अंतरराष्ट्रीय
पेरिस में हो रही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक में पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग करने वाले देशों की सूची से हटाने पर चर्चा होनी है. पाकिस्तान को उम्मीद है कि इस बार संस्था उसे इस लिस्ट से हटाने का फैसला ले ही लेगी.
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की यह बैठक दो दिनों तक चलेगी. जून में ही संस्था ने "ज्यादा निगरानी" की जरूरत वाले देशों की 'ग्रे' सूची से पाकिस्तान को नहीं हटाने का फैसला किया था. उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में एक बार फिर पाकिस्तान की स्थिति की समीक्षा की जाएगी.
सितंबर में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बताया था कि संस्था की एक टीम ने पाकिस्तान का एक "सफल" दौरा किया था और पाकिस्तान अक्टूबर में मूल्यांकन प्रक्रिया के एक "तर्कसंगत अंत" की उम्मीद कर रहा है.
पाकिस्तान के लिए इसके क्या मायने हैं
पाकिस्तान को इस सूची में 2018 में "रणनीतिक आतंकवाद विरोधी फाइनेंसिंग संबंधी" कमियों के लिए डाला गया था. एफएटीएफ ने पाकिस्तान को एक व्यापक सुधार कार्यक्रम दिया था.
अगर अब इस सूची से पाकिस्तान को हटा दिया गया तो आवश्यक रूप से देश को प्रतिष्ठा मिलेगी और आतंकी फंडिंग के मोर्चे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सराहना.
अर्थशास्त्री और सिटीग्रुप के पूर्व बैंकर युसूफ नजर का मानना है कि इसका पाकिस्तान की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन इससे पाकिस्तान से संबंधित हर वैश्विक लेनदेन की जांच में जरूर कमी आएगी.
अनुपालन में असफलता और धन शोधन विरोधी उल्लंघनों के लिए दो बड़े पाकिस्तानी बैंकों एचबीएल और नेशनल बैंक ऑफ पाकिस्तान को 2017 में 22.5 करोड़ डॉलर और 2022 में 5.5 करोड़ डॉलर जुर्माना भरना पड़ा था.
सूची में डाले जाने के बाद मूडीज ने पाकिस्तान की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग भी कम कर दी थी. सूची से हटाए जाने से विदेशी निवेश के दृष्टिकोण से भी माहौल बदलेगा.
पाकिस्तान के लिए क्या है दांव पर
एफएटीएफ का कहना है कि "ग्रे" सूची में डाले जाने का मतलब वित्तीय संस्थानों द्वारा कोई अतिरिक्त मूल्यांकन नहीं होता है, लेकिन संस्था इस बात पर जोर जरूर देती है कि ऐसे देशों के साथ काम करने में इससे जुड़े जोखिम पर जरूर विचार कर लेना चाहिए.
एफएटीएफ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं को कह सकती है कि उल्लंघन करने वाले देशों के साथ सहयोग और उन देशों में अपनी गतिविधियां बंद कर दें. अगर किसी देश को "ग्रे" सूची से "ब्लैक" सूची या "ज्यादा जोखिम" वाली सूची में डाल दिया जाता है तो संस्था दूसरी सरकारों को इन देशों पर वित्तीय प्रतिबंध लगाने के लिए भी कह सकती है.
"ब्लैक लिस्ट" पर इस समय दो ही देश हैं: ईरान और उत्तर कोरिया. कुछ सालों पहले माना जा रहा रहा था कि पाकिस्तान भी "ब्लैक लिस्ट" में डाले जाने के करीब है.
सुधार कार्यक्रम में क्या था
सूची से हटा दिया जाना एक चार साल पुरानी सुधार प्रक्रिया का अंत होगा. इस प्रक्रिया के तहत पाकिस्तान की वित्तीय प्रणाली में गहरे बदलाव लाए गए, जिनमें विशेष रूप से धन शोधन और आतंकवादी के वित्त पोषण संबंधी कानून शामिल हैं.
एफएटीएफ में पाकिस्तान को 2018 में एक कार्य योजना दी थी. इसका उद्देश्य था कानून बना कर और कानूनी संस्थाओं और वित्तीय संस्थानों के बीच संयोजन का पुनर्गठन कर रणनीतिक आतंकवाद विरोधी फाइनेंसिंग संबंधी कमियों को संबोधित करना था.
एफएटीएफ का अब मानना है कि पाकिस्तान ने उसकी कार्य योजना में एक छोड़ कर सभी शर्तों को पूरा कर लिया है. बची शर्त है संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी संगठनों के उच्च नेताओं के खिलाफ जांच और अभियोजन साबित करना.
आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई
वॉशिंगटन स्थित विल्सन सेंटर थिंक टैंक के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगल्मैन ने कहा, "हाल ही के महीनों में जब पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा के दो सबसे बड़े आतंकवादी - हाफिज सईद और साजिद मीर के खिलाफ नई सजा का एलान किया था, इसी के बाद अंत में उसकी बात बन पाई. लश्कर एफएटीएफ के लिए सबसे महत्वपूर्ण आतंकी समूहों में से है."
इन दोनों पर भारत में हुए 2008 के मुंबई हमलों में शामिल होने का आरोप है. इन हमलों में 160 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
सीके/एए (रॉयटर्स)
निएंडरथाल के जेनेटिक स्टडी की बदौलत पहली बार वैज्ञानिकों ने उनके पूरे परिवार की तस्वीर बनाने में कामयाबी हासिल की है. इस परिवार में पिता, किशोरावस्था में बेटी और दूसरे रिश्तेदार हैं.
करीब 54000 साल पहले निएंडरथाल मानव का यह परिवार साइबेरिया की एक गुफा में रहता था. बुधवार को नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट निएंडरथाल समुदाय के सामाजिक जीवन के बारे में है. यह रिपोर्ट डीएनए सीक्वेंसिंग का इस्तेमाल कर बनाई गई है. रिपोर्ट बताती है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में गुफा से ज्यादा बाहर जाती थीं.
पुरानी पुरातात्विक खोजों ने दिखाया है कि निएंडरथाल मानव जितना सोचा गया था उससे कहीं ज्यादा उन्नत और कुशल था. वे लोग मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार करते थे और उनके हथियार और गहने काफी बेहतर थे. हालांकि उनके परिवार की संरचना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. यह भी नहीं पता था कि उनका समुदाय कैसे विकसित हुआ.
2010 में पहले निएंडरथाल जीनोम की सीक्वेंसिंग स्वांते पेबो ने तैयार की. पेबो को इस साल चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. उनकी खोज ने हजारों साल पहले लुप्त हो चुके इंसान के पूर्वजों के बारे में खोज करने का एक नया तरीका दिया है.
रिसर्चरों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दक्षिणी साइबेरिया के चागरिस्काया और ओकलादनिकोव की गुफाओं में मिले निएंडराथल जीवाश्मों पर फोकस किया है. जगह जगह फैले हड्डियों के टुकड़े पृथ्वी की एक ही परत में मिले थे. इससे पता चलता है कि निएंडरथाल एक ही समय में रहे थे.
निएंडरथाल परिवार
जर्मनी की माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट की इवोल्यूशनरी जेनेटिसिस्ट और रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखकों में एक श्टेफाने पेयरेग्ने ने बताया, "पहले तो हमें यह पता लगाना था कि हमारे पास कितने लोग (निएंडरथाल) हैं." टीम ने नई तकनीकों का इस्तेमाल कर हड्डियों के टुकड़ों से प्राचीन डीएनएन को अलग किया. डीएनए की सीक्वेंसिंग करने से यह पता चला कि कुल 13 निएंडरथाल थे. इनमें सात पुरुष और छह महिलाएं. समूह में शामिल पांच निएंडरथाल बच्चे थे. इनमें से 11चागरिस्काया गुफा में थे और उनमें कई एक ही परिवार के थे. इनमें एक बाप और उसकी किशोरी बेटी, एक बच्चा और उसकी रिश्तेदार और जो चचेरी बहन, चाची या फिर दादी भी हो सकती है.
रिसर्चरों ने पता लगाया है कि एक शख्स जो पिता रहा होगा उसकी मां की तरफ का भी कोई रिश्तेदार था. रिसर्चरों को उसमें हेट्रोप्लाज्मी जेनेटिक गुण मिला है जो कई पीढ़ियों के बाद एक से दूसरे में जाता है. माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के बेन्यामिन पेटर का कहना है, "हमारी स्टडी निएंडरथाल समुदाय कैसा दिखता होगा इसकी पुख्ता तस्वीर दिखा रही है. मेरे लिए अब निएंडरथाल काफी हद तक मानव है."
जेनेटिक विश्लेषण यह दिखाता है कि इस समूह के सदस्य आमतौर पर इंसानों और डेनिसोवैंस जैसे आदिमानवों के साथ सहवास नहीं करते थे. इन सब के जीवाश्म कुछ सौ किलोमीटर के दायरे में मिले हैं. हालांकि कुछ रिसर्च निएंडरथाल के होमो सेपियंस से सहवास की पुष्टि कर रहे हैं और इस बारे में हाल ही में पुख्ता जानकारी मिली है. इसके आधार पर यह भी कहा जा रहा है कि आधुनिक मानव की हर प्रजाति में कुछ हिस्सा निएंडरथाल का भी है.
पुरुष घर में महिलाएं बाहर
10-20 निएंडरथालों का जो समूह मिला है वह आपस में ही सहवास करके बच्चे पैदा करता था. उनके जीनों में ज्यादा विविधता नहीं मिली है. निएंडरथाल 430,000 से 40,000 साल पहले तक धरती पर मौजूद थे. इसका मतलब है कि यह समूह निएंडरथाल के खत्म होने से कुछ ही समय पहले के जीवों का है.
रिसर्च में समुदाय के स्तर पर निएंडरथाल के अंतःप्रजनन की तुलना की पहाड़ी गोरिल्लों के अंतःप्रजनन से की गई है. निएंडरथाल के अंतःप्रजनन की एक वजह यह भी है कि वो अलग थलग इलाकों में रहते थे.
रिसर्चरों ने देखा कि वाई क्रोमोसोम जो पिता से पुत्र में आते हैं, वो मां से आने वाले माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए की तुलना में कम असमान थे. इससे पता चलता है कि महिलाएं ज्यादा बाहर जाती थीं, निएंडरथाल के अलग अलग समूहों से मिलतीं और प्रजनन करती थीं, जबकि पुरुष ज्यादातर घर पर रहते थे.
फ्रांस की नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री से जुड़े वैज्ञानिक एंटोइन बाल्जे कहते हैं कि स्पेन की सिड्रोन गुफा में मिले नये जीवाश्म बताते हैं कि इसी तरह का एक निएंडरथाल समुदाय यहां भी था लेकिन उनके जेनेटिक मैटेरियल बहुत कम हैं.
