अंतरराष्ट्रीय
वाशिंगटन, 14 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 9.2 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 19.7 लाख से अधिक हो गई हैं। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने गुरुवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामले और मृत्यु दर क्रमश: 92,291,033 और 1,961,987 है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां संक्रमण के 23,067,796 मामले और 384,604 मौतें दर्ज किए जाते हैं।
संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 10,495,147 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर आता है, जबकि देश में कोविड से मरने वालों की संख्या 151,529 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दस लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (8,256,536), रूस (3,434,934), ब्रिटेन (3,220,953), फ्रांस (2,888,292), तुर्की (2,355,839), इटली (2,319,036), स्पेन (2,176,089), जर्मनी (1,981,013), कोलम्बिया (1,831,980), अर्जेंटीना (1,757,429), मेक्सिको (1,556,028), पोलैंड (1,404,905), ईरान (1,305,339), दक्षिण अफ्रीका (1,278,303), यूक्रेन (1,166,958) और पेरू (1,040,231) हैं।
कोविड से हुई मौतों के मामले में ब्राजील वर्तमान में 205,964 आंकड़ों के साथ दूसरे नंबर पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मौतें दर्ज करने वाले देश मेक्सिको (135,682), ब्रिटेन (84,910), इटली (80,326), फ्रांस (69,168), रूस (62,463), ईरान (56,457), स्पेन (52,878), कोलंबिया (47,124), अर्जेंटीना (44,983), जर्मनी (43,604), पेरू (38,399), दक्षिण अफ्रीका (35,140), पोलैंड (32,074), इंडोनेशिया (24,951), तुर्की (23,325), यूक्रेन (21,191) और बेल्जियम (20,194) हैं।
--आईएएनएस
लंदन, 14 जनवरी | ब्रिटेन में रहने वाले अधिकांश भारतीय मूल के नागरिक भारतीय किसानों के लिए उचित सौदा सुनिश्चित करने के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच एक व्यापारिक समझौते के पक्ष में हैं। एक नए शोध में यह बात सामने आई है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा समर्थित ब्रिटेन आधारित थिंक टैंक द 1928 इंस्टीट्यूट की ओर से किए गए शोध से पता चला कि 47 प्रतिशत ब्रिटिश-भारतीय ब्रिटेन-भारत व्यापार सौदे के पक्ष में हैं। इसके अलावा शोध में शामिल 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि किसानों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए उनसे सीधे उपज खरीदनी होगी।
संस्थान ने 510 उत्तरदाताओं के बीच यह सर्वेक्षण किया, जिनकी आयु 16 से 85 वर्ष के बीच थी और जिनमें 50 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। इस शोध में ग्रेटर लंदन, वेस्ट मिडलैंड्स, ईस्ट मिडलैंड्स, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के ब्रिटिश-भारतीयों ने हिस्सा लिया।
सर्वेक्षण में शामिल कई लोगों ने कहा कि ब्रिटिश मुख्यधारा की मीडिया भारतीय कृषि सुधारों के बारे में उतनी जानकारीपूर्ण नहीं है।
भारत और इसके किसानों के साथ उनके संबंधों के महत्व को दर्शाते हुए 32 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि कृषि सुधार बिल्कुल अनुचित हैं, जबकि 31 प्रतिशत ने कहा कि यह नए कानून बिल्कुल उपयुक्त हैं।
अध्ययन में पाया गया कि 41 प्रतिशत ब्रिटिश भारतीयों ने ब्रिटेन के विरोध का समर्थन नहीं किया, क्योंकि ये राजनीति से प्रेरित हैं।
चल रही कोविड महामारी के साथ 30 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगता है कि विरोध प्रदर्शन उनकी चिंता का पर्याप्त स्तर प्रदर्शित करता है, जबकि 18 प्रतिशत लोग कोविड-19 के कारण उपस्थित नहीं हो पाए। वहीं 13 प्रतिशत लोगों को लगता है कि महामारी के विरोध में प्रदर्शन नहीं होना चाहिए।
द 1928 इंस्टीट्यूट की सह-संस्थापक किरण कौर मनपु ने आईएएनएस से कहा, "यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री की आगामी भारत यात्रा (जो कि रद्द कर दी गई है) का परिणाम निष्पक्ष व्यापार के माध्यम से किसानों के लिए समर्थन में हुआ है। हमारे आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रिटिश भारतीय, भारतीय कृषि सुधारों के प्रति अपने व्यक्तिगत विचारों की परवाह किए बिना अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने इस स्थायी परिणाम को आगे बढ़ाने की इच्छा व्यक्त की है।"
बता दें कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है और कानूनों की विस्तार से जांच करने के लिए चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। इसका मतलब है कि भारत सरकार फिलहाल कानूनों को लागू करने का निर्णय नहीं ले सकती है।
--आईएएनएस
ढाका, 14 जनवरी | बांग्लादेश सशस्त्र बल, जो 50 साल पहले अपने भारतीय समकक्षों के साथ मिलकर लड़ा और जीता, वह राजपथ पर 26 जनवरी को नई दिल्ली में होने वाले गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेगा।
भारतीय उच्चायोग ने एक प्रेस नोट में कहा, बांग्लादेश सशस्त्र बलों के 122 गौरवान्वित कर्मियों की एक टुकड़ी विशेष रूप से भेजे गए भारतीय वायुसेना सी-17 विमान में भारत के लिए रवाना हो गई है।
बांग्लादेश की टुकड़ी, जो गर्व से राजपथ पर मार्च करेगी, 1971 के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को आगे बढ़ाएगी, जिन्होंने स्वतंत्रता, न्याय और अपने लोगों के लिए संघर्ष किया।
भारत के इतिहास में यह तीसरा मौका है जब किसी विदेशी सैन्य दल को गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। इससे पहले फ्रांस और यूएई की टुकड़ियां हिस्सा ले चुकी हैं।
बांग्लादेश की टुकड़ी में अधिकांश कर्मी बांग्लादेश सेना की सबसे प्रतिष्ठित इकाइयों से आते हैं, जिनमें 1, 2, 3, 4, 8, 9, 10 और 11 ईस्ट बंगाल रेजिमेंट और 1,2 और 3 फील्ड आर्टिलरी रेजिमेंट शामिल हैं, जिन्हें 1971 का मुक्ति संग्राम लड़ने और जीतने का सम्मान प्राप्त है।
बांग्लादेश नौसेना के नाविकों और बांग्लादेश वायुसेना के वायु योद्धाओं के भी प्रतिनिधि इसमें शामिल हैं।
प्रेस नोट में कहा गया है कि यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्ष 2021 में मुक्ति संग्राम के 50 वर्ष हैं, जिसके माध्यम से बांग्लादेश एक जीवंत राष्ट्र के रूप में उभरा, जो अत्याचार और उत्पीड़न के जुए से मुक्त है।
--आईएएनएस
अमेरिकी सेना के शीर्ष अधिकारियों ने डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों की कैपिटॉल पर हिंसा की निंदा की है और इस बात की पुष्टि की है कि 20 जनवरी को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन का शपथग्रहण होगा.
अमेरिका के शीर्ष जनरल मारिक मिली ने ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के साथ मिल कर एक बयान जारी किया है जिसमें कैपिटॉल पर हुई हिंसा की निंदा की गई है. इस बयान पर सेना की हर शाखा के प्रमुख का दस्तखत है. इसमें कहा गया है कि 6 जनवरी को हुई घटनाएं, "कानून के शासन के लिहाज से उचित नहीं थीं." बयान में यह भी कहा गया है, "अभिव्यक्ति की आजादी का आधिकार और सम्मेलन का अधिकार किसी को हिंसा, देशद्रोह और विद्रोह करने का अधिकार नहीं देता." सेना की तरफ से आए इस बयान में हरेक सैनिक को उनके मिशन की याद दिलाई गई है.
यह अमेरिका के लिए अप्रत्याशित घटना है. सेना के अधिकारियों ने इस समय पर यह संदेश देना जरूरी समझा है. उन्होंने याद दिलाया है, "संवैधानिक प्रक्रिया में बाधा डालने" की कोई भी कोशिश ना सिर्फ "हमारी परंपराओं, मूल्यों और शपथ के बल्कि कानून के भी खिलाफ होगी."
सेना कानून के प्रशासन के साथ
सेना ने इस पत्र के जरिए राष्ट्रपति ट्रंप की खुले तौर पर मुखालफत की है जो 20 जनवरी को पद से हट जाएंगे. सेना के पत्र ने आने वाले डेमोक्रैट की जीत पर भी अपनी मुहर लगा दी है. सेना ने साफ कहा है, "20 जनवरी 2021 को संविधान के मुताबिक... नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बाइडेन शपथ लेंगे और हमारे 46वें कमांडर इन चीफ बनेंगे."
सुरक्षा अधिकारियों ने कहा है कि नेशनल गार्ड वॉशिंगटन डीसी में शपथग्रहण समारोह की तैयारियां कर रहे है. आशंका जताई जा रही है कि डॉनल्ड ट्रंप के हथियारबंद समर्थक राजधानी या फिर देश में कुछ और हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं. सेना सुरक्षा इंतजामों में हिस्सा नहीं लेगी. सेना खुफिया अधिकारियों के साथ इस बात पर जरूर चर्चा कर रही है कि शपथ ग्रहण में शामिल होने वाले जो सैनिक नेशनल गार्ड की तरफ से शामिल होंगे क्या उनकी पृष्ठभूमिक की जांच करना जरूरी है.
राष्ट्रपति और देश की सेना के सर्वोच्च कमांडर रहते रहते डॉनल्ड ट्रंप ने सेना पर खर्च बढ़ाया है. हालांकि सेना ने राष्ट्रपति के चुनाव में धोखधड़ी के अपुष्ट दावों से खुद को दूर ही रखा है.
महाभियोग का प्रस्ताव
इस बार के अमेरिकी चुनाव और उसके बाद हुई घटनाओं ने पूरी दुनिया को हैरान किया है. डॉनल्ड ट्रंप ना सिर्फ चुनाव के नतीजों को खारिज कर रहे हैं बल्कि उनमें बिना सबूत धोखधड़ी के आरोप भी लगा रहे हैं. अमेरिका दुनिया भर में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार है और इस तरह की घटना को देखना ना सिर्फ देशवासियों बल्कि बाकी दुनिया के लोगों के लिए भी अप्रत्याशित है. खुद डॉनल्ड ट्रंप की पार्टी के ही सांसद और नेता ट्रंप के विरोध में आ गए हैं.
