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निर्धारित मानकों के अनुसार 28,186 की आवाज कम की गई
यूपी पुलिस के ADG (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा, उत्तर प्रदेश में अब तक 4,258 लाउडस्पीकर हटाए गए हैं और निर्धारित मानकों के अनुसार 28,186 की आवाज कम की गई है. उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के बाद मंदिर-मस्जिदों सहित धार्मिक स्थलों से अतिरिक्त लाउडस्पीकर को हटाया जा रहा है. अलाउद्दीन पुर की बड़ी मस्जिद और शिव मंदिर से सहमति से अतिरिक्त लाउडस्पीकर हटा दिए गए हैं. कई जगह लाउडस्पीकरों की आवाज कम कर दी गई.
लखनऊ जोन में 912 लाउडस्पीकर हटाए गए और 6400 लाउडस्पीकरों की आवाज कम की गई
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विभिन्न धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाए जा रहे हैं. लखनऊ जोन में विभिन्न धार्मिक स्थलों से 912 लाउडस्पीकर हटाए गए और 6400 लाउडस्पीकरों की आवाज मापदंडों के अनुसार आज दोपहर बाद 1 बजकर 10 मिनट तक कम कर दी गई.
धार्मिक स्थलों से अवैध लाउडस्पीकर हटाने का आदेश के बाद 30 अप्रैल तक अनुपालन की
बता दें कि बीते उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में धार्मिक स्थलों से अवैध लाउडस्पीकर हटाने का आदेश दिया था. एक वरिष्ठ अधिकारी ने 25 अप्रैल को बताया था कि इस संबंध में 30 अप्रैल तक अनुपालन रिपोर्ट मांगी गई है. अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने बताया, ‘राज्य में धार्मिक स्थलों से अवैध लाउडस्पीकर हटाने का आदेश शनिवार को जारी किया गया. इस संबंध में (जिलों से) 30 अप्रैल तक अनुपालन रिपोर्ट मांगी गई है.’ उन्होंने बताया, “पुलिस को धार्मिक नेताओं के साथ संवाद स्थापित करने और उनके साथ समन्वय करके अवैध लाउडस्पीकर को हटाने का निर्देश दिया गया है.”
25 अप्रैल को ही 17 हजार लोगों ने स्वेच्छा से लाउडस्पीकर की आवाज को धीमा कर दिया था
बीते 25 अप्रैल को ही अब तक 125 लाउडस्पीकरों को उतरवा लिया गया था और 17 हजार लोगों ने स्वेच्छा से लाउडस्पीकर की आवाज को धीमा कर दिया है.मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 अप्रैल को ईद के त्योहार और अक्षय तृतीया के एक ही दिन पड़ने और आने वाले दिनों में कई अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहारों को देखते हुए निर्देश दिए थे कि त्योहारों के दौरान माइक का प्रयोग पर यह सुनिश्चित हो कि माइक की आवाज उस परिसर से बाहर न जाए. इस बात पर जोर दिया था कि अन्य लोगों को कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए और नए आयोजनों और नये स्थलों पर माइक लगाने की अनुमति नहीं दी जाए.
शोभायात्रा-धार्मिक जुलूस बिना विधिवत अनुमति के न निकाला जाएंं
सीएम योगी ने कहा था कि शोभायात्रा/धार्मिक जुलूस बिना विधिवत अनुमति के न निकाला जाए और अनुमति देने से पूर्व आयोजक से शांति-सौहार्द कायम रखने के संबंध में शपथ पत्र लिया जाए. अनुमति केवल उन्हीं धार्मिक जुलूसों को दी जाए, जो पारम्परिक हों, नए आयोजनों को अनावश्यक अनुमति न दी जाए. इस बीच, आगामी ईद की तैयारियों के संबंध में एडीजी प्रशांत कुमार ने कहा कि अलविदा जुमा की नमाज (रमजान के महीने का आखिरी शुक्रवार) 31,000 स्थानों (राज्य में) पर होगी. संवेदनशील जिलों के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं और पीएसी और केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बलों सहित अतिरिक्त बलों को तैनात किया गया है. साथ ही शांति समितियों की बैठकें भी हुई हैं. (इनपुट: भाषा)
पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों का बोझ कम करने के लिए राज्य सरकारों से टैक्स कम करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर विपक्षी पार्टियों ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने तो कई सवाल पूछ डाले हैं, तो उनकी पार्टी शिवसेना ने भी इस पर ऐतराज़ किया है. कांग्रेस ने भी नरेंद्र मोदी की टिप्पणी पर उन्हें आड़े हाथों लिया है. जबकि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी केंद्र सरकार से कई सवाल पूछे हैं.
महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के बाद शिवसेना की प्रवक्ता और सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि कोरोना के नाम पर बुलाई गई बैठक में राजनीति की गई. उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि केंद्र सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी से 26 लाख करोड़ रुपए कमाए हैं. प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट में लिखा है- ईंधन की क़ीमत जब कम थी, तब भी 18 बार इसकी क़ीमतें बढ़ाई गईं. जबकि राज्यों का जीएसटी का हिस्सा अब भी बकाया है. उन्होंने कहा कि ईंधन पर कुल टैक्स में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 68 फ़ीसदी है और ज़िम्मेदारी राज्यों की है. इसे समझने की ज़रूरत है.
कांग्रेस ने भी ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी से केंद्र की कमाई का ज़िक्र किया है. कांग्रेस का कहना है कि केंद्र सरकार ने ईंधन पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर 26 लाख करोड़ की कमाई की है. कांग्रेस ने कहा- मोदी जी, आप एक मिसाल क़ायम करके शुरुआत क्यों नहीं करते. आप उत्पाद शुल्क वापस ले लीजिए.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी एक के बाद एक कई ट्वीट्स करके मोदी सरकार को घेरा है. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा है- मोदी जी, कोई आलोचना नहीं, कोई ध्यान भटकाना नहीं, कोई जुमला नहीं. कांग्रेस के शासनकाल में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9.48 रुपए और डीज़ल पर 3.56 रुपए था. जबकि मोदी सरकार में ये 27.90 रुपए और 21.80 रुपए है. आप इस बढ़ोत्तरी को वापस ले लीजिए.
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने भी पीएम मोदी के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है. पार्टी ने अपने ट्वीट में लिखा है- श्री नरेंद्र मोदी, हम आपका ध्यान उन अहम आंकड़ों की ओर खींचना चाहते हैं, जो शायद आप अपने 'ज्ञान बाँटो' सत्र में भूल गए होंगे. भारत सरकार पर पश्चिम बंगाल सरकार का 97807.91 करोड़ बकाया है. क्या आपको इस पर रोशनी डालने की परवाह है? क्या हमारा बकाया चुकाने की कोई योजना है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना पर बुलाई गई मुख्यमंत्रियों की बैठक में पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ती क़ीमतों को लेकर राज्यों से अपने यहाँ टैक्स कम करने की अपील की थी. पीएम मोदी ने कहा- पेट्रोल डीज़ल की बढ़ती क़ीमत का बोझ कम करने के लिए केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में पिछले नवंबर में कमी की थी. राज्यों से भी आग्रह किया गया था कि वो अपने यहाँ टैक्स कम करें. कुछ राज्यों ने तो अपने यहाँ टैक्स कम कर दिया, लेकिन कुछ राज्यों ने अपने लोगों को इसका लाभ नहीं दिया.
उन्होंने महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड और तमिलनाडु का नाम लेते हुए कहा कि इन राज्यों ने किसी न किसी कारण से केंद्र सरकार की बातों को नहीं माना और उन राज्य के नागरिकों पर बोझ पड़ता रहा. (bbc.com)
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी के बयान पर पलटवार किया है. उद्धव ठाकरे ने कहा है कि महाराष्ट्र का अभी भी केंद्र पर 26,500 करोड़ रुपए बकाया है.
