खेल
इंफाल, 7 अगस्त | भारतीय सेना ने शनिवार को मणिपुर में ओलंपिक रजत पदक विजेता भारोत्तोलक मीराबाई चानू को सम्मानित किया। रक्षा सूत्रों ने यह जानकारी दी। एक रक्षा प्रवक्ता ने कहा कि सेना के स्पीयर कोर के रेड शील्ड डिवीजन ने इंफाल पश्चिम जिले के लीमाखोंग सैन्य स्टेशन में एक समारोह में चानू को सम्मानित किया।
रेड शील्ड डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल नवीन सचदेवा ने डिवीजन के अन्य अधिकारियों और सैनिकों और उनके परिवारों के साथ चानू (27) को बधाई दी और प्रशंसा के प्रतीक के रूप में उन्हें एक स्मृति चिन्ह भेंट किया।
प्रवक्ता ने कहा कि सैनिकों के साथ बातचीत के दौरान, स्टार भारोत्तोलक ने ओलंपिक पोडियम तक अपनी यात्रा साझा की और युवा सैनिकों और बच्चों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक केंद्रित दृष्टिकोण के साथ बड़ी आकांक्षा रखने का आह्वान किया।
24 जुलाई को महिलाओं के 49 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीतने वाली चानू इंफाल से करीब 25 किलोमीटर दूर इंफाल पूर्वी जिले के नोंगपोक काकचिंग गांव की रहने वाली हैं।
27 जुलाई को मणिपुर लौटने पर चानू का नायक के रूप में स्वागत किया गया।
गुरुवार को चानू ने आभार व्यक्त करते हुए 150 ट्रक चालकों और सहायकों को एक शर्ट, एक मणिपुरी दुपट्टा और पूरे भोजन के साथ सम्मानित किया।
चानू के गांव से इंफाल तक नदी की रेत ले जाने वाले इन ट्रक ड्राइवरों और हेल्परों ने उन्हें इम्फाल में स्पोर्ट्स एकेडमी में जाने के लिए कई सालों तक लिफ्ट दी।
चानू के बड़े भाई बिनोद मैतेई ने शनिवार को कहा, हर दिन 25 किमी की दूरी तय करने के लिए धन की कमी के कारण, चानू इंफाल जाने वाले ट्रकों के साथ सवारी करती थी जो हमारे गांव की नदी से रेत ले जाते हैं। मेरी बहन ने उनके आभार के रूप में 150 ट्रक ड्राइवरों और सहायकों को कुछ उपहार दिया और दोपहर का भोजन कराया।(आईएएनएस)
वंदना
नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बन गए हैं.
उन्होंने 87.58 मीटर जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) के साथ भारत की झोली में पहला गोल्ड मेडल डाल दिया.
नीरज ने अपने पहले प्रयास में 87.03 मीटर, दूसरे में 87.58 और तीसरे प्रयास में 76.79 मीटर जैवलिन फेंका.
इस प्रतिस्पर्धा में दूसरे और तीसरे स्थान पर चेक खिलाड़ी रहे.
नीरज चोपड़ा की इस जीत के साथ ही भारत के टोक्यो ओलंपिक में 7 पदक हो गए हैं और यह किसी एक ओलंपिक खेल में सबसे अधिक पदक लाने का भारत का नया रिकॉर्ड है.
इसके साथ ही नीरज ओलंपिक के व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत के लिए गोल्ड जीतने वाले केवल दूसरे खिलाड़ी बने हैं. अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक 2008 के 10 मीटर राइफल शूटिंग में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था.
पहली बार ओलंपिक में खेल रहे नीरज चोपड़ा क्वॉलिफिकेशन राउंड में दोनों ही ग्रुप में सबसे ऊपर रहे थे. तब 23 वर्षीय इस एथलीट ने 86.65 मीटर भाला फेंका था.
नीरज ने इसी साल मार्च में इंडियन ग्रॉ प्री-3 में 88.07 मीटर जैवलिन थ्रो के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था.
जून के महीने में पुर्तगाल के लिस्बन शहर में हुए मीटिंग सिडडे डी लिस्बोआ टूर्नामेंट में उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम किया था.
पानीपत के गाँव से शुरू हुई कहानी
अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद विश्व की किसी भी बड़ी एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज सिर्फ़ दूसरे भारतीय एथलीट हैं.
नीरज की कहानी शुरू होती है पानीपत के एक छोटे से गाँव से. यहाँ लड़कपन में नीरज भारी भरकम होते थे- क़रीब 80 किलो वज़न वाले. कुर्ता पायजामा पहने नीरज को सब सरपंच कहते थे.
फ़िटनेस ठीक करने के हिसाब से वो पानीपात में स्टेडियम जाने लगे और दूसरों के कहने पर जैवलिन में हाथ आज़माया. और वहीं से सफ़र शुरू हुआ.
बेहतर सुविधाओं की तलाश में नीरज पंचकुला शिफ्ट कर गए और पहली बार उनका सामना राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों से हुआ. उन्हें बेहतर सुविधाएं मिलने लगीं.
जब राष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगे तो ख़राब क्वॉलिटी वाली जैवलिन की बजाय हाथ में बढ़िया जैलविन आ गई. धीरे-धीरे नीरज के खेल में तब्दीली आ रही थी.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमके
जब 2016 में भारत पीवी सिंधु और साक्षी मलिक के मेडल का जश्न मना रहा था तो एथलेक्टिस की दुनिया में कहीं और एक नए सितारे का उदय हो रहा था.
ये वही साल है, जब नीरज ने पोलैंड में U-20 विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता.
जल्द ही ये युवा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाने लगा. उन्होंने गोल्ड कोस्ट में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में 86.47 मीटर के जैवलिन थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता तो 2018 में एशियाई खेलों में 88.07 मीटर तक जैवलिन थ्रो कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था और स्वर्ण पदक भी जीता.
चोट ने मुश्किलों में डाला
लेकिन 2019 नीरज चोपड़ा के लिए बेहद मुश्किलों भरा रहा. कंधे की चोट के कारण वे खेल नहीं पाए और सर्जरी के बाद कई महीने तक आराम करना पड़ा. फिर 2020 आते-आते तो कोरोना के चलते अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ नहीं हो पाईं.
हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब घायल होने की वजह से नीरज को इस कदर परेशानी हुई हो.
2012 में जब वो बास्केटबॉल खेल रहे थे, तो उनकी कलाई टूट गई. वही कलाई जिससे वो थ्रो करते हैं. तब नीरज ने कहा था कि एक बार उन्हें लगा था कि शायद वे न खेल पाएँ.
लेकिन नीरज की मेहनत और उनकी टीम की कोशिश से वो उस पड़ाव को भी पार गए.
आज की तारीख़ में भले उनके पास विदेशी कोच हैं, बायोमैकेनिकल एक्सपर्ट हैं, पर 2015 के आस-पास तक नीरज ने एक तरह से ख़ुद ही अपने आप को ट्रेन किया, जिसमें घायल होने का ज़्यादा ख़तरा बना रहता है. उसके बाद ही उन्हें अच्छे कोच और दूसरी सुविधा मिलने लगी.
खेल के लिए नॉनवेज खाना शुरू किया
रियो ओलंपिक में खेलने से नीरज चूक गए थे क्योंकि उन्होंने क्वॉलिफ़िकेशन मार्क वाला थ्रो जब लगाया तब तक क्वॉलाफ़ाई करने की आख़िरी तारीख़ निकल चुकी थी.
ये नीरज के लिए दिल टूटने वाला अनुभव था. लेकिन टोक्यो में नीरज ने ऐसा नहीं होने दिया.
जैवलिन तो नीरज का पैशन है पर बाइक चलाने का भी नीरज को बहुत शौक है और साथ ही हरियाणवी रागिनियों का भी. पंजाबी गाने और बब्बू मान उनकी प्लेलिस्ट में रहते हैं.कभी शाकाहारी रहे नीरज अब अपने खेल की वजह से नॉनवेज भी खाने लगे हैं.
खाने की बात चली है तो खिलाड़ी को डायट के हिसाब से चलना ही पड़ता है पर गोलगप्पों को वे अपना पंसदीदा जंक फूड मानते हैं.
उनके लंबे बालों की वजह से सोशल मीडिया पर लोग उन्हें मोगली के नाम से भी जानते हैं. शायद लंबे बालों और फुर्तीलेपन की वजह से.
यही फ़ुर्ती नीरज को ओलंपिक तक लेकर आई है. नीरज अभी 23 साल के हैं और उनकी नज़र 2024 के पेरिस ओलंपिक पर है. (bbc.com)
भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया (Bajrang Punia wins bronze) ने इतिहास रच दिया है. पुरुषों की 65 किग्रा फ्रीस्टाइल में 8-0 के बड़े अंतर से उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को हराकर देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया है. उनके पदक जीतने के साथ ही जो महाकुंभ में भारत ने छठा पदक जीत लिया है. देखा जाए तो ओलिंपिक में बजरंग का यह पहला मेडल है. सोशल मीडिया पर बजरंग पूनिया को बधाई देने वालों का तांता लग गया है. लोग जमकर तारीफ कर रहे हैं.
ब्रॉन्ज मेडल मैच में बजरंग ने कजाखिस्तान के पहलवान दौलत नियाजबेकोव (Doulet Niyazbekov) को एकतरफा मुकाबले में पटखती देते हुए उन्हें 8-0 से धूल चटा दी. महाकुंभ में अपनी पिछले मुकाबलों से अलग इस बार बजरंग ने शुरुआत से ही अटैकिंग रणनीति को तरजीह दी और आखिर तक इसका साथ नहींं छोड़ा, जिसका उन्हें पूरा फायदा मिला. बजरंग ने कमाल का परफॉर्मेंस किया और दोनों राउंड में विरोधी पहलवान पर हावी रहे. इस जीत के साथ ही कुश्ती में इस ओलिंपिक में दो मेडल आ गए हैं. बजरंग से पहले रवि दहिया ने सिल्वर मेडल पर कब्जा जमाया है.
-वंदना
उन्होंने 87.58 मीटर जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) के साथ भारत की झोली में पहला गोल्ड मेडल डाल दिया.
नीरज ने अपने पहले प्रयास में 87.03 मीटर, दूसरे में 87.58 और तीसरे प्रयास में 76.79 मीटर जैवलिन फेंका.
इस प्रतिस्पर्धा में दूसरे और तीसरे स्थान पर चेक खिलाड़ी रहे.
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नीरज चोपड़ा की इस जीत के साथ ही भारत के टोक्यो ओलंपिक में 7 पदक हो गए हैं और यह किसी एक ओलंपिक खेल में सबसे अधिक पदक लाने का भारत का नया रिकॉर्ड है.
इसके साथ ही नीरज ओलंपिक के व्यक्तिगत स्पर्धा में भारत के लिए गोल्ड जीतने वाले केवल दूसरे खिलाड़ी बने हैं. अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक 2008 के 10 मीटर राइफल शूटिंग में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था.
पहली बार ओलंपिक में खेल रहे नीरज चोपड़ा क्वॉलिफिकेशन राउंड में दोनों ही ग्रुप में सबसे ऊपर रहे थे. तब 23 वर्षीय इस एथलीट ने 86.65 मीटर भाला फेंका था.
नीरज ने इसी साल मार्च में इंडियन ग्रॉ प्री-3 में 88.07 मीटर जैवलिन थ्रो के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था.
जून के महीने में पुर्तगाल के लिस्बन शहर में हुए मीटिंग सिडडे डी लिस्बोआ टूर्नामेंट में उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम किया था.
पानीपत के गाँव से शुरू हुई कहानी
अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद विश्व की किसी भी बड़ी एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज सिर्फ़ दूसरे भारतीय एथलीट हैं.
नीरज की कहानी शुरू होती है पानीपत के एक छोटे से गाँव से. यहाँ लड़कपन में नीरज भारी भरकम होते थे- क़रीब 80 किलो वज़न वाले. कुर्ता पायजामा पहने नीरज को सब सरपंच कहते थे.
फ़िटनेस ठीक करने के हिसाब से वो पानीपात में स्टेडियम जाने लगे और दूसरों के कहने पर जैवलिन में हाथ आज़माया. और वहीं से सफ़र शुरू हुआ.
बेहतर सुविधाओं की तलाश में नीरज पंचकुला शिफ्ट कर गए और पहली बार उनका सामना राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों से हुआ. उन्हें बेहतर सुविधाएं मिलने लगीं.
जब राष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगे तो ख़राब क्वॉलिटी वाली जैवलिन की बजाय हाथ में बढ़िया जैलविन आ गई. धीरे-धीरे नीरज के खेल में तब्दीली आ रही थी.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमके
जब 2016 में भारत पीवी सिंधु और साक्षी मलिक के मेडल का जश्न मना रहा था तो एथलेक्टिस की दुनिया में कहीं और एक नए सितारे का उदय हो रहा था.
ये वही साल है, जब नीरज ने पोलैंड में U-20 विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता.
जल्द ही ये युवा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाने लगा. उन्होंने गोल्ड कोस्ट में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में 86.47 मीटर के जैवलिन थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता तो 2018 में एशियाई खेलों में 88.07 मीटर तक जैवलिन थ्रो कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था और स्वर्ण पदक भी जीता.
चोट ने मुश्किलों में डाला
लेकिन 2019 नीरज चोपड़ा के लिए बेहद मुश्किलों भरा रहा. कंधे की चोट के कारण वे खेल नहीं पाए और सर्जरी के बाद कई महीने तक आराम करना पड़ा. फिर 2020 आते-आते तो कोरोना के चलते अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ नहीं हो पाईं.
हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब घायल होने की वजह से नीरज को इस कदर परेशानी हुई हो.
2012 में जब वो बास्केटबॉल खेल रहे थे, तो उनकी कलाई टूट गई. वही कलाई जिससे वो थ्रो करते हैं. तब नीरज ने कहा था कि एक बार उन्हें लगा था कि शायद वे न खेल पाएँ.
लेकिन नीरज की मेहनत और उनकी टीम की कोशिश से वो उस पड़ाव को भी पार गए.
आज की तारीख़ में भले उनके पास विदेशी कोच हैं, बायोमैकेनिकल एक्सपर्ट हैं, पर 2015 के आस-पास तक नीरज ने एक तरह से ख़ुद ही अपने आप को ट्रेन किया, जिसमें घायल होने का ज़्यादा ख़तरा बना रहता है. उसके बाद ही उन्हें अच्छे कोच और दूसरी सुविधा मिलने लगी.
खेल के लिए नॉनवेज खाना शुरू किया
रियो ओलंपिक में खेलने से नीरज चूक गए थे क्योंकि उन्होंने क्वॉलिफ़िकेशन मार्क वाला थ्रो जब लगाया तब तक क्वॉलाफ़ाई करने की आख़िरी तारीख़ निकल चुकी थी.
ये नीरज के लिए दिल टूटने वाला अनुभव था. लेकिन टोक्यो में नीरज ने ऐसा नहीं होने दिया.
जैवलिन तो नीरज का पैशन है पर बाइक चलाने का भी नीरज को बहुत शौक है और साथ ही हरियाणवी रागिनियों का भी. पंजाबी गाने और बब्बू मान उनकी प्लेलिस्ट में रहते हैं.
कभी शाकाहारी रहे नीरज अब अपने खेल की वजह से नॉनवेज भी खाने लगे हैं.
खाने की बात चली है तो खिलाड़ी को डायट के हिसाब से चलना ही पड़ता है पर गोलगप्पों को वे अपना पंसदीदा जंक फूड मानते हैं.
उनके लंबे बालों की वजह से सोशल मीडिया पर लोग उन्हें मोगली के नाम से भी जानते हैं. शायद लंबे बालों और फुर्तीलेपन की वजह से.
यही फ़ुर्ती नीरज को ओलंपिक तक लेकर आई है. नीरज अभी 23 साल के हैं और उनकी नज़र 2024 के पेरिस ओलंपिक पर है. (bbc.com)
-प्रदीप कुमार
बजरंग पूनिया टोक्यो ओलंपिक में 65 किलोवर्ग फ़्री स्टाइल कुश्ती के सेमीफ़ाइनल में भले हार गए हों लेकिन उम्मीद के मुताबिक ही वे ओलंपिक में मेडल हासिल करने में कामयाब रहे.
कांस्य पदक के लिए हुए मुक़ाबले में उन्होंने कज़ाख़स्तान के दौलेत नियाज़बेकोव को कोई मौका नहीं दिया और 8-0 से हराकर उन्होंने पदक जीत लिया.
सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में बजरंग पूनिया भले रंग में नहीं दिखे थे लेकिन अंतिम मुक़ाबले में उन्होंने शुरुआत से ही बढ़त बनाए रखी.
सेमीफ़ाइनल में वे अज़रबैजान के हाजी अलीयेव से हार गए. बताया जा रहा है कि इस मुक़ाबले से पहले उनके घुटने में चोट लगी थी लेकिन अंतिम मुक़ाबले में उन्होंने भरपाई कर ली.
क्वार्टर फ़ाइनल मैच से ठीक पहले एक रोमांचक मुक़ाबले में आख़िरी सेकेंड में पॉइंट हासिल करते हुए पुनिया ने किर्गिस्तान के अरनाज़र अकमातालिव को हरा कर क्वार्टर फ़ाइनल में अपनी जगह पक्की की थी.
कामयाबी की सीढ़ी
बजरंग पूनिया बीते सात आठ सालों से भारत के वैसे पहलवान रहे हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल स्तर पर लगातार और निरंतरता के साथ कामयाबी हासिल की है.
यही वजह है कि टोक्यो में उन्हें भारत के लिए सबसे उपयुक्त दावेदार माना जा रहा था. रवि दहिया के मेडल जीतने के बाद उनके ऊपर कामयाबी का दबाव भी बढ़ा होगा, लेकिन वे दबावों में निखरने वाले पहलवान रहे हैं, लेकिन सेमीफ़ाइनल में अपने से दमदार पहलवान के सामने वे पिछड़ने के बाद वापसी नहीं कर सके.
लेकिन बचपन में देखे सपने और अपने मेंटॉर योगेश्वर दत्त की तरह चैंपियन बनने का सपना उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में मेडल हासिल करके पूरा कर दिखाया है. उम्मीद यही है कि पेरिस ओलंपिक में वे अपने पदक का रंग बदलने की कोशिश ज़रूर करेंगे.
