अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बाद जापान ने भी बीजिंग ओलंपिक खेलों में सरकारी डेलिगेशन नहीं भेजने का फैसला किया है. जापान ने इसे बहिष्कार का नाम नहीं दिया है.
जापान अमेरिका का मित्र देश है और चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इस वजह से जापान एक कठिन स्थिति में है और उसने चीन के शिनजियांग और हांग कांग जैसे इलाकों में मानवाधिकारों की स्थिति पर अपने पश्चिमी साझेदारों के मुकाबले थोड़ा नरम रुख अपनाया है.
जापान के नए प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा ने मानवाधिकारों को अपनी कूटनीति का एक अहम हिस्सा बनाया है और इसके लिए एक विशेष सलाहकार पद भी बनाया है. उन्होंने यह भी कहा है कि उन्हें चीन के साथ रचनात्मक संबंध बनाने की उम्मीद है.
खेलों पर प्रश्न चिन्ह
हाल के हफ्तों में उनसे कई बार पूछा गया है कि बीजिंग ओलंपिक खेलों के बारे में क्या किया जाना चाहिए लेकिन उन्होंने बस इतना कहा कि वो जापान के राष्ट्र हित में व्यापक फैसला लेंगे.
इसे चीन में मानवाधिकारों के हालात का विरोध करने के लिए अमेरिका द्वारा खेलों का बहिष्कार करने की मांग से जोड़ कर देखा जा रहा है. हालांकि जापान की प्रतिक्रिया मिली जुली है. घोषणा के अनुसार जापानी सरकार के मंत्री खेलों में नहीं जाएंगे लेकिन तीन ओलंपिक अधिकारी खिलाड़ियों के साथ जाएंगे.
मुख्य कैबिनेट सचिव हीरोकाजु मात्सुनो ने एक समाचार वार्ता के दौरान कहा, "एक सरकारी प्रतिनिधि मंडल भेजने की हमारी कोई योजना नहीं है." उन्होंने आगे बताया कि टोक्यो ओलंपिक आयोजन समिति के अध्यक्ष सीको हाशिमोतो, जापानी ओलंपिक समिति के अध्यक्ष यासुहीरो यामाशीता और जापान पैरालंपिक समिति के अध्यक्ष काजूयूकि मोरी जाएंगे.
कूटनीति की दुविधा
मात्सुनो ने बताया कि तीनों अधिकारी अंतरराष्ट्रीय और पैरालंपिक ओलंपिक समितियों के निमंत्रण पर जा रहे हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या यह "कूटनीतिक बहिष्कार" है तो उन्होंने कहा, "हम कैसे उपस्थित रहेंगे इसकी व्याख्या करने के लिए हम एक विशेष शब्द का इस्तेमाल नहीं करते हैं."
मात्सुनो ने कहा, "जापान यह मानता है कि यह महत्वपूर्ण है कि चीन स्वतंत्रता, मूल मानवाधिकारों की इज्जत और विधि का शासन के सार्वभौमिक मूल्यों का विश्वास दिलाए." उन्होंने कहा कि जापान ने इन बिंदुओं पर विचार कर अपना फैसला लिया.
बीजिंग में ओलंपिक खेल 2022 में चार से 20 फरवरी तक होने हैं. जापान के खिलाड़ी इन खेलों में हिस्सा लेंगे. चीन ने अमेरिका और दूसरे देशों की आलोचना की है और कहा है कि उन्होंने राजनीतिक तटस्थता का उल्लंघन किया है जिसकी ओलंपिक चार्टर मांग करता है.
माना जा रहा है कि बहिष्कार की मांग के प्रति ऐसी मिली जुली प्रतिक्रिया देना जापान द्वारा चीन के नेतृत्व को सीधे नाराज ना करने की कोशिश है.अगले साल दोनों एशियाई पड़ोसी देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों के सामान्य होने की पचासवीं वर्षगांठ भी है.
सीके/एए (एपी, डीपीए)
जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर ने कहा है कि महामारी को मिटाने की जिम्मेदारी सरकार के साथ साथ, हर एक नागरिक पर है. अपने क्रिसमस भाषण में उन्होंने इस साल जर्मनी में आई भीषण बाढ़ का भी जिक्र किया.
डॉयचे वैले पर रिचर्ड कोनोर की रिपोर्ट-
क्रिसमस के मौके पर जर्मन राष्ट्रपति फ्रांस वाल्टर श्टाइनमायर मे जनता से अपील की है कि कोरोना जैसी महामारी को हराने के संदर्भ में वे आजादी, भरोसा और जिम्मेदारी के मायने एक बार फिर से समझने की कोशिश करें. शनिवार को जर्मन टीवी पर प्रसारित होने वाले उनके संदेश की लिखित प्रति से यह पता चला है. राष्ट्रपति ने कहा है कि सरकारें अकेले इस महामारी को खत्म नहीं कर सकतीं बल्कि इसे हराना का जिम्मा हर एक को निजी तौर पर लेना होगा. राष्ट्रपति ने उन लोगों का खास तौर पर शुक्रिया अदा किया जिन्होंने कोविड के टीके लिए हैं और सभी तरह के नियम कायदों का पालन कर अपनी जिम्मेदारी निभाई है.
'सरकार की अकेले की जिम्मेदारी नहीं'
महामारी के दौरान बढ़ चढ़ कर भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, नर्सों, सरकारी अधिकारियों और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को प्रशंसा और धन्यवाद ज्ञापन करते हुए श्टाइनमायर ने कहा, "सरकार का तो यह कर्तव्य है और उसे करना ही होगा, लेकिन केवल सरकार ही नहीं. हमारी जगह सरकार तो अपने ऊपर मास्क नहीं लगा सकती है और ना ही हमारी जगह खुद टीका लगवा सकती है. यानि यह हममें से हर एक के ऊपर है कि अपना फर्ज निभाएं."
जर्मनी में टीका लेना सभी के लिए अनिवार्य नहीं है लेकिन फिलहाल इसे अनिवार्य बनाने पर विचार हो रहा है. टीके के पक्ष और विपक्ष वाले लोगों में लंबी बहस चलती आई है. इस पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "हम समझते हैं कि दो साल के बाद लोग तंग आ गए हैं, सब परेशान हैं, इसके कारण कई बार हमें अलगाव की भावना और कभी कभी तो खुलेआम गुस्सा भी देखने को मिल रहा है."
श्टाइनमायर ने अपील की है कि लोगों को अपने वैचारिक मतभेद के कारण आपस में फूट नहीं पड़ने देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में हर किसी की एक ही राय होना जरूरी नहीं है लेकिन यह याद रखना चाहिए कि "हम एक देश हैं. महामारी बीत जाने के बाद भी हमें एक दूसरे की आंखों में देखने की हालत में होना चाहिए."
पुरानी अवधारणाओं की याद
श्टाइनमायर ने उम्मीद जताई है कि "बेशकीमती पुराने शब्दों" का फिर से वजन बढ़ेगा. उन्होंने कहा, "भरोसे का क्या मतलब होता है? जाहिर है कि अंधविश्वास नहीं. लेकिन इसका मतलब यह तो हो सकता है कि ढंग की सलाह पर यकीन करें, भले ही मन की कुछ शंकाएं उस समय तक दूर नहीं हो पाई हों?"
राष्ट्रपति ने आजादी और जिम्मेदारी को लेकर अपनी समझ पर फिर से विचार करने की अपील की. उन्होंने कहा, "आजादी का मतलब क्या हर नियम के खिलाफ जोर शोर से विरोध प्रदर्शन करना है? क्या कभी इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि मैं खुद पर काबू रखूं ताकि सबकी आजादी को बचाया जा सके?" उन्होंने कहा कि इस तरह रवैया जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सहमति बनाने में भी बहुत काम आएगा.
सकारात्मक बने रहें
अपने भाषण की शुरुआत में राष्ट्रपति इसी साल जर्मनी में आई भीषण बाढ़ का जिक्र करेंगे. जुलाई में देश के पश्चिमी हिस्से ने बाढ़ की तबाही झेली और अब तक हालात सामान्य नहीं हुए हैं. इसके अलावा इसी साल पश्चिमी सेनाओं ने अफगानिस्तान को छोड़ा जिसके बाद तालिबान ने फिर से वहां अपना कब्जा जमा लिया. ऐसे सभी घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "जब हम इस साल पर नजर डालते हैं तो ऐसी कई चीजों को देख कर दुख होता है."
लेकिन बाढ़ की विभीषिका के दौरान और उसके कहीं बाद तक जिस तरह आम लोगों, स्वयंसेवियों ने आगे आकर बाढ़ पीड़ितों की मदद की उस पर राष्ट्रपति ने संतोष जताया. उन्होंने कहा, "मैं उन तमाम लोगों के बारे में सोच रहा हूं जिन्होंने बाढ़ पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, दान और दूसरे तरीकों से मदद पहुंचाई." इस मौके पर जर्मन राष्ट्रपति ने देश के युवाओं के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अडिग रहने की प्रशंसा की. (dw.com)
जर्मनी और फ्रांस का कहना है कि पूर्वी यूक्रेन में युद्धविराम बना रहना चाहिए. नए साल में सुरक्षा वार्ता को लेकर रूस और अमेरिका अभी भी एक साथ नहीं आ पाए हैं.
जर्मनी और फ्रांस ने गुरुवार को यूक्रेन की सेना और रूस समर्थक अलगाववादी ताकतों से पूर्वी यूक्रेन में नए सिरे से संघर्ष विराम की प्रतिज्ञा का सम्मान करने का आग्रह किया है. बर्लिन और पेरिस ने एक संयुक्त बयान में कहा, "हम पक्षों से युद्धविराम का सम्मान करने और मानवीय क्षेत्र में आगे के कदमों पर चर्चा जारी रखने का आग्रह करते हैं, जैसे कि क्रॉसिंग पॉइंट खोलना और बंदियों की अदला-बदली."
साझा बयान ऐसे समय में आया है जब यूक्रेन द्वारा दावा किया गया कि गुरुवार को "रूसी संघ के सशस्त्र बलों" ने तीन बार ताजा संघर्ष विराम का उल्लंघन किया था. युद्धविराम के पहुंचने से पहले यूक्रेन और रूस ने एक दूसरे पर अलगाववादी डोनबास क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई के लिए सेना के जमावड़े का आरोप लगाया था.
अमेरिका, रूस सुरक्षा वार्ता
हालांकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह कहा है कि मॉस्को यूक्रेन के साथ संघर्ष नहीं चाहता है. एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बोलते हुए पुतिन ने कहा कि नाटो के पूर्वी विस्तार को रोकने के उद्देश्य से रूस के सुरक्षा प्रस्तावों पर चर्चा करने की अमेरिका की इच्छा "सकारात्मक" थी. पुतिन ने कहा, "अमेरिकी साझेदारों ने हमें बताया कि वे इस चर्चा, इन वार्ताओं को अगले साल की शुरुआत में शुरू करने के लिए तैयार हैं." राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अमेरिका ने अभी तक पुतिन के साथ नए सिरे से बातचीत के समय और स्थान पर सहमति नहीं जताई है.
रूस ने हाल के महीनों में यूक्रेनी सीमा के पास अपने सैनिकों को तैनात किया है. यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगी लंबे समय से रूस पर यूक्रेन के अलगाववादियों को हथियारों की आपूर्ति करने का आरोप लगाते रहे हैं. यूक्रेन के मुताबिक उन्हीं अलगाववादी समूहों ने 2014 में रूस को क्रीमिया पर कब्जा करने में मदद की थी. रूस ने उन आरोपों से इनकार किया था. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने पिछले महीने कहा था कि वॉशिंगटन रूस की "असाधारण" गतिविधियों के बारे में चिंतित है. उन्होंने मॉस्को को 2014 की गंभीर गलती करने से बचने की चेतावनी दी. रूस पश्चिमी देशों के आरोपों से इनकार करता आया है. मॉस्को के मुताबिक इस साल के वसंत में रूस के बारे में इसी तरह की चिंता व्यक्त की जा रही थी, लेकिन रूस द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
पुतिन के आरोप क्या हैं
पुतिन ने अपने संवाददाता सम्मेलन के दौरान पश्चिम पर यूक्रेन को "रूस विरोधी, लगातार आधुनिक हथियारों से लैस करने और आबादी का ब्रेनवॉश करने" के प्रयास करने के आरोप लगाए थे. इस बीच साकी ने कहा, "तथ्य यह है कि वह हास्यजनक है, तथ्य स्पष्ट करते हैं कि रूस और यूक्रेन की सीमा पर हम जो एकमात्र आक्रामकता देख रहे हैं, वह रूसियों द्वारा सैन्य तैनाती है और रूस के नेता द्वारा युद्ध की बयानबाजी है."
ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा कि उन्होंने यूक्रेन के प्रति रूस की आक्रामकता के बारे में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से बात की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि वे सहमत हैं कि रूसी घुसपैठ "एक बड़ी रणनीतिक गलती होगी और इसके गंभीर परिणाम होंगे." इस बीच ब्लिंकेन ने नाटो महासचिव येन्स स्टोल्टनबर्ग के साथ यूक्रेन की सीमा पर स्थिति पर चर्चा की.
पिछले दिनों रूस ने पश्चिम पर काला सागर में सैन्य अभ्यास करने और यूक्रेन को आधुनिक हथियार मुहैया कराने का आरोप लगाया था. रूस ने यह भी मांग की है कि नाटो गारंटी दे कि उसकी सैन्य महत्वाकांक्षाएं पूर्व की ओर नहीं फैलेंगी.
एए/सीके (एपी, एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
नॉर्वे में क्रिसमस वाले एक विज्ञापन में सैंटा क्लॉज को समलैंगिक दिखाया गया है. इसे लेकर नॉर्वे में ज्यादातर भावुक तो कई और देशों से मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आई है.
डॉयचे वैले पर ब्रैंडा हास की रिपोर्ट-
नॉर्डिक देश नॉर्वे में एक ही लिंग के लोगों के बीच संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर निकाले हुए पचास साल हो गए हैं. उस अहम कदम की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर देश के डाक विभाग ने एक खास विज्ञापन जैरी किया है. क्रिसमय के समय नए वीडियो प्रकाशित करने की परंपरा रही है. लेकिन इस बार लगभग चार मिनट लंबे ऐड में सैंटा क्लॉज को ही गे यानि समलैंगिक दिखाना बिल्कुल नया है.
वीडियो का शीर्षक है - "वेन हैरी मेट सैंटा... " और इसे 'पोस्टन' नाम के अकाउंट से यूट्यूब पर पोस्ट किया गया है. चार हफ्तों में 20 लाख से ज्यादा बार देखे गए इस ऐड में अहम किरदार है हैरी. हैरी नाम का आदमी हर साल एक दिन सैंटा से मिलता और उसकी याद में बाकी साल काट देता. साल दर साल यह सिलसिला चलता रहता है और आखिरकार एक साल हैरी सैंटा को चिट्ठी लिख कर अपने दिल की बात बता ही देता है. उसकी भावनाओं की कद्र होती है और सैंटा की तरफ से भी प्यार ही वापस आता है. इस साल सैंटा तोहफे बांटने का काम डाक विभाग को सौंप आते हैं और खुद हैरी से मिलने के लिए वक्त निकालते हैं.
पोस्टन ने ना केवल 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए बल्कि अपनी कंपनी में डाइवर्सिटी का संदेश देने के लिए भी यह आइडिया चुना. ऐड एक संदेश के साथ खत्म होता है: "2022 में उस बात को 50 साल हो जाएंगे जब से नॉर्वे में कानून ने हर किसी को किसी से भी प्यार करने की छूट दी थी."
कंपनी की ओर से मार्केटिंग निदेशक मोनिका सोलबेर्ग ने एलजीबीटीक्यू नेशन नाम की पत्रिका से बातचीत में कहा, "पोस्टन के लिए डाइवर्सिटी बहुत अहम है. यह पूरी तरह से दिल का मामला है." उन्होंने बयान दिया कि "हर किसी को महसूस होना चाहिए कि उसका स्वागत है, वह सबको नजर आता है, सब उसको सुन सकते हैं और वह समाज में शामिल है. इसी भावना को इस साल के क्रिसमस ऐड में रखा गया है."
इस विज्ञापन पर देश के ज्यादातर लोगों ने काफी प्यारी और भावुक टिप्पणियां की हैं. वहीं ट्विटर पर इसे लेकर कुछ आलोचनात्मक लेकिन ज्यादातर प्रशंसात्मक प्रतिक्रियाएं ही मिल रही हैं. इस पर डेनमार्क में अमेरिकी दूत रह चुके रफल गिफर्ड ने भी ट्वीट कर अपनी भावनाएं जताईं. वह खुद भी समलैंगिक हैं.
एक साल पहले कंपनी ने "एंग्री वाइट मैन" नाम का वीडियो जारी किया था. उसमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर चुटकी ली गई थी. उस ऐड में दिखाया गया था कि सैंटा जलवायु परिवर्तन में विश्वास नहीं करते और उन्हें लगता है कि उत्तरी ध्रुव पर तापमान का बढ़ना "बिल्कुल प्राकृतिक" है. इस तरह कंपनी हर साल किसी ताजा सामाजिक मुद्दे पर अपने खास अंदाज में टिप्पणी कर लोगों का ध्यान खींच रही है. (dw.com)
एक नए शोध में पता लगा है कि हो सकता है करीब 3,000 साल पहले बड़ी संख्या में लोग फ्रांस से जा कर ब्रिटेन में बस गए हों. यह प्रवासन ब्रिटेन के उत्तरी और दक्षिणी आबादी की वंशावली में अंतर का कारण हो सकता है.
इस शोध के नतीजे वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में छपे हैं. इसके तहत प्राचीन डीएनए का अभी तक का सबसे बड़ा विश्लेषण किया गया. हो सकता है यह शोध इस सवाल पर भी रौशनी डाल सके कि ब्रिटेन में सेल्टिक भाषाएं कैसे आईं.
पिछली रिसर्च के मुताबिक करीब 4,500 साल पहले पूरे ब्रिटेन में रहने वाले लोगों की वंशावली एक जैसी थी. लेकिन आज यह तस्वीर बदल गई है. देश के दक्षिण में रहने वाले लोगों में ऐसे प्राचीन लोगों से जेनेटिक समानताएं पाई गई हैं जिन्हें शुरुआती यूरोपीय किसान कहा जाता है.
व्यापक अध्ययन
यह कैसे हुआ यह जानने के लिए अमेरिका में हार्वर्ड के जेनेटिसिस्ट डेविड राइश और उनकी टीम ने पूरे इंग्लैंड और अधिकांश महाद्वीपीय यूरोप से 1500 ईसापूर्व से लेकर 43 ईसा पश्चात तक के प्राचीन डीएनए के सैंपलों को सीक्वेंस किया.
इसके बाद जो घटनाक्रम बना उसमें नजर आया कि 3,300 से 2,800 साल पहले तक ऐसे आप्रवासियों का इंग्लैंड आना हुआ जिनकी जेनेटिक सामग्री फ्रांस से लिए गए प्राचीन सैंपलों से सबसे ज्यादा मेल खाती है. राइश ने बताया कि इस अध्ययन के बारे में सबसे रोमांचक बात प्राचीन डीएनए की संख्या और भौगोलिक विविधता है.
इसमें लगभग 800 लोगों के जेनेटिक सैंपल लिए गए हैं. प्राचीन डीएनए का इतना बड़ा अध्ययन कभी नहीं किया गया है. 220 से भी ज्यादा तो इसके लेखक ही हैं.
आगे की राह
आप्रवसान वाली यह खोज हाल ही में दिए गए इस सिद्धांत का भी समर्थन कर सकती है कि ब्रिटेन में सेल्टिक भाषाएं भी लगभग उसी समय आईं. राइश ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि दक्षिणी इंग्लैंड और फ्रांस की भौगोलिक आकृतियों के नामों में समानताएं भी इस विस्तार के फ्रांस से ही शुरू होने की और इशारा करती हैं.
यॉर्क विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद ईएन आर्मिट ने सैंपलों को इकठ्ठा करने का नेतृत्व किया, जिनमें ब्रिटेन और यूरोप के पुरातत्व संबंधी स्थलों, संग्रहालयों और डीएनए प्रयोगशालाओं से ली गईं हड्डियां शामिल हैं. आर्मिट ने बताया, "डाटा इकठ्ठा करने में कई साल लग गए और इसमें कई लोगों ने मिल कर काम किया."
उन्होंने कहा कि प्राचीन डीएनए के विश्लेषण में हाल ही में की गई क्रांतिकारी तरक्की पुरातत्व विज्ञान के लिए एक वरदान हैं. इनसे ना सिर्फ आबादी से संबंधित बड़े बदलावों की बेहतर तस्वीर मिलती है बल्कि ये प्राचीन काल में पारिवारिक गतिविज्ञान पर भी रौशनी डालते हैं.
उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने कब्रिस्तानों के बीच पारिवारिक रिश्ते देखे हैं जिनसे अब वो यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि जिन लोगों को दफना दिया गया उनमें किस तरह के पारिवारिक रिश्ते हैं.
सीके/एए (एएफपी)
जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा है कि अफगानिस्तान की मदद के लिए और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. उन्होंने 15,000 और लोगों को अफगानिस्तान से निकाल कर जर्मनी लाए जाने की प्रतिबद्धता दोहराई है.
जर्मन सरकार अफगानिस्तान से उन लोगों को जल्दी से जल्दी निकाल कर जर्मनी लाएगी जो जान के खतरे के बीच वहां फंसे हुए हैं. जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने जर्मनी की कार्ययोजना पेश करते हुए कहा कि वह लाल फीताशाही को कम कर इस प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने माना कि अफगानिस्तान हमारे समय की सबसे बुरी मानव त्रासदी से गुजर रहा है.
बेयरबॉक ने मीडिया से बातचीत में कहा, "अर्थव्यवस्था के कई बड़े सेक्टर ध्वस्त हो गए हैं, इतने सारे लोग भूखमरी झेल रहे हैं. ऐसी खबरें सही नहीं जातीं कि कई परिवार खाना खरीदने के लिए अपनी बेटियों को बेचने को मजबूर हो गए हैं." उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं और बच्चियों के लिए एक-एक दिन बहुत मायने रखता है.
बेयरबॉक ने बताया कि लोगों को निकालने के लिए नए रास्ते खोलने के मकसद से ईरान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के साथ फिर से बात करनी होगी. पाकिस्तान और कतर के साथ जर्मनी पहले से ही बातचीत करता आया है.
अनुमान दिखाते हैं कि इन जाड़ों में ही करीब 2.4 करोड़ अफगानों पर जान जाने का खतरा मंडरा रहा है. सेनाओं की वापसी के चार महीने बीच जाने के बाद भी ऐसे करीब 15,000 अफगान हैं जिन्हें वहां से निकाल कर जर्मनी लाया जाना बाकी है. इनमें 135 जर्मन नागरिक भी शामिल हैं. यह वह लोग थे जिन्होंने पश्चिमी सेनाओं की मदद की थी और ड्राइवर से लेकर दुभाषिए के रूप में काम किया था. बेयरबॉक ने जोर देते हुए कहा कि "उन्हें भुलाया नहीं गया है." अब तक जर्मनी ने वहां से करीब 10,000 लोगों को निकालने में कामयाबी पाई है. इसमें से 5,300 लोगों को जर्मन सेना के विमानों से और बाकी 5,000 को दूसरे कमर्शियल साधनों से लाया गया.
इसी साल अगस्त में पश्चिमी सेनाओं के लौटने के बाद अफगानिस्तान फिर से तालिबान के कब्जे में चला गया. जर्मन विदेश मंत्री ने बताया कि जर्मनी में विपक्षी दल तक यह मानते हैं कि तालिबान की सरकार पहले से अलग नहीं है और जर्मनी "तालिबान की डि फैक्टो सरकार को राजनैतिक तौर पर और ज्यादा मान देने की कोई वजह नहीं देखता है.''
आरपी/एके (डीपीए, एपी)
आखिरी एयरबस ए380 की डिलीवरी के साथ ही इसके अंत की घोषणा हो गई. कभी यात्रा के भविष्य के रूप में देखा जाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा विमान फ्लॉप हो गया. लेकिन विमान निर्माता के लिए, यह अभी भी काम में लाए जाने लायक था.
डॉयचे वैले पर आंद्रेयास श्पेथ की रिपोर्ट-
अमीरात एयरलाइंस के अध्यक्ष सर टिम क्लार्क ने इस सप्ताह एक ऐतिहासिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हैम्बर्ग में रहने का इरादा किया था. और यह कार्यक्रम था- एयरबस ए380 की आखिरी डिलीवरी. यह इस श्रृंखला का 251वां विमान था और अब यह आखिरी भी बन गया है.
दुबई की इस विमानन कंपनी की ओर से कुल 123 विमानों का ऑर्डर दिया गया था. यदि ये ऑर्डर न मिले होते तो इनका निर्माण पहले ही बंद कर दिया गया होता, फिर भी साल 2019 में यह घोषणा की गई कि विमान का उत्पादन 2021 में बंद कर दिया जाएगा.
लेकिन उद्योग जगत के दिग्गज 72 वर्षीय क्लार्क के लिए अपने पसंदीदा विमान के बारे में यह घोषणा करना आसान नहीं रहा. किसी ने भी ए380 पर उतना दृढ़ विश्वास नहीं किया जितना कि क्लार्क ने किया था. क्लार्क ने शुरू में ही मान लिया था कि दुनिया का सबसे बड़ा विमान दुबई के माध्यम से पूरी दुनिया को जोड़ने के अपने व्यापार मॉडल के लिए तैयार किया गया था. इसके अमीरात संस्करण में 615 यात्रियों के लिए जगह थी.
