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डेढ़ दर्जन से अधिक कर्मियों की जांच
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 8 अगस्त। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के अंबिकापुर तपस्या बंग्ला में कार्यरत एक होमगार्ड जवान कोरोना से संक्रमित मिला है। स्वास्थ्य विभाग व वहां के कर्मचारियों ने इसकी पुष्टि की है। बंगले में कार्यरत डेढ़ दर्जन से अधिक कर्मचारियों की जांच हो गई है।
बताया जा रहा है कि उक्त होमगार्ड अंबिकापुर नगर के नवागढ़ का रहने वाला है। नवागढ़ मोहल्ला पहले ही कंटेनमेंट जोन घोषित है। अंदेशा जताया जा रहा है कि होमगार्ड जवान मोहल्ले में ही किसी के संपर्क में आने से संक्रमित हुआ है। तबीयत खराब होने की वजह से वह दो-तीन दिनों से बंगले में नहीं आ रहा था। गत शुक्रवार की देर रात उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उसे कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
होमगार्ड जवान के पॉजिटिव आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम बंगले में कार्यरत लगभग 18 कर्मचारियों का सैंपल लेकर जांच हेतु भेजी है,अभी उनकी रिपोर्ट नहीं आई है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा बताया गया कि बंगले में कार्यरत सैंपल लिए सभी कर्मचारियों की रिपोर्ट आज देर रात तक आ जाने की संभावना है। इसके अलावा शुक्रवार की देर रात अम्बिकापुर शहर के तीन और लोग कोरोना से संक्रमित मिले हैं जिन्हें उपचार हेतु अंबिकापुर कोविड-19 अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 8 अगस्त। छत्तीसगढ़ में आज शाम 6 बजे तक केन्द्र सरकार के आईसीएमआर के आंकड़ों के मुताबिक 190 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं जिनमें से सर्वाधिक 59 रायपुर जिले के हैं। इसके तुरंत बाद राजनांदगांव से 32, सुकमा 16, नारायणपुर 15, बलौदाबाजार और दुर्ग 9-9, बिलासपुर 8, महासमुंद 6, जांजगीर-चांपा, जशपुर, कबीरधाम और रायगढ़ 5-5, कांकेर 3, बालोद, बेमेतरा, दंतेवाड़ा, गरियाबंद, कोरबा 2-2, और मुंगेली, सरगुजा से 1-1 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं।
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लेकिन शाम 6 बजे तक राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े इससे कम हैं क्योंकि स्वास्थ्य विभाग हर रिजल्ट की जांच करता है कि वह कहीं पुराने कोरोना मरीज की नई जांच का आंकड़ा तो नहीं है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार आज शाम 6 बजे तक प्रदेश में 99 कोरोना पॉजिटिव मिले हंै जिसमें से रायपुर जिले में 19, नांदगांव में 28 कोरोनाग्रस्त मिले हैं।
नई दिल्ली, 8 अगस्त (आईएएनएस)| पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर ने कहा है कि उन्हें 2006 में फैसलाबाद में हुए टेस्ट मैच में महेंद्र सिंह धोनी को बीमर नहीं फेंकनी चाहिए थी। अख्तर ने कहा कि उन्होंने ऐसा पहली बार जानबूझकर किया था और इसके बाद उन्होंने धोनी से माफी भी मांग ली थी।
अख्तर ने आकाश चोपड़ा के यूट्यूब चैनल आकाशवाणी पर कहा, "मुझे लगता है कि मैंने फैसलाबाद में 8-9 ओवरों का स्पेल फेंका था। मैंने वो स्पेल काफी जल्दी किया था और धोनी ने शतक जमाया था। मैंने उन्हें जानबूझकर बीमर फेंकी है और इसके बाद उनसे माफी मांगी।"
पूर्व गेंदबाज ने कहा, "उस दिन मैंने पहली बार जानबूझकर बीमर फेंकी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मैं इस पर बाद में काफी पछताया। वह शानदार खेल रहे थे और विकेट काफी धीमी थी। मैं चाहे कितनी भी तेज फेंक लूं वो मारे जा रहे थे। मैं परेशान हो गया था।"
धोनी का फैसलाबाद में बनाया गया शतक टेस्ट में पहला शतक था।
इस्लामाबाद/नई दिल्ली, 8 अगस्त (आईएएनएस)| सऊदी अरब ने इमरान खान सरकार द्वारा कश्मीर मुद्दे पर इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) को विभाजित करने की धमकी देने के बाद पाकिस्तान के लिए ऋण पर तेल के प्रावधान को रोक दिया है। अक्टूबर 2018 में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को तीन साल के लिए 6.2 अरब डॉलर का वित्तीय पैकेज देने का ऐलान किया था। इसमें तीन अरब डॉलर की नकद सहायता शामिल थी, जबकि बाकी के पैसों के एवज में पाकिस्तान को तेल और गैस की सप्लाई की जानी थी।
एक गंभीर आर्थिक संकट से घिरे पाकिस्तान ने सऊदी अरब से ऋण लिया था। पाकिस्तान के हालिया बर्ताव के कारण सऊदी ने अपने वित्तीय समर्थन को वापस ले लिया है।
पाकिस्तानी मीडिया ने शनिवार को कहा कि इस्लामाबाद के लिए प्रावधान दो महीने पहले समाप्त हो गया है और इसे रियाद द्वारा नवीनीकृत नहीं किया गया है।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने पेट्रोलियम डिवीजन के प्रवक्ता साजिद काजी के हवाले से कहा कि इस्लामाबाद ने समय से चार महीने पहले ही एक अरब डॉलर का सऊदी का ऋण लौटा दिया है।
हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक समाचार चैनल पर एक टॉक शो के दौरान धमकी दी थी कि अगर सऊदी अरब के नेतृत्व वाले ओआईसी ने कश्मीर मुद्दे पर मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक नहीं बुलाई, तो प्रधानमंत्री इमरान खान अपने सहयोगी इस्लामी देशों के बीच बैठक करेंगे, जो इस मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दे सकें।
पाकिस्?तानी न्?यूज चैनल एआरवाई को दिए साक्षात्?कार में कुरैशी ने कहा, मैं एक बार फिर से पूरे सम्?मान के साथ ओआईसी से कहना चाहता हूं कि विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक हमारी अपेक्षा है। यदि आप इसे बुला नहीं सकते हैं तो मैं प्रधानमंत्री इमरान खान से यह कहने के लिए बाध्?य हो जाऊंगा कि वह ऐसे इस्?लामिक देशों की बैठक बुलाएं जो कश्?मीर के मुद्दे पर हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं।
विश्व में इस्लामी देशों के सबसे बड़े संगठन ओआईसी से पाकिस्तान कई बार गुजारिश कर चुका है कि वह कश्मीर मुद्दे पर एक बैठक आयोजित करे, मगर संगठन ने हर बार उसकी अपील को दरकिनार किया है। यही वजह है कि पाकिस्तान बौखलाया हुआ है।
दरअसल ओआईसी में किसी भी कदम के लिए सऊदी अरब का साथ सबसे ज्?यादा जरूरी होता है। ओआईसी पर सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों का दबदबा है। कश्?मीर पर सऊदी अरब के कदम नहीं उठाने से पाकिस्?तान की कुंठा बढ़ती ही जा रही है।
पिछले साल अगस्त में भारत ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर बांट दिया गया। पाकिस्तान भारत के इस कदम का विरोध कर रहा है और इमरान खान सरकार इस मुद्दे पर 57 सदस्यीय ओआईसी का समर्थन मांग रही है।
मुंबई, 8 अगस्त (आईएएनएस)| अभिषेक बच्चन कोरोनावायरस जांच रिपोर्ट में निगेटिव पाए गए, जिसके बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। उन्होंने यह जानकारी शनिवार को ट्विटर और इंस्टाग्राम के माध्यम से दी। अभिनेता ने खुशखबरी साझा करने के लिए ट्वीट किया, "एक वचन तो वचन है। आज दोपहर मेरा कोविड-19 का टेस्ट नेगेटिव आया है। मैंने आप लोगों को बताया था कि मैं इसे हरा दूंगा। मेरे और मेरे परिवार के लिए प्रार्थनाएं करने के लिए आप सभी का धन्यवाद। नानावती अस्पताल के उन डॉक्टर्स और नर्सिग स्टाफ के प्रति मेरा आभार, जिन्होंने यह किया है। धन्यवाद।"
इसके तुरंत बाद अभिषेक बच्चन ने इंस्टाग्राम पर हॉस्पिटल पर लगे उनके हेल्थ केयर बोर्ड की तस्वीर साझा की, जिसमें उनके डिस्चार्ज के कॉलम में 'हां' लिखा है।
उन्होंने इसे कैप्शन देते हुए लिखा, "मैंने आपको कहा था। डिस्चार्ज प्लान-यश। आज दोपहर मेरा टेस्ट कोविड-19 टेस्ट नेगेटिव आया। आप सभी की प्र्थनाओं और शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया। मैं बहुत खुश हूं कि मैं अब घर जा सकता हूं। मेरे और मेरे परिवार की इतनी अच्छी देखभाल करने और हमें कोविड-19 को हराने में मदद करने के लिए नानावती अस्पताल में डॉक्टरों और नर्सिग स्टाफ के प्रति मेरा आभार। हम उनके बिना यह नहीं कर सकते थे।"
अभिनेता अभिषेक अपने पिता अमिताभ बच्चन के साथ जुलाई में कोरोनावायरस से पॉजिटिव पाए जाने के बाद अस्पताल में भर्ती थे। 2 अगस्त को अमिताभ बच्चन स्वस्थ होकर घर चले गए थे, जबकि अभिषेक अस्पताल में ही थे।
छत्तीसगढ़ की राजनीति और यहां के नेताओं के बीच शंकर गुहा नियोगी के बारे में कुछ लिखना कुछ अटपटा लग सकता है, लेकिन इन यादों का महज राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, और शंकर गुहा नियोगी का राजनीति से लेना-देना था। इस मजदूर नेता पर बड़ी-बड़ी फिल्में बन सकती हैं, बड़ी-बड़ी किताबें हो सकता है कि लिखी गई हों, लेकिन मैं महज अपनी यादों तक सीमित रहूंगा।
हिन्दुस्तान में ऐसे कम ही मौके रहते हैं जब मजदूरों का इतना बड़ा नेता उद्योगपतियों द्वारा कत्ल करवा दिया जाए, उद्योगपतियों के भाड़े के हत्यारे गिरफ्तार हो जाएं, लेकिन मजदूर लाख से अधिक होने पर भी एक पत्थर भी न चलाएं। शंकर गुहा नियोगी का मजदूर संगठन, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, कुछ इसी किस्म का था। नियोगी की हत्या के बाद भी मजदूर संगठन बना हुआ है, और नियोगी के कुनबे के बिना चल रहा है। दल्लीराजहरा की खदानों से भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए आयरन ओर जाता है, और इसी इलाके में खदान मजदूरों के भले के लिए उन्हें संगठित करके इस प्रदेश के इतिहास का सबसे संगठित, सबसे मजबूत, और सबसे बड़ा मजदूर संगठन शंकर गुहा नियोगी ने बनाया था जो कि खुद बाहर से यहां आए थे।
वह वक्त बड़ा दिलचस्प था। इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस और सीपीआई के लोगों ने भारत में राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता की साजिशों का एक हौव्वा खड़ा किया था, और उसके पीछे विदेशी हाथ बताया जाता था। जबकि हिन्दुस्तान में उस वक्त तो विदेशी छोड़ देशी हाथ भी नहीं था, और वह बाद में कांग्रेस के चुनावचिन्ह की शक्ल में आया। लेकिन उस वक्त भी कांग्रेस और सीपीआई के लोग अपनी अलग-अलग वजहों से शंकर गुहा नियोगी को नक्सली भी कहते थे, और अमरीकी एजेंट भी कहते थे। यह कुछ ऐसे थर्मस फ्लास्क की तरह का मामला था जो एक फ्लास्क में ठंडा रखता है, और दूसरे में गर्म। कोई नक्सली भी हो, और वह अमरीकी एजेंट भी हो, ऐसा इमरजेंसी के उस दौर में कांग्रेस और सीपीआई की तोहमतों में ही मुमकिन था।
