राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | प्याज की सभी किस्मों पर निर्यात प्रतिबंध एक जनवरी, 2021 से हटा दिया जाएगा। राष्ट्रीय व्यापार निदेशालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, अब प्याज की किस्मों 'बेंगलोर रोज' और 'कृष्णपुरम' के निर्यात पर लगा प्रतिबंध एक जनवरी से हट जाएगा।
सामान्य प्याज के अलावा इन किस्मों के कटे हुए प्याज या इनका पाउडर भी निर्यात किया जा सकेगा।
सितंबर में केंद्र ने घरेलू कीमतों में वृद्धि के कारण प्याज के निर्यात को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया था।
सितंबर में जारी संशोधित नीति के तहत, बेंगलोर रोज और कृष्णपुरम प्याज सहित सभी किस्मों का निर्यात प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिसमें कटे हुए या पाउडर रूप में प्याज शामिल था।
हालांकि, सरकार ने अक्टूबर में कुछ प्रतिबंधों में ढील दी थी। (आईएएनएस)
दीपक शर्मा
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि विपक्षी दल भले ही किसानों का समर्थन कर रहे हों, लेकिन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है।
येचुरी ने सभी विपक्षी दलों के रुख की वकालत करते हुए आईएएनएस से विशेष बातचीत में कहा, "संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले 200 से अधिक किसान संगठन आए हैं और वे कॉर्पोरेट को फायदा पहुंचाने वाले कृषि कानूनों का पिछले कई महीनों से विरोध कर रहे हैं। हम एसकेएम के साथ हैं, लेकिन मैं स्पष्ट कर दूं कि पूरा आंदोलन किसान ही कर रहे हैं, हम नहीं।"
येचुरी ने कहा कि बेहतर होगा कि सरकार चल रही बातचीत के विफल होने पर विपक्ष पर निशाना साधने के बजाय उनके (एसकेएम) के साथ मुद्दे का हल करे।
माकपा नेता ने किसान यूनियनों और मोदी सरकार के बीच बढ़ते गतिरोध पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उनके सहित लगभग सभी विपक्षी नेता चाहते हैं कि कृषि कानूनों पर यह गतिरोध तुरंत खत्म होना चाहिए।
उन्होंने कहा, "बार-बार विफलताओं (वार्ता की) से ग्रामीण भारत में अशांति बढ़ेगी। हम वास्तव में हजारों वृद्ध किसानों के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हैं, जो राजधानी की सीमाओं पर धरने पर बैठे हैं। ठंड में ठिठुरने से अब तक 40 किसानों की मौत हो चुकी है। इसलिए इस गतिरोध को खत्म किया जाना महत्वपूर्ण है। मेरा अनुरोध है कि सरकार को सभी हितधारकों को बुलाना चाहिए। उनके साथ खुले तौर पर मुद्दों पर चर्चा करें और उनकी मांगों को स्वीकार करें।"
येचुरी ने यह भी कहा कि इसके अलावा सरकार संसद का सत्र बुला सकती है, कृषि कानूनों पर चर्चा की जा सकती है और आपत्ति वाले हिस्सों को हटाते हुए किसानों की मांगों अनुरूप नए कानून लाए जा सकते हैं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सुप्रीमो शरद पवार के नेतृत्व में विपक्ष का एकजुट मोर्चा बनाने के शिवसेना के आह्वान का समर्थन करते हुए, माकपा नेता ने कहा कि हालांकि वह शिवसेना के इस इशारे का समर्थन करते हैं, लेकिन नेता सर्वसम्मति से चुना जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, "शरद पवार वर्तमान स्थिति में सबसे सक्षम नेताओं में से एक हैं, लेकिन एक बार सभी दल एक ही छत के नीचे आएंगे तो नेता का फैसला किया जा सकता है। फिर भी, मैं यह कहना चाहूंगा कि देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में एक मजबूत और उद्देश्यपूर्ण विपक्ष की जरूरत है।"
यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ एक कमजोर विपक्ष के तौर पर दिखाई दे रही है, कॉमरेड येचुरी ने कहा कि बहुत हद तक यह सच्चाई है। उन्होंने कहा, "हम सभी चाहते हैं कि एक मजबूत कांग्रेस का मतलब बहुत मजबूत विपक्ष होगा। लेकिन मैं किसी पार्टी के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं कर सकता।"
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को अकेली छोड़ देने और कांग्रेस के साथ माकपा के गठबंधन पर सीताराम येचुरी ने कहा, "हमारा प्राथमिक उद्देश्य भाजपा को अगले साल बंगाल में सरकार बनाने से रोकना है।"
उन्होंने कहा, "वास्तव में भाजपा तो पूरी तरह से चाहती है कि ममता हमसे जुड़ें। लेकिन हमें एहसास है कि ममता के खिलाफ एक विशाल सत्ता-विरोधी लहर हमारी संभावनाओं को बाधित करेगी। इसलिए हमने फैसला किया कि सभी वामपंथी दल और कांग्रेस ममता को छोड़कर एक मोर्चे के रूप में चुनाव लड़ेंगे। हमें लगता है कि इस तरह की त्रिकोणीय लड़ाई भाजपा के खिलाफ अधिक प्रभावशाली होगी।" (आईएएनएस)
रांची, 28 दिसंबर | झारखंड में सोमवार को 10 लाख के इनामी दो नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया। उनमें से एक पुलिस अधीक्षक की हत्या में शामिल था। पुलिस ने उनके पास से दो इंसास राइफलें, दो एसएलआर, तीन राइफलें, ढेर सारी कारतूस, 1,000 डेटोनेटर और बम जब्त किए।
संथाल परगनाणा रेंज के डीआईजी सुदर्शन मंडल ने कहा, "2013 में पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार की हत्या में शामिल सुधीर उर्फ सुलेमान किस्कू को गिरफ्तार किया गया। साथ ही प्रशांत दा उर्फ छुटका मांझी उर्फ सूरज दा को भी गिरफ्तार किया गया। दोनों के सिर पर 10 लाख रुपये का इनाम है।"
सुधीर दुमका और राज्य के अन्य हिस्सों में सक्रिय था। (आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 28 दिसंबर | कोरोनावायरस के नए मामलों के बीच ब्रिटेन से लौटे अधिकतम 62 यात्रियों की तलाश अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। एक अधिकारी ने सोमवार को इसकी जानकारी दी। हालांकि सार्वजनिक स्वास्थ्य निदेशक निरंजन मिश्रा ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, क्योंकि इन 62 लोगों ने अपने क्वारंटाइन की अवधि पूरा कर ली है।
मिश्रा ने कहा, "हम उन्हें ट्रेस करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उनकी जीनोम सीक्वेंसिंग कराई जा सके।"
उन्होंने कहा कि 30 नवंबर से 21 दिसंबर के बीच ब्रिटेन से ओडिशा में कुल 181 यात्री लौटे हैं। इनमें से 119 लोग कोविड-19 की जांच में से होकर गुजरे हैं और छह वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। (आईएएनएस)
पटना, 28 दिसंबर | केंद्रीय मंत्री और बिहार के बक्सर के सांसद अश्विनी कुमार चौबे कोरोना पजिटिव हो गए हैं। उन्होंने खुद इसकी जानकारी अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से शेयर की। केंद्रीय मंत्री ने सोमवार को अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर लिखा है, "कोरोना के शुरूआती लक्षण दिखने पर मैंने टेस्ट करवाया और रिपोर्ट पजिटिव आई है। मेरी तबीयत ठीक है, डॉक्टर्स की सलाह पर होम आइसोलेशन में सभी दिशा-निर्देशों का पालन कर रहा हूं।"
उन्होंने आगे लिखा है, "मेरा अनुरोध है, जो भी लोग गत कुछ दिनों में संपर्क में आए हैं, कृपया खुद को आइसोलेट कर अपनी जांच करवा लें।"
उल्लेखनीय है कि बिहार के कई भाजपा नेता इससे पहले भी कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने कोरोना को मात दे दी।
गौरतलब है कि बिहार में कोरोना मरीजों की संख्या में लगातार वृद्घि हो रही है। राज्य में सोमवार को कोरोना के नए 309 मरीजों के सामने आने के बाद कोविड 19 से संक्रमित लोगों की संख्या 2,51,304 तक पहुंच चुकी है। हालांकि इसमें 2,45,305 लोग स्वस्थ हो चुके हैं। राज्य में फिलहाल कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या 4612 है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, पंचायती राज एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को कहा कि करीब दो दशक तक लंबी प्रक्रिया चलने के बाद कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए नए कानून बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि देश के छोटे और मध्यम श्रेणी के किसानों की आय बढ़ाकर उनको सशक्त बनाने के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार ने इस दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं।
