राजपथ - जनपथ
नोट के इस्तेमाल से हैरानी
सरकार के एक-दो मंत्री अपनी अजीबो गरीब कार्यशैली की वजह से पार्टी हाईकमान की निगाह में आ गए हैं। हुआ यूं कि कुछ दिन पहले लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी का रायपुर आगमन हुआ। पश्चिम बंगाल के कांग्रेस सांसद अधीर रंजन रायपुर के एक कांग्रेस नेता के नजदीकी रिश्तेदार हैं। अधीर रंजन रायपुर आए, तो अपने रिश्तेदार कांग्रेस नेता के घर भी गए।
कांग्रेस नेता ने अपने घर में भोज रखा था। इसमें नेताजी ने एक मंत्री व अपने कुछ पारिवारिक मित्रों को भी आमंत्रित किया था। भोज के दौरान अधीर रंजन ने मंत्रीजी से प्रदेश के राजनीति हालातों पर भी चर्चा की। भोजन के बाद मंत्रीजी ने अपनी जेब से पांच सौ के नए नोट निकाले और नोट को मोड़कर दांत में फंसे भोजन के टुकड़े को निकालने लगे। विपक्ष के नेता अधीर रंजन, मंत्रीजी के तौर-तरीके को एकटक देखने लगे। अधीर रंजन ने कुछ नहीं कहा, लेकिन मंत्रीजी अपने अलग ही अंदाज के चलते हाईकमान की नजर में आ गए।
करे कोई, भरे कोई
स्कूल शिक्षा विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग के चक्कर में डिप्टी कलेक्टर नाहक बदनाम हो गए। वे ट्रांसफर सीजन शुरू होने से कुछ दिन पहले ही स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह के विशेष सहायक नियुक्त हुए थे। मंत्रीजी की सरलता उनके स्टॉफ के कुछ लोगों ने जमकर फायदा उठाया। हालांकि बाद में शिकवा-शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री की नाराजगी के चलते मंत्रीजी ने ओएसडी राजेश सिंह और विशेष सहायक नवीन भगत को हटा दिया।
सुनते हैं कि भगत का ट्रांसफर पोस्टिंग से ज्यादा कोई लेना देना नहीं था। उन्होंने कामकाज ठीक से संभाला नहीं था। मंत्री बंगले में उनका कमरा भी तैयार नहीं हुआ था कि ट्रांसफर-पोस्टिंग में गड़बडिय़ों का ठीकरा उन पर ही फोड़ दिया गया। जबकि सारा किया धरा राजेश सिंह का था। राजेश सिंह इतने प्रभावशाली रहे कि उनके पक्ष में टीएस सिंहदेव भी सामने आ गए। मगर भगत को हटाए जाने के बाद यह कहा जाने लगा कि गेंहू के साथ घुन भी पिस गया। हालांकि ट्रांसफर-पोस्टिंग में गड़बडिय़ों के लिए एक स्वास्थ्य कर्मचारी को भी जिम्मेदार ठहराया गया था। वे भी मंत्री स्टॉफ में हैं, लेकिन वे अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे।
मयखाने में विमोचन..
अब तक हमने देखा है कि कोई साहित्यकार अपनी कृति का विमोचन किसी बड़े समारोह में किसी बड़े राजनेता या साहित्यकार से कराता है । कल रायपुर में एक साहित्यकार ने अपनी किताब का विमोचन उन मजदूरों से कराया जो इस उपन्यास के पात्र हैं, उस कृति का हिस्सा है। जी हां, रायपुर में ऐसा पहली बार हुआ है। छत्तीसगढ़ के युवा साहित्यकार किशनलाल जी के नए उपन्यास चींटियों की वापसी का कल कुछ इसीतरह विमोचन हुआ । मजेदार बात यह कि कार्यक्रम भी ऐसी जगह पर किया गया जहां आमतौर पर सभ्य लोग जाने से कतराते हैं। जी, आप लोगों का अंदाजा सही है, कार्यक्रम राजधानी के आमा सिवनी स्थित शराब दुकान के अहाते में किया गया। कार्यक्रम को देखने-सुनने के लिए बड़ी संख्या में ऑटो-रिक्शा चालक, बढ़ई, मिल-कारखानों के मजदूर व भवन निर्माण करने वाले कामगार मौजूद थे। कार्यक्रम के अतिथि के रूप में रूपचंद रात्रे, तुलेश्वर सोनवानी, जितेन्द्र चेलक और छोटू जोशी मौजूद थे। ये सभी मजदूर राजधानी के डॉ. भीमराव अंबेडकर वार्ड के मोवा निवासी हैं जो कि उपन्यास के विभिन्न पात्र हैं। अतिथियों के स्वागत व कृति के विमोचन के बाद लेखक किशनलाल ने उपन्यास के महत्वपूर्ण हिस्से का पाठ किया। कार्यक्रम इतना दिलचस्प हो गया था कि लोग कुछ देर के लिए शराब पीना छोड़कर बड़े ध्यान से रचनाकार के पाठ को सुन रहे थे। यह पूछे जाने पर कि रायपुर सहित प्रदेश में राष्ट्रीय स्तर के कई साहित्यकार होने के बावजूद मजदूरों से पुस्तक विमोचन क्यों, इसका जवाब देते हुए किशनलाल ने कहा कि जिनके लिए लिखा है, वही लोग इसका विमोचन करें, मेरी हार्दिक इच्छा थी। शराब दुकान में आयोजन को लेकर उन्होंने कहा कि मेरे लिए हर जगह पवित्र है। दूसरी बात यह कि ऐसी जगहों पर कार्यक्रम करने पर किराया नहीं देना पड़ता है। चींटियों की वापसी उपन्यास है जो कि पूरी तरह रायपुर शहर पर केंद्रित है।
([email protected])
भ्रष्टाचार, सीनियरों का साथ...
सरकार में अफसरों के भ्रष्टाचार के कई किस्से सुने जा रहे हैं। कई बार तो भ्रष्ट अफसरों को सीनियरों का संरक्षण भी मिल जाता है। यही वजह है कि कई भ्रष्टाचार के प्रकरणों पर पर्दा नहीं उठ पाता। ऐसे ही वन विभाग के एक प्रकरण में विभाग के आला अफसरों ने लीपापोती की भरपूर कोशिश की, लेकिन मंत्री की पैनी निगाह से बच नहीं पाए। हुआ यूं कि पिछली सरकार में एक डीएफओ ने जीपीएस सिस्टम-कैमरा वगैरह की खरीदी के नाम पर जमकर गोलमाल किया।
खास बात यह है कि डीएफओ ने सारी खरीदी राज्य उपभोक्ता भंडार से होना बता दिया। इसके बिल भी पेश कर पूरी राशि हजम कर गए। मामला लंबे समय तक दबा रहा, लेकिन सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में इसका खुलासा हो गया। ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर लोक लेखा समिति प्रकरण की पड़ताल कर रही है। सुनते हैं कि विभाग की तरफ से जो जबाव तैयार किया गया था, उसमें पूरी खरीदी की प्रक्रिया को सही ठहराया गया था। समिति में भेजने से पहले जवाब की फाइल वनमंत्री को भेजी गई। मंत्रीजी ने पूरी फाइल को बारीकी से देखा, तो पहली नजर में भारी गड़बड़झाला नजर आया। उन्होंने फाइल का अनुमोदन करने के बजाए प्रकरण की डिटेल्ड रिपोर्ट मांग ली और खरीदी का भौतिक सत्यापन करने के लिए कह दिया। संकेत साफ है कि रिपोर्ट आने के बाद समिति से पहले विभाग अपनी कार्रवाई कर सकता है।
पुलिस चाहती है सीबीआई...
दिल्ली में बैठे एडीजी मुकेश गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी नई पिटीशन में रायपुर पुलिस द्वारा जारी किए गए टेलीफोन टैपिंग के आदेश की कॉपियां लगाई हैं। ये गोपनीय आदेश उन तक कैसे पहुंचे, इसे लेकर राज्य में खलबली मची हुई है। पुलिस महकमे के एक जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ये सब कागजात और जानकारी खुद पुलिस विभाग के लोग मुकेश गुप्ता के करीबी लोगों तक पहुंचा रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि पुलिस के कई लोग इस तरह की कार्रवाई कर रहे हैं जिससे हासिल कुछ नहीं हो रहा, पुलिस उजागर जरूर हो रही है। रायपुर से लेकर दिल्ली तक हो रही ऐसी बहुत सी कार्रवाईयों के पीछे जांच करने वाले बड़े-बड़े अफसरों की यह नीयत है कि किसी तरह यह पूरी जांच सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को दे दे, तो छत्तीसगढ़ की पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां धर्मसंकट से बचें। मुकेश गुप्ता विभाग से निलंबित हैं, लेकिन उनका दबदबा आज भी महकमे के अफसरों पर इतना है कि लोग उनकी जांच करने से बचना चाहते हैं। अब छत्तीसगढ़ पुलिस का खुफिया विभाग इतना काबिल तो है नहीं कि राज्य के कौन से अफसर सोच-समझकर जांच को सीबीआई की तरफ धकेल रहे हंै उसका पता लगा ले।
([email protected])
शरारत या चूक?
सत्ता से हटने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पहले जन्मदिन में अखबारों में भाजपा छोड़ चुके पूर्व महापौर नरेश डाकलिया की तस्वीर छपने को अलग-अलग नजरिया से परखा गया। कुछ नेताओं ने इसे शरारत कहा तो कुछ ने चूक। भाजपा के विज्ञापन में अपनी तस्वीर देखने के बाद डाकलिया ने भी विरोध करने में देर नहीं की। उन्होंने इसके लिए भाजपा नेतृत्व को ही कोसा। सियासत में जरा सी भूल से बात का बतंगड़ बन जाता है। कांग्रेस के सत्ता में आने के कुछ महीनों में ही डाकलिया ने भगवा राजनीति को अलविदा कह दिया था। अब उनकी भाजपा नेताओं के साथ तस्वीर से वे भले ही असहज हैं, लेकिन भाजपा और कांग्रेस में उनके विरोधी नेता खुश दिख रहे हैं। कुछ इसी तरह की गलतियां विक्रम उसेंडी के जन्मदिन बधाई पोस्टर में भी दिखाई दी। कांकेर में कई जगह होर्डिंग्स में भाजपा के बड़े नेताओं के साथ-साथ पूर्व विधायक मंतूराम पवार की तस्वीर भी लगी थी। पवार ने कुछ दिनों पहले ही अंतागढ़ प्रकरण में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह और अन्य के खिलाफ कोर्ट में बयान दिया था। जिसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। अब बधाई में उनकी तस्वीर छपने के बाद पार्टी में हडक़ंप मचा हुआ है। खुद विक्रम उसेंडी को इसके लिए सफाई देनी पड़ रही है।
समय होत बलवान..
राजनीतिक ताकत धूप-छांव की तरह होती है। सियासी ताकत की चमक से बिरले नेता ऐसे होते है जो सूझबूझ से संतुलन बनाए रखते हैं। कभी खैरागढ़ राजघराने की सत्ता के गलियारों में तूती बोलती रही। एक ऐसा समय भी था जब पैलेस में सांसद रहे विधायक देवव्रत सिंह की चौखट पर आला नेताओं को मिलने के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी। एक बार तो सांसद रहते देवव्रत सिंह से मिलने के लिए प्रभावशाली नेता मोहम्मद अकबर को भी मिलने घंटों इंतजार करना पड़ा था। इस वाक्ये के नांदगांव के कई नेता साक्षी रहे। अब वक्त ने ऐसा करवट बदला कि जोगी पार्टी के विधायक देवव्रत सिंह को प्रभारी मंत्री अकबर की राह ताकते देखा जा सकता है। सुनते हैं कि देवव्रत सिंह अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस के लिए ही काम कर रहे हैं। अकबर के जरिए वह कांग्रेस में अपनी वापसी की संभावना तलाश रहे हैं। देवव्रत और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच रहे तल्ख रिश्तों पर जमी धूल को साफ करने अकबर एक मजबूत कड़ी भी माने जा रहे हैं। राजनांदगांव कलेक्टोरेट में देवव्रत को प्रभारी मंत्री अकबर से मुलाकात के लिए इंतजार करते देखकर कांग्रेस नेता चुटकी लेने से पीछे नहीं रहे कि समय होत बलवान...। [email protected]
अभी दो-चार दिन पहले दिल्ली के खान मार्केट में छत्तीसगढ़ से पहुंचे एक आदमी को चिंतामणि चंद्राकर और मुकेश गुप्ता जाते हुए दिखे।
रमन रमन ही हैं...