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लेकिन शंकर गुहा नियोगी के ऊपर ऐसी अलग-अलग कई किस्म की तोहमतें लगाने के पीछे कई किस्म की वजहें थीं। सीपीआई ने चूंकि कांग्रेस का साथ दिया था इसलिए उसे इमरजेंसी के पक्ष में तर्क देने थे, और ऐसा करते हुए वह अपने पसंदीदा दुश्मन अमरीका पर भारत में अस्थिरता पैदा करने का आरोप भी लगा रही थी। दूसरी तरफ कांग्रेस के सामने एक दिक्कत यह थी कि नियोगी की जमीन बन जाने के वक्त अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, और उद्योगपति उसके साथ थे, जिनको नियोगी से डर लग रहा था। फिर इन दोनों ही पार्टियों के साथ नियोगी को लेकर एक दिक्कत यह थी कि छत्तीसगढ़ के तमाम दूसरे मजदूर संगठन तकरीबन इन्हीं दोनों पार्टियों के थे। और नियोगी के जो तेवर थे उनके चलते इन सबकी दुकानें ठप्प पडऩे का एक खतरा खड़ा हो गया था। इसलिए कांग्रेसी और कम्युनिस्ट दोनों ही नियोगी से नफरत करते थे, क्योंकि वह भाजपा का विरोधी रहने वाला ऐसा मजदूर नेता था जो इन दोनों पार्टियों के परंपरागत मजदूरों के बीच घुसपैठ की ताकत रखता था, घुसपैठ कर चुका था।
लेकिन शंकर गुहा नियोगी का व्यक्तित्व एक अभूतपूर्व और असंभव किस्म के मजदूर नेता का था। वह इस कदर फक्कड़ था कि उसकी पत्नी खदान में मजदूरी करती थी। वह खुद मजदूर की जिंदगी जीता था। उसने तमाम वामपंथ, और तमाम मजदूर आंदोलनों को पढ़ा हुआ था, उसका बौद्धिक स्तर छत्तीसगढ़ के तमाम अखबारनवीसों के बौद्धिक स्तर से अधिक ऊंचा था, उससे राजनीति और मजदूर आंदोलन, मजदूर अधिकार को लेकर बहस करने की समझ बहुत कम लोगों में थी। वह सिर्फ जिंदाबाद-मुर्दाबाद वाला मजदूर नेता नहीं था, वह भारी पढऩे और सोचने-विचारने वाला नेता भी था।
नियोगी से मेरी मुलाकात उनके मजदूर आंदोलनों की मांगों को लेकर होने वाली गरीब सी प्रेस कांफ्रेंस में होती थी। लेकिन उसका व्यक्तित्व बांध लेने वाला था। लापरवाह हुलिया, लगातार सिगरेट, लगातार तर्कसंगत बातें जिनके पीछे बहुत गहरी समझ भी हो, और सरकार-उद्योगपतियों से लडऩे का अंतहीन हौसला। बहुत सी बातों ने मिलकर एक नियोगी को बनाया था जिससे छत्तीसगढ़ के बड़े उद्योगपति दहशत खाते थे। यही वजह रही कि उद्योगपतियों ने अपने बीच के, अपने परिवार के एक आदमी को लगाकर, बाहर से भाड़े का हत्यारा बुलाकर सोए हुए नियोगी की हत्या करवा दी, और सजा पाने वालों में सबसे बड़े उद्योग के परिवार का एक व्यक्ति भी रहा।
राजनीति से नियोगी का थोड़ा सा लेना-देना रहा जब उन्हें लगा कि विधानसभा में अगर उनका कोई विधायक नहीं होगा तो मजदूरों की बात वहां नहीं उठ पाएगी। उस वक्त नियोगी ने अपने एक मजदूर साथी जनकलाल ठाकुर को विधानसभा का चुनाव लड़वाया, और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के घोषित उम्मीदवार के रूप में वे एक बार विधायक रहे। इस एक-दो विधानसभा चुनाव से परे छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की चुनावी राजनीति में कोई हिस्सेदारी नहीं रही। लेकिन वह कुछ ऐसे दूसरे संगठनों के साथ जरूर जुड़ा रहा जिन्हें हिन्दुस्तान में शक की नजरों से देखा जाता था, और यह माना जाता था कि वे इस देश में अस्थिरता पैदा करने के लिए ही काम कर रहे हैं।
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पीयूसीएल नाम का मानवाधिकार संगठन छत्तीसगढ़ में नियोगी के संगठन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के साथ कदम मिलाकर चलने वाला था, दोनों संगठन अलग थे, लेकिन मजदूरों के शोषण, और मानवाधिकार जैसे कुछ मुद्दों पर ये साथ भी रहते थे। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की तरह ही पीयूसीएल भी सरकार की आंखों की किरकिरी था क्योंकि वह बंधुआ मजदूरों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट तक से केस जीतकर यहां हजारों बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवा रहा था जो कि कांग्रेस और भाजपा के बहुत से नेताओं के बंधुआ मजदूर थे। कुल मिलाकर सत्तारूढ़ रहते हुए कांग्रेस, या सत्ता में एक बार आई हुई भाजपा, इन दोनों को छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और पीयूसीएल एक से नापसंद थे, और इनके साथ-साथ सीपीआई को भी इन दोनों से बहुत ही परहेज था, इन्हें सीआईए का एजेंट कहने में एक पल की देर नहीं की जाती थी।
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अब नियोगी के कत्ल को भी कई दशक हो गए हैं, और इस दौरान दिल्ली से लेकर भोपाल तक की सरकारें, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही चला चुकी हैं, लेकिन इन दोनों संगठनों के खिलाफ किसी के पास कुछ नहीं है, जिसका मतलब है कि इन पर नक्सल-समर्थक होने, या सीआईए का एजेंट होने की तोहमतें फर्जी थीं। झगड़ा अस्तित्व का था, वर्गहित का था। वर्गहित ऐसे कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही उद्योगपतियों के साथ थीं, और सीपीआई का वर्गहित टकराव ऐसे हो रहा था कि उसका मजदूर संगठन नियोगी के मुकाबले हाशिए पर जा रहा था, जा चुका था।
ऐसे नियोगी को कई बार कई आंदोलनों के सिलसिले में जेल में भी रखा गया। ऐसे ही कुछ मौकों पर मुझे जेल जाकर सुपरिटेंडेंट के कमरे में नियोगी से लंबी वैचारिक बातचीत करने का भी मौका मिला। उनके मुकाबले मैंने मानो कुछ भी नहीं पढ़ा हुआ था, और हर मुलाकात मेरी जानकारी, और मेरी समझ को बढ़ाते जाती थी।
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लेकिन नियोगी से एक आखिरी मुलाकात न हो पाने का मुझे लंबा मलाल रहा, आज भी है, और जब-जब नियोगी को याद करना होगा, यह मलाल सिर पर चढ़े रहेगा।
भोपाल से एक अखबारनवीस दोस्त एन.के. सिंह रायपुर आए हुए थे। वे उस समय इंडिया टुडे के लिए भोपाल से पूरा अविभाजित मध्यप्रदेश कवर करते थे। उनके साथ इसी पत्रिका के फोटोग्राफर, अगर नाम मुझे ठीक से याद है तो, प्रशांत पंजियार भी थे। वे पिकैडली होटल में ठहरे थे जहां शाम को खाने के लिए पीयूसीएल के राजेन्द्र सायल, और भिलाई से शंकर गुहा नियोगी भी पहुंचे हुए थे। एन.के. सिंह ने मुझे भी न्यौता दिया था, लेकिन उन दिनों अखबार का रात का काम खत्म ही नहीं हो रहा था, दूसरी तरफ मेरा गला इतना खराब था कि मुझसे बात करते भी बन नहीं रहा था। ऐसे में लंबी बातचीत और बहस की किसी शाम में गले के और अधिक चौपट हो जाने का खतरा था। मुझे शाम से रात तक कुछ बार एन.के.सिंह का फोन आया, और मेरा जाना हो ही नहीं पाया। अगली सुबह शायद 5-6 बजे की बात होगी एन.के. सिंह का फोन आया, और उन्होंने बताया कि नियोगी का कत्ल कर दिया गया है। भिलाई में उनके घर पर किसी ने गोली मार दी है, और वे तुरंत वहां रवाना हो रहे हैं।
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यह खबर सुनते ही हाथ-पैर ठंडे पड़ गए कि बीती शाम ही जिसके साथ लंबी बातचीत होनी थी, जिसमें छत्तीसगढ़ के मजदूरों को अपना एक मसीहा दिखता था, एक ऐसा मजदूर नेता जिसने छत्तीसगढ़ में यह साबित किया था कि कारखानेदारों का दलाल हुए बिना भी मजदूर आंदोलन चलाया जा सकता है, उनसे किसने इस तरह मार दिया। तब तक यह अहसास नहीं था कि कारखानेदार ऐसा कत्ल करवा सकते हैं। लेकिन कुछ देर में यह बात याद आने लगी कि नियोगी कई बार कहा करता था कि उसका कत्ल करवाया जा सकता है। मुझे हर बार यही लगता था कि लाख मजदूरों के इस नेता को छूने का हौसला भला किसका हो सकता है? लेकिन आखिर में हुआ वही, लाख मजदूरों का साथ धरे रह गया, और भाड़े के एक हत्यारे को लेकर उद्योगपतियों ने देश के इस एक सबसे चर्चित मजदूर नेता को मरवा डाला। बंगाल से आकर छत्तीसगढ़ में मजदूरों को एक करने, उनके हक की लड़ाई लडऩे, उनके इलाज के लिए अभूतपूर्व अस्पताल खोलने और इतिहास का एक सबसे मजबूत मजदूर संगठन खड़ा करने वाले इस नौजवान नेता को मरवाकर भी कारखानेदार उसका मजदूर संगठन खत्म नहीं करवा पाए जो कि आज भी चल रहा है। नियोगी के बारे में कुछ और यादें, कई और बातें अगली किस्त में।
-सुनील कुमार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 8 अगस्त। राजधानी रायपुर और आसपास से बीती रात में 123 नए पॉजिटिव मिले हैं। इसमें जिला स्वास्थ्य दफ्तर के सामने महाकोशल कला वीथिका के पीछे की बस्ती अर्जुन नगर से एक साथ 34 मरीज पाए गए हैं। इसके अलावा पॉजिटिव में एक आईटीबीपी जवान, एक पुलिस स्टाफ, एक सेंट्रल जेल कर्मी, छात्र, गर्भवती महिला, गृहणी आदि भी शामिल हैं। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ इनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है।
राजधानी रायपुर समेत जिले में कोरोना मरीज 38 सौ करीब पहुंच गए हैं। इसमें 1354 एक्टिव हैं और इन सभी का अलग-अलग अस्पतालों में इलाज जारी है। बीती रात अलग-अलग कई बस्तियों, कॉलोनियों व अन्य जगहों से जो पॉजिटिव सामने आए हैं, उसकी सूची निम्नानुसार है-सेंचुरी सीमेंट बैकुंठ तिल्दा रायपुर, सुंदर नगर, अरिहंत हाइट्स भैरव सोसायटी पचपेड़ी नाका, कचना रेसिडेंसी सोसायटी सेक्टर-3 एकता नगर तिलक नगर गुढिय़ारी, स्वराभूमि आमासिवनी विधानसभा रोड जीएसआई 3, हनुमान नगर कालीबाड़ी चौक, वॉलफोर्ड सिटी 3, विधानसभा 1 एजी-3 (एमसीएचआर), आरंग, साहूपारा खमतराई, आईटीबीपी खरोरा, ब्राम्हणपारा, मठपुरैना, जोरापारा काली मंदिर 1 पोस्ट-पीआओ, फाफाडीह से 1 गृहणी, शारदा चौक जोरा पारा 1 पोस्ट-पीआरओ, 4 बटालियन माना कैंप 1 माना एचसीडब्ल्यू, तेलीबांधा मौलीपारा 1 छात्र, भरतमाता चौक सारथी नगर, कपड़ा मार्केट पंडरी, पुलिस लाइन 1 पुलिस स्टाफ, भाठागांव बीएसयूपी कॉलोनी, फाफाडीह काली मंदिर, अपेक्स बैंक नया रायपुर सेक्टर-24, शिवा नगर बिरगांव, पटेल चौक टिकरापारा, झंडा चौक टिकरापारा, कैलाशपुरी चौक दुलारी नगर, खमतराई थाना, ऑफिसर कॉलोनी आनंद नगर सी वन टैन, अरविंद नगर पेंशनबाड़ा, ब्राम्हणपारा पंचपथ चौक, अर्जुन नगर से 34, वॉलफोर्ड सिटी, कैलाश पुरी, बैरनबाजार, देवेंद्र नगर सेक्टर-4, आईटीबीपी कैंप 1 आईटीबीपी जवान, शदाणी दरबार 2, सोल्स हाईट्स अपार्टमेंट अमलीडीह, पाइप फैक्ट्री रोड अमन टंडन डेयरी शांति नगर वार्ड 31 शंकर नगर, ठक्करबापा वार्ड, मोहबाबाजार, पाटीदार भवन भनपुरी 2, मोवा पंडरी, फेस-2 एसकेएस हॉस्पिटल सिलतरा 2, बिरगांव वार्ड 39 सरोरा, बिरगांव वार्ड 37 नहरपारा सरोरा, बजरंग नगर सरोरा 2, बिरगांव वार्ड 37 दुर्ग मंच 1 गर्भवती महिला, कुशालपुर, डीएचजी सीआरपीएफ शंकर नगर, बैजनाथपारा शास्त्री बाजार, रायपुर, कंकालीपारा, हाउसिंग बोर्ड परसुलडीह रायपुर, भवानी नगर कोटा, तेलीबांधा, कृष्णा नगर रामनगर, देवपुरी, टाटीबंध 3, नेहरू नगर, तेलीबांधा, डीडी नगर 1 सेंट्रल जेल कर्मी, राजीव नगर, आमानाका, अभनपुर 1 पीएनसी, देवरी तिल्दा, तिल्दा, केसला तिल्दा 2, अशोक नगर गुढिय़ारी, टाटीबंध, पुरानी बस्ती 2, न्यू सर्वोदय नगर पचपेड़ी नाका।
