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बिहार, 7 जनवरी । बिहार में शनिवार से जाति आधारित सर्वेक्षण शुरू हो रहा है.
राज्य के उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे ऐतिहासिक क़दम बताते हुए बीजेपी पर निशाना साधा है.
तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि इस सर्वे को लेकर बीजेपी डरी हुई है और वे कतई नहीं चाहते थे कि जाति आधारित सर्वेक्षण हो.
तेजस्वी यादव ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "बिहार में बहुत ही ऐतिहासिक काम की शुरुआत आज होने जा रही है. इसका निर्णय बहुत पहले ही हो गया था."
"लालू जी और हम लोगों की पुरानी मांग रही है, जिसे लेकर हम सड़क पर भी उतरे थे. मनमोहन सिंह की सरकार ने जाति आधारित जनगणना कराया भी था, लेकिन भाजपा के लोगों ने इसके डेटा को करप्ट बता दिया."
उन्होंने कहा, "बाद में जब मैं विरोधी दल का नेता था, तो हमने इसका प्रस्ताव रखा था. इसके लिए प्रधानमंत्री जी से भी मिलकर आए थे."
"इस काम में माननीय मुख्यमंत्री जी का भी सहयोग मिला. हम सब भारत सरकार से मांग कर रहे थे कि ये होना चाहिए."
"भाजपा ग़रीब विरोधी है. ये लोग नहीं चाहते थे कि जातिगत जनगणना हो. इन लोगों ने पूरी कोशिश की कि किसी भी प्रकार से सही आंकड़े लोगों के सामने न आ पाए."
तेजस्वी यादव, "लेकिन आज इसकी शुरुआत हो रही है. इसका नाम 'कास्ट बेस्ड सर्वे' दिया गया है. मुख्यमंत्री जी ने इस बारे में विस्तार से बताया है."
"इस सर्वे में जाति के साथ आर्थिक पहलू को भी जोड़ा गया है. इससे हमारे पास सही और साइंटिफिक डेटा आएंगे. इन आंकड़ों के सामने आने पर बजट और कल्याणकारी योजनाएं अच्छे से बनाई जा सकेंगी." /(bbc.com/hindi)
बाराबंकी (उप्र), 7 जनवरी उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने शुक्रवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निशाना साधते हुए कहा कि अब राहुल गांधी को ‘‘माफी मांगो यात्रा’’ भी निकालनी चाहिए।
उन्होंने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर भी तीखा प्रहार करते हुए कहा कि प्रदेश में अब माफियागिरी करना, जमीनों पर कब्जा करना, कट्टा व बम बनाने की फैक्ट्री लगाने जैसा काम नहीं हो पा रहा है इसलिए वह (अखिलेश यादव) ‘‘बिन पानी की मछली की तरह तड़पते दिखाई दे रहे हैं।’’
केशव प्रसाद मौर्य शुक्रवार को यहां जिले के दौरे पर विकासखंड हैदरगढ़ की ग्राम पंचायत सीधियांवा में आयोजित 'ग्राम चौपाल' कार्यक्रम में शामिल हुए और ग्रामीणों की समस्याएं सुनी।
इसके बाद मौर्य ने पत्रकारों से बातचीत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर प्रहार किया और कहा कि 'अब राहुल गांधी को ‘माफी मांगो यात्रा’ भी निकालनी चाहिए।'
हालांकि, उन्होंने इस बारे में अधिक विस्तार से कुछ नहीं कहा।
उल्लेखनीय है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ उत्तर प्रदेश में तीन दिन तक जारी रही, जो मंगलवार दोपहर बाद गाजियाबाद के लोनी बॉर्डर से उत्तर प्रदेश में दाखिल हुई थी। यह यात्रा बागपत से शामली होते हुए बृहस्पतिवार को हरियाणा की ओर रवाना हो गई।
वहीं, मौर्य ने ग्राम पंचायत सिधियांवा में आयोजित ग्राम चौपाल में शिरकत की और अधिकारियों को जरूरी दिशा-निर्देश भी दिए। उन्होंने यहां ग्राम पंचायत भवन का लोकार्पण भी किया।
उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘सपा, बसपा और कांग्रेस ने हमेशा गरीबों की बात की, लेकिन गरीबों के कल्याण के लिए कभी कोई काम नहीं किया। लेकिन आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हर गरीब के लिए काम हो रहा है।’’ (भाषा)
बिहार, 7 जनवरी । बिहार में आज (शनिवार) से जातिगत सर्वेक्षण शुरू हो रहा है जो दो चरणों में पूरा होगा.
बिहार सरकार ने इसी साल दो जून को जातिगत सर्वेक्षण को मंज़ूरी दी थी. इस सर्वेक्षण में 12.7 करोड़ जनसंख्या, 2.58 करोड़ घरों को कवर किया जाएगा जो 31 मई को पूरा होगा.
इसे जातिगत जनगणना नहीं कहा गया है लेकिन इसमें जाति संबंधी जानकारी जुटाई जाएगी.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक जातिगत सर्वेक्षण 38 ज़िलों में कराया जाएगा. इन ज़िलों में 534 ब्लॉक्स और 261 शहरी स्थानीय निकाय हैं.
पहला चरण 21 जनवरी को ख़त्म होगा. इसमें घरों की संख्या की गणना होगी. उसके बाद दूसरे चरण में जाति संबंधी जानकारी इकट्ठा की जाएगी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल 'समाधान यात्रा' निकाल रहे हैं. उन्होंने यात्रा के दौरा शुक्रवार को कहा कि इस सर्वेक्षण में जाति और समुदाय का विस्तृत रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा जिससे उनके विकास में मदद मिलेगी.
उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि इस सर्वेक्षण से सरकार को गरीब लोगों की मदद के लिए वैज्ञानिक तरीक़े से विकास कार्य करने में मदद मिलेगी.
उन्होंने बीजेपी सरकार की गरीबी विरोधी नीतियों की आलोचना की. तेजस्वी ने कहा कि बीजेपी नहीं चाहती कि जनगणना की जाए.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से केंद्र सरकार से राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं. लेकिन केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के लिए पहले ही मना कर चुकी है.
जातिगत जनगणना का मामला पहले भी उठता रहा है लेकिन जानकारों का कहना है कि यूपीए हो या एनडीए सरकार दोनों ही इसके पक्ष में नज़र नहीं आई हैं.
राष्ट्रीय दल विपक्ष में आने पर इसकी मांग करते हैं लेकिन सत्ता में आने पर जाति आधारिक आंकड़ा जारी करने से हिचकिचाते हैं. सरकारों को सबसे ज़्यादा समस्या ओबीसी आबादी के आंकड़ों को प्रकाशित करने में होती है.
जातिगत जनगणना का इतिहास
साल 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी. साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया.
साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.
इसी बीच साल 1990 में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, की एक सिफ़ारिश को लागू किया था.
ये सिफारिश अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की थी. इस फ़ैसले ने भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया.
जानकारों का मानना है कि भारत में ओबीसी आबादी कितनी प्रतिशत है, इसका कोई ठोस प्रमाण फ़िलहाल नहीं है.
मंडल कमीशन के आँकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है. हालाँकि, मंडल कमीशन ने साल 1931 की जनगणना को ही आधार माना था.
इसके अलावा अलग-अलग राजनीतिक पार्टियाँ अपने चुनावी सर्वे और अनुमान के आधार पर इस आँकड़े को कभी थोड़ा कम कभी थोड़ा ज़्यादा करके आँकती आई है.
लेकिन केंद्र सरकार जाति के आधार पर कई नीतियाँ तैयार करती है. ताज़ा उदाहरण नीट परीक्षा का ही है, जिसके ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने की बात मोदी सरकार ने कही है.
सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के प्रोफ़ेसर और राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार ने बीबीसी संवाददाता सरोज सिंह से कहा, "जनगणना में आदिवासी और दलितों के बारे में पूछा जाता है, बस ग़ैर दलित और ग़ैर आदिवासियों की जाति नहीं पूछी जाती है. इस वजह से आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के हिसाब से जिन लोगों के लिए सरकार नीतियाँ बनाती है, उससे पहले सरकार को ये पता होना चाहिए कि आख़िर उनकी जनसंख्या कितनी है. जातिगत जनगणना के अभाव में ये पता लगाना मुश्किल है कि सरकार की नीति और योजनाओं का लाभ सही जाति तक ठीक से पहुँच भी रहा है या नहीं."
कब-कब किस पार्टी ने उठाई माँग?
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में दिए जवाब में कहा था कि फ़िलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है. पिछली बार की तरह ही इस बार भी एससी और एसटी को ही जनगणना में शामिल किया गया है.
आज भले ही बीजेपी संसद में इस तरह के जातिगत जनगणना पर अपनी राय कुछ और रख रही हो, लेकिन 10 साल पहले जब बीजेपी विपक्ष में थी, तब उसके नेता ख़ुद इसकी माँग करते थे.
बीजेपी के नेता, गोपीनाथ मुंडे ने संसद में 2011 की जनगणना से ठीक पहले 2010 में संसद में कहा था, "अगर इस बार भी जनगणना में हम ओबीसी की जनगणना नहीं करेंगे, तो ओबीसी को सामाजिक न्याय देने के लिए और 10 साल लग जाएँगे. हम उन पर अन्याय करेंगे."
इतना ही नहीं, पिछली सरकार में जब राजनाथ सिंह गृह मंत्री थे, उस वक़्त 2021 की जनगणना की तैयारियों का जायज़ा लेते समय 2018 में एक प्रेस विज्ञप्ति में सरकार ने माना था कि ओबीसी पर डेटा नई जनगणना में एकत्रित किया जाएगा.
लेकिन अब सरकार अपने पिछले वादे से संसद में ही मुकर गई है.
दूसरी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की बात करें, तो 2011 में SECC यानी सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस आधारित डेटा जुटाया था. चार हज़ार करोड़ से ज़्यादा रुपए ख़र्च किए गए और ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गई.
साल 2016 में जाति को छोड़ कर SECC के सभी आँकड़े प्रकाशित हुए. लेकिन जातिगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हुए. जाति का डेटा सामाजिक कल्याण मंत्रालय को सौंप दिया गया, जिसके बाद एक एक्सपर्ट ग्रुप बना, लेकिन उसके बाद आँकड़ों का क्या हुआ, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है.
माना जाता है कि SECC 2011 में जाति आधारित डेटा जुटाने का फ़ैसला तब की यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के दबाव में ही लिया था.
सीएसडीएस के प्रोफ़ेसर और राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार कहते हैं कि देश की ज़्यादातर क्षेत्रीय पार्टियाँ जातिगत जनगणना के समर्थन में है, ऐसा इसलिए क्योंकि उनका जनाधार ही ओबीसी पर आधारित है. इसका समर्थन करने से सामाजिक न्याय का उनका जो प्लेटफ़ॉर्म है, उस पर पार्टियों को मज़बूती दिखती है.