महाराष्ट्र सीएमओ के मुताबिक़ मुंबई में एक डीजल पेट्रोल की बिक्री पर केंद्र को टैक्स के तौर पर 24.38 रुपए मिलते हैं और राज्य को 22.37 रुपए. एक लीटर पेट्रोल की बिक्री पर 31.58 रुपए का सेंट्रल टैक्स है. राज्य के हिस्से 32.55 रुपए आता है. इसलिए ये कहना सही नहीं है कि पेट्रोल-डीजल की क़ीमतें राज्यों की वजह से बढ़ रही हैं.
उद्धव ठाकरे ने कहा, ''महाराष्ट्र को सेंट्रल टैक्स का 5.5 फ़ीसदी मिलता है. जबकि डायरेक्ट टैक्स में उसका योगदान 38.3 फ़ीसदी का है. महाराष्ट्र से पूरे देश के जीएसटी का 15 फ़ीसदी आता है. डायरेक्ट टैक्स और जीएसटी मिलाकर महाराष्ट्र देश में सबसे ज्यादा योगदान करता है. हमारा केंद्र पर अभी भी 26,500 करोड़ रुपए का जीएसटी बकाया है.''
उद्धव ठाकरे ने यह पलटवार मुख्यमंत्रियों के साथ कोविड समीक्षा बैठक में दिए गए मोदी के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ राज्य पेट्रोल-डीजल पर वैट नहीं घटा रहे हैं. मोदी ने कहा था, '' केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाई है. लेकिन कुछ राज्यों ने इसमें कटौती नहीं की है.''
उन्होंने कहा, '' मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूं लेकिन महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल और झारखंड से पेट्रोल-डीजल पर वैट करने कम करने का अनुरोध कर रहा हूं ताकि इनकी कीमतें कम हो सकें. ''
ठाकरे ने कहा कि केंद्र सभी राज्यों से एक जैसा बर्ताव करे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार आर्थिक दिक्कतों से लोगों को निजात दिलाने की कोशिश कर रही है. राज्य सरकार पहले ही नैचुरल गैस पर वैट घटा चुकी है. (bbc.com)
भारत में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल मीटिंग की और हालात का जायजा लिया.
बैठक में पीएम ने कहा- दूसरे देशों की तुलना में कोविड संकट का बेहतर तरीक़े से सामना करने के बावजूद देश के कुछ राज्यों में एक बार फिर से कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते दिख रहे हैं. इसलिए हमें सतर्क रहने की जरूरत है. कोरोना संक्रमण के केस बढ़ने से साफ है कि कोविड की चुनौती अभी पूरी तरह टली नहीं है.
पीएम ने कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारी वयस्क आबादी के 96 फ़ीसदी को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज़ लगाई जा चुकी है. 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को कोविड वैक्सीन की दूसरी डोज़ भी मिल चुकी है. (bbc.com)
यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला वोन डर लेन ने कहा है कि यूरोप के कुछ देशों को गैस की सप्लाई रोकने का रूस का फ़ैसला ब्लैकमेल का एक हथियार है. उन्होंने कहा कि रूस का ये फ़ैसला अनुचित और अस्वीकार्य है. उन्होंने कहा कि ये गैस सप्लाई करने वाले देश के रूप में रूस की अविश्वसनीयता को दिखाता है. रूस की ऊर्जा कंपनी गैज़प्रॉम ने कहा है कि रूबल में भुगतान करने से इनकार के कारण वो पोलैंड और बुल्गारिया को गैस की सप्लाई बंद कर रहा है.
यूरोपीय आयोग की प्रमुख ने कहा कि यूरोपीय संघ के सदस्यों देशों के पास एक आपातकालीन योजना है. उन्होंने बताया कि यूरोपीय आयोग सदस्य देशों से संपर्क में है ताकि वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके और संघ के सदस्यों देशों के पास भंडारण का बेहतर स्तर उपलब्ध हो. इस बीच रूस के एक शीर्ष सांसद ने कहा है कि रूस की कंपनी ने गैस सप्लाई बंद करने का सही फ़ैसला किया है. रूसी संसद के निचले सदन के स्पीकर व्याचेस्लाव वोलोदिन ने अपने टेलिग्राम चैनल पर लिखा है कि रूस को अन्य देशों के साथ यही करनी चाहिए, जो उसके दोस्त नहीं हैं.
दूसरी ओर पोलैंड की गैस सप्लाई करने वाली कंपनी PGNiG का कहना है कि गैज़प्रॉम ने गैस सप्लाई रोककर अनुबंध का उल्लंघन किया है. कंपनी का कहना है कि वो क़ानूनी तरीक़े से मुआवज़ा हासिल करने की कोशिश करेगी. ब्रिटेन ने भी रूस के इस क़दम पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. ब्रिटेन के उप प्रधानमंत्री डोमिनिक रॉब ने कहा है कि गैस सप्लाई रोकने वाले फ़ैसले से रूस अपने आप को और अलग-थलग कर रहा है. स्काई न्यूज़ से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि रूस पर इसका उल्टा असर पड़ेगा. (bbc.com)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ती क़ीमतों को लेकर राज्यों से अपने यहाँ टैक्स कम करने की अपील की है. मुख्यमंत्रियों के साथ कोरोना की स्थिति पर बुलाई गई बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल को बढ़ाना ज़रूरी है. उन्होंने कहा- पेट्रोल डीज़ल की बढ़ती क़ीमत का बोझ कम करने के लिए केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में पिछले नवंबर में कमी की थी. राज्यों से भी आग्रह किया गया था कि वो अपने यहाँ टैक्स कम करें. कुछ राज्यों ने तो अपने यहाँ टैक्स कम कर दिया, लेकिन कुछ राज्यों ने अपने लोगों को इसका लाभ नहीं दिया.
पीएम मोदी ने कहा कि जो युद्ध की परिस्थिति पैदा हुई है, जिससे सप्लाई चैन प्रभावित हुई है, ऐसे माहौल में दिनों-दिन चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं. ये वैश्विक संकट अनेक चुनौतियाँ लेकर आ रहा है. ऐसे में केंद्र और राज्य के बीच तालमेल को और बढ़ाना अनिवार्य हो गया है. उन्होंने महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड और तमिलनाडु का नाम लेते हुए कहा कि इन राज्यों ने किसी न किसी कारण से केंद्र सरकार की बातों को नहीं माना और उन राज्य के नागरिकों पर बोझ पड़ता रहा.