इस हफ्ते भाजपा के दो बड़े नेता रमन सिंह और विक्रम उसेंडी का जन्मदिन था। रमन सिंह के जन्मदिन के मौके पर खूब जलसा हुआ। नगरीय निकाय चुनाव लडऩे के इच्छुक नेताओं ने जन्मदिन के बहाने शक्ति प्रदर्शन भी किया। चूंकि वे 15 साल सीएम रहे हैं, ऐसे में उन्हें बधाई देने के लिए भीड़ उमडऩा स्वाभाविक था। पार्टी नेताओं से परे प्रदेश भाजपा की तरफ से भी रमन सिंह को जन्मदिन की बधाई के विज्ञापन भी जारी किए गए। मगर गुरूवार को प्रदेश संगठन के मुखिया विक्रम उसेंडी के जन्मदिन मौके पर कार्यक्रम तो दूर, पार्टी की तरफ से उनके लिए बधाई का संदेश तक जारी नहीं किया गया।
सिर्फ कांकेर और रायपुर के ही कुछ नेता उन्हें बधाई देने पहुंचे थे। विक्रम उसेंडी की गिनती सरल आदिवासी नेताओं में होती है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दी, तो भी वे शांत रहे। अब प्रदेश में संगठन के चुनाव चल रहे हैं। और दिसंबर तक प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा। ऐसे में उसेंडी के जन्मदिन पर पार्टी नेताओं की ठंडी प्रतिक्रिया को भविष्य के संकेतों के रूप में भी देखा जा रहा है। वैसे छत्तीसगढ़ भाजपा के बारे में यह बात साफ है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के चाहे जो नतीजे रहे हों, आज भी रमन सिंह ही पार्टी का चेहरा हैं, और जनता के बीच उन्हीं को प्रदेश भाजपा माना जाता है।
बड़े और महंगे वकीलों का काम...
नान घोटाले के आरोपी चिंतामणि चंद्राकर को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिल पाई। हालांकि उनके लिए पिछली सरकार के प्रभावशाली लोगों ने काफी कोशिश की थी। चंद्राकर की पैरवी पूर्व सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने की थी। यह भी संयोग है कि पिछली सरकार में जब भैंसाकन्हार कांड के खिलाफ भूपेश बघेल सुप्रीम कोर्ट में लड़़ाई लड़ रहे थे, तब रंजीत कुमार ही उनके वकील थे। अब मामूली से एकाउंटेंट के लिए रंजीत कुमार जैसे महंगे वकील की पैरवी करना सरकार रणनीतिकारों को हजम नहीं हो रहा है।
पिछली सरकार के प्रभावशाली लोगों के खिलाफ जिस तेजी से जांच खड़ी हुई थी, वह किसी किनारे लगती नहीं दिख रही है। ये लोग भी हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट में अपने पक्ष में नामी वकील खड़े कर राहत पाने में सफल रहे हैं। सरकार के रणनीतिकारों को मालूम है कि नामी वकीलों के लिए पैसे कहां से आ रहे हैं, और उनके पीछे कौन सी ताकतें काम कर रही है। मगर यह सब जानकार भी कोई कुछ कर पाने की स्थिति में नजर नहीं आ रही हैं। छत्तीसगढ़ में जितने मामले दर्ज हो रहे हैं, उनकी जांच का जो हाल है, उसे देखते हुए पुलिस के अलग-अलग बहुत से अफसरों की भी जांच करवाने की जरूरत है कि आए दिन मामले अदालतों में कमजोर क्यों साबित हो रहे हैं। मामले कमजोर हैं, या पुराने रिश्ते मजबूत हैं?
([email protected])
कवर्धा अनछुआ
प्रदेश में सरकार बदलने के बाद कवर्धा ही एकमात्र ऐसा जिला है जहां प्रशासनिक स्तर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। जबकि यह पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह का गृह जिला है और उनकी व्यक्तिगत पसंद पर यहां के छोटे-बड़े अफसरों की पोस्टिंग होती थी। सरकार बदलने के बाद सबसे पहले कवर्धा कलेक्टर अवनीश शरण और एसपी लाल उम्मेद सिंह को बदले जाने की चर्चा रही, लेकिन 9 महीने गुजरने के बाद भी उन पर किसी तरह की आंच नहीं आई है। जबकि बाकी 26 जिलों के कलेक्टर-एसपी बदले जा चुके हैं। रायपुर में तो 9 महीने में दो एसपी बदल गए हैं। फिर भी कवर्धा जिले में न सिर्फ एसपी-कलेक्टर बल्कि निचले स्तर के अफसर भी यथावत हैं। यहां किसी तरह के फेरबदल के लिए परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर की राय अंतिम होगी। चर्चा है कि सीएम ने उन्हें फ्री हैंड दिया हुआ है। इन सबके बावजूद अकबर प्रशासन पर दबाव के पक्ष में नहीं रहते हैं। प्रशासन पर जरूरत से ज्यादा दबाव का फायदा उन्हें विधानसभा चुनाव में मिला और वे अब तक के छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा वोट से जीतने वाले विधायक बन गए। सुनते हैं कि कवर्धा में प्रशासनिक महकमे में बदलाव की एक वजह यह है कि सरकार बदलते ही अफसरों ने अपनी कार्यशैली बदल दी है, जो कांग्रेस के लोग पहले निराश रहते थे वे अब संतुष्ट हैं।
आलोक शुक्ला का वक्त बदला
नान घोटाले में फंसे प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। उनकी अग्रिम जमानत मंजूर कर दी गई है। आईएएस के वर्ष-86 बैच के अफसर डॉ. शुक्ला मौजूदा मुख्य सचिव सुनील कुजूर के बैचमेट हैं। वे वरिष्ठता क्रम में उनसे ऊपर भी हैं, लेकिन नान घोटाले की वजह से वे अपर मुख्य सचिव नहीं बन पाए। वे पिछले चार साल कानूनी उलझन में फंसे रहे।
रायपुर में पले-बढ़े डॉ. आलोक शुक्ला की गिनती काबिल अफसरों में होती है। उन्हें पीडीएस में बेहतर काम के लिए प्रधानमंत्री अवार्ड से नवाजा जा चुका है। केन्द्रीय चुनाव आयोग में भी पदस्थापना के दौरान अपना हुनर दिखा चुके हैं। अब जब कोर्ट से उन्हें राहत मिल गई है, तो उनकी पोस्टिंग भी तय मानी जा रही है। उनके रिटायरमेंट में 8 महीने बाकी हैं। मगर उन्हें इसके लिए 31 अक्टूबर तक इंतजार करना पड़ सकता है। वजह यह है कि कुजूर के एक्सटेंशन के लिए सीएम ने पीएम को पत्र लिखा है। यदि एक्सटेंशन नहीं मिलता, तो कुजूर रिटायर हो जाएंगे। तब सीके खेतान या आरपी मंडल में से कोई सीएस बनता है, तो डॉ. शुक्ला की पोस्टिंग हो सकती है। वह भी मंत्रालय के बाहर। लेकिन अजय सिंह या बैजेन्द्र कुमार, सीएस बनते हैं, तो आलोक शुक्ला को मंत्रालय में पोस्टिंग मिल सकती है। फिलहाल प्रशासनिक फेरबदल को लेकर कयास ही लगाए जा रहे हैं।
कुत्तों और उनके मालिकों की कहानी...
कुछ लोग सुबह और शाम अपने पालतू कुत्तों को खाना देते हैं, और फिर कुछ देर बाद उन्हें घुमाने के लिए निकलते हैं। घुमाने का तो नाम रहता है, असली मकसद होता है कि अपने घर से दूर, और दूसरे के घरों के करीब उनसे पखाना करवा दिया जाए, ताकि अपने आसपास सफाई बनी रहे। दुनिया के सभ्य देशों में, और हिन्दुस्तान के कुछ सभ्य शहरों में ऐसे लोग जब निकलते हैं, तो अपने साथ कुत्ते का पखाना उठाने के लिए प्लास्टिक का एक सामान लेकर चलते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई चलन दिखता नहीं है। नतीजा यह होता है कि लोग अपने घर के किनारे अगर कार ऐसे रोकें कि ड्राईवर की सीट दीवार की तरफ रहे, तो कुत्ते की गंदगी पर पांव पडऩे का खासा खतरा रहता है। एक-दो संपन्न इलाकों में ऐसी गंदगी से थके हुए गैर कुत्ता पालकों ने ऐसे कुत्ता-मालिकों के दिखने पर उनके साथ-साथ चलना तय किया, और जैसे ही कुत्ते ने गंदगी की, उन्होंने मालिक को घेरा कि इसे उठाओ। अब खाली हाथ आया हुआ मालिक इसे उठाए तो कैसे उठाए? लेकिन नतीजा यह हुआ कि दो-चार बार ऐसी घेरेबंदी से उस इलाके में कुत्ता मालिकों का आना बंद हो गया।
गांधीगिरी का यह तरीका ठीक है कि लोगों से अपने कुत्ते की गंदगी उठाकर ले जाने को कहा जाए। यह सत्याग्रह कुछ और आगे बढऩा चाहिए क्योंकि कुछ कुत्ता मालिक तो बाग-बगीचों में भी कुत्ते ले जाने लगे हैं, और मरीन ड्राइव जैसे तालाब-किनारे भी। अब खाली हाथ जाने वाले ऐसे कुत्ताप्रेमी कुछ उठाकर लाएंगे भी कैसे, इसलिए उनकी घेराबंदी ही अकेला जरिया हो सकता है। फिलहाल सोशल मीडिया पर पटना की एक गली में लगे हुए एक पोस्टर की फोटो आई है जिसमें लिखा है- ऐ कमीने, गली को कुत्ते से गंदा मत करा रे कुत्ते...।
अब हम कुत्ते शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करने के खिलाफ हैं, लेकिन ऐसा जाहिर है कि पटना के लोग हमसे सहमत नहीं हैं। ([email protected])
बाकी को फंसा, खुद निकल लिए...
नया रायपुर के सेक्टर-27 में मकान लेने वाले ज्यादातर अफसर पछता रहे हैं। यहां बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों ने मकान लिए थे। तब एनआरडीए ने यहां मकान की रजिस्ट्री और स्टॉम्प शुल्क में छूट दे रखी थी। अफसरों को भरोसा दिलाया गया था कि मकान बनने तक नया रायपुर आबाद हो जाएगा। मगर 12 साल बाद भी नया रायपुर वीरान है। कई अफसरों के मकान खाली पड़े हैं। कुछ किराएदार ढूंढ रहे हैं। केआर पिस्दा जैसे इक्का-दुक्का अफसर हैं जो कि यहां रहने चले आए हैं।
मजे की बात यह है कि इस स्कीम को लॉच करने वाले आईएफएस अफसर एसएस बजाज सबसे पहले मकान बेचकर निकल लिए। उनकी देखा-देखी सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल और हेमंत पहारे भी मकान बेचकर मुक्त हो गए। कई अभी भी ऐसे अफसर हैं जो यहां का अपना मकान बेचना चाह रहे हैं, लेकिन उचित दाम नहीं मिल रहा है। वर्ष-2007 में अफसरों ने जिस मकान को 20 लाख में खरीदा गया था, उसे 35 लाख में लेने वाले नहीं मिल रहे हैं। जबकि उस समय रायपुर के आसपास के मकानों की कीमत आज तिगुनी-चौगुनी हो गई है। हाल यह है कि सेक्टर-27 में अपना मकान देखकर अफसर खुश होने के बजाए मायूस हैं।
रमन के जन्मदिन पर जलसा...
