राष्ट्रीय
छिंदवाड़ा , 26 दिसंबर | मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में गीत संगीत को बजाने वाले डीजे का वाहन अनियंत्रित हो गया और उसने मंदिर में भगवान के दर्शन करने जा रहे पदयात्रियों को रौंद दिया। इस हादसे में तीन लोगों को चोटें आई है।
पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार, सौंसर क्षेत्र में है जाम सांवरी मंदिर। यहां साल के अंतिम शनिवार को बड़ी संख्या में लोग पूजा अर्चना करने पहुॅचते है। साथ ही विभिन्न स्थानों से पदयात्रियों का भी आना होता है।
सौंसर के अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस (एसडीओ,पी) एस पी सिंह ने बताया है कि शनिवार की शाम को एक पिकअप वाहन जिस पर डीजे बज रहा था, मंदिर की सड़क से उतरते वक्त अनियंत्रित हो गया। इस वाहन की चपेट में आने से तीन लोगों को चोटें आई है। उन्हें उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया हैं। तीनों की हालत खतरे से बाहर है।
बताया गया है कि सौसर की जाम सावली के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी, इसके साथ ही पांढुर्णा से श्रद्धालु भक्तों की पदयात्रा जाम सावली मंदिर परिसर में आ रही थी। अचानक पदयात्रा के पीछे डीजे लेकर चल रहे पिकअप वाहन का ब्रेक फेल हो गया, जो आगे चल रहे श्रद्धालुओं पर चढ़ गया । घटनाक्रम के समय पिकअप की छत पर श्रद्धालु बैठे थे। इस हादसे के बाद यहां भगदड़ की स्थिति बन गई थी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 दिसम्बर | पाकिस्तान में अगले आम चुनाव से पहले पीएमएल-एन सुप्रीमो और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की संभावित वापसी की अफवाहों को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है।
पीएमएल-एन के अध्यक्ष शहबाज शरीफ, जो पूर्व प्रधानमंत्री के भाई भी हैं, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि नवाज शरीफ पूरी तरह से ठीक होने तक वापस नहीं आएंगे।
शनिवार को जारी एक बयान में, शहबाज शरीफ ने कहा कि नवाज शरीफ ब्रिटेन में कानूनी रूप से तब तक रह सकते हैं जब तक कि ब्रिटिश गृह कार्यालय द्वारा वीजा बढ़ाने की अस्वीकृति के खिलाफ उनकी अपील पर आव्रजन न्यायाधिकरण नियम नहीं बनाते।
इस बीच, पीएमएल-एन की उपाध्यक्ष मरियम नवाज ने एक ट्वीट में कहा , "इस नकली सरकार ने नवाज शरीफ से अपनी हार स्वीकार कर ली है, जो पाकिस्तान का वर्तमान और भविष्य है। एक बड़े व्यक्तित्व को निशाना बनाकर, एक पिग्मी का कद ऊंचा नहीं किया जा सकता है।"
जवाबदेही और आंतरिक बैरिस्टर पर प्रधानमंत्री (एसएपीएम) के विशेष सहायक, शहजाद अकबर ने सवाल किया कि क्या नवाज शरीफ देश की राजनीति में भाग ले सकते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी घोषित कर दिया और उन्हें जीवन के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। साथ ही एक जवाबदेही अदालत ने उन्हें एनएबी मामले में दोषी ठहराया।
अकबर ने कहा, "नवाज शरीफ को फिर से चुनाव लड़ने में सक्षम करने के लिए यह अफवाह उड़ाई जा रही है कि बार काउंसिल अदालत में याचिका दायर कर रही है।
"बार काउंसिल के लिए अदालत में याचिका दायर करना उचित नहीं है। मुझे समझ में नहीं आता कि उन्हें चौथी बार पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाना कानूनी रूप से कैसे व्यवहार्य है।"
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल के अध्यक्ष ने हाल ही में नवाज शरीफ से मुलाकात की थी।
उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल द्वारा इस मुद्दे को उठाना एक राजनीतिक निर्णय है।"
"सुप्रीम कोर्ट बार एक पेशेवर निकाय है, इसलिए इसे खुद को राजनीतिक मामलों में शामिल होने से बचना चाहिए। नवाज शरीफ के मामले के संबंध में परिषद से एक आवेदन जमा करना उचित नहीं था। उन्होंने अब तक कदम नहीं उठाया है। मैं उनसे समीक्षा करने का आह्वान करता हूं ।" (आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 26 दिसम्बर | ओडिशा में बीते 24 घंटे में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के 4 नए मामले सामने आए, जिससे राज्य में कुल कोरोना मामलों की संख्या बढ़कर 8 हो गई है। यह जानकारी अधिकारियों ने रविवार को दी।
नई रिपोर्ट के अनुसार, ये सभी (4) लोग विदेश से लौटे हैं। सभी कोरोना पॉजिटिव हैं। इनका इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस), भुवनेश्वर में जीनोम सिक्वेंसिंग टेस्ट किया गया था।
स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक, बिजय महापात्र ने कहा कि संक्रमित व्यक्तियों में से 2 नाइजीरिया से लौटे हैं जबकि अन्य 3 ने हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की थी।
सभी में हल्के लक्षण हैं। उनकी स्वास्थ्य स्थिति स्थिर है। उन्होंने आगे कहा, "नए ओमिक्रॉन पॉजिटिव मामलों में से एक ने पहले ही निगेटिव टेस्ट किया है क्योंकि हम 8वें, 10वें और 12वें दिन नियमित अंतराल पर टेस्ट कर रहे हैं।"
सभी व्यक्ति, जो विदेशों से लौट रहे हैं, उन्हें अलग आईसोलेट किया जा रहा है और उनका आरटी-पीसीआर टेस्ट किया जा रहा है।
महापात्र ने कहा कि वायरस के लिए पॉजिटिव टेस्ट करने वाले सभी व्यक्तियों का जीनोम सिक्वेंसिंग किया जा रहा है।
राज्य में पहले पाए गए चार ओमिक्रॉन मामलों में से तीन नाइजीरिया और चौथा व्यक्ति कतर से लौटा था।
ओडिशा में बीते 24 घंटों में कोरोना के 112 नए मामले सामने आए, इसी के साथ कोरोना मामलों की संख्या बढ़कर 1,594 हो गई है जबकि एक व्यक्ति की मौत हुई है। इसी के साथ मरने वालों की संख्या बढ़कर 8,452 हो गई है। (आईएएनएस)
ग्वालियर, 25 दिसम्बर। आरोपी के द्वारा लगभाग एक वर्ष गूगल पर गूगल पे एप्प व अन्य कम्पनियों के कस्टमर केयर के नाम से अपना फर्जी नम्बर रजिस्टर्ड करा रखा था | उसके बाद जो व्यक्ति गूगल पर कस्टमर केयर नाम से मोबाइल नंबर सर्च करता तो आरोपी का नंबर शो होता था | उसके बाद आरोपी उनकी समस्या सुन कर उनके फोन में एनिड़ेस्क एप्प डाउनलोड करा देता था | उसके बाद उनके फोन का एक्सिस अपने फोन पर लेकर यू. पी.आई. के माध्यम से पैसे अलग अलग जगहों के फर्जी खातो में ट्रांसफर कर देता था | बहुत बड़े पैमाने पर इस तरफ की ठगी पूरी भारत में चल रही है |
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक महोदय श्री योगेश देशमुख द्वारा अपरधों के निराकरण में दिए गए निर्देश के पालन में की गई कार्यवाही में श्रीमान पुलिस अधीक्षक महोदय राज्य साइबर पुलिस ग्वालियर श्री सुधीर अग्रवाल ने बताया कि फरियादिया रजनी भदौरिया (परिवर्तित नाम ) द्वारा अपने खाते से एनिड़ेस्क एप्प के माध्यम से अपने गूगल पे से 254000/- रूपये निकल जाने के संबंध में शिकायत कार्यालय को दी थी | चूकि एनिड़ेस्क या अन्य रिमोट कट्रोल एप्प की शिकायते कार्यालय को प्राप्त हो रही थी | इस बजह से हर मामले की गंभीरता से लेते हुए इस शिकायत पर जल्द कार्यवाही कर शिकायत के निराकरण करने हेतु टीम गठित कर निर्देशित किया गया | जिसके उपरांत उक्त शिकायत पर जाँच उपरांत अपराध क्रमांक 98/21 धारा 420 भादवि 66 सी,66 डी का अपराध पंजीबध कर विवेचना में लिया गया | बाद विवेचना में टीम द्वारा फरियादी के आवेदन पर कार्यवाही कर टेक्निकल साक्ष्य प्राप्त किये | लेकिन खाते एवं मोबाइल नंबर अलग- अलग जगह के प्राप्त हो रहे थे खातो में यू.पी.आई और आई.एम.पी.एस. के माध्यम से पैसे तुरंत अलग वॉलेट एवं खातो में ट्रांसफर किया जा रहा था | जिसकी बजह से पुलिस मुख्य आरोपियों तक न पहुँच सके | उसके बाद टीम द्वारा अथक प्रयासों से अपराध में प्राप्त अन्य टेक्निकल साक्ष्य इकठ्ठा किये | उनका विश्लेष्ण करने उपरांत आरोपी मोहम्मद मुस्तफा पुत्र मोहम्मद जमाल साब नि मेडचल तेलंगाना को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की गई | आरोपी द्वारा पूछताछ में बताया कि उसके द्वारा आरोपी द्वारा लगभग 1 वर्ष पहले गूगल पर गूगल पे व अन्य कम्पनियों के कस्टमर केयर के नाम से अपना फर्जी नम्बर रजिस्टर्ड कर दिया था उसके बाद जो भी व्यक्ति गूगल पर कस्टमर केयर नाम से मोबाइल नंबर सर्च करता तो उसको आरोपी का नंबर शो होता था | उसके बाद जो भी व्यक्ति कॉल करता | मै उनकी समस्या सुनकर उनकी समस्या निराकरण के नाम पर उनका गूगल पे अनस्टॉल करा कर दोबारा इनस्टॉल करवा देता था | जिससे मुझे उनका एम पिन मिल जाये | उसके बाद वरिष्ठ अधिकारी आप से बात करेंगे बोलकर अलग अलग फर्जी नंबर से दोबारा कॉल कर अपनी आवाज बदल कर उनके फोन में एनिड़ेस्क एप्प डाउनलोड करा देता था| उसके बाद उनके फोन का एक्सिस अपने फोन में लेकर यू पी आई के माध्यम से पैसे अलग अलग जगहों के फर्जी खातो में ट्रांसफर कर देता था | आरोपी से कई फर्जी बैंक खाते भी जप्त किया गये है | मुख्य आरोपी की गिरफ़्तारी केवल टीम के अथक प्रयसो से ही सम्भव हो सकी है |
गिरफ्तार आरोपियों की विश्तृत जानकारी - मोहम्मद मुस्तफा पुत्र मोहम्मद जमाल साब उम्र 20 शिक्षा 12 वी नि जिला मेडचल (के.बी.रंगारेड्डी) तेलंगाना |
प्रकरण के निराकरण में निरीक्षक मुकेश नारोलिया ,उप निरी अजय मिश्रा, उप निरीक्षक शैलेन्द्र राठौर ,प्रधान आर पवन शर्मा, आर राधा रमन त्रिपाठी, आर पुष्पेंद्र यादव एवं आरक्षक चालक डेविड की अहम भूमिका रही |
नई दिल्ली, 25 दिसम्बर | पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर भाजपा ने विशेष चंदा अभियान की शुरूआत कर दी है। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ' स्पेशल माइक्रो डोनेशन कैंपेन ' नाम से इस विशेष अभियान की शुरूआत करते हुए पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं से 5 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक का चंदा स्वयं देने और लोगों से दिलवाने को भी कहा है। उन्होंने चंदे के तौर पर पार्टी फंड में स्वयं 1000 रुपये का दान देकर इस अभियान की शुरूआत की।
जेपी नड्डा ने इस विशेष चंदा अभियान को लॉन्च करने की जानकारी देते हुए ट्वीट किया, अटल जी की जयंती यानि आज 25 दिसंबर से लेकर दीन दयाल जी की पुण्यतिथि 11 फरवरी , 2022 तक भाजपा स्पेशल माइक्रो डोनेशन कैंपेन चला रही है। आपका समर्थन उस पार्टी को मजबूत करेगा जो हमेशा भारत को पहले रखती है।
पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को लिखे पत्र को ट्विटर पर सार्वजनिक करते हुए नड्डा ने लिखा, हमारे कार्यकर्ता इस माइक्रो डोनेशन अभियान के जरिए लाखों लोगों से जुड़ेंगे। नमो एप में डोनेशन मॉड्यूल के माध्यम से चंदा लेंगे। मैं दुनिया के सबसे बड़े राष्ट्रवादी आंदोलन को मजबूत करने के लिए लोगों का आशीर्वाद चाहता हूं।
देश भर में आम लोगों के साथ जुड़कर उन्हें भाजपा सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देने के लिहाज से इस अभियान को काफी अहम माना जा रहा है। खासतौर से 5 चुनावी राज्यों में इस अभियान से भाजपा को काफी फायदा मिलने की उम्मीद है इसलिए पार्टी कार्यकतार्ओं और नेताओं को बढ़-चढ़कर इस अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित करने के मकसद से नड्डा ने अपने पत्र में लिखा, इस अभियान को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने और उन्हें चंदा देने के लिए प्रेरित करने वाले कार्यकर्ताओं को हर स्तर पर पहचान मिलेगी और उन्हें जिला, राज्य और केंद्र स्तर पर सम्मानित किया जाएगा। (आईएएनएस)
विजयवाड़ा, 25 दिसम्बर | भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति एन. वी. रमना ने शनिवार को यहां कनक दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना की।
अपनी पत्नी के साथ और पारंपरिक पोशाक पहने, प्रधान न्यायाधीश ने इंद्रकीलाद्री हिल पर देवी महालक्ष्मी की पूजा की। दंपति ने मंदिर के अनुष्ठानों में भाग लिया और उन्होंने पंडितों का आशीर्वाद भी लिया।
