अंतरराष्ट्रीय
अनियमित वर्षा के कारण फसल की पैदावार प्रभावित हुई है और सहारा के किनारे के तीन देशों में लगभग 55 लाख लोग भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं.
उत्तरी बुरकिना फासो में नौ महीने की सकीनातौ अमादौ कुपोषण से उबर रही है. कंटेनर में बने अस्थायी क्लीनिक में नर्स उसका वजन एक तराजू से माप रही है. सकीनातौ की मां की मौत हो चुकी है और उसकी नानी अब उसका पालन-पोषण कर रही है. नाइजर सीमा के पास एक व्यापारिक केंद्र डोरी में रहने वाली सकीनातौ की नानी के परिवार में 14 सदस्य हैं.
परिवार ने 2019 में अपने गांव से भाग जाने के बाद से खुद को जिंदा रखने के लिए काफी संघर्ष किया है. वे बुरकिना फासो, माली और नाइजर में 20 लाख से अधिक लोगों में से हैं जिन्हें इस्लामी समूहों द्वारा ग्रामीण समुदायों पर हमलों की एक लहर के कारण अपने घरों से भागने पर मजबूर होना पड़ा.
भोजन का संकट
अनियमित वर्षा के कारण फसल की पैदावार प्रभावित हुई है और सहारा के किनारे के तीन देशों में लगभग 55 लाख लोग भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अगस्त तक यह बढ़कर 82 लाख हो सकता है, जब फसल से पहले भोजन की उपलब्धता सबसे कम होती है. डोरी में स्वास्थ्य केंद्र चलाने वाले डॉक्टर अल्फोंस ग्नौमौ कहते हैं, "लोगों ने जानवरों, खेतों और यहां तक की फसलों के नुकसान को सहा है. उन्होंने सब कुछ खो दिया है." सकीनातौ के वजन में बढ़ोतरी में उन्होंने काफी मदद की है.
हिंसा के कारण शहर का कभी चहल-पहल वाला पशुधन बाजार बंद हो चुका है. सड़क के किनारे एक झोपड़ी से सब्जियां और सूखे सामान बेचने वाली कदीदियातौ बा कहती हैं कि इलाके में भोजन का परिवहन खतरनाक है और कीमतें आसमान छू रही हैं.
पिछले दो सालों में डोरी की आबादी तीन गुनी बढ़कर 71,000 हो गई है. विस्थापित लोगों की आमद से स्थानीय सेवाओं पर असर पड़ने का खतरा है. दूसरी ओर एक स्थानीय स्कूल में प्रत्येक डेस्क के पीछे तीन से चार बच्चे बैठ हुए हैं, जिसका उद्देश्य प्रत्येक छात्र को एक कटोरी चावल और बीन्स खिलाना है ताकि वे प्रति दिन कम से कम एक समय का भोजन कर सकें.
एए/वीके (रॉयटर्स)
बीते दस वर्षों के दौरान स्कूलों में नामांकन के आंकड़ों में करीब 33 लाख की गिरावट आई है. बच्चों के मामले में यह आंकड़ा और ज्यादा है. एक ताजा अध्ययन से यह बात सामने आई है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
देश में वर्ष 2012-13 में शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई) शुरू की गई थी. उस साल स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राओं की आबादी 25.48 करोड़ थी. वर्ष 2019-20 के दौरान यह घट कर 25 करोड़ पहुंच गई. फिलहाल उसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन प्लानिंग ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईईपीए) के पूर्व प्रोफेसर अरुण मेहता ने इस मुद्दे पर लंबे अध्ययन के बाद "क्या भारत में स्कूल नामांकन में गिरावट चिंता का कारण है? … हाँ, यह है” शीर्षक अपने शोध पत्र में कहा है कि भारत में स्कूल जाने वालों की आबादी में गिरावट चिंता की वजह है.
उनका कहना है कि बीते एक दशक से पहली से बारहवीं कक्षा तक हर स्तर पर स्कूल जाने वालों की तादाद लगातार कम हो रही है. नामांकन में गिरावट बाल आबादी में गिरावट से कहीं ज्यादा है. लेकिन केंद्र सरकार इस गिरावट की वजह का पता लगा कर उनको दूर करने के बजाय वर्ष 2018-19 के आंकड़ों का हवाला देते हुए स्थिति में सुधार के दावे कर रही है. उसी साल नामांकन में सबसे कम गिरावट दर्ज की गई थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते एक दशक के दौरान वर्ष 2015-16 में सबसे अधिक नामांकन देखा गया. उस साल यह 26.06 करोड़ तक पहुंच गया. वर्ष 2018-19 में यह सबसे कम 24.83 करोड़ हो गया. सरकार फिलहाल इस बात का पता लगा रही है कि वर्ष 2018-19 की तुलना में 2019-20 में कुल नामांकन में 2.6 लाख की वृद्धि कैसे हुई. उस वर्ष यूडीआईएसई द्वारा कवर किए गए स्कूलों की संख्या में 43,292 की कमी के बावजूद वर्ष 2019-20 में नामांकन में 2018-19 की तुलना में वृद्धि दर्ज की गई.
मेहता का कहना है कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में एक साल भारी नामांकन में भारी गिरावट के बाद अगले शिक्षण सत्र में तेजी से वृद्धि से नामांकन के आंकड़ों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े होते हैं. उन्होंने नामांकन के आंकड़ों की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दिया है ताकि सही तस्वीर सामने आ सके.
सरकारी रिपोर्ट
कुछ समय पहले एक सरकारी रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया था कि प्राथमिक कक्षाओं के बाद बच्चों का नामांकन धीरे धीरे कम होता जाता है. छठी से आठवीं कक्षा में सकल नामांकन अनुपात जहां 91 फीसदी है, वहीं नौवीं व दसवीं में यह महज 79.3 फीसदी. 11वीं और 12वीं कक्षा के मामले में यह आंकड़ा 56.5 फीसदी है. इससे साफ है कि पांचवीं और खासकर आठवीं कक्षा के बाद काफी तादाद में बच्चे पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं. पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले बच्चों की तादाद देश में दो करोड़ से ज्यादा है.
अब नई शिक्षा नीति के तहत सरकार ने उनको दोबारा स्कूल पहुंचाने की बात कही है. केंद्र ने वर्ष 2030 तक प्री-स्कूल से लेकर सेकेंडरी स्तर में सौ फीसदी सकल नामांकन अनुपात हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है. शिक्षा नीति में कहा गया है कि प्री-स्कूल से लेकर बारहवीं तक के सभी बच्चों को समग्र शिक्षा मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत प्रयास किए जाएंगे.
इसमें ड्रॉप आउट बच्चों को वापस स्कूल पहुंचाने और बच्चों को पढ़ाई बीच में छोड़ने से रोकने के मकसद से दो महत्वपूर्ण कदम उठाने की बात कही गई है. पहला है स्कूलों में पर्याप्त बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना और दूसरा सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता फिर से बहाल करना.
वैसे, हाल में खासकर कोरोना महामारी के दौरान सरकारी स्कूलों में नामांकन कुछ बढ़ा है. लेकिन शिक्षाशास्त्री कोरोना की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाली मार और बेरोजगारी को इसकी प्रमुख वजह बताते हैं.
घटते नामांकन की वजह
आखिर नामांकन में गिरावट की वजह क्या है? शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि निजी स्कूलों की फीस लगातार बढ़ रही है. यह निम्न मध्यवर्ग की क्षमता से बाहर हो गई है. दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में आधारभूत ढांचे और संबंधित विषयों के शिक्षकों की कमी से छात्रों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी खत्म हो रही है.
शिक्षाविद प्रोफेसर अजित कुमार सरकार कहते हैं, "कई छात्र तो मिड डे मील और दूसरी सरकारी योजनाओं के लालच में स्कूल पहुंचते हैं. लेकिन अब कई स्कूलों में ऐसी योजनाएं भी बंद हो गई हैं.”
एक स्कूल के पूर्व प्रिंसिपल देवाशीष दत्त कहते हैं, "सरकार भी इन स्कूलों में न तो खाली पदों को भरने में दिलचस्पी लेती है और न ही आधारभूत ढांचा मुहैया कराने में. उधर, निजी स्कूलों की महंगी फीस और दूसरे खर्च उठाना सबके बस की बात नहीं है. कोरोना महामारी के दौरान के आंकड़े तो और भी गंभीर होंगे. इस दौरान नौकरियां छिनने के कारण स्कूलों की फीस नहीं भर पाने की वजह से भारी तादाद में स्कूलों से बच्चों के नाम कट गए हैं और नए छात्रों का दाखिला नहीं हो सका है.”
शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में फीस कम होने की वजह से नामांकन की दर जरूर बढ़ी है. लेकिन इन स्कूलों में ज्यादातर शिक्षक पठन-पाठन की बजाय निजी कामकाज, निजी ट्यूशन और राजनीति में रुचि लेते हैं. नतीजतन कुछ समय बाद ही पढ़ाई-लिखाई से छात्रों का मोहभंग होने लगता है.
