अंतरराष्ट्रीय
वाशिंगटन, 18 फरवरी| वैश्विक कोरोनोवायरस मामलों की कुल संख्या 10.98 करोड़ के पार पहुंच गई है जबकि 24.2 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने गुरुवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, खुलासा किया कि कोरोना के वैश्विक मामलों की संख्या और मृत्यु का आंकड़ा क्रमश: 109,885,555 और 2,429,669 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक 27,824,650 मामलों और 490,447 मौतों के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
वहीं, कोरोना के 10,937,320 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों ने दर्शाया कि कोरोना के 10 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (9,978,747), ब्रिटेन (4,083,092), रूस (4,066,164), फ्रांस (3,573,638), स्पेन (3,107,172), इटली (2,751,657), तुर्की (2,609,359), जर्मनी (2,362,364), कोलंबिया (2,207,701), अर्जेटीना (2,039,124), मेक्सिको (2,013,563), पोलैंड (1,605,372), ईरान (1,542,076), दक्षिण अफ्रीका (1,496,439), यूक्रेन (1,326,891), पेरू (1,244,729), इंडोनेशिया (1,243,646), चेक रिपब्लिक (1,112,322) और नीदरलैंड (1,052,544) हैं।
वर्तमान में 242,090 मौतों के साथ मौतों के मामले में ब्राजील दूसरे स्थान पर है, इसके बाद तीसरे स्थान पर मेक्सिको (177,061) और चौथे पर भारत (155,913) है।
इस बीच, 20,000 से ज्यादा मौतों वाले देश ब्रिटेन (119,159), इटली (94,540), फ्रांस (83,271), रूस (80,118), जर्मनी (66,427), स्पेन (66,316), ईरान (59,184), कोलंबिया (58,134), अर्जेंटीना (50,616), दक्षिण अफ्रीका (48,478), पेरू (44,056), पोलैंड (41,308), इंडोनेशिया (33,788), तुर्की (27,738), यूक्रेन (26,017), बेल्जियम (21,793) और कनाडा (21,439) हैं। (आईएएनएस)
शाकाहारी डायनासोर उत्तरी गोलार्ध में अपने मांसाहारी रिश्तेदारों के आने के लाखों साल बाद उत्तरी गोलार्ध में आए. इस देरी के पीछे जलवायु परिवर्तन को कारण बताया जा रहा है.
जीवाश्मों की आयु का पता लगाने की एक तकनीक आने के बाद कुछ नई जानकारियां सामने आई हैं. ग्रीनलैंड में मिले साउरोपोडोमॉर्फ यानी शाकाहारी डायनासोर के जीवाश्म करीब 21.5 करोड़ साल पुराने हैं. पहले इन जीवाश्मों को 22.8 करोड़ साल पुराना माना गया था. इस बारे में 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' में रिसर्च रिपोर्ट छपी है.
नई जानकारी के आने के बाद से डायनासोर के प्रवास के बारे में वैज्ञानिकों की सोच बदल गई है. अब सबसे पहले जो डायनासोर विकसित हुए वो अमेरिका में 23 करोड़ साल या उससे भी पहले आए थे. इसके बाद वो पृथ्वी के उत्तरी और दूसरे इलाकों में गए. नई स्टडी से पता चला है कि सारे डायनासोर एक ही समय में दक्षिण से उतर की ओर प्रवास पर नहीं गए.
वैज्ञानिकों को उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायनासोर परिवार का अब तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिला है जो 21.5 करोड़ साल से पुराना हो. इनका सबसे अच्छा उदाहरण है दो पैरो वाला 23 फुट लंबा शाकाहारी प्लेटियोसॉरस, जिसका वजन 4000 किलोग्राम था. हालांकि वैज्ञानिक मांसाहारी डायनासोर के जीवाश्म पहले ही दुनिया के कई हिस्सों में देख चुके हैं जो कम से कम 22 करोड़ साल पहले रहते थे. रिसर्च का नेतृत्व कर रहे कोलंबिया यूनवर्सिटी के डेनीस केंट का कहना है कि उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायनासोर बाद में आए. तो फिर इस देरी की क्या वजह थी? केंट ने उस समय के वातावरण और जलवायु में हुए परिवर्तनों पर ध्यान दिया है. करीब 23 करोड़ साल पहले ट्रियासिक युग के वातावरण में अब की तुलना में कार्बन डाइ ऑक्साइड 10 गुना ज्यादा थी. तब धरती गर्म थी और तब ध्रुवों पर कहीं कोई बर्फ की पट्टी नहीं थी. इतना ही नहीं भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण की ओर दो रेगिस्तानी इलाके थे. तब धरती बिल्कुल सूखी थी और वहां पर्याप्त मात्रा में पेड़ पौधे नहीं होने के कारण शाकाहारी डायनासोर प्रवासपर नहीं जा सकते थे. हालांकि उस वक्त भी पर्याप्त मात्रा में कीड़े मकोड़े मौजूद थे इसलिए मांसाहारी डायनासोर के लिए दिक्कत नहीं थी.
इसके बाद करीब 21.5 करोड़ साल पहले कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्तर गिर कर आधार रह गया और रेगिस्तान में थोड़े ज्यादा पेड़ पौधे पनपने लगे और तब शाकाहारी डायनासोर ने अपनी यात्रा शुरू की.
केंट और दूसरे वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्रियासिक युग में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर ज्वालामुखी और दूसरी प्राकृतिक वजहों से बदला. यही काम आज कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसों को जलाने की वजह से हो रहा है. केंट ने मिट्टी के चुम्बकत्व में होने वाले बदलाव का इस्तेमाल कर ग्रीनलैंड के जीवाश्मों की सही आयु का पता लगाया है. इसके जरिए डायनासोर के प्रवासमें समय के अंतर को देखा जा सकता है.
ज्यादातर वैज्ञानिक इस स्टडी से सहमत हैं, हालांकि एक बड़ा सवाल शिकागो यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी पॉल सेरेनो ने उठाया है. उनका कहना है, "सिर्फ इस वजह से कि हमारे पास 21.5 करोड़ साल से ज्यादा पुराना किसी शाकाहारी डायनासोर का जीवाश्म नहीं है, यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायानासोर तब नहीं थे. मुमकिन है कि डायनासोर रहे हों लेकिन उनके जीवाश्म नहीं बचे."
एनआर/एके (एपी)
फ्रांस की संसद के निचले सदन ने देश को कट्टरपंथ से बचाने और फ्रांसीसी मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भारी बहुमत से एक नया बिल पास कर दिया है. बीते कुछ सालों में कट्टरपंथ फ्रांस के लिए एक बड़ी समस्या बन के उभरी है.
इस नए बिल के कानून बन जाने के बाद फ्रांस में मस्जिदों, मदरसों और स्पोर्ट्स क्लबों की निगरानी बढ़ जाएगी.फ्रांस की सरकार इसी कट्टरपंथ से मुकाबले के लिए एक नया बिल लेकर आई है. दो हफ्ते तक व्यापक रूप से बहस करने के बाद सरकार ने यह बिल 151 के मुकाबले 347 मतों से पास किया. 65 सांसद इस दौरान गैरहाजिर रहे. लंबे समय से इस बिल को लेकर देश में चर्चा चल रही है और अब इसने कानून बनने की राह में पहली बाधा पार कर ली है.
फ्रांस में चरमपंथी हमले और सैकड़ों लोगों के सीरिया के युद्ध में शामिल होने के लिए जाने के साथ ही माली में चरमपंथियों से लड़ते हजारों सैनिकों को देखने के बाद इस बात में कोई संदेह नहीं कि कट्टरपंथ देश के लिए कितना बड़ा खतरा बन रहा है. हालांकि आलोचक इसे राष्ट्रपति माक्रों की मध्यमार्गी पार्टी के लिए राजनीतिक कदम मान रहे हैं. फ्रांस में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं.
"सपोर्टिंग रेसपेक्ट फॉर द प्रिंसिपल्स ऑफ द रिपब्लिक" यानी गणराज्य के सिद्धांतों के सम्मान को समर्थन नाम के इस बिल में फ्रांसीसी जीवन के ज्यादातर पहलुओं को शामिल किया गया है. मुसलमान, कुछ सांसद और कुछ दूसरे लोग हालांकि इसका विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि इस बिल के जरिए सरकार लोगों की आजादी में दखल दे रही है और इस्लाम पर उंगली उठा रही है जो फ्रांस का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. इस कानून ने संसद के निचले सदन की बाधा तो पार कर ली है जहां माक्रों की पार्टी बहुमत में है लेकिन इसे अभी रूढ़िवादी पार्टी के बहुमत वाली सीनेट से गुजरना है. वहां का रास्ता इतना आसान नहीं होगा. सीनेट में यह बिल 30 मार्च के बाद ही आएगा.
बीते साल अक्टूबर में पेरिस में एक टीचर की हत्या और फिर नीस के चर्च पर हुए हमले में तीन लोगों की मौत के बाद इस कानून को सरकार जरूरी बताने लगी. इस कानून की एक धारा जान बूझ कर किसी के बारे में निजी जानकारी दे कर उसकी जान को खतरे में डालने को आपराधिक बना देगी. इसे "पैटी लॉ" कहा जा रहा है जो स्कूल टीचर सैमुअल पैटी के नाम पर है. सैमुअल पैटी के बारे में एक वीडियो में जानकारी दी गई थी. उन्होंने स्कूल में बच्चों को पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाया था. इसके बाद उनका सिर काट कर उनकी हत्या कर दी गई.
सरकार का मानना है कि इस बिल के कानून बनने के बाद फ्रांस में चरमपंथ से लड़ने की सरकार की कोशिशें मजबूत होंगी. हालांकि विरोध करने वाले कह रहे हैं कि जिन उपायों की बात हो रही है वो मौजूदा कानूनों में शामिल हैं. कुछ लोगों का मानना है कि इस बिल के पीछे राजनीतिक मंशा छुपी हुई है. मंगलवार को वोटिंग से कुछ दिन पहले गृहमंत्री गेराल्ड डारमानी ने टीवी पर हुई बहस के दौरान धुर दक्षिणपंथी नेता मारीन ले पेन पर कट्टरपंथी इस्लाम के प्रति "नरम" रहने का आरोप लगाया. डारमानी ने यह भी कहा कि ले पेन को विटामिन लेने की जरूरत है. इस बयान का मकसद यह बताना था कि मौजूदा सरकार धुर दक्षिणपंथियों के मुकाबले इस्लामी कट्टरपंथियों से निपटने में ज्यादा सख्ती दिखा रही है. हालांकि ली पेन ने बिल को बहुत कमजोर बताया और इसके बदले अपनी तरफ से नया बिल लाने की बात कही. ली पेन ने 2022 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी पेश की है. 2017 में वह माक्रों से हार गई थीं.
ली पेन की नेशनल रैली पार्टी के उपाध्यक्ष ने बीएपएम टीवी से कहा कि बिल, "अपने लक्ष्य से चूक गया" क्योंकि यह कट्टरपंथी इस्लाम की सोच पर हमला नहीं करता है. बिल में मुसमान या इस्लाम का नाम नहीं लिया गया है. इसके समर्थकों का कहना है कि सरकार इसे कट्टरपंथ के खिलाफ लेकर आई है जो फ्रांसीसी मूल्यों को खत्म कर रहा है, खासतौर से धर्मनिरपेक्षता और लैंगिक समानता को, जो देश की बुनियादी उसूल हैं. राष्ट्रपति माक्रों का मानना है कि कट्टरपंथी फ्रांस में एक "विपरीत समाज" बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
बिल का ड्राफ्ट तैयार करने से पहले सभी धर्मों के प्रतिनिधियों से विचार विमर्श किया गया. फ्रांस में मुसलमानों के संगठन फ्रेंच काउंसिल फॉर मुस्लिम फेथ ने भी इसे समर्थन दिया है.
यह बिल वर्जिनिटी सर्टिफिकेट यानी कुआंरेपन के प्रमाणपत्र पर भी रोक लगाएगा ताकि बहुविवाह और जबरन विवाह जैसी कुरीतियां किसी खास धर्म से जुड़ी ना रहें. इसके साथ ही बिल में यह भी प्रावधान है कि बच्चे तीन साल की उम्र में नियमित स्कूल शुरू कर दें. सरकार मानती है कि होम स्कूल के माध्यम से बच्चों को धार्मिक विचारों की शिक्षा दी जाती है और जिसे रोकने की मंशा है. किसी सरकारी कर्मचारी को धमकी देने वाले को जेल की सजा हो सकती है. इसे भी सैमुअल पैटी से जोड़ कर देखा जा रहा है. अगर किसी कर्मचारी को धमकी मिली है तो उसके बॉस को तुरंत इस पर कार्रवाई करनी होगी बशर्ते कर्मचारी इसके लिए सहमत हो.
