राजपथ - जनपथ
शिक्षामंत्री और सत्तारूढ़ विधायक
छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग में तबादलों को लेकर अभी जो बवाल हुआ, वैसा इस राज्य के बनने के बाद से कभी भी किसी विभाग में नहीं हुआ था। सत्तारूढ़ पार्टी के आधा दर्जन से अधिक विधायक सीधे शिक्षामंत्री के बंगले पर पहुंचे, और तबादलों की जो लंबी लिस्ट निकली है, उसमें खुले भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए मंत्री पर भारी नाराजगी दिखाई। इनमें से कुछ विधायक विधानसभा अध्यक्ष के बंगले पर जाकर विरोध दर्ज करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने फोन पर ही मना कर दिया था कि मंत्री उनके मातहत नहीं है, और वे इस बारे में कुछ भी नहीं बोलेंगे, जो बात करनी है मंत्री से करें। मंत्री पर नाराजगी के बाद विधायक मुख्यमंत्री तक पहुंचे, और लेनदेन के बहुत से मामले बताए। स्कूल शिक्षा विभाग राज्य सरकार का सबसे बड़ा विभाग है और इसके कर्मचारी तमाम सरकारी कर्मचारियों का बहुत बड़ा हिस्सा होते हैं। ऐसे में सारे विधायकों, और विधायकों से भी बड़े-बड़े बहुत से कांग्रेस नेताओं, मंत्रियों की तबादला सिफारिशों को स्कूल शिक्षा मंत्री के बंगले पर रद्दी में डाल दिया गया, और बंगले पर काम करने वाले लोगों के मार्फत ही तबादले के सौदे हुए।
सत्तारूढ़ कांग्रेस के विधायकों ने इसके बारे में अफसरों के नाम गिनाए हैं कि कौन से अफसर तबादला उद्योग चला रहे हैं, और इनके नाम लेकर मुख्यमंत्री को और संगठन के केन्द्रीय नेताओं को बताया गया है कि किस तरह आरएसएस और भाजपा के करीबी रहे अफसर लेन-देन करके तबादला लिस्ट बनाते रहे, और प्रदेश सरकार के कुछ सबसे बड़े लोगों के दिए हुए एक-दो नाम भी सैकड़ों की लिस्ट में नहीं आ पाए। पिछली भाजपा सरकार के समय स्कूल शिक्षा विभाग में जो दलाल अलग-अलग स्कूल शिक्षा मंत्रियों के इर्द-गिर्द सक्रिय रहे, उनके स्टाफ में रहे, वे लोग भी अभी पर्दे के पीछे से मोलभाव में लगे रहे, और उनके करवाए काम बड़े भरोसे के साथ हो गए।
बैटरी की तरह फूले पुल गिरे तो ?
राज्य के सबसे बड़े निर्माण विभाग पीडब्ल्यूडी का भ्रष्टाचार दिन में दो की रफ्तार से सामने आ रहा है। इस विभाग के बनवाए हुए राजधानी के ही महंगे निर्माणों में घटिया काम, घटिया सामान, और तकनीकी खतरे इतने सामने आ चुके हैं कि किसी दिन शहर के बीच किसी बड़े पुल की दीवार गिरे, और सैकड़ों लोग दबकर मर जाएं, तो भी हैरानी नहीं होगी। पिछली सरकार के भ्रष्टाचार और उसकी मनमानी की एक सबसे बड़ी मिसाल राजधानी के बीच बनाया गया स्काईवॉक है जो भूपेश सरकार के गले में फंसी हड्डी बन गया है जिसे न उगलते बन रहा है, न निगलते बन रहा है। सरकार जो भी फैसला करेगी, वह आलोचना ही लाएगा। लेकिन सरकार और सरकार के बाहर के जानकार लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि इस विभाग के बड़े-बड़े अफसर इतने घोटालों, इतनी गड़बडिय़ों, और इतने भ्रष्टाचार के बावजूद ज्यों के त्यों बने हुए हैं। कुछ लोगों का अंदाज है कि नई सरकार में मंत्री कमाई के जमे-जमाए ढांचे और उसे चलाने वाले अफसरों का रेडी-टू-यूज इस्तेमाल कर ले रहे हैं, बजाय नए ढांचे को खड़ा करने के। इस विभाग को लेकर इतने किस्म की अप्रिय चर्चाएं सरकार में चल रही हैं कि बदनामी विभागीय मंत्री से परे भी पहुंच रही है, और किसी भी सरकार को ऐसी बदनामी के असर का पता तुरंत नहीं चलता है, लेकिन पन्द्रह बरस की रमन सरकार के जाने में जनता के वोटों का जितना हाथ था, उसका बड़ा हिस्सा इस किस्म की बदनामी से ही आया था।
सुनते हैं कि पीडब्ल्यूडी की कमाई को लेकर नेता और अफसर इस विभाग में बने रहने के लिए अपना दायां हाथ भी दान देने के लिए तैयार हो जाते हैं। अभी ताजा खबर राजधानी के सैकड़ों करोड़ से बने एक्सप्रेस हाईवे की है जिसकी दीवार जगह-जगह उसी तरह फूली हुई दिख रही है जिस तरह घटिया मोबाइल फोन की बैटरी फूल जाती है। अब इसके किनारे से सारे वक्त लोग निकलते रहते हैं, और अगर दीवार गिरी तो फिर नुकसान का अंदाज भी नहीं लग सकता।
भाजपाई अफसरों के मजे
राज्य सरकार के कई विभागों में पिछली भाजपा सरकार के वक्त पार्टी कार्यकर्ता की तरह काम करने वाले अफसरों में से कई ऐसे हैं जिनके इस सरकार में भी उसी रफ्तार से उतने ही मजे चल रहे हैं। सरकार में किनारे पड़े हुए कई लोग यह नजारा देखकर हैरान हैं कि भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाले लोग आज मंत्री हैं, और उन्हीं मातहत लोगों को आज भी सिर पर बिठाकर रखा हुआ है। ([email protected])
सेक्स-वीडियो आते-जाते रहते हैं...
बिलासपुर संभाग के एक नगर पालिका अध्यक्ष का सेक्स वीडियो वायरल हुआ है। नगर पालिका अध्यक्ष महोदय भी भाजपा से ही जुड़े हैं। और एक पूर्व मंत्री के रिश्तेदार भी हैं। सेक्स-वीडियो वायरल होने के बाद अध्यक्ष महोदय खुद तो सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन उनके समर्थक यह जरूर कहते घूम रहे हैं कि नगरीय निकाय चुनाव नजदीक हैं ऐसे में विरोधी, अध्यक्ष की लोकप्रियता से घबराकर छवि धूमिल करने की कोशिश में लगे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि कोई सेक्स-वीडियो को फर्जी नहीं बता रहा है। चर्चा तो यह भी है कि खुद मौज-मस्ती के लिए नगर पालिका अध्यक्ष महोदय ने बनवाई थी। अब वीडियो फैला, तो उन्हें जवाब देना भी मुश्किल हो गया है। सुनते हैं कि सेक्स-वीडियो की खबर भाजपा संगठन के प्रमुख नेताओं को भी है। भाजपा के शुद्धतावादी नेताओं को वीडियो देखकर जरूर बुरा लग रहा है, लेकिन वे इसको निजी मामला बताकर किसी तरह की कार्रवाई करने से बच रहे हैं। उन्हें लगता है कि थोड़े दिन बाद सबकुछ शांत हो जाएगा। हिमाचल से लेकर उज्जैन और अन्य जगहों में भाजपा नेताओं के सेक्स-वीडियो चर्चा में रहे हैं। कुछ दिन की चर्चा के बाद सबकुछ सामान्य हो गया और वीडियो में दिखाई देने वाले नेता काम धंधे में लग गए। हिंदुस्तानी लोग वैसे तो नैतिकता की बातें बहुत बढ़-चढ़कर करते हैं, लेकिन नैतिक कमजोरियों को यह कहकर तेजी से भुला भी देते हैं कि देवी-देवता भी कई बार कमजोर होते रहे हैं, हम लोग तो इंसान हैं। सेक्स-वीडियो में पकड़ाए गए लोग भी बड़ी रफ्तार से माननीय और आदरणीय हो जाते हैं। ऐसे में इनका मोटा इस्तेमाल कुछ समय के लिए नुकसान पहुंचाना रह जाता है, उससे अधिक कुछ नहीं होता, और नैतिकता की बातें करने वाले बड़बोले हिंदुस्तानी अनैतिक बातों को भुलाकर आगे बढ़ जाते हैं।
भूपेश की तारीफ करते भाजपाई
कांकेर के भाजपा सांसद मोहन मंडावी ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में खुले तौर पर सीएम भूपेश बघेल की तारीफ कर पार्टी नेताओं की नाराजगी मोल ले ली है। बघेल की मौजूदगी में मोहन मंडावी ने उन्हें जननायक बताया और कहा कि उनका (भूपेश बघेल) जन्मदिन जन्माष्टमी पर पड़ता है इसलिए वे भगवान कृष्ण से कम नहीं हैं। मंडावी ने आगे यह भी कहा कि सीएम भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की परम्परा और संस्कृति को समझते हैं और वे छत्तीसगढ़वासियों के हित में काम कर रहे हैं। मोहन मंडावी की टिप्पणी को पार्टी संगठन ने काफी गंभीरता से लिया है। सुनते हैं कि कुछ नेताओं ने उन्हें फोन कर हिदायत भी दी है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली की अंत्येष्टि में शामिल होने पार्टी के बड़े नेता दिल्ली गए हैं। लौटने के बाद मंडावी को बुलाकर उन्हें हिंदी में समझाइश दी जा सकती है। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा नेताओं की तारीफ पाने का भूपेश बघेल का यह पहला मौका नहीं है, ननकीराम कंवर से लेकर नंद कुमार साय तक कई लोग पहले भी भूपेश की तारीफ कर चुके हैं, और ननकीराम ने तो भूपेश बघेल से मेल-मुलाकात पर पार्टी की आपत्ति पर यह तक कह दिया है कि पार्टी चाहे तो उन्हें निकाल दे, वे तो भ्रष्टाचार और जुर्मों की शिकायत करने के लिए भूपेश बघेल से मिलते रहेंगे जिन्होंने तुरंत जांच के आदेश दिए हैं। ननकीराम रमन सिंह के पसंदीदा और अविश्वसनीय रूप से ताकतवर हो चुके अफसरों के खिलाफ दस बरस से जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन उनकी शिकायतें रद्दी की टोकरी से होते हुए कागज कारखाने में लुग्दी बनकर फिर उन्हीं अफसरों के कुकर्म छापने के लिए अखबारी कागज बनकर लौटती रही थी, और अपनी ही पार्टी सरकार में ननकीराम हाशिए पर थे। अब भूपेश बघेल उनकी सुन रहे हैं, तो वे भी भूपेश बघेल की तारीफ कर रहे हैं।
अब रावण का जिम्मा...
डब्ल्यूआरएस मैदान में प्रदेश के सबसे बड़े रावण दहन कार्यक्रम की कमान अब रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा संभालेंगे। साथ ही विकास उपाध्याय उनका सहयोग करेंगे। इससे पहले तक पिछले 15 साल से राजेश मूणत ही इस आयोजन के कर्ता-धर्ता रहे हैं। अब भाजपा की सरकार नहीं रह गई है। ऐसे में अब आयोजनकर्ता भी बदल गए हैं। सुनते हैं कि खुद सीएम भूपेश बघेल ने कुलदीप और विकास को इस कार्यक्रम को बहुत अच्छे से करने के लिए कहा है। इसके बाद कुलदीप और विकास अपनी टीम के साथ सबसे बड़े रावण दहन कार्यक्रम को पिछले वर्षों से ज्यादा भव्य और आकर्षक बनाने की तैयारी में जुट गए हैं। ([email protected])
शिक्षाकर्मी, जितनी संख्या, उतने किस्से
कुछ शिक्षाकर्मी नेताओं के तबादले से सोशल मीडिया में कोहराम मचा है। कई शिक्षाकर्मी सरकार को भला-बुरा कह रहे हैं। सर्वाधिक चर्चा वीरेंद्र दुबे की हो रही है, जो कि शिक्षाकर्मी संघ के एक बड़े धड़े के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वे मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र पाटन के एक स्कूल में पदस्थ थे, जिन्हें बेमेतरा जिले में भेजा गया है। वैसे तो शिक्षाकर्मी नेताओं को स्कूल में कभी पढ़ाते नहीं देखा गया, वे ज्यादातर समय टीवी डिबेट पर या फिर अपने संगठन को मजबूत करने में ही लगे रहते हैं।
शिक्षाकर्मियों की संख्या भी पौने दो लाख से अधिक हो गई है। ऐसे में संगठन के पास अच्छा-खासा चंदा भी इक_ा हो जाता है। शिक्षाकर्मियों में एकजुटता भी है और नियमितीकरण की मांग को लेकर पिछली सरकार को हिलाकर रख दिया था। ऐसे में शिक्षाकर्मी नेताओं पर कभी कार्रवाई नहीं हो पाती। हड़ताल के वक्त कई बार शिक्षाकर्मी नेताओं को बर्खास्त भी किया गया, लेकिन जल्द ही उन्हें बहाल भी कर दिया गया।
हाल यह है कि वीरेंद्र दुबे जैसे अन्य शिक्षाकर्मी नेता महंगी गाडिय़ों में देखे जा सकते हैं। और चुनाव के वक्त राजनीतिक दल के लोग उनसे समर्थन जुटाने की कोशिश में रहते हैं। कांग्रेस ने शिक्षाकर्मियों का समर्थन हासिल करने के लिए वीरेंद्र दुबे गुट के शिक्षाकर्मी चंद्रदेव राय को कांग्रेस ने टिकट भी दी थी और वे बिलाईगढ़ से अच्छे मतों से चुनाव भी जीते, मगर वीरेंद्र दुबे का जुड़ाव कांग्रेस के बजाए भाजपा से रहा है।
चर्चा हैं कि शिक्षाकर्मी नेताओं को भाजपा के पाले में लाने में पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी की अहम भूमिका रही है। वे प्रशासनिक सेवा में आने से पहले शिक्षाकर्मी रह चुके हैं। शिक्षाकर्मी नेताओं के समर्थन के बावजूद प्रदेश में भाजपा सरकार नहीं बन पाई। अलबत्ता, खुले तौर पर प्रचार करने वाले नेता कांग्रेस सरकार के निशाने पर आ गए हैं।
पिछले दिनों एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में वीरेंद्र दुबे ने सीएम भूपेश बघेल से पूछ लिया कि सरकार शिक्षकों के लिए क्या कर रही है? इस पर सीएम ने कहा कि शिक्षकों के लिए बहुत कुछ किया है। रमन सरकार ने संविलियन की सिर्फ घोषणा की थी, लेकिन हमने उसे पूरा किया और 11 सौ करोड़ रुपये बजट में प्रावधान भी किया। साथ ही उन्होंने मंच से ही वीरेंद्र दुबे से कहा कि आपसे अलग से यह जरूर जानना चाहूंगा कि पिछली सरकार में शिक्षाकर्मियों का आंदोलन हुआ था, तो आप एक बजे रात को रहस्यमय तरीके से जेल से निकलकर किससे मिलने के लिए गए थे? फिर अगले दिन आंदोलन खत्म भी हो गया। सीएम की बात सुनकर हड़बड़ाए वीरेंद्र दुबे चुपचाप खिसक लिए।
बाद में खबर छनकर आई कि उस वक्त के कलेक्टर ओपी चौधरी, वीरेंद्र दुबे और एक-दो अन्य नेताओं को चुपचाप जेल से अमन सिंह से मिलाने ले गए थे। कुछ डील भी हुई और शिक्षाकर्मियों का आंदोलन खत्म हो गया, लेकिन शिक्षाकर्मियों का विश्वास अपने नेताओं पर से उठ गया और उन्होंने विधानसभा चुनाव में रमन सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने में अहम भूमिका निभाई।
तबादलों के सौदों का मौसम