इस बीच संसद के निचले सदन में ट्रंप के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए औपचारिक अनुरोध कर दिया गया है. अगर यह प्रस्ताव आता है तो ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति होंगे जिनके खिलाफ दो बार महाभियोग का प्रस्ताव आएगा. ट्रंप के कार्यकाल में अब महज 7 दिन बचे हैं. ऐसे में इतनी जल्दी इस प्रक्रिया के पूरे होने के आसार कम ही हैं लेकिन डेमोक्रैटिक पार्टी इस प्रस्ताव को लाने पर अमादा है. माना जा रहा है कि यह प्रस्ताव ट्रंप को दोबारा चुनाव का उम्मीदवार बनने से रोकने के लिए है. कई रिपब्लिकन सांसद भी ट्रंप के खिलाफ इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं.
इससे पहले ट्रंप के खिलाफ एक महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा चुका है. सीनेट में दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित नहीं होने के कारण ट्रंप को इस प्रस्ताव से राहत मिल गई. उस वक्त यूक्रेन के राष्ट्रपति को जो बाइडेन के खिलाफ जांच शुरू कराने के लिए ट्रंप के फोन करने की बात सामने आई थी. कथित टेलिफोन कॉल में इसके बदले में यूक्रेन को अमेरिकी सहायता का वादा किया गया था.
25वें संशोधन का इस्तेमाल
अमेरिकी संविधान के जानकार मान रहे हैं कि महाभियोग का प्रस्ताव ट्रंप को दोबारा उम्मीदवार बनने से रोकने के लिए लाया जा रहा है. बर्नार्ड कॉलेज के राजनीतिविज्ञानी शेरी बर्मन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा है, "अगर सीनेट में उन पर दोष सिद्ध हो जाता है तो विचार यह होगा कि उन्हें दोबारा राष्ट्रपति बनने से रोका जाए. राष्ट्रपति ने देशद्रोह के लिए उकसाया है, हिंसा के लिए उकसाया है तो लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि कानून का शासन उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराए."
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैन्सी पेलोसी ट्रंप के बयानों के आधार पर उनके खिलाफ महाभियोग का मामला बनाने की कोशिश कर रही हैं. इससे बचने के लिए उन्होंने उपराष्ट्रपति माइक पेंस के सामने 25वें संशोधन का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था. हालांकि उपराष्ट्रपति ने उनकी बात नहीं मानी और ट्रंप के साथ बने रहने की बात कही. 25वां संशोधन विशेष परिस्थिति से जुड़ा है. इसके तहत उपराष्ट्रपति अगर किसी वैध आधार पर राष्ट्रपति को उनके पद के लिए अयोग्य घोषित कर दे तो उस स्थिति में उपराष्ट्रपति खुद कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं और सारी शक्तियां उनके पास आ जाती हैं.
अमेरिका में कोई शख्स सिर्फ दो बार के लिए राष्ट्रपति बन सकता है. हालांकि यह जरूरी नहीं है कि यह दोनों कार्यकाल लगातार हों. बीते कुछ दशकों से लगभग सभी राष्ट्रपतियों ने दो कार्यकाल पूरे किए हैं. जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश के बाद डॉनल्ड ट्रंप पहले राष्ट्रपति हैं जिन्हें एक कार्यकाल के बाद ही पद छोड़ना पड़ा है. जॉर्ज बुश 1989 से 1993 के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति रहे थे.
रिपोर्ट: निखिल रंजन (एपी, एएफपी, डीपीए)
नई दिल्ली, 13 जनवरी | कजाकिस्तान मध्य एशिया में भारत का सबसे बड़ा आर्थिक साझेदार और एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। भारत में कजाकिस्तान के राजदूत येरलन अलिम्बयेव ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में यह बात कही।
उन्होंने अपने देश में हाल ही में हुए संसदीय चुनावों के महत्व और राजनीतिक सुधारों के बारे में बात करने के अलावा भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को कैसे मजबूत किया जाए, इस पर भी प्रकाश डाला।
पेश हैं साक्षात्कार के कुछ प्रमुख अंश :
प्रश्न : कजाकिस्तान के संसदीय चुनावों पर सभी की निगाहें थीं। इस बार कजाकिस्तान में राष्ट्रीय चुनाव अलग कैसे थे?
उत्तर : हमने 10 जनवरी 2021 को मजलिस (संसद का निचला सदन) में संसदीय चुनाव कराए। ये चुनाव केवल कजाकिस्तान के लिए ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र राष्ट्रों के पूरे राष्ट्रमंडल के लिए भी बहुत हरावल (वैन्गार्ड) थे। सबसे पहले तो संसदीय चुनाव वैश्विक कोविड-19 महामारी के युग में आयोजित हुए। इसके बावजूद पूरी चुनाव प्रक्रिया सार्वजनिक सुरक्षा उपायों, जैसे मास्क पहनना, सामाजिक दूरी, सुरक्षात्मक व्यक्तिगत उपकरण आदि के अनुरूप हुई।
सुधारों की बात करें तो पार्टी की सूची में महिलाओं और युवाओं के लिए 30 प्रतिशत कोटा, राय और विपक्ष की संस्कृति का स्वागत और एक संसदीय विपक्षी संस्थान का गठन शामिल है। मजलिस के लिए आखिरी चुनाव मार्च 2016 में हुए थे।
भारतीय चुनाव पर्यवेक्षकों के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूं, जो शंघाई सहयोग संगठन टीम का हिस्सा रहे और नूर-सुल्तान में भारतीय दूतावास के एक हिस्से के रूप में पर्यवेक्षकों के तौर पर कुछ मतदान केंद्रों का दौरा किया।
यह देखते हुए कि कजाकिस्तान और भारत रणनीतिक साझेदार हैं, मैं वास्तव में विश्वास करता हूं कि आगे विकासवादी लोकतंत्रीकरण प्रक्रियाएं हमारे बंधन को और भी मजबूत बनाएंगी। कजाकिस्तान संसद की नए सिरे से बनाई गई रचना देश में सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए गुणवत्तापरक विधायी समर्थन पर केंद्रित होगी।
प्रश्न : 1992 से भारत और कजाकिस्तान के बीच संबंध कैसे विकसित हुए?
उत्तर : भारत के मध्य एशिया के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं और कजाकिस्तान क्षेत्र में एक विशेष स्थान रखता है। हमारे द्विपक्षीय संबंध हर साल बढ़ रहे हैं और इनका विस्तार जारी है। आधिकारिक रूप से 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। 29 वर्षों में कजाकिस्तान के राष्ट्रपति ने पांच बार भारत का दौरा किया और भारतीय प्रधानमंत्रियों ने पांच बार कजाकिस्तान का दौरा किया। हमारे देशों के नेता वार्षिक आधार पर मिलते रहते हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंच शामिल हैं।
भारत और कजाकिस्तान के बीच संबंधों ने इस अवधि में काफी गतिशीलता और गति प्रदर्शित की है। भारत 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद एक स्वतंत्र एवं संप्रभु राष्ट्र के रूप में कजाकिस्तान को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
साल 2009 में सामरिक भागीदारी पर हस्ताक्षर करके हमारे देशों के बीच सहयोग को एक उच्च स्तर पर लाया गया था। वर्तमान में हम महामारी के साथ स्थिति स्थिर होते ही 2021 में राष्ट्रपति कासम-जोमार्ट टोकायेव की पहली राष्ट्र यात्रा की व्यवस्था पर काम कर रहे हैं।
इस समय कजाकिस्तान मध्य एशिया में भारत का मुख्य व्यापार भागीदार है। द्विपक्षीय व्यापार कारोबार क्षेत्र के बाकी राष्ट्रों के साथ भारत के कुल व्यापार कारोबार से अधिक है और 2020 के 11 महीनों में 2.3 अरब डॉलर के बराबर है।
प्रश्न : कजाकिस्तान और भारत के व्यापार संबंधों को मजबूत करने के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह कितना महत्वपूर्ण है?
उत्तर : मध्य एशिया यूरेशियन महाद्वीप के सभी चार भागों को जोड़ने वाला एक अनूठा क्षेत्र है। प्राचीन काल से इस क्षेत्र ने यूरोप और एशिया के बीच सबसे छोटा मार्ग प्रदान किया है। आज मध्य एशियाई क्षेत्र पूर्व (चीन) और पश्चिम (यूरोप) को जोड़ने वाले भूमि गलियारे में एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है और इसका काफी महत्व है।
--आईएएनएस
इस्लामाबाद, 13 जनवरी | पाकिस्तान वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए बुधवार को यहां दूसरी पाकिस्तान-तुर्की-अजरबैजान त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी कर रहा है।
पाकिस्तान विदेश कार्यालय ने कहा, "तीनों पक्ष शांति और सुरक्षा, व्यापार और निवेश, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, शिक्षा और सांस्कृतिक सहयोग सहित आम हित के सभी क्षेत्रों में त्रिपक्षीय सहयोग को गहरा करने की संभावनाएं तलाशेंगे।"
तीनों पक्ष क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए मौजूदा खतरे पर भी चर्चा करेंगे।
विदेश कार्यालय द्वारा जारी बयान में कहा गया, "पाकिस्तान, अजरबैजान और तुर्की आम विश्वास, मूल्यों, संस्कृति और इतिहास पर आधारित करीबी भाईचारा संबंधों का आनंद लेते हैं, जो आपसी विश्वास और समझ में गहराई से अंतर्निहित है।"
यह त्रिपक्षीय स्तर पर चर्चा का दूसरा दौर होगा, क्योंकि पहली बैठक नवंबर 2017 में बाकू में हुई थी।
अजरबैजान के विदेश मंत्री जेहुन बिरामोव दो दिवसीय यात्रा पर बुधवार से इस्लामाबाद में होंगे, जबकि तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कैवुसोग्लू पहले ही दो दिवसीय दौरे के लिए इस्लामाबाद पहुंच चुके हैं।
विवरण के अनुसार, दोनों विदेश मंत्री पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ आमने-सामने की बैठक करेंगे। दोनों विदेश मंत्री राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और प्रधानमंत्री इमरान खान से भी मुलाकात करेंगे।
--आईएएनएस
होवार्ड मुस्तो और डैनिएल पालुम्बो
बिज़नेस रिपोर्टर्स
दुनिया भर में करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गईं है या उन्हें घर पर रहने की वजह से सरकार को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ा है.
लेकिन, पिछले साल 2020 में मार्च में आई गिरावट के बाद से शेयर बाज़ार में उछाल आया है. टेक्नॉलॉजी कंपनी नैसडैक के शेयरों में पिछले साल के आख़िर तक 42 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई थी. ये अमेरिका में सबसे बड़ा उछाल आया था.
साल भर में एसएंडपी500 के शेयर 15 प्रतिशत ऊपर गए. लेकिन, ब्रिटेन का स्टॉक एक्सचेंज इंडेक्स एफटीएसई100 कोरोना महामारी के कारण संघर्ष कर रहीं तेल कंपनियों, बैंक, एयरलाइंस की वजह से इतनी अच्छी स्थिति में नहीं रहा.