एनआर/ओएसजे (एएफपी, डीपीए)
न्यूजीलैंड में गायों की डकार ने एक नयी तरह की समस्या पैदा कर दी है. इस पर सरकार की प्रस्तावित टैक्स योजना के खिलाफ किसान सड़कों पर उतर कर विरोध कर रहे हैं.
न्यूजीलैंड में पिछले सप्ताह सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने की योजना के तहत नया कृषि कर लगाने का प्रस्ताव रखा. किसानों को अपने पशुओं से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए टैक्स चुकाना पड़ेगा. सरकार की प्रस्तावित योजना के खिलाफ गुरुवार को देशभर में किसानों ने विरोध-प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी किसान सड़कों पर ट्रैक्टर और खेतों में इस्तेमाल होने गाड़ियों के काफिले के साथ सड़कों पर उतरे. वे सरकार से इस योजना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं.
2025 में न्यूजीलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाएगा जो कृषि क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन पर टैक्स लगाएगा. इसमें गायों और भेड़ों की डकारों से निकलने वाली मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन भी शामिल है. ये दोनों पर्यावरण के लिए एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस हैं.
क्या है सरकार की योजना?
न्यूजीलैंड में कृषि से सबसे ज्यादा लोग जुड़े हैं. देश की आबादी करीब 50 लाख है लेकिन इसकी तुलना में यहां एक करोड़ से ज्यादा गाय और भैंसें हैं और 2.6 करोड़ भेड़ें हैं. न्यूजीलैंड ने जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निपटने और 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी हासिल करने के लिए "दुनिया की पहली" ऐसी किसी योजना की घोषणा की. सरकार ने 2030 तक 2017 के अपने मीथेन उत्सर्जन स्तर में 10 फीसदी कमी का प्रण लिया है. लेकिन किसानों के विरोध ने सरकार के सामने संकट खड़ा कर दिया है. सरकार का कहना है कि वह बातचीत के जरिये इस मामले को सुलझाने में जुटी है.
क्या चाहते हैं किसान?
प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि इस योजना से उनके रोजगार को नुकसान पहुंचेगा और भोजन ज्यादा महंगा हो जाएगा. प्रदर्शन करने वाले किसानों के समूहों में से एक ग्राउंड्सवेल के ब्राइस मैकेंजी ने सरकारी प्रसारक रेडियो न्यूजीलैंड से बातचीत में योजना को "दंडात्मक" और "ग्रामीण समुदायों के लिए अस्तित्व का खतरा" कहा. न्यूजीलैंड हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों की संख्या आयोजकों की अपेक्षा से कम थी.
प्रधानमंत्री जसिंदा अर्डर्न ने तर्क दिया है कि अगर वे जलवायु-अनुकूल उत्पादों के लिए कीमतें बढ़ाती हैं तो योजना किसानों को फायदा पहुंचा सकती है. उन्होंने ऑकलैंड में संवाददाताओं से एक बातचीत में कहा, "हम अपने किसानों और खाद्य उत्पादकों से सबसे बेहतर संभावित तरीकों के बारे में बात कर रहे हैं."
ब्राइस मैकेंजी कहते हैं, "किसान सीधे-सीधे छूट की मांग नहीं कर रहे हैं...आइए काम करते हैं कि यह किसानों और देश दोनों के लिए बेहतर कैसे होगा, समस्या यह है कि अगर आप किसी ऐसी चीज के लिए जानबूझकर शुल्क लेते हैं जिसका असल में, आपके पास कोई समाधान नहीं है, तो यह एक टैक्स है.''
केके/एनआर (एएफपी/रॉयटर्स)
ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी की लिज ट्रस के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देने के बाद वहां की राजनीतिक उथल-पुथल में भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता भी फंस गया है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
भारत और ब्रिटेन इस कोशिश में लगे थे किदिवाली तक मुक्त व्यापार समझौता हो जाए. लेकिन ब्रिटेन में मची राजनीतिक उथल-पुथल ने ऐसी संभावनाओं पर पानी फेर दिया है. हालांकि दोनों देशों के अधिकारी इस समझौते पर बातचीत जारी रखे हुए हैं लेकिन भारत ने कहा है कि वह ‘इंतजार करेगा और देखेगा' कि ऊंट किस करवट बैठता है.
भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को लिज ट्रस के इस्तीफे के बाद कहा कि अब इंतजार करना होगा. गोयल ने कहा, "हमें देखना होगा कि अब क्या होता है. वे जल्दी से नेतृत्व में बदलाव करते हैं या फिर पूरी प्रक्रिया दोबारा होगी. देखते हैं कि सरकार में कौन आता है और उसके क्या विचार होंगे. उसके बाद ही हम ब्रिटेन के संबंध में कोई रणनीति बना पाएंगे.”
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने गुरुवार को पद से इस्तीफा दे दिया था. "वादे पूरे ना कर पाने के कारण' उन्होंने अपना पद मात्र छह हफ्ते में छोड़ दिया. ट्रस ने कहा कि उन्होने "भयंकर आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय अस्थिरता के वक्त कुर्सी संभाली” लेकिन वो अपने वादे पूरे नहीं कर पाईं जिनके दम पर वो सत्ता में आईं थीं.
‘सब सहमत हैं'
कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में गोयल ने कहा कि ब्रिटेन में राजनेताओं के बीच इस बात की सहमति है कि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करना उनके लिए भी "बहुत महत्वपूर्ण” है. उन्होंने कहा, "इसलिए मेरी समझ कहती है कि जो कोई भी सरकार में आए, हमारे साथ जुड़ना चाहेगा.”
गोयल ने कहा कि समझौता न्यायपूर्ण, संतुलित और बराबरी का होना चाहिए, जिसमें दोनों को फायदा हो. उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष संतुष्ट नहीं होंगे तो कोई समझौता नहीं होगा. गोयल ने कहा, "हम अभी इंतजार करो और देखो की नीति पर चलेंगे लेकिन मेरा मानना है कि यूके, कनाडा, यूरोपीय संघ और एक अन्य देश, जिसका नाम हम जल्दी ही घोषित कर सकते हैं, इन सबके साथ हमारे मुक्त व्यापार समझौते सही रास्ते पर हैं.”
पीयूष गोयल ने कहा कि भारत 2027 तक दो खरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य लेकर चल रहा है, "जो चुनौतीपूर्ण लगता है” और इसे "2030 तक हासिल किया जा सकता है.” उन्होंने कहा कि अगर हालात भारत के पक्ष में हों और उद्योग अतिरिक्त कोशिश करें तो "अगर हम इसे 2027 तक कर पाएं तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी” लेकिन कोविड के कारण काफी वक्त जाया हो गया और यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण भी दिक्कतें आ रही हैं.
भारत की दिक्कतें
भारत को दूसरे देशों के साथ समझौते में सबसे ज्यादा दिक्कत एमआरए यानी ‘परस्पर मान्यता समझौता' (म्यूच्यूअल रिकग्निशन एग्रीमेंट) करने में आ रही है. एमआरए के तहत दोनों देश एक दूसरे के सामान की गुणवत्ता को मान्यता देते हैं और उनके एक-दूसरे के बाजार में पहुंचना आसान हो जाता है. इससे चीजों को बार-बार क्वॉलिटी चेक से नहीं गुजरना पड़ता और आवाजाही में कम समय व धन खर्च होता है.
गोयल ने कहा कि कई देश भारत के साथ एमआरए करने में झिझक रहे हैं. उन्होंने कहा, "पता नहीं कयों, कम से कम विकसित दुनिया बहुत ज्यादा एमआरए स्वीकार करने में बहुत ज्यादा झिझक रहे हैं. शायद उन्हें हमारी चीजों और सेवाओं की गुणवत्ता पर भरोसा करने के लिए ज्यादा वक्त चाहिए.”
वाणिज्य मंत्री को लगता है कि इसका हल अन्य देशों के सामानों पर शर्तें लगाकर हो सकता है. उन्होंने कहा कि भारत को भी उन चीजों पर क्वॉलिटी कंट्रोल लगाना चाहिए, जिसे वे भेजना चाहते हैं और फिर "हम बराबरी पर आ जाएंगे, जहां हम कहेंगे कि तुम हमें एमआरए दो, हम तुम्हें एमआरए देंगे.” हालांकि उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि सरकार को भारतीय उद्योगों से भी समर्थन नहीं मिल रहा है क्योंकि वे भी क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर पर सहमत नहीं हैं.
गोयल ने मौजूद उद्योगपतियों से कहा, "मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि इस पर विचार करें. हमें बताएं कि किन उद्योगों में आपको क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर चाहिए. इससे हमें दूसरे देशों के साथ मोलभाव करने में थोड़ा फायदा मिलेगा.” उन्होंने कहा कि अमेरिका ने 4,500 क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर लगा रखे हैं, जबकि भारत ने सिर्फ 450. (dw.com)
अगर एयर कंडिशनर खराब ना होता, तो टॉम बॉलिंग की मछलियों के प्रजनन की कोशिश कामयाब ही ना हो पाती. आठ महीने से वह जिस कोशिश में लगे थे, उसे एक खराब एयर कंडिशनर ने कामयाब करा दिया.
इंडोनेशिया के पलाऊ में रहने वाले टॉम बॉलिंग एक शौक के लिए पाली जाने वालीं सुंदर मछलियों के ब्रीडर हैं. वह अपनी गुलाबी और पीली मछली की ब्रीडिंग की कोशिश में कामयाब हो गए हैं. बॉलिंग ने इन मछलियों को ठंडे पानी में रखा था क्योंकि वह उनके कुदरती पानी के तापमान को उपलब्ध कराना चाह रहे थे.
ये मछलियां चूंकि गहरे समुद्र में रहती हैं, इसलिए बॉलिंग चाहते थे, उनके एक्वेरियम में पानी उतना ही ठंडा हो, जितना समुद्र की गहराई में रहता है. इसलिए उन्होंने एसी भी लगाया था. एक दिन एसी खराब हो गया तो नतीजे हैरतअंगेज निकले. पानी का तापमान रातभर में कुछ डिग्री बढ़ गया. बॉलिंग बताते हैं, "मछलियां तो जैसे पगला गई थीं. वे इधर-उधर, सब जगह अंडे देने लगीं.”
एक्वेरियम में इन मछलियों का प्रजनन कराने की कोशिशें दुनियाभर में होती हैं. विशेषज्ञ तरह-तरह की कोशिशें करते हैं ताकि मछलियों को वही परिस्थितियां दे सकें, जो उन्हें कुदरती तौर पर समुद्र की गहराई में मिलती हैं. वे लाइट लगाने से लेकर खाने के महीन टुकड़े डालने तक तमाम तरह की कोशिशें करते हैं लेकिन पानी के सही तापमान को हासिल करना एक चुनौती ही रहती है.
क्यों हो रही है एक्वेरियम ब्रीडिंग की कोशिश
इन मछलियों को एक्वेरियम में तैयार करने की कोशिश इसलिए की जा रही है, ताकि इन्हें समुद्र से ना पकड़ा जाए. इन सुंदर मछलियों को समुद्र की गहराई से पकड़ने के लिए शिकारी जहरीले रसायनों का इस्तेमाल करते हैं, जो कोरल के लिए नुकसानदायक होते हैं.