देवाशीष दत्त कहते हैं, "खासकर ग्रामीण इलाकों में तो अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से लोग बच्चों को थोड़ा-बहुत पढ़ाने के बाद रोजगार में लगा देते हैं. यही वजह है कि देश में बाल मजदूरी अब तक खत्म नहीं हो सकी है.” उनका कहना है कि नामांकन दर में गिरावट में अंकुश लगाने के लिए सरकार को ठोस योजना के साथ आगे बढ़ना होगा. इसके लिए सामाजिक संगठनों के साथ जागरूकता अभियान चलाना भी जरूरी है ताकि शिक्षा की अहमियत बताई जा सके. लेकिन उससे पहले सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर और आधारभूत ढांचा दुरुस्त करना सबसे जरूरी है. (dw.com)
लोकतंत्र पर अमेरिका द्वारा आयोजित सम्मेलन में ताइवान की मंत्री ने चीन को अलग रंग से दिखाया. उसके फौरन बाद उनका वीडियो बंद कर दिया गया. दोनों पक्षों ने इसे तकनीकी खामी बताया.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा आयोजित ‘समिट फॉर डेमोक्रेसी' के दौरान ताइवान के एक मंत्री की वीडियो ही बंद कर दी गई. इस मंत्री ने अपनी प्रेजेंटेशन में एक नक्शे का इस्तेमाल किया था जिसमें चीन और ताइवान को अलग-अलग रंगों में दिखाया गया था. इस नक्शे के दिखाए जाने के बाद उनका वीडियो बंद कर दिया गया.
मामले से वाकिफ सूत्र बताते हैं कि बीते शुक्रवार ताइवान की डिजिटल मंत्री ऑड्रे टैंग के वीडियो में चीन और ताइवान को अलग-अलग रंग में दिखाते नक्शे ने अमेरिकी अधिकारियों को चिंता में डाल दिया था. नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि व्हाइट हाउस के कहने पर वीडियो को हटा दिया गया और सिर्फ ऑडियो जारी रहने दिया गया.
सूत्रों के मुताबिक व्हाइट हाउस के अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित थे कि अमेरिका द्वारा आयोजित किसी सम्मेलन में, जहां ताइवान को इसलिए बुलाया गया ताकि उसके प्रति समर्थन जाहिर किया जाए, वहां ऐसा नक्शा चीन की ‘एक चीन' नीति का विरोध समझा जा सकता है. अमेरिका ने साफ तौर पर ताइवान को लेकर कोई स्पष्ट रुख नहीं जाहिर किया है.
अमेरिका के विदेश मंत्रालय से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि स्क्रीन शेयरिंग को लेकर भ्रम के कारण ऐसा हुआ. इसे एक गलती बताते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "हम मंत्री टैंग की भागीदारी का सम्मान करते हैं. उन्होंने सरकार की पारदर्शिता, मानवाधिकार और फर्जी सूचनाओं से संघर्ष के बारे में ताइवान की विश्व-स्तरीय विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया.”
हुआ क्या था?
टैंग ने एक प्रेजेंटेशन दिखाई थी जिसमें दक्षिण अफ्रीकी समाजसेवी संस्था सिविकस द्वारा बनाया दुनिया का एक नक्शा दिखाया गया. इस नक्शे में मानवाधिकारों के खुलेपन के आधार पर विभिन्न देशों को क्रमबद्ध किया गया था.
नक्शे में ज्यादातर एशिया को ताइवान के साथ हरे रंग में दिखाया गया था, जो पूरी दुनिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जिसे ‘खुला' बताया गया. अन्य कई क्षेत्र मसलन अमेरिका और उसके सहयोगियों को बंद, दमित, तंग या बाधित आदि विशेषणों के जरिए प्रदर्शित किया गया था. चीन, लाओस, वियतनाम और उत्तर कोरिया को लाल रंग से दिखाया गया था और उसे ‘बंद' कहा गया.
कुछ मिनट बाद जब संचालक टैंग की तरफ लौटे तो वहां उनका कोई वीडियो नहीं था बल्कि स्क्रीन पर उनका नाम लिखा आ रहा था और सिर्फ ऑडिया सुनाई दे रहा था. साथ ही एक स्पष्टीकरण भी था, "इस पैनल में किसी भी व्यक्ति द्वारा जाहिर किए गए विचार उस व्यक्ति के निजी विचार हैं और आवश्यक नहीं है कि वे अमेरिकी सरकार के विचार परिलक्षित करते हों.”
दोनों पक्षों का खंडन
एक सूत्र ने बताया कि नक्शे के नजर आते ही अमेरिकी अधिकारियों के बीच फौरन ईमेल आने-जाने लगे और व्हाइट हाउस नेशनल सिक्यॉरिटी काउंसिल (NSC) ने नाराजगी भरे अंदाज में विदेश मंत्रालय से संपर्क कर नक्शे पर आपत्ति जाहिर की. अमेरिका ने ताइवान की सरकार से भी आपत्ति जताई जिसके जवाब में ताइवानी नेताओं ने टैंग का वीडियो बंद किए जाने पर नाराजगी जाहिर की.
अमेरिकी अधिकारी इस बात को लेकर भी नाराज थे कि यह स्लाइड तब नहीं दिखाई गई थी जब चीजें टेस्ट की जा रही थीं. इस कारण ये आशंकाएं भी पैदा हुईं कि टैंग और ताइवान ने ऐसा जानबूझ कर किया.
वैसे, एनएससी ने घटना के इस विवरण को गलत बताया है. एक ईमेल के जरिए प्रवक्ता ने कहा, "व्हाइट हाउस ने मंत्री टैंग की वीडियो बंद करने के बारे में कभी नहीं किया.” उन्होंने कहा कि पूरा वीडियो समिट की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
ताइवान ने भी इसे तकनीकी खामी बताया है. जब टैंग से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने, "मुझे नहीं लगता कि मेरी स्लाइड में शामिल सिविकस नक्शे के कारण ऐसा हुआ.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि धार्मिक घृणा अपराध से जुड़ी 'कम उग्रता वाली सामुदायिक हिंसा' पूरे भारत में फैल रही है.
डॉयचे वैले पर धारवी वैद की रिपोर्ट-
कट्टरपंथी हिंदू समूहों की ओर से बर्बरतापूर्ण धमकियों की वजह से दर्जनों शो रद्द किए जाने के बाद भारत के मुस्लिम कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी ने कॉमेडी छोड़ने का संकेत दिया. सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालते हुए उन्होंने कहा- 'नफरत जीत गई, कलाकार हार गया.'
गत 1 जनवरी को जैसे ही उनका शो खत्म हुआ, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उन्होंने एक महीना जेल में बिताया. उन पर कथित तौर से अपने चुटकुलों में हिंदू धार्मिक भावनाओं का "अपमान" करने का आरोप थे, हालांकि वे उस शाम अपने उस शो के सेट में नहीं थे. तब से इस स्टैंड-अप कॉमेडियन को कुछ कट्टरपंथी हिंदू समूह लगातार निशाना बना रहे हैं.
धार्मिक घृणा की एक अन्य घटना में, दक्षिणपंथी बजरंग दल समूह ने अक्टूबर में भोपाल में वेब श्रृंखला 'आश्रम' के सेट पर हमला किया. समूह ने दावा किया कि श्रृंखला का शीर्षक ‘हिंदू धर्म पर हमला' था. हमलावरों ने कथित तौर पर फिल्म निर्माता प्रकाश झा पर स्याही फेंक दी और चालक दल के एक अन्य सदस्य के साथ मारपीट की
अगस्त महीने में, उत्तर प्रदेश में एक 45 वर्षीय मुस्लिम रिक्शा चालक को कट्टरपंथी हिंदू भीड़ द्वारा पीटे जाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. हिंसक भीड़ ने उस व्यक्ति को घेर लिया और उसे ‘जय श्री राम' का नारा लगाने पर मजबूर किया. इस दौरान उसकी छोटी बेटी अपने पिता की सुरक्षा की गुहार लगा रही थी.
बॉर्न ए मुस्लिम: सम ट्रुथ अबाउट इस्लाम इन इंडिया की लेखिका गजाला वहाब चेतावनी देती हैं कि ‘कम उग्रता वाली सांप्रदायिक हिंसा' की घटनाएं भारत में बड़े पैमाने पर होने लगी हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं, "यह अधिक स्थानीय होता जा रहा है. यह सभी नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन पर भारी पड़ गया है लेकिन इसका खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ रहा है. मैं ऐसे लोगों को भी जानती हूं जो मुसलमान नहीं हैं लेकिन चिंतित हैं. इस तरह का व्यापक भय अभूतपूर्व है."
सत्तारूढ़ दल के अधीन धार्मिक ‘अन्याय' बढ़ रहा है
दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर तनवीर एजाज कहते हैं कि कम उग्रता वाली सांप्रदायिक हिंसा की जड़ें साल 1947 के भारत विभाजन के दौर में देखी जा सकती हैं. एजाज कहते हैं, "भारत में, यह कम-उग्रता वाली सांप्रदायिक हिंसा विभाजन के बाद से ही मौजूद है. भारत में मुसलमान विभाजन के अपराधबोध में जी रहे हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था क्योंकि जो मुसलमान भारत में रहे, उन्होंने कभी विभाजन के लिए नहीं कहा. शीर्ष स्तर पर केवल कुछ राजनेताओं ने ही इन पर बातचीत की."