क्लार्क ने ही यह दिखाने के लिए सारा जोर लगाया था कि एयरबस के ऊपरी डेक के सामने ठीक उसी जहग पर दो शावर लगाना संभव था जहां वह चाहते थे. लेकिन बाद में एयरबस और उसके इंजन निर्माताओं ने अधिक कुशल इंजनों के साथ एक बेहतर संस्करण विकसित करने के विचार को अस्वीकार कर दिया. ये चार इंजन अधिक ईंधन खाने वाले वो इंजन हैं जिन्होंने बहुत पहले अधिकांश ऑपरेटरों के लिए ए380 को खर्चीला बना दिया था.
उत्सव की कोई योजना नहीं
टिम क्लार्क ए380 की आखिरी डिलीवरी का जश्न उस धूमधाम से नहीं मना पाए जिसकी उन्हें उम्मीद थी. एयरबस कंपनी ने एक प्रोग्राम के अंत का जश्न मनाने के विचार को खारिज कर दिया और फिर जर्मनी में महामारी की स्थिति ने ऐसी किसी भी कोशिश पर पानी फेर दिया.
डीडब्ल्यू से बातचीत में टिम क्लार्क ने बताया, "एअरबस के सीईओ गिलोम फॉरी ने मुझसे कहा कि इस चीज ने हमारे जीवन को वास्तविक उड़ान दी है. यह कोई अंतिम संस्कार नहीं है, बस यह समझिए कि इन महान हवाई जहाजों में से अंतिम है. और हम 2030 के दशक के मध्य तक ए380 को एक बहुत ही शक्तिशाली विमान के रूप में उड़ाएंगे, इसलिए हमारे पास उन्हें रिटायर होने से पहले 14 से 15 साल का समय है.”
लेकिन अब आखिरी ए380 को हैम्बर्ग-फिनकेनवेडर की एयरबस फैक्ट्री से दुबई बिना किसी औपचारिकता के स्थानांतरित कर दिया जाएगा. यह अमीरात को कुल 118 ए380 विमान प्रदान करेगा, जिनमें से लगभग आधे इस समय विमानन उद्योग के लिए बेहतर समय की प्रतीक्षा में स्टोर में पड़े हैं.
ऐसा लगता है कि कोविड महामारी विशाल विमानों के लिए आखिरी तिनका था. ए380 विमानों के उत्पादन की समाप्ति के अलावा, बोइंग 747 कार्यक्रम भी साल 2022 में आधी सदी से अधिक समय तक विमान उपलब्ध कराने के बाद उत्पादन बंद कर देगा.
विशालकाय विमान चलन में वापस आएंगे?
हालांकि साल 2021 के आखिरी दिनों में यात्रियों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ी कि कुछ एयरलाइंस जल्दी से अपने ए380 बेड़े को तैनात करने में सक्षम हो गईं. ये विमान तब अल्पकालिक क्षमता की समस्याओं को हल करने में सक्षम थे.
इस वजह से विशाल विमानों के जीवन को एक नई गति मिली. उदाहरण के लिए, ब्रिटिश एयरवेज नवंबर से अपने करीब एक दर्जन ए380 विमानों के साथ चार उड़ानें भर रही है. सिंगापुर एयरलाइंस, साल 2007 में इस विशालकाय विमानों के विश्व प्रीमियर का हिस्सा रही है और इसने अपने कुछ सबसे बड़े एयरलाइनरों को लंदन-सिडनी मार्ग पर अन्य गंतव्यों के साथ सेवा में वापस रखा है.
कतर एयरवेज में, ए380 के भाग्य का अप्रत्याशित उलटफेर इस यू-टर्न का प्रतिनिधित्व करता है. एक समय पर, कंपनी ने उनमें से 10 विमानों का संचालन किया. लेकिन मई में, कतर एयरवेज के सीईओ अकबर अल बेकर ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि "पीछे मुड़कर देखें तो ए380 को खरीदना हमारी सबसे बड़ी गलती थी.”
वो आगे कहते हैं, "हमने ए380 को ग्राउंड किया और इसे फिर कभी उड़ाना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह ईंधन की खपत और उत्सर्जन में एक बहुत ही अक्षम विमान है और मुझे नहीं लगता कि निकट भविष्य में इसके लिए कोई बाजार होगा. मुझे पता है कि यात्री इसे पसंद करते हैं. यह एक बहुत ही शांत और स्मार्ट हवाई जहाज है, लेकिन इससे पर्यावरण को जो नुकसान होता है वह प्राथमिकता होनी चाहिए न कि आराम.”
लेकिन अधिक आधुनिक एयरबस ए350 के साथ समस्याओं के कारण विमान की कमी के बाद, सीईओ ने सितंबर के अंत में घोषणा की कि ‘दुर्भाग्य से हमारे पास ए 380 को फिर से उड़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.' नवंबर के बाद से, कतर के पांच ए380 विमान एक बार फिर आसमान में उड़ान भर रहे हैं.
नाली के नीचे पैसा ?
कुल मिलाकर, ए380 कार्यक्रम की अनुमानित लागत 30 अरब यूरो यानी करीब 33.9 अरब डॉलर थी और उस धन का अधिकांश हिस्सा यूरोपीय करदाताओं से आया था. लेकिन कम से कम आर्थिक दृष्टि से यह फ्लॉप क्यों रही?
एअरबस कंपनी में सेल्समैन रह चुके जॉन लीही कहते हैं, "हमने इंजन निर्माताओं पर आंख मूंदकर भरोसा कर लिया था.”
निर्माताओं ने कहा था कि वे बेहतर इंजन सिस्टम के साथ आएंगे. फिर भी उन इंजनों को गुप्त रूप से विकसित किया गया था और पहले प्रतिद्वंद्वी बोइंग के छोटे और अधिक कुशल 737 ड्रीमलाइनर में तैनात किया गया था.
उन कारकों से अलग, मुख्य समस्या ए380 को बाजार में लाने में होने वाली लंबी देरी थी. इस देरी ने एक दर्दनाक समय यह भी देखा कि कैसे जर्मनी और फ्रांस में एयरबस के साझेदार एकमत नहीं थे. उस समय, उन्होंने विभिन्न और असंगत आईटी प्रणालियों पर काम किया.
सार्स और वित्तीय संकट
साल 2008 में ए380 आखिरकार जब सेवा में आया, तो वह समय भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था. साल 2002 से 2003 के दौरान सार्स (SARS) महामारी के बाद वैश्विक वित्तीय संकट आया जिसके कारण बड़े विमानों की मांग में गिरावट आई. उस समय बाजार में छोटे और अधिक कुशल विमानों की मांग थी जो कि नॉनस्टॉप लंबी दूरी के मार्गों में उड़ने में सक्षम थे और किफायती भी थे.
छोटा बोइंग 787 और एयरबस ए350 डसेलडोर्फ और टोक्यो, या म्यूनिख और बोगोटा जैसे शहरों के बीच सीधी उड़ानें प्रदान करने वाले विमान के रूप में बंद हो गए. यात्री भी खुश थे कि बड़े हवाई अड्डों से बचेंगे और एअरबस भी बड़ी यात्राओं से बच गया.
विमानन उद्योग के विशेषज्ञ और एअरबस एक बात पर यकीन रखते हैं कि आर्थिक विफलता होने के बावजूद, ए380 के निर्माण का प्रयास पूरी तरह से व्यर्थ नहीं था. सबसे महत्वपूर्ण बात, एअरबस को पहली बार एक कॉर्पोरेट इकाई के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर किया गया था और सीखने का प्रभाव सर्वोपरि था.
जॉन लीही कहते हैं, "ए380 के आसपास के सभी आशंकाओं ए350 को निश्चित रूप से हमारे पास अब तक का सबसे अच्छा हवाई जहाज कार्यक्रम बना दिया है.”
निर्माता आखिरकार भागीदार देशों में ‘कई छोटे राज्यों' से छुटकारा पाने में सक्षम था. लेही कहते हैं, "सिर्फ सबक सीखने के लिए ए380 पर 25-30 अरब यूरो खर्च करना एक बहुत ही अक्षम तरीका लगता है.” (dw.com)
एथेंस, 25 दिसम्बर| ग्रीस से शरणार्थियों और प्रवासियों को लेकर यूरोप जाने वाले एक जहाज के पानी में डूबने से कई लोगें की जान चली गई, यह हादसा क्रिसमस की पूर्व संध्या से पहले हुआ।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने ग्रीक मीडिया रिपोटरे का हवाला देते हुए बताया कि शरणार्थियों और प्रवासियों को ले जा रहे एक जहाज के डूबने के बाद, पारोस के एजियन सागर द्वीप के पास शुक्रवार रात बचाव अभियान के दौरान दो शव निकाले गए।
ग्रीक राष्ट्रीय समाचार एजेंसी एएमएनए ने बताया कि अब तक 57 यात्रियों को बचाया गया है। इसमें लगभग 80 लोग सवार थे।
इससे पहले, हेलेनिक तट रक्षक ने घोषणा की है कि एजियन सागर के किनारे पर एंटीकाइथेरा द्वीप से गुरुवार को एक शरणार्थी और प्रवासी जहाज के डूबने से मरने वालों की संख्या बढ़कर 11 हो गई है।
एक ई-मेल प्रेस बयान के अनुसार, नब्बे यात्रियों को बचाया गया और पीरियस बंदरगाह में स्थानांतरित कर दिया गया है।
ग्रीक अधिकारियों ने बुधवार को घोषणा की है कि इसी तरह की एक नाव फोलेगैंड्रोस द्वीप के पास डूब गई, जिसमें 3 लोगों की जान चली गई जबकि 13 को बचा लिया गया काफी संख्या में लोग लापता हो गए है।
ग्रीस 2015 से शरणार्थियों और प्रवासियों की आमद में सबसे आगे रहा है। बीते 6 सालों में एजियन सागर में सैकड़ों लोग मारे गए हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 24 दिसम्बर| पाकिस्तान सीनेट के पूर्व अध्यक्ष और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता रजा रब्बानी ने शुक्रवार को अफगान तालिबान को समर्थन देने की सरकार की जल्दबाजी पर सवाल उठाया।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
एक सीनेट सत्र को संबोधित करते हुए, रब्बानी ने विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से हाल की एक घटना के बारे में संसद को विश्वास में लेने के लिए कहा, जिसमें अफगानिस्तान में नए शासकों ने कथित तौर पर पाकिस्तान के सुरक्षा बलों को सीमा पर बाड़ लगाने से रोक दिया था।
पाकिस्तानी अधिकारियों ने अभी तक इस घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
पाकिस्तान ने काबुल के विरोध के बावजूद 2,600 किलोमीटर की सीमा में से अधिकांश पर बाड़ लगा दी है, जिसने ब्रिटिश काल की सीमा के सीमांकन को चुनौती दी है, जो दोनों तरफ परिवारों और जनजातियों को विभाजित करता है।
अफगान रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इनायतुल्लाह ख्वारजमी ने कहा था कि तालिबान बलों ने पाकिस्तानी सेना को रविवार को पूर्वी प्रांत नंगरहार के साथ लगते क्षेत्र में एक 'अवैध' सीमा बाड़ लगाने से रोक दिया है।
पिछली अमेरिका समर्थित अफगान सरकारों और इस्लामाबाद के बीच संबंधों में खटास के पीछे बाड़ लगाना मुख्य कारण था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा गतिरोध इस बात का संकेत देता है कि तालिबान के इस्लामाबाद से घनिष्ठ संबंध होने के बावजूद यह मुद्दा विवादास्पद बना हुआ है।
रब्बानी ने शुक्रवार को सत्र के दौरान पूछा, "वे सीमा को पहचानने के लिए तैयार नहीं हैं, तो हम आगे क्यों बढ़ रहे हैं?"
पीपीपी सीनेटर ने उन रिपोटरें पर भी चिंता व्यक्त की कि प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अफगानिस्तान में फिर से संगठित हो रहा है, "जो संभवत: पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है।"
उन्होंने सवाल किया, "राज्य किन शर्तों पर प्रतिबंधित समूह के साथ युद्धविराम की बात कर रहा है?"
उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान राष्ट्र का मतलब पाकिस्तान की नागरिक और सैन्य नौकरशाही है, न कि संसद में बैठे लोग। (आईएएनएस)
हांगकांग यूनिवर्सिटी के परिसर से तियानमेन हत्याकांड के प्रतीक एक स्मारक को रातोंरात हटा दिया गया. तीन दशक पहले तियानमेन चौक पर लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों के खिलाफ हुई कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जान गई थी.
