खेल
टोक्यो, 3 अगस्त| भारतीय पुरुष हॉकी टीम के पास 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद पहली बार ओलंपिक फाइनल खेलने का मौका था लेकिन उसने बेल्जियम के हाथों सेमीफाइनल मैच 2-5 से गंवाते हुए यह मौका भी गंवा दिया। अब भारतीय टीम कांस्य जीतने का प्रयास करेगी, जो उसने अंतिम बार 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में जीता था। भारत का कांस्य पदक के लिए जर्मनी से मुकाबला होगा।
ओई हॉकी स्टेडियम नॉर्थ पिच पर खेले गए इस मैच में एक समय भारत 2-1 से आगे था लेकिन एलेक्सजेंडर हेंडरिक्स (19वें, 49वें, 53वें) की शानदार हैट्रिक के दम पर मौजूदा वल्र्ड चैम्पियन बेल्जियम ने भारत को एकतरफा हार को मजबूर कर दिया।
बेल्जियम के खिलाफ मिली हार के बाद भारत का सोना जीतने का सपना भले ही टूट गया लेकिन जर्मनी के खिलाफ वह तीसरे स्थान पर रहकर देश के लिए कांस्य हासिल करना चाहेगी।
जर्मनी को एक अन्य सेमीफाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-3 से हार का सामना करना पड़ा। स्वर्ण पदक मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया का सामना अब बेल्जियम से होगा।
ऑस्ट्रेलिया ने ओलंपिक में सिर्फ एक बार स्वर्ण पदक जीता है। उसे 2004 एथेंस ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिला था जबकि बेल्जियम को 2016 रियो ओलंपिक में अर्जेटीना ने 2-4 से हराया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 3 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु का मंगलवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। हवाई अड्डे पर सैकड़ों की संख्या में प्रशंसक इकट्ठा हुए और सिंधु का ढोल बाजों के साथ स्वागत किया।
सिंधु ने टोक्यो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। वह पहली भारतीय महिला बनीं जिन्होंने ओलंपिक में भारत के लिए दो बार पदक जीते हैं।
आंध्र प्रदेश सरकार ने सिंधु को 30 लाख रूपये की ईनामी राशि देने की घोषणा की है। सिंधु ने इससे पहले 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था।
सिंधु ने यहां पहुंचने पर कहा, "मैं बहुत खुश और उत्साहित हूं। कई लोगों ने मुझे बधाई दी। मैं बैडमिंटन संघ और सभी लोगों का प्यार और समर्थन देने के लिए धन्यवाद देती हूं।" (आईएएनएस)
टोक्यो, 3 अगस्त | भारतीय महिला हॉकी टीम पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंचकर पहले ही इतिहास रच चुकी है और अब उसका सामना बुधवार को अर्जेटीना से होना है, जहां उसकी नजरें फाइनल में पहुंचने पर होगी। क्वार्टर फाइनल में विश्व की नंबर-2 टीम ऑस्ट्रेलिया को हराने के बाद भारतीय टीम का मनोबल अर्जेटीना के खिलाफ बढ़ा है। उन्होंने उम्मीद से ज्यादा प्रदर्शन किया है और उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और शीर्ष टीमों के खिलाफ उसे खेलने का अनुभव हासिल हुआ है। हालांकि, वह ओलंपिक खेलों के फाइनल में जाने के इस मौके को गंवाना नहीं चाहेगी।
ओलंपिक शुरू होने से पहले विश्व रैंकिंग में नौंवें स्थान पर रही भारतीय महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर नया मानक तय किया है।
भारतीय डिफेंडर और गोलकीपर सविता पुनिया ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया था और उनपर अर्जेटीना के विरूद्ध इस प्रदर्शन को दोहराने का जिम्मा रहेगा। हालांकि, अर्जेटीना की टीम ऑस्ट्रेलिया से काफी अलग है। वह काफी फिट टीम है।
अर्जेटीना के पास अगुसटीना गोरजेलानी के रूप में शॉट कॉर्नर विशेषज्ञ मौजूद हैं जबकि फॉरवर्ड अगुसटीना अल्बर्टारिओ ने दो मैदानी गोल किए हैं।
भारतीय टीम को अर्जेटीना की टीम का कुछ हद तक आईडिया है। उसने इस साल जनवरी में इनके खिलाफ मुकाबला खेला था। हालांकि, वो दोस्ताना मैच था और खिलाड़ी वहां ओलंपिक के अनुरुप गंभीर नहीं थे।
कप्तान रानी रामपाल के नेतृत्व वाली महिला टीम को ग्रुप चरण में विश्व की नंबर-1 टीम नीदरलैंड के खिलाफ 1-5 से, जर्मनी के खिलाफ 0-2 से और ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ 1-4 से हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि, उसने आयरलैंड के खिलाफ 1-0 से जीत दर्ज की और फिर दक्षिण अफ्रीका को 4-3 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जाने की उम्मीद बरकरार रखी। फिर ग्रेट ब्रिटेन ने आयरलैंड को हराया और भारतीय टीम क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई कर गई।
अर्जेटीना के खिलाफ भारतीय टीम को अधिक आक्रामक होने और मौके भुनाने के साथ ही बेहतर तरीके से डिफेंड करने की जरूरत है।
भारतीय टीम के पास खोने को कुछ नहीं है और उसे इस मैच में खुलकर खेलने की जरूरत है।(आईएएनएस)
नॉटिंघम, 3 अगस्त | भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली ने मंगलवार को कहा है कि पिछले दौरों के तुलना में इस बार इंग्लैंड दौरे के लिए टीम की तैयारी बेहतर है। कोहली ने कहा कि विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले के बाद पांच मैचों की टेस्ट सीरीज से पहले डेढ़ महीने से अधिक का फासला था जिससे इंग्लैंड में बदलते मौसम में टीम ढल गई।
कोहली ने इंग्लैंड के खिलाफ मैच की पूर्व संध्या पर कहा, "हमने अतीत के मुकाबले इस बार बेहतर तैयारी की है। ब्रेक मिलने से स्थिति ने हमें मौसम में ढलने का समय दिया क्योंकि यहां जल्द ही मौसम बदल जाता है।"(आईएएनएस)
हॉकी: पुरुष हॉकी के दूसरे सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने जर्मनी को 3-1 से हरा दिया है. पहले सेमीफाइनल में भारतीय टीम को बेल्जियम ने 5-2 से मात दी थी. अब कांस्य पदक के लिए भारत का मुकाबला जर्मनी से होगा.
राज्य स्तरीय ऑनलाइन एमेच्योर शतरंज स्पर्धा का समापन
रायपुर , 3 अगस्त। छत्तीसगढ़ प्रदेश शतरंज संघ द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय ऑनलाइन बिलो 1700 शतरंज स्पर्धा का समापन हुआ । इस अवसर पर महासमुंद जिला शतरंज संघ के अध्यक्ष डॉ डी एन साहू बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कोरबा जिला शतरंज संघ के अध्यक्ष दिनेश लांबा ने की।
जिला शतरंज संघ दुर्ग के अध्यक्ष ईश्वर सिंह राजपूत ने जानकारी देते हुए बताया की मुख्य अतिथि श्री साहू ने खेल के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि स्वस्थ जीवन के लिए खेलकूद जरूरी है । खेलकूद हमारे अंदर उर्जा ,चुस्ती व स्फूर्ति लाता है । इसलिये इसे दैनिक दिनचर्या में शामिल रखे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दिनेश लांबा ने खिलाडिय़ों को संबोधित करते हुए कहा कि खिलाड़ी रोजाना शतरंज अभ्यास के लिए 5 से 7 घंटे का समय निकाले । खिलाडिय़ों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए हम कृत संकल्पित है। इसके लिए हम बड़े-बड़े आयोजनों के साथ कोचिंग केम्प की व्यवस्था भी करेंगे ।
कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन आयोजन सचिव हेमन्त खुटे ने किया । प्रतियोगिता को सफल बनाने में अंतराष्ट्रीय निर्णायक अलंकार भिवगड़े, फीडे आर्बिटर रवि कुमार,फीडे आर्बिटर रोहित यादव,नेशनल आर्बिटर अनीश अंसारी ,टेक्नीशियन आशुतोष साहू,जूम आर्बिटर मयंक,राकी देवांगन व आयोजन समिति के सरोज वैष्णव का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
स्पर्धा के परिणाम इस प्रकार है : ओपन केटेगरी में-प्रभमन सिंह मल्होत्रा कोरबा ( 4 अंक), गौतम केसरी अम्बिकापुर( 4 अंक), 3 निश्चय तिवारी कोरबा (4 अंक), विश्वजीत सिंह दुर्ग (3 अंक), अर्नव ड्रोलिया रायपुर (3 अंक), शुभम बसोने रायपुर (3 अंक), ईशान सैनी दुर्ग(3 अंक), प्रांजल बिसवाल रायगढ़ (3 अंक), अर्पित सिंह रायपुर (2.5अंक), अलंकृत सिंह रायपुर(2.5 अंक)। वूमेन केटेगरी में : यशस्वी उपाध्याय रायपुर (3 अंक), सौम्या अग्रवाल रायपुर (2 अंक), जसमन कौर कोरबा( 2 अंक), परी तिवारी कोरबा (1 अंक), तनीषा ड्रोलिया रायपुर( 1 अंक), अनुष्का जैन रायपुर( 1 अंक)।
-प्रदीप कुमार
भारत और बेल्जियम के बीच हॉकी का सेमी फ़ाइनल मुक़ाबले में पिछड़ने के बाद भारत की शुरुआत ठीक रही थी और आधे समय तक दोनों टीमें बराबरी पर थीं.