मुस्लिम संस्थाओं पर नजर
बिल में एक प्रावधान मस्जिदों और उन्हें चलाने वाली संस्थाओं के लिए यह सुनिश्चित करने का भी है कि उन्हें किसी विदेशी हितों या फिर घरेलू सलाफियों के इस्लाम की कठोर व्याख्या के तहत नहीं चलाया जा रहा है. संस्थाओं को इसके लिए करार पर दस्तखत करने होंगे कि वो फ्रांसीसी मूल्यों का सम्मान करेंगे और अगर कहीं इसका उल्लंघन हुआ तो सरकारी धन वापस करेंगे. बिल में बताए बदलावों को शामिल करने के लिए फ्रांस को 1905 में बने एक कानून में थोड़ा सुधार करना होगा जो चर्च और सरकार के बीच अंतर सुनिश्चित करता है.
कुछ मुसलमानों का कहना है कि उन्हें संदेह के वातावरण की गंध आ रही है. पेरिस की ग्रैंड मॉस्क में शुक्रवार की नमाज के लिए आए टैक्सी ड्राइवर बाहरी अयारी का कहना है, "थोड़ा संदेह है, एक मुसलमान, मुसलमान होता है बस. हम कट्टरपंथियों की बात करते हैं जिन्हें मैं नहीं जानता. एक ग्रंथ है, एक पैगंबर हैं और पैगंबर ने हमें सिखाया है." जिन कट्टरपंथियों को सजा हुई उनके बारे में वह कहते हैं, उनका अपराध है, "इस्लाम को पीछे छोड़ना, वो मुसलमान नहीं हैं."
एनआर/एके (एपी)
2016 से 2019 के आंकड़ों से तुलना करें तो पिछला साल यूरोप के लिए काफी बुरा रहा. कोरोना महामारी ने यहां लाखों लोगों की जान ली. पूर्वी यूरोप पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ी.
यह आंकड़ा यूरोस्टैट एजेंसी ने मुहैया कराया है. इसमें सिर्फ कोरोना से मरने वालों की नहीं, बल्कि यूरोप में कुल मौतों का ब्योरा दिया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, "इस विश्लेषण में दिया गया डाटा उन सभी मौतों की जानकारी देता है जो (यूरोप में) जनवरी से नवंबर 2020 के बीच हुई." इस रिपोर्ट के लिए यूरोस्टैट ने सभी देशों से आधिकारिक आंकड़े मंगवाए. आयरलैंड इससे बाहर रहा. उसने आंकड़े देने से मना कर दिया.
एजेंसी ने बताया, "कोविड-19 की शुरुआत में अप्रैल 2020 में ही यूरोपीय संघ में मृत्यु दर पहली बार सबसे ऊंची दर तक पहुंच गया था. 2016 से 2019 की तुलना में मौत का आंकड़ा 25 फीसदी अधिक था." इस दौरान अकेले स्पेन में ही मृत्यु दर 80 फीसदी ज्यादा रिकॉर्ड की गई थी. हालांकि स्पेन और इटली पर दुनिया भर की नजरें टिकी थीं लेकिन बेल्जियम के बारे में कोई खास बात नहीं हुई. बेल्जियम में मृत्यु दर अप्रैल में 74 प्रतिशत अधिक थी.
इसके बाद मई से ले कर जुलाई तक स्थिति कुछ बेहतर हुई. लेकिन अगस्त-सितंबर से एक बार फिर बड़ी संख्या में मौतों का सिलसिला शुरू हुआ. रिपोर्ट में कहा गया है, "ईयू में मृत्यु दर सितंबर में आठ फीसदी ज्यादा थी, अक्टूबर में यह 17 फीसदी हुई और नवंबर में 40 फीसदी. ईयू के सभी सदस्य देशों में आंकड़ा बढ़ता दिखा."
नवंबर में सबसे बुरा हाल हुआ पोलैंड, स्लोवेनिया और बुल्गारिया का जहां इस एक महीने में ही पिछले सालों की तुलना में मृत्यु दर 90 फीसदी अधिक दर्ज की गई. इसी दौरान बेल्जियम में 60 फीसदी की वृद्धि और इटली और ऑस्ट्रिया में 50 फीसदी की वृद्धि देखी गई.
यूरोस्टैट ने साफ किया है कि उसने अभी तक मौत के कारणों और लिंग के अनुसार मौत की दर का विश्लेषण नहीं किया है. यानी रिपोर्ट में जिन मौतों का जिक्र है, उन सभी के लिए कोरोना महामारी जिम्मेदार नहीं है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना की इन मौतों में एक बड़ी भूमिका है.
आईबी/एनआर (डीपीए)
काबुल, 17 फरवरी | अफगानिस्तान में पिछले 24 घंटों में हुई 2 सुरक्षा संबंधी घटनाओं में 3 लोगों की मौत हो गई है और 2 लोग घायल हो गए हैं। इनमें से एक घटना काबुल के बागरामी जिले में हुई, जहां हथियारबंद लुटेरों और बस के यात्रियों के बीच हुई झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए। सूत्रों ने बताया कि लुटेरों ने बंदूक की नोक पर यात्रियों को लूटने की कोशिश की थी। टोलो न्यूज के मुताबिक, बुधवार की सुबह काबुल के बागरामी जिले में हुसैनखेल क्षेत्र में अज्ञात बंदूकधारियों ने एक व्यक्ति और उसके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी।
सूत्रों ने बताया, "पीड़ित पिता राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के लिए काम करते थे, वहीं बेटा रक्षा मंत्रालय में अधिकारी था।" इन घटनाओं पर पुलिस ने कोई टिप्पणी नहीं की है।
टोलो न्यूज के मुताबिक फरवरी की शुरुआत से लेकर अब तक में आईईडी ब्लास्ट, सड़क किनारे हुए बम धमाकों और निशाना बनाकर की गई हत्याओं में मरने वालों और घायल होने वालों की संख्या 340 हो गई है। (आईएएनएस)
जकार्ता, 17 फरवरी | इंडोनेशिया के पूर्वी जावा प्रांत में हुए भूस्खलन के कारण मरने वालों की संख्या बढ़कर 12 हो गई है। वहीं आपदा के बाद लापता हुए 7 लोगों की तलाश की जा रही है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि इस प्राकृतिक आपदा में 20 से ज्यादा लोग घायल भी हुए हैं, उनका अभी इलाज चल रहा है। वहीं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी की प्रवक्ता रादित्य जाति ने एक बयान में कहा, "7 ग्रामीण मंगलवार की रात से लापता हैं। भूस्खलन के कारण मलबे में फंसे लोगों को निकालने के लिए बचाव अभियान जारी है।"
अधिकारियों का मानना है कि पूर्वी जावा के नगंजुक जिले के नगेटोस में भारी बारिश के कारण भूस्खलन हुआ। इस आपदा के कारण 180 से ज्यादा ग्रामीण प्रभावित हुए हैं। 100 से ज्यादा लोगों को मजबूरी में अपने घर छोड़कर आश्रय घरों में रहना पड़ रहा है। बता दें कि इंडोनेशिया में बारिश के मौसम में अक्सर भूस्खलन होते हैं और बाढ़ आती है। (आईएएनएस)
उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग-उन की पत्नी रि सोल-जू को लगभग साल भर बाद देखा गया है.
वे मंगलवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपने पति के साथ शामिल हुईं.
उत्तर कोरिया के सरकारी न्यूज़ चैनल के अनुसार उन्होंने किम के पिता और पूर्व उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-इल की जयंती के मौके पर आयोजित एक समारोह में हिस्सा लिया.
इससे पहले रि सोल-जू महत्वपूर्ण अवसरों पर किम जोंग-उन के साथ नज़र आई हैं. लेकिन पिछले साल जनवरी महीने से वह उनके साथ नज़र नहीं आ रही थीं.
इसकी वजह से रि सोल-जू के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं जताई जा रही थीं और उनके गर्भवती होने से जुड़े कयास भी लगाए जा रहे थे.
दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय खुफिया सेवा ने संसद सदस्यों को कथित रूप से बताया है कि रि सोल-जू कोविड 19 से जुड़ी चिंताओं और अपने बच्चों के साथ समय बिताने की वजह से बाहर जाने से बच रही थीं.
उत्तर कोरिया ने आधिकारिक रूप से अपने यहां किसी भी व्यक्ति के कोविड - 19 से संक्रमित होने की पुष्टि नहीं की है. लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा होना संभव नहीं है.
उत्तर कोरियाई अख़बार रोडोंग सिनमन के मुताबिक़ किम जोंग-उन और रि सोल-जू ने मनसुडे आर्ट थिएटर में जब प्रवेश किया तो लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत किया.
इस मौके पर खींची गई तस्वीरों में दोनों लोग हंसते हुए नज़र आ रहे हैं. इसके साथ ही लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करते दिख रहे हैं.
एक विश्लेषक चेंओंग – सेओंग- चैंग के मुताबिक़, रि एक उच्च वर्गीय परिवार से आती हैं. उनके पिता प्रोफेसर और माँ डॉक्टर हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कथित रूप से 31 वर्षीय रि सोल-जू इससे पहले एक अभिजात संगीतकारों के उनहासू ऑर्केस्ट्रा में गायिका थीं. इसके सदस्यों को सरकार द्वारा विशेष प्रक्रिया के द्वारा चुना जाता है.
चेओंग मानते हैं कि ये शादी 2009 में हुई होगी और किम जोंग-इल द्वारा जल्दबाजी में आयोजित की गई होगी क्योंकि उन्हें 2008 में स्ट्रोक हुआ था.
हालांकि, रि सोल-जू को किम जोंग-उन की पत्नी के रूप में साल 2021 में पहचान मिली जब स्टेट मीडिया ने आधिकारिक रूप से इसकी सूचना दी.
दक्षिण कोरियाई खुफिया एजेंसियों के मुताबिक़, इस जोड़े के तीन बच्चे हैं.
पूर्व अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी डेनिस रॉडमैन ने पहले बताया था कि इस जोड़े की एक बेटी है जिसका नाम जू-एई है और किम एक अच्छे पिता हैं.
किम इससे पहले ‘डे ऑफ़ द शाइनिंग स्टार’ के मौके पर कुमुसन पैलेस ऑफ़ द सन पहुंचे, जहां उनके पिता और दादा का अंतिम संस्कार हुआ था, और अपने पिता और दादा को श्रद्धांजलि दी.
उत्तर कोरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी ने किम जोंग-उन को अध्यक्ष बताया है जो कि उनके सामान्य आधिकारिक पद चेयरमैन से हटकर है. किम जोंग उन को सबसे पहले उत्तर कोरिया की सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी द्वारा अध्यक्ष बताया गया था.
सामान्य रूप से उत्तर कोरिया में अध्यक्ष पद को किम-इल-संग के लिए आरक्षित रखा जाता है जो कि उत्तर कोरिया के संस्थापक और किम के बाबा हैं.
-रजनीश कुमार
रविवार को अगरतला में बिप्लब कुमाब देब ने पार्टी के एक कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह का हवाला देते हुए कहा था कि बीजेपी न केवल भारत के सभी राज्यों में, बल्कि नेपाल और श्रीलंका में भी सरकार बनाना चाहती है.
नेपाल के लोग पाकिस्तान के बारे में क्या सोचते हैं?
नेपाल में क्यों बढ़ रही है भारत विरोधी भावना? चीन में बढ़ी दिलचस्पी
बिप्लब कुमार देब ने कहा था कि तब अमित शाह पार्टी प्रमुख थे और उसी दौरान उन्होंने अपनी योजना के बारे में बताया था कि पार्टी विदेशों में भी अपना विस्तार करेगी.
उन्होंने कहा था, ''गृह मंत्री जी तब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. मैंने एक बैठक में कहा कि अध्यक्ष जी बहुत स्टेट हमलोग के पास हो गया है. अब तो अच्छा हो गया है. इस पर अध्यक्ष जी ने कहा- अरे काहे अच्छा हो गया है. अभी तो श्रीलंका बाक़ी है. नेपाल बाक़ी है. मतलब उस आदमी को...बोलता है कि देश का तो कर ही लेंगे...श्रीलंका है...नेपाल है...वहाँ भी तो पार्टी को लेकर जाना है. वहाँ भी जीतना है.''
औपचारिक आपत्ति
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने कहा है कि इस मामले में नेपाल ने भारत सरकार के समक्ष औपचारिक आपत्ति दर्ज करा दी है.
नेपाली मीडिया के अनुसार भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य ने सरकार के समक्ष औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली के प्रेस सलाहकार सुदन ज्ञवाली ने बीबीसी से कहा कि दिल्ली के नेपाली दूतावास ने भारत सरकार के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है.
