अंतरराष्ट्रीय
न्यूयॉर्क, 19 जनवरी | एक नए अध्ययन में पैरेंट्स को शिशु के लिए सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि पैरेंट्स सुनिश्चि करें कि उनका बच्चा अपने बचपन के भाव को न नकारे। अध्ययन में बताया गया कि जिन मांओं ने अपने बचपन की भावनाओं को नकार दिया था, उनके दिमाग में एनेक्जाइटी और डरने की प्रतिक्रिया दिखाई दी है।
लैंगोन हेल्थ के अध्ययन के मुख्य लेखक कैसेंड्रा हेंड्रिक्स ने कहा, "ये परिणाम दिखाते हैं कि हमारा दिमाग हमारे जीवन में होने वाली घटनाओं से प्रभावित होने के साथ-साथ उस वक्त या घटना से भी प्रभावित होता है, जब बच्चों में उसकी समझ भी नहीं होती।"
ये अध्ययन 'बायोलॉजिकल साइकाइट्री : कोग्निटिव न्यूरोसाइंस एंड न्यूरोइमेजिंग' जर्नल में छपा है, जो कि 48 मां-शिशु के जोड़े पर हुआ है। इस अध्ययन के शोध की शुरुआत गर्भावस्था के पहले तीन महीने से हुई।
मांओं को बचपन की घटनाओं की एक प्रश्नावली दी गई। मांओं ने वर्तमान, प्रसव से पहले के तनाव के स्तर और एंनेग्जाइटी और डिप्रेशन का भी विश्लेषण किया।
जन्म के एक महीने बाद, शिशु के दिमाग को स्कैन किया गया। इसमें एक नॉन-इनवैसिव प्रौद्यगिकी का इस्तेमाल किया गया, जोकि उस वक्त किया जाता है, जब शिशु स्वाभाविक तौर पर सोता है।
शोधकर्ताओं ने दिमाग और अमिगडाला के बीच जुड़ाव और दिमाग के दो अन्य क्षेत्रों प्रीफ्रॉन्टल कोरटेक्स और एंटिरिअर सिंगुलेट कोरटेक्स, पर फोकस किया, जोकि डर वाले भावनाओं की केंद्रीय प्रक्रिया होती है।
ये दोनों क्षेत्र भावनाओं को नियमित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। जिन शिशुओं की मां ने बचपन की भावनाओं को नकार दिया था, उनके अमिगडाला और कोर्टिकल क्षेत्र के बीच मजूबत कार्यात्मक संबंध देखा गया।
मां के वर्तमान स्ट्रेस स्तर को नियंत्रित करने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि एक मां ने अपने बचपन के दौरान अपनी भावनाओं को नकारा था, उनके शिशु का अमिगडाला फ्रोंटल कोर्टिकल से मजबूती से जुड़ा था। (आईएएनएस)
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रविवार को कुछ अलगाववादी समूहों ने रैलियां निकालीं. ये रैलियां सिंधी राष्ट्रवादी नेता जीएम सईद के 117वें जन्मदिवस समारोह के दौरान निकाली गईं.
इन रैलियों की अगुआई कुछ राष्ट्रवादी संगठन कर रहे थे. रैलियां सन बाईपास से शुरू हुई थीं और जामशुरू ज़िले में मौजूद जीएम सईद के मक़बरे पर जाकर ख़त्म हुईं.
इन रैलियों में कुछ भी नया नहीं था. हर साल सिंधी राष्ट्रवादी और अलगाव समूह जीएम सईद की जयंती बड़े धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन इस साल इन रैलियों में कुछ चौंकाने वाले दृश्य दिखे.
इस बार 'जिये सिंध मुत्ताहिदा महाज़' नाम के संगठन के लोग दुनिया के अलग-अलग नेताओं के पोस्टर और बैनर लेकर चल रहे थे उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तस्वीरें थीं. कुछ लोग तख़्तियां लिए हुए थे, जिनमें लिखा था 'सिंध को पाकिस्तान से आज़ादी चाहिए.'
ये रैलियां बहुत बड़ी नहीं थीं. स्थानीय मीडिया में इसे ज़्यादा कवरेज भी नहीं मिली लेकन इनमें शामिल नरेंद्र मोदी की तस्वीरें तुरंत पूरे भारत में छा गईं.
रैलियों में शामिल लोग स्वायत्त 'सिंधुदेश' और अलगाववादी नेता जीएम सईद के समर्थन में नारे लगा रहे थे. रैली जीएम सईद के मक़बरे पर जाकर ख़त्म हुई. उनके अनुयायियों ने वहां गुलाब की पखुंड़ियां बिखेरकर उन्हें श्रद्धांजलि दी.
कौन हैं जीएम सईद?
जाने-माने सिंधी नेता जीएम सईद पाकिस्तान की स्थापना करने वाले प्रमुख लोगों में से एक थे. उन्होंने बंटवारे से पहले सिंध की असेंबली में पाकिस्तान की स्थापना का प्रस्ताव पेश किया था.
पाकिस्तान की संसद की ओर से 1973 में देश के संविधान को मंज़ूरी मिलने के बाद जीएम सईद ने ख़ुद को संसदीय राजनीति से अलग कर लिया था. उनका मानना था कि इस संविधान के ज़रिये कभी भी सिंध के अधिकार सुरक्षित नहीं रहेंगे.
उसी साल छात्रों की एक रैली में जीएम सईद ने एक आज़ाद 'सिंधुदेश' की अवधारणा पेश की. इसी दौरान उन्होंने 'जिये सिंध मुत्ताहिदा महाज़-ए-अवाल' की स्थापना की. बाद में कुछ और अलगवादी संगठन इस बैनर के तले इकट्ठा हो गए और नए संगठन का नाम रखा गया- 'जिये सिंध मुत्ताहिदा महाज़'.
जीएम सईद एक सिंधी लेखक, राजनीतिज्ञ और आंदोलनकारी थे. उनका विश्वास अहिंसक संघर्ष में था. उन्होंने सिंधुदेश आंदोलन की नींव रखी और फिर जीवन भर वह सिंध के लोगों की पहचान और अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहे. उन्हें सिंधी राष्ट्रवाद के संस्थापकों में से एक माना जाता है.
सईद की नज़र में पाकिस्तान की हुकूमतों का रवैया 'सिंध विरोधी' था. लिहाज़ा उन्होंने इसका विरोध शुरू किया और इस वजह से उन्हें अपनी ज़िंदगी के लगभग 35 साल नज़रबंदी में बिताने पड़े. 1995 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उन्हे 'प्रिज़नर ऑफ कॉन्शस' का दर्जा दिया. उसी साल नज़रबंदी के दौरान कराची में उनकी मौत हो गई.
अहिंसक आंदोलन से चरमपंथ तक
साल 2000 में 'जिए सिंध मुत्ताहिदा महाज़' का शफ़ी मोहम्मद बारफ़त के नेतृत्व में पुनर्गठन हुआ. संगठन का वैचारिक आधार वही था, जिसे जीएम सईद ने स्थापित किया था. लेकिन बारफ़त के आने से संगठन में चरमपंथी तत्व जुड़ गए. उन्होंने 'जिये सिंध मुत्ताहिदा महाज़' के चरमपंथी धड़े को खड़ा किया. इस संगठन का नाम था- 'सिंध लिबरेशन आर्मी'.
इसके बाद रेल पटरियों पर बम धमाके होने शुरू हुए. सिंध के अंदरूनी इलाक़ों में हाई पावर ट्रांसमिशन लाइनों पर हमले किए गए. ठीक इसी समय बलोच अलगाववादी आंदोलन भी ज़ोर पकड़ रहे थे. लेकिन 2003 से पाकिस्तानी सुरक्षा एंजेंसियों ने सिंध में हो रहे विद्रोह को दबाना शुरू किया. कई अलगाववादी नेता लापता हो गए.
बारफ़त समेत कुछ दूसरे नेताओं को पश्चिमी देशों में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी. बाद में जिये सिंध आंदोलन से जुड़े कई अलगाववादी गुटों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जिन संगठनों पर बैन लगाया वो राजनीतिक मुहिम नहीं चला सकते थे और न ही पैसा इकट्ठा कर सकते थे. उन पर पाकिस्तान में कहीं भी एक जगह इकट्ठा होने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया.
पाकिस्तान को बारफ़त की चरमपंथ हमलों से जुड़े कई मामलों में तलाश है. फ़िलहाल वह फ़रार हैं. ज़्यादातर सिंधी अलगावादी समूह खुलकर सक्रिय नहीं हैं. लेकिन हर साल जी.एम. सईद की जयंती पर वे अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं.
इस साल जिस तरह की रैलियां हुईं वैसी ही रैलियां हर साल होती हैं. हालांकि इस साल रैलियों में जो बैनर दिख रहे थे उसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें दिख रही थीं. एक बैनर पर लिखा था, "श्रीमान मोदी जी, सिंध पाकिस्तान से आज़ादी चाहता है." यह बैनर सोशल मीडिया पर ख़ूब शेयर किया गया.
जीएम सईद की जयंती पर जो रैलियां निकाली गईं, उनमें एक की अगुआई नवगठित 'जिये सिंध फ्रीडम मूवमेंट' कर रहा था.
ह्यूस्टन में रहने वाले सिंधी ज़फ़र सहितो इस संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा कि वह पाकिस्तान से सिंध की आज़ादी के लिए हर संभव तरीक़ा अपनाएंगे.
उन्होंने कह, "चाहे वह राजनीतिक आंदोलन हो या सोशल मीडिया के ज़रिये आंदोलन का रास्ता हो. चाहे हमें इसके लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की ज़रूरत पड़े. हम हर उस चीज़ की मदद लेंगे जो सिंध फ्रीडम मूवमेंट को उसका मक़सद हासिल करने में मददगार साबित होगी."
सहितो 2004 से ही विदेश में रह रहे हैं. वह आख़िरी बार 2015 में पाकिस्तान आए थे. जब उनसे पूछा गया कि पाकिस्तान में जिये सिंध फ्रीडम मूवमेंट के लोग आंदोलन करते क्यों नहीं दिखते तो उन्होंने कहा कि संगठन ने अभी यहां किसी को अपना प्रतिनिधि नहीं बनाया है. कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की चिंता की वजह से संगठन ने ऐसा नहीं किया है.
हालांकि सहितो ने रैलियों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों के सवालों पर दूरी बनाए रखी. उन्होंने कहा कि वह दूसरे समूहों की रणनीति पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. वैसे उनका मानना है कि इस तरह के विवाद इस मुक़ाम पर आंदोलन के मक़सद को नुक़सान पहुंचाएंगे.
विश्लेषकों का मानना है कि अलगावादी संगठन अभी तक सिंध में अपनी पहचान बनाने में नाकाम रहे हैं. ये संगठन साल के ज़्यादातर समय निष्क्रिय रहते हैं और सिर्फ़ मीडिया के ज़रिये एक बार जीएम सईद की जयंती पर दिखते हैं.