अखाड़े में कैसे पहुंचे?
एपिक चैनल के एक कार्यक्रम उम्मीद इंडिया में वीरेंद्र सहवाग बजरंग पूनिया से पूछते हैं कि कुश्ती के प्रति दिलचस्पी कैसी जगी तब बजरंग बताते हैं, "हरियाणा के गांवों के हर घर में आपको लंगोट मिल जाएगी. तो केवल लंगोट में जाना होता है और अखाड़े में जीतने पर कुछ न कुछ मिलता ही है. तो ऐसे शुरुआत हुई लेकिन सच कहूं तो स्कूल से बचने के लिए मैं अखाड़ों में जाने लगा था."
हरियाणा के झज्जर ज़िले के कुडन गांव में मिट्टी के अखाड़ों में पूनिया ने सात साल की उम्र में जाना शुरू कर दिया था. उनके पिता भी पहलवानी करते थे लिहाजा घर वालों ने रोक टोक नहीं की.
लेकिन गांवों के मिट्टी के अखाड़ों में जहां मिट्टी के कारण पहलवानों को काफ़ी मदद मिलती है और मैट की कुश्ती एकदम अलग होती है. मिट्टी के आखाड़ों में बेहतरीन करने वाले पहलवानों को भी मैट पर कुश्ती के गुर सीखने होते हैं. लिहाजा 12 साल की उम्र में वे पहलवान सतपाल से कुश्ती के गुर सीखने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम पहुंचे.
कुश्ती खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तब बढ़ गई जब उनकी मुलाक़ात योगेश्वर दत्त से हुई. इस मुलाक़ात के बारे में योगेश्वर दत्त ने एपिक चैनल के कार्यक्रम उम्मीद इंडिया में बताया, "2008 में कुडन गांव का मेरा एक दोस्त उसे लेकर आया था मिलवाने. तब से उसमें लगे रहने वाला भाव था. वह हमलोगों से 12-13 साल छोटा था लेकिन मेहनत उतनी ही कर रहा था."
बजरंग पूनिया ने योगेश्वर दत्त को अपना मॉडल, गाइड और दोस्त सब बना लिया था. 2012 के लंदन ओलंपिक में योगेश्वर दत्त की कामयाबी ने उनमें भी यह भाव भरा कि वे ओलंपिक मेडल हासिल कर सकते हैं.
वरिष्ठ खेल पत्रकार राजेश राय बताते हैं, "मुझे पहली बार बजरंग सोनीपत में ही मिले थे, योगेश्वर दत्त के साथ. उन योगेश्वर का बड़ा असर रहा है."
इस असर का प्रभाव ऐसा रहा कि 2014 में बजरंग पूनिया ने योगेश्वर अकेडमी जॉइन कर ली और वहां से पीछे मुड़कर नहीं देखा. बीते सात सालों में जितने टूर्नामेंट में उन्होंने कामयाबी हासिल की है, उसकी दूसरी मिसाल मिलनी मुश्किल है.
2017 और 2019 की एशियाई चैंपियनशिप, 2018 के एशियन गेम्स और 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में पूनिया ने गोल्ड मेडल जीता है.
इसी साल हुई एशियाई चैंपियनशिप में वे गोल्ड मेडल नहीं जीत सके और सिल्वर मेडल से उन्हें संतोष करना पड़ा. ओलंपिक से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर की विभिन्न टूर्नामेंटों में छह गोल्ड, सात सिल्वर और चार ब्रौंज़ मेडल पुनिया जीत चुके थे. इन सब कामयाबी में योगेश्वर दत्त का गाइडेंस उनके काम आ रहा था.
वरिष्ठ खेल पत्रकार राजेश राय बताते हैं, "एक बेहतरीन खिलाड़ी का गाइडेंस क्या कर सकता है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. 2018 साल के राजीव गांधी खेल रत्न के बजरंग भी दावेदार थे. लेकिन उन्हें नहीं मिला."
वे बताते हैं कि, "वे उस वक्त बेंगलुरू में ट्रेनिंग ले रहे थे, दुखी थे. फ़ोन करके उन्होंने कहा कि कनॉट प्लेस में एक प्रेस कांफ्रेंस करूंगा. उस प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि पुरस्कार नहीं मिलने को वे अदालत में चुनौती देंगे."
2019 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार
राजेश राय के मुताबिक शायद यह सब इतनी जल्दबाज़ी में हुआ कि योगेश्वर दत्त को बाद में पता चला, उन्होंने बजरंग को समझाया कि 'तू बस अपने खेल पर ध्यान दे, तू खेलता रहेगा तो तुझे खेल रत्न मिलेगा ही आज नहीं तो कल, अदालत का चक्कर छोड़, उससे कोई फ़ायदा नहीं होगा.'
इस सलाह का ऐसा असर हुआ कि बजरंग को 2019 का राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार भी मिला और कुश्ती की दुनिया में उनका नाम भी चमकता रहा.
इस दौरान अपने प्रदर्शन को लेकर उनका एक बयान सुर्ख़ियां बटोरता रहा है, वे मज़ाकिया लहजे में कहते हैं, "ये ढाई किलो का हाथ जब किसी पर पड़ता है तो गोल्ड मेडल आ ही जाता है."
योगेश्वर दत्त का असर
ये सुनने के बाद पहला भाव यही उमड़ता है कि बजरंग पूनिया पर सिनेमा का असर होगा. लेकिन आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि बजरंग पूनिया बीते एक दशक में कभी सिनेमा हॉल नहीं गए और इस दौरान सात साल के लंबे समय तक उन्होंने मोबाइल फ़ोन भी नहीं रखा.
समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है, "2010 से जब मैंने इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलना शुरू किया तो योगी (योगेश्वर दत्त) भाई ने मुझसे कहा कि इन सब चीज़ों से ध्यान भटकता है. आज मेरे पास मोबाइल फ़ोन है लेकिन योगी भाई के सामने मैं इस्तेमाल नहीं करता. अगर वे दस घंटे तक मेरे साथ हैं तो समझिए 10 घंटे तक मेरा फ़ोन बंद ही है."
योगेश्वर दत्त की सलाहों का ही असर है कि विभिन्न टूर्नामेंटों में हिस्सा लेने के लिए दुनिया के 30 देशों में जा चुके बजरंग पूनिया ने किसी भी देश के टूरिस्ट स्पॉट को नहीं देखा. उनके टीम के दूसरे खिलाड़ी कहीं बाहर घूमने फिरने भी जाते हैं तो इस दल में बजरंग नहीं दिखाई देते, क्योंकि उनका पूरा ध्यान केवल और केवल कुश्ती और अभ्यास पर टिका है.
हालांकि बजरंग पूनिया समय समय पर ट्वीट करते रहे थे, लेकिन टोक्यो ओलंपिक की तैयारी का असर है कि 2018 के बाद उन्होंने कोई ट्वीट भी नहीं किया है. उनके ट्वीट से भी उनके ग्राउंडेड व्यक्तित्व का पता चलता है.
अपने एक ट्वीट में उन्होंने लिखा है, "बुरा वक़्त सबसे बड़ा जादूगर है. एक ही पल में सारे चाहने वालों के चेहरे से पर्दा हटा देता है."
अपने एक दूसरे ट्वीट में उन्होंने दार्शनिक अंदाज़ में आत्मविश्वास और अहंकार का अंतर बताया है. उन्होंने ट्वीट किया है, "मैं श्रेष्ठ हूं, ये आत्मविश्वास है... लेकिन.. सिर्फ़ 'मैं ही श्रेष्ठ हूं' ये अहंकार है."
बजरंग पूनिया को टोक्यो ओलंपिक में इसलिए भी पदक का दावेदार माना जा रहा है तो इसकी एक वजह उनके पर्सनल कोच शाको बेंटिनीडीस हैं जो पिछले कुछ सालों से लगातार पूनिया की तकनीक को सुधारने में लगे हुए हैं.
जार्जियाई कोच बेंटिनीडीस खुद तीन बार के ओलंपियन हैं और ओलंपिक खेलों की अधिकृत वेबसाइट ओलंपिक्स डॉट कॉम में पुनिया और बेनडिटीस के परिचय से संबंधी एक आलेख के मुताबिक कोच का पूनिया से बाप-बेटे जैसा रिश्ता बन चुका है.
बेंटिनीडीस ने पूनिया के शारीरिक फ़िटनेस के साथ साथ उनके मनोवैज्ञानिक फ़िटनेस पर काफ़ी काम किया है. पिछले साल पूनिया घुटने की चोट से भी प्रभावित रहे थे. लेकिन टोक्यो में वे शानदार वापसी करने में कामायब रहे.
उनकी ट्रेनिंग में एक पहलू बड़ा ही दिलचस्प है जिस फ़ोन से बजरंग पूनिया दूर रहने में भलाई समझते थे, उसी फ़ोन ने बीते एक साल में उनकी काफ़ी मदद की है, दरअसल कोविड के चलते पिछले साल जब बेनडिटीस जार्जिया में फंस गए तो भी उन्होंने वीडियो कॉल्स और फ़ोन कॉल्स के ज़रिए पूनिया को कोचिंग दी है.
वैसे तो बजरंग अपने 'स्टैमिना' के लिए जाने जाते हैं, इस दमखम के चलते वे छह मिनटों में आक्रामक तौर तरीकों से सामने वाले को चित्त करते रहे हैं.
लेकिन उनकी गेम का एक पक्ष काफी कमज़ोर रहा है, वो है उनका लेग-डिफेंस. इसके चलते विपक्षी पहलवान उनकी टांगों पर अटैक करके अंक बना लेते हैं. इसकी झलक सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में भी दिखी. लेकिन ब्रौंज मेडल मुक़ाबले में वे पूरी तरह से चौकस नज़र आए.
पूर्व यूरोपियन चैंपियन रहे शाको के मुताबिक जब उन्होंने पूनिया की ताक़त और कमज़ोरियों का अध्ययन किया तो उनकी लेग डिफ़ेंस में कमी पायी और इस पर ध्यान देने के लिए टोक्यो ओलंपिक से ठीक पहले उन्होंने रूस में पूनिया की ट्रेनिंग की व्यवस्था की.
पीटीआई के खेल पत्रकार अमनप्रीत सिंह के मुताबिक, "करियर की शुरुआत में मिट्टी के दंगलों में शिरकत करना, ज़्यादा झुककर न खेलने की आदत की वजह से यह कमज़ोरी है उनमें. लेकिन जॉर्जिया के शाको ने बजरंग की लेग डिफेंस की कमियों को दूर करने में काफी मदद की है."
"शाको ने बजरंग के लिए विश्व के बेहतरीन ट्रेनिंग पार्टनर ढूँढे और उन्हें यूरोप और अमेरिका में अलग-अलग जगह ट्रेनिंग के लिए लेकर गए. भारत में बजरंग के लिए विश्व-स्तरीय ट्रेनिंग पार्टनर ढूँढना संभव नहीं था इसलिए बजरंग की तैयारियों में शाको का ये महत्वपूर्ण योगदान है."
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ओलंपिक: बजरंग पूनिया ने कुश्ती में भारत को दिलाया कांस्य पदक
टोक्यो ओलंपिक में भारत के बजरंग पूनिया ने 65 किलोग्राम वर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती में भारत को कांस्य पदक दिलाया है. उन्होंने कजाख़्स्तान के खिलाड़ी को हरा दिया.
बजरंग पूनिया ने कज़ाख़स्तान के दौलेत नियाज़बेकोव को 8-0 के भारी अंतर से मात दी.
इस जीत के साथ ही भारत ने 2012 में लंदन ओलंपिक खेलों के बराबर पदक जीत लिए हैं. लंदन ओलंपिक में भारत को कुल छह पदक मिले थे और टोक्यो ओलंपिक में भी भारत को अब तक छह पदक मिल चुके हैं.
सेमीफ़ाइनल में बजरंग पूनिया अज़रबैजान के हाजी अलीयेव से हार गए थे. पहले हाफ में ही अज़रबैजान के हाजी अलीयेव बजरंग पूनिया पर भारी पड़े थे. जहाँ हाजी ने 11 अंक बनाए वहीं बजरंग केवल पाँच अंक ही बना सके थे और फ़ाइनल में पहुँचने से चूक गए थे. (bbc.com)
टोक्यो ओलंपिक में भारत के बजरंग पूनिया ने 65 किलोग्राम वर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती में भारत को कांस्य पदक दिलाया है. उन्होंने कजाख़्स्तान के खिलाड़ी को हरा दिया.
बजरंग पूनिया ने कज़ाख़स्तान के दौलेत नियाज़बेकोव को 8-0 के भारी अंतर से मात दी.
इस जीत के साथ ही भारत ने 2012 में लंदन ओलंपिक खेलों के बराबर पदक जीत लिए हैं. लंदन ओलंपिक में भारत को कुल छह पदक मिले थे और टोक्यो ओलंपिक में भी भारत को अब तक छह पदक मिल चुके हैं.
सेमीफ़ाइनल में बजरंग पूनिया अज़रबैजान के हाजी अलीयेव से हार गए थे. पहले हाफ में ही अज़रबैजान के हाजी अलीयेव बजरंग पूनिया पर भारी पड़े थे. जहाँ हाजी ने 11 अंक बनाए वहीं बजरंग केवल पाँच अंक ही बना सके थे और फ़ाइनल में पहुँचने से चूक गए थे. (bbc.com)
-वंदना
टोक्यो ओलंपिक शुरू होने से पहले जिन खेलों और खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद की जा रही थी उसमें गोल्फ़ और अदिति अशोक का नाम शायद ही किसी ने लिया हो.
लेकिन अब जब ओलंपिक ख़त्म होने की कगार पर था तो भारत की 23 साल की गोल्फ़ खिलाड़ी अदिति ने पदक की उम्मीद जगा दी थी. टोक्यो ओलंपिक में चौथे पायदान पर पहुंचकर उन्होंने इतिहास रच दिया है.
साल 2016 में गोल्फ़ को समर ओलंपिक में जगह दी गई जबकि यह इससे पहले 1900 और 1904 में भी ओलंपिक खेलों में शामिल रहा था. भारत की गोल्फ़ में इसे बड़ी छलांग माना जाना चाहिए.
मेडल न मिलने के बावजूद दुनिया में 179वीं रैंकिंग की खिलाड़ी अदिति के ओलंपिक में इस शानदार प्रदर्शन की ख़ूब चर्चा हो रही है.
बेंगलुरु की रहने वाली अदिति पिछले कुछ सालों से गोल्फ़ में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं. हालांकि क्रिकेट और दूसरे खेलों के मुकाबले भारत में गोल्फ़ की मीडिया में उतनी चर्चा नहीं होती.
वैसे तो अदिति ने रियो 2016 ओलंपिक में भी क्वॉलिफ़ाई किया था लेकिन तब वो स्कूल से निकली एक किशोरी थीं और ओलंपिक में महिला गोल्फ़ स्पर्धा में सबसे युवा खिलाड़ी थीं.
रियो में उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा था और वो 41वें स्थान पर आई थीं. लेकिन इन सुर्खियों से परे इन पाँच सालों में अदिति ने महिला गोल्फ़ में अपना अलग मक़ाम बनाया है.
2017 में वे पहली भारतीय महिला प्रोफ़ेशनल गोल्फ एसोसिएशन खिलाड़ी बनीं थीं.
किसी भी दूसरी भारतीय महिला गोल्फ़ खिलाड़ी ने दो बार ओलंपिक में क्वॉलिफ़ाई नहीं किया है.
इत्तेफ़ाक से यूँ हुई थी अदिति के गोल्फ़ की शुरुआत
इतना ही नहीं, अदिति अकेली भारतीय हैं जिन्होंने 2016 में लेडीज़ यूरोपीय टूर में दो टाइटल जीते हैं.
इसके अलावा अदिति पहली भारतीय महिला गोल्फ़र हैं, जिन्होंने एशियन यूथ गेम्स (2013), यूथ ओलंपिक गेम्स (2014), एशियन गेम्स (2014) में हिस्सा लिया.
वो लल्ला आइचा टूर स्कूल का टाइटल जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय हैं.
इस जीत की वजह से ही उन्हें 2016 सीज़न के लिए लेडीज़ यूरोपियन टूर कार्ड के लिए एंट्री मिली थी.
सोशल मीडिया पर अदिति के फ़ॉलोअर्स की संख्या 3,000 से तक़रीबन 40 हज़ार पहुँच चुकी है.
गोल्फ़ में अदिति की शुरुआत एक तरह से इत्तेफ़ाक से ही हुई थी. बेंगलुरु के जिस रेस्तरां में उनका परिवार खाना खाने जाता था, वहीं सामने गोल्फ़ रेंज था, एक दिन वो लोग यूँ ही वहाँ रेंज देखने गए और अदिति ने थोड़ा-बहुत हाथ आज़माया.
बस वहीं से गोल्फ़ का सफ़र शुरू हो गया. तब अदिति कोई पाँच-छह साल की थीं.
ओलंपिक में मां और पिता बने कैडी
रियो ओलंपिक में अदिति के कैडी के तौर पर उनके पिता साथ गए थे और टोक्यो में कैडी के तौर पर उनकी माँ साथ आई हैं. माँ-बेटी की इस जोड़ी की तस्वीरें आप टोक्यो से देख सकते हैं.
कैडी यानी वो व्यक्ति जो गोल्फ़र का सहायक होता है, जो गोल्फ़ क्लब के बैग को लेकर चलता है और कई मामलों में गोल्फ़ खिलाड़ी की मदद करता है.
अदिति ने भारत में गोल्फ़ को दी नई पहचान
अन्य खेलों के मुकाबले गोल्फ़ भारत में उतना लोकप्रिय नहीं है. जिन चंद गोल्फ़ खिलाड़ियों को लोग पहचानते हैं उनमें चिरंजीव मिल्खा सिंह और ज्योति रंधावा जैसे पुरुष खिलाड़ियों के ही नाम हैं. ऐसे में अदिति अशोक के टोक्यो ओलंपिक में अच्छे प्रदर्शन से कुछ बदलाव ज़रूर आएगा जहाँ लोग गोल्फ़ को ही नहीं अदिति को भी पहचानेंगे.