अमेरिका, यूरोप, चीन और दुनिया के अन्य हिस्सों में पाई जानें वालीं ये सुंदर चमकीली मछलियां ज्यादातर फिलीपींस, इंडोनेशिया और अन्य भूमध्यरेखीय देशों के कोरल रीफ से पकड़ी जाती हैं. पकड़ने वाले साइनाइड जैसे रसायनों से उन्हें बेहोश करते हैं और जाल में फांस लेते हैं. फिर उन्हें दलालों को बेच दिया जाता है, जो उन्हें पूरी दुनिया में सप्लाई करते हैं. इस तरह ये मछलियां लोगों के घरों में स्थित छोटे बड़े एक्वेरियम में पहुंच जाती हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि बड़ी तादाद में मछलियां रास्ते में ही मर जाती हैं.
प्रजनन के क्षेत्र में एक बड़ी समस्या यह है कि नमकीन पानी के एक्वेरियम में रखी जाने वालीं करीब 4 फीसदी मछलियां ही ऐसे माहौल में प्रजनन करती हैं. इसकी वजह है उनकी रहस्यमयी प्रजनन प्रक्रिया और वे परिस्थितियां जिनमें ये मछलियां अंडे देती हैं. वैज्ञानिक और ब्रीडर दोनों ही इन परिस्थितियों की सटीकता को हासिल करने में संघर्ष कर रहे हैं.
यह संघर्ष दशकों से जारी है और कोरल रीफ एक्वेरियम फिशरीज कैंपेन के प्रमुख पॉल एंडरसन कहते हैं कि सफलता आसानी से नहीं मिलती. वह कहते हैं, "नई मछलियों को प्रजनन के बाद बाजार में लाने के लिए सालों तक निवेश, शोध और विकास करना पड़ता है. कई बार तो छोटे-छोटे कदमों के लिए भी.”
बहुत मुश्किल है पहला चरण
ये परिस्थितियां हासिल करना बहुत ही मुश्किल हो सकता है. मसलन, काली-पीली धारीदार मछली को प्रजनन के लिए बहुत बड़ी जगह की जरूरत होती है जबकि हरी मैंडरीन मछली सूर्यास्त से ठीक पहले प्रजनन करती है, तो उस वक्त जैसे रोशनी एक्वेरियम में तैयार करनी पड़ती है. और जैसा कि बॉलिंग को एक दुर्घटना से पता चला, पीली-गुलाबी एंथियास को एक खास तापमान की जरूरत होती है.
एंडरसन कहते हैं, "आपको बहुत ज्यादा ध्यान देना होता है, वे सारे हालात पैदा करने के लिए, जो मछली को खुश करेंगे. कुछ प्रजातियां इन परिस्थितियों को लेकर बहुत ज्यादा नाजुक और संवेदनशील होती हैं.”
एक बार जब मछलियां अंडे दे देती हैं, उसके बाद की प्रक्रिया भी खासी चुनौतीपूर्ण होती है जब लारवा तैयार होता है. तब पानी का बहाव एकदम सटीक होना चाहिए क्योंकि वे इतने नाजुक होते हैं कि तेज बहाव उन्हें खत्म कर सकता है. इसलिए विशेष फिल्टर लगाए जाते हैं और कई बार तो एक्वेरियम की दीवारें भी बदली जाती हैं.
अमेरिका के रोड आइलैंड की रॉजर विलियम्स यूनिवर्सिटी में मरीन बायोलॉजी पढ़ाने वाले प्रोफेसर एंड्रयू राइन कहते हैं शुरुआती दौर बहुत महत्वपूर्ण होता है, तब लारवा की आंखें और मुंह तक नहीं होता. वह बताते हैं, "जब उनके आंखें और मुंह बनते हैं तो सही माहौल होना बहुत जरूरी होता है. तब उन्हें पहली बार खाना मिलता है ताकि वे मजबूत हो सकें और बढ़ना जारी रख सकें. यह सब किसी जादू जैसा है.”
राइन कहते हैं कि जरूरी नहीं कि एक्वेरियम में तैयार मछली बाजार में पहुंच ही जाएगी और बिक ही जाएगी. वह कहते हैं कि एक्वेरियम में मछली तैयार करना ज्यादा मंहगा पड़ता है और ग्राहक को इस बात के लिए मनाने में अभी समय लगेगा कि इस तरह से तैयार मछली के लिए ज्यादा दाम दें.
वीके/एए (एपी)
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.
उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट के सामने संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि जिस मैन्डेट के तहत उनका चुनाव हुआ था उसे वो पूरा नहीं कर सकेंगी.
उन्होंने कहा कि जिस दौर में उनका चुनाव प्रधानमंत्री के पद पर हुआ वो "आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अस्थिरता का दौर" था.
उन्होंने कहा, "मैं मानती हूं कि जिस तरह की स्थिति है उसमें कंज़र्वेटिव पार्टी ने जिस मैन्डेट के तहत मेरा चुनाव किया था, उसे मैं पूरा नहीं कर सकूंगी."
उन्होंने कहा कि उन्होंने किंग चार्ल्स III से बात कर उन्हें इस बात की जानकारी दी है कि कंज़र्वेटिव पार्टी के प्रमुख के तौर पर वो इस्तीफ़ा दे रही हैं.
लिज़ ट्रस ने ये भी कहा कि उन्होंने गुरुवार को 1922 कमिटी के चेयरमैन सर ग्राहम ब्रैडी से मुलाक़ात की है.
उन्होंने कहा कि दोनों में इस बात की सहमति बनी है कि पार्टी नेता का चुनाव अगले सप्ताह होगा और जब तक उनका उत्तराधिकारी नहीं चुना जाता, वो बतौर कार्यकारी प्रधानमंत्री, पद पर बनी रहेंगी.
लिज़ ट्रस ने 44 दिन पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के तौर पर सत्ता संभाली थी. पद से हटने के बाद वो सबसे कम समय तक सत्ता संभालने वाली ब्रितानी प्रधानमंत्री बन जाएंगी.
पार्टी नेता चुने जाने के बाद उन्होंने जो भाषण दिया उसका अंत करते हुए उन्होंने कहा, "वी विल डेलीवर, वी विल डेलीवर, वी विल डेलीवर" यानी वो वादे पूरे करेंगी.
साथ ही उन्होंने कहा कि 2024 के आम चुनावों में उनकी पार्टी लेबर पार्टी को परास्त करेगी.
लिज़ ट्रस के एलान के बाद लेबर पार्टी के नेता सर कीर स्टर्मर ने तुरंत आम चुनाव कराने की मांग की है.
लिज़ ट्रस का इस्तीफ़ा गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन के पद छोड़ने और कंज़र्वेटिव पार्टी के सांसदों के बग़ावत के बाद हुआ है.
लिज़ ट्रस का कार्यकाल: 08 सितंबर 2022 से 20 अक्टूबर 2022
05 सितंबर 2022: ऋषि सुनक को हराकर लिज़ ट्रस कंज़र्वेटिव पार्टी की नेता बनीं. ट्रस को 81,326 वोट मिले जबकि सुनक को 60,399 वोट मिले.
06 सितंबर 2022: लिज़ ट्रस ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. दो दिन बाद ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिज़ाबेथ द्वितीय का 96 साल की उम्र में निधन हो गया.
23 सितंबर 2022: चांसलर क्वाज़ी क्वार्टेंग ने 'मिनी बजट' की घोषणा की जिसमें 45 अरब की टैक्स कटौती के बारे में कहा गया था. इससे बाज़ार में अस्थिरता फैलने लगी.
26 सितंबर 2022: 'मिनी बजट' पेश होने के बाद यूके के बाज़ार पर भरोसा कम होने का नतीजा ये हुआ कि डॉलर के मुक़ाबले पाउंड अपने न्यूनतम स्तर तक पहुंच गया.
03 अक्तूबर 2022: ट्रस और क्वार्टेग ने यू-टर्न लेते हुए इनकम टैक्स की ऊंची दर का फ़ैसला पलटा.
14 अक्तूबर 2022: ट्रस ने क्वार्टेग को बर्खास्त कर टैक्स में कटौती का समर्थन करने वाले जेरेमी हंट को देश का वित्त मंत्री बनाया.
19 अक्टूबर2022:ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने इस्तीफ़ा दिया. उन्होंने अपने इस्तीफ़े का कारण नई सरकार के कामकाज़ के तरीक़ों को बताया और कहा कि ये सरकार जिस दिशा में जा रही है उसे लेकर वो चिंतित हैं.
20 अक्तूबर 2022: ट्रस ने पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद अब चार साल में चौथी बार चुना जाएगा कंज़र्वेटिव पार्टी का नेता.
लिज़ ट्रस के इस्तीफ़े के बाद फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि ये बेहद ज़रूरी है कि यूके में जल्द से जल्द स्थायित्व आए.
यूरोपीय संघ की बैठक के लिए ब्रसेल्स पहुंचे मैक्रों ने कहा "अभी सबसे ज़रूरी है स्थायित्व, हालांकि निजी तौर पर मैं अपने सहयोगी को जाता देख रहा हूं."
पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के बाद लिज़ ट्रस 6 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री बनी थीं. लेकिन 44 दिनों के बाद उन्होंने ये कहते हुए पद से इस्तीफ़ा दे दिया कि जिस मैन्डेट के तहत उनका चुनाव हुआ था वो उसे पूरा नहीं कर सकेंगी.
इससे पहले सबसे कम वक्त के लिए प्रधानमंत्री जॉर्ज कैनिंग थे जो कुल 119 दिनों के लिए इस पद पर रहे थे. 1827 में प्रधानमंत्री रहते हुए उनका देहांत हो गया था.
पहले दिन से बढ़ गई थी मुसीबतें
उनके समर्थन के साथ वित्त मंत्री क्वाज़ी क्वार्टेंग ने 'मिनी बजट' की घोषणा की जिसमें 45 अरब की टैक्स कटौती के बारे में कहा गया था. लेकिन इस कारण बड़े पैमाने पर आर्थिक परेशानियां बढ़ने का आरोप लगाया गया.
इसके बावजूद लिज़ ट्रस ने कहा कि वक्त को देखते हुए "ये सही क़दम था". उनके उठाए क़दमों में से लगभग सभी को पलट दिया गया और क्वार्टेंग को बर्ख़ास्त कर जेरेमी हंट को देश का वित्त मंत्री बनाया गया.
लिज़ ट्रस की पार्टी के मंत्रियों ने की आलोचना
लिज़ ट्रस की की पार्टी के कई नेताओं ने खुलकर उनकी आलोचना की और कहा कि उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.
ट्रस सरकार में गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने ये कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि नई सरकार जिस दिशा में जा रही है उसे लेकर वो चिंतित हैं.