बावजूद इसके बाद भारत ये मैच 2-5 के बड़े अंतर से गंवा बैठा. इस हार के लिए बेल्जियम का इकलौता शख़्स ज़िम्मेदार रहा जिसका नाम है एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स.
हेंड्रिक्स ने इस मैच में पेनल्टी स्ट्रोक्स को गोल में तब्दील करते हुए हैट-ट्रिक जमाई.
हेंड्रिक्स किस तबीयत के खिलाड़ी हैं, इसका अंदाज़ा इसी ओलंपिक में रविवार को भी दिखा था जब वे क्वॉर्टर फ़ाइनल में स्पेन के ख़िलाफ़ खेलने उतरे थे. बेल्जियम ने ये मुक़ाबला 3-1 से जीता और इसमें दो गोल एलेक्ज़ेडर ने किए थे.
लेकिन ये पूरी कहानी नहीं है. कहानी ये है कि क्वॉर्टर फ़ाइनल मुक़ाबले से ठीक दो दिन पहले ग्रेट ब्रिटेन के साथ मुक़ाबले में एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स चोटिल हो गए थे. ब्रिटिश खिलाड़ी की स्टिक से उनके माथे पर चोट लगी थी, इस चोट के चलते उनके सिर से खून की धार निकल आई थी.
डॉक्टरों को उन्हें ठीक करने के लिए छह टांके लगाने पड़े थे, तीन बाहर से और तीन अंदर की तरफ़. अगले दिन शनिवार को उन्होंने अपना एमआरआई कराया, जिससे पता चला कि कोई अंदरूनी चोट नहीं है.
टीम के प्रमुख कोच शेन मेकलियॉड को चिंता ज़रूर थी, लेकिन हेंड्रिक्स ने पांच छह रेडियोलॉजिस्ट से क्लीयरेंस हासिल करके कोच ही नहीं अपनी टीम को भी चिंताओं से मुक्त रखा.
अगर इससे भी आप उनके खेल के प्रति जज़्बे को नहीं माप पा रहे हों तो टोक्यो ओलंपिक में उनका स्कोर कार्ड देख लीजिए.
सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले तक वे सात मुक़ाबलों में 14 गोल कर चुके हैं, टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा गोल उनके स्टिक से निकले हैं.
वरिष्ठ खेल पत्रकार सौरभ दुग्गल हेंड्रिक्स के इस प्रदर्शन पर बताते हैं, "अगर कोई खिलाड़ी ओलंपिक जैसे विश्वस्तरीय टूर्नामेंट में लगातार स्कोर कर रहा है तो आप ये तो यक़ीन मानिए कि वो अपने फ़न में सर्वश्रेष्ठ है."
रिज़र्व खिलाड़ी से स्टार खिलाड़ी तक का सफ़र
दरअसल, पांच साल पहले रियो ओलंपिक के दौरान बेल्जियम का प्रदर्शन शानदार रहा था. टीम गोल्ड मेडल नहीं जीत पाई थी, लेकिन अर्जेंटीना के हाथों फ़ाइनल हारने तक बेल्जियम का प्रदर्शन लाजवाब था और इस बेमिसाल प्रदर्शन में एलेक्जेंडर हेंड्रिक्स का कोई योगदान नहीं था क्योंकि वे टीम के रिर्ज़व खिलाड़ी थे और पूरे टूर्नामेंट के दौरान उन्हें बेंच पर बैठना पड़ा था.
उन्हें अपनी टीम के प्रदर्शन पर गर्व तो हो रहा था, लेकिन उन्होंने उस वक्त तय कर लिया था कि अपने सपनों को साकार करने के लिए वे और ज़्यादा मेहनत करेंगे ताकि टीम प्रबंधन उन्हें रिज़र्व खिलाड़ी ना बना पाए.
जिन लोगों को 2018 में भुवनेश्वर में खेले गए वर्ल्ड चैम्पियनशिप की याद होगी, उन्हें एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स ज़रूर याद होंगे. हेंड्रिक्स उस टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे और उनके सात गोलों की बदौलत ही बेल्जियम की टीम वर्ल्ड चैम्पियन बनने में कामयाब हुई थी.
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सौरभ दुग्गल बताते हैं, "देखिए हेंड्रिक्स की कामयाबी में उनका अपना कौशल तो है ही साथ में उनकी टीम का भी योगदान है, टीम के बाक़ी खिलाड़ी पेनल्टी कॉर्नर हासिल करके उनके लिए मौका बनाते हैं और उनकी ख़ासियत ये है कि वे मौके को भुना लेते हैं."
आधुनिक हॉकी की तेज़ रफ़्तार और बड़े टूर्नामेंटों का दबाव इतना ज़्यादा होता है कि मौके को भुना पाना इतना आसान भी नहीं होता, लेकिन हेंड्रिक्स इस काम को बखूबी निभा रहे हैं कि क्योंकि महज़ पांच साल की उम्र से ही उन्होंने हॉकी को अपना लिया था.
संयोग ये था कि उनके माता-पिता जहां रह रहे थे, वहां से दो गली की दूरी पर ही एक हॉकी क्लब था, जहां एलेक्ज़ेंडर पांच साल की उम्र में पहुंच गए और 14 साल की उम्र तक उनका नाम बेल्जियम की नेशनल हॉकी सर्किट में फैलने लगा था.
लेकिन उन्हें रातों रात कामयाबी नहीं मिली, बल्कि सीढ़ी दर सीढ़ी उन्होंने ख़ुद को साबित किया. पहले अंडर 16 टीम में आए, फिर अंडर 18 और उसके बाद अंडर 21 की टीम में उन्होंने ख़ुद को निखारा.
इन सबके बाद 2010 में सिंगापुर में खेले गए यूथ ओलंपिक खेलों में बेल्जियम को कांस्य पदक दिलाने में उन्होंने टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा 11 गोल दागे थे. 2012 में महज़ 18 साल की उम्र में वे बेल्जियम की नेशनल टीम में शामिल हो गए. अगले साल उन्हें बेल्जियम का सबसे उभरता खिलाड़ी चुना गया.
बावजूद इसके 2016 के रियो ओलंपिक में उन्हें बेंच पर बैठना पड़ा. सौरभ दुग्गल बताते हैं, "पिछले कुछ सालों में बेल्जियम की हॉकी में इतना सुधार हुआ है कि हेंड्रिक्स जैसी प्रतिभाओं को भी मौका हासिल करने के लिए इंतज़ार करना पड़ा है."
मौजूदा समय में एलेक्ज़ेंडर हेंड्रिक्स की गिनती दुनिया के सबसे ख़तरनाक ड्रैग फ़्लिकरों में तो होती है, पर विपक्षी टीमों पर उनका ख़ौफ़ उस तरह का नहीं दिखता जैसा पाकिस्तान के सोहेल अब्बास, ब्रिटेन के कैलम जाइल्स, नीदरलैंड्स के टेएके टेकेमा, ऑस्ट्रेलिया के ट्रॉय एल्डर या फिर भारत के संदीप सिंह का दिखता रहा था.
इस बारे में सौरभ दुग्गल कहते हैं, "देखिए हैंड्रिक्स की ब्रैंडिंग उस तरह से नहीं हो पाई हो, लेकिन वे इन सबसे कम भी नहीं हैं. ब्रैंडिंग नहीं होने की एक वजह यह है कि हेंड्रिक्स का कर्न्वजन रेट औसत जैसा ही है, बहुत शानदार नहीं है. लेकिन उनकी ख़ासियत ये है कि वे अपनी रिस्ट का मूवमेंट भी प्रभावी तरीके से करते हैं."