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (प्रचंड गुट) के केंद्रीय और नेपाली प्रवास समन्वय समिति के अध्यक्ष युवराज चौंलगाईं ने बीबीसी से कहा कि बिप्लब देब की यह टिप्पणी नेपाल की संप्रभुता का अपमान है.
युवराज कहते हैं, ''भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी से पता चलता है कि भारत का शासक वर्ग नेपाल को लेकर क्या सोच रखता है. आप ये कैसे कह सकते हैं? नेपाल एक संप्रभु देश है और उसके बारे में उसी सम्मान के साथ कोई टिप्पणी होनी चाहिए.''
युवराज कहते हैं, ''नेपाल को लेकर बीजेपी में इतना आत्मविश्वास कहाँ से आता है, ये सोचने की बात है. इन्हें लगता है कि नेपाल में हिंदू आबादी बहुसंख्यक है, तो कुछ भी बोल दो. हमारी आबादी में भले बहुसंख्यक हिंदू हैं, लेकिन इससे हमारी संप्रभुता का सम्मान कम नहीं हो जाता है. दुनिया में कई मुस्लिम बहुल देश हैं, लेकिन वहाँ तो कोई बड़ा मुस्लिम बहुल देश छोटे मु्स्लिम बहुल देश की संप्रभुता का अपमान नहीं करता. मेरा मानना है कि नेपाल की सरकार को और कड़ी आपत्ति दर्ज करानी चाहिए थी.''
नेपाली मीडिया में भी चर्चा
बिप्लब देब का यह बयान नेपाली मीडिया में छाया रहा. नेपाली अख़बार नया पत्रिका ने 15 फ़रवरी को अपनी रिपोर्ट में लिखा, ''क्या भाजपा की यह गोपनीय योजना बाहर आ गई है? नेपाल में आरएसएस अपना विस्तार पहले से ही कर रहा है. ऐसे में बीजेपी के मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी सुनियोजित है या संयोग? वीरगंज में आरएसएस का एक सम्मेलन हुआ था. इस सम्मेलन का उद्घाटन आरसएस के राष्ट्रीय संह-संचालक कल्याण तिमिल्सिनाले ने किया था. इसमें धर्मांतरण को लेकर चिंता जताई गई थी और वीरगंज बाज़ार से आरएसएस के स्वयंसेवकों ने एक मार्च भी निकाला था.''
बिप्लब देव की टिप्पणी पर रूस में नेपाल के राजदूत रहे हिरण्य लाल श्रेष्ठ कहते हैं कि यह आरएसएस और बीजेपी की मौलिक सोच है. वे कहते हैं, ''सरदार पटेल की तरह ये भी भारत का विस्तार चाहते हैं. ये पूरे साउथ एशिया में हिंदू धर्म का प्रभाव चाहते हैं. लेकिन इन्हें पता होना चाहिए कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है ना कि स्टेट का. किसी की संप्रभुता छोटी या बड़ी नहीं होती है. सबकी संप्रभुता का सम्मान उसी रूप में होना चाहिए.''
श्रेष्ठ कहते हैं, ''आरएसएस का प्लान है कि वो नेपाल में भी अपना प्रभाव भारत की तरह ही बनाए. तराई के इलाक़े में ऐसी कोशिश की भी जा रही है. हम भारत और नेपाल में आम लोगों के बीच मज़बूत संबंध चाहते हैं, लेकिन शासक वर्ग की अधिनायकवादी सोच से परे. आरएसएस वाले भारत का विस्तार पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश तक करना चाहते हैं, लेकिन इन्हें सपने से बाहर निकलना चाहिए.''
बिप्लब देब की इस टिप्पणी को भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी बकवास बताया है. कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा, ''इन जैसे लोगों के बेवकूफ़ी भरे बयानों की वजह से आज भारत के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते सबसे ख़राब दौर में पहुँच चुके हैं. आपलोग इन बेवकूफ़ी भरे बयानों से लोगों को सिर्फ़ मूर्ख बना सकते हैं.''
सीपीआईएम नेता और पूर्व सांसद जितेंद्र चौधरी ने कहा है कि मुख्यमंत्री को लोकतंत्र और संविधान की समझ नहीं है. उन्होंने कहा है कि इस तरह की टिप्पणी किसी दूसरे देश के हस्तक्षेप की तरह देखी जाएगी.
बाबूराम भट्टराई की जनता समाजवादी पार्टी के नेता राजकिशोर यादव कहते हैं कि बिप्लब देब की टिप्पणी से कोई भी नेपाली ख़ुश नहीं हुआ होगा. वे कहते हैं, ''इस तरह की टिप्पणी से भारत नेपाल संबंध ख़राब ही होंगे. ये फालतू की टिप्पणी करते रहे हैं और कहते हैं कि नेपाल में भारत विरोधी भावना बढ़ रही है.''
नेपाल में कई लोग मानते हैं कि नरेंद्र मोदी जब 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो वे नेपाल में भी काफ़ी लोकप्रिय थे लेकिन 2015 में नाकेबंदी के बाद से भारत और बीजेपी दोनों की छवि नेपाल में ख़राब हुई है.
एक नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि अच्छा हुआ कि 2015 में नाकेबंदी भारत ने लगा दी नहीं दी, नहीं तो मोदी नेपाल में भी बड़े नेता बन जाते.
नेपाल इतना महंगा क्यों है? ढेर सारा भारतीय रुपया भी पड़ता है कम
भारत-नेपाल संबंध: पीएम मोदी नेपाली विदेश मंत्री से क्यों नहीं मिले?
नेपाल पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से हिंदू राष्ट्र बनाए रखने को लेकर भी दवाब रहा है.
26 मई 2006 को बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था, ''नेपाल की मौलिक पहचान एक हिंदू राष्ट्र की है और इस पहचान को मिटने नहीं देना चाहिए. बीजेपी इस बात से ख़ुश नहीं होगी कि नेपाल अपनी मौलिक पहचान माओवादियों के दबाव में खो दे.'' (bbc.com)
दुबई, 17 फरवरी | दुबई के वेयरहाउस में आग लगने के हादसे में अपने कीमती सामान गंवाने वाले भारतीय प्रवासियों ने केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इन्होंने मांग की है उन्हें अपना बकाया पैसा लेने के लिए कानूनी सहायता दी जाए। गल्फ न्यूज के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि यूएई की इस कार्गो फर्म को उन्होंने हजारों दिरहम के कीमती सामान केरल भेजने के लिए दिए थे, जो कि आग लगने से नष्ट हो गए। इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कोविड महामारी के दौरान अपनी नौकरी खो दी थी और उन्हें अपने परिवारों को वापस घर भेजना पड़ा।
केरल हाई कोर्ट के वकील जोस अब्राहम ने गल्फ न्यूज को बताया, "यह याचिका केरल हाई कोर्ट में इसलिए दायर की गई है क्योंकि ज्यादातर पीड़ित केरल के हैं। वे यूएई जाकर अपना केस लड़ने की स्थिति में नहीं हैं।"
इस मामले में केरल हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर यूएई में भारत के दूतावास को निर्देश देने के लिए कहा है कि वे वहां पर पीड़ितों को मदद करे ताकि वे अपना मुआवजा प्राप्त कर सकें। ये नोटिस जस्टिस पी.वी. आशा की अध्यक्षता वाली पीठ ने जारी किया है। इसमें संबंधित अधिकारियों से याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर विचार करने और मुआवजे के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए मुफ्त कानूनी सहायता देने के लिए कहा गया है।
याचिका के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि महामारी के कारण उन्होंने अपनी नौकरी खो दी थी और फिर अपना सामान घर भेजने के लिए उन्होंने कार्गो कंपनी को हजारों दिरहम का भुगतान किया लेकिन उनके घर पहुंचने के बाद भी उनका सामान नहीं पहुंचा। यह कीमती सामान उन्होंने कई सालों की कड़ी मेहनत से इकट्ठा किया था। याचिकाकर्ताओं ने अपनी बात को एनओआरकेए (गैर-निवासी केरलवासियों के मामलों की देखरेख करने वाली संस्था) के प्रमुख सचिव तक पहुंचाया, जिन्होंने इसे अबु धाबी में भारतीय दूतावास तक पहुंचाया।
पिछले साल मार्च में अपनी नौकरी खोने वाले जॉर्ज जोसेफ ने अपना सामान भेजने के लिए कंपनी को 5,700 दिरहम का भुगतान किया था। वहीं दुबई में बतौर टेकि्न कल इंजीनियर काम करने वाले रामदास परुवायाकोड ने अपने परिवार के लिए हजारों दिरहम खर्च कर नया फ्रिज, वॉशिंग मशीन और कई चीजें भेजी थीं, जो कि गोदाम में जल गए। इसके अलावा कंपनी को भी उन्होंने शिपिंग के लिए हजारों दिरहम भी चुकाए थे।
आग में ढेर सारा कीमती फर्नीचर और म्यूजिक सिस्टम गंवाने वाली 43 वर्षीय रोजी कुरियन कहती हैं, "हमें हजारों दिरहम का नुकसान हुआ है, हमें मुआवजा मिलना ही चाहिए।" वहीं पिछले 22 वर्षों से दुबई में फ्रीलांस आईटी कंसल्टेंट्स के तौर पर काम करने वाले मंगेश प्रसाद चाफोलकर कहते हैं, "मैंने टीवी कैबिनेट, बेड, किचन का ढेर सारा सामान, मेरे बच्चों के सर्टिफिकेट्स, ट्राफियां भेजी थीं। इतना ही नहीं इसमें हमारी फैमिली की तस्वीरें, वीडियो और कई एंटीक्स भी शामिल थे। सामान जलने से हमारी जिंदगी उलट-पलट हो गई है। मुझे कुछ अच्छा होने की उम्मीद है। " (आईएएनएस)
दुबई के शासक की बेटी प्रिंसेज़ लतीफ़ा अल मकतूम ने 2018 में देश से भागने की कोशिश की थी और उन्हें बाद में पकड़ लिया गया था.
उन्होंने इसके बाद एक वीडियो संदेश अपने दोस्तों को भेजा था जिसमें वो अपने पिता पर उन्हें 'बंधक' बनाने का आरोप लगा रही हैं और कह रही हैं कि उनकी जान ख़तरे में है.
प्रिंसेज़ लतीफ़ा का यह वीडियो फ़ुटेज बीबीसी पैनोरमा को मिला है जिसमें वो कह रही हैं कि नाव से भागने के दौरान कमांडो ने उन्हें पकड़ लिया था और वे उन्हें हिरासत केंद्र में ले आए हैं.
उनके यह ख़ुफ़िया संदेश आने बंद हो चुके हैं और दोस्तों ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि वह इसमें दख़ल दे.
दुबई और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) पहले कह चुका है कि प्रिंसेज़ लतीफ़ा परिवार की देखभाल में सुरक्षित हैं.
संयुक्त राष्ट्र की पूर्व मानवाधिकार दूत मैरी रॉबिनसन ने 2018 में लतीफ़ा से मुलाक़ात के बाद उन्हें 'परेशान युवा महिला' कहा था लेकिन अब उन्होंने कहा है कि राजकुमारी के परिवार ने उन्हें 'बुरी तरह से धोखा' दिया है.
संयुक्त राष्ट्र की पूर्व मानवाधिकार उच्चायुक्त और आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति रॉबिनसन ने अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की मांग करते हुए लतीफ़ा की वर्तमान स्थिति पता लगाने की मांग की है.
उनका कहना है, "मुझे लगातार लतीफ़ा की चिंता है. चीज़ें काफ़ी बदल गई हैं और अब मुझे लगता है कि इसकी जांच होनी चाहिए."
लतीफ़ा के पिता शेख़ मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम दुनिया के अमीर राष्ट्राध्यक्षों में से एक हैं. वो दुबई के शासक और यूएई के उप-राष्ट्रपति हैं.
लतीफ़ा को पकड़ने के बाद उन्हें दुबई ले जाया गया था जिसके बाद उन्होंने गुपचुप तरीक़े से कई महीनों तक ये वीडियो बनाए. इनको उन्होंने अपने बाथरूम में बनाया और यही इकलौता दरवाज़ा था जिसे वो बंद कर सकती थीं.
टीना जोहाएनन, लतीफ़ा की फ़िटनेस इंस्ट्रक्टर रही हैं और उन्होंने उनकी भागने में मदद की थी
लतीफ़ा के पकड़े जाने और उन्हें हिरासत में रखने के बारे में पैनोरमा को उनकी दोस्त टीना जोहाएनन, ममेरे भाई मार्कस एसाबरी और कैंपेनर डेविड हाए ने बताया है. ये सभी लोग फ़्री लतीफ़ा कैंपेन भी चला रहे हैं.
