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-राजू साजवान
केंद्र सरकार ने गेहूं की सरकारी खरीद का अपना लक्ष्य 55 फीसदी तक घटाया, कहा- किसान निजी व्यापारियों को गेहूं बेच रहे हैं
केंद्र सरकार ने कहा है कि वह साल 2022-23 के लिए केवल 195 लाख टन गेहूं खरीदेगी। पिछले साल सरकार ने 433 लाख टन गेहूं खरीदा था और इस साल का लक्ष्य 444 लाख टन रखा गया था। यानी कि सरकार इस साल लक्ष्य से लगभग 56 प्रतिशत कम गेहूं खरीदेगी।
ध्यान रहे कि गेहूं को लेकर देश में संकट की स्थिति है। इस स्थिति को स्पष्ट करने के लिए 4 मई 2022 को खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव सुधांशु पांडेय ने एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया।
उन्होंने कहा कि इस बार गेहूं की सरकारी खरीद लगभग आधे से भी कम होने की संभावना है। उन्होंने इसके लिए जो कारण गिनाए, वे थे - पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में गर्मी के कारण गेहूं का सूखना और कम उत्पादन होना। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात में किसानों द्वारा व्यापारियों व निर्यातकों को 21 से 24 रुपए प्रति किलो गेहूं बेचना, जबकि एमएसपी 20.15 रुपए है। अधिक कीमत की चाह में किसानों और व्यापारियों द्वारा गेहूं का संग्रहण करना।
अगर गेहूं की सरकारी खरीद नहीं होगी तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत दिए जाने वाले राशन का क्या होगा? खाद्य सचिव के पास जवाब था कि सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गेहूं की बजाय 55 लाख टन चावल देने का निर्णय लिया है और इस साल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), अन्य कल्याणकारी योजना और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 305 लाख गेहूं वितरित किया जाएगा। जो कि पिछले साल 446 लाख टन था।
उन्होंने बताया कि 1 अप्रैल 2022 को केद्रीय पूल में 190 लाख टन गेहूं था और इस साल 195 लाख टन गेहूं खरीदा जाएगा। यानी कि सरकार के पास 385 लाख टन गेहूं होगा। इसमें 305 लाख टन गरीबों-जरूरतमंदों को वितरित किया जाएगा। इस तरह 1 अप्रैल 2023 को भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास 80 लाख टन गेहूं बचेगा। जबकि तय नियमों के मुताबिक 1 अप्रैल को 75 लाख टन गेहूं रिजर्व स्टॉक में रहना चाहिए। हालांकि 1 अप्रैल 2022 को केंद्रीय पूल के पास 190 लाख टन का रिजर्व था।
उत्पादन को लेकर उन्होंने स्पष्ट किया कि फरवरी में जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में 1113 लाख टन गेहूं उत्पादन हो सकता है, लेकिन इसे अब घटा दिया गया है। अनुमान है कि देश में 1050 लाख टन गेहूं उत्पादन होगा। यानी कि अब लगभग 5 फीसदी कम उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए हालात को देखते हुए भारत के व्यापारी निर्यात के लिए गेहूं की खरीददारी कर रहे हैं। सरकार भी व्यापारियों को बढ़ावा देकर अपना निर्यात लक्ष्य में वृदि्ध करना चाहती है।
खाद्य सचिव ने स्पष्ट किया कि गेहूं को लेकर उपजे ताजा हालात का असर निर्यात पर नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि सरकारी प्रयासों के चलते कई देशों जिसमें मिश्र भी शामिल है, ने भारत से गेहूं खरीदने का निर्णय लिया है। अब तक लगभग 40 लाख टन के अनुबंध हो चुके हैं और केवल अप्रैल माह में 11 लाख टन गेहूं निर्यात हो चुका है। इससे पहले केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल कह चुके हैं कि भारत का लक्ष्य 100 लाख टन गेहूं निर्यात का है।
उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय पूल में इस समय चावल का सरप्लस है। पिछले साल सरकार ने 600 लाख टन खरीदा था। इस साल भी इतना ही चावल खरीदे जाने की संभावना है। जबकि एनएफएसए के तहत 350 लाख टन चावल बांटा जाता है।
इससे पहले सरकार ने पंजाब में 5 मई से गेहूं की सरकारी खरीद न करने की घोषणा की है। हवाला दिया गया कि गेहूं मंडियों में कम आ रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1 मई 2022 तक देश में लगभग 162 लाख टन गेहूं खरीदा, जिसमें से पंजाब से 89.10 लाख टन गेहूं खरीदा है। जबकि पंजाब से 132 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया था।
ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि सरकारी खरीद का लक्ष्य कम करके सरकार निजी व्यापारियों के लिए खरीद का रास्ता तो साफ नहीं कर रही है। (downtoearth.org.in)
हिंदूवादी संगठन महाकाल मानव सेना के कार्यकर्ता दिल्ली की ऐतिहासिक इमारत कुतुब मीनार का नाम बदल कर विष्णु स्तंभ करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं.
ये विरोध प्रदर्शन दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित कुतुबमीनार के पास ही किया जा रहा है.
कुतुबमीनार को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है.
इसके अलावा यूनाइटेड हिंदू फ्रंट सहित कुछ हिंदूवादी संगठनों ने यहां हनुमान चालीसा का पाठ भी किया जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया.
यूनाइटेड हिंदू फ्रंट नाम के संगठन का कहना है कि कुतुब मीनार वास्तव में विष्णु स्तंभ ही है. इस मीनार को जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था. (bbc.com)
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बीजेपी नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को राहत देते हुए पाँच जुलाई तक गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी है.
पिछले दिनों हाई कोर्ट ने तेजिंगर बग्गा को अंतरिम राहत दी थी. दरअसल मोहाली कोर्ट ने तेजिंदग बग्गा के ख़िलाफ़ दूसरी बार वारंट जारी किया था.
जिसके ख़िलाफ़ बग्गा ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. रात में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने बग्गा को अंतरिम राहत दी थी.
अब हाईकोर्ट ने आज बग्गा की गिरफ्तारी पर 5 जुलाई तक रोक लगाने का फैसला लिया है.
बीते शुक्रवार की सुबह पंजाब पुलिस ने दिल्ली के जनकपुरी इलाक़े से तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को गिरफ़्तार किया. पंजाब पुलिस अपने अभियुक्त को लेकर पंजाब जा रही थी, जब रास्ते में कुरुक्षेत्र में हरियाणा पुलिस ने पंजाब पुलिस को रोक लिया..
पंजाब पुलिस दल और तजिंदर बग्गा को हरियाणा पुलिस पीपली थाने लेकर पहुंची. इसी बीच दिल्ली में तेजिंदर पाल बग्गा के पिता की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज किया और लुकआउट नोटिस जारी किया.
दिल्ली पुलिस की टीम ने तेजिंदर पाल बग्गा को हरियाणा पुलिस की मदद से अपनी कस्डटी में लिया और वापस लेकर दिल्ली आ पहुँची.
तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने 'कश्मीर फाइल्स' फिल्म को लेकर आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ टिप्पणी करने के बाद आम आदमी पार्टी के नेता और मोहाली निवासी सनी अहलूवालिया की शिकायत पर 1 अपैल को पंजाब पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की थी. (bbc.com)
रमन सिंह पर कटाक्ष
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 10 मई। सीएम भूपेश बघेल ने मंगलवार को यहां कहा कि केंद्र सरकार की कोयला नीति असफल रही है। केंद्र की नीति का खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है। उन्होंने पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह पर भी तीखे वार किए।
मीडिया से चर्चा में सीएम श्री बघेल ने कहा कि केंद्र की कोयला नीति असफल रही है। गर्मी के सीजन में यात्री परेशान है, लेकिन उन्होंने रेल बंद कर दी, सबसे सस्ता यातायात का साधन ट्रेन था, जिसे उन्होंने बंद कर दिया। क्या यह रेल बंद करने वाले हैं? सवाल इस बात का है, इन्होंने जो कोयले की नीति बनाई है उसे पूरा देश भुगत रहा है।
भाजपा में मोदी के चेहरे पर चुनाव लडऩे को लेकर कहा कि रमन सिंह ने खुद को सीएम पद के लिए एक छोटा सा चेहरा बता दिया था। अब वो कह रहे हैं कि मोदी बड़ा चेहरा है। जबकि प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी कह रही हैं कि सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा।
राजस्थान में पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर आए आठ सौ हिंदू शरणार्थी बीते साल कई कारणों से पाकिस्तान लौट गए. शरणार्थियों के लिए काम करने वाले संगठन ने कहा है कि उनके वापस लौटने का कारण सिर्फ नागरिकता नहीं मिल पाना नहीं है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
राजस्थान में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों के लिए काम करने वाले सीमांत लोक संगठन (एसएलएस) का कहना है कि साल 2021 में लगभग आठ सौ शरणार्थी वापस पाकिस्तान लौट गए. सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा ने उनके वापस लौटने के कई कारण डीडब्ल्यू को गिनाए. भारत में शरण के लिए आए ये लोग पाकिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के बाद आए थे. डीडब्ल्यू से सोढा कहते हैं पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदू शरणार्थियों की संख्या बहुत बड़ी है और उनके यहां की मुख्य वजहें वहां (पाकिस्तान में) उनके साथ भेदभाव और धार्मिक प्रताड़ना हैं. वे कहते हैं शरणार्थी भारत में एक उम्मीद भरी जिंदगी के साथ आते हैं लेकिन उन्हें यहां वह नहीं मिल पाती है.