ट्रांसफर का सीजन चल रहा है। सरकार कोई भी हो, ट्रांसफर-पोस्टिंग लेन-देन की खबरें चर्चा में रहती हैं। इस बार भी छोटे-बड़े नेता और दलाल सक्रिय दिख रहे हैं। कई विभाग ऐसे हैं, जहां बिना लेन-देन के ट्रांसफर मुश्किल सा दिखता है। इनमें परिवहन और आबकारी विभाग हैं। ये दोनों विभाग बेहद कमाऊ माने जाते हैं। कुछ पुराने परिवहन अफसर याद करते हैं कि अविभाजित मध्यप्रदेश में सिर्फ एक बार ही लेन-देन नहीं हुआ था, वह भी राष्ट्रपति शासन का दौर था। उस वक्त राज्यपाल कुंवर मेहमूदअली खान ने बड़े पैमाने पर परिवहन अफसरों के तबादले किए। तब छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड मुख्य सचिव शिवराज सिंह ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के पद पर थे।
शिवराज सिंह के प्रस्तावों को कुंवर मेहमूदअली खान ने जस के तस मंजूरी दे दी। बिना पैसे के भारी भरकम तबादले की उन दिनों काफी चर्चा रही। छत्तीसगढ़ बनने के बाद विशेषकर परिवहन और आबकारी में तो सीएम हाउस तक का दखल रहा है। सीएम रमन सिंह भी उस वक्त विवादों में घिर गए जब उनके रिश्तेदार संजय सिंह की परिवहन में पोस्टिंग हुई और उनके खिलाफ भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें आई। बाद में खुद रमन सिंह को इस मामले में सफाई देनी पड़ी। बाद में संजय सिंह को वापस पर्यटन बोर्ड भेज दिया गया। मगर, इस बार ट्रांसफर सीजन में कमाऊ विभागों से ज्यादा स्कूल शिक्षा विभाग में लेन-देन की खबरें चर्चा में है। खुद स्कूल शिक्षा मंत्री ने एक प्रकरण को पुलिस को जांच के लिए सौंपा है।
स्कूल शिक्षा मंत्री के दावे के बावजूद उनके विभाग में लेन-देन की चर्चा थम नहीं रही है। रायपुर के सबसे पुराने स्कूल के प्राचार्य का तबादला रूकवाने के लिए एक विधायक और कांग्रेस पार्षद, मंत्री बंगले पहुंच गए। सुनते हैं कि प्राचार्य पिछले चार सालों से वहां हैं और वे पिछली सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री के करीबी भी रहे हैं। सरकार बदलने के बाद जब उनके तबादले के प्रस्ताव पर चर्चा हुई, तो कांग्रेस विधायक और पार्षद, प्राचार्य का तबादला रोकने के लिए अड़ गए। इसमें भी लेन-देन की चर्चा है। कुछ सूची तो छोटे-बड़े नेताओं की आपसी खींचतान के चलते जारी नहीं हो पा रही है।
अब जंगल में मंगल
राज्य बनने के बाद पीसीसीएफ (मुख्यालय) को डीजीपी की तरह अधिकार दिया जा रहा है। यानी पीसीसीएफ (मुख्यालय) रेंजर तक के तबादले कर सकेंगे। इसके लिए फाइल शासन को भेजने की जरूरत नहीं है। यह सब विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर की पहल पर हो रहा है।
वैसे तो, पिछले 15 साल में वन विभाग ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए कुख्यात रहा है। दागी-बागी टाइप अफसर मलाईदार जगहों पर रहे हैं। लेकिन इस बार कुछ व्यवस्था बदली है। सिर्फ जरूरी तबादले ही हो रहे हैं और उन अफसरों को आगे लाया जा रहा है, जो कि बरसों से लूप लाइन पर रहे हैं, उन्हें काम करने का बेहतर अवसर दिया जा रहा है। इस अवसर का फायदा उठाकर कुछ बेहतर किया तो ठीक, अन्यथा हटाने में देर नहीं लगेगी।
सुबोध दिल्ली की ओर
श्रम सचिव सुबोध सिंह जल्द ही केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। पहले भी उन्होंने प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन अनुमति नहीं मिल पाई थी। सुनते हैं कि उन्होंने दोबारा आवेदन देकर प्रतिनियुक्ति जाने की इच्छा जताई है। वे केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव पद के लिए इम्पैनल हो चुके हैं। राज्य सरकार भी उनके कॅरियर को देखकर कोई ज्यादा रोकने के मूड में नहीं है। वैसे भी सोनमणि बोरा विदेश प्रवास से लौट आए हैं। ऐसे में संभावना है कि सुबोध सिंह को केंद्र में जाने की अनुमति मिल जाएगी। वर्तमान में केंद्र सरकार में आधा दर्जन अफसर पदस्थ हैं। ये सभी पिछली सरकार के रहते ही वहां चले गए थे।
वर्तमान में अमित अग्रवाल, निधि छिब्बर, विकासशील केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के पद पर हैं। रोहित यादव भी संयुक्त सचिव पद के लिए इम्पैनल हो चुके हैं। यादव केंद्र सरकार में पहले से ही पदस्थ हैं और वे वहां संयुक्त सचिव के पद पर प्रमोट हो जाएंगे। यहां खाद्य सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह भी संयुक्त सचिव पद के लिए इम्पैनल हो चुके हैं।
लैंडयूज बदल सकेंगे?
एक तरफ तो देश भर के हर राज्य में निर्माण में मनमानी रोकने के लिए बिल्डरों और कॉलोनाईजरों पर लगाम लगाने रेरा नाम की संस्था बनाई गई है। दूसरी तरफ सरकार को ऐसा लगता है कि वह अपनी कॉलोनियों में अपने खुद के नियम चला सकती है जबकि वहां रहने वाले, वहां मकान और प्लॉट खरीदने वाले भी ऐसे फैसलों के खिलाफ रेरा जा सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में राजधानी के रायपुर विकास प्राधिकरण को पिछली सरकार के चलते जो लंबा-चौड़ा घाटा हुआ है उससे उबरने के लिए इस संस्था के विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा है कि कमल विहार के भू-उपयोग को बदलकर उसे महंगे दाम पर बेचकर घाटा पूरा किया जाएगा। लेकिन लोगों को याद होगा कि आरडीए को भी नगर एवं ग्राम निवेश से अपनी कॉलोनी का नक्शा पास करवाना पड़ता है जिसमें हर तरह का भू-उपयोग दर्ज रहता है। ऐसे में अगर कोई फेरबदल होता है, किसी जमीन को महंगे भू-उपयोग का बनाकर बेचा जाता है, तो यह उस कॉलोनी के लोगों के अधिकारों के खिलाफ रहेगा, और वे रेरा भी जा सकते हैं, और अदालत भी जा सकते हैं क्योंकि कमल विहार का मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाकर वहां तय हुआ है।
छत्तीसगढ़ में रेरा ने पिछले महीनों कॉलोनियों और रिहायशी इमारतों में बिल्डर-कॉलोनाईजर द्वारा किए गए फेरबदल या वहां वायदे पूरे न करने पर उनके खिलाफ फैसले दिए गए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आरडीए किस तरह यह काम करके बच सकता है।
बस्तर में इज्जत दांव पर
प्रदेश की विधानसभा की खाली दो सीटों, दंतेवाड़ा और चित्रकोट में उपचुनाव अक्टूबर में हो सकते हंै। ये उपचुनाव भूपेश सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी होंगे। कांग्रेस दोनों को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। यहां कांग्रेस की कमान अप्रत्यक्ष रूप से उद्योग मंत्री कवासी लखमा और सांसद दीपक बैज संभाल रहे हैं। जबकि भाजपा ने स्थानीय नेताओं के बजाए बाहर के नेताओं को चुनाव का जिम्मा दिया है। दंतेवाड़ा का प्रभारी शिवरतन शर्मा, तो नारायण चंदेल को चित्रकोट का प्रभार दिया गया है। शिवरतन शर्मा के साथ पूर्व मंत्री केदार कश्यप और चंदेल के साथ महेश गागड़ा को सहप्रभारी बनाया गया है।
भाजपा हाईकमान ने दोनों सीटों को जीतने के लिए हर संभव कोशिश करने की नसीहत प्रदेश संगठन को दी है। वर्तमान में दंतेवाड़ा भाजपा, तो चित्रकोट सीट कांग्रेस के पास रही है। सुनते हैं कि भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में उपचुनाव की रणनीति पर काफी चर्चा हुई। सौदान सिंह और अन्य नेता, बृजमोहन अग्रवाल को ही कम से कम एक सीट का प्रभारी बनाना चाहते थे। राज्य बनने के बाद जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उनमें से ज्यादातर के प्रभारी बृजमोहन ही रहे और उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी जीत दिलाई। मगर, इस बार उन्होंने चुनाव प्रभारी बनने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि परिवार के मांगलिक कार्यक्रमों के सिलसिले में उन्हें ज्यादातर समय बाहर रहना पड़ सकता है। इसके बाद कुछ और नेताओं के नाम पर भी चर्चा हुई। राजेश मूणत कोई भी बड़ी जिम्मेदारी लेने से पहले ही मना कर चुके हैं। उनकी बिटिया का विवाह नवम्बर-दिसंबर में होना है। दूसरी तरफ, केदार कश्यप और उनके भाई दिनेश कश्यप बस्तर भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन पार्टी के भीतर दोनों के खिलाफ नाराजगी भी है, जो कि पिछले चुनावों में खुलकर सामने आ चुकी है। यही वजह है कि पार्टी ने किसी तरह के असंतोष को रोकने के लिए बस्तर के बाहर के नेताओं को प्रभारी बनाया है।
कर्ज देना भी खतरनाक
भाजपा के एक कारोबारी नेता कर्ज देकर मुश्किल में फंस गए हैं। नेताजी को ब्याज से बहुत मोह रहा है और उन्होंने अपने एक परिचित कारोबारी को ऊंचे ब्याज दर पर 10 करोड़ उधार दिए। शुरूआत में कारोबारी ने ब्याज दिया, लेकिन बाद में देना बंद कर दिया। उसने मंदी का हवाला देकर मूल राशि भी लौटाने में असमर्थता जता दी।
सुनते हंै कि दस करोड़ में से सिर्फ 5 लाख रुपये की ही लिखा-पढ़ी हुई है। बाकी रकम कच्चे में दी गई थी। अब हाल यह है कि 9 करोड़ 95 लाख के लिए भाजपा नेता कोर्ट कचहरी जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। उन्होंने सामाजिक और कुछ अन्य लोगों के जरिए रकम वापसी के लिए दबाव बनाया। ब्याज छोडऩे के लिए तैयार भी हंै, लेकिन कारोबारी ने नगद राशि देने में असमर्थता जता दी है। काफी अनुनय-विनय के बाद कारोबारी ने भाजपा नेता को नगद राशि के बदले में कुछ जमीन देने की पेशकश की है। भाजपा नेता की मुश्किल यह है कि कारोबारी जिस जमीन को देने के लिए तैयार है, उसका बाजार दर से दोगुना भाव रखा है। हाल यह है कि भाजपा नेता पेशकश स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
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सोनिया और शिलान्यास की चर्चा...
नया रायपुर में सोनिया गांधी द्वारा किए गए शिलान्यास के पत्थर की जगह आईआईएम को आबंटित करने के आरोप में राज्य सरकार ने प्रदेश के एक अच्छे आईएफएस अफसर एस.एस. बजाज को निलंबित कर दिया है। इसे लेकर एक वक्त कई बरस तक बजाज के सीनियर रहे राज्य के पूर्व मुख्य सचिव जॉय ओमेन विचलित हैं, और उनका भेजा संदेश मीडिया में चारों तरफ छपा भी है। लेकिन अब खबर यह है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सोनिया गांधी के करीबी लोगों में से एक, जयराम रमेश भी इसे लेकर हैरान-परेशान हैं। यूपीए सरकार के वक्त उनका जॉय ओमेन से वास्ता पड़ता था, और दोनों जाहिर तौर पर केरल के हैं। इसी तरह केरल के दो और लोग छत्तीसगढ़ में बड़े अफसर रहे हैं, वे दोनों भी राज्य सरकार के इस फैसले से हक्का-बक्का हैं। पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार और पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव एन.बैजेन्द्र कुमार। इस तरह एक छत्तीसगढ़ी माटीपुत्र एस.एस. बजाज के काम को करीब से देखने वाले तीन मलयाली अफसर सरकार के इस फैसले से असहमत बताए जा रहे हैं, और दिल्ली में जयराम रमेश की असहमति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मामले में निलंबन के पीछे सोनिया गांधी के नाम के पत्थर को वजह बताया गया है, और सोनिया का नाम इस अप्रिय विवाद में बिना उनकी जानकारी के उलझ गया है।
किस्मत ने फिर साथ कर दिया...
बस्तर के सुकमा जिले के एसपी रहते हुए जितेन्द्र शुक्ला ने सीधे मंत्री कवासी लखमा को चि_ी लिख दी थी जिसे शासकीय नियम-कायदे के खिलाफ मानकर उनका वहां से ट्रांसफर कर दिया गया था। अब सरकार ने कुछ जिलों के एसपी बदले तो जितेन्द्र शुक्ला को महासमुंद का एसपी बनाया गया, और मजे की बात यह है कि वहां कवासी लखमा ही प्रभारी मंत्री हैं। चि_ी-पत्री की बात दोनों में से कोई भूले नहीं होंगे क्योंकि वह ताजा-ताजा मामला है।
कुछ जिलों से जब अफसरों के हटने की चर्चा होने लगती है तो वे राजधानी तक अपने खुद के बारे में कुछ सही-गलत खबरें भिजवाने लगते हैं। ऊपर जहां से तबादला तय होना है, वहां तक बात चली जाती है कि फलां अफसर या फलां नेता जिले से उस अफसर को हटाने पर आमादा हैं। अब राजधानी के लोग अपने हिसाब से तय करते हैं कि उन्हें नापसंद लोग अगर हटाना चाहते हैं, तो फिर उन्हें वहीं रहने देना चाहिए। आत्मरक्षा खरीदने के कई तरीके रहते हैं, यह उनमें से एक है।
ऐसे नाम कोई पिए तो कैसे पिए...
आबकारी कमिश्नर ने अभी कुछ दिन पहले शराबखाने चलाने वालों की एक बैठक बुलाई थी। उसमें लोगों ने अफसर को बताया कि देश के किसी भी प्रदेश में बार पर इतनी बड़ी लाईसेंस फीस नहीं है, इस तरह की बेतुकी और कड़ी शर्तें नहीं हैं। इन सबसे बढ़कर आज राज्य सरकार की दारू खरीदी नीति की वजह से बहुत ही घटिया शराब ब्रांड दुकानों पर भी हैं, और बार को भी सरकार से ही खरीदकर दारू बेचनी होती है। कुल मिलाकर ऐसे-ऐसे ब्रांड छत्तीसगढ़ में चल रहे हैं जिनके नाम भी किसी ने कभी सुने नहीं थे। पिस्टल, रिवाल्वर, रायफल, ये सब शराब के ब्रांड हैं जिनके बारे में किसी ने पहले न देखा-सुना था, न किसी को लगता था कि ऐसे ब्रांड की भी दारू बन सकती है, चल सकती है। ([email protected])
लालबत्ती नेता कहां हैं?