पीएम मोदी ने कहा- मेरी प्रार्थना है कि नंवबर में जो करना था, अब वैट कम करके आप नागरिकों को इसका लाभ पहुँचाएँ. उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है. साथ ही रसोई गैस की क़ीमतें भी बढ़ी हैं. (bbc.com)
गोंदिया, रायपुर, झारसुगुड़ा की पैसेंजर और कई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं चलेंगे
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 27 अप्रैल। छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली ट्रेनों को बहाल करने के लिए सरकार और जनप्रतिनिधियों की ओर से डाले गए दबाव का थोड़ा रेलवे में असर दिखा है। आज रद्द की गई 22 ट्रेनों में से 7 का परिचालन बहाल करने की घोषणा की गई है।
इन ट्रेनों में 24 अप्रैल से 23 मई तक रद्द की गई कोरबा अमृतसर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस शामिल है। दोनों ओर यह ट्रेन अपनी नियमित समय सारिणी के अनुसार चलेगी।
रायपुर सिकंदराबाद, सिकंदराबाद रायपुर त्रि-साप्ताहिक ट्रेन को भी बहाल किया गया है। विशाखापट्टनम से निजामुद्दीन के बीच भी दोनों ओर ट्रेन अपनी समय सारिणी के अनुसार चलेगी। बिलासपुर से कोरबा के लिए चलने वाली पैसेंजर ट्रेन 08210 छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के बहाल होने के कारण नियमित रूप से चलेगी।
इसके बावजूद भुवनेश्वर लोकमान्य तिलक टर्मिनस साप्ताहिक एक्सप्रेस, पुरी लोकमान्य तिलक साप्ताहिक एक्सप्रेस, लोकमान्य तिलक टर्मिनस से हटिया के बीच चलने वाली सप्ताहिक एक्सप्रेस, विशाखापट्टनम से लोकमान्य तिलक टर्मिनस चलने वाली साप्ताहिक एक्सप्रेस, बिलासपुर भगत की कोठी के बीच चलने वाली द्वि साप्ताहिक एक्सप्रेस, बिलासपुर बीकानेर द्वि साप्ताहिक एक्सप्रेस जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनों को रेलवे ने अभी भी दोनों ओर से रद्द रखा है।
इसके अलावा रद्द की गई गोंदिया झारसुगुड़ा दैनिक मेमू स्पेशल रायपुर डोंगरगढ़ जैसी पैसेंजर ट्रेनों को भी बहाल नहीं किया गया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अप्रैल। खैरागढ़ से नवनिर्वाचित विधायक यशोदा वर्मा कल गुरुवार को सदस्यता की शपथ लेंगी। शपथ विधि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत पूरी कराएंगे। उनके कक्ष पूर्वाह्न 11.30 बजे शपथ होगा। इस मौके पर सीएम बघेल, पीसीसी चीफ मोहन मरकाम समेत मंत्री और विधायक मौजूद रहेंगे। 12 अप्रैल को हुए चुनाव में यशोदा 20हजार मतों से विजयी घोषित की गई थी।
महाराष्ट्र सरकार ने माना है कि राज्य में पिछले तीन सालों में कुपोषण से 6,852 बच्चों की मौत हो गई. इनमें से कम से कम 601 बच्चे ऐसे थे जिन्हें जन्म देते समय उनकी माएं नाबालिग थीं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
ये आंकड़े राज्य सरकार द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर बनाई गई एक रिपोर्ट में सामने आए हैं. अदालत ने मार्च में जिला कलेक्टरों और जिला मजिस्ट्रेटों को सर्वे कर राज्य में ऐसे इलाकों को चिन्हित करने का आदेश दिया था जहां आज भी बाल विवाह कराए जाते हैं.
2019 से लेकर 2022 तक राज्य के 16 आदिवासी जिलों में सर्वे कर इन आंकड़ों को इकट्ठा किया गया. सर्वे आंगनवाड़ी सेविकाओं और आशा सेविकाओं ने किए. रिपोर्ट में जो हकीकत सामने आई है वो दिखाती है कि बाल विवाह और कुपोषण जैसी समस्याएं आज भी भारत में विकराल रूप में मौजूद हैं.
15,253 बाल विवाह, 1.36 लाख कुपोषित बच्चे
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि राज्य में बाल विवाह और कुपोषण के आंकड़ों का पता लगाने के लिए पहले कुपोषित बच्चों की जानकारी इकट्ठा की गई और फिर उनके माता पिता का पता लगाया गया. उद्देश्य यह पता लगाना था कि कितनी माएं नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र की थी.
रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन सालों में कुल 1,33,863 आदिवासी परिवारों में 15,253 बाल विवाह हुए हैं. सर्वे में 1.36 लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित पाए गए, जिनमें से 14,000 से भी ज्यादा बच्चों की माएं नाबालिग थीं.
इन 1.36 लाख बच्चों में से कुल 26,059 बच्चे कुपोषण से बुरी तरह से प्रभावित पाए गए जिनमें से 3,000 की माएं नाबालिग थीं. नांदरबार जिले में कुपोषण की वजह से सबसे ज्यादा बच्चों की मौत हो गई (1,270). नाशिक में 1,050 बच्चे और पालघर में 810 बच्चे कुपोषण से मर गए.
परंपरा जरूरी या स्वास्थ्य?
राज्य सरकार ने यह भी बताया कि कई मामलों में सरकारी अधिकारी समय रहते हस्तक्षेप करने में सफल हुए, जिसके फलस्वरूप इन तीन सालों में 1,541 बाल विवाह रोके जा सके. लेकिन अदालत ने इतनी बड़ी संख्या में हो रहे बाल विवाह के मामलों पर गहरी चिंता जताई और आंकड़ों को 'दिमाग चकरा देने वाला' बताया.
अदालत ने आदिवासियों को सलाह भी दी कि यहां लोगों के स्वास्थ्य का प्रश्न है और ऐसे में उन्हें अपनी प्रथाओं और परंपराओं को त्याग देना चाहिए. राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि वो ऐसे मामलों में बल का प्रयोग नहीं कर सकती है लेकिन बुजुर्ग आदिवासियों को समझा कर उनसे अपील कर सकती हो.
सरकार ने यह भी कहा कि इसमें उसे एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद की जरूरत होगी. अदालत मामले में आगे सुनवाई 20 जून को करेगी. (dw.com)
कराची में एक आत्मघाती हमले में चीनी नागरिकों को मार देने की जिम्मेदारी बलोच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली है. बीएलए बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सरकार का विरोध करने वाले कई अलगाववादी समूहों में से सबसे जाना माना संगठन है.
बलूचिस्तान आकार के हिसाब से पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन बंजर पहाड़ी इलाका होने की वजह से आबादी के हिसाब से देश का सबसे छोटा राज्य है. बीएलए का घोषित उद्देश्य बलूचिस्तान के लिए पूर्ण रूप से आजादी हासिल करना है.
अलगाववादियों का मानना है कि खनिज संपदा के धनी इस इलाके के संसाधनों का अनुचित रूप से दोहन किया गया है, जिसके खिलाफ यहां कई दशकों से इंसर्जेन्सी चल रही है. बलूचिस्तान की सीमा उत्तर में अफगानिस्तान से और पश्चिम में ईरान से सटी हुई है. इसकी एक लंबी तटरेखा भी है जो अरब सागर से सटी हुई है.
चीन से नाराजगी
यहां पाकिस्तान की सबसे बड़ी प्राकृतिक गैस फील्ड भी है. यहां सोने जैसे कीमती धातुओं की भी भरमार है. हाल के सालों में यहां सोने का उत्पादन काफी बढ़ा है. माना जाता है कि यहां और ऐसे कई संसाधन हैं जिनकी अभी खोज ही नहीं हुई है.
अलगाववादी समूहों में से ज्यादातर स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, लेकिन हाल ही में स्थानीय मीडिया में आई कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि इनके बीच सहयोग बढ़ रहा है. मुख्य रूप से इनका ध्यान तो पाकिस्तानी सुरक्षाबलों पर केंद्रित रहा है, लेकिन हाल के सालों में उन्होंने चीनी हितों को भी निशाना बनाना शुरू किया है.
ऐसा इसलिए क्योंकि इस प्रांत में चीन के आर्थिक पदचिंह बढ़ रहे हैं. बलूचिस्तान में चीन की मुख्य परियोजनाओं में शामिल है ग्वादर का बंदरगाह. होर्मुज जलसंधि के पास स्थित यह बंदरगाह सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. होर्मुज जलसंधि अरब सागर में तेल की आवाजाही एक बेहद महत्वपूर्ण मार्ग है.
पिछले साल इस बंदरगाह पर काम कर रहे चीनी इंजीनियरों पर हमला हुआ था जिसकी जिम्मेदारी बीएलए ने ली थी. इसके अलावा बलूचिस्तान में एक चीनी कंपनी एक बड़ी सोने और तांबे की खदान भी चलाती है.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
चीन के लिए पाकिस्तान में उसके नागरिकों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन गई है. विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के शुरू होने के बाद. सीपीईसी के तहत 60 अरब डॉलर से भी ज्यादा मूल्य की परियोजनाओं की परिकल्पना की गई है.
बीएलए का कहना है कि वो इसलिए चीनी नागरिकों पर हमला करता है क्योंकि चीन ने उसकी चेतावनियों को अनसुना कर दिया था. बीएलए ने चीन को चेतावनी दी थी कि वो बलूचिस्तान की 'आजादी' से पहले उससे जुड़े समझौतों में शामिल ना हो. इन दावों का अलग से सत्यापन कराने की जरूरत है.
