राष्ट्रीय
जयपुर, 5 जनवरी| राजस्थान में बर्ड फ्लू के प्रकोप की पुष्टि होने के बाद राज्य के छह जिलों में 140 और पक्षियों की मौत हो गई है। राज्य के एक अधिकारी ने ये जानकारी दी। इनमें से सवाई माधोपुर में 35, बीकानेर में 53, झालावाड़ में 22, बारा में 17, पाली में 9 और बांसवाड़ा में 7 कौवों की मौत शामिल है।
पिछले एक हफ्ते में, राजस्थान में कुल 522 पक्षियों की मौत हुई है, जिनमें से 471 कौवे थे, और बाकी बगुला और बया वीभर शामिल हैं।
सोमवार को एवियन इन्फ्लूएंजा के परीक्षण के लिए लगभग 13 नमूने भोपाल भेजे गए थे। फिलहाल एच5एन1 वायरस हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में पक्षियों में पता चला है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह वायरस कोविड-19 महामारी के बीच और घातक हो सकता है।
वन्यजीव वार्डन के चीफ वाइल्डलाइफ मोहनलाल मीणा ने आईएएनएस से कहा, हम संक्रमण की जांच के लिए तत्काल कार्रवाई करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। हमारी टीमें बिना किसी देरी के ऐसे सभी मामलों को ट्रैक कर रही हैं और उन्हें विशेष सावधानी से निपट रही हैं।
उन्होंने कहा, यह रणनीति सभी जिलों में लागू की जा रही है। हमने पशु चिकित्सा विभाग, जिला प्रशासन और वन विभाग की संयुक्त टीमों का गठन किया है और संक्रमण को रोकने के लिए हम सभी मिलकर काम कर रहे हैं।
उधर मध्य प्रदेश में भी बर्ड फ्लू का संकट गहराने लगा है। इसी के चलते सरकार ने पूरे राज्य में अलर्ट जारी किया है। राज्य के कई हिस्सों में बीते 10 दिनों में बड़ी संख्या में कौओं की मौत हुई है। इंदौर में 142, मंदसौर में 100, आगर-मालवा में 112, खरगोन जिले में 13, सीहोर में नौ कौओं की मृत्यु हुई है। (आईएएनएस)
विवेक त्रिपाठी
लखनऊ , 5 जनवरी | उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की हलचल तेज होते ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पूरी गंभीरता के साथ मैदान में डट गयी है। विधानसभा आम चुनाव का सेमीफाइनल माने जाने वाले इन चुनावों में सत्ताधारी दल भाजपा पूरे दमखम से कील कांटे दुरूस्त करने में जुटी है।
भाजपा के प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह लगातार यूपी में अपना डेरा जमाए हुए हैं। वह पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रहे हैं। हालांकि यह चुनाव सिंबल पर लड़ा जाना है या नहीं अभी तय नहीं हो सका है। लेकिन फिर भी भाजपा की तैयारी अपने प्रतिद्वंदी दलों से कहीं ज्यादा चल रही है। राधामोहन जानते हैं कि अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले होने जा रहे पंचायत चुनाव में भाजपा का ग्राफ अच्छा रहा तो 2022 के चुनाव में आसानी होगी।
पार्टी प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह कहते हैं कि पार्टी के लिए पंचायत चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योकि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद ग्राम पंचायत हो या शहरी निकाय, सभी का बजट बढ़ाया गया है, ताकि लोगों को बेहतर सुविधाए मिले और गांवों का भी विकास हो। उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव में योग्य व कुशल नेतृत्व जीतकर आये इसके लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को निचले स्तर तक योजनापूर्वक कार्य करना चाहिए।
प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने प्रभारियों के साथ पंचायत चुनाव व आगामी कार्यक्रमों की तैयारी के लिए योजना तैयार की है। इसके साथ ही पंचायत चुनाव के लिए छह प्रभारियों को नियुक्त किया गया है। आगामी सात से 17 जनवरी तक जिलेवार समन्वय बैठकें होंगी जिसमें वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहेंगे। स्वामी विवेकानंद जयंती पर जिला स्तर पर कार्यक्रम की जिम्मेदारी युवा मोर्चा को सौंपी गई।
प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने भी कार्यकर्ताओं से पंचायत चुनाव में मजबूती के साथ डटने के लिए कहा है। प्रदेश अध्यक्ष और महामंत्री भी इसी चुनाव को देखते हुए कार्यकर्ताओं को बूस्टअप करने के लिए जिले-जिले जा रहे है। उनका जोर है कि कार्यकर्ता जनकल्याणकारी योजनाओं का संवाहक बनकर जनता के दरबार में पहुंचे।
प्रदेश के मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित कहते हैं भाजपा हर चुनाव को गंभीरता से लेती है। पंचायत चुनाव की भी पार्टी की ओर से पूरी तैयारी हो चुकी है। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और महामंत्री संगठन सुनील बसंल लगातार इसे मामले में बैंठके कर रहे हैं। मोदी और योगी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को घर-घर पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं को कहा गया है। (आईएएनएस)
आगरा, 5 जनवरी| 3 विश्व धरोहर स्मारकों वाला ताज शहर जल्द ही प्रमुख भारतीय शहरों से हवाई यात्राओं के जरिए जुड़ सकता है। खेरिया हवाई अड्डे के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि कुछ एयरलाइंस ने उड़ानें शुरू करने की अनुमति मांगी थी। ताज शहर के पर्यटन हलकों ने आगरा को गोवा, मुंबई, लखनऊ और भोपाल से जोड़ने की इस नई पहल का स्वागत किया है।
एयर इंडिया पहले से ही गोवा के लिए उड़ान शुरू करने की लाइन में है। एक अधिकारी ने कहा कि शुरूआत में हफ्ते में केवल एक फ्लाइट रहेगी लेकिन पर्यटकों के बढ़ने पर फ्लाइट्स की संख्या बढ़ाई जा सकती है।
वहीं जूम एयरवेज लखनऊ, भोपाल के लिए भी उड़ान शुरू कर सकता है। हालांकि अच्छा रिस्पांस न मिलने के कारण पिछले साल जयपुर जाने वाली फ्लाइट को रद्द करना पड़ा था।
खेरिया हवाई अड्डे को कंट्रोल करने वाली वायु सेना से इन उड़ानों को शुरू करने के लिए अनुमति लेनी होगी। केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने सुरक्षा संबंधी औपचारिकताओं को देखते हुए एक अलग रोड और नई टर्मिनल बिल्डिंग देने की योजना बनाई है। नए परिसर की बाउंड्री बनकर लगभग तैयार है।
पर्यटन इंडस्ट्री के लीडर सुरेंद्र शर्मा ने कहा, "कोविड-19 महामारी के कारण गति रुक गई थी, लेकिन अब यह स्थिति सामान्य हो रही है। आगंतुकों की संख्या बढ़ रही है, इससे काम में तेजी आ सकती है।"
बता दें कि हर साल आगरा में 70 से 80 लाख पर्यटक आते हैं। इनमें बड़ा प्रतिशत विदेशी पर्यटकों का है। इस शहर में 3 विश्वप्रसिद्ध स्मारकों और आधा दर्जन अन्य आकर्षक स्थल हैं, जिनके कारण आगरा भारत का प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां एक दर्जन से ज्यादा 5 स्टार होटल और सैकड़ों छोटे-बड़े होटल हैं। (आईएएनएस)
इंफाल. मणिपुर सरकार ने रेप और मर्डर केस में आरोप मुक्त हुए एक शख्स को सरकारी नौकरी का ऑफर दिया है. जानकारी के मुताबिक, शख्स को साल 2013 में रिसर्च स्टूडेंट के रेप और हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था. घटना के बाद आक्रोशित भीड़ ने उसका घर भी जला दिया था. न्यायिक प्रक्रिया में देरी के कारण शख्स को 8 साल जेल में गुजारने पड़े थे. हालांकि, सोमवार को कोर्ट ने उसे निर्दोष करार दिया.
कोर्ट का फैसला आने के बाद मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने कहा, 'उसे सरकारी नौकरी दी जाएगी. मुझे मालूम चला कि निर्दोष होने के बाद भी उसे 8 साल सलाखों के पीछे काटने पड़े. न्यायिक प्रक्रिया में देरी के कारण उसकी जिंदगी के कीमती 8 साल बर्बाद हो गए. इतने वक्त में वो कुछ अच्छा कर सकता था और अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा सकता था. मुझे ये भी पता चला कि उस घटना के बाद भीड़ ने उस शख्स का घर तक जला दिया था.'
सीएम बिरेन सिंह ने न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में कहा, 'मुझे उम्मीद है कि हमारे इस ऑफर को वो स्वीकार करेगा और अपनी आगे की जिंदगी अच्छे तरीके से बीता पाएगा.'
दरअसल, तौदम जिबल सिंह को रिम्स की पैथोलॉजी डिपार्टमेंट की एक जूनियर रिसर्च स्कॉलर के रेप और हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. 5 अप्रैल 2013 को लड़की की लाश वांगलखेई लोकुल कनाल में मिली थी. घटना के दो दिन पहले से लड़की लापता बताई जा रही थी.
इंफाल ईस्ट सेशन कोर्ट के जज एम. मनोज कुमार ने तौदम जिबल सिंह को सभी आरोपों से मुक्त करते हुए निर्दोष करार दिया है. सीएम बिरेन सिंह ने सोमवार को सेशन कोर्ट से आरोपमुक्त हुए तौदम जिबल सिंह से मुलाकात की.