एजाज के मुताबिक, भारत में धार्मिकता का एक हिस्सा धार्मिक समुदायों से इतर है. वह कहते हैं, "लेकिन हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के साथ ही यह प्रक्रिया तेज हो गई है."
उन्होंने कहा कि भारतीय प्रेस ने उजागर किया है कि ‘लंबे, कम तीव्रता वाले संघर्ष' ‘नागरिक समाज के चेहरे पर काफी दिखाई देते हैं.'
एजाज कहते हैं, "स्वयं की पूरी परिभाषा बड़े पैमाने पर जातीय और धार्मिक आधार पर हो रही है और फिर यह ‘हम' बनाम ‘उन' का सवाल है. यहां सांस्कृतिक/धार्मिक टकराव है...धार्मिक आक्रामकता है."
‘दंड से मुक्ति' के लिए धर्म का उपयोग
हाल के वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की ज्यादातर घटनाओं को बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने अंजाम दिया है. वहाब के मुताबिक, पंजीकृत संगठनों के भीतर कई ‘छोटे संगठन हैं' जिन्हें पुलिस छूना नहीं चाहती. वह कहती हैं, "दण्ड से मुक्ति की एक डिग्री है. क्योंकि वे धर्म की आड़ में काम कर रहे हैं. ये समूह बहुत ज्यादा उत्साहित होते जा रहे हैं."
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एजाज कहते हैं कि भारतीय संस्थानों के भीतर मजबूत जवाबदेही होनी चाहिए. वह कहते हैं, "मैं देख रहा हूं कि राज्य की संस्थाएं काफी कमजोर होती जा रही हैं, खासकर पुलिस और कानून-व्यवस्था की संस्थाएं. उन्हें अपना काम करना चाहिए."
वहाब कहती हैं कि धार्मिक घृणा की बढ़ती घटनाओं के खतरनाक परिणाम होंगे और यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह भारतीय समाज में दरारों को और गहरा कर देगा. वह कहती हैं, "अगर ऐसा ही कुछ होता रहा तो समुदायों के बीच दूरियां और गलतफहमियां बढ़ती ही जाएंगी. हम मूल रूप से एक बहुत ही खंडित समाज का निर्माण कर रहे हैं और इन विभाजनों को पाटने में लंबा समय लगेगा." (dw.com)
एक सूजे हुए कलेजे या एक विकलांग कंकाल जैसे मानव अवशेषों को संग्रहालयों में लगाया जाना चाहिए या नहीं? ऑस्ट्रिया में एक संग्रहालय में दिखाई जा रही चीजों को लेकर ऐसे ही सवाल खड़े हो गए हैं.
ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में कई सालों से कई चिकित्सा संबंधी मानव अवशेष रखे हुए हैं. हाल ही में नवीनीकरण के दौरान संग्राहलय के क्यूरेटरों के सामने यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि इस तरह के अवशेषों का आखिरकार प्रदर्शन कैसे किया जाए.
इन अवशेषों में एक विशाल सूजा हुआ कलेजा, फटे हुए चमड़े वाला एक नवजात, एक युवा लड़की का विकृत कंकाल आदि जैसी चीजें शामिल हैं. क्यूरेटरों की दुविधा यह है कि नैतिक मूल्यों और सुरुचि की आधुनिक रेखाओं को लांघे बिना इन अवशेषों का प्रदर्शन कैसे किया जाए.
आधुनिक युग की कसौटियां
ऐसे अवशेषों की संख्या 50,000 के आस पास है. इनमें से कुछ तो 200 सालों से भी ज्यादा पुराने हैं. इनके संकलन की शुरुआत चिकित्सा के छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए 1796 में हुई थी.
आज की दुनिया में इस तरह के संग्रहों को लेकर कई सवाल उठ सकते हैं, जैसे क्या लोकहित मानवीय मर्यादा, शक्ति और शोषण जैसे विषयों से ज्यादा बड़ा है और जिन मृत लोगों के अंगों का प्रदर्शन किया जा रहा उनकी सहमति आवश्यक है या नहीं?
क्यूरेटर एडवर्ड विंटर कहते हैं, "हम जितना संभव हो सके उतनी व्याख्या दे कर वॉयरिस्म को दूर रखने की कोशिश करते हैं." उन्होंने बताया कि दर्शक दीर्घा में तस्वीरें खींचने की इजाजत नहीं है.
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि संग्रहालय में आने वालों को जब "30 किलो का एक कलेजा दिखाया जाएगा...तब वो समझेंगे कि शराब मानव शरीर का क्या हाल कर सकती है."
अंतरराष्ट्रीय मानक
जिज्ञासु लोग शरीर पर वायरसों के असर के बारे में भी और जल जाने पर रक्त वाहिकाएं कैसी दिखती हैं, यह सब जान सकेंगे. वे मानवीय अंगों, खोपड़ी और शरीर के दूसरे हिस्सों को देख सकेंगे. कई देशों में ऐसी चीजों को सिर्फ शोध करने वाले ही देख सकते हैं.
प्रदर्शनी की निदेशक कैटरीन वोलांड कहती हैं, "एक दिन सबको बीमारी का सामना करना ही पड़ेगा." उन्होंने बताया कि कुछ लोग यहां इसलिए आते हैं क्योंकि वो खुद कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से प्रभावित हैं और कुछ इसलिए आते हैं क्योंकि वो "विज्ञान की तरक्की के बारे में और जानना चाहते हैं."
प्रदर्शनी आम जनता के लिए सितंबर 2021 में दोबारा खोली गई और इस बार संग्रह में पड़े अवशेषों में से सिर्फ कुछ को ही इसमें रखा गया. संग्रहालय आई बायोलॉजी के टीचर क्रिस्टियन बिहेवी कहती हैं, "मैं पिछली प्रदर्शनी से वाकिफ थी. लेकिन यह वाली बेहतर ढंग से तैयार की गई है क्योंकि हर चीज का विवरण है, पहले से काफी ज्यादा जानकारी है."
इस चर्चा को दिशा देने के लिए संग्रहालयों की अंतरराष्ट्रीय परिषद ने एक कोड ऑफ एथिक्स बनाया है, जो कहता हैं कि मानव अवशेषों को तभी "लेना चाहिए अगर उनके सुरक्षित रूप से रखा जा सके और उनकी आदर से देखभाल की जा सके." इसके अलावा वो अवशेष जिस समुदाय से हों उसके "हितों और मान्यताओं" का भी ख्याल रखना जरूरी है.
सीके/एए (एएफपी)
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक उत्तरी इथियोपिया में टिग्रे अलगाववादियों और उनके खिलाफ सैन्य अभियान ने गंभीर संकट पैदा कर दिया है.
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि इथियोपिया में टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के संघर्ष ने देश के उत्तरी हिस्से में नागरिकों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक उत्तरी इथियोपिया में खाद्य की कमी से इस क्षेत्र में भोजन की गंभीर कमी होने की संभावना है.
यह भी उल्लेख किया गया कि उत्तरी इथियोपिया में 94 लाख लोगों को खाद्य सहायता की सख्त जरूरत है. वहीं, तीसरे संघर्ष की तीव्रता में कोई कमी नहीं आई है.
टिग्रे में मानव त्रासदी की गंभीरता
इथियोपिया के टिग्रे क्षेत्र में मानवीय संकट हर गुजरते दिन के साथ गहराता जा रहा है. क्षेत्र के 25 लाख लोगों को सहायता की जरूरत है. उनके अलावा अफार में 5,34,000 और अमहारा में 33 लाख लोग मदद का इंतजार कर रहे हैं. अफार और अमहारा क्षेत्र टिग्रे के पास स्थित हैं और सशस्त्र संघर्ष ने उनके दैनिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है. उत्तरी इथियोपियाई शहर कोम्बोल्चा में बंदूकधारियों द्वारा भोजन और आवश्यक वस्तुओं के एक बड़े गोदाम को लूटने के बाद संयुक्त राष्ट्र ने पिछले दिनों राहत भोजन के वितरण को निलंबित कर दिया था.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश के प्रवक्ता स्टीफन डुजारिक के अनुसार कुछ स्थानीय लोग तीन अन्य अलगाववादियों के साथ कोम्बोल्चा के गोदाम को लूटने में शामिल थे. डुजारिक के मुताबिक, "लुटेरों ने गोदाम से बच्चों के खाने-पीने का सामान और दवाइयां भी चुरा लीं."
मानवीय सहायता की कोशिश
घाना की राजधानी अक्रा में विदेश नीति और सुरक्षा विश्लेषक आदिब सानी का कहना है कि मानवीय संकट से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयास अराजकता की स्थिति में सफल नहीं हो रहे हैं क्योंकि युद्धरत पक्ष सबसे बड़ी बाधा हैं. सानी के मुताबिक, "उनके सशस्त्र कार्यों के कारण मानवीय संकट गहरा रहा है और वे स्थिति के लिए एक दूसरे को दोषी ठहराते हैं."
