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नई दिल्ली, 26 अगस्त। दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) ने दिल्ली के आर के पुरम में पुलिस द्वारा एक किशोर की पिटाई करने के वायरल वीडियो का संज्ञान लिया है। इस मामले में दो पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया है। डीसीपीआर ने कहा, एसएचओ आरके पुरम पुलिस को नोटिस जारी किया गया है, जिसमें वीडियो में दिख रहे दोनों पुलिसकर्मियों की पहचान करने और आईपीसी की धारा 166, 321, 322 और धारा 75, जेजे एक्ट, 2015 के तहत उनके खिलाफ केस दर्ज करने का निर्देश दिया है।
दिल्ली सरकार के मुताबिक सरकारी अधिकारियों द्वारा इस तरह का कार्य भारत के संविधान की भावना के खिलाफ है और बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन है।
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने ट्विटर पर प्रकाशित एक स्टोरी का संज्ञान लेते हुए यह निर्देश दिया। डीसीपीसीआर ने कहा, ट्विटर पर संलग्न किए गए इस वीडियो से पता चला है कि आरके पुरम एरिया में एक पुलिसकर्मी द्वारा एक किशोर के साथ मारपीट की गई है और पूरे घटनाक्रम को एक अन्य पुलिसकर्मी खड़ा देख रहा है। कथित तौर पर लड़का भोजन की तलाश में देर रात सड़क पर भटक रहा था।
आयोग ने पुलिस अधिकारियों की इस तरह की मनमानी और उदासीनता की कड़ी निंदा की है। डीसीपीसीआर ने एसएचओ आरके पुरम को एक नोटिस जारी किया है, जिसमें इस घटना में शामिल दोनों अधिकारियों की पहचान करने का निर्देश दिया गया है। किसी लोक सेवक द्वारा नियमों की अवहेलना करने के आरोप में उन पुलिस कर्मियों पर आईपीसी की धारा-166 के तहत केस दर्ज करने के लिए भी कहा गया है। साथ ही, किसी को चोट पहुंचाने के लिए आईपीसी की धारा 321, 322 (स्वेच्छा से गंभीर रूप से आहत) और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75, बच्चे को क्रूरता के लिए दंड से संबंधित धारा भी शामिल करने का निर्देश दिया गया है।
डीसीपीसीआर ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा, सरकारी अधिकारियों द्वारा इस तरह के कृत्य भारत के संविधान की भावना के खिलाफ हैं और बच्चों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 21 सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है। इस तरह की हरकतें पुलिस बल की छवि को धूमिल करती हैं। आयोग इस मामले को आगे बढ़ाएगा और न्याय दिलाएगा।(IANS)
नई दिल्ली, 26 अगस्त। देशभर के जिन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश है, वे गुरुवार से 'किरण' के माध्यम से इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। यह एक फ्री हेल्पलाइन है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय व इसके सहयोगियों द्वारा तैयार हेल्पलाइन 1800-599-0019 का मकसद शुरुआती जांच, प्राथमिक उपचार, मनोवैज्ञानिक समर्थन, तनाव प्रबंधन, मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरी, विचलित व्यवहार के रोकथाम और मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में संकट प्रबंधन को उपलब्ध कराना है।
मानसिक स्वास्थ्य पुनर्सुधार संबंधी सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ ही हेल्पलाइन का उद्देश्य तनाव, चिंता, डिप्रेशन, पैनिक अटैक, एडजस्टमेंट डिस्ऑर्डर, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिस्ऑर्डर, सब्सटेंस एब्यूज, सुसाइडल थॉट्स, महामारी के चलते पैदा हुए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध कराना है।
यह हेल्पलाइन 13 भाषाओं में किसी भी एक व्यक्ति, परिवार, एनजीओ, डीपीओ, अभिभावक संघ, प्रोफेशनल एसोसिएशन, पुनर्वास केंद्र, अस्पतालों के साथ ही साथ लद्दाख, जम्मू व कश्मीर, आठ उत्तर-पूर्वी राज्य, अंडमान और निकोबार द्वीपपुंज और लक्ष्यदीप सहित पूरे देश में जरूरत में पड़े किसी के लिए भी उपलब्ध होगा।
देश के केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत गुरुवार को वर्चुअली 'किरण' को लॉन्च करेंगे। इस दौरान हेल्पलाइन के पोस्ट, ब्रोशर और रिसोर्स बुक भी जारी किए जाएंगे।
प्रति घंटे 300 लोगों को संभालने की क्षमता के साथ 660 वॉलेंटियर्स नैदानिक और पुनर्वास मनोवैज्ञानिक, 668 वॉलेंटियर मनोचिकित्सकों के साथ-साथ 75 विशेषज्ञ हेल्पलाइन के 25 केंद्रों में शामिल किए जाएंगे।(IANS)
नई दिल्ली, 26 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश आर्थिक स्थिति की हालत केंद्र द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के कारण खराब हुई है और केंद्र ने अपने पास शक्तियां होने के बावजूद ऐसे कदम नहीं उठाए जिससे हालात सुधरते। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र ने कर्ज वसूली को स्थगित तो कर दिया लेकिन इस पर लगने वाले ब्याज और ब्याज पर ब्याज को लेकर अपना रुख साफ नहीं किया है।
देश की आर्थिक स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान कर्ज वसूली स्थगित किए जाने पर केंद्र सरकार की निष्क्रियता की बात की और एक सप्ताह में इस पर अपना रुख साफ करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए सख्त लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्खा की हालत खराब हुई है।
सुप्रीम के जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कर्ज स्थदन के बाद ब्याज पर ब्याज लगाए जाने को लेकर केंद्र का रुख साफ करने को कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत पर्याप्त शक्तियां उसके साथ उपलब्ध थीं फिर भी सरकार ने इस मामले में अपना रुख साफ नहीं किया।
सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार आरबीआई के साथ मिलकर इस विषय पर कोआर्डिनेट कर रही है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह समस्या आपके (केंद्र सरकार) लॉकडाउन की वजह से पैदा हुई है। यह समय व्यवसाय करने का नहीं है, बल्कि इस वक्त तो लोगों की दुर्दशा पर विचार करना होगा। मेहता ने कहा, माय लॉर्ड आप ऐसा मत कहिए। हम आरबीआई के साथ समन्वय में काम कर रहे हैं।
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह ने भी सॉलिसिटर जनरल से कहा कि केंद्र आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है।
तुषार मेहता ने तर्क दिया कि सभी समस्याओं का एक समान हल नहीं हो सकता। वहीं याचिकाकर्ता की तरफ से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने बताया कि कर्ज स्थगन की समय सीमा 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी। सिब्बल ने इसके विस्तार की मांग की। सिब्बल ने कहा, मैं केवल यह कह रहा हूं कि जब तक इस याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक कर्ज स्थगन की अवधि खत्म नहीं होनी चाहिए। इस मामले की अगली सुनवाई अब एक सितंबर को होगी। (navjivanindia)
शिवपुरी, 26 अगस्त। मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले पूर्व विधायकों पर बड़ा हमला बोला है, और कहा है कि विधायक 35-35 करोड़ में बिके हैं। शिवपुरी में जयवर्धन सिंह ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बुधवार को आरोप लगाया कि "जो विधायक कांग्रेस छोड़कर गए हैं, उन्होंने 35-35 करोड़ रुपए लिए हैं।"
मप्र के पूर्व कैबिनेट मंत्री जयवर्धन सिंह ने आगे कहा कि, "कांग्रेस को जनता ने पांच साल के लिए जनादेश दिया था, मगर विधायकों के बिक जाने से उपचुनाव हो रहे हैं। कोरोना काल में चुनाव के लिए कांग्रेस से भाजपा में गए तत्कालीन विधायक जिम्मेदार हैं। कोरोना काल में मतदाता को कतार में लगना होगा और इसके लिए कोई और नहीं कांग्रेस छोड़ने वाले विधायक जिम्मेदार हैं।"
कार्यकर्ताओं से पूर्व मंत्री ने कहा अब परिस्थितियां बदल गईं हैं, आप के लिए हम हर समय तैयार हैं।(IANS)
-पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की। वे अब कभी खुद को वैचारिक मुद्दों वाला नेता नहीं कह सकेंगे। राजनीतिक दलों को छोड़कर दूसरे दल में जाना अलग बात है। सियासत में अब सब जायज है। पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस ) के मुख्यालय में जाना अलग है।
ऐसा करके ज्योतिरादित्य ने अपनी खुद की गरिमा को अपनी ही नजरों में गिरा लिया। क्योंकि संघ मुख्यालय जाने का मतलब है, अपनी पूरी ज़िंदगी भर की विचारधारा को केवल चुनावी राजनीति और सत्ता हथियाने के लिए कुर्बान कर देना। एक तरह से सिंधिया का ये कदम उनको वैचारिक रूप से शून्य साबित करता है। वे राजनीति के इस बाज़ार में अब निर्वस्त्र दिखाई दे रहे हैं।
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना आवरण बदलना है। पर अपने विचारों को फायदों के लिए किसी ‘संघ’ के चरणों में रख देना दीनता का प्रतीक है। ज्योतिरादित्य ने कुछ ऐसा ही किया। सिंधिया ने अपने पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के उसूलों का भी ख्याल नहीं किया।
अपना पहला चुनाव जनसंघ के बैनर तले लड़ने वाले माधवराव सिंधिया ने जब उसे छोड़ा तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा। तमाम मतभेदों के बावजूद वे कांग्रेस में बने रहे। कांग्रेस भी उन्हें विचारधारा वाला प्रतिबद्ध नेता मानते हैं।
1996 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी पर उस दौर में उन्होंने अपने सोच को ज़िंदा रखा। भाजपा का दामन थामने के बजाय सिंधिया ने मध्यप्रदेश विकास पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा और जीते भी। उनका रुतबा और हैसियत ऐसी थी कि भाजपा ने उनके खिलाफ 1996 में कोई उम्मीदवार ही मैदान में नहीं उतारा।
1999 में वे कांग्रेस से सांसद बने। यही कारण है कि माधवराव सिंधिया आज भी राजनीति में एक सम्मानीय नाम है। ज्योतिरादित्य ने ये अवसर खो दिया। अब उनपर अवसरवादी होने की मोहर लग गई।
आखिर ज्योतिरादित्य इतने कमजोर क्यों हो गए ? वो महाराज जिसके नाम पर भाजपा ने पूरा अभियान चलाया हो। माफ़ करो महाराज। वो शिवराज और संघ जिसने हमेशा 1857 की गद्दारी को सिंधिया विरासत को जमकर कोसा, उनके खेल में सिंधिया एक मोहरा बनकर खड़े हो गए। क्या सिर्फ एक चुनाव हारने से कोई आदमी इस कदर हताश हो जाता है।
इसके मायने हैं कि ज्योतिरादित्य एक खोखले और कमजोर नेता हैं। जो एक आंधी में अपने उसूल, परिवार की साख और खुद की गरिमा को बचाने में नाकामयाब रहे। अगर वे मजबूत होते तो कांग्रेस के भीतर ही रहकर संघर्ष करते और खुद को साबित करते। 1857 के ‘गद्दारी’ के दाग को उनकी दादी और उनके पिता ने अपने कर्मों से बड़ी मेहनत करके धोया था। आज संघ की शरण में जाकर ज्योतिरादित्य ने फिर एक नया दाग अपने दामन पर लगा लिया।
इस लेख का मकसद संघ के अच्छे या बुरे होने से कतई नहीं है। संघ अपनी विचारधारा से जुड़ा संगठन है। पर ज्योतिरादित्य जिस संघ के खिलाफ पूरी ज़िंदगी बोलते रहे, वे अब कैसे अपने करीबियों से नजरे मिला पाएंगे। संघ के प्रतिबद्ध #कितने लोग सिंधिया और उनके समर्थकों को वोट देंगे इसका फैसला तो वक्त करेगा। पर जो संघ अपनी विचारधारा के आगे देश और किसी व्यक्ति विशेष दोनों को कुछ न समझता हो, वो क्या सिंधिया के चार कदम चलने से उनके प्रति उदार हो जाएगा ?