सीएम ने जिबल को सरकारी नौकरी देने के साथ ही परिवार के लिए नया घर बनवाने का भी वादा किया है. जिबल को वन विभाग में नौकरी दी जाएगी, क्योंकि उसके पिता भी इसी विभाग में कार्यरत रह चुके हैं. (ANI इनपुट के साथ)
नई दिल्ली, 5 जनवरी। देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसानों का आंदोलन मंगलवार को 41वें दिन जारी है। किसानों के प्रतिनिधियों और सरकार के साथ हुई मंत्री स्तर की वार्ता सोमवार को बेनतीजा रही। किसान संगठनों के प्रतिनिधि केंद्र सरकार द्वारा लागू 3 नए कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े रहे, जबकि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कानूनों में संशोधन की बात उन्हें समझाते रहे। सरकार की तरफ से किसानों की दूसरी मांग पर भी बात करने का आग्रह किया गया, मगर किसान यूनियन के नेता नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े रहे। पंजाब के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह लाखोवाल ने बताया की सरकार जानबूझकर बातचीत को लंबा खींच रही है। उन्होंने कहा किसान प्रतिनिधियों की मंगलवार को सिंघु बॉर्डर पर बैठक होगी जिसमें आंदोलन तेज करने को लेकर आगे की रूपरेखा पर विचार-विमर्श होगा।
किसानों के आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर मंगलवार को फिर सुनवाई है जिस पर सबकी निगाहें रहेंगी। लाखोवाल ने बताया कि किसानों की तरफ से वकील कोर्ट में पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि सोमवार की वार्ता में सरकार का रवैया बातचीत को और लंबा खींचने का था। उन्होंने कहा कि बैठक का समय 2.00 बजे से था, लेकिन बैठक 2.40 बजे शुरू हुई। बातचीत तीनों कृषि कानूनों को लेकर चल रही थी। सरकार की तरफ से कानून की खामियों को निकालने और संशोधन करने की बात की जा रही थी, जबकि किसान प्रतिनिधियों ने कानून को रद्द करने की मांग की। इस बात पर तल्खी होने पर लंच ब्रेक हो गया।
लाखोवाल ने कहा कि लंच ब्रेक के बाद दोबारा जब बैठक शुरू हुई तो एमएससी के मसले पर बातचीत करने की बात करने को कहा गया, मगर हमने कहा कि पहले तीनों कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पर बात करें। फिर कॉन्ट्रैक्ट फामिर्ंग पर बात होने लगी और मंत्री उसके फायदे गिनाने लगे। लेकिन हमने तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग की, जिस पर मंत्रियों ने कहा कि उन्हें इस पर और लोगों से विचार विमर्श करना होगा। इसलिए कुछ समय चाहिए। हम लोगों ने कहा कि ठीक है, आप समय ले लीजिए, लेकिन लेकिन तीनों कानूनों को वापस लेने पर अगली बैठक में बातचीत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन तय कार्यक्रमों के अनुसार जारी रहेगा, लेकिन मंगलवार को 11.00 बजे पंजाब के किसान समूह संगठनों के बीच पहले वार्ता होगी। उसके बाद 2.00 बजे संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले देशभर के किसान संगठनों की बैठक होगी।
इन बैठकों में लिए जाने वाले फैसले के संबंध में शाम में एक प्रेस वार्ता भी की जाएगी। हरेंद्र सिंह लाखोवाल ने बताया कि जब तक सरकार उनकी दो प्रमुख मांगे नहीं मान लेती है तब तक किसानों का आंदोलन जारी रहेगा। (आईएएनएस)
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नई दिल्ली, 5 जनवरी| भारत में पिछले 24 घंटों में कोरोनावायरस के 16,375 नए मामले सामने आए, जिसके बाद कुल मामलों की संख्या बढ़ कर 1,03,56,845 हो गई। इसी दौरान देश में वायरस की वजह से 201 मरीजों की मौत हुई, जिसके बाद मरने वालों का कुल आंकड़ा 1,49,850 हो गया। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय ने मंगलवार को ये जानकारी दी। भारत में पिछले चार दिनों से कोरोनावायरस के मामले 20 हजार से कम दर्ज हो रहे हैं।
अभी तक इस बीमारी से 99,75,958 मरीज उबर चुके हैं। फिलहाल संक्रमित मरीजों की संख्या 2,31,036 है। देश में रिकवरी रेट 96.32 फीसदी है, जबकि मृत्यु दर 1.45 प्रतिशत है।
देश में सोमवार को 8,96,236 नमूनों की जांच की गई, जिसके बाद कुल नमूनों की जांच की संख्या बढ़ कर 17,65,31,997 हो गई।
महाराष्ट्र अब तक का सबसे प्रभावित राज्य बना हुआ है। दैनिक नए मामलों में से 84 प्रतिशत 10 राज्यों - केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से सामने आ रहे हैं।
दो टीकों की मंजूरी के बाद, देश में जल्द ही बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान शुरू किया जाने वाला है।
केंद्र सरकार ने पहले चरण में लगभग 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने की योजना बनाई है। जिसमें एक करोड़ हेल्थकेयर वर्करों के साथ, 2 करोड़ फ्रंटलाइन और आवश्यक वर्कर्स और 27 करोड़ बुजुर्गों को शामिल किया गया है। (आईएएनएस)
लखनऊ, 5 जनवरी| समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर निशाना साधा और कहा कि भाजपा सरकार की सबसे बड़ी समस्या ये है कि वो अपने को जन-प्रतिनिधि नहीं 'धन-प्रतिनिधि' समझती है। अखिेलश यादव ने मंगलवार को ट्वीट के माध्यम से लिखा कि, भाजपा सरकार की सबसे बड़ी समस्या ये है कि वो अपने को जन-प्रतिनिधि नहीं 'धन-प्रतिनिधि' समझती है, इसीलिए धनवानों के लिए किसानों को दांव पर लगा रही है। भाजपा भूल रही है कि वो जिन्हें नुकसान पहुंचा रही है, वे संकट से संघर्ष करनेवाले देश के वो दो-तिहाई लोग हैं, जो कभी हार नहीं मानते।
इससे पहले उन्होंने लिखा कि, भाजपा सरकार ने किसानों को फिर निर्थक वार्ता करके अगली तारीख दे दी। हर बार आधा दिन गुजार कर 2 बजे बैठक करने से ही लगता है कि भाजपा सरकार आधे मन से आधे समय काम करके, इस आंदोलन को लम्बा खींचना चाहती है, जिससे किसानों का हौसला टूटे, पर किसान टूटनेवाले नहीं, सत्ता का दंभ तोड़नेवाले हैं। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 5 जनवरी| मौसम विभाग के पूवार्नुमान के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में मंगलवार को बारिश और बर्फबारी हुई। लेकिन मौसम विभाग ने कहा है कि दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में बुधवार से मौसम में सुधार होगा। घने बादलों के कारण दोनों प्रदेशों में न्यूनतम तापमान में काफी वृद्धि हुई है। स्थानीय मौसम विभाग के एक अधिकारी ने कहा, "अगले 24 घंटों (बुधवार तक) के दौरान घाटी में भारी से बहुत भारी बर्फबारी होने की संभावना है। इसके बाद कल से मौसम में सुधार होगा।"
श्रीनगर में दिन का न्यूनतम तापमान माइनस 0.8 डिग्री सेल्सियस रहा। वहीं पहलगाम में माइनस 1.1 और और गुलमर्ग में माइनस 4 डिग्री दर्ज किया गया।
लद्दाख के लेह में माइनस 10.3, द्रास में दिन के माइनस 18 तापमान रहा।
जम्मू शहर का न्यूनतम तापमान 11.9, कटरा का 10.2, बटोटे का 0.4 डिग्री, बेनिहाल का शून्य और भद्रवाह का न्यूनतम तापमान माइनस 0.2 दर्ज किया गया।
40 दिनों की भीषण ठंड 'चिल्लई कलां' की अवधि 31 जनवरी को खत्म होगी। लेकिन तब तक सुबह के समय सड़कों पर रहने वाली फिसलन के कारण लोगों को घरों से निकलने में होने वाली मुश्किल जारी रहेगी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 5 जनवरी| देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसानों का आंदोलन मंगलवार को 41वें दिन जारी है। किसानों के प्रतिनिधियों और सरकार के साथ हुई मंत्री स्तर की वार्ता सोमवार को बेनतीजा रहने के बाद आज (मंगलवार) को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में आंदोलन के आगे की रणनीति तय होगी। पंजाब के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह लाखोवाल ने आईएएनएस से कहा कि सरकार जानबूझकर बातचीत को लंबा खींच रही है। सरकार के साथ किसान नेताओं की सातवें दौर की वार्ता सोमवार को बेनतीजा रहने के बाद अगली बैठक की तारीख आठ जनवरी को तय की गई है।
मगर, किसान नेताओं ने पहले ही एलान किया था कि चार जनवरी की वार्ता विफल होने पर वे छह जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। किसान संगठनों की ओर से आंदोलन तेज करने की बावत और भी कार्यक्रमों का एलान किया गया था। हालांकि अब अगले दौर की वार्ता आठ जनवरी को तय हुई है ऐसे में किसान संगठनों के नेता तय कार्यक्रमों के समेत आगे की रणनीति पर मंगलवार को सिंघु बॉर्डर पर होने वाली बैठक में चर्चा करेंगे।
हरिंदर सिंह ने बताया कि दोपहर दो बजे संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक से पहले वह पंजाब के संगठनों की बैठक कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि किसान संगठनों की इस बैठक में आंदोलन तेज करने को लेकर आगे की रूपरेखा पर विचार-विमर्श होगा।
उन्होंने कहा कि सोमवार की वार्ता में सरकार का रवैया बातचीत को और लंबा खींचने का था। हरिंदर सिंह ने बताया कि सरकार के साथ बैठक 2.00 बजे से शुरू होने वाली थी, लेकिन, मंत्री खुद ही समय पर नहीं पंहुंचे जिससे बैठक करीब 40 मिनट विलंब से शुरू हुई। बातचीत तीनों कृषि कानूनों को लेकर चल रही थी। सरकार की तरफ से कानून की खामियों को निकालने और संशोधन करने की बात कही जा रही थी, जबकि किसान प्रतिनिधियों ने कानून को रद्द करने की मांग की। इस बात पर तल्खी होने पर लंच ब्रेक हो गया।
लाखोवाल ने कहा कि लंच ब्रेक के बाद दोबारा जब बैठक शुरू हुई तो एमएसपी के मसले पर बातचीत करने की बात करने को कहा गया, मगर हमने कहा कि पहले तीनों कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पर बात करें। फिर कॉन्ट्रैक्ट फामिर्ंग पर बात होने लगी और मंत्री उसके फायदे गिनाने लगे। लेकिन हमने तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग की, जिस पर मंत्रियों ने कहा कि उन्हें इस पर और लोगों से विचार विमर्श करना होगा। इसलिए कुछ समय चाहिए।
हरिंदर सिंह ने कहा, हमलोगों ने कहा कि ठीक है, आप समय ले लीजिए, लेकिन तीनों कानूनों को वापस लेने पर अगली बैठक में बातचीत होनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि आज किसान संगठनों की बैठक में लिए जाने वाले फैसले के संबंध में शाम में एक प्रेस वार्ता भी की जाएगी। हरेंद्र सिंह लाखोवाल ने बताया कि जब तक सरकार उनकी दो प्रमुख मांगे नहीं मान लेती है तब तक किसानों का आंदोलन जारी रहेगा।
किसान नेताओं के साथ यहां विज्ञान भवन में हुई सातवें दौर की वार्ता में कृषि मंत्री तोमर के साथ रेल मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री सोम प्रकाश भी मौजूद थे। बैठक के बाद तोमर ने कहा कि वार्ता अच्छे माहौल में संपन्न हुई और यूनियनों की रजामंदी से वार्ता की अगली तारीख आठ जनवरी तय की गई। उन्होंने यह भी कहा कि यूनियनों के नेताओं के तीनों नये कृषि कानूनों का निरस्त करने की मांग पर अड़े रहने के कारण मसले का कोई रास्ता नहीं निकल पाया।
केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी देने की मांग को लेकर किसान 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर डेर डाले हुए हैं। (आईएएनएस)
सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अनुमति दे दी है. इसमें संसद की नई इमारत भी शामिल है. तीन जजों की बेंच ने 2-1 के बहुमत से यह फ़ैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय से भविष्य की परियोजवनाओं में स्मॉग टावर लगाने के लिए कहा है. ख़ास करके उन शहरों में जहाँ प्रदूषण गंभीर मसला है. सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट में पर्यावरण से जुड़ी मंज़ूरियों को भी स्वीकार कर लिया है और ज़मीन के इस्तेमाल में बदलाव की अधिसूचना को भी हरी झंडी दे दी है.
जस्टिस एएम खनविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने 2-1 के बहुमत से फ़ैसला सुनाया है.