लेकिन राष्ट्रीय पार्टियाँ सत्ता में रहने पर कुछ और विपक्ष में रहने पर कुछ और ही कहती हैं.
विपक्ष में आने के बाद कांग्रेस ने भी 2018 में जाति आधारित डेटा प्रकाशित करने के लिए आवाज़ उठाई थी. लेकिन उन्हें सफ़लता नहीं मिली.
जातिगत जनगणना से क्यों डरती है सरकार?
ऐसे में सवाल उठता है कि सत्ता में आते ही पार्टियाँ इस तरह की जनगणना के ख़िलाफ़ क्यों हो जाती है?
संजय कुमार कहते हैं, मान लीजिए जातिगत जनगणना होती है तो अब तक की जानकारी में जो आँकड़े हैं, वो ऊपर नीचे होने की पूरी संभावना है. मान लीजिए ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत से घट कर 40 फ़ीसदी रह जाती है, तो हो सकता है कि राजनीतिक पार्टियों के ओबीसी नेता एकजुट हो कर कहें कि ये आँकड़े सही नहीं है. और मान लीजिए इनका प्रतिशत बढ़ कर 60 हो गया, तो कहा जा सकता है कि और आरक्षण चाहिए. सरकारें शायद इस बात से डरती हैं.
चूँकि आदिवासियों और दलितों के आकलन में फ़ेरबदल होगा नहीं, क्योंकि वो हर जनगणना में गिने जाते ही हैं, ऐसे में जातिगत जनगणना में प्रतिशत में बढ़ने घटने की गुंज़ाइश अपर कास्ट और ओबीसी के लिए ही है.
प्रोफ़ेसर संजय कुमार ये भी कहते हैं कि जिस तरह से हाल के दिनों में मोदी सरकार ओबीसी पर मुखर हुई है, केंद्र सरकार आने वाले दिनों में जातिगत जनगणना पर पहल कर भी सकती है.
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण ने बीबीसी संवाददाता सरोज सिंह से कहा, "अंग्रेज़ों की ओर से जनगणना लागू करने के पहले, जाति व्यवस्था लचीली और गतिशील थी. लेकिन अंग्रेज़ जब जातिगत जनगणना लेकर आए, तो सब कुछ रिकॉर्ड में दर्ज हो गया, इसके बाद से जाति व्यवस्था जटिल हो गई."
"जनगणना अपने आप में बहुत ही जटिल कार्य है. जनगणना में कोई भी चीज़ जब दर्ज हो जाती है, तो उससे एक राजनीति भी जन्म लेती है, विकास के नए आयाम भी उससे निर्धारित होते हैं. इस वजह से कोई भी सरकार उस पर बहुत सोच समझ कर ही काम करती है. एक तरह से देखें तो जनगणना से ही जातिगत राजनीति की शुरुआत होती है. उसके बाद ही लोग जाति से ख़ुद को जोड़ कर देखने लगे, जाति के आधार पर पार्टियाँ और एसोसिएशन बनने लगे."
लेकिन 1931 के बाद से जातिगत जनगणना नहीं हुई बावजूद इसके भी तो जाति के नाम पर राजनीति अब भी हो रही है. तो फिर जाति के आधार पर जनगणना होने से क्या बदल जाएगा?
इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर बद्री नारायण कहते हैं, "अभी जो राजनीति होती है, उसका ठोस आधार नहीं है, उसे चुनौती दी जा सकती है, लेकिन एक बार जनगणना में वो दर्ज हो जाएगा, तो सब कुछ ठोस रूप ले लेगा. कहा जाता है, 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'.''
''अगर संख्या एक बार पता चल जाए और उस हिसाब से हिस्सेदारी दी जाने लगे, तो कम संख्या वालों का क्या होगा? उनके बारे में कौन सोचेगा? इस तरह के कई सवाल भी खड़े होंगे. ओबीसी और दलितों में ही बहुत सारी छोटी जातियाँ हैं, उनका कौन ध्यान रखेगा? बड़ी संख्या वाली जातियाँ आकर माँगेंगी कि 27 प्रतिशत के अंदर हमें 5 फ़ीसदी आरक्षण दे दो, तो बाक़ियों का क्या होगा? ये जातिगत जनगणना का एक नकारात्मक पहलू है. लेकिन एक सकारात्मक पहलू ये भी है कि इससे लोगों के लिए नीतियाँ और योजनाएँ तैयार करने में मदद मिलती है."
एक दूसरा डर भी है. ओबीसी की लिस्ट केंद्र की अलग है और कुछ राज्यों में अलग लिस्ट है. कुछ जातियाँ ऐसी हैं जिनकी राज्यों में गिनती ओबीसी में होती है, लेकिन केंद्र की लिस्ट में उनकी गिनती ओबीसी में नहीं होती.
बिहार में बनिया ओबीसी हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में वो अपर कास्ट में आते हैं. वैसे ही जाटों का हाल है. हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों पर भी ओबीसी लिस्ट अलग है. ऐसे में जातिगत जनगणना हुई तो आगे और बवाल बढ़ सकता है. केंद्र की सरकारों को एक डर इसका भी है. (bbc.com/hindi)
चाईबासा, 7 जनवरी झारखंड के चाईबासा जिले के गोइलकेरा थाने के आराहासा गांव स्थित केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 60वीं बटालियन के शिविर में तैनात जवान अमित कुमार सिंह ने अपनी एके-47 राइफल से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।
सीआरपीएफ की 60वीं बटालियन के कमांडेंट आनंद जेराई ने घटना की पुष्टि करते हुए आत्महत्या का कारण पारिवारिक विवाद बताया है।
उन्होंने बताया कि बृहस्पतिवार रात संतरी ड्यूटी पर तैनात जवान अमित कुमार ने पहले हवा में सात गोलियां चलाईं और फिर आठवीं गोली खुद को मारकर आत्महत्या कर ली।
अधिकारी ने बताया कि गोली चलने की आवाज सुनने के बाद साथी जवान बाहर निकले तो अमित खून से लथपथ जमीन पर पड़ा हुआ था। आनन-फानन में उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया।
घटना की जानकारी मृतक जवान के परिवार को दे दी गई है। जवान मूल रूप से जम्मू के डोगरा थाना के लोसो पड़वा गांव का रहने वाला था। (भाषा)
नयी दिल्ली, 7 जनवरी भारत में शनिवार को कोविड-19 के 214 नए मामले दर्ज किए गए, जबकि उपचाराधीन रोगियों की संख्या मामूली रूप से बढ़कर 2,509 हो गई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के शनिवार सुबह आठ बजे के आंकड़े के अनुसार नए मामलों के साथ संक्रमितों की संख्या बढ़कर 4.46 करोड़ हो गई है।
मंत्रालय के अनुसार, संक्रमण से चार और मरीजों की मृत्यु होने से मृतक संख्या बढ़कर 5,30,718 हो गई है। इसमें दो मरीज केरल से हैं जिनकी कोविड-19 से मृत्यु की पुष्टि के बाद इसे आंकड़े में शामिल किया गया है। इसके अलावा पिछले 24 घंटे में एक मरीज की मृत्यु महाराष्ट्र में और एक व्यक्ति की मौत उत्तर प्रदेश में हुई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर कहा गया कि दैनिक संक्रमण दर 0.11 प्रतिशत दर्ज की गई और साप्ताहिक संक्रमण दर 0.12 प्रतिशत है।
मंत्रालय ने बताया कि उपचाराधीन मामले कुल संक्रमितों का 0.01 प्रतिशत हैं जबकि कोविड-19 से ठीक होने की राष्ट्रीय दर बढ़कर 98.80 प्रतिशत हो गई है।
पिछले 24 घंटे में कोविड-19 के उपचाराधीन मामलों की संख्या में छह का इजाफा हुआ है।
बीमारी से ठीक होने वालों की संख्या बढ़कर 4,41,46,534 हो गई है। मृत्यु दर 1.19 प्रतिशत दर्ज की गई है।
मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत देश में कोविड-19 रोधी टीके की अब तक 220.13 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं।
गौरतलब है कि भारत में सात अगस्त 2020 को कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 20 लाख, 23 अगस्त 2020 को 30 लाख और पांच सितंबर 2020 को 40 लाख से अधिक हो गई थी। संक्रमण के कुल मामले 16 सितंबर 2020 को 50 लाख, 28 सितंबर 2020 को 60 लाख, 11 अक्टूबर 2020 को 70 लाख, 29 अक्टूबर 2020 को 80 लाख और 20 नवंबर को 90 लाख के पार चले गए थे।
देश में 19 दिसंबर 2020 को ये मामले एक करोड़ से अधिक हो गए थे। पिछले साल चार मई को संक्रमितों की संख्या दो करोड़ और 23 जून 2021 को तीन करोड़ के पार पहुंच गई थी। इस साल 25 जनवरी को संक्रमण के कुल मामले चार करोड़ के पार हो गए थे। (भाषा)
मुजफ्फरनगर, 7 जनवरी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के छपर थाना क्षेत्र में एक बंद कार से 37 वर्षीय एक व्यक्ति का शव बरामद हुआ है।
पुलिस क्षेत्राधिकारी यतेंद्र सिंह नागर ने बताया, “छपर थाना क्षेत्र में एक गांव के पास खड़ी एक कार में मोहन (37) नाम के व्यक्ति का शव मिला। मृतक की शिनाख्त बटुए में मिले आधार कार्ड के आधार पर की गई। वह हरियाणा के सोनीपत जिले का रहने वाला है।”
नागर के मुताबिक, शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। उन्होंने कहा कि मोहन के परिजनों ने बताया है कि वह तीन दिन से लापता था। पुलिस मामले की जांच कर रही है। (भाषा)
फिरोजाबाद, 7 जनवरी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद थाना क्षेत्र में एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा पांच साल के लड़के का अपहरण किए जाने की जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने टीमें गठित कर चंद घंटों के भीतर बालक को सकुशल बरामद कर लिया।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि बच्चे को अगवा करने वाले युवक ने पूछताछ में कबूल किया है कि दो बेटियों के जन्म के बाद पत्नी की बेटे की चाह को पूरा करने के लिए उसने इस घटना को अंजाम दिया था।
अपर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) रणविजय सिंह के मुताबिक, शिकोहाबाद थाना क्षेत्र के रॉयल गार्डन स्टेशन रोड निवासी सनी राम का बेटा विकास बृहस्पतिवार शाम अपने घर के बाहर खेल रहा था। उन्होंने बताया कि विकास खेलते-खेलते सड़क पर आ गया और तभी वहां से गुजर रहे युवक ने उसे उठा लिया और अपने साथ ले गया।
सिंह के अनुसार, काफी देर बाद जब विकास घर नहीं लौटा तो परिजनों ने पुलिस को सूचना दी। उन्होंने बताया कि परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज कर बच्चे की तलाश के लिए टीमें गठित कीं और शुक्रवार को उसे सकुशल बरामद कर लिया।
सिंह के मुताबिक, बच्चे को अगवा कर ले जाने वाले युवक ने पूछताछ में अपना नाम आकाश बताया है। वह आगरा के जैतपुर बाह का रहने वाला है।
सिंह के अनुसार, आरोपी ने पुलिस को बताया है कि उसकी दो बेटियां हैं और पत्नी की बेटे की चाह को पूरा करने के लिए उसने इस घटना को अंजाम दिया। पुलिस ने आकाश को गिरफ्तार कर लिया है। (भाषा)
नयी दिल्ली, 7 जनवरी दिल्ली पुलिस ने एअर इंडिया की उड़ान में महिला सहयात्री पर कथित तौर पर पेशाब करने वाले व्यक्ति को बेंगलुरु से गिरफ्तार कर लिया है। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
