राजपथ - जनपथ
शाह ने नहीं दिया भाव...
अमित शाह रायपुर आए, तो यहां के दिग्गज भाजपा नेता भूपेश सरकार के खिलाफ शिकवा-शिकायतों के लिए तैयार बैठे थे। परंतु अमित शाह किसी से ज्यादा बातचीत के मूड में नहीं थे। उन्होंने माना एयरपोर्ट पर पार्टी नेताओं का अभिवादन स्वीकार किया, लेकिन कोई चर्चा नहीं की। इसी बीच रायपुर सांसद सुनील सोनी ने मौका पाकर अमित शाह से शिकायती लहजे में कह दिया कि भाई साब, प्रदेश में कोरोना तेजी से फैल रहा है...। इस पर अमित शाह ने यह कहा कि कोरोना तो पूरे देश में फैल रहा है। रोज का आंकड़ा एक लाख पहुंच गया है। इतना कहकर शाह आगे बढ़ गए।
गांव के गांव पॉजिटिव ?
अमित शाह के जगदलपुर से आने के पहले इंतजार में वीआईपी लाउंज में पूर्व सीएम रमन सिंह, अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, और सरकार के मंत्री ताम्रध्वज साहू व अन्य आपस में बतिया रहे थे। अजय चंद्राकर ने ताम्रध्वज से कहा कि गृहमंत्री होने के बाद भी आप बीजापुर क्यों नहीं गए? नक्सल घटना के बाद जयसिंह अग्रवाल वहां गए, वहां राजस्व मंत्री का क्या काम था? तामध्वज ने सफाई दी कि आंख का ऑपरेशन हुआ है, इसलिए बीजापुर नहीं जा सका।
आपसी चर्चा में कोरोना के बढ़ते मामलों पर भी चिंता जाहिर की गई। पूर्व सीएम रमन सिंह यह बता रहे थे कि राजनांदगांव में कोरोना की वजह से बुरा हाल है। अस्पतालों में बेड नहीं है। रोज अस्पताल में भर्ती कराने के लिए सिफारिशें आ रही हैं। लोग रायपुर पहुंच जाते हैं। ऐसी परिस्थिति हो गई है कि किसी को कुछ कहते नहीं बन रहा है। बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम और अजय चंद्राकर ने भी हामी भरी। अजय चंद्राकर ने कहा कि उनके क्षेत्र में तो गांव के गांव पॉजिटिव हो गए हैं। भाजपा नेता इस बात पर एक मत थे कि कम्युनिटी स्प्रेड हो गया है।
वीडियो जारी कर सफाई
रायपुर में कोरोना की वजह से तेलीबांधा के दो व्यापारी आपस में उलझ गए हैं, और सोशल मीडिया में वीडियो जारी कर एक-दूसरे पर कोरोना फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। मनीष कुकरेजा नाम के एक व्यापारी ने सबसे पहले वीडियो जारी कर बताया कि वे अपने परिचित मोहन नेभानी की दूकान में बैठे थे। मोहन और उनका बेटा कोरोना पॉजिटिव था। बावजूद उन्होंने किसी को इसकी जानकारी नहीं दी, और दूकान खोलकर बैठे रहे, और बिना मास्क के बातचीत करते रहे। जिसकी वजह से मुझे और मेरी पत्नी को कोरोना हो गया।
मनीष का वीडियो फैलते ही मोहन के बेटे यश नेभानी ने जवाब में वीडियो जारी कर सफाई दी, और कहा कि मनीष मथुरा से लौटे थे, और उन्हें रायपुर आने के बाद क्वॉरंटीन होना चाहिए था, लेकिन वे हमारे दूकान आए। और मेरे पिता से काफी देर तक चर्चा की। यश ने कहा कि मनीष की वजह से ही उन्हें और उनके पिता को कोरोना हुआ है। यश ने यह भी सफाई दी कि चार तारीख को उन्होंने कोरोना टेस्ट कराया, और पॉजिटिव आने के बाद से दूकान बंद है। कोरोना किसकी वजह से इसको करोना हुआ है, यह पता लगाना मुश्किल है। मगर दोनों वीडियो की काफी चर्चा हो रही है।
पीएमओ या मौलश्री विहार से फोन
धमतरी भाजपा संगठन के मुखिया इन दिनों काफी परेशान हैं। उन पर पार्टी के एक युवा नेता ने दबाव बनाया है कि उन्हें जिले के कोर ग्रुप में रखा जाए। युवा नेता को समझाने की काफी कोशिश की गई, कि कोर ग्रुप सदस्य के लिए जरूरी क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठ रहे हैं इसलिए उन्हें नहीं रखा गया। मगर युवा नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने संगठन मुखिया को साफ शब्दों में चेतावनी दे रखी है कि पीएमओ और मौलश्री विहार से उन्हें (संगठन मुखिया) फोन आएगा तब तो उन्हें रखना ही होगा। संगठन मुखिया, युवा नेता की हैसियत से वाकिफ भी हैं, और उन्होंने तय कर रखा है कि जब तक पीएमओ या मौलश्री विहार (रमन निवास) से फोन नहीं आएगा तब तक उनके नाम पर विचार भी नहीं किया जाएगा।
राजस्व विभाग में एक मौत की दहशत
तखतपुर में पटवारी को जिम्मेदार बताकर एक किसान ने फांसी क्या लगाई, पटवारियों के साथ-साथ तहसीलदार और दूसरे अधिकारियों की जान सांसत में पड़ी है। प्रदेश के दूसरे स्थानों पर इसका असर भले ही न दिखे लेकिन तखतपुर में तो है। इस इलाके के ग्राम केकती की सरपंच ने ग्रामीणों के साथ पहुंचकर एसडीएम से वहां की महिला पटवारी के खिलाफ शिकायत कर दी। आम तौर पर पहले ऐसी शिकायतें औपचारिक जांच के बाद फाइलों में कैद हो जाती हैं। समस्या निवारण शिविरों में की गई शिकायत पर भी लीपा-पोती कर दी जाती है। पर, यहां अभी किसान की मौत का मामला सुलग रहा है। शिकायत मिलते ही, एसडीएम और तहसीलदार गांव पहुंच गये। पैदल घूमते रहे, लोगों के दरवाजे पर दस्तक दी और पूछा- आपको पटवारी से कोई शिकायत तो नहीं? शिकायत कई लोगों ने की, कई ने कहा, अभी तो कुछ काम नहीं पड़ा। पर शिकायत की जांच के इस तरीके और अफसरों की मुस्तैदी ने लोगों को हैरान कर दिया। ऐसे किस्से पहले सुना करते थे कि राजा अपनी प्रजा का हालचाल पूछने पैदल ही निकल पड़ते थे और अपने मुलाजिम को मौके पर ही दंड देते थे। फिलहाल, पटवारी की शामत आयेगी या उन्हें बख्शा जायेगा? एसडीएम ने इसका फैसला मौके पर नहीं लिया, वे पटवारी से जवाब लेने के बाद कुछ करेंगे।
ये टीका हमका भी लगवा दे ठाकुर...
अभिनेता हों या खलनायक, फिल्मी चरित्रों के सहारे पहुंचाई गई बात लोगों के दिमाग बड़ी तेजी से असर डालता है। अमिताभ बच्चन, विद्या बालन, आमिर खान, अक्षय कुमार जैसे स्टार्स तो अनेक सरकारी योजनाओं के प्रचार में लगे हैं। क्रिकेट का भी क्रेज है, जैसे वन विभाग ने हाथी पर लोगों को जागरूक करने के लिये अनिल कुम्बले को ले रखा है। बहरहाल, ये पोस्टर कोविड से बचाने के लिये है। 45-46 साल पुरानी फिल्म शोले के डॉयलाग आज भी मशहूर हैं। कई लोगों को इसके कई हिस्से कंठस्थ भी हैं। कोरोना वैक्सीन के प्रति जागरूकता के लिये ऐसा भी एक पोस्टर बनाया गया है, जो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि रामगढ़ वाले कोरोना टीका लगवाने के बाद टेंशन फ्री हैं।
मोर बिजली ऐप की खासियत
आम तौर पर सरकारी उपक्रमों के ऐप और पोर्टल ज्यादा काम के नहीं होते। वे अपडेट भी नहीं किये जाते। महीनों पुरानी जानकारी भरी रहती है। उपयोगी सेवायें अवरुद्ध रहती हैं। फिर भी बहुत से ऐप अभी अच्छी तरह काम कर रहे हैं जैसे मोर बिजली ऐप।
आप बिजली बंद की शिकायत फोन से करना चाहेंगे तो या तो फ्यूज काल सेंटर का फोन उठेगा ही नहीं या फिर व्यस्त मिलेगा। ऐप से शिकायत न केवल तुरंत दर्ज होती है बल्कि रजिस्ट्रेशन नंबर भी आ जाता है। सुधार नहीं होने पर आप दुबारा पूछताछ कर सकते हैं। मैनुअल शिकायत का कोई रिकार्ड बिजली शिकायत केन्द्र में है या नहीं पता नहीं चलता। ऐप से की गई शिकायत पर प्राय: जल्दी कार्रवाई हो जाती है। यही नहीं मेंटेनेंस या किसी दूसरे कारण से बिजली बंद है तो शिकायत दर्ज करने से पहले स्क्रीन पर बताया जायेगा। यह भी पता चल जायेगा कि बिजली कब चालू होगी। बिजली बिल आप अपनी मनचाही तारीख में पाने के लिये ऑनलाइन रीडिंग कर सकते हैं और ऑनलाइन बिल भी इस आ जायेगा। भुगतान की सुविधा में स्टेप्स जरूर कुछ ज्यादा है। इसे मोबाइल पेमेंट के ऑप्शन से अभी नहीं जोड़ा गया है पर डेबिट कार्ड या नेट बैंकिंग से भुगतान किया जा सकता है। आपको अपनी साल भर की खपत का ट्रेंड दिखेगा, टैरिफ दिखेगा, हाफ बिजली योजना का आपने कितना लाभ लिया जैसी कई सुविधा इस एप में है। यह सब इसलिये भी बताना जरूरी है कि गूगल प्लेटफॉर्म पर इसे 4 प्लस रेटिंग हाल ही में मिली है। इसे 50 लाख लोग अब तक डाउनलोड भी कर चुके हैं।
मास्क पहनेंगे तो ब्यूटी पॉर्लर कैसे चलेगा?
आम लोगों को जब मास्क पहनने कहा जा रहा है तो सरकार के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से भी इसे व्यवहार में लाने की उम्मीद की जाती है। लोग उनसे सीख लेंगे। मगर ऐसा नहीं है। अपने ही प्रदेश के कुछ आईएएस हैं। वे कोविड के बचाव के लिये बैठक लेते हैं, कोरोना गाइडलाइन का पालन कैसे कराना है अफसरों को बताते हुए भी मास्क नहीं पहनते। कई मंत्री, विधायक भी सार्वजनिक कार्यक्रमों मास्क पहने हुए नहीं दिख रहे। कई लोग पहनते हैं तो उसे डुढ्ढी में लटकाये रहते हैं। मुंह और नाक खुली रह जाती है। करीब 15 दिन पहले एक सीतापुर के एक कार्यक्रम में बिना मास्क लगाये पहुंचे खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने जवाब दिया- डर तो मुझे भी लगता है, पर मास्क पहन नहीं पाता। आगे यह भी जोड़ा- कोरोना होगा तो मुझे ही होगा न? यानि आपको चिंता करने की जरूरत नहीं।
पर सबसे नायाब जवाब है असम के वित्त मंत्री हेमन्त बिस्वा का। एक न्यूज पोर्टल ने उनसे पूछा कि केन्द्र के निर्देश के बावजूद आप मास्क क्यों नहीं पहनते? उन्होंने कहा- केन्द्र का निर्देश है, पर हम नहीं पहनते। नहीं है तो नहीं है। सवाल दोहराये जाने पर उन्होंने रहस्य बताया- हमें अपने राज्य की इकॉनॉमी को भी रिवाइव करना है। मास्क पहन लेंगे तो ब्यूटी पार्लर कैसे चलेंगे?
मास्क पहनने का आपकी खूबसूरती, ब्यूटी पार्लर से सीधा रिश्ता है यह राज मंत्री जी ने जगजाहिर कर दिया।
खतरनाक होता है, शांति से मर जाना...
बीजापुर नक्सली हमले में 22 जवानों की शहादत ने पूरे छत्तीसगढ़ को झकझोर कर रख दिया है। सभी का साहस सराहा जा रहा है। इनमें जांजगीर जिले के सब-इंस्पेक्टर दीपक भारद्वाज को भी लोग याद कर रहे हैं। नवोदय मल्हार से उन्होंने स्कूली शिक्षा ली उसके बाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ते रहे। इसी दौरान उन्होंने बहुत मित्र बनाये। वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे उसकी तैयारी भी कर रहे थे। इसी दौरान सब-इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा की वेकेंसी निकली और उसका फॉर्म उन्होंने भर दिया। फिटनेस और सेहत पर वह कितना ध्यान देते थे इसका अंदाजा उनकी तस्वीरों को देखकर लगाया जा सकता है। इन सब के अलावा वे साहित्य में भी रुचि रखते थे। उनके एक मित्र ने सोशल मीडिया पर अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की एक पसंदीदा कविता शेयर की है-
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती/ पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती/ गद्दारी और लोभ की मु_ी सबसे खतरनाक नहीं होती/ बैठे- बिठाये पकड़ा जाना बुरा/ सहमी सी में जकड़ा जाना बुरा तो/ सबसे खतरनाक नहीं होता/कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है/ मु_ियां भींचकर बस वक्त निकाल देना बुरा तो है/ सबसे खतरनाक नहीं होता/ सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से मर जाना।
सोशल मीडिया पर दीपक के दोस्तों के अलावा अनेक शिक्षकों व प्रशासनिक अधिकारियों के श्रद्धांजलि से पोस्ट भरे हुए हैं। कई कर्मचारी नेताओं ने उनसे जुड़े संस्मरण याद किये हैं। दीपक के पिता राधेलाल एक कर्मचारी नेता हैं।
केन्द्रीय मदद अचानक कम क्यों हुई
नक्सल प्रभावित राज्यों को केन्द्र से हर साल बड़ी राशि मोर्चे के लिये भेजी जाती है। छत्तीसगढ़ के अलावा आंध्रप्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलगांना ऐसे राज्यों में शामिल हैं। एक सरकारी आंकड़ा बताता है कि बीते वित्तीय वर्ष में केन्द्रीय सहायता एकदम से घटा दी गई। सन् 2019-20 और उसके पहले 2018-19 में इन राज्यों को करीब एक हजार करोड़ का आबंटन किया गया लेकिन सन् 2020-21 में राशि घटाकर, 393 करोड़ कर दी गई। छत्तीसगढ़ को भी मिलने वाली राशि एक चौथाई रह गई, जिसे नक्सल समस्या से सर्वाधिक प्रभावित राज्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ को पिछला आबंटन 71.25 करोड़ रुपये ही था जबकि 2019-20 में 266.54 करोड़ मिले थे।
क्या पिछले साल कोविड समस्या के कारण आर्थिक संकट के चलते आबंटन घटाना पड़ा? या फिर उसके पहले के दो साल में किये गये हजार-हजार करोड़ का कोई नतीजा नहीं मिलता, पाया गया? नक्सलियों से लोहा लेने में इस आबंटन की कमी का कोई असर है? इन सवालों पर शायद अब बात हो।
जिंदगी का बेपटरी हो जाना ज्यादा तकलीफदेह
स्कूल कॉलेजों में नये सत्र की शारीरिक उपस्थिति के साथ पढ़ाई की तैयारी बस चल ही रही थी कि कोरोना महामारी अधिक रौद्र और आक्रामक रूप से सामने आ गई। उत्सवधर्मी देश के लोग होली पर मिलने-जुलने और रंग खेलने से रह गये। नवरात्रि पर देवी मंदिरों के पट पाबंदियों के साथ खुलेंगे। पर्यटन स्थलों और अभयारण्य के सैर-सपाटों पर रोक लग गई। मंत्रालय में 50 प्रतिशत उपस्थिति का आदेश जारी हो चुका है। जिला मुख्यालयों से भी ऐसी ही मांग हो रही है।
दूसरी तरफ भयावहता की आशंका के बावजूद बाजार, उद्योगों और रोजगार देने वाले निजी प्रतिष्ठानों को बंद करो, कहने की हिम्मत सरकार नहीं जुटा पा रही, न ही लोग ऐसा चाहते हैं। परिवहन सेवायें जारी हैं, खाद्यान्न आपूर्ति एक हद तक सहज बनी हुई है। लोगों को नौकरी से दूसरी बार बाहर करने की कोई बड़ी खबर नहीं आ रही है। मजदूरों की देशव्यापी दारूण घरवापसी के विचलित करने वाले दृश्य दिखाई नहीं दे रहे हैं। कुछ व्यवसाय जिनका समूह से वास्ता है, फिर से जरूर खतरे में आ गया है। जैसे जगराता, शादी ब्याह में टेंट, बैंड बाजे की मांग एक बार फिर नहीं होना है। होटल व पर्यटन व्यवसाय पर भी फिर से ग्रहण लग रहा है।
इस वातावरण में लोग मन में छिपी चिंता व भय की अवहेलना कर हिम्मत के साथ नये तूफान का सामना कर रहे हैं। लॉकडाउन से जिस तरह जीवन बेपटरी हो गई थी, फिर से वह नौबत न आये, ताकत पूरी इसी बात पर लगाई जा रही है।
अधिकारी को हटाने के खिलाफ आंदोलन
अधिकारियों के रवैये से परेशान होकर लोग आंदोलन कर उन्हें हटाने की मांग करते हैं। पर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई अधिकारी अपने विभाग में या नागरिकों के बीच इतनी पैठ बनाते लेते हैं कि उनके तबादले का विरोध करने के लिये भी सडक़ पर उतर जाते हैं। कोरिया जिले में ऐसा ही कुछ हुआ है। खोंगापानी नगर पंचायत की सीएमओ ज्योत्सना टोप्पो का स्थानांतरण जिले के ही सूरजपुर में कर दिया गया। वहां के प्लेसमेंट और सफाई कर्मचारी इसके विरोध पर उतर आये। वे अपना रिक्शा लेकर सडक़ पर आ गये। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को हर माह नियम से तनख्वाह देने वाली इस अधिकारी का तबादला उचित नहीं है। नये के आने से दिक्कत हो जायेगी। वैसे उनका तबादला प्रदेशभर के 58 तबादलों के साथ नगरीय पंचायत विभाग ने किया है। कई बार ऐसा होता है कि अधिकारी खुद ही जगह नहीं छोडऩा चाहता और दबाव बनाने के लिये कर्मचारियों या स्थानीय लोगों से विरोध कराते हैं। कई बार ठेकेदारों, सप्लायरों का भी हित जुड़ा होता है। नये अधिकारी आयेंगे तो उनका रुका हुआ बिल कहीं लटक न जाये। इस मामले में ऐसा कुछ है या नहीं, साफ पता नहीं लग सका है।
संक्रमण फैलने से रोकने का कोई मानक बनेगा?
बाजार को सीमित समय के लिये खोलने, रात का कफ्र्यू लगाने, शाम होते ही बाजार बंद करने जैसे उपायों का अक्सर सोशल मीडिया पर मजाक बनाया जाता है। कहा जाता है कि शायद कोरोना वायरस रात में निकलता है, जब लोग कम होते हैं। दिन में नहीं निकलता, जब ज्यादा भीड़ होती है। पर इस पर छत्तीसगढ़ के इंडियन मेडिकल एसोसियेशन ने सरकार को कुछ गंभीर किस्म के सुझाव दिये हैं। सुझाव में यह भी है कि सीमित समय के लिये बाजार खोलने के चलते भीड़ इक_ी हो रही है। भीड़ की वजह से आपात सेवाओं में बाधा होती है और प्रशासन केवल कानून व्यवस्था को संभालने में लग जाता है।
आईएमए का यह भी कहना है कि घर से बाहर निकलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव पर जोर दिया जाये ताकि सोशल डिस्टेंस, मास्क उनके जीवन का हिस्सा बने। आईएमए सरकार की इस बात से सहमत है कि लॉकडाउन से रोजी-रोटी मारी जाती है। यहां तक कि वह शराब दुकानों को खोलने के खिलाफ भी नहीं है पर उनका कहना है कि सबसे ज्यादा अनियंत्रित भीड़ वहीं इक_ी होती है। इसे काबू में किया जाये। सरकार को आईएमए ने करीब दर्जन भर सुझाव दिये हैं। चूंकि यह उन डॉक्टरों का सुझाव है जो कोरोना की लड़ाई में नागरिकों की पहली पंक्ति पर रहकर मदद कर रहे हैं, संभव है, सरकार इन सुझावों को गंभीरता से ले।
रामनाम का भरोसा है..