भारतीय नागरिकता पाने की लंबी कोशिश
सोढा आरोप लगाते हैं कि भारत नागरिकता देने में कंजूसी बरत रहा है तो वहीं पाकिस्तान को पता है कि ऐसा नियम है कि भारत की नागरिकता लेते वक्त कोई पाकिस्तानी नागरिकता नहीं रख सकता. वे कहते हैं कि जो कोई भी रिफ्यूजी भारत आता है उसके पास वैध दस्तावेज होते हैं और उनके पास भारत का वीजा भी होता है. सोढा आगे कहते हैं, "जब शरणार्थी भारत आते हैं तो उन्हें रजिस्ट्रेशन के लिए जाना पड़ता है और एक बार जब पासपोर्ट की समय सीमा खत्म हो जाती है तो उन्हें पासपोर्ट रिन्यू कराने के लिए पाकिस्तानी उच्चायोग जाकर भारी फीस जमा करनी पड़ती है." सोढा बताते हैं इस प्रक्रिया में परिवार के हर एक सदस्य का खर्चा करीब 10 से लेकर 15 हजार रुपये के बीच होता है, जो कि बतौर रिफ्यूजी भारत में रहने वालों के लिए एक भारी रकम है.
गौरतलब है कि भारतीय गृह मंत्रालय ने 2018 में नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की प्रक्रिया शुरू की थी. मंत्रालय ने सात भारतीय राज्यों में 16 जिला कलेक्टरों को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, पारसी, जैन और बौद्धों की नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार करने का काम सौंपा था. मई 2021 में भारतीय गृह मंत्रालय ने गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के 13 और जिलों के अधिकारियों को भारतीय नागरिकता अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मुसलमानों को छोड़कर इन छह धार्मिक समुदायों के प्रवासियों को नागरिकता कानून, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत नागरिकता प्रमाण पत्र देने की शक्ति दी थी. पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन करने के बावजूद वेब पोर्टल एक्सपायर हो चुके पाकिस्तानी पासपोर्ट की पहचान नहीं करता है और नागरिकता चाहने वालों को पाकिस्तानी उच्चायोग के चक्कर काटने पड़ते हैं.
सोढा कहते हैं कि भारत की सरकार को नोटिफाई करना चाहिए कि भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए पाकिस्तानी पासपोर्ट को रिन्यू करने की जरूरत नहीं रहेगी और पाकिस्तानी नागरिकता त्याग करने की प्रक्रिया हलफनामा के माध्यम से हो जाएगी. सोढा ने आगे कहा कि ऑनलाइन आवेदन करने के बावजूद आवेदकों को कलेक्टर के पास जाकर दस्तावेज जमा करने होते हैं, जो एक और बोझ है.
सोढा उनके लौट जाने का एक और अहम कारण बताते हैं कि परिवार विभाजित हो जाने से वह दुख और सुख में शामिल नहीं हो पाता है. थार एक्स्प्रेस के नहीं चल पाने से शरणार्थी अपने परिवार से गम के समय में मिल नहीं पाते हैं.
भारतीय गृह मंत्रालय ने 2015 में नागरिकता कानूनों में कई बदलाव किए. दिसंबर 2014 या इससे पहले धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आने वाले विदेशी प्रवासियों के प्रवास को वैध कर दिया गया था. इन लोगों को पासपोर्ट कानून और विदेशी कानून के नियमों से छूट दी गई थी क्योंकि उनके पासपोर्ट की समय सीमा समाप्त हो गई थी.
सरकार से सोढा मांग करते हैं कि नागरिकता देने की प्रक्रिया जो अभी जटिल बनी हुई है उसको सरल और पारदर्शिता प्रक्रिया बनाई जानी चाहिए. वह कहते हैं जब नागरिकता चाहने वाला सभी मानदंडों को पूरा कर रहा है तो उसे इतना लंबा इंतजार क्यों कराया जाता है. उनके मुताबिक कई शरणार्थी कई बार अपने नाते-रिश्तेदार की निराशा को देखकर भी वापस लौट जाने का फैसला कर लेते हैं.
करीब आठ सौ हिंदू पाकिस्तानी शरणार्थियों के वापस लौट जाने की मीडिया रिपोर्ट पर भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई टिप्पणी नहीं आई है.
दूसरी ओर एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के अहमदाबाद के कलेक्टर संदीप सागले ने पाकिस्तान से आए 17 हिंदू शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की है. आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों के तहत सात या उससे अधिक वर्षों से भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों को संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने के बाद नागरिकता दी गई है. (dw.com)
डॉलर के मुकाबले रुपया अभी तक के सबसे निचले स्तर तक गिर कर 77.56 पर आ गया. जानकार इसके लिए अमेरिका में कड़ी होती मौद्रिक नीति और विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय स्टॉक्स को बेचने को जिम्मेदार मान रहे हैं.
तेल के उत्पादों के बढ़ते दाम और मजबूत होता अमेरिकी डॉलर रुपये पर हावी रहे हैं. रिजर्व बैंक ने पिछले ही सप्ताह ब्याज दरें भी बढ़ाई थीं, लेकिन निवेशकों का भारत से पैसे बाहर निकालना जारी रहा.
रूपया इससे पहले मार्च में डॉलर के मुकाबले 76.98 के ऐतिहासिक रूप से निचले स्थान पर पहुंचा था. सोमवार नौ मई को यह और लुढ़क कर 77.56 पर पहुंच गया. रुपये के लुढ़कने के साथ ही सेंसेक्स और निफ्टी50 पर भारतीय स्टॉक्स लगातार चौथे दिन घाटे में रहे.
विदेशी निवेशक निकाल रहे हैं पैसा
सोमवार को एक एक भारतीय स्टॉक शुरू में तो एक प्रतिशत से ज्यादा गिरे, लेकिन बाद में स्थिति में कुछ सुधार आया. बैंक, धातु और तेल और गैस के स्टॉको में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली. रिलायंस जैसी वजनदार कंपनी के स्टॉक के मूल्य में तीन प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई.
स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़े दिखाते हैं कि इस साल अभी तक विदेशी निवेशकों ने कुल 1,340 अरब रुपये भारतीय शेयरों से निकाल लिए हैं.
यूक्रेन युद्ध और चीन में कोविड-19 प्रतिबंधों की वापसी से विदेशी निवेशक अपना जोखिम कम कर रहे हैं और भारत जैसे उभरते बाजारों में से पूंजी निकाल रहे हैं. उसके ऊपर से महंगाई ने भी भारत में निवेश की भावना पर असर डाला है. भारत पेट्रोल की अपनी 80 प्रतिशत से भी ज्यादा जरूरतों को आयात करता है.
मार्च में खुदरा महंगाई 6.95 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो 17 महीनों में सबसे ऊंचा स्तर है. अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इसी सप्ताह जो ताजा आंकड़े जारी किए जाएंगे उनमें पता चल सकता है कि अप्रैल में महंगाई सात प्रतिशत को भी पार गई.
महंगाई की चुनौती
पिछले सप्ताह अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने देश की मुख्य ब्याज दरों में आधा प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी की थी, लेकिन और ज्यादा आक्रामक कदमों को उठाना टाल दिया था.
विदेशी मुद्रा कंपनी ओआंडा के जेफ्री हेली ने एक नोट में बताया, "भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अचानक ब्याज दरें बढ़ाने के बाद अगर भारत में महंगाई सात प्रतिशत से ज्यादा चली जाती है...तो आरबीआई पर फिर से कदम उठाने का दबाव रहेगा. इससे रुपये को कुछ मजबूती तो मिल सकती है लेकिन स्थानीय शेयरों के लिए यह शायद ही अच्छा हो."
भारत के विदेशी मुद्रा के खजाने में लगातार आठवें हफ्ते में गिरावट देखने को मिली. रुपये को स्थिर करने के लिए रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा को बेच लेकिन इसके बाद अप्रैल 29 को खत्म होने वाले सप्ताह में विदेशी मुद्रा का खजाना 600 अरब डॉलर से भी नीचे चला गया.
सीके/एए (एएफपी)
दिल्ली के शाहीन बाग़ के बाद नगर निगम ने न्यू फ़्रेंड्स कॉलोनी और मंगोलपुरी में अतिक्रमण के ख़िलाफ़ अभियान शुरू किया है. मंगोलपुरी और न्यू फ़्रेंड्स कॉलोनी में बुलडोज़र से अतिक्रमण हटाए जा रहे हैं.
इन इलाक़ों में एमसीडी के अधिकारियों के साथ-साथ पुलिसकर्मी भी मौजूद हैं. सोमवार को शाहीन बाग़ में भी एमसीडी ने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू की थी. लेकिन यहाँ स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया. विरोध करने वालों में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान और पार्षद अब्दुल वाजिद ख़ान भी शामिल थे.
दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के मेयर मुकेश सूर्यान ने इन दोनों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की मांग की थी. मुकेश सूर्यान ने इन दोनों नेताओं पर सरकारी कार्य में बाधा पहुँचाने का आरोप लगाया था. जबकि अमानतुल्लाह ख़ान ने इसे राजनीति कहा था.
आम आदमी पार्टी के विधायक मुकेश अहलावत ने कहा है कि जब लोगों ने इलाक़ा ख़ाली कर दिया है, तो एमसीडी बुलडोज़र लाकर असुविधा क्यों खड़ी कर रही है. उन्होंने कार्रवाई तुरंत रोकने की मांग की है. (bbc.com)
रूस में विजय दिवस के सालाना जलसे पर यूक्रेन युद्ध का साया हर ओर नजर आ रहा है. सैन्य परेड की सलामी लेने के बाद रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने दावा किया कि रूस डोनबास में 'मातृभूमि' की रक्षा के लिए लड़ रहा है.
रूस सोमवार को नाजी जर्मनी पर जीत की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपना प्रमुख भाषण यह कहते हुए शुरू किया कि रूसी सैनिक एक बार फिर रूस की सुरक्षा के लिए युद्ध लड़ रहे हैं.
मास्को के रेड स्क्वेयर पर करीब 11,000 सैनिकों ने परेड में हिस्सा लिया. व्लादिवोस्तोक और नोवोसिबिर्स्क में भी सेना की परेड हुई.
विजय दिवस के भाषण में और क्या बोले पुतिन?