आरोपी शंकर मिश्रा ने पिछले साल 26 नवंबर को न्यूयॉर्क से दिल्ली आ रही एअर इंडिया की एक उड़ान की बिजनेस क्लास में नशे की हालत में एक बुजुर्ग महिला पर कथित तौर पर पेशाब कर दिया था।
दिल्ली पुलिस ने महिला द्वारा एअर इंडिया को दी गई शिकायत के आधार पर चार जनवरी को मिश्रा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।
पुलिस उपायुक्त (हवाई अड्डा) रवि कुमार सिंह ने कहा, ‘‘दिल्ली पुलिस के एक दल ने आईजीआईए मामले में आरोपी शंकर मिश्रा को बेंगलुरु से गिरफ्तार कर लिया है। उसे दिल्ली लाया गया है और मामले में जांच की जा रही है।’’
बेंगलुरु पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि आरोपी बेंगलुरु के संजय नगर में अपनी बहन के घर रह रहा था और बेंगलुरु पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने में दिल्ली पुलिस की मदद की।
प्राथमिकी के अनुसार, 26 नवंबर को एआई-102 विमान में भोजन परोसे जाने के बाद जब बत्तियां बंद की गईं तो ‘बिजनेस क्लास’ में 8ए सीट पर बैठा नशे में धुत एक पुरुष यात्री, एक बुजुर्ग महिला की सीट के पास गया और उन पर पेशाब कर दिया।
पीड़ित महिला की शिकायत के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 294, 354, 509, 510 और विमान कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है।
सूत्रों के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने न्यूयॉर्क-दिल्ली उड़ान के पायलट और सह-पायलट समेत एअर इंडिया के कर्मियों को शनिवार को पेश होने के लिए कहा है। उन्होंने बताया कि कर्मियों को शुक्रवार के दिन पेश होने के लिए समन जारी किया गया था लेकिन वे पुलिस के समक्ष पेश नहीं हुए।
दिल्ली पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार, आरोपी ने महिला से उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज न कराने की मिन्नतें करते हुए कहा कि वह पारिवारिक व्यक्ति है और वह नहीं चाहता कि उसकी पत्नी तथा बच्चों पर इस घटना का असर पड़े।
आरोपी को देश छोड़कर जाने से रोकने के लिए उसके खिलाफ एक लुकआउट सर्कुलर जारी किया गया था। (भाषा)
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे वहां विवादित मुद्दे गरम हो रहे हैं. जैसे हाल ही में कथित 'लव जिहाद' के खिलाफ हेल्पलाइन शुरू की गई.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
इस साल भारत के दस राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन दस राज्यों में कुछ राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं, जबकि कुछ में कांग्रेस और कुछ राज्यों में अन्य दलों की सरकारें हैं. इस साल कर्नाटक, त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान, तेलंगाना और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. बीजेपी चाहती है कि वह उन राज्यों में सत्ता विरोधी लहर से पार पा ले और जहां उसकी सरकार नहीं वहां जीत दर्ज कर सत्ता पर काबिज हो जाए.
बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश और कर्नाटक ऐसे दो अहम राज्य हैं जहां उसे अपनी सरकार बचाने की बड़ी चुनौती है. इस साल जहां विधानसभा चुनाव होने हैं वहां के राज्यों की बात की जाए तो सबसे ज्यादा चर्चा के केंद्र में कर्नाटक है. बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठनों पर हिंदू-मुसलमान की राजनीति करने के आरोप लग रहे हैं. कर्नाटक में पहले से ही हिजाब और हलाल जैसे मुद्दे काफी गरम रहे.
"लव जिहाद हेल्पलाइन"
हाल ही में दिल्ली में श्रद्धा वॉल्कर नाम की लड़की की हत्या का आरोप उसके लिवइन पार्टनर आफताब पूनावाला पर लगा था. आफताब पर आरोप है कि उसने श्रद्धा की हत्या की और उसके शव के 36 टुकड़े किए और उसे जंगल में फेंक दिया. अब कर्नाटक बीजेपी, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने राज्य में कथित लव जिहाद का मुद्दा उठा रहे हैं.
बजरंग दल और वीएचपी ने मैंगलोर में कथित लव जिहाद के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए एक हेल्पलाइन शुरू की है. वीएचपी नेता शरण पंपवेल ने कहा कि हेल्पलाइन इसलिए शुरू की गई है ताकि दक्षिण कन्नड़ में किसी भी महिला का हश्र श्रद्धा वॉल्कर जैसा न हो.
मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि इन दो दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े 20 से अधिक लोग, लोगों की शिकायतों को दूर करने और कानूनी और चिकित्सा सहायता समेत सभी तरह की मदद देने के लिए काम कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि ऐसे मामलों का विवरण गोपनीय रखा जाएगा और पहचान उजागर नहीं की जाएगी.
हेल्पलाइन के बारे में मीडिया से बात करते हुए मैंगलोर के पुलिस कमिश्नर शशि कुमार ने कहा, "राज्य भर में 112 हेल्पलाइन है और अगर कोई समस्या आती है तो लोग उस नंबर पर कॉल कर सकते हैं. लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए पर्याप्त स्टाफ है. अब तक हमें लव जिहाद के संबंध में किसी भी हिंदू संगठन द्वारा बताया कोई मामला नहीं मिला है."
विभाजन की राजनीति
हाल ही में कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतील ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में लोग सड़क, नाली और अन्य छोटे-छोटे मुद्दों पर बात न करें, "लव जिहाद" रोकने के लिए बीजेपी की जरूरत है.
2 जनवरी को राज्य के मैंगलोर शहर के निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार करने के लिए आयोजित ‘बूथ विजय अभियान' की शुरुआत पर बोलते हुए कतील ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे कई हिंदू कार्यकर्ताओं की जान बचाने में मदद मिली है.
बीजेपी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए आगे उन्होंने कहा, "अगर आप अपने बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित हैं, और यदि आप लव जिहाद को रोकना चाहते हैं, तो हमें भारतीय जनता पार्टी की आवश्यकता है. लव जिहाद से छुटकारा पाने के लिए हमें भारतीय जनता पार्टी की जरूरत है."
अन्य मुद्दों पर भारी धार्मिक ध्रुवीकरण
कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख डीके शिवकुमार ने कतील के लव जिहाद वाले बयान पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि भाजपा नेता ने सबसे खराब बयान दिया और आरोप लगाया कि वे देश को विभाजित कर रहे हैं. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, "वे विकास नहीं देख रहे हैं, वे नफरत देख रहे हैं और देश को बांट रहे हैं. वे केवल भावनाओं की बात कर रहे हैं. हम लोगों से विकास की बात कर रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनका पेट भरा रहे. हम रोजगार सृजन चाहते हैं और हम लोगों के दैनिक जीवन के बारे में चिंतित हैं."
कर्नाटक विधान परिषद में विपक्ष के नेता बीके हरिप्रसाद ने कतील पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा, "नलिन कुमार कतील ने अपने जीवनकाल में एक बार सच कहा है. भाजपा ने विकास के नाम पर कुछ नहीं किया, जब वे जनता के लिए विकास करने में विफल रहते हैं तो वे सांप्रदायिक मुद्दों की ओर मुड़ जाते हैं."
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी में नंबर दो पर गिने जाने वाले अमित शाह ने राज्य का दौरा किया था और उन्होंने कहा था कि कर्नाटक के लोगों के लिए विधानसभा चुनाव अयोध्या और बद्रीनाथ जैसे हिंदू पूजा स्थलों को विकसित करने वालों और टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के बीच चुनने का एक विकल्प है. (dw.com)
सरकार का कहना है कि पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित 50 ऐतिहासिक स्मारक गायब हो गए हैं. आखिर कैसे गायब हो गए स्मारक?
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
संस्कृति मंत्रालय ने हाल ही में संसद की एक समिति को बताया कि पूरे देश में पुरातत्व विभाग (एएसआई) द्वारा संरक्षित 3,693 ऐतिहासिक स्मारकों में से 50 गायब हो गए हैं. सवाल लाजमी है कि स्मारक गायब कैसे हो सकते हैं? आखिर क्या मतलब है स्मारकों के गायब होने का?
जवाब मंत्रालय द्वारा दी गई विस्तृत जानकारी में है. मंत्रालय के मुताबिक इन 50 स्मारकों में से 14 शहरीकरण की भेंट चढ़ गए, 12 जलाशयों/बांधों के नीचे डूब गए और 24 का पता नहीं लग पा रहा है.
92 स्मारक थे लापता, 42 मिले
मंत्रालय का कहना है कि इस विषय पर पिछले 10 सालों में दरअसल कुछ सुधार हुआ है. 2013 में सीएजी ने एक रिपोर्ट दी थी जिसके मुताबिक उस समय देश में 92 स्मारक "लापता" थे. उसके बाद इन स्मारकों का पता लगाने की कई कोशिशें की गईं जिनकी वजह से कुछ का पता लगाया जा सका.
इन 92 स्मारकों में से 42 का पता लगा लिया गया है और बाकी 50 अलग अलग कारणों से खो गए. इन 50 में से जिन 24 स्मारकों का बिल्कुल पता नहीं चल पा रहा है उनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बीचोबीच स्थित बाराखंबा कब्रिस्तान और 'इंचला वाली गुमटी' भी शामिल हैं.
इनमें कुछ प्राचीन मंदिर, शैल शिलालेख और पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में एक किले के खंडहर भी शामिल हैं. लेकिन मंत्रालय ने 2013 के बाद यह मालूम करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है कि जो कुल 3,693 स्मारकें एएसआई द्वारा संरक्षित हैं वो सभी सुरक्षित हैं या नहीं.
संसदीय समिति ने भी इस बात पर चिंता जताई है और अनुशंसा की है कि एएसआई तुरंत इस दिशा में कदम उठाए. एएसआई के पास संसाधनों की कमी होना इन स्मारकों के गायब हो जाने के बड़े कारणों में से एक है.