सरकार चलाने के लिए ट्रस को अपने पूर्व प्रतिद्विंदी रहे ग्रांट शैप्स और जेरेमी हंट की मदद लेनी पड़ी.
क्वीन एलिज़ाबेथ द्वितीय द्वारा नियुक्त की गई आख़िरी पीएम
लिज़ ट्रस ब्रिटेन की महरानी क्वीन एलिज़ाबबेथ द्वितीय द्वारा नियुक्त की गई आख़िरी प्रधानमंत्री थीं. ट्रस के पद की शपथ लेने के दो दिन बाद महारानी का निधन हो गया था और पूरे देश में 10 दिन का शोक मनाया गया.
इसके बाद लिज़ ट्रस ने देश के नए सम्राट किंग चार्ल्स तृतीय के सामने भी शपथ ली थी.
अगले सप्ताह कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता के लिए चुनाव होने हैं. ट्रस का कहना है कि जब तक नया नेता नहीं चुन लिया जाता वो कार्यकारी प्रधानमंत्री के पद पर बनी रहेंगी.
अब कयास ये लगाए जा रहे हैं कि उनके बाद उनके प्रतिद्विंदी रहे ऋषि सुनक पीएम पद के दावेदार हो सकते हैं. पेनी मरडॉट और रक्षा मंत्री रहे बेन वॉलेस के नाम पर भी कयास लगाए जा रहे हैं.
ये भी माना जा रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन एक बार फिर इस पद के दावेदार हो सकते हैं. जेरेमी हंट पहले ही ख़ुद को इस मुक़ाबले से दूर कर चुके हैं.
कौन हैं लिज़ ट्रस?
मेरी एलिज़ाबेथ ट्रस का जन्म 1975 में ऑक्सफ़ोर्ड में हुआ था. उनके पिता गणितज्ञ और मां नर्स थीं. ट्रस के मुताबिक़ वो 'वामपंथी' थे.
जब ट्रस पांच साल की थीं, तब उनका परिवार ग्लासगो के पास पैसले में शिफ़्ट हो गया.
बाद में उनका परिवार लीड्स चला गया जहां उन्होंने राउंडहे सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. उनके मुताबिक़ इस दौरान उन्होंने "फ़ेल होते और उम्मीदों के तले दबे बच्चों को देखा है."
सात साल की उम्र में लिज़ ट्रस ने अपने स्कूल में एक मॉक इलेक्शन के दौरान ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर का किरदार निभाया था.
ट्रस ने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में फ़िलॉसफ़ी, राजनीति और अर्थशास्त्री की पढ़ाई की और वो छात्र राजनीति में काफ़ी सक्रिय थीं. शुरुआत में वो लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में थीं.
ऑक्सफ़ोर्ड में ही वो कंज़र्वेटिव पार्टी से जुड़ीं. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने शेल और केबल एंड वायरलेस कंपनियों में बतौर आकाउंटेंट काम किया और अपने सहकर्मी ह्यूग ओ लैरी से साल 2000 में शादी की. दोनों के दो बच्चे हैं.
ट्रस साल 2001 में वेस्ट यॉर्कशायर के हेम्सवर्थ से पार्टी की उम्मीदवार बनीं, लेकिन चुनाव हार गईं. इसके बाद वेस्ट यॉर्कशायर के ही कैल्डर वैली से वो 2005 में चुनाव हार गईं.
लेकिन उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं कम नहीं हुईं. वो 2006 में ग्रीनिच से काउंसलर चुनी गईं.
सास 2012 में सांसद बनने के सिर्फ़ चार साल बाद वो सरकार में शिक्षा मंत्री बन गईं और 2014 में पर्यावरण मंत्री बन गईं.
टेरीज़ा मे के कार्यकाल में वो कानून मंत्री रहीं. जब बोरिस जॉनसन 2019 में प्रधानमंत्री बने तो ट्रस को अंतरराष्ट्रीय व्यापार का मंत्री बनाया गया. (bbc.com/hindi)
लिज़ ट्रस सिर्फ़ 45 दिनों के लिए प्रधानमंत्री के पद पर रहीं. ये ब्रिटेन में किसी भी प्रधानमंत्री का सबसे छोटा कार्यकाल है.
इस लिस्ट में दूसरा नाम प्रधानमंत्री जॉर्ज कैनिंग का है. वे प्रधानमंत्री के पद पर महज़ 119 दिन रहे थे. उनका निधन साल 1827 में हुआ था.
लिज़ ट्रस के लिए मुश्किलों का दौर तब शुरू हुआ जब वित्त मंत्री क्वाज़ी क्वार्टेंग ने 23 सितंबर को मिनी बजट पेश किया था. इस बजट ने वित्तीय बाजारों में हलचल पैदा कर दी थी.
इससे पहले लिज़ ट्रस को प्रधानमंत्री पद से हटाने की मुहिम शुरू हुई थी और कई सांसदों ने खुलकर उनका इस्तीफ़ा मांगा था.
बुधवार रात ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था.
ब्रितानी प्रधानमंत्री ऑफिस में लिज़ ट्रस के छह हफ़्ते कैसे बीते?
ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. वे सिर्फ़ 45 दिनों के लिए ही इस पद पर रहीं.
प्रधानमंत्री दफ़्तर में लिज़ ट्रस के छह हफ़्ते कैसे बीते..
5 सितंबर
कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्यों ने लिज़ ट्रस को पार्टी के नेता के रूप में चुना, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी ऋषि सुनक हार गए. ब्रिटेन में जो पार्टी नेता चुना जाता है, वही प्रधानमंत्री बनता है.
8 सितंबर
ट्रस के प्रधानमंत्री बनने के दो दिन बाद ही ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का निधन हो गया.
23 सितंबर
वित्त मंत्री क्वाज़ी क्वार्टेंग ने मिनी-बजट की घोषणा की. इसमें 45 अरब डॉलर की कर कटौती शामिल थी. इस बजट ने बाज़ार में अनिश्चितता पैदा कर दी.
26 सितंबर
डॉलर के मुकाबले पाउंड अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया.
3 अक्टूबर
प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस और वित्त मंत्री क्वाज़ी क्वार्टेंग ने इनकम टैक्स की उच्चतम दर में कटौती का फैसला पलट दिया.
14 अक्टूबर
लिज़ ट्रस ने वित्त मंत्री क्वाज़ी क्वार्टेंग को बर्ख़ास्त कर दिया. उनकी जगह जेरेमी हंट ने ली. जेरेमी हंट ने क्वाज़ी क्वार्टेंग के सभी फैसले पलट दिए.
19 अक्टूबर
ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने इस्तीफ़ा दिया.
20 अक्टूबर
लिज़ ट्रस ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया.
(अदिति खन्ना)
लंदन, 20 अक्टूबर। भारतीय मूल के एक जाने-माने ब्रितानी टेलीविजन पत्रकार ने ब्रिटेन के एक मंत्री से साक्षात्कार के दौरान तीखी बहस के बाद उनके खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने पर माफी मांगी।
कृष्णन गुरु-मूर्ति अपने ‘चैनल 4’ कार्यक्रम के लिए सांसद स्टीव बेकर से बुधवार शाम को साक्षात्कार के दौरान सुएला ब्रेवरमैन के गृह मंत्री पद से इस्तीफा देने को लेकर सवाल कर रहे थे, तभी यह घटना हुई।
उन्होंने साक्षात्कार के बाद बेकर के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया। इसका प्रसारण नहीं किया गया लेकिन बाद में इस घटना का वीडियो ऑनलाइन उपलब्ध हो गया।
क्लिप के वायरल होने के बाद गुरु-मूर्ति ने ट्वीट किया कि उन्होंने स्टीव बेकर के साथ साक्षात्कार के बाद प्रसारण बंद होने पर उनके लिए अपशब्द का इस्तेमाल किया।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि यह शब्द प्रसारित नहीं हुआ, लेकिन यह उन मानकों से नीचे है, जो मैंने अपने लिए तय किए हैं और मैं दिल से माफी मांगता हूं। मैंने स्टीव बेकर से माफी मांगने के लिए उनसे बात की है।’’
बेकर ने गुरु-मूर्ति द्वारा माफी मांगे जाने को सराहा।
भारतीय मूल की ब्रिटिश गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने लंदन में मंत्रिस्तरीय संचार के लिए अपने निजी ई-मेल का इस्तेमाल करने की ‘‘गलती’’ के बाद बुधवार को पद से इस्तीफा दे दिया था। ब्रेवरमैन के इस्तीफा देने के एक दिन बाद ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने भी पद संभालने के महज 45 दिन बाद बृहस्पतिवार को इस्तीफा दे दिया। (भाषा)
ब्रिटेन में कंज़र्वेटिव पार्टी की एक और सांसद शेरिल मरे ने सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस के इस्तीफे की मांग की है.
उन्होंने कहा कि लिज़ ट्र्स की स्थिति अब ऐसी नहीं है कि वो प्रधानमंत्री बनी रहें.
शेरिल मरे, उस समूह में शामिल हो गई हैं जो पिछले कुछ समय से लिज़ ट्रस ने उनका इस्तीफ़ा मांग रहा है.
उन्होंने 1922 समिति के अध्यक्ष ग्राहम ब्रैडी को एक पत्र भेजा है. पत्र में कहा गया है कि कल रात जो कुछ हुआ है उसके बाद लिज़ ट्रस की स्थिति अस्थिर हो गई है और उन्हें अब अपनी प्रधानमंत्री में विश्वास नहीं बचा है.
गृह मंत्री का इस्तीफ़ा
बुधवार रात ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था. उनकी जगह पूर्व परिवहन मंत्री ग्रांट शाप्स को गृह मंत्री बनाया गया है.
भारतीय मूल की सुएला ब्रेवरमैन ने सितंबर महीने में ही ये पद संभाला था.
उन्होंने अपने इस्तीफ़े का कारण नई सरकार के कामकाज़ के तरीक़ों को बताया और कहा है कि ये सरकार जिस दिशा में जा रही है उसे लेकर वो चिंतित हैं.
प्रवासियों पर उदार नीति की आलोचक रहीं ब्रेवरमैन ने ये भी कहा है कि नई सरकार मतदाताओं से किए वादे भी पूरे नहीं कर रही, जैसे प्रवासियों की संख्या कम करना और अवैध प्रवास पर रोक लगाना. (bbc.com/hindi)
अमेरिका, 20 अक्टूबर । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मानहानि से जुड़े मामले में अपना बयान दर्ज कराया. ये केस पर उनपर ई जीन कैरल ने दर्ज कराया था.
कैरल ने डोनाल्ड ट्रंप पर बलात्कार का आरोप लगाया था. लेकिन ट्रंप ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि कैरल झूठ बोल रही हैं. इसके बाद कैरल ने उन पर मानहानि का मामला दर्ज कराया था.
ई जीन कैरल ने आरोप लगाया था कि ट्रंप ने उनके साथ 1990 के दशक में न्यूयॉर्क के एक लग्ज़री डिपार्टमेंट स्टोर के ड्रेसिंग रूम में बलात्कार किया.