टोक्यों में अदिति और उनकी कैडी यानी उनकी माँ को देखना भारत के लिए एक सुखद आश्चर्य रहा है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 7 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन करने वाली भारत की 23 साल की महिला गोल्फर अदिति अशोक को हर तरफ से तारीफ मिल रही है। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर अदिति के प्रदर्शन को सराहने वालों में सबसे आगे रहे। अदिति टोक्यो ओलंपिक में महिलाओं की व्यक्तिगत स्ट्रोक प्ले इवेंट में चौथे स्थान पर रहीं। चौथे और अंतिम राउंड के अंतिम क्षणों में की गई कुछ गलतियां अदिति को पदक से दूर ले गईं। वह तीन राउंड तक पदक की दौड़ में बनी हुई थीं।
चौथा स्थान भी अदिति के लिए हर मायने में सराहनीय कहा जाएगा। अपना दूसरा ओलंपिक खेल रहीं अदिति रियो ओलंपिक में 41वें स्थान पर रही थीं। लेकिन टोक्यो में अदिति ने शुरू से ही शानदार प्रदर्शन किया और तीसरे राउंड की समाप्ति तक टॉप-3 में बनी रहीं।
चार राउंड में 15-अंडर स्कोर 269 जुटाने वाली 23 साल की अदिति से पहले यह मुकाम कोई भारतीय हासिल नहीं कर सका है। भारत के लिए खेलों में निशानेबाज अभिनव बिंद्रा, जिमनास्ट दीपा करमाकर और निशानेबाज जॉयदीप कर्माकर ने जो मुकाम हासिल किया है, अदिति का प्रदर्शन हर लिहाज से उससे मेल खाता है।
अदिति के इस प्रदर्शन को सराहते हुए राष्ट्रपति ने ट्वीट किया, अच्छा खेलीं, अदिति अशोक! भारत की एक और बेटी ने अपनी पहचान बनाई! आपने आज के ऐतिहासिक प्रदर्शन से भारतीय गोल्फ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। आपने बेहद शांत और शिष्टता के साथ खेला है। धैर्य और कौशल के प्रभावशाली प्रदर्शन के लिए बधाई।
विश्व की नम्बर-1 अमेरिका की एलपीजीए चैम्पियन नेली कोर्डा ने17-अंडर स्कोर 267 के स्कोर के साथ इस इवेंट का स्वर्ण जीता जबकि रजत जापान की मोने इनामी के खाते में गया। मोने ने तीसरे स्थान के लिए हुए प्लेऑफ मुकाबले में न्यूजीलैंड की लीडिया को हराया।
भारत की एक अन्य गोल्फर दीक्षा डागर हालांकि प्रभावित नहीं कर सकीं। दीक्षा 60 गोल्फरों के बीच संयुक्त रूप से 50वें स्थान पर रहीं।
प्रधानमंत्री ने अदिति के प्रदर्शन को सराहते हुए ट्वीट किया, वेल प्लेड अदिति अशोक! आपने टोक्यो ओलंपिक के दौरान जबरदस्त कौशल और संकल्प दिखाया है। एक पदक बहुत कम अंतर से रह गया लेकिन आप किसी भी भारतीय से आगे निकल गई हैं। आपके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं। (आईएएनएस)
-हरपाल सिंह बेदी
नीदरलैंड्स के रहने वाले 47 वर्षीय शॉर्ड मारिन भारतीय महिला हॉकी टीम के पहले विदेशी कोच हैं.
ओलंपिक में भारतीय महिला टीम के शानदार खेल के बाद शॉर्ड मारिन भारत में हॉकी के नए सितारे बन गए हैं.
महिला हॉकी की मज़बूत टीम ऑस्ट्रेलिया पर जब भारत ने जीत हासिल की तो शॉर्ड मारिन ने अपनी पत्नी को संबोधित करते हुए ट्वीट किया, 'परिवार वालों माफ़ करना मुझे अभी घर लौटने में और देर होगी.'
उनका ये ट्वीट कुछ ही मिनट में वायरल हो गया था. क्रिकेट के दीवानों के देश में इस ट्वीट का वायरल हो जाना भी हैरानी की बात ही थी. इसके बाद उन्होंने अभिनेता शाहरुख़ ख़ान के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा कि वो 'रियल कोच' हैं जो ख़ूब वायरल हुआ.
शॉर्ड मारिन ने एक दशक तक नीदरलैंड्स के शीर्ष क्लब डेन बोश के साथ डच प्रीमियर लीग में हॉकी खेली. उनकी टीम ने साल 1998 और 2001 में इस चैंपियनशिप को जीता था.
जूनियर डच हॉकी टीम के कोच भी रहे
शॉर्ड मारिन 2011 से 2014 तक जूनियर डच हॉकी टीम के कोच रहे. नई दिल्ली में 2013 में हुए जूनियर हॉकी कप में उनकी टीम तीसरे नंबर पर रही थी.
नीदरलैंड्स के हर्टोजनबोश में पैदा हुए शॉर्ड मारिन भारत आने से पहले नीदरलैंड्स की महिला हॉकी टीम के साथ जुड़े थे. उनके नेतृत्व में टीम एंटवर्प में 2015 में हुए हॉकी वर्ल्ड लीग के सेमीफ़ाइनल में पहुँची थी और गोल्ड हासिल किया था.
हॉलैंड की टीम चैंपियंस ट्रॉफ़ी में कांस्य जीती
उन्हीं के नेतृत्व में नीदरलैंड्स की टीम ने साल 2014 की चैंपियंस ट्रॉफ़ी में कांस्य पदक हासिल किया था और 2015 यूरो हॉकी नेसंश चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था.
हालांकि इन जीतों के बाद उनके और नीदरलैंड्स की हॉकी फ़ेडरेशन (केएनएचबी) के बीच संबंध ख़राब हो गए और उन्होंने टीम का साथ छोड़ दिया.
शॉर्ड मारिन के पास सीनियर पुरुष हॉकी टीम को कोच करने का कोई अनुभव नहीं था, ऐसे में जब नीदरलैंड्स के ही रहने वाले और भारत की हॉकी टीमों के उच्च प्रदर्शन निदेशक रोएलॉंट ओल्टमैंस ने साल 2017 में शॉर्ड मारिन को भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच के तौर पर चुना तो बहुत से लोग हैरान हुए. शॉर्ड मारिन को चार साल के अनुबंध पर रखा गया था.
हालांकि कुछ महीनों के भीतर ही गोल्ड कोस्ट में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों से पहले उन्हें ओल्टमैंस की जगह भारत की पुरुष हॉकी टीम का कोच बना दिया.
अब तक शॉर्ड मारिन के पास नीदरलैंड्स की महिला हॉकी टीम और अंडर-21 टीम को कोच करने का तो अनुभव था लेकिन उन्होंने किसी देश की राष्ट्रीय हॉकी टीम को कोच नहीं किया था.
जब मारिन भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कोच बनाए गए
ऐसे में जब 2018 कॉमनवेल्थ खेलों से पहले शॉर्ड मारिन को भारत की पुरुष हॉकी टीम का कोच बनाया गया तो बहुत से लोगों को इससे हैरानी हुई. हालांकि बाद में शॉर्ड मारिन को वापस महिला टीम के साथ भेज दिया गया था और हरिंदर सिंह को भारतीय पुरुष हॉकी टीम का कोच बना दिया गया था.
2018 में भारत की महिला हॉकी टीम जकार्ता एशियाड में जापान से फ़ाइनल में हार गई और इससे उसका स्वतः टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफ़ाई करने का मौक़ा समाप्त हो गया.
इस हार के बावजूद हॉकी इंडिया ने मारिन को ही कोच बनाए रखा. इसकी दो वजहें थीं, पहली तो उनके पास चार साल का अनुबंध था और दूसरा ये कि सभी खिलाड़ी उनकी बहुत तारीफ़ करती थीं.
खिलाड़ी उनके कोचिंग देने के तरीके के साथ बहुत सहज थे.
उन्होंने भारतीय टीम को टोक्यो ओलंपिक तक पहुंचाने की चुनौती ली और वो इसमें कामयाब भी रहे. नवंबर 2019 में भारतीय टीम ने क्वालीफ़ायर मुक़ाबले में अमेरिका की मज़बूत टीम का सामना किया. भारत ने ये मुक़ाबला जीतकर टोक्यो में अपनी जगह पक्की कर ली.
उसके बाद से मारिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
एक खिलाड़ी उनके बारे में कहती हैं, "वे बहुत सख़्त अनुशासन रखते हैं लेकिन हमारी बात भी सुनते हैं."
कोरोना महामारी के दौरान मारिन कहां थे?
इसमें कोई शक नहीं है कि टोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक के लिए हुए ऐतिहासिक मुक़ाबले तक भारतीय टीम को पहुंचाने में डचमैन मारिन ने भारतीय महिला हॉकी टीम की काया पलट कर दी है.
महामारी के दौरान वे बेंगलुरू में टीम के साथ ही रहे. हालांकि उनके पास अपने देश लौटकर अपने तीन बच्चों और पत्नी के साथ समय बिताने का मौका था.
जब कोविड महामारी भारतीय टीम के कैंप तक पहुंच गई और आधी हॉकी टीम संक्रमित हो गई तो भी मारिन परेशान नहीं हुए. इससे उनकी साख़ और प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई.
उस मुश्किल वक़्त में वे अपनी खिलाड़ियों के साथ खड़े रहे. इससे वो खिलाड़ियों के और भी प्रिय हो गए.
वे डच लीग में अपने साथ खेलने वाली जेनेक शॉपमैन को भी भारतीय टीम के साथ एनेलिटिकल कोच के रूप में ले आए.
शॉपमैन अमेरिका की उसी महिला हॉकी टीम की कोच थीं जो भुवनेश्वर में ओलंपिक क्वालीफ़ायर मुक़ाबले में भारत से हार गई थी.
ऑस्ट्रेलिया से जीत पर क्या बोले मारिन?
टोक्यो ओलंपिक में न सिर्फ़ उन्होंने भारतीय महिला हॉकी टीम को ऐतिहासिक ऊंचाई तक पहुंचाकर शोहरत हासिल की बल्कि उनके विचार भी खासे लोकप्रिय हो रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ भारत की ऐतिहासक जीत के बाद मारिन ने कहा, "इससे साबित होता है कि सपने सच होते हैं. यदि आप विश्वास करना शुरू करते हैं और अपने विश्वास को मज़बूत करते जाते हैं और मेहनत करते जाते हैं तो चीज़ें होने लगती हैं. आपको अपने सपने पूरे करने के लिए मेहनत करनी होती है और आज हमने यही किया है."
"मैंने अपनी टीम को ये समझाया था कि सबसे महत्वपूर्ण ये होता है कि आप वर्तमान में रहे और ये ना सोचें कि अगर ऐसा होता तो क्या होता. एक एथलीट के लिए ये मुश्किल भी है क्योंकि आपके दिमाग़ में कई चीज़ें एक साथ चल रही होती हैं. जैसे की आप सोच रहे होते हैं कि यदि हम जीत गए तो क्या होगा, अगर हम हार गए तो क्या होगा, अगर मैं गेंद को नहीं रोक पाया तो क्या होगा. इसलिए मैंने अपनी टीम को एक फ़िल्म दिखाई, ये समय के साथ रहने के बारे में थी. और मुझे लगता है कि ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मैच में इससे बड़ा फ़र्क़ पड़ा."
"मैंने लड़कियों से अभी कहा है कि इस वक़्त के मज़े लो और इस यात्रा का आनंद लो, सबसे महत्वपूर्ण यही है. लेकिन पहले ये अहसास करो कि उन्होंने हासिल क्या किया है."
ओलंपिक के लिए रणनीति
अपनी रणनीति के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, "ओलंपिक से पहले हम बहुत अधिक प्रैक्टिस मैच नहीं खेल पाए थे तो मैं हर मैच से पहले लड़कियों से यही कहता था कि अपने खेल में सुधार करते जाओ. हमने हर व्यक्तिगत खिलाड़ी के प्रदर्शन को सुधारने पर ज़ोर दिया. जब हम हर खिलाड़ी का प्रदर्शन सुधारते हैं तो टीम का प्रदर्शन अपने आप सुधर जाता है."
"हम जानते थे कि हर मैच जो हम खेल रहे हैं हमें उससे सीखना है क्योंकि हमारे पास ओलंपिक से पहले बहुत मैच नहीं थे. जब हम नीदरलैंड से 1-5 से हारे तो लगा कि सबकुछ बिखर गया है. लेकिन ऐसा नहीं था. हमें बस कुछ छोटे-मोटे सुधार करने की ज़रूरत थी."
ग्रेट ब्रिटेन के ख़िलाफ़ कांस्य पदक के मुक़ाबले का नतीजा जो भी रहा हो, मारिन युवा भारतीय टीम और भारतीय हॉकी के प्रशंसकों के हीरो बन गए हैं.
द्रोणाचार्य अवॉर्ड देने की मांग
एक युवा प्रशंसक ने ट्वीट किया, "उन्होंने बहुत शानदार काम किया है उन्हें द्रोणाचार्य अवॉर्ड दिया जाना चाहिए."
एक अन्य यूज़र ने ट्वीट किया, "सलामी क़ुबूल कीजिए सर, आपकी वजह से ही हम ये ख़ूबसूरत सुबह देख पाए हैं. ईश्वर आप पर कृपा बनाए रखे."
ट्विटर पर एक अन्य प्रसंशक ने लिखा, "इस टीम में विश्वास करने, इस टीम को बनाने के लिए आपका शुक्रिया सर. हमारे पास आपका आभार प्रकट करने के लिए शब्द नहीं है. अब हम मेडल जीतने की उम्मीद करने लगे हैं. अब हमने क्वार्टर फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हरा दिया है. भारत के 130 करोड़ लोग आपका हौसला बढ़ा रहे हैं."
पीएम मोदी ने फ़ोन किया
जैसे कि ये सब नाकाफ़ी हो, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर उन्हें फ़ोन किया और भारतीय टीम के साथ किए गए उनके काम के लिए शुक्रिया किया. मारिन ने प्रधानमंत्री को फ़ोन कॉल के लिए शुक्रिया किया और ग्रेट ब्रिटेन के ख़िलाफ़ कांस्य पदक जीतने का भरोसा दिया.
मारिन ने ट्वीट किया था, "आपके प्रेरणादायक फ़ोन कॉल के लिए आपका बहुत शुक्रिया नरेंद्र मोदी सर, मैं आपका संदेश टीम तक पहुंचाऊंगा, हम कांस्य पदक के मुक़ाबले में टक्कर देंगे और भारतीय शेरनियों के लड़ाई को जज़्बे को दर्शाते रहेंगे."