छत्तीसगढ़ में भाजपा का सदस्यता अभियान चल रहा है तो राजधानी रायपुर में कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एक बैठक में कार्यकर्ताओं ने पूछा कि उनके इलाके के जिन भाजपा नेताओं को पांच-दस साल लालबत्ती मिली हुई थी, वे अब पार्टी की सरकार जाने के बाद कहां हैं? उनमें से कुछ लालबत्तियों में तो पार्टी दफ्तर से सदस्यता की किताब भी नहीं ली है, यानी दिखावा भी शुरू नहीं किया है। ऐसी एक बैठक में एक कार्यकर्ता ने आठ-नौ लालबत्तियों के नाम गिनाते हुए कहा कि वे भी कुछ जिम्मेदारी लें। पार्टी के रणनीतिकारों की दिक्कत यह है कि पार्टी हाईकमान सदस्यता अभियान को लेकर गंभीर है और किसी तरह का फर्जीवाड़ा न हो, इसकी मानिटरिंग हो रही है। पिछली बार तो जितने सदस्य बनाए गए थे उतने वोट भी विधानसभा चुनाव में नहीं मिले।
छोटे नेता गए काम से...
इससे परे भाजपा के जिला स्तर के कार्यक्रमों में अब तक जिले के नेताओं को बोलने का मौका मिलता था, उससे उनकी हसरत भी पूरी होती थी, और वे बातों को सामने रख भी पाते थे। अब हालत यह है कि जिला स्तर के कार्यक्रम में भी भाजपा के प्रदेश स्तर के बड़े-बड़े नेता पहुंच जा रहे हैं, और डॉ. रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, विक्रम उसेंडी के रहते हुए मंच पर भी वही रहते हैं, और माईक पर भी। छोटी-छोटी हसरतें मुंह लटकाए बैठी रहती हैं, और घर चली जाती हैं। पार्टी के कुछ लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि बड़े-बड़े नेताओं को बहुत छोटे-छोटे कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए।
एसोसिएशन में सुगबुगाहट...
नया रायपुर में शिलान्यास पत्थर की उपेक्षा के आरोप में आईएफएस एस.एस. बजाज को निलंबित किया गया, तो सभी लोग हक्का-बक्का रह गए। ऐसे में जब दूर केरल में बैठे हुए प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव और नया रायपुर के प्रभारी रहे जॉय ओमेन ने जब संदेश भेजकर इस पत्थर वाली जगह को आईआईएम को देने की जिम्मेदारी खुद ली, और बजाज को उस मामले में निर्णायक न होना बताया, तो सरकार में एक परेशानी खड़ी हो गई। बरसों पहले रिटायर हो चुके जॉय ओमेन पर तो इस मामले को लेकर कोई कार्रवाई हो नहीं सकती, और उनके बयान के बाद बजाज के खिलाफ मामला पता नहीं कितना मजबूत बचेगा। इस मामले को लेकर आईएफएस एसोसिएशन में कुछ सुगबुगाहट हुई, लेकिन फिर मंत्री-मुख्यमंत्री के तेवर देखकर अभी तक तो बात आगे बढ़ी नहीं है।
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फेरबदल सबके लिए अच्छा...
पर्यटन मंडल में एमडी बनाए गए भीमसिंह ने शायद दो-चार दिन ही वहां काम किया, और वहां से निकल लिए। वे हाऊसिंग बोर्ड चले गए जो कि बहुत अच्छी हालत में तो नहीं है, लेकिन पर्यटन मंडल जैसी बुरी हालत में भी नहीं है। आज 17 तारीख हो गई है, और इस मंडल में अभी तक कर्मचारियों की तनख्वाह भी नहीं बंटी है। पिछले एमडी दूसरे मदों के पैसे तनख्वाह में डाल देते थे, और बाद में तनख्वाह के पैसे आने पर उन मदों की भरपाई कर दी जाती थी। भीमसिंह ने फाईल पर ही लिख दिया कि किसी दूसरे मद का पैसा वेतन पर खर्च न किया जाए। खुद तो चले गए, लेकिन यह हुक्म छोड़ गए। लेकिन इन तबादलों से एक बात अच्छी हुई कि हाऊसिंग बोर्ड में प्रबंध संचालक शम्मी आबिदी मार्कफेड चली गईं जहां काम अधिक है। भीमसिंह पर्यटन मंडल के मुकाबले अधिक काम वाले, चाहे ठप्प पड़े हुए, हाऊसिंग बोर्ड चले गए। और नई आईएएस बनीं इफ्फत आरा को पहली बार पर्यटन बोर्ड का प्रबंध संचालक बनने का मौका मिल गया। उनकी साख काफी अच्छी है। ऐसे में पर्यटन मंडल को उबारने का कठिन दायित्व उन पर है। इन दोनों मंडलों की दुर्दशा के लिए पिछली सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पर्यटन क्षेत्र को विकसित किए बिना होटल-मोटल निर्माण के नाम पर करोड़ों फूंक दिए गए। हाल यह है कि होटल-मोटल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हैं। निगम पर करोड़ों का बोझ पड़ा सो अलग। ऐसे में निगम का बंठाधार तो होना ही था। कुछ इसी तरह की कहानी हाउसिंग बोर्ड की भी है। बोर्ड का पुनर्गठन हुआ, तो अपनी लोक लुभावन स्कीम के चलते बोर्ड जल्द ही फायदे में आ गई। बोर्ड की पोस्टिंग को मलाईदार माना जाने लगा। लेकिन पिछले पांच सालों में अंधाधुंध मकान-काम्पलेक्स बनाए गए। ग्राहक तो नहीं मिले, अलबत्ता निर्माण के एवज में जमकर कमीशनखोरी हुई। हाल यह है कि नवा रायपुर में हजारोंं मकान खाली पड़े हैं और खरीददार नहीं मिल रहे हैं। बोर्ड कर्ज के भंवरजाल में फंस गया है। यहां तैनात रहे पदाधिकारियों और अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के ठोस प्रमाण भी मिले हैं और इसकी जांच ईओडब्ल्यू कर रही है। चर्चा है कि जांच ठीक से हुई तो, नेता प्रतिपक्ष भी तकलीफ में आ सकते हैं।
दारू की गड़बड़ी को बचाने...
प्रदेश के सबसे अधिक मंत्रियों, और मुख्यमंत्री वाले जिले दुर्ग की एक सरकारी शराब दुकान में प्लेसमेंट एजेंसी के कर्मचारी को दाम से काफी अधिक पर शराब बेचते हुए इलाके के लोगों ने घेर लिया, और उसकी पिटाई की तैयारी चल रही थी। प्रदेश की अधिकतर सरकारी दुकानों में ओवररेट पर दारू बिक रही है, और चूंकि पीने वालों के लिए किसी की हमदर्दी नहीं रहती, उनकी दिक्कत पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। ऐसे में जब एक कर्मचारी के पिटने की नौबत आ गई, तो पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उस दुकान से कर्मचारी को निकाला, और उसकी हिफाजत के लिए उसे थाने ले जाकर बिठा दिया। पिटाई से बचाने के लिए की गई यह कार्रवाई आबकारी विभाग को ऐसा परेशान कर गई कि उस कर्मचारी को पुलिस थाने से निकालने के लिए विभाग के कुछ सबसे बड़े अफसर फोन पर जुट गए। एक तरफ तो कागजों पर यह चेतावनी जारी होती है कि अधिक रेट पर शराब बेचते कोई मिले तो उसके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट की जाए, दूसरी तरफ जब कोई अधिक रेट पर बेचते ऐसे घिर गया, तो प्लेसमेंट एजेंसी के कर्मचारी को छुड़ाने के लिए सरकार और विभाग के दिग्गज जुट गए। अब ऐसे हाल में दारू अंधाधुंध मनमाने रेट पर नहीं बिकेगी, तो क्या होगा? यह भी सुनाई पड़ता है कि इस विभाग के एक बड़े अफसर ने अपने परिवार को पहले ही यूरोप में बसा दिया है, ताकि यहां मामला ज्यादा गर्म हो तो छोडक़र जाने में अधिक समय न लगे। भाजपा के लोग इस सरकार की आबकारी-गड़बडिय़ों को पकडऩे के लिए पिछली सरकार के आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल की तरफ देखते हैं जिन्हें इस धंधे की समझ दारू ठेकेदारों से बढक़र थी। लेकिन उनका मुंह इसलिए नहीं खुल रहा है कि उनके वक्त की फाईलों का समुद्र आज की सरकार के पास, और एसीबी में है जहां पर खरीदी की गड़बड़ी 1500 करोड़ रूपए आंकी गई है। अब ऐसी फाईलों के जखीरे के सामने अमर अग्रवाल का मुंह खुले भी तो कैसे खुले?
बजाज के साथ आए ओमेन
आखिरकार आईएफएस अफसर एसएस बजाज को निलंबित कर दिया गया। बजाज के निलंबन से प्रशासनिक महकमा सकते में है। उन पर नवा रायपुर के पौंता-चेरिया में नई राजधानी के शिलान्यास स्थल को आईआईएम को बेचने का आरोप है। बजाज की साख अच्छी रही है, ऐसे में कई पूर्व और वर्तमान अफसर उनके पक्ष में खड़े दिख रहे हैं। बजाज के साथ लंबे समय तक काम कर चुके पूर्व मुख्य सचिव और एनआरडीए के चेयरमैन पी जॉय ओमेन ने आईएएस अफसरों के एक वॉट्सऐप ग्रुप में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है और इस पूरे प्रकरण पर अपना रूख साफ किया है।
उन्होंने लिखा है-'मुझे यह सुनकर दुख हुआ कि एसएस बजाज को निलंबित कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ के मेरे कार्यकाल में वे मेरे देखे हुए सबसे अच्छे अफसरों में से एक रहे। वे शांत रहकर, लेकिन बहुत काबिल तरीके से नया रायपुर के सीईओ और टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग के संचाल के रूप में अपना योगदान देते रहे। आईआईएम रायपुर ने उस जगह की सुरक्षा और उसके रखरखाव पर सहमति दी थी जहां श्रीमती सोनिया गांधी ने शिलान्यास किया था। मेरा ख्याल है कि यह आईआईएम को जमीन आबंटन के समझौते में बहुत साफ-साफ दर्ज किया गया था कि शिलान्यास पत्थर की जगह को अलग से चिन्हित करके रखा जाएगा, और आईआईएम उसकी सुरक्षा करेगा। सच तो यह है कि आईआईएम को वह जगह आबंटित करने के पहले शिलान्यास स्थल की रक्षा करना बहुत मुश्किल था क्योंकि बहुत से लोग शिलान्यास को नुकसान पहुंचाने में लगे हुए थे।'
ओमेन से परे कई अफसर मानते हैं कि बजाज से कई बड़ी चूक हुई हैं। भले ही उनका इरादा किसी को फायदा पहुंचाने का नहीं था। इस प्रकरण से पहले कमल विहार परियोजना में भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी, और डायरेक्टर टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग को कटघरे में खड़ा किया था। बजाज उस समय डायरेक्टर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग थे। बजाज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने लिखा था कि उन्होंने आरडीए के सीईओ रहते हुए फाईलें भेजीं, और संचालक टाऊन प्लानिंग की हैसियत से उन्हें मंजूर किया। अब ऐसे दो पदों पर किसी एक अफसरों को रखने की यह गलती सरकार की थी, लेकिन उसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट की आलोचना बजाज को झेलनी पड़ी। अदालती फैसले के बाद उन्हें वहां से हटाकर व्यापमं भेज दिया गया। एनआरडीए से जुड़े लोग बता रहे हैं कि जमीन आबंटन में अनियमितता के कुछ और प्रकरण हैं जिसके कारण भी मौजूदा सरकार बजाज को बख्शने के मूड में नहीं थी। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू तो हर हाल में कार्रवाई चाह रहे थे। अब जब सोनिया गांधी के शिलान्यास स्थल को किसी दूसरे को देने का मामला आया तो मामला संवेदनशील हो गया और एक झटके में बजाज के निलंबन की अनुशंसा कर दी गई। बजाज की सारी अच्छी साख के बीच भी यह बात उनके खिलाफ गई कि वे सरकार की मर्जी पर मना नहीं कर पाए।
राज्य शासन के जानकार लोगों का देखा हुआ है कि किस तरह पिछले लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच भी एनआरडीए के प्रभारी मंत्री मोहम्मद अकबर अफसरों को फाईलों के साथ बुलाकर कई-कई घंटे उनमें छानबीन करते रहे। अब उस मेहनत पर फैसले हो रहे हैं।
कुछ और अफसर...
एसएस बजाज तो निपट गए, लेकिन कुछ अफसर गंभीर आरोपों के बाद भी सरकार का कोपभाजन बनने से बच गए। इन्हीं में से एक नए-नवेले आईएएस राजेन्द्र कटारा भी हैं। उन्हें जशपुर जिला पंचायत सीईओ के पद से हटाकर रायगढ़ में अपर कलेक्टर बनाया गया। सुनते हैं कि पिछले दिनों कटारा ने अपनी बेटी का जन्मदिन मनाने के लिए जशपुर के सरकारी स्वीमिंग पूल को बंद कर दिया था। रांची से खानसामे बुलाकर स्वीमिंग पूल में जोरदार तरीके से पार्टी मनाई। जशपुर में तैराकी का प्रशिक्षण देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर स्वीमिंग पूल बनाया गया है। बड़ी संख्या में तैराकी का प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन, अफसर की बेटी की जन्मदिन पार्टी के कारण एक दिन स्वीमिंग पूल बंद रहा। इसको लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी और शिकायत सरकार से भी की गई। मगर, थोड़ी बहुत नाराजगी के बाद कटारा को अभयदान दे दिया गया।
मुन्नीबाई का क्या हुआ?
प्रदेश में ही एक आईएफएस अफसर राजेश चंदेले का नाम भी बस्तर में सरकारी बंगले के अहाते में सरकारी खर्च से बनवाए गए स्वीमिंग पूल के लिए खबरों में रहा, लेकिन उसका क्या हुआ यह किसी को ठीक उसी तरह मालूम नहीं है जिस तरह बस्तर के भाजपा मंत्री केदार कश्यप की पत्नी की जगह पत्नी की बहन के इम्तिहान देने के मामले का। उस वक्त केदार की पत्नी की जगह मुन्नी बाई बनकर इम्तिहान देने वाली सरकारी कर्मचारी, पत्नी की बहन, लंबे समय तक गायब रहीं, और फिर मामले का कफन-दफन कर दिया गया था। सरकारों में होता यही है, जिस मामले को निकालना हो, उसके कंकाल कब्र से निकल आते हैं, और जिन्हें अनदेखा करना हो, वे मामला सहूलियत से दफन हो जाते हैं।
सड़क पर चलेगी ट्रेन?
सीएम भूपेश बघेल भ्रष्टाचार के प्रकरणों को लेकर सख्त दिख रहे हैं। आरडीए की समीक्षा बैठक में यह बात उभरकर सामने आई कि कमल विहार की एक सड़क पर ही 30 करोड़ रूपए खर्च किए गए, तो सीएम आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने पूछ लिया कि क्या सड़क पर ट्रेन चलाने की योजना है? चर्चा में यह भी बात सामने आई कि आरडीए में सलाहकारों को लाखों रूपए प्रतिमाह भुगतान हो रहा है। सीएम ने कहा कि जब कोई योजनाएं नहीं चल रही हैं, तो सलाहकारों को रखा क्यों गया है। अफसरों ने बताया कि पिछली सरकार ने लंबे अनुबंध पर सलाहकार रखे थे ऐसे में उन्हें हटाया नहीं गया। सीएम गरम हो गए, उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जिन्होंने ने भी अनाप-शनाप खर्च कर आरडीए को दिवालिया होने के कगार पर ला खड़ा किया है, ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाए।
कम से कम अपनी साख के लिए...