जस्टिस खनविलकर और दिनेश माहेश्वरी ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को अनुमति दी जबकि जस्टिस संजीव खन्ना ने इसके ख़िलाफ़ अपना फ़ैसला सुनाया है. जस्टिस संजीव खन्ना ने ज़मीन के इस्तेमाल में बदलाव को लेकर आपत्ति जताई है.
सेंट्रल दिल्ली को एक नई शक्ल देने वाले इस प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दी गई थीं जिनमें लुटियंस ज़ोन में निर्माण का विरोध करते हुए कई तरह के नियमों के उल्लंघन के आरोप भी लगाए गए थे. इन आरोपों में चेंज ऑफ़ लैंड यूज़ और पर्यावरण संबंधी चिंताएं भी शामिल थीं.
जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले में फैसला सुनाई है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फ़ैसला सुरक्षित रखा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर को नए संसद भवन के निर्माण का शिलान्यास किया था.
मौजूदा सेंट्रल विस्टा एक ऐतिहासिक इलाक़ा है जिसे देखने लोग दूर-दराज़ से आते हैं और ख़ूबसूरती के साथ-साथ भारत की सत्ता के गलियारे भी यहीं रहे हैं. यहां एक नए संसद भवन समेत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के बीच कई इमारतों के निर्माण की योजना है.
सेंट्रल विस्टा को नई शक़्ल देने की शुरुआत संसद से होगी और नई इमारत में तक़रीबन 971 करोड़ रुपये ख़र्च होंगे.
वैसे संसद में जगह बढ़ाने की मांग पिछले 50 वर्षों से ज़्यादा से उठती रही है और पिछली यूपीए सरकार में लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के कार्यकाल में भी इस पर बहस हुई थी. सरकार ने पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए जगह की कमी का हवाला भी दिया था.
प्रस्तावित संसद भवन के तैयार होने की तारीख़ साल 2024 है लेकिन एक बड़े सवाल के साथ कि क्या सुप्रीम कोर्ट इसे बनाने की इजाज़त देगा? जहाँ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सभी की राय और तरीक़ों को शामिल करने का भरोसा दिलाया है वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने संसद के निर्माण पर सरकार के रुख़ को 'आक्रामक' बताया है.
सुप्रीम कोर्ट में सेंट्रल विस्टा के ख़िलाफ़ जाने वाले याचिकाकर्ता और वरिष्ठ आर्किटेक्ट नारायण मूर्ति ने बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव से बातचीत में कहा था कि, "जिस तरह से ये प्रोजेक्ट चल रहा है, ये हमारी सारी प्रक्रियाओं और संस्थाओं की उपेक्षा कर रहा है."
उन्होंने बताया, "मेरे और आपके लिए, एक एफ़एआर होती है जो बताती है कि हम एक प्लॉट पर कितना बना सकते हैं. अगर हम दस वर्ग मीटर भी ज़्यादा बना लें तो उसकी इजाज़त नहीं है और एमसीडी की टीम आकर उसको तोड़ देती है. लेकिन जितनी ऊंचाई की अनुमति है, अगर सरकार ही उसका डेढ़ गुना, जितनी एफ़एआर में अनुमति है उसका डेढ़ गुना बना रही है तो ये देश के लिए क्या सीख है. क्या इसका मतलब है कि जिसकी लाठी, उसकी भैंस?"
नए संसद भवन का शिलान्यास
क्या कहती है सरकार
वहीं केंद्र सरकार का दावा है कि परियोजना 'राष्ट्र हित' में है क्योंकि सेंट्रल विस्टा के आधुनिक होने की ज़रूरत है जिससे सैकड़ों करोड़ रुपए भी बचेंगे और नई इमारतें ज़्यादा मज़बूत और भूकंपरोधी बनेंगी.
रहा सवाल इस हरे-भरे और खुले इलाक़े में ज़्यादा इमारतें बनाने का तो सरकार का कहना है कि वो इसमें ज़्यादा हरियाली लाने वाली है. लेकिन विरोध के ज़्यादा स्वर पर्यावरण को लेकर ही उठे हैं.
भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार के इस कई सौ करोड़ के प्रोजेक्ट का बचाव किया है. उन्होंने कहा है कि मौजूदा संसद की इमारत क़रीब 100 साल पुरानी है. इस पर ज्यादा दबाव है. नई संसद बनाते वक़्त इस इमारत की एक भी ईंट नहीं निकाली जाएगी.
उन्होंने कहा कि मौजूदा संसद की इमारत 1927 में बनी थी और अब यह बहुत पुरानी पड़ चुकी है. इसमें अब सुरक्षा संबंधी समस्याएँ हैं. जगह की कमी है. ये इमारत भूकंपरोधी भी नहीं है. इसमें आग लगने से बचाव संबंधी सुरक्षा मापदंडों का भी अभाव है.
नई योजना के तहत संसद की नई इमारत के अलावा केंद्रीय सचिवालय और कई मंत्रालयों की इमारत बनाई जाएंगी.
उन्होंने यह भी कहा कि फिर से इन इमारतों को बनाने की योजना से पहले पर्याप्त रूप से विचार-विमर्श किया गया है और इसके व्यावहारिक पक्ष को भी ध्यान में रखा गया है.
उन्होंने बताया कि इससे सालाना ख़र्च होने वाले 1000 करोड़ रुपये की बचत होगी और मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय में सुधार आएगा क्योंकि 10 नई इमारतों में शिफ्ट हुए ये मंत्रालय आपस में बेहतर तरीक़े से मेट्रो से जुड़े होंगे.
तुषार मेहता ने यह भी कहा कि सरकार के कामकाज में सुधार लाने के लिए यह ज़रूरी है कि सभी केंद्रीय मंत्रालय एक जगह पर हों. इसलिए इस योजना की ज़रूरत है. (bbc.com)
नई दिल्ली. देश भर में अगले हफ्ते से कोरोना की वैक्सीन लगाने का काम शुरू हो सकता है. रविवार को सरकार ने कोरोना की दो वैक्सनी- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रेजेनेका की कोविशील्ड (Covishield) और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी. सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अलग-अलग फेज में वैक्सीनेशन का काम किया जाएगा. अगले 6-8 महीने में करीब 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन की डोज़ मिल जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोमवार को वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा था कि देश में बनी कोरोना की वैक्सीन लगने का काम शुरू होने वाला है.
अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि वैक्सीन को हरी झंडी मिलने के बाद अब इसके भंडारन का काम शुरू हो गया है. एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि जिन दो वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को हरी झंडी मिली है, सरकार अब उनके साथ खरीददारी की डील कर रही है. अलग-अलग बैच में 5 से 6 करोड़ वैक्सीन की डोज़ खरीदी जाएगी. शुरुआती फेज में करीब 3 करोड़ लोगों को ये वैक्सीन लगाई जाएगी.
हर मोर्चे पर तैयारी
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक कागजी काम में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन बाकी चीजों का इंतजाम तेजी से किया जा रहा है जिससे कि वैक्सीनेशन में देरी न हो. देश भर में वैक्सीनेशन की ड्राई रन सफल रही है. कुछ राज्यों में दिक्कतें आई थी. लेकिन अब सारी परेशानियों को दूर कर लिया गया है. इसके अलावा जिस CoWIN एप के जरिए वैक्सीनेशन देने के लिए रजिस्ट्रेशन का काम किया जाएगा उसे भी दुरुस्त कर लिया गया है.
28 हजार वैक्सीनेशन प्वाइंट
वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों से डील पूरी होने के बाद इन्हें देश के अलग-अलग 31 मेन हब में रखा जाएगा. ये हब देश के अलग-अलग हिस्सों में बनाए गए हैं. इसके बाद इन वैक्सीन को यहां से देश के 28 हजार वैक्सीनेशन प्वाइंट पर भेजा जाएगा. ये प्वाइंट अलग-अलग राज्यों में है. कहा जा रहा है कि जरूरत पड़ने पर वैक्सीनेशन प्वाइंट की संख्या बढ़ाई जा सकती है. सबसे पहले वैक्सीन की डोज़ एक करोड़ हेल्थ वर्कर्स को दी जाएगी. इसके बाद करीब 2 करोड़ फ्रंट लाइन वर्कर्स को दी जाएगी.
हेल्पलाइन नंबर
इसके अलावा देश भर में हेल्पलाइन नंबर भी तैयार किया जा रहा है जिससे कि वैक्सीन से जुड़ी सारी जानकारियां लोगों का दी जा सके. अब तक देश भर में करीब डेढ़ लाख लोगों को वैक्सीन देने की ट्रेनिंग भी दी गई है. स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के मुताबिक टीकाकरण का काम चुनाव प्रक्रिया के तहत हर बूथ लेवल पर किया जाएगा.यूआईपी के तहत आने वाले 28900 कोल्ड चेन और करीब 8500 इक्विपमेंट का इस्तेमाल किया जाएगा.
रजनीकांत राजनीतिक पार्टी बनाएं या नहीं लेकिन मीडिया और राजनीतिक दलों के बीच उनके हर क़दम की चर्चा होती रहती है.
वैसे उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाने से इनकार किया है लेकिन मेरा निजी तौर पर मानना है कि अगर वो पार्टी भी बना लेते और पूरे राज्य में प्रचार कर लेते तो भी वे तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव नहीं ला पाते.
रजनीकांत में भारत की राजनीति में पकड़ बनाने की कला नहीं है. हालांकि, कमल हासन के पास भी इस तरह की क़ाबिलियत नहीं है लेकिन ये ध्यान देने वाली बात है कि मीडिया में चर्चित शक्तिशाली रजनीकांत के पास भी ये हुनर नहीं है.
रजनीकांत की एमजी रामाचंद्रन (एमजीआर) और एनटी रामाराव (एनटीआर) से तुलना करना ठीक नहीं है.
एमजीआर एक मज़बूत विचारधारा वाली पहले से बढ़ रही राजनीतिक पार्टी से जुड़े थे और उसकी सफलता के लिए उन्होंने काम किया. वे पहले विधायक बने और फिर उसके बाद अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई.
द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) की मजबूत नींव धीरे-धीरे एमजीआर की पार्टी को आधार देने लगी.
वहीं, जब तेलुगू सुपरस्टार एनटीआर ने तेलुगू देशम पार्टी की शुरुआत की थी तब आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक मज़बूत विपक्ष की कमी थी.
एनटीआर ने आरोप लगाया था कि राजीव गांधी ने तेलुगू अस्मिता पर हमला किया है, उसकी छवि ख़राब की है और वो इसे बदलना चाहते हैं. लोगों ने उन्हें बढ़चढ़कर समर्थन दिया.
मौजूदा स्थितियां अलग
लेकिन, अब तमिलनाडु में स्थितियां अलग हैं. रजनीकांत की सेहत और उम्र उनका साथ नहीं दे रही है. यहां तक कि उन्होंने अपने प्रशंसकों को अपना फ़ैसला भी ख़ुद नहीं सुनाया.
तमिलनाडु की राजनीति में विचारधारा को लेकर उलझन होना सामान्य बात है. लेकिन, अपनी योजना को लेकर उलझन होना सामान्य नहीं है.
हो सकता है कि रजनीकांत के आसपास मौजूद कुछ लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने का सपना दिखाया होगा, ठीक उसी तरह जैसे कि वो किसी फ़िल्म में सिर्फ़ एक गाने से ही लखपति बन जाते हैं.