उनका कहना है कि वे लतीफ़ा की सुरक्षा को देखते हुए उनके संदेश सार्वजनिक करने का कठिन फ़ैसला कर रहे हैं.
ये वही लोग हैं जिन्होंने दुबई के एक घर में रहने के दौरान लतीफ़ा के साथ संपर्क स्थापित किया था.
लतीफ़ा को कहां रखा गया था पैनोरमा ने स्वतंत्र रूप से इसकी जांच की है.
कौन हैं दुबई के शासक
शेख़ मोहम्मद ने एक बहुत ही कामयाब शहर का निर्माण किया है लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि वहां पर असहमति की कोई जगह नहीं है और न्यायिक प्रणाली महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण है.
शेख़ मोहम्मद के पास घुड़दौड़ का एक विशाल उद्यम है और वो रॉयल एस्कॉट समेत बड़े समारोहों में शामिल होते रहे हैं जहां पर उनकी महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के साथ भी तस्वीर है.
लेकिन प्रिंसेज़ लतीफ़ा और उनकी सौतेली मां को लेकर वो आलोचनाओं का सामना करते रहे हैं. उनकी पत्नी प्रिंसेज़ हया बिंत अल हुसैन साल 2019 में अपने दो बच्चों के साथ लंदन भाग गई थीं.
नाव के ज़रिए भागना
लतीफ़ा (तक़रीबन 35 वर्ष आयु) ने पहली बार 16 साल की उम्र में भागने की कोशिश की थी. आख़िरी बार उन्होंने अपनी फ़िटनेस इंस्ट्रक्टर जोहाएनन की मदद से भागने की कोशिश की.
24 फ़रवरी 2018 को लतीफ़ा और जोहाएनन एक नाव और जेट स्की लेकर अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में गए जहां पर एक फ़्रेंच बिज़नेसमैन हर्व जॉबर्ट एक अमेरिकी झंडे लगे यॉट में उनका इंतज़ार कर रहे थे.
आठ दिनों के सफ़र के बाद भारत के नज़दीक कमांडो दस्ते ने नाव को पकड़ लिया था. जोहाएनन ने कहा कि आंसू गैस के गोलों के कारण लतीफ़ा बाथरूम में जहां छिपी थीं वहां से वो निकलकर बाहर आ गईं और उन्हें बंदूक़ की नोक के दम पर पकड़ लिया गया.
लतीफ़ा दुबई लौटीं और उसके बाद से उनका कोई अता-पता नहीं है.
दुबई में दो सप्ताह तक हिरासत में रखे जाने के बाद जोहाएनन और बाक़ी के क्रू को रिहा कर दिया गया. भारत सरकार ने इस पूरी घटना में अपनी भूमिका होने या न होने पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की.
2018 में उनके भागने की कोशिश से पहले लतीफ़ा ने एक वीडियो रिकॉर्ड किया था जिसको उनके पकड़े जाने के बाद यूट्यूब पर अपलोड किया गया था. इसमें वो कह रही हैं, "अगर आप यह वीडियो देख रहे हैं तो इसका मतलब है कि यह अच्छा नहीं है क्योंकि या तो मैं मर चुकी हूं या मैं बहुत, बहुत, बहुत बुरी स्थिति में हूं."
इस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी चिंता व्यक्त की गई थी और उनको रिहा करने की मांग की गई थी. इसके बाद यूएई पर दबाव पड़ा तो उसने रॉबिनसन के साथ उनकी मुलाक़ात तय की.
रॉबिनसन की मुलाक़ात
प्रिंसेज़ हया के निवेदन पर वो दिसंबर 2018 में दुबई आईं जहां पर लंच के दौरान लतीफ़ा भी मौजूद थीं.
रॉबिनसन ने पैनोरमा को बताया कि प्रिंसेज़ हया ने लतीफ़ा के बायपोलर डिसॉर्डर के बारे में बताया था जो कि उनको नहीं रहा है.
उन्होंने बताया कि उन्होंने लतीफ़ा से उनकी स्थिति के बारे में नहीं पूछा था क्योंकि वो लतीफ़ा के 'सदमे को बढ़ाना' नहीं चाहती थीं.
इस घटना के नौ दिन के बाद यूएई के विदेश मंत्रालय ने रॉबिनसन के साथ लतीफ़ा की तस्वीर को सबूत की तरह प्रकाशित किया और कहा कि प्रिंसेज़ सुरक्षित और ठीक हैं.
रॉबिनसन ने कहा, "जब तस्वीर सार्वजनिक की गई तो मुझे लगा कि धोखा दिया गया है. यह पूरी तरह चौंकाने वाला था और मैं पूरी तरह अवाक थी."
2019 में दुबई के सत्तारूढ़ परिवार की एक और कलह इंग्लैंड के हाई कोर्ट के सामने पहुंच गई थी. शेख़ की एक पत्नी प्रिंसेज़ हया अपने दो बच्चों के साथ ब्रिटेन भाग आई थीं और उन्होंने शेख़ से सुरक्षा के लिए आवेदन किया था.
इमेज कैप्शन,
प्रिंसेज़ हया फ़रवरी 2020 में हाईकोर्ट जाते हुए
पिछले साल हाई कोर्ट ने एक फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि शेख़ मोहम्मद ने 2002 और 2018 में लतीफ़ा को जबरन लाने का आदेश दिया था और साल 2000 में ब्रिटेन में लतीफ़ा की छोटी बहन प्रिंसेज़ शमसा का अपहरण किया था, उन्होंने भी भागने की कोशिश की थी.
कोर्ट ने पाया कि शेख मोहम्मद ने 'लगातार ऐसा शासन बनाए रखा जहां पर दो युवा महिलाओं को उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया.'
इन वीडियो संदेशों को जारी करने पर जोहाएनन कहती हैं कि उनसे संपर्क हुए काफ़ी समय बीत चुका है और उन्होंने यह वीडियो संदेश जारी करने को लेकर बहुत सोचा था.
वो कहती हैं, "मुझे लगता है कि वो चाहती हैं कि हम उनके लिए लड़ें और यूं ही हिम्मत नहीं हारें."
लतीफ़ा की वर्तमान स्थिति के बारे में बीबीसी ने दुबई और यूएई की सरकारों से उनका पक्ष जानना चाहा लेकिन उन्होंने इस पर अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. (bbc.com)
किम जोंग उन की पत्नी नजर नहीं आ रही हैं.उत्तर कोरियाई शासन के वरिष्ठ सदस्य इस तरह से नजरों से ओझल रह कर दोबारा सामने आते रहे हैं लेकिन उत्तर कोरिया पर नजर रखने वाले विश्लेषक लेकर तरह तरह की संभावनाएं जता रहे हैं.
डॉयचे वैले पर यूलियन रयाल की रिपोर्ट-
री सोल जू को आखिरी बार सार्वजनिक रूप से 25 जनवरी 2020 को देखा गया था जब वे अपने पति के साथ सामिज्योन थिएटर में नए साल के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में शामिल हुईं. सरकारी मीडिया की ओर से जारी तस्वीरों में उन्हें उत्तर कोरियाई नेता और अपनी आंटी किम क्योंग हुई के बीच में खड़े हो कर ताली बजाते देखा गया. उनके चारों तरफ वर्कर्स पार्टी के वफादार सदस्य मौजूद थे.
विश्लेषक री को उत्तर कोरिया के नेतृत्व में अंदर से एक बदलाव के प्रतीक की तरह देखते हैं. एक नई महिला का चेहरा जो देश के भीतर और बाहर शासन की छवि को थोड़ा नरम दिख सकता है. शादी के शुरुआती सालों में इसके कुछ मनचाहे नतीजे भी देखने को मिले. किम जोंग उन की पत्नी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. माना जाता है कि उनका जन्म 1985 से 1989 के बीच कभी हुआ और उन्होंने किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की है जो उत्तर कोरियाई लोगों के लिए किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है.
री और किम ने कथित रूप से 2009 में जल्दबाजी में शादी की. तब किम के पिता किम जोंग इल को स्ट्रोक हुआ था और परिवार चाहता था कि वंश आगे बढ़े. किम जोंग इल का दिसंबर 2011 में देहांत हुआ, तब तक री ने एक बेटे को जन्म दे दिया था. ऐसी खबरें हैं कि इसके बाद उनकी दो और संतान हुईं लेकिन इनकी स्वतंत्र रूप से कभी पुष्टि नहीं हो सकी.
प्रथम महिला का उत्तर कोरियाई संस्करण
किम के शासन के शुरुआती दिनों में उनकी पत्नी अकसर उनके साथ घरेलू कार्यक्रमों में नजर आती थीं. जुलाई 2021 में सरकारी मीडिया ने इस बात की पुष्टी की कि वह उनकी पत्नी हैं. दक्षिण कोरिया की मीडिया में आने वाली खबरों के मुताबिक उनकी शानदार पहनावे की शैली, बालों के डिजायन और हैंडबैग के डिजायनों को प्योंग्यांग के ऊंचे समाज में कॉपी किया जाता है. आम लोग उसके सपने देखते हैं क्योंकि उनके पास इस तरह की विलासिताओं को पूरा करने के लिए साधन नहीं है.
जब री अपने पति के साथ चीन के सरकारी दौरे पर मार्च 2018 में नजर आईं तो इस बात के सबूत और पक्के हो गए कि उन्हें देश की प्रथम महिला के रूप में तैयार किया जा रहा था. उन्होंने अप्रैल 2018 में अंतरकोरियाई सम्मेलन में भी हिस्सा लिया जहां उनकी मुलाकात दक्षिण कोरियाई प्रथम महिला से हुई. इसके अगले साल उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी पत्नी के कोरिया के सरकारी दौरे में बतौर मेजबान मदद की. इसके बाद से वे नजर नहीं आ रही हैं.
कहां हैं री?
तोशिमित्सु शिगेमुरा टोक्यो की वासेदा यूनिवर्सिटी में हैं और उन्होंने किम वंश पर कई किताबें लिखी हैं. उनका कहना है कि एक साल से री के नजर नहीं आने के बारे में कई तरह की बातें हो रही हैं. तोशिमित्सू शिकेमुरा ने डीडब्ल्यू से कहा, "मैंने सुना है कि उन्होंने एक और बच्चे को जन्म दिया है, जो उनका चौथा बच्चा होगा और वो कोरोना वायरस की महामारी के चलते सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आना चाहतीं. हालांकि सरकार अब भी इसी बात पर अड़ी हुई है कि उत्तर कोरिया में कोविड-19 से कोई बीमार नहीं है."
शिकेमुरा के मुताबिक, "कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि री और किम के रिश्ते खराब हो गए हैं और दोनों साथ वक्त नहीं बिता रहे हैं या फिर शायद किम को यह लग रहा है कि उनकी पत्नी अपने कपड़ों और बालों के स्टाइल की वजह से लोगों का ज्यादा ध्यान खींच रही हैं. पुरुष प्रधान कोरियाई समाज में एक तानाशाह के लिए यह सब ज्यादा काम नहीं आता."
ट्रॉय यूनिवर्सिटी के सियोल कैम्पस में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर डैनियल पिनक्स्टन इस बात से सहमत हैं कि री का इतने लंबे समय तक मीडिया कवरेज से बाहर रहना सामान्य बात नहीं है. उनका कहना है, "कुछ समय तक वो हर जगह अपने पति के साथ थीं, खेतों और फैक्ट्रियों तक में और अब वो कही नहीं हैं. जो कुछ हम उत्तर कोरिया की स्थिति के बारे में सुनते हैं उसमें वो कोरियाई नेता के साथ एक स्टायलिश और सम्मानित महिला के रूप में उभरी हैं. कोरिया पर नजर रखने वाले कुछ लोग उन्हें शासन के भीतर एक सुधारवादी और आधुनिक तौर तरीकों का प्रतीक मानते हैं, हालांकि फिलहाल तो यह साफ नहीं है कि इसका कितना विस्तार हुआ है."