सोशल मीडिया पर आमतौर पर गंदगी अधिक फैलती है लेकिन कुछ अच्छी बातें भी इस पर तैरती हैं, और लोग अपने तजुर्बे को दूसरों से बांट सकते हैं, और कोई अच्छी पहल दूर तक जा सकती है। अभी किसी ने वॉट्सऐप पर एक तस्वीर भेजी है कि बारिश के वक्त बिजली के खंभों में कई जगह करंट आ जाता है। छोटे बच्चे नासमझी में ऐसे खंभों को छूते हैं, और हादसा हो जाता है। इससे बचने का एक सरल तरीका किसी ने निकाला है कि प्लास्टिक के पाईप को लंबाई में काट दिया जाए, और खंभों के इर्द-गिर्द उन्हें बांध दिया जाए। ऐसा करते हुए एक तस्वीर भी फैल रही है जिसे देखकर दूसरे लोग आसानी से ऐसा कर सकते हैं। जो लोग बड़ी लापरवाही से झूठ या गंदगी को आगे बढ़ाते हैं उन्हें अपने बारे में सोचना चाहिए और भली बातों को बढ़ाकर अपनी साख भी बेहतर करनी चाहिए।
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प्रमोशन मिला, ओहदा नहीं...
बड़े अफसरों के बीच अपनी बैच के साथी अफसरों के लिए अच्छी भावना प्रमोशन के दो मौकों के बीच बनी रहती है, लेकिन प्रमोशन के वक्त हर किसी को जंगल की जिंदगी की तरह अपनी खुद की परवाह करनी होती है। सरकार में ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए लोग चाहे किसी भी विभाग के हैं, किसी भी सेवा में हों, जब प्रमोशन का मौका आता है तो उनके बीच गलाकाट मुकाबला खड़ा हो जाता है। पिछले कुछ बरसों में छत्तीसगढ़ में एक साथ तीन-तीन, या उससे भी अधिक लोगों के प्रमोशन का मौका आया, और लोग इस गलाकाट मुकाबले में बेचैन होते दिखे। फिलहाल सबसे ताजा मामला पुलिस में तीन नए बने एडीजी का है, जिन्हें ओहदा तो मिल गया है, लेकिन नई कुर्सियां नहीं मिली हैं। अब इतनी ऊंची कुर्सियां राज्य में हैं तो सही, खाली भी हैं, लेकिन सरकार भी फैसला लेने में खासा वक्त ले रही है, सबके सामने कुछ न कुछ चुनौतियां रखी गई हैं कि उन पर खरा उतरकर दिखाएं। सरकारी नौकरी में प्रमोशन तो आगे-पीछे हक से मिल सकता है, लेकिन उस दर्जे की किस कुर्सी पर बिठाना है, यह तो सरकार का विशेषाधिकार रहता है। फिलहाल पुलिस के तीनों लोग प्रमोशन के पहले की कुर्सियों पर ही बैठे हैं।
ओवैसी से सामना
संसद भवन में तेजतर्रार मुस्लिम सांसद असउद्दीन ओवैसी के साथ बातचीत में मशगूल पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा की हंसती-मुस्कुराती तस्वीर वायरल हुई, तो भाजपा के कई कार्यकर्ता नाराज हो गए और सोशल मीडिया में अपने नेताओं को जमकर कोसा था। लेकिन पिछले दिनों सांसद सुनील सोनी, असउद्दीन ओवैसी से भिड़ गए।
मौका था एनआईए विधेयक पर चर्चा का। ओवैसी ने लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान हरेक प्रावधान का कड़ा विरोध किया और विधेयक को अल्पसंख्यक विरोधी तक करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार अगर आतंकवाद के खिलाफ गंभीर है तो फिर वे मक्का मस्जिद ब्लास्ट, समझौता ब्लास्ट और अजमेर ब्लास्ट के खिलाफ अपील क्यों नहीं करते। आरोप लगाया कि इनका अप्रोच उस समय सॉफ्ट होता है जब पीडि़त मुसलमान हो और आरोपी हिन्दू। आतंकी गतिविधियों की जांच के लिए एनआईए को और अधिकार दिए जाने के इस विधेयक पर उनके तर्क सुनील सोनी को बर्दाश्त नहीं हुए।
सुनते हैं कि बिल पास होने के बाद संसद भवन के सेंट्रल हॉल में जब ओवैसी बैठे थे, तो सुनील सोनी उनके पास पहुंचे और कहा कि आप जैसों के कारण आम देशभक्त मुसलमानों को कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। इस पर ओवैसी भी भड़क गए और उन्होंने सुनील सोनी को तीखे स्वर में कहा कि आप मुझे समझाएंगे? इस पर सोनी ने उन्हें कहा कि वे समझा नहीं रहे हैं, बता रहे हैं। यह कहकर वहां सेे निकल गए।
कैमरे की चतुराई...
जो लोग मीडिया के काम बारीकी से नहीं देखते उन्हें यह अंदाज नहीं लगता कि किसी जगह पर भीड़ या जुलूस का आकार क्या है। मीडिया के कैमरे और उनके पीछे के लोग इस बात को जानते हैं कि जिन नजारों को वे कैमरों में कैद कर रहे हैं, वे अगर बड़े न दिखे, तो फिर मीडिया पर या मीडिया में दिखेंगे भी नहीं। इसलिए अपने काम की मौजूदगी दर्ज कराने के लिए उन्हें उस घटना को महत्वपूर्ण और बड़ा भी बताना होता है, जिसे दर्ज करने के लिए उन्होंने वक्त लगाया है, और दिन भर के अपने काम को दिखाने के लिए उन्हें यह छपने लायक या प्रसारित होने लायक भी साबित करना है। नतीजा यह होता है कि कैमरों के पीछे के चतुर लोग उसी भीड़ को अलग-अलग तरफ से दिखाकर उसे महत्वपूर्ण बता सकते हैं। जिस तस्वीर या वीडियो में कैमरा लोगों के सिर के नीचे की ऊंचाई पर रहे, वहां जान लीजिए कि भीड़ बहुत कम है, गिने-चुने सिर और गिने-चुने पोस्टर अधिक दिखाने के लिए कैमरे को नीचे रखा जाता है। और जब भीड़ सैलाब की तरह बड़ी हो तो फोटोग्राफर किसी इमारत की छत पर पहुंच जाते हैं और जनसैलाब को दिखाने लगते हैं। भीड़ कम तो कैमरे की ऊंचाई कम, और भीड़ अधिक तो कैमरे की ऊंचाई अधिक। अब उत्तरप्रदेश के बलात्कार-हत्या के आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के समर्थकों ने अभी उन्नाव में अपने विधायक की बेकसूरी का दावा करते हुए एक जुलूस निकाला, तो कैमरे की ऊंचाई लोगों के कंधों से ऊपर नहीं जा पाई, मतलब यही कि भीड़ महज कुछ सिरों की थी, और पीछे का खाली हिस्सा दिखता तो भला कौन सा अखबार इस तस्वीर को जगह देता, या कौन सा चैनल ऐसे वीडियो को दिखाता। इसलिए फोटोग्राफर और कैमरापर्सन के अपने पापी पेट का सवाल रहता है, और वे इस छोटी सी तरकीब को इस धंधे में आते ही सीख लेते हैं।
पत्रकारिता विवि में संघीय राजनीति
कुशाभाई ठाकरे पत्रकारिता विवि में सरकार बदलने के बाद सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। तभी तो कुलपति नप गए और अब कुलसचिव को निपटाने की जोर आजमाइश हो रही है। दरअसल, बीजेपी के राज में संघ से जुड़े शिक्षकों और कर्मचारियों ने खूब जलवा काटा, अब सरकार बदल गई तो उन्हें बदलने में समय तो लगेगा, लेकिन इतने बरस की भाई साहब वाली आदत आसानी से कहां छूटने वाली है। जहां भी अपनी बिरादरी का कोई दिखता है, प्रेम छलकने लगता है। इसी प्रेम ने वहां एक बार फिर संघ के विचारधारा वाले लोगों की एंट्री के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दिया। अब जब मामला खुल गया तो वहां के एक बड़े गुरुजी पूरा ठीकरा कुलसचिव पर फोडऩे की मुहिम में लग गए हैं। विवि के शिक्षकों का कहना है कि दरअसल बड़े गुरूजी कुलसचिव बनने की फिराक में है, इसलिए कुलसचिव को दांव पेंच में उलझाकर सरकार के सामने उनकी छवि खराब करना चाहते हैं, ताकि सरकार की नाराजगी के चलते उनकी रवानगी हो जाए। इसलिए वो उनके खिलाफ खबरें प्लांट करवाने में लगे रहते हैं। अब उनकी यह पोल भी खुलने लगी है। अब बेचारे बड़े गुरुजी अपने अरमानों का गला घुटते देख मुंह लटकाए घूम रहे हैं। पत्रकारिता पढ़ाने वाले बड़े गुरूजी की दाल नहीं गलने पर वहां के कर्मचारी भी खूब मजे ले रहे हैं। ([email protected])
माणिक मेहता का ताजा निशाना
छत्तीसगढ़ के ताजा हालात देखने वाले लोगों को माणिक मेहता का महत्व मालूम है। माणिक की बहन से प्रदेश के सबसे चर्चित और विवादास्पद पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता ने शादी की थी, और मिकी मेहता की मौत के बाद माणिक लगातार मुकेश गुप्ता के खिलाफ सरकार से लेकर अदालत तक की लड़ाई लड़ रहे थे। मुकेश गुप्ता के शासनकाल में माणिक मेहता को सही-गलत कई किस्म के मामलों में गिरफ्तार करके जेल भी भेज दिया गया था, और वे अपनी माँ सहित प्रदेश के सबसे प्रताडि़त लोगों में से एक थे। अब जब भूपेश सरकार ने इस राज्य में पहली बार मुकेश गुप्ता पर कानूनी कार्रवाई शुरू की है, तो माणिक मेहता का महत्व एकदम से बढ़ गया है। बरसों पुरानी शिकायतें भी उनकी हैं, और वे सबसे बड़े गवाह भी हैं, और उनके पास कई सुबूत भी हैं। लोग मुकेश गुप्ता की आंधी चलने के दौर में माणिक से बात करने से भी कतराते थे क्योंकि माणिक और उनकी माँ के फोन पूरे वक्त टैप होते रहते थे। अब वे इस सरकार में एक आजाद नागरिक की तरह काम कर रहे हैं, और सरकार के कुछ लोगों के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिख भी रहे हैं। कल ही उन्होंने राहुल गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के ट्विटर अकाउंट को टैग करते हुए छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े पुलिस अफसर पर हमला बोला है।
डीजीपी डी.एम. अवस्थी के पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के वक्त के हिसाब-किताब पर सीएजी की आपत्तियों को गिनाते हुए उन्होंने राहुल गांधी से पूछा है कि जिस भ्रष्टाचार में राज्य सरकार ने ईओडब्ल्यू-एसीबी को जांच के आदेश दे दिए हैं, उस जांच से डी.एम. अवस्थी का नाम क्यों हटा दिया गया है? कांगे्रस और राहुल से माणिक मेहता ने सवाल किया है कि क्या कांगे्रस भी छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह सरकार के रास्ते पर चलेगी जिससे कि इस पार्टी का राज्य में शर्मनाक सफाया हो गया? राहुलजी, कब होगा न्याय?
माणिक ने पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के हिसाब-किताब पर सीएजी की रिपोर्ट के पन्ने भी ट्विटर पर डाले हैं जो बड़ी आर्थिक अनियमितता के आंकड़ों के हैं। अब जानकार लोग माणिक के पीछे की ऐसी वर्दीधारी ताकतों के नाम की अटकलें लगा रहे हैं जिन्हें डी.एम. अवस्थी से कोई हिसाब चुकता करना है। डी.एम. अवस्थी का मानना है कि इस राज्य में अकेले माणिक मेहता को ही पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार दिखता है।
सूझा, मगर बहुत देर से...