उन्होंने ना सिर्फ़ ख़ुद इस बात पर भरोसा किया बल्कि अपने प्रशंसकों को भी ये सपना दिखाया और अब हर कोई निराश है.
कब हुई बीजेपी की एंट्री
एक पार्टी को अपनी विचारधाराओं, अपनी ताक़त, नेताओं और कार्यकर्ताओं पर विश्वास करना चाहिए. किसी को अचानक आसमान से टपकाना और चुनाव जीतने के लिए उसका इस्तेमाल करना आसान नहीं है.
भारत में ऐसा कहीं भी नहीं हुआ. ये सही है कि फ़िल्म जगत से जुड़े लोग अपने पीछे भीड़ लेकर आते हैं. लेकिन, बीजेपी को लगता है कि रजनीकांत सिर्फ़ भीड़ नहीं बल्कि वोट भी लेकर आएंगे.
इसलिए बीजेपी उन्हें बार-बार निमंत्रण दे रही है.
लेकिन, रजनीकांत थोड़े हिचकिचा रहे हैं. उन्हें चिंता है कि बीजेपी के साथ आने से उनका भग्वाकरण हो जाएगा. कई लोग उन्हें उनके भाषणों के आधार पर बीजेपी की बी टीम भी कहते आए हैं.
ऐसा लगता है कि रजनीकांत भले ही बीजेपी में शामिल होने से इनकार कर देते लेकिन बीजेपी रजनीकांत की पार्टी से गठबंधन करने के लिए तैयार थी. हालांकि, ये सपना भी अब टूट गया है.
इसलिए रजनीकांत से बीजेपी को समर्थन देने के लिए कहा जा रहा है. वहीं, एआईडीएमके भी कमल हासन का समर्थन मांग सकती है.
बीजेपी की तमिलनाडु में स्थिति
ये बीजेपी के लिए एक सबक है. बीजेपी तमिलनाडु में एक छोटी-सी पार्टी है, इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है. कई लोग कहते हैं कि बीजेपी की हालत ऐसी है कि उसकी प्रतिस्पर्धा किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी से नहीं बल्कि नोटा (NOTA) में पड़ने वाले मतों से है.
लेकिन, ये सही नहीं है. बीजेपी का वोट बैंक लगातार बढ़ रहा है. मेरा अनुमान है कि बीजेपी तमिलनाडु में तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है. हालांकि, पार्टी अभी इतनी बड़ी नहीं हुई है कि वो अकेले चुनाव लड़ सके और कुछ सीटें जीत सके.
भाजपा को तमिलनाडु में मज़बूत होना है तो सदस्यों की संख्या बढ़ानी होगी. लेकिन, रजनीकांत जैसे लोग इसमें मदद नहीं कर पाएंगे. मुझे लगता है कि रजनीकांत आने वाले चुनाव में किसी पार्टी का समर्थन नहीं करेंगे.
1996 में अपनी आवाज़ उठाने के लिए रजनीकांत के पास कई कारण थे पर वो कारण अब नहीं रहे. बीजेपी ये बात नहीं समझती है. ये बताता है कि बीजेपी अभी तक तमिलनाडु की राजनीति को नहीं समझ पाई है.
बीजेपी ख़ुद को डीएमके का वैचारिक विरोधी बताती है. डीएमके ने भी अपनी इसी तरह की छवि पेश की है. इस स्थिति में, बीजेपी का एकमात्र लक्ष्य एआईएडीएमके के साथ गठबंधन करके डीएमके को हराना होना चाहिए.
लेकिन, बीजेपी का ऐसा कोई मक़सद नज़र नहीं आता. वो मुख्यमंत्री पलानीसामी पर कई तरह से दबाव डालती रहती है, जिसमें मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनने का मसला भी शामिल है. इस तरह का दबाव एआईएडीएमके और बीजेपी दोनों को नुक़सान पहुंचा सकता है. (bbc)
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से लगे पालघर जिले के समुद्री तट पर स्थित और पर्यावरण के लिए अति संवेदनशील क्षेत्र वाढवण में बंदरगाह निर्माण को लेकर स्थानीय लोग नाराज हैं। उनका आरोप है कि इस परियोजना के अंतर्गत पर्यावरण को होने वाले नुकसान का पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया।
विरोध का दूसरा कारण यह है कि जैव विविधता और मछुआरों तथा किसानों की आजीविका की दृष्टि से यह पूरी पट्टी 'गोल्डन बेल्ट' के नाम से जानी जाती है और परियोजना के निर्माण से लगभग एक लाख परिवारों की आजीविका प्रभावित होगी। इस परियोजना का प्रभाव 13 गांवों पर पड़ेगा और यहां की करीब चालीस प्रतिशत आबादी के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा होगा।
बता दें कि वाढवण स्थित जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट की यह बंदरगाह परियोजना पांच हजार एकड़ समुद्री क्षेत्र में स्थापित की जा रही है। इसके तहत समुद्र तट से चार किलोमीटर लंबा और 20 मीटर गहरा एक ढांचा तैयार किया जाएगा। वर्ष 2028 तक कुल 38 माल गोदाम बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यहां से कोयला, सीमेंट, रसायन और तेल आदि चीजों का सालाना 132 मिलियन टन माल का परिवहन किया जा सकता है। इस बंदरगाह के लिए 350 किलोमीटर लंबी सड़क और 12 किलोमीटर लंबी रेललाइन का निर्माण किया जाएगा।
वर्ष 1995 में एक निजी कंपनी ने पहले भी इस परियोजना का निर्माण शुरू किया था। लेकिन, तब भी भारी जनविरोध के कारण तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा इस परियोजना का काम रोक दिया गया था। इसके अलावा डहाणू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण ने परियोजना के खिलाफ दायर एक याचिका पर निर्णय लेते हुए वर्ष 1998 में इस बंदरगाह के निर्माण को स्थगित कर दिया था।
उसके बाद वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 'ड्रीम प्रोजेक्ट' बताया। जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (74%) और महाराष्ट्र सागर मंडल (26%) की भागीदारी से 65 हजार करोड़ रुपए की लागत से निर्माण कार्य शुरू करने की मंशा जाहिर की गई। परियोजना समर्थकों का तर्क है कि प्रस्तावित बंदरगाह 24 घंटे चालू रहेगा, इसलिए पूरे क्षेत्र का तेजी से विकास होगा।
परियोजना का विरोध कर रही वाढवण की सरपंच हेमलता बालाशी बताती हैं, "यह परियोजना पारंपरिक कृषि, बागवानी और मछलीपालन से जुड़े एक लाख परिवारों के लिए नुकसानदायक साबित होगी। स्थानीय लोगों ने कई सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर एक संघर्ष समिति बनाई है। इस समिति के बैनर पर हम सभी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं।"
इसके अलावा परियोजना के विरोध का प्रमुख आधार जैव विविधता के लिए का खतरा बताया जा रहा है। खासकर अनेक तरह की मछलियों को ध्यान में रखते हुए यह समुद्री क्षेत्र जलीय जीव-जंतुओं का घर माना जाता है। ऐसे में यदि यहां बंदरगाह बनाया जाता है तो सबसे बुरा असर एक दर्जन से अधिक गांवों के मछुआरों की आजीविका पर पड़ेगा।
दरअसल, समुद्र की इस पट्टी पर चट्टानें हैं इसलिए मछली की कई प्रजातियां प्रजनन के लिए यहां आती हैं। यही वजह है कि बंदरगाह बनने के बाद आने वाले समय में ऐसी मछलियों की प्रजनन प्रक्रिया और उनकी उपलब्धता प्रभावित हो सकती है। दूसरी आशंका यह है कि मालवाहक नावों से निकलने वाला ज्वार का पानी खाड़ी क्षेत्र में घुसपैठ करेगा और कृषि भूमि को नुकसान पहुंचाएगा।
अर्नाला मच्छीमार संस्था के उपाध्य्क्ष हिराजी तारे बताते हैं, "इससे मछली पालन का पूरा व्यवसाय ध्वस्त हो जाएगा, पूरे इलाके की समृद्ध खेती खत्म हो जाएगी।" वहीं, स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस परियोजना को लेकर उनसे कोई राय नहीं ली गई है। इनका यह भी कहना है कि पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन संतोषजनक ढंग से नहीं किया गया है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वर्ष 1991 से इस पूरे क्षेत्र को पर्यावरण की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इसकी वजह से यहां विकास से जुड़ी कई परियोजना पहले से ही लंबित हैं। हालांकि, बंदरगाह परियोजना को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इसे 'उद्योग' के रूप में नहीं गिनने का फैसला लिया है। इसके अलावा, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) प्रक्रिया में परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन को अनुमति देने के लिए भी उसे मौलिक रूप से बदल दिया गया है।
एक स्थानीय रहवासी नरेन्द्र पाटिल बताते हैं, "यहां के लोगों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर एंटी पोर्ट जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। यहां के किसानों और मछुआरों को स्थानीय व्यापारियों का भी साथ मिल रहा है।" (downtoearth)
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय बसपा (BSP) के 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ बसपा और भाजपा के विधायक मदन दिलावर की अपीलों पर 7 जनवरी को सुनवाई करेगा. उच्च न्यायालय ने इस आदेश में विधानसभा अध्यक्ष से कहा था कि सत्तारूढ़ कांग्रेस में बसपा के 6 विधायकों के ‘विलय’ के खिलाफ दायर अयोग्यता की याचिका पर तीन महीने के भीतर निर्णय किया जाए.
न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने इन अपील को आगे सुनवाई के लिये बृहस्पतिवार को सूचीबद्ध किया है. उच्च न्यायालय ने 24 अगस्त को राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष से कहा था कि बसपा के 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ दिलावर की अयोग्यता याचिका पर तीन महीने के भीतर निर्णय किया जाये.
उच्च न्यायालय ने दिलावर की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये 22 जुलाई को उनकी अयोग्यता याचिका अस्वीकार करने का अध्यक्ष का पिछले साल मार्च का आदेश निरस्त कर दिया था. उच्च न्यायालय ने इस मामले में बसपा की याचिका खारिज करते हुये उसे अध्यक्ष के यहां अयोग्यता याचिका दायर करने की छूट प्रदान की थी. दिलावर ने बसपा के विधायकों के विलय को चुनौती देते हुये उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि विधानसभा अध्यक्ष के आदेश के अमल पर रोक लगाई जाये.
इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने विधान सभा अध्यक्ष के आदेश पर रोक लगाने के लिये दिलावर की याचिका को निरर्थक बताते हुये उसका निस्तारण कर दिया था क्योंकि उच्च न्यायालय ने इसी मुद्दे पर अपना आदेश पारित कर दिया था. राजस्थान विधान सभा के लिये 2018 में हुये चुनाव में ये छह विधायक बसपा के टिकट पर जीते थे लेकिन बाद में सितंबर, 2019 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे. इन विधायकों में संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीना, जोगेन्द्र अवाना और राजेन्द्र गुधा शामिल हैं.
