अंतरराष्ट्रीय
टोक्यो, 15 फरवरी | जापान की सरकार ने अपने यहां की 12.6 करोड़ जनता के लिए कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण अभियान को शुरू करने के मद्देनजर पहली वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। जापान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जापान में सरकारी समिति से मंजूरी मिलने के दो दिन बाद स्वास्थ्य मंत्री नोरिहिसा तमुरा ने रविवार को फाइजर इंक की कोविड-19 एमआरएनए वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी है। अब देश में बुधवार से टीकाकरण अभियान की शुरुआत कर दी जाएगी।
वैक्सीन को मंजूरी दिलाने में कम से कम एक या दो साल लगते हैं, लेकिन संक्रमितों की बढ़ती सख्ंया को देखते हुए सरकार ने समीक्षा की समयावधि को घटाकर दो महीने से भी कम कर दिया है।
इस वैक्सीन को जिन सात देशों ने सहमति दी है, जापान उनमें सबसे आखिरी नंबर पर है क्योंकि यहां लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के मद्देनजर एक और नैदानिक परीक्षण को आयोजित कराए जाने की आवश्यकता थी।
अमेरिका में स्थित फार्मा कंपनी फाइजर इंक और जर्मन बायोटेक कंपनी बायोएनटेक द्वारा साथ में विकसित की गई फाइजर की खुराक को ब्रिटेन और अमेरिका ने दिसंबर में ही मंजूरी दे दी थी। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 14 फरवरी| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रविवार को कहा कि देश ने 3 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन खरीद लिए हैं और अन्य देशों ने भी उन्हें वैक्सीन देने में रुचि जताई है।
अपने आधिकारिक आवास गोनोभबन से नारायणगंज में कुमुदिनी इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड कैंसर रिसर्च (किम्स केयर) की आधारशिला रखने के दौरान प्रधानमंत्री हसीना ने यह बात कही।
हसीना ने कहा, "जब कोविड वैक्सीन खोजी जा रही थी और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अप्रूवल भी नहीं दिया था, तभी हमने उसके लिए एडवांस पेमेंट कर दिया था। ताकि हम देश को कोविड-19 महामारी से बचा सकें।"
बता दें कि देश में 7 फरवरी से देशव्यापी टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है और वैक्सीन डोज लेने वालों की संख्या रोजाना बढ़ती जा रही है।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, "पहले लोगों में वैक्सीन लेने को लेकर भ्रम और संदेह था लेकिन अब कोई समस्या नहीं है। लोग टीकाकरण केंद्रों पर बहुत रुचि और उत्साह के साथ आ रहे हैं। भारत सरकार ने भी हमें उपहार के रूप में 20 लाख डोज भेजे हैं। लेकिन टीकाकरण के बावजूद हमें मास्क पहनना है, हाथ धोना है और साफ रहना है।"
इस मौके पर हसीना ने यह भी कहा कि महामारी से निपटने के लिए उनकी सरकार सबसे अच्छा काम कर रही है।
हसीना ने कुमुदिनी वेलफेयर ट्रस्ट को अस्पताल स्थापित करने और साहा फैमिली को चिकित्सा क्षेत्र के विकास में योगदान देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि रिसर्च के लिए 1996 में उनकी सरकार ने बंगबंधु शेख मुजीब मेडिकल यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी।
कैंसर पर शोध की जरूरत जताते हुए हसीना ने कहा, "इस क्षेत्र में हमें तत्काल शोध करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों को बांग्लादेश की जलवायु और पर्यावरण को ध्यान में रखकर भी इस बीमारी पर शोध करना चाहिए। हमारा मकसद है कि हम रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए देश के हर डिवीजन में एक मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थापित करें।" (आईएएनएस)
-अनबरासन एथिराजन
कैप्टेन रॉबिन रोलैंड की रेजिमेंट को जब भारत के उत्तरपूर्वी शहर में कोहिमा में तैनात किया गया, उनकी उम्र केवल 22 साल थी.
ये मई 1944 की बात है. उस वक्त ब्रितानी-भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी जापानी सेना के एक पूरे डिविज़न के हमले का सामना कर रही थी.
अब 99 बसर के हो चुके कैप्टन रोलैंड को अभी भी वो वक्त याद है जब वो कोहिमा शहर में जंग के मैदान में फ्रंटलाइन की तरफ बढ़ रहे थे.
वो कहते हैं, "हमने देखा की सेना के ट्रेंच तबाह कर दिए गए हैं, गांव उजाड़ दिए गए हैं. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे हमें चारों तरफ मौत की गंध मिल रही थी."
युवा कैप्टेन रोलैंड ब्रितानी-भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट का हिस्सा थे और वो बीते कई सप्ताह से अपने से दस गुना बड़ी जापानी फौज का मुक़ाबला कर रहे अपने 1500 साथी सैनिकों की मदद के लिए फ्रंटलाइन पर जा रहे थे.
मित्र देश की सेना तक रसद पहुंचाने के सभी रास्ते जापानी सेनिकों ने तबाह कर दिए थे और उन्हें रसद के लिए हवाई मार्ग का सहारा लेना पड़ रहा था. कइयों को लगने लगा था कि इस जगह पर लड़ाई जारी रखना अब आसान नहीं होगा.
भारत पर हमला करने के लिए जापानी सेना बर्मा (आज का म्यांमार) से होते हुए कोहिमा की तरफ आगे बढ़ रही थी.
कैप्टेन रॉबिन रोलैंड
ROBIN ROWLAND
साल 1945 में बैंकॉक में ली गई इस तस्वीर में कैप्टेन रॉबिन रोलैंड (नीचे की कतार में बीच में) पंजाब रेजिमेन्ट के दूसरे सैनिकों साथ हैं.
जापानी सेना बर्मा में ब्रितानी सेना को हरा कर आगे बढ़ने में सफल रही थी. लेकिन किसी ने इस बात की उम्मीद नहीं की थी कि जानवरों और मच्छरों से भरे जंगलों को पार करते हुए वो नगालैंड की राजधानी कोहिमा और मणिपुर की राजधानी इम्फाल के नज़दीक पहुंच जाएंगे.
लेकिन जब असल में जापानी सेना कोहिमा और इम्फाल तक पहुंची ब्रितानी-भारतीय सेना को ज़िम्मेदारी दी गई कि इन दोनों शहरों को 15,000 सैनिकों वाली इस सेना से बचाए.
रणनीतिक तौर पर अहम दीमापुर शहर पर जापान का कब्ज़ा न हो इसके लिए कई सप्ताह तक लड़ाई चलती रही. दीमापुर के रास्ते जापानी सेना आसानी से असम तक पहुंच सकती थी और कइयों को ये लग रहा था कि इन शहरों को बचाना मुश्किल होगा.
कैप्टन रोलैंड याद करते हैं, "रात को जापानी सैनिक लहरों की तरह आगे बढ़ रहे थे."
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जब अमरीकी सैनिकों ने 40 टन के टैंक हाथ से उठाए
मानचित्र
यहां भीषण जंग जारी थी और ब्रितानी-भारतीय सेना कोहिमा के नज़दीक गैरिसन हिल तक सीमित हो कर रह गई थी. एक वक्त ऐसा भी आया जब जंग के हाथापाई में बदलने की नौबत आ गई थी और दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच केवल एक टेनिस कोर्ट जितना फासला रह गया था.
लेकिन जब तक पीछे से मदद नहीं मिली तब तक ब्रितानी-भारतीय सेना ने किसी तरह मोर्चा संभाले रखा. तीन महीने के बाद जून 1944 में जापानी सेना के 7000 सैनिक घायल हो चुके थे और उनके पास रसद पूरी तरह ख़त्म हो चुका था. ऐसे में वरिष्ठ अधिकारियों के मोर्चा न छोड़ने के आदेश के बावजूद सेना पीछे बर्मा की तरफ लौटने लगी.
कैप्टन रोलैंड कहते हैं "1500 ब्रितानी-भारतीय सैनिकों के लिए ये एक भयंकर लड़ाई थी. अगर जापानी गैरिसन हिल पर कब्ज़ा कर लेते तो वो आसानी से दीमापुर तक पहुंच सकते थे."
गैरिसन हिल के पास बना टैनिस कोर्ट
ANBARASAN ETHIRAJAN/BBC
गैरिसन हिल के पास बना टैनिस कोर्ट जिसके दोनों तरफ दो देशों की सेनाएं खड़ी थीं.
ब्रितानी-भारतीय सैनिकों को आदेश दिया गया कि वो पीछे हट रहे जापानी सैनिकों के पीछे जाएं और कैप्टन रॉबिन रोलैंड इसी टुकड़ी का हिस्सा थे.
इस जंग में जापान के कई सैनिक कॉलेरा, डाइफ़ायड और मलेरिया के कारण मारे गए. हालांकि रसद ख़त्म होने के कारण बड़ी संख्या में सैनिकों ने भूख के कारण अपनी जान गंवाई.
सेना की जानकारी रखने वाले सैन्य इतिहासकार रॉबर्ट लायमैन कहते हैं कि "कोहिमा और इम्फाल की जंग ने एशिया में द्वितीय विश्व युद्ध की दिशा बदल दी."
वो कहते हैं, "पहली बार युद्ध में जापानियों की हार हुई और इस हार से वो कभी उबर नहीं पाए."
ये जंग द्वितीय विश्व युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ लेकिन जिस तरह लोग डी-डे, वॉटरलू की लड़ाई और यूरोप और उत्तरी अफ्रीका में हुई लड़ाइयों को याद करते हैं, इस जंग को नहीं करते. कई लोग तो इसे "भूली जा चुकी लड़ाई" भी कहते हैं.
यॉर्क शहर में कोहिमा म्यूज़ियम के प्रमुख बॉब कुक मानते हैं कि कोहिमा से दूर ब्रिटेन में लोग इस जंग के बारे में कम ही जानते हैं.
वो कहते हैं, "ब्रिटेन के समुद्रतट से जर्मनी 22 मील की दूरी पर है और यहां के लोगों को डर सता रहा था वो था जर्मनी के हमले का ख़तरा."
लेकिन यहां लोगों को कोहिमा और इम्फाल की जंग के बारे में जानकारी देने का काम शुरू किया गया है.
साल 2013 में लंदन के इम्पीरियल वॉर म्यूज़ियम में इस बात पर चर्चा हुई कि ब्रिटेन की सबसे बड़ी लड़ाई कौन सी थी.
इसमें वॉटरलू या डी-डे ने हो कर कोहिमा इम्फाल युद्ध को ब्रिटेन की सबसे बड़ी लड़ाई के तौर पर चुना गया.
कोहिमा की जंग के बारे में उस वक्त रॉबर्ट लायमैन ने कहा था, "ब्रिटेन अब तक के अपने सबसे मुश्किल दुश्मन का सामना कर रहा था और काफी कुछ दांव पर लगा था."
लेकिन एशिया में हुई इस जंग के महत्व को सामने लाने के लिए शायद ही कोई कोशिश की गई हो. इस युद्ध में भारत समेत राष्ट्रमंडल देशों के हजारों सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी.
नगालैंड के कोहिमा में रहने वाले इतिहासकार चार्ल्स चेसी कहते हैं, इसका एक कारण ये था कि इस युद्ध के तुरंत बाद देश के विभाजन की बातें होने लगी थीं और भारत जल्द ही दो टुकड़ों में भी बंट गया था.
वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि उस वक्त भारत के नेता विभाजन के कारण पैदा हुई मुश्किलों और सत्ता हस्तांतरण अच्छे तरीके से हो, इन कोशिशों में लगे हुए थे. चीज़ें और जटिल हो जाएं या हाथों से निकल जाएं उससे पहले ब्रितानियों ने जल्दी में देश छोड़ने का फ़ैसला किया था."