जीन कैरल के वकील ने अभी तक ट्रंप के बयान से जुड़ी जानकारी साझा नहीं की है, लेकिन उन्होंने बताया कि बुधवार को ट्रंप ने अपना बयान दर्ज कराया है.
डोनाल्ड ट्रंप की वकील अलीना हबा ने एक बयान में इस केस को अपने मुवक्किल के ख़िलाफ़ राजनीतिक साज़िश बताया है.
हालांकि, अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि ट्रंप ने अपने बयान में क्या कहा और वो व्यक्तिगत तौर पर अदालत में पेश हुए या उन्होंने वर्चुअली अपनी बयान दर्ज कराया.
सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ट्रंप ने फ़्लोरिडा स्थित अपने घर से बयान दर्ज कराया है.
क्या है मामला?
न्यूयॉर्क मैग़ज़ीन में ई जीन कैरल ने साल 2019 में एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने 1995 में ट्रंप से हुई पहली बार मुलाक़ात के बारे में बताया. दोनों एक डिपार्टमेंट स्टोर में मिले.
जीन कैरल के मुताबिक, वो ट्रंप को गिफ़्ट लेने में मदद कर रही थीं और इसी दौरान वो एक ड्रेसिंग रूम तक चले गए, जहाँ ट्रंप ने कथित तौर पर उनसे बलात्कार किया. उस समय जीन की उम्र 52 साल और ट्रंप 50 साल के थे. उस समय ट्रंप मार्ला मेपल्स के साथ शादीशुदा थे.
हालाँकि, ट्रंप ने इन आरोपों को ये कहते हुए ख़ारिज किया कि कैरल अपनी लिखी क़िताब की बिक्री बढ़ाने के लिए झूठ बोल रही हैं. इसके बाद कैरल ने ट्रंप पर मानहानि का केस दर्ज किया. उस समय ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे. (bbc.com/hindi)
अमेरिका, 20 अक्टूबर । अमेरिका ने कहा है कि वो पुलित्जऱ पुरस्कार विजेता कश्मीरी फोटो जर्नलिस्ट सना इरशाद मट्टू को कथित तौर पर न्यूयॉर्क की यात्रा करने से रोकने की खबरों से अवगत है।
मट्टू ने बीते मंगलवार ये कहा था कि वो अपना पुलित्जर पुरस्कार लेने अमेरिका जा रही थीं, लेकिन उन्हें दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर रोक दिया गया।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने नियमित प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा, हम इन खबरों से अवगत हैं कि सना इरशाद मट्टू को अमेरिका की यात्रा करने से रोका जा रहा है और हम इन घटनाओं पर करीब से नजर रख रहे हैं।
उन्होंने कहा, हम प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और जैसा कि विदेश मंत्री ने उल्लेख किया है, प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक साझा प्रतिबद्धता, अमेरिका-भारत संबंधों का आधार है।
लेकिन मेरे पास कुछ और बताने के लिए नहीं है। हम इस मामले पर नजर रख रहे हैं। सना इरशाद मट्टू फ्ऱीलांस फ़ोटोजर्नलिस्ट हैं। वो समाचार एजेंसी रॉयटर्स की उस टीम का हिस्सा थीं, जिसे भारत में कोरोना महामारी की कवरेज के लिए पुलित्जऱ पुरस्कार दिया गया है। सना इरशाद मट्टू ने दूसरी बार विदेश यात्रा से रोके जाने का दावा किया है। (bbc.com/hindi)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 20 अक्टूबर। अमेरिका में महत्वपूर्ण मध्यावधि चुनाव से पहले राष्ट्रपति जो बाइडन ने गैस की कीमतों को कम करने के लिए कई उपायों की घोषणा की है। गैस कीमतों में वृद्धि से मध्यम वर्ग प्रभावित हो रहा है।
बाइडन ने एक प्रमुख नीतिगत संबोधन में दोहराया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अमेरिका में ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा, ‘‘जब गैस की कीमत बढ़ती है, तो अन्य खर्चे कम हो जाते हैं। इसलिए मैं गैस की कीमतों को कम करने के लिए अपने स्तर पर हर संभव प्रयास कर रहा हूं क्योंकि पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण के कारण इनकी कीमतों में तेजी आई और अंतरराष्ट्रीय तेल बाजारों में हलचल मच गई।’’
बाइडन ने कहा कि ऊर्जा विभाग सामरिक पेट्रोलियम भंडार से एक बार और 1.5 करोड़ बैरल जारी करेगा, जो दिसंबर के महीने के लिए पहले घोषित तेल की आपूर्ति से अधिक होगा।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्र विश्लेषकों ने पुष्टि की है कि अब तक तेल भंडार में कमी ने तेल की कीमतों को नीचे लाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। इसलिए, हम उस राष्ट्रीय संपत्ति का जिम्मेदारी से उपयोग करना जारी रखेंगे।
अभी, सामरिक पेट्रोलियम भंडार लगभग 40 करोड़ बैरल तेल के साथ आधे से अधिक भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि यह किसी भी आपात स्थिति के लिए पर्याप्त से अधिक है।
उन्होंने कहा, ‘‘आज की मेरी घोषणा के साथ हम ऐसे समय में बाजारों को स्थिर करना और कीमतों में कमी करना जारी रखेंगे, जब अन्य देशों की कार्रवाइयों ने इस तरह की अस्थिरता पैदा की है।’’
उन्होंने कहा कि अमेरिका को बिना देरी किए या स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव को टाले बिना, पूरी जिम्मेदारी से तेल उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके प्रशासन ने तेल उत्पादन को रोका या धीमा नहीं किया है। (भाषा)
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में बुधवार को सबसे बड़ी मस्जिद का गुंबद भीषण आग लगने के कारण गिर गया.
जकार्ता के मीडिया में छपी ख़बरों के अनुसार, ये हादसा उत्तरी जकार्ता के जामी मस्जिद में बुधवार दोपहर स्थानीय समयानुसार करीब तीन बजे हुआ. मस्जिद में मरम्मत का काम चल रहा था.
जकार्ता ग्लोब की ख़बर के अनुसार, ये मस्जिद इस्लामिक स्टडीज़ और डिवेलेपमेंट से जुड़े थिंक टैंक जकार्ता इस्लामिक सेंटर के परिसर में बनी हुई है.
सोशल मीडिया पर इस शेयर हो रहे इस हादसे के वीडियो में गुंबद के गिरते ही चारों ओर धुएं का गुबार दिख रहा है. आग बुझाने के लिए दमकल की 10 गाड़ियों को मौक़े पर पहुंची थी.(bbc.com/hindi)
चीन ने पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी शाहिद महमूद को वैश्विक आतंकवादी की लिस्ट में शामिल कराने के भारत और अमेरिका के प्रस्ताव को यूएन में रोक दिया है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में किसी आतंकवादी को प्रतिबंधित सूची में डालने की कोशिश को चार महीनों के अंदर चौथी बार बाधित किया है. लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी शाहिद महमूद को वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध कराने के प्रस्ताव को भारत और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किया था. यह चौथी बार है जब चीन ने किसी आतंकी को वैश्विक सूची में डालने से इनकार किया है.
चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की "1267 अल कायदा प्रतिबंध समिति" के तहत शाहिद महमूद को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करने के भारत और अमेरिका के प्रस्ताव को बाधित किया है. अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने साल 2016 में शाहिद महमूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया था.
आतंकियों के बचाव में चीन?
यह पहला मौका नहीं है जब चीन ने किसी पाकिस्तानी आतंकी का अंतरराष्ट्रीय मंच पर बचाव किया हो. चीन ने इससे पहले पाकिस्तान के आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आईएसआईएस और अल कायदा प्रतिबंध समिति के तहत लाए गए भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रस्ताव पर वीटो लगा दिया था. अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता तो मक्की को यूएन की वैश्विक आतंकी सूची में डाला जा सकता था.
अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकी घोषित करने पर चीन का अड़ंगा
अगस्त महीने में भी चीन ने जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर के भाई अब्दुल रऊफ अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर वीटो कर दिया था. यह प्रस्ताव भी अमेरिका और भारत सुरक्षा परिषद में लेकर आए थे. मसूद अजहर पर मुंबई के 26/11 हमले का मास्टरमाइंड होने का आरोप है.
चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, इसलिए उसके पास वीटो शक्ति है. और सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य में से कोई भी प्रस्ताव से सहमत नहीं हो तो वीटो कर सकता है. सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश हैं चीन, अमेरिका, फ्रांस, रूस और ब्रिटेन. (dw.com)
कई बार आपने महसूस किया होगा कि आस पास बैठे कुछ लोगों में एक-दो को मच्छर ज्यादा काटते हैं. इसे लेकर उनका मजाक बनाया जाता है लेकिन विज्ञान ने इसकी गुत्थी सुलझा ली है.
एक नई रिसर्च से पता चला है कि कुछ लोग सचमुच मच्छरों को चुंबक की तरह खींचते हैं. वैज्ञानिकों ने उनकी गंध को इसके लिए जिम्मेदार बताया है. रिसर्च के दौरान देखा गया कि जिन लोगों की तरफ मच्छर ज्यादा आकर्षित होते हैं, उनकी त्वचा पर कई तरह के रसायन पैदा होते हैं और उनसे गंध आती है. इन लोगों के लिए बुरी खबर यह है कि खून चूसने वाले मच्छर लंबे समय तक इस गंध के आकर्षण में रहते हैं.
रिसर्च रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और न्यू यॉर्क की रॉकफेलर यूनिवर्सिटी में न्यूरोबायोलॉजिस्ट लेस्ली वोशाल का कहना है, "अगर आपकी त्वचा में इस तरह की चीजें ज्यादा हैं, तो आप इनके लिए किसी पिकनिक मनाने की जगह जैसे हैं." हर जगह स्थानीय भाषा और संस्कृति में ऐसी खूब कहानियां सुनी सुनाई जाती हैं कि किसे मच्छर ज्यादा काटेंगे, लेकिन वोशाल का कहना है कि उन दावों के बारे में वैज्ञानिक रूप से कोई सबूत नहीं है.
गंध से आकर्षित होते मच्छर
मच्छरों को आकर्षित करने के गुण को परखने के लिए वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया, जिसमें लोगों की गंध एक-दूसरे में डाली गई. इन प्रयोगों के नतीजे 18 अक्टूबर को जर्नल शेल में छपे हैं.
रिसर्चरों ने 64 वॉलंटियरों को इसके लिए तैयार किया गया. इन लोगों ने नायलॉन के स्टॉकिंग्स अपनी बांहों पर चढ़ाए, ताकि उसमें उनकी गंध आ सके और फिर इन स्टॉकिंग्स को एक लंबी ट्यूब के एक सिरे पर अलग-अलग मच्छरदानियों में रख दिया गया. इसके बाद दर्जनों मच्छर छोड़े गए. रिसर्च में शामिल डे ओबाल्डिया ने बताया, "जाहिर है कि वो सबसे आकर्षक चीज की ओर ही पहले जाएंगे और यह तुरंत ही साबित भी हो गया."