शायद, कभी नहीं। सिंधिया ने अपनी गरिमा के साथ अपने समर्थक 22 विधायकों के लिए भी मुश्किल खड़ी कर दी है। संघ से नजदीकी के चलते सिंधिया ने बहुत बड़े वर्ग को नाराज़ भी कर लिया है। उप चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है। एक पल के लिए सोचिये यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया संघ मुख्यालय नागपुर न भी जाते तो उनकी हैसियत में कौन सी कमी हो जाती ?
इलायची… अब शायद ही लोगों को याद हो। रफी अहमद किदवई नामक एक नेता थे। कानून की डिग्री थी उनके पास, पर कभी वकालत नहीं की। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के रहनेवाले. वहां मिट्टी का पुश्तैनी घर था ,खपरैल। आजीवन केंद्रीय मंत्री रहे, पर मरने के बाद उनकी पत्नी और बच्चे गांव, बाराबंकी लौट आये. उसी टूटे-फूटे खपड़ैल घर में। आजीवन केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहने के बावजूद उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी, दिल्ली में घर नहीं था। स्वतंत्रता सेनानी किदवई साहब अकेले, गांधीवादी राजनीति के पुष्प नहीं थे। राजनीति में सिद्धांतों-विचारों पर चलनेवाले ऐसे लोगों की तब लंबी कतार थी।
फिर…आज की राजनीति में सामंत और संपन्न व्यक्ति अपनी विचारधारा से समझौता करके खुद को दीन बनाने पर क्यों आमादा रहते हैं।(POLITICSWALA.COM)
नई दिल्ली, 26 अगस्त। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की। इस बैठक में जीएसटी बकाया और नीट-जेईई एग्जाम पर चर्चा हुई। बैठक में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश सिंह बघेल, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, पुडुचेरी के सीएम नारायणस्वामी, महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिस्सा लिया।
बैठक की शुरुआत करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार छात्रों की अन्य समस्याओं और परीक्षाओं जैसी समस्याओं के साथ लापरवाही से निपटा जा रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसी घोषणाएँ हैं, जो वास्तव में चिंतित करने वाली बात है। यह नीति प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक मूल्यों के लिए एक रुकावट है।
उन्होंने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि दशकों में बनी सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति को बेचा जा रहा है। कुछ राज्य सरकारों ने अपना विरोध व्यक्त किया है। छ: हवाई अड्डों का निजीकरण किया गया है। रेलवे, जो देश की जीवनरेखा होती थी, उसका भी निजीकरण किया जा रहा है।
EIA मसौदा 2020 की अधिसूचना, जो कि गंभीर लोकतंत्र विरोधी है, के खिलाफ भी विरोध है। पर्यावरण, आजीविका और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए बने कानूनों को कमजोर किया जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी पर भी कुछ मुख्यमंत्रियों ने आपत्ति जताई है:कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी
— Congress (@INCIndia) August 26, 2020
सोनिया गांधी ने कहा कि, 'EIA मसौदा 2020 की अधिसूचना, जो कि गंभीर लोकतंत्र विरोधी है, के खिलाफ भी विरोध है। पर्यावरण, आजीविका और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए बने कानूनों को कमजोर किया जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी पर भी कुछ मुख्यमंत्रियों ने आपत्ति जताई है।' उन्होंने कहा कि, 'हमारे पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पहले ही इस बात पर प्रकाश डाल चुके हैं कि यह कैसे MSP को नष्ट करेगा तथा PDS पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।'
केंद्र सरकार द्वारा एकतरफा उपकरों से मुनाफाखोरी जारी है, जो राज्यों के साथ साझा करने योग्य नहीं हैं। इसके अलावा, कृषि विपणन पर राज्यों के परामर्श के बिना अध्यादेश जारी किए गए हैं : कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी
— Congress (@INCIndia) August 26, 2020
उन्होंने कहा कि, 'केंद्र सरकार द्वारा एकतरफा उपकरों से मुनाफाखोरी जारी है, जो राज्यों के साथ साझा करने योग्य नहीं हैं। इसके अलावा, कृषि विपणन पर राज्यों के परामर्श के बिना अध्यादेश जारी किए गए हैं।' कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि राज्यों को मुआवजा देने से इनकार करना मोदी सरकार की ओर से विश्वासघात है। राज्य सरकारों और भारत की जनता के साथ विश्वासघात है।
राज्य सरकारों को जीएसटी का हिस्सा नहीं मिलने के मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि, 'जीएसटी को सहकारी संघवाद के उदाहरण के रूप में लागू किया गया था। यह अस्तित्व में आया, क्योंकि राज्यों ने बड़े राष्ट्रीय हित में कराधान की अपनी संवैधानिक शक्तियों को त्यागने पर सहमति व्यक्त की और 5 वर्षों के लिए अनिवार्य जीएसटी मुआवजे का वादा किया।'
उन्होंने कहा कि जीएसटी मुआवजा एक बड़ा मुद्दा लग रहा है। संसद द्वारा पारित कानूनों के अनुसार समय पर राज्यों को मुआवजा दिया जाना महत्वपूर्ण है और ऐसा नहीं हो रहा है। बकाया जमा हो गए हैं और राज्य का वित्त बुरी तरह प्रभावित हुआ है।(NAVJIVAN)
सत्ता और विपक्ष के बीच नोंक-झोंक
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 26 अगस्त। पीडब्ल्यूडी में उच्च पद पर जूनियर अफसरों की पदस्थापना को लेकर बुधवार को विधानसभा में काफी नोंक-झोंक हुई। पीडब्ल्यूडी मंत्री ताम्रध्वज साहू ने माना कि 15 सीनियर अफसर, जूनियर को प्रभार देने के कारण कम महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के पूरक सवाल के जवाब में श्री साहू ने कहा कि डेढ़ साल पहले डीपीसी करवा दिए होते और सबका प्रमोशन कर दिए होते, तो यह स्थिति नहीं आती। 15 साल आपको दिया गया था। आपने क्या किया?
प्रश्नकाल में धरमलाल कौशिक ने पीडब्ल्यूडी में जूनियर अफसरों को अहम पद देने और सीनियर अफसरों को दरकिनार करने पर सवाल उठाए। नेता प्रतिपक्ष के सवाल के जवाब में कहा कि सरकार सामान्य प्रशासन विभाग के निर्देशों का अक्षरश: पालन कर रही है। वरिष्ठता सहयोग्यता के आधार पर उनको प्रभार दिया जाता है।
पीडब्ल्यूडी मंत्री ने कहा कि वरिष्ठता एक अलग क्रम है जैसे वहां पर किसी को तत्काल प्रभार देना है। किसी का ट्रांसफर हुआ है, किसी की पोस्टिंग हुई है, तो वहां उनकी योग्यता सीनियर अफसर तय करते हैं कि इनके कामकाज कैसे रहे हैं। उस योग्यता के आधार पर चालू प्रभार दिया जाता है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि वर्तमान में पीडब्ल्यूडी के ईएनसी विजय भतप्रहरी को बिठाया गया है, उसकी जगह वरिष्ठता क्रम में कोई और अफसर है।
पीडब्ल्यूडी मंत्री ने कहा कि वरिष्ठता क्रम आपके जमाने से बना हुआ है, वह अगल है। बीच-बीच में आवेदन आते हैं, उसके अनुसार जांच होती है और वरिष्ठता क्रम बदलते गया है। वर्ष-2012-2018 में डीके प्रधान को ईएनसी बनाया गया। उस वक्त पांचवें क्रम में थे। उस समय डीके अग्रवाल दूसरे क्रम में और विजय भतप्रहरी चौथे क्रम में थे। उसके बाद आवेदन आया फिर जांच हुई। श्री अग्रवाल प्रथम क्रम में हैं और उन्हें बनाया गया।
भतप्रहरी का आवेदन आया था। उसकी जांच चल रही है। पीडब्ल्यूडी में डीके अग्रवाल के बाद केके पिपरी हैं। उसके बाद विजय भतप्रहरी, और फिर श्री कोरी हैं। सबको अलग-अलग बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। नेता प्रतिपक्ष ने सवाल उठाया कि पिपरी और अग्रवाल के खिलाफ कोई जांच चल रही थी क्या जिसके कारण भतप्रहरी को श्रेष्ठ पाए गए? और उन्हें ईएनसी बनाया गया। पीडब्ल्यूडी मंत्री ने कहा कि ईएनसी का पद की योग्यता और कार्यक्षमता के अनुसार होता है। नेता प्रतिपक्ष ने चार अफसरों सुंदरलाल मरकाम, जेपी तिग्गा, एके श्रीवास और विकास श्रीवास्तव को लेकर जानकारी चाही।
उन्होंने कहा कि क्या इनके खिलाफ कोई विभागीय जांच लंबित है और जांच चल रहा है? जांच चलते हुए भी इन्हें श्रेष्ठ पाया गया और प्रभार दे दिया गया? विभागीय जांच के बावजूद प्रभार दे दिया गया। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि किसी के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, तो उसे प्रभारी नहीं बनाया जा सकता। पीडब्ल्यूडी मंत्री ने बताया कि मरकाम के खिलाफ विभागीय जांच पूरी हो चुकी है। अधीक्षण अभियंता सेतु मंडल का पद खाली था इसलिए उन्हें प्रभार दे दिया गया।
उन्होंने जेपी तिग्गा का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें आरोप पत्र जारी किया गया था किन्तु विभागीय जांच संस्थित नहीं हुआ। उन्हें अंबिकापुर मंडल का पद खाली होने पर दे दिया गया। विकास श्रीवास्तव के खिलाफ आरोप पत्र जारी हुआ है किन्तु विभागीय जांच संस्थित नहीं हुआ है। इसलिए उन्हें सुकमा संभाग का रिक्त पद का प्रभार दिया गया है। नेता प्रतिपक्ष ने सामान्य प्रशासन विभाग के निर्देशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाया है। पीडब्ल्यूडी मंत्री ने कहा कि सामान्य प्रशासन विभाग के निर्देशों का पालन किया जा रहा है। पहली बार एक साथ 8 सीई के पद पर पदोन्नति हुई है।
-श्रवण गर्ग
कांग्रेस में इस समय जो कुछ चल रहा है क्या उसे लेकर जनता में किसी भी तरह की उत्सुकता, भावुकता या बेचैनी है ? उन बचे-खुचे प्रदेशों में भी जहां वह इस समय सत्ता में है ? केरल के उस वायनाड संसदीय क्षेत्र में भी जहां से राहुल गांधी चुने गए हैं ? उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जहां से सोनिया गांधी विजयी हुईं हैं और अमेठी जहां से राहुल गांधी हार गए थे ? या फिर देश के उन विपक्षी दलों के बीच जो केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ नेतृत्व के लिए कांग्रेस की तरफ़ ही ताकते रहते हैं ? शायद कहीं भी नहीं ! कांग्रेस के दो दर्जन नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर माँग उठाई है कि पार्टी में अब एक ‘पूर्ण कालिक’, ‘सक्रिय’और ‘दिखाई पड़ने वाले’ नेतृत्व की ज़रूरत आन पड़ी है। कांग्रेस में ऐसे संस्थागत नेतृत्व का तरीक़ा स्थापित हो जो ‘सामूहिक’ रूप से पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सके।