विश्लेषक आदिब सानी ने स्पष्ट किया कि सशस्त्र स्थिति कम नहीं हुई है और आम आदमी के लिए स्थिति कठिन होती जा रही है. उनके अनुसार स्थिति राहत कार्यों को जारी रखने के लिए अनुकूल नहीं थी और राहत सामग्री गंभीर रूप से प्रभावित लोगों तक नहीं पहुंच रही थी.
उत्तरी इथियोपिया में पिछले एक साल से सरकारी बलों और टिग्रे अलगाववादियों के बीच झड़पें होती रही हैं. हिंसा में अब तक हजारों मर चुके हैं. दो लाख से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षकों ने पार्टियों पर गंभीर मानवाधिकारों के हनन का भी आरोप लगाया है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस संकट के समाधान के लिए काम कर रहा है. अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता का कहना है कि इथियोपिया में मानवीय संकट "विनाशकारी" बन गया है और यह अमेरिका के लिए प्राथमिकता है. अमेरिका ने भी युद्धरत पक्षों से बातचीत के माध्यम से अपने मतभेदों को हल करने का आग्रह किया है.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
शिकागो. अमेरिका के शिकागो में रहने वाली एक अश्वेत सोशल वर्कर को पुलिस की बदसलूकी के लिए 2.9 मिलियन डॉलर बतौर हर्जाना मिलेगा. साल 2019 में एक अपराधी की तलाश में पुलिस अधिकारी निर्दोष अंजनेट यंग के घर जबरन घुस आए थे. तलाशी के दौरान पुलिस ने महिला के सारे कपड़े उतरवा लिए थे और हथकड़ी पहनाकर उसे काफी देर तक खड़ा रखा था. जबकि पुलिस जिस अपराधी को खोज रही थी, वह पड़ोस के घर में रहता था.
शिकागो सन-टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शिकागो के मेयर लोरी लाइटफुट ने रविवार को पीड़ित महिला के लिए इस हर्जाने का प्रस्ताव दिया. शिकागो ट्रिब्यून ने मामले की प्रत्यक्ष जानकारी वाले कई स्रोतों का हवाला देते हुए कहा कि वह इस सप्ताह के अंत में पूर्ण परिषद के सामने आने से पहले नगर परिषद की वित्त समिति से सोमवार को मामले के निपटान के लिए चर्चा करने के लिए तैयार है.
अंजनेट यंग ने फरवरी 2021 में शिकागो शहर के खिलाफ एक नागरिक मुकदमा दायर किया था, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि कई सीनियर पुलिस अधिकारी नागरिक अधिकारों के उल्लंघन की साजिश में शामिल हैं. अपनी शिकायत में यंग ने शिकागो शहर और एक दर्जन शिकागो पुलिस को प्रतिवादी के रूप में नामित किया है. उसका आरोप है कि पुलिस एक मुखबिर की सूचना को वेरिफाई कराने में नाकाम रही. दूसरे अपराधी की वजह से उसे ये अपमान और उत्पीड़न झेलना पड़ा.
बेडरूम में लड़खड़ाने से टूटी कर्मचारी की हड्डी, मुकदमा ठोंककर दफ्तर से वसूल लिया मुआवज़ा !
फरवरी 2019 को पुलिस अधिकारियों ने यंग के घर में धावा बोल दिया था. उस वक्त यंग सोने जाने के लिए कपड़े चेंज कर रही थी. पुलिस ने उसे आधे घंटे से अधिक समय तक ऐसे ही बिना कपड़ों के खड़ा रखा और हथकड़ी पहना दी. बातचीत के दौरान यंग ने महसूस किया कि पुलिस गलत पते पर अपराधी की तलाश कर रही है. ये मामला खूब चर्चा में आया था. अब करीब दो साल बाद महिला को इंसाफ मिलता दिख रहा है.
वजीर (केन्या), 14 दिसम्बर| केन्या की पुलिस ने पूर्वोत्तर सीमा क्षेत्र के कोंटन, वजीर काउंटी में एक मस्जिद में संदिग्ध अल-शबाब आतंकवादियों के नागरिकों को अगवा करने की कोशिश को नाकाम कर दिया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, वजीर काउंटी के पुलिस कमांडर हिलेरी टोरोइटिच ने कहा कि लगभग 5 लोगों के एक गिरोह ने एक स्थानीय मस्जिद पर हमला कियाऔर लगभग 40 लोगों को बंधक बना लिया।
टोरोइटिच ने कहा कि यह संदिग्ध आतंकवादी पड़ोसी सोमालिया से आए थे और उन्होंने नागरिकों को बाहर करने का आदेश दिया और उन्हें पास के केन्या-सोमालिया सीमा पर ले जाने की कोशिश की।
पुलिस कमांडर ने कहा कि उनका निशाना इमाम (इस्लामी उपदेशक) था, जो एक पुलिस कर्मी भी है और उस समय नमाज का नेतृत्व कर रहा था।
उन्होंने कहा कि यह इस प्रक्रिया में गिरोह को अपना मिशन छोड़ने और भागने के लिए मजबूर करने के लिए गोलियां चलाई गई।
उन्होंने कहा, "लेकिन किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। हमने गिरोह पर नजर रखने में मदद के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजे हैं।"
यह क्षेत्र सोमालिया सीमा के पास है और आतंकवादी आमतौर पर अपनी इच्छा से सीमा पार करते हैं और वापस भागने से पहले हमले करते हैं। (आईएएनएस)
जकर्ता, 14 दिसम्बर | इंडोनेशिया के पूर्वी नुसा तेंगारा प्रांत में रिक्टर पैमाने पर 7.3 की तीव्रता वाले भूकंप के बाद मंगलवार को सुनामी की चेतावनी जारी की गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और भूभौतिकी एजेंसी के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि भूकंप में सुनामी की लहरें पैदा करने की क्षमता है।
एजेंसी ने कहा कि भूकंप स्थानीय समयानुसार 10.20 बजे आया, जिसका केंद्र पूर्वी फ्लोर्स जिले के लारंटुका उप-जिले से 113 किमी उत्तर पूर्व में और समुद्र के नीचे 10 किमी की उथली जगह पर था।
नुकसान या हताहतों की अभी जानकारी सामने नहीं आई है।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 13 दिसम्बर| इस्लामाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्लाह ने सोमवार को देश में जबरन 'गुमशुदा' या 'गायब' होने जैसी घटनाओं पर गंभीर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि देश के 'प्रमुख अधिकारी' अंतत: इस तरह के कृत्यों के लिए जवाबदेह हैं।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि संविधान के अनुच्छेद 6 (उच्च राजद्रोह) के तहत क्यों न उन पर आरोप लगाया जाए।
न्यायमूर्ति मिनल्लाह ने यह टिप्पणी लापता पत्रकार मुदस्सर नारू के परिवार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दलील पेश कर रहे पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल खालिद जावेद खान के समक्ष की।
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को हुई सुनवाई में, इस्लामाबाद हाईकोर्ट (आईएचसी) के मुख्य न्यायाधीश ने जबरन गायब होने को 'पाकिस्तान पर एक कलंग (धब्बा)' करार दिया और इस प्रकार के घटनाक्रम को 'भ्रष्टाचार का सबसे खराब रूप' कहा। उन्होंने कहा कि प्रमुख अधिकारी आजकल अपनी किताबों में इसके बारे में लिखकर इस प्रथा पर गर्व करते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने सवाल करते हुए कहा, "अगर स्टेट कहीं मौजूद होता, तो प्रभावित परिवार को अदालत का दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता क्यों होती और हमें इसे प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाने की आवश्यकता क्यों होती?"
अगस्त 2018 में, नारू कघान घाटी में छुट्टी पर गया था, लेकिन तब से वह लापता है। उसे आखिरी बार काघन नदी के पास देखा गया था। शुरू में उसके परिवार और दोस्तों ने सोचा कि वह गलती से नदी में गिर गया होगा और डूब गया होगा, लेकिन उसका शव अभी तक नहीं मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि नारू ने आत्महत्या कर ली होगी। हालांकि इस संभावना को उनके परिवार द्वारा तुरंत खारिज कर दिया गया है। उसके परिजनों का कहना है कि उन्हें नारू को लेकर निराशा के कोई संकेत दिखाई नहीं दिए थे, जिनकी वजह से वह आत्महत्या कर सकता है।
उसके परिवार ने बाद में 'अज्ञात व्यक्तियों' के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने की कोशिश की। जब पुलिस ने सहयोग करने से इनकार कर दिया, तो उन्हें नागरिक अधिकार संगठनों से संपर्क करने पर मजबूर होना पड़ा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसके लापता होने के कुछ महीनों बाद, उसके एक दोस्त ने कहा कि उसने नारू को 'लापता व्यक्तियों' के लिए एक हिरासत केंद्र में देखा था।
मामले की पिछली सुनवाई में, यह दावा किया गया था कि नारू, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार रक्षक भी है, को लापता होने से पहले राष्ट्र संस्थानों के अधिकारियों से कथित तौर पर धमकियां मिल रही थीं। (आईएएनएस)
अमेरिका में एक साथ आए करीब 30 बवंडरों ने तबाही मचा दी है. 100 से भी ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका है. राहत कार्यकर्ता अभी भी बचने वालों की तलाश में लगे हुए हैं.