प्रयोग में एडिस एजिप्टो मच्छर का इस्तेमाल किया गया, जो पीला बुखार, जीका और डेंगू जैसी बीमारियां फैलाता है. वोशाल का कहना है कि वह मच्छरों की दूसरी प्रजातियों से भी इसी तरह के नतीजों की उम्मीद कर रही हैं. हालांकि इसकी पुष्टि के लिए उन्हें और रिसर्च करने की जरूरत होगी.
काफी बड़ा है फर्क
रिसर्चरों ने यही काम वॉलंटियरों के बीच बार-बार दोहराया और फिर आखिर में जो नतीजे मिले, उनसे पता चलता है कि फर्क काफी ज्यादा है. सबसे ज्यादा मच्छर जिसकी ओर आकर्षित हुए, वह आखिरी नंबर पर रहे शख्स की तुलना में 100 गुना ज्यादा आकर्षक साबित हुआ.
फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के न्यूरोजेनेटिसिस्ट मैट डेजेनारो इस प्रयोग में शामिल नहीं थे, लेकिन उनका कहना है कि कई सालों तक समान लोगों पर प्रयोग करने के बाद देखा गया कि यह फर्क बना रहा.
आसान नहीं है छुटकारा
जो लोग मच्छरों को ज्यादा आकर्षित कर रहे थे, उनमें एक चीज सब के अंदर थी. उनकी त्वचा पर कुछ खास अम्ल की मात्रा बहुत ज्यादा थी. ये "चिपचिपे कण" त्वचा की प्राकृतिक नमी का हिस्सा हैं और हर इंसान में इनकी मात्रा अलग-अलग होती है. वोशाल का कहना है कि त्वचा पर मौजूद अच्छे बैक्टीरिया इन अम्लों को खा जाते हैं और त्वचा से आने वाली महक में इनकी कुछ हिस्सेदारी होती है.
इन अम्लों से छुटकारा पाना आसान नहीं है. इसके लिए त्वचा की सेहत को नुकसान पहुंचाना पड़ेगा. हालांकि रिसर्च मच्छरों से छुटकारा पाने के नए तरीके विकसित करने में मदद कर सकती है. त्वचा के बैक्टीरिया से निजात पाने के कुछ तरीके हो सकते हैं और इसके जरिये इंसान से आने वाली गंध को बदला जा सकता है. हालांकि फिर भी मच्छरों से लड़ने का तरीका निकालना इतना आसान नहीं है.
रिसर्चरों ने जिन मच्छरों की जीन में बदलाव कर उनके सूंघने की शक्ति को नष्ट करने की भी कोशिश की, वो फिर भी उन लोगों की तरफ गए जिन्हें आकर्षक माना जाता है. वोशाल का कहना है, "मच्छर बहुत लचीले होते हैं, उनके पास हम तक पहुंचने और काटने के कई दूसरे उपाय होते हैं."
एनआर/एसएम (एपी)
म्यांमार, 19 अक्टूबर । म्यांमार के यांगून की कुख्यात इनसेन जेल में भीषण विस्फोट हुए हैं. इसमें कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई है.
स्थानीय लोगों ने बीबीसी बर्मी सेवा को बताया कि बुधवार सुबह जेल के एंट्री गेट पर दो पार्सल बमों में विस्फोट हुआ, जिसमें तीन जेल कर्मचारी और पांच विजिटर मारे गए.
इनसेन जेल देश की सबसे बड़ी जेल है, जिसमें करीब 10 हज़ार कैदी हैं. जेल में कई राजनीतिक कैदी भी बंद हैं.
अभी तक किसी भी ग्रुप ने हमले की ज़िम्मेदारी नहीं ली है. अधिकारियों ने हमले में 18 लोगों के घायल होने की भी पुष्टि की है.
अधिकारियों ने कहा कि बम जेल के पोस्ट रूम में फटे. वहीं एक ज़िंदा बम प्लास्टिक की थैली में लिपटा हुआ मिला.
अधिकारियों ने पुष्टि की कि जेल कर्मचारियों के अलावा मारे गई पांच लोगों में महिलाएं थीं, जो कैदियों से मिलने आई हुई थीं.
बम धमाके में एक छात्र नेता को जेम्स की मां भी शामिल थीं. छात्र नेता को पिछले साल जून में म्यांमार के सैन्य अधिकारियों ने गिरफ़्तार किया था. उनकी मां चावल का डिब्बा देने उन्हें जेल गई थीं.
मानवाधिकार समूहों का कहना है कि सदियों पुरानी इनसेन जेल कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार के लिए बदनाम है.
इस वक्त म्यांमार में सैन्य शासन लागू है. सेना ने पिछले साल एक हिंसक तख़्तापलट में आंग सान सू की निर्वाचित सरकार को गिरा दिया था. (bbc.com/hindi)
अंकारा, 19 अक्टूबर | तुर्की पुलिस ने 59 प्रांतों में चलाए गए एक अभियान में 543 लोगों को हिरासत में लिया है, जो 2016 में असफल तख्तापलट के लिए सरकार द्वारा आरोपी नेटवर्क से जुड़े होने के संदेह में है। यह बयान आंतरिक मंत्री सुलेमान सोयलू ने दिया है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने मंत्री के हवाले से कहा कि, मंगलवार को यहां पत्रकारों के लिए, आठ महीने की लंबी जांच का उद्देश्य गुलेन आंदोलन की संरचना, नए कर्मियों की भर्ती प्रक्रिया और वित्तीय संसाधनों को समझना है, जिस पर तुर्की सरकार राज्य की नौकरशाही में घुसपैठ करने और तख्तापलट का प्रयास करने का आरोप लगाती है।
सोयलू ने कहा कि, अब तक अभियोजकों द्वारा वांछित 704 में से 543 को हिरासत में लिया गया है, हिरासत में लिए गए 17 सार्वजनिक क्षेत्र में काम कर रहे थे।
मंत्री ने कहा कि, यह जानकारी मिलने के बाद अभियान चलाया गया कि गुलेन आंदोलन के विदेश में हाई-प्रोफाइल सदस्यों ने तुर्की के अंदर गतिविधियों को जारी रखने का निर्देश दिया।
संगठन के सदस्यों ने कार्गो, एटीएम और बैठकों के दौरान धन हस्तांतरित किया, सोयलू ने समझाया।
गुलेन आंदोलन मुस्लिम उपदेशक फेतुल्लाह गुलेन का समर्थन करने वाले लोगों का एक समुदाय है, जिसे अनुयायी आध्यात्मिक नेता के रूप में मानते हैं।
तुर्की ने अमेरिका स्थित गुलेन पर 15 जुलाई, 2016 को तख्तापलट करने का आरोप लगाया, जिसमें कम से कम 250 लोग मारे गए थे।
देश ने गुलेन के प्रत्यर्पण का अनुरोध किया है लेकिन अमेरिका स्व-निर्वासित इस्लामिक मौलवी के प्रत्यर्पण नहीं कर रहा है, यह कहते हुए कि अंकारा ने उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं किए हैं।
तुर्की सरकार विफल तख्तापलट के बाद से नेटवर्क से जुड़े संदिग्धों पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई कर रही है। (आईएएनएस)
हेलसिंकी, 19 अक्टूबर | फिनलैंड की रूस से लगी सीमा पर बाड़ लगाने के प्रस्ताव को संसद में पार्टियों का व्यापक समर्थन मिला है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री सना मारिन ने बाड़ के निर्माण के विचार पर चर्चा करने के लिए मंगलवार को एक बैठक बुलाई, जिसे पूरा होने में चार साल लगेंगे।
मारिन ने बैठक के बाद मीडिया को बताया कि सरकार अब इस शरद ऋतु में एक सप्लीमेंट्री बजट के माध्यम से परियोजना को आगे लाएगी। निर्माण के पहले वर्ष में 140 मिलियन यूरो (138 मिलियन डॉलर) की लागत आएगी।
फिनलैंड रूस के साथ लगभग 1,300 किमी की भूमि सीमा साझा करता है और बाड़ लगभग 300 किमी की दूरी तय करेगी।
वर्तमान में, मवेशियों को पार करने से रोकने के लिए सीमा पर कुछ छोटे बाड़ हैं।
हाल ही में फिनलैंड ने यूक्रेन पर मास्को के चल रहे आक्रमण के मद्देनजर रूस के खिलाफ कई उपायों की घोषणा की थी।
पिछले महीने के अंत में, नॉर्डिक राष्ट्र ने फिनलैंड में प्रवेश करने के लिए पर्यटक वीजा वाले रूसी नागरिकों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, साथ ही साथ देश में पारगमन भी किया।
सरकार के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य रूसी पर्यटन को पूरी तरह से रोकना है।
इस साल की शुरुआत में स्वीडन के साथ फिनलैंड ने भी नाटो में शामिल होने का फैसला किया था। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 19 अक्टूबर | विनाशकारी बाढ़ ने पाकिस्तान के आर्थिक संकट को बढ़ा दिया है, जिसके बाद वह अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं से अरबों डॉलर का ऋण मांगेगा। मीडिया रिपोर्ट में बुधवार को यह जानकारी दी गई। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने द फाइनेंशियल टाइम्स को बताया, "हम किसी भी तरह के उपाय (जैसे) पुनर्निर्धारण या स्थगन के लिए नहीं कह रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "हम अतिरिक्त धनराशि की मांग कर रहे हैं।"
जियो न्यूज ने ब्रिटिश प्रकाशन को शरीफ के हवाले से बताया कि सड़क, पुल और अन्य बुनियादी ढांचे के क्षतिग्रस्त होने या बह जाने के बाद उसी ठीक करने के लिए देश को 'बड़ी रकम' की जरूरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने यह नहीं कहा है कि पाकिस्तान कितनी राशि की मांग कर रहा है, लेकिन बाढ़ से नुकसान के 30 अरब डॉलर के अनुमान को दोहराया।
इस महीने की शुरुआत में, संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान के लिए अपनी मानवीय सहायता अपील को 16 करोड़ डॉलर से पांच गुना बढ़ाकर 81.6 करोड़ डॉलर कर दिया, क्योंकि पानी से होने वाली बीमारियों में वृद्धि और बढ़ती भूख के डर ने अभूतपूर्व बाढ़ के बाद नए खतरे पैदा कर दिए हैं।
यूरोपीय संघ ने भी अपनी बाढ़ सहायता को बढ़ाकर 3 लाख यूरो (29.57 मिलियन डॉलर) कर दिया है।
जियो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान की मुद्रा में गिरावट से आयात, उधार लेने और कर्ज चुकाने की लागत भी बढ़ रही है और इससे पहले से ही कई दशक के उच्च स्तर 27.3 फीसदी पर चल रही मुद्रास्फीति और बढ़ जाएगी।
बाढ़ से अर्थव्यवस्था को अनुमानित 30 अरब डॉलर के नुकसान के साथ-साथ इस्लामाबाद की बाहरी वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन जुटाने की क्षमता के बारे में बढ़ती चिंताओं ने स्थिति को और खराब कर दिया है। (आईएएनएस)
बीते सालों में 'मेक इन इंडिया' की मुहिम के साथ भारत ने देश के भीतर सैनिक साजो सामान तैयार करने की कोशिशें बढ़ाई हैं. सरकार के मुताबिक इन कोशिशों के नतीजे में 2020-21 में 13 हजार करोड़ रुपये के हथियारों का निर्यात हुआ.