संसाधनों की कमी
सभी संरक्षित स्मारकों की निगरानी के लिए करीब 7,000 सुरक्षाकर्मियों की जरूरत है, लेकिन बजट की कमी की वजह से विभाग सिर्फ 2,578 सुरक्षाकर्मी तैनात कर पाया.
और ये सुरक्षाकर्मी भी कुल 3,693 स्मारकों में से सिर्फ 248 (6.7 प्रतिशत) पर तैनात हैं. अगर स्मारकों पर पर्याप्त सुरक्षा नहीं होगी तो उनका संरक्षण कैसे हो पाएगा, यह स्मारकों के भविष्य के लिए एक बड़ा सवाल है.
सरकार ने 2022-23 में संरक्षित स्मारकों के रखरखाव के लिए एएसआई को सिर्फ 3.33 करोड़ रुपए दिए थे. समिति ने सरकार से कहा है कि यह धनराशि बेहद अपर्याप्त है और इस काम के लिए आबंटन को बढ़ाया जाए.
इसके अलावा स्मारक अटेंडेंट के पद पर 2,500 लोगों की भर्ती लंबित है. इस वजह से भी इमारतों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है. समिति ने रिक्त पदों को जल्द भरने के लिए भी कहा है. (dw.com)
दिल्ली में 10 से भी कम परिवारों वाला एक छोटा यहूदी समुदाय बसा हुआ है. इनके धार्मिक गुरु इजिकेल आइजेक मालेकर समुदाय के लोगों को एक साथ लाने और यहूदी परंपराओं को संरक्षित करने का काम कर रहे हैं.
डॉयचे वैले पर तनिका गोडबोले की रिपोर्ट-
दिसंबर की एक सर्द रात में कुछ लोग नई दिल्ली के हुमायूं रोड पर स्थित जुडा हाइम सिनेगॉग (यहूदियों के प्रार्थना स्थल) में हनुक्का मनाने के लिए इकट्ठा हुए. इनमें भारत में रहने वाले यहूदी, अमेरिका से आने वाले कुछ यहूदी परिवारों के साथ-साथ अलग-अलग धर्मों के कई अन्य लोग भी शामिल हुए.
हनुक्का यहूदियों के प्रमुख त्योहारों में से है, जिसे फेस्टिवल ऑफ लाइट्स के नाम से भी जाना जाता है. जिस तरह हिंदू धर्म के लोग दीवाली में दीया जलाते हैं उसी तरह यहूदी हनुक्का के दौरान कैंडल जलाते हैं. इस्राएल सहित दुनिया भर के यहूदी आठ दिनों तक इस त्योहार को मनाते हैं.
न्यूयॉर्क में रहने वाली यहूदी महिला रेचेल कुछ साल पहले पढ़ाई से जुड़े काम के सिलसिले में भारत आयी थी. उस दौरान वह जुडा हाइम सिनेगॉग गई थी. वह इस बार हनुक्का के मौके पर भी यहां मौजूद थी.
उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "अभी मैं अपने दो बच्चों के साथ छुट्टियां मनाने यहां आयी हूं. हनुक्का होने की वजह से मुझे लगा कि इस मौके पर अपने बच्चों को भी यहां लाना अच्छा रहेगा. इसलिए, मैं उन्हें यहां लेकर आयी.” इस कार्यक्रम में सरकारी अधिकारियों सहित सुप्रीम कोर्ट के कई वकील भी शामिल हुए और उन्होंने कैंडल जलाई.
इस मौके पर प्रार्थना शुरू होने से पहले रब्बी इजिकेल आइजेक मालेकर ने उपस्थित समूह से कहा, "भारत उन देशों में से है जहां यहूदियों को कभी नहीं सताया गया. इसलिए, मैं हमेशा कहता हूं कि पहले मैं भारतीय हूं और बाद में यहूदी.”
कौन हैं भारत के यहूदी?
भारत के यहूदी समुदाय को मुख्य तौर पर पश्चिमी भारत के बेने इस्राएली, पश्चिम बंगाल के बगदादी यहूदी और केरल के कोचीन यहूदी के तौर पर विभाजित किया जा सकता है. इसके अलावा, पूर्वोत्तर भारत के बेनेई मेनाशे यहूदी और आंध्र प्रदेश के बेने एफ्रैम भी यहूदी ही हैं.
बेने एफ्रैम को तेलुगु यहूदी भी कहा जाता है, क्योंकि ये लोग तेलुगु भाषा बोलते हैं. वहीं, भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर और मिजोरम में रहने वाले बेनेई मेनाशे समुदाय के लोगों का मानना है कि उनके पूर्वज इस्राएल के हैं.
मालेकर ने कहा, "भारत में रहने वाले यहूदी समुदाय के लोग पूरी तरह स्थानीय संस्कृति, रीति-रिवाजों, परंपराओं, पहनावे और भाषा को अपना चुके हैं. वे अकसर अपने कस्बों और गांव के नाम के हिसाब से उपनाम का चुनाव करते हैं.”
1940 के दशक में भारत में यहूदियों की आबादी करीब 50 हजार थी, लेकिन बाद के वर्षों में कई यहूदी इस्राएल, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में चले गए. अनुमान के मुताबिक, भारत में अब सिर्फ 6,000 यहूदी रह रहे हैं.
हालांकि, एक छोटा समुदाय होने के बावजूद भारत के समाज और संस्कृति को बेहतर बनाने में यहूदियों का महत्वपूर्ण योगदान है. 1800 के दशक में यहूदी समुदाय के डेविड सैसून एक जाने-माने कारोबारी और समाजसेवी थे.
वहीं, 1924 में जन्मे जे.एफ.आर. जैकब ने भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा की और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
यहूदी परंपराओं को बचाए रखने की कोशिश
नई दिल्ली में यहूदी समुदाय के 10 से भी कम परिवार रहते हैं. इनमें से ज्यादातर राजनयिक और अन्य देशों के प्रवासी हैं. साथ ही, कुछ भारतीय यहूदी भी हैं.
यहां उनका एकमात्र प्रार्थना स्थल जुडा हायम सिनेगॉग है, जिसकी स्थापना 1950 के दशक में की गई थी. इसका संचालन मालेकर करते हैं. मालेकर खुद महाराष्ट्र के पुणे शहर के रहने वाले हैं, जो फिलहाल दिल्ली में रह रहे हैं.
सरकारी सेवा में आने की वजह से वे पुणे से दिल्ली पहुंचे थे. 1980 के दशक से मालेकर नि:स्वार्थ भाव से इस सिनेगॉग की देखभाल और रखरखाव कर रहे हैं. इस सिनेगॉग के बगल में ही एक यहूदी कब्रिस्तान भी मौजूद है. साथ ही, एक पुस्तकालय भी है जहां हिब्रू भाषा की कक्षाएं संचालित होती हैं.
मालेकर ने अपनी परंपराओं को सहेजते हुए आधुनिक समाज के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश की है. उनकी यह कोशिश काफी हद तक कामयाब होती भी दिख रही है. उन्होंने अब तक 15 जोड़ों की अंतर-धार्मिक शादी कराई है. उनका कहना है कि वे किसी को भी अपने पति या पत्नी के लिए धर्म बदलने को नहीं कहते हैं.
दिल में इस्राएल, रगों में भारत
वह कहते हैं, "तोरा (पवित्र ग्रंथ) पढ़ने के लिए आपको 10 पुरुषों की जरूरत होती है, लेकिन मैंने इस परंपरा से पूरी तरह परहेज किया. हालांकि, जो लोग इसमें शामिल होना चाहते हैं, मैं उन्हें इसकी अनुमति देता हूं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कौन हैं. समय के मुताबिक, हमें अपना नजरिया बदलना चाहिए. यह बात न सिर्फ यहूदी धर्म, बल्कि सभी धर्मों के लिए लागू होती है.”
प्रसिद्ध ओडिसी नृत्यांगना शेरोन लोवेन भी नई दिल्ली में रहने वाले यहूदी समुदाय का हिस्सा हैं. वह मूल रूप से अमेरिकी नागरिक हैं, लेकिन कई वर्षों से दिल्ली में रह रही हैं.
वह कहती हैं, "करीब एक सदी पहले मेरे दादा जी और उनके परिवार पूर्वी यूरोप से जान बचाकर प्रवासी के तौर पर अमेरिका पहुंचे थे. मैं करीब 50 वर्षों से भारत में हूं. यह खुशी की बात है कि यहूदी समुदाय के लोग लंबे समय से यहां रह रहे हैं और उन्हें पूरी तरह धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है. यहां तक कि 1930 और 40 के दशक में यूरोप से जान बचाकर भागे यहूदियों को भी भारत में सुरक्षित आश्रय मिला.”
वह आगे कहती हैं, "स्वाभाविक तौर पर ज्यादातर भारतीय पश्चिमी देशों के लोगों को ईसाई मानते हैं, लेकिन मैंने स्पष्ट कर दिया है कि मैं यहूदी हूं, ईसाई नहीं.”
वहीं, मालेकर के परिवार के कई सदस्य इस्राएल, ऑस्ट्रेलिया, और कनाडा चले गए, लेकिन वे अपनी मातृभूमि से दूर नहीं जाना चाहते. वह कहते हैं, "इस्राएल मेरे दिल में है, लेकिन मेरी रगों में भारतीय खून दौड़ता है.” (dw.com)
तेल और गैस की बढ़ती कीमतों के बीच वैकल्पिक ऊर्जा की मांग बढ़ रही है. लेकिन पवनचक्कियां लगाने का लाइसेंस लेने में कई बार तो सालों लग जाते हैं.आखिर पवन ऊर्जा उद्योग को जर्मनी में इतनी मुश्किलें क्यों झेलनी पड़ रही है?
जर्मनी फोसिल इंधन का इस्तेमाल खत्म कर अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ना चाहता है. यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद तेल और गैस की कीमत तेजी से बढ़ी है और अक्षय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने की जरूरत और बढ़ गई है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि जर्मनी में अक्षय ऊर्जा स्रोतों का आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है और बिजली बनाई जा सकती है. यहां तो एक पवनचक्की लगाने की इजाजत लेने में कई साल लग जाते हैं और पुर्जों का उत्पादन भी लगातार महंगा हो रहा है.
ऊर्जा की मांग बीते दशकों में बेतहाशा बढ़ी है. बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए सौर ऊर्जा के अलावा पवन ऊर्जा भी मददगार हो सकती है. लेकिन जर्मनी में यह पूरा उद्योग परेशानियां झेल रहा है. वैसे तो जर्मनी पवन ऊर्जा जैसे अक्षय स्रोतों को पूरी तरह से अपनाना चाहता है, लेकिन यह प्रक्रिया धीमी है. तो आखिर दिक्कत कहां आ रही है.