इसकी बजाय हाल के वर्षों में उत्तर कोरिया में अगर कुछ हुआ है तो वह यही है कि किम फिर एक बार अपनी सेना पर ज्यादा भरोसा दिखा रहे हैं और देश से जुड़े रोजमर्रा के फैसलों की कमान उनके जनरलों के पास ही है. यहां तक कि अर्थव्यवस्था के बारे में भी उन्हीं की चल रही है. पदानुक्रम और किम परिवार में री की स्थिति को लेकर अटकलों का दौर चलता ही रहेगा, जबतक कि वो फिर से दिखाई नहीं दे जातीं या फिर सरकारी मीडिया उनके बारे में कोई जानकारी नहीं देता. (एनआर) (dw.com)
अगस्त 2019 में विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने के बाद विदेशी राजनयिकों का यह तीसरा आधिकारिक दौरा होगा. विपक्ष सवाल कर रहा है कि सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल क्यों नहीं ले जा रही है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटने के बाद तीसरी बार विदेशी राजनयिक प्रदेश के दो दिवसीय दौरे पर जा रहे हैं. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक प्रतिनिधिमंडल 18 फरवरी को कश्मीर और 19 फरवरी को जम्मू के दौरे पर जा रहा है. इस प्रतिनिधिमंडल में 20 सदस्य शामिल होंगे और इसमें खाड़ी, अफ्रीकी और यूरोपीय देशों के राजनयिक होंगे. खबरों में बताया जा रहा है कि विदेशी राजनयिकों का दल सरकारी अफसरों, जिला स्तर पर डीडीसी चुनाव में सफलता हासिल करने वाले प्रतिनिधियों, व्यापार मंडल के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर सकता है.
करीब 18 महीने बाद बीते दिनों जम्मू-कश्मीर में 4 जी इंटरनेट सेवा बहाल हुई थी, जिसकी लंबे समय से नागरिक समाज के लोग, छात्र, व्यापारी और पत्रकार मांग करते आ रहे थे. सरकार ने 5 अगस्त 2019 को इंटरनेट सेवा बंद कर दी थी. इसी दिन केंद्र ने राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था. जम्मू कश्मीर के दो जिलों गांदरबल और उधमपुर को छोड़कर राज्य में मोबाइल इंटरनेट पर रोक लगी हुई थी. हालांकि पिछले साल की शुरुआत में 2 जी इंटरनेट सेवा बहाल कर दी थी.
इससे पहले अक्टूबर 2019 में यूरोपीय देशों के प्रतिनिधिमंडल ने घाटी का दौरा किया था और विपक्ष ने इसे ''गाइडेड टूर'' बताया था. सरकार की कोशिश है यह जताने की है कि कश्मीर घाटी में सामान्य हालात तेजी से पटरी पर लौट रहा है. हालांकि विपक्ष सरकार से सवाल कर रहा है कि वह कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण क्यों कर रही है और विदेशी राजनयिकों के दल को वहां क्यों ले जाना चाहती है. असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में पिछले दिनों सवाल किया कि सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल घाटी क्यों नहीं ले जाती.
पिछले साल 9 जनवरी को नई दिल्ली स्थित अमेरिकी राजदूत समेत 16 विदेशी राजनयिकों ने घाटी का दौरा किया था और इसके बाद 12 फरवरी 2020 को 25 विदेशी राजनयिकों का दूसरा प्रतिनिधिमंडल भी जम्मू-कश्मीर का दौरा कर चुका है. पहले के दोनों दौरे का आयोजन केंद्र सरकार ने किया था और इस तीसरे दौरे के बारे में केंद्र सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है.
-राजीव रंजन
नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग लेकइलाके में डिसएंगेजनेंट की प्रक्रिया जारी है. सेना की ओर से जारी वीडियो में साफ दिख रहा है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवान ना केवल अपने टैंट उखाड़ रहे हैं बल्कि अपने टैंक भी पीछे लेकर जा रहे हैं. यही नहीं, फिंगर 8 से आगे बढ़कर चीनी सेना ने जो अस्थाई निर्माण कर लिया था, उसे भी वे गिरा रहे हैं. गौरतलब है कि पिछले हफ्ते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा था कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सेना के बीच डिसएंगेजनेंट को लेकर समझौता हुआ है.
इस समझौते के मुताबिक चीन की सेना पेंगोंग लेक के फिंगर 8 के पीछे अपनी पुरानी जगह पर लौट जाएगी और भारत की सेना भी फिंगर 3 के पास अपनी धन सिंह पोस्ट पर लौट जाएगी. यह डिसएंगेजनेंट की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोनो सेनाओं के बीच गोगरा, हॉट स्प्रिंग, गलवान और देपसांग को लेकर बात होगी.
Videos of #disengagement on #indo #China border. pic.twitter.com/ErsrxxAdWv
— Rajeev Ranjan (@Rajeevranjantv) February 16, 2021
k6laele8पैंगोंग झील क्षेत्र से सामान ले जाते हुए चीन के सैनिक
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर चीन ने दिया यह समाधान...
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया था कि पैंगोंग झील क्षेत्र में चीन के साथ सेनाओं को पीछे हटाने का जो समझौता हुआ है उसके अनुसार दोनों पक्ष अग्रिम तैनाती चरणबद्ध, समन्वय और सत्यापन के तरीके से हटाएंगे. राज्यसभा में दिए एक बयान में रक्षा मंत्री ने यह आश्वासन भी दिया कि इस प्रक्रिया के दौरान भारत ने ‘‘कुछ भी खोया नहीं है'. उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के अन्य क्षेत्रों में तैनाती और निगरानी के बारे में ‘‘कुछ लंबित मुद्दे'' बचे हैं.
यरुशलम, 16 फरवरी (आईएएनएस)| पहले से ही कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों पर फाइजर वैक्सीन की एक खुराक का काफी प्रभावशाली असर देखने को मिला है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि वैक्सीन असरदार पाई गई है, भले ही लोग पहले से संक्रमित थे या नहीं या फिर उन्होंने टीका प्राप्त करने से पहले कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित किए हैं या नहीं।
हालिया शोध में पाया गया कि स्वस्थ लोगों के साथ ही पहले से कोरोना संक्रमित लोगों में फाइजर वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को लेकर भी काफी असरदार प्रभाव देखने को मिला है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, पहले से संक्रमित लोगों में वैक्सीन की एक खुराक के बाद मजबूत प्रतिक्रिया एक अच्छी खबर है।
बार-इलन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता माइकल एडेलस्टीन ने कहा, "यह खोज वैक्सीन नीति के बारे में विभिन्न देशों को निर्णय लेने में मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए, क्या पहले संक्रमित लोगों को प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाया जाना चाहिए और अगर ऐसा है तो उन्हें कितनी खुराक देनी चाहिए।"
अध्ययन के लिए जर्नल यूरोसर्विलांस में प्रकाशित शोध टीम में 514 प्रतिभागी शामिल थे। वैक्सीन की पहली खुराक प्राप्त करने से पहले एक से दस महीने के बीच उनमें से 17 लोग कोविड-19 से संक्रमित थे।
शोध में शामिल लोगों पर एंटीबॉडी के स्तर की भी जांच की गई। उनमें टीकाकरण से पहले और उसके बाद वैक्सीन की प्रतिक्रिया पर नजर रखी गई।
शोध में निकले निष्कर्षो का अध्ययन करने के बाद टीम का कहना है कि पहले से संक्रमित लोगों के बीच प्रतिक्रिया इतनी प्रभावी रही कि इससे यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या टीके की एक ही खुराक पर्याप्त हो सकती है।
हालांकि, शोधकर्ता इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले पुष्टि एक बड़े स्तर पर की जानी चाहिए।
जिनेवा, 16 फरवरी | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एस्ट्रोजेनेका/ऑक्सफोर्ड के कोविड-19 वैक्सीन के 2 वर्जन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी है। इसमें से एक का प्रोडक्शन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने किया है। वहीं दूसरे वर्जन का प्रोडक्शन एस्ट्राजेनेका-एसकेबीओ (कोरिया गणराज्य) ने किया है। वैक्सीन को यह अप्रूवल मिलने का मतलब है कि अब कोवैक्स अभियान के तहत इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में किया जा सकेगा। साथ ही यह विभिन्न देशों को अपने देश में इस वैक्सीन के उपयोग की मंजूरी देने की प्रक्रिया में तेजी लाने में मददगार साबित होगा।
डब्ल्यूएचओ की असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल मारियांगेला सिमाओ ने अपने बयान में कहा, "ऐसे देश जिन्हें अब तक वैक्सीन नहीं मिले हैं, वे समान वैक्सीन वितरण के लिए शुरू की गई पहल कोवैक्स के तहत अपने स्वास्थ्य कर्मचारियों और आबादी के लिए टीकाकरण शुरू कर सकेंगे। फिर भी हमें कोशिश करनी चाहिए कि हर जगह प्राथमिकता वाली आबादी को आसानी से वैक्सीन उपलब्ध हो। इसके लिए हमें मैन्यूफेक्च रिंग क्षमता को बढ़ाने और वैक्सीन बनाने वालों को उनके वैक्सीन जल्द डब्ल्यूएचओ को सबमिट करने की जरूरत है ताकि उनका जल्द रिव्यू हो सके।"
एस्ट्राजेनेका/ऑक्सफोर्ड के दोनों वैक्सीन के मामले में उनके लिए कोल्ड चेन की जरूरत, गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता का डेटा, रिस्क मैनेजमेंट जैसे तमाम पहलुओं का आंकलन किया है। इस पूरी प्रक्रिया में उसे 4 हफ्ते का समय लगा।
इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दी थी। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
संयुक्त राष्ट्र, 16 फरवरी | भारतीय मूल की एक 34 वर्षीय कनाडाई महिला ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के फिर से चुनाव लड़ने के बीच उनके खिलाफ खड़ा होने की घोषणा की है। उनका कहना है कि उनका एजेंडा बदलाव का है, लेकिन बिना किसी देश के समर्थन के उन्होंने गुटेरेस को चुनौती देने की ठानी है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए काम करने वाली अरोड़ा आकांक्षा ने पिछले सप्ताह अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने 21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र को प्रासंगिक बनाने के लिए खुद को उम्मीदवार के रूप में पेश किया।
सोमवार तक उन्होंने अपना नामांकन दाखिल नहीं किया था।
असेंबली प्रेसीडेंट के प्रवक्ता ब्रेंडन वर्मा ने कहा कि अब तक एकमात्र उम्मीदवार गुटेरेस हैं।
यदि वह एक उम्मीदवार के रूप में स्वीकार की जाती हैं तो उन्हें सुरक्षा परिषद की जररूत होगी और सुरक्षा परिषद के वीटो अधिकार प्राप्त सदस्यों का समर्थन प्राप्त करना होगा।
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त रह चुके गुटेरेस पर तंज कसते हुए, आकांक्षा ने ट्वीट में कहा कि वह शरणार्थियों के परिवार से आती हैं और बढ़ते शरणार्थी संकट को संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बताया, जिससे निपटने की जरूरत है।
उन्होंने ट्वीट किया, "मैं एक शरणार्थी परिवार से आती हूं। मेरे चारों ग्रैंडबपैरेट्स पाकिस्तान में रहते थे और विभाजन के बाद भारत में स्थानांतरित होने के लिए मजबूर हो गए।"
वह भारत में पैदा हुई और सऊदी अरब में पली-बढ़ी और कनाडा में अपनी स्नातक की पढ़ाई की।
उन्होंने पिछले साल न्यूयॉर्क में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया।
संयुक्त राष्ट्र की मॉनिटरिंग करने वाला एक पब्लिकेशन पास ब्लू के अनुसार, वह कनाडा की नागरिक हैं और भारत की ओवरसीज सिटिजनशिप रखती है।
कोई भी उन्हें नामित करता नहीं प्रतीत हो रहा है।
अपने एजेंडे के बारे में, उन्होंने ट्वीट किया, "मेरा विजन एक ऐसा यूएन है जो काम करता हो और 21 वीं शताब्दी में प्रासंगिक हो। हमें बढ़ते शरणार्थी संकट को प्राथमिकता देना और इससे निपटना है, मानवीय संकटों से निपटने और सभी देशों तक इंटरनेट की पहुंच हो इसके लिए निवेश सुनिश्चित किया जाना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "ये विचार असंभव नहीं हैं और इसे पूरा करने के लिए और 75 साल की आवश्यकता नहीं है।"
चुनाव प्रक्रिया अस्पष्ट है कि क्या कोई उम्मीदवार खुद को नामित कर सकता है या किसी के द्वारा या किसी भी संगठन द्वारा नामित किया जा सकता है।
2015 के महासभा के प्रस्ताव ने चुनाव के लिए रूपरेखा तैयार की, जिसमें परिषद और असेंबली के अध्यक्षों को उम्मीदवारों के लिए सदस्यों को लिख कर अनुग्रह करने की आवश्यकता होती है।
इसके लिए स्पष्ट रूप से उम्मीदवार को एक सदस्य देश द्वारा नामित करने की आवश्यकता नहीं होती है।
लेकिन वर्मा ने कहा, "उम्मीदवार पारंपरिक रूप से सदस्य देशों द्वारा पेश किए जाते हैं। यह मिसाल है।"
अगर आकांक्षा का नामांकन हो जाता है, तो उन्हें गुटेरेस और अन्य संभावित उम्मीदवारों के साथ एक मंच में आने का मौका मिलेगा।
अंतिम बार जब एक भारतीय को पद के लिए एक गंभीर उम्मीदवार माना गया था वो साल 2006 था, जब शशि थरूर ने भारत सरकार के समर्थन के साथ चुनाव लड़ा था। लेकिन वह बान की मून से हार गए क्योंकि परिषद के स्थायी सदस्यों का सर्वसम्मति से समर्थन नहीं मिल सका और कथित तौर पर अमेरिका ने उनका विरोध किया था।
जब उन्होंने चुनाव लड़ा था तब वह संयुक्त राष्ट्र के एक अंडर सेक्रेटरी-जनरल थे। वह बाद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में राज्य मंत्री बने और कांग्रेस पार्टी के संसद सदस्य बने रहे हैं। (आईएएनएस)
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मार्स रोवर परसिवरेंस 18 फरवरी को लाल ग्रह पर उतरने वाला है. पहली बार नासा का हेलीकॉप्टर इस ग्रह की कई चुनौतियों का सामना भी करेगा.
