अंतरराष्ट्रीय
-रजनीश कुमार
नेपाल में जामा मस्जिद
29 साल के संघर्ष दाहाल नेपाल में मधेस इलाक़े के महोत्तरी ज़िले के हैं. ये 16 जनवरी 2018 को वामपंथी संगठन के एक कार्यक्रम में शामिल होने पाकिस्तान के लाहौर गए थे. संघर्ष दाहाल नेपाल से अपने दोस्त वीरेंद्र ओली के साथ 14 जनवरी को पाकिस्तान के लिए रवाना हुए थे.
वीरगंज में भारत के इमिग्रेशन ऑफिस में इनसे क़ड़ी पूछताछ हुई. संघर्ष दाहाल बताते हैं कि भारतीय अधिकारियों को ये समझाना बहुत मुश्किल हुआ कि वे पाकिस्तान क्यों जा रहे हैं.
हालाँकि किसी तरह समझाकर वो बाघा बॉर्डर के ज़रिए पाकिस्तान में दाखिल हुए. संघर्ष कहते हैं, ''पाकिस्तान में जाना मेरी आँख खोलने वाली परिघटना है. चूँकि मैं भारत होते हुए पाकिस्तान गया इसलिए वहाँ के सुरक्षा बलों की नज़र में हम दोनों चढ़े हुए थे. हम पर पाकिस्तानी सेना और वहाँ की ख़ुफ़िया एजेंसी की निगाहें थीं. वहाँ के होटल किसी तरह पाकिस्तानी कॉमरेड की मदद से रखने को तैयार हुए. लेकिन रात में सेना के लोग आए हमें बाहर निकलना पड़ा. फिर किसी दूसरे होटल में जगह मिली.''
वीरेंद्र ओली और संघर्ष दाहाल
संघर्ष कहते हैं, ''सेना और सुरक्षा बलों के शक को छोड़ दें तो जितना प्यार पाकिस्तान के लोगों ने दिया वो बता नहीं सकता. ऐसा लग रहा था कि अपने ही लोग हैं. हमें हिन्दी आती थी तो वहाँ लोगों से संवाद में भी दिक़्क़त नहीं हुई. नेपाल के मधेसी तो दिखने में भी पाकिस्तानियों और भारतीयों से बहुत अलग नहीं होते. इसी का फ़ायदा उठाकर मैं वामपंथी संगठनों के विरोध मार्च में भी शामिल हो गया.''
संघर्ष कहते हैं कि पाकिस्तान जाने से पहले वो भी पाकिस्तान को भारतीयों की तरह देखते थे. संघर्ष के मन में पाकिस्तान को लेकर अब बिल्कुल अलग नज़रिया है.
जब आप नेपाल में आएं और पाकिस्तान या पाकिस्तानियों को लेकर यहाँ के लोगों से पूछें तो एक बड़ा तबका है कि जो बहुत सकारात्मक सोचता है. हालाँकि एक तबका ऐसा भी है जो पाकिस्तान को कट्टर मुल्क समझता है.
मोहना अंसारी मधेसी ज़िला नेपालगंज की हैं. वे नेपाल मानवाधिकार आयोग की कमिश्नर रही हैं. मोहना कहती हैं कि पाकिस्तान को लेकर नेपाल में लोगों की सोच बँटी हुई है. मधेसियों और पहाड़ियों की सोच अलग-अलग है.
मोहना कहती हैं, ''मधेसी इलाक़ों में लोग भारतीय हिन्दी न्यूज़ चैनल देखते हैं. हिन्दी न्यूज़ चैनलों में पाकिस्तान को जिस तरह से पेश किया जाता है, वो वैसे ही देखते हैं. हालाँकि जो कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े रहे हैं उनके साथ ऐसा नहीं है.''
मोहना कहती हैं, ''नेपाल में जो हिन्दी न्यूज़ चैनल और लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा देखते हैं उनके मन में पाकिस्तान और पाकिस्तानी कट्टर हैं. ये पाकिस्तान को उसी तरह से देखते हैं जैसे भारत की बहुसंख्यक आबादी देखती है. दूसरी तरफ़ भारत के हिन्दूवादी संगठन भी मधेस इलाक़े में ज़्यादा सक्रिय हैं और ये संगठन भी आम नेपालियों की पाकिस्तान के प्रति उनकी सोच को प्रभावित करते हैं.''
मोहना अंसारी
मोहना कहती हैं पाकिस्तान को लेकर नेपाल में दो धारा है. वो कहती हैं, ''एक नज़रिया भारत की बहुसंख्यक आबादी वाला है तो दूसरा नज़रिया चीन वाला है. चीन और पाकिस्तान में दोस्ती है. नेपाल में जो चीन का समर्थन करते हैं वो पाकिस्तान को नेपाल के दोस्त के तौर पर ही देखते हैं.''
उमेश यादव मधेसी इलाक़े के सप्तरी ज़िले के हैं. वो ओली सरकार में सिंचाई मंत्री थे. उमेश यादव कहते हैं कि भारत की सीमा सुरक्षा में अब भी नेपाली लगे हुए हैं और भारत की आज़ादी में भी नेपाली शामिल रहे हैं. वो कहते हैं, ''हम मनोवैज्ञानिक रूप से भारत से जु़ड़े हैं ऐसे में पाकिस्तान को लेकर हमारी सोच क्या होगी यह भारतीयों की सोच से प्रभावित होती है.''
काठमांडू के 30 साल के मोइन-उद्दिन बिज़नेस में मास्टर की पढ़ाई कर टीच नेपाल नाम के एक एनजीओ में नौकरी करते थे. वो कहते हैं, ''मैं तब्लीग़ी ज़मात से जुड़ा हूँ. तब्लीग़ी के लोग पाकिस्तान से नेपाल आते हैं. उनके साथ बात करने पर यही अहसास हुआ कि वे नेपालियों के बारे में अच्छा सोचते हैं. कई बार तो मैंने देखा है कि जब पाकिस्तान और इंडिया के बीच क्रिकेट मैच होता है तो भारत से नाराज़गी जताने के लिए नेपाल के हिन्दू भी पाकिस्तान का समर्थन करते हैं. हालांकि ऐसा नाकाबंदी के बाद हुआ है क्योंकि आम नेपालियों को बहुत परेशानी उठानी पड़ी थी.''
हालाँकि पाकिस्तान में इस्लाम को लेकर कुछ होता है तो नेपाल के मुसलमानों के बीच भी इसकी हलचल होती है. फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो में पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर कार्टून छपा तो नेपाल की जामा मस्जिद से 28.10.2020 को एक बयान जारी किया गया.
इस बयान में लिखा गया था, ''हमारे पैग़ंबर को लेकर फ़्रांस में एक कार्टून बनाया गया. यह हमारे पैग़ंबर का अपमान था. फ़्रांस इसे रोकने के बजाय और शह दे रहा है. संपूर्ण इस्लामी समाज इससे ग़ुस्से में है. हम नेपाली मुसलमान इस अपमानजनक काम का विरोध करते हैं. हम सभी मुसलमानों से कम से कम फ़्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार का आग्रह करते हैं. पैग़ंबर का सम्मान ही सब कुछ है और इसके सामने कुछ भी मायने नहीं रखता.''
मोइन-उद्दिन
मोइन-उद्दिन कहते हैं कि पाकिस्तान और नेपाल के बीच बहुत आवाजाही नहीं है इसलिए भी दोनों मुल्क के लोग एक दूसरे के बारे में बहुत नहीं जानते हैं. नेपाल और पाकिस्तान के बीच सीधे कोई फ्लाइट नहीं है. अगर किसी नेपाली को फ्लाइट से पाकिस्तान जाना है तो उन्हें क़तर के दोहा होते हुए जाना पड़ता है. इसमें डेढ़ से दो दिन का वक़्त लगता है. इसके लिए आज की तारीख़ में एक नेपाली को लगभग एक लाख नेपाली रुपये किराया देना पड़ता है.
काठमांडू और इस्लामाबाद के बीच कोई फ्लाइट नहीं
काठमांडू के महाराजगंज में पाकिस्तान का दूतावास है. वहाँ काम करने वाले एक पाकिस्तानी स्टाफ़ ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया, ''हमें इस्लामाबाद जाने के लिए काठमांडू से दोहा या दुबई जाना पड़ता है. इसमें कम से कम 21 घंटे का वक़्त लगता है. इसके अलावा 1300 डॉलर किराया लगता है. अगर काठमांडू से इ्स्लामाबाद के लिए सीधे फ्लाइट होती तो दो घंटे का समय लगता. मैं नेपाल में तीन सालों से हूं. नेपाली लोग बहुत प्यार देते हैं. मेरे पास कई बार पैसे नहीं होते तो नेपाली बिना पैसे के ही सब्ज़ी दे देते हैं. भारतीयों और हमारी ज़ुबान एक ही है इसलिए ज़्यादातर नेपाली पूछते हैं कि मैं इंडियन हूं तो मैं बहुत सफ़ाई नहीं देता और कह देता हूं कि हाँ इंडियन ही हूँ."
नेपाल नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के प्रवक्ता राजकुमार क्षेत्री कहते हैं, ''सात साल पहले काठमांडू से इस्लामाबाद की एक फ्लाइट चलती थी. वो फ्लाइट पाकिस्तान एयरलाइंस की थी. लेकिन बाद में पैसेंजर नहीं मिलने के कारण फ्लाइट बंद करनी पड़ी.''
इसी महीने 16 जनवरी को ख़बर आई कि 10 नेपालियों की एक टीम ने पाकिस्तान और चीन की सीमा तक फ़ैले काराकोरम रेंज के पर्वत K2 को सर्दी के मौसम में फ़तह कर लिया. यह इतिहास में पहली बार हुआ है. इससे पहले की सारी कोशिश नाकाम रही थी. नेपालियों की इस टीम का नेतृत्व निर्मल पुर्जा कर रहे थे. इन्होंने पाकिस्तान से जाकर ही k2 फ़तह किया था.
निर्मल पुर्जा से पाकिस्तान के बारे में पूछा तो उन्होंने जमकर तारीफ़ की. निर्मल पुर्जा ने बीबीसी से कहा, ''पाकिस्तानियों ने दिल जीत लिया. k2 समिट पूरा करने में पाकिस्तानियों ने दिल खोलकर मदद की. समिट पूरा करने के बाद पाकिस्तान में हीरो की तरह स्वागत किया गया. वहाँ के सेना प्रमुख ने अलग से मिलकर बधाई दी और पूरे मिशन के बारे में पूछा. राष्ट्रपति से भी मुलाक़ात हुई. मुझे तो लगता है कि भारतीयों को भी पाकिस्तान से मिलकर रहना चाहिए. दोनों भाई की तरह हैं. दोनों आपस में लड़ते हैं तो कोई तीसरा आदमी फ़ायदा उठा लेता है.''
नेपाल और पाकिस्तान संबंध
पाकिस्तान और नेपाल में 19 मार्च 1960 को राजनयिक रिश्ते बहाल हुए. तब से दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हैं. नेपाल ने पाकिस्तान से अपने रिश्ते को हमेशा भारत की नीति से अलग रखा. यहाँ तक कि भारत और पाकिस्तान में जंग हुई तो नेपाल ने किसी का पक्ष नहीं लिया. नेपाल ने कभी ये भी नहीं कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और न ही पाकिस्तान के दावे का समर्थन किया.
नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री रमेश नाथ पांडे ने बीबीसी हिन्दी से कहा कि नेपाल को किसी का पक्ष लेने की ज़रूरत भी नहीं है. उन्होंने कहा, ''नेपाल के भी अपने द्विपक्षीय हित हैं और उसी हिसाब से काम करेगा. भारत और नेपाल को रिश्तों में कई ऐतिहासिक बोझ हैं और इसे दोनों देश जब उठाकर नहीं फेंकते हैं तब तक नेपाल के लिए भारत के पक्ष में खुलकर आसान मुश्किल है.''