अक्षय ऊर्जा उद्योग की परेशानियां
जर्मनी के उत्तर में समुद्र है, जहां तेज समुद्री हवाएं बहती हैं. यह बिजली बनाने का अच्छा स्रोत है. समुद्र तट पर स्थित उत्तरी राज्य मेक्लेनबुर्ग-वेस्ट पोमेरेनिया में ईको एनर्जी सिस्टम्स की जैकलीन वुंश ऐसे प्रोजेक्ट की मैनेजर हैं, जिसका जमीन पर अब तक कोई अता-पता नहीं. कंपनी 2015 से यहां दो विंड फार्म लगाने की कोशिश में है. इसके लिए कम से कम दर्जन भर विभागों से इजाजत लेनी होती है. वुंश का दावा है कि उनकी कंपनी को दो विंड टर्बाइनें लगाने में करीब 7 साल का वक्त लग गया. वे कहती हैं, "ऐसा हमेशा नहीं होता लेकिन बहुत से प्रोजेक्ट्स में 5 से 7 साल लग जाते हैं."
उद्योग के नजरिये से देखें तो पता चलता है कि समस्याएं प्रशासनिक और कल पुर्जों दोनों के स्तर पर हैं. यह यकीन करना मुश्किल है, लेकिन हालिया वर्षों में जर्मनी के पवन ऊर्जा क्षेत्र में निवेश नहीं बढ़ा है. इससे उलट, यह घटकर आधा हो गया है. जर्मनी में 2017 में करीब 7.3 अरब यूरो का निवेश पवन ऊर्जा क्षेत्र में हुआ. पांच साल बाद यह घटकर 2.8 अरब यूरो रह गया है.
तो क्या पवन चक्की लगाना घाटे का सौदा?
जर्मनी की पर्यावरण नीतियों के हिसाब से अक्षय ऊर्जा ही भविष्य है. ऐसे में यह घाटे का सौदा तो नहीं है. लेकिन इस प्रक्रिया में दुश्वारियां इतनी हैं कि निवेश करने वाले भारत और चीन जैसे विकासशील देशों में पैसा लगाना बेहतर समझ रहे हैं. जर्मनी में हर पवन चक्की के लिए अलग से अप्लाई करना होता है. कम से कम कागज पर तो. जैकलीन वुंश बताती हैं, "ऐसे आवेदन हजार पन्ने लंबे हो सकते हैं. आपको, सुरक्षा पर डेटा से लेकर कौन सा ऑयल-ग्रीस इस्तेमाल होगा, साइट का मैप, शोर, छांव और कंपन के प्रभाव से लेकर गणनाओं तक, सब कुछ बताना होता है. इसके बिना आवेदन स्वीकार होना संभव नहीं."
जर्मनी की संघीय सरकार आवेदन प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा राज्य सरकारों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह 2032 तक विंड पार्क बनाने के लिए चार गुना ज्यादा जगह आबंटित करें.
कंपनियां कर रहीं भारत-चीन का रुख
पवन ऊर्जा के मामले में चीन इस वक्त सबसे आगे है. फिर अमेरिका का नंबर आता है. भारत में भी स्थितियां बेहतर दिख रही हैं. ऐसे में पवन ऊर्जा के उपकरण बनाने वाली कई कंपनियां भारत और चीन का रुख कर रही हैं. यहां उत्पादन लागत कम है. उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता यूरोप के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. कई कंपनियां अब यूरोप से अपने प्लांट समेट रही हैं. जैसे कि नोरडेक्स ने किया. कंपनी ने उत्तरी जर्मन शहर रॉस्टॉक में अपना प्लांट बंद कर दिया. इसके रोटर ब्लेड अब भारत में बनाए जा रहे हैं. जर्मनी के लिए इसका मतलब सिर्फ नौकरियों में कटौती नहीं, बल्कि विशेषज्ञता और संसाधनों का जाना भी है.
रॉस्टॉक शहर की मेटल ट्रेड यूनियन के श्टेफान शाड कहते हैं, "यह जर्मनी के पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने की योजना को बहुत बड़ा धक्का है. यह जर्मनी में आखिरी रोटर ब्लेड प्लांट था. हमने खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मारी है. अब हम भारत, ब्राजील और चीन पर निर्भर हैं."
श्टेफान शाड की शिकायत है कि यदि वैश्विक योजनाओं को देखें तो साफ हो जाता है कि जर्मनी के लक्ष्य हासिलनहीं किए जा सकते. वे कहते हैं, "अगर जर्मनी की 2 प्रतिशत जमीन पवन चक्कियों के लिए उपलब्ध करवा भी दी जाए, तब भी रोटर ब्लेड कहां से लाएंगे? आपको उन्हें खरीदना होगा और ऐसे बात नहीं बनेगी."
ग्राहकों पर बढ़ेगा बोझ
जैकलीन वुंश की कंपनी ईनो एनर्जी सिस्टम्स अब भी जर्मनी में उत्पादन कर रही है. यह पारिवारिक कंपनी पवन चक्कियों के निर्माण से लेकर उसे लगाने तक का पूरा काम करती है और बाद में देखरेख भी. खाली पड़े बाजार और महामारी के दौरान सरकार से मिली आर्थिक मदद के चलते कंपनी किसी तरह चलती रही. लेकिन बढ़ती लागत से पवन चक्कियां महंगी होंगी, जिससे या तो कंपनियों को सस्ते विकल्प ढूंढने होंगे या फिर जर्मनी में काम बंद करना होगा.
ईनो एनर्जी सिस्टम्स के प्रमुख कार्स्टेन पोर्म कहते हैं, "6 मेगावाट की एक आम पवन चक्की का खर्च 2021 में 50 लाख यूरो था, अब यह बढ़कर 60 या 63 लाख यूरो के करीब हो गया है." कुल मिलाकर बात यह है कि जर्मनी पवन ऊर्जा के मामले में पिछड़ रहा है. सरकार काम को गति देने की कोशिश कर रही है. लेकिन कम निवेश, कंपनियों के पलायन, ऊंचे दामों और पुर्जों की कमी के बीच जर्मनी की अक्षय ऊर्जा की तरफ की यात्रा खड़ी चढ़ाई जैसी मुश्किल नजर आती है.
भारत में नए लोगों के इंटरनेट से जुड़ने की रफ्तार थम रही है. अब भी देश में करोड़ों लोगों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. जब सरकारें ज्यादातर सरकारी स्कीमों के डिजिटलीकरण पर जोर दे रही हैं तब यह आंकड़ा डराता है.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
भारत में इंटरनेट की वृद्धि लगभग स्थिर हो गई है. टेलिकॉम रेगुलेटर ट्राई के डाटा से यह जानकारी मिली है. पिछले दो साल से भारत में ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या एक ही स्तर पर बनी हुई है. साल 2021 में देश में इंटरनेट सब्सक्राइबर्स भी 1 फीसदी से कम बढ़े. जानकार इसकी वजह स्मार्टफोन की महंगाई को मान रहे हैं. यानी स्मार्टफोन महंगे होने के चलते, कम आय वर्ग के लोग मोबाइल नहीं खरीद पा रहे हैं और स्मार्टफोन न खरीद पाने के चलते वे इंटरनेट से भी नहीं जुड़ पा रहे हैं.
भारत में केंद्र और राज्य सरकारें जहां ज्यादातर सरकारी योजनाओं को डिजिटल बनाए जाने पर जोर दे रही हैं, इंटरनेट प्रसार में यह सुस्ती जानकारों को डरा रही है. उनका कहना है कि सरकार ने बैंकिंग, राशन, पढ़ाई, कमाई, स्वास्थ्य और रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ी कई योजनाओं को लगभग ऑनलाइन बना दिया है. लेकिन भारत में अब भी करीब आधी आबादी के पास ऐसा इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, जिससे कोई काम हो सके.
बिना डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर कैसे मिले लाभ
जानकार कहते हैं कि सरकारों की ओर से डिजिटलाइजेशन के ज्यादातर फैसले प्रक्रिया को तेज करने, भ्रष्टाचार को कम करने और प्रक्रिया में आने वाले खर्च को कम करने का हवाला देकर लिए जाते हैं. लेकिन इस दौरान जिन लोगों पर डिजिटलाइजेशन का फर्क पड़ना होता है, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है. एनजीओ डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन के प्रमुख ओसामा मंजर कहते हैं, "ऐसे में फैसले ले लिए जाते हैं लेकिन उन तक सबकी पहुंच निर्धारित करने लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं तैयार किया जाता. यह उसी तरह होता है, जैसे किसी को गाड़ी दे दी जाए लेकिन सड़क न बनाई जाए."
ट्राई के आंकड़ों की मानें तो जुलाई के अंत तक भारत में कुल 80 करोड़ से कुछ ज्यादा इंटरनेट सब्सक्रिप्शन थे. जाहिर है इनमें से कई मामलों में एक ही व्यक्ति के पास एक से ज्यादा इंटरनेट सब्सक्रिप्शन रहे होंगे. जबकि वर्ल्डबैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जनसंख्या 141 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है यानी अब भी भारत में करोड़ों लोग इंटरनेट की पहुंच से दूर हैं.
जितने का लाभ नहीं, उससे ज्यादा खर्च
ऐसी परिस्थितियों में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए बहुत से लोगों को अन्य लोगों की या इंटरनेट कैफे की मदद लेनी पड़ती है. ओसामा मंजर कहते हैं, "कई बार ऐसे मामलों में जिन लोगों को सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलता भी है, उन सेवाओं को पाने के लिए वो जितना पैसा खर्च कर देते हैं, वह सुविधा की कीमत से ज्यादा होता है. ऐसे में सरकार को सोचना होगा कि सरकारी स्कीमों का डिजिटलाइजेशन कहीं लोगों को सुविधाओं का लाभ देने के बजाए, उन्हें लाभ से वंचित रखने वाला न बन जाए."
इंटरनेट तक पहुंच के मामले में दूसरी चुनौतियां भी हैं. डिजिटल टेक्नोलॉजी और जनकल्याण पर काम करने वाले ट्रस्ट आर्टिकल 21 की मानसी वर्मा बताती हैं, "सरकार भले ही हर गांव तक बिजली पहुंचाने का दावा करती हो लेकिन अभी कई परिवारों तक बिजली की पहुंच नहीं है और ऐसे में इंटरनेट की उपलब्धता मुश्किल ही लगती है. सरकार को पहले देश की सच्चाईयों को स्वीकार करना होगा, क्योंकि ऐसा किए बिना उचित इंफ्रास्ट्रक्चर की प्लानिंग करना मुश्किल होगा."
स्कूलों में इंटरनेट पहुंचाना हो प्राथमिकता
डिजिटलाइजेशन के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के पास सरकारी सुविधाओं को बेहतर ढंग से लागू किए जाने के कुछ सुझाव भी हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को उनका लाभ मिल सके. वे सबसे पहले स्कूलों में इंटरनेट की कनेक्टिविटी अच्छी किए जाने पर जोर देते हैं. हालांकि उससे पहले भारत के ज्यादातर स्कूलों तक इंटरनेट पहुंचाने की चुनौती भी होगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक देश के केवल 34 फीसदी स्कूलों में ही इंटरनेट पहुंच सका है.