रमन सिंह के जन्मदिन के बहाने भाजपा नेताओं ने एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की है। मंगलवार को रमन सिंह के मौलश्री विहार स्थित घर में समर्थकों की अच्छी खासी भीड़ जुटी। रमन समर्थकों ने खाने-पीने का पूरा इंतजाम रखा था। कुल मिलाकर विधानसभा में करारी हार के बाद पहली बार रमन सिंह के आसपास कार्यकर्ताओं की भीड़ देखने को मिली। स्वागत-सत्कार के बीच पूर्व सीएम के समर्थकों को अमित शाह के ट्वीटर पर बधाई संदेश से काफी खुशी मिली।
अमित शाह ने लिखा कि डॉ. रमन सिंहजी ने जिस अथक परिश्रम और ईमानदारी से छत्तीसगढ़ की जनता की सेवा की वह हम सभी के लिए प्रेरणीय है। खास बात यह है कि सीएम पद से हटने के बाद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के बावजूद रमन सिंह एक तरह से किनारे लगा दिए गए। उन्हें महाराष्ट्र और हरियाणा में भी प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया। जबकि इससे पहले के चुनावों में वे दूसरे राज्यों के लिए भी स्टार प्रचारक रहे हैं। इससे कांग्रेस नेताओं को रमन सिंह पर तंज कसने का मौका मिल गया, कि पार्टी के भीतर उनकी पूछ परख खत्म हो गई है। लेकिन पार्टी के ही एक बड़ेे नेता ने साफ किया कि जिन राज्यों में उपचुनाव हैं वहां के नेताओं को दूसरे जगह प्रचार के लिए नहीं भेजा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा में भाजपा चुनाव हार चुकी है। ऐसे में पार्टी चित्रकोट चुनाव हर हाल में जीतना चाहती है। और रमन सिंह को एक तरह से इसकी कमान सौंपी गई है। सच्चाई चाहे जो भी हो, लेकिन अमित शाह के बधाई संदेश से यह साफ हो गया है कि प्रदेश के बाहर भले ही रमन सिंह की पूछ परख नहीं हो रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ में उनका महत्व बरकरार रहेगा। ([email protected])
हमेशा बोझ से लदा जीएडी...
सरकारी अधिकारी-कर्मचारी संगठन प्रमोशन से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने की मांग करते रहे हैं। पर जीएडी की तरफ से कोई ठोस पहल नहीं हो पा रही है। वैसे तो जीएडी सचिव डॉ. कमलप्रीत और रीता शांडिल्य, दोनों की साख अच्छी है, लेकिन उन पर काम का दबाव ज्यादा है। राज्य गठन के बाद जीएडी में अनुभवी पंकज द्विवेदी और चंद्रहास बेहार जैसे अफसरों को बिठाया गया था, जिन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच अधिकारी-कर्मचारियों के बंटवारे व प्रमोशन-आरक्षण जैसे विषय को काफी हद तक सुलझाया।
बेहार को नियमों का काफी जानकार माना जाता है। यही वजह है कि रिटायरमेंट के कई साल बाद भी सरकार उनकी सेवाएं लेती रही है। वे प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षु अफसरों की क्लास भी लेते हैं। सुनते हैं कि बेहार ने अपनी तरफ से नियम शाखा को मजबूत बनाने के लिए कई सुझाव दिए हैं। उन्होंने पत्र भी लिखा है। वे बिना किसी वेतन के मदद करने के तैयार भी हैं। परन्तु सरकार तो सरकार है जब तक कोर्ट का कोई सख्त निर्देश नहीं होता, समस्या का हल नहीं ढूंढा जाता है।
पत्रकारों में चुहलबाजी का दौर
विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय में कुलपति को ही एक और कार्यकाल मिल गया इसलिए वह चर्चा से बाहर हो गया। लेकिन अब कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति का चयन होना है जो कि अटकलों में बना हुआ है। राज्य सरकार ने एक बड़ी समझदारी का फैसला लेकर इस ओहदे के लिए बाकी शर्तें घटा दीं, और पत्रकारिता का लंबा अनुभव ही एक शर्त रखी है। अब तक जितने कुलपति थे वे पत्रकारिता-शून्य थे, और एक पत्रकार के आने से यह विश्वविद्यालय जिंदा हो सकता है। ऐसे में पत्रकार एक-दूसरे से चुहलबाजी में लगे हुए हैं कि उनका नाम कुलपति के लिए चल रहा है। जिन लोगों को वहां किसी कार्यक्रम में बुलाया गया, उनके नाम को भी संभावित मान लिया जा रहा है। जो पत्रकार मुख्यमंत्री से अच्छे परिचित हैं, उनको भी सुपात्र समझा जा रहा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री के तीन सलाहकार, विनोद वर्मा, रूचिर गर्ग, और प्रदीप शर्मा पत्रकार रहे हुए हैं, इसलिए देश के बहुत से अच्छे पत्रकारों से उनकी मित्रता रही है, और इस तरह संभावित नामों की लिस्ट बड़ी लंबी हो जा रही है। आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के लिए यह एक महत्वपूर्ण फैसला हो सकता है कि इस विश्वविद्यालय से पत्रकार बनने लायक पढ़ाई करवाने वाले कुलपति आते हैं, या फिर इसकी बर्बादी जारी रहेगी। चूंकि सरकार ने नियम बदले हैं, इससे कुछ उम्मीद जागती है कि शायद कोई अच्छा कुलपति लाया जाए। फिलहाल जो चयन समिति बनी है, उसमें देश के एक सबसे अच्छे पत्रकार रहे ओम थानवी सदस्य हैं, जो कि राजस्थान के पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति भी हाल ही में बने हैं। उनके नाम से भी ऐसा लगता है कि वे किसी औने-पौने नाम पर समझौता नहीं करेंगे। तब तक पत्रकारों के बीच कुछ को सरकार का करीबी साबित करने का मजाक चल रहा है, और कुछ लोगों के बारे में यह मजाक चल रहा है कि वे अपनी बागी तेवर दिखाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कर रहे हैं कि वे हैं ना...
हिंदुस्तान में लोगों की हसरतें नंबर प्लेटों पर दिखती हैं। चूंकि पुलिस का कोई भरोसा कानून लागू करने में रहता नहीं है, इसलिए छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में ही सड़कों पर हजारों गाडिय़ां तरह-तरह के अहंकारी नारों वाली दिखती हैं जो नंबर के बजाय दबदबा लिखवाकर चलती हैं। अब रायपुर के संजीत त्रिपाठी को कल रात आजाद चौक के पास डॉ. सुरेंद्र शुक्ला के नर्सिंग होम की पार्किंग में यह स्कूटर दिखी जो कि बेरला के राजा अंशुल भैया की है। अब दुर्ग जिले के ही मुख्यमंत्री भी हैं, वहीं के गृहमंत्री हैं, और अब पता लग रहा है कि उसी जिले के बेरला में एक राजा भी हैं। अब पुलिस की क्या हिम्मत हो सकती है किसी राजा को छूने की?
एक काबिल के आने का फर्क
रेणु पिल्ले के डीजी बनने के बाद से प्रशासन अकादमी का माहौल बदला है। अब तक एक हजार अफसर अकादमी में टे्रनिंग ले चुके हैं। ट्रेनिंग क्वालिटी में काफी सुधार आया है। यही वजह है कि टे्रनिंग ले रहे नए-पुराने अफसर अकादमी की क्लास में पूरी दिलचस्पी लेते नजर आते हैं। जबकि पहले ट्रेनिंग क्वालिटी ठीक नहीं थी। इसके चलते अनुशासनहीनता भी बढ़ गई थी। क्लास में प्रशिक्षु अफसर लेक्चर पर ध्यान देने के बजाए मोबाइल पर वीडियोगेम खेलना ज्यादा पसंद करते थे।
आईएएस की 91 बैच की अफसर रेणु पिल्ले को डीजी का काम संभाले सालभर हो गए हैं। उनकी गिनती बेहद ईमानदार और अनुशासनप्रिय अफसरों में होती है। वे सुबह ठीक 10 बजे अकादमी पहुंच जाती हैं। उनकी वजह से अकादमी का स्टाफ भी समय पर आने लगा है। वैसे तो रेणु पिल्ले घर से लंच बॉक्स लेकर आती हैं, यदि लंच बॉक्स लेकर नहीं आईं, तो अकादमी के कैंटीन में लंच करती हैं और बिल का भुगतान भी खुद करती हैं। उनके आने से पहले अकादमी के स्टाफ की मुफ्तखोरी की आदत पड़ चुकी थी, लेकिन डीजी की ईमानदारी का असर स्टाफ पर भी हुआ है, और उन्होंने भी मुफ्तखोरी बंद कर दी।
प्रशासन अकादमी में व्यवस्था ठीक करने के नाम पर खरीदी-बिक्री का खेल चलता रहा। सुनते हैं कि अकादमी के एक अफसर ने अलग-अलग प्रयोजन पर करीब 5 करोड़ का बजट प्रस्ताव डीजी रेणु पिल्ले को दिया था। मगर रेणु पिल्ले ने गैरजरूरी खर्चों पर रोक लगाकर बजट को 7 करोड़ से घटाकर 17 लाख कर दिया। जबकि उनसे पहले एक अफसर ने तो केन्द्र से मिली राशि से फर्नीचर खरीद लिया था। चूंकि पिछली सरकार में उनका काफी दबदबा था। इसलिए उनके मातहत असहमति के बावजूद इसका विरोध नहीं कर पाए और वे अपना हाथ साफ कर निकल गए। ऐसे में रेणु पिल्ले की साफ-सुथरी कार्यशैली से हर कोई प्रभावित दिख रहा है, क्योंकि उसका असर दिख रहा है। ([email protected])
जानकार संबंधों का फायदा
बस्तर राजपरिवार के मुखिया कमलचंद भंजदेव को हाईकोर्ट ने विरासत में मिली संपत्ति का स्वाभाविक हकदार माना है। कोर्ट ने संपत्ति के पूर्व के बंटवारे को भी गलत करार दिया है। फैसले के बाद जगदलपुर और आसपास की 38 एकड़ जमीन के असल हकदार कमलचंद भंजदेव हो गए हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि परिवार के दूसरे सदस्यों ने जो जमीन बेची थी, उसकी बिक्री को भी कोर्ट ने निरस्त कर दिया।
युवा आयोग के पूर्व चेयरमैन कमलचंद भंजदेव को अपनी जमीन वापस हासिल करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ी। सुनते हैं कि इस लड़ाई में एक महिला अफसर ने उनका पूरा साथ दिया। महिला अफसर चूंकि कलेक्टर रह चुकी हैं और उन्हें राजस्व प्रकरणों की गहरी समझ है। जब भंजदेव आयोग में थे, तो आयोग के कामकाज को लेकर महिला अफसर से मेल मुलाकात होते रहती थी।
फिर उन्होंने भंजदेव के जमीन विवाद को समझा और कानूनी लड़ाई में उनका मार्गदर्शन किया। इसका प्रतिफल यह रहा कि भंजदेव को सैकड़ों करोड़ की संपत्ति मिल गई है। मगर कोर्ट के आदेश के बाद भी जमीन वापस पाना आसान नहीं होगा क्योंकि उक्त जमीन पर कालोनी का निर्माण हो गया है और प्रभावित लोग सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। चाहे कुछ भी हो, भंजदेव को बड़ी शुरूआती कामयाबी मिल ही गई। ([email protected])
स्टार प्रचारकों की सूची में रमन नहीं!
महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। कांग्रेस की सूची में सीएम भूपेश बघेल को विशेष रूप से जगह मिली है। वे दोनों राज्यों में प्रचार के लिए जा सकते हैं। मगर भाजपा की सूची में सिर्फ सरोज पाण्डेय का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में है। सरोज महाराष्ट्र तक ही सीमित रहेंगी। वे महाराष्ट्र भाजपा की प्रभारी हैं। सूची में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह का नाम गायब है। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों ही राज्यों में पार्टी ने उन्हें प्रचार के लिए बुलाया था।
महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा हुआ है। छत्तीसगढ़ के हजारों लोग नागपुर और आसपास के इलाकों में रहते हैं। यही वजह है कि यहां के नेताओं को विशेष तौर पर प्रचार के लिए बुलाया जाता रहा है। पिछली बार तो भाजपा ने छत्तीसगढ़ के करीब आधा दर्जन नेताओं को विधानसभावार चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन इस बार संचालन तो दूर, यहां के नेताओं को प्रचार के लिए तक नहीं बुलाया गया है। एकमात्र सुनील सोनी को ही प्रचार के लिए बुलाया गया है, वे भी सिर्फ उल्लासनगर विधानसभा तक सीमित रहेंगे। जबकि मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को स्टार प्रचारकों की सूची में रखा गया है।
तीन बार के सीएम रमन सिंह का नाम सूची में नहीं होने से पार्टी के स्थानीय नेता हैरान हैं और कई लोग विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद पार्टी में उनके दबदबे की कमी के रूप में देख रहे हैं। पार्टी ने चुनाव में हार के बावजूद रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तो बना दिया है, लेकिन राष्ट्रीय संगठन में उनकी सक्रियता देखने को नहीं मिली है। जबकि उनके साथ ही मप्र के सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रीय स्तर पर सदस्यता अभियान का प्रभारी बनाया गया है। चौहान सभी राज्यों का दौरा कर रहे हैं। हालांकि रमन सिंह के करीबी लोग जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पूछ-परख बढऩे की उम्मीद पाले हुए हैं। उनका कहना है कि जगत प्रकाश नड्डा के पूर्णकालिक अध्यक्ष बनने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में रमन सिंह का महत्व बढ़ेगा। नड्डा छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रभारी रहे हैं और उनकी डॉ. सिंह से घनिष्ठता है। फिलहाल तो पार्टी के लोग भविष्य का अंदाजा ही लगा रहे हैं।
([email protected])
राजनीतिक से ज्यादा कानूनी लड़ाई
भाजपा के रणनीतिकार सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई के बजाए कानूनी विकल्पों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। तभी तो सीएम के खिलाफ दो दशक पुराने साडा जमीन आबंटन प्रकरण पर दर्ज अपराध के खात्मे की अनुशंसा के खिलाफ जिला अदालत में जमकर लड़ाई लड़ी गई। इस प्रकरण पर 17 तारीख को फैसला होगा। मगर भाजपा के रणनीतिकारों की प्रकरण पर दिलचस्पी लेने की राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय है। सुनते हैं कि जमीन आबंटन प्रकरण पर भूपेश के खिलाफ उनके भतीजे भाजपा सांसद विजय बघेल को आगे किया गया है, लेकिन परदे के पीछे कई और बड़े चेहरे हैं।
पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की भूपेश से नाराजगी तो जगजाहिर है, लेकिन प्रकरण की मॉनिटरिंग रमन के करीबी रहे अफसर कर रहे हैं। खास बात यह है कि भूपेश के खिलाफ दर्ज प्रकरण के खात्मे के विरोध के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के सबसे महंगे वकील सुरेन्द्र सिंह की सेवाएं ली गई थी। जबकि भाजपा संगठन में वकीलों का एक अलग प्रकोष्ठ है। भाजपा संगठन के पदाधिकारी वकील, प्रकरण से दूर रहे। भूपेश के खिलाफ वकीलों के फीस पर ही लाखों रूपए फूंकने की चर्चा है। यह सब तब हो रहा है जब चित्रकोट उप चुनाव में पार्टी के नेता चुनावी फंड की कमी का रोना रो रहे हैं। इस प्रकरण पर पूर्व सीएम अजीत जोगी की तरफ से भी खात्मे की अनुशंसा के खिलाफ कड़ी आपत्ति दर्ज कराई गई। खैर, कानूनी लड़ाई का क्या हश्र होता है, यह देखना है।
मंत्री से खफा पार्टी नेता
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को 9 महीने ही हुए हैं, लेकिन एक मंत्री ने अल्प समय में ही अपनी कार्यशैली से पार्टी के बड़े नेताओं को नाराज कर रखा है। मंत्रीजी की दखलंदाजी की वजह से डीएमएफ मद के कार्य भी काफी प्रभावित हुए हैं। यही नहीं, मंत्री समर्थकों की उगाही की शिकायत पीएचक्यू तक पहुंची है। सुनते हंै कि रोजमर्रा की शिकायतों के बाद मंत्रीजी पर अब लगाम कसा गया है।
पहले चरण में मंत्रीजी के सारे करीबी अफसरों का तबादला एक-एक कर जिले से बाहर कर दिया गया है। साथ ही साथ मंत्री समर्थकों की गुंडागर्दी रोकने के लिए तेज-तर्रार पुलिस अफसर को वहां भेजा गया है। मंत्रीजी की हालत अब ऐसी हो गई है कि उन्होंने अपने विभाग के एक अफसर का तबादला जिले से बाहर किया, तो अफसर को कोर्ट से तबादले के खिलाफ स्टे मिल गया। संकेत साफ है कि मंत्रीजी ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली, तो पंचायत चुनाव के बाद संभावित फेरबदल में उनका पत्ता साफ हो सकता है।
([email protected])
सुब्रमणियम अगले गृह सचिव होंगे?
छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम की वापसी की संभावना तकरीबन खत्म हो गई है। सुब्रमणियम जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव हैं। वे छत्तीसगढ़ के अपने बैच के अकेले अफसर हैं, जो कि केन्द्र सरकार में सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हुए हैं। उनके बैचमेट सीके खेतान और आरपी मंडल, केन्द्र सरकार में सचिव के पद पर सूूचीबद्ध होने से रह गए। हालांकि दोनों के पास राज्य में मुख्य सचिव बनने का अवसर है, जो कि मौजूदा मुख्य सचिव सुनील कुजूर के एक्सटेंशन न होने की दशा में इस माह के आखिरी में खाली हो सकता है। मगर फिर भी दोनों में से एक रह जाएंगे।
सुब्रमणियम के पास पाने के लिए बहुत कुछ है। उनके करीबी अफसर मानकर चल रहे हैं कि जम्मू कश्मीर के बाद वे केन्द्र सरकार में अगले गृह सचिव होंगे। यह पद डेढ़ साल बाद खाली होगा। तब तक वे जम्मू कश्मीर में सेवाएं देते रहेंगे। सुब्रमणियम राज्य के पांचवें अफसर हैं, जो कि केन्द्र सरकार में सचिव के पद के लिए सूचीबद्ध हुए हैं। उनसे पहले एसके मिश्रा, एके विजयवर्गीय, शिवराज सिंह और सुनील कुमार सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हुए थे। लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें केन्द्र में जाने नहीं दिया और चारों यहीं मुख्य सचिव बनकर रिटायर हुए। पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड, डीएस मिश्रा और अजय सिंह संयुक्त सचिव तक तो सूचीबद्ध हो गए थे, लेकिन उन्होंने भारत सरकार में काम नहीं किया, इसलिए सचिव के पद पर सूचीबद्ध नहीं हो पाए।
चुनावी चंदे की कमी, कार्यक्रमों से भी तौबा
चित्रकोट में भाजपा के नेता फंड की कमी का रोना रो रहे हैं। दंतेवाड़ा में तो कईयों ने खुद के जेब से पैसा भी लगाया था, लेकिन इस बार ज्यादातर लोगों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा में भी चुनाव हैं और दिल्ली के सारे नेता वहीं व्यस्त हैं। ऐसे में वहां से फंड आने की उम्मीद ही नहीं है। स्थानीय बड़े कारोबारियों ने मंदी को कारण बताकर भाजपा कोई ज्यादा मदद नहीं कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि पार्टी की हालत वर्ष-2003 से पहले जैसी हो गई है, तब प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं थी। ऐसा नहीं है कि पार्टी नेताओं के पास पैसे की कमी है। पिछले 15 सालों में बड़े नेताओं ने काफी कुछ बना लिया है, लेकिन वे उपचुनाव में जोखिम नहीं लेना चाह रहे हैं। वैसे भी नगरीय निकाय के चुनाव निकट हैं। इसमें भी काफी कुछ खर्च करना पड़ सकता है।
सुनते हैं कि खर्चों से बचने के लिए पार्टी के फंड मैनेजर कोई कार्यक्रम कराने से भी परहेज करने लगे हैं और यह भी चाहते हैं कि फिलहाल कोई बड़ा नेता न आए। इन नेताओं का मानना है कि दिल्ली वालों के नखरे काफी रहते हैं। एक नेता ने किस्सा सुनाया कि एक बेहद अनुशासित और सादगी पसंद माने जाने वाले संगठन के एक बड़े नेता का वर्ष-2002 में आगमन हुआ। यह नेता वर्तमान में केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। उस समय प्रदेश में सरकार तो थी नहीं, नेताजी की दिल्ली वापसी के लिए इकॉनामी क्लास में फ्लाइट की टिकट बुक कराई। पर नेताजी अड़ गए कि वे बिजनेस क्लास में ही यात्रा करेंगे। इसके बाद पार्टी नेताओं ने आपस में चंदा इकट्ठा कर बिजनेस क्लास की टिकट कराई। अब प्रदेश में सरकार जाने के बाद पुराने दिन याद आने लगे हैं।
([email protected])
सरगुजा में रेणुका की परेशानी
तेज तर्रार महिला नेत्री रेणुका सिंह केन्द्र में मंत्री तो बन गई हैं, लेकिन सरगुजा में अपनी धमक बनाने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं। शासन-प्रशासन और आम लोगों में भी राज्य के दोनों स्थानीय मंत्री टीएस सिंहदेव और अमरजीत भगत की ही ज्यादा पूछ परख रहती है। रेणुका को अंबिकापुर के सबसे बड़े दशहरा उत्सव में भी अतिथि बनने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। जबकि दशहरा उत्सव समिति में भाजपा के लोगों का ही दबदबा है।
समिति ने सबसे पहले अमरजीत भगत को मुख्य अतिथि बनाने का फैसला किया था। अमरजीत के पास संस्कृति विभाग भी है। और भगत ने विभागीय मद से काफी कुछ अनुदान देने का वादा भी किया था। इसके बाद रेणुका के लोगों ने उन्हें मुख्य अतिथि बनाने के लिए समिति के सदस्यों पर दबाव बनाया। सुनते हैं कि रेणुका की तरफ से भी आयोजन के लिए कुछ करने का वादा किया गया। पर राशि अमरजीत की तरफ से मिलने वाली राशि से काफी कम थी। चूंकि केन्द्र में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली इकलौती मंत्री हैं, इसलिए आयोजकों ने निराश नहीं किया। दोनों को ही दशहरा उत्सव में अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। दोनों को बराबर का दर्जा दिया गया।
महापौर प्रत्याशी, और मशक्कत
महापौर प्रत्याशी के चयन के लिए कांग्रेस सर्वे करा रही है। चर्चा है कि अंबिकापुर को छोड़कर बाकी जगह नए चेहरों को आगे किया जा सकता है। अंबिकापुर से मौजूदा महापौर डॉ. अजय तिर्की की टिकट तकरीबन पक्की मानी जा रही है। वजह यह है कि उन्हें लेकर कोई विवाद नहीं है, और दोनों स्थानीय मंत्री टीएस सिंहदेव और अमरजीत भगत से अच्छे संबंध हैं। मगर रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में दावेदारों की फौज खड़ी हो गई है। यहां तीनों ही निकायों में महापौर के पद अनारक्षित हैं। ऐसे में यहां प्रत्याशी चयन में फूंक-फूंककर कदम उठाया जा रहा है। पार्टी के अंदरूनी सूत्र बता रहे हैं कि तीनों निकायों में नए चेहरों को आगे लाया जा सकता है। रायपुर में झगड़ा बढ़ा, तो विधायक को लड़ाया जा सकता है, लेकिन इसमें जीत की संभावना को ध्यान में रखा जाएगा। फिलहाल तो सर्वे रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। ([email protected])
सुनील सोनी की मांग
रायपुर सांसद सुनील सोनी चुनाव प्रचार के लिए महाराष्ट्र जा सकते हैं। वहां उल्हास नगर के भाजपा प्रत्याशी कुमार आयलानी ने महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत दादा पाटिल को पत्र लिखकर इंदौर के सांसद शंकर लालवानी और रायपुर के सांसद सुनील सोनी को प्रचार के लिए बुलाने का आग्रह किया है।
सुनते हैं कि सुनील सोनी को प्रचार में बुलाने के पीछे उल्हास नगर का सामाजिक समीकरण भी है। वहां ज्वेलरी व्यवसाय से जुड़े करीब 25 हजार लोग रहते हैं, जो कि सोनी (सुनार) समाज के हैं। सोनी ज्वेलरी कारोबार से जुड़े विषय को लोकसभा में उठा चुके हैं। इसके चलते प्रदेश के बाहर भी उनकी पहचान बन गई है। यही वजह है कि सोनी को महाराष्ट्र में भी व्यापारी-सराफा व्यवसायी को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टी प्रचार में बुला रही है।
न सिर्फ सुनील सोनी बल्कि बृजमोहन अग्रवाल भी विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए महाराष्ट्र जा सकते हैं। बृजमोहन महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडऩवीस के विधानसभा क्षेत्र नागपुर में पिछले चुनाव में भी प्रचार के लिए गए थे। इसके अलावा गोंदिया में उनका ससुराल भी है। गोंदिया और नागपुर में बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के लोग रहते हैं। इन सबको देखते हुए बृजमोहन और अन्य भाजपा नेताओं की वहां ड्यूटी लग सकती है।
अब भी ताकत की चाह...