सरकारी बंगलों के लिए खींचतान मची हुई है। कांग्रेस के कई विधायकों को बंगला आबंटित किया गया है। चूंकि मंत्री तो बनाया नहीं जा सकता था। वरिष्ठता देखकर बंगला ही दिया गया है। इसके बाद भी कई इंतजार में हैं। निगम-मंडल अध्यक्षों की घोषणा के बाद मारकाट और बढऩे वाली है। सुनते हैं कि जिला पंचायत अध्यक्ष शारदा वर्मा को उनके पांच साल के कार्यकाल के आखिरी बरस में, अभी कुछ महीने पहले सिविल लाइन में बंगला आबंटित किया गया था, वे उस बंगले में जाने ही वाली थीं कि उसे अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम को दे दिया गया। जबकि शारदा वर्मा का कार्यकाल कुछ माह बाकी है। इससे परे पूर्व सांसद रमेश बैस त्रिपुरा के राज्यपाल बन गए हैं, लेकिन सरकारी बंगले पर उनका कब्जा बरकरार है।
सरकारी बंगले का मोह पालने वाले राजनेताओं को दिवंगत सुषमा स्वराज से सीख लेनी चाहिए। सुषमा मंत्री पद से हटते ही तीन घंटे के भीतर सरकारी बंगला खाली कर एक तीन कमरे के निजी फ्लैट में रहने चली गई थीं। सुनते हैं कि कई सांसदों ने उन्हें अपने नाम पर बंगला आबंटित कराकर उसमें ही रहने का आग्रह किया था। कई केन्द्रीय मंत्रियों ने भी उन्हें इसी तरह का सुझाव दिया था, लेकिन वे नहीं मानीं। सुषमा ने तो सरकारी बंगले में रहने के लिए दबाव बना रहे सांसद मनोज तिवारी को झिड़क तक दिया और कहा कि सभी पूर्व लोग सरकारी बंगले में रहेंगे, तो वर्तमान लोग कहां जाएंगे। उनका मानना था कि पद से हटने के बाद सरकारी सुविधाएं नहीं लेनी चाहिए।
दो दिन पहले रायपुर के भाजपा कार्यालय में सुषमा स्वराज की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा हुई तो भाजपा नेता-कार्यकर्ता उमड़ पड़े। इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने याद किया कि किस तरह सुषमा स्वराज ने तुरंत ही सरकारी बंगला खाली कर दिया था। वहां मौजूद भाजपा के एक नेता ने बाहर निकलकर एक अखबारनवीस से कहा कि डॉक्टर साहब को कुछ महीने पहले यह बात सूझ गई होती तो वे मुख्यमंत्री निवास में महीनों तक नहीं रहते जिसे लेकर नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी बोलने का मौका मिला था। इन महीनों में भूपेश राज्य अतिथि गृह पहुना में रहकर काम कर रहे थे।
सोनिया से बड़ी उम्मीदें
सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष चुन ली गईं। पार्टी के एक बुजुर्ग नेता मानते हैं कि राजीव गांधी के बाद सोनिया ही पार्टी की सबसे सफल अध्यक्ष रही हैं। राजीव के बाद नरसिम्ह राव और सीताराम केसरी पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहे। मगर सोनिया के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई। केन्द्र में कांग्रेस की 10 साल गठबंधन सरकार रही, 16 राज्यों में कांग्रेस-गठबंधन की सरकार रही, लेकिन राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो पाई। सिर्फ चार राज्यों में ही सरकार रह गई है। ऐसे में सोनिया की वापसी से कांग्रेस उम्मीद से है। छत्तीसगढ़ के लोगों को यह भी लग रहा है कि सोनिया युग की इस दूसरी किस्त में पहली किस्त के सबसे करीबी रहे मोतीलाल वोरा का महत्व भी खासा बढ़ जाएगा, एक बार फिर से।
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हिंदुस्तानी लोगों की कचरा पैदा करने और उसे साफ-सुथरी जगह पर फैलाने की क्षमता दुनिया में सबसे अधिक है। लोगों के मन में अपनी इस कचरा-संस्कृति के लिए राष्ट्रवाद इतना मजबूत है कि अगर कुछ समय तक गंदगी न फैला सके तो उन्हें लगता है कि वे पाकिस्तानी हो गए हैं। ऐसे में हर कोई साफ जगह को गंदा करने में मुफ्त ओवरटाईम करने के लिए भी तैयार रहते हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के अकेले संग्रहालय के अहाते में साज-सज्जा के लिए कुछ मूर्तियां लगाई गई हैं जिनमें से एक में एक महिला कुछ पढ़ते हुए दिखती है। अब प्रतिमा में बनी यह किताब एक सपाट सतह है, और अगर उस पर गंदगी न हो, तो यह लोगों के स्वाभिमान पर, उनके राष्ट्रवाद पर चोट करने वाली बात हो जाती है। इसलिए लोगों ने उसका इस्तेमाल कचरा लादने के लिए कर रखा है। आसपास कचरा डालने के लिए कई जगहें हैं, लेकिन उसमें कचरा डालने का भला क्या मजा? गंदगी में जीने में हिंदुस्तानियों ने एक महारत हासिल कर रखी है, और यह एक राष्ट्रीय गौरव की बात भी समझी जाती है।
डर्टी पिक्चर की जमकर चर्चा
छत्तीसगढ़ में डर्टी पिक्चर के विलेन सकपकाए हुए हैं। दरअसल, राज्य में सरकार बदलते ही इसकी जांच तेज होने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन इस बीच लोकसभा के चुनाव आ गए और जांच आगे बढ़ नहीं पाई, तो इस गोरखधंधे में शामिल लोगों ने राहत की सांस ली। अब फिर से उनकी सांस फूलने लगी है, क्योंकि सरकार ने अपने एजेंडे के मुताबिक डर्टी पिक्टर के निर्माता निर्देशकों की धरपकड़ और पूछताछ शुरू कर दी है। ऐसे ही एक नामीगिरामी और धन्ना सेठ को पुलिस ने नोटिस जारी किया। हालांकि वे शहर से बाहर होने के कारण पूछताछ के लिए पुलिस के समक्ष हाजिर नहीं हुए। उनके परिवार के लोगों ने भरोसा दिलाया है कि शहर में आते ही वे पुलिस के समक्ष उपस्थित हो जाएंगे। खैर, वे आते हैं या नहीं यह दीगर बात है, लेकिन उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि पुलिस का सामना करने से पहले वे जुगाड़ तंत्र में लगे हुए हैं। यह बात भी जगजाहिर है कि उन्हें अपने नाथ और बाबा का सहारा मिलता रहा है। इस बार भी वे अपने नाथ और बाबा को पुकार रहे हैं। अब देखना यह है कि उन्हें कहां से कितना सहारा मिलता है, लेकिन इतना तो तय है कि डर्टी पिक्चर से प्रताडि़त लोग चुटकी ले रहे हैं कि अब तेरा क्या होगा।
लेकिन कुछ और डर्टी पिक्चरें पिछली सरकार के कार्यकाल में जनसंपर्क विभाग के पैसों से बनाने की चर्चा रही और उसका स्टिंग ऑपरेशन भी हवा में तैरता रहा। उस चर्चा के मुताबिक राज्य के दर्जन भर प्रमुख पत्रकारों का भी स्टिंग एक विदेशी सेक्स-पर्यटन केंद्र पर बनने की चर्चा रही, और लोग मजा लेकर उसका भी इंतजार करते रहे। फिलहाल भाजपा के भीतर सरकारी सेक्स-सीडी के स्टिंग को लेकर राजनीति चल रही है, और दिल्ली में बड़े नेताओं के सामने पिछली सरकार का यह कारनामा भाजपा के लोग ही पेश कर रहे हैं।
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पुलिस से विधायक की ओर?
प्रदेश में विधानसभा की दो खाली सीटों के लिए उपचुनाव अक्टूबर में संभव है, लेकिन पार्टियों में योग्य प्रत्याशियों की खोजबीन चल रही है। सुनते हैं कि भाजपा के रणनीतिकारों की निगाह एक पुलिस अफसर पर है, जो कि बस्तर में लंबे समय तक काम कर चुके हैं और वे वहां के रहने वाले भी हैं। पुलिस अफसर इन दिनों दुर्ग संभाग के एक जिले में बतौर पुलिस अधीक्षक के पद पर हैं। अफसर की साख अच्छी है और पार्टी उन्हें चित्रकोट विधानसभा से प्रत्याशी बनाना चाहती है।
कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में भी उक्त अफसर को प्रत्याशी बनाने पर विचार किया गया था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। दिक्कत यह है कि उपचुनाव में बहुत कम ऐसा होता है जब सत्तारूढ़ दल के खिलाफ वोटिंग होती है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद कोटा विधानसभा उपचुनाव में उस समय कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती डॉ. रेणु जोगी ने सत्तारूढ़ दल भाजपा के प्रत्याशी को जरूर हराया था, लेकिन इसके बाद हुए उपचुनावों में सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवारों को ही जीत मिली। यह सब देखकर नौजवान पुलिस अफसर भाजपा प्रत्याशी बनने के लिए तैयार होंगे या नहीं, यह भी अभी साफ नहीं है।
सिटी सेंटर की कब्र के कंकाल...
सिटी सेंटर मॉल के गड़बड़झाले की जांच जल्द शुरू होगी। सुनते हैं कि जांच ठीक-ठाक हुई, तो दो आईएएस अफसरों का लपेटे में आना तय है। इनमें से एक अफसर का तो इस बात को लेकर खूब प्रचार हुआ था कि वे एक रूपए वेतन लेते हैं, मगर ऐसा नहीं था। अफसर ने मॉल निर्माण में अनियमितता को अनदेखा किया, इसके एवज में यूरोप घूम आए। इस प्रकरण में एक आईएफएस अफसर भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। वजह यह है कि मॉल संचालकों ने करीब 10 करोड़ की जमीन दबाई है, लेकिन इस पर कार्रवाई की बात आई तो आईएफएस अफसर ने रोड़ा अटका दिया। कुल मिलाकर अफसर मॉल संचालक पर काफी मेहरबान रहे हैं और यह मेहरबानी उन्हें भारी पड़ सकती है। जिस आरडीए के तहत यह मॉल था, वहां के अफसर इसे बनाने-चलाने का ठेका लेने वाली कंपनी की एक महिला से सहमे हुए रहते थे। वह नागपुर से यहां आती थी, और अफसरों की बॉस बनकर उन पर हुक्म चलाती थी। उस वक्त इतने बड़े-बड़े नेताओं के नाम इस कंपनी से उपकृत होने वालों में गिने जाते थे, कि छोटे-छोटे अफसरों की इस महिला के सामने कोई औकात ही नहीं रह गई थी। यह अलग बात है कि अब उस कंपनी के किए हुए गलत कामों की जांच हो रही है, तो उस वक्त इससे कमाने-खाने वाले नेताओं की चर्चा भी नहीं हो रही। सरकारी संपत्ति के लूटपाट में सबकी दिलचस्पी रहती है क्योंकि सब जानते हैं कि कद्दू कटेगा, तो सबमें बंटेगा।
कुलसचिव का दर्द
छत्तीसगढ़ के इकलौते पत्रकारिता विवि में आरएसएस से जुड़े लोगों की बैकडोर एंट्री की खबर से राज्य सरकार के नुमाइंदों ने आंख दिखाई है। दरअसल, माजरा यह है कि विवि में पिछले दिनों अतिथि शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले गए। इसके बाद दावा आपत्ति के लिए प्रतीक्षा सूची जारी की गई तो पूरा मामला खुला और यह बात मीडिया के लोगों तक पहुंची कि प्रतिक्षा सूची में शामिल कई नाम ऐसे हैं, जो या तो आरएसएस के लोग हैं या फिर विवि प्रशासन के चहेते हैं। मीडिया के जरिए यह बात सरकार तक पहुंची, तो राज्य सरकार और विवि के बीच समन्वय काम देख रहे युवा कार्यकर्ता विवि पहुंचे। उन्होंने बंद कमरे में विवि के कुलसचिव से लंबी चर्चा की। वहां तो युवा समन्वयक कुलसचिव को जमकर खरी खोटी सुनाई कि कैसे यहां संघ पृष्ठभूमि के लोगों को एडजस्ट किया जा रहा है। इस पर कुलसचिव साहब की तो बोलती बंद होनी ही थी।
खैर, खरी खोटी सुनने के बाद कुलसचिव ने मन हलका करने के लिए यह बात वहां के एक-दो कर्मचारियों और शिक्षकों को बताई कि कैसे समय बदलता है। ये वही युवा समन्वयक है जो घंटों उनके साथ बैठते उठते थे और सर, सर का संबोधन करते थे आज वही उनके साथ ऐसा कर रहे हैं। दरअसल, इस विवि के कुलपति इसी चक्कर में निपट गए कि उनके कार्यकाल में संघ से जुड़ी गतिविधियां विवि में होती थी और जब इस पर आपत्ति जताने छात्र कांग्रेसी पहुंचे तो उलटे उनकी पिटाई हो गई। अपने ही कार्यकर्ताओं की पिटाई से गुस्साई सरकार के नुमाइंदों ने कुलपति को रातों-रात निपटा दिया, लेकिन आश्चर्य इस बात की है कि कुलसचिव को तो इस सरकार के लोगों ने अपना आदमी समझकर बिठाया है, इसके बावजूद उनकी भाई साहब वाली आदत गई नहीं, तो सरकार को संभलना पड़ेगा।
अब इस फटकार के बाद कुलसचिव कितना सबक लेते हैं, यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन विवि के जानकारों का कहना है कि अगर उन्हें अपना ठाठ बाट की चिंता होगी, तो वे जरुर ऐसी गलती दोहराएंगे नहीं, क्योंकि कुलसचिव महोदय फिलहाल विवि के 6 बैडरूम के बंगले में रहते हैं। दो-दो कारें सहित चमन गुलजार रहे इसके लिए माली और खानसामा सहित दस से बारह नौकरों का सुख भोग रहे हैं।
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छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में रात 2 बजे लुटेरे एक पूरा का पूरा एटीएम उखाड़कर ले गए जिसमें साढ़े 26 लाख रुपये थे। वह एटीएम एसबीआई का था, और रायपुर में आज सुबह टिकरापारा इलाके में एसबीआई के एक दूसरे एटीएम में मानो उसकी रक्षा करने के लिए नंदी ने डेरा डाल दिया था कि उसे कोई लूट न ले। तस्वीर /छत्तीसगढ़ / अनुराधा गुप्ता
दारू, कंडोम, सेनेटरीपैड भी चिप्स से...
जब गड़े हुए मुर्दे उखड़ते हैं, तो उनके साथ कई पुरानी चाही-अनचाही बातें भी उजागर होती हैं। दुनिया के एक सबसे पुराने जोड़े के कंकाल की तस्वीर चारों तरफ फैली हुई है जिसमें एक आदमी और औरत अगल-बगल एक-दूसरे से लिपटे-लिपटे ही दफन हो गए थे, और अब उनके कंकाल उसी तरह दिखते हैं। लोगों को क्या पता था कि सैकड़ों या हजारों बरस बाद उनके कंकाल की निजता भी इस तरह खत्म होगी।
किसी सरकारी भ्रष्टाचार की जांच कुछ इसी तरह की होती है। जब कहीं छापा पड़ता है, तो एक-एक आलमारी और दराज, और गद्दों के नीचे पलंग के बक्सों तक की तलाशी ली जाती है, और एक-एक सामान दर्ज होता है। कुछ लोगों के घर से कोई सेक्स-सीडी निकल आती है तो वह भी दर्ज होती है। अब इन दिनों छत्तीसगढ़ में पिछली रमन सरकार के कार्यकाल के कई मामलों की ईओडब्ल्यू-एसीबी जांच चल रही है। इसमें राज्य सरकार की कम्प्यूटर-इलेक्ट्रॉनिक्स मामलों की एजेंसी, चिप्स की जांच में छापे तो नहीं पड़े हैं, लेकिन फाईलें जब्त हुई हैं। अंधाधुंध खरीदी भी दर्ज हुई है। एक नौजवान आईएएस अफसर ने किस तरह अपने अंधाधुंध बड़े दफ्तर के लिए 20-25 लाख का सोफा खरीद लिया, लाखों का एक झूला खरीद लिया, और दफ्तर की साज-सज्जा शाही तरीके की करवा ली। अब भूपेश सरकार के जो लोग वहां बैठकर काम कर रहे हैं, उनकी मजबूरी है कि उन्हीं सामानों के साथ काम करें, हालांकि वे ऐसी शान-शौकत के आदी नहीं हैं, लेकिन अधिक सादगी का सामान खरीदने में और खर्च होगा, इसलिए वे सामान वहीं पड़े हैं, बस झूला वगैरह खोलकर रखवा दिया गया है जो कि सरकारी खर्च पर गरीब जनता के साथ एक अश्लील और हिंसक प्रदर्शन था।
जांच करने वाली एजेंसी के अधिकारियों ने चिप्स की जो फाईलें और जो बिल जब्त किए हैं, उन्हें देखकर वे हक्का-बक्का हैं। करोड़ों के गलत खर्च तो हुए ही हैं, लोगों को अंधाधुंध मेहनताने पर रखा गया, और बिना किसी काम के उनको दसियों लाख का भुगतान भी किया गया। बिना किसी वर्कऑर्डर या नियुक्ति पत्र के एक सलाहकार को 50 लाख रूपए दे दिए गए। महंगे सामानों के लिए दूसरे प्रोजेक्ट से रकम ट्रांसफर की गई दूसरे मदों में। झूठे सर्टिफिकेट के आधार पर नियुक्ति की गई। लेकिन इसके साथ-साथ कुछ छोटे-छोटे बिल ऐसे थे जो चौंकाने वाले थे, और अफसरों की सोच को बताने वाले भी थे। कुछ दारू के बिल हैं, कुछ बिल सेनेटरी पैड और कंडोम जैसे सामानों के भी हैं। अब जांच करने वाले अफसर इस बात पर हैरान हैं कि इस पर पूछताछ आगे बढ़ाई जाए, या शर्म खाकर इसे अनदेखा कर दिया जाए। दर्जनों करोड़ की अफरा-तफरी, और हजारों करोड़ के टेंडरों में गड़बड़ी के बीच इन सामानों के बिल छोटे जरूर लग सकते हैं, लेकिन ये अफसरों की सोच बताते हैं।
वैसे ईओडब्ल्यू-एसीबी के जांच अफसरों का मानना है कि उनके पास इतनी बड़ी टीम नहीं है कि वह राजस्थान के भाजपा विधायक की तरह जेएनयू में इस्तेमाल किए हुए कंडोम गिनते बैठे।
इस धर्म के ही अनचाहे बच्चे...