संयुक्त राष्ट्र, 8 अगस्त (भाषा)। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि 1993 मुंबई विस्फोट का मुख्य साजिशकर्ता दाउद इब्राहीम और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अन्य आतंकवादी पड़ोसी मुल्क की ‘‘सरपरस्ती’’ में हैं। साथ ही भारत ने भगोड़े कुख्यात अपराधियों और लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा उत्पन्न खतरे को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास की बात कही। ‘‘आतंकवाद और संगठित अपराध के बीच संबंधों के मुद्दे का हल’’ विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उच्चस्तरीय खुली चर्चा में भारत ने अपने बयान में उक्त बात कही।
भारत ने एक बयान में कहा, ‘‘भारत सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद से पीडि़त रहा है।,हमने दो देशों के बीच संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंधों के दंश को प्रत्यक्ष रूप से झेला है।’’ उसमें कहा गया है, ‘‘संगठित अपराधी सिंडीकेट, डी-कंपनी, जो सोना और नकली नोटों की तस्करी करता था वह रातों-रात आतंकवादी संगठन में बदल गया और उसने 1993 में मुंबई शहर में सिलसिलेवार विस्फोट कराए। उन हमलों में 250 से ज्यादा मासूमों की जान गई और लाखों-करोड़ों डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ।’’
हाफिज सईद और दाऊद इब्राहिम को लेकर पूछे गए सवाल पर पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने कही यह बात
बयान में किसी देश का नाम लिए बगैर कहा गया है कि मुंबई विस्फोटों का सरगना ‘‘एक पड़ोसी देश की सरपरस्ती में है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है, वह जगह हथियारों की तस्करी, मादक पदार्थों के व्यापार और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतकंवादियों तथा आतंकवादी संगठनों का गढ़ है।’’
भारत ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई की सफलता को रेखांकित करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा इस तरह से की गई कार्रवाई सफल होती है। बयान में भारत ने कहा कि प्रतिबंधित व्यक्तियों और संगठनों जैसे दाउद और डी-कंपनी, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ ऐसी की कार्रवाई से मानवता का भला होगा।
नई दिल्ली, 8 अगस्त (वार्ता)। गिरीश चंद्र मुर्मू ने शनिवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) पद की शपथ ली।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने श्री मुर्मू को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत अन्य गणमान्य उपस्थित थे।
श्री मुर्मू देश के 14वें कैग प्रमुख हैं। उन्होंने राजीव महर्षि के स्थान पर यह जिम्मेदारी संभाली है। श्री मुर्मू ने ईश्वर के नाम पर हिंदी में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली।
ओडिशा के मयूरभंज में 21 नवंबर 1959 को जन्में श्री मुर्मू 1985 बैच के गुजरात से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल उन्हें केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का पहला उपराज्यपाल नियुक्त किया था। वह इस पद पर पिछले साल 31 अक्टूबर को नियुक्त हुए और इस साल पांच अगस्त तक रहे।
प्रधानमंत्री के भरोसेमंद नौकरशाह श्री मुर्मू, श्री मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके प्रधान सचिव की जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं। उनका कार्यकाल छह वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक रहेगा।
नई दिल्ली, 8 अगस्त (वार्ता)। देश में कोरोना संक्रमण की दिनोंदिन बिगड़ती स्थिति के बीच लगातार दूसरे दिन 61 हजार से अधिक नये मामले सामने आने से संक्रमितों की संख्या 20.89 लाख हो गयी है और 933 लोगों की मौत होने से मृतकों की संख्या 42,518 पर पहुंच गई है।
स्वस्थ होने वालों की दर में निरंतर हो रही वृद्धि के बावजूद संक्रमण के नये मामले बढऩे से देश में पिछले 24 घंटों में सक्रिय मामलों में 11,704 की बढ़ोतरी हुई जिससे इनकी संख्या 6,19,088 हो गयी है। राहत की बात यह है कि इस दौरान 48,900 लोगों के स्वस्थ होने से संक्रमणमुक्त होने वालों की संख्या भी 14,27,006 लाख पर पहुंच गयी।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से शनिवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक संक्रमण के 61,537 मामले आने से इनकी संख्या 20,88,612 हो गयी है। शुक्रवार को 62,538 मामले सामने आये थे। मंत्रालय के अनुसार स्वस्थ होने वालों की दर 68.32 प्रतिशत पर पहुंच गयी है और मृत्यु दर 2.04 प्रतिशत है।
कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में मरीजों की संख्या 723 कम होने से सक्रिय मामले 1,45,889 हो गये तथा 300 लोगों की मौत होने से मृतकों का आंकड़ा 17,092 हो गया। इस दौरान 10,906 लोग संक्रमणमुक्त हुए जिससे स्वस्थ हुए लोगों की संख्या बढक़र 3,27,281 हो गयी। देश में सर्वाधिक सक्रिय मामले इसी राज्य में हैं।
आंध्र प्रदेश में मरीजों की संख्या 2488 बढऩे से सक्रिय मामले 84,654 हो गये हैं। राज्य में अब तक 1842 लोगों की मौत हुई है, वहीं 7,594 लोगों के स्वस्थ होने से कुल 1,20,464 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं। दक्षिणी राज्य कर्नाटक में पिछले 24 घंटों के दौरान मरीजों की संख्या 2618 बढ़ी है और यहां अब 77694 सक्रिय मामले हैं। मरने वालों का आंकड़ा 101 बढक़र 2998 पर पहुंच गया है। राज्य में अब तक 84232 लोग स्वस्थ हुए हैं। तमिलनाडु में सक्रिय मामले 727 घटकर 52,759 रह गये हैं तथा 4690 लोगों की मौत हुई है। वहीं राज्य में अब तक 2,27,575 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं।
आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले 24 घंटों के दौरान मरीजों की संख्या 909 बढ़ी है जिससे 44563 सक्रिय मामले हो गये हैं तथा इस महामारी से 1981 लोगों की मौत हुई है जबकि 66,834 मरीज ठीक हुए हैं। सक्रिय मामलों में इसके बाद बिहार का स्थान है, जहां यह संख्या 26453 हो गयी है। राज्य में 369 लोगों की मौत हुई है जबकि 44482 लोग संक्रमणमुक्त भी हुए हैं।
देश के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस के 24652 सक्रिय मामले हैं था 1,954 लोगों की मौत हुई है, वहीं अब तक 63,060 लोग स्वस्थ हुए हैं।
तेलंगाना में कोरोना के 22568 सक्रिय मामले हैं और 615 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 54330 लोग इस महामारी से ठीक हुए हैं। गुजरात में सक्रिय मामले 14,443 हो गये हैं तथा 2,605 लोगों की मौत हुई है। राज्य में 51720 लोग इस बीमारी से स्वस्थ भी हुए हैं।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले 24 घंटों में सक्रिय मामले 61 बढक़र 10,409 हो गये हैं। वहीं संक्रमण के कारण मरने वालों की संख्या 4082 हो गयी है तथा अब तक 1,28,232 मरीज रोगमुक्त हुए हैं। कोरोना महामारी से अब तक मध्य प्रदेश में 962, राजस्थान में 767, पंजाब में 539, हरियाणा में 467, जम्मू-कश्मीर में 449, ओडिशा में 247, झारखंड में 151, असम में 132, उत्तराखंड में 112, केरल में 102, छत्तीसगढ़ में 87, पुड्डुचेरी में 75, गोवा में 70, त्रिपुरा में 37, चंडीगढ़ में 23, अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 19, हिमाचल प्रदेश में 14, मणिपुर में 10, लद्दाख में नौ, नागालैंड में सात, मेघालय में पांच, अरुणाचल प्रदेश में तीन, दादर-नागर हवेली एवं दमन-दीव में दो तथा सिक्किम में एक व्यक्ति की मौत हुई है।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 8 अगस्त। भारत सरकार ने आयकर विभाग में बड़े अफसरों के बहुत से तबादले किए हैं। जिनमें रायपुर के मुख्य आयकर आयुक्त राजकुमार लच्छीरामका को शिलांग का सीसीआईटी बनाया गया है। छत्तीसगढ़ के सीसीआईटी का अतिरिक्त प्रभार मध्यप्रदेश के सीसीआईटी अजय कुमार चौहान को दिया गया है।
सीबीडीटी के आदेश में करीब 30 अफसरों के तबादले और अतिरिक्त चार्ज हैं, लेकिन इनमें छत्तीसगढ़ को प्रभावित करने वाला यही एक मामला है।
मौतें-87, एक्टिव-3002, डिस्चार्ज-8319
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 8 अगस्त। प्रदेश में कोरोना मरीज साढ़े 11 हजार के आसपास पहुंच गए हैं और ये आंकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। बीती रात सामने आए 378 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 11 हजार 408 हो गई है। इसमें से 87 मरीजों की मौत हो गई है। 3 हजार 2 एक्टिव हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। 8 हजार 319 ठीक होकर अपने घर चले गए हैं। सैंपलों की जांच जारी है।
राजधानी रायपुर समेत प्रदेश के अधिकांश जिलों से नए-नए पॉजिटिव सामने आ रहे हैं। इसमें रायपुर से सबसे ज्यादा मरीज देखे जा रहे हैं। बुलेटिन के मुताबिक बीती रात 9 बजे नए 298 नए पॉजिटिव की पहचान की गई। इसमें रायपुर जिले से 118, दुर्ग से 30, बिलासपुर से 28, कांकेर से 26, रायगढ़ से 17, राजनांदगांव से 16, बलौदाबाजार व नारायणपुर से 9-9, महासमुंद से 6, सूरजपुर, जशपुर व सुकमा से 5-5, जांजगीर-चांपा व बस्तर से 4-4, कोरिया व गरियाबंद से 3-3, बालोद, बेमेतरा व दंतेवाड़ा से 2-2 एवं कोरबा, मुंगेली, गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही व सरगुजा से 1-1 मरीज शामिल रहे।