ऐसा नहीं है कि ये संगठन सिर्फ़ दमन के डर से बाहर नहीं निकलते बल्कि हक़ीक़त यह कि इनके पास सिंध में ज़्यादा लोगों का समर्थन नहीं है. (bbc.com)
सना, 19 जनवरी (आईएएनएस)| यमन के होदिदाह शहर में यमनी सेना और हाउती मिलिशिया के बीच झड़प में कम से कम 23 लड़ाकों की मौत हो गई। स्थानीय सरकारी सैन्य सूत्रों ने यह जानकारी दी। सूत्र ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया, बंदरगाह शहर के दक्षिणी हिस्से के अल-दुरहिमी जिले के मुक्त क्षेत्रों में सेना के ठिकानों पर घुसपैठ के प्रयास के बाद झड़प हुई, लेकिन सेना ने करीब 21 विद्रोहियों को मार गिराया और उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया।
उन्होंने कहा कि लड़ाई में दो सैनिक मारे गए।
बंदरगाह शहर का एक हिस्सा हाउतियों के नियंत्रण में है, जबकि सरकारी बल ने दक्षिणी और पूर्वी बाहरी इलाके में बढ़त बनाई है।
जिनेवा, 19 जनवरी | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि दुनिया असमान कोविड-19 वैक्सीन नीतियों के कारण 'भयावह नैतिक पतन' का सामना कर रही है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूएचओ के प्रमुख ट्रेडोस अदानोम घेब्रियेसस ने कहा कि यह उचित नहीं है कि अमीर देशों में युवा, स्वस्थ लोग गरीब राज्यों में कमजोर लोगों से पहले वैक्सीन लगवाएं।
उन्होंने कहा कि 49 अमीर राज्यों में 3.9 करोड़ से अधिक वैक्सीन की खुराक दी गई, लेकिन एक गरीब राष्ट्र को सिर्फ 25 खुराक मिली।
इस बीच, डब्ल्यूएचओ और चीन दोनों की कोविड प्रतिक्रिया के लिए आलोचना की गई।
डब्ल्यूएचओ द्वारा गठित एक स्वतंत्र पैनल ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य निकाय को पहले अंतर्राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी, साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को जल्द लागू नहीं करने के लिए चीन को भी फटकार लगाई थी।
अब तक चीन, भारत, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका सभी ने कोविड के टीके विकसित किए हैं, जबकि अन्य को बहुराष्ट्रीय टीमों द्वारा बनाया जा रहा है, जैसे अमेरिकी-जर्मन फाइजर वैक्सीन।
इनमें से लगभग सभी देशों ने अपनी-अपनी आबादी के लिए वितरण को प्राथमिकता दी है।
डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी बोर्ड सत्र में सोमवार को ट्रेडोस ने कहा, "मुझे कुंठित होने की जरूरत है, दुनिया एक भयावह नैतिक पतन के कगार पर है और इस पतन की कीमत दुनिया के सबसे गरीब देशों में जीवन और आजीविका के साथ चुकानी होगी।"
ट्रेडोस ने कहा कि पहले हम ²ष्टिकोण आत्म-पतन की तरह है, क्योंकि यह कीमतों को बढ़ाएगा और जमाखोरी को प्रोत्साहित करेगा।
उन्होंने आगे कहा, "अंतत: ये कार्य सिर्फ महामारी को लम्बा बनाएंगे।"
डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने वैश्विक वैक्सीन-साझाकरण योजना कोवैक्स के लिए पूर्ण प्रतिबद्धता का आह्वान किया, जो अगले महीने शुरू होने वाली है।
ट्रेडोस ने कहा, "मेरी चुनौती सभी सदस्य राज्यों के लिए यह है कि 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस आने तक, हर देश में कोविड-19 टीके प्रशासित किए जा रहे हो, जो महामारी और असमानता दोनों को खत्म करने के लिए आशा के प्रतीक के रूप में हैं।"
अब तक, 180 से अधिक देशों ने कोवैक्स लेने पर हस्ताक्षर किए हैं, जो डब्ल्यूएचओ और अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीन एडवोकेसी के समूह द्वारा समर्थित है। इसका उद्देश्य देशों को एक ब्लॉक में एकजुट करना है, ताकि उनके पास दवा कंपनियों के साथ बातचीत करने की अधिक शक्ति हो। (आईएएनएस)
कैनबरा, 19 जनवरी (आईएएनएस)| ऑस्ट्रेलियाई सरकार के एक शीर्ष सलाहकार ने कहा है कि नॉर्वे में फाइजर वैक्सीन लगाने के बाद 29 बुजुगों की मौत के बावजूद देश में संभवत: कोरोना की रोकथाम के लिए फाइजर वैक्सीन ही लगाई जाएगी। टीकाकरण पर ऑस्ट्रेलियाई तकनीकी सलाहकार समूह (एटीएजीआई) के सह-अध्यक्ष एलन चेंग ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि अधिकारियों को उम्मीद है कि हर 100,000 ऑस्ट्रेलियाई लोगों में से लगभग एक को टीके से एलर्जी की प्रतिक्रिया होगी, लेकिन इससे सबसे कमजोर लोगों की रक्षा भी होगी।
उन्होंने सोमवार को नाइन एंटरटेनमेंट अखबार को बताया, "इसका मतलब है कि हमें उसके लिए तैयारी करने की आवश्यकता होगी।"
उन्होंने कहा, "ऐसे कई लोग होंगे जो टीकाकरण के बावजूद संक्रमित होंगे, लेकिन विचार यह है कि यह कोरोना के जोखिम को कम करता है। यह पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकता है, लेकिन यह इसे कम कर देगा।"
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने कहा है कि कोविड-19 के टीकों को लेकर राष्ट्रवाद की भावना के कारण दुनिया "त्रासदी के कगार" पर है और यह हमारी नैतिक असफलता है. उन्होंने टीकों के समान रूप से वितरण पर जोर दिया है.
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने वैक्सीन निर्माताओं और देशों को विश्वभर में वैक्सीन को निष्पक्ष रूप से वितरण करने का आग्रह किया है. गेब्रयेसुस ने कहा है कि टीके के न्यायसंगत वितरण की संभावनाओं पर गंभीर जोखिम है. डब्ल्यूएचओ वैक्सीन वितरण के लिए बनाए गए कार्यक्रम कोवैक्स अगले महीने से शुरू करने वाला है. उन्होंने कहा कि 44 द्विपक्षीय सौदे पिछले साल हो गए थे और इस साल अभी तक 12 करार हो चुके हैं. गेब्रयेसुस ने कहा, "इससे कोवैक्स कार्यक्रम के तहत टीके पहुंचाने में देरी हो सकती है और वही तस्वीर सामने आ सकती है जिससे बचने के लिए कौवैक्स कार्यक्रम को बनाया गया. कोवैक्स कार्यक्रम को जमाखोरी और आर्थिक और सामाजिक बाधाएं दूर कर करने के लिए बनाया गया है." जिनेवा में डब्ल्यूएचओ की कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने कहा कि "पहले मैं" की सोच दुनिया के सबसे गरीब और कमजोर लोगों को जोखिम में डाल देगी. उन्होंने कहा, "इस तरह की कार्रवाई महामारी को और लंबा ले जाएगी." गेब्रयेसुस ने असमानता का उदाहरण देते हुए बताया कि 49 अमीर देशों में लोगों को कोरोना वैक्सीन की 3.9 करोड़ खुराकें दी गईं वहीं एक गरीब देश में लोगों को महज टीके की 25 खुराक ही मिली.
टीका वितरण में भी असमानता
गेब्रयेसुस ने टीकों को लेकर भेदभाव पर किसी देश का नाम नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए पूरे विश्व के लोगों को टीके की जरूरत है लेकिन पूरी दुनिया में इस मामले में असमानता की दीवार खड़ी हो गई है. इस बैठक में अफ्रीकी देश बुरकिना फासो के प्रतिनिधि ने कुछ देशों के कोविड-19 की वैक्सीन की ज्यादा खुराकें जमा करने पर चिंता जाहिर किया. डब्ल्यूएचओ कोरोना की वैक्सीन को पूरी दुनिया में समान रूप से पहुंचाने की कोशिश में है.
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि गरीब और अमीर देशों के बीच असमानता की दीवार है और यह टीकों के वितरण में बड़ी रुकावट साबित हो सकती है. साथ ही डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अमीर देश अपने बुजुर्गों और स्वास्थ्यकर्मियों को पहले टीका दे रहे हैं लेकिन यह बिल्कुल ठीक नहीं है कि अमीर देशों के युवाओं और स्वस्थ वयस्कों को टीका पहले मिले और गरीब देशों के स्वास्थ्य कर्मचारियों और जोखिम वाले बुजुर्गों को टीका नहीं मिले.
एए/सीके (एएफपी)
सैन फ्रांसिस्को, 19 जनवरी | अमेरिका में तनावपूर्ण राजनीतिक स्थिति के बीच, एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप टेलीग्राम ने हिंसा के लिए सैकड़ों पबिल्क कॉल्स को ब्लॉक कर दिया है, जो ऐसा न करने पर देश में हजारों यूजर्स तक पहुंच सकते थे। टेलीग्राम के संस्थापक पावेल ड्यूरोव ने कहा कि कंपनी शांतिपूर्ण बहस और विरोध का स्वागत करती है, लेकिन "हमारी सेवा की शर्तें स्पष्ट रूप से हिंसा के लिए पबिल्क कॉल्स डिस्ट्रिब्यूट करने से रोकती हैं।"
सोमवार की देर रात एक बयान में उन्होंने कहा, "दुनिया भर में सिविल मूवमेंट ने मानव अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए टेलीग्राम पर भरोसा किया है, ताकि कोई नुकसान न पहुंचे।"
पिछले दो हफ्तों से, दुनिया चिंता के साथ अमेरिका की घटनाओं पर नजर रखे हुए हैं। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 19 जनवरी | पाकिस्तान के ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी (डीआरएपी) ने चीन के साइनोफर्म द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, डीआरएपी ने सोमवार की देर शाम कहा कि प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित दो टीकों में से एक, साइनोफर्म को आपातकालीन उपयोग की अनुमति दी गई है।
बयान में कहा गया कि सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता के संबंध में आगे के आंकड़ों को देख कर हर तिमाही में इसकी समीक्षा की जाएगी।
इस बीच, ब्रिटिश-स्वीडिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका द्वारा निर्मित एक और टीके को पाकिस्तान में मंजूरी दी गई है।
पाकिस्तान के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने सिन्हुआ न्यूज एजेंसी को बताया कि साइनोफर्म वैक्सीन को इसकी सुरक्षा और सामथ्र्य के लिए एक कैबिनेट समिति द्वारा खरीद के लिए मंजूरी दे दी गई है।
पाकिस्तान में पिछले 24 घंटों में कोरोनावायरस के 1,920 नए संक्रमण और 46 मौतें हुई है, जिसके बाद कुल मौतों की संख्या 10,997 और कुल मामलों की संख्या 521,211 हो गई। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र महासभा में सात देशों ने बकाया राशि का भुगतान नहीं करके मतदान करने का अधिकार खो दिया है. इन देशों में ईरान का नाम भी शामिल है. इस बात की जानकारी सोमवार को महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दी है. गुटेरेस ने महासभा के अध्यक्ष और तुर्की के वोलकन बोजकिर को लिखे खत में कहा है, इन देशों में ईरान के अलावा नाइजर, लीबया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, कांगो ब्राजाविले, दक्षिण सूडान और जिम्बाब्वे का नाम शामिल है.
खत में ये भी कहा गया है कि जिस बकाया राशि का भुगतान करना है, उसमें कमी करने के लिए ये देश अभी कितना भुगतान कर सकते हैं, इस बारे में बताया गया है. ताकि इन्हें मतदान करने का अधिकार वापस मिल सके. अकेले ईरान को ही 16.2 मिलियन डॉलर (1.62 करोड़ डॉलर) का भुगतान करना है.