इस बार पुतिन का भाषण पूरी तरह से यूक्रेन में चल रही लड़ाई पर केंद्रित था, जो 24 फरवरी को रूसी हमले के साथ शुरू हुई. पुतिन का कहना है कि वह "अकेला सही फैसला" था और यह आक्रमण को रोकने के लिए किया गया. पुतिन ने कहा, "पश्चिमी देश रूस पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे. नाटो सीमा पर तनाव पैदा कर रहे थे. वे रूस की नहीं सुनना चाहते थे. उनकी अपनी योजनाएं थीं."
रूसी राष्ट्रपति का दावा है कि उनका देश "मातृभूमि" के लिए डोनबास में लड़ाई लड़ रहा है, जिसका मकसद है कि "कोई भी दूसरे विश्वयुद्ध के सबक न भूले." उन्होंने यह भी कहा कि उनका देश यूक्रेन की लड़ाई में अपना लक्ष्य हासिल करने में सफल होगा.
पुतिन ने रूसी सैनिकों के परिवारों के प्रति समर्थन जताया. उन्होंने कहा, "हर सैनिक और अफसर की मौत हमारे लिए दर्दनाक है. सरकार उनके परिवारों का ख्याल रखने के लिए सब कुछ करेगी."
कितने सच हैं पुतिन के दावे?
आशंका जताई जा रही थी कि पुतिन इस भाषण में सैन्य कार्रवाइयों के और विस्तार की घोषणा कर सकते हैं. हालांकि, पुतिन ने भविष्य में सैनिकों की किसी भी तरह की कार्रवाई या जमावड़े का जिक्र नहीं किया.
डीडब्ल्यू संवाददाता आरोन टिल्ट्रॉन का कहना है, "पुतिन ने यूक्रेन के लोगों और वहां की सरकार को अतीत के नाजियों से कुछ हद तक जोड़कर उन्हें अवैध ठहराने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि यह रूस और रूस की सुरक्षा से जुड़ा है और यूक्रेन के लोगों के साथ ही पश्चिमी देशों पर रूस पर हमला करने का आरोप लगाया."
टिल्टॉन का कहना है, "वास्तव में यह जमीनी स्थिति को उलटना है. हम जानते हैं कि रूसी फेडरेशन के खिलाफ कोई पश्चिमी आक्रामकता नहीं है. रूस वह देश था, जिसने पहले हमला किया. रूस ने बमबारी और गोलीबारी शुरू की, लेकिन चूंकि व्लादिमीर पुतिन की दीर्घकालीन योजना में लोगों को एक लंबे संघर्ष के लिए तैयर करना है, तो उन्हें लोगों से कुछ ऐसी बातें कहनी होंगी, ताकि वे उनके साथ रहें."
अमेरिकी राष्ट्रपति का दफ्तर क्रेमलिन हमले को युद्ध नहीं, बल्कि एक "विशेष सैन्य अभियान" कहता है.
रूस में विजय दिवस क्या है?
सोवियत दौर के बाद आज रूस में जिस अवसर को 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है, वह कई दशकों तक एक दुखद स्मृति दिवस रहा है. सोवियत संघ ने दूसरे विश्वयुद्ध में अपने लाखों लोग खो दिए थे और 9 मई का दिन उस नुकसान को याद करने का था. हालांकि, पिछले कई वर्षों से यह तस्वीर बदल गई है. पुतिन ने इस दिन का इस्तेमाल आमतौर पर घरेलू दबाव का सामना करने में किया है.
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने सोमवार को कहा कि रूस, "दूसरे विश्वयुद्ध के विजेताओं के लिए जो जरूरी था, वह सब कुछ भूल गया है." जेलेंस्की ने चेतावनी दी है, "शैतान दूसरी वर्दी में अलग नारों के साथ लौट आया है, लेकिन उसका उद्देश्य वही है."
बीते कुछ वर्षों से उलट इस बार इस परेड के मौके पर किसी विदेशी राष्ट्रप्रमुख को रूस नहीं बुलाया गया.
यूक्रेन में कैसे हालात हैं?
परेड से ठीक एक दिन पहले यूक्रेनी अधिकारियों ने बताया कि रूसी हवाई हमले में एक स्कूल में शरण लिए 60 लोगों की मौत हो गई.
कई मोर्चों पर जंग जारी है, लेकिन रूस मारियोपोल में अपनी जीत के सबसे करीब है. हालांकि, वहां के स्टील प्लांट में मौजूद यूक्रेनी सैनिक अब भी हथियार डालने से इनकार कर रहे हैं. मारियोपोल पर पूरा नियंत्रण रूस को क्राइमिया के साथ पूर्वी हिस्से को जोड़ने में मदद करेगा. क्राइमिया पहले से ही रूस के कब्जे में है, जबकि पूर्वी इलाके में कुछ हिस्सों पर रूसी अलगाववादियों का नियंत्रण है. कई विशेषज्ञों ने आशंका जताई थी कि पुतिन विजय दिवस के मौके पर इस लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं.
एनआर/वीएस (एपी,एएफपी)
श्रीलंका में गंभीर आर्थिक संकट के महीनों बीत जाने के बाद प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया है. इससे पहले उनके समर्थकों ने उनके विरोधियों के साथ जम कर मारपीट की. हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई.
राजपक्षे के प्रवक्ता रोहन वेलीविता ने बताया कि 76 साल के राजपक्षे ने अपना इस्तीफा अपने छोटे भाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को सौंपा. चिट्ठी में उन्होंने लिखा, "मैं तुरंत इस्तीफा दे रहा हूं ताकि आप मौजूदा आर्थिक संकट से देश को बाहर निकालने के लिए एक सर्वदलीय सरकार को नियुक्त कर सकें."
देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ने हिंसा के घटने से पहले कहा था कि वो ऐसी किसी भी सरकार में शामिल नहीं होगी जिसका नेतृत्व राजपक्षे परिवार का कोई सदस्य कर रहा होगा. प्रधानमंत्री के इस्तीफे का मतलब है कि कैबिनेट भी भंग हो गई है.
सांसद की मौत
देखना होगा कि अब देश में नई सरकार बनाने की दिशा में किस तरह के कदम उठाए जाते हैं. लेकिन उससे पहले सोमवार को हुई हिंसा ने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. हिंसा में कई लोग जख्मी हो गए और कम से कम लोगों की मौत भी हो गई.
राजपक्षे की ही पार्टी के सांसद अमरकीर्ति अतुकोरला ने पहले तो निताम्बुवा में उनकी गाड़ी का रास्ता रोक रहे लोगों पर गोलियां चलाईं और दो लोगों को गंभीर रूप से जख्मी कर दिया. लेकिन बाद में वो खुद पास ही में एक इमारत में मृत पाए गए.
इसके अलावा हिंसा में एक और व्यक्ति की मौत हो गई और 139 लोग घायल हो गए. कम से कम 78 लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाया गया. उससे पहले पुलिस ने कोलंबो में जुटी भीड़ को तीतर बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और वाटर कैनन भी चलाने के बाद कर्फ्यू लगा दिया. बाद में कर्फ्यू पूरे देश में लागू कर दिया गया.
शुक्रवार को ही देश में आपातकाल घोषित किया गया था. राजपक्षे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कई हफ्तों से चल ही रहे थे. लेकिन सोमवार को ग्रामीण इलाकों से बसों में भर कर राजपक्षे का समर्थकों को राजधानी लाया गया. करीब 3,000 समर्थकों को राजपक्षे ने अपने निवास पर संबोधित किया और "देश के हितों की रक्षा करने" की शपथ ली.
कैसे हुई हिंसा
इसके बाद उनके समर्थक उनके आवास से निकले और पहले तो प्रदर्शनकारियों के तम्बू, बैनर इत्यादि हटाए और उसके बाद निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया. एक गवाह ने बताया, "हमें मारा गया, मीडिया को मारा गया, महिलाओं और बच्चों को मारा गया."
श्रीलंका में अमेरिका की राजदूत जूली चुंग ने एक ट्वीट में "शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा" और सरकार ने कहा कि वो इस मामले की पूरी जांच कराए और "जिसने भी हिंसा भड़काई उसे गिरफ्तार किया जाए और सजा दी जाए."
राष्ट्रपति 31 मार्च के बाद से सार्वजनिक तौर पर कहीं दिखाई नहीं दिए हैं. उस दिन हजारों गुस्साए हुए लोगों ने कोलंबो स्थित उनके निजी निवास के अंदर घुसने की कोशिश की थी. श्रीलंका में यह संकट कोरोना वायरस महामारी के बाद शुरू हुआ जिसकी वजह से पर्यटन और विदेश से आने वाले पैसों से कमाई बंद हो गई.
इसकी वजह से विदेशी मुद्रा की कमी हो गई जिसकी जरूरत अंतरराष्ट्रीय ऋण चुकाने के लिए पड़ती है. मजबूर हो कर सरकार ने कई चीजों के आयात पर बैन लगा दिया. इस वजह से कई आवश्यक चीजों की भारी कमी हो गई, महंगाई दर बहुत ऊपर चली गई और बिजली संकट भी हो गया.
सीके/एए (एपी, एएफपी)
जर्मनी में विधानसभा के चुनाव में रुढ़िवादी पार्टी सीडीयू को बड़ी कामयाबी मिली है. इसी हफ्ते जर्मनी की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में भी चुनाव है और पार्टी इस जीत को अगले चुनाव का बड़ा संकेत मान रही है.
जर्मनी की रूढ़िवादी पार्टी सीडीयू ने उत्तरी राज्य श्लेषविग होल्स्टाइन में चुनाव जीत लिया है. पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल इसी पार्टी की नेता हैं. सोमवार सुबह जारी हुए नतीजों के मुताबिक राज्य के मुख्यमंत्री डानियल गुंथर के नेतृत्व में क्रिश्चियान डेमोक्रेटिक यूनियन यानी सीडीयू पर्यावरणवादी ग्रीन पार्टी और मध्य वामपंथी एसपीडी से न सिर्फ आगे है, बल्कि पिछली बार की तुलना में अपना वोट शेयर बढ़ाने में भी कामयाब हुई है.