कोरोना के खौफ के बीच कांग्रेस के कई नेता पंचायत चुनाव प्रचार के लिए यूपी गए हैं। पार्टी हाईकमान ने अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को मजबूत करने की नीयत से इन नेताओं को यूपी भेजा है। देशभर में कोरोना डरा रहा है, तो कांग्रेस नेताओं को यूपी में अलग तरह का माहौल देखने को मिला।
कांग्रेस नेता संजय सिंह ठाकुर और उधोराम वर्मा, जब यूपी के जौनपुर पहुंचे, तो उन्हें लोग हैरत भरी निगाहों से देखने लगे। दरअसल, दोनों नेता मास्क लगाए हुए थे, और वहां कोई भी मास्क पहने हुए नहीं थे। लोग उन्हें बीमार समझने लगे। इससे दोनों कांग्रेसी असहज महसूस करने लगे, और आखिरकार उन्होंने मास्क उतार दिया।
संजय और उधोराम, जौनपुर जिला कांग्रेस के पर्यवेक्षक बनाए गए हैं। दोनों जिला कांग्रेस की बैठक लेने पहुंचे, तो वहां भी किसी ने मास्क नहीं पहना था। सामाजिक दूरी का पालन करना तो दूर की बात रही। कुल मिलाकर वहां के लोग कोरोना से बेखौफ नजर आए।
ऐसा नहीं है कि यूपी में कोरोना के प्रकरण नहीं मिल रहे हैं। यूपी की आबादी छत्तीसगढ़ से 10 गुना अधिक है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बराबर कोरोना की जांच नहीं हो रही है। छत्तीसगढ़ के हालात से घबराए नेताओं ने वहां कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर जानकारी लेने की कोशिश की, तो पता चला लोग वैक्सीन लगाने में रूचि नहीं ले रहे हैं। लोग मानते हैं-होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
ट्रक वालों को चाय पिलाते जवान
आईएएस, आईपीएस जब जिलों की कमान संभालते हैं तो कुछ नया प्रयोग करते हैं, जिससे उनका कार्यकाल वहां उनकी छाप छोड़ दे। यातायात सुधार, पौधारोपण, कोचिंग क्लास जैसे अनेक आइडियाज़ उनके दिमाग में होते हैं। कई अफसर राह चलते रुककर जरूरतमंदों की मदद कर या उत्पातियों को थप्पड़ मारकर भी पहचान बनाते हैं। यह अलग बात है कि उनके जाने के बाद इन प्रयोगों का शटर गिर जाता है।
सरगुजा जिले में भी इन दिनों इसी तरह का एक प्रयोग हो रहा है। हाईवे पर ओवरनाइट भारी वाहन के चालकों के लिये पुलिस जवानों से गरमागरम चाय पिलाने की व्यवस्था की है। उन्हें तीन-चार तरफ की अंतर्राज्जीय मार्गों की चौकियों, थानों पर रोका जा रहा है। पुलिस जवान गरम चाय पिलाते हैं, उनसे कुछ बातें करते हैं। मंगलमय यात्रा की शुभकामना देकर रवाना करते हैं।
सुनने में अटपटा लग सकता है। पर ऐसा वहां के पुलिस कप्तान के निर्देश पर एक खास मकसद से किया जा रहा है। वे यह मान रहे हैं कि रात में दुर्घटनायें अक्सर झपकी आने से होती है। चाय पीने से तरावट आयेगी तो चालक चैतन्य हो ड्राइव करेंगे, नींद नहीं आयेगी। इससे हाईवे पर देर रात होने वाली दुर्घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।
ऐसा है कि आधी रात को जब पुलिस हाथ देकर ट्रक रोकती होगी तो ड्राइवर की नींद अगर आने वाली भी हो तो वह उड़ जाती होगी। पर वे अचरज में पड़ जाते होंगे कि चाय-पानी की व्यवस्था करने के नाम पर कुछ वसूली नहीं हो रही। गंगा उल्टी बह रही है।
किसी भी नये प्रयोग से अगर सुधार दिखे तो उसकी तारीफ होनी चाहिये। हो सकता है कि एसपी की इस पहल के नतीजे भी मिले, देर रात होने वाली दुर्घटनायें घटें। आगे की चौकियों में इस बात का ध्यान भी रखा जाये कि पुलिस की खातिरदारी से गद्गद ड्राइवर तेज डेक बजाते हुए आगे बढ़ें और एक्सिलेटर इतना दबा दे कि कोई अनहोनी हो जाये।
विधायक का सोशल मीडिया चैलेंज
कोरोना के दूसरे आक्रमण पर सोशल मीडिया पर वक्त ज्यादा बिताने के लिये तैयार रहिये, जैसा पिछली बार हुआ था। इसका आगाज़ भी हो चुका है। कल से ही देखा जा रहा है कि कांग्रेस, भाजपा के बड़े नेताओं सहित अनेक जागरूक और दलीय पक्षधरता रखने वाले लोगों के लगातार कमेन्ट आ रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण क्या रोड सेफ्टी इंटरनेशनल क्रिकेट से बढ़ा। इस जंग में डॉ. रमन सिंह और टीएस सिंहदेव भी शामिल हो गये थे।
पर ये तो गंभीर मुद्दे हैं, लोग तो हल्की फुल्की बातें ज्यादा पसंद करते हैं। जैसे कि विधायक शकुंतला साहू ने ट्विटर पर कहा कि आज जो मुझे फॉलो करेगा, मैं भी उसे फॉलो बैक करूंगी। पोलिटिकल सिलेब्रिटी हैं, लोगों ने गंभीरता से लिया। ट्विटर पर एक ही दिन में उन्हें फॉलो करने वालों की संख्या एक हजार से ज्यादा बढ़ गई। किसे अच्छा नहीं लगेगा कि कोई विधायक उन्हें फॉलो करने पर बैक फॉलो का भरोसा दे। लगभग सबको भाई सम्बोधित कर रही हैं, लोग उन्हें दीदी कह रहे हैं।
कई ने कहा आप झूठ बोल रही हैं। मोदी की तरह जुमला दे रही हैं। मगर, पोस्ट्स देखने से पता चलता है कि सचमुच वह बहुत से लोगों को फॉलो करती जा रही हैं। कब तक, पता नहीं क्योंकि लोग उनसे तरह-तरह की समस्याओं पर जो सरकार से जुड़ी भी हैं और उनकी व्यक्तिगत भी है, उस पर जवाब मांग रहे हैं।
चेक करिये विधायक ने आपको बैक फॉलो किया या नहीं।
कोटवार रोकेगा कोरोना का हमला
कोरोना के फिर बड़े आक्रामक तेवर के साथ लौटने की चिंता भरी खबरों के बीच कई लतीफे मूड हल्के करने वाले तैयार हैं। अब छत्तीसगढ़ के संदर्भ में वाट्सएप पर चल रहे इस जोक को ही ले लीजिये-
स्वास्थ्य मंत्री ने फोन करके पूछा- ‘कोरोना बढ़ रहा है, क्या करें’
सीएम ने मंत्री से कहा- ‘उचित निर्णय लीजिये, आप ही लीजिये।’
मंत्री जी से सीएस को फोन किया- ‘उचित निर्णय लीजिये, आप ही लीजिये।’
सीएस ने कलेक्टर्स की वीसी ली और कहा- ‘निर्णय लीजिये, आप लीजिये।’
कलेक्टर्स ने एसडीएम को, एसडीएम ने तहसीलदारों को और तहसीलदारों ने अब कोटवारों से कह दिया है- ‘उचित निर्णय लीजिये, आप ही लीजिये।’
कोटवार ने भी गांव में मुनादी कर दी - ‘तुमन ल का बताना, कोरोना हे, घर ले झन निकलौ।’
खुदकुशी से दिखा पटवारी-भ्रष्टाचार
बिलासपुर जिले में एक आत्महत्या के साथ जब यह पर्ची मिली कि किसान से पटवारी ने पांच हजार रूपए रिश्वत लेने के बाद भी ऋण पुस्तिका बनाकर नहीं दी, तो अब लाश और पर्ची को देखते हुए पुलिस पटवारी को गिरफ्तार करने पहुंची है।
लेकिन हैरानी इस बात की है कि पटवारी नाम की संस्था के संगठित भ्रष्टाचार का कोई मामला जब किसी आत्महत्या तक पहुंच रहा है, तब सरकार को वह दिख रहा है, उसके पहले नहीं! सच तो यह है कि किसी सरकार का डूबना तहसील और पटवारी के दफ्तर से ही शुरू होता है जहां आत्महत्या की हद तक थके हुए लोग रोजाना ही चक्कर काटते हैं, लेकिन आत्महत्या करने से किसी तरह बच जाते हैं। किसी भी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को यह मानकर चलना चाहिए कि उसके कार्यकाल के पांच बरस में पटवारी और तहसीलदार से जिन वोटरों का वास्ता पड़ता है, वे वोट सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ ही जाते हैं। क्योंकि बड़े-बड़े लोगों के काम पटवारी उनके घर जाकर करते हैं, इसलिए पटवारियों का भ्रष्टाचार दबे रह जाता है, उसे अनदेखा कर दिया जाता है। राजधानी रायपुर में कुछ पटवारी हल्के तो ऐसे हैं जहां से पटवारी करोड़पति बनकर ही हटते हैं। और जाहिर है कि इन जगहों पर पहुंचने के लिए भी सरकार के अलग-अलग स्तरों पर लाखों का लेन-देन होता है। बदनाम होने के लिए आरटीओ को सबसे भ्रष्ट विभाग माना जाता है जिसकी सरहदी चौकियों पर वसूली के लिए निजी लठैतों की फौज रखी जाती है। लेकिन किसी भी पटवारी के दफ्तर जाकर देखें, तो वह किराए के मकान में दफ्तर चलाते हैं, और कई निजी कर्मचारियों को नौकरी पर रखते हैं। सरकारी काम के लिए ऐसा निजी खर्च आरटीओ और पटवारी के अलावा और कौन कर सकते हैं?
टीका लगवाने की इतनी हड़बड़ी?
45 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका लगाने की मंजूरी मिलने के बाद कई वैक्सीनेशन सेंटर्स में उमड़ी भीड़ कोरोना फैलने के नये खतरे को- आ, देख लेंगे, कह रही है। लोगों को याद होगा कि बीते साल अनेक बड़े अस्पतालों में कोरोना जांच के दौरान दूरी रखने के लिये सफेद गोल घेरे बनाये गये थे। कोरोना के संदिग्ध और दूसरे सामान्य मरीजों के कई जगह पर अस्पताल, तो कई जगह काउन्टर, कमरे भी अलग थे। इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं। इस भीड़ में पहले से कोरोना संक्रमण के लक्षण वाले भी हो सकते हैं। वे कोरोना से बचने की उम्मीद में टीका लगवाने तो आ रहे होंगे पर संक्रमण फैलाकर लौट सकते हैं। पर ऐसी कोई पूछताछ टीकाकरण केन्द्रों में नहीं हो रही है। यह सही है कि न तो स्वास्थ्य विभाग, न वालेंटियर्स और न पुलिस की कोशिश से यह भीड़ संभलेगी। लोग यदि यह समझ लें कि यह वैक्सीनेशन अभी-अभी तो शुरू हुआ है। लगातार चलेगा और खासकर, छुट्टियों के दिन भी।
गांव का मौसम गुलाबी होने लगा?
वित्तीय वर्ष समाप्त होने के बाद जगह-जगह से जो आंकड़े आये, वे अगले साल के लिये क्या अच्छे दिन के संकेत हैं? मसलन, बीते मार्च में मारुति ने बिक्री 2020 के साल से करीब दो गुना की। टोयोटा ने तो आठ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। किसी भी कार कम्पनी की बिक्री इन दिनों में गिरी नहीं बल्कि रिकॉर्ड बने। जिस जीएसटी वसूली कम होने के चलते केन्द्र को राज्य सरकारों का पैसा रोकने के कारण झेंपने की नौबत आ रही है, अब तक सबसे ज्यादा सवा लाख करोड़ से भी अधिक कलेक्शन हो गया। बिजली की खपत भी करीब 25 प्रतिशत बढऩे का देशव्यापी आंकड़ा है। पावर फाइनेंस कम्पनी ने सरकार को तय से 11 सौ करोड़ अतिरिक्त लाभांश दिया। शेयर सेंसेक्स ने 50 हजार से ऊपर का आंकड़ा छू लिया। सोने के दाम बढ़ फिर बढऩे लगे हैं।
छत्तीसगढ़ की प्रमुख कम्पनियों, उपक्रमों ने भी ऐसे ही आंकड़े जारी किये हैं। जैसे एसईसीएल और एसईसीआर ने रिकॉर्ड लदान और परिवहन किया। एनएमडीसी को भी बढ़त ही मिली है। प्रदेश सरकार की रिपोर्ट भी जबरदस्त है। रजिस्ट्री शुल्क में छूट चल रहे होने के बावजूद रिकॉर्ड कलेक्शन हुआ। शराब कोरोना काल में भी इतनी बिकी कि अनुमान से अधिक मुनाफा हुआ।
ये आंकड़ों की कलाबाजी भी हो सकती है। मसलन, मारुति कार इंडस्ट्री को 2019 और 2020 में बीते कई सालों के मुकाबले शुद्ध मुनाफे में घाटा हुआ था। इस बार इसीलिये उछाल दिख रहा है। सार्वजनिक, सरकारी उपक्रमों में यह आंकड़ेबाजी और जबरदस्त होती है। वे अपनी देनदारी दिखाने से बचते हैं। ऐसी बातें ख़बरों में नहीं आती, प्राय:।
दूसरी बात क्या कार, सोना, शेयर, शराब में पैसा लगाने वाले लोग वे ही हैं, जिनकी कोरोना काल में नौकरी छूट गई थी और नये की उम्मीद टूटी, रोजगार संकट में पड़ा। होम लोन किश्त चुकाने की हैसियत नहीं रही? या वर्षों पहले लिखी, अदम गोंडवी की बात ही सही है कि- ‘फिर लगी है होड़ सी देखो, अमीरी औ गरीबी में..?’
संविधान पर छोटी किताब आ रही
संविधान के हिफाजत की लड़ाई लडऩे वालों ने कई बार छोटे-बड़े समारोहों में इसके प्रमुख बिन्दुओं की बुकलेट बांटी है। दूसरी ओर, हक़ीकत यह है कि देश के अधिकतर लोगों ने संविधान को पढऩे की कोशिश नहीं की। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि किसी भी लोकतांत्रिक, संप्रभु देश का यह सबसे लम्बा लिखित संविधान है। इसमें करीब डेढ़ लाख शब्द हैं। 25 भागों में है। 448 अनुच्छेद और 104 संशोधन हैं।
इसके बावजूद जरूरी है कि खास-खास बातें आम लोगों को पता हो। खासकर नई पीढ़ी को, जिन पर आगे देश की जिम्मेदारी है। अब छत्तीसगढ़ सरकार ने इसकी मूल विशेषताओं को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला लिया है। पहली से आठवीं तक के बच्चे इसे समझेंगे। अपने घर में चर्चा करेंगे। उम्मीद है कि प्रकाशित किताब में केवल महत्वपूर्ण बिन्दुओं को आसान भाषा में, संक्षेप में शामिल किया जा रहा हो। सरकारी स्कूलों में तो यह अनिवार्य होगा पर निजी स्कूलों में भी इसे जरूरी किया जा सकता है। पाठ्यपुस्तक निगम अपने मुनाफे से इसे छपवा रहा है। यह एक ऐसा फैसला है जिसका विरोध वे भी नहीं कर सकेंगे, जिन्होंने संविधान की अपनी सुविधा से व्याख्या कर, तोड़-मरोडक़र, लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की आजादी को, धर्मनिरपेक्षता को, समानता के उद्देश्य को खतरे में डालने का काम किया है, कर रहे हैं।
19वीं शताब्दी का शाला रजिस्टर
यह गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही जिले के एक पुराने स्कूल का दाखिल-खारिज रजिस्टर है। इस रजिस्टर के पन्ने पर नजर डालने से अनेक रोचक जानकारी मिलती है। यह कि पेन्ड्रा, जो घने जंगलों से घिरा था, में 1884 में स्कूल था, संचालन जनपद पंचायत करता था। बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ते थे, क्योंकि सूची लम्बी है। यह पन्ने के पहले कॉलम में दिखाई दे रहा है। रजिस्टर में एक-एक बच्चे के पिता का व्यवसाय, स्कूल में दाखिले की तारीख, उसके दाखिले की तारीख, यदि उसने स्कूल आना बंद कर दिया है तो क्यों? दूसरे गांव पढऩे चला गया, बीमारी के कारण नहीं आ रहा। अन्यत्र पढऩे लग गया, मरवाही, कटनी जैसे कारण दर्ज किये गये हैं। यकीन है कि स्कूल चलें हम जैसे किसी अभियान के बगैर भी उस वक्त के शिक्षक हर बच्चे का दाखिला हो, न आ रहे हों तो कारण मालूम हो, इसकी कोशिश करते थे। छात्रों की चरित्रावली भी दर्ज है, उन्हें उत्तम अथवा मध्यम बनाया गया है। और सबसे बड़ी खूबी जिस अध्यापक ने यह विवरण दर्ज किया है लिखावट के सामने आज के कम्प्यूटर की लिपियां फेल दिखती हैं। इस दस्तावेज को ट्वीटर पर शेयर किया है बिलासपुर कमिश्नर डॉ. संजय अलंग ने।
ताकि लॉकडाउन लगने पर न तरसें
बीते साल कोरोना का सितम्बर, अक्टूबर में कहर टूटा था। कमोबेश फिर से वही हालात बन गये हैं। तब देश के अलग-अलग हिस्सों में लॉकडाउन और परिवहन सेवाओं पर प्रतिबंध के कारण अत्यावश्यक चीजों की सप्लाई में बाधा आई थी और प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद आलू, शक्कर जैसी चीजों के दाम बढ़ते जा रहे थे। इस बार सरकार ने लॉकडाउन नहीं लगाने, कुछ घंटे छोडक़र सामान्य तरीके से बाजार खुला रखने का आदेश दिया है। फिर भी बाजार के कुछ व्यापारियों को लगता है कि संक्रमण की रफ्तार देखकर आगे लॉकडाउन का आदेश भी निकल सकता है। इसका पहला असर पड़ा है गुटखा, तम्बाकू, सिगरेट और गुड़ाखू पर। धीरे-धीरे इसके दाम बढ़ाये जा रहे हैं। जो इसका शौक रखते हैं वे भी एहतियात बरतते हुए स्टाक जमा कर रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि अभी चिल्हर बिक्री पर अतिरिक्त कीमत कम जगह ही वसूली जा रही है पर थोक दाम बढऩे लगे हैं। इसकी वजह वे दूसरे राज्यों में खासकर महाराष्ट्र के शहरों में लगाये गये लॉकडाउन के चलते परिवहन बाधित होना बता रहे हैं। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना प्रकोप नहीं थमने के बावजूद नागपुर से आज से लॉकडाउन हटा दिया है।
अप्रैल फूल के दिन पड़ी मार
एक अप्रैल से कई नये नियम शुरू हो गये हैं। कोविड वैक्सीन 45 साल से ऊपर सभी लोगों को लगाया जाना सुनिश्चित किया गया है। चेकबुक, पेंशन, टैक्स पर भी नये नियम लागू हो गये हैं। ज्यादातर फैसले जो लागू हो रहे हैं उससे आम लोगों पर महंगाई की मार और बढऩे लगी है। बस वित्त मंत्री के इस बयान ने थोड़ी राहत दी कि स्माल सेविंग्स से ब्याज दर कम करने का फैसला वापस लिया गया है।
राजधानी के एयरपोर्ट से यात्रा करने वालों को भी आज से सीधे-सीधे पांच-सात सौ की अतिरिक्त राशि देनी पड़ेगी। यह सवाल तो है कि हवाई सेवा की लैंडिग चार्ज किस नाम पर लिया जाता है? उसकी वसूली भी यात्रियों से ही होती है। इसका भी शुल्क 45 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है, जो यात्रियों के ही जेब से जायेगा। यह दावा किया जा रहा था कि हवाई चप्पल वाले भी हवा में उड़ेंगे। पर महानगरों के नियमित विमानों में यह आने वाले दिनों में तो मुमकिन होता नहीं दिख रहा है। स्पेशल के नाम ट्रेन टिकटों में भी भारी वृद्धि की पहले से की जा चुकी है। यहां तक कि पैसेंजर ट्रेनों को भी स्पेशल के नाम पर चलाया जा रहा है। इस वृद्धि को लेकर एक याचिका भी हाईकोर्ट में लगाई गई है। लगता है कोरोना में घर बैठे रहने की सलाह का इसी तरह पालन कराया जायेगा।
टमाटर के बुरे दिन
स्पेन और दुनिया के कई देशों में टमाटर फेस्टिवल मनाया जाता है। उन जगहों पर टमाटर की इतनी पैदावार होती है कि होली की तरह उत्सव रखा जाता है। लगता है कि छत्तीसगढ़ में भी ऐसी कोई परम्परा शुरू करनी होगी। बीते दो माह से टमाटर के भाव इतने गिर गये हैं कि पैदा और ट्रांसपोर्ट करने की तो दूर, तोडऩे की लागत भी नहीं निकल रही है। यह बात अलग है कि बिचौलिये जिसे किसानों से एक रुपये में खरीद रहे हैं चिल्हर विक्रेता उसे दस रुपये में बेच रहे हैं। बरसों से राज्य में फूड प्रोसेंसिंग की यूनिट्स खड़ा करने की बात हो रही है पर न तो पिछली सरकार ने, न ही इस सरकार ने इस पर गंभीरता से काम किया है।
उपजाऊ जमीन मिल गयी थी..
कोरोना का संक्रमण एकाएक तेजी से बढ़ रहा है। पिछले तीन-चार महीने से संक्रमण में कमी क्या आई, लोगों ने मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग करना बंद कर दिया था। मंत्रालय में तो सैनिटाइजर टनल खराब हो गए थे। अब जब कई कर्मचारी कोरोना की चपेट में आए हैं, तो फिर एक बार आनन-फानन में सैनिटाइजर खरीदी के लिए टेंडर बुलाए गए हैं। कुछ कर्मचारियों ने सैनिटाइजर लेकर आना शुरू कर दिया है, और काम शुरू करने से पहले अपने कक्ष को सैनिटाइज करना शुरू कर दिया है। देर से ही सही लोगों को बात समझ में आ रही है कि सुरक्षा ही बचाव है। लेकिन इस समझ आने तक कोरोना को उपजाऊ जमीन मिल गई !
नाराजगी रंग लाएगी?
नारायणपुर नक्सल विस्फोट की घटना के पीछे चूक सामने आ रही है। इस घटना में डीआरजी के पांच जवान शहीद हो गए, घायलों का अभी भी इलाज चल रहा है। सीएम ने रायपुर आने के बाद गृहमंत्री और कुछ अफसरों के साथ मंत्रणा की। इस बैठक में डीजीपी को नहीं बुलाया गया था। सुनते हैं कि सीएम, डीजीपी से नाखुश चल रहे हैं। गृहमंत्री ने उनकी कार्यशैली पर अप्रसन्नता जताते हुए सीएम से पहले ही शिकायत कर दी थी। संकेत साफ है कि सीएम अलग-अलग स्तरों पर डीजीपी के खिलाफ आ रही शिकायतों को ज्यादा समय तक नजरअंदाज नहीं करेंगे।
नए सीएस ने चि_ी लिखी, तो...
आखिरकार डेढ़ साल बाद रीना बाबा साहेब कंगाले को चुनाव आयोग की अनुमति के बाद मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के साथ महिला बाल विकास, और समाज कल्याण सचिव का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया। दरअसल, रीना को अतिरिक्त प्रभार देने की अनुमति के लिए तत्कालीन सीएस आरपी मंडल ने आयोग को चि_ी लिखी थी। पत्र की भाषा कुछ ऐसी थी कि केन्द्रीय निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा खफा हो गए, और उन्हें अनुमति नहीं मिली। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पास चुनाव के समय को छोडक़र कोई ज्यादा काम नहीं रहता है। ऐसे में आयोग अतिरिक्त विभाग संभालने की अनुमति दे देता है। अनुमति नहीं मिली, तो रीना को काफी इंतजार करना पड़ा। नए सीएस अमिताभ जैन ने चि_ी लिखी, तो आयोग नेे विरोध नहीं किया।
मतदान और चुनावी रैली
बढ़ते कोरोना मामलों के चलते छत्तीसगढ़ के ज्यादातर जिले नाइट कफ्र्यू के घेरे में ला दिये गये हैं। पर हैरानी यह है कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां कोरोना नियंत्रण में हैं। 28 मार्च को पश्चिम बंगाल में पहले चरण की वोटिंग हुई। कुछ तस्वीरें भारी भीड़ की भी है, पर अधिकांश मतदान केन्द्रों में चुनाव आयोग की गाइडलाइन का पालन करते हुए गोल घेरे में दूरी बनाकर वोट डालने वालों की कतार लगाई गई। पर इसके दो दिन पहले की तस्वीर भी देखें। दो दिन पहले ही क्यों, एक माह लगातार जितनी रैलियां हुईं उनमें इतनी भीड़ रही कि लोगों ने कोरोना के खतरे को ठेंगा दिखा दिया और पुलिस, चुनाव आयोग और कोरोना गाइडलाइन का पालन कराने वाले किसी संस्थान ने लगाम नहीं लगाई।
तो इतनी सूखी निकली होली
कोरोना ने होली के कई बड़े समारोहों पर ताला जड़ दिया। इस बार होली पर सडक़ें उसी तरह सूनी थी, जैसी उसके अगले दिन होती हैं। पर इस बार हुआ ये कि एक साथ तीन त्यौहार आये। होली, शब-ए-बारात और खजूर रविवार यानि ईस्टर।
होली पर पुलिस को कानून-व्यवस्था संभालने के लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि हुड़दंगी कम निकले।
रंग गुलाल की बिक्री थोक बाजार वाले बता रहे हैं कि 25 फीसदी ही हुई। नगाड़ों की बिक्री भी बहुत कम हुई।
बच्चों को होली में खूब आनंद आता है पर उन पर भी पहरा लगा रहा। त्यौहार, मेल-जोल का, उमंग का जरिया है। बस लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कोरोना वायरस का प्रकोप घटे तो आने वाले त्यौहारों को पारम्परिक तरीके से मना पायें।
पहले स्टेडियम और अब होली...