संयुक्त राष्ट्र का सालाना बजट 3.2 बिलियन डॉलर का है. इसके अलावा शांति कायम रखने संबंधिक ऑपरेशंस के लिए बजट अलग है और कुल बजट 6.5 बिलियन डॉलर बनता है. संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार, उन देशों के मतदान के अधिकार को निलंबित कर दिया जाता है, जिनका बकाया, योगदान वाली राशि का आधा या उससे अधिक हो जाता है. (tv9hindi.com)
-विनीत खरे
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की राजधानी इन दिनों युद्ध क्षेत्र जैसी लगती है. नए राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के शपथ ग्रहण समारोह से कुछ घंटों पहले अमेरिका में एक अभूतपूर्व स्थिति बनी हुई है.
ना सिर्फ़ वॉशिंगटन, बल्कि सभी 50 राज्यों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
कई लोगों को डोनाल्ड ट्रंप समर्थक समर्थकों की ओर से की गई कैपिटल हिल हिंसा को दोहराए जाने का डर सता रहा है.
कैपिटल की ओर जाने वाले सड़कों पर हज़ारों की तादाद में सुरक्षाकर्मी गश्त लगा रहे हैं. शहरों में जगह-जगह रोड ब्लॉक लगाए गए हैं. चेहरों को ढँके हथियारबंद सुरक्षाकर्मी गाड़ियों की जाँच कर रहे हैं और ट्रैफ़िक को रास्ता भी दिखा रहे हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो नेशनल गार्ड्स के 25 हज़ार जवानों की शहर में तैनाती की गई है.
इस बीच कई सुरक्षाकर्मियों की जाँच भी हो रही है, जिन पर शक है कि उन्होंने 6 जनवरी को हुए कैपिटल हिल हिंसा में उपद्रवियों का साथ दिया था.
मीडिया रिपोर्ट्स में हथियारबंद हमले की आशंका भी जताई जा रही है.
पुलिस की गाड़ी सड़कों पर गश्त लगा रही है और हेलिकॉप्टर से गतिविधियों पर पर नज़र रखी जा रही है.
कई मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए हैं और बड़े क्षेत्र में गाड़ियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. कैपिटल कॉम्प्लेक्स को जनता के लिए बंद कर दिया गया है और 20 जनवरी को जनता कैपिटल ग्राउंड नहीं जा सकेगी.
कैपिटल पुलिस ने अपने बयान में कहा है, "कोई भी अगर ग़ैरक़ानूनी रूप से कैपिटल ग्राउंड पर लगे फ़ेंस (एक तरह का बैरिकेड) को पार करके या किसी अन्य ग़ैरकानूनी तरीक़े से घुसने की कोशिश करता है, तो उस पर बल प्रयोग होगा और गिरफ्तारी भी होगी."
वॉशिंगटन को दूसरे शहरों से जोड़ने वाले ब्रिजों को और पास में स्थित वर्जिनिया को भी बंद रखा जाएगा.
क्रिस अकोस्टा नाम के एक स्थानीय निवासी कहते हैं, "ऐसा लग रहा है जैसे एक फ़िल्म चल रही है. सभी लोग नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की तैयारियों में लगे हैं और सड़कें पूरी तरह वीरान हैं."
जरमैन ब्रायंट कहते हैं, "मुझे लगता है ये पहला वर्चुअल शपथ ग्रहण समारोह होगा. आमतौर पर जब भी शपथ ग्रहण होता रहा है, तो वॉशिंगटन का माहौल ख़ुशनुमा रहा है लेकिन अभी तो लगता है जैसे ये एक भूतिया शहर हो."
ब्रायंट की बात कई मायनों में सही है. आमतौर पर शपथ ग्रहण समारोह पर समर्थक और विरोधी एकता का प्रदर्शन करते हुए एक साथ आते हैं और माहौल उत्सव जैसा होता है.
इससे पहले कभी भी ऐसे वक्त में राजधानी का दिल माना जाने वाला कैपिटल हिल का क्षेत्र इतना वीरान नहीं रहा. इसका मतलब साफ़ है कि हर बार की तरह इस आयोजन में समर्थकों की वो भीड़ नहीं नज़र आएगी, जो हर बार दिखती रही है.
जानकारों को इस बात की भी चिंता सता रही है कि वॉशिंगटन में भारी सुरक्षा बल की तैनाती तो कर दी गई है, लेकिन बाक़ी 50 राज्यों की सुरक्षा का क्या होगा?
एक भी हमला देशभर में बैठे ट्रंप समर्थकों के लिए उकसावे की तरह होगा.
बीते दो सप्ताह में क्या-क्या हुआ
बीते दो सप्ताह में अमेरिका की राजनीति तेज़ी के साथ बदली है. मैं 6 जनवरी को वॉशिंगटन के उसी इलाक़े में था, जब ट्रंप समर्थक आक्रामक हो गए थे.
इसके बाद, उनमें से सैकड़ों ने कैपिटल हिल की सुरक्षा को तोड़ते हुए अंदर दाखिल होकर हिंसा की, जिसकी तस्वीरें अमेरिकी मीडिया ने ख़ूब दिखाईं और जिसे देखकर रिपब्लिकन भी इसके विरोध में खड़े हुए.
दो बार महाभियोग झेलने वाले ट्रंप का चुनाव नतीजों को मानने से इनकार करना और इसमें बिना सबूत धोखाधड़ी का आरोप लगाना 6 जनवरी को हुई हिंसा का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है.
इस घटना के एक दिन बाद भी मैंने देखा कि कैसे एक व्यक्ति बैरिकेड को लांघने की कोशिश कर रहा था. अब हालात ये हैं कि वॉशिंगटन के कई रास्तों पर बाड़े लगा दिए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट की भी घेराबंदी कर दी गई है.
वॉशिंगटन की मेयर मुरिल बौज़र, मैरीलैंड के गवर्नर लैरी होगन और वर्जीनिया के गवर्नर राल्फ नॉर्थम ने मिलकर एक साझा बयान जारी किया है. जिसमें कहा गया है- बीते दिनों हुई हिंसा और कोविड-19 महामारी को देखते हुए. हम अमेरिकावासियों से अपील करते हैं कि वे शपथ ग्रहण समारोह के लिए वॉशिंगटन ना आएँ, बल्कि इस समरोह में वर्चुअली ही शामिल हों.''
वर्जीनिया और मैरीलैंड राज्यों की सीमा वॉशिंगटन से जुड़ी हुई है.
कोरोना वायरस का ख़तरा भी बड़ा होता जा रहा है, अमेरिका में लगभग 400,000 लोगों की वायरस के कारण मौत हो गई है.
रोग नियंत्रण निदेशक के मुताबिक़ फरवरी के मध्य तक यह संख्या 5 लाख के आँकड़े को पार कर जाएगी.
घरेलू आतंकवादी?
कैपिटल हिल की हिंसा ने घरेलू आंतकवादियों को लेकर जारी बहस को और बढ़ा दिया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि दक्षिणपंथी उग्रवाद और श्वेत वर्चस्ववादियों के ख़तरों पर कार्रवाई करने में पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियों की रफ़्तार धीमी है.
डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी की एक रिपोर्ट कहती है- श्वेत वर्चस्ववादी चरमपंथी देश के सामने लगातार सबसे बड़ा ख़तरा बने रहेंगे.
नव निर्वाचित राष्ट्रपति बाइडन ने कैपिटल हिल हमले के बाद कहा था, ''उन्हें प्रदर्शनकारी ना कहें, वो एक दंगाई भीड़ थी, देशद्रोही और घरेलू आतंकवादी, "हालाँकि दोनों पार्टियों वाली कांग्रेस रिसर्च के मुताबिक़ ''एफ़बीआई औपचारिक तौर पर किसी भी संस्था को 'घरेलू आतंकवादी' नहीं मानती.''
कैपिटल हिल पर हुए हमले के बाद कांग्रेस इससे जुड़े क़ानून और नीतियों में बदलाव के बारे में विचार कर सकती है और इस तरह के घरेलू आतंकवाद को एक संघीय अपराध की श्रेणी में ला सकती है. (bbc.com)
जो बाइडन जल्द ही अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे. इसे अमेरिका में इनॉगरेशन डे भी कहते हैं. इसके बाद ही वो आधिकारिक रूप से व्हाइट हाउस में अपना कामकाज संभालेंगे.
एक राजनीतिक समारोह में 20 जनवरी को जो बाइडन और उप राष्ट्रपति के तौर पर चुनी गईं कमला हैरिस अपने पद की शपथ लेंगी.
कोविड-19 की वजह से समारोह में कुछ बदलाव किए हैं. मेहमानों की सूची छोटी की गई है और सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए काफ़ी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. शपथ ग्रहण समारोह के बारे में आइए जानते हैं सब कुछ.
इनॉगरेशन क्या है?
इनॉगरेशन एक औपचारिक समारोह है. इसके पूरा होते ही राष्ट्रपति के कार्यकाल की शुरुआत हो जाती है. यह समारोह वॉशिंगटन डीसी में होता है. समारोह के एकमात्र ज़रूरी हिस्से के तौर पर राष्ट्रपति अपने पद की शपथ लेते हैं.
इस पद की शपथ लेते हुए वह कहते हैं, "मैं पूरी निष्ठा से यह शपथ लेता हूँ कि अपनी पूरी ईमानदारी से अमेरिका के राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी निभाऊंगा. मैं अपनी पूरी क्षमता के साथ अमेरिका के संविधान का संरक्षण, सुरक्षा और बचाव करूँगा."
इन शब्दों को पूरा करते ही जो बाइडन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बन जाएँगे. साथ ही इनॉगरेशन भी पूरा हो जाएगा.
कमला हैरिस भी शपथ लेते ही उप राष्ट्रपति बन जाएँगीं. अमूमन नव निर्वाचित उप राष्ट्रपति को नव निर्वाचित राष्ट्रपति से पहले शपथ दिलाई जाती है.
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बाइडन का इनॉगरेशन कब होगा?
अमेरिकी संविधान के हिसाब से इनॉगरेशन का दिन 20 जनवरी को तय है.
शुरुआती भाषण का समय अमूमन सुबह 11.30 (अमेरिकी समय के हिसाब से) होता है. इसलिए जो बाइडन और कमला हैरिस का शपथ ग्रहण दोपहर बारह बजे के आसपास होगा.
उसी दिन बाद में जो बाइडन व्हाइट हाउस में जाएँगे. अगले चार साल के लिए यही उनका आवास होगा.
शपथ ग्रहण समारोह में सुरक्षा बंदोबस्त कैसा होगा?
राष्ट्रपति पद के लिए इनॉगरेशन कार्यक्रम के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं. 6 जनवरी के उपद्रवियों के कैपिटल हिल में घुस जाने की घटना को देखते हुए तो और ज़्यादा पुख़्ता इंतजाम होंगे. इस दौरान वहाँ नेशनल गार्ड के 10 हजार सैनिक तैनात रहेंगे.
ज़रूरत पड़ी तो अतिरिक्त 5 हज़ार सैनिक उपलब्ध कराए जा सकते हैं. डोनाल्ड ट्रंप के इनॉगरेशन में आठ हज़ार सैनिक तैनात थे.