पिछली सरकार के मंत्रियों के कई निज सचिवों का दबदबा अभी भी बरकरार है। हालांकि धीरे-धीरे इन कुख्यात निज सचिवों का प्रभाव कम करने की कोशिश की गई है, और उन्हें किनारे लगाया गया है। एक का हौसला तो इतना बढ़ गया था कि मंत्री स्टाफ से बाहर होने के बाद मलाईदार चार्ज पाने के लिए हाईकोर्ट तक चला गया, लेकिन उसे राहत नहीं मिल पाई। बात सिंचाई अफसर एके छाजेड़ की हो रही है।
छाजेड़ जोगी सरकार में मंत्री रहे दिवंगत गंगूराम बघेल के स्टॉफ में रहे। गंगूराम सीधे-सरल नेता थे। तब छाजेड़ ने उनके पीएचई डिपार्टमेंट में जमकर खेल खेला। जोगी सरकार के जाते ही वे भाजपा के मंत्रियों के करीबी हो गए। लंबे समय तक बृजमोहन अग्रवाल के यहां छाए रहे। इसके बाद प्रेमप्रकाश पाण्डेय के ओएसडी बन गए। नई सरकार में मंत्रियों के उन्होंने फिर जगह बनाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। अलबत्ता, उन्होंने विभाग में अनुसंधान अधिकारी का पद हासिल कर लिया, लेकिन जल्द ही उन्हें हटाकर अधीक्षण अभियंता कार्यालय में पदस्थ कर दिया गया। जो कि लूप लाइन माना जाता है। उन्होंने तबादला आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने प्रकरण के निपटारे के आदेश दिए। विभाग ने तमाम कोशिशों के बावजूद उनका अभ्यावेदन निरस्त कर दिया।
रावण का क्या होता अगर...
दशहरे का मौका रावण को बनाने और फिर मिटाने का रहता है। लोग रंगीले-चमकीले पुतले बनाते हैं, और फिर उसे जलाते हैं। लेकिन रावण पर क्या गुजरती होगी, उसे कोई नहीं सोचते। अभी फेसबुक पर किसी ने इस बारे में लिखा है-
1. अगर रावण के दस सिरों में से दो सिर शाकाहारी होते, तो वह तंदूरी-चिकन कैसे खाता?
2. अगर वह किसी लड़की को देखकर सीटी बजा देता तो जवाब में थप्पड़ सीटी वाले मुंह को पड़ती, या सभी दस चेहरों को?
3. उसे सारे दस चेहरों की दाढ़ी बनाने, सभी दस मुंह के दांतों पर ब्रश करने, और सभी दस सिरों के बाल बनाने के बाद समय पर दफ्तर पहुंचने का वक्त रहता?
4. अगर दो सिर बीड़ी-सिगरेट पीने वाले होते, तो बाकी के आठ सिर पैसिव स्मोकिंग की शिकायत नहीं करते?
5. बाल कटाने की जरूरत पडऩे पर नाई को हर सिर के लिए अलग-अलग स्टाईल बतानी होती, या एक सरीखी?
6. अगर वह किसी बार में जाता तो हर सिर की पसंद अलग-अलग शराब होती, या एक सरीखी? और अलग-अलग शराब भीतर जाकर मिलकर कैसा असर करती?
7. सर्दी होने पर एक सिर की नाक साफ करनी होती, या सभी दस नाक?
8. किसी से गुस्सा होने पर एक मुंह से गालियां निकलतीं, और बाकी मुस्कुराते रहते तो क्या होता?
9. मोबाइल फोन का ब्लूटूथ किस सिर के किस कान में लगाता?
10. अगर एक सिर माइकल जैक्सन सुनना चाहता, और दूसरा दलेर मेहंदी तो क्या होता?
([email protected])
अपनी पार्टी से तिरछे-तिरछे- 1
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर विधानसभा के विशेष सत्र में ड्रेस कोड में न आकर पूर्व मंत्री अमितेश शुक्ल ने पार्टी हाईकमान की नाराजगी मोल ले ली है। सदन में सत्ता और विपक्ष के सदस्य एक जैसे ही पोशाक पहनकर आए थे। अमितेश ने विशेष पोशाक तो सिलवाई थी, लेकिन पहनकर नहीं आए। बाकी सदस्यों की तरह अमितेश की पोशाक का खर्च भी शायद विधानसभा ने ही उठाया था। उन्हें सादे कपड़ों में देखकर विपक्षी सदस्यों ने काफी चुटकी ली। खास बात यह है कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की पहल पर गांधी जयंती को यादगार बनाने के लिए पहली बार देश के किसी राज्य में विशेष सत्र बुलाया गया, इसकी राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हो रही है। ऐसे मौके पर अमितेश के असंयमित व्यवहार ने पार्टी नेताओं को नाराज कर दिया। वे सदन में बोलने का मौका नहीं मिलने पर एक बार बहिर्गमन भी कर गए। सुनते हैं कि अमितेश के तौर-तरीकों से प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. महंत भी नाखुश बताए जाते हैं, जो कि अब तक उनके प्रति विशेष सद्भावना रखते रहे हैं।
जोगी परिवार नामौजूद
दो दिनी विशेष सत्र में जोगी दंपत्ति की गैर मौजूदगी भी चर्चा में रही। चर्चा है कि अजीत जोगी, फर्जी जाति प्रमाण पत्र प्रकरण की कानूनी लड़ाई में व्यस्त थे, तो डॉ. रेणु जोगी, अपने पुत्र अमित जोगी के जेल में होने के कारण परेशान चल रही थीं। हालांकि एक महीने जेल में रहने के बाद अमित को जमानत मिल गई, लेकिन तब तक सत्र का समापन हो चुका था।
अपनी पार्टी से तिरछे-तिरछे-2
प्रदेश भाजपा ने यह फैसला तो ले लिया है कि कांग्रेस के साथ भाजपा नेता किसी भी टीवी डिबेट अथवा अन्य संवाद में शामिल नहीं होंगे। मगर, पार्टी के नेता इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं। पार्टी के इस फरमान की पार्टी-प्रवक्ता श्रीचंद सुंदरानी ने धज्जियां उड़ा दी। दो दिन पहले उन्होंने गोदड़ीधाम के एक कार्यक्रम में सीएम भूपेश बघेल का न सिर्फ स्वागत किया बल्कि उन्होंने साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री ने भी हंसकर उनके साथ फोटो खिंचवाया, साथ ही सुंदरानी पर चुटकी भी ली कि फोटो दिल्ली भेज देना...। मगर, सुंदरानी इससे बेपरवाह रहे और पूरे कार्यक्रम में सीएम के आगे-पीछे होते रहे और उनके साथ मजाक करते दिखे।
राम के रूप अनेक
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में गांधी पर चर्चा होते-होते गोडसे और सावरकर से होते हुए राम पर पहुंच गई। अब राम तो हर किस्म की परिस्थिति में इस तरह इस्तेमाल किए जाते हैं कि कण-कण में राम की बात सही लगती है। कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे के राम और भाजपा के राम का फर्क बहस का सामान बन गया, और कांग्रेस, भाजपा के लोग कुछ इस तरह एक-दूसरे पर टूट पड़े कि तुम्हारा राम मेरे राम से अधिक उजला कैसे? राम की भक्ति किसी डिटर्जेंट की झकास सफेदी जैसी हो गई, और लोग अपने किस्म के, अपनी पसंद के राम के गुणगान में लग गए। लोगों को हिन्दी कहावत-मुहावरे का कोष या लोकोक्ति कोष देखना चाहिए कि राम का कितनी तरह का इस्तेमाल भाषा में होता है। पहली मुलाकात पर राम-राम से लेकर गोली खाने के बाद की बिदाई के हे राम तक, राम के अनगिनत रूप हैं। रामचरित मानस राम के व्यक्तित्व के सैकड़ों पहलू अलग-अलग घटनाओं में इस तरह बताता है कि मानो किसी हीरे के सैकड़ों पहलू हों। अब जो जिधर से देखे उसे राम वैसे ही दिखते हैं, और छत्तीसगढ़ में जहां हत्यारा गोडसे गोडसेजी हो गया है, वहां पर तो हर व्यक्तित्व के एक से अधिक पहलू दिखाई पड़ रहे हैं। भाजपा के सबसे दिग्गज विधायकों में से एक, और संसदीय कार्य मंत्री रहे हुए अजय चंद्राकर ने किसी चूक के तहत गोडसेजी नहीं कहा था, यह उनका सोचा-समझा बयान था, और इस बयान पर रामनाम की कौन सी कहावत या कौन से मुहावरे को ठीक समझा जाए, यह सोचकर देखें। ([email protected])
व्यापारियों के लिए सुनहरा मौका
सोशल मीडिया ने लोगों का हास्यबोध और व्यंग्यबोध बड़ा बढ़ा दिया है। अब पेशेवर व्यंग्यकार या व्यंग्यचित्रकार ही यह काम नहीं करते हैं, सभी लोग करते हैं। अब बिना तम्बाकू और बिना सुपारी वाला एक ऐसा मुखवास बाजार में आया जिसका नाम जीएसटी है। अब यह शब्द लोगों की जिंदगी को मुश्किल बनाने वाला, लोगों को तबाह करने वाला साबित हुआ है, लेकिन यह शब्द प्रचलन में तो खूब है, इसलिए जीएसटी नाम के माऊथ फ्रेशनर को गजब स्वादिष्ट टकाटक कहा गया है। लोगों ने इसकी तस्वीरों के साथ लिखना चालू कर दिया है कि व्यापारियों के लिए यह एक सुनहरा मौका है, पहले जीएसटी ने उन्हें खाया, अब वे जीएसटी को खा सकते हैं।
एक तो शुक्रगुजार मिला...
नंबर प्लेट से छेडख़ानी करना हिन्दुस्तान में बाहुबल का प्रदर्शन है। किसी ओहदे की ताकत, किसी धर्म या जाति की ताकत, या महज ढेर सारे पैसे की ताकत से लोग नंबर प्लेट पर छेडख़ानी करते हैं। लेकिन कुछ लोग ताकत के बजाय अपनी कमजोरी बताने के लिए भी नंबर प्लेट का इस्तेमाल करते हैं, जैसे एक नंबर प्लेट की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैर रही हैं- ससुराल से सहायता प्राप्त।
लोग इस ईमानदारी की तारीफ भी कर रहे हैं कि आमतौर पर तो लोग पाया हुआ छुपा लेते हैं और उजागर नहीं करते हैं कि उसमें किसी का योगदान भी है। लेकिन ऐसी नंबर प्लेट वाले लोग कम से कम इतनी ईमानदारी तो दिखा रहे हैं कि यह दहेज में मिली गाड़ी है। ([email protected])
विरोधी से बाद में, अपनों से पहले...
चित्रकोट उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इससे निपटने के लिए दोनों ही दलों के रणनीतिकार मेहनत कर रहे हैं। सुनते हैं कि कांग्रेस के एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को साफ तौर पर बता दिया गया है कि यदि किसी तरह की गड़बड़ी हुई, तो उनका पार्टी में कोई भविष्य नहीं रह जाएगा।
चर्चा है कि उक्त नेता मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी के नाम पर सहमत नहीं थे। चेतावनी के बावजूद पार्टी के कुछ नेता चुनाव में भीतरघात की संभावना से इंकार नहीं कर रहे हैं। कुछ इसी तरह की आशंका भाजपा के रणनीतिकारों को भी है। दरअसल, भाजपा प्रत्याशी लच्छूराम कश्यप का स्थानीय बड़े नेताओं से मतभेद रहा है। चुनाव संचालक केदार कश्यप से भी उनके मधुर संबंध नहीं रहे हैं। बस्तर ग्रामीण के जिला अध्यक्ष बैदूराम कश्यप से तो उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है। दंतेवाड़ा में बुरी हार से पार्टी के कार्यकर्ता वैसे ही पस्त हैं। प्रदेश में सरकार भी नहीं है। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों को एकजुटता के लिए ही काफी मेहनत करनी पड़ रही है।
टिकट त्रिपुरा से तय होगी?