अभी राजधानी रायपुर के किनारे पर लगे हुए नंदनवन के रास्ते में सड़क किनारे फेंके गए एक नवजात शिशु की जिंदगी पुलिस ने बचाई, और उसे एम्स में भर्ती कराया। बच्चे की मां या परिवार ने तो उसे मरने के लिए ही फेंक दिया था क्योंकि जिंदा रखने के लिए उसे फेंका जाता तो किसी सुरक्षित जगह पर छोड़ा जाता, जहां कुत्ते उसे खाकर खत्म कर दें, वहां तो उसे जिंदा रखने के लिए फेंका नहीं गया होगा। इसे देखकर विवेकानंद आश्रम, रामकृष्ण मिशन से जुड़े एक प्रमुख हिन्दू व्यक्ति ने कहा- जिस जगह इसे फेंका गया है, उसके आसपास दूर-दूर तक कोई गैरहिन्दू बस्ती नहीं है। उन्होंने कहा कि अनचाहे बच्चों के पैदा होने पर उन्हें इस तरह फेंकने के जितने मामले सामने आते हैं, वे तमाम हिन्दू बस्तियों के आसपास के होते हैं। इस बारे में लोगों को सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों होता है? खासकर हिन्दुओं को सोचना चाहिए कि ऐसे बच्चों को बचाने का सबसे बड़ा काम इस देश में मदर टेरेसा की संस्था ने किया, और उसके मुकाबले कोई हिन्दू संगठन कभी कोशिश करते नहीं दिखा। बस फेंके गए बच्चे ही हिन्दू बस्तियों के आसपास के रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जन्म पूर्व बच्चों के लिंग निर्धारण की जांच करवाने वालों में सबसे अधिक हिन्दू ही हैं, और सबसे अधिक गर्भपात भी इसी समाज में करवाया जाता है, लड़कों की चाह में अजन्मी लड़कियां मारी जाती हैं।
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सिंहदेव से मिलना मुश्किल
टीएस सिंहदेव से प्रदेश के बड़े व्यापारी नेता निराश हैं। सिंहदेव के पास वाणिज्य कर (जीएसटी) का प्रभार है, लेकिन व्यापारी नेताओं को लगता है कि वे उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कुछ ठोस नहीं कर रहे हैं। जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्य का पक्ष रखने के लिए सुझाव देने गए चेम्बर पदाधिकारियों की सिंहदेव की व्यस्तता के चलते से मुलाकात नहीं हो पाई, जबकि चेम्बर के पदाधिकारी, कर सलाहकार और एक-दो विशेषज्ञों को लेकर गए थे। मंत्रियों के स्टाफ का हाल यह है कि वे ट्रांसफर-पोस्टिंग की दूकान खोलकर बैठे हैं।
हालांकि बाद में सिंहदेव की तरफ से मैसेज आया कि रात को 10 बजे के बाद आरकेसी गेस्ट हाउस में मिल सकते हैं, परन्तु व्यापारी नेताओं ने हाथ जोड़ लिए। ऐसा नहीं है कि सरकार, व्यापारियों की समस्याओं के निराकरण में रूचि नहीं ले रही है। कुछ व्यापारी नेता मानते हैं कि पिछली सरकार से ज्यादा बेहतर काम अभी हो रहा है। खुद सीएम भूपेश बघेल, व्यापारी नेताओं से खुलकर मिलते हैं और चेम्बर के पूर्व अध्यक्ष पूरन लाल अग्रवाल का सार्वजनिक तौर पर पैर छूने से गुरेज नहीं करते। कुल मिलाकर व्यापारी नेता, सीएम के व्यवहार और कामकाज के तौर-तरीकों से काफी खुश हैं। मगर, जीएसटी से जुड़े मसले पर सिंहदेव का सहयोगात्मक रूख जरूरी है, जो उन्हें नहीं मिल रहा है। राज्य की उपेक्षा के चलते चेम्बर के पदाधिकारियों ने दिल्ली में भाजपा के सांसदों से भी गुहार लगाई है। भाजपा सांसदों की पहल का नतीजा यह रहा कि केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर जल्द ही छत्तीसगढ़ दौरे पर आएंगे और व्यापारियों से रूबरू होंगे।
लोगों को बेसहारा छोड़ गए
राज्यसभा सदस्य भुबनेश्वर कलिता के पार्टी छोड़ देने से प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं को झटका लगा है। कलिता छत्तीसगढ़ विधानसभा प्रत्याशी चयन के लिए गठित छानबीन समिति के चेयरमैन थे और प्रत्याशी चयन में उनकी अहम भूमिका थी। सुनते हैं कि उस वक्त कई दावेदारों ने टिकट के लिए कलिता का काफी सेवा-सत्कार किया था। टिकट नहीं मिली, तो भी ये नेता उम्मीद से थे कि कलिता की सिफारिश पर निगम-मंडलों में जगह मिल जाएगी। परन्तु अचानक धारा-370 के मुद्दे पर ये असमिया नेता, इन नेताओं के सपनों पर पलीता लगाकर निकल लिए।
सत्ता देखी है, मुसीबत नहीं...
इस सरकार के मंत्रियों ने अभी तक सिर्फ सत्ता देखी है, किसी मुसीबत के वक्त लोगों के जिस साथ की जरूरत होती है, उसकी अहमियत उन्हें समझ नहीं आई है। पिछली सरकार में जो मंत्री अलग-अलग समय पर परेशानी में पड़े, उन्हें मीडिया की जरूरत भी समझ आ गई, और दूसरे प्रभावशाली तबकों के बीच अपनी साख ठीक रखने की जरूरत भी दिख गई। आज कई मंत्रियों को मीडिया के लोगों के फोन का जवाब देना भी जरूरी नहीं लग रहा है। उन्हें बृजमोहन अग्रवाल जैसे पिछले मंत्रियों से यह नसीहत लेना चाहिए कि एकदम मुसीबत के वक्त दोस्ती नहीं खरीदी जा सकती। जो लोग पांच बरस के कार्यकाल के लिए हैं, उन्हें अनदेखा करना अपनी मुसीबत के वक्त एक संभावित मदद खोने जैसा होता है।
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जस्टिस मुल्ला याद आते हैं...
छत्तीसगढ़ में पुलिस का हाल यह है कि अलग-अलग आईजी रेंज, और अलग-अलग जिलों में संगठित भ्रष्टाचार देखने लायक है। एक आईजी ने अभी कुछ समय पहले 80 हजार रूपए का एक पिल्ला खरीदा है जिसके बारे में उनके मातहत बताते हैं कि इसका भुगतान एक नए बने जिले के पुलिस से किया गया था, और पिल्ले को लेने के लिए दो सिपाही राजधानी रायपुर की पुलिस लाईन से भेजे गए थे।
इसी तरह जिलों और आईजी रेंज में सारा महकमा जानता है कि साहब की तरफ से चोरी के कबाड़ की खरीद-बिक्री का ठेका किस अफसर को दिया गया है, कौन सा अफसर जुआ-सट्टा से वसूली-उगाही का इंचार्ज बनाया गया है, और कौन रेत की अवैध खुदाई के धंधे का इंचार्ज बनाया गया है। बिलासपुर और कोरबा के पूरे इलाके में कोयले का अवैध कारोबार करने वाले सारे लोगों को मालूम है कि उन्हें प्रति ट्रक पैसा किसे पहुंचाना है। पुलिस विभाग का यह संगठित भ्रष्टाचार देखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वक्त के मशहूर जज, जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला का वह विख्यात फैसला याद पड़ता है जिसमें उन्होंने लिखा था- 'मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कह रहा हूं कि पूरे भारत में एक भी ऐसा अपराधी गिरोह नहीं है जिसका जुर्म का रिकॉर्ड भारतीय पुलिस के संगठित जुर्म के आसपास भी फटक सकता हो।Ó
छत्तीसगढ़ में पुलिस के मुखिया चाहे बदल जाएं, फील्ड में अफसर चाहे बदल जाएं, लेकिन यह संगठित भ्रष्टाचार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की नजरों के नीचे, और हो सकता है कि उनकी अनुमति, सहमति, और भागीदारी से चलता हो। पिछली रमन सरकार के समय के जिन पुलिस अफसरों पर आज कार्रवाई हो रही है, आज के पुलिस अफसर पांच बरस बाद ऐसी ही कार्रवाई के लिए फिट कैंडीडेट रहेंगे। कोयले के काले कारोबार में छत्तीसगढ़ में हर बरस दसियों हजार करोड़ की संगठित चोरी होती है, और बिलासपुर-सरगुजा के जानकार जानते-बताते हैं कि पुलिस की हिस्सेदारी के बिना एक टोकरा कोयला भी चोरी नहीं हो सकता।
पुलिस और प्रशासन के जानकार लोगों के बीच बैठें तो तुरंत ही यह पता लगने लगता है कि कौन सा अफसर किस भ्रष्टाचार में लगा हुआ है। अब 80 हजार का पिल्ला खरीदने वाले अफसर ने पुलिस कल्याण कोष से ढाई-तीन लाख रूपए के घरेलू सामान भी खरीद लिए, लेकिन इस कोष के इंचार्ज एसपी ने भुगतान से मना कर दिया, तो अब बाकी पुलिस वाले मिलकर दो नंबर के कोष से इसका भुगतान कर रहे हैं। इसके अलावा अफसर का भिलाई में मकान बन रहा है, और जाहिर है कि उसकी लागत जुटाने के लिए एक-एक करके पुराने विभागीय मामले खत्म किए जा रहे हैं, नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं, और फिर उनको खत्म करके मकान की और लागत जुटाई जा रही है।
सुब्रमणियम से नाराजगी
कांग्रेस के कश्मीरी नेता छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम से नाखुश चल रहे हैं। सुब्रमणियम वहां के मुख्यसचिव हैं। सुब्रमणियम करीब डेढ़ साल से जम्मू-कश्मीर का प्रशासन संभाल रहे हैं और केन्द्र सरकार उनके काम से खुश भी है। मगर, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद को लगता है कि सुब्रमणियम भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।
सुनते हैं कि गुलाम नबी आजाद ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया को सुब्रमणियम को वापस छत्तीसगढ़ बुलाने की सलाह दी है। इस पर पुनिया ने आजाद से कहा कि उन्होंने सुब्रमणियम को लेकर अच्छा ही सुना है। वे डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते उनके सचिव रह चुके हैं। तब आजाद ने उनसे कहा कि वे जम्मू-कश्मीर में गैर भाजपाई नेताओं की नहीं सुन रहे हैं। चाहे तो छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें अपने यहां का मुख्य सचिव बना सकती है। पुनिया ने इस पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल से चर्चा करने की बात कही है।
कई बार ऐसा हुआ जब राज्य सरकार ने अड़कर केन्द्र में पदस्थ अपने कैडर के अफसरों को वापस बुलाया है। तमिलनाडु की सीएम जयललिता ने पी शंकर को केन्द्र सरकार से लड़कर उन्हें वापस बुलाया था और मुख्य सचिव बनाया। हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने यह तय किया है कि किसी भी अफसर को केन्द्र में नहीं भेजा जाएगा। यहां खुद सीएम भूपेश बघेल ने मौजूदा मुख्य सचिव सुनील कुजूर को एक्टेंशन देने की सिफारिश केन्द्र सरकार से की है, तो ऐसे में सुब्रमणियम को छत्तीसगढ़ बुलाए जाने की संभावना नहीं है। इस खबर से सुब्रमणियम के छत्तीसगढ़ के दो दूसरे बैचमैट सीके खेतान और आरपी मंडल के लिए अगला मुख्य सचिव बनने का मुकाबला थोड़ा सा हल्का हो सकता है।
देश में कानून दो अलग-अलग किस्म का लागू है। एक आम लोगों के लिए रहता है जिनकी हालत आम की चूसी हुई गुठली सरीखी रहती है। दूसरा कानून खास लोगों के लिए रहता है जिसमें यूपी के बीजेपी एमएलए सेंगर सरीखे लोग आते हैं जहां तक कानून के पहुंचने के पहले उनके विरोधियों को मौत आ जाती है।
छत्तीसगढ़ में भी ताकतवर लोगों को कानून छू नहीं पाता है। और यह ताकत जरूरी नहीं है कि सत्ता की ही हो, विपक्ष की भी अपनी ताकत होती है, और इसीलिए बहुत से लोग सत्ता या विपक्ष किसी की भी राजनीति में शामिल हो जाना चाहते हैं ताकि अफसरों पर रौब पड़ सके। अब ऐसा ही रौब एक विपक्षी दल के एक नेता का है जो कि फिल्मों से भी जुड़े हुए हैं। उनकी फिल्म में हीरोईन रह चुकी एक महिला ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है कि वे उसे टेलीफोन पर अश्लील संदेश भेज-भेजकर परेशान करते हैं, दोनों ही शादीशुदा हैं, लेकिन फिर भी नेताजी उसे अपने से शादी करने पर मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं, और इस अभिनेत्री की बहन को भी संदेश भेजकर, फोन पर धमकाकर परेशान कर रहे हैं। पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में लिखाया गया है कि उसके साथ जबर्दस्ती करने की भी कोशिश की गई है। आईटी एक्ट और दूसरी गंभीर दफाओं में दर्ज इस मामले में पुलिस अदालत में जा चुकी है, लेकिन सब कुछ बड़ी धीमी रफ्तार से चल रहा है। हालत यह है कि मोबाइल फोन पर संदेश जैसे सुरक्षित सुबूतों के बाद भी मामला किसी किनारे पहुंच नहीं रहा है। राजनीति में रहने के फायदे बहुत होते हैं।
जंगल में तरक्की के रास्ते खुले...
सरकार ने पीसीसीएफ के दो और पद मंजूर करने के प्रस्ताव पर सहमति दे दी है। इसके बाद पीसीसीएफ के कुल 6 पद हो जाएंगे। कैबिनेट की मंजूरी के बाद जल्द ही केन्द्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा। केन्द्र की मंजूरी के बाद अतिरिक्त पीसीसीएफ के पद पर आरबीपी सिन्हा और संजय शुक्ला को पदोन्नति मिल सकती है। हालांकि इसमें दो-तीन माह का समय लग सकता है।
पीसीसीएफ के दो अतिरिक्त पद की स्वीकृति दो साल के लिए मिली थी। यह समय सीमा 31 मार्च को खत्म हो गई थीं। इसके बाद सरकार ने दोबारा प्रस्ताव केन्द्र को नहीं भेजा। अतिरिक्त पद न होने से वर्ष-85 बैच के एपीसीएफ पीसी मिश्रा बिना पीसीसीएफ बने रिटायर हो गए। जबकि उन्हीं के बैच के अफसर राकेश चतुर्वेदी और कौशलेन्द्र सिंह वरिष्ठता क्रम में ऊपर होने के कारण पीसीसीएफ हो गए।
सुनते हैं कि सीएम भूपेश बघेल अतिरिक्त पद बढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने इसके औचित्य को लेकर जवाब-तलब भी किया था, लेकिन बाद में विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर के कहने पर अनमने मन से इसकी मंजूरी दे दी। अब आरबीपी सिन्हा और संजय शुक्ला को इससे सीधा फायदा हो सकता है। अन्यथा उन्हें पदोन्नति के लिए कम से कम डेढ़ साल इंतजार और करना पड़ता।
कल आया, आज घर सम्हाल बैठा...