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन की रिपोर्ट-
रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी इन आंकड़ों में दावा किया गया है कि भारत ने 2020-21 में एक साल पहले की तुलना में 55 फीसदी ज्यादा हथियारों का निर्यात किया है. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 70 फीसदी निर्यात निजी क्षेत्र से हुआ है जबकि 30 फीसदी सरकारी कंपनियों के हिस्से आया.
इन आंकड़ों के साथ किन चीजों का निर्यात हुआ, इसका रक्षा मंत्रालय ने ब्यौरा नहीं दिया है. इसलिए कई जानकार इस पर सवाल उठा भी उठा रहे हैं. दिल्ली में वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी का कहना है कि यह साफ नहीं किया गया है कि भारत से किन चीजों का निर्यात हुआ. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस साल ब्रह्मोस मिसाइल के लिए 37.5 करोड़ डॉलर की कीमत के निर्यात का एक करार हुआ है लेकिन करार होने और निर्यात होने में फर्क है. इसके पहले भी कुछ करार हुए हैं लेकिन उन करारों में से कितनों पर अमल हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है."
सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस
रूस और भारत के संयुक्त उपक्रम में बनने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के लिए भारत को 2025 तक 5 अरब डॉलर के ऑर्डर मिलने की उम्मीद जताई गई है. फिलीपींस के साथ इस साल 37.5 करोड़ डॉलर के पहले ऑर्डर पर दस्तखत भी हुए हैं. भारत और रूस के सहयोग से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने वाली कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम के साथ नए ऑर्डर के लिए बातचीत कर रही है. कंपनी के चेयरमैन अतुल डी राणे ने यह जानकारी दी. राणे का कहना है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक 5 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य दिया है. मुझे उम्मीद है कि ब्रह्मोस 2025 तक 5 अरब डॉल के निर्यात के लक्ष्य को पूरा कर लेगा."
ब्रह्मोस एयरोस्पेस में भारत की 50.5 फीसदी और रूस की 49.5 फीसदी हिस्सेदारी है. यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम में बिल्कुल फिट बैठता है. भारत ने रूस के सहयोग से मिग लड़ाकू विमान और सुखोई जेट विमान लाइसेंस के तहत बनाए हैं और दोनों देश मिल कर ब्रह्मोस का निर्माण कर रहे हैं. पिछले दिनों भारतीय वायु सेना के कुछ अधिकारियों की गलती से एक ब्रह्मोस मिसाइल पाकिस्तान की तरफ दाग दिया गया था. संयोग से इस पर हथियार नहीं लदे थे नहीं तो बड़ा हादसा हो सकता था. इसके लिए जिम्मेदार अधिकारों को बर्खास्त किया जा चुका है. रूस पारंपरिक रूप से भारत का हथियारों के मामले में बड़ा सहयोगी रहा है.
भारत से हथियारों का निर्यात
भारत से जिन हथियारों और सैनिक साजो सामान के निर्यात की बात होती है उनमें लड़ाकू विमान तेजस, ध्रुव हैलीकॉप्टर, ब्रह्मोस मिसाईल और सुखोई विमान शामिल हैं. बेदी बताते हैं कि ये सारे विमान और हथियार भारत ने विदेशों की मदद और आयात किये हुए सामान से ही बनाये हैं. बेदी का कहना है, "विमान हो या हैलीकॉप्टर सबके लिए ईंजन की जरूरत होती है इसी तरह और भी दूसरी कई जरूरी चीजें हैं और उनके विकास में अभी कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है. हां उनके विकास की दिशा में प्रयास जरूर चल रहे हैं. जहां तक निर्माण की बात है तो ज्यादातर चीजों की भारत में असेंबल ही किया जा रहा है."
रूस के सहयोग से भारत में कलाश्निकोव सीरीज की एके203 राइफल भी बनाई जा रही है और हाल ही में कार्ल गुस्ताफ राइफल बनाने के लिएस्वीडन की साब कंपनी से भी करार हुआ है.भारत ने इन हथियारों की खरीदारी का एक बड़ा ऑर्डर दिया है और इसमें यह शर्त भी है कि हथियारों को बनाने का कुछ काम भारत में भी होगा. भारत में कार्ल गुस्ताफ के कुछ पुर्जे बनाये जाने की भी बात है और यहां दूसरे देशों को इसके निर्यात की भी चर्चा हो रही है. इन्हीं से जुड़े आंकड़ों को जोड़ कर भारत से हथियारों के निर्यात की संभावित तस्वीर बनती है.
हथियारों का बड़ा खरीदार है भारत
भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है. बीते कई सालों से वह इस मामले में शीर्ष नंबर पर है. 2022 के लिए भी भारत ने एक बड़ी रकम हथियारों की खरीदारी के लिए सोच रखी है. रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से अब वह कई और यूरोपीय देशों से हथियारों की खरीदारी के लिए बात कर रहा है.
दुनिया भर में हथियारों के कारोबार नजर रखने वाली एजेंसी सीपरी (स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) के मुताबिक 2018 से 2021 के बीच भारत ने 12.4 अरब डॉलर के हथियारों की खरीदारी की. इसमें सबसे ज्यादा 5.51 अरब डॉलर के हथियार रूस से खरीदे गये. (dw.com)
डॉलर 20 साल के सर्वोच्च स्तर को छू चुका है. इसका असर दिल्ली से लेकर लंदन तक महसूस किया जा रहा है. मंदी का डर बढ़ता जा रहा है. देखिए, कैसे आम जिंदगियों को प्रभावित कर रहा है डॉलर.
दिल्ली के रविंद्र मेहता बरसों से अमेरिकी बादाम और पिस्ता के आयात-निर्यात का कारोबार कर रहे हैं. लेकिन रुपये में हुई रिकॉर्ड गिरावट और कच्चे दाम व माल ढुलाई की बढ़ती कीमतों के कारण ये सूखे मेवे इतने महंगे हो गए हैं कि भारतीय ग्राहकों ने खरीदना ही बंद कर दिया है.
अगस्त में मेहता ने 400 कंटेनर बादाम आयात किए थे जबकि पिछले साल उन्होंने 1,250 कंटेनर मंगाए थे. वह कहते हैं, "अगर ग्राहक खरीद ही नहीं रहा, तो पूरी सप्लाई चेन प्रभावित होती है. मेरे जैसे लोग भी.”
मिस्र की राजधानी काहिरा में महंगाई इस कदर बढ़ चुकी है कि सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करने वाले मुस्तफा गमाल को अपनी पत्नी और एक साल की बेटी को वापस गांव भेजना पड़ा ताकि वह शहर में कुछ धन बचा सकें.
28 साल के गमाल दो जगह नौकरी करते हैं. अब वह कुछ और युवाओं के साथ एक साझा घर में रहते हैं और मांस खाना कम कर रहे हैं. वह कहते हैं, "और कोई चारा ही नहीं था. हर चीज की कीमत दोगुनी हो गई है.”
पूरी दुनिया में असर
गमाल की कहानी दुनियाभर में करोड़ों लोगों की कहानी है. महंगाई का दर्द दुनिया के हर हिस्से में महसूस किया जा रहा है. नैरोबी के ऑटो पार्ट डीलर से लेकर इस्तांबुल में बच्चों के कपड़ों की दुकान चलाने वाले और मैन्चेस्टर के वाइन इंपोर्टर तक, सबकी एक ही शिकायत हैः चढ़ता डॉलर स्थानीय मुद्रा को लगातार कमजोर कर रहा है जिसके कारण महंगाई सुरसा के मुंह की तरह विकराल होती जा रही है. उस पर से यूक्रेन में जारी युद्ध का असर ऊर्जा क्षेत्र का दम घोंटे हुए है, जिससे खाने-पीने की चीजें मुंह से दूर होती जा रही हैं.
कॉरनेल यूनिवर्सिटी में व्यापार नीति पढ़ाने वाले प्रोफेसर ईश्वर प्रसाद कहते हैं, "डॉलर का मजबूत होना खराब स्थिति को बाकी दुनिया के लिए बदतर बना देता है.” यह चिंता कई आर्थिक विशेषज्ञों की है. इस बात की फिक्र बढ़ती जा रही है कि यह चढ़ता डॉलर दुनिया की अर्थव्यवस्था को मंदी में डुबो देगा जो अगले साल की शुरुआत में कभी हो सकता है.
विभिन्न मुद्राओं के साथ अमेरिकी डॉलर का तुलनात्मक आकलन करने वाले आईसीई यूएसडी इंडेक्स के मुताबिक इस साल अमेरिकी मुद्रा 18 प्रतिशत तक ऊपर जा चुकी है. पिछले महीने ही इसने 20 साल का सर्वोच्च स्तर हासिल किया था. अमेरिकी डॉलर क्यों ऊपर की ओर भाग रहा है, इसके कारण छिपे-ढके नहीं हैं. अमेरिका में महंगाई की रफ्तार थामने के लिए वहां का केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहा है. इसी साल कम अवधि वाली ब्याज दरें पांच बार बढ़ाई जा चुकी हैं और इसमें और वृद्धि की संभावना है. इसके चलते अमेरिका सरकार और अन्य कॉरपोरेट बॉन्ड की दरें महंगी हो रही हैं, जिससे निवेशक उनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं और डॉलर के दाम बढ़ते जा रहे हैं.
महंगा हुआ आयात
डॉलर की इस मजबूती का असर दुनिया की सभी मुद्राओं पर हो रहा है और वे डॉलर की तुलना में कमजोर हो रही हैं. सबसे बुरा असर गरीब देशों में हो रहा है. भारत का रुपया इस साल डॉलर की तुलना में करीब दस प्रतिशत गिर चुका है. मिस्र का पाउंड 20 फीसदी और तुर्की की लीरा 28 प्रतिशत नीचे आ चुकी है.
60 साल के चेलाल कालेली इंस्ताबुल में बच्चों के कपड़े और डायपर आदि बेचते हैं. अब उन्हें सामान मंगवाने के लिए ज्यादा लीरा चाहिए क्योंकि आयात डॉलर में होता है. उनकी लागत बढ़ गई है तो मजबूरन उन्हें दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं. नतीजा, उत्पाद महंगे हो गए हैं और अब कम लोग खरीद पा रहे हैं और कालेली की कमाई घट गई है.