पिछले साल की शुरुआत से इसमें 14 प्रतिशत की गिरावट आई लेकिन पिछले कुछ महीनों में इसमें तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है और यूरोपीय संघ के साथ ट्रेड डील होने और वैक्सीन को अनुमति मिलने के बाद इसमें बड़ी तेज़ी देखी गई.
जापान में वैक्सीन बनने के बाद एक बार फिर शेयर बाज़ार ने उछाल देखने को मिला. फार्मास्यूटिकल स्टॉक्स और गेमिंग कंपनियों के शेयर इनमें आगे रहे. हालाँकि शेयर बाज़ार के प्रदर्शन का आकलन इस पूरी प्रक्रिया को नहीं दर्शाता है.
मनी मैनेजर स्क्रॉडर्स में यूके इक्विटीज़ की प्रमुख स्यू नॉफका कहती हैं, "एक महत्वपूर्ण बात ये है कि शेयर बाज़ार की कीमतें अभी और इसी वक़्त का मामला नहीं हैं बल्कि शेयर बाज़ार एक कार चलाने जैसा है जिसमें नज़रें दूर के लक्ष्य को देखती हैं ना कि ठीक सामने दिख रहे गड्ढे को."
निवेशक भरोसा कर रहे हैं कि स्वीकृत हो चुकीं या विकसित हो रहीं नई वैक्सीन की सफलता से वृद्धि होगी और बिक्री सामान्य हो पाएगी. निवेशक सस्ते ऋण का इस्तेमाल कर रहे हैं जो कारोबार के लिए एक वरदान है.
केंद्रीय बैंक भी इस सस्ते ऋण के कारोबार में लगे हुए हैं और इसका असर भी दिख रहा है. बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने अकेले सरकार और कॉरपोरेट के 895 बिलियन पाउंड का बॉन्ड खरीदने की योजना बनाई है. पिछले साल मार्च से अब तक अमेरिकी फेड ने तीन खरब डॉलर की संपत्ति खरीदी है.
इन खरीदारियों का मकसद ऋण को और सस्ता करना है. जब ये पैसा बॉन्ड की खरीदारी के रूप में अर्थव्यवस्था में आता है तो यह कहीं और क़ीमतों में इजाफे की वजह बनता है.
नॉफका कहती हैं, "इससे पैसे के मूल्य में गिरावट आई है और ये सस्ता पैसा वित्तीय संपत्ति के मूल्य को बढ़ा देता है. हम दुनिया भर में स्टॉक मार्केट में यही होते हुए देख रहे हैं."
साल 2021 में वर्ल्ड इकॉनमीः कौन से देश जीतेंगे, कौन हारेंगे
महामारी और मंदी के बावजूद एक कंपनी के शेयर से करोड़पति बनने वाले लोग
पांच बड़ी कंपनियां
जब हम बाज़ार के प्रदर्शन को देखते हैं तो आमतौर पर हम कंपनियों के समूहों वाले इंडेक्स को देखते हैं. छोटी कंपनियों के प्रदर्शन की बजाए बड़ी कंपनियों की वृद्धि का इंडेक्स वैल्यू पर बड़ा प्रभाव होता है.
लेकिन, खासतौर पर अमेरिका में बड़ी कंपनियां बहुत बड़ी हो गई हैं. ये साल टेक कंपनियों के लिए अच्छा रहा है. लोगों के दूर-दराज में काम करने के कारण उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है.
उदाहरण के लए नैसडैक ने साल की शुरुआत से बहुत बढ़ोतरी देखी है. लेकिन, सिर्फ़ पांच कंपनियों- गूगल के स्वामित्व वाली एल्फाबेट, माइक्रोसाफ्ट, अमेज़न और फेसबुक की कीमत अन्य 95 कंपनियों के पूरे जोड़ के लगभग बराबर है.
स्यू नॉफका कहती हैं, "ऐसे में शेयर बाज़ार इंडेक्स को देखकर लगेगा कि कोरोना वायरस महामारी का अमेरिका अर्थव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. लेकिन, ऐसा नहीं है. इसलिए ज़रूरी नहीं कि इंडेक्स देखकर आप सभी कंपनियों की स्थिति का सही अंदाज़ा लगा सकते हैं."
दस साल का ट्रेंड
एक इंडेक्स में कुछ बड़ी कंपनियों का वर्चस्व तथाकथित निष्क्रिय निवेश के उदय से जुड़ा होता है जिसमें पेंशनर्स, मनी मैनेजर्स और सट्टेबाज इंडेक्स को प्रभावित करने वाला सस्त निवेश खरीद सकते हैं.
इसलिए जब निवेशक इन फंड्स को खरीदते हैं तो वो बुनियादी शेयरों को खरीदते हैं और कीमतों में बढ़ोतरी में मदद करते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक में वित्तीय बाज़ार में एक शोधकर्ता योहानस पेट्रे कहते हैं, "पिछले 10 सालों से आप एक ट्रेंड देख रहे हैं कि पैसों का प्रवाह सक्रिय फंड्स से निष्क्रिय फंड्स की ओर हो रहा है."
कई कंपनियां अपने आकार के कारण इंडेक्स से जुड़ती हैं और अलग होती है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है. बड़ी कंपनियां शेयर बाज़ार इंडेक्स का हिस्सा नहीं भी हो सकती हैं.
उदाहरण के लिए योहानस पेट्रे कहते हैं कि अनुमान है कि इस महीने एसएंडपी500 इंडेक्स में प्रवेश करने वाली इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला ने फंड से शेयरों की खरीद में समस्या होने के कारण शेयरों के लिए अतिरिक्त 100 बिलियन डॉलर की मांग की है.
ब्रोकरेज फर्म थीमिस ट्रेडिंग में एक साझेदार जो सॉलोज़ी कहते हैं कि ऐसा कहा जा रहा है कि गिरावट के लिए स्थितियां तैयार हैं. कई निवेशक सोचते हैं कि बाज़ार हमेशा ऊपर नहीं चढ़ सकता लेकिन ये कहना मुश्किल है कि उसमें गिरावट कब आएगी.
जो सॉलोज़ी कहते हैं कि वो सीएनएन पर दिया गया एक इंडिकेटर देखते हैं जिसका नाम फीयर एंड ग्रीड इंडेक्स है. एक समय पर वह बेहद ऊंचाई पर था लेकिन अब वो गिर गया है. वह कहते हैं, "जब मैं ये देखता हूं तो लगता है कि लोगों में घबराहट नहीं है."
उन्होंने एक और प्वाइंटर पर नज़र रखी और वो है कि बाज़ार के बढ़ने के मुक़ाबले बाज़ार के गिरने पर लगने वाली शर्तों का अनुपात. साल 2012 के बाद से हाल में बाज़ार के बढ़ने पर लगने वालीं शर्तें उसके गिरने की शर्तों से ज़्यादा थीं.
वो कहते हैं, "एक बड़ी गलती जो लोग कर रहे हैं, वो वही है जिसका विश्लेषण अभी हमने किया है. हम इसके बाद इस निष्कर्ष पर निकलते हैं कि अभी क़ीमत ज्यादा है तो यह वक्त सही है कि हम अपने शेयर निकाल दे. ऐसा करते हुए हम सोचते हैं कि हम बाज़ार से ज्यादा होशियार है लेकिन ऐसा नहीं है. आप होशियार नहीं और ना ही कोई और है."
नॉफका कहती हैं कि कुछ वजहें होती हैं जिसके चलते बाज़ार खुद अपने आप को चलाता है. बहुत सारे लोग जिनकी नौकरी नहीं गई है, वे अभी कम खर्च कर रहे हैं लेकिन वो बाद में खरीदारी करना चाहेंगे. सरकार पिछले संकट को देखते हुए शायद ही मितव्ययिता का रास्ता अपनाए.
जो सॉलोज़ी कहते हैं कि जब बाज़ार नीचे जाएगा तब यह देखना दिलचस्प होगा कि निवेशक क्या रुख अपनाते हैं खासकर वे नए निवेशक जो नया-नया बाज़ार के उतार-चढ़ाव का अनुभव ले रहे हैं और जल्द से जल्द अपना पैसा फायदे के साथ निकालना चाहते हैं.
ऐसे लोगों की तदाद भले ही कम हो लेकिन वो इस बाज़ार का एक सक्रिय हिस्सा हैं. (bbc.com)
जर्मनी में अधिकारियों ने डार्कनेट के सबसे बड़े बाजार को बंद करने का दावा किया है. इस सिलसिले में एक शख्स को गिरफ्तार भी किया गया है.
डार्कनेट पर इस अवैध ऑनलाइन बाजार में नकली मुद्रा, ड्रग्स और इसी तरह की चीजें खरीदी बेची जा रही थीं. जर्मनी के कोबलेंज और ओल्डेनबुर्ग शहर के अभियोजकों का कहना है कि उन्होंने "संभवतः डार्कनेट पर सबसे बड़े अवैध बाजार" को बंद करा दिया है. इसे डार्क मार्केट कहा जाता है. इसके साथ ही एक आदमी को गिरफ्तार किया गया है जो जर्मनी की डेनमार्क से लगती सीमा के पास से इस बाजार को चला रहा था. हिरासत में लिए जिस शख्स को बाजार का ऑपरेटर कहा जा रहा है उसकी उम्र 34 साल है और वह ऑस्ट्रेलिया का नागरिक है.
अधिकारियों का कहना है कि ड्रग्स, नकली मुद्रा, चोरी के क्रेडिट कार्ड का डाटा, अज्ञात लोगों के नाम पर जारी सिमकार्ड जैसी चीजें इस साइट पर खरीदी और बेची जाती हैं. माना जाता है कि इसका इस्तेमाल 5 लाख से ज्यादा लोग करते हैं. आमतौर पर यह व्यापार क्रिप्टोकरेंसी से होता है. यह अवैध कारोबार करीब 14 करोड़ यूरो का बताया जा रहा है.
ओल्डेनबुर्ग पुलिस का कहना है कि सप्ताहांत में छापा मारा गया था. अभियोजकों के मुताबिक, "सोमवार को जांचकर्ता बाजार को बंद कराने और सर्वर को बंद करने में सफल हुए."
अंतरराष्ट्रीयजांच
यह पहली बार नहीं है जब डार्क मार्केट को जर्मनी में बंद कराया गया है. जर्मनी में यह अवैध बाजार पिछले कई सालों से चल रहा है. 2019 में कोब्लेंज के अभियोजकों ने ही घोषणा की थी कि एक नाटो के पुराने बंकर से डार्केनेट सर्वर चल रहा है.
अधिकारियों का कहना है कि करीब एक महीने तक अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों के अभियान के बाद इस डार्क मार्केट का पता चल सका है. इस काम में अमेरिकी एजेंसी एफबीआई, डीईए नार्कोटिक्स लॉ इनफोर्समेंट डिविजन और आईआरएस टैक्स अथॉरिटी, इन सब ने इस जांच में हिस्सा लिया. इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, यूक्रेन, मोल्डोवा और यूरोपोल ने भी इस अभियान में मदद की.