सोनिया गांधी को लिखी गई गोपनीय चिट्ठी मीडिया को लीक भी कर दी गई जिससे कि उस पर तुरंत विचार करने का दबाव बनाया जा सके। जिस तरह की माँग चिट्ठी में उठाई गई है, उसे तेईस हस्ताक्षरकर्ताओं में से कुछ अपने तरीक़ों से व्यक्तिगत स्तर पर पूर्व में भी उठाते रहे हैं। जैसा कि होना भी था, कार्य समिति की मंगलवार को बैठक बुलाई गई, जिसमें चिट्ठी पर विचार करने के अलावा बाक़ी सब कुछ हुआ। कोई दो दर्जन हस्ताक्षरकर्ताओं में केवल चार ही कार्य समिति के सदस्य हैं, पर गोपनीय बैठक की सारी जानकारी मीडिया को लगातार प्राप्त होती रही। अब जाँच इस बात की होगी कि चिट्ठी किसने लीक की और बैठक की जानकारी कैसे बाहर आती रही। पार्टियों में आंतरिक प्रजातंत्र के नाम पर जब अराजकता मचती है, तो वह कांग्रेस बन जाती है।
राहुल गांधी ने बैठक में नाराज़गी ज़ाहिर की कि चिट्ठी लिखने के लिए ग़लत वक्त चुना गया पर यह नहीं बताया कि सही वक्त कौन सा हो सकता था। ऐसा इसलिए हुआ होगा कि जनता को अब परवाह नहीं बची है कि उसे कांग्रेस या किसी और दल की कोई ज़रूरत है। मध्य प्रदेश जहाँ कि पहले कांग्रेस की हुकूमत थी और अब भाजपा की है, वहाँ महीनों तक और बाद में राजस्थान में जहाँ वह अभी बची हुई है कई दिनों तक सरकारें ठप रहीं पर जनता की तरफ़ से सोनिया गांधी या जेपी नड्डा को कोई चिट्ठी नहीं लिखी गई। जनता अब सरकार और दल निरपेक्ष हो गई है। इसे किसी भी कल्याणकारी राज्य के अध्ययन योग्य विषयों में शामिल किया जा सकता है कि जनता को उसकी स्वयं की मुसीबतों में व्यस्त कर दिया जाए, तो उसे पता ही नहीं चलेगा कि उसकी क़िस्मत के फ़ैसले क्या और कहाँ लिए जा रहे हैं !
जनता, राजनीतिक दलों में प्रजातांत्रिक मूल्यों और असहमति की आवाज़ को जगह देने की चिंता तब करती है, जब ‘चिट्ठियों के ज़रिए’ उठाई जाने वाली माँगों को एक व्यक्ति के तौर पर अपने लिए और समाज के तौर पर समस्त प्रजातांत्रिक संस्थानों के लिए न सिर्फ़ अत्यंत आवश्यक मानती है, उसे अपने जीने-मरने का सवाल भी बना लेती है।वर्तमान की ओर ही नज़रें घुमाना चाहें तो हांग कांग और बेलारुस सहित कई देशों में इस समय लाखों लोग सड़कों पर यही कर रहे हैं। वहाँ सैन्य उपस्थिति के बावजूद ऐसा हो रहा है। व्यापक जन-उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हमारे यहाँ आख़िरी बार ऐसा कोई प्रयोग दस वर्ष पूर्व अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान देखा गया था, जिसका अरविंद केजरीवाल एंड कम्पनी द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने के साथ ही अंत भी हो गया। जिन मुद्दों को लेकर लड़ाई लड़ी गई थी वे आज भी वैसे ही क़ायम हैं।
कांग्रेस के मामले में व्यापक उदासीनता का एक कारण यह भी हो सकता है कि जिन ‘असंतुष्ट’ लोगों ने चिट्ठी पर हस्ताक्षर किए हैं, उनके वास्तविक उद्देश्यों के प्रति जनता पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है ।जनता की जानकारी में यह बात अच्छे से है कि चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वालों में अधिकांश मनमोहन सिंह सरकार में दस वर्षों तक उच्च मंत्री पदों पर रह चुके हैं।तब भी कांग्रेस की स्थिति वही थी, जो आज है। 'सामूहिक निर्णय' की माँग को लेकर तब इस तरह की चिट्ठियाँ नहीं लिखी गईं। या लिखी भी गईं हों तो मीडिया में लीक नहीं की गईं।हस्ताक्षरकर्ताओं में एक ग़ुलाम नबी आज़ाद तो इस समय राज्य सभा में पार्टी के नेता भी हैं। कहा जाता है कि असंतुष्टों का नेतृत्व भी वे ही कर रहे हैं। भाजपा में तो ख़ैर इस तरह की किसी चिट्ठी का सोच मात्र भी कल्पना से परे है। आडवाणी जी, डॉ जोशी और यशवंत सिन्हा के अलावा शांता कुमार, अरुण शौरी,शत्रुघ्न सिन्हा और सिद्धू आदि इस बारे में ज़्यादा जानकारी दे सकते हैं। जनता को पता है इस या उस ‘परिवार’ की ताबेदारी करना अब सभी पार्टी सेवकों की नियति बन गई है।
इस बात की उम्मीद करना कि कांग्रेस के मौजूदा संकट का कोई सर्व सम्मत हल अगले छह महीनों में निकल आएगा कोरोना के अंतिम निदान की खोज करने जैसा है। कोरोना के ताजा मामले उन मरीज़ों के हैं जो दो-चार महीने पहले ठीक घोषित हो चुके थे। असहमति को बर्दाश्त करने की इम्यूनिटी सभी राजनीतिक दलों में काफ़ी पहले समाप्त हो चुकी है। याद किया जा सकता है कि जो प्रशांत भूषण इस समय सबसे ज़्यादा चर्चा में हैं उन्हें असहमति व्यक्त करने के कारण ही योगेन्द्र यादव आदि के साथ केजरीवाल द्वारा पार्टी से बाहर कर दिया गया था।कांग्रेस में जो निर्णय हुआ है, उसे केवल एक युद्ध विराम से दूसरे युद्ध विराम के बीच की अवधि पर सहमति माना जाना चाहिए जिससे कि दोनों ही पक्ष ज़रूरी तैयारी कर सकें।
संकट का हल निकल सकता है अगर सोनिया गांधी साहस दिखा सकें और चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को बुलाकर कह दें कि आप ही किसी सर्वसम्मत नेता का नाम तय करके बता दीजिए, गांधी परिवार उसे स्वीकार कर लेगा। ऐसा कुछ नहीं किया गया तो छह महीने बाद ऐसी ही और भी कई चिट्ठियाँ लिखने वालों की संख्या चार दर्जन से ज़्यादा हो जाएगी।तकलीफ़ों के आँकड़े चारों ही ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। हम जानते हैं कि सोनिया गांधी ऐसा साहस दिखा नहीं पाएँगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है किसी व्यक्ति के कोविड-19 से एक बार संक्रमित होने के बाद दोबारा भी उसके संक्रमण का शिकार होने की बहुत कम सम्भावना है। यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की ये ताज़ा जानकारी उन ख़बरों के सन्दर्भ में आई है जिनमें कहा गया था कि हाँगकाँग में एक व्यक्ति को कोविड-19 का संक्रमण होने के चार महीने बाद फिर से संक्रमण हो गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रवक्ता डॉक्टर मार्गरेट हैरिस ने मंगलवार को जिनीवा में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन चिन्ताओं का जवाब देने की कोशिश की जिनमें हाँगकाँग के इस ताज़ा घटनाक्रम के मद्देनजऱ किसी नई सावधानी या एलर्ट जारी होने की सम्भानाएँ व्यक्त की गईं।
प्रवक्ता ने कहा, ध्यान देने की अहम बात ये है कि दोबारा संक्रमण होने की संख्या बहुत-बहुत ही कम है।
यानि संक्रमण के कुल लगभग दो करोड़ 30 लाख मामलों में से ये अकेला दस्तावेज़ी मामला है।
हो सकता है कि हम और ऐसे दस्तावेज़ी मामले देखेंगे। लेकिन दोबारा संक्रमण होने का कोई नियमित मामला नहीं लगता, अन्यथा ऐसे बहुत से मामले दर्ज किये गए होते।
इसके बावजूद डॉक्टर मार्गरेट हैरिस ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि दोबारा संक्रमण होने की जो ख़बर सोमवार को मिली, वो महत्वपूर्ण है।
वायरस की फितरत में बदलाव
दोबारा संक्रमण के इस मामले की घोषणा करने वाले हाँगकाँग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार जिन वायरसों ने उस व्यक्ति को चार महीने के अन्तराल में संक्रमित किया, वो अलग-अलग कि़स्म के थे।
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की प्रवक्ता ने कहा कि इस मामले में महत्वपूर्ण बात ये है कि स्पष्ट विवरण व दस्तावेज सामने हैं।
हमारे सामने ऐसे बहुत से मामले हैं कि लोग पहले टैस्ट में संक्रमण से मुक्त पाए गए, और बाद में अक्सर संक्रमित पाए गए।
और यह मामला सामने आने तक ये स्पष्ट नहीं हुआ है कि क्या परीक्षण में कोई समस्या थी या फिर लोग दूसरी बार परीक्षण होने पर संक्रमित पाए जा रहे थे।
डॉक्टर मार्गरेट हगैरिस ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रथामिकताओं में ये जानना शामिल है कि लोगों की रोग प्रतिरोधी क्षमता के मामले में इसका क्या मतलब है।
निगरानी प्रक्रिया जारी
प्रवक्ता ने बताया, इसीलिये हम अनेक शोध संगठनों के जरिये लोगों की स्वास्थ्य प्रकृति की निगरानी कर रहे हैं, जिनमें रोग प्रतिरोधी तत्व यानि एण्टीबॉडीज़ की समझ रखना भी शामिल है, ताकि ये समझा जा सके कि रोग प्रतिरोधी क्षमता कितने समय तक सटीक काम करती है, इसे प्राकृतिक रोग प्रतिरोधी क्षमता कहा जाता है।
ये समझना बहुत ज़रूरी है क्योंकि प्राकृतिक रोग प्रतिरोधी क्षमता किसी वैक्सीन द्वारा मुहैया कराए जाने वाले संरक्षण से अलग होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार, 25 अगस्त तक दुनिया भर में कोविड-19 संक्रमण के लगभग दो करोड़ 35 लाख मामले दर्ज किये थे, और 8 लाख 9 हजार लोगों की मौत हुई है।
क्षेत्र के हिसाब के अमेरिकी द्वीप सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए है जहाँ एक करोड़ 25 लाख लोग संक्रमित हुए हैं।
उसके बाद योरोप में लगभग 39 लाख 95 हज़ार, दक्षिण-पूर्वी एशिया में 36 लाख 66 हज़ार, पूर्वी भूमध्य सागरीय क्षेत्र में 18 लाख 40 हज़ार, अफ्रीका में 10 लाख और पश्चिमी प्रशान्त क्षेत्र में 4 लाख 60 हज़ार 991 मामले दर्ज किये गए हैं। (news.un)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 26 अगस्त। सडक़ों की मरम्मत का काम गुणवत्तापूर्ण न होने पर सत्तापक्ष के विधायक डॉ. प्रीतम राम ने बुधवार को पीडब्ल्यूडी मंत्री ताम्रध्वज साहू को घेर दिया। डॉ. राम ने सडक़ों की गुणवत्ता पर कटाक्ष किया कि मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा दी...। श्री साहू ने इस पर सफाई दी।