कालेली कहते हैं, "हम नए साल का इंतजार कर रहे हैं. देखेंगे कि अकाउंट्स की क्या हालत रहती है और उसी हिसाब से लोगों की छंटनी करेंगे. और कुछ ज्यादा हम कर नहीं सकते.”
अमीर देश भी परेशान
यह आंच अमीर देशों तक भी पहुंच रही है. यूरोप पहले ही महंगे होते ईंधन की जलन झेल रहा था. अब वहां मुद्रास्फीति का प्रकोप है. 20 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक यूरो की कीमत एक डॉलर से कम हो गई हो. ब्रिटिश पाउंड पिछले साल के मुकाबले 18 प्रतिशत नीचे है.
आमतौर पर जब मुद्राएं डॉलर के मुकाबले कमजोर होती हैं तो अन्य देशों को कुछ फायदा मिलता है क्योंकि इससे उनकी चीजें सस्ती हो जाती हैं और विदेशों में उनके उत्पाद ज्यादा बिकने लगते हैं. लेकिन इस वक्त ऐसा नहीं हो रहा है क्योंकि सभी लोगों की खरीद क्षमता घट गई है.
मजबूत डॉलर कई तरह से अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करता हैः
इससे अन्य देशों का आयात महंगा हो जाता है और पहले से बढ़ती मुद्रास्फीति और ज्यादा तेजी से बढ़ती है.
डॉलर में उधार लेने वालीं कंपनियों, उपभोक्ताओं और सरकारों पर कर्ज का दबाव बढ़ जाता है क्योंकि उन्हें ज्यादा स्थानीय मुद्रा चुकानी पड़ती है.
केंद्रीय बैंकों को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं ताकि उनके देश से धन बाहर ना चला जाए. लेकिन ऊंची ब्याज दरों के कारण स्थानीय आर्थिक वृद्धि कमजोर पड़ती है और बेरोजगारी बढ़ती है.
कैपिटल इकनॉमिक्स की आरियाना कर्टिस इसे और आसान भाषा में समझाती हैं. वह कहती हैं, "डॉलर की मजबूती अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर है. यह एक और कारण है कि हमें अगले साल वैश्विक इकॉनमी के मंदी में डूबने का डर है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
हिजाब के बिना एशियन क्लाइंबिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वालीं ईरान की महिला एथलीट एलनाज़ रेक़ाबी हवाई अड्डे पर जनता के ज़ोरदार स्वागत के बीच अपने घर पहुँच गई हैं.
33 साल की एलनाज़ रेक़ाबी ने पहनावे से जुड़े ईरान के सख़्त नियमों का उल्लंघन करते हुए बिना हिजाब दक्षिण कोरिया में हुए क्लाइंबिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था.
हालांकि, बाद में रेक़ाबी ने कहा कि उनका हिजाब 'गलती' से गिर गया था.
लेकिन उनकी इस सफ़ाई पर कई लोग सवाल भी उठा रहे हैं और ये भी कहा जा रहा है कि एलनाज़ रेक़ाबी ने दबाव में आकर ये बयान दिया है.
एलनाज़ एशियन क्लाइंबिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में थीं. प्रतियोगिता का आयोजन 16 अक्टूबर को हुआ था.
एलनाज़ ईरान का प्रतिनिधित्व कर रही थीं. ईरान की महिलाओं के लिए खेल प्रतियोगिता में भी हिजाब अनिवार्य है. लेकिन ईरान में पिछले क़रीब एक महीने से लोग हिजाब के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं.
ईरान पहुँचने से पहले एलनाज़ रेक़ाबी के लापता होने की भी चर्चा थी. रेक़ाबी बुधवार को ईरान पहुँचीं. उनका परिवार हवाई अड्डे पर ही इंतज़ार कर रहा था, जहां रेक़ाबी का स्वागत फूलों से किया गया.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में सैकड़ों समर्थकों को एलनाज़ रेक़ाबी के लिए तालियां बजाते और 'एलनाज़ नायिका है' जैसे नारे लगाते सुना जा सकता है.
रेक़ाबी को ईरान में चल रहे हिजाब के विरोध में प्रदर्शनों का नया प्रतीक माना जा रहा है. (bbc.com/hindi)
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान स्थित चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के शाहिद महमूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने संबंधी अमेरिका और भारत के प्रस्ताव पर चीन ने रोक लगा दी है.
चीन ने ये कदम ऐसे समय उठाया है, जब इसी महीने संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार के मुद्दे पर भारत ने परोक्ष रूप से चीन का साथ दिया था.
दरअसल, शिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में हुए बहस के प्रस्ताव पर भारत ने वोटिंग नहीं करने का फ़ैसला लिया था.
ये पहली बार नहीं है जब चीन ने संयुक्त राष्ट्र में किसी पाकिस्तानी चरमपंथी को 'वैश्विक आतंकवादी' घोषित किए जाने के प्रस्ताव को रोका हो.
इसी साल अगस्त महीने में भी अमेरिका और भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के चरमपंथी संगठन के सदस्य अब्दुल रऊफ़ अज़हर पर वैश्विक प्रतिबंध लगाए जाने और संपत्ति ज़ब्त करने संबंधी प्रस्ताव पेश किया था.
उस समय भी चीन ने इस प्रस्ताव को रोक दिया था. अब्दुल रऊफ़ अज़हर मसूद अज़हर का भाई है. मसूद अज़हर पर मुंबई हमले का मास्टरमाइंड होने का आरोप है.
बीते महीने विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 77वें सत्र को संबोधित करते हुए इशारों में चीन पर निशाना साधा था.
उन्होंने कहा था, "जो भी देश घोषित आतंकवादियों की रक्षा के लिए यूएनएससी 1267 प्रतिबंध व्यवस्था का राजनीतिकरण करते हैं, वे अपने जोखिम पर ऐसा करते हैं."(bbc.com/hindi)
यूक्रेन में रूसी सुरक्षा बलों के कमांडर ने कहा है कि देश के दक्षिणी शहर खेरसोन में स्थिति 'मुश्किल' भरी है और वहां से लोगों को निकालना होगा.
जनरल सर्गेई सुरोविकिन ने कहा कि यूक्रेनी सैनिक हिमार रॉकेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे शहर के बुनियादी ढांचे और मकान निशाना बन रहे हैं. उन्होंने रूस के सरकारी टीवी चैनल से बातचीत में ये कहा.
उन्होंने कहा, "रूसी सेना वहां रह रहे लोगों को सुरक्षित निकालेगी."
उनके इस बयान को रूस के एक अन्य शीर्ष अधिकारी ने भी दोहराया.
रूस के नियुक्त किए गए क्षेत्रीय अधिकारी किरिल स्त्रेमोसोव ने खेरसोन में रह रहे लोगों को चेताया कि बहुत जल्द ही यूक्रेन की सेना इस शहर में ताबड़तोड़ हमले करेगी.
उन्होंने टेलीग्राम मेसेजिंग सर्विस पर भेजे संदेश में कहा, "कृपया मेरे शब्दों को गंभीरता से लें. मैं लोगों को जल्द से जल्द यहां से सुरक्षित निकालने की बात कर रहा हूं." उन्होंने कहा कि नाइपर नदी के किनारे रहने वाले लोग सबसे ज़्यादा ख़तरे में हैं.
रूस ने इस क्षेत्र में व्लादिमीर साल्दो को गवर्नर नियुक्त किया है. साल्दो ने भी एक वीडियो मेसेज में इस ख़तरे वाली बात पर सहमति जताई है.
खेरसोन यूक्रेन के उन बड़े शहरों में से एक है, जिसपर इसी साल फ़रवरी में हमले के बाद रूस ने कब्ज़ा कर लिया था.
बीते कुछ हफ़्तों से इसके आस-पास के इलाकों में यूक्रेन की सेना तेज़ी से अपना नियंत्रण वापस स्थापित करने में जुटी हुई है.
जनरल सुरोविकिन ने कहा, "इस स्पेशल मिलिट्री ज़ोन की स्थिति को मुश्किल भरा कहा जा सकता है."
रूस खेरसोन और तीन अन्य यूक्रेनी इलाकों पर अब अपने नियंत्रण का दावा करता है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस दावे को खारिज कर दिया गया है.
हालांकि, जिन मुश्किलों का जनरल सुरोविकिन ने ज़िक्र किया है, बीबीसी स्वतंत्र रूप से उनकी पुष्टि नहीं कर सका है. (bbc.com/hindi)
अमेरिका की पूर्व सांसद तुलसी गबार्ड ने डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडन की तुलना एडॉल्फ हिटलर से की है. 41 साल की गबार्ड बीते साल ही प्रतिनिधि सभा से रिटायर हुई थीं.
उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान ये टिप्पणी की. मैनचेस्टर के बाहर शहर में एक बोल्डुक टाउन हॉल कार्यक्रम में तुलसी गबार्ड ने कहा कि बाइडन और हिटलर दोनों नेताओं की एक जैसी मानसिकता है. दोनों ही नेता सत्तावादी व्यवहार को सही ठहराने की कोशिश करते हैं. गबार्ड ने बाइडन की तुलना नाज़ी नेता हिटलर से करते हुए कहा कि इन दोनों को लगता है कि देश को कैसे चलाना है, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता.
बाइडन ने पिछले दिनों एक भाषण के दौरान कहा था कि जिन्होंने उन्हें और डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट नहीं दिया है और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन कर रहे हैं, वो उग्रपंथी हैं. तुलसी गबार्ड ने कहा कि वह मानती हैं कि डेमोक्रेटिक पार्टी युद्ध को भड़काने में लगी है और नस्लभेद को हवा देने में भी आगे है और यही वजह है कि उन्होंने खुद को डेमोक्रेटिक पार्टी में फिट नहीं पाया. साल 1981 में अमेरिकी समोआ में पैदा हुईं तुलसी गबार्ड ने अमेरिका में सबसे युवा निर्वाचित प्रतिनिधि बनने का इतिहास रचा था. तब वो 21 साल की थीं.
INSTAGRAM/TULSIGABBARD
तुलसी का भारत से रिश्ता
तुलसी गबार्ड के भारत से रिश्ते की बात की जाए तो उनका भारत से कोई नाता नहीं है. उनके माता-पिता भी भारतीय मूल के नहीं हैं. लेकिन हिंदू धर्म मानने की वजह से तुलसी गबार्ड को अमेरिका में रह रहे भारतीय समुदाय का समर्थन मिलता रहा है.
तुलसी के नाम अमेरिकी संसद में पहुंचने वाली पहली हिंदू होने का रिकॉर्ड भी दर्ज है.
तुलसी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़ास समर्थकों में गिना जाता है. साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही वो मोदी का समर्थन करती रही हैं. जब अमेरिकी सरकार ने साल 2002 के गुजरात दंगों की वजह से तत्कालीन गुजरात सीएम नरेंद्र मोदी के अमेरिका आने पर प्रतिबंध लगा दिया था तो तुलसी गबार्ड उन चुनिंदा नेताओं में शामिल थीं, जिन्होंने सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना की थी. (bbc.com/hindi)