जब बाइडन शपथ लेंगे, तब वाशिंगटन डीसी में इमरजेंसी लगी होगी. हाल में हुए उपद्रव और अराजकता को देखते हुए मेयर म्यूरियल बोअर ने वहाँ इमरजेंसी लगाने के आदेश दिए हैं.
जो बाइडन ने रिपोर्टरों से कहा है कि वह अपनी हिफ़ाज़त या इनॉगरेशन को लेकर चिंतिंत नहीं हैं. लेकिन बाइडन के इनॉगरेशन कमेटी की सदस्य सीनेटर एमी क्लोबाशर ने कहा कि उन्हें लगता है कि सुरक्षा को लेकर बड़े बदलाव हो सकते हैं. 6 जनवरी को जब उपद्रवी कैपिटल हिल में घुस आए थे, उस वक़्त वे वहीं थीं.
क्या ट्रंप शपथ ग्रहण समारोह में आएँगे?
पद छोड़ने वाले राष्ट्रपति के लिए अगले नेतृत्व को शपथ लेते देखना अब रिवाज बन चुका है. हालाँकि ऐसे पूर्व राष्ट्रपतियों के लिए यह थोड़ा असहज होता होगा, लेकिन इस बार कुछ दूसरे तरह की असहजता होगी, क्योंकि पद छोड़ने वाले राष्ट्रपति ट्रंप इसमें नहीं होंगे.
ट्रंप ने पिछले दिनों ट्वीट करके कहा था, ''जो लोग यह पूछ रहे हैं, उन्हें मैं बता दूँ कि 20 तारीख़ को इनॉगरेशन में मैं नहीं आऊँगा."
ट्रंप ने इसके पहले कहा था कि वह नए प्रशासन को व्यवस्थित तरीक़े से सत्ता का हस्तांतरण कर देंगे. ऐसा करके उन्होंने पहली बार सार्वजनिक तौर पर यह माना वह बाइडन से रेस हार गए हैं.
ट्रंप के समर्थक उनसे एक क़दम आगे बढ़े हुए दिख रहे हैं. वे ट्रंप के लिए वर्चुअल 'सेकेंड इनॉगरेशन' की योजना बना रहे हैं. जिस दिन और जिस वक़्त बाइडन शपथ लेंगे, ठीक उसी वक़्त ट्रंप के समर्थक ट्रंप के लिए भी वर्चुअल शपथ कार्यक्रम का आयोजन करेंगे. लगभग 68 हज़ार लोगों ने फ़ेसबुक पर कहा है कि वे ट्रंप के समर्थन में इस ऑनलाइन इवेंट में शिरकत करेंगे.
जब ट्रंप ने शपथ ली थी, तो हिलेरी क्लिंटन अपने पति और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ इनॉगरेशन के साथ मौजूद थीं. राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार और ट्रंप के साथ एक तीखे चुनावी अभियान के महज दो महीने के बाद वह इस समारोह में मौजूद थीं.
अमेरिका के इतिहास में अब तक सिर्फ़ तीन राष्ट्रपतियों जॉन एडम्स, जॉन क्विंसी और एंड्रयू जॉनसन ने अपने उत्तराधिकारी के इनॉगरेशन से ख़ुद को दूर रखा है. पिछले एक सौ साल में तो किसी राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया है.
अगर सामान्य हालात होते, तो शायद वॉशिंगटन में लाखों लोग इनॉगरेशन का जश्न मनाने उमड़ आते. शहर भर जाता . होटलों में जगह नहीं होती. जब 2009 में ओबामा पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तो राजधानी में 20 लाख लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. लेकिन लगता है कि इस बार उत्सव इतना बड़ा नहीं होगा. ख़ुद बाइडन की टीम ने कहा कि समारोह सीमित होंगे.
टीम ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोगों से राजधानी न आने के लिए कहा है. कैपिटल हिल पर हमले के बाद प्रशासन ने लोगों से कई बार यह अपील दोहराई है.
बाइडन और हैरिस यूएस कैपिटल के सामने ही शपथ लेंगे. (यह परंपरा राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1981 में शुरू की थी) . सामने नेशनल मॉल है. लेकिन शपथ ग्रहण को देखने के लिए परेड रूट से सटा कर बनाए गए स्टैंड हटाए जा रहे हैं.
पहले आधिकारिक समारोह देखने के लिए दो लाख टिकट जारी होते थे. लेकिन इस बार पूरे अमेरिका में कोरोना संक्रमण को देखते हुए सिर्फ़ एक हजार टिकट ही जारी होंगे.
इस साल भी पास-इन रिव्यू समारोह होगा. यह शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण का एक पारंपरिक हिस्सा है, जिसमें नए कमांडर इन चीफ सैनिक टुकड़ियों का जायजा लेते हैं. लेकिन आयोजकों का कहना है कि अब पेन्सिलवेनिया एवेन्यू से व्हाइट हाउस तक सामान्य परेड की जगह पूरे अमेरिका में वे वर्चुअल परेड का आयोजन करेंगे.
इसके बाद सेना के सदस्य बाइडन और हैरिस को व्हाइट हाउस में ले जाएँगे. उनके साथ बैंड और ड्रम बजाने वाली टुकड़ी भी होगी.
इनॉगरेशन का टिकट कैसे मिलेगा?
स्टेज के सामने बैठने और खड़े होने और परेड रूट से लगे इलाक़े में बैठने के लिए टिकट लेने की ज़रूरत होती है. लेकिन बाक़ी का नेशनल मॉल आम लोगों के लिए खुला होता है.
अगर आप इनॉगरेशन समारोह को नज़दीक से देखना चाहते हैं, तो आपको पहले अपने स्थानीय प्रतिनिधि से बात करनी होगी.
इनॉगरल बॉल्स और समारोह से जुड़े अन्य कार्यक्रमों के लिए अलग से टिकट लेने की ज़रूरत पड़ती है. सीनेटरों और कांग्रेस के सदस्य इस समारोह की देखरेख में लगे होते हैं. हरेक को कुछ फ़्री टिकट दिए जाते हैं, जो वे लोगों को बाँट सकते हैं. इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से एक प्रतिनिधि के साथ एक मेहमान आ सकता है.
बाइडन ने अभी यह नहीं बताया है कि उनके शपथ ग्रहण समारोह के बाद उनके साथ स्टेज पर कौन स्टार होगा. हालाँकि यह उम्मीद की जा रही है कि इस बार भी कोई बड़ा स्टार परफॉर्म करेगा.
हाल के वर्षों में हर राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में देश के पसंदीदा कलाकारों ने अपना प्रदर्शन किया है. 2009 में आर्था फ्रैंकलिन ने बराक ओबामा के इनॉगरेशन कार्यक्रम में My Country 'Tis of Thee. गाया था. साथ में बेयॉन्से भी थीं, जिन्होंने इनगॉरल बॉल में अपना मशहूर गाना 'एट लास्ट' गाया था.
2013 में बराक ओबामा ने केली क्लार्कसन और जेनिफर हडसन को आमंत्रित किया था. बेयॉन्से इस बार फिर आ रही हैं, लेकिन इस बार वह राष्ट्रीय गान गाएँगीं.
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप को कलाकारों को बुलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. एल्टन जॉन ने परफॉर्म करने से मना कर दिया था. ऐसी खबरें थीं कि सेलिन डियोन, किस और गार्थ ब्रुक्स ने भी परफॉर्म करने से इनकार कर दिया था. आखिर में रॉकेट्स, कंट्री आर्टिस्ट ली ग्रीनवुड और बैंड-3 डोर्स इनॉगरेशन में आने के लिए राज़ी हुए थे.
जनवरी में ही इनॉगरेशन क्यों होता है?
ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ़ जनवरी में ही इनॉगरेशन होना है. संविधान में पहले 4 मार्च को नए नेताओं के शपथ लेने के दिन के तौर पर तय किया गया था. नवंबर के चार महीने के बाद शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करने का फ़ैसला तय किया गया था.
उस वक़्त के हिसाब से यह ठीक था, क्योंकि राजधानी तक चुनाव नतीजे पहुँचने में इतना समय लग जाता था. लेकिन नए राष्ट्रपति के शपथ लेने और पूर्व राष्ट्रपति के बने रहने का चार महीने का यह समय काफ़ी लंबा था. यहाँ इसे Lame duck Period कहा गया.
लेकिन आधुनिक तकनीकों की वजह से वोटों की गिनती तेज़ हो गई. नतीजे जल्दी आने लगे. इसलिए चार महीने की यह अवधि बदल दी गई. इसके लिए 20वाँ संशोधन किया गया, जिसे 1933 में पारित किया गया. इसके मुताबिक़, 20 जनवरी को ही नए राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण का दिन तय हुआ. (bbc.com)
वाशिंगटन, 19 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 9.55 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से हुई मौतों की संख्या 20.3 लाख से अधिक हो गई है। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने मंगलवार को दी। विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने मंगलवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि, वर्तमान में दुनियाभर में संक्रमण के कुल मामले और मौतें क्रमश: 95,530,563 और 2,039,283 हैं।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनिया में सबसे अधिक कोविड प्रभावित देश है, जहां संक्रमण के 24,073,555 मामले और 398,977 मौतें दर्ज की गई हैं।
संक्रमण के मामलों में भारत 10,571,773 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश में कोविड से मौतों का आंकड़ा 152,419 हो गया है।
सीएसएसई के अनुसार, दस लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (8,511,770), रूस (3,552,888), ब्रिटेन (3,443,350), फ्रांस (2,972,889), तुर्की (2,392,963), इटली (2,390,102), स्पेन (2,336,451), जर्मनी (2,059,382), कोलम्बिया (1,923,132), अर्जेंटीना (1,807,428), मैक्सिको (1,641,428), पोलैंड (1,438,914), दक्षिण अफ्रीका (1,346,936), ईरान (1,336,217), यूक्रेन (1,201,894) और पेरू (1,060,567) हैं।
वर्तमान में ब्राजील 210,299 मौतों के साथ अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मौत दर्ज करने वाले देश मेक्सिको (140,704), ब्रिटेन (90,031), इटली (82,554), फ्रांस (70,826), रूस (65,059), ईरान (56,886), स्पेन (53,769), कोलंबिया (49,004), जर्मनी (47,263), अर्जेंटीना (45,832), पेरू (38,770), दक्षिण अफ्रीका (37,449), पोलैंड (33,407), इंडोनेशिया (26,282), तुर्की (24,161), यूक्रेन (21,847) और बेल्जियम (20,435) हैं।
--आईएएनएस
अमेरिकी अभियोजकों के मुताबिक़, एक शख़्स महामारी में यात्रा करने से इतना डर गया कि वो तीन महीने तक शिकागो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के एक सुरक्षित क्षेत्र में बिना किसी को बताए रहता रहा.
36 वर्षीय आदित्य सिंह को शनिवार को तब गिरफ़्तार किया गया जब एयरलाइन स्टाफ ने उनसे अपनी पहचान बताने के लिए कहा.
आदित्य ने जवाब में एक बैज की ओर इशारा किया, लेकिन ये बैज एक ऑपरेशन मैनेजर का था. उस मैनेजर ने अक्टूबर में अपना बैज खोने की शिकायत दर्ज कराई थी.
पुलिस के मुताबिक़, आदित्य सिंह 19 अक्टूबर को एक विमान में लॉस एंजीलिस से ओ'हारे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचे थे.