नेपाल और पाकिस्तान दोनों के चीन से अच्छे संबंध हैं. चीन और पाकिस्तान के बीच सीपीईसी का भी नेपाल समर्थन करता है. नेपाल भी चीन की वन बेल्ट रोड परियोजना में शामिल है. हालाँकि भारत इसका विरोध करता है. पाकिस्तान और नेपाल के बीच उच्चस्तरीय दौरे की शुरुआत 1961 में 10 से 16 सितंबर तक किंग महेंद्र की यात्रा से होती है. तब किंग महेंद्र का स्वागत पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने किया था.
किंग महेंद्र को उस दौरे में पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाज़ा गया था. इसके बदले में नेपाल ने भी अयूब ख़ान को ओजस्वी राजन्या से सम्मानित किया था. 1963 में नौ से 12 मई तक नेपाल के दौरे पर अयूब ख़ान आए. इसके बाद दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों का आना-जाना लगा रहा. सबसे हाल में पाँच मार्च 2018 को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद ख़क़ान अब्बासी काठमांडू आए थे और फिर पीएम ओली ने भी पाकिस्तान का दौरा किया था. (bbc.com)
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने कहा है कि वो होनहार विदेशियों को अपनी नागरिकता देगा. ये वो लोग होंगे जो खाड़ी के इस देश को अपने योगदान से और बेहतर बना सकें.
यूएई के उप-राष्ट्रपति और दुबई के शासक शेख़ मोहम्मद बिन रशीद अल मकतूम ने कहा है कि देश के नागरिक बनने की योग्यता रखने वाले काबिल विदेशियों में निवेशक, डॉक्टर, इंजीनियर, कलाकार और ऐसे लोग होंगे जो ख़ासतौर पर हुनरमंद हैं.
उनका कहना है कि होनहार विदेशी और उनके परिवारों के सदस्य दोहरी नागरिकता रख सकेंगे.
दुबई के शासक शेख़ मोहम्मद बिन रशीद अल मकतूम जिस कड़े पैमाने पर विदेशियों को यूएई की नागरिकता देने की बात कर रहे हैं, उसमें कम आय वाले लोग शायद ही फिट हो सकें.
शेख़ मोहम्मद बिन रशीद अल मकतूम का कहना है कि इसका मकसद उन लोगों को आकर्षित करना है जो 'हमारी विकास यात्रा में योगदान' दे सकें.
इसके लिए अलग से कोई आवेदन प्रक्रिया नहीं होगी. यूएई के शाही लोग और अधिकारी किसी विदेशी नागरिक को नागरिकता देने के लिए नामित करेंगे. इसके बाद यूएई की कैबिनेट तय करेगी कि उसे मंज़ूरी देना है या नहीं.
ये पहल ऐसे समय की जा रही है जब कोरोना महामारी और तेल की कम क़ीमतों के दौर की वजह से हज़ारों विदेशी यूएई को छोड़कर चले गए हैं.
अबुधाबी से निकलने वाले अख़बार 'द नेशनल' के मुताबिक, इस नई व्यवस्था से ख़ास क्षेत्रों के विशेषज्ञों और विदेशी निवेशकों को यूएई में अपनी जड़ें जमाने का मौका मिलेगा.
बीबीसी के अरब अफ़ेयर्स एडिटर सेबस्टियन अशर का कहना है कि आर्थिक और पर्यटन केंद्र के लिहाज से सऊदी अरब अमीरात विदेशियों पर निर्भर है. वहां रहने वाली बहुसंख्यक आबादी विदेशियों की ही है जो वर्कफोर्स में 90 प्रतिशत से अधिक हैं.
विदेशी कामगारों को अक़्सर रिन्यूबल वीज़ा दिए जाते हैं जो कई वर्ष तक मान्य होते हैं और रोज़गार से जुड़े होते हैं.
कम आय वाले श्रमिकों ने संयुक्त अरब अमीरात की अर्थव्यवस्था को बनाने में अहम भूमिका अदा की है. ये वो लोग हैं जो निर्माण, सेवा-सत्कार, रिटेल और ट्रैवल सेक्टर में काम करते हैं और वहां से कमाए धन को अपने वतन भेजकर घरवालों की मदद करते हैं.
इनमें से कई लोग वर्षों से संयुक्त अरब अमरीत में रह रहे हैं लेकिन उन्हें नागरिकता हासिल नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें सोशल वेलफेयर संबंधित फ़ायदे नहीं मिलते हैं.
संयुक्त अरब अमीरात में काम आय वालों की अनदेखी होती रही है जबकि दूसरी ओर निवेशक, छात्र और पेशेवरों के लिए लंबे समय तक रहने की पेशकश हुई है. (bbc.com)
बीजिंग, 30 जनवरी| संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को 28 जनवरी को न्यूयार्क में कोविड-19 रोधी टीका लगाया गया। उन्हें न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के निकट एक स्कूल में टीका लगाया गया। इस के बाद उन्होंने ट्वीट कर टीका लगने पर धन्यवाद व्यक्त किया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से न्यायपूर्ण ढंग से सभी लोगों को टीका उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। (आईएएनएस)
(साभार-चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
बीजिंग, 30 जनवरी| विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ट्रेडोस अधनोम घेब्रेयेसस ने 29 जनवरी को हुई प्रेस वार्ता में बताया कि कोविड-19 के टीके ने मानव के लिए महामारी को नियंत्रित करने का एक मौका दिया है। उसे बिलकुल भी नहीं गंवाना चाहिए। उन्होंने बल देकर कहा कि न्यायपूर्ण और प्रभावी रूप से टीके का प्रयोग किया जाना चाहिए। टीके के मुद्दे पर जातिवाद शायद अल्पकाल के राजनीतिक लक्ष्य की सेवा करेगा, लेकिन अंत में वह अल्पदर्शी साबित होगा।
उन्होंने बताया कि एक साल पहले मैंने कहा था कि पूरे विश्व के पास कोविड-19 के व्यापक फैलाव को रोकने के लिए एक मौका है। कुछ देशों ने इस अपील पर ध्यान दिया और कुछ ने इसकी उपेक्षा की। अब टीके ने हमें दूसरा मौका दिया है।
घेब्रेयेसस ने कहा कि कोविड-19 महामारी से विश्व की असमानता सामने आयी है, पर कोविड का टीका शायद असमानता और बढ़ाएगा।
उन्होंने कहा कि भविष्य में सभी लोगों को टीके उपलब्ध कराए जाएंगे, लेकिन वर्तमान में टीका एक सीमित संसाधन है। इसे न्यायपूर्ण और प्रभावी रूप से इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है। (आईएएनएस)
(साभार-चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
वाशिंगटन, 30 जनवरी| अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा फरवरी में अपने पहले स्पेस लॉन्च सिस्टम (एसएलएस) मेगा रॉकेट के लिए दूसरा हॉट फायर टेस्ट करेगी। इससे पहले नासा इसके लिए अपना पहला प्रयास कर चुकी है। अंतरिक्ष एजेंसी ने शुक्रवार को एक बयान में कहा, "नासा ने फरवरी के चौथे सप्ताह तक स्पेस लॉन्च सिस्टम (एसएलएस) रॉकेट के मुख्य चरण के साथ एक दूसरा ग्रीन रन हॉट फायर टेस्ट आयोजित करने की योजना बनाई है, जो चंद्रमा के लिए आर्टेमिस 1 मिशन का शुभारंभ करेगा।"
नासा का आर्टेमिस 1 मिशन चंद्रमा की परिक्रमा करने और पृथ्वी पर लौटने के लिए एजेंसी के स्पेस लॉन्च सिस्टम रॉकेट पर ओरियन लॉन्च करेगा।
दरअसल, एलएलएस के इंजन की हाल ही में टेस्ट फायरिंग हुई थी। इसमें चार आरएस-25 इंजन लगे हैं। रॉकेट के चारों इंजनों को वैसे ही फायर किया गया, जैसे वो लॉन्च के वक्त होंगे। इन इंजनों में पहली बार एक साथ एक मिनट तक फायरिंग हुई। हालांकि इसे बीच में ही रोक दिया गया। इसके बाद कहा जा रहा था कि आर्टेमिस प्रोग्राम के पहले मिशन की तारीख आगे बढ़ सकती है।
पहले हॉट फायर और सात ग्रीन रन परीक्षणों से डेटा का मूल्यांकन करने के बाद नासा और कोर स्टेज के प्रमुख कॉन्ट्रैक्टर बोइंग ने माना कि हॉट फायर टेस्ट लंबे समय किया जाना चाहिए था। नासा ने यह भी माना कि यह उड़ान के लिए मुख्य चरण को प्रमाणित करने में मदद करने के लिए मूल्यवान डेटा प्रदान करते हुए आर्टेमिस 1 मुख्य चरण के लिए न्यूनतम जोखिम पैदा करेगा।
यह भी माना गया है कि दूसरा ग्रीन रन हॉट-फायर न केवल आर्टेमिस 1, बल्कि भविष्य के सभी एसएलएस मिशनों के लिए भी जोखिम को कम करेगा।
परीक्षणों की ग्रीन रन सीरीज को कोर स्टेज डिजाइन को प्रमाणित करने और यह सत्यापित करने के लिए डिजाइन किया गया है कि नया चरण उड़ान के लिए तैयार है।
हॉट-फायर टेस्ट अंतिम ग्रीन रन टेस्ट है और यह मूल्यवान डेटा प्रदान करेगा, जो आने वाले वर्षों के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण मिशन के लिए जोखिम को कम करने में भी मदद करेगा।
प्रक्षेपण के बाद रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने में लगने वाले समय का अनुकरण करने के लिए लगभग आठ मिनट के लिए दूसरे हॉट फायर टेस्ट की योजना बनाई गई है। (आईएएनएस)
बीजिंग, 30 जनवरी | एक नियमित दोपहर की झपकी लेने से आपके मस्तिष्क को तेज रखा जा सकता है, क्योंकि एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दोपहर की झपकी लेना बेहतर मानसिक चपलता से जुड़ा है। चीन में शंघाई जिओ टोंग विश्वविद्यालय के वी ली शोधकर्ताओं का सुझाव है कि दोपहर की झपकी बेहतर स्थानीय जागरूकता, मौखिक प्रवाह और काम करने की स्मृति से जुड़ी हुई है।
जनरल साइकियाट्री नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने कम से कम 60 वर्ष की आयु के 2,214 स्वस्थ लोगों को शामिल किया और चीन के आसपास के कई बड़े शहरों के निवासियों को शामिल किया।
कुल मिलाकर, 1,534 ने नियमित दोपहर की झपकी ली, जबकि 680 ने नहीं। सभी प्रतिभागियों को मनोभ्रंश की जांच के लिए मिनी मेंटल स्टेट एग्जाम में स्वास्थ्य जांच और संज्ञानात्मक आकलन की एक श्रृंखला से गुजरना पड़ा।
दोनों समूहों में रात के समय की नींद की औसत लंबाई लगभग 6.5 घंटे थी। दोपहर की झपकी को कम से कम लगातार पांच मिनट की नींद की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया था, लेकिन 2 घंटे से अधिक नहीं।
डिमेंशिया स्क्रीनिंग परीक्षणों में 30 आइटम शामिल थे जो संज्ञानात्मक क्षमता के कई पहलुओं को मापते थे, और उच्च कार्य, जिसमें नेत्र संबंधी कौशल, कार्यशील मेमोरी, ध्यान अवधि, समस्या-समाधान, स्थानीय जागरूकता और मौखिक प्रवाह शामिल थे।
यह एक अवलोकन अध्ययन है, और इसलिए इसका कारण स्थापित नहीं किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि झपकी की अवधि या समय के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, जो महत्वपूर्ण हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि टिप्पणियों के लिए कुछ संभावित स्पष्टीकरण हैं। (आईएएनएस)
बिजिंग, 30 जनवरी | चीन ने साल 2020 में 18,489 अवैध वेबसाइटों को बंद कर दिया, और 4,551 अन्य लोगों को चेतावनी नोटिस जारी किया है। चीन के साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (सीएसी) ने शनिवार को यह खुलासा किया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने सीएसी के हवाले से बताया कि कुछ वेबसाइटें ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की आड़ में ऑनलाइन गेम को बढ़ावा या डेटिंग की जानकारी देने लगी थीं। इसलिए बंद कर दी गईं, जबकि अन्य को अवैध सामग्री फैलाने के लिए दंडित किया गया।
साल 2020 में साइबरस्पेस प्रशासन विभागों ने अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देने, समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालने और किशोरियों के लिए हानिकारक जानकारी से युक्त प्लेटफार्मो के साइबरस्पेस को शुद्ध करने के लिए कई अभियान चलाए।
सीएसी अवैध वेबसाइटों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से निपटने के लिए प्रांतीय स्तर के साइबरस्पेस प्रशासन विभागों को निर्देशित किया गया। (आईएएनएस)