दो टन भारी और करीब 26 फुट ऊंची तांबे की एक मूर्ति को हांगकांग यूनिवर्सिटी परिसर से हटा दिया गया. 'पिलर ऑफ शेम' नामक यह स्मारक डेनिश शिल्पकार येन्स गालशिओट ने बनाया था. इसमें करीब 50 लोगों के शरीर एक दूसरे के ऊपर लदे हुए दिखाए गए थे. यह उन छात्रों की याद में बनाया गया था जो जून 1989 में तियानमेन चौक पर चीनी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान सेना की कार्रवाई में मारे गए थे. इस घटना के बाद देश में कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता और मजबूत हुई थी. इसके बाद के सालों में सरकार के क्रूर दमन का लंबा दौर चल पड़ा था.
इसी के साथ हांगकांग शहर से उसका आखिरी सार्वजनिक स्मारक भी छिन गया. यूनिवर्सिटी के कुछ लोगों का मानना है कि यह कदम उनकी आजादी का दम घोंटने की कोशिश है. एक छात्र बिली क्वॉक ने कहा, "यह एक प्रतीक था कि हांगकांग में अब भी बोलने की आजादी बची है.'' यूनिवर्सिटी ने मांग की है कि इस मूर्ति को सुरक्षित रखा जाए क्योंकि उन्हें उस पर "कानूनी खतरे" होने का अंदेशा है. एक बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा कि किसी पार्टी ने इस मूर्ति के बारे में कोई अनुमति नहीं मांगी थी.''
हर साल 4 जून को छात्र संघ के पूर्व सदस्य आकर इस मूर्ति को धोते और तियानमेन चौक पर हुई कार्रवाई को याद करते थे. हांगकांग के अलावा मकाओ शहर में भी अब तक उस हिंसक सैन्य कार्रवाई को याद करने पर चीन की तरफ से रोक नहीं थी. हालांकि हर साल घटना की वर्षगांठ पर कैंडिल मार्च निकालने को लेकर प्रशासन दो साल पहले ही रोक लगा चुका है.
इस बीच एक निजी संग्रहालय को भी बंद करवा दिया गया जहां तियानमेन चौक की घटना को दिखाया गया था. इस संग्रहालय को चलाने वाले और सालाना मार्च निकालने वाले समूह 'हांगकांग एलायंस इन सपोर्ट ऑफ पेट्रिऑटिक डेमोक्रेटिक मूवमेंट ऑफ चाइना' को भंग कर दिया गया है और उसके अहम चेहरों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया है. हाल ही में हांगकांग में विधायी चुनाव हुए हैं जिसमें चीन समर्थक उम्मीदवार जीते हैं. चुनाव के कुछ ही दिन बाद मूर्ति हटाने की घटना हुई है.
आरपी/एमजे (एपी, एएफपी)
-जावेद इकबाल
"सोशल मीडिया पर लोगों को फ़ुर्सत बहुत ज़्यादा होती है, लोग कुछ ना कुछ तो लिखेंगे ही. इतने ट्रेलर और टीज़र आ चुके हैं. इस छोटी-सी फिल्म ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है. इसमें कुछ ऐसा है जिसे देखने के लिए आपको आना होगा.''
ये कहना है फ़िल्म निर्देशक अबू अलीहा का जिन्होंने पाकिस्तान के इतिहास में सबसे बड़े सीरियल किलर कहे जाने वाले जावेद इक़बाल की ज़िंदगी पर फ़िल्म बनाई है. अलीहा कहते हैं कि जो दर्शक टिकट ख़रीदकर फ़िल्म देखेंगे वो निराश नहीं होंगे.
फ़िल्म पर हो रहे विवाद, इसे बनाने की तैयारी और इसके मुख्य विचार पर फ़िल्म के निर्देशक अबू अलीहा और जावेद इक़बाल का किरदार निभाने वाले अदाकार यासिर हुसैन से बीबीसी उर्दू के लिए पत्रकार बराक शब्बीर ने विस्तार से चर्चा की.
अबू अलीहा का मानना है कि जावेद इकबाल द्वारा 100 बच्चों की हत्या पाकिस्तान के इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसे याद किया जाना चाहिए.
अलीहा कहते हैं कि जावेद इक़बाल पाकिस्तान के इतिहास का हिस्सा हैं और इसे लोगों को याद रखना चाहिए. वो कहते हैं, "यह हमारे इतिहास का एक बुरा चरित्र है, इसलिए इसे भूलने के बजाय, इसे याद रखें और देखें कि ऐसा क्यों हुआ,"
उन्होंने कहा, "अगर भारत के बंटवारे पर फ़िल्म बन सकती है, जबकि बंटवारा अपने आप में अच्छी याद नहीं है, तो यह हमारी भी एक बुरी याद है. इस पर भी फ़िल्म बन सकती है."
उन्होंने कहा, ''मैं चाहता हूं कि ईधी साहब पर भी फ़िल्म बने. वो तो बहुत अच्छा होगा. हर जगह लोग उनके आसपास जमा हो जाते थे. मैं ईधी साहब पर फ़िल्म बनाना चाहता हूं- लगाइये पैसे."
इस फ़िल्म को बनाने के फ़ैसले का बचाव करते हुए वह बाहरी दुनिया के उदाहरण देते हुए पाकिस्तान के लोगों की प्रवृत्तियों पर भी बात करते हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हर विषय पर एक फ़िल्म बननी चाहिए और पहले भी फ़िल्में बनती रही हैं."
"जब उन्होंने अमेरिकन साइको बनाया, तो लोगों ने नहीं कहा था कि इस पर ऐसी फ़िल्म नहीं बननी चाहिए. ये एक ऐसी बात है जो पाकिस्तान में लोग करते हैं, हालांकि यही लोग स्क्विड गेम भी देखते हैं जिसमें कोई संदेश नहीं है. एक सिरीज़ आई थी 'यू', जो पाकिस्तान में ट्रेंड कर रही थी, इसका मतलब है कि पाकिस्तान इसे देख रहा है. इसमें एक नौकर है जो स्टॉकर है, तो आप स्टॉकर को क्यों देख रहे हैं? आपको क्या संदेश मिल रहा है... इसलिए हर चीज़ का कोई संदेश नहीं होता."
अबू अलीहा ने कहा, "मैं इस प्रोजेक्ट के लिए चार साल से प्रतिबद्ध हूं और कभी भी कहीं भी मेरे मन में ये विचार नहीं था कि हमारे पास एक सीरियल किलर है और क्योंकि अमेज़न और नेटफ़्लिक्स सीरियल किलर फ़िल्मों से भरे हुए हैं, इसलिए हम एक सीरियल किलर की कहानी भी बनाते हैं."
उन्होंने कहा, ''आप जावेद इक़बाल को देखिए. उसके बारे में आपको जो भी क्लिप मिलती है, उससे पता चलता है कि वह एक सामान्य आदमी था. यदि ऐसा कोई व्यक्ति आपके पास से गुज़रता है तो आप उसे फिर से पलटकर नहीं देखते. वो कोई माचोमैन नहीं था, वह एक सामान्य आदमी था."
"जावेद इक़बाल के किरदार को बनाना एक चुनौती थी. जब आप इस फ़िल्म को देखने जाएंगे तो आपको यासिर हुसैन नहीं मिलेंगे, आयशा उमर और राबिया कुलसुम नहीं मिलेंगी, आपको एक पुलिस अधिकारी मिलेगा, आपको एक मां मिलेगी, आपको एक सीरियल किलर मिलेगा."
फ़िल्म के अदाकार कैसे चुने?
अबू अलीहा का कहना है कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यासिर का चेहरा जावेद इक़बाल से मिलता-जुलता हो. हालांकि, उनका कहना है कि मैं जानता था कि यासिर हुसैन बहुत अच्छे अभिनेता हैं, वो इस किरदार को बहुत अच्छे से निभा सकते हैं.
आयशा उमर की पसंद के बारे में उन्होंने कहा कि आयशा पर 'ख़ूबसूरत' के किरदार की एक छाप लग चुकी है. हमने सोचा था कि आयशा उमर इस मामले में एक बेहतर विकल्प होंगी क्योंकि हम लोगों को हैरान करना चाहते थे. जो दस साल से आपके चेहरे पर मुस्कान ला रही है, वो अब रोएगी, वो सौ बच्चों की माओं के लिए रोएगी और वो उसे नफ़रत से देखेगी, तो असल में ये एक सरप्राइज़ फ़ैक्टर था."
अबू अलीहा के लिए इस विषय पर फिल्म बनाना जहां एक चुनौती थी, वहीं बड़े सितारों को मनाना भी आसान नहीं था.
पुलिसवाला जिसने 55 औरतों की हत्या की
वे कहते हैं, ''मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती सीमित बजट की थी. सबसे बड़ा चैलेंज था यासिर हुसैन और आयशा उमर जैसे सितारों को इस फ़िल्म के लिए राज़ी करना और उन्हें निराश न करना. उन्हें समझाना पड़ा कि मैं उनसे एक 'जोखिम भरे प्रोजेक्ट' पर महीनों की मेहनत के लिए कह रहा हूं और मैं उन्हें उनकी मेहनत के हिसाब से पैसा नहीं दे पाऊंगा."
तीन अलग-अलग लोगों को मिला जावेद इक़बाल को फ़िल्माने का ऑफ़र
अभिनेता यासिर हुसैन का कहना है कि उन्हें तीन अलग-अलग लोगों ने जावेद इक़बाल पर एक फ़िल्म में काम करने की पेशकश की थी और उन्होंने तीनों को स्वीकार कर लिया.
यासिर कहते हैं, "मेरे लिए जावेद इक़बाल से एक अलग ही रिश्ता है. छह-सात साल पहले लाहौर में मुझे एक शॉर्ट फ़िल्म की स्क्रीनिंग के लिए बुलाया गया था. उस शॉर्ट फ़िल्म को बनाने वालों ने भी मुझे बताया कि अगला प्रोजेक्ट वो जावेद इकबाल पर कर रहे हैं. उन्होंने मुझसे पूछा था कि क्या मैं ये प्रोजेक्ट करना चाहूंगा तो मैंने कहा क्यों नहीं, यह एक बेहतरीन प्रोजेक्ट होगा. आप एक ऐसी कहानी बना रहे हैं जो बहुत डरावनी होगी. मैंने उनसे कहा कि मैं ज़रूर करूंगा.
तभी एक और सज्जन मेरे पास आए कि मैं जावेद इक़बाल पर फ़िल्म बना रहा हूं. तो क्या आप इसमें काम करेंगे? मैंने कहा हां मैं करूंगा. फिर अबू अलीहा मेरे पास आए कि मैं जावेद इकबाल पर फ़िल्म बना रहा हूं तो मैंने कहा कि यह मज़ाक़ मेरे साथ काफी़ीसमय से हो रहा है. ज़ाहिर तौर पर मैंने तुरंत हां कर दी. मुझे पता था कि वे इसे बनाएंगे क्योंकि उन्होंने पहले भी फ़िल्में बनाई हैं और वे किसी भी बजट पर फ़िल्में बना सकते हैं."
"जावेद इक़बाल को लेकर एक छोटा सा वीडियो सामने आया. इसमें जावेद इकबाल का एटीट्यूड नजर आता है क्योंकि उसने ख़ुद को सरेंडर कर दिया था. उसमें एक बात थी कि देखो मैं ख़ुद आया हूं, इसमें आपकी कोई कामयाबी नहीं है. वह गर्व और अहंकार दिखा रहा था. यह मुझे समझ में आया. और फिर जिस तरह से निर्देशक ने मुझे समझाया कि वो ख़ुद को पुलिस और थानों से ऊपर समझता था. वह ख़ुद आया है कि मुझे गिरफ़्तार करो, मैंने सौ बच्चे मार दिए हैं."
यासिर कहते हैं, "चरित्र भी शांत होना चाहिए क्योंकि वह सिर्फ़ एक आतंकवादी था जो बुर्का पहनकर भाग रहा था जिसे मैंने आगे बढ़ाया है. उस पर लोगों ने कहा कि आप जिस तरह से पुलिस की गाड़ी से उतरते हैं, जिस तरह से देख रहे हैं, उससे हमें बहुत अच्छा एहसास होता है... जावेद इक़बाल जब पुलिस की गाड़ी से उतर रहा था तो उसके लिए गर्व का क्षण था कि तुम मुझे ऐसे उतार रहे हो जैसे तुमने मुझे पकड़ लिया है."
यासिर कहते हैं, "मुझसे एक नए अभिनेता ने पूछा कि जब मैं यह कर रहा था तो मैं क्या सोच रहा था. मैंने जवाब दिया कि मैं उस समय नहीं सोच रहा था, मैंने पहले सोचा था कि जब आप अभिनय करते हैं तो स्वाभाविक रूप से जो दिमाग़ में आता है उसे आप स्क्रीन पर ले जाते हैं."
'अगर कट नहीं कहा जाता तो मैं रोना शुरू कर देता.'