प्रश्नकाल में लुंड्रा विधायक डॉ. प्रीतम राम ने सडक़ों की गुणवत्ता का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि वे अपने पूरे विधानसभा क्षेत्र का लगातार दौरा करते हैं। सडक़ों के पेंच रिपेयर का काम ठीक से नहीं चल रहा है। गुणवत्ता अच्छी नहीं है। डॉ. राम ने कहा कि सडक़ों की मरम्मत का काम गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए।
पीडब्ल्यूडी मंत्री श्री साहू ने कहा कि सरकार बनने के बाद सडक़ों की क्वालिटी कंट्रोल करने की कोशिश की गई है। उन्होंने कहा कि अखबारों में गड्ढे आदि के फोटो आते थे, अब नहीं आ रहे हैं। सभी जगहों पर मरम्मत का काम अच्छे से चल रहा है। पीडब्ल्यूडी मंत्री ने कहा कि अगर कोई ठेकेदार गलत काम कर रहा है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
जनता कांग्रेस के सदस्य धर्मजीत सिंह ने रायपुर-बिलासपुर नेशनल हाईवे में गड्ढों की तरफ पीडब्ल्यूडी मंत्री का ध्यान आकृष्ट कराया। उन्होंने कहा कि दो लोगों की मौत हो गई है। श्री साहू ने बताया कि वे लगातार इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। सीएम की इस सिलसिले में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी से बात भी हुई है। उन्होंने कहा कि सीमेंट की सडक़ों की मरम्मत में समस्या आ रही है। इसको देखते हुए केन्द्र सरकार ने सीमेंट की सडक़ों के निर्माण के आदेश को निरस्त कर दिया है। श्री साहू ने कहा कि गड्ढों की मरम्मत के लिए प्रयास किया जाएगा और पीडब्ल्यूडी अपने मद से मरम्मत की कोशिश करेगी।
नई दिल्ली, 26 अगस्त (भाषा)। लोन मोरेटोरियम अवधि में ईएमआई पर ब्याज में छूट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है। बुधवार को मामले में हुई सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र से मामले में 1 सितंबर तक अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा कि आप रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पीछे नहीं छुप सकते और बस व्यापार का हित नहीं देख सकते। दरअसल, शीर्ष अदालत बुधवार को कोविड-19 महामारी को देखते हुए लोन की ईएमआई को स्थगित किए जाने के फैसले के बीच इसपर ब्याज को माफ करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की कथित निष्क्रियता को संज्ञान में लेते हुए सुनवाई कर रही थी।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं और वो आरबीआई के पीछे छुप रही है। जस्टिस भूषण की बेंच ने कहा, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने पूरे देश को लॉकडाउन में डाल दिया था। आपको हमें दो चीजों पर अपना स्टैंड क्लियर करें- आपदा प्रबंधन कानून पर और क्या ईएमआई पर ब्याज लगेगा?
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बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और यह बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है। बेंच में जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम आर शाह भी शामिल हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांग, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया है, स्त्र मेहता ने कहा, ‘हम आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।' मेहता ने तर्क दिया है कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मोरेटोरियम अवधि 31 अगस्त को खत्म हो रही है और जब तक इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं आ जाता, इसे बढ़ा देना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई एक सितंबर को होगी।
इसके पहले हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार अब खुद को असहाय नहीं बता सकती है। जस्टिस शाह ने कहा, सरकार बैंकों पर सब कुछ नहीं छोड़ सकती, दखल पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने कहा था कि 'यदि आपने मोहलत की घोषणा की है, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि लाभ ग्राहकों को उद्देश्यपूर्ण तरीके से मिले। ग्राहक मोहलत का लाभ नहीं ले ले रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है। केंद्र ने रास्ता निकालने के लिए समय लिया लेकिन कुछ नहीं हुआ। केंद्र अब इसे बैंकों को नहीं छोड़ सकता।
गरीबी-बेकारी से तंग, रायपुरा का युवक हिरासत में
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 26 अगस्त। गरीबी-बेकारी से तंग आकर मुख्यमंत्री निवास के सामने आत्मदाह की धमकी देने वाला युवक यहां तक पहुंचने के पहले ही पकड़ लिया गया। लेकिन सीएम हाउस के सामने आज सुबह से पुलिस फोर्स तैनात रही। फायर बिग्रेड की गाड़ी भी दिनभर लगी रही।
पुलिस के मुुताबिक महादेव घाट रायपुरा निवासी पूनमचंद साहू किराए की दुकान में कुछ साल से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत एक कम्प्यूटर सेंटर चला था और इस सेंटर में दर्जनों युवक प्रशिक्षण ले रहे थे। कोरोना और लॉकडाउन के चलते उसका यह सेंटर पिछले करीब 8 महीने से बंद हो गया है। ऐसे में उसे सरकार से मिलने वाली प्रशिक्षण की बकाया राशि नहीं मिल पाई है, जिससे वह अपनी दुकान और मकान का किराया नहीं दे पा रहा है। ऐसे में उसने आत्मदाह की धमकी दी थी।
सिविल लाइन पुलिस को दिए अपने एक आवेदन में परेशान युवक ने बताया है कि कोरोना और बकाया भुगतान न होने से वह सडक़ पर आ गया है। घर-दुकान दोनों जगहों पर ताला जड़ देने से वह सडक़ पर आ गया है और बेरोजगार हो गया है। उसने ऐसी स्थिति से निपटने पुलिस में आवेदन देकर मदद की मांग करते हुए सीएम हाउस के सामने आत्मदाह की धमकी दी है।
टीआई का कहना है कि सीएम हाउस के सामने आत्मदाह की धमकी देने वाला कहीं पर पकड़ लिया गया है। इसकी पूरी जानकारी फिलहाल उनके तक नहीं आई है। आत्मदाह धमकी के चलते सीएम हाउस में सुबह से पुलिस फोर्स लगी है और यह फोर्स आज शाम-रात तक लगी रहेगी। उल्लेखनीय है कि करीब दो महीने पहले धमतरी पास गांव के एक युवक ने सीएम हाउस के सामने आत्मदाह का प्रयास किया था और बाद में उसकी अस्पताल में मौत हो गई।
काला हाथी मर रहा, सफेद हाथी बना दिया-विपक्ष, सत्ता पक्ष का तीखा पलटवार भी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 26 अगस्त। संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर बुधवार को विधानसभा में गरमा-गरम बहस हुई। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर सवाल खड़े किए। विपक्षी सदस्यों ने संसदीय सचिवों के अधिकार को लेकर सर्कुलर जारी करने का आग्रह किया। जनता कांग्रेस के सदस्य धर्मजीत सिंह ने कटाक्ष किया कि काला हाथी मर रहा है, और आपने सफेद हाथी बना दिया है। विधि मंत्री मोहम्मद अकबर ने विपक्षी सदस्यों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि पिछले 15 सालों में आपने संसदीय व्यवस्था की किताब नहीं पढ़ी थी, जो संसदीय सचिव की नियुक्ति की थी। उन्होंने कहा कि नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट के निर्देश आए हैं, उसका पालन किया गया है। चर्चा के बाद विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने इस पर व्यवस्था सुरक्षित रखी है।
प्रश्काल के बाद पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति के खिलाफ मोहम्मद अकबर हाईकोर्ट गए थे। पहले कांग्रेस ने इसका विरोध किया था और अब कांग्रेस सरकार ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है। इस सिलसिले में स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए, क्योंकि यह व्यवस्था का प्रश्न है।
विपक्षी सदस्यों ने कहा कि अखबारों के माध्यम से यह बात सामने आई है कि संसदीय सचिवों को मंत्रालय में कमरा नहीं दिया जाएगा। स्वेच्छानुदान और विधानसभा में जवाब देने का अधिकार भी नहीं होगा। इसको लेकर स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए। विधि मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि हाईकोर्ट का जो निर्देश आया है, उसी का पालन करते हुए संसदीय सचिव नियुक्त किए गए हैं। उन्होंने कहा कि संसदीय सचिव मंत्रियों की सहायता करेंगे।
भाजपा सदस्य बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि संसदीय सचिवों के बारे में सदन को जानकारी नहीं दी गई है। संसदीय सचिव बनाए गए हैं, तो वह संसदीय प्रक्रियाओं में मंत्रियों की मदद करने के लिए बनाए गए हैं। इस सिलसिले में सदन को जानकारी दी जानी चाहिए कि उनका काम क्या होगा? कौन-कौन से अधिकार उन्हें दिए जाएंगे, सदन में यह जानकारी खुद मुख्यमंत्री को देनी चाहिए। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि रमन सरकार के कार्यकाल में संसदीय सचिव बनाए जाने का कांग्रेस ने विरोध किया था और अब कांग्रेस सरकार ने ही संसदीय सचिव बनाए हैं। इससे पूरे प्रदेश में भ्रम की स्थिति है।
उन्होंने कहा कि सदन में संसदीय सचिवों का परिचय कराना चाहिए था। सदन में इस बात की जानकारी दी जानी चाहिए थी कि संसदीय सचिवों की वैधानिक स्थिति क्या है? उन्होंने कहा कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और यह मामला वहां लंबित है। ऐसे में फैसला आने तक इंतजार किया जाना चाहिए था। जनता कांग्रेस के सदस्य धर्मजीत सिंह ने कहा कि संसदीय सचिवों का इतिहास काफी खराब रहा है। रमन सरकार ने जितने भी संसदीय सचिव नियुक्त किए थे। उनमें से कोई कोई जीत कर नहीं आया।