केंद्रीय मंत्री तोमर यहां वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कान्फेडरेशन ऑफ एनजीओस ऑफ रूरल इंडिया (सीएनआरआई) के राष्ट्रीय सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि देश में विगत दशकों में अलग-अलग क्षेत्रों में तो सुधार हुए, लेकिन कृषि के क्षेत्र में सुधार करके छोटे और मझौले किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी।
तोमर ने कहा, "करीब दो दशक तक चली लंबी प्रक्रिया के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र में ये ऐतिहासिक क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। इन कृषि सुधारों से देश के छोटे और मझौले किसानों के जीवन में बड़े सकारात्मक बदलाव आएंगे।"
'किसान बिल : उदारवादी कृषि के माध्यम से ग्राम स्वराज' विषय पर आयोजित सम्मलेन में केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा, "कृषि क्षेत्र के रिफॉर्म्स की अनुशंसाएं कई आयोगों ने अपनी रिपोट में की हैं। देश के कई कृषि विशेषज्ञों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों-मंत्रियों की समिति में इन सुधारों की संस्तुति हुई है।"
तोमर ने कहा कि अंतर्राज्यीय व्यापार बढ़ाने और किसानों के लिए वैधानिक ढांचे के माध्यम से बाजार का विस्तार करने की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही थी। उन्होंने कहा कि मंडियों के बाहर भी किसानों के लिए एक वैकल्पिक बाजार उपलब्ध कराना समसामयिक हो गया है, जिसकी मांग पूरी करते हुए व किसानों की आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से ये ऐतिहासिक उपाय किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि देश में 10,000 नए एफपीओ बनाने की योजना शुरू की गई है। इन एफपीओ पर सरकार एक साल में 6850 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च करेगी। इसके अलावा, फार्म गेट इंफ्रास्ट्रक्च र के विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपये का कृषि अवंसरचना कोष बनाया गया है।
कार्यक्रम में सीएनआरआई के वरिष्ठ पदाधिकारी रघुपति सिंह, डॉ. एच.बी. सिंह, डॉ. अमिताभ कुंडु, आर.जी. अग्रवाल, डॉ. एच.पी. सिंह, बिनोद आनंद एवं अन्य पदाधिकारी मौजूद थे। (आईएएनएस)
पटना, 28 दिसंबर | बिहार में सरकार की सख्ती का असर भी हड़ताल पर डटे जूनियर डॉक्टरों पर नहीं दिख रहा है। स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल सोमवार को छठे दिन भी जारी रही। इस बीच, मरीजों की स्थिति दयनीय हो रही है। मरीज या तो अस्पताल से अपने घर जाने को विवश हैं या अस्पताल की बेड पर ही भगवान भरोसे पड़े हुए हैं। इधर, पटना के सबसे बडे सरकारी अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) प्रशासन ने हॉस्टल खाली करने का आदेश दिया गया है। जूनियर डॉक्टरों की एक ही मांग है कि उनका स्टाइपेंड बढ़ाया जाए।
हड़ताली डॉक्टरों का कहना है कि जनवरी 2020 से ही स्टाइपेंड बढ़ाया जाना था। इस मांग पर डॉक्टर किसी भी सूरत में झुकने को तैयार नहीं है। प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों के पीजी डॉक्टर पिछले छह दिनों से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं।
पीएमसीएच के जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. हरेंद्र कुमार ने सोमवार को बताया कि, "कॉलेज प्रशासन से सोमवार को एकबार फिर बात हुई है। हालांकि अब तक हड़ताल का कोई हल नहीं निकला है। उन्होंने एकबार फिर कहा कि जब तक उनकी मांगें नहीं पूरी होगी यह हड़ताल जारी रहेगी।"
इधर, पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ. विमल कारक ने कहा कि कई बार जूनियर डॉक्टरों से बातकर हड़ताल समाप्त कर काम पर वापस आने का प्रयास किया गया, लेकिन वे अपनी मांग को लेकर अड़े हुए हैं।
इधर, राज्य के सभी नौ सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में हड़ताल के कारण ऑपरेशन और सर्जरी प्रभावित हुई हैं। कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश ऑपरेशन को टाल दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने सख्ती करते हुए मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रशासन से नो वर्क नो पे के सिद्धांत के तहत हड़ताली डॉक्टरों की स्टाइपेंड काटने का निर्देश दिया है। (आईएएनएस)
शिमला, 28 दिसंबर | हिमाचल प्रदेश की राजधानी और इसके आस-पास के गंतव्यों में लंबे अंतराल के बाद रातभर बर्फबारी हुई, जिससे बर्फबारी का आनंद लेने आए पर्यटकों के चेहरे खिल गए हैं। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी। बर्फबारी से होटल मालिकों की उम्मीद जगी है कि नए साल की पूर्व संध्या पर पर्यटक बड़ी संख्या में आएंगे।
शिमला के पास पर्यटक स्थलों, जैसे कुफरी, फागू और नारकंडा में भी बर्फबारी हुई, जिससे हिल स्टेशन और भी मनोरम हो गए हैं।
राज्य की राजधानी और मनाली और डलहौजी जैसे अन्य लोकप्रिय पर्यटन रिसॉर्ट्स में, आंतरिक सड़क यातायात बहुत धीमी हो गई हैं, क्योंकि सड़कें बर्फ से लदी हैं। यहां तक कि सड़कों पर चलना भी जोखिम भरा हो गया है। शिमला में 9 सेंटीमीटर बर्फबारी हुई, जबकि मनाली और डलहौजी में क्रमश: 14 सेंटीमीटर और 22 सेंटीमीटर बर्फ पड़ी।
सोलन जिले के धरमपुर में भी बर्फबारी हुई। इससे कसौली और चैल में पर्यटन स्थल मनोरम हो गए हैं।
बर्फबारी की खबर सुनते ही अधिक पर्यटक शिमला घूमने आएंगे। यह स्थल इमारतों की शाही भव्यता के लिए जाना जाता है, जो ब्रिटिशकाल में भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी।
इसी तरह, मनाली और राज्य की राजधानी से 250 किलोमीटर की दूरी पर सोलंग स्की ढलान और कल्पा में बर्फबारी हुई।
एक मौसम अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि शिमला और इसके आस-पास के पर्यटन स्थलों में बर्फ की अच्छी परत जमी है और यह अगले कुछ दिनों तक बर्फ में ढका रहेगा।
उन्होंने कहा कि 29 दिसंबर तक पश्चिमी विक्षोभ के फिर से बनने की आशंका है और इसके बाद मौसम शुष्क होगा। (आईएएनएस)
पटना, 28 दिसंबर | दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में मंगलवार को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले बिहार के विभिन्न जिलों से एकत्रित होकर किसान 'राजभवन मार्च' करेंगें और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपेंगे। अखिल भारतीय किसान महासभा के बिहार प्रदेश सचिव रामाधार सिंह ने सोमवार को बताया कि, "किसान महासभा के साथ-साथ अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के सभी सदस्य संगठनों ने मंगलवार के राजभवन मार्च में अपनी पूरी शक्ति लगा दी है।"
उन्होंने कहा कि राजभवन मार्च में बटाईदार किसानों का भी बड़ा हिस्सा शामिल होगा। उन्होंने दावा किया कि पूर्णिया, अररिया, सीमांचल के अन्य जिलों, चंपारण, सीवान, गोपालगंज सहित कई जिलों के किसान सोमवार को ही पटना की ओर निकल चुके हैं।
उन्होंने कहा कि, "मार्च में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बिहार, झारखंड के प्रभारी और पूर्व विधायक राजाराम सिंह, पंजाब के किसान आंदोलन के नेता जगमोहन सिंह, बिहार राज्य किसान सभा के महासचिव अशोक कुमार सिंह, ललन चौधरी सहित कई नेता भाग लेंगे।"
उन्होंने कहा कि पटना के गांधी मैदान के गेट नंबर 10 से दोपहर 12 बजे राजभवन मार्च प्रारंभ होगा।