शिकागो ट्रिब्यून के अनुसार, एसिस्टेंट स्टेट अटॉर्नी कैथलीन हेगर्टी ने कहा कि आदित्य को हवाई अड्डे पर कथित तौर पर एक बैज मिला और “वो कोविड की वजह से घर जाने से डर रहे थे.”
उन्होंने जज से कहा कि आदित्य दूसरे यात्रियों से मिले खाने और पैसों से अपना गुज़ारा कर रहे थे.
कुक काउंटी की न्यायाधीश सुज़ाना ओर्टिज़ ने मामले पर हैरानी जताई.
उन्होंने रविवार को आरोपों को रेखांकित करने वाली अभियोजक से कहा, "अगर मैं आपको ठीक से समझ रही हूं तो आप कह रही हैं कि एक अनधिकृत, ग़ैर-कर्मचारी व्यक्ति 19 अक्टूबर 2020 से 16 से 2021 के बीच ओ'हारे हवाई अड्डे टर्मिनल के एक सुरक्षित हिस्से में कथित तौर पर रह रहा था, और किसी को पता नहीं चला? मैं आपको सही से समझना चाहती हूं."
असिस्टेंट पब्लिक डिफेंडर कर्टनी स्मॉलवुड के अनुसार, आदित्य सिंह लॉस एंजिल्स के एक उपनगर में रहते हैं और उनका कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं है. ये स्पष्ट नहीं है कि वो शिकागो क्यों आए थे.
शहर के हवाई अड्डों की देखरेख
उनपर एक हवाई अड्डे के प्रतिबंधित क्षेत्र में ग़लत तरीक़े से घुसने और चोरी का आरोप लगाया गया है. उन्हें ज़मानत के लिए 1,000 डॉलर भरने होंगे. तब तक के लिए उनपर हवाई अड्डे में घुसने पर रोक लगा दी गई है.
जज ओर्टिज़ ने कहा, "अदालत इन तथ्यों और परिस्थितियों को चौंकाने वाला मानती है कि इतने वक़्त तक ये होता रहा."
"लोगों की सुरक्षित यात्रा के लिए एयरपोर्ट का पूरी तरह से सुरक्षित होना ज़रूरी है, इसलिए मुझे लगता है कि ऐसे कथित कामों से वो शख़्स समुदाय के लिए ख़तरा बन गया."
शहर के हवाई अड्डों की देखरेख करने वाले शिकागो विमानन विभाग ने एक बयान में कहा, "ये घटना जांच के दायरे में है, हालांकि हमने पाया कि इस सज्जन ने हवाई अड्डे या यात्रा करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए किसी तरह का ख़तरा पैदा नहीं किया." (bbc)
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रॉस एडहॉनम गीब्रिएसुस ने कहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन आने से इसे पाने के लिए होड़ मची है लेकिन इस होड़ में दुनिया के ग़रीब देशों के पिछड़ने का डर है.
सोवमार देर शाम जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि एक तरफ जब कोरोना वैक्सीन हमारे लिए उम्मीद ले कर आई है वहीं दूसरी तरफ इसके कारण पैदा होने वाला असल ख़तरा भी सामने आ रहा है. दुनिया के अमीर देशों और ग़रीब देशों के बीच असामनता की दीवार है जो इसके वितरण में बड़ी रुकावट साबित हो सकती है.
उन्होंने कहा, “ये अच्छी बात है कि सरकारें अपने स्वास्थ्यकर्मियों और बूढ़ों को पहले वैक्सीन देना चाहती है. लेकिन ये सही नहीं है कि अमीर देशों के युवाओं और स्वस्थ वयस्कों को वैक्सीन की खुराक ग़रीब मुल्कों में रहने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और बूढ़ों से पहले मिले.”
उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में कम से कम 49 अमीर मुल्कों में जहां लोगों को वैक्सीन की 3.9 करोड़ खुराक दी गई है, वहीं ग़रीब मुल्कों में इसकी केवल 25 खुराक ही लोगों को मिली है.
उन्होंने कहा कि ये आंकड़ा बताता है कि विश्व एक भयावह नैतिक विफलता के कगार पर है और इसकी क़ीमत दुनिया के सबसे गरीब देशों के लोगों को चुकानी पड़ेगी.
उन्होंने कहा कि वैक्सीन के वितरण में समानता लाना न केवल देशों की नैतिक जिम्मेदारी है बल्कि ये रणनीतिक और आर्थिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण होगा.
उन्होंने कहा कि वैक्सीन पाने की होड़ के कारण दुनिया के ग़रीब ख़तरे में होंगे और इससे महामारी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हो सकेगी. उन्होंने सभी मुल्कों से अपील की की साल के पहले सौ दिनों के भीतर दुनिया के सभी स्वास्थ्यकर्मियों और बूढ़ों को कोरोना की वैक्सीन दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि बीते कई महीनों से संगठन सभी मुल्कों में समान रूप से वैक्सीन पहुंचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है. संगठन ने पांच उत्पादकों से वैक्सीन की 2 अरब खुराक सुरक्षित कर ली है और उसे वैक्सीन की और एक अरब खुराक भी मिलने वाली है. संगठन फरवरी में लोगों को वैक्सीन देना शुरू करेगा. (बीबीसी)
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 18 जनवरी | अमेरिका की नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ओकलैंड, कैलिफोर्निया, अर्बाना शैम्पेन, इलिनॉय, बर्कले, क्यूबेक, कनाडा, वाशिंगटन, डी.सी. के बाद दो बार कैलिफोर्निया का सफर कर चुकी हैं, और अब व्हाइट हाउस पहुंचने जा रही हैं।
जब कमला हैरिस आखिरकार देश के बेहद प्रभावशाली ओहदे पर पहुंची हैं तो यह अमेरिका में उनके लंबे सफर का एक परमोत्कर्ष है।
कमला हैरिस ने अपने संस्मरण 'द ट्रथ्स वी होल्ड' में लिखा है, "मैं 12 साल की थी और फरवरी में कैलिफोर्निया से दूर स्कूल के साल के मध्य में, 12 फीट बर्फ से ढके एक फ्रांसीसी भाषी विदेशी शहर में जाने का विचार परेशान कर देने वाला था।"
अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति के रूप में हैरिस का आगमन पहियों की कहानी है, जो रुक-रुक कर चलती है, और नई दिशाओं में निकलती है। सबसे पहले, उनके माता-पिता अकादमिक उपलब्धि की तलाश में आए और फिर हैरिस ने अपने राजनीतिक करियर में चार चांद लगाया।
उन्होंने 2019 के एक साक्षात्कार के दौरान पत्रकार डैना गुडइयर को बताया था, "मेरे बचपन की बहुत ज्वलंत स्मृति मेफ्लावर ट्रक थी।" मेफ्लावर अमेरिका की सबसे बड़ी पूर्ण सेवा वाली मूविंग कंपनियों में से एक है।
हैरिस ने गुडइयर से कहा, "हम बहुत आगे बढ़ गए।"
लेकिन अमेरिकी शहरों के बीच हैरिस की यात्रा लगभग एक महिला यात्री के बाद आता है और हैं उनकी मां श्यामला गोपालन, जो तमिलनाडु की हैं।
जब श्यामला 1958 में अमेरिका आई थीं तो तब वह 19 साल की थीं और अपने परिवार से विदेश में पढ़ने जाने वाली पहली शख्स थीं। उन्होंने एक ऐसी यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था, एक ऐसे देश में थीं, जहां पहले वह कभी नहीं गई थीं।
कमला के पिता डोनाल्ड हैरिस का भी कुछ ऐसा ही सफर रहा था। वर्ष 1961 में कमला के माता-पिता से मुलाकात हुई और 1963 में शादी हुई।
कुल मिलाकर कमला हैरिस की कहानी एक मंजी हुई यात्री की है।
जब वह उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी, तब यह उनकी मां की मातृभूमि मद्रास और पिता की मातृभूमि ब्राउन्स टाउन (जमैका) के लिए एक सर्वश्रेष्ठ उपहार होगा। (आईएएनएस)
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 18 जनवरी | अमेरिका के निर्वतमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन अमेरिकी राष्ट्रपतियों में शामिल हो रहे हैं, जो नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होंगे। इसके साथ ही वह एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने प्रतिद्वंद्वी की जीत को स्वीकार नहीं करते हुए भीड़ को कैपिटल हिल पर हमला करने के लिए उकसाया और इतना ही नहीं वह अमेरिकी इतिहास में दो बार महाभियोग का सामना करने वाले भी पहले राष्ट्रपति हैं।
1801 में जॉन एडम्स अपने उत्तराधिकारी थॉमस जेफरसन के शपथ ग्रहण में शामिल नहीं हुए थे।
1829 में, व्यक्तिगत अपमान के साथ एक कड़वी लड़ाई लड़ने के बाद, जॉन क्विंसी एडम्स ने एंड्रयू जैक्सन के शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया था।
जब शपथ ग्रहण समारोह से पहले जैक्सन की पत्नी की मृत्यु हो गई, तो भावी राष्ट्रपति ने अपने विरोधी पर तनाव को बढ़ाने का आरोप लगाया।
1869 में, जॉनसन ने खुद को यूलेसीस एस ग्रांट के शपथ समारोह से अनुपस्थित कर दिया और व्हाइट हाउस में रहकर अंतिम मिनट के कानून पर हस्ताक्षर करने में मशगूल रहे। ग्रांट ने इस समारोह के लिए व्हाइट हाउस से कैपिटल के लिए जॉनसन के साथ जाने से इनकार कर दिया।
रिचर्ड निक्सन ने जेराल्ड फोर्ड के शपथ ग्रहण से पहले व्हाइट हाउस के लॉन से एक हेलीकॉप्टर में उड़ान भरी।
ट्रंप की अनुपस्थिति को लेकर कोई हैरानी नहीं है क्योंकि उन्होंने चुनाव परिणामों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
वहीं, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वह ट्रंप के दूर रहने से खुश हैं।
जब उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस से यह सवाल किया जाता है तो वह आमतौर मुस्कुराहट या हंसी के साथ पल्ला झाड़ लेती हैं। (आईएएनएस)
सऊदी अरब चाहता है कि उसके यहां रहने वाले लगभग 54 हजार रोहिंग्या लोगों को बांग्लादेश वापस ले ले. बांग्लादेश अगर इसके लिए राजी होता है तो उसकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
डॉयचे वैले पर जोबैर अहमद की रिपोर्ट
डीडब्ल्यू के साथ एक हालिया इंटरव्यू में बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन ने कहा था कि बांग्लादेश सऊदी अरब में रहने वाले कुछ रोहिंग्या लोगों को कानूनी दस्तावेज मुहैया करा सकता है.
रोहिंग्या मुसलमानों का संबंध म्यांमार के पश्चिमी प्रांत रखाइन से है. लेकिन म्यांमार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. अपने साथ भेदभाव और दमन से बचने के लिए बहुत से रोहिंग्या लोगों ने दूसरे देशों में शरण ली है. इनमें सबसे ज्यादा लोग बांग्लादेश में रहते हैं.
लगभग 40 साल पहले सऊदी अरब ने दसियों हजार रोहिंग्या लोगों को लिया था. सितंबर 2020 में सऊदी अरब ने कहा था, "अगर बांग्लादेश इन शरणार्थियों को अपना पासपोर्ट जारी करता है तो इससे बहुत मदद होगी क्योंकि सऊदी अरब नागरिकता विहीन लोगों को अपने यहां नहीं रखता."