कोहिमा की जंग को अक्सर एक औपनिवेशिक युद्ध के तौर पर देखा जाता है जबकि युद्ध के बाद गंभीर चर्चा का विषय भारत की आज़ादी की लड़ाई के इर्दगिर्द ही रहा.
इस जंग में सामान्य ब्रितानी-भारतीय सेना के अलावा नगा जातीय समुदाय के लोगों ने भी ब्रिटेन की तरफ से जंग में हिस्सा लिया. वो सेना के लिए ज़रूरी ख़ुफ़िया जानकारियां पहुंचा रहे थे. इस पहाड़ी इलाक़े के बारे में उनकी जानकारी का ब्रितानी-भारतीय सेना से पूरा फायदा लिया.
कोहिमा की जंग में हिस्सा लेने वाले नगा लोगों में से कुछ आज भी जीवित हैं. 98 साल के सोसांगतेम्बा आओ उन्हीं में से एक हैं.
वो याद करते हैं, "जापानी बॉम्बर हवाई जहाज़ रोज़ आसमान से हम पर बम फेंकते थे. उन जहाज़ों की आवाज़ बहुत तेज़ थी और हर हमले के बाद धुएँ का गुबार आसमान में उठता दिखता था. वो दर्दनाक नज़ारा था."
एक रुपये प्रति दिन लेकर उन्होंने दो महीने तक ब्रितानी-भारतीय सेना के साथ काम किया. वो कहते हैं आज भी वो जापानी सेना के लड़ने के तरीकों की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते.
वो कहते हैं, "जापानी सेना का मनोबल बेहद ऊंचा था. उनके सैनिक मौत से नहीं डरते थे. उनके लिए सम्राट के लिए लड़ना भगवान के लिए लड़ने जैसा था. जब उन्हें समर्पण के लिए कहा जाता था तो वो दुश्मन पर आत्मघाती हमला करते थे."
दूसरे विश्व युद्ध के सबसे बुजुर्ग योद्धा का निधन
सोसांगतेम्बा आओ
हाल में इस युद्ध से जुड़ी 'मेमोरीज़ ऑफ़ अ फ़ॉरगॉटेन वॉर' नाम की एक डॉक्युमेंट्री ऑनलाइन रिलीज़ की गई है. जिस वक्त ये डॉक्यूमेन्टरी रिलीज़ की गई वो जापानी सेना के समर्पण की 75वीं सालगिरह के आसपास का वक्त था.
डॉक्युमेंट्री के निर्माता सुबिमल भट्टाचार्य और दल ने कई साल पहले जापान का दौरा किया था और युद्ध की याद में हुए समारोह में शिरकत की थी.
वो कहते हैं, "युद्ध में शिरकत करने वाले जापान और ब्रिटेन के पूर्व सैनिकों की जब मुलाक़ात हुई तो वो एक दूसरे को गले लगाकर रो पड़े. वहां ऐसे सैनिक भी थे जिन्होंने एक दूसरे पर गोलियां चलाई थीं लेकिन उनके बीच में एक ख़ास नाता दिख रहा था. हमने इसकी उम्मीद नहीं की थी."
जापानी सेना के लिए हार अपमानजनक थी और जापान के पूर्व सैनिक कोहिमा युद्ध से जुड़े अपने अनुभव के बारे में कम ही बात करते हैं.
डॉक्युमेंट्री में वाजिमा कोचिरो का साक्षात्कार शामिल है. वो कहते हैं, "जापानी सैनिकों के पास खाना नहीं बचा था. हम ऐसी जंग लड़ रह थे जिसमें हार तय थी और इस कारण हमने कदम पीछे हटाना शुरू किया."
युद्ध में बड़ी संख्या में नगा जनजाति के लोग भी मारे गए और उन्हें भी इस दौरान काफी मुश्किलें झेलनी पड़े. उन्हें उम्मीद थी कि सत्ता हस्तांतरण के वक्त ब्रिटेन भारत से हट कर, एक अलग नगा देश के तौर पर उन्हें नई पहचान देगा.
इतिहासकार चार्ल्स चेसी कहते हैं कि उनकी ये "उम्मीद पूरी नहीं हो पाई थी" और इसके बाद के दौर में भारत सरकार और सेना के साथ हुए संघर्ष में मारे गए हज़ारों नगा लोगों के लिए कइयों ने उन्हें दोषी ठहराया.
भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट के निमंत्रण पर साल 2002 में कैप्टेन रोलैंड अपने बेटे के साथ कोहिमा गए थे. वो गैरिसन हिल के पास वहीं खड़े हुए जहां 58 साल पहले वो अपने साथी सैनिकों के साथ जापानी सेना को आगे बढ़ने से रोक रहे थे.
कैप्टेन रोलैंड अपने बेटे के साथ गैरिसन हिल के पास बने वॉर मेमोरियल पहुंचे और अपने साथी सैनिकों को याद किया.
पुरानी बातों को याद करते हुए कैप्टेन रोलैंड कहते हैं, "मेरी यादें इस जगह से जुड़ी हैं. वो असल में एक बड़ी सैन्य उपलब्धि थी." (bbc.com)
इस्लामाबाद, 14 फरवरी | पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित थारपारकर जिले में गरीबी और सामाजिक असमानता के कारण विगत 13 महीनों में कम से कम 125 महिलाओं ने आत्महत्या कर ली। मीडिया रिपोर्ट से रविवार को इस आशय की जानकारी मिली। जियो न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि मिथी में आयोजित एक कार्यशाला के दौरान यह आंकड़ा सामने आया। इस कार्यशाला में मनोवैज्ञानिकों, सिविल सोयायटी और गैर-सरकारी संगठनों ने उन कारणों एवं समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जिसके कारण महिलाएं आत्महत्या जैसे कदम उठाने को विवश होती हैं।
कार्यशाला के एक प्रतिभागी ने खुलासा किया कि पिछले एक साल में 100 से अधिक महिलाओं ने अपनी जान ले ली।
कार्यशाला में इस विषय पर भी चर्चा की गई कि कैसे एक तरफ थारपारकर के लोग, खासकर महिलाएं और बच्चे विभिन्न बीमारियों से अपनी जान गंवा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गरीबी और रीति-रिवाज भी युवा महिलाओं को अपना जीवन समाप्त करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
थारपारकर सिंध प्रांत का सबसे बड़ा जिला है और यह पाकिस्तान में सबसे बड़ी हिंदू आबादी वाला इलाका है। लेकिन प्रांत के सभी जिलों के मुकाबले यहां का ह्यूमन डेवेलपमेंट इंडेक्स सबसे कम है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, इस जिले की 87 प्रतिशत आबादी गरीबी में रहती है। (आईएएनएस)
ओटावा, 14 फरवरी | कनाडा के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने नौ प्रांतों में वायरस के नए वेरिएंट की सूचना दी है। विशेषज्ञों ने इसके साथ ही कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर की चेतावनी भी दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, 13 फरवरी तक, कनाडा में ब्रिटेन के बी.1.1.7 वेरिएंट के 429 मामले, दक्षिण अफ्रीकी बी.1.351 वेरिएंट के 28 मामले और ब्राजीलियाई स्ट्रेन पी.1 के एक मामले दर्ज किए गए।
कनाडा की मुख्य लोक स्वास्थ्य अधिकारी थेरेसा टैम ने शनिवार को एक बयान में कहा, "हालांकि यह वेरिएंट के रूप में उभरने के लिए सामान्य है क्योंकि वायरस लगातार विकसित होते हैं, लेकिन कुछ वेरिएंट को 'चिंता का विषय' माना जा रहा है क्योंकि वे अधिक आसानी से फैलते हैं, कुछ अधिक गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं, या वर्तमान टीके उनके खिलाफ कम प्रभावी हो सकते हैं।"
कनाडा में कोविड-19 के अब तक कुल 823,048 मामले सामने आ चुके हैं और 21,213 मौतें हुई हैं।
ओंटारियो ने शनिवार को 1,300 नए मामलों के साथ ही 19 और मौतों की पुष्टि की।
ओंटारियो में कुल 164,307 लोगों को कोविड-19 वैक्सीन की दोनों खुराकें मिली हैं।
इस बीच, क्यूबेक में शनिवार को 1,049 नए मामले सामने आए, जिससे कुल मामलों की संख्या 275,880 तक पहुंच गई। यहां 33 और मौतों की पुष्टि की गई है। क्यूबेक में अब तक कुल 10,201 लोगों की मौत हो चुकी है। 290,953 लोगों को वैक्सीन की खुराक दी गई है। (आईएएनएस)
काबुल, 14 फरवरी | अफगानिस्तान में इस्लाम काला ड्राई पार्ट के कस्टम्स ऑफिस में आग लगने से कम से कम 20 लोग घायल हो गए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार की दोपहर को हेरात प्रांत के इस्लाम काला पोर्ट पर आग लगने से तेल, गैस और कार्गो ले जाने वाले 1,000 से ज्यादा ट्रक जल गए हैं।
रिपोर्ट में स्थानीय अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि आग के कारण पोर्ट को 50 मिलियन डॉलर का सीधा आर्थिक नुकसान हुआ है। बता दें कि यह पोर्ट अफगानिस्तान को ईरान से जोड़ता है। ईरान ने अफगानिस्तान के अधिकारियों द्वारा अनुरोध करने पर मदद भी की है।
प्रांतीय सरकार के प्रवक्ता जिलानी फरहाद ने बताया कि शनिवार को इस्लाम काला में आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच एक सशस्त्र झड़प हुई। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या ये घटना आतंकवादी हमला था। उन्होंने केवल यही कहा कि, "अभी मामले में जांच चल रही है।" (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 14 फरवरी| अमेरिकी सीनेट ने रविवार को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 6 जनवरी को कैपिटल हिल में हुई हिंसा की घटना को लेकर चलाए गए महाभियोग से बरी कर दिया है।
इस दौरान सीनेट में उन्हें इस घटना के लिए दोषी ठहराए जाने की प्रक्रिया को लेकर वोटिंग हुई, जिनमें से सात रिपब्लिकन सहित 57 सीनेटरों ने उन्हें दोषी ठहराया, जबकि उन्हें दोषी करार दिए जाने के लिए सीनेट के जरूरी दो तिहाई यानि कि 67 वोटों की जरूरत थी।
दरअसल, कैपिटल हिल में हिंसा की घटना में डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी ने अमेरिकी सीनेट में उनके खिलाफ दो महाभियोग प्रस्ताव पेश किए थे। 6 जनवरी को हुए इस हमले में दो पुलिस अधिकारियों सहित पांच लोगों की मौत हुई थी।
सीनेट में रिपब्लिकन नेता चक शूमर ने ट्रंप को बरी किए जाने के बाद कहा कि यह अमेरिका के इतिहास में एक कलंकित वोटिंग रहा।
6 जनवरी को जिस वक्त अमेरिकी कांग्रेस में यहां के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन को चुनाव में मिली जीत की पुष्टि के लिए सत्र चल रहा था, उसी वक्त ट्रंप के कुछ समर्थकों ने जाकर यहां हमला बोला और तोड़फोड़ की। इस पर सदन में ट्रंप पर दंगा भड़काने का आरोप लगाया गया, जिसके तहत उनके समर्थक न केवल सीनेट के कक्ष में घुस आए थे बल्कि स्पीकर नैंसी पेलोसी जैसे कई अधिकारियों के कार्यालयों में भी प्रवेश किया था। सीनेट सत्र की अध्यक्षता कर रहे पूर्व उप राष्ट्रपति माइक पेंस सहित अन्य लोगों को बड़ी मुश्किल से वहां से निकाला गया था।
यह दूसरी बार है जब ट्रंप को महाभियोग से बरी किया गया। (आईएएनएस)
टोक्यो, 14 फरवरी| जापान के फुकुशिमा प्रांत में रिक्टर पैमाने पर 7.3 तीव्रता के भूकंप के बाद कम से कम 30 लोग घायल हो गए। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी। जापान के मौसम विज्ञान एजेंसी (जेएमए) ने पहले शनिवार देर रात आई भूकंप की तीव्रता 7.1 बताई और बाद में इसे संशोधित कर 7.3 कर दिया गया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि मियागी और फुकुशिमा प्रांत में लोग भूकंप से घायल हुए हैं।