किसान नेताओं ने कहा कि, "भगत सिंह का पंजाब और स्वामी सहजानंद की किसान आंदोलन की धरती बिहार में किसानों की एकता कायम होने लगी है, इससे भाजपाई बेहद डरे हुए हैं। आजादी के बाद भी बिहार मजबूत किसान आंदोलनों की गवाह रहा है।"
नेताओं ने कहा, "70-80 के दशक में भोजपुर और तत्कालीन मध्य बिहार के किसान आंदोलन ने इतिहास में एक नई मिसाल कायम की है। अब एक बार नए सिरे से बिहार के छोटे-मंझोले-बटाईदार समेत सभी किसान आंदोलित हैं। 29 दिसंबर के राजभवन मार्च से भाजपा के इस झूठ का पूरी तरह पर्दाफाश हो जाएगा कि बिहार के किसानों में इन तीन काले कानूनों में किसी भी प्रकार का गुस्सा है ही नहीं।" (आईएएनएस)
गुवाहाटी, 28 दिसंबर | असम सरकार ने सोमवार को विधानसभा में एक विधेयक पेश किया, जिसमें सरकार द्वारा संचालित 600 मदरसों को बंद करने का प्रावधान है। इस पर विपक्षी कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने कड़ा विरोध जताया है। असम के शिक्षा और वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र के उद्घाटन दिवस पर 1995 के असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम पेश किया।
सरमा ने एक ट्वीट में कहा, "एक बार विधेयक पारित हो जाने के बाद, असम सरकार द्वारा मदरसा चलाने की प्रथा समाप्त हो जाएगी। यह प्रथा आजादी से पहले असम में मुस्लिम लीग सरकार द्वारा शुरू की गई थी।"
कांग्रेस और मुस्लिम वोट बैंक वाली ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोकेट्रिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने विधेयक का कड़ा विरोध किया और कहा कि अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने के बाद वे मदरसा शिक्षा को फिर से शुरू करेंगे।
इससे पहले, सरमा ने कहा था कि राज्य सरकार ने शिक्षा को 'धर्मनिरपेक्ष' बनाने का फैसला किया है और राज्य सरकार द्वारा प्रशासित 620 मदरसे बंद किए जाएंगे।
असम मंत्रिमंडल ने इससे पहले मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की अध्यक्षता में एक बैठक में राज्य में सभी सरकार संचालित मदरसों और संस्कृत टोल्स (स्कूल) को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
सरमा ने मीडिया से कहा, "सभी 620 सरकार की ओर से संचालित मदरसों को सामान्य स्कूलों में परिवर्तित किया जाएगा और कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय को 97 संस्कृत स्कूल सौंपे जाएंगे। इन संस्कृत स्कूलों को शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्रों में परिवर्तित किया जाएगा, जहां भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रवाद का अध्ययन किया जाएगा।"
हालांकि उन्होंने कहा कि असम में निजी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे मदरसे बंद नहीं होंगे।
सरमा ने कहा कि राज्य सरकार मदरसों को चलाने के लिए सालाना 260 करोड़ रुपये खर्च कर रही है और सरकार धार्मिक शिक्षा के लिए सार्वजनिक धन खर्च नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा कि एकरूपता लाने के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर कुरान पढ़ाना जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
सरमा ने दावा किया कि मदरसों में नामांकित अधिकांश छात्र डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहते हैं और इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि ये सामान्य स्कूल नहीं हैं।
मंत्री ने दावा किया कि अधिकांश इस्लामी विद्वान भी सरकार द्वारा मदरसों के संचालन के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ये मदरसे मुस्लिम लीग की विरासत हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | दिल्ली विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था विद्वत परिषद (एसी) और कार्यकारी परिषद (ईसी) के चुनाव की तिथि घोषित की जा चुकी है। दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन यानी डीटीए की अध्यक्ष डॉ. आशा रानी जो कि पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य) हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, इस बार एकेडमिक काउंसिल में उम्मीदवार बनाई गई हैं। शिक्षक संगठन, दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीटीए) ने चुनाव के मद्देनजर अपनी कार्यकारिणी के सदस्यों की सोमवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस की आर्ट्स फैकल्टी में मीटिंग बुलाई। मीटिंग की अध्यक्षता एसोसिएशन की अध्यक्ष डॉ. आशा रानी ने की।
मीटिंग में एकेडमिक काउंसिल के पद पर खड़ा करने के लिए एकेडमिक काउंसिल में दो उम्मीदवार घोषित किए गए। इसमें डॉ. आशा रानी के अलावा भगतसिंह कॉलेज (सांध्य) के वाणिज्य विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार हैं। डॉ. सुनील कुमार भगतसिंह कॉलेज (सांध्य) में पिछले एक दशक से वाणिज्य विभाग में कॉमर्स के शिक्षक हैं।
मीटिंग में कार्यकारी परिषद (ईसी) के दो नामों पर चर्चा हुई। इसमें पूर्व डूटा सदस्य ,अध्यक्ष ,स्टाफ एसोसिएशन व सेकेट्री स्टाफ एसोसिएशन, सीनियर एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नरेंद्र कुमार पाण्डेय हैं। वह रामलाल आनंद कॉलेज, इतिहास विभाग में कार्यरत हैं।
इसके अलावा डीयू में दो बार निर्वाचित पूर्व एकेडमिक काउंसिल सदस्य और श्री अरबिंदो कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. हंसराज सुमन के नाम पर सहमति बनी है। इनमें से एक को कार्यकारी परिषद का चुनाव लड़वाया जाएगा।
डीटीए के मुताबिक चुनाव के मुख्य मुद्दे, तदर्थ शिक्षकों के समायोजन, स्थायीकरण, कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर की पदोन्नति में पीएचडी से छूट, नई शिक्षा नीति को रोजगार से जोड़ने, एडहॉक टीचर्स को बेहतर चिकित्सा सुविधा, एडहॉक महिला शिक्षिकाओं को छह महीने का मातृत्व अवकाश ,प्रिंसिपल का कार्यकाल 5 साल करने ,प्रिंसिपल पदों में आरक्षण लागू करने, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के पदों में आरक्षण करने के अलावा कॉलेजों में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कराना रहेंगे।
एसी और ईसी चुनाव को लेकर हुई मीटिंग की अध्यक्षता कर रही डीटीए की अध्यक्ष डॉ. आशा रानी ने उम्मीदवारों के चयन पर खुशी जताई और कहा, "एकेडमिक काउंसिल में उनके संगठन का खाता खुलना चाहिए, ताकि काउंसिल में शिक्षकों के मुद्दों को गम्भीरता से उठाया जाए। चुनाव जीतने के लिए विभिन्न कमेटियों का गठन किया। इन कमेटियों में घोषणा पत्र कमेटी का दायित्व डॉ नरेंद्र कुमार पांडेय को सौंपा गया। मीडिया संयोजक का कार्यभार डॉ. हंसराज सुमन को दिया गया। (आईएएनएस)
जम्मू, 28 दिसंबर | जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) से जुड़े एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। वह सीमा पार के एक हैंडलर के संपर्क में था, जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएचडब्ल्यू) बाईपास रोड पर ग्रेनेड हमला करने का काम सौंपा गया था। पुलिस ने सोमवार को यह जानकारी दी। व्यक्ति की पहचान जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के निवासी मोहम्मद अशरफ के रूप में हुई है, लेकिन इस समय वह जम्मू के सुंजवान की पीरबाग कॉलोनी में रह रहा था। अशरफ को रविवार शाम गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस ने कहा कि उसके कब्जे से दो हैंड ग्रेनेड बरामद किए गए हैं।