सऊदी अरब में रहने वालो रोहिंग्या लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. यहां तक कि शरणार्थियों के जो बच्चे सऊदी अरब में पैदा हुआ हैं और अरबी भाषा बोलते हैं, उन्हें भी सऊदी अरब की नागरिकता नहीं दी गई है.
बांग्लादेश भी रोहिंग्या लोगों को अपना नागरिक नहीं मानता है. इसलिए कई विशेषज्ञ कहते हैं कि विदेश मंत्री मोमेन का यह बयान उनके देश को मुश्किल में डाल सकता है कि बांग्लादेश कुछ रोहिंग्या को पासपोर्ट दे सकता है. इससे रोहिंग्या लोगों की वापसी के लिए म्यांमार से होने वाली वार्ता पर असर पड़ सकता है.
इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
मोमेन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा था, "हमने इस बारे में सऊदी अधिकारियों से बात की है और उन्हें भरोसा दिलाया है कि हम उन लोगों के पासपोर्ट रिन्यू कर देंगे जो बांग्लादेश से सऊदी अरब गए."
विदेश मंत्री ने बताया कि बहुत सारे रोहिंग्या लोगों ने बांग्लादेशी अधिकारियों को रिश्वत देकर पासपोर्ट हासिल किए थे. उन्होंने कहा, "2001, 2002 और 2006 में बहुत से रोहिंग्या लोग बांग्लादेशी पासपोर्ट पर सऊदी अरब गए. कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने उन्हें ये पासपोर्ट जारी किए."
लेकिन बांग्लादेशी विदेश मंत्री ने साफ कहा कि उनका देश इन शरणार्थियों के बच्चों की कोई जिम्मेदारी नहीं लेगा. उन्होंने कहा, "ये रोहिंग्या 1970 के दशक से बांग्लादेश में नहीं रह रहे हैं. उनके बच्चों की पैदाइश और परवरिश दूसरे देशों में हुई. उन्हें बांग्लादेश के बारे में कुछ नहीं पता. उनकी परवरिश अरब लोगों की तरह हुई है."
बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन
बांग्लादेशी विदेश मंत्री ने कुछ लोगों को पासपोर्ट देने की बात कही
मोमेन का कहना है कि सऊदी अरब सारे रोहिंग्या लोगों को वापस नहीं भेजना चाहता, "जिन लोगों को सऊदी नागरिकता मिल गई है, वे वहीं रहेंगे."
सऊदी अरब में लगभग तीन लाख रोहिंग्या लोगों को पहले ही वर्क परमिट मिल गया है. जिन 54 लोगों को सऊदी अरब वापस भेजना चाहता है, उनमें से ज्यादातर के पास बांग्लादेश से सऊदी अरब आते हुए बांग्लादेशी पासपोर्ट था या फिर उन्हें सऊदी अरब में मौजूद बांग्लादेशी कंसुलेट से पासपोर्ट मिला.
कौन ले जिम्मेदारी?
ढाका स्थित रिफ्यूजी एंड माइग्रेटरी मूवमेंट नाम की संस्था के कार्यकारी निदेशक सीआर अबरार कहते हैं कि अगर इन लोगों के पास बांग्लादेशी पासपोर्ट हैं तो उनकी जिम्मेदारी बांग्लादेश को लेनी चाहिए. लेकिन शरणार्थियों की वापसी के लिए जिस तरह से सऊदी अरब बांग्लादेश पर दबाव बना रहा है, वह उसकी भी निंदा करते हैं.
वह कहते हैं, "बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है. फिर भी उसने इन लोगों को लेकर बहुत हिम्मत दिखाई है. सऊदी अरब को बांग्लादेश पर और दबाव नहीं डालना चाहिए."
अबरार कहते हैं कि रोहिंग्या लोग आर्थिक कारणों से प्रवासी नहीं बने हैं, "वे एक प्रताड़ित समुदाय हैं. सऊदी अरब को यह बात समझनी चाहिए."
अबरार कहते हैं कि अगर बांग्लादेश सऊदी अरब से रोहिंग्या लोगों को ले लेता है तो इससे इन शरणार्थियों की वापसी के लिए म्यांमार से हो रही बातचीत में बांग्लादेश का रुख कमजोर होगा. उनका मानना है, "म्यांमार इस बात का फायदा उठाने की कोशिश करेगा और बांग्लादेश पर दबाव डालेगा कि वह और ज्यादा रोहिंग्या लोगों को अपनी नागरिकता दे."
अमेरिका की इलिनॉय स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले अली रियाज कहते हैं कि यह बांग्लादेश के लिए एक मुश्किल परिस्थिति है. लेकिन वह इस बात को नहीं मानते कि सऊदी अरब वाले मुद्दे की वजह से म्यांमार के साथ होने वाली वार्ता में बांग्लादेश के रुख पर कोई असर होगा.
रियाज ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "ये दोनों अलग अलग मुद्दे हैं. कुछ रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने का यह मतलब नहीं है कि बांग्लादेश सारे रोहिंग्या लोगों को अपना लेगा."
रविवार 17 जनवरी तक देश में 2,24,301 प्रथम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को कोविड-19 के खिलाफ टीका लग चुका लग था. उत्तर प्रदेश में टीका लेने के बाद एक सरकारी अस्पताल के कर्मचारी की मृत्यु हो गई है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि दुष्प्रभाव के अधिकतर मामले दर्द, सूजन, हल्का बुखार, बदन-दर्द, मतली, चक्कर आना और त्वचा पर दाने आना जैसी एलर्जी संबंधी प्रतिक्रियाओं तक सीमित है. हालांकि जिन 447 लोगों को दुष्प्रभाव हुए उनमें से तीन को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ गई. बाद में उनमें से दो को अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई, लेकिन एक व्यक्ति अभी भी ऋषिकेश एम्स अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी है.
लेकिन उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक सरकारी अस्पताल के एक कर्मचारी की टीका लगने के 24 घंटों बाद मृत्यु हो गई. जिले के मुख्य मेडिकल अधिकारी (सीएमओ) ने कहा है कि 46-वर्षीय अस्पताल कर्मचारी महिपाल सिंह की मृत्यु का टीके से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने बताया कि महिपाल को शनिवार को टीका लगाया गया था और रविवार को उन्हें सांस फूलने और सीने में जकड़न की शिकायत हुई और कुछ समय बाद उनकी मौत हो गई.
मीडिया में आई रिपोर्टों के अनुसार सीएमओ ने कहा है कि महिपाल के निधन का कोविड-19 के टीके से कोई संबंध लग नहीं रहा है और आगे की जानकारी उनकी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आने पर दी जाएगी. इसके अलावा भारत बायोटेक की कोवैक्सिन को लेकर विवाद बना हुआ है. मीडिया में आई रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि कोवैक्सिन लेने से पहले जिस स्वीकृति पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ता है उस पर स्पष्ट लिखा हुआ है कि यह एक क्लीनिकल ट्रायल है और इसी वजह से लोगों में इस टीके को लेकर संशय बना हुआ है.
केंद्र सरकार के अस्पतालों में इस समय कोवैक्सिन ही दी जा रही है. दिल्ली स्थित केंद्रीय अस्पताल राम मनोहर लोहिया अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टरों के संगठन ने अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को चिट्ठी लिख कर कहा है कि चूंकि कोवैक्सिन का परीक्षण अभी तक पूरा नहीं हुआ है और इस वजह से उसे लेने को लेकर अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टरों को इस टीके को लेकर आशंकाएं हैं.
इसलिए उन्होंने मांग की है कि उन्हें कोवैक्सिन की जगह सीरम इंस्टीट्यूट का टीका कोविशील्ड दिया जाए. हालांकि उनकी इस मांग पर अस्पताल ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है. देश में टीकाकरण तय कार्यक्रम के तहत आगे बढ़ रहा है. सभी राज्यों को सप्ताह में कम से कम चार दिन टीकाकरण करने के लिए कहा गया है, ताकि अस्पतालों की सेवाएं भी बाधित ना हों.
सूमी खान
ढाका, 18 जनवरी | बांग्लादेश की सरकार ने मार्च, 2020 के बाद से अलग-अलग समयों पर 23 बेलआउट पैकेजों को लॉन्च किया है ताकि कोविड-19 की वजह से हुई कमजोर आर्थिक स्थिति को थोड़ा बल मिल सके।
वित्त मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, रविवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हाशिए पर रह रहे ग्रामीणों की जिंदगी में सुधार लाने के मकसद से दो नई योजनाओं को मंजूरी दे दी, जिनकी कीमत 2,700 करोड़ टका आंकी जा रही है।
मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार ने अभी तक इन सभी संगठनों और एजेंसियों के माध्यम से प्रदान किए जाने वाले ऋण पर ब्याज दरों पर कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन लाभार्थियों को कम ब्याज पर ऋण मुहैया कराया जाएगा।
धनराशि को जारी करने से पहले वित्त विभाग द्वारा उनकी मौजूदा दरों की चर्चा और समीक्षा की जाएगी और इस पर कोई ठोस फैसला लिया जाएगा। मंत्रालय ने कहा कि नए पैकेजों का कार्यान्वयन जल्द ही शुरू होगा।
वित्तीय सहायता की कुल राशि इस वक्त 124,053 करोड़ टका है यानि कि देश के सकल घरेलू उत्पाद का 4.44 प्रतिशत।
मंत्रालय द्वारा हाल ही में आयोजित बैठकों में इन प्रोत्साहन पैकेजों के समग्र पहलुओं पर चर्चा की गई और तमाम हितधारकों की सिफारिशों के बाद ही इन नई योजनाओं को मंजूरी दी गई है।
इस चर्चा में व्यापारिक नेताओं, सरकारी अधिकारियों और बैंकों के प्रतिनिधियों, विकास भागीदारों और एजेंसियों ने सरकारी और अर्ध-सरकारी एजेंसियों के माध्यम से कुटीर, लघु और मध्यम उद्योगों (एसएमई) में धनराशि के विस्तार का सुझाव दिया।
इस बयान में आगे कहा गया कि उन्होंने हाशिए पर रह रहे लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने और गरीबों के लिए सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार करने के लिए भी कदम उठाने की बात कही है।
1,500 करोड़ टका के इस पैकेज के तहत सरकार विभिन्न सरकारी और अर्ध-सरकारी एजेंसियों के माध्यम से सूक्ष्म और कुटीर उद्यमियों को ऋण देगी, जिनमें एसएमई फाउंडेशन, बांग्लादेश स्मॉल एंड कॉटेज इंडस्ट्रीज कॉपोर्रेशन और बांग्लादेश एनजीओ फाउंडेशन शामिल होंगे ताकि महामारी के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गति लाई जा सके।