ग्रेट ब्रिटेन के साथ हुए कड़े मुक़ाबले में भारतीय महिला हॉकी टीम 3-4 के अंतर से हार गई. टीम ने टोक्यो ओलंपिक में भले ही पदक ना जीता हो लेकिन भारत की महिला हॉकी को नई पहचान ज़रूर दे दी है. (bbc.com)
टोक्यो, 7 अगस्त| आज सभी देशवासियों की निगाहें भारत के स्टार भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा पर होंगी और नीरज की नजरें स्वर्ण पदक हासिल करने पर होंगी। नीरज ने क्वालीफिकेशन राउंड के पहले प्रयास में ही 86.65 मीटर के थ्रो के साथ फाइनल के लिए क्वालीफाई कर भारत की पदक की उम्मीदें बढ़ा दी थी।
भारत ने अबतक टोक्यो ओलंपिक में दो रजत और तीन कांस्य सहित कुल पांच पदक जीते हैं लेकिन उसे अबतक स्वर्ण हासिल नहीं हुआ है।
नीरज ने क्वालीफिकेशन में जिस तरह का प्रदर्शन किया और वह ग्रुप-ए में पहले स्थान पर रहे थे, उसके बाद उनसे सोना लाने की संभावना बढ़ गई है।
23 वर्षीय नीरज ने ओलंपिक स्टेडियम में, ग्रुप ए क्वालीफिकेशन राउंड के अपने पहले ही प्रयास में 86.65 मीटर का थ्रो फेंक 83.50 मीटर के ऑटोमेटिक क्वालीफाइंग अंक को हासिल किया था तथा फाइनल में पदक के प्रबल दावेदार के रूप में उभरे।
नीरज ने जर्मनी के जोहानेस वेटेर को पीछे छोड़ा था जो स्वर्ण पदक के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। जोहानेस ने भी हालांकि, 85.64 मीटर का थ्रो कर ऑटोमेटिक क्वालीफिकेशन हासिल किया था।
अब शनिवार को होने वाले फाइनल में सभी की निगाहें नीरज पर होंगी क्योंकि वह इस सीजन में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं और उनके नाम 88.07 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड है, जिसे उन्होंने मार्च में इंडियन ग्रां प्री में हासिल किया था।
नीरज ने मार्च में इंडियन ग्रां प्री में 88.07 मीटर के नए राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ अपने सीजन की शुरूआत की थी और इसके बाद फेडरेशन कप में 87.80 मीटर थ्रो के साथ एक और सराहनीय प्रदर्शन किया था।
भारत के स्टार पहलवान बजरंग पुनिया भी शनिवार को एक्शन में होंगे और कांस्य पदक मुकाबले में अपनी चुनौती पेश करेंगे। बजरंग को शुक्रवार को पुरुष फ्रीस्टाइल 65 किग्रा वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले में अजरबैजान के हाजी अलियेव के हाथों 5-12 से हार का सामना करना पड़ा।
सेमीफाइनल में हार के साथ बजरंग का सोना लाने का सपना टूट गया लेकिन अब उनके पास देश के लिए कांस्य पदक जीतने का सुनहरा अवसर होगा। (आईएएनएस)
टोक्यो, 6 अगस्त| भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच शुअर्ड मरिने ने शुक्रवार को खुलासा करते हुए कहा कि ग्रेट ब्रिटेन के साथ टोक्यो ओलंपिक का कांस्य पदक मुकाबला उनका टीम के साथ आखिरी मैच था। मरिने के नेतृत्व में भारतीय महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक में अपने इतिहास का अबतक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया और टीम चौथे स्थान पर रही।
मरिने ने हॉकी इंडिया द्वारा आयोजित वर्चुअल प्रेस र्वाता में कहा, "मेरा कोई प्लान नहीं है, क्योंकि यह मेरा भारतीय महिला टीम के साथ आखिरी मैच था। यह अब टीम के विश्लेषणात्मक कोच जानेके स्कूपमैन पर है। मैं लड़कियों को मिस करूंगा। लेकिन मैं अपने परिवार को ज्यादा मिस करता हूं।"
उन्होंने कहा, "मेरा परिवार नंबर-1 एक है। मैं साढ़े तीन साल के बाद अपने बेटे, बेटी और पत्नी के साथ रहना चाहता हूं। इस यात्रा को खत्म करने का यह बेहतरीन तरीका है।"
मरिने का करार टोक्यो 2020 तक था लेकिन ओलंपिक के एक साल स्थगित होने की वजह से इसे बढ़ाया गया था।
मरिने को पहली बार फरवरी 2017 में मुख्य कोच नियुक्त किया गया था। इसके बाद वह पुरुष टीम के कोच बने और उनकी जगह हरेंद्र सिंह को महिला टीम का कोच बनाया गया।
पुरुष टीम के ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रमंडल खेलों में चौथे स्थान पर रहने के बाद 2018 में उन्हें दोबारा महिला टीम का कोच बनाया गया।
मरिने के नेतृत्व में महिला टीम ने 2018 महिला एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीता। 2019 में टीम ने एफअईएच ओलंपिक क्वालीफायर्स में अमेरिका को 6-5 से हराकर टोक्यो के लिए क्वालीफाई किया। (आईएएनएस)
नॉटिंघम, 6 अगस्त | इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन यहां ट्रेंट ब्रिज में भारत के खिलाफ खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच के तीसरे दिन भारत के पूर्व स्पिन गेंदबाज अनिल कुंबले को पछाड़कर टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने वाले तीसरे गेंदबाज बन गए हैं। एंडरसन ने भारत की पहली पारी के दौरान उसके सलामी बल्लेबाज लोकेश राहुल को आउट कर यह उपलब्धि हासिल की। राहुल उनके टेस्ट करियर के 620वें शिकार बने और इस तरह एंडरसन सर्वाधिक विकेट लेने वाले तीसरे गेंदबाज बन गए।
एंडरसन ने भारत के खिलाफ मैच के दूसरे दिन गुरूवार को चेतेश्वर पुजारा और कप्तान विराट कोहली को आउट करने के साथ ही कुंबले के 619 टेस्ट विकेट की बराबरी कर ली थी और वह इस सूची में कुंबले के साथ संयुक्त रूप से तीसरे नंबर पर आ गए थे। लेकिन आज उन्होंने राहुल और शार्दुल ठाकुर को आउट किया जो उनके 621वें शिकार बने।
कुंबले ने 132 टेस्ट में 619 विकेट लिए हैं। वहीं एंडरसन ने अपने 163वें टेस्ट में यह कारनामा किया है।
टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने का रिकॉर्ड हालांकि श्रीलंका के पूर्व महान ऑफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन के नाम दर्ज है। मुरली ने 133 टेस्ट में 800 विकेट लिए हैं। इसके बाद दूसरे स्थान पर ऑस्ट्रेलिया के पूर्व लेग स्पिनर शेन वॉर्न काबिज हैं। वॉर्न ने 145 टेस्ट में 708 विकेट लिए हैं।
एंडरसन का यह 163वां मैच है और अगर वह भारत के खिलाफ पांच मैचों की टेस्ट सीरीज के सभी मैच खेलते हैं तो वह स्टीव वॉ और रिकी पोंटिंग के 168 टेस्ट मैच खेलने की बराबरी कर लेंगे। सिर्फ सचिन तेंदुलकर हैं जिन्होंने 200 टेस्ट मैच खेले हैं।
टेस्ट क्रिकेट में शीर्ष सर्वाधिक विकेट लेने वालों में वह एकमात्र तेज गेंदबाज हैं जिसने 600 से ज्यादा विकेट लिया है। इस सूची में अन्य तीन गेंदबाज स्पिनर हैं।(आईएएनएस)
टोक्यो, 6 अगस्त | भारत के स्टार भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा की नजरें यहां जारी टोक्यो ओलंपिक के भालाफेंक इवेंट के फाइनल में शनिवार को स्वर्ण पदक हासिल करने पर होगी। नीरज ने क्वालीफिकेशन राउंड के पहले प्रयास में ही 86.65 मीटर के थ्रो के साथ फाइनल के लिए क्वालीफाई कर भारत की पदक की उम्मीदें बढ़ा दी थी। भारत ने अबतक टोक्यो ओलंपिक में दो रजत और तीन कांस्य सहित कुल पांच पदक जीते हैं लेकिन उसे अबतक स्वर्ण हासिल नहीं हुआ है।
नीरज ने क्वालीफिकेशन में जिस तरह का प्रदर्शन किया और वह ग्रुप ए में पहले स्थान पर रहे थे, उसके बाद उनसे सोना लाने की संभावना बढ़ गई है। 23 वर्षीय नीरज ने ओलंपिक स्टेडियम में, ग्रुप ए क्वालीफिकेशन राउंड के अपने पहले ही प्रयास में 86.65 मीटर का थ्रो फेंक 83.50 मीटर के ऑटोमेटिक क्वालीफाइंग अंक को हासिल किया था तथा फाइनल में पदक के प्रबल दावेदार के रूप में उभरे।
नीरज ने जर्मनी के जोहानेस वेटेर को पीछे छोड़ा था जो स्वर्ण पदक के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। जोहानेस ने भी हालांकि, 85.64 मीटर का थ्रो कर ऑटोमेटिक क्वालीफिकेशन हासिल किया था।
अब शनिवार को होने वाले फाइनल में सभी की निगाहें नीरज पर होंगी क्योंकि वह इस सीजन में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं और उनके नाम 88.07 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड है, जिसे उन्होंने मार्च में इंडियन ग्रां प्री में हासिल किया था।
नीरज ने मार्च में इंडियन ग्रां प्री में 88.07 मीटर के नए राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ अपने सीजन की शुरूआत की थी और इसके बाद फेडरेशन कप में 87.80 मीटर थ्रो के साथ एक और सराहनीय प्रदर्शन किया था।
इस बीच, भारत के स्टार पहलवान बजरंग पुनिया भी शनिवार को एक्शन में होंगे और कांस्य पदक मुकाबले में अपनी चुनौती पेश करेंगे। बजरंग को शुक्रवार को पुरुष फ्रीस्टाइल 65 किग्रा वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले में अजरबैजान के हाजी अलियेव के हाथों 5-12 से हार का सामना करना पड़ा।
सेमीफाइनल में हार के साथ बजरंग का सोना लाने का सपना टूट गया लेकिन अब उनके पास देश के लिए कांस्य पदक जीतने का सुनहरा अवसर होगा।(आईएएनएस)
टोक्यो, 6 अगस्त | भारत की महिला हॉकी टीम को शुक्रवार को खेले गए कांस्य पदक के मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन के हाथों 3-4 से हार का सामना करना पड़ा। साल 2016 के रियो ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाली ब्रिटिश टीम ने अपने आठवें ओलंपिक में तीसरी बार कांस्य पदक जीता है। तीसरी बार ओलंपिक खेल रहे भारत को चौथा स्थान मिला। ओई हॉकी स्टेडियम नार्थ पिच पर हुए इस मैच में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिला। अपना तीसरा ओलंपिक खेल रहा भारत एक समय 0-2 से पीछे चल रहा था लेकिन उसने दनादन तीन गोल दागकर हाफ टाण तक 3-2 की लीड ले ली। लेकिन इसके बाद इंग्लैंड ने लगातार दो गोल दाग मैच अपने पक्ष में कर लिया।
इंग्लैंड के लिए एलेना रेयर (16वें), सारा राबर्टसन (24वें), होली पिएरे (35वें) और ग्रेस बॉल्सडन (48वें) ने किया जबकि भारत के लिए गुरजीत कौर ने (25वें, 26वें) दो गोल किए जबकि वंदना कटारिया (29वें) ने एक गोल किया। ब्रिटेन को 12 पेनाल्टी कार्नर मिले, जिसमें से तीन को उसने गोल में बदला। भारत को कुल 8 पेनाल्टी कार्नर मिले, जिनमें से दो में गोल हुए।
पहला क्वार्टर खाली जाने के बाद ब्रिटेन ने दूसरे क्वार्टर में 60 सेकेंड के भीतर गोल करते हुए 1-0 की लीड ले ली। उसके लिए मैच का पहला गोल एलेना रेयर ने किया। यह एक फील्ड गोल था।
इस गोल ने मानो ब्रिटिश टीम में जान फूंक दी और उसने 24वें मिनट में एक और गोल कर 2-0 की लीड ले ली। यह गोल सारा राबर्टसन ने किया। यह भी एक फील्ड गोल था।
ब्रिटिश टीम हाफटाइम लीड के साथ प्रवेश करती, उससे पहले ही भारत ने एक के बाद एक दनादन तीन गोल कर 3-2 की लीड ले ली।
गुरजीत कौर ने भारत का खाता 25वें मिनट में मिले पेनाल्टी कार्नर पर खोला और फिर उसके एक मिनट बाद एक और गोल कर स्कोर 2-2 कर दिया। भारत ने पेनाल्टी कार्नर पर गुरजीत द्वारा किए गए गोलों की मदद से शानदार वापसी कर ली थी।
अब भारतीय टीम उत्साह से भर चुकी थी। उसने मौके बनाने शुरू किए और उसी क्रम में उसे 29वें मिनट में एक शानदार सफलता मिली। वंदना कटारिया ने फील्ड गोल के जरिए भारत को 3-2 से आगे कर दिया।
हाफ टाइम तक भारत 3-2 से आगे था। हाफ टाइम की सीटी बजने के पांच मिनट बाद ही ब्रिटेन ने गोल कर स्कोर 3-3 कर दिया। यह गोल कप्तान होली पिएरे ने किया। तीसरे क्वार्टर में भारतीय टीम कोई गोल नहीं कर सकी।
चौथा और अंतिम क्वार्टर जब शुरू हुआ तो मैच का रोमांच चरण पर था। दोनों टीमों के पास मेडल पाने के लिए अंतिम 15 मिनट थे। इस क्रम में हालांकि ब्रिटेन को सफलता मिल गई। 48वें मिनट में उसने पेनाल्टी कार्नर पर गोल कर 4-3 की लीड ले ली। यह गोल ग्रेस बॉल्सडन ने किया।
भारत की महिला टीम के लिए यह ओलंपिक में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन कहा जा सकता है। दुनिया की नौवें नम्बर की भारतीय टीम तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए दुनिया की नम्बर-2 आस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची थी। सेमीफाइनल में हालांकि उसे हार मिली।
यह भारत का तीसरा ओलंपिक था। मास्को (1980) के 36 साल के बाद उसने रियो ओलंपिक (2016) के लिए क्वालीफाई किया था। भारत अंतिम रूप से चौथे स्थान पर रहा था लेकिन उस साल वैश्विक बहिष्कार के कारण सिर्फ छह टीमों ने ओलंपिक में हिस्सा लिया था।
इसके बाद भारत ने 2016 के रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया लेकिन वह 12 टीमों के टूनार्मेंट में अंतिम स्थान पर रही थी। भारत को पूल स्तर पर पांच मैचों में सिर्फ एक ड्रॉ नसीब हुआ था।
टोक्यो में भारत ने ग्रुप स्तर पर खराब शुरूआत की थी। उसे लगातार तीन मैचों में हार मिली। इसके बाद उसने दो मैच लगातार जीते और ब्रिटेन के हाथों आयरलैंड की हार के कारण नॉकआउट के लिए क्वलीफाई करने में सफल रही।
नॉकआउट के पहले मैच में भारत ने आस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया लेकिन सेमीफाइनल में उसे अजेर्टीना के हाथों 1-2 से हार मिली।(आईएएनएस)
टोक्यो, 6 अगस्त | भारत के स्टार पहलवान बजरंग पुनिया को यहां चल रहे टोक्यो ओलंपिक में पुरुष फ्रीस्टाइल 65 किग्रा वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले में अजरबैजान के हाजी अलियेव के हाथों 5-12 से हार का सामना करना पड़ा।
बजरंग ने इस मुकाबले की शुरूआत बेहतर तरीके से की और एक अंक हासिल किया, लेकिन हाजी ने तुरंत वापसी कर चार अंक बटोरे। बजरंग पहले पीरियड में 1-4 से पिछड़ गए।
दूसरे पीरियड में भी हाजी बजरंग पर पूरी तरह भारी पड़े और चार अंक हासिल किए। बजरंग ने हालांकि फिर दो अंक बटोरे और अंकों का फासला कम करने की कोशिश की। लेकिन हाजी ने फिर उन्हें चित्त कर एक अंक लिया।
बजरंग ने इसके बाद दो अंक लिए और इस वक्त मुकाबला कठिन लगने लगा। हालांकि, हाजी ने फिर दो और अंक हासिल कर लिए। हाजी ने एक और अंक लेकर मुकाबला एकतरफा बनाकर जीत दर्ज की। दूसरे पीरियड में हाजी ने 8-4 की बढ़त बनाई।
हाजी 2016 के रियो ओलंपिक खेलों में 57 किग्रा वर्ग का कांस्य जीत चुके हैं और इस बार उन्होंने कम से कम अपने लिए रजत पदक पक्का कर लिया है।
बजरंग भारत की टोक्यो ओलंपिक में सबसे बड़ी पदक उम्मीद में से एक थे लेकिन उनसे स्वर्ण पदक लाने का सपना टूट गया। हालांकि उनके पास अभी भी कांस्य पदक लाने का अवसर है।
बजरंग और हाजी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं मिले हैं, लेकिन दोनों के बीच एकमात्र मुलाकात 2019 प्रो रेसलिंग लीग में हुई थी। पुनिया ने हाजी को 8-6 से हराकर अपनी टीम पंजाब रॉयल्स को एमपी योद्धा के खिलाफ जीत दिलाई थी।
इससे पहले, क्वार्टर फाइनल मैच में बजरंग ने ईरान के मुतर्जा घियासी चेका को 2-1 से हराया। टोक्यो में भारत के लिए पदक के दावेदार बजरंग को विक्ट्री बाई फॉल के आधार पर जीत मिली।
पहले पीरियड की समाप्ति के बाद एशियाई खेल चैम्पियन बजरंग 0-1 से पीछे थे लेकिन दूसरे क्वार्टर में 2 अंक लेकर वह 2-1 से आगे हो गए। अंतिम एक मिनट में बजरंग ने अपना दांव खेला और ईरानी पहलवान को चित्त कर दिया।
बजरंग आज सुबह एक मुश्किल जीत के साथ क्वार्टर फाइनल में पहुंचे थे। इस मुकाबले में बजरंग का सामना किर्गिस्तान के इरनाजार अकमातालेव से था। अंतिम स्कोर 3-3 रहा लेकिन चूंकी वह पहले पीरियड में अधिक अंक जुटाने में सफल रहे, लिहाजा विजेता करार दिए गए थे। (आईएएनएस)
हाथ मिलाने से लेकर खेलने तक एथलीट हर समय किसी न किसी को स्पर्श करते हैं. लेकिन इतना सामान्य शारीरिक संपर्क भी आपको सकारात्मक डोपिंग परीक्षण दिलाने के लिए पर्याप्त हो सकता है.
आपने शायद विश्वास नहीं किया होगा कि ऐसा होगा, लेकिन कोविड और अन्य सभी बाधाओं को पार करते हुए टोक्यो में ओलंपिक सफल रहे हैं. स्टेडियम ज्यादातर खाली हैं और तमाम कोविड प्रतिबंधों के साथ ओलंपिक गांव में रहना एक अलग तरीके का अनुभव देता है.
लेकिन केंद्रीय ओलंपिक सिद्धांत वही रहता है- यह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों के बीच एक प्रतियोगिता है. और इसके साथ ही सदियों पुरानी डोपिंग संबंधी चिंताएं भी सामने आ जाती हैं.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि खेल निष्पक्ष हों, विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी यानी वाडा की देखरेख वाली अंतर्राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी यानी आईटीए का कहना है कि वह "टोक्यो 2020 के लिए सबसे व्यापक डोपिंग रोधी कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहा है जिसे ओलंपिक खेलों के किसी भी संस्करण में अब तक लागू नहीं किया गया है."
बेहद विनम्र शब्दों में वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि प्रदर्शन बढ़ाने वाले पदार्थों का उपयोग करने वाले एथलीटों को मौका न मिले.
डीडब्ल्यू स्पोर्ट्स ने रिपोर्ट किया था कि खेलों के दौरान अंतरराष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी यानी आईटीए की 24 मैनेजरों और 250 डोपिंग कंट्रोल अधिकारियों की टीम 11 हजार खिलाड़ियों के खून और पेशाब के करीब पांच हजार नमूनों की जांच करेगी. आईटीए ने इन परीक्षणों को "लक्षित और अघोषित” बताया है.
एक सकारात्मक डोपिंग परीक्षण के परिणामस्वरूप एक एथलीट को उसके खेल से वर्षों तक प्रतिबंधित किया जा सकता है और उन्हें प्रतियोगिता में जीते गए किसी भी पदक को वापस सौंपना होता है.
यह धोखेबाजों के इलाज का एक उचित तरीका हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन यदि उन्होंने कभी जानबूझकर प्रतिबंधित पदार्थों का इस्तेमाल नहीं किया है और फिर भी परीक्षण पॉजिटिव आता है, तब क्या होगा?
सिंगापुर
सिंगापुर अपने विजयी खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा धनराशि इनाम में देता है. गोल्ड जीतने वाले को 10 लाख सिंगापुर डॉलर (लगभग 5.4 करोड़ रुपये) मिलते हैं. सिल्वर पर पांच लाख और ब्रॉन्ज जीतने पर ढाई लाख डॉलर दिए जाते हैं.
हाथ मिलाने से डोपिंग?
जर्मनी के एक सार्वजनिक प्रसारक एआरडी में डोपिंग रिपोर्टर्स की ओर से की गई एक जांच से पता चला है कि कुछ डोपिंग पदार्ध त्वचा से त्वचा के संपर्क में आने यानी स्पर्श से भी स्थानांतरित हो सकते हैं.
और उनके मुताबिक, इसमें ज्यादा समय नहीं लगता है- बस हाथ मिलाना या पीठ पर हाथ थपथपाना भी संक्रमण के लिए पर्याप्त हो सकता है. एआरडी डॉक्यूमेंटरी में इस संबंध में जो निष्कर्ष छपे थे, उनका शीर्षक था- "डोपिंग टॉप सीक्रेट-गिल्टी".