पुलिस ने एक बयान में कहा, "रिपोर्ट में पता चला है कि 27 दिसंबर 2020 को जम्मू पुलिस ने एनएचडब्ल्यू बाईपास रोड पर एक नाका लगाया था और वाहनों की नियमित जांच की जा रही थी। देर शाम 7.30 बजे एक व्यक्ति ने संदिग्ध रूप से पुलिस कर्मियों को देखकर नाके से भागने की कोशिश की, जिसके बाद उसे पकड़ लिया गया। उसके पास से दो हैंड ग्रेनेड बरामद किए गए, जो कि एक बैग में छुपाए गए थे।"
पुलिस ने बताया कि बाग-ए-बाहु पुलिस स्टेशन में आरोपी के खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के साथ ही यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।
पुलिस ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति लश्कर के संपर्क में था और उसे शहर में ग्रेनेड विस्फोट करने के लिए सीमा पार के संचालकों की ओर से काम सौंपा गया था।
पुलिस ने कहा, "हैंडलर और भी कई आतंकवादी गुर्गो के संपर्क में था, जिनकी तलाश जारी है। जम्मू पुलिस की ओर से समय पर कार्रवाई के साथ जम्मू शहर में संभावित आतंकी हमलों को रोक दिया गया है।"
यह लश्कर से जुड़ा दूसरा आतंकी मॉड्यूल है, जिसका पदार्फाश पिछले एक हफ्ते में जम्मू पुलिस ने किया है।
लश्कर से जुड़े एक ऐसे ही मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया गया था, जिसमें दो लोगों को एक एके सीरीज राइफल, एक पिस्तौल, एके राइफल की दो मैगजीन, एके राइफल के 60 राउंड और पिस्टल के 15 राउंड के साथ गिरफ्तार किया गया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को महाराष्ट्र के सांगोला से पश्चिम बंगाल के शालिमार के बीच सौवीं किसान रेल का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि किसान रेल से पश्चिम बंगाल के किसानों को बड़ा विकल्प मिला है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश के हर क्षेत्र की खेती को, किसानों को किसान रेल से कनेक्ट किया जा रहा है। कोरोना की चुनौती के बीच भी बीते 4 महीनों में किसान रेल का ये नेटवर्क आज 100 के आंकड़े पर पहुंच चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, "किसान रेल सेवा, देश के किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में भी एक बहुत बड़ा कदम है। इससे खेती से जुड़ी अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आएगा। इससे देश की कोल्ड सप्लाई चेन की ताकत भी बढ़ेगी।"
प्रधानमंत्री मोदी ने किसान रेल को चलती फिरती कोल्ड स्टोरेज बताते हुए कहा, "इसमें फल हो, सब्जी हो, दूध हो, मछली हो, यानि जो भी जल्दी खराब होने वाली चीजें हैं, वो पूरी सुरक्षा के साथ एक जगह से दूसरी जगह पहुंच रही हैं।" (आईएएनएस)
-प्रतीक अवस्थी
जबलपुर. कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण के बीच जबलपुर प्रशासन के हाथ-पांव एक बार फिर फूलने लगे हैं. दरअसल, बीते दिनों एक महिला ब्रिटेन से लौटी, इसकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. प्रशासन अब यह जांच करने में जुटा है कि कहीं ये कोरोना का स्ट्रेन-2 तो नहीं. हालांकि, महिला में कोरोना के सामान्य लक्षण ही पाए गए हैं.
प्रशासनिक अमले ने सावधानी के चलते महिला को अलग वार्ड में रखा है, जहां उसका इलाज जारी है. जांच करने वाले डॉक्टर का कहना है कि महिला के सैंपल बाहर भेजे गए हैं. बता दें कि 52 साल की महिला 12 दिसंबर को भारत आई थी और उसके बाद जबलपुर पहुंची. गौरतलब है कि यहां अन्य लोगों की भी तलाश की जा रही है जो ब्रिटेन से लौटे हैं.
कोरोना ने दी नई टेंशन
दुनियाभर में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है. कोरोना वायरस से होने वाले प्रभाव को लेकर विशेषज्ञ हर दिन नई जानकारी दे रहे हैं. डॉक्टरों के मुताबिक कोरोना वायरस से इंसान में न्यूमोथोरैक्स की दिक्कत हो रही है. आसान भाषा में समझा जाए तो कोरोना वायरस के कारण मरीज के फेफड़े इतने कमजोर हो जा रहे हैं कि उनमें छेद हो जा रहा है. वैज्ञानिकों ने कहा कि हम इस बात को लेकर इसलिए ज्यादा चिंतित हैं क्योंकि इसका अभी तक कोई इलाज नहीं मिल सका है.
कुछ मरीजों में मिले लक्षण
कोरोना वायरस की वजह से फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो रहा है. इसका मतलब है कि हवा वाली जगह पर म्यूकस का जाल बन रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक जब फाइब्रोसिस की संख्या बढ़ जाती है तो न्यूमोथोरैक्स यानी फेफड़े में छेद हो जाता है. डॉक्टरों ने बताया कि गुजरात में कोरोना से संक्रमित कुछ मरीजों में इस तरह की दिक्कत देखने को मिली है. ये सभी मरीज 3 से 4 महीने पहले कोरोना से ठीक हुए थे लेकिन इनके फेफड़ों में फाइब्रोसिस की शिकायत मिली है.
सीने में तेज दर्द और सांस लेने में दिक्कत
इन मरीजों को सीने में तेज दर्द औऱ सांस लेने में दिक्कत होने की वजह से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है. प्राइवेट अस्पताल में इलाज करा रहे मरीजों के डॉक्टरों ने बताया कि कोरोना की वजह से हुए फाइब्रोसिस जब फट जाते हैं तो फेफड़ों में न्यूमोथोरैक्स शुरू हो जाता है. डॉक्टरों के मुताबिक न्यूमोथोरैक्स में फेफड़े के चारों तरफ की बाहरी दीवार और अंदरूनी परतें इतनी कमजोर हो जाती हैं कि उनमें हीलिंग की क्षमता कम हो जाती है. डॉक्टरों के मुताबिक फेफड़े इतने कमजोर हो जाते हैं कि उनमें छेद हो जाता है.
-अमित गंजू
कानपुर. वैसे तो अब तक डाक टिकट देश के महान विभूतियों, स्मारकों व धरोहर के नाम पर ही छपते हैं, लेकिन कानपुर में डाक विभाग ने अंडरवर्ल्ड डॉन माफिया का भी डाक टिकट जारी कर दिया. प्रधान डाक घर से अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन और बागपत जेल में मारे गए मुन्ना बजरंगी के नाम से डाक टिकट जारी हुआ है. डाक विभाग की योजना माय स्टाम्प के तहत ये डाक टिकट जारी किये गए हैं.
पांच रुपए वाले 12 डाक टिकट छोटा राजन और 12 मुन्ना बजरंगी के हैं. डाक विभाग को इसके लिए निर्धारित 600 रुपए फीस अदा की गई. इस योजना की पोल उस वक्त खुली, जब टिकट छापने से पहले न फोटो की पड़ताल की गई और न किसी तरह का प्रमाणपत्र मांगा गया. फिलहाल मामले में जांच के आदेश दे दिए गए हैं.
क्या है माय स्टाम्प योजना?
दरअसल, साल 2017 में इस योजना की शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा की गई. इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी या अपने परिजनों की फोटो वाली 12 डाक टिकट छपवा सकता है. इसके लिए 300 रुपये का शुल्क अदा करना होता है. ये डाक टिकट अन्य टिकटों की तरह ही मान्य होते हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है. इन्हें बनवाने के लिए आवेदक को पासपोर्ट साइज की फोटो और पूरा ब्योरा देना पड़ता है. एक फार्म भरवाया जाता है, जिसमें पूरी जानकारी ली जाती है. डाक टिकट केवल जीवित व्यक्ति का ही बनता है, जिसके सत्यापन के लिए उसे खुद डाक विभाग आना पड़ता है. लेकिन, इस मामले में डाक विभाग के कर्मियों ने लापरवाही बरती.
जांच के आदेश
डाक विभाग के पोस्ट मास्टर जनरल वीके वर्मा ने कहा कि इसके लिए एक नियम बना हुआ है. इसके तहत टिकट जारी करवाने वाले शख्स को खुद डाक घर आना होता है. जहां वेबकैम के जरिए उसकी तस्वीर ली जाती है. अगर किसी गुंडे या माफिया के नाम डाक टिकट जारी हुए हैं तो उसकी जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
-मनीष कुमार
लखनऊ. अब यूपी पुलिस और परिवहन विभाग उन गाड़ियों का चालान काट रहे हैं जिनपर जातिसूचक कोई शब्द लिखा है. ये बदलाव तब आया जब किसी व्यक्ति ने इण्टीग्रेटेड ग्रिवान्स रिड्रेसल सिस्टस पर इसकी शिकायत की. इसे एक अच्छी शुरुआत की तरह देखा जा रहा है, लेकिन मोटर व्हीकल एक्ट का उल्लंघन अभी भी धड़ल्ले से जारी है. कानून कहता है कि गाड़ियों के नंबर प्लेट पर नंबर के अलावा कुछ भी लिखना गलत है. यहां तक की नंबर के फॉण्ट साइज और उसकी स्टाइल भी नियम के अनुकूल होनी चाहिए लेकिन, क्या ऐसा है?