वैसे आपको ये जानकर और भी अचरज हो सकता है कि 27 साल के हेंड्रिक्स काफ़ी पढ़े-लिखे हॉकी खिलाड़ी हैं. एंटवर्प यूनिवर्सिटी से ऑनर्स ग्रेजुएट होने के बाद वो एप्लाइड इकॉनोमिक साइंसेज़ में मास्टर्स डिग्री हासिल कर चुके हैं. (bbc.com)
टोक्यो, 3 अगस्त | भारतीय हॉकी टीम के पास 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद पहली बार ओलंपिक फाइनल खेलने और गोल्ड मेडल जीतने का मौका था लेकिन उसने बेल्जियम के हाथों सेमीफाइनल मैच 2-5 से गंवाते हुए ये मौके गंवा दिए। अब भारतीय टीम कांस्य जीतने का प्रयास करेगी, जो उसने अंतिम बार 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में जीता था। ओई हॉकी स्टेडियम नॉर्थ पिच पर खेले गए इस मैच में एक समय भारत 2-1 से आगे था लेकिन दुनिया के सबसे खतरनाक ड्रैक फ्लिकरों में से एक एलेक्सजेंडर हेंडरिक्स (19वें, 49वें, 53वें) की शानदार हैट्रिक के दम पर मौजूदा वर्ल्ड चैम्पियन बेल्जियम ने भारत को एकतरफा हार को मजबूर कर दिया।
बेल्जियम की टीम लगातार दूसरी बार फाइनल में पहुंची है। वह हालांकि अब तक स्वर्ण नहीं जीत सकी है। साल 2016 के रियो ओलंपिक खेलों के फाइनल में उसे अर्जेटीना के हाथों 2-4 से हार मिली थी।
साल 1980 में अपने ओलंपिक इतिहास का आठवां स्वर्ण जीतने वाली भारतीय टीम को अब कांस्य के लिए प्रयास करना होगा। भारत का यह मैच किससे होगा, इसका फैसला जर्मनी और आस्ट्रेलिया के बीच होने वाले दूसरे सेमीफाइनल के बाद हो जाएगा। वहीं इस मैच के विजेता से बेल्जियम भिड़ेगा।
बहरहाल, मैच का पहला गोल बेल्जियम की ओर से हुआ। यह गोल लोइक फेनी लुपर्ट ने दूसरे मिनट में हासिल पेनाल्टी कार्नर पर किया। मैच शुरु होने के साथ ही भारत पीछे हो चुका था।
भारतीय टीम दबाव में थी। लेकिन इस दबाव से निकलकर सातवें मिनट में गोल कर हरमनप्रीत सिंह ने मैच में रोमांच ला लिया। हरमनप्रीत ने यह गोल पेनाल्टी कार्नर पर किया। अब स्कोर 1-1 हो चुका था।
इसके बाद कप्तान मंदीप सिंह खुद मोर्चा सम्भाला और नौवें मिनट में एक बेहतरीन फील्ड गोल के जरिए भात को 2-1 से आगे कर दिया।
पहले ही क्वार्टर में पिछड़ने के बाद बेल्जियम ने बराबरी के लिए हमला तेज कर दिया। इस क्रम में उसे 19वें मिनट में सफलता मिली। एलेक्सजेंडर रॉबी हेंडरिक ने पेनाल्टी कार्नर पर गोल कर स्कोर 2-2 कर दिया।
तीसरे क्वार्टर में कोई गोल नहीं हुआ। चौथे क्वार्टर में बेल्जियम ने अचानक ही रफ्तार पकड़ी और 49वें मिनट में हासिल पेनाल्टी कार्नर पर हेंडरिक्स ने गोल कर 3-2 की लीड दिला दी। तीसरे क्वार्टर और चौथे क्वार्टर की शुरुआत तक बेल्जियम ने 7 पेनाल्टी कार्नर हासिल किए।
अंतिम समय में भारत की रक्षापंक्ति में सेंध लग चुकी थी। बेल्जियम को लगातार पेनाल्टी कार्नर मिल रहे थे। इसी क्रम में उसने 53वें मिनट में पेनाल्टी स्ट्रोक हासिल किया, जिस पर गोल कर हेंडरिक्स ने अपनी टीम को 4-2 से आगे कर उसकी जीत पक्की कर दी।
बेल्जियम की टीम इसके बाद भी नहीं रुकी और अंतिम मिनट में एक और गोल करते हुए 5-2 की लीड ले ली। बेल्जियम के लिए यह गोल डोमिनिक डॉहमैन ने 60वें मिनट में किया।
भारत ने म्यूनिख ओलंपिक में पाकिस्तान के हाथों सेमीफाइनल मुकाबला 0-2 से गंवाने के बाद कांस्य पदक के मुकाबल में नीदरलैंडस को 2-1 से हराया था। इसके बाद भारत ने सीधे मास्को में गोल्ड जीता लेकिन बीते 41 साल से भारत की झोली खाली है। अब देखने वाली बात यह है कि इस झोली में कांस्य भी आती है या नहीं। (आईएएनएस)
अमरावती, 3 अगस्त | आंध्र प्रदेश सरकार ने बैडमिंटन सुपरस्टार पी.वी. सिंधु को मौजूदा टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने की उपलब्धि पर पुरस्कृत करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने अधिकारियों को राज्य की खेल नीति के तहत सोमवार देर रात नकद पुरस्कार देने का निर्देश दिया।
इस पॉलिसी में स्वर्ण पदक विजेताओं को 75 लाख रुपये, रजत पदक के लिए 50 लाख रुपये और कांस्य पदक के लिए 30 लाख रुपये का नकद इनाम दिया जाता है।
मुख्यमंत्री ने जापान की राजधानी के लिए रवाना होने से पहले तीन खिलाड़ियों सिंधु, आर सात्विकसाईराज और महिला हॉकी खिलाड़ी रजनी एतिमारपू में से सभी को 5 लाख रुपये का नकद प्रोत्साहन दिया था।
उस दौरान मुख्यमंत्री ने बंदरगाह शहर विशाखापत्तनम में बैडमिंटन अकादमी स्थापित करने के लिए सिंधु को दो एकड़ जमीन आवंटित करने के सरकारी आदेश की प्रति भी दी।
सिंधु आंध्र प्रदेश सरकार की कर्मचारी हैं। 2016 में उनके रियो ओलंपिक के कारनामों के बाद, एपी के पूर्व मुख्यमंत्री नारा चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें डिप्टी कलेक्टर की नौकरी दी।
नकद प्रोत्साहन की बात करें तो, 2016 के ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद मिलने वाले नकद प्रोत्साहन की तुलना में वर्तमान एपी सरकार द्वारा दिए गए 30 लाख रुपये अब कम हो गए हैं।
इसके बाद, तेलंगाना सरकार ने सिंधु को 5 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया, जबकि एपी सरकार ने 3 करोड़ रुपये और एक सरकारी नौकरी भी दी। (आईएएनएस)
जयपुर, 3 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी टीम ने वर्ल्ड चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हरा कर सेमीफाइनल में जगह बना ली है, तब से राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की रहने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता पुनिया के पैतृक गांव जश्न का माहौल है। पुनिया शानदार प्रदर्शन करते हुए विरोधी टीम के नौ शॉट्स को रोकने में कामयाब रही। उसके बाद से गोलकीपर के इस प्रदर्शन को खूब सराहा जा रहा है।
पुनिया के चाचा ओम ्रपकाश पुनिया ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "उनके पिताजी, दादाजी समेत पूरा परिवार इसी गावं में जन्में है। 2019 में जब सविता यहां आई थी तो गावं वालो ने उसे सिल्वर हॉकी से नवाजा था।"
झांसल के सरपंच, ओप प्रकाश पुनिया ने आगे बात करते हुए कहा कि "सविता के पिता यहीं जन्मे और यहीं बड़े हुए हैं। वे 25 साल पहले हरियाणा जा कर बस गए पर सविता को जब भी मौका मिलता है वह यहां जरुर आती हैं और हम सबसे मिलकर हमारा प्यार और आशिर्वाद लेती हैं।"
पुनिया ने ऑस्ट्रेलिया के हर प्रहार को नाकाम करते हुए भारतीय टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी। (आईएएनएस)
टोक्यो, 3 अगस्त| भारत की महिला पहलवान सोनम को मंगलवार को 62 किग्रा महिला फ्रीस्टाइल वर्ग के अपने पहले ही मुकाबले में हार कर टोक्यो ओलंपिक से बाहर हो गईं। माकुहारी मेसे हॉल-ए के मैट बी पर राउंड ऑफ-8 मुकाबले में सोनम का सामना मंगोलिया की बोलोरतुया से हुआ, जिसे बोलोरतुया ने जीता।
अंतिम समय तक स्कोर 2-2 था लेकिन बोलोरतुया को सेकेंड पीरियड में एक साथ हासिल दो अंकों के आधार पर विजेता घोषित किया गया। सोनम ने पहले पीरियड की समाप्ति तक 1-0 की लीड ले रखी थी। दूसरे पीरियड में भी सोनम ने एक अकं हासिल किया और 2-0 की लीड हासिल कर ली।
