राजपथ - जनपथ
अब सब किनारा करने लगे
आईटी छापे के बाद सूर्यकांत तिवारी सुर्खियों में है। पूर्व सीएम रमन सिंह ने सूर्यकांत के सीएम से संबंधों पर सवाल उठाए, तो कांग्रेस नेताओं ने सूर्यकांत की रमन सिंह, और बाकी बड़े भाजपा नेताओं के साथ तस्वीर साझा कर चुप्पी साधने पर मजबूर कर दिया।
अब सवाल यह उठ रहा है कि सूर्यकांत के प्रतिष्ठानों में आईटी के छापों को लेकर कांग्रेस, और भाजपा के नेता आपस में क्यों उलझ रहे हैं? जबकि आईटी डिपार्टमेंट की विज्ञप्ति में कहीं भी सूर्यकांत के नाम का उल्लेख नहीं है। वैसे भी आईटी डिपार्टमेंट नाम सार्वजनिक नहीं करता है। डिपार्टमेंट के लिए हर टैक्सपेयर सम्मानीय होता है।
जहां तक सूर्यकांत के संबंधों का सवाल है, तो उसके चाहने वाले हर दल में मौजूद हैं। कांग्रेस, और बड़े भाजपा नेताओं के साथ तस्वीर तो सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, लेकिन अगर उसने पूरा एलबम सार्वजनिक कर दिया, तो शायद ही प्रदेश का कोई बड़ा नेता होगा, जिसके साथ सूर्यकांत की तस्वीर न हो।
चर्चा है कि चुनाव के पहले और बाद में नेताओं ने सूर्यकांत की मदद ली थी, लेकिन अब छापे पड़ गए, तो हर कोई उससे किनारा करने की कोशिश कर रहा है। नेताओं को डर आईटी छापे से नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र और अन्य राज्यों की तरह ईडी भी जांच में कूद गई, तो मुश्किल बढ़ सकती है। यही वजह है कि हर कोई खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश में लग गए हैं।
राजनीतिक सफर
महासमुंद के रहवासी कारोबारी-नेता सूर्यकांत तिवारी राजनीतिक और कारोबारी जगत में जाना पहचाना नाम है। सूर्यकांत छात्र जीवन से ही सक्रिय राजनीति में रहा है। उसे दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल का काफी करीबी माना जाता था। और जब शुक्ल एनसीपी में गए, तो सूर्यकांत को उन्होंने एनसीपी के छात्र विंग के प्रदेश की कमान सौंपी थी। बाद में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के कहने पर एनसीपी छोडक़र कांग्रेस में आ गया।
सूर्यकांत राजनीति के साथ-साथ कोयले के कारोबार-परिवहन में भी जुट गया, और काफी संपत्ति बनाई। जब जोगी ने कांग्रेस छोडक़र अपनी नई पार्टी जनता कांग्रेस बनाई, तो सूर्यकांत उनके साथ हो गए। सूर्यकांत की जोगी से नजदीकियों का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि जब बसपा प्रमुख मायावती की अजीत जोगी की पार्टी के साथ सीटों के तालमेल को लेकर बैठक हुई थी, तो इस बैठक में सूर्यकांत भी रहे। यही नहीं, प्रशासनिक क्षेत्रों में भी उसकी गहरी पैठ रही है। दो साल पहले एक सीनियर आईएएस के यहां विवाह समारोह था, तो उस वक्त के एक न्यायाधिपति सूर्यकांत के साथ कार में बैठकर विवाह में शामिल होने पहुंचे थे।
हल्ला तो यह भी है कि चुनाव नतीजे आने से पहले भाजपा के रणनीतिकार जोगी पार्टी के साथ सरकार बनाने की उधेड़बुन में लगे थे, तो सूर्यकांत अहम सहयोगी था। ये अलग बात है कि नतीजे अनुकूल नहीं आए, और भाजपा को बुरी हार का सामना करना पड़ा। बाद में सूर्यकांत ने पीएल पुनिया की मौजूदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस के कई विधायक सूर्यकांत के आगे-पीछे होते देखे जाते रहे हैं। सरकार कोई भी रहे, सूर्यकांत की धमक कम नहीं हुई। यही वजह है कि उसके यहां छापों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई दे रही है।
चिकित्सा सेवा पर टैक्स की शुरूआत
जीएसटी के दायरे में अब अस्पताल के कमरों के किराये को ले लिया गया है। अभी यह 5000 रुपये से अधिक किराये वाले कमरों में लागू होगा। छत्तीसगढ़ में गिने-चुने अस्पताल हैं जिनमें बड़ी दुर्घटनाओं के तत्काल इलाज की सुविधा मिलती है। लोग राजधानी या बिलासपुर का रुख करते हैं। मिलती-जुलती कुछ सुविधाएं कोरबा में भी है। ज्यादातर निजी हैं। स्पाइन, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक, बाइपास सर्जरी कुछ ऐसे गंभीर मामले होते हैं जिसमें मरीजों को हफ्तों भर्ती रहना पड़ता है। चिकित्सक ऐसे इलाज के बाद मरीजों को महंगे कमरों में ही रहने की सलाह देते हैं, ताकि वे ठीक तरह से स्वास्थ्य लाभ ले सकें। बात मामूली लग रही हो कि अभी सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी है और वह भी 5000 रुपये के किराये पर। पर शुरूआत हो चुकी है। जीएसटी लगाने का एक नया रास्ता मिल चुका है। वैसे भी सरकार किसी भी जरूरी चीज के दाम तब तक नहीं बढ़ाती जब तक पिछली बार की गई वृद्धि के लोग अभ्यस्त नहीं हो जाते। 1000 रुपये किराये वाले होटलों पर जीएसटी लगाना और रसोई गैस का बार-बार दाम बढ़ाना इसकी मिसाल है।
खेतों में महिलाओं की ऐसी भागीदारी...
बारिश भले ही उम्मीद के अनुरूप नहीं हो रही हो, पर खेती का काम रुका नहीं है। खेती के कुछ काम ऐसे हैं जिनमें महिलाओं को ही प्राथमिकता मिलती है। प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वामीनाथन, जिन्होंने खेती को दुरुस्त व्यवसाय बनाने के लिए सरकार को कई सिफारिशें की हैं, उनका मानना है कि कृषि कार्य में महिलाओं का योगदान 65 से 70 प्रतिशत होता है। एक हेक्टेयर खेत में एक पुरुष 1212 घंटे काम करता है तो महिला 3485 घंटे करती है। भारत की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है और खेती महिलाओं पर। फिर भी उन्हें यथायोग्य सम्मान नहीं मिलता, न ही प्रशिक्षण। अशिक्षा, अनभिज्ञता, उदासीनता, अंधविश्वास बाधक हैं। फिर वे घरेलू जिम्मेदारियों में भी उलझी रहती हैं। छत्तीसगढ़ के खेतों में इन दिनों थरहा लगाने का काम चल रहा है। इसमें महिलाएं जितना निपुण हैं, पुरुष नहीं। यह हाल ही में किसी खेत से ली गई तस्वीर है।
नगरनार प्लांट की कमीशनिंग क्यों टली?
नगरनार में स्थापित एनएमडीसी के आयरन एंड स्टील प्लांट की कमीशनिनिंग यानि उत्पादन प्रक्रिया शुरू करने का काम अलग-अलग कारणों से पिछड़ता रहा। इसे 6 साल पहले चालू हो जाना था। इस सप्ताह पूरी तैयारी कर महीने के अंत तक कमीशनिंग की जानी थी। इसके लिए सीएमडी और दूसरे अधिकारियों का दौरा भी निश्चित हो गया था लेकिन यह अचानक रद्द हो गया। एनएमडीसी ने मेकान को संयंत्र के परिचालन और रख-रखाव का काम सौंपा है। इसके कई अधिकारी पिछले कई दिनों से यहां आकर रुके हुए थे। पर अब सब ठहर गया। दरअसल बताया जाता है कि इसकी वजह इस्पात मंत्रालय में हुआ फेरबदल है। इस विभाग के मंत्री आरएनपी सिंह ने राज्यसभा की सदस्यता समाप्त होने के बाद इस्तीफा दे दिया है। इसका अतिरिक्त प्रभार माधवराव सिंधिया को सौंपा गया है। कमीशनिंग की पहले जो डेडलाइन बनाई गई थी वह पूर्व मंत्री सिंह से सहमति लेकर बनाई गई थी। अब सिंधिया से मंजूरी ली जानी है। तब तक प्लांट शुरू होने की संभावना नहीं है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस का असर
आईटी छापों, और कोयला तस्करी पर प्रदेश भाजपा संगठन मुखर दिखी है। एक पूर्व मंत्री ने तो बुधवार को सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर सरकार पर जमकर कोसा। इसका प्रतिफल तुरंत मिल भी गया। दोपहर बाद सरकार का अमला अलग-अलग कोलवाशरी में जांच के लिए पहुंच गया। चर्चा है कि इन कोल वासरियों के संचालकों में से एक तो पूर्व मंत्री के पार्टनर भी हैं। पूर्व मंत्री ने वाशरी संचालकों के प्रतिष्ठानों में काफी कुछ निवेश कर रखा है। जांच में क्या मिला, क्या नहीं, यह तो साफ नहीं हो पाया है, लेकिन अंदाजा लगाया जा रहा है कि जांच पड़ताल से थोड़ी बहुत चोट पूर्व मंत्रीजी को पहुंची होगी।
जवाबी हमला
आईटी छापे तो पड़ते ही रहते हैं, लेकिन भाजपा अचानक क्यों सक्रिय दिखी, इसकी अलग ही कहानी है। सुनते हैं कि राहुल गांधी का फर्जी वीडियो प्रसारित करने के मामले में टीवी एंकर को गिरफ्तार करने छत्तीसगढ़ पुलिस की टीम दिल्ली पहुंची, तो हडक़ंप मच गया। इसकी गूंज भाजपा मुख्यालय तक हुई।
हल्ला यह है कि एंकर के बचाव के लिए पार्टी के आईटी सेल के लोगों ने ताकत झोंक दी। प्रकरण में यूपी पुलिस की भी मदद ली गई। आईटी सेल के लोगों ने प्रदेश भाजपा के रणनीतिकारों से चर्चा की। इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने का निर्णय लिया गया, और सभी जिलों में एक ही मुद्दे को लेकर पार्टी नेताओं ने कॉन्फ्रेंस लिया। बावजूद इसके एंकर के खिलाफ कार्रवाई मीडिया में छाई रही।
गुरुजनों के लिए एक सबक...
बिहार के मुजफ्फरपुर के नितीश्वर सरकारी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार इस समय चर्चा में हैं। उन्होंने 33 महीने का पूरा वेतन जो करीब 24 लाख रुपये है, कुलसचिव को वापस कर दिया। उनका कहना था कि चूंकि इस दौरान उन्होंने क्लास ही नहीं ली, इसलिये वेतन लेने का हक भी नहीं। वे हिंदी के प्राध्यापक हैं। इस विषय पर 1100 छात्रों का नामांकन है। कोविड काल में ऑनलाइन क्लास लगाई तब भी छात्र उसमें शामिल नहीं हुए, जब कॉलेज खुल गया तब भी क्लास नहीं आ रहे थे। मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले डॉ. ललन कुमार को अच्छा नहीं लगा कि बिना पढ़ाए वेतन ले। इसके विपरीत अनेक सरकारी दफ्तरों के बारे में एक धारणा ही बनी हुई है कि काम नहीं करना है, और करना भी है तो बिना चढ़ावा लिए नहीं। शिक्षा की दशा क्या है, इस पर समय-समय पर रिपोर्ट्स आती रहती हैं। एक ओर छत्तीसगढ़ सहित दूसरे कई राज्यों में एक या दो क्लास लेकर, कई-कई दिन क्लास नहीं लेकर भी टीचर्स अच्छा खासा वेतन उठाते हैं, वहीं दूसरी ओर ललन कुमार देशभर के शिक्षकों को आईना दिखा रहे हैं।
हिंदी में बस इतना काफी है...
सार्वजनिक उपक्रम एसईसीएल में एक अदद राजभाषा विभाग है। इसका काम विभिन्न विभागों को हिंदी में पत्राचार के लिए प्रेरित करना है। इसके लिए समय-समय पर सेमिनार और कार्यशाला भी रखी जाती है। अंताक्षरी और कविता, कहानी लिखने की प्रतियोगिताएं होती हैं। पर इस पत्र को देखें। कुछ हिंदी शब्दों के दर्शन हो रहे हैं, बाकी पूरा अंग्रेजी में है। लिखने वाले ने इतना भी कष्ट क्यों उठाया? पूरा पत्र क्यों नहीं अंग्रेजी में लिख डाला? बताते हैं कि इस तरह के पत्रों को भी हिंदी में लिखा गया मान लिया जाता है। आजादी के बाद से अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने पर जोर देने वालों को ऐसे पत्र और निराश कर सकते हैं, क्योंकि वह राजभाषा के रूप में भी व्यवहार में नहीं लाया जा सका है।
सर्विस टैक्स पर लगाम इसलिए लगी
होटलों, रेस्तरां में खाने के बारे में तो लोग अपनी हैसियत देखकर निर्णय लेते हैं, पर जब रेल का सफर हो तो कोई विकल्प नहीं होता। आईआरसीटीसी की मर्जी है, जो खिलाए-पिलाए और जो बिल थमाए। बीते दिनों सोशल मीडिया पर एक यात्री ने एक बिल शेयर किया था। दिल्ली-भोपाल के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में यात्री से चाय की कीमत तो सिर्फ 20 रुपये ही ली गई लेकिन सर्विस चार्ज 50 रुपये जोड़ दिया गया। इस तरह से कुल 70 रुपये की चपत लगी। बताते हैं कि उपभोक्ता आयोग के ध्यान में यह बात आई और यह भी सर्विस चार्ज पर पाबंदी लगाने का एक कारण बना।
कलेक्टर के जाने पर खुशियाँ !
पिछले दिनों डेढ़ दर्जन से अधिक कलेक्टर इधर से उधर हुए। कुछ के तबादले पर तो निराशा जताई गई, तो एक-दो ऐसे भी थे जिनके तबादले पर पीडि़त लोगों ने राहत की सांस ली, और खुशियां मनाई। इन्हीं में से एक रायगढ़ कलेक्टर भीम सिंह भी हैं, जिनके तबादले पर मजदूरों ने बकायदा मिठाई बांटकर अपनी खुशियों का इजहार किया। सरकार के रणनीतिकार भीम सिंह को एक बेहतर अफसर मानते रहे हैं, लेकिन जब उनके तबादले पर खुशियां मनाने की खबरें आई, तो वे हतप्रभ रह गए।
हाल के दिनों में रायगढ़ कई मामलों में कुख्यात रहा है। प्रदेश में धान खरीदी-मिलिंग का काम बेहतर ढंग से चला। मगर रायगढ़ में धान खरीद-मिलिंग में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुआ। चर्चा है कि प्रशासनिक लोगों के साथ-साथ फर्जीवाड़े में शामिल लोग राजनीतिक दलों से जुड़े हुए थे, इसलिए यह ज्यादा तूल पकड़ नहीं पाया। इसी तरह वैक्सीनेशन अभियान में भी गड़बड़ी पकड़ी गई थी। इस पर तत्कालीन हेल्थ सेके्रटरी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस में नाराजगी जताई थी।
रायगढ़ की तरह सालभर पहले गरियाबंद कलेक्टर छतर सिंह डेहरे रिटायर हुए, तो वहां के अफसर-कर्मियों ने भी इसी तरह की खुशियां मनाई थी। उन्होंने विदाई पार्टी तक नहीं दी। डेहरे को लेकर कई तरह की शिकायतें मंत्रालय तक पहुंची थी। प्रशासनिक अफसरों से अपेक्षा रहती है कि वो आम लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए पहल करे, लेकिन ऐसा नहीं होने पर लोग ताना देने से पीछे नहीं रहते हैं।
चौबेजी वैसे तो अच्छे हैं पर...
संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे को काबिल नेता माना जाता है। मगर मंत्री के तौर पर वे बाकी मंत्रियों की तुलना में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। चौबे के विभागों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी सामने आ रही है। खाद को लेकर पहले कभी इतनी समस्या नहीं रही, जितनी पिछले दो-तीन साल से हो रही है। अमानक बीज के मामले में कंपनी पर कार्रवाई की घोषणा के बावजूद भुगतान करने के मामले में विधानसभा के पिछले सत्र में विपक्षी सदस्यों ने उन्हें घेर लिया था, तब विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने हस्तक्षेप कर कमेटी बनाकर जांच की घोषणा कराने का आदेश दिया। यह पहला मौका था जब विधानसभा अध्यक्ष को जांच के लिए सीधे दखल देना पड़ा।
रायपुर कृषि उपज मंडी की जमीन पर जैम-ज्वेलरी पार्क योजना तैयार की गई थी, लेकिन इसमें इतना पेंच फंसा कि यह मामला खटाई में पड़ गया। कहा जा रहा है कि चौबे ने प्रकरण को ठीक से हैंडल नहीं किया। इस वजह से प्रशासनिक अड़चनें बढ़ती गई, और प्रकरण कोर्ट में चला गया। भूपेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ठंडे बस्ते में चली गई है। चौबे को लेकर एक शिकायत यह भी है कि वो रायपुर जिले के प्रभारी मंत्री हैं, लेकिन वो पिछले तीन महीने से एक भी बैठक नहीं ली। जबकि यहां नवा रायपुर से लेकर पुराने रायपुर में कई तरह की समस्याएं हैं। समस्याओं का निराकरण नहीं होगा, तो कार्यक्षमता पर सवाल उठेंगे ही।
इतना किफायती भी नहीं होगा खाना
होटलों में सर्विस टैक्स लेने पर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने रोक लगा दी है। वैसे अप्रैल सन् 2017 में भी इस तरह की गाइडलाइन जारी की गई थी कि उपभोक्ता चाहे तो सर्विस टैक्स दे, चाहे तो न दे। पर हर बड़ा रेस्तरां सर्विस टैक्स जोडक़र ही बिल थमाता था और लोग देते थे। अभी भी प्राधिकरण का सिर्फ दिशानिर्देश है, कानून के रूप में नहीं आया है। फिर भी अब सर्विस टैक्स जोडक़र बिल देने पर इसी आदेश के हवाले से उपभोक्ता आपत्ति कर सकता है।
दरअसल, सर्विस टैक्स न तो केंद्र सरकार के खजाने में जाता है, न ही राज्य के। नेशनल रेस्टारेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से एक बयान पहले आया था कि सर्विस टैक्स ग्राहकों को दी जाने वाली सेवा के एवज में लिया जाता है और इसका वितरण वेटर और रसोई के स्टाफ के बीच किया जाता है। यह कुछ अजीब सा तर्क था, क्योंकि जिस सब्जी, दाल, रोटी का भुगतान ग्राहक करता है, वह क्या है?