पिछले साल नासा ने अपने रोवर के साथ छोटा इंजीन्यूटी हेलीकॉप्टर मंगल ग्रह के लिए भेजा था. इस हेलीकॉप्टर के सामने कई चुनौतियां होंगी जिससे उसे पार पाना होगा. सबसे बड़ी चुनौती वहां का दुर्लभ वातावरण जो कि जो पृथ्वी के घनत्व का सिर्फ एक प्रतिशत है. हालांकि इसे हेलीकॉप्टर कहा जा सकता है लेकिन दिखने में यह मिनी ड्रोन की तरह है. जिसका वजन सिर्फ 1.8 किलोग्राम है, इसके ब्लेड पांच गुणा अधिक तेज रफ्तार से घूमते हैं. इंजीन्यूटी के चार पैर हैं, बक्सानुमा बॉडी है और चार कार्बन फाइबर ब्लेड्स दो विपरीत दिशाओं में घूमते रोटरों में लगे हैं.
इंजीन्यूटी में दो कैमरे, कंप्यूटर और नेविगेशन सेंसर्स लगे हैं. इसमें अपनी बैटरी को रिचार्ज करने के लिए सौर सेल लगे हैं, ताकि मंगल की ठंडी रातों में यह अपने आपको गर्म रख सके, अधिकतर ऊर्जा का इस्तेमाल रात को इसे गर्म रखने के लिए होगा जहां तापमान माइनस 90 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है.
परसिवरेंस रोवर के साथ यह हेलीकॉप्टर जा रहा है. रोवर हेलीकॉप्टर को मंगल की सतह पर गिराएगा और फिर आगे बढ़ जाएगा. मिशन के पहले कुछ महीनों में क्रमिक कठिनाइ की पांच उड़ानों की योजना बनाई गई है. इंजीन्यूटी 10-15 फीट की ऊंचाई पर उड़ेगा और शुरूआती बिंदु से लेकर वापसी तक 160 फीट की दूरी तय करेगा. हर उड़ान डेढ़ मिनट की अवधि की होगी. इंजीन्यूटी को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह खुद से ही उड़ान भर सके क्योंकि उसे धरती से कंट्रोल कर पाना नामुमिकन है.
रोवर और हेलीकॉप्टर मंगल ग्रह के मौसम का अध्ययन करेंगे. इससे पहले संयुक्त अरब अमीरात की स्पेस एजेंसी ने 12 को अपने मिशन होप को मंगल की कक्षा में सफलता के साथ पहुंचा दिया था.
एए/सीके (एएफपी)
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने संसद भवन में महिला कर्मचारी के साथ बलात्कार के कथित आरोप पर माफी मांगी है. महिला ने एक अनाम शख्स पर यह कथित आरोप लगाया है. मॉरिसन ने जांच का वादा किया है.
प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने संसद भवन में बलात्कार के मामले की गहन जांच का वादा किया है. महिला ने आरोप लगाया है कि उसके साथ साल 2019 में रक्षा मंत्री लिंडे रेनॉल्ड्स के कार्यालय में बलात्कार हुआ था और इस अपराध को अंजाम मॉरिसन की लिबरल पार्टी के कार्यकर्ता ने दिया था. महिला ने मीडिया को बताया कि उसने उसी साल अप्रैल की शुरुआत में पुलिस को इस बारे में जानकारी दी थी, लेकिन उसने अपने करियर को देखते हुए औपचारिक शिकायत ना करने का फैसला किया था.
महिला ने बताया कि उसने रेनॉल्ड्स के दफ्तर के वरिष्ठ कर्मचारी को इस कथित घटना के बारे में बताया. महिला का कहना है कि उसे उसी दफ्तर में बैठक में हिस्सा लेने को कहा गया जहां उसके साथ दुष्कर्म हुआ था. सोमवार को रेनॉल्ड्स ने इस बात की पुष्टि की कि उन्हें पिछले साल इस घटना के बारे में बताया गया था, हालांकि उन्होंने इस बात से इनकार किया कि महिला पर पुलिस से शिकायत नहीं करने का दबाव बनाया गया. मंगलवार को मॉरिसन ने महिला से माफी मांगी और जांच का वादा किया.
कैनबरा में उन्होंने पत्रकारों से कहा, "ऐसा नहीं होना चाहिए था और मैं माफी मांगता हूं. मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि इस स्थान पर काम करने वाली महिलाएं जितना संभव हो सके सुरक्षित रहें." मॉरिसन ने कहा है कि उन्होंने कैबिनेट अधिकारी स्टेफनी फॉस्टर को कार्यस्थल की शिकायतों की समीक्षा करने के लिए नियुक्त किया है, जबकि कुछ सांसद कार्यस्थल की संस्कृति की जांच करेंगे.
महिला के आरोप के बाद मॉरिसन पर दबाव बढ़ गया था और लिबरल पार्टी के भीतर महिलाओं के प्रति अनुचित व्यवहार के आरोपों की श्रृंखला बढ़ती जा रही थी. 2019 में कुछ महिला सांसदों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने उस वक्त के प्रधानमंत्री मैलकम टर्नबुल को पद से हटाने का समर्थन किया था तो उन्हें परेशान किया गया. एए/सीके (रॉयटर्स)
म्यांमार की फ़ौज ने तख़्तापलट का विरोध करने वालों को चेतावनी दी है कि अगर वो फ़ौज के काम में बाधा डालते हैं तो उन्हें 20 साल तक की कैद की सज़ा हो सकती है.
फ़ौज ने कहा है कि तख़्तापलट करने वाले नेताओं के ख़िलाफ़ नफरत फैलाने और उनका अवमानना करने वालों को लंबी सज़ा होगी और उन पर जुर्माना लगाया जाएगा. क़ानूनों में इन बदलावों की घोषणा कई शहरों की सड़कों पर बख़्तरबंद वाहनों के दिखने के बाद की गई है.
हाल के दिनों में कई हज़ार लोगों ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया है. प्रदर्शनकारी आंग सान सू ची समेत कई निर्वाचित नेताओं को हिरासत से छोड़ने की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा वे देश में फिर से लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं.
सोमवार को आंग सान सू ची के वकील खिन माउंग जॉ ने बताया कि उनकी हिरासत दो दिनों के लिए और बढ़ा दी गई है. वो अब नेपिडॉ की एक अदालत में होने वाली सुनवाई में वीडियो लिंक के माध्यम से शामिल होंगी.
आंग सान सू ची को सरकार के दूसरे अहम सदस्यों के साथ 1 फरवरी को हिरासत में ले लिया गया था. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक उनकी हिरासत 15 फरवरी को ख़त्म होने वाली थी.
उनके ख़िलाफ़ जो मामले दर्ज किए गए हैं उनमें ग़ैर-क़ानूनी तरीके से संचार के उपकरण रखने के आरोप हैं. यह वॉक-टॉकी उनके सुरक्षाकर्मियों के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है.
पिछले नवंबर में उनकी पार्टी को चुनाव में शानदार जीत हासिल हुई थी लेकिन फ़ौज ने बिना किसी प्रमाण के चुनाव में धांधली के आरोप लगाए थे.
कार्रवाई के संकेत
फ़ौज की बढ़ती मौजूदगी इस बात के संकेत दे रहे हैं कि तख्तापलट का विरोध कर रहे लोगों पर कार्रवाई हो सकती है. क़ानून में भी कई तरह के बदलावों की घोषणा की गई है.
इसमें फ़ौज के ख़िलाफ़ जाने वालों को लंबी सज़ा और जुर्माने की बात कही गई है. यह कार्रवाई उन लोगों पर करने की बात कही गई है जो फ़ौज के ख़िलाफ़ किसी भी तरह से फिर चाहे बोल या लिखकर या संकेत या फिर वीडियो के माध्यम से विद्रोह करते हैं.
सोमवार को फ़ौज की वेबसाइट पर डाले गए एक बयान में कहा गया है कि सुरक्ष बलों को उनके ड्यूटी के दौरान किसी भी तरह की बाधा पहुँचाने के लिए सात साल की सज़ा हो सकती है. जो लोग सार्वजनिक तौर पर डर या अशांति फैलाते हुए पाए जाएँगे उन्हें तीन साल की सज़ा हो सकती है.
रविवार को देश भर में हज़ारों प्रदर्शनकारी नौवें दिन लगातार फ़ौज के ख़िलाफ़ लामबंद होकर निकले. काइचिन राज्य के मायित्सकीना शहर में प्रदर्शनकारियों और फ़ौज के बीच झड़प के दौरान गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी.
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि रबड़ की गोलियाँ चलाई थी या सच में असल गोलियाँ चलाई गई हैं. पांच पत्रकारों को भी गिरफ़्तार किया गया लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.
यांगून (रंगून) शहर में सड़कों पर तख्तापलट के बाद पहली बार बख्तरबंद गाड़ियाँ गश्त करती हुई दिखीं.
बौध भिक्षु और इंजीनियर्स यहाँ प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे. नेपिडॉ की सड़कों पर मोटरसाइकिल सवारों ने रैली निकाली हुई थी.
नेपिडॉ के एक अस्पताल के डॉक्टर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि सुरक्षा बल रात में घरों में छापे मार रही है.
उन्होंने सुरक्षा के लिहाज से नाम नहीं बताते हुए कहा, "मैं अब भी चिंतित हूँ क्योंकि उन्होंने 10 बजे रात से लेकर 4 बजे सुबह तक कर्फ्यू की घोषणा की है. लेकिन इस दौरान पुलिस और फ़ौज हमारे जैसे लोगों को गिरफ़्तार कर रही है."
यांगून में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने अमेरिकी नागरिकों को चेतावनी दी है कि वो कर्फ्यू के दौरान अंदर ही रहे.
शनिवार को फ़ौज ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों के सात प्रमुख नेताओं के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी का वारंट जारी हुआ है. इसमें आम लोगों को चेतावनी दी गई थी कि वो इन कार्यकर्ताओं को भागने में या पनाह देने में मदद ना करें.
फ़ौज ने शनिवार को उन क़ानूनों को भी निरस्त कर दिया है जिसके तहत लोगों को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत पड़ती थी. इसके अलावा अब फ़ौज बिना कोर्ट के आदेश के निजी संपत्ति की भी जांच कर सकती है.
बाकी दुनिया की प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि वो फ़ौज की ओर से अत्यधिक बल प्रयोग और 'प्रमुख शहरों में अतिरिक्त बख्तरबंद गाड़ियों की तैनाती संबंधी' रिपोर्ट्स देखकर 'बहुत चिंतित' हैं.
उनके दफ्तर से जारी एक बयान के मुताबिक उन्होंने म्यांमार के फ़ौजी नेताओं ने अपील की है कि वो शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार का पूरा सम्मान करें और प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई ना की जाए.
म्यांमार के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत टॉम एंड्रुज ने फ़ौज पर आरोप लगाया कि उसने जनता के खिलाफ़ 'युद्ध की घोषणा' कर दी है और फ़ौज के जनरल 'हताशा के संकेतच दे रहे हैं.
पश्चिमी देशों के दूतावासों ने फ़ौज से संयम बरतने का आग्रह किया है.
यूरोपिय यूनियन, अमेरिका और ब्रिटेन के हस्ताक्षर वाले एक बयान में कहा गया है, "हम सुरक्षा बलों से प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हिंसा से परहेज करनी की अपील करते हैं. ये प्रदर्शनकारी वैधानिक तरीके से चुनी अपनी सरकार को फेंके जाने के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं." (bbc.com)
रूस में बीते कुछ समय से विरोध प्रदर्शन खूब हो रहे हैं. नावाल्नी तो इन प्रदर्शनों का चेहरा और एक वजह हैं लेकिन देश में बढ़ती गरीबी और आय का संकट भी लोगों को इसके लिए मजबूर कर रही है.