समूह की मांग है कि सभी पाकिस्तानी सुरक्षाबल बलूचिस्तान छोड़ कर चले जाएं. उसने एक 'अंतरराष्ट्रीय गारंटर' की मौजूदगी में बातचीत करने का सुझाव भी दिया है. उसका दावा है कि उसके आत्मघाती हमलावर 'फिदाई' युवा और पढ़े लिखे बलोच हैं जिनका कठिनाइयों और आर्थिक विकास से किनारे कर दिए जाने की वजह से मोह-भंग हो चुका है.
कौन हैं बीएलए के नेता
बीएलए के मौजूदा स्वरूप में कुछ सालों तक इसका नेतृत्व कर रहे थे बलाच मर्री, जो एक प्रभावशाली बलोच परिवार के उत्तराधिकारी थे. सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि मर्री 2007 में अफगानिस्तान में मारे गए. वहां उन्होंने एक अड्डा और छिपने की जगह बनाई हुई थी.
मर्री के मारे जाने के बाद कुछ दिनों तक बीएलए के काम में रूकावट आई लेकिन अब फिर से उसने हमलों की गति बढ़ा दी है. समूह का कहना है कि इस समय उसका नेतृत्व बशीर जेब बलोच कर रहे हैं जिनके बारे में किसी को भी ज्यादा जानकारी नहीं है.
हाल के महीनों में बीएलए ने कई हमलों के लिए जिम्मेदारी ली है, जिनमें कुछ ही महीनों पहले बलूचिस्तान में अर्धसैनिक बलों के दो अड्डों पर एक साथ किए गए दो हमले भी शामिल हैं.
समूह के ज्यादातर हमले बलूचिस्तान में या पास में ही स्थित कराची में होते हैं. 2020 में कराची में पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज की इमारत पर और 2018 में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हुए हमलों की भी जिम्मेदारी बीएलए ने ही ली थी.
सीके/एए (रॉयटर्स)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अप्रैल। भारतीय डाक सेवा के वर्ष-2009 बैच के अधिकारी, दिनेश मिस्त्री को छत्तीसगढ़ डाक परिमंडल में निदेशक, डाक सेवाएं (हेडक्वार्टर) बनाया गया है, वे डॉ. आशीष सिंह ठाकुर का स्थान लेंगे। इसके पूर्व दिनेश मिस्त्री, शिमला में निदेशक (मेल्स एवं बीडी) के पद पर कार्यरत थे।
उल्लेखनीय है कि दिनेश मिस्त्री कोरबा के स्थायी निवासी रहे हैं। वहीं आशीष सिंह ठाकुर बिलासपुर के निवासी हैं। उन्हें पोस्टल ट्रेनिंग कालेज मैसूर के संचालक पद पर भेजा गया है।
लाइबेरिया के वीरान द्वीपों पर रिटायर हो चुके चिंपैंजी रहते हैं. लैब में परीक्षण के लिए इस्तेमाल हुए चिंपैंजी लंबे समय इंसानों के साथ रहने के कारण अब ना तो खुद की रक्षा करने और ना ही अपने लिये खाना जुटाने लायक बचे हैं.
लाइबेरियाई द्वीपों के पास एक नाव पर सवार पशुओं के डॉक्टर रिचर्ड सुना बड़े ध्यान से संरक्षकों को देखते हैं जो किनारों की तरफ फल उछाल रहे हैं और चिंपैंजियों को आवाज लगा रहे हैं.
बीच खाली है मगर यहां चिंपैंजियों की गुर्राहट और भुनभुनाहट सुनाई दे रही है. धीरे धीरे एक बड़ा चिंपैंजी पैरों की उंगलियों पर चलता हुआ बीच पर खाना उठाने के लिए आता है. सुना बताते हैं कि यह अपने गुट में वरिष्ठ है, उसके पीछे दूसरे चिंपैंजी भी आते हैं. जो कम उम्र वाले हैं. वे उछलकूद करते खुशी से चहकते हुए केले, खजूर और कसावा उठाते हैं.
अटलांटिक सागर के पास मौजूद छोटे द्वीपों में से एक इस वीरान द्वीप समूह पर इंसानों की कोई बस्ती नहीं लेकिन 65 चिंपैंजियों का बसेरा जरूर है. पश्चिम अफ्रीकी देश की राजधानी मोनरोविया से यह करीब 55 किलोमीटर दूर है. हालांकि आज इन्हें खाना देकर जो खुश किया जा रहा है उसका एक काला अतीत है.
परीक्षण के लिये चिंपैंजी
ये उन 400 चिंपैंजियों के समूह के सदस्य हैं जिन्हें अमेरिकी धन से चलने वाले एक रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए परीक्षणों में इस्तेमाल किया गया. कई दशकों तक इनके शरीर पर प्रयोग चलते रहे. कुछ जीवों की तो कई सौ बार बायोप्सी हुई है. ह्यूमन सोसायटी इंटरनेशनल यानी एचएसआई के निदेशक सुना कहते हैं, "इन्हें बहुत चोट पहुंचाई गई है." यह संगठन अब इन जीवों का ख्याल रखता है.
लाइबेरिया में चिंपैंजियों पर परीक्षण 1974 में शुरू हुआ. तब न्यू यॉर्क ब्लड सेंटर यानी एनवाईबीसी ने फर्मिंग्टन नदी के किनारे बने परिसर में हिपेटाइटिस बी और दूसरी बीमारियों से जुड़े बायोमेडिकल रिसर्च की शुरुआत की थी. सन् 1989 से लेकर 2003 तक लाइबेरिया में चले गृहयुद्ध के दौरान चिंपैंजियों के भूखे मरने की नौबत आ गई थी क्योंकि उनके आस पास पूरा देश युद्ध में झुलस रहा था. गरीब देश में रिसर्च स्टाफ अपनी जेब से पैसे खर्च करके किसी तरह इन्हें जिंदा रख रहे थे. इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के मध्य में बहुत से चिंपैंजियों को रिटायर कर दिया गया लेकिन उनकी मुसीबतें खत्म नहीं हुईं.
लावारिस छोड़ा
2015 में न्यू यॉर्क ब्लड सेंटर ने अपनी फंडिंग में कटौती कर दी, इसका कारण अब भी साफ नहीं है. इसे लेकर काफी विवाद भी हुआ. चिंपैंजियों को छोटे छोटे ऐसे द्वीपों पर छोड़ दिया गया जो उन्हें नहीं पाल सकते थे. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अभियान छेड़ा जिसमें जैक्विन फिनीक्स और एलेन पेज जैसे हॉलीवुड सितारों ने याचिका पर दस्तखत किये कि ब्लड बैंक इनके लिए फंडिंग फिर से बहाल करे. अमेरिका में रहने वाले प्राइमेटोलॉजिस्ट ब्रायन हारे ने याचिका दायर की थी. उसमें उन्होंने लिखा था, "वास्तव में उन्होंने इन गरीब चिंपैंजियों को भुखमरी और डिहाइड्रेशन से मरने के लिये छोड़ दिया है."
लाइबेरिया दुनिया के सबसे गरीब देशों में है. वर्ल्ड बैंक के अनुसार, यहां की 44 फीसदी आबादी प्रति दिन 1.90 डॉलर से कम खर्च पर गुजारा करती है.
एवाईबीसी के पैसा रोक लेने के बाद भी रिसर्च सेंटर के स्थानीय कर्मचारी चिंपैंजियों की मदद के लिए आगे आते रहे, यहां तक कि इबोला की महामारी के दौर में भी. सामाजिक संगठनों और अमेरिकी बैंक सिटीग्रुप ने भी मुश्किल दौर में राहत के लिए धन दिया.