जेएमए के अनुसार, भूकंप के झटके रात 11.08 बजे आए।
अभी तक सुनामी की कोई चेतावनी जारी नहीं की गई है।
मुख्य कैबिनेट सचिव कात्सुनोबु कातो ने कहा कि शक्तिशाली भूकंप के बाद लगभग 950,000 घर अंधेरे में डूब गए।
कातो ने कहा कि बिजली गुल होने से टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी होल्डिंग्स इंक द्वारा कवर किए गए क्षेत्र के तहत 860,000 घर और टोहोकू इलेक्ट्रिक पावर कंपनी के तहत 90,000 घर प्रभावित हुए।
भूकंप के बाद, जापानी सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय में एक टास्क फोर्स का गठन किया।
प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने सरकार को निर्देश दिया कि वह भूकंप से होने वाली क्षति का जल्द से जल्द सर्वेक्षण करे, आवश्यक क्षेत्रों में बचाव के प्रयास करे और जनता तक जल्द से जल्द सूचना पहुंचाए।
भूकंप राजधानी टोक्यो में भी महसूस किया गया था जहां रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 4 रही।
टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी ने कहा कि भूकंप के बाद फुकुशिमा दाइची और दैनी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में रिएक्टरों के साथ कोई असामान्यता नहीं है। (आईएएनएस)
पेरिस, 14 फरवरी | फ्रांस में कोविड-19 के 21,231 मामले दर्ज किए गए हैं और इसके साथ ही यहां संक्रमितों की कुल संख्या 3,448,617 हो गई है, जो कि दुनिया का छठा सबसे प्रभावित देश बना है। पब्लिक हेल्थ एजेंसी की वेबसाइट पर प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, बीते दिन कोविड-19 से 199 लोगों की मौत हुई है, जो कि शुक्रवार से 320 कम है। फ्रांस में कोविड-19 से अब तक 81,647 लोग जान गंवा चुके है, जो ब्रिटेन और इटली के बाद यूरोप में तीसरे पायदान पर है और पूरी दुनिया में सातवें नंबर पर है।
पिछले सात दिनों में महामारी से 10,037 नए मरीज अस्पतालों में एडमिट हुए हैं, जिनमें से 1,795 मरीजों को गहन चिकित्सा विभाग में भर्ती कराया गया है।
यहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बात की जानकारी दी है कि देश में अब तक 2,888,430 लोगों को कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है, जबकि इनमें से 639,899 लोगों को इसके दो टीके लग चुके हैं।
फ्रांस का लक्ष्य मई के अंत तक अपने यहां के 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को कोरोना का टीका लगवाना है और सभी वयस्कों का टीकाकरण अगस्त के अंत तक किए जाने का लक्ष्य बनाया गया है। (आईएएनएस)
टोक्यो, 13 फरवरी| जापान मौसम विज्ञान एजेंसी (जेएमए) के अनुसार, शनिवार रात जापान के पूर्वोत्तर फुकुशिमा प्रान्त में रिक्टर स्केल पर 7.1 तीव्रता का भूकंप के झटके महसूस किए गए। सिन्हुआ ने बताया कि (स्थायी समय अनुसार) रात करीब 11:08 बजे टेम्पलबोर हुआ। इसका उपकेंद्र 37.7 डिग्री उत्तर में अक्षांश और 141.8 डिग्री पूर्वी देशांतर पर और 60 किमी की गहराई पर था।
भूकंप की तीव्रता के पैमाने 6 पर फुकुशिमा प्रान्त के कुछ हिस्सों में, जबकि चोटियों पर 7 मैग्नीट्यूड के रफ्तार से झटका महसूस किया गया।
टोक्यो की राजधानी में भी झटके महसूस किए गए। (आईएएनएस)
जापान में शनिवार को स्थानीय समयानुसार रात 11.08 बजे पूर्वी समुद्री तट पर 7.1 तीव्रता का भूकंप आया है और अभी तक सुनामी की कोई चेतावनी जारी नहीं की गई है.
एएफ़पी समाचार एजेंसी ने बताया है कि अमेरिका और जापानी प्रशासन ने सुनामी की चेतावनी नहीं जारी की है.
अमेरिकी एजेंसी यूएसजीएस के अनुसार, फ़ुकुशिमा के पास प्रशांत महासागर में 54 किलोमीटर की गहराई में इसका केंद्र था.
वहीं, समाचार एजेंसी एपी ने जापान के सरकारी टीवी प्रसारक एनएचके टीवी के हवाले से ख़बर दी है कि भूकंप की वजह से फ़ुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट को क्या किसी तरह का कोई नुक़सान हुआ है इसकी जांच की जा रही है और साथ ही यह भी कहा है कि देश के किसी अन्य न्यूक्लियर प्लांट में किसी और तरह की गड़बड़ी की कोई शिकायत अभी तक नहीं मिली है.
एनएचके टीवी के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.1 थी.
अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.1 थी और इसका केंद्र नामी शहर से 70 किलोमीटर दूर था. फ़ुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट नामी शहर में ही है.
जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार नामी में आए इस शक्तिशाली भूकंप के बाद शहर में और दो बार भूकंप के झटके आए हैं. जहां एक की तीव्रता 4.9 मापी गई है वहीं अन्य 5.3 की तीव्रता का भूकंप था.
भूकंप के झटके राजधानी टोक्यो से लेकर देश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों तक महसूस किए गए. यह वही इलाक़ा है जहां मार्च 2011 में सुनामी और भूकंप की वजह से भयंकर तबाही हुई थी.
साल 2011 में फ़ुकुशिमा में आए भयंकर भूकंप के कारण सुनामी आई थी और इस घटना में 18,000 से अधिक लोग मारे गए थे.
जापान में भूकंप आने के बाद इसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे हैं. (bbc.com/hindi)
बीजिंग, 13 फरवरी | सभी देश सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को सख्ती से लागू कर रहे हैं। जिसकी वजह से दुनिया भर में कोरोना के नये पुष्ट मरीजों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। लेकिन लोगों को अभी भी सतर्क रहने की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस अधनोम घेब्रेयसस ने 12 फरवरी को संवाददाता सम्मेलन में यह बात कही। घेब्रेयसस ने अपील की कि सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को सख्ती से जारी रखने के अलावा इसके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय महामारी की रोकथाम और नियंत्रण के समय को सुनिश्चित कर सकेगा।
इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने एक परियोजना का प्रस्ताव रखा कि वर्ष 2021 के प्रथम सौ दिनों के भीतर सभी देशों के स्वास्थ्य-कर्मियों और बुजुर्गों को वैक्सीन लगायी जाए। अगले शुक्रवार को 50वां दिन होगा। उन्होंने महामारी-रोधी वैक्सीन के उत्पादन में तेजी लाने की अपील की। ताकि पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन का उचित वितरण हो सके।
घेब्रेयसस ने यह भी कहा कि कोरोना वायरस के स्रोत की खोज करने वाले डब्ल्यूएचओ के संयुक्त विशेषज्ञ दल ने चीन में सभी कार्य पूरे किए हैं। अगले कुछ हफ्तों में वे पूरी संबंधित रिपोर्ट जारी करेंगे। (आईएएनएस)
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
-भूमिका राय
सैन्य मामलों के जानकार और विशेषज्ञों ने चीन के साथ हुए भारत के उस समझौते पर सवाल उठाए हैं जिसमें भारत ने अपने अधिकार क्षेत्र वाले पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिणी तट पर 10 किलोमीटर चौड़े बफ़र ज़ोन को बनाने के लिए सहमति दे दी है.
इसके अनुसार, पैंगोंग झील के इलाक़े में चीन के साथ डिस्इंगेजमेंट के समझौते के तहत दोनों पक्ष अपनी आगे की सैन्य तैनाती को चरणबद्ध तरीक़े से, समन्वय बनाते हुए और प्रमाणिक तरीक़े से पीछे हटाएंगे.
लेकिन जानकारों ने इसे लेकर कुछ सवाल उठाए हैं.
जानकारों का कहना है कि डेपसांग और कुछ अन्य सेक्टरों में भी डिस्इंगेजमेंट को लेकर भारत को चीन पर दबाव बनाना चाहिए था और ऐसा नहीं करके भारत ने बहुत बड़ी चूक कर दी है क्योंकि कूटनीतिक और सैन्य दृष्टि से यह क्षेत्र भारत के लिए बेहद अहम है. यह वही क्षेत्र है, जहां माना जाता है कि चीन की सेना भारत के अधिकार वाले क्षेत्र में 18 किलोमीटर तक अंदर प्रवेश कर गई है.
इसके एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था. उन्होंने चीन को भारत की ज़मीन दे देने का आरोप लगाया था, जिसके बाद रक्षा मंत्रालय की ओर से आपत्ति जताई गई थी और इस दावे का खंडन किया गया था.
भारत और चीन के बीच बीते साल मई महीने से ही सीमा पर तनाव क़ायम है. भारत-चीन सीमा से जुड़े मामलों के जानकारों ने चीन के साथ पैंगोंग झील के पास बफ़र ज़ोन बनाने को लेकर हुए समझौते पर चिंता ज़ाहिर की है.
रक्षा मामलों के जानकार और कर्नल (सेवानिवृत्त) अजेय शुक्ला ने इस संबंध में बीबीसी से बात की.
चीन के साथ बफ़र ज़ोन को बनाने को लेकर हुए समझौते पर बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा- "मेरी समझ में ये एक अच्छा अग्रीमेंट है क्योंकि पैंगोंग के उत्तर और दक्षिण, दोनों जगह भारत और चीन के सैनिक बिल्कुल आमने-सामने थे. किसी भी समय झड़प की आशंका बनी हुई थी और वो झड़प सिर्फ़ झड़प ना रहकर बढ़ जाए, इसकी भी पूरी आशंका बनी हुई थी. इस लिहाज़ से ख़तरा हर समय बना हुआ था, तो वहां से दोनों ओर की सेनाओं का पीछे हटना अच्छी बात थी. लेकिन यहां ये भी कहना ज़रूरी है कि यहां पर दक्षिणी पैंगोंग ही एकमात्र ऐसी जगह थी जहां भारतीय सेना अच्छी पोज़िशन पर थी.''
वो कहते हैं, ''चीन की सेनाओं की तुलना में इस जगह पर भारतीय सेना की स्थिति काफी अच्छी थी और यहां पर सारी एडवांटेज भारतीय सैनिकों के पास थी. तो यहां से डिस्इंगेजमेंट के लिए सहमति देने का मतलब अब यह है कि जो ट्रंप कार्ड हमारे हाथ में था, हम वो खेल चुके हैं. वो अब हमारे पास नहीं रहा है और अगर चीन ये बात नहीं मानता है कि बाकी जगहों से भी डिस्इंगेजमेंट करना है और वो उससे इनक़ार कर दे तो हमारे पास में कोई ट्रंप कार्ड नहीं बचा है."
More lies about “mutual troop withdrawals” in the Pangong sector!
— Ajai Shukla (@ajaishukla) February 10, 2021
All that’s happened is some armour pullbacks South of Pangong. No change in infantry positions.