ओल्डेनबुर्ग के अधिकारियों ने बताया है, "इस बाजार के जरिए कम से कम 320,000 लेनदेन हुए हैं जिनमें 4650 बिटकॉइन और 12,800 मोनेरो के जरिए भुगतान हुआ." बिटकॉइन और मोनेरो सबसे प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी हैं.
बाजार को बंद करते समय इस डार्क मार्केट में 2,400 से ज्यादा वेंडर और 500,000 से ज्यादा यूजर थे.
डार्कनेट बाजार ई कॉमर्स की वेबसाइटें हैं जिन तक आम सर्च इंजन के जरिए नहीं पहुंचा जा सकता. आप इन्हें अवैध बाजार की तरह समझ सकते हैं. ये बाजार अपराधियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि इनमें खरीदने और बेचने वाले की पहचान जाहिर नहीं होती. भुगतान भी ऐसी मुद्रा में की जाती है जिससे कि यह दुनिया और सरकारों की नजर में नहीं आए.
एनआर/आईबी (एएफपी, डीपीए)
जनेवा, 13 जनवरी | स्विट्जरलैंड के स्वास्थ्य नियामक स्विसमेडिक ने ऑनलाइन टीके खरीदने के खतरे की चेतावनी देते हुए कहा है कि फर्जी कोरोनावायरस वैक्सीन पहले से ही इंटरनेट पर बेचे जा रहे हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, स्विसडेमिक ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि कोरोनोवायरस के टीके की मांग बढ़ रही है, आपराधिक व्यक्ति और संगठन इंटरनेट पर नकली टीके देकर लोगों के डर का फायदा उठा रहे हैं।
बयान में कहा गया, "अवैध दवाओं और टीकों और विशेष रूप से कोविड-19 टीकों से जुड़े अपराध स्वास्थ्य और आबादी के जीवन के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं।"
उन्होंने कहा, "बहुत बार, वे जो उत्पाद पेश कर रहे हैं, वे नकली हैं जिनमें या तो कोई सक्रिय तत्व नहीं है या फिर ऐसे खतरनाक पदार्थ हैं जो लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं। कई मामलों में, अग्रिम भुगतान किया जाता है।"
स्विसमेडिक ने जोर देकर कहा कि टीके ऐसे समाधान हैं, जिन्हें एक चिकित्सा पेशेवर द्वारा तैयार किए जाने के बाद एक सिरिंज के साथ इंजेक्ट किया जाता है, और उन्हें अक्सर एक कोल्ड स्टोरेज में सही तापमान में रखा जाता है। इसलिए, ऐसे उत्पादों को ऑनलाइन बेचा नहीं जा सकता है।
उन्होंने कहा, "टीकाकरण की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।" (आईएएनएस)
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने ईरान सरकार पर खुलकर आरोप लगाए हैं कि वो जिहादी नेटवर्क अल-क़ायदा को अपनी ज़मीन पर नया ठिकाना बनाने दे रही है.
पॉम्पियो ने अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में कहा, "अफ़ग़ानिस्तान से अलग, जहाँ अल-क़ायदा पहाड़ों में छिपा था, ईरान में अल-क़ायदा वहाँ के शासकों की पनाह में सक्रिय है."
हालाँकि, अमेरिकी मंत्री ने अपने आरोपों के पक्ष में कोई ठोस सबूत नहीं दिए.
ईरान ने उनके बयान पर सख़्त आपत्ति जताई है. ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने इसे "युद्धोन्मादी झूठ" बताया है.
पिछले साल नवंबर में ईरान ने अल-क़ायदा में दूसरे नंबर के नेता अब्दुल्ला अहमद अब्दुल्ला उर्फ़ अबू मोहम्मद अल-मसरी के बारे में इस रिपोर्ट का खंडन किया था कि अमेरिका के आग्रह पर इसराइली एजेंटों ने तेहरान में मसरी को मार डाला.
From designating Cuba to fictitious Iran "declassifications” and AQ claims, Mr. “we lie, cheat, steal" is pathetically ending his disastrous career with more warmongering lies.
— Javad Zarif (@JZarif) January 12, 2021
No one is fooled. All 9/11 terrorists came from @SecPompeo's favorite ME destinations; NONE from Iran.
मंगलवार को अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि वो पहली बार इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि मसरी की 7 अगस्त को मौत हो गई. हालाँकि, उन्होंने इस बारे में कोई ब्यौरा नहीं दिया.
उन्होंने इस बात पर ज़ोर देकर कहा कि लोगों का ये मानना ग़लत है कि एक शिया ताक़त ईरान और सुन्नी चरमपंथी गुट अल-क़ायदा एक-दूसरे के दुश्मन हैं.
पॉम्पियो ने कहा, "ईरान में मसरी की मौजूदगी वो वजह है जिससे हम यहाँ बात कर रहे हैं. अल-क़ायदा का अब एक नया ठिकाना है - वो है ईरान."
"इसकी वजह से, ओसामा बिन लादेन के बनाए इस दुष्ट समूह की ताक़त बढ़ती जाएगी."
पॉम्पियो ने आरोप लगाया कि ईरान ने 2015 से देश में मौजूद अल-क़ायदा नेताओं को खुलकर दूसरे सदस्यों से बात करने और ऐसे कई काम करने की छूट दे रखी है जिनके निर्देश पहले अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आया करते थे. इनमें हमले करना, प्रोपेगेंडा और पैसे जमा करने जैसे काम शामिल हैं.
उन्होंने कहा, "ईरान और अल-क़ायदा की धुरी दूसरे देशों और अमेरिका की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा है और हम क़दम उठा रहे हैं."
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा है कि अमेरिका अल-क़ायदा के दो नेताओं को विशेष ग्लोबल चरमपंथी घोषित करना चाहता है और ये दोनों ईरान में स्थित हैं.
उन्होंने उनके नाम ये बताए - मोहम्मद अबाटे उर्फ़ अब्दुल रहमान अल-मग़रेबी और सुल्तान यूसुफ़ हसन अल-आरिफ़.
पॉम्पियो ने कहा कि अमेरिका मग़रेबी का सुराग़ या पहचान बताने वाले को 70 लाख डॉलर का इनाम देगा.
अमेरिका कथित तौर पर ईरान में रह रहे अल-क़ायदा के दो अन्य नेताओं के लिए पहले ही इनाम की पेशकश कर चुका है. उनके नाम हैं सैफ़ अल-आदिल और यासीन अल-सूरी.
2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका की अगुआई में हुए हमले के बाद अल-क़ायदा के कई चरमपंथी और ओसामा बिन लादेन के कई संबंधी पड़ोसी देश ईरान भाग गए थे.
ईरानी अधिकारियों का कहना है कि ये लोग अवैध रूप से चले आए थे और उन्हें गिरफ़्तार कर उनके अपने देशों में प्रत्यर्पित कर दिया गया है.
पिछले साल मसरी की मौत की ख़बर आने के बाद ईरान के विदेश मंत्री ने ज़ोर दिया कि उनकी ज़मीन पर अल-क़ायदा का कोई भी "आतंकवादी" मौजूद नहीं है.
मंगलवार को ईरान सरकार के एक प्रवक्ता ने मीडिया से कहा, "ईरान, अमेरिका और उससे जुड़े समूहों के बरसों से चलाए जा रहे आतंकवाद का शिकार रहा है और उसका अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ जारी लड़ाई में रिकॉर्ड स्पष्ट है."
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अमेरिका के एक पूर्व वरिष्ठ ख़ुफ़िया अधिकारी के हवाले से लिखा है कि ईरान 9/11 के पहले या बाद, कभी भी अल-क़ायदा के क़रीब नहीं रहा है, और "उनके बीच अभी किसी तरह के सहयोग के दावे को सतर्क होकर देखना चाहिए".
आलोचकों ने पॉम्पियो के बयानों के समय पर भी सवाल उठाए हैं और कहा कि ऐसा लगता है कि वो जो बाइडन के लिए ईरान से दोबारा संपर्क करने और 2015 की ईरान की परमाणु संधि में दोबारा शामिल होने के प्रयासों में कठिनाई पैदा करने की कोशिश करना चाहते हैं. (bbc.com)
पाकिस्तान में डिजिटल भुगतान की एक नई प्रणाली की शुरुआत की गई है. अधिकारियों को उम्मीद है कि इस से देश की टैक्स वसूली दर में सुधार होगा और सरकार को अति-आवश्यक राजस्व की प्राप्ति होगी.
नई प्रणाली का नाम 'रास्त' रखा गया है, जिसका उर्दू में मतलब होता है 'सही रास्ता.' पाकिस्तान में कर वसूली की दर दुनिया में सबसे कम दरों में से है और देश के राजस्व अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि नई व्यवस्था इस सूरत को बदलने में सहायक होगी. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर नकद लेन-देन पर आधारित है और डिजिटल भुगतान प्रणाली की वजह से लेन-देन के लिखित प्रमाण हासिल हो सकेंगे.
पाकिस्तान में जीडीपी मुकाबले टैक्स का अनुपात 10 प्रतिशत से भी कम है. इसकी वजह से पूर्व में देश को मजबूर हो कर या तो वैश्विक बैंकों से कर्ज या चीन और सऊदी अरब जैसे साझेदारों से मदद लेनी पड़ी है. देश में लगभग 40 प्रतिशत लेन-देन नकद माध्यम से होता है जब कि विकसित देशों में यह अनुपात एक अंक में ही रहता है.
'रास्त' को बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र और ब्रिटेन के सहयोग से विकसित किया गया है. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के प्रवक्ता आबिद कमर ने बताया कि प्रणाली "बहुत तेज और कम खर्च वाली" है. कमर ने यह भी बताया कि देश में पहले से ही डिजिटल भुगतान और नकद हस्तांतरण की कुछ सेवाएं मौजूद हैं, लेकिन यह सरकार द्वारा शुरू की गई पहली सेवा है.
इस सेवा को लेकर सरकार के आगे के लक्ष्यों के बारे में प्रवक्ता ने कहा, "हमारी योजना है कि भविष्य में सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन इसी माध्यम से दिए जाएं." अधिकारियों और जानकारों का कहना है कि अगर यह प्रणाली सफल हो गई तो सरकार इसकी मदद से राजस्व की वसूली बढ़ा सकती है. कमर ने कहा, "हमें उम्मीद है कि आगे चल कर हमें कर वसूली और राजस्व के दूसरे साधनों की वसूली में काफी सुधार होंगे.
आर्थिक मामलों के जानकार सलीम रजा का कहना है कि प्रणाली से इस समय नकद में होने वाले खुदरा लेन-देन का 95 प्रतिशत आधिकारिक रिकॉर्डों में दर्ज किया जा सकता है और कर प्रणाली में लाया जा सकता है.
