राष्ट्रीय
श्रीनगर, 24 अगस्त | उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के सोपोर में आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच जारी मुठभेड़ में दो आतंकवादी मारे गए हैं। अधिकारियों ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। पुलिस ने कहा, 'दो अज्ञात आतंकवादी मारे गए और तलाशी जारी है।'
पुलिस और सेना की एक संयुक्त टीम ने इलाके को घेर लिया और आतंकवादियों की मौजूदगी की विशेष सूचना के आधार पर तलाशी अभियान शुरू करने के बाद सोमवार रात आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी हुई।
जैसे ही सुरक्षा बल उस स्थान पर पहुंचे, जहां आतंकवादी छिपे हुए थे, उन्होंने भारी मात्रा में गोलीबारी शुरू कर दी, जिसकी चपेट में आने से दोनों के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई। (आईएएनएस)
मोहम्मद शोएब खान
नई दिल्ली, 24 अगस्त | अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के एक हफ्ते बाद भी, सैकड़ों अफगान नागरिक यहां दिल्ली में अनिश्चित जीवन जी रहे हैं और वीजा के लिए विभिन्न दूतावासों के बाहर भीड़ लगा रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में ऑस्ट्रेलियाई उच्चायोग ने अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर तेजी से हनन की रिपोर्ट पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
ऑस्ट्रेलियाई उच्चायोग के एक प्रवक्ता ने विशेष रूप से आईएएनएस को बताया, "2001 से महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना अफगानिस्तान के लिए ऑस्ट्रेलिया की विकास सहायता का फोकस रहा है और हमारी विदेश मंत्री, मारिस पायने सोमवार को महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय कॉल में शामिल हुईं थीं।"
उन्होंने कहा, "हम चल रही बहुपक्षीय राजनीतिक माध्यमों से महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा देना जारी रखेंगे, और हमारी चल रही मानवीय सहायता के माध्यम से संघर्ष प्रभावित महिलाओं और लड़कियों की तत्काल जरूरतों का समर्थन करेंगे।"
इस बीच, यहां ऑस्ट्रेलिया का उच्चायोग अफगानिस्तान से ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों को निकालने के समन्वय में व्यस्त है। 18 अगस्त से, ऑस्ट्रेलिया ने आठ उड़ानों के माध्यम से काबुल से 554 लोगों को निकालने की सुविधा प्रदान की है और आने वाले दिनों में और अधिक लोगों को निकालने की प्रक्रिया में है।
अफगानिस्तान में स्थिति को अत्यधिक अस्थिर और खतरनाक बताते हुए, प्रवक्ता ने कहा कि उड़ानें परिचालन स्थितियों के अधीन होंगी।
प्रवक्ता ने आईएएनएस के साथ एक विशेष ई-मेल साक्षात्कार में कहा, "हम जमीन पर समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल ने निकासी अभियान का समर्थन करने के लिए 250 से अधिक कर्मियों और अधिकतम पांच विमानों को तैनात किया है। हमारे अधिकारी ऑस्ट्रेलियाई, स्थायी निवासियों और परिवार की मदद के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "ऑस्ट्रेलियाई सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों और वीजा धारकों का सुरक्षित और व्यवस्थित प्रस्थान है, जिसमें स्थानीय रूप से पूर्व अफगान कर्मचारी भी शामिल हैं।" (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 24 अगस्त | केरल के पूर्व पुलिस अधिकारी सिबी मैथ्यूज को मंगलवार को इसरो जासूसी मामले में यहां की एक अदालत से अग्रिम जमानत मिल गई। पिछले महीने सीबीआई ने 18 लोगों के खिलाफ तिरुवनंतपुरम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में एक प्राथमिकी दर्ज की थी, जिनमें से सभी ने मामले की जांच की थी और इसमें केरल पुलिस और आईबी के शीर्ष अधिकारी शामिल हैं, जिन पर साजिश और दस्तावेजों के निर्माण का आरोप लगाया गया है।
सीबीआई ने मैथ्यूज को चौथा आरोपी बनाया है।
इसके बाद मैथ्यूज ने यहां की अदालत का दरवाजा खटखटाया और तिरुवनंतपुरमजिला सत्र न्यायालय ने मंगलवार को उन्हें अग्रिम जमानत दे दी।
इस महीने की शुरूआत में केरल उच्च न्यायालय ने इसी मामले में चार अन्य शीर्ष अधिकारियों को अग्रिम जमानत दी थी।
इसरो जासूसी का मामला 1994 में सामने आया था, जब इसरो यूनिट के एक शीर्ष वैज्ञानिक एस.नांबी नारायणन को इसरो के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी, मालदीव की दो महिलाओं और एक व्यवसायी को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था।
एक दशक पहले पुलिस महानिदेशक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले मैथ्यूज ने सेवानिवृत्त होने से पहले मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया और राज्य की राजधानी में रहने लगे थे।
कई लंबी अदालती लड़ाई के बाद नारायणन के लिए चीजें बदल गईं, जब 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.के. जैन को यह जांच करने के लिए कहा कि क्या तत्कालीन पुलिस अधिकारियों के बीच नारायणन को झूठा फंसाने की साजिश थी।
सीबीआई की नई टीम पिछले महीने आई थी और शीर्ष अदालत के निर्देशों के अनुसार उन्हें यह पता लगाना है कि क्या नारायणन को फंसाने के लिए केरल पुलिस और आईबी की जांच टीमों की ओर से कोई साजिश थी।
सीबीआई ने 1995 में नारायणन को मुक्त कर दिया और तब से वह मैथ्यूज, एस विजयन और जोशुआ के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्होंने मामले की जांच की और उन्हें झूठा फंसाया।
नारायणन को अब केरल सरकार सहित विभिन्न एजेंसियों से 1.9 करोड़ रुपये का मुआवजा मिला है, जिसने 2020 में उन्हें 1.3 करोड़ रुपये का भुगतान किया और बाद में 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित 50 लाख रुपये और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा आदेशित 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया था।
मुआवजा इसलिए दिया गया था क्योंकि इसरो के पूर्व वैज्ञानिक को गलत कारावास और अपमान सहना पड़ा। (आईएएनएस)
कोलकाता, 24 अगस्त | राज्य भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष के केंद्रीय मंत्री जॉन बारला के साथ खड़े होने और उत्तर बंगाल के लिए अलग राज्य की वकालत करने के कुछ ही घंटों बाद उन्होंने यूटर्न ले लिया और कहा कि किसी ने भी राज्य के विभाजन के बारे में बात नहीं की। सोमवार शाम को उत्तर बंगाल में एक कार्यक्रम में बोलते हुए घोष ने कहा, "किसी ने बंगाल के बारे में बात नहीं की, हम राज्य विभाजन के पक्ष में नहीं हैं।" राज्य के उत्तर-दक्षिण विभाजन पर टिप्पणी के लिए पार्टी के भीतर आलोचना किए जाने के कुछ ही घंटों बाद घोष की यह प्रतिक्रिया आई है।
घोष ने कहा, "बंगाल के किसी भी हिस्से के बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा। उत्तर बंगाल के लोग, जंगल महल के लोग 60-65 साल से वंचित हैं। वे अभी भी नौकरी के लिए दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। पढ़ाई, इलाज के लिए बाहर जा रहे हैं। जमीनी स्तर के बदमाश मौके का फायदा उठा रहे हैं और लोगों को प्रताड़ित कर रहे हैं। नतीजा ये है कि इन इलाकों के निवासियों को लगता है कि अगर वे एक साथ काम करेंगे तो कोई सुधार नहीं होगा। इसलिए, उन्होंने एक अलग राज्य की मांग की है।"
घोष के करीबी सूत्रों ने बताया कि राज्य के बंटवारे की बात कहने के बाद उन्हें अपनी ही बात ्र्नपर पर्दा डालना पड़ा।
घोष ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा था, "इसकी पूरी जिम्मेदारी ममता बनर्जी की है। आजादी के 75 साल बाद उत्तर बंगाल के लोगों को नौकरी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए दूसरे राज्यों में क्यों जाना पड़ रहा है? जंगलमहल में यह स्थिति है। जंगलमहल की महिलाओं को आजीविका के लिए साल और तेंदूपत्ता पर क्यों निर्भर रहना पड़ेगा। उन्हें नौकरी के लिए ओडिशा, रांची और गुजरात क्यों जाना पड़ता है।"
उन्होंने कहा, "अगर उन्होंने (भाजपा सांसदों ने) ऐसी मांग (राज्य का विभाजन) की है, तो यह अनुचित नहीं है।"
घोष की टिप्पणी से राज्य भाजपा सहित पूरे राज्य में बहस छिड़ गई। केंद्रीय मंत्री और अलीपुरद्वार जिले के सांसद जॉन बारला के बगल में घोष का खड़ा होना, जो लंबे समय से अलग राज्य की मांग कर रहे हैं, को पार्टी से ही कड़ी प्रतिशोध का सामना करना पड़ा। लॉकेट चटर्जी और राहुल सिन्हा जैसे वरिष्ठ नेताओं ने इस मुद्दे पर घोष के खिलाफ बात की।
चटर्जी, जो हुगली से सांसद भी हैं, उन्होंने कहा, "हम राज्य का विभाजन कभी नहीं चाहते हैं। बंगाल की संस्कृति अलग है। हम सद्भाव से रहते हैं और बंगाल हम में से प्रत्येक को बहुत प्रिय है।"
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा ने बिना किसी का नाम लिए कहा, "जो लोग राज्य का नाम बदलना चाहते हैं और भौगोलिक रूप से राज्य को विभाजित करना चाहते हैं, वे रवींद्रनाथ टैगोर का अपमान कर रहे हैं।" (आईएएनएस)
चेन्नई, 24 अगस्त | श्रीलंका के नागरिक सुरेश राज या चिन्ना सुरेश और सुंदरराजन को जुलाई के अंतिम सप्ताह में कोच्चि और चेन्नई से गिरफ्तार किए जाने के बाद केंद्रीय एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 25 मार्च, 2021 को केरल तट से श्रीलंका की एक नाव से पांच एके 47 राइफल और 3000 करोड़ रुपये के ड्रग्स की जब्ती की थी, जिसकी जांच जारी हैं। उनको पता चला कि गिरफ्तार किए गए लोगों को एक पाकिस्तानी ने निर्देश दिया था। दोनों लोग अब समाप्त हो चुके लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के लिए पैसे जुटाने के लिए ड्रग्स की तस्करी में शामिल थे।
एनआईए के अधिकारियों के मुताबिक सुरेश श्रीलंका का नागरिक है और पिछले कई सालों से बिना किसी वीजा या पासपोर्ट के भारत में अवैध रूप से रह रहा है। उसके पास पैन कार्ड, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी कार्ड और भारतीय पासपोर्ट है। एनआईए ने खुलासा किया कि उसने अपनी साख साबित करने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करके ये सब हासिल किया था।
नाव 'राहिवंशी' को भारतीय तट रक्षक ने 25 मार्च को केरल तट से रोक दिया था, जिसमें छह श्रीलंकाई नागरिक सवार थे। नाव में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 3,000 करोड़ रुपये मूल्य की 300 किलोग्राम कोकीन, 5 एके 47 राइफल और 1000, 9 मिमी की गोलियां थीं। नाव का स्वामित्व एक श्रीलंकाई नागरिक, लोकु याददिगे निशांता कर रहा था। एनआईए ने कहा कि 2020 की दूसरी छमाही से मछली पकड़ने वाली नौकाओं का उपयोग करके पाकिस्तान से ड्रग्स और हथियारों की तस्करी की साजिश चल रही है।
श्रीलंकाई नागरिकों की जब्ती और गिरफ्तारी पर नजर रखने वाली केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के अनुसार, पाकिस्तान से ड्रग्स और हथियार श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह की ओर और वहां से अन्य अंतर्राष्ट्रीय गंतव्यों की ओर जा रहे थे। एजेंसियों के सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि पाकिस्तान से ड्रग्स और हथियारों की तस्करी तमिलनाडु और केरल में नेटवर्क का उपयोग करके की जा रही है, ताकि लिट्टे की परिचालन गतिविधियों के लिए रूपये की तलाश की जा सके।
गिरफ्तार किए गए सुरेश राज और सुंदरराजन ने जांच अधिकारियों को बताया है कि तमिलनाडु के कुछ इलाकों में लिट्टे का नेटवर्क सक्रिय है। दोनों की गिरफ्तारी के बाद, तमिलनाडु पुलिस की 'क्यू' शाखा ने राज्य के कई हिस्सों में तलाशी अभियान चलाया और कुछ लोगों को हिरासत में लिया है। हालांकि पुलिस सूत्रों ने बताया कि अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। (आईएएनएस)
पिता की संपत्ति में पुत्रियों को भी पुत्रों के बराबर अधिकार मिलना चाहिए. इस मुद्दे पर पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में विवाद तेज हो गया है.