बोलोरतुया ने हालांकि दूसरे पीरियड में एक साथ दो अंक लेकर बाजी मार ली। हार के बावजूद सोनम के लिए पदक की आस बची थी क्योंकि बोलोरतुया अगर फाइनल में पहुंच जातीं तो सोनम को रेपेचेज खेलने का मौका मिल जाता।
बोलोरतुया हालांकि अपना अगला मुकाबला मात्र 50 सेकेंड में हार गईं। और इसी के साथ सोनम के लिए टोक्यो ओलंपिक का सफर समाप्त हो गया।
रियो ओलंपिक में भारत की साक्षी मलिक अपना क्वार्टर फाइनल मैच हार गईं थीं लेकिन इसके बावजूद उन्हें रेपेचेज खेलने का मौका मिला था। इसका कारण यह था कि क्वार्टर फाइनल में रूस की फाइनलिस्ट वेलेरिया कोब्लोवा से हारने के बाद, उन्होंने रेपेचेज राउंड के लिए क्वालीफाई किया।
रेपेचेज राउंड में उन्होंने अपने पहले मुकाबले में मंगोलिया के पुरेवदोर्जिन ओरखोन को हराया। उन्होंने रेपेचेज मेडल प्लेऑफ में एक चरण में 0-5 से पिछड़ने के बावजूद, किर्गिस्तान के मौजूदा एशियाई चैंपियन ऐसुलु टाइनीबेकोवा पर 8-5 की जीत के बाद कांस्य पदक जीता और ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनीं। (आईएएनएस)
टोक्यो, 3 अगस्त| भारत की महिला भाला फेंक एथलीट अनु रानी ने मंगलवार को अपने प्रदर्शन से निराश किया। वह अपने ग्रुप में सबसे नीचे रहीं। ओलंपिक स्टेडियम में मंगलवार को आयोजित क्वालीफाईंग के लिए अनु को ग्रुप-ए में रखा गया था। इस ग्रुप में 15 और एथलीट थीं।
इन सबके बीच अनु को 14वां स्थान मिला। क्रोएशिया की सारा कोलाक के डिस्क्वालीफाई होने के बाद कुल 14 प्रतिभागी ही बचीं थी।
अनु ने अपने तीन प्रयोसों में 50.35, 53.19 और 54.04 मीटर की दूरी नापी, जो फाइनल के लिए क्वालीफाई करने के लिए पर्याप्त नहीं था।
अनु ने साल 2019 में कतर में आयोजति विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के दौरान 61.12 मीटर दूरी के साथ ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। यह उनका पर्सनल बेस्ट भी है।
इस इवेंट के लिए ऑटोमेटिक क्वालीफाईंग मार्क 65 मीटर था। अनु के ग्रुप से पोलैंड की मारिया एंड्रेजिक ने 65.24 मीटर के साथ इसे हासिल किया। (आईएएनएस)
बीजिंग, 2 अगस्त | 1 अगस्त को टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों की 100 मीटर के फाइनल में चीनी एथलीट सू बिंगथिए 9.98 सेकंड समय के साथ छठे स्थान पर रहे। ध्यान रहें, वह ओलंपिक खेलों के पुरुषों के 100 मीटर फाइनल में प्रवेश करने वाले पहले चीनी खिलाड़ी हैं। और सेमीफाइनल में उन्होंने 9.83 सेकंड से नया एशियाई रिकार्ड बनाया। सू बिंगथिए के प्रदर्शन ने दुनिया को चौंका दिया है। चीनी स्प्रिंटिंग के लीडर के रूप में, 32 वर्षीय सू बिंगथिए चीन को इस फील्ड में आगे ले जाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उनके अमेरिकी कोच रैंडी हंटिंगटन ने कहा कि सू बिंगथिए बहुत आत्म-अनुशासित और बहुत पेशेवर हैं। अधिकांश एथलीटों को उनसे सीखने की जरूरत है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 2 अगस्त (आईएएनएस)| जापान की राजधानी टोक्यो में चल रहे ओलंपिक खेलों में चीन पदक तालिका में शीर्ष पर बना हुआ है। चीन पहले दिन से ही सर्वाधिक पदक जीतने के साथ ही नंबर वन स्थान पर काबिज है। वहीं, भारत की बात करें तो अभी भारत की झोली में केवल 2 पदक ही आये हैं। खैर, भारत की स्वर्ण पदक पाने की उम्मीद अभी भी बनी हुई है। वास्तव में, इस बार का रुझान पिछले ओलंपिक मुकाबलों की तरह ही नजर आ रहा है, जहां चीन पदक तालिका में शीर्ष पांच देशों में शामिल है। टोक्यो में भी अब तक इसका प्रदर्शन ओलंपिक सुपर पावर की तरह रहा है। चीन ने दिखा दिया है कि उसे पदक हासिल करने की जबरदस्त भूख है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत को पदक हासिल करने की भूख कम है?
देखिए एक समय था, जब भारत में खेलकूद को सिर्फ मनोरंजन का हिस्सा माना जाता था, लेकिन आज के दौर में बच्चे सिर्फ पढ़ाई से ही नहीं, बल्कि खेलकूद कर भी दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। आज खेलों की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं। बहुत-से स्कूलों में खेल को जरूरी कर दिया गया है, यानी अगर पढ़ाई के साथ-साथ खेलना भी चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत के लिए स्कूल सबसे अच्छी जगह है। खुद को फिट रखने के लिए खेलकूद एक उत्तम विकल्प भी है।
हालांकि, यह सच है कि खेल और पढ़ाई साथ चलाने के लिए कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। ठीक वैसे ही जैसे चीन में छोटे-छोटे बच्चे करते हैं। चीन के स्कूलों में बच्चे 6 साल की उम्र से ही जिमनास्टिक्स, खेलकूद आदि की ट्रेनिंग लेना शुरू कर देते हैं। अधिकांश चीनी माता-पिता अपने बच्चों को स्पोर्ट्स स्कूल में भेजते हैं, जहां उन्हें सख्त ट्रेनिंग दी जाती है और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जाता।
चीनी माता-पिता को अपने बच्चों के लिए खेल एक सुनहरा करियर ऑपशन लगता है। वहीं, भारत में, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाने और बाद में नौकरी करवाने पर खासा ध्यान देते हैं।
सब जानते हैं कि खेल की दुनिया में चीन ने ऐसा दबदबा कायम किया कि वह ओलंपिक खेलों में सुपरपावर बन गया। उसके लिए खेल का महत्व किसी युद्ध से कम नहीं है। उसकी सफलता के पीछे एक खास मिशन है, जिसके तहत वह लगातार आगे बढ़ता गया और अपनी पदक तालिका को मजबूत बनाता गया।
दरअसल, 1980 के ओलंपिक खेलों के बाद से चीन की खेल प्रणाली काफी हद तक मजबूत हुई, और ओलंपिक खेलों में बहुत अधिक स्वर्ण पदक हासिल करने के बारे में चीन सरकार ने सोचना शुरू किया, और बहुत जल्दी सफलता हासिल करने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी की। चीनी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग वैज्ञानिक और मेडिकल विज्ञान के आधार पर ज्यादा जोर देकर करवाई जाती है, जिससे वो पदक प्राप्त करने में कामयाब होते हैं।
इतना ही नहीं, चीन खेल अकादमियों, टैलेंट स्काउट्स, मनोवैज्ञानिकों, विदेशी कोचों, और नवीनतम प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान पर लाखों डॉलर खर्च करता है। चीन उन खेलों में विकासशील कार्यक्रमों पर विशेष जोर देता है जिनमें बहुत अधिक इवेंट्स होते हैं और बहुत सारे पदक जीतने की संभावना होती हैं, जैसे शूटिंग, जिमनास्टिक, तैराकी, नौकायन, ट्रैक एंड फील्ड आदि।
भारत में स्पोर्ट्स को हर सतह पर मुहिम की तरह आगे बढ़ने की जरूरत है और समाज के सभी वर्गों को इसे प्राथमिकता देनी होगी। भारत में खेल और खिलाड़ियों के स्तर को बेहतर करने के लिए उन्हें ऊंचे स्तर के परीक्षण और रोजगार दिलाना जरूरी है। हालांकि, भारत में धीरे-धीरे बेहतरी आ रही है, लेकिन वो गति वाकई बहुत धीमी है।
लेकिन चीन के 96 प्रतिशत राष्ट्रीय चैंपियन सहित लगभग 3 लाख एथलीटों को चीन के 150 विशेष स्पोर्ट्स कैंप में ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन, चच्यांग फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स स्कूल और अन्य हजारों छोटे-बड़े ट्रेनिंग केंद्र। दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में हैगन स्पोर्ट्स ट्रेनिंग बेस चीन का सबसे बड़ा खेल प्रशिक्षण कैंप है। अतिरिक्त 3,000 स्पोर्ट्स स्कूल टैलेंट की पहचान और उनका पोषण करने का जिम्मा संभालते हैं।