दो वक्त का भोजन
दबाव बढ़ने पर आखिरकार एनवाईबीसी लंबे समय की देखरेख के लिए कुछ खर्च उठाने पर तैयार हुआ. 2017 में इसके लिए ह्यूमन सोसायटी के साथ एक समझौता हुआ जिसमें एनवाईबीसी ने 60 लाख अमेरिकी डॉलर देने का वादा किया. एनवाईबीसी ने पैसे रोकने के बारे में पूछे सवालों का जवाब नहीं दिया. बहरहाल अब बीते कुछ सालों से लैब में काम कर चुके चिंपैंजियों को पशु चिकित्सक की देखभाल और हर दिन दो वक्त का भोजन मिलता है.
हालांकि अब भी कई चिंपैंजी बीते दौर के जख्म अपने बदन और मन पर लिये घूमते हैं. डॉक्टर सुना ने दूसरे द्वीप पर एक चिंपैंजी को दिखाया जिसका एक हाथ नहीं था. सुना ने कहा कि यह पशु, "निश्चित रूप से अत्याचारों का पीड़ित है." इस चिंपैंजी का नाम बुलेट है, शिकारियों ने उसकी मां को मार दिया और उसका एक हाथ भी चला गया. बाद में वह रिसर्च लैब में आ गया.
इंसानों से कुछ खतरे भी
चिंपैंजियों का ख्याल रखने वालों को इनके साथ अच्छा व्यवहार करने और सौहार्द वाला रिश्ता बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. सुना बताते हैं कि कुछ उकसावे चिंपैंजियों की नकारात्मक यादों को उभार सकते हैं जैसा कि इंसानों में भी होता है. इन्हें अपना बचाव करना नहीं आता और इसके साथ ही इंसानों के संपर्क में आने पर बीमारियों के फैलने का खतरा है. इन चिंपैंजियों को जंगल में नहीं छोड़ा जा सकता और इन्हें अपनी बाकी जिंदगी इन्हीं द्वीपों पर गुजारनी है.
हर रोज इन्हें खाना खिलाना आसान नहीं है. देखभाल करने वाले हर सुबह 200 किलो और दोपहर में 120 किलो खाना तैयार करते हैं, यानी एक महीने में करीब 10 टन. इन्हें भोजन तब तक दिया जाएगा जब तक ये जिंदा हैं.
सुना का आकलन है कि करीब 50 साल तक इनकी देखभाल करनी होगी. कई चिंपैंजियों की उम्र करीब 20 साल है और ये लगभग 60 साल तक जीते हैं. इसके अलावा कुछ बच्चे भी हैं. एचएसआई नर चिंपैंजियों की नसबंदी करने की योजना बना रहा है ताकि और बच्चे ना पैदा हों.
सुना कहते हैं, "भविष्य उज्जवल है, क्योंकि हम इन्हें वापस जंगल में भेजना चाहते हैं. वे अब अच्छी जगह पर हैं."
एनआर/आरपी (एएफपी)
छात्र-छात्राएं योजना को लेकर कुछ असमंजस में हैं क्योंकि पढ़ाई के तुरंत बाद ज्यादातर को नौकरियां नहीं मिलतीं. कुछ स्टूडेंट्स ने डर जताया है कि भविष्य में इस सब्सिडी का हवाला देकर सामान्य फीस बढ़ाई जा सकती है.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू ने गरीब विद्यार्थियों के लिए एक नई योजना शुरू की है जिससे छात्रों को विपरीत परिस्थितियों में भी पढ़ाई बीच में नहीं छोड़नी पड़ेगी. विश्वविद्यालय ने गरीब छात्रों के लिए ब्याज मुक्त ऋण योजना शुरू की है जिससे हर साल छात्रों को 12 हजार रुपये कर्ज के तौर पर दिए जाएंगे और उसका कोई ब्याज नहीं लगेगा. शिक्षा पूरी करने और फिर नौकरी करने के बाद छात्रों को यह पैसा लौटाना पड़ेगा.
विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस योजना का लाभ उन छात्रों को मिलेगा जिनके परिवार बीपीएल कार्ड धारक यानी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले हैं या फिर जिनके माता-पिता की मृत्यु कोविड-19 के कारण हुई है और बच्चा पढ़ाई से लेकर हर चीज के लिए अपने माता-पिता पर ही निर्भर हैं. ऐसे छात्रों को हर साल 12 हजार रुपये की वार्षिक सहायता दी जाएगी जो ब्याज मुक्त कर्ज के रूप में होगी. यह सहायता पांच साल तक मिलती रहेगी. यानी कुल साठ हजार रुपये की आर्थिक सहायता ऐसे छात्र पा सकेंगे.
अब तक मिले 200 आवेदन
विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रोफेसर सुधीर कुमार जैन के मुताबिक, इस योजना का मकसद ऐसे छात्र-छात्राओं को आर्थिक सहायता पहुंचाना है जो गरीब हैं या फिर जिनकी फीस भरने वाला कोई नहीं है, ताकि वे विश्वविद्यालय में निर्बाध रूप से अपनी शिक्षा पूरी कर सकें. वीसी प्रोफेसर जैन ने एक बयान में बताया कि बीएचयू में शिक्षा पाने वाले हर छात्र के लिए कोशिश यह होगी कि वह अपनी शिक्षा पूरी करे और आर्थिक विपन्नता के कारण किसी की पढ़ाई अधूरी न रह पाए. इस योजना के तहत आवेदन करने वाले छात्रों के लिए विश्वविद्यालय के दो संकाय सदस्यों की अनुशंसा भी जरुरी होगी.
विश्वविद्यालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक, कर्ज लेने वाला छात्र जैसे ही अपनी पढ़ाई पूरी करके रोजगार पाएगा, उसके दो वर्ष के भीतर उसे किश्तों में कर्ज की राशि लौटानी होगी, जो मूलधन के बराबर ही होगी, उस पर कोई ब्याज नहीं लगेगा. विश्वविद्यालय में डीन, विद्यार्थी कल्याण के पद पर कार्यरत प्रोफेसर केके सिंह के मुताबिक, योजना की शुरुआत 25 मार्च से हुई है और शुरुआती दौर में 1,000 विद्यार्थियों को इस योजना का लाभ दिया जाएगा. उनके मुताबिक, अब तक करीब 200 आवेदन आ चुके हैं जिनमें सौ से ज्यादा आवेदनों को मंजूरी भी दे दी गई है.
लाभ पाने की कुछ शर्तें भी
कुलपति प्रोफेसर जैन का कहना है कि योजना के तहत भले ही यह आर्थिक सहायता कर्ज के रूप में छात्र-छात्राओं को दी जा रही है लेकिन इसका उद्देश्य यही है कि छात्रों को पढ़ाई पूरी करने में मदद की जा सके और उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन मिल सके.
वीसी ने बताया कि इस योजना का लाभ ज्यादा से ज्यादा छात्रों को मिल सके, इसके लिए जल्दी ही एक और आवेदन प्रक्रिया शुरू की जाएगी. हालांकि इस योजना के तहत ऐसे छात्र-छात्राएं लाभ नहीं पा सकेंगे जो पहले से ही किसी बैंक, एजेंसी या संस्था से आर्थिक लाभ पा रहे हैं. योजना का लाभ पाने वाले छात्र-छात्राओं को मिलने वाली वित्तीय सहायता को उनकी फीस के साथ संबद्ध नहीं किया जाएगा बल्कि यह उन्हें कर्ज के तौर पर दी जाएगी, जिससे वो अपनी फीस भी भर सकते हैं.
दो किश्तों में वापस करनी होगी राशि
कर्ज के भुगतान की जिम्मेदारी सिर्फ लाभ पाने वाले छात्र-छात्राओं की ही होगी, उनके मां-बाप या फिर आवेदन की अनुशंसा करने वाले प्राध्यापकों की नहीं होगी. डीन, छात्र कल्याण, प्रोफेसर सिंह ने बताया कि छात्रों को पैसे वापस के करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई दबाव नहीं बनाया जाएगा लेकिन पढ़ाई पूरी करने और फिर नौकरी या रोजगार मिलने के बाद उन्हें दो किश्त में यह राशि वापस करनी होगी.