डॉयचे वेले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
राज्य सरकार विधानसभा के वर्षाकालीन अधिवेशन में इस पर एक विधेयक पेश करने वाली थी. लेकिन विभिन्न संगठनों के विरोध की वजह से सरकार ने फिलहाल इसे स्थगित कर दिया है. हालांकि महिला आयोग ने इस मसौदे का समर्थन किया है. उसी ने इस विधेयक का मसौदा मुख्यमंत्री पेमा खांडू को सौंपा था.
पूर्वोत्तर राज्यों की कई जनजातियों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिले हैं. मेघालय के खासी और जयंतिया हिल्स इलाके में रहने वाला खासी समुदाय मातृसत्तात्मक परंपराओं के लिए जाना जाता है. इस समुदाय में फैसले घर की महिलाएं ही करती हैं. बच्चों को उपनाम भी मां के नाम पर दिया जाता है. छोटी पुत्री ही घर व संपत्ति की मालकिन होती है और उसी के नाम पर वंश आगे चलता है.
मेघालय के अलावा, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के कई कबीलों और जनजातियों में तो महिलाएं ही परिवार की मुखिया होती हैं. मणिपुर में दुनिया का इकलौता ऐसा बाजार (एम्मा मार्केट) है जहां तमाम दुकानदार महिलाएं ही हैं.
क्या है ताजा मामला
अरुणाचल प्रदेश सरकार ने पुत्रियों को भी पैतृक संपत्ति में पुत्रों के समान अधिकार देने की योजना को कानूनी जामा पहनाने के लिए विधानसभा में एक विधेयक पेश करने का फैसला किया था. राज्य महिला आयोग, अरुणाचल प्रदेश विमिंस वेलफेयर सोसाइटी और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मिल कर इस विधेयक का मसौदा तैयार किया था. लेकिन राज्य के विभिन्न संगठनों के विरोध और इस मुद्दे पर बढ़ते विवाद की वजह से सरकार ने फिलहाल इस योजना को स्थगित कर दिया है.
राज्य के विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों ने उक्त मसौदे को आदिवासी-विरोधी और अरुणाचल-विरोधी करार दिया है. उनकी दलील है कि इससे शादी के जरिए बाहरी लोगों के लिए राज्य में आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने का रास्ता खुल जाएगा. विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि यह प्रस्तावित कानून तो ठीक है. लेकिन अपनी जनजाति से बाहर के युवकों से शादी करने वाली युवतियों को यह अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए.
लेकिन अखिल अरुणाचल प्रदेश छात्र संघ (आप्सू) ने इस मसौदे का विरोध किया है. संगठन का कहना है कि वह ऐसे किसी भी विधेयक का विरोध करेगा जो आदिवासियों के अधिकारों और परंपराओं का हनन करता हो. उसका कहना है कि आदिवासी महिलाओं को पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाने में कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अगर कोई आदिवासी महिला किसी गैर-आदिवासी से शादी करे तो उसे इस अधिकार से वंचित करना होगा.
प्रस्तावित विधेयक का विरोध करने वाले ऑल मिशी यूथ एसोसिएशन के महासचिव बेंगिया टाडा दावा करते हैं कि यह मसौदा आदिवासी महिलाओं के हितों के खिलाफ हैं. वह कहते हैं, "संगठन आदिवासी महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करता है लेकिन प्रस्तावित विधेयक से महिलाओं को कोई फायदा नहीं होगा. उल्टे इससे स्थानीय आदिवासी महिलाओं के हितों को नुकसान ही पहुंचेगा."
उनका कहना है कि राज्य में पहले से ही पुत्रियों को पिता की अचल संपत्ति में समान अधिकार मिला है. लेकिन किसी गैर-आदिवासी युवक से शादी करने वाली महिला को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता. इससे आगे चल कर इन महिलाओं को ही नुकसान होगा. टाडा का दावा है कि प्रस्तावित विधेयक आदिवासी समाज की स्थापित परंपराओं का उल्लंघन है.
मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने पहले कहा था कि सरकार इसके विभिन्न पहलुओं के अध्ययन के बाद विधानसभा के अगले अधिवेशन के दौरान एक विधेयक पेश करेगी. खांडू का कहना था, "हम अपनी बेटियों को हर तरह से समान अधिकार देने के पक्षधर हैं. लेकिन समाज, आदिवासी परंपराओं और उत्तराधिकार के मुद्दे पर समुचित बहस और विचार-विमर्श की जरूरत है.
राज्य सरकार के मंत्री और प्रवक्ता बामंग फेलिक्स कहते हैं, "सरकार इस मामले के सभी पक्षों से विचार-विमर्श के बाद ही आगे बढ़ेगी. इस विधेयक का मसौदा राज्य महिला आयोग ने मुख्यमंत्री को सौंपा था. इसलिए सरकार इस मुद्दे पर आगे बढ़ने की योजना बना रही थी."
महिला आयोग की दलील
दूसरी ओर, राज्य महिला आयोग ने इस विवादास्पद विधेयक के मसौदे का बचाव किया है. उसने कहा है कि इसका विरोध करने वाले संगठनों को कोई भी टिप्पणी करने या राय देने से पहले मसौदे को पूरे ध्यान से पढ़ना चाहिए और इस मामले में किसी भी सुझाव का स्वागत किया जाएगा.
महिला आयोग की अध्यक्ष राधिलू चाई कहती हैं, "हमने विभिन्न सामाजिक और छात्र संगठनों के साथ कई साल तक विचार-विमर्श के बाद यह मसौदा तैयार किया है. इसके लिए काफी शोध करना पड़ा है."
उनका कहना है कि विरोध करने वाले संगठनों ने मसौदे को ध्यान से नही पढ़ा है. इसमें गैर-आदिवासियों से शादी करने वाली राज्य की आदिवासी महिलाओं के अधिकारों के बारे में भी दो नए प्रावधान हैं.
राधिलू बताती हैं, "एक प्रावधान में कहा गया है कि राज्य की आदिवासी महिलाओं को चल-अचल पैतृक संपत्ति की उत्तराधिकारी बनने का पूरा अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट भी अपने एक फैसले में कह चुका है कि राज्य में पैदा होने वाली हर महिला आदिवासी है और दूसरे समुदाय के युवकों से शादी के बावजूद उससे आदिवासी का दर्जा छीना नहीं जा सकता."
उनका कहना है कि कुछ संगठन बाहरी युवकों से शादी करने वाली महिलाओं से आदिवासी का दर्जा छीनने की मांग कर रहे हैं. लेकिन जन्म से आदिवासी महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती. राधिलू का कहना है कि आयोग ने राज्य की महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न संगठनों से सुझाव भी मांगा है.
महिला आयोग की दलील है कि यह मसौदा किसी परंपरा के खिलाफ नहीं है. इसमें स्पेशल मैरिज एक्ट से भी कुछ चीजें शामिल की गई हैं. इसके अलावा यह बात साफ कर दी गई है कि पैतृक जमीन या संपत्ति का मतलब माता-पिता की ओर से अर्जित संपत्ति है, पूर्वजों की संपत्ति नहीं. इसके बावजूद लगातार तेज होते विवाद को ध्यान में रखते हुए सरकार ने फिलहाल इसे ठंडे बस्ते में डालने का फैसला किया है. (dw.com)
तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण हो जाने के बाद भारत, चीन और पाकिस्तान में एक बड़ा खेल शुरू हो गया है. इस खेल में कौन कितने पानी में है?