300 करोड़ टका की धनराशि एसएमई फाउंडेशन को प्रदान किए जाएंगे ताकि वे कुटीर उद्योगों में अपने परिचालन का विस्तार कर सके और साथ ही इसके माध्यम से महिला उद्यमियों की भी मदद की जाएगी।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, एसएमई फाउंडेशन द्वारा छोटे व्यवसायों और उद्यमियों के बीच ऋण का प्रसार किया जाएगा ताकि महामारी की वजह से पैदा हुई आर्थिक मंदी की स्थिति का भली-भांति सामना किया जा सके।
इसके अलावा, पैकेज के तहत बांग्लादेश लघु और कुटीर उद्योग निगम को 100 करोड़ रुपये मिलेंगे। देश भर में छोटे-छोटे प्रयासों का समर्थन करने के लिए स्थापित राज्य द्वारा संचालित यह निगम अपने मौजूदा क्रेडिट कार्यक्रमों के तहत अपने यहां के छोटे उद्यमियों और औद्योगिक इकाइयों को ऋण प्रदान करेगा।
पैकेज में व्यवसाय के ²ष्टिकोण से महिलाओं को भी वित्तीय सहायता दी जाएगी, जो आर्थिक मंदी की वजह से काफी प्रभावित हुई हैं।
महिलाओं के उपक्रमों का समर्थन करने और महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए एक सरकारी पहल के तहत जोइता फाउंडेशन को 50 करोड़ टका मिलेंगे। ऋण प्रदान करने के अलावा फाउंडेशन द्वारा महिला उद्यमियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
इसके अलावा, सामाजिक विकास फाउंडेशन पल्ली दोरिद्रो विमोचन फाउंडेशन और बांग्लादेश पल्ली डेवलपमेंट बोर्ड को भी क्रमश: 300-300 करोड़ टका दिए जाएंगे और स्मॉल फार्मस डेवलपमेंट फाउंडेशन को 100 करोड़ टका मिलेगा।
मार्च 2020 में, सरकार ने देश में महामारी के शुरू होने के बाद से कुटीर, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए 20,000 करोड़ टका के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की थी। हालांकि, बड़े औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों की तुलना में यहां ऋणों के वितरण की दर कम थी।
1,200 करोड़ टका पैकेज के तहत गरीबी से प्रभावित देश के 150 उप-जिलाओं में सुविधाहीन बुजुर्गों, विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं को सहायता के रूप में धनराशि प्रदान की जाएगी। लाभार्थियों को एक महीने में 500 टका का भत्ता मिलेगा। पैकेज को वित्तीय वर्ष 2021-2022 में लागू किया जाएगा। (आईएएनएस)
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 18 जनवरी (आईएएनएस)| कमला देवी हैरिस, विवेक मूर्ति, गौतम राघवन, माला अडिगा, विनय रेड्डी, भरत राममूर्ति, नीरा टंडन, सेलिन गाउंडर, अतुल गवांडे कुछ ऐसे भारतीय अमेरिकी नाम हैं जो अब किसी भी समय की तुलना में वहाइट हाउस के गलियारे में ज्यादा मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं।
अब तक, लगभग दो दर्जन भारतीय-अमेरिकियों को बाइडेन-हैरिस ए-टीम में ज्यादा प्रभावशाली पदों पर नियुक्त या नामित किया गया है।
रिपब्लिकन सीनेटर डेविड पेरड्यू, निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सहयोगी, ने कमला हैरिस को कह-मह-मह-लाह या काह-माह-लाहऔर कमला-माला-माला कहा! उन्होंने कुछ ऐसा बोलकर 3 नवंबर, 2020 के चुनाव से पहले कमला हैरिस का मजाक उड़ाया था।
जैसा कि पेरड्यू ने खुद का एक तमाशा बनाया था, बहुत कम ही उन्हें या ट्रंप को पता था कि दो दर्जन भारतीय नाम 2021 में व्हाइट हाउस में अपनी जगह बनाएंगे।
6 जनवरी तक, जिस दिन एक हिंसक समर्थक ट्रंप भीड़ ने वाशिंगटन डीसी में कैपिटल बिल्डिंग पर हमला किया, हैरिस के डेमोक्रेटिक पार्टी के सहयोगियों ने जॉर्जिया सीनेट की दोनों सीटों पर जीत हासिल कर ली थी, जिसने अमेरिका के शक्ति संतुलन को बदल दिया।
जब हैरिस और बाइडेन शपथ लेंगे तो वे चिकित्सा, अर्थशास्त्र, डिजिटल संचार और स्टोरी टेलिंग सहित विषय वस्तु विशेषज्ञता के एक विस्तृत आर्क के पार भारतीय-अमेरिकी सफलता की कहानियों के व्हाइट हाउस में आने का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
इन नामों में गौतम राघवन, विवेक मूर्ति, माला अडिगा, विनय रेड्डी, भारत राममूर्ति, नीरा टंडन, सेलीन गाउंडर शामिल हैं।
हैरिस ने अपना नाम अमेरिका को समझाने में बहुत समय बिताया है। जिसका अर्थ कमल का फूल होता है।
कमला, देवी लक्ष्मी के 108 नामों में से एक है, जो भारतीय हिंदू संस्कृति में धन, समृद्धि और सौभाग्य की शक्ति है।
आईएएनएस के साथ हालिया बातचीत में, राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और एएपीआई डेटा के संस्थापक कार्तिक रामकृष्णन ने 'बहुत ही विशेष तमिल ब्राह्मण अनुभव' की ओर इशारा किया, जिसकी झलक कमला हैरिस में देखने को मिलती है।
अगस्त 2020 में डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन के दौरान, कमला हैरिस ने इन शब्दों में खुद को अमेरिकी जनता के समक्ष पेश किया था, "एक और महिला है, जिसका नाम ज्ञात नहीं है, जिसकी कहानी साझा नहीं की गई है। एक अन्य महिला जिसके कंधे पर मैं खड़ी हूं और वह मेरी मां-श्यामला गोपालन हैरिस हैं।"
हालांकि, समानांतर में, सांस्कृतिक परिवर्तन की एक विधि के रूप में परिवर्तनों को नाम देने के लिए अमेरिका कोई अजनबी नहीं है।
जिस किसी ने भी कमला के नाम का मजाक उड़ाना अच्छा विचार समझा, उसका यह मिथक वह वर्ष 2020 में टूट गया।
चीन के ताज़ा सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से सिर्फ़ चीन ने ही साल 2020 में बढ़ोतरी दर्ज की है.
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन की जीडीपी की विकास दर 2.3 फ़ीसदी रही है. साल के आखिरी तिमाही में ये दर 6.5 फीसदी रही वहीं तीसरी तिमाही में ये दर 4.9 फीसदी थी.
कोविड-19 के कारण लॉकडाउन की परिस्थिति में 2020 के शुरूआती तीन महीने में चीन की अर्थव्यस्था 6.8 फीसदी तक गिर गई थी.
वायरस के लिए कंटेनमेंट ज़ोन तय करने और आपातकालीन सहायताओं के कारण चीन का व्यापार और अर्थव्यवस्था फिर से एक बार पटरी पर लौटने लगी थी.
हालांकि कोविड-19 का असर अब तक बरक़रार है, देशभर में लगे शटडाउन और बंद पड़े कई मैन्युफ़ैक्चरिंग प्लांट ने अर्थव्यवस्था को धीमी विकास दर की ओर धकेल दिया है. वर्तमान जीडीपी के आंकड़े बीते 40 साल में चीन की सबसे धीमी विकास-दर दर्शाते हैं.
सोमवार को सामने आए आंकड़ों के मुताबिक़ चौथी तिमाही में चीन के औद्योगिक उत्पादन में 7.3 फीसदी की बढ़त और रिटेल सेक्टर में 4.6 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है.
कई विश्लेषकों के मत हैं कि साल 2021 में अर्थव्यस्था और तेज़ी से आगे बढ़ेगी लेकिन इसके विपरीत चीन के सांख्यिकी ब्यूरो ने टिप्पणी की है कि "विदेश और देश में भयानक और जटिल परिस्थितियां पैदा हुई है, महामारी का 'बड़ा असर' पड़ा है."
गुरुवार को सामने आए आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर महीने में चीन के निर्यात में उम्मीद से अधिक वृद्धि हुई क्योंकि दुनिया भर में कोरोनो वायरस के प्रकोप के दौरान ने चीनी सामानों की मांग को बढ़ी है. इसके अलावा चीन ने 2020 में कच्चे तेल, तांबा, लौह अयस्क और कोयले की रिकॉर्ड खरीदारी की है.
जानकारों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में चीनी मुद्रा युआन के मज़बूत होने के बावजूद चीनी सामान की बिक्री बढ़ी है. युआन के मज़बूती से निर्यात महंगा हो जाता है.
इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट में बतौर प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट काम करने वाली यूए सू कहती हैं, "जीडीपी के आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था अब सामान्य हो रही है. अभी भी चीन के उत्तरी प्रांतों में कोरोना के नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं जिससे अर्थव्यवस्था को मामूली झटका लग सकता है, लेकिन उम्मीद यही है कि अर्थव्यवस्था के सुधरने की गति बरकरार रहेगी."
बीते महीने चीन के नेताओं ने एक एजेंडा बैठक में तय किया था कि इस साल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी नीतियों का समर्थन किया जाएगा और चीन किसी भी तरह के अचानक नीतियों के परिवर्तन से बचेगा.
चीन की अर्थव्यवस्था में ऐसे वक़्त में बढ़त देखी जा रही है, जब दुनिया के बाक़ी देश कमज़ोर मांग, लाखों नौकरियां जाने और बंद होते कारोबारों से जूझ रहे हैं.
एक कठोर लॉकडाउन की वजह से 2020 की पहली तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था में 6.8 फीसदी की ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई, इसके बावजूद चीन की अर्थव्यवस्था का इंजन अब फिर से रफ़्तार पकड़ने लगा है.
लेकिन हमें चीन के डेटा को लेकर हमेशा चौकसी बरतनी चाहिए. चीन की अर्थव्यवस्था की स्थिति को समझने के लिए हमें आंकड़ों के बजाए डेटा के कर्व को देखना चाहिए. ये आंकड़े दिखाते हैं कि शहरों में कठोर और तुरंत लॉकडाउन लगाने की चीन की रणनीति ने काम किया. सरकार के नेतृत्व में निवेश और चीनी सामानों के लिए वैश्विक मांग पैदा करने के कदम ने तेज़ रिकवरी और निर्यात बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई.
हालांकि चीन की ये सालाना वृद्धि दर 40 से भी ज़्यादा सालों में सबसे कम रही है. एक तरफ वायरस के दोबारा पैर पसारने की चिंताओं ने चीनी ग्रोथ की भविष्य की तस्वीर को धुंधला कर दिया है और उपभोक्ता मांग अब भी कमज़ोर है, तो दूसरी तरफ चीन अमेरिका के साथ अपने तल्ख़ रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहा है. हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि अमेरिका का नया प्रशासन चीन पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुक़ाबले नरम रवैया अपनाएगा.