कोरोना काल में भी डिजिटल शिक्षा को लेकर काफी बातें हुई थीं लेकिन आंकड़े उन बातों से मेल नहीं खाते. जहां 2016 से 2020 तक इंटरनेट प्रसार में दोहरे अंकों में बढ़ोतरी हुई, वहीं 2020 में यह 4 फीसदी रही और उसके बाद से 1 फीसदी से भी कम है. मानसी कहती हैं, "ऐसे में जहां तमाम इंटरनेट आधारित गतिविधियों के चलते इंटरनेट का प्रसार बढ़ना चाहिए था, वो और सिकुड़ता दिख रहा है. यानी ऐसे तमाम लोग इस दौरान प्रक्रिया से कटे रहे, जिनके पास इंटरनेट नहीं था."
नए सिरे से बने इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर
इंटरनेट तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कुछ अन्य सुझाव भी दिए गए हैं. ओसामा कहते हैं, "ऐसी जगहों पर इंटरनेट प्रयोग के लिए पब्लिक एक्सेस पॉइंट बनाए जाने चाहिए, जहां लोगों के पास इंटरनेट की उपलब्धता कम हो." इसके अलावा हार्डवेयर और डाटा की सब्सिडी भी लोगों को दी जा सकती है.
वर्तमान में भारत भर में कई ग्राम पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ा जा चुका है. लेकिन ज्यादातर मामलों में इंटरनेट सिर्फ पंचायत भवन तक ही सीमित होकर रह जाता है. ऐसे में जानकार पंचायत के जरिए ही आशा कार्यकर्ताओं और गांव के स्कूलों तक इंटरनेट पहुंचाने पर भी काम करने की वकालत करते हैं. वे कहते हैं कि इसके लिए पंचायत को बताया जाए कि वह किस तरह से इंटरनेट का उन लोगों तक प्रसार कर सकती है, जिन्हें इसकी जरूरत है.
ओसामा कहते हैं कि इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए विभिन्न मंत्रालयों को भी अपनी ओर से पहल करने की जरूरत है. ताकि ऐसा न हो कि सभी मंत्रालय इंटरनेट की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए टेलिकॉम मिनिस्ट्री का इंतजार करें बल्कि वे अपने बजट से भी अपनी सुविधाओं के सहज प्रसार के लिए इंटरनेट का इंस्टॉलेशन करवाएं. जानकार इसके अलावा डिजिटल योजनाओं के साथ ही उन्हीं योजनाओं के अच्छे ऑफलाइन विकल्प उपलब्ध कराने और लोगों में इंटरनेट जागरुकता लाने की वकालत भी करते हैं ताकि आम लोगों को साइबर क्राइम का आसान निशाना बनने से बचाया जा सके. (dw.com)
कोहिमा, 6 जनवरी | केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार ने नागालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में शांति (पीस), प्रगति (प्रोग्रेस) और समृद्धि (प्रोस्पेरिटी) के तीन पी स्थापित करने के अपने लक्ष्य में सफलता हासिल की है। गृह मंत्री ने नागालैंड में 52 करोड़ रुपये की पांच परियोजनाओं का उद्घाटन करने के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि उग्रवाद गतिविधियों पर काबू पाने के साथ, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार का मिशन न केवल भौतिक संपर्क विकसित करना है बल्कि पूर्वोत्तर क्षेत्र और देश के बाकी हिस्सों के बीच भावनात्मक संपर्क को और बेहतर बनाना है।
पांच परियोजनाओं में पर्यटन, शिक्षा और बिजली आपूर्ति शामिल है। शाह ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र को मुख्यधारा में लाने के लिए क्षेत्र में महत्वाकांक्षी विकास किया गया है और प्रधानमंत्री के निर्देश पर हर पखवाड़े में एक केंद्रीय मंत्री क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री आठ साल में 51 बार इस क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं।
उन्होंने कहा- 2014 से, राज्य को दिए गए 219 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज के अलावा, नागालैंड के लिए धन आवंटन में चार गुना वृद्धि हुई है। 15वें वित्त आयोग ने 2022-23 में नागालैंड के लिए 4,773-करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, जबकि 2009-10 में केवल 1,283 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
यह देखते हुए कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आठ वर्षों में उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आई है, उन्होंने कहा कि अफस्पा (सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम) को भी क्षेत्र और नागालैंड से धीरे-धीरे वापस लिया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि नागालैंड दुनिया के 25 प्रसिद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है जो इसे अपार पर्यटन क्षमता प्रदान करता है। नागालैंड अपने नागरिकों, संस्कृति और यहां की महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर है।
शाह ने कहा कि सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास के साथ-साथ जनसुविधाओं को मजबूत करने पर भी ध्यान दिया है। 4,127 करोड़ रुपये की लागत से 266 किलोमीटर से अधिक की लंबाई वाली पंद्रह राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं शुरू की गई हैं।
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि आगामी चुनाव में गठबंधन सरकार सत्ता में वापसी करेगी। शाह गुरुवार को त्रिपुरा और मणिपुर का दौरा करने के बाद शुक्रवार को नागालैंड पहुंचे। (आईएएनएस)|
बेंगलुरु, 7 जनवरी | राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किए गए संदिग्ध आतंकियों में से एक कांग्रेस नेता का बेटा निकला और कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के साथ उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इस घटनाक्रम से चुनावी राज्य में राजनीतिक तूफान आने की संभावना है। रीशान, एनआईए द्वारा गुरुवार को की गई छापेमारी के दौरान गिरफ्तार किए गए छह लोगों में से एक है।
यह छापेमारी राज्य में आईएसआईएस नेटवर्क से जुड़े एक मामले के सिलसिले में की गई। राज्य में आतंकवाद से जुड़े कई मामलों की जांच कर रही एनआईए राज्य में आतंकवाद को बढ़ावा देने में शामिल नेटवर्क की जड़ों की जांच कर रही है। रीशान की कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार और विपक्ष के नेता सिद्धारमैया के साथ तस्वीरें वायरल हो रही हैं।
उडुपी से भाजपा विधायक रघुपति भट ने कहा कि एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए गए संदिग्धों में से एक रीशान उडुपी जिले के ब्रह्मवर ब्लॉक कांग्रेस महासचिव ताजुद्दीन का बेटा है। उन्होंने कहा- उसे गिरफ्तार कर लिया गया है और जांच जारी है। जांच में परेशान करने वाली जानकारी सामने आ रही है। मैं सरकार और एनआईए से जांच तेज करने की मांग करता हूं। विशेष रूप से तटीय क्षेत्र में, जहां ऐसे कई व्यक्तियों के विघटनकारी गतिविधियों में लिप्त होने का संदेह है।
भट ने जोर देकर कहा- मैं कांग्रेस पार्टी से सवाल करना चाहता हूं ..ताजुद्दीन कोई साधारण कार्यकर्ता नहीं है। वह ब्लॉक कांग्रेस महासचिव हैं। वह पार्टी की गतिविधियों में सबसे आगे रहते हैं..वह विपक्ष के नेता सिद्धारमैया, शिवकुमार के करीबी हैं और वह उल्लाल कांग्रेस विधायक यूटी खादर के बहुत करीबी हैं।
उन्होंने कहा, जब पार्टी के एक पदाधिकारी का बेटा आतंकी मामले में पकड़ा जाता है तो कांग्रेस पार्टी को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। (आईएएनएस)|
पटना, 7 जनवरी | भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की क्षेत्र में चल रही समाधान यात्रा के दौरान चंपारण में नौकरी के इच्छुक लोगों को नजरबंद रखा गया था। सुशील मोदी ने दावा किया कि नीतीश कुमार राज्य में सचिवालय सहायक और शिक्षक पदों के उम्मीदवारों के विरोध से डरते हैं। मोदी ने कहा, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण जिलों के अधिकारी सचिवालय सहायक और शिक्षक उम्मीदवारों के घरों में गए और उन्हें घर के अंदर रहने या परिणाम भुगतने की धमकी दी। इन दोनों जिलों के प्रशासन ने नीतीश कुमार को नौकरी चाहने वालों के विरोध से बचाने के लिए गंदी चाल चली। सुशील मोदी ने कहा, अगर नीतीश कुमार सोच रहे हैं कि इससे मसले सुलझ जाएंगे तो यह उनकी गलतफहमी है।
भाजपा नेता ने 3 जनवरी को नौकरी चाहने वालों पर लाठीचार्ज के लिए भी नीतीश कुमार की खिंचाई की। उन्होंने कहा, नीतीश कुमार, जो गृह मंत्री का पद भी संभाल रहे हैं, लाठीचार्ज से अनजान हैं। या तो नीतीश कुमार नाटक कर रहे या नौकरशाह उन्हें गुमराह कर रहे हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है।
सुशील मोदी ने जोर देकर कहा,बिहार में प्रश्नपत्र लीक होना आम बात हो गई है। आठ साल बाद सचिवालय सहायक की परीक्षा होती है और परीक्षा के दिन ही उसके प्रश्नपत्र लीक हो जाते हैं। इसमें नौ लाख अभ्यर्थियों ने भाग लिया था। इसी तरह अन्य परीक्षाओं की भी स्थिति है।
उन्होंेने कहा, डेढ़ करोड़ उम्मीदवारों ने रेलवे परीक्षा में भाग लिया, लेकिन एक भी बार प्रश्नपत्र लीक नहीं हुआ। फुलप्रूफ व्यवस्था करने के लिए बिहार सरकार टीसीएस जैसी कंपनियों की सेवाएं ले सकती है। यह मदद क्यों नहीं ले रही है। मुख्यमंत्री ऐसे मुद्दों के समाधान में रुचि नहीं रखते हैं, वह समाधान यात्रा के माध्यम से राजनीति कर रहे हैं।
नीतीश अपनी समाधान यात्रा के दूसरे दिन शुक्रवार को सीतामढ़ी पहुंचे। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 7 जनवरी | भारतीय स्टार्टअप, जिसने 2022 में फंडिंग में 35 फीसदी की भारी गिरावट देखी। वहीं, 2021 में 37.2 बिलियन डॉलर से 24.7 बिलियन डॉलर (नवंबर तक) तक गिरावट दर्ज की गई और 2023 में फंडिंग के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं, जहां मंदी की आशंका मंडरा रही है। हालांकि कुछ स्टार्टअप्स, जैसे फिनटेक प्लेटफॉर्म क्रेडिटबी (200 मिलियन डॉलर), फूडटेक प्लेटफॉर्म हेल्थकार्ट (135 मिलियन डॉलर) और एचआरटेक सॉफ्टवेयर-एज-ए-सर्विस प्लेटफॉर्म बेटरप्लेस (40 मिलियन डॉलर) ने पिछले साल दिसंबर में और शुरुआत में अच्छा फंड जुटाया।