सीके/एए (डीपीए)
चीन में पांच महीने से भी ज़्यादा वक़्त बाद कोरोना संक्रमण के एक दिन में सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. जबकि कोरोना की अगली लहर से बचने के लिए चीन के चार शहरों में लॉकडाउन लागू है, टेस्टिंग बढ़ा दी गई है और दूसरे कदम भी उठाए जा रहे हैं.
ज़्यादातर नए मामले राजधानी बिजिंग के नज़दीक मिले हैं. बुधवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ उत्तरपूर्वी चीन के एक प्रांत में भी मामलों में तेज़ बढ़ोतरी देखी गई है. मामले बढ़ने के बीच 28 मिलियन से ज़्यादा लोगों को होम क्वारंटीन में डाल दिया गया है.
नेशनल हेल्थ कमिशन ने एक बयान में कहा कि चीन में कुल 115 नए मामलों की पुष्टि हुई है, इसके मुक़ाबले एक दिन पहले 55 मामले दर्ज किए गए थे. 30 जुलाई के बाद एक दिन में ये सबसे ज़्यादा बढ़त है.
कमिशन ने बताया कि 107 मामले लोकल इंफेक्शन थे. 90 मामले बिजिंग से लगने वाले हिबे प्रांत में दर्ज किए गए, वहीं उत्तरपूर्वी हेलुंगजांग प्रांत में 16 नए मामले सामने आए.
हिबे के तीन शहरों में लॉकडाउन लगा दिया गया है, वहीं बिजिंग शहर के प्रशासन ने स्क्रीनिंग और दूसरे एहतियाती कदम उठाना शुरू कर दिया है ताकि अन्य क्लस्टर बनने से रोका जा सके.
हेलुंगजांग प्रांत ने बुधवार को कोविड-19 इमरजेंसी घोषित कर दी. प्रांतीय राजधानी हार्बिन की सीमा से लगने वाले सूहुआ शहर ने अपने 5.2 मिलियन नागरिकों के लिए लॉकडाउन लगा दिया है. (bbc.com)
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने हत्या की दोषी लीजा मोंटगोमेरी की मौत की सजा पर रोक लगाने वाले एक आदेश को पलट दिया, जिसके बाद सात दशक में पहली बार दोषी महिला को मौत की सजा हो गई. मोंटगोमेरी ने जघन्य अपराध को अंजाम दिया था.
1953 के बाद पहली बार अमेरिका में किसी महिला कैदी को मृत्युदंड दिया गया है. जिस महिला कैदी को मौत की सजा दी गई उसका नाम लीजा मोंटगोमेरी है. मोंटगोमेरी की सजा पर ऐन वक्त पर 8वें सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने रोक लगा दी थी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया और मंगलवार को मौत की सजा हुई. अमेरिकी न्याय विभाग के मुताबिक मोंटगोमेरी को इंडियाना के तेर्रे हाउते की जेल में स्थानीय समय रात 1:31 बजे मृत घोषित किया गया.
इससे पहले डॉक्टरों का कहना था कि मोंटगोमेरी का ब्रेन डैमेज है और वह मानसिक रूप से बीमार है. 52 वर्षीय मोंटगोमेरी को मृत्युदंड देने को लेकर कई कई संघीय अदालतों में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोंटगोमेरी के वकील केली हेनरी ने सजा को "क्रूरतापूर्ण, गैर-कानून और सत्ता की शक्ति का अनावश्यक इस्तेमाल" बताया था. उन्होंने एक बयान में कहा, "मोंटगोमेरी के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई भी विवाद नहीं खड़ा कर सकता. पहली बार जेल के डॉक्टरों ने बीमारी का पता लगाया था और इलाज किया था."
मोंटगोमेरी 2007 में 23 वर्षीय बॉबी जो स्टिनेट की हत्या और अपहरण की दोषी पाई गई थी. उसने बॉबी जो कि आठ महीने की गर्भवती थी, उसका पेट चीर कर बच्ची का अपहरण कर लिया था.
मोंटगोमेरी का जघन्य अपराध
16 दिसंबर 2004 को मोंटगोमेरी ने उत्तर पश्चिमी मिसूरी के स्किडमोर में बॉबी जो स्टिनेट के घर में घुसकर रस्सी से उनका गला घोंटकर हत्या कर दी, गर्भवती स्टिनेट का किचन में इस्तेमाल होने वाले चाकू से पेट चीर डाला और बच्ची को लेकर वहां से फरार हो गई. बच्ची को अपना बताने के इरादे से वह वहां से लेकर भाग गई थी. मोंटगोमेरी के वकील लंबे समय से उसको मौत की सजा का विरोध करते रहे हैं.
मोंटगोमेरी को मौत की सजा ऐसे समय में दी गई जब दो और मामलों में कोर्ट ने कैदी के कोरोना पॉजिटिव होने के कारण मौत की सजा पर रोक लगा दी. अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन मौत की सजा के खिलाफ हैं. ये मृत्युदंड बाइडेन के उदघाटन से पहले दिए जा रहे हैं. ट्रंप के शासन के दौरान 10 संघीय कैदियों को मृत्युदंड मिल चुका है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एपी)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 13 जनवरी (आईएएनएस)| अमेरिका के उप राष्ट्रपति माइक पेंस द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 25वें संशोधन का इस्तेमाल कर पद से हटाने के लिए मना करने के बाद ट्रंप के दूसरे महाभियोग के लिए मंच तैयार हो चुका है। प्रतिनिधि सभा ने उन्हें कार्रवाई करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था।
मंगलवार को ट्रंप से मिले पेंस ने स्पीकर नैन्सी पेलोसी को लिखा कि वह ट्रंप को एक संवैधानिक कदम के माध्यम से हटाने के उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं करेंगे, जिन्होंने ट्रंप को हटाने के लिए 24 घंटे का नोटिस दिया था और ऐसा न करने पर महाभियोग के लिए तैयार रहने के लिए कहा था।
सदन को बुधवार को ट्रंप के महाभियोग की उम्मीद है क्योंकि पेंस और कैबिनेट को इसके प्रस्ताव का पालन करने और संविधान के 25 वें संशोधन के तहत कार्य करने के लिए सहमत होने की संभावना नहीं है जो ट्रंप को व्हाइट हाउस से बाहर करने के लिए बहुमत देता है।
इस बीच ट्रंप ने कहा, "यह महाभियोग जबरदस्त गुस्सा पैदा कर रहा है, और आप यह कर रहे हैं, और यह वास्तव में एक भयानक चीज है जो वे कर रहे हैं।"
ट्रंप के महाभियोग के मसौदे में अमेरिका की सरकार के खिलाफ हिंसा को उकसाने का आरोप है, जो उनके समर्थकों द्वारा कैपिटल हिल में किए हमले से संबधित है।
ट्रंप ने जोर देकर कहा था कि चुनाव एक धोखाधड़ी था, उनकी बयानबाजी ने कैपिटल पर पिछले बुधवार को उनके समर्थकों को भेजा था, जिन्होंने जमकर उत्पात मचाया, जब कांग्रेस जो बाइडेन के इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों को प्रमाणित करने की प्रक्रिया में थी।
हमले में एक पुलिस अधिकारी सहित पांच लोगों की मौत हो गई थी।
ज़ुबैर अहमद
पिछले सप्ताह अमेरिकी संसद में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों द्वारा ग़ैर क़ानूनी और जबरन प्रवेश के बाद ट्विटर, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने राष्ट्रपति ट्रंप पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. इनके साथ इनके 70,000 समर्थकों के एकाउंट्स भी निलंबित कर दिए गए हैं.
राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार बिना सबूत के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन की 3 नवंबर की चुनावी जीत की वैधता को चुनौती देते रहे हैं. पिछले बुधवार को उनके एक भाषण के बाद उनके समर्थक अमेरिकी संसद की इमारत में घुस आए. उस समय वहां सीनेट और हाउस में अधिवेशन जारी था जिसमें जो बाइडन की जीत की पुष्टि होनी थी, जो महज़ एक औपचारिकता थी. लेकिन इस भीड़ द्वारा हिंसा के कारण सदस्यों को इमारत से निकाल कर सुरक्षित जगह पर पहुँचाना पड़ा.
इस हिंसा में पांच लोगों की मृत्यु हो गयी. सियासी नेताओं ने ट्रंप के भड़काऊ भाषण को इस हिंसा का ज़िम्मेदार ठहराया. लेकिन टेक्सास में अपने ताज़ा बयान में राष्ट्रपति ने बुधवार को भड़काऊ भाषण देने के इलज़ाम को ग़लत बताते हुए कहा कि उनका 'बयान मुनासिब था.'
राष्ट्रपति ट्रंप के ख़िलाफ़ लगे प्रतिबंध पर क़ानूनी विशेषज्ञ इस बहस में जुटे हैं कि क्या ये क़दम ग़ैर क़ानूनी है? स्वयं राष्ट्रपति के बेटे डोनाल्ड ट्रंप जूनियर ने ट्विटर पर लगी पाबंदी के बाद कहा, "फ्री-स्पीच अब अमेरिका में मौजूद नहीं है."
लेकिन दूसरी तरफ़ उनके समर्थक इस बात के लिए उत्साहित हैं कि उनका अपना एक अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हो जिसमें वो आज़ादी से अपने विचार शेयर कर सकें. ख़ुद राष्ट्रपति ने कहा है कि वो एक नया सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शुरू करने का इरादा रखते हैं.
लेकिन एक नया सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाना कितना आसान है? या फिर क्या ट्विटर, फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म का कोई विकल्प है, जिसकी पहुँच इन्हीं प्लेटफॉर्म जैसी हो और वो दुनिया भर में इन्हीं की तरह लोकप्रिय हों?
नया प्लेटफॉर्म बनाना कितना आसान?
ये सवाल हर उस व्यक्ति के दिमाग़ में होगा जो अपने विचार के प्रचार के लिए इन फ्री सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का रोज़ इस्तेमाल करते हैं लेकिन उन्हें डर लगा रहता है कि उनके विचारों के कारण कहीं उनपर पाबंदी न लग जाए.
न्यूयॉर्क में भारतीय मूल के योगेश शर्मा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाने के क्षेत्र में काम करते हैं और अमेरिका में डिमांड में हैं.
इससे पहले कि वो हमारे सवाल का जवाब देते, वो कहते हैं "ज़रा सोचिये अगर फ़ेसबुक और ट्विटर न हो तो बीजेपी भक्त और ट्रोल कहाँ जायेंगे?".
उनके मुताबिक़ वो नया प्लेटफॉर्म खोलने की कोशिश करेंगे, क्योंकि उनके अनुसार ये बहुत मुश्किल काम नहीं है.
सैद्धांतिक रूप से अगर आपके पास पर्याप्त पूँजी हो, टेक्नोलॉजी हो और फॉलोवर्स हों तो एक नया सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाना आसान होना चाहिए.