इन स्पोर्ट्स स्कूल में कम उम्र के बच्चे बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं। इस तकलीफ को सहकर ही वे चैंपियन बनने की कला सीखते हैं। तभी तो ओलिंपिक हो या एशियन गेम्स, हर इवेंट्स में गोल्ड जीतने के लिए चीनी खिलाड़ी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। भले ही चीनी एथलेटिक्स अन्य देशों से आगे हों, लेकिन इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इसी कारण लगभग हर खेलों में चीनी खिलाड़ियों की धूम रहती है।
टोक्यो, 2 अगस्त | टोक्यो ओलंपिक के बैडमिंटन महिला एकल वर्ग में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की पीवी सिंधु ने कहा है कि वह इस मैच में अपना सर्वश्रेष्ठ देने तथा अपनी क्षमता के अनुरुप 100 फीसदी प्रदर्शन करने की मानसिकता के साथ उतरी थीं। सिंधु ने रविवार को कांस्य पदक मुकाबले में चीन की ही बिंगजिआओ को सीधे गेमों में हराकर तीसरा स्थान हासिल किया और कांस्य पदक जीता। सिंधु को सेमीफाइनल में चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के हाथों हार झेलनी पड़ी थी।
कांस्य पदक जीतने के साथ ही सिंधु भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनीं जिन्होंने लगातार दो ओलंपिक में पदक जीता है। इससे पहले उन्होंने 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था।
सिंधु ने वर्चुअल प्रेस वार्ता में कहा, "सेमीफाइनल खत्म होने के बाद मैं दुखी थी और मेरी आंखो में आंसू थे। लेकिन मेरे कोच और फीजियो ने कहा कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है और तुम्हारे पास एक और मौका है।"
उन्होंने कहा, "यहां मिश्रित भावना थी क्योंकि मेरे पास एक और मौका था जिससे मुझे खुश होना चाहिए और दुख भी था कि मैं सेमीफाइनल में हार गई। लेकिन पार्क ने मुझे समझाया कि कांस्य पदक और चौथे स्थान में बहुत फर्क है।"
सिंधु ने कहा, "मैंने सोचा कि मुझे पदक की जरूरत है क्योंकि मुझे देश के लिए पदक लाना है। ओलंपिक बड़ी चीज है। मैं इस मानसिकता के साथ उतरी कि मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ देना है और 100 फीसदी के साथ खेलना है।"
उन्होंने साथ ही कि जीतने के बाद मैं सुन हो गई थी और मुझे इस तथ्य को जानने में थोड़ा वक्त लगा कि मैंने क्या हासिल किया है। (आईएएनएस)
एक ट्रांसजेंडर भारोत्तोलक ओलंपिक खेलों में पहली बार भाग ले रही हैं. उनकी इस उपलब्धि को ट्रांस अधिकारों के लिए एक जीत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या यह बाकी महिला खिलाड़ियों के लिए उचित है?
न्यूजीलैंड की रहने वाली लॉरेल हब्बर्ड का जन्म एक पुरुष के रूप में हुआ था. 30 साल की उम्र के बाद उन्होंने अपना लिंग परिवर्तन कराया और महिला बन गईं. उसके बाद उन्होंने ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के मानकों को पूरा करने के बाद भारोत्तोलन में फिर से भाग लेना शुरू किया. आईओसी का कहना है कि वो खेलों में भाग लेने वाली खुले तौर पर ट्रांसजेंडर महिला के रूप में जानी जाने वाली पहली खिलाड़ी हैं.
समिति ने इसे ओलंपिक आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक घटना बताया. समिति के मेडिकल प्रमुख रिचर्ड बजट ने टोक्यो में पत्रकारों को बताया, "लॉरेल हब्बर्ड एक महिला हैं, वो अपने देश के भारोत्तोलन संघ के नियमों के तहत हिस्सा ले रही हैं और हम खेलों के लिए चुने जाने और उनमें हिस्सा लेने के लिए उनके हौसले और संकल्प को सलाम करते हैं."
एक तीखी बहस
हालांकि, खेलों में 87 किलो से ऊपर वजन वाली महिलाओं की श्रेणी में उनके भाग लेने की वजह से खेलों में बायोएथिक्स, मानवाधिकार, विज्ञान, निष्पक्षता और पहचान जैसे पेचीदा मुद्दों पर बहस शुरू हो गई है. उनके समर्थक कह रहे हैं कि उनका भाग लेना समावेश और ट्रांस अधिकारों के लिए एक जीत है.
आलोचकों का कहना है कि दशकों तक एक पुरुष के तौर पर रहने की वजह से उनके शरीर में जो विशेषताएं समाई हुई हैं उनकी वजह से दूसरी महिला खिलाड़ियों पर उन्हें एक अनुचित बढ़त है. इस मामले पर बहस काफी तीव्र हो चुकी है और यह कभी कभी सख्त भी हो जाती है.
इंटरनेट पर दोनों पक्ष एक दूसरे पर तंज कसने लगते हैं. इस वजह से न्यूजीलैंड की ओलंपिक समिति को हब्बर्ड को सोशल मीडिया ट्रोलों से बचाने के लिए कई कदम उठाने पड़े हैं. लेकिन आईओसी ने यह माना है कि हब्बर्ड के पास एक "असंगत प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त" है या नहीं इसे लेकर उठने वाले सवाल जायज हैं.
विरोध के स्वर
महिलाओं के खेलों में भाग लेने के कई समर्थकों ने चिंता जताई है कि ट्रांसजेंडर प्रतियोगियों को खेलों में शामिल करना अनुचित है और इससे महिलाओं के खेलों के दर्जे को ऊंचा उठाने में काफी संघर्ष के बाद को सफलता हासिल हुई है उसे नुकसान पहुंच सकता है.इनमें पथप्रदर्शक समलैंगिक टेनिस स्टार मार्टिना नवरातिलोवा भी शामिल हैं. उनका कहना है, "एक ट्रांसजेंडर महिला जिस तरह से चाहें मैं उन्हें उस तरह से संबोधित कर सकती हूं, लेकिन उनके खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने में मुझे खुशी नहीं होगी. यह न्यायपूर्ण नहीं होगा."
कैटलीन जेनर ने 1976 के ओलंपिक खेलों में पुरुषों के डिकैथलन में स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन 2015 में उन्होंने खुद के महिला होने की घोषणा की. उन्होंने भी इस साल की शुरुआत में कहा था, "यह बिलकुल न्यायपूर्ण नहीं है." इस बात का भी डर है कि हाई-इम्पैक्ट खेलों में ट्रांस महिलाओं को शामिल करने से दूसरे प्रतियोगियों की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है. इसी वजह से वर्ल्ड रग्बी ने पिछले साल ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से बैन कर दिया था.
पुरुषों को शारीरिक फायदे
अपने फैसले के पीछे वर्ल्ड रग्बी ने वैज्ञानिक अध्ययनों का हवाला दिया था जिनमें यह दिखाया गया था कि पुरुष महिलाओं से 30 प्रतिशत ज्यादा मजबूत होते हैं. ओटागो विश्वविद्यालय के फिजियोलॉजिस्ट एलिसन हीथर ने बताया कि पुरुषों को और भी शारीरिक फायदे होते हैं, जैसे लंबे अंग, ज्यादा बड़ी मांसपेशियां, ज्यादा बड़ा दिल और फेंफड़ों में अधिक क्षमता.हालांकि आईओसी के बजट ने कहा कि यह पुरुषों और महिलाओं की तुलना करने जितना सरल नहीं है. उनका कहना है कि संभव है कि महिलाएं जब लिंग बदलने की प्रक्रिया के बीच हों तब उनके प्रदर्शन का स्तर गिर जाए. उन्होंने यह भी कहा कि और ज्यादा शोध की जरूरत है.
उन्होंने कहा, "इस तथ्य के बारे में भी सोचना चाहिए कि अभी तक चोटी पर कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं हुआ है जो खुले तौर पर एक ट्रांसजेंडर महिला हो और मुझे लगता है कि महिलाओं के खेलों को खतरे के बारे में मुमकिन है कि बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है."