जिन होटलों की बात हो रही है, वहां शायद ही कोई मोल-भाव करता हो, बिल पर सवाल उठाता हो। ऐसे में सर्विस टैक्स नहीं भी लिया जाए तब भी कुछ बिगडऩे वाला नहीं है। लोग परिवार और दोस्तों के साथ ही ऐसे होटल में जाते हैं। जेब ढीला करने के मूड में ही पहुंचते हैं। बिल पर सरसरी नजर डालते हैं, आपत्ति नहीं करते, साथ ही वेटर को टिप भी देते हैं। सर्विस टैक्स की भरपाई रेट बढ़ा देने से भी हो जाएगी। चर्चा तो इस पर होनी चाहिए कि एक हजार रुपये से कम किराये वाले होटल रूम पर भी अब जीएसटी लागू कर दिया गया है। किफायत के साथ यात्रा पर निकलने वालों पर यह बड़ा बोझ लद गया। वैसे सर्विस टैक्स को लेकर शिकायत हो तो हेल्पलाइन नंबर 1915 याद रखिए।
ये हुई न बात..
कोरबा के नए कलेक्टर संजीव झा वहां के विधायक, प्रदेश के राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल से मिलने उनके घर पहुंचे। मुलाकात का अंदाज कुछ ऐसा रहा कि लगा सब पटरी पर आ चुका है। पहले वाली बात गई।
अचानकमार में बाघों की खुराक...
पिछले कुछ महीनों के भीतर अचानकमार में बाघों का विचरण देखा गया। बीते साल एक बाघिन घायल हालत में भी मिली थी। पता चला कि ये बाघ बांधवगढ़ और कान्हा किसली से भ्रमण करते हुए शिकार की तलाश में यहां पहुंचते हैं। इसकी वजह है कि यहां कई अवैध दैहान बने हुए हैं। सैकड़ों मवेशियों को चरते हुए यहां-वहां देखा जा सकता है। आसपास के गांवों में तथा मुख्य सडक़ों पर मिलने वाला ‘शुद्ध’ खोवा, घी और रबड़ी इन्हीं की देन है। इनका शिकार करने के लिए बाघ, तेंदुआ जरूर पहुंच जाते हैं पर अभयारण्य की सेहत के लिए दैहानों का होना और जानवरों का चरना ठीक नहीं है। कान्हा, बांधवगढ़ आदि के जंगलों में प्रतिबंध है। इनके नहीं होने से वन्यजीवों को पनपने का ज्यादा बेहतर वातावरण मिलता है। इससे जंगल नष्ट होता है और दूसरे वन्य जीव जिनमें चीतल, बनभैंसा, सांभर आदि हैं उनको पनपने का मौका नहीं मिलता। कई बार वन्यजीव प्रेमियों ने इन गौठानों को हटाने की मांग उठाई है। पर उनकी बात सुनी नहीं जाती। एक तो राजनीतिक दबाव, दूसरा वन अधिकारियों का संरक्षण। इन दोनों वजहों से दैहान फल-फूल रहे हैं। और अचानकमार के सैलानी, सैलानी बाघों को ढूंढा करते हैं।
रेलवे का जख्म स्थायी होगा...
दर्जनों ट्रेनों को लंबे समय से बंद कर देने के कारण रेल सफर करने वाले यात्री महीनों से हलकान हैं। इससे कम दूरी के यात्रियों को अधिक परेशानी हो रही है। स्थिति यह है कि आसपास के स्टेशनों के लिए भी सीटिंग सीट, दू एस और स्लीपर में भी लंबी वेटिंग चल रही है, जबकि ज्यादातर ट्रेनों से जनरल डिब्बे गायब हैं। रद्द की गई ट्रेनों में पैसेंजर ट्रेनों की संख्या ज्यादा है, जिनमें बीते माह स्टेशन पर टिकट तुरंत लेकर बैठने की सुविधा शुरू की गई थी। सस्ते सफर की बात तो तब करें जब ट्रेन नियमित रूप से चलने लगे। यात्री अब महंगे सफर के आदी हो रहे हैं। इस मजबूरी का रेलवे ने नए तरीके से फायदा उठाने का सोच लिया है। पैसेंजर ट्रेनों को मेल-एक्सप्रेस का दर्जा दिया जाएगा। दर्जा बढ़ेगा यानि किराया भी बढ़ेगा। जानकारी मिली है कि इसके बाद इन ट्रेनों का न्यूनतम किराया 30 रुपये कर दिया जाएगा, जो अभी 10 रुपये है। छोटे स्टेशनों पर ठहराव देने की मांग पर रेलवे का रुख कड़ा है। कोविड काल से इन स्थानों पर ट्रेनों को रोकना बंद किया गया था। अब इसे स्थायी रूप दे दिया जाएगा। रेलवे ने करीब 1600 स्टेशनों में ठहराव बंद कर दिया है। छोटे स्टेशनों में रोकने का खर्च बहुत ज्यादा है, जबकि यात्री टिकट से होने वाली आमदनी उसके मुकाबले कुछ नहीं। कुल मिलाकर रेलवे का रूख पूरी तरह मुनाफा की सोचने वाली संस्था की है। लोक कल्याण के प्रति शासन की प्रतिबद्धता से वह लगातार दूर होती जा रही है।
स्टांप ड्यूटी में हो गया खेल..
उद्योगों को जमीन खरीदने पर स्टांप ड्यूटी के रूप में बड़ी रकम जमा करनी होती है, तब पंजीयन हो पाता है। विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर इस राशि कम कराने की शिकायतें अक्सर आती है। हाल ही में रायपुर का मामला उछला है जिसमें कई उद्योगों को लीज पर जमीन लिए 10-10 साल हो गए पर न उद्योग शुरू किया और न ही स्टापं ड्यूटी जमा की। पर रायगढ़ में एक दूसरी तरह का मामला आया है। एक ऑयरन एंड पॉवर कंपनी की लगभग 250 एकड़ जमीन की पंजीयन विभाग ने रजिस्ट्री की है। इसमें 600 वृक्षों का होना दर्शाया गया है। प्रत्येक पेड़ पर रजिस्ट्री शुल्क बढ़ता जाता है। उसी हिसाब से फीस ली गई है। दूसरी तरफ वन विभाग ने जो सत्यापन रिपोर्ट राजस्व विभाग को सौंपी है, उसमें बताया गया है कि पेड़ों की संख्या हजारों में है। नियमानुसार बड़ी रजिस्ट्री के लिए पंजीयन विभाग को मौके पर जाकर मुआयना करना चाहिए। यदि इसके अधिकारियों ने ऐसा नहीं भी किया हो तो कम से कम वन विभाग की रिपोर्ट को ही आधार बनाकर स्टांप ड्यूटी जमा करानी थी। पर, ऐसा नहीं किया गया और अधिकारियों ने सरकार को लंबा चूना लगा दिया।
कुलपति बड़े या कुलसचिव?
अटल बिहारी विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति ने कर्मचारी संगठनों की मांग पर एक गुम हुई फाइल को ढूंढने के लिए तीन सदस्यों की कमेटी बना दी। इस कमेटी में कुछ अनुभवी प्राध्यापक थे, जो पहले भई कुछ मामलों की जांच कर चुके थे। कमेटी ने कई लिपिकों और अन्य अधिकारियों से उस फाइल के बारे में पूछताछ की। नहीं मिली तो सीधे कुलसचिव को पत्र लिखकर जवाब मांग लिया। जवाब मांगना कुलसचिव को इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने एक आदेश निकालकर कमेटी को ही भंग कर दिया। अब कुलपति के खेमे ने और कमेटी ने विश्वविद्यालय के नियम अधिनियमों को खंगालना शुरू किया तो पता चला कि कुल सचिव ऐसा कर सकते हैं। प्रशासनिक कार्यों में कुलपति की बात अभिभावक होने के नाते मान जरूर ली जाती है। पर प्रशासनिक फैसलों में कुल सचिव की भूमिका ही बड़ी होती है।
अग्निवीरों के लिए अग्निपरीक्षा
केंद्र सरकार की अग्निवीर योजना में चार साल बाद रिटायर करने के प्रावधान की चाहे जितनी आलोचना हो रही हो, बेरोजगारी इस तरह हावी है कि युवाओं में आवेदन करने की होड़ लगी हुई है। इसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख 5 जुलाई तय की गई है। पर आवेदन भरने में युवाओं को तरह-तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। देशभर के लिए एक ही पोर्टल है। ट्रैफिक इतना है कि पेज खुल नहीं रहे हैं। पंजीयन करने में ही आधे घंटे लग रहे हैं। 10वीं की परीक्षा जिन लोगों ने दी है, वे आवेदन जमा करना चाहते हैं। पर रिजल्ट अब तक आया ही नहीं है। यह प्रावधान ही नहीं है कि जो परीक्षा दे चुके, नतीजे का इंतजार कर रहे हैं, वे बाद में अंक-सूची लगा दें। तीसरी बात यह है कि रोजगार कार्यालय का पंजीयन होना अनिवार्य किया गया है। बहुत से आवेदकों ने अब तक पंजीयन नहीं कराया है। ये सभी प्रक्रिया सेना में अस्थायी भर्ती के लिए सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराने के लिए है। जिन लोगों का रजिस्ट्रेशन सही पाया जाएगा, उन्हें 30 जुलाई तक आवेदन करने का मौका मिलेगा। इस हालत में हजारों परीक्षार्थी रजिस्ट्रेशन के पहले ही बाहर होने वाले हैं।
कैसा है कांग्रेस संगठन का हालचाल?
हाल ही में राजीव भवन में हुई समन्वय समिति की बैठक में सीएम भूपेश बघेल ने तीन बातों की तरफ आक्रामक तरीके से संगठन का ध्यान दिलाया। एक, ब्लॉक रिटर्निंग ऑफिसर की सूची कुछ महीने पहले बन चुकी है तो उसे जारी क्यों नहीं किया गया। दूसरा राजीव भवन के नाम से जिलों में बन रहे कांग्रेस कार्यालयों का काम धीमा क्यों चल रहा है? तीसरी बात विधानसभा उप-चुनाव में संतोषजनक भूमिका नहीं होने के बावजूद जीपीएम के जिला अध्यक्ष को हटाया क्यों नहीं गया?
सन् 2018 के चुनाव के पहले कांग्रेस जब विपक्ष में थी तो प्रदेश कांग्रेस की कमान अब के सीएम भूपेश बघेल के हाथ में ही थी। पूरे प्रदेश में उन्होंने दौरा किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जो सक्रियता स्व. नंदकुमार पटेल ने और उसके बाद भूपेश बघेल के समय देखी गई थी, आज नहीं दिख रही है। यह समझना चूक हो सकती है कि सन् 2023 में संगठन की भूमिका 2018 की तरह जरूरी नहीं, अकेले सरकार के कामकाज के चलते कार्यकर्ता रिचार्ज हो जाएंगे।
क्या शिक्षक निकम्मे हैं?
प्रदेश में स्कूली शिक्षा की दशा दयनीय है। यह समय-समय पर देश की सरकारी, गैर-सरकारी एजेंसियों के सर्वे से पता चलता रहता है। सुधार कैसे हो, इस पर चर्चा के लिए एक वेबिनार बीते 30 जून को रखा गया था। इस मंथन के बाद चर्चा में जो शब्द आया, वह है- निकम्मा।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि प्रमुख सचिव ने उनको यही कहा। शिक्षा की बदहाली का पूरा दोष शिक्षकों पर मढ़ दिया। नीतियां, कार्यक्रम अधिकारी बनाकर देते हैं और तरह-तरह के प्रयोग लागू करने की जिम्मेदारी शिक्षकों से सुझाव लिए बिना लाद दी जाती है। शिक्षकों का कहना है कि कोरोना काल में जब स्कूल बंद हो गए थे उन्होंने कठिन परिस्थितियों में बच्चों को शिक्षा से जोडक़र रखने का काम किया। इतने शिक्षकों को कोविड ड्यूटी के दौरान जान गई, जितनी किसी और विभाग में नहीं। उनको अच्छे कामों पर कभी प्रोत्साहन, पदोन्नति, शाबाशी नहीं दी जाती। पुरस्कार मिलने का मौका आता है तो अधिकारी खुद लेने चले जाते हैं। हमें अब रिजल्ट ठीक नहीं आने पर दंड देने की चेतावनी दी जा रही है।
जो बात बाहर निकलकर आई है उसके अनुसार जिन कक्षाओं में 80 प्रतिशत बच्चे फेल हो जाएंगे, उनके शिक्षक आने वाले 10 साल तक प्रमोशन नहीं पा सकेंगे। उनके सर्विस रिकॉर्ड में भी इसे अयोग्यता के रूप में दर्ज किया जाएगा। अधिकारी कहते हैं कि- और कोई उपाय नहीं है। लाख कोशिशों के बाद भी नतीजे ठीक नहीं आ रहे तो क्या करें?
कुल मिलाकर इस टकराव के माहौल में नए शिक्षा सत्र में बच्चों को कोई बदलाव देखने को मिलेगा, इसके आसार कम ही हैं।
असम की चाय और बाढ़...
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वालों को आम भारतीयों की अपने प्रति उदासीनता का कितना रंज है, इस पोस्टर से पता चल रहा है। हाल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की फौज वहां डटी हुई थी, पर बाढ़ से बेघर हुए लाखों लोगों की तकलीफ को कवर करने वह वहां नहीं थी। पूरी भीड़ उस पांच सितारा होटल के बाहर थी, जहां महाराष्ट्र की सरकार गिराने के लिए शिवसेना के बागी विधायक टूर पर थे।
भाजपा नेतृत्व में फेरबदल जल्द?
भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की दो दिन की बैठक हैदराबाद में शनिवार को शुरू हुई थी। इस बात की चर्चा है कि इसके तुरंत बाद छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन पर फैसला लिया जाएगा। पार्टी के कई नेता मानकर चल रहे हैं कि जो आक्रामक तेवर कांग्रेस के खिलाफ भाजपा को अपनाना चाहिए, वह गायब है। इस बात को समय-समय पर पार्टी के कई नेता पार्टी के मंचों पर और खुले में भी कह चुके हैं। कांग्रेस ने खासकर मैदानी इलाकों में ओबीसी वोटरों पर जैसी पकड़ बीते तीन चार सालों में बनाई है, यह कहा जा रहा है कि भाजपा भी किसी तेज-तर्रार ओबीसी नेता को सामने ला सकती है। इसके बावजूद कि अभी नेता प्रतिपक्ष पद पर भी ओबीसी नेता धरमलाल कौशिक ही हैं। छत्तीसगढ़ की कमान इस बार दूसरे प्रमुख ओबीसी वोटर समूह साहू समाज को दी जा सकती है। फिर आदिवासी सीटों पर पकड़ मजबूत करने के लिए क्या किया जाएगा? इसके लिए एक विशेष समिति बनाई जाएगी, जिसमें नेता प्रतिपक्ष, प्रदेशाध्यक्ष, सांसद और पूर्व सांसद शामिल किए जाएंगे। कार्यसमिति की बैठक खत्म होने के दो चार दिन के भीतर ही इस पर फैसला हो सकता है।
अमित साहू के तेवर से सब हैरान
भाजयुमो अध्यक्ष अमित साहू के तेवर से पार्टी के प्रमुख पदाधिकारी उस वक्त हक्का-बक्का रह गए जब उन्होंने मंच से विशेषकर रायपुर जिले के युवा मोर्चा के पदाधिकारियों के परफॉर्मेंस को खराब बता दिया, और कह दिया कि उन्हें हटाया भी जा सकता है, चाहे उनकी नियुक्ति के लिए किसी भी बड़े नेता ने सिफारिश की हो।
एकात्म परिसर में हुई बैठक में पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने उन्हें टोककर शांत करने की कोशिश की लेकिन वो नहीं रूके। अमित साहू ने कह दिया कि चुनाव नजदीक आ गए हैं, और रायपुर सहित कई जिलों में युवा मोर्चा के कार्यकर्ता सक्रिय नहीं हैं। ऐसे पदाधिकारियों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बताते हैं कि युवा मोर्चा का 9 अगस्त को एक बड़ा सम्मेलन है, इसमें एक लाख युवाओं को बुलाने का लक्ष्य है। लेकिन रायपुर जिले के शहर जिला अध्यक्ष और अन्य कई पदाधिकारी इतने निष्क्रिय हैं कि सम्मेलन की सफलता को लेकर सशंकित हैं। ऐसे में अमित साहू का गुस्सा तो फूटना ही था।
सीख देता झारखंड का यह नर्सरी स्कूल
एक स्कूल की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। स्कूल की गेट के पास आकर्षक रंगीन चित्र बने हैं। दरवाजे पर शिक्षिका मुस्कुराते हुए खुद नमस्ते करके, हाथ मिलाकर बच्चों को सिखा रही है कि किसी से मिलो तो किस तरह से स्वागत करना चाहिए। बच्चे अपने पसंद की तस्वीर पर हाथ रखते हैं और प्रफुल्लित मन के साथ भीतर प्रवेश कर रहे हैं।
ऐसी तस्वीर निजी नर्सरी या प्री-प्रायमरी स्कूलों में दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं, पर यह झारखंड के किसी सरकारी स्कूल की है। छत्तीसगढ़ सरकार ने अप्रैल माह में आदेश निकाला था कि स्वामी आत्मानंद हिंदी और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में नर्सरी स्कूल भी खोले जाएंगे। इसमें कमरों का चिन्हांकन, साज-सज्जा और बैठक व्यवस्था, खिलौने और लर्निंग सामग्री की व्यवस्था करने का सभी कलेक्टरों को निर्देश है। पर जो टीचर्स उन्हें सिखाएंगे, उनके बारे में क्या?
उन सरकारी स्कूलों की सूचनाएं तो खबर बन जाती है, जहां छात्र क्या शिक्षक भी हिंदी, अंग्रेजी ठीक तरह से बोल-लिख नहीं पाते। पर ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक ऐसे स्कूल हैं, जहां बिना किसी अतिरिक्त फंड से शिक्षकों ने स्कूल को इसी तरह न केवल सजाया संवारा है, बल्कि माहौल भी पढ़ाई के अनुकूल बना रखा है। पिछले कई बोर्ड परीक्षा परिणामों देखा जा चुका है कि इन स्कूलों से टॉपर बच्चे भी निकल रहे हैं। कहा जाता है कि स्कूल अच्छा हो यह जरूरी नहीं, स्कूलिंग अच्छी होनी चाहिए। झारखंड की इस तस्वीर से छत्तीसगढ़ में खुल रहे सरकारी नर्सरी स्कूलों के शिक्षक भी कुछ नया करने की सीख ले सकते हैं।
अब कौन सी मांग बाकी रह गई?