योगेश शर्मा कहते हैं, "देखिये, अपना सोशल प्लेटफॉर्म बनाना मुश्किल नहीं है. संभावित रूप से एक साथ 70 मिलियन समर्थक (ट्रंप के) एक नए प्लेटफॉर्म से जुड़ सकते हैं. इस बड़े नंबर को हलके में नहीं लेना चाहिए. इसलिए ऑडियंस या स्वीकृति का कोई मुद्दा नहीं है."
इस तर्क को आगे ले जाने की कोशिश में वो कहते हैं, "प्रचारकों, मुल्लाओं और ढोंगी बाबाओं के लिए मंच हमेशा उपलब्ध होता है या नया प्लेटफॉर्म बनाया जा सकता है".
योगेश आगे कहते हैं, "हाल ही में फ्लोरिडा के एक प्रसिद्ध हेयरड्रेसर ने एक नया प्लेटफॉर्म बनाने के लिए मुझसे संपर्क किया. एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाने के लिए आपको एक अच्छा बुनियादी ढाँचा, नवीनतम टेक्नोलॉजी और ढेर सारी पूँजी की आवश्यकता है. संक्षेप में, मैं इस तरह के प्लेटफॉर्म का निर्माण कर सकता हूं और दर्शक भी हासिल कर सकता हूँ चाहे वो अमेरिका हो या कहीं और."
सैद्धांतिक रूप से नया प्लेटफॉर्म बनाना आसान तो है लेकिन वास्तविकता ये है कि स्थापित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से कोई नया प्लेटफॉर्म मुक़ाबला नहीं कर सकता.
अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर डंकन फर्गुसन अपने एक लेख में लिखते हैं, "ज़मीनी हकीक़त ये है कि स्थापित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और अमेज़न जैसी कंपनियों के दायरे में रह कर कुछ नया काम करना असंभव है. आप की नई कंपनी जैसे ही अच्छा करने लगेगी वो आपको खरीद लेंगे. ये वो शार्क हैं जो छोटी मछलियों को देखते ही निगल लेते हैं."
ज़रा इस ज़मीनी हक़ीक़त पर ग़ौर कीजिए - हर महीने फ़ेसबुक के 2.3 अरब यूज़र हैं, यूट्यूब के 1.9 अरब यूज़र, व्हाट्सऐप के 1.5 अरब यूज़र, मैसेंजर के 1.3 अरब यूज़र और इंस्टाग्राम के 1 अरब यूज़र.
इनके सामने किसी नए प्लेटफॉर्म का टिकना लगभग असंभव है. ये सारे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अमेरिका के सिलिकन वैली में स्थित हैं, यहीं इनका जन्म हुआ और यहीं ये पनप रहे हैं. इनकी पहुँच और इनके फॉलोअर्स दुनिया भर में हैं.
इनके बीच एक चीनी प्लेटफॉर्म वीचैट ही टिक पाया है जिसके हर महीने यूज़र 1 अरब से अधिक हैं. ट्विटर 12 वें पायदान पर है जिसकी पहुँच हर महीने 33 करोड़ से थोड़ा ज़्यादा है.
पार्लर का गठन, लेकिन उदय से पहले पतन?
कंज़र्वेटिव लोगों (रुढ़िवादियों) के बीच लोकप्रिय सोशल मीडिया नेटवर्क पार्लर (Parler) इस बात का जीता जागता सबूत है कि सिलिकन वैली के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सामने टिकना कितना कठिन है.
इस प्लेटफॉर्म को अब एपल, गूगल और अमेज़न ने प्रतिबंधित लगा दिया है, इन कंपनियों का इल्ज़ाम है कि पार्लर ने ऐसी पोस्टों को जगह दी है जो हिंसा को स्पष्ट रूप से प्रोत्साहित करती हैं और उकसाती हैं.
इन कंपनियों का इलज़ाम है कि पार्लर ने ऐसी पोस्टों को जगह दी है जो हिंसा को स्पष्ट रूप से प्रोत्साहित करती हैं और उकसाती हैं.
पार्लर को 2018 में लॉन्च किया गया था और कंपनी के अनुसार इसके 3 मिलियन एक्टिव यूज़र हैं, जिनमें भारी संख्या उन लोगों की है जो राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थक हैं. कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके फॉलोवर्स की संख्या 16 मिलियन है. राष्ट्रपति ट्रंप के परिवार के कुछ सदस्य भी इसके मेंबर हैं.
कनाडा के शहर वेंकुअर से भारतीय मूल के सौरभ वर्मा ने फ़ोन पर बताया कि अमेरिका के 'टेक एको सिस्टम' में एक ऐसे नए प्लेटफॉर्म का लॉन्च होना मुश्किल है जिसके फॉलोवर्स दक्षिण पंक्ति या ट्रंप समर्थक हों."
वो कहते हैं, "देखिये बुनियादी तौर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सियासी नहीं आर्थिक फायदे के लिए वजूद में आयी हैं. इनका ख़ास मक़सद पैसे कमाना है. लेकिन पिछले कुछ सालों में विभाजित करने वाली शख्सियतों और तत्वों के कारण ये प्लेटफॉर्म वैचारिक युद्ध का अखाड़ा बन गए हैं. ये सियासी हो गए हैं. सिलिकन वैली में पनपे प्लेटफॉर्म को शुरू करने वाले लोग युवा पीढ़ी के हैं और वो अक्सर लिबरल विचारधारा के होते हैं. यही कारण है कि वो दक्षिणपंथी तत्वों के ख़िलाफ़ होते हैं. ऐसे में दक्षिण पंथी वाले पार्लर जैसे प्लेटफॉर्म को वो केवल सह सकते हैं मगर इसे आगे नहीं बढ़ने देंगे."
शायद इसीलिए पार्लर Parler को ऐपल, गूगल और अमेज़न ने प्रतिबंधित कर दिया है. अमेज़न के क़दम से पार्लर को सबसे अधिक झटका लगा है क्योंकि वह अमेज़न का क्लाउड सर्वर पर चलता था. अब पार्लर ने अमेज़न के ख़िलाफ़ मुक़दमा कर दिया है.
पार्लर का इलज़ाम है कि अमेज़न को चाहिए था कि पाबंदी लगाने से पहले वो कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक़ एक महीने का नोटिस जारी करे. लेकिन पाबंदी अचानक लगाई गई. पार्लर के अनुसार ऐमेज़ॉन का फैसला इसके लिए इसे "मौत का झटका" देने जैसा है.
इन दिनों पार्लर की वेबसाइट डाउन है और इस ऐप को गूगल के प्लेस्टोर या एप्पल के ऐप स्टोर से डाउनलोड भी नहीं किया जा सकता.
लेकिन सौरभ वर्मा के अनुसार पार्लर या कोई भी नया प्लेटफॉर्म अगर चाहे तो चीन या रूस के एको सिस्टम में रह कर लॉन्च कर सकता है. "सिलिकन वैली में अगर आपको लोग टिकने नहीं देना चाहते हैं तो आप चीन और रूस जा कर एक नया प्लेटफॉर्म शुरू कर सकते हैं. मगर इसमें सिक्योरिटी और डाटा की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है और अगर सर्वर आपका चीन में है तो पश्चिमी देश के फॉलोवर आप से जुड़ना नहीं चाहेंगे."
मौजूदा प्लेटफॉर्म में कोई विकल्प है?
अब सवाल ये है कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने समर्थकों तक पैग़ाम पहुंचाने के लिए किस प्लेटफॉर्म का सहारा लें? रोज़ दो-तीन ट्वीट करने वाला आदमी अब क्या करे?
बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बाद अब ट्विच, रेडिट और टिक टॉक जैसे प्लेटफॉर्म ने भी राष्ट्रपति पर शिकंजा कसा है और उनके अकाउंट को निलंबित कर दिया है. अब वो कहाँ जायेंगे?
एक संभावना है कि ट्रंप गैब (Gab) से जुड़ सकते हैं. ये ट्विटर की तरह एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है जो अमेरिका में दक्षिणपंथियों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है. अमरीकी संसद में हिंसा के बाद से इसका दावा है कि इसने छह लाख नए यूज़र बनाए हैं.
रॉयटर्स समाचार एजेंसी के अनुसार राष्ट्रपति ट्रंप अपने कार्यकाल के आख़िरी कुछ दिन संचार के अधिक परंपरागत तरीकों, मेनस्ट्रीम ट्रेडिशनल मीडिया या छोटे दक्षिणपंथी ऑनलाइन चैनलों का सहारा लेने पर मजबूर हो सकते हैं.
राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थक फेसबुक-स्टाइल के प्लेटफॉर्म मीवी (MeWe) से भी तेज़ी से जुड़ रहे हैं लेकिन ये अब भी काफ़ी छोटा प्लेटफॉर्म है जिसे अमेरिका से बाहर शायद ही कोई जानता हो.
योगेश शर्मा के विचार में राष्ट्रपति ट्रंप जिस प्लेटफॉर्म को साइन अप करेंगे उस प्लेटफॉर्म के फॉलोवर्स की संख्या बढ़ेगी, अगर उनके सात करोड़ से अधिक समर्थक किसी प्लेटफॉर्म से जुड़ जाएँ तो एक विज्ञापनदाता के लिए अच्छी खबर होगी लेकिन किसी भी ऐसे प्लेटफॉर्म को पहले सिलिकन वैली की बड़ी कंपनियों के शिकंजे से निकलना पड़ेगा और कनाडा में सौरभ वर्मा के अनुसार ये सब से कठिन काम होगा. (bbc.com)
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ ने कहा है कि ईरान आतंकवादी संगठन अल कायदा से संबंध रखता है. ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने इसका खंडन किया है. पोम्पेओ ने अपने आरोप के लिए कोई सबूत नहीं पेश किए.
माइक पोम्पेओ ने मंगलवार को कहा कि आतंकी संगठन अल कायदा ने ईरान में अपना नया ठिकाना स्थापित किया है और वहां अपनी पैठ मजबूत कर ली है. उन्होंने दावा किया कि आतंकी संगठन देश के अंदर तक घुस गया जिससे अमेरिका के लिए उसके सदस्यों को निशाना बनाना कठिन हो गया है. पोम्पेओ ने अपना दावा न्यूयॉर्क टाइम्स की उस रिपोर्ट पर किया है, जिसमें कहा गया था कि अल कायदा का शीर्ष नेता अबु मोहम्मद अल-मसरी ईरान में इस्राएल के ऑपरेशन के दौरान अगस्त 2020 में मारा गया था. ईरान ने बाद में इस रिपोर्ट का खंडन किया था. वॉशिंगटन में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पोम्पेओ ने कहा, "ईरान में अल-मसरी की मौजूदगी इस बात का प्रमाण है कि आज हम यहां खड़े हैं...अल कायदा के पास नया अड्डा है, यह इस्लामिक गणराज्य ईरान है." उन्होंने अपना दावा बिना किसी पुख्ता सबूत के किया. उन्होंने कहा, "मैं कहूंगा ईरान वास्तव में एक नया अफगानिस्तान है...अल कायदा के लिए प्रमुख भौगोलिक केंद्र के रूप में. अफगानिस्तान में अल कायदा के सदस्य पहाड़ों में छिपते थे लेकिन अल कायदा आज उसके उलट ईरानी प्रशासन की कड़ी सुरक्षा में गतिविधियों को अंजाम दे रहा है." उन्होंने कहा, "तेहरान आतंकी संगठन के बडे़ नेताओं को पनाहगाह दे रहा है...उसने अल कायदा को दुनिया भर में संबंध स्थापित करने के लिए धन जुटाने की अनुमति दी है ताकि वह उन सभी कार्यों को अंजाम दे सके जो वे अफगानिस्तान और पाकिस्तान में करते थे."