छत्तीसगढ़ में कोरोना जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, उसका कोई मुकाबला महाराष्ट्र से तो नहीं है, लेकिन अपने खुद के बीते हुए कल से जरूर है। बहुत से लोगों का यह मानना है कि सडक़ सुरक्षा के नारे वाला जो क्रिकेट टूर्नामेंट राजधानी रायपुर में हुआ, और जहां से लौटकर सचिन तेंदुलकर और यूसुफ पठान कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, उसी स्टेडियम ने कोरोना फैलाया है। दरअसल स्टेडियम में बैठे लोग जितना क्रिकेट देखना चाहते थे, उतना ही टेलीकास्ट के कैमरों को अपना चेहरा दिखाना भी चाहते थे, और बिना मास्क सेल्फी लेना चाहते थे। नतीजा यह निकला कि स्टेडियम में मास्क का कोई काम ही नहीं रह गया था। कुछ लोगों का अंदाज है कि इस मैच को देखने के लिए नागपुर से भी बड़ी संख्या में लोग आए थे जो कि कोरोना का एक सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बना हुआ है। ढेर सारे मंत्री दुर्ग जिले के हैं, खुद मुख्यमंत्री दुर्ग जिले के हैं, इसलिए क्रिकेट के पास वहां बहुत बंटे थे, और इसी वजह से आज दुर्ग प्रदेश में कोरोना का भयानक केन्द्र बना हुआ है, और इसी वजह से राजधानी रायपुर भी रोज पांच सौ से अधिक नए कोरोना पॉजिटिव पा रहा है।
छत्तीसगढ़ में यह नौबत पिछले एक बरस में दसियों हजार लोगों के कोरोना पॉजिटिव हो जाने के बाद है जिनमें से अधिकतर को यह दुबारा नहीं हो रहा है। इसके अलावा रोजाना लाख लोगों को कोरोना-वैक्सीन भी लग रहा है, फिर भी पॉजिटिव लोगों की गिनती छलांग लगाकर आगे बढ़ रही है। एक बार फिर अस्पतालों को तैयार किया जा रहा है कि कोरोना पॉजिटिव मरीज बड़ी संख्या में पहुंच सकते हैं।
छत्तीसगढ़ से कांग्रेस और भाजपा के हजारों चुनाव प्रचारक असम और बंगाल गए हुए हैं, और वहां वे भीड़ की धक्का-मुक्की के बीच काम कर रहे हैं, और वहां से लौटकर कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ आने लगेंगे। फिलहाल एक बात साफ दिखती है कि क्रिकेट मैच के बाद होली कोरोना को और फैलाने जा रही है, और मास्क न होने पर लगने वाला पांच सौ रूपए का जुर्माना भी किसी को नहीं डरा रहा, और न ही कोरोना किसी को डरा रहा।
कलेक्टोरेट में होली का रंग
कोरोना की वजह से सरकारी दफ्तरों में रंग-गुलाल खेलने पर रोक लगाई गई है। मगर रायपुर कलेक्टोरेट में आदेश की धज्जियां उड़ाई गई। होली के पहले वर्किंग डे में विशेषकर खाद्य शाखा में अफसर-कर्मियों ने खूब रंग-गुलाल उड़ाए। एक-दूसरे पर जमकर रंग लगाए। नाच-गाने में तो मास्क और सामाजिक दूरी रखने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। जिस दफ्तर पर जिलेभर में कोरोना के निर्देशों का सख्ती से पालन कराने की जिम्मेदारी होती है वहां ही त्योहार के पहले ही इसकी अवहेलना पर प्रशासनिक हल्कों में जमकर चर्चा है।
दारू पीने के साथ-साथ...
छत्तीसगढ़ में सरकार किसी भी पार्टी की रहे, सार्वजनिक जगहों पर बैठकर दारू पीने वाले लोगों पर कार्रवाई करने से पुलिस और आबकारी दोनों के लोग बचते हैं। इसकी एक वजह यह रहती है कि सरकार दारू के धंधे की कमाई कम नहीं होने देना चाहती, और अगर तालाब, बगीचे, फुटपाथ पर लोगों को गिरफ्तार होना पड़े, तो दारू की बिक्री तो घट ही जाएगी। इसलिए एक अघोषित दबाव बना रहता है कि शराबियों को न पकड़ा जाए, वरना नए साल और क्रिसमस-होली की पार्टियों से परे भी रोज अगर सडक़ों पर गाडिय़ां रोककर जांच की जाए तो रोज हजारों गिरफ्तारियां हो सकती हैं। यह तो हुई घोषित बात, और फिर थानों के स्तर पर यह अघोषित अनदेखी भी होती है कि लोगों को न पकड़ा जाए। नतीजा यह होता है कि तालाबों के किनारे, बगीचों और मैदानों में लोग न सिर्फ दारू पीते बैठे रहते हैं बल्कि वहां से उठने के पहले बोतलों को फोड़ भी देते हैं नतीजा यह होता है कि अगली सुबह घूमने वाले लोग और खेलने वाले बच्चे जब वहां पहुंचते हैं तो उनके जख्मी होने का खतरा रहता है। बोतल फोडऩे से अच्छा है उसे छोड़ देना ताकि कुछ गरीब बच्चे उसे बीनकर, बेचकर चार पैसे कमा सकें, और लोगों के पैर जख्मी न हों।
शहर के जिस आऊटडोर स्टेडियम के अहाते में आए दिन मंत्री-मुख्यमंत्री, मेयर पहुंचते हैं, वहां भी रोज शाम लोगों की महफिल जमती है जो बोतलों के टुकड़े छोड़ जाती है। स्टेडियम कैम्पस के मालिक म्युनिसिपल का स्मार्टसिटी ऑफिस भी इसी अहाते में है, और उसकी आंखों के सामने यह स्मार्टनेस चमकती रहती है।
टूर्नामेंट से कोरोना बढ़ा ?
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का स्पष्ट तौर पर मानना है कि रोड सेफ्टी क्रिकेट टूर्नामेंट की वजह से कोरोना संक्रमण बढ़ा है। सिंहदेव ने कोई गलत बात नहीं कही। रोड सेफ्टी क्रिकेट टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए ठीक बाद स्टार खिलाड़ी सचिन तेंदूलकर कोरोना पॉजिटिव हो गए। टूर्नामेंट के दौरान, तो वे पूरी तरह स्वस्थ थे, और उनकी अगुवाई में भारत ने टूर्नामेंट जीता।
कहा जा रहा है कि मैच खत्म होने के बाद सचिन किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए, और वे पॉजिटिव हो गए। इसी तरह पूर्व सीएम रमन सिंह के ओएसडी रहे विक्रम सिसोदिया भी रोड सेफ्टी क्रिकेट मैच के दोबारा पॉजिटिव हो गए। सिसोदिया खुद खिलाड़ी हैं, और वे ओलंपिक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं। सिसोदिया भी रोड सेफ्टी मैच देखने जाते थे, और वे वहां किसी संक्रमित के संपर्क में आने से पॉजिटिव हुए।
इसी तरह कांग्रेस पदाधिकारी विष्णु साहू भी रोड सेफ्टी टूर्नामेंट के दौरान पॉजिटिव हो गए, और शुक्रवार को उनका निधन हो गया। इस टूर्नामेंट से लोग सडक़ सुरक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं अथवा नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन कोरोना से सुरक्षा के प्रति जागरूक नहीं थे। कम से कम जिस रफ्तार से रायपुर और दुर्ग में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, उससे तो यही लगता है।
आखिरकार नेता प्रतिपक्ष
आखिरकार सवा साल बाद रायपुर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष के रूप में पार्षद मीनल चौबे के नाम पर मुहर लग गई। दरअसल, रायपुर जिले के बड़े भाजपा नेताओं ने नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को प्रतिष्ठा का सवाल बना रखा था। इस वजह से नियुक्ति लगातार टल रही थी। कुछ महीने पहले बृजमोहन अग्रवाल की सिफारिश पर सूर्यकांत राठौर का नाम तकरीबन तय कर लिया गया था। मगर विरोधियों के दबाव में घोषणा रोक दी गई।
कुछ दिन पहले पार्षदों ने प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं होने की शिकायत की, तब कहीं जाकर चयन के लिए पार्टी ने पर्यवेक्षक नियुक्त किए। तीन सीनियर नेता विक्रम उसेंडी, भूपेन्द्र सवन्नी, और खूबचंद पारख को पार्षदों से चर्चा कर नाम सुझाने के लिए कहा था। सुनते हैं कि 29 पार्षदों में से 10-10 पार्षदों ने सूर्यकांत और मीनल चौबे के पक्ष में राय दी। बाकी पार्षदों ने पार्टी नेतृत्व पर छोड़ दिया था।
सूर्यकांत और मीनल के पक्ष में बराबर समर्थन होने के कारण पर्यवेक्षकों ने प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी को रिपोर्ट भेजी। चर्चा है कि प्रदेश प्रभारी ने प्रभारी सचिव नितिन नबीन को प्रमुख नेताओं से बात कर नाम तय करने के लिए कहा। नितिन नबीन ने पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से चर्चा की, और फिर रमन सिंह की अनुशंसा पर मीनल चौबे को पार्षद दल का मुखिया बनाया गया।
मनरेगा में टॉप छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ की अनेक ऐसी उपलब्धियां है जिन पर छत्तीसगढ़ सरकार की बीते दो सालों में तारीफ होती रही है। वित्तीय, जल प्रबंधन पर शीर्ष में रहा। गोबर संग्रह कर आजीविका माध्यम बनाने को सराहा गया। अब इस बात पर प्रशंसा हो रही है कि 17 करोड़ मानव दिवस को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत काम दिया गया। इसके चलते केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के लिये आबंटित की जाने वाली राशि भी बढ़ा दी है।
पहली जरूरत तो यही है कि कोई भूखा न रहे, कोई भी चाहे तो उसे काम मिले। दूसरा पहलू यह भी है कि जो लोग ग्रेजुएट, पीजी की डिग्री हासिल कर लेते हैं, क्या उनको भी मिट्टी खोदने, सडक़ बनाने के काम में लगा देना चाहिये? उच्च शिक्षा लेने के बाद भी जो लोग मजदूरी कर रहे हैं, उन पर भी बात होनी चाहिये।
बेलगाम सीमेंट की कीमत
सीमेंट की कीमत यदि परिवहन भाड़े की वजह से बढ़ाई जाती तो समझ में भी आता, पर यह तो फैक्ट्रियों से ही 30 प्रतिशत अधिक दाम पर निकल रहा है। कुछ ही दिन पहले जो सीमेंट 210 रुपये से लेकर 240 में मिल रहा था, आज 330 से 370 रुपये बिक रहा है। न तो कच्चे माल का दाम बढ़ा है न ही मजदूरी। डीजल का दाम भी इतना तो नहीं बढ़ा है कि हर बैग पर 100 रुपये की बढ़ोतरी कर दी जाये।
बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के लिये मौजूदा मौसम मुफीद है। केवल व्यक्तिगत घर बनाने वालों के लिये ही नहीं, बल्कि समय पर निर्माण पूरा करने के लिये रेरा का दबाव झेल रहे बिल्डर्स के लिये भी।
हैरानी यह है कि इतनी ज्यादा बढ़ोतरी सिर्फ छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रही है। सरकार की खामोशी संदेह पैदा कर रही है।
छत्तीसगढ़ के कन्धों पे चढक़र?
क्या छत्तीसगढिय़ों के बूते पर असम में कांग्रेस की सरकार बन पाएगी? यह सवाल राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय है। दरअसल, असम की 126 सीटों में से 47 सीटों पर छत्तीसगढ़ मूल के लोगों का अच्छा प्रभाव है, और कई सीटों पर तो निर्णायक भूमिका में हैं। छत्तीसगढ़ के लोगों को साधने के लिए कांग्रेस के करीब 6 सौ नेता-कार्यकर्ता वहां डेरा डाले हुए हैं।
कांग्रेस हाईकमान ने सीएम भूपेश बघेल को वहां प्रचार की जिम्मेदारी दी थी, और संसदीय सचिव विकास उपाध्याय को असम कांग्रेस का प्रभारी सचिव बनाया था, तब छत्तीसगढ़ी नेताओं के प्रभाव को लेकर ज्यादा कोई चर्चा नहीं हो रही थी। अब जब पहले चरण का मतदान 27 तारीख को होने वाला है, पार्टी यहां कांटे की टक्कर दे रही है।
असम में छत्तीसगढ़ के नेताओं को काफी महत्व मिल रहा है। कांग्रेस के उत्साही नेताओं का मानना है कि छत्तीसगढ़ के लोग खूब साथ निभा रहे हैं, और कोई ज्यादा उठा पटक नहीं हुआ, तो असम में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। कांग्रेस को ज्यादा डर अपने ही पुराने कांग्रेस नेता हेमंत बिस्वा शर्मा से है, जो कि असम सरकार में नंबर-2 की हैसियत रखते हैं। हेमंत पार्टी में अंदरूनी विवाद के चलते भाजपा में चले गए थे, और उन्होंने न सिर्फ विधायकों को तोड़ा बल्कि ब्लॉक स्तर तक के नेताओं को भाजपा में ले गए।
चुनाव के पहले तक मुकाबला भाजपा के पक्ष में एकतरफा दिख रहा था, लेकिन छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेताओं की मेहनत से पार्टी खड़ी हो गई है, और हर सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि यदि पूर्ण बहुमत नहीं मिला, तो सरकार बनाने में दिक्कत हो सकती है। वजह यह है कि कांग्रेस के कई नेता अभी भी हेमंत बिस्वा शर्मा से याराना रखते हैं। कुछ भी हो, छत्तीसगढ़ी नेताओं ने दम तो दिखाया है। देखना है चुनाव नतीजे अनुकूल आते हैं, या नहीं।
मिलिये भूपेश बघेल के नये दोस्त से..
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने असम चुनाव प्रचार के दौरान एक नन्हें से बालक की तस्वीर सोशल मीडिया पर पेश की है, जिसकी पूरी वेशभूषा कांग्रेस के चुनाव चिन्ह के प्रतीकों से भरी हुई है। उन्होंने लिखा है असम में आज एक नया दोस्त बना, उससे नोट्स लिये कि चुनाव अभियान के दौरान कैसे कपड़े पहनने चाहिये। इस बालक ने आश्वस्त किया कि देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। देश का भविष्य कांग्रेस है।
निजी स्कूलों की नाफरमानी
कोविड महामारी ने दुबारा आकर हालात इस तरह से बदले कि बच्चे स्कूलों में पढ़ाई, मौज-मस्ती और एक दूसरे के ज्ञान के आदान-प्रदान से वंचित रह गये और परीक्षायें शारीरिक मौजूदगी के साथ नहीं कर पाये। निजी स्कूलों की चिंता यह है कि फीस की वसूली कैसे हो। वे दावा कर रहे हैं कि शिक्षकों, स्टाफ को वेतन देने, स्कूलों की साफ-सफाई, बिजली, पानी, किराया देने के लिये उन्हें फीस वसूल करना जरूरी है। कहा कि जब तक फीस पूरी नहीं देंगे, उन्हें न तो पास किया जायेगा न ही ट्रांसफर सर्टिफिकेट दिया जायेगा।
पानी सिर से ऊपर जा चुका तब छत्तीसगढ़ सरकार जागी है। स्कूल शिक्षा मंत्री ने निजी स्कूलों को चेतावनी दे दी है कि जो स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट देने से मना करेंगे उन्हें सरकारी स्कूलों में इस दस्तावेज के बिना भी प्रवेश दे देंगे। और जहां तक उत्तीर्ण करने की बात है,इसका तो जनरल प्रमोशन होने के कारण कोई मतलब ही नहीं है।
निजी स्कूलों ने हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद कितने स्टाफ बाहर किये, जिन्हें अब तक रखा है उनकी तनख्वाह में कितनी कटौती की गई है उस पर भी सर्वे सरकार करा ले तो कलई और खुल जाने वाली है।
नया बंगला जरूरी
पूर्व मंत्री राजेश मूणत जल्द ही मौलश्री विहार से जल्द ही रूखसत हो जाएंगे, और वे चौबे कॉलोनी स्थित नए बंगले में शिफ्ट हो जाएंगे। चौबे कॉलोनी स्थित उनके नए बंगले का निर्माण कार्य चल रहा है, और दीवाली के आसपास उनकी वहां शिफ्टिंग की योजना है। दरअसल, मौजूदा निवास स्थान मौलश्री विहार के शहर से दूर होने के कारण मूणत अपने क्षेत्र के मतदाताओं और कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात नहीं कर पा रहे थे।
यही वजह है कि उन्होंने मौलश्री विहार के अपने बंगले को छोडक़र अपने विधानसभा क्षेत्र में ही रहने का फैसला लिया है। मौलश्री विहार का बंगला उन्होंने सरकारी योजना के तहत खरीदा था। उन्होंने अपने बंगले से सटे दिवंगत पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा के खाली प्लाट को खरीदकर भव्य रूप दिया था।
बंगले के ठीक सामने पूर्व सीएम रमन सिंह का भी मकान है, और आसपास पार्टी के कई प्रमुख नेता रहते हैं। बावजूद उन्होंने बंगला छोडक़र चौबे कॉलोनी में रहने का फैसला लिया है। चौबे कॉलोनी, रायपुर पश्चिम विधानसभा के केन्द्र में स्थित है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद वापसी के लिए क्षेत्र में सक्रिय रहकर कार्यकर्ता और आम लोगों से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे में पार्टी के लोगों को मूणत का बंगला बदलने का फैसला सही लग रहा है।
आसमान से गिरे, खजूर पर अटके
आंध्रप्रदेश से सटे जिले में पदस्थ रहे दूर संचार सेवा के अफसर का तबादला महाराष्ट्र की सीमा से सटे जिले में हो गया। तबादला होना कोई असामान्य बात नहीं है। अफसर पिछले कुछ समय से रायपुर में किसी अहम जगह पर पोस्टिंग के लिए प्रयासरत थे। वैसे भी उनकी सेवा से आए लोग छत्तीसगढ़ सरकार में मलाईदार पदों पर ही रहे हैं। कुछ इसी तरह की इच्छा, इनकी भी थी। मगर ऐसा नहीं हो पाया।
आंध्रप्रदेश से सटे जिस जिले में थे वहां भी धीरे-धीरे सेट हो गए थे, लेकिन स्थानीय विधायक ने अपनी पसंद के डिप्टी कलेक्टर को उनकी जगह लाने में सफल रहे। नया जिला अफसर को रास नहीं आ रहा है, और उनके साथ समस्या यह है कि ऊपर तक पहुंच होने के बावजूद उन्हें मनमाफिक पोस्टिंग नहीं मिल पा रही है। उनसे जुड़े लोग इसको गृहनक्षत्र से जोडक़र देख रहे हैं।
फिलहाल तो नहीं दिखते शांति के आसार
नारायणपुर में आईईडी विस्फोट कर डीआरजी जवानों की बस को उड़ाने की वारदात तब हुई है जब सप्ताह भर पहले ही नक्सलियों ने सरकार के साथ शांति वार्ता करने की पेशकश की थी। सरकार उस प्रस्ताव को ठोस नहीं मान रही थी लेकिन प्रतिक्रिया हर बार की सकारात्मक ही थी। कहा गया कि देश के संविधान पर आस्था व्यक्त करें और हिंसा का रास्ता छोड़ दें। सरकार के पास किसी व्यक्ति के माध्यम से कोई पत्र उन तक तो पहुंचाया नहीं गया था लेकिन मीडिया के जरिये नक्सल संगठनों के बीच यह प्रतिक्रिया जरूर पहुंची होगी। इन दिनों बस्तर में ही एक शांति यात्रा भी निकली हुई है, जिसे नक्सल संगठनों ने सरकारी फंडिंग से हो रही वार्ता कह दिया है, यानि इससे कुछ निकलने की संभावना नहीं है।
दूसरी ओर अधिकारियों ने यह चौंकाने वाली जानकारी दी है कि जिस जगह पर विस्फोट हुआ वहां सर्चिंग की गई थी। किसी तरह के भूमिगत विस्फोटक के दबाये जाने का सुराग खोजी दस्ते को नहीं मिला। शायद नक्सलियों ने आईईडी को प्लास्टिक के डिब्बे में पैक किया, फिर उसके ऊपर कार्बन पेपर लपेट दिया। मेटल डिडेक्टर इसी वजह से उसे सर्च नहीं कर पाया।
पुलिस ने यह भी बताया है कि पास के गांव में एक मेला लगा हुआ है इसलिये कुछ लोग जो ग्रामीणों के वेशभूषा में आसपास टहलते दिखे उन पर कोई संदेह नहीं हुआ।
शांति वार्ता की बातचीत के लिये रूचि दिखाने के बीच हुए हमले से तो लगता है कि नक्सल समस्या का समाधान निकालना इस सरकार के लिये भी उतना ही चुनौती भरा है, जितना पहले की सरकारों के लिये था। शांति वार्ता की संभावना फिर धूमिल हो गई।
कोरोना रोकने के लिये पहना, पर टीबी से भी बच गये
देशभर में कल विश्व क्षय रोग दिवस मनाया गया। छत्तीसगढ़ सहित देशभर के कई जगहों से खबरें हैं कि पिछले साल, बीते वर्षों के मुकाबले नये टीबी मरीजों की संख्या में कमी आई। स्वास्थ्य शोध एजेंसी लांसेट का भी यही निष्कर्ष है। कारण बताया गया है कि लोगों ने मास्क को अपनी आदत में शामिल किया। टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसमें खांसी, खरार आती हैं। बातचीत के दौरान ड्रापलेट (छोटे कण) तो हवा में तैरते ही हैं। इससे टीबी फैलता है। कोरोना वायरस से बचाव के लिये जब मास्क पहनना और शारीरिक दूरी बनाये रखना जरूरी किया गया तो इसके पीछे भी वजह यही है। मास्क पहनकर जब कोई निकलता है तो से यह सुनिश्चित करता है कि बीमारी को फैलाने में वह मदद नहीं कर रहा।
कुछ माह पहले जब कोरोना संक्रमण का असर कम होने लगा था लोगों ने मास्क त्याग दिया। अब भी बहुत से लोग इसे गले में लटकाकर चलते हैं और सही जगह पहनने के लिये टोके जाने का इंतजार करते हैं। जुर्माने का तो ज्यादा खौफ नहीं है।
देश के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण इतना अधिक है कि उसे दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिना जाता है। रायपुर शहर भी एक बार इनमें शीर्ष पर आ चुका है। मास्क पहनें तो यह प्रदूषित हवा भी सेहत को कम नुकसान पहुंचायेगी।
आनन-फानन एफआईआर का रद्द होना
अमूमन ऐसा कम होता है कि पुलिस कोई एफआईआर दर्ज करे और फिर तुरत-फुरत जांच करके उसे खारिज भी कर दे। मगर मंदिर हसौद में पुलिस को ऐसा करना पड़ा। राममंदिर की चंदा वसूली में गड़बड़ी को लेकर किसी ने शिकायत की थी। इसके बाद चंदा वसूली से जुड़े लोगों के बीच विवाद बढ़ा। एक ने आकर थाने में भाजपा के मंडल अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस ने नामजद अपराध दर्ज किया और कई धारायें लगा दीं। शिकायत करने वाले का आरोप था कि उसके साथ अध्यक्ष ने गाली गलौच, मारपीट की। अब विपक्ष में बैठी भाजपा कार्यकर्ताओं ने तेवर दिखाये। वे धरने पर थाने के सामने ही बैठ गये। कहा-शिकायत झूठी है, एफआईआर रद्द करो।
ऐसे मामलों में पुलिस कहती है- जांच होगी, तब देखेंगे, या फिर- कोर्ट में सुलझा लेना। पर हंगामे के बीच दबाव इतना बढ़ा कि पुलिस ने आनन-फानन जांच की और यह निष्कर्ष निकाला कि शिकायत झूठी थी और इसके बाद एफआईआर रद्द भी कर दी गई। भाजपा का संगठन एकजुट हुआ, मामला राममंदिर का भी था, तो वे अपनी बात मनवा सके। पर सवाल पुलिस की भूमिका पर भी है। यूं तो वह प्राय: मामूली मारपीट, गाली गलौच पर एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करती है और लिखित शिकायत लेकर लौटा देती है, पर इस मामले में उसने क्यों फुर्ती दिखाई और जब दिखाई तो उतनी ही तेजी से बैक फुट पर क्यों आ गई? कहीं उसे ऐसा तो नहीं लगा कि विपक्ष में बैठे लोगों के खिलाफ एफआईआर लिखने से उन्हें ऊपर से पीठ थपथपाई जायेगी?
पुत्रमोह जारी है...
भाजपा के राष्ट्रीय सह-महामंत्री (संगठन) शिवप्रकाश ने पिछले दिनों यहां प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पार्टी नेताओं को पुत्रमोह त्यागने की नसीहत दी। उनकी जानकारी में यह बात लाई गई थी कि पार्टी के दिग्गज नेता अपने बेटे-बेटियों को पदाधिकारी बनाने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।
सौदान सिंह की जगह छत्तीसगढ़ संगठन का काम देखने वाले शिवप्रकाश की सलाह को पार्टी के नेता कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि सूरजपुर जिला भाजयुमो अध्यक्ष के लिए पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा के बेटे लवकेश पैकरा को बनाने की अनुशंसा की गई है।
और जब प्रदेश संगठन ने सूरजपुर जिला इकाई को दूसरा नाम प्रस्तावित करने के लिए कहा, तो जिला संगठन के मुखिया ने यह कह दिया कि लवकेश से बेहतर कोई और नाम नहीं है। सूरजपुर जिला भाजपा संगठन में रामसेवक पैकरा समर्थकों का दबदबा है। ऐसे में देखना है कि प्रदेश संगठन, शिवप्रकाश की सलाह पर कितना अमल कर पाता है।
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी..