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 30 जनवरी | पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक समुदाय को चेताते हुए एक बार फिर से दावा किया है कि भारत इस्लामाबाद के प्रति अपनी आक्रामकता को सही ठहराने के लिए फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन का उपयोग करता है।
मालूम हो कि जिम्मेदारी के वास्तविक स्रोत को छिपाने और दूसरी पार्टी पर दोष लगाने के उद्देश्य से फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन शब्द का उपयोग किया जाता है।
फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन उसे कहा जाता है, जहां पर किसी भी ऑपरेशन को अंजाम देने वाले की पहचान को पूरी तरह से छिपाया जाता है। इतना ही नहीं, इस तरह के ऑपरेशन को अंजाम देने वाला अगर पकड़ा जाता है तो उसमें अपनी भूमिका से पूरी तरह से मुंह फेर लिया जाता है। इस तरह के ऑपरेशन को अंजाम देने वालों को इस बात की पूरी जानकारी होती है कि अगर वे पकड़े गए तो सरकार उन्हें किसी तरह से भी स्वीकार नहीं करेगी।
पाकिस्तान ने एक बार फिर से कश्मीर राग अलापा है। पाकिस्तान अच्छे से जानता भी है कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और यह संवैधानिक और नैतिक तौर पर भारत का ही हिस्सा है, इसके बावजूद वह आए दिन किसी न किसी बहाने झूठी और मनगढंत बातें बनाकर कश्मीर का मुद्दा उछालता रहता है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक बहस (डिबेट) को संबोधित करते हुए, पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने कहा कि एक तरफ तो भारत ने कश्मीरी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को दबा दिया है और उसकी सेना कश्मीर के लोगों पर बेरोकटोक अत्याचार कर रही है, वहीं दूसरी ओर इसने मुस्लिम बहुल राज्य को हिंदू बहुल क्षेत्र में बदलने के लिए अभियान शुरू किया है।
पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने कहा, भारत ने पांच लाख से अधिक हिंदुओं को कश्मीरियों की भूमि पर कब्जा करने की अनुमति देकर मुस्लिम बहुल राज्य को हिंदू बहुल क्षेत्र में बदलने का अभियान शुरू किया है, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक नरसंहार है।
उन्होंने कहा, भारत ने अपने अभियान के माध्यम से कश्मीरियों को चुप करा दिया है, जबकि वह नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष विराम का लगातार उल्लंघन करके पाकिस्तान को आक्रामकता के माध्यम से धमकी देता है।
अकरम ने यह कहा कि फरवरी 2019 में भारत की ओर से विनाशकारी युद्धक स्थिति को पाकिस्तान के संयम के माध्यम से रोक दिया गया था।
पाकिस्तान ने हाल ही में जी4 राज्यों के खिलाफ आपत्ति जताई है, जिसमें भारत भी शामिल है, जो कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सीटें प्राप्त करने का एक प्रयास है। इसके बाद अब संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान ने भारत की आक्रामकता को लेकर चेताया है।
पाकिस्तान सरकार के सूत्रों ने कहा है कि भारत में किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है और नई दिल्ली उस विषय से ध्यान हटाने के लिए झूठे फ्लैग ऑपरेशन का विकल्प चुनने की कोशिश कर सकती है।
भारत के आरोपों को खारिज करते हुए पाकिस्तान ने कहा है कि 2019 पुलवामा आतंकी हमला एक स्थानीय कश्मीरी नागरिकों का कृत्य था, जो पाकिस्तान से जुड़ा नहीं है। (आईएएनएस)
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 30 जनवरी | पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट सिंध सरकार द्वारा अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या के मामले में सभी आरोपी व्यक्तियों को रिहा करने के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर एक फरवरी को सुनवाई करेगी।
प्रांतीय सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि सिंध हाईकोर्ट (एसएचसी) के आदेश में विस्तृत कारण स्पष्ट नहीं हैं।
याचिका में मुख्य आरोपी अहमद उमर सईद शेख सहित चार दोषियों की रिहाई के लिए 24 दिसंबर, 2020 को लिए गए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई है।
शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ, जिसने गुरुवार का फैसला सुनाया, वह इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेगी।
महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) सिंध सुलेमान तालिबुद्दीन ने कहा, एसएचसी के संक्षिप्त आदेश द्वारा दर्ज निष्कर्षों में से एक यह है कि उत्तरदाता संविधान के अनुच्छेद 10 (9) के अंतर्गत 'दुश्मन एलियंस' नहीं हैं। इस शब्द का अर्थ न्यायिक रूप से स्पष्ट नहीं है।
सिंध सरकार का कहना है कि आरोपी व्यक्ति 'दुश्मन एलियंस' की श्रेणी में आते हैं। सरकार ने कहा कि उसने एसएचसी के रिकॉर्ड पर सबूत पेश किया है, जिसे अस्वीकार कर दिया गया है।
आदेश-पत्र में कहा गया है, अब सिंध सरकार ने पीठ से अनुरोध किया है कि वह कानून और तथ्यों पर इस फैसले का उच्चारण करे।
महाधिवक्ता ने यह भी कहा कि एसएचसी ने अपने संक्षिप्त आदेश में सिंध सरकार को संविधान के अनुच्छेद 10 के तहत अपने अधिकार का प्रयोग करने से रोक दिया है। उन्होंने कहा कि यही प्रावधान सरकार को एक व्यक्ति की निवारक हिरासत को पारित करने के लिए अधिकृत करता है।
गौरतलब है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहमद उमर सईद शेख को रिहा करने का आदेश दिया था जो 2012 में अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल के अपहरण और हत्या का मुख्य आरोपी है।
लगभग 18 वर्ष पूर्व अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण एवं उनकी हत्या के मुख्य आरोपी अहमद उमर सईद शेख को पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिहा किए जाने के आदेश पर अमेरिका ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इसने कहा है कि शेख पर अब अमेरिका में मामला चलाया जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रवक्ता जेन साकी और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने गुरुवार को कहा कि अगर पाकिस्तान ब्रिटिश मूल के आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख को पर्ल के अपहरण व हत्या के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता है तो उसके खिलाफ अब अमेरिका में मामला चलाया जाएगा। (आईएएनएस)
काबुल, 30 जनवरी | अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत स्थित सैन्य शिविर के पास एक कार में हुए आत्मघाती विस्फोट में आठ अफगानी जवानों की मौत हो गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। प्रांतीय सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है, "आतंकवादियों ने शनिवार सुबह शिरजाद जिले के गंडुमक इलाके में विस्फोटक से भरे एक सैन्य वाहन में विस्फोट कर दिया, जिसमें आठ सैनिक मारे गए।"
बयान में आगे कहा गया है कि सुरक्षा बलों को उसी जिले से एक और विस्फोटक से भरा वाहन मिला है, जिसे आतंकवादी प्रांतीय राजधानी जलालाबाद शहर में विस्फोट करने की योजना बना रहे थे।
तालिबान ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
एक बयान में, आतंकवादी समूह के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा, "आत्मघाती हमलावर मुल्ला मोहम्मद यूसुफ कंधारी ने शिराजोजा जिले में सुबह 5.30 बजे विस्फोटक से भरे वाहन के साथ खुद को उड़ा लिया, जिसमें 50 सैनिक मारे गए और घायल हो गए।" (आईएएनएस)
लिस्बन, 30 जनवरी | पुर्तगाल की संसद ने 78 मतों के मुकाबले 136 मतों से इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी है। इस विषय पर संसद में हुए मतदान में चार सांसद अनुपस्थित थे। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को संसद में जिस विधेयक को पारित किया गया, उसमें कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति 18 वर्ष से ऊपर का है और उसे गंभीर चोट लगी हो, अथवा कोई गंभीर बीमारी हो जिसका निदान मुमकिन नहीं, उसे असहनीय पीड़ा हो रही हो और वह अपने पूरे होश में हो - तो ऐसी परिस्थिति में डॉक्टरों के परामर्श से इच्छामृत्यु की उसकी इच्छा पूरी की जा सकती है।
इस विधेयक में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि डॉक्टर और नर्स, मरीज की चैतन्य अवस्था के मद्देनजर इच्छामृत्यु से इनकार भी कर सकते हैं। इसके बाद पीड़ित राष्ट्रपति मार्सेलो रिबेलो डिसूजा के दरबार में गुहार लगा सकता है जो अपने वीटो का इस्तेमाल करते हुए मामले को संवैधानिक न्यायालय में भेज सकते हैं या इसे सीधे खारिज भी कर सकते हैं।
बहरहाल, अगर इस विधेयक पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती है तो इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता प्रदान करने वाला पुर्तगाल यूरोप का चौथा देश और दुनिया का सातवां देश बन जाएगा। (आईएएनएस)
कोरोना संकट से जूझ रहा नाइजीरिया आर्थिक संकट भी झेल रहा है जिसकी वजह से लाखों नौकरियां चली गई हैं. सरकार ने लोकनिर्माण के क्षेत्र में तीन महीने के रोजगार की पहल की है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस पर विवाद है.
(dw.com)
आठ साल पहले अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नाइजीरिया की एक युवा ग्रेजुएट एनी आदेजो ने होटलों और स्कूलों से लेकर नौसेना और पुलिस बल तक, हर जगह छान मारी लेकिन उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली. वे अब भी बेरोजगार हैं. राजधानी अबूजा में अपने घर पर बैठी, प्रौढ़ शिक्षा और बिजनेस की पढ़ाई कर चुकीं 34 साल की आदेजो का कहना है, "कभी मुझे बोला जाता है कि मेरा कोर्स उस जॉब के लायक नहीं है... कभी बोलते हैं कि मेरे पास अनुभव नहीं है."
कोरोना महामारी की वजह से अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश नाइजीरिया में भी बेरोजगारी बढ़ी है. पिछले पांच साल में इसकी दर करीब 14 प्रतिशत हो चुकी है, जिसके चलते सरकार ने नौकरियां पैदा करने के लिए एक व्यापक लोकनिर्माण योजना शुरू की है. स्पेशल पब्लिक वर्क्स (एसपीडब्ल्यू) कार्यक्रम के तहत, देश के करीब साढ़े सात लाख बेरोजगार युवाओं को तीन महीने की प्लेसमेंट के साथ 20 हजार नाइरा (51 डॉलर) की मासिक तनख्वाह दी जाएगी. ट्रैफिक संचालन और सड़क की मरम्मत जैसे कम-कुशल रोजगारों में वैसे तो आदेजो की दिलचस्पी नहीं है, फिर भी उन्होंने आवेदन करने का मन बना लिया है. उनका कहना है, "मैं खाली बैठे रहना नहीं चाहती हूं."
दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाले देशों में एक, नाइजीरिया में करीब एक करोड़ चालीस लाख युवाओं को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक नाइजीरिया की बीस करोड़ की आबादी में हर तीसरे से अधिक व्यक्ति 24 साल या उससे कम उम्र का है. ये आंकड़े युवाओं की बेरोजगारी को लेकर सरकार की चिंता तो दिखाते हैं लेकिन आलोचकों का कहना है कि एसपीडब्ल्यू प्रोग्राम देश की उन ढांचागत समस्याओं से मुखातिब नहीं है जहां तेल-संपदा ने एक छोटे से अभिजात वर्ग को तो संपन्न बनाया है लेकिन रोजगार पैदा करने में वो विफल रही है.