विश्व हिंदू परिषद् और बजरंग दल के आह्वान पर छत्तीसगढ़ बंद का आज आयोजन किया गया। भाजपा भी साथ देने सडक़ों पर थी। चेंबर ऑफ कॉमर्स और दूसरे कई व्यापारी संगठनों ने भी समर्थन दे दिया। प्रदेश के विभिन्न जिलों से बंद की मिली-जुली खबरें आई हैं। शायद ही कोई ऐसा तबका या राजनीतिक दल हो जिसने उदयपुर घटना की निंदा नहीं की हो। राजस्थान सरकार ने जिस तत्परता से कानून-व्यवस्था को बिगडऩे से बचाया, उसकी भी तारीफ हुई है। आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए, सजा के लिए फास्ट ट्रैक अदालत भी बन गई। लोगों के मन में अब सवाल उठ रहा है कि अब मांग क्या बची है, जिसके लिए बंद किया जाए? ये बंद प्रदेश के माहौल को शांत बनाए रखने में मदद करेगा या फिर ध्रुवीकरण के जरिये किसी एक दल को फायदा पहुंचाने का काम? शायद सन् 2023 के चुनाव आते तक ऐसे ही नियमित प्रदर्शन से लोगों के दिमाग में बात बिठाई जा सकेगी कि हिंदू यहां भी खतरे में हैं। ऐसे कुछ प्रदर्शन साल दो साल के भीतर हो चुके हैं।
लोकतंत्र की एक असली तस्वीर..
गरियाबंद के देवभोग में कलेक्टर दौरा करने वाले थे। सब विश्राम गृह में उनका इंतजार कर रहे थे। इनमें एक 60 साल की वृद्ध महिला सुंदरमणि भी थीं। अचानक कलेक्टर नहीं पहुंच पाए। सुंदरमणि वहां खड़े नायब तहसीलदार के पास हाथ जोडक़र गिड़गिड़ाने लगी, रोने लगी और आखिरकार पैरों पर गिर गई। उसकी ऋण पुस्तिका गुम गई थी। नए के लिए आवेदन किया था। जो प्रक्रिया थी, पूरी कर दी। बाबू को 1700 रुपये भी दे डाले थे। पर बाबू कई महीनों से घुमा रहा था। उसे चढ़ावा चाहिए और उस बूढ़ी ग्रामीण महिला की हैसियत नहीं थी। नायब तहसीलदार के पैरों पर गिरकर वह फफक-फफक कर रो पड़ी और गिड़गिड़ाई कि बिना रिश्वत नया ऋण पुस्तिका दिला दो देवता। जिस वक्त की घटना थी, मीडिया के लोग भी कलेक्टर के आने की सूचना के चलते पहुंचे थे। इस घटना को उन्होंने दर्ज कर लिया। नायब तहसीलदार भी देख रहे थे कि अगल-बगल कौन खड़े हैं। उसने फरियादी महिला को उठाया, अपने दफ्तर ले गए और उसकी ऋण पुस्तिका तुरंत तैयार करके दे दिया गया। जिस बाबू ने रिश्वत मांगी थी, उसे कारण बताओ नोटिस दी गई है। देखें बाबू पर क्या कार्रवाई होती है। सोचने की बात यह भी है कि नायब तहसीलदार के कमरे में ही बगल में बैठने वाले बाबू का राज इससे पहले कैसे नहीं खुला?
शैलेष पाठक इन दिनों
छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष-90 बैच के आईएएस शैलेष पाठक केन्द्र सरकार की संस्था आईएसपीपी के डायरेक्टर हो गए हैं। यह संस्था पॉलिसी तैयार करती है। पाठक करीब 17 साल अविभाजित मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ सरकार में सेवा देने के बाद निजी क्षेत्र में चले गए थे। बाद में उन्होंने आईएएस की नौकरी छोड़ दी। वे आईएलएंडएफएस में रहे, और वर्तमान में एलएंडटी में सेवाएं दे रहे हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार में वे महासमुंद, और बस्तर कलेक्टर रहे हैं। इसके अलावा विशेष सचिव पीडब्ल्यूडी, सीएसआईडीसी के एमडी भी रहे। शैलेष को नजदीक से जानने वाले कुछ अफसरों का कहना है कि वो सरकारी सेवा में फिर से आने के इच्छुक थे। और इसके लिए प्रयासरत भी रहे। लेकिन शैलेष पाठक ने इससे इंकार भी किया था। सरकारी नौकरी में रहते तो वो मुख्य सचिव भी हो सकते थे। मगर वे इसके समकक्ष पद पा ही चुके हैं।
जीएसटी घाटे का असर...
कर संग्रह की जिस जीएसटी प्रणाली को ऐतिहासिक बताकर आधी रात को लागू किया गया था, उसने आज राज्यों की माली हालत बिगाडक़र रख दी है। अधिकांश राज्यों का कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है, यह रिजर्व बैंक की हाल की रिपोर्ट में ही कहा गया था। कांग्रेस ने जीएसटी लागू होने के पहले इसके खतरे के प्रति आगाह भी किया था, पर भाजपा शासित राज्य भी अब राजस्व में हो रहे घाटे को लेकर चिंतित हैं। काउंसिल की बैठक में करीब 12 राज्यों में जिनमें उत्तराखंड सहित कई भाजपा शासित हैं, ने क्षत्तिपूर्ति की अवधि 10 साल करने की मांग रखी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मार्च माह में 17 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इसी मांग को लेकर पत्र भी लिखा था। हाल की बैठक में जीएसटी मंत्री टीएस सिंहदेव कोविड संक्रमण के चलते शामिल नहीं हो पाए, पर उन्होंने वित्त मंत्री को जीएसटी क्षतिपूर्ति बंद होने से होने वाले नुकसान का ब्योरा दिया और इसे 10 साल तक जारी रखने की मांग की। छत्तीसगढ़ ने एक दूसरा विकल्प भी सुझाया कि सेंट्रल जीएसटी में अभी जो 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है उसमें राज्य का हिस्सा बढ़ाकर 70 से 80 प्रतिशत तक कर दिया जाए। पर इन सुझावों पर अमल करना केंद्र के लिए असुविधाजनक था, सो फैसला नहीं हुआ। अब इन मांगों पर विचार कम से कम 6 माह के लिए टल गया है, क्योंकि अगली बैठक इसके पहले नहीं होगी। एक जुलाई से राज्य सरकार के राजस्व में कम से कम 5500 करोड़ रुपये का नुकसान होने जा रहा है। धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ अगले विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में अनेक वायदे हैं जो सन् 2018 में किए गए थे, उन्हें पूरा करने का दबाव बढ़ेगा। कर्मचारियों को नियमित करने और नियमित कर्मचारियों के वेतन, भत्तों से जुड़ी कई मांगों को वित्तीय स्थिति के चलते ही टालकर रखा गया है। बेरोजगारी भत्ता, शराबबंदी का संकल्प भी सरकार पूरा नहीं कर पा रही है। सरकार ने नए जिले, तहसील, उप-तहसील और नगर पंचायतों की घोषणा कर रखी है, उनके सेटअप पर व्यय होना है। कृषि और किसानों को दिए जा रहे बोनस और अनुदान का स्थायी खर्च तो सामने है ही।
बीच जंगल में ग्राहक सेवा केंद्र
अचानकमार अभयारण्य में मोबाइल नेटवर्क का मिलना बहुत मुश्किल है। पर कहीं-कहीं किसी एक मोबाइल कंपनी का नेटवर्क मिल जाता है, वह भी हवा के रुख पर निर्भर है। अचानकमार ग्राम में कुछ पढ़े लिखे युवाओं ने गांव में दो एक जगह खोज निकाली है और उसी जगह पर खुले में बैठकर वे ग्राहक सेवा केंद्र चला रहे हैं। इससे आसपास के पांच और गांवों के लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से रुपयों का लेन-देन करते हैं।
साय की बार-बार चेतावनी
भाजपा नेतृत्व के कौशल और रणनीति की भले ही देशभर में मिसाल दी जा रही हो, पर छत्तीसगढ़ में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है जिससे अगले चुनाव में उसकी राह आसान दिखाई दे। कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री ने इस बात को घुमा-फिराकर स्वीकार भी किया था। कहा था कि भाजपा को तीसरे दलों की मौजूदगी से लाभ मिलता था और अब वह स्थिति नहीं है। ताजा असंतोष पार्टी के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय का दिखा है। वे सीधे-सीधे कह रहे हैं कि जो चेहरे वर्षों से सामने रखे गए हैं, उनको पार्टी बदले, आक्रामक चेहरा सामने लाए। बीते 6-7 माह के भीतर साय का खुला असंतोष दूसरी बार दिखा है। बीते नवंबर माह में भी मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था कि पार्टी ने उन्हें एक बार नहीं कई बार धोखा दिया, वरना मुख्यमंत्री वही बनने वाले थे। यह भी कहा कि अभी भी छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति बहुत बुरी है। जानकार कहते हैं कि साय की बात में दम तो है पर ऐसा लगता है कि संगठन के भीतर उनकी बात नहीं सुनी जा रही है वरना यह सब उन्हें मीडिया के सामने क्यों कहना पड़ता? साय का कद बड़ा और वोटरों के एक बड़े पॉकिट में पकड़ है, इसलिये इतना सब बोल गए। वरना, दूसरा कोई होता तो अब तक एक्शन लिया जा चुका होता।
वाट्सएप पर मॉनिटरिंग..
केंद्र और राज्य सरकारों ने सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए आईटी मंत्रालय बना रखे हैं। एनआईसी, चिप्स जैसे संस्थान भी हैं, पर निर्भरता निजी एप पर ही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के निर्देश पर राज्य सरकारों ने सभी कलेक्टरों को हाल ही में एक पत्र जारी कर मनरेगा के काम पर निगरानी के लिए एक नई व्यवस्था लागू करने कहा है। इसके अनुसार 20 से अधिक श्रमिक किसी जगह पर काम कर रहे हों तो उनकी एंट्री साइट पर की जानी है। इसे नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम कहा जाता है। एंट्री पूरी हो जाने के बाद उसे वाट्सएप पर अधिकारियों को तो भेजना है ही, जनप्रतिनिधियों को भी भेजना है। छत्तीसगढ़ में भी इसे लेकर 29 जून को आदेश जारी हो चुका है। पारदर्शिता के लिए ऐसी सूचना मौके से ही पहुंचाना तो ठीक है, इससे फर्जी मस्टर रोल की शिकायतें कम होंगी, पर विभागीय कार्य में अधिकारिक रूप से वाट्सएप पर निर्भर होने पर सवाल है। वाट्सएप संदेशों के आदान-प्रदान पर गोपनीयता बरतने का दावा तो करता है पर किसी निजी एप पर भरोसा क्यों होना चाहिए? जिन रोजगार सहायकों को यह काम पूरा करना है, उनके साथ एक दूसरी समस्या है। वे इस बात को लेकर दुख हैं कि उन्हें इसके लिए अलग से मोबाइल फोन या रिचार्ज का खर्च नहीं मिलेगा। वे अपने कम तनख्वाह और उसका चार-पांच महीने में रुक-रुक कर भुगतान होने को लेकर पहले से ही आंदोलन पर हैं। ऊपर से एक और बोझ सिर पर आ गया है।
दीपेंद्र का बोरवेल की सुरंग में गिरना...
जांजगीर-चांपा जिले में राहुल साहू के बोरवेल के खुले गड्ढे में गिरने की घटना ताजी-ताजी है। देशभर में इसकी चर्चा इसलिये भी हुई कि यह अब तक सबसे लंबा और कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन था। इसके बाद दूसरे राज्यों को भी अलर्ट हो जाना था कि बोरेवेल के फेल गड्ढों को खुला न छोड़ा जाए। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को दिशा-निर्देश भी जारी कर रखा है। पर राहुल के बाद छतरपुर में भी ऐसी ही घटना हो गई। पांच साल का दीपेंद्र 30 फीट नीचे गड्ढे में जाकर फंस गया। राहत की बात यह रही कि उसे सिर्फ 7 घंटे के ऑपरेशन के बाद सुरक्षित निकाल लिया गया। राहुल का बोरवेल में फंसना तो राष्ट्रीय खबर थी, पर सबक राष्ट्रीय स्तर पर नहीं लिया गया।
मरकाम के गढ़ से सीएम के जिले पहुंचे पुष्पेंद्र
सूबे में आईएएस अफसरों के थोक में हुए तबादले में दुर्ग पोस्टिंग की रेस में कोंडागांव कलेक्टर पुष्पेन्द्र मीणा बाजी मारकर कईयों को पीछे ढक़ेल दिया। दुर्ग पोस्टिंग को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह क्षेत्र के चलते प्रशासनिक हल्के में वजनदार माना जाता है। एक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी मीणा को दुर्ग पदस्थ किए जाने के मायने तलाशा जा रहा है। असल में मीणा ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के गृह जिले में करीब सवा दो साल कलेक्टरी की, अब वहां से निकलकर उन्हें मुख्यमंत्री के जिले के लिए मौका मिल गया। इस ऊंची छलांग से उनके बैचमेट और सीनियर आईएएस भी हतप्रभ है और यह जानने की कोशिश कर रहे है कि पुष्पेंद्र को दमदार जगह में तैनाती कैसे मिली। 2012 बैच के पुष्पेन्द्र को आईएएस बिरादरी में हल्के मूड में काम करने और विवादों से दूर रहने में महारत हासिल है। मरकाम के इलाके से सीधे मुख्यमंत्री के क्षेत्र की कलेक्टरी मिलना सीनियरों का तनाव बढ़ाने के लिए काफी है। पोस्टिंग से परे इस बात का जिक्र भी हो रहा है कि पुष्पेंद्र को सरकार के सीएम-गृहमंत्री के अलावा चौबे और रूद्र जैसे प्रभावशाली मंत्रियों के साथ तालमेल रखने की कला में दक्ष होना पड़ेगा।
हारे प्रत्याशी के आलीशान होटल में प्रशिक्षण
छह माह पहले भिलाई नगर निगम चुनाव में भाजपा करारी हार के बाद अब जाकर ट्रेनिंग के नाम पर हार की असल वजह जानने के लिए राजनांदगांव के एक महंगे रिसोर्ट में तीन दिन तक मंथन किया। सूबे की सत्ता हाथ से गंवाने के बाद भाजपा फंड के नाम का ढोल पीट रही है लेकिन नेताओं का महंगे होटलों का शौक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। राजनांदगांव शहर के नजदीक भाजपा ने अपने एक कार्यकर्ता के होटल में तीन दिनी ट्रेनिंग प्रोग्राम में गहराई से पराजय के असल कारण जानने की कोशिश की। पार्टी ने खर्च से बचने के लिए अपने पार्षद चुनाव हारे हुए कार्यकर्ता के होटल को चुना। वैसे भिलाई के बजाए राजनांदगांव के होटल में जमावड़ा को लेकर पार्टी का एक धड़ा सवाल उठा रहा है। विरोधी गुट अपने शहर से दीगर क्षेत्र में प्रोग्राम करने की खोज खबर ले रहा है। सुनते है कि कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय प्रमुख वक्ता रही। दुर्ग रोड़ में स्थित इस रिसोर्ट में पहले पुलिस की कथित हुक्का बार चलाने के लिए छापामार कार्रवाई भी हुई है। बताते है कि भिलाई भाजपा के नेताओं ने हारे प्रत्याशी के होटल में जमकर मौज भी किया। होटल मालिक ने भी राजनीतिक उद्वेश्यपूर्ति के लिए शीर्ष नेताओं की खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व फाईव-स्टार कल्चर से दूर रहने अपने नेताओं को सीख दे रहा है लेकिन भिलाई के नेताओं रिसोर्ट में तीन दिन होटल की मेहमाननवाजी का खूब लुत्फ उठाया। प्रदेश भाजपा के नेता भी अपना शहर छोडक़र दूसरे जिलें के होटल में नेताओं के जमे रहने से खफा बताए जाते है।
कलेक्टरों की वजहें
सरकार ने 19 जिलों के कलेक्टर को बदल दिए। सरगुजा, बिलासपुर, बस्तर, और दुर्ग कलेक्टर के तबादले अपेक्षित थे। इन सभी को करीब-करीब दो साल हो रहा था, या हो गया था। आम तौर पर बेहतर काम करने वाले अफसर को कम से कम तीन साल जिले में रहने का मौका मिलता था। अविभाजित मध्यप्रदेश में तो अजीत जोगी पांच साल इंदौर कलेक्टर रहे हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी कई को तीन साल कलेक्टरी का मौका मिला।
रमन सिंह के कार्यकाल में एक मौका ऐसा भी आया जब जांजगीर-चांपा कलेक्टर रहते आलोक अवस्थी बीमार पड़ गए थे। उनका बायपास ऑपरेशन हुआ था, लेकिन उन्हें हटाया नहीं गया। करीब 6 महीने प्रभारी कलेक्टर के भरोसे जिले में कामकाज चलते रहा। अवस्थी जब पूरी तरह स्वस्थ हो गए, तब कहीं जाकर उनका तबादला किया गया।
भूपेश सरकार में अधिकतम कलेक्टरों का कार्यकाल अधिकतम दो साल ही रहा। कई तो दो-तीन माह महीने में ही बदल गए। गौरव कुमार सिंह दो माह पहले ही सूरजपुर से मुंगेली आए थे, और अब उन्हें बालोद भेज दिया गया। अच्छे काम पर कई को जल्द ही बड़ा जिला मिल गया। जांजगीर-चांपा जिला कलेक्टर जितेन्द्र शुक्ला को ही लीजिए, चर्चा है कि शुक्ला का कामकाज बेहतर नहीं होने का फीडबैक आया था। उन्हें बदला जाना तकरीबन तय माना जा रहा था। इसी बीच राहुल साहू प्रकरण सामने आया।
जितेन्द्र शुक्ला, और उनकी टीम ने राहुल को बोरवेल से बाहर निकलवाने के लिए खूब मेहनत की। सौ घंटे से अधिक ऑपरेशन चला। राहुल के सकुशल बाहर निकलने के बाद अभियान से जुड़े लोगों को सीएम ने सम्मानित किया। कुल मिलाकर जितेन्द्र शुक्ला आखिरी गेंद में छक्का मारकर बेमेतरा जिला पा गए।
दो महीनों में ही फिर
सूरजपुर में भेंट-मुलाकात के कार्यक्रम के दौरान जिला पंचायत में कमीशनखोरी की शिकायत के बाद सीएम ने सीईओ राहुल देव को हटा दिया था। उन्हें जांजगीर-चांपा अपर कलेक्टर बनाया गया। अब दो महीने के भीतर राहुल देव को मुंगेली कलेक्टर बनाया गया।
चर्चा है कि राहुल देव स्थानीय राजनीति के शिकार हो गए थे। वो अंबिकापुर के ही रहने वाले हैं। उनकी पत्नी भावना गुप्ता अंबिकापुर एसपी हैं ।
नाखुशी की वजह से
आरडीए सीईओ चंद्रकांत वर्मा को दो महीने के भीतर हटाकर अपर कलेक्टर कांकेर बनाया गया है। चर्चा है कि आरडीए के पदाधिकारी उनके कामकाज, और व्यवहार से नाखुश थे। इसकी शिकायत सीएम तक पहुंची थी। इसके बाद चंद्रकांत को बदल दिया गया। उनकी भी सालभर के भीतर तीन बार बदली हो चुकी है।
काबिलियत के बाद !