भाजपा में महापौर-पार्षद टिकट के लिए दावेदार बड़े नेताओं के आगे-पीछे हो रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस के राज्यपाल बन जाने से भाजपा की गुटीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया है। बैस विशेषकर रायपुर संभाग में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। बैस के राज्यपाल बनने के बाद ऐसे लोगों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। एक पार्षद ने अभी से ऐलान कर दिया है कि उनकी टिकट त्रिपुरा से तय होगी। पिछले दिनों पार्टी की बैठक में बैनर-पोस्टर में अन्य नेताओं के साथ बैसजी की तस्वीर होने पर कांग्रेस ने आपत्ति की थी। भाजपा नेताओं को इसका अंदेशा भी था, लेकिन बैसजी के ही कार्यालय के कुछ लोगों ने उनकी तस्वीर हटाने से रोक दिया। अब देखना है संवैधानिक पद पर रहते बैसजी अपने करीबियों की किस तरह मदद कर पाते हैं।
गांधी और गोडसेजी का हफ्ता
छत्तीसगढ़ विधानसभा के इस विशेष गांधी सत्र ने जाने कितने बरसों के बाद गांधी को इस तरह बहस के बीच लाकर खड़ा कर दिया। और पन्द्रह बरसों के भाजपा राज के बाद प्रदेश में आई कांग्रेस सरकार ने अपनी पहली गांधी जयंती का मौका नहीं चूका, और समय-समय पर भाजपा के लोगों के गांधी के खिलाफ कही बातों के पोस्टर बनवाए, और गोडसे की जो तारीफ सार्वजनिक रूप से की गई थी, उसके भी पोस्टर बनवाए। ऐसे में जाहिर था कि भाजपा की तरफ से राजधानी रायपुर के मेयर का चुनाव लडऩे के एक महत्वाकांक्षी भाजपा नेता संजय श्रीवास्तव इन पोस्टरों का विरोध करने पहुंचे, और कुछ पोस्टरों को फाड़कर फोटोग्राफरों को मौका भी दिया। कांग्रेस का मकसद पूरा हो गया क्योंकि उसे इन पोस्टरों को चर्चा में लाना था जो कि सच थे, लेकिन कड़वा सच थे।
विधानसभा के भीतर एक सबसे चौकन्ना विधायक, भाजपा के लंबे समय तक मंत्री रहे अजय चंद्राकर ने जिस अंदाज में गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को गोडसेजी कहा, उससे भी कांग्रेस का मकसद पूरा हो गया।
लेकिन कांग्रेस और भाजपा के गांधी और गोडसे को लेकर जो भी मकसद हों, उनसे अलग आम जनता यह देखकर हक्का-बक्का थी कि छत्तीसगढ़ के बड़े-बड़े भाजपा नेता इस मौके पर भी गांधी की आलोचना करने से अपने आपको नहीं रोक पाए, और गांधी से उनके वक्त के उनके साथी नेताओं की असहमति गिनाने में लगे रहे। जाहिर है कि आम लोगों के बीच भाजपा के नेताओं ने ऐसा करके अपनी साख खासी खोई, और खेलों की जुबान में गोडसेजी जैसा सेल्फ गोल कर लिया।
लेकिन गांधी जयंती के भी बाद, और विधानसभा के गांधी सत्र के भी बाद आज गांधी की चली राह पर चलकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी धमतरी जिले के कंडेल से रायपुर तक की पदयात्रा कर रही है, और यह पूरा हफ्ता गांधीमय हो गया है। गांधी जिन्हें पसंद हों, और जिन्हें नापसंद हों, वे इस हफ्ते की अलग-अलग बातों को छांटकर खुश हो सकते हैं। लेकिन कुछ लोगों के लिए फिक्र वाली भी एक खबर है। गांधी की अस्थियों का कलश चोरी हो जाने का समाचार आया है, और जिन लोगों को फिल्म गांधी बनाने वाले रिचर्ड एटनबरो की बनाई एक दूसरी फिल्म, जुरासिक पार्क, याद हो, वे लोग सोच सकते हैं कि गांधी की अस्थियों से अगर एक गांधी खड़ा किया जा सका तो क्या होगा? खासकर सत्ता में बैठे लोगों के लिए गांधी को झेलना बड़ा मुश्किल पड़ेगा, उतनी सादगी, और उतनी किफायत से जीना हो, तो लोग मुश्किल चुनाव लड़कर सत्ता पर आने की कोशिश ही क्यों करेंगे?
([email protected])
भाजपा खुद सुधरने में लगी...
दंतेवाड़ा में करारी हार के बाद भाजपा चित्रकोट उपचुनाव एकजुट होकर लडऩे की कोशिश कर रही है। दंतेवाड़ा में एक तरह से पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह और उनके करीबी नेता ही चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए थे, जिसके नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम सहित अन्य दिग्गज नेताओं ने दूरियां बना ली थी। ये सभी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से नाराज बताए जा रहे हैं। उन्होंने दंतेवाड़ा चुनाव के माहौल के बीच ही अंतागढ़ के मंतूराम पवार के भाजपा प्रवेश के खिलाफ बहुत कड़ा बयान दिया था जो कि मंतूराम को भाजपा लाने वाले लोगों पर खुला और सीधा हमला था। वे भाजपा के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति मोर्चे के अध्यक्ष भी हैं, इसलिए आदिवासियों के मुद्दों पर उनकी ऐसी खुली-खुली और खरी-खरी बातें पार्टी के खिलाफ गईं।
सुनते हैं कि पार्टी अब असंतुष्टों को भी साधने की कोशिश कर रही है। महामंत्री (संगठन) पवन साय ने खुद रामविचार नेताम से बात की है और उन्हें चित्रकोट से पार्टी प्रत्याशी लच्छूराम कश्यप के नामांकन दाखिले के मौके पर मौजूद रहने का आग्रह किया। नेताम ने उनकी बात मान ली है। चूंकि चित्रकोट में चुनाव संचालन की जिम्मेदारी नारायण चंदेल को दी गई है, जो कि पूर्व सीएम के विरोधी खेमे से जुड़ेे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि असंतुष्ट नेता भी उनके साथ जुड़ेंगे। कुल मिलाकर दंतेवाड़ा से सबक सीखकर पार्टी चित्रकोट में एकजुटता से चुनाव लड़ेगी, यह संकेत मिल रहा है।
इस बीच आज चित्रकूट के लिए जगदलपुर में नामांकन के लिए इक_ा हुए भाजपा के भीतर के पक्ष-विपक्ष के नेताओं की जो तस्वीर सामने आई है, उनमें उनके चेहरे पार्टी का हौसला बढ़ाते नहीं दिख रहे हैं।
हनीट्रैप के दौर में...
अब यह सही और गंभीर बात है या किसी ने मजाक में ऐसा पर्चा बांटना शुरू किया है, जो भी हो आज का वक्त कुछ ऐसा ही हो गया है कि प्रेमसंबंधों और देहसंबंधों में लोगों को सावधानी बरतने की जरूरत है। लोगों को याद होगा कि कुछ बरस पहले तक गुजरात में शादी से परे के औरत-मर्द के संबंधों के लिए इसी किस्म का एक मैत्रीकरार होता था जिसमें एक निर्धारित समय के लिए आदमी-औरत साथ रहते थे, और फिर बिना किसी दावे के अलग हो जाते थे, उनका एक-दूसरे पर किसी तरह का दावा नहीं बचता था। अब वैसे ही एक दूसरे पर्चे के दर्शन हो रहे हैं। लेकिन जैसा कि हर कानूनी कागजात में होता है, इसके लिए गवाह कैसे रखे जाएंगे? उतना राजदार किसको बनाया जाएगा? ([email protected])
राजनीतिक हड़बड़ाहट...
नान घोटाले की एसआईटी जांच से पिछली सरकार में प्रभावशाली रहे नेता-अफसर हड़बड़ाए हुए हैं। पिछले दिनों प्रकरण के आरोपी एसएस भट्ट के बयान के बाद तो खंडन-मंडन के लिए पूरी भाजपा सामने आ गई। उनकी हड़बड़ाहट का अंदाजा इस बात से लगाया जा रहा है कि सोशल मीडिया में खबर उड़ी कि भट्ट के धारा-164 के आवेदन को जिला अदालत ने खारिज कर दिया है, भाजपा ने सीएम भूपेश बघेल का इस्तीफा तक मांग लिया। पूर्व सीएम रमन सिंह ने तो एक कदम आगे जाकर सीबीआई जांच की मांग कर दी। जबकि वस्तु स्थिति यह है कि भट्ट ने अब तक धारा-164 का बयान देनेे के लिए अदालत में आवेदन तक नहीं लगाया है।
कुछ इसी तरह की हड़बड़ाहट हाईकोर्ट में भी बहस के दौरान देखने को मिली। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने सीबीआई जांच की मांग को लेकर हस्तक्षेप याचिका दायर की है। सुनवाई के दौरान सीबीआई के वकील ने कहा कि कोर्ट ऑर्डर करती है, तो प्रकरण की जांच के लिए सीबीआई तैयार है। इस पर जज ने पूछा कि क्या आपने लिखित में जवाब दिया है? वकील ने कहा कि जवाब जमा नहीं हुआ है। इस पर जज ने कहा कि जनहित याचिकाओं पर सुनवाई चार साल से चल रही है, लेकिन सीबीआई को नोटिस का जवाब देने के लिए समय तक नहीं मिला। जज की टिप्पणी से सीबीआई के वकील खामोश होकर रह गए।
गुंडागर्दी और पुलिस
छत्तीसगढ़ में एक तरफ ट्रैफिक पुलिस सड़क-चौराहों पर छोटे-छोटे दुपहिए वालों को बिना हेल्मेट पकड़कर जुर्माना कर रही है, दूसरी तरफ इसी प्रदेश में पुलिस के सामने ही सत्ता और राजनीति से जुड़े हुए लोगों की बड़ी-बड़ी गाडिय़ां बिना नंबरप्लेट, शीशों पर काली फिल्म लगाए, पूरी तरह गैरकानूनी सायरन बजाते हुए अंधाधुंध दौड़ती हैं, और अगर पुलिस जरा भी हौसला दिखाती तो ये मिनटों के भीतर किसी न किसी चौराहे पर धरी गई होतीं, और अदालत से इन्हें दसियों हजार का जुर्माना हुआ होता। अब जब सत्ता और विपक्ष की ताकत वाले लोगों की ऐसी गुंडागर्दी पर पुलिस कुछ नहीं करती, तो आम लोगों के मन में न सिर्फ कानून के लिए, बल्कि पुलिस के लिए भी भरपूर हिकारत खड़ी हो जाती है। जिन लोगों पर सबसे बड़ा जुर्माना लगना चाहिए, एबुंलेंस, दमकल, या पुलिस की गाड़ी जैसे सायरन बजाने पर जिनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए, उनको छुआ भी नहीं जाता तो लोग सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें पोस्ट करने लगते हैं जो कि पुलिस के लिए एक आईना होना चाहिए। लोगों को याद पड़ता है कि एक वक्त देश की राजधानी दिल्ली में देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार का चालान कर दिया था, तो इंदिरा ने उन्हें बुलाकर अपने साथ खाना खिलाया था। अबके नेताओं को भी उससे कुछ सीखना चाहिए।
([email protected])
दंतेवाड़ा में छप्पर फाड़कर...
दंतेवाड़ा में कांग्रेस की उम्मीद के विपरीत भारी जीत ने भाजपा नेताओं को हिलाकर रख दिया है। भाजपा को शहरी इलाके दंतेवाड़ा, किरंदुल, गीदम, बड़े बचेली और बारसूर में बड़ी उम्मीदें थीं। लेकिन दंतेवाड़ा और किरंदुल को छोड़कर बाकी जगह भाजपा पिछड़ गई। कांग्रेस प्रत्याशी को साढ़े 11 हजार मतों से जीत मिली। जो कि पिछले 40 सालों में किसी भी पार्टी की सबसे बड़ी जीत है। आमतौर पर यहां त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति रहती थी और कोई भी प्रत्याशी अधिकतम 10 हजार वोट से ज्यादा अंतर से नहीं जीत पाता था।
सुनते हैं कि प्रदेश भाजपा पदाधिकारियों की बैठक में करारी हार का असर दिखा और तकरीबन सभी पदाधिकारी खामोश होकर वक्ताओं की बात सुनते रहे। किसी ने अपनी तरफ से कोई राय नहीं दी। अलबत्ता लंच ब्रेक के दौरान आपसी चर्चा में पार्टी पदाधिकारी यह कहते सुने गए कि बृजमोहन अग्रवाल को प्रभार दिया गया होता, तो नतीजा कुछ अलग होता। ये अलग बात है कि खुद बृजमोहन अग्रवाल ने पारिवारिक व्यस्तता के चलते संचालन करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। पूर्व सीएम रमन सिंह हार के बाद अपनी प्रतिक्रिया में यह जरूर कहा कि दंतेवाड़ा में हार का बदला चित्रकोट में लेंगे। मगर पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों को चित्रकोट में कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। बस्तर के एक पूर्व विधायक ने अभी से पार्टी के कुछ नेताओं को कह दिया है कि चित्रकोट में हार का अंतर दंतेवाड़ा से ज्यादा होगा। क्योंकि दंतेवाड़ा में तो पार्टी के पास सौम्य-शिक्षित महिला प्रत्याशी थी और साथ ही साथ पति की नक्सल हत्या के कारण सहानुभूति की लहर की उम्मीद थी जो कि नहीं चल पाई। चित्रकोट तो कांग्रेस की सीट रही है, जिसे छीनना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। खैर, जितनी मुंह, उतनी बातें।
हनीट्रैप के जांच अफसर...