बवंडरों का प्रकोप कई राज्यों में रहा और वो अपने पीछे कई शहरों में भारी तबाही छोड़ गए. जानोमाल का सबसे ज्यादा नुकसान केंटकी राज्य में हुआ, जहां के गवर्नर ने कहा है कि खोजी कुत्तों को अभी भी लाशें मिल रही हैं.
साल के इस समय बवंडरों का आना एक दुर्लभ घटना माना जा रहा है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे अमेरिकी इतिहास की "सबसे बड़ी" तूफानी घटनाओं में से एक बताया. इस समय 94 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है. अधिकारियों का कहना है कि यह संख्या अभी बढ़ सकती है.
कई राज्यों में असर
केंटकी के गवर्नर ऐंडी बेशियर ने एक समाचार वार्ता में कहा, "हमें सबसे पहले तो साथ मिल कर शोक मनाना है और उसके बाद हम साथ मिल कर फिर से अपने राज्य को बनाएंगे."
80 से ज्यादा लोग अकेले केंटकी में मारे गए हैं जिनमें से कई मेफील्ड नगर में मोमबत्ती बनाने की एक फैक्ट्री में काम करते थे. बेशियर ने पहले कहा था कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है लेकिन बाद में उन्होंने बताया कि फैक्ट्री के मालिक को और लोगों की खबर मिली है.
उन्होंने कहा कि अगर मरने वालों की संख्या में कमी होती है तो यह "बहुत अच्छा" होगा. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वो अभी इस जानकारी की पुष्टि नहीं कर पाए हैं. इलिनॉय के ऐडवर्ड्स्विल शहर में अमेजॉन के एक गोदाम में रात की शिफ्ट में काम कर रहे लोगों में से छह की मौत हो गई.
सर्वनाश जैसा नजारा
टेनिसी में चार लोग मारे गए, अर्कांसस और मिसूरी में दो-दो लोगों की मौत हो गई. मिसिसिपी में भी बवंडरों का असर रहा. मेफील्ड में रहने वाले 69 साल के बिल्डर डेविड नॉर्सवर्दी ने बताया कि तूफान में उनके घर की छत और आगे का बरामदा उड़ गया और उनके परिवार को एक शेल्टर में छिपना पड़ा.
तूफान में इतनी ताकत थी कि उसे इतिहास के सबसे बड़े तूफानों में से माना जा रहा है. तूफानों की खबर रखने वालों ने बताया कि उसने मलबे को हवा में 30,000 फुट तक उठा दिया था. मेफील्ड के बवंडर ने तो लगभग 100 सालों पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. उसकी रफ्तार 320 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा थी.
गवर्नर बेशियर ने कहा कि उन्होंने ऐसा विध्वंस अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा. अधिकारियों ने मेफील्ड को "ग्राउंड जीरो" बताया. 10,000 लोगों की आबादी वाले इस शहर में हर तरफ सर्वनाश जैसा नजारा था.
पूरे के पूरे मोहल्ले ढह गए थे, ऐतिहासिक मकान और घरों में भी बस सिल्लियां बाकी रह गई थीं. पेड़ों की भी टहनियां उखड़ गई थीं और मैदानों में गाड़ियां उल्टी पड़ी थीं. वहां की महापौर केथी ओ'नान ने कहा कि शहर "माचिस की तीलियों" जैसा लग रहा है.
पूरे इलाके में करीब 30 बवंडरों के आने की बात कही जा रही है. फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी डीन क्रिसवेल ने सीएनएन को बताया, "अब यही हमारा 'न्यू नॉर्मल' है. और जलवायु परिवर्तन के जो असर हम देख रहे हैं वो हमारी पीढ़ी का सबसे बड़ा संकट है."
सीके/एए (एएफपी)
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने बताया है कि 1991 में सोवियत संघ के टूट जाने के बाद उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि उन्हें घर चलाने के लिए टैक्सी चलानी पड़ी थी.
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने बताया है कि 1991 में सोवियत संघ के टूट जाने के बाद उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि उन्हें घर चलाने के लिए टैक्सी चलानी पड़ी थी. सोवियत संघ के विघटन के बाद देश की आर्थिक हालत काफी खराब हो गई थी और लोगों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था.
पुतिन ने कहा कि सोवियत संघ के टूटने पर उन्हें बहुत अफसोस हुआ था. उन्होंने उस विघटन को ‘ऐतिहासिक रूस का बिखरना' बताया. इस टिप्पणी की अहमियत तब और ज्यादा हो जाती है जबकि दुनियाभर में इस बात की आशंका है कि रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है.
चलानी पड़ी टैक्सी
रविवार को एक टीवी चैनल पर दिखाई गई डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘रशिया, न्यू हिस्ट्री' में व्लादीमीर पुतिन ने ये बातें कही हैं. उन्होंने कहा, "सोवियत संघ के नाम पर यह ऐतिहासिक रूस का विघटना था. पश्चिमी देशों में तब यह माना जा रहा था कि रूस के और टुकड़े हो जाएंगे.”
वैसे पुतिन पहले भी सोवियत संघ के विघटन को लेकर अपने विचार जाहिर करते रहे हैं लेकिन उनकी निजी जिंदगी के पहलू चैनल वन की इस डॉक्युमेंट्री के जरिए पहली बार सार्वजनिक हुए हैं.
रूसी जासूसी एजेंसी केजीबी में काम कर चुके पुतिन ने बताया, "कई बार कुछ अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए मुझे टैक्सी चलानी पड़ी. सच कहूं तो उस बारे में बात करना कोई खुशी की बात नहीं है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा ही हुआ था.”
1990 के दशक में पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग के मेयर अनातोली सोबचाक के दफ्तर में काम करते थे. वह कहते हैं कि अगस्त 1991 में मिखाइल गोर्बाचेव के खिलाफ तख्तापलट के बाद उन्होंने केजीबी से इस्तीफा दे दिया था. उसी के बाद सोवियत संघ टूट गया था.
फिर से सोवियत संघ बनाने की इच्छा
व्लादीमीर पुतिन पर उनके आलोचक आरोप लगाते हैं कि वह सोवियत संघ फिर से बनाना चाहते हैं. सोवियत रूस को लेकर पुतिन की संवेदनशीलता छिपी नहीं है. इसके विघटन के बारे में वह कहते हैं, "हम एकदम अलग देश बन गए थे. जो एक हजार साल में बना था, वह खो गया था.”
1991 में सोवियत संघ टूट कर 15 देशों में बदल गया था. पुतिन कहते हैं कि ढाई करोड़ रूसी लोग नए आजाद हुए देशों में चले गए और रूस से एकदम कट गए जो "बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी थी”.
यूक्रेन उन्हीं 15 देशों में से एक है और रूस ने 90 हजार सैनिक उसकी सीमा पर जमा कर लिए हैं जिसे लेकर कई देशों में हमले का डर बन गया है. इसी साल की शुरुआत में पुतिन ने क्रेमिलन की वेबसाइट पर एक लंबे लेख में लिखा था कि वह क्यों मानते हैं कि यूक्रेन और उसके लोग रूसी इतिहास और संस्कृति का अभिन्न अंग हैं. यूक्रेन इस विचार को गलत मानते हुए खारिज करता रहा है.
2014 में रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र को अलग करवा दिया था. वह वहां के विद्रोहियों का समर्थन करता है जिन्होंने देश के पूर्वी हिस्से पर कब्जा कर रखा है और यूक्रेन की सरकारी फौजों से लड़ रहे हैं.
वीके/सीके (रॉयटर्स)
जी-7 देशों ने रूस को यूक्रेन से परे रहने या गंभीर नतीजे झेलने की चेतावनी दी है. लिवरपूल में जी-7 के विदेश मंत्रियों की बैठक में रूस का मुद्दा छाया रहा. इसके अलावा ईरान पर भी बात हुई.
दुनिया के सबसे धनी सात देशों के संगठन जी-7 ने रविवार को युनाइडेट किंग्डम के लिवरपूल में मुलाकात की. इस बैठक के बाद जारी साझा बयान में रूस और ईरान को चेतावनी दी गई है.
जी-7 ने कहा कि परमाणु समझौता करने के लिए ईरान के हाथ से वक्त निकलता जा रहा है और अगर ऐसा ना हुआ तो उसे सख्त नतीजे झेलने होंगे. इसी के साथ रूस को यूक्रेन में आक्रमण के मंसूबे ना पालने की भी चेतावनी जारी की गई.
रूस पर प्रतिबंधों की तैयारी
जी-7 देशों के विदेश मंत्रियों ने रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की संभावनाओं की चर्चा की. अमेरिकी जासूसी एजेंसियों का आकलन है कि रूस अगले साल की शुरुआत में पौने दो लाख की फौज के साथ यूक्रेन पर चढ़ाई कर सकता है.