मंदिर के अधिकारियों और पुजारियों ने सीजेआई और उनकी पत्नी का स्वागत किया। बाद में उन्होंने उनका अभिनंदन किया और उन्हें 'प्रसादम' और स्मृति चिन्ह भेंट किए।
परिवहन मंत्री पर्नी नानी, सांसद केसिनेनी नानी, निधि सचिव वाणी मोहन, निधि आयुक्त हरि जवाहरलाल, कृष्णा जिला कलेक्टर जे. निवास और अन्य ने प्रधान न्यायाधीश का स्वागत किया।
अपने गृह राज्य के तीन दिवसीय दौरे पर आए सीजेआई बाद में दिन में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी से भी मुलाकात करेंगे। विजयवाड़ा के इंदिरा गांधी नगर निगम (आईजीएमसी) स्टेडियम में होने वाले कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री अपने कैबिनेट सहयोगियों का परिचय जस्टिस रमना से कराएंगे।
जस्टिस रमना और जगन के बीच यह पहली मुलाकात होगी, जब जगन ने अक्टूबर 2020 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस एस. ए. बोबडे को एक पत्र लिखा था, जिसमें जस्टिस रमना के खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए थे। शीर्ष अदालत ने इस साल मार्च में आंतरिक प्रक्रिया के तहत शिकायत को खारिज कर दिया था।
न्यायमूर्ति रमना ने शुक्रवार को कृष्णा जिले के अपने पैतृक गांव पोन्नावरम का दौरा किया था, जहां उनका स्वागत किया गया। सीजेआई ने गांव में बैलगाड़ी की सवारी की और एक स्थानीय मंदिर में पूजा-अर्चना भी की।
इस साल अप्रैल में प्रधान न्यायाधीश का पदभार संभालने के बाद न्यायमूर्ति रमना का अपने पैतृक गांव का यह पहला दौरा था। (आईएएनएस)
लखनऊ, 25 दिसम्बर | यूपी विधानसभा चुनाव में युवाओं को साधने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार आज मुफ्त टैबलेट और स्मार्ट फोन वितरण योजना का शुभारंभ करने जा रही है। राजधानी लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेयी इकाना स्टेडियम में होने वाले वितरण समारोह में प्रदेश के सभी जिलों से आये एक लाख छात्र-छात्राओं को सरकार की यह सौगात भेंट की जाएगी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को एक लाख युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट का तोहफा देंगे। इन स्मार्टफोन और टैबलेट के जरिए उन्हें न सिर्फ पढ़ाई के लिए कंटेंट मिलेगा, बल्कि रोजगार से संबंधित जानकारियां भी दी जाएंगीं। उनकी योजना एक करोड़ युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट देने की है। मुख्यमंत्री एक लाख युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट का वितरण करेंगे साथ ही, डिजि शक्ति पोर्टल और डिजि शक्ति अध्ययन ऐप भी लांच करेंगे। सभी स्मार्टफोन और टैबलेट में डिजि शक्ति अध्ययन ऐप इंस्टाल है। इसके माध्यम से संबंधित यूनिवर्सिटी या डिपार्टमेंट छात्रों को पढ़ाई के लिए कंटेंट देंगे। साथ ही शासन की ओर से रोजगार परक योजनाओं आदि की भी जानकारी दी जाएगी।
सरकार की ओर से आईटी कंपनी इंफोसिस से अनुबंध किया जा रहा है। इससे इंफोसिस के शिक्षा और रोजगार से जुड़े 39 सौ प्रोग्राम निशुल्क युवाओं को उपलब्ध होंगे। लखनऊ में होने वाले कार्यक्रम में पहले चरण में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे प्रदेश भर के युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट दिया जाएगा। इसके बाद जिलों में स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन कर वितरण किया जाएगा। जिन युवाओं का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया है, उन युवाओं का डिजि शक्ति पोर्टल पर कल के बाद फिर से रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है।
योजना की नोडल एजेंसी यूपीडेस्को के एमडी कुमार विनीत ने बताया कि सरकार की ओर से आईटी कंपनी इंफोसिस से अनुबंध किया जा रहा है। इससे इंफोसिस के शिक्षा और रोजगार से जुड़े 3900 प्रोग्राम निशुल्क युवाओं को उपलब्ध होंगे। स्मार्ट फोन और टैबलेट में युवाओं को पढ़ाई, प्रतियोगी परीक्षाओं और रोजगार के लिए बेहतरीन पाठ्यसामग्री उपलब्ध कराई जाएगी। इससे वह वह स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
कुमार विनीत ने बताया कि स्मार्ट फोन और टैबलेट वितरण के लिए शनिवार को लखनऊ में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे प्रदेश भर के युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट दिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि शनिवार को होने वाले समारोह में हर जिले से दो-दो सौ विद्यार्थियों को भी टैबलेट और स्मार्टफोन वितरित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके बाद जिलों में स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर स्मार्ट फोन और टैबलेट वितरित किए जाएंगे। (आईएएनएस)
रांची, 25 दिसंबर | झारखंड इन दिनों बिजली संकट के दौर से गुजर रहा है। राज्य के सात जिलों में बिजली आपूर्ति के लिए जिम्मेदारदामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) हर रोज लगभग आठ घंटे तक बिजली कटौती कर रहा है। सेंट्रल पूल और अन्य एजेंसियों से भी राज्य को मांग के अनुसार बिजली नहीं मिल रही है। इस वजह से ज्यादातर जिलों में लगातार लोड शेडिंग हो रही है। बिजली संकट पर राज्य के उद्यमियों ने गहरी चिंता जतायी है। उद्यमियों और व्यवसायियों की अग्रणी संस्था झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स ने बिजली संकट पर गंभीर सवाल उठाये हैं। उन्होंने राज्य सरकार से पूछा है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो राज्य में उद्योग-धंधे कैसे चलेंगे? झारखंड सरकार पर दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) के लगभग 22 सौ करोड़ रुपये बकाया हैं। इसे लेकर हजारीबाग, रामगढ, कोडरमा, चतरा, बोकारो, गिरिडीह और धनबाद को मिलने वाली बिजली में बीते 6 नवंबर से ही 50 फीसदी तक की कटौती की जा रही है। डीवीसी ने झारखंड बिजली वितरण निगम से बकाया भुगतान को लेकर प्लान मांगा है। फिलहाल झारखंड की ओर से निगम को प्रतिमाह 100 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाता है, लेकिन डीवीसी का कहना है कि बकाये का बैकलॉग लगातार बढ़ रहा है। इसके भुगतान के लिए राज्य सरकार पूर्व में हुए समझौते का भी पालन नहीं कर रही है। इसके तहत हर महीने कम से कम 170 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए। दूसरी तरफ झारखंड बिजली वितरण निगम ने डीवीसी पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाया है।
बता दें कि राज्य सरकार द्वारा डीवीसी के बकाये का भुगतान न किये जाने पर केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्य सरकार के रिजर्व बैंक स्थित खाते से दो बार रकम की कटौती की गयी है। बहरहाल, इस मुद्दे पर गतिरोध जारी रहने की वजह से राज्य के सात जिलों में पिछले 50 दिनों से लगातार बिजली कटौती के चलते उद्यमी, व्यवसायी और आम उपभोक्ता त्रस्त हैं। झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इसे लेकर भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने प्रदर्शन भी किया था।
दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के बाद नेशनल थर्मल पावर स्टेशन (एनटीपीसी) ने भी इसी महीने राज्य सरकार को बिजली आपूर्ति में कटौती का नोटिस दिया था। एनटीपीसी का 122 करोड़ बकाया है। हालांकि बाद में राज्य सरकार की पहल पर एनटीपीसी ने बिजली कटौती का निर्णय फिलहाल स्थगित कर दिया।
झारखंड में फिलहाल 1600 मेगावाट बिजली की डिमांड है, लेकिन इसके बदले राज्य को बमुश्किल 1200 से 1300 मेगावाट बिजली ही मिल पा रही है। इस वजह से रांची सहित राज्य के ज्यादातर जिलों में चार से लेकर आठ घंटे तक की लोडशेडिंग चल रही है।
इधर फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने शुक्रवार को रांची में बैठक कर राज्य में उत्पन्न बिजली संकट पर गहरी चिंता जतायी। चैंबर ने कहा कि अगर यही हाल रहा तो राज्य में उद्योग-धंधे चलाना बेहद मुश्किल हो जायेगा। झारखंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन भी राज्य में बिजली की स्थिति पर चिंता जता चुका है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 25 दिसम्बर | पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र लिखा है जिसमें राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर सदन के सुचारू संचालन में बाधा उत्पन्न करने का आरोप लगाया गया है।
हालांकि बनर्जी ब्योरा देने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन विधानसभा के सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी संबोधित पत्र में कई उदाहरणों का उल्लेख किया गया है जब धनखड़ ने कानून की प्रक्रिया में देरी की।
घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि बनर्जी ने आरोप लगाया कि राज्यपाल लोगों के बीच स्पीकर की स्थिति को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं और यह लोकतांत्रिक ढांचे में एक गलत मिसाल कायम कर रहा है।
हालांकि ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी राज्य के राज्यपाल ने सत्तारूढ़ दल के साथ मतभेद विकसित किए हैं। यह एक दुर्लभ उदाहरण है जब सत्ताधारी दल और राज्य के प्रमुख के बीच मतभेदों का प्रभाव राज्य विधानसभा के गलियारों तक पहुंच गया है।
स्पीकर ने आरोप लगाया कि हावड़ा नगर निगम को नगर निगम से 16 वाडरें को अलग करने और बल्ली नगरपालिका बनाने के लिए विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए केवल इसलिए देरी हुई क्योंकि राज्यपाल ने इनकार कर दिया था।
स्पीकर बल्ली नगर पालिका विधेयक का जिक्र कर रहे थे जो विधानसभा में पूर्व बल्ली नगर पालिका के 16 वाडरें को अलग करने के लिए पेश किया गया था जो वर्तमान में हावड़ा नगर निगम के साथ जुड़ा हुआ है।
इतना ही नहीं, बनर्जी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को लिखे पत्र का भी उल्लेख किया जिसमें उन्होंने संसदीय लोकतंत्र और सदन के कामकाज से संबंधित मामलों में राज्यपाल के 'अत्यधिक हस्तक्षेप' की शिकायत की थी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसम्बर | दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने शनिवार को यहां बताया कि राष्ट्रीय राजधानी की तिहाड़ जेल में पिछले आठ दिनों में पांच कैदियों की मौत हो गई है। सभी मौतों के प्राकृतिक कारणों से होने के बावजूद, अधिकारी ने कहा कि 'सभी मौतों के लिए सीआरपीसी की धारा 176 के तहत एक मजिस्ट्रेट जांच शुरू की गई है'।
शुक्रवार को भी तिहाड़ जेल नंबर 3 में एक कैदी की मौत की सूचना मिली थी।
अधिकारी ने कहा कि कैदी अपनी कोठरी में बेहोश पाया गया और उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
कथित तौर पर स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उसकी भी मृत्यु हो गई।
मृतक कैदी की पहचान विक्रम उर्फ विक्की के रूप में हुई है।
महानिदेशक (कारागार) संदीप गोयल ने आईएएनएस को बताया कि इन कैदियों की मौत अलग-अलग जेलों में हुई और 'कोई भी किसी भी तरह की हिंसा से संबंधित नहीं था'।
गोयल ने कहा, "इन सभी में, परिस्थितियां पुरानी बीमारी या अन्य अज्ञात कारण जैसे प्राकृतिक कारणों का संकेत देती हैं।" नियमों के अनुसार, प्रत्येक मामले में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा पूछताछ की कार्यवाही की जा रही है। (आईएएनएस)
शादीशुदा महिलाओं के बीच आत्महत्या की बढ़ती संख्या दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले इस देश में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति की तस्वीर पेश करती है. कोविड महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है.