आईओसी ने माना कि नया तंत्र इस मुद्दे पर आखिरी मत नहीं होगा. यह अंतरराष्ट्रीय खेल संघों के लिए कड़े नियमों की जगह सिर्फ दिशा निर्देश देगा. समिति के प्रवक्ता क्रिस्चियन क्लोए ने कहा, "हमें जिस की जरूरत है उसे हासिल करने के लिए एक अनुकूल स्तर पर पहुंचना होगा और वो स्तर जहां भी हो, संभव है कुछ लोग उसकी आलोचन करेंगे ही. यह अंतिम समाधान नहीं होगा." (dw.com)
सीके/एए (एएफपी)
टोक्यो, 2 अगस्त | भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मुख्य कोच ग्राहम रीड ने कहा है कि टीम के खिलाड़ियों को विश्व चैंपियन बेल्जियम के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबले में अपनी भावनाओं पर काबू रखने की जरूरत है। रीड ने कहा, "मुझे खिलाड़ियों पर गर्व है। हमने काफी मेहनत की और कई बार आपको क्वार्टर फाइनल में भी फाइनल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। हम इस मैच में भाग्यशाली रहे क्योंकि ग्रेट ब्रिटेन ने हमसे ज्यादा मौके भुनाए लेकिन पीआर श्रीजेश ने बेहतर किया और उन्हें रोका।"
उन्होंने कहा, "कई बार आपको अपनी भावनाओं पर काबू रखने की जरूरत होती है। हमें पिच पर 11 खिलाड़ियों को रखने की जरूरत थी। दिक्कत यह है कि हमने कई बार ब्रिटेन के खिलाफ 10 खिलाड़ियों के साथ खेला है। हम ऐसा बेल्जियम के खिलाफ नहीं कर सकते।"
रीड ने कहा, "ब्रिटेन जैसी टीम के खिलाफ फील्ड गोल करना सुखद रहा। जैसा कि मैंने पहले कहा कि बेल्जिम के खिलाफ पूरे मैच के दौरान 11 खिलाड़ियों को रखना जरूरी है।" (आईएएनएस)
टोक्यो, 2 अगस्त| भारत की महिला हॉकी टीम ने इतिहास रच दिया है। उसने सोमवार को अपने से कहीं अधिक मजबूत तीन बार की ओलंपिक चैम्पियन आस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बना ली है। सबसे खास बात यह है कि महिला टीम पहली बार सेमीफाइनल में पहुंची है। ओई हॉकी स्टेडियम नॉर्थ पिच -2 पर खेले गए इस एतिहासिक मैच में हाकेरूज नाम से मशहूर आस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ मैच का एकमात्र गोल 22वें मिनट में गुरजीत कौर ने किया। यह गोल पेनाल्टी कार्नर पर हुआ।
दुनिया की नौवें नम्बर की भारतीय टीम ने तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए दुनिया की नम्बर-2 आस्ट्रेलिया को हराया और पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची।
भारत अपने तीसरे ओलंपिक में खेल रहा है। मास्को (1980) के 36 साल के बाद उसने रियो ओलंपिक (2016) के लिए क्वालीफाई किया था।
मास्को ओलंपिक में महिला हॉकी टूर्नामेंट 25 जुलाई से शुरू होकर 31 जुलाई तक चला था। इसमें सिर्फ छह टीमों ने हिस्सा लिया था।
जिम्बाब्वे ने पूल चरण के समापन पर पूल के शीर्ष पर स्वर्ण पदक जीता। चेकोस्लोवाकिया और सोवियत संघ ने क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीता।
भारत ने पूल में पांच मैचों में दो जीत हासिल की थी। उसका एक मैच ड्रॉ रहा था जबकि उसे दो मैचों में हार मिली थी। पांच अंकों के साथ भारत अंतिम रूप से चौथे स्थान पर रहा था।
इसके बाद भारत ने 2016 के रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया लेकिन वह 12 टीमों के टूर्नमेंट में अंतिम स्थान पर रही थी। भारत को पूल स्तर पर पांच मैचों में सिर्फ एक ड्रॉ नसीब हुआ था।
टोक्यो ओलंपिक भारतीय हॉकी के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ है। महिला टीम के साथ-साथ पुरुष टीम भी सेमीफाइनल में पहुंच गई है। भारतीय हॉकी के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि दोनों टीमें मेडल राउंड में पहुंची हैं।
पूल स्तर पर लगातार तीन मैच गंवाने के बाद महिलाओं ने जिस तरह से वापसी की और लगातार दो मैच जीतकर अपने लिए नॉकआउट में जाने की जमीन तैयार की। इसके लिए भी हालांकि इनको किस्मत के सहारे की जरूरत थी। ब्रिटेन के हाथों आयरलैंड की हर के साथ यह सहारा मिल गया और इसके बाद उसे आस्ट्रेलिया की मजबूत टीम की बाधा पार करनी थी।
भारतीय टीम के पास खोने के लिए कुछ नहीं था उसे बस दिल खोलकर खेलना था और उसने यही किया। आस्ट्रेलिया के हर हमले को नाकाम कर भारतीय टीम ने 22वें मिनट में सफलता हासिल की और महादुर शेरनियों की तरह लड़ते हुए मजबूत हाकीरूज के खिलाफ इस स्कोर का बचाव किया।
यह मैच भारतीय हॉकी के इतिहास के सबसे बड़े मैचों में से एक है और इसे सदियों तक याद रखा जाएगा। सेमीफाइनल का परिणाम चाहें जो हो, लेकिन भारतीय टीम ने इतिहास रच दिया है। अब वह सेमीफाइलन में भी इसी तरह बिना दबाव के खेले तो उसे पदक जीतने से कोई नहीं रोक सकता। (आईएएनएस)
टोक्यो, 2 अगस्त | ओलंपिक स्टेडियम में आज भारत की कमलप्रीत कौर इतिहास रचने उतरेंगी। डिस्कस थ्रो फाइनल में पहुंचने वाली दूसरी भारतीय बनकर वह पहले ही अपना नाम हिस्ट्रीबुक में दर्ज करा चुकी हैं लेकिन अब उनके सामने खुद को लेजेंड बनाने का वक्त है और यह पदक जीतने के उनके सपने के साथ पूरा हो सकता है। कमलप्रीत ने 31 जुलाई को क्वालीफाईंग में 64 मीटर के आटोमेटिक मार्क को छुआ था। ऐसा करने वाली वह सिर्फ दूसरी एथलीट थीं।
इस साल मार्च में पटियाला में आयोजित फेडरेशन कप के दौरान 65 मीटर का मार्क हासिल करने वाली एकमात्र भारतीय कमलप्रीत के अलावा अमेरिका की वेराले अलामान (66.42) ऑटोमेटिक क्वालीफाईंग मार्क हासिल कर सकी थीं।
क्वालीफाईंग ग्रुप-बी में शामिल कमलप्रीत ने पहले प्रयास में 60.29 मीटर की दूरी नापी थी। इसके बाद दूसरे प्रयास में वह 63.97 तक पहुंच गईं। इस दूरी के साथ भी वह फाइनल के लिए क्वालीफाई करती दिख रही थी लेकिन उनकी कोशिश ऑटोमेटिक क्वालीफाईंग मार्क हासिल करना था और तीसरे प्रयास में वह 64 मीटर के साथ वहां पहुंच ही गईं।
कमलप्रीत से पहले साल 2012 के लंदन ओलंपिक में कृष्णा पूनिया ने फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था लेकिन वह पदक तक नहीं पहुंच सकी थीं।
क्वालीफाईंग में जो स्टैंडिंग रही, उसे अगर कमलप्रीत बरकरार रखती हैं तो वह पदक जीत सकती हैं। एनआईएस पटियाला में आयोजित इंडियन ग्रां प्री-4 में कमलप्रीत ने 66.59 की दूरी नापी थी लेकिन इसे अभी राष्ट्रीय रिकार्ड का दर्जा नहीं मिला है। कमल अगर इस प्रदर्शन को दोहरा सकीं तो न सिर्फ भारत को महान सफलता मिल सकती है बल्कि वह खुद भी भारत के खेल इतिहास में अमर हो सकती हैं।
कमल के मुकाबले को सोनी टेन 2 और सोनी सिक्स एसडी एंड एचडी (अंग्रेजी), सोनी टेन 3 (हिंदी) और सोनी टेन 4 (तमिल और तेलुगु) पर देखा जा सकता है। (आईएएनएस)
टोक्यो, 2 अगस्त| 100 मीटर के बाद अब 200 मीटर में भी भारत की एकमात्र फर्राटा धाविका दुती चंद को निराशा मिली है। दुती का टोक्यो ओलंपिक का सफर अब समाप्त हो गया है। दुती इससे पहले 100 मीटर हीट्स से ही बाहर हो गई थीं और अब सोमवार को ओलंपिक स्टेडियम में आयोजित 200 हीट्स में सीजन बेस्ट समय निकालने के बावजूद भी वह नाकाम रहीं।