मध्यप्रदेश के चर्चित हनीटै्रप प्रकरण की जांच कर रही एसआईटी के मुखिया संजीव शमी का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। 93 बैच के आईपीएस शमी अपने कैरियर के प्रारंभिक दिनों में बस्तर में पदस्थ रहे हैं। प्रशिक्षु पुलिस अफसर के रूप में वे चारामा में काम कर चुके हैं। उनकी सख्त कार्यशैली को आज भी लोग याद करते हैं। इस प्रकरण में छत्तीसगढ़ के अफसरों, पूर्व मंत्रियों की भी संलिप्तता की चर्चा है। मगर इन सब पर छत्तीसगढ़ पुलिस की चुप्पी लोगों को चौंका रही है। उम्मीद की जा रही थी कि यहां से भी एक टीम भोपाल पतासाजी के लिए भेजी जाएगी। लेकिन पीएचक्यू ने खामोशी ओढ़ ली है। चर्चा तो यह भी है कि पुलिस के कुछ अफसर भी हनी ट्रैप के शिकार हो सकते हैं। एक अफसर के कई बार के छत्तीसगढ़ के ही एक जिले के प्रवास को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। इन सबके बावजूद प्रकरण को दबाना मुश्किल है। क्योंकि मध्यप्रदेश सरकार इसमें पूरी रूचि ले रही है और सच जल्द ही सामने आने की उम्मीद है। ([email protected])
हनी ट्रैप का एक असर...
छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय में एक बड़े आईपीएस अफसर टेबिल पर चाय के गर्म पानी के साथ शक्कर और शहद दोनों का इंतजाम रखते थे, जिसे जो पसंद हो। पिछले चार दिनों से भोपाल के हनी ट्रैप के समाचार देख-देखकर उन्होंने शहद की बोतल हटवा दी, जिसे मिलाना हो शक्कर ही मिलाए।
हनी ट्रैप का दूसरा असर...
मध्यप्रदेश पुलिस ने दिल्ली इलाके में एक मकान किराए से ले रखा था जिसे साइबर जांच की जरूरत बताया गया था। अब सरकार उसे खाली कर रही है कि प्रदेश से इतने दूर ऐसे फ्लैट की जरूरत क्या है। ऐसी भी चर्चा है कि मध्यप्रदेश में पकड़ाए हनी ट्रैप की शहद की बोतलें गाजियाबाद के इस मकान में आती-जाती रहती थीं।
इधर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बीते कई बरसों में इंटेलीजेंस विभाग के कुछ अफसरों ने सेफ हाऊस के नाम पर मकान किराए से ले रखे थे, उन्हें लेकर भी अब यह चर्चा है कि वहां की वीडियोग्राफी कौन और किसके लिए करवाते थे, आज वह किसके पास है, और किस-किसके पल्लू ऐसी हार्डडिस्क में दबे हुए हैं?
हनीट्रैप का तीसरा असर...
भोपाल के हनीट्रैप में जब्त डायरियां सामने आईं तो हिसाब-किताब देखकर पुलिस भी हक्का-बक्का रह गई। छत्तीसगढ़ के कुछ लोगों ने इस डायरी के मुताबिक किस्तों में भुगतान किया, जो कि अभी जारी ही है, कुछ ने इन दोनों प्रदेशों से बाहर जाकर भुगतान किया, और अलग-अलग रेट से भुगतान किया। दिक्कत यह आ रही है कि नामों के संक्षिप्त अक्षरों, इनीशियल्स, से जिन नामों का अंदाज बैठ रहा है, वे एक से अधिक भी हो रहे हैं। पिछली सरकार के एक मंत्री, और एक बड़े अफसर, दोनों के नामों के इनीशियल्स एक से हैं, और इनमें से एक खूब भड़के हुए हैं कि दूसरे की वजह से उनका नाम बदनाम हो रहा है। बाकी भी बहुत से ऐसे संक्षिप्त नामों की उसी तरह संदर्भ सहित व्याख्या हो रही है, जिस तरह स्कूल में हिन्दी के पर्चे में होती थी। लोग अपने नामों वाले संक्षिप्त नाम को गलत बताते हुए यह भी कह रहे हैं कि इन्हीं दो अक्षरों से तो देश के सबसे महान व्यक्ति का नाम भी बनता है, तो क्या उसे भी इसमें गिन लोगे?
हनीट्रैप का चौथा असर...
फिलहाल छत्तीसगढ़ के राज्य सचिवालय, पुलिस मुख्यालय में आने-जाने वालों के नाम के रजिस्टरों की जांच हो सकती है कि कुछ खास तारीखों पर कुछ लोगों के भीतर जाने के पास किस मंत्री या अफसर की तरफ से बनवाए गए थे, या रजिस्टर में किससे मिलने का जिक्र था। जांच अफसरों को मोबाइल फोन के कॉल डिटेल्स के साथ फोन की लोकेशन से फोन मालकिनों की लोकेशन का अंदाज लग रहा है। और ऐसे रजिस्टरों की जिंदगी पर खतरा मंडराना बताया जा रहा है।
तब वे मांग रहे थे सीबीआई, अब ये...
प्रदेश भाजपा के मुखिया विक्रम उसेंडी भी नान घोटाले की लड़ाई में कूद पड़े हैं। उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि इस प्रकरण में रमन सरकार को बदनाम करने की कोशिश हो रही है और इसकी निष्पक्ष जांच के लिए प्रकरण सीबीआई को सौंप देना चाहिए। इस प्रकरण पर एसआईटी जांच रूकवाने के लिए भाजपा विधायक दल के मुखिया धरमलाल कौशिक पहले ही कोर्ट की शरण में गए हैं। पार्टी के कई बड़े नेता दबी जुबान में जनहित के विषयों को छोड़कर जांच रूकवाने के लिए कोर्ट जाने के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं।
सुनते हैं कि खुद उसेंडी भी आनाकानी कर रहे थे। पर हल्ला है कि कुछ बड़े नेताओं, और एक बड़े राष्ट्रीय नेता के कहने पर हाईकोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की। उसेंडी की तरफ से पैरवी के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह आए थे। विकास सिंह, अमन सिंह के भी वकील हैं। प्रकरण पर सुनवाई तीन तारीख को होगी। दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार में नान घोटाले का खुलासा होने के बाद सीबीआई अथवा कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में चार जनहित याचिका दायर हुई थीं।
ये याचिकाएं हमर संगवारी, वीरेन्द्र पाण्डेय, वकील सुदीप श्रीवास्तव और एक अन्य द्वारा दायर की गई थीं। तब रमन सरकार ने सीबीआई अथवा कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के खिलाफ थी और कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए नामी-गिरामी वकील खड़े किए थे। याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विवेक तन्खा व संजय हेगड़े पैरवी कर रहे थे, तो सरकार ने भी हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी और रविन्द्र श्रीवास्तव को खड़ा किया था। तब सरकार को बड़ी राहत मिली थी और प्रकरण को सुनवाई के लिए हाईकोर्ट भेज दिया गया। तब से अब तक इस हाईप्रोफाइल प्रकरण को लेकर तलवारें खिंची हुई हैं। प्रकरण का आखिर क्या होगा, यह कोई नहीं जानता, लेकिन जिस तरह दिग्गज वकील दोनों पक्षों की पैरवी के लिए आ रहे हैं, उससे लोगों में उत्सुकता बनी हुई है। ([email protected])
शांत करने की कोशिशें...
सत्ता हाथ से जाने के बाद भाजपा के कई बड़े कारोबारी नेता सरकार के रणनीतिकारों से मेलजोल बढ़ा रहे हैं। कुछ को तो सफलता भी मिल गई है और वे बड़े बंगले के करीब आ गए हैं। इनमें पिछली सरकार में संवैधानिक पद पर रहे एक नेता का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। ये भाजपा नेता अब दूसरों के लिए संकटमोचक साबित हो रहे हैं।
सुनते हैं कि नेताजी ने सीएम और पूर्व सीएम के बीच खटास को दूर करने का बीड़ा उठाया है। पूर्व सीएम और उनका परिवार कई तरह की जांच के घेरे में है। अदालत से एक जांच से राहत मिलती है, तो दूसरा प्रकरण सामने आ जाता है। कुल मिलाकर जांच से पूर्व सीएम-परिवार परेशान बताए जाते हैं। हालांकि भाजपा नेता को अब तक अपनी मुहिम में सफलता नहीं मिल पाई है। मगर वे कोशिश में जुटे हैं। उनके इस काम में अपने समधी का भी पूरा सहयोग मिल रहा है।
भाजपा का हाल यह है कि दो-तीन विधायकों को छोड़ दें, तो बाकी सब सीएम के मुरीद हैं। सरगुजा और बिलासपुर संभाग के भाजपा नेता तो सरकार के एक मंत्री के करीब आ चुके हैं। उन्हें मंत्रीजी से कारोबारी संरक्षण मिल रहा है। भाजपा नेताओं में सत्ता के करीब आने की बेचैनी की खबर पार्टी हाईकमान को भी है। एक-दो को बुलाकर समझाइश भी दी जा चुकी है, फिर भी कोई असर नहीं दिख रहा है। चर्चा है कि पार्टी संगठन, निकाय और पंचायत चुनाव के जरिए नए चेहरों को आगे लाने की कोशिश भी कर सकती है। देखना है आगे-आगे होता है क्या...।
छत्तीसगढ़ के शहदखोर...
मध्यप्रदेश के हनी ट्रैप के तार छत्तीसगढ़ से जुड़े होने की बात सामने आ रही है। इनमें एक आईएएस, एक आईपीएस और एक आईएफएस के साथ-साथ एक पूर्व मंत्री का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। जिस आईएएस का नाम हनी ट्रैप में होने की चर्चा है, वह अपने सीनियर अफसरों से बदजुबानी के लिए कुख्यात रहा है। साथ ही पिछली सरकार में पॉवरफुल भी रहा। आईपीएस अफसर की रंगरेलियों के किस्से तो प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय रहा है। पूर्व गृहमंत्री ने तो सीएम को पहले ही उक्त आईपीएस अफसर की करतूतों से अवगत करा दिया था। जिस आईएफएस का नाम चर्चा में है, वह हमेशा खबरों में ही रहा है। वैसे तो आधा दर्जन आईएफएस अफसरों के नाम लिए जा रहे हैं, लेकिन ये अफसर हैदराबाद और अन्य जगह ही जाना ज्यादा पसंद करते रहे हैं। फिलहाल, लोग नए-नए नाम गिनाकर चुटकियां ले रहे हैं, जितने मुंह उतनी बातें। जिसको-जिसको जिससे हिसाब चुकता करना है, वे उस नाम का संभावित रिश्ता गिनाते हुए भोपाल की तस्वीरें और वीडियो आगे बढ़ा रहे हैं। कल सुबह एक मंत्री का नाम शुरू हुआ था, और रात होते-होते बात तीन नामों तक पहुंच गई। अब सेक्स की चर्चा ही ऐसी होती है कि टी-शर्ट के धागे की तरह, अगर खिंच गई, तो फिर खिंचती ही चली जाती है।
मठ की जमीन का धंधा
रावणभाठा के निकट अंतरराज्यीय बस स्टैण्ड का निर्माण पूर्णता की ओर है। यह बस स्टैण्ड दूधाधारी मठ की जमीन पर बना है। बस स्टैण्ड शुरू तो नहीं हुआ है, लेकिन यहां दुकान हथियाने का खेल शुरू हो गया है। सुनते हैं कि कुछ लोगों ने खुद को मठ का करीबी बताकर दुकान दिलाने के नाम पर कईयों से पैसे भी ले लिए हैं। यह भी विश्वास दिलाया जा रहा है कि दुकान आबंटन में मठ का पूरा हस्तक्षेप रहेगा।
मठ के मुखिया महंत रामसुंदर दास हैं, जो कि सत्ताधारी दल से जुड़े हैं और दो बार विधायक भी रह चुके हैं। महंतजी खुद दुकान आबंटन में रूचि लेंगे या नहीं, यह साफ नहीं है। मगर उनके नाम का दुरूपयोग होने की चर्चा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि देर सबेर आबंटन के बाद एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश हो सकता है।
मठों की जमीन की लूटपाट कोई नई बात नहीं है। कांगे्रस और भाजपा दोनों पार्टियों के कई बड़े-बड़े नेता सरकार या अदालत के कुछ गड़बड़ आदेश जुटाकर धर्म के नाम की संपत्ति पर कब्जा करने, खरीदने, और बेचने के धंधे में लंबे समय से लगे हुए हैं। कई मठों के मठाधीश भी अपनी पसंद की औरतों को जमीनों से उपकृत करने का लंबा इतिहास बना चुके हैं, और एक मठ के महंत तो ऐसी ही औरतबाजी के मामले में एक कत्ल करवा बैठे थे, जिससे बचने के लिए उस वक्त के एक मुख्यमंत्री के कहे लंबा-चौड़ा दान करके जानबख्शी पाई थी। इसलिए कहने के लिए तो यह कहा जाता है कि चोर का माल चंडाल खाए, लेकिन हकीकत यह रही है कि मठ का माल बदमाश खाए।
सेक्स के तार भोपाल से रायपुर तक...