दक्षिण पश्चिम नाइजीरिया में इबादान विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अबियोदुन फोलावेवो कहते हैं, "ये विचार तो सराहनीय है लेकिन समंदर में एक बूंद जितना है. लिहाजा समस्या का हल नहीं, ये एक जुगाड़ है." उनका कहना है कि सरकारों को नौकरियां बांटने की बजाय व्यापारिक गतिविधियों को फलने फूलने के लिए सही स्थितियां बनाए रखनी चाहिए, इस तरह वो लेबर की मांग बढ़ा सकती है. "एक बार चीजें पटरी पर आ जाएं तो नौकरियां भी निकलेंगी. क्योंकि वे चीजें नदारद हैं, लिहाजा सरकार को ये सब करना पड़ रहा है."
गरीबी से लड़ाई
राज्य-केंद्रित रोजगार सृजन के कदमों के तरफदार लोग भी एसपीडब्लू को लेकर अपना संदेह जताते हैं. इस महीने के शुरुआती दिनों में राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी ने ये कार्यक्रम लॉन्च किया था. व्यापक रोजगार योजना के पक्षधर सेंट्रल बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर ओबेदियाह माइलाफिया का कहना है कि प्रमुख ढांचागत परियोजनाओं में निवेश, आगे चलकर उच्च कौशल वाले रोजगार पैदा कर सकता है. उनका कहना है, "मैं इसे खासतौर पर बहुत उत्साहवर्धक नहीं मानता हूं क्योंकि लोक-निर्माण योजना अनियत व्यवस्था से बहुत आगे की चीज है." 2019 में बुहारी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले माइलाफिया ने थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "लोक निर्माण प्रणालियों का मतलब है रेलवे नेटवर्क, हाईवे और आवास से जुड़ी परियोजनाओं का निर्माण और उन परियोजनाओ में बहुत से युवाओं को मिलने वाला रोजगार."
लेकिन श्रम राज्यमंत्री फेस्तुस केयामो का कहना है कि रोजगार की योजना एक आपातकालीन उपाय है जिसका लक्ष्य है, लंबी अवधि के आर्थिक प्रोत्साहन और ढांचागत कोशिशों के साथ साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद. प्रोग्राम की अगुवाई कर रहे केयामो के मुताबिक, "अभी सरकार यही कर रही है वरना वे कैसे जीवित रहेंगे?" उनका कहना है, "सरकार एक सक्षम माहौल तो बना ही रही है, वो थोड़े से लोगों को ही सही, ऊपर उठाने और थोड़े से लोगों को ही सही, फौरी तौर पर कुछ दे पाने के तरीके भी ढूंढती है." वो कहते हैं कि इसे वार्षिक कार्यक्रम बनाने के लिए या इसे एक कृषि कार्यक्रम में तब्दील करने के लिए सरकार योजना को तीन महीने से अधिक समय के लिए बढ़ाने पर विचार कर रही है.
'मैं लगातार आवेदन करती रही'
केयामो का कहना है कि योजना के तहत कम पढ़े-लिखे और सबसे निचले सामाजिक आर्थिक वर्ग को लक्षित किया गया है. लेकिन उन करोड़ों सुशिक्षित युवाओं का काम इससे नहीं चलेगा जो अल्प-रोजगार से जुड़े हैं, पार्टटाइम काम करते हैं या अपने कौशल के अनुकूल काम नहीं कर पा रहे हैं. नाइजीरिया के सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक देश में अल्प-रोजगार वाले युवाओं की बेरोजगारी दर 28.6 प्रतिशत है.
निर्माण क्षेत्र में रोजगार को प्रोत्साहन
2009 में विश्वविद्यालय से पासआउट और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विषय से मास्टर्स कर चुकीं नैन्सी ओटोकीना कुल मिलाकर दो साल से भी कम समय के लिए रोजगार में रह पायीं. मास्टर्स की पढ़ाई के लिए वो कॉलेज लौटीं लेकिन वो करने के बाद भी उन्हें कोई ढंग का काम नहीं मिला. 35 साल की ओटोकीना अब पांच साल के बेटे की मां हैं. वो कहती हैं, "मैंने सोचा था कि मास्टर्स कर लेने से मेरी संभावनाएं बढ़ जाएंगी. इसीलिए तो मैंने एमए किया था." नौकरी मिल जाए, इस उम्मीद में उन्होंने फिलहाल दूसरे बच्चे की प्लानिंग भी टाल दी है. उनका कहना है, "मैं बस नौकरियों के लिए लगातार आवेदन करती रहती हूं, करती रहती हूं."
राजनीतिक लाभ पाने का संदेह
एसपीडब्लू की छोटी मियाद पर सवाल उठाने के अलावा माइलाफिया और फोलावेवो जैसे कुछ आलोचकों को डर है कि सरकार इस कार्यक्रम को सत्तारूढ़ ऑल प्रोगेसिव्स कॉग्रेस (एपीसी) के समर्थकों को ईनाम बांटने का जरिया बना देगी. केयामो ने ऐसी आलोचनाओं का खंडन किया है. उनका दावा है कि चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने और राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त रखने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं.
उधर आदेजो को अपने आवेदन पर जवाब का इंतजार है. इस बीच वो अपने चर्च के प्रशासनिक कामों में स्वैच्छिक मदद कर रही हैं. सोशल मीडिया पर घरेलू सामान बेचकर वो अपना गुजारा चलाती हैं. उन्हें उम्मीद है कि आखिरकार एक दिन उन्हें नौकरी मिल ही जाएगी, "उम्मीद है कि मुझे बढ़िया नौकरी मिलेगी. मेरा सपना सेना या पुलिस में जाने का है."
एसजे/एमजे (रॉयटर्स थॉमसन फाउंडेशन)
कैलिफोर्निया. कैलिफोर्निया के डेविस शहर के सेंट्रल पार्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा के साथ अज्ञात लोगों ने तोड़फोड़ की. यह घटना 28 जनवरी को घटी. बता दें, यह मूर्ति साल 2016 में भारत सरकार ने डेविस शहर को उपहार में दी थी. भारत सरकार ने शहर में घटी इस घटना की निंदा की है.
वाशिंगटन डी. सी. में भारत के दूतावास ने इस मामले को लेकर गहन जांच की मांग की है. साथ ही इस घृणित कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की भी मांग की है. सैन फ्रांसिस्को में भी भारत के महावाणिज्य दूतावास ने अलग से डेविस शहर और स्थानीय कानून प्रवर्तन अधिकारियों के समक्ष मामला उठाया है, जिस पर जांच शुरू कर दी गई है.
वहीं, डेविस के मेयर ने इस घटना पर गहरा अफसोस जताया और बताया कि उन्होंने जांच शुरू कर दी है. उन्होंने कहा की ऐसा घृणित काम करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. साथ ही, अमेरिकी विदेश विभाग ने संदेश दिया है कि बर्बरता का यह कृत्य अस्वीकार्य है और अपराधियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर सजा दी जाएगी.
सहारा और साहेल में ग्रेट ग्रीन वॉल इलाके की जमीन को खराब होने से बचाने की बड़ी पहल है. इसका मकसद जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर लगाम लगाना, भूखमरी कम करना, रोजगार पैदा करना, और इलाके की भूमि को फिर से उपजाऊ बनाना है.
(dw.com)
बुर्किना फासो के एक गांव में पले-बढ़े, जॉर्जेस बेजोंगो ने अपने बचपन में माता-पिता और पड़ोसियों को पेड़ काटते हुए देखा था. ऐसा करके वे परिवार पालने के लिए पर्याप्त भोजन उगाने के लिए अपने खेतों का विस्तार करते थे. आज वे उन दिनों को याद करते हैं. उन्होंने कुछ सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पेड़ों को सूखते हुए भी देखा है. यह इस बात की ओर साफ संकेत है कि मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है, क्योंकि भारी बारिश के कारण मिट्टी की उपजाऊ परत बह गई है.
48 वर्षीय बेजोंगो ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से बात करते हुए बताया कि उनके कुछ रिश्तेदार बेहतर जीवन की तलाश में आइवरी कोस्ट चले गए हैं. इंटरनेशनल चैरिटी ट्री एड में परिचालन निदेशक बेजोंगो ने बताया कि यहां करीब एक दशक पहले हालात सुधरने शुरू हुए, जब सरकार और पर्यावरण समूहों ने ग्रामीणों को उनकी बंजर हो रही जमीन का कारण और खतरों के बारे में समझने में मदद की.
मिट्टी और जल संरक्षण
वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का करीब एक चौथाई हिस्सा मिट्टी के कटाव जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं और वनों के कटाव और पशु चराई जैसे मानवीय कृत्यों की वजह से खराब स्थिति में है. यह बेकार बड़ी जमीन बहुत ही कम उपजाऊ होने के साथ ही मिट्टी से कार्बन डाईऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में जलवायु को गर्म करने वाली जहरीली गैसों का उत्पादन करती है.
बेजोंगो का गांव राजधानी ऊगाडूगू से 160 किमी से ज्यादा दूर है. उन्होंने बताया कि यहां के स्थानीय लोगों ने ऐसे वनक्षेत्र की पहचान की है जहां पेड़ काटने की मनाही है. मिट्टी और जल संरक्षण के तरीके अपनाए गए हैं और अलग-अलग तरह की फसलें उगाई जा रही हैं. अब हालांकि उनका परिवार 16 सदस्यों से बढ़कर 36 सदस्यों का हो चुका है लेकिन इसके बावजूद परिवार के लिए कृषि से भरपूर भोजन पैदा हो जाता है. उनका पशुधन और जंगल से प्राप्त खाद्य पदार्थों की भी कमी नहीं है. यही नहीं, अब उन्हें अपने खेतों का विस्तार करने की भी जरूरत नहीं है.
ग्रेट ग्रीन वॉल पहल
बेजोंगो का गांव ग्रेट ग्रीन वॉल पहल का हिस्सा है. ग्रेट ग्रीन वॉल की बात करें तो यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर लगाम लगाने, भूखमरी कम करने, रोजगार पैदा करने, और सहारा रेगिस्तान से दक्षिणी हिस्से से नीचे के पूरे भूभाग में भूमि को फिर से उपजाऊ बनाकर संघर्ष को रोकने के लिए एक क्षेत्रीय कार्यक्रम का नाम है. बेजोंगो का संगठन पांच देशों में इस पहल का समर्थन करता है और वे कहते हैं, "हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने यह नए कौशल सीखे हैं.' उन्होंने आगे कहा, "लेकिन गरीबी में जीने वाले उन लाखों परिवारों के बारे में क्या? इसका मतलब है कि वे अब भी खेती योग्य भूमि का विस्तार कर रहे हैं, पेड़ काट रहे हैं. वे पेड़ काटने के साथ ही जानवरों के प्राकृतिक आवास को नष्ट कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें कोई दूसरा विकल्प नजर ही नहीं आ रहा है.'
उन्होंने पाया कि इस तरह के व्यवहार को बदलने के लिए फंडिंग मिलना एक चुनौती है. वे बताते हैं, "फ्रांस की घोषणा से खुशी हुई कि विकास बैंक और सरकार ने ग्रेट ग्रीन वॉल के काम को गति देने के लिए 14 अरब डॉलर देने का वादा किया है.” पेरिस में आयोजित वन प्लैनेट समिट में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल माक्रों ने कहा कि फ्रांस यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिबद्धता को बरकरार रखा जाए. अमेरिका स्थित वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) में एक शोध सहयोगी के तौर पर काम करने वाली नाइजर में जन्मी सलीमा महमूदो ने साहेल में भूमि सुधार के लाभों को स्वयं देखा है. उनका कहना है कि फंडिंग को लेकर जो वादे किए गए हैं उन्हें अमली जामा पहनाया जाना जरूरी है.