इन विधायकों ने 16 सितंबर, 2019 को कांग्रेस में विलय का आवेदन किया था और अध्यक्ष ने 18 सितंबर, 2019 को इस संबंध में आदेश दे दिये थे. दिलावर ने इसे चुनौती देते हुये कहा था कि अध्यक्ष ने इन छह विधायकों के कांग्रेस में विलय को गलत अनुमति दी है. राजस्थान की 200 सदस्यीय विधान सभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस में बसपा के इन विधायकों के विलय से गहलोत सरकार की स्थिति मजबूत हो गयी थी और उसके सदस्यों की संख्या 100 से ज्यादा हो गयी थी.
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने बीते रविवार कोरोना वायरस से बचाव के लिए तैयार की गई कोवैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है.
सरकार ने इसके साथ ही कोविशील्ड नाम की एक और वैक्सीन को भी मंज़ूरी दी है. लेकिन दोनों वैक्सीन में एक अंतर है जिसे लेकर स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञ अपनी चिंता जता रहे हैं. भारत बायोटेक की बनाई कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल अभी जारी है और इफिकेसी डेटा अब तक उपलब्ध नहीं है.
प्रसिद्ध संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जयप्रकाश मुलयिल ने सरकार के इस क़दम को काफ़ी जल्दबाज़ी भरा क़रार दिया है. इसके साथ ही विपक्षी दलों ने भी सरकार पर हमला बोल दिया है. सपा नेता अखिलेश यादव से लेकर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को आड़े हाथों लिया है.
वहीं, हर्षवर्धन ने पलटवार करते हुए ट्वीट किया है, "इस तरह के गंभीर मुद्दे का राजनीतिकरण करना किसी के लिए भी शर्मनाक है. शशि थरूर, अखिलेश यादव और जयराम रमेश कोविड-19 वैक्सीन को अनुमति देने के लिए विज्ञान समर्थित प्रोटोकॉल का पालन किया गया है जिसको बदनाम न करें. जागिए और महसूस करिए कि आप सिर्फ़ अपने आप को बदनाम कर रहे हैं."
डॉक्टर हर्ष वर्धन ने भी अपने ट्विटर पर लिखा है कि कोवैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल मोड पर ही इस्तेमाल किया जाएगा.
बैकअप वैक्सीन
एम्स दिल्ली के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी कोवैक्सीन को एक बैकअप वैक्सीन के रूप में देखते हैं.
इसके साथ ही दावा ये किया जा रहा है कि कोवैक्सीन कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन पर भी प्रभावकारी सिद्ध होगी.
लेकिन सवाल ये है कि वैक्सीन की इफिकेसी को लेकर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?
वैक्सीन जारी होने पर हंगामा क्यों?
भारत में दवाओं के इस्तेमाल पर नज़र रखने वाली कई ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के संगठन 'ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क' ने सरकार के इस क़दम को काफ़ी चौंकाने वाला बताया है.
इस संगठन की सह-संयोजक मालिनी आइसोला बताती हैं, "तीसरे चरण के ट्रायल से जुड़े आँकड़ों आने से पहले कोवैक्सीन को मंज़ूरी दिया जाना काफ़ी चौंकाने वाला क़दम है. ये केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की ड्राफ़्ट गाइड लाइंस का भी उल्लंघन है जो कि कोविड–19 वैक्सीन बनाने के लिए 21 सितंबर, 2020 को प्रकाशित की गई थी."
"इस ड्राफ़्ट गाइडलाइंस में तय किया गया था कि किसी भी कोविड 19 वैक्सीन की प्रभावकारिता (इफिकेसी) कम से कम पचास फ़ीसद तक होनी चाहिए. लेकिन इस मामले में इफिकेसी यानी प्रभावकारिता से जुड़े कोई आँकड़े ही उपलब्ध नहीं हैं."
"इसके साथ ही ये मंज़ूरी एक ग़लत मिसाल खड़ी करती है. क्योंकि अभी कई दूसरी कंपनियां भी कोविड 19 वैक्सीन बना रही हैं. और कोवैक्सीन को मिली मंज़ूरी के आधार पर वे भी तीसरे चरण के इफिकेसी डेटा साझा किए बिना आपातकालीन स्तर पर मंज़ूरी की माँग करेंगी."
एक सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि जब ये वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल में है तो इसे मंज़ूरी क्यों दी गई. और मंज़ूरी दिए जाने के बाद जिस तरह इसे क्लिनिकल मोड में दिया जाना है, वो सब कुछ कैसे होगा? क्योंकि सरकारी अधिकारियों की ओर से किसी भी आधिकारिक दस्तावेज़ में क्लिनिकल ट्रायल को ठीक ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है.
मंज़ूरी मिली है तो क्लिनिकल ट्रायल की बात क्यों?
केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने ट्वीट करके बताया है कि कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी (ईयूए) शर्तिया आधार पर दी गई है. उन्होंने ट्वीट में लिखा, "जो अफ़वाहें फैला रहे हैं वे जान लें कि क्लिनिकल ट्रायल मोड में कोवैक्सीन के लिए ईयूए सशर्त दिया गया है. कोवैक्सीन को मिली ईयूए कोविशील्ड से बिलकुल अलग है क्योंकि यह क्लिनिकल ट्रायल मोड में इस्तेमाल होगी. कोवैक्सीन लेने वाले सभी लोगों को ट्रैक किया जाएगा उनकी मॉनिटरिंग होगी अगर वे ट्रायल में हैं."
क्लिनिकल ट्रायल मोड के मुद्दे पर मालिनी मानती हैं कि अभी कई सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब मिलना बाक़ी है.
वे कहती हैं, "रेगुलेटर ने इस मामले में ये कहते हुए मंज़ूरी दी है कि ये वैक्सीन क्लिनिकल मोड में इस्तेमाल की जाएगी. मंज़ूरी देते हुए कहा गया है- 'क्लिनिकल ट्रायल मोड में जनहित को ध्यान में रखते हुए आपात स्थिति में प्रतिबंधित इस्तेमाल की मंज़ूरी दी गई है', लेकिन दुर्भाग्य से कोई स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं है कि क्लिनिकल ट्रायल मोड क्या है. और हमारे पास कई सवाल भी हैं. उदाहरण के लिए – क्या क्लिनिकल ट्रायल मोड में शामिल होने वाले वॉलिंटियर्स पर जो क़ानून लागू होता है, वो इस मामले में भी लागू होगा, और क्या क़ानूनी रूप से वैक्सीन की वजह से उन्हें कोई नुक़सान होता है तो वे उसकी भरपाई के लिए मुआवज़े की माँग कर सकते हैं."
इसके साथ ही लोगों से उनकी सहमति लेने के लिए क्या प्रक्रिया होगी. वैक्सीन लेने वाले लोगों को किस तरह की सूचनाएं दी जाएंगी. क्योंकि हमें लगता है कि इस मामले में लोगों को ये स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि इस वैक्सीन का इफिकेसी डेटा उपलब्ध नहीं है, और ये अभी भी तीसरे चरण के ट्रायल में है."
"कल अधिकारियों ने क्लिनिकल ट्रायल मोड को समझाने के लिए बताया था कि वैक्सीन लेने वाले लोगों को ख़ास ढंग से ट्रैक किया जाएगा. उन पर नज़र रखी जाएगी. इसके साथ ही वैक्सीन सिर्फ़ उन लोगों को ही दी जाएगी जो कि 'इनक्लूज़न और एक्सक्लूज़न क्राइटेरिया' में फ़िट होंगे. लेकिन हमें अब तक किसी भी आधिकारिक दस्तावेज़ में ये नहीं बताया गया है कि क्लिनिकल ट्रायल मोड का मतलब क्या है."
"क्योंकि अगर आप भारत बायोटेक को जारी किए गए अनुमति पत्र को देखें तो उसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि ये वैक्सीन 12 साल या उससे ज़्यादा उम्र के लोगों को दी जा सकती है. इस तरह की व्यापक अनुमति सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को भी नहीं दी गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कोवैक्सिन को ये मंज़ूरी क्यों दी गई है."
इसके साथ ही सवाल ये उठता है कि सरकार वैक्सीन को लेकर सूचनाओं को सरल और स्पष्ट ढंग से क्यों नहीं दे रही है?
सरकार की ओर से सूचना देने में कमी क्यों?
क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पीआईबी की ओर से जारी अपनी प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट नहीं किया है कि कोवैक्सीन किन लोगों को और किस तरह दी जाएगी.
पीआईबी की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ कहती है, "समीक्षा के बाद, विशेषज्ञ समिति की सिफ़ारिशों को स्वीकार करने का केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा निर्णय लिया गया है और उसके अनुसार, हम आपात स्थिति में सीमित इस्तेमाल के लिए मेसर्स सीरम और मेसर्स भारत बायोटेक के टीकों को मंज़ूरी देने जा रहे है."
सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ में ये नहीं बताया गया है कि इन दोनों वैक्सीन को दिए जाने में क्या अंतर रखा जाएगा.
बताया गया है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल 25,800 और अब तक 22,500 को देश भर में टीका लगाया गया है. और कहा गया है कि अब तक उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक़, टीका सुरक्षित पाया गया है.
स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि अगर वैक्सीन के नतीजे बेहतर रहे हैं तो सरकार डेटा ज़ाहिर करने में झिझक क्यों रही है. और जब एक वैक्सीन मंज़ूर किए जाने की स्थिति में आ चुकी है तो उसी समय दूसरी वैक्सीन को मंज़ूरी दिए जाने की जल्दबाज़ी क्यों है?
क्यों कोवैक्सीन के तीसरे चरण के आँकड़ों का इंतज़ार नहीं किया जा सकता?
आख़िर किस बात की जल्दबाज़ी है?
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से वैक्सीन जारी करने की वजह बताते हुए बार – बार आपातकालीन, बैकअप और इमरजेंसी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन सरकार का ये तर्क वेल्लोर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे प्रसिद्ध संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जयप्रकाश मुलयिल के गले नहीं उतर रहा है.
वे कहते हैं, "मुझे लगता है कि इस वैक्सीन को मंज़ूरी दिया जाना जल्दबाज़ी है. क्योंकि मुझे इस समय किसी भी तरह की आपातकालीन स्थिति नज़र नहीं आ रही है. कोरोना वायरस के नए मामलों की संख्या घट रही है. और मौतों की संख्या में भी कमी आ रही है. भारत में वैसी स्थिति नहीं है, जैसी यूरोप और अमेरिका में है. ऐसे में चाहें ये वैक्सीन भारत में ही क्यों न बनी हो, इसे इस समय से पहले जारी करना एक जल्दबाज़ी भरा क़दम है."
"भारत के लोगों ने काफ़ी हिम्मत से इस महामारी का सामना किया है. उन्होंने बहुत कष्ट सहे हैं. लेकिन उन्होंने इसे झेल लिया है. और अब ज़्यादातर जगहों पर, जहां तक मैं जानता हूं, कोविड 19 को लेकर सहज हो गए हैं. इससे मरने वाले ज़्यादातर लोगों की उम्र 60 के ऊपर थी. अब वेल्लोर ज़िले की आबादी 17 लाख है और कल सिर्फ़ 14 नए मामले सामने आए हैं. और किसी की मौत नहीं हुई है. लोगों के मन में अब ये नज़रिया है कि स्थिति में सुधार हो रहा है. और अब पहले जैसी स्थिति नहीं है. जैसी मई और जून के महीने में थी."