टेक कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर छंटनी की जा रही है, जहां ठंड के मौसम के बीच हजारों लोगों ने अपनी नौकरी खो दी।
पीडब्ल्यूसी इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 की तीसरी तिमाही में भारत में स्टार्टअप फंडिंग दो साल के निचले स्तर 2.7 बिलियन डॉलर पर आ गई।
ट्रैक्सन द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2022 में, फंडिंग में महत्वपूर्ण गिरावट को लेट-स्टेज निवेश में गिरावट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, जहां जनवरी-नवंबर 2021 में 29.3 बिलियन डॉलर से 45 प्रतिशत गिरकर इस वर्ष इसी अवधि के लिए 16.1 बिलियन डॉलर हो गया था।
सीड स्टेज राउंड में भी संकुचन का अनुभव हुआ और पिछले वर्ष की तुलना में इसमें 38 प्रतिशत की गिरावट आई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में 22 स्टार्टअप्स ने यूनिकॉर्न क्लब में प्रवेश किया। हालांकि, 2021 में यह संख्या 46 थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फंडिंग राउंड की संख्या में साल के 2,647 से इस साल 1,841 तक 30 फीसदी की गिरावट देखी गई।
ट्रैक्सन की कोफाउंडर नेहा सिंह ने कहा, "फंडिंग विंटर, जो 2021 की चौथी तिमाही में शुरू हुआ था, 2023 में भी बना रहेगा। स्टार्टअप यूनिट इकोनॉमिक्स को अधिक गंभीरता से ले रहे हैं, जिसे इस साल हुई बड़े पैमाने पर छंटनी की श्रृंखला के माध्यम से चित्रित किया गया है।"
सिंह ने अपने ब्यान में कहा, "हम वर्तमान में मंदी का सामना कर रहे हैं, स्थिति स्टार्टअप्स को विकास के लिए स्पष्ट और अधिक टिकाऊ पथ स्थापित करने के लिए प्रेरित कर रही है।"
फ्लिपकार्ट के सीईओ कल्याण कृष्णमूर्ति ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि स्टार्टअप इकोसिस्टम की फंडिंग अगले 12 से 18 महीने तक चल सकती है और उद्योग को बहुत उथल-पुथल और अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है।
लीगलविज डॉट इन के संस्थापक श्रीजय शेठ के अनुसार, 2023 अधिकांश लोगों के लिए जीविका का वर्ष बना रहेगा और फंड देने वाले अधिक सतर्क बने रहेंगे।
उन्होंने कहा, "वैल्यूएशन मल्टीप्लायर और फंडिंग के अवसर दोनों अधिक रूढ़िवादी हो जाएंगे। महंगे अधिग्रहण संचालित विकास चैनलों के विपरीत स्टार्टअप्स को बेहतर इकाइयों के अर्थशास्त्र का निर्माण करना चाहिए। भू-राजनीतिक मुद्दे, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला संकट और अन्य मैक्रो मुद्दों के प्रबल होने की उम्मीद है।"
हालांकि, इसे एक ऐसे वर्ष के रूप में भी देखा जाना चाहिए जहां समस्या को सुलझाने वाले उद्यमियों को भीड़ से अलग दिखने का अवसर मिलेगा।
सेठ ने आगे कहा, "जैसे-जैसे मैक्रो वातावरण कठिन होता जाता है, हम उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ उत्कृष्ट व्यवसाय मॉडल उच्च स्तर के नवाचार और मितव्ययिता के साथ बाकी को पछाड़ देंगे। इसके अलावा, ज्यादातर गंभीर फंडिंग हाउस प्रबल होंगे, जबकि हम वीसी दुनिया में आगंतुकों को विराम लेते हुए देखेंगे।" (आईएएनएस)|
दिल्ली, 7 जनवरी | दिल्ली एनसीआर इस वक्त भीषण ठंड की चपेट में है। दिल्ली का न्यूनतम तापमान कुछ जगहों पर 2 डिग्री रहा। कुछ इलाकों में न्यूनतम तापमान 3 डिग्री भी रहा । लगातार बढ़ रही शीतलहर और ठंड से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। भीषण ठंड के प्रकोप की वजह से सड़कों पर भीड़ भाड़ भी कम दिखाई दे रही है। लोग ठंड से बचने के लिए अलाव आदि का सहारा ले रहे हैं। कहीं घने कोहरे की वजह से ट्रेनें लेट चल रही हैं, तो कुछ फ्लाइट्स के टाइमिंग पर भी इसका असर पड़ा है। गौरतलब है कि जनवरी के पहले हफ्ते से ही ठंड का प्रकोप लगातार बड़ा ही है। मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि दिल्ली एनसीआर में पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव के कारण कल से रात के समय में ठंड का और शीतलहर का प्रभाव कम देखने को मिलेगा। अगले 5 दिनों तक न्यूनतम पारा 4 डिग्री से बढ़ोतरी की ओर देखा जाएगा, जिसके मुताबिक लोगों को शीतलहर और ठंड से थोड़ी राहत मिलने के आसार हैं।
फिर 10 जनवरी के आसपास बड़ी ठंड को देखा जा सकता है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश की भी संभावना बनी हुई है। हेल्थ एक्सपोर्ट ने बुजुर्गो और बच्चों को भीषड़ ठंड से बचने की सलाह दी है। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 7 जनवरी | केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में शामिल पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) और उसके सभी रूपों तथा फ्रंट संगठन को यूएपीए अधिनियम 1967 के तहत आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए बैन लगा दिया है। पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रॉक्सी आउटफिट के रूप में जाना जाता है। गृह मंत्रालय ने इसको लेकर शुक्रवार को एक अधिसूचना भी जारी की है। गृह मंत्रालय की तरफ से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) वर्ष 2019 में जैश-ए-मोहम्मद के प्रॉक्सी आउटफिट के रूप में उभरा है। मंत्रालय ने बताया कि पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) लगातार भारतीय सुरक्षा बलों, राजनैतिक नेताओं, जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले अन्य राज्यों के लोगों के लिए चेतावनी जारी करता है।
पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) अन्य संगठनों के साथ भारत में जम्मू-कश्मीर और अन्य प्रमुख शहरों में हिंसक आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए पूर्व सक्रिय रूप से भौतिक रूप में और सोशल मीडिया पर षडयंत्र करने में भी संलिप्त है।
गृह मंत्रालय ने बताया कि पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) अन्य संगठनों के साथ बंदूक, गोला बारूद और विस्फोटकों को चलाने के लिए भर्ती तथा प्रशिक्षण के प्रयोजन से प्रभावनीय युवाओं को अतिवादी बनाने में लगा हुआ है। यही वजह है कि केंद्रीय सरकार का यह विश्वास है कि पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) आतंकवाद में है और इसने भारत में आतंकवाद के अनेक कृत्यों को किया है और उनमें भाग लिया है।
गौरतलब है कि एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी संगठन टीआरएफ के खिलाफ कड़ा एक्शन लेते हुए उसे आतंकी संगठन घोषित किया और इस पर बैन लगा दिया था। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 7 जनवरी | एक बच्चा अपना पसंदीदा खिलौना ट्रेन में छोड़ गया तो रेलवे ने 20 किलोमिटर दूर उसके घर जाकर खिलौना लौटाया। ट्रेन में अक्सर सफर करने को लेकर यात्रियों को हुई मुश्किलों, चोरी, मारपीट के किस्से सुनने को मिलते हैं, लेकिन रेलवे अपने मानवीय पहलुओं से जुड़े काम को करने में भी पीछे नहीं है। भारतीय रेलवे के अधिकारियों ने 19 माह के एक बच्चे को उसका पसंदीदा खोए हुए खिलौने को वापस कर उसकी खुशियों को दोगुना कर दिया। रेलवे से मिली जानकारी के अनुसार बुधवार को भारतीय रेलवे के 139 हेल्पलाइन नंबर के जरिए भुसीन पटनायक नाम के एक यात्री ने शिकायत दर्ज कराई थी। यात्री ने रेलवे को जानकारी दी की वह सिकंदराबाद-अगरतला स्पेशल ट्रेन (07030) के बी-2 कोच में सफर कर रहे थे। इस दौरान एक सहयात्री परिवार के बच्चे के पास एक खिलौना था और वह उससे खेल रहा था, लेकिन उतरते समय परिजन खिलौना साथ ले जाना भूल गए। उसी यात्री ने रेलवे अधिकारियों से ये अनुरोध भी किया कि क्या वे मदद कर सकते हैं! और इसे बच्चे को वापस कर सकते हैं, लेकिन पटनायक के पास अपने सहयात्रियों के पते या संपर्क करने का कोई तरीका नहीं था।
उनके अनुरोध के बाद रेलवे के अधिकारियों ने तब ट्रेन के लाइव स्थान का पता लगाया और यात्री से खिलौना लेने के लिए न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन पहुंचे। रेलवे अधिकारियों ने कहा कि परिवार के संपर्क विवरण का पता लगाना एक मुश्किल काम था, क्योंकि टिकट को सिकंदराबाद के आरक्षण काउंटर से खरीदा गया था।
इस काम को करने के लिए एक टीम को आरक्षण की मांग के लिए भरी गई आरक्षण पर्ची की पहचान करने का काम सौंपा गया और खोजबीन के बाद पर्ची मिली, जिसके आधार पर परिवार के संपर्क किया गया।
आरक्षण चार्ट के माध्यम से पता लगाया गया कि खिलौना खोने वाले यात्रियों के नाम मोहित रजा और नसरीन बेगम हैं। परिवार पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले के काजी गांव में रहता है, जोकि अलुआबारी रेलवे स्टेशन से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर हैं।
इसके बाद रेलवे अधिकारियों की एक टीम बच्चे के घर पहुंची और बच्चे को खिलौना लौटाया गया। बच्चे के पिता ने इस तरह की पहल के लिए रेलवे का आभार भी जताया। बच्चे के परिवार ने अधिकारियों को बताया कि खिलौना उनके बच्चे को बहुत पसंद था, लेकिन वे इसे ट्रेन में भूल गए और ये सोच कर शिकायत दर्ज नहीं करवाई कि एक खिलौने के लिए कोई प्रयास नहीं करेगा। (आईएएनएस)|
नोएडा, 7 जनवरी | 1 जनवरी की रात में डिलीवरी ब्वॉय को टक्कर मारने और घसीटे जाने की घटना का खुलासा करते हुए पुलिस ने कैब चालक को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी कार चालक की पहचान रायबरेली निवासी अमर बहादुर यादव के रूप में हुई है। हादसे के वक्त वह कैब में सवारी बिठाकर गाजियाबाद जा रहा था। चिल्ला के पास उसने डिलीवरी ब्वॉय की बाइक को टक्कर मार दी। पुलिस ने युवक को घसीटे जाने के बाद से इनकार कर दिया है।
