर रिजर्व में बीते एक माह से डेरा जमाये जंगली हाथियों का झुंड वापस लौट गया। टाइगर रिजर्व का इस मौसम में भ्रमण करने वाले बड़ी संख्या में आते हैं, पर हाथियों किस ओर से कब यहां पर्यटकों को नुकसान पहुंचा दे, कोई अनहोनी न हो जाये, इस आशंका से जंगल सफारी का काम रोक दिया गया था। अब यह शुक्रवार से फिर शुरू हो गया। इससे जंगल सफारी जिप्सी में काम करने वाले गार्ड, ड्राइवर आदि के चेहरे पर मुस्कान लौटी है। छोटे-छोटे चाय-पानी की दुकानों में भी चहल-पहल दिखने लगी है। करीब डेढ़ दर्जन हाथी अचानकमार में विचरण कर रहे थे। इसके चलते हर कोई जंगल के भीतर घुसने से घबरा रहा था। यहां पहले से पालतू बनाकर रखे गये हाथियों पर भी आक्रमण का खतरा था। हाथियों के जाने के बाद वनभैंसा भी सडक़ों के आसपास दिखने लगे हैं। पर हमेशा की तरह इस टाइगर रिजर्व में किसी को टाइगर नहीं दिख रहा है।
हिंदी के साथ की दिक्कतें
कंप्यूटर पर हिंदी के फॉन्ट कई तरह की दिक्कतें खड़ी करते हैं। अंग्रेजी में काम करने वालों को जब थोड़ा बहुत काम हिंदी की देवनागरी लिपि में करना पड़ता है तो उसका नजारा कुछ इस तरह का भी बन सकता है। यह दुनिया की एक सबसे बड़ी समाचार एजेंसी रायटर्स के एक कोर्स की बात है। इसके पोस्टर को देखें, इसमें हिंदी के शब्द किस तरह से बन रहे हैं !
यह आंदोलन असरदार होगा?
आंदोलनों के बहुत सारे तरीके होते हैं। कुछ तरीके असरदार होते हैं, और कुछ तरीके बेअसर भी रहते हैं। मध्यप्रदेश में नर्मदा सरोवर के आंदोलन में कई महिलाओं ने पानी में डूबकर कई दिनों तक लगातार प्रदर्शन किया, और पानी से उनके पैरों पर पड़ी झुर्रियों की तस्वीरें दुनिया भर में लोगों का दिल दहलाने वाली थीं. जल सत्याग्रह कई जगहों पर असरदार प्रदर्शन साबित हुआ है। अभी छत्तीसगढ़ में वन कर्मचारियों का आंदोलन चल रहा है। ऐसी खबरें भी गांव-गांव से आ रही हैं कि गर्मी के इस मौसम में जंगलों में आग लगने का खतरा रहता है और ऐसे में वन कर्मचारियों के आंदोलन से यह खतरा बढ़ जाता है। कोरबा की एक खबर है कि वहां आंदोलन पर बैठी हुई महिला वन कर्मचारियों ने हाथों में मेहंदी लगा कर प्रदर्शन किया।
सरकार के नजरिए से देखें तो यह प्रदर्शन सबसे अधिक सहूलियत का है क्योंकि जब तक हाथों में मेहंदी लगी हुई है तब तक तो न वे हाथ पत्थर चला सकते, न ही पुलिस का कोई बैरियर तोड़ सकते, और न ही पुलिस की लाठियों को थाम कर पीछे धकेल सकते। स्थानीय पुलिस से पूछा जाए तो वह तो हर आंदोलनकारी के हाथों के लायक मेहंदी का जुगाड़ करके उसे भिजवाने भी तैयार हो जाएगी, और हो सकता है कि किसी मेहंदी लगाने वाले को भी भेज दे अब कर्मचारियों को यह सोचना चाहिए कि प्रदर्शन के इस तरीके से क्या सचमुच ही सरकार पर कोई दबाव पड़ सकता है?
फिल्म अच्छी न लगी हो तो चुप, वरना...
अलवर, राजस्थान के एक बैंक मैनेजर ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म देखने के बाद चुप्पी के बजाय सोशल मीडिया पर अपनी राय रख दी। सवाल उठाया कि दलितों पर इतने अत्याचार होते हैं, उन पर फिल्में क्यों नहीं बनती। ’जय भीम’, दलितों को न्याय दिलाने की एक सच्ची घटना पर बनी है, उस फिल्म को टैक्स फ्री क्यों नहीं किया गया था? फिल्म के समर्थकों ने इस आलोचना के जवाब में कुछ लिख दिया। दलित बैंक मैनेजर खुद पर काबू नहीं रख पाया। जवाब में देवी-देवताओं के बारे में भी लिख मारा। आस्था को पहुंची चोट, प्रतिक्रिया तेज हो गई। बात बिगड़ते देख मैनेजर ने माफी मांग ली। पर लोग माने नहीं। उनको तो मैनेजर की औकात दिखानी थी। मंदिर में बुलाकर उससे चौखट पर नाक रगड़वाई गई और वीडियो बनाकर उसे वायरल भी किया गया।
छत्तीसगढ़ में तो सीएम ने फिल्म खुद ही पहले देख ली, विपक्षी नेता आमंत्रित करने के बावजूद नहीं पहुंचे। टैक्स फ्री करने के सवाल पर भी उन्होंने फिल्म पर केंद्र की जीएसटी हटाने की सलाह दे दी।
दरअसल, कोशिश यह हो रही है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ से पहली बार कश्मीरी पंडितों की 32 साल से दबी हुई सच्चाई सामने आई, ऐसी आम धारणा बन जाये। इस फिल्म में क्या छिप गया, उसके बारे में लोग खामोश रहें। देश के प्रधानमंत्री जिस फिल्म की तारीफ कर रहे हों और भाजपा की सरकारों ने जहां लोगों के लिये यह फिल्म देखने का आह्वान और खास इंतजाम किया हो, उस फिल्म के बारे में कोई टिप्पणी क्यों किसी को करनी चाहिये? मगर नहीं, लोग मान नहीं रहे, उनको नाक रगड़वाकर मनवा लेने का तरीका ढूंढ लिया गया है।
बंद मु_ी लाख की, खुल गई तो?
पंजाब के नतीजों के बाद छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता बेहद जोश में आ गए हैं। पर, पार्टी ने इस गर्माहट को खैरागढ़ विधानसभा उप-चुनाव में नापने से हाथ खींच लिया है। किसी भी नये राज्य में पैर जमाने के लिये जब अवसर मिले, चुनाव लडक़र अपनी ताकत का अंदाजा लेना लगाना चाहिये। आम आदमी पार्टी को यदि लगता है कि पंजाब की प्रचंड जीत से पूरे देश में एक बड़ा संदेश गया है तो इस नई-नई जीत को भुनाया क्यों नहीं जाता?
वजह यह बताई जा रही है कि सन् 2023 की तैयारी पर उन्होंने फोकस कर रखा है। पर, अनेक राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि खैरागढ़ में मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होना है। त्रिकोणीय स्थिति बनाने की कोशिश एक सीमा तक जेसीसी (जे) जरूर कर सकती है। आम आदमी पार्टी को सम्मानजनक वोट हासिल करने के भी लाले पड़ सकते हैं। इसलिये पंजाब नतीजे का असर, जिसके सहारे वे संगठन का विस्तार कर रहे हैं, उसमें खैरागढ़ के परिणाम के बाद पानी फिर सकता है। लोग पंजाब भूल जायेंगे, खैरागढ़ याद करने लगेंगे।
खतरे में जंगल, जीव व ग्रामीण
प्रदेशभर में जंगल विभाग के मैदानी कर्मचारी हड़ताल पर हैं। जब से आंदोलन चल रहा है जंगल और वहां रहने वाले ग्रामीण, दोनों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। हाथियों की आमद का पता नहीं चल रहा है और महुआ बीनने गये लोगों पर उनका हमला हो रहा है। कई मौतें हो चुकी हैं, अनेक घायल हैं।
अफसर जंगल में रहते नहीं। वे शहर के एसी दफ्तरों से राज चलाते हैं। जिनको वे अपना हाथ-पैर मानते हैं, उन्हीं ने काम बंद कर दिया है। गर्मी के दिनों में शिकार की घटनायें बढ़ जाती है। पानी की तलाश में जानवर दूर-दूर भटकते हैं। कई बार आबादी के नजदीक आ जाते हैं। इसी मौसम में जंगलों में जगह-जगह आग लग रही है। रायगढ़, मरवाही, सरगुजा सब तरफ से खबरें हैं। मरवाही वन मंडल के खोडरी परिक्षेत्र में आग लगने की खबर मिलने पर मीडिया के कुछ लोग कैमरा पकडक़र दौड़े। वहां आग की लपटें हरे पेड़ों को भी जला रही थी। उन्होंने डीएफओ सहित जंगल के कई अधिकारियों को फोन लगाया। किसी न नहीं उठाया। तब वे खुद आग बुझाने की कोशिश करने लगे। कुछ हद तक इसमें सफलता मिली। काफी देर बाद स्थानीय ग्रामीणों की मदद से आग बुझाई जा सकी।
धर्म की लाँड्री की सहूलियत
धर्म की बातें बड़ी दिलचस्प रहती हैं। कल ही किसी एक जानकार से सुनने मिला कि इराक में जब गृहयुद्ध चल रहा था, तो वहां कुर्द लड़ाकों में महिलाएं भी शामिल थीं। और उनके खिलाफ खड़े हुए आतंकी संगठनों के लोग इस मोर्चे से बचना चाहते थे क्योंकि उनकी धार्मिक सोच यह कहती थी कि किसी महिला के हाथों मारे जाने पर जन्नत नहीं मिलेगी। दूसरी तरफ तमाम किस्म के जुर्म करके ऊपर जाने वाले लोगों को जन्नत में 72 हूरों की उम्मीद रहती है, और शायद उनके कुंवारी होने की मान्यता भी है।
ईसाई धर्म में चर्च में कन्फेशन चेंबर का इंतजाम रहता है जिसमें चेहरा दिखाए बिना एक हिस्से में बैठे लोग, दूसरे हिस्से में बैठे पादरी से अपने पाप गिना सकते हैं, और यह माना जाता है कि ऐसे प्रायश्चित के बाद वे पापमुक्त हो जाते हैं। कुल मिलाकर धर्म लोगों की आत्मा को गंदगी के दाग छुड़वाने के लिए एक लॉंड्री मुहैया कराता है, जिससे लोग नए उत्साह से अगले पाप करने में जुट जाएं।
दूसरी तरफ आज हिन्दुस्तान में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है, और उसे मनाया जा रहा है। इस एकादशी के बारे में हिन्दू धर्मालुओं में यह मान्यता है कि इसका व्रत रखने पर लोग सारे पापों से, ब्रम्हहत्या जैसे पाप से भी मुक्त हो जाते हैं। इसलिए साल में एक दिन आज व्रत रखकर बाकी पूरे साल पाप करने की आजादी मिल जाती है क्योंकि एक बरस बाद फिर ऐसी सहूलियत वाली एकादशी आएगी ही आएगी। हिन्दू धर्म कहता है कि हर वर्ष 24 एकादशी होती हैं, और जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढक़र 26 हो जाती है। धार्मिक मान्यता कहती है कि ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है, अगर पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाए। इस व्रत के तहत साल भर के पाप से मुक्त होने के लिए कुल इतना करना है कि एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें, इसके बाद विष्णु की पूजा करें, फिर भगवान की कथा पढ़ें या सुनें, अगले दिन विष्णु की पूजा करें, और ब्राम्हणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित बिदा करें।
अब इस व्रत में ईश्वर को जो हासिल होता है वह तो पता नहीं, व्रत करने वाले को पापों से मुक्ति मिलने की गारंटी बताई गई है, और जिसे इस व्रत से कुछ ठोस हासिल होता है, वह भोजन और दक्षिणा पाने वाले ब्राम्हण हैं। आगे आप खुद समझदार हैं...
जनता कांग्रेस की खैरागढ़ में तैयारी
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) से विधायक प्रमोद शर्मा और स्व. देवव्रत सिंह ने मरवाही विधानसभा उप-चुनाव में पार्टी लाइन के बाहर जाकर काम किया था। वे जेसीसी (जे) के उस फैसले के खिलाफ थे, जिसमें कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा को समर्थन दिया गया था। दोनों ने कह दिया कि हम परंपरागत कांग्रेसी हैं, भाजपा के साथ कभी नहीं जा सकते। दोनों विधायकों की कांग्रेस में आने की लगभग तैयारी थी किंतु कुछ तकनीकी अड़चन आ रही थी। अब वह अध्याय लगता है बंद हो गया। शर्मा के मामले में यह भी हुआ कि बीते साल सितंबर महीने में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई थी। इधर कांग्रेस का आरोप था कि स्थानीय चुनावों में शर्मा का साथ नहीं मिला। फिलहाल, विधायक प्रमोद शर्मा लंबे समय के बाद अपनी पार्टी की बैठक में शामिल हुए और उन्होंने खैरागढ़ चुनाव में जेसीसी (जे) की तैयारी के बारे में पत्रकारों को बताया। कांग्रेस में लौटने की संभावना हो सकता है आगे बनी रहे पर खैरागढ़ उप-चुनाव के लिये तो उन्होंने ऐलान कर दिया है कि वे जेसीसी (जे) को जिताने के लिये पूरी ताकत लगा देंगे।
बदलाव, फिर चुनावी नारा...
सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस का नारा ‘वक्त है बदलाव का’ एक बड़ी वजह थी कि भाजपा सरकार को लोगों ने बदलने की ठान ली। इस नारे का असर छत्तीसगढ़ में पैर जमाने की कोशिश कर रही, आम आदमी पार्टी पर देखने को मिला, जब उसने ‘बदलबो छत्तीसगढ़’ नारा दिया। यह उनके रायपुर दफ्तर और बाकी कार्यालयों के पोस्टरों में दिखने लगा है। प्रभारी गोपाल राय के मुताबिक पंजाब विधानसभा के नतीजों के बाद सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में लोग ‘आप’ से जुडऩे की इच्छा जता रहे हैं। छत्तीसगढ़ में ‘जब वक्त है बदलाव का’ नारा चला तब भाजपा को सत्ता में आए 15 साल हो चुके थे। 2018 चुनाव में ‘आप’ ने 5 को छोडक़र सारी सीटों पर चुनाव लड़ा, तब दिल्ली में सरकार थी। उस वक्त छत्तीसगढ़ में उसे नोटा से भी कम वोट मिल पाये थे। अब देखना होगा कि पंजाब के नतीजों के संदर्भ में क्या केवल एक कार्यकाल वाली कांग्रेस को उसी के मिलते-जुलते नारे से हटाया जा सकेगा।
तेंदूपत्ता की घटती मांग, नई समस्या
तेंदूपत्ता पर समर्थन मूल्य बढ़ाकर 2500 रुपये से 4000 रुपये करने का फैसला आदिवासियों के हाथ में नगदी पहुंचाने के लिहाज से तो अच्छा है पर देशभर में इसकी मांग में गिरावट आ रही है, और सरकार के खाते पर एक बोझ और पडऩे जा रहा है।
उदाहरण के लिये यूपी में लॉकडाउन के दौरान जब रोजगार की कमी हो गई तो पर्वतीय वन क्षेत्रों में तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य ने काफी राहत दी थी। हालांकि सरकार ने घाटे पर व्यापारियों को बेचना न पड़े, इसलिये दर काफी कम रखी। राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में कई पर्वतीय गांव हैं, जहां तेंदूपत्ता की तोड़ाई की जाती है। फसल ठीक नहीं होने के कारण वहां पेड़ों पर सूख रहे हैं। ठेकेदार इसकी खरीदी में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। मध्यप्रदेश में लगभग 9 लाख आदिवासी श्रमिक तेंदूपत्ता संग्रहित करते हैं। पर साल दर साल आ रही बिक्री में गिरावट के कारण उनकी भी आमदनी घट रही है। पिछले सालों का लाखों मानक बोरा तेंदूपत्ता अब तक नहीं निकला है। इसे बेचने लिए कई बार लघु वनोपज संघ ने निविदा भी निकाली। यहां तो अब लघु वनोपज संघ यह सर्वे करा रहा है कि तेंदूपत्ता के साथ इस्तेमाल किए जाने वाले तंबाकू को भी क्या उत्पादन से जोड़ देना ठीक रहेगा? व्यापारी तेंदूपत्ता के साथ-साथ तंबाकू भी खरीदने के लिए आगे आएंगे। केवल बीड़ी और सिगरेट में नहीं बल्कि गुटखा में भी खपत हो जायेगी।
इधर, छत्तीसगढ़ में दूसरी व्यवस्था है। बिक्री घटने का छत्तीसगढ़ में संग्राहक आदिवासियों को कोई नुकसान नहीं है। बल्कि समर्थन मूल्य बढ़ाने का फायदा ही है। यहां वनोपज संघ से उन्हें गड्डियों, मानक बोरा की कीमत मिल जाती है, जिसे 4000 रुपये तक कर दिया गया है। फिर संघ के जिम्मे है कि वह इसकी बिक्री कहां किस तरह से करती है। बस्तर की बात करें तो यहां आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव व रायपुर से व्यापारी आकर खरीदारी करते हैं। इन व्यापारियों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों से बीड़ी पीने वालों की संख्या घट रही है, जिसे तैयार करने में तेंदूपत्ता काम आता है। नई पीढ़ी सिगरेट और गुटखा की तरफ जा रही है। बस्तर सर्किल की बात करें तो बीजापुर के तेंदूपत्ता की तो अग्रिम बुकिंग हो चुकी, पर बाकी डिवीजन और रेंज में आधा उठाने के लिये भी करार नहीं हुआ है। सत्र बीतने के बाद पता चलेगा कि कितना तेंदूपत्ता नहीं बिक पाया और गोदामों में रह गया। कहीं धान की तरह तेंदूपत्ता की स्थिति भी न हो जाये।
महंत के तीखे तेवर
छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत के तीखे तेवरों ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया। कई ऐसे मौके आए, जब उनकी टिप्पणियां से सरकार के माथे पर बल पड़ते दिखे। पलायन के मुद्दे पर उन्होंने यहां तक कह दिया कि यह छत्तीसगढ़ के लिए कलंक है। भ्रष्टाचार के मामले में अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर विभागीय मंत्री के असमर्थता व्यक्त करने पर उन्होंने आसंदी से व्यवस्था दे दी और सदन से ही थोक में अफसरों के निलंबन की घोषणा हो गई। एक अन्य मामले में उनके दबाब के चलते ही सदन की समिति से जांच की घोषणा की गई। कुल मिलाकर अध्यक्ष ने इस सत्र में तीखे तेवर दिखाए, जिसकी जमकर चर्चा रही।
तीन साल से अधिक के अध्यक्षीय कार्यकाल में डॉ महंत इतने कडक़ शायद ही कभी दिखे। सत्तापक्ष के सदस्य तो यहां तक कहने लग गए थे कि अध्यक्ष के तेवर को देखकर लगता है मानों उन्हें विपक्ष ने चुना हो। खैर, विधानसभा का बजट सत्र तीन दिन पहले निपटने से सत्तापक्ष ने जरूर राहत की सांस ली होगी। संभव था कि अध्यक्ष सरकार के लिए और कोई समस्या खड़ी कर देते। वैसे भी डॉ महंत का राज्य की राजनीति से मोह भंग हो चुका है। वे राज्यसभा के जरिए केन्द्रीय राजनीति में लौटना चाहते हैं। ऐसे में वे जाते-जाते विधानसभा में छाप छोडऩा चाहते हों, हालांकि अभी उनका राज्यसभा में जाना तय नहीं है। संभव है कि यह उसी की रणनीति का हिस्सा हो।
फिलहाल तो सब कुछ अटकलों में है, लेकिन सियासत में कुछ भी हो सकता है। बहरहाल, समय आने पर स्थिति साफ हो ही जाएगी, लेकिन उनके तेवर और राज्यसभा जाने की इच्छा दोनों को एक-दूसरे से जोडक़र देखा जा रहा है। दूसरी तरफ अगर वे राज्यसभा में चले जाते हैं तो राज्य मंत्रिमंडल में भी फेरबदल की स्थिति बन सकती है।
बॉडी बिल्डर कलेक्टर मुश्किल में
छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र समाप्त होने के बाद प्रशासनिक फेरबदल की सुगबुगाहट तेज हो गई है। संभावना है कि कई जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। सत्र की समाप्ति के दिन सुकुमा कलेक्टर के खिलाफ आदिवासियों के आक्रोश के बाद उनकी रवानगी तय मानी जा रही है। उन्हें सुकमा में कलेक्टरी करते हुए करीब दो साल का समय भी हो चुका है। वे बस्तर संभाग के ही रहने वाले हैं। साल 2013 बैच के इस बॉडी बिल्डर अधिकारी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आदिवासी हितों और नक्सल मोर्चा पर अच्छा काम किया है, लेकिन कल की घटना ने उनके सब किए धरे में पानी फेरने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है।
इसी तरह कोरबा कलेक्टर और मंत्री के बीच तनातनी के कारण नई पोस्टिंग की अटकलें लगाई जा रही है। कुछ और अफ़सर भी राजधानी में बैठे हुए इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी तरह दो साल से ज्यादा समय तक एक ही जिले में जमे अफसरों को भी बदला जा सकता है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए लगभग डेढ़ साल का समय बचा है। ऐसे में सरकार परफार्मेंस देने वाले अफसरों की नए सिरे से नियुक्ति कर सकती है। इसमें राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बने अफसरों को ज्यादा मौका मिलने की संभावना जताई जा रही है।
इसमें पैर फंसेगा तो?
राजधानी रायपुर के बगीचों में कसरत करने के लिए मशीनें तो लगा दी गई हैं, लेकिन कुछ हफ्तों में ही उनमें टूट-फूट शुरू हो जाती है, और कुछ महीनों में उनमें से कुछ काम करना बंद कर देती हैं, लेकिन रख-रखाव करवाने में किसी को कोई पैसा बचता नहीं, इसलिए एक बार लगवाने तक तो ठीक है, उसके बाद किसी को फिक्र नहीं रहती। अब म्युनिसिपल के एक बड़े बगीचे में जहां रोज सैकड़ों बच्चे खेलते हैं वहां की फिसलनी का यह हाल है कि फिसले हुए किसी बच्चे का पैर इसमें फंस जाए, तो वह कटकर अलग हो सकता है। अनुपम उद्यान इलाके के पार्षद कौन हैं?
कलेक्टर के खिलाफ आक्रोश
कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने अपने-अपने समय में दूरस्थ इलाकों में छोटे-छोटे जिले यह सोचकर ही बनाये कि आम लोगों की जिले के अधिकारी तक सहज पहुंच सके। पर, यदि दूर के जिलों में तैनात अफसर यदि यह सोचने लगें कि राजधानी तक लोग कहां शिकायत करने जाएंगे, जिनको वे सुनना चाहते हैं, सिर्फ उनको सुनेंगे, तब पीडि़त अपनी समस्या किसे बताएंगे।
सुकमा में कलेक्ट्रेट का गेट तोडक़र आदिवासी समाज के सैकड़ों लोगों का भीतर घुसना बताता है कि लोग जिला प्रशासन के तौर-तरीके से किस तरह से नाराज हैं। जिले के विभिन्न स्थानों से पहुंचे आदिवासी कलेक्टर से मुलाकात करना चाहते थे लेकिन घंटों इंतजार करने के बाद भी उनको मिलने के लिए नहीं बुलाया गया।
यह जरूर है कि उनकी कई मांगें, जैसे बेरोजगारी भत्ता देना, कुछ नगर पंचायतों को फिर से ग्राम पंचायत का दर्जा देना, तेंदूपत्ता पॉलिसी बदलना, नक्सल आरोप में जेल में बंद लोगों को रिहा करना, राज्य शासन के स्तर पर सुलझने वाली मांगें हो सकती हैं, पर इस वजह से ग्रामीणों की बात को सुनने से ही मना करना कहां जायज है? अब आदिवासी समाज के लोग कलेक्टर को हटाने की मांग भी कर रहे हैं।
बस्तर पर एक खास वीडियो
वैसे बस्तर की नैसर्गिंक सुंदरता, जल प्रपात, त्यौहारों आदि के बारे में देश ही नहीं दुनिया भर में लोग जानते हैं। बस्तर की संस्कृति को सामने लाने वाले कई वीडियो अब सोशल मीडिया पर मिल जाते हैं। हाल ही में यू ट्यूब पर रिलीज हुई बस्तर चो गीत इस मायने में खास है कि पहले दिन में ही इसे एक लाख से अधिक लोग देख चुके थे और सैकड़ों लोग शेयर कर चुके। आज सुबह तक विवर्स की संख्या दोगुनी पहुंच चुकी है।
दरअसल, गीत-संगीत के साथ ही इसके फिल्मांकन में भी काफी मेहनत की गई है। देश के किसी हिस्से की युवतियां आपस में चैट करती हैं कि इस बार छुट्टियों में कहां जाएं। किसी का सुझाव गोवा, तो किसी का और दूसरी जगह के लिए। पर बस्तर के नाम पर सब उत्साहित हो जाते हैं। इस बहाने बस्तर के अनेक स्थानों को फिल्माया गया है। बस्तर, जिसके बारे में देश के कई भागों में नक्सल समस्या को लेकर ही अकेले पहचान है। इस तरह के वीडियो से लोगों को इसके दूसरे आकर्षक पहलू का भी पता चलेगा। वीडियो जिला प्रशासन और एनएमडीसी के सहयोग से बनाया गया है।
विश्व जल दिवस और कोदो..
छत्तीसगढ़ ही नहीं, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में कोदो की पैदावार होती है। अन्य देशों में फिलिपींस, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड और दक्षिण अफ्रीका के कई राज्यों में भी इसे उगाया जाता है। पर ज्यादातर जगहों पर इसे गरीबों का भोजन माना जाता है। आज जब विश्व जल दिवस है तो कोदो जैसी फसलों पर ज्यादा काम करने के बारे में सोचने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ सरकार ने धान के अलावा जिन और फसलों का समर्थन मूल्य तय किया है, उनमें यह भी शामिल कर लिया गया है। पर अब भी इसे उगाने में रुचि लोगों को कम ही है।
कमाल की बात है कि कोदो को धान के ही सीजन में बोया जाता है। वैसे कम पानी की जरूरत के चलते यह बारहों महीने पैदा किया जा सकता है। बहुत से लोग इसे एक किस्म का धान ही समझते हैं, पर इसके गुण बिल्कुल विपरीत है। चावल खाने से मधुमेह के रोगियों को रोका जाता है, जबकि कोदो खाने की सिफारिश की जाती है। स्वाद भी बुरा नहीं।
इधर कोदो के बारे में सोच बदल भी रही है। वैज्ञानिक नाम तो बड़ा कठिन है-पास्पालम-स्क्रोबिक्यूलैटम। इसलिये बाजार में यह कोदो चावल या कोदो आटा के नाम से प्राय: मिलता है। पोषण, ग्लूटन एनर्जी, डायबिटीज के बढ़ते मामलों को देखते हुए इलिट क्लास में इसकी मांग बढ़ती जा रही है। नाश्ते में ही नहीं, भोजन में भी कोदो को शामिल किया जा रहा है। यह तस्वीर कोदो से बनी इडली की है। सांभर, चटनी तो परंपरागत है।
कोरोना काल के अवसर
कोरोना काल में खरीदी और दूसरे मदों में खर्च करने के नियमों में काफी शिथिलता बरती गई थी। इसका जमकर फायदा अफसरों और कई कांग्रेस नेताओं ने उठाया। जांजगीर-चांपा जिले में डीएमएफ की राशि से हुए अनाप-शनाप खर्च पर पहले भी आवाज उठाई गई थी। अब यह मामला विधानसभा में भी ले जाया गया है। विधायक सौरभ सिंह ने सवाल उठाया कि स्वास्थ्य कर्मचारियों को किस तरह का प्रशिक्षण आखिर दिया गया कि उसमें 16 करोड़ रुपये खर्च हो गये। किसी को नहीं पता कि क्या प्रशिक्षण मिला, प्रशिक्षित कौन हुआ? उनका आरोप है कि प्रशिक्षण के नाम पर कांग्रेस नेताओं की फर्म के नाम पर चेक काट दिये गये। एक सवाल और किया गया कि करोड़ों रुपये से कोविड अस्पताल के लिये 28 वेंटिलेटर की खरीदी की गई, लेकिन उनमें से सिर्फ 5 मौजूद हैं, बाकी 23 गायब हैं। नियम क्या इसीलिये बदले गये कि आपदा को अवसर बना लिया जाये?
बहरहाल, मंत्री निरुत्तर तो थे। पर इस कथित भ्रष्टाचार के लिये कोई जांच कराने, कार्रवाई करने पर कोई जवाब नहीं मिला।
महुआ बीनती विधायक पत्नी
महुआ बीन रही इन महिलाओं में एक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व कोंडागांव विधायक मोहन मरकाम की पत्नी हैं। साथ में उनके बच्चे भी हैं। भाजपा शासनकाल के दौरान गृह मंत्री ननकीराम खेत में काम करते हुए दिखे थे। सांसद फुलो देवी नेताम को भी धान बोते हुए पिछले साल देखा जा चुका है। इन तस्वीरों के सामने आने से एक निष्कर्ष तो निकाला जा सकता है कि जमीन से जुड़े होने का एहसास दिलाना मतदाताओं से जुड़े रहने के लिहाज से बहुत जरूरी होता है। भले ही सांसद, विधायक, मंत्री और उनके परिवार को ऐसा करने की जरूरत न हो।
खैरागढ़ में रोचक मुकाबले के आसार
खैरागढ़ उपचुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है। छत्तीसगढ़ में साल 2023 में होने वाले विधानसभा के आम चुनाव से पहले खैरागढ़ का उपचुनाव प्रतिष्ठापूर्ण माना जा रहा है। कांग्रेस इसके पहले चित्रकोट, दंतेवाड़ा, और मरवाही का चुनाव एकतरफा जीत चुकी है। इस लिहाज से कांग्रेस के लिए चौथा उपचुनाव जीतने की चुनौती है, तो बीजेपी के पास गिरती साख बचाने का सुनहरा अवसर है। साल 2018 के चुनाव में इस सीट से जोगी कांग्रेस के देवव्रत सिंह चुने गए थे। जबकि बीजेपी दूसरे नंबर पर थी। कांग्रेस के पक्ष में लहर होने के बावजूद इस सीट पर पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं थी। लेकिन उपचुनाव में सत्ताधारी दल होने का फायदा कांग्रेस को मिलेगा। सरकार इलाके के लिए खजाना खोलकर वोटर्स को लुभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। बीजेपी के लिए इस उपचुनाव में प्लस पाइंट यह है कि जोगी कांग्रेस का समर्थन मिल सकता है। इसके पहले मरवाही चुनाव में जोगी कांग्रेस ने खुलकर बीजेपी का समर्थन किया था। इसके अलावा देवव्रत सिंह के निधन के बाद परिवार में कलह की स्थिति दिख रही है। परिवार के लोग भी इस सीट पर दांव आजमाने के मूड में है। ऐसे में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। जबकि बीजेपी के पराजित उम्मीदवार कोमल जंघेल को फिर से मौका मिलने की संभावना जताई जा रही है। पिछला चुनाव वे केवल 870 वोट से हारे थे। पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह भी उनके पक्ष में दिख रहे हैं। हालांकि उनके भांजे विक्रांत सिंह भी दावेदार बताए जा रहे हैं।
खैरागढ़ पूर्व सीएम के क्षेत्र से लगा हुआ इलाका है और अभिषेक सिंह वहां के सांसद भी रह चुके हैं, ऐसे में उनकी पसंद को ध्यान में रखा जाएगा। उधर, हाल में हुए पांच राज्यों के चुनाव में हार के बाद कांग्रेस का मनोबल गिरा हुआ है। बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी उत्तरप्रदेश के चुनाव में तैनात थे, लेकिन अपेक्षाकृत नतीजे नहीं मिलने के कारण मायूसी स्वाभाविक है, जबकि चार राज्यों में जीत के कारण बीजेपी में उत्साह का माहौल दिखता है। बीजेपी के शीर्ष और प्रदेश नेतृत्व के लिए खैरागढ़ उपचुनाव बेहतर अवसर है। ऐसे में वे भी दमखम दिखा सकते हैं। कुल मिलाकर खैरागढ़ उपचुनाव में रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।
कुछ प्रशिक्षण हैं, कुछ नहीं हैं..