जाति को छोड़ दें तो नंबर प्लेटों पर बहुत कुछ लिखा होता है. लखनऊ की सड़कों पर आपको सुबह शाम एक कतार से सैकड़ों गाड़ियां देखने को मिल जायेंगी जिनके नंबर प्लेटों पर उत्तर प्रदेश सरकार, यूपी पुलिस, न्यायाधीश, वकील, पत्रकार, डिफेन्स, विधायक और सांसद, यहां तक की छोटा पूर्व और बड़ा विधायक भी दिख जायेगा. केन्द्र सरकार के मोटर रूल्स का ये खुला उल्लंघन है. एक्ट में इसके उल्लंघन का दण्ड भी निर्धारित है लेकिन, इस ओर अभी पुलिस और परिवहन विभाग का शायद ध्यान नहीं गया है. परिवहन विभाग में एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर (राजस्व) अरविंद पांडेय ने विस्तार से बताया कि क्या गलत है और क्या सही?
सवाल - गाड़ियों के नंबर प्लेट पर क्या क्या नहीं लिख सकते हैं ?
जवाब - देखिये CMVR - CENTRAL MOTOR VEHICLE RULES हमें ये बताता है कि हमारी गाड़ी और उसपर नंबर प्लेट कैसी होनी चाहिए. रूल्स में साफ साफ ये बताया गया है कि गाड़ी की नंबर प्लेट कैसी होनी चाहिए. उसपर निर्धारित फॉर्मेट के अतिरिक्त कुछ भी नहीं लिखा होना चाहिए. मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 177 में इसके लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है. पहली बार उल्लंघन करने पर 500 रूपये और दूसरी बार करने पर 1500 रूपये का चालान काटा जायेगा.
सवाल - गाड़ी के नंबर प्लेट के अलावा गाड़ियों के शीशे पर बहुत कुछ लिख दिया जाता है. क्या ऐसा करने पर भी चालान काटा जा सकता है ?
जवाब - देखिये ऐसा कोई प्राहिबिटरी क्लॉज नहीं है कि आप शीशे पर नहीं लिख सकते हैं या गाड़ी के किसी हिस्से पर नहीं लिख सकते हैं लेकिन, कहीं ये प्रॉविजन भी नहीं कि ये लिख सकते हैं. यदि ऐसा कोई करता है तो उसे भी एक्ट की धारा 177 के तहत ही कवर किया जायेगी और कार्रवाई की जायेगी. यानी ऐसा करने पर भी गाड़ी का चालान किया जा सकता है.
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर धीरज शाहू से भी न्यूज़ 18 ने बता की. हमने उनसे ये जानना चाहा कि भले ही जाति सूचक शब्द लिखने पर कार्रवाई हो रही है लेकिन, बाकी शब्दों के लिखे जाने पर भी कार्रवाई क्यों नहीं होती ? शाहू ने बताया कि ऐसा नहीं है. प्रवर्तन दल हमेशा ही इस तरह के विशेष अभियान चलाया करता है. साथ ही अब गाड़ियों पर हाई सेक्यूरिटी नंबर प्लेट भी जल्दी लग जायेंगे जिससे ये समस्या खत्म हो जायेगी. आयुक्त धीरज शाहू ने स्पष्ट किया कि इस नियम के उल्लंघन में गाड़ी के सीज़ किये जाने का कोई प्रावधान नहीं है बल्कि सिर्फ जुर्माना ही वसूला जायेगा.
बता दें कि यूपी में जिस नियम के उल्लंघन में गाड़ियों का धड़ाधड़ चालान किया जा रहा है उसकी शिकायत महाराष्ट्र के एक व्यक्ति ने की थी. हर्षल प्रभु नाम के एक व्यक्ति ने शिकायत की थी कि जाति सूचक शब्द लिखना नियमों का उल्लंघन है. इनकी शिकायत के बाद ही गाड़ियों का चालान किया जा रहा है. प्रभु ने ये भी मांग की थी कि ऐसी गाड़ियों को सीज किया जाना चाहिए. हालांकि एक्ट में इस अपराध के लिए गाड़ियों के सीज करने का प्रावधान नहीं है.
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में लगभग एक महीने पहले 'लव जिहाद' को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कानून लागू कर दिया. राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद पूरे प्रदेश में धर्मांतरण रोधी अध्यादेश के लागू होते ही सबसे पहले बरेली में गिरफ्तारी हुई. इसके बाद तो मानों ऐसे मुकदमों की झड़ी लग गई. एटा, ग्रेटर नोएडा, सीतापुर, शाहजहांपुर और आजमगढ़ जैसे कई जिलों में इस कानून का उल्लंघन करने वालों पर पुलिस-प्रशासन ने कार्रवाई की. लखनऊ में अंतर-धार्मिक विवाह रुकवाने तक की खबरें आईं. कानून के तहत औसतन हर रोज एक से अधिक लोगों की गिरफ़्तारी हुई है और अब तक 35 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020’ को 27 नवंबर को राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद से पुलिस ने एक दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज करते हुए राज्य में करीब 35 लोगों को गिरफ्तार किया है. आधिकारिक बयान के अनुसार प्रदेश के एटा से आठ, सीतापुर से सात, ग्रेटर नोएडा से चार, शाहजहांपुर और आजमगढ़ से तीन-तीन, मुरादाबाद, मुज़फ़्फरनगर, बिजनौर एवं कन्नौज से दो-दो तथा बरेली और हरदोई से एक-एक गिरफ्तारी हुई है. यूपी में लागू हुए इस कानून के बाद देश के अन्य राज्यों में भी 'लव जिहाद' को लेकर कानून बनाने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
बरेली में दर्ज हुआ पहला मुकदमा
अध्यादेश के लागू होने के ठीक एक दिन बाद बरेली के देवरनिया थाने में पहला मुकदमा दर्ज किया गया. इसमें लड़की के पिता शरीफनगर गांव निवासी टीकाराम राठौर ने शिकायत की कि उवैश अहमद (22) ने उनकी बेटी से दोस्ती करने का प्रयास किया और धर्म परिवर्तन के लिए जबरन दबाव बनाया तथा लालच देने की कोशिश की. बरेली की देवरनिया पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने के बाद 3 दिसंबर को उवैश अहमद को गिरफ्तार कर लिया. इसी प्रकार लखनऊ पुलिस ने राजधानी में एक विवाह समारोह रोक दिया. मुज़फ़्फरनगर जिले में नदीम नामक व्यक्ति और उसके साथी को 6 दिसंबर को एक विवाहित हिंदू महिला को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. हालांकि बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में यूपी पुलिस को कोई कठोर कार्रवाई न करने का निर्देश दिया. मुरादाबाद में धर्मांतरण रोधी अध्यादेश के तहत गिरफ्तार किए गए दो भाइयों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत ने रिहा कर दिया.
समर्थन में BJP, चिंता में सामाजिक कार्यकर्ता
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेताओं ने ‘लव जिहाद’ के मामले को लेकर आक्रामक बयान दिए. इस अध्यादेश के लागू होने के पहले उपचुनाव के दौरान जौनपुर और देवरिया की चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ' बहन-बेटियों का सम्मान नहीं करने वालों का राम नाम सत्य हो जाएगा.’’ वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता शांतनु शर्मा ने इस अध्यादेश के बारे में कहा, ' हमें नए अध्यादेश से कोई समस्या नहीं है, लेकिन इसके लागू होने से लोगों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसका दुरुपयोग न हो.' उन्होंने कहा, 'यह भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा कि यह अपने उद्देश्य में सफल होगा या नहीं लेकिन इसका सावधानी से प्रयोग होना चाहिए.'