इसमें कोई शक नहीं है कि ये सभी चुनौतियां 2021 में चीन के विकास पर असर डालेंगी, लेकिन संभावना है कि चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में तो बेहतर स्थिति में ही होगा. (bbc.com)
जकार्ता, 18 जनवरी | इंडोनेशिया में आए एक शक्तिशाली भूकंप और बाढ़ से मरने वालों की संख्या बढ़कर 96 हो गई है और इस वक्त करीब 70,000 लोग विस्थापित हुए हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी ने सोमवार को इसकी जानकारी दी है। एजेंसी के एक प्रवक्ता रादित्य जाति ने कहा कि पश्चिम सुलावेसी प्रांत में 14 व 15 जनवरी को 6.2 तीव्रता के भूकंप और 5.9-तीव्रता के इसके आफ्टरशॉक के बाद कुल 81 लोगों ने अपनी जानें गंवाई हैं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी बीच दक्षिण कालिमंतान में 14 जनवरी को बाढ़ आने के चलते 15 लोगों की मौत हो चुकी है।
जाति ने कहा कि भूकंप आने की वजह से करीब 28,000 लोगों को दक्षिणी सुलावेसी प्रांत के शहर मामुजू और मैजेने जिले में बने 25 शिविरों में विस्थापित होना पड़ा, जबकि बाढ़ के चलते लगभग 40,000 निवासियों को दक्षिणी कालिमंतान प्रांत में मजबूरन विस्थापित होना पड़ा।
उन्होंने आगे बताया कि भूकंप से क्षतिग्रस्त हुए घरों की संख्या जिले में 1,150 हो गई है और पांच विद्यालयों को भी नुकसान पहुंचा है। शहर और जिले में भूंकप के फिर से आने की आशंका बनी हुई है।
एजेंसी के प्रमुख डॉनी मोनाडरे के मुताबिक, "लोगों को प्रभावित इलाकों से बाहर निकालने की प्रक्रिया में कोविड-19 के फैलने की आशंका को ध्यान में रखते हुए रैपिड टेस्ट कराए जा रहे हैं और विस्थापित लोगों के लिए बने शिविर भी एक-दूसरे से दूर-दूर बनाए गए हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "ये पीड़ित किसी भी तरह से कोविड-19 वायरस की चपेट में न आए, यह सुनिश्चित करने के लिए एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था होगी।"
जाति ने यह भी बताया, इस बीच, दक्षिण कालिमंतान प्रांत में आए बाढ़ की वजह से करीब-करीब 25,000 मकान ढ़ह गए हैं।
उन्होंने कहा कि 14 जनवरी से एक आपातकालीन स्थिति घोषित की गई है और जोखिम के होने की भविष्यवाणी की गई है। (आईएएनएस)
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आलोचक अलेक्सी नावाल्नी को रूस लौटते ही गिरफ्तार कर लिया गया है. उनकी गिरफ्तारी की वैश्विक नेताओं ने आलोचना की है. अमेरिका ने नावाल्नी की गिरफ्तारी को विरोधियों को चुप कराने वाला कदम बताया.
मॉस्को एयरपोर्ट पर विपक्षी नेता नावाल्नी को उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया जब वे कई महीनों बाद अपना इलाज कराकर जर्मनी से लौटे थे. नावाल्नी को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कटु आलोचक माना जाता है. पिछले साल 20 अगस्त को उनकी विमान यात्रा के दौरान तबियत बिगड़ गई थी और विमान की आपात लैंडिंग करानी पड़ी थी. बाद में पता चला कि उन्हें जहर दिया गया था. नावाल्नी का इलाज जर्मनी में चल रहा था. नावाल्नी के साथ हुई घटना के बाद पश्चिमी देशों ने इसकी कड़े शब्दों में आलोचना की थी. नावाल्नी का कहना था उन्हें नर्व एजेंट देने का आदेश पुतिन ने दिया था.
अमेरिका, यूरोपीय संघ, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों, कनाडा की सरकार और अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के एक वरिष्ठ सहयोगी ने नावाल्नी की तत्काल रिहाई का आग्रह किया है. अधिकार समूहों ने भी रिहाई की मांग की है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आरोप लगाया है कि रूसी सरकार नावाल्नी को चुप कराने के लिए "अथक अभियान" चला रही है. यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने ट्विटर पर लिखा कि नावाल्नी की गिरफ्तारी "अस्वीकार्य" है जबकि फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि गिरफ्तारी "गंभीर चिंता" का विषय है. बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने कहा, नावाल्नी को तुरंत रिहा किया जाना चाहिए और उनपर हमले के अपराधियों को पकड़कर सजा दी जानी चाहिए."
गिरफ्तारी की आलोचना
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ ने कहा है कि अमेरिका इसकी "कड़ी निंदा" करता और उन्होंने गिरफ्तारी पर चिंता जाहिर करते हुए कहा रूसी सरकार की आलोचना करने वाली आवाजों को दबाने का यह ताजा प्रयास है. रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखरोवा ने पलटवार करते हुए फेसबुक पोस्ट में लिखा कि विदेशी नेता "अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करें" और "अपने देश की समस्याओं से निपटें."
एएफपी के मुताबिक 44 साल के नावाल्नी जब बर्लिन की फ्लाइट से मॉस्को पहुंचे तो उनका सामना पासपोर्ट कंट्रोल के पास वर्दी वाले पुलिसकर्मयिों से हुआ. उन्होंने अपनी पत्नी युलिया को गले लगाया, जो जर्मनी से उनके साथ यात्रा कर आई थीं. वहां से पुलिस नावाल्नी को लेकर चली गई. उनके समर्थकों का कहना है कि उन्हें एयरपोर्ट के नजदीक एक पुलिस स्टेशन में रखा गया. नावाल्नी की वकील ओल्गा मिखाइलोवा ने कहा कि उन्हें बिना कोई कारण हिरासत में लिया गया और उन्हें साथ जाने नहीं दिया गया. उन्होंने कहा, "अभी जो भी हो रहा है वह कानून के खिलाफ हो रहा है."
क्रेमलिन के आलोचक
रूस की एफएसआईएन जेल सेवा ने एक बयान में कहा है कि उसने नावाल्नी को 2014 के धोखाधड़ी के निलंबति जेल की सजा के उल्लंघन के मामले में हिरासत में लिया है और कोर्ट का फैसला आने तक उन्हें हिरासत में रखा जाएगा. नावाल्नी धोखाधड़ी के एक मामले में दोषी हैं. एफएसआईएन जेल सेवा ने पहले कहा था कि अगर नावाल्नी शर्तों का उल्लंघन करते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा, जेल सेवा ने उन्हें कार्यालय में उपस्थिति दर्ज करने को कहा था. शेरमेटयेवो एयरपोर्ट पर हिरासत में लिए जाने से पहले पत्रकारों से बात करते हुए नावाल्नी ने कहा था कि उन्हें गिरफ्तारी से डर नहीं लगता. उन्होंने कहा, "मुझे खौफ नहीं है...क्योंकि मुझे पता है कि मैं सही हूं, मुझे पता है कि मेरे खिलाफ आपराधिक मामले गढ़े गए हैं."
नावाल्नी के विमान को आखिरी समय में मॉस्को के वुनकोव एयरपोर्ट से शेरमेटयेवो एयरपोर्ट के लिए मोड़ दिया गया. नावाल्नी ने अपने समर्थकों को वुनकोव एयरपोर्ट पर जुटने के लिए कहा था. माना जा रहा है कि प्रशासन के इस फैसले के पीछे पत्रकारों और नावाल्नी के समर्थकों को मिलने से रोकना था. नावाल्नी का इलाज बर्लिन के शारिटे अस्पताल में नोविचोक नाम के नर्व एजेंट (जहर) के लिए चल रहा था. उन्होंने जर्मनी में पांच महीने बिताए और उसके बाद वे रूस लौट थे. जहर देने के लिए उन्होंने क्रेमलिन को जिम्मेदार ठहराया था. मॉस्को नावाल्नी को जहर दिए जाने के आरोपों से इनकार करता आया है, इसके बजाय वह पश्चिमी समर्थित साजिश के आरोपों को दोहराता आया है और हमले की जांच करने से इनकार कर चुका है.
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
सैन फ्रांसिस्को, 18 जनवरी | कैलिफोर्निया काउंटी में 32,904 मामले और 418 नई मौतें सामने आने के बाद राज्य में कुल मामलों की संख्या 29,51,682 और मौतें 33,391 पर पहुंच गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार तक बे एरिया में कुल मामलों की संख्या 3,34,505 थी और 3,342 लोगों की मौत हो चुकी थी। वहीं सांता क्लारा काउंटी में 1,060 मौतें और 91,466 मामले दर्ज हुए हैं। सैन फ्रांसिस्को में शनिवार को वायरस से 13 लोगों की मौत होने के बाद कुल मौतों की संख्या 254 हो गई थी, यहां अब तक 28,221 मामले दर्ज हो चुके हैं।
कॉन्ट्रा कोस्टा काउंटी में 446 मौतों के साथ, अब तक 51,573 लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। शनिवार को भी यहां 946 मामले सामने आए। सैन मेटो काउंटी के अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि यहां 554 नए मामलों के बाद कुल मामले 31,204 हो गए हैं। अल्मेडा काउंटी में शनिवार को 919 नए मामले सामने आए और 2 नई मौतें हुईं, अब यहां कुल 65,679 मामले और 757 मौतें दर्ज हो चुकी हैं।
नॉर्थ बे के सोनोमा, सोलानो, मारिन और नपा काउंटियों में शनिवार को कोई नई मौत नहीं हुई, लेकिन 383 नए मामले आए। अब यहां कुल मामलों की संख्या 66,362 और मौतों की संख्या 531 है।
कैलिफोर्निया के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, बे एरिया क्षेत्र में अब आईसीयू की उपलब्धता का प्रतिशत 3.4 प्रतिशत है। (आईएएनएस)
जकार्ता, 18 जनवरी (आईएएनएस)| इंडोनेशिया में आए एक शक्तिशाली भूकंप और बाढ़ से मरने वालों की संख्या बढ़कर 96 हो गई है और इस वक्त करीब 70,000 लोग विस्थापित हुए हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी ने सोमवार को इसकी जानकारी दी है। एजेंसी के एक प्रवक्ता रादित्य जाति ने कहा कि पश्चिम सुलावेसी प्रांत में 14 व 15 जनवरी को 6.2 तीव्रता के भूकंप और 5.9-तीव्रता के इसके आफ्टरशॉक के बाद कुल 81 लोगों ने अपनी जानें गंवाई हैं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी बीच दक्षिण कालिमंतान में 14 जनवरी को बाढ़ आने के चलते 15 लोगों की मौत हो चुकी है।
जाति ने कहा कि भूकंप आने की वजह से करीब 28,000 लोगों को दक्षिणी सुलावेसी प्रांत के शहर मामुजू और मैजेने जिले में बने 25 शिविरों में विस्थापित होना पड़ा, जबकि बाढ़ के चलते लगभग 40,000 निवासियों को दक्षिणी कालिमंतान प्रांत में मजबूरन विस्थापित होना पड़ा।
उन्होंने आगे बताया कि भूकंप से क्षतिग्रस्त हुए घरों की संख्या जिले में 1,150 हो गई है और पांच विद्यालयों को भी नुकसान पहुंचा है। शहर और जिले में भूंकप के फिर से आने की आशंका बनी हुई है।
एजेंसी के प्रमुख डॉनी मोनाडरे के मुताबिक, "लोगों को प्रभावित इलाकों से बाहर निकालने की प्रक्रिया में कोविड-19 के फैलने की आशंका को ध्यान में रखते हुए रैपिड टेस्ट कराए जा रहे हैं और विस्थापित लोगों के लिए बने शिविर भी एक-दूसरे से दूर-दूर बनाए गए हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "ये पीड़ित किसी भी तरह से कोविड-19 वायरस की चपेट में न आए, यह सुनिश्चित करने के लिए एंटीजन टेस्ट की व्यवस्था होगी।"
जाति ने यह भी बताया, इस बीच, दक्षिण कालिमंतान प्रांत में आए बाढ़ की वजह से करीब-करीब 25,000 मकान ढ़ह गए हैं।
उन्होंने कहा कि 14 जनवरी से एक आपातकालीन स्थिति घोषित की गई है और जोखिम के होने की भविष्यवाणी की गई है।