एसपीडी तीन नंबर पर, तो एएफडी बाहर
केंद्रीय सरकार के गठबंधन का नेतृत्व कर रही और मौजूदा चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी इस चुनाव में खिसककर तीसरे नंबर पर आ गई है. यह उसका श्लेषविग होल्स्टाइन राज्य में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. वहीं एसपीडी, ग्रीन पार्टी से भी पिछड़ गई है. धुर दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड को भी झटका लगा है और वह विधानसभा में आने के लिए जरूरी 5 फीसदी वोट भी हासिल नहीं कर पाई.
सीडीयू के लिए रविवार को हुए चुनावों ने पार्टी को बीते एक साल में सबसे बड़ी जीत दिलाई है. इससे पहले उसे न सिर्फ केंद्र, बल्कि कई राज्यों में भी मुंह की खानी पड़ी थी, जिसमें सारलैंड का चुनाव सबसे आखिर में हुआ था.
अगले चुनाव के लिए संकेत!
अगले रविवार को होने वाला चुनाव इस लिहाज से भी बहुत अहम होगा, क्योंकि जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफालिया यानी एनआरवे में इसी दिन चुनाव होना है. इसे "छोटी संसद का चुनाव" भी कहा जाता है.
नॉर्थ राइन वेस्टफालिया के मुख्यमंत्री हेंद्रिक वुएस्ट ने श्लेषविग होल्स्टाइन में अपनी पार्टी की जीत का जश्न यह कहकर मनाया कि यह अगले हफ्ते होने वाले उनके राज्य के चुनाव के लिए बढ़िया संकेत हैं. हालांकि, चुनावी सर्वेक्षणों के नतीजे में सीडीयू और एसपीडी के बीच कड़ी टक्कर रहने की बात कही जा रही है.
किसे कितने वोट मिले
श्लेषविग होल्स्टाइन के आखिरी नतीजों के मुताबिक सीडीयू को 43,4 फीसदी वोट मिले हैं. पिछली बार यानी 2017 के चुनाव में मिले 32 फीसदी वोटों की तुलना में यह काफी ज्यादा है. ग्रीन पार्टी को 18.3, जबकि कारोबार समर्थक पार्टी एफडीपी को 6.4 फीसदी वोट मिले हैं.
राज्य में थॉमस लॉस मुलर के नेतृत्व वाली एसपीडी को 16 फीसदी वोटों से ही संतोष करना पड़ा. एसपीडी को 2009 में 25.4 फीसदी वोट मिले थे, जिसे अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन कहा जाता था. लेकिन, इस बार तो मामला और बिगड़ गया. वह भी तब, जब केंद्र में सरकार का नेतृत्व और चांसलर दोनों पार्टी के पास हैं. महज 4.4 फीसदी वोट पाने के बाद लोक लुभावन एएफडी की राज्य की विधानसभा से विदाई हो गई है. बीते वर्षों में पार्टी को 5 से 6 फीसदी तक वोट मिल रहे थे. पार्टी के नेता योर्ग नोबिस का कहना है कि अंदरूनी खींचतान की वजह से उसे नुकसान हुआ है.
सीडीयू के पास कई विकल्प
सीडीयू के गुंथर 48 साल के हैं और अब उनके पास सरकार बनाने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं. वह चाहें तो ग्रीन पार्टी और एफडीपी के साथ चले आ रहे मौजूदा गठबंधन को जारी रख सकते हैं या फिर दो पार्टियों वाला नया गठबंधन भी बना सकते हैं.
खुशी से नारे लगाते समर्थकों के सामने गुंथर ने कहा, "लोगों ने बड़ा भरोसा और निश्चित रूप से बड़ा समर्थन दिया है, जो मेरे लिए निजी तौर पर भी है." गुंथर ने याद दिलाया कि उन्होंने चुनाव से पहले ग्रीन पार्टी और एफडीपी के साथ गठबंधन जारी रखने की बात की थी और इस बात पर जोर दिया कि वे दोनों पार्टियों से इस बारे में बात करेंगे.
श्लेषविग होल्स्टाइन में रहने वाले 23 लाख वोटरों पर यह तय करने की जिम्मेदारी है कि विधानसभा का स्वरूप कैसा हो. इस बार वोटरों की तादाद 60.4 फीसदी रहने की बात कही जा रही है, जो 2017 के 64.2 फीसदी से कम है.
यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद ऊर्जा और ईंधन की बढ़ी कीमतों ने चुनाव अभियानों में बड़ी भूमिका निभाई है. लोग ज्यादा राहत की मांग कर रहे हैं. पवन चक्की जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की मांग गांवों के इलाकों से भी आ रही है और यह चुनाव के प्रमुख मुद्दों में था.
एनआर/वीएस (डीपीए)
दुनिया में खाने-पीने की चीजों की कीमतें इस साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गईं. यूक्रेन युद्ध ने गेहूं और उर्वरकों को अन्य देशों तक पहुंचने से रोक दिया तो जलवायु परिवर्तन ने फसलें तबाह कर दीं. भोजन का संकट गहरा रहा है.
इस साल मार्च में गेहूं की कीमत बीते 14 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई. वहीं मक्के ने तो ऊंची कीमत के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. 'इंटरनेशनल पैनल ऑफ एक्सपर्ट्स ऑन सस्टेनेबल फूड सिस्टम' यानी आईपीईएस ने एक रिपोर्ट में ये जानकारी दी है. इसकी वजह से जो मुख्य उपज है, वह या तो बहुत महंगी हो गई है या फिर कई देशों में आसानी से मिल नहीं रही. खासतौर से गरीब देशों के परिवारों को.
जलवायु परिवर्तन, व्यापक रूप से मौजूद गरीबी और युद्ध अब साथ मिलकर दुनियाभर में खाने-पीने की चीजों के लिए "खास इलाकों में और व्यापक पैमाने" पर खतरा पैदा कर रहे हैं. आईपीईएस का कहना है कि इसका एक मतलब यह भी है कि अगर खतरों को रोकने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो यही ऊंची कीमतें हमेशा के लिए रह जाएंगी.
इसके लिए ना सिर्फ उत्सर्जन को तेजी से घटाना होगा, ताकि जलवायु परिवर्तन को सीमित किया जा सके बल्कि, मुनाफाखोरी और जमाखोरी से निबटने के साथ ही कर्ज में राहत, रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता, कारोबार में बदलाव और राष्ट्रीय अनाज भंडारों को बढ़ाना होगा.
आईपीईएस के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इन चीजों की अनदेखी हुई, तो दुनिया खुद को "विनाशकारी और सुनियोजित भोजन संकट के भविष्य की तरफ जाते देखेगी."
खाने पीने की चीजें इतनी महंगी क्यों हैं?
दुनिया के कुल उत्पादन का 30 फीसदी गेहूं रूस और यूक्रेन में पैदा होता है, लेकिन युद्ध के कारण यह हिस्सेदारी घट गई है. जिन देशों में गेहूं पैदा होता है और वहीं खाया जाता है, उनके यहां गेहूं का भंडार भरा हुआ है, लेकिन यूक्रेन और रूस से निर्यात में कमी के कारण वैश्विक बाजार में बाकी बचे गेहूं के लिए होड़ मची हुई है. इसकी वजह से कीमतें बढ़ रही हैं. अब ये बढ़ी हुई कीमतें गरीब और कर्ज में डूबे ऐसे देशों के लिए संकट बढ़ा रही हैं, जो आयात पर निर्भर हैं.
अफ्रीका करीब 40 फीसदी गेहूं का आयात यूक्रेन और रूस से करता है. दुनिया में गेहूं की बढ़ती कीमतों ने लेबनान में इसके भाव 70 फीसदी बढ़ा दिए हैं. हालांकि, कीमतें बढ़ने की वजह सिर्फ रूस-यूक्रेन युद्ध ही नहीं है. गेहूं के साथ-साथ मक्का, चावल और सोयाबीन की कीमतें भी बढ़ गई हैं, क्योंकि खरीदार वैकल्पिक अनाजों की ओर मुड़ रहे हैं.
युद्ध को देखते हुए आर्थिक मुनाफाखोरों ने अनाजों के व्यापार में हाथ डाल दिया है. कृत्रिम रूप से कीमतें बढ़ाई जा रही हैं, क्योंकि वे बाजार की अनिश्चितता का फायदा उठाना चाहते हैं. जी-7 देशों के कृषि मंत्रियों ने इसकी बाकायदा शिकायत की है.
कनाडा के वाटरलू यूनिवर्सिटी में खाद्य सुरक्षा की विशेषज्ञ प्रोफेसर जेनिफर क्लाप कहती हैं कि 2007-2008 और 2011-2012 में खाने-पीने की चीजों की कीमतों के संकट के बाद, "सरकारें अत्यधिक मुनाफाखोरी को रोकने और कमोडिटी मार्केट और भोजन के भंडारों में पारदर्शिता लाने में नाकाम रहीं." उन्होंने यह भी कहा कि अगर दुनिया आने वाले वर्षों में खाने-पीने के सामान की कीमतों में स्थिरता चाहती है, तो इस समस्या का तुरंत समाधान करना होगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन, युद्ध और दूसरी वजहें खतरा बढ़ा रही हैं.
क्या ज्यादा उपज से नहीं बढ़ा सकते आपूर्ति?
गेहूं की खेती करने वाले कुछ देश पहले ही पैदावार बढ़ा रहे हैं. भारत ने तो बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए निर्यात बढ़ाने का वादा भी किया है. हालांकि, भारत में इस साल जो लपट भरी लू चल रही है, उसकी वजह से गेहूं की पैदावार में कमी हो सकती है.
पैदावार बढ़ाने की कोशिशों में रासायनिक उर्वरकों की कमी से भी समस्या पेश आएगी. पिछले साल पूरी दुनिया में पोटाश के कुल निर्यात का 40 फीसदी केवल रूस और बेलारूस से आया था. इस पर भी युद्ध के कारण बुरा असर पड़ा है.
सूखा, गर्म हवाएं, बाढ़ और नए हानिकारक कीटों के रूप में दुनिया के किसानों के सामने कई चुनौतियां हैं, जो भरोसेमंद उपज की राह में बाधा बन रही हैं. जाहिर कि यह समस्या धरती को गर्म करने वाले उत्सर्जनों को और बढ़ाएगी ही.