19वीं सदी में रूसी और ब्रिटिश साम्राज्य अफगानिस्तान के लिए एक-दूसरे से लड़ रहे थे. 20वीं सदी में वैसा ही संघर्ष अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुआ. अब जबकि तालिबान ने एक बार फिर अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है तो एक नया संघर्ष शुरू हो गया है जिसमें फिलहाल पाकिस्तान का नियंत्रण सबसे मजबूत है और उसका सहयोगी चीन अपनी पकड़ बढ़ा रहा है.
तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंध काफी मजबूत हैं. उस पर अमेरिका-समर्थित सरकार के खिलाफ तालिबान की मदद के आरोप भी लगते रहे. हालांकि पाकिस्तान इन आरोपों को गलत बताता है. 15 अगस्त को जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अफगानों ने ‘गुलामी की बेड़ियां' तोड़ दी हैं.
तीन उम्मीदवार
अब जबकि तालिबान नई सरकार गठन पर चर्चा कर रहा है तो कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी नेता इस चर्चा में शामिल हैं. उसके विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इस्लामाबाद में बताया कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में एक ऐसा राजनीतिक समझौता चाहता है जिसमें सभी पक्ष शामिल हों और जो शांति और स्थिरता सुनिश्चित करे. हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुख्य भूमिकाओं में अफगान ही हैं.
अफगानिस्तान में अब तक चीन की कोई भूमिका नहीं रही है. लेकिन पाकिस्तान के साथ उसका मजबूत गठजोड़ उसे फायदेमंद स्थिति में ले आया है. खनिजों से भरपूर अफगानिस्तान की ओर चीन अब कराकोरम दर्रे के रास्ते पाकिस्तान में अपने रास्ते की सुरक्षा के बारे में भी सोच रहा है.
और फिर है, भारत. पाकिस्तान का पुराना प्रतिद्वंद्वी, जिसका चीन के साथ सीमा विवाद चल रहा है. काबुल की लोकतांत्रिक सरकार को भारत ने भरपूर समर्थन दिया और वहां जमकर निवेश भी किया. लेकिन चीन और पाकिस्तान के मुख्य भूमिका में आ जाने से भारत में चिंता महसूस की जा सकती है.
चीन के लिए अवसर
वैसे चीन कहता है कि तालिबान से बातचीत का उसका मुख्य मकसद अपने पश्चिमी प्रांत शिनजियांग को पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन (ETIM) से बचाना है, जो अफगानिस्तान में मदद पा सकता है.
सिचुआन यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया से जुड़े मामले पढ़ाने वाले प्रोफेसर जांग ली कहते हैं, "हो सकता है पाकिस्तान अफगानिस्तान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करना चाहता हो, लेकिन चीन के मामले में ऐसा जरूरी नहीं है. चीन की मुख्य चिंता इस वक्त यह है कि तालिबान एक समावेशी उदार सरकार बनाए ताकि शिनजियांग और अन्य इलाकों में आतंकवाद न पनपे. इसके अलावा अगर कोई गणित है तो उसका सामने आना बाकी है.”
नई दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में पढ़ाने वाले प्रोफेसर ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि चीन ने तालिबान के सामने दो प्रलोभन रखे हैं, कूटनीतिक मान्यता और आर्थिक मदद. वह कहते हैं, "अवसरवादी चीन निश्चित तौर पर इस नए मौके का इस्तेमाल खनिजों से भरपूर अफगानिस्तान के साथ साथ पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशिया में पैठ करेगा.”
उलझन में भारत
तालिबान के पिछले शासन के साथ भारत के अनुभव बहुत कड़वे रहे हैं. 1996 से 2001 के बीच तालिबान का शासन था. 1999 में भारत की इंडियन एयरलाइंस के विमान का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था और वे उसे अफगानिस्तान ले गए थे. अपने लोगों को छुड़ाने के लिए भारत को तीन पाकिस्तानी आतंकी छोड़ने पड़े थे.
आज के फैसलों पर उस अनुभव का कितना असर होगा? काबुल में भारत के पूर्व राजदूत जयंत प्रसाद कहते हैं, "आज हम मौजूदा असलियत के साथ सामंजस्य बनाना चाहते हैं. हमें अफगानिस्तान में एक लंबा खेल खेलना है. उसके साथ हमारी सीमा नहीं लगती लेकिन हमारे हित प्रभावित होते हैं.”
भारत में कूटनीतिक हल्कों के लोग कहते हैं कि जब अमेरिका ने तालिबान के साथ दोहा वार्ता शुरू की थी तो भारत ने भी बातचीत का रास्ता खोल लिया था. एक सूत्र के मुताबिक, "हम वहां सभी हिस्सेदारों के साथ बात कर रहे हैं.”
दिल्ली अभी बाहर नहीं
अपने सारे हित अशरफ गनी सरकार से जोड़ देने को लेकर भारत सरकार की घरेलू हल्कों में आलोचना होती रही है. और कहा जाता है कि भारत ने तालिबान से संपर्क साधने में देर कर दी.
फिर भी, कुछ लोग मानते हैं कि भारत एक अहम आर्थिक ताकत है जो तालिबान के लिए अहम भूमिका निभा सकता है, जो शायद चीन पर पूरी तरह निर्भर न होना चाहे.
पिछले बीस साल में भारत ने अफगानिस्तान में भारी निवेश किया है. देश के सभी 34 राज्यों में उसकी छोटी बड़ी कोई परियोजना चल रही है. इसमें काबुल में बना नया संसद भवन भी शामिल है, जिस पर पिछले हफ्ते तालिबान ने कब्जा कर लिया.
दक्षिण एशिया पर तीन किताबें लिख चुकीं पूर्व रॉयटर्स पत्रकार मायरा मैकडॉनल्ड कहती हैं कि तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण हो जाना भले ही भारत के लिए धक्का था, लेकिन नई दिल्ली को अभी खेल से बाहर नहीं समझा जा सकता.
वह बताती हैं, "यह इतिहास का दोहराव नहीं है. इस बार हर कोई बहुत सावधान रहेगा ताकि पिछली बार की तरह अफगानिस्तान में आतंकवाद का गढ़ स्थापित न हो जाए. और फिर, भारत पाकिस्तान से कहीं ज्यादा बड़ी आर्थिक ताकत है.”
तालिबान भी इस बात को समझता है. उसके एक वरिष्ठ सदस्य ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि गरीब अफगानिस्तान को ईरान, अमेरिका और रूस के अलावा दक्षिण एशियाई देशों की मदद की भी जरूरत होगी.
तालिबान के केंद्रीय संगठन तक पहुंच रखने वाले वहीदुल्लाह हाशमी कहते हैं, "हम उनसे मदद की उम्मीद करते हैं. खासकर स्वास्थ्य, व्यापार और खनन क्षेत्रों में. हमारा काम है उन्हें यकीन दिलाना कि हमें स्वीकार करें.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
पिछले कई सालों से भारत में जलमार्गों के जरिए यातायात और माल ढुलाई की बातें हो रही हैं लेकिन अब भी यह एक दूर का सपना ही लगता है. हालांकि अब सरकार इनलैंड वेसल्स बिल, 2021 के जरिए इस इलाके में बड़े बदलाव लाने की सोच रही है.
डॉयचे वेले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
नदियों को प्रकृति का हाईवे भी कहा जा सकता है और भारत सौभाग्यशाली है कि उसे ऐसे बहुत से प्राकृतिक हाईवे मिले हुए हैं. यहां गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी दुनिया की बड़ी नदियां बहती हैं. भारतीय नदी मार्गों के जरिए यातायात की जब-जब बात होती है तो कई विशेषज्ञ कहते हैं कि यह रेल और सड़कों के नेटवर्क की तरह ही उपयोगी है. इतना ही नहीं इन दोनों के मुकाबले जलमार्गों के जरिए माल ढुलाई सस्ती भी है. सरकारी आंकड़ों भी यही दिखाते हैं. उनके मुताबिक एक टन माल की रेल से ढुलाई का खर्च 1.36 रुपये और सड़क के रास्ते ढुलाई का खर्च 2.50 रुपये है लेकिन जलमार्गों के रास्ते यह खर्च मात्र 1.06 रुपये होगा.
भारत के पास नदियों के जरिए यातायात का करीब 14,500 किमी लंबा रास्ता है. अगर इन दोनों आंकड़ों को साथ रखें तो न सिर्फ व्यापार बल्कि साधारण यात्रा के लिए भी यह एक बहुत काम का विकल्प बन सकता है. यह सब सुनने में भले ही बहुत अच्छा लगे लेकिन भारत ने इस दिशा में अब तक कुछ खास प्रगति नहीं की है. इस पर पिछले कई सालों से यहां बातें हो रही हैं लेकिन अब भी यह एक दूर का सपना ही लगता है. हालांकि अब भारत सरकार दावा कर रही है कि वह इस सपने को सच्चाई बनाने में लगी है.
पुराना कानून था यातायात में बाधा
हाल ही में भारत सरकार ने इन नदियों के प्रयोग से जुड़े एक सदी से ज्यादा पुराने एक कानून में बदलाव किए हैं. इस कानून का नाम था, 'इनलैंड वेसल्स एक्ट, 1917.' यूं तो लागू होने के बाद से इसमें कई बार बदलाव किया जा चुका था लेकिन यह भारतीय नदियों के जरिए यातायात का रास्ता नहीं खोल पाया था. कई जानकार मानते हैं कि इसकी वजह कानून के पुराने और अपर्याप्त नियम थे. जैसे, इस कानून के तहत नदियों से जुड़े फैसले राज्य या स्थानीय सरकारें लेती थीं और बहुत से जहाजों को सिर्फ राज्य की सीमा के भीतर ही यात्रा की अनुमति थी. इतना ही नहीं परमिट और सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार भी स्थानीय सरकारों को ही था. और हर राज्य के नियम अलग होने के चलते राज्यों के बीच में जहाजों का निर्बाध आवागमन एक असंभव सी बात थी.