ईरान ने अल कायदा से संबंध से इनकार किया
ईरानी विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने पोम्पेओ के इस आरोप पर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने दावों को "काल्पनिक डिक्लासिफिकेशन" और "युद्ध को भड़काने वाला झूठ" करार दिया. ईरान एक शिया बहुल देश है और ईरान को अल कायदा जैसे आतंकी संगठन के वैचारिक रूप से विरोधी माना जाता है. अल कायदा इस्लाम के सुन्नी मान्यताओं का पालन करता है और पारंपरिक रूप से ईरान के कट्टर दुश्मन सऊदी अरब द्वारा कथित समर्थित है.
आखिरी दिनों में उथल पुथल करना चाहता है ट्रंप प्रशासन
क्विंसी इंस्टीट्यूट थिंक टैंक के उपाध्यक्ष ट्रिता पारसी ने पोम्पेओ के आरोप के बारे में डीडब्ल्यू से बात की और आरोप को अविश्वसनीय माना. उन्होंने कहा ट्रंप प्रशासन ईरान पर बहुत दबाव डाल रहा है. उन्होंने सवाल किया कि अगर सबूत मौजूद थे तो पहले क्यों नहीं ट्रंप प्रशासन सामने आया. पारसी ने यह भी रेखांकित किया कि यह दावा किया जा रहा है कि ईरान अल कायदा का नया ठिकाना बन गया है, इस तरह से ट्रंप के सत्ता के आखिरी दिनों में प्रशासन ईरान पर हमला करने की इजाजत दे देगा.
2002 का एक कानून अमेरिकी सरकार को अल कायदा के खिलाफ कांग्रेस की मंजूरी के बिना सैन्य अभियान चलाने की अनुमति देता है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए)
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 13 जनवरी (आईएएनएस)| राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समर्थक भीड़ द्वारा अमेरिका के कैपिटल हिल पर 6 जनवरी को किए गए घातक हमले के एक हफ्ते से भी कम समय बाद फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) पहले से ही 100,000 से अधिक डिजिटल मीडिया फुटेज को देख रही है। हमले में एक पुलिस अधिकारी सहित 5 लोगों की मौत हो गई थी।
अमेरिकी न्याय विभाग ने देशद्रोह के आरोपों की संभावना की जांच करने के लिए एक स्ट्राइक फोर्स बनाया है, जिसमें 20 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। अधिकारी धन उपलब्ध कराए जाने और मूवमेंट की जांच कर रहे हैं, जिसके कारण हमला हुआ।
जैसा कि चौंकाने वाले नए सबूत सामने आए हैं, एफबीआई ने पहले ही 170 मामलों को खोल दिया है और हजारों गवाहों के बयान दर्ज कर रही है।
डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के लिए कार्यवाहक अमेरिकी अटॉर्नी माइकल शेरविन ने 6 जनवरी के हमले के बाद पहली बार देश को संबोधित किया।
उनकी टिप्पणी इस बात पर अभी तक काफी पुख्ता विवरण प्रस्तुत करती है कि उस दिन दोपहर के लगभग क्या हुआ था, जब कांग्रेस अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन के जीत को प्रमाणित करने के लिए जुटी थी।
ब्रीफिंग के अंश हमें बताते हैं कि चीजें कहां खड़ी हैं।
शेरविन ने कहा, "हमने पहले से ही 170 से अधिक सब्जेक्ट फाइलों को खोल दिया है, जिसका अर्थ है कि इन व्यक्तियों को संभावित व्यक्तियों के रूप में पहचाना गया है जिन्होंने कैपिटल ग्राउंड के अंदर और बाहर अपराध किया। 170 मामले पहले ही खुल चुके हैं और मुझे आशा है कि यह आगामी सप्ताहों में सैकड़ों में बढ़ने वाला है। अगले आने वाले हफ्तों में, मुझे फिर से संख्या सैकड़ों में बढ़ने का संदेह है।"
उन्होंने कहा, "आपराधिक आचरण की सीमा वास्तव में है। हम कैपिटल में साधारण ट्रेसपास से लेकर मेल की चोरी, डिजिटल उपकरणों की चोरी तक सब कुछ देख रहे हैं ।"
शेरविन ने कहा, "इन मामलों में इस जांच का दायरा और पैमाना वास्तव में न केवल एफबीआई के इतिहास में अप्रत्याशित है, बल्कि संभवत: डीओजे के इतिहास में भी है जिसमें अनिवार्य रूप से कैपिटल ग्राउंड के बाहर और अंदर एक अपराध स्थल है जिसमें हमारे पास वास्तव में हजारों संभावित गवाह हैं और एक ऐसा परि²श्य है जिसमें हमारे पास सैकड़ों आपराधिक मामले होंगे। यह रातोंरात हल होने वाले नहीं हैं। यह आगामी हफ्तों, आगामी महीनों के भीतर हल होने वाला नहीं है। यह एक दीर्घकालिक जांच होने जा रही है।"
उन्होंने कहा कि हमें डिजिटल मीडिया के 100,000 से अधिक तस्वीरें प्राप्त हुई हैं, जो जांच में मदद करेंगी।
श्ेरविन ने कहा कि जब आपराधिक आचरण होता है तो हम स्पष्ट रूप से लोगों को जल्द से जल्द आरोप पत्र दाखिल करने की कोशिश करते हैं। इसलिए जब इन प्रदर्शनकारियों ने कैपिटल को छोड़ दिया, तो संघीय कानून प्रवर्तन द्वारा माचिर्ंग आदेश इन व्यक्तियों को जितनी जल्दी हो सके खोजने और आरोप लगाने के लिए था। यह केवल शुरूआत है। इसलिए इन आपराधिक आरोपों को दायर किए जाने के बाद, जो कि संयुक्त राज्य भर में कानून प्रवर्तन को डलास से अरकांसस से नैशविले से क्लीवलैंड, जैक्सनविले तक लोगों को गिरफ्तार करने की अनुमति देता है। जो कि पिछले कुछ दिनों में हुआ है। यह वास्तव में काफी अविश्वसनीय है।
नई दिल्ली, 13 जनवरी। टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क ने ई-लनिर्ंग प्लेटफॉर्म खान एकेडमी को 5 लाख डॉलर का दान दिया है। खान एकेडमी के संस्थापक साल खान ने ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में कहा कि वह खुशी से फुले नहीं समा रहे हैं और मस्क फाउंडेशन के हर सदस्य और एलन मस्क का धन्यवाद अदा करते हैं।
उन्होंने कहा, "खान अकादमी के लिए, उनके विश्वसनीय उदार समर्थन के लिए, उन्होंने हाल ही में खान एकेडमी को 50 लाख डॉलर का दान दिया है।"
उन्होंने आगे लिखा, "यह हमें सभी प्रकार की कंटेंट में तेजी लाने और दुनिया भर के लाखों छात्रों को एकजुट करने की अनुमति देने जा रहा है।"
खान एकेडमी में 12 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं और 2 से 3 करोड़ छात्र हर महीने मंच का उपयोग कर रहे हैं।
सल खान ने कहा, "हमारे पास सीखने के लगभग 20 करोड़ घंटे हैं। मैं इस तरह के निवेश को एक बहुराष्ट्रीय संस्था बनाने में सक्षम होने के तौर पर देखता हूं, ताकि भविष्य में पैदा होने वाले एलन मस्क अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकें।"
चूंकि भारत सहित विश्व भर में लाखों बच्चे घर से ऑनलाइन स्कूल की कक्षाएं लेते हैं, इसलिए निजी शिक्षा क्षेत्र के साथ-साथ सरकार के पास 6 करोड़ से अधिक कॉलेज छात्रों और दुनिया भर में 150 करोड़ स्कूली छात्रों को ऑनलाइन ई-लनिर्ंग की पेशकश करने की एक बड़ी जिम्मेदारी है।
खान एकेडमी की स्थापना 2008 में अमेरिका में एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में की गई थी। यह ऑनलाइन टूल की तरह है जो छात्रों को वीडियो के रूप में छोटे पाठ पेश कर शिक्षित करने में मदद करता है। (आईएएनएस)
लंदन, 13 जनवरी | गायिका से डिजाइनर बनीं विक्टोरिया बेकहम का कहना है कि लोकप्रिय बैंड स्पाइस गर्ल्स से दूर होने की प्रेरणा उन्हें मशहूर अंग्रेजी गायक-गीतकार एल्टन जॉन से मिली है। 46 वर्षीय स्टार ने इस गर्ल बैंड के सदस्य के तौर पर खासी प्रसिद्धि पाई। लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने फिर से इस बैंड से जुड़ने की योजनाओं को अस्वीकार कर दिया है। फीमेल फर्स्ट डॉट को डॉट यूके की रिपोर्ट के मुताबिक, अब उन्होंने ब्रिटेन की वोग पत्रिका में अपने भविष्य को लेकर लिखे गए एक पत्र में इसके कारण का खुलासा किया है।
उन्होंने कहा, "सालों पहले की बात है, जब लास वेगस में स्टेज पर प्रिय मित्र एल्टन जॉन को देखा। वे 'टिनी डांसर' परफॉर्म कर रहे थे। आप महसूस करेंगे कि यह उनके लिए ऑक्सीजन की तरह था। उन्हें ऐसे देखना मेरे लिए जिंदगी बदलने वाला क्षण था। जब गाना और डांस करना आपके लिए एक मजे का काम हो, ना कि यह आपका जुनून हो। उस दिन, अपने सपनों को उजागर करने के लिए अपनी खोज शुरू की। यह स्पाइस गर्ल से दूर होने का समय था। पहली बार, आप अपने आप को बाहर निकाल रहे थे और यह भयानक था। इसे बंद करना डरावना था क्योंकि यह ऐसा चैप्टर था जो आपको परिभाषित करता है।"
विक्टोरिया ने बैंड छोड़ने के बाद अपना खुद का फैशन साम्राज्य और ब्यूटी ब्रांड शुरू किया। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि उनके कई प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं।
उन्होंने अपने पत्र में आगे लिखा, "मुझे पता है कि आप अभी भी खुद को रीइन्वेंट कर हैं, नई चुनौतियों का सामना करने जा रहे हैं। आप हमेशा अपने रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए पारंपरिक ज्ञान से हटकर देखते हैं। सबसे पहले, यह जुनून फैशन में मिला, और हाल ही में ब्यूटी में मिला। अब आगे क्या आता है, इसे जानने के लिए मैं बहुत बेसब्र हूं।" (आईएएनएस)
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कुर्सी से हटाने की डेमोक्रेट्स की कोशिशों को अब उनके ही कुछ साथी रिपब्लिकन्स का साथ मिलने लगा है.