इतना ही नहीं, गेहूं, मक्का और चावल की उपज बढ़ाने के लिए जमीन भी सीमित ही है. खेती की जमीन बढ़ाने का नतीजा अक्सर ब्राजील जैसे देशों में जंगलों की कटाई के रूप में सामने आता है. जबकि जलवायु को स्थिर रखने के लिए यही जंगल सबसे ज्यादा जरूरी हैं.
थिंक टैंक चाथम हाउस में पर्यावरण और समाज कार्यक्रम के शोध निदेशक टिम बेनटन कहते हैं कि प्रकृति की रक्षा, अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल और कार्बन को जमा करने की कोशिशों के बीच सीमित जमीन के कारण इस शताब्दी में वे रणनीतिक वैश्विक संपदा बन गए हैं. बेनटन ने यह भी कहा कि यूक्रेन की खेती वाली और ज्यादा जमीन और भविष्य के वैश्विक खाद्य बाजार को नियंत्रित करने की इच्छा भी यूक्रेन युद्ध का एक कारण हो सकती है.
भोजन को किफायती कैसे रखा जा सकता है?
दुनिया में अनाज का एक बड़ा हिस्सा मवेशियों की भूख मिटाने में भी खर्च होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि लोगों को मांस और डेयरी उत्पाद कम खाने के लिए तैयार करके अनाज की आपूर्ति नाटकीय रूप से बढ़ाई जा सकती है.
इस साल वैश्विक स्तर पर अनाज के निर्यात में 2.0-2.5 करोड़ टन की कमी आ सकती है. हालांकि, अगर केवल यूरोपवासी ही जानवरों से मिलने वाले अपने भोजन में 10 फीसदी की कमी कर लें, तो वो मांग में 1.8-1.9 करोड़ टन की कमी ला सकते हैं.
आयात पर निर्भर देशों में अनाज के भंडारण को बेहतर बनाना और अनाज उगाने वाले देशों को मुख्य उपज उगाने में मदद देकर भी स्थिति संभाली जा सकती है, क्योंकि अनाज उगाने वाले कई देशों में आज नकदी फसलों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है.
इसके साथ ही दुनिया में अलग-अलग फसलें उगाना भी खाद्य सुरक्षा को मजबूत कर सकता है. फिलहाल कुछ ही फसलों पर ज्यादा ध्यान है और इसकी वजह से मुट्ठीभर निर्यातक बाजार में वर्चस्व बनाकर बैठे हैं.
साथ ही, जलवायु के लिहाज से बेहतर कृषि के कुछ तरीके अपनाने होंगे, ताकि धरती को गर्म होने से रोकने के साथ ही भोजन की आपूर्ति भी बढ़ाई जा सके. गरीब देशों को ज्यादा कर्ज से राहत देना होगा, ताकि उनके पास भोजन की कीमतों में आ रही उठापटक से निबटने का साधन रहे.
खाने की कीमतें बढ़ती रहीं, तो क्या होगा?
खाने की कीमतें बढ़ने के कारण मानवीय एजेंसियों को अफगानिस्तान, यमन, दक्षिणी सूडान और सीरिया जैसे देशों के लिए अनाज खरीदने में बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है.
अंतरराष्ट्रीय सहायता तंत्र यूक्रेन युद्ध के पहले से ही बढ़ती जरूरतों और अपर्याप्त धन से जूझ रहा है अब ऊंची कीमतों का मतलब है कि कम ही अनाज खरीदा जा सकेगा. संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम से जुड़े गर्नोट लागांडा का कहना है, "यह पहले कभी इतना बुरा नहीं रहा." उन्हें डर है कि मौजूदा खाद्य संकट में अगर जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरे जोड़ दिए जाएं, तो बढ़ती कीमतें, "भागती ट्रेन बन जाएंगी, जिन्हें रोका नहीं जा सकेगा."
चाथम हाउस के बेनेटन का कहना है कि यूक्रेन युद्ध भोजन की कीमतों में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने वाला कारण बन सकता है. उन्होंने यह भी कहा, "सस्ते और भरपूर मिलने वाले भोजन का खत्म हो जाना कुछ लोगों के लिए अब सच्चाई बनने जा रहा है."
एनआर/वीएस (रॉयटर्स)
केंद्र की एनडीए सरकार के सहयोगी और बिहार में सत्ताधारी जनता दल (यूनाइटेड) ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था के हालात बहुत अच्छे नहीं है. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा है कि रिज़र्व बैंक के फ़ैसलों पर भी आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि आरबीआई ने जो दो फ़ैसले सीआरआर और रेपो रेट पर लिए हैं, उस पर आरबीआई और केंद्र के बीच सहमति नहीं है. ये एक दिन बाद केंद्रीय वित्त मंत्री के बयान से भी स्पष्ट होता है.
राजीव रंजन प्रसाद ने डॉलर के मुक़ाबले रुपए की गिरती क़ीमत पर भी चिंता जताई और कहा कि इससे आयात और महंगे होंगे और भारत को अपनी विदेशी पूँजी का बड़ा हिस्सा और ज़्यादा ख़र्च करने के लिए तैयार रहना होगा. उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार को आरबीआई और आर्थिक विशेषज्ञों की सहायता से अल्पकालिक और दीर्घकालिक रणनीति पर काम करना चाहिए. एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी और इसके सांसद राहुल गांधी ने रुपए की क़ीमत को लेकर मोदी सरकार को घेरा था. कांग्रेस का कहना था कि मोदी सरकार की नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है. कांग्रेस का कहना था कि रुपया आईसीयू में है. (bbc.com)
फिलीपींस में फर्डिनांड मार्कोस जूनियर राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. लेकिन उनके परिवार का इतिहास उनके बारे में लोगों के अंदर आशंकाएं पैदा कर रहा है.
फिलीपींस के तानाशाह रहे फर्डिनांड मार्कोस के बेटे फर्डिनांड मार्कोस जूनियर भारी-भरकम जीत के साथ देश के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. सोमवार को हुए चुनाव में उन्हें बड़े अंतर से विजय मिलने का अनुमान है, जिसके साथ देश के सबसे प्रसिद्ध राजनीतिक परिवार की एक बार फिर सत्ता में वापसी हो रही है.
फर्डिनांड मार्कोस जूनियर को अपने प्रतिद्वन्द्वी लेनी रोब्रेडो से दोगुने से भी ज्यादा मत मिले हैं. रोब्रेडो मौजूदा राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे की सरकार में उपराष्ट्रपति थे. 96 प्रतिशत से ज्यादा मतों की गिनती के बाद उन्हें 1.45 करोड़ मत मिले जबकि तीसरे नंबर पर मशहूर मुक्केबाज मैनी पैकियो रहे जिन्हें अब तक 35 लाख मत मिले. मार्कोस को 3.05 करोड़ मत मिले.
कौन हैं मार्कोस जूनियर?
64 वर्षीय मार्कोस जूनियर एक प्रांत के पूर्व गवर्नर, सांसद और सेनटेर रह चुके हैं. 1986 में उनके पिता फर्डिनांड मार्कोस देश के तानाशाह शासक थे जिन्हें एक शांतिपूर्ण क्रांति के बाद पद से हटाया गया था. उन पर अपने परिवार के साथ मिलकर सत्ता में रहते हुए 5 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति जुटाने के आरोप लगे थे. 1989 में उनकी हवाई में निर्वासन में ही मौत हो गई थी.
हवाई की एक अदालत ने उन्हें मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए जिम्मेदार माना और उनकी दो अरब डॉलर की संपत्ति बेचकर 9,000 से ज्यादा फिलीपीनी नागरिकों को मुआवजा देने का आदेश दिया. 1991 में उनकी विधवा और बच्चों को देश लौटने की इजाजत मिली. लौटने के बाद परिवार ने राजनीति में सक्रिय होते हुए कई तरह के अभियान चलाए.
मार्कोस जूनियर ने अपने पति की विरासत को सही ठहराया है और उनके किसी भी कृत्य के लिए माफी मांगने से इनकार किया है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े अभियान चलाकर वोट मांगे और परिवार की छवि सुधारने की कोशिश की.
मार्कोस को लेकर चिंताएं
सिंगापुर स्थित यूरेशिया ग्रुप के अभ्यास प्रमुख पीटीर मम्फर्ड कहते हैं कि मार्कोस की भारी जीत इस बात की गारंटी नहीं है कि वह एक लोकप्रिय या प्रभावशाली नेता साबित होंगे. मम्फर्ड ने कहा, "यह बस उनके कार्यकाल की मजबूत शुरुआत है. खासकर, कांग्रेस के सदस्यों में शुरुआत में उनका समर्थन बढ़ेगा और कई अर्थशास्त्री और तकनीकी विशेषज्ञ उनकी सरकार में काम करना चाहेंगे.”
कैपिटल इकनॉमिक्स के अर्थशास्त्री ऐलेक्स होम्स का मानना है कि मार्कोस को लेकर कई तरह की चिंताएं भी हैं. वह कहते हैं, "इस जीत ने मार्कोस को बेहद मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है. लेकिन उनके पारिवारिक इतिहास और अब तक के राजनीतिक करियर को देखते हुए, निवेशकों में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और खराब प्रशासन को लेकर चिंताएं हैं.”
मम्फर्ड भी कुछ ऐसी ही आशंकाएं जाहिर करते हैं. वह कहते हैं, "उनकी सरकार में देखने वाली जो एक मुख्य बात होगी, वो यह होगी कि भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद पर क्या स्थिति रहती है क्योंकि इसका खतरा तो फिलीपींस में पहले से है, कहीं यह और खराब तो नहीं हो जाएगी. यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मार्कोस इन चिंताओं को मानते हैं और इन पर कोई कदम उठाते हैं या नहीं, ताकि विदेशी निवेशकों को भरोसा दिलाया जा सके. या फिर वह भी अपने जानने वालों को ही मुख्य पदों पर नियुक्त करेंगे, जो निवेशकों की चिंता है.”