विश्वविद्यालय की इस योजना से गरीब छात्र जरूर लाभान्वित होंगे लेकिन कुछ छात्रों ने सवाल किया है कि योजना सिर्फ एक हजार छात्रों के लिए ही क्यों चलाई जा रही है. बीएचयू से एलएलबी कर रहे छात्र दुर्गेश सिंह कहते हैं कि जब मानक बीपीएल कार्ड धारक रखा गया है तो लोन पाने वालों की संख्या को सीमित क्यों रखा गया है. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि अगले सत्र से इसे बढ़ाकर दो हजार कर दिया जाएगा.
फीस वृद्धि पर हुए आंदोलन
विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र ऑनर्स के छात्र रघुवर कुमार कहते हैं, "यह अच्छी पहल है. बीएचयू में बहुत से गरीब छात्र पढ़ते हैं और कई बार कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते कुछ स्टूडेंट्स को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ जाती है. यूनिवर्सिटी में फीस और हॉस्टल की भी काफी ज्यादा हो गई है इससे गरीब छात्रों को बहुत दिक्कतें होती हैं. लोन वाली व्यवस्था से कुछ हद तक राहत मिलेगी.”
इससे पहले बीएचयू में विदेशी स्टूडेंट्स को लुभाने के लिए भी एक छात्रवृत्ति योजना शुरु की गई थी जिसके तहत हर विदेशी छात्र को 6 हजार रुपए महीने छात्रवृत्ति के तौर पर दिया जाएगा. बीएचयू प्रशासन ने यह फैसला उस वक्त लिया था जब हॉस्टल और परीक्षा में फीस बढ़ोत्तरी को लेकर छात्र आंदोलित थे और लगातार कई दिनों तक प्रदर्शन किया था. (dw.com)
सैन्य शासन वाले देश में अपदस्थ नेता आंग सान सू ची को पहले ही छह साल जेल की सजा मिल चुकी है. ताजा फैसले के बाद उन्हें सभी मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा के रूप में दशकों तक जेल में रहना पड़ सकता है.
सू ची के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के कई मामलों में यह पहला फैसला था, कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार के पहले मामले में दोषी पाया और उन्हें पांच साल जेल की सजा सुनाई. एक कानूनी अधिकारी ने कई समाचार एजेंसियों को सजा की पुष्टि की, लेकिन नाम बताने से इनकार कर दिया क्योंकि सू ची के खिलाफ मामले की सुनवाई बंद कमरे में हो रही थी.
सू ची पर यंगून शहर के एक पूर्व मुख्यमंत्री से छह लाख डॉलर और 11 किलोग्राम सोने की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था. कभी सू ची के विश्वासपात्र रहे प्यो मिन थिन ने अक्टूबर 2021 में गवाही दी थी कि उन्होंने सू ची को भुगतान किया था.
बुधवार को मिली सजा को पहले की सजा के साथ जोड़ने से सू ची की कुल 11 साल की सजा हो गई है. म्यांमार की सेना ने पिछले साल 1 फरवरी को सैन्य तख्तापलट कर दिया था और स्टेट काउंसलर सू ची और उनके सत्तारूढ़ एनएलडी के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया था.
सू ची के खिलाफ क्या आरोप हैं?
76 साल की नोबेल विजेता सू ची पर म्यांमार में भ्रष्टाचार समेत दर्जनों मामलों में जांच चल रही हैं, जिनके तहत उन्हें सौ साल से ज्यादा की सजा भी हो सकती है. वह सभी आरोपों से इनकार करती हैं.
इससे पहले कोर्ट ने सू ची को वॉकी-टॉकी रखने के लिए आयात-निर्यात कानून का उल्लंघन करने के लिए दो साल की सजा और सिग्नल जैमर का एक सेट रखने के लिए एक साल की सजा सुनाई थी. इसके अलावा सू ची को अपने चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना वायरस नियमों से जुड़े प्राकृतिक आपदा प्रबंधन कानून के उल्लंघन के आरोप में दो साल की सजा भी मिली थी.
सू ची के खिलाफ मुकदमा पिछले साल शुरू हुआ था. उनके खिलाफ सुनवाई बंद कमरे में हो रही है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा इसकी आलोचना की गई है. सू ची की कानूनी टीम भी विभिन्न प्रतिबंधों के अधीन है और प्रेस से बात करने के लिए स्वतंत्र नहीं है.
म्यांमार में उथल-पुथल
पिछले साल फरवरी में सैन्य तख्तापलट के बाद से म्यांमार में उथल-पुथल मची हुई है. सैन्य तख्तापलट के परिणामस्वरूप सू ची को सत्ता से बेदखल कर दिया गया और सू ची की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर दिया गया.
सू ची को तब से नजरबंद रखा गया है, लेकिन दोषी पाए जाने के बाद उन्हें एक अज्ञात स्थान पर रखा गया है. देश में लोकतंत्र समर्थक सैन्य सरकार और सैन्य अभियानों का विरोध कर रहे हैं. विरोध प्रदर्शनों में अब तक 1,700 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.
एए/सीके (रॉयटर्स, एपी, डीपीए)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अप्रैल । खनिज विभाग के दो अफसर डी महेश बाबू, और कुंदन बंजारे को हटा दिया गया है। बताया गया कि दोनों अफसरों के खिलाफ गंभीर शिकायतों के बाद हटाकर दूसरे विभाग भेजा गया है।
खनिज विभाग के अवर सचिव कुंदन बंजारे को हटाकर योजना, सांख्यिकी विभाग में भेजा गया है। उन्हें वहां ओएसडी बनाया गया है। इसी तरह डी महेश बाबू को खेल और युवा कल्याण विभाग का ओएसडी बनाया गया है। महेश बाबू संचालनालय में अपर संचालक के पद पर थे।
सूत्र बताते हैं कि कुछ उद्योगों की फाइले रोकने की शिकायतें आई थी। ये फाइलें खदानों से जुड़ी हुई थी। दोनों ही अफसर एक-दूसरे के काफी करीब माने जाते हैं, और फाइलों को अटकाने के पीछे दोनों की भूमिका सामने आई है। महेश बाबू पिछले डेढ़ दशक से संचालनालय में ही थे। इसी तरह कुंदन बंजारे भी माईनिंग के अफसर हैं, और वो मंत्रालय में विभाग का पूरा काम देख रहे थे।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अप्रैल। खैरागढ़ में हार के बाद भाजपा हाईकमान ने प्रदेश संगठन के बड़े नेताओं को तलब किया है। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के साथ चार प्रमुख नेता दिल्ली पहुंच रहे हैं। खबर है कि उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, और अन्य नेताओं के साथ बैठक हो सकती है।
छत्तीसगढ़ के चुनावों में लगातार हार से भाजपा हाईकमान चिंतित हैं। विधानसभा आम चुनावों को डेढ़ साल से भी कम समय बाकी रह गया है। ऐसे में लगातार एक के बाद एक हार से पार्टी नेता गंभीर हो गए हैं। सूत्र बताते हैं कि पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय, और महामंत्री (संगठन) पवन साय को दिल्ली बुलाया गया है। ये सभी नेता बुधवार की रात, अथवा गुरुवार को सुबह दिल्ली पहुंचेंगे।
बताया गया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, और महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश व अन्य नेताओं के साथ उनकी बैठक हो सकती है। कहा जा रहा है कि प्रदेश की प्रभारी डी पुरंदेश्वरी, और सह प्रभारी नितिन नबीन ने पहले अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें संगठन में बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत पर बल दिया था। उन्होंने बस्तर, सरगुजा संभाग के दौरे के बाद यह पाया था कि ज्यादातर जिलों में कामकाज नहीं के बराबर है। संगठन की गतिविधियां ठप पड़ गई है।
सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश ने भी इस पूरे विषय पर चिंता जताई थी। इन सबके चलते पार्टी हाईकमान बैठक बुलाने को मजबूर हो गया है। चर्चा है कि बैठक में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर रोड मैप तैयार किया जा सकता है। साथ ही संगठन में आमूलचूल परिवर्तन पर भी चर्चा हो सकती है। यही नहीं, कुछ बड़े नेताओं के कार्यक्रम भी तय किए जा सकते हैं। विशेषकर बस्तर और सरगुजा संभाग को फोकस किया जाएगा।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 27 अप्रैल। सरकार ने जिलों के नए सिरे से प्रभारी सचिव नियुक्त किए हैं। सीएम के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी को दुर्ग, और अलरमेल मंगई डी को रायपुर का प्रभारी सचिव बनाया गया है। विधिवत आदेश जारी कर दिए गए हैं।