हाजो सेपेल्ट के नेतृत्व में रिपोर्टिंग टीम ने पहली बार साल 2016 में त्वचा के संपर्क के माध्यम से डोपिंग की संभावना के बारे में जानकारी जुटाई थी. उनकी टीम ने जांच शुरू की और आखिरकार कोलोन में जर्मन स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में फोरेंसिक मेडिसिन संस्थान के सहयोग से एक प्रयोग करने में सफल रहे.
18 से 40 साल की आयु के बीच के बारह पुरुषों के हाथों, गर्दन और बाहों पर अलग-अलग एनाबॉलिक स्टेरॉयड की एक छोटी मात्रा दी गई. इसके बाद के हफ्तों में, परीक्षण में शामिल लोगों के मूत्र नमूने लेकर प्रयोगशाला में भेजे गए.
‘मैंने ऐसी उम्मीद नहीं की थी'
सभी 12 लोगों के परिणाम पॉजिटिव आए. उनके नमूनों से पता चला कि उन्होंने गैरकानूनी पदार्थों का सेवन किया था- हालांकि उन्होंने इन पदार्थों को सीधे तौर पर नहीं लिया था.
सेप्लेट इस समय टोक्यो में हैं और ओलंपिक खेलों को कवर कर रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "जब हमसे इस बारे में पहली बार संपर्क किया गया, तो मैंने सोचा 'ज़रूर, शायद यह यहां और वहां काम कर सकता है. लेकिन जब वे सभी पॉजिटिव मिले तो यह हमारे लिए आश्चर्य की बात थी. इन सबने मुझे वास्तव में सोचने पर मजबूर कर दिया.”
डोपिंग एजेंटों यानी उन प्रतिबंधित पदार्थों को उनकी त्वचा पर लगाने के दो सप्ताह बाद तक मूत्र के नमूने से उन पदार्थों के बारे में पता लगाया जा सकता है. यहां तक कि विशेषज्ञ भी प्रयोग के परिणामों से हैरान थे.
कोलोन के यूनिवर्सिटी ऑफ फोरेंसिक मेडिसिन में फोरेंसिक टॉक्सिकोलॉजिस्ट डॉक्टर मार्टिन जुबनेर डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में कहते हैं, "मैंने इस तरह की उम्मीद नहीं की थी, खासतौर से प्रतिबंधित पदार्थों के निशान इतने लंबे समय तक दिखा रहे थे.”
गलत तरह की प्रेरणा से बचना
फिलहाल, इस प्रयोग में शामिल कोई भी व्यक्ति बहुत कुछ बताना नहीं चाहता. जुबनेर कहते हैं कि यह शोध अभी भी एक लंबी, वैज्ञानिक समीक्षा प्रक्रिया से गुजर रहा है और परिणाम प्रकाशित होने में अभी महीनों लग सकते हैं.
लेकिन विशेषज्ञ भी इस बारे में कुछ ज्यादा नहीं कहना चाहते. वे अपने काम का दुरुपयोग होते नहीं देखना चाहते कि कैसे पहले से ही एक असंदिग्ध एथलीट को परीक्षण के दायरे में लाया जाए.
यही कारण है कि परीक्षण में शामिल प्रतिभागियों की त्वचा पर किस प्रकार के डोपिंग एजेंटों को लागू किया गया था, इस बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है. उन्होंने केवल इतना कहा है कि यह एनाबॉलिक स्टेरॉयड था.
उनकी सावधानी बरती जा सकती है. ऐसे एथलीटों के कई मामले सामने आए हैं जिनके पदक रद्द कर दिए गए थे या सकारात्मक डोपिंग परिणामों के कारण उनका करियर बर्बाद हो गया था. उन एथलीटों का कहना था कि किसी ने उनकी जानकारी के बिना उन्हें प्रतिबंधित पदार्थों का सेवन करा दिया है.
और वह तब था जब लोगों ने सोचा कि डोपिंग एजेंटों को किसी के भोजन, पानी या टूथपेस्ट में मिलाया जाना चाहिए. अब ऐसा लग रहा है कि किसी अजनबी से हाथ मिलाने से ही सब कुछ हो गया.
दायित्व का एक सख्त सिद्धांत
विशेषज्ञों का सुझाव है कि इन निष्कर्षों से खेल अदालतों में डोपिंग के आरोपों से निपटने के तरीके में बदलाव हो सकता है. चूंकि इन मामलों में सामान्य रूप में आपराधिक मामलों वाली यह स्थिति नहीं होती कि "जब तक सिद्ध न हो जाए तब तक निर्दोष है”. बल्कि इसका बिल्कुल उल्टा ही होता है.
खेल में, एक सख्त दायित्व सिद्धांत है जो कहता है कि जब एक एथलीट प्रतिबंधित पदार्थों के परीक्षण में सकारात्मक पाया जाता है तो पहले यह माना जाता है कि उन्होंने वास्तव में लाभ के लिए इसका सेवन किया था. और अगर एथलीट का दावा है कि उन्होंने एसे किसी पदार्थ का सेवन नहीं किया, तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उन पर है कि वे निर्दोष हैं.
वाडा ने अपनी वेबसाइट पर इस बारे में बहुत ही स्पष्ट तरीके से लिखा है, "प्रत्येक एथलीट अपने शरीर में पाए गए किसी भी पदार्थ के लिए पूरी तरीके से खुद ही जिम्मेदार है. और यदि ऐसा कोई पदार्थ पाया जाता है तो डोपिंग रोधी नियमों के उल्लंघन का जिम्मेदार माना जाएगा. भले ही यह पदार्थ उसने जानबूझकर लिया हो या फिर अनजाने में.”
इसका मतलब यह हुआ कि डोप एथलीट को डोप एथलीट ही माना जाएगा, भले ही उसने प्रतिबंधित पदार्थ अपनी मर्जी से लिया हो, अनजाने में लिया हो या फिर जानबूझकर लिया हो. यह साबित करते हुए कि उन्होंने जानबूझकर डोपिंग नहीं की, बाद में उन्हें केवल उनके खेल से प्रतिबंधित होने की सार्वजनिक शर्म से बख्शा जा सकता है. लेकिन वाडा की नजर में इसे गलत ही माना जाता है.
क्या पूरा सिस्टम ही बदलने की जरूरत है?
यदि किसी एथलीट में सकारात्मक परीक्षण करना इतना आसान है, तो फिर उन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कैसे कहा जा सकता है? यह इंगित करना कि एक महत्वपूर्ण शारीरिक संपर्क जो आपके शरीर में डोपिंग एजेंट के लिए जिम्मेदार हो सकता है, असंभव होगा.
जुबनेर कहते हैं कि इसे साबित करने के और भी तरीके हो सकते हैं. लोगों ने यह देखने की कोशिश की है कि एथलीट के उपाच्चय यानी मेटाबोलिज्म द्वारा डोपिंग एजेंटों को कैसे धोखे में रखा जाता है. वह कहते हैं, "यह निर्धारित करने के लिए कि किसी पदार्थ ने इसे शरीर में कैसे बनाया. यह एक ऐसी चीज है जिसे हमें वास्तव में देखना है."
एआरडी की टीवी डॉक्यूमेंट्री अधिक सार्वजनिक जांच का कारण बन सकती है और WADA और अंतर्राष्ट्रीय खेल अदालतों पर अपने सिस्टम की फिर से जांच करने का दबाव डाल सकती है. लेकिन तब यह भी कुछ नहीं कर सकता है.
साल 2020 में, जब इटली के वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक शोध प्रकाशित किया जिसमें यह भी पता चला कि डोपिंग एजेंट का त्वचा-अनुप्रयोग एक सकारात्मक परीक्षण को प्रेरित कर सकता है, लेकिन इसके बावजूद परिणाम कुछ खास नहीं रहा.
-ध्रुव मिश्रा
टोक्यो ओलंपिक में अर्जेंटीना के ख़िलाफ़ भारतीय महिला हॉकी टीम के हारने के बाद खिलाड़ी वंदना कटारिया के घर के बाहर जातिवादी हंगामा करने के आरोप में हरिद्वार पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया है.
हरिद्वार के एसएसपी ने बीबीसी को बताया कि ये गिरफ़्तारी एससी/एसटी एक्ट के तहत की गई है.
रोशनाबाद गांव की तंग गलियों में वंदना कटारिया का घर है. गलियां इतनी तंग हैं कि उनके घर तक गाड़ी पहुँचना संभव नहीं है.
उनके घर पहुँचने के लिए बाहर मुख्य रास्ते पर गाड़ी खड़ी करनी पड़ती है. फिर क़रीब 300-400 मीटर पैदल चलकर उनके घर तक पहुँचा जा सकता है. आसपास के इलाक़े में निम्न आय वर्ग के लोग रहते हैं.
इस इलाक़े में वंदना कटारिया के घर का पता पूछने पर अधिकतर लोग उनके नाम से अनजान ही मिले.
DHRUV MISHRA
वंदना कटारिया की मां
पटाखे फोड़े गए?
वंदना कटारिया की मां ने बीबीसी से बातचीत में बताया, "शाम के क़रीब 5 बज रहे थे और हम लोग मैच देख रहे थे, तभी पटाखे फोड़े जाने की आवाज़ सुनाई दी. हम लोग नीचे गए. हमने पूछा तो हमें बताया गया कि पटाखे फोड़े गए हैं."
वंदना की मां ब्लड प्रेशर की मरीज़ हैं. जब हमारी उनसे मुलाक़ात हुई तो उनकी तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने इससे आगे बात करने से मना कर दिया.
वंदना कटारिया के बड़े भाइयों में से एक लाखन सिंह कटारिया बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "हम सभी लोग यहां घर पर मैच देख रहे थे, साथ में कई मीडिया वाले भी मौजूद थे. जैसे ही टीम इंडिया मैच हारी हमारे घर के पास में ही एक घर है, वहां पटाख़े फूटने शुरू कर दिए गए. हमारे बड़े भाई ने यह सब सुनकर कहा कि देखो कौन है?"
लाखन बताते हैं, "हम नीचे गए तो देखा कि वहां काफ़ी भीड़ जमा थी. वहां कई लोगों ने पूछा कि ये लोग आतिशबाज़ी कर रहे हैं, पटाख़े फोड़ रहे हैं, इनका क्या किया जाए? तभी वहां दो कॉन्स्टेबल आ गए. उन्हें बता दिया गया था कि यहां ऐसी बात हुई है. फिर विक्की पाल (पूरा नाम विजयपाल) को पुलिसवाले अपने साथ लेकर चले गए."
दूसरा पक्ष
विजयपाल का घर वंदना कटारिया के घर से क़रीब 40 मीटर की दूरी पर है. उस वक़्त घर में उनकी दो बहनें मौजूद थीं. वो दोनों काफ़ी डरी हुई थीं. दरवाज़ा नहीं खोल रही थीं. जब हमने उनसे बात करने की कोशिश की तो छोटी बहन ने ये कहते हुए बात करने से मना कर दिया, "आप लोग भी उन्हीं (वंदना कटारिया) के घर से आए हैं. मैंने आपको उनके घर से आते हुए देखा है. हम आपसे बात नहीं करेंगे."
लेकिन कुछ देर के बाद गिरफ़्तार विजयपाल की बड़ी बहन हमसे बात करने को तैयार हुईं.
उन्होंने कहा, "मेरे भाई को फँसाया जा रहा है. मेरे परिवार के साथ वंदना कटारिया के भाइयों की पहले भी लड़ाई, यहाँ तक की हाथापाई भी हुई है." वो मारपीट के कुछ वीडियो भी हमें दिखाती हैं.
विजयपाल की बहन ये भी कहती हैं कि कोई भी मीडिया वाला अभी तक उनका पक्ष जानने उनके घर नहीं आया था. उनके अनुसार सभी मीडिया वाले वंदना कटारिया के घर जाते हैं और फिर वहीं से लौट जाते हैं.
DHRUV MISHRA
वंदना कटारिया का परिवार
विजयपाल की माँ कविता पाल क़ानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कोर्ट से घर पहुँचीं.
पटाखे फोड़े जाने के आरोप के जवाब में बीबीसी से बातचीत में वो कहती हैं, "मेरे बेटे की उस दिन तबीयत ख़राब थी, उसे बुख़ार और गले में ख़राश की शिकायत थी इसलिए वो अंदर कमरे में लेटा हुआ था. तभी अचानक हमारी छत पर पटाख़े फूटने की आवाज़ आई. हम लोग दौड़कर छत पर गए."
वे बताती हैं कि अभी विजयपाल के पिता को इसकी सूचना दी जा रही थी, "तभी पुलिस हमारे घर पहुँच गई और मेरे बेटे को उठाकर ले गई. क्या कभी आपने देखा है इतनी जल्दी पुलिस आई हो?"
विजय पाल की माँ से हमने पूछा कि आपकी छत पर ऐसे पटाखे कौन फोड़ सकता है, छत आपकी है तो कोई दूसरा पटाखे कैसे फोड़ सकता है?
इसके जवाब में वो कहती हैं, "हमारी छतें आसपास में मिली हुई हैं. हमारी वंदना कटारिया के परिजनों से पुरानी रंजिश है. हम दोनों के बीच और लड़ाइयां बढ़ें, इस वजह से भी हो सकता है किसी ने ये हरकत की हो."
आसपास पड़ोस के लोगों से जब हमने इस बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो ज़्यादातर लोग इस मामले पर बोलने से बचते नज़र आए.
DHRUV MISHRA
वंदना कटारिया के सबसे बड़े भाई चंद्रशेखर कटारिया
जातिवादी गालियाँ?
इस मामले में विजयपाल की एससी/एसटी एक्ट के तहत गिरफ़्तारी हो चुकी है. विजयपाल पर आरोप है कि उन्होंने जातिसूचक शब्दों का भी इस्तेमाल किया था.
जातिसूचक शब्द कहे जाने के बारे में वंदना के भाई लाखन कहते हैं, "इसमें एससी/एसटी एक्ट का कोई मतलब नहीं है और यहाँ जातिसूचक शब्द की भी कोई बात नहीं. कुछ लोगों ने इसे मुद्दा बनाया है. मामला सिर्फ़ पटाखे फोड़े जाने को लेकर है."
लेकिन इस पूरे मामले में वंदना कटारिया के सबसे बड़े भाई चंद्रशेखर कटारिया ने लिखित शिकायत दी है कि जातिसूचक शब्द कहे गए थे. ख़ुद हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने बीबीसी से इस बात की पुष्टि की है.
DHRUV MISHRA
हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अवुडई कृष्ण राज एस
पुलिस का पक्ष
हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अवुडई कृष्ण राज एस ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "वंदना कटारिया के भाई चंद्रशेखर कटारिया की लिखित शिकायत मिली. उसी के तहत कार्रवाई करते हुए हमने सेक्शन 504 (उकसावे की कार्रवाई) और एससी-एसटी एक्ट के तहत एफ़आईआर दर्ज की है. इस मामले में एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी हो चुकी है. आगे की जाँच जारी है."
पूरे दिन भर वंदना कटारिया के सबसे बड़े भाई चंद्रशेखर कटारिया घर पर मौजूद नहीं थे. जब शाम को वे घर आए तब हमने उनसे इस मामले में जानकारी लेने की कोशिश की कि आख़िर जातिसूचक शब्द कहे जाने का मामला कहाँ से आया?
इसका जवाब देते हुए चंद्रशेखर कटारिया कहते हैं, ''हम लोग दलित जाति से आते हैं, ये तो सभी को पता है. हम अपनी जाति नहीं बदल सकते, जाति सूचक शब्द कहना या गाली देना ऐसा केवल हम ही नहीं कह रहे और भी लोग कह रहे हैं. आप उनसे पूछ लो जाकर. 'वंदना कटारिया मुर्दाबाद' जैसे नारे लगाए जा रहे हैं. यह क्यों किया जा रहा है, किस बात की रंजिश है?"
इमेज स्रोत,DHRUV MISHRA
कई लोगों ने पोस्टर बैनर लेकर वंदना कटारिया के घर उनके समर्थन में नारेबाज़ी की.
पुरानी रंजिश और दोतरफ़ा नारेबाज़ी
विजयपाल की बहनों ने लड़ाई-झगड़े के जो वीडियो दिखाए थे उनके बारे में पूछे जाने पर चंद्रशेखर कहते हैं, "यह लोग बाहर से आए हुए हैं, दबंग लोग हैं. ये कहते हैं कि हम किसी से डरते नहीं हैं. हम लोग मुज़फ़्फ़रनगर के रहने वाले हैं, जैसा हमने वहां किया है, यहां भी ऐसा ही कर देंगे. मुझे जान से मारने की धमकियाँ भी दी हैं इन लोगों ने."
दूसरी ओर, विजयपाल की माँ कविता का कहना है कि उनकी तरफ़ से जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ था, वे आरोप लगाती हैं कि वंदना कटारिया के भाइयों ने उनके घर के बाहर जाति का नाम लेकर मुर्दाबाद के नारे लगाए.
हमने इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए वंदना के रिश्ते के एक भाई से बात की तो उन्होंने माना कि 'हमने भी अभियुक्त के घर के बाहर नारे लगाए थे.'
यही नहीं, उन्होंने एक वीडियो भी दिखाया जिसमें विजयपाल के घर के सामने कुछ लोग नारे लगाते हुए दिख रहे हैं.
दलित संगठन भी सक्रिय
इसी बीच दलित संगठनों से जुड़े कई लोगों का वंदना कटारिया के घर आने-जाने का सिलसिला जारी है. कई लोग पोस्टर बैनर लेकर वंदना कटारिया के घर उनके समर्थन में नारेबाज़ी करते हुए नज़र आए.
ये लोग नारे लगाते हुए पटाखे फोड़ने वाले लोगों पर देशद्रोह और एनएसए के तहत कार्रवाई की माँग कर रहे थे.
हरिद्वार के झबरेड़ा से बीजेपी विधायक देशराज कर्णवाल भी वंदना कटारिया के घर आए और उन्होंने भी इस मामले पर एससी-एसटी एक्ट के साथ ही देशद्रोह के मामले में भी कार्रवाई किए जाने की बात कही.