इसके बाद रात 11 बजे 80 और नए पॉजिटिव मिले। इसमें रायपुर जिले से 36, दुर्ग से 19, बस्तर से 10, राजनांदगांव, मुंगेली व सरगुजा से 3-3, बालोद, बेमेतरा, कबीरधाम, धमतरी, बिलासपुर, रायगढ़ से 1-1 मरीज शामिल रहे। ये सभी मरीज आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। दूसरी तरफ, इनके संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है। दूसरी तरफ, कल पांच महीने के एक बच्चे समेत 10 लोगों की मौत दर्ज की गई। ये सभी मरीज अलग-अलग गंभीर बीमारियों के साथ कोरोना से भी पीडि़त रहे।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि लॉकडाउन से कोरोना संक्रमण कम होगा, लेकिन इसके नतीजे बाद में सामने आएंगे। फिलहाल सैंपलों की जांच के साथ सैकड़ों पॉजिटिव मिल रहे हैं और ये सभी अस्पतालों में भर्ती किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ, भर्ती मरीज डिस्चार्ज हो रहे हैं। बीती रात में 231 मरीज ठीक होकर अपने घर लौटे हैं। उनका कहना है कि कोरोना से बचाव के लिए नियमों का पालन बहुत जरूरी है। थोड़ी सी लापरवाही जान पर भारी पड़ सकती है।
-बाबा मायाराम
‘मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं और न ही कभी छत्तीसगढ़ से बाहर गई हूं, लेकिन जब पहली बार राजस्थान गई और वहां सोलर इंजीनियर का प्रशिक्षण लिया, सौर बल्बों व बैटरी को सुधारना सीखा, तो मुझमें हिम्मत आई, आत्मविश्वास बढ़ा, और एक नई पहचान मिली।’ यह सरगुजा के मैनपाट की लोटाभावना गांव की पुष्पा लकड़ा थीं।
सरगुजा जिले में वे अकेली बेयरफुट सोलर इंजीनियर नहीं हैं, बल्कि यहां 8 महिलाओं ने इसका प्रशिक्षण प्राप्त किया है। पुष्पा लकड़ा की तरह पसेना गांव (लुंड्रा विकासखंड) की इंजूरिया, करदना गांव की झूंझापारा (बतौली विकासखंड) की अर्चना, टिरंग गांव (बतौली विकासखंड) की मुनेश्वरी आदि ने प्रशिक्षण लिया है।
सौर ऊर्जा से जलने वाले बल्ब उन गांवों में लगाए गए हैं, जहां अब तक बिजली नहीं पहुंची है, या उसकी उपलब्धता कम है। यह पहाड़ और जंगल के इलाके हैं जो दुर्गम हैं। पुष्पा लकड़ा कहती हैं कि जब उन्होंने अपने गांव में सौर ऊर्जा के बल्ब लगाए थे, तब वहां बिजली नहीं आई थी। बाद में पहुंची है,पर लोग सौर ऊर्जा के बल्बों को अब भी पसंद करते है, क्योंकि इसमें कोई बिल नहीं लगता है।
पुष्पा लकड़ा का गांव मैनपाट के इलाके में है, जो एक पर्यटन स्थल भी है। इसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। प्राकृतिक रूप से बहुत ही खूबसूरत इलाका है। यहां के जलप्रपात, झरने, नदियां, पहाड़ और जंगल मोहते हैं, आकर्षित करते हैं, पर लोगों का जीवन कठिन है।
राजस्थान में अजमेर जिले के तिलोनिया गांव में बेयरफुट कालेज है। इसे विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता बंकर राय व उनकी संस्था ने शुरू किया है। यहां पर उन गांववासियों को सीखने व प्रशिक्षण प्राप्त करने का मौका दिया जाता है, जो गांव की समस्याओं के समाधान में जुडऩा चाहते हैं। इसमें भी महिलाओं को विशेष तौर पर इससे जोड़ा जाता है।
बेयरफुट का हिन्दी में अर्थ नंगे पांव है, पर यहां उसका विशेष संदर्भ है। इस प्रशिक्षण केन्द्र का अर्थ है कि ऐसे व्यक्तियों को प्रशिक्षण देना जिन्हें गांव की, परिवेश की, जरूरतों की समझ व जानकारी हो और उनके समाधान में कोई व्यक्ति जुडऩा चाहता हो। चाहे वह डिग्रीधारी व डिप्लोमा प्राप्त भले ही न हो। ऐसे प्रशिक्षणकर्ताओं को बेयरफुट कहा गया है। इस कालेज में आपको बेयरफुट डाक्टर, टीचर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट, मैकेनिक मिलेंगे।
सरगुजा जिले में आदिवासियों के अधिकारों पर काम करने वाली चौपाल संस्था (चौपाल ग्रामीण विकास प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान) है। संस्था के प्रमुख गंगाराम पैकरा बताते हैं कि जब राजस्थान स्थित बेयरफुट कालेज से जब हमें सौर ऊर्जा का काम करने का प्रस्ताव मिला तब शुरू में कोई भी महिला वहां प्रशिक्षण के लिए जाने को तैयार नहीं थी। एक तो इसमें 6 महीने का लम्बा समय लगता है, दूसरा गांव की महिलाएं इससे पहले कभी बाहर नहीं गई थीं। फिर भी हमने उन्हें समझाया कि यह गांव के हित में है, तब वे वहां गईं और प्रशिक्षण प्राप्त किया।
इस इलाके में पहाड़ी कोरवा, पंडो और उरांव आदिवासी हैं। पहाड़ी कोरवा उन आदिम जनजाति में से एक है जिनका जीवन पहाड़ों व जंगलों पर निर्भर है। पहाड़ी कोरवा, भारत सरकार द्वारा घोषित विशेष पिछड़ी जनजाति समूह श्रेणी के हैं। इन इलाकों में बुनियादी सुविधाएं अब तक नहीं पहुंची हैं। जो महिलाएं, सोलर इंजीनियर का प्रशिक्षण प्राप्त करने राजस्थान गईं थीं, वे इन्हीं आदिवासियों में से थीं।
गंगाराम पैकरा बताते हैं कि पहली बार वर्ष 2015-16 में हमने 4 महिलाएं प्रशिक्षण लेने के लिए भेजीं। दूसरी बार फिर 4 महिलाएं गईं। इस प्रकार, 8 महिलाओं ने 6 महीने प्रशिक्षण प्राप्त किया। वहां से सौर बल्ब लगाने का सामान आया, बैटरी, सोलर पैनल और बल्ब आए, और गांव सौर बल्बों की रोशनी से रोशन हुए। करीब 10 गांव मोहल्लों में 500 बल्ब लगाए गए हैं। इससे लोग मोबाइल चार्ज भी करते हैं। अगर कोई बल्ब नहीं जलता है तो सोलर इंजीनियर महिला सुधार देती है। इसके लिए मरम्मत के लिए तीन कारखाने भी हैं जहां बल्ब, बैटरी, सोलर लालटेन सुधारी जाती हैं। सोलर इंजीनियर घर-घर जाकर देखती हैं कि कोई बल्ब खराब तो नहीं है, कई बार छत पर चढक़र देखती हैं।
सोलर इंजीनियर को हर माह 1000 रूपए की राशि दी जाती है। यह राशि गांव से ही एकत्र की जाती है। प्रत्येक घर से माहवार 50 रूपया लिया जाता है। गांव में ही ग्रामीण ऊर्जा एवं पर्यावरण समिति है, जिसका सचिव सोलर इंजीनियर को बनाया गया है। इस समिति का बैंक में खाता है, जो राशि गांव से एकत्र की जाती है, वह बैंक में जमा होती है। और उसी से सोलर इंजीनियर को मानदेय राशि दी जाती है। लेकिन गांव में लोगों की माली हालत ऐसी नहीं है कि वे 50 रूपए भी दे सकें, इसलिए कई बार यह राशि भी एकत्र नहीं हो पाती। लेकिन संस्था का प्रयास है कि यह काम नियमित रूप से चलता रहे।
चौपाल संस्था के 4 डिजीटल नाइट स्कूल भी हैं। हालांकि यह स्कूल रात में नहीं, दिन में चलते हैं, क्योंकि जंगल पहाड़ में बच्चों के लिए रात में स्कूल में आना मुश्किल है। इनमें से दो स्कूल लखनपुर विकासखंड में हैं और दो बतौली विकासखंड में। मैंने फरवरी माह में खिरखीरी गांव का डिजीटल नाइट का स्कूल देखा था। वहां के शिक्षक सुलेमान बड़ा से मिला था। यहां सौलर पैनल से संचालित प्रोजेक्टर से टेबलेट के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई की जा रही थी। यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ था। यहां जो शिक्षक हैं, वे कम से कम 12 वीं तक पढ़े लिखे हैं, और स्थानीय हैं।
कुल मिलाकर, इस पूरे काम के अच्छे परिणाम आए हैं। स्कूली बच्चे सौलर बल्ब की रोशनी में पढ़ रहे हैं, खाना पकाया जा रहा है, महिलाएं अतिरिक्त आमदनी के लिए खाली समय में चटाई, रस्सी व झाडू बना रही हैं, रात में धान कुटाई व घरेलू काम करती हैं, पुरूष रात में खाट बुनाई का काम करते हैं। जंगल में अंधेरी रात में आना जाना भी मुश्किल है, सोलर बल्ब की रोशनी में अब इसमें आसानी हो गई है। सांप- बिच्छू के काटने से भी लोग बचते हैं। जंगली जानवरों के आक्रमण से भी बचाव कर पाते हैं। मोबाइल चार्ज भी कर पाते हैं।
इसके अलावा, ग्रामीण प्रतिभाओं को समस्याओं के समाधान में जुडऩे का मौका मिला है। उनके परिवेश व जरूरतों के अनुसार उभरने, खिलने व कार्य करने का अवसर मिला है। गांव समुदायों में आत्मनिर्भरता व आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलता है। चूंकि सभी सोलर इंजीनियर आदिवासी महिलाएं हैं, इसलिए यह महिला सशक्तीकरण का भी अच्छा उदाहरण है। जो महिलाएं कभी घर से बाहर निकली थीं, वे गांव गांव जाकर सोलर बल्ब की मरम्मत कर रही हैं। जलवायु बदलाव के दौर में अक्षय ऊर्जा का महत्व बढ़ गया है, जब तेल, गैस व कोयला जैसे संसाधनों में कमी देखी जा रही है। विशेषकर छोटे पैमाने पर यह बहुत उपयोगी है। यह सराहनीय होने के साथ अनुकरणीय पहल है। (vikalpsangam)
(विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख)
भोपाल/रीवा, 8 अगस्त। मध्य प्रदेश के रीवा में जब दर्द से कराहती पत्नी को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस ने मना कर दिया, तब लाचार मज़दूर ने अपनी पत्नी को खटिया पर लेटा कर खुद अस्पताल पहुँचाना पड़ा। बदहाल सिस्टम की यही तस्वीर रीवा के त्योंथर प्रखंड के बरहा गाँव की है। राखी के दिन गाँव के एक मज़दूर की पत्नी की तबियत अचानक ही बिगड़ गई। पत्नी दर्द से करहा रही थी,एम्बुलेंस रास्ता ख़राब होने के कारण पत्नी को लेने नहीं आई। आखिर परेशान मज़दूर ने खुद अपने परिजनों के साथ मिलकर अपनी पत्नी को गाँव से 5 किलोमीटर का सफर खाट पर तय कर अस्पताल पहुंचाया। ये बदहाल स्वास्थ्य सिस्टम मध्य प्रदेश में पिछले 15 सालों में BJP सरकार के विकास के वादों और दावों की पोल खोलती नज़र आती है।
दरअसल गाँव में किसी पक्की सड़क के न होने के कारण बारिश के मौसम में बरहा पहुंचना काफी मुश्किल भरा काम हो जाता है। ऐसे में रक्षा बंधन के त्यौहार के दिन जब मज़दूर रामसखा साकेत की पत्नी की तबियत बिगड़ी तब मज़दूर और उसके परिजनों के पास ऐसा कोई भी साधन नहीं बचा जिससे वे दर्द से कराह रही औरत को अस्पताल पहुंचा सकें। रामसखा साकेत ने एम्बुलेंस को फोन किया लेकिन एम्बुलेंस तक ने गाँव आने से इंकार कर दिया। मजबूरन रामसखा साकेत को अपने परिजनों की सहायता से पत्नी को खटिया के सहारे अपनी पत्नी को गाँव से तकरीबन पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित शंकरगढ़ अस्पताल ले जाना पड़ा।
पूरे मामले का वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। सोशल मीडिया पर लोग शिवराज सरकार के विकास के दावों को झूठा बता रहे हैं। लोगों का कहना है कि जब 15 साल सत्ता में रहने के बाद भी प्रदेश के गाँवों तक पहुँचने के लिए सड़क नहीं है, तब आखिर प्रदेश में शिवराज सरकार कौन से विकास की दुहाई देती है।
शिवराज जी रक्षाबंधन के दिन मेरे रीवा ज़िले के त्योंथर में आपकी दलित बहन को इस तरह से अस्पताल ले जाना पड़ता है! इसी विकास का गाना गाते हैं ना आप? याद रखिएगा यह आपकी CM के तौर पर 15वीं राखी थी। अब आप ही बताइए किस मामा की संज्ञा आपको दी जाय? @OfficeOfKNath @INCMP @jitupatwari pic.twitter.com/UOcoARp0sQ
— Siddharth Tiwari (@SiddharthCong) August 6, 2020
शिवराज को किस मामा की संज्ञा दी जाए?