"आपके पास पहले से दिशा निर्देश हैं. लेकिन अब आप उनकी अवहेलना करते हुए इमरजेंसी रिलीज़ की तरफ़ बढ़ रहे हैं. ऐसा करते हुए आपको सावधान होने की ज़रूरत है. क्योंकि जब आप ये सब कुछ ठीक ढंग से करते हैं तो नियामक संस्था में लोगों का विश्वास काफ़ी ऊंचा रहता है. जब आप दिशा – निर्देशों का उल्लंघन करते हैं तो लोगों का नियामक संस्थाओं में भरोसा कम हो जाता है."
नए कोरोना स्ट्रेन पर कितनी असरदार?
कोवैक्सीन के कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के प्रति भी प्रभावकारी होने का दावा किया जा रहा है.
लेकिन इस वैक्सीन को बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक के सीइओ ने सोमवार शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि वह एक हफ़्ते के अंदर इस दावों को सिद्ध करने के लिए डेटा प्रस्तुत करेंगे.
वैक्सीन लॉन्च में जल्दबाज़ी ख़तरनाक क्यों?
मुलियल बताते हैं, "जब लोग देखते हैं कि आप अपनी कार्य योजना को बदल रहे हैं. और वैक्सीन को समय से पहले लॉन्च कर रहे हैं. और वैक्सीन से पैदा होने वाले रक्षात्मक प्रभाव से जुड़े मज़बूत आँकड़े नहीं देते हैं तो लोग चिंतित होते हैं. ऐसे में लोगों में वैक्सीन को लेकर ज़्यादा चिंता पैदा होती है कि सरकार समय से पहले वैक्सीन लॉन्च क्यों करना चाहती है?"
दुनिया भर में वैक्सीन को लेकर अफ़वाहों का दौर गरम है. और वैक्सीन के इतिहास पर नज़र डालें तो जल्दबाज़ी और अफ़वाहें टीका करण अभियानों की सबसे बड़ी चुनौती रही हैं. टीका करण अभियान चलाते हुए टीके को जारी करने और दिए जाने की प्रक्रिया में एक विशेष तरह की सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है.
पाकिस्तान से लेकर अफ़ग़ानिस्तान में पोलियो के टीका करण को एक लंबे समय तक अंधविश्वास का सामना करना पड़ा है. क्योंकि अगर लोगों में एक बार वैक्सीन को लेकर एक शक पैदा हो जाता है तो उसे दूर करना अपने आप में एक चुनौती है.
और सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से लोगों का वैक्सीन को लेकर सशंकित होना बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है.
वो भी तब जब वैक्सीन कोरोना जैसी किसी महामारी या संक्रामक रोग की रोकथाम के लिए दी जा रही हो. लेकिन अगर वैक्सीन अपने उद्देश्य को पूरा करने में असमर्थ रहती है तो ये ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है.
भारत बायोटेक का तर्क कितना सही?
भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक कृष्णा एल्ला ने सोमवार शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी कंपनी के ऊपर उठ रहे सवालों के जवाब देने की कोशिश की है.
उन्होंने कहा है, "कई लोग कहते हैं कि मैं अपने डेटा को लेकर पारदर्शी नहीं हूं. मुझे लगता है कि लोगों में थोड़ा धैर्य होना चाहिए ताकि वे इंटरनेट पर पढ़ सकें कि हमने कितने लेख प्रकाशित किए हैं. अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में हमारे 70 से ज़्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं."
"कई लोग गपशप कर रहे हैं. ये सिर्फ़ भारतीय कंपनियों के लिए एक झटका है. ये हमारे लिए ठीक नहीं है. हमारे साथ ये सलूक नहीं होना चाहिए. मर्क कंपनी की इबोला वैक्सीन ने कभी इंसानों पर क्लिनिकल ट्रायल पूरा नहीं किया लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फिर भी लाइबेरिया और गुआना के लिए आपातकालीन मंज़ूरी दे दी."
"जब अमरीकी सरकार कहती है कि अगर कंपनी का अच्छा इम्यूनाइज़ेशन डेटा है तो उसे इमरजेंसी मंज़ूरी दी जा सकती है. मर्क कंपनी की इबोला वैक्सीन को मंज़ूरी फेज़ 3 ट्रायल पूरा होने से पहले दी गई. जॉन्सन एंड जॉन्सन ने सिर्फ़ 87 लोगों पर टेस्ट किया, और उसे मंज़ूरी मिल गई."
कृष्णा एल्ला ने अपनी कंपनी और अपने क्षेत्र के पक्ष में तर्क दिए हैं. लेकिन सवाल ये है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर फ़ैसले जल्दबाज़ी के फ़ैसलों के इतिहास को देखकर लिए जाएंगे या वैज्ञानिक कसौटी पर परखने के बाद लिए जाएंगे. (bbc)
नई दिल्ली, 5 जनवरी | केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच सोमवार को विज्ञान भवन में हुई सातवें राउंड की बैठक में यूं तो दो मुद्दों पर बात होनी थी, लेकिन चर्चा तीनों कृषि कानूनों के मुद्दे पर ही सिमटकर रह गई। लंच के पहले और बाद में तीनों कानूनों की वापसी की मांग पर ही किसान नेता अड़े रहे। नतीजन, बैठक बेनतीजा रही।
दोनों पक्ष के बीच तीनों कानूनों के मुद्दे पर इस कदर चर्चा चली कि एमएसपी को कानूनी जामा देने की मांग पर बहस ही नहीं हो पाई। अब दोनों पक्षों ने तय किया है कि आठ जनवरी की बैठक में एमएसपी के मुद्दे पर प्रमुखता से चर्चा होगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बैठक में कहा कि कानून पूरे देश के किसानों के हितों से जुड़ा है। ऐसे में कोई भी फैसला सभी राज्यों के किसान नेताओं से बातचीत के बाद लिया जाएगा।
विज्ञान भवन में सोमवार को ढाई बजे से सातवें दौर की बैठक शुरू हुई। आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले कई किसानों का मुद्दा उठाते हुए बैठक में शामिल 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने श्रद्धांजलि का प्रस्ताव रखा। इसके बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय राज्यमंत्री सोम प्रकाश सहित सभी किसान नेताओं ने दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी।
सूत्रों ने बताया कि इसके बाद तीनों मंत्रियों ने कहा कि पहले तीनों कानूनों के मुद्दे पर चर्चा हो या फिर एमएसपी से जुड़े मसले पर, क्योंकि आज की बैठक के एजेंडे में यही दो विषय हैं। इस पर किसान नेताओं ने कहा कि वह तीनों कानूनों की वापसी पर सबसे पहले चर्चा चाहते हैं।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि कानून बहुत सोच-विचार के बाद बने हैं। इससे किसानों को ही लाभ होगा। उन्होंने कहा कि कई राज्यों के किसान नेताओं ने कृषि कानूनों का समर्थन किया है। ऐसे में हम उनकी बातों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। कृषि मंत्री तोमर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकार कानूनों के हर क्लॉज पर चर्चा करते हुए संशोधन को तैयार है। लेकिन इसके लिए सभी राज्यों के किसान नेताओं से बात होगी। इस पर किसान नेताओं ने संशोधन की बात ठुकराते हुए एक सुर में तीनों कानूनों की वापसी की बात कही।
किसान नेताओं ने कहा कि वे कानूनों पर संशोधन नहीं, बल्कि वापसी चाहते हैं। लेकिन मंत्रियों ने कानूनों की वापसी की मांग ठुकरा दी। करीब डेढ़ घंटे की मीटिंग के बाद लंच ब्रेक हो गया। पिछली बैठक में जहां मंत्रियों ने किसानों के साथ लंगर का खाना खाया था। इस बार मंत्रियों और किसानों ने अलग-अलग खाना खाया।
लंच के बाद फिर मीटिंग शुरू हुई। इस बार भी किसान नेता कृषि कानूनों की वापसी की मांग पर अड़ गए। तीनों मंत्रियों की ओर से जहां कृषि कानूनों के फायदे बताए जाते रहे, वहीं किसान नेता कहते रहे, "जो हम चाहते नहीं हैं, वह आप क्यों हमारे लिए करना चाहते हैं।"
किसान नेताओं ने साफ कह दिया कि वे मांगों का समाधान होने तक दिल्ली की सीमा छोड़कर जाने वाले नहीं हैं। 26 जनवरी की परेड ही नहीं, बल्कि यहीं बजट भी वह देखेंगे।
बैठक में शामिल किसान नेता शिवकुमार शर्मा 'कक्का' ने आईएएनएस को बताया, "आज की बैठक में एमएसपी पर चर्चा ही नहीं हो सकी। पूरे समय सिर्फ तीनों कानूनों के मुद्दे पर ही बात हुई। मंत्रियों ने कहा कि एक कानून बनाने में 20 साल लग जाते हैं तो हमने कहा कि वह कानून फायदेमंद भी तो होना चाहिए। जब हमने लंच के दूसरे हाफ में एमएसपी पर कानून बनाने की मांग उठाई तो मंत्रियों ने कहा कि मामला जटिल है। इस पर आप भी तैयारी करिए, हम भी अपनी तैयारी करेंगे। ऐसे में एमएसपी पर अगली मीटिंग में चर्चा होगी।"
शिवकुमार कक्का ने कहा कि सरकार अपनी जिद छोड़े तो किसान आंदोलन तत्काल खत्म हो सकता है। किसान कानूनों के खात्मे के लिए अगर साल भर तक आंदोलन चलाना पड़े तो भी हम चलाएंगे।
उधर, भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने आईएएनएस से कहा, "आंदोलन खत्म कराने की टेंशन हमारी नहीं सरकार की है। आज की बैठक में कुछ बात नहीं बन सकी। सब कुछ सरकार के रुख पर ही निर्भर है। किसान बार-बार दिल्ली नहीं आते। अब एक बार आ गए हैं तो बिना रिजल्ट के नहीं घरों को जाने वाले।"
--आईएएनएस
भोपाल, 5 जनवरी | कोरोना वैक्सीन को देश में मंजूरी मिल गई है और मध्यप्रदेश में इस वैक्सीन को लगाने की तैयारियां भी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि पहले वे वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। वैक्सीन का लाभ प्राथमिकता वाले समूहों को सबसे पहले मिलेगा। मुख्यमंत्री चौहान ने कलेक्टर्स और कमिश्नर से कॉफ्रेंस में कहा कि सभी जिले नागरिकों को कोरोना वैक्सीन लगाने की तैयारियां करें। सबसे पहले प्राथमिकता वाले समूह टीके लगवाएंगे।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि उन्होंने तय किया है कि वे पहले टीका नहीं लगवाएंगे। प्राथमिकता समूह को पहले इसका लाभ मिलना चाहिए।
चौहान ने कलेक्टर्स को निर्देश दिए कि टीकाकरण के लिए स्वास्थ्य विभाग के अमले के प्रशिक्षण के बाद आगे की प्रक्रिया को गति प्रदान करना है। टीकाकरण की व्यवस्था को लागू करने के लिए जिला स्तर के अमले को सक्रिय होना है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 5 जनवरी | लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की छोटी बेटी अंजलि का पहले ही प्रयास में देश की प्रतिष्ठित सिविल सर्विसेज परीक्षा में चयन हुआ है। सिविल सर्विसेज परीक्षा-2019 की सोमवार को घोषित रिजर्व लिस्ट में अंजलि का नाम आया है। बेटी की उपलब्धि पर सुप्रिया सुले सहित कई सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के परिवार को बधाई दी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी अंजलि बिरला ने कोटा के सोफिया स्कूल से आर्ट्स में 12वीं की पढ़ाई की। इसके बाद दिल्ली के रामजस कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस (ऑनर्स) में डिग्री लेकर अंजलि ने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की। दिल्ली मे एक साल की तैयारी के बाद पहले ही प्रयास में अंजलि ने देश की इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता हासिल की है। अंजलि की बड़ी बहन आकांक्षा चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं।