शुरुआती मुसीबत के दिन बीते
साल 2007 में पहली बार ग्रेट ग्रीन वॉल का विचार सामने आया. उस समय इसका उद्देश्य पश्चिम में सेनेगल से लेकर पूर्व में जिबूती तक 11 प्रमुख देशों में 8,000 किलोमीटर क्षेत्र में पेड़ लगाना था. उस समय ऐसा करने के पीछे उद्देश्य ये था कि पहले से ही बढ़ते तापमान, बाढ़ और गृहयुद्ध जैसे हालात से प्रभावित क्षेत्र में मरुस्थलीकरण को रोका जाए. जंगलों को फिर से उगाने के विचार पर संकीर्ण दृष्टिकोण जैसी आलोचनाओं के बाद इस योजना को और ज्यादा फैलाया गया. इसमें कई अन्य दृष्टिकोणों को शामिल किया गया, जिसमें बहुउद्देश्यीय उद्यान बनाना, वनस्पति के विकास के लिए रेत के टीलों को आगे बढ़ने से रोकना और योजना को 20 देशों को विस्तार देना शामिल हैं.
इस योजना के तहत 10 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को संवारना, 25 करोड़ टन कार्बन को खत्म करना और 2030 तक 10 करोड़ हरित रोजगार सृजन का उद्देश्य है. ऐसे में नई फंडिंग बहुत जरूरी थी. द ग्रेट ग्रीन वॉल ने अपनी अंतिम समय सीमा का आधे से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बावजूद अब तक अपने लक्ष्य क्षेत्र का सिर्फ चार फीसद (40 लाख हेक्टेयर) ही कवर किया है.
निगरानी की कमी
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि फिर से जंगल लगाने के काम को 3.6 अरब से 4.3 अरब डॉलर की वार्षिक लागत में 80 लाख हेक्टेयर प्रतिवर्ष की रफ्तार से करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना को राष्ट्रीय पर्यावरणीय प्राथमिकताओं के साथ जोड़ा नहीं गया है और इसकी निगरानी भी अच्छी तरह से नहीं की जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने ग्रीन क्लाइमेट फंड के साथ ग्रेट ग्रीन वाल को पूरा करने के काम में तेजी लाने के लिए एक नया निवेश कार्यक्रम शुरू किया है.
इसके तहत छोटे किसानों और कृषि व्यवासायों को मदद मिलने के साथ ही रोजगार सृजन भी होगा. परियोजना में सिंचाई की व्यवस्था करना और जलवायु के अनुसार बुनियादी ढांचागत विकास करना शामिल है. जैसे बाढ़ से सुरक्षित सड़कें और फसल प्रसंस्करण या भंडारण सुविधाओं का निर्माण करना और सौर ऊर्जा का विस्तार. पिछले साल उप-सहारा क्षेत्र के अफ्रीकियों में हर पांच में से एक से ज्यादा व्यक्ति भूखा रहा. साहेल की जनसंख्या के साल 2050 तक दोगुना होने की भविष्यवाणी की गई है. आईएफएडी ने चेतावनी दी है कि लाखों युवा कृषि पैदावार के गिरने के कारण पलायन और संघर्ष को मजबूर होंगे. हुंगबो ने कहा, "द ग्रेट ग्रीन वॉल के जरिए आप जलवायु, खाद्य सुरक्षा, मानव सुरक्षा और रोजगार निर्माण के विभिन्न आयामों को एक साथ साध लेते हैं.'
भविष्य में अच्छा निवेश
जमीन की बहाली और पर्यावरण समूहों के गठबंधन पर काम करने वाले ग्लोबल एवरग्रीनिंग एलायंस के लार्स लेस्टाडियस ने कहा कि द ग्रेट ग्रीन वॉल को गरीबों में समृद्धि लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां हर एक पेड़ किसी की आजीविका का साधन बनेगा. सवाल इस बात को लेकर हैं कि किस प्रकार की बहाली को प्राथमिकता दी जाएगी. महंगे ट्रैक्टर से सूखी मिट्टी में गड्डे खोदे जाएं, ताकि नए पेड़ लगाए जा सकें, या पहले से काटे जा चुके पेड़ों के बचे हुए तने पर जन्मे नए पौधे की रक्षा की जाए. उन्होंने कहा, "यह बहुत सस्ता है और नाइजर में उन्होंने यह होते हुए देखा है. बहुत ही कम लागत में आप इस तरह से एक बड़े क्षेत्र को कवर कर सकते हैं.'
विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मलपास ने पैरिस सबमिट में कहा कि भूमि बहाली में निवेश आर्थिक समझदारी है. उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए नाइजर में हर एक डॉलर के निवेश से 6 डॉलर का लाभ होता है.” मरुस्थलीकरण (डेजर्टिफिकेशन) के खिलाफ लड़ने के लिए बने संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की संचालन शाखा की प्रमुख लुईस बेकर ने कहा, "जो नेता या मंत्री इससे बाहर हैं वे द ग्रेट ग्रीन वॉल को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, जितना उन्हें लेना चाहिए. लेकिन कोविड-19 रिकवरी योजनाओं ने इसे बदलने का अवसर दिया है.'
प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इलाके की जमीन को बेहतर बनाने से कई समस्याओं का हल हो जाएगा. साहेल जैसी जगह में जहां 70-80 फीसद लोग किसान हैं, वहां स्थानीय कृषि मूल्य श्रृंखलाओं का समर्थन करके उनकी आयातित माल पर निर्भरता को कम किया जा सकता है और उनकी आय को सुरक्षित करके उनकी मानवीय सहायता हो सकती है. लुइस बेकर कहती हैं, "अगर हम द ग्रेट ग्रीन वॉल जैसा कुछ करते हैं तो हम इस धन का बेहतर तरीके से निवेश करेंगे, लोगों को कुछ अलग तरह के अवसर और मौके दे सकेंगे.
आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
महिला समानता के मामले में कंबोडिया भी दूसरे देशों जैसा ही है. कंबोडिया में 700 सालों तक एक कविता के जरिए महिलाओं को सिखाया गया कि पति की बात को चुनौती नहीं देनी चाहिए, उनकी हर बात माननी चाहिए. लेकिन हालात बदल रहे हैं.
(dw.com)
"रात के खाने में देरी हो चुकी है. कपड़े की सफाई नहीं हुई है. अचार ठीक नहीं है.' कंबोडिया के रेम रान ने सारे बहाने सुन रखे हैं जिनका इस्तेमाल कोई पति अपनी पत्नी को पीटने के लिए करता है. रेम रान, निर्माण से जुड़े क्षेत्र में काम करते है. उन्होंने अपनी पिछले 40 साल की जिंदगी में घरेलू हिंसा को "जीवन का एक सामान्य हिस्सा' के तौर पर देखा है, लेकिन अब वे हालात को बदलने की कोशिश कर रहे हैं और इसका असर भी दिख रहा है.
कंबोडिया के स्कूलों में चलने वाली किताबों में 2007 तक बताया जाता था कि लड़कियों को अपने पतियों को चुनौती नहीं देनी चाहिए. अब भी किसी-किसी किताबों में ऐसा लिखा मिल जाता है. हालांकि, अब समय बदलने लगा है. अब ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के मामले राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा बनने लगे हैं. इस महीने कंबोडिया की सरकार ने भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना शुरू की है.
मामलों को नजरअंदाज करते हैं अधिकारी
जेंडर एंड डेवलपमेंट फॉर कंबोडिया एक गैर सरकारी संस्थान है. यह संस्थान महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को लेकर हस्तक्षेप करता है, हिंसा के खिलाफ जागरूकता के लिए कार्यशाला का आयोजन करता है, और इससे जुड़ी पीड़ितों से मुलाकात कर अधिकारियों तक उनके मामलों को पहुंचाता है. इस संस्था ने 30 लोगों को प्रशिक्षित किया है. रान उनमें से एक हैं. रान कहते हैं कि लिंग आधारित हिंसा "एक मानसिकता” से आती है. यह मानसिकता लोगों के दिमाग पर इस कदर हावी हो चुकी है कि इसे खत्म करना काफी मुश्किल है.
रान महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते है. कंबोडिया की राजधानी नामपेन्ह में लैंगिक समानता को लेकर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. यहां देश के बाहर से आए करीब एक दर्जन लोगों ने लैंगिक समानता के बारे में सीखा. इसी कार्यशाला में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से बात करते हुए रान ने कहा, "मैंने महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और संवेदनहीन हिंसा के कई मामले देखे हैं. आमतौर पर, अधिकारी इसे नजरअंदाज करते हैं. अधिकारी कहते हैं कि यह एक निजी मामला है जिसे हर कीमत पर पति-पत्नी के ऊपर छोड़ दिया जाना चाहिए. हम इसे एक सामूहिक मामला बनाते हैं और अधिकारियों इसे रोकने की सलाह देते हैं.'
स्थिति में हुआ है पहले से सुधार
विश्व आर्थिक मंच के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स के मुताबिक, लैंगिक समानता को लेकर 2016 में कंबोडिया 112वें पायदान पर था लेकिन 2020 में यह 89वें पायदान पर पहुंच गया है. हालांकि, 2020 में देश में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसकी हर जगह निंदा की गई. फरवरी महीने में ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर कपड़े बेचने वाली 39 साल की एक महिला को पोर्नोग्राफी के आरोपों में जेल में डाल दिया गया था. इस घटना के दो दिन पहले प्रधानमंत्री हुन सेन ने कहा था कि महिलाएं लाइवस्ट्रीम बिक्री के दौरान उत्तेजक कपड़े पहन यौन उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही थी. इस घटना के पांच महीने बाद एक मसौदा मीडिया में लीक हुआ था जिसमें पहनावे को तय करने के लिए कानून बनाने की बात थी.
पिछले साल सितंबर महीने में पुलिस के एक प्रमुख अधिकारी पर मुकदमा नहीं चलाया गया, हालांकि उसे जांच में चार कनिष्ठ महिला अधिकारियों के साथ यौन दुर्व्यवहार का दोषी पाया गया. उनके करियर को खतरे में डालने की धमकी देकर उन्हें चुप करा दिया था. महिला अधिकारियों की हिम्मत के लिए तारीफ की गई और महिला अधिकारों के लिए अभियान चलाने वालों ने इसे महिला मामलों के मंत्रालय की विफलता बताया. सरकार 'महिलाओं के सम्मान की रक्षा' करने के नाम पर मुकदमे से पीछे हट गई.
पितृसत्ता की रक्षा की कोशिश
महिलाओं के लिए काम करने वालों ने कहा कि देश में महिलाओं को काफी कम अधिकार दिए गए हैं. अधिकारियों ने प्रत्येक मामले में तर्क दिया कि कंबोडियाई संस्कृति और महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी नहीं थी. जेंडर एंड डेवलपमेंट फॉर कंबोडिया (जीएडीसी) के निदेशक रोस सोफेप ने कहा, "महिलाओं के शरीर पर अधिकार जमाना संस्कृति या गरिमा नहीं है. इन सभी निर्णयों को कौन देखता है: पुरुष. यह यथास्थिति और पितृसत्ता की रक्षा को लेकर है."
कंबोडिया की समीक्षा करते हुए साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने "ऐसे सामाजिक मानदंडों को समाप्त करने का आह्वान किया जो लिंग आधारित हिंसा को सही ठहराते हैं". इसमें चबाप श्रेय का उन्मूलन भी शामिल है. यह कविता "महिलाओं के पिछड़ेपन की स्थिति का मूल कारण" है.
पति की सारी बातें माननी चाहिए
चबाप श्रेय या महिलाओं के लिए कोड की शुरुआत 14वीं शताब्दी में हुई थी जो 2007 तक चली. यह वहां के स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा भी थी. 16 साल की उम्र होने तक सभी लड़कियों को यह कविता पूरी तरह से याद करवायी जाती थी. पारंपरिक कला को सहेजने वाली एक चैरिटी कंबोडियन लिविंग आर्ट की प्रोग्राम मैनेजर और कवियित्री सो फिना कहती हैं, "इस कविता का लय काफी अच्छा है, लेकिन अर्थ काफी नुकसानदायक था. इसका समाज पर काफी असर देखने को मिला.'