रूस इन आरोपों से इनकार करता रहा है. हालांकि उसने यह गारंटी मांगी है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा और रूसी सीमा के नजदीक नाटो देश हथियार तैनात नहीं करेंगे. पिछले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से वीडियो पर हुई एक मुलाकात में भी रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने यही मांग रखी थी.
तब जो बाइडेन ने कहा था कि अगर यूक्रेन पर चढ़ाई की जाती है तो रूस को सख्त आर्थिक प्रतिबंध झेलने होंगे. जी-7 देशों ने अमेरिका के इस कदम का समर्थन किया है. ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रस ने मीडिया से बातचीत में कहा, "हम इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि यूक्रेन पर रूस के किसी भी आक्रामक कदम के गंभीर नतीजे होंगे और उनकी भारी कीमत होगी.”
पाइप लाइन पर खतरा
ट्रस ने कहा कि आर्थिक प्रतिबंधों की जहां तक बात है तो सारे विकल्पों पर विचार किया गया. हालांकि किसी तरह की स्पष्ट सहमति नहीं बनी है कि नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइप लाइन पर भी प्रतिबंध लगाया जाए या नहीं. लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा कि यदि "रूस यूक्रेन पर फिर आक्रामक होता है या फिर से कोई कार्रवाई करता है” तो पाइप लाइन के चालू होने की संभावना बहुत कम होगी.
ब्लिंकेन ने कहा, "इसलिए जब राष्ट्रपति पुतिन आगे के कदमों पर विचार कर रहे हैं तो उन्हें इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए.” जी-7 की बैठक के बाद जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने टीवी चैनल जेडडीएफ को बताया कि "और आक्रामक कार्रवाई की सूरत में यह गैस पाइपलाइन सेवा में नहीं आ पाएगी.”
नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन रूस की गैस को जर्मनी तक पहुंचाएगी. हालांकि इसके संचालन के लिए अभी जर्मनी को लाइसेंस जारी करना है. पोलैंड और अमेरिका ने जर्मनी को लाइसेंस देने से पहले थोड़ा इंतजार करने का आग्रह किया है.
ईरान का मुद्दा
जी-7 की बैठक में ईरान द्वारा परमाणु संधि को लेकर आनाकानी का मुद्दा भी उठा. ब्रिटेन ने कहा कि विएना में फिर से शुरू हो रही परमाणु वार्ता ईरान के लिए संधि के लिए फिर से आने का आखिरी मौका है. ब्रिटिश विदेश मंत्री ट्रस ने कहा, "ईरान के पास अब भी वक्त है कि समझौते पर सहमत हो.”
ब्रिटेन इस संधि के साझीदारों में से एक है और पहली बार संधि में शामिल किसी पक्ष ने ईरान को इस तरह की सख्त चेतावनी दी है. 2015 में हुए परमाणु समझौते को पुनर्स्थापित करने के लिए गुरुवार से विएना में बातचीत दोबारा शुरू हुई है. 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा तोड़ दिए जाने के बाद यह समझौता खतरे में पड़ गया था.
मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि वह समझौते में वापस लौटने को तैयार हैं. ईरानी नेताओं ने भी कहा है कि वे बातचीत को लेकर गंभीर हैं. लेकिन पश्चिमी नेताओं का आरोप है कि ईरान अब तक हुई प्रगति को खत्म कर रहा है और आनाकानी के जरिए वक्त चाह रहा है.
वीके/एए (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
सैन फ्रांसिस्को, 13 दिसम्बर | एलन मस्क द्वारा संचालित इलेक्ट्रिक कार निर्माता टेस्ला एक महीने के भीतर अमेरिका में एक दूसरे यौन उत्पीड़न के मुकदमे की चपेट में आ गई है, जिसमें एक महिला कर्मचारी ने एक मैनेजर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। मीडिया रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है। बिजनेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफोर्निया स्थित फैक्ट्री टेस्ला के फ्रेमोंट में असेंबली लाइन वर्कर एरिका क्लाउड ने मुकदमा दायर किया है।
मुकदमे में दावा किया गया है कि उन्हें अपने पूर्व मैनेजर से 'लगभग रोजाना ही यौन उत्पीड़न' का सामना करना पड़ा।
शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने कई मौकों पर अग्रिमों को खारिज कर दिया।
क्लाउड ने इलेक्ट्रिक कार निर्माता पर कैलिफोर्निया में अपने फ्रेमोंट कारखाने में 'निरंतर और व्यापक' यौन उत्पीड़न के एक पैटर्न को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया।
टेस्ला को अभी तक दूसरे मुकदमे पर टिप्पणी नहीं है जो एक महीने के भीतर दायर किया गया था।
टेस्ला की एक महिला कर्मचारी ने पिछले महीने कंपनी के खिलाफ मुकदमा दायर किया था, जिसमें ऑटोमेकर पर एक शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण बनाने का आरोप लगाया गया था जहां यौन उत्पीड़न 'बड़े पैमाने पर' था।
द वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, टेस्ला मॉडल 3 पर काम करने वाली प्रोडक्शन एसोसिएट जेसिका बाराजा ने एक मुकदमे में कहा कि उसे कैलिफोर्निया के फ्रेमोंट में टेस्ला की फैक्ट्री में लगातार उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा, जिसमें 'कैटकॉलिंग और अनुचित शारीरिक स्पर्श शामिल है।'
रिपोर्ट में उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया गया, "लगभग तीन वर्षों से सभी उत्पीड़न का अनुभव करने के बाद, यह आपको लगभग अमानवीय बनाता है।"
टेस्ला अपने मॉडल एस, मॉडल 3, मॉडल एक्स और मॉडल वाई इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन फ्रेमोंट प्लांट में करती है।
अक्टूबर में, टेस्ला को उसी संयंत्र में एक पूर्व ठेकेदार को 137 मिलियन डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया गया था, जिस पर आरोप लगा था कि वह नस्लीय उत्पीड़न के अधीन था। (आईएएनएस)
आपको राजेश खन्ना का एक डायलॉग तो याद ही होगा, ‘…जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं!’ हर इंसान की जिंदगी में एक ऐसा पल आता है जब वो जीवन से ऊबने लगता है. उसे आगे का कोई रास्ता नहीं नजर आता. ऐसे में वो डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. कई बार जो लोग गंभीर बीमारियों से जूझते हैं उनके साथ ऐसा अधिक होता है. मगर जिस इंसान के अंदर जिंदगी जीने का जज्बा होता है वो बीमारियों को भी चुनौती देने की हिम्मत रखता है. हाल ही में एक शख्स ने ऐसी ही सीख लोगों को दी. कैंसर से जंग लड़ रहे बुजुर्ग शख्स ने मरने से पहले आइस स्केटिंग सीखने का अपना शौक पूरा किया और गजब की स्केटिंग कर सबको हैरान कर दिया.
ओन ट्रेल नाम की कंपनी की सीईओ रेबेका बैस्टिन ने हाल ही में ट्विटर पर एक ऐसा पोस्ट शेयर किया जिसे देखकर सब हैरान रह गए और साथ ही काफी भावुक भी हो गए. रेबेका ने अपने पिता का एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा- “मेरे पिता 77 साल के हैं और उन्हें स्टेज-4 का प्रोस्टेट कैंसर है. उन्होंने कैंसर के दौरान ही कुछ साल पहले आइस स्केटिंग सीखी और अब अपनी टीचर के साथ उन्होंने आइस स्केटिंग करते हुए गजब की डांस परफॉर्मेंस दी है. ये वीडियो उन लोगों के लिए है जो सोचते हैं कि कुछ भी नया शुरू करने के लिए अब देर हो चुकी है.”
बुजुर्ग शख्स ने दिखाया गजब का हुनर
वीडियो में बुजुर्ग व्यक्ति गजब की आइस स्केटिंग कर रहे हैं. वो अपनी डांस पार्टनर के साथ बर्फ पर स्केटिंग करने के साथ कई डांस स्टेप करते भी दिखाई दे रहे हैं. बड़ी बात ये है कि कैंसर और इतनी उम्र होने के बावजूद वो किसी महारथी कि तरह स्केटिंग कर रहे हैं और शानदार डांस भी करते दिखाई दे रहे हैं. आपको बता दें कि इस वीडियो को कुछ ही दिन में 26 लाख से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं और डेढ़ लाख के करीब लोगों ने इसे लाइक किया है वहीं 15 हजार से ज्यादा लोग वीडियो को रीट्वीट कर चुके हैं.
My father is 77 years old and has stage 4 prostate cancer. He decided to learn how to ice skate a few years ago, and just did this performance with his teacher.
— Rebekah Bastian (@rebekah_bastian) December 9, 2021
For anyone that thinks it’s too late to try something new… ❤️ pic.twitter.com/0SZ3FmbNGE
वीडियो पर कई लोगों ने कमेंट कर शख्स की तारीफ की
वीडियो पर रेबेका ने कमेंट किया कि उन्होंने अपने पिता को ये बात बताई कि वो वायरल हो चुके हैं. इस बात पर पिता काफी खुश हुए और कहा कि वो हमेशा से ही फेमस एथलीट बनना चाहते थे. कई बुजुर्गों ने रेबेका के पिता की तारीफ की और उनके हुनर की भी सराहना की जबकि युवा उनसे इंस्पिरेशन लेने की बात लिख रहे हैं.