And China has been granted right to patrol to Finger 4. That means LAC effectively shifted from Finger 8 to Finger 4
उन्होंने ट्वीट किया था - ''पैंगोंग सेक्टर में सेनाओं के पीछे हटने को लेकर झूठ बोला जा रहा है. कुछ हथियारबंद गाड़ियों और टैंकों को पीछे लिया गया है. सैनिकों की पोज़िशन में कोई बदलाव नहीं हुआ है. चीन को फ़िंगर 4 तक पेट्रोलिंग करने का अधिकार दे दिया गया है. इसका मतलब यह है कि एलएसी फ़िंगर 8 से फ़िगर 4 पर शिफ़्ट हो गई है.''
राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इस संबंध में ट्वीट करके अपना मत ज़ाहिर किया है.
PM said in 2020 “Koi aaya nahin and koi gaya nahin” Chinese were overjoyed. But it was not true. Later Naravane ordered troops to cross LAC and occupy Pangong hill overlooking PLA base. Now we are to withdraw from there. But Depsang Chinese withdrawal? Not yet. China thrilled
— Subramanian Swamy (@Swamy39) February 13, 2021
उन्होंने लिखा है, "साल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोई आया नहीं और कोई गया नहीं. चीन के लोग बहुत खुश हुए थे. लेकिन ये सच नहीं था. बाद में नरवणे ने सैनिकों को आदेश दिया कि वे एलएसी पार करें और पैंगोंग हिल को अपने कब्ज़े में लें. ताकि पीएलए के बेस पर नज़र रखें. और अब हम उन्हें वहां से हटा रहे हैं. लेकिन डेपसांग से क्या चीन पीछे हट रहा है? नहीं अभी नहीं."
इससे पूर्व चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद पर मौजूदा जानकारी देते हुए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में कहा था कि भारत ने हमेशा चीन को यह कहा कि द्विपक्षीय संबंध दोनों पक्षों के प्रयास से ही विकसित हो सकते हैं. साथ ही सीमा के प्रश्न को भी बातचीत के ज़रिए ही हल किया जा सकता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति में किसी भी प्रकार की प्रतिकूल स्थिति का बुरा असर हमारी द्विपक्षीय बातचीत पर पड़ता है.
उन्होंने कहा था कि ''टकराव वाले क्षेत्रों में डिस्इंगेजमेंट के लिए भारत का यह मत है कि 2020 की फ़ॉरवर्ड डेपलॉयमेंट्स (सैन्य तैनाती) जो एक-दूसरे के बहुत नज़दीक हैं, वो दूर हो जायें और दोनों सेनाएं वापस अपनी-अपनी स्थायी चौकियों पर लौट जाएं.''
राजनाथ सिंह ने दोनो सेनाओं के कमांडरों के बीच हुई बातचीत का भी ज़िक्र किया था. राजनाथ सिंह ने कहा था, ''अभी तक सीनियर कमांडर्स के स्तर पर नौ दौर की बातचीत हो चुकी है. हमारे इस दृष्टिकोण और बातचीत के फ़लस्वरूप चीन के साथ पैंगोंग त्सो झील के उत्तर और दक्षिण छोर पर सेनाओं के पीछे हटने का समझौता हो गया है.''
लेकिन सामरिक मामलों के जानकार मानते हैं कि दूसरे सेक्टर्स को लेकर भी स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए.
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने ट्वीट किया है, ''किसी भी सौदे में कुछ दिया जाता है और कुछ लिया जाता है. लेकिन भारत ने चीन के साथ जो समझौता (पैंगोंग इलाक़े को लेकर) किया है वो बेहद सीमित है.''
Any deal involves some give and take. Yet the compromises that went into forging a deal with China narrowly limited to one sector (Pangong) were largely made by India. It finally acceded to the terms China offered before winter — a Pangong-only deal centered on creating a buffer.
— Brahma Chellaney (@Chellaney) February 13, 2021
रणनीतिक और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी कहते हैं कि दो देशों के बीच समझौते लेन-देन पर आधारित होते हैं. लेकिन चीन के साथ भारत का समझौता केवल पैंगोंग इलाक़े तक सीमित है, और भारत की पेशकश है. ऐसा लगता है कि सर्दियों से पहले चीन ने जो शर्तें रखी थीं भारत ने उसे मान लिया है और पैगोंग इलाक़े को लेकर समझैता कर नो मैन्स लैंड बनाने पर तैयार हो गया है.
एक अन्य ट्वीट में उन्होंने सवाल किया, ''चीन के आक्रामक रवैये के ख़िलाफ़ भारत खड़ा रहा है और उसने दिखाया है कि वो युद्ध की पूरी तैयारी के साथ भारत हिमालय की सर्दियों के मुश्किल हालातों में भी डटा रह सकता है. ऐसे में बड़े मुद्दों का हल तलाश करने की जगह अपनी मुख्य ताक़त कैलाश रेंज कंट्रोल को हारने को लेकर इस तरह के एक सीमित समझौते के लिए भारत क्यों तैयार हुआ?''
भारत के साथ लंबे वक़्त से जारी तनाव के बीच चीन अब उस मुक़ाम तक पहुँच चुका था जहां उसे इससे कोई फ़ायदा नहीं दिख रहा था बल्कि उसे अपनी छवि के बिगड़ने का अंदेशा था.
भारत सरकार में उम्मीद रखने वालों की राय थी कि देश को अभी और धैर्य दिखाना चाहिए था ताकि समझौते से देश को फ़ायदा मिले, लेकिन शायद दूसरों ने अपना काम कर दिया.
इसके बाद केंद्रीय मंत्री वीके सिंह देश के भीतर माहौल बेहतर करने की कोशिश में चीन के निशाने पर उस वक़्त आ गए जब उन्होंने दावा किया कि लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर चीन ने जितनी बार सीमा का उल्लंघन किया उससे अधिक बार तो भारत ने किया है. इसके बाद जब चीनी सेना ने कहा कि वो डिस्इंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू कर दिया है तो इस मुद्दे पर जनभावना बनाने के लिए भारत पूरे चौबीस घटों तक चुप रहा.
शुक्रवार को इस मसले पर रक्षा मंत्रालय की ओर से बयान जारी किया गया था. जिसमें कहा गया था कि ''भारतीय क्षेत्र भारत के नक़्शे के अनुरूप है जिसमें 43,000 स्क्वेयर किलोमीटर का क्षेत्र भी शामिल है जिस पर 1962 से चीन का अवैधक़ब्ज़ा है. यहां तक कि भारत के हिसाब से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को फ़िंगर-8 तक माना जाता है न कि फ़िंगर-4 तक. इसी वजह से भारत लगातार फ़िंगर-8 तक पेट्रोलिंग करने का अधिकार बनाए रखना चाहता है और चीन केसाथ वर्तमान सहमति में भी यह शामिल है."
द हिंदू के लिए चीन मामलों पर लिखने वाले अनंत कृष्णन ने भी इस समझौते पर ट्वीट करके अपनी राय दी है.
Indian troops at their base in Finger 3 and Chinese troops remaining east of Finger 8, if implemented, sounds like an eminently reasonable agreement and compromise to me, for now. https://t.co/lO5gRvYYe8
— Ananth Krishnan (@ananthkrishnan) February 11, 2021
वो लिखते हैं- "दोनों देशों ने समझौता किया है. भारत फ़िंगर 8 तक गश्त कर सकेगा जबकि चीन ने फ़िंगर 4 तक. यानी दोनों देशों ने अपने क़दम पीछे खींच लिये हैं. पैंगोंग झील के दक्षिण को लेकर भारत सरकार ने जो क़दम उठाया, वोमहत्वपूर्ण दिखाई दे रहा है, क्योंकि उसी की वजह से शायद दोनों पक्षों में इस समझौते पर सहमति बन पाई."
Any meaningful analysis of the disengagement plan should look at not only what India has given up, but what China has given up too. Not many people, including myself, thought they would agree to vacate F4-8. (Caveats apply on them following through, but that’s true for any plan.) https://t.co/Urkz3UBdsJ
— Ananth Krishnan (@ananthkrishnan) February 12, 2021
अनंत कृष्णन ने राहुल गांधी के ट्वीट को री-ट्वीट करते हुए लिखा है- किसी भी सार्थक विश्लेषण में ना सिर्फ़ ये नहीं देखना चाहिए कि भारत ने क्या दिया है बल्कि ये भी कि चीन की भी ओर से क्या दिया गया है. बहुत से लोग जिसमें मैं भीशामिल हूं ने सोचा था कि वे F4-8 खाली करने के लिए सहमत होंगे.
विदेश मामलों के जानकार और वरिष्ठ संपादक प्रवीण स्वामी ने भी इस समझौते पर अपना नज़रिया ट्वीट किया है.
Money part of @rajnathsingh statement: `.“चीन अपनी सेना की टुकडि़यों को North Bank में Finger 8 के पूरब की दिशा की तरफ रखेगा। इसी तरह भारत भी अपनी सेना की टुकडि़यों को Finger 3 के पास अपने permanent base धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा।
— Praveen Swami (@praveenswami) February 11, 2021
उन्होंने लिखा है- इस समझौते का समर्थन करने वालों के लिए ये भारत की बड़ी उपबल्धि है लेकिन आलोचक कहेंगे कि ये पहले जैसी स्थिति तो नहीं है. और भारत का कुछ हिस्सा चीन के कब्ज़े में चला गया है. लेकिन रक्षामंत्री ने जो कहा उसके अनुसार, चीन अपनी सेना की टुकडि़यों को नॉर्थ बैंक में फ़िंगर 8 के पूरब की दिशा में रखेगा. इसी तरह भारत भी अपनी सेना की टुकडि़यों को फ़िंगर 3 के पास अपने स्थायी बेस धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा. इसी तरह की कार्रवाई साउथ बैंकइलाक़े में भी दोनों पक्षों द्वारा की जाएगी. ये क़दम आपसी समझौते के तहत बढ़ाए जाएंगे और जो भी निर्माण आदि दोनों पक्षों द्वारा अप्रैल 2020 से नॉर्थ और साउथ बैंक पर किया गया है, उन्हें हटा दिया जाएगा और पुरानी स्थिति बना दीजाएगी."
उन्होंने अपने ट्वीट में राजनाथ सिंह के एक बयान का ज़िक्र करते हुए लिखा है - "राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कई जगह पर कहा कि चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी बैंक में फ़िंगर 8 के पूर्व की दिशा की तरफ़ रखेगा. इसी तरहभारत अपनी सेना की टुकड़ियों को फिंगर 3 के पास अपने स्थायी बेस धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा."
वो आगे लिखते हैं- "इसी तरह की कार्रवाई दक्षिणी तट इलाक़े में भी दोनों पक्षों द्वारा की जायेगी. ये कदम आपसी समझौते के तहत बढ़ाए जाएंगे. साथ ही अप्रैल 2020 के बाद से जो भी निर्माण दोनों पक्षों द्वारा किया गया है, उसे हटा दियाजाएगा."