कविता में बताया गया है कि महिलाओं को अपने पति की सारी बातें माननी चाहिए और उसकी सेवा करनी चाहिए. साथ ही महिलाओं के रहने और पहनावे को लेकर भी कई बातें बताई गई है. फिना आगे कहती हैं, "जब हम बड़े हो रहे थे, तो इसे सीखना काफी अच्छा लगता था. लेकिन क्या हमें यह सिखाया जाता है कि हमें यह सवाल करना चाहिए कि यह कोड महिलाओं पर क्यों लगाया गया है.'
राष्ट्रव्यापी योजना
साल 2007 में इस कोड पर रोक लगा दी गई लेकिन अभी भी यह 7वीं, 8वीं और 9वीं कक्षा की किताबों में शामिल है. शिक्षा मंत्रालय में पाठ्यक्रम विकास के निदेशक सुन बुन्ना कहते हैं कि उन्हें बैन की जानकारी नहीं थी. चबाप श्रेय एक अच्छी कविता है. इससे लड़कियों को समाज में बहादुरी से रहने की सीख मिलती है. इस कविता की आलोचना करना पूरी तरह गलत है. आज की तारीख में समाज पूरी तरह खुल चुका है. महिलाएं दुनिया के हर हिस्से की खबरें पढ़ सकती हैं. कभी-कभी वे उन जानकारी को स्वीकार कर सकती हैं और हिंसा कर सकती हैं.
इस महीने कंबोडिया ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुकाबला करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी योजना शुरू की है. वहीं महिला अधिकारों के लिए काम करने वालों ने "समाज की हर परत में उलझे सामाजिक मानदंडों" को जड़ से खत्म करने की क्षमता पर संदेह व्यक्त किया है. स्थानीय मानवाधिकार समूह लिचाडो के निदेशक नैली पिलोग ने कहा, "पीड़ितों के दोषारोपण की प्रथा लैंगिक असमानता को और बढ़ाती है और हिंसा और असुरक्षा का वातावरण तैयार करती है." वे कहते हैं, "सरकार जब तक प्रशासन के सभी स्तरों पर लैंगिक समानता के लिए काम नहीं करती है, तब तक कंबोडिया की महिलाओं की जीवन स्थिति में सुधार नहीं होने वाला है."
आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
-अरुल लुईस
न्यूयार्क, 30 जनवरी| अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण एवं उनकी हत्या के मुख्य आरोपी अहमद उमर सईद शेख को पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिहा किए जाने के आदेश के बाद अमेरिका के सख्त रुख से पाकिस्तान पर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया है। इस सम्बंध में अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष शाह महमूद कुरैशी से फोन पर बात की है।
विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने शुक्रवार को इस फोन काल के बारे में बताया कि ब्लिंकेन ने पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के फैसले व पर्ल के हत्यारों की रिहाई के आदेश पर अमेरिकी चिंता से कुरैशी को अवगत कराया है।
प्राइस ने कहा कि ब्लिंकेन और कुरैशी ने पर्ल के अपहरण एवं उनकी हत्या के मुख्य आरोपी अहमद उमर सईद शेख व अन्य संदिग्धों की जवाबदेही सुनिश्चित किए जाने के सम्बंध में बात की।
गौरतलब है कि लगभग 18 वर्ष पहले अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण एवं उनकी हत्या के मुख्य आरोपी अहमद उमर सईद शेख को पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिहा किए जाने के आदेश पर अमेरिका ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि शेख पर अब अमेरिका में मामला चलाया जा सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रवक्ता जेन साकी और विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने गुरुवार को कहा था कि अगर पाकिस्तान, ब्रिटिश मूल के आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख को डेनियल पर्ल के अपहरण एवं हत्या के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता है, तो अब उसके खिलाफ अमेरिका में मामला चलाया जा सकता है। अमेरिका उसे हिरासत में लेने और उसके खिलाफ मामला चलाने के लिए तैयार है।
साकी ने कहा कि हमने पाकिस्तान सरकार से कहा है कि वह एक अमेरिकी नागरिक व पत्रकार की नृशंस हत्या के लिए शेख पर मामला चलाने हेतु अमेरिका को अनुमति दें और अपने सभी कानूनी विकल्पों की तेजी से समीक्षा करें।
साकी ने यह भी कहा कि अमेरिकी वॉल स्ट्रीट जर्नल के दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख डेनियल पर्ल की हत्या के आरोपी व तीन अन्य संदिग्धों को रिहा किए जाने के फैसले से बेहद खफा है।
बहरहाल, ब्लिंकेन ने भी दो टूक कहा है कि हम पर्ल के परिवार को न्याय दिलाने एवं अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। (आईएएनएस)
न्यूयार्क, 30 जनवरी| संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कोविड का टीका लगवाया है। इसकी जानकारी यूएन की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित एक रिपोर्ट से मिली है। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यूएन प्रमुख ने अपने ट्विटर पोस्ट पर कहा है कि यह टीका लगवाकर मैं खुद को भाग्यशाली मान रहा हूं और इसके लिए आभारी भी हूं। उन्होंने यह वैक्सीन सबको समान रूप से उपलब्ध करवाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह भी किया है।
उन्होंने लिखा कि इस महामारी से जब तक हम सभी लोग सुरक्षित नहीं हैं, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक, वयोवृद्ध होने के कारण 71-वर्षीय यूएन महासचिव को वैक्सीन लगाया गया। न्यूयार्क में टीकाकरण के मौजूदा अभियान में 65 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को शामिल किया गया है। इस चरण में स्कूल वर्कर्स, पब्लिक ट्रांजिट वर्कर्स और ग्रोसरी वर्कर्स को भी शामिल किया गया है।
बहरहाल, गुटेरेस को न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय से कुछ मील दूर अदलाई ई. स्टीवेंशन हाई स्कूल में वैक्सीन लगाया गया।
गौरतलब है कि गुटेरेस ने दिसम्बर में कहा था कि वह खुशी-खुशी सार्वजनिक रूप से वैक्सीन लगवाएंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि कोविड वैक्सीन लगवाना उनकी नैतिक जिम्मेदारी भी है। (आईएएनएस)
कंपाला, 30 जनवरी | यूगांडा की सरकार ने कहा है कि देश को कोविड-19 की वैक्सीन अप्रैल या मई के महीने से मिलेगी। शुक्रवार को सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यूगांडा मीडिया सेंटर द्वारा जारी एक सरकारी बयान में कहा गया है कि देश को वैक्सीन के लिए 16.4 करोड़ डॉलर चुकाने होंगे और इससे 90 लाख लोग लाभान्वित होंगे।
टीकाकरण में उन लोगों को पहली प्राथमिकता दी जाएगी, जिनमें संक्रमण का खतरा सर्वाधिक है जैसे कि बुजुर्ग, स्वास्थ्य कर्मी, गंभीर बीमारी से पीड़ित कोई व्यक्ति, सामाजिक कार्यकर्ता इत्यादि।
हालांकि इस विषय पर अभी बातचीत चल रही है कि क्या निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के तहत यात्रियों को वैक्सीन मुहैया कराई जाएगी या नहीं और ऐसे लोग जो प्राथमिकता सूची में भले ही नहीं हैं, लेकिन वैक्सीन खरीद पाने में सक्षम हैं, उन्हें वैक्सीन दी जाएगी या नहीं।
गुरुवार को जारी एक बयान में कहा गया है कि वर्तमान में आपातकालीन इस्तेमाल की सूची के तहत पांच वैक्सीन हैं, जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से मंजूरी मिलना बाकी है। ये वैक्सीन हैं : मॉडर्ना, फाइजर (अमेरिका), एस्ट्राजेनेका (ब्रिटेन), स्पुतनिक (रूस) और साइनोवैक (चीन)। (आईएएनएस)
पाकिस्तान में इमरान सरकार की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं. एक तरफ लगातार बढ़ते कर्ज तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष लगातार पीएम इमरान खान को लेकर निशाना साध रहा है. दरअसल, ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के ताजा करप्शन पर्स्पेशन इंडेक्स में पाकिस्तान चार स्थान और नीचे गिर गया है. बता दें, दुनिया के 180 देशों की इस रैंकिंग में पाकिस्तान 124वें पायदान पर है. वहीं, बांग्लादेश 146वें, चीन 78वें और भारत 86वें स्थान पर है. रिपोर्ट आने के बाद से ही पाकिस्तान में विपक्ष इमरान पर और ज्यादा हमलावर हो गया है.
पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने इमरान खान सरकार पर देश के और ज्यादा भ्रष्ट होने पर जोरदार हमला बोला है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान वर्ष 2020 और वर्ष 2019 में 120वें स्थान पर था और अब यह 124वें स्थान पर पहुंच गया है. यही नहीं वर्ष 2018 से तुलना करें तो इमरान का नया पाकिस्तान 7 पायदान नीचे चला गया है. बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी की नेता शेरी रहमान ने इमरान खान पर निशाना साधते हुए कहा कि इमरान खान भ्रष्टाचार के खात्मे का दावा करते हैं लेकिन उनका दावा झूठा है.
शेरी रहमान ने कहा कि इमरान खान के कार्यकाल में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जा रहा है और पाकिस्तान ग्लोबल करप्शन इंडेक्स में लगातार नीचे जा रहा है. इससे सरकार के कामकाज पर सवालिया निशान लग गया है. उन्होंने कहा कि जबसे इमरान खान पीएम बने हैं, पाकिस्तान भ्रष्टाचार इंडेक्स में सात पायदान नीचे चला गया है. शेरी रहमान ने कहा कि अब दुनिया इमरान सरकार के भ्रष्टाचार को देख रही है.
विपक्षी दलों ने कहा कि इमरान खान सरकार को अब सत्ता में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. बता दें कि हर साल दुनिया के देशों का करप्शन इंडेक्स तैयार करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल ने इस बार के मापदंडों में कोविड-19 महामारी से निपटने के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर विशेष जोर दिया. संस्था की चेयरपर्सन डेलिया फरेरिया रूबियो ने कहा, कोविड-19 सिर्फ स्वास्थ्य और आर्थिक संकट नहीं है. यह भ्रष्टाचार संकट भी है जिससे हम फिलहाल निपटने में असफल साबित हो रहे हैं.
कराची. पाकिस्तान में सिंध के गवर्नर के काफिले में प्रोटोकॉल के साथ उनके कुत्ते का गाड़ी पर घूमते वीडियो वायरल होने के बाद कोहराम मच गया है. देश में बवाल मचने के बाद गवर्नर इमरान इस्माइल ने सफाई दी है. उन्होंने कहा कि उनका कुत्ता परिवारवालों के साथ था और उसे कोई प्रोटोकॉल नहीं दिया गया था.
बता दें कि प्रोटोकॉल के साथ कुत्ता घूमने का वीडियो सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है. लोग सोशल मीडिया पर गवर्नर इस्माइल पर जमकर निशाना साध रहे थे. वायरल वीडियो में दिख रहा था कि इस्माइल का कुत्ता खिड़की के बाहर अपनी गर्दन निकालकर चारों तरफ देख रहा था.
इस्माइल ने बवाल मचने के बाद सफाई देते हुए कहा कि कार में कुत्ता अकेला नहीं था, उसके साथ उनके घरवाले थे. उन्होंने कहा कि प्रोटोकॉल गाड़ियां कुत्ते के लिए नहीं थीं बल्कि उनकी फैमिली की सुरक्षा के लिए थीं. उन्होंने कहा कि इस तरह के वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करने का चलन बढ़ गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि जिसने यह वीडियो बनाया है वह करप्ट सरकार का हिस्सा है.
गवर्नर इस्माइल ने कहा कि पीटीआई सरकार का लक्ष्य देश में बदलाव लाना है और यह पूरा होकर रहेगा. बता दें कि सूचना और तकनीक मंत्री तैमूर तालपुर ने कल इस वीडियो को ट्वीटर अकांउट पर पोस्ट किया था.