किराये पर घर लेने और बेचने के लिए अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स मौजूद हैं. अब एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे देखकर आप सोच में पड़ जाएंगे. किराये पर कमरा देने के अनोखे विज्ञापन ने सोशल मीडिया यूजर्स को हैरत में डाल दिया है. न्यूज़ीलैंड में एक शख्स ने अपने घर के गैराज में एक चारपाई, कुर्सी और टेबल लगाकर घर किराये पर उठाने का विज्ञापन लगा दिया.
इस विज्ञापन के सामने आने के बाद न्यूजीलैंड में घरों की कमी का कड़वा सच भी सामने आया है. इस तस्वीर ने आम लोगों से लेकर राजनीतिज्ञों तक का ध्यान अपनी ओर खींचा है. पार्किंग में लगी कार के बगल में लगी चारपाई वाला ये विज्ञापन न्यूज़ीलैंड के ऑकलैंड का है. रेंटर्स यूनियन के प्रवक्ता जिओर्डी रोजर्स ने कहा है कि ये विज्ञापन किरायेदारों की एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई को दिखाने वाला है.
ऐसा भी होता है मकान ?
Mirror की रिपोर्ट के मुताबिक एक मकान मालिक ने अपने गैरेज को कमरे के तौर पर किराये पर उठाने के लिए उसकी तस्वीर डाली है. इस मामले की अब देश भर में निंदा की जा रही ऑकलैंड के रहने वाले एक शख्स ने अपने गैरेज में बिस्तर लगा दिया और पास में एक टेबल और चेयर रखकर उसकी तस्वीर खींच ली. फिर इसे किराए पर देने के लिए वेस्ट ऑकलैंड फेसबुक ग्रुप पर पोस्ट कर दिया है. इस विज्ञापन में फर्नीचर के बगल में कार लगी हुई भी दिखाई दे रही है. इसे देखकर लोग मकानमालिक को खूब खरी-खोटी सुना रहे हैं.
न्यूजीलैंड में मकान हैं बड़ी समस्या
न्यूजीलैंड में लोगों की संख्या के मुकाबले मकानों की संख्या काफी कम है . ये विज्ञापन इस बात की पुष्टि कर रहा है. घरों की कमी की वजह से रेंटर्स कैसी भी स्थिति में रहने को मजबूर हैं. ऑकलैंड सेंट्रल और ग्रीन पार्टी के सांसद क्लो स्वारब्रिक ने भी इस मामले का संज्ञान लेते हुए रेंटर्स के लिए बेहतर व्यवस्था की जानी चाहिए. इस तरह के विज्ञापन न सिर्फ कम आमदनी वाले युवाओं की बुरी स्थिति दिखाती है, बल्कि इसका व्यावसायिक लाभ उठाने वालों की मानसिकता भी प्रदर्शित करती है.
यरूशलम. इजराइल की संसदीय समिति ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की पत्नी और उनके वयस्क बेटों को अब सुरक्षा मुहैया नहीं कराने के पक्ष में रविवार को मतदान किया. यह फैसला सोमवार से प्रभावी होगा. नेतन्याहू ने कई बार कहा है कि उनके परिवार को जान से मारने की धमकियां लगातार मिल रही हैं. इसके बावजूद समिति ने यह फैसला किया. फैसले के तहत नेतन्याहू के परिवार से सुरक्षा के साथ ही ड्राइवर और कार की सुविधा भी वापस ले ली जाएगी.
विपक्ष के नेता होने के कारण नेतन्याहू को मिलेगी सुविधाएं
नफ्ताली बेनेट ने इजराइल के प्रधानमंत्री पद की जून में शपथ ली थी और इसी के साथ 12 साल से प्रधानमंत्री पद पर काबिज नेतन्याहू का कार्यकाल खत्म हो गया. नई सरकार के लिए अलग-अलग विचारधाराओं के दलों ने गठबंधन किया. नेतन्याहू अब विपक्ष के नेता हैं और उन्हें सरकार की ओर से सुरक्षा मुहैया कराई जाती है.
मानक प्रक्रियाओं के तहत, पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार को कार्यकाल समाप्त होने के बाद शुरुआती छह महीने तक सुरक्षा एवं चालक के साथ एक वाहन मुहैया कराया जाता है, लेकिन नेतन्याहू के जोर देने पर एक मंत्रिस्तरीय समिति ने जनवरी में इस सीमा को एक साल तक बढ़ा दिया था. उसी मंत्रिस्तीय समिति ने सुरक्षा मुहैया कराने की अवधि को रविवार को कम करके फिर से छह महीने करने की ‘शिन बेट’ सुरक्षा सेवा की सिफारिश स्वीकार कर ली. उसने कहा कि नेतन्याहू की पत्नी या उनके बच्चों को कोई आसन्न खतरा नहीं है.
भ्रष्टाचार मामले में नेतन्याहू की मुश्किलें बढ़ी
नेतन्याहू के पूर्व प्रवक्ता नीर हेफेट्ज मुकदमे में अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह बन गए हैं. उनकी गवाही को नेतन्याहू के खिलाफ लगे आरोपों के सिलसिले में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. हालांकि, अब विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे पूर्व प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कुछ भी गलत करने से इनकार किया है. उन्होंने सभी आरोपों को झूठा और बेबुनियाद करार दिया है. (एजेंसी इनपुट)
जिनान, 13 दिसम्बर| परिवहन मंत्रालय के बेइहाई रेस्क्यू ब्यूरो ने कहा कि पूर्वी चीन के शेडोंग प्रांत के यांताई शहर के तट पर एक मालवाहक जहाज के डूबने से नौ चालक दल के सदस्यों की मौत हो गई है।
मालवाहक जहाज, 'तियानफेंग 369', रविवार की सुबह तड़के यंताई से 30 समुद्री मील उत्तर-पूर्व में समुद्र के पानी में डूब गया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, दुर्घटना के समय चालक दल के कुल 14 सदस्य सवार थे।
बचाव ब्यूरो को सुबह 4:43 बजे दुर्घटना की सूचना मिली और फिर बचाव अभियान में शामिल होने के लिए एक बचाव हेलीकॉप्टर और एक बचाव पोत भेजा गया।
रात 10 बजे तक, बचाव दल ने 12 लोगों को पानी से बाहर निकाल लिया था, जिनमें से तीन की हालत स्थिर थी और नौ लोगों की मौत हो चुकी थी।
शेष दो लापता चालक दल के सदस्यों के लिए बचाव और खोज अभियान अभी भी जारी है।
जहाज का स्वामित्व शेडोंग प्रांत के शौगुआंग शहर में तियानफेंग मरीन शिपिंग कंपनी लिमिटेड के पास है। (आईएएनएस)
रियो डी जनेरियो, 13 दिसम्बर| ब्राजील के पूर्वोत्तर राज्य बाहिया में भारी बारिश के कारण कम से कम 7 लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग विस्थापित हो गए। ये सूचना क्षेत्रीय नागरिक सुरक्षा ने दी है। पिछले सप्ताह बाहिया के दक्षिणी क्षेत्र में एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात के कारण हुई बारिश शनिवार को तेज हो गई, जिससे क्षेत्र के कुछ हिस्सों में बाढ़ आने से तबाही हुई।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिक सुरक्षा के अनुसार, बारिश से लगभग 30 नगरपालिकाएं प्रभावित हुई, जिनमें से अब तक 7 लोग मारे गए जबकि 175 घायल हुए हैं और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं।
आंधी-तूफान ने कई कस्बों और ग्रामीण इलाकों को प्रभावित किया, जिससे राहत टीमों का उन तक पहुंचना मुश्किल हो गया। रविवार को 200 से ज्यादा सैन्य अग्निशामकों ने दो हेलीकॉप्टरों के समर्थन से प्रभावित समुदायों के लोगों को बचाया।
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो और बाहिया के गवर्नर रुई फलकाओ ने रविवार को प्रभावित जगहों का दौरा किया और पुनर्निर्माण सहायता देने का वादा किया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 13 दिसंबर | मौलिक अधिकारों के लिए ग्वादर के लोगों के हफ्तों विरोध के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने रविवार को कहा कि सरकार ग्वादर तट पर ट्रॉलरों द्वारा अवैध रूप से मछली पकड़ने के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी। यह जानकारी एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने दी। खान ने एक ट्वीट में कहा कि उन्होंने ग्वादर के मेहनती मछुआरों की वैध मांगों पर ध्यान दिया है, जो चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) परियोजना की मुख्य कड़ी है।
प्रधानमंत्री के अनुसार, वह बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री अब्दुल कुद्दुस बिजेंजो से भी बात करेंगे, ताकि बलूचिस्तान मछुआरा समुदाय के आरक्षण को लागू किया जा सके।
ग्वादर के लोग 20 दिनों से अधिक समय से अपने मौलिक अधिकारों के लिए बंदरगाह शहर में धरना दे रहे हैं। धरने का नेतृत्व जमात-ए-इस्लामी बलूचिस्तान के प्रांतीय महासचिव मौलाना हिदायत-उर-रहमान कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बलूचिस्तान सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच कई दौर की वार्ता विफल रही है, क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे केवल मौखिक वादों पर अपना विरोध समाप्त नहीं करेंगे।