अमेरिका या चीन?
अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्ट्डीज के दक्षिण पूर्व एशिया डायरेक्टर ग्रेग पोलिंग कहते हैं कि यह 1972 नहीं है बल्कि 2022 है. उन्होंने कहा, "जल्दी ही वह देश के चुने हुए राष्ट्रपति होंगे. लेकिन यह 2022 है, 1972 नहीं. यह फिलीपींस के लोकतंत्र का अंत नहीं है लेकिन उसका क्षरण तेज हो सकता है.”
पोलिंग के मुताबिक अमेरिका को मार्कोस के साथ संवाद से ही लाभ पहुंचेगा. वह कहते हैं, "अमेरिका को आलोचना के बजाय संवाद से लाभ होगा. मार्कोस अपनी नीतियों को लेकर रहस्यमयी हैं. उन्होंने इंटरव्यू नहीं दिए, राष्ट्रपति पद के लिए बहसों से बचते रहे और ज्यादातर मुद्दों पर चुप रहे. लेकिन वह एक बात को लेकर स्पष्ट थे कि चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए वह एक बार फिर कोशिश करना चाहेंगे.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
भारत में एक बार फिर चीन की एक कंपनी पर कार्रवाई हो रही है. लेकिन इस बार चीन ने भी अपनी बात रखी है और भारत से भेदभाव ना करने को कहा है.
चीन ने भारत से कहा है कि उसकी कंपनियों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए. चीनी कंपनी शाओमी ने आरोप लगाए हैं कि उसके अधिकारियों के साथ अवैध लेनदेन के मामले में पूछताछ के दौरान हिंसा हुई.
भारत में स्मार्टफोन बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी शाओमी ने अदालत में दायर एक हलफनामे में आरोप लगाए थे कि भारतीय प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने कंपनी के अधिकारियों को मार-पीट और जोर-जबर्दस्ती की धमकी दी. प्रवर्तन निदेशालय ने इन आरोपों को गलत बताया था.
क्या है मामला?
यह मामला पिछले महीने का है जब भारत ने शाओमी के स्थानीय बैंक खातों से 72.5 करोड़ डॉलर यानी लगभग 56 अरब रुपये यह कहते हुए जब्त कर लिए कि कंपनी ने रॉयल्टी भुगतान के रूप में विदेश में अवैध तरीके से धन भेजा है. शाओमी इन आरोपों को गलत बताती है. उसका कहना है कि रॉयल्टी के रूप में जो भुगतान किया गया है वह पूरी तरह जायज है.
पिछले हफ्ते एक अदालत ने शाओमी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई पर स्थगन आदेश जारी कर दिया था. मामले की जानकारी रखने वाले कुछ सूत्रों के मुताबिक कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्थगन आदेश इस शर्त पर दिया कि शाओमी रॉयल्टी भुगतान आदि के बारे में भारतीय अधिकारियों को सूचित करेगी.
इससे पहले शाओमी के भारत में मुखिया रह चुके मनु कुमार जैन से भी प्रवर्तन निदेशालय ने पूछताछ की थी. जैन अब दुबई में कंपनी के ग्लोबल वाइस प्रेजीडेंट के तौर पर काम कर रहे हैं. पिछले महीने वह भारत में थे. इस बारे में पूछे जाने पर कंपनी ने कहा था, "हम जांच में अधिकारियों के साथ सहयोग कर रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि सारी सूचनाएं उपलब्ध करवाई जाएं.”
चीन ने कहा, भेदभाव ना हो
चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि चीन अपनी कंपनियों के अधिकारों और हितों का पूरी तरह समर्थन करता है. मीडिया से बातचीत में प्रवक्ता जाओ लीजियां ने कहा, "चीन उम्मीद करता है कि भारत में निवेश और काम करने वालीं चीनी कंपनियों को निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और भेदभाव-रहित माहौल उपलब्ध कराया जाएगा. जांच कानून के दायरे में होगी और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का भरोसा बढ़ाया जाएगा.”
इस बारे में प्रवर्तन निदेशालय या भारत सरकार के प्रवक्ता ने कोई टिप्पणी नहीं की है. शाओमी ने भी फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की है. भारत के स्मार्टफोन बाजार में शाओमी की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत से भी ज्यादा है और उसके 1,500 से ज्यादा कर्मचारी हैं.
2020 में लद्दाख सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव होने के बाद से चीनी कंपनियों को भारत में व्यापार को लेकर कई तरह की मुश्किलें आती रही हैं. उसके बाद से भारत अपने यहां 300 से ज्यादा चीनी ऐप प्रतिबंधित कर चुका है. इस कदम के पीछे सुरक्षा कारणों का हवाला दिया गया. बैन की गईं चीनी ऐप्स में टिक-टॉक भी शामिल है. इसके अलावा भारत ने चीनी कंपनियों के लिए नियमों में भी खासी सख्ती कर दी है. दिसंबर में निदेशालय ने शाओमी समेत कई चीनी कंपनियों पर छापेमारी की थी.
वीके/एए (रॉयटर्स)
अफगानिस्तान में कई महिलाएं बुर्का अनिवार्य करने के तालिबान के फैसले से नाराज हैं. विश्लेषकों के मुताबिक इस बीच यह तालिबान के बीच विभाजन का स्पष्ट संकेत है.
तालिबान ने अफगानिस्तान में सभी महिलाओं के लिए बुर्का अनिवार्य कर दिया है. देश के बड़े शहरों में महिलाएं इस फैसले से नाखुश हैं. 7 मई को तालिबान के सर्वोच्च नेता ने महिलाओं को सार्वजनिक रूप से बुर्का पहनने का आदेश सुनाया था.
तालिबान के नए आदेश के बाद काबुल में गणित की शिक्षिका आरूजा अगले दिन अपनी दोस्त के साथ शॉपिंग करने निकली तो वह डरी हुई नजर आई. वह तालिबान के डर से अपने शरीर पर कसकर चादर लपेटे हुए थी. चादर के ऊपर उन्होंने एक कोट पहन रखा था. लेकिन उन्हें चिंता इस बात की थी कि सिर्फ चादर लपेट लेने से तालिबान संतुष्ट नहीं होगा. उनकी आंखें दिख रहीं थीं और चेहरा नजर आ रहा था.
जब वे बाजार से गुजर रही थी तो उनकी नजर तालिबान के लड़ाकों पर थी, उन्हें डर था कि कहीं लड़ाके उन्हें इस तरह से ना देख ले.
महिलाओं की आजादी पर पहरा
अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा द्वारा जारी आदेश यहां तक कहता है कि महिलाओं को जब तक आवश्यक न हो वह घर से बाहर न निकलें और इसका उल्लंघन होने पर महिलाओं के पुरुष रिश्तेदारों के लिए भी सजा हो सकती है.
शबाना नाम की एक महिला तालिबान के नए आदेश पर कहती हैं, "अफगानिस्तान में महिलाएं हिजाब और बुर्का भी पहनती हैं. लेकिन तालिबान के इस फैसले का मकसद महिलाओं को गायब करना है, ताकि वे दिखाई न दें."
आरूजा का कहना है कि तालिबान महिलाओं को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है. आरूजा कहती हैं, "अगर वे हमें अधिकार देने के लिए तैयार नहीं हैं तो मैं यहां क्यों रुकूं. हम भी इंसान हैं."
एक अन्य महिला जिसका नाम परवीन वह कहती हैं, "हम जेल में नहीं रहना चाहते हैं."
अखुंदजादा ने 7 मई को जो आदेश जारी किया, उसमें कहा गया कि देश की सभी महिलाओं को बुर्का पहनने की आवश्यकता है. आदेश के मुताबिक, "महिलाओं को चादर पहननी चाहिए, जो परंपरा के अनुसार है. शरीयत में जैसा कहा गया है उसके मुताबिक शरीर को ढका जाना चाहिए. इससे अनजान पुरुषों से मिलते समय उन पुरुषों के मन में गलत विचार नहीं आएंगे."
महिलाओं के लिए कठोर फैसला
आदेश के विवरण के बारे में बताते हुए संबंधित तालिबान मंत्रालय ने कहा कि इसका पालन न करने की स्थिति में महिला के पिता या करीबी रिश्तेदार को गिरफ्तार किया जा सकता है और कैद किया जा सकता है. अगर वे सरकारी सेवा में हैं तो उन्हें नौकरी से निकाला जा सकता है. तालिबान द्वारा महिलाओं के खिलाफ उठाया गया यह अब तक का सबसे कठोर कदम है.
तालिबान ने पहले 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था. उस दौरान भी सख्त इस्लामी कानून लागू थे. अफगानिस्तान में मौजूदा समय में अधिकांश महिलाएं अपने धार्मिक विश्वासों के आधार पर सिर पर स्कार्फ और बुर्का पहनती हैं. लेकिन बड़े शहरों में महिलाएं अपना चेहरा नहीं छिपाती हैं.
दो गुट में बंटा तालिबान!
फिलहाल तालिबान दो गुटों में बंटा हुआ है. एक ओर चरमपंथी समूह है जो पिछले शासन के तरीकों का समर्थन करता है तो वहीं दूसरी तरफ अपेक्षाकृत उदारवादी समूह है. इस विभाजन के कारण तालिबान सभी गुटों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक नियमित सरकार नहीं बना पाया है.
अफगान सरकार के सलाहकार के रूप में काम कर चुके एक विश्लेषक तारिक फरहादी का मानना है कि तालिबानी नेता जमीनी स्तर पर मतभेद नहीं ला रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि ऐसा करने से उनकी शासन करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. फरहादी के मुताबिक, "कई मुद्दों पर नेतृत्व में मतभेद हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अगर वे एकजुट नहीं रहे, तो सब कुछ बिखर सकता है."