बता दें कि सिविल सर्विसेज (मुख्य) परीक्षा, 2019 का पिछले साल 4 अगस्त, 2020 को परिणाम घोषित हुआ था। इस दौरान कुल 927 वैंकेसी की तुलना में 829 उम्मीदवारों को आईएएएस, आईएफएस, आईपीएस और केंद्रीय सेवाओं के लिए सफल घोषित किया गया था। अब सोमवार को यूपीएससी ने 89 अभ्यर्थियों की रिजर्व लिस्ट जारी की है। जिसमें 73 सामान्य वर्ग, 14 ओबीसी, एक ईडब्ल्यूएस और एक एससी वर्ग के अभ्यर्थी शामिल हैं। इसमें अंजलि बिरला का नाम 67वें नंबर पर है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 5 जनवरी | केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को कहा कि किसानों को सरकार पर भरोसा है और नए कृषि कानूनों के संबंध में कोई भी निर्णय देशभर के किसानों के हितों को ध्यान में रखकर ही लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों के समग्र हितों को देखकर ही कानून बनाया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार किसानों के प्रति पूरी तरह संवेदनशील है।
किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार और किसान यूनियनों के नेताओं के बीच सातवें दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर यहां संवाददाताओं के सवालों का जवाब दे रहे थे।
केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों पर गतिरोध दूर करने को लेकर केंद्रीय मंत्रियों और किसान संगठनों के नेताओं के बीच सोमवार को सातवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही और अगले दौर की वार्ता की तारीख आठ जनवरी तय हुई।
नए कृषि कानूनों को रद्द करवाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की गारंटी की मांग को लेकर किसान दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर से आंदोलन कर रहे हैं और इस दौरान आंदोलन में शामिल 50 से ज्यादा किसान दम तोड़ चुके हैं। मगर, आंदोलन समाप्त करवाने को लेकर किसान संगठनों के नेताओं और सरकार के बीच हो रही वार्ता के लिए फिर एक तारीख तय हुई।
राष्ट्रीय किसान महासंघ के प्रवक्ता अभिमन्यु कोहार ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि हर बार एक ही बात दोहराई जा रही है जिससे सरकार पर किसानों का भरोसा नहीं रह गया है। कुछ अन्य किसान नेताओं ने सरकार से भरोसा उठने की बात कही।
इस संबंध में पूछे गए सवाल पर तोमर ने कहा, "अगर सरकार पर भरोसा नहीं होता तो आठ तारीख की बैठक क्यों तय होती? सरकार और यूनियन दोनों की रजामंदी से आठ तारीख की बैठक तय हुई है। इसका मतलब किसानों का भरोसा सरकार पर है।"
उन्होंने कहा कि किसान यूनियन के नेता नए कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े रहे, इस कारण आज की वार्ता में कोई रास्ता नहीं निकल पाया, लेकिन उम्मीद है कि अगली बैठक में सार्थक चर्चा होगी। किसान नेताओं के साथ यहां विज्ञान भवन में हुई सातवें दौर की वार्ता में कृषि मंत्री तोमर के साथ रेल मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री सोम प्रकाश भी मौजूद थे।
तोमर ने कहा, "आज की वार्ता में बातचीत एमएसपी के मसले पर भी हुई, लेकिन किसान नेता कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग पर पड़े रहे।"
उन्होंने कहा कि आज की बातचीत अच्छे माहौल में हुई और आशा है कि आगे सार्थक चर्चा होगी। नए कृषि कानूनों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच गतिरोध जल्द दूर होने और किसान आंदोलन समाप्त होने की उम्मीद जताते हुए कृषि मंत्री ने कहा, "दोनों तरफ से उत्सुकता है इसका समाधान हो।"
वार्ता शुरू होने से पहले मंत्रियों ने किसान आंदोलन के दौरान दिवंगत हुए किसानों के प्रति दुख जताया। आगे उन्होंने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों का स्वागत किया, नववर्ष की बधाई व शुभकामनाएं देते हुए किसान प्रतिनिधियों से किसान कल्याण से संबंधित मुद्दे पर चर्चा करने का अनुरोध किया।
कृषि मंत्री ने कहा कि 30 दिसंबर, 2020 को आयोजित पिछली बैठक में चर्चा हुई थी कि उनकी परेशानियों को ध्यान में रखते हुए सरकार किसानों के मुद्दों का समाधान करने का हरसंभव प्रयास करने के लिए तत्पर है। साथ ही सरकार किसान प्रतिनिधियों के साथ खुले मन से चर्चा करके समाधान के लिए हरसंभव प्रयासरत है। दोनों तरफ से कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है। सरकार सभी सकारात्मक विकल्पों को ध्यान में रखते हुए विचार करने के लिए तैयार है।
मंत्री ने कहा कि किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए कृषि सुधार कानूनों से संबंधित मुद्दे पर अन्य राज्यों के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से भी बात की जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा, ''हम इन तीनों कानूनों पर बिंदुवार चर्चा करेंगे और जिन-जिन बिंदुओं पर आपको आपत्ति हो, उन पर हम विचार करके यथाआवश्यक संशोधन करने के लिए तैयार हैं।''
बैठक में सरकार व किसान नेताओं में आपसी सहमति से यह तय किया गया कि आगे भी चर्चा जारी रहेगी। अगली बैठक 8 जनवरी, 2021 को दोपहर 2 बजे होगी।
संसद के मानसून सत्र में कृषि से संबंधित तीन अहम विधेयकों के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इन्हें कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के रूप सितंबर में लागू किया गया। मगर अध्यादेश के आध्यम से ये कानून पांच जून से ही लागू हो गए थे।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 4 जनवरी | भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी- दिल्ली) और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) सात सहयोगी परियोजनाओं पर काम करने के लिए एक साथ आए हैं। इन परियोजनाओं के लिए दोनों संस्थानों के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। आईआईटी-दिल्ली और आयुर्वेदिक संस्थान के परस्पर सहयोग से कैंसर जैसी बीमारी के विषय में भी शोध किया जाएगा। प्रारंभिक स्तर पर कैंसर का पता लगाने और स्तन कैंसर में आयुर्वेदिक दवाओं की प्रतिक्रिया का आकलन किया जाएगा।
आईआईटी-दिल्ली के निदेशक रामगोपाल राव ने सहयोगी परियोजनाओं के कहा, "पारंपरिक ज्ञान का प्रौद्योगिकी से समामेलन करके बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होने की उम्मीद है। पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों की मान्यता महत्वपूर्ण है। आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ता इस पर ध्यान केंद्रित करेंगे और आयुर्वेद संस्थान संकाय के साथ मिलकर सत्यापन के पहलू पर काम करेंगे।"
इसके तहत आयुर्वेद में अंर्तविषय अनुसंधान के दौरान इंजीनियरिंग विज्ञान सिद्धांतों को लागू किया जाएगा। आईआईटी-दिल्ली और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान जिन विषयों पर काम करेंगे, उनमें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्राव पर छह आयुर्वेदिक रसों (स्वाद) का प्रभाव जांचना। हर्बल योगों का विकास कर खाना पकाने के तेल के फिर से उपयोग में हानिकारक प्रभावों को कम करना। एक बायोडिग्रेडेबल, हर्बल घाव ड्रेसिंग विकसित किया जाएगा।
इसके अलावा तंत्रिका तंत्र पर 'ब्रह्मरी प्राणायाम' के प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा। न्यूरोडीजेनेरेटिव में फंसे प्रोटीन पर भस्मास के प्रभावों का विश्लेषण किया जाएगा। एक 'धूपन-यंत्र' विकसित करके घाव भरने की सहायता के लिए एक धूमन उपकरण विकसित किया जाएगा।
नई दिल्ली स्थित एआईआईए की निदेशक प्रो. तनुजा केसरी ने कहा, "दोनों संस्थानों का लक्ष्य विकास करना है। आयुर्वेदिक निदान और उपचार के मूल सिद्धांतों की गहरी समझ से नवीन नैदानिक उपकरण और उपकरण विकसित करना है।"
गौरतलब है कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात चिकित्सा प्रणालियों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। पिछले एक दशक में, आयुर्वेद के सत्यापन में नए सिरे से रुचि पैदा हुई है। (आईएएनएस)
पूर्वोत्तर में नागालैंड और मणिपुर सीमा पर स्थित जोकू घाटी में एक सप्ताह से लगी भयावह आग पर सेना, वायुसेना, एनडीआरएफ और राज्य सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक काबू नहीं पाया जा सका है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी का लिखा-
नागालैंड, 4 जनवरी | सरकार ने अगले दो दिनो में आग पर काबू पाने की उम्मीद जताई है. आग लगने की वजह का भी पता नहीं लग सका है. पर्यावरणविदों ने ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग की तर्ज पर इस इलाके में आग से प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचने का अंदेशा जताया है. लेकिन आग नहीं बुझने तक नुकसान के बारे में ठोस आकलन करना संभव नहीं है. आग पर काबू पाने के लिए वायु सेना के हेलीकॉप्टरों की भी सहायता ली जा रही है. लेकिन इलाके में चलने वाली तेज हवाओं ने समस्या को गंभीर बना दिया है. यह आग दो सौ एकड़ में फैल चुकी है.
नागालैंड के कोहिमा जिले और मणिपुर के सेनापति जिले के बीच फैली बेहद सुंदर जोकू घाटी देश-विदेश के सैलानियों के लिए ट्रैकिंग का पसंदीदा ठिकाना रही है. यह आग बीते 29 दिसंबर को नागालैंड की सीमा में शुरू हुई थी और धीरे-धीरे मणिपुर तक पहुंच गई. नागालैंड में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारी जानी रूआंगमी बताते हैं, "नागालैंड सीमा में आग पर कुछ हद तक काबू पा लिया गया है. लेकिन मणिपुर सीमा में यह अब भी धधक रही है.”
मणिपुर की राजधानी इंफाल में वन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, "पहाड़ी के पश्चिमी सिरे पर तो आग पर कुछ हद तक काबू पा लिया गया है लेकिन दुर्गम दक्षिणी इलाके में यह अब भी धधक रही है. वायुसेना के हेलीकॉप्टर वहां आग बुझाने का प्रयास कर रहे हैं.” इलाके में एनडीआरएफ और पुलिस के 20 से ज्यादा कैंप लगाए गए हैं ताकि इस अभियान में बेहतर तालमेल बनाया जा सके. इलाके में कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं होने की वजह से दिक्कत और बढ़ गई है.