दुती को हीट नम्बर-4 में सात खिलाड़ियों के बीच सातवां स्थान मिला। उनके ग्रुप से तीन खिलाड़ी आगे बढ़े जबकि दुती का सफर यहीं समाप्त हो गया।
दुती ने 200 मीटर की दूरी नापने के लिए 23.85 सेकेंड का समय लिया। उनका रिएक्शन टाइम 0.140 रहा, जो सबसे अधिक है। दुती के ग्रुप में नामीबिया की क्रिस्टीन मोमा ने 0.275 रिएक्शन टाइम और 22.11 सेकेंड के साथ पहला स्थान हासिल किया। (आईएएनएस)
चेन्नई, 2 अगस्त| इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की दो बार की चैंपियन चेन्नइयन एफसी (सीएफसी) ने इस साल के अंत में शुरू होने वाले नए सत्र से पहले किर्गिस्तान के फारवर्ड मिरलान मुर्जाएव के साथ एक साल का करार किया है। मिरलान भारत की शीर्ष फुटबॉल लीग में शामिल होने वाले पहले किर्गिज खिलाड़ी बन गए हैं। स्ट्राइकर 2021/22 सीजन से पहले चेन्नई स्थित फ्रैंचाइजी के लिए दूसरी अंतरराष्ट्रीय रिक्रूट हैं और उनके अलावा टीम में जॉबी जस्टिन और रहीम अली को भी शामिल किया गया है।
31 वर्षीय ने कहा, मैं चेन्नइयन एफसी से जुड़कर बहुत खुश हूं। मैं प्रशिक्षण और सीजन शुरू होने का इंतजार नहीं कर सकता। मैं तमिलनाडु के सभी प्रशंसकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए उत्सुक हूं।
मिरलान वर्तमान में किर्गिस्तान के लिए सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी हैं और 48 अंतरराष्ट्रीय मैचों के साथ दूसरे सबसे अधिक कैप्ड खिलाड़ी भी हैं। मिरलान ने पिछले महीने म्यांमार के खिलाफ 2022 फीफा विश्व कप के क्वालीफाइंग मैच में किर्गिस्तान की 8-1 से जीत के दौरान हैट्रिक लगाई थी।
सीएफसी की सह-मालिक वीटा दानी ने कहा, अपनी राष्ट्रीय टीम के एक प्रमुख स्कोरर के रूप में और 100 से अधिक गोलों साथ, मिरलान के आने से हमें मजबूती मिली है। हम किर्गिस्तान से क्लब तथा आईएसएल में पहले खिलाड़ी का स्वागत करते हुए प्रसन्न हैं।
2009 में, मिरलान ने नई दिल्ली में नेहरू कप के दौरान भारत का दौरा किया था और मेजबान टीम के खिलाफ एक गोल किया था। भारत के खिलाफ उनका दूसरा गोल 2019 एएफसी एशियन कप क्वालीफिकेशन मैच में किर्गिस्तान की बिश्केक में 2-1 से जीत में आया। (आईएएनएस)
टोक्यो, 1 अगस्त| ओलंपिक फाइनल में जगह बनाने में नाकाम रहने की पीवी सिंधु की पीड़ा रविवार को कांस्य जीतने के बाद कुछ हद तक शांत हो गई होगी। पहलवान सुशील कुमार के बाद अब वह दो ओलंपिक पदक अर्जित करने वाली केवल दूसरी भारतीय - और पहली महिला एथलीट बन गई हैं। सिंधु ने वह प्रतिष्ठित गौरव सुशील की तरह लगातार ओलंपिक खेलों में उस समय हासिल किया जब उन्होंने कांस्य पदक के मैच में अपनी चीनी प्रतिद्वंद्वी हे बिंगजियाओ को 21-13, 21-15 से हराया।
सिंधु को अक्सर अंतिम बाधा को पार करने की हिम्मत न होने के कारण खारिज कर दिया जाता रहा है लेकिन इस बाधा को पार कर 26 वर्षीय सिंधु देश को गौरवान्वित किया है।
2016 के रियो ओलंपिक खेलों में वह ओलंपिक खेलों में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं, एक ऐसा कारनामा जो पिछले महीने टोक्यो खेलों के पहले दिन मीराबाई चानू ने किया था।
सिंधु बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय और बैडमिंटन वल्र्ड टूर फाइनल जीतने वाली पहली भारतीय भी हैं। और तो और वह मौजूदा विश्व चैंपियन भी हैं।
उनकी उपलब्धियों ने 2016 रियो खेलों के फाइनल में और इस साल की शुरूआत में स्विस ओपन फाइनल में उन्हें हराने वाली घायल कैरोलिना मारिन की अनुपस्थिति ने स्वर्ण या कम से कम एक और रजत पदक की उम्मीदें जगाई थीं।
लेकिन सेमीफाइनल में दुनिया की नंबर-1 ताई त्जु-यिंग स वह सीधे गेम में मैच हार गई और कांस्य के लिए लड़ने के लिए मजबूर हो गई।
पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ियों, पीवी रमना और विजया की बेटी, सिंधु को अपने माता-पिता से प्रतिस्पर्धात्मक विरासत मिली है। कोच पुलेला गोपीचंद और अब पार्क ताए संग के नेतृत्व में सिंधु अपने खेल में मजबूती से आगे बढ़ी है।
अपने पावर गेम के साथ-साथ स्मैश के लिए जानी जाने वाली लंबी खिलाड़ी इस साल गोपीचंद अकादमी से बाहर चली गई और ओलंपिक की तैयारी के लिए हैदराबाद के गाचीबोवली स्टेडियम में प्रशिक्षण लिया।
वह पहली बार कोपेनहेगन में 2013 विश्व चैंपियनशिप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आई थीं, जहां उन्होंने कांस्य पदक जीता था। इसके बाद उन्होंने 2014 में ग्वांगझू विश्व चैंपियनशिप में एक और कांस्य और इंचियोन में 2014 एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता।
हालांकि वह 2015 विश्व चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में हार गई थी। एक साल बाद बड़ा क्षण आया जब उन्होंने नौवीं वरीयता प्राप्त के रूप में राउंड-16 में ताई-त्जु को, दूसरी वरीयता प्राप्त वांग यिहान को क्वार्टर फाइनल में और सेमीफाइनल में नोजोमी ओकुहारा को हराया। लेकिन वह 83 मिनट के फाइनल में कैरोलिना से हार गईं।
इसके बाद उन्होंने बासेल में 2019 विश्व चैंपियनशिप में महिला एकल का खिताब जीता। एक ऐसी उपलब्धि जिसने भारतीय खेल दिग्गजों के क्लब में अपनी जगह पक्की कर ली। हालांकि ओलंपिक रजत जीतने के बाद ही उन्होंने पहले ही इसकी पुष्टि कर दी थी।
साल 2021 खिताबों से विहीन रहा है। वह स्विस ओपन के फाइनल में कैरोलिना से 12-21, 5-21 से हार गईं और फिर ऑल इंग्लैंड ओपन के सेमीफाइनल में थाईलैंड की पोर्नपावी चोचुवोंग से सीधे गेमों में 17-21, 9-21 से हार गईं।
और भले ही वह स्वर्ण जीतने या ओलंपिक खेलों के फाइनल में जगह बनाने में विफल रही हो, इस तथ्य से कि उन्होंने ओलंपिक कांस्य जीता है, केवल उसकी महानता को बढ़ावा देगा। (आईएएनएस)
मुंबई, 1 अगस्त| क्या हेड कोच ग्राहम रीड ने भारतीय पुरुष हॉकी टीम को बदल दिया है? हमें इसके बारे में तब पता चलेगा जब यह म्यूनिख 1972 के बाद से ओलंपिक में अपने पहले सेमीफाइनल में बेल्जियम से भिड़ेगा। 1980 के मास्को ओलंपिक में, जिसका संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों द्वारा बहिष्कार किया गया था, केवल छह देशों ने भाग लिया, इसलिए कोई सेमीफाइनल नहीं था और पहले दो - स्पेन और भारत - फाइनल में खेले, जो भारत ने जीत लिया था।
म्यूनिख 1972: 1928 के बाद पहली बार जर्मनी (तब पश्चिम जर्मनी) में ओलंपिक का नया चैंपियन बना, जिसने पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीता। भारत लगातार दूसरे खेलों के फाइनल में पहुंचने में विफल रहा, सेमीफाइनल में पाकिस्तान से 0-2 से हार गया। हरमिक सिंह की अगुआई वाली टीम ने नीदरलैंड को कांस्य पदक से हराकर कुछ गौरव हासिल किया।
मॉन्ट्रियल 1976: अजीतपाल सिंह की कप्तानी वाली टीम नए पेश किए गए एस्ट्रोटर्फ पर बुरी तरह फिसल गई। भारत पहली बार सेमीफाइनल में पहुंचने में नाकाम रहा और चार जीत और चार हार के साथ सातवें स्थान पर रहा। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने फाइनल में मुकाबला किया और न्यूजीलैंड ने 1-0 से जीत दर्ज की।