यासिर हुसैन का कहना है कि अच्छी बात यह थी कि यह फ़िल्म जल्दबाज़ी में बनाई गई थी क्योंकि यह जावेद इक़बाल के पूरे जीवन पर आधारित नहीं थी. यह उनके जीवन का एक हिस्सा था. उन्हें जल्दी ही गोली मार दी गई, (जो) यासिर के लिए ख़ुशी की बात थी क्योंकि वो इसे लंबे समय तक नहीं कर सकते थे.
यासिर हुसैन
"अगर आप मुझसे पूछें तो मैं इस किरदार में वापस आ सकता हूं क्योंकि आपके साथ एक बटन लग जाता है. जब आप इसे दबाते हैं तो आप इस भूमिका पर वापस जा सकते हैं. लेकिन मैं अब (इस भूमिका में) नहीं जाना चाहता, ऐसा कोई अच्छा एहसास इस किरदार के साथ नहीं है कि कोई इसमें लौटना चाहे."
उन्होंने एक सीन का ज़िक़्र करते हुए कहा, 'राबिया कुलसुम बहुत अच्छी ऐक्ट्रेस हैं. वह एक बच्चे की मां थीं जिसका बच्चा खो गया है. वह जावेद इक़बाल से पूछने की कोशिश कर रही हैं कि क्या वह तुम्हारे साथ है. यह एक बहुत ही दर्दनाक दृश्य था. जब राबिया ने परफ़ॉर्म किया तो एक ऐक्टर के तौर पर मैं असुरक्षित महसूस कर रहा था. उस वक़्त अगर कट नहीं कहा जाता तो मैं दहाड़ें मार कर रोने लगता."
वो कहते हैं, "मुझसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं हो रहा था क्योंकि मैं वो किरदार एक अदाकार के तौर पर कर रहा था, लेकिन एक इंसान के तौर पर मैं कंट्रोल नहीं कर पा रहा था."(bbc.com)
-सुमी खान
ढाका, 24 दिसम्बर| बांग्लादेश में एक यात्रियों से भरी फेरी में भीषण आग लगने से 30 लोगों की मौत हो गई जबकि 200 से ज्यादा लोग घायल हो गए। ये जानकारी अधिकारियों ने दी है।
अधिकारियों ने कहा कि बरगुना जा रहे एमवी अभिजन-10 में सवार 70 यात्रियों को अब तक बचा लिया गया है, जबकि कई अन्य लापता हैं।
पुलिस और दमकल कर्मियों के अनुसार, आग तड़के करीब 3 बजे उस समय लगी, जब फेरी झलकाठी में सुगंधा नदी पर दपडापिया इलाके में पहुंची।
बारिसल दमकल सेवा के उप निदेशक कमल हुसैन भुइयां ने खबर की पुष्टि करते हुए कहा कि कुल 30 शव बरामद हुए हैं और 5 यूनिट आग पीड़ितों को बचाने के लिए काम कर रही हैं।
दमकल विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि घने कोहरे के कारण बचाव कार्य में बाधा आ रही है।
भुइयां ने कहा कि अधिकारियों को संदेह है कि आग फेरी के इंजन कक्ष में लगी होगी।
झलकाठी के जिला आयुक्त (डीसी) मोहम्मद जौहर अली ने कहा कि बचाए गए 70 लोगों को पास के अस्पतालों में भेज दिया गया है।
बीडीन्यूज24 की रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब तीन घंटे तक लगी आग के बीच कई यात्रियों ने अपनी जान बचाने के लिए नदी में छलांग लगा दी। (आईएएनएस)
बीजिंग, 24 दिसम्बर| चीन के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र ने शुक्रवार को देश के बड़े क्षेत्रों में कम तापमान और आंधी का अनुमान लगाते हुए शीत लहरों के लिए येलो अलर्ट जारी किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार से रविवार तक, उत्तर, मध्य, पूर्व और दक्षिण चीन के कुछ क्षेत्रों में तापमान में 6 से 10 डिग्री सेल्सियस की गिरावट आने की संभावना है।
पूर्वानुमान में कहा गया है कि कुछ क्षेत्रों में तापमान में 14 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की गिरावट देखी जा सकती है।
केंद्र ने कहा कि शुक्रवार से रविवार तक उत्तर, मध्य और दक्षिण चीन के कुछ हिस्सों में हिमपात और ओलावृष्टि होगी जबकि हैनान प्रांत के कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश और बारिश की संभावना है।
चीन में चार-स्तरीय, रंग-कोडित मौसम चेतावनी प्रणाली है, जिसमें लाल सबसे गंभीर मौसम का प्रतिनिधित्व करता है, इसके बाद नारंगी, पीला और नीला होता है। (आईएएनएस)
काबुल, 24 दिसम्बर| दो गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से अफगानिस्तान में कुल 231 मीडिया आउटलेट (40 प्रतिशत) बंद हो गए हैं, जिससे कई पत्रकारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) और अफगान इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (एआईजेए) के सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण 80 प्रतिशत महिला पत्रकार और मीडियाकर्मी बेरोजगार हो गई हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि 15 अगस्त से अब तक कुल 231 मीडिया आउटलेट को बंद करना पड़ा है और 6400 से अधिक पत्रकारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। यहां महिला पत्रकार सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं, जिनमें से पांच में से चार अब काम नहीं कर रही हैं।
आरएसएफ और एआईजेए के अनुसार, इस साल की शुरूआत से चल रहे 543 मीडिया आउटलेट्स में से केवल 312 ही नवंबर के अंत तक काम कर रहे थे।
सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि हर 10वां मीडिया आउटलेट समाप्त हो गया है और 60 प्रतिशत पत्रकार और मीडिया कर्मचारी अब काम नहीं कर पा रहे हैं। महिलाओं को पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक नुकसान हुआ है। उनमें से 84 प्रतिशत ने अपनी नौकरी खो दी है।
गैर-लाभकारी संस्थाओं के अनुसार, काबुल के पतन से पहले अफगानिस्तान के अधिकांश प्रांतों में कम से कम 10 निजी मीडिया संगठन काम कर रहे थे। (आईएएनएस)
लंदन, 23 दिसंबर| इजरायल के बाद अब जर्मनी ने कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के बढ़ते प्रकोप के बीच चौथी कोविड बूस्टर डोज को रोल आउट करने की घोषणा की है। इस बीच ब्रिटेन भी चौथी खुराक के लिए विचार कर रहा है, क्योंकि कोविड मामले एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं।
डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, जर्मन स्वास्थ्य मंत्री कार्ल लॉटरबैक ने बुधवार को चेतावनी दी कि ओमिक्रॉन से निपटने के लिए चौथी खुराक की जरूरत होगी।
देश ने एक ओमिक्रॉन-विशिष्ट वैक्सीन की लाखों नई खुराक का ऑर्डर दिया है। हालांकि, डिलीवरी अप्रैल या मई तक होने की उम्मीद नहीं है।
लॉटरबैक ने कहा कि वर्तमान में मॉडर्ना की कोविड वैक्सीन का उपयोग बूस्टर अभियान में किया जाता है और जर्मनी ने नए नोवावैक्स जैब की 40 लाख खुराक और नए वालनेवा शॉट की 1.1 करोड़ खुराक का भी आदेश दिया है, जो विपणन प्राधिकरण (मार्केटिंग अथॉरिटी) की प्रतीक्षा कर रहा है।
डीडब्ल्यू डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी के रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट (आरकेआई) के रोग नियंत्रण प्रमुख के अनुसार, जनवरी के मध्य तक ओमिक्रॉन वेरिएंट वायरस का सबसे प्रमुख वेरिएंट होगा।
लोथर वीलर ने चेताते हुए कहा है कि संक्रमण की लहर जर्मनी में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को प्रभावित कर सकती है।
बर्लिन में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान वीलर ने कहा, "पिछले कुछ दिनों में मामलों की संख्या में कमी जरूर आई है, लेकिन दुर्भाग्य से, यह सहजता का संकेत नहीं है।"
उन्होंने कहा, "हमें अभी भी बहुत अधिक मामलों की संख्या को कम करने की आवश्यकता है। क्रिसमस वह चिंगारी नहीं होनी चाहिए, जो ओमिक्रॉन की आग को जला दे।"
जर्मनी ने बुधवार को 45,659 नए कोरोनोवायरस मामले दर्ज किए, जो एक सप्ताह पहले की तुलना में 5,642 कम है, जबकि संक्रमण की वजह से मरने वालों की संख्या 510 दर्ज की गई है।
जर्मनी और इजरायल की अगुवाई के बाद, टीकाकरण मामलों पर यूके की संयुक्त समिति (जेसीवीआई) भी बूस्टर के दूसरे सेट के रोलआउट पर विचार कर रही है।
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, जेसीवीआई के विशेषज्ञ अतिरिक्त खुराक को लेकर काम में जुट गए हैं। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को पहले से ही चौथी बूस्टर खुराक की जरूरत महसूस हो रही है और इसके अलावा बुजुर्गों और अन्य कमजोर समूहों तक भी इसे बढ़ाया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चौथी खुराक तीसरी डोज के चार महीने बाद आने की संभावना है अगर इसे हरी झंडी मिलती है और यह नए साल में उपलब्ध हो सकती है।
जेसीवीआई के डिप्टी चेयरमैन प्रोफेसर एंथनी हार्डेन ने कहा, "हमें और डेटा देखने की जरूरत है। हमारी परिस्थिति इजरायल से अलग हैं और हमें अस्पताल में भर्ती होने के खिलाफ प्रतिरक्षा और टीके की प्रभावशीलता पर अधिक डेटा देखने की जरूरत है।"
ब्रिटेन में बुधवार को पहली बार 100,000 से अधिक नए दैनिक कोविड मामले सामने आए थे। (आईएएनएस)
दुनिया के कई देश अब भी कोविड वैक्सीन की किल्लत से जूझ रहे हैं. इस बीच इस्राएल दुनिया का पहला देश बन सकता है, जहां लोगों को कोविड का चौथा टीका लगाया जाएगा.
कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट से निबटने के लिए इस्राएल अब कोविड वैक्सीन का चौथा डोज लगाने पर विचार कर रहा है. यहां स्वास्थ्यकर्मियों, 60 साल से ऊपर के लोगों या कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों को कोविड वैक्सीन का चौथा टीका लगाया जा सकता है. इसका एक मकसद देश में टीकाकरण बढ़ाना भी है.
इस्राएली स्वास्थ्य मंत्रालय ने विशेषज्ञों का एक पैनल बनाया था, जिसने मंगलवार को अपनी सिफारिशें पेश कीं. पैनल ने सुझाव दिया कि जिन लोगों को कोविड वैक्सीन का तीसरा टीका लगवाए हुए चार महीने हो चुके हैं, उन्हें चौथा टीका लगाया जाए. हालांकि, इन सिफारिशों को लागू किया जाना अभी बाकी है.
पांचवीं लहर से निपटने के लिए
इस्राएल में ज्यादा से ज्यादा लोगों से टीका लगवाने की अपील करने वाले देश के प्रधानमंत्री नफ्थाली बेनेट ने पैनल के सुझावों का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि यह शानदार खबर है, जिससे दुनियाभर में तेजी से फैल रहे ओमिक्रॉन वेरिएंट से निबटने में मदद मिलेगी.
पैनल ने यह सुझाव भी दिया है कि दूसरे और तीसरे टीके के बीच में मौजूदा पांच महीने का अंतर घटाकर तीन महीने कर दिया जाना चाहिए. पैनल के बयान में कहा गया है कि ये उपाय कोरोना की पांचवीं लहर से निबटने में कारगर सिद्ध होंगे. हालांकि, विशेषज्ञों ने जिस डेटा के आधार पर ये सुझाव दिए हैं, उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है.
इस्राएल के आर्मी रेडियो से बात करते हुए पैनल के एक डॉक्टर आर्नन शाउर ने बताया, "हम ओमिक्रॉन संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा कम होते देख रहे हैं. इस लहर में संक्रमण के मामले आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ रहे हैं. पैनल के 80% से ज्यादा सदस्यों ने इन उपायों का समर्थन किया है."
ये सिफारिशें स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेशक नाषमन ऐश की मंजूरी के बाद ही लागू होंगी. मंत्रालय ने अभी तक इस बारे में कोई बयान जारी नहीं किया है.
ओमिक्रॉन को लेकर तेजी
बाकी दुनिया के मुकाबले इस्राएल में टीकाकरण अभियान बड़ी तेजी से शुरू हुआ था, लेकिन एक वक्त के बाद इसकी रफ्तार धीमी पड़ गई. स्वास्थ्य मंत्रालय की मानें, तो करीब 94 लाख की आबादी वाले इस्राएल में अब तक 62% लोगों को कोविड के दोनों टीके लग चुके हैं.
ओमिक्रॉन वेरिएंट की रोकथाम के लिए बेनेट सरकार ने तेजी दिखाते हुए 25 नवंबर को ही इस्राएल में विदेशी लोगों के आने पर रोक लगा दी थी. सरकार ने अधिक खतरे वाले देशों की एक सूची जारी करते हुए लोगों ने वहां न जाने की अपील की थी. इस सप्ताह अमेरिका को भी इस सूची में शामिल कर दिया गया है.