क्षेत्र के कांग्रेस नेता सिद्धार्थ तिवारी ने वीडियो वायरल होने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर निशाना साधा है। सोशल मीडिया पर उन्होंने घटना का वीडियो साझा करते हुए मुख्यमंत्री पर जमकर हमला बोला है। तिवारी ने कहा है 'शिवराज जी रक्षाबंधन के दिन मेरे रीवा ज़िले के त्योंथर में आपकी दलित बहन को इस तरह से अस्पताल ले जाना पड़ता है! इसी विकास का गाना गाते हैं ना आप? याद रखिएगा यह आपकी CM के तौर पर 15वीं राखी थी। अब आप ही बताइए किस मामा की संज्ञा आपको दी जाए? (humsamvet.com)
-भूमिका राय
कोझिकोड में हुए विमान हादसे में 18 लोगों की मौत हो गई है और कऱीब 20 यात्री बुरी तरह जख्मी हैं। यात्रियों का इलाज मल्लपुरम और कोझिकोड के अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है। यह विमान दुबई से लौट रहा था और इसमें चालक दल समेत 190 यात्री सवार थे।
नागरिक उड्डयन निदेशालय ने कहा है कि ये हादसा शुक्रवार रात को हुआ। हादसे के समय भारी बारिश हो रही थी और विज़ीबिलिटी कम थी। लैंडिग करते समय विमान रनवे से हट कर आगे 35 फीट घाटी में गिर गया और दो टुकड़ों में टूट गया।
जहां विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की एक वजह जहां तेज़ बारिश के कारण विज़ीबिलिटी की कमी को माना जा रहा है वहीं जानकार इसकी वजह कोझिकोड के टेबलटॉप रनवे को भी मान रहे हैं।
एनडीआरएफ के डीजी एसएन प्रधान ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से कहा कि ‘विमान 30 से 35 फीट तक नीचे गिरा है। हो सकता है कि इसी कारण विमान दो टुकड़ों में टूट गया। हमें यह ज़रूर समझना होगा कि यह एक टेबल-टॉप रनवे है।’
लेकिन टेबल टॉप रनवे होता क्या है?
टेबल टॉप रनवे एक ऐसा रनवे होता है जो अमूमन पहाड़ी या पठारी जगहों पर बनाया जाता है। पहाड़ों पर समतल जगह कम होने के कारण ऐसी हवाई पट्टी बनाई जाती है जिसके आसपास कम ही जगह बचती है। इसमें कई बार या तो एक ओर या फिर दोनों ही ओर गहरी ढलान या खाई हो सकती है जो बहुत गहरी भी हो सकती है।
भारत में ऐसे तीन रनवे हैं। मंगलौर, कोझिकोड और लेंगपुई। इन तीनों ही जगहों पर टेबलटॉप रनवे है।
नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर एक एविएशन एक्सपर्ट ने बीबीसी को बताया कि आम भाषा में समझें तो जिस तरह हमारे घरों में टेबल होता है ये रनवे कुछ-कुछ वैसा ही है। यानी सीमित जगह पर रनवे है और जैसे ही वो रनवे ख़त्म होता है खाई है। ऐसे में अगर समय ब्रेक नहीं लग पाएगा या लैंडिंग के वक्त विमान रुक नहीं पाएगा तो हादसा होने की आशंका बढ़ जाएगी।
Mangalore airport
टेबल टॉप रनवे को अगर किसी समतल रनवे से तुलना करके समझें तो, अगर किसी समतल रनवे पर कोई हादसा होता है और विमान गति को नियंत्रित नहीं किया सका तो वो रनवे को पार करके आगे निकल जाएगा। विमान गिरेगा तो नहीं लेकिन रनवे के बाहर की ज़मीन पर चला जाएगा। हालांकि ऐसे रनवे बेहद ख़तरनाक होते हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता। जो इलाके पहाड़ी हैं और पठारी हैं तो वहां टेबल टॉप रनवे बनाना एक विकल्प है।
एविएशन एक्सपर्ट बताते मानते हैं कि टेबल टॉप रनवे का खतरा सिर्फ ये है कि इसमें मार्जिन नहीं है।
कोझिकोड हादसे मे अभी जांच होनी है और उसके बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि हादसे का मुख्य कारण क्या था लेकिन आम तौर पर ऐसे हादसे ब्रेक नहीं लगने या समय पर ब्रेक नहीं लगने से होते हैं।
बीते कई सालों से विशेषज्ञ कोझिकोड एयरपोर्ट की सुरक्षा को लेकर चिंता ज़ाहिर करते रहे हैं। खासतौर पर बड़े विमानों के संचालन के संदर्भ में। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने कुछ सालों पहले यहां रनवे-एंड सेफ़्टी एरिया जोड़ा है लेकिन कई लोगों ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि क्या सिर्फ इतना किया जाना पर्याप्त है।
यशवंत शेनॉय एक वकील और एक्टिविस्ट हैं। वे एविएशन सेफ़्टी को लेकर सालों से सक्रिय हैं। वे कहते हैं कि यह दुर्घटना होना लगभग तय था। इस तरह की दुर्घटना कभी भी हो सकती थी। वे कहते हैं कि हादसे का कारण क्या है ये तो नहीं पता लेकिन इतना ज़रूर है कि इससे आश्चर्य नहीं हुआ।
Lengpui Airport, Mizoram.
वो कहते हैं, ‘किसी भी एयरपोर्ट के लिए आपको कम से कम 150 मीटर का क्षेत्र रनवे के दोनों छोर पर देना चाहिए। कालीकट का एयरपोर्ट इस क्राइटेरिया को पूरा नहीं करता है। साथ ही यह विशालकाय विमानों के लिए भी उपयुक्त नहीं है। बल्कि बेहद खतरनाक है।’
‘लेकिन हज के लिए विमान यहीं से उड़ान भरते हैं जो काफी भारी-भरकम होते हैं। मैंने डीजीसीए को कई ई-मेल लिखे ताकि उनकी जानकारी में ये बात ला सकूं लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हो सका है। ऐसे में यह दुर्घटना मुझे बहुत चौंकाती नहीं है। मैं उम्मीद करता हूं कि अब लोगों को ध्यान इस ओर जाएगा।’
वो कहते हैं कि ‘अभी हादसे का निश्चित कारण बता पाना मुश्किल है लेकिन बारिश के कारण मुश्किल बढ़ जाती है लेकिन आप सिर्फ मौसम पर दोष नहीं डाल सकते।’
शेनॉय मेंगलोर में 22 मई 2010 में हुए हादसे को भी याद करते हैं जब लगभग ऐसे ही हादसे में 158 लोगों की जान चली गई थी। हालांकि कोझिकोड में यह पहला मौका नहीं है जब विमान रनवे पार करके निकल गया हो। इससे पहले साल 2017 में भी ऐसा हो चुका है। (bbc.com/hindi)
राजनांदगांव में आज सुबह हाई कोर्ट जज गौतम चौरडिया के बेटे प्रियांश चौरड़िया की एक सड़क हादसे में मौके पर ही मौत हो गयी.
प्रियांश सुबह अपनी कार में पेट्रोल भरवाने निकला था, शहर के बाहर पाताल भैरवी मंदिर के सामने कार एक ट्रेलर की चपेट में आ गयी, और बुरी तरह कुचल गयी. प्रियांश के मौके पर ही मौत हो गयी. अभी कुछ महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जज व राजनांदगांव निवासी गौतम चौरडिय़ा के सुपुत्र की शनिवार सुबह एक सडक़ हादसे में दर्दनाक मौत हो गई। बताया गया है कि जज के सुपुत्र प्रियांश चौरडिय़ा का सुबह 6 बजे के आसपास राजनांदगांव शहर के नागपुर दिशा में पाताल भैरवी मंदिर के पास नेशनल हाईवे में सडक़ दुर्घटना का शिकार हो गए।
बताया गया है कि वह अपने कार में पेट्रोल लेने के लिए सुबह घर से निकले थे। इसी बीच एक ट्रेलर की चपेट में आने से उनकी कार का सामने का हिस्सा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। आसपास के लोगों की मदद से जज के सुपुत्र को बाहर निकाला गया।
बताया गया है कि मृतक अपनी कार में सवार होकर फ्लाई ओवर से जब गुजर रहा था, उसी दौरान ट्रेलर के पीछे उसकी कार जा घुसी। फ्लाई ओवर से कार को ट्रेलर खींचते हुए पाताल भैरवी मंदिर तक ले गया। बताया गया है कि 112 की टीम ने पीछा करते हुए ट्रेलर को रूकवाया, तब कहीं कार को ट्रेलर से निकाला गया। बताया गया है कि हादसे में प्रियांश चौरडिय़ा की मौके पर ही मौत हो गई थी। मामले की पुलिस जांच कर रही है।
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि आशा कार्यकर्ता देशभर में घर-घर तक स्वास्थ्य सुरक्षा पहुंचती हैं। वो सच मायने में स्वास्थ्य वॉरीयर्स हैं लेकिन आज खुद अपने हक के लिए हड़ताल करने पर मजबूर हैं। सरकार गूंगी तो थी ही, अब शायद अंधी-बहरी भी है।
आशा कार्यकर्ता देशभर में घर-घर तक स्वास्थ्य सुरक्षा पहुँचती हैं। वो सच मायने में स्वास्थ्य वॉरीयर्स हैं लेकिन आज ख़ुद अपने हक़ के लिए हड़ताल करने पर मजबूर हैं।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 8, 2020
सरकार गूँगी तो थी ही, अब शायद अंधी-बहरी भी है।https://t.co/Swddx6lbof
हरियाणा के हिसार में देख न पाने वाली एक लड़की सुप्रिया के इम्तिहान में उसकी कॉपी ऐसी जांची कि उसे शून्य नंबर मिले. जांचने वाले ने यह समझा ही नहीं कि वह नेत्रहीन है. जब पुनर्मूल्यांकन हुआ, तो उसे 100 नंबर मिले ! (ani)
इस समय 209 देश 14 इस हालत में हैं
कुछ देश लॉकडाउन में लगातार ढील दे रहे हैं, तो दूसरे देशों से नए मामलों की रिपोर्ट आ रही है. वैश्विक स्तर पर मिल रहे आंकड़े दिखाते हैं कि महामारी का फिलहाल अंत नहीं दिख रहा. डॉयचे वेले लेकर आया है आपके लिए ताजा आंकड़े.