सरकार के पिछले साढ़े तीन साल कार्यकाल में प्रदेश के किसी जिले में बेहतर परफार्मेंस किसी कलेक्टर का रहा है, तो वो राजनांदगांव कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा हैं। यह आंकलन नीति आयोग का है जिसने राजनांदगांव जिले में कृषि सुधार, और बेहतर जल प्रबंधन की दिशा में उत्कृष्ट कार्य के लिए चैम्पियन ऑफ चेंज कहा है। बात यहीं खत्म नहीं होती है। आयोग ने जिले को तीन करोड़ का न सिर्फ अतिरिक्त आबंटन दिया है, बल्कि कलेक्टर तारण प्रकाश सिन्हा के कार्यों की तारीफों के पुल बांधते हुए उनके सीआर में भी अंकित करने के लिए चीफ सेक्रेटरी को चि_ी भेजी है।
राज्य बनने के बाद संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है जब केन्द्र सरकार के किसी संस्थान ने चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखकर किसी कलेक्टर के सीआर में उत्कृष्ट कार्य को अंकित करने कहा है। यह न सिर्फ राज्य बल्कि आईएएस कैडर के लिए भी गौरवान्वित करने क्षण था। तारण ने न सिर्फ कृषि सुधार बल्कि शिक्षा और खेल के क्षेत्र में भी जिले में बेहतर कार्य किए। प्रशासन के प्रयासों से राजनांदगांव अब हॉकी नर्सरी के रूप में चर्चित हो रहा है। मगर पोस्टिंग के मामले में तारण उतने भाग्यशाली नहीं रहे। उन्हें राजनांदगांव से अपेक्षाकृत छोटे जि़ले जांजगीर-चांपा का कलेक्टर बनाया गया है। हालांकि सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि जांजगीर-चांपा जिले में काफी समस्याएं हैं। जिन्हें ठीक करने की जरूरत है। इस लिहाज से तारण जैसा काबिल अफसर भेजा गया है।
कोरबा कलेक्टर एक साल टिकीं..
किसी भी जिले में कलेक्टर को रिजल्ट दिखाने के लिए कम से कम दो साल तो दिए ही जाते हैं। दो साल बीतने के बाद उनके तबादले को लेकर चर्चा शुरू होती है। पर कोरबा कलेक्टर को भी एक साल में ही यहां से हटाकर रायगढ़ भेज दिया गया है। उन्होंने 8 जून 2021 को यहां पदभार संभाला था। जब वे शुरू-शुरू पहुंचीं तो अधिवक्ताओं से विवाद हुआ। वे दिनभर उनके दफ्तर के सामने धरने पर बैठे रहे। रात 8 बजे समझौता हुआ। दरअसल एक साथी अधिवक्ता कलेक्टर कोर्ट रूम में उनके व्यवहार से नाराज हो गए थे। इसके कुछ दिनों बाद ही कोरबा विधायक व प्रदेश के राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के साथ तनातनी शुरू हो गई, जो आखिर तक जारी रही। अग्रवाल ने सार्वजनिक रूप से सर्वाधिक भ्रष्ट अधिकारी का विशेषण दे दिया था। डीएमएफ पर उन्होंने खनिज सचिव को लंबी चि_ी लिखी और फंड के दुरुपयोग का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया। हालांकि जिले के कांग्रेस के दो और विधायक पुरुषोत्तम कंवर और मोहित केरकेट्टा ने सार्वजनिक बयान जारी कर कलेक्टर का समर्थन कर दिया। इस बीच पूर्व आईएएस और भाजपा नेता ओपी चौधरी के एक ट्वीट से हडक़ंप मच गया, जिसमें उन्होंने गेवरा के खदानों में संगठित चोरी का आरोप लगाया। बाद में जरूर यह पता चला कि यह वीडियो छत्तीसगढ़ का नहीं है। चौधरी के खिलाफ एफआईआर भी हो गई, पर खदानों में कोयला चोरी के खिलाफ दबाव बन ही गया और ताबड़तोड़ कार्रवाई करनी पड़ी। इस तबादला आदेश से संदेश गया है कि देर से ही सही मंत्री जी की बात रख ली गई है। उम्मीद कर सकते हैं कि अब सरगुजा से आ रहे संजीव झा से उनकी ट्यूनिंग ठीक रहेगी।
वैसे कोरबा के जानकार लोग बताते हैं कि कलेक्टर और एसपी के बीच टकराव में कलेक्टर ने एसपी का गनमैन तक छिनवा दिया था। आखऱि में एसपी की छत्तीसगढ़ महतारी की थानों में पूजा काम आयी, आशीर्वाद मिला।
दो माह में ही तबादला..
मुंगेली कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह का केवल दो माह बाद तबादला हो गया। हालांकि उन्होंने 28 अप्रैल को जब प्रभार संभाला था तो रात के 9 बजे का समय तय किया। इसकी वजह बताई गई कि ऐसा शुभ मुहूर्त होने के कारण किया गया। बीते दो माह में कलेक्टर ने जिम, स्टेडियम, सदरबाजार को व्यवस्थित करने के लिए उल्लेखनीय काम किया। वे नगर के सौंदर्यीकरण के लिए भी योजना बना रहे थे। मदकू द्वीप और सेतगंगा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का खाका तैयार कर चुके थे और कहीं-कहीं काम शुरू भी हो गया था। इन सबसे अलग हटकर जो काम उन्होंने किया वह था हेल्पलाइन नंबर का। उन्होंने चौबिसों घंटे, सातों दिन चालू रहने वाले इस नंबर पर लोगों को अपनी शिकायत दर्ज करने की सुविधा दी। किसी छोटे से जिले में ऐसी सुविधा मिलना लोगों के लिए बड़ी बात थी। जिले के लोगों को उम्मीद थी कि वे एक डेढ़ साल रहते तो मुंगेली की तस्वीर बदलने में मदद मिलती। जब तबादला हुआ तो लोग नाराज और मायूस दिखे। उन्होंने एडीएम को सीएम के नाम ज्ञापन सौंपा और तबादला रोकने की मांग की। सोशल मीडिया पर भी पोस्ट डाले जा रहे हैं। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हो गया। हां, लगे हाथ बता दें कि दूसरे नये बने जिलों की तरह मुंगेली में भी अवैध प्लाटिंग का धंधा जोरों पर है और कलेक्टर ने उन पर भी नकेल कसना शुरू कर दिया था।
दो मुंह वाला सांप..
दो मुंह वाले इस सांप का नाम है सैंड बोआ, जो बेहद दुर्लभ प्रजाति के होते हैं। विदेशों में इसकी मांग करोड़ों रुपये में है। कैंसर और यौन शक्ति बढ़ाने की दवा में काम आता है। यह सांप विलुप्त होने के कगार पर है। इनका जीवनकाल भी बहुत छोटा होता है। आम तौर पर ये सांप चूहे, छिपकली, मेंढक, खरगोश आदि का शिकार करते हैं। जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा वन परिक्षेत्र के ग्राम शनिचरीडीह में इसे बीते गुरुवार को दोपहर में देखा गया। दो मुंह का होने के कारण लोग बड़ी संख्या में इसे कौतूहल के साथ देखने पहुंचे। कुछ लोग तो पूजा-पाठ भी करने लगे। हालांकि काफी कीमती होते हुए भी ग्रामीणों ने इस सांप को पकडऩे की कोशिश नहीं की। कुछ देर बाद यह जंगल में झाडिय़ों के बीच जाकर छिप गया।
महंगा सफर, बीमारी की जड़
जिन लोगों को विमान और महंगी रेलगाडिय़ों से सफर करना होता है, वे खाने-पीने के मामले में तकलीफ पाते हैं। अभी एक महिला ने राजधानी एक्सप्रेस में उसे दिए गए खाने की तस्वीर पेश की है जो कि पूरी तरह प्लास्टिक के पैकेटों में बंद है, और सेहत के लिए नुकसानदेह भी है। हर सामान तला हुआ, या भारी शक्कर-नमक मिला हुआ। जितना नुकसान बदन का, उतना ही नुकसान धरती का भी।
बड़े-बड़े एयरपोर्ट का निजीकरण हो गया है, और वहां खान-पान के सामान का एकाधिकार। नए मालिक अधिक से अधिक कमाई देने वाले महंगे सामान ही रखते हैं, और लोग अगर यह सोचें कि वे रेलवे स्टेशनों की तरह सेब-केला जैसे फल वहां पा सकेंगे, तो उसकी कोई गुंजाइश नहीं रहती। जिसे आम जुबान में जंकफूड कहा जाता है, बस वैसा ही सामान एयरपोर्ट या प्लेन पर मिलता है, और लोगों को बहुत सारा तेल-मक्खन, बहुत सा नमक-शक्कर जबर्दस्ती खाना पड़ता है। आज जरूरत इस बात की है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी कोई संस्था दखल दे, और एयरपोर्ट पर सेहतमंद खाना पाने के अधिकार को स्थापित करे। इसके बिना हर सफर लोगों की सेहत का नुकसान करके जाता है।
कॉलेज के पाठ्यक्रम में गोबर खरीदी
केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत कॉलेजों के पाठ्यक्रम में इस साल 30 प्रतिशत तक बदलाव करने के लिए कहा है। सभी उम्र के लोगों को किसी भी कोर्स में प्रवेश लेने की सुविधा दी जा चुकी है। पाठ्यक्रमों में आवश्यक बदलाव के लिए गठित अध्ययन दल ने छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों के स्नातक पाठ्यक्रम में गोबर खरीदी को शामिल करने का सुझाव दिया है। यूजीसी से सहमति मिलने के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा। गोबर खरीदी का काम छत्तीसगढ़ में जब शुरू हुआ तो कई सवाल इस पर उठाये गए। पर अब दूसरे कई राज्य भी इसे लागू कर चुके हैं। इनमें भाजपा शासित राज्य भी हैं। सब यह मान रहे हैं कि ग्रामीणों की अतिरिक्त आमदनी का यह अच्छा स्त्रोत है। जाहिर है जब पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा तो लैब भी बनेंगे और शोध का रास्ता भी निकलेगा। गोबर से अच्छी क्वालिटी का वर्मी कंपोस्ट बने इस पर काम होना बहुत जरूरी लग रहा है। अभी कई गौठानों से खाद की गुणवत्ता संबंधित शिकायतें हैं। इस योजना में अब भी सरकारी सहायता जारी है। इस मदद के बगैर गोबर खरीदी को विशुद्ध व्यवसाय के रूप में कैसे खड़ा किया जाए, यह भी सोचा जा सकेगा।
हार्न की शोर के खिलाफ मुहिम
मिलिए कैलाश मोहता से। ये वर्षों से अनावश्यक हॉर्न बजाने के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। वे बताते हैं कि हम जीवन का बड़ा हिस्सा सडक़-यात्रा में गुज़ारते हैं। बेवजह हॉन्किंग की आदत से स्वभाव में आक्रामकता बढ़ती है, तनाव पैदा होता है। फलस्वरूप दिल की समस्या जैसे गंभीर रोग भी हो सकते हैं। मोहता ने अमेरिका, चीन जैसे देशों में लंबी यात्राएं कीं। वहां लोग अनावश्यक हॉर्न नहीं बजाते। यह देखकर वे काफी प्रभावित हुए। जन-जागरूकता के लिए उन्होंने पीठ पर पोस्टर लगाना शुरू किया तो बेटियों ने कहा कि लोग पागल कहेंगे। तब से वे रोज़ पोस्टर लगाकर निकलते हैं और लोगों को जागरूक करते हैं।
चावल खपाने का सही मौका
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनियाभर के कई देश खाद्य संकट से जूझ रहे हैं, विशेषकर गेहूं की किल्लत बनी हुई है। कई अफ्रीकी देशों में तो भुखमरी की स्थिति है। भारत से गेहूं की बेतहाशा मांग उठने लगी, तब देश में ही इसकी कमी का खतरा मंडराने लगा। तब सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। दूसरी तरफ गेहूं उपलब्ध नहीं होने के कारण कई देशों का ध्यान चावल की तरफ गया है। बांगलादेश वैसे तो अक्टूबर से भारत से चावल का ज्यादा आयात करने लगा है, पर अब रिपोर्ट है जून से इसे बड़े पैमाने में भारत से मंगा रहा है और अतिरिक्त स्टाक गोदामों में जमा किया जा रहा है। दरअसल, उसे डर है कि दूसरे देशों से चावल की मांग बढ़ी तो भारत कहीं गेहूं की तरह चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध न लगा दे। ज्यादा चावल आ सके इसके लिए इसके आयात शुल्क में बांगलादेश ने 37.5 प्रतिशत की कमी कर दी है। इसके चलते अपने यहां के बाजार में चावल की कीमत 2 से 5 रुपये किलो तक बढ़ गए हैं। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह खबर इसलिये खास है क्योंकि यहां चावल का अत्यधिक उत्पादन होता है। सरकारी खरीद में प्रोत्साहन के चलते रुझान बढ़ता ही जा रहा है। गांव-गांव कैंप लगाकर किसानों को दूसरी फसल लेने के लिए प्रेरित करने का खास असर नहीं है। अतिरिक्त चावल को खपाना राज्य सरकार की एक बड़ी समस्या है। केंद्रीय पूल में भी उतना चावल नहीं लिया जाता, जितना सरकार चाहती है। पिछले साल चावल की खुले बाजार में बिक्री की कोशिश की गई थी, पर उसका प्रतिसाद नहीं मिला। एक बार फिर ऐसी कोशिश करके छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो आज फायदा उठा सकती है।
वजह क्या रही होगी?
एनडीए की राष्ट्रपति प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के प्रस्तावक-समर्थक के रूप में भाजपा विधायक ननकीराम कंवर, पुन्नूलाल मोहिले, और डमरूधर पुजारी ने हस्ताक्षर किए। तीनों को पीएम से भी मिलने का मौका मिला। खास बात यह है कि विधायक दल में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, और नारायण चंदेल, बृजमोहन अग्रवाल जैसे दिग्गज भी थे, लेकिन इनमें से किसी को नहीं बुलाया गया।
आदिवासी वर्ग के कंवर विधायकों में सबसे सीनियर हैं, और वर्ष-77 में पहली बार विधायक बने थे। इसी तरह मोहिले 4 बार सांसद, और 5 वीं बार के विधायक हैं। डमरूधर पुजारी आदिवासी वर्ग से हैं, और दूसरी बार विधायक हैं। राष्ट्रपति प्रत्याशी का प्रदेश के सांसदों में रेणुका सिंह प्रस्तावक थीं और संतोष पाण्डेय समर्थक के रूप में हस्ताक्षर किए। दिग्गज सांसद-विधायकों को राष्ट्रपति प्रत्याशी का प्रस्तावक समर्थक नहीं बनाए जाने के कारण तलाशे जा रहे हैं। कारण चाहे कुछ भी हो, भाजपा के भीतर इसकी खूब चर्चा हो रही है।
भेंट-मुलाकात- एक
सीएम भूपेश बघेल के भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में कई रोचक प्रसंग देखने, और सुनने को मिल रहे हैं। सीएम कुनकुरी के गांव पथराटोली पहुंचे, तो गांव वाले सीएम को अपने पास पाकर खुश हो गए। एक अच्छी कद काठी का व्यक्ति खड़ा हुआ, और उनसे सीएम से कहा कि गांव में आपका स्वागत है। सीएम ने व्यक्ति से परिचय पूछ लिया। व्यक्ति ने अपना नाम बताया, और कहा कि वो ज्यादातर गांव से बाहर रहते हैं। भतीजे की शादी करानी है, इसलिए यहां आए हैं।
सीएम ने उनसे पूछ लिया कि आपके कितने बच्चे हैं, क्या कर रहे हैं? व्यक्ति ने कहा कि उनकी शादी ही नहीं हुई है। सीएम ने पूछा कि आपने शादी क्यों नहीं की? व्यक्ति ने कहा कि वो समाजसेवा से जुड़े हैं, इसलिए शादी नहीं की। सीएम ने आगे कहा कि क्या आप किसी सामाजिक संस्था से जुड़े हैं? व्यक्ति ने कहा कि वो आरएसएस से जुड़े हैं। इस पर सीएम मुस्कुरा दिए। बाद में व्यक्ति ने सीएम से अपने गांव की सडक़ और पुलिया के निर्माण की मांग रख दी। सीएम ने बिना लाग लपेट के कलेक्टर को निर्देश दिए कि दोनों मांगें जल्द पूरी होनी चाहिए। इसके लिए जरूरी कदम उठाने के लिए कहा। सीएम की इस प्रतिक्रिया पर न सिर्फ व्यक्ति बल्कि पूरे गांव के लोग खुश हो गए।
भेंट-मुलाकात- दो
जशपुर जिले के दुलदुला में जब सीएम पहुंचे, तो वहां आम लोगों के साथ-साथ मीडियाकर्मियों ने उन्हें घेर लिया। लोगों ने सीएम को परेशानी बताई कि यहां बस स्टैण्ड प्रस्तावित है। तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री विष्णुदेव साय ने इसकी घोषणा की थी, लेकिन अब तक यह काम शुरू नहीं हो पाया। सीएम ने उनसे कहा कि आप लोगों ने सांसद गोमती साय तक बात क्यों नहीं पहुंचाई? लोगों ने कहा कि आप पर भरोसा है, इसलिए बस स्टैण्ड बनाने की मांग कर रहे हैं। इस पर सीएम ने वहां बस स्टैण्ड का निर्माण जल्द करवाने का आश्वासन दिया। इससे लोग काफी खुश हुए।
प्रिकॉशन वैक्सीन पर उदासीनता
बहुतों के लिए प्रिकॉशन डोज लेने के लिए 250-300 रुपये खर्च करना बड़ी बात न हो, पर लाखों गरीब परिवार ऐसे हैं जिन्हें यह बड़ा बोझ मालूम होता है। एक परिवार में यदि चार सदस्य हैं तब उन्हें हजार, 12 सौ रुपये निकालना होगा। जो खर्च उठाने की क्षमता रखते हैं, उनकी सोच भी यह है कि जब पहली, दूसरी खुराक मुफ्त दे दी गई तो प्रिकॉशन डोज के लिए पैसे देने को क्यों कहा जा रहा है? हाल में मिले आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में सिर्फ 0.1 प्रतिशत लोगों ने प्रिकॉशन डोज अब तक लिए हैं। 1.70 करोड़ 64 हजार लोगों को डोज लेना है पर अब तक लिया सिर्फ 17 हजार 700 ने।
वैसे लक्ष्य की बात की जाए तो केवल पहला डोज ही शत-प्रतिशत 1.74 करोड़ लोगों को लगा। दूसरा डोज 89 प्रतिशत लोगों ने लगवाया। 12 से 14 साल के 64 प्रतिशत बच्चों ने पहला डोज लिया है तो इस उम्र के सिर्फ 28 प्रतिशत ने ही दूसरा डोज लिया। 15 से 18 साल के 71 प्रतिशत बच्चों ने पहला डोज लिया है और सिर्फ 54 प्रतिशत ने दूसरा।
यानि सिर्फ पहले डोज में ही लक्ष्य हासिल हुआ है बाकी किसी में नहीं। लोग भी उदासीन और सरकार की तरफ से भी खास पहल नहीं हो रही है। यह स्थिति तब है जब पॉजिटिव केस तेजी से फिर बढ़ते दिख रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग में उठापटक
बिलासपुर में सीएमएचओ डॉ. प्रमोद महाजन को अचानक हटा दिया गया। हालांकि वे लंबे समय से इस पद पर थे। प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी डॉ. महाजन का काम कोरोना काल में सराहा गया। द्वितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी डॉ. अनिल श्रीवास्तव पर जीवन दीप समिति की बड़ी राशि की गड़बड़ी का आरोप है। यह ऑडिट रिपोर्ट में सामने आई थी और उन्हें वसूली की नोटिस भी दी गई। राशि अब तक वसूल नहीं हुई है। उन पर कोई सख्त कार्रवाई भी नहीं हुई। अब इसी बीच पुरस्कृत कर दिए गए हैं। उन्हें उसी सीएमएचओ ऑफिस में अटैच रखा गया था, जहां वे अब बॉस बन गए हैं। हालांकि कुछ समय पहले उन्हें रतनपुर सीएचसी भेज दिया गया था। डॉ. महाजन विधायक शैलेष पांडेय के करीबी माने जाते हैं। बिलासपुर में डॉ. महाजन अब तक टिके हुए थे क्योंकि यह स्वास्थ्य विभाग का मामला है। वरना जिले के सभी प्रमुख पदों पर दूसरे गुट की पसंद से अधिकारी बैठे हैं। यह बताया जाता है कि इस उलटफेर मे कांग्रेस के दूसरे गुट की कम, एक कर्मचारी संगठन पदाधिकारी की बड़ी भूमिका है। मंत्री जी की छवि तो बेदाग है, पर उनके विभाग की?