बेटे के नाम पर पहाड़ी कोरवा आदिवासियों की जमीन खरीदकर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत फंस गए हैं। हालांकि उन्होंने विवादों को शांत करने की नीयत से कहा कि जमीन खरीद प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हुई है, और उन्हें चेक से भुगतान की गई राशि वापस कर दी जाती है, तो वे जमीन लौटा देंगे। मगर अमरजीत के सफाई देने के बाद भी मामला शांत होता नहीं दिख रहा है, और खबर यह भी है कि राज्यपाल ने मुख्य सचिव को प्रकरण की जांच के लिए चि_ी भी लिखी है।
अमरजीत भगत ने अपने खिलाफ आरोपों पर पलटवार करते हुए यह भी कह गए कि कई भाजपा नेताओं ने भी इसी तरह जमीन खरीदी है। पहली नजर में अमरजीत के आरोपों में दम भी नजर आ रहा है। इसकी वजह यह है कि विशेषकर सरगुजा संभाग के भाजपा के बड़े आदिवासी नेताओं ने इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध रखी है।
सुनते हैं कि अमरजीत के खिलाफ पहले पूर्व सीएम रमन सिंह के साथ विष्णुदेव साय प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने वाले थे। मगर पूर्व सीएम ने आने से मना कर दिया। पार्टी के दबाव की वजह से सायजी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस तो ले ली, लेकिन बाद में वे पहाड़ी कोरवाओं के साथ राजभवन नहीं गए। उनकी जगह देवजी पटेल, पहाड़ी कोरवाओं को लेकर राज्यपाल से मिले।
इस पूरे मामले में पेंच यह है कि अदालत ही जमीन की रजिस्ट्री निरस्त कर सकता है, लेकिन अमरजीत पर और ज्यादा हमला हुआ, तो उनके समर्थक चुप नहीं बैठेंगे। कई और रजिस्ट्रियां सार्वजनिक होंगी, और इससे भाजपा के आदिवासी नेता घिर सकते हैं। देखना है आगे-आगे होता है क्या।
नंबरप्लेट से रोड सेफ्टी तक
लोगों का मिजाज ऐसा है कि जब तक कानून तोड़ न लें, उन्हें मजा ही नहीं आता। अब उत्तरप्रदेश की यह मोटरसाइकिल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शान से चल रही है, और नंबरप्लेट पर नंबर से अधिक बड़े आकार में वकील होने की नुमाइश कर रही है। नंबरप्लेट पर किसी भी तरह का कुछ और लिखना नियमों के खिलाफ है, और उस पर जुर्माना भी है, लेकिन ताकतवर लोगों को नियमों को तोडऩे में मजा आती है। राजनीतिक दलों के छोटे से ओहदे पर बैठे हुए लोग भी बड़े-बड़े अक्षरों में अपनी ताकत नंबरप्लेट और गाड़ी पर लिखवा लेते हैं, और उस ताकत की वजह से ट्रैफिक पुलिस उन्हें छूती नहीं है कि कौन अपना नक्सल इलाके में तबादला करवाए। दिलचस्प बात यह है कि सडक़ों पर सुरक्षा तोडऩे वाली बड़ी कारोबारी गाडिय़ों पर काबू करना जिस ट्रांसपोर्ट विभाग का जिम्मा है, उसे देश के अधिकतर प्रदेशों में संगठित वसूली और उगाही की एजेंसी बनाकर रख दिया गया है। छत्तीसगढ़ में भी इस विभाग के भयानक भ्रष्टाचार के सुबूत सडक़ों पर चारों तरफ दिखते हैं, और मजे की बात यह है कि इसी विभाग को रोड सेफ्टी क्रिकेट का इंतजामअली बनाया गया था। यह विभाग खत्म हो जाए, तो रोड खासी सेफ अपने आप हो जाएंगी।
जनरल प्रमोशन से किसकी भलाई?
कोरोना के दूसरे दौर का आगमन उसी वक्त हुआ है, जब स्कूल कॉलेजों में परीक्षायें लेने की तैयारी चल रही है। संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद अप्रैल-मई में शारीरिक उपस्थिति के साथ बोर्ड परीक्षाओं को लेने की तैयारी हो रही है, पर बाकी कक्षाओं को जनरल-प्रमोशन देने का फैसला लिया गया है। यानि सब धान एक पसेरी। जो पढऩे लिखने और एक-एक अंक के लिये सिर धुन रहे हैं उन छात्रों को कोई फायदा नहीं। और जो मौज कर रहे हैं उनकी तो मौजा ही मौजा है। ये सरकार के फैसले को सलाम कर रहे हैं।
श्रीलाल शुक्ल की बात छोडिय़े, जिन्होंने राग दरबारी में लिखा था- अपने देश में शिक्षा व्यवस्था वह कुतिया है, जिसको हर ऐरा-गैरा रास्ते में आते-जाते लतियाता रहता है। जनरल प्रमोशन की धारणा का ईजाद शायद पहली बार मध्यप्रदेश के तब के मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के दौर में, भोपाल गैस कांड और इंदिरा गांधी हत्याकांड बाद हुआ था। उसके बाद से तो जब भी कोई आपदा आती है जनरल प्रमोशन एक आसान रास्ता दिखाई देता है।
पर, तब से अलग हो चुकी हैं परिस्थितियां। भले ही किसी भी छात्र को अनुत्तीर्ण न करें लेकिन जब ऑनलाइन क्लासेस और दूरस्थ इलाकों में पढ़ई तुहंर द्वार जैसी योजना चल रही हो तो औपचारिक ही सही और ऑनलाइन ही क्यों न हो, परीक्षा क्यों नहीं ली जाती? कोरोना के दौर में जब रैलियों पर रोक नहीं, बाजार, सिनेमा हॉल खुले हों तो सिर्फ परीक्षा से छात्रों को वंचित कर दिया गया। जनरल प्रमोशन पर पालक और इग्ज़ाम से बच जाने वाले छात्र खुशी मनाने की जगह दूसरे कोण से भी मामले को समझ पायेंगे? नौकरशाह जानते हैं कि ऑनलाइन इगज़ाम लेने में उन्हें कितनी तकलीफ होने वाली है। दर्जन भर जिलों के हजारों छात्र-छात्राओं के पास न तो नेटवर्क है, न ही संसाधन। ये कमी छिपाये नहीं छिपती न समाधान निकाला गया। इसीलिये शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जनरल प्रमोशन का रास्ता चुना और तय किया- मुंह ढंक के सोईये, आराम बड़ी चीज है।
हिम्मत दुधमुंहे के मां की
कोई महिला अगर बहुत छोटे बच्चे, शिशु की मां हो तो उसे अपने कार्यस्थल पर ड्यूटी निभाना कितना मुश्किल है यह नये बने जिले गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही की घटना से पता चलता है। स्कूलों के बीच समन्वय के लिये संकुल बना हुआ है। इन संकुलों के समन्वयक किसी स्कूल के प्राचार्य होते हैं और वे समय-समय पर बैठकें लेकर पढ़ाई, दाखिले, परीक्षा की तैयारी जैसे मसलों पर चर्चा करते हैं। जिले के दोबहर स्कूल के प्राचार्य, संकुल समन्वयक भी हैं। उन्होंने बैठक रखी। उस बैठक में शिक्षिका अपने दुधमुंहे बच्चे को लेकर पहुंच गई । बच्चा उसकी गोद में। थोड़ी बहुत स्वाभाविक हलचल थी, पर बैठक में कोई बाधा नहीं हुई। पर बैठक के बाद प्राचार्य नाराज हो गये। उन्होंने कहा कि ये सब नहीं चलेगा। आगे जब भी बैठकों में आओ बच्चे को साथ मत लाना। शिक्षिका ने कहा, कहां छोड़ूं। यहां तो न झूलाघर है न फीडिंग की जगह। प्राचार्य ने कहा कि नहीं यह सब नहीं चलेगा, अपना इंतजाम कर लो, वरना निपटा दूंगा।
दुर्व्यवहार से व्यथित शिक्षिका ने जिला शिक्षा अधिकारी, पुलिस अधीक्षक के साथ-साथ महिला आयोग से भी इसकी शिकायत कर दी है। मालूम हुआ है कि शिक्षा विभाग तत्काल सम्बन्धित प्राचार्य से पद छीनकर उसे किसी दूसरी जगह पर भेजने वाला है, ताकि ऊपर से होने वाली किसी भी पूछताछ का संतोषजनक जवाब दिया जा सके।
अकेले रायपुर में चाकूबाज?
रायपुर में ऑनलाइन शॉपिंग के जरिये चाकू मंगाने वालों की सूची पुलिस ने हासिल की और जब्त करने का सिलसिला शुरू किया। 30 फीट लम्बी मेज पर बीते एक सप्ताह में जब्त 350 चाकुओं की प्रदर्शनी लगाई गई। अब भी करीब दो सौ चाकू बरामद करना बाकी है। हैरानी यह है कि चाकू जब्ती की यह कवायद सिर्फ राजधानी में हो रही है। ऑनलाइन शॉपिंग साइट से चाकू मंगाने की छूट तो हर जिले में हर किसी को है। वहां होने वाले अपराधों को काबू में लाने के लिये बाकी जिलों में पुलिस की कोशिश क्यों नहीं हो रही है? बाकी जिले इतने पिछड़े भी नहीं हैं कि अब भी यूपी, बिहार से तस्करों के जरिये माल मंगायें, ऑनलाइन शॉपिंग की समझ बाकी जिलों के बदमाशों को भी है।
नेता प्रतिपक्ष को एक्सटेंशन!
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारने के बाद बीजेपी निराशा के माहौल से ऊबर नहीं पाई है, हालांकि विधानसभा के बाद लोकसभा में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा, लेकिन नगरीय निकाय और पंचायत में फिर से बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। स्थिति यह है कि संगठन में बैठकों के अलावा कोई हलचल दिखाई नहीं देती। ऐसे में विरोधियों को बीजेपी की मौजूदा स्थिति-परिस्थितियों पर टीका-टिप्पणी करने का मौका मिल जाता है।
अब प्रदेश के सबसे प्रमुख, राजधानी के नगर निगम को ही ले लीजिए। एक-डेढ़ साल का समय बीत चुका है, लेकिन बीजेपी अभी तक नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाई है। इस मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष की ओर से सवाल भी उठाए जाते रहे हैं। निगम के सभापति ने तो नेता प्रतिपक्ष तय करने के लिए बीजेपी की प्रभारी को भी पत्र लिखा था। उसके बाद भी बीजेपी संगठन में कोई सुगबुगाहट सुनाई नहीं पड़ रही है। निगम की सत्ता में काबिज कांग्रेसियों के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि उन्हें न तो विपक्ष के सवालों का जवाब देना पड़ रहा है और न ही उनके फैसलों के खिलाफ आवाज उठ रही है। फिर भी सत्ताधारी दल के लोग मजे लेने से नहीं चूक रहे हैं।
निगम में कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने सुझाव दिया कि क्यों न पिछली परिषद के नेता प्रतिपक्ष को ही बीजेपी पार्षद दल का नेता मान लिया जाए। उनका कहना था कि पुराने नेताजी को ही नए की नियुक्ति तक एक्सटेंशन दे दिया जाए। प्रस्ताव भले ही हंसी-मजाक में आया लेकिन लोगों को जंच भी रही थी, लेकिन इसमें एक दिक्कत यह भी है कि पूर्व नेता प्रतिपक्ष दुर्भाग्य से पार्षद का चुनाव हार गए हैं। ऐसे में उनको कैसे नेता प्रतिपक्ष माना जाए ? लेकिन लोगों की दलील थी कि सदन के अंदर न सही बाहर तो कम से वे सत्ताधारी दल को घेर सकते हैं। यह प्रस्ताव पूर्व नेता प्रतिपक्ष तक भी पहुंची तो वे भी इस पर सहमत बताए जा रहे हैं। अब देखना यह है कि सियासी हंसी-ठिठोली भरे इस प्रस्ताव पर बीजेपी के नेता कितनी गंभीरता दिखाते हैं ?
छत्तीसगढ़ी को नेशनल अवार्ड मिलना
अमूमन हर साल 40-50 छत्तीसगढ़ी फिल्में बनती हैं। मगर बहुत कम यादगार होती हैं। दो चार फिल्मों को छोड़ दें तो बाकी बॉलीवुड, भोजपुरी या दक्षिण भारतीय फिल्मों की नकल होती हैं। नकल भी ठीक तरह से नहीं की जाती। फिल्म खिचड़ी बनकर रह जाती है। दर्शकों का एक बड़ा वर्ग इन फिल्मों को पसंद भी करता है पर उन्हें समीक्षकों की सराहना और पुरस्कार नहीं मिलते। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन- द मेज’ को क्षेत्रीय श्रेणी का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। देश-विदेश के अनेक फिल्म फेस्टिवल्स में इस फिल्म ने पहले भी सम्मान और पुरस्कार हासिल किये हैं लेकिन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का मिलना सबसे अलग महत्व रखता है।
फिल्म में खूबी यह रही कि छत्तीसगढ़ के ही मंजे हुए कलाकार और तकनीशियनों को साथ लेकर इसका निर्माण, छत्तीसगढ़ (गरियाबंद) में किया गया। खैरागढ़ के कवि व कहानीकार संदीप बख्शी ने भूलन कांदा कहानी लिखी थी। एक लोक मान्यता है कि भूलन कांदा जिसके पैर में पड़ जाये उसकी स्मृति लुप्त हो जाती है। वह व्यक्ति यह भी नहीं बता पाता कि उसकी याददाश्त किस वजह से गई। यह पौधा वास्तव में हो या नहीं हो, पर कहानी दिलचस्प है, जिसमें गांव के लोगों का आपसी प्रेम भाव दिखाया गया है। एक व्यक्ति अपने पड़ोसी की लाचार स्थिति को देखकर उसके अपराध को अपने सिर पर ले लेता है और खुद जेल की सजा काटता है। निर्माता मनोज वर्मा ने जैसा बताया है कि यह फिल्म बहुत जल्द रिलीज होगी। यह पुरस्कार साबित करता है कि छत्तीसगढ़ की लोक कथाओं, परपम्पराओं, सामाजिक संरचना को यदि बखूबी उतारा जाये तो यहां की फिल्में नई ऊंचाईयां हासिल कर सकती हैं। उम्मीद है अब छत्तीसगढ़ी में भी लीक से हटकर कुछ काम करने की प्रेरणा दूसरे निर्माताओं को मिलेगी।
शार्टेज के बाद वैक्सीन के लिये कतार
कोई चीज मुफ्त मिल रही हो तो उसकी पूछ-परख नहीं होती, वहीं जब शार्टेज होता है तो लोगों में उसे पहले हासिल करने की हड़बड़ी हो जाती है। माह भर पहले कोरोना वैक्सीन लगवाने के नाम पर लोग हिचकिचाते, कतराते रहे। कोरोना वारियर्स भी टालने का बहाना ढूंढते रहे। धीरे-धीरे लोगों में झिझक दूर गई और वैक्सीनेशन का दर बढ़ता गया। अब स्थिति यह है कि प्रदेश के 1500 से ज्यादा सेंटर्स में हर दिन करीब 1 लाख डोज दिये जा रहे हैं। अब करीब 16 लाख कोविशील्ड और 80 हजार को वैक्सीन के जो डोज केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को भेजे थे खत्म हो रहे हैं। अब स्टाक में केवल दो लाख डोज बचे हुए हैं जो महज दो दिन और चल पायेगा। दरअसल, पहले तो लोगों ने सोचा, जब मर्जी होगी लगवा लेंगे, वैक्सीन तो खत्म होने वाली नहीं। पर इस बीच कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई और टीका लगवाने की रफ्तार भी उसी तेजी से बढ़ गई। शार्टेज के कारण अब ज्यादातर निजी अस्पतालों को वैक्सीन की आपूर्ति बंद कर दी गई है। केवल सरकारी केन्द्रों में लगाये जा रहे हैं। वैक्सीन की नई खेप नहीं आई है पर केन्द्र व राज्य को चाहिये कि वह लोगों को आश्वस्त करे कि कोई छूटेगा नहीं। आखिर हम विदेशों में भी भेज रहे हैं तो अपने देश के लिये तो पर्याप्त मात्रा में बन ही रही होगी।
आंगनबाड़ी पर निगरानी का ये तरीका
केन्द्र सरकार के डिजिटल इंडिया स्कीम के चलते हर विभाग कोशिश कर रहा है कि वे अनुदान, मानदेय का ऑनलाइन भुगतान करे। इस योजना में अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी जोड़ लिया गया है। पेमेन्ट ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाये तब भी दिक्कत नहीं लेकिन उन्हें बाध्य किया जा रहा है कि वे पोषण एप डाउनलोड करें। न सिर्फ डाउनलोड करें बल्कि पूरे माह का रिकार्ड भी अपलोड करें। मामूली वेतन पाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, जिन्हें अब तक सरकारी कर्मचारी भी नहीं माना जाता गांवों में बच्चों और माताओं के पोषण की प्राथमिक कड़ी हैं। मोबाइल फोन का उन्हें इस तरह से इस्तेमाल करने कहा जा रहा है मानो हर किसी के पास स्मार्ट फोन है और उसका इस्तेमाल करने में दक्ष हैं। पोषण एप में रिकॉर्ड अपलोड नहीं करने पर उन्हें मानदेय भी नहीं भेजा जायेगा। यह आदेश पांच माह से लागू है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रदेश के 11 जिले ऐसे हैं जहां मोबाइल नेटवर्क बहुत कमजोर है। उनके पास स्मार्ट फोन खरीदने के लिये पैसे भी नहीं है। पिछली सरकार ने जो स्मार्ट फोन बांटे थे वे बहुत कम लोगों को मिले और ज्यादातर खराब भी हो चुके हैं। क्या केन्द्र सरकार उनकी इस व्यवहारिक समस्या को समझ रही है या राज्य सरकार कोई रास्ता निकालने की सोच रही है?
90 करोड़ रूपए पक्के में !
माना एयरपोर्ट के नजदीक सहारा समूह की सवा सौ एकड़ का सौदा पक्का हो गया है। सुनते हैं कि अरोरा उपनाम के एक कारोबारी ने करीब डेढ़ सौ करोड़ में सहारा से जमीन खरीदी है। सरगुजा संभाग के एक बड़े राजनेता के करीबी माने जाने वाले अरोरा को करीब 90 करोड़ रूपए पक्के में देना है। जमीन कारोबारियों के बीच इस सौदे की जमकर चर्चा है। इस पूरे सौदे में पेंच सिर्फ इतना है कि सामान्य कारोबारी अरोरा इतनी बड़ी रकम नंबर एक में कैसे देगा।
हालांकि राजनेता के साथ उनके कारोबारी रिश्तों को देखकर इतनी बड़ी रकम अदा करने में कोई शक की गुंजाइश नहीं है। वैसे भी नेताजी रायपुर से लेकर सरगुजा संभाग में एक के बाद एक जमीन में अपने करीबियों के जरिए काफी निवेश कर रहे हैं। उनके भारी भरकम निवेश पर जांच एजेंसियों की नजर भी है। ऐसे में देर-सवेर वे अपने कारोबारी मित्रों समेत किसी मुसीबत में घिर जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
पारवानी ही व्यापारियों के सबसे बड़े नेता
चेम्बर चुनाव के नतीजे आने वाले राजनीतिक उठापटक की तरफ भी इशारा कर रहे हैं। चेम्बर में पिछले कई दशकों से चले आ रहे एकता पैनल के वर्चस्व को तोड़कर जय व्यापार पैनल ने अपना दबदबा कायम किया है। पैनल के मुखिया अमर पारवानी भारी वोटों से अध्यक्ष निर्वाचित हुए। पारवानी की जीत से श्रीचंद सुंदरानी को तगड़ा झटका लगा है।
श्रीचंद व्यापारियों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे, और उन्होंने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। वे प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी नहीं गए। वे योगेश अग्रवाल को साथ देकर प्रदेश भर घूमते रहे। मगर व्यापारियों ने योगेश के बजाए पारवानी पर भरोसा किया, और चुनाव परिणाम से यह साबित हो गया कि पारवानी ही व्यापारियों के सबसे बड़े नेता हैं।
भाजपा ने व्यापारी नेता होने के नाते श्रीचंद को रायपुर उत्तर प्रत्याशी बनाया था, और वे विधायक भी बने। लेकिन पारवानी की जीत के बाद फेसबुक-सोशल मीडिया पर कई लोग उन्हें अभी से रायपुर उत्तर से भाजपा प्रत्याशी बताने में लग गए हैं। क्या वाकई ऐसा होगा, यह कहना अभी मुश्किल है। मगर श्रीचंद चेम्बर के मोह में अपना काफी कुछ गंवा बैठे हैं।
शिवरतन भी योगेश को बढ़त नहीं दिला पाए
खबर है कि अमर पारवानी को कांग्रेस के बड़े व्यापारी नेताओं के साथ-साथ पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विरोधियों का भरपूर साथ मिला। बृजमोहन अपने छोटे भाई योगेश को जिताने के लिए काफी मेहनत भी कर रहे थे। वे तकरीबन सभी व्यापारी नेताओं के संपर्क में थे। बृजमोहन के करीबी विधायक शिवरतन शर्मा ने तो भाटापारा और बलौदाबाजार में रोड शो भी किया। मगर शिवरतन भाटापारा से भी योगेश को बढ़त नहीं दिला पाए।
अजय चंद्राकर ने भी धमतरी, बालोद में योगेश के पक्ष में काफी लॉबिंग की थी। इससे परे राजेश मूणत के समर्थक खुले तौर पर अमर पारवानी के साथ थे। पूर्व सीएम रमन सिंह और धरमलाल कौशिक के करीबी व्यापारी नेताओं ने पारवानी का साथ दिया। यही नहीं, कांग्रेस संगठन के ताकतवर अग्रवाल नेता ने तो गुपचुप तौर पर कांग्रेस के व्यापारी नेताओं को पारवानी का साथ देने के लिए कह दिया था। कांग्रेस के व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजेन्द्र जग्गी के खुलकर पारवानी के प्रचार में जुटने से साफ तौर पर संकेत चला गया था। इन सब वजहों से भी पारवानी को भारी वोटों से जीत हासिल हुई।
योगेश से हिसाब चुकता..
चेम्बर का चुनाव जातिगत समीकरणों अछूता नहीं रहा है। चेम्बर चुनाव अग्रवाल वर्सेस सिंधी हो गया था। सिंधी व्यापारियों ने एकतरफा अमर पारवानी के पक्ष में वोटिंग की। यही नहीं, जैन समाज के व्यापारियों ने भी पारवानी का साथ निभाया। इससे परे अग्रवाल बेल्ट माने जाने वाले सरगुजा, रायगढ़, कोरिया, कोरबा में योगेश को बढ़त तो मिली लेकिन यहां वोटर इतने कम हैं कि वे अपनी बढ़त को ज्यादा समय तक बरकरार नहीं रख पाए।
दूसरी तरफ, अजय भसीन को अपने पैनल से महामंत्री उम्मीदवार बनाए जाने का पारवानी को भरपूर फायदा मिला। भसीन की वजह से भी पारवानी को भिलाई-दुर्ग से अच्छी खासी बढ़त मिली। रायपुर में समता कॉलोनी में गरबा, और जमीन विवाद के चलते भी योगेश अग्रवाल विवादित रहे हैं। समता कॉलोनी में व्यापारियों की संख्या अच्छी खासी है, और इनमें से ज्यादातर योगेश के विरोधी हो गए थे। मतदान का मौका आया, तो उन्होंने योगेश के खिलाफ मतदान कर अपना हिसाब चुकता किया।
छत्तीसगढिय़ा दर्शकों का मनोरंजन
अपने यहां एक कवि हैं जो मंचों पर अक्सर जिक्र करते हैं कि हम छत्तीसगढिय़ा लोग गजब स्मार्ट होते हैं, कोई पार नहीं पा सकता। शहीद वीर नारायण सिंह क्रिकेट स्टेडियम नया रायपुर में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के दौरान मनोरंजन केवल मैदान पर नहीं, बल्कि गैलरी पर भी हो रहा है। अब इन्हें देखिये। एक दर्शक साउथ अफ्रीका के खिलाडिय़ों से अपील कर रहे हैं- छइहां भुइयां देखकर जाना। कोई और बता रहा है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट देखने का मौका पुरखों को नहीं मिला, उसे मिल गया। स्टेडियम में इस तरह के अनेक पोस्टर्स के दर्शन, मैच के दौरान हो रहे हैं और ध्यान खींच रहे हैं।
किसानी के दिन फिरेंगे?
कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना की चौथी किश्त कल जारी कर दी। इस तरह से किसानों से किये गये वादे का एक चरण पूरा हुआ। केन्द्र भी किसान सम्मान निधि योजना लेकर आई जब कांग्रेस ने किसानों, बीपीएल परिवारों के हाथ में कैश देने की बात उठाई थी। बाद में इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल किया। ऐसा लगता है कि किसानों, मजदूरों के हाथों में कैश देने की योजना अब कभी बंद नहीं होगी, बल्कि हर चुनाव में दी जाने वाली राशि बढ़ाने की होड़ रहेगी।
पश्चिम बंगाल में भाजपा ने कल ही संकल्प-पत्र जारी किया है जिसमें इस बात का जिक्र है कि बीते तीन साल से जो सम्मान निधि टीएमसी की सरकार किसानों को नहीं दे रही है, उसे सरकार बन जाने पर वह एकमुश्त देगी। इस घोषणा को लेकर यहां छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता विपक्ष में बैठी भाजपा से सवाल कर रहे हैं कि किसानों को धान बोनस के रूप में 300 रुपये हर साल देने का वादा था, वो तो दिया नहीं। सिर्फ दो बार दिया, घोषणा वाले साल और चुनाव वाले साल में। अब कम से कम केन्द्र से कहकर यहां के किसानों को भी वह रुकी हुई राशि दिला दें। भले ही वादा राज्य सरकार का था लेकिन केन्द्र पिछला पैसा बांटने जा रही है तो अपनी ही भाजपा सरकार के वादे को पूरा करने में हर्ज क्या है।
वैक्सीन मुफ्त है, याद रखना
अगले विधानसभा चुनाव में अभी दो साल से ज्यादा वक्त है पर भाजपा सक्रिय हो चुकी है, खोई हुई जमीन वापस हासिल करने के लिये। हाल ही में कई धरने आंदोलन हुए, सरकार को घेरते हुए। कहीं भीड़ जुटी, कहीं नहीं, पर हौसले में कमी नहीं है। लेकिन सब कुछ नकारात्मक ही किया जा रहा हो, ऐसा नहीं। युवा इकाई के हाथों में गुलाब हैं और वे लोगों का अभिवादन भी कर रहे हैं। जो लोग कोरोना का टीका लगवाने के लिये वैक्सीनेशन सेंटर जा रहे हैं उन्हें फूल थमा रहे हैं।
इंजेक्शन लगवाने वाले तो खूब फोटो खिंचवा रहे हैं। युवाओं की अभी बारी नहीं आई है पर वे भी फूल देने के बहाने तस्वीरें खिंचवा रहे हैं और शेयर कर रहे हैं। पार्टी ने यह काम उन्हें खूब सोच-समझकर दिया है। हजारों लोगों को टीका लगना है, इस बहाने उनका जनसम्पर्क हो रहा है। साथ ही भाजपा उपस्थिति होकर यह बता रही है कि टीका केन्द्र सरकार का है, मोदी ने इसे फ्री दिया है। राज्य सरकार तो सिर्फ इंजेक्शन लगाने का काम कर रही है।
थोड़ा केन्द्र के टैक्स की बात हो जाये....
केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी चौबे छत्तीसगढ़ के दौरे पर कल थे। पत्रकारों ने उनसे सवाल किया पेट्रोल-डीजल की भारी कीमत पर। चौबे ने कहा-राज्य सरकार टैक्स घटाये तो कम हो जायेंगे दाम। यह सही है कि राज्य सरकार वैट के रूप में काफी रकम वसूल कर रही है। पेट्रोल में यह बेस प्राइज का 25 प्रतिशत और दो रुपये है। डीजल में बेस प्राइज के 25 प्रतिशत के साथ 1 रुपया प्रति लीटर है। राज्य का टैक्स करीब 14-15 रुपये प्रति लीटर बनता है। दूसरी तरफ केन्द्र की बात करें तो सेंट्रल एक्साइज के रूप में करीब 33 रुपये और डीजल पर 29 रुपये है। राज्य और केन्द्र की सेस अलग से लगाई जाती है। फिर भी केन्द्र का टैक्स राज्य के टैक्स के मुकाबले बहुत अधिक है। इस समय करीब दोगुना है। केन्द्रीय मंत्री ने केवल राज्य सरकार से उम्मीद की कि वह टैक्स घटाये पर लोग तो केन्द्र से भी ऐसी पहल की उम्मीद रखते हैं, उन्होंने इस पर कुछ नहीं कहा। वैसे छत्तीसगढ़ का वैट टैक्स पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से कम ही है।
आंगनबाड़ी और मनरेगा का बहिष्कार
गांव वाले अपने बच्चों को पौष्टिक आहार और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा से महफूज रखने के लिये तैयार हैं लेकिन धर्म परिवर्तन करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पास भेजने के लिये नहीं। इस आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के परिवार के लोग मजदूरी करते हैं। फरमान यह भी है कि उनको मनरेगा में काम करने के लिये नहीं बुलाया जाये। बुलाया गया तो गांव के लोग नहीं जायेंगे। यानि खाली हाथ बैठे रहना भी मंजूर है। यह घटना राजनांदगांव जिले के एक गांव बागद्वार की है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने पहले स्थानीय जनप्रतिनिधियों और पुलिस से शिकायत की, मदद नहीं मिली तो वह राजधानी पहुंची और यहां महिला बाल विकास विभाग की सचिव से फरियाद की। यह जरूर हुआ है कि बहिष्कार करने वालों को चुनौती देने के लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का संगठन भी उनके साथ है। यदि कोई बिना प्रलोभन से, स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है तो यह कोई अपराध नहीं है। दूसरी ओर, सामाजिक बहिष्कार इस नाम से या किसी दूसरी वजह से किया जाना जरूर अपराध है। सचिव तक शिकायत हुई है तो कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है।
रोड सेफ्टी मैच में सेफ्टी से खिलवाड़
छत्तीसगढ़ जब देश के कोरोना संक्रमण से प्रभावित छह शीर्ष राज्यों में शामिल हो तब भी कोशिश की जा रही है कि लॉकडाउन न हो और सामान्य गतिविधियों को सावधानी बरतते हुए जारी रखा जा सके। इसीलिये नया रायपुर में चल रहे रोड सेफ्टी मैच के दौरान दर्शकों के लिये मास्क पहनना जरूरी किया गया है। पर लोगों की आदत छूट सी गई थी। गेट पर चेकिंग के दौरान तो लोगों ने मास्क लगाया पर भीतर घुसते ही लापरवाही बरती। किसी ने उम्मीद नही की थी कि मैच चलने के दौरान उन पर जुर्माना ठोक दिया जायेगा। चेकिंग शुरू होते ही कई ने जेब से निकालकर मास्क पहन लिये तो कई ने मन मसोसकर चालान जमा किया। अब आगे होने वाले मैच में जो दर्शक जा रहे हैं, उन्हें इसका ख्याल रखना होगा।
चेम्बर के वोटरों के लिए
चेम्बर चुनाव में वोटरों को रिझाने में एकता और जय व्यापार पैनल के लोगों ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। व्यापारियों के इस सबसे बड़े संगठन के प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव में राजनीतिक दलों की निगाहेें टिकी हुई है। रायपुर में सबसे आखिरी में शनिवार को मतदान हुआ। रायपुर में महासमुंद, भाटापारा, तिल्दा के व्यापारियों ने भी वोट डाले। रायपुर में सबसे ज्यादा करीब 9 हजार वोटर हैं।
जय व्यापार और एकता पैनल के समर्थकों ने व्यापारियों के लिए खाने-पीने के खास इंतजाम किए गए थे। पिछले 15 दिन से देवेन्द्र नगर के एक भवन में पापड़-पानी का दौर चल रहा था। मतदान से पहले शौकीन व्यापारियों के लिए ठंडी बियर की व्यवस्था की गई थी। कुल 17 हजार वोटरों पर प्रत्याशियों ने कुल मिलाकर एक करोड़ से अधिक खर्च किए हैं। इतना सबकुछ करने के बाद व्यापारी किसके साथ हैं, यह रविवार को पता चलेगा।
सुंदरानी, बृजमोहन साथ-साथ
चेम्बर चुनाव में पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी ने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दिया है। वे चुनाव प्रचार के दौरान खुले तौर पर यह बात कहते भी रहे हैं। वैसे तो एकता पैनल के अध्यक्ष प्रत्याशी योगेश अग्रवाल, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई हैं। खुद बृजमोहन और उनके समर्थक, योगेश के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। ऐसे में सुंदरानी को अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाना किसी को हजम नहीं हो रहा है।
सुंदरानी व्यापारियों के सबसे बड़े नेता रहे हैं, और इस वजह से भाजपा ने उन्हें टिकट दी, और विधायक भी बने। चेम्बर में सबसे ज्यादा सिंधी समाज के वोटर हैं, जो कि सुंदरानी के साथ रहे हैं, और यही उनकी ताकत भी रही है। मगर इस चुनाव में सुंदरानी की अपील के बावजूद सिंधी समाज के वोटर का झुकाव साफ तौर पर योगेश के प्रतिद्वंदी अमर पारवानी की तरफ देखने को मिला है। ऐसे में यह संदेश जा रहा है कि सुंदरानी की सिंधी समाज में पकड़ पहले जैसी नहीं रही। अब चुनाव नतीजों का बेसब्री से इंतजार है, जो कि कम से कम सुंदरानी का राजनीतिक भविष्य भी तय कर सकता है। फिलहाल तो लोग कयास ही लगा रहे हैं।
गणेश जी अपने हिस्से की फसल खा गये...
हाथी, जिसे हम गजराज, हतिन, हत्ती, गज, नाग आदि कई नामों से जानते हैं, का दुनियाभर में अलग-अलग धर्मों, विश्वासों के लोग पूजते, आदर करते हैं। अपने देश में वैदिक काल से ही हाथियों का विशेष स्थान है। गणेश जी को उनका ही स्वरूप माना जाता है, जिसे हम प्रथम पूज्य देव भी कहते हैं।
अपने छत्तीसगढ़ के दो चार जिलों को छोड़ दें तो कहीं कम, कहीं कुछ ज्यादा हाथियों की आवाजाही से आये दिन नुकसान होता है। फसलों, घरों को ही नहीं जान-माल को भी क्षति पहुंचती है। वन विभाग इन्हें मुआवजा भी देता है। पर, जांजगीर जिले में अनोखी घटना हुई। सारंगढ़, महासमुंद के रास्ते से दो हाथियों का एक छोटा दल मरघट्टी, देवगांव, बरपाली गांवों में दो दिन तक स्वच्छंद घूमता रहा। कई घरों की मिट्टी की दीवार गिरा दी। दर्जनों लोगों की फसल चौपट की और आगे बढ़ गये।
वन विभाग खबर मिलने पर मुआवजे का प्रकरण बनाने पहुंचा। ग्रामीणों ने नुकसान बताने से मना कर दिया। कहा- गणेश भगवान बड़े दिनों बाद दर्शन देने आये थे। अपनी जरूरत का प्रसाद ग्रहण किया और आगे बढ़ गये। इस बात का हम हर्जाना क्यों लें?, एक रुपया नहीं लेंगे।
मगर, वन विभाग के वहां पहुंचे अधिकारी कर्मचारी परेशान हुए, बाद में मुआवजा नहीं देने का आरोप उन पर लगेगा। तब सरपंच ने लिखकर दे दिया कि हम मुआवजा लेने से इंकार करते हैं। वन विभाग के अधिकारियों ने लिखित सहमति मिलने के बाद राहत की सांस ली।
एलिफेंट कॉरिडोर तो बन नहीं रहा, हाथियों के इलाके में खनिज दोहन रुक नहीं रहा। पानी के स्त्रोत सूख रहे हैं। उनके जंगल उजड़ रहे हैं। इसलिये निकट भविष्य में समस्या का समाधान तो दिखता है नहीं। इन सबको देखते हुए आशंका है कि कहीं वन विभाग प्रदेश के दूसरे इलाकों में हाथियों से प्रभावित लोगों को जांजगीर के ग्रामीणों की आस्था से प्रेरणा लेने की सलाह न देने लगें।
पीएससी मॉडल आंसर का विशेषज्ञ कौन?
भाजपा शासनकाल में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने जितनी परीक्षायें लीं, कोई बिना विवाद के नहीं थी। कुछ के प्रकरण अब भी कोर्ट में हैं। इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस शासन के दौर में भी यह ढर्रा चलने दिया जाये। कुछ ऐसा ही तय करके भारतीय जनता पार्टी की युवा इकाई ने गुरुवार से प्रदेशभर में पीएससी की हाल ही में हुई प्रारंभिक परीक्षा के मॉडल आंसर में गड़बड़ी को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया है। यह अभी मंडल, जिला स्तर पर है जो बाद में राजधानी और पीएससी दफ्तर का घेराव करने तक चलेगा। आंदोलनकारी भाजयुमो ने अनेक मांगें रखी हैं, जिनमें से एक यह भी है कि उस विशेषज्ञ का नाम उजागर किया जाये जिसने मॉडल आंसर में बताया है कि छत्तीसगढ़ में मॉनसून की वर्षा दक्षिण पूर्व की हवाओं से होती है। यह मांग जायज तो लगती है क्योंकि स्कूल के दिनों से ही छात्रों को पता है कि दक्षिण-पश्चिमी हवाओं से छत्तीसगढ़ में मॉनसून आता है, पूर्वी हवाओं से नहीं।
पीएससी प्रारंभिक में एक लाख से भी अधिक छात्र शामिल हुए थे। रिक्त पदों से 10 गुना अधिक लोगों को मुख्य परीक्षा में शामिल होने की अनुमति मिल रही है। जाहिर है, बहुत से ऐसे छात्र होंगे जो इस एक सवाल की वजह से मुख्य परीक्षा की दौड़ से बाहर हो गये हों।
इधर, सीजीपीएससी ने पिछले अनुभवों को देखते हुए हाईकोर्ट में केवियेट दायर कर रखा है। यानि कोई भी परिणामों को चुनौती देकर आगे की प्रक्रिया पर जल्दी रोक नहीं लगवा पायेगा। विशेषज का नाम फिलहाल तो पीएससी के अफसर उजागर कर नहीं रहे हैं, शायद कोर्ट में सुनवाई हो तो सामने आये।
गरीबों का धंधा फिर चौपट
रंग, गुलाल, पिचकारी, मुखौटे, बताशे, ठंडाई सब आम लोगों की पहुंच के भीतर होती है। शहर कस्बों में सडक़ किनारे सैकड़ों अस्थायी वेन्डर होली पर काफी कमाई कर लेते हैं। इसके अलावा नगाड़ा बजाने, फाग गाने वाले लोक कलाकार इस मौके पर कुछ जोड़ लेने की उम्मीद करते हैं। इस बार कोरोना ने तो उनकी होली रंगीन करने के बजाय, पानी फेर दिया। प्रशासन का निर्देश भी है लोग सतर्क भी। सार्वजनिक रूप से होली खेलने लोग कम निकलेंगे और बाजार में छोटी दुकानें सजाने वालों के सामान कम बिकेंगे। खबर तो यह है कि कुछ थोक व्यापारियों ने जनवरी फरवरी में ऑर्डर दिया था तब वे उम्मीद में थे कि कोरोना की परछाई होली पर नहीं पड़ेगी। उनके सामान का उठाव भी इस बार कम है।
पिछले साल जब कोरोना का लॉकडाउन शुरू हुआ तो डिजिटल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की कमाई कई गुना बढ़ी। इस बार भी कुछ ऐसा हो तो आश्चर्य नहीं। बहुत से लोग वाट्सएप ही होली खेलेंगे।
ट्रैफिक पुलिस का हमला भी छोटों पर...
कारों से एक चौथाई दाम वाली मोटरसाइकिलों की नंबरप्लेट को लेकर आए दिन सडक़ों पर चालान होते दिखते हैं। लेकिन ट्रकों और बसों जैसी बड़ी गाडिय़ों, रेत-गिट्टी ले जाने वाली बड़ी-बड़ी डम्परों की नंबरप्लेट या तो गायब रहती है, या उनके पीछे लोहे की जाली लगाकर उन्हें छुपा दिया जाता है, और उनका कोई चालान नहीं होता जबकि ये गाडिय़ां मोटरसाइकिलों के मुकाबले सौ गुना अधिक जानलेवा होती हैं, और सौ गुना अधिक सफर करती हैं।
अब लोगों को गाडिय़ों के आगे-पीछे गार्ड लगाने का ऐसा शौक रहता है कि कोई आकर टक्कर मारे तो भी गाड़ी का कोई नुकसान न हों। यह अलग बात है कि केन्द्र सरकार ने नियम लागू करके बड़ी गाडिय़ों के आगे-पीछे ऐसे गार्ड लगाने पर रोक लगा रखी है क्योंकि ये अगर टक्कर झेल लेते हैं तो गाड़ी के मुसाफिरों को बचाने के लिए लगाए गए एयरबैग नहीं खुलते हैं। एयरबैग तभी खुलते हैं जब गाड़ी को टक्कर लगे, और जब सीट बेल्ट लगे हुए हों। ऐसे में नंबरप्लेट को छुपाने वाले गार्ड चाहे आगे लगे हों, चाहे पीछे, वे कई तरह के नियम तोड़ते हैं। राजधानी रायपुर की यह गाड़ी एक मिसाल है कि ट्रैफिक पुलिस के चालान का हमला भी छोटे लोगों पर अधिक होता है, और कार वालों पर तकरीबन होता ही नहीं है।
रुपये कमाने की मशीन बने स्मार्ट कार्डधारी
स्वास्थ्य बीमा योजना की राशि हड़पने के लिये डॉक्टरों द्वारा फर्जी इलाज करने का मामला नया नहीं है। राजधानी के दो नामी दंत चिकित्सकों का पंजीयन एक साल के लिये सस्पेंड किया गया है। इन पर आरोप है कि स्मार्ट कार्ड की राशि हड़पने के लिये करीब 1400 बच्चों के दांत का गलत इलाज दिखाया। उनकी दांतों में तार लगाकर करीब 1.40 करोड़ रुपये स्मार्ट हेल्थ कार्ड से निकाल लिये गये।
इस घटना ने बरबस ही गर्भाशय कांड की याद दिला दी, जो छत्तीसगढ़ में एक नहीं दो-दो हुआ। पहली बार सन् 2012 में कैंसर का भय दिखाकर सैकड़ों महिलाओं की बच्चेदानी निकाल ली गई। दूसरी बार खुलासा हुआ कि सितम्बर 2018 से अप्रैल 2019 के बीच 3658 महिलाओं के गर्भाशय निकाल लिये गये। पहली बार स्मार्ट कार्ड की राशि तो दूसरी बार आयुष्मान योजना की राशि हासिल करने के लिये लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया गया।
ऐसे मामलों में डॉक्टरों का लाइसेंस 8-10 माह के लिये निरस्त करने के अलावा कोई बड़ी कार्रवाई नहीं होती है। स्मार्ट कार्ड और आयुष्मान कार्ड का इस तरह दुरुपयोग होता रहा तो बीमा कम्पनियां प्रीमियम की राशि ज्यादा लेंगीं, जो हमारे आपके टैक्स से भरा जायेगा। साथ ही लालच के चलते झूठा इलाज किया जायेगा तो मरीज की जान के साथ भी खिलवाड़ होगा। क्या सरकार ऐसे गोरखधंधे को गंभीरता से लेगी?
वाकई खराब है कानून व्यवस्था
मर्डर, ठगी, लूट की बढ़ती वारदातों को लेकर भाजपा ने जिस दिन प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया, उसी दिन शहर कांग्रेस बिलासपुर के अध्यक्ष के साथ दो पढ़े लिखे लोगों ने जमकर मारपीट कर दी। इस तरह से उन्होंने भाजपा के आंदोलन को सही ठहरा दिया। मामला शहर अध्यक्ष का होने के कारण पुलिस ने तत्परता दिखाई और आरोपियों को थाने पकडक़र ले आई, जेल भी चले गये।
पर, पुलिस तो वही है जो पहले की सरकार में थी। इसलिये कांग्रेस नेताओं को अपने संघर्ष के पुराने दिन याद आ गये। ज्ञापन लेकर वे अधिकारियों के पास पहुंचे और उन्होंने कानून व्यवस्था हाथ में लेने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। लोग भूले नहीं होंगे पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार की सरेआम शिकायत करते हुए गृह-मंत्री के सामने विधायक शैलेष पांडे थानों में रेट लिस्ट टांगने की मांग उठाई थी। वैसे भाजपा के समय तो कानून-व्यवस्था की स्थिति ज्यादा खराब रही, ऐसा मानकर चलना चाहिये, क्योंकि तब कांग्रेस भवन में घुसकर लाठियां बरसाई थी। अभी जो घटना हुई वह तो आकस्मिक और आपसी थी।
लखी, जूदेव के खालीपन को भरेगी युद्धवीर, ओपी की जोड़ी?
अपने पहले प्रवास पर पहुंचे भाजपा नेता ओपी चौधरी ने जशपुर को भाजपा के माथे का तिलक बताकर बड़ा सियासी दांव चला है। ओपी ने स्व. दिलीप सिंह जूदेव के मूंछों की दांव की याद दिलाते हुए बताया कि कैसे जोगी के शासन से मुक्ति दिलाकर जूदेव भाजपा को सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचाया। जूदेव खेमे को ओपी चौधरी के इस बयान ने नये सिरे से रिचार्ज कर दिया है। 1988 के उप-चुनाव में जूदेव व अर्जुन सिंह के बीच हुए मुकाबले को याद कर चौधरी ने कहा कि वे उस समय पहली कक्षा में पढ़ते थे। अर्जुन सिंह से हारने के बाद भी जूदेव को जुलूस में रक्त तिलक लगाये जाने की खबर से उन्हें रोमांच का बोध हुआ।
यह सभी जानते हैं कि प्रदेश में जूदेव समर्थकों की खासी बड़ी फौज है। उनके निधन के बाद उनके राजनैतिक उत्तराधिकारी युद्धवीर सिंह जूदेव चंद्रपुर के विधायक रहेद्य कलेक्टर की कुर्सी छोड़ राजनीति के मैदान में भाग्य आजमाने वाले ओपी ने भी उसी खरसिया से सियासत की पारी शुरू की जहां से स्व. जूदेव ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पाई थीद्य
इस समय ओपी पूरे प्रदेश के दौरे में हैं। यात्रा के दौरान वे कांग्रेस सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड रहे हैं। जशुपर का दौरा जूदेव समर्थकों में ओपी के प्रति अपनेपन का बीजारोपण कर गयाद्य
प्रदेश स्तर के किसी नेता ने दो दशक बाद नई पीढ़ी को जूदेव के मूंछों की दांव की याद दिलाई है। बिलासपुर संभाग में भाजपा की कमजोर स्थिति की एक वजह जूदेव खेमे की नाराजगी भी मानी जाती है। अब ओपी चौधरी ने जशपुर में जूदेव के योगदानों का स्मरण कराकर उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश की है। जूदेव समर्थक जशपुर जिले की तीन सीटों समेत रायगढ़ जांजगीर में परिणाम किस तरह से प्रभावित करने की माद्दा रखते है, शायद ओपी ने इस गहराई को समझा। उन्होंने संभवत: इसीलिये जूदेव खेमे की बढ़ती नाराजगी को दूर करने की शुरुआत की हैद्य
जूदेव समर्थकों का तो कहना है कि जिस तरह से स्व. लखीराम अग्रवाल व स्व. दिलीप सिंह जूदेव की जोड़ी ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की जड़ों को मजबूत किया, उनके निधन के बाद रिक्त हुई जगह को औपी चौधरी और युद्धवीर सिंह जूदेव की जोड़ी भर सकती है।
मेरा जूता है जापानी...