श्री सिंह ने कहा कि खुद मोहम्मद अकबर इसको लेकर हाईकोर्ट गए थे। सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका लंबित है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए था। विधि मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि संसदीय सचिव मंत्रियों के सहयोग के लिए बनाए गए हैं। मंत्रियों से संसदीय सचिवों का परिचय करा दिया गया है। संसदीय सचिव सदन में जवाब नहीं देंगे, इसलिए उनका सदस्यों से परिचय कराने की जरूरत नहीं है। संसदीय सचिवों को मंत्री का दर्जा भी नहीं है। इसलिए उन्हें यहां परिचय कराने की जरूरत नहीं है। विपक्षी सदस्य संसदीय सचिवों के अधिकारों का सर्कुलर उपलब्ध कराने पर जोर देने लगे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विपक्ष की आपत्तियों पर तीखा प्रहार किया। संसदीय कार्यमंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि कोर्ट के फैसले पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती है। इसका पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने प्रतिवाद किया और कहा कि कोर्ट के निर्देशों पर चर्चा की जा सकती है। इस पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. महंत ने व्यवस्था सुरक्षित रख लिया।
घोषणा का सभी ने किया स्वागत, सेवाओं के और विस्तार की मांग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 26 अगस्त। बिलासपुर से भोपाल के लिए हवाई सेवा शुरू करने की केन्द्रीय उड्डयन मंत्री के निर्णय का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि यदि यह सेवा दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों के लिए शुरू की जाए तो छत्तीसगढ़ को ज्यादा लाभ मिलेगा।
केन्द्रीय विमानन तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कल शाम ट्वीट कर जानकारी दी थी कि बिलासपुर से भोपाल के लिए व्यावसयिक उड़ान सेवा शीघ्र शुरू की जायेगी। यह सेवा दो माह के भीतर शुरू होने की संभावना है। छत्तीसगढ़ के सभी राजनैतिक दलों व बिलासपुर के जन प्रतिनिधियों तथा हवाई सेवा के लिए आंदोलनरत नेताओं ने इस घोषणा पर हर्ष व्यक्त किया है साथ ही यहां अधिक उपयोगी सेवा शुरू करने की मांग की गई है।
मुख्यमंत्री बघेल ने केन्द्रीय मंत्री पुरी के ट्वीट पर जवाब देते हुए कहा है कि राजधानी दिल्ली और मुम्बई के लिये हवाई सेवा शुरू करने से छत्तीसगढ़ के ज्यादा लाभ होगा। हवाई सेवा जनसंघर्ष समिति की ओर से सुदीप श्रीवास्तव ने कहा है कि इसी उड़ान को दिल्ली तक ले जाने की मंजूरी दी जाए। एलायंस एयर द्वारा वर्तमान में शुरू की जा रही में 72 सीटें होती हैं।
वर्तमान में रायपुर से भोपाल होकर जयपुर के लिए भी इसी विमान का संचालन किया जा रहा है। संघर्ष समिति ने हवाई सेवा के लिए आंदोलन करने के अलावा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रखी है। हाईकोर्ट के कड़े रूख के बीच यह उम्मीद की जा रही थी कि बिलासपुर के चकरभाठा हवाई अड्डे से शीघ्र ही हवाई सेवा शुरू होगी। बिलासपुर अंचल की वास्तविक मांग केवल भोपाल तक हवाई सेवा नहीं है बल्कि दिल्ली, मुम्बई, पुणे, हैदराबाद, बेंगलूरु, कोलकाता आदि महानगरों के लिए है। उड़ान 4.0 योजना के अंतर्गत एलायंस एयर, स्पाइस जेट ने बिलासपुर, प्रयागराज और दिल्ली मार्ग के लिए भी टेंडर डाला था, समिति की मांग है कि उक्त उड़ान सुविधा को भी तुरंत स्वीकृति दी जाए। समिति ने महानगरों तक सीधी हवाई सेवा और बिलासपुर हवाई अड्डे का 4सी श्रेणी में उन्नयन तक संघर्ष जारी रखने का निर्णय लिया है।
बिलासपुर सांसद अरुण साव ने कहा है कि जनता की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा करते हुए चकरभाठा एयरपोर्ट से हवाई सेवा का मार्ग प्रशस्त किया गया है। इससे बिलासपुर का तेजी से आर्थिक विकास होगा। दूसरी ओर क्षेत्र की जनता को तीव्र परिवहन के साधन मिलेंगे। जैसे-जैसे राज्य सरकार हवाई अड्डे का विकास करेगी चकरभाठा में हवाई सेवा का विस्तार होगा। उन्होंने हवाई सेवा की घोषणा के लिए प्रधानंत्री नरेन्द्र मोदी व केन्द्रीय मंत्री पुरी का आभार व्यक्त किया।
विधायक शैलेष पांडे ने कहा कि उन्होंने केन्द्रीय नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी से मुलाकात कर बिलासपुर में जल्द हवाई सेवा शुरू करने के लिए स्मरण पत्र सौंपा था और चकरभाठा एयरपोर्ट में सभी तैयारियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी। इसके साथ ही उन्होंने बिलासपुर से जल्द ही हवाई सेवा शुरु करने का आश्वासन दिया था। पांडे ने कहा कि केन्द्रीय मंत्री पुरी ने हमारी मांग को गंभीरता से लिया और शहर के लोगों को जल्द ही यह सुविधा मिल जाएगी। यह बिलासपुर के लिए बड़ी सौगात है।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि हवाई सेवा का मार्ग प्रशस्त होने से क्षेत्रवासियों की बहुप्रतीक्षित मांग पूरी हुई है। उन्होंने भी इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व केन्द्रीय नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी का आभार व्यक्त किया है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट प्रैक्टिसिंग बार एसोसियेशन के अध्यक्ष संदीप दुबे, उपाध्यक्ष राजेश केशरवानी, गुरुदेव शरण, सलीम काज़ी आदि ने कहा कि हाईकोर्ट में उनके द्वारा दायर याचिका पर आदेश के परिपालन में शीघ्र ही बिलासपुर एयरपोर्ट से हवाई सेवा शुरू होने जा रही है लेकिन शीघ्र ही कोलकाता, दिल्ली के लिए भी फ्लाइट शुरू करने की मांग जारी रहेगी।
नई दिल्ली, 26 अगस्त (भाषा)। लोन मोरेटोरियम अवधि में ईएमआई पर ब्याज में छूट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है। बुधवार को मामले में हुई सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र से मामले में 1 सितंबर तक अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा कि आप रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पीछे नहीं छुप सकते और बस व्यापार का हित नहीं देख सकते। दरअसल, शीर्ष अदालत बुधवार को कोविड-19 महामारी को देखते हुए लोन की ईएमआई को स्थगित किए जाने के फैसले के बीच इसपर ब्याज को माफ करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की कथित निष्क्रियता को संज्ञान में लेते हुए सुनवाई कर रही थी।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं और वो ‘आरबीआई के पीछे छुप रही है। जस्टिस भूषण की बेंच ने कहा, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने पूरे देश को लॉकडाउन में डाल दिया था। आपको हमें दो चीजों पर अपना स्टैंड क्लियर करें- आपदा प्रबंधन कानून पर और क्या ईएमआई पर ब्याज लगेगा?
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांग, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया है, स्त्र मेहता ने कहा, हम आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
इसके पहले हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार अब खुद को असहाय नहीं बता सकती है। जस्टिस शाह ने कहा, सरकार बैंकों पर सब कुछ नहीं छोड़ सकती, दखल पर विचार करना चाहिए।
नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)| जेईई मेन और नीट परीक्षा के आयोजन को लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है। कोरोना महामारी के दौरान इन परीक्षाओं को टालने की मांग की जा रही है। इसी तर्ज पर एनएसयूआई ने बुधवार को अनिश्चितकाल सत्याग्रह शुरू कर दिया है। एनएसयूआई की मांग है कि वर्तमान समय मे इन परीक्षाओं का होना सही नहीं है। एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में ये विरोध हो रहा है, वहीं एनएसयूआई के कई अन्य कार्यकर्ता भी उनके समर्थन में दिल्ली स्थित शास्त्री भवन पर भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं।
एनएसयूआई राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन का कहना है, वर्तमान समय में नीट, जेईई परीक्षा के लिए सही नही है। क्योकि कोरोना के मामले प्रतिदिन हजारों की तादाद में बढ़ रहे हैं। ऐसे में छात्रों का एक राज्य से दूसरे राज्य सफर करना मुश्किल है।
उन्होंने आगे कहा, छात्रों के भविष्य को ध्यान मे रखते हुए एनएसयूआई ने आज अनिश्चितकाल सत्याग्रह शुरू किया है। और जब तक हमारी मांगे पूरी नही हो जाती हम पीछे नही हटेंगे।
दरअसल परीक्षा में अब एक महीने से भी कम समय बचा है और सुप्रीम कोर्ट ने भी जेईई मेन और नीट परीक्षा आयोजित कराने के लिए अनुमति दे दी है। जबकि छात्र कोरोना संकट के कारण परीक्षा को स्थगित करने की मांग कर रहे हैं।
मौतें-221, एक्टिव-9388, डिस्चार्ज-13732
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 26 अगस्त। प्रदेश में कोरोना मरीज 23 हजार पार हो गए हैं। बीती रात मिले 1287 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 23 हजार 341 हो गई है। इसमें से 221 मरीजों की मौत हो चुकी हैं। 9 हजार 388 एक्टिव हैं और इनका एम्स समेत अलग-अलग अस्पतालों में इलाज जारी है। 13 हजार 732 मरीज ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं।
बुलेटिन के मुताबिक बीती रात 9 बजे 1145 नए पॉजिटिव सामने आए। इसमें रायपुर जिले से सबसे अधिक 364 मरीज रहे। रायगढ़ जिले से 117, बिलासपुर से 104, नांदगांव से 85, दुर्ग से 72, दंतेवाड़ा से 70, बस्तर से 48, सरगुजा से 40, कांकेर से 38, सुकमा से 28, बीजापुर से 25, सूरजपुर से 24, बलौदाबाजार से 23, धमतरी से 20, महासमुंद से 17, नारायणपुर से 16, कोंडागांव से 13, कबीरधाम से 11, गरियाबंद, जांजगीर-चांपा व अन्य राज्य से 5-5, बालोद व कोरबा से 4-4, जशपुर से 2, बेमेतरा, मुंगेली, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, कोरिया व बलरामपुर से 1-1 शामिल रहे।