आदेश इस प्रकार है-
(मुहम्मद मजहर सलीम)
लखनऊ, 27 अप्रैल। देश में समान नागरिक संहिता को लेकर चर्चा और विरोध के बीच उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ मामलों के राज्य मंत्री दानिश अंसारी ने कहा कि वह प्रदेश में जगह-जगह ‘कौमी चौपाल’आयोजित करके सभी वर्गों, खासकर मुस्लिम समाज को समान नागरिक संहिता के बारे में जागरूक करेंगे और भारतीय जनता पार्टी की सरकार सभी पक्षों से बातचीत करके ही इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेगी।
अंसारी ने बुधवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में समान नागरिक संहिता का मामला तूल पकड़ने से जुड़े एक सवाल पर कहा, ‘‘समाज जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, उसकी कुछ नयी जरूरतें पैदा होती हैं तो उन्हें लागू करना चाहिये। हमारा हर फैसला जनता के हित में होगा। हमारे लिये जनता की राय सबसे महत्वपूर्ण है। हम उसके बगैर कभी आगे नहीं बढ़ते। हम सभी पक्षों से बातचीत कर और जनता से संवाद स्थापित करके ही समान नागरिक संहिता की तरफ आगे बढ़ेंगे।'
उत्तर प्रदेश सरकार में इकलौते मुस्लिम मंत्री ने कहा, ‘‘हम जमीनी स्तर पर जाकर लोगों को, खासकर मुस्लिम समाज को समान नागरिक संहिता के बारे में बताएंगे। हम कौमी चौपाल के माध्यम से सरकार की मंशा को लोगों के सामने रखेंगे।’’
गौरतलब है कि देश में मुसलमानों की प्रमुख संस्था ‘आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने समान नागरिक संहिता के विचार को अस्वीकार करते हुए इसके पक्ष में कही जा रही बातों की निंदा की है। बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और केंद्र की सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता का राग अलापना फ़िज़ूल बयानबाजी के अलावा और कुछ नहीं है।
पिछले कुछ समय से देश में समान नागरिक संहिता का मुद्दा चर्चा में है। यह भाजपा के एजेंडे में शामिल एक प्रमुख मुद्दा भी है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गत 23 अप्रैल को भोपाल में भाजपा की एक बैठक के दौरान कहा था कि सीएए, राममंदिर, अनुच्छेद-370 और तीन तलाक जैसे मुद्दों के फैसले हो गए हैं। अब समान नागरिक संहिता की बारी है, जिसे आने वाले कुछ वर्षों में हल कर दिया जाएगा।
वहीं, उत्तराखंड की नवगठित भाजपा सरकार ने 24 मार्च को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में समान नागरिक संहिता का मसविदा तैयार करने के लिए समिति गठित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। उसके बाद उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी कहा था कि राज्य सरकार समान नागरिक संहिता को लेकर गंभीरता से विचार कर रही है।
अंसारी ने कहा कि अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिम समाज में भाजपा के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा है। उसे यह मालूम हो गया है कि भाजपा सरकार बिना किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्गों के लिए पूरी ईमानदारी और तत्परता से काम कर रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली सरकारों के स्वार्थपूर्ण रवैये की वजह से ही देश के मुसलमान विभिन्न क्षेत्रों में पिछड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझा और चुनाव जीतने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। धीरे-धीरे मुस्लिम समाज ने उन दलों की सच्चाई को समझा और उन्हें नकारना शुरू कर दिया। यही वजह है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से भी भाजपा जीत रही है। (भाषा)
तमिलनाडु के तंजावुर में करंट लगने से जान गंवाने वालों के परिजनों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से 2-2 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा.
हादसे में घायलों को भी पीएम राहत कोष से 50-50 हज़ार रुपये की राशि दी जाएगी.
बुधवार को तंजावुर में एक मंदिर की रथ यात्रा के दौरान हाई वोल्टेज तार की चपेट में आने से 11 लोगों की मौत हुई और 15 घायल हो गए.
पीएम मोदी ने कहा, "तमिलनाडु के तंजावुर में हुए हादसे से गहरा दुख हुआ. इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं. मुझे उम्मीद है कि घायल लोग जल्द ठीक हो जाएंगे."
तंजावुर हादसे को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी दुख जताया और मृतकों के परिवार को 5-5 लाख रुपये की राशि देने की घोषणा की है.
वहीं, तिरुचिरापल्ली सेंट्रल ज़ोन के आईजी वी. बालाकृष्णन ने बताया कि मामले में एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है और जांच जारी है. (bbc.com)
100 से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर उम्मीद जताई कि वे 'नफ़रत की राजनीति' को ख़त्म करने का आह्वान करेंगे, जिसपर बीजेपी शासित राज्यों में 'ज़ोर' दिया जा रहा है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार पूर्व नौकरशाहों ने चिट्ठी में कहा, "हम देश में नफ़रत से भरी तबाही का उन्माद देख रहे हैं, जहाँ बलि की वेदी पर न केवल मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्य हैं, बल्कि संविधान भी है."
इस चिट्ठी पर 108 लोगों के हस्ताक्षर हैं. इनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह, पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव रहे टीकेए नायर शामिल हैं.
चिट्ठी में कहा गया है, "पूर्व नौकरशाह के रूप में हम आम तौर पर ख़ुद को इतने तीखे शब्दों में व्यक्त नहीं करना चाहते हैं, लेकिन जिस तेज़ गति से हमारे पूर्वजों द्वारा तैयार संवैधानिक इमारत को नष्ट किया जा रहा है, वह हमें बोलने और अपना ग़ुस्सा तथा पीड़ा व्यक्त करने के लिए मजबूर करता है."
चिट्ठी में कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में कई राज्यों- असम, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदायों, ख़ासकर मुसलमानों के प्रति नफ़रत और हिंसा में बढ़ोतरी ने एक भयावह नया आयाम हासिल कर लिया है. पत्र में कहा गया है कि दिल्ली को छोड़कर इन राज्यों में भाजपा की सरकार है और दिल्ली में पुलिस पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है.
आखिर में लिखा गया है, "हमें उम्मीद है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के इस वर्ष में, पक्षपातपूर्ण विचारों से ऊपर उठकर, आप नफ़रत की राजनीति को ख़त्म करने का आह्वान करेंगे." (bbc.com)
जीवन बीमा कंपनी एलआईसी का आईपीओ 4 मई को लॉन्च होगा. निवेशक 9 मई तक इसके लिए अप्लाई कर सकेंगे.
बुधवार को एलआईसी आईपीओ की लॉन्चिंग की घोषणा करते हुए DIPAM सचिव तुहीन कांत पांडे ने कहा, "शेयर के लिए 902 रुपये से 949 रुपये तक का प्राइस बैंड रखा गया है."
एलआईसी के आईपीओ का साइज़ 21 हज़ार करोड़ रुपये होगा.
डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट सचिव तुहीन कांत पांडे ने कहा कि बाज़ार की मौजूदा स्थिति को देखते हुए एलआईसी आईपीओ का साइज़ सही है.
उन्होंने ये भी कहा कि एलआईसी के आईपीओ से बाज़ार में पूंजी की कमी नहीं होगी.
पहले सरकार देश की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी में पाँच फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने वाली थी, लेकिन अब आईपीओ के जरिए महज 3.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी की पेशकश की जाएगी.