भाजयुमो के कई पदाधिकारी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से नाराज चल रहे हैं। पदाधिकारियों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि पूर्व सीएम के कहने पर पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी को पार्टी कार्यक्रमों के मंच पर बिठाया जा रहा है और उन्हें एक तरह से उनके साथ अतिथि की तरह सम्मान दिया जा रहा है। जबकि वे विधानसभा चुनाव के जरा पहले ही पार्टी में आए हैं।
भाजयुमो नेताओं का यह भी कहना है कि रमन सिंह, ओपी चौधरी को भाजयुमो अध्यक्ष बनवा सकते हैं। मौजूदा अध्यक्ष विजय शर्मा, पूर्व सीएम के ही करीबी हैं और वे हर कार्यक्रम में योजनाबद्ध तरीके से सबसे पहले ओपी चौधरी को संबोधन के लिए आगे करते हैं। कुछ पदाधिकारियों ने इसकी शिकायत पार्टी के अन्य वरिष्ठ विधायकों से की है। उन्होंने कहा कि जिस तरह पूर्व सीएम की पसंद पर धरमलाल कौशिक को अंतिम क्षणों नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। उसी तरह चौधरी को भी भाजयुमो का अध्यक्ष बनाने की कोशिश हो सकती है, लेकिन इसका विरोध अभी से शुरू हो गया है।
आईएएस अफसर सोनमणि बोरा ने सोशल मीडिया में विदेश यात्रा से लौटने के बाद माना विमानतल में नेताओं जैसे स्वागत की तस्वीर पोस्ट की है। सचिव स्तर के अफसर सोनमणि अमेरिका अध्ययन यात्रा पर गए थे। वे सालभर बाद रविवार को लौटे हैं।
धर्म के नाम पर ही सही...
चाहे धार्मिक भावनाओं से क्यों न सही, कुछ लोग जानवरों के हित की बात करते हैं। अब अभी छत्तीसगढ़ में एक गौरक्षा संघ का बयान आया जिसमें बरसात में हाईवे पर गौमाता की दुर्घटना मौत रोकने के लिए पहल की बात की गई। इसके लिए आज 4 अगस्त को फे्रंडशिप डे पर गौमाता को बेस्टफें्रड बनाकर, रेडियम बेल्ट बांधकर उसे दुर्घटना से बचाया जाएगा। इस संगठन ने सरकार से भी अपील की है कि सड़कों पर बेघर छोड़ दिए गए सभी गौवंश को राजसात किया जाए, और उनके मालिकों पर कार्रवाई की जाए। अब यह बात चाहे महज गाय और गौवंश के लिए की गई हो, यह बाकी जानवरों को भी खतरे से बचाएगी और जानवरों की वजह से होने वाले सड़क हादसों को भी कम करेगी।
सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक केवल गांवों में जानवरों के लिए बाड़े बन पाए हैं, लेकिन सड़कों से जानवरों को हटाना नहीं हो पाया है। जो लोग जानवर पालकर उन्हें सड़कों पर छोड़ देते हैं, उनके खिलाफ सचमुच ही कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
कहानियां झांसा देती हैं...
आज फे्रंडशिप डे पर बहुत से लोग कृष्ण और सुदामा को याद कर रहे हैं कि गरीब और अमीर के बीच भी दोस्ती कैसी गहरी हो सकती है। ऐसी बातों के झांसों में आकर आज अगर सचमुच ही सुदामा कृष्ण के घर चले जाए, तो शायद घर बैठे कृष्ण के किसी सेवक के मुंह से यह सुनने मिलेगा कि कृष्णजी सुबह से ही कहीं चले गए हैं।
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एक वक्त कई किस्म की बीमारियों में डॉक्टर पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगाते थे, और उनमें से अधिकतर तकलीफें काबू में आ जाती थी। उसके बाद इंटीबायोटिक का दौर आया, और पेनिसिलिन धीरे-धीरे बेअसर होने लगा। बाद में एंटीबायोटिक की अगली पीढ़ी आई और पिछली पीढ़ी बेअसर हो गई। धीरे-धीरे एंटीबायोटिक की कई पीढिय़ां आईं, और अब हालत यह है कि उसकी सबसे नई पीढ़ी भी बेअसर होने लगी है। और दुनिया भर में एंटीबायोटिक का असर खत्म होना एक बड़ी फिक्र की बात हो गई है।
इसी तरह पहले किसी सार्वजनिक इमारत की दीवार पर, सीढिय़ों के कोनों पर लिखा जाता था कि थूकना मना है। थूकने की स्वतंत्रता के हिमायती लोग ऐसे नोटिस पर से आनन-फानन मना शब्द को मिटा देते थे, और थूककर ही आगे बढ़ते थे। जब ऐसा लिखा हुआ बेअसर हो गया तो लोगों ने एक तरकीब निकाली कि सीढिय़ों के कोनों पर देवी-देवताओं की तस्वीरों वाले टाईल्स लगाने लगे, ताकि धर्मालु लोग वहां थूकने से परहेज करें। कुछ बरस तक तो इसका असर रहा, लेकिन अब धीरे-धीरे लोग ऐसे टाईल्स के ऊपर भी थूककर आगे बढऩे लगे, और देवी-देवता अपनी फिक्र करने में लगे हुए हैं कि कहां जाएं?
सुलग रहा सरगुजा
छत्तीसगढ़ में पुलिस हिरासत से भागकर आदिवासी युवक पंकज बेक के आत्महत्या मामले पर सरगुजा जिले की राजनीति गरमाई हुई है। इस पूरे मामले पर भाजपाईयों ने सरकार के खिलाफ न सिर्फ विरोध प्रदर्शन किया बल्कि केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मिल आईं। पिछले छह महीने में पुलिस हिरासत में मौत के सात प्रकरण सामने आए हैं, लेकिन सरगुजा जैसा विरोध कहीं नहीं हुआ। सरगुजा में तो खुद रेणुका सिंह ने मोर्चा संभाल रखा था। सुनते हैं कि उन्होंने आदिवासी युवक की हिरासत में मौत के लिए आईजी केसी अग्रवाल को भी कड़ी फटकार लगाई और पूछ लिया कि यदि पंकज बेक , अग्रवाल होता तो पुलिस हिरासत में मारा जाता? रेणुका सिंह ने सरगुजा के भाजपाईयों को चार्ज कर दिया है, जो कि चुनाव के बाद पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बनाकर रखे हुए थे। एक दूसरी बात यह कि सरगुजा के तमाम सवर्ण भाजपाई रेणुका सिंह से तिरछे-तिरछे चलते थे, अब केंद्रीय मंत्री के इन तेवरों से उनकी भी बोलती बंद है।
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चेम्बर के संरक्षक और विहिप नेता रमेश मोदी इन दिनों सपरिवार सैर सपाटे के लिए इंडोनेशिया के बाली गए हैं। वहां उन्होंने अपने गले में सांप लपेटकर तस्वीर पोस्ट की है। उनकी तस्वीरों पर कई लोग मजा ले रहे हैं। चेम्बर के एक सदस्य ने एक वॉट्सऐप गु्रप में पोस्ट इस तस्वीर के नीचे लिखा-ये हैं चेम्बर के संरक्षक, इनके आस्तीन में सांप साफ नजर आ रहा है। चेम्बर में इन दिनों पदाधिकारियों के बीच विवाद चल रहा है। इन सबके बीच रमेश मोदी पर कटाक्ष से नया बखेड़ा खड़ा होने के आसार दिख रहे हैं। मोदी से जुड़े लोग उनके लौटने का इंतजार कर रहे हैं।
न्यौता देना बाकी है...
छत्तीसगढ़ सरकार की एक सबसे महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी पर काम तेजी से चल रहा है, और अब तक मनरेगा के तहत इधर-उधर बिना जरूरत के जो काम केवल मजदूरी देने के लिए करवाए जाते थे, उनकी बजाय अब जानवरों के लिए बैठने और खाने-पीने की जगह बनने की तस्वीरें दिख रही हैं। राज्य सरकार इसे उपलब्धि मानती है कि अपने किसी बजट और खर्च के बिना उसने केंद्र सरकार की रोजगार गारंटी की योजना, ग्रामीण विकास की योजना के मद से ही यह काम कर लिया है।
लेकिन राज्य भर में चारों तरफ से जो तस्वीरें आती हैं, वे बताती हैं कि सड़कों पर से जानवर घटे नहीं हैं, और शहर से लेकर गांवों तक हाल यही है। बारिश में जानवरों का डेरा सड़कों पर इसलिए भी बढ़ जाता है कि महज सड़कें ही सूखी और साफ रहती हैं और जानवर वैसी जगह पर ही बैठ पाते हैं। बाकी गीली जगहों पर मक्ख्यिां उनका जीना हराम कर देती हैं, अब ऐसे में जानवरों के लिए चारा-पानी और बैठने की जगह बनने के बावजूद सड़कों से उन्हें कैसे हटाया जाए यह एक बड़ी चुनौती अभी बाकी है। बहुत से लोगों का यह तजुर्बा है कि बहुत से सड़क हादसे इसी वजह से होते हैं कि सड़कों पर जानवर रहते हैं या अचानक आ जाते हैं। अब सरकार ने खाने-पीने और डेरे की जगह तो बना दी है, लेकिन जानवरों को वहां न्यौता देना अभी बाकी है।
मुकेश गुप्ता और पुलिस...
राज्य सरकार के निशाने पर चल रहे प्रदेश के डीजी रैंक के निलंबित अफसर मुकेश गुप्ता को रहस्यमय और अदृश्य सहायता मिल रही है। और यह सहायता प्रदेश के गृहमंत्री, और मुख्यमंत्री के अपने जिले की पुलिस से हासिल हो रही है। राज्य सरकार के ही लोगों के पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि दुर्ग पुलिस के कुछ लोग लगातार मुकेश गुप्ता को पुलिस की तैयारी की जानकारी दे रहे थे। पुलिस जब मुकेश गुप्ता को ढूंढने की कवायद की नुमाइश कर रही थी, तभी उस बीच पुलिस की अच्छी खासी जानकारी में मुकेश गुप्ता दुर्ग-भिलाई आकर, रूककर अपने करीबी एक खेल संघ पदाधिकारी के फार्महाऊस की दावत में शामिल हुए, और बात सबको मालूम होने के बावजूद दुर्ग की पुलिस दिल्ली में उन्हें ढूंढने की मशक्कत दिखाती रही। हालत यह है कि दुर्ग के जिस सुपेला थाने में मुकेश गुप्ता के खिलाफ साडा की जमीन में गड़बड़ी करने का जुर्म दर्ज है, उस थाने को सोच-समझकर थाना प्रभारी के बिना रखा गया है, और एक सब इंस्पेक्टर को वहां का प्रभारी थानेदार बनाया गया है। इसी तरह दुर्ग के बहुत से पुराने और तजुर्बेकार अफसरों को छोड़कर एक बिल्कुल ही नए अफसर को मुकेश गुप्ता की गिरफ्तारी के लिए, या उस नाम पर, दिल्ली भेजा गया जो कि कमजोर तैयारी से गए, और जानकारी यह है कि वे बिना सर्चवारंट ही मुकेश गुप्ता के घर पहुंच गए थे, और खबरें छपी कि वे वहां से फटकार खाकर लौटे हैं।
यह बात अखबार पढऩे वाले हर किसी को मालूम है कि मुकेश गुप्ता को देश के कुछ सबसे महंगे वकीलों की सेवाएं हासिल हैं, और महेश जेठमलानी जैसे वकील उनके लिए अदालत में आकर खड़े होते हैं। ऐसे में पुलिस की ऐसी कमजोर तैयारी, और हलचल की अनदेखी कोई मासूम बात नहीं लगती है। एक जानकार का कहना है कि प्रदेश के जिन दो थानों में, रायपुर के सिविल लाईंस, और भिलाई के सुपेला थाने में, जहां कि मुकेश गुप्ता के खिलाफ कोई मामला दर्ज हो सकता था, उन दोनों थानों को मुकेश गुप्ता ने अपनी बादशाहत के चलते कभी भी अपने पसंदीदा लोगों के बिना नहीं रहने दिया था। वहां पर कुछ न कुछ लोग उनके खांटी वफादार रखे ही जाते थे, और आज भी उनमें से कुछ की वफादारी का फायदा उनको मिल रहा है। कहीं कागज कमजोर बन रहे हैं, तो कहीं पहले से पुलिस खबर करके फिर पहुंच रही है। इस बीच पुलिस महकमे के अलग-अलग अफसर उन्हें गिरफ्तार करने का बीड़ा इस रफ्तार से उठा रहे हैं कि मानो रोज पान खाने वाले पानठेले पर पान का बीड़ा उठा रहे हों। ([email protected])
अब इंस्पेक्टरों के लिए यही बच गया?
छत्तीसगढ़ सरकार में अलग-अलग बहुत से फैसले ऐसे लिए जाते हैं कि उनके पीछे कोई सोच नहीं है यह बात बड़े-बड़े अक्षरों में लिखी नजर आती है। राजधानी रायपुर में अचानक तय हुआ कि टै्रफिक का कोई भी चालान डीएसपी स्तर का अफसर ही करेगा और सड़क किनारे किसी चालान का भुगतान नहीं होगा, वह सिर्फ ट्रैफिक थाने में ही जाकर होगा। अब मानो ट्रैफिक थाने से 20 किलोमीटर दूर चालान हुआ है, तो उसके भुगतान में एक पूरा दिन बर्बाद हो जाएगा, और सरकार को तो मानो जनता के दिन बर्बाद होने से कोई लेना-देना ही नहीं है। फिर मानो गृहमंत्री की यह मुनादी काफी नहीं थी, तो डीजीपी की तरफ से कल एक और हुक्म जारी हुआ जो कहता है कि चालान तो इंस्पेक्टर और उसके ऊपर के स्तर के अफसर ही कर सकेंगे, और इसके कैशलेस भुगतान के लिए थानों में स्वाईप मशीन लगाई जाएगी जिसे ऑपरेट करने का अधिकारी इंस्पेक्टर रैंक के अफसर को ही होगा।
स्वाईप मशीन को भी मानो रिजर्व बैंक की तिजोरी मान लिया गया है। आज सड़क किनारे के एक-एक छोटे-छोटे ढाबे तक में अनपढ़ वेटर भी स्वाईप मशीन लिए घूमते हैं, पांच हजार तनख्वाह वाले लोग भी स्वाईप मशीन चलाना जानते हैं, चलाते हैं, और ऐसे में थानों में अब केवल इंस्पेक्टर इस मशीन को चलाएंगे मानो इससे भी छोटा पुलिस कर्मचारी घपला कर सकेगा। अगर सचमुच ही डिजिटल भुगतान में छत्तीसगढ़ पुलिस के छोटे कर्मचारी घपला कर सकेंगे, तो यह दुनिया में एक नई तकनीक ईजाद करने के लिए पेटेंट करवाने का मौका रहेगा। पुलिस विभाग के मुखिया इंस्पेक्टरों को हर थाने में स्वाईप मशीन देकर भुगतान लेने के लिए बिठाएंगे, तो मुकेश गुप्ता को पकडऩे के लिए दिल्ली जाने की नौबत ही नहीं आएगी। और पुलिस विभाग में कुछ लोग सच में ऐसा चाहते भी हैं कि पकडऩे का दिखावा होता चले, अपने नंबर बढ़ते चलें, और असर इम्तिहान कभी देना ही न पड़े।
छत्तीसगढ़ में सरकार हड़बड़ी में कई किस्म की मुनादी करती है, मंत्री अपने स्तर पर फैसलों की घोषणा करते हैं, और अफसर अपने स्तर पर। लेकिन जब इन पर अमल की बात आती है तो समझ आता है कि कई घोषणाएं बुनियादी तौर पर गलत ही थीं।
संत युधिष्ठिर लाल का योगदान...