फ्रेंच आल्प्स में बीवी बच्चों के साथ घूमने निकला एक शख्स बर्फीले तूफान में घिर गया. ढाई घंटे से ज्यादा बर्फ के नीचे दबे रहने के बाद भी वो जिंदा बच गया. आमतौर पर 20 मिनट के बाद ही जिंदा बचने की उम्मीद खत्म हो जाती है.
(dw.com)
50 साल का यह शख्स गुरुवार को अपने दो बच्चों और बीवी के साथ काफी ऊंचाई पर बने वाल डीसेरे स्की रिसॉर्ट के पास घूमने निकला था. उनके पास बर्फीले तूफान से सुरक्षा के लिए कोई उपकरण भी नहीं था. स्थानीय इलाके सावी की पुलिस का कहना है, "शुक्र है कि तुरंत वहां करीब 100 लोग जमा हो गए... दो घंटे और 40 मिनट तक खोजने के बाद वह शख्स जिंदा मिल गया."
बहुत ज्यादा बर्फ होने की वजह से बचावकर्मियों के साथ मौजूद खोजी कुत्ते भी उसे ढूंढ पाने में नाकाम साबित हुए. हालांकि माउंटेन पुलिस के एक खास दस्ते ने वोल्फहाउंड उपकरण की मदद से बर्फ के नीचे उसके मोबाइल फोन पता लगा लिया.
चमत्कार था जीवित बचना
बचावकर्मियों की टीम पीजीएचेम के सदस्य अलेक्सांद्रे गेर्थर ने स्थानीय न्यूज चैनल फ्रांस 3 से कहा, "मुझे तो यह चमत्कार लगता है." ग्रेथर ने बताया कि वह शख्स सतह से ढाई मीटर यानी करीब आठ फुट नीचे दबा हुआ था. बर्फीले तुफान में दब जाने के 20 मिनट बाद ही जिंदा होने की उम्मीदें खत्म हो जाती है.
ग्रेथर ने समझाया कि उसकी जान कैसे बची, "उसकी रक्षा एक पेड़ ने की जिसने उसे ऊपर से गिरने वाली बर्फ के नीचे दबने से रोक लिया. उसके चारों तरफ बर्फ थी लेकिन पेड़ की वजह से एक छोटी सी दरार बन गई जिसने उसे सांस लेने के लिए हवा का रास्ता बनाए रखा. "पीड़ित शख्स के कूल्हे की एक हड्डी टूट गई है उसके जुड़ने के बाद वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा.
सालों बाद ऐसी बर्फबारी
गुरुवार को इलाके में बर्फीले तूफान का अंदेशा बहुत ज्यादा था. पांच के स्केल पर इसे पांच ही बताया जा रहा था और बचाव दल के लोग सैलानियों से आग्रह कर रहे थे कि वो बाहर जाने से पहले बर्फ की स्थिति देख लें. कई सालों के बाद यहां जनवरी में इतनी भारी बर्फबारी हुई है. कोविड-19 की महामारी के चलते आल्प्स के स्की लिफ्ट को भी फिलहाल बंद कर दिया गया है.
सैलानियों को बर्फ में घूमने फिरने की आजादी है हालांकि होटलों और कैम्पों में रुकने वालों लोगों की संख्या बहुत कम है. इलाके के कारोबारी मुश्किल हालात का सामना कर रहे हैं. सरकार ने उनकी मदद के लिए उन्हें आर्थिक पैकेज देने का वादा किया है.
एनआर/एमजे (एएफपी)
क्या जो बाइडेन सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के सवाल पर झिझक रहे हैं? संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की अगली राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड के अमेरिकी संसद में दिए गए बयान को लेकर यह सवाल उठाया जा रहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा-
लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड अमेरिकी सीनेट की विदेशी रिश्तों की समिति के सामने पेश हुई थीं जहां उनसे पूछा गया कि वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के बारे में क्या सोचती हैं और उनकी राय में क्या भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील को परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए.
थॉमस-ग्रीनफील्ड ने जवाब में कहा कि उन्हें लगता है कि इस विषय पर कुछ चर्चा हुई है और इन देशों को स्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में कुछ मजबूत दलीलें दी गई हैं. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें यह भी मालूम है कि जिन प्रांतों में ये देश हैं वहां कुछ दूसरे देश इन देशों को इलाके का प्रतिनिधि बना दिए जाने के फैसले से असहमत हैं. उन्होंने कहा कि इस पर अभी चर्चा चल ही रही है.
थॉमस-ग्रीनफील्ड के इस बयान को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि ये कहीं इस बात का संकेत तो नहीं है कि बाइडेन प्रशासन भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर प्रतिबद्ध नहीं है और झिझक रहा है. हालांकि जानकारों का कहना है कि उस बयान को सही परिपेक्ष में देखना जरूरी है. भारत की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दावेदारी कई सालों पुरानी है.
और भी हैं दावेदार
बीते दशकों में पिछले कम से कम तीन अमेरिकी राष्ट्रपति भारत की दावेदारी का समर्थन कर चुके हैं, जिनमें जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और डॉनल्ड ट्रंप शामिल हैं. तो क्या जो बाइडेन पिछले राष्ट्रपतियों की राय से अलग जाकर इस समर्थन को लेकर झिझक रहे हैं? सिर्फ थॉमस-ग्रीनफील्ड के ताजा बयान की वजह से यह निष्कर्ष निकालना शायद मुनासिब ना हो.
यह सच है कि भारत में सत्तारुढ़ बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनावों से पहले ट्रंप की पुनर्निर्वाचित होने की दावेदारी का समर्थन किया था, लेकिन इसके बावजूद बाइडेन ने अपने चुनावी अभियान के दौरान सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी का नीतिगत स्तर पर समर्थन किया था. ऐसे में इतनी जल्दी अपने समर्थन से उनके मुकर जाने की कोई वजह नजर नहीं आती है.
वरिष्ठ पत्रकार और विदेशी मामलों की जानकार नीलोवा रॉय चौधरी का कहना है कि थॉमस-ग्रीनफील्ड ने इस तरह का जवाब इसलिए दिया क्योंकि उनसे सवाल सिर्फ भारत नहीं बल्कि तीन और देशों की दावेदारी के बारे में पूछा गया था. नीलोवा कहती हैं कि भारत के साथ जी-चार समूह के बाकी तीनों सदस्य देशों - जर्मनी, ब्राजील और जापान - भी स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं और अमेरिका इनमें से सिर्फ भारत और जापान की दावेदारी का समर्थन करता है.
प्रांतों में विरोध
अमेरिकी राजदूत से सवाल चारों देशों के बारे में किया गया था और अमेरिका ने अभी तक जी-चार समूह के सभी सदस्य देशों को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिए जाने के पक्ष में प्रतिबद्धता नहीं जताई है. नीलोवा कहती हैं कि अमेरिका विशेष रूप से जर्मनी और ब्राजील की दावेदारी का समर्थन नहीं करता है. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि थॉमस-ग्रीनफील्ड ने संसदीय समिति को यह बताया कि इन चारों देशों के अपने प्रांतों में इनकी दावेदारी को लेकर विरोध है.
बीते सालों में देखा गया है कि पाकिस्तान ने भारत की दावेदारी का, दक्षिण कोरिया ने जापान की, इटली ने जर्मनी की और अर्जेंटीना ने ब्राजील की दावेदारी का विरोध किया है. इन्हें युनाइटिंग फॉर कंसेंसस (यूएफसी) समूह के रूप में भी जाना जाता है. इनके अलावा चीन भी भारत और जापान दोनों की दावेदारी का विरोध करता है. (dw.com)
हमजा अमीर
लाहौर, 29 जनवरी| पाकिस्तान सरकार ने देश में रहने वाले अल्पसंख्यकों की सलामती और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के अपने मामले को और मजबूत करने के लिए देश भर में अल्पसंख्यकों से जुड़े कई पवित्र स्थलों का नवीनीकरण करने का फैसला किया है।
जानकारी के अनुसार, अब पाकिस्तान में कई गुरुद्वारों और मंदिरों का जीर्णोद्धार होगा।
आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में सिख गुरुद्वारों और हिंदू मंदिरों की कुल संख्या 1,830 है।
हालांकि, फिलहाल केवल 31 मंदिर और गुरुद्वारे ही संचालित हैं।
आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि संचालित हो रहे मंदिरों और गुरुद्वारों की कम संख्या ने ही सरकार को यह कदम उठाने और अल्पसंख्यक पवित्र स्थलों का नवीनीकरण करने के लिए प्रेरित किया है।
द इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी), प्रांतीय सरकारों के साथ-साथ सिख और हिंदू समुदाय के सदस्य समग्र नवीकरण प्रक्रिया का हिस्सा होंगे, जो इस साल पूरा होने की संभावना है।
पंजाब प्रांत के रावलपिंडी में एक सिख भवन को बहाल किया जाएगा, जबकि लाहौर में कम से कम दो चचरें और सात हिंदू मंदिरों का नवीनीकरण प्रगति पर है।
इसके अलावा राजधानी इस्लामाबाद में हिंदू मंदिर का निर्माण भी 2021 में पूरा होने की संभावना है।
पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीएसजीपीसी) के महासचिव सरदार अमीर सिंध ने कहा, "लाहौर में गुरुद्वारा डेरा साहिब की कारसेवा कई वर्षों से चल रही है। लेकिन कारसेवा समिति के भारतीय सदस्यों को वीजा समाप्त होने के बाद घर वापस लौटना पड़ा, क्योंकि यह महामारी के कारण नवीनीकृत (रिन्यू) नहीं हो सका। इसलिए यह काम ठप हो गया और जल्द ही शुरू हो जाएगा।"
उन्होंने कहा, "इसी तरह से गुरुद्वारा बाली ला, ननकानी साहिब और गुरुद्वारा तन्बो साहिब की बहाली का काम भी जल्द पूरा हो जाएगा।"
ईटीपीबी ने यह सुनिश्चित किया है कि पाकिस्तान भर के गुरुद्वारों और हिंदू मंदिरों को पुनर्निर्मित और बहाल किया जाएगा और आने वाले दिनों में समुदायों के लिए इन्हें खोला जाएगा।
पाकिस्तान हिंदू परिषद के प्रमुख रमेश कुमार ने कहा, "एक प्रमुख मंदिर और गुरुद्वारा हर साल एक्टिवेट (शुरू होना) होता है।"
उन्होंने कहा, "ईटीबीपी के अलावा, प्रांतीय सरकारें भी प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों और गुरुद्वारों की बहाली में अपनी भूमिका निभा रही हैं।"
बता दें कि पाकिस्तान पर उसके अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार करने और उनके अधिकारों का हनन करने के आरोप लगते रहते हैं। अब वह छवि सुधारने के लिए अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही उन्हें धार्मिक आजादी देने के लिए बड़ा कदम उठा रहा है।
प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों के लिए स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है।
हालांकि पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण, अपहरण और अल्पसंख्यकों को टारगेट करके उनके अधिकारों का हनन करने वाले मामले प्रधानमंत्री खान के दावों को धता बताते हैं। (आईएएनएस)
ओटावा, 29 जनवरी| कनाडा के टोरंटो शहर में एक केयर होम में कोरोनावायरस के नए प्रकार से 300 से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं, जिससे यहां के लोगों में खौफ का माहौल फैल गया है। इसकी जानकारी अधिकारियों ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, 86 स्टाफ सदस्यों के साथ केयर होम के 128 निवासी नए वायरस से बीमार पड़ गए हैं।
रिपोर्ट से पता चला है कि प्रांत के अधिकांश मामलों में पॉजिटिव लोगों की संख्या कम है, वहीं सैंपलों की जांच भी कम हुई है।
फरवरी के अंत तक कोरोनावायरस मामलों में 1,000-2,000 के बीच गिरावट आने की संभावना है।
गुरुवार को कनाडा में कोरोनावायरस जांच रिपोर्ट में 3,869 नए मामले पाए गए थे, जबकि इस वायरस से 104 लोगों की मौत हुई थी, जिससे देश में संक्रमण की कुल संख्या और मृत्यु दर क्रमश: 765,094 और 19,645 हो गई।
ओंटारियो में गुरुवार को 2,093 नए मामले पाए गए, जिससे प्रांत में कुल मामलों की संख्या 262,463 पहुंच गई है।
प्रांत में कम से कम 317,240 वैक्सीन की खुराक लगाए जाने की सूचना मिली है, जिनकी आबादी 14.7 मिलियन है। (आईएएनएस)
29 साल की यांग ली को चीन की 'पंचलाइन क्वीन' कहा जाता है. वो चीन की सबसे लोकप्रिय कॉमेडियन हैं और विवादों से उनका नाता नया नहीं है.