कोरोना वायरस का वैश्विक रुझान क्या है?
सभी देशों का लक्ष्य है चार्ट के नीले हिस्से की ओर जाना और वहां बने रहना. इस सेक्शन के देशों ने पिछले सात दिनों में और उससे पहले के एक हफ्ते में किसी नए संक्रमण की सूचना नहीं दी है.
इस समय 209 देशों में 14 इस हालत में हैं.
पिछले हफ्तों में कोविड-19 का रुझान किस तरह बदला है?
स्थिति थोड़ी बिगड़ी है: पिछले हफ्ते के मुकाबले इस हफ्ते 87 देशों ने संक्रमण के ज्यादा मामलों की रिपोर्ट दी है.
मेरे देश में कोविड-19 की मौजूदा हालत क्या है?
पिछले 14 दिनों में कोविड-19 के मामलों के नए आंकड़ों के आधार पर देशों और क्षेत्रों का क्लासिफिकेशन:
इस हफ्ते यहां देखे गए पिछले हफ्ते की तुलना में दोगुने से ज्यादा नए मामले:
एशिया: साइप्रस, फिलीपींस, वियतनाम
अफ्रीका: बेनिन, जीबूती, गाम्बिया
अमेरिका: अरूबा, बरबाडोस, बेलीज, गुयाना, टर्क्स एंड केकोस आइलैंड्स, यूएस वर्जिन आइलैंड्स
यूरोप: एस्तोनिया, फिनलैंड, ग्रीस, जर्सी, माल्टा, नॉर्वे
ओशिआनिया: गुआम, न्यूूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी
इस हफ्ते पिछले हफ्ते की तुलना में ज्यादा नए मामले:
एशिया: भारत, ईरान, इराक, जापान, लेबनान, माल्दीव,
नेपाल, सिंगापुर, सीरिया, तिमोर लेस्ट, तुर्की, उज्बेकिस्तान
अफ्रीका: अंगोला, केप वैर्डे, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो,
इक्वेटोरियल गिनी, घाना, गिनी बिसाउ, केन्या, लीबिया, मोरक्को,
मोजांबिक, नामीबिया, नाइजर, सेशेल्स, दक्षिण सूडान, सूडान, ट्यूनीशिया, जिम्बाब्वे
अमेरिका: अर्जेंटीना, बहामस, बोलिविया, बोनेयर, ब्रिटिश वियतनाम आइलैंड,
कोलंबिया, क्यूबा, अल सल्वाडोर, जमैका, मेक्सिको, पाराग्वे, पेरू,
पुएर्तो रिको, सेंट विंसेंट, सूरीनाम, ट्रिनिडाड और टोबैगो, वेनेजुएला
यूरोप: अल्बानिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड,
इटली, लाटविया, लिथुएनिया, मोल्दोवा, नीदरलैंड्स, पोलैंड, सान मरीनो,
स्लोवाकिया, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, यूूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम
ओशिआनिया: ऑस्ट्रेलिया
इस हफ्ते भी पिछले हफ्ते जितने नए मामले (कोई बदलाव नहीं या प्लस माइनस 7 मामले):
एशिया: भूटान, मंगोलिया, म्यांमार, ताइवान, थाइलैंड
अफ्रीका: बुरकिना फासो, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, माली, यूगांडा
अमेरिका: बैरमुडा, कुरासाव, निकारागुआ, सिंट मार्टिन
यूरोप: जिब्राल्टर, मोनक्को
ओशिआनिया: नदर्न मारियाना आइलैंड्स
यहां देखे गए पिछले हफ्ते के मुकाबले कम नए मामले:
एशिया: अफगानिस्तान, अर्मेनिया, अजरबाइजान, बहरीन, बांग्लादेश, चीन, जॉर्जिया,
इंडोनेशिया, इस्राएल, जॉर्डन, कजाखस्तान, कुवैत, किर्गिस्तान, मलेशिया, पाकिस्तान,
फलीस्तीन, कतर, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया, ताजिकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, यमन
अफ्रीका: अल्जीरिया, बोत्स्वाना, कैमरून, कॉन्गो, एस्वातिनी, इथियोपिया,
गाबोन, गिनी, लेसोथो, लाइबेरिया, मैडागास्कर, मलावी, नाइजीरिया,
सेनेगल, सियरा लियोने, दक्षिण अफ्रीका, टोगो, जाम्बिया
अमेरिका: ब्राजील, कनाडा, चिली, कोस्टा रिका, डोमिनिकन रिपब्लिक,
इक्वाडोर, गुआतेमाला, हैती, होंडुरास, पनामा, संयुक्त्त राज्य अमेरिका, उरुग्वे
यूरोप: अंडोरा, ऑस्ट्रिया, बेलारूस, बेल्जियम, बोसनिया हैर्जेगोविना, बल्गारिया,
क्रोएशिया, चेक रिपब्लिक, फेरो आइलैंड्स, हंगरी, कोसोवो, लक्जेमबुर्ग,
मोंटेनेग्रो, नॉर्थ मैसेडोनिया, पुर्तगाल, रोमानिया, रूस, सर्बिया, स्लोवेनिया
यहां देखे गए पिछले हफ्ते के मुकाबले आधे से कम नए मामले:
एशिया: कंबोडिया, लाओस, ओमान, श्रीलंका
अफ्रीका: बुरूंडी, चाड, कोमोरोस, कोट डिवुआ, मिस्र, एरिट्रिया,
मौरितानिया, मॉरीशस, रवांडा, साओ टोमे एंड प्रिंसिपे, सोमालिया
अमेरिका:अंटीगुआ और बारबुडा, ग्रीनलैंड, ग्रेनेडा, सेंट लूशिया
यूरोप: लिष्टेनस्टाइन
यहां देखे गए इस हफ्ते और पिछले हफ्ते जीरो मामले:
एशिया: ब्रूनेई
अफ्रीका: तंजानिया, पश्चिमी सहारा
अमेरिका: अंगुइला, केमैन आइलैंड्स, डोमिनिका, फाल्कलैंड्स, सेंट किट्स
यूरोप: गर्नजी, होली सी, आइल ऑफ मैन
ओशिआनिया: फिजी, फ्रेंच पोलिनेशिया, न्यू कैलेडोनिया
ये चार्ट और आर्टिकल हर शुक्रवार 11 बजे से 1 बजे यूटीसी के बीच अपडेट किया जाता है.
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वाशिंगटन, 8 अगस्त (आईएएनएस)| जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, दुनियाभर में कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 1.92 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई है, जबकि इससे होने वाली मौतों की संख्या 719,000 से अधिक हो गई हैं।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि शनिवार की सुबह तक, कुल मामलों की संख्या 19,295,350 थी और इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर 719,805 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका संक्रमण के सबसे अधिक 4,940,939 मामलों और 161,328 मौतों के साथ दुनिया का सर्वाधिक प्रभावित देश है।
ब्राजील 2,962,442 संक्रमण और 99,572 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, मामलों की ²ष्टि से भारत तीसरे (2,027,074) स्थान पर है, और उसके बाद रूस (875,378), दक्षिण अफ्रीका (545,476), मेक्सिको (469,407), पेरू (455,409), चिली (368,825), कोलम्बिया (357,710), ईरान (322,567), स्पेन (314,362), ब्रिटेन (310,667), सऊदी अरब (285,793), पाकिस्तान (282,645), बांग्लादेश (252,502), इटली (249,756), तुर्की (238,450), अर्जेंटीना (235,677), फ्रांस (235,207), जर्मनी (216,196), इराक (144,064), फिलीपींस (122,754), इंडोनेशिया (121,226), कनाडा (120,901) और कतर (112,383) है।
वहीं 10,000 से अधिक मौतों वाले अन्य देश मेक्सिको (51,311), ब्रिटेन (46,596), भारत (41,585), इटली (35,190), फ्रांस (30,327), स्पेन (28,503), पेरू (20,424), ईरान (18,132), रूस (14,698) और कोलम्बिया (11,939) हैं।
वीडियो पोस्ट किया है विश्वविख्यात रेतकलाकार सुदर्शन पटनायक ने...
Jai Jagannath.......???? pic.twitter.com/9dyZiAY8Ug
— Sudarsan Pattnaik (@sudarsansand) August 8, 2020
अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद अब कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र के दो अहम मुद्दे पूरे कर लिए हैं. पहला-जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाना और दूसरा-राम मंदिर के निर्माण की राह प्रशस्त करना.
राम मंदिर के शिलान्यास के अगले ही दिन सोशल मीडिया पर लोगों ने बीजेपी का ध्यान तीसरे वादे, यानी समान नागरिक संहिता यानी 'यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड' लागू करने की तरफ़ खींचा.
इसको लेकर सुबह से ही लोगों ने ट्वीट करने शुरू कर दिए. इनमें से सबसे ज़्यादा ग़ौर करने वाला ट्वीट पत्रकार शाहिद सिद्दीक़ी का था जिन्होंने समान नागरिक संहिता के लागू होने की तारीख़ का भी अंदाज़ा लगा लिया और लिखा कि ये काम भी सरकार पांच अगस्त 2021 तक पूरा कर देगी.
भारत में यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस आज़ादी के ज़माने से ही चल रही है.
भारत के संविधान के निर्माताओं ने सुझाव दिया था कि सभी नागरिकों के लिए एक ही तरह का क़ानून रहना चाहिए ताकि इसके तहत उनके विवाह, तलाक़, संपत्ति-विरासत का उत्तराधिकार और गोद लेने के अधिकार को लाया जा सके.
इन मुद्दों का निपटारा वैसे आम तौर पर अलग-अलग धर्म के लोग अपने स्तर पर ही करते रहे हैं.
हर धर्म के लिए समान क़ानून की बहस
इस पेशकश को 'डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी' यानी राज्य के नीति निदेशक तत्वों में रखा गया. फिर भी संविधान निर्माताओं को लगा था कि देश में समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
क़ानून के जानकार कहते हैं भारत में समाजिक विविधता देखकर अंग्रेज़ शासक भी हैरान थे. वो इस बात पर भी हैरान थे कि चाहे वो हिन्दू हों या मुसलमान, पारसी हों या ईसाई, सभी के अपने अलग क़ायदे क़ानून हैं.
इसी वजह से तत्कालीन ब्रितानी हुकूमत ने धार्मिक मामलों का निपटारा भी उन्हीं समाजों के परंपरागत क़ानूनों के आधार पर ही करना शुरू कर दिया.
जानकार कहते हैं कि इस दौरान राजा राममोहन रॉय से लेकर कई समाजसेवियों ने हिंदू समाज के अंदर बदलाव लाने का काम किया जिसमें सती प्रथा और बाल विवाह जैसे प्रावधानों को ख़त्म करने की मुहिम चलाई गयी.
आज़ादी के बाद भारत में बनी पहली सरकार 'हिंदू कोड बिल' लेकर आई जिसका उद्देश्य बताया गया कि ये हिंदू समाज की महिलाओं को उन पर लगी बेड़ियों से मुक्ति दिलाने काम करेगा. मगर हिंदू कोड बिल को संसद में ज़ोरदार विरोध का सामना करना पड़ा.
विरोध कर रहे सांसदों का तर्क था कि जनता के चुने गए प्रतिनिधि ही इस पर निर्णय ले सकेंगे क्योंकि यह बहुसंख्यक हिंदू समाज के अधिकारों का मामला है.
कुछ लोगों की नाराज़गी थी कि नेहरू की सरकार सिर्फ़ हिंदुओं को ही इससे बाँधना चाहती है, जबकि दूसरे धर्मों के अनुयायी अपनी पारम्परिक रीतियों के हिसाब से चल सकते हैं.
हिंदू कोड बिल पारित तो नहीं हो पाया मगर 1952 में हिन्दुओं की शादी और दूसरे मामलों पर अलग-अलग कोड बनाए गए.