बच्चे का विरोध प्रदर्शन..
इस बच्चे को नानी के घर जाने से परहेज है। तख्ती लगाकर विरोध कर रहा है कि वह छुट्टियां बिताने की जगह नहीं है। वैसे ज्यादातर बच्चे तो गर्मियों में नानी के घर जाने का बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं। कोई बात नहीं, अब तख्तियां नीचे रख देनी चाहिए। छुट्टियां खत्म हो चुकी हैं, स्कूल खुल चुके हैं। अगली गर्मी में देखेंगे कहां जाना है..।
हिंदी में अंग्रेजी का सुख...
आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को शुरू करने के लिए प्राय: हर एक जगह सबसे पुराने और बेहतरीन स्कूल भवनों को चुना गया है। प्रदेश के अलग-अलग स्थानों में इसके विरोध में प्रदर्शन हुए। उनका कहना था कि कि अपने पुराने स्कूल के साथ उनके शहर की विरासत जुड़ी है, इनका नाम न बदला जाए। नामकरण को लेकर के लोक शिक्षण संचालनालय ने पहले ही एक परिपत्र निकाल दिया था। इसमें यह था कि स्कूल का नाम किसी दानदाता या प्रतिष्ठित व्यक्ति के नाम पर है, तो वह बदला नहीं जाएगा। साथ में यह जोड़ दिया जाएगा कि यह स्वामी आत्मानंद योजना से संचालित हो रही है। यह पहली समस्या लगभग सभी जगह सुलझ चुकी है। दूसरी चिंता हिंदी माध्यम में पढ़ रहे उस स्कूल के छात्रों को अपने भविष्य की थी। शिक्षा विभाग ने कुछ भी साफ नहीं किया तो लगा कि छात्रों को अपना पुराना स्कूल छोडक़र दूर कहीं दाखिला लेना होगा। इसे लेकर रोष इतना था कि कई लोग हाईकोर्ट तक चले गए। वहां केस चल रहा है। अब साफ किया गया है कि पुराने हिंदी स्कूल भी उसी जगह चलेंगे। अलग पाली में कक्षाएं लगेंगी। यदि ऐसा हो रहा हो तो एक फायदा यह है कि पुराने हिंदी माध्यम के छात्र नए तरीके से सजाए संवारे गए भवन में नई फर्नीचर पर बैठकर पढ़ेंगे। छात्रों और शिक्षकों दोनों को इस सुविधा का लाभ मिलेगा। पर लैब और खेलकूद के सामान, मैदान का भी क्या हिंदी माध्यम के छात्र इस्तेमाल कर सकेंगे? स्थिति साफ होना बाकी है।
एनएचआरसी को अब पता चला..
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुकमा जिले के कलेक्टर और स्वास्थ्य सचिव को एक मामले में नोटिस जारी किया है। सुकमा के कांकेरलंका पीएचसी में एक डिलिवरी केस आया था। तबीयत बिगड़ते देख कर उसे सुकमा जिला अस्पताल रेफर किया गया। मगर दंपति को आधी रात तक एंबुलेंस नहीं मिल पाई और नवजात को बचाया नहीं जा सका। एनएचआरसी के ध्यान में यह बात इसलिए आ पाई क्योंकि कुछ राष्ट्रीय अखबारों में यह खबर छप गई।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर और सरगुजा संभाग में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कितनी बदतर है इसके बारे में अगर आयोग समय-समय पर नजर डाले तो सुकमा की यह घटना उसे छोटी लग सकती है। हाल ही में लखनपुर में एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण एक व्यक्ति अपनी बच्ची को 10 किलोमीटर तक साइकिल पर ढोकर ले गया था। अंबिकापुर करीब छह-सात महीने पहले सप्ताह भर के भीतर दो दर्जन बच्चों की जिला अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। यह सभी आदिवासी बच्चे थे। बलरामपुर जिले में पंडो आदिवासियों की लगातार खून की कमी के कारण मौत हो रही है। यही कोई चार छह महीने पहले 1 सप्ताह के भीतर 15 लोगों की जान चली गई तब वहां पर कैंप लगाया गया। बस्तर से आए दिन तस्वीरें आती हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि कभी खाट पर तो कभी गाड़ी पर लादकर मरीजों को अस्पताल लाया जा रहा है या शव को वापस ले जाया जा रहा है। यहां बाइक एंबुलेंस का प्रयोग भी किया गया था पर कई जगह ये कबाड़ में पड़े हैं।
सरगुजा और बस्तर दोनों ही कद्दावर मंत्रियों के प्रभाव वाले इलाके हैं। ऐसा हो नहीं सकता कि उनका ध्यान इतनी गंभीर समस्या की तरफ गया नहीं हो। पर कभी जवाबदार स्वास्थ्य अफसरों पर कार्रवाई की नहीं गई। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की नोटिस को भी जाहिर है, गोलमोल जवाब देकर निपटा दिया जाएगा।
सस्पेंड मत करो साहब, काम करा दो...
भेंट-मुलाकात में जिस तरह से सीएम भूपेश बघेल ने राजस्व विभाग की शिकायतों पर निलंबन की कार्रवाई की है, मौका मिलने पर लोग चूक नहीं रहे हैं। कुनकुरी में लगी जन-चौपाल में एक ग्रामीण ने शिकायत की कि पट्टा बनाने के लिए पटवारी 50 हजार रुपये रिश्वत मांग रहा है। सीएम ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि तहसीलदार को सस्पेंड कर दिया है, क्या चाहते हो-पटवारी को भी कर दूं? ग्रामीण भी तैयारी से आया था, साहब- वो दूसरा तहसीलदार है- हमारे इलाके का नहीं है। सीएम हतप्रभ! उन्होंने पूछ लिया- सस्पेंड करा के ही मानोगे? ग्रामीण बोला- नहीं साहब, जरूरी नहीं है, बस मेरा काम करा दीजिए। सीएम बिना मुस्कुराए नहीं रह सके- उन्होंने कलेक्टर को निर्देश दिया कि इनका पट्टा जल्दी बनवा दें।
दहशत की दुकान...
ग्राहकों को खींचने के लिए दुकानदार अनोखे तरीके अपनाते हैं। इनमें से कुछ तरीके ऐसे भी होते हैं, जिसे देखकर आने-जाने वालों को दहशत हो सकती है। (सोशल मीडिया पर मिली एक तस्वीर)
रेवेन्यू बोर्ड में अब कौन?
रेवेन्यू बोर्ड के चेयरमैन उमेश अग्रवाल, और लोक आयोग सचिव ईमिल लकड़ा 30 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। लकड़ा की जगह लोक आयोग सचिव के पद पर सुधाकर खल्को की पोस्टिंग हो गई है। लेकिन अग्रवाल के विकल्प की तलाश चल रही है। चर्चा है कि उमेश की जगह स्पेशल सेक्रेटरी रैंक के किसी अफसर को चेयरमैन बनाया जा सकता है। रेणु पिल्ले जैसी सीनियर अफसर को रेवेन्यू बोर्ड में भेजे जाने पर भी विचार हो रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि जमीन के प्रकरणों में कमिश्नरी में कई जगहों पर उटपटांग आदेश भी हो रहे हैं, जिसे रेवेन्यू बोर्ड में चुनौती दी जा रही है। ऐसे में बोर्ड में रेणु पिल्ले जैसी अच्छी साख वाले अफसर को बिठाया जा सकता है। ताकि प्रकरणों का निपटारा बेहतर ढंग से हो सके।
अब मंत्रालय आ रहे हैं...
भूपेश सरकार के कार्यकाल डेढ़ साल से कुछ कम बाकी रह गए हैं। अब जाकर मंत्रियों ने मंत्रालय स्थित अपने दफ्तरों में बैठना शुरू किया है। एक-दो को छोड़ दें, तो ज्यादातर मंत्री अपने घर से सरकारी कामकाज निपटा रहे थे। वैसे मंत्रालय न आने की एक वजह कोरोना भी थी, लेकिन संक्रमण कम होने के बाद भी मंत्रियों ने एक तरह से मंत्रालय आना-जाना छोड़ दिया था। मंत्रियों की देखा-देखी कई प्रमुख सचिव-सचिव स्तर के अफसरों ने भी मंत्रालय जाना छोड़ दिया था। वे भी यहां विभागाध्यक्ष दफ्तर में बैठकर काम निपटा रहे थे।
नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव डहरिया सबसे ज्यादा मंत्रालय जाने वाले मंत्री हैं। मंत्रालय (महानदी भवन) डॉ. डहरिया के विधानसभा क्षेत्र में आता है। इसी बहाने डॉ. डहरिया का विधानसभा क्षेत्र का एक चक्कर भी हो जाता है। अफसरों में सामान्य प्रशासन सचिव डीडी सिंह, और तकनीकी शिक्षा सचिव रीता शांडिल्य ही ऐसे हैं, जो नियमित रूप से मंत्रालय जाते हैं, और सबसे ज्यादा समय मंत्रालय में देते हैं। कोरोना आदि की वजह से पिछले दो साल से कैबिनेट की बैठक मंत्रालय में नहीं हुई है। ज्यादातर बैठकें सीएम हाउस में हुई है। इन सब वजहों से भी मंत्री-अफसरों का आना जाना कम हुआ है, लेकिन अब ज्यादातर मंत्री रायपुर में रहने पर मंत्रालय आ रहे हैं, और कामकाज निपटा रहे हैं।
कर्ज पर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट
छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड ये तीन राज्य एक साथ 1 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए थे। आरबीआई इस बात पर नजर रखता है फिर किस राज्य की आमदनी कितनी है, उस पर कर्ज कितना और उसे चुकाने की क्षमता कितनी है। एक रिपोर्ट में सबसे ज्यादा चिंता उत्तराखंड पर की गई है। उस पर 76 हजार 351 करोड का कुल कर्ज है जो आबादी के हिसाब से प्रति व्यक्ति 65 हजार 522 रुपये बैठता है। छत्तीसगढ़ की स्थिति बीच में है। हम पर एक लाख 150 करोड रुपए का ऋण है, जो प्रति व्यक्ति 33 हजार 607 रुपये बनता है। सबसे बेहतर स्थिति झारखंड की है जिसने हमसे ज्यादा कर्ज लिया है। करीब एक लाख 5570 करोड रुपए। पर प्रति व्यक्ति कर्ज 27 हजार 96 रुपये ही है। उत्तराखंड की आबादी 1.5 करोड़, छत्तीसगढ़ की 2.98 करोड़ और झारखंड की 3.98 करोड़ है। इस आंकड़े से जो बात निकल कर आ रही है, वह यह है कि इन तीनों में जिस राज्य की आबादी जितनी कम है वह उतने ही ज्यादा कर्ज के बोझ से लदा है, यानी आय के साधन कम है।
दूसरे विभागों में वीरों के नाम क्या हों?
सोशल मीडिया पर अग्निवीर योजना की सफलता-विफलता की संभावनाओं पर विमर्श चल रहा है। यदि यह सफल हुई तो देश के विभिन्न विभागों में भर्ती होने वालों के नाम इस तरह से हो सकते हैं- सिंचाई विभाग के लिए- जलवीर, शिक्षा विभाग के लिए विद्यावीर, रेलवे के लिए रेल बहादुर, पुलिस के लिए सुरक्षा सम्राट, कलेक्टर के लिए जिला शिरोमणि, यातायात विभाग के लिए रोड राजा, कृषि विभाग के लिए-एग्रोवीर, एसबीआई आदि बैंकों के लिए बैंकवीर...आदि, आदि। यह कहा जा रहा है कि बहुत से विभागों में अभी भी हजारों दैनिक वेतनभोगी और एडहॉक पर काम करने वाले हैं, जिनकी नौकरी अग्निवीरों से भी कम पक्की है। इनके पदनाम के साथ वीर जोड़ दिया जाए तो उनमें वीरता का भाव पैदा होगा और जिस तरह से अनेक निजी कंपनियों ने अग्निवीरों को भर्ती में प्राथमिकता देने की घोषणा की है, इनके लिए भी कुछ सोचेंगे।
वाट्सएप कॉल में छिपी सहूलियत..
केंद्र सरकार पर फोन टेपिंग के मुख्यमंत्री के आरोपों के जवाब में नेता प्रतिपक्ष की ओर से जवाब आया है कि टेपिंग का डर तो राज्य की एजेंसियों से राज्य के अधिकारियों को है। वे मोबाइल फोन या लैंड लाइन पर बहुत संतुलित बात करते हैं। कोई खुलकर बात करना चाहे तो उन्हें ऐप (वाट्सएप) से बात करना ठीक लगता है। जानकार कह रहे हैं कि इस बात में सच्चाई तो है। पर यह पूर्ववर्ती भाजपा शासन के समय से चल रहा है। जब से वाट्सएप में कॉल की सुविधा आई है तब से। मंत्रालय, सचिवालय और जिलों में कमान संभाल रहे अनेक अफसरों से वाट्सएप कॉल के जरिये बात करना सिम से बात करने के मुकाबले आसान है। जरूरी नहीं कि हर बार लेन-देन की ही बात होती हो। दरअसल, वे सरकार, मंत्री, अपने ही साथी अफसरों के कामकाज पर निजी राय रखना चाहते हैं। कहां, क्या चल रहा है जानना चाहते हैं, अपनी पीड़ा बताते हैं। और ऐसी बातें खुल जाए, रिकॉर्ड हो जाए तो मुश्किल हो जाएगी। चाहे कोई कितना भी करीबी हो, ऐसे मामलों में भरोसा कैसे किया जा सकता है। वाट्सएप कॉल में माना जाता है कि कॉल रिकॉर्ड नहीं होती है। जबकि सामान्य मोबाइल फोन पर तो यह फीचर आजकल इनबिल्ट आ चुका है, अलग से कोई ऐप डाउनलोड भी नहीं करना पड़ता।
सेब की सरकारी खेती फ्लाप, आश्रम में सफल
जशपुर जिले के प्रसिद्ध सोगड़ा आश्रम में पहली बार सेब की खेती हो गई है। कश्मीर से 50 पेड़ लाकर यहां लगाए गए थे, जिनमें से करीब 40 में फल आ चुके हैं। सोगड़ा आश्रम में पहले से ही बड़े पैमाने पर चाय की खेती होती है, जिससे जशपुर को एकमात्र चाय उत्पादक जिले का दर्जा मिला हुआ है। इसके पहले उद्यान और कृषि विभाग ने सन्ना के पंडरापाठ इलाके में भी सेब की खेती की थी, अब वह 100 एकड़ का क्षेत्र उजाड़ हो चुका है। यहां 1600 पेड़ लगाए गए थे। विभागों ने सुध नहीं ली। किसानों का मोहभंग हो गया। सोगड़ा आश्रम में संसाधन स्वयं जुटा लिए गए पर पंडरापाठ के कृषकों को सरकारी मदद की जरूरत थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।
जशपुर ऐसा जिला है जहां उद्योग, खदान लाने का बड़ा विरोध होता है। यहां रेल लाइन भी नहीं बिछाई जा सकी है। इस विरोध के पीछे आदिवासियों को अपने जमीन और जंगल से विस्थापित होने और शांत इलाके में प्रदूषण बढऩे का खतरा दिखाई देना है। टाऊ, आलू, टमाटर, काजू जैसे विविध फसलों के लिए जशपुर पहले से ही प्रसिद्ध है। फिर भी आम जशपुरिया लोगों के बीच इनकी खेती बड़े पैमाने पर हो इसके लिए प्रशासन को अलग से मिशन चलाने की जरूरत है। जशपुर जिला जहां रोजगार के अभाव में ह्यूमन ट्रैफिकिंग भी एक बड़ी समस्या है, इन फसलों के उत्पादन में आम लोगों को लगाकर आमदनी बढ़ाई जा सकती है।
बुलडोजर हो तो ऐसा चले...