सीमा से सेनाओं के पीछे हटने को लेकर जिस तरह के मत सामने आ रहे हैं वो काफी मिले-जुले हैं. ज़्यादातर जानकारों का कहना है कि जिस क्षेत्र में भारत की स्थिति मज़बूत थी उसे वहां से हटने के समझौते के साथ ही बाकी सेक्टर्स को लेकर भी दबाव बनाना चाहिए था. (bbc.com)
रोम, 13 फरवरी | यूरोपियन सेंट्रल बैंक के पूर्व प्रमुख मारियो द्रागी ने औपचारिक रूप से इटली के अगले प्रधानमंत्री की भूमिका स्वीकार कर ली है और शनिवार को उन्हें शपथ दिलाई जाएगी। बीबीसी के मुताबिक, इटली के राष्ट्रपति से मिलने के बाद द्रागी ने अपने मंत्रिमंडल को नामित किया। पिछले महीने पिछले प्रशासन के पतन के बाद लगभग सभी मुख्य राजनीतिक दलों का उन्होंने समर्थन हासिल किया है।
यूरोपीय संघ के कोरोनावायरस रिकवरी फंडों को खर्च करने के मामले को लेकर देश की राजनीति में भूचाल आ गया।
इटली अभी भी महामारी से जूझ रहा है और दशकों में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का भी सामना कर रहा है। देश में 93,000 से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं, जो दुनिया में छठी सबसे ज्यादा मौत है।
संसद में सबसे बड़े समूह का समर्थन प्राप्त करने के बाद, फाइव स्टार मूवमेंट पार्टी के द्रागी के पास अब व्यापक राजनीतिक स्पेक्ट्रम है।
इसका मतलब है कि उनके पास अपने एजेंडे के जरिए आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त बहुमत होगा। फाइव स्टार मूवमेंट में एक वरिष्ठ शख्सियत लुइगी डि माइयो उनके मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के रूप में रहेंगे।
पिछले प्रधानमंत्री, जियूसेपे कोंटे, ने जनवरी में इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उनकी पार्टी ने यूरोपीय संघ रिकवरी निधि की खर्च के लिए योजनाओं पर गठबंधन सरकार के लिए समर्थन खो दिया था। (आईएएनएस)
-संज्ञा सिंह
कोई किसी से किस हद तक प्यार कर सकता है, इस बात का अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल है. हाल ही में सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिन्हें देखकर सभी हैरान है और यह सोच रहे हैं कि भला कोई किसी से इद कदर भी प्यार कैसे कर सकता है. दरअसल, फ्लोरिडा संगीतकार प्रिंस मिडनाइट की कुछ तस्वीरें इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं. जिनमें लोग उन्हें और उनके गिटार को देखकर हैरान हैं और उनकी तस्वीरों और वीडियो को खूब शेयर कर रहे हैं. कई लोगों को तो प्रिंस के गिटार के पीछे की कहानी सुनकर विश्वास ही नहीं हो रहा है, सच्चाई जानने के बाद तो आप को भी इस कहानी पर भरोसा नहीं होगा.
बता दें कि फ्लोरिडा के संगीतकार प्रिंस अपने अनोखे 'हेवी मेटल म्यूजिक' स्टाइल के लिए काफी लोकप्रिय हैं. इस स्टाइल के कारण उन्हें जो लोकप्रियता मिली है उन सब के पीछे का श्रेय प्रिंस अपने अंकल को देते हैं. लेकिन, कुछ समय पहले उनके अंकल की मौत हो गई. जिससे प्रिंस बेहद दुखी हैं और उन्होंने अपने अकंल को अनोखे अंदाज में श्रद्धांजलि देने का फैसला किया. जिसके लिए प्रिंस मिडनाइट ने अपने अंकल के कंकाल का इलेक्ट्रिक गिटार बना डाला.
उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी शेयर किया, जिसमें प्रिंस उस गिटार को बड़ी आसानी से बजाते नजर आ रहे हैं. गिटार के लिए प्रिंस ने कंकाल को बेस के रूप में इस्तेमाल किया जिसमें स्ट्रिंग, वॉल्युम नॉब, गिटार नेक, जैक, पिकअप और इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड लगा हुआ है. प्रिंस ने इस गिटार की कई तस्वीरें भी अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की हैं, जो काफी तेजी से वायरल हो रही हैं.
प्रिंस का कहना है कि मैंने अंकल के कंकाल से गिटार बनाने का फैसला लिया था, लेकिन यह बेहद चुनौतीपूर्ण काम था. मैंने इस पर बहुत शोध किया और पता चला कि इससे पहले किसी ने कंकाल से गिटार नहीं बनाया. इसलिए मैंने यह करने का फैसला किया. मैंने इस काम के लिए दो अन्य लोगों से भी बातचीत की थी, लेकिन मेरी योजना सुनकर वे हैरान रह गए.
दरअसल, अंकल की मौत के बाद उनके कंकाल को मेडिकल कॉलेज के छात्रों की प्रैक्टिकल पढ़ाई के लिए दान कर दिया गया था. जब कॉलेज में इसकी जरूरत पूरी हो गई तो उनके परिवाल वाले अंतिम संस्कार के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में प्रिंस ने कुछ इस तरह से अंकल को यादों में बनाए रखने का फैसला किया.
दुनिया भर में विज्ञान के क्षेत्र में अभी भी महिलाओं को लिंग के आधार पर काफी ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है. पश्चिमी दुनिया के कई अमीर देश लैंगिक समानता के मामले में दुनिया के कुछ गरीब देशों से पीछे हैं.
यह जानकारी यूनेस्को की हाल की एक रिपोर्ट में सामने आयी है. पूरी रिपोर्ट अप्रैल महीने में जारी की जाएगी. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान प्रौद्योगिकी क्रांति के अधिकांश क्षेत्रों में कौशल की कमी के बावजूद, इंजीनियरिंग से स्नातक करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 28 प्रतिशत है. वहीं, कंप्यूटर साइंस और इंफॉर्मेटिक्स से स्नातक करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है. यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र का शैक्षणिक, वैज्ञानिक, और सांस्कृतिक संगठन है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश का कहना है कि बंद प्रयोगशालाएं और बीमारों की तीमारदारी के मामलों में वृद्धि कोरोना महामारी के दौरान वैज्ञानिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की सबसे बड़ी चुनौती थी. उन्होंने विज्ञान में महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर एक संदेश में कहा, "बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लैंगिक समानता को प्रोत्साहन देना जरूरी है."
अमीर देशों का ट्रैक रिकॉर्ड वैश्विक औसत से कम
यूनेस्को की रिपोर्ट में पाया गया है कि इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी के मामले में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्यों का ट्रैक रिकॉर्ड वैश्विक औसत से कम है. इस संगठन में ज्यादातर अमीर देश शामिल हैं. इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी फ्रांस में 26.1 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 23.2 प्रतिशत, संयुक्त राज्य में 20.4 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया में 20.1 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड में 16.1 प्रतिशत और जापान में 14 प्रतिशत है.
यूनेस्को को इस मामले में कोई अलग क्षेत्रीय पैटर्न नहीं मिला. हालांकि, यह नोट किया गया है कि अरब देशों में महिला इंजीनियरिंग स्नातकों की हिस्सेदारी अल्जीरिया में 48.5 प्रतिशत, मोरक्को में 42.2, ओमान में 43.2, सीरिया में 43.9 और ट्यूनीशिया में 44.2 प्रतिशत है. लैटिन अमेरिकी देश में भी महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रदर्शन सही है. इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी क्यूबा में 41.7 प्रतिशत, पेरू में 47.5 और उरुग्वे में 45.9 प्रतिशत है. यूनेस्को ने बताया, "कुल मिलाकर, महिला शोधकर्ता छोटे और कम वेतन वाले करियर की ओर रुख करती हैं."
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विज्ञान के विषयों में महिला ग्रेजुएट पैदा करने में भारत अव्वल है लेकिन उन्हें नौकरी देने के मामले में 19वें स्थान पर है. विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में पास करने वाले लोगों में महिलाओं का हिस्सा 40 प्रतिशत है लेकिन शोध कार्य में लगे 28,00 वैज्ञानिकों में महिलाओं का अनुपात सिर्फ 14 प्रतिशत है. कॉरपोरेट कंपनियां विशेष स्कॉलरशिप देकर महिलाओं को रिसर्च के क्षेत्र में लाने की कोसिश कर रही हैं.
लिंग की वजह से किया जा रहा दरकिनार
यूनेस्को की रिपोर्ट में बताया गया है, "महिलाओं के काम को हाई-प्रोफाइल पत्रिकाओं में प्रस्तुत किया जाता है और उन्हें अक्सर प्रचार के लिए पारित कर दिया जाता है. महिलाओं को आमतौर पर उनके पुरुष सहयोगियों की तुलना में कम रकम के शोध अनुदान दिए गए." यूनेस्को के डाइरेक्टर-जनरल ओद्रे आजूले कहते हैं, "आज 21वीं सदी में भी लिंग की वजह से, विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों को दरकिनार किया जा रहा है." वह कहती हैं, "महिलाओं को यह जानना चाहिए कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में उनकी भी एक जगह है. उन्हें वैज्ञानिक प्रगति में हिस्सेदारी का अधिकार है."
यूनेस्को ने कहा कि तेजी से बढ़ रहे ऑटोमेशन के क्षेत्र में महिलाएं नहीं पिछड़ें, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें डिजिटल इकोनॉमी में समुचित हिस्सेदारी मिले, ताकि पहले से चले आ रहे लैंगिक पूर्वाग्रहों को दूर किया जा सके. यूनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है, "समाज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का असर बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसके अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है. इसका मतलब है कि दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले उत्पादों के डिजाइन में महिलाओं की जरूरतों और नजरिए को अनदेखा किए जाने की संभावना है."
आरआर/एमजे (एएफपी)
नेपाल की पहाड़ियों में इस साल बहुत मामूली बर्फबारी हुई है. वहां के किसान और पर्यटन उद्योग से जुड़े लोग इससे मायूस हैं. बढ़ते तापमान ने पहाड़ों में खेती दूभर कर दी है. पानी के संकट के बीच कीड़े फसल को चौपट कर रहे हैं.
नेपाल का धामपुस गांव सैलानियों को अपनी ओर खींचता था- बर्फ से लकदक अन्नपूर्णा पर्वतऋंखला का अद्भुत नजारा देखने की चाहत भला किसे न होगी. लेकिन पिछले 12 साल से सर्दियों में बर्फबारी कम होने लगी है. बाबूराम गिरी धामपुस के एक होटल यम सकुरा में कुक हैं. अपने चूल्हे के पास खड़े बाहुराम अफसोस जताते हुए कहते हैं, "पांच साल पहले दो फुट से भी ज्यादा बर्फ पड़ी थी, लेकिन तबसे कोई खास बर्फ नहीं पड़ी यहां."
कोरोना के चलते यात्रा प्रतिबंधों ने दुनिया भर के होटलों की वित्तीय हालत को भी डगमगा दिया है. बाबूराम का कहना है कि मध्य नेपाल में रहने वाली उसकी बिरादरी नेपाली टूरिस्टों पर ही प्रमुख रूप से निर्भर थी जो सर्दियों का मौसम होते ही यहां चले आते थे. लेकिन इस साल खाली मैदान का मतलब है कम टूरिस्ट. बाबूराम ने बताया कि "जब भी बर्फ पड़ती है बहुत से लोकल और घरेलू टूरिस्ट यहां बर्फ में खेलने आते हैं लेकिन अब होटल लगभग खाली पड़े हैं."
हाल के वर्षों में भारी बर्फबारी में कमी के चलते नेपाल के पर्वतीय इलाकों में पर्यटन से खेती तक, कमोबेश सभी उद्योगों को आर्थिक चोट पहुंची है. वैज्ञानिक इस हालात को तापमान में बढ़ोत्तरी से जोड़कर देखते हैं. इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) में रीजनल प्रोग्राम मैनेजर अरुण भक्त श्रेष्ठ के मुताबिक रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी के जरिए हुए अध्ययन दिखाते हैं कि नेपाल और हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में स्नो कवर तेजी से कम हुआ है. उनका कहना है, "नेपाल का तापमान प्रति दशक 0.6 डिग्री सेल्सियस के हिसाब से बढ़ रहा है."
बदलते मौसम का कमाई पर असर
नेपाल के जल-विज्ञान और मौसम विभाग की दिसम्बर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गयी थी कि सर्दियों में देश का औसत तापमान सामान्य से ऊपर रहेगा और औसत बर्फबारी सामान्य से कम होगी. होटल यम सकुरा के मालिक बुद्धि मान गुरुंग को लगता है कि कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन के मिलेजुले असर की वजह से पिछले साल के मुकाबले इस साल 80 परसेंट कमाई गिर गयी है. वो कहते हैं, "स्टाफ को सैलरी देने के लाले पड़ रहे हैं."