छत्तीसगढ़ में अभी भारत-जापान के संबंधों पर काम करने वाले एक संगठन का दाखिला हुआ। कुछ हफ्ते या महीने पहले इसके लोगों का सरकार के साथ बातचीत का सिलसिला चला, जो अब किसी किनारे तक पहुंचा है। अभी आर्थिक एवं सांख्यिकी मंत्री अमरजीत भगत ने मंत्रालय में एक बैठक लेकर कलेक्टरों को जिम्मेदारी दी है कि कौशल विकास योजना के तहत छत्तीसगढ़ के युवाओं को जापानी भाषा सिखाई जाए।
अब कौशल विकास के तहत जो कुछ सिखाया जाता है उसके साथ एक शर्त यह भी जुड़ गई है कि उसके एक बड़े हिस्से को रोजगार दिलवाना होगा, और उसके सुबूत दाखिल करने होंगे, तभी उसे कौशल सिखाना माना जाएगा। अब सवाल यह है कि जो छत्तीसगढ़ी लोग सौ-पचास घंटे के किसी पाठ्यक्रम से जापानी भाषा का कामचलाऊ इस्तेमाल सीख भी लेंगे, उन्हें रोजगार कहां मिलेगा? छत्तीसगढ़ में सरकार के लाखों कर्मचारियों-अधिकारियों के अमले में जापानी के जानकार के लिए तो एक भी पद नहीं है, और न ही छत्तीसगढ़ से जापान जाकर काम करने की कोई संभावना अभी तक दिखी है, न ही जापानी लोग छत्तीसगढ़ बड़ी संख्या में आते हैं। ऐसे में दिल्ली में बसे किसी एक संगठन की दिलचस्पी को अगर यह राज्य जिला कलेक्टरों के मार्फत कौशल विकास कार्यक्रम पर थोप रहा है, तो उससे हासिल क्या होगा? कलेक्टरों के अधिकार इतने रहते हैं कि राज्य शासन के कहे हुए वे कौशल विकास के तहत या उसके बिना भी मंगल ग्रह की भाषा भी अपने जिलों में सिखा सकते हैं, जापानी का क्या है! अब दिक्कत यह है कि कौशल विकास की बड़ी सीमित सीमाओं के तहत एक ऐसी भाषा सिखाने का फैसला लिया गया है जिसके अभ्यास का भी कोई मौका इन लोगों को नहीं मिलेगा, और जब जापानियों को हिन्दी में काम करना होगा, तो वे सौ-पचास घंटे सीखे हुए लोगों के बजाय पांच बरस पढ़ाई करने वाले अनुवादकों से काम लेंगे। सरकार का यह फैसला आपाधापी में लिया गया दिखता है, और सरकार के कुछ लोगों ने हो सकता है कि जापान जाने की गुंजाइश इस संगठन के रास्ते देख ली होगी।
अगर सचमुच ही कोई भाषा सिखाकर छत्तीसगढ़ के लोगों को भाषा के हुनर से काम दिलवाना है तो सबसे आसान अंग्रेजी भाषा है जिसकी संभावनाएं हिन्दुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में हैं, और दुनिया के सबसे अधिक देशों में भी हैं। इस अखबार में कई बरस से इस बात की वकालत की जा रही है कि गांव-कस्बों के सरकारी स्कूल-कॉलेज के ढांचों में खाली वक्त में दिलचस्पी रखने वाले तमाम लोगों को अंग्रेजी सिखानी चाहिए ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके।
हवाईअड्डे की स्क्रीन पर छत्तीसगढ़ी
जब हमारा अलग राज्य बना तो छत्तीसगढ़ी भाषा को भी आगे ले जाने के लिये कोशिश की गई। छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लम्बे समय से हो रही है। राज्य बनने के बाद इसके लिये आंदोलन भी हुए। इस सूची में 28 भाषायें शामिल हैं, जिनमें से अनेक छत्तीसगढ़ी से कम बोली जाती हैं। राज्य बनने के बाद भी सन् 2003 के आसपास बोडो, डोंगरी, मैथिली, संथाली आदि को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का प्रदेश में गठन किया गया। सरकारी दफ्तरों में हिन्दी या अंग्रेजी की जगह छत्तीसगढ़ी को प्रयोग में लाने के लिये शब्दकोश तैयार किया गया। छत्तीसगढ़ी में दिये गये आवेदन को स्वीकार करने का विधानसभा से पारित शासकीय आदेश है। पर व्यवहार में यह राज्य की अधिकारिक भाषा नहीं बन पाई है। हां, लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ी बोली, परम्पराओं से जुड़े सवाल आने लगे है। प्रारंभिक कक्षाओं में छत्तीसगढ़ी के कोर्स भी रखे गये हैं।
इस बीच मोबाइल फोन के संदेश, रेलवे स्टेशन की उद्घोषणा छत्तीसगढ़ी को शामिल हो चुकी है। अब स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर में छत्तीसगढ़ी को महत्व मिला है। फ्लाइट्स की आने, जाने की सूचना अब हिन्दी और अंग्रेजी के साथ छत्तीसगढ़ी में दी जा रही है। कसडोल की विधायक शकुन्तला साहू ने इसे पहली बार देखा, तो आज इसकी तस्वीर ट्विटर पर डाली। और लिखा- ‘हमर रायपुर एयरपोर्ट मं जहाज आये-जाये के जानकारी छत्तीसगढ़ी भाषा मा मिलत हे!’ जाहिर है प्राय: इस पोस्ट का स्वागत ही किया गया है। पर एक यूजर ने यह टिप्पणी भी की- ‘भाषा नहीं, मैडमजी भाखा।’
आपत्ति तो जायज है। छत्तीसगढ़ी के जानकार बताते हैं कि छत्तीसगढ़ी में श, ष जैसे अक्षर नहीं हैं। लगता यही है कि जो जन्म से छत्तीसगढ़ी बोल रहे हों, उनके लिये भी इसे लिखना, पढऩा सहज नहीं है।
मंत्री के सामने बेलगाम अफसर
स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह इस बार नहीं चूके। सरगुजा जिले के प्रतापपुर के आदिवासी बालक आश्रम केवरा का उद्घाटन उनको अंधेरे में रखकर करा लिया गया। 50 बिस्तरों वाले इस आश्रम के लिये 1.62 करोड़ रुपये मंजूर किये गये थे। बिल्डिंग का लोकार्पण करने पहुंचे तो उनका सामना एक वृद्धा रामबाई पंडो से हुआ, जिसने बताया कि आश्रम के लिये उनकी बाड़ी की जगह को ले लिया गया है। जमीन उसने इस शर्त पर दिया कि उसे तीन कमरों का एक पक्का मकान बनाकर पीडब्ल्यूडी वाले और ठेकेदार देंगे। लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया। वह बेघर हो गई है। उसे प्रधानमंत्री आवास भी नहीं मिला है। मंत्री ने अधिकारियों को वादाखिलाफी के लिये फटकारा और निर्देश किया कि जब तक उसके लिये मकान नहीं बना देंगे तब तक वह इसी आश्रम में रहेगी। इसके बाद मंत्री का ध्यान बिल्डिंग की ओर गया। उन्होंने पाया कि बिल्डिंग में तो अभी काफी काम बाकी है। उनके हाथों आधे-अधूरे भवन का ही उद्घाटन करा लिया गया है। नाराज मंत्री ने पानी नहीं पिया, स्वागत सत्कार के लिये भी नहीं रुके और वापस हो गये।
याद होगा, बीते 27 जनवरी को मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह बलरामपुर जिले में महिला बाल विकास विभाग ने सामूहिक विवाह कराया था। वहां वर-वधू को घटिया घरेलू जरूरत के सामान बांटे गये। खुद पंचायत प्रतिनिधियों ने इसकी शिकायत वहीं पर मंत्री से की, पर उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया था। लेकिन, इस बार तेवर कुछ कड़े दिखे। अब बाद में मालूम होगा कि पंडो आदिवासी वृद्धा के लिये पीडब्ल्यूडी ने मकान बनाना शुरू किया या नहीं और छात्रावास में उसे रहने दिया जा रहा है या नहीं।
‘भारत-दर्शन’ पर ग्रहण
बीते साल जब कोविड-19 का प्रकोप बढ़ा तो लोगों का पूरा ग्रीष्मकालीन अवकाश घरों के भीतर कैद में बीता। लॉकडाउन के चलते महीनों, ट्रेन, बसें नहीं चली। पर्यटन को तो लोग भूल ही गये। अक्टूबर माह में जब कोरोना संक्रमण की रफ्तार कुछ कम हुई तो रेलवे की सहयोगी आईआरसीटीसी ने ‘भारत दर्शन’ पर्यटन ट्रेन की घोषणा की। कोरोना का भय और आर्थिक संकट के बीच बहुत कम लोगों ने इस ट्रेन में सफर करने में रुचि दिखाई। तब आईआरसीटीसी ने तय किया कि 50 प्रतिशत सीटें भी भर जाती हैं तो वह यह यात्रा निकालेगी। जानकारी के मुताबिक 300 सीटों की बुकिंग हो भी गई थी। इनमें 150 से ज्यादा छत्तीसगढ़ से थे। कुछ ही सीटें और भरती तो आईआरसीटीसी का लक्ष्य हासिल हो जाता। पर, ऐन मौके पर संक्रमण फिर बढऩे लगा है। पता चला है कि वैष्णो देवी, अयोध्या आदि के लिये प्रस्तावित इस ट्रेन के 90 यात्रियों ने टिकट रद्द करा लिये हैं। इनमें से ज्यादातर नागपुर के हैं, जहां इस समय लॉकडाउन चल रहा है। ऐसे में 31 मार्च को निर्धारित सफर शुरू हो पायेगा या नहीं इस पर शंका है। आईआरसीटीसी ने मुख्यालय से पत्र व्यवहार शुरू किया है और पूछा है कि क्या करें? कम यात्रियों में तो ट्रेन चलाना घाटे का सौदा होगा। वैसे भी कोरोना के बाद हुए नुकसान के चलते यात्री ट्रेनों, प्लेटफॉर्म टिकटों के दाम में बेतहाशा वृद्धि की गई है, फिर घाटे की ट्रेन क्यों चलाई जाये? फैसला अभी नहीं हुआ है।
कलेक्टर से कोरोना खौफ खाती है?
प्रदेश में कल 850 से अधिक कोरोना पॉजिटिव केस आये, 12 लोगों की मौत भी 24 घंटे के भीतर हो गई। कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर केबिनेट की बैठक भी हुई है जिसमें नये सिरे से गाइडलाइन का पालन करने में सख्ती बरतने का फैसला हुआ है। सार्वजनिक स्थल पर मास्क नहीं पहनने और सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं करने पर एफआईआर की बात हुई है। कई मंत्री, अधिकारी जो कुछ दिन पहले तक मास्क के बगैर घूमने लगे थे, वे भी अब दुबारा ठीक तरह से मास्क पहन रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में मास्क के बगैर एंट्री भी नहीं हो रही है। मतलब, दुबारा कोरोना का प्रकोप फैलने में अपनी ओर से कोई गलती न हो इसकी कोशिश हर कोई कर रहा है।
पर एक कलेक्टर इन सबसे इत्तेफाक नहीं रखते। वे अक्सर बिना मास्क पहने हुए ही दफ्तर में बैठते हैं, दौरा करते और बैठकें लेते हैं। उन्होंने अपने जिले के करीब दो दर्जन अधिकारियों की कल बैठक ली तो सोशल डिस्टेंस उनके बीच खैर था नहीं, पर अधिकांश ने मास्क पहने थे। हमेशा की तरह कलेक्टर ने मास्क पहनने की जरूरत नहीं समझी। यह स्थिति तब है जब वे खुद एक बार कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। अभी एक और, जांजगीर-चाम्पा के कलेक्टर कोरोना के चलते होम आइसोलेशन में भी हैं। प्रदेश के कई आईएएस, आईपीएस अफसर भी कोरोना झेल चुके हैं। सरकार ने कलेक्टरों को ही जिम्मेदारी दी है कि वे जिले में कोरोना से बचाव के लिये तय की गई गाइडलाइन का पालन करायें, लेकिन जब वे खुद पहनने के लिये तैयार नहीं हैं तो उनकी अपील कौन सुनेगा?
गोबर के प्रोडक्ट कितना लाभ दिलायेंगे?
करीब सालभर पुरानी गोधन योजना के तहत प्रदेश में 324 ऐसे पशुपालक हैं जिन्हें गोबर बेचने पर एक लाख रुपये से अधिक की आमदनी हुई। इसी तरह 7 हजार से अधिक ऐसे हितग्राही हैं, जिन्हें 25 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक की आय हुई। खरीदी और भुगतान पारदर्शी हो इसके लिये गोबर बिक्री की रकम सीधे हितग्राहियों के बैंक एकाउन्ट में डाली जाती है। इस योजना की दूसरे राज्यों के बाद केन्द्र सरकार भी तारीफ कर चुकी है।
अब तक गोबर खरीदकर 80 करोड़ रुपये का भुगतान सरकार कर चुकी है। खाद, गो काष्ठ आदि बनाने वालों को भी सरकार की तरफ से ही मजदूरी भी दी जा रही है। इस भुगतान को सहायता के रूप में दिया जा रहा हो तो अलग बात है, पर देखना यह होगा कि स्व-सहाया समूह गो काष्ठ, दीये, वर्मी कम्पोस्ट, आदि बेचकर क्या इस स्थिति में आ पाते हैं कि गोबर की रकम का भुगतान सरकार को न करना पड़े। गोबर खरीदी सरकारी सहायता न होकर एक फायदेमंद कारोबार में बदल सके?
मास्क पहनकर होली कैसे?
बीते साल की होली के वक्त कोरोना का खौफ तो शुरू हो चुका था पर दूरी बनाकर रखने का नियम लागू नहीं हुआ था। इसलिये कुछ ने खौफ में तो कुछ ने बेफिक्री में होली मना ली थी। पर इस बार बड़ी अजीब स्थिति है। कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसा कोई चमत्कार हो नही सकता कि होली के पहले अचानक वह गायब हो जाये। बचने के लिये सबसे जरूरी बताया गया है मास्क लगाना और शारीरिक दूरी रखना। ठीक उल्टे, होली के लिये सबसे ज्यादा जरूरी है चेहरे पर गुलाल मलना और गले लगना। अब कोरोना से दो-दो हाथ करें या इस प्रेम, व्यवहार से बचें।
कल प्रदेशभर के प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक हुई। इसमें यह निर्देश तो दिया गया कि त्यौहार पर कोरोना से बचाव के उपायों को ढीला न होने दें। पर सीधे नहीं कहा गया कि होली न मनायें। ऐसा आदेश शायद लोगों को नाराज कर देगा। फिर भी, दूरे से रंग डालने, होलिका जलाने और फाग गाने का विकल्प तो बचा हुआ है ही।
सरकारी घोषणाओं का फैक्ट चेक
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी सूचनाओं की बाढ़ आई हुई है। किसी नेता या दल की छवि बिगाडऩे, ऊपर उठाने के लिये पोस्ट तो की ही जाती है, लोगों को नौकरी, ऋ ण, भत्ते आदि का प्रलोभन देकर ठगी करने का मकसद भी होता है। फर्जी पोस्ट, फेक न्यूज़ की बाढ़ आने के बाद अब अनेक न्यूज पोर्टल इसके लिये अलग सेक्शन बना रखे हैं। कुछ न्यूज पोर्टल तो फैक्ट चेक का ही काम कर रहे हैं। पर इस काम में अब केन्द्र सरकार की खबर देने वाली एजेंसी पीआईबी शामिल हो गई है। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर पीआईबी, फैक्टचैक या फैक ट्री के जरिये वह सरकार की छवि बिगाडऩे वाली झूठी सूचनाओं की असलियत बता रही है। इनमें कुछ ऐसे पोस्ट भी हैं, जिनमें सरकार की योजनाओं का हवाला देकर बेरोजगारों से पैसे मांगे जा रहे हैं। ऑनलाइन फास्टैग बनवाने की बात की जा रही है। कोरोना वैक्सिनेशन के लिये भ्रामक गाइडलाइन बताई जा रही है। आरटीआई से मिली सूचनाओं को तोड़-मरोडक़र डाला जा रहा है।
भले ही निजीकरण, बेरोजगारी, महंगाई, किसान आंदोलन, रेल किराया आदि के मुद्दे पर लोगों को सरकार के खिलाफ गुस्सा हो पर इसके बहाने झूठी खबरें तो लोगों को सरकार के खिलाफ और ज्यादा भडक़ायेगी। शायद, इसीलिये पीआईबी को अपने खुद का फैक्ट चैक करने के लिये कमर कसी है।
संचार की गांधीगिरी...
यह किस्सा रायपुर के मोवा-कांपा एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल का है। स्कूल प्रबंधन ने पहले 9वीं और 11वीं की ऑफलाइन परीक्षा कराने का निर्णय लिया था। मगर कोरोना के चलते विद्यार्थी इसके लिए तैयार नहीं हुए, वे ऑनलाइन परीक्षा लेने पर जोर दे रहे थे। विद्यार्थियों ने प्राचार्य से चर्चा करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया। इसके बाद सभी विद्यार्थियों ने एक राय होकर प्राचार्य को फोन करना शुरू किया।
प्राचार्य और स्कूल स्टॉफ ने विद्यार्थियों का फोन उठाना भी बंद कर दिया। इसके बाद विद्यार्थियों ने रोज मेल भेजना शुरू कर दिया। सैकड़ों की संख्या में मेल भेजा जाने लगा। विद्यार्थियों की जिद थी कि ऑनलाइन परीक्षा हो, और उन्होंने लिखा भी कि ऑफलाइन परीक्षा नहीं देंगे। आखिरकार विद्यार्थियों की जिद के आगे प्रबंधन को झुकना पड़ा, और परीक्षा शुरू होने के चार दिन पहले ऑनलाइन परीक्षा लेने पर सहमति दे दी।
बस नाम ही काफी है!
कई ऐसे मौके आते हैं जब लोगों का नाम उनके पते से बड़ा हो जाता है। रायपुर के एक प्रमुख नेत्ररोग चिकित्सक डॉ. दिनेश मिश्रा लगातार अंधश्रद्धा निवारण में लगे रहते हैं, और इसके लिए छत्तीसगढ़ के बाहर भी दूसरे राज्यों में जाकर वहां लोगों का अंधविश्वास मिटाने का काम करते हैं। जाहिर है कि उनके पास देश भर से चि_ियां आती हैं, फोन आते हैं, लोग अपने सामाजिक बहिष्कार का दर्द बताते हैं, या अंधविश्वास के तहत किसी और किस्म की प्रताडऩा का रोना रोते हैं। अब उनके नाम पर आने वाली चि_ियों का हाल यह हो गया है कि सिर्फ नाम और शहर का नाम लिखा रहे, तो भी डाकिये चि_ी उनके पते पर पहुंचा देते हैं। और कई चि_ियां तो ऐसी पहुंचती हैं जिनमें सिर्फ उनका नाम और संस्था का नाम लिखा है, शहर का नाम भी नहीं लिखा है, दूसरे राज्य से पोस्ट की गई है, तो भी बिना शहर के नाम, बिना पिनकोड के चि_ी डॉ. दिनेश मिश्रा को पहुंच जाती है।
15 दिन से एक भी दिन कम नहीं
कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी जब जांजगीर कलेक्टर कोरोना संक्रमित हो गये। डब्ल्यूएचओ व स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों ने सफाई दी कि कोरोना से बचाव की एंटीबॉडी डेवलप होने में कम से कम 15 दिन लगते हैं। अब एक नया केस इसी तरह से सामने आया है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि 15 दिन यानि 15 दिन। उससे एक दिन भी कम नहीं। दरअसल, कोटा ब्लॉक में कार्यरत स्वास्थ्य विभाग की एक वारियर्स ने कोरोना के दोनों डोज लिये। दूसरा डोज उन्होंने 25 फरवरी को लिया, पहला डोज जाहिर है इससे 28 दिन पहले लिया। 12 मार्च को उनकी कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। यानि दूसरा डोज लेने के 15 दिन बाद। आरटीपीसीआर से संदेह दूर नहीं हुआ तो एंटिजन टेस्ट भी किया गया। रिपोर्ट नहीं बदली।
अब सवाल उठने लगा कि क्या 15 दिन बीत जाने के बाद भी कोरोना से उनका बचाव नहीं हो सका। इससे उन स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी भय सताने लगा जिन्होंने दो डोज समय पर ले लिये। इस पर स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि दूसरे डोज के 12वें, 13वें दिन से ही इस केस में महसूस होने लगा था कि तबियत खराब चल रही है। यानि 15 दिन पूरे नहीं हुए थे। जांच रिपोर्ट की तारीख ही आगे की है। इसका मतलब यह है कि कोरोना की वैक्सीन काम करेगी पर 15 दिन बाद ही, उससे पहले बिल्कुल संभावना नहीं।
कोरोना से सफाई का कोई लेना-देना नहीं
रेल यात्री न केवल बढ़े हुए किराये पर बल्कि साफ-सफाई को लेकर बुरा अनुभव हासिल कर रहे हैं। स्टेशन में ट्रेनों के रुकते ही पहले शौचालय और प्रवेश द्वार पर तैनात सफाई कर्मचारी काम पर लग जाते थे। पर अब ऐसा दिखाई नहीं देगा। किसी बोगी में कचरा पड़ा है तो वह आपकी यात्रा पूरी होने तक आपके साथ ही चलेगा। कोचों की धुलाई कई-कई दिन नहीं हो रही।
मालूम हुआ कि कोरोना संक्रमण के दौर में निजी सफाई कर्मचारियों को जो हटाया गया तो फिर दुबारा वापस नहीं रखा गया। बहाना ट्रेनों की संख्या घटने का बनाया गया था। कम्पनी वैसे भी मामूली वेतन दिया करती हैं, समय पर भी नहीं देती, जिसके चलते कई बार आंदोलन हुए।
अब इन कर्मचारियों को आत्मनिर्भर बना दिया गया है यानि ज्यादातर की सेवायें छीन ली गई। यात्रियों को भी आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। अपनी बर्थ साफ रखें या फिर कचरा फैलाते हैं तो खुद ही सफाई भी करें। प्रधानमंत्री का जोर स्वच्छता पर है पर रेलवे का रोना यह है कि कोरोना के चलते आमदनी घट गई। बढ़े हुए किराये और रिकॉर्ड माल लदान से भी इसकी इतनी कमाई नहीं हो पा रही है कि सफाई व्यवस्था पहले की तरह फिर बहाल हो। कोरोना से बचाव के लिये स्वच्छता जरूरी है, पर वह प्लेटफॉर्म घुसने वालों का तापमान नापने तक ही सीमित है।
भागीरथी की जलेबी
छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख साहित्यकार ने रायपुर की एक पुरानी विख्यात जलेबी-दूकान की यादें ताजा करते हुए आज दोपहर फेसबुक पर लिखा है- भागीरथी की जलेबी रायपुर की एक पुरानी पहिचान-
रायपुर एक शहर है। अब दो हो गया। इसके भीतर एक और शहर आ गया -नवा रायपुर। पहले वाला पुराना हो गया।
‘भागीरथी की जलेबी’ पुराने शहर की एक पुरानी पहिचान है। इसके साथ मुझ जैसे पुराने किस्म के शौकी लोगों की जान-पहिचान है। ये जान-पहिचान अब कोई 40-50 बरस पुरानी तो होने ही आयी। तब यह पुरानी दुकान देखने में भी पुरानी दिखती थी, और इसकी गद्दी पर बैठा हुआ भागीरथी भी अपनी पुरानी दुकान की तरह पुराना दिखता था।
उन दिनों हम जैसे चटोर किस्म के लोग रायपुर के अपने कार्यक्रम में ‘भागीरथी’ की जलेबी और दही को जोडक़र यहां आते थे। लेकिन इस बार कोई 40-50 बरस बाद इस दुकान पर आने का मौका मिला।
पुरानी दुकान बिल्कुल नई हो चुकी है, और आज के दिनों के साथ चल रही है। अब तो इसकी जलेबी की ऑनलाइन बुकिंग होने लगी है।और होम डिलीवरी सेवा भी शुरू हो गयी है। यह सब उसके साइनबोर्ड पर लिखा हुआ है। पुरानी दुकान को साइन बोर्ड की जरूरत नहीं थी। लेकिन अब, साइनबोर्ड नहीं होता तो मुझ जैसा पुराना आदमी दुकान को पहिचान भी नहीं पाता।
दुकान जरूर नई हो गयी है।लेकिन जलेबी उन्हीं पुराने दिनों की है। पुराने दिनों वाले अपने उसी स्वाद को सहेजे हुए।
अब भगीरथी की तीसरी पीढ़ी ने इस पुरानी दुकान को सम्हाल लिया है। सुबोध और सुबोध के बेटे ने। दुकान के साथ दुकान के पुराने दिनों को भी। सुबोध ने उन पुराने दिनों के साथ पुरानी जान-पहिचान वाले अपने एक पुराने ग्राहक को भी पहिचान लिया।
उसने मुझे पहले कभी नहीं देखा होगा। लेकिन पुरानी दुकान का पता ढूंढते हुए पहुंचने वाले एक ग्राहक को पहिचान लेने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुयी।
उस समय गरम गरम और रसभरी जलेबियां निकल रही थीं। अपने, उन्हीं दिनों के स्वाद के साथ। मुझे भी भरोसा हो गया कि यह, वही पुरानी दुकान है।
बृजमोहन के घर रौनक..
पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के सरकारी बंगले में काफी समय बाद रौनक देखने को मिली। रविवार को बृजमोहन के बेटे अभिषेक की पुत्री के नामकरण संस्कार के मौके पर आयोजित रात्रिभोज में भाजपा के तमाम बड़े नेता जुटे। इसमें प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के साथ ही सौदान सिंह की जगह लेने वाले शिवप्रकाश भी शामिल हुए।
रात्रि भोज में करीब डेढ़ सौ लोग ही थे, जिसमें पार्टी के सभी विधायक, सीनियर नेता नंदकुमार साय और प्रदेश के पदाधिकारी भी थे। सबसे पहले शिवप्रकाश पहुंचे, उन्हें कोलकाता जाना था इसलिए वे बृजमोहन के परिवारों के सदस्यों से मेल मुलाकात कर जल्द निकल गए। प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी काफी देर तक बंगले में रहीं, और इस दौरान वे धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, और नारायण चंदेल से बतियाती रहीं।
पूर्व सीएम रमन सिंह भी रात्रि भोज में पहुंचे थे, लेकिन उस समय तक ज्यादातर नेता जा चुके थे। पुरंदेश्वरी को बंगले का वातावरण खूब भाया, और उन्होंने इसकी तारीफ भी की। ये अलग बात है कि उनके बंगले पर पहले काफी किचकिच हो चुकी है, और पार्टी के भीतर बृजमोहन विरोधियों ने पार्टी हाईकमान के संज्ञान में भी लाया है। दबी जुबान में भूपेश सरकार से सांठ-गांठ के आरोप भी लगे।
भाजपा सरकार के जाते ही स्वाभाविक तौर पर सभी मंत्रियों को बंगला छोडऩा पड़ा था। सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल अपवाद रहे। न सिर्फ उन्हें बंगला रखने दिया गया, बल्कि उनके ज्यादातर स्टॉफ को भी साथ रहने दिया गया। रमन सिंह को तो देरी से बंगला खाली करने पर काफी उलाहना झेलनी पड़ी थी। अब जब प्रदेश प्रभारी खुद बंगले की तारीफ कर रही हैं , तो बाकी की आलोचनाओं का फर्क नहीं पड़ता है।
मेले में दो गज की दूरी...
लोगों को एक जगह एकत्र होने की गतिविधियों पर कोरोना संक्रमण के चलते बीते साल बड़ी रोक रही। आज जब देश में एक ही दिन में 26 हजार से ज्यादा मामले आये, 161 मौतें दर्ज हो हुईं, तब भी दुबारा पकड़ रही जिन्दगी की रफ्तार पर कोई ब्रेक नहीं लगाना चाहता। कोरोना संकट दूसरी बार गहराने जा रहा है पर, किसी की भी राय नहीं बन रही है कि लॉकडाउन दोबारा हो, क्योंकि वह भी बेहद कष्टदायक है। बाजार, सार्वजनिक परिवहन सेवायें, फैक्ट्रियां, सरकारी, गैर सरकारी दफ्तर, धर्मस्थल में गतिविधियों पर रोक लगाने की मन:स्थिति नहीं बन रही है। दूसरी लहर में सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी कहा है कि वे मजबूरी में लॉकडाउन करने का आदेश दे रहे हैं। लोग सावधानी रखें तो इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
छत्तीसगढ़ में हाल ही में राजिम मेला लगा, इसके अलावा भी अनेक गांवों, कस्बों में माघ मेले आयोजित किये गये। तब कोरोना के कम ही मामले थे। अब 18 मार्च से गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी में तीन दिन का मेला है। प्रशासन ने यह निर्देश तो निकाल दिया है कि कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होंगे, लोग दो गज शारीरिक दूरी, मास्क, सैनेटाइजर जैसे दूसरे नियमों का पालन करें। यह भी सलाह दी गई है कि लोग दर्शन करें, आशीर्वाद लें और लौट जाये। मेला स्थल पर रात्रि विश्राम न करें। कोई भी आयोजन जिसमें हजारों लोग शामिल हो रहे हों, प्रशासन के लिये इन नियमों का पालन कराना तो बेहद कठिन है। जरूरत लोगों को खुद ही सतर्क रहने और जिम्मेदारी समझने की है। उम्मीद कर सकते हैं कि जैसे बाकी धार्मिक, सामाजिक समारोहों में कोई सामूहिक कोरोना केस अब तक प्रदेश में नहीं आया, यह मेला भी बिना किसी चुनौती समाप्त होगा।
वहां स्टेडियम, यहां अस्पताल
अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर किया गया तो लोगों ने आपत्ति की और कहा कि यह तो सरदार पटेल का अपमान है। गुजरात सरकार की ओर से सफाई आई कि स्पोर्ट्स एनक्लेव का नाम तो अब भी सरदार के ही नाम पर है, उसके भीतर का मोंटेरा स्टेडियम, मोदी के नाम किया गया।
अब इसी तरह की बात जगदलपुर में भी हो गई है। यहां के मेडिकल कॉलेज का नाम स्व. बलिराम कश्यप के नाम पर भाजपा शासनकाल में रखा गया। पर अब यहां के हॉस्पिटल का नाम स्व. महेन्द्र कर्मा के नाम पर कर दिया गया है। भाजपा ने इस पर विरोध दर्ज कराया है। प्रशासन का कहना है कि मेडिकल कॉलेज का नाम तो बदला ही नहीं गया। वह तो स्व. कश्यप के नाम पर पहले की तरह ही है। स्व. कर्मा का नाम तो उसके भीतर बनाये गये अस्पताल का रखा गया है। छत्तीसगढ़ के पहले, रायपुर के मेडिकल कॉलेज का नाम नेहरू के नाम पर है, लेकिन उसके अस्पताल का नाम आंबेडकर के नाम पर है.
वैसे स्व. कर्मा के चाहने वाले भी नाराज हैं मगर वजह दूसरी है। बस्तर विश्वविद्यालय का नाम कई माह पहले स्व. महेन्द्र कर्मा के नाम पर करने की घोषणा की गई थी लेकिन अब तक सभी सरकारी पत्राचार बस्तर विश्वविद्यालय के नाम पर हो रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि जब तक अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित नहीं हो जाती, नाम नहीं बदला जा सकता। वैसे यह सहज सवाल उठता है कि जब केबिनेट की अगस्त 2020 में हुई बैठक में इस विषय पर प्रस्ताव पारित हो चुका है तो अब तक राजपत्र में प्रकाशन क्यों नहीं हुआ?
असम इतना करीब कभी नहीं लगा
छत्तीसगढ़ से असम पहले कभी इतना करीब महसूस नहीं हुआ। कांग्रेस नेताओं का जिस रफ्तार से आना जाना इन दिनों हो रहा है उससे लग रहा है कि गुवाहाटी कितना नजदीक है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले भी वहां का दौरा चुनाव अभियान के सिलसिले में कर चुके हैं और इस समय तीन दिन के लिये फिर वहां है और चुनावी सभायें ले रहे हैं। आज चार-पांच विधायक रवाना हो गये, कल भी इतने ही विधायक और निकलने वाले हैं। करीब आधा दर्जन मंत्रियों को भी असम के लिये लगेज तैयार रखने कहा गया है। मुख्यमंत्री के सभी सलाहकार दौरा करके आ चुके हैं। प्रदेश के अनेक युवा और अनुभवी नेताओं ने करीब-करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में बूथ मैनेजमेंट का वहां के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया। विधायकों के साथ भी अऩेक लोग जा रहे हैं। एक कांग्रेस नेता के मुताबिक वहां इस समय 500 से अधिक कार्यकर्ता चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ लोग बिना बुलाये भी पहुंच रहे हैं ताकि उनका नंबर भी लगे हाथ बढ़ जाये।
असम में लम्बे समय तक कांग्रेस की सरकार रही, पर इस समय भाजपा है। भाजपा को पश्चिम बंगाल की तरह वहां पर, दूसरे प्रदेश के नेताओं की खास जरूरत नहीं पड़ रही है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह वहां सभायें ले रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को इतने बड़े पैमाने पर केन्द्रीय नेतृत्व ने जिम्मेदारी दी है तो इसका मतलब है कि वह सन् 2018 के चुनाव और बाद हुए उप-चुनावों के परिणाम को लेकर काफी प्रभावित है. असम में भी वह छत्तीसगढ़ के नेताओं के भरोसे ऐसे ही किसी नतीजे की उम्मीद में है। यदि भाजपा के हाथों से सत्ता छिन जाती है तो यह तय है कि प्रदेश के कांग्रेस नेताओं का कद बढ़ेगा और आगे यह प्रयोग दूसरे राज्यों में भी अपनाया जायेगा।
सत्ता की बर्बादी के तरीके
सत्तारूढ़ कुछ विधायकों के तेवर से अफसर हलाकान हैं, और इनके कारनामों की शिकायत शीर्ष स्तर पर पहुंची है। ऐसे ही एक विधायक ने तो जब्त बेशकीमती लकड़ी को छुड़वाने के लिए अफसरों पर इतना दबाव बनाया कि मंत्रीजी को हस्तक्षेप करना पड़ा। मंत्रीजी ने विधायक को समझाया कि जब्त लकड़ी को वापस करने से गलत मैसेज जाएगा। तब कहीं जाकर विधायक महोदय शांत हुए।
विधायकों का अपने करीबियों को टेंडर दिलाने के लिए अफसरों पर दबाव बनाने की कई शिकायतें सामने आ रही हैं। जबकि सरकार ने शिक्षित बेरोजगारों को काम देने के लिए नीति बनाई है, जिसमें उन्हें सीमित प्रतिस्पर्धा से निर्माण कार्यों के ठेके दिए जा सकते हैं। ऐसे ही एक प्रकरण में रायपुर के एक बेरोजगार इंजीनियर को पड़ोस के जिले में काम मिल गया। इसके बाद पड़ोसी विधायक ने दबाव बनाया कि स्थानीय व्यक्ति को ही ठेका दिया जाए।
अफसरों ने उन्हें समझाया कि टेंडर प्रक्रिया ऑनलाइन होती है, और बिना कोई ठोस कारण के टेंडर निरस्त नहीं किया जा सकता। काफी समझाइश के बाद विधायक महोदय थोड़े नरम पड़े। अफसरों की समस्या यह है कि कोरोना काल में विभागीय बजट में 30 फीसदी तक की कटौती कर दी गई है। इससे निर्माण कार्य बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। और जो थोड़े बहुत टेंडर निकल रहे हैं, उसमें भी राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से कार्य में देरी हो रही है।
अब स्वास्थ्य मंत्री की बारी
को-वैक्सीन को लेकर केन्द्र के साथ हुई तनातनी अब खत्म हो सकती है। केन्द्र की ओर से इसे जब भेजा गया तो तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ था, साथ ही टीका लगवाने वालों को एक सहमति पत्र भी देना था कि यदि इसका कोई साइड इफेक्ट हुआ तो इसके लिये स्वास्थ्य विभाग जिम्मेदार नहीं होगा और मरीज किसी तरह के क्लेम का दावा नहीं कर सकेगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका इस्तेमाल करने से मना कर दिया। भाजपा ने इसे स्वदेशी का विरोध बताया, क्योंकि यह वैक्सीन पूरी तरह देश में ही तैयार हुई है। स्वास्थ्य मंत्री ने स्वास्थ्य मंत्री ने बाद में कहा कि वे अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप तीसरे चरण का ट्रायल होने के बाद पहले व्यक्ति होंगे जो को वैक्सीन लगवायेगा। अब जब भारत के औषधि नियंत्रक ने इसके तीसरे चरण के ट्रायल हो जाने तथा सहमति पत्र भरवाने की जरूरत नहीं होने की घोषणा की है, को-वैक्सीन की बंद बक्से खुलने के आसार हैं। और, जैसा स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था, सबसे पहला टीका भी शायद उनको ही लगे।
ताकि वैक्सीन को लेकर भ्रम न फैले..
कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी जांजगीर के कलेक्टर यशवंत कुमार की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। उऩ्होंने दोनों डोज लेने के बाद तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लोगों से भी वैक्सीन लगवाने की अपील की थी और वैक्सीन को सुरक्षित बताया । किसी आम मरीज की यदि इसी परिस्थिति में पॉजिटिव रिपोर्ट आती तो शायद खबर चारों तरफ नहीं फैलती। आईएएस को ही टीका लगने के बाद कोरोना पीडि़त लोगों को हैरान कर दिया और दवा के असर पर सवाल उठने लगे। पर शाम आते-आते विश्व स्वास्थ्य संगठन की छत्तीसगढ़ यूनिट के डॉक्टरों ने बता दिया कि वैक्सीन लगवाने के 15 दिन बाद शरीर में एंडिबॉडी विकसित होती है। वैक्सीन पर लोगों का भरोसा कायम रहे इसलिये जरूरी था कि कलेक्टर भी अपनी प्रतिक्रिया देते। उन्होंने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर यही बात दोहराई। यह इसलिये भी जरूरी था कि वैक्सीन लगवाने के लिये बुजुर्गों में काफी उत्सुकता दिखाई दे रही है। अपनी बारी के लिये उन्हें चार-चार, पांच दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। कोरोना वैक्सीन के प्रति लोगों का विश्वास दिख रहा है तब ऐसी खबर प्रशासन को बेचैन तो करने वाली ही थी।
बाघ की खाल के सफेदपोश सौदागर
जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के पास जब बाघ की खाल बेचने वालों को रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया तो उस समय अनुमान नहीं लगा होगा कि कितना बड़ा रैकेट काम कर रहा है। अब भी ऐसा लग रहा है कि यह ऐसे लोगों का बड़ा गिरोह है जिसमें वे लोग शामिल हैं जो पद और प्रभाव रखते हैं।
बाघ का शिकार और उसके खालों, अंगों की तस्करी का धंधा वे बेखौफ करते आ रहे हैं। गिरफ्तार लोगों में बीजापुर में तैनात पांच पुलिस वालों सहित आठ लोग शामिल हैं। शनिवार को 6 और लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस तरह से कुल गिरफ्तारी 14 हो गई है। सबको जेल भेज दिया गया है। दो एएसआई फरार भी बताये जा रहे हैं।
यह कम हैरान करने वाली बात नहीं है कि पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग में काम करने वाले, अधिकारी, कर्मचारी व संविदा नियुक्ति वालों का ऐसा संगठित गिरोह काम कर रहा था। ये गिरफ्तारियां राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अभिकरण (एनटीसीए) की एक महिला अधिकारी द्वारा खरीदार बनकर बिछाये गये जाल से मुमकिन हुआ । पुलिस के तो अपने लोग लिप्त थे मतलब बीजापुर, जगदलपुर में तैनात पुलिस वालों में से बहुतों को यह पता रहा होगा। ऊंगली तो थानेदार पर भी उठ रही है। एनटीसीए तक खबर पहुंची इसका मतलब यह है कि बाघ का यह पहला शिकार नहीं होगा। पहले से न केवल बाघ बल्कि दूसरे जंगली प्राणियों के शिकार होते आ रहे होंगे। इस गंभीर मामले पर अब तक वन विभाग के किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पर क्या वन विभाग के अधिकारियों का, जिन्हें भारी भरकम वेतन और सेटअप जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिये ही दिया जाता था, वे भी इस धंधे से बेखबर थे और उनका दामन पाक-साफ होगा?
अधिकारी-कर्मचारियों की अधूरी मांगें
इन दिनों सरकारी कर्मचारियों, अनियमित, अस्थायी कर्मचारियों. विद्या मितानिन, रोजगार सहायक, स्वास्थ्य संयोजक का आंदोलन चल रहा है। बजट में उनकी उम्मीदों के अनुरूप कुछ नहीं हुआ। तृतीय वर्ग कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग कर रहे हैं। हाल ही में उनका बड़ा प्रदर्शन रायपुर में हुआ। अनेक विभागों में कर्मचारी संविलियन पर रखे गये हैं, जिनको नियमित करना सरकार के वादे में शामिल था। अब सरकार ने बता दिया है कि संविलियन को लेकर कोई भी प्रस्ताव उसके समक्ष फिलहाल विचाराधीन नहीं है। मंत्री रविन्द्र चौबे ने कर्मचारी अधिकारियों को धीरज से काम लेने की सलाह दी है। कहा है कि कोरोना के चलते सरकार की राजस्व प्राप्ति घटी है।
वैसे तो अधिकारियों, कर्मचारियों की कुछ न कुछ मांगें हर सरकार में चलती रहती है, पर इस बार जिन मांगों को वे उठा रहे हैं उनमें से अधिकांश तो चुनावी घोषणा में शामिल थे। सरकार थोड़ा-थोड़ा देकर संतुष्ट करने की नीति पर काम कर रही है, जैसे हाल ही में शिक्षा विभाग व पुलिस में नई भर्तियों को मंजूरी देना। शासकीय सेवकों की मांग को नजरअंदाज करना वैसे किसी भी सरकार के लिये कठिन होता है, देर जितना होगा, असंतोष उतना बढ़ेगा। देखें उनकी कितनी मांगें, कब तक पूरी हो पायेंगीं।
चेंबर में भी राजनीतिक-गंदगी पहुंची
चेम्बर के चुनाव एक वक्त कारोबारी तबके के भीतर के होते थे, लेकिन अब राजनीतिक दल सुरंग खोद-खोदकर इस चुनाव में घुस चुके हैं, और उसी का नतीजा है कि चुनाव के तौर-तरीके भी पेशेवर राजनीतिक तौर-तरीकों जैसे हो गए हैं।
चेंबर चुनाव के एक पैनल के कारोबारी राजेश वासवानी ने अभी पुलिस रिपोर्ट की है कि भाटापारा के एक व्यापारी गिरधर गोविंद दानी से उनकी दो महीने पहले बात हुई थी। इस बातचीत को उसने रिकॉर्ड किया, और एडिट करके उसे राजेश वासवानी के खिलाफ चारों तरफ फैलाया। किसी की बातचीत को काट-छांटकर उसे किसी बुरी नीयत से फैलाना एक साइबर क्राईम है, और चेंबर चुनाव में साइबर क्राईम की दखल हो चुकी है, अब देखना है कि पुलिस की कार्रवाई पहले हो पाती है, या चुनाव पहले निपट जाता है।
अब यहां दो चीजें तमाम कारोबारियों के लिए सोचने की रह जाती हैं। राजेश वासवानी प्रदेश के एक सबसे बड़े मोबाइल फोन कारोबारी हैं। उन्हें मालूम है कि मोबाइल फोन पर बातचीत रिकॉर्ड करना बहुत आसान और आम बात है। किसी से बात करने के पहले यह मानकर चलना चाहिए कि लोग रिकॉर्ड कर रहे हैं, और रिकॉर्डिंग उनके खिलाफ इस्तेमाल हो सकती है। इस सामान्य समझबूझ का इस्तेमाल सभी लोगों को सभी तरह की बातचीत के लिए करना चाहिए। लेकिन इस मामले में एक नैतिक बात यह उठती है कि अगर कारोबारी आपस में पेशेवर बदमाश नेताओं की तरह एक-दूसरे की बात रिकॉर्ड करने लगे तो व्यापारी तबके का एक-दूसरे से भरोसा ही टूट जाएगा। व्यापारियों के बीच दो नंबर के कारोबार, टैक्स और जीएसटी की चोरी, नगदी रकम के हवाला जैसी बहुत सी बातें आम हैं। अब अगर इन्हें लोग रिकॉर्ड करने लगें तो इन्हें इंकम टैक्स, ईडी, और जीएसटी तो बहुत पसंद करेंगे, लेकिन कारोबार ठप्प हो जाएगा। दूसरी बात कानूनी है कि किसी की बातचीत को काट-छांटकर बदनीयत से इस्तेमाल करना जो कि पहली नजर में ही साइबर क्राईम है, अब देखना है कि यह मामला किस किनारे तक पहुंचता है। फिलहाल टुकड़ा-टुकड़ा बातों से भी चुनावी नुकसान तो हो ही सकता है।
अफसरों से बात न करने के वक्त..
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में सरकारी अफसरों के बीच किसी काम को न करने, न छूने, उसके बारे में अनुरोध भी न सुनने के दो आम बहाने हैं। एक है, हाऊस में बिजी हूं, और दूसरा है सेशन चल रहा है।
सरकार के बाहर के लोगों को इस भाषा का उतना अंदाज नहीं रहता इसलिए उनकी जानकारी में यह इजाफा करना जरूरी है कि यह हाऊस किसी अफसर का अपना नहीं रहता, बल्कि सीएम हाऊस रहता है। जो कोई इसे सीएम हाऊस कहकर बुलाएं वे जाहिर तौर पर इस हाऊस से अधिक वाकिफ नहीं रहते। जो वाकिफ रहते हैं वे इसे सिर्फ हाऊस कहते हैं। सरकार के भीतर अपने आपकी व्यस्तता साबित करने का सबसे बड़ा पैमाना हाऊस में बिजी रहना, हाऊस जाना, हाऊस में होना, हाऊस का कहा करने में बिजी रहना रहता है। इसके बाद कोई बाहरी व्यक्ति ही अफसर से समय की उम्मीद कर सकते हैं, और ऐसी उम्मीद को झिडक़ी मिलना तो जायज रहेगा ही। दूसरा मामला विधानसभा सत्र का रहता है जिसे सरकारी जुबान में सिर्फ सेशन कहा जाता है। जितने दिन सत्र चलता है, उतने दिन अफसर किसी को भी किसी भी अनुरोध के लिए झिडक़ने के मानो ‘संसदीय’ अधिकार से लैस हो जाते हैं, और सेशन के बीच किसी तरह की अपील का प्रावधान इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में अफसरों के सामने नहीं रहता। अफसरों से मिलने या काम के लिए वक्त की उम्मीद तभी करनी चाहिए जब वे हाऊस में बिजी न हों, और सेशन न चल रहा हो।
यह हमला रमन पर तो नहीं?