बीजेपी विधायक देशराज कर्णवाल बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "उन्होंने इतना घिनौना कार्य किया है, हालांकि यह जाँच का विषय है. कोई बेगुनाह फँसे नहीं, किसी बेगुनाह को जेल नहीं जाना चाहिए, लेकिन जो गुनहगार है वो बचना भी नहीं चाहिए." (bbc.com)
टोक्यो, 6 अगस्त | भारतीय महिला हॉकी टीम के मुख्य कोच शुअर्ड मरीन ने कहा कि उनकी टीम ने भले ही टोक्यो ओलंपिक 2020 में पदक नहीं जीता हो, लेकिन उनके खिलाड़ियों ने कुछ बड़ा हासिल किया है, क्योंकि उन्होंने देश को सफलता के सपने देखने के लिए प्रेरित किया। भारत को शुक्रवार को कांस्य पदक के प्लेऑफ में करीबी मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन से 4-3 से हार गया। टीम ने हाफ-टाइम में 3-2 से आगे थी, लेकिन अंग्रेजों ने दूसरे हाफ में जोरदार वापसी की और ओलंपिक में केवल तीसरे प्रदर्शन में भारत को ऐतिहासिक पदक से वंचित कर दिया।
मरीन ने की टीम ने प्रारंभिक दौर से बाहर होने के बाद क्वार्टर फाइनल में शक्तिशाली ऑस्ट्रेलिया को हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाकर सभी को चौंका दिया, और हालांकि वे सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से हार गईं लेकिन इस टीम ने अपने प्रदर्शन से सबको प्रभावित किया है।
यह पूछे जाने पर कि हार के बाद टीम के लिए उनका क्या संदेश है, मरीन ने मीडिया से कहा कि उन्होंने उनसे कहा कि उन्हें उनके प्रदर्शन पर गर्व है।
अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) ने मरीन के हवाले से कहा, पहली भावना हारने के बारे में है। हाँ आप जीतना चाहते हैं लेकिन, वास्तव में, मुझे गर्व महसूस होता है। मुझे लड़कियों पर गर्व है, कैसे उन्होंने फिर से अपनी लड़ाई और कौशल दिखाया। आम तौर पर जब भारतीय महिला टीम 2-0 से नीचे होती थी तो स्कोर हमेशा 3-0, 4-0 हो जाता है लेकिन अब वे लड़ते रहे। यह सबसे बड़ा बदलाव है।
उन्होंने कहा कि लड़कियों को गर्व होना चाहिए कि उन्होंने पदक से बड़ा कुछ हासिल किया है।
मरीन ने कहा, और मैंने लड़कियों से कहा, 'सुनो, मैं तुम्हारे आंसू नहीं पोछ सकता। हमने पदक नहीं जीता, लेकिन मुझे लगता है कि हमने कुछ बड़ा हासिल किया है, और यह एक देश को प्रेरणा दे रहा है। देश को गर्व है। मुझे लगता है कि दुनिया ने एक और अलग भारतीय टीम देखी है, और मुझे वास्तव में उस पर गर्व है। (आईएएनएस)
-मनोज चतुर्वेदी
भारतीय महिला हॉकी टीम टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक तो हासिल नहीं कर सकी, लेकिन उन्हों जिस दिलेरी से ग्रेट ब्रिटेन जैसी मजबूत टीम से संघर्ष किया, वह भुलाए नहीं भूलेगा.
भारत को इस मुकाबले में 3-4 से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन भारतीय महिला टीम के हिसाब से यह प्रदर्शन काबिल ए तारीफ़ है.
जिस टीम के बारे में क्वार्टर फ़ाइनल में स्थान बनाने में भी संशय व्यक्त किया जा रहा था, उस टीम ने ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीम को हराकर ना सिर्फ सेमी फ़ाइनल में स्थान बनाया बल्कि आख़िर तक अपनी लड़ाई जारी रखी.
इस ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन से भारतीय टीम बिग लीग टीमों में अपना नाम शुमार कराने में सफल हो गई है. वह नई रैंकिंग में छठे स्थान पर आ सकती है.
ब्रिटेन के तीसरे कवार्टर में बराबरी पाने के बाद भारत को आख़िरी 15 मिनट में जीत के लिए सबकुछ झोंक देने की ज़रूरत थी. मगर शायद टीम सामने वाली टीम के शुरुआत से ही दवाब बनाने की वजह से इस रणनीति पर काम नहीं कर सकी.
टीम इस क्वार्टर में काफ़ी समय बचाव में ही व्यस्त रही. वहीं, ब्रिटेन के ग्रेस बाल्सडन द्वारा चौथा गोल जमाने के बाद भारतीय खिलाड़ियों पर दवाब दिखने लगा. वो गेंद को ढंग से क्लियर नहीं कर पा रही थीं और हमले बनाते समय गेंद पर नियंत्रण बनाने में भी उन्हें दिक्क़त हुई.
भारत की यादगार वापसी
पहले 24 मिनट के खेल में ब्रिटेन की 2-0 की बढ़त और ग्रेट ब्रिटेन के लगातार हमलावर रहने से लग रहा था कि मैच का हश्र ग्रुप मुकाबले वाला ही होने वाला है. लेकिन दूसरे क्वार्टर के आख़िरी छह मिनट में भारतीय टीम एक अलग ही अंदाज़ वाली दिखी.
इस अंदाज़ को देखने से लगा कि भारत की क्वार्टर फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया पर जीत कोई तुक्का नहीं थी.
भारत ने इस दौरान हमले बनाकर अपने ऊपर से दवाब ही नहीं हटाया बल्कि पहले ड्रैग फ़्लिकर गुरजीत कौर के पेनल्टी कार्नर पर जमाए दो गोलों से बराबरी की और फिर वंदना कटारिया के शानदार गोल से मैच में पहली बार बढ़त बनाकर अपनी श्रेष्ठता साबित की.
दवाब में ब्रिटेन का डिफ़ेंस चरमराया
पहले 24 मिनट के खेल में ग्रेट ब्रिटेन की सही मायनों में सही परीक्षा नहीं हुई, लेकिन भारत ने जब दूसरे क्वार्टर के आखिरी छह-सात मिनट जब ताबड़तोड़ हमले बनाए तो डिफ़ेंस में कमज़ोरी साफ़ दिखाई दी.
ब्रिटेन के डिफ़ेंडर गेंद क्लियर करने में ग़लतियां करते नज़र आ रहे थे. वहीं, भारतीय हमलावरों ने पहले सीधा गोल जमाने के बजाय पेनल्टी कॉर्नर हासिल करने की रणनीति पर काम किया और उनकी यह रणनीति कारगर साबित हुई.
इस रणनीति की वजह से मिले पेनल्टी कॉर्नरों को भारत गोल में बदलकर पहले 2-2 की बररबरी की. बराबरी से बने टेंपो को भारत ने खत्म नहीं होने दिया और वंदना कटारिया के बनाए हमले में कम से कम तीन खिलाड़ियों तक गेंद पहुंचने के बाद वंदना को गेंद मिली और वह गोल जमाने में सफल रहीं. इस गोल ने भारतीय टीम के हौसले को दोहरा कर दिया.
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भारत का पहल को खोना
ब्रिटेन तीसरे क्वार्टर में बराबरी पाने के इरादे से हमलावर रुख़ अपनाने के इरादे से उतरी. वैसे उनके और सफलता के बीच सविता पूनिया डटी हुई थीं. लेकिन फिर भी ग्रेट ब्रिटेन को हमलावर रुख़ अपनाने का फ़ायदा मिला.
शायद इस दौरान दिखा कि भारत बढ़त का बचाव करने का इरादा रखता है. लेकिन यह सोच ग़लत साबित हुई और ग्रेट ब्रिटेन ने शुरुआत में ही गोल जमाकर स्कोर 3-3 कर दिया.
यह गोल ग्रेट ब्रिटेन की हौली पियने ने जमाया. इस दौरान भारत की खिलाड़ियों को पास देने के बजाय ज़रूरत से ज़्यादा अपने पास गेंद रखने की रणनीति से कई बार उनसे गेंद भी छिनी.
इसकी वजह से बने हमलों में भारतीय गोल पर ख़तरा भी बना. पर भला हो गोलकीपर सविता पूनिया के शानदार बचाव का, कम से कम छह निश्चित गोल के मौके रोके.
भारत ने मौके किए बर्बाद
तीसरे क्वार्टर के आख़िरी मिनट में भारत ने दाहिने फ़्लैंक से हमला बनाकर गोल पर गेंद डाली.
इस दौरान ब्रिटेन की खिलाड़ी के ख़िलाफ़ फ़ाउल होने पर भारत ने पेनल्टी कार्नर के लिए रेफ़रल मांगा और उन्हें पेनल्टी कॉर्नर मिला भी, लेकिन इस समय टीम की विशेषज्ञ ड्रैग फ़्लिकर गुरजीत कौर मैदान पर नहीं थी, इसलिए दीप ग्रेस एक्का ने सीधा शॉट लेने के बजाय वेरिएशन किया. पर आगे पहुंची खिलाड़ी गेंद को डिफ़्लेक्ट नहीं कर सकी और बढ़त लेने का मौका चला गया.
भारतीय टीम का आख़िरी क्वार्टर की शुरुआत में डिफ़ेंसिव रुख़ अपनाना मुश्किलें पैदा करने वाला रहा. इससे ब्रिटेन को बढ़त बनाने के लिए हमलावर रुख़ अपनाने में मदद मिली.
तीन पेनल्टी कार्नर पर बचाव करने के बाद चौथे पर ग्रेस बाल्सडन ने गोल जमाकर 4-3 की बढ़त बना ली.
पिछड़ने के बाद भारतीय खेल में फिर से तेज़ी नजर आने लगी और भारत ने बराबरी पाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. इसकी वजह से कुछ मौके भी मिले, लेकिन ब्रिटेन बढ़त बनाने के बाद ज़्यादा भरोसे से खेलती नज़र आई और उसका यही रुख़ उसे पोडियम पर पहुंचाने वाला साबित हुआ.
शुरू में दिखा दवाब
भारतीय टीम के खेल की शुरुआत से लगा कि वह ग्रुप मुकाबले में 1-4 की हार की वजह से सतर्कता के साथ खेल रही है. भारत ने खेल की गति तेज़ न होने देने का प्रयास किया.
वह इस प्रयास में 6-7 मिनट तक काफ़ी हद तक सफल भी रहा, लेकिन जल्दी ही ब्रिटेन ने तेज़ हमले बनाने शुरू कर दिए और कई बार वह गोल जमाने के क़रीब पहुंची. लेकिन भारतीय डिफ़ेंस की मुस्तैदी और आख़िर में गोल पर चट्टान की तरह डटीं सविता पूनिया ने शानदार बचाव से भारतीय गोलपोस्ट को भिदने से बचाए रखा.
भारत को इस दवाब से निकलने के लिए थोड़ा आक्रामक रुख़ अपनाने की ज़रूरत थी. ऐसा करके ही वह ग्रेट ब्रिटेन को थोड़ा बचाव में उलझाकर उनके हमलों पर लगाम ला सकता था. भारत भाग्यशाली रहा कि इस क्वार्टर में उसका गोल नहीं भिदा.
पहले ही मिनट में ग्रेट ब्रिटेन ने दाहिने फ़्लैंक से हमला बनाकर भारतीय डिफ़ेंस की ग़लती से बढ़त बनाने में सफलता पा ली. यह गोल इलेना सियान ने जमाया.
उन्होंने दाहिने कोने से सर्किल में घुसकर गोल के सामने क्रॉस फेंका और वहां खड़ी भारतीय डिफ़ेंडर दीप ग्रेस एक्का के बचाव करने का प्रयास करने पर गेंद उनकी स्टिक से लगकर गोल में चली गई.
भारत के दवाब से निकलने के लिए ज़रूरी था कि गेंद को सर्कल से जल्द से जल्द क्लियर किया जाए. पर कई बार खिलाड़ी गेंद क्लियर करने में देरी करके अपने ही ऊपर दवाब बनाती रहीं. इससे ब्रिटेन को कई बार गेंद छीनकर हमला बोलने का मौका मिला.
भारतीय टीम का गियर बदलना कारगर
भारत ने दो गोल से पिछड़ने के बाद हमलों पर ज़ोर बांधना शुरू किया और इसका उन्हें फ़ायदा भी मिला. भारत के हमलावार रुख़ से ब्रिटेन के डिफ़ेंस में दरार दिखने लगी.
भारत ने दूसरे क्वार्टर के आख़िरी छह मिनट में दो हमलों में पेनल्टी कार्नर हासिल किए और दोनों को गुरजीत कौर ने गोल में तब्दील कर भारत को 2-2 की बराबरी पर ला दिया.
इस बढ़त से उत्साहित भारतीय टीम के खेल में एकदम से निखार दिखने लगा और वह पहली बार मैच में बढ़त बनाने में सफल हुई. (bbc.com)
नई दिल्ली, 6 अगस्त | 50 साल पहले भारत ने अजीत वाडेकर के नेतृत्व में इंग्लैंड में कदम रखा था और अपनी पहली टेस्ट सीरीज जीती थी, उस वक्त टीम में शामिल यंग गन्स-सुनील गावस्कर, गुंडाप्पा विश्वनाथ, एकनाथ सोलकर, अशोक मांकड़ और आबिद अली ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई थी। इंग्लैंड रॉय इलिंगवर्थ के नेतृत्व में एक बेहद संतुलित टीम थी जिसने ऑस्ट्रेलिया को एशेज में 2-0 से मात दी थी। भारत ऐसी इंग्लिश टीम के खिलाफ जीत का दावेदार नहीं माना जा रहा था, जिसमें जॉन स्नो जैसा तेज गेंदबाज था। इनके अलावा जेफरी बॉयकॉट और जॉन एडरिच जैसे खिलाड़ी थे, जिन्होंने इंग्लैंड के लिए बड़ा स्कोर किया था।
इसके बावजूद भारतीय टीम ने शुरुआत दो टेस्ट ड्रॉ कराए और ओवल में भगवत चंद्रशेखर की गुगली के दम पर जीत हासिल की। गावस्कर के साथ वाडेकर उस सीरीज में सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजो में शामिल थे।
उसी सीरीज की कुछ यादों को ताजा करने के लिए आईएएनएस के संपादक संदीप बामजई ने भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर के साथ खास बातचीत की, जो भारत-इंग्लैंड सीरीज में कमेंटेटर की भूमिका अदा कर रहे हैं।।
साक्षात्कार के अंश इस प्रकार है :
सवाल : 1971 दौरे पर जहां आपके जैसे कई युवा खिलाड़ी गए थे और जो अपका इंग्लिश समर में पहला दौरा था, उसकी यादें कैसी थी।
जवाब : मेरा इंग्लैंड का पहला दौरा 50 साल पहले हुआ था और हमने वेस्टइंडीज को हाल ही में हराया था, जिससे हमारा मनोबल बढ़ा हुआ था। उस मजेदार दौरे में युवा और अनुभवी खिलाड़ियों का अच्छा मेल था। उस दौरान काउंटी टीमों के खिलाफ भी कुछ मैच थे। हमने इंग्लैंड भी घूमा और सेंट पॉल कैथेड्राल, द लंदन जू, द यूनीवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज सहित अन्य जगह गए थे। एक दिन में एक पाउंड के तंग बजट होने के कारण, हम बढ़िया भोजन अनुभव का आनंद नहीं ले सके, लेकिन हमें फास्ट-फूड आउटलेट्स से संतुष्ट होना पड़ा।
सवाल : आपने अक्सर कहा है कि इंग्लैंड के तेज गेंदबाजों के खिलाफ प्रतिकूल परिस्थितियों में आपकी सर्वश्रेष्ठ टेस्ट पारी उस समय जड़ा अर्धशतक है। उस दौरे पर जॉन स्नो के साथ-साथ परिस्थितियों और आमने-सामने होने का वर्णन करें।
जवाब : हां, वो अर्धशतक मेरे टेस्ट क्रिकेट का सबसे बेहतर प्रयास था। हम पहली बार ग्रीन विकेट पर खेल रहे थे। हम ऊपरी मंजिल पर अपने चेंजिंग रूम से पिच को बाकी आउटफील्ड से अलग नहीं कर सके। ओवरकास्ट वातावरण का मतलब है कि घास ज्यादा सूखी नहीं थी और काफी हद तक डिजल था तथा अंपायर खिलाड़ियों को मैदान से नहीं उतारते थे। हल्की बारिश हो रही थी और गेंद स्विंग कर रही थी तथा बाउंस भी हो रहा था, इसलिए यह मेरी टेस्ट क्रिकेट की सर्वश्रेष्ठ पारी थी।
सवाल : उस दौरे का अब तक का अज्ञात पहलू, कुछ ऐसा जिसने आपको अंग्रेजी टीम या अंग्रेजी प्रणाली की पृष्ठभूमि के बारे में बताया?
जवाब : जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा झकझोरा वो पक्षपाती अंपारिंग थी। हमने सुना था कि इंग्लिश अंपायर सर्वश्रेष्ठ होते हैं लेकिन हमने उस तीन मैचों की टेस्ट सीरीज में देखा कि अंपारिंग कॉल हमेशा घरेलू टीम के पक्ष में जा रहा था। जब हम काउंटी पक्षों के खिलाफ खेले, तो इंग्लिश अंपायर, जो सभी पूर्व प्रथम श्रेणी के खिलाड़ी थे, बहुत अच्छे और सबसे उत्साहजनक थे। यदि आप दिन के खेल के बाद किसी भी सलाह के लिए उनके पास गए तो आप उनसे बहुत कुछ सीख सकते थे।
सवाल : 1974 के अगले दौरे पर यह इतना गलत क्यों हो गया ?
जवाब : 1974 में हम अंग्रेजी गर्मियों की पहली छमाही में खेले जब पिचें और गेंदबाज फ्रेश थे और ऐसे में हमारी बल्लेबाजी ज्यादा योगदान नहीं दे सकी, जबकि हमारे स्पिनरों को ठंडी परिस्थितियों में गेंद को पकड़ने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
सवाल : आप मौजूदा टीम के बारे में क्या सोचते हैं और इंग्लैंड के खिलाफ चल रही पांच मैचों की टेस्ट सीरीज को लेकर टीम की क्या संभावनाएं है?