प्रतिनिधि सभी की तीसरी सबसे वरिष्ठ रिपब्लिकन लिज़ चेनी ने कहा है कि वो बीते हफ़्ते की यूएस कैपिटल पर हुई हिंसा को देखते हुए ट्रंप पर महाभियोग चलाने के लिए मतदान करेंगी.
पूर्व उप-राष्ट्रपति डिक चेनी की बेटी लिज़ चेनी ने महाभियोग का समर्थन करने की बात कही. रिचर्ड निक्सन के वक़्त के बाद से ये पहली बार है जब राष्ट्रपति की ख़ुद की पार्टी के किसी नेता ने ऐसा किया हो.
लिज़ चेनी ने एक बयान में कहा, “इससे पहले अमेरिका के किसी राष्ट्रपति ने अपने ऑफ़िस और संविधान की शपथ से इतना बड़ा विश्वासघात नहीं किया है.”
महाभियोग: ट्रंप के ख़िलाफ़ होने लगे अपनी ही पार्टी के लोग
लिज़ ने साथ ही कहा कि ट्रंप ने “भीड़ को बुलाया, उन्हें इकट्ठा किया, इस हमले को हवा दी.”
हाउस के दो अन्य रिपब्लिकन सदस्यों, जॉन काटको और एडम किंज़िनर ने कहा कि वो भी महाभियोग के लिए मतदान करेंगे.
इससे पहले राष्ट्रपति ने अपने समर्थकों के हमले की ज़िम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था.
20 जनवरी को डेमोक्रेट जो बाइडन उनकी जगह ले लेंगे.
हाउस ने बुधवार को मतदान करने की योजना बनाई है, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ विद्रोह भड़काने के आरोप लगाए जाएंगे. इसके बाद वो ऐसे दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाएंगे, जिनके ख़िलाफ़ दो बार महाभियोग चलाया गया. (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 13 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 9.1 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है, जबकि संक्रमण से हुई मौतें 19.6 लाख से अधिक हो गई हैं। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने बुधवार को दी। विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने बुधवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान में वैश्विक मामले और मृत्यु दर क्रमश: 91,573,149 और 1,961,987 है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक कोविड प्रभावित देश है, जहां 22,836,244 मामले और 380,651 मौतें दर्ज की गई हैं।
संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 10,479,179 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश में संक्रमण से मरने वालों की संख्या 151,327 है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, दस लाख से अधिक पुष्ट मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (8,195,637), रूस (3,412,390), ब्रिटेन (3,173,274), फ्रांस (2,864,360), तुर्की (2,346,285), इटली (2,303,263), स्पेन (2,137,220), जर्मनी (1,957,898), कोलम्बिया (1,816,082), अर्जेंटीना (1,744,704), मेक्सिको (1,556,028), पोलैंड (1,395,779), ईरान (1,299,022), दक्षिण अफ्रीका (1,259,748), यूक्रेन (1,160,243) और पेरू (1,037,350) हैं।
संक्रमण से हुई मौतों के मामले में वर्तमान में ब्राजील 204,690 आंकड़ों के साथ दूसरे स्थान पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मौतें दर्ज करने वाले अन्य देश मेक्सिको (135,682), ब्रिटेन (83,342), इटली (79,819), फ्रांस (68,939), रूस (61,908), ईरान (56,360), स्पेन (52,683), कोलंबिया (46,782), अर्जेंटीना (44,848), जर्मनी (42,259), पेरू (38,335), दक्षिण अफ्रीका (33,334), पोलैंड (31,593), इंडोनेशिया (24,645), तुर्की (23,152), यूक्रेन (20,915) और बेल्जियम (20,122) हैं।
--आईएएनएस
जकार्ता, 13 जनवरी | इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के तट पर पानी में डूबे श्रीविजय एयर बोइंग 737-500 विमान का ब्लैक बॉक्स गोताखोरों ने ढूंढ निकाला है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, ब्लैक बॉक्स मंगलवार को जकार्ता खाड़ी के लांकांग द्वीप और लाकी द्वीप के बीच सीफ्लोर पर मिला। अब ब्लैक बॉक्स को तंजुंग प्रोक के जकार्ता समुद्री बंदरगाह से एक जहाज से ले जाया जा रहा है।
बता दें कि जकार्ता के सोएकार्नो-हट्टा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से पश्चिम कालीमंतन प्रांत के पोंटियानक शहर के लिए उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद ही एसजे -182 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
इस विमान को खोजने के मिशन में 3,600 लोग शामिल हुए। साथ ही 54 जहाज और 13 विमान और हेलीकॉप्टर भी शामिल किए गए।
--आईएएनएस
अमेरिकी संसद पर अपने समर्थकों के हमले के ठीक पहले दिए भाषण का राष्ट्रपति ट्रंप ने बचाव किया है.
एंड्रयू एयरफ़ोर्स बेस पर पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा, "आपको हमेशा हिंसा से बचना चाहिए. हमें बहुत समर्थन है, शायद ऐसा समर्थन है जैसा इससे पहले किसी ने देखा नहीं होगा."
लेकिन पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि संसद भवन में जो कुछ हुआ उसमें उनकी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी कितनी थी, तो उनका जवाब था, अगर आप मेरा भाषण सुनेंगे और कई लोगों ने सुना है और मैंने अख़बारों और टीवी में देखा है. इसका आकलन किया गया है और लोगों को लगता है कि मैंने जो भी कहा था वो बिल्कुल वाजिब था.
ट्रंप ने आगे कहा, वरिष्ठ नेताओं समेत कई लोगों ने कहा है कि पुलिस हिरासत में जॉर्ज फ़्लॉयड की मौत के बाद पिछले साल हुए विरोध प्रदर्शन और दंगे वाशिंगटन में हुए दंगों से ज़्यादा चिंताजनक थे.
ट्रंप के भाषण के बाद जब उनके समर्थकों ने पुलिस पर हमले शुरू कर दिए थे उससे दो घंटे पहले ट्रंप ने भीड़ से कहा था, ''हमलोग जहन्नम की तरह लड़ते हैं. और अगर आप जहन्नम की तरह नहीं लड़ते हैं तो फिर आप इस देश को नहीं बचा पाएंगे.''
डेमोक्रैट्स का कहना है कि ट्रंप के शब्द बग़ावत की एक कोशिश थी. (बीबीसी)
जर्मनी के डॉयचे बैंक ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी कंपनियों से व्यापारिक रिश्ता ख़त्म करने की घोषणा की है.
डॉयचे बैंक ट्रंप की कंपनियों के लोन का एक बहुत बड़ा स्रोत है और बैंक का यह फ़ैसला ट्रंप के व्यापार के लिए बहुत बड़ा धक्का हो सकता है.
डॉयचे बैंक ने ऐसे समय में यह फ़ैसला किया है जब कई दूसरे संगठन भी ट्रंप से अपने रिश्ते ख़त्म करक रहे हैं.
ट्विटर से लेकर प्रोफ़ेशनल गोल्फ़र्स एसोसिएशन तक सभी ने ट्रंप से संबंध तोड़ लिया है. इन सभी कंपनियों ने ट्रंप ब्रैंड को बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.
बैंक ने इस बारे में आधिकारिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है लेकिन रिपोर्ट का कहना है कि बैंक अब ट्रंप के साथ कोई भी बिज़नेस नहीं करेगा.
90 के दशक में जब ट्रंप दिवालिया होने के कगार पर थे तो डॉयचे बैंक अकेला बैंक था जिसने ट्रंप को लोन दिया था.
ट्रंप समूह को अभी डॉयचे बैंक को अगले कुछ सालों में 34 करोड़ डॉलर का लोन चुकाना है.
ट्रंप समूह के एक और बैंकर सिग्नेचर बैंक ने कहा है कि वो ट्रंप के दो निजी बैंक खाते को बंद कर रहा है. (बीबीसी)
अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव्स में इस समय राष्ट्रपति ट्रंप को हटाने के लिए एक प्रस्ताव पर बहस जारी है.
प्रस्ताव में कहा गया है कि ट्रंप ने 'पूरे प्रचार-प्रसार के साथ और खुल कर उस भीड़ को उकसाया' था जिसने पिछले हफ़्ते अमेरिकी संसद पर हमला किया था.
प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि उप-राष्ट्रपति माइक पेन्स को राष्ट्रपति की ज़िम्मेदारी संभाल लेनी चाहिए.
डेमोक्रैट्स जिनका फ़िलहाल सदन में बहुमत है, वो पेन्स से आग्रह कर रहे हैं कि वो 'फ़ौरन' संविधान के 25वें संशोधन का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप को इस पद के अयोग्य घोषित करें.
25वें संशोधन के तहत उप-राष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनने का अधिकार होता है जब राष्ट्रपति अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ होते हैं, मिसाल के तौर पर अगर वो शारीरिक या मानसिक बीमारी के कारण अयोग्य हो जाते हैं.
सदन में इस समय 25वें संशोधन के सेक्शन चार पर बहस हो रही है जो उप-राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वो कैबिनेट की बहुमत के साथ मिलकर राष्ट्रपति को अपने ज़िम्मेदारी निभाने के अयोग्य घोषित कर सकते हैं.
उप-राष्ट्रपति को संसद अध्यक्ष और ऊपरी सदन सीनेट के पीठासीन अधिकारी को एक पत्र लिखकर बताना होगा कि राष्ट्रपति शाषण करने के लिए योग्य नहीं हैं या अपने पद की ज़िम्मेदारी को निभाने के अयोग्य हैं.
ऐसा करने के बाद उप-राष्ट्रपति तत्काल प्रभाव से राष्ट्रपति बन जाएंगे.
इन सबके बीच राष्ट्रपति को लिखित जवाब देने का मौक़ा दिया जाता है और अगर वो इस निर्णय को चुनौती देते हैं तो फिर यह संसद को तय करना होता है.
सीनेट और निचले सदन में राष्ट्रपति को हटाने के किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की ज़रूरत होती है. लेकिन जब तक इस मसले का कोई हल नहीं निकलता है तब तक उप-राष्ट्रपति, राष्ट्रपति की जगह पर काम करते रहेंगे. (बीबीसी)