नागालैंड की राजधानी कोहिमा से महज तीस किलोमीटर दूर जोकू घाटी में पक्षियों व जानवरों की हजारों प्रजातियां रहती हैं. इनमें से कई तो दुर्लभ प्रजाति के हैं. समुद्रतल से लगभग ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर बसा यह इलाका पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र तो है ही, अपनी जैव-विविधता के लिए भी मशहूर है. यहां जाड़ों में कई किस्म के फूल उगते हैं. इस घाटी के मालिकाना हक पर अकसर नागालैंड और मणिपुर के बीच विवाद हो चुका है. इलाके में पहले भी आग लगती रही है लेकिन वह इतनी भयावह कभी नहीं रही. वर्ष 2006 में घाटी के दक्षिणी हिस्से में 20 किलोमीटर क्षेत्रफल में आग लगी थी. वर्ष 2018 में भी यहां भयावह आग लगी थी. उससे घाटी को काफी नुकसान हुआ था.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री जितेंद्र सिंह ने नागालैंड और मणिपुर सरकारों को आग पर काबू पाने के लिए हर संभव सहायता देने का भरोसा दिया है. तीन जनवरी से वायुसेना के चार हेलीकॉप्टर प्रभावित इलाकों पर लगातार पानी की बौछार कर रहे हैं.
रक्षा विभाग के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल पी खोंगसाई ने बताया कि जोकू घाटी में लगी आग पर काबू पाने में सेना भी केंद्रीय और राज्य सरकारी संगठनों की सहायता कर रही है. भारतीय सेना और असम राइफल्स के जवान आग बुझाने में एनडीआरएफ को हर संभव मदद प्रदान कर रहे हैं. सेना राहतकार्यों में शामिल विभिन्न एजेंसियों को आवास, तंबू और रसद मुहैया कर रही है. इसके अलावा सेना ने बांबी बाल्टी ऑपरेशन के लिए एक एयरबेस प्रदान किया है. वह इलाका दुर्गम होने की वजह से प्रभावित इलाकों के तीन किलोमीटर के दायरे में कई कैंप लगाए गए हैं. उन्होंने बताया कि सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने रविवार को राज्य प्रशासन के साथ बैठक भी की ताकि आग बुझाने के अभियान को बेहतर बनाया जा सके.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने आग की भयावहता का जायजा लेने के लिए इलाके का हवाई सर्वेक्षण किया है. उन्होंने बताया, "आग से पहाड़ों, जंगल और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है. यह आग मणिपुर की सबसे ऊंची चोटी माउंट ईसो को पार कर चुकी है. मुख्यमंत्री ने अंदेशा जताया कि अगर हवाएं दक्षिण की ओर बहीं तो इस आग के मणिपुर के सबसे घने जंगल कोजिरी तक पहुंचने का अंदेशा है. वहां नजदीक ही एक वाइल्डलाइफ पार्क भी है.” मुख्यमंत्री ने आग लगने के अगले दिन ही अमित शाह को फोन कर इस पर काबू पाने में केंद्रीय सहायता मांगी थी.
नागालैंड के राज्यपाल एन रवि ने भी प्रभावित इलाके का दौरा करने के बाद राज्य सरकार से सेटेलाइट आधारित रियल टाइम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम समेत कई अन्य उपाय अपनाने की अपील की है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके.
दरअसल, आग पर काबू पाने में मुश्किल इसलिए हो रही है कि यह इलाका बेहद दुर्गम है. कोई सड़क नहीं होने की वजह से फायर ब्रिगेड की गाड़ियां इलाके में नहीं पहुंच सकतीं. इलाके में एक ट्रेकिंग ट्रैक बना हुआ है. उसके जरिए कई घंटे पैदल चलकर ही वहां पहुंचा जा सकता है. इसी वजह से हेलीकॉप्टरों की मदद ली जा रही है.
नागालैंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनएसडीएमए) के अधिकारियों ने राजधानी कोहिमा में बताया है कि अज्ञात कारण से बड़े पैमाने पर आग लग गई. इससे होने वाले नुकसान का फिलहाल पता नहीं चला है. घाटी में लगी यह आग इतनी भयावह है कि इसकी लपटें और रोशनी कोहिमा से दिखाई दे रही हैं. (dw.com)
हिमाचल के कांगड़ा जिले में साइबेरियाई पक्षियों के मरने का सिलसिला जारी है. वहां सोमवार तक 17,00 से अधिक प्रवासी पक्षी मर चुके थे. अधिकारी पंछियों की मौत का कारण तलाश रहे हैं.
डॉयचे वैले पर हृदयेश जोशी का लिखा-
हिमाचल प्रदेश, 4 जनवरी | प्रवासी पक्षियों की मौत कांगड़ा के महाराणा प्रताप सागर नाम के जलाशय में हो रही है. इसे पौंग डैम के नाम से भी जाना जाता है. वन विभाग का कहना है कि पंछियों के नमूने जालंधर और भोपाल की लैब को भेजे गए हैं ताकि उनकी मौत का कारण खोजा जा सके.
प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा बसेरा
शिमला से करीब 300 किलोमीटर दूर कांगड़ा का पौंग इन प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा विश्राम स्थल है. इस झील में हर साल साइबेरिया और मध्य एशिया के ठंडे इलाकों से सर्दियों में पक्षी आते हैं और फरवरी-मार्च तक रहते हैं. पिछले साल हुई गणना के मुताबिक पौंग जलाशय क्षेत्र में कुल 1.15 लाख मेहमान परिंदे आए थे. इस साल 15 दिसंबर तक 56,000 पक्षी पौंग के इस इलाके में इकट्ठा हो चुके थे.
वन विभाग के मुताबिक 31 जनवरी तक पौंग जलाशय में इस साल आए पक्षियों की संख्या पता चल सकेगी. कुल 60 हजार एकड़ में फैला पौंग जलाशय 1975 में बना था. ये इलाका एक वन्य जीव अभ्यारण्य भी है और जलाशय महाशीर मछलियों प्रचुरता के लिए जाना जाता है.
दो प्रयोगशालाओं में हो रही है जांच
हमीरपुर वाइल्ड लाइफ डिवीजन के उप वन संरक्षक (डीसीएफ) राहुल रोहाणे ने डीडब्ल्यू को बताया कि मर रहे पक्षी बार हेडेड गूज (एक प्रकार की बत्तख) प्रजाति के हैं. रोहाणे के मुताबिक, "पक्षियों के मरने की पहली घटना 28 दिसंबर को हमारे नोटिस में आई, जब चार पक्षी मरे पाए गए. उसके बाद से पूरे इलाके की छानबीन की और कई पक्षी मरे मिले. अब तक 1700 पक्षी मर चुके हैं."
अधिकारी पक्षियों की मौत का कारण जानने के लिए लैब टेस्ट के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं. रोहाणे ने बताया, "हमने जालंधर की रीजनल डिसीज डायग्नोस्टिक लैब (आरडीडीएल) और भोपाल के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइ सिक्योरिटी एनिमल डिसीज (निशाद) को जांच के लिए नमूने भेजे हैं. हम जांच रिपोर्ट के बाद ही कारण बता सकेंगे. मरने वाले पक्षियों में 90 प्रतिशत बार हेडेड गूज हैं.”
मौत के सामान्य कारण
भारत के कई इलाकों में दुनिया के ठंडे प्रदेशों से पक्षी विश्राम या प्रजनन करने आते हैं. पौंग में इन पक्षियों को जहर देने की आशंका जताई गई थी लेकिन अभी वन विभाग के अधिकारी ऐसी संभावना को नकार रहे हैं. मेहमान परिंदों के मरने की घटनाएं पहले भी होती रही हैं. 2019 में जयपुर की सांभर झील में कई हजार परिंदे मरे मिले थे जिनमें प्रवासी पक्षियों की दो दर्जन से अधिक प्रजातियां शामिल थी. तब इंडियन वेटिनरी संस्थान (आईवीआरआई) की जांच से पता चला था कि इन पक्षियों को एवियन बॉटुलिज्म नाम बीमारी हो गई थी जो जलपक्षियों को पंगु बना देती है.
जानकार कहते हैं कि बैक्टीरिया और वायरस से होने वाले संक्रमण, अत्यधिक तापमान या अचानक जल भराव और किसी नए क्षेत्र में वातावरण का जहरीलापन (टॉक्सिसिटी) कई बार पक्षियों के मरने का कारण बनते हैं. इससे पहले 2006 में उत्तराखंड के रानीखेत इलाके में भी कई स्टेप ईगल मरे पाए गए थे. (dw.com)
गाजीपुर बॉर्डर, 4 जनवरी | तीन कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान नेताओं के बीच दिल्ली के विज्ञान भवन में वार्ता शुरू हो गई है। वहीं दूसरी ओर बॉर्डर पर धरना दे रहे नौजवान वॉलीबॉल खेलकर समय काट रहे हैं। विज्ञान भवन में हो रही बैठक पर हर किसी की निगाह बनी हुई है, लेकिन नौजवान प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनके नेता बैठक में गए हुए हैं, तब तक वे उनके आदेश का इंतजार कर रहे हैं। बॉर्डर के माहौल को मौसम के मुताबिक बनाए रखने के लिए वे वॉलीबॉल खेल रहे हैं।
गाजीपुर बॉर्डर पर नौजवान प्रदर्शनकारी एक तरफ वॉलीबॉल
खेल रहे हैं तो वहीं अन्य प्रदर्शनकारी क्रिकेट भी खेल रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि उनका प्र्दशन शांतिपूर्ण है। बैठक के बाद बड़े नेताओं का जो फैसला होगा, उसी मुताबिक, वे अगला कदम उठाएंगे।
दरअसल, किसान आंदोलन के 40वें दिन में प्रवेश करने के बाद दिल्ली के विज्ञान भवन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल व राज्यमंत्री सोम प्रकाश किसान संगठनों के 41 प्रतिनिधियों से बाकी बच गए दो अहम मांगों पर चर्चा कर रहे हैं।
किसान संगठनों के नेता केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी की मांग पर केंद्रीय मंत्रियों के साथ विज्ञान भवन में बातचीत कर रहे हैं। (आईएएनएस)
जम्मू, 4 जनवरी | केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के साझा हाईकोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने सोमवार को अपने पद की शपथ ली। उन्हें जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पद की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण सामारोह में सिन्हा ने मिथल को उनकी नई नियुक्ति के लिए बधाई दी।
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने नियुक्ति पत्र का वाचन किया। शपथ ग्रहण समारोह का संचालन उपराज्यपाल के प्रधान सचिव, नीतीश्वर कुमार ने किया।
मुख्य न्यायाधीश पंकज ने मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की जगह पर कमान संभाला, क्योंकि गीता मित्तल सेवानिवृत्त हो गई हैं।
इस अवसर पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल के अलावा, जम्मू-कश्मीर व इलाहाबाद उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, संसद के सदस्य, उपराज्यपाल के सलाहकार, मुख्य सचिव, प्रशासनिक सचिव, न्यायपालिका के वरिष्ठ अधिकारी, नगरीय प्रशासन, पुलिस और न्यायमूर्ति मिथल के परिवार के सदस्य व मित्रगण उपस्थित रहे। (आईएएनएस)
अमरावती, 4 जनवरी | न्यायाधीश जॉयमाल्या बागची ने सोमवार को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद की शपथ ली। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जेके महेश्वरी ने कोर्ट हॉल नम्बर-1 में बागची को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।
बागची का कोलकाता उच्च न्यायालय से यहां ट्रांसफर हुआ है। (आईएएनएस)