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इसके बाद रात 11.45 बजे 142 नए पॉजिटिव की और पहचान की गई, जिसमें रायपुर से 91, महासमुंद से 21, बलौदाबाजार से 13, धमतरी व कोरबा से 6-6, रायगढ़ से 3, गरियाबंद से 2 शामिल रहे। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ कल 15 मरीजों की मौत दर्ज की गई। वहीं 308 मरीज ठीक होने पर डिस्चार्ज किए गए। स्वास्थ्य विभाग द्वारा अब यह प्रयास किया जा रहा है कि राजधानी रायपुर समेत प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा कोरोना जांच हो।
प्रवक्ता, संयुक्त संचालक डॉ. सुभाष पांडेय का कहना है कि प्रदेश में कोरोना जांच अब बढ़ा दी गई है। कल 12 हजार के आसपास सैंपलों की जांच हुई। इसी तरह आगे भी यह जांच और बढ़ाई जाएगी। उनका कहना है कि प्रदेश में कोरोना मरीजों के साथ मौत के आंकड़े भी बढऩे लगे हैं। हालांकि इसमें दो-तीन दिन पुरानी रिपोर्ट भी रहती है। लेकिन मौत से बचाव के लिए बड़े बुजुर्ग या गंभीर बीमारी से पीडि़त लोग तुरंत अस्पताल पहुंचे और समय पर अपनी जांच कराएं। इसके अलावा पॉजिटिव आने के बाद घरों में बैठे लोग भी तुरंत अस्पतालों तक पहुंचे। इससे मौतें कम होंगी और लोगों की जान भी बच सकेगी।
टैगोरनगर 23, सीआरपीएफ व एम्स से 11-11, जिले से 500
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 26 अगस्त। राजधानी रायपुर-आसपास की बस्तियों-कॉलोनियों से बीती रात में 500 पॉजिटिव मिले। इसमें टैगोर नगर से 23, सीआरपीएफ व एम्स से 11-11, पचपेड़ीनाका से 12, तेलीबांधा से 6, पुलिस लाइन व शैलेंद्र नगर से 5-5 मरीज शामिल हैं। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं।
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जिन जगहों से कोरोना मरीज मिले हैं, उसकी सूची निम्नानुसार है-एम्स (11 लोग), मठपुरैना-भाठागांव, तेलीबांधा (6), सरोरा, मोतीबाग, पुरानी बस्ती, बुढ़ातालाब (5 लोग), पचपेड़ीनाका (8 लोग), कबीर नगर, टाटीबंध कॉलोनी, बटालियन-माना कैंप, हर्षित टावर-टाटीबंध, राम जानकी मंदिर के पास, गोपाल भवन राम मंदिर-फाफाडीह, शंकर नगर (8 लोग), टैगोर नगर (23 लोग), ऑफिसर्स कॉलोनी-देवेंद्र नगर, चौपाटी हनुमान मंदिर के पास-शंकर नगर, मंदिरहसौद गैस प्लांट, मारूति लाइफ स्टाईल-कोटा, शैलेंद्र नगर (5 लोग), सेक्टर-17 सीआरपीएफ-नया रायपुर (11 लोग), जोरापारा, जयहिंद चौक-न्यू बस्ती राजातालाब, हनुमान नगर-कालीबाड़ी, सेक्टर-1 दीनदयाल उपाध्याय रविशंकर यूनिवर्सिटी, दलदल सिवनी-सड्डू, सिंधी कॉलोनी रविग्राम-तेलीबांधा, ठक्करपारा शिवमंदिर चौक, काशीराम नगर, अमन नगर-मोवा, वीर नारायणा सिंह नगर, जवाहर नगर (3 लोग), चौबे कॉलोनी (4 लोग), बूढ़ापारा, गुढिय़ारी, शिवानंद नगर, देवेंद्र नगर, जेल रोड-गंज, समता कॉलोनी, माना कैंप, टिकरापारा, भाठागांव, न्यू शांति नगर, देवपुरी, राजीव नगर, मोती नगर, लालपुर, जनता कॉलोनी, कृष्णा नगर, राम नगर-करमा चौक, शिववाटिका-टिचर कॉलोनी कोटा, अवंति विहार रतन आपर्टमेंट-आनंद निकेतन, मूर्रा भट्ठी-गांधी नगर, गोंदवारा, गोगांव-बजरंग नगर, संतोषी नगर, सुंदर नगर, गोविंद नगर, पंडरी, तरूण नगर-लोधीपारा, सड्डू, कमल विहार, राजातालाब, कुशालपुर-ज्ञायत्री नगर, पुलिस लाइन, धरम नगर-पचपेड़ीनाका, भनपुरी, शीतला चौक-टिकरापारा, डंगनिया, अवधपुरी-भाठागांव, महावीर नगर, हीरापुर, चंगोराभाठा, डब्ल्यूआरएस कॉलोनी, भवानी नगर-कोटा, आयोध्या नगर, सिमरन सिटी-संतोषी नगर, सेक्टर-17 आईजी ऑफिस, राजातालाब, आनंदम वल्र्ड सिटी-कचना, भीम नगर सुंदर नगर, न्यू शांति नगर, पाटीदार भवन-फाफाडी चौक, होटल अमित रेजेंसी, विनोबा भावे नगर, आम्रपाली सोसायटी-पचपेड़ी नाका (4 लोग), होटल कृष्णा प्लाजा कटोरा तालाब, कादुल-बोरियाकला, अभनपुर, खल्लारी मंदिर, बजरंग प्लांट-तिल्दा, सत्यम विहार, डब्ल्यूआरएस-रेलवे कॉलोनी, वीआईपी सिटी उरकुरा रोड-सड्डू, छोटापारा, गायत्री नगर, सतनामीपारा, भीम नगर, डूंडा, खम्हतराई, प्रोफेसर कॉलोनी, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी-सेजबहार, न्यू राजेंद्र नगर, सीता निवास-खम्हारडीह, राठौड़ चौक, दुबे कॉलोनी-मोवा, कृष्णा नगर-डंगनिया, कबीर नगर, हिमालया हाई-देवपुरी, शांति नगर-कुंदरापारा, लक्ष्मण नगर, धोबीपारा-ब्राम्हणपारा, आमापारा, तेलीबांधा, हलवाई लाइन-सदरबाजार (4 लोग), लालपुर, विधानसभा रोड-मोवा, गांधी मैदान-पेंशनबाड़ा, पुलिस लाइन ऑफिसर्स, सुभाष नगर-मौदहापारा, आमानाका-कुकुरबेड़ा, माना, कोटा-न्यू सांईनाथ कॉलोनी, जेएनएम कॉलेज, रामकुंड, डीडीयू नगर, अवंति विहार रतन आपर्टमेंट-आनंद निकेतन, अशोक नगर-गुढिय़ारी, सत्यम विहार कॉलोनी, पीजी ब्यॉज हॉस्टल पीटीजेएनएमसी, अमलीडीह, सिद्धार्थ चौक, सूर्या नगर गोगांव, महाराष्ट्र मंडल-चौबे कॉलोनी, बीएसयूपी कॉलोनी-तेलीबांधा, महावीर नगर-रिद्धी-सिद्धी गार्डन, पुलिस लाइन (5 लोग), रोणिपुरम, सेंट्रल जेल, थाना मौदहापारा, मठपारा, बनारशी माना, भाठागांव-रावतपुरा कॉलोनी, बैजनाथपारा, मंगलबाजार, माहमाईपारा, अविनाश केपिटल सिटी, बोरियाखुर्द-श्रद्धा विहार, फरिश्ता कॉम्पलेक्स, शांति कॉलोनी अभनपुर।
- सुनीता नारायण
कोविड- 19 एक ऐसी समस्या है जिसने हमारा पूरा ध्यान खींच रखा है। हालात ऐसे हो चुके हैं कि हम उन चीजों के बारे में बेखबर हो चले हैं जो हमारे भूतकाल का हिस्सा होने के साथ साथ हमारे भविष्य के निर्माण के लिए भी जिम्मेदार हैं। हमारे जीवन में ऐसा ही एक मुद्दा है प्लास्टिक का। यह एक सर्वव्यापी पदार्थ है जो हमारी भूमि और महासागरों में फैलकर उन्हें प्रदूषित करता है और हमारे स्वास्थ्य संबंधी तनाव में इजाफा करता है। वर्तमान में चल रही स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति ने प्लास्टिक के उपयोग को सामान्य कर दिया है क्योंकि हम वायरस के खिलाफ सुरक्षा उपायों के रूप में अधिक से अधिक उपयोग करते हैं। दस्ताने, मास्क से लेकर बॉडी सूट तक जैसे प्लास्टिक प्रोटेक्शन गियर कोविड-19 के खिलाफ इस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका अवश्य निभा रहे हैं लेकिन अगर इस मेडिकल कचरे को ठीक से नियंत्रित एवं प्रबंधित नहीं किया गया तो यह हमारे शहरों के कूड़े के पहाड़ों की संख्या में इजाफा ही करेगा।
प्लास्टिक की राजनीति का पूरा किस्सा पुनर्चक्रण नामक एक शब्द में सन्निहित है। वैश्विक उद्योग जगत ने यह तर्क लगातार सफलतापूर्वक दिया है कि हम इस अत्यधिक टिकाऊ पदार्थ का उपयोग करना जारी रख सकते हैं क्योंकि इसका एक बार प्रयोग कर लिए जाने के बाद भी प्लास्टिक को रीसाइकिल किया जा सकता है। हालांकि यह अलग बात है कि इसका अर्थ सबकी समझ से परे है। वर्ष 2018 में चीन ने पुन: प्रसंस्करण के लिए प्लास्टिक कचरे के आयात को रोकने के लिए नेशनल सोर्ड पॉलिसी तैयार की जिसके फलस्वरूप कई अमीर देशों का कठोर वास्तविकताओं से सामना हुआ। प्लास्टिक कचरे से लदे जहाजों को मलेशिया और इंडोनेशिया सहित कई अन्य देशों ने अपने तटों से वापस कर दिया था। यह कचरा किसी के काम का नहीं था। हर देश के पास पहले से ही प्लास्टिक का अंबार है।
आंकड़े बताते हैं कि 2018 के प्रतिबंध से पहले यूरोपीय संघ में रीसाइक्लिंग के लिए एकत्र किए गए कचरे का 95 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्लास्टिक कचरे का 70 प्रतिशत चीन भेज दिया जाता था। चीन पर निर्भरता का मतलब था कि रीसाइक्लिंग मानक शिथिल हो गए थे। खाद्य अपशिष्ट एवं प्लास्टिक को साथ मिलाकर उद्योग जगत ने कचरे के नए उत्पाद, डिजाइन और रंग बनाने में महारत हासिल की थी। इस सब के कारण कचरा अधिक दूषित हो जाता और उसके पुनर्चक्रण में भी कठिनाइयां आतीं हैं। हालात यहां तक पहुंच गए कि कचरे में भी व्यापार ढूंढ लेने में माहिर चीन जैसे देश को भी इसमें कोई फायदा नहीं नजर आया।
भारत की प्लास्टिक अपशिष्ट समस्या समृद्ध दुनिया के देशों जितनी भयावह तो नहीं है, लेकिन यह लगातार बढ़ती जा रही है। प्लास्टिक कचरे पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, गोवा जैसे समृद्ध राज्य प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 60 ग्राम प्लास्टिक का उत्पादन करते हैं। दिल्ली 37 ग्राम प्रतिव्यक्ति, प्रतिदिन के साथ इस रेस में ज्यादा पीछे नहीं है। राष्ट्रीय औसत लगभग 8 ग्राम प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन है। दूसरे शब्दों में, जैसे-जैसे समाज अधिक समृद्ध होगा वैसे-वैसे प्लास्टिक कचरे की मात्रा भी बढ़ेगी । यह समृद्धि की वह सीढ़ी है जिस पर चढ़ने से हमें बचना होगा।
हालांकि, हमारे शहरों में फैले प्लास्टिक अपशिष्ट की इस भारी मात्रा को देखकर यह अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है कि हालात काबू से बाहर जा रहे हैं और कुछ ही समय में ऐसी स्थिति आएगी जब इस कचरे का निपटान हमारे बस में नहीं रहेगा। इस समस्या के समाधान के लिए अलग तरीके से सोचने और निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है और आज हमारे समाज में इसकी भारी कमी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक ओजपूर्ण भाषण दिया और हमें प्लास्टिक की आदत छोड़ने का आह्वान करते हुए वादा किया कि उनकी सरकार इसके इस्तेमाल में कटौती के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं की घोषणा करेगी। लेकिन उनकी सरकार इसका ठीक उल्टा कर रही है।
यहां भी सारी राजनीति रीसाइक्लिंग को लेकर है। उद्योग जगत ने एक बार फिर नीति निर्माताओं को यह समझाने में कामयाबी हासिल कर ली है कि प्लास्टिक कचरा कोई समस्या नहीं है क्योंकि हम लगभग हर चीज को रीसाइकल कर पुन: उपयोग में ला सकते हैं। यह कुछ-कुछ तंबाकू सा है। अगर हम धूम्रपान करना बंद कर देते हैं, तो किसान प्रभावित होंगे। यदि हम प्लास्टिक का उपयोग करना बंद कर देते हैं, तो छोटे स्तर पर चलने वाले रीसाइक्लिंग उद्योग जिसका अधिकांश हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में है, बंद हो जाएंगे और उनमें काम कर रहे मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे। पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी और कई नौकरियां जाएंगी।