एए/सीके (एपी)
श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देने के बाद भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ. देश भर में भारी हिंसा के बीच प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे के घर को जला दिया.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
राजपक्षे के समर्थकों द्वारा मारपीट किए जाने के बाद गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने देश भर में राजपक्षे परिवार और सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों के कई घर जला दिए. सिलसिला बसें फूंकने से शुरू हुआ और जल्द ही राजपक्षे बंधुओं के माता-पिता के स्मारक और उनके पैतृक घर को जला दिया गया.
उनका पैतृक घर कोलंबो से करीब 250 किलोमीटर दूर हंबनटोटा में है. उसके अलावा तीन पूर्व मंत्रियों और दो सांसदों के घरों को भी जला दिया गया. हिंसा में अभी तक पांच लोगों की जान जा चुकी है और 190 से भी ज्यादा लोग घायल हैं.
12 मंत्रियों के घर जलाए गए
पूरे देश में लगा कर्फ्यू बुधवार 11 मई तक बढ़ा दिया गया है. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के भी इस्तीफे की मांग की जा रही है. महिंदा राजपक्षे के इस्तीफा देने के बाद सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो स्थित उनके आधिकारिक निवास के अंदर भी घुसने की कोशिश की.
पुलिस ने भीड़ को पीछे करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और हवा में गोलियां भी चलाईं. बाद में भोर से ठीक पहले सेना ने राजपक्षे और उनके परिवार को वहां से सुरक्षित निकाल लिया. एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि राजपक्षे के निवास पर कम से कम 10 पेट्रोल बम भी फेंके गए.
मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि अब तक 12 से ज्यादा मंत्रियों के घर जलाए जा चुके हैं. प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो में पूर्व मंत्री जॉनसन फर्नांडो की गाड़ी को एक झील में धक्का दे दिया.
सांसद ने ले ली अपनी ही जान
सोमवार पूरे दिन और देर रात तक चली हिंसा के बाद मंगलवार सुबह कोलंबो की सड़कों पर शांति थी. पुलिस के प्रवक्ता निहाल थलडुवा ने बताया, "स्थिति अब काफी शांत है. हालांकि छिटपुट अशांति की खबरें अभी भी आ रही हैं." उन्होंने यह भी बताया कि हिंसा के लिए अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है.
सोमवार को भीड़ द्वारा घेर लिए जाने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद अमरकीर्ति अतुकोराला ने दो लोगों पर गोलियां चला दी थीं, जिनमें से 27 साल के एक व्यक्ति की जान चली गई. बाद में सांसद का ही शव एक इमारत से बरामद हुआ.
एक पुलिस अफसर ने एएफपी को फोन पर बताया कि उन्होंने अपनी ही रिवॉल्वर से अपनी जान ले ली थी. पुलिस ने यह भी बताया कि उसी जगह उनके अंगरक्षक की भी लाश मिली. सत्तारूढ़ पार्टी के एक और नेता ने भी प्रदर्शनकारियों पर गोली चला दी थी, जिसमें दो लोग मारे गए और पांच घायल हो गए.
क्या कर सकते हैं राष्ट्रपति
महिंदा राजपक्षे ने कहा था कि वो इस्तीफा दे रहे हैं ताकि एक एकजुट सरकार बन सके, लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि विपक्ष ऐसी सरकार बनाने में शामिल होगा या नहीं. श्रीलंका के संविधान के तहत इस तरह की एकजुट सरकार में भी मंत्रियों और जजों को नियुक्त करने और बर्खास्त करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होगी.
राष्ट्रपति पर कोई मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकेगा. विल्सन सेंटर में समीक्षक माइकल कुगल्मैन ने बताया, "जब तक राष्ट्रपति राजपक्षे इस्तीफा नहीं दे देते, कोई शांत नहीं होगा- न सड़कों पर जनता और न प्रमुख राजनीतिक नेता."
एशिया सोसायटी पॉलिसी संस्थान के अखिल बेरी के मुताबिक अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि राष्ट्रपति का अगला कदम क्या होगा. उन्होंने बताया कि तुरंत इस्तीफा देने की जगह वो एक कार्यकारी सरकार नियुक्त कर सकते हैं.
वो सेना और पुलिस को तैनात कर प्रदर्शनों को दबाने का आदेश भी दे सकते हैं या उनके "प्राकृतिक रूप से अंत हो जाने" का इंतजार भी कर सकते हैं.
(एफपी और रॉयटर्स से जानकारी के साथ)
चंडीगढ़, 10 मई । पंजाब के मोहाली में पुलिस के खुफिया इकाई के मुख्यालय परिसर में सोमवार रात रॉकेट चालित ग्रेनेड से हमला किया गया था. जिससे इमारत की एक मंजिल की खिड़की के शीशे टूट गए थे. इस हमले पर राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान का आज बयान आया है. जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य का माहौल खराब करने की कोशिश करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. सीएम मान ने कहा, "पंजाब पुलिस मोहाली में हुए विस्फोट की जांच कर रही है. जिसने भी पंजाब का माहौल खराब करने की कोशिश की, उसे बख्शा नहीं जाएगा.
इस हमले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी बयान आया है और उन्होंने इसे कायरतापूर्ण कृत्य बताते हुए कहा कि सभी दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि "मोहाली ब्लास्ट उन लोगों की कायराना हरकत है जो पंजाब की शांति भंग करना चाहते हैं. आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार उन लोगों के मंसूबे पूरे नहीं होने देगी. पंजाब के सब लोगों के साथ मिलके हर हालत में शांति क़ायम रखी जाएगी और दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवाई जाएगी
गौरतलब है कि ये धमाका शाम करीब 7.45 बजे मोहाली के सेक्टर 77 स्थित कार्यालय में हुआ था. विस्फोट के कारण इमारत की एक मंजिल की खिड़की के शीशे टूट गए थे. मोहाली पुलिस ने एक बयान में कहा था कि, ''शाम 7.45 बजे सेक्टर 77, एसएएस नगर में पंजाब पुलिस खुफिया मुख्यालय परिसर में एक मामूली विस्फोट की सूचना मिली. किसी नुकसान की सूचना नहीं है. वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर हैं और मामले की जांच की जा रही है. फॉरेंसिक टीम को बुलाया गया है.'' 'विस्फोट एक रॉकेट दागे जाने जैसा था. (भाषा इनुपट के साथ)
नई दिल्लीः जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है, क्या वहां पर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है? सोमवार को ये सवाल सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से उठा. केंद्र सरकार ने नया हलफनामा दायर करके कहा है कि इस बारे में उसे राज्य सरकारों और अन्य पक्षकारों से व्यापक विचार विमर्श करने की जरूरत है क्योंकि इसका देश भर में दूरगामी असर होगा. बिना विस्तृत चर्चा के लिया गया फैसला देश के लिए अनपेक्षित जटिलता का कारण बन सकता है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की याचिका के जवाब में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने ये हलफनामा दाखिल किया है. केंद्र का नया रुख कुछ मायनों में उसके 25 मार्च को दाखिल एफिडेविट से अलग है, जिसमें उसने हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की जिम्मेदारी राज्यों पर डालने की कोशिश की थी. तब केंद्र ने कहा था कि राज्यों के पास भी किसी समूह को अल्पसंख्यक घोषित करने का अधिकार है. केंद्र ने ये कहकर याचिका खारिज करने की गुहार लगाई थी कि याचिकाकर्ता की की गई मांग किसी बड़े सार्वजनिक या राष्ट्रीय हित में नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के लगातार जोर डालने और 7500 रुपये का जुर्माना लगाए जाने के बाद केंद्र ने ये हलफनामा दाखिल किया था. हालांकि 28 मार्च को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से और समय मांगा था. अब जाकर केंद्र ने नया हलफनामा पेश किया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अश्विनी उपाध्याय की जिस याचिका पर केंद्र का ये हलफनामा आया है, वो 2020 में दायर की गई थी. लेकिन उससे पहले 2017 में भी उन्होंने हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग करते हुए पहली बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जिसे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भेज दिया गया था, जिसने कहा गया था कि केवल केंद्र सरकार ही ये राहत दे सकता है.
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने 2011 की जनगणना के आधार पर याचिका में कहा है कि लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के टीएमए पई मामले में दिए गए फैसले के मुताबिक, इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए.
केंद्र ने नए हलफनामे में 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट और 2004 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग कानून का बचाव किया है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट के तहत केंद्र ने 6 समुदाय- ईसाई, सिख, मुस्लिम, बौद्ध, पारसी और जैन को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है. NCMEI एक्ट राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट के तहत अधिसूचित छह समुदायों को उनकी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अधिकार देता है.
अपने पिछले हलफनामे में केंद्र ने उपाध्याय की याचिका को “अयोग्य और कानून में गलत” करार दिया था. लेकिन अब नए एफिडेविट में सरकार ने कहा है कि याचिका में शामिल मुद्दों का “पूरे देश में दूरगामी प्रभाव” होगा, इसलिए उसे राज्यों से व्यापक विचार विमर्श करने की जरूरत है.
दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित कुतुब मीनार परिसर में कुव्वत- उल-इस्लाम मस्जिद के ढांचे में लगी मूर्तियों को लेकर एक बार फिर विवाद गहरा गया है. दरअसल हिंदू संगठन वहां लगी भगवान गणेश की दो उल्टी मूर्तियों को लेकर खासे खफा हैं. संगठनों का कहना है कि मस्जिद में लगी उल्टी मूर्तियों से हिंदू धर्म के लोगों की भावनाओं को काफी ठेस पहुंच रही है इसलिए इन्हें वहां से हटाया जाना चाहिए.
हिंदू संगठनों ने ढांचे में पूजा करने की अनुमति मांगी है
हिंदू संगठनों ने मस्जिद के ढांचे पर लगी सभी मूर्तियों को हटाकर उन्हें प्रतिष्ठित करने की मांग की है. साथ ही पूजा करने की अनुमति भी मांगी गई है. इतना ही नहीं कुतुबमीनार का नाम विष्णु स्तंभ किए जाने की मांग भी की जा रही है. बता दें कि यूनाइटेड हिंदू फ्रंट के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जयभगवान गोयल ने इन मांगों को लेकर अन्य हिंदू संगठनों के साथ मंगलवार को कुतुब मीनार परीसर में हुनमान चालीसा का पाठ करने की घोषणा की है.