मंगलवार को इस्राएल के एक अस्पताल ने ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से पहली मौत होने की बात कही थी. हालांकि, बाद में यह बयान बदल दिया गया और अस्पताल ने कहा कि लैब की आखिरी जांच में वह मरीज डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित पाया गया. सोरोका मेडिकल सेंटर ने कहा कि सोमवार को 60 साल के जिस मरीज की मौत हुई, वह पहले से कई समस्याओं से जूझ रहा था. उसे दो सप्ताह पहले कोविड वॉर्ड में भर्ती कराया गया था.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि मंगलवार तक इस्राएल में ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमण के कम से कम 340 मामले दर्ज किए गए हैं. वहीं प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बात की इजाजत दे दी है कि सरकारी दफ्तरों में आधे कर्मचारियों को ही बुलाया जाए. रक्षामंत्री बेनी गांत्स ने सेना के होमफ्रंट कमांड को एक दिन में संक्रमण के 5,000 मामले आने की स्थिति के लिए तैयार रहने का आदेश दिया है.
वीएस/वीके (एपी, एएफपी)
बीजिंग, 23 दिसम्बर | चीन ने गंभीर इंटरनेट बग के बारे में रिपोर्ट करने में विफल रहने के बाद अलीबाबा क्लाउड की सेवाओं को छह महीने के लिए निलंबित कर दिया है। इसने उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमआईआईटी) के साथ लाखों सिस्टम और उपकरणों को हैकिंग के खतरे में डाल दिया है। चीनी मीडिया आउटलेट्स की रिपोर्ट है कि अलीबाबा क्लाउड को तब निलंबित कर दिया गया था जब उन्होंने मंत्रालय के समक्ष इसके प्रदाता अपाचे को 'लॉग4जे' भेद्यता की सूचना दी थी।
स्थानीय मीडिया रिपोटरें के अनुसार, "हाल ही में, 'अपाचे लॉग4जे2' पुर्जो में गंभीर सुरक्षा कमजोरियों की खोज के बाद, अलीबाबा क्लाउड दूरसंचार अधिकारियों को समय पर रिपोर्ट करने में विफल रहा और साइबर सुरक्षा खतरों और भेद्यता प्रबंधन को पूरा करने के लिए उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का प्रभावी रूप से समर्थन नहीं किया।"
जेडटीएनईटी की रिपोर्ट के अनुसार, 21 वीं सदी के बिजनेस हेराल्ड के अनुसार, एमआईआईटी का साइबर सुरक्षा प्रशासन 'अलीबाबा क्लाउड के साथ अपनी सूचना-साझाकरण साझेदारी को छह महीने के लिए निलंबित कर रहा था, जो विशेष रूप से लॉग4जे की रिपोर्ट करने में विफलता का कारण बना।"
साइबर अपराधी 'अपाचे लॉग4जे2' नामक जावा लॉगिंग सिस्टम से जुड़ी कमजोरियों का फायदा उठाने के हजारों प्रयास कर रहे हैं।
इस बीच, चीन ने एक नया कानून लागू किया है जो सभी कंपनियों के लिए दो दिनों के भीतर राज्य नियामकों को कमजोरियों की रिपोर्ट करना अनिवार्य बनाता है।
नवंबर में, चीन के साइबरस्पेस प्रशासन ने नए कानूनों का अनावरण किया जो डेटा को पुनर्वर्गीकृत करते हैं, साथ ही उसकी नीति के उल्लंघन के लिए कई तरह के जुर्माने भी लगाते हैं।
अलीबाबा पर 18.2 बिलियन युआन का रिकॉर्ड जुर्माना लगाया गया और 33 अन्य मोबाइल ऐप को अपनी डेटा संग्रह नीतियों के लिए बीजिंग से आलोचना का सामना करना पड़ा।(आईएएनएस)
जर्मनी समेत कई यूरोपीय देश क्रिसमस के बाद कोविड संबंधी नई पाबंदियां लगाएंगे. कई देशों में अब नए साल के कार्यक्रम आयोजित नहीं होंगे. ओमिक्रॉन वैरिएंट के आने से यूरोप कोविड की पांचवी लहर की ओर बढ़ रहा है.
कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर यूरोप के बड़े हिस्से में नई पाबंदियां लगाई गई हैं. क्रिसमस और नए साल को यूरोप में जोर-शोर से मनाया जाता है. ऐसे में कोविड 19 के ओमिक्रॉन वैरिएंट का फैलाव रोकने के मकसद से ये फैसले लिए गए हैं.
आबादी के हिसाब से यूरोप के सबसे बड़े देश जर्मनी में क्रिसमस के बाद से नई पाबंदियां लागू होंगी. जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कोविड की अगली लहर को दरकिनार नहीं किया जा सकता. शॉल्त्स और 16 जर्मन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद सरकार ने फैसला लिया कि जर्मनी में क्रिसमस के बाद से और सख्त पाबंदियां लागू होंगी. इन पाबंदियों के मुताबिक निजी आयोजनों में वैक्सीन लगवा चुके 10 लोगों से ज्यादा लोग इकट्ठा नहीं हो सकते, पूरे देश में नाइट क्लब बंद होंगे औरस्टेडियम में दर्शक नहीं आ पाएंगे. पूरे एहतियात बरतते हुए, दर्शकों की मौजूदगी के बिना मैच खेले जाएंगे.
शॉल्त्स ने मीडिया से बातचीत में कहा, "बीते दो सालों का अनुभव बताता है कि क्रिसमस और ईस्टर की वजह से कोविड के मामलों में कोई बहुत बड़ा इजाफा नहीं हुआ है.” शॉल्त्स ने कोविड वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को तेज करने की बात भी कही है. जर्मनी में करीब 70 फीसदी आबादी को वैक्सीन की दोनों खुराक मिल चुकी हैं. जर्मनी के राष्ट्रीय आपदा नियंत्रण केंद्र ने ट्वीट कर "जनवरी के मध्य तक आपसी मेलजोल में अधिकतम सावधानी बरतने" को कहा है. साथ ही अपने नागरिकों को "बेहद जरूरी होने की सूरत में ही यात्रा करने" की हिदायत दी है.
फ्रांस
जर्मनी के पड़ोसी देश फ्रांस में भी सरकार सतर्क है. फ्रांस के स्वास्थ्य मंत्री ओलीविए वेरेन ने कहा है कि वैरिएंट (ओमिक्रॉन) बहुत संक्रामक है इसीलिए हम तेजी से वैक्सीन के बूस्टर डोज लगा रहे हैं. फ्रांस में इस वक्त कोविड की पांचवी लहर चल रही है और अस्पताल तक पहुंच रहे गंभीर मामलों को कम से कम रखने पर जोर दिया जा रहा है. देश में रोजाना 70 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए जा रहे है. हाल के दिनों में कोविड मामलों को कम करने की नाइट क्लबों को बंद कर दिया गया है और नए साल के मौके पर होने वाली आतिशबाजी के कार्यक्रमों पर भी रोक लग गई है.
फिनलैंड
फिललैंड ने पहले से लागू कोविड पाबंदियों को और सख्त किया है. प्रधानमंत्री सना मरीन के नेतृत्व में हुई एक मीटिंग में फैसला किया गया कि रेस्त्रां, बार या सार्वजनिक आयोजन वाली जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग का सही इंतजाम न होने पर पाबंदियां लगेंगी. ऐसी ज्यादा मेलजोल वाली जगहें वैक्सीन सर्टिफिकेट होने के बावजूद लोगों के लिए या तो बहुत कम समय के लिए खुलेंगी या फिर पूरी तरह बंद कर दी जाएंगी. इसके अलावा यूरोपीय संघ के किसी भी सदस्य देश से फिनलैंड जाने वाले किसी भी शख्स को कोविड निगेटिव रिपोर्ट और वैक्सीन की दोनों डोज लगे होने के सर्टिफिकेट दिखाने होंगे. क्रिसमस की रात 9 बजे तक सभी बार बंद कर दिए जाएंगे.
नीदरलैंड्स
नीदरलैंड्स में बढ़ते ओमिक्रॉन मामलों के मद्देनजर क्रिसमस से पहले ही पूरी तरह से लॉकडाउन लगा दिया गया है. प्रधानमंत्री मार्क रुटे ने कहा है कि 14 जनवरी 2022 तक रोजमर्रा के सामान की दुकानों के अलावा सभी सार्वजनिक और व्यावसायिक जगहों को बंद कर दिया जाएगा. यहां नवंबर के आखिर से ही दर्शकों की मौजूदगी के बिना मैच खेले जा रहे हैं. नई पाबंदियों में दो से ज्यादा लोगों के एक साथ चलने तक की मनाही है.
स्कॉटलैंड
द्वीपीय देश स्कॉटलैंड में नई पाबंदियां क्रिसमस के बाद लागू होंगी. नए निर्देशों के मुताबिक, क्रिसमस में आपसी मेलजोल को तीन परिवारों तक ही सीमित रखने की सलाह दी गई है. त्योहार के बाद से किसी भी कार्यक्रम में किसी भी सूरत में 500 से अधिक लोग इकट्ठा नहीं हो सकेंगे. आयोजनों में मौजूद लोगों को 1 मीटर की आपसी दूरी का ख्याल रखना होगा. खेल के मैदानों में दर्शकों को आने की इजाजत नहीं होगी. कोविड संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए सभी परिजनों को 10 दिन तक क्वारंटीन में रहना होगा.
ब्रिटेन
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है क्रिसमस तक कोई भी नई पाबंदियां लागू नहीं होंगी. इसके अलावा ब्रिटेन ने 10 दिन के आइसोलोशन पीरियड को कम करके 7 दिन कर दिया है. ब्रिटेन में भी बूस्टर डोज लगाने में तेजी लाने पर जोर दिया जा रहा है. यूरोप के बाकी देश जैसे इटली, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, चेक रिपब्लिक और स्पेन भी नई पाबंदियों पर विचार कर रहे हैं.
आरएस/आरपी (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
स्वीडन की एक कंपनी ऐसे माइक्रोचिप बना रही है जिनमें लोग अपना निजी डाटा डाल कर अपने शरीर में इम्प्लांट करवा ले रहे हैं. क्या आप भी ऐसा कुछ करवाना चाहेंगे?
त्वचा के नीचे इम्प्लांट की जाने वाली इस चिप को बनाया है डिसरप्टिव सबडर्मल्स नाम की कंपनी ने. हालांकि अभी बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ है, फिर भी कई हजार लोगों ने इस चिप को अपने शरीर में इम्प्लांट करवा लिया है.
इस चिप में आपके उपकरणों को अनलॉक करने के कोड, बिजनेस कार्ड, सार्वजनिक यातायात कार्ड जैसी कई तरह की जानकारी डाली जा सकती है. अब इसे लोगों ने कोविड-19 के वैक्सीन पास की तरह भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
त्वचा के अंदर वैक्सीन सर्टिफिकेट
चिप को इम्प्लांट करवा लेने वाली स्टॉकहोम की निवासी अमैंडा बैक कहती हैं, "मुझे लगता है इस चिप को अपने शरीर में इम्प्लांट करवाना और उसमें अपना सारा निजी डाटा रखना मेरी अपनी ईमानदारी का हिस्सा है. मुझे वाकई ऐसा महसूस होता है कि इस तरीके से मेरे डाटा पर मेरा नियंत्रण बढ़ गया है."
स्वीडन में बड़ी संख्या में बायोहैकर हैं जिनका इस बात में दृढ़ विश्वास है कि भविष्य में इंसान टेक्नोलॉजी के साथ पहले से भी ज्यादा जुड़ जाएंगे. डिसरप्टिव सबडर्मल्स के प्रबंधक निदेशक हांस सोबलाद ने बताया, "मैंने अपने हाथ में एक चिप इम्प्लांट करवाया हुआ है और मैंने उसमें अपना कोविड पासपोर्ट डलवा दिया है."
वो कहते हैं, "ऐसा मैंने इसलिए किया ताकि मैं जब चाहूं अपने कोविड पासपोर्ट तक पहुंच सकूं. मैं बस अपने फोन को चिप पर स्वाइप करूं और वो मेरे फोन पर खुल जाए." उन्होंने अपने फोन पर अपने वैक्सीन सर्टिफिकेट का पीडीएफ खुलते हुए भी दिखाया.
सोबलाद ने आगे बताया, "एक चिप को इम्प्लांट करवाने का खर्च 100 यूरो (8500 रुपये) और वो भी तब अगर आप उसके ज्यादा विकसित प्रारूप को इम्प्लांट करवाना चाहते हैं. इसके मुकाबले किसी हेल्थ वेयरेबल की कीमत संभवतः इससे दुगना ज्यादा होगी.