बर्फबारी में कमी आने से नेपाल के पर्यटन उद्योग पर पड़े आर्थिक असर का कोई तफ्सीली अध्ययन नहीं हुआ है. लेकिन नेपाल के टूरिज्म बोर्ड के सीईओ धनंजय रेग्मी कहते है कि जलवायु परिवर्तन के चलते आगे भी टूरिस्टों की संख्या में कमी ही आनी है. टेलीफोन पर दिए इंटरव्यू में वो कहते हैं, "ज्यादातर टूरिस्ट बर्फ से ढके पहाड़ों को देखने नेपाल आते हैं, लेकिन अगर ये पहाड़ ही काले पड़ जाएं तो गाज पर्यटन पर ही गिरेगी." टूरिज्म बोर्ड ने बर्फ आधारित पर्यटन को बढ़ावा देने और पर्यटकों को रिझाने के लिए स्कीईंग होलीडे जैसी योजनाएं भी बनाई थीं. रेग्मी का कहना है, "लेकिन इस डांवाडोल बर्फबारी ने हमारे सामने अपनी उस योजना की कामयाबी को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है."
सर्दी का मौसम मतलब कीड़ों पर काबू
कम बर्फबारी की समस्या से पर्यटन उद्योग ही नहीं जूझ रहा है. धामपुस गांव के किसान शांत बहादुर बिस्वकर्मा ने बताया कि कुछ साल पहले तक वो अपने खेत में जो उगाते थे उससे परिवार पल जाता था. लेकिन अब बर्फ न पड़ने से पानी की किल्लत हो गयी है और बाजरा, मकई और सब्जियां उगाना कठिन हो गया है. सर्दियों में अपनी फसल को पानी देने के लिए वो पिघलती बर्फ पर निर्भर थे. वो कहते हैं कि इन दिनों, खेतों में डालने के लिए उन्हें कभीकभार पीने का पानी इस्तेमाल करना पड़ जाता है.
बिस्वकर्मा बताते है कि बर्फ और ठंड उनकी फसल को कीड़ों से भी बचाए रखती थी. उन्होंने पाया कि ठंडे तापमान में पौधों पर कीड़े और बीमारियां नहीं लगती थीं. बिस्वकर्मा कहते हैं, "अपने पूर्वजों के समय से ही हमारी ये मान्यता चली आ रही थी कि जिस साल अच्छी बर्फ पड़ती है तो फसल भी तब खूब होती है." लेकिन उनके मुताबिक खेतों पर जबसे तेज गरमी पड़ने लगी है, उन्हें खाना बाहर से खरीदना पड़ता है.
गर्म हो रहा है मौसम, बढ़ रहे हैं कीड़े
बढ़ रही है कीड़ों की प्रजनन दर
नेपाल के पहाड़ी जिलों में से एक दार्चुला में सरकार के एग्रीकल्चर नॉलेज सेंटर में पौध सुरक्षा अधिकारी अर्जुन रायमाझी कहते हैं कि तापमान में गिरावट कीड़ों की प्रजनन दर को भी कम कर देती है. जैसा दुनिया के अन्य गरम होते इलाकों में हो रहा है ठीक उसी तरह नेपाल के पहाड़ों का गरम तापमान कीड़ों को आकर्षित कर रहा है. वो कहते हैं, "ऊंचे इलाकों में बढ़ते तापमान की वजह से कीड़े निचले इलाकों से जा रहे हैं, इसलिए ऊंचाई वाले इलाकों में नये कीड़े दिखने लगे हैं."
सेब जैसी ठंडी जलवायु वाली पारंपरिक फसल के लिहाज से भी गरम मौसम नेपाल के पहाड़ी किसानों के लिए बुरा है. वो कहते हैं, "बर्फ न पड़ने से मवेशी भी प्रभावित हो रहे हैं. इसकी वजह से सर्दियों में नमी कम हो जाती है और जिस घास को पशु चरते हैं वो ठीक से उग ही नहीं पाती. पहाड़ी जिले तो खाद्य असुरक्षा से पहले ही जूझते आ रहे थे और इन चीजों ने समस्या को और गंभीर बना दिया है."
जलवायु विशेषज्ञों की असामान्य चेतावनी
जलवायु से जुड़े शोधकर्ता आगाह करते है कि नेपाल में आने वाले दशकों में बर्फीली सर्दियां दुर्लभ होती जाएंगी. हिमालयी हिंदुकुश क्षेत्र के बारे में आईसीआईएमओडी की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक गंगा बेसिन के नेपाल वाले हिस्से में 2071-2100 के दरमियान बर्फबारी में 50-60 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है. रिपोर्ट में पाया गया कि ऊंचाई वाली जगहों पर तापमान में "असामान्य बढ़ोत्तरी" हो रही है. उसके मुताबिक वैश्विक औसत से करीब दो या तीन गुना अधिक गरमी का अनुमान है.
नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र की ट्रैकिंग एजेंसीज एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील राज पोडेल कहते है कि संगठन के सदस्य अब पहले की तरह जबर्दस्त बर्फबारी होते ही पर्यटन में उछाल के भरोसे नहीं बैठे रह सकते. वो कहते हैं, "बहुत विचित्र बात है कि इस समय नेपाल में बर्फबारी नहीं हो रही है. मैंने दूसरे देशों में जलवायु परिवर्तन जैसी चीज के बारे में सुना था लेकिन वही चीज, अब हम अपनी आंखों के सामने घटित होता देख रहे हैं.”
एसजे/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स)
वॉशिंगटन, 13 फरवरी | व्हाइट हाउस के प्रवक्ता टी.जे. डकलो को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया है क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर एक महिला रिपोर्टर को उसकी जिंदगी 'तबाह' करने की धमकी दी थी। महिला रिपोर्टर उनके निजी जीवन के बारे में सवाल पूछ रही थी। निलंबन की अवधि के दौरान डकलो को वेतन भी नहीं दिया जाएगा। बीबीसी के मुताबिक, डकलो ने कथित तौर पर 'पोलिटिको' की रिपोर्टर तारा पालमेरी को धमकी दी। तारा एक अन्य पत्रकार के साथ डकलो के संबंधों की जांच कर रही थी।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने शुक्रवार को कहा कि डकलो ने पालमेरी से माफी मांगी थी। उन्होंने स्वतंत्र टिप्पणी नहीं की है।
हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों ने इस बाबत कठोर कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की आलोचना की है। बाइडेन ने पहले कहा था कि अगर कोई भी कर्मचारी अपने साथी कर्मचारी से असम्मानजनक रूप से बात करता है तो तत्काल उसकी छुट्टी कर दी जाएगी।
गौरतलब है कि वैनिटी फेयर नामक पत्रिका ने व्हाइट हाउस के डिप्टी प्रेस सेक्रेटरी डकलो द्वारा पालमेरी को उनकी कथित धमकियों की खबर छापी थी। इसके बाद ही उनके खिलाफ कार्रवाई की गई और उन्हें निलंबित कर दिया गया।
तारा पालमेरी दरअसल 'एक्सिओस' की पत्रकार अलेक्सी मैक कमांड के साथ डकलो के सम्बंधों की पड़ताल में जुटी थीं। अलेक्सी ने बाइडेन के चुनाव अभियान को कवर किया था।
बीबीसी के मुताबिक, डकलो ने कथित तौर पर पालमेरी को फोन किया और कहा कि "मैं तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूंगा"। वैनिटी फेयर की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने और भी अपमानजनक और अभद्र टिप्पणी की।
बाइडेन की प्रवक्ता ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि अभद्र आचरण के लिए राष्ट्रपति का कोपभाजन बनने वाले डकलो पहले व्यक्ति हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि उनका आचरण राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित व्यवहार मानक के अनुरूप नहीं है।
बाइडेन ने पहले ही दिन अपने कर्मचारियों से दो टूक कहा था कि वह अभद्र व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने कहा था कि जब मैं यह कह रहा हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं मजाक कर रहा हूं। यदि आप कभी मेरे साथ काम करते हैं और मैं सुनता हूं कि आप किसी अन्य सहकर्मी के साथ अपमानजनक व्यवहार करते हैं तो मैं मौके पर ही आपकी छुट्टी कर दूंगा। इसमें लेस मात्र भी किन्तु, परन्तु की गुंजाइश नहीं। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 13 फरवरी | दूसरी बार महाभियोग का सामना कर रहे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वकीलों ने सीनेट में साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहा है कि उन पर हिंसा भड़काने का जो आरोप लगाया गया है, वह एक "बहुत बड़ा झूठ" है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वकील माइकल वैन डेर वीन ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ डेमोक्रेट सांसदों की ओर से शुरू की गई महाभियोग की कार्यवाही राजनीति से प्रेरित है।
गौरतलब है कि ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने 6 जनवरी को अमेरिकी संसद भवन (कैपिटल) में दंगे करवाए थे, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि उन्होंने इस आरोप से इनकार किया है। अधिकांश रिपब्लिकन सांसदों ने संकेत दिया है कि वे ट्रम्प को दोषी ठहराने के लिए मतदान नहीं करेंगे।
बचाव पक्ष ने महाभियोग सुनवाई के त्वरित समापन के लिए चार घंटे से भी कम का समय लिया। इसके बाद दोनों पक्षों के प्रश्न पूछने के लिए सीनेटरों को चार घंटे का समय दिया गया।
इससे पहले सीनेटरों ने संसद में दो दिनों तक बैठक की जिसमें वीडियो और ऑडियो फुटेज खंगाली गई। डेमोक्रेटिक अभियोजकों ने यह दिखाने की कोशिश की कि ट्रंप का रवैया हिंसा भड़काने का रहता है। उन्होंने दंगा रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया और न ही उन्होंने कोई खेद व्यक्त किया।
उन्होंने यह दलील दी कि अगर इस मामले में ट्रंप को बरी कर दिया जाता है तो इसे कांग्रेस पर दोबारा हमला हो सकता है।
शुक्रवार को वैन डेर वीन ने डेमोक्रेट्स की दलीलों को नकारते हुए अपनी टिप्पणी प्रारंभ की। डेमोक्रेट्स की यह दलील थी कि ट्रम्प ने 6 जनवरी को वाशिंगटन डीसी में अपने समर्थकों को हिंसा के लिए भड़काया था, ताकि बाइडेन की चुनावी जीत को प्रमाणित करने से रोका जा सके।(आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 13 फरवरी| व्हाइट हाउस के प्रवक्ता टी.जे. डकलो को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया है क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर एक महिला रिपोर्टर को उसकी जिंदगी 'तबाह' करने की धमकी दी थी। महिला रिपोर्टर उनके निजी जीवन के बारे में सवाल पूछ रही थी। निलंबन की अवधि के दौरान डकलो को वेतन भी नहीं दिया जाएगा। बीबीसी के मुताबिक, डकलो ने कथित तौर पर 'पोलिटिको' की रिपोर्टर तारा पालमेरी को धमकी दी। तारा एक अन्य पत्रकार के साथ डकलो के संबंधों की जांच कर रही थी।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने शुक्रवार को कहा कि डकलो ने पालमेरी से माफी मांगी थी। उन्होंने स्वतंत्र टिप्पणी नहीं की है।
हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों ने इस बाबत कठोर कार्रवाई करने में विफल रहने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की आलोचना की है। बाइडेन ने पहले कहा था कि अगर कोई भी कर्मचारी अपने साथी कर्मचारी से असम्मानजनक रूप से बात करता है तो तत्काल उसकी छुट्टी कर दी जाएगी।
गौरतलब है कि वैनिटी फेयर नामक पत्रिका ने व्हाइट हाउस के डिप्टी प्रेस सेक्रेटरी डकलो द्वारा पालमेरी को उनकी कथित धमकियों की खबर छापी थी। इसके बाद ही उनके खिलाफ कार्रवाई की गई और उन्हें निलंबित कर दिया गया।
तारा पालमेरी दरअसल 'एक्सिओस' की पत्रकार अलेक्सी मैक कमांड के साथ डकलो के सम्बंधों की पड़ताल में जुटी थीं। अलेक्सी ने बाइडेन के चुनाव अभियान को कवर किया था।
बीबीसी के मुताबिक, डकलो ने कथित तौर पर पालमेरी को फोन किया और कहा कि "मैं तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर दूंगा"। वैनिटी फेयर की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने और भी अपमानजनक और अभद्र टिप्पणी की।
बाइडेन की प्रवक्ता ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि अभद्र आचरण के लिए राष्ट्रपति का कोपभाजन बनने वाले डकलो पहले व्यक्ति हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि उनका आचरण राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित व्यवहार मानक के अनुरूप नहीं है।
बाइडेन ने पहले ही दिन अपने कर्मचारियों से दो टूक कहा था कि वह अभद्र व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने कहा था कि जब मैं यह कह रहा हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं मजाक कर रहा हूं। यदि आप कभी मेरे साथ काम करते हैं और मैं सुनता हूं कि आप किसी अन्य सहकर्मी के साथ अपमानजनक व्यवहार करते हैं तो मैं मौके पर ही आपकी छुट्टी कर दूंगा। इसमें लेस मात्र भी किन्तु, परन्तु की गुंजाइश नहीं। (आईएएनएस)
नोम पेन्ह, 13 फरवरी| कंबोडिया ने आधिकारिक तौर पर चीन के साइनोवैक कोविड-19 वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग को मंजूरी दे दी है। देश के स्वास्थ्य मंत्री मैम बुनहेंग ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन्होंने एक बयान में कहा, "कोविड-19 की महामारी को ध्यान में रखते हुए, कंबोडिया के लोगों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, कंबोडिया के स्वास्थ्य मंत्रालय ने साइनोवैक कोविड-19 वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी देने का फैसला किया है।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मंत्री के हवाले से कहा कि साइनोवैक कोविड-19 वैक्सीन को चीन और अन्य देशों में सुरक्षित रूप से इस्तेमाल किया गया है।
इससे पहले, 4 फरवरी को कंबोडिया ने चीन के साइनोफार्म कोविड-19 वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग को भी मंजूरी दी थी।
दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र ने चीन से साइनोफार्म वैक्सीन का पहला बैच प्राप्त करने के कुछ दिनों बाद 10 फरवरी से टीकाकरण अभियान शुरू किया।
कंबोडिया को कोविड-19 के प्रसार को रोकने में उल्लेखनीय सफलता मिली है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में अब तक कुल 479 मामले दर्ज किए गए हैं और कोविड से किसी की मौत नहीं हुई है, जबकि 463 मरीज ठीक हुए हैं। (आईएएनएस)
लेबनान में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर नया कानून लागू किया गया है. इसके बावजूद, देश में घरेलू हिंसा के मामले दोगुने हो गए हैं. हेल्पलाइन नंबर पर सहायता के लिए आने वाले कॉलों की संख्या तीन गुनी बढ़ गई है.