हिंदू संगठनों ने कुतुब मीनार परिसर में हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा की
गोयल ने कहा कि वे हिंदू संगठनों को साथ लेकर शांतिपूर्वक वहां जाएंगे और कुतुब मीनार परिसर स्थित मस्जिद के नाम से जाने जा रहे ढांचे को मंदिर घोषित करने की मांग करेंगे और वहां हनुमान चालीसा भी पढ़ेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि वे किसी धर्म के बारे में कोई बात नहीं करेंगे बस उनकी यही मांग है कि ढांचे में लगी भगवान की मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति दी जाए या वहां से मूर्तियां निकालकर एक ऐसे स्थान पर प्रतिष्ठित की जाए जहां वे पूजा कर सकें.
कुतुब मीनार का नाम विष्णु स्तंभ किए जाने की मांग भी हो रही है
गोयल ने आगे कहा कि ये पूरी तरह साफ है कि ढांचे को 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था और उसमें मूर्तियां हैं तो ये ढांचा मंदिर ही हुआ. उन्होंने तर्क दिया कि कई विज्ञानों ने भी कहा है कि कुतबमीनार वास्तव में विष्णु स्तंभ है. लेकिन कुछ अलग विचारधारा के लोगों ने इतिहास गलत लिखा है. उन्होंने कहा कि उनकी ये भी मांग है कि कुतुब मीनार का नाम विष्णु स्तंभ किया जाए.
पंजाब के मोहाली में पुलिस ख़ुफ़िया मुख्यालय पर सोमवार देर शाम हुए ग्रेनेड हमले पर राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा है कि अपराधियों को बख़्शा नहीं जाएगा.
मंगलवार की सुबह ट्वीट करते हुए मुख्यमंत्री मान ने लिखा, “मोहाली में हुए ब्लास्ट की जांच पुलिस कर रही है. जिसने भी हमारे पंजाब का माहौल खराब करने की कोशिश की उसे बख़्शा नहीं जाएगा.”
वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, “मोहाली ब्लास्ट उन लोगों की कायराना हरकत है जो पंजाब की शांति भंग करना चाहते हैं. आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार उन लोगों के मंसूबे पूरे नहीं होने देगी. पंजाब के सब लोगों के साथ मिलकर हर हालत में शांति क़ायम रखी जाएगी और दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवाई जाएगी.”
सोमवार की देर शाम 7.45 बजे रॉकेट जैसी चीज़ से पंजाब पुलिस ख़ुफ़िया मुख्यालय पर ग्रेनेड से हमला किया गया. धमाके से इमारत की खिड़की के दरवाज़े टूट गए.
पंजाब पुलिस ने कहा है कि धमाके में किसी तरह का बड़ा नुकसान नहीं हुआ है और इलाक़े की घेराबंदी कर दी गई है. इस घटना के बाद पंजाब में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है.
पुलिस की ओर से जारी आधिकारिक बयान में कहा गया, “ शाम क़रीब 7:45 बजे एसएएस नगर में पंजाब पुलिस के ख़ुफ़िया मुख्यालय में एक मामूली विस्फोट की सूचना मिली. इसमें किसी बड़े नुकसान की सूचना नहीं है, जांच के लिए फोरेंसिक टीमों को बुलाया गया है.”
“इस मामले की जांच चल रही है और हमारे वरिष्ठ अधिकारी मौक़े पर मौजूद हैं. विस्फोट एक रॉकेट जैसी चीज़ से किया गया है और इसमें कोई हताहत नहीं हुआ है.”
इससे पहले सोमवार को, खुफिया विंग ने राज्य की क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को कथित रूप से जैश-ए-मोहम्मद से मिली चिट्ठी के बाद सुरक्षा कड़ी करने के लिए कहा था.
चिट्ठी में राज्य में वीआईपी लोगों को निशाना बनाने की धमकी दी गई थी. इसके साथ ही रेलवे स्टेशन, धार्मिक स्थलों और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर धमाके करने की धमकी दी गई थी.
पत्रकारिता के सबसे सम्मानित पुरस्कार पुलित्ज़र अवॉर्ड 2022 का एलान सोमवार को किया गया और विजेताओं में दानिश सिद्दीक़ी सहित चार भारतीयों को ये सम्मान दिया गया है.
रॉयटर्स के चार फोटो पत्रकारों दानिश सिद्दीक़ी, अमित दवे, अदनान अबिदी और सना इरशाद मट्टू का नाम इस साल के पुलित्ज़र विजेताओं की लिस्ट में शामिल है.
इन सभी पत्रकारों को भारत में कोरोना महामारी के दौरान ली गई तस्वीरों के लिए ये अवॉर्ड दिया गया है.
इससे पहले साल 2018 में दानिश सिद्दीक़ी को रोहिंग्या मुसलमानों के संकट पर ली गई एक तस्वीर के लिए पुलित्ज़र सम्मान से नवाज़ा गया जा चुका है.
इसके अलावा यूक्रेन के पत्रकारों को विषम परिस्थियों में काम करते रहने के लिए पुलित्ज़र संस्थान ने प्रशस्ति पत्र दिया गया.
इसके अलावा बीते साल 6 जनवरी को हुए अमेरिका के कैपिटल हिल हमले को कवर करने वाले पत्रकारों और अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में वापसी की घटना को कवर करने वाले पत्रकारों के काम की भी सराहना की गई.
इस साल 16 जुलाई को अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ग़ान सुरक्षाबलों और तालिबान लड़ाकों के बीच संघर्ष को कवर करते हुए एक हमले में दानिश सिद्दीकी की मौत गई.
दानिश अफ़ग़ानिस्तान के विशेष बल के साथ कंधार प्रांत में तैनात थे जहाँ से वो अफ़ग़ान कमांडो और तालिबान लड़ाकों के बीच संघर्ष की ख़बरें भेज रहे थे. (bbc.com)
जम्मू, 10 मई। जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में सोशल मीडिया मंच पर एक संवेदनशील तस्वीर साझा करने के आरोप में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि सूत्रों से सूचना मिली थी कि बुढल क्षेत्र के रहने वाले प्रेम नाम के व्यक्ति ने सोमवार रात सोशल मीडिया पर एक संवेदनशील तस्वीर साझा की थी।
अधिकारियों ने बताया कि तस्वीर के कारण विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच तनाव उत्पन्न होने की आशंका के चलते यह कार्रवाई की गई। बुढल पुलिस थाने में मामला दर्ज कर लिया गया है और जांच की जा रही है। (भाषा)
बेंगलुरु, 10 मई। कर्नाटक में कैबिनेट विस्तार या फेरबदल की अटकलों के बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सोमवार को नयी दिल्ली के दौरे पर जा रहे हैं।
बोम्मई मंगलवार सुबह दिल्ली रवाना होंगे और बुधवार को बेंगलुरू लौटने के उनके कार्यक्रम में बदलाव किया जा सकता है।
पार्टी के कुछ सूत्रों के अनुसार हालांकि, बोम्मई के आधिकारिक दौरे के कार्यक्रम में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ बैठक के बारे में कोई उल्लेख नहीं है।
सोमवार को मीडिया को जारी किए गए बोम्मई के दौरे के कार्यक्रम के अनुसार, वह मंगलवार को कई केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर सकते हैं और शाम को 'इन्वेस्ट कर्नाटक 2022' - ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट’ के संबंध में विभिन्न देशों के राजदूतों के साथ बातचीत करेंगे। (भाषा)
कोटा (राजस्थान), 10 मई (भाषा)। राजस्थान के झालावाड़ जिले में चांदी की पायल चोरी करने के संदेह में चार साल की बच्ची की एक महिला ने गला दबाकर हत्या कर दी और शव को अपने घर में रेत के टीले में दफना दिया। पुलिस ने सोमवार को यह जानकारी दी।
पुलिस के मुताबिक जिले के भवानी मंडी थाना क्षेत्र में 29 वर्षीय महिला शनिवार शाम को टॉफी देने के बहाने बहला-फुसलाकर बच्ची को अपने घर में ले गई। उसने बच्ची के सिर पर पत्थर से वार किया और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद शव को घर में बालू के टीले में दफना दिया।
गुमशुदगी की शिकायत के बाद पुलिस हरकत में आई। रविवार सुबह घर से शव बरामद किया और उसी रात महिला को गिरफ्तार कर लिया। सोमवार को महिला को अदालत में पेश किया गया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
भवानीमंडी पुलिस स्टेशन के सर्कल इंस्पेक्टर महेश सिंह ने कहा कि तरुना नामक महिला ने अपराध करने की बात स्वीकार की है। उसके कब्जे से पायल बरामद कर ली गई है। पुलिस ने बताया कि महिला ने घटना के बारे में अपने पति को भी नहीं बताया।
चार साल की बच्ची मध्य प्रदेश के सुवासरा की रहने वाली थी और पिछले चार महीने से अपनी मां के साथ राजस्थान के झालावाड़ जिले के मेहरपुर गांव में अपने नाना-नानी के घर में रह रही थी।
पटना, 10 मई। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने सोमवार को घोषणा की कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जनगणना के वास्ते दबाव बनाने के लिए बिहार से दिल्ली तक पदयात्रा शुरू करेंगे।
पटना में पत्रकारों से बात करते हुए बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ने दावा किया कि राजद के प्रयासों से ही बिहार विधानसभा के दोनों सदनों द्वारा जाति जनगणना के समर्थन में दो बार प्रस्ताव पारित किया गया।
तेजस्वी उन सवालों पर प्रतिक्रया दे रहे थे, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति जनगणना के लिए कराए जाने वाले राज्य-आधारित सर्वेक्षण में देरी के लिए कोरोना महामारी को जिम्मेदार ठहराया।
राजद नेता ने कहा, ‘‘अब तो ऐसा लगता है कि हमारे पास सड़कों पर उतरने और बिहार से दिल्ली तक पदयात्रा निकालने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।’’ (भाषा)