इनलैंड वेसल्स बिल, 2021 के पास होने से इस तस्वीर में अंतत: बदलाव की संभावना है. इस कानून से नदियों के जरिए जहाजों के परिवहन की पूरी प्रक्रिया एक केंद्रीय नियामक संस्था के अंतर्गत आ जाएगी. इसमें जहाजों का भी विस्तृत वर्गीकरण किया गया है. लोगों को ले जाने वाली नाव को उस बजड़े से अलग रखा गया है जो इमारती लकड़ी या गेहूं की ढुलाई करेगा. इसमें जहाजों, नावों, नौकाओं, कंटेनर जहाजों और फेरी को अलग-अलग कैटेगरी में रखा गया है. इनका वर्गीकरण किए जाने के बाद इनकी गतिविधि और पहचान को एक केंद्रीय डेटाबेस के जरिए संचालित किया जाना है. इस कानून के तहत दुर्घटना, चोट या मौत और कुछ अन्य मामलों में जहाजों की देनदारी से जुड़े नियम भी बनाए गए हैं. और अलग-अलग सुरक्षा कानून भी बनाए गए हैं.
लाखों नौकरियां पैदा होने की उम्मीद
इन बदलावों से जुड़ी सबसे अच्छी बात यह है कि नदियों से यातायात की सभी गतिविधियों को एक कानून के तहत ले आया गया है. अगर इन गतिविधियों में बढ़ोतरी होती है तो बंदरगाहों, जहाजों के क्रू, शिपयार्ड आदि पर नई नौकरियों का सृजन होगा. देश के भीतर मौजूद छोटी और मध्यम आकार की कंपनियां भी संभवत: अपने माल को बड़े शहरों में भेजने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकेंगी और अपना माल ढुलाई का खर्च कम कर सकेंगी.
इसके अलावा यह कानून प्रदूषण को कम करने पर भी जोर देता है. जहाज अब जलमार्गों को और प्रदूषित नहीं कर सकेंगे. केंद्र सरकार ने जहाज मालिकों को सीवेज और कचरे के निस्तारण के लिए उपयुक्त तरीके अपनाने की सलाह दी है. इन जलमार्गों पर चलने वाले जहाजों के ऐसा कुछ भी नदियों में डालने पर रोक लगा दी गई है, जो जलमार्गों को प्रदूषित कर सके. मालिकों को या तो इसके विकल्प खोजने होंगे या फिर ज्यादा ईको-फ्रेंडली उपायों की ओर बढ़ना होगा.
आसान नहीं हैं बदलाव
बिल में घरेलू बंदरगाहों और भारत की 7500 किमी लंबी सागरसीमा को विकसित करने की बात भी कही गई है. इससे सरकार को 1 करोड़ रोजगार पैदा होने की उम्मीद है. जिसमें से अगले 10 सालों में ही सीधे 40 लाख लोगों को रोजगार मिलना है. हालांकि कई जानकार ऐसे दावों से सहमत नहीं हैं. वे यह भी मानते हैं कि दावे से नहीं कहा जा सकता कि ये बदलाव देश के अंदर मौजूद जलमार्गों के जरिए यातायात को बढ़ा पाएंगे.
असम सरकार के इनलैंड वॉटर ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में इंजीनियर रहे टीसी महंत के मुताबिक, "भले ही सुनने में यह बहुत अच्छा लगे लेकिन आसान नहीं है. देश की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र में भी पानी की कमी रहती है. अलग-अलग मौसम में इसके जलस्तर में 9 मीटर तक का भारी उतार-चढ़ाव आ जाता है. नदी का बहाव भी तेज है और यह जमीन को काटकर तेजी से अपना रास्ता बदल लेती है. इसलिए नदी का एक रास्ता नहीं बन पाता. ऐसे में नदी पर औद्योगिक इस्तेमाल के लिए निर्माण कार्य करना असंभव जैसा है."
नदियों और स्थानीयों दोनों को नुकसान
भारत में यातायात और यात्रा के लिए नदियों का प्रयोग कई सदियों से होता आ रहा है. मछुआरों, छोटे व्यापारियों और किसानों के लिए यह बहुत लाभदायक भी रहा है. लेकिन भारत सरकार जो करना चाहती है, यह गैर-जरूरी और अदूरदर्शी है. भारत में जल के बारे में काम करने वाले मंथन अध्ययन केंद्र के संस्थापक श्रीपद धर्माधिकारी कहते हैं, "भारत सरकार 2-3 हजार टन के भारी जहाजों को इन नदियों से गुजारना चाह रही है लेकिन एक स्पष्ट बात जो ऐसे किसी कदम से पहले ध्यान रखनी चाहिए, वह यह है कि जलमार्ग के लिए जल और मार्ग दोनों की ही जरूरत होगी. भारत में यह संभव ही नहीं है क्योंकि यहां मानसून के बाद ज्यादातर नदियों में इतना पानी ही नहीं होता कि उनमें से जहाज गुजर सकें."
ऐसी स्थिति में विशेषज्ञ नदियों को 90 मीटर की चौड़ाई में 3-4 मीटर और गहरा खोदने के बारे में कहते हैं लेकिन उसे पानी से भी भरना होगा. और ऐसा करने के लिए पानी कहां से आएगा. इसके अलावा मैदानी इलाकों की नदियों के लिए सिल्ट एक समस्या है, वह फिर से इस गहराई को पाट देगी. यानी करोड़ों खर्च कर कोई फायदा नहीं हो सकेगा लेकिन इससे मछली पालन करने वालों और नदी के पर्यावास को बहुत ज्यादा नुकसान होगा.
छोटे नाविकों और मछुआरों पर ध्यान दे सरकार
कई जानकारों को एक बड़ा डर यह है भी कि जिस स्तर के बड़े जहाज चलाने की सरकार की योजना है, उसका पूरा फायदा कॉरपोरेट उठायेंगे और इससे स्थानीयों को कोई फायदा नहीं होगा. वे कहते हैं, ये जहाज सिर्फ स्थानीय मछुआरों के जाल तोड़ने, मछली पकड़ने में बाधा पहुंचाने का काम करेंगे. वहीं अगर इस योजना को सफल बनाने के लिए नदियों को जोड़ने के बारे में सोचा गया तो नुकसान और बढ़ जाएगा. टीसी महंत कहते हैं, "हमारे पास नदियों के पिछले दशक के पैटर्न का डेटा तक नहीं है, उसके बिना ऐसा कोई कदम असंभव है."
श्रीपद धर्माधिकारी तो नदियों को जोड़ने की योजना को हास्यास्पद बताते हैं. उनके मुताबिक, "ऐसा कोई कदम उन नदियों में भी पानी को खत्म कर देगा, जिनमें फिलहाल जलमार्गों के जरिए यातायात संभव है." वे यह भी कहते हैं, "सरकार के तमाम दावों के बावजूद यह फायदे का सौदा भी नहीं है. सरकार जिस तरह से यातायात का किराया जोड़ रही है, वह गलत है. सड़क मार्ग से सामान ले जाने पर सीधे एक गंतव्य से दूसरे गंतव्य तक पहुंच जाता है. उसे रेलवे तक ले जाने का खर्च भी ज्यादा नहीं होता लेकिन जलमार्ग तक माल ले जाने में ज्यादा खर्च आएगा. जिससे डोर टू डोर सामान ले जाने का खर्च सस्ता नहीं रह जाएगा."
जानकारों का ये डर झूठा भी नहीं लगता. साल 2016 में नेशनल वॉटरवेज एक्ट पास हुआ था और देश में 111 वॉटरवेज होने की बात सरकार की ओर से कही गई थी लेकिन बाद में खुद ही सरकार ने माना कि इनमें से सिर्फ 23 ही इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं. बाकी में से कुछ को टूरिज्म आदि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन इनका औद्योगिक माल की ढुलाई में प्रयोग नहीं हो पा रहा है. इसलिए ज्यादातर जानकार चाहते हैं कि भारत सरकार भारी जहाज चलाने की जिद छोड़कर छोटे नाव वालों और मछुआरों को ध्यान में रखकर योजना बनाए.
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भारतीय सेना की कई महिला अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद स्थायी कमिशन नहीं मिल पाया है. इन महिला अधिकारियों ने अब अपने संघर्ष को और आगे ले जाने का फैसला किया है.
डॉयचे वेले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
भारतीय सेना में 28 महिला अधिकारी ऐसी हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद परमानेंट कमिशन यानी स्थायी सेवा नहीं दी गई. इन महिला अधिकारियों को सेना ने सेवा से मुक्त करने के आदेश भी दे दिए हैं, लेकिन इनमें से कुछ ने अब इस आदेश के खिलाफ सशस्त्र बल अधिकरण में जाने का फैसला लिया है.
क्या होता है स्थायी कमिशन
भारतीय सेना में स्थायी कमिशन का मतलब होता है सेवानिवृत्ति तक सेना में काम करना. इसके लिए पुणे स्थित नेशनल डिफेन्स अकैडमी, देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री अकैडमी या गया सहित ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी में भर्ती होना आवश्यक होता है.
2020 तक महिलाएं अधिकतम 14 साल तक भारतीय सेना में सेवाएं दे सकती थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सेना को महिला अधिकारियों को भी स्थायी सेवा देने का आदेश दिया.
हालांकि कई महिला अधिकारियों का कहना है कि अभी भी उन्हें सेना द्वारा स्थायी सेवा के लिए नहीं चुना जा रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना में करीब 43,000 अधिकारी हैं जिनमें से 1,653 महिलाएं हैं.
अदालत के आदेश का कितना पालन हुआ
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 615 महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा देने पर विचार किया गया, लेकिन इनमें से 277 महिलाओं को चुना गया. अनुत्तीर्ण घोषित की गई महिलाओं ने एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने सेना को फटकार लगाई. फटकार के बाद सेना ने 147 अतिरिक्त महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा दे दी.