जवाब : मौजूदा टीम भारतीय क्रिकेट के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ टीम है। केवल 1983 से 1986 तक की टीमों में एक समान गहराई और संतुलन था। यह टीम हालांकि बेहतर है क्योंकि उसने ऑस्ट्रेलिया को हाल ही में उनके वातावरण में पराजित किया और उनके पास बल्ले और गेंदबाजी विभाग में कई गेम चेंजर हैं। अगर सूरज निकला तो टीम आसानी से सीरीज जीत सकती है और कुछ ओवरकास्ट दिन रहे तो भी वे जीत सकते हैं लेकिन हो सकता है एक टेस्ट में उन्हें हार मिले।
सवाल : डब्ल्यूटीसी फाइनल में क्या गलत हुआ, बिना सीम गेंदबाज के खेलने, दो स्पिनरों को खेलाने या खराब परिस्थितियों में टीम की संरचना को गलत करने?
जवाब : डब्ल्यूटीसी फाइनल में जो वातावरण था, उससे न्यूजीलैंड अच्छी तरह वाकिफ था तो उन्होंने भारतीयों के मुताबिक स्थिति को अच्छे से जाना। अंत में हालांकि दोनों टीमों के बीच बहुत कम अंतर रह गया था।
सवाल : भारतीय बल्लेबाज क्यों इंग्लिश विकेट पर मूविंग गेंद को नहीं खेल पाते?
जवाब : किसी के लिए भी इंग्लैंड में तेज गेंदबाजी को खेलना आसान नहीं होता, यहां तक की इंग्लिश बल्लेबाजों के लिए भी नहीं। बॉडी के करीब आकर और गेंद को जितना हो सके देर से खेलना स्कोर पर भिन्नता पैदा करता है।
सवाल : इस टीम ने पिएसेस को तेजी से भापा जैसा इन्होंने ऑस्ट्रेलिया के दिखाया लेकिन इंग्लैंड ट्रिकी है।
जवाब : इंग्लैंड की टीम में अभी बेन स्टोक्स, जोफ्रा आर्चर और क्रिस वोक्स जैसे प्रभावी खिलाड़ी नहीं है और उनका बल्लेबाजी क्रम कप्तान जोए रूट को छोड़कर थोड़ा कमजोर है, इसलिए भारत के पास इस बार बेहतर मौका है।
सवाल : किस तरह की टीम संयोजन की आप सलाह देंगे?
जवाब : टीम संयोजन काफी हद तक पिच और मौसम पर निर्भर करता है, विशेषकर इंग्लैंड में, इसलिए यह कहना मुश्किल होता है कि अंतिम एकादश कैसा होगा। ऋषभ पंत के होने से बल्लेबाजी मजबूत होगी और आत्मविश्वास बढ़ेगा। टीम मैनेजमेंट के पास एक एक्स्ट्रा सीमर और एक स्पिनर के साथ भी जाने का ऑब्शन है।
सवाल : टीम के पास इंग्लैंड को इंग्लैंड में हराने की क्षमता है? आपकी राय क्या है?
जवाब : यह टीम इंग्लैंड को पराजित कर सकती है। मेरा मानना है कि 4-0 होगा अगर सूरज निकला तो। अगर ओवरकास्ट रहा तो टीम 3-1 से जीतेगी।
सवाल : चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे जैसे बल्लेबाजों को आपकी क्या सलाह है, जो तकनीकी रूप से पूर्ण बल्लेबाजी करते हुए अपना विकेट गंवा देते हैं?
उत्तर : उनके पास एक बल्लेबाजी कोच है, इसलिए अगर उन्हें सलाह चाहिए तो उन्हें उनके पास जाना चाहिए। (आईएएनएस)
टोक्यो, 6 अगस्त | भारत की महिला हॉकी टीम को शुक्रवार को खेले गए कांस्य पदक के मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन के हाथों 3-4 से हार का सामना करना पड़ा। साल 2016 के रियो ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाली ब्रिटिश टीम ने अपने आठवें ओलंपिक में तीसरी बार कांस्य पदक जीता है। तीसरी बार ओलंपिक खेल रहे भारत को चौथा स्थान मिला। ओई हॉकी स्टेडियम नार्थ पिच पर हुए इस मैच में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिला। अपना तीसरा ओलंपिक खेल रहा भारत एक समय 0-2 से पीछे चल रहा था लेकिन उसने दनादन तीन गोल दागकर हाफ टाण तक 3-2 की लीड ले ली। लेकिन इसके बाद इंग्लैंड ने लगातार दो गोल दाग मैच अपने पक्ष में कर लिया।
इंग्लैंड के लिए एलेना रेयर (16वें), सारा राबर्टसन (24वें), होली पिएरे (35वें) और ग्रेस बॉल्सडन (48वें) ने किया जबकि भारत के लिए गुरजीत कौर ने (25वें, 26वें) दो गोल किए जबकि वंदना कटारिया (29वें) ने एक गोल किया। ब्रिटेन को 12 पेनाल्टी कार्नर मिले, जिसमें से तीन को उसने गोल में बदला। भारत को कुल 8 पेनाल्टी कार्नर मिले, जिनमें से दो में गोल हुए।
पहला क्वार्टर खाली जाने के बाद ब्रिटेन ने दूसरे क्वार्टर में 60 सेकेंड के भीतर गोल करते हुए 1-0 की लीड ले ली। उसके लिए मैच का पहला गोल एलेना रेयर ने किया। यह एक फील्ड गोल था।
इस गोल ने मानो ब्रिटिश टीम में जान फूंक दी और उसने 24वें मिनट में एक और गोल कर 2-0 की लीड ले ली। यह गोल सारा राबर्टसन ने किया। यह भी एक फील्ड गोल था।
ब्रिटिश टीम हाफटाइम लीड के साथ प्रवेश करती, उससे पहले ही भारत ने एक के बाद एक दनादन तीन गोल कर 3-2 की लीड ले ली।
गुरजीत कौर ने भारत का खाता 25वें मिनट में मिले पेनाल्टी कार्नर पर खोला और फिर उसके एक मिनट बाद एक और गोल कर स्कोर 2-2 कर दिया। भारत ने पेनाल्टी कार्नर पर गुरजीत द्वारा किए गए गोलों की मदद से शानदार वापसी कर ली थी।
अब भारतीय टीम उत्साह से भर चुकी थी। उसने मौके बनाने शुरू किए और उसी क्रम में उसे 29वें मिनट में एक शानदार सफलता मिली। वंदना कटारिया ने फील्ड गोल के जरिए भारत को 3-2 से आगे कर दिया।
हाफ टाइम तक भारत 3-2 से आगे था। हाफ टाइम की सीटी बजने के पांच मिनट बाद ही ब्रिटेन ने गोल कर स्कोर 3-3 कर दिया। यह गोल कप्तान होली पिएरे ने किया। तीसरे क्वार्टर में भारतीय टीम कोई गोल नहीं कर सकी।
चौथा और अंतिम क्वार्टर जब शुरु हुआ तो मैच का रोमांच चरण पर था। दोनों टीमों के पास मेडल पाने के लिए अंतिम 15 मिनट थे। इस क्रम में हालांकि ब्रिटेन को सफलता मिल गई। 48वें मिनट में उसने पेनाल्टी कार्नर पर गोल कर 4-3 की लीड ले ली। यह गोल ग्रेस बॉल्सडन ने किया।
भारत की महिला टीम के लिए यह ओलंपिक में अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन कहा जा सकता है। दुनिया की नौवें नम्बर की भारतीय टीम तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए दुनिया की नम्बर-2 आस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची थी। सेमीफाइनल में हालांकि उसे हार मिली।
यह भारत का तीसरा ओलंपिक था। मास्को (1980) के 36 साल के बाद उसने रियो ओलंपिक (2016) के लिए क्वालीफाई किया था। भारत अंतिम रूप से चौथे स्थान पर रहा था लेकिन उस साल वैश्विक बहिष्कार के कारण सिर्फ छह टीमों ने ओलंपिक में हिस्सा लिया था।
इसके बाद भारत ने 2016 के रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया लेकिन वह 12 टीमों के टूर्नामेंट में अंतिम स्थान पर रही थी। भारत को पूल स्तर पर पांच मैचों में सिर्फ एक ड्रॉ नसीब हुआ था।
टोक्यो में भारत ने ग्रुप स्तर पर खराब शुरुआत की थी। उसे लगाता तीन मैचों में हार मिली। इसके बाद उसने दो मैच लगातार जीते और ब्रिटेन के हाथों आयरलैंड की हार के कारण नॉकआउट के लिए क्वलीफाई करने में सफल रही।
नॉकआउट के पहले मैच में भारत ने आस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया लेकिन सेमीफाइनल में उसे अर्जेटीना के हाथों 1-2 से हार मिली। (आईएएनएस)
टोक्यो. भारतीय महिला हॉकी टीम ब्रॉन्ज मेडल से चूक गई. ब्रिटेन ने भारत को 4-3 से हराया. हालांकि भारतीय महिला टीम के शानदार प्रदर्शन को फैंस सालों तक याद रखेंगे. टीम का यह ओलंपिक में ओवरऑल सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है. इससे पहले भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था. टीम 41 साल बाद मेडल जीतने में सफल हुई थी. भारत को टोक्यो में अब तक 2 सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज सहित 5 मेडल मिले हैं.
मैच में ब्रिटेन की टीम ने शानदार शुरुआत की. हालांकि पहले क्वार्टर में दोनों ही टीमें गोल नहीं कर सकीं. 16वें मिनट में एलिना सियान के शॉट को दीप ग्रेस एक्का ने रोकने की कोशिश की, लेकिन गेंद स्टिक से लगकर पोस्ट में चली गई. इस तरह से ब्रिटेन ने 1-0 की बढ़त बना ली. 24वें मिनट में साराह रॉबटर्सन ने गोल करके ब्रिटेन को 2-0 की बड़ी बढ़त दिलाई. हालांकि इसके बाद भारतीय टीम ने वापसी की. 25वें मिनट में पेनल्टी कॉर्नर पर गुरजीत कौर ने गोल करके स्कोर 1-2 कर दिया. 26वें मिनट में गुरजीत ने एक बार फिर कॉर्नर पर गोल करके स्कोर 2-2 से बराबर कर दिया. 29वें मिनट में वंदना कटारिया ने गोल करके भारत को 3-2 से आगे कर दिया. हाफ टाइम तक स्कोर यही रहा. दूसरे क्वार्टर में 5 गोल हुए.
यलो कार्ड ने अंतर पैदा किया
भारतीय गोलकीपर सविता पूनिया ने मैच के दौरान कॉर्नर ही नहीं बचाए. बल्कि ब्रिटेन के कई हमलों को भी रोका. 35वें मिनट में ब्रिटेन की कप्तान होली वेब ने गोल करके स्काेर 3-3 से बराबर कर दिया. तीसरे क्वार्टर के बाद स्कोर 3-3 से बराबर रहा. चौथे क्वार्टर में उदिता को यलो कार्ड मिला. इस कारण वे 5 मिनट तक मैदान से बाहर थीं. इसका टीम को खामियाजा भुगतना पड़ा. ब्रिटेन को लगातार तीन कॉर्नर मिले और 48वें मिनट में ग्रेस बाल्स्डॉन ने गोल करके टीम को 4-3 से आगे कर दिया. इसके बाद गोल नहीं हुआ और ब्रिटेन ने ब्रॉन्ज मेडल जीता.
तीसरी बार ओलंपिक में उतरी टीम
महिला टीम सिर्फ तीसरी बार ओलंपिक में उतरी. 2016 रियाे ओलंपिक में टीम 12 वें नंबर पर रही थी. इसके अलावा 1980 में टीम चौथे नंबर पर रही थी. हालांकि उस समय सेमीफाइनल के मुकाबले नहीं थे. इस तरह से टोक्यो में टीम का प्रदर्शन ओलंपिक इतिहास का बेस्ट प्रदर्शन है.
टोक्यो, 6 अगस्त| भारत के गुरप्रीत सिंह शुक्रवार को आयोजित टोक्यो ओलंपिक की 50 किलोमीटर रेस वॉक स्पर्धा में कोई स्थान नहीं हासिल कर सके क्योंकि वह पूरी ही नहीं कर पाए। पोलैंड के डेविड तोमाला ने इस स्पर्धा का स्वर्ण जीता जबकि जर्मनी के राबर्ट हिल्बर्ट को रजत तथा कनाडा के इवान डंफी को कांस्य मिला।
ओलंपिक की सबसे कठिन स्पर्धाओं में से एक में 59 धावकों ने हिस्सा लिया। इनमें से 47 ही पूरी कर सके जबकि दो को अयोग्य करार दिया गया। शेष फिनिश लाइन तक नहीं पहुंच सके।
फिनिश लाइन तक नहीं पहुंच पाने वालों में सेना मे काम करने वाले भारत के गुरप्रीत सिंह भी हैं।
तोमाला ने 3:50:08 घंटे समय के साथ पहला स्थान हासिल किया। इसी तरह हिल्बर्ट ने दूसरा स्थान पाने के लिए 3:50:44 घंटे और डंफी ने 3:50:59 घंटे समय लिया। (आईएएनएस)
-मनोज चतुर्वेदी
भारतीय टीम 135 करोड़ देशवासियों की उम्मीदों पर खरी उतरकर 41 सालों से ओलंपिक पदक से चली आ रही दूरी को ख़त्म करके देश को ख़ुशी से झुमा दिया है.
भारत ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता. 1928 से 1956 तक भारत ने लगातार छह स्वर्ण पदक जीतकर अपनी बादशाहत कायम की थी. पर 1980 के मॉस्को ओलंपिक के बाद भारत से सफलता रूठ गई थी.
कई बार भारतीय टीम खोई प्रतिष्ठा को पाने के इरादे से गई, लेकिन अपने इरादों में सफल नहीं हो सकी. पर मनप्रीत की अगुआई वाली भारतीय टीम आख़िरकार भारत की पदक से दूरी ख़त्म करने में सफल हो गई.
भारत की ज़्यादातर आबादी ने हॉकी में पदक जीतने की कथाएं सुनी ही थीं. लेकिन अब भारतीय नागरिक ख़ासतौर से युवा पीढ़ी ने पहली बार भारतीय टीम को पदक जीतते देख लिया है.
भारतीयों का इस खेल से भावनात्मक लगाव रहा है, इसलिए इस पदक के अन्य पदकों के मुक़ाबले अलग ही मायने हैं. सही मायनों में इस सफलता ने देश को खुशी से सराबोर कर दिया है.
खेल समाप्ति से साढ़े चार मिनट पहले जर्मनी टीम ने पैनिक बटन दबाकर अपने गोलकीपर स्टेडलर को बाहर बुलाकर सभी 11 खिलाड़ियों को हमलों में उतार दिया.
खेल समाप्ति से छह सेकेंड पहले जर्मनी को मैच का दसवां पेनल्टी कॉर्नर मिल जाने से भारतीय टीम और खेल प्रेमियों के दिलों की धड़कनें बढ़ गईं.
लेकिन भारतीय डिफ़ेंस ने शानदार बचाव करके भारत का पोडियम पर चढ़ना पक्का कर दिया. इससे ढाई मिनट पहले भी जर्मनी को पेनल्टी कॉर्नर मिला पर भारतीय डिफ़ेंस की मुस्तैदी से जर्मनी को अपने इरादों में सफल नहीं होने दिया.
भारत की ज़बर्दस्त वापसी
भारतीय टीम ने एक बार फिर दिखा दिया कि उनमें वापसी करने की क्षमता है. दूसरे क्वार्टर की शुरुआत में दो गोल खा जाने से एक बार तो लगा कि भारत मुकाबले से बाहर होने जा रहा है. लेकिन टीम ने धीरे-धीरे खेल पर नियंत्रण बनाकर बराबरी करके जता दिया कि भारतीय खिलाड़ी भी किसी से कम नहीं हैं.
भारत ने दूसरे क्वार्टर के आख़िरी चार मिनट में खेल की दिशा को एकदम से बदल दिया और 3-3 की बराबरी करके यह दिखाया कि 41 सालों बाद पोडियम पर चढ़ने का उनका जज़्बा खत्म नहीं हुआ है.
भारत ने यह बराबरी पेनल्टी कॉर्नर पर जमाए गोलों से हासिल की. पहले मौके पर हार्दिक ने रिबाउंड पर गोल जमाया और फिर हरमनप्रीत ने ड्रैग फ़्लिक से गोल जमाया.
इस समय तक भारतीय टीम पूरी लय में खेलने लगी थी और इस कारण जर्मनी के खेल में गिरावट देखने को मिली.
गेंद क्लियर करने में देरी ने मुश्किल में डाला
भारतीय डिफ़ेंस ने बेल्जियम के ख़िलाफ़ की गई ग़लतियों को एक बार दोहराकर टीम को शुरुआत में ही मुश्किल में डाल दिया.
जर्मन हमलों के समय भारतीय डिफ़ेंडरों ने गेंद को क्लियर करने में देरी करके उनके फ़ॉरवर्ड को गेंद पर कब्ज़ा जमाने के मौके देकर उन्हें गोल पर निशाने साधने के मौके दे दिए.
सही मायनों में जर्मनी के पहले तीनों गोल भारतीय डिफ़ेंस की ग़लतियों के नतीजे रहे. आमतौर पर श्रीजेश दीवार की तरह डटे नज़र आते हैं. लेकिन जब वो फ़ुल बैक और मिडफ़ील्डर हमलावरों को सर्किल से पहले रोकने में कामयाब नहीं रहे, तो उन पर अतिरिक्त दवाब आने लगा, लेकिन फिर भी वह डटे रहे.
भारत ने बदल दी खेल की तस्वीर
भारत ने ज़ोरदार वापसी करके तीसरे क्वार्टर की शुरुआत में बढ़त बनाकर जर्मनी पर दवाब बना दिया. भारत के इससे पहले हाफ़ में बराबरी पाने से मनोबल ऊंचा हो गया और हमारे खिलाड़ी स्वाभाविक खेल खेलने लगे.
भारत ने दूसरे हाफ़ यानी तीसरे कवार्टर की बहुत ही आक्रामक अंदाज़ से शुरुआत की और जर्मनी के डिफ़ेंस को छितराकर उन्हें दवाब में ला दिया. भारत ने शुरुआत में ही दो गोल जमाकर 5-3 की बढ़त बना ली.
इस दौरान भारतीय हमलों के कारण जर्मन डिफ़ेंडरों से ग़लतियां होनी शुरू हो गई थीं और भारत ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया.