पूर्व DGP बोले- वर्तमान समय के लिए जरूरी
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महाानिदेशक यशपाल सिंह ने कहा, ' देखिए, आधुनिक युग में आजादी की जो परिभाषा है, उसके हिसाब से लोगों को यह अध्यादेश पसंद नहीं आएगा, लेकिन समाज का जो वर्तमान स्वरूप है उसमें कानून-व्यवस्था के लिए जो समस्या खड़ी हो जाती, उसमें काफी राहत मिलेगी.' पूर्व पुलिस प्रमुख ने कहा, ' कोई लड़की जब किसी के साथ चली जाती है तो उसकी बरामदगी के लिए दबाव बढ़ता है और लड़की के भागने पर दंगे जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है.' उन्होंने कहा, ' सामाजिक व्यवस्था के हिसाब से ठीक है और इससे उत्पीड़न नहीं होगा लेकिन आधुनिक लोगों को लगेगा कि हमारी आजादी पर सरकार ने पहरा बिठा दिया है.'
संवैधानिक अधिकारों की भी उठी बात
उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संदीप चौधरी ने कहा, 'यह अध्यादेश व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजता, मानवीय गरिमा जैसे मौलिक अधिकारों के खिलाफ है.' उन्होंने बताया कि कानून को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका पहले ही दायर की जा चुकी है और अब अदालत को फैसला करना है. उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से एक याचिका पर जवाब देने को कहा है जिसमें नए अध्यादेश को लेकर सवाल उठाए गए हैं. इसमें सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कोई अंतरिम राहत नहीं दी और राज्य सरकार को चार जनवरी तक जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है. कपटपूर्ण ढंग से शादी करने और जबरन या छल से धर्म परिवर्तन कराने पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने अध्यादेश को मंजूरी दी थी जिसे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपनी स्वीकृति दे दी. इस अध्यादेश में 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान किया गया है.
सपा-बसपा की तीखी प्रतिक्रिया
राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि जब यह विधेयक के रूप में उप्र विधानमंडल में पेश होगा तो उनकी पार्टी इसका पुरजोर विरोध करेगी. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था, ' लव जिहाद पर अध्यादेश जल्दबाजी में लाया गया है और यह संदेह तथा अनेक आशंकाओं से भरा हुआ है.’’ उन्होंने कहा कि इस संबंध में कई कानून पहले से ही प्रभावी हैं और सरकार इस पर पुनर्विचार करे. हालांकि भाजपा नेताओं का कहना है, 'लव जिहाद के खिलाफ एक सख्त कानून की जरूरत थी, ताकि मुस्लिम पुरुषों के कथित प्रेम की आड़ में हिंदू महिलाओं को धर्म परिर्वतन की साजिश का शिकार न होना पड़े.
नई दिल्ली, 28 दिसंबर| नए साल की शुरूआत से पहले ही, भारतीय इस्पात क्षेत्र ने नवंबर में कच्चे इस्पात के उत्पादन में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए अपनी खोई हुई चमक वापस पा ली है। वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन (डब्ल्यूएसए) की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, देश का कच्चा इस्पात उत्पादन नवंबर महीने में 92.45 लाख टन रहा, जबकि पिछले साल इसी महीने के दौरान उत्पादन 89.33 लाख टन रहा था, जो आर्थिक गतिविधियों में एक बड़ी तेजी का संकेत दे रहा है।
इस्पात उत्पादन में वृद्धि बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में देखी जाने वाली वृद्धि का एक संकेतक भी है, जहां अर्थव्यवस्था को सामान्य स्थिति में लाने के लिए सरकार की ओर से बहुत सी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
डब्ल्यूएसए ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में यह भी दिखाया है कि इस्पात उद्योग न केवल भारत में रिकवरी के रास्ते पर है, बल्कि यहां के विकास में लगभग 64 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में कच्चे इस्पात के उत्पादन के साथ एक बड़ी वैश्विक रिकवरी का हिस्सा भी है।
कोविड-19 महामारी के कारण मौजूदा कठिनाइयों को देखते हुए इस महीने के आंकड़े को अगले महीने के उत्पादन अनुमान के साथ संशोधित किए जाने की संभावना है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत 2019 में कच्चे इस्पात का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया, जिसने जनवरी-दिसंबर की अवधि में पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 1.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसम्बर| 18 दिसंबर को कोरोनावायरस से पॉजिटिव पाए जाने वाले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सोमवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में भर्ती कराया गया है, क्योंकि देहरादून में होम आइसोलेशन में रहने के दौरान उनके सीने में संक्रमण का प्रभाव बढ़ गया। इसकी जानकारी सूत्रों ने आईएएनएस को दी। रावत को एम्स ट्रॉमा सेंटर में रखा गया है और अस्पताल के निदेशक के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम उनके स्वास्थ्य की जांच कर रही है।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि मुख्यमंत्री को न्यूमोनिया हो गया, जिसके कारण उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया।
इससे पहले, रावत को बुखार की शिकायत के बाद रविवार को देहरादून के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां के डॉक्टरों द्वारा की गई जांच से पता चला है कि रावत के सीने में संक्रमण फैल रहा है। बाद में डॉक्टरों की सलाह के बाद रावत को सोमवार को एम्स दिल्ली ले जाया गया।
18 दिसंबर को कोरोनावायरस जांच रिपोर्ट में पॉजिटिव पाए जाने के बाद मुख्यमंत्री ने खुद को होम आइसोलेट कर लिया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी के पूर्व प्रमुख राहुल गांधी की अनुपस्थिति में कांग्रेस ने अपना 136वां स्थापना दिवस मनाया। इस खास मौके पर पार्टी के वरिष्ठ नेता ए.के. एंटनी ने पार्टी का झंडा फहराया। पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता पार्टी की स्थापना दिवस के अवसर पर 24 अकबर रोड पर स्थित पार्टी के मुख्यालय पर मौजूद रहे।
इस दौरान मीडिया से बात करते हुए प्रियंका गांधी ने किसानों के प्रदर्शन को राजनीतिक षडयंत्र करार देने के लिए सरकार की आलोचना की।
उन्होंने कहा, "इसे एक राजनीतिक षडयंत्र या साजिश कहा जाना गलत है। मुझे लगता है कि किसानों के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह बिल्कुल ही अनुचित है। सरकार किसानों के प्रति जवाबदेह है और सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए और कानून वापस लेने चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, "देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिक किसानों के पुत्र हैं और सरकार को यह समझना चाहिए कि किसान देश के अन्नदाता हैं।"(आईएएनएस)
मुंबई, 28 दिसंबर| शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा समन जारी होने के एक दिन बाद महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी की सहयोगी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के विरोध में उतर गई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस ने शिव सेना नेताओं के साथ मिलकर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए भाजपा पर हमला बोला और कहा कि भाजपा की नीतियों के खिलाफ बोलने वालों को टारगेट किया जाता है।
राउत ने एक ट्वीट किया, जो 1981 के एक लोकप्रिय बॉलीवुड गीत, आ देखें जरा, किसमे कितना है दम, जम के रखना कदम, मेरे साथिया पर आधारित था।
यह कहते हुए कि उन्हें इस तरह के नोटिस के बारे में परवाह नहीं है, राउत ने स्पष्ट किया कि अगर ईडी अपना काम कर रहा है तो यह कानूनी होना चाहिए, लेकिन अगर अवैध है, तो उसे (ईडी) अधिक सावधान रहना चाहिए।
यह कहते हुए कि कोई ईडी नोटिस नहीं मिला है, राउत ने भाजपा पर निशाना साधा - मैंने अपने आदमी को बीजेपी कार्यालय में भेजा है। अगर ईडी नोटिस वहां भेजा गया है, तो हमें पता चल जाएगा।
राकांपा नेता और गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि केंद्र में भाजपा राजनीतिक विरोधियों के बीच भय पैदा करने के लिए ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है, जो एक शर्मनाक बात है।
देशमुख ने कहा, जो भी भाजपा या उसकी नीतियों के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है, उसे ईडी-सीबीआई द्वारा निशाना बनाया जाता है। हमने इस तरह की राजनीति कभी नहीं देखी।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट ने कहा कि जब से भाजपा ने केंद्र में सत्ता संभाली है, केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी दलों पर इस तरह से निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन हमारी सरकार इस तरह की धमकी से डरने वाली नहीं है।
शिवसेना के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने भी ईडी नोटिस को राजनीति बताया, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री और राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ईडी के नोटिसों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है।
पटेल ने कहा कि ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें ऐसे व्यक्तियों की संलिप्तता के बिना ईडी नोटिस मिलता है। अगर कोई वास्तव में दोषी है, तो यह सामने आएगा और यहां तक कि इसके पीछे की राजनीति भी पहचानी जाएगी।
मुंबई के गार्डियन मंत्री असलम खान ने कहा कि इससे पहले कि कोई भी भाजपा के खिलाफ बोले तो उसे ईडी-सीबीआई से ऐसे नोटिस के लिए तैयार रहना चाहिए। ये सब भाजपा के शासन में पिछले कुछ वर्षों में आदर्श बन गए हैं।
बता दें कि ईडी ने वर्षा राऊत को पूछताछ के लिए 29 दिसंबर को बुलाया है, जिसके बाद 30 दिसंबर को वरिष्ठ राकांपा नेता एकनाथ खडसे को नोटिस दिया गया - जिन्होंने पिछले अक्टूबर में भाजपा छोड़ दी। इसके अलावा एक अन्य वरिष्ठ नेता प्रताप सरनायक और उनके परिवार के खिलाफ भी जांच चल रही है।
खडसे को पुणे भूमि सौदे के बारे में समन भेजा गया है जबकि वर्षा राउत को पीएमसी बैंक से संबंधित एक मामले में पेश होना है।
भाजपा की ओर से, महाराष्ट्र के नेता किरीट सोमैया ने राउत को इस मामले में निर्दोष साबित करने को कहा और पूछा कि क्या उनका परिवार पीएमसी बैंक घोटाले में लाभार्थी है?