चीनी टीवी पर हाल के महीनों में आ रहे उनके शो 'रॉक एंड रोस्ट' को लेकर उनकी लोकप्रियता कई गुणा बढ़ गई है.
हर हफ्ते वो लाखों दर्शकों के सामने इस शो में विवादास्पद जेंडर मुद्दे को लेकर स्टैंड-अप कॉमेडियन के तौर पर मुखातिब होती हैं. कई चीनी दर्शक स्टैंड-अप कॉमेडियन की अवधारणा से वाकिफ नहीं हैं.
बड़े पैमाने पर दर्शक उनके इस शो को देख तो रहे हैं लेकिन हर कोई उनकी पंचलाइन्स से प्रभावित हो ऐसा नहीं है.
इसकी वजह से अब यांग को बड़े पैमाने पर आलोचनाएं भी झेलनी पड़ रही हैं.
दिसंबर में दिखाए गए एक एपीसोड में वो एक पुरुष कॉमेडियन की बात करती हैं. जिसमें वो उस कॉमेडियन से नए जोक सुनाने को कहती हैं. इस पर वह पुरुष कॉमेडियन उनसे कहता है कि, "क्या तुम मर्दों की सीमा की परीक्षा ले रही हो."
इस पर यांग व्यंगात्मक लहजे में जवाब देती हैं, "क्या मर्दों की कोई सीमा भी होती है?" यांग का इस तरह से व्यंग्य करना कुछ लोगों को नागवार गुज़रा और उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी.
हाल के कुछ हफ़्तों में सोशल मीडिया पर कुछ पुरुषों ने उन पर 'लैंगिक भेदभाव' और 'पुरुषों से नफरत' करने का आरोप लगाया है.
इस बीच पुरुषों के अधिकार की रक्षा करने का दावा करने वाला एक समूह सामने आया है. उसने सोशल मीडिया पर लोगों से चीन के मीडिया नियामक के सामने यांग की शिकायत करने को कहा है. उसने यांग पर 'बार-बार मर्दों के अपमान' करने और 'लैंगिक विरोध' पैदा करने का आरोप लगाया है.
लेकिन समर्थकों ने यांग का बचाव किया है और कहा है कि आलोचना करने वाले इन मर्दों में संवेदनशीलता और हास्यबोध का अभाव है. यांग के जोक्स ने चीन में एक नए विवाद को जन्म दिया है. चीन में नारीवादी आंदोलन और स्टैंड-अप कॉमेडी अपेक्षाकृत एक नई सांस्कृतिक पहल है.
ऐसा नहीं है कि चीन की संस्कृति में मज़ाक के लिए कोई जगह नहीं रही है. चीन की मज़ाकिया परंपरा में शियांगशेंग एक सदी से भी अधिक वक्त से पूरे देश में प्रचलन में है और काफी लोकप्रिय भी है.
इस फॉर्मेट में दो कॉमेडियन आपस में एक-दूसरे की खिंचाई करते हैं और दर्शक इसका आनंद लेते हैं.
लेकिन जब दर्शकों को खुद किसी मज़ाक का हिस्सा बनाया जाता है तब वैसे मामले में चीनी दर्शक इसे सहजता से नहीं लेते हैं. जबकि पश्चिम में स्टैंड-अप कॉमेडी के दौरान यह एक आम बात है.
बीजिंग कॉमेडियन क्लब ह्युमर सेक्शन के मालिक और कॉमेडियन टोनी चोउ बीबीसी से कहते हैं, "पश्चिम में स्टैंड-अप कॉमेडी के दौरान आम दर्शकों, अधिकारियों और सामाजिक प्रचलनों का मज़ाक उड़ाया जाता है और उन्हें चुनौती दी जाती है."
लेकिन चीन में इसे एक बड़ा तबका अपमानजनक मानता है.
उदाहरण के तौर पर टोनी बताते हैं कि एक बार एक कॉमेडियन पर एक दर्शक ने इसलिए हमला कर दिया क्योंकि उस कॉमेडियन ने हेनान प्रांत के लोगों पर मज़ाक किया था. टोनी कहते हैं कि "जबकि वो कॉमेडियन खुद हेनान प्रांत से ही था."
वह कहते हैं कि नतीजतन कुछ कॉमेडियन अपनी व्यक्तिगत भावनाएँ छिपाने की कोशिश करते हैं. ऐसा वो सिर्फ़ सांस्कृतिक वजहों से नहीं करते हैं बल्कि वो राजनीतिक और आर्थिक तौर पर होने वाले नुकसान से डरते हैं.
चीनी कॉमेडियन यांग को लेकर हुए विवाद पर लोग दो खेमों में बंटे हुए हैं. वीबो पर एक लोकप्रिय कॉमेडियन शी जी ने अपनी पोस्ट में कहा है कि यांग एक सच्ची स्टैंड-अप कॉमेडियन नहीं हैं. उनके इस पोस्ट को दस करोड़ बार देखा गया है और यह इसी लाइन के साथ हैशटैग के रूप में ट्रेंड कर रहा है.
लेकिन चीनी-अमेरिकी कॉमेडियन जो वॉन्ग ने यह कहते हुए यांग का समर्थन किया है कि कॉमेडी "समाज में अपेक्षाकृत दबे लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के मज़ाक" उड़ाने की सुविधा देता है.
हालांकि यांग ने कभी भी सार्वजनिक तौर पर इस बात का ऐलान नहीं किया है कि वो नारीवादी हैं लेकिन सोशल मीडिया पर उनके आलोचकों ने उनके और उनके समर्थकों के लिए एक नई शब्दावली इस्तेमाल करनी शुरू की है. वो है "चरमपंथी नारीवादी".
"नू कुआन" का चीनी भाषा में मतलब होता है नारीवाद या इसका शाब्दिक अर्थ होता है महिलाओं का हक. नेटिज़ेंस ने "कुआन" जिसका मतलब अधिकार होता है, उसकी जगह इसी तरह सुनाई देने वाला एक अन्य शब्द इस्तेमाल करना शुरू किया है. जिसका मतलब मुट्ठी होता है. इसका नारीवादियों के लिए अपमानजनक लहजे में इस्तेमाल किया जा रहा है.
यांग ली के एक 23 साल के आलोचक जिनका सरनेम भी यांग है (हालांकि कॉमेडियन यांग ली से उनका कोई संबंध नहीं है) बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "चरमपंथी नारीवादी बिल्कुल बेतुके हैं. वो हर कहीं मुक्के मारते रहते हैं और अधिकारों की बात करते हैं. "
बीजिंग में क़ानून के प्रोफेसर चु यीन वीबो पर कहते हैं कि, "पश्चिम में शुरू हुई लैंगिंक भेदभाव की राजनीति कामगारों की एकता के लिए खतरा है. इससे स्ट्रेट मर्दों के ख़िलाफ़ नफरत फैलेगी."
इस बीच यांग ली के समर्थकों का यह कहना है कि इन सब बातों ने यांग के मज़ाक को सही साबित किया है. अक्सर औरतों की आवाज़ को ऐसे ही उन लोगों की ओर से दबाया जाता है जो मर्दों को औरतों से श्रेष्ठ मानते हैं.
चीन के समाज में पारंपरिक तौर पर लैंगिक आधार पर काम का बंटवारा होता है. मर्द और औरत दोनों ही समाज के दबाव में अपनी-अपनी भूमिकाओं को निभाने के लिए मजबूर होते हैं.
यह भी पढ़ें: भारत में महिलाओं के घरेलू कामकाज का मेहनताना अगर होता तो कितना?
चीनी औरतों के अधिकार के लिए लड़ने वाली शियोंग जिंग कहती हैं कि इस तरह के लैंगिक रूढ़िवाद का खामियाज़ा मर्दों को भी भुगतना पड़ता है.
मसलन मर्दों को शादी के लिए अपना घर और गाड़ी होना ज़रूरी है तभी उन्हें शादी के योग्य माना जाएगा. या फिर उससे परिवार के अकेले कमाने वाले शख्स के तौर पर उम्मीदें की जाएंगी.
वो कहती हैं, "कई मर्द भारी उम्मीदों के बोझ तले दबे होते हैं जिससे उन्हें हताशा और रोष होता है. उन्हें इस बारे में सोचना होगा कि बुनियादी तौर पर क्या बदले जाने की ज़रूरत है."
चीन की एक मशहूर नारीवादी कार्यकर्ता लू पीन बीबीसी से बातचीत में कहती हैं कि दूसरे देशों की तुलना में चीन में नारीवादियों को एक अलग ही किस्म का राजनीतिक और सामाजिक दबाव झेलना पड़ता है.
"चीनी पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था में नारीवादियों के आलोचकों को सत्ता में बैठे लोगों से अपेक्षाकृत अधिक समर्थन प्राप्त होता है."
चीनी में नारीवादी चूंकि गहराई से धंसे लैंगिक रूढ़िवाद को चुनौती देती हैं, इसलिए उन्हें सत्ता प्रतिष्ठानों की तरफ से "सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने के लिए उकसाने" वाला बताया जाता है.
इससे वो चीनी सरकार की नज़र में आ जाती हैं क्योंकि सरकार चीनी समाज में अपनी पकड़ को सबसे अधिक तरजीह देती है.
2015 में पांच चीनी नारीवादी कार्यकर्ताओं को सात हफ्तों तक हिरासत में रखा गया था. उन कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक परिवहनों में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले यौन उत्पीड़न को लेकर अभियान चलाने की योजना बनाई थी.
2018 में चीन की अग्रणी नारीवादी संगठन फेमिनिस्ट वॉयस के सोशल मीडिया एकाउंट्स को कई बार संस्पेंड करने के बाद आखिरकार सेंसर किया गया है.
पिछले दिसंबर में जब चीनी कोर्ट में मी टू से जुड़े एक हाई प्रोफाइल मामले की सुनवाई हो रही थी तब सरकारी मीडिया ने उसे कवर करने से परहेज़ किया था.
इस बीच वीबो पर कुछ प्रभावशाली लोगों के एकाउंट्स से नारीवादी आंदोलन में 'विदेशी ताकतों' की भूमिका के इल्ज़ाम भी लगाए गए.
लू पीन कहती हैं, "कई लोग अब चीनी नारीवादियों पर विदेशी ताकतों के साथ जुड़े होने का आरोप लगा रहे हैं. इन आरोपों का लोगों पर इतना असर क्यों हो रहा है? क्योंकि वे सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए उसकी ही बात को दोहरा रहे हैं."
तो यांग ली की टिप्पणी से उत्पन्न हुए विवाद की पृष्ठभूमि में यह पूरा किस्सा है.
इस मामले में सरकार ने औपचारिक रूप से कोई जांच शुरू की है कि नहीं, यह अभी साफ नहीं है. जिस समूह ने वीबो पर यांग ली की शिकायत दर्ज करने की मांग की है उसने बाद में इस पोस्ट को हटा लिया है.
बीबीसी ने यांग ली से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए जब इंटरव्यू का अनुरोध किया तब उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
उन्होंने इस पूरे मामले पर अब तक कोई बयान भी नहीं जारी नहीं किया है.
लेकिन उन्होंने हाल ही में सोशल मीडिया पर यह ज़रूर लिखा है, "यह कभी खत्म नहीं होने वाला है…अब इस इंडस्ट्री में रहना थोड़ा मुश्किल है." (bbc.com)