आइए पहले चर्चा करें कि उस कचरे का क्या होता है जिसे रीसाइकल नहीं किया जा सकता है? सभी अध्ययन (सीमित रूप में) दिखाते हैं कि नालियों या लैंडफिल में जमा प्लास्टिक अपशिष्ट में कम से कम रिसाइकिल करने योग्य सामग्री शामिल होती है। इसमें बहुस्तरीय पैकेजिंग (सभी प्रकार की खाद्य सामग्री), पाउच , ( गुटखा या शैम्पू) और प्लास्टिक की थैलियां शामिल हैं। 2016 के प्लास्टिक प्रबंधन नियमों ने इस समस्या को स्वीकारा और कहा कि पाउच पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा और दो साल में हर तरह के बहुस्तरीय प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त कर दिया जाएगा। वर्ष 2018 में इस कानून को लगभग पूरी तरह बदल दिया गया और केवल वैसे कचरे को इस श्रेणी में रखा जो रीसाइकल न किया जा सके। बशर्तें ऐसी कोई चीज हो।
यह कहना सही नहीं है कि सैद्धांतिक रूप से बहुस्तरीय प्लास्टिक या पाउच को रीसाइकल नहीं किया जा सकता है। उन्हें सीमेंट संयंत्रों में भेजा जा सकता है या सड़क निर्माण में उपयोग किया जा सकता है। लेकिन हर कोई जानता है कि इन खाली, गंदे पैकेजों को पहले अलग करना, इकट्ठा करना और फिर परिवहन करना लगभग असंभव है। इसलिए सब पहले के जैसा ही चल रहा है। हमारी कचरे की समस्या बरकरार है। दूसरा मुद्दा यह है कि हम वास्तव में रीसाइक्लिंग से क्या समझते हैं? हम जानते हैं कि प्लास्टिक के पुनर्चक्रण हेतु घरेलू स्तर पर सावधानी से कचरे का अलगाव करने की आवश्यकता है। यह हमारी और स्थानीय संस्थाओं की जिम्मेदारी बनती है। अतः अब समय या चुका है जब हम रीसाइक्लिंग की इस दुनिया को नए सिरे से निर्मित करें। मैं आपसे आने वाले हफ्तों में इसके बारे में चर्चा करूंगी।(downtoearth)
मुंबई, 26 अगस्त (आईएएनएस)| दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती ने कभी ड्रग्स का सेवन नहीं किया और वह किसी भी परीक्षण के लिए तैयार हैं। खबरों में रिया द्वारा चैट में ड्रग्स के उपयोग की बात सामने आने के बाद मंगलवार को उनके वकील ने यह बात कही। कुछ मीडिया चैनलों ने दावा किया था कि रिया की चैट में ड्रग से जुड़ा एंगल दिखता है।
वकील सतीश मानेशिंदे ने एक बयान में कहा, "रिया ने अपने जीवन में कभी भी ड्रग्स का सेवन नहीं किया है। वह किसी भी समय रक्त परीक्षण के लिए तैयार है।"
इससे पहले दिन में प्रवर्तन निदेशालय ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो से इस मामले में ड्रग्स के एंगल की जांच को लेकर उसका मार्गदर्शन मांगा था।
सूत्र से पता चला कि एजेंसी यह पता लगाना चाहती है कि क्या सुशांत के मामले में कोई ड्रग सिंडिकेट एंगल भी शामिल था।
बता दें कि ईडी ने सुशांत के पिता के.के.सिंह द्वारा बिहार में दर्ज कराई गई प्राथमिकी के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है। इसे लेकर एजेंसी सुशांत के पिता, उनकी बहनों प्रियंका सिंह और मीतू सिंह के बयान भी दर्ज कर चुकी है। वहीं रिया, उसके भाई शोविक, पिता इंद्रजीत, सुशांत की पूर्व मैनेजर श्रुति मोदी, फ्लैटमेट सिद्धार्थ पिठानी, घर के मैनेजर सैमुअल मिरांडा, चार्टर्ड अकाउंटेंट संदीप श्रीधर, रिया के सीए रितेश शाह समेत अन्य लोगों के भी बयान दर्ज किए गए हैं।
वहीं मामले की जांच करने मुंबई गई सीबीआई की एसआईटी टीम ने पिठानी, सुशांत के निजी कर्मचारी नीरज सिंह, उनके सीए श्रीधर और एकाउंटेंट रजत मेवाती से पूछताछ जारी रखी। सूत्रों के अनुसार, सीबीआई की इस टीम ने इसी मामले में मुंबई पुलिस के दो लोगों को भी तलब किया है।
सीबीआई टीम ने दो बार सुशांत के फ्लैट, वाटरस्टोन रिसॉट और कूपर अस्पताल का भी दौरा किया।
- स्वेता चौहान
हमारे देश का संविधान कहता है कि भारत में किसी के भी साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा क्योंकि यहां सभी वर्ग समान हैं। लेकिन इक्कीसवीं सदी के इस समय में भी भारत के कई कोनों में से ऐसी खबरें हर दिन हमारे सामने आती हैं जिसमें किसी न किसी के साथ धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर बुरा बर्ताव किया जाता है। फिर चाहे वह भीड़ से किसी की हत्या कहे जाने वाली मॉब लिंचिंग हो, दहेज के लिए प्रताड़ित कोई महिला हो या जाति के आधार पर ऊंची जातियों का दलितों पर किए जाने वाले अत्याचार। आज का हमारा लेख ऐसी ही दो घटनाओं के बारे में जहां दलित समुदाय को ऊंची जाति के हाथों जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा है। ये घटनाएं आपको चांद से चमकते ‘मॉडर्न इंडिया’ में मौजूद उन दागों से अवगत कराएंगी जो दूर से भले ही नज़र न आते हो पर गहराई में उतरे तो यह काफी गंभीर समस्या मालूम पड़ती है।
ये खबर है ओडिशा के एक गांव की जहां एक ज्योति नाइक नाम की एक दलित लड़की द्वारा मात्र फूल तोड़ लेने से दलित जाति के चालीस परिवारों का बहिष्कार कर दिया गया। यह मामला ओडिशा के ढेनकनाल जिले के कांटियो केटनी गांव का है जहां एक 15 वर्ष की बच्ची ने ऊंची जाति के लोगों के बगीचे से एक फूल तोड़ लिया जिसके बाद नाराज़ ऊंची जाति के लोगों ने गांव के सभी दलित 40 परिवारों का सामाजिक रूप से बहिष्कार कर दिया।
अखबार द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए लड़की के पिता निरंजन नाइक ने कहा कि उन्होंने तुरंत अपनी बच्ची की गलती के लिए माफ़ी मांग ली थी जिससे इस मसले को आसानी से सुलझाया जा सके। लेकिन उसके बाद गांव में एक बैठक बुलाई गई और गांव के लोगों ने वहां रह रहे सभी 40 दलित परिवारों का बहिष्कार करने का फैसला लिया। इतना ही नहीं दलितों ने आरोप लगाया है कि उन्हें गांव की सड़क पर शादी या अंतिम संस्कार आयोजन के लिए लोगों की भीड़ नहीं लगाने की चेतावनी दी गई है। यह भी कहा गया है कि दलित समुदाय के बच्चे स्थानीय सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ेंगे।
हमारे देश का संविधान कहता है कि भारत में किसी के भी साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा क्योंकि यहां सभी वर्ग समान हैं। लेकिन इक्कीसवीं सदी के इस समय में भी भारत के कई कोनों में से ऐसी खबरें हर दिन हमारे सामने आती हैं जिसमें किसी न किसी के साथ धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर बुरा बर्ताव किया जाता है।
आरोप यह भी है कि स्कूल में पढ़ा रहे दलित समुदाय के शिक्षकों से कहा गया है कि वे अपना ट्रांसफर करवाकर कहीं और की पोस्टिंग ले लें। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एक ग्रामीण ने बताया कि सार्वजनिक प्रणाली की दुकानों से उन्हें राशन तक नहीं दिया जा रहा है। किराने वाले भी उन्हें सामान नहीं दे रहे हैं। इस वजह से गांव के लोग पांच किलोमीटर दूर जाकर दूसरे गांव से राशन खरीद कर ला रहे हैं। यहां तक की ज्योति नाइक के गांव वाले उनलोगों से बात भी नहीं कर रहे हैं।
इसी बीच एक खबर और स्वंतंत्रता दिवस के मौके पर सामने आयी थी जिसमे एक दलित पंचायत अध्यक्ष को झंडा फहराने से रोक दिया गया। आपको बता दें कि तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में तिरुवल्लुर जिले के अथुपक्कम गांव की 60 वर्षीय पंचायत प्रमुख वी अमुर्थम को 15 अगस्त के अवसर पर उन्हें एक सरकारी स्कूल में झंडा फहराने के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि, बाद में उन्हें आने से मना कर दिया गया। दरअसल उन्हें बताया गया कि गांव के अन्य पंचायत सदस्य और इसके सचिव एक ऊंची जाति वन्नियार जाति के हैं और उन्होंने ही 15 अगस्त को पंचायत प्रमुख को झंडा फहराने की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद इस मामले का प्रशासन द्वारा संज्ञान लेते हुए पंचायत उपाध्यक्ष के पति और पंचायत सचिव को हिरासत में ले लिया गया। 15 अगस्त के पांच दिन बीत जाने के बाद यानी 20 अगस्त को वी अमुर्थम ने महिला अध्यक्ष ने जिला कलेक्टर और एसपी की मौजूदगी में झंडा फहराया।
ये दोनों ही घटनाएं समाज की उस बीमार मानसिकता को दर्शाती है जो संविधान में लिखी बातों को नकारने से जरा भी गुरेज नहीं करते क्योंकि सदियों से दिमाग में मौजूद वर्ण व्यवस्था का दीमक संविधान में लिखी बातों को भी मानने को तैयार नहीं होता। ये दोनों घटनाएं दर्शाती हैं कि हमारे समाज में जातिगत भेदभाव नाम का अपराध अब तक मौजूद है। शिक्षा व्यवस्था में बदलाव कर विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चों को इस बारें में बताया जा सकता है जिससे आगे आने वाली पीढ़ी में इस तरह की मानसिकता न पनपे। संविधान में मौजूद अधिकारों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। समाज की पहल ही जातिगत बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंकने में सहायक हो सकती है।
दिल्ली में कोरोना वायरस महामारी को लेकर हुए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं. इस महीने दिल्ली में किए गए दूसरे सीरोलॉजिकल (Serological) सर्वे में पाया गया है कि 5 से 17 साल की आयु के नॉवेल कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले देखने को मिल रहे हैं. 5-17 साल के 34.7 फीसदी लोगों में कोविड-19 के एंटीबॉडी थे. जबकि 50 साल से अधिक आयु वाले 31.2 फीसदी लोगों में यह पाया गया. बता दें कि पहले यह कहा जा रहा था कि कोविड-19 का ज्यादा खतरा अधिक उम्र वर्ग वालों में है. सर्वें के अनुसार 18-49 साल के 28.5 फीसदी लोगों में कोविड-19 के एंटीबॉडी पाए गए.