सोमैया ने रविवार देर रात सोशल मीडिया पर एक ट्वीट और वीडियो में कहा, मैंने संजय राउत परिवार को ईडी के नोटिस के बारे में सुना। क्या श्री राउत हमें बताएंगे कि उनका परिवार लाभार्थी है? क्या इससे पहले उन्हें किसी भी जांच में नोटिस मिले हैं? पीएमसी बैंक घोटाले में 10 लाख जमाकर्ता पीड़ित हैं। अगर ईडी को कोई जानकारी चाहिए तो राजनीतिक संरक्षण एक स्वस्थ विचार नहीं है। सभी पीएमसी बैंक के पुनरुद्धार चाहते हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | नेशनल स्टूडेंट युनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने कांग्रेस पार्टी के 136वें स्थापना दिवस पर सोमवार को किसानों की आवाज बुलंद करने के लिए तथा किसानों की पीड़ा को उजागर करने के लिए तिरंगा मार्च का आयोजन किया। तिरंगा मार्च एनएसयूआई कार्यालय से शुरू होकर जंतर मंतर पर जाकर समाप्त हो गया जिसमें एनएसयूआई के सैकड़ो कार्यकर्ताओं ने किसानों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की। तिरंगा मार्च में अंबानी-अडानी के मास्क लगा कर दो लोगों को सबसे आगे शामिल किया। इसके साथ ही किसान आंदोलन के समर्थन में गले में फांसी का फंदा लटकाए मास्क के साथ किसान को भी शामिल किया गया। एनएसयूआई ने मोदी सरकार के लाए गए तीनों काले कानून की प्रतियां भी जलाई और केंद्र सरकार से जल्द से जल्द काले कानून वापस लेने को कहा।
एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन ने इस दौरान कहा कि, आज कांग्रेस पार्टी के स्थापना दिवस पर किसानों की यह दुर्दशा देखकर हम विचलित हो गये हैं। कांग्रेस पार्टी की स्थापना का मतलब ही किसानों को मजबूत करना था लेकिन वर्तमान में मोदी सरकार ने काले कानून लाकर किसानों को मजबूर कर दिया है।
उन्होंने कहा, आज देश का अन्नदाता पिछले एक महीने से अपना घर एवं खेत छोड़कर दिल्ली के बॉर्डर पर कड़कड़ाती ठंड में बैठा है। किसान हमारे देश की रीढ़ है हम उसके खिलाफ अन्याय बर्दाश्त नही करेंगे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | नये कृषि कानून के विरोध में लामबंद हुए किसानों को अब तक सरकार गुमराह बता रही थी, लेकिन अब एक किसान नेता का कहना है कि सरकार खुद कृषि सुधार को लेकर गुमराह है। किसान नेता जोगिंदर सिंह कहते हैं कि कृषि सुधार का जो मॉडल विदेशों में फेल हो चुका है उसे भारत में लागू कर सरकार किसानों की तकदीर बदलना चाहती है। जोगिंदर सिंह पंजाब का संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) के प्रेसीडेंट हैं। उन्होंने कहा कि सरकार कृषि सुधार को लेकर खुद गुमराह है क्योंकि अमेरिका में ये मॉडल विफल रहा है उसे सरकार भारत में आजमाने जा रही है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि 1991 में जब (तत्कालीन प्रधानमंत्री) नरसिंह राव ने आर्थिक सुधार का आगाज किया तो उसके सकारात्मक परिणाम आने में चार-पांच साल लग गए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू कृषि सुधार के अच्छे नतीजे देखने के लिए अगर हम चार-पांच साल इंतजार नहीं कर सकते तो कम से कम दो साल तो इंतजार कर ही सकते हैं।
रक्षामंत्री के इस बयान को लेकर पूछे गए सवाल पर जोगिंदर सिंह ने कहा कि मंडी कानून बिहार में 2006 में ही समाप्त कर दिया गया था और आज बिहार के किसानों का क्या हाल है, यह सबको मालूम है। उन्होंने कहा, इसलिए नये कानून के नतीजे देखने के लिए ज्यादा इंतजार करने की जरूरत नहीं है बल्कि हमारे पास उदाहरण पहले से ही मौजूद हैं। बता दें कि बिहार में 2006 में प्रदेश सरकार ने एपीएमसी काननू को निरस्त कर दिया था।
केंद्र सरकार द्वारा लागू नये कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन सोमवार को 33वें दिन जारी है। आंदोलनकारी किसान संगठनों के नेता कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। संसद के मानसून सत्र में पेश तीन अहम विधेयकों के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इन्हें सितंबर में लागू किया गया। हालांकि इससे पहले अध्यादेश के आध्यम से ये कानून पांच जून से ही लागू हो गए थे।
इन तीनों कानूनों को लेकर सरकार और किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध दूर करने और किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए 29 नवंबर को अगले दौर की वार्ता प्रस्तावित है। किसान संगठनों की ओर से इस वार्ता के लिए जो एजेंडा सरकार के पास भेजा गया है उसमें शामिल चार मुद्दों में तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए अपनाए जाने वाली क्रियाविधि पहले नंबर पर है।
इसके अलावा, सभी किसानों और कृषि वस्तुओं के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा सुझाए लाभदायक एमएसएपी पर खरीद की कानूनी गारंटी देने की प्रक्रिया और प्रावधान पर वे सरकार से बातचीत करना चाहते हैं। अगले दौर की वार्ता के लिए प्रस्तावित अन्य दो मुद्दों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश, 2020 में ऐसे संशोधन जो अध्यादेश के दंड प्रावधानों से किसानों को बाहर करने के लिए जरूरी हैं और किसानों के हितों की रक्षा के लिए विद्युत संशोधन विधेयक 2020 के मसौदे में जरूरी बदलाव शामिल हैं। (आईएएनएस)
बिहार में तमाम प्रयासों के बावजूद बाल विवाह पर पूरी तरह लगाम नहीं लगा है. अभी भी 41 प्रतिशत लड़कियां शादी की वैध उम्र से पहले ब्याही जा रहीं हैं. शहरों की तुलना में देहातों में बाल विवाह व यौन हिंसा के मामले ज्यादा हैं.
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आजादी के 73 साल बाद भी बिहार में बाल विवाह का प्रचलन जारी है. करीब 41 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जा रही है. इनमें ग्रामीण इलाकों की 43 से ज्यादा और शहरी क्षेत्रों की 28 प्रतिशत लड़कियां शामिल हैं. अहम यह है कि इनमें से 11 प्रतिशत लड़कियां 15-19 वर्ष की आयु में ही मां बन गई थीं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवीं रिपोर्ट से साफ है कि बाल विवाह की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है. हां, इतना जरूर है कि 2015-16 की पिछली रिपोर्ट की तुलना में थोड़ी कमी जरूर आई है. बाल विवाह का आंकड़ा 42.5 प्रतिशत से घटकर 41 प्रतिशत पर आ गया है. वहीं पुरुषों की बात करें तो 30.5 फीसद लड़कों की शादी 21 साल की उम्र से पहले हो चुकी थी. पिछले रिपोर्ट में यह आंकड़ा 35.3 प्रतिशत था.