उनकी मांगों में नागरिकों को पीने योग्य पानी, नागरिक सुविधाएं, स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर और शहर भर में फैली अनावश्यक सुरक्षा चौकियों को हटाना शामिल है।
प्रदर्शनकारियों ने विदेशी ट्रॉलरों द्वारा ग्वादर के पानी में अवैध मछली पकड़ने को समाप्त करने की भी मांग की है, यह कहते हुए कि अवैध मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर बलूच मछुआरों की आजीविका और समुद्री पर्यावरण को नष्ट कर रहे थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक केवल ग्वादर में शराब की दुकानों को बंद करने की मांग पूरी की गई है।(आईएएनएस)
लंदन, 13 दिसंबर| ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अप्रैल के अंत तक कोविड के ओमिक्रॉन स्वरूप से होने वाली मौतों की संख्या 25,000 से 75,000 तक हो सकती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि देश में टीकाकरण में कितनी प्रगति है। बीबीसी ने शनिवार को बताया कि विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड के ओमिक्रॉन स्वरूप को लेकर अभी भी अनिश्चितता है।
अध्ययन लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन (एलएसएचटीएम) में रोग प्रतिरूपकों के एक प्रभावशाली समूह द्वारा किया गया है जो सरकार को सलाह भी देते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अनुसंधान इस धारणा पर आधारित है कि यदि किसी को टीका लगाया गया है तो ओमिक्रॉन का असर उस पर कम है और मौजूदा प्लान बी उपायों को भी ध्यान में रखा गया है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि बूस्टर खुराक अधिक लेने से ओमिक्रॉन तरंग का प्रभाव कम होने की संभावना है।
ब्रिटेन में शनिवार को 54,073 नए मामलों की घोषणा की गई, जिसमें ओमिक्रॉन के 633 मामले शामिल हैं। हालांकि ओमिक्रॉन मामलों की वास्तविक संख्या बहुत अधिक होने का अनुमान है।
शोधकर्ताओं में से एक, निक डेविस ने कहा कि ओमिक्रॉन बहुत तेजी से फैल रहा है, जो काफी चिंताजनक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटेन में फिलहाल हर 2 से 4 दिन में संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी हो रही है। (आईएएनएस)
बीजिंग, 13 दिसंबर | चीनी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा ने एक महिला कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया है, जिसने बॉस और एक ग्राहक पर शराब पीकर बिजनेस ट्रिप पर उसका यौन शोषण करने का आरोप लगाया था। बीबीसी ने बताया कि बर्खास्तगी पत्र में कहा गया है कि उसने झूठ फैलाया, जिससे कंपनी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा।
महिला कर्मचारी ने अगस्त में अपने आरोप को सार्वजनिक करते हुए कहा कि कंपनी जुलाई में हुई घटना पर कार्रवाई करने में विफल रही है।
माना जा रहा है कि ग्राहक अभी भी पुलिस जांच के दायरे में है।
महिला ने सरकार समर्थित अखबार दाहे डेली को बताया कि उसे पिछले महीने के अंत में नौकरी से निकाल दिया गया।
महिला कर्मचारी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया, "मैंने कोई गलती नहीं की है और निश्चित रूप से इस परिणाम को स्वीकार नहीं करूंगी और भविष्य में अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए कानूनी साधनों का उपयोग करूंगी।"
अलीबाबा ने अभी तक उसकी बर्खास्तगी पर कोई टिप्पणी नहीं की है।(आईएएनएस)
क्विटो, 13 दिसंबर| दक्षिणी इक्वाडोर के मोरोना सैंटियागो के अमेजोनियन प्रांत के सुकुआ कैंटन में एक यात्री बस दुर्घटना में कम से कम 18 लोगों की मौत हो गई और 25 अन्य घायल हो गए। एकीकृत सुरक्षा सेवा ईसीयू 911 ने यह जानकारी दी। एजेंसी ने रविवार को एक बयान में कहा कि दुर्घटना शनिवार रात हुंबी में हुई, जब मैकास-लोजा मार्ग को कवर करने वाली बस अपनी लेन पर पलट गई।
शवों को सुकुआ मुर्दाघर में स्थानांतरित कर दिया गया। नाबालिगों और वयस्कों सहित 25 घायलों को विभिन्न स्थानीय अस्पतालों में ले जाया गया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न राहत संस्थानों और अग्निशमन विभाग की बचाव इकाइयों के कर्मियों के साथ तत्काल सहायता शुरू कर दी गई है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 12 दिसम्बर | दक्षिणी अमेरिका के अरकंसास, इलिनोइस, केंटकी, मिसौरी और टेनेसी राज्यों सहित मिडवेस्ट में आए तूफान ने तबाही मचाई है, जिसमें दर्जनों लोगों के मारे जाने की आशंका है। इस तूफान में हजारों लोगों के घरों की बिजली चली गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने अमेरिका के एक प्रमुख मीडिया नेटवर्क का हवाला देते हुए बताया कि रात भर में कम से कम 30 बवंडर आए, जिसमें से केंटकी राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ।
केंटकी के गवर्नर एंडी बेशियर ने शनिवार की सुबह तूफान से हुए नुकसान और राज्य की प्रतिक्रिया पर एक ब्रीफिंग में कहा, "हमारा मानना है कि इस घटना से मरने वालों की संख्या बढ़कर 50 से ज्यादा हो जाएगी, शायद 70 से 100 लोगों की जान चली गई।"
बेशियर ने कहा, "यह केंटकी के इतिहास की सबसे कठिन रातों में से एक रही है। कुछ क्षेत्र इस तरह से प्रभावित हुए कि शब्दों में बयां करना मुश्किल है।"
राज्य में आए तूफानों को केंटकी के इतिहास में सबसे गंभीर बवंडर घटना करार देते हुए, बेशियर ने आपातकाल की आधिकारिक स्थिति घोषित कर दी है।
मीडिया नेटवर्क से बात करते हुए, आपातकालीन प्रबंधन के केंटकी निदेशक माइकल डोसेट ने अपने राज्य में बवंडर से हुई क्षति कोोज्य के इतिहास के सबसे काले दिनों में से एक के रूप में वर्णित किया।
डोसेट ने शनिवार को कहा, "यह सबसे महत्वपूर्ण, सबसे व्यापक आपदाओं में से एक होगा, जिसका केंटकी ने सामना किया है।"
डॉसेट ने कहा कि सभी संपत्तियां पश्चिमी केंटकी की ओर जा रही हैं, जो नेशनल गार्ड और घटना प्रबंधन टीमों सहित सबसे कठिन हिट क्षेत्रों में से एक है।
ब्लेंकशिप ने कहा कि आज सुबह मोनेट में दो और पास के शहर में एक की मौत हो गई।
शहर में बिजली भी नहीं है और ब्लेंकशिप ने कहा कि वह नहीं जानते कब वापस आएगी।
एडवर्डसविले, इलिनोइस में एक अमेजन गोदाम तूफान में आंशिक रूप से गिर गए।
शहर के पुलिस प्रमुख माइक फिलबैक ने शनिवार सुबह एक संवाददाता सम्मेलन में पुष्टि की है कि कम से कम दो लोग मारे गए हैं और बचाव के प्रयास पहले उत्तरदाताओं की सुरक्षा के लिए धीरे-धीरे चल रहे हैं। (आईएएनएस)
दार एस सलाम, 12 दिसम्बर | पूर्वी अफ्रीका के चार देशों तंजानिया, केन्या, युगांडा और रवांडा ने इस क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने के लिए हाथ मिलाया है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, नाइप फागियो की कार्यकारी निदेशक एना ले रोचा ने कहा कि चार देशों ने इस क्षेत्र में सिंगल-यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ विरोध करने के लिए सिंगल-यूज प्लास्टिक फ्री ईस्ट अफ्रीकन कम्युनिटी (ईएसी) अभियान शुरू करने का फैसला किया है।
नाइप फागियो एक किस्वाहिली नारा है जिसका मतलब 'मुझे झाड़ू दो' होता है।
यह एक पब्लिक एडवोकेसी संगठन है जो तंजानिया में सतत विकास को बढ़ावा देने और जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है।
ले रोचा ने कहा कि अभियान क्षेत्र में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के उत्पादन और प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने पर जोर देता है।
पूर्वी अफ्रीकी देशों ने एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें रवांडा एक महत्वपूर्ण सफलता का मामला है और केन्या में इसका पालन नहीं करने के लिए सबसे अधिक जुर्माना लगाया जाता है।
ले रोचा ने कहा, "ईएसी एक वैश्विक उदाहरण और दुनिया में पहला एकल-उपयोग प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र बन सकता है।" (आईएएनएस)