पिछले दिनों पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार का मामला लोकसभा में गूंजा। इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने यह मामला उठाया और भारत सरकार से नेहरू-लियाकत समझौते पर अमल करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव डालने का आग्रह किया। इस विषय की प्रतिक्रिया इतनी तेजी से हुई, कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को सफाई देनी पड़ी। सुनते हैं कि संसद में पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार का मामला उठाने के पीछे शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल की प्रमुख भूमिका रही है।
संत युधिष्ठिर लाल पिछले दिनों दिल्ली गए थे और उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों-सांसदों से मुलाकात की थी। इन सबके बीच संत युधिष्ठिर लाल ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं का जबरिया धर्मान्तरण और उन पर अत्याचार की चर्चा की थी। हर साल पाकिस्तान से सैकड़ों की संख्या में सिंधी समाज के लोग शदाणी दरबार में मत्था टेकने छत्तीसगढ़ आते हैं। यहां से भी श्रद्धालुओं का जत्था पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित धर्म स्थलों के दर्शन के लिए जाता है। दोनों देशों के श्रद्धालुओं के बीच संत युधिष्ठिर लाल महत्वपूर्ण कड़ी हंै। वे पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति से वाकिफ रहते हैं और समय-समय पर उनकी समस्याओं से केन्द्र सरकार को अवगत कराते रहते हैं।
उन्होंने ही इकलौते सिंधी सांसद शंकर लालवानी को 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते की विस्तार से जानकारी दी थी। इस समझौते में दोनों देशों से शासन प्रमुखों ने एक-दूसरे के यहां अल्पसंख्यकों के जान-माल और हितों की रक्षा सुनिश्चित करने पर सहमति जताई थी। संत युधिष्ठिर लाल ने केन्द्र सरकार से देश में पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को नागरिकता देने पर भी चर्चा की। छत्तीसगढ़ में भी बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए हिन्दू रह रहे हैं। केन्द्र सरकार भी मोटे तौर पर उनके रूख से सहमत दिख रही है।
मंत्री और विभाग के बीच लिस्ट
प्रदेश में तबादलों पर से रोक हटी तो मंत्रियों के करीबी लोगों को लग रहा था कि उनके अच्छे दिन आएंगे। कई मंत्री ऐसे हैं जिनकी बनाई हुई लिस्ट अफसरों की टेबिल पर धूल खा रही है, और खुद मंत्रियों को समझ नहीं आ रहा है कि उनके अच्छे दिन आखिर कब आएंगे, या फिर आएंगे ही नहीं। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने जितने इंस्पेक्टरों के तबादले की लिस्ट पुलिस मुख्यालय भेजी थी, वह संग्रहालय में रख दी गई, और एक नई लिस्ट जारी हो गई। गृहमंत्री अपने गृह में बैठे रह गए। उनके एक समर्थक ने कहा है कि अब पुलिस मुख्यालय से मंत्री की मंजूरी के लिए कोई लिस्ट आए, तो उसे भी फ्रिज के भीतर फ्रीजर में रख देना चाहिए, तभी पीएचक्यू में उनकी गई हुई लिस्ट संग्रहालय से निकाली जाएगी।
लेकिन तबादलों के मौसम में कदम-कदम पर किस्से सुनाई पड़ते हैं। दुर्ग में म्युनिसिपल कमिश्नर दोपहर तक वीआईपी ड्यूटी पर थे, और शाम को उनका विकेट उखड़ गया। यह पता ही नहीं चल रहा है कि खेलने को कोई नया ग्राउंड मिलेगा या नहीं। अब अफसर सिर धुन रहा है कि मंत्रियों के आगे-पीछे घूमने का क्या फायदा हुआ?
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साख की गलतफहमी
कई बार ऐसा होता है कि बड़े लोगों के झगड़े में छोटे पिस जाते हैं। और उन्हें काफी कुछ नुकसान उठाना पड़ता है। पुलिस में कुछ ऐसा ही हुआ है। पिछली सरकार में एक हवलदार को एक ताकतवर पुलिस अफसर ने खूब प्रताडि़त किया। हवलदार के भतीजे तक को सस्पेंड कर दिया। हवलदार को लेकर यह धारणा थी कि वह अफसर के विरोधी एक अन्य पुलिस अफसर का करीबी है। काफी अनुनय-विनय और कुछ राजनेताओं के हस्तक्षेप के बाद अफसर का गुस्सा शांत हुआ। हवलदार को ठीक-ठाक पोस्टिंग भी मिल गई। सब कुछ ठीक चल रहा था कि सरकार बदल गई।
सरकार बदलने के साथ ही हवलदार पर फिर आफत आन पड़ी। जिस पुलिस अफसर ने पहले हवलदार को प्रताडि़त किया था उसके बुरे दिन शुरू हो गए और अफसर के खिलाफ कई तरह की जांच शुरू हो गई। अब हवलदार को यह कहकर सुकमा भेज दिया गया कि वह जांच के घेरे में आए पुलिस अफसर का करीबी है। अब हवलदार यहां-वहां हाथ जोड़कर बताता फिर रहा है कि जिसका करीबी बताकर फिर उसे प्रताडि़त किया जा रहा है, उसकी प्रताडऩा का खुद पहले शिकार हो चुका है। मगर, अभी तक उसे राहत नहीं मिल पाई है।
साख का खेल
सहकारिता आयुक्त गणेश शंकर मिश्रा को तो हटा दिया गया, लेकिन उनके नजदीकी रिश्तेदार, पत्नी के चचेरे भाई विवेक रंजन तिवारी अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाया गया है। विवेक रंजन बिलासपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं और वे अविभाजित मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे दिवंगत रामगोपाल तिवारी के नाती हैं। गणेश शंकर मिश्रा के उलट विवेक रंजन की साख अच्छी है। यही वजह है कि उन्हें सतीशचंद्र वर्मा के महाधिवक्ता बनने के बाद रिक्त अतिरिक्त महाधिवक्ता का दायित्व सौंपा गया है।
विवेक रंजन से परे गणेश शंकर मिश्रा को हमेशा योग्यता से ज्यादा मिला। जबकि उनके खिलाफ विधानसभा की समिति ने अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की अनुशंसा की थी। इन सबको दरकिनार कर उन्हें रिटायरमेंट के आखिरी दिन रमन सरकार ने प्रमुख सचिव बनाया। जबकि देश के अन्य राज्यों में उनके बैच के लोग प्रमुख सचिव नहीं बने थे। सुनते हैं कि पदोन्नति पाने के लिए रायपुर से लेकर राजनांदगांव तक के भाजपा नेताओं को तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह के पीछे लगा दिया था। तमाम नियमों-कानून को दरकिनार कर उन्हें पदोन्नति मिल गई। प्रदेश में सहकारिता क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार है और यहां चुनाव में भी पारदर्शिता की कमी रही है। यही वजह है कि सरकार ने गणेश शंकर की जगह साफ-सुथरी छवि के अफसर मनोज पिंगुआ को चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी देकर व्यवस्था ठीक करने मंशा जताई है।
होटल के सामानों का लालच
हिंदुस्तान से जब लोग बाहर जाते हैं, तो उनके बर्ताव को लेकर बहुत से लोगों को शिकायत रहती है। वे गुटखा, तंबाकू खाकर जगह-जगह थूकते हैं, और कई किस्म की गंदगी करते हैं, कतार तोड़ते हैं, और सामान चुराते हैं। अभी-अभी इंडोनेशिया के बाली में छुट्टियां मनाने गए एक हिंदुस्तानी परिवार का वीडियो चारों तरफ फैल रहा है जिनके सूटकेस-बैग खोल-खोलकर पुलिस के सामने होटल के कर्मचारी चुराया हुआ सामान निकाल रहे हैं। पहले तो यह परिवार कर्मचारियों पर चीख रहा है, लेकिन जैसे-जैसे सामान निकलता गया, वैसे-वैसे उसकी बोलती बंद होती गई, और परिवार ने कर्मचारियों के पांव पकड़ लिए।
कुछ लोग इसे हिंदुस्तान की नाक कटवाना मान रहे हैं, कुछ लोग मान रहे हैं कि किसी परिवार के गलत काम से देश की नाक नहीं कटती। जो भी हो, मामला बड़ा शर्मनाक है, और इन दिनों खुफिया कैमरों के रहते गलत काम करने के पहले सौ बार सोचना चाहिए, और फिर लोगों के बीच कुछ करते हुए ध्यान रखना चाहिए कि कई मोबाइल फोन रिकॉर्ड कर रहे होंगे।
लेकिन बहुत से सैलानियों को यह मालूम नहीं होता कि वे होटल से क्या-क्या सामान होटल के कमरे को छोड़ते हुए लेकर जा सकते हैं? इसके बारे में एक जानकार वेबसाईट बताती है कि होटल के बाथरूम में रखा गया साबुन, शैम्पू, कंघी, शॉवर कैप, डिस्पोजेबल स्लीपर के अलावा कमरे में रखे गए चाय, कॉफी, शक्कर, नमक के पैकेट ले जाए जा सकते हैं जिस पर होटल को कोई आपत्ति नहीं होती। ये सारी चीजें मुफ्त इस्तेमाल की रहती हैं जिन्हें मुफ्त ले जाया जा सकता है। दूसरी तरफ तौलिया, तकिया, चादर, नेपकिन, हेयरड्रायर, रिमोट की बैटरियां नहीं ले जाई जा सकतीं। इसी तरह अलमारी के हैंगर, चम्मच-छुरी, ग्लास-प्लेट को भी नहीं ले जाया जा सकता। अगर होटल जरा भी महंगी है, तो वहां ठहरने वाले साबुन-शैंपू की छोटी-छोटी बोतलें मांग भी सकते हैं, और साथ ला सकते हैं, उसमें होटल को कोई आपत्ति नहीं होती। लेकिन अभी जो भारतीय परिवार पकड़ाया है वह हाथ धोने के साबुन की बड़ी-बड़ी बोतलें भी सूटकेस में भरकर ले जा रहा था।
मध्यप्रदेश काडर के एक ऐसे बड़े इज्जतदार वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थे जो आपसी चर्चा में बताते थे कि वे दुनिया भर में जिस होटल में ठहरे, वहां से कोई न कोई सामान जरूर लेकर आए। और वे कमरे में मुफ्त में रखे गए इस्तेमाल के सामानों से परे, कहीं से चम्मच, कहीं से कांटा-छुरी, तो कहीं से तौलिया लेकर आते थे।
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स्थानीय और बाहरी का मुद्दा
प्रदेश के सबसे बड़े निजी अस्पताल रामकृष्ण केयर में डॉक्टरों और प्रबंधन के बीच झगड़ा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कभी अस्पताल के सर्वेसर्वा रहे सर्जन डॉ. संदीप दवे की हिस्सेदारी बहुत कम रह गई है। अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह टैक्सास की कंपनी के हाथों में हैं।
सुनते हैं कि विवाद के लिए कंपनी प्रबंधन के साथ-साथ स्थानीय डॉक्टर भी जिम्मेदार हैं। अस्पताल में मरीजों के साथ भारी भरकम राशि वसूलने और अव्यवस्था की शिकायत के चलते कंपनी ने दिल्ली से एक सीईओ बिठा दिया था। महिला सीईओ अस्पताल में गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए थी। अस्पताल में वीआईपी मरीजों की देखरेख पर पूरी ताकत झोंक दी जाती थी, और बाकी मरीज भीड़ की शक्ल में बैठे रहते थे, महंगा बिल चुकाने के बावजूद।
अस्पताल में कई नामी डॉक्टर हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि वे कभी अस्पताल में समय पर नहीं आते थे। दूर-दराज से आए मरीजों को काफी इंतजार करना पड़ रहा था। एक प्रतिष्ठित डॉक्टर ने तो यह तक कह दिया था कि ओपीडी में वे 15 मरीज से ज्यादा नहीं देखेंगे। प्रबंधन ने उनकी बात तुरंत मान ली और बाकी मरीजों के देखने के लिए उन्हीं के बराबर योग्यता वाले चिकित्सक को बाहर से बुलाकर नियुक्ति दे दी। कई और चिकित्सकों की नियुक्ति की गई। यही नहीं, अस्पताल में कई बीएएमएस डॉक्टर काम कर रहे थे, जिन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। कुल मिलाकर अब तक अस्पताल में एकाधिकार खत्म होने से स्थानीय और बाहरी डॉक्टरों का विवाद खड़ा करने की कोशिश भी हो रही है। मरीजों के लिए राहत की बात यह है कि कई बेहतर डॉक्टर आए हैं और इलाज भी समय पर हो रहा है। दूसरी तरफ जानकार गैरडॉक्टरों का कहना है कि यह पूरी तरह से एक कारोबारी झगड़ा है, जिसमें क्या स्थानीय और क्या बाहरी? बाबा रामदेव ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामानों के खिलाफ बवाल खड़ा किया था, और अपने सामानों को देशपे्रम से जोड़ दिया था, लेकिन भावनाओं के ठंडे होने के साथ-साथ अब रामदेव के सामानों का बाजार भी ठंडा हो चला है, और उनके इश्तहार टीवी से तकरीबन गायब ही हो चुके हैं। कुछ स्थानीय डॉक्टरों का कहना है कि राज्य के सबसे महंगे अस्पतालों के मालिक स्थानीय रहें, या बाहरी, इससे मरीज के बिल पर कोई फर्क पड़ता है क्या?
तबादला लिस्ट में नामी अफसर
सरकार बदलने के बाद सोमवार को 68 राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के तबादले की सूची जारी की गई। सूची में पहला नाम तीर्थराज अग्रवाल का है जिनके खिलाफ लारा एनटीपीसी मुआवजा घोटाले में अपराधिक प्रकरण दर्ज है और उन्हें निलंबित भी किया गया था। अग्रवाल एक बड़े भाजपा नेता के भांजे हैं। मामाजी बड़े पद पर थे, तो घोटाले पर पर्दा डाल तीर्थराज को जल्द बहाल कर अहम जिम्मेदारी भी दे दी गई। उन्हें भाटापारा-बलौदाबाजार जिले में पोस्टिंग मिल गई।
सरकार बदलते ही स्थानीय कांग्रेस नेताओं की शिकायत पर तुरंत उन्हें हटाकर बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में पदस्थ किया गया। इसके बाद तीर्थराज को वहां से हटाकर जांजगीर-चांपा जिला पंचायत का सीईओ बना दिया गया। जो कि हर लिहाज से यह अहम पोस्टिंग मानी जाती है। सूची देखकर कांग्रेस नेता भी हैरान हैं कि आखिर ऐसे विवादित-दागदार अफसर को इतना अहम दायित्व कैसे मिल गया?
दूसरी तरफ रायपुर के तहसीलदार रहते हुए कई आरोप झेलने वाले पुलक भट्टाचार्य पिछली सरकार के परिवहन मंत्री राजेश मूणत की आंखों के तारे थे, वे पहले दुर्ग के आरटीओ रहे, फिर रायपुर के आरटीओ रहे। नई कांगे्रस सरकार ने भी पुलक भट्टाचार्य को आरटीओ तो बनाए ही रखा, उसके साथ-साथ स्टेट गैरेज का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया था। अब पुलक को आरटीओ से हटाया भी गया है तो राजधानी की म्युनिसिपल ने अपर आयुक्त बना दिया गया है। राज किसी का भी रहे, कुछ अफसरों का राज जारी रहता ही है। गांधी की कृपा सब पर बनी रहे।
विपक्षी से दरियादिली
सरकार के कई मंत्री विरोधी नेताओं का उदारतापूर्वक सहयोग कर रहे हैं। ऐसे ही एक भाजपा नेता, कुछ समय पहले एक मंत्री के पास पहुंचे और उन्हें अपनी जमीन से जुड़ी समस्याएं बताई। भाजपा नेता का दर्द यह था कि उनका काम, उन्हीं के सरकार के मंत्री राजेश मूणत ने रोक दिया था। नेताजी, अपने बेटे को लेकर साथ गए थे। और मंत्रीजी को बताया कि बेटे का बिजनेस खड़ा करना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए मंत्रीजी से मदद मांगी। मंत्रीजी ने यह जानते हुए कि भाजपा नेता ने उनके खिलाफ चुनाव संचालन किया था, बड़ा दिल दिखाते हुए उनका काम कर दिया।
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