स्वैच्छिक इस्तेमाल जरूरी
और वेयरेबल का आप सिर्फ तीन से चार सालों तक इस्तेमाल कर सकते हैं जबकि एक चिप इम्प्लांट का आप 20, 30, 40 सालों तक इस्तेमाल कर सकते हैं." सोबलाद के लिए कोविड पास इस तकनीक के इस्तेमाल का बस एक उदाहरण है जो "2021-22 की सर्दियों में एक लोकप्रिय चीज रहेगी."
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें "निजता में बहुत रूचि" है. वो यह मानते हैं कि "कई लोग चिप इम्प्लांट को एक डरावनी टेक्नोलॉजी, एक सर्विलांस टेक्नोलॉजी समझते हैं", लेकिन उनके हिसाब से इसे एक सरल से पहचान के टैग की तरह देखना चाहिए.
उन्होंने समझाया, "इनमें बैटरी नहीं होती है. ये खुद कोई सिग्नल नहीं भेज सकते हैं. ये एक तरह से सोए हुए हैं. ये कभी आपकी लोकेशन नहीं बता सकते. ये तभी जागृत होते हैं जब आप अपने स्मार्टफोन से इनको छूते हैं."
सोबलाद ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी इम्प्लांट स्वैच्छिक हैं और अगर किसी ने इन्हें कैदियों के लिए या वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों के लिए अनिवार्य करने की कोशिश की तो "आप मुझे बैरिकेडों पर पाएंगे. कोई भी किसी को चिप इम्प्लांट करवाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है."
सीके/एए (एएफपी)
जिस तरह से मुर्गी के अंडे को फोड़कर चूजे बाहर आते हैं उसी तरह से डायनासोर का एक ऐसा अंडे मिला है जिसका भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो चुका था.
वैज्ञानिकों ने कम से कम 6.6 करोड़ वर्ष पुराने एक उत्कृष्ट रूप से संरक्षित डायनासोर भ्रूण की खोज की घोषणा की है. मुर्गी के अंडे की तरह डायनासोर का बच्चा भी बाहर निकलने की तैयारी कर रहा था.
दक्षिणी चीन के ग्वांगजू में वैज्ञानिकों को डायनासोर के अंडे एक जीवाश्म मिला है. रोचक बात यह कि अंडे के अंदर एक संरक्षित भ्रूण भी मिला है. अंडा एक दंतहीन थेरोपॉड डायनासोर या ओविराप्टोरोसॉर का था, जिसे शोधकर्ताओं ने "बेबी यिंगलियांग" नाम दिया है.
6.6 करोड़ साल पुराना भ्रूण
यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंगम के शोधकर्ता और आईसाइंस पत्रिका में छपे शोध के सह-लेखक फियोन वैसम मा ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "यह इतिहास में अब तक के सबसे अच्छे डायनासोर भ्रूणों में से एक है."
मा और उनके सहयोगियों ने पाया कि बेबी यिंगलियांग का सिर उसके शरीर के नीचे था, दोनों तरफ पैर और पीठ मुड़ी हुई थी, एक ऐसी मुद्रा जो पहले डायनासोर में नहीं देखी जाती थी, लेकिन आधुनिक पक्षियों के समान थी. पक्षियों में व्यवहार को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है और इसे "टकिंग" कहा जाता है.
ओविराप्टोरोसॉर डायनासोर
हैचिंग की तैयारी कर रहे चूजे अपनी चोंच से खोल को फोड़ते हुए सिर को स्थिर करने के लिए अपने दाहिने पंख के नीचे सिर को टेका लेते हैं. टकिंग केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से नियंत्रित एक प्रक्रिया होती है जो एक सफल हैचिंग के लिए महत्वपूर्ण है.
भ्रूण जो टकिंग में विफल होते हैं, उनकी असफल हैचिंग से मृत्यु की अधिक संभावना होती है. मा कहते हैं, "यह इंगित करता है कि आधुनिक पक्षियों में इस तरह का व्यवहार सबसे पहले उनके डायनासोर पूर्वजों के बीच विकसित और उत्पन्न हुआ थ."ओविराप्टोरोसॉर डायनासोर पंख वाले डायनासोर थे जो कि लेट क्रेटेशियस काल के दौरान एशिया और उत्तरी अमेरिका में पाए जाते थे. इनकी चोंच और शरीर का आकार अलग-अलग होता था. "बेबी यिंगलियांग" सिर से पूंछ तक लगभग 27 सेंटीमीटर (10.6 इंच) लंबा है, और यिंगलियांग स्टोन नेचर हिस्ट्री म्यूजियम में 17 सेंटीमीटर लंबे अंडे के अंदर है. शोधकर्ताओं का मानना है कि यह 7.2 करोड़ से 6.6 करोड़ वर्ष पुराना है और संभव है कि अचानक भूस्खलन की वजह से अंडा संरक्षित हो गया था.
वीके/एए (एएफपी)
बीजिंग. दुनिया इन दिनों कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से जूझ रही है. दुनियाभर को कोरोना महामारी में धकेलने वाला चीन एक बार फिर इसकी चपेट में आ गया गया है. यहां संक्रमण तेजी से फैल रहा है और सरकार को सख्त कदम उठाने पड़ रहे हैं. कोरोना की नई लहर को रोकने के लिए चीन ने 1.3 करोड़ की आबादी वाले उत्तरी शहर शियान में लॉकडाउन का आदेश दिया है. लोगों से कहा गया है कि जब तक अत्यंत आवश्यक न हो घरों से बाहर न निकलें. इसके अलावा, विशेष मामलों को छोड़ कर शहर आने-जाने वाले सभी परिवहन को स्थगित कर दिया गया है.
यह आदेश बुधवार आधी रात से प्रभावी हुआ और अगले आदेश तक जारी रहेगा. आदेश में कहा गया है कि हर घर से एक व्यक्ति को प्रत्येक दो दिनों पर घरेलू इस्तेमाल की जरूरी चीजें खरीदने के लिए बाहर जाने की अनुमति होगी. शियान में पिछले 24 घंटे में स्थानीय स्तर पर हुए कोरोना वायरस संक्रमण के 54 मामले बुधवार को सामने आए हैं.
चीन ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है जब कुछ ही सप्ताह बाद यहां विंटर ओलिंपिक्स की शुरुआत होने जा रही है. 4 फरवरी से बीजिंग में विंटर ओलिंपिक्स होना है. इसलिए चीन ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सख्त प्रतिबंधों का सहारा लिया है. कोरोना प्रोटोकॉल को सख्ती से लागू करने और बड़े पैमाने पर टेस्टिंग, वैक्सीनेशन के जरिए चीन कोरोना से काफी हद तक सफलतापूर्वक निपटने में कामयाब रहा है.
ब्रिटेन में कोरोना के रिकॉर्ड केस
ओमिक्रॉन वेरिएंट के खतरे के बीच ब्रिटेन में कोरोना डराने लगा है. पिछले 24 घंटे में यहां रिकॉर्ड 1 लाख से भी ज्यादा नए केस सामने आए हैं. बताया जा रहा है कि महामारी शुरू होने के बाद पहली बार एक दिन में इतने ज्यादा संक्रमित मिले हैं.
महामारी शुरू होने के बाद देश में अब तक 1 करोड़ 10 लाख से ज्यादा लोग इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं. वहीं 1 लाख 47 हजार 573 लोगों की जान भी जा चुकी है. सरकार ने लोगों से अपील की है कि वे बढ़ते मामलों को देखते हुए जल्द से जल्द बूस्टर डोज ले लें. ब्रिटेन में अब तक 3 करोड़ से ज्यादा बूस्टर डोज दिए जा चुके हैं.
WHO ने कहा- कोरोना को 2022 में खत्म करना होगा
ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों की वजह से कई देशों में प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. यह वेरिएंट 100 से ज्यादा देशों में फैल चुका है. इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन के चीफ टेड रोस ने मंगलवार को कहा कि दुनियाभर की सरकारों को महामारी को खत्म करने की दिशा में काम करना चाहिए. हमें इस महामारी को 2022 तक खत्म करना होगा. उन्होंने कहा कि 2022 ऐसा साल होना चाहिए जिसमें हम महामारी को खत्म करें. हर देश की 70% आबादी को अगले साल जुलाई तक वैक्सीन लगा दी जाए तो महामारी को खत्म किया जा सकता है.
संयुक्त अरब अमीरात ने फ़ैसला किया है कि अब से बालिगों के लिए बनाए जाने वाली फ़िल्मों को सेंसर नहीं किया जाएगा और सिनेमाघरों में अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मों की स्क्रीनिंग 21+ की एज रेटिंग यानी 21 वर्ष से अधिक लोगों की रेटिंग के साथ भी हो सकेगी.
देश के संस्कृति एवं युवा मंत्रालय के मीडिया नियामक कार्यालय का कहना है कि 19 दिसंबर से सिनेमाघरों में 21+ की एज रेटिंग की फ़िल्मों का प्रदर्शन हो सकेगा और 21 साल से अधिक आयु के लोग फ़िल्में देख सकेंगे.
इस बयान में कहा गया है कि फ़िल्मों के अंतरराष्ट्रीय संस्करण अब सिनेमाघरों में दिखाए जाएंगे जबकि लोगों की उम्र को सख़्ती से चेक किया जाएगा.
UAE के अख़बार द नेशनल के मुताबिक़, इस फ़ैसले का मतलब है कि अब से वयस्कों के लिए बनाई गई फ़िल्मों की एडिटिंग और 'अनुचित' सीन्स की सेंसरशिप नहीं की जाएगी बल्कि फ़िल्मों के साथ तय की गई एज रेटिंग का समर्थन किया जाएगा और उन फ़िल्मों को उनके वास्तविक रूप में दिखाया जाएगा.
क्या नियम लागू होंगे?
बयान में सिनेमाघरों से कहा गया है कि वो 'सख़्ती से उम्र की रेटिंग का समर्थन करें और 21 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों की पहचान का सबूत मांगें.'
द नेशनल का कहना है कि अक्सर अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मों को UAE में रिलीज़ किया जाता है मगर वयस्कों से जुड़े ख़ास सीन्स को फ़िल्मों से निकाल देना आम बात है.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक सबसे बड़ी एज या आयु की रेटिंग 18 साल थी जिसके तहत फ़िल्में रिलीज़ की जाती थीं.
साल 2018 में सरकार ने मनोरंजन सामग्री की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए आयु रेटिंग अनिवार्य कर दी थी. इसमें किताबें वीडियो गेम्स भी शामिल थे.
हालांकि, UAE की सरकार को पारंपरिक रूप से रूढ़िवादी माना जाता है लेकिन खाड़ी देशों में ये सबसे आधुनिक देश है और यहां पर अन्य धर्मों और परंपरा का सम्मान किया जाता है.
हाल ही में यहां पेश किए गए नए नियमों के तहत पुरुष एवं महिलाएं बिना शादी के एक साथ रह सकते हैं जबकि शराब पीने और शराब ख़रीदने पर लगी सख़्ती में ढील दी गई है.
अरब देशों में UAE की गिनती उन देशों में होती है जहां पर सबसे अधिक लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं. मगर इंटरनेट पर राजनीतिक मतभेद या धर्म से संबंधित सामग्री पर निगरानी रखी जाती है. मीडिया की सामग्री की भी निगरानी की जाती है और उस पर राजनीतिक नियंत्रण रखा जाता है.
'विदेशी निवेश को दोबारा आकर्षित करने की कोशिश'
इस ख़बर का विश्लेषण करते हुए ब्रितानी अख़बार द टाइम्स में छपे एक लेख में एबी चेसमैन कहती हैं कि जब 2014 में फ़िल्म 'द वुल्फ़ ऑफ़ वॉल स्ट्रीट' पहली बार UAE में दिखाई गई थी तो उसमें से क़रीब 45 मिनट के सीन्स काट दिए गए थे.
उनके मुताबिक़, "पहले UAE में 18 प्लस रेटिंग थी लेकिन बहुत कम अंतरराष्ट्रीय फ़िल्में इस श्रेणी में आती थीं और इनके वयस्क या आक्रामक दृश्यों को सेंसरशिप बोर्ड में जमा कराया जाता था और उन पर तत्काल पाबंदी लागू कर दी जाती थी."
रिपोर्ट में कहा गया है कि 'कई खाड़ी देशों ने फ़िल्म वेस्टसाइड स्टोरी पर पाबंदी लगाई जो इस महीने ब्रिटेन में रिलीज़ हुई थी. ये इसलिए किया गया क्योंकि इसमें एक ट्रांसजेंडर किरदार भी शामिल था. UAE और अन्य देशों ने डिज़्नी से कुछ सीन्स काटने का निवेदन किया था लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया.'
एबी चेसमैन कहती हैं कि फ़िलहाल ये पता नहीं चल पाया है कि पहले प्रतिबंधित या सेंसर की गई फ़िल्मों को दोबारा रिलीज़ किया जाएगा या नहीं.