कोरोना वायरस की महामारी शुरू होने के बाद से ही मॉस्को के मार्था एंड मैरी कॉन्वेंट में लोगों की भीड़ बढ़ गई है. सफेद दीवारों वाली इस मोनेस्ट्री में कई समाजसेवी संस्थाओं के केंद्र हैं. ये संस्थाएं दूसरे कार्यक्रमों के अलावा यहां लोगों को मुफ्त में खाने के पैकेट बांटती हैं.
मिलोसेर्डी नाम की संस्था में समाज सेवा करने वाली येलेना तिमोश्चुक बताती हैं, "महामारी से पहले हमारे यहां हर रोज 30-40 लोग आते थे. अब 50-60 लोग आने लगे हैं, काम बहुत ज्यादा बढ़ गया है." तिमोश्चुक की टेबल पर सूरजमुखी के तेल के ढेर सारे पैकेट रखे हैं.
कतार में खड़े हो कर कूटू, चीनी, चाय और दूसरी चीजें लेने आने वाले लोगों में ज्यादातर रिटायर लोग हैं. हालांकि इनके साथ ही उनमें ऐसे भी लोग शामिल हो रहे हैं जिनकी या तो नौकरी चली गई है या फिर जिनका वेतन काटा गया है.
कोरोना वायरस की महामारी ने रूस की खराब अर्थव्यवस्था का और बुरा हाल कर दिया है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, तेल की घटती कीमतें और कमजोर कारोबारी निवेश के चलते हालात और बिगड़ते जा रहे हैं. विशेलेषकों का कहना है कि बढ़ती गरीबी, घटती कमाई और महामारी के दौर में पर्याप्त सरकारी सहयोग के अभाव में राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के लिए समर्थन घट रहा है. प्रचंड बहुमत के साथ दो दशकों से रूस की सत्ता पर पुतिन काबिज हैं लेकिन अब उनके विरोधी मजबूत हो रहे हैं.
जेल में बंद पुतिन के प्रमुख विरोध की एक पुकार पर बीते कुछ हफ्तों हजारों की संख्या में लोग रूस में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. सितंबर में होने वाले संसदीय चुनाव से पहले नावाल्नी की टीम और ज्यादा प्रदर्शनों की योजना बना रही है.
रूस में लोगों के पास मौजूद मुद्रा बीते करीब आधे दशक में 3.5 फीसदी सिकुड़ चुकी है. इसी बीच खाने पीने की चीजों के दाम बहुत बढ़ गए हैं. गिरते जीवन स्तर से लोगों के बढ़ते गुस्से को भांप कर बीते दिसंबर में राष्ट्रपति पुतिन ने मंत्रियों को कीमतों की वृद्धि रोकने के लिए आपातकालीन उपाय करने के आदेश दिए. इसके बावजूद जनवरी में चीनी की कीमत एक साल पहले की तुलना में करीब 64 फीसदी ज्यादा थी. 66 साल की सांड्रा ने बताया कि उन्होंने सुपरमार्केट जाना छोड़ दिया है और इसकी बजाय मुफ्त में बंटने वाला खाना लेने समाजसेवी संगठनों के पास जा रही हैं. पेंशन पर गुजारा करने वाली सांड्रा का कहना है, "आप कुछ नहीं खरीद सकते. पहले तो मैं चिड़ियों को भी दाना डाल देती थी लेकिन अब तो अनाज खरीदना भी मुश्किल हो गया है."
एफबीके ग्रांट थॉर्नटन में स्ट्रैटजिक एनालिसिस के प्रमुख इगोर निकोलायेव कहते हैं, "राजनीतिक नतीजों के लिहाज से मौजूदा स्थिति अच्छी नहीं लग रही है. अधिकारियों के लिए जोखिम बढ़ गया है." निकोलायेव का कहना है कि बुजुर्ग रूसी खास तौर से बढ़ती कीमतों को लेकर बहुत "संवेदनशील" हैं. इन लोगों ने महंगाई का वो दौर देखा है जिसके बाद 1991 में सोवियत संघ का विघटना हुआ. निकोलायेव मानते हैं कि लोगों की नाराजगी को देखते हुए रूसी सरकार संसदीय चुनावों से पहले कोई नया आर्थिक पैकेज ले कर आ सकती है.
हाल ही में एक स्वतंत्र एजेंसी लेवाडा सेंटर के कराए सर्वे में 43 फीसदी रूसियों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि मौजूदा विरोध प्रदर्शनों को आर्थिक मांगों की वजह से प्रेरणा मिल रही है. इससे पहले यह स्तर 1998 में दिखा था. सर्वे में यह भी पता चला कि जवाब देने वालों में 17 फीसदी लोग खुद प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए तैयार थे.
लेवाडा के उपनिदेशक डेनिस वोल्कोव का कहना है कि हाल में हुए प्रदर्शन ये दिखाते हैं कि अधिकारियों के प्रति लोगों में गुस्सा केवल हाशिए पर खड़े विपक्षियों में ही नहीं बल्कि बहुत सारे प्रदर्शनकारी आर्थिक मुश्किलों की वजह से बाहर आ रहे हैं.
फोर्ब्स पत्रिका के रूसी संस्करण में वोल्कोव ने लिखा है, "अधिकारियों के पास उन लोगों को देने के लिए कुछ नहीं है जो नीतियों से नाखुश हैं." इसके साथ ही उन्होंने रूसी रईसों की बढ़ती संपत्ति और समाज में बढ़ते विभाजन की ओर भी इशारा किया है.
नावाल्नी के समर्थन में होने वाली व्लादीवोस्तोक के पैसिफिक पोर्ट की रैली में शामिल येकातेरिना निकिफोरोवा ने कहा कि देश ठहरा हुआ है. राजनीति शास्त्र की इस छात्रा ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि उन्हें किसी तरह के आर्थिक मौके या राजनीतिक विकास नजर नहीं आता. 22 साल के आर्सेनी दमित्रियेव सेंट पीटर्सबर्ग की रैली में शामिल हुए और उनकी भी यही राय है. समाज शास्त्र के इस छात्र ने कहा, "आंकड़ों को देख कर मैं समझ गया हूं कि हाथ में आने वाला आय घटती जा रही है और जीवन के स्तर में सुधार नहीं हो रहा है."
एनआर/आईबी (एएफपी)
इस्राएल के पर्यावरणवादियों ने चेतावनी दी है कि इस्राएल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हुए तेल पाइपलाइन के करार से लाल सागर के कोरल रीफ खतरे में पड़ जाएंगे. इस मुद्दे पर इस्राएल में विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे "इकोलॉजी के लिए एक बड़ी आपदा आ सकती है." संयुक्त अरब अमीरात से कच्चे तेल को लाल सागर में इलात पोर्ट तक टैंकरों के जरिए पहुंचाने की योजना है. दोनों पक्षों के बीच रिश्ते सामान्य होने के कुछ ही महीनों के भीतर इसे लेकर करार भी हो चुका है जिस पर इसी साल अमल भी शुरू हो जाएगा.
जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि पुराने इलात से तेल रिसाव की आशंका है. इसे लेकर इस्राएल के पर्यावरण सुरक्षा मंत्रालय ने करार पर तुरंत "जरूरी" बातचीत करने की मांग की है. बीते हफ्ते सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे पर लामबंद हो गए. कार्यकर्ताओं ने इलात के तेल सेतु के सामने की पार्किंग लॉट में प्रदर्शन भी किया. इस दौरान लगाए गए नारों में कहा गया कि कोरल के नुकसान की कीमत पर मुनाफा कामाने की कोशिश की जा रही है. सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ द रेड सी एनवायरनमेंट के संस्थापक सदस्य शमुलिक टागर का कहना है, "जहां तेल को उतारा जाएगा कोरल रीफ वहां से महज 200 मीटर की दूरी पर हैं. वे कहते हैं कि टैंकर आधुनिक हैं और कोई समस्या नहीं होगी "हालांकि ऐसा कोई तरीका नहीं जिसमें गड़बड़ ना हो."
शमुलिक टागर ने अनुमान लगाया है कि हर हफ्ते दो से तीन टैंकर आएंगे और इससे इकोलॉजिकल टूरिज्म को बढ़ावा दे रहे शहर की सुंदरता पर भी असर पड़ेगा. उनका कहना है, "जब डॉक पर टैंकर खड़े हों तो आप ग्रीन टूरिज्म का धोखा नहीं दे सकते."
अमेरिका की मध्यस्थता पर संयुक्त अरब अमीरात और इस्राएल ने पिछले साल राजनयिक रिश्ते बहाल किए. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते में इस्राएल की सरकारी यूरोप एशिया पाइपलाइन कंपनी, ईएपीसीऔर एक नई कंपनी मेड रेड लैंड ब्रिज लिमिटेड का आबू धाबी की नेशनल होल्डिंग कंपनी और इस्राएल की कई फर्मों के बीच करार हुआ है.
अक्टूबर में ईएपीसी ने घोषणा की कि वह संयुक्त अरब अमीरात से कच्चा तेल लाने के लिए मेडरेड के साथ करार कर रहा है. इस तेल को पहले यूएई से इलियत लाया जाएग और फिर पाइपलाइनों के जरिए इस्राएल के एशकेलॉन शहर लाया जाएगा जहां से इसका यूरोप में निर्यात होगा.
सामाजिक कार्यकर्ताओं की दलील है कि करार के नियमों के आधार पर कड़ी समीक्षा नहीं की गई है. इसकी वजह है ईपीएसी को ऐसी सरकारी एजेंसी का दर्जा मिला हुआ है, जो संवेदनशील ऊर्जा सेक्टर में काम करती है.
दुनिया भर में कोरल की आबादी को जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाली ब्लीच का खतरा झेलना पड़ रहा है. इलात के रीफ अपने अनोखे उष्मा प्रतिरोध के कारण स्थिर बने हुए हैं. इनका विस्तार शहर के तट से करीब 1.2 किलोमीटर के इलाके में है जिसमें कई प्रकार के जलीय जीवों का भी बसेरा है.
हालांकि ईएपीसी पोर्ट के करीब होने की वजह से अब उन पर खतरा मंडरा रहा है. इलात इंटरयूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर मरीन साइंस में मरीन बायोलॉजी एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख नादव शशार का कहना है कि बुनियादी ढांचा ऐसा नहीं बनाया गया है जो हादसों को रोक सके, "केवल प्रदूषण के पानी में पहुंच जाने के बाद उसे छानने की व्यवस्था है."
शशास उन 230 विशेषज्ञों में एक हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू से इस करार के विरोध में अपील की है. उनकी दलील है कि ढुलाई बढ़ने का नतीजा, "तेल के निरंतर रिसाव के रूप में सामने आएगा."
ईएपीसी का कहना है कि इलात से लाखों टन तेल की ढुलाई होगी. कंपनी ने इस मुद्दे पर चर्चा करने से मना कर दिया लेकिन उसका कहना है कि उसके उपकरण आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि उनका लक्ष्य ईपीएसी को बंद कराना नहीं है. वे तो बस उसकी क्षमता को सीमित करना चाहते हैं.
एनआर/आईबी (एएफपी)
अफगानिस्तान में स्थित संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के मुताबिक पिछले तीन साल में कम से कम 65 मीडियाकर्मियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की टारगेट किलिंग में मौत हुई है. कई पत्रकार अब इस पेशे से हट रहे हैं.
यूएनएएमए ने 1 जनवरी 2018 से लेकर 21 जनवरी 2021 की अवधि के बीच जानकारी इकट्ठा की है. उसके मुताबिक इस अवधि में मानवाधिकार के 32 रक्षकों और 33 मीडियाकर्मियों की टारगेट किलिंग में मौत हुई. रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि अंतर-अफगान वार्ता जिसकी शुरुआत पिछले 12 सितंबर को हुई थी, के शुरू होने से लेकर जनवरी 2021 तक 11 मीडियाकर्मियों और अधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. अंतर-अफगान वार्ता का मकसद युद्ध समाप्ति करने का राजनीतिक समाधान ढूंढना है. इन हत्याओं के कारण मीडिया से जुड़े कई लोगों ने पेशा छोड़ दिया, खुद को सेंसर किया या फिर खुद की और परिवार की सुरक्षा की खातिर देश ही छोड़ दिया.
अफगानिस्तान में यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि डेबराह लियोन्स के मुताबिक, "ऐसे समय में जब बातचीत और वार्ता के जरिए संघर्ष समाप्ति का अंत होना चाहिए और राजनीतिक समझौतों पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए. मानवाधिकार और मीडिया की आवाज पहले से कहीं अधिक सुनी जानी चाहिए, इसके बजाय उन्हें चुप कराया जा रहा है."