हादसा 1 जनवरी की रात 11:30 बजे हादसा सेक्टर 14ं के फ्लाईओवर के पास हुआ था। इसमें इटावा निवासी डिलीवरी ब्वॉय कौशल यादव की मौत हो गई थी। कोतवाली फेज 1 पुलिस ने हुंडई एक्सेंट कार चालक अमर बहादुर यादव को गिरफ्तार कर लिया है।
पुलिस के मुताबिक हादसे के कुछ देर बाद सेक्टर 74 में रहने वाले अक्षय चौधरी वहीं से जा रहा था। जब सड़क के पास बाइक पलटी देखी तो उसने बाइक को कुछ दूर आगे कर दिया और मृतक का मोबाइल लेकर चला गया। अक्षय ने हादसे व मोबाइल ले जाने की जानकारी पुलिस को नहीं दी। मृतक के मोबाइल पर उसके भाई का फोन आया था। इसके बाद उसने मोबाइल मृतक के भाई को लौटा दिया। पुलिस अक्षय चौधरी को हिरासत में लेकर यह पता लगा रही कि उसने मौके से बाइक को क्यों हटाया था। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 6 जनवरी | आज दिल्ली नगर निगम के सदन में हुए हंगामे पर बीजेपी मेयर पद की उम्मीदवार रेखा गुप्ता ने आईएएनएस से बातचीत की।
रेखा गुप्ता ने कहा की आज का दिन बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण रहा। केजरीवाल सरकार का दिल्ली नगर निगम में आज का ये पहला दिन और उनके पार्षदों का व्यवहार बहुत निराशाजनक था। मुझे बहुत तकलीफ है जिस दिन इतने पार्षदों की शपथ होनी थी। उनका कार्यकाल शुरू होना था। ऐसे में आम आदमी पार्टी के द्वारा वहां पर जो तांडव किया गया। जिस तरीके से सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। और पीठासीन अधिकारी की टेबल पर चढ़कर के आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने इतना बुरा व्यवहार किया जो कि अपेक्षित नहीं है, किसी भी जनप्रतिनिधि से और इस तरीके का जो कल्चर आम आदमी पार्टी ने शुरू किया। जनता उसके लिए उन्हें कभी माफ नहीं करेगी।
आईएएनएस के सवाल का जवाब देते हुए रेखा गुप्ता ने कहा कि यह क्या इतना बड़ा विषय था की आप सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाएंगे। आपको ऑब्जेक्शन था आप खड़े होकर ऑब्जेक्शन करते। आपके पार्षद तुरंत कूदकर मंच पर जाते हैं, माइक तोड़ देते हैं, कुर्सियां उठाकर फेंक देते हैं पीठासीन अधिकारी को मारने के लिए दौड़ते हैं। यह व्यवहार देखकर ऐसा लगता है की आम आदमी पार्टी के पार्षदों के रूप में सारे अपराधी भरे हुए हैं क्या? सदन में अगर आपको अपनी बात रखनी थी। कुछ भी कहना था तो आप ऑब्जेक्शन उठाकर कह सकते थे। आपकी बात सुनने के लिए सभी अधिकारी वहां पर बैठे हुए थे।
अंत में रेखा गुप्ता ने कहा कि पीठासीन अधिकारी का यह अधिकार क्षेत्र होता है कि वह कहा से शुरू करना चाहता है। यदि पीठासीन अधिकारी ने मनोनीत पार्षदों से शपथ ग्रहण शुरू कर भी दिया था। और आपको ऑब्जेक्शन था। तो आप खड़े होकर ऑब्जेक्शन उठा सकते थे। आपके पार्षद छलांग मारकर मंच पर खूदते हैं, टेबल पर खड़े होते हैं। माइक तोड़ते हैं क्या यह सही है। इसके लिए सोचना चाहिए यह गलत परंपरा शुरू हुई है। यह सब बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 6 जनवरी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य सचिवों के सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगे, जो 5 जनवरी से शुरू हुआ और शनिवार तक चलेगा।
तीन दिवसीय सम्मेलन में केंद्रीय मंत्रालयों के सचिव भी भाग ले रहे हैं। यह सम्मेलन मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि कैसे 2026-27 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिलों को विकास के समर्थकों के रूप में विकसित किया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि मोदी मुख्य रूप से शुक्रवार और शनिवार को सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगे। वह मुख्य सचिवों और केंद्र सरकार के सचिवों को भी संबोधित करेंगे।
गुरुवार को पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) में नीति आयोग के सीईओ परमेश्वरन अय्यर ने कार्यवाही की शुरुआत की।
सूत्रों ने कहा कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए, इस पर विचार-विमर्श के अलावा, बैठक में राज्यों के साथ साझेदारी में तेजी और निरंतर आर्थिक विकास हासिल करने पर भी ध्यान दिया जाएगा।
यह सम्मेलन का दूसरा एडिशन है, जो पहली बार पिछले साल धर्मशाला में आयोजित किया गया था।
इस सम्मेलन के पीछे का विचार इस विश्वास को लागू करना है कि सहकारी संघवाद, केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों के साथ मिलकर काम करने वाले विभागों के माध्यम से निर्बाध समन्वय देश के विकास और प्रगति के लिए एक आवश्यक स्तंभ है।
भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की समय सीमा पहले 2024-25 थी, लेकिन कोरोनो वायरस महामारी के कारण हुए व्यवधानों के कारण इसे अब संशोधित कर 2026-27 कर दिया गया है। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 6 जनवरी | सीईआरएन की वरिष्ठ वैज्ञानिक अर्चना शर्मा ने अपने प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार को भारत के छात्रों को समर्पित करते हुए कहा कि उनकी भारतीय जड़ें और परवरिश ने उन्हें एक परिवार के रूप में दुनिया की सेवा करने में मदद की है। अर्चना शर्मा प्रवासी भारतीय सम्मान पाने वाले उन 27 लोगों में शामिल हैं, जिन्हें इस साल इंदौर में 8 से 10 जनवरी तक होने वाले 17वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सम्मानित किया जाएगा।
यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च को सीईआरएन के नाम से भी जाना जाता है। सीईआरएन में 30 सालों से अधिक समय से काम कर रहीं शर्मा ने कहा, मैं विनम्र महसूस करता हूं कि भारत की सरकार और लोगों ने मेरे बारे में इतनी दयालुता से सोचा। एक वैज्ञानिक के रूप में अपने काम में, मैंने दुनिया की सेवा की है।
शर्मा पहली बार 1987 में एक कार्यशाला में भाग लेने के लिए झांसी से सीईआरएन आई थीं और तब से वह ब्रह्मांड की उत्पत्ति की खोज के लिए सबसे संवेदनशील डिटेक्टरों में से एक म्यूऑन डिटेक्टरों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
शर्मा उस टीम का हिस्सा भी रही हैं जिसने साल 2012 में प्राथमिक पार्टिकल हिग्स बोसोन की खोज की थी और उच्च ऊर्जा भौतिकी में अनुसंधान के लिए गैसेस डिटेक्टरों पर उनके काम के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है। साल 2017 में भारत के सर्न का सदस्य राज्य बनने के बाद, शर्मा समन्वय सहयोग के अलावा वहां भारतीय इंटर्न का मार्गदर्शन कर रही हैं।
शर्मा ने अपने बयान में लिखा, मैं इस पुरस्कार को भारत के छात्रों को इस विश्वास के साथ समर्पित करती हूं कि विज्ञान के क्रेडल को न केवल भारत के लिए, बल्कि दुनिया के लिए समर्पित रूप से आगे बढ़ाया जाएगा। शर्मा के मुताबिक, सीईआरएन में कुल 130 भारतीय पंजीकृत हैं।
शर्मा ने ट्वीट करते हुए लिखा कि मैं प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित होने के लिए बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं, यह बहुत खुशी का पल है। आपके द्वारा दिए गए जबरदस्त समर्थन के लिए मेरी यात्रा का हिस्सा बनने वालों को धन्यवाद, सबसे महत्वपूर्ण बात, भारत को धन्यवाद!
बीएचयू वाराणसी से परमाणु भौतिकी में स्नातक की डिग्री के बाद, शर्मा ने 1989 में दिल्ली विश्वविद्यालय से पार्टिकल भौतिकी से पीएचडी की। इसके बाद 1996 में उन्होंने जिनेवा विश्वविद्यालय से इंस्ट्रमेंटेशन फॉर हाई एनर्जी फिजिक्स डी एससी किया। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 6 जनवरी | कंझावला केस में एक और नया सीसीटीवी फुटेज सामने आया है, जिसमें एक आरोपी कार के मालिक आशुतोष से 1 जनवरी की तड़के उसके घर के पास मुलाकात करता दिख रहा है। आईएएनएस द्वारा हासिल किए गए सीसीटीवी फुटेज में, सुबह करीब 4.07 बजे, एक व्यक्ति, जो आरोपियों में से एक है, आशुतोष को जगाने के लिए उसके घर पहुंचता देखा जा सकता है।
गौरतलब है कि सड़क पर पड़ी अंजलि की लाश के संबंध में पहली कॉल पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) को सुबह करीब 4.11 बजे प्राप्त हुई थी।
फुटेज में सुबह करीब 4.16 बजे आशुतोष को सफेद टी-शर्ट पहने आरोपी से बात करते हुए देखा जा सकता है।
सीसीटीवी फुटेज के मुताबिक, बातचीत के बाद आशुतोष फिर से घर जाता है और फिर ग्रे कलर की जैकेट पहनकर सुबह करीब 4.40 बजे आता है।
लगभग 4.52 बजे आशुतोष अपनी कार पार्क करता है और अपने घर लौटता है।
पुलिस ने छह आरोपियों आशुतोष, दीपक खन्ना, अमित खन्ना, कृष्ण, मिथुन और मनोज मित्तल को गिरफ्तार किया है।
इस बीच, सूत्रों ने यह भी दावा किया कि आरोपियों में से एक दीपक खन्ना उस दिन घर पर था और अन्य आरोपियों ने उसे पुलिस के सामने कार चलाने की बात स्वीकार करने के लिए जबरन दबाव डाला, क्योंकि वह ड्राइविंग लाइसेंस वाला एकमात्र व्यक्ति था।
आरोपी को उसके घर ले जाने के लिए दीपक अपने चाचा का ऑटो रिक्शा भी ले आया।
एक अन्य सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता था कि घटना की रात आशुतोष को कार सौंपने के बाद आरोपी दीपक के चाचा के ऑटो रिक्शा में बैठकर निकल गया, लेकिन अभी तक चालक का चेहरे स्पष्ट नहीं है।
दोस्त के साथ स्कूटी पर पार्टी से लौटते वक्त 20 वर्षीय अंजलि की 1 जनवरी को तड़के एक कार की चपेट में आने और कई किलोमीटर तक घसीटने के बाद दर्दनाक मौत हो गई थी। इस हादसे में उसकी सहेली को मामूली चोटें आईं और वह घटना की मुख्य गवाह है। (आईएएनएस)|