इस तरह 615 में से कुल 424 महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा मिल गई. मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सेना को फिर से आदेश दिया कि उन सभी महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा दी जाए जिन्होंने सेना के आंकलन में 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किये हैं, मेडिकल कसौटी पर खरी उत्तरी हैं और जिन्हें अनुशासनिक और विजिलेंस मंजूरी भी मिल चुकी है.
2021 में सेना ने 28 महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा नहीं देने का फैसला किया था. जुलाई में इनको सेवा से मुक्त करने के आदेश भी जारी कर दिए गए, लेकिन इनमें से कई अधिकारियों ने इन आदेशों के खिलाफ सशस्त्र बल अधिकरण में जाने का फैसला किया है.
क्या कहना है महिला अधिकारियों का
कई मीडिया रिपोर्टों में बिना अपना नाम बताए हुए कई महिला अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें पहले पांच साल की और फिर 10 साल की सेवा पूरी होने के बाद अतिरिक्त सेवा के लिए भी चुना गया, लेकिन अब जाकर सेना कह रही है कि पहले पांच साल में उनके प्रदर्शन के आधार पर उन्हें योग्य नहीं पाया गया है.
इन अधिकारियों का कहना है कि सेना ने अपने 'तुच्छ उद्देश्यों की पूर्ती के लिए एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का गलत अर्थ लगाया है'. इन महिला अधिकारियों ने यह भी बताया कि अगर मूल्यांकन गलत लगे तो हर अफसर को उसके खिलाफ अपील करने के लिए 60 दिन दिए जाते हैं, लेकिन इन महिला अधिकारियों को यह मौका नहीं दिया गया.
उन्हें नतीजे आने के 58 दिनों के अंदर सेना छोड़ देने के लिए कहा गया. सेना ने अभी तक इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की है. (dw.com)
केंद्र सरकार कश्मीर की ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टर और नरम दोनों धड़ों पर बैन लगाने पर विचार कर रही है. सवाल उठ रहे हैं कि अगस्त 2019 के बाद से हुर्रियत वैसे ही निष्क्रिय है, तो फिर इस कदम की जरूरत क्या है?
डॉयचे वेले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
मीडिया में आई खबरों में दावा किया जा रहा है कि हुर्रियत के दोनों धड़ों पर यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगाने की तैयारी चल रही है. इस तरह के प्रतिबंध लगाने के बाद सरकारी एजेंसियां ना सिर्फ इन दोनों धड़ों को मिलने वाली आर्थिक मदद रोक पाएंगी, बल्कि उन्हें इनके नेताओं और सदस्यों को गिरफ्तार करने में भी मदद मिलेगी.
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का जन्म नौ मार्च 1993 को हुआ था. उस समय इसके बैनर तले कश्मीर के 26 राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठन साथ आए थे. इनका सभी संगठनों का उद्देश्य था कि कश्मीर को भारत से अलग करने की मांग को आगे बढ़ाया जाए.
खत्म होता वर्चस्व
दशकों तक हुर्रियत के कहने पर आम कश्मीरी कश्मीर को लेकर केंद्र की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आते थे. इस तरह के प्रदर्शन कश्मीर में 2016 तक भी हुआ करते थे. हालांकि बीते दो दशकों में हुर्रियत काफी कमजोर हुई है. 2003 में यह दो अलग अलग धड़ों में बंट गई और अभी तक बंटी हुई है.
एक धड़े का नेतृत्व मीरवाइज उमर फारूक करते हैं, जिन्हें कश्मीरियों के सबसे बड़े आध्यात्मिक नेता के रूप में देखा जाता है. इस धड़े को मॉडरेट या नरमपंथी धड़े के रूप में जाना जाता है. मीरवाइज कश्मीरियों के अपना भविष्य खुद तय करने की अधिकार की मांग को लेकर दिल्ली से बातचीत करने का समर्थन करते हैं.
दूसरे धड़े को हार्डलाइन या कट्टरपंथी धड़ा कहा जाता है. इसका नेतृत्व हाल तक सैयद अली शाह गिलानी करते थे. 2010 में उन्हें उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया था और तब से उनका अधिकांश जीवन नजरबंदी में ही बीता है. जुलाई 2020 में उन्होंने खुद को हुर्रियत से अलग कर लिया था.
क्या होगा असर
इसके अलावा 2018 में केंद्रीय एजेंसियों ने हुर्रियत के कई नेताओं और उनसे जुड़े प्रमुख लोगों के खिलाफ धन शोधन के आरोपों की जांच शुरू की जिसके बाद छापों और गिरफ्तारियों का एक ऐसा सिलसिला चला जो अभी तक जारी है.
पांच अगस्त 2019 को केंद्र ने जम्मू और राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रभावशाली रूप से निष्क्रिय कर दिया और राज्य का दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन कर दिया. इसके बाद कश्मीर की राजनीति में हुर्रियत की भूमिका और भी ज्यादा सिमट गई.
इसलिए कुछ जानकारों का कहना है कि मृत्यु शैय्या पर पड़े इस संगठन पर बैन लगा देने से कुछ विशेष हासिल नहीं होगा. वरिष्ठ पत्रकार जफर इकबाल ने डीडब्ल्यू से कहा कि अव्वल तो अभी इस बारे में केवल अटकलें लग रही हैं और इसे लेकर ना कोई सरकारी अधिसूचना जारी हुई है ना बयान आया है.
फिर पनपेगा आतंकवाद?
इकबाल ने यह भी कहा कि यासीन मालिक, शब्बीर शाह, आसिया अंद्राबी जैसे हुर्रियत के चोटी के नेता पहले से जेल में हैं और गिलानी बहुत बूढ़े हो गए हैं. ऐसे में अगर हुर्रियत पर बैन लगता भी है तो इसका क्या असर होगा यह अभी कहा नहीं जा सकता.
हालांकि कुछ और लोगों की राय इससे अलग है. श्रीनगर में रहने वाले पत्रकार रियाज वानी मानते हैं कि संगठन पर बैन लगा देने के कई दुष्परिणाम हो सकते हैं. उनका कहना है कि बैन लगा देने से केंद्र से नाराज कश्मीरी युवाओं के पास आतंकवाद के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा.
वानी का यह भी अनुमान है कि ऐसा करने से कश्मीरी अलगाववादियों में सरकार से बातचीत करने वाला कोई नहीं बचेगा और ऐसे में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बैठे अलगाववादियों का कश्मीर में हस्तक्षेप बढ़ जाएगा.
यूएपीए की धारा 35 के तहत भारत सरकार संगठनों को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रतिबंधित कर सकती है. इस समय 42 ऐसे संगठन हैं जिन पर ऐसे बैन लागू हैं. इनमें अल कायदा, इस्लामिक स्टेट, लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन, एलटीटीई, बब्बर खालसा, सीपीआई (माओवादी), उल्फा, सिमी जैसे संगठन शामिल हैं. (dw.com)
मां का रिश्ता दुनिया का सबसे बड़ा रिश्ता होता है. इस रिश्ते को हमेशा प्यार से देखा जाता है. मगर एक वीडियो आज सोशल मीडिया वायरल हो रहा है, जिसे देखने के बाद आपको गुस्सा आएगा. वीडियो को देखने के बाद आपको मानवता से विश्वास उठ जाएगा. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि एक वृद्ध महिला की बड़ी बेरहमी से घसीट कर पीटाई की जा रही है. वीडियो महिला ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए भी नज़र आ रही है. वीडियो में जो शख्स महिला की पीटाई कर रहा है, वो महिला का बेटा ही हैं. यूज़र्स इस वीडियो को देखकर बहुत दंग हैं.
ये वीडियो तमिलनाडु के नामक्कल शहर का है. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि एक बेटे ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं. सोशल मीडिया पर बेटे पर बहुत लोग कमेंट कर रहे हैं. दरअसल मामला ये है कि वृद्ध महिला का नाम मालकिन नल्लम्मल है, महिला के पति की मौत के बाद से वह पोन्नेरिपट्टी में अकेले रह रही थीं. महिला अपनी ज़मीन अपने बेटे को बहुत पहले ही दे चुकी हैं, मगर अब बेटा मां की कमाई पर अपना हक जताने की कोशिश कर रहा है.