न्यूज एजेंसी के अनुसार दिल्ली गवर्नमेंट कमिटी के हेड डॉ महेश वर्मा का कहना है कि बच्चों और युवाओं को घर में रखना मुश्किल है. यहां तक कि अगर वे स्कूल नहीं जा रहे हैं, तो वे खेलने के लिए बाहर जा सकते हैं. या वे इन डायरेक्ट रूट से कांट्रैक्ट में आ सकते हैं. उनका कहना है कि फिलहाल इसमें व्यापक स्टडी की जरूरत है. उनका कहना है कि यह समझना बहुत ही जटिल है कि कोरोना वायरस किन किन तरह से फैल रहा है. मैं एक परिवार को जानता हूं, जो घर से बाहर नहीं निकला, लेकिन उनके सदस्यों को फिर भी कोरोना का संक्रमण हो गया.
स्कूल बंद फिर भी बच्चे संक्रमित
सीरो के सर्वे में पाया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में 29.1 फीसदी लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ एंटी बॉडीज विकसित हो गए हैं. इससे पहले के सर्वे में पाया गया था कि 22 फीसदी लोगों में एंटी बॉडीज विकसित हुए हैं. अब अगस्त में हुआ सर्वेक्षण दिखाता है कि यह आंकड़ा बढ़कर 29.1 फीसदी हो गया है. हालांकि सर्वे के रिजल्ट्स के बाद सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर स्कूल बंद और फिर भी कम उम्र के लोगों में मामले क्यों बढ़े.
15000 वॉलंटियर्स पर हुआ सर्वे
यह सर्वे 1 अगस्त से 7 अगस्त के बीच किया गया था. सर्वे के लिए 15,000 से अधिक वॉलंटियर्स को एंटीबॉडी की उपस्थिति के लिए परीक्षण किया गया था. इसके रिजल्ट का मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी) में विश्लेषण किया गया था. सर्वेक्षण में 4 आयु वर्ग के लोगों ने भाग लिया. इसमें लगभग 25 फीसदी 18 साल से कम उम्र के, 50 फीसदी 18 से 50 साल के बीच और शेष 50 साल से ऊपर आयु वर्ग के थे.
साउथ ईस्ट में सबसे ज्यादा प्रभाव
सर्वे दिल्ली के सभी 11 जिलों में आयोजित किया गया था. बीमारी का सबसे अधिक प्रसार साउथ ईस्ट जिले में पाया गया, जहां 32.2 फीसदी प्रतिभागी एंटीबॉडी के साथ पाए गए. इस जिले ने पिछली बार से सबसे बड़ी छलांग लगाई है. पिछले सर्वे में यहां 22.2 फीसदी प्रतिभागी एंटीबॉडी के साथ पाए गए थे.
तीसरा सर्वे 1 से 5 सितंबर के बीच
कोरोना पर काबू पाने के लिए दिल्ली सरकार ने हर महीने सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण (सीरो सर्वे) कराने का फैसला किया था. दिल्ली में अबतक दो सीरो सर्वे हो चुके हैं और तीसरा 1 से 5 सितंबर के बीच किया जाएगा. इसमें लगभग 17 हजार लोगों के सर्वेक्षण किए जाने की उम्मीद है. सीरो सर्वे के लिए नमूने दिल्ली के सभी 11 जिलों और सभी आयु वर्ग में एकत्र किए जाएंगे. बता दें कि पहला सीरो सर्वे 27 जून से 10 जुलाई के बीच आयोजित किया गया था. पहले सीरो सर्वे में 21,387 लोगों से नमूने लिए गए थे ,जबकि दूसरे दौर में 15 हजार नमूने एकत्र किए थे.
क्या होता है सीरोलॉजिकल सर्वे?
संक्रामक बीमारियों के संक्रमण को मॉनिटर करने के लिए सीरो सर्वे कराए जाते हैं. इन्हें एंटीबॉडी सर्वे भी कहते हैं. इसमें किसी भी संक्रामक बीमारी के खिलाफ शरीर में पैदा हुए एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है. कोरोनावायरस या SARS-CoV-2 जैसे वायरस से संक्रमित मामलों में ठीक होने वाले मरीजों में एंटीबॉडी बन जाती है, जो वायरस के खिलाफ शरीर को प्रतिरोधक क्षमता देती है. बता दें कि कोरोनावायरस पहले से मौजूद रहा है, लेकिन SARS-CoV-2 इसी फैमिली का नया वायरस है, ऐसे में हमारे शरीर में पहले से इसके खिलाफ एंटीबॉडी नहीं है. लेकिन हमारा शरीर धीरे-धीरे इसके खिलाफ एंटीबॉडी बना लेता है.(financialexpress)
नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)| दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर शर्जील इमाम को फरवरी में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया है। उस पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था। रविवार को उसे प्रोडक्शन वारंट पर असम से दिल्ली लाया गया।
दिल्ली पुलिस उसे 21 जुलाई को यहां लाने वाली थी लेकिन दिल्ली के लिए रवाना होने से ठीक पहले इमाम का कोविड-19 परीक्षण पॉजिटिव आ गया था।
इमाम सीएए और एनआरसी के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने का आरोपी है और वर्तमान में उसे असम पुलिस ने यूएपीए से संबंधित मामले में गुवाहाटी जेल में बंद कर रखा था।
दिल्ली पुलिस ने 25 जुलाई को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में इमाम के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत में दायर की गई 600 पेज की इस चार्जशीट में आईपीसी की धारा 124 ए, 153, 505 और गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम 1967 की धारा 13 के तहत आरोप लगाए थे।
नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)| अभिनेत्री शमा सिकंदर ने कास्टिंग काउच से जुड़े अपने एक अनुभव के बारे में खुलासा किया है, जिसे उन्होंने पूरी परिपक्वता और समझदारी से हैंडल करने की कोशिश की। शमा ने आईएएनएस को बताया, "मुझे लगता है कि मैं कास्टिंग काउच के बारे में बोलने वाली पहली व्यक्ति थी। आप इसे आज महसूस कर सकते हैं क्योंकि एक 'मी टू' अभियान चला और यह हर किसी को हिला देने के लिए काफी था। लिहाजा अब हर कोई इन मुद्दों पर आसानी से बात कर रहा है लेकिन पहले आप में से कोई भी ऐसा करना नहीं चाहता। सब डरते थे। बाद में सब एक साथ आए और इस मुद्दे पर बोले। यह केवल फिल्म इण्डस्ट्री में नहीं है, बल्कि जहां भी ताकत है वहां यह रहेगा।"
हालांकि, शमा कहती हैं कि शो बिजनेस इतना बुरा नहीं हैं, जितना कि लोगों को लगता है। वे यहां कुछ महान लोगों से भी मिलीं हैं।
कास्टिंग काउच को लेकर शमा ने कहा, "मेरे कुछ ऐसे अनुभव रहे हैं लेकिन मैंने इसे पूरी परिपक्वता और समझदारी से निपटाया।"
उन्होंने आगे कहा, "कोई पुरुष महिला के साथ सोने की कोशिश करता है, यह गलत नहीं है लेकिन उसके लिए महिला की इच्छा शामिल होना जरूरी है। कई लोग इसे बहुत ही गलत तरीके से करते हैं। जो व्यक्ति बीमार मानसिक के होते हैं वह लोगों को पीड़ा पहुंचाने के और भी तरीके खोज लेते हैं।"
शमा कहती हैं मेडिटेशन ने उन्हें मानसिक तौर पर बहुत मजबूत बनाया और वह बहुत खुश हैं।
मुंबई, 26 अगस्त (आईएएनएस) ऑस्कर विजेता संगीतकार एआर रहमान आगामी म्यूजिकल फिल्म 'अटकन चटकन' प्रस्तुत करने जा रहे हैं। फिल्म को लेकर कई प्रमुख आकर्षणों में यह भी शामिल है कि मास्टर तालवादक शिवमणि द्वारा रचित फिल्म के साउंडट्रैक के लिए अमिताभ बच्चन ने भी गाना गाया है।
फिल्म में 12 वर्षीय लड़के की कहानी और उसके सपनों को दिखाया गया है। वह चाय देने का काम करता है।
रहमान ने कहा, "'अटकन चटकन' एक ऐसी कहानी है जो प्रेम और आशा से समृद्ध है, और आखिरकार हम इसे वैश्विक मंच पर दुनिया के साथ साझा करने जा रहे हैं। इस बच्चे के सपने की लय जुनून के साथ ताल मिलाएगी, जो कि आशा का एक परफेक्ट उदाहरण है।"
फिल्म के प्रमुख किरदार का नाम गुड्डू है, जो एक 12 वर्षीय लड़का है और चाय देने का काम करता है, जिसका जुनून नई ध्वनियों का निरीक्षण करना, सुनना और उसे बनाना है। उसे लगभग हर चीज में लय सुनाई देती है। अपने दैनिक सांसारिक जीवन से परे वह तीन अन्य आवारा बच्चों के साथ एक बैंड बनाता है।
फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन, सोनू निगम, हरिहरन, रूना शिवमणि और उथारा उन्नीकृष्णन ने गाने गाए हैं।
फिल्म का लेखन और निर्देशन फिल्मकार सौमी शिवहरे ने किया है। इसे विशाखा सिंह ने प्रोड्यूस किया है, और यह 5 सितंबर को जी 5 पर रिलीज होने के लिए तैयार है।