डॉयचे वैले पर मुरली कृष्णन की रिपोर्ट-
पिछले साल अप्रैल में, मध्य प्रदेश में अपने प्रियजनों को कोरोनावायरस महामारी से खो देने वाली दो महिलाओं ने आत्महत्या कर ली. रायसेन जिले की एक औद्योगिक बस्ती में एक महिला की अपने बहुमंजिली अपार्टमेंट से कूदने के बाद मौत हो गई. महिला अपनी मां की मौत के बाद से बहुत आहत थी.
वहां से करीब 200 किलोमीटर दूर देवास शहर में भी, एक अन्य महिला ने उसी दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली, जब उसके परिवार के तीन सदस्यों की एक सप्ताह के भीतर कोविड से मृत्यु हो गई.
जीवन सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन से जुड़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "इन दोनों महिलाओं की शादी हो चुकी थी. वे पहले से ही अवसाद से पीड़ित थीं जिसका उपचार नहीं किया गया था. महामारी ने उनकी हालत को और खराब कर दिया.”
हर 25 मिनट में एक आत्महत्या
ये अकेली घटनाएं नहीं हैं. भारत में आत्महत्या करने वाली शादीशुदा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की ओर से हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी. यह हर दिन औसतन 61 यानी हर 25 मिनट में एक आत्महत्या के बराबर है.
साल 2020 में इस दक्षिण एशियाई देश में दर्ज की गई कुल 1,53,052 आत्महत्याओं में से 14.6 फीसदी आत्महत्याएं शादीशुदा महिलाओं ने की थी. आत्महत्या करने वाली कुल महिलाओं में शादीशुदा महिलाओं की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा थी.
विश्व स्तर पर, भारत में आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. दुनियाभर में आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या में भारतीय पुरुषों की संख्या एक चौथाई है जबकि 15-39 आयु वर्ग में दुनिया भर में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में 36 फीसदी महिलाएं भारतीय होती हैं.
कोविड की वजह से स्थिति बिगड़ी
जानकार और महिला अधिकार समूह इस प्रवृत्ति के लिए घरेलू हिंसा, कम उम्र में विवाह और मातृत्व के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता की कमी जैसे कई कारणों की ओर इशारा करते हैं. इस स्थिति को कोरोना वायरस महामारी और उसके बाद लगे लॉकडाउन ने और बढ़ा दिया है जिसकी वजह से सार्वजनिक समारोहों में आने-जाने और अपनी बातें साझा करने के लिए अन्य महिलाओं से जुड़ने के मौके कम हो गए.
घरेलू हिंसा के मामलों में कई महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचारों के बावजूद फंसी रहीं. सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक नेल्सन विनोद मोजेज डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "कोविड के दौरान हमने घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी और सुरक्षा जाल के साथ-साथ अन्य सुरक्षात्मक कारक कम हुए. नौकरी छूटने के कारण गृहणियों में स्वायत्तता कम थी और इससे अधिक काम, कम आराम और खुद के लिए समय मिलता था.”
मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान में विशेषज्ञता रखने वाली एक मशहूर मनोचिकित्सक अंजलि नागपाल जोर देकर कहती हैं कि कोविड की वजह से स्थिति बहुत खराब हुई, "कोविड ने स्थिति को और खराब कर दिया. कोविड के दौरान, हमने घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी और सुरक्षा जाल और सुरक्षात्मक कारक कम हुए. नौकरी छूटने के कारण गृहणियों में स्वायत्तता कम थी और इससे अधिक काम, कम आराम और खुद के लिए समय मिलता था.”
बेइज्जती और शर्म का सामना
भारत में कुछ महिलाएं जो अवसाद और चिंता से पीड़ित हैं, वे पेशेवर विशेषज्ञों की मदद लेती हैं लेकिन ज्यादातर महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी बीमारियों में शर्म और कलंक के डर से पेशेवर चिकित्सकों के पास नहीं जातीं. कई महिलाएं बेझिझक अपनी भावनाओं और अनुभवों के बारे में खुलकर बात करती हैं.
मनोचिकित्सक टीना गुप्ता कहती हैं कि सार्वजनिक जागरूकता की कमी और अवसाद की खराब समझ ने समस्या में और योगदान दिया है. डीडब्ल्यू से बातचीत में टीना गुप्ता कहती हैं, "आत्महत्या के विचार या अत्यधिक निराशा, लाचारी ऐसे संकेतक हैं जो पिछले वर्ष आत्महत्या के मामलों में स्पष्ट रूप से देखे गए थे. शादीशुदा महिलाएं ऐसे समूह से आती हैं जो कम जागरूक हैं और इलाज के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, ऐसे में वो अवसाद और चिंता के साथ अकेले संघर्ष करने के लिए छोड़ दी जाती हैं. यही वजह है कि भारत में शादी शुदा महिलाओओं में आत्महत्या की दर अधिक देखी गई."
समाज में बदलाव की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या का मुकाबला करने के लिए, कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ परिवार, दोस्तों और समुदाय के साथ अधिक जुड़ाव, सामाजिक समर्थन और वित्तीय स्वतंत्रता में बढ़ोत्तरी होनी चाहिए.
नेल्सन मोजेज कहते हैं कि इसके अलावा, समाज में महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार में भी बदलाव की जरूरत है. उनके मुताबिक, "हमें इस तथ्य के प्रति सचेत होना चाहिए कि निरंतर देखभाल, पहचान का संकट और परिवार या दोस्तों से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने का बोझ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या है.” (dw.com)
सुरक्षा, बेहतर जिंदगी, और नौकरी की तलाश में एक देश से दूसरे देश में जाने वाले सभी लोगों के सपने हमेशा हकीकत में नहीं बदलते. स्थानीय लोग से लेकर अधिकारी तक उनका उत्पीड़न करते हैं.
डॉयचे वैले पर मिमि मेफो ताकांबू की रिपोर्ट-
अफ्रीकी संघ के आंकड़े बताते हैं कि 2008 और 2017 के बीच अफ्रीका महाद्वीप में एक देश से जाकर दूसरे देश में बसने वाले प्रवासियों की संख्या 1.33 करोड़ से बढ़कर 2.54 करोड़ तक पहुंच गई है. हालांकि, इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) के मुताबिक, हकीकत में यह आंकड़ा काफी ज्यादा है. यह सिर्फ आधी तस्वीर है.
आईओएम के ग्लोबल माइग्रेशन डेटा एनालिसिस सेंटर (जीएमडीएसी) की रैंगो मार्जिया ने डॉयचे वेले को बताया, "हमारे पास हाल के रुझानों की अधूरी तस्वीर है. साथ ही, उन लोगों का पूरा आंकड़ा भी नहीं है जो एक देश से दूसरे देश में जा रहे हैं."
आईओएम की 2020 की रिपोर्ट से यह पुष्टि होती है कि 2017 के सर्वेक्षण का जवाब देने वाले 80% अफ्रीकियों ने कहा कि उन्हें महाद्वीप छोड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है. वे इसी महाद्वीप पर रहना चाहते हैं.
मार्जिया कहती हैं, "अफ्रीका के भीतर और पूरे अफ्रीका में, विशेष रूप से पश्चिम अफ्रीका जैसे इलाकों में काफी ज्यादा लोग एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं. ये लोग अपने देश को छोड़कर दूसरे देशों में अपना नया आशियाना बना रहे हैं. ये चीजें हमें मुख्यधारा की मीडिया में देखने को नहीं मिलती."
अफ्रीकी देशों में प्रवासन की पीछे की कई वजहें हैं. इनमें आर्थिक कारण से लेकर सुरक्षा से जुड़ी चिंता तक शामिल है. मार्जिया के मुताबिक, इस बात की ज्यादा संभावना है कि अंतर-अफ्रीकी प्रवास में वृद्धि जारी रहेगी. औपनिवेशिक सीमाओं के निर्धारण से बहुत पहले, अफ्रीकी महाद्वीप के काफी लोग एक देश से जाकर दूसरे देश में बस गए. वहीं, कुछ लोग दूसरे महाद्वीप में भी चले गए.
अजनबियों के साथ दुर्व्यवहार
डॉयचे वेले ने उत्तरी घाना के आप्रवासन अधिकारी क्रिस्टियान कोबला केकेली जिलेवु से बात की और उनसे इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट (ईसीओडब्ल्यूएएस) के क्षेत्रीय इलाकों के बारे में जानकारी ली.
जिलेवु ने बताया, "लोग जिंदगी बचाने के लिए एक देश से दूसरे देश में जाते हैं. कुछ इसलिए भी जाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके देश में सबकुछ सही नहीं है और वे दूसरी जगह जाकर बेहतर जिंदगी गुजार सकते हैं."
अंग्रेजी भाषी क्षेत्र में असुरक्षा के कारण कैमरून छोड़कर गिनी जाने वाले एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर डीडब्ल्यू से बात की. उसने कहा कि अभी गिनी में उसका जीवन मुश्किलों से भरा हुआ है. यहां के लोग अजनबियों का स्वागत नहीं करते हैं, लेकिन हमारे पास यहां रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं हैं. यहां के लोग हर समय अजनबियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और गलत भाषा का इस्तेमाल करते हैं.
आईओएम की रैंगो मार्जिया स्वीकार करती हैं कि प्रवासन से जुड़ी नकारात्मक धारणाएं काफी हद तक राजनीतिक अस्थिरता, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हैं. हालांकि, उनका तर्क है कि ये समस्याएं प्रवासन को खराब नहीं बनाती हैं, बल्कि जिस तरीके से प्रवासन से जुड़ी चीजों को प्रबंधित किया जाता है, उससे मुश्किलें आती हैं.
मार्जिया ने कहा, "प्रवासन से जुड़ी नीतियों को प्रबंधित करने के तरीके ज्यादा मायने रखते हैं. यह अफ्रीका महाद्वीप में एक जगह से दूसरी जगह प्रवासन के लिए भी लागू होती है और अफ्रीका से यूरोप में प्रवास के लिए भी लागू होती है."
अलग-अलग अनुभव
खराब तरीके से लागू की गई प्रवासन नीतियों की वजह से गिनी में रहने वाले कैमरून के व्यक्ति जैसे लोगों का जीवन प्रभावित होता है. कैमरून के व्यक्ति ने बताया कि उनकी सबसे बड़ी समस्या मेजबान देशों में उनके और अन्य विदेशियों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार है.
वह कहते हैं, "गिनी में स्थानीय नागरिकों और अधिकारियों, दोनों ने मेरा उत्पीड़न किया. अगर आपके पास सभी दस्तावेज हैं, तो भी वे आपके साथ दुर्व्यवहार करेंगे." हालांकि, अफ्रीकी महाद्वीप में एक देश से दूसरे देश जाने वाले प्रवासियों के अनुभव अलग-अलग हैं. इन्हीं लोगों में से एक हैं ओकवेले जॉय नदुली. वे नाइजीरिया छोड़कर घाना चले गए हैं.