UAE के कई क़ानूनों में बदलाव
उन्होंने कहा कि पिछले एक साल के दौरान 'UAE में लंबे अरसे से जारी सख़्त इस्लामी क़ानून में बुनियादी बदलाव किए गए हैं. लोगों को अब शराब ख़रीदने के लिए लाइसेंस की ज़रूरत नहीं है. ग़ैर शादीशुदा जोड़े को एक साथ रहने की अनुमति है. ख़ुदकुशी की कोशिश अब अपराध नहीं है और अकेली महिलाओं को अब देश से भागने की ज़रूरत नहीं है.'
उनका मानना है कि UAE खाड़ी क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बीते साल उसे गंभीर मंदी का सामना करना पड़ा है क्योंकि कोरोना वायरस ने पर्यटन उद्योग को प्रभावित किया और तेल की क़ीमतें सबसे नीचे रिकॉर्ड की गईं. 'तेल के बाद के भविष्य के लिए कुशल श्रमिकों को आकर्षित करना बहुत महत्वपूर्ण है.'
एबी चेसमैन कहती हैं कि इन सुधारों का संबंध सऊदी अरब से भी हो सकता है जहां समाज में बदलाव लाने की कोशिशें की जा रही हैं. "UAE फिर से विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहता है जो कि रियाद का रुख़ कर रहा है.' (bbc.com)
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अंडा हो सकता है कि भूस्खलन के दौरान ज़मीन में दब गया हो और इसी वजह से सुरक्षित बच गया हो
डायनासोर के बारे में जानने के लिए हर किसी में उत्सुकता बनी रहती है. एक समय में दुनिया के सबसे बड़े जीवों में से एक डायनासोर के बारे में संभव है कि आने वाले समय में मानव-जाति को और अधिक जानकारी मिल सके.
वैज्ञानिकों को डायनासोर का एक ऐसा अंडा मिला है, जिसमे भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो चुका था और यह अंडा फोड़कर बाहर निकलने की प्रक्रिया में था. यह ठीक वैसा ही है जैसा मुर्गी के अंडे को फोड़कर चूज़े बाहर निकलते हैं.
यह अंडा दक्षिणी चीन के गांझोऊ में मिला था और शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह भ्रूण कम से कम 66 मिलियन साल पुराना हो सकता है.
ऐसा माना जा रहा है कि यह एक दंतहीन थेरोपोड डायनासोर या फिर ओविराप्टोरोसोर का भ्रूण हो सकता है.
इस भ्रूण को बेबी येंगलियांग नाम दिया गया है.
शोधकर्ता डॉ. फियोन वायसम मा का कहना है कि अभी तक शोधकर्ताओं को जितने भी डायनासोर के भ्रूण मिले हैं, यह उनमें से अभी तक का सबसे अच्छी स्थिति में मिला भ्रूण है.
यह खोज अपने आप में इसलिए और महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे शोधकर्ताओं को डायनासोर और आज के पक्षियों के बीच की कड़ी को समझने में काफी मदद मिली है.
डायनासोर के भ्रूण का जो जीवाश्म मिला है वह एक घुमावदार स्थिति में है जिसे टकिंग कहा जाता है.
यह एक ऐसी स्थिति और व्यवहार है जो पक्षियों में भी पायी जाती है. जिस समय पक्षियों के चूज़े अंडे से बाहर निकलने की कोशिश रहे होते हैं वे भी इसी स्थिति में होते हैं.
शोधकर्ता डॉ. मा ने न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी को बताया, "इससे यह पता चलता है कि आधुनिक पक्षियों का जो यह व्यवहार है, वह पहले उनके पूर्वज डायनासोर में विकसित हुआ."
ओविराप्टोरोसोरस, जिसका मतलब है - अंडे चुराने वाली छिपकली.
यह पंख वाले डायनासोर थे. वे आज के एशिया और उत्तरी अमेरिका के हिस्से में रहते थे. यह क्रेटेशियस पीरियड का आख़िरी दौर था, जब ये डायनासोर पाए जाते थे.
जीवाश्म विज्ञानी प्रो स्टीव ब्रुसेट भी चीन में मिले इस जीवाश्म के शोध दल का हिस्सा रहे हैं.
उन्होंने इस संदर्भ में एक ट्वीट किया है. वह लिखते हैं- "यह अब तक मिले और अचरज में डाल देने वाले डायनासोर जीवाश्मों में से एक है"
उनके मुताबिक़, यह कुछ ऐसा था जैसा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था. यह भ्रूण बस अंडे से बाहर निकलने की क़गार पर था.
चीन में मिला भ्रूण यानी बेबी येंगलियांग सिर से पूंछ तक 10.6 इंच लंबा है. यह अंडा पहली बार 2000 में देखा गया था लेकिन 10 साल के लिए इसे स्टोरेज में रख दिया गया था.
जब संग्रहालय में निर्माण कार्य शुरू हुआ और पुराने जीवाश्मों की छंटायी की जा रही थी तब शोधकर्ताओं का ध्यान अंडे पर गया. उन्हें अंदेशा था कि उस अंडे के भीतर भ्रूण हो सकता है.(bbc.com)
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अरब दुनिया के अधिकांश देशों में एक तिहाई आबादी के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने अरब देशों में भूख की विकट स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की है.
यूएन की रिपोर्ट के अनुसार 42 करोड़ की आबादी वाले अरब दुनिया में एक तिहाई यानी 14 करोड़ लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है, पिछले साल 6.9 करोड़ लोग कुपोषण से पीड़ित थे. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक 2019 और 2020 के बीच अरब दुनिया में कुपोषित लोगों की संख्या 48 लाख से बढ़कर 6.9 करोड़ हो गई है.
एफएओ के अनुसार, पिछले दो दशकों में अरब दुनिया में भूख में 91 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. दूसरी ओर अमीर अरब देशों युवा आबादी में मोटापा बढ़ा है. रिपोर्ट के मुताबिक अमीर अरब देशों की युवा पीढ़ी में मोटापे की दर वैश्विक औसत 13.1 फीसदी से लगभग दोगुनी हो गई है.
कुपोषण में वृद्धि
एफएओ का कहना है कि अरब दुनिया में 14.1 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास 2020 में पर्याप्त भोजन नहीं था. 2019 की तुलना में 2020 में पर्याप्त भोजन तक पहुंच के बिना लोगों की संख्या में एक करोड़ की वृद्धि दर्ज हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान भी अरब जगत में गरीबों की हालत बद से बदतर हो गई और इस संक्रामक महामारी ने गरीबी से जूझ रहे लोगों पर गहरी छाप छोड़ी. इस दौरान भी प्रकोप तेज होता दिख रहा है.
एफएओ ने कहा, "संघर्ष प्रभावित और गैर-संघर्ष वाले देशों में, सभी आय स्तरों में अल्पपोषण के स्तर में वृद्धि हुई है."
एफएओ की रिपोर्ट ने यमन और सोमालिया पर भी ध्यान केंद्रित किया. रिपोर्ट में उन देशों को भूख और गरीबी से गंभीर रूप से प्रभावित के रूप में बताया गया है. युद्ध के परिणामस्वरूप सोमालिया की 60 प्रतिशत आबादी भूख से तड़प रही है, जबकि यमन की 45 प्रतिशत आबादी गरीबी और अत्यधिक भूख में जी रही है.
एफएओ का कहना है, "यमन में 2020 में एनीमिया का सबसे अधिक प्रसार था, जिसने प्रजनन आयु की 61.5 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित किया है."
एए/वीके (एएफपी)
कोरोना वायरस महामारी के कारण आई गरीबी की लहर से लड़ने के लिए अमेरिका के कई शहरों ने एक नया तरीका निकाला है. यहां लोगों को कैश दिया जा रहा है. बिना किसी शर्त.
अमेरिका में कम से कम 16 शहर ऐसे हैं जहां कम आय वाले लोगों को बिना किसी शर्त नकद पैसा दिया जा रहा है. यह कदम तेजी से अपनाया जा रहा है और आने वाले महीनों में कम से कम 31 और शहर ऐसा ही करने की योजना बना रहे हैं.
अब तक अमेरिका में गरीबों की मदद के लिए वैकल्पिक तरीके अपनाए जाते रहे हैं जैसे कि खाने-पीने का सामान देना, किराया देने में मदद करना या काम खोजने में मदद करना. लेकिन अब इस तरह की मदद के बारे में अधिकारियों का रवैया बदल रहा है. इस योजना के समर्थकों का कहना है कि पैसा कैसे खर्च करना है, यह बात अधिकारी नहीं लोग ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं इसलिए उन्हें चीजें नहीं धन दिया जाना बेहतर है.
कैश बड़ी मदद है
माइकल टब्स 2019 में कैलिफॉर्निया के स्टॉक्टन शहर के मेयर थे जब उन्होंने देश का पहला ‘बेसिक इनकम' प्रोग्राम शुरू किया था. वह बताते हैं, "यह उस विचार को पूरी तरह खारिज करता है कि हमें लोगों को गरीबी से निकालने के लिए बड़े भाई की भूमिका निभाने की जरूरत है.”
37 साल के जोनाथन पेड्रो को ऐसी ही योजना का लाभ हुआ है. मैसाचुसेट्स के केंब्रिज में रहने वाले पेड्रो को शहर प्रशासन से 500 डॉलर मासिक मिलते हैं. इस धन से उन्होंने अपना कर्ज काफी हद तक चुका दिया है और अपने 11 साल के बेटे के लिए हॉकी का साज-सामान भी खरीदा है.
पेड्रो कहते हैं, "मैं अपनी स्थिति सुधारने की बहुत बहुत कोशिश कर रहा हूं और यह धन उसमें बड़ा मददगार साबित हुआ है.”
नई नहीं है योजना
वैसे अमेरिका में पहले भी गरीबों को धन देने की योजनाएं चली हैं. खासकर 20वीं सदी में ऐसी योजनाएं खासी लोकप्रिय थीं. लेकिन इन योजनाओं की यह कहते हुए तीखी आलोचना होती थी कि बिना काम किए पैसा मिलेगा तो लोग काम नहीं करना चाहेंगे.
इस आलोचना का असर यह हुआ कि योजनाएं धीरे धीरे खत्म होती चली गईं. डेमोक्रैटिक राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इन योजनाओं में काफी कटौती की और 1996 में यह शर्त जोड़ दी कि जो काम करेगा उसे ही मदद मिलेगी. अब स्थिति यह है कि एक चौथाई से भी कम गरीब परिवार मदद पाने योग्य हो पाते हैं.
पिछले कुछ सालों में ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम' के लिए समर्थन बढ़ा है. खासतौर पर ऑटोमेशन के चलते कम होतीं नौकरियों ने इस विचार को मजबूती दी है कि लोगों को एक निश्चित धन मिलना चाहिए, फिर चाहे वे काम करें या नहीं. इस विचार के साथ यह अवधारणा भी जुड़ी है कि काम करने के मौके सभी के लिए बराबर नहीं हैं क्योंकि नस्ली, जातीय या अन्य भेदभाव लोगों को बराबर नही रहने देते. 2020 में राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रैटिक उम्मीदवारी के दावेदार रहे ऐंड्रयू यंग ने इस योजना को अपना मुख्य मुद्दा बनाया था.
कोरोना वायरस के कारण काम-धंधे बंद हो जाने के बाद अमेरिका के अलावा भी बहुत से देशों की सरकारों ने अपने नागरिकों की मदद के लिए अलग-अलग तरीके से धन जारी किया. अमेरिका में तो तीन बार पैकेज जारी किए गए जिनकी कुल लगात 800 अरब डॉलर से ज्यादा थी.
छोटे स्तर पर है काम
मिनेसोटा के शहर सेंट पॉल के मेयर मेल्विन कार्टर कहते हैं, "60 साल से हम गरीबी खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. और आज भी, लोगों को नकद देने की बात नई सी लगती है. शायद यही समस्या है.” कार्टर अपने शहर में पिछले साल से यह योजना चला रहे हैं.
वैसे, अभी जो योजनाएं चल रही हैं, उन सभी का आकार बहुत छोटा है. हर शहर में कुछ सौ परिवार ही इस योजना का लाभ पा रहे हैं. जैसे कि सेंट पॉल में नए जन्म बच्चों वाले परिवारों को ही मदद दी जा रही है. अब तक दो सौ परिवारों को मदद मिली है जिनमें आधे से ज्यादा अश्वेत महिलाएं हैं.
नॉर्थ कैरोलाइना के डरहैम में जेल से छूटने वाले लोगों को नकद मदद दी जा रही है जबकि मिसीसिपी के जैकसन में सरकारी घरों में रहने वालीं अश्वेत मांओं को नकद दिया जा रहा है. लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि इन कोशिशों के सकारात्मक नतीजे केंद्र सरकार को तैयार कर पाएंगे और नेशनल बेसिक इनकम जैसी योजनाएं शुरू हो सकेंगी.
वीके/एए (रॉयटर्स)