इस रिपोर्ट में विशेष तौर पर तालिबान को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा रहा है. अफगानिस्तान की सरकार हमेशा से नागरिक समाज की आवाज दबाने के लिए तालिबान पर आरोप लगाती रही है. रिपोर्ट में अफगान सरकार से नागरिक कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए एक प्रभावी राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र की शुरूआत करने को कहा गया है.
अफगानिस्तान में जारी रहेगा नाटो का मिशन
समाचार एजेंसी डीपीए को सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि नाटो फिलहाल अपना मिशन अफगानिस्तान में जारी रखेगा. जर्मनी और अन्य सहयोगी इस बात पर सहमत हुए हैं कि अफगानिस्तान में तैनात 10 हजार सैनिकों की वापसी पर वे फैसला नहीं करेंगे. इस हफ्ते बुधवार और गुरुवार को रक्षा मंत्रियों की इसी मुद्दे पर बैठक होने वाली है. मंत्रियों की बैठक में तालिबान से हिंसा कम करने और सरकार के साथ धीमी शांति वार्ता को गति देने के लिए आग्रह किया जाएगा. गठबंधन सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान के हमले शांति प्रक्रिया को कमजोर कर रहे हैं और देश में हिंसा खत्म होनी चाहिए.
राजनयिक चिंता जता रहे हैं कि तालिबान द्वारा हिंसा खास तौर से सफल शांति वार्ता के लिए जरूरी विश्वास को कम कर रही है. कई महीनों की देरी के बाद पिछले साल सितंबर में दोहा में शांति वार्ता की शुरूआत हुई थी. अमेरिका भी देश से धीरे-धीरे अपने सैनिकों की संख्या कम कर रहा है और मई तक पूरी तरह से देश से सैनिकों को वापस बुला लेगा.
एए/आईबी (डीपीए)
म्यांमार में सैन्य प्रशासन जुंटा ने और ज्यादा सैनिकों को सड़कों पर उतार दिया है. प्रदर्शन कर रहे लोग भी मानने को तैयार नहीं और विरोध जता रहे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि पहली बार प्रदर्शनों में गोली चलाई गई है.
म्यांमार में यंगून की सड़कों पर बख्तरबंद गाड़ियां और सैनिकों के दस्ते गश्त कर रहे हैं. देश के बाकी हिस्से में भी सेना की तैनाती बढ़ा दी गई है. सोमवार को कई घंटे तक इंटरनेट बंद रहा और फिर बाद में बहाल किया गया. हालांकि ज्यादातर लोगों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करने दिया जा रहा है. सैन्य प्रशासन की इन सारी कवायदों के बावजूद प्रदर्शन करने वाले लोग डटे हुए हैं.
इस बात की आशंका मजबूत हो रही है कि सेना विरोध करने वालों पर ज्यादा सख्त कार्रवाई कर सकती है. उत्तरी शहर मितकिना में सैनिकों ने रविवार की रात पहले आंसू गैस के गोले दागे और फिर गोलियां चलाई. मौके पर मौजूद एक पत्रकार ने यह जानकारी दी हालांकि यह पता नहीं चल सका है कि वो असली गोलियां थीं या फिर रबर बुलेट.
दो हफ्ते पहले यहां की सेना ने सरकार का तख्तापलट कर कामकाज अपने हाथ में ले लिया और एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया. इसके साथ ही राजनीतिक नेता आंग सान सूची को उनकी पार्टी के सैकड़ों लोगों के साथ हिरासत में ले लिया गया. इसमें लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के सदस्य भी शामिल हैं. सोमवार को अदालत में सूची के मामले में सुनवाई होनी थी लेकिन उसे बुधवार तक के लिए टाल दिया गया.
दिन में मारेंगे, रात में चोरी करेंग, टीवी पर झूठ बोलेंगे
एक बैंक के सामने जमा हो कर प्रदर्शन कर रहे करीब एक हजार लोगों की भीड़ में शामिल 46 साल की नाइन मोइ ने कहा, "बख्तरबंद गाड़ियों में गश्त लगाने का मतलब है कि वो लोगों को धमका रहे हैं." यंगून में इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी के सैकड़ों छात्र भी प्रदर्शन करने सड़कों पर निकले. शहर के दक्षिणी हिस्से में भी सोमवार को एक रैली हुई जिसे फेसबुक पर लाइव स्ट्रीम के जरिए दिखाया गया. इस रैली में सैकड़ों लोग बैंड के साथ मार्च करते नजर आए. राजधानी नेप्यीदॉ और म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े शहर मांडले में बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन करने निकले हैं. यहां कुछ लोगों ने सेना के खिलाफ बैनर ले रखे थे जिन पर लिखा है, "वे दिन में मारेंगे, रात में चोरी करेंग, टीवी पर झूठ बोलेंगे."
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के राजदूतों ने एक संयुक्त बयान जारी कर सैन्य बलों से अनुरोध किया है कि वे आम लोगों को नुकसान ना पहुंचाएं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेस ने भी यही मांग रखी है. गुटेरेस ने प्रवक्ता के जरिए कहलवाया है कि सेना तुरंत स्विस राजदूत को म्यांमार आने की अनुमति दे ताकी वास्तविक स्थिति का पता लगाया जा सके. अमेरिका ने अपने नागरिकों को सुरक्षित रहने और रात के कर्फ्यू का उल्लंघन नहीं करने की सलाह दी है.
पुलिस अधिकारी भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हुए
एक फरवरी को आंग सान सूची को हिरासत में लेने के बाद से देश के ज्यादातर हिस्से में अशांति फैली हुई है. सूची को हिरासत में रखने की अवधि सोमवार को खत्म हो रही है लेकिन उनके वकील ने एक जज का हवाला दे कर बताया है कि वो 17 फरवरी तक हिरासत में रहेंगी. अब तक करीब 400 लोगों को हिरासत में लिया गया है. हालांकि इसके बाद भी बड़ी संख्या में लोग विरोध प्रदर्शन करने निकल रहे हैं. दावाइ में सात पुलिस अधिकारी भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हो गए
देश के कई हिस्सों में लोगों ने पहरेदारी के लिए ब्रिगेड बना लिए हैं ताकी नागरिक अवज्ञा में शामिल हो रहे लोगों को गिरफ्तारी से बचाया जा सके. यंगून में सड़कों पर गश्त कर रहे इसी तरह के दल के एक सदस्य ने कहा, "हमें इस वक्त किसी पर भरोसा नहीं है, खासतौर से उन लोगों पर जो वर्दी में हैं."
सैन्य शासक हालांकि अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं से बेपरवाह हैं. जुंटा ने इस बात पर जोर दिया है कि उन्होंने कानूनी तौर पर शासन अपने हाथ में लिया है. उन्होंने पत्रकारों को भी निर्देश दिया है कि वो उन्हें ऐसी सरकार के रूप में पेश ना करें जिसने तख्तापलट से सत्ता हथियाई है.
एनआर/आईबी (एएफपी)
कोनाक्री. कोरोना महासंकट के बीच पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में 5 साल बाद जानलेवा इबोला वायरस फैल गया है. इससे 4 लोगों की मौत हो गई है और 4 लोग अभी संक्रमित हैं. इबोला के खतरे को देखते हुए गिनी की सरकार ने इबोला वायरस संक्रमण को महामारी घोषित कर दिया है. बताया जा रहा है कि गोउइके में एक अंतिम संस्कार कार्यक्रम में शामिल होने के बाद 7 लोगों ने डायरिया, उल्टी और खून आने की शिकायत की. गोउइके लाइबेरिया की सीमा पर है और सभी लोगों को अलग-थलग कर दिया गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि सभी संक्रमित लोगों का इलाज चल रहा है. मंत्रालय ने इबोला को महामारी घोषित करते हुए कहा कि वह इस संकट का अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य मानकों के हिसाब से सामना कर रही है. स्वास्थ्य मंत्री रेमी लामाह ने कहा कि अधिकारी इन मौतों को लेकर बहुत चिंतित हैं.
गिनी में वर्ष 2013-2016 में इबोला वायरस फैला था. इस महामारी से अब तक पश्चिमी अफ्रीका में 11300 लोगों की मौत हो चुकी है. ज्यादातर मौतें गिनी, लाइबेरिया और सियरा लिओन में हुई हैं. इन मरीजों की एक और जांच की गई है ताकि यह पुष्टि की जा सके उन्हें इबोला हुआ है या नहीं. स्वास्थ्य सेवा ने कहा कि संपर्क में आए लोगों को अलग थलग करने के लिए हेल्थ वर्कर लगे हुए हैं. उधर, एक अन्य अफ्रीकी देश डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में इबोला वायरस तेजी से फैल रहा. पिछले 7 दिनों में कांगो के नॉर्थ किवु प्रॉविंस में चार मरीजों में इबोला के संक्रमण की पुष्टि हुई है. प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्री यूजीन नाजानू सलिता ने कहा कि प्रदेश में इबोला का पहला मामला 7 फरवरी को सामने आया था.
कांगो में इबोला से बिगड़े हालात
कांगों के इक्वाटोर प्रांत में वर्ष 2018 में इबोला का प्रकोप फैला था और 54 मामले सामने आए थे. इसमें 33 लोगों की मौत हो गई थी. कांगो अपने पूर्वी इलाके में फैले इबोला वायरस के दूसरे सबसे बड़े प्रकोप से जूझ रहा है. कांगो में दो नई वैक्सीन के इस्तेमाल के बाद भी अब तक 2260 लोगों की इबोला वायरस से मौत हो गई है.
तुर्की ने कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी पर अपहरण किए गए 13 नागरिकों पर उत्तरी इराक में हत्या का आरोप लगाया है. वहीं चरमपंथियों ने तुर्की के हवाई हमले को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है.
तुर्की में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) चरमपंथी संगठन घोषित है और वह प्रतिबंधित है. रविवार को तुर्की की सरकार ने आरोप लगाया कि इस संगठन के सदस्यों ने तुर्की के 13 नागरिकों की अपहरण के बाद हत्या कर दी. पीड़ितों की जान उत्तरी इराक में तुर्की की सेना द्वारा पीकेके के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान चली गई.
तुर्की के रक्षा मंत्री हुलुसी अकार ने कहा कि तुर्की के सैनिकों ने बुधवार को उत्तरी इराक के गारा इलाके में एक गुफा में विस्फोट किया और गुफा में दाखिल करने पर 13 शव मिले. अकार ने कहा कि बंधकों में से 12 को सिर में जबकि एक को कंधे पर गोली मारी गई. अमेरिका ने रविवार को हत्याओं की निंदा करते हुए कहा, "वह इराक के कुर्द क्षेत्र में तुर्की नागरिकों की हत्या की कड़ी करता है."
मृतकों में सैनिक शामिल
शवों को तुर्की के माल्तया प्रांत भेजा गया है. माल्तया के गवर्नर आयदीन बरुस ने कहा कि 2015 से 2016 के बीच अपहरण करने वालों में छह सैनिक और दो पुलिस अधिकारी शामिल थे. पीकेके ने तुर्की के आरोपों का खंडन किया है, जिसमें कहा गया है कि उसने बंधकों को नहीं मारा बल्कि तुर्की के हवाई हमलों में उनकी मौत हुई. तुर्की और पीकेके के बीच संघर्ष 1984 से चल रहा है. तुर्की सेना पिछले दो वर्षों से उत्तरी इराक में संगठन के खिलाफ सैन्य अभियान चला रही है. अकार ने कहा कि बुधवार को ऑपरेशन के दौरान 48 पीकेके सदस्य मारे गए, जबकि तीन तुर्की सैनिक भी मारे गए थे.
तुर्की, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने पीकेके को आतंकवादी संगठन घोषित किया है. 1980 के दशक में तुर्की और पीकेके के बीच संघर्ष में 40,000 से अधिक लोग मारे गए थे. पिछले साल तुर्की और इराक की सरकारें पीकेके जैसे आतंकवादी समूहों के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करने के लिए सहमत हुई. दिसंबर में अंकारा में तुर्की के राष्ट्रपति तुर्की में राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन और इराकी प्रधानमंत्री मुस्तफा अल कादहेमी ने कहा था कि उनका देश "तुर्की की सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले किसी भी संगठन या संरचना को बर्दाश्त नहीं करेगा." इसके जवाब में एर्दोआन ने कहा था, "तुर्की, इराक या सीरिया में अलगाववादी आतंकवादियों का कोई भविष्य नहीं है."
हालांकि जिन लोगों की पीकेके ने हत्या की है उनकी पहचान जाहिर नहीं की गई है. अकार ने बताया कि सुरक्षा कारणों से उनके अपहरण की सूचना पहले सार्वजनिक नहीं की गई थी.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)