कुछ प्रमुख कोड
1955 में 'हिंदू मैरिज एक्ट' बनाया गया जिसमें तलाक़ को क़ानूनी मान्यता देने के अलावा अंतरजातीय विवाह को भी मान्यता दी गई. मगर एक से ज़्यादा शादी को ग़ैरक़ानूनी ही रखा गया.
1956 में ही 'हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम', 'हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम' और 'हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम' लाया गया.
हिन्दुओं के लिए बनाए गए कोड के दायरे में सिखों, बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों को भी लाया गया.
अंग्रेज़ों की हुकूमत के दौरान भी भारत में मुसलमानों के शादी-ब्याह, तलाक़ और उत्तराधिकार के मामलों का फ़ैसला, शरीयत के अनुसार ही होता था.
जिस क़ानून के तहत ऐसा किया जाता रहा, उसे 'मोहम्मडन लॉ' के नाम से जाना जाता है. हालांकि इसकी ज़्यादा व्याख्या नहीं की गई है मगर 'मोहम्मडन लॉ' को 'हिंदू कोड बिल' और इस तरह के दूसरे क़ानूनों के बराबर की ही मान्यता मिली. यह क़ानून 1937 से ही चला आ रहा है.
शाह बानो मामले से आया मोड़
ये क़ानूनी व्यवस्था, संविधान में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार यानी अनुच्छेद-26 के तहत की गई. इसके तहत सभी धार्मिक संप्रदायों और पंथों को सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के मामलों का स्वयं प्रबंधन करने की आज़ादी मिली.
इसमें मोड़ तब आया जब वर्ष 1985 में मध्य प्रदेश की रहने वाली शाह बानो को उनके पति ने तलाक़ दे दिया और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने उनके पति को आदेश दिया कि वो शाह बानो को आजीवन गुजारा भत्ता देते रहें.
शाह बानो के मामले पर जमकर हंगामा हुआ और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने संसद में 'मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स आफ डिवोर्स) एक्ट पास कराया जिसने सुप्रीम कोर्ट के शाह बानो के मामले में दिए गए फ़ैसले को निरस्त करते हुए निर्वाह भत्ते को आजीवन न रखते हुए तलाक़ के बाद के 90 दिन तक सीमित रख दिया गया.
इसी के साथ ही 'सिविल मैरिज एक्ट' भी आया जो देश के सभी लोगों पर लागू होता है. इस क़ानून के तहत मुसलमान भी कोर्ट में शादी कर सकते हैं.
एक से अधिक विवाह को इस क़ानून के तहत अवैध क़रार दिया गया. इस एक्ट के तहत शादी करने वालों को भारत उत्तराधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया और तलाक़ की सूरत में गुज़ारा भत्ता भी सभी समुदायों के लिए एक सामान रखने का प्रावधान किया गया.
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तीन तलाक़ और मुसलमान महिलाओं के हक़
यहाँ ग़ौर करने वाली बात ये है कि विश्व में 22 इस्लामिक देश ऐसे हैं जिन्होंने तीन बार तलाक़ बोलने की प्रथा को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है. इनमें पकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, ट्यूनीशिया और अल्जीरिया जैसे देश शामिल हैं.
पकिस्तानी तीन तलाक़ की प्रथा में बदलाव लाने की प्रक्रिया 1955 की एक घटना के बाद शुरू हुई जब वहाँ के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने पत्नी के रहते हुए अपनी निजी सचिव से शादी की थी.
इस शादी का पकिस्तान में जमकर विरोध हुआ था जिसके बाद पकिस्तान की सरकार ने सात सदस्यों वाली एक आयोग का का गठन किया था.
अब जो प्रावधान पकिस्तान में बनाए गए हैं उनके तहत पहली बार तलाक़ बोलने के बाद व्यक्ति को 'यूनियन काउन्सिल' के अध्यक्ष को नोटिस देना अनिवार्य है. इसकी एक प्रति पत्नी को भी देना उसपर अनिवार्य किया गया है.
इन नियमों के उल्लंघन पर पकिस्तान जैसे इस्लामिक देश में एक साल की सज़ा और 5000 रुपये के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है. भारत में काफी बहस और विवाद के बाद आख़िरकार तीन बार तलाक़ बोलने के ख़िलाफ़ एक क़ानून बनाने में कामियाबी हासिल की गई.
केंद्र सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी का दावा है कि नए क़ानून का लाभ हज़ारों मुस्लिम समाज की महिलाओं को मिला. उनका कहना था कि क़ानून की वजह से ही तलाक़ के मामलों में भी काफ़ी कमी आई है.
वर्ष 2016 में भारत के विधि आयोग ने 'यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड' यानी समान नागरिक संहिता को लेकर आम लोगों की राय माँगी थी. इसके लिए आयोग ने प्रश्नावली भी जारी की जिसे सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया था.
इसमें कुल मिलाकर 16 बिंदुओं पर लोगों से राय माँगी गयी थी. हालांकि पूरा फ़ोकस इस बात पर था कि क्या देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान संहिता होनी चाहिए?
अब समान नागरिक संहिता की बारी?
प्रश्नावली में विवाह, तलाक़, गोद लेना, गार्डियनशिप, गुज़ारा भत्ता, उत्तराधिकार और विरासत से जुड़े पूछे गए थे.
आयोग ने इस बारे में भी राय मांगी थी कि क्या ऐसी संहिता बनाई जाए जिससे अधिकार समान तो मिले ही साथ ही साथ, देश की विविधता भी बनी रहे. लोगों से यह भी पूछा गया था कि क्या समान नागरिक संहिता 'ऑप्शनल' यानी वैकल्पिक होनी चाहिए?
लोगों की राय पॉलीगेमी यानी बहुपत्नी प्रथा, पोलियानडरी (बहु पति प्रथा), गुजरात में प्रचलित मैत्री क़रार सहित समाज की कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में भी माँगी गयी थी जो अन्य समुदायों और जातियों में प्रचलित हैं.
इन प्रथाओं को क़ानूनी मान्यता तो नहीं है मगर समाज में इन्हें कहीं-कहीं पर स्वीकृति मिलती रही है. देश के कई प्रांत हैं जहां आज भी इनमे से कुछ मान्यताओं का प्रचलन जारी है.
गुजरात में 'मैत्री क़रार' एकमात्र ऐसा प्रचलन है जिसकी क़ानूनी मान्यता है क्योंकि यह क़रार मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर से ही अनुमोदित होता है.
विधि आयोग ने पूछा था कि क्या ऐसी मान्यताओं को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए या फिर इन्हें क़ानून के ज़रिए नियंत्रित करना चाहिए?
आयोग ने लोगों से मिले सुझाव के बिनाह पर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. मगर अभी तक पता नहीं चल पाया है कि इस रिपोर्ट का आख़िर क्या हुआ.
वैसे, जानकारों को लगता है कि जिस तरह सरकार ने 'ट्रिपल तलाक़' पर क़ानून बनाया है, उसी तरह समान नागरिक संहिता पर भी कोई क़ानून भी आ सकता है.
एक नज़र डालते हैं समाज में चल रहीं कुछ प्रथाओं पर:
पॉलीगैमी (बहुपत्नी प्रथा)
वर्ष 1860 में भारतीय दंड विधान की धारा 494 और 495 के तहत ईसाइयों में पॉलीगैमी को प्रतिबंधित किया गया था. 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट में उन हिन्दुओं के लिए दूसरी शादी को ग़ैर क़ानूनी क़रार दिया गया जिनकी पत्नी जीवित हो.
1956 में इस क़ानून को गोवा के हिन्दुओं के अलावा सब पर लागू कर दिया गया. मुसलमानों को चार शादियां करने की छूट दी गई क्योंकि उनके लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ था. लेकिन हिन्दुओं में भी पॉलीगैमी का चलन काफी चिंता का विषय रहा है.
सिविल मैरिज एक्ट के तहत की गयी शादियों में सभी समुदाय के लोगों के लिए पॉलीगैमी ग़ैरक़ानूनी है.
पोलिऐंड्री (बहु-पति प्रथा)
बहुपति प्रथा का चलन वैसे तो पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है. फिर भी कुछ सुदूर इलाक़े ऐसे हैं जहां से कभी कभी इसके प्रचलन की ख़बर आती रहती है.
इस प्रथा का प्रचलन ज़्यादातर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में ही हुआ करता था जो तिब्बत के पास भारत-चीन सीमा के आस-पास का इलाक़ा है.कई लोगों का मानना है कि महाभारत के मुताबिक इसी इलाक़े में पांडवों का पड़ाव रहा. इसीलिए कहा जाता है कि बहुपति प्रथा का चलन यहां रहा है.
इसके अलावा इस प्रथा को दक्षिण भारत में मालाबार के इज़्हावास, केरल के त्रावनकोर के नायरों और नीलगिरी के टोडास जनजाति में भी देखा गया है. विधि आयोग की प्रश्नावली में बहुपति प्रथा के बारे में भी सुझाव मांगे गए थे.
मुत्तह निकाह
इसका प्रचलन ज़्यादातर ईरान में रहा है जहां मुसलमानों के शिया पंथ के लोग रहते हैं. ये मर्द और औरत के बीच एक तरह का अल्पकालिक समझौता है जिसकी अवधि दो या तीन महीनों की होती है.
अब ईरान में भी यह ख़त्म होने के कगार पर है. भारत में शिया समुदाय में इसका प्रचलन नहीं के बराबर ही है.
चिन्ना वीडु
चिन्ना वीडु यानी छोटा घर का संबंध मूल रूप से दूसरे विवाह से जुड़ा हुआ है. इसे कभी तमिलनाडु के समाज में मान्यता मिली हुई थी. यहां तक कि एक बड़े राजनेता ने भी एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह किया था.
हालांकि तमिलनाडु में इस प्रथा को बड़ी सामाजिक बुराई के तौर पर देखा जाने लगा और अब ये पूरी तरह से ख़त्म होने के कगार पर है.
मैत्री क़रार
ये प्रथा गुजरात की रही है जिसे स्थानीय स्तर पर क़ानूनी मान्यता भी मिली हुई है क्योंकि इस 'लिखित क़रार' का अनुमोदन मजिस्ट्रेट ही करता है. इसमें पुरुष हमेशा शादीशुदा ही होता है.
यही कारण है कि ये आज भी जारी है. मैत्री क़रार यानी दो वयस्कों के बीच एक तरह का समझौता जिसे मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में लिखित तौर पर तय किया जाता है. ये मर्द और औरत के बीच एक तरह का 'लिव-इन रिलेशनशिप' है. इसीलिए इसे 'मैत्री क़रार' कहा जाता है.
गुजरात में सभी जानते हैं कि कई नामी-गिरामी लोग इस तरह के रिश्ते में रह रहे हैं. ये प्रथा मूलतः विवाहित पुरुष और पत्नी के अलावा किसी दूसरी महिला मित्र के साथ रहने को सामजिक मान्यता देने के लिए एक ढाल का काम करती रही है.
इस्लामी क़ानून वक़्त के साथ नहीं बदले?
बहुत सारे प्रगतिशील लोगों को लगता है कि अब समय के साथ बदलने का वक़्त आ गया है और बहुत सारे समाज सुधारों की आवश्यकता ज़रूरी हो गई है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संदीप महापात्रा बीबीसी से कहते हैं कि हिंदू समाज ने कई सुधारों का दौर देखा है. इसलिए समय समय पर कई प्रथाएं पूरी तरह समाप्त हो चुकी हैं. लेकिन मुस्लिम समाज में सामाजिक स्तर पर सुधार के काम नहीं हुए हैं और बहुत ही प्राचीन मान्यताओं के आधार पर ही सबकुछ चल रहा है.
उन्होंने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा कि अगर ये लागू होता है तो इसमें ज़्यादा लाभ हर समाज की महिलाओं को होगा जो पितृसत्ता का शिकार होने को मजबूर हैं.
पेशे से वकील महापात्रा कहते हैं कि जिस तरह भारतीय दंड संहिता और 'सीआरपीसी' सब पर लागू हैं, उसी तर्ज़ पर समान नागरिक संहिता भी होनी चाहिए, जो सबके लिए हो-चाहे वो हिंदू हों मुसलमान या फिर किसी भी धर्म को माननेवाले क्यों ना हों.