नदुली ने डॉयचे वेले को बताया, "मेरे कुछ साथी मुझसे पहले यहां आए थे. उन्हें यहां काफी अच्छा लगा. उनकी स्थिति से प्रभावित होकर मैं नाइजीरिया छोड़कर यहां कारोबार करने चला आया. इससे मेरे जीवन में बड़ा बदलाव आया है." वहीं, कैमरून के अंग्रेजी भाषी क्षेत्र से भागकर गिनी पहुंचे एक अन्य व्यक्ति ने कहा, "मैं कैमरून की तुलना में यहां ज्यादा पैसा कमाता हूं."
समाधान क्या है?
ईसीओडब्ल्यूएएस इलाकों को एक साथ मिलाने की प्रक्रिया अभी प्रारंभिक चरण में है. हालांकि, ऐसी उम्मीद की जा रही है कि आने वाले कुछ दशकों में इन इलाकों को एक करने में सफलता मिल सकती है. घाना के आप्रवासन अधिकारी कोबला केकेली जिलेवु ने कहा, "हम एक जगह से शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन मैं स्पष्ट तौर पर कह सकता हूं कि ईसीओडब्ल्यूएएस के इलाके पहले की तुलना में ज्यादा एकीकृत हुए हैं."
गिनी में दुर्व्यवहार का सामना करने वाला कैमरून का व्यक्ति चाहता है कि मध्य अफ्रीकी आर्थिक और मौद्रिक समुदाय (सीईएमएसी) एक हो जाए. सीईएमएसी के तहत छह देश गैबॉन, कैमरून, मध्य अफ्रीकी गणराज्य (सीएआर), चाड, कांगो रिपब्लिक और इक्वेटोरियल गिनी शामिल हैं. वह कहते हैं, "हम सीईएमएसी क्षेत्र में हैं. उन्हें सीईएमएसी के कानूनों का सम्मान करना चाहिए. हम एक लोग हैं. हमें हमेशा अफ्रीकियों का सम्मान करना चाहिए."
जिलेवु कई चुनौतियों पर भी बात करते हैं. हालांकि, उन्हें उम्मीद की किरण दिखती है. वह कहते हैं कि सीईएमएसी और ईसीओडब्ल्यूएएस के देशों को एक होने में समय लगेगा. यह धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाली प्रक्रिया है, लेकिन इसके सफल होने की पर्याप्त संभावना है.
आगे का रास्ता
प्रवासन विरोधी भावनाओं को हवा देने वाली सार्वजनिक बहस में अक्सर सबूतों का अभाव होता है. आईओएम की मार्जिया कहती हैं, "सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन के लिए वैश्विक समझौते के 23 उद्देश्य हैं. इस समझौते पर दिसंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देश सहमत हुए थे."
वह कहती हैं, "इन उद्देशयों में सबसे पहले साक्ष्य-आधारित नीतियों और प्रवास के बारे में सार्वजनिक बहस के लिए डेटा में सुधार करना है. सटीक डेटा से ही प्रवासन विरोधी भावनाओं को नियंत्रित किया जा सकता है." मार्जिया बताती हैं, "यह समझौता इसलिए किया गया, ताकि प्रवासियों की सुरक्षा की जाए और मानवाधिकारों की रक्षा हो सके."
वहीं, जिलेवु का कहना है कि घाना इन मानकों को पूरा कर रहा है. जो लोग आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है.
वह कहते हैं, "घाना शांतिपूर्ण जगह है, जहां के सभी लोग मिलनसार हैं. यहां कानून का पूरी तरह पालन होता है. इसलिए, प्रवास के मामले में हम सतर्कता के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं." (dw.com)
असम और पड़ोसी मेघालय के बीच बीते पांच दशकों से जारी सीमा विवाद के अब सुलझने की उम्मीद है. दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने तो यही दावा किया है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
असम की राजधानी गुवाहाटी में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मेघालय के अपने समकक्ष कोनराड संगमा से बातचीत के बाद दावा किया कि जिन 12 इलाकों को लेकर विवाद है उनमें से छह को 15 जनवरी तक सुलझा लिया जाएगा. मेघालय के मुख्यमंत्री ने भी यही दावा किया है. दो महीने में इस मुद्दे पर दोनों राज्यों के बीच मुख्यमंत्री स्तर की यह दूसरी बैठक थी.
अगले साल ही मेघालय के गठन को 50 साल पूरे हो रहे हैं. दोनों राज्य सरकारों ने इस साल अगस्त में अंतरराज्यीय सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कुछ क्षेत्रीय समितियों का गठन किया था. उनमें से दो ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. संगमा ने बताया कि बाकी समितियां भी दिसंबर के आखिर तक अपनी रिपोर्ट सौंप देगी. उसके बाद 15 जनवरी तक कम से कम छह विवादित इलाकों पर समझौता हो जाएगा.
मुख्यमंत्रियों की बैठक
गुवाहाटी में आयोजित बैठक में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच 15 जनवरी तक 12 विवादित इलाकों में से कम से कम छह पर समझौता करने पर सहमति बनी है. मेघालय के उप-मुख्यमंत्री प्रेस्टोन टेनसांग बताते हैं, "दोनों राज्यों की ओर से गठित तमाम क्षेत्रीय समितियां 31 दिसंबर तक संबंधित मुख्यमंत्रियों को अपनी रिपोर्ट सौंप देंगी. उसके बाद दोनों मुख्यमंत्रियों की फिर से बैठक होगी. हमें उम्मीद है कि 15 जनवरी तक कम से कम छह विवादित इलाकों पर समझौता हो जाएगा.”
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है, "हम अपने पड़ोसियों के साथ पुराने सीमा विवाद सुलझाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. इसी के तहत मेघालय के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री समेत वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अहम बैठक आयोजित की गई.” उनके मुताबिक, पहले उन छह स्थानों को चुना गया है जहां जटिलताएं सबसे कम हैं. पहले चरण में जिन छह स्थानों पर समझौते को अंतिम रूप दिया जाएगा उनमें ताराबाड़ी, गिजांग, फाहला, बाकलापाड़ा, खानापाड़ा और रात छेरा शामिल हैं. हिमंत ने भरोसा जताया कि मेघालय के अलावा दूसरे राज्यों के साथ असम के लंबे सीमा विवाद को भी शीघ्र सुलझा लिया जाएगा.
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा बताते हैं, "हमारी बातचीत काफी सकारात्मक रही है और सीमा विवाद का शीघ्र समाधान होने की उम्मीद है.” सीमा विवाद के निपटारे के लिए अगस्त में असम और मेघालय ने दोनों राज्यों के मंत्रियों और अधिकारियों के नेतृत्व में विभिन्न क्षेत्रीय समितियों का गठन किया था. इन समितियों को पांच बिंदुओं के तहत पड़ताल करनी थी. वह हैं, ऐतिहासिक तथ्य, जातीयता, प्रशासनिक सुविधा, भूमि की निकटता, इच्छा और लोगों की भावनाएं.
असम का मेघालय के अलावा नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के साथ भी लंबे अरसे से सीमा विवाद है. नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के साथ सीमा विवाद के मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत सरमा नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो से सीमा विवाद पर बातचीत के लिए शीघ्र दिल्ली जाने वाले हैं.
गठन के समय से ही विवाद
असम के साथ मेघालय का सीमा विवाद वर्ष 1972 में इस राज्य के गठन जितना ही पुराना है. मेघालय कम से कम 12 इलाकों पर अपना दावा ठोकता रहा है. वह इलाके फिलहाल असम के कब्जे में हैं. दोनों राज्यों ने एक नीति अपना रखी है, जिसके तहत कोई भी राज्य दूसरे राज्य को बताए बिना विवादित इलाकों में विकास योजनाएं शुरू नहीं कर सकता. यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब मेघालय ने असम पुनर्गठन अधिनियम, 1971 को चुनौती दी. उक्त अधिनियम के तहत असम को जो इलाके दिए गए थे उसे मेघालय ने खासी और जयंतिया पहाड़ियों का हिस्सा होने का दावा किया था. सीमा पर दोनों पक्षों के बीच अक्सर झड़पें होती रही हैं. नतीजतन दोनों राज्यों में बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों के विस्थापन के साथ ही जान-माल का भी नुकसान हुआ है.
इस मुद्दे पर अतीत में कई समितियों का गठन किया गया और दोनों राज्यों के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई. लेकिन अब तक नतीजा सिफर ही रहा है. सीमा विवाद की जांच और उसे सुलझाने के लिए वर्ष 1985 में वाई.वी.चंद्रचूड़ समिति का गठन किया गया था. लेकिन उसकी रिपोर्ट भी ठंढे बस्ते में है. मेघालय के तमाम राजनीतिक दलों ने केंद्र से कहा था कि वह 2022 से पहले इस विवाद को सुलझाने की पहल करे. वर्ष 2022 में मेघालय के गठन को 50 वर्ष पूरे हो जाएंगे.
राजनीतिक पर्यवेक्षक एस. के. मराक कहते हैं, "अगर दोनों सरकारों के दावों के मुताबिक 15 जनवरी तक 12 में से छह स्थानों पर भी समझौता हो जाता है तो यह पूर्वोत्तर राज्यों के दशकों पुराने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक मॉडल के तौर पर काम करेगा.” (dw.com)
भारत में भूजल खपत का राष्ट्रीय औसत 63 प्रतिशत है. यानी जितना पानी एक साल में जमीन के अंदर जाता है, उसका 63 प्रतिशत निकाल लिया जा रहा है. देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां भूजल खपत के आंकड़े राष्ट्रीय औसत से ज्यादा हैं.
डॉयचे वैले पर रजत शर्मा की रिपोर्ट-
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी कैग ने एक रिपोर्ट में बताया है कि भारत के 4 राज्य भूजल की 100 प्रतिशत से ज्यादा खपत कर रहे हैं. यानी जितना पानी एक साल में जमीन के अंदर जमा होता है, उससे ज्यादा पानी निकाला जा रहा है. ये चार राज्य हैं - पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ये रिपोर्ट पेश की गई.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में भूजल खपत का राष्ट्रीय औसत 63 प्रतिशत है. देश के 13 राज्यों में भूजल खपत राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. अगर जिला स्तर पर देखा जाए तो देश के 267 जिलों में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा भूजल निकाला गया है. कुछ हिस्सों में खपत 385 प्रतिशत के बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है. संसद में पेश ये आंकड़े वर्ष 2004 से 2017 तक के डाटा पर आधारित हैं.
पानी में घुली धातुएं
रिपोर्ट में केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के हवाले से बताया गया है कि देश के कई इलाकों में मौजूद भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाईट्रेट, लोहा और खारापन तय सीमा से ज्यादा है. जिन राज्यों में ये स्थिति पाई गई, वहां पर भूजल संबंधित विभागों में कर्मचारियों की कमी है.
कैग ने रिपोर्ट में टिप्पणी की है कि भूजल संरक्षण के इरादे से दिसंबर 2019 तक देश के 19 राज्यों में कानून बनाया गया था. लेकिन सिर्फ आज तक सिर्फ चार राज्यों में ये कानून आंशिक तौर पर लागू हो पाया है. बाकी राज्यों में या तो कानून बना नहीं या फिर लागू नहीं हो पाया.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में भूजल की 89 प्रतिशत खपत सिंचाई क्षेत्र में होती है. 9 प्रतिशत भूजल घरेलू और 2 प्रतिशत व्यावसयिक उद्देश्य से इस्तेमाल किया जाता है.
बजट था, लेकिन खर्च नहीं पाए
'भूजल प्रबंधन और विनयमन' योजना साल 2012 से 2017 के बीच 12वीं पंचवर्षीय योजना के वक्त चलाई गई थी. इसका अनुमानित खर्च 3,319 करोड रुपये था. मकसद था कि देश में मौजूद भूलज स्रोतों का सही तरीके से पता लगाना और प्रबंधन करना. 2017-2020 तक भी ये योजना जारी रही. बजट में बाकायदा 2,349 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया. लेकिन संबंधित मंत्रालय इसमें से 1,109 करोड़ यानी करीब आधा बजट ही खर्च कर पाए. कैग के जांच रिपोर्ट में ये भी कहा है कि स्थानीय समुदायों के जल प्रबंधन तरीकों को मजबूत करने के लिए कोई काम नहीं किया गया है. (dw.com)
बेल्जियम की सरकार ने फैसला किया है कि 2025 तक देश के सभी सातों परमाणु रिएक्टर बंद कर दिए जाएंगे. हालांकि देश पूरी तरह से परमाणु ऊर्जा को अलविदा नहीं कहेगा. आधुनिक परमाणु टेक्नोलॉजी पर काम चलता रहेगा.