जब बेटा अपनी मां को मार रहा था तभी महिला का पालतू कुत्ता बचाने आ गया. पालतू कुत्ते का नाम नल्लम्मल है. वीडियो में देख सकते हैं कि कुत्ता अपनी मालकिन को बचाने की पुरजोर कोशिश करता है. कुत्ते की झपट से बेटा मां को घसीटना छोड़ देता है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक बेटे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
लखनऊ, 22 अगस्त | 'उनका नाम कल्याण सिंह रखा गया और उन्होंने अपना पूरा जीवन 'जन कल्याण' के लिए समर्पित कर दिया। वह राजनीति में आस्था और प्रतिबद्धता के पर्याय थे और उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा लोगों के कल्याण के लिए काम करते हुए बिताया।'
इन गंभीर शब्दों के साथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि दी।
प्रधानमंत्री, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ, रविवार को लखनऊ के लिए रवाना हुए और सीधे माल एवेन्यू में दिग्गज नेता के आवास पर गए, जहां उन्होंने पुष्पांजलि अर्पित की और दिवंगत नेता के परिवार के सदस्यों से बात करते हुए लगभग 25 मिनट बिताए।
प्रधानमंत्री बाद में हवाई अड्डे पर वापस चले गए और दिल्ली लौट आए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री की अगवानी की।
इससे पहले सुबह बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती भी पूर्व मुख्यमंत्री के आवास पर पहुंचीं और दिवंगत आत्मा को पुष्पांजलि अर्पित की।
कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर को अब दो घंटे के लिए विधान भवन ले जाया जाएगा जहां विधायक और मंत्री उन्हें श्रद्धांजलि देंगे।
इसके बाद पार्थिव शरीर को भाजपा प्रदेश मुख्यालय ले जाया जाएगा जहां पार्टी कार्यकर्ता दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि देंगे।
बाद में दोपहर में, कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर को अलीगढ़ ले जाया जाएगा, जहां उनके पार्थिव शरीर को स्टेडियम में रखा जाएगा ताकि लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें।
अंतिम संस्कार सोमवार को बुलंदशहर के नरोरा घाट पर होगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पार्थिव शरीर के साथ अलीगढ़ जाएंगे।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अगस्त | स्मार्टफोन नए फोल्डेबल फॉर्म फैक्टर में अग्रणी सैमसंग ने भारत में उबर-प्रीमियम गैलेक्सी जेड फोल्ड3 5जी स्मार्टफोन पेश किया है। आकर्षक, स्टाइलिश डिजाइन के साथ, गैलेक्सी जेड फ्लिप3 5जी एक ऐसा उपकरण है जो उन लोगों के लिए एकदम सही है जो भीड़ से अलग दिखना चाहते हैं और अपने व्यक्तित्व को व्यक्त करना चाहते हैं।
इसके अनूठे कलर विकल्पों (फैंटम ब्लैक, फैंटम ग्रीन और फैंटम सिल्वर) से लेकर इसके परिष्कृत फिनिश तक, स्मार्टफोन के हर पहलू को फैशन-फॉरवर्ड यूजर्स के लिए तैयार किया गया है।
फोल्डेबल स्मार्टफोन पर पहली बार अब आप एस पेन से अपना आइडिया लिख सकते हैं या स्केच बना सकते हैं।
कंपनी ने पहली बार गैलेक्सी जेड सीरीज में आईपीएक्स8 वाटर रेजिस्टेंस दिया गया है, जिससे फोल्डेबल डिवाइस के लिए एक नए युग की शुरूआत हुई है।
जेड फोल्ड3 को 7.6 इंच के इनफिनिटी फ्लेक्स डिस्प्ले है। मेन और कवर स्क्रीन दोनों पर सुपर स्मूथ 120 हट्र्ज अडैप्टिव रिफ्रेश रेट के साथ और भी स्मूथ स्क्रॉलिंग और क्विक डिवाइस इंटरेक्शन का अनुभव करेंगे।
जेड फोल्ड3 की विशाल मेन स्क्रीन पर, उपयोगकतार्ओं के लिए वीडियो कॉल के दौरान नोट्स लिखना या ईमेल पढ़ते समय टू-डू सूची को चेक करना पहले से कहीं अधिक आसान है, और उपयोगकर्ता पेन के साथ अपनी रचनात्मकता और उत्पादकता को भी बढ़ा सकते हैं।
जेड फोल्ड3 के लिए ऐस पेन दो विकल्पों में आता है- ऐस पेन फोल्ड एडिशन और ऐस पेन प्रो - और इसे अलग से खरीदना पड़ता है।
जेड फोल्ड3 की अपडेटेड मल्टी-एक्टिव विंडो के साथ, डिवाइस की बड़ी स्क्रीन पर अपने कैलेंडर की जांच करते समय टेक्स्ट पर डिनर प्लान बनाना और भी आसान हो गया है
जेड फोल्ड3 पर, उपयोगकर्ता एक शॉर्टकट बना सकते हैं और ऐप्स को उसी तरह फिर से खोल सकते हैं जैसे बाद में उन्नत ऐप पेयर के लिए धन्यवाद।
गैलेक्सी जेड फोल्ड3 5जी (12 प्लस 256जीबी ) की कीमत 149,999 रुपये (फैंटम ब्लैक और फैंटम ग्रीन कलर) होगी, वहीं गैलेक्सी जेड फोल्ड3 5जी (12प्लस 512जीबी) की कीमत 157,999 रुपये (फैंटम ब्लैक और फैंटम ग्रीन कलर) होगी।
भारतीय उपभोक्ता गैलेक्सी जेड फोल्ड3 को 142,999 रुपये में और गैलेक्सी जेड फ्लिप3 को 24 अगस्त से 77,999 रुपये में प्री-बुक कर सकते हैं, कुछ शुरूआती ऑफर्स का आनंद उठा सकते हैं।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अगस्त | ओलंपियन फुटबॉलर और फीफा अंतरराष्ट्रीय रेफरी सैयद शाहिद हकीम का रविवार सुबह कर्नाटक के गुलबर्गा के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। हकीम 82 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी और दो बेटियां हैं।
लोकप्रिय रूप से उन्हें हकीम साहब के रूप में जाना जाता है। वह 1960 के ओलंपिक में भारतीय टीम का हिस्सा थे। वह एक फीफा अंतरराष्ट्रीय रेफरी भी थे और दोहा में एएफसी एशियाई कप 1988 में कई मैचों में रेफरी की भूमिका अदा कर चुके थे।
घरेलू स्तर पर, वह 1960 में विजयी सर्विसेज की संतोष ट्रॉफी टीम का हिस्सा थे। वह 1960/66 से टीम का भी हिस्सा थे।
क्लब स्तर पर, वह सिटी कॉलेज ओल्ड बॉयज (हैदराबाद) और भारतीय वायु सेना के लिए खेले।
भारतीय राष्ट्रीय टीम के एक पूर्व सहायक कोच, उन्होंने 1998/99 में महिंद्रा एंड महिंद्रा को भी कोचिंग दी, और 1998 में डूरंड कप जीतने के लिए उसका मार्गदर्शन किया। उन्होंने सालगांवकर एससी, हिंदुस्तान एफसी और बंगाल मुंबई क्लब को भी कोचिंग दी।
उन्हें 2017 में ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने अपने शोक संदेश में कहा, यह सुनकर दुख हुआ कि हकीम साहब नहीं रहे। वह भारतीय फुटबॉल की स्वर्णिम पीढ़ी के सदस्य थे जिन्होंने देश में इस खेल को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय फुटबॉल में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। मैं दुख साझा करता हूं।
एआईएफएफ के महासचिव कुशल दास ने कहा, हाकिम साहब की विरासत जीवित रहेगी। वह एक महान फुटबॉलर थे जो कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा रहे हैं। उनके परिवार के प्रति मेरी संवेदना है। हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अगस्त | दिल्ली में शनिवार तड़के भारी बारिश ने राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को गर्मी से काफी राहत दी, लेकिन कई स्थानों पर जलजमाव और रक्षा बंधन त्योहार ने रविवार को वाहनों की आवाजाही को प्रभावित किया। दिल्ली के कुछ हिस्सों में रविवार को भी हल्की बारिश हुई।
दिल्ली ने शनिवार को कम से कम 13 वर्षों में अगस्त (139 मिमी) में सबसे अधिक एक दिवसीय बारिश दर्ज की, जिसके परिणामस्वरूप शहर के कई हिस्सों में भारी जल जमाव और यातायात बाधित हो गया।
आईएमडी ने रविवार को राष्ट्रीय राजधानी के लिए येलो अलर्ट जारी किया था और दिन के लिए खराब मौसम की भविष्यवाणी की थी।
इस बीच, रक्षा बंधन के कारण कई जगह यातायात बाधित रहा। दिल्ली-नोएडा लिंक रोड, विकास मार्ग, आनंद विहार, नजफगढ़ में फिरनी रोड और कई अन्य क्षेत्रों में भारी यातायात देखा गया, क्योंकि लोग त्योहार पर अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए बड़ी संख्या में निकले थे।
इस बीच, मिंटो ब्रिज, राजघाट, कनॉट प्लेस और आईटीओ जैसे हिस्सों पर भी बारिश के कारण यातायात प्रभावित हुआ।(आईएएनएस)
अयोध्या, 22 अगस्त | विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार अयोध्या में जल्द ही दिल्ली और अयोध्या के बीच एक हाई-स्पीड ट्रेन दौड़ेगी। सुपरफास्ट ट्रेन दिल्ली और पवित्र शहर के बीच यात्रा के समय को केवल तीन घंटे तक कम कर देगी।
राष्ट्रीय हाई स्पीड रेल निगम के कार्यकारी निदेशक अनूप कुमार अग्रवाल ने रेलवे स्टेशन के लिए स्थल को अंतिम रूप देने के लिए पिछले सप्ताह अयोध्या का दौरा किया था।
उन्होंने कहा कि भगवान राम की नगरी को सीधे राष्ट्रीय राजधानी से जोड़ने की योजना है।
एक हवाई सर्वेक्षण किया गया है और योजना को केंद्र द्वारा अनुमोदित भी किया गया है।
अयोध्या से लखनऊ को जोड़ने वाला 130 किमी का रेलवे ट्रैक बिछाया जाएगा, जो आगरा-लखनऊ-इलाहाबाद के रास्ते दिल्ली से वाराणसी को जोड़ने वाले 941.5 किमी हाई-स्पीड रेलवे कॉरिडोर का हिस्सा होगा। अधिकारी ने कहा कि हाई-स्पीड ट्रेन रेलवे कॉरिडोर का एक हिस्सा लखनऊ और आगरा में भूमिगत हो सकता है।
उन्होंने कहा, "एएआई से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलते ही नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन काम शुरू कर देगा। परियोजना को पूरा होने में सात साल लगेंगे।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 22 अगस्त | भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उत्तराखंड में पार्टी नेतृत्व से लोगों से जुड़ने और केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों के बारे में जागरूकता फैलाने को कहा है। नड्डा पार्टी की चुनावी तैयारियों का जायजा लेने के लिए शुक्रवार से दो दिवसीय उत्तराखंड दौरे पर थे।