मध्यप्रदेश के इंदौर-भोपाल में सेक्स के जाल में फंसाकर नेताओं, अफसरों, और कारोबारियों से करोड़ों की ब्लैकमेलिंग के मामले में भोपाल से रायपुर तक खलबली मची हुई है। सौ के करीब वीडियो मिले हैं, और पुलिस उनमें चेहरों की शिनाख्त करने में लगी हुई है। सेक्स रैकेट चलाने वाली महिलाओं के टेलीफोन कॉल डिटेल्स में मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के जिन लोगों के नंबर मिले हैं, उन्हें देखा जा रहा है, और भोपाल की होटलों में ठहरने वाले छत्तीसगढ़ के इन लोगों की जानकारी जुटाई जा रही है। वहां जांच कर रहे अफसर इन नंबरों की लोकेशन और भोपाल की इन सुंदरियों के फोन की लोकेशन मिलाकर भी देख रही है कि कब-कब ये लोग साथ में रहे। इस बीच जो नाम हवा में तैर रहे हैं, उनके मुताबिक छत्तीसगढ़ के एक आईएएस का नाम भी आ रहा है, एक आईपीएस और एक आईएफएस का नाम भी आया है। पिछली भाजपा सरकार के एक मंत्री का भी वीडियो मिलना बताया जा रहा है। अब जांच का दायरा छत्तीसगढ़ में इस हद तक पहुंच सकता है कि इन बड़े अफसरों और मंत्रियों से इन महिलाओं ने नगद के अलावा और कौन से काम करवाए हैं।
मध्यप्रदेश से यह खबर भी मिली है कि वहां ई-टेंडरिंग में जो हजारों करोड़ का घोटाला हुआ है, उसमें भी प्रभाव डालने के लिए इन वीडियो का इस्तेमाल हुआ था। अब एक सवाल यह उठता है कि छत्तीसगढ़ में भी चिप्स में ऐसा टेंडर घोटाला हुआ है जो कि अफसरों की भागीदारी से ही हो पाया था। अब साबित कुछ हो या न हो, कम से कम जांच की आंच तो वहां तक पहुंच ही सकती है। रायपुर में कल पूरा दिन मंत्रालय और पीएचक्यू में अफसरों के जत्थे बैठकर नामों की अटकलें लगाते रहे, और ऐसे ही कई पुराने मामले भी चर्चा में रहे जिन दिनों वीडियो क्लिप की तकनीक इतनी आसान नहीं थी। लेकिन हर जगह बिना पुख्ता जानकारी के महज अटकलों से नाम छांटे जा रहे थे, जो कि खबरों में मिले संकेतों से परे अपनी-अपनी भावना के हिसाब से अधिक थे।
इस बीच छत्तीसगढ़ के सरकारी दफ्तरों में महिलाओं के साथ बदसलूकी और उनके यौन शोषण की कुछ पुरानी और कुछ नई कहानियां सिर उठा रही हैं। ([email protected])
दंतेवाड़ा में तस्वीर साफ नहीं
दंतेवाड़ा में पिछले विधानसभा के बराबर ही 61 फीसदी के आसपास मतदान हुआ। मतदान के दौरान कहीं भी अप्रिय वारदात नहीं हुई। अब चुनाव परिणाम को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। भाजपा को इस सीट पर कब्जा बरकरार रहने की उम्मीद है। वजह यह है कि दंतेवाड़ा, बचेली, किरंदुल और गीदम के नगरीय इलाकों में भाजपा के पक्ष में माहौल था। कुल मिलाकर इन इलाकों में भाजपा से ज्यादा, उम्मीदवार ओजस्वी मंडावी के पक्ष में सहानुभूति देखने को मिली। मगर ग्रामीण इलाकों में अच्छी खासी पोलिंग हुई है, जिससे कांग्रेस उम्मीद से है। इससे परे अंदरूनी इलाकों के वोटर सीपीआई के पक्ष में रहे हैं, जो कि इस बार कुछ हद तक बिखरते नजर आए। इससे भी कुछ हद तक कांग्रेस को फायदे की उम्मीद है।
भाजपा की रणनीति को भांपकर कांग्रेस ने आखिरी चार दिनों में जमकर मेहनत की और सीएम भूपेश बघेल की सभा-रोड शो हुआ। इन सबके चलते कांग्रेस, भाजपा से सीट छीनने की उम्मीद लगाए बैठी है। मतदान के दो दिन पहले नक्सलियों ने ग्रामीणों की बैठक लेकर कुछ फरमान सुनाए थे, इसके बाद नक्सल प्रभाव के ग्रामीणों का रूझान किधर रहा, इसको लेकर कयास ही लगाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा के अपने-अपने दावे हैं। ऐसे में हार-जीत का अंतर कम मतों से होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
कांगे्रस के एक बड़े नेता ने मतदान के सारे आंकड़े देखने के बाद कहा कि इस चुनाव अभियान में शुरूआत में कांगे्रस बहुत पीछे थी, और जैसे-जैसे प्रचार आगे बढ़ा कांगे्रस बढ़ती गई, लेकिन वे भी यह नहीं कह पा रहे थे कि कांगे्रस जीत की लकीर पार कर चुकी है।
भूपेश के दिमाग की टोह नहीं
छत्तीसगढ़ का सचिवालय हो या कोई और सरकारी दफ्तर, हर जगह लोगों के कामकाज में एक सावधानी दिख रही है, और बातचीत में एक सतर्कता। लोगों को यह तय नहीं है कि भूपेश बघेल सरकार अगली ट्रांसफर लिस्ट में किसे कहां करेगी। और तो और मुख्य सचिव किसे बनाया जाएगा, इसे लेकर भी आधा दर्जन अलग-अलग अटकलें चल रही हैं। लोग एन. बैजेंद्र कुमार की राज्य वापिसी से लेकर अजय सिंह की सचिवालय वापिसी तक की सोच रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं कि उनके दिमाग की टोह उनके मंत्रियों के पास भी नहीं है। उनका सचिवालय भी कोई जानकारी नहीं बता पाता कि क्या होने जा रहा है। यह मामला पिछली सरकार के मुख्यमंत्री-सचिवालय से एकदम अलग इसलिए है कि उसमें सीएम के करीबी अफसर फैसले लेने के लिए जाने जाते थे, और उनसे बातचीत से आने वाले कई फैसलों का अंदाज लग जाता था। लेकिन उस वक्त भी कुछ फैसले लोगों को चौंकाने वाले थे, मुख्य सचिव जॉय ओमेन को वक्त के पहले हटाना, डीजीपी विश्वरंजन को पल भर में हटा देना, या कई लोगों को समय के पहले प्रमोशन देना।
एक खबर से खलबली
अब राज्य नए मुख्य सचिव की अटकलों से गुजर रहा है, और दिल्ली से आई हुई एक खबर से भी सरकार में कुछ खलबली है। यह खबर कहती है कि केंद्र सरकार एक नई नीति लागू कर रही है जिसके मुताबिक साठ बरस की उम्र या 33 बरस की नौकरी, जो भी पहले पूरी हो, उस वक्त रिटायर कर दिया जाएगा। इसमें सबसे अधिक नुकसान में वे लोग रहेंगे जो कि कम उम्र में नौकरी में आते हैं, और 60 बरस के पहले ही 33 बरस की नौकरी हो जाती है। अब इस चर्चा को करते हुए पुलिस अमले के लोग डीजीपी डीएम अवस्थी की तरफ देखने लगते हैं जो कि ऐसे किसी नियम के आने पर 2020 में रिटायर हो सकते हैं, ऐसा पुलिस के कुछ अफसरों का आंकड़ा कहता है। सबसे कम उम्र में आईएएस बनने वाले बाबूलाल अग्रवाल अब ऐसे किसी नियम-कायदे से परे हो चुके हैं क्योंकि उनके अपने कामों ने उनका जो हाल किया है, उसके बाद सरकारी सेवा का कोई भी नियम उनका भला नहीं कर सकता।
([email protected])
अपने-अपने सहारे...
जाति प्रमाणपत्र फर्जी करार देने के बाद जोगी पिता-पुत्र भूपेश सरकार से बेहद खफा हैं। अमित जेल में हैं, इसलिए वे कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन अजीत जोगी ने दंतेवाड़ा उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत लगाई है। वे आखिरी के चार दिन दंतेवाड़ा और आसपास के इलाकों में सभा लेकर अपने प्रत्याशी को जिताने की अपील करते रहे। सुनते हैं कि उन्होंने उन स्थानों पर ज्यादा प्रचार किया, जहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत मानी जाती रही है। मसलन, पालनार इलाके में ईसाई मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है और ये कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। यहां अजीत जोगी ने काफी समय बिताया। जोगी की मेहनत से भाजपा को कितना फायदा मिल पाता है, यह चुनाव नतीजे के बाद ही पता चल पाएगा। हालांकि भाजपा पिछले 15 बरसों की तरह इस बार भी जोगी से मदद मिलने की उम्मीद में है चाहे वह जोगी के कांगे्रस में रहते हुए घोषित या अघोषित मदद रही हो, या फिर अंतागढ़ नाम की मदद रही हो। अब सारी पार्टियां स्टिंग ऑपरेशनों को लेकर इतनी चौकन्नी हो गई हैं कि दंतेवाड़ा में दूसरा अंतागढ़ होने के आसार नहीं दिख रहे हैं, लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा को जोगी का सहारा, और कांगे्रस को मंतूराम पवार का।
संजय की उम्मीद और अड़चन
आरडीए के पूर्व अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव राजधानी रायपुर के महापौर टिकट के प्रमुख दावेदार हैं। वे पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के करीबी माने जाते हैं और सौदान सिंह का वरदस्त तो है ही, मगर उन्हें टिकट मिलना आसान भी नहीं है। वजह यह है कि पंडरी में आरडीए की एक जमीन बेचने के मामले में उन पर आंच आ सकती है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि जमीन बेचने से पहले आरडीए अध्यक्ष की हैसियत से उन्होंने कानूनी सलाह ली थी। लेकिन जानकार मानते हैं कि यह उनके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। वैसे भी सरकार इससे जुड़ी फाइलें खंगाल रही है। कार्रवाई में दिक्कत यह है कि जिसने जमीन खरीदी है, वह कांग्रेस के एक पूर्व विधायक का बेटा है। इस पूरे प्रकरण पर कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लोग संजय के लिए दिक्कत खड़ी कर सकते हैं। कांगे्रस के इस पूर्व विधायक ने इस मामले में जाकर आरडीए के विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर से भी मुलाकात की और अनुरोध किया कि इस मामले को निपटा दिया जाए, लेकिन डेढ-दो सौ करोड़ दाम की इस जमीन की कानूनी दिक्कत को निपटाना बिना बड़ी बदनामी के होना नहीं था, इसलिए अकबर ने हाथ जोड़ लिए।
संजय को लेकर नाराजगी यह है कि पिछले कई चुनावों में वे रायपुर उत्तर से टिकट के मजबूत दावेदार रहे हैं। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में भी टिकट मांगी थी। टिकट नहीं मिलने पर वे पलायन कर गए। यानी वे राजनांदगांव और कवर्धा में चुनाव प्रचार के लिए निकल जाते रहे है। अब सारे विरोधी उनके लिए अभी से लामबंद हो रहे हैं।
([email protected])