इस विषय पर बेल्जियम की गठबंधन सरकार के सदस्य दलों में पूरी रात चली बातचीत के बाद सहमति बनी. समझौते के अनुसार "छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों पर करीब 10 करोड़ यूरो का निवेश" भी किया जाएगा.
देश में 2003 में ही एक कानून बना दिया गया था जिसके तहत परमाणु ऊर्जा को धीरे धीरे पूरी तरह से बंद करना अनिवार्य है. इसकी अंतिम तिथि साल 2025 है. अक्टूबर 2020 में जब मौजूदा सात पार्टियों की मिली जुली सरकार का कार्यकाल शुरू हुआ था तब भी सरकार ने इस लक्ष्य को हासिल करने का वादा किया था.
परमाणु ऊर्जा को पूरी तरह से ना नहीं
लेकिन इस मुद्दे पर अभी तक गठबंधन में सहमति नहीं बन पाई थी. फ्लेमिश मूल के ग्रीन पार्टी के ऊर्जा मंत्री टिन वान डर स्ट्रैटेन ने पूरी तरह से परमाणु ऊर्जा का दामान छोड़ देने का सुझाव दिया था लेकिन फ्रांसीसी भाषा बोलने वाली लिबरल एमआर पार्टी के सदस्यों ने उनका समर्थन नहीं किया.
एमआर पार्टी का कहना था कि बेल्जियम की परमाणु क्षमता में से कुछ को बाकी रखना चाहिए क्योंकि ऊर्जा की सप्लाई सुनिश्चित रखने के लिए गैस से चलने वाले जिन संयंत्रों की योजना बनाई गई है उनसे बहुत प्रदूषण होगा.
सरकारी मीडिया आरटीबीएफ के अनुसार "अक्षय और कार्बन-तटस्थ ऊर्जाओं" में निवेश करने पर सहमति बनी है. इनमें नई पीढ़ी की परमाणु ऊर्जा भी शामिल है. सरकार के एक सूत्र ने बताया कि इस टेक्नोलॉजी में निवेश करने का बजट तैयार भी कर लिया गया है.
यूरोपीय संघ में भी सहमति का इंतजार
बेल्जियम में दो परमाणु संयंत्र हैं जिनमें कुल सात रिऐक्टर हैं. इन्हें फ्रांस की कंपनी एनजी चलाती है. नए समझौते के बाद बेल्जियम की सरकार को अभी भी यह सोचना बाकी है कि ऊर्जा की सप्लाई में जो कमी आएगी उसे कैसे पूरा किया जाएगा. हो सकता है इस पर फैसला मार्च से पहले ना आए.
परमाणु ऊर्जा को लेकर यूरोपीय संघ के बाकी सदस्य देशों में भी मत विभाजन है. परमाणु और प्राकृतिक गैस को निवेश के योग्य ऊर्जा के सस्टेनेबल स्रोतों की संघ की सूची में शामिल किया जाए या नहीं, इसे लेकर संघ में गहन चर्चा चल रही है.
यूरोपीय संघ की "टैक्सोनौमी" कही जाने वाली इस सूची का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल स्रोतों का प्रोत्साहन करना और एक कार्बन तटस्थ भविष्य की तरफ बदलाव को आसान करना है.
आंतरिक बाजार आयुक्त थिएरी ब्रेटन ने सोमवार 20 दिसंबर को कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि जनवरी में जब यह सूची पेश की जाएगी तब इसमें परमाणु ऊर्जा और प्राकृतिक गैस भी शामिल होंगे. लेकिन आलोचकों का कहना है कि परमाणु ऊर्जा जलवायु अनुकूल नहीं है और उसे धीरे धीरे अलविदा कहते हुए दूसरे स्रोतों का इस्तेमाल करना चाहिए.
सीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
देश में कोरोना की तीसरी लहर की आहट के बीच पांच राज्यों में चुनाव प्रचार तेजी पकड़ता जा रहा है. खासकर यूपी में दल पूरी ताकत के साथ प्रचार कर रहे हैं. रैलियों में भीड़ भी खूब जुट रही, लेकिन प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
2022 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, और मणिपुर में विधानसभा के चुनाव होंगे. पांच राज्यों के विधानसभा के चुनाव 2024 में होने वाले आम चुनाव के लिए बेहद अहम माने जा रहे हैं. इसीलिए नेताओं के दौरे चुनाव वाले राज्यों में बढ़ गए हैं. वहां ताबड़तोड़ रैलियां हो रही हैं और हजारों की संख्या में लोग रैलियों में शामिल हो रहे हैं. मास्क, सोशल डिस्टैंसिंग और स्वच्छता का ध्यान कितना ही रखा है जा रहा है, रैली की तस्वीरों को देख कर ही पता चल जाता है. खासकर उत्तर प्रदेश में तमाम राजनीतिक दलों ने प्रचार के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है.
अब इन रैलियों में होने वाली भीड़ और कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को प्रधानमंत्री और निर्वाचन आयोग से अपील की है कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले आयोजित की जा रही रैलियां पर रोक लगाएं. हाई कोर्ट ने कहा राजनीतिक दल अपना प्रचार अखबार, टीवी और अन्य माध्यमों से करे. प्रधानमंत्री से अनुरोध करते हुए कोर्ट ने कहा है कि वे चुनावी सभाओं और रैलियों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री चुनाव टालने पर भी विचार कर सकते हैं.
चुनाव को टालने वाली कोर्ट की नसीहत पर वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी डीडब्ल्यू से कहते हैं कि वह इससे सहमत हैं और वह इस सहमति के लिए कारण भी बताते हैं. वे कहते हैं, "आपको याद होगा कि अप्रैल में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री ने बड़ी-बड़ी रैलियां की थीं. सुबह उन्होंने कहा था लोग कम जमा हों और शाम को रैली में जाकर भीड़ देख खुशी जाहिर की थी. उन्होंने कहा था इतने लोग आए हैं, मैं गदगद हो गया हूं."
कोर्ट ने क्या कहा
एक आपराधिक मामले में एक आरोपी को जमानत देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने अपने आदेश के अंत में ओमिक्रॉन और संभावित तीसरी लहर के मामलों में वृद्धि का जिक्र किया. जस्टिस यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से स्थिति से निपटने के लिए नियम बनाने का आग्रह करते हुए अपने आदेश में कहा, "अब यूपी में विधानसभा के चुनाव नजदीक हैं, जिसके लिए पार्टियां रैलियां और बैठकें कर रही हैं और लाखों की भीड़ इकट्ठा कर रही है. इन कार्यक्रमों में कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना संभव नहीं है. अगर इसे समय रहते रोका नहीं गया तो परिणाम दूसरी लहर से भी ज्यादा भयावह होंगे." कोर्ट ने सुझाव दिया कि संभव हो तो फरवरी में होने वाले चुनाव को एक दो महीने के लिए टाल दे.
गुरुवार को हुई यूपी में मोदी की रैली का जिक्र करते हुए अंसारी कहते हैं, "कल भी उन्होंने कहा है कि इतनी भीड़ है कि लोगों के खड़े होने की जगह नहीं है. रैली से आने के बाद उन्होंने कोविड समीक्षा बैठक की. उन्होंने देश में ओमिक्रॉन के हालात के बारे में जाना है."
उत्तर प्रदेश कांग्रेस में मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष डॉ. पंकज श्रीवास्तव कहते हैं, "चुनाव लोकतंत्र का आधार है, जनता को अधिकार है कि पांच साल बाद अपनी सरकार चुने. लेकिन पिछले दिनों कोरोना का बहुत ज्यादा प्रकोप था उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी-बड़ी रैलियां कीं. उन्होंने रैली नहीं रोकी. अब हाई कोर्ट ने एक सुझाव दिया जाहिर तौर पर उसकी चिंता भी जायज है. हमें देखना है कि परिस्थिति कैसी है और सरकार का रवैया कैसा है."
इस बीच गुरुवार को ही मोदी ने एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की है. जिसमें ओमिक्रॉन के बढ़ते प्रकोप के बीच कोविड-19 को नियंत्रित और प्रबंधित करने, दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर की उपलब्धता समेत स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया उपायों की समीक्षा की गई.
केंद्र सरकार ने ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच उन राज्यों को कोविड टीकाकरण तेज करने की सलाह दी है जहां अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्यों को सलाह दी गई है कि कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए अपनी तैयारियों को पूरा रखें. श्रीवास्तव कहते हैं कि जनता की सुरक्षा सबसे ऊपर है और इसका ध्यान रखा जाना चाहिए. अंसारी का कहना है कि उन्हें नहीं लगता है कि देश में हालात चुनाव के लिए ठीक है. वे कहते हैं, "मैं निजी तौर पर इस पक्ष में हूं कि चुनाव को टाला जाना चाहिए. लोगों की जिंदगी से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है."
यूपी में सख्ती, नाइट कर्फ्यू
शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने कोरोना और ओमिक्रॉन के बढ़ते मामले को देखते हुए रात के कर्फ्यू लगाने की घोषणा की है. यूपी में रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक रात के कर्फ्यू की घोषणा की गई है, जो 25 दिसंबर की रात से शुरू हो रहा है. यूपी में अब शादी और सामाजिक आयोजनों में कोविड प्रोटोकॉल के साथ 200 लोगों के शामिल होने की इजाजत होगी. इससे पहले मध्य प्रदेश ने भी रात के कर्फ्यू लगाने की घोषणा की थी.
देश में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों की बात की जाए तो यह बहुत ही तेजी से पैर पसार रहा है. देखते ही देखते देश में ओमिक्रॉन के मामले तीन सौ के पार हो गए हैं. देश के 17 राज्यों में ओमिक्रॉन संक्रमितों की संख्या बढ़कर 350 के पार चली गई है. (dw.com)
मध्य प्रदेश, 24 दिसम्बर:मध्य प्रदेश में अब सिविल जजों से भी नौकरी के पहले बॉन्ड भरवाया जाएगा. जानकारी के मुताबिक इस बॉन्ड की रकम 5 लाख रुपये होगी. दरअसल नए नियम में कहा गया है कि नियुक्ति मिलने के तीन साल के भीतर यदि सिविल जज ने नौकरी से इस्तीफा दिया तो तीन महीने का वेतन, भत्ते या फिर बॉन्ड की राशि में जो भी ज्यादा होगा, उसकी वसूली की जाएगी. बॉन्ड की राशि जब्त भी की जा सकती है. बता दें कि बॉन्ड भरवाने का नियम फिलहाल मेडिकल स्टूडेंट्स पर लागू है.
शासन को होती है आर्थिक क्षति
न्यायिक सेवा के सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) नियम-1994 में बदलाव किया है. इसके मुताबिक बॉन्ड सिविल जज (व्यवहार न्यायाधीश, कनिष्ठ खंड) परीक्षा क्लीयर करने के बाद अपॉइंटमेंट के वक्त भरा जाएगा. सूत्रों ने यह भी बताया कि परीक्षा पास करने के बाद न्यायिक सेवा में जाने के पहले शासन सिविल जजों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कराता है, जिसमें काफी पैसा खर्च होता है. सिविल जज के इस्तीफा देने की स्थिति में न केवल एक पद रिक्त होता है, बल्कि शासन को आर्थिक क्षति भी पहुंचती है. इससे न्यायिक केस भी प्रभावित होते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए नियम बदले गए हैं.
सिविल जज भर्ती के आवेदन 29 से
गौरतलब है कि सिविल जज परीक्षा में भाग लेने के लिए अभ्यर्थी 29 दिसंबर से ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे. आवेदन करने की अंतिम तिथि (शुल्क जमा करने सहित ) 27 जनवरी 2022 है. प्रदेशभर में कुल 123 पदों पर भर्ती होना है. इसमें से 62 पद अनारक्षित, 19 पद अनुसूचित जाति, 25 पद अनुसूचित जनजाति और 17 पद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित है.