न्यूयार्क शहर के मेयर के दफ्तर ने अभी एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें पहाड़ की तरह का एक बड़ा बुलडोजर सैकड़ों महंगी मोटरसाइकिलों को कुचलते हुए चल रहा है। इस शहर में वहां गैरकानूनी तरीके से चलाई जाने वाली पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों लायक बनी अधिक ताकतवर मोटरसाइकिलों पर रोक लगी हुई है क्योंकि शहर में उनकी जरूरत नहीं है, और उनसे लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ती है। यह शहर इस बरस अब तक दो हजार ऐसी गाडिय़ां जब्त कर चुका है, और उनमें से 900 गाडिय़ों को सार्वजनिक रूप से बुलडोजर से कुचलकर खत्म किया गया है।
हिन्दुस्तान में भी किसी-किसी शहर में जब्त अवैध शराब रोड-रोलर से कुचलकर बहाई जाती है, और किसी-किसी शहर में मोटरसाइकिलों पर लगाए गए गैरकानूनी साइलेंसरों, और बड़ी गाडिय़ों में लगाए गए प्रेशर हॉर्न को भी रोड-रोलर से कुचला गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ऐसी हजारों महंगी मोटरसाइकिलें दौड़ रही हैं जिनकी नंबर प्लेटों के साथ छेडख़ानी है, और साइलेंसरों को बिगाडक़र भारी आवाज करने वाला बनाया गया है। दर्जनों मोटरसाइकिलें ऐसी हैं जिनके साइलेंसर बंदूक की गोली चलने जैसी आवाज करते हैं। अब यहां सरकार का हौसला ऐसी गाडिय़ों को कुचलने का हो या न हो, ऐसी गाडिय़ों के साइलेंसरों को तो निकालकर सार्वजनिक रूप से रोड-रोलर से कुचला जा सकता है, और बाकी लोगों को उससे एक सबक मिल सकता है। दूसरों का जीना हराम करने के साथ-साथ ऐसी गाडिय़ां गुंडागर्दी को भी बढ़ावा देती हैं, और पुलिस को शायद ही इनसे कोई संगठित उगाही होती होगी। अब अफसर अपनी इस न्यूनतम जिम्मेदारी को भी पूरा नहीं कर रहे हैं, और सत्ता पर बैठे नेताओं को भी इसकी कोई फिक्र नहीं दिखती है।
कुर्सी खोने का बुरा तो लगेगा ही
हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरगुजा विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर प्रो. रोहित प्रसाद बहाल हो गए। मगर निवर्तमान कुलपति अशोक सिंह ने कुर्सी नहीं छोड़ी है। वे विश्वविद्यालय की गाड़ी लेकर कहीं चले गए हैं। उनका कोई अता-पता नहीं हैं। चर्चा है कि बनारस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे अशोक सिंह ने कुलपति पद पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। साधन-संसाधन झोंकने के बाद किसी तरह कुलपति बनने में कामयाब रहे। सालभर भी नहीं हुए, और उन्हें पद से हटना पड़ा है। इतना सब कुछ करने के बाद भी कुर्सी हाथ से निकल गई है, तो बुरा लगना स्वाभाविक है।
उइके के लिए भी कोशिश...
चर्चा है कि राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके का नाम भी एनडीए से राष्ट्रपति प्रत्याशी के लिए विचरण जोन में था। अनुसुईया उइके केंद्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य रही हैं। मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री भी रही हैं। कुछ महीने पहले एक निजी विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में विवि नियामक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष ने तो मंच से राज्यपाल अनुसुईया उइके को राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त प्रत्याशी बता दिया था। वे यही नहीं रूके, उन्होंने आगे यह भी कहा था कि वो खुद डोभाल साब से बात करेंगे। अध्यक्ष महोदय ने कोशिश की या नहीं, यह कोई नहीं जानता। लेकिन अनुसुईया राष्ट्रपति प्रत्याशी बनने से रह गईं।
अब बिजली बिल के नाम पर ठगी..
ऑनलाइन ठगी का जाल चारों तरफ फैलता जा रहा है। हाल के दिनों में बिजली बिल भुगतान बाकी होने के नाम पर भी लोगों से ठगी के मामले बढ़ गए हैं। बिजली उपभोक्ताओं को स्पैम एसएमएस भेजकर डराया जाता है कि आज रात उनके घर की बिजली डिस्कनेक्ट कर दी जाएगी। उपभोक्ता को प्ले स्टोर में जाकर एक ऐप डाउनलोड करने और उसके बाद एक मोबाइल नंबर पर संपर्क करने कहा जाता है। घबराया हुआ उपभोक्ता ऐसा ही करता है और फोन करता है। वह बताता है कि हमने तो बिल पटा दिया था। मोबाइल पर जवाब देने वाला फिर भयभीत करता है कि आपका भुगतान हमारे यहां अपडेट नहीं हुआ है, तत्काल फिर जमा करें। और उसी ऐप के जरिये वह बैंक एकाउंट की जानकारी लेकर पैसे पार कर देता है। अब सीएसपीडीसीएल ने सतर्क किया है कि भुगतान के लिए मोर बिजली ऐप के अलावा उपभोक्ता कोई दूसरा ऐप डाउनलोड न करें। जो एसएमएस भेजे जाते हैं वे अनजान नंबर या स्त्रोत से नहीं बल्कि सीएसपीडीसीएल सेंटर के नाम से भेजे जाते हैं। हाल ही में रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर जिले के कई उपभोक्ताओं को ये ठग लाखों रुपयों का चूना लगा चुके हैं, इसलिए चिंता जायज है।
अंतरात्मा से अपील बस होने वाली है...!
छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य ओडिशा की रहने वालीं और एक दूसरे पड़ोसी राज्य झारखंड में राज्यपाल रह चुकीं द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। यह संयोग ही है कि उनके जन्म, कर्मभूमि वाले इस बेल्ट के तीनों राज्यों में भाजपा की सरकारें नहीं है। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में तो उनके विधायकों की संख्या बहुत कम भी है।
ओडिशा का बीजू जनता दल लंबे समय तक एनडीए में रहा। कंधमाल जिले में भडक़ी हिंसा के दौरान स्वामी लक्ष्मानंद सरस्वती की मौत के बाद उनके बीच दरार आ गई थी। 2009 के बाद से बीजू जनता दल मोटे तौर पर अकेले ही चुनाव लड़ रहा है। तब से हर चुनाव में वह वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को कड़ी शिकस्त दे रहा है। इस समय 147 में 114 विधायक बीजद के हैं। भाजपा के सिर्फ 22 हैं। संसद के दोनों सदनों में 12-12 सदस्य हैं। इस आंकड़े का राज्यसभा चुनाव में तीन फीसदी तक असर होना है। बिना देर किए बीजेडी ने मुर्मू के समर्थन देने की घोषणा कर दी है। निश्चित ही, यह राज्य के लोगों की भावनाओं का सवाल था।
झारखंड में फैसला लेना ओडिशा की तरह आसान नहीं है। वहां झामुमो की सरकार कांग्रेस और दूसरे दलों के साथ गठबंधन पर बनी है। विपक्ष के साझा प्रत्याशी यशवंत सिन्हा इसी राज्य से आते हैं। अब, यह तय करना कठिन हो रहा है कि आदिवासी और वह भी महिला उम्मीदवार को वोट न दिया जाए। यही वजह है कि सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रमुख हेमंत सोरेन ने अब तक इस बारे में कोई साफ घोषणा नहीं की है।
छत्तीसगढ़ के बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आदिवासी सीटों पर जबरदस्त सफलता मिली थी। 29 में से सिर्फ दो पर भाजपा ने जीत हासिल की। पार्टी के निर्देश के मुताबिक इन 27 आदिवासी विधायकों को भी विपक्ष के साझा उम्मीदवार के साथ ही जाना पड़ेगा, भले ही उनकी हार तय दिख रही हो। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के 3 विधायक मुर्मू को वोट देंगे, यह उम्मीदवारी घोषित करने के बाद ही तय कर लिया गया है। बसपा के दो विधायक हैं, जो बहनजी से मिलने वाले निर्देश की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
हालांकि एनडीए के बाहर होने के बावजूद बीजू जनता दल का समर्थन मिल जाने के बाद मुर्मू की स्थिति काफी मजबूत हो चुकी है। इसके बावजूद प्राय: हर राष्ट्रपति चुनाव में विधायक-सांसदों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की जाती है, ताकि कोई कसर बाकी न रहे। झारखंड और छत्तीसगढ़ दो ऐसे राज्य हैं, जहां आदिवासी विधायकों की संख्या बड़ी है, पर ये भाजपा के नहीं है। मुमकिन है ऐसे में मतदान से पहले उनसे अपील की जाए कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें। क्या पता, कुछ लोग सुन भी लें।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता खुश
द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित होने से प्रदेश भाजपा में खुशी की लहर है। द्रोपदी ओडिशा की रहने वाली हैं, और प्रदेश के प्रमुख विशेषकर आदिवासी नेताओं से मधुर संबंध हैं। पार्टी के एक तबके का मानना है कि चुनाव में भले ही प्रदेश से मुर्मू को बढ़त न मिल पाए, लेकिन विधानसभा चुनाव में इसका फायदा होगा। कुछ उत्साही भाजपा नेताओं का मानना है कि आदिवासी इलाकों में मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से सकारात्मक संदेश जाएगा, और पार्टी को आदिवासी इलाकों में वर्ष-2003, और वर्ष-2008 के विधानसभा चुनावों की तरह सफलता मिल सकती है। फिलहाल तो भाजपा नेता विशेषकर आदिवासी विधायकों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील करेंगे। देखना है कि अपील का थोड़ा बहुत असर होता है, अथवा नहीं।
स्कूलों में दखल जारी है
स्कूल शिक्षा जगत में आरएन सिंह का नाम अनजाना नहीं है। पिछली सरकार में आरएन सिंह की स्कूल शिक्षा में तूती बोलती थी। उनकी बृजमोहन अग्रवाल, केदार कश्यप के स्कूल शिक्षा मंत्री रहते एकतरफा चलती थी। विभाग में खरीदी हो, या ट्रांसफर-पोस्टिंग, आरएन सिंह की दखल रहती थी। भूपेश सरकार के राज में भी आर एन सिंह का दबदबा कम नहीं हुआ था। वो डायरेक्टोरेट से मार्गदर्शन करते थे। आरएन सिंह अब रिटायर हो चुके हैं, और रिटायरमेंट के बाद स्कूल खोल लिया है। पुराने सहयोगी मदद कर ही रहे हैं। उनका अपना अनुभव स्कूल को जमाने में काम आ रहा है।
गोबर खाद के लिए है, गाज के लिए नहीं...
सरगुजा में हाल ही में दो घटनाएं हुई। इनमें गाज से झुलसने के बाद एक युवक को और दूसरी जगह पर दो बच्चियों को गोबर से लपेटकर जमीन पर दबा दिया गया। युवक की मौत हो गई, जबकि बच्चियों को निकालकर बाद में अस्पताल पहुंचाया गया। ऐसी घटनाएं हर साल हो रही हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बीते साल छत्तीसगढ़ में गाज की चपेट में आने से 78 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से 25 की मौत अस्पताल न ले जाकर गोबर का लेप लगाकर मिट्टी में लिटा देने की वजह से हुई। यह बड़ी संख्या है, जिनकी जान बच सकती थी। इस साल भी प्री- मॉनसून के दौरान ही बस्तर से लेकर सरगुजा संभाग तक गाज गिरने की घटनाओं में कई लोग झुलस चुके, मवेशियों और ग्रामीणों की जान चली गई। प्राय: खेतों के लिए निकले ग्रामीण इसकी चपेट में आ रहे हैं, जो बारिश शुरू होने पर पेड़ों के नीचे पनाह ले लेते हैं। यह घातक होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि बारिश से भले ही भींग जाएं पर पेड़ के नीचे नहीं जाना चाहिए। खुले में खुद को समेटकर बैठ जाना फायदेमंद होता है। लोहे जैसा कोई औजार हो तो उसे दूर फेंककर रख दें। पेड़ ही नहीं नदी-तालाब, बिजली खंभे से भी दूर रहना चाहिए। समूह में न होकर दूर-दूर रहें ताकि गाज गिरने का सामूहिक नुकसान न हो। पर इन उपायों की जानकारी अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं है। हर साल होने वाली दर्जनों मौतों को रोकने के लिए अभियान चलाने का काम छत्तीसगढ़ में नहीं किया जा रहा है।
अगवा हुए या भगवा..?
संजय राउत- हमारे 35 विधायक अगवा हो गए हैं..।
फड़णवीस- अगवा नहीं, भगवा हो गए हैं...।
(वाट्सएप यूनिवर्सिटी से)
जाने वाले अफसरों को रोका नहीं...
आईएएस के वर्ष-2008 बैच के अफसर नीरज बंसोड़ भी केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए आवेदन भी दिया है। बंसोड़ पिछले तीन साल से डायरेक्टर (हेल्थ) के पद पर काम कर रहे हैं। सब कुछ ठीक रहा, तो बंसोड़ भी दिल्ली के लिए प्रस्थान कर सकते हैं।
दर्जनभर से अधिक अफसर प्रतिनियुक्ति पर जा चुके हैं। ऐसा पहला मौका है जब एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अफसर केंद्र सरकार में पदस्थ हैं। दो और अफसर दिल्ली जाने के लिए तैयार बैठे हैं, और कहा जा रहा है कि वो बेहतर पोस्टिंग के लिए अपने संपर्कों को टटोल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ कैडर के अफसरों को दिल्ली में अच्छी पोस्टिंग भी मिली है। बीवीआर सुब्रमण्यम वाणिज्य सचिव के पद पर हैं, तो अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर, विकासशील, और आईएफएस अफसर बीवी उमादेवी एडिशनल सेक्रेटरी के पद पर हैं। ये सभी अच्छे डिपार्टमेंट में हैं। इसके अलावा अमित कटारिया, सुबोध सिंह, डॉ. एम गीता, सोनमणि बोरा, डॉ. रोहित यादव, और ऋतु सेन ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद हैं। रोहित तो पीएमओ में सेवाएं दे रहे हैं। रजत कुमार डायरेक्टर जनगणना के पद पर हैं। दो अफसर एलेक्स पॉल मेनन और ए बासव राजू अपने गृह राज्य क्रमश: तमिलनाडु, और कर्नाटक में प्रतिनियुक्ति पर हैं।
राज्य सरकार की सोच है कि किसी को बेहतर मौका मिल रहा है, तो उसे रोका नहीं जाना चाहिए। यही वजह है कि अफसरों की कमी के बाद भी किसी को जाने से नहीं रोका गया है।
मुफ्त से सावधान रहें!
वैसे तो कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम बनाने वाली कंपनी लोगों को धोखाधड़ी के प्रति सावधान करती रहती है, लेकिन लोगों को मुफ्त के ईनाम अपनी ओर खींचते रहते हैं इसलिए जालसाजों का काम चलते रहता है। कल ही इस अखबारनवीस के मोबाइल फोन पर किसी दूसरे देश के एक नंबर से एक वॉट्सऐप वीडियो आया जिसमें केबीसी में 25 लाख रूपए जीतने की खबर दी गई, और बताया गया कि इसे पाने के लिए अपने बैंक खाते की जानकारी दें ताकि रकम भेजी जा सके। लोगों को हर उस चीज से सावधान रहना चाहिए जो मुफ्त में मिलती दिख रही है, फिर चाहे वह अमिताभ बच्चन की तस्वीर के साथ ही क्यों न आती दिखे।
सकारात्मकता की परिभाषा
योग और व्यायाम के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए आईपीएस रतनलाल डांगी सोशल मीडिया बेहद सक्रिय रहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर उनका वीडियो आज सुबह कुछ घंटों के भीतर ही ट्विटर पर 2500 से ज्यादा लोगों ने देख लिया। दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर भी लगातार देखे जा रहे हैं। अब तक फिटनेस पर डाले गए उनके वीडियो 1 करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं। आज उन्होंने लिखा समय बहुत कीमती है, इसे अपना काम करने में लगाएं, न कि निगेटिव लोगों की बातें सुनने में। ज्यादातर ने इस विचार पर सहमति जताई है। पर, एक ने लिखा हमारे इलाके में अवैध कोयला डिपो चल रहा है, जुआखोरी हो रही है। पुलिस की क्रेडिटिबिलिट का सवाल है, कार्रवाई करें। यूजर ने जागरूक नागरिक होने के नाते संदेश का एक हिस्सा तो निभाया कि अपना काम किया। पर इस शिकायत को निगेटिव माना जाएगा, या सकारात्मक कहेंगे, यह कुछ उलझन भरा सवाल होगा।
रोजगार के लिए दो आंदोलन...
युवक कांग्रेस ने बहुत जल्दी प्रदेश भर में, रोजगार दो पदयात्रा निकालने का निर्णय लिया है। केंद्र ने हर साल जो दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, यह उसे लेकर है। युवक कांग्रेस का कहना है कि वायदा पूरा नहीं किया गया और अब तो सेना में भी 4 साल के लिए कांट्रेक्ट भर्ती की जा रही है। इधर युवा मोर्चा छत्तीसगढ़ सरकार के चुनावी वायदे को याद दिलाने के लिए बेरोजगारी टेंट लगाने जा रहा है। हस्ताक्षर अभियान और वाल पेंटिंग भी इसमें शामिल है। उनका कहना है कि अब तक सरकार ने जो 28 हजार भर्ती की है, उनमें भी 13 हजार तो संविदा पर है। यानि वादा अधूरा है।
युवाओं के साथ संकट यह है कि दोनों ही पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ आंदोलन कर अपनी राजनीतिक मंशा तो पूरी कर लेंगे पर असल समस्या जो रोजगार की बनी हुई है, वह दूर होगी भी या नहीं।
बंगले बेचने के दिन..
दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव का मौलश्री विहार स्थित बंगला बिक गया है। बंगले के खरीददार कोई और नहीं, कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे हैं। ईमानदारी के पर्याय रहे रामचंद्र सिंहदेव ने बंगला 15 साल पहले खरीदा था। मौलश्री विहार में जनप्रतिनिधियों को हाऊसिंग बोर्ड ने बंगला बनाकर दिया था। चौबे, दिवंगत वित्त मंत्री के न सिर्फ पड़ोसी थे, बल्कि वो सिंहदेव के काफी भी करीब थे।
सिंहदेव ने बाकी जन प्रतिनिधियों की तरह बंगले में कोई नया कंस्ट्रक्शन नहीं कराया था। सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद वहां शिफ्ट हो गए थे। उनके गुजरने के बाद सिंहदेव का बंगला तकरीबन खंडहर हो चुका था, और यह उनकी भतीजी विधायक अंबिका सिंहदेव के आधिपत्य में था। अंबिका ने बिना ज्यादा मोल-भाव के चौबेजी को बंगला बेच दिया। चर्चा है कि चौबेजी ने इसके लिए करीब 45 लाख रुपए लोन लिए हैं, और बंगले की कीमत भी इसके आसपास बताई जा रही है।
दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने भी मौलश्री विहार स्थित अपना बंगला बेच दिया है। मूणतजी ने पड़ोस की दिवंगत नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा की जमीन भी खरीद ली थी, और नया स्वरूप दिया था। मूणत का बंगला पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के बंगले के सामने ही है। उन्होंने शहर से दूर होने के कारण मौलश्री विहार का बंगला बेचा है। मूणत जी अब वे अपने विधानसभा क्षेत्र रायपुर पश्चिम के बीचों-बीच स्थित चौबे कॉलोनी में मकान लेकर शिफ्ट हो रहे हैं।
हवा से हल्के सांसद
वैसे तो प्रदेश में सरोज पाण्डेय को मिलाकर भाजपा के 11 सांसद हैं। इनमें से रेणुका सिंह केन्द्रीय मंत्री हैं। लेकिन सरोज को छोड़ दें, तो बाकी सांसदों की दिल्ली दरबार में कोई पकड़ नहीं दिखती है। पार्टी के सीनियर विधायकों की स्थिति सांसदों से बेहतर है। न सिर्फ दिल्ली बल्कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के सांसदों का भी यही हाल है।
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव चल रहे हैं, और वहां सबसे ज्यादा करीब साढ़े 5 लाख वोटों से जीतकर इंदौर के सांसद बने शंकर लालवानी का हाल यह है कि वो इंदौर नगर निगम के 90 वार्डों में से सिर्फ अपने मोहल्ले से ही टिकट दिला पाए। बाकी वार्डों में कैलाश विजयवर्गीय, या उनके करीबी लोगों के समर्थकों को प्रत्याशी बनाया गया है।
लालवानी ने दिल्ली दरबार में गुहार लगाई, तो उन्हें स्थानीय नेताओं से बात करनेे के लिए कह दिया गया। लालवानी से थोड़ी बेहतर स्थिति छत्तीसगढ़ के सांसद सुनील सोनी, और विजय बघेल की मानी जा सकती है, जिनकी संगठन में ज्यादा पकड़ भले ही न हो, लेकिन बीरगांव, और भिलाई-चरौदा निकाय में कुछ समर्थकों को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे।
अपनी हैसियत ध्यान में रखें
इन दिनों टेक्नालॉजी इतनी आगे बढ़ गई है कि लोग वॉट्सऐप पर एक-दूसरे से बात करते हुए किसी सामान का जिक्र करें, तो वॉट्सऐप के मालिक की दूसरी कंपनी फेसबुक के पेज पर उसी का इश्तहार देखने मिलने लगता है। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि वे फोन पर भी किसी से बातचीत में किसी सामान का जिक्र करते हैं, तो उन्हें कम्प्यूटर पर उसी सामान के इश्तहार दिखने लगते हैं।
अब इस अखबारनवीस को चार दिन सर्दी-बुखार हो गया, तो उसे वॉट्सऐप पर यह संदेश आ गया कि उसे घर से काम करने लायक छांटा गया है, और अब वह बीस हजार रूपए प्रतिदिन के काम के लिए नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकता है।
अब घरेलू बुखार की भी खबर अगर इंटरनेट पर धोखा देने वाले और जालसाजों को मिलने लगी है, तो लोग इससे बचकर कहां जाएं? फिलहाल तो जिन लोगों को ऐसे संदेश मिल रहे हैं, वे सावधान रहें, अभी बीस हजार रूपए रोज घर बैठे पाने की हैसियत इस देश के एक फीसदी लोगों की भी नहीं है, लाख में से एक की भी नहीं है, इसलिए जालसाजी का शिकार न बनें, अपनी हैसियत ध्यान में रखें, और दो-चार सौ रूपए रोज के अपने मौजूदा काम को लात न मारें।
नक्सल मुक्त कोंडागांव में हत्या...
केंद्र सरकार ने इसी साल अप्रैल महीने में बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले को नक्सल मुक्त घोषित किया था। इसके पीछे वजह यह थी कि 2022 के बीते 5 महीनों में एक भी नक्सल हमला नहीं हुआ। सन 2021 में जरूर कुछ छोटी घटनाएं सामने आई थी। जिले के प्रत्येक गांव तक पुलिस और प्रशासन की पहुंच हो चुकी है। मोबाइल टावरों का जाल कुछ इस तरह से फैला दिया गया है कि नक्सली मूवमेंट की जानकारी को पुलिस तक पहुंचाने के लिए किसी को सामने आने की जरूरत नहीं पड़ती।
पर अभी दो दिन पहले ही मर्दापाल इलाके में एक ग्रामीण की नक्सलियों ने हत्या कर दी। उस पर मुखबिरी का संदेह था।
केंद्र सरकार ने सन् 2017 में एक लेफ्ट विंग एक्सटेंशन (एलडब्ल्यूई) योजना शुरू की, जिसके तहत देशभर के ऐसे जिलों को चिंहित कर नक्सल मुक्त घोषित करना है,जहां विकास कार्यों और प्रशासन की पहुंच के चलते नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं। लेकिन यह अजीब बात कही जा सकती है कि जैसे ही कोई इलाका नक्सलमुक्त घोषित किया जाता है, वहां पर सडक़, स्कूल, पुल-पुलिया के लिए दिया जाने वाला विशेष अनुदान बंद कर दिया जाता है। यह राशि करोड़ों रुपये की होती है। बहुत से लोगों का मानना है कि नक्सली गतिविधियों के कम हो जाने से तुरंत या कुछ महीनों में यह धारणा बनाना सही नहीं है कि नक्सली वहां से पलायन कर गए। मौके का इंतजार कर वे फिर पुलिस या सरकार के विरुद्ध अपनी गतिविधियों को संचालित कर सकते हैं, जैसा मर्दापाल में हुआ। ऐसी स्थितियों में तत्काल ईडब्ल्यूआई योजना के तहत मिलने वाली विशेष सहायता बंद कर दी जाए, यह भी ठीक नहीं। नक्सल गतिविधि कम होती है तो स्कूल, अस्पताल, सडक़ पुल-पुलिया, संचार के बचे कामों को और तेजी से चलाकर आगे की घटनाओं को रोका जा सकता है।
बिना मरहम दर्द दूर करने का तरीका
देश में कुछ दिन पहले तक पेट्रोल-डीजल के दाम बढऩे पर तूफान मचा था। अब वह बात गए दिनों की हो चुकी। चर्चा का विषय इसकी कीमत से शिफ्ट होकर उपलब्धता की ओर चली गई है। लोग घर से निकलते हुए मना रहे हैं कि रास्ते में पेट्रोल-डीजल मिल जाए, पंप ड्राई न मिले।
बीते कुछ महीनों से कोरोना का संक्रमण होने के बावजूद रेलवे ने दुबारा रियायती टिकट का नियम लागू नहीं किया और न ही जनरल डिब्बों में कम खर्च में सफर की सुविधा दी। छोटे स्टेशनों पर स्टापेज बंद कर दिया। इसे लेकर लोग भारी परेशान थे, आंदोलन कर रहे थे। लोग रियायती टिकट और एमएसटी को बंद करने का विरोध दर्ज करा ही रहे थे कि अचानक दर्जनों यात्री ट्रेनों का परिचालन पावर संयंत्रों को कोयले की तेज सप्लाई के नाम पर बंद कर दिया गया। लोग कुछ राहत पाने की उम्मीद में बैठे ही थे कि अब ट्रेनों का विलंब से चलना एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ गई। लोग यह मना रहे हैं कि जितनी भी ट्रेनेंचल रही हैं, कम से कम वे तो समय से चलें।
हाल में बेरोजगारी को लेकर आंकड़े आए थे, जिसमें यह पता चला कि कई राज्यों की स्थिति भयावह है। लोग लाखों रिक्त पदों पर भर्ती की मांग कर रहे थे। यूपी बिहार में कुछ ही महीने पहले आंदोलन भी हुए, पर इस बीच केंद्र सरकार बेरोजगारी दूर करने की अग्निपथ स्कीम लेकर आ गई। सेना में चार साल की भर्ती का स्कीम ला दिया। देश के दस से अधिक राज्यों में युवाओं ने इसके खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया और विपक्ष ने भारत बंद का आह्वान किया।
तो रेत के दाम बढ़ेंगे ही
बारिश शुरू होते ही रेत के दाम आसमान छू रहे हैं। रायपुर जिले में दाम ज्यादा है। वजह यह है कि यहां की ज्यादातर खदानें बंद हो चुकी है। अड़ोस-पड़ोस के जिलों से रेत की आवक हो रही है। रेत के दाम बढऩे के लिए कुछ ट्रांसपोर्टर एक विधायक को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सुनते हैं कि विधायक के इलाके के खदानों से रोजाना सैकड़ों गाड़ी निकलती है। विधायक महोदय के करीबियों ने प्रति ट्रक 3 सौ रुपये चार्ज करना शुरू कर दिया है। कुछ लोगों ने विधायक से बात भी की, लेकिन इससे कम पर बात नहीं बनी। जाहिर है कि इससे परिवहन भाड़ा बढ़ गया है। भाड़ा बढ़ेगा तो रेत के दाम बढ़ेंगे ही।
विजय झा को लेकर हलचल
कर्मचारी नेता विजय झा के सक्रिय राजनीति में आने की चर्चा से बड़े राजनीतिक दल भाजपा, और कांग्रेस के रणनीतिकारों के कान खड़े हो गए हैं। विजय झा के रिटायरमेंट के दिन 30 जून को कर्मचारियों ने बड़ी रैली निकालने की तैयारी भी की है।
दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और रायपुर दक्षिण से कांग्रेस के दावेदारों के नजदीकी लोगों ने विजय झा को टटोलना भी शुरू कर दिया है। खुद बृजमोहन अग्रवाल का पिछले दिनों एक शादी समारोह में विजय झा से आमना-सामना हो गया। बृजमोहन ने हल्के-फुल्के अंदाज में विजय से उनकी सक्रियता को लेकर बात भी की। कुल मिलाकर पहली बार किसी कर्मचारी नेता के रिटायरमेंट को लेकर न सिर्फ कर्मचारी जगत बल्कि राजनीतिक क्षेत्रों में भी हलचल है।
भाजपा विहिप आमने-सामने
पूर्व सीएम रमन सिंह, और बाकी बड़े भाजपा नेता गोधन न्याय योजना की खामियां निकालते नहीं चूकते हैं। मगर आरएसएस, और विश्व हिन्दू परिषद की राय ठीक इसके उलट है। विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने तो गोधन न्याय योजना की जमकर तारीफ की। यही नहीं, विहिप ने राम वनगमन पथ योजना को भी सराहा। अब जब संघ परिवार दोनों योजना के खुलकर समर्थन में आ गई है, तो भाजपा के लिए योजना विरोध करना मुश्किल हो गया है।
लडक़ी को प्रभावित करने लायक हैं?
सोशल मीडिया बड़े मजेदार होता है। अभी किसी ने एक दिल जलाने वाली एक बात लिख दी कि अगर परिवारों की तय की हुई शादियां न होतीं, तो अधिकतर दक्षिण एशियाई मर्द कुंवारे ही मर जाते। अब यह बात पूरे दक्षिण एशिया के बारे में तो नहीं मालूम, लेकिन हिन्दुस्तान के बारे में जरूर मालूम है कि यहां आधे से अधिक लोग कुंवारे रह गए होते, अगर परिवार उनके लिए रिश्ता नहीं ढूंढ पाया होता तो। इसकी एक वजह यह भी है कि हिन्दुस्तानी युवक आमतौर पर इतने बेतरतीब, गंदे, और महत्वाकांक्षाविहीन रहते हैं उनसे किसी लडक़ी के प्रभावित होने की गुंजाइश कम रहती है। ऐसे लोगों के भाव उनके मां-बाप की दौलत, उनके असर, पारिवारिक इतिहास के गौरवगान की वजह से तो थोड़़े से बढ़ जाते हैं, और खींचतान कर उनकी शादी हो जाती है। लेकिन पारिवारिक महत्व से परे अकेले नौजवानों को देखें, तो वे शादी के लिए प्रभावित करने लायक कम ही रहते हैं। (और अब तो 25 बरस की उम्र में रिटायर्ड अग्निवीर जवान के मुकाबले बूढ़े अधिक समझे जाएंगे, और किसी पेंशनविहीन रिटायर्ड से अपनी कुंवारी लडक़ी की शादी की बात सोचकर ही मां-बाप के हाथ-पांव ठंडे पड़ जाएंगे।) इसलिए हिन्दुस्तानी लडक़ों को यह सोचना चाहिए कि क्या वे अपने दम पर वैसी लडक़ी को प्रभावित करने के लायक हैं, जैसी लडक़ी का वे सपना देखते हैं? हो सकता है कि यह आत्मविश्लेषण कई लोगों को बेहतर बनाने मेें कारगर हो।
अब अपने से सीनियर को अनुशासन का पाठ
रायपुर जिला भाजपा का चिंतन शिविर चंपारण में शुरू हुआ। शिविर में कुल 15 सत्र होंगे, इसमें अलग-अलग विषयों पर आरएसएस, और भाजपा नेताओं का उद्बोधन होगा। वक्ताओं में एक नाम अवधेश जैन का भी है, जिसका नाम सुनते ही कई नेताओं की भौंहे टेढ़ी हो गई। वैसे तो अवधेश जैन दिवंगत भाजपा नेता जगदीश जैन के बेटे हैं, लेकिन जोगी सरकार में भाजयुमो से अलग होकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का जयस्तंभ चौक के पास पुतला फूंका गया था, तो उस समय के हुडदंगी युकांईयों की टोली में अवधेश जैन भी थे। बाद में सरकार आने के बाद अवधेश जैन भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद उन्हें संगठन में अहम दायित्व मिलता रहा। वो प्रशिक्षण विभाग के सह प्रभारी है। अब जब वो पार्टी के भीतर अपने से सीनियर नेताओं को अनुशासन-सेवा का पाठ पढ़ा रहे हैं, तो कईयों को नागवार गुजर रहा है।
वित्त के लोग जोड़तोड़ करते...
आमजनों से भेंट-मुलाकात के लिए निकले सीएम ने ताबड़तोड़ घोषणाएं की है। अब तक तो 76 आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल खोलने की घोषणा कर चुके हैं। अब इन घोषणाओं के क्रियान्वयन को लेकर वित्त विभाग के आला अफसर परेशान हैं। प्रदेश में वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं रह गई है कि इन घोषणाओं को तुरंत अमल में लाया जा सके। केंद्र सरकार से अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल रहा है। हाल यह है कि वित्तीय स्थिति अच्छी न होने के कारण 76 स्कूलों का चालू सत्र में खुल पाना मुश्किल है। फिर भी सीएम ने घोषणा की है, तो इसका पालन होना जरूरी है। संभावना है कि ज्यादातर घोषणाओं के लिए विधानसभा के प्रथम अनुपूरक में प्रावधान किया जाएगा। इन सबके लिए वित्त विभाग के लोग काफी जोड़तोड़ करते दिख रहे हैं।
जमीन से जुड़ा एक मुद्दा...
बीजेपी कैडर वाली पार्टी है। केंद्र से नेता आते हैं, बैठकें लेते हैं, मंत्र फूंकते और पाठ पढ़ाकर निकल जाते हैं। पर विपक्ष में होने की वजह से जिस तरह जनता से जुड़े मुद्दों को सडक़ पर निकलकर धारदार तरीके उठाना चाहिए, उसमें कुछ कमी दिखाई देती है।
केंद्र सरकार ने उचित मूल्य की दुकानों को कोविड काल से 5 किलो चावल मुहैया कराने की योजना चालू रखी है। यह राज्य सरकार की ओर से मिलने वाले 35 किलो राशन के अतिरिक्त है। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा आदि जिलों से लगातार यह खबर आ रही है कि अनेक राशन दुकान संचालक इस चावल का गबन कर रहे हैं। राशन दुकानों में छापा भी मारा जा रहा है और छापे की खबरों को अफसरों की तरफ से दबाया भी जा रहा है। इसका मतलब यही है कि लेनदेन करके खाद्य विभाग के निरीक्षक और दूसरे अधिकारी इन दुकान संचालकों को संरक्षण दे रहे हैं। किसी की दुकान में आप पहुंचे वहां आपको राशन की उपलब्ध मात्रा की नोटिस लगी नहीं मिलेगी। मूल्य सूची नहीं दिखाई देगी, कॉल सेंटर का नंबर भी प्रदर्शित किया गया नहीं पाएंगे और शिकायत निवारण अधिकारी का फोन नंबर भी गायब होगा। खाद्य अधिकारी ऐसी सभी दुकानों पर सख्ती के साथ कार्रवाई कर सकते हैं। दुकानों को निलंबित किया जा सकता है लेकिन सिर्फ नोटिस-नोटिस का खेल चल रहा है। जनता से जुड़ा यह एक बड़ा मुद्दा है। मोदी जी का राशन है, पर पता नहीं बीजेपी नेता इस घोटाले को लेकर क्यों खामोश हैं?
फ्लॉप शो !