संदीप महापात्रा कहते हैं, "बहस वहाँ शुरू होती है जहाँ हम मुसलमानों की बात करते हैं. 1937 से मुस्लिम पर्सनल लॉ में कोई सुधार नहीं हुए हैं. समान नागरिक संहिता की बात आज़ादी के बाद हुई थी, लेकिन उसका विरोध हुआ जिस वजह से उसे 44वें अनुच्छेद में रखा गया. मगर यह संभव है. हमारे पास गोवा का उदाहरण भी है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है."
समान नागरिक संहिता बाकी धर्मों पर 'थोपी' जाएगी?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव वाली रहमानी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि भारत विभिन्नताओं का देश है. धर्मों, यातियों और जनजातियों की अपनी प्रथाएं हैं. उनका कहना है कि समान नागरिक संहिता पर सिर्फ राजनीति हो सकती है मगर किसी का भला नहीं हो सकता.
उनका कहना था कि सभी धर्माविलाम्बी अपनी संस्कृति और परमपराओं के अनुसार चलने के लिए स्वतंत्र हैं.
सामजिक कार्यकर्ता जॉन दयाल कहते हैं कि वो हर उस क़ानून का समर्थन करते हैं जो महिलाओं को सशक्त करने वाला हो और बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने वाला हो. मगर उनका आरोप है कि समान नागरिक संहिता का प्रारूप बहुसंख्यकवादी ही होगा और उसे बाक़ी सब पर थोप दिया जाएगा.
दयाल कहते हैं कि अगर सरकार समान नागरिक संहिता लाना चाहती है तो उसका प्रारूप एक छतरी जैसा होना चाहिए जिसमें सभी परम्पराओं और संस्कृतियों को साथ में लेकर चलने की बात हो. उसे थोपा नहीं जाना चाहिए क्योंकि भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक विभिनता है.
उनको लगता है कि ये बड़ी चुनौती होगी क्योंकि हिंदू धर्म में ही कई प्रचलित प्रथाएं हैं जिनको अवैध क़रार देने का जोख़िम सरकार नहीं उठा सकती है. मिसाल के तौर वो कहते हैं कि दक्षिण भारत में सगा मामा अपनी सगी भांजी से विवाह कर सकता है.
दयाल कहते हैं, "क्या सरकार इस पर प्रतिबन्ध लगाएगी? क्या सरकार, जाट और गुज्जरों या दुसरे समाज में प्रचलित प्रथाओं को समाप्त करने की पहल कर सकती है? मुझे नहीं लगता कि ये इतनी आसानी से हो पाएगा. ये एक टेढ़ी खीर है."(bbc)
-सलमान रावी
अयोध्या, 8 अगस्त (आईएएनएस)| श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि ऐसा मंदिर बनेगा, जिसमें रामलला एक हजार वर्ष तक सुरक्षित रहेंगे। फिलहाल रामलला मंदिर की नींव की ड्राइंग बनकर तैयार है। निर्माण के लिए एलएनटी कंपनी तैयार है। चंपत राय ने यहां शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण का काम चंद रोज में शुरू हो जाएगा। राम मंदिर निर्माण कार्य के बारे में जानकारी देते हुए राय ने बताया कि अब तकनीकी काम है। यह मंदिर 1000 साल तक इस सृष्टि के आंधी-तूफान को सहता रहेगा। इसलिए निर्माण में उसी तरह की तकनीकी का इस्तेमाल भी होगा।
उन्होंने कहा कि लार्सन टूब्रो के लोग नींव की ड्राइंग तैयार करने आए थे। निर्माण में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। अयोध्या विकास प्राधिकरण से 70 एकड़ भूमि में जितना निर्माण हो सकता है, उसका नक्शा पास होगा।
राय ने कहा कि निर्माण कंपनी ने अभी तक ट्रस्ट के सामने ड्राइंग पेश नहीं की है। ड्राइंग देखने के बाद नींव खोदाई और उसको भरने का कार्य शुरू होगा। मंदिर की नींव दो सौ फीट नीचे होगी।
उन्होंने कहा, "इसके साथ ही आप सभी को जानकारी दे दें कि इस मंदिर की नींव में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। इसकी नींव की खुदाई में जो भी कुछ मिलेगा, उसके लिए ट्रस्ट सतर्क रहेगा। ट्रस्ट अब विकास प्राधिकरण से यहां के संपूर्ण 70 एकड़ क्षेत्र का नक्शा पास कराएगा।"
चंपत राय ने कहा, "रामलला की जन्मभूमि पर बड़ी संख्या में प्राचीन अवशेष मिलने की उम्मीद है। हम उसको सहेज के रखेंगे।"
उन्होंने कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिए बड़ी संख्या में दानदाता सामने आ रहे हैं। जब राम जन्मभूमि परिसर की जिम्मेदारी ट्रस्ट को सौंपी गई ती तो रामलला के पास मात्र 12 करोड़ रुपये की जमा पूंजी थी। अब यह 30 करोड़ के करीब पहुंच गई है। शिला-पूजन के दिन रामलला को 49,000 रुपये का दान मिला था।
राय ने स्पष्ट रूप से कहा कि "हम अभी विदेशों से दान नहीं लेंगे।"
ट्रस्ट के महासचिव ने कहा,कि ट्रस्ट में अब तक 30 करोड़ रुपये आ चुके हैं। इसमें से 12 करोड़ रुपये ट्रस्ट के पास पहले से ही थे। उन्होंने यह भी बताया कि "शिवसेना की पर्ची मिली है और एक करोड़ रुपये आ गए हैं, जिसको मैं समझता हूं कि उद्धव ठाकरे के सहयोग से आया होगा और उनका संदेश हमें प्राप्त हुआ है कि अभी और पैसा वे भेजेंगे।"
चंपत राय ने कहा कि मोरारी बापू के सहयोग से 4 दिन में 11 करोड़ रुपये ट्रस्ट में आए। गुजरात के एक बनवासी संत हैं, उन्होंने 51 लाख रुपये देने की बात कही है और 11 लाख रुपये 5 तारीख को दे भी दिए हैं। उन्होंने कहा कि जगत गुरु रामभद्राचार्य ने भी एक करोड़ 51 लाख रुपये लिख लेने को कह दिया है, अभी प्राप्त नहीं हुआ है।
बाबा रामदेव ने कितना दिया? यह पूछे जाने पर उन्होंने कहा,"बाबा रामदेव हमारे घर के हैं, हमने अभी उनसे मांगा नहीं है, जल्द मांगेंगे।"
इतालवी मरीन मामला
नई दिल्ली, 8 अगस्त (आईएएनएस)| इटली के दो नौसैनिकों द्वारा केरल के मछुआरों की हत्या मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि जब इटली की ओर से पीड़ितों को मुआवजा मिल जाएगा, तब वह मुकदमे को वापस लेने की अनुमति दे सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह पीड़ितों के परिवार का पक्ष सुने बिना इस मामले को बंद नहीं करेंगे। प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रह्मण्यन ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, चेक (मुआवजे की राशि) और पीड़ितों के परिजनों को यहां लाएं।
पीठ ने उल्लेख किया कि शीर्ष अदालत तब तक इतालवी नौसैनिकों के लिए किसी राहत के बारे में नहीं सोच सकती है, जब तक कि उनके अभियोजन को केरल की अदालत में वापस नहीं लिया जाता है। मेहता ने कहा कि केंद्र दोनों नौसैनिकों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के लिए याचिका दायर करने को तैयार है।
प्रधान न्यायाधीश ने जवाब दिया, लेकिन पीड़ितों के परिवार को एक समस्या होगी। उन्हें सुनना होगा।
मेहता ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि केंद्र भारत में इतालवी नौसैनिकों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के पक्ष में है, क्योंकि इटली उन पर मुकदमा चलाने के लिए तैयार है। पीठ ने कहा कि मृतक के परिजन को सुने बिना वह मामला बंद नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल मेहता को एक सप्ताह के भीतर पीड़ितों के परिवारों को मामले में शामिल करने के लिए आवेदन दायर करने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने दो इतालवी नौसैनिकों - मैसिमिलियानो लाटोरे और सल्वाटोर गिरोन द्वारा दायर लंबित याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी।
उल्लेखनीय है कि 15 फरवरी, 2012 को मछली पकड़ने के जहाज सेंट एंटोनी में सवार दो भारतीय मछुआरों को कथित तौर पर केरल के तट से दूर इतालवी टैंकर 'एनरिका लेक्सी' में सवार दो इतालवी नौसैनिकों ने मार डाला था।
इसके बाद भारतीय नौसेना ने इतालवी टैंकर को रोक दिया और दोनों नौसैनिकों को हिरासत में ले लिया। इन नौसैनिकों में एक सैनिक दो साल और एक सैनिक चार बाद रिहा हुआ, जिसके बाद वह अपने देश इटली लौटे। यह मामला भारत की अदालत से होता हुआ अंतर्राष्ट्रीय अदालत तक भी पहुंचा।
बीजिंग, 8 अगस्त (आईएएनएस)| अमेरिका में कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है, अब तक 48 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि एक लाख 60 हजार लोगों की मौत हो गयी है। इस बीच एक चौकाने वाली अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो यह वायरस अल्पसंख्यक जाति के बच्चों और कमजोर सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों को अपनी चपेट में ज्यादा ले रहा है। इस स्टडी के दौरान वाशिंगटन में 21 मार्च से 28 अप्रैल के बीच एक हजार बाल रोगियों का परीक्षण किया गया। अध्ययन में पाया गया कि श्वेत बच्चों में से केवल 7.3 फीसदी ही कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए। जबकि 30 प्रतिशत अश्वेत बच्चे वायरस से संक्रमित पाए गए। वहीं हिस्पैनिक बच्चों में वायरस के संक्रमण की दर 46.4 फीसदी थी।
शोधकर्ताओं ने पेडियाट्रिक्स जर्नल में लिखा है कि अश्वेत बच्चों में श्वेत बच्चों की तुलना में वायरस का जोखिम तीन गुना ज्यादा था। इस बाबत सभी रोगियों की बुनियादी जनसांख्यिकीय जानकारी जुटाई गयी, उसके बाद अनुसंधान टीम ने उक्त लोगों के परिवार की आय का अनुमान लगाने के लिए सर्वेक्षण डेटा का उपयोग किया।
परीक्षण किए गए रोगियों में से लगभग एक तिहाई अश्वेत थे, जबकि लगभग एक चौथाई हिस्पैनिक थे।
जिन एक हजार लोगों का टेस्ट किया गया, उनमें से 207 वायरस से संक्रमित हुए थे, उनमें से उच्च आय वर्ग के महज 9.7 फीसदी ही संक्रमित थे, जबकि सबसे कम आय वर्ग के 37.7 प्रतिशत लोग वायरस की चपेट में आए थे।
विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस के संक्रमण को लेकर इतनी असमानता की वजह स्वास्थ्य देखभाल और संसाधनों तक सीमित पहुंच, साथ ही पूर्वाग्रह और भेदभाव आदि के चलते हो सकती हैं। हालांकि शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका सटीक कारण समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
वैसे यह बात जाहिर है कि अल्पसंख्यक और कमजोर सामाजिक आर्थिक वर्ग के लोगों की प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों तक कम पहुंच होती है, जिसका मतलब यह है कि इस अध्ययन में असमानता वास्तविकता से अधिक बड़ी हो सकती है।
जिस तरह से अमेरिका में कमजोर वर्ग और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों में वायरस के संक्रमण के मामले ज्यादा देखे गए हैं, उससे पता चलता है कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश में सामाजिक असमानता बहुत बढ़ गयी है। क्योंकि इससे पहले भी अमेरिका में वयस्क नागरिकों को लेकर इसी तरह की रिपोर्ट सामने आयी थी जिसमें श्वेत लोगों में वायरस के संक्रमण की दर कम पायी गयी थी।