शेयर के लिए 902 रुपए से 949 रुपए तक का प्राइस बैंड रखने के अलावा पॉलिसी धारकों को 60 रुपए की छूट भी दी जाएगी. (bbc.com)
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने दावा किया है कि जिस तरह तेलंगाना ने काम किया है, देश ने नहीं किया है. तेलंगाना के स्थापन दिवस समारोह में सीएम केसीआर ने कहा कि तेलंगाना अन्य राज्यों के लिए एक रोल मॉडल की तरह उभरा है, लेकिन उसे और बहुत कुछ हासिल करने की आवश्यकता है. उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद पानी को लेकर लड़ाई और बिजली क्षेत्र के संकट पर चिंता जताई.
के चंद्रशेखर राव ने कहा कि उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टियों के नेताओं को उस समय ना कह दिया था, जब सत्तारुढ़ बीजेपी को हटाने का विचार पेश किया गया था. उन्होंने कहा कि किसी पार्टी को नीचे गिराने पर ध्यान नहीं केंद्रित करना चाहिए. तेलंगाना के सीएम ने कहा- देश को वैकल्पिक एजेंडे की ज़रूरत है, राजनीतिक मोर्चों या राजनीतिक दलों के फिर से संगठित करने की नहीं. (bbc.com)
सर्विसलेन में मचा हडक़ंप
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 27 अप्रैल। भीषण गर्मी के बीच आज दोपहर शहर के सर्विस लेन में चलती हुई एक बाइक में आग लगने की घटना सामने आई है। इधर सडक़ में बाइक में आग लगने से लोग हतप्रभ रह गए। वहीं लोगों के बीच चर्चा का विषय बना रहा। इधर बाइक में आग लगने से चालक ने आनन-फानन में बाइक से कूद गया।
मिली जानकारी के अनुसार बुधवार दोपहर करीब एक बजे एक बाइक सवार गुरूनानक चौक से सर्विस लेन की ओर जा रहा था। इसी बीच उसकी बाइक में आग लगने से बाइक चालक आनन-फानन में बाइक को छोड़ दिया। देखते ही देखते आग पूरी तरह मोटर साइकिल में लग गई। इधर बाइक चालक गाड़ी से उतरते ही राहत की सांस ली। हालांकि उसकी बाइक पूरी तरह सडक़ के बीच जल गई। इधर सर्विसलेन में चलती बाइक में आग लगने की घटना से अन्य वाहन चालक सडक़ में ही रूक गए। जिससे थोड़ी देर के लिए सडक़ पर जाम के हालात बन गए थे। इधर घटना की सूचना के बाद पुलिस और फायर ब्रिगेड भी मौके पर पहुंच गई थी।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बेलरगोंदी का रहने वाला सुरेन्द्र चंद्रवंशी राजनांदगांव किसी काम से आया हुआ था। इसी बीच उक्त व्यक्ति दोपहर करीब 12 से 1 बजे के बीच गुरूनानक चौक से सर्विस लेन की ओर जा रहा था और उसकी बाइक में अचानक आग लग गई।
हरिद्वार: रुड़की धर्म संसद रोके जाने के बाद अब हरिद्वार प्रशासन ने अपने यहां भी होने वाली महापंचायत पर रोक लगा दी है. हरिद्वार जिला प्रशासन ने मंगलवार को हिंदू धर्मगुरुओं द्वारा एक महापंचायत की घोषणा के बाद दादा जलालपुर गांव के 5 किमी के दायरे में दफा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी है. हरिद्वार के जिलाधिकारी वीएस पांडेय ने बताया कि दादा जलालपुर और आसपास के 5 किमी क्षेत्र में दफा 144 लागू कर दी गई है. सभी कार्यक्रमों को प्रतिबंधित कर दिया गया है. इस कार्यक्रम (महापंचायत) के लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी.
बता दें कि हरिद्वार के भगवानपुर इलाके में 16 अप्रैल को एक धार्मिक जुलूस के दौरान हिंसा भड़क गई थी, जिसमें कई लोग घायल हो गए थे. पुलिस ने मामले में कई गिरफ्तारियां की हैं.
गौरतलब है कि उत्तराखंड के रुड़की में बुधवार को होने वाली धर्म संसद पर पुलिस ने रोक लगा दी है. इसके साथ ही उत्तराखंड पुलिस ने रुड़की में धारा 144 भी लगा दी है और धर्म संसद के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया है. जानकारी के मुताबिक कुछ आयोजकों की गिरफ्तारी भी हुई है. पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद ये कदम उठाए हैं.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के प्रमुख केनेथ रॉथ ने अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है. उनके नेतृत्व में पिछले तीन दशकों में संगठन ने पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के लिए कई ऐतिहासिक काम किए हैं.
रॉथ की ही अध्यक्षता में न्यूयॉर्क से चलने वाले इस संगठन को 1997 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था. पुरस्कार संस्था को मानव विरोधी बारूदी सुरंगों पर प्रतिबंध लगवाने की कोशिशों के लिए मिला था. इसी संस्था की कोशिशों के फलस्वरूप अंतरराष्ट्रीय अदालत की स्थापना भी हुई थी.
अदालत की पूर्व प्रमुख अभियोजनकर्ता फातो बेंसौदा ने रॉथ को प्रेरणा का स्रोत बताया. उन्होंने कहा, "न्याय के लिए केन का निर्भीक जुनून, उनका साहस और मानवाधिकारों के उल्लंघन के पीड़ितों के प्रति उनकी अनुकंपा उनके लिए सिर्फ एक पेशेवर जिम्मेदारी नहीं बल्कि व्यक्तिगत दृढ़ विश्वास का विषय था."
कई दुश्मन बने
1993 में रॉथ जब कार्यकारी निदेशक बने थे. तब इस संगठन में करीब 60 लोग काम करते थे और इसका सालाना बजट 70 लाख डॉलर था. आज 100 से भी ज्यादा देशों में इसके लिए 550 से भी ज्यादा लोग काम करते हैं. बजट बढ़ कर 10 करोड़ डॉलर हो गया है.
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के कार्यकारी निदेशक एंथनी रोमेरो ने कहा, "केन रॉथ ने ह्यूमन राइट्स वॉच को न्याय के लिए एक प्रभावशाली शक्ति में बदल दिया था. उन्होंने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की एक पूरी पीढ़ी को एक बेहतर दुनिया के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया."
संगठन दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा जटिल मुद्दों में मानवाधिकारों के लिए लड़ाई में आगे रहा है. संगठन का कहना है कि इस वजह से धीरे-धीरे कई लोग रॉथ के दुश्मन भी बन गए.
नए मुखिया की तलाश
संगठन ने एक बयान में कहा, "वो खुद यहूदी थे और उनके पिता 12 साल की उम्र में नाजी जर्मनी से भाग गए थे...इसके बावजूद संगठन के इस्राएली सरकार के शोषण की आलोचना की वजह से उन पर यहूदी-विरोधी होने का आरोप लगा कर हमले किए गए."
ह्यूमन राइट्स वॉच ने यह भी कहा, "वैश्विक मानवाधिकार प्रणाली के लिए चीन द्वारा खतरे को उजागर करने वाली रिपोर्ट को जारी करने के लिए जब वो जनवरी 2020 में हांगकांग गए थे, तब चीन की सरकार ने उन पर 'प्रतिबंध' लगा दिए थे और उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया था."
संगठन ने कहा कि उसकी कोशिशों की वजह से लाइबेरिया के पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स टेलर, पेरू के पूर्व राष्ट्रपति अल्बेर्तो फूजीमोरी और युद्ध के समय बोस्नियाई सर्बियाई नेता रहे रादोवान करादजिच और रात्को म्लादिच को सजा हो सकी.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने बताया कि अगस्त में रॉथ के पद छोड़ने के बाद उनके उत्तराधिकारी की तलाश पूरी होने तक उप-कार्यकारी निदेशक तिराना हसन अंतरिम कार्यकारी निदेशक का पद संभालेंगे.
सीके/एए (एपी)