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि नड्डा ने तीन बुनियादी सूत्र दिए हैं- बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करना, रात्रि प्रवास और चुनाव जीतने के लिए लोगों से संवाद।
पता चला है कि कार्यकर्ताओं के विभिन्न समूहों से फीडबैक लेने के दौरान निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकर्ताओं और लोगों से संपर्क नड्डा के संज्ञान में आया।
पार्टी के एक नेता ने बताया, "नड्डाजी ने कहा कि मुख्यमंत्री, मंत्रियों, पार्टी संगठन और विधायकों से लेकर सभी को मिलकर काम करना होगा। अपने दो दिनों के प्रवास के दौरान उन्होंने सभी को लोगों से संपर्क स्थापित करने और राज्य सरकार और विधायकों के बारे में उनकी राय लेने की सलाह दी।"
नेता के मुताबिक, नड्डा ने कहा कि बार-बार निर्देश देने के बावजूद मंत्रियों, विधायकों और राज्य पदाधिकारियों की पहुंच में निरंतरता नहीं है।
नेता ने कहा, उन्होंने (नड्डा) राज्य इकाई से तीनों कार्यक्रमों की अनुपालन रिपोर्ट तैयार करने को कहा है।
पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा कि नड्डा ने निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते हुए उन्हें अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों के साथ रहने और रहने के लिए कहा।
नड्डाजी ने जोर देकर कहा कि नेताओं को अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों के साथ समय बिताना चाहिए और जमीन पर स्थिति को समझना चाहिए। उन्होंने नेताओं को लोगों की भावनाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए लोगों के साथ रात बिताने की भी सलाह दी।
उन्होंने कहा, पार्टी प्रमुख ने निर्वाचित प्रतिनिधियों से कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं और कार्यों के बारे में जानकारी फैलाएं।(आईएएनएस)
कोलकाता, 22 अगस्त | माकपा ने दिवंगत माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य और पश्चिम बंगाल राज्य महासचिव अनिल बिस्वास की बेटी अजंता विश्वास को उनके लेखों के लिए छह महीने के लिए निलंबित कर दिया है। टीएमसी के मुखपत्र जागो बांग्ला का शीर्षक - 'बोंगो राजनीतित नारीशक्ति' (बंगाल राजनीति में महिला शक्ति) जहां उन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व से लेकर वर्तमान समय तक पश्चिम बंगाल में महिला राजनेताओं के योगदान पर चर्चा की है। कोलकत्ता जिला समिति से अजंता के जवाब वाली एक रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद सीपीआई (एम) की राज्य समिति ने अपने अलीमुद्दीन स्ट्रीट मुख्यालय में शनिवार को यह निर्णय लिया। उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग पार्टी के शिक्षक संघ ने की थी।
रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में इतिहास पढ़ाने वाले बिस्वास ने प्रसिद्ध बंगाली राष्ट्रवादी नेता और अधिवक्ता चित्तरंजन दास की पत्नी बसंती देवी से अपने चार-भाग के लेख में लिखा है, जिनका ममता बनर्जी तक अपने पति के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान था।
उन्होंने ममता बनर्जी के राजनीतिक जीवन के बारे में विस्तार से लिखा और सिंगूर में आंदोलन को 'गण बिखोभ (जन आंदोलन)' कहा, जिससे सियासी पारा चढ़ गया। सीपीएम नेताओं ने माना कि व्यक्त किए गए विचार पार्टी लाइन के अनुरूप नहीं थे।
सीपीएम क्षेत्र समिति ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया। सूत्रों ने कहा कि कारण बताओ नोटिस के जवाब में अजंता ने लेखों के लिए खेद व्यक्त किया, लेकिन पार्टी संतुष्ट नहीं थी।
उन्होंने राज्य में महिला राजनेताओं पर लेखों का बचाव किया था।(आईएएनएस)
नई दिल्ली : काबुल एयरपोर्ट में फंसे 168 यात्रियों को लेकर सी-17 ग्लोबमास्टर विमान भारत सुरक्षित पहुंच चुका है. ये विमान सुबह करीब 10 बजे गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पहुंचा. इन यात्रियों में 24 अफगान सिख भी बताए जाते हैं. साथ ही इनमें दो अफगान सांसद यानी सीनेटर शामिल हैं. इसमें तालिबान के खिलाफ मुखर रहीं सीनेटर अनारकली भी शामिल हैं. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के भारतीय नागरिकों को स्वदेश लाया जा रहा है. कई विदेशी नागरिक भी असुरक्षा के माहौल को देखते हुए भारत आए हैं.
इससे पहले, दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर काबुल से 3 फ्लाइट आई हैं. ये फ्लाइट दोहा, ताजिकिस्तान होते हुए भारत आई हैं. एक फ्लाइट विस्तारा की, दूसरी एयर इंडिया की और तीसरी इंडिगो की है. सभी फ्लाइट सुबह 4:30 से 6 बजे के बीच आई हैं इंडिगो और एयर इंडिया की फ्लाइट के जरिये 250 भारतीय आए हैं.
जानकारी मुताबिक, काबुल से भारत आए सभी यात्रियों का आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया जाएगा. इसके बाद ही एय़रपोर्ट से सभी बाहर आ सकेंगे.
काबुल एयरपोर्ट पर जिस तरह के हालात हैं ऐसे में भारतीय नागरिकों और भारत आने की इच्छा रखने वाले अफगानियों को निकालना मुश्किल काम है. भारत सरकार ने अफगानिस्तान में फंसे अपने लोगों को निकालने की कवायद तेज कर दी है. 168 यात्रियों को लेकर आए विमान से पहले तीन और उड़ानें आज सुबह भारत आ चुकी हैं.
वहीं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने काबुल से निकाले गए भारतीयों के बारे में जानकारी देते हुए एक के बाद एक ट्वीट किए. उन्होंने एक वीडियो क्लिप भी पोस्ट की है, जिसमें काबुल से निकाले गए लोग 'भारत माता की जय' के नारे लगाते हुए दिख रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि लोगों को निकालने की प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी.
आज रक्षाबंधन का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. भाई-बहन के इस त्योहार में प्यार और अपनापन देखा जाता है. आज के दिन भाई अपनी बहन को रक्षा देने के लिए वचन देता है. राखी बंधन का त्योहार अब ग्लोबल हो गया है. देश-विदेश में रह रहे भारतीय इसे धूमधाम से मनाते हैं. इस त्योहार को अब विदेशी भी बहुत शान से मनाते हैं. आज राखी बंधन का त्योहार सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है. सभी लोग एक दूसरे को सोशल मीडिया पर एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं.
इस त्योहार पर अन्य यूजर्स भी बधाई दे रहे हैं.
नई दिल्ली, 21 अगस्त | केंद्र सरकार ने 2030 तक 'शून्य भुखमरी' के लक्ष्य को हासिल करने की तैयारी की है। इसके लिए 'भुखमरी मुक्त पंचायत' और 'भुखमरी मुक्त भारत' अभियान पर सरकार जोर दे रही है। आजादी का अमृत महोत्सव के तहत पंचायती राज मंत्रालय इस सिलसिले में 23 अगस्त को को एक राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित करेगा, जिसमें भारत को 2030 तक भुखमरी मुक्त बनाने पर चर्चा होगी। इस वेबिनार का उद्घाटन पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह करेंगे। दिन भर चलने वाले वेबिनार में भुखमरी से लड़ने में भारत की स्थिति को लेकर चर्चा होगी, साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से भुखमरी को खत्म करने के लिए की दिशा में चलाई गई योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। यह वेबिनार क्षमता निर्माण में मदद करेगी और उन्हें 2030 तक भुखमरी मुक्त पंचायत और इस तरह भुखमरी मुक्त भारत सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय स्तर पर कार्रवाई करने में सक्षम बनाएगी।
सुबह 10:00 बजे से शुरू होने वाले वेबिनार में दुनिया में भुखमरी से लड़ने को लेकर भारत की स्थिति पर चर्चा के अलावा खाद्य उत्पादन और खाद्य सुरक्षा की पर्याप्तता, सतत कृषि उत्पादन, सार्वजनिक वितरण, खाद्य उत्पादन में कमी और प्रसंस्करण हानि, पोषण सुरक्षा एवं 2030 तक शून्य भुखमरी के लक्ष्य की प्राप्ति पर असर डालने वाले तकनीकी समाधानों का लाभ उठाने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी।
विश्व खाद्य कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के प्रतिनिधि, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय तथा भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय जैसे केंद्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधि वेबिनार में मुख्य वक्ता होंगे।
वेबिनार में तीनों स्तरों के पंचायतों के बड़ी संख्या में हिस्सा लेने की उम्मीद है। राज्य और केंद्र शासित क्षेत्रों के पंचायती राज विभागों के अधिकारी वेबिनार में भाग लेंगे क्योंकि कुछ राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के पंचायती राज मंत्रियों के अपने राज्य व केंद्र शासित क्षेत्र का नेतृत्व करने की उम्मीद है।(आईएएनएस)
पटना, 21 अगस्त | अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव पर हमला तेज करते हुए तेजप्रताप यादव ने आरोप लगाया है कि तेजप्रताप यादव ने ऐसे समय में बिहार की जनता को छोड़ दिया है, जब बाढ़ ने राज्य के कई हिस्सों को तबाह कर दिया है और दिल्ली चले गए हैं। इस तरह के आरोप पहले सत्ता पक्ष द्वारा लगाए गए थे, लेकिन अब दो युद्धरत भाइयों के बीच प्रतिद्वंद्विता ने बिहार के एनडीए के नेताओं को एक नया एजेंडा दिया है।
तेजस्वी यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद के साथ पार्टी के मामलों पर चर्चा करने के लिए दिल्ली गए और राजद में चल रही उथल-पुथल, जो तेज प्रताप यादव द्वारा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के खिलाफ बयानों के बाद शुरू हुई।