कांग्रेस पार्टी ने कल भाजपा के धमतरी जिले के कुरूद विधानसभा के आईटी सेल के सहसंयोजक डोमेन्द्र कुमार साहू के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई है। कांग्रेस द्वारा पुलिस को दिए गए स्क्रीनशॉट के मुताबिक इस भाजपा नेता ने नेहरू, अंबेडकर, मुस्लिम, बौद्ध, इन सबके खिलाफ गंदी बातें लिखीं, और धार्मिक उन्माद और साम्प्रदायिकता पैदा करने वाली बातें लिखीं।
लेकिन डोमेन्द्र कुमार साहू ने अपने ट्विटर पेज पर 2 मार्च की अपनी एक ट्वीट को सबसे ऊपर टैग करके रखा है, मतलब यह कि वह ट्वीट सबसे ऊपर ही दिखते रहेगी। इसमें उन्होंने लिखा है- चिंतनीय, 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह जी ने 17 घंटे पहले ट्वीट किया है, 16 री-ट्वीट, 260 लाईक! जबकि फॉलोअर्स 23 लाख से ऊपर हैं। छत्तीसगढ़ में सब भाजपा नेता और पदाधिकारी ढीले पड़ गए हैं, पुरंदेश्वरीजी कुछ कीजिए।
नेहरू और अंबेडकर के खिलाफ गंदी बातें लिखने से तो भाजपा में कोई कार्रवाई होने से रही, मुस्लिम और बौद्ध के खिलाफ भी लिखने में कोई खतरा नहीं है, लेकिन जब अजय चंद्राकर के कुरूद का कोई भाजपा पदाधिकारी डॉ. रमन सिंह के खिलाफ इस तरह से लिख रहा है तो यह कुछ हैरानी की बात हो सकती है। भाजपा आईटी सेल पदाधिकारी की इस ट्वीट से यह सवाल भी उठता है कि रमन सिंह के 23 लाख फॉलोअर हैं कौन? क्योंकि हिन्दुस्तान के बहुत से नेताओं के तीन चौथाई से अधिक फॉलोअर दुनिया के उन देशों में पाए जा रहे हैं जिनका हिन्दुस्तानी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, और जहां हिन्दी बोली भी नहीं जाती। अब क्या यह हमला रमन सिंह पर है, या भाजपा के बाकी लोगों पर है, पार्टी के आईटी सेल पर है, या किसी और पर?
फिलहाल हैरानी की बात यह भी है कि हर कुछ मिनटों में ट्वीट या री-ट्वीट करने का वक्त अगर किसी को है, तो उन्हें जिंदगी चलाने के लिए कोई और काम करने का वक्त कब मिलता है।
धान की बिक्री पर कितना नुकसान होगा?
धान के पहले लॉट की बिक्री में ही सरकार को भारी नुकसान हो रहा है। 54 हजार मीट्रिक टन धान को 1525 रुपये क्विंटल की दर पर बेचने की मंत्रिमंडलीय समिति ने मंजूरी दी है। यदि पिछले साल की ही तरह किसानों के लिये वायदा निभाते हुए सरकार 2500 रुपये दाम देती है तो घाटा 950 रुपये हर एक क्विंटल के पीछे होना है। कुल 20 लाख 50 हजार मीट्रिक टन धान बेचना है। यदि इसी दर पर सारा धान बिका तो जाहिर है कई सौ करोड़ रुपये के नुकसान में सरकार रहेगी। लेकिन धान खरीदी के लिये लिया गया कर्ज पूरा चुकाना होगा। जाहिर है, इसका असर प्रदेश के बाकी विकास कार्यों पर दिखाई देगा। सरकार ने इस बार बजट के आकार में कटौती भी की है भले ही इसका कारण महामारी को बताया गया हो।
खाद्य मंत्री अमरजीत भगत का कहना है कि केन्द्र सरकार ने 60 लाख मीट्रिक टन चावल लेने का वादा किया था पर उसने बाद में मना कर दिया। अब सिर्फ 24 लाख क्विंटल ही लेने की सहमति दी है। इसलिये धान मजबूरी में बेच रहे हैं।
यह तो सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में धान की बड़ी भूमिका है। जिस तरह से धान को प्रोत्साहित किया जा रहा है, उससे आने वाले दिनों में इसका उत्पादन कम होने, किसानों का आकर्षण घटने की उम्मीद नहीं है। केन्द्र व राज्य सरकार के बीच भी टकराव हर साल कमोबेश ऐसा ही चलता रहेगा। तो क्या हर साल इसी तरह का नुकसान भी सहा जायेगा? क्या भविष्य के लिये कोई ऐसी नीति नहीं बननी चाहिये कि किसानों का लाभ भी कम न हो और राजस्व की हानि भी न हो?
फ्री पास चाहिये पर महंगा वाला
शहीद वीरनारायण स्टेडियम में चल रहे रोड सेफ्टी इंटरनेशनल क्रिकेट स्पर्धा में फ्री पास को लेकर बड़ी उदारता बरती गई है। अलग-अलग वर्गों को बारी-बारी फ्री पास दिये जा रहे हैं। सरकारी कर्मचारी, दिव्यांग, महिलाओं, स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों, उपक्रमों के कर्मचारी अधिकारी इसका फायदा ले रहे हैं। अब एक वर्ग ऐसा भी है जिसे फ्री पास मिलने की ज्यादा खुशी नहीं हो रही है। वे कह रहे हैं ये तो पांच-सौ रुपये टिकट वाली गैलरी के हैं। हमें तो उस बॉक्स का पास चाहिये जिसमें खाना पीना सब फ्री है, जिसका टिकट करीब 20 हजार रुपये में बिकता है। अंदाजा लगाइये यह कौन सा वर्ग है?
जागो व्यापारियों जागो...
चेम्बर चुनाव में प्रचार के दौरान पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, अमर पारवानी को बुरा-भला कहने में कोई मौका नहीं चूकते रहे हैं। पारवानी कभी सुंदरानी के सहयोगी थे, और बाद में दोनों के रास्ते अलग हो गए। पारवानी अब व्यापार जगत का बड़ा चेहरा बन गए हैं, और वे जय व्यापार पैनल के तले एकता पैनल को तगड़ी चुनौती दे रहे हैं, जिसके मुखिया श्रीचंद सुंदरानी हैं। वैसे तो पारवानी का सीधा मुकाबला योगेश अग्रवाल से है, लेकिन सुंदरानी ने चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ रखा है।
योगेश, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई हैं। स्वाभाविक है कि प्रदेशभर में बृजमोहन समर्थकों का उन्हें साथ मिल रहा है। व्यापारियों के इस सबसे बड़े संगठन के इस चुनाव को कुछ लोग अग्रवाल वर्सेस सिंधी भी बता रहे हैं। व्यापारियों के बीच चर्चा है कि अग्रवाल, योगेश के पक्ष में, तो सिंधी वोटर पारवानी के पक्ष में लामबंद हो रहे हैं। और जब श्रीचंद सुंदरानी पहले चरण के मतदान के बीच पारवानी के साथ कानाफूसी करते नजर आए, तो एकता पैनल में हडक़ंप मच गया। वॉटसएप पर व्यापारियों की कुछ इस तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली कि जागो व्यापारियों जागो...।
बृजमोहन अग्रवाल की पैनी नजर
चेम्बर चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता रूचि ले रहे हैं। गुरूवार को पहले चरण के मतदान के बाद कई समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आए। सुनते हैं कि योगेश अग्रवाल को भाजपा के जिस ताकतवर अग्रवाल नेता से भरपूर मदद की उम्मीद थी, उन्होंने अमर पारवानी का साथ दिया है। यही नहीं, दिग्गज अग्रवाल नेता के धमतरी रहवासी करीबी रिश्तेदारों ने भी पारवानी का साथ निभाया। चर्चा है कि बृजमोहन के भाजपा में विरोधी नेता, पारवानी के पक्ष में काम कर रहे हैं। इन सबके बाद भी पारवानी की राह आसान नहीं है, क्योंकि चुनाव पर बृजमोहन अग्रवाल की पैनी नजर है, जो कि भाजपा के सबसे सफल चुनाव संचालक माने जाते हैं। यही वजह है कि तमाम विपरीत खबरों के बाद भी योगेश अग्रवाल के समर्थक चुनाव नतीजे को लेकर आशान्वित है।
लॉकडाउन की आहट
महाराष्ट्र और देश के दूसरे राज्यों में एक बार फिर कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। मुम्बई, पुणे के बाद अमरावती, नागपुर क्षेत्र भी तेजी से कोरोना की चपेट में आ रहा है। अब वहां एक सप्ताह के लिये सम्पूर्ण लॉकडाउन 15 मार्च से लागू हो रहा है। पिछली बार भी महाराष्ट्र के बाद कोरोना का असर छत्तीसगढ़ में देखा गया था।
सख्ती कम होने के बाद रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव से नागपुर, मुम्बई लोगों का आना-जाना बढ़ा है। अब ट्रेनों, बसों में यातायात सामान्य दिखने लगा है। बाजारों, दफ्तरों, फैक्ट्रियों में भी भीड़ है। धार्मिक संस्थानों, स्कूलों, शादी ब्याह सबकी छूट दी जा चुकी है। जबकि गाइडलाइन का पालन सभी सार्वजनिक स्थानों पर करने की जरूरत है। रायपुर में जिला प्रशासन ने बिना मास्क पहने निकलने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने के साथ कोरोना की बीमारी छिपाने पर एफआईआर दर्ज कहा है।
यह तो दिख रहा है कि पूरे प्रदेश में मास्क पहनने के लिये फिर से कड़ाई बरती जा रही है। पर नये मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। अब सीमा में प्रवेश करने वालों की जांच निर्देश जारी किया गया है। इसी तरह रेलवे ने स्टेशनों पर नये सिरे से व्यवस्था की है। पर, यह सब उस गंभीरता से नहीं हो रहा है, जितना कोरोना के पहले चरण में दिखा। नये मामलों की रफ्तार यही रही तो नागपुर जैसी परिस्थितियां राजधानी रायपुर सहित दूसरे शहरों में बन सकती है।
जंगल में समृद्ध हिंदी की बयार..
आम तौर पर किसी को कोई बात समझ नहीं आती तो कहते हैं, झल्लाकर कहा जाता है हिंदी में समझाऊं क्या? लगता है बारनयापारा में किसी अधिकारी ने अपने वन कर्मचारियों को ऐसा ही कहा होगा फिर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा भी दिया। वैसे इसे अंग्रेजी पसंद लोग वायरलेस मॉनिटरिंग रूम भी कह देते हैं।
कर मुक्त नहीं तो, तस्कर मुक्त ही कर दें...
देवभोग इलाके में जब हीरों के अकूत भंडार का पता चला था तो पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ को देश का अकेला कर मुक्त राज्य बनाया जा सकता है। कुछ सर्वे तो यह दावा करते हैं कि यहां का हीरा पूरे देश के कर्ज को चुका सकता है। पर फिलहाल तो यह हीरा तस्करी का अड्डा बना हुआ है। इस साल जनवरी के बाद यह दूसरा मामला है जब लाखों रुपये के कीमती सैकड़ों हीरों के साथ तस्कर पकड़े गये। हर साल दो तीन तस्कर पकड़ में आ ही रहे हैं।
देवभोग का मामला इतना जटिल रहा कि लगता है कोई भी सरकार इसमें हाथ नहीं डालना चाहती। संयुक्त मध्यप्रदेश के दौर में सन् 1992 के आसपास डी बियर्स की कम्पनी को जब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ठेका दिलवाया तो स्व. अजीत जोगी ने उन पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया और कहा कि कम्पनी के खर्च पर वे दक्षिण अफ्रीका गये। इसके बाद 1998 में डि बियर्स, रियो टिंटो, एनएमडीसी और बी. विजय कुमार ने टेंडर भरा। बी. विजय कुमार को खनन का ठेका मिलने पर भाजपा नेता रमेश बैस ने अनुबंध को ही गलत बताया और कहा कि हीरे के अलावा दूसरे बहुमूल्य खनिज निकलेंगे, उसका क्या होगा? इसके बाद लगातार मामले टेंडर लेने वाली कम्पनियों के बीच अदालती लड़ाई चल रही है, जिसका किस्सा लम्बा है। वर्तमान में स्थिति यह है कि जो सुरक्षा के बाड़ टूटे हुए हैं। कोई भी वहां प्रवेश कर सकता है। यहां के निर्धन ग्रामीणों से बिचौलिये पत्थरों की खुदाई कराते हैं, कुछ सौ रुपये में हीरे के खंड खरीदते हैं फिर मध्यम श्रेणी के व्यापारी उसे आकर हजारों में खरीद रहे हैं और दूसरे राज्यों के हीरा व्यापारियों को लाखों रुपये में बेच रहे हैं।
मौजूदा सरकार देवभोग सहित बस्तर और रायगढ़ की संभावित हीरा खदानों को शुरू कराने, अदालतों में रुके मामलों को तेजी से निपटाने के बारे में कुछ सोच रही है या नहीं, यह पता नहीं चल रहा है। पर जब प्रदेश सरकार को अपने चुनावी वायदे पूरे करने के लिये एक के बाद एक नया कर्ज लेना पड़ रहा हो, आम लोग भी करों के बोझ से त्रस्त हों तो इस अकूत खनिज संपदा के दोहन से जुड़े मामले तेजी से निपटाना चाहिये।
यह अगर बाजार है तो...
सरकारी कामकाज की संस्कृति एक बार बिगड़ती है तो उसे कई बार निजीकरण भी नहीं सुधार पाता। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के म्युनिसिपल में स्मार्टसिटी के नाम पर आने वाले अंधाधुंध पैसों से किसी प्राइवेट एजेंसी को प्रचार-प्रसार में लगाया जाता है। करोड़ों के ऐसे प्रचार-प्रसार में खूब बर्बादी भी की जाती है। अब शहर की एक रिहायशी कॉलोनी के मैदान में पत्तों से खाद बनाने के इस प्रयोग को यह बैनर लगाकर बताया जा रहा है। अब है तो यह मैदान, और इसके आसपास भी एक पान ठेला तक नहीं है, लेकिन यहां बैनर लगा दिया गया है- जीरो वेस्ट बाजार!
मैदान और बगीचे के पत्तों से बन रही खाद जो कि बेची भी नहीं जाएगी, वहां पर किसी बाजार में लगने वाले बैनर की तर्ज पर बैनर लगा दिया गया है। खेलने आने वाले छोटे बच्चे यही नहीं समझ पाएंगे कि यह अगर बाजार है तो गोलबाजार और सदरबाजार क्या मैदान हैं?
दिल्ली में गाड़ी लगे तो बता दें...
केन्द्र सरकार ने कल आईपीएस अफसरों की एक लिस्ट निकाली जिसमें 1996 से 2001 तक के 22 अफसरों को केन्द्र सरकार के स्तर पर आईजी के रूप में इम्पैनल किया गया है। हाल के बरसों में आईपीएस लोगों का इम्पैनलमेंट कम हो गया है क्योंकि केन्द्र सरकार ने इसके लिए कड़े पैमाने तय किए हैं। प्रदेशों में तो अफसर बरसों पहले आईजी बन जाते हैं, लेकिन केन्द्र सरकार में आईजी का दर्जा मिलना मुश्किल होता है, और इसके लिए केन्द्र सरकार देश भर से कई तबकों से राय लेती है कि अफसर इस लायक है कि नहीं? यह भी पता लगाया जाता है कि अफसर पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप तो नहीं है? यह पूछताछ रिटायर हो चुके अफसरों से लेकर मीडिया तक के लोगों से की जाती है, और इसे केन्द्र सरकार की जुबान में 360 डिग्री कहा जाता है, 360 डिग्री का मतलब चारों तरफ से परख लेना।
कल की लिस्ट में छत्तीसगढ़ के एक आईजी, आनंद छाबड़ा का नाम शामिल है। वे 2001 बैच के आईपीएस हैं, और रायपुर के आईजी होने के साथ-साथ प्रदेश के आईजी इंटेलीजेंस भी हैं। अब केन्द्र के साथ कड़े टकराव वाले भूपेश बघेल के खुफिया चीफ के बारे में केन्द्र सरकार ने खासा ही पता लगाया होगा, तभी उन्हें इम्पैनल किया होगा। दिक्कत यह है कि केन्द्र सरकार में इम्पैनल होने को आम लोग यह मान बैठते हैं कि यह केन्द्र सरकार में पोस्टिंग है। आनंद छाबड़ा को आज सुबह से केन्द्र सरकार में जाने के लिए बधाईयां मिल रही हैं, और लोग शिष्टाचार में कह भी रहे हैं कि दिल्ली में गाड़ी की जरूरत हो, या मकान मिलने तक गेस्ट हाऊस की जरूरत हो तो बेझिझक याद कर लें। इसके पहले जब कुछ लोग केन्द्र में इम्पैनल हुए थे, तब उनके पास एक-दो ऐसे शुभचिंतक पहुंच गए थे जो कि रायपुर में छूटने वाले फर्नीचर को खरीदने का प्रस्ताव लेकर गए थे। आम लोगों की समझ के लिए यह बता देना जरूरी है कि केन्द्र में इम्पैनल होना वहां जाने की पात्रता भर देता है, उसके बाद राज्य सरकार की मंजूरी, केन्द्र सरकार की मंजूरी, और भी किलो भर औपचारिकताएं बाकी रहती हैं। राज्यों में कई ऐसे बड़े अफसर रहते हैं जो इम्पैनल हो जाने के बाद भी केन्द्र में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि उतने बड़े सागर में जाकर छोटी मछली बनने का हौसला सबका नहीें रहता।
राजनीतिक दल और वकील
भाजपा ने हाईकोर्ट में विधि विधायी इकाई गठित किया है। इसमें आरएसएस और भाजपा की विचारधारा से जुड़े वकीलों को रखा है। इसके संयोजक यशवंत सिंह ठाकुर हैं, जो कि पिछली सरकार में एडिशनल एडवोकेट जनरल थे। प्रकोष्ठ में आशुतोष सिंह कछवाहा, और शरद मिश्रा भी हैं। कछवाहा भी एडिशनल एडवोकेट जनरल थे, तो शरद पिछली सरकार में सरकारी वकील थे। प्रकोष्ठ में तेजी से उभर रहे विवेक शर्मा को भी रखा गया है। विवेक शर्मा, पूर्व सांसद अभिषेक सिंह से लेकर निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता की पैरवी कर चुके हैं।
वैसे तो वर्तमान में भी कई सरकारी वकील सक्रिय राजनीति में रहे हैं। एडवोकेट जनरल सतीशचंद्र वर्मा, छत्तीसगढ़ समाज पार्टी से जुड़े रहे हैं, और वे धरसींवा से विधानसभा का चुनाव भी लड़े थे। पूर्व एडवोकेट जनरल कनक तिवारी, तो अविभाजित मप्र कांग्रेस कमेटी के महामंत्री रहे हैं। वे दिग्विजय सिंह सरकार में एमपी हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। इसी तरह सरकारी वकील केके शुक्ला भी कांग्रेस के विधि प्रकोष्ठ के पदाधिकारी रहे हैं। कुल मिलाकर जमीनी स्तर पर पार्टी के खिलाफ लड़ाई से परे कानूूनी लड़ाई के लिए अच्छे वकीलों को साथ रखना जरूरी है, और भाजपा के हाईकोर्ट में विधि विधायी संगठन को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।
गोबर खरीदी योजना को मिलती तारीफें
लोकसभा की कृषि मामलों की स्थायी समिति ने छत्तीसगढ़ सरकार की गोबर खरीदी योजना की तारीफ करते हुए सुझाव दिया है कि पूरे देश में इस तरह की योजना लागू की जाये। इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी, रोजगार मिलेगा और जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा।
केन्द्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है। उसकी ओर से की गई यह तारीफ पहली बार नहीं है। सितम्बर महीने में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी इस योजना की प्रशंसा करते हुए ‘वेस्ट टू वेल्थ’ का अच्छा उदाहरण बताया था। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल इस योजना की प्रशंसा कर चुके हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पटेल ने भी इस तरह की योजना लाने की बात कही है। छत्तीसगढ़ में गौ सेवा से जुड़े राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारी तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर इस योजना की तारीफ कर चुके हैं।
इन तारीफों का महत्व इसलिये है कि योजना शुरू होने के बाद भाजपा के कुछ नेताओं ने इसको लेकर लगातार चुटकियां ली, कुछ तंज भी कसे। पर आज यह फैसला केन्द्र व अन्य राज्यों में उनकी पार्टियों के नेता पसंद कर रहे हैं। वैसे जब यूपीए सरकार थी और केन्द्र के मंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ आते थे तो, कभी माओवादियों से निपटने की रणनीति तो कभी राशन दुकान व्यवस्था की तारीफ कर दिया करते थे और यह राज्य सरकार के विरोध में खड़ी कांग्रेस को असहज लगता था।
अब गोबर खरीदी योजना पर कुछ न भी बोलते बने तो क्रियान्वयन पर निगरानी रखने, खामियों, गड़बडिय़ों की ओर ध्यान दिलाने की जिम्मेदारी तो विपक्ष बनती की ही बनती है।
अहम् क्यों चेम्बर का चुनाव?
छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स के चुनाव में धुआंधार प्रचार अभियान के बीच पहले चरण के मतदान की प्रक्रिया आज शुरू हो गई। मैदान पर उतरे पैनल जिस तरह की जोर आजमाइश कर रहे हैं, कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज नेता अपने-अपने दावेदारों के समर्थन में मैदान में उतरे हैं, उसने खेल रोमांचक बना दिया है। दरअसल, 15 साल के शासनकाल में सत्तारूढ़ भाजपा की चेम्बर में अच्छी पकड़ रही और लगातार उनके समर्थक जीतते आये।
सशक्त सरकार वही है जिसकी केवल ब्यूरोक्रेट में ही अच्छी पकड़ नहीं, बल्कि उन सब संगठनों, संस्थाओं पर हो जो खेल, सामाजिक, व्यापारिक, राजनीतिक आदि सभी दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।
राज्य में चेम्बर ऑफ कामर्स व्यापारियों का सबसे बड़ा संगठन है। इसमें 16 हजार से ज्यादा सदस्य हैं। वोटों के लिहाज से भी और पूरे छत्तीसगढ़ में फैले होने के कारण क्षेत्रफल के हिसाब से भी। आम मतदाताओं के बीच भी व्यापारियों की पैठ होती ही है। ऐसे में यदि कांग्रेस भाजपा नेता चुनाव अभियान में खुलकर सामने आये हैं तो अचरज नहीं होना चाहिये। भाजपा को अपनी पकड़ बनाये रखने की चिंता है तो कांग्रेस सोच रही है कि जब सरकार हमारी है, तो चेम्बर में हमारे लोग क्यों न हों?
पांडे कवासी की मौत का राज खुलेगा?
बस्तर में नक्सलियों से लोहा लेने के लिये पुलिस और सुरक्षा बल सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों, खेल, शिक्षा आदि से जुडक़र उनका भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं। पर संदिग्ध मौतों से उठने सवालों के कारण आपसी विश्वास में जुड़ता ही नहीं।
दंतेवाड़ा के गुड़से गांव की युवती पांडे कवासी की पुलिस हिरासत में मौत ने एक बार फिर अप्रिय स्थिति पैदा कर रही है। पुलिस कहती है कि अपनी सहेली के साथ उनके कैम्प में आ गई थी, जिस पर पुलिस ने पांच लाख का इनाम रखा था। यहां से वह जाना नहीं जाहती थी क्योंकि मां-बाप उसकी जबरन शादी कराना चाहते थे। पुलिस यह भी मानती है कि उसके नक्सली गतिविधियों में शामिल होने का कोई प्रमाण नहीं था। उसने गांव जाने पर खतरा बताया इसलिये, पुलिस के मुताबिक उसे सुरक्षा की दृष्टि से कैम्प में रखा गया था। पर वह एक तौलिये को फंदा बनाकर फांसी पर लटक गई। गांव के लोग, वहां की सरपंच और दूसरे जनप्रतिनिधि पुलिस की कहानी को सिरे से नकारते हुए, अलग किस्सा बताते हैं- उसे पुलिस एक अन्य महिला के साथ जबरन पकडक़र ले गई थी। पुलिस ने यह भी कहा है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके फांसी लगने से मौत होने की पुष्टि हुई है। वैसे कलेक्टर ने इस मामले की दंडाधिकारी जांच का आदेश दिया है। अब जबकि यह मामला विधानसभा में भी उठा है, राष्ट्रीय मीडिया में भी लगातार आ रहा है।
पूरे मामले में कुछ तो ऐसा है जो छिपाया जा रहा है। अतीत में बस्तर पुलिस बेकसूरों को नक्सली बताकर सरेंडर कराती रही है, अनेक मौतों में पुष्टि नहीं हुई कि उसका नक्सली रिकॉर्ड रहा है। फिर वैसा ही खेल फिर शुरू हो तो नहीं गया?