बाल विवाह के आंकड़ों में जो भी थोड़ा बहुत सुधार दिख रहा है वह सरकारी व गैर सरकारी एजेंसियों के कार्यक्रमों का असर हो सकता है. जानकार बताते हैं कि बाल विवाह के अधिकतर मामलों का सीधा जुड़ाव बच्चों के माता-पिता की आय से होता है. इसकी वजह है कि बच्चियों को वे बोझ मानते हैं. आर्थिक रूप से सुदृढ़ परिवारों में बाल विवाह के मामले नहीं के बराबर दिखते हैं. बिहार राज्य महिला आयोग की निवर्तमान अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा कहती हैं, "बाल विवाह को रोकने का सबसे बड़ा साधन जागरूकता है. निचले तबके के लोगों में शैक्षिक व सामाजिक स्तर पर सुधार की वजह से ऐसे मामलों में एक हद तक कमी आई है. शिकायत आने पर आयोग द्वारा बच्ची के माता-पिता की काउंसिलिंग कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि भविष्य में उस लड़की के साथ ऐसा न हो."
सरकार सक्रिय पर नतीजे निराशाजनक
ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार इस दिशा में सक्रिय नहीं है. सरकार की ओर से महिला विकास निगम जनवरी 2020 से बाल विवाह व दहेज प्रथा की रोकथाम के लिए "बाल विवाह एवं दहेजमुक्त हमारा बिहार” नामक अभियान चला रही है. निगम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अजय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, "समाज जागरूक हुआ है और इसी वजह से ऐसे मामलों में कमी आई है. यही वजह है कि बीते साल बाल विवाह के 37 मामलों को रोका गया." वैसे भी खासकर ग्रामीण इलाकों में आंगनबाड़ी सेविकाएं, एएनएम व आशा कार्यकर्ता इन पर कड़ी नजर रखती है. ऐसी किसी सूचना को नजरअंदाज नहीं किया जाता है.
बाल विवाह का एक प्रमुख कारण विवाह होने तक लड़कियों को परिवार में मेहमान माना जाना है. समाजशास्त्र के व्याख्याता एलबी सिंह कहते हैं, "दरअसल समाज में आज भी लड़कियों को बोझ माना जाता है. बच्चियों का विवाह माता-पिता के लिए सदैव एक समस्या के तौर पर उनके समक्ष खड़ा होता है. पितृसत्तात्मक समाज होने के कारण लड़कियों का दर्जा लड़कों से नीचे ही है. सोच यह रहती है कि जितनी जल्दी हो सके, इसे निपटाया जाए. सामाजिक दबाव भी रहता ही है. आर्थिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े तबके में यह धारणा ज्यादा बलवती है."
यौन हिंसा में भी पहले की ही तरह जारी
बाल विवाह की तरह ही यौन हिंसा भी जारी है, हालांकि पिछले पांच साल में इनमें कमी जरूर आई है. 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार 18 से 29 आयु वर्ग की महिलाओं में 14.2 प्रतिशत यौन हिंसा का शिकार हुईं थीं वहीं 2019-20 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा 8.3 प्रतिशत पर आ गया है. इनमें शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में यौन हिंसा के ज्यादा मामले दर्ज किए गए. 18 से 29 आयु वर्ग में शहरी इलाके में 7 प्रतिशत तो गांवों में 8.5 फीसद महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुईं. वहीं पतियों द्वारा शारीरिक प्रताड़ना या यौन हिंसा की बात करें तो 18 से 49 आयु वर्ग की 40 प्रतिशत महिलाएं उत्पीड़न की शिकार हुईं. वहीं गर्भावस्था के दौरान 2.8 फीसद शारीरिक प्रताड़ना की शिकार हुईं.
पत्रकार एसके पांडेय कहते हैं, "महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों में जितनी ही कमी आई है, उसमें सर्वाधिक योगदान शराबबंदी का है. जो पुरुष शराब से दूर हुए, वे परिवार पर ध्यान देने लगे. आर्थिक कलह उत्पीड़न का सबसे कारण माना जा सकता है. जहां तक गांवों में यौन हिंसा की बात है, उसमें शहरी बुराइयों का बड़ा योगदान है जो इंटरनेट या फिर अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सहारे वहां तक पहुंच गईं हैं."
कोरोना के दौरान घरेलू हिंसा भी बढ़ी
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट से इतर कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा में खासा इजाफा हुआ. महिला थाने की प्रभारी आरती कुमारी जायसवाल कहतीं हैं, "लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा के मामलों में दो से तीन फीसद का इजाफा हुआ. यही वजह है इस साल यहां 142 ऐसे मामले दर्ज किए गए."
मनोचिकित्सक रमण कुमार कहते हैं, "लॉकडाउन के कारण आर्थिक तंगी, धैर्य की कमी और फिर सेक्सुअल डिमांड पति-पत्नी के बीच विवाद का कारण बना जिसकी परिणति अंतत: उत्पीड़न के तौर पर सामने आई." वजह चाहे जो भी हो समाज का नजरिया महिलाओं के प्रति आज भी उतना उदार नहीं है. जबतक दृष्टिकोण परिवर्तित नहीं होगा, तबतक ऐसी कुरीतियों का अस्तित्व समाज में बरकरार ही रहेगा.
लेबनान के सैन्य अधिकारियों का कहना है कि सीरियाई शरणार्थियों और एक स्थानीय नियोक्ता के बीच लेनदेन के विवाद के बाद शिविरों में आग लगा दी गई, जिससे सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र और लेबनान के अधिकारियों ने रविवार को कहा कि उत्तरी लेबनान में एक शरणार्थी शिविर में आग लग गई थी, जिससे लगभग 300 सीरियाई शरणार्थी बेघर हो गए हैं. खबरों के मुताबिक एक स्थानीय नियोक्ता और शरणार्थियों के बीच पैसे को लेकर विवाद हुआ, जिसके कारण शिविर में आग लगा दी गई. यूएनएचसीआर का कहना है कि मिन्या इलाके में सीरियाई शरणार्थी के करीब 75 परिवार उन शिविर में रह रहे थे जिसमें आग पकड़ ली थी.
लेबनान के एक सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि लेबनानी सेना आग के कारणों की जांच कर रही है और जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार करने के लिए छापेमारी हो रही है. एक अन्य सैन्य सूत्र ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि स्थानीय लोगों के लिए काम करने वाले सीरियाई शरणार्थियों में मजदूरी को लेकर विवाद था और फिर दोनों पक्षों के बीच लड़ाई हुई थी.
लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता खालिद कबारा ने कहा कि अस्थायी शिविर किराए की जमीन पर स्थित थे और वहां लगभग 375 शरणार्थियों को रखा गया था. उन्होंने बताया है कि शिविर पूरी तरह से जल गए हैं. उन्होंने कहा, "आग के कारण शिविरों में रखे गैस सिलेंडरों में भी विस्फोट हो गया, जिससे कुछ परिवार डर की वजह से भाग गए."
लेबनान का कहना है कि उसने लगभग 15 लाख सीरियाई शरणार्थियों को शरण दी है, जिनमें से लगभग दस लाख ने संयुक्त राष्ट्र के साथ पंजीकरण कराया है. अधिकारियों का कहना है कि शरणार्थियों को अब अपने वतन लौटना चाहिए, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि युद्ध ग्रस्त सीरिया अभी भी सुरक्षित जगह नहीं है. 2011 में सीरिया संकट के बाद से ही वहां से लोग जान बचाकर भाग रहे हैं और पड़ोसी देशों में शिविरों में रहने को मजबूर हैं.
पिछले महीने उत्तरी लेबनान के शहर बशारा में एक सीरियाई शरणार्थी पर एक लेबनानी की गोली मारकर हत्या करने का आरोप लगा था. जिसके बाद तनाव बढ़ गया था और 270 शरणार्थी परिवारों को इस क्षेत्र से जाना पड़ा था. देश में चल रहे गृहयुद्ध के कारण वहां से भाग रहे सीरियाई शरणार्थियों के बीच तनाव अब आम बात है. लेबनान की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है और वहां लाखों सीरियाई शरणार्थियों के रहने से देश के बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव पड़ रहा है.
एए/एके (डीपीए, रॉयटर्स, एएएफपी)