स्वच्छ गंगा मिशन के प्रमुख राजीव रंजन मिश्रा ने माना है कि देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान वाकई गंगा में लाशें डाली गई थीं. मिश्रा नमामि गंगे कार्यक्रम के प्रमुख भी हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
गंगा में लाशें डाले जाने की बात मिश्रा ने अपनी नई किताब "गंगा: रीइमैजिनिंग, रीजूवनेटिंग, रीकनेक्टिंग" में मानी है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक किताब का एक पूरा हिस्सा इसी घटना पर केंद्रित है.
इस हिस्से में मिश्रा ने लिखा है, "जैसे जैसे कोविड-19 महामारी की वजह से लाशों की संख्या बढ़ने लगी, जिला प्रशासन विह्वल हो गए, उत्तर प्रदेश और बिहार के शवदाहगृहों और श्मशान घाटों की क्षमता से ज्यादा लाशें आने लगी, ऐसे में गंगा में लाशों को डालना आसान हो गया."
मिश्रा ने यह भी बताया है कि सभी मामले उत्तर प्रदेश के ही थे और नदी के बिहार वाले हिस्सों में जो लाशें मिली थीं वो उत्तर प्रदेश से ही बहकर वहां पहुंची थीं. सभी लाशें उत्तर प्रदेश के ही कन्नौज और बलिया के बीच गंगा में डाली गई थीं.
मिश्रा तेलांगना कैडर के आईएएस अधिकारी हैं और 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उनकी किताब का विमोचन प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देब्रॉय ने किया.
आखिर मानना ही पड़ा
मई 2021 में दूसरी लहर के दौरान मिश्रा को खुद कोविड हो गया था और गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में उनका इलाज किया गया था. उन्होंने किताब में लिखा है कि अस्पताल में अपने इलाज के दौरान ही उन्हें इन घटनाओं के बारे में पता चला.
उसके बाद उन्होंने सभी 59 जिला गंगा समितियों को इस स्थिति से निपटने का आदेश दिया. फिर उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार को भी इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया.
मिश्रा कहते हैं कि केंद्रीय अधिकारियों की एक बैठक में उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि राज्य के केंद्रीय और पूर्वी हिस्सों में ऐसा वाकई हो रहा है. हालांकि मिश्रा ने किताब में यह भी लिखा है कि गंगा में डाली गई लाशों की कुल संख्या हजारों में नहीं थी बल्कि 300 से ज्यादा नहीं रही होगी.
मई में बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में गंगा ही नहीं दूसरी नदियों में भी बहती हुई लाशें मिली थीं. पश्चिम बंगाल में भी अलर्ट जारी कर दिया गया था. अकेले बिहार के बक्सर में कुल 81 शव मिले थे.
हजारों शव मिले थे नदी के किनारे
अटकलें लग रही थीं कि हो सकता है गरीब परिवारों ने दाह संस्कार का खर्च उठाने में असमर्थता की वजह से शवों को नदी में प्रवाहित कर दिया होगा, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई.
उस दौरान नदी में सीधे बहा देने के अलावा कई लोगों ने शवों को नदी के किनारे रेत में दफना भी दिया था. उत्तर प्रदेश के स्थानीय मीडिया में आई कई खबरों के मुताबिक अकेले प्रयागराज में एक बड़े घाट पर रेत में दफनाए हुए करीब 5,000 शव मिले थे.
दैनिक भास्कर अखबार ने उत्तर प्रदेश के हर जिले में रिपोर्टर भेज कर गंगा नदी में तैर रही और गंगा के किनारे दफनाई गई लाशों का सच निकालने की कोशिश की थी. बाद में अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स ने दैनिक भास्कर के मुख्य संपादक ओम गौड़ का लिखा संपादकीय छापा. संपादकीय का शीर्षक था, "मृतकों को लौटा रही है गंगा. वो झूठ नहीं बोलती." (dw.com)
नागालैंड का एक गांव इस कदर मातम में है कि पूरे राज्य में उसका असर उदासी बनकर पसर चुका है. लेकिन उन गांव वालों की मांग पर शायद किसी का ध्यान नहीं है.
2004 में मोन जिले के जंगलों में नेनवांग कोनयाक पर एक भालू ने हमला कर दिया था. ओटिंग गांव के उसके लोगों ने उन्हें बचाया था. उस घटना में मिले घावों से उनके चेहरे पर एक निशान आज भी है.
इस महीने की शुरुआत में, 4 दिसंबर को गांव में खबर आई कि कुछ मजदूर जो काम करने गए थे, अब तक नहीं लौटे हैं. लोग उनकी तलाश में निकले तो कोनयाक और उनका 23 वर्षीय जुड़वां भाई भी साथ हो लिए. उन्हें नहीं पता था कि वे सारे मजदूर भारतीय सेना की गोलियों का शिकार हो चुके हैं.
तलाश करने गए लोगों की सेना से झड़प हुई और सात लोग और मारे गए. मरने वालों में कोनयाक का जुड़वां भाई भी था. एक ही गांव के 14 निर्दोष लोग एक ऐसी घटना का शिकार हो चुके हैं जिसकी कोई वजह समझ नहीं आ रही. नागालैंड का यह पूरा गांव मातम में है.
क्या हुआ उस दिन?
घटना तब हुई जब म्यांमार सीमा के पास भारतीय सैनिकों ने एक ट्रक पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं. इस ट्रक में मजदूर सवार थे जो काम के बाद घर लौट रहे थे. इस गोलीबारी में छह लोगों की मौत हो गई. जब इन मजदूरों के परिवार इन्हें खोजने निकले और शव मिलने पर सेना से सवाल जवाब किए तो उन्होंने फिर से गोलीबारी की.
नागालैंड के पुलिस अधिकारी संदीप एम तामागाड़े ने कहा, "दोनों पक्षों के बीच विवाद हुआ और सुरक्षाबलों ने गोली चला दी जिसमें सात और लोग मारे गए."
भारतीय सेना ने कहा कि विरोध कर रहे नागरिकों के साथ विवाद में एक सैनिक की मौत हो गई है और कई जवान घायल हुए. सेना ने कहा कि सैनिक ‘भरोसेमंद सूचना के आधार पर' कार्रवाई कर रहे थे कि इलाके में विद्रोही सक्रिय हैं और उन पर हमला करने की तैयारी में हैं.
गांव में मातम
मरने वाले लोग ओटिंग गांव के थे जहां के हर घर में मामत है. इस गांव की अधिकतर आबादी ईसाई है. 50 वर्षीय अमोंग कहती हैं, "क्रिसमस भी हमें कोई खुशी नहीं दे रही. हमारे दिल दुख रहे हैं. वे हमारे बच्चे थे."
वैसे इस इलाके का ऐसे दुखों से पुराना नाता है. यहां के लोग नागा सांस्कृति रूप से म्यांमार और चीन में रहने वाले लोगों के काफी करीब हैं. नागालैंड के 19 लाख लोगों में से 90 फीसदी ईसाई हैं. दशकों से नागा लोग भारत सरकार के साथ संघर्ष की स्थिति में हैं और शायद ही कोई ऐसा परिवार हो जिसने इस संघर्ष का दंश ना झेला हो.
हाल के सालों में हिंसा तो कम हुई है लेकिन राजनीतिक अधिकारों की मांग तेज हुई है. केंद्र सरकार की अलगाववादियों से लंबे समय से बातचीत चल रही है. 1997 में यह शांति वार्ता नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के आईजैक-मुईवाह धड़े के साथ युद्ध विराम समझौते पर दस्तखत के रूप में शुरू हुई थी.
मुआवजा नहीं चाहिए
सेना और सरकार ने जांच कराने की बात कही है लेकिन गांव वाले निष्पक्ष जांच चाहते हैं. उन्होंने सरकारी मुआवजा भी खारिज कर दिया है. सेना की गोली से बच गए एक मजदूर फोनाई भी अपने साथी गांव वालों को खोजने गए थे. वह बताते हैं, "मैं ट्रक से शव उतारने में बाकियों की मदद कर रहा था जब सेना ने हम पर गोलियां दागनी शुरू कर दीं. मैं अपनी जान बचाने के लिए भागा और छिप गया. जवानों ने हमारी तरफ ही गोलियां दागीं. मेरे साथ छिपे हुए दो लोग मारे गए.”
शोमवांग का वह ट्रक आज भी क्राइम सीन टेप से घिरा खड़ा है. उस पर गोलियों से बने छेद हैं. वह घटना की एक दर्दनाक याद है जिसने पूरे गांव को एक श्मशान सी चुप्पी ओढ़ा दी है. गांव के मुखिया की मां नाओफे वांगचा कहती हैं, "दर्द असहनीय है. हमें बस इस खबर का इंतजार है कि दोषियों को वो सबक मिला जिसके वे हकदार हैं.”
ओटिंग के इस मातम का असर राज्य के कई शहरों तक पहुंच चुका है. घटना के बाद से कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए हैं और समर्थन मार्च निकाले गए हैं. राज्य भर के लोग भारतीय सेना को असीमित शक्तियां देने वाले कानून आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स ऐक्ट (AFSPA) हटाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि यह मांग दशकों से हो रही है और फिलहाल इसके हटने की कोई संभावना नहीं है.
वीके/एए (एपी)
होम और ब्यूटी सर्विस उपलब्ध करवाने वाली एक भारतीय कंपनी ने प्रदर्शन कर रहीं अपनी महिला कर्मचारियों पर केस कर दिया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी ‘गिग कंपनी’ ने अपने कर्मचारियों पर ही केस कर दिया है.
‘अर्बन कंपनी' एक भारतीय स्टार्टअप है जो सौंदर्य और स्वच्छता संबंधी सेवाएं उपलब्ध करवाती है. ‘अर्बन कंपनी' ऊबर की तर्ज पर काम करती है. यहां ब्यूटिशियन, क्लीनर और अन्य घरेलू कामों के लिए सेवाएं उपलब्ध करवाने पेशेवर अपना अकाउंट बनाते हैं और ग्राहक उनकी सेवाएं सीधे उनसे संपर्क करके ले सकते हैं. कंपनी की महिला कर्मचारी नए नियमों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं. उनका दावा है कि ये नियम उनकी आय को प्रभावित करते हैं.
अर्बन कंपनी की नई नीतियों के मुताबिक उसके जरिए काम पाने वाले साझीदारों को उसकी सेवाओं को पैसे देकर सब्सक्राइब करना होगा. इसके बाद ही उन्हें निश्चित काम और अन्य सुविधाएं मिलेंगी. इस प्लैटफॉर्म के जरिए काम पाने वाली महिलाओं का कहना है कि इससे उनकी आय कम हो जाएगी.
कमाई घट जाएगी
जिन महिलाओं पर मुकदमा किया गया है उनमें शामिल सीमा सिंह कहती हैं कि नए नियम हमारी काम करने की क्षमता को कम करते हैं और कमाई भी घटाते हैं. वह कहती हैं, "नई नीतियां हमारी कमाई कम कर देंगी और हमारे लिए गुजारा भी मुश्किल हो जाएगा. हमारे पास विरोध प्रदर्शन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था क्योंकि कंपनी हमारी बात सुन ही नहीं रही थी.”
35 वर्षीय सीमा सिंह एक ब्यूटिशियन हैं और कंपनी के लिए चार साल से काम कर रही हैं. उन जैसी सैकड़ों महिलाएं हैं जिन्हें कंपनी पार्टनर कहती है. उनमें से दर्जनों महिलाएं इसी हफ्ते गुरुग्राम स्थित अर्बन कंपनी के हेडक्वॉर्टर के सामने जमा हो गईं. उन्होंने अनपे हाथों में तख्तियां और बैनर उठा रखे थे जिन पर नियमों को विरोध करते नारे लिखे थे.
सीमा सिंह बताती हैं कि ये महिलाएं दो रात तक वहां सर्द रात में बैठी और अपनी सुरक्षा के डर से वहां से उन्हें हटना पड़ा. वह कहती हैं, "उन्होंने हम पर मुकदमा कर दिया है इससे पता चलता है कि वे हमसे डरे हुए हैं.”
कंपनी ने दायर मुकदमे में कहा है कि विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों की गतिविधियां अवैध और गैरकानूनी हैं. इस खबर के लिए संपर्क किए जाने पर कंपनी ने कोई टिप्पणी नहीं की.