मॉस्को 1980: हां, भारत स्वर्ण के साथ स्वदेश आया, लेकिन इसे वास्तविक जीत के रूप में नहीं गिना जा सकता, क्योंकि हमारे लोग एक छोटे से ओलंपिक में पांच अनसुनी टीमों के खिलाफ थे, जिसका 'फ्री वल्र्ड' के राष्ट्रों द्वारा बहिष्कार किया गया था। जिसमें अमेरिका के नेतृत्व वाले हॉकी पावरहाउस भी शामिल हैं। वासुदेवन भास्करन की टीम ने फाइनल में स्पेन को 4-3 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। भारत के लिए मुख्य आकर्षण सुरिंदर सिंह सोढ़ी का प्रदर्शन था, जिन्होंने 15 गोल किए।
लॉस एंजिल्स 1984: जफर इकबाल का भारत अपने खिताब की रक्षा करने में विफल रहा और एक ओलंपिक में पांचवें स्थान पर रहा जहां पाकिस्तान ने स्वर्ण पदक जीता। उन्हें नॉकआउट चरण में पहुंचने के लिए अंतिम लीग मैच में पश्चिम जर्मनी को हराना था, लेकिन नतीज 0-0 रहा।
सियोल 1988: एम.एम. सोमाया का पक्ष छठे स्थान पर रहा क्योंकि 1920 के बाद से ग्रेट ब्रिटेन ने अपना पहला स्वर्ण जीता। भारत अपने शुरूआती मैच में सोवियत संघ के हाथों 0-1 की हार से उबर नहीं सका और अपने पूल में तीसरे स्थान पर रहा।
बार्सिलोना 1992: परगट सिंह की टीम अपने पूल में तीसरे स्थान पर रही और सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई करने में विफल रही। भारत अंतत: सातवें स्थान पर रहा।
अटलांटा 1996: परगट ने लगातार दूसरे ओलंपिक के लिए टीम का नेतृत्व किया - ऐसा करने वाले पहले कप्तान। लेकिन टीम अपने पैर जमाने में नाकाम रही और दो जीत, दो ड्रॉ और तीन हार के साथ समाप्त हुई।
सिडनी 2000: रमनदीप सिंह की टीम को अपने अंतिम प्रारंभिक दौर के मैच में पोलैंड को हराना था और 1-0 से आगे चल रही थी जब उन्होंने घड़ी पर कुछ ही सेकंड शेष रहते हुए एक गोल किया। भारत दक्षिण कोरिया के साथ बराबरी पर रहा, लेकिन बाद में उसने सेमीफाइनल में जगह बनाई क्योंकि उसने ग्रुप स्टेज में भारत को हराया था। यह 1980 के बाद से सेमीफाइनल में जगह बनाने के लिए भारत के सबसे करीब है।
एथेंस 2004: दिलीप टिर्की की टीम केवल दो जीत और एक ड्रॉ ही हासिल कर पाई और प्रारंभिक दौर में उसे चार हार का सामना करना पड़ा, छह-टीम पूल में चौथे स्थान पर रही।
बीजिंग 2008: यह भारत के हॉकी इतिहास का सबसे खराब साल था। क्वालीफाइंग टूर्नामेंट के फाइनल में पुरुष ग्रेट ब्रिटेन से हार गए और पहली बार ओलंपिक में जगह बनाने में नाकाम रहे क्योंकि भारत ने एम्स्टर्डम 1928 के बाद से खेलों में राष्ट्रीय टीम के रूप में हॉकी खेलना शुरू किया।
लंदन 2012: यदि स्वतंत्र भारत की हॉकी का प्रभुत्व 1948 में लंदन में स्थापित किया गया था, तो भारत छेत्री के नेतृत्व वाली टीम प्रतियोगिता में 12वें और अंतिम स्थान पर रही, जब उन्होंने खेले गए सभी छह मैचों में हार का सामना किया।
रियो डी जनेरियो 2016: पीआर श्रीजेश के नेतृत्व में टीम ने संशोधित प्रारूप में क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई, लेकिन बेल्जियम से 1-3 से हार गई। रोलेंट ओल्टमैंस द्वारा प्रशिक्षित, पुरुषों को आठवें स्थान से संतुष्ट होना पड़ा। (आईएएनएस)
टोक्यो, 1 अगस्त| पुरुष सुपर हैवीवेट मुक्केबाजी के क्वार्टर फाइनल में उज्बेकिस्तान के बखोदिर जलोलोव से हारने वाले भारतीय मुक्केबाज सतीश कुमार की आंख और ठुड्डी पर 13 टांके लगे हैं। फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीएफआई) के अध्यक्ष अजय सिंह ने रविवार को यह खुलासा किया। अजय सिंह को बीएफआई के एक ट्वीट कर कहा, "सतीश की आंख के ऊपर और ठुड्डी पर 13 टांके लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गये थे। उन्होंने फिर भी नंबर 1 मुक्केबाज के खिलाफ लड़ने का फैसला किया, जो उनके साहस और देशभक्ति को दर्शाता है। आज सतीश की तरह कई लोग अपने देश के लिए वार नहीं करेंगे। हमें बहुत गर्व है।"
सतीश ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले भारत के पहले हैवीवेट मुक्केबाज हैं।
वह यहां रयोगोकू कोकुगिकन एरिना में जमैका के रिकाडरे ब्राउन के खिलाफ अपनी प्री-क्वार्टर फाइनल जीत के दौरान चोटिल हो गए थे। उन्हों सुबह क्वार्टर फाइनल में लड़ने के लिए चिकित्सा मंजूरी दी गई थी।
"जलालोव बहुत मजबूत था और लक्ष्य पर मुक्के मारते हुए अक्सर हमला करता था। सतीश वहीं डटे रहे और जवाबी हमला किया लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी का बचाव बहुत मजबूत था और इस तरह वे इसे पार नहीं कर सके। उन्होंने स्कोर करने के कई प्रयास किए, लेकिन परिणाम अपने पक्ष में नहीं कर सके।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली,1 अगस्त | ओलंपिक खेलों में भारत के एकमात्र व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता, राइफल निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु को दो ओलंपिक पदक जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी बनने की उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा कि यह एक "दुर्लभ" उपलब्धि है और एथलीटों की पीढ़ी उनके जैसा रोल मॉडल पाने के लिए भाग्यशाली है।
सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक पत्र में, 2008 बीजिंग ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफल स्वर्ण के विजेता, बिंद्रा ने कहा, "टोक्यो ओलंपिक 2020 में कांस्य पदक जीतने के लिए बहुत-बहुत बधाई। हमारे देश के बहुत कम एथलीट भाग्यशाली रहे हैं। जो आपने हासिल किया है उसे हासिल करें। वास्तव में, दुनिया भर में अधिकांश खेल करियर ओलंपिक पदक के बिना खत्म हो जाते हैं, यहां तक कि चमकदार छोटी गोल वस्तु को जीतने के लिए वर्षों और वर्षों लग जाते है।"
अभिनव ने रविवार को चीन की ही बिंगजाओ को 21-13, 21-15 से हराकर कांस्य पदक जीतने के बाद अपने पत्र में कहा कि यह दिखाता है कि इस तरह की उपलब्धि हासिल करना कितना दुर्लभ है और किसी सपने सच करने के लिए कितना पागल होना पड़ता है।
"अगली पीढ़ी के एथलीट भाग्यशाली हैं कि उनको एक रोल मॉडल मिला है, जो अभ्यास और ²ढ़ता के गुणों का एक अवतार है, दो गुणों की आवश्यकता विशिष्ट प्रतियोगिताओं में पनपने के लिए बहुतायत में होती है।"
बिंद्रा ने लिखा कि आपका पदक पूरी तरह से खेल की शक्ति को समाहित करता है और यह कैसे एकजुटता की अपनी अविनाशी भावना के माध्यम से हम सभी को प्रेरित करता रहता है। आपकी एक रोमांचक कहानी है। मैं आपको उस खुशी के लिए धन्यवाद देता हूं जो आप आपने देश के लिए लाई है और आशा करता हूं कि आप ओलंपिक के मूल्यों का प्रसार करना जारी रखेंगी और एक ओलंपिक पदक विजेता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को उसी ऊर्जा के साथ निभाएंगी, जिस तरह से आपने टोक्यो में हम सभी को चकाचौंध कर दिया।"(आईएएनएस)