देश प्रदेश में तरह-तरह के प्रशिक्षण चलते हैं। बिहार में आनंद कुमार आईआईटी में दाखिले के लिए प्रशिक्षण देते हैं जो देश में सबसे कामयाब प्रशिक्षण माना जाता है। बहुत से मौजूदा अफसर, या रिटायर्ड या नौकरी छोड़ चुके अफसर, नौजवानों का मार्गदर्शन करते हैं कि वह किस तरह केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी नौकरी में आ सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में आईएएस अफसर रहे और राजधानी रायपुर के कलेक्टर रहे ओपी चौधरी नौकरी छोडक़र भाजपा में शामिल हुए, विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन पूरे प्रदेश में भाजपा की हालत बहुत खराब थी और ओपी भी चुनाव हार गए। अब वे सोशल मीडिया पर नौजवानों को आमंत्रित करते हैं कि यूपीएससी या पीएससी की तैयारी के लिए किसी को मार्गदर्शन की जरूरत हो तो उनसे संपर्क कर सकते हैं।
अभी तक कहीं भी किसी ने लोगों को ऐसा बुलावा नहीं भेजा है कि अगर बेहतर इंसान बनना हो तो इंसानियत की बातें सीखने के लिए उनसे संपर्क किया जाए, और दरअसल इंसान बनने के लिए कोई भी प्रोत्साहन नहीं है क्योंकि उसके लिए कोई ईनाम नहीं है और अच्छे इंसान का कोई ओहदा नहीं है और अच्छा इंसान बनने के लिए कोई कुछ सिखाने को तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ के लिए आप का दांव
आम आदमी पार्टी जिस सधी रणनीति के तहत काम कर रही है उससे इस संभावना को बल मिलता है कि छत्तीसगढ़ में अगला चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच परंपरागत सीधे टक्कर का नहीं होगा। दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री गोपाल राय को छत्तीसगढ़ का प्रभार मिला हुआ है और वह यहां के 2 दिन के दौरे पर हैं। उनका दावा है कि जिस तरह से पंजाब में चुनाव लड़ा गया, छत्तीसगढ़ में भी ऐसा ही कुछ किया जाएगा। पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को ज्यादा समर्थन नहीं मिल पाया था। सबसे ज्यादा वोट बिल्हा के प्रत्याशी को मिले। इसमें भी तैयारी प्रत्याशी की खुद की थी, पार्टी की नहीं।
इस बार अलग हटकर यह बात हो रही है कि राज्यसभा की पंजाब में खाली हो रही है 5 सीटों पर जो नाम तय किए गए हैं उनमें से एक चौंकाने वाला है और छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी का वजन बढ़ाने वाला भी। जी, एक प्रत्याशी संदीप पाठक का छत्तीसगढ़ से गहरा रिश्ता है। वे मुंगेली जिले के छोटे से गांव बटहा (लोरमी तहसील) में पैदा हुए हैं। उनके पिता शिव कुमार पाठक भागवत कथा के प्रवचनकार हैं। प्राथमिक शिक्षा मुंगेली और बिलासपुर में लेने के बाद पाठक हैदराबाद गए, फिर दिल्ली। आईआईटी में पढ़ाई की फिर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि भी ली। वे अरविंद केजरीवाल के करीबी हैं। पंजाब विधानसभा चुनाव में उनकी मेहनत को केजरीवाल ने खूब पसंद किया और सार्वजनिक रूप से उनकी तारीफ भी की।
पंजाब में प्रचंड बहुमत के चलते राज्यसभा की सभी 5 सीटों पर आम आदमी पार्टी के ही जीतने की संभावना बताई जा रही है। इनमें से एक का रिश्ता छत्तीसगढ़ से होगा। आने वाले चुनाव में आम आदमी पार्टी को इसका फायदा तो मिलेगा पर कितना, यह आगे मालूम होगा। पर कांग्रेस, भाजपा के लिए अलार्म तो बज ही गया है।
आक्रामक होते हाथी
बीते तीन दिनों के भीतर 2 महिलाओं और एक बच्ची की हाथियों ने जान ले ली। रायगढ़ जिले के कापू इलाके में हाथियों से बचकर भागने की कोशिश तो महिलाओं ने की, पर वे उनके चंगुल से निकल नहीं पाईं। मरवाही इलाके में एक 8 साल की बच्ची को हाथियों ने पटक कर मार डाला। पहली घटना में हाथियों के घूमने की खबर वन विभाग को थी, मगर ग्रामीणों को सतर्क नहीं किया गया। मरवाही के मामले में तो वन विभाग को पता ही नहीं था कि हाथियों का झुंड घूम रहा है। कोई चेतावनी नहीं थी और बच्ची महुआ बीनने के लिए जंगल की ओर अपने मां-बाप के साथ गई थी। दोनों ही मामलों में, जिनमें तीन मौतें हो गईं, वन विभाग की लापरवाही दिखाई देती है। ऐसा कब तक चलेगा? जंगलों में रहने वाले लोगों के पास सुरक्षा के सामान नहीं है वह खुद ही हाथों से लड़ते रहे और जान गंवाते रहेंगे?
मार्च की बढ़ती गर्मी
इस बार मार्च से ही सूरज झुलसाने लगा है। ज्यादातर शहरों में दोपहर 3 बजे का तामपान 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। इस हफ्ते रायपुर, रायगढ़ में तापमान 40 डिग्री या उससे अधिक तक पहुंच सकता है। सबके पास इस तपिश से बचने का मुकम्मल इंतजाम नहीं होता। भरी धूप में सडक़ नाप रहे बच्चे तो मां के आंचल को ओढक़र भी राहत महसूस कर लेते हैं।
जय श्री राम के नारों के बीच
‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्म पर काफी बहस हो रही है। विशेषकर भाजपा, और संघ परिवार के लोग झंडे लेकर फिल्म देखने पहुंच रहे हैं। फिल्म से ज्यादा अब उत्साही भाजपाईयों के तेवर की चर्चा होने लगी है। शनिवार को पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और सुनील सोनी भी लाव-लश्कर लेकर फिल्म देखने पहुंचे। उनके और समर्थकों के लिए पीवीआर में 309 टिकट बुक कराई गई थी, लेकिन साढ़े 4 सौ लोग फिल्म देखने पहुंच गए।
खैर, सीट न मिलने पर उत्साही भाजपा कार्यकर्ता जमीन पर बैठकर फिल्म देखने लगे। फिल्म के बीच-बीच में जय श्रीराम, और कश्मीर हमारा है, के नारे लगने लगे। कुल मिलाकर थियेटर में इतना शोर शराबा हुआ कि ज्यादातर लोगों को फिल्म समझ में ही नहीं आई। संवाद सुनाई नहीं दिए। मगर उत्साही कार्यकर्ताओं ने थियेटर से निकलते हुए कश्मीर समस्या के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा दिया।
पदयात्रा भारी पड़ी
सेरीखेड़ी में अवैध कब्जाधारियों का समर्थन करना भाजपा के नेताओं को भारी पड़ गया। उक्त जमीन पर कब्जा हटाने के लिए होली के पहले ही नोटिस जारी किया गया था। कब्जाधारी होली के अगले दिन ग्रामीण पदयात्रा करते हुए कलेक्टोरेट जा रहे थे। बाद में जिलाध्यक्ष बॉबी कश्यप, और अन्य भाजपा नेता भी साथ हो गए।
गांधी उद्यान के पास पहुंचते ही कई लोग कलेक्टोरेट जाने के बजाए सीएम हाउस के नजदीक पहुंच गए। त्योहारी माहौल में ज्यादा बल तो था नहीं, हड़बड़ाए पुलिस कर्मियों ने किसी तरह लोगों को हिरासत में लिया। बॉबी कश्यप समेत दर्जनभर नेताओं के खिलाफ अपराध दर्ज कर लिया गया। कुछ देर बाद बाकी ग्रामीणों को तो छोड़ दिया गया। लेकिन भाजपाइयों की रिहाई नहीं हो पाई।
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और सांसद सुनील सोनी सहित कई नेता सिविल लाइन थाने पहुंचे, और एसएसपी व आईजी से चर्चा कर भाजपा नेताओं की रिहाई की कोशिश में लगे रहे, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिलने पर सभी नेता फिल्म देखने के लिए चले गए। इधर, बॉबी और अन्य लोगों के खिलाफ धारा बढ़ गई। और फिर उन्हें जेल भेज दिया गया। कुल मिलाकर बिना योजना के प्रदर्शन भारी पड़ गया। अब सुनते हैं कि बात झारखण्ड के राज्यपाल की दखल से ही बात बनेगी।
सदन में कांग्रेस विधायकों के सवाल
विधानसभा में इस बार कांग्रेस के विधायक भी कई ऐसे सवाल कर रहे हैं जिसका जवाब सरकार की ओर से देते नहीं बन रहा है। विधायक छन्नी साहू ने शराब की अवैध बिक्री और नई दुकानें खोलने के मुद्दे पर सरकार को घेरा। बिलासपुर विधायक शैलेष पांडे मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल शुरू नहीं होने पर सरकार को घेर चुके हैं। जशपुर विधायक विनय भगत ने अपने क्षेत्र के विकास कार्यों को लेकर अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाये हैं। लघेश्वर बघेल ने बायोमैट्रिक खरीदी में करोड़ों का घोटाला होने की बात उठाई है, जिस पर जांच समिति भी बनाई जायेगी। केशकाल के विधायक संतराम नेताम तो बेहद नाराज थे। उन्होंने पीएमजीएसवाय में सब इंजीनियर को एसडीओ और ईई का प्रभार देने को लेकर सरकार से सवाल किये। जवाब से असंतुष्ट होकर उन्होंने कह दिया कि सही उत्तर नहीं मिलेगा तो हम सदन ही क्यों आयेंगे? विधायक संतराम की शिकायत सही हो सकती है क्योंकि अफसरों ने जैसा जवाब दिया, मंत्री ने वैसा पढ़ दिया होगा। भाजपा शासनकाल में तत्कालीन विधायक देवजी भाई पटेल भी खूब तैयारी करके आते थे और अपनी ही सरकार पर नकेल कसा करते थे।
इस बार तो लड़ लेंगे
मरवाही विधानसभा उप-चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) को लडऩे का मौका ही नहीं मिला। स्वर्गीय अजीत जोगी जी वह पारंपरिक सीट थी, जिस पर अमित जोगी और उनकी पत्नी ऋचा जोगी दावा कर रहे थे। लड़ पाते तो तस्वीर ही अलग होती, किंतु जाति का मसला ठीक चुनाव से पहले ऐसे उछला कि उनका नामांकन पत्र ही रद्द हो गया। अब खैरागढ़ में उप-चुनाव होने जा रहा है, जहां जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के विधायक देवव्रत सिंह प्रतिनिधित्व करते थे। सामान्य सीट है, कोई भी लड़ सकता है। जेसीसी (जे) की एक बैठक सोमवार को होने वाली है, जिसमें खैरागढ़ से चुनाव लडऩे की रणनीति बनाई जाएगी। ऐसा लगता नहीं कि कांग्रेस की ओर से खैरागढ़ से जेसीसी (जे) को लडऩे से रोकने की कोई कोशिश की जाएगी। बीते चुनावों में मिली जीत के चलते कांग्रेस निश्चिंत लग रही है। देखना पड़ेगा कि जोगी की पार्टी मुकाबले में आ पाएगी या नहीं।
जब एसी कूलर का चलन नहीं था..
ग्रामीण जीवन का सुकून अब के शहरी वातावरण से तो बिल्कुल मेल नहीं खाता। फ्लैट, टू बीएचके, थ्री बीएचके में सबका जीवन सिमटा हुआ है। चौड़े आंगन हों, आंगन में कतार से लगी चारपाई हो, ऐसे दिन तो लद गये। पर उन दिनों को इस तरह की तस्वीरों से याद किया जा सकता है।
ईश्वर के नाम पर नोटिस
कई बार सरकारी काम के तौर-तरीके से हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती है। रायगढ़ नगर-निगम में एक शिव मंदिर है, जिसका और कुछ अन्य भवनों का निर्माण अवैध कब्जे की जमीन पर होने की शिकायत है। यहां की सुधा रजवाड़े ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर सरकारी जमीन से बेजा-कब्जा हटाने की गुहार लगाई। कोर्ट ने राजस्व अधिकारियों को जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने कहा है। अब तहसीलदार ने 9 कब्जाधारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इनमें से एक हैं-शिव मंदिर। शिव मंदिर अपने आप में कोई व्यक्ति है नहीं। कोई न कोई इसका पुजारी, ट्रस्टी या प्रबंधक होगा लेकिन तहसीलदार ने सीधे शिव मंदिर को ही नोटिस जारी कर दी है। उन्हें छठवें नंबर का प्रतिवादी बनाया गया है। तहसीलदार का कहना है कि कोई भी व्यक्ति दावा नहीं कर रहा है कि मंदिर की देख-रेख वह करता है। इसलिये सीधे मंदिर के नाम पर नोटिस दी गई है। बहरहाल, पेशी की नियत तारीख में कौन मंदिर की ओर से खड़ा होता है देखना पड़ेगा। भगवान शिव तो दर्शन देने से रहे।
अब कांग्रेस का भाई-ज़मीनवाद
भिलाई में हाउसिंग बोर्ड के करोड़ों की जमीन कौडिय़ों में खरीदने के केस की वजह से सरकार मुश्किलों में घिर गई है। करीब 15 करोड़ की जमीन ढाई करोड़़ में कांग्रेस विधायक के कांग्रेस-पदाधिकारी भाई को दे दी गई। विधानसभा में बुधवार को इस पर खूब हल्ला मचा। सुनते हैं कि कांग्रेेस विधायक के एक भाई बोर्ड में संपत्ति अधिकारी के पद पर भी हैं। कुल मिलाकर राजनीतिक और प्रशासनिक दबदबे की वजह से सिंगल ऑफर मंजूर कर लिया गया, और संगठन के पदाधिकारी के नाम संपत्ति हो गई। इस मामले पर ज्यादा कुछ तो चर्चा नहीं हो पाई, लेकिन विपक्ष मुद्दे को आसानी से छोडऩे के मूड में नहीं है। विधानसभा के अगले कार्य दिवस में भाजपा विधायकों की फिर से जोर-शोर से जमीन घोटाले में अनियमितता को लेकर मामले को उठाने की रणनीति है। भाजपा के नेता खैरागढ़ उपचुनाव में भी जोर-शोर से प्रचारित करने की योजना पर काम कर रहे हैं, लेकिन इसका चुनाव में भले ही इसका फायदा हो या न हो, कांग्रेस विधायक और उनके भाईयों ने पार्टी को बैकफूट पर ला दिया है।
खैरागढ़ में क्या होगा ?
खैरागढ़ चुनाव का बिगुल बज चुका है। भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि यहां के नतीजे विशेषकर पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह का राजनीतिक भविष्य तय करेंगे। खैरागढ़, रमन सिंह की विधानसभा सीट राजनांदगांव से लगी है। यहां से उनके बेटे अभिषेक सिंह सांसद भी रहे हैं। वर्तमान में संतोष पांडेय सांसद हैं।
सुनते हैं कि पार्टी हाईकमान ने विधानसभा चुनाव, और फिर बाद के उपचुनावों में बुरी हार के बाद रमन सिंह को प्रदेश की राजनीति से दूर कर महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य के राज्यपाल का ऑफर दिया गया था। उस वक्त रमन सिंह ने हाईकमान को स्पष्ट तौर पर बता दिया था कि वो राज्य की राजनीति से अलग नहीं होना चाहते हैं। वो खुले तौर पर कह चुके हैं कि सीएम पद के अब भी चेहरा हैं। फिर हाईकमान ने भी उन्हें जोर नहीं दिया। इसके बाद संगठन के सारे फैसले रमन सिंह के मन मुताबिक होते रहे हैं। इन सबके बावजूद पार्टी की स्थिति में सुधार नहीं आया है।
जानकार मानते हैं कि खैरागढ़ चुनाव रमन सिंह के लिए आखिरी मौका साबित हो सकता है। उन्होंने भी इसको भांपते हुए एक तरह से चुनाव की कमान अपने हाथों में ले ली है, और संतोष पांडेय को किनारे कर अपने करीबी खूबचंद पारख को चुनाव प्रभारी बनवाया है। मोतीलाल साहू और ओपी चौधरी को सहप्रभारी बनाया गया है। चार राज्यों में भाजपा को मिली जीत का फायदा यहां खैरागढ़ में भी मिलने की उम्मीद से है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, तो कम से कम रमन सिंह के लिए पार्टी के भीतर मुश्किलें बढ़ सकती हैं। देखना है आगे क्या होता है।
प्रशासन प्रमुख की नई तिकड़ी
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद प्रशासन मुखियाओं की तिकड़ी काफी चर्चित हुई थी। शासन प्रमुख आरपी मण्डल रिटायरमेंट के बाद पुर्नवास पा चुके हैं। जबकि पुलिस प्रमुख डीएम अवस्थी एक तरह से हिट विकेट होकर मैदान से बाहर हो चुके हैं। इस तिकड़ी में से एक वन प्रमुख राकेश चतुर्वेदी मैदान पर लंबी पारी खेल रहे हैं। चर्चा है कि वे पारी पूरी होने से पहले इनिंग घोषित करने की तैयारी में है। यानी 5-6 महीने पहले ही वीआर लेने की योजना बना रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में नई पारी की शुरूआत कर सकते हैं। उनके जाने के बाद एक और स्थानीय अफसर संजय शुक्ला के लिए वन प्रमुख का रास्ता साफ किया जा रहा है। हालांकि शुक्ला की राह में कोई अड़चन नहीं है, लेकिन चतुर्वेदी के पूरा कार्यकाल पूरा करने की स्थिति में उन्हें 6-8 महीने का ही समय मिल पाता। नए समीकरण में उन्हें डेढ़ साल का कार्यकाल मिलेगा। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए भी इतना ही समय बचा है। इस तरह छत्तीसगढ़ में ब्यूरोक्रेसी को भी संतुष्ट किया जा रहा है, क्योंकि सरकार का परफार्मेंस काफी हद तक अफसरों के कामकाज पर निर्भर करता है। सरकार का चेहरा चमकाने वाले भी तो यही लोग हैं। ऐसे में सरकार की इस रणनीति का कितना लाभ मिलता है, यह तो समय ही बताएगा।
भूपेश का सियासी दांव
कश्मीर त्रासदी पर बनी फिल्म कश्मीर फाइल्स पर जमकर सियासत चल रही है। छत्तीसगढ़ बीजेपी के नेता इस फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग कर रहे हैं। राज्य के सिनेमाघरों में सीटें खाली रहने के बावजूद हाउस फुल का बोर्ड लगाकर फिल्म देखने से वंचित किए जाने के आरोप भी लगाए गए। बीजेपी मुद्दे को गरम करने की कोशिश में थी ही, कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सियासी दांव खेल दिया।
उन्होंने सदन में सत्ता और विपक्ष के विधायकों को साथ में फिल्म देखने का न्यौता दे दिया, जबकि इसके पहले तक बीजेपी के नेता आम लोगों, अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों थिएटर में जाकर फिल्म देखने के लिए प्रेरित कर रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री के न्यौते पर बीजेपी का कोई नेता नहीं पहुंचा। ऐसे में बीजेपी का यह दांव भी टांय-टांय फिस्स हो गया। मुख्यमंत्री की इस पहल की खूब चर्चा है और मीडिया, सोशल मीडिया में वो खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं। इतनी ही नहीं उन्होंने मीडिया के लोगों को भी आंमत्रित किया था। फिल्म देखने के बाद उन्होंने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि पूरी फिल्म हिंसा से भरी हुई है। जिससे किशोरों और बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है। फिल्म के आखिरी में नायक के संदेश का जि़क्र करते हुए उन्होंने कहा कि फिल्म में ही इस बात को स्वीकारा गया है कि इसमें केवल हिन्दू नहीं, बल्कि मुसलमान, सिख भी विस्थापित हुए हैं। इसके बाद से बीजेपी की ओर से कोई बयान नहीं आया है। लगता है कि बीजेपी के नेताओं को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री की ओर से ऐसा दांव खेला जाएगा। जिससे उनकी बोलती बंद हो जाए।
पुलिस का राजगीत गाना
कोरबा पुलिस ने सुबह ड्यूटी की शुरूआत राजगीत से करने का फैसला लिया है। पुलिस अधीक्षक ने इसमें व्यक्तिगत रूचि ली। जिले के सभी 16 थानों, 4 चौकियों और 7 सहायता केंद्रों में इस आदेश पर अमल शुरू हो गया है। इसे शुरू करने का उद्देश्य यह बताया गया है कि पुलिस कर्मियों के दिन की शुरूआत राजगीत से करने पर उन्हें अपनी मिट्टी के प्रति लगाव बढ़ेगा और प्रेम, बंधुत्व का भाव जागेगा। अमूमन अपने रहते आईएएस, आईपीएस कुछ अलग हटकर करते हैं तो उनके रहते तक तो सब ठीक चलता है पर नये अधिकारी के आने के बाद परंपरा टूट जाती है। देखना है कि इससे पुलिस की छवि कितनी बदलेगी और आगे आने वाले अधिकारी इसे जारी रखेंगे या नहीं।
जब अफसरों के फूले हाथ-पांव
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पिछले दिनों बाइक सुपरक्रॉस चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। विदेश से आए बाइकर्स ने 80 फीट तक छलांग लगाकर हैरतअंगेज स्टंट किया। अरसे बाद बाइक प्रेमियों ने ऐसे आयोजन का आनंद उठाया। बताते हैं कि बाइक राइडिंग के शौकीन एक-दो आईएएस भी इससे हिस्सा लेना चाहते थे, लेकिन उन्हें समझाया कि बिना प्रैक्टिस के सीधे मैदान में बाइक चलाना रिस्की हो सकता है हालांकि मान भी गए। एक आईएएस ने प्रैक्टिस सेशन में बाइक जरूर दौड़ाई। इस चैंपियनशिप को ओपन फॉर ऑल रखा गया था। छोटे बच्चों से लेकर हर आयु के प्रतिभागियों के लिए कैटेगरी बनाई गई थी। आयोजकों के हाथ-पैर उस समय फूल गए, जब एक 60 साल के बुजुर्ग चैंपियनशिप में शामिल होने की जिद करने लगे। आयोजकों ने उन्हें समझाने की कोशिश, लेकिन वे नहीं माने तो उनसे फॉर्म भरवाया जा रहा था, तब पता चला वे पाटन विधानसभा के रहवासी है। अफसरों को इसकी भनक लगी, तो उन्होंने जैसे-तैसे मामले को संभाला। एक तो बुजुर्ग और हाईप्रोफाइल क्षेत्र के रहने वाले, अगर खुदा ना खास्ता कुछ हो जाता तो लेने का देना पडऩा तय था। उनको मनाने के बाद अफसरों और आयोजकों राहत की सांस ली।
बैक टू बैक दो बाधा
मुख्यमंत्री विधानसभा के बजट सत्र के बाद संभागवार दौरे पर निकलने वाले हैं। जहां वे रात गुजारने के साथ आम लोगों, पार्टी नेताओं और अधिकारियों से वन टू वन कर सकते हैं। पिछले साल भी सीएम ने ऐसा प्रोग्राम बनाया था। उनका प्रोग्राम बनने से जिलों के अधिकारियों में बेचैनी है, क्योंकि जिले में काम कमजोर दिखा तो गाज गिरना तय है। पहले के दौरे में कई अधिकारी निपटे थे और परफार्मेंस के आधार पर कलेक्टरों को शाबासी या नाराजगी मिली थी। स्वाभाविक है कि इस बार भी ऐसा ही होने वाला है। वैसे तो कलेक्टरों की बेचैनी दौरे के साथ-साथ बजट सत्र के बाद निकलने वाली ट्रांसफर सूची के कारण भी बढ़ी हुई है। चर्चा है कि कुछ बड़े जिले के कलेक्टरों को शिकायत और सियासी कारणों से हटाया भी जा सकता है। बैक टू बैक दो बाधा पार करने वाले अफसर की कुर्सी सलामत रह पाएगी।
होली का एक यह भी इतिहास
उन्नाव, रायबरेली, बाराबंकी और यूपी के कुछ अन्य जिलों को मिलाकर बने इलाके को बांसवाड़ा या बैसवारा भूमि कहा जाता है। बांसवाड़ा में अंग्रेजों के खूब छक्के छुड़ाए गए। यहां दखलंदाजी से अंग्रेज डरा करते थे। अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतारने के बाद बहुत से सेनानी देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर छिप गये। कुछ लोग छत्तीसगढ़ में भी आ गये। इनमें से हनुमान सिंह बैसवारा ने रायपुर में एक अंग्रेज सार्जेंट को मौत के घाट उतार कर तोपखाना लूट लिया था।
जिस तरह महाराष्ट्र में गणेश उत्सव अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए लोगों को जोडऩे का माध्यम बना था, उसी तरह से छत्तीसगढ़ के बैसवारा समाज के में शामिल विभिन्न जातियों के लोग होली के बहाने एकत्र हुआ करते थे। होली के 15 दिन पहले से ही फाग गाने के लिए लोग ढोल नगाड़ों के साथ इक_ा होते थे और अंग्रेजों को छकाने की रणनीति बनाते थे। बैसवाड़ा होली अब भी कायम है, जो यूपी से आये लोगों में मिलेगा, जो बरसों से यहां होने के कारण छत्तीसगढिय़ा हो चुके हैं। कभी आप उनके बीच जाकर होली के फाग का आनंद उठा सकते हैं।
बसवाड़ा होली रायपुर. बिलासपुर और आसपास के जिलों में अब तक देखी जा सकती है। बहुत कम लोगों को पता है कि इसके तार आजादी के आंदोलन से जुड़े हुए हैं।
को नृप होय हमें का हानि..
सप्लायर, अफसर और ठेकेदारों का सिंडिकेट सरकार बदलने पर टूटता नहीं। वह सदैव मजबूत रहता है। इसका एक नमूना बस्तर में स्कूलों के लिए की गई बायोमैट्रिक टेबलेट की खरीदी का मामला है। 2017 में इसका टेंडर हुआ। सिर्फ दो पार्टियों ने टेंडर में हिस्सा लिया। नियम तो कम से कम तीन प्रतिस्पर्धी होने चाहिये।
सप्लाई के कुछ समय बाद ही पता चल गया था कि टेबलेट घटिया है। पर करोड़ों रुपए की खरीदारी सन् 2022 में अभी तक होती रही। मसला यह भी है कि बेकार हो चुके ये सैकड़ों टेबलेट मरम्मत के बाद भी ठीक नहीं हो पाएंगे। यानि टेंडर भाजपा के शासनकाल में निकला। भाजपा शासन में 1 साल खरीदी हुई और चार साल तक कांग्रेस सरकार के दौर में चलती रही।
विपक्षी भाजपा ने नहीं, बस्तर से कांग्रेस के विधायक लखेश्वर बघेल ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया। स्पीकर डॉ. चरण दास महंत नाराज हुए। उन्होंने सप्लाई करने वाली कंपनी को ब्लैक लिस्टेड करने का आदेश दिया और खुद ही एक जांच समिति बनाने का निर्देश दे दिया। ऐसा कम होता है कि स्पीकर ऐसी दखल किसी घोटाले में दें। जाहिर है बघेल ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाने से पहले अपने स्तर पर स्कूल शिक्षा मंत्री और अफसरों से शिकायत की होगी। हैरानी यह है कि विधानसभा में मुद्दा उठने के बाद भी मंत्री की ओर से जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई के बारे में सिर्फ इतना कहा गया कि अटेंडर 2017 में हुआ था। जो अफसर जिम्मेदार है उन पर कार्रवाई के लिए क्या करेंगे, कुछ भी नहीं कहा। भ्रष्ट अधिकारियों के प्रति नरमी और उनको संरक्षण देने का मतलब एक ही होता है। आने वाले दिनों में मालूम हो सकेगा स्पीकर ने जो जांच समिति बनाने कहा है, उसका क्या नतीजा सामने आता है। हो सकता है, घोटाला भुला दिया जाएगा। लीपापोती की गुंजाइश बनी हुई है।
इंडियन बायसन के दो बछड़े
कभी-कभी सुनाई देता है कि किसी गाय ने दो बछड़ों को एक साथ जन्म दिया। चौपाया मादा प्राय: एक का ही प्रजनन करती हैं। पर, वन्य जीवों से दो पैदा हों, यह सामने आए और उसकी तस्वीर भी मिल जाए, यह वन्यजीव प्रेमियों के लिए यादगार हो जाता है। वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्डा ने अचानकमार में पाया कि एक मादा इंडियन बायसन अर्थात गौर के पीछे दो बछड़े साथ साथ चल रहे हैं। दोनों की आयु समान दिखाई दे रही है। यह तय करने में कोई दिक्कत नहीं हुई कि दोनों को मादा ने एक साथ जन्म दिया है। उन्होंने अचानकमार अभ्यारण के इस दुर्लभ क्षण की वीडियो बनाई, जिसकी क्लिपिंग इस तस्वीर में है।
उत्तेजना का राज
पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर सदन में सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। सदन में उनकी आवाज सबसे ज्यादा गुंजती है। उनकी तेज आवाज से बगल सीट पर बैठने वाले नारायण चंदेल भी कभी कभार परेशान हो जाते हैं। पिछले दिनों अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने अजय चंद्राकर से पूछ लिया कि आप हमेशा उत्तेजित क्यों हो जाते हैं? इस पर सत्ता पक्ष के एक सदस्य ने चुटकी ली कि अजय चंद्राकर जी सुबह से उत्तेजना की दवा खाकर आ जाते हैं। उनके इलाज की जरूरत है। इस पर सदस्यों ने ठहाका लगाया।
अरण्य में बदलेगा अफसरों का काम
वन मुख्यालय अरण्य में पीसीसीएफ स्तर के अफसरों के प्रभार बदले जा सकते हैं। इसको लेकर चर्चा चल रही है। पिछले दिनों वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने इस पर मंत्रणा भी की है।
प्रमोशन के बाद सुधीर अग्रवाल, और एसएस बजाज की नए सिरे से पदस्थापना होनी है। वर्किंग प्लान का पद खाली है। चर्चा है कि शीर्ष स्तर पर भी फेरबदल होंगे। माना जा रहा है कि सीएम, वन मंत्री के साथ कोई फैसला लेंगे। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो संजय शुक्ला को पीसीसीएफ (प्रशासन) की जिम्मेदारी दी जा सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है।
आप डाटेंगे तो नहीं ना..
हो सकता है अगले शुक्रवार को पिचकारी लिए बच्चे आपका पीछा करें और कोई सनसनाता हुआ रंगीन पानी की धार आप पर छोड़ दे। खुद को खुशकिस्मत समझे इन नादान हाथों में रंग है पिचकारी है गुलाल है। यह डोरेमोन वीडियो गेम और मोबाइल फोन पर तो नहीं उलझे बच्चे हैं ना। कल को क्या मालूम होली भी वर्चुअल हो जाए!
सिलगेर से कैका तक..
बीते छह-आठ महीनों के भीतर हुए नक्सली मुठभेड़ में बस्तर के ग्रामीणों की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ताजा मामला बीजापुर जिले के कैका का है। जिस रितेश पूनेम को 3 लाख रुपए का इनामी नक्सली बताकर पुलिस ने मार गिराया, उसके बारे में गांव के लोग दावा कर रहे हैं कि पिछले 18 महीनों से संगठन छोड़ कर गांव आ चुका था। मुठभेड़ जैसी कोई बात ही नहीं थी। वह खेती बाड़ी करने लगा था उसके पास कोई हथियार नहीं था। उसे गिरफ्तार किया जा सकता था। पुलिस से ही डर कर वह अपने मामा के गांव में रहता था। सवाल उठता है कि क्या पुलिस के सामने सरेंडर करने से ही किसी की घर वापसी मानी जाएगी? अपनी मर्जी से किसी ने नक्सलियों का साथ छोड़ दिया तो उसे सताया जाएगा?
इसके पहले बीते जनवरी महीने में 24 तारीख को नारायणपुर जिले के मानूराम मुरेठी की कथित मुठभेड़ में हुई मौत पर आखिरकार पुलिस को मानना पड़ा कि वह नक्सली नहीं था।
सिलगेर में भी अजूबा हुआ था। वहां सीआरपीएफ कैंप का ग्रामीणों ने विरोध किया। सुरक्षाबलों ने फायरिंग की और तीन लोगों की मौत हो गई। दावा किया गया कि जिनकी मौत हुई है वे सब नक्सली थे। भीड़ में की गई फायरिंग का निशाना ठीक कथित नक्सलियों पर ही कैसे लगा, यह सवाल खड़ा हो गया। इसके विरोध में महीनों आंदोलन चला। विरोध प्रदर्शन करने वालों की संख्या 10 हजार से अधिक पहुंच गई थी।
नारायणपुर को छोडक़र बाकी दोनों मामलों में पुलिस और सुरक्षा बल अपनी बात पर क्राइम हैं। वह यह कि जो आंदोलन और विरोध किया जा रहा है, नक्सलियों के बहकावे की वजह से है।
नक्सली नेतृत्व की बात छोड़ दें तो उनके नीचे काम करने वाले लड़ाकू आसानी से पहचाने भी नहीं जाते हैं। ग्रामीण और नक्सलियों के बीच फर्क दिखता नहीं। इसलिए सुरक्षा बलों की बातें कुछ हद तक सही भी हो सकती है।
नक्सल उन्मूलन का दावा पिछले 22 सालों में जितनी भी सरकारें बनी करती आ रही हैं। मगर एक ट्रेंड दिखाई दे रहा है कि सब कुछ अफसरों के भरोसे छोड़ दिया गया है। वे अफसर जिन पर आम आदिवासियों का भरोसा जीतने की जिम्मेदारी है।
रितेश पुनेम का अंतिम संस्कार पुलिस जल्दबाजी में करने जा रही थी। सैकड़ों ग्रामीणों के दबाव में रुकना पड़ा। बहुत तनातनी के बीच रविवार को अंत्येष्टि हो पाई।
पूरे बस्तर संभाग में सब के सब विधायक सत्तारूढ़ कांग्रेस से हैं। मान लेते हैं कि सत्ता में हिस्सेदारी होने के कारण भी कम बोल रहे हो पर, भाजपा ने, खास कर उनकी प्रभारी महासचिव ने बस्तर पर जबरदस्त फोकस किया हुआ है। एक विपक्ष की भूमिका निभाते हुए क्या उन्हें सिर्फ बैठकों और संगठन विस्तार की चर्चा करनी चाहिए? जिस तरह सत्तारूढ़ होने के दौर में भाजपा इन मसलों की हकीकत और गहराई तक पहुंचने के लिए तैयार नहीं थी आज विपक्ष में भी रहते हुए ऐसा ही कर रही है।
झूला घर जो हर जिले में हो
बिलासपुर में पुलिस ने एक अनूठा काम किया जिसके बारे में पहले कभी विचार नहीं किया गया। पुलिस लाइन में बिलासा गुड़ी सभागार के ऊपर की जगह खाली थी जहां एक झूला घर शुरू किया गया है। यहां नन्हे बच्चों की रुचि के तमाम सामान उपलब्ध करा दिए गए हैं। ऐसी महिला पुलिस और पुरुष भी जो अपने बच्चों को कहीं भी छोड़ नहीं पाते थे उनके लिए यह सुकून भरा तोहफा है। एसएसपी पारुल माथुर ने पाया कि महिला पुलिस कई बार बच्चों को लेकर ड्यूटी पर आती हैं। वे जेल तथा कोर्ट भी जाती हैं। ड्यूटी की तन्मयता और क्षमता पर क्या असर पड़ता है यह तो दूसरी बात है लेकिन बच्चों के कोमल मन पर जेल, थाना, कोर्ट देखने का असर क्या होता होगा, इस पर गौर किया गया।
यहां एक आया और चार पुलिसकर्मियों की 24 घंटे ड्यूटी रहेगी। बच्चों के लिए खाना वे घर से लाएंगे, जो आया और यहां तैनात पुलिसकर्मी उन्हें खिलाएंगे। खेल और लिखने पढऩे में भी मदद करेंगे। यह व्यवस्था सरकारी फंड के बिना ही की गई है। लोग कह रहे हैं क्योंकि जिले की कप्तान महिला है, इसलिए उनके मन में संवेदना से भरा हुआ यह विचार आया।
गूगल की लैंगिक नासमझी
गूगल जैसा अमरीका से उपजा हुआ ऑनलाईन कारोबार भी अमरीकी पैमानों को पूरा नहीं कर पा रहा है। उस देश में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना एक कानूनी बंदिश का मामला है। लेकिन गूगल में भाषा को सुधारने का जो औजार हैं, वे बताते हैं कि अगर किसी ने जनसंहार लिखा है, तो गूगल उसकी जगह नरसंहार सुझाता है। यानी गूगल यह भी मानने को तैयार नहीं है जंग में मारे गए नागरिकों में महिलाएं भी होती हैं, वह सिर्फ नरसंहार की बात करता है।
पांच राज्यों के बाद पहला उप-चुनाव
चुनाव आयोग ने छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की रिक्त विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव की तारीख तय कर दी है। प्रदेश में स्व. देवव्रत सिंह के निधन के बाद खैरागढ़ विधानसभा में चुनाव होना है। 17 मार्च यानी होलिका दहन के दिन से नामांकन दाखिले की प्रक्रिया शुरू होगी। 12 अप्रैल को वोटिंग और 16 को नतीजे आएंगे।
सन् 2018 के आम चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) की टिकट पर देवव्रत सिंह ने कड़े मुकाबले में भाजपा के कोमल जंघेल को 870 वोटों से परास्त किया था। अगर देवव्रत यह चुनाव जीत पाए तो इसका कारण उनका निजी प्रभाव भी था। बाद में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि तकनीकी रूप से वे कांग्रेस में जा नहीं सकते हैं, पर वे कांग्रेस में ही हैं।
मौजूदा परिस्थिति बताती है कि सीधी टक्कर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होगी। 2018 के बाद अब तक के उप-चुनावों में कांग्रेस को जीत ही मिली है। भाजपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे की 2 सीटों पर अब कांग्रेस के विधायक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
वैसे भी आमतौर पर उप-चुनावों में सत्तारूढ़ दल भारी पड़ता है। पर हाल ही में उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में भाजपा की जीत ने पार्टी कार्यकर्ताओं को नई ऊर्जा दी है। वह मानकर चल रही है कि उनकी स्थिति बीते दो उप-चुनावों से बेहतर रहेगी। बकौल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम, कांग्रेस ने अपने जन घोषणा पत्र के 90 फ़ीसदी से अधिक वादे पूरे किए हैं और सभी वर्गों का भरोसा बढ़ा है। विधानसभा उप-चुनाव, नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव की तरह खैरागढ़ में भी कांग्रेस को ही जितायेगी। इधर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय का कहना है कि छत्तीसगढ़ के किसान कांग्रेस की नीतियों से नाराज है। उसका हश्र वही होगा जो पांच राज्यों में हुआ। यानि हाल के नतीजों से भाजपा छत्तीसगढ़ में भी बदलाव के प्रति आशान्वित है।
बहरहाल जैसा कि प्राय: होता है कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की संख्या ज्यादा है। स्व. देवव्रत सिंह की पूर्व पत्नी पद्मा देवी ने खुले तौर पर दावेदारी कर ही दी है। वे विभा सिंह के खिलाफ खुलकर आ चुकी हैं। जबलपुर में रहने वाली देवव्रत की बहन स्मृति भार्गव ने बीते दिनों टीएस सिंहदेव से मुलाकात की और अपनी इच्छा जाहिर की। चुनाव हारने वाले पूर्व विधायक गिरवर जंघेल, प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष उत्तम ठाकुर, ब्लॉक अध्यक्ष यशोदा वर्मा, कांग्रेस के जिला महामंत्री रंजीत सिंह चंदेल और दशरथ जंघेल जैसे कई नाम कांग्रेस से सामने आ रहे हैं।
भाजपा में कोमल जंघेल अपनी दावेदारी इसलिए मजबूत मानते हैं क्योंकि हार जीत का अंतर बीते चुनाव में काफी कम था। हालांकि वे दो चुनाव हार चुके हैं। जिला पंचायत के उपाध्यक्ष विक्रांत सिंह जो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के भांजे भी हैं का भी टिकट के लिए दावा है। छुई खदान इलाके के लोकेश्वरी जंघेल का नाम भी उभर कर सामने आ रहा है।
जो भी हो इस चुनाव का परिणाम यदि भाजपा के पक्ष में गया तो पार्टी में नई जान फूंकी जा सकेगी। पार्टी प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी के दौरों का भी परिणाम दिखेगा। कांग्रेस की जीत पर यह तय हो जाएगा कि पांच राज्यों के नतीजों से सरकार के प्रति लोगों का मोह भंग नहीं हुआ है।
देवगुड़ी की चिंता
बस्तर के उलनार में नया एयरपोर्ट बनाने की तैयारी चल रही है। इसमें निजी भूमि का भी अधिग्रहण किया जाना है। एयरपोर्ट बनने की खबर यहां रहने वाले आदिवासियों से पहले बिचौलियों को मिल गई। उन्होंने निकट भविष्य में मुआवजे की भारी रकम पाने का जुगाड़ कर लिया। पर ग्रामीणों की चिंता दूसरी है। पटवारी ने जो नाप जोख की है, उसमें उनके गांव की देवगुड़ी भी आ रही है। अब यह काम वाले वहां लगातार पहरा दे रहे हैं कि कहीं उनकी आस्था का स्थल ध्वस्त न हो जाए। प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई आश्वासन देने के लिए नहीं पहुंचा है, जबकि नियम तो यही है कि गांव वालों की सहमति बिना न तो नाप-जोख होनी चाहिये न ही अधिग्रहण।
नाबालिगों के हाथ पिस्टल चाकू...
सरगुजा में कॉलेज के एक छात्र ने पहले छात्रा को गोली मारी और उसके बाद अपनी कनपटी पर कारतूस दाग ली। युवक की मौत हो गई और छात्रा की हालत गंभीर है। बीते 25 फरवरी को बिलासपुर में 10 नाबालिगों ने मिलकर दो नाबालिगों को चाकू से गोद डाला जिनमें एक की मौत हो गई, दूसरा घायल है।
हाल के दिनों में पूरे छत्तीसगढ़ में जिस तरह से चाकूबाजी और पिस्टल-कट्टा, लहराने, चलाने, रखने की घटनाएं हो रही हैं- वह चिंताजनक है। रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा और सरगुजा में बड़े पैमाने तस्करी से पिस्टल और चाकू लाए जा रहे हैं। राजधानी पुलिस ने बीते साल छानबीन में यह पाया था कि फ्लिपकार्ट और दूसरी ऑनलाइन शॉपिंग ऐप के जरिए बटनदार घातक चाकू मंगाए जा रहे हैं। कट्टा रिवाल्वर ज्यादातर बिहार से मंगाए जाते हैं। वहां के मुंगेर जिले को अवैध कट्टा-कारतूस बनाने का हब माना जाता है।
बड़ी बात यह है कि इन हथियारों से जुड़े आपराधिक मामलों में ज्यादातर नाबालिग हैं। राजधानी पुलिस ने एक साल में 290 चाकू बरामद किए हैं। कट्टा, रिवाल्वर, कारतूस, एयर गन के अलावा तलवार, गुप्ती, गंडासा भी भारी मात्रा में जप्त किए गए। जाहिर है जो पकड़ में आए केस उन पर ही बना, लेकिन वास्तविक खपत इससे कई गुना ज्यादा होगी।
अपराधिक वारदातों के हो जाने के बाद अपराधियों को गिरफ्तार तो पुलिस कर रही है। पर अपराधों का ग्राफ इससे बढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है, जिस पर भाजपा सरकार को सदन के बाहर-भीतर बार-बार घेर रही है। अपराध ही न हो इसके लिए जरूरी है कि तस्करी ही रोकी जाए, और ऑनलाइन पार्सल पर पर भी निगरानी बढ़ाई जाए।
दोनों के हाथों में लड्डू
2004-05 और उसके बाद भर्ती किये गये सरकारी कर्मचारी होली के पहले ही गुलाल उड़ा रहे हैं, दिल बाग-बाग है। राज्य के बजट में पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की यह खुशी है। दरअसल, इन अधिकारी-कर्मचारियों की नई स्कीम पेंशन जैसी थी भी नहीं। उनके वेतन से 14 फीसदी की कटौती का प्रावधान है। इतना ही अंशदान सरकार भी दे रही है। इसे जीपीएफ से भी नहीं जोड़ा गया। शेयर बाजार में इसका पैसा एक संस्था एनएसडीएल के जरिये लगाया जा रहा है। शेयर बाजार की उथल-पुथल के आधार पर जमा राशि घट-बढ़ सकती है। सेवानिवृत्ति पर राशि का एकमुश्त भुगतान किया जाएगा। यदि चाहे तो यही राशि मासिक किश्तों में पेंशन के रूप में ली जा सकती है। जाहिर है कि शेयर बाजार में लगाये गये पैसे निकालने पर टैक्स भी कटेगा।
जो सरकारी कर्मचारी 2004 से पहले से सेवा में हैं, उन्हें पुरानी स्कीम के तहत लाभ मिलता है। वेतन से सीधे कोई कटौती नहीं हो रही है। जीपीएफ का प्रावधान है। सेवानिवृत्ति के दिन जो तनख्वाह है, उसका 50 प्रतिशत मासिक मिलना शुरू हो जायेगा। मृत्यु होने पर भी नामिनी को आधी पेंशन मिलती रहेगी। जीपीएफ के ब्याज पर कोई टैक्स भी नहीं लगेगा।
इसी पुरानी योजना को लागू करने के लिये कर्मचारी संगठन लगातार आंदोलन कर रहे थे। सरकार को इस मांग को पूरा करने में इसलिये भी दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि योजना के तहत लाभ पाने वाले कर्मचारियों का रिटायरमेंट 2034 से पहले नहीं होगा। तब की तब देखेंगे। फिलहाल 14 प्रतिशत अंशदान तो सरकार नई स्कीम में दे ही रही है, उसे जीपीएफ फंड में डाल दिया जायेगा। यानि सरकार की वाहवाही भी हो गई और जेब से कुछ गया भी नहीं।
2024 से पहले 2023
मोदी तब भी असरदार थे, जब सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में भाजपा की करारी हार हुई। पर मोदी के होने का असर दिखा लोकसभा चुनावों में, जो कुछ महीने बाद ही हुए। कांग्रेस को अनपेक्षित नतीजे का सामना करना पड़ा। यूपी और दूसरे राज्यों में अभी मिली सफलता से प्रधानमंत्री खम ठोंक रहे हैं कि सन् 2024 में, यानि अगले लोकसभा चुनाव में परिणाम क्या होंगे, यह फैसला जनता ने कर दिया है।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव इसी साल हैं। दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। भाजपा सोचकर चल रही है कि वह दोनों में मजबूत पार्टी बनकर उभरेगी। गुजरात के बारे में तो वहां के भाजपा नेता उत्साह से इतने सराबोर हैं कि सभी सीटें जीत लेने का दावा कर रहे हैं। इधर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने साफ किया है कि वे गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ेंगे। छत्तीसगढ़ में भी यह संगठन अपने विस्तार में लगा हुआ है। पिछली बार वह कई सीटों पर थी, मुकाबले में नहीं थी, पर प्रभाव छोडऩे में सफल रही। इस बार उनके सामने पंजाब का नतीजा है।
इन संदर्भों में, माना जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति चाहे जितनी नाजुक हो पर सन् 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव का नतीजा सन् 2018 की तरह होने वाला नहीं है। मौजूदा कांग्रेस का प्रचंड बहुमत बरकरार रहेगा, यह भी दावा करना मुश्किल है। नई परिस्थितियों में सरकार रिपीट करने के लिये ज्यादा मेहनत की जरूरत पड़ेगी।
जब कांग्रेस चुनाव हार गई...
वे तो दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव थे, जिन्होंने जोगी सरकार के दुबारा लौटने पर मूंछें मुंडवा लेने का ऐलान कर दिया था। उनका आकलन तब सही निकला। पर मतदाताओं के मिजाज को तौल पाना हर किसी के वश में नहीं है। कांग्रेस को कम से कम उत्तराखंड और गोवा में तो सरकार बनने की उम्मीद थी। बड़े नेता भी सही अंदाजा नहीं लगा पाये कि नतीजा क्या आने वाला है। मध्यप्रदेश में चुनाव नहीं था, पर यहां के नरसिंहगढ़ के एक ब्लॉक अध्यक्ष बाबू मीणा ने दावा कर दिया। कहा कि पांच में चार राज्यों में कांग्रेस सरकार नहीं बनी तो सिर मुंडवा लेंगे। परिणाम आने के बाद पहले तो वे दायें-बायें करने लगे। पर लोगों ने दबाव बनाया, जब चैलेंज किया था तो उसे निभाओ। शर्त के मुताबिक चौराहे पर बैठकर उन्हें अपना सिर साफ कराना पड़ा।
डरा देने वाला विज्ञापन
फर्ज करें आप अपनी मोबाइल फोन का स्क्रीन अनलॉक करते हैं और दिखाई देता है कि मम्मी के आठ मिस्ड कॉल हैं। यदि किसी की मां हॉस्पिटल में भर्ती हो तो उसे तो अटैक भी आ सकता है। किसी की मां हाल में गुजर गई हो तो दुखी और परेशान हो सकता है। पर यह है एक विज्ञापन। जैसे ही मिस्ड कॉल पर आप प्रेस करेंगे, ओला कैब का विज्ञापन दिखेगा...। मॉम आपको बताना चाह रही है कि आप अगली सवारी में 40 प्रतिशत तक डिस्काउंट ले सकते हैं। मम्मी नहीं चाहती कि आप बाहर खाना खाएं, इसलिये ओला कैब की सवारी कर इस छूट का फायदा लें और जल्दी घर पहुंचें। सोशल मीडिया पर इस विज्ञापन की जमकर आलोचना हो रही है। लोग वैसे ही दिन-रात अनचाहे मेसैजेस और कॉल से परेशान होते रहते हैं, उस पर मार्केटिंग का यह फंडा उन्हें बेहूदा लगा है। लिंक्डइन के सीईओ कार्तिक भट्ट ने लिखा है कि यह कैम्पेन बहुत खराब है। ऐसे प्रमोशन को देखने से वे लोग बुरी तरह घबरा जाएँगे जो अपनी मां से दूर रहते हैं।
जनता कैसा सहयोग करे?
छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, वन विभाग सबसे भ्रष्ट विभाग हमेशा ही बने रहा। यहां एक-एक ट्रांसफर-पोस्टिंग का सबसे ऊंचा रेट चलते रहा, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में क्षतिपूर्ति-वृक्षारोपण का जो कैम्पा मद इक_ा किया गया था उसमें भ्रष्टाचार भयानक पैमाने पर जारी रहा, लेकिन यह विभाग सत्ता के साथ-साथ विपक्ष को भी पालते आया, और साधते आया। इसीलिए इसके सबसे भ्रष्ट लोग हमेशा ही सबसे ताकतवर रहते आए, और उनके खिलाफ तमाम शिकायतें सत्ता और विपक्ष मिलकर दबाते रहे।
अब ऐसा विभाग जब राजधानी में दीवारों पर ऐसी तस्वीरें बनवाता है कि लोग राज्य के राजकीय पशु वनभैंसे के संरक्षण और संवर्धन में सहयोग करें, तो लोग हैरान होते हैं कि इस काम में जनता क्या कर सकती है? इस काम में तो नर और मादा वनभैंसों के अलावा किसी का अधिक किरदार है नहीं। और इन वनभैंसों के नामों पर भी लंबा-चौड़ा भ्रष्टाचार करने वाला वन विभाग जब सार्वजनिक जगहों पर दीवारों पर लोगों से सहयोग की ऐसी अपील करता है, तो वह हैरान करने वाली रहती है। लोगों को लगता है कि विभाग के डीएफओ की कुर्सी पर रेंजर को देखते हुए अगर लोग चुप हैं, तो इससे अधिक योगदान वे और क्या कर सकते हैं? जिस तरह पूरे देश में किसी भी राज्य में डीएफओ की कुर्सी पर गैरआईएफएस बैठाने का रिकॉर्ड छत्तीसगढ़ के नाम जाता है, उससे भी लगता है कि वनभैंसे का आत्मविश्वास खत्म हुआ होगा, और प्रजनन शक्ति भी। अब इसमें आम जनता कैसा सहयोग कर सकती है, यह बात वन विभाग को बतानी चाहिए।
कभी ऐसा कुछ खाया है?
सोशल मीडिया पर कई तरह के लतीफे चलते हैं, जिनमें से यह भी है कि चाइनीज व्यंजनों के नाम पर भारत में जिस तरह की चीजें बनाई और खिलाई जाती हैं, उनसे खफा होकर चीनियों ने हिन्दुस्तान पर कोरोना छोड़ा था। लेकिन खुद हिन्दुस्तान के भीतर एक-दूसरे इलाके के व्यंजन अपने स्थानीय तरीकों में ढालकर बनाए जाते हैं, वह भी देखने लायक रहता है। अभी राजस्थान में हुई एक कांफ्रेंस में छत्तीसगढ़ के लोगों को पहली बार रागी के बने हुए गुपचुप खाने मिले जिसमें आम खट्टे पानी की जगह अनार का रस भरकर पिलाया जा रहा था। इसी के साथ-साथ शिमला मिर्च का हलुवा भी था। अब भारत के विविधता वाले प्रदेशों में खान-पान की ऐसी विविधता देखने लायक रहती है। अब दूसरे देश के व्यंजनों से अगर हिन्दुस्तान नूडल-गुपचुप बनाता है, तो उसका मतलब कोरोना को न्यौता देना नहीं है।
ताकत देखिये, नतीजा नहीं
सन् 2018 के चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाने में अहम् भूमिका निभाने वाले छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी व राष्ट्रीय महासचिव पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया को तीसरी बार हार का सामना करना पड़ा। आईआईटी रूडक़ी से इंजीनियर तनुज ने विदेश में लाखों की नौकरी का पैकेज छोडक़र उन्होंने अपने पिता के पुराने कर्मक्षेत्र बाराबांकी जिले से पहला संसदीय चुनाव लड़ा। यहां से पुनिया सांसद रह चुके हैं। इसके बाद सन् 2019 के इसी इलाके के जैदपुर विधानसभा से उप-चुनाव लड़ा। इस बार फिर वे हार गये। टक्कर में भी नहीं थे। वहां सपा के प्रत्याशी ने मामूली अंतर से भाजपा को हराया।
वैसे, जो लोग छत्तीसगढ़ में पिछली बार प्रदेश कांग्रेस को ओवरटेक कर पुनिया के रास्ते टिकट लेकर आये थे, उन्हें यूपी का चुनाव परिणाम देखकर निष्ठा डिगाने की जरूरत नहीं। यदि वे पुनिया के विश्वासपात्र हैं तो बने रहना ही ठीक रहेगा। हाईकमान में उनकी पकड़ का पता चलता है। बहुत कम कांग्रेस नेता हैं जो बार-बार हारने के बाद भी पसंद की टिकट पक्की करा पाते हैं।
होली भी तो छत्तीसगढिय़ा हो..
होली को अब पारंपरिक तरीके से मनाने वाले कम होते जा रहे हैं। जिन गांवों में कई दिन पहले से फाग शुरू हो जाता है वहां भी डीजे बजने लगे हैं। पर बहुत से लोग हैं जो अब भी नगाड़े के बिना होलिका दहन और रंगोत्सव को फीका समझते हैं। राजनांदगांव के डोंगरगढ़ अंचल में बहुत से लोग नगाड़ा बनाने के व्यवसाय से जुड़े हैं। कोरोना संक्रमण के चलते दो साल तक ठीक तरह से होली मनाई नहीं जा सकी। फाग टोलियों के एकत्र होने पर भी रोक लगी हुई थी। इस बार माहौल तो अनुकूल है, पर डीजल-पेट्रोल के कारण हर चीज महंगी हुई है। नगाड़े में इस्तेमाल किये जाने वाले चमड़े भी। नगाड़े के साथ पर्व मनाने वाली पीढ़ी भी अब बदल रही है। फिर भी पुश्तैनी काम है, छोड़ नहीं पा रहे हैं। कुछ कमाई होने की उम्मीद बनी रहती है। रायपुर, बिलासपुर और दूसरे शहरों के पुराने बाजारों में इनकी मौजूदगी आपको इन दिनों दिखाई दे सकती है। अब छत्तीसगढ़ सरकार तो राज्य के कई तीज-त्यौहारों और कला को संरक्षण देने में लगी हुई है, क्या ऐसा नहीं होना चाहिये कि इन छत्तीसगढ़ की होली को भी जगह-जगह डीजे की जगह नगाड़े के साथ मनाने की कोशिश की जाये।
अंत्येष्टि तभी, जब दाग मिटे
हाल ही में नारायणपुर जिले के बंडा गांव में डीआरजी बल के जवान रेनू राम नरेटी के भाई मानूराम की पुलिस की गोलियों से मौत हो गई। बार-बार पुलिस यह साबित करने की कोशिश कर रही थी कि वह नक्सली था और मुठभेड़ में मारा गया। पर ग्रामीण उसे बेकसूर बताते रहे और सबूत भी दिए कि वह तो बस्तर फाइटर्स (आरक्षक) में भर्ती की तैयारी कर रहा था। आखिरकार पुलिस ने माना मृतक मानु राम के नक्सली होने का कोई प्रमाण नहीं है। अब इस तथ्य के सामने आने के बाद मानूराम के भाई उसकी पत्नी और परिवार को इंसाफ मिलेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है।
पर यह अकेला एक मामला नहीं है। कितने ही मुठभेड़ों को बस्तर के आदिवासी फर्जी बताते और न्याय की गुहार लगाते रहे हैं।
किरंदुल के गामपुर में 19 मार्च 2020 की सुबह छत्तीसगढ़ पुलिस की एक गश्ती टीम ने 22 साल के बदरू मंडावी को नक्सली बताकर मार गिराया। औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसका शव परिवार को सौंप दिया गया। 23 माह बीत गये। बदरू के परिवार वालों अब तक उसके शव को संभाल कर रखा हुए हैं। एक गड्ढा खोदा गया है, और जड़ी-बूटी शरीर पर लेपकर कपड़े से बांध दिया गया है। बद्री की पत्नी पोदी और मां माधवी मार्को कहती हैं कि जब तक बेकसूर बेटे को मारने वाले पुलिस जवानों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, शव को नहीं दफनाया जाएगा। वे लगातार बुजुर्ग की हत्या की जांच की मांग प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों से कर चुके हैं। कोई सुनवाई नहीं हुई। इन्हें उम्मीद है कि किसी दिन तो उनकी बात सुनी जाएगी और जांच होगी। तब हो सकता है, जांच में इस शव की भी जरूरत पड़े। क्या सरकार में बैठे लोग उनकी फरियाद सुन पा रहे हैं?
पानी भरा रहा तो रेत कैसे निकलेगी?
नदियों से रेत निकालने के लिए जरूरी है कि वह सूखी रहे। पानी भरा रहा तो निकलेगी कैसे? गर्मी के दिनों में जल संकट न हो इसे देखते हुए बालोद जिले में शिवनाथ नदी के खरखरा जलाशय से बीते दिनों पानी छोड़ा गया। इससे कोटनी एनीकट में पानी भर गया। पर ठीक इसी के ऊपर एक रेत खदान का ठेका खनिज अधिकारियों ने दे रखा है। नियम के अनुसार ऐसा किया जाना गलत है। जहां गर्मी के दिनों में जल संकट पैदा होता हो और जलभराव बनाए रखना जरूरी हो वहां पर रेत खदान कैसे खुली?
बहरहाल रेत ठेकेदार यह बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है कि उनकी रेत की कमाई पर पानी फिर जाए। इधर एनीकट में पानी, दूसरे दिन उसका गेट टूट गया, या कह लीजिए किसी ने तोड़ दिया। अब ठीक हुआ। पानी बह चुका है। गर्मी में लोगों को पानी का संकट झेलना पड़े तो पड़े, पर रेत की निकासी में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
साइकिल पर स्पिक-मैके फाउंडर
स्पिक मैके को कौन नहीं जानता। बीते 44 वर्षों से भारत की वैभवशाली संस्कृति शास्त्रीय-संगीत, नृत्य, लोककला, चलचित्र, नाटक और योग के माध्यम से युवाओं को जोडऩे वाली इस संस्था के संस्थापक हैं पद्मश्री डॉ. किरण सेठ। छत्तीसगढ़ में इनके अनेक शिष्य हैं। वे कई बार रायपुर, भिलाई और बिलासपुर आए हैं। 73 वर्ष के इस आईआईटी के रिटायर्ड प्रोफेसर को कार या बाइक की जगह साइकिल पर चलना ज्यादा पसंद है। उनका कहना है कि ट्रैफिक, इंधन, स्वास्थ्य और पर्यावरण की बढ़ती समस्या इसका समाधान है। इससे आगे वे यह भी कहते हैं कि साइकिलिंग एक बढिय़ा मेडिटेशन है।
इस साल 2 अक्टूबर से वे कश्मीर से कन्याकुमारी तक की लंबी साइकिल यात्रा पर निकल रहे हैं। आज उन्होंने दिल्ली के राजघाट से जयपुर साइकिल से ही निकले।
साइकिल यात्रा के माध्यम से वे भारत की सांस्कृतिक विरासत को देश के दूर-दूर तक पहुंचाने का उद्देश्य रखते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी की उनकी यात्रा में छत्तीसगढ़ पड़ाव होगा या नहीं, अभी यह तय नहीं है। पर, छत्तीसगढ़ के बहुत से युवा और उनके प्रशंसक उनकी यात्रा में अपनी अपनी क्षमता के हिसाब से उनके साथ दूरी तय करना चाहते हैं।
अपने यहां पर्यावरण दिवस या ऐसे ही किसी खास मौके पर साइकिल रैली निकाली जाती है। कभी-कभी कुछ उत्साही युवा ट्रैकिंग पर भी निकलते हैं। वरना, स्कूली बच्चों के हाथ में भी अब बाइक और स्कूटर है।
रायपुर नगर निगम के महापौर ने बीते साल स्वच्छता का संदेश देने के लिए लगातार कुछ दिनों तक लगातार साइकिल चलाई थी। कुछ महीने पहले प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम ने साइकिल यात्रा कर केंद्र की महंगाई के खिलाफ आंदोलन किया था। यानी कि जब कोई रस्म हो तब साइकिल याद आती है। यह आदर्श परिवहन का प्रतीक है पर आदत में नहीं है।
वैसे डॉ. किरण सेठ की तरह किसी बड़े उद्देश्य के लिए नहीं, सब्जी बाजार जाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्कूल का नाम बदलने का फिर विरोध..
स्कूलों के नाम के साथ उसका इतिहास दर्ज होता है। साथ ही लोगों की भावनायें उससे जुड़ जाती हैं। रायगढ़, सरगुजा, जीपीएम सहित कुछ अन्य जिलों में स्कूलों का नाम बदलने को लेकर लोगों में असंतोष है। आंदोलन हुए हैं। अभ एक और मामला पिथौरा से आया है। यहां के सबसे पुराने राजा रणजीत सिंह कृषि उच्चतर माध्यमिक शाला का नाम माध्यमिक शिक्षा मंडल के पोर्टल से हटा दिया गया है और उसकी जगह स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम दर्ज कर दिया गया है।
स्कूल 63 साल पुरानी है। कौडिय़ा राज के आदिवासी राजा रणजीत सिंह ने इसके लिये जमीन दान की थी। उनको दानवीर, न्यायप्रिय और प्रजा के प्रति संवेदनशील राजा के तौर पर भी जाना जाता है। गोंड समाज के लोग नाम हटाने को लेकर उद्वेलित हैं। उन्होंने सीएम और स्कूल शिक्षा विभाग को सितंबर के बाद हुए हुए बदलाव के विरोध में पत्र लिखा और अपनी भावनाओं को जाहिर किया। पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका नतीजा यह निकला है कि महासमुंद जिले के इस एकमात्र कृषि हायर सेकेंडरी स्कूल के छात्र भी आंदोलन पर उतर आये हैं। उन्होंने मंगलवार को प्रदर्शन किया और आगे आंदोलन तेज करने की बात कर रहे हैं।
दरअसल, शासन उन स्कूलों को आत्मानंद स्कूलों के रूप में संचालित करने जा रहा है जो वर्षों से अच्छे सेटअप के साथ तैयार हैं। इससे वहां मापदंड के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्टर तैयार करने में उन्हें आसानी होती है। पर इन स्कूलों के नाम के साथ स्थानीय लोगों के जुड़ाव को नहीं समझा जा रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश में यह साफ लिखा है कि पहले से ही किसी दानदाता या क्षेत्र के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के नाम पर यदि कोई स्कूल है तो वह नाम विलोपित नहीं किया जायेगा, बल्कि उसके साथ यह लिखा जायेगा कि स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय के अंतर्गत संचालित है। इस आदेश का पालन न कर जगह-जगह विभिन्न जिलों में शिक्षा अधिकारी विवाद खड़ा कर रहे हैं।
आधी रात सडक़ पर लड़कियां..
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पूरे प्रदेश में अनेक अनूठे कार्यक्रम हुए, पर बिलासपुर के अरपा रिवर व्यू के किनारे लगी महिलाओं की जमघट का कोई मुकाबला नहीं था। यह कार्यक्रम ही रात 9 बजे के बाद शुरू हुआ। रात 12 बजे कार्यक्रम खत्म होने के बाद लड़कियों ने शहर की सडक़ों को पैदल भी नापा।
संदेश यह था कि हमेशा लड़कियों को कहा जाता है कि वे देर रात तक घर से बाहर क्यों रहती हैं। जब लडक़े बाहर रह सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? सवाल मानसिकता का है। अनोखे आयोजन में गीत-संगीत का कार्यक्रम देर रात तक चला और पुरुषों ने भी वहां अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला इस कार्यक्रम की संयोजक थीं।
गांजा तस्करी इसलिये नहीं रुकती..
प्रदेश में गांजे की तस्करी पर रोक नहीं लग पा रही है। लगातार धरपकड़ के बावजूद। पत्थलगांव में बीते अक्टूबर में दुर्गा विसर्जन के दौरान गांजे से भरी एक कार ने जुलूस को रौंद दिया। इसमें एक मौत हुई और दो दर्जन घायल हो गये। इसके बाद सरकार के निर्देश पर पीएचक्यू ने सख्ती शुरू की। चेक पोस्ट पर 24 घंटे पुलिस की तैनाती और सीसीटीवी कैमरे का निर्देश हुआ। पर हर दिन किसी न किसी जिले में गांजे की खेप पकड़ी जा रही है। इनमें अधिकांश गांजा ओडिशा से आता है। पहले मलकानगिरी की पहाड़ी पर ही इसकी खेती होती थी, पर अब आंध्रप्रदेश सहित ओडिशा के दूसरे कई जिलों कालाहांडी, भवानीपट्टनम, गंजाम, कंधमाल में भी हो रही है। छत्तीसगढ़ से गुजरने वाले गांजे की बहुत कम खपत यहां होती है। बाकी यूपी, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, दमन-दीव, यहां तक जम्मू-कश्मीर में भी भेजा जाता है।
कारोबार चूंकि गैर-कानूनी है इसलिये छत्तीसगढ़ पुलिस इसके परिवहन पर रोक लगाने के लिये ताकत लगाती है। पत्थलगांव की घटना के चलते उन पर दबाव भी बना। थानों में दुर्घटनाओं के अलावा जो चारपहिया गाडिय़ां कबाड़ में तब्दील हो रही हैं, वे गांजा की तस्करी करते हुए ही पकड़ी गई हैं।
सांसद शशि थरूर, मेनका गांधी और केटीएस तुलसी गांजे के उत्पादन और कारोबार को मान्यता देने की मांग करते आये हैं। तुलसी ने तो शीर्ष कोर्ट में एक याचिका भी लगा रखी है। थरूर ने इसके समर्थन में करीब तीन साल पहले एक लंबा लेख भी लिखा था। वे इसे अर्थव्यवस्था से भी जोड़ते हैं। पैरवी करने वालों का कहना है कि सन् 1985 में अमेरिकी दबाव में इसे गैरकानूनी बनाया गया, ताकि शराब के कारोबारियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फायदा मिले।
नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट (एनडीटीटी), एम्स दिल्ली की रिपोर्ट है कि शराब के बाद सर्वाधिक पसंदीदा नशा, गांजा और भांग है। भांग को तो कहीं-कहीं, विशेष अवसरों पर कानूनी मान्यता है। वजह इसके साथ जुड़ी धार्मिक गतिविधियां, जैसे महाशिवरात्रि और होली। पर दिलचस्प यह है कि दोनों एक ही पौधे से तैयार होता है। गांजा पौधे को सुखाकर, तो भांग पीसकर बनाया जाता है। एक ही पौधा एक प्रारूप में अवैध तो दूसरे में वैध है।
बात यही है कि छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा रहा गांजा कानून व्यवस्था से जुड़ा कम, अंतर्राज्जीय समस्या ज्यादा है। पता नहीं कितनी ही कारें, ट्रकें रोज गांजा लेकर गुजर जाती हैं। दो-चार को पुलिस पकड़ पाती है। पर, इसके चलते पुलिस, अदालतों और जेलों की अतिरिक्त ऊर्जा लग रही है।
महिलाओं के इशारे पर उड़ान
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर स्वामी विवेकानंद हवाईअड्डा पर हवाई यातायात नियंत्रण का पूरा काम महिलाओं को सौंपा गया। इसमें कंट्रोल टावर, अपैरल कंट्रोल और रूट कंट्रोल का काम शामिल था। रायपुर हवाईअड्डे का एयर ट्रैफिक कंट्रोल टॉवर प्रतिदिन 20 से अधिक उड़ानों को संभाल सकता है। जिंदाबाद.. नारी शक्ति!
ऑनलाइन जुए का दुष्परिणाम
बहुत सी पाबंदियां बेअसर हो रही हैं, मोबाइल फोन पर ऑनलाइन गेम, गैम्बलिंग और इन्वेस्टमेंट के चलते। हाल ही में संसद में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि बिटक्वाइन जैसी वर्चुअल करंसी को मान्यता नहीं दी गई है पर उसे रेगुलेट करने की कोशिश की जायेगी। अब ऐसे अनेक ऐप आ गये हैं जो आपको मामूली रकम निवेश करने के लिये उकसाते हैं, पर इनका हश्र क्या होगा, इसका पता नहीं होता। यही हाल ऑनलाइन जुआ का है। यह ताश पत्ती, वर्चुअल क्रिकेट या दूसरे खेलों के रूप में होता है। टीवी, अख़बारों में बड़े-बड़े सितारे इसका विज्ञापन करते हुए भी दिखते हैं। एक छोटा सा डिस्कलेमर बताया जाता है कि- सावधान आपको इसकी लत लग सकती है, अपनी जोखिम पर खेलें। अंबिकापुर में संदीप मिश्रा की बच्चों को जहर देने के बाद की गई खुदकुशी में पुलिस जांच से यह बात भी सामने आ रही है कि मृतक हाल के दिनों में दो लाख रुपये ऐसे ही एक ऑनलाइन गेम तीन पत्ती गोल्ड में हार गया था। जबकि, उस पर स्थानीय कर्ज का दबाव अलग से था। इस गेम के संचालकों को अब पुलिस नोटिस देकर जानकारी मांगने वाली है। यह हैरानी और चिंता की बात हो सकती कि कैसिनो खोलने, लॉटरी बेचने पर तो रोक है, पर इंटरनेट के जरिये ऐसे सब कारोबार वैध होते जा रहे हैं।
पात-पात पर ऑनलाइन ठग
दूसरे के कंप्यूटर या मोबाइल फोन को दुनिया के किसी भी छोर में बैठकर ऑपरेट किया जा सकता है। कंप्यूटर में पहले से था, जिसका आम तौर पर सिस्टम के ऑनलाइन मेंटनेंस, रिपेयरिंग के लिये इस्तेमाल किया जाता था। टीमविवर इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहा है। इसके अलावा एनि विवर, अल्ट्रावेयर, स्पेस डेस्क आदि भी हैं। पर, अब मोबाइल फोन पर अनेक ऐप हैं, जिनका ऑनलाइन ठगी में जबरदस्त इस्तेमाल किया जा रहा है। वृद्ध या कम पढ़े-लोग ही नहीं बल्कि अच्छे खासी डिग्री वाले, सरकारी या निजी कंपनियों में नौकरी कर रहे लोग, किसान, व्यापारी सभी इसके शिकार लोगों में शामिल हैं।
गूगल सर्च से किसी कंपनी या बैंक का फोन नंबर निकालकर डॉयल करने से समस्या शुरू होती है। ठगी का जाल बिछाये लोगों ने सर्च इंजन में अपने मोबाइल नंबर डाल रखे हैं। जबकि कस्टमर केयर नंबर या तो टोल फ्री होता है, या फिर लैंडलाइन का नंबर। मोबाइल नंबर जालसाजों के पास चला जाता है। इसके बाद वे एनी डेस्क जैसे ऐप मोबाइल फोन पर डाउनलोड कराते हैं। यहां गौर करने की बात है कि एनीडेस्क या कोई अन्य ऐप दूर बैठे किसी दूसरे को आपका फोन ऑपरेट करने की अनुमति तभी देता है, जब आप दूसरे को कोड नंबर बतायेंगे, जो ऐप के चालू करने पर मिलता है। ठग फोन को ऑपरेट करके ऑनलाइन पैसे अपने एकाउंट में जमा करा लेते हैं। गूगल की पता नहीं कोई जवाबदारी है या नहीं ऐसे फर्जी फोन नंबर्स को ब्लॉक करने की पर साइबर जागरूकता के लिये पुलिस ने बीते साल पूरे प्रदेश में अभियान चलाया था। अब भी हाट-मेलों में और सोशल मीडिया के जरिये कोशिशें ही रही हैं, पर लोग ठगी के शिकार हो ही रहे हैं। रोजाना केस दर्ज हो रहे हैं, वर्षों की जमा-पूंजी लुट रही है पर पुलिस बहुत कम लोगों की गर्दन दबोच पा रही है।
क्राइम ब्रांच की फिर से तैयारी
भाजपा विधानसभा में प्रदेश की कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाती रही है। इस बार सरकार के पास एक जवाब यह हो सकता है कि अपराधों पर अंकुश लगाने के लिये वह पुलिस क्राइम ब्रांच का फिर से गठन करने जा रही है। हाल ही गृह विभाग ने एक निर्देश दिया है कि राज्य के तीन बड़े जिले रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में क्राइम ब्रांच गठित की जाये। क्राइम ब्रांच टीम भाजपा सरकार के समय प्रदेश के लगभग सभी जिलों में काम करती थी। गंभीर किस्म के अपराध, साइबर अपराधों का पता लगाने और अपराध होने पर तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने के लिए यह टीम तुरंत काम पर लग जाती थी। पर, कई जिलों से दबंगई और वसूली की शिकायत आने लगी। क्राइम ब्रांच ऐसी शाखा बन गई जो किसी भी इलाके में कार्रवाई करती थी पर थानेदार और उच्चाधिकारियों को भी बाद में इसका पता चलता था। जो जम गये थे वे घूम-फिर कर यहीं लौट आते थे। लगातार शिकायतों के बाद सभी टीमों को एक साथ भंग कर दिया गया था। अब यह टीम फिर से बनाने का जोखिम उठाया जा रहा है। देखना होगा कि पुलिस की छवि इससे सुधरेगी या फिर साख बिगड़ेगी।
घोटपाल मड़ई का आकर्षण
दक्षिण बस्तर का सबसे लोकप्रिय घोटपाल मड़ई इन दिनों चल रहा है। दूर दराज से ग्रामीण यहां पहुंच रहे हैं। उनके साथ आराध्य पुजारी, सिरहा, गुनिया, गायता भी होते हैं। इस मड़ई में पारंपरिक वेशभूषा और श्रृंगार के साथ पहुंचे एक स्थानीय आदिवासी।
गलत ब्रीफिंग, जायसवाल की रवानगी
नारायणपुर में एक आदिवासी युवक की पुलिस गोली से हुई मौत से उपजे विवाद पर राज्य की खुफिया एजेंसी को गलत ब्रीफिंग करना एसपी गिरिजाशंकर जायसवाल को हटाए जाने का कारण बन गया। 2010 बैच के आईपीएस जायसवाल को नारायणपुर में महज चार महीने पूर्व पदस्थ किया गया था।
पिछले दिनों नारायणपुर-अंतागढ़ मार्ग में मानू नरोटी नामक युवक के पुलिस की गोली से मौत होने के मामले में एसपी ने नक्सली ठहरा दिया। एसपी के इस बयान ने बस्तर संभाग के आदिवासी समुदाय को भडक़ा दिया। मानू नरोटी की मौत की घटना को समाज ने सिलेगर गोलीकांड से जोडऩे की कोशिश से सरकार ने मामले के पीछे की असल वजह का ब्यौरा जुटाना शुरू किया।
बताते है कि एसपी ने मामले की संवेदनशीलता को समझने में चूक कर दी। वे मारे गए युवक की पारिवारिक पृष्ठभूमि से पूरी तरह वाकिफ थे। चूंकि पुलिस की क्रॉस फायरिंग में आदिवासी युवक की जान चली गई, उस घटना को उचित ठहराने की जिद से मामला बिगड़ गया। बताते हैं कि एसपी जायसवाल ने मीडिया के साथ आला अफसरों से युवक को नक्सली बताने में हड़बड़ी कर दी। एसपी के इस दावे के उलट जब युवक के बस्तर फाईटर्स में प्रशिक्षण लेने और भाई के आरक्षक होने की जानकारी सामने आई, मानो नारायणपुर पुलिस महकमे की बुनियाद हिल गई। और तो और जब एसपी के सामने यह बात सामने आई कि मृत आदिवासी युवक को उन्हीं के हाथों प्रशिक्षण में प्रमाण-पत्र दिया गया था, तो हालत के हाथ से फिसलने का अहसास हुआ। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस जगह मुठभेड़ में युवक मारा गया वहां करीब दो साल से नक्सलियों का मूवमेंट नहीं रहा था।
सुनते हैं कि एसपी पिछले कई दिनों से मामले की निपटारे की कोशिश में थे। उन्होंने सत्तारूढ़ दल के विधायक से लेकर सांसद तक अपना पक्ष रखा। मामला आदिवासी समाज से था इसलिए सीएम पर ही मामला टिक गया था। चर्चा है कि घटना पर सही जानकारी देने से स्थिति को संभाला जा सकता था। एसपी की गलत बयानबाजी के बाद बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने पुलिस चूक को स्वीकार किया। अफसरों के बीच यह भी कानाफूसी हो रही है कि एसपी ने नवपदस्थ कलेक्टर ऋतुराज रघुवंशी को भी गलत जानकारी दी। राजधानी के अफसरों ने जब कलेक्टर को वारदात की सच्चाई से अवगत कराया तो वे भी असहज हो गए। नारायणपुर एसपी रहते जायसवाल ने बिना सोचे युवक को नक्सली बताने की भूल की, उसी दिन से उन्हें हटाए जाने की अटकलें तेज हो गई थीं।
डीएमएफ पर नियंत्रण किसका हो..?
जिला खनिज न्यास फंड जबसे मिल रहा है, छत्तीसगढ़ में विवाद होता रहा है। एक बड़ी रकम इस कोष में आती है। पिछले साल का आंकड़ा करीब 1100 करोड़ रुपये था। सन् 2015 में जब यह नीति बनी कि खनिज प्रभावित क्षेत्रों के पर्यावरण, पेयजल, स्कूल, सडक़ के लिये खनिज संचालकों को अपनी रॉयल्टी का एक भाग देना पड़ेगा तब किसी को नहीं अंदाजा नहीं था कि छत्तीसगढ़ जैसे खनिज संसाधनों से भरपूर राज्य में कितना पैसा आ सकता है। उस वक्त विधायक और सांसद तो सदस्य बनाये गये पर खर्च करने के लिये बनाई गई समिति के अध्यक्ष कलेक्टर हुए। खूब मनमानी हुई, अनाप-शनाप खर्च किये गये। शहरों पौधारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये फूंके गये। एयरपोर्ट की बाउंड्रीवाल बना दी गई। लोगों को पहले-पहल समझ ही नहीं आया कि राशि किस तरह से खर्च हो। विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने इस गड़बड़ी को देखा। सरकार बनने के बाद उसने कलेक्टरों को हटाकर जिलों के प्रभारी मंत्री को जिला खनिज न्यास का अध्यक्ष बना दिया। कुछ अशासकीय प्रतिनिधि भी नियुक्त किये गये। पर इस व्यवस्था को लेकर सांसदों ने दिल्ली में शिकायत कर दी। आईएएस लॉबी भी नाराज थी। पिछले साल यह फंड केंद्र के निर्देश पर फिर कलेक्टर्स के हाथ आ गया।
इस फंड को लेकर कोरबा जिले की बात ही अलग है। प्रदेश के सारे डीएमएफ का फंड अकेले इस जिले के बराबर नहीं है। यहां करीब 600 करोड़ रुपये जमा होते हैं।
जांजगीर-चांपा जिले के अकलतरा के विधायक सौरभ सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर फंड में भारी गड़बड़ी का आरोप लगाया। 24 घंटे के भीतर ही सोशल मीडिया पर एक दूसरी चि_ी प्रधानमंत्री को ही लिखी गई वायरल हुई। इसमें रामपुर विधायक व पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर ने सौरभ सिंह के आरोपों का खंडन था। इसमें खनिज न्यास मद से होने वाले खर्चों को सही बताया गया था। कहा गया कि सौरभ सिंह कोरबा जिले के ही नहीं तो वे यहां दखल क्यों दे रहे हैं? कंवर ने तुरंत खंडन किया और कहा कि यह पत्र फर्जी है। वे कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। वे अपनी ही पार्टी के विधायक के खिलाफ क्यों लिखेंगे और वायरल करेंगे।
भाजपा के सौरभ सिंह ने कलेक्टर को निशाने पर लिया, मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने भी लिया। दोनों का आरोप है कि भ्रष्टाचार हो रहा है। फंड का सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं यह निगरानी केंद्र का खनिज मंत्रालय करता है। देखें उनके पत्र पर कोई जांच शुरू होती है या नहीं। मंत्री जयसिंह के लिये भी चुनौती है कि उनकी शिकायत को ऊपर कितनी तरजीह मिलेगी। कलेक्टर और जि़ले के मंत्री का ऐसा टकराव इनमें से किसे सही साबित करेगा?
युद्ध की रसोई पर मार...
यूं तो होली, दीपावली की तरह खर्चीला त्यौहार नहीं, पर इस बार रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते रसोईघर में भी असर दिखेगा। खाद्य तेलों की कीमतों में अभी से ही वृद्धि होने लगी है। छत्तीसगढ़ के बाजारों में सनफ्लावर तेल की कीमत में हाल के दिनों में 25 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। यह 165-175 रुपये तक पहुंच गया है। भारत जितना सनफ्लावर तेल या उसके कच्चे माल का आयात करता है, रिपोर्ट के मुताबिक उसका 75 फीसदी रूस से ही आता है। यूक्रेन से भी आयात होता है। पर बाकी खाद्य तेलों या उनके कच्चे माल का आयात रूस या यूक्रेन से नहीं होता। इसके बावजूद अन्य खाद्य तेलों सोयाबीन, राइस ब्रान तेल और पाम आयल के भी दाम बढऩे लगे हैं। मतलब यही है कि इस बार होली में आम गृहणियों को हाथ खींचकर पकवान बनाने पड़ सकते हैं।
ट्रैफिक का अनुशासन
ज्यादातर सडक़ दुर्घटनायें यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण ही होती है। ओवरटेक करना तो हमारा पसंदीदा शगल है, मानों किसी जगह 5-10 मिनट पहले पहुंचकर हम देश बदल लेंगे। कहीं जाम लग गया हो दायें-बायें देखे बिना रोड को तब तक नापते हैं, जब तक खुद आगे जाकर फंस ना जाएं। पीली-सफेद पट्टियां हमें नजर नहीं आती। ऐसा करने वालों को सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इम्फाल, मणिपुर की यह तस्वीर कुछ सीख देती है।
मेडिकल कॉलेज के रास्ते में रोड़ा
सुनने में यह अजीब लगता है पर कोरबा जिले में डॉक्टरों की एक ऐसी लॉबी काम कर रही ह जो यहां मेडिकल कॉलेज खोलने के रास्ते में अड़ंगा डाल रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि यदि मेडिकल कॉलेज के चलते यहां सरकारी और सस्ते इलाज की सुविधा शुरू की गई तो निजी अस्पतालों की प्रैक्टिस मारी जायेगी।
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने ऐसे जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने की मंजूरी दी थी, जहां पहले से सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं है। सन् 2020 में कोरबा के लिये भी घोषणा की गई थी। इस बीच जिला अस्पताल की सुविधायें मेडिकल की पढ़ाई के हिसाब से तो कुछ बढ़ा दी गई हैं, पर विशेषज्ञ चिकित्सकों और स्टाफ की भर्ती रुकी है। भवन का निर्माण नहीं हुआ है। कद्दावर नेताओं के कोरबा जिले में एक बड़ी चिकित्सा सुविधा से आम लोग वंचित हैं।
आदिवासियों पर दर्ज मुकदमे
हाल ही में कांग्रेस नेताओं के साधारण मामलों के मुकदमे वापस लेने की घोषणा की गई। इसकी प्रक्रिया चल रही है। कलेक्टर, एसपी और जिला अभियोजन अधिकारी की जिलों में समितियां बनी हैं, जो ऐसे प्रकरणों की सिफारिश करेगी, जिन्हें वापस लिए जा सकें। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि बस्तर की जेलों में बंद आदिवासियों के मुकदमे वापस लिये जाएंगे। सरकार ने इसके लिये सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आनंद पटनायक की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई थी। पर आदिवासियों की रिहाई का सिलसिला बहुत धीमी गति से चल रहा है। सरकारी आंकड़ा है कि अब तक 900 से कुछ अधिक आदिवासी ही रिहा किये जा सके हैं। जिन के खिलाफ अपराध दर्ज हैं उन आदिवासियों की संख्या 23 हजार है। इनमें जिनको रिहा किया जा सकता है, या मुकदमे वापस लिये जा सकते हैं, उनकी संख्या 16 हजार के पास है। ज्यादातर मामले गंभीर भी नहीं हैं। कई मामलों में वर्षों से ट्रायल नहीं हो पाया है। आदिवासी बिना सुनवाई के ही लंबे समय से जेल में बंद है। भाजपा तो सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा ही रही है, पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम जैसे नेता भी पूछ रहे हैं कि आखिर इनकी रिहाई और मुकदमे वापस लेने में कौन सी अड़चन आ रही है।
ऑटो का नाटो से रिश्ता
नाटो का ऑटो रिक्शा से क्या रिश्ता हो सकता है, पर कल्पना की उड़ान कहीं भी भरी जा सकती है। रूसी हमले में यूक्रेन को नाटो देशों से उम्मीद के अनुरूप मदद नहीं मिलने का यहां मजाक बनाया गया है। मुसीबत में नाटो नहीं ऑटो काम आता है। सोशल मीडिया पर इस पर टिप्पणी में एक ने लिख मारा- भाटो (जीजा) भी काम आता है।
कोदो कुटकी की महत्ता
कोदो और कुटकी छत्तीसगढ़ की जलवायु के अनुरूप फसलें हैं, मगर दोनों बड़े उपेक्षित अनाज हैं। लोग इनका सेवन पसंद नहीं करते। ज्यादातर लोगों को इसके बाजार का भी पता नहीं। पहले के शोध में यह निष्कर्ष निकाला जा चुका है कि कोदो मधुमेह नियंत्रण, गुर्दों और मूत्राशय के लिए फायदेमंद है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त होता है। यानि बिना रासायनिक खाद के उगाया जाता है। अब वैज्ञानिकों ने कुटकी के गुणों का भी पता लगा लिया है। लखनऊ के अखिल भारतीय अनुसंधान परिषद ने इसके पौधे के वर्क से पिक्रोलिव नाम की एक नई दवा विकसित की है जिससे फैटी लीवर का उपचार किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार कोदो कुटकी को प्रोत्साहित भी कर रही है। आने वाले दिनों में इसकी मांग बढ़ सकती है।
नया रायपुर से विस्थापित लोगों की मांगें
नया रायपुर के निर्माण से प्रभावित किसानों का आंदोलन सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है।
बीते दिनों मंत्री रविंद्र चौबे ने घोषणा की कि किसानों की 8 में से 6 मांगे मान ली गई हैं। बाकी 2 मांगों के लिए कानूनी मशविरा हो रहा है। इसके बाद भी किसानों का आंदोलन जारी है और वे नया रायपुर विकास प्राधिकरण भवन के सामने पहले की तरह आंदोलन पर बैठे हुए हैं। किसानों का कहना है कि सरकार ने जिन मांगों को मान लेने की बात कही, उन पर पहले से ही सहमति बन चुकी थी। दरअसल आंदोलनकारी किसान सभी 27 गांवों के सभी वयस्कों के लिए 12 सो वर्ग फीट विकसित भूखंड और बसाहट का पट्टा मांग रहे हैं। प्राधिकरण के लिए इतनी बड़ी मांग का रास्ता निकालना मुश्किल हो रहा है। बीती सरकारों ने जब आनन-फानन में राजधानी के लिए जगह तय की तब किसानों के साथ कोई समझौता नहीं किया, बैठक नहीं की। आज यह मौजूदा सरकार के सिर पर यह समस्या सवार है।
मंत्री बड़ा या कलेक्टर
कोरबा जिले के लोगों को अगर कलेक्टर से कोई काम कराना है तो मंत्री जी से ना मिलें। कलेक्टर भडक़ सकती है। मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने जिस तरह मीडिया के सामने कलेक्टर रानू साहू पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया है वह उनके बीच बढ़ी हुई दूरी को बताने के लिए काफी है। याद होगा कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, तब मंत्री अग्रवाल ने वहां के कलेक्टर पी दयानंद को भ्रष्ट बताते हुए सरकार आने पर निपटा देने की बात कही थी। पर अब तो उनकी अपनी सरकार है। दयानंद के खिलाफ एक जांच नहीं कार्रवाई नहीं हो पाई है। मंत्री के इस गुस्से को देखकर लोग सवाल कर रहे हैं कि कलेक्टर ज्यादा ताकतवर होता है या मंत्री। आप भी जवाब ढूंढिए।
खोखला स्वास्थ्य....
यह किसी दुर्घटनाग्रस्त जहाज के भीतर की तस्वीर नहीं है। यह हमारी राजधानी में ही खोखली हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं की है। शहर के खोखो पारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इमरजेंसी सेवा के लिए खरीदे गए एंबुलेंस इसकी कहानी बता रहे हैं। इन्हीं में से एक एंबुलेंस के एक-एक पुर्जे को निकालकर अज्ञात लोगों ने बेच दिया है। अस्पताल के लोगों का यह भी कहना है कि पुर्जे बेचें नहीं, अन्य एंबुलेंस में लगाए गए हैं।
उत्सुकता भोजराम के बैच की
कोरबा एसपी भोजराम पटेल लो-प्रोफाईल में रहकर काम करने वाले अफसरों में गिने जाते है। लेकिन दूसरे सर्विस के अधिकारी उनके बैच को जानने के लिए काफी उत्सुक रहते है। दरअसल भोजराम पटेल छत्तीसगढ़ के ही बांशिदे है। वह 2013 बैच के आईपीएस अफसर है। उनके बैच के कुछ अफसरो को सूबे में नाम और काम से आसानी से पहचाना जाता है। भोजराम के बैच के जितेन्द्र शुक्ला, मोहित गर्ग और अभिषेक पल्लव के नाम का जिक्र होते ही बैच भी याद आ जाता है। दरअसल राज्य पुलिस में आमद देने से पहले भोजराम को अपना ट्रेनिंग दो बार छोडऩा पड़ा था। हैदराबाद में प्रशिक्षण के बीच पिता की सेहत बिगडऩेऔर निधन के चलते भोजराम अपने बैच के साथियों को छोडऩे विवश हो गए थे। उन्हें बाद में दूसरे बैच के अफसरों के साथ प्रशिक्षण पूरा करना पड़ा। वैसे भोजराम को 2013 बैच का अफसर माना जाता है, पर देर से ज्वाईनिंग देने से बैच से उनका नाम छूट जाता है। भोजराम पटेल उस समय आईपीएस बिरादरी में चर्चा में आए वह एडीशनल एसपी नियुक्ति हुए सीधे कांकेर एसपी पदस्थ हो गए। बताते है कि तत्कालीन गर्वनर श्रीमती आंनदीबेन पटेल की सिफारिश पर सरकार ने उन्हें कांकेर जैसे बड़े जिले की कप्तानी सौंप दी। सुनते है कि भोजराम के धार्मिक भाव और रामायण की गहरी समझ रखने से पूर्व राज्यपाल काफी प्रभावित हुई थी। ओएसडी नियुक्ति से पूर्व महामहिम ने भोजराम का धार्मिक विषयों पर पकड़ जानने के लिए औपचारिक साक्षात्कार लिया था।
छत्तीसगढ़ में पृथ्वी का केंद्र
क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी का केंद्र कहां है? बैगा आदिवासियों की मान्यता के अनुसार यह छत्तीसगढ़ के सरोदा दादर में है। यह वही जगह है जिसे यहां के रहवासी पृथ्वी का केंद्र मानते हैं। लेकिन, पृथ्वी का भौगोलिक केंद्र तुर्की के इस्किलिप में ४०ए५२'हृ-३४ए३४'श्व पर है, जैसा कि वैज्ञानिक इसेनबर्ग ने गणना की है।
कोविद के खाली बिस्तर
कोविड-19 महामारी का प्रकोप तीसरी लहर में दूसरी लहर की अपेक्षा कम था। पर अधिकांश जिलों में व्यवस्था ऐसी की गई थी कि यदि बड़ी संख्या में मरीज आएं तब भी उनको इलाज मिल सके। रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा और दूसरे जिलों में कोविड-19 के जो सेट अप तैयार किए गए थे, वे अब खाली पड़े हैं। दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों में दूसरी बीमारियों के मरीज भटक रहे हैं। केंद्र सरकार की भी गाइडलाइन आ चुकी है कि तीसरी लहर समाप्ति की ओर है और सारी सेवाएं पहले की तरह शुरू की जाएं, तब इन कोविड-19 अस्पतालों का क्या किया जाए? भिलाई में इसकी पहल शुरू की गई है। यहां पर 114 बिस्तरों का कोविड-19 केयर सेंटर बनाया गया था, जिसे जिला प्रशासन ने अधिगृहित करने का निर्णय लिया है। यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि सेक्टर-9 अस्पताल में मरीजों को भर्ती करने की जगह नहीं मिल पा रही है। कमोबेश दूसरे जिलों का भी यही हाल है और क्यों नहीं वहां भी इसी तरह के कदम उठाए जाएं।
मनोबल बढ़ाने वाला पेपर
ऑफलाइन के खिलाफ अब ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन का कोई मतलब रहने गया है क्योंकि परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। कल पहले दिन सीजी बोर्ड ने बारहवीं की परीक्षा ली और आज दसवीं का पर्चा हुुआ।
बीते दो सत्रों में कोरोना के कारण ऑफलाइन परीक्षा में बाधा पहुंची थी, पर इस बार ऑनलाइन पढ़ाई होने के बावजूद ऑफलाइन ली जा रही है। इससे परीक्षार्थियों में थोड़ा डर बना हुआ है। पर पहले दिन जो बच्चे परचे देकर निकले उनके चेहरे खिले हुए दिखे। दरअसल पर्चा हिंदी का था। फिर भी सरल होना उन्हें मुस्कुराने का मौका दे रहा था। आगे के प्रश्न पत्रों से पता चलेगा कि पर्चा सेट करने वालों ने बच्चों के साथ कितनी नरमी बरती है।
नये जिलों की मुश्किलें
सारंगढ़ और बिलाईगढ़ के नागरिकों ने एक बार फिर आंदोलन शुरू कर दिया है। घोषणा के समय से ही रायगढ़ से काटकर अलग जिला बनाने का यहां विरोध हो रहा है। इस बार क्षेत्र के लोग पंडाल लगाकर बेमियादी आंदोलन करने के लिये तैयार हैं। एक मार्च को इन्होंने चक्काजाम भी किया था। यहां के नागरिक रायगढ़ जिले में ही रहना चाहते हैं क्योंकि रायगढ़ में आवागमन, शिक्षा व व्यवसाय की सुविधा सारंगढ़ के मुकाबले कहीं बेहतर है। आंदोलनकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था कि वे जिस जिले में रहना चाहते हैं, वहीं रहेंगे। पर प्रशासन के लिये यह फैसला लेना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि बीच के कुछ गांव नये जिले को अधिक सुविधाजनक मान रहे हैं। ऐसी ही परिस्थितियां गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में भी पैदा हुई है, जहां पसान इलाके के लोग कोरबा से अलग नहीं होना चाहते।
झील का वैभव
जगदलपुर का दलपत सागर संभवत: छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मानव निर्मित झील है। यह बस्तर की ऐतिहासिक धरोहर भी है। राजा दलपत साय ने इसे बनवाया। इस बार महाशिवरात्रि के मौके पर शिव का दर्शन करने वालों के लिये यहां पहुंचने की विशेष व्यवस्था की गई। सुबह नाव में बारी-बारी श्रद्धालुओं को छोडऩे का सिलसिला चला, फिर शाम को उन्हें वापस लाया गया। कोई हादसा न हो इसलिये गोताखोर भी तैनात किये गये थे।
यूक्रेन की पढ़ाई पर विराम?
नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसियेशन (नाचा) ने एक सूची राज्यपाल को भेजी है, जिसमें 110 छात्रों के नाम हैं। राज्यपाल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से यह विवरण साझा किया है। इसके अलावा कुछ नाम और हो सकते हैं, जो ‘नाचा’ के पास न हों। राज्य सरकार के नोडल अधिकारी यह दावा तो कर रहे हैं कि अब तक छत्तीसगढ़ के 26 विद्यार्थी देश आ चुके हैं, पर उनका नाम अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। दूसरी तरफ, मेडिकल की पढ़ाई के लिये यूक्रेन जाने का चलन बीते कुछ सालों में बढ़ा है। छत्तीसगढ़ में ही कई एजेसियां विद्यार्थियों को भेजने का काम कर रही हैं। मुमकिन है, अब वह सिलसिला थम जायेगा। एक सवाल ऐसे मौके पर खड़ा हो रहा है कि क्या मेडिकल सीटों की संख्या देश में बढ़ेगी? क्या भारी-भरकम फीस की जगह लोगों की आर्थिक क्षमता के दायरे में यह शिक्षा मिल पायेगी? या डॉक्टर बनने के इच्छुक छात्र किसी और देश की ओर रुख करेंगे?
पढ़-लिखकर लूट के धंधे में...
रायपुर पुलिस ने इन चार लोगों को पकड़ा। एक ग्रेजुएट है, एक मैट्रिक पास। बाकी दो आठवीं, दसवीं। लूटपाट के धंधे में लग गये। ऑटोरिक्शा में बैठकर साथ के सवारियों की जेबें साफ करते हुए दबोचे गये। कतई इनकी आपराधिक गतिविधि का समर्थन नहीं किया जा सकता, पर पढऩे-लिखने के बावजूद इस धंधे में क्यों उतरे हैं, समाजशास्त्री बतायेंगे, सरकार बतायेगी। और हम सबको तो सोचना ही चाहिये।