पहली बार ऐसा केस
दुनियाभर में ऐसी ऐप-आधारित कंपनियां काम कर रही हैं जहां विभिन्न पेशेवर अपने ग्राहकों से मिलते हैं. जैसे ऊबर के जरिए ड्राइवर काम पाते हैं या मेन्यूलॉग के जरिए फूड डिलीवरी होती है. इन वेबसाइट के साथ काम करने वाले पेशेवर अक्सर शिकायत करते हैं कि उनके अधिकारों का दमन किया जाता है, उन्हें समुचित मेहनताना नहीं मिलता और उनके काम के घंटों का कोई हिसाब नहीं है. इन कर्मियों को अमेरिका से लेकर नीदरलैंड्स तक कई देशों में कानूनी लड़ाइयों में जीत मिली है.
‘गिग इकोनॉमी' कही जाने वाली इस व्यवस्था में भारत के लगभग 50 लाख लोग काम करते हैं. इन लोगों ने एक यूनियन भी बनाई है जिसमें ऊबर, ओला, जोमैटो और स्वीगि जैसी ऐप्स से जुड़े 35 हजार से ज्यादा लोग शामिल हैं. अक्टूबर में इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि सामाजिक सुविधाएं उनके लिए भी उपलब्ध होनी चाहिए. पॉलीटेक्निक इंस्टीट्यूट ऑफ पेरिस में समाजशास्त्र के प्रोफेसर अंतोनियो कासीली ने ट्विटर पर कहा कि अर्बन कंपनी का मुकदमा असामान्य है. उन्होंने लिखा, "गिग कर्मचारी श्रम कानून लागू करवाने के लिए कंपनियों पर केस करें ऐसा तो बार-बार हो रहा है लेकिन एक कंपनी ही अपने कर्मचारियों पर मुकदमा कर दे, यह पहली बार हुआ है.”
गिग इकोनॉमी में काम करने वाली महिलाओं पर अध्ययन कर रहीं इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ट्रस्ट की अन्वेषा घोष कहती हैं, "कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा उनके प्रदर्शन को कुचलने का एक अतिवादी कदम है.” भारत में गिग इकोनॉमी में काम करने वाले लोगों के लिए सामाजिक लाभ उपलब्ध करवाने वाला एक कानून 2020 में पास हुआ था लेकिन कई राज्यों ने अब तक उसे लागू नहीं किया है.
वीके/एए (थॉमसन रॉटर्स फाउंडेशन)
ये पृथ्वी बहुत ही सुंदर है. यहां कई जीव-जंतु रहते हैं. कई जीव जंतु इतने प्यारे होते हैं कि वो दुर्लभ हो जाते हैं. अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर कई दुर्लभ जीव-जंतु देखने को मिले हैं. जो बेहद सुंदर और आकर्षक हैं. 2021 में कई दुलर्भ पशु-पक्षी देखने को मिले. कुछ बड़े उदाहरण यहां मौजूद हैं: सोशल मीडिया पर इनकी तस्वीरे बहुत ज्यादा वायरल हुई हैं.
1. मंदारिन बत्तख, असम
मंदारिन बत्तख को आखिरी बार 1902 में देखा गया था. ये बेहद सुंदर है.
2. Common Palm Civet, ओडिशा
ये बेहद दुर्लभ और सुंदर जानवर है. ओडिशा के सतकोसिया टाइगर रिज़र्व में 129 साल बाद एक दुर्लभ जानवर Common Palm Civet नज़र आया. 1891 में ये भारत में देखा गया था.
3. दो सिर वाला सांप, उत्तराखंड
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के कलसी फ़ॉरेस्ट डिवीज़न में 2 सिर वाला सांप देखा गया. सांप लगभग डेढ़ फ़ीट लंबा था. वैसे ये दो सिर वाला सांप बेहद ख़तरनाक है.
4. सफ़ेद हॉग हिरण, असम
असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क में पहली बार दुर्लभ सफ़ेद हॉग हिरण (White Hog Deer) देखा गया. एलबाइनो हॉग हिरण को नेशल पार्क के कोहोरा क्षेत्र में देखा गया.
5. गुलाबी तेंदुआ, राजस्थान
भारत में इंसानों और तेंदुए के संघर्ष की ख़बरें आती रहती हैं. लेकिन पहली बार एक गुलाबी रंग का तेंदुआ देखा गया. दक्षिण राजस्थान में पहली बार गुलाबी तेंदुआ (Pink Leopard) देखा गया.
लखनऊ : देशभर में बढ़ते कोरोना के मामलों के मद्देनजर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यूपी चुनाव टालने और रैलियों पर तुरंत पाबंदी लगाने का का आग्रह किया है. दरअसल, हाईकोर्ट के जज शेखर यादव ने आग्रह करते हुए कहा है कि जान है तो जहान है. अगर रैलियों को नहीं रोका गया तो परिणाम दूसरी लहर से भी बदतर होंगे. यूपी चुनाव 1 से 2 महीने टाले जाएं. चुनावी रैलियों पर फौरन पाबंदी लगे. कोर्ट ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आग्रह किया.
न्यायाधीश ने ये टिप्पणी इस ओर इशारा करते हुए की कि अदालत में नियमित रूप से भीड़ होती है क्योंकि प्रतिदिन सैकड़ों मामले सूचीबद्ध होते हैं और बड़ी संख्या में लोगों द्वारा सामाजिक दूरी का पालन नहीं किया जाता है. न्यायाधीश ने कहा कि कोविड की तीसरी लहर की संभावना है क्योंकि नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के मामले बढ़ रहे हैं. फिर उन्होंने कोविड के मामलों की संख्या के बारे में समाचार रिपोर्टों का हवाला दिया और उन देशों का उल्लेख किया जिन्होंने लॉकडाउन लागू किया है.
उन्होंने कहा कि यूपी ग्राम पंचायत चुनाव और बंगाल विधानसभा चुनाव ने बहुत से लोगों को संक्रमित किया, जिससे कई मौतें भी हुईं. राजनीतिक दल आगामी यूपी विधानसभा चुनावों के लिए रैलियों और सभाओं का आयोजन कर रहे हैं और ऐसे आयोजनों में कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना असंभव है.
न्यायाधीश यादव ने चुनाव आयोग से विधानसभा चुनावों के लिए किसी भी प्रकार की रैलियों और सभाओं पर रोक लगाने और राजनीतिक दलों को दूरदर्शन या समाचार पत्रों के माध्यम से प्रचार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया. संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सभी भारतीयों को जीवन का अधिकार है.
बता दें कि देश में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने आज गुरुवार को राजधानी दिल्ली में समीक्षा बैठक की, जिसमें नए वेरिएंट के प्रसार को रोकने के लिए सतर्कता और तमाम उपाय करने पर जोर दिया गया. बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि राज्य जिला स्तर पर स्वास्थ्य,व्यवस्था की मज़बूती को सुनिश्चित करें. सरकार की नजर और निगरानी वर्तमान परिस्थितियों पर है.
ओमिक्रॉन के बढ़ते कहर के बीच क्या सुरक्षित हैं कपड़े के मास्क? एक्सपर्ट्स ने दी ये चेतावनी
प्रधानमंत्री ने कांटेक्ट ट्रेसिंग, टेस्टिंग टीकाकरण को बढ़ाने और हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान देने पर बल दिया.यह भी निर्णय लिया गया कि केंद्र, उन राज्यों में अपनी टीम भेजेगी जहां टीकाकरण की रफ्तार कम है. जहां कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं और जहां हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमियों को और दुरुस्त करने की जरूरत है.
नई दिल्ली, 23 दिसम्बर | राष्ट्रीय राजधानी में संक्षिप्त मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक कुख्यात गैंगस्टर को गिरफ्तार किया है। एक अधिकारी ने गुरुवार को यहां यह जानकारी दी। हरियाणा के झज्जर निवासी सिद्धार्थ के रूप में पहचाने जाने वाला गैंगस्टर कपिल सांगवान और ज्योति बाबा गिरोह का सदस्य था।
ऑपरेशन के बारे में विवरण देते हुए, पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) (बाहरी उत्तर) बृजेंद्र कुमार यादव ने कहा कि विशेष कर्मचारी बाहरी उत्तर जिले की एक टीम को अपराधी सिद्धार्थ के मूवमेंट के बारे में एक गुप्त सूचना मिली थी।
इसके बाद पुलिस ने नाला रोड, ग्राम कादीपुर, दिल्ली के पास जाल बिछाया जिसके बाद आरोपी को उस समय रोका गया जब वह जींदपुर गांव की ओर से मोटरसाइकिल पर आ रहा था।
पुलिस की मौजूदगी को देखते ही आरोपियों ने फायरिंग कर दी। डीसीपी ने कहा, "आरोपी की गतिविधि को रोकने और उसे मौके से भागने से रोकने के लिए, एक पुलिस दल ने भी उसके पैरों को निशाना बनाते हुए चार राउंड फायरिंग की, जिसमें से एक गोली आरोपी की दाहिनी जांघ पर लगी।"
आरोपी को एक बैग में 11 पिस्तौल और 46 जिंदा कारतूस अलग-अलग ले जाते हुए पाया गया। मोटरसाइकिल दिल्ली के शाहदरा जिले के मानसरोवर पार्क के इलाके से भी चोरी हुई मिली थी।
पुलिस के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाके में कई कुख्यात गिरोह सक्रिय हैं। (आईएएनएस)
विपक्ष और सिविल सोसाइटी का कहना है कि आधार कार्ड को वोटर कार्ड से जोड़ने का संशोधित कानून लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए सेहतमंद नहीं है. इसे मतदाता की निजता पर हमला हो सकता है.
डॉयचे वैले पर रजत शर्मादुनिया की रिपोर्ट-
आधार कार्ड को वोटर कार्ड से जोड़ने संबंधी निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक 2021, इस हफ्ते राज्य सभा से पास हो गया. अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ये बिल कानून की शक्ल ले लेगा. इस बिल के बाद भारत की चुनावी प्रक्रिया के लिए तय लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (1950 और 1951) में कुछ नए प्रावधान जुड़ जाएंगे.
भारत के निचले सदन लोक सभा से ये बिल 20 दिसंबर को विपक्ष के भारी हंगामे के बीच पास हुआ था. 21 दिसंबर को बिल राज्य सभा में पेश किया गया. यहां भी खूब हंगामा हुआ और विपक्ष के वॉकआउट के बीच ध्वनिमत से बिल पास हो गया. विपक्ष को इस बिल के कुछ प्रावधानों से ऐतराज था. सबसे बड़ा ऐतराज है- आधार कार्ड को वोटिंग कार्ड से लिंक करने पर. उस पर बात करने से पहले जानिए नए प्रावधान क्या हैं.
चार नए प्रावधान
1. आधार कार्ड और वोटर कार्ड को जोड़ना- मौजूदा कानून के हिसाब से आवेदक को वोटर कार्ड बनवाने के लिए निर्वाचन अधिकारी के पास जाना होता है. अगर निर्वाचन अधिकारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हो तो वोटर कार्ड बन जाता है. नए प्रावधान के तहत निर्वाचन अधिकारी इस प्रक्रिया में आधार कार्ड की मांग कर सकते हैं. हालांकि, इसे ऐच्छिक प्रावधान बनाया गया है. यानी आवेदक चाहे तो आधार कार्ड देने से इनकार भी कर सकता है. इस संशोधन में वोटर कार्ड बनाने या वोटर लिस्ट से नाम हटाने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया गया है.
2. निर्वाचन सूची में नाम शामिल करने की तारीख- 1950 के कानून के तहत नई निर्वाचन सूची में नाम दाखिल करवाने के लिए कट-ऑफ तारीख 1 जनवरी होती थी. फिर अगले साल सूची संशोधित की जाती है. नए प्रावधान में साल में चार बार- 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई, 1 अक्टूबर- को सूची अपडेट की जाएगी.
3. निर्वाचन प्रक्रिया के लिए जगह- चुनावी प्रक्रिया जैसे ईवीएम मशीन, मतदान सामग्री रखने और सुरक्षा बलों के रहने के लिए इस्तेमाल होने वाली जगहें सुनिश्चित करने के लिए तय प्रक्रिया का दायरा बड़ा किया गया.