मोदी सरकार के 8 साल पूरे होने के मौके पर इंडोर स्टेडियम में भाजपा का जलसा फीका रहा। पहले तो स्टेडियम को लबालब करने की रणनीति बनाई गई थी, लेकिन बामुश्किल 4-5 सौ कार्यकर्ता ही जुट पाए। मुख्य वक्ता के रूप में पहले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आने वाले थे, लेकिन दिल्ली में व्यस्तता के कारण उनका आना टल गया। बाद में केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह के मुख्य आतिथ्य में कार्यक्रम शुरू हुआ। रेणुका अपने भाषण में ज्यादातर समय मनमोहन सिंह सरकार को उलाहना देती रही। उनका भाषण इतना बोझिल था कि एक-एक कर कार्यकर्ता बाहर जाने लगे। कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं को चार्ज करने में पार्टी के कर्ता-धर्ता नाकाम रहे।
पेट्रोल-डीजल कमी जारी रहेगी
प्रदेश में पेट्रोल-डीजल की किल्लत हो रही है। पेट्रोलियम कंपनी पर्याप्त पेट्रोल डीजल की आपूर्ति नहीं कर पा रही है। पिछले दिनों सरगुजा के पेट्रोल पंप के संचालक खाद्य मंत्री अमरजीत भगत से इस पर चर्चा की। भगत ने खाद्य अफसरों को सरगुजा के पेट्रोल पंपों को पर्याप्त मात्रा में पेट्रोल-डीजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कह दिया। मंत्रीजी के निर्देश के बाद भी न सिर्फ प्रदेश बल्कि सरगुजा में भी पेट्रोल पंपों के आगे लंबी लाइन देखने को मिल रही है।
यही नहीं, एक भाजपा सांसद के भाई, जो कि पेट्रोल पंप डीलर एसोसिएशन के पदाधिकारी भी है। उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के आला अफसरों से चर्चा की। कंपनी के अफसरों ने उन्हें आपूर्ति बढ़ाने का कोई आश्वासन नहीं दिया, बल्कि उल्टे पंप खोलने के समय में कटौती करने का सुझाव दे दिया। उन्होंने कह दिया कि पेट्रोल-डीजल की कमी बरकरार रहेगी।
जितना बड़ा बंगला, उतना बड़ा रैम्प
शहरों के संपन्न इलाकों में बड़े-बड़े मकानों के गेट पर गाडिय़ों को भीतर रखने के लिए लंबे-लंबे रैम्प बनाए जाते हैं जिनसे आधी सडक़ घिर जाती है। लोग अपने घर को ऊंचा कर लेते हैं, और रैम्प की लंबाई के लिए सडक़ का इस्तेमाल करते हैं। सडक़ की उतनी जगह आवाजाही के लिए बंद, पार्किंग के लिए बंद, और इसके बाद भी लोग अपनी गाडिय़ां अपने अहाते के बाहर सडक़ पर ही खड़ी करते हैं। इस बात पर केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कल ही अफसोस जाहिर किया है कि लोग गाडिय़ां खरीद लेते हैं, और उन्हें खड़ी करने की जगह का उनका कोई इंतजाम नहीं होता। उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि नागपुर में उनका रसोईया भी दो सेकेंडहैंड गाडिय़ां रखता है, और इस तरह चार लोगों के परिवार में छह वाहन हो गए हैं। ऐसे में लोग सडक़ों पर ही गाडिय़ां खड़ी करते हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जितनी बड़ी कॉलोनी, जितना बड़ा बंगला, उतना ही लंबा रैम्प। अब अगर बुलडोजर कहीं चलना चाहिए, तो ऐसी जगहों पर ही चलना चाहिए, और जिन्हें रैम्प बनाना है, वे अपने घर के भीतर बनाएं। ऐसा न होने पर म्युनिसिपल को चाहिए कि उस इलाके के रजिस्ट्री रेट के अनुपात में जुर्माना ऐसे घर मालिकों पर लगाया जाए।
बिल्डिंग की गरिमा बनाए रखें..
यह खूबसूरत भवन कोई राजमहल नहीं है। जशपुर के स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूल की तस्वीर है। जिस तरह इस भवन को संवारने में मेहनत की गई है, उसी तरह यदि यहां पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों को भी तराश दें तो फिर क्या बात है...।
तेंदूपत्ता से सॉलिड कमाई...
बस्तर से जो खबर निकल कर आई है वह इस धारणा को बदलने के लिए काफी है केवल जंगल को उजाड़ करके, खदान शुरू करके रोजगार पैदा किया जा सकता है। बस्तर के आदिवासियों ने इस बार 86 करोड़ रुपए का तेंदूपत्ता बेचा है, जो पिछले साल से 16 करोड़ रुपये अधिक है। दिलचस्प है कि तेंदूपत्ता की खपत अपने छत्तीसगढ़ में कम होती है। इसका निर्यात पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और अफगानिस्तान में होता है। यहां बीड़ी पीने वाले जरूर घट गए हैं लेकिन दूसरे देशों में इसकी मांग न सिर्फ बनी हुई है बल्कि बढ़ती जा रही है। सरकार ने इस बार मानक बोरा के पीछे कीमत भी बढ़ाकर 4 हजार रुपये दी है, जिसकी वजह से भी बड़े उत्साह के साथ लोगों ने तेंदूपत्ता संग्रहण में अधिक रुचि दिखाई है। यह साधारण सा जवाब है कि जंगलों में रहने वाले लोग अपने यहां कार्पोरेट को आने से रोकने के लिए जान की बाजी क्यों लगा देते हैं।
असली और बड़े गैरकानूनी !
उत्तरप्रदेश में किसी पर भी उपद्रवी होने का आरोप लगाकर उसका मकान गिराना अब राज्यधर्म हो गया है, अगर यह आरोप किसी मुस्लिम पर लगाया जा रहा है। ऐसे में टाईम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से सरकारी आंकड़ों को लेकर आई है जिनमें प्रदेश भर के शहरों में 8320 इमारतों का सर्वे किया गया है, और यह पाया गया है कि 35 फीसदी इमारतें गैरकानूनी हैं। यह सर्वे जनवरी में शुरू हुआ था, और सरकार के स्तर पर ही किया गया है। अब एक तिहाई से अधिक इमारतों को गिराना तो गुजरात सरकार के लिए आसान नहीं होगा, इसलिए सरकार एक अध्यादेश लाने की सोच रही है ताकि गैरकानूनी को कानूनी बनाया जा सके। अब पता नहीं भाजपा के इस गढ़ गुजरात के ऐसे फैसले से बाकी प्रदेशों के साम्प्रदायिक-बुलडोजर थमेंगे या नहीं?
क्या प्लेन भी डबल डेकर...
लोगों ने हिन्दुस्तानी, और दूसरे देशों की रेलगाडिय़ों में डबल डेकर डिब्बे देखे हैं जिनमें मुम्बई में चलने वाली लाल डबल डेकर बसों की तरह दो तल्ले होते हैं, और दोगुने मुसाफिर बैठ जाते हैं। अब किसी ने हवाई जहाज में मुसाफिरों की गिनती बढ़ाने के लिए इसी किस्म की एक डिजाइन पेश की है जिसे अगर लागू किया गया तो भाड़ा शायद कुछ कम हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि ऊपर की सीट पर बैठे हुए लोगों का पेट गड़बड़ होगा, तो नीचे की सीट पर बैठे लोगों का क्या हाल होगा।
अग्निपथ... अग्निपथ
सेना में युवाओं की 4 साल के लिए अनुबंध भर्ती का फैसला केंद्र की मोदी सरकार ने लिया है। चुनाव आ रहे हैं और बेरोजगारी का संकट विकराल है। अब जो युवा 4 साल बाद फिर से रोजगार ढूंढ लेंगे वे क्या करेंगे, इसके लिए कोई रोड मैप नहीं है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने ऐसे युवाओं को फोर्स की भर्ती में प्राथमिकता देने की बात कही है लेकिन गारंटी नहीं है कि सबको मौका मिल जाए। हां वे हथियार चलाना जरूर सीख जाएंगे और जब लौटेंगे तो उनकी दूसरी सरकारी नौकरियों में आवेदन करने के लिए सीमा घट चुकी रहेगी। हथियार चलाने के मिले प्रशिक्षण का युवा बेरोजगार हो जाने के बाद कैसा इस्तेमाल करेंगे इसके बारे में हम-आपको जरूर सोचना चाहिए।
छत्तीसगढ़ को लेकर के ज्यादा दिक्कत नहीं है। जमीनी हकीकत चाहे जो भी हो लेकिन अभी जो सरकारी डेटा आया है उसमें यहां की बेरोजगारी दर को सबसे कम पाया गया है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश की तरह सेना में भर्ती के लिए रुचि भी छत्तीसगढ़ के युवाओं में नहीं दिखाई देती है। जिस तरह से विकलांगों को दिव्यांग कह देने से उनकी दशा नहीं सुधरी है उसी तरह से इन युवाओं को अग्निवीर कह देने से हालत बदलने वाली नहीं है।
कर्मचारी संघ के बाद अब चुनावी पारी !
तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार झा 38 साल की सेवा के बाद 30 जून को रिटायर हो रहे हैं। झा किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वो रायपुर कलेक्टोरेट का जाना पहचाना चेहरा है। उनकी अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ में कर्मचारी आंदोलन में भागीदारी रही है, और अब रिटायरमेंट के बाद सक्रिय राजनीति में उतर रहे हैं।
विजय झा कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं। सुनते हैं कि वे आम आदमी पार्टी से अपनी दूसरी पारी की शुरूआत करने जा रहे हैं। पुरानी बस्ती इलाके के बाशिंदे विजय झा की नजर रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट पर है। इससे परे आम आदमी पार्टी की पैठ धीरे-धीरे बढ़ रही है। ऐसे में विजय झा के रूप में पार्टी को मजबूत चेहरा मिल सकता है।
कई लोग मानते हैं कि यदि विजय झा चुनाव मैदान में उतरते हैं, तो रायपुर दक्षिण के विधायक बृजमोहन अग्रवाल के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती है। क्योंकि पुरानी बस्ती, और आसपास के इलाके से बृजमोहन को सर्वाधिक बढ़त मिलती रही है। इस इलाके में विजय झा की भी अच्छी खासी पैठ है। यह देखना है कि विजय झा दूसरी पारी की शुरूआत कैसे करते हैं, क्योंकि चुनावी राजनीति आसान नहीं होती है।
भाजपा में भी धूल झड़ाना शुरू
भाजपा संगठन में बदलाव की शुरूआत बलरामपुर जिले से हो गई है। यहां पूर्व राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम के करीबी गोपाल प्रसाद मिश्रा को हटाकर पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष ओम प्रकाश जायसवाल को अध्यक्ष बनाया गया है। मिश्रा की हटने की चर्चा के बाद नेताम ने विकल्प के तौर पर कुछ नाम सुझाए भी थे, लेकिन प्रदेश नेतृत्व ने उन नामों को अनदेखा कर दिया।
बताते हैं कि आधा दर्जन जिला अध्यक्ष और बदले जा सकते हैं। इनमें सरगुजा और बस्तर संभाग के चार जिला अध्यक्ष शामिल हैं। कहा जा रहा है कि मैदानी इलाकों में भी एक-दो जगह पर संगठन की गतिविधियां सही ढंग से नहीं चल रही है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी पार्टी हाईकमान को इससे अवगत करा चुकी हैं। अब जल्द ही बाकी जिलों में भी अध्यक्ष की नियुक्तियां की जाएंगी। यह फार्मूला तय किया जा रहा है कि विधानसभा टिकट के लिए जिला अध्यक्ष के नाम पर विचार नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो श्रीचंद सुंदरानी समेत कई जिला अध्यक्ष खुद ही पद छोड़ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बेरोजगार भाई आपको मौका मिलेगा, सब्र कर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनेक सरकारी विभागों और मंत्रालयों में खाली 10 लाख पदों को आने वाले 18 महीने के भीतर भरने का निर्देश दिया है। तब तक ये चुनाव मैदान में उतरने का वक्त होगा। हिसाब लगाएं कि कौन सी परीक्षा ऐसी है जिसमें डेढ़ साल के भीतर भर्ती हो जाती है। शायद कोई नहीं। केंद्र सरकार की अनेक वैकेंसी है जिसमें 3-3 साल से लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। दूसरी बात यह है कि सन 2014 से लेकर अब तक करीब 87 लाख सरकारी पद रिटायर या इस्तीफा देने की वजह से खाली हो चुके हैं। बेरोजगारी का जो आंकड़ा रोजगार पंजीयन दफ्तर में दर्ज है उसके अनुसार दो करोड़ 20 लाख लोग कतार में हैं। तो बस इंतजार करिए हो सकता है, आपके बाल बच्चों का सपना पूरा हो जाए।
राष्ट्रपति चुनाव से पहले
मध्यप्रदेश में 3 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। उनमें एक बहुजन समाज पार्टी से हैं, एक समाजवादी पार्टी से और एक निर्दलीय। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर दो बहुजन समाज पार्टी के विधायक हैं और 3 जनता कांग्रेस जोगी के। यह देखना दिलचस्प होगा राष्ट्रपति चुनाव में ये किनको वोट करते हैं।
अफसरों का चुप्पी का हुनर
आला अफसर सच को छुपाने की ऐसी खूबी विकसित कर लेते हैं कि दस मिनट बोलने के बाद भी दस सवालों के जवाब में भी सच को बचा ले जाते हैं। अभी उत्तरप्रदेश के फतेहपुर में वहां की महिला कलेक्टर की गाय बीमार हुई, तो मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने सात पशु चिकित्सकों की ड्यूटी लगाई कि वे सुबह-शाम जाकर अलग-अलग दिन उस गाय को देखेंगे। आदेश में यह भी लिखा गया कि किसी डॉक्टर के न होने पर उस दिन की विजिट कौन सा डॉक्टर करेगा। यह चेतावनी भी दी गई कि इस काम में शिथिलता अक्षम्य है।
अब जब यह आदेश फैला और कलेक्टर की जमकर बदनामी होने लगी, तो उसने मीडिया के कैमरों के सामने इन पशु चिकित्सकों के खिलाफ ही लंबी-चौड़ी बातें कहीं, और अनुशासनहीनता का जिक्र करते हुए इस सवाल को आखिर तक टाला कि उन्होंने गाय पाली है या नहीं। जबकि किसी अफसर के सफाई देने का पहला तर्क यही होना चाहिए था कि उन्होंने गाय पाली ही नहीं है। लेकिन इस सीधे सवाल पर आड़े-तिरछे जवाब देते हुए आखिर तक उन्होंने इस बात पर जवाब देने से कन्नी काटी, तो बस काटती ही चली गई। ऐसी ही नौबत के लिए किसी ने एक वक्त लिखा था- तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा?
अब अगर सरकारी काफिला लुटने की बात इतनी आसानी से मान लेनी होती, तो फिर वे बड़े अफसर ही क्यों बनते? छत्तीसगढ़ के बस्तर में अफसर सरकारी रोजगार योजना से अपने बंगले में स्वीमिंग पूल बनवा लेते हैं, और उन्हें उस पर कोई जवाब भी नहीं देना पड़ता। अफसरशाही लाजवाब रहती है, क्योंकि नेता तो कुछ-कुछ बरस में आते-जाते रहते हैं, अफसर कायम रहते हैं।
सत्ता नहीं, तो चंदा नहीं !
पंद्रह साल सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा संगठन के नेता रोजमर्रा के खर्चों के लिए रोना रो रहे हैं। जिलों में अपेक्षाकृत सहयोग राशि नहीं मिलने से धरना-प्रदर्शन समेत अन्य कार्यक्रम व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पा रहे हैं। और जब अंबिकापुर में कुछ नेताओं ने नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को दिक्कतें सुनाई, तो कौशिक ने उन्हें झिडक़ दिया।
हुआ यूं कि कौशिक पिछले दिनों अंबिकापुर दौरे पर गए थे। वहां नगर अध्यक्ष, और महामंत्री ने उन्हें बताया कि आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाने के कारण कार्यालय में भी किसी के ठहरने आदि का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं। यह सुनते ही कौशिक का पारा चढ़ गया। उन्होंने पदाधिकारियों से कह दिया कि यदि वो सक्षम नहीं हैं, तो पद छोड़ दें। कई सक्षम लोग पद के लिए लाइन में हैं।
कौशिक यही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ काफी मुद्दे हैं, लेकिन जिलों के लोग मुंह नहीं खोल रहे हैं, ऐसा नहीं चलेगा। कौशिक ने आगे कहा कि पद संभाल रहे हैं, तो संसाधन भी जुटाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वो अगली बार आएंगे, तो पार्टी दफ्तर में रूकेंगे, और कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।
मुख्यमंत्री भूपेश के तेवर
भूपेश बघेल राज्य के दूसरे सीएम हैं, जिन्हें दिल्ली में हिरासत में लिया गया। इससे पहले राज्य के पहले सीएम अजीत जोगी को धान खरीदी से जुड़ी समस्या के निराकरण की मांग को लेकर अपने मंत्रियों के साथ पीएम आवास के सामने धरने पर बैठ गए थे। तब पुलिस ने उन्हें मंत्रियों के साथ हिरासत में लिया था।
जोगी के बाद 15 साल सीएम रहे रमन सिंह को कभी किसी विषय पर धरना-प्रदर्शन की जरूरत नहीं पड़ी। उनका सारा काम आसानी से हो जाता था। वैसे भी रमन सिंह पद में न होने के बावजूद धरना-प्रदर्शन में कम ही जाते हैं। भूपेश बघेल को हिरासत में लिए जाने का मामला थोड़ा अलग है। कांग्रेस के सर्वे सर्वा गांधी परिवार ईडी की जांच के घेरे में हैं। ऐसे में पूरी कांग्रेस का सडक़ पर उतरना स्वाभाविक है। ऐसे में भूपेश बघेल को पुलिस हिरासत में जाना पड़ा। आज वे देश में कांग्रेस के सबसे तेज-तर्रार नेता की हैसियत से स्थापित हो चुके हैं।
जीने में छत्तीसगढ़ पीछे
अब हम छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और पर्यावरण पर कितना फख्र करें, इस पर विचार करना चाहिए। हाल में जारी नमूना पंजीकरण प्रणाली का डेटा बताता है कि छत्तीसगढ़ के लोगों की औसत आयु पूरे देश में सबसे कम 66.9 वर्ष है। सबसे बेहतर स्थिति दिल्ली की है, जहां औसत आयु 75.9 वर्ष है। दिल्ली की गिनती देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहर के रूप में होती है। गाडिय़ों से निकलने वाले धुएं की बात हो या पराली जलाने की। यहां का प्रदूषण नेशनल न्यूज होता है। इस डेटा में यह नहीं बताया गया है कि औसत आयु किसी प्रदेश की कम या ज्यादा क्यों है। पर सामान्य धारणा तो है ही कि पर्यावरण बिगडऩे का असर जीवन प्रत्याशा पर होता है।
मीठा मीठा गप..
जब जब पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ते हैं, तेल कंपनियां डीलरों को जबरन माल भेजती हैं, पर जब दाम गिरते हैं तो सप्लाई में बाधा खड़ी की जाती है। पिछले महीने केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी घटाई तो पेट्रोल डीजल दोनों के दाम गिर गए, जबकि कंपनियों ने ज्यादा दास देकर इसे डीलर्स को सप्लाई के लिए खरीदा था। अब डीलर्स से एडवांस रकम जमा करा लेने के बाद भी सप्लाई नहीं की जा रही है। स्थिति यह है कि राज्य के 350 से अधिक पेट्रोल पंपों में सप्लाई नहीं हो रही है। इसी डीजल पेट्रोल से कंपनियां मुनाफा कमाते आई हैं, इसलिए यदि कुछ दिनों का घाटा भी रहा हो तो उसे वहां कर लेना चाहिए। इस समय तो उसकी भूमिका केंद्र के किसी उपक्रम की नहीं, एक व्यापारी की तरह दिख रही है।
शराब को लेकर नसीहत
यह तस्वीर छत्तीसगढ़ की नहीं, देवभूमि उत्तराखंड की है। कितनी समझदारी के साथ आपको शराब से होने वाले नुकसान के बारे में सतर्क किया गया है।