दुनिया के कई अन्य देशों की तरह लेबनान में भी महिलाओं की स्थिति काफी खराब है. यह खुलासा एक आधिकारिक रिपोर्ट में हुआ है. हाल ही में, तीन महिलाओं की हत्या के बाद देश में आक्रोश का माहौल पैदा हो गया है. सबसे हाई-प्रोफाइल मामला मॉडल जीना कांजो की हत्या का है. उनकी हत्या घर पर ही गला घोंटकर कर दी गई थी. देश की सरकारी समाचार एजेंसी (एनएनए) के अनुसार, हत्या के इस मामले में मॉडल के पति इब्राहित गजल को आरोपी बनाया गया है. पति के तुर्की भाग जाने के बाद उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया गया.
इस मामले में एक स्थानीय समाचार चैनल ने मॉडल के पति इब्राहिम को पूरी घटना को शेयर करने और अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया था. इसके बाद, लोग भड़क गए और सोशल मीडिया पर अपने गुस्से का इजहार किया. लोगों ने कहा कि ऐसा करना पीड़िता को दोषी मानने की संस्कृति को बढ़ावा देना है. स्थानीय नारीवादी समूह फी-मेल की सह-निदेशक हयात मीरशाद ने कहा, "लेबनान की मीडिया अक्सर ऐसे विचारों को मजबूत करने में मदद करती है कि पुरुष ऐसे अपराध करके बच सकते हैं.” स्थानीय टीवी चैनल के शो में इब्राहिम ने कहा, "जब तक वह नहीं चाहेगा, गिरफ्तार नहीं होगा.”
कोरोना की वजह से हिंसा में वृद्धि
पिछले साल दिसंबर महीने में लेबनान में यौन उत्पीड़न को गैरकानूनी घोषित किया गया और घरेलू हिंसा कानून में सुधार किए गए. हालांकि, इस कानून के तहत, यहां वैवाहिक बलात्कार और धार्मिक न्यायालयों द्वारा प्रशासित निजी कानून तलाक और बाल हिरासत जैसे मामलों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को अपराध नहीं माना गया है. महिला अधिकार समूहों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र ने कोरोना लॉकडाउन के दौरान पूरी दुनिया में घरेलू शोषण में वृद्धि को "शैडो पैन्डेमिक” माना है. इसमें बताया गया है कि आर्थिक संकट की वजह से लेबनान में घरेलू हिंसा की स्थिति खराब हो रही है.
इंटरनेशनल सिक्योरिटी फोर्स (आईएसएफ) ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के साथ नया आंकड़ा साझा किया है. इसमें कहा गया है कि पिछले 12 महीनों में लेबनान में घरेलू हिंसा के मामले दोगुने हो गए हैं. पिछले साल जहां यह संख्या 747 थी, जो अब बढ़कर 1468 हो गई. आईएसएफ के एक अधिकारी ने बताया कि घरेलू हिंसा के दौरान महिलाओं की हत्या के मामले भी काफी बढ़ गए हैं. हालांकि, अभी इसका पूरा आंकड़ा सामने नहीं आया है.
आधिकारिक आंकड़े और एबीएएडी के पास आने वाले सहायता कॉल, दोनों से पता चलता है कि घरेलू हिंसा के मामले काफी बढ़ गए हैं. एबीएएडी महिला अधिकार संगठन है. इस संगठन के हेल्पलाइन नंबर पर आने वाले कॉल तीन गुना तक बढ़ गए हैं. 2019 में 1375 कॉल आए थे, जो 2020 में बढ़कर 4,127 पर पहुंच गया. आईएसएफ ने एक बयान में जानकारी दी कि इस महीने की दूसरी हत्या जो सुर्खियों में थी, वह करीब 50 साल की महिला की थी. इस महिला की हत्या करने वाले ने उसके साथ यौन उत्पीड़न की कोशिश की थी. हत्या करने वाला महिला का एक किशोर रिश्तेदार था. गिरफ्तारी के बाद, इस व्यक्ति ने हत्या की बात कबूल भी की थी.
अपराध को सही ठहराने की मानसिकता
फी-मेल की नारीवादी वेबसाइट शारिका वा लाकेन के अनुसार, अधेड़ उम्र की महिला विदाद हसून की गला घोंटकर हत्या कर दी गई थी. वह उत्तरी लेबनान में मृत पायी गई थी. इस मामले पर फी-मेल की सह-निदेशक मीरशाद कहती हैं, "इन घटनाओं को अलग मामलों के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. ये अपराध महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हर दिन होने वाले अपराध का हिस्सा हैं. इन अपराधों की वजह पितृसत्तात्मक व्यवस्था और अपराध को सही ठहराने वाली मानसिकता है.”
लेबनान में दिसंबर में हुए कानूनी संशोधन में 2014 के घरेलू हिंसा कानून में "विवाह" से होने वाली हिंसा को शामिल किया गया है. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस संशोधन का स्वागत किया है. हालांकि, स्थानीय वकीलों का कहना है कि यह साफ नहीं है कि यह कानून तलाकशुदा महिलाओं पर लागू होता है या नहीं. यह इस संशोधन की कानूनी खामी है. महिलाओं के अधिकार के लिए काम करने वाले समूह लेबनानी महिला डेमोक्रेटिक गैदरिंग से जुड़े वकील मनल माजिद कहते हैं, "सिविल कोर्ट में हमने कई ऐसे मामले देखे हैं जहां उत्पीड़न का आरोप लगने के बाद पुरूष महिलाओं को तलाक दे देते हैं, ताकि मुकदमे से बच सकें. महिलाओं के पास अभी भी बचाव के कम रास्ते हैं.”
आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
इस्लामाबाद, 13 फरवरी | चीन का कैनसिनो कोविड-19 वैक्सीन शुक्रवार को पाकिस्तान के ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी द्वारा अनुमोदित किए जाने वाला दूसरा चीनी वैक्सीन बन गया है। स्वास्थ्य मामलों पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विशेष सहायक फैसल सुल्तान ने यह जानकारी दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, इससे पहले जनवरी में, पाकिस्तान ने सुरक्षा और गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के बाद आपातकालीन उपयोग के लिए चीन के साइनोफार्म कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी दी थी।
पाकिस्तान ने चीन से टीके मिलने के बाद आधिकारिक रूप से 3 फरवरी को अपना टीकाकरण अभियान शुरू किया था। (आईएएनएस)
ब्रिटेन के भारतीय समुदाय में कोविड वैक्सीन को लेकर फैले अविश्वास और वैक्सीन लेने में आनाकानी की खबरें लगातार आ रही हैं. इसमें परिवारों और दोस्तों में व्हाट्सऐप के जरिए फैलने वाली फेक न्यूज और संदेंह की बड़ी भूमिका है.
इन संदेशों में वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों पर शक जाहिर किया गया है जैसे कि वैक्सीन शाकाहारी है या नहीं, उसमें किसी प्रकार के मीट या जानवरों का फैट इस्तेमाल हुआ है या नहीं. लगातार इस बात की कोशिशें हो रही हैं कि भारतीयों को वैक्सीन लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. हाल ही में हुए एक सर्वे के जरिए यह पता लगाने की कोशिश भी की गई कि भारतीयों पर महामारी का क्या असर हुआ और वैक्सीन को लेकर उनका नजरिया क्या है. गौरतलब है कि कोविड महामारी के दूसरे चरण में दक्षिण एशियाई मूल के लोगों में मौत का खतरा कई गुना ज्यादा बताया गया है. यह बात पहले अश्वेत समुदाय के बारे में कही गई थी.
समुदाय का नजरिया
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय समेत कई संस्थानों ने मिलकर हाल ही में एक सर्वे किया जिसके नतीजे ज्यादा उत्साहजनक नहीं रहे. 2,320 ब्रिटिश भारतीयों से हासिल किए गए इस सर्वे में केवल 56 फीसदी ने वैक्सीन लेने में दिलचस्पी दिखाई जबकि 44 फीसदी ने वैक्सीन ना लेने या फिर असमंजस में होने की बात कही. खासकर मर्दों के मुकाबले महिलाओं की दिलचस्पी वैक्सीन लेने में काफी कम दिखाई दी.
जो वजहें गिनाई गई हैं उसमें वैक्सीन पर जानकारी के अभाव को जिम्मेदार ठहराया गया जबकि कुछ लोगों का यह भी कहना था कि उन्हें वैक्सीन की उतनी जरूरत नहीं है जितनी शायद सेहत की परेशानियों से जूझ रहे लोगों को होगी, इसलिए अगर उन्हें बुलाया भी जाए तो वे वैक्सीन लेने से इनकार कर देंगे.
इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले कुल लोगों में तकरीबन आधी संख्या पंजाबी समुदाय से है, जबकि एक चौथाई गुजराती समुदाय से हैं. गुजरात से संबंध रखने वाले जगदीश मेहता, उत्तर-पश्चिमी लंदन के सबसे विविधता वाले इलाकों में शामिल हैरो में रहते हैं. बातचीत में उन्होंने बताया, "जब एक के बाद एक कई वैक्सीन आ गईं और उनके इस्तेमाल की इजाजत मिल गई, तो मेरे सभी नजदीकी लोगों में एक डर था कि आखिर कौन सी वैक्सीन सही होगी. इस पर जानकारी नहीं मिल पा रही थी. मीडिया में आई रिपोर्टें भी स्थिति को साफ नहीं कर पाईं. इससे समझ ही नहीं आ रहा था कि हमें क्या करना चाहिए”.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
विश्वास पैदा करने की कोशिशें
शोधकर्ताओं ने इन आंकड़ों का इस्तेमाल इस बात पर जोर देने के लिए किया है कि वैक्सीन को लेकर फैली भ्रांतियां और फेक न्यूज के जाल को तोड़ने के लिए समुदाय केंद्रित अभियान चलाए जाने की जरूरत है. विश्वास पैदा करने की इसी मुहिम के तहत ब्रिटेन में मस्जिदों और मंदिरों को वैक्सीन अभियान में हिस्सेदारी के लिए जोड़ा गया है.
इन्हीं कोशिशों के तहत ऐसे कई वीडियो जारी किए जा रहे हैं जहां जाने-माने चेहरे वैक्सीन से जुड़े डर को कम करने की कोशिशें करते नजर आएंगे. इसमें टेलीविजन के मशहूर चेहरों के अलावा कॉमेडी की दुनिया से असीम चौधरी, संदीप भास्कर और रोमेश रंगनाथन जैसे नाम हैं जो वैक्सीन पर गलतफहमियों को दूर करने के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. दक्षिण एशियाई समुदायों में जहां वैक्सीन पर जानकारी और भ्रम के बीच लकीर खीचने की चुनौती है, वहीं जानकार मानते हैं कि अश्वेत समुदाय में अविश्वास की वजह नस्लीय भेदभावपूर्ण सामाजिक ढांचा और चिकित्सीय अनुसंधानों का इतिहास है जहां अश्वेतों को शोध के लिए इस्तेमाल किया गया.
गलत सूचनाओं का जाल
महामारी ने जहां ब्रिटेन के अश्वेत और दक्षिण एशियाई समुदायों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के मामले में गैर-बराबरी की गंभीर स्थितियों को उजागर किया है, वहीं इन समुदायों में वैक्सीन को लेकर गलत सूचनाओं के प्रसार की काट ढूंढना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. ब्रिटिश स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि वे स्थानीय काउंसिलों को अतिरिक्त धनराशि मुहैया कराई जा रही है ताकि वे सही सूचनाएं फैलाने के लिए पूरी कोशिश कर सकें.
ब्रिटेन में कोविड वैक्सीन उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी संभालने वाले मंत्री नदीम जहावी ने अपने लिखित बयान में कहा है, "ऐसा हर व्यक्ति जिसे वैक्सीन मिलनी चाहिए, उसे हम वैक्सीन देंगे चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो”. फेक न्यूज और फोन पर फैलने वाली गलत सूचनाएं, सरकारी कदमों पर अधूरी जानकारियों और तेजी से तैयार हुई वैक्सीन के प्रभावों पर भ्रम, ये सब मिलकर लोगों के भरोसे को हिला रहे हैं. जातीय समुदायों में विश्वास बहाली की चुनौती लगातार बनी हुई है क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद आंकड़े बार-बार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि रास्ता अब भी लंबा है और लड़ाई अभी बाकी है.
जल-संकट से निपटने के लिए मिस्र की सरकार ने खेतों में सिंचाई का एक ऐप तैयार किया है. किसान इस ऐप की मदद से पानी की बरबादी से बच रहे हैं और खेतों में अच्छी फसल उगा रहे हैं. कई किसान नई तकनीक से अंजान और असहज भी हैं.
दक्षिण मिस्र के समालाउत शहर में एमन एसा ने अपने किसान पति के निधन के बाद खेती का काम संभाला. उसे अंदाजा नहीं था कि गेहूं की फसल को कब और कितना पानी देना होगा. 36 साल की एसा अपने दो एकड़ खेत के लिए या तो जरूरत से ज्यादा पानी इस्तेमाल कर बैठती थी या उसे सिंचाई के लिए किसी किसान को रखना पड़ता था.
पिछले साल दिसंबर में चार बच्चों की मां एसा एक सरकारी प्रोजेक्ट से जुड़ गई जो सेंसरों की मदद से खेत को पानी की जरूरत और मात्रा के बारे मे बताता है. और यह जानकारी मिल रही थी फोन पर एक ऐप के जरिए. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को फोन पर इंटरव्यू में एसा ने बताया, "जब मैंने इस नए सिस्टम के बारे में सुना, तो नहीं जानती थी कि इससे मुझे फायदा क्या होगा. लेकिन जब लोगों ने दिखाया कि यह ऐसे काम करता है, तो मुझे वाकई बहुत मदद मिली और मेरी मेहनत और पैसा भी बचने लगा.”
ऐप का इस्तेमाल करते हुए कुछ ही हफ्तों में एसा की पानी की खपत 20 फीसदी और लेबर की कॉस्ट एक तिहाई कम हो गई. यह सिस्टम देश के जल संसाधन और सिंचाई मंत्रालय ने काहिरा की एमएसए यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर विकसित किया है. इसके तहत मिट्टी में एक सेंसर दबा दिया जाता है जो नमी के स्तर की जांच करता है. एक ट्रांसमीटर के जरिए उसका डाटा यूजर के पास पहुंचता है जो उसे अपने मोबाईल ऐप के जरिए देख सकता है. किसान अपने खेतों से दूर भी रहें तब भी जान सकते हैं कि उनकी फसल को और पानी चाहिए या नहीं.
एसा उन दर्जनों किसानों में से एक है जिसने दिसबंर में लॉन्च हुए इस नए सिस्टम का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. जल संसाधन मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद घानेम के मुताबिक यह प्रोजेक्ट आधुनिक सिंचाई विधियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए बनी देशव्यापी रणनीति का हिस्सा है. वे कहते हैं कि कम पानी में पैदावार बढ़ाना और उत्पादन की लागत घटाना ही इसका लक्ष्य है क्योंकि मिस्र पानी की किल्लत से जूझ रहा है.
फोन पर प्रवक्ता ने बताया, "शुरुआती नतीजे दिखाते हैं कि पानी का खर्च कम करने और लागत कम करने में कामयाबी मिली है.” वे यह भी कहते हैं कि सरकार अभी और भी डाटा इकट्ठा कर रही है. घानेम के मुताबिक मंत्रालय ने अभी तक किसानों को मुफ्त में 200 उपकरण मुहैया कराए हैं लेकिन ट्रायल पीरियड खत्म होने के बाद देश भर में उन्हें बेचा जाएगा. हालांकि उन्होंने उपकरण की कीमत नहीं बताई.
खेती के नए तरीके
एसा के मीन्या प्रांत के नजदीक एक दूसरे खेत में जॉर्जेस शाउकरी कहते हैं कि नए मोबाइल ऐप के साथ ड्रिप सिंचाई को मिलाकर बड़ा फायदा हुआ है. उन्होंने पत्नी के साथ ड्रिप सिंचाई पिछले साल ही लगाई थी. 32 साल के शाउकरी कहते हैं कि वे अब 15 फीसदी कम पानी खर्च करते हैं, उनकी सब्जी की फसल की क्वॉलिटी सुधर गई है और उत्पादन करीब 30 फीसदी बढ़ गया है, "अगर पानी की कमी हुई तो हमें सिंचाई और खेती के नए तरीकों के लिए तैयार रहना होगा.”
मिस्र के सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक नील नदी से देश को मिलने वाले पानी का 85 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा, खेती में ही निकल जाता है. अधिकारियों के मुतबिक मिस्र में हर साल हर व्यक्ति पर करीब 570 घन मीटर यानी डेढ़ लाख गैलन पानी की खपत है. अगर किसी देश में प्रति व्यक्ति सालाना जल आपूर्ति एक हजार घन मीटर से कम है तो विशेषज्ञ उस देश को "जल निर्धन” मानते हैं.
2017 में जल संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए मिस्र ने 20 साल की एक रणनीति तैयार की थी. विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले सूखे और नील नदी से हासिल ज्यादातर पानी को गंवा देने के डर ने मिस्र की चुनौतियों को और भी आपात बना दिया है. मिस्र की डाटा एजेंसी के मुताबिक देश का 70 फीसदी पानी नील नदी से आता है. सूडान के साथ 1959 में हुए करार के बाद मिस्र को सालाना साढ़े 55 अरब घन मीटर पानी मिलता है. लेकिन इथियोपिया इस करार को नहीं मानता जिसने अपने नए ग्रांड रिनेसां विशाल बांध के लिए मिस्र को जाने वाले पानी से अपना जलाशय भरना शुरू कर दिया है.
आने वाली चुनौतियों से मुकाबला
कुछ कृषि विशेषज्ञ नए मोबाइल इरीगेशन सिस्टम से बहुत मुतास्सिर नहीं हैं. उनका इशारा कीमत और इस बात की ओर है कि कई किसान टेक्नोलजी से अंजान हैं या असहज. काहिरा यूनिवर्सिटी में इकोनोमिक जियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर अब्बास शराकी कहते हैं कि यह तकनीक बड़े कमर्शियल किसानों के लिए तो फायदेमंद हो सकती है लेकिन बहुत से छोटे किसानों के लिए नहीं. उन्होंने बताया, "मिस्र में कुछ कंपनियों ने अच्छी क्वॉलिटी और बेहतर मैनेजमेंट के लिए खेती में मोबाइल तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. लेकिन अलग अलग व्यक्तियों के लिए इसे इस्तेमाल करना मुश्किल होगा क्योंकि उन्हें ट्रेनिंग और उचित संसाधनों की दरकार होगी."
पेशे से कृषि इंजीनियर युसूफ अल बहावशी का गीजा शहर में खेत है और उन्होंने नया उपकरण नहीं लगाया है. उनका कहना है कि बहुत से किसान तो मोबाइल फोन तक इस्तेमाल नहीं करते हैं, "सिंचाई और खेती में लंबा अनुभव रखने वाले किसानों को नए उपकरण का इस्तेमाल करने के लिए तैयार करना आसान नहीं, इसमें उनके पैसे लगेंगे और यह बात उन्हें शायद हजम नहीं होगी.”
मीन्या प्रांत में प्रोजेक्ट के सुपरवाइजर सफा अब्देल हकीम का कहना है कि जिन किसानों को उपकरण मिल गए हैं उन्हें ट्रेनिंग भी मिली है. उधर एसा का कहना है कि जो शख्स तकनीक से अंजान है उसके लिए तो बदलावों के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल है. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि नई सिंचाई तकनीक को अपनाकर और पानी की खपत के तरीके बदलकर मिस्र के किसान आने वाली चुनौतियों से मुकाबला भी कर सकते हैं, "नई तकनीक के बारे में सीख-समझकर न सिर्फ मैं अपनी जमीन का बेहतर प्रबंध कर सकती हूं, बल्कि भविष्य के बदलावों के लिहाज से भी खुद को ढाल सकती हूं.”
एसजे/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)