4. जेंडर-न्यूट्रल शब्दावली- 1950 के कानून के तहत सशस्त्र बलों के जवान या विदेशों में तैनात भारतीय कर्मचारियों की पत्नियों को देश के आम नागरिक की तरह माना जाता था. सशस्त्र बल के जवान या कर्मचारी को मतदान की इजाजत ना होने के बावजूद उनकी पत्नियों को मतदान केंद्र पर या फिर पोस्टल बैलट की मदद से वोट करने की इजाजत है. नए प्रावधान में पत्नी शब्द की जगह ‘पति या पत्नी' शब्द लिखा गया है.
केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू के मुताबिक, इस बिल से किसी का पता जानने और फर्जी मतदान रोकने में मदद मिलेगी. सरकार ने इस विधेयक से आधार और निर्वाचन सूची को जोड़कर "बहु-नामांकन की बुराई” को नियंत्रित करना उद्देश्य बताया है. यही ऐसा बिंदु है, जिस पर विपक्ष समेत सिविल सोसाइटी को आपत्ति है?
क्या आपत्तियां हैं?
विपक्ष और सिविल सोसाइटी का मानना है कि आधार प्रणाली खुद खामियों से भरी है. विपक्ष ने इस बिल को संसद की स्थायी समिति के पास भेजे जाने की वकालत की थी. लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इस जल्दबाजी से सरकार के इरादे ठीक नहीं लगते. साथ ही आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश चुनाव में इस बिल का गलत इस्तेमाल किया जाएगा.
सिविल सोसाइटी के कई संगठन आधार प्रणाली का यूपीए के दौर से ही विरोध करते आए हैं. एमनेस्टी, एडीआर, पीपल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज जैसे 500 से ज्यादा संगठनों ने आधार-वोटर कार्ड जोड़ने पर कुछ आपत्तियां उठाई हैं.
1. आधार कार्ड नागरिकता का नहीं, पहचान का प्रमाण है. ऐसे में किसी का नाम निर्वाचन सूची में जोड़ने या हटाने के लिए इसे आधार नहीं बनाया जा सकता. आधार कार्ड देश के निवासियों को जारी किया जाता है. जरूरी नहीं है कि हर वयस्क निवासी भारतीय गणराज्य का नागरिक या मतदाता हो. हालांकि, नए प्रावधानों के मुताबिक, आधार कार्ड से वोटिंग कार्ड जोड़ना ऐच्छिक है, कोई बाध्यता नहीं.
2. बीते सालों में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहां आधार का इस्तेमाल सत्यापन के लिए किया गया हो. जैसे- राशन वितरण या मनरेगा योजना. मीडिया रिपोर्ट्स से सामने आया है कि किस तरह गलत आधार कार्ड व्यवस्था की वजह से राशन मिलने और मनरेगा का पैसा मिलने में लोगों को दिक्कतें पेश आई हैं.
3. साल 2015 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में निर्वाचन सूची के "शुद्धिकरण" के लिए इसका मिलान आधार कार्ड से किया गया था. जिसकी वजह से बहुत बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम सूची से हट गए थे.
4. संस्थाएं शक जताती हैं कि मतदाता डेटाबेस को आधार डेटाबेस से जोड़ना मतदाताओं की निजता से खिलवाड़ है. इसे मतदाता के बारे में जानकारियां जुटाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. किस वोटर ने किसे और कहां वोट दिया, ऐसी जानकारी पैटर्न खोजने में मदद करेगी और किसी खास इलाके के नागरिकों पर कड़ी निगरानी का सबब बन सकती है.
5. जब आधार प्रणाली शुरू की गई थी, तब अनिवार्यता की कोई शर्त नहीं थी. लेकिन धीरे-धीरे इसे हर जगह अनिवार्य कर दिया गया. पैन कार्ड हो या बैंक खाता, हर जगह आधार कार्ड मांगा जाता है. इसी तरीके से निर्वाचन सूची में नाम शामिल करने के लिए आधार कार्ड का होना चाहे कानून ना बने, लेकिन रिवायत बन जाने की आशंका है.
6. निर्वाचन सूची की शुचिता बनाए रखने के लिए रिवायत है कि हर साल घर-घर जाकर सूची में उपलब्ध जानकारी की दोबारा पुष्टि की जाती है. आधार प्रणाली में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. किस नागरिक को वोट डालने का अधिकार हो, किसे नहीं, ये निम्न स्तर की सत्यापन प्रक्रिया पर नहीं छोड़ा जा सकता.
असंवैधानिक है कानून?
इस संशोधन की संवैधानिकता पर एक सिरा सुप्रीम कोर्ट की ‘निजता का अधिकार जजमेंट' से भी आता है. नागरिकों से जुटे डेटा का इस्तेमाल करने से पहले सरकार को एक वाजिब चाहिए. सिविल सोसाइटी के मुताबिक, निर्वाचन सूचियों में कितना दोहराव है, इसके आंकड़े सरकार के पास नहीं हैं. आधार कार्ड से लिंक किए जाने से खामियां खत्म हो जाने का कोई सबूत भी सरकार के पास नहीं है. कुछ कार्यकर्ता कहते हैं कि ऐसे में सरकार का लाया बिल असंवैधानिक है.
केंद्र सरकार कई मौकों पर आधार प्रणाली को सुरक्षित बताती रही है. आम लोगों के बीच भी और सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक संस्थाओं में भी. पुरानी रणनीति पर आगे बढ़ते हुए सरकार ने विपक्ष और सिविल सोसाइटी के विरोध के बावजूद दोनों सदनों से ये विधेयक पास करवा लिया.
राज्य सभा से बिल पास होने के बाद अगले ही दिन दोनों सदनों की कार्रवाई तय समय से एक दिन पहले ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई. बहुत संभावना है कि विपक्ष और सिविल सोसाइटी से जुड़े लोग जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में इस संशोधन के खिलाफ याचिका दायर करें. (dw.com)
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या में तैनात अधिकारियों और नेताओं के अलावा उनके रिश्तेदारों ने बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी है.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
करीब छह महीने पहले अयोध्या में मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी निभा रहे श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर भी बड़े पैमाने पर महंगी दरों पर जमीनें खरीदने के आरोप लगे थे. आरोप अयोध्या के मेयर और ट्रस्ट के सचिव चंपतराय पर लगे थे.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां जमीनें खरीदने की होड़ लग गई और खरीददारों में सबसे ज्यादा स्थानीय विधायक, मेयर, नौकरशाह और इनके रिश्तेदार शामिल हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक इन लोगों ने राम मंदिर स्थल के 5 किमी के दायरे में जमीन खरीदी हैं. इनमें अयोध्या के स्थानीय विधायक वेदप्रकाश गुप्त, महापौर ऋषिकेश उपाध्याय के अलावा राज्य ओबीसी आयोग के एक सदस्य हैं और राज्य सूचना आयुक्त के रिश्तेदार भी शामिल हैं. जिन अधिकारियों के नाम जमीन खरीद में आए हैं उनमें अयोध्या में तैनात मंडलायुक्त, एसडीएम, डीआईजी और कुछ अन्य अधिकारी शामिल हैं.
कई अनियमितताएं
रिपोर्ट के मुताबिक, जमीन खरीदने में कई तरह की अनियमितताएं भी सामने आई हैं. ज्यादातर लोगों ने ये जमीनें महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट नाम के एक ट्रस्ट से खरीदी हैं. इस ट्रस्ट के खिलाफ जमीन घोटाले की जांच यही अधिकारी कर रहे हैं. आरोप हैं कि ट्रस्ट ने 1990 के दशक में दलित ग्रामीणों से जमीन खरीदी थी जो नियमानुसार नहीं खरीदी जा सकती.
जमीन खरीदने वालों में अयोध्या जिले में गोसाईगंज से विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी भी हैं जिनकी विधानसभा सदस्यता फर्जी मार्कशीट मामले में दोषी साबित होने के बाद समाप्त घोषित कर दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, तिवारी ने 18 नवंबर 2019 को बरहटा मांझा में करीब ढाई हजार वर्ग मीटर जमीन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट से तीस लाख रुपये में खरीदी थी जबकि इसी साल में मार्च में उनके एक रिश्तेदार ने भी बरहटा माझा में 6320 वर्गमीटर जमीन को 47.40 लाख रुपये में खरीदा. हालांकि राजेश मिश्र कहते हैं कि इस सौदे में खब्बू तिवारी की कोई भूमिका नहीं है बल्कि उन्होंने अपने स्तर पर और अपने पैसे से खरीदी है.
जमीन खरीदने वालों में कुछ समय पहले तक अयोध्या के मुख्य राजस्व अधिकारी रहे पुरुषोत्तम दास गुप्ता के एक रिश्तेदार, कुछ समय पहले तक डीआईजी रहे दीपक कुमार के रिश्तेदार, अयोध्या में एसडीएम रहे आयुष चौधरी के रिश्तेदार और अयोध्या के बीजेपी विधायक वेद प्रकाश गुप्ता के रिश्तेदार शामिल हैं.
घोटाले का शक
अखबार के मुताबिक, ये अधिकारी यह तर्क दे रहे हैं कि जमीनें उनके कार्यकाल में नहीं खरीदी गईं और उन्होंने अपने नाम पर नहीं खरीदीं लेकिन सवाल यह उठता है कि उन अधिकारियों के रिश्तेदारों ने उसी समय जमीन खरीदने में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाई जब मंदिर-मस्जिद विवाद का फैसला होने के बाद अयोध्या में जमीनों के दाम बेतहाशा बढ़ने की खबरें आने लगीं.
अयोध्या के रहने वाले एक बड़े प्रॉपर्टी डीलर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि जमीन खरीदी में ये जो नाम सामने आए हैं ये तो कुछ भी नहीं हैं बल्कि कई अधिकारियों ने तो कथित तौर पर फर्जी रिश्तेदारों तक के नाम पर जमीनें खरीद ली हैं.
वह कहते हैं, "ये जमीनें अयोध्या में विकास के नाम पर स्थानीय किसानों से औने-पौने दामों में खरीदी गईं और बाद में अन्य लोगों को महंगे दामों पर बेची गईं. जिन लोगों ने जमीनें खरीदकर छोड़ रखी हैं, उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इनकी कीमतें और बढ़ेगीं या फिर वो खुद यहां कुछ निवेश करेंगे."
जमीन खरीद में कथित धांधली पर कांग्रेस पार्टी ने सरकार को घेरा है और मामले की जांच कराने की मांग की है. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला का कहना है, "पहले मंदिर के नाम पर चंदे की लूट की गई और अब संपत्ति बनाने की लूट हो रही है. साफ है कि भाजपाई अब रामद्रोह कर रहे हैं. जमीन की सीधे लूट मची हुई है. एक तरफ आस्था का दीया जलाया गया और दूसरी तरफ बीजेपी के लोगों द्वारा जमीन की लूट मचाई गई है."
पहले भी उठे विवाद
इसी साल जून महीने में भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए जमीन खरीद में बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक तेजनारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेय ने आरोप लगाया था कि सिर्फ दो करोड़ रुपये में खरीदी गई जमीन कुछ ही मिनटों बाद 18.5 करोड़ रुपये में खरीदी गई.
पवन पांडेय का कहना था, "18 मार्च 2021 को पहले बैनामा हुआ और फिर दस मिनट बाद ही एग्रीमेंट भी. जिस जमीन को दो करोड़ रुपये में ख़रीदा गया उसी जमीन का 10 मिनट बाद साढ़े 18 करोड़ रुपये में एग्रीमेंट हो गया. एग्रीमेंट और बैनामा दोनों में ही ट्रस्टी अनिल मिश्र और मेयर ऋषिकेष उपाध्याय गवाह थे."
पवन पांडेय ने दस्तावेजों के साथ कई सबूत दिए और इसे लेकर उस वक्त काफी हंगामा भी हुआ. यहां तक कि ट्रस्ट के सचिव चंपतराय को ट्रस्ट से हटाने की भी मांग हुई लेकिन कुछ समय बाद मामला थम सा गया. हालांकि राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने इन आरोपों को बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित बताया था और एक बयान जारी कर कहा था कि जो भी जमीन ट्रस्ट ने खरीदी है वो नियमों के अनुसार खरीदी है और बाजार मूल्य से कम पर खरीदी है.
अयोध्या में जमीन से जुड़े कुछ मामले उसके बाद भी उभर कर सामने आए लेकिन ट्रस्ट की ओर से उनके संतोषजनक जवाब अब तक नहीं आए हैं. (dw.com)