अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के सह संस्थापक रहे बिल गेट्स के साथ मुलाक़ात की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है.
इस तस्वीर को शेयर करते हुए पीएम ख़ान ने लिखा है-“मेरे निमंत्रण पर पाकिस्तान आए बिल गेट्स का स्वागत करते हुए बहुत खुशी हुई. उनके हिस्से कई उपलब्धियां हैं लेकिन दुनियाभर में उन्हें उनके परोपकार से जुड़े कामों के लिए सराहा जाता है.”
इमरान ख़ान ने आगे लिखा है कि मैं अपनी और अपने देश की ओर से पोलियो को जड़ से समाप्त करने और ग़रीबी को मिटाने के लिए उनकी पहला और उनके योगदान के लिए धन्यवाद देता हूं.
दूसरी ओर बिल गेट्स ने भी इमरान ख़ान के साथ एक फ़ोटो शेयर की है.
उन्होंने लिखा है-“इमरान ख़ान को धन्यवाद.पाकिस्तान में पोलियों को ख़त्म करने के लिए उठाए गए क़दमों पर एक अच्छी और उपयोगी बातचीत हुई. मैं पोलियो उन्मूलन के लिए उनके देश की प्रतिबद्धता से काफी उत्साहित हूं.”
टीकाकरण की वजह से दुनिया के ज़्यादातर इलाक़ों से इस बीमारी को मिटाने में कामयाबी मिली है.
आज की तारीख़ में केवल दो देशों में पोलियो के मरीज़ पाए जाते हैं. पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान.
पाकिस्तान में पोलियो से मुक्ति का अभियान कमोबेश पटरी पर ही है लेकिन इस बात से इनक़ार भी नहीं कर सकते हैं कि यहां टीके को लेकर एक वर्ग अभी भी संदेह करता है.
साल 2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान जारी कर के कहा था, "हम इस बात से बहुत चिंतित हैं कि पोलियो के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की लड़ाई ग़लत दिशा में जा रही है." (bbc.com)
चरमपंथी गुट इस्लामिक स्टेट ने इराक की यजीदी औरतों और लड़कियों की फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफार्मों पर खरीद-बिक्री की थी. अब पीड़ित यजीदी चाहते हैं कि ये कंपनियां अपनी गलती मान कर उन्हें मुआवजा दें.
वहाब हासू के परिवार ने 80 हजार डॉलर की फिरौती दी ताकि उनकी भतीजी को इस्लामिक स्टेट के चंगुल से छुड़ाया जा सके. चरमपंथियों ने 2014 में उनकी भतीजी का अपहरण कर लिया और फिर उसे व्हाट्सऐप ग्रुप में "बेचने के लिए" पेश किया. अब हासू चाहते हैं कि इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियों को जिम्मेदार ठहरा कर उनसे मुआवजा वसूला जाए.
हासू अकेले नहीं हैं. इराक में अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय के दर्जनों दूसरे लोग भी चाहते हैं कि सोशल मीडिया कंपनियों को यजीदी महिलाओं और लड़कियों की तस्करी और खरीद-फरोख्त में मदद का दोषी माना जाए.
हासू और उनके साथी यजीदी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वकीलों के साथ मिल कर एक रिपोर्ट तैयार की है. यह रिपोर्ट अमेरिका और दूसरे देशों को सौंप कर यजीदियों के खिलाफ अपराध में फेसबुक और यूट्यूब जैसी सोशल मीडिया कंपनियों की भूमिका की जांच करने की मांग की जाएगी.
26 साल के हासू का कहना है, "इससे यजीदी पीड़ितों को न्याय मिलेगा." हासू 2012 में नीदरलैंड्स आ गए. उनके पिता को अमेरिकी सैनिकों के साथ काम करने की वजह से धमकियां मिल रही थीं.
सोशल मीडिया कंपनियों की नाकामी
120 पन्नों की ये रिपोर्ट कहती है कि बड़ी तकनीकी कंपनियों ने अपने प्लेटफार्मों का महिलाओं और लड़कियों के कारोबार के लिए इस्तेमाल होने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया. इस्लामिक स्टेट ने आठ साल पहले यजीदियों के गढ़ समझे जाने वाले सिंजार पर तब हमला कर बड़ी संख्या में लड़कियों और औरतों का अपहरण किया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म पर यजीदियों के खिलाफ नफरती भाषणों की पहचान कर उन्हें हटाने में भी नाकाम रहीं. कंपनियों को कंटेंट मॉडरेशन में उनकी कमजोरियों के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ ही सरकार से सख्त दिशानिर्देश बनाने की मांग रिपोर्ट में की गई है.
संयुक्त राष्ट्र की एक जांच टीम ने हिंसा के इस अभियान को जनसंहार माना है. इसमें इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने यजीदी पुरुषों की हत्या की, बच्चों को बाल सैनिक बनाया और महिलाओं के साथ साथ लड़कियों को यौन दासी बना कर उनकी खरीद बिक्री की. हासू का कहना है, "हम सरकार से जांच की मांग कर रहे हैं क्योंकि इन प्लेटफार्मों ने जनसंहार में योगदान किया है."
सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों ने कुछ कंटेंट हटाए और ऐसे कुछ अकाउंट सस्पेंड भी किए जिनमें महिलाओं और लड़कियों की तस्करी समेत इस्लामिक स्टेट से जुड़ी सामग्री थी. हालांकि कार्यकर्ताओं का कहना है कि कंपनियों का रवैया पैबंद लगाने जैसा और बहुत अत्यंत धीमा था.
रिपोर्ट में ऑनलाइन तस्करी के करीब दर्जन भर उदाहरण हैं. इनमें फेसबुक पोस्ट के स्क्रीनशॉट हैं जहां एक युवा यजीदी महिला की कीमत लगाई जा रही है. साथ ही यूट्यूब वीडियो का स्क्रीनशॉट भी है जिसमें इस बात पर चर्चा हो रही है कि महिलाओं की किस खूबी पर ज्यादा पैसा मिलेंगे.
सोशल मीडिया कंपनियों का रवैया
यूट्यूब ने रिपोर्ट में लगाए आरोपों पर प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया हालांकि एक प्रवक्ता ने कहा है कि साइट ने जुलाई से सितंबर 2021 के बीच करीब ढाई लाख ऐसे वीडियो हटाए हैं जिनमें हिंसक चरमपंथ को लेकर यूट्यूब की नीतियों का उल्लंघन हुआ.
मेटा यानी भूतपूर्व फेसबुक ने भी रिपोर्ट की कॉपी दखने के बाद इस पर कोई प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया. इसी तरह ट्वीटर के प्रवक्ता ने कहा कि धमकी देना या आतंकवाद को बढ़ावा देना हमारे नियमों के खिलाफ है, हालांकि यजीदियों के मामले में खासतौर से ट्वीटर की तरफ से भी कोई बयान नहीं दिया गया.
सोशल मीडिया कंपनियां हाल के वर्षों में कंटेंट मॉडरेशन की नीतियों को लेकर लगातार आलोचना झेल रही हैं. कुछ कार्यकर्ता उन्हें अभिव्यक्ति को दबाने का आरोप लगाते हैं तो कुछ मुद्दों पर अत्यधिक नरमी बरतने के भी आरोप हैं.
कहीं नरम तो कहीं गरम रवैया
पिछले साल म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों ने मेटा से 150 अरब अमेरिकी डॉलर के हर्जाने की मांग करते हुए मुकदमा ठोका. उनका आरोप है कि समुदाय के खिलाफ नफरती भाषणों के खिलाफ कुछ नहीं किया गया और समुदाय के खिलाफ हिंसा हुई.
2021 में फेसबुक के आंतरिक दस्तावेज व्हिसलब्लोअर फ्रांसिस हाउगेन ने सार्वजनिक किए गए थे. इन दस्तावेजों से पता चला कि कंपनी को इन कमियों के बारे में जानकारी थी.
इसी तरह 2020 का एक दस्तावेज जो थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने देखा है उसमें कहा गया कि प्लेटफॉर्म गलत तरीके से अरबी भाषा में 77 फीसदी बार काउंटर टेररजिज्म सामग्री को आगे बढ़ा रहा था. रिपोर्ट में कहा गया है, "औरतों से द्वेष रखने वाले बहुत सारे दुष्प्रचार" मौजूद हैं और कंपनी ने इराक के अरबी बोलने वाले लोगों के पोस्ट्स की "ना के बराबर समीक्षा" की.
सच्चाई सामने आनी चाहिए
अगवा की गईं कुछ यजीदी औरतें और लड़कियां भागने में कामयाब हो गईं. हासू की भतीजी जैसी कुछ लड़कियों को उनके परिवारों ने पैसा देकर छुड़ाया. सैकड़ों दूसरी लड़कियां आज भी लापता हैं. डच यजीदियों की मदद करने वाले एक गुट के साथ काम करने वाली कैथरीन कांपेन वकील हैं.
कांपेन ने बताया कि अमेरिका और नीदरलैंड के अधिकारियों को पहले ही इस रिपोर्ट की कॉपी दी जा चुकी है. उनका कहना है, "अगर एक जांच से आपराधिक प्रक्रिया का पता चलता है और आरोप साबित होता है तो होने दीजिए. अगर यह एक दीवानी मुकदमा बनता है तो यही होने दीजिए, हम चाहते हैं कि सच्चाई सामने आए."
अमेरिका से चलने वाली वेबसाइटों को उनके यूजरों की डाली गई अवैध सामग्री की जिम्मेदारी से 1996 के कम्युनिकेशन डीसेंसी एक्ट की धारा 230 के तहत संरक्षण मिला हुआ है. हालांकि बाद की धाराएं कहती हैं कि यह तस्करी जैसी चीजों पर लागू नहीं होगा. यानी दोषी होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है.