तेज प्रताप ने कहा, "तेजस्वी यादव बिहार के लोगों को बाढ़ में संघर्ष करने के लिए छोड़ कर दिल्ली चले गए। उनका उनके सलाहकार संजय यादव ने ब्रेनवॉश किया, जिनकी सलाह पर तेजस्वी काम कर रहे हैं। हरियाणा के रहने वाले संजय यादव दिल्ली में एक मॉल बना रहे हैं। हर सदस्य और नेता राजद के लोग उनके बारे में जानते हैं।"
तेज प्रताप ने कई राजद नेताओं की तुलना महाभारत के पात्रों से भी की। उन्होंने दावा किया कि वह खुद पार्टी के कृष्णा हैं। उन्होंने तेजस्वी यादव को अर्जुन नाम भी दिया है।
दिलचस्प बात यह है कि तेज प्रताप जगदानंद सिंह शिशुपाल और संजय यादव को दुर्योधन बता रहे हैं।
तेज प्रताप ने कहा, "जैसे महाभारत में शिशुपाल द्वारा कृष्ण को गाली दी गई थी, वैसे ही मैं जगदानंद के अपशब्दों का शिकार हूं। लोग यह भी जानते हैं कि दुर्योधन कैसे मारा गया था। यह कृष्ण थे जिन्होंने दुर्योधन की जांघों पर हमला करने का सुझाव दिया था।"
इससे पहले तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को कहा था कि तेज प्रताप यादव उनके बड़े भाई हैं लेकिन उन्हें पार्टी के अनुशासन का पालन करना होगा। तेजस्वी ने कहा, "हमारे माता-पिता ने हमें बड़ों का सम्मान करना सिखाया।"
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए तेज प्रताप ने कहा कि जगदानंद सिंह के माता-पिता ने उन्हें ऐसी सलाह नहीं दी, इसलिए वह राजद के गरीब नेताओं को अपमानित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कई नेताओं का कहना है कि पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद पार्टी के हर विकास पर नजर रख रहे हैं।
तेज प्रताप ने कहा, "अगर यह सच है तो लालू प्रसाद कौन सही और कौन गलत में फर्क क्यों नहीं कर रहे हैं। अगर उन्हें पार्टी की चिंता है, तो वह गलत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं। मैं दिल्ली जाऊंगा और उनसे मिलूंगा। लालू प्रसाद द्वारा खुद कार्रवाई करने का समय आ गया है।"
सूत्रों ने बताया है कि तेजस्वी यादव अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव से काफी खफा हैं। तेजस्वी ने कहा कि वह पार्टी की छवि बना रहे हैं और तेज प्रताप इसे कीचड़ में घसीट रहे हैं। तेजस्वी तेज प्रताप यादव के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।(आईएएनएस)
मुंबई, 21 अगस्त | माल या सेवाओं की आपूर्ति के बिना फर्जी बिलों से जुड़े 118 करोड़ रुपये के जीएसटी धोखाधड़ी के मामले में सात कंपनियों के माध्यम से काम करने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। ऑपरेशन को जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय (डीजीजीआई), मुंबई जोनल यूनिट द्वारा अंजाम दिया गया, जिसके कारण मास्टरमाइंड संतोष दोशी को गिरफ्तार किया गया, जो मासूम ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक हैं।
दोशी सात अन्य कंपनियों को भी चलाता / नियंत्रित करता है। जिसमें अमल ओवरसीज, सी-क्लस्टर एक्सपोट्रेड, मेटिकुलस ओवरसीज, एकॉन क्रिस्टलमर्चेंट्स, निनाद ओवरसीज, व्हाइट ओपल एक्सपोट्रेड और पारेस ओवरसीज शामिल हैं।
इनमें से, व्हाइट ओपल एक्सपोट्रेड ने गैर-मौजूद निर्यात के खिलाफ 118 करोड़ रुपये के रिफंड का दावा करने के लिए वास्तव में माल / सेवाओं की आपूर्ति किए बिना फर्जी चालान पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का धोखाधड़ी से लाभ उठाया।
वित्तीय धोखाधड़ी के तौर-तरीकों के बारे में बताते हुए, डीजीजीआई के अधिकारियों ने कहा कि जाली दस्तावेजों का उपयोग करके झारखंड और पश्चिम बंगाल में कई डमी कंपनियां बनाई गईं, जिन्होंने बदले में फर्जी आईटीसी को छत्तीसगढ़ में मध्यस्थ संस्थाओं के रूप में काम करने वाली शेल ट्रेडिंग फर्मों को पारित कर दिया।
इसी तरह की कई नकली इकाइयां मुंबई और पुणे में निर्यात मोचरें के रूप में स्थापित की गईं, जिन्होंने कथित तौर पर छत्तीसगढ़ से नकली निर्यात माल लिया।
जैसा कि यह निकला, निर्यात इकाइयां बिना किसी वास्तविक लेनदेन के पूरी तरह से आईटीसी रिफंड को धोखाधड़ी से प्राप्त करने के उद्देश्य से बनाई गई थीं।
जांच के दौरान, डीजीजीआई के अधिकारियों ने निर्यात या माल ढुलाई में लगे कई प्रमुख व्यक्तियों और अधिकारियों पर छापा मारा और उनके बयान दर्ज किए।
डीजीजीआई ने पाया कि पुणे का निवासी दोशी उपरोक्त सात निर्यात फर्मों का प्रमोटर और ऑपरेटर था और आईटीसी के तहत दावों को भुनाने की सुविधा के लिए निमार्ताओं से लेकर व्यापारियों तक बिचौलियों से लेकर निर्यातकों तक के जटिल, बहुस्तरीय लेनदेन का इस्तेमाल किया।
दोशी, (जिसे पहले मुंबई सीमा शुल्क द्वारा एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया था) को एक निर्दिष्ट अदालत के समक्ष पेश किया गया, जिसने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया। आगे की जांच जारी है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 अगस्त | अफगानिस्तान के स्थानीय मीडिया द्वारा तालिबान द्वारा कई भारतीयों सहित 150 लोगों को पकड़े जाने की खबर के बाद कांग्रेस ने शनिवार को वहां की स्थिति को सबसे खतरनाक बताया और उम्मीद जताई कि नरेंद्र मोदी सरकार अब इस पर ध्यान देगी और सभी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रूप से वापस लाने के लिए निर्णायक कार्रवाई करेगी। एक ट्वीट में, कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, यह सबसे परेशान करने वाला और चिंताजनक है। यही कारण था कि कांग्रेस ने मोदी सरकार से सभी भारतीयों को निकालने और अपनी जिम्मेदारी से न हटने का आग्रह किया है। आशा है कि मोदी सरकार अब संज्ञान लेगी और हमारे सभी नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने के लिए निर्णायक कार्रवाई करेगी।
उनकी टिप्पणी अफगानिस्तान के स्थानीय मीडिया द्वारा रिपोर्ट किए जाने के तुरंत बाद आई कि तालिबान ने शनिवार को काबुल हवाई अड्डे से 150 से अधिक लोगों को पकड़ लिया है, जिनमें ज्यादातर भारतीय हैं।
हालांकि तालिबान के एक अधिकारी ने काबुल हवाईअड्डे के पास विदेशी नागरिकों के अपहरण की खबरों का खंडन किया है, जहां अमेरिका के नेतृत्व में लोगों को निकालने के प्रयासों के बीच अभी भी बड़ी भीड़ मौजूद है।
तालिबान के प्रवक्ता अहमदुल्ला वासेक ने स्थानीय मीडिया एटलालाट्रोज को बताया, अपहरण की खबर अफवाह है। तालिबान सदस्य सभी विदेशी नागरिकों को हवाई अड्डे तक पहुंचने में मदद कर रहे हैं। हम सभी विदेशियों को हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान करने के लिए ²ढ़ हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि तालिबान बल लगभग 150 भारतीय नागरिकों को हवाई अड्डे में सुरक्षित रूप से प्रवेश कराने के लिए जुटे हैं।
15 अगस्त को तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की राजधानी पर कब्जा किए जाने के बाद से हजारों अफगानी देश छोड़ने के लिए काबुल हवाईअड्डे पर पहुंच रहे हैं।
स्थानीय निवासी फरहाद मोहम्मदी ने कहा कि शनिवार सुबह तीन उड़ानों के उड़ान भरने के बाद निकासी उड़ानें जारी हैं।
एयरलिफ्ट प्रक्रिया में मदद के लिए काबुल हवाई अड्डे पर लगभग 5,000 अमेरिकी सैनिकों को तैनात किया गया है।
राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से हवाई अड्डे पर गोलीबारी और भगदड़ में कम से कम 12 लोग मारे गए हैं।
तालिबान द्वारा देश के अधिकांश हिस्सों पर तेजी से कब्जा किए जाने के बाद से अफगानिस्तान में स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
इससे पहले दिन में, काबुल हवाई अड्डे से शनिवार सुबह एक भारतीय वायु सेना (आईएएफ) सी-130जे परिवहन विमान द्वारा अफगानिस्तान से 85 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकाला गया।
तालिबान ने पिछले रविवार को अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा कर लिया और अब वहां सरकार स्थापित करने की प्रक्रिया में है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 21 अगस्त | अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से हालात बेहद बिगड़े हुए हैं, वहीं तालीबानी आतंक के बीच दिल्ली गुरुद्वारा परिसर की ओर से उधर सिखों के अपहरण की घटना का खंडन किया गया है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि, हमारे सभी परिवार सुरक्षित हैं, गुरुद्वारे के अंदर हैं, हालांकि कल कुछ हलचल हुई थी। करीब 300 लोग बिल्कुल सुरक्षित हैं।
हमारे सभी लोग सुरक्षित व किसी के साथ कोई घटनाएं नहीं हुईं, 150 लोगों की बातचीत चल रही है वह गुरुद्वारे परिसर में नहीं थे वह अलग अलग जगह थे। गुरुद्वारे के अंदर और आस पास की जगह पर जो लोग रुके हैं, वह बिल्कुल सुरक्षित हैं। निरंतर मैं उनसे संपर्क में हूं।
दरअसल तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान के लोग बेहद डरे हुए हैं, दूसरी ओर अफगानिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यक परिवार मदद की गुहार लगा रहे हैं।
काबुल एयर पोर्ट पर सैकडों की संख्या में लोग अफगान छोड़ने के लिए इंतजार कर रहें हैं, लेकिन तालिबानियों के कारण सम्भव नहीं हो सका है।
हाल में अफगानिस्तान से आई तस्वीरों ने देश भर के लोगों को विचलित किया है। दिल्ली में रह रहे अफगानिस्तानी नागरिक भी लगातार अपने लोगों की मदद के लिए भारत सरकार से मदद मांग रहे हैं।(आईएएनएस)