भारत के लिए चौथा गोल रूपिंदर पाल सिंह ने पेनल्टी स्ट्रोक पर किया. यह पेनल्टी स्ट्रोक मनदीप के ख़िलाफ़ गोल के सामने स्टिक लगाकर रोकने पर दिया गया. जर्मनी अभी इस झटके से उबर भी नहीं पाई थी कि भारत ने सिमरनजीत के गोल से 5-3 की बढ़त दिला दी.
दबाव में बिखरा स्टेडलर का बचाव
जर्मन टीम के गोलकीपर की दुनिया के बेहतरीन गोलकीपरों में गिनती होती है. लेकिन भारत के दो गोल जमाकर बराबरी पाने के बाद वह अपनी धड़कनों को काबू रखने में असफल रहे. उनके ऊपर इसके बाद लगातार दवाब रहा और भारत के चार गोल जमाने के दौरान उनका स्वाभाविक बचाव नहीं नज़र आया.
वहीं चौथा गोल करके जर्मनी की टीम जब वापसी करने का प्रयास कर रही थी, तब ही हाउके पीछे से ग़लत टैकल करने की वजह से पीला कार्ड लेकर बाहर चले गए. इससे उनकी वापसी की लय बिगड़ गई.
जर्मनी ने पहले क्वार्टर में ज़्यादा ऊर्जा लगाने का नतीजा भुगता
जर्मनी टीम ने पहले क्वार्टर में दबदबा बनाने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा ऊर्जा लगा दी. इससे उनका खेल पर दबदबा तो बन गया पर उनके खिलाड़ी इसके बाद इस गति का प्रदर्शन करने में असफल रहे.
इसका भारत ने भरपूर फ़ायदा उठाया और हमलावर रुख़ अपनाकर जर्मनी को हमले बनाने के बजाय बचाव में व्यस्त कर दिया. भारत की यह रणनीति कारगर साबित हुई और जर्मनी के हमलों में कमी आ गई और जो हमले हुए भी उनमें पैनापन नज़र नहीं आया.
जर्मन टीम तेज़ गति की हॉकी खेलने के लिए जानी जाती है. भारत को इसके लिए गेंद को नियंत्रण में रखकर खेल की गति को धीमा करने की ज़रूरत थी. लेकिन जर्मन खिलाड़ियों ने अपनी गति से भारतीय खिलाड़ियों को आपस में पासिंग नहीं करने दी.
इससे जर्मनी पहले क्वार्टर में पूरा दबदबा बनाने में सफल रही. भारतीय खिलाड़ी सही ढंग से आपस में पासिंग तक नहीं कर सके. कई बार जर्मन खिलाड़ी उनसे गेंद छीनकर हमले बनाकर अपना दबदबा बनाते रहे.
इस क्वार्टर के खेल को देखकर लग नहीं रहा था कि भारत की हॉकी पदक से दूरी ख़त्म भी हो पाएगी. लेकिन भारतीय खिलाड़ियों के बुलंद इरादों ने मैच की तस्वीर ही नहीं बदली बल्कि देशवासियों को जीत की भावनाओं में बहा दिया. (bbc.com)
-प्रदीप कुमार
ओलंपिक खेलों में 41 साल के लंबे इतिहास के बाद भारतीय टीम ने कामयाबी हासिल की है. हॉकी जैसे तेज़ खेल की दुनिया में 41 साल का मतलब खिलाड़ियों की कई पीढ़ियों का निकल जाना है.
इन 41 सालों में भारत के मोहम्मद शाहिद, परगट सिंह, धनराज पिल्लई, दिलीप तिर्की, वीरेन रस्किन्हा जैसे खिलाड़ी चमके ज़रूर, लेकिन अपनी चमक से वे वो इतिहास नहीं रच पाए जो इतिहास पी. श्रीजेश और अमित रोहिदास की जोड़ी ने टोक्यो में रच दिया.
पहले तो सारी उम्मीदों और आकलनों को धता बताते हुए भारतीय टीम सेमी फ़ाइनल तक पहुंची और वर्ल्ड की नंबर एक खिलाड़ी बेल्जियम से हारने के बाद जर्मनी की कहीं मज़बूत टीम को रोमांच और रफ़्तार भरे खेल में पछाड़कर ओलंपिक में पदक के सूनेपन को ख़त्म कर दिया.
इस पूरी कामयाबी में भारतीय गोलकीपर पी. श्रीजेश वाक़ई में भारतीय हॉकी टीम के लिए 'दीवार' साबित हुए. उनकी भूमिका का अंदाज़ा जर्मनी के ख़िलाफ़ मुक़ाबले में लगाने से पहले ज़रा इन पलों पर नज़र डालिए - मैच के दसवें मिनट में जर्मन मिडफ़ील्डर मैट्स ग्रैमबाक के शॉट को श्रीजेश ने रोका. इसके बाद 20वें मिनट में एक बार पी. श्रीजेश ने अगर जर्मन फ़ॉरवर्ड फ़्लोरियन फ़ूक के शॉट्स को बेहतरीन अंदाज़ में डायवर्ट ना किया होता तो यह शर्तिया गोल होता.
तीसरे क्वार्टर में वैसे तो भारतीय खिलाड़ियों का दबदबा था, लेकिन 45वें मिनट में श्रीजेश ने बचाव कर भारत की बढ़त को 5-3 से बरक़रार रखा.
लेकिन श्रीजेश किन मज़बूत इरादों के साथ इस मुक़ाबले में उतरे थे इसकी झलक चौथे क्वार्टर के अंतिम छह मिनटों में देखने को मिली जब उन्होंने दो पेनल्टी कॉर्नर को बेकार कर दिया. मैच के आख़िरी लम्हों वाले पेनल्टी कॉर्नर को जैसे ही उन्होंने रोका वैसे ही भारत ने इतिहास बना दिया था.
जर्मनी के लुकास विंडफ़ेडर को वैसे भी दुनिया के सबसे बेहतरीन ड्रैग फ़्लिकरों में गिना जाता है. वैसे आधुनिक हॉकी में कोई भी ड्रैग फ़्लिकर जब झन्नाटेदार शॉट्स लगाता है तो वह 150-160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से आती है. इस स्पीड का अंदाज़ा लगाइए. गेंद पलक झपकते ही गोलपोस्ट तक पहुंचती है. ऐसे समय में गोलकीपर का अनुमान या ध्यान, कुछ भी भटका तो गोल.
लेकिन दबाव के आख़िरी छह मिनटों में ना तो श्रीजेश का अनुमान ग़लत साबित हुआ और ना ही ध्यान भटका.
श्रीजेश की इस काबिलियत के बारे में भारत के पूर्व गोलकीपर पी सुबैया ने बताया, "दरअसल इस पूरे मैच में श्रीजेश एक चैम्पियन खिलाड़ी के तौर पर उभरे. उन्होंने जिन पलों में गोल बचाए वो निर्णायक थे."
दरअसल श्रीजेश दूसरे गोलकीपरों की तरह कई मौकों पर चूके भी और इस मैच में वह देखने को भी मिला. यही वजह है कि जर्मनी की टीम चार गोल करने में कामयाब रही, लेकिन दबाव के क्षणों में चट्टान की तरह डटे रहने का माद्दा उनमें है. इतना ही नहीं जब लगता है कि टीम की लुटिया अब डूबने वाली है तब जैसे वो सामने आकर कहते हैं कि 'मैं हूं ना.'
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पी. सुबैया कहते हैं, "ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ सात गोल खाने वाले मैच को अगर आप अपवाद मानें तो श्रीजेश ने पूरे टूर्नामेंट में उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है. उन्होंने कई बेहतरीन बचाव किए जिसकी बदौलत ही टीम 41 साल बाद इतिहास रच सकी है."
जिस रोमांचक मुक़ाबले में नौ गोल हुए हों वहां एक गोलकीपर का कम से कम चार गोल के बचाव का अंतर ही वह पहलू है जिसके दम पर कोई टीम 41 साल बाद इतिहास रचने में कामयाब होती है. टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारत के हर मुक़ाबले में कम से कम दो-तीन मौके ऐसे रहे हैं जहां पी. श्रीजेश ने शानदार बचाव किया.
वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ दुग्गल टोक्यो ओलंपिक में श्रीजेश के योगदान के बारे में बताते हैं, "कई बार ऐसा मौका आया जब विपक्षी टीम ने दो-दो या तीन भी, पेनल्टी कॉर्नर बैक टू बैक हासिल किए. इस वक्त दबाव काफ़ी ज़्यादा हो जाता है, लेकिन श्रीजेश ने उन पलों में भी निराश नहीं किया."
आज के युवा और तेज़ तर्रार हॉकी के दौर में पी श्रीजेश 35 साल के हैं, लेकिन 41 साल बाद ओलंपिक मेडल लाने का जज़्बा ऐसा है कि इतिहास रचने के बाद वे गोलपोस्ट पर उछलकर चढ़ बैठते हैं.
दरअसल हॉकी की कोई टीम बेहतरीन तभी साबित होती है जब उसके पास अनुभवी गोलकीपर हो. अनुभव हासिल करने में वक्त तो लगता ही है.
भारत के पूर्व गोलकीपर और कोच रहे पी सुबैया बताते हैं, "कम से कम दस साल बाद ऐसी स्थिति आती है जब किसी गोलकीपर के प्रदर्शन में निरंतरता आती है. इस लिहाज़ से देखें तो श्रीजेश अपने सबसे बेहतरीन दौर में हैं. जर्मनी का गोलकीपर युवा था, वह बड़े मैच का दबाव नहीं झेल सका और भारत ने मैच पलट दिया."
सौरभ दुग्गल कहते हैं, "श्रीजेश का अनुभव ही भारतीय टीम के काम आया और श्रीजेश ने भी अपने अनुभव का पूरा फ़ायदा उठाया. वो आख़िरी तक बिखरे नहीं."
यही वजह है कि कामयाबी हासिल करने के बाद पी श्रीजेश की हंसी थमने का नाम नहीं ले रही थी. दरअसल उनकी यह हंसी बीते 15 साल के उनके उतार-चढ़ाव की ही नहीं है बल्कि भारतीय हॉकी के सुनहरे इतिहास में ये लंबे समय तक याद की जाएगी.
इस हंसी के पीछे 41 साल से पदकों के सूनेपन को ख़त्म करने का गर्व तो झलक ही रहा था. साथ में अपनी एक लड़ाई को मंज़िल तक पहुंचा देने का भाव भी नज़र आ रहा था.
हॉकी प्रेमियों को याद ही होगा कि 2017 में सुल्तान अज़लान शाह हॉकी के दौरान पी श्रीजेश एक ऑस्ट्रेलिया खिलाड़ी से टकरा गए थे, उनका घुटना ज़ख़्मी हो गया था.
तब टीम के डच कोच रॉलैंड ऑल्टमैन थे. उन्होंने जब श्रीजेश को घुटने के गंभीर रूप से चोटिल होने की जानकारी दी तो श्रीजेश ने उनसे कहा था, 'आर यू जोकिंग.'
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लेकिन यह मज़ाक़ नहीं था, इस चोट के चलते आठ महीने तक वे खेल के मैदान से दूर रहे. इसके बारे में श्रीजेश मीडिया को कई मौकों पर बता चुके हैं कि इसके बाद उन्होंने दूसरी बार चलना सीखा.
तब यह अनुमान लगाया जाने लगा था कि शायद श्रीजेश कभी वापसी नहीं कर पाएंगे, लेकिन ना केवल वो वापस लौटे बल्कि दुनिया के 'सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर' की जगह तक पहुंच गए.
श्रीजेश ने 15 साल पहले दक्षिण एशियाई खेलों से भारतीय सीनियर टीम के साथ अपना सफ़र शुरू किया था.
केरल के इराकुलम से निकले श्रीजेश बचपन में एथलीट बनना चाहते थे. स्प्रिंट और लॉन्ग जंप में उनकी दिलचस्पी थी, लेकिन जीवी राजा स्पोर्ट्स स्कूल के उनके शुरुआती प्रशिक्षकों ने उन्हें हॉकी की तरफ़ प्रेरित किया.
शुरुआती दिनों में वे एक औसत गोलकीपर ही साबित हो रहे थे, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता में कहीं कोई कमी नहीं दिख रही थी.
करियर शुरू होने के पांच साल बाद एशियन चैम्पियंस ट्रॉफी के फ़ाइनल में उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक नहीं दो-दो पेनल्टी स्ट्रोक का बचाव करके दिखाया था. तब से उन्हें नेशनल हीरो के तौर पर देखा जाने लगा.
2013 में भारत को एशिया कप में जीत दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही. उसके बाद 2014 की चैम्पियंस ट्रॉफ़ी में टीम भले चौथे स्थान पर रही, लेकिन श्रीजेश बेस्ट गोलकीपर आंके गए.
2016 की चैम्पियंस ट्रॉफी और 2016 के रियो ओलंपिक में भी पी श्रीजेश ने अपने खेल से लोगों को प्रभावित किया. 2016 की चैम्पियंस ट्रॉफ़ी के दौरान भारतीय टीम को सिल्वर मेडल मिला था और उस टीम की कप्तानी भी श्रीजेश ही कर रहे थे.
हालांकि बाद में टीम का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहने के चलते कप्तानी, टीम के युवा स्टार मनप्रीत सिंह को सौंपी गई. लेकिन श्रीजेश ने इसे कोई इगो का सवाल नहीं बनाया. भारत के कोच रह चुके हरेंद्र सिंह ने एक चैनल पर ओलंपिक मेडल की कायमाबी पर कहा, 'श्रीजेश निस्संदेह मौजूदा समय में दुनिया के सबसे बेहतरीन गोलकीपर हैं. '
उन्होंने कहा कि किसी भी गोलकीपर को एडजस्ट होने में टाइम लगता है और श्रीजेश को भी करियर के शुरुआती दिनों में संघर्ष करना पड़ा. लेकिन वे संघर्षों से निखर कर सामने आए हैं और हर मुश्किल पल में उन्होंने ख़ुद को दीवार साबित किया है.
चौंकिए नहीं, टीम के दूसरे गोलकीपर अमित रोहिदास रहे जो कि एक डिफ़ेंडर हैं.
28 साल के अमित रोहिदास के शानदार खेल की तारीफ़ करते हुए भारत के पूर्व गोलकीपर पी. सुबैया ने कहा, "भारत के लिए दूसरे गोलकीपर की भूमिका निभाई अमित रोहिदास ने. उन्होंने एक बेहतरीन डिफ़ेंडर के तौर पर आधे से ज़्यादा मौकों पर टीम के लिए गोल बचाने का काम किया."
अमित रोहिदास ने सेमी फ़ाइनल में बेल्जियम के 14 पेनल्टी कॉर्नर में से सात का बचाव अपने शरीर पर गेंदें झेलकर किया था. कांस्य पदक के मुक़ाबले में उनके अलावा उनके सब्स्टीट्यूट सुमित कुमार ने भी यही भूमिका अदा की.
वैसे पूरे टूर्नामेंट में अमित रोहिदास का खेल सबसे बेहतरीन रहा. पी सुबैया कहते हैं, "टोक्यो ओलंपिक में भारत की कायमाबी की असली हीरो श्रीजेश और रोहिदास की जोड़ी है. दोनों ने एक-दूसरे को ना केवल सपोर्ट किया है बल्कि एक-दूसरे का उत्साह भी बढ़ाए रखा."
अमित रोहिदास की सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि पेनल्टी कॉर्नर के दौरान वे बड़ी तेज़ी से ड्रैग फ़्लिकर की ओर भागते हैं. उनकी इस वजह से ड्रैग फ़्लिकर को अपनी रणनीति तक बदलनी पड़ी.
वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ दुग्गल बताते हैं, "मैच ख़त्म होने से छह मिनट पहले उन्होंने इसी तरह से ड्रैग फ़्लिकर को छकाया. इस मैच में कम से कम दो प्रत्यक्ष और दो मौकों पर अप्रत्यक्ष तौर पर गोल बचाया."
जर्मनी जैसी टीम दर्जन भर पेनल्टी कॉर्नर हासिल करके भी मैच नहीं जीत सकी तो इसमें अमित रोहिदास का अहम योगदान रहा.
हॉकी की नर्सरी से निकले हैं रोहिदास
अमित रोहिदास ओडिशा के पहले ऐसे ओलंपियन हैं जो जनजातीय समुदाय से नहीं हैं. हालांकि अपने राज्य की ओर से ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले छठे पुरुष और कुल मिलाकर दसवें खिलाड़ी हैं.
भारतीय हॉकी की नर्सरी माने जाने वाले सुंदरगढ़ के सुनामारा गांव में जन्मे अमित रोहिदास बचपन से अपने ही गांव से निकले मशहूर डिफ़ेंडर दिलीप तिर्की को आदर्श मानते रहे हैं.
अपने करियर के शुरुआती दिनों में वे फ़ॉरवर्ड खिलाड़ी के तौर पर खेलते थे, लेकिन राउरकेला के स्पोर्ट्स हॉस्टल में उनके कोच बिजय लकड़ा ने उन्हें डिफ़ेंडर के तौर पर खेलने की सलाह दी. दो साल के अंदर ही वे राज्य टीम का हिस्सा बन गए.
2013 में उन्हें नेशनल टीम में जगह मिली, लेकिन अगले तीन साल तक वे टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए. वे अपने खेल को सुधारते रहे और 2017 में उन्होंने वापसी की, जिसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
सौरभ दुग्गल अमित रोहिदास के बारे में कहते हैं, "अमित रोहिदास जिस पॉजिशन पर खेलते हैं, वहां खेलना आसान नहीं होता है. कई बार चोट लगने की संभावना होती है, लेकिन मौजूदा दौर में आप कह सकते हैं कि वे सबसे बेहतरीन डिफ़ेंडर हैं."
ओलंपिक में हिस्सा लेने से पहले अमित रोहिदास ने कहा था कि 12 साल की मेहनत के बाद ओलंपिक टीम में शामिल होने का मौका मिला है, ये मेरे सबसे बड़े सपने के पूरा होने जैसा है.
इस टूर्नामेंट में अपना 100 इंटरनेशनल मैच पूरा करने वाले रोहिदास को शायद ही अंदाज़ा रहा होगा कि उनका सपना इस ख़ूबसूरत मोड़ पर जाकर पूरा होगा. (bbc.com)