रिपोर्ट का मानना है कि अमेरिकी अधिकारी इस मामले की जांच कर कंपनी पर मुकदमा चला सकते हैं. इसके लिए टेक्सस में फेसबुक के खिलाफ 2021 के आए फैसले का हवाला दिया गया है.
कोई न्याय नहीं
संयुक्त राष्ट्र की एक टीम इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जांच कर रही है. उसने बहुत सारे सबूत जमा किए हैं और इराक की जजों को ट्रेनिंग दी है हालांकि अब तक इसका कोई नतीजा सामने नहीं आया है. यजीदियों के लिए काम करने वाले संगठन याजदा के सह संस्थापक मुराद इस्माइल कहते हैं, "मैंने यजीदी बच्चों को इस प्लेटफॉर्म पर बिकते हुए अपनी आंखों से देखा है. किसी को कुछ करना होगा."
हासू को उम्मीद है कि विदेशी सरकारें सोशल मीडिया कंपनियों पर उनकी कमियों के लिए और आखिरकार पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दबाव बनाएंगी. हासू को 2019 के एक मुकदमे में आए फैसले से प्रेरणा मिली है. इसमें डच नेशनल रेल कंपनी एनएस को यहूदी नरसंहार के उन पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कहा गया जो इस कंपनी की ट्रेन में भर कर दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कंसंट्रेशन कैंप तक लाए गए थे.
एनआर/एके (रॉयटर्स)
अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया होता तो बहुत से रूसी इस बात से हैरान नहीं होते. बरसों से रूसी सरकारी मीडिया इसकी जमीन तैयार कर रहा है और यूक्रेन को हमेशा दुश्मन देश की तरह पेश करता रहा है.
डॉयचे वैले पर रोमान गोंसारेंको की रिपोर्ट-
क्या रूसी नागरिक यूक्रेन के साथ युद्ध करने के पक्ष में हैं? जब से यूक्रेन की सीमा पर रूसी सैनिकों का जमावड़ा किया है, तब से यह सवाल हर किसी के जेहन में है.
मॉस्को के जाने-माने लेवाडा सेंटर में सर्वेक्षणकर्ता के तौर पर काम करने वाले डेनिस वोल्कोव इस सवाल का जवाब देने से पहले थोड़ा सोचते हैं. वह कहते हैं, "हमने लोगों से यह सवाल पूछा ही नहीं. कुछ लोगों का रवैया युद्ध समर्थक हो सकता है, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है."
युद्ध कितना संभव है?
रूसी मीडिया में युद्ध की संभावना को लेकर खुले आम चर्चा होती है. दक्षिणपंथी सांसद व्लादिमीर जिरीनोव्स्की अकसर टीवी पर होने वाली बहसों में शामिल होते हैं और कई साल से यूक्रेन पर हमले का आह्वान करते रहे हैं. पिछले साल के आखिरी दिनों में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल ना होने की रूस की मांग को नहीं मानता है तो उसके खिलाफ बलप्रयोग किया जाना चाहिए.
कई साल पहले रूस के एक सरकारी टीवी चैनल पर जिरीनोव्स्की ने कहा था कि रूस को कीव में यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको के घर पर परमाणु बम गिरा देना चाहिए. इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी सोशल मीडिया पर भी धड़ल्ले से की जाती है. मिसाल के तौर पर, हाल ही में एक रूसी पत्रकार ने ट्विटर पर लिखा, "अब यूक्रेन को एक बार फिर आजाद कराने का समय आ गया है."
यह साफ नहीं है कि आम रूसी जनता में इस तरह की भावना कितनी गहराई से मौजूद हैं. सितंबर 2021 में हुए पिछले संसदीय चुनावों में जिरीनोव्स्की की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ रशिया को सिर्फ 7.5 प्रतिशत वोट मिले थे. इनमें से भी सारे लोग युद्ध का समर्थन नहीं करेंगे.
सर्वे करने वाले वोल्कोव के पास कुछ और आंकड़े हैं. जो लोग उनके सर्वे में शामिल रहे, उनमें से 36 प्रतिशत लोगों ने माना कि मौजूदा तनाव रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का रूप ले ले इसकी "बहुत आशंका है" . अन्य चार प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्हें लगता है कि युद्ध को 'टाला नहीं जा सकता'. ये आंकड़े 2021 के आखिर में लेवाडा सेंटर की तरफ से कराए गए एक सर्वे के हैं.
वोल्कोव कहते हैं, "ज्यादातर लोग युद्ध नहीं चाहते, वे इसे लेकर डरे हुए हैं, लेकिन उनके भीतर यह अहसास भी है कि युद्ध कभी भी शुरू हो सकता है." सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोग इस स्थिति के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार मानते हैं. अगर युद्ध शुरू होता है, तो रूस में आधे लोग इसके लिए पूरी तरह अमेरिका और नाटो देशों को कसूरवार मानेंगे. वहीं 16 प्रतिशत इसकी जिम्मेदारी यूक्रेन पर और चार प्रतिशत लोग रूस पर डालेंगे.
रूसी मीडिया के मुद्दे
रूसी आबादी के बड़े तबके में इस तरह की राय होना इस बात की पुष्टि करता है कि सरकारी मीडिया जो बरसों से प्रचारित-प्रसारित करता रहा है, उसने लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. वोल्कोव कहते हैं, "(यूक्रेन के साथ संभावित युद्ध का) मुद्दा लोगों तक टीवी के जरिए ही पहुंचा है, जो दो तिहाई रूसी लोगों के लिए सूचना देने वाला सबसे अहम साधन है."
रूसी टीवी पर यूक्रेन ऐसा मुद्दा है जो बरसों से चला आ रहा है. यूक्रेन में 2004 में हुई ऑरेंज क्रांति के बाद से उसे लेकर रूस में व्यापक कवरेज शुरू हुई. 2004 में यूक्रेन के राष्ट्रपति चुनावों के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रदर्शनकारियों ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. आखिकार पश्चिमी समर्थक विक्टर युश्चेंको को विजेता घोषित किया गया और रूस के करीबी विक्टर यानुकोविच को पराजित. इसे रूस पश्चिमी देशों की तरफ से हुए तख्तापलट के तौर पर देखता है.
इससे पहले रूस और यूक्रेन को "रणनीतिक साझीदार" और बहुत करीबी सहयोगी माना जाता था. 2008 में रूस और जॉर्जिया के बीच हुआ युद्ध भी एक अहम मोड़ था जिसमें यूक्रेन ने जॉर्जिया का साथ दिया था.
इसके बाद यूक्रेन से युद्ध का विचार रूसी और यूक्रेनी लोगों के साथ साथ उनके मीडिया के दिमाग में घुस गया.
पूर्वी यूक्रेन के "रूसी लोग"
रूस ने 2014 में जब यूक्रेन के क्रीमिया इलाके को अपने क्षेत्र में मिलाया तो उससे पहले रूस के पूरे मीडिया में हर तरफ यूक्रेन की चर्चा थी, ठीक उसी तरह जैसे 2004 के विरोध प्रदर्शनों को तख्तापलट की तरह पेश किया गया था. रूसी मीडिया की रिपोर्टिंग में रूसी भाषा बोलने वाले यूक्रेनी नागरिकों के लिए मौजूद तथाकथित 'खतरे' पर बहुत जोर दिया जाता है. इस खतरे को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है, जबकि ना उन पर कभी हमला हुआ और ना ही इसकी कोई गंभीर आशंका है. हालांकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इसी बात को आधार बनाकर क्रीमिया को हड़पकर उसे रूसी क्षेत्र में मिला लिया. इसके बाद पुतिन ने कहा कि उनका मकसद रूसियों की रक्षा करना था.
इसके बाद यूक्रेन रूसी मीडिया की रिपोर्टिंग का अहम विषय बन गया. घरेलू राजनीति के बाद सबसे ज्यादा रूसी मीडिया यूक्रेन की ही चर्चा करता है. रूस के भीतर और बाहर बहुत से पर्यवेक्षक मानते हैं कि ऐसा इसीलिए किया जा रहा है ताकि अगर यूक्रेन से रूस का कोई सैन्य टकराव होता है तो रूसी लोग हमेशा अपनी सरकार के रवैया का समर्थन करें.
बरसों से रूसी मीडिया में यूक्रेन को एक कमजोर और नाकाम राष्ट्र के तौर पर पेश किया जाता रहा है. उसे पश्चिमी देशों की कठपुतली और रूस का दुश्मन बताया जाता है. लोग भी इस बारे में सुन-सुन कर थक गए हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि रूसी लोग अमेरिका के बाद यूक्रेन को अपना दूसरा सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे हैं. ब्रिटेन को वे लोग इस सूची में तीसरे स्थान पर रखते हैं.
मौजूद संकट के दौरान भी साफ है कि रूसी मीडिया इस बार भी यूक्रेन में मौजूद "रूसियों की हिफाजत" पर जोर दे रहा है. उसका इशारा यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में रहने वाले रूसी भाषी यूक्रेनी लोगों की तरफ है जो खास तौर से यूक्रेन के अलगाववादी इलाकों दोनेत्स्क और लुहांस्क गणराज्यों में रहते हैं.
ऐसे लाखों लोगों को 2019 के बाद से रूसी नागरिकता दी गई है. दिसंबर के आखिर में राष्ट्रपति पुतिन ने पहली बार पूर्वी यूक्रेन में "नरसंहार" के संकेत मिलने की बात कही. अलगाववादी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वे सैन्य मदद के लिए रूस को बुलाएंगे. यह एक और ऐसा विषय है जिस पर रूसी मीडिया आसमान सिर पर उठा लेगा. (dw.com)
संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने कहा है कि टोंगा में ज्वालामुखी और सुनामी से 80 प्रतिशत लोग प्रभावित हुए थे और अब नुकसान से उबरने के लिए देश को करीब 6.7 अरब रुपये चाहिए.
टोंगा में एक अंतर्जलीय ज्वालामुखी के फटने और फिर सुनामी आने के एक महीने बाद अब जाकर वहां हुई बर्बादी का कुछ अंदाजा मिल पा रहा है. टोंगा के लिए संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर सनका समारासिंहा ने कहा है कि त्रासदी से द्वीप के 1,05,000 लोगों में से 80 प्रतिशत प्रभावित हुए थे.
उन्होंने पड़ोसी देश फिजी से एक वर्चुअल समाचार वार्ता में बताया कि नुकसान की मरम्मत करने और देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण खेती और मछली पालन क्षेत्रों को फिर से पहले जैसा करने के लिए 90 मिलियन डॉलर (करीब 6.7 अरब रुपये) की आवश्यकता है.
राहत कार्य
समरसिंहा के मुताबिक "सुनामी की लहरें तो लौट गई हैं लेकिन लोगों की चिंताएं कम नहीं हुई हैं." उन्होंने बताया कि तूफानों का मौसम पूरे जोरों पर है और लगभग हर सप्ताह ही भूकंप भी आ रहे हैं. बल्कि उन्होंने बताया कि प्रेस वार्ता से कुछ ही घंटों पहले टोंगा की राजधानी नुकुआलोफा से सिर्फ 47 किलोमीटर दूर 5.0 तीव्रता का भूकंप आया था. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि उस भूकंप से कोई नुकसान नहीं हुआ.
समारासिंहा ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र की 14 एजेंसियां और अंतरराष्ट्रीय समुदाय राहत और मरम्मत कार्यों में टोंगा की मदद कर रही हैं. एजेंसियों ने करीब 40 टन पानी और सफाई का सामान पहुंचाया है, आपातकालीन संचार सेवाओं की मदद से टोंगा को बाकी दुनिया से जोड़ा है. एजेंसियां खाना, स्कूल का सामान और मनोवैज्ञानिक समर्थन भी दे रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र की टोंगा के सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों को नकद धनराशि देने की भी योजना है. इनमें वो 2000 लोग भी शामिल हैं जो अपने अपने घरों से विस्थापित हो गए और कुछ और ऐसे लोग जिनकी जीविका छीन गई. टोंगा पिछले दो सालों से कोविड-मुक्त भी था लेकिन त्रासदी के बाद महामारी भी यहां पहुंच गई. बंदरगाह पर काम करने वाले दो कर्मी कोविड पॉजिटिव पाए गए.
आगे की योजना
समरसिंहा ने बताया कि देश में 20 फरवरी तक के लिए तालाबंदी लगी हुई है और वहां 89 प्रतिशत टीकाकरण की ऊंची दर की वजह से संक्रमित लोगों के लक्षण भी हल्के हैं. उन्होंने बताया कि विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार त्रासदी में देश का जितना नुकसान हुआ है वो उसके सकल घरेलू उत्पाद के 18.5 प्रतिशत के बराबर है. और पर्यटन, कृषि और वाणिज्य के क्षेत्रों पर भविष्य में जो असर पड़ेगा वो नुकसान अलग है.
टोंगा के 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग छोटे स्तर पर की जाने वाली खेती, मछली पालन और खुद इस्तेमाल करने लायक पशुपालन पर निर्भर हैं. विश्व बैंक का अनुमान है कि कृषि, वन निर्माण और मछलीपालन को करीब दो करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है.
समरसिंहा ने बताया कि घरों, स्कूलों, चर्चों, सामुदायिक भवनों और दूसरी गैर रिहायशी इमारतों, सड़कों, पुलों और समुद्र के नीचे बिछी संचार की तारों को भी करोड़ों का नुकसान पहुंचा है. उन्होंने बताया कि राहत कार्यों के लिए करीब तीन करोड़ डॉलर या तो आ चुके हैं या आने वाले हैं और इसमें से कुछ राशि का इस्तेमाल शुरूआती कार्यों के लिए किया जाएगा.
सीके/एए (एपी)
अमेरिका ने रूस पर आरोप लगाते हुए कहा है कि रूस, यूक्रेन पर हमला करने के लिए कारण पैदा करने की तैयारी कर रहा है.
गुरूवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि रूस आने वाले दिनों में सैन्य कार्रवाई शुरू कर सकता है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस समस्या और गतिरोध का राजनयिक हल अभी भी संभव है.
अमेरिका के विदेश नीति से जुड़े कई अधिकारियों ने उन संभावित कारणों को सूचीबद्ध किया है जिसे आधार बनाकर रूस, यूक्रेन पर हमले कर सकता है और उसे सही ठहरा सकता है.
वहीं दूसरी ओर रूस बार-बार अमेरिका पर तनाव को भड़काने और बढ़ाने का आरोप लगा रहा है. रूस का कहना है कि उसकी यूक्रेन पर हमले की कोई योजना नहीं है.
बीते दिनों रूस ने यह भी दावा किया था कि वह रूस से लगी यूक्रेन की सीमा पर तैनात (एक लाख से अधिक)अपने सैनिकों को कम भी कर रहा है. हालांकि अमेरिका और नेटो के महासचिव ने दावा किया था कि रूस जो कह रहा है उसका कोई संकेत अभी तक सामने नहीं आया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने पत्रकारों से कहा कि हमारे पास यह मानने के कई कारण हैं कि वे यूक्रेन पर हमला करने के लिए कारण तैयार कर रहे हैं.
यूक्रेन-रूस सीमा से रूसी सैन्य टुकड़ियों की वापसी की ख़बरों के बीच एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने दावा किया है कि रूस अभी भी अपनी सैन्य टुकड़ियों को इस क्षेत्र में भेज रहा है.
व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए इस अधिकारी ने बताया है कि बीते कुछ दिनों में लगभग 7000 रूसी सैनिक सीमा पर तैनात किए गए हैं.
इस अधिकारी ने बताया कि रूस “कभी भी यूक्रेन में घुसने के लिए एक झूठा बहाना कर सकता है.”
“यह बहाना इस तरह से हो सकता है – डोनबास में उकसावे की कार्रवाई, ज़मीन – हवा – समुद्र में नेटो गतिविधि या रूसी क्षेत्र में आक्रमण का दावा आदि.” (bbc.com)
ब्राज़ील के पेट्रोपोलिस शहर में भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ के कारण 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई है.
यह शहर रियो डी जनेरियो के उत्तर में पहाड़ों में बसा हुआ है. जहां बीते दिनों हुई मूसलाधार बारिश के कारण यह हादसा हुआ.
इस हादसे में कई घर तबाह हो गए हैं और बाढ़ के कारण सड़कों पर खड़ी गाड़ियां तक बह गईं.
राहत-बचाव कार्य जारी है और लोगों को मिट्टी के मलबे में खोजने की कोशिश की जा रही है.
ब्राज़ील के नेशनल सिविल डिफ़ेस का कहना है कि स्थानीय समयानुसार बुधवार देर रात तक 24 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है.
इस हादसे के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं. जिनमें हादसे के कारण हुए नुकसान का आंकलन किया जा सकता है.
रियो डी जनेरियो के गवर्नर क्लॉडियो कास्त्रो ने पत्रकारों को बताया कि यह लगभग युद्ध जैसी स्थिति है.
उन्होंने कहा, “कारें खंभों से लटकी पड़ी हैं, पलट गयी हैं और अभी भी बहुत सारी मिट्टी और मलबा बिखरा पड़ा है.”
30 से अधिक लोगों के लापता होने की सूचना है. पेट्रोपोलिस रियो डी जेनेरियो का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. (bbc.com)
संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 18 फरवरी। कनाडा के पूर्व मंत्री और राजनयिक क्रिस एलेक्जेंडर ने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा है कि उसे 9/11 के पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए, क्योंकि हमले की साजिश कराची में रची गई थी।
अफगानिस्तान में कनाडा के पूर्व राजदूत का कहना है कि अफगान संपत्ति युद्धग्रस्त देश के लोगों की है, पाकिस्तानियों की नहीं।
कनाडा के नागरिकता और आव्रजन मंत्री ने एक ट्वीट में कहा, "सेंट्रल बैंक ऑफ अफगानिस्तान की संपत्ति अफगानों की है - पाकिस्तानी सेना के आतंकवादी प्रॉक्सी या उनके पीड़ितों के लिए नहीं। पाकिस्तान को 9/11 के पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए - 2011 तक पाकिस्तान द्वारा संरक्षित एक नेता के तहत कराची में हमले की योजना बनाई।
अलेक्जेंडर ने कहा है कि कराची में 9/11 के हमलों की योजना पाकिस्तान द्वारा संरक्षित एक नेता द्वारा बनाई गई थी और इसलिए पाकिस्तान को 9/11 के आतंकी हमले के पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने घोषणा की है कि वह 9/11 पीड़ितों के लिए अफगानिस्तान के 7 अरब डॉलर के फंड का आधा हिस्सा देगा।
अलेक्जेंडर ने यह भी बताया कि धन अफगानों का है, न कि पाकिस्तानी सेना के आतंकवादी प्रॉक्सी का, जो तालिबान का हिमायती है।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले, पाकिस्तान ने 9/11 के हमलों के पीड़ितों के लिए अमेरिका में रखी अफगान संपत्ति का आधा हिस्सा अलग रखने के अमेरिका के फैसले पर सवाल उठाया था और कहा था कि अफगान फंड का उपयोग अफगानिस्तान का संप्रभु निर्णय होना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 9/11 के हमलों के पीड़ितों के परिवारों सहित कई लोगों सहित अमेरिका के भीतर भी इस फैसले की आलोचना की जा रही है और कहा जा रहा है कि अफगान फंड को अमेरिकी सरकार द्वारा मनमाने ढंग से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए था।
पाक विदेश कार्यालय के प्रवक्ता असीम इफ्तिखार ने कहा, "पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के लिए 3.5 अरब डॉलर और 9/11 पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे के लिए 3.5 अरब डॉलर जारी करने के लिए अमेरिकी बैंकों द्वारा अफगान संपत्ति को मुक्त करने के अमेरिकी फैसले को देखा है।" (आईएएनएस)
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सांसद शेरी रहमान ने पाकिस्तान में धार्मिक मामलों के केंद्रीय मंत्री नूर-उल-हक़ क़ादरी के महिलाओं की रैली पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को लिखे ख़त को लेकर चिंता ज़ाहिर की है.
उन्होंने इस पत्र को ट्वीट करते हुए लिखा है, “महिलाओं की रैली पर प्रतिबंध लगाया जाना, चिंता का विषय है. केंद्रीय मंत्री का यह बयान हैरत में डालने वाला है. आठ मार्च को महिला दिवस है और उस दिन यह प्रतिबंध.”
उन्होंने आगे लिखा है, “पाकिस्तान में किसी ने भी महिलाओं के हिजाब डे मनाने पर रोक नहीं लगाई है. एक ओर हम हिजाब पर भारत के रवैए की आलोचना करते हैं और दूसरी ओर अपनी महिलाओं के आठ मार्च को प्रस्तावित रैली को बैन करने की बात करते हैं.”
उन्होंने आगे लिखा है, “अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ग की महिला का नेतृत्व करता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का उद्देश्य समाज में जेंडर से जुड़ी रूढ़ियों और महिलाओं को जागरूक करना है. ऐसा करके आप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के ही दिन ही उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों से उन्हें वंचित कर रहे हैं.”
पाकिस्तान पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए महिला मार्च की एक आयोजक ने कहा, "हमारे लिए पाकिस्तानियों का दिमाग़ और सोच बहुत छोटी है. मैं अब तक केवल एक प्लेकार्ड बनाने की वजह से घर में क़ैद हूं. मुझे किस तरह की गालियां नहीं दी गईं? चूंकि हिजाब पहनना हमारी सामूहिक सोच को दर्शाता है, इसलिए इसका पुरज़ोर समर्थन किया जा रहा है.'' (bbc.com)
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अब तक की सबसे सटीक घड़ी बनाई है. यह घड़ी मिलीमीटर के हिसाब से टाइम का फर्क बता सकती है. और आइंस्टाइन का सिद्धांत एक बार फिर सबसे सटीकता से साबित हुआ.
आइंस्टाइन का सापेक्षता सिद्धांत कहता है कि पृथ्वी जैसी विशाल वस्तु सीधे नहीं बल्कि घुमावदार रास्ते पर चलती है जिससे समय की गति भी बदलती है. इसलिए अगर कोई व्यक्ति पहाड़ी की चोटी पर रहता है तो उसके लिए समय, समुद्र की गहराई पर रहने वाले व्यक्ति की तुलना में तेज चलता है.
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को अब तक के सबसे कम स्केल पर मापा है, और सही पाया है. उन्होंने अपने प्रयोग में पाया कि अलग-अलग जगहों पर ऊंचाई के साथ घड़ियों की टिक-टिक मिलीमीटर के भी अंश के बराबर बदल जाती है.
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी (NIST) और बोल्डर स्थित कॉलराडो यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले जुन ये कहते हैं कि उन्होंने जिस घड़ी पर यह प्रयोग किया है, वह अब तक की सबसे सटीक घड़ी है. जुन ये कहते हैं कि यह नई घड़ी क्वॉन्टम मकैनिक्स के लिए कई नई खोजों के रास्ते खोल सकती है.
जुन ये और उनके साथियों का शोध प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर में छपा है. इस शोध में उन्होंने बताया है कि कैसे उन्होंने इस वक्त उपलब्ध एटोमिक क्लॉक से 50 गुना ज्यादा सटीक घड़ी बनाने में कामयाबी हासिल की.
कैसे साबित हुआ सापेक्षता का सिद्धांत
एटोमिक घड़ियों की खोज के बाद ही 1915 में दिया गया आइंस्टाइन का सिद्धांत साबित हो पाया था. शुरुआती प्रयोग 1976 में हुआ था जब ग्रैविटी को मापने के जरिए सिद्धांत को साबित करने की कोशिश की गई.
इसके लिए एक वायुयान को पृथ्वी के तल से 10,000 किलोमीटर ऊंचाई पर उड़ाया गया और यह साबित किया गया कि विमान में मौजूद घड़ी पृथ्वी पर मौजूद घड़ी से तेज चल रही थी. दोनों घड़ियों के बीच जो अंतर था, वह 73 वर्ष में एक सेकंड का हो जाता.
इस प्रयोग के बाद घड़ियां सटीकता के मामले में एक दूसरे से बेहतर होती चली गईं और वे सापेक्षता के सिद्धांत को और ज्यादा बारीकी से पकड़ने के भी काबिल बनीं. 2010 में NIST के वैज्ञानिकों ने सिर्फ 33 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर रखी घड़ी को तल पर रखी घड़ी से तेज चलते पाया.
कैसे काम करती है यह घड़ी
दरअसल, सटीकता का मसला इसलिए पैदा होता है क्योंकि अणु गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होते हैं. तो, सबसे बड़ी चुनौती होती है कि उन्हें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से मुक्त किया जाए ताकि वे अपनी गति ना छोड़ें. इसके लिए NIST के शोधकर्ताओं ने अणुओं को बांधने के लिए प्रकाश के जाल प्रयोग किए, जिन्हें ऑप्टिकल लेटिस कहते हैं.
जुन ये की बनाई नई घड़ी में पीली धातु स्ट्रोन्टियम के एक लाख अणु एक के ऊपर एक करके परतों में रखे जाते हैं. इनकी कुल ऊंचाई लगभग एक मिलीमीटर होती है. यह घड़ी इतनी सटीक है कि जब वैज्ञानिकों ने अणुओं के इस ढेर को दो हिस्सों में बांटा तब भी वे दोनों के बीच समय का अंतर देख सकते थे.
सटीकता के इस स्तर पर घड़ियों सेंसर की तरह काम करती हैं. जुन ये बताते हैं, "स्पेस और टाइम आपस में जुड़े हुए हैं. और जब समय को इतनी सटीकता से मापा जा सके, तो आप समय को वास्तविकता में बदलते हुए देख सकते हैं.”
वीके/एए (एएफपी)
वॉशिंगटन, 17 फरवरी| दो-तिहाई अमेरिकियों का कहना है कि अमेरिका गलत रास्ते पर है। यह जानकारी एक नए सर्वेक्षण से पता चली है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को प्रकाशित एक नए पोलिटिको-मॉनिर्ंग कंसल्ट सर्वेक्षण में केवल 34 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि देश सही दिशा में जा रहा है।
तैंतालीस प्रतिशत अमेरिकियों का कहना है कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन को '²ढ़ता से स्वीकार' या 'कुछ हद तक स्वीकृत' करते हैं, जबकि लगभग 53 प्रतिशत ने नोट किया कि वे इसे 'कुछ हद तक अस्वीकार' करते हैं।
केवल 39 प्रतिशत अमेरिकियों का कहना है कि वे कोविड -19 महामारी से निपटने के लिए बाइडेन को मंजूरी देते हैं, जबकि 41 प्रतिशत इसे खराब रेटिंग देते हैं, 16 प्रतिशत ने इसे उचित कहा।
देश में राज्यों की बढ़ती संख्या, जिन्होंने दुनिया के सबसे अधिक कोरोनावायरस संक्रमण और मौतों की सूचना दी है, ने ओमाइक्रोन वेरिएंट द्वारा संचालित वृद्धि के बाद दैनिक नए मामलों में गिरावट के बीच कोविड -19 प्रतिबंधों में ढील दी है।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के निदेशक रोशेल वालेंस्की ने बुधवार को एक वर्चुअल ब्रीफिंग में कहा कि ओमाइक्रोन के मामले घट रहे हैं, और हम जिस प्रक्षेपवक्र पर हैं, उसके बारे में हम सभी आशावादी हैं।
"हम वह सब करने के लिए सतर्क रहना चाहते हैं जो हम कर सकते हैं ताकि यह प्रक्षेपवक्र जारी रहे।" (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 17 फरवरी| अमेरिकी तटीय इलाकों में समुद्र का स्तर वर्ष 2050 तक औसतन मौजूदा स्तर से 10 से 12 इंच (25 से 30 सेंटीमीटर) ऊपर बढ़ जाएगा। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई है। एक अंतर-एजेंसी टास्क फोर्स की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण अगले 30 वर्षो में तटीय बाढ़ में काफी वृद्धि होगी। टास्क फोर्स में नासा, राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन और अन्य संघीय एजेंसियां शामिल हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि अगले 30 वर्षो में समुद्र की ऊंचाई में वृद्धि पिछले 100 वर्षो में देखी गई कुल वृद्धि के बराबर हो सकती है।
टास्क फोर्स ने अपने निकट-अवधि के समुद्र के स्तर में वृद्धि के अनुमानों को विकसित किया है, जो इस बात की बेहतर समझ पर आधारित है कि कैसे प्रक्रियाएं जो बढ़ते समुद्रों में योगदान करती हैं, जैसे कि ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के पिघलने के साथ-साथ समुद्र, भूमि और बर्फ के बीच समुद्र की ऊंचाई को लेकर बातचीत प्रभावित होगी।
नासा के प्रशासक बिल नेल्सन ने कहा, "यह रिपोर्ट पिछले अध्ययनों का समर्थन करती है और पुष्टि करती है कि हम लंबे समय से क्या जानते हैं, समुद्र का स्तर खतरनाक दर से बढ़ रहा है, जिससे दुनिया भर के समुदायों खतरे में हैं।"
उन्होंने कहा, "विज्ञान निर्विवाद है और जलवायु संकट को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, जो अच्छी तरह से चल रहा है।" (आईएएनएस)
काबुल, 17 फरवरी| अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने कहा है कि देश की प्रत्येक लड़की को स्कूलों में लौटना चाहिए, क्योंकि यह युद्धग्रस्त राष्ट्र की भलाई के लिए अति आवश्यक है।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व नेता ने कहा कि लड़कियों की स्कूल और महिलाओं की उनके कार्यस्थल पर वापसी अफगानिस्तान की मांग है।
अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर अधिकार करने के बाद से लड़कियां और महिलाएं शैक्षणिक संस्थानों और कार्यालयों से बाहर हो गई हैं।
मौजूदा तालिबान सरकार की मान्यता के संबंध में करजई ने कहा कि मार्ग प्रशस्त करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुछ प्रारंभिक कदम उठाए जाने की जरूरत है।
"अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता के मुद्दे पर, मेरा प्रस्ताव शुरू से ही यही रहा है कि हम अफगान लोगों को पहले अपने घर को व्यवस्थित करने की जरूरत है।" (आईएएनएस)
साओ पाउलो, 17 फरवरी | ब्राजील के रियो डी जनेरियो राज्य के पेट्रोपोलिस नगरपालिका में भूस्खलन, भारी बारिश और बाढ़ से कम से कम 44 लोगों की मौत हो गई है। स्थानीय नागरिक सुरक्षा अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने बताया, रियो डी जनेरियो शहर से 68 किमी दूर स्थित पहाड़ी शहर में मंगलवार को भारी बारिश के कारण 50 से अधिक भूस्खलन हुए।
रियो डी जनेरियो राज्य के गवर्नर क्लाउडियो कास्त्रो ने बुधवार को कहा, "यह एक युद्ध की स्थिति है, घरों के ऊपर कारें, कीचड़ और लोग अपने प्रियजनों की तलाश करने में लगे हैं।"
नागरिक सुरक्षा लेफ्टिनेंट कर्नल गिल केपरम्स ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान विस्तार से बताया कि लापता लोगों की संख्या अभी पता नहीं चली है।
अधिकारी ने मोरो दा ओफिसिना में भूस्खलन को लेकर कहा, "निवासी मिट्टी के नीचे अपने प्रियजनों की तलाश कर रहे हैं। एक पहाड़ी जहां लगभग 80 घर बह गए थे।"
निवासियों द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई तस्वीरों में एक भूस्खलन की घटना कैद हो गई है, जो घरों को बहा ले गया।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 फरवरी| पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की उपाध्यक्ष मरियम नवाज शरीफ ने बुधवार को कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान राज्यों की सत्ता का कितना भी इस्तेमाल करें, वह खुद को बचा नहीं पाएंगे। एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, मरियम ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, "ज्वार ने इमरान खान को बदल दिया है! आप राज्य की कितनी भी शक्ति का उपयोग करें, आप खुद को नहीं बचा सकते।"
पीएमएल-एन की उपाध्यक्ष ने यह भी कहा कि इमरान खान एक 'गंदा खेल' में शामिल हैं और अपने 'अज्ञानी मंत्रियों' को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, मरियम ने कहा, "इस तरह आप जैसे लोगों का डर तब सामने आता है, जब वे सत्ता खोने लगते हैं। आपके कार्यो को देखकर, मुशर्रफ (पूर्व सैन्य शासक) युग के आखिरी कुछ दिन याद आते हैं।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि मरियम का बयान पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) द्वारा मीडिया शख्सियत मोहसिन बेग को गिरफ्तार किए जाने के कुछ घंटे बाद आया है।
गिरफ्तारी के दौरान, बेग और उनके बेटे ने एफआईए कर्मियों पर गोलियां चला दीं, जिसमें एक घायल हो गया। घटना के वीडियो तभी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।
एफआईए साइबर क्राइम विंग ने पाकिस्तान के संचार मंत्री मुराद सईद के अनुरोध पर बेग के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
रिपोर्ट में कहा गया है, "आपके अपराधों की सूची में न केवल विरोधियों से बदला लेना शामिल है, बल्कि एफआईए जैसे राज्य संस्थानों का उपयोग अपने व्यक्तिगत स्कोर को निपटाने के लिए करना भी शामिल है। आपको इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वह कोई प्राणी नहीं हैं जो धरती पर आसमान से उतरे हैं कि कोई आपकी आलोचना करेगा तो उसके घर पर छापा मारा जाएगा।
उन्होंने कहा, "आईसीयू में मेरी मां को वही सम्मान दिया जाना चाहिए था, जो आप अपनी पत्नी को देते हैं.आपके राजनीतिक विरोधियों की मां और बहनें उतने ही सम्मान की पात्र हैं।" (आईएएनएस)
अमेरिकी नागरिक वर्जीनिया रॉबर्ट्स गिफ्रे ने आरोप लगाया था कि 2001 में जब वह 17 साल की थीं, तब प्रिंस एंड्र्यू ने उनका यौन शोषण किया था.
ब्रिटेन के प्रिंस एंड्र्यू ने अपने ऊपर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला वर्जीनिया रॉबर्ट्स गिफ्रे के साथ समझौता कर लिया है. वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली अमेरिकी नागरिक वर्जीनिया ने प्रिंस एंड्र्यू पर यह आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था कि उन्होंने वर्जीनिया का तब यौन उत्पीड़न किया था, जब वह नाबालिग थीं.
फेडरल कोर्ट में दायर की गई सूचना में वर्जीनिया के वकील डेविड बोइस ने बताया कि दोनों ही पक्षों के वकील एक सैद्धांतिक समझौते पर पहुंचे हैं. कोर्ट में दायर किए गए एक पत्र में बोइस समेत दोनों ही पक्षों के सभी वकीलों के दस्तखत हैं. इस पत्र में जज से सभी समय-सीमाएं निलंबित करने और मामला होल्ड पर रखने का आग्रह किया गया है.
क्या बातें हुईं समझौते में
पत्र में यह भी लिखा है कि दोनों ही टीमें अगले महीने तक केस रद्द करने की गुजारिश करेंगी. न्यूयॉर्क की एक अदालत में जज के सामने यह समझौता पेश किए जाने से अब मुकदमे की कार्रवाई आगे नहीं बढ़ेगी. यह मामला आगे बढ़ने पर ब्रिटेन के शाही परिवार के लिए और फजीहत का सबब बन सकता था. समझौते के तहत एंड्र्यू से वर्जीनिया की चैरिटी में एक अच्छी-खासी रकम दान करने के लिए भी कहा गया है.
बोइस ने अदालत में जो पत्र दाखिल किया है, उसका एक हिस्सा कहता है, "प्रिंस एंड्र्यू पीड़ितों के अधिकारों के समर्थन में वर्जीनिया की चैरिटी को पर्याप्त दान देने का इरादा रखते हैं. प्रिंस एंड्र्यू का कभी भी वर्जीनिया का चरित्र खराब करने का इरादा नहीं था. वह स्वीकार करते हैं कि वर्जीनिया को उत्पीड़न और अनुचित सार्वजनिक हमलों का शिकार होना पड़ा है."
हालांकि, वर्जीनिया की ओर से अभी कोई बयान नहीं आया है कि वह समझौते पर सहमत क्यों हो गईं. इस पत्र में उस रकम का भी जिक्र नहीं किया गया है, जो प्रिंस एंड्र्यू दान में देने वाले हैं. वर्जीनिया ने आरोप लगाया था कि जेफ्री एप्सटीन की दोस्त गिजलीन मैक्सवेल ने उन्हें प्रिंस एंड्र्यू से मिलवाया था.
क्या है एंड्र्यू के खिलाफ मामला
ब्रिटेन की महारानी के 'सबसे पसंदीदा बेटे' कहे जाने वाले प्रिंस एंड्र्यू पर वर्जीनिया ने आरोप लगाया था कि 2001 में जब वह 17 साल की थीं, तब एंड्र्यू ने उनका यौन उत्पीड़न किया था. एंड्र्यू के वकीलों ने अदालत में कोशिश की थी कि अदालत यह मामला खारिज कर दे, लेकिन जज ने ऐसा नहीं किया.
मुकदमा दायर होने के बाद प्रिंस एंड्र्यू ने अपनी शाही पदवी और जिम्मेदारियां छोड़ दी हैं. इसके बाद बकिंघम पैलेस की ओर से बयान जारी करके कहा गया था, "ड्यूक ऑफ यॉर्क अपनी सभी सार्वजनिक जिम्मेदारियों से मुक्त किए जाते हैं. अब वह एक आम नागरिक की तरह मुकदमे में अपना बचाव करेंगे."
इस मामले में जेफ्री एप्सटीन का नाम आया था. यौन अपराध के कई मामलों में दोषी अमेरिकी अरबपति जेफ्री एप्स्टीन ने 2019 में खुदकुशी कर ली थी. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों बिल क्लिंटन और डॉनल्ड ट्रंप के करीबी बताए जाने वाले एप्सटीन की लाश जेल की बैरक में मिली थी. एप्स्टीन को बच्चों से यौन संबंध बनाने का दोषी भी पाया गया था.
एंड्र्यू ने किया था इनकार
प्रिंस एंड्र्यू ने वर्जीनिया के आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि उन्हें गिफ्रे से मिलने का कोई मौका याद नहीं है. उन्होंने एप्सटीन के साथ अपनी दोस्ती का भी बचाव किया था. एक इंटरव्यू में एंड्र्यू के ये बातें कहने के बाद आम जनता ने इसका जोरदार विरोध किया और तमाम चैरिटी और संगठनों ने एंड्र्यू से किनारा कर लिया. इसके बाद वह कम ही मौकों पर सार्वजनिक रूप से नजर आए.
प्रिंस एंड्र्यू 1978 में रॉयल नेवी की एविएशन ब्रांच में शामिल हुए थे. 1981 में उन्हें बतौर वाइस-लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया था. 1982 में वह फॉकलैंड द्वीप समूह को लेकर हुए युद्ध में शामिल रहे हैं. 1982 में अर्जेंटीना ने ब्रिटेन से हजारों किलोमीटर दूर अपने पड़ोस में स्थित फॉकलैंड द्वीप समूह पर हमला किया था. तब जिस एयरक्राफ्ट कैरियर से अर्जेंटीना का मुकाबला किया गया था, प्रिंस एंड्र्यू भी उसके साथ थे.
वीएस/एनआर (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि अगस्त 2019 में कश्मीर की स्वायत्तता ख़त्म करने के भारत के एकतरफ़ा फ़ैसले के कारण ही दोनों देशों के रिश्ते और बिगड़े हैं.
उन्होंने कहा कि किसी भी बातचीत के लिए भारत को कश्मीर का दर्जा बहाल करना होगा. फ़्रांसीसी अख़बार ली फिगारो के साथ इंटरव्यू में इमरान ख़ान ने कश्मीर, पुलवामा, शिनजियांग और मोदी सरकार के बारे में अपनी राय रखी.
कश्मीर के मुद्दे पर इमरान ख़ान ने कहा कि कश्मीर में भारत ने जो भी किया, वो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के ख़िलाफ़ है. इमरान ने कहा- इतना ही आरएसएस की अगुआई वाली बीजेपी की सरकार ने जिस तरह पाकिस्तान और ख़ासकर कश्मीर को लेकर अपनी नीति दिखाई है, उसे लेकर इस इलाक़े में काफ़ी चिंता है. पाकिस्तानी पीएम ने कहा- हम एक ऐसी सरकार से डील कर रहे हैं, जो तर्कसंगत सरकार नहीं हैं. जिनकी विचारधारा घृणा पर आधारित है ख़ासकर मुसलमानों को लेकर, अल्पसंख्यकों को लेकर और पाकिस्तान को लेकर. भारत में ऐसी सरकार नहीं है, जिससे हम बात कर सकें.
उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद की मुख्य वजह कश्मीर है. इमरान ने कहा- इसलिए जब मैं सरकार में आया, तो मैंने नरेंद्र मोदी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. मेरा मानना था कि हमारे बीच पड़ोसी का रिश्ता होना चाहिए. लेकिन एकमात्र मुश्किल कश्मीर है. और इसके हल के लिए बातचीत होनी चाहिए. लेकिन मुझे भारतीय पीएम से जो प्रतिक्रिया मिली, उससे मुझे काफ़ी आश्चर्य हुआ. पाकिस्तानी पीएम ने कहा, "उसके बाद पुलवामा हुआ, जब एक युवा कश्मीरी ने अपने को उड़ा लिया. लेकिन उन्होंने इसके लिए हमें दोषी ठहराया. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान पर बम गिराए. इसके बाद हमने उनके एक जहाज़ को गिराया और उनके पायलट को वापस भेजा. ये दिखाने के लिए हम और तनाव नहीं बढ़ाना चाहते." उन्होंने कहा कि सिर्फ़ मोदी सरकार के रुख़ के कारण आज हमारे बीच कोई रिश्ते नहीं.
इमरान ने कहा- हमारे बीच रिश्ते शुरू हो सकते हैं, लेकिन उन्हें कश्मीर की अगस्त 2019 से पहले की स्थिति को बहाल करना होगा. क्योंकि ये अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है. इसके बिना कोई भी बातचीत कश्मीर के लोगों के साथ धोखा होगा, जिन्होंने इतना कुछ सहा है.
कश्मीर के मुद्दे पर बोलने और चीन में शिनजियांग के मुद्दे पर ख़ामोश रहने के सवाल पर इमरान ख़ान ने कहा- शिनजियांग प्रांत चीन का हिस्सा है. इस पर कोई विवाद नहीं है. चीन के हिस्से के रूप में इसे मान्यता है. जहाँ तक कश्मीर की बात है, 1948 में इसे विवादित हिस्सा माना गया था. दूसरी बात ये कि भारत ने ये स्वीकार किया था कि कश्मीर में जनमतसंग्रह होगा और वहाँ के लोग ये फ़ैसला करेंगे कि वे किसके साथ जाएँगे, भारत के साथ या पाकिस्तान के साथ. इसलिए पाकिस्तान इस मुद्दे पर बोलता है. कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के पास है. (bbc.com)
पाकिस्तान में पेट्रोलियम पदार्थों की क़ीमत में 12 रुपए तक की बढ़ोत्तरी की गई है. जिसके बाद क़ीमत रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई है. पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार रात अधिसूचना जारी की. वैसे पिछले कई दिनों से पाकिस्तान में पेट्रोल की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी की अफ़वाह चल रही थी. इस बढ़ोत्तरी के बाद पाकिस्तान में एक लीटर पेट्रोल की क़ीमत 159.86 रुपए (पाकिस्तानी) प्रति लीटर हो गई है, जबकि डीज़ल की क़ीमत 154.15 रुपए प्रति लीटर हो गई है.
मंगलवार रात वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतों में लगातार बढ़ोतरी के कारण ये फ़ैसला किया गया है. जो 2014 के बाद सबसे ऊँचे स्तर पर है. बयान में कहा गया है कि इसके बावजूद पीएम इमरान ख़ान ने साल की शुरुआत में कोई क़दम नहीं उठाया. इमरान सरकार में मंत्री फ़वाद हुसैन चौधरी ने कहा कि मौजूदा हालात में क़ीमतें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. पाकिस्तान अपनी तेल ज़रूरतों का लगभग 80% आयातित तेल से पूरा करता है, जिनमें कच्चा तेल, डीजल और पेट्रोल शामिल हैं. सोशल मीडिया पर पाकिस्तान सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना हो रही है और कहा जा रहा है कि पाकिस्तान में और महंगाई बढ़ेगी. (bbc.com)
रूस के ईयू राजदूत ने यूक्रेन पर आने वाले दिनों में हमले से इनकार किया है. उन्होंने डी वेल्ट अखबार से कहा, "आने वाले सप्ताह में या उसके बाद के सप्ताह में या आने वाले महीने में तनाव में कोई वृद्धि नहीं होगी."
करीब दो महीने से जारी रूस और यूक्रेन तनाव में कुछ नरमी के संकेत दिखने लगे हैं. यूरोपीय संघ में रूस के राजदूत व्लादिमीर चिजोव ने उन सुझावों को खारिज कर दिया है कि उनका देश यूक्रेन पर हमला करने वाला है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक अमेरिकी खुफिया सूत्र का हवाला देते हुए कहा कि मॉस्को बुधवार (16 फरवरी) को यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की तारीख के रूप में चर्चा कर रहा था, जिसे चिजोव ने जर्मन अखबार डी वेल्ट में प्रकाशित टिप्पणियों में खंडन किया.
चिजोव ने क्या कहा?
उन्होंने डी वेल्ट से कहा, "जहां तक रूस का संबंध है, मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि इस बुधवार को कोई हमला नहीं होगा." आगे उन्होंने कहा, "आने वाले सप्ताह में, या उसके बाद के सप्ताह में, या आने वाले महीने में तनाव में कोई वृद्धि नहीं होगी."
साथ ही चिजोव ने कहा, "यूरोप में युद्ध शायद ही कभी बुधवार को शुरू होते हैं." ब्रसेल्स में मॉस्को के राजदूत ने दिसंबर में इसी तरह की टिप्पणी की थी. तब से अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि उनकी खुफिया जानकारी से पता चलता है कि रूस 20 फरवरी को शीतकालीन ओलंपिक की समाप्ति से पहले यूक्रेन पर हमला करने की योजना बना सकता है.
चिजोव ने यूक्रेन पर संभावित हमले के अमेरिकी आरोपों की निंदा की. उन्होंने कहा, "जब आप आरोप लगाते हैं, खास तौर से रूस के खिलाफ बहुत गंभीर आरोप, तो आप पर भी सबूत पेश करने की जिम्मेदारी होती है. नहीं तो यह बदनामी है." उन्होंने सवाल किया, "तो सबूत कहां है?"
उन्होंने पश्चिम से रूस की सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से लेने का आग्रह करते हुए कहा, "जब हमारे सहयोगी आखिरकार हमारी वैध चिंताओं को सुनते हैं, तो देशों के बीच नरमी की प्रक्रिया आने में लंबा समय नहीं लगेगा."
उन्होंने कहा, "यह लिस्बन से लेकर व्लादिवोस्तोक तक सभी यूरोपीय लोगों के हित में होगा, लेकिन साथ ही दुनिया के अन्य सभी देशों के भी."
रूस यूक्रेन को पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो में शामिल करने की कोशिशों से नाराज है. सोवियत संघ के विघटन से पहले यूक्रेन सोवियत का ही हिस्सा था. मंगलवार को ही जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स मॉस्को पहुंचे थे और रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से मुलाकात की. ये बातचीत और उसके पहले बने माहौल से तनाव घटने के संकेत मिल रहे हैं. शॉल्त्स से पुतिन की मुलाकात के पहले रूस ने यूक्रेन की सीमा पर से कुछ सैनिकों को हटाना शुरू कर दिया.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
कीव, 16 फरवरी। रूस के कुछ टैंक और सैन्य वाहनों के यूक्रेन सीमा से लौटने के बाद भी दोनों देशों के बीच तनाव बरकरार है। मंगलवार को यूक्रेन ने कहा कि देश के रक्षा मंत्रालय, सैन्य बल और दो सरकारी बैंकों की वेबसाइट एक साइबर हमले का शिकार हुईं जिसकी जड़ें संभवत: रूस से जुड़ी हो सकती हैं। साइबर हमले की ये खबरें ऐसे समय पर आ रही हैं जब यूक्रेन की सीमाओं पर भारी रूसी सैन्य बल लगातार अभ्यास कर रहा है और यूक्रेन पर हमले (Russia Ukraine Crisis) के बादल मंडरा रहे हैं।
साइबर हमले में देश की दो सबसे बड़ी बैंकों, Oschadbank state savings bank और Privat को निशाना बनाया गया, जो देश के दो सबसे बड़े वित्तीय संस्थान हैं। हालांकि मंगलवार को बाद में दोनों वेबसाइटों की सेवाएं बहाल हो गईं लेकिन सैन्य वेबसाइटें कई घंटों तक ठप्प रहीं। रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर एक एरर मैसेज देखा गया, जिसमें लिखा था-
सैन्य बलों की वेबसाइट पर दिखा एरर मैसेज
इसी तरह का एक एरर मैसेज सैन्य बलों की वेबसाइट पर भी दिखाई दिया। इससे पहले जनवरी में भी हैकरों ने यूक्रेन की दर्जनों वेबसाइटों को निशाना बनाया था। बड़े पैमाने पर हुए साइबर हमलों के बाद यूक्रेन की कई सरकारी वेबसाइट अस्थायी रूप से बंद हो गई थीं। यूक्रेन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओलेग निकोलेंको ने कहा था कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि इस हमले के पीछे कौन है।
साइबर हमलों से इनकार कर रहा रूस
उन्होंने कहा था, 'किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी क्योंकि मामलों की जांच चल रही है लेकिन यूक्रेन के खिलाफ रूस के साइबर हमले का लंबा इतिहास रहा है।' रूस पूर्व में यूक्रेन के खिलाफ साइबर हमलों से इनकार करता रहा है। अधिकारियों के अनुसार, देश की कैबिनेट, सात मंत्रालयों, कोषागार, राष्ट्रीय आपदा सेवा और पासपोर्ट तथा टीकाकरण प्रमाण पत्र संबंधी राज्य सेवा की वेबसाइट हैकिंग की वजह से ठप्प हो गई थीं।
बाइडन ने दी कड़ी चेतावनी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस को कड़ी चेतावनी दी है। जो बाइडेन ने साफ कहा है कि वह रूस के साथ टकराव नहीं चाहते हैं लेकिन अगर रूस के हमले से यूक्रेन में अमेरिकी निशाना बने तो इसका करारा जवाब मिलेगा। बाइडेन ने कहा, 'हम यूक्रेन पर रूसी हमले का निर्णायक जवाब देने के लिए तैयार हैं। रूसी हमला होने की अभी भी बहुत अधिक संभावना है। हम रूस के साथ सीधे टकराव नहीं चाहते हैं, हालांकि मैं स्पष्ट हूं कि अगर रूस, यूक्रेन में अमेरिकियों को निशाना बनाता है, तो हमें मजबूरन जवाब देना होगा।'
(navbharattimes)
अमेरिका में ल्युकेमिया से पीड़ित एक महिला का एचआईवी पूरी तरह ठीक हो गया है. एचआईवी से ठीक होने वाली यह पहली महिला बन गई है. अब तक तीन ही लोग एचआईवी से ठीक हो पाए हैं.
अमेरिका में डॉक्टरों ने एचआईवी पीड़ित एक महिला को ठीक कर दिया है. शोधकर्ताओं ने बताया कि स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के एक जरिए इस महिला का इलाज हुआ. स्टेमसेल एक ऐसे व्यक्ति ने दान किए थे जिसके अंदर एचआईवी वायरस के खिलाफ कुदरती प्रतिरोध क्षमता थी.
मध्य आयुवर्ग की यह महिला श्वेत-अश्वेत माता पिता की संतान है. इस मामले को डेनवर में हुई कॉन्फ्रेंस ऑन रेट्रोवायरसऐंड ऑपर्चुनिस्टिक इंफेक्शंस में पेश किया गया. शोधकर्ताओं ने बताया कि इस मामले में उन्होंने जो तरीका अपनाया, उसका इस्तेमाल पहले कभी नहीं हुआ है और यह ज्यादा लोगों के लिए लाभदायक हो सकता है.
डॉक्टरों ने पहली बार गर्भनाल के खून का इस्तेमाल महिला के ल्युकेमिया का इलाज करने के लिए किया. महिला 14 महीने से स्वस्थ है और उसे एचआईवी के लिए भी दवाओं की जरूरत नहीं पड़ी है.
पहली बार महिला का इलाज
इससे पहले दो ऐसे मामले हुए हैं जब एचआईवी मरीज ठीक हो गए. उनमें से एक मामला श्वेत पुरुष का था जबकि दूसरा एक दक्षिण अमेरिकी मूल के पुरुष का. इन दोनों का भी स्टेमसेल ट्रांसप्लांट हुआ था लेकिन वे स्टेमसेल वयस्क लोगों से लिए गए थे.
अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की अध्यक्ष शैरन लेविन ने एक बयान में इस प्रयोग की सफलता पर संतोष जाहिर किया. उन्होंने कहा, "अब इलाज की तीसरी रिपोर्ट आ रही है. और पहली बार किसी महिला को ठीक किया गया है.”
यह इलाज अमेरिका में जारी एक विशेष अध्ययन के तहत किया गया. यह अध्ययन लॉस एंजेल्स की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की डॉ. इवोन ब्राइसन और बाल्टीमोर की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की डॉ. डेब्रा परसॉड के नेतृत्व में चल रहा है. इस अध्यन का मकसद एचआईवी से पीड़ित 25 लोगों का स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के जरिए कैंसर या अन्य गंभीर बीमारियों का इलाज करना है.
कैसे हुआ इलाज?
जो मरीज इस ट्रायल में हिस्सा ले रहे हैं, पहले उनकी कीमोथेरेपी की जाती है ताकि कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सके. उसके बाद डॉक्टर विशेष जेनेटिक म्यूटेशन वाले व्यक्ति से स्टेमसेल लेकर उसे मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस ट्रांसप्लांट के बाद मरीजों में एचआईवी के प्रति रोधक क्षमता विकसित हो जाती है.
लेविन ने बताया कि एचआईवी पीड़ित ज्यादातर लोगों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट उचित इलाज नहीं है. उन्होंने कहा, "रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी का इलाज संभव है और जीन थेरेपी भविष्य में एचआईवी के इलाज की कारगर रणनीति हो सकती है.”
अध्ययन बताता है कि इस इलाज की सफलता का मुख्य सूत्र एचआईवी-प्रतिरोधक कोशिकाओं का मरीज के शरीर में सफल ट्रांसप्लांट हैं. लेविन कहती हैं, "इन तीनों मामलों को अगर एक साथ देखा जाए, तो सभी मिलकर ट्रांसप्लांट के अलग-अलग तत्वों की इलाज में अहमियत को उजागर करते हैं.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स से मुलाकात के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने कहा कि उनका देश अमेरिका और पश्चिमी देशों से बातचीत को तैयार है. मुलाकात से कुछ ही देर पहले यूक्रेन की सीमा से कुछ सैनिकों की वापसी का एलान.
यूक्रेन पर रूस के हमले की आशंका के बीच शॉल्त्स मॉस्को पहुंचे और पुतिन से मुलाकात की. ये बातचीत और उसके पहले बने माहौल से तनाव घटने के संकेत मिल रहे हैं. शॉल्त्स से पुतिन की मुलाकात से ठीक पहले ही रूस ने यूक्रेन की सीमा पर से सेना की कुछ टुकड़ियों की वापसी का एलान किया.
"स्थाई सुरक्षा रूस के खिलाफ नहीं रूस के साथ"
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के बाद कहा है कि यूरोप में सुरक्षा बनाए रखने में रूस की भूमिका अहम है. शॉल्त्स ने कहा, "यूरोपीय लोगों के लिए यह साफ है कि स्थायी सुरक्षा रूस के खिलाफ नहीं बल्कि रूस के साथ में है."
जर्मन चांसलर से मुलाकात के बाद प्रेस कांफ्रेंस में पुतिन ने कहा कि रूस युद्ध नहीं चाहता. पुतिन का कहना है, "हम यह चाहते हैं या नहीं? निश्चित रूप से नहीं. बिल्कुल यही बात है जिसके कारण हमने बातचीत की प्रक्रिया का प्रस्ताव दिया है."
दोनों नेताओं ने बातचीत के बाद प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया.
जर्मन चांसलर ने यूक्रेन की सीमा पर से फौज की कुछ टुकड़ियों की वापसी का स्वागत किया है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध टालने के लिए कूटनीति के विकल्प अभी खत्म नहीं हुए हैं. शॉल्त्स ने कहा, "हमने सुना है कि कुछ सैनिक टुकड़ियां वापस गई हैं जो अच्छा संकेत है, हमे उम्मीद है कि और भी वापस जाएंगे."
शॉल्त्स ने कहा, "समाधान ढूंढना संभव होना चाहिए. हालात चाहे कितने भी कठिन और गंभीर हों मैं यह नहीं कहूंगा कि अब कोई उम्मीद नहीं."
रूसी राष्ट्रपति ने कहा है कि उनका देश अमेरिका और नाटो के साथ मिसाइल की तैनाती को सीमित करने और सैन्य पारदर्शिता पर बातचीत करने के लिए तैयार है. पश्चिमी देशों और रूस के बीच तनाव घटाने की दिशा में इसे एक और संकेत माना जा रहा है.
पुतिन ने कहा कि अमेरिका और नाटो ने यूक्रेन और दूसरे पूर्व सोवियत देशों को नाटो से दूर रखने, रूसी सीमा के पास हथियारों की तैनाती और पूर्वी यूरोप के देशों से सैन्य सहयोग को वापस लेने की रूस की मांगों को ठुकरा दिया है. हालांकि अमेरिका और नाटो सुरक्षा से जुड़े बहुत से दूसरे उपायों पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं जिनका प्रस्ताव रूस ने पहले दिया था.पुतिन का कहना है कि रूस यूरोप में इंटरमीडिएट रेंज की मिसाइलों की यूरोप में तैनाती, युद्धाभ्यासों में पारदर्शिता और भरोसा बढ़ाने के उपायों पर बातचीत करने के लिए तैयार है हालांकि उन्होंने जोर दिया कि इसके लिए पश्चिमी देशों को रूस की प्रमुख मांगों पर विचार करना होगा.
सीमा पर से सैनिकों की वापसी
इसके तुरंत पहले ही रूसी रक्षा मंत्रालय ने सेना के अभ्यास के बाद उनकी आंशिक वापसी का एलान किया. इन सबसे उम्मीद जगी है कि रूस यूक्रेन पर तुरंत कोई हमला नहीं करने जा रहा है. रूसी सेना ने यह जानकारी नहीं दी है कि कहां से सेनाएं पीछे हट रही हैं और कितनी संख्या में.
रूसी सेना ने सैनिकों की तैनाती का भी कोई आंकड़ा नहीं दिया है. कुछ तस्वीरें जरूर जारी की गई हैं जिनमें टैंकों को ट्रेन पर सवार होते देखा जा सकता है. इसके अलावा टैंक पर सवार एक कमांडर की तस्वीर भी जारी की गई है जो सैनिकों से सैल्यूट ले रहा है और पीछे सेना का बैंड बज रहा है. सेना ने यह नहीं बताया कि ये सैनिक कहां जा रहे हैं. बस यही कहा गया है, "स्थाई तैनाती वाली जगह वापस जा रहे हैं."
इन घोषणाओं ने आर्थिक बाजारों पर भी असर डाला और वहां तुरंत बढ़त दिखने लगी. कई हफ्तों से युद्ध की आशंका ने दुनिया भर के बाजारों पर असर डाला है.
एक दिन पहले रूस के विदेश मंत्री ने संकेत दिए थे कि उनका देश सुरक्षा चिंताओं पर बातचीत करना चाहता है. जर्मन चांसलर से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने भी यही बात कही है. शॉल्त्स का कहना है कि रूस ने जो मुद्दे सुझाए हैं उनमें कई ऐसे हैं जिन पर बात करना जरूरी है.
रूस ने मंगलवार को सेनाओं की वापसी के एलान को इस बात का सबूत कहा है कि युद्ध की कल्पना अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के मन में थी. रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने ट्वीट किया है, "15 फरवरी 2022 को इतिहास में इस तरह से याद रखा जाएगा जब पश्चिमी जंग का दुष्प्रचार नाकाम हो गया."
हालांकि यूक्रेन अभी भी तीन तरफ से घिरा है. अगर फिलहाल के लिए यह संकट दूर हो गया हो तो भी लंबे समय में जोखिम बना हुआ है.
एनआर/एके (एपी, रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए)
इस्लामाबाद, 16 फरवरी | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने व्यक्ति-से-व्यक्ति भुगतान को सक्षम करने के लिए देश की पहली त्वरित भुगतान प्रणाली 'रास्ट' के दूसरे चरण की शुरूआत की है। सिन्हुआ न्यूज एजेंसी ने सूचना दी कि मंगलवार को एक समारोह को संबोधित करते हुए, खान ने कहा कि नई शुरू की गई पहल न केवल आम लोगों को तुरंत, सुरक्षित और आसानी से मुफ्त में डिजिटल भुगतान करने में सक्षम बनाएगी, बल्कि सरकार को देश की बड़े पैमाने पर अनिर्दिष्ट अर्थव्यवस्था का रिकॉर्ड बनाए रखने में भी मदद करेगी।
उन्होंने कहा, "अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण के माध्यम से, 22 करोड़ से अधिक लोगों को सिस्टम में वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करके एक संपत्ति में परिवर्तित किया जा सकता है।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस पहल से अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से वित्तीय क्षेत्र के लिए और नवाचार के द्वार खुलेंगे।
खान ने कहा कि कोविड-19 के प्रकोप का पूरी दुनिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और वैश्विक गरीबी के स्तर में वृद्धि हुई है।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि महामारी के बावजूद पाकिस्तान में गरीबी का स्तर थोड़ा कम हुआ है जो एक सकारात्मक संकेतक है, उम्मीद है कि 'रास्ट' और अन्य पहलों के माध्यम से देश की आर्थिक स्थिति में और सुधार होगा।
केंद्रीय बैंक के एक बयान में कहा गया है कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की एक प्रमुख पहल के रूप में, 'रास्ट' एक त्वरित भुगतान प्रणाली है जो विभिन्न हितधारकों जैसे संगठनों, व्यवसायों और व्यक्तियों के बीच विभिन्न प्रकार के लेनदेन को सक्षम बनाता है। (आईएएनएस)
काबुल, 16 फरवरी | पाकिस्तान ने अपनी जासूसी एजेंसी की तुर्की में अफगान जिहादी नेताओं के साथ मुख्य बैठक की खबरों का खंडन किया है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, काबुल स्थित पाकिस्तानी दूतावास ने आईएसआई प्रमुख की अफगान जिहादी नेताओं अट्टा मुहम्मद नूर, अब्दुल राशिद डस्तम और मुहम्मद मुहाकिक के साथ तुर्की में मुलाकात की खबरों का खंडन किया है।
इस खबर को फर्जी करार देते हुए दूतावास ने कहा है कि तुर्की में किसी भी पाकिस्तानी अधिकारी ने अफगान जिहादी नेताओं से मुलाकात नहीं की है।
इससे पहले, यह दावा किया गया था कि आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट-जनरल नदीम अंजुम ने कई अफगान जिहादी नेताओं से मुलाकात की और अफगानिस्तान में समावेशी सरकार की स्थापना पर चर्चा की है।
यह तब सामने आया जब अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के अधिकारियों ने अफगान से आग्रह किया है कि निर्वासन में राजनेता देश लौटे और शांतिपूर्वक ढंग से रहें। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 15 फरवरी | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि अगर पाकिस्तान ने सबसे पहले अफगानिस्तान सरकार को मान्यता दे दी तो उस पर अंतरराष्ट्रीय जगत का दबाव अधिक होगा और इसे वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। जिओ न्यूज ने यह जानकारी दी है।
उन्होंने फ्रांस के अखबार ली फिगारो को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि अगर पाकिस्तान ने सबसे पहले तालिबान को मान्यता दी तो हमारे पर अंतरराष्ट्रीय दबाव काफी बढ़ जाएगा और हम उसे बर्दाश्त करने की हालत में नहीं होंगे क्योंकि हम अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है "अगर उसे मान्यता प्रदान कर अलग थलग रहना है तो यह काम हम अंत में करेंगें और उसे मान्यता प्रदान करने की प्रकिया सामूहिक होनी चाहिए ।"
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के लोगों का आत्मसम्मान बहुत अधिक है और उन्हें एक निश्चित तरीके से कार्य करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा "आप उन्हें मजबूर नहीं कर सकते। तालिबान जैसी सरकार पर विदेशी दबाव डाले जाने की भी एक सीमा है। पश्चिमी देशों के लोगों की महिलाओं को लेकर जो मान्यता और धारणा है आप वह अफगानों से उम्मीद नहीं कर सकते हैं ।"
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान लड़कियों की शिक्षा पर सहमत हो गया है, लेकिन उसे समय चाहिए।
पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने अफगानिस्तान में मानवीय संकट के बिगड़ने, शरणार्थियों की संभावित वापसी और अफगानिस्तान के लिए कुल धनराशि में से मात्र आधी राशि जारी करने के अमेरिकी प्रशासन के फैसले पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने उल्लेख किया कि अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के पतन से पहले वहां तीन संगठन पाकिस्तानी तालिबान, बलूच आतंकवादी और दाएश के एक समूह अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे।
रिपोर्ट के अनुसार, "हम मानते हैं कि अफगान में सरकार जितनी अधिक स्थिर होगी, इन समूहों की गतिविधियां उतनी ही कम होंगी और इसलिए हम अफगानिस्तान की स्थिरता के बारे में चिंतित हैं।" (आईएएनएस)
कीव/नई दिल्ली, 15 फरवरी| कीव में भारतीय दूतावास ने यूक्रेन में भारतीय नागरिकों, विशेष रूप से ऐसे छात्रों से कहा है कि मौजूदा स्थिति के मद्देनजर अस्थायी रूप से देश छोड़ने पर विचार करें जिनका प्रवास आवश्यक नहीं है। मंगलवार को जारी एक ताजा एडवाइजरी में इसकी जानकारी दी गई। इसमें कहा गया है, "भारतीय नागरिकों को भी यूक्रेन के भीतर और उसके भीतर सभी गैर-जरूरी यात्रा से बचने की सलाह दी जाती है।"
सलाहकार ने आगे भारतीय नागरिकों से 'यूक्रेन में उनकी उपस्थिति की स्थिति' के बारे में दूतावास को रखने का अनुरोध किया, ताकि मिशन को 'जब और जहां आवश्यक हो' पहुंचने में सक्षम बनाया जा सके।
"यूक्रेन में भारतीय नागरिकों को सभी सेवाएं प्रदान करने के लिए दूतावास सामान्य रूप से कार्य करना जारी रखता है।"
अमेरिका द्वारा कुछ दिनों में संभावित रूसी आक्रमण के खिलाफ चेतावनी देने के बाद, एक दर्जन देशों ने अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की सलाह दी है। (आईएएनएस)