राष्ट्रीय
जम्मू कश्मीर के त्राल में एनकाउंटर में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का टॉप कमांडर शम सोफी ढेर कर दिया गया. आईजीपी कश्मीर विजय कुमार ने इस बात की जानकारी दी. इससे पहले पुलिस ने बताया कि अवंतीपोरा के त्राल इलाके के तिलवानी मोहल्ला में मुठभेड़ शुरू हुई. पुलिस और सुरक्षाबलों का ऑपरेशन जारी है.
विजय कुमार ने कहा कि त्राल मुठभेड़ में एक आतंकवादी मारा गया है जिसकी पहचान शमीम सोफी के नाम से हुई है इसको हम शम सोफी के नाम से जानते हैं. ये जैश-ए-मोहम्मद का टॉप कमांडर है. इसको हमने पहले 2004 में गिरफ़्तार किया था, इसने पीएसए के तहत 2 साल जेल में बिताए.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जेल से बाहर आने के बाद फिर ये सक्रिय हो गया था, साल 2019 के जून में शम सोफी पूरी तरह सक्रिय हो गया था. उसके बाद उसने कई हत्याएं की. ये बाहर से आए जैश के आतंकियों को पनाह देता था. हमें 2 आतंकवादी की सूचना मिली थी जिसमें से कमांडर मारा गया और दूसरी की तलाशी की जा रही है.
बीते दो दिनों में सुरक्षाबलों ने पांच आतंकियों को मार गिराया. शोपियां में सोमवार और मंगलवार को सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन में पांच आतंकियों को मार गिराया. शोपियां ज़िले के तुलरान और फेरीपोरा इलाके में हुए इन ऑपरेशन में सीआरपीएफ की 178 बटैलियन, राष्ट्रीय राइफल्स और जम्मू कश्मीर पुलिस के जवान शामिल रहे.
शोपियां में एक मुठभेड़ तुलरान इलाके में हुई, जिसमें लश्कर वाले टीआरएफ संगठन के तीन आतंकियों को ढेर किया गया. यहां एक आतंकी की पहचान मुख्तार शाह के तौर पर हुई, जो गांदरबल का रहने वाला था और श्रीनगर में रेहड़ीवाले वीरेंद्र पासवान की हत्या में शामिल था. हमले के बाद आतंकी भागकर शोपियां में आया था. इसके अलावा दूसरा एनकाउंटर शोपियां के फेरीपोरा इलाके में हुआ. यहां दो आतंकी मारे गए. पिछले 36 घंटे में सुरक्षाबलों ने सात आतंकियों को ढेर किया.
जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले के सुरनकोट में घात लगाकर किए गए हमले की जिम्मेदारी 'पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट' ने ली है. हमले की जिम्मेदारी लेने के बाद संगठन की ओर से यह भी कहा गया है कि इस संबंध में और अधिक जानकारी जल्द ही दी जाएगी. बता दें कि सुरनकोट में हुए आतंकी हमले में सेना के पांच जवान शहीद हो गए थे. जम्मू-कश्मीर के पुंछ में शहीद जवानों का पार्थिव शरीर आज उनके पैतृक घरों पर पहुंचा. इससे पहले शहीद जवानों को मंगलवार को राजौरी में श्रद्धांजलि दी गई थी. आतंकी हमले में सोमवार को शहीद हुए सैनिकों में नायब सूबेदार (जेसीओ) जसविंदर सिंह, नायक मनदीप सिंह, सिपाही गज्जन सिंह, सारज सिंह और वैशाख एच शामिल हैं.
आतंकियों ने सुरनकोट इलाके में डेरा की गली (डीकेजी) के पास एक गांव में पहले से छुपा हुआ था. जैसे ही यह जवान वहां पहुंचे आतंकियों कि ओर से गोलीबारी शुरू कर दी गई. आतंकियों की ओर से किए जा रहे गोलीबारी में ये पांचों शहीद हो गए थे.
राकेश पंडिता की हत्या की जिम्मेदारी ले चुका है
इससे पहले पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में बीजेपी नेता राकेश पंडिता की हत्या की जिम्मेदारी ले चुका है. संगठन की ओर से प्रेस रिलीज जारी कर बताया गया है कि उनके कैडर ने त्राल में राकेश पंडिता की हत्या की है. राकेश पंडिता त्राल के नगर पार्षद के पद पर थे.
म्यांमार के सागाईंग क्षेत्र में सेना और विद्रोही समूहों के बीच हुई हिंसक झड़प में कम से कम 30 जुंटा सैनिकों की मौत हो गई है. पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) के मुताबिक, झड़प में एक सैन्य कमांडर सहित कम से कम 30 सैनिक मारे गए हैं.
रेडियो फ्री एशिया ने पीडीएफ के सदस्यों के हवाले से खबर दी कि यह झड़प तब हुई, जब जुंटा सैनिकों ने क्षेत्र में 'समाशोधन अभियान' शुरू किया था. पीडीएफ प्रवक्ता के मुखबिर ने कहा कि सोमवार सुबह एक सैन्य काफिले ने पेल टाउनशिप के बाहर बारूदी सुरंगों में विस्फोट कर दिया, जिसमें एक कमांडर सहित कम से कम 30 सरकारी सैनिक मारे गए.
पिछले 8 महीने से मची है उथल-पुथल
म्यांमार में 1 फरवरी को तख्तापलट के बाद से उथल-पुथल मची है. जनरल मिंग आंग हलिंग के नेतृत्व में म्यांमार की सेना ने सरकार को उखाड़ फेंका था और एक साल के लिए आपातकाल की घोषणा की. तख्तापलट के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ जो बाद में हिंसक रूप ले लिया.
असिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स (AAPP) के आंकड़ों के अनुसार, तख्तापलट के बाद से आठ महीनों से अधिक समय में, सैन्य बलों ने कम से कम 7,219 लोगों को गिरफ्तार किया. 1,167 नागरिकों की मौत हो चुकी है. म्यांमार सेना और विद्रोही समूहों के बीच संघर्षों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो अकेले पिछले महीने संघर्ष की 132 घटनाओं तक पहुंच गई है.
उड़ने वाली टैक्सी बनाने वाली जर्मन कंपनी वोलोकॉप्टर ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर एक उड़ने वाली टैक्सी का परीक्षण किया है. हैम्बर्ग शहर में इस मालवाहक टैक्सी ने उड़ान भरी.
जर्मन कंपनी वोलोकॉप्टर ने पहली बार खुद बनाया एक विशाल ड्रोन उड़ाकर देखा. हैम्बर्ग में मंगलवार को यह परीक्षण हुआ. टेस्ट फ्लाइट लगभग तीन मिनट तक चली. परीक्षण शहर के उत्तरी इलाके में हार्बर के पास हुआ, जहां अंतरराष्ट्रीय परिवहन कांग्रेस चल रही है.
वोलोकॉप्टर का मकसद ऐसे विशालकाय ड्रोन के जरिए सामान लाने ले जाने की एक चेन स्थापित करना है. इसके लिए वह डीबी शेनकर कंपनी के साथ मिलकर काम कर रही है. डीबी शेनकर जर्मनी में ट्रेन भी चलाने वाली कंपनी की सहभागी है. पिछले साल दोनों कंपनियां ऐसे मालवाहक ड्रोन बनाने के लिए साथ आई थीं.
परीक्षण के लिए ड्रोन में एक लोडिंग बक्सा लगाया गया था ताकि सही सही पता चल सके कि भार लाने ले जाने में ड्रोन कैसा काम करता है.
माल ढुलाई में क्रांति
वोलोकॉप्टर के सीईओ फ्लोरियान रॉयटर इस परीक्षण को उड़ने वाले वाहनों की दौड़ में सबसे आगे खड़ा करने के मौके के तौर पर देखते हैं. उन्होंने कहा, "हम दुनिया की एकमात्र ऐसी कंपनी हैं जो यात्रियों और माल वाहन के लिए साधन बनाती है और उनका सार्वजनिक प्रदर्शन करती है.”
रॉयटर ने कहा कि यह कार्गो ड्रोन माल लाने-ले जाने की प्रक्रिया को और तेज, सक्षम और पर्यावरण के लिए सुरक्षित बनाएगा.
इस ड्रोन को वोलोड्रोन नाम दिया गया है. इसमें 18 पंखे लगे हैं. बैट्री से चलने वाला यह एक मानवरहित विमान है जो 40 किलोमीटर तक उड़ सकता है. इसका वजन 200 किलोग्राम है. ड्रोन का कुल व्यास 9.15 मीटर है और ऊंचाई 2.15 मीटर. यह ड्रोन 600 किलोग्राम तक वजन ढो सकता है.
वोलोकॉप्टर का कहना है कि इसका इस्तेमाल कई तरीके से किया जा सकता है. कंपनी ने बताया, "इसमें एक अटैचमेंट सिस्टम लगा है, जिससे वोलोड्रोन अलग-अलग तरह के बक्से, द्रव या मशीनें आदि ढो सकता है.”
भविष्य की ओर रुख
कंपनी को उम्मीद है कि इस ड्रोन का इस्तेमाल दूर-दराज इलाकों में भारी-भरकम सामान पहुंचाने से लेकर निर्माण स्थलों पर माल ढुलाई आदि तक विविध रूप से होगा. कंपनी ने कहा, "जहां भी सड़क परिवहन की सीमा खत्म हो जाती है, वोलोड्रोन वहां से एक नया आयाम दे सकता है.”
जर्मन सरकार के नजरिए से ऐसी उड़ने वाली मशीनों में बहुत तरह से इस्तेमाल की संभावनाएं हैं. जर्मन सरकार ने कुछ ही साल में ड्रोन को रोजमर्रा के परिवहन का साधन बनाने का लक्ष्य रखा है.
अनमैन्ड एरियल व्हीकल एसोसिएशन द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक 2025 तक जर्मनी में व्यवसायिक रूप से चलाए जा रहे ड्रोन तीन गुना बढ़कर एक लाख 32 हजार हो जाएंगे.
वीके/एए (डीपीए)
कोलकाता की दुर्गा पूजा पंडालों में हजारों की भीड़ उमड़ रही है. लोग बेखौफ हैं लेकिन अधिकारियों को डर है कि यह सुपर स्प्रेडर न बन जाए.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
"आखिर हम कब तक कोरोना के डर से घरों में दुबके रहें? हमने वैक्सीन के दोनों डोज ले लिए हैं. इसलिए अब कोई खतरा नहीं हैं. मां दुर्गा कोरोना का नाश कर देंगी. साल के इस सबसे बड़े त्योहार में हम बिना घूमे कैसे रह सकते हैं,” यह कहना है कोलकाता के दमदम इलाके के शुभ्रजित पाल का, जो अपने पूरे परिवार समेत बीते तीन दिनों से तमाम पंडालों में घूम रहे हैं. लेकिन बच्चों को तो वैक्सीन नहीं लगी है. क्या उनको संक्रमण का खतरा नहीं है? इस सवाल पर उनका कहना है कि मां (दुर्गा) सबकी रक्षा करेगी.
कोलकाता के पश्चिमी इलाके बेहला के रहने वाले असीम कुमार सरकार तो दलील देते हैं, "कोरोना अब खत्म हो गया है. हमने वैक्सीन ले ली है. अब कोई डर नहीं है. यह मौका साल में एक बार ही आता है. हम इसे कैसे छोड़ सकते हैं?”
पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा के दौरान राजधानी कोलकाता समेत राज्य के तमाम इलाकों के पूजा पंडालों में हर दिन भीड़ का नया रिकॉर्ड बन रहा है. यहां तीन हजार से कुछ ज्यादा पंडाल हैं. इससे सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता कई गुना बढ़ गई है.
बीते कुछ दिनों से धीरे-धीरे ही सही कोलकाता और आसपास के इलाकों में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि हरिद्वार के कुंभ की तरह इस बार दुर्गा पूजा भी सुपर स्प्रेडर साबित हो सकती है. लेकिन बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के उमड़ने वाली भीड़ को संक्रमण की कोई चिंता ही नहीं है.
कोरोनाकीपाबंदियां
राज्य सरकार और कलकत्ता हाईकोर्ट ने हालांकि बीते साल की तरह इस साल भी आयोजकों को कोरोना से संबंधित पाबंदियों का पालन करने का निर्देश दिया है. लेकिन एकाध पंडाल के अलावा तमाम जगहों पर सरेआम कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ रही हैं.
नियम यह है कि वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले को ही पंडाल के भीतर प्रवेश की अनुमति है. लेकिन इतनी भीड़ में कौन किसका सर्टिफिकेट देखता है. इन पंडालों में पहुंचने वाली भीड़ में सोशल डिस्टेंसिंग का तो कोई सवाल ही नहीं है. सेल्फी खींचने में जुटे लोग मास्क की भी परवाह नहीं कर रहे. बस मीडिया का कैमरा देखते ही कुछ देर के लिए मास्क चेहरे पर लगा लेते हैं.
दुर्गा पूजा षष्ठी से शुरू होती है. लेकिन मौसम विभाग ने पूजा के दौरान भारी बारिश की चेतावनी दी थी. नतीजतन नवरात्रि के पहले दिन से ही पंडालों में भीड़ उमड़ने लगी. खासकर किसान आंदोलन और दुबई की मशहूर इमारत बुर्ज खलीफा की थीम पर बने पंडाल में तो इतनी भारी भीड़ उमड़ रही है कि कई बार तो भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है.
इस भीड़ को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने लोगों को भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचने की सलाह देते हुए कहा है कि कोविड महामारी अभी खत्म नहीं हुई है. स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से कोरोना वायरस संक्रमण को ध्यान में रखते हुए एहतियाती कदम उठाने और घर में ही त्योहार मनाने का आग्रह किया है.
विशेषज्ञोंमेंचिंता
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोलकाता में फिर से कोविड का ग्राफ बढ़ने लगा है और लोगों को सावधान रहना चाहिए. एक वरिष्ठ जन-स्वास्थ्य विशेषज्ञ, जो राज्य सरकार की कोविड विशेषज्ञ समिति के सदस्य भी हैं, कहते हैं, "कोविड मामलों में धीमी लेकिन स्थिर वृद्धि हो रही है. लेकिन लोगों का डर खत्म हो गया है. इससे संक्रमण की एक नई लहर पैदा कर सकता है जो विनाशकारी होगी.” उनका कहना था कि पुलिस या प्रशासन सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते. लोगों को खुद ही सतर्क रहना होगा.
वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम और हेल्थ सर्विसेज एसोसिएशन ने लोगों से कोरोना प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करने की अपील की है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. रचना मजूमदार कहती हैं, "बीते साल की दुर्गा पूजा के दौरान लोग डरे हुए थे और बेहद अनुशासित रवैया अपना रहे थे. लेकिन इस साल उनके संयम का बांध टूट गया है. सरकार ने 10 से 20 अक्बर तक रात के कर्फ्यू में ढील दे दी है. नतीजतन पूरी रात सड़कों और पंडालों में लोगों का ज्वार उमड़ रहा है.”
लगाम का असर नहीं
संक्रमण रोग विशेषज्ञ डॉ. अरिंदम विश्वास कहते हैं, "सरकार और हाईकोर्ट की सलाह और पाबंदियों के बावजूद आम लोगों पर इसका कोई असर नहीं नजर आ रहा है. ज्यादातर लोग न तो मास्क पहन रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं.”
वायरोलॉजिस्ट सिद्धार्थ जोआरदार सवाल करते हैं, "पूजा के दौरान पाबंदियों में दी गई ढील कहीं बड़े खतरे को न्योता तो नहीं देगी? वैक्सीन के बावजूद संक्रमण का खतरा तो है ही.” एक अन्य विशेषज्ञ अमिताभ सरकार कहते हैं, "दुर्गा पूजा अगर सुपर स्प्रेडर साबित हुई तो संक्रमितों की तादाद तो तेजी से बढ़ेगी ही, नया वेरिएंट भी पैदा हो सकता है. बंगाल में अब तक 1.81 करोड़ लोगों को ही वैक्सीन की दोनों डोज लगी है.”
राज्य सरकार के मंत्री फिरहाद हकीम कहते हैं, "तमाम पूजा पंडालों में लोगों से मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील की जा रही है.” पुलिस प्रशासन पर इस मामले में ढिलाई बरतने के भी आरोप लग रहे हैं. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं.
पहले कोविड के नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में रोजाना औसतन एक हजार से ज्यादा लोगों के खिलाफ जुर्माना लगाया जा रहा था वहीं अब यह तादाद घट कर पांच सौ से भी नीचे आ गई है. लेकिन मंत्री कहते हैं, "आम लोगों को खुद जागरूकता का परिचय देना होगा. कोरोना के खतरे से तमाम लोग वाकिफ हैं.” (dw.com)
वैज्ञानिकों को अमेरिका के ऊटा में तंबाकू के इस्तेमाल के 12,300 साल पुराने सबूत मिले हैं. इससे पहले मिले तंबाकू के सबसे पुराने अवशेष बस 3,300 साल पुराने थे.
इस खोज को मानव संस्कृति के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जा रहा है. तंबाकू के ये पुराने अवशेष ऊटा के ग्रेट सॉल्ट लेक रेगिस्तान में एक सिगड़ी के अवशेषों में मिले हैं. शोधकर्ताओं को सिगड़ी के अंदर मौजूद चीजों में तंबाकू के एक जंगली पौधे के चार जले हुए बीज मिले.
इनके साथ साथ पत्थर के कुछ औजार और खाने में से बची हुई बत्तख की हड्डियां मिलीं. अभी तक तंबाकू के इस्तेमाल के जो सबसे पुराने सबूत मिले थे वो अल्बामा में मिले 3,300 साल पुराने धूम्रपान के एक पाइप के अंदर निकोटीन के अवशेष थे.
तंबाकू की सांस्कृतिक जड़ें
शोधकर्ताओं का मानना है कि ऊटा वाली जगह पर खानाबदोश लोगों ने इस तंबाकू से धूम्रपान किया होगा या तंबाकू के पौधे के रेशों के गुच्छों को चूसा होगा. संभव है उन्होंने उसका सेवन उसमें मौजूद उत्तेजित करने वाले गुणों के लिए किया हो.
तंबाकू के इस्तेमाल की शुरुआत "नई दुनिया" के नाम से जाने जाने वाले उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के इलाकों में ही हुई. सबसे पहले वहां के मूल निवासियों ने इसका सेवन किया और फिर करीब 500 साल पहले यूरोपीय लोगों के वहां पहुंचने के बाद तंबाकू दुनिया भर में फैल गई.
आज इसे एक वैश्विक संकट के रूप में देखा जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि आज पूरी दुनिया में 1.3 अरब लोग तंबाकू का सेवन करते हैं और हर साल इसकी वजह से 80 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है.
इस नई खोज के बारे में 'नेचर ह्यूमन बिहेवियर' पत्रिका में छपे लेख के मुख्य लेखक पुरातत्वविद डैरन ड्यूक कहते हैं, "वैश्विक स्तर पर तंबाकू मादक पौधों का राजा है और अब हम इसकी सांस्कृतिक जड़ों की पहुंच सीधे शीत युग तक पा सकते हैं."
जहां कभी थी एक विशाल दलदली भूमि
ड्यूक नेवाडा के फार वेस्टर्न ऐंथ्रोपोलॉजिकल रिसर्च ग्रुप के सदस्य हैं. उन्होंने इन बीजों के बारे में बताया, "इस नस्ल के पौधे हमेशा से जंगली रहे लेकिन इस प्रांत के मूल निवासी आज भी इसका सेवन करते हैं." यह बीज निकोटियाना आतेनुआता नाम के रेगिस्तानी तंबाकू की एक जंगली किस्म के पौधे के हैं. यह पौधा यहां आज भी पाया जाता है.ग्रेट सॉल्ट लेक रेगिस्तान उत्तरी ऊटा में स्थित एक विशाल सूखी हुई झील का इलाका है. सिगड़ी के ये अवशेष जिस समय के हैं उस समय यह इलाका एक विशाल दलदली भूमि का हिस्सा था. शीत युग का अंत नजदीक था लेकिन तब भी यहां का मौसम ठंडा था.
सिगड़ी में मिली हड्डियों के नाम पर इस जगह को विशबोन स्थल कहा जाता है. सिगड़ी के अवशेष वहां मौजूद मिट्टी के घरों से उड़ती धूल के नीचे मिले थे. यहां मौजूद दलदली भूमि करीब 9,500 साल पहले सूख गई थी और तब से हवा वहां की तलछट को परत दर परत हटा रही है.
सबसे पहला पौधा
उन खानाबदोशों के बारे में बताते हुए ड्यूक कहते हैं, "हम उनकी संस्कृति के बारे में बहुत कम जानते हैं. मुझे इस खोज के बारे में सबसे दिलचस्प बात यही लगती है कि इसने इस सरल सी गतिविधि की सामाजिक अवधि को बढ़ा दिया है. मेरी कल्पना के घोड़ों ने दौड़ना शुरू कर दिया है."ड्यूक आगे बताते हैं कि इस खोज के हजारों साल बाद इसी महाद्वीप पर दक्षिणपश्चिमी और दक्षिणपूर्वी अमेरिका और मेक्सिको में तंबाकू को उगाना शुरू किया गया.
उन्होंने कहा, "हमें यह नहीं मालूम कि तंबाकू को उगाना ठीक ठीक कब शुरू किया गया लेकिन पिछले 5000 सालों में उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में कृषि काफी फला-फूला था. तंबाकू के इस्तेमाल के सबूत इस समय में खाद्य फसलों की खेती के साथ बढ़ते जाते हैं."
कुछ वैज्ञानिकों ने तो यहां तक दावा किया है कि तंबाकू उत्तरी अमेरिका में उगाया जाने वाला पहला पौधा भी हो सकता है और ऐसा खाने की जगह सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों की वजह से किया गया होगा. (dw.com)
सीके/एए (रॉयटर्स)
संसदीय चुनावों के शुरुआती नतीजों के मुताबिक प्रमुख शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सद्र की पार्टी अन्य राजनीतिक दलों से आगे है. इन चुनावों में बहुत उत्साह देखने को नहीं मिला है.
इराक में रविवार को हुए संसदीय चुनाव के नतीजे आने शुरू हो गए हैं. सोमवार को सरकारी अधिकारियों की ओर से जारी शुरुआती नतीजों और बयानों के मुताबिक देश के प्रमुख शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सद्र की पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीती हैं.
मुक्तदा अल-सद्र के समर्थकों ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि उनकी पार्टी ने 329 में से 73 सीटों पर कब्जा जमा लिया है. प्रारंभिक नतीजों के मुताबिक शिया समूह के पूर्व प्रधानमंत्री नूरी अल-मलिकी की पार्टी दूसरे स्थान पर है. इस बार के चुनाव में 329 सीटों पर कुल 3,449 उम्मीदवार मैदान में हैं.
2003 में इराक पर अमेरिका के नेतृत्व वाले हमले और उसके बाद सद्दाम हुसैन के निष्कासन के बाद से शिया समूह इराक में सत्ता को नियंत्रित करने में सबसे आगे रहा है.
रविवार 10 अक्टूबर को इराक में संसदीय चुनाव हुए जिसमें आश्चर्यजनक रूप से कम मतदान हुआ. 2019 में देश में एक युवा नेतृत्व वाला जन आंदोलन शुरू हुआ, जिसने देश को तूफान से घेर लिया और सरकार विरोधी प्रदर्शनों की एक श्रृंखला को जन्म दिया. तब से यह पहला संसदीय चुनाव था.
नेताओं पर विश्वास की कमी
चुनाव कराने में सफलता का दावा करते हुए प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-कदीमी ने कहा कि उन्होंने वादे के अनुसार निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्य को पूरा किया और ऐसा करने में सफल रहे. लेकिन कई लोगों ने उनकी टिप्पणियों की आलोचना करते हुए कहा कि कम मतदान एक संकेत था कि लोगों ने नेताओं में विश्वास खो दिया था और वर्तमान सरकार निष्पक्ष चुनाव कराने का दावा कर रही थी, लेकिन मतदाताओं के अविश्वास को दर्शाता है. (dw.com)
एए/सीके (एपी, एएफपी)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर : घरेलू फ्लाइट्स आगामी सोमवार से पूरी क्षमता के साथ उड़ानें संचालित कर सकेंगी. 18 अक्टूबर से यात्रियों की क्षमता को लेकर पाबंदी खत्म करने का फैसला किया गया है. सरकार की ओर से मंगलवार को यह जानकारी दी गई . गौरतलब है कि कोरोना महामारी पर नियंत्रण करने के लिए पिछले साल मई में यात्री क्षमता को लेकर यह पाबंदी लगाई गई थी. सरकार की घोषणा में यह भी कहा गया है कि यात्री क्षमता संबंधी पाबंदी हटाई गई है लेकिन एयरलाइंस और एयरपोर्ट ऑपरेटर्स को कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा और उन्हें यात्रा के दौरान कोविड अनुरूप व्यवहार (Covid-appropriate behaviour)को लागू करना होगा. सितंबर में सरकार ने कहा था कि घरेलू उड़ानों में दर्शकों की क्षमता को 72.5 फीसदी से बढ़ाकर 85 फीसदी किया गया था.
मंत्रालय के आदेश के मुताबिक, एयरलाइंस 18 सितंबर से अपनी कोविड पूर्व घरेलू सेवाओं के 85 प्रतिशत का संचालन कर रही हैं. विमानन कंपनियां 12 अगस्त से 18 सितंबर के बीच कोविड-पूर्व की अपनी घरेलू उड़ानों में से 72.5 प्रतिशत का संचालन कर रही थीं. यह सीमा पांच जुलाई से 12 अगस्त के बीच 65 प्रतिशत थी. एक जून से पांच जुलाई के बीच यह सीमा 50 प्रतिशत थी. भारतीय विमानन कंपनियों ने नौ अक्टूबर को 2,340 घरेलू उड़ानों का संचालन किया, जो उनकी कुल कोविड पूर्व क्षमता का 71.5 प्रतिशत है.
मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा है कि 18 अक्टूबर 2021 से बिना किसी क्षमता प्रतिबंध के निर्धारित घरेलू उड़ान संचालन को बहाल करने का निर्णय लिया गया है. आदेश में कहा गया है कि यह फैसला घरेलू संचालन और हवाई यात्रा के लिए यात्रियों की मांग की मौजूदा स्थिति की समीक्षा के बाद लिया गया है. सरकार ने दो महीने के अंतराल के बाद पिछले साल 25 मई को निर्धारित घरेलू उड़ानों को फिर से शुरू किया था. उस वक्त मंत्रालय ने विमानन कंपनियों को कोविड-19 पूर्व की अपनी घरेलू सेवाओं के 33 प्रतिशत से अधिक के संचालन की अनुमति नहीं दी थी.
दिसंबर 2020 तक धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 80 प्रतिशत कर दिया गया. एक जून तक यह सीमा 80 प्रतिशत तक बनी रही. मंत्रालय ने कहा था कि देश भर में कोविड-19 के मामलों में अचानक वृद्धि, यात्रियों की संख्या में कमी के मद्देनजर एक जून से अधिकतम सीमा को 80 से 50 प्रतिशत तक लाने का निर्णय किया गया था. (इनपुट भाषा से...)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर | दिल्ली डिस्कॉम को पिछले 10 दिनों में दी गई घोषित क्षमता (डीसी) को ध्यान में रखते हुए, बिजली मंत्रालय ने एनटीपीसी और डीवीसी को दिल्ली को बिजली आपूर्ति सुरक्षित करने के निर्देश जारी किए हैं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि दिल्ली की वितरण कंपनियों को उनकी मांग के अनुसार जितनी बिजली की आवश्यकता होगी उतनी ही बिजली मिलेगी।
केंद्रीय बिजली उपयोगिताओं, एनटीपीसी और डीवीसी को उनके कोयला आधारित बिजली स्टेशनों से संबंधित पीपीए के तहत दिल्ली डिस्कॉम को उनके आवंटन के अनुसार मानक घोषित क्षमता (डीसी) की पेशकश करने का निर्देश दिया गया है। एनटीपीसी और डीवीसी दोनों ने दिल्ली को उतनी ही बिजली उपलब्ध कराने के लिए वचनबद्ध किया है, जितनी दिल्ली के डिस्कॉम्स द्वारा मांग की जाती है।
इसके अलावा, एनटीपीसी दिल्ली डिस्कॉम्स को पीपीए की शर्तों के अनुसार गैस आधारित बिजली संयंत्रों से उनके आवंटन के अनुसार मानक घोषित क्षमता (डीसी) की पेशकश करेगा।
बिजली मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि दिल्ली डिस्कॉम को डीसी की पेशकश करते समय स्पॉट, एलटी-आरएलएनजी आदि सहित सभी स्रोतों से उपलब्ध गैस को शामिल किया जा सकता है।
इसके अलावा, कोयला आधारित बिजली उत्पादन से बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए, आवंटित बिजली के उपयोग के संबंध में भी दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इन दिशानिदेशरें के तहत, राज्यों से राज्य के उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति के लिए आवंटित बिजली का उपयोग करने का अनुरोध किया गया है; और अधिशेष बिजली के मामले में, राज्यों से अनुरोध किया जाता है कि वे सूचित करें ताकि इस शक्ति को अन्य जरूरतमंद राज्यों को पुन: आवंटित किया जा सके।
इसके अलावा, यदि कोई राज्य पावर एक्सचेंज में बिजली बेचता हुआ पाया जाता है या इस आवंटित बिजली को शेड्यूल नहीं कर रहा है, तो उनकी असंबद्ध शक्ति को अस्थायी रूप से कम या वापस लिया जा सकता है और अन्य राज्यों को फिर से आवंटित किया जा सकता है जिन्हें ऐसी बिजली की आवश्यकता होती है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर | कश्मीर में कई हत्याओं के बाद, कांग्रेस ने सरकार पर अपने हमले तेज कर दिए है और कश्मीर में सुरक्षा के मुद्दे और लखीमपुर खीरी में हिंसा को लेकर सरकार को घेर लिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने मंगलवार को कश्मीर के हालात को लेकर सरकार पर हमला बोला। सिब्बल ने एक ट्वीट में कहा, "प्रधानमंत्री मोदी-भारत ने ऐसी निर्णायक सरकार कभी नहीं देखी, साथ ही भारत ने ऐसी विभाजनकारी सरकार कभी नहीं देखी। कौन सा बयान सच है, कौन सा सच से दूर है? आप फैसला कीजिए।"
कश्मीर मुद्दे पर सरकार पर हमला बोलते हुए, सिब्बल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद जारी है, और उसका कोई अंत नहीं है। हमारे बहादुर सैनिक, अधिकारी शहीद, निर्दोष साहसी नागरिक (एक रसायनज्ञ, एक शिक्षक) को निशाना बनाया और मारा जा रहा है।
सिब्बल ने आगे कहा, "मोदी जी, क्या आप अपने किए वादों को भूल गए हैं या वे भी 'जुमले' थे जैसा कि गृह मंत्री कह सकते हैं ।"
जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में सोमवार को आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में एक जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) समेत पांच जवान शहीद हो गए है।
इससे पहले सिब्बल ने लखीमपुर खीरी कांड पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाया था। उन्होंने पहले ट्वीट किया था, "मोदी जी, आप चुप क्यों हैं? हमें आपसे सहानुभूति के सिर्फ एक शब्द की जरूरत है। यह मुश्किल नहीं होना चाहिए, अगर आप विपक्ष में होते तो आप कैसे प्रतिक्रिया देते? कृपया हमें बताएं।"
लखीमपुर खीरी में तीन अक्टूबर को किसानों का एक समूह तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहा था, उस समय एक एसयूवी ने चार किसानों को कुचल दिया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर | लखीमपुर खीरी हिंसा पर विपक्ष खासकर गांधी परिवार पर वोटों की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने इनकी सेलेक्टिव राजनीति को बेनकाब करने के लिए देश भर में प्रेस कांफ्रेंस करने का फैसला किया है। भाजपा के बड़े नेता और प्रवक्ता राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान के विभिन्न जिलों में दलितों की हत्या, महिलाओं के साथ अपराध और किसानों पर लाठीचार्ज की घटनाओं को उठाकर, चयनात्मक राजनीति को लेकर कांग्रेस और गांधी परिवार पर निशाना साधेंगे।
दिल्ली के राष्ट्रीय मुख्यालय में मीडिया से बात करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने मानवाधिकार को लेकर मंगलवार को एक कार्यक्रम में दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि विपक्ष खासकर गांधी परिवार लखीमपुर खीरी के मसले पर वोट की राजनीति कर रहा है।
भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में राजस्थान के जालौर, झुंझुनूं हनुमानगढ़ और बीकानेर में हुई घटनाओं की वीडियो दिखाते हुए संबित पात्रा ने सवाल किया कि उत्तर प्रदेश पर हंगामा करने वाले दलों को राजस्थान के दलित और किसान क्यों नहीं दिखाई देते हैं ? गांधी परिवार, अखिलेश यादव और अन्य दलों के नेता राजस्थान जाकर इन पीड़ित लोगों के परिवारों से क्यों नहीं मिलते हैं? विरोधी दलों के नेताओं ने राजस्थान की घटना पर बोलना तो दूर की बात है, एक ट्वीट तक नहीं किया है।
भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि राजस्थान के दलित, किसान और महिलाएं प्रियंका गांधी को दिखाई नहीं देते हैं और दूसरे राज्यों में जाकर अराजकता और अशांति फैलाना कांग्रेस का चरित्र बन गया है।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम ने कांग्रेस पर दलितों को बरगलाने का आरोप लगाते हुए पूछा कि लखीमपुर खीरी जाकर पीड़ित विधवाओं से गले मिलने वाली प्रियंका गांधी राजस्थान जाकर पीड़ितों से गले क्यों नहीं मिलती हैं।
कांग्रेस के दलित प्रेम पर सवाल उठाते हुए दुष्यंत गौतम ने कहा कि पंजाब में भी कुछ महीनों के लिए दलित मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने दलितों को झांसा देने की ही चाल चली है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 12 अक्टूबर | पश्चिम बंगाल के पूजा पंडालों में जमा हो रही भारी भीड़ के बावजूद राज्य में कोरोना मामलों में गिरावट देखने को मिल रहा है। रविवार को कोरोना मामलों की संख्या शनिवार के 776 के मुकाबले थोड़ा कम 760 थी, जबकि सोमवार को यह और कम होकर 606 तक पहुंच गई।
राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से मंगलवार को जारी बुलेटिन के मुताबिक पिछले 24 घंटे में 607 लोग कोरोना से नए संक्रमित हुए हैं। सबसे ज्यादा संक्रमित कोलकाता में (145) हुए हैं। यहां रविवार को पीड़ितों की संख्या 16 थी। उसके बाद उत्तर 24 परगना में, जहां पिछले 24 घंटे में 127 लोग संक्रमित हुए हैं। तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर हावड़ा, नदिया और दक्षिण 24 परगना हैं। पिछले 24 घंटों में इन तीन जिलों में 47, 43 और 42 लोग कोविड-19 से संक्रमित हुए हैं।
एक ओर जहां राज्य का स्वास्थ्य विभाग राहत की सांस ले सकता है, लेकिन वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमण दर में तेज उछाल आने से पहले यह सिर्फ एक अस्थायी चरण है।
एक वरिष्ठ विशेषज्ञ और कोविड -19 के लिए मुख्यमंत्री की वैश्विक समिति के सदस्यों में से एक ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा "यदि आप आंकड़ों पर नजर डालेंगे, तो आप स्थिति की गंभीरता को ठीक से समझेंगे। 11 सितंबर को राज्य में किए गए टेस्टों की संख्या 42,824 थी और पॉजिटिविटी दर 1.76 प्रतिशत थी। वहीं, 1 अक्टूबर को, टेस्टिंग की संख्या घटकर 39,661 और पॉजिटिविटी दर 1.79 प्रतिशत रही, लेकिन मंगलवार को टेस्टिंग की संख्या सिर्फ 26,118 रही, जबकि पॉजिटिविटी दर 2.32 प्रतिशत रही। इससे ही पता चलता है कि संक्रमण दर में तेजी का रुझान दिख रहा है।"
उन्होंने आगे कहा, "अगर टेस्टिंग की संख्या में कमी आती है, तो संक्रमितों की संख्या में भी कमी आएगी, लेकिन यह वास्तविक तस्वीर नहीं दिखाता है। सरकार को इस प्रसार को नियंत्रित करने के लिए तत्काल उपाय करने होंगे।"
हालांकि, राज्य में कोरोना से मृत्यु दर न्यूनतम है। पिछले 24 घंटे में राज्य में 9 लोगों की मौत हुई है। इससे एक दिन पहले पिछले 24 घंटों में मरने वालों की संख्या 11 थी। नदिया में पिछले 24 घंटों में तीन, उत्तर 24 परगना में दो और कोलकाता में एक व्यक्ति की मौत हुई है। दार्जिलिंग, हुगली और दक्षिण 24 परगना में एक-एक कोविड मरीज की मौत हुई। पश्चिम बंगाल में अब तक कुल 16,914 लोगों की मौत हो चुकी है।
पिछले 24 घंटे में राज्य में 2,52,265 लोगों को टीका लगाया गया है। इसके साथ ही कुल 8,44,11,444 लोगों का टीकाकरण किया जा चुका है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर | गूगल की मुफ्त ईमेल सेवा जीमेल मंगलवार को भारत के कुछ हिस्सों में बंद हो गई क्योंकि उपयोगकर्ता ईमेल भेजने या प्राप्त करने में असमर्थ थे। डाउन डिटेक्टर के अनुसार, 68 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं ने बताया कि वे वेबसाइट में समस्याओं का सामना कर रहे हैं, 18 प्रतिशत ने सर्वर कनेक्शन की सूचना दी और 14 प्रतिशत ने लॉगिन समस्या के बारे में बताया।
भारत और कुछ अन्य देशों में उपयोगकर्ताओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शिकायत की कि वे जीमेल तक पहुंचने में असमर्थ हैं।
एक यूजर ने कहा, "मैं मेल भेजने या प्राप्त करने में सक्षम नहीं हूं, जीमेल डाउन है।"
एक अन्य उपयोगकर्ता ने उल्लेख किया, "मुझे लगता है, फिर से जीमेल काम नहीं कर रहा है, या मैं अकेला उपयोगकर्ता हूं जो समस्या का सामना कर रहा हूं।"
फिलहाल गूगल की तरफ से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। (आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 12 अक्टूबर | ओडिशा के मलकानगिरी जिले के तुलसी वन रेंज में मंगलवार को एक अभियान के दौरान सुरक्षा बलों ने दो महिला नक्सलियों सहित तीन नक्सलियों को मार गिराया। वन क्षेत्र में नक्सलियों की मौजूदगी के बारे में खुफिया सूचनाओं पर कार्रवाई करते हुए, ओडिशा पुलिस और मलकानगिरी जिला स्वैच्छिक बल (डीवीएफ) के एक विशेष अभियान समूह (एसओजी) की एक संयुक्त टीम ने तड़के इलाके में तलाशी अभियान शुरू किया।
डीजीपी ने कहा, "ऑपरेशन के दौरान, नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर गोलियां चलाईं। जवाबी कार्रवाई में, हमारे सुरक्षाकर्मियों ने उन पर गोलियां चलाईं। अब तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार, हमें तीन नक्सलियों के शव मिले हैं, जिनमें से दो महिलाएं हैं।"
उन्होंने कहा कि सुरक्षाकर्मियों ने मुठभेड़ स्थल से दो बंदूकें भी बरामद की हैं और जंगल में तलाश अभियान जारी है। (आईएएनएस)
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की हिंसक घटना में मारे गए किसानों की अंतिम अरदास में शामिल हुईं. लखीमपुर हिंसा में मारे गए चार किसानों और पत्रकार रमन कश्यप को श्रद्धांजलि देने के लिए आज तिकुनिया में अरदास कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.
लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाड्रा, राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा, यूपी कांग्रेस के प्रमुख अजय कुमार लल्लू पहुंचे. वहीं अकाली दल से मनजिंदर सिंह सिरसा पहुंचे. संयुक्त किसान मोर्चा ने नेताओं का आभार जताया लेकिन मंच पर नहीं आने दिया.
लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा से पूछताछ शुरू
बता दें कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा मामले में आरोपी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को मंगलवार को अपराध शाखा कार्यालय ले जाया गया, जहां विशेष जांच दल (SIT) उससे गहन पूछताछ कर रही है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि अदालत से मंजूरी मिलने पर आशीष मिश्रा को पुलिस हिरासत में लिया गया.
वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी (एसपीओ) एसपी यादव ने सोमवार को बताया कि अदालत (मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी) में आशीष मिश्रा को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेजने के लिए शनिवार को अर्जी दी गई थी जिस पर सुनवाई हुई और अदालत ने 12 से 15 अक्टूबर तक उसे पुलिस हिरासत में भेजने के आदेश दिए. उन्होंने बताया कि आशीष मिश्रा का चिकित्सकीय परीक्षण कराया जाएगा और उसे पूछताछ के नाम पर पुलिस प्रताड़ित नहीं करेगी. यादव ने यह भी बताया कि इस दौरान उसके अधिवक्ता मौजूद रहेंगे.
उत्तर प्रदेश पुलिस की एसआईटी ने तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के सिलसिले में आशीष मिश्रा को शनिवार को करीब 12 घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया और आधी रात के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में लखीमपुर जिला जेल भेज दिया गया. एसआईटी का नेतृत्व कर रहे पुलिस उप महानिरीक्षक (मुख्यालय) उपेंद्र अग्रवाल ने शनिवार रात मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद पत्रकारों को बताया, ''मिश्रा ने पुलिस के प्रश्नों का सही उत्तर नहीं दिया और जांच में सहयोग नहीं किया. वह सही बातें नहीं बताना चाह रहे हैं, इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया गया है.'' लखीमपुर खीरी में तीन अक्टूबर को हुई हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी.
नई दिल्ली: दिल्ली में सीएम अरविंद केजरीवाल के घर के बाहर छठ पूजा को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे बीजेपी के नेता मनोज तिवारी घायल हो गए. बताया जा रहा है कि वाटर कैनन चलने के दौरान बैरीकेडिंग से गिरने की वजह से उन्हें चोट आई है. उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनका इलाज चल रहा है. बता दें कि दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर छठ पूजा समारोह पर रोक लगाई गई है. इसे लेकर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने भी कहा है कि ये त्योहार भव्य तरीके से मनाया जाएगा. डीडीएमए ने कोविड-19 की स्थिति को देखते हुए सार्वजनिक स्थानों पर छठ पूजा समारोह पर रोक लगा दी थी. मनोज तिवारी ने भी इस आदेश को लेकर विरोध-प्रदर्शन करने की बात की कही थी.
भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर काम करने वाली सरकारी और निजी कंपनियों को साथ लाने के लिए 'इंडियन स्पेस एसोसिएशन' की शुरुआत की गई है. इसमें इसरो के अलावा टाटा, भारती, और एलएंडटी जैसी बड़ी निजी कंपनियां भी शामिल हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर काम करने वाली सरकारी और निजी कंपनियों को साथ लाने के लिए 'इंडियन स्पेस एसोसिएशन' की शुरुआत की गई है. इसमें इसरो के अलावा टाटा, भारती और एलएंडटी जैसी निजी कंपनियां भी शामिल हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर को इस्पा की शुरुआत करते हुए कहा कि इससे "भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को नए पंख मिल गए हैं."
उन्होंने यह भी कहा, "75 सालों से भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र पर सरकारी संस्थानों का वर्चस्व रहा है. इन दशकों में भारत के वैज्ञानिकों ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि भारतीय प्रतिभा पर किसी तरह की पाबंदी ना हो, चाहे वो सरकारी क्षेत्र में हो या निजी क्षेत्र में."
निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका
इस्पा का उद्देश्य अंतरिक्ष क्षेत्र की सरकारी संस्थाओं और निजी कंपनियों को साथ लेकर एक नीतिगत ढांचा तैयार करना है. इसके संस्थापक सदस्यों में एलएंडटी, टाटा समूह की कंपनी नेलको, भारती इंटरप्राइजेज की कंपनी वनवेब, गोदरेज, मैपमाईइंडिया और कई कंपनियां शामिल हैं.
भारत में कई दशकों तक इसरो ही अंतरिक्ष क्षेत्र में अकेले काम करती रही लेकिन हाल के सालों में इस क्षेत्र में कई भारतीय और विदेशी निजी कंपनियां भी सक्रिय हुई हैं. जैसे वनवेब 322 सैटेलाइट लॉन्च कर भी चुकी है. कंपनी की योजना 648 सैटेलाइट लॉन्च करने की है जो धरती से ज्यादा ऊपर नहीं होंगी और संचार व्यवस्था में मदद करेंगी.
कंपनी का लक्ष्य है कि 2022 में इनकी मदद से वो भारत और दुनिया भर में तेज गति और कम विलंब वाली इंटरनेट सेवाएं पहुंचा सके. अमेजॉन और स्पेसएक्स जैसी कंपनियां भी इसी तरह की योजनाओं पर काम कर रही हैं. स्पेसएक्स की तो 1,300 सैटेलाइटें लॉन्च भी की जा चुकी हैं.
वैश्विक व्यवस्था में भारत पीछे
इस समय सैटेलाइट आधारित संचार व्यवस्था का इस्तेमाल कम ही होता है. इसका इस्तेमाल या तो सरकारी संस्थाएं करती हैं या बड़ी निजी कंपनियां लेकिन माना जाता है कि आने वाले सालों में सुदूर इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने में इसका बड़ा योगदान रहेगा.
इसरो के मुताबिक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य करीब 360 अरब डॉलर है लेकिन भारत की इसमें सिर्फ दो प्रतिशत की हिस्सेदारी है. इसरो का अनुमान है कि अगर भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र का और विस्तार किया जाए तो देश 2030 तक इस हिस्सेदारी को बढ़ा कर नौ प्रतिशत तक ले जा सकता है.
कुछ साल पहले हुए एक शोध में कहा गया था कि भारत में हर साल करीब साठ लाख लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं लेकिन इन्हें दर्ज नहीं किया जाता है. (dw.com)
दिल्ली में बीते एक हफ्ते में डेंगू तेजी से फैला है. पिछले एक हफ्ते के दौरान दिल्ली में डेंगू के 139 मामले दर्ज किए गए हैं. इस साल अब तक 480 मामले दर्ज हो चुके हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
दिल्ली में डेंगू हर सप्ताह तेजी से पैर पसार रहा है. दक्षिणी दिल्ली नगर निगम द्वारा साझा की गई रिपोर्ट के मुताबिक इस साल 9 अक्टूबर तक डेंगू के 480 मामले दर्ज किए गए हैं. वहीं बीते हफ्ते में डेंगू के कुल 139 मरीज सामने आए हैं. बीते वर्षों की बात करें तो 2019 में जनवरी से इस वक्त तक 467 और 2020 में 316 कुल मामले सामने आए थे. यानी बीते 2 सालों के मुकाबले इस बार सबसे अधिक मामले मिले हैं.
गर्मी और बारिश के मौसम में डेंगू, मलेरिया ज्यादा फैलता है. डेंगू से संक्रमित होने पर मरीज के प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती है. डेंगू बुखार आने पर सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होने लगता है, वहीं आंखों के पिछले हिस्से में दर्द, कमजोरी, भूख न लगना, गले में दर्द भी होता है.
डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया का खतरा
डेंगू के अलावा दिल्ली में मलेरिया और चिकनगुनिया के 127 और 62 मामले दर्ज हुए हैं. हालांकि दिल्ली में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया से अब तक किसी मरीज की मौत नहीं हुई है.
साल 2016 और 2017 में डेंगू के कारण 10-10 मौतें हुई थीं. वहीं 2018, 2019 और 2020 में 4, 2 और 1 मौत हुई थी. रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिणी नगर निगम में अब तक कुल 141 मामले सामने आए हैं, वहीं उत्तरी निगम क्षेत्र में 114 और पूर्वी निगम क्षेत्र में 56 मामले दर्ज किए गए हैं.
दरअसल डेंगू के मच्छर साफ और स्थिर पानी में पैदा होते हैं, जबकि मलेरिया के मच्छर गंदे पानी में भी पनपते हैं. इस साल में अब तक मामलों की बात करें तो दिल्ली में जनवरी महीने में डेंगू का कोई मामला सामने नहीं आया था, वहीं फरवरी में 2, मार्च में 5, अप्रैल में 10 मामले दर्ज किए गए थे.
दरअसल डेंगू व चिकनगुनिया के मच्छर ज्यादा दूर तक नहीं जाते हैं. हालांकि जमा पानी के 50 मीटर के दायरे में रहने वाले लोगों के लिए परेशानी हो सकती है.
दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि शहर में डेंगू के मामले बढ़ रहे हैं क्योंकि यह मौसम मच्छरों की ब्रीडिंग के लिए अनुकूल है. ना तो अभी मौसम सर्द है और ना ही ज्यादा गर्मी. ऐसे मौसम में ही डेंगू के मच्छरों की ब्रीडिंग तेजी से हो रही है. (dw.com)
केरल में 28 साल के एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की हत्या का दोषी पाया गया है. अदालत ने इस व्यक्ति के अपराध को 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' करार दिया.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
28 साल के सूरज को कोल्लम जिला अदालत ने अपनी पत्नी की हत्या का दोषी पाया है. उस पर आरोप था कि उसने पिछले साल मई में सांप से कटवाकर अपनी पत्नी की हत्या की. जज ने कहा कि यह ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' मामला है. सूरज को सजा बुधवार को सुनाई जानी है.
क्राइम ब्रांच ने इस मामले की गहन जांच की थी क्योंकि मृतक महिला उथारा के परिजनों ने सूरज के व्यवहार पर संदेह जताया. पुलिस के मुताबिक पत्नी की मृत्यु के कुछ ही दिन बाद सूरज ने उसके नाम पर दर्ज संपत्तियों को हासिल करने की कोशिश की.
दूसरी बार कोशिश
पुलिस ने चार्जशीट में कहा था कि सूरज उथारा से छुटकारा चाहता था और उसका धन व सोना पाकर किसी और से शादी करना चाहता था. पुलिस के मुताबिक इसके लिए सूरज एक बार पहले भी उथारा की हत्या की कोशिश कर चुका था.
फरवरी 2020 में भी उथारा पर उसने वाइपर सांप से हमला करवाया था. तब सांप के काटने के बावजूद उथारा बच गई थी. वह एक महीना अस्पताल में रहकर आई थी.
दोनों बार सूरज को सांप अपने एक दोस्त से मिले थे जो सांप पकड़ने का काम करता है. पुलिस ने बताया कि इस बार सूरज ने कोबरा सांप से हमला किया, और उथारा की जान चली गई.
राज्य के पुलिस महानिदेशक अनिल कांत ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह वाकई एक बेहद विलक्षण मामला था जिसमें आरोपी को हालात के आधार पर दोषी पाया गया. उन्होंने मीडिया से कहा, "यह एक मिसाल है कि कैसे हत्या के एक मामले को वैज्ञानिक और पेशवराना तरीके से जांच करके हल किया गया.”
कांत ने अपने पुलिस अफसरों को बधाई दी जिन्होंने फॉरेंसिक सबूतों, फाइबर डेटा और सांप के डीएनए की गहन जांच की.
सांप से हत्या के मामले
सांप से हत्या कराने के मामले भारत में तेजी से बढ़े हैं. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले पर टिप्पणी की थी. राजस्थान के एक मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्य कांत ने कहा था, "यह एक नया चलन है कि लोग किसी सपेरे से जहरीले सांप ले आते हैं और उससे कटवाकर व्यक्ति की हत्या कर डालते हैं. राजस्थान में यह बहुत बढ़ रहा है.”
यह मामला राजस्थान के झुनझुनूं जिले का है, जहां तीन व्यक्तियों पर हत्या का आरोप है. इनमें से एक आरोपी कृष्ण कुमार के वकील आदित्य चौधरी ने अदालत से पूछा, "क्या यह संभव है कि जहां अपराध हुआ, आरोपी उस जगह के आसपास भी ना हो हत्या करने का हथियार भी ना मिले, और फिर भी वह दोषी हो?”
चौधरी को जवाब देते हुए जस्टिस कांत ने कहा कि यह संभव है, अगर हथियार एक सांप हो. जस्टिस कांत के अलावा चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस हिमा कोहली की इस बेंच ने कृष्ण कुमार की जमानत याचिका खारिज कर दी.
कुमार पर आरोप है कि वह मुख्य आरोपी के साथ सपेरे के पास गया और दस हजार रुपये में सांप खरीदा. 2019 में यह मामला सुर्खियों में रहा था जब एक महिला पर अपनी बहू को सांप से कटवाकर मारने का आरोप लगा.
हर साल हजारों मौतें
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में पिछले दो दशकों में भारत में दस लाख से ज्यादा लोगों की मौत सांप के काटने से हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2019 के बीच 12 लाख लोग सांप के काटने से मारे गए, यानी औसतन सालाना 58,000 लोग. इनमें से आधे से ज्यादा लोगों की आयु 30 से 69 साल के बीच थी.
सांप के काटने से मरने वाले लोगों में 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और गुजरात में हुई है. 2014 के बाद ऐसी घटनाओं में कमी आई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य है कि 2030 तक सांप के काटने से दुनियाभर में होने वाली मौतों की संख्या आधी की जाए. इस लक्ष्य को हासिल करने में भारत उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. (dw.com)
केंद्रीय मंत्री रहे दिवंगत दलित नेता रामविलास पासवान खूब चर्चा में हैं. ऐसा क्या हुआ कि सभी पार्टियां उनको अपना बता रही हैं? उन्हें भारत रत्न दिए जाने की मांग भी उठ गई है.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट
बिहार के राजनीतिक गलियारे में आजकल फिर लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) चर्चा में है और सामने है बिहार विधानसभा की दो सीटों, तारापुर व कुशेश्वर स्थान में होने वाला उपचुनाव. जाहिर है, बात दलित वोटों की है इसलिए पार्टियों का सक्रिय व सजग होना लाजिमी है.
एलजेपी के संस्थापक व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की मौत के बाद बिहार विधानसभा चुनाव के समय उनके पुत्र चिराग पासवान द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधने तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का घटक दल होने के बावजूद एकला चलो की रणनीति पर अमल करते हुए कई सीटों पर जनता दल यूनाइटेड की हार का सबब बनने से एलजेपी चर्चा में थी.
इसके बाद यह पार्टी चर्चा में तब आई जब रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का असली वारिस घोषित करने की होड़ में पार्टी टूट गई. एक गुट के मुखिया बने उनके भाई पशुपति पारस तो दूसरे गुट के प्रमुख बने उनके बेटे चिराग पासवान. दोनों में यह साबित करने की होड़ मच गई कि असली वारिस वे ही हैं.
मामला निर्वाचन आयोग में गया. दोनों को नया नाम व चुनाव चिन्ह दिया गया है. पुत्र होने के नाते चिराग का दावा तो है ही, लेकिन पशुपति पारस भी कहते रहे हैं कि मैं ही रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का असली उत्तराधिकारी हूं, चिराग तो अपने पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं
दिल्ली में राहुल गांधी, पटना में नीतीश कुमार
बीते आठ अक्टूबर को रामविलास पासवान की पहली पुण्यतिथि मनाई गई. भाई पशुपति पारस ने इस मौके पर पटना स्थित प्रदेश कार्यालय में कार्यक्रम का आयोजन किया तो बेटे चिराग पासवान ने दिल्ली स्थित सरकारी आवास 12 जनपथ में. दोनों के बीच शक्ति प्रदर्शन की ऐसी होड़ थी कि दोनों ने ही बड़े नेताओं को आमंत्रित किया था.
दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में अन्य नेताओं के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह तथा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी के साथ पहुंचे. सभी ने पासवान के तैल चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. इसके बाद चिराग ने इसे लेकर ट्वीट भी किया.
रामविलास पासवान को मौसम विज्ञानी की संज्ञा देने वाले लालू प्रसाद ने उनकी पहली पुण्यतिथि पर उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर दी. दरअसल, इसी बहाने वे बीजेपी व जदयू को पर्दे के बाहर लाने की जुगत में हैं. वहीं पटना में आयोजित कार्यक्रम में उनके भाई व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस के निमंत्रण पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी पहुंचे. उन्होंने पासवान के साथ छात्र जीवन के अपने संबंधों की चर्चा भी की.
इससे पहले हिंदू कैलेंडर के हिसाब से बीते 12 सितंबर को केंद्रीय मंत्री पासवान की पहली बरसी पटना में मनाई गई थी. इस आयोजन से नीतीश कुमार समेत जदयू नेताओं ने दूरी बना ली थी जबकि बड़ी संख्या में भाजपा नेता शामिल हुए थे. इसकी वजह थे आयोजनकर्ता चिराग पासवान. हालांकि, एलजेपी में टूट के बावजूद चिराग ने चाचा पशुपति पारस को आमंत्रित किया था और वह इसमें शामिल भी हुए.
क्यों जरूरी हैं रामविलास?
दरअसल, एलजेपी के संस्थापक व पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान बिहार में दलितों के एकछत्र नेता थे. 1971 में जब इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था, तभी से दलित वोटरों को लुभाने की राजनीति शुरू हुई थी. इसके बाद के दौर में पासवान ने दलितों तथा अन्य जातियों को लेकर राजनीति की.
इस दरम्यान भोला पासवान शास्त्री और रामसुंदर दास की लोकप्रियता में कमी आई और रामविलास पासवान बिहार में दलितों के नायक बनकर उभरे. बिहार के खगडिय़ा जिले के शहरबन्नी गांव में जन्मे रामविलास पासवान पुलिस की नौकरी छोडकर राजनीति में आए थे.
वह पहली बार 1969 में कांग्रेस विरोधी मोर्चा, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से खगड़िया की अलौली (सुरक्षित) विधानसभा सीट से विधायक बने तथा 1977 में पहली बार सांसद बने. इसी साल देश की जनता इनके नाम से परिचित हुई. वजह थी रिकार्ड मतों से हुई जीत. इसके बाद अगले चार दशक तक वह राष्ट्रीय राजनीति में छाए रहे. केवल 1984 तथा 2009 में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा था.
1996 में पहली बार पासवान जनता दल की सरकार में केंद्र में मंत्री बने. वह ऐसे इकलौते राजनेता हैं जो छह प्रधानमंत्रियों यथा वीपी सिंह, एचडी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह तथा नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय मंत्री रहे. हर सरकार में चाहे वह जनता दल की सरकार रही हो या कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए गठबंधन की या फिर भाजपा नीत एनडीए की, सभी में उन्होंने अपनी जगह बनाई.
पासवान ने श्रम, खदान, रसायन व उर्वरक, रेलवे, संचार तथा खाद्य व उपभोक्ता मामलों जैसे विभिन्न मंत्रालयों को संभाला. उनके इसी कौशल पर तंज कसते हुए कभी उनके साथी रहे और फिर विरोधी बन गए लालू प्रसाद यादव ने उन्हें राजनीति का मौसम विज्ञानी कहा था. लंबे समय तक अपने वोट बैंक को साथ जोड़े रखने के संदर्भ में राजनीतिक प्रेक्षक कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि उन्होंने दलितों को लेकर कभी कोई बड़ा आंदोलन किया. किंतु उन्होंने उस समय खुलकर आवाज उठाई जब दलितों के अधिकार पर किसी तरह का खतरा मंडराने का अंदेशा हुआ हो.''
करीब 50 साल से अधिक समय तक विधायक व सांसद रहे पासवान का राज्य के दलितों खासकर दुसाध (पासवान) और मुसलमानों में खासा आधार था जो अंत समय तक उनके साथ बना रहा. पासवान वोट का ध्रुवीकरण उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गई थी. पत्रकार अनूप श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘जिस राजनेता के पास छह फीसद से ज्यादा वोट रहेगा, उसे कौन पार्टी दरकिनार करने का हिम्मत करेगी! रामविलास पासवान की लंबी पारी का कारण उनका एकमुश्त वोट बैंक व जनता के प्रति सह्दय व्यवहार ही रहा. उनसे कोई नाराज नहीं रहा, इसलिए दलित के अलावा सवर्ण व पिछड़ों का साथ भी उन्हें मिलता रहा.''
वैशाली जिले के महनार निवासी शिक्षाविद अरुण सिंह कहते हैं, ‘‘रेल मंत्री रहते हुए उनके काम को याद कीजिए. हाजीपुर में उन्होंने रेलवे का क्षेत्रीय मुख्यालय बनवा दिया. जनता के हित में खासकर अपने इलाके के लोगों के लिए वे हमेशा आगे बढ़कर काम करवाने में विश्वास रखते थे.''
पासवान के वोट बैंक पर सबकी नजर
जाहिर है, रामविलास पासवान को अपना बताने वाले सभी दलों की नजर दरअसल बिहार के छह फीसद पासवान वोटरों पर है. आज भी इस तबके का झुकाव रामविलास पासवान की पार्टी की ओर ही है.
नीतीश कुमार ने जब महादलित वर्ग बनाया तो उसमें पासवान जाति को शामिल नहीं किया. बाद में रामविलास पासवान के कहने पर 2018 में इस जाति को महादलित का दर्जा दिया. अब जब पशुपति पारस का झुकाव नीतीश कुमार की ओर है तब इसका फायदा जदयू को मिल सकता है.
वहीं तेजस्वी भी चिराग को अपना इसलिए बता रहे कि उन्हें पता है कि अगर पासवान वोट का कुछ हिस्सा भी उन्हें मिल गया तो उनकी जीत की राह थोड़ी आसान हो जाएगी. लोजपा में टूट के बाद राजद को प्रदेश की सियासत में उलटफेर की संभावना दिख रही थी. इसलिए हमदर्दी जताते हुए तेजस्वी ने चिराग को भाई तक कहा.
यही हाल बीजेपी का है. उसे सवर्णों के करीब 14 फीसद वोट का भरोसा है और इसी के साथ वह हिंदुत्व के साथ ओबीसी का कार्ड खेल रही है. अगर पासवान का वोट मिल जाए तो जीत तय हो सकती है. जानकारों का कहना है कि इसी कारण बीजेपी दोतरफा खेल रही है. पशुपति पारस को एक तरफ केंद्रीय मंत्री बना दिया तो वहीं दूसरी तरफ चिराग पासवान के भी हर आयोजन में बीजेपी उनके साथ खड़ी हो जाती है.
साफ है, पार्टी चिराग को भी नाराज नहीं करना चाहती है. चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच की जंग भी इसी वोट बैंक को लेकर है. उन्हें अच्छी तरह पता है कि इसी के सहारे रामविलास पासवान ने 50 वर्षों तक राजनीति की और इस वोट बैंक की सहानुभूति उनके निधन के बाद भी कायम रह सकती है.
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर साल भर से चल रहे गतिरोध का अंत अभी भी नजर नहीं आ रहा है. दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत का ताजा दौर भी विफल हो गया है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
लद्दाख के हॉट स्प्रिंग्स इलाके में पैट्रोलिंग पॉइंट 15 (पीपी 15) पर भारत और चीन की सेनाएं अभी भी एक दूसरे के सामने डटी हुई हैं. इस गतिरोध को खत्म करने के लिए दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर पर बातचीत के 12 दौर हो चुके हैं. रविवार 10 अक्टूबर को इसी बातचीत का 13वां दौर आयोजित किया गया, लेकिन वार्ता बेनतीजा रही.
सोमवार 11 अक्टूबर को दोनों पक्षों ने अलग अलग बयान जारी कर एक दूसरे पर बातचीत के विफल होने का आरोप लगाया. भारत ने कहा कि यथास्थिति को बदलने की चीन की एकतरफा कोशिशें गतिरोध के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि चीन का कहना था कि भारत को बड़ी मुश्किल से हासिल की गई मौजूदा स्थिति को संजो कर रखना चाहिए.
'एकतरफा कोशिशें'
भारत के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "बैठक में भारतीय पक्ष ने बाकी बचे इलाकों के समाधान के लिए रचनात्मक सुझाव दिए लेकिन चीनी पक्ष ने उन्हें स्वीकार नहीं किया और अपनी तरफ से भविष्य की तरफ देखने वाला कोई प्रस्ताव भी नहीं दिया."
चीन की सेना पीएलए के पश्चिमी कमांड के प्रवक्ता लॉन्ग शाओहुआ ने कहा, "भारतीय पक्ष अनुचित और अवास्तविक मांगों पर अड़ा रहा जिसकी वजह से बातचीत मुश्किल हो गई." लॉन्ग ने यह भी कहा कि "स्थिति का गलत आकलन करने की जगह भारतीय पक्ष को मुश्किल से हासिल की हुई इस स्थिति को संजो कर रखना चाहिए."
फरवरी में दोनों पक्षों ने पैंगोंग सो झील के पास से कुछ इलाकों से अपनी अपनी सेनाओं को पीछे ले लेने का निर्णय लिया था. हॉट स्प्रिंग्स, डेपसांग तराई और डेमचोक इलाकों में ऐसा अभी तक नहीं हो पाया है. इससे पहले जब भी बातचीत बेनतीजा रही है तब दोनों पक्षों ने इसके बारे में साझा बयान जारी किए हैं.
आमने सामने
यह पहली बार है जब इस तरह के अलग अलग और एक दूसरे पर आरोप लगाने वाले बयान जारी किए गए हैं. पीपी 15 पर एलएसी के पार भारत के इलाके के अंदर अभी भी चीनी सेना की एक टुकड़ी तैनात है. भारत का दावा है कि चीन भारत को उत्तर में स्थित डेपसांग तराई में अपने ही पांच पैट्रोलिंग बिंदुओं तक नहीं पहुंचने दे रहा है.
डेपसांग तराई भारतीय वायु सेना के दौलत बेग ओल्डी हवाई अड्डे के पास स्थित है, इसलिए यह भारत के लिए काफी संवेदनशील है. अनुमान है कि पूरे इलाके में दोनों सेनाओं के लगभग 50,000 सैनिक हथियारों, तोपों, आर्टिलरी बंदूकों, और हवाई सुरक्षा उपकरणों के साथ तैनात हैं.
भारत के सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने हाल ही में कहा था कि चीन इलाके में निर्माण कर रहा है "वहां रहने का इरादा रखता है." उन्होंने यह भी कहा था, "अगर वो यहां जमे रहने के लिए आए हैं तो हम भी जमे रहेंगे. हमारी तरफ भी वैसी ही तैनाती और निर्माण किया गया है जैसा उस तरफ पीएलए ने किया है."
(रॉयटर्स से जानकारी के साथ)
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा को लेकर बीजेपी के भीतर भी विवाद बढ़ता दिख रहा है.
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से लोकसभा सांसद वरुण गाँधी अपनी ही पार्टी की सरकार को इस मुद्दे पर लगातार घेरते दिख रहे हैं.
शुक्रवार को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि उन्होंने वरुण गाँधी को बुलाकर बात की थी. नड्डा ने ये भी कहा था कि अब इस मामले सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन रविवार को वरुण गाँधी ने एक और ट्वीट किया, जिससे पता चलता है कि सब कुछ ठीक नहीं हुआ है.
अपने ट्वीट में वरुण गाँधी ने लिखा है, "लखीमपुर खीरी की घटना को हिंदू बनाम सिख की लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश हो रही है. ये न सिर्फ़ अनैतिक है बल्कि झूठ भी है. ऐसा करना ख़तरनाक है और उन जख़्मों को कुरेदने जैसा है, जिन्हें ठीक होने में पीढ़ियाँ लगीं. हमें तुच्छ राजनीति को राष्ट्रीय एकता के ऊपर नहीं रखना चाहिए."
ज़ाहिर है कि केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की ही सरकार है और वरुण गाँधी की ये शिकायत व्यवस्था से ही है.
वरुण गांधी किसानों के आंदोलन को लेकर अपनी सरकार को संवेदनशीलता से हल करने की सलाह दे चुके हैं.
वे गन्ना के समर्थन मूल्य को लेकर भी राज्य सरकार पर निशाना साधते रहे हैं और तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत को लेकर वो लगातार ट्विटर पर सवाल उठा रहे हैं. उन्होंने घटना का एक वीडियो ट्वीट करते हुए त्वरित कार्रवाई की मांग की थी.
हालांकि वरुण गाँधी पार्टी में लंबे समय से हाशिए पर ही हैं. उनकी माँ मेनका गाँधी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री थीं लेकिन दूसरे कार्यकाल में मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली थी.
गुरुवार सात अक्टूबर को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य नामों की लिस्ट जारी हुई तो उसमें ना तो वरुण गांधी का नाम था और ना ही उनकी माँ मेनका गांधी का. बीजेपी के इस फ़ैसले को पार्टी की वरुण गाँधी से नाराज़गी के तौर पर देखा जा रहा है.
सिर्फ़ ट्विटर पर ही सक्रिय हैं वरुण गांधी?
कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं का कहना है कि वरुण को किसानों के समर्थन में ट्विटर से आगे सड़क पर उतरना चाहिए.
कांग्रेस पार्टी की नेता अलका लांबा इसे लकर पहले ही सवाल उठा चुकी हैं.
शुक्रवार आठ अक्टूबर को पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने वरुण गांधी पर निशाना साधते हुए कहा था, ''मैं वरुण गाँधी को सुझाव दूँगी कि अगर वह लखीमपुर खीरी में कुचले गए किसानों के लिए अपनी लड़ाई को लेकर ईमानदार हैं, तो उन्हें ट्विटर पर लड़ाई लड़ने के बजाय भाजपा छोड़कर सड़कों पर उतरना चाहिए और अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए.''
यह पूछे जाने पर कि क्या वह भारतीय जनता पार्टी के नेता को कांग्रेस में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रही हैं तो लांबा ने कहा, ''मैं उन्हें कोई निमंत्रण देने वाली नहीं हूँ, यह वरुण गांधी का फ़ैसला होगा.''
किसान संगठनों ने भी हिंदू-सिख हिंसा की बात कही थी
किसान संगठनों ने किसानों से 12 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले के तिकुनिया गाँव में जुटने का आह्वान किया है. किसान संगठन के कार्यक्रम को लेकर दो दिन पहले सिंघु बॉर्डर पर किसान नेताओं ने आपसी विमर्श किया था.
इससे पूर्व सिंघु बॉर्डर पर हुई चर्चा में शामिल अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मुल्ला ने बाद में पत्रकारों से कहा था कि तीन अक्टूबर रविवार को तिकुनिया में कम से कम 20,000 लोग जमा हुए होंगे. उस समय हिंदुओं और पंजाबी सिखों के बीच दंगा भड़क सकता था. किसान नेता राकेश टिकैत ने इसे रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उन्होंने अजय मिश्रा और दूसरे बीजेपी नेताओं पर सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की साज़िश का आरोप भी लगाया था.
बीजेपी में वरुण गांधी का घटता क़द
वरुण भाजपा में साल 2004 में शामिल हुए थे. उन्हें उस वक़्त भाजपा की मुख्य रणनीतिकारों लालकृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन का पूरा समर्थन प्राप्त था.
महाजन ने वरुण और मेनका के भाजपा के साथ आने को बड़ी उपलब्धि बताते हुए दावा किया था कि केवल गांधी ही कांग्रेसी गांधी का मुक़ाबला कर सकते हैं.
महाजन की भविष्यवाणी 2009 के चुनावों में कुछ ही हद तक साकार होती दिखी जब सोनिया और राहुल गांधी के सेकुलर विचारों के बरअक्स वरुण ने कथित कम्युनल ब्रांड को बढ़ावा देना शुरू किया और पार्टी को कुछ चुनावी फ़ायदा हुआ.
लेकिन उसके बाद भी भाजपा वरुण को बढ़ावा देती रही. पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह 'एकजुटता दिखाने के लिए' जेल में जाकर उनसे मिले थे.
भाजपा के किसी नेता ने वरुण के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोला. हालाँकि कुछ नेता अंदरख़ाने उनके भड़काऊ बयानों के राजनीतिक परिणामों को लेकर खीझते रहे.
राजनाथ सिंह ने उन्हें पार्टी का जनरल सेक्रेटरी नियुक्त करने के साथ ही उन्हें अपने तरीक़े से काम करने की पूरी आज़ादी भी दी.
लेकिन राजनाथ के बाद अध्यक्ष बने नितिन गडकरी ने 2012 के विधान सभा चुनावों में वरुण के पर कतर दिए. तब कहा जा रहा था कि वरुण अपनी छवि पार्टी से बड़ी बनाने की कोशिश कर रहे थे.
भाजपा में ऐसे नेता भी थे, जो वरुण के 'नेहरू-गांधी विरासत' से बहुत प्रभावित नहीं थे. नरेंद्र मोदी और अमित शाह ऐसे ही नेताओं में थे. इस वक़्त पार्टी की कमान इन्हीं दोनों के हाथ में है. (bbc.com/hindi)
तमिलनाडु की दुकानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों को "बैठने का अधिकार" मिल गया है. तमिलनाडु ऐसा कानून लाने वाला दूसरा राज्य बन गया है. इससे पहले केरल यह नियम लागू कर चुका है.
तमिलनाडु में लागू हुआ "बैठने का अधिकार" खासकर महिला कर्मचारियों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है. वे कई-कई घंटों तक खड़े हो कर दुकानों और रिटेल स्टोर में काम करती हैं. चेन्नई के एक रिटेल स्टोर में काम करने वाली एस लक्ष्मी को हर रोज करीब 10 घंटे खड़े होना पड़ता था. जब वह घर लौटतीं तो वह थकान से चूर हो जातीं और उनकी एड़ियों में दर्द होता.
पिछले महीने तमिलनाडु दूसरा भारतीय राज्य बना जो कानूनन रिटेल स्टोर और दुकानों में कर्मचारियों को "बैठने का अधिकार" देता है. कानून के मुताबिक स्टोर मालिकों से कहा गया है कि वे कर्मचारियों की बैठने की व्यवस्था करें और कर्मचारियों को काम के दौरान जब भी संभव हो आराम करने का मौका दें.
पिछले 10 सालों से कपड़े के स्टोर में काम करने वाली 40 साल की लक्ष्मी कहती हैं, "अब तक इन शिफ्ट के दौरान एकमात्र आराम का समय हमें 20 मिनट के लंच ब्रेक में मिलता था. हमारे दुखते पैरों को सहारा देने के लिए हम कुछ पल के लिए शेल्फ के सहारे आराम कर लेते थे."
वह कहती हैं, "ग्राहक नहीं होने पर भी हमें फर्श पर बैठने की इजाजत नहीं होती."
भारत में कई दुकानों और रिटेल स्टोर्स में काम करने वाले कर्मचारियों को खड़े होकर काम करना होता है. यह एक ऐसा नियम हो जो समान रूप से सभी कर्मचारियों पर लागू होता है.
तमिलनाडु समेत दक्षिणी राज्यों में बड़े परिवार द्वारा आभूषण, साड़ी और कपड़ों के रिटेल स्टोर चलाए जाते हैं. वे महिला ग्राहकों की सेवा के लिए कम आय वाले परिवारों की महिलाओं को काम पर रखते हैं.
साल 2018 में करेल ने इसी तरह का कानून लागू किया था. टेक्सटाइल स्टोर में काम करने वाले कर्मचारियों ने इस अधिकार को लेकर प्रदर्शन किया था. अधिकार समूहों का कहना है कि श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह देर से उठाया गया स्वागत योग्य कदम है.
कामकाजी महिला समन्वय के तमिलनाडु राज्य संयोजक समिति की एम धनलक्ष्मी कहती हैं, "यह लंबे समय से लंबित मांग थी." वह कहती हैं, "जब से वे काम पर जाने के लिए बस में चढ़ती हैं, तब तक 12-14 घंटे की शिफ्ट के बाद घर लौटती हैं वे मुश्किल से बैठ पाती हैं. वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती हैं और उन्हें लगातार तनाव में काम करना पड़ता है. यह नियम लंबे समय से लंबित था."
केरल से शुरू हुआ आंदोलन
पेशे से दर्जी पी विजी ने केरल में बैठने का अधिकार आंदोलन को शुरू किया है. उन्होंने यूनियन का गठन किया, यह खासकर ऐसे कर्मचारियों के लिए था, जो असंगठित क्षेत्र जैसे कि दुकानों में सहायक के तौर पर काम करते हैं.
विजी कहती हैं, "चूंकि महिलाओं को काम पर बैठने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, इसलिए वे अपने सिर पर कुर्सियां लेकर विरोध में चल पड़ीं." वे तमिलनाडु के नए कानून को लेकर उत्साहित हैं.
विजी कहती हैं, "लेकिन असली परीक्षा इसको लागू करना है. एक संघ के रूप में हम लगातार दुकानों की जांच करते हैं और शिकायत दर्ज करते हैं यदि (बैठने की) सुविधाएं नहीं हैं. कानून का कोई मतलब नहीं है अगर इसे लागू नहीं किया जाता है."
तमिलनाडु के श्रम सचिव आर किर्लोश कुमार कहते हैं कि इंस्पेक्टर जांच करने दुकानों पर जाएंगे ताकि कानून को लागू किया जा सके. वह कहते हैं, "हम इसे श्रमिकों के लिए एक प्रमुख कल्याणकारी उपाय के रूप में देखते हैं और स्टोर मालिकों की तरफ से कानून का अनुपालन सुनिश्चित करेंगे."
"लंबा सफर अभी बाकी"
यूनियन नेताओं और महिला अधिकार आंदोलनकर्ताओं का कहना है कि बैठने में सक्षम नहीं होना दुकान के कर्मचारियों के सामने आने वाली दैनिक कठिनाइयों में से एक है. दुकान सहायकों को अक्सर न्यूनतम वेतन से कम भुगतान किया जाता है और उन्हें सप्ताह के सातों दिन काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. उन्हें प्रबंधकों द्वारा निरंतर निगरानी में और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. आरोप तो यह भी लगते हैं कि महिला कर्मचारियों को बाथरूम के इस्तेमाल से भी रोका जाता है.
धनलक्ष्मी कहती हैं, "बैठने का अधिकार उन मांगों में से एक है जो पूरी हो गई हैं. लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है." वह कहती हैं, "उचित वेतन, उचित टॉयलेट ब्रेक और कम निगरानी की लड़ाई जारी है जबकि दुकान मालिक सीसीटीवी कैमरों को सही ठहराते हैं यह कहते हुए कि यह ग्राहकों द्वारा चोरी को रोकता है. वे असल में इसका इस्तेमाल कर्मचारियों पर जासूसी करने के लिए करते हैं."
वह कहती हैं, "दुकानों का माहौल गला घोंटनेवाला है."
केरल में यूनियन सीसीटीवी निगरानी पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं. यूनियन के सदस्य कहते हैं कि इसका इस्तेमाल कर्मचारियों को आपस में बात करने या कुछ समय के लिए अपनी जगह छोड़ने के लिए दंडित करने के लिए किया जाता है.
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद किसानों के आंदोलन के समर्थन में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में बंद बुलाया है. राज्य सरकार ने घोषणा की है कि आपात सेवाओं के अलावा राज्य में सब कुछ एक दिन के लिए बंद रहेगा.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
राज्य में महाराष्ट्र विकास आघाड़ी गठबंधन सरकार के घटक दलों शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी ने खुद ही एक प्रेस वार्ता करके बंद के आयोजन के बारे में जानकारी दी थी. बंद का आह्वान उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हाल ही में हुई घटना की पृष्ठभूमि में किया जा रहा है.
तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में गाड़ियों के एक काफिले ने कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचल दिया था, जिसमें चार किसानों की मौत हो गई थी. इन गाड़ियों में से कम से कम एक गाड़ी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा की थी.
सरकारी 'बंद'
मौके पर मौजूद कई चश्मदीद गवाहों ने कहा है कि यह गाड़ी मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा चला रहा था. उत्तर प्रदेश पुलिस ने आशीष के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है और उसे गिरफ्तार कर लिया है.
महाराष्ट्र बंद के बारे में बताते हुए शिव सेना नेता संजय राउत ने पत्रकारों से कहा, "गठबंधन की तीनों पार्टियां सक्रिय रूप से बंद में हिस्सा लेंगी. लखीमपुर खीरी में जो हुआ वो संविधान की हत्या थी, कानून का उल्लंघन था और देश के किसानों को मारने की एक साजिश थी."
बंद के तहत पूरे राज्य में दुकानों को बंद रखने की योजना है. व्यापारियों के कई संगठनों ने बंद को समर्थन देने का फैसला किया है. मुंबई में भी दुकानें बंद रहेंगी. बस, ऑटो और टैक्सी सेवाएं भी बाधित होने की खबरें आ रही हैं, लेकिन लोकल ट्रेनें चल रही हैं.
बीजेपी ने बंद का विरोध किया है और चेतावनी भी दी है कि अगर व्यापारियों को दुकानें बंद करने के लिए मजबूर किया गया तो पार्टी इसका विरोध करेगी.
निष्पक्ष जांच की जरूरत
कांग्रेस ने इसके अलावा इस मुद्दे को लेकर अलग से राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन की भी घोषणा की है. पार्टी ने सभी राज्यों में अपनी प्रदेश इकाइयों से राज भवन या केंद्र सरकार के कार्यालयों के आगे मौन व्रत का आयोजन करें.
पार्टी ने मांग की है लखीमपुर खीरी वारदात में शामिल सभी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ साथ केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त भी किया जाना चाहिए.
इस बीच आशीष मिश्रा को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. मीडिया में आई कुछ खबरों में दावा किया गया है कि आशीष से पूछताछ करने वाले एसआईटी ने बताया कि वारदात के दिन वो कहां था इस बारे में उसने स्पष्ट जवाब नहीं दिए हैं.
चश्मदीद गवाहों ने यह भी दावा किया है कि आशीष ने किसानों पर गोली भी चलाई थी. कुछ खबरों में यह भी बताया गया है कि उसकी गाड़ी से खाली कारतूस भी बरामद हुए थे और और वो इनके बारे में भी एसआईटी को स्पष्ट जवाब नहीं दे पाया.
उसके खिलाफ लगे सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच हो पाए इसके लिए उसके पिता के मंत्रिपद छोड़ देने की मांग भी भी जोर पकड़ रही है. (dw.com)
भारत सरकार ने बिजली संकट की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा है कि उसके पास पर्याप्त कोयला है. पिछले कई दिनों से कोयला बिजली संयंत्रों के पास ईंधन खत्म हो जाने की खबरें आ रही हैं.
भारत सरकार ने कहा है कि पावर प्लांट्स की मांग पूरी करने के लिए उसके पास पर्याप्त कोयला है. रविवार को एक बयान जारी कर भारत सरकार ने कहा कि बिजली का संकट नहीं होने जा रहा है.
केंद्र सरकार ने कहा कि कोयला बिजली संयंत्रों के पास 72 लाख टन कोयला भंडार हैं जो चार दिन के लिए पर्याप्त हैं. इसके अलावा सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के पास भी चार करोड़ टन कोयला भंडार होने की बात कही गई है.
कोयला मंत्रालय ने रविवार को जारी एक बयान में कहा, "बिजली कटौती की आशंकाएं बेवजह हैं.” दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि कोयला संकट के चलते दिल्ली को बिजली कटौती झेलनी पड़ सकती है, जिसके बाद केंद्र को यह सफाई देनी पड़ी.
क्यों है कोयले का संकट
भारत में हाल के महीनों में कई इलाकों में बिजली की भारी समस्या रही है. देश के कोयला संयंत्रों के पास सितंबर के आखिर में सिर्फ चार दिन का कोयला बचा था, जो कई दशकों में सबसे कम है.
दुनिया में दूसरे सबसे ज्यादा कोयला उपभोग करने वाले देश भारत में कोयले की इस कमी की बड़ी वजह चीन में हो रही बिजली कटौती है. चीन के बिजली संकट के कारण फैक्ट्रियां काम नहीं कर पा रही हैं और उत्पादन प्रभावित होने से वैश्विक सप्लाई पर असर पड़ा है.
भारत में जरूरत की 70 प्रतिशत बिजली कोयले से बनाई जाती है. इसके लिए तीन चौथाई ईंधन स्वदेशी ही होता है. लेकिन मॉनसून की भारी बारिश ने कोयला खदानों में पानी भर दिया है और परिवहन को भी प्रभावित किया है, जिसके चलते कोयले की कमी हो गई है और कीमतें आसमान छू रही हैं.
हालांकि केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि मांग में तेज बढ़त और भारी मॉनसून के बावजूद "घरेलू सप्लाई ने बिजली उत्पादन को बड़ा समर्थन बनाए रखा है.”
बायोमास का इस्तेमाल
कोयले की सप्लाई के अलावा भारत ने बिजली उत्पादन का स्तर बनाए रखने के लिए और भी कई कदम उठाए हैं. मसलन कुछ कोयला बिजली संयंत्रों में बायोमास का इस्तेमाल अनिवार्य बना दिया गया है. इसका मकसद कृषि के कचरे से बिजली बनाकर वायु प्रदूषण को कम करना है.
शुक्रवार को बिजली मंत्रालय ने यह फैसला किया था जिसके तहत तीन श्रेणियों के थर्मल पावर प्लांट में कोयले के साथ 5 प्रतिशत बायोमास मिलाने की बात कही गई है.
उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में किसान फसल की कटाई के बाद बचे हिस्से को जलाकर खेत साफ करते हैं. इससे इलाके में वायु प्रदूषण होता है, जिसे लेकर पिछले दो-तीन साल से काफी चिंता जताई जा रही है. सरकार इसे कोयला संयंत्रों में इस्तेमाल करना चाहती है.
बायोमास के इस्तेमाल पर एक केंद्रीय नीति भी बनाई गई है जो अगले साल अक्टूबर से लागू हो जाएगी. इस नीति के तहत दो श्रेणियों के कोयला बिजली संयंत्रों को अगले दो साल में बायोमास का इस्तेमाल 7 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा.
बिजली मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, "(कोयले के साथ) बायोमास जलाने की नीति 25 साल तक या फिर प्लांट की आयु पूरी होने तक, जो भी पहले